कहीं आपकी त्वचा भी तो नहीं हो रही बूढ़ी?

अक्सर जब महिलाओं की त्वचा पर झुर्रियां पड़ने लगती है तो उन्हें लगता है कि वह बूढ़ी हो रही हैं लेकिन झुर्रियां पड़ने का मतलब बूढ़ा होना नही है, इसके कई अलग-अलग कारण भी होते हैं. इन कारणों को जानना बहुत ही जरुरी है क्‍योंकि तभी आप इसके लिये उपाय ढूंढ पाएंगी. यहां पर कुछ कारण दिये गए हैं जिनसे झुर्रियां पड़ती हैं और त्वचा बूढ़ी दिखाई देने लगती है.

टीवी देखना

क्‍या आप जानती हैं कि टीवी देखने से ना केवल आंखों पर ही नहीं बल्‍कि त्‍वचा पर भी झुर्रियां पड़ती हैं. अगर आप ज्‍यादा देर तक टीवी देखेंगी तो उसमें से निकलने वाली किरणे आपकी आंखों और त्‍वचा को नुक्‍सान पहुंचाएगी.

प्रदूषण

अगर आप रोजाना औफिस के लिये बाहर धूप में निकलती हैं तो भी आप झुर्रियों की चपेट में आ सकती हैं. गा‍ड़ियों से निकलने वाला गंदा धूआं जिसमें ना जाने कितने प्रकार के केमिकल मिले होते हैं, वह सब आपकी त्‍वचा का प्राकृतिक लचीलापन छीन लेते हैं और आपको जल्‍दी बूढा बनाते हैं.

अत्‍यधिक क्‍लीजिंग

किसी भी चीज का अत्‍यधिक इस्‍तमाल हमेशा बुरा होता है. क्‍या आप जानती हैं कि बार-बार दिन में क्‍लीजिंग करने से चेहरे का नेचुरल औयल समाप्‍त हो जाता है और झुर्रियां पड़ने लगती हैं. क्‍लींजर का प्रयोग दिन में केवल एक या दो बार ही करना चाहिये.

काम का तनाव

काम आपकी स्‍किन को दो प्रकार से प्रभावित कर सकता है. एक तो तनाव और दूसरा एयर कंडीशनर. स्‍ट्रेस बहुत तेजी से एजिंग बढाती है इसलिये हमेशा खुश रहा करें. साथ ही एयर कंडीशनर भी आपकी स्‍किन से सारी नमी छीन लेती है और स्‍किन को ड्राई बना देती है.

पीने का तरीका

आप कोई भी पेय किस प्रकार से पीती हैं, वह भी आपको बूढा बना सकता है. जब आप ड्रिंक को स्‍ट्रा से पीती हैं तब आपके गालों और होंठो पर ज्‍यादा प्रेशर पड़ता है. जिस वजह से झुर्रियां हो जाती हैं और आप जल्‍द ही बूढी होने लगती हैं.

मीठा खाना

आप जो कुछ भी खाती हैं उसका असर आपकी स्‍किन पर भी पड़ता है. अगर आपको खाने में मीठा पसंद है तब तो आपको जरुर झुर्रियां पडे़गी. खून में ज्‍यादा शुगर से त्‍वचा ढीली पड़ने लगती है और झुर्रियां पड़ने लगती हैं.

तो शादी करने जा रहे हैं अर्जुन कपूर-मलाइका

अर्जुन कपूर और मलाइका अरोड़ा के अफेयर की खबरें लगातार चर्चा में बनी हुई हैं. हाल ही में एक चैट शो के दौरान मलाइका ने अर्जुन को लेकर कहा था कि वह मुझे ऐसे भी और वैसे भी पसंद हैं. इस बीच इन दोनों के रिश्ते से जुड़ी बड़ी खबर सामने आई है. खबरों की मानें तो यह दोनों इस साल अप्रैल में क्रिश्चियन रिवाज से शादी करेंगे. कहा जा रहा है कि उनकी शादी में सिर्फ रिश्तेदार और करीबी दोस्त ही शामिल होंगे.

बता दें कि मलाइका अरोड़ा और अर्जुन कपूर ने अपने रिश्ते की कभी भी आधिकारिक पुष्टि नहीं की है. हालांकि बौलीवुड स्टार्स से लेकर कुछ करीबी रिश्तेदार इन दोनों के रिश्ते की बात जरूर कह चुके हैं. यह दोनों अक्सर एक दूसरे के साथ समय बिताते हुए देखे जाते हैं. अर्जुन और मलाइका के एक दूसरे को डेट करने की खबरें लंबे वक्त से आ रही हैं. कुछ दिन पहले ऐसी खबरें भी आई थीं कि मलाइका को कपूर खानदान ने स्वीकार भी कर लिया है. ऐसे में शादी की रस्मों से जुड़ी इस तरह की खबर आना काफी बड़ी बात है.

अर्जुन और मलाइका का अफेयर इस वजह से ज्यादा चर्चा में रहा क्योंकि दोनों के बीच उम्र का फासला अधिक है. मलाइका 45 की हैं जबकि अर्जुन 33 के. यानी की मलाइका अर्जुन से 12 साल बड़ी हैं. फिलहाल यह देखना होगा कि यह दोनों अपने रिश्ते की आधिकारिक घोषणा कब तक करते हैं.

फिल्म रिव्यू : लुका छुपी

रेटिंग : दो स्टार

‘‘लिव इन रिलेशनशिप’’ की आड़ में विवादास्पद ‘‘लव जेहाद’’ के मुद्दे पर कटाक्ष करने वाली रोमांटिक कौमेडी फिल्म ‘‘लुका छुपी’’ पूर्णतः निराश करने वाली फिल्म है. सामाजिक स्वीकृत रिश्तों व धार्मिक कट्टरता पर धार्मिक अनुष्ठानों पर हास्य व्यंगात्मक कटाक्ष करने वाली यह फिल्म कमजोर पटकथा व निर्देशन के चलते पूरी तरह से बिखरी व अति सतही फिल्म बनकर रह गयी है. हास्य के नाम पर फिल्म में अस्वाभाविक व अविश्वसनीय दृश्यों की भरमार है.

Kartik-Aaryan-and-Kriti-Sanon-21

फिल्म की कहानी उत्तर प्रदेश के छोटे शहर मथुरा से शुरू होती है. जहां विनोद उर्फ गुड्डू शुक्ला (कार्तिक आर्यन) अपने पिता व दो बड़े भाईयों के साथ रहता है. गुड्डू के पिता शुक्लाजी (अतुल श्रीवास्तव) की साड़ियों की दुकान है, जहां गुड्डू के दोनों बड़े भाई बैठते हैं. जबकि गुड्डू स्वयं एक स्थानीय केबल चैनल का टीवी रिपोर्टर है. उसका दोस्त अब्बास (अपारशक्ति खुराना) इसी चैनल में कैमरामैन हैं. जबकि मथुरा शहर के पूर्व सांसद और संस्कृति रक्षा मंच के नेता विष्णु प्रसाद त्रिवेदी (विनय पाठक) ने गुंडो की फौज पाल रखी है. विष्णु प्रसाद त्रिवेदी शहर में लिव इन रिलेशनशिप के खिलाफ मुहीम चलाते हुए अपने गुंडो के मार्फत प्रेमी जोड़ा को पकड़कर उनके मुंह पर कालिख पोतकर शहर में घुमवाते हैं. त्रिवेदी की संस्था ‘‘संस्कृति रक्षा मंच’’तो अभिनेता नाजिम खान के ‘लिव इन रिलेशनशिप में रहने का विरोध कर रहे हैं. त्रिवेदी की इकलौती बेटी रश्मी त्रिवेदी (कृति सैनन) दिल्ली से मास कम्यूनीकेशन की पढ़ाई कर मथुरा आती है, तो त्रिवेदी अपने प्रयासो से पांडे के इसी केबल चैनल में गुड्डू के साथ रिपोर्टर बनवा देते हैं. धीरे धीरे दोनों में प्यार हो जाता है.

Kartik-Aaryan-and-Kriti-Sanon-21

गुड्डू का मानना है कि यदि आप प्यार में हैं, तो प्यार को मजबूती प्रदान करने के लिए शादी क्यों न कर ली जाए? जबकि रश्मी का मानना है कि भले प्यार हो, पर शादी से पहले लिव इन में रहकर प्रेमी को समझना चाहिए. मगर रश्मी के पिता ने तो लिव इन के खिलाफ कहर बरपा रखा है. इसलिए अब्बास की सलाह पर रश्मी और गुड्डू चैनल के लिए एक स्टोरी करने के बहाने ग्वालियर जाते हैं, जहां वह एक किराए के मकान में लिव इन रिलेशनशिप में रहते हैं, मगर मोहल्ले के लोगों को बताते हैं कि वह दोनों शादीशुदा हैं. पर गुड्डू के भाई का साला बाबूलाल (पंकज त्रिपाठी) ग्वालियार आता है और वह गुड्डू के बारे में जानकर मथुरा से गुड्डू के पूरे परिवार को ले आता है. फिर वह सपरिवार मथुरा पहुंचते हैं.

मथुरा में गुड्डू के माता पिता रश्मी के पिता त्रिवेदी से मिलते हैं और अंत में त्रिवेदी जी अपने सम्मान के लिए एक छोटा सा समारोह कर चैनल के माध्यम से सूचना देते हैं कि उनकी बेटी की शादी गुड्डू से हो गयी. इधर रश्मी उदास रहती है कि गुड्डू के माता पिता उसे इज्जत दे रहे हैं और वह उन्हें धोखा दे रही है. इसलिए अब वह व गुड्डू दोनों शादी करना चाहते हैं. अब्बास की सलाह पर जब भी परिवार से छिपकर गुड्डू व रश्मी शादी करने मंदिर पहुंचते हैं, मामला बिगड़ जाता है. अंततः वह दोनों अग्रवाल सामूहिक विवाह में शादी करने पहुंचते हैं, जहां त्रिवेदी के पहुंचने से सच सामने आ जाता है. पर वहीं पर दोनों की शादी हो जाती है. पर उससे पहले गुड्डू, विष्णु प्रसाद त्रिवेदी को लंबा चौड़ा भाषण सुनाता है जो कि वर्तमान सरकार को फायदा पहुंचाने वाला राजनीतिक बयानबाजी के अलावा कुछ नहीं.

Kartik-Aaryan-and-Kriti-Sanon-21

कैमरामैन से निर्देशक बने लक्ष्मण उतेकर ने अपनी फिल्म के लिए एक बेहतरीन विषय उठाया, मगर इसे वह सिनेमा के परदे पर सही ढंग से उतारने में विफल रहे. यदि फिल्म की पटकथा पर ध्यान दिया गया होता, तो यह एक तेज तर्रार हास्यपूर्ण बेहतर फिल्म बन सकती थी. फिल्म में गुड्डू व रश्मी के बीच कुछ सुंदर सेंसुअल दृश्य भी हैं. पर कथानक व पटकथा लेखन के स्तर पर लेखक व निर्देशक इस कदर भटक गए कि मूल विषय पर ध्यान केंद्रित करने की बजाय पड़ोसियों की चुहुलबाजी, प्रपंच आदि भर दिया, जिसके चलते एक गंभीर विषय महज लोगों के शोरगुल व ठहाकों के बीच गुम होकर रह गया. पंकज त्रिपाठी का बाबूलाल का किरदार सही रखा गया, मगर महज हास्य के लिए बाबूलाल को कुछ ऐसे संवाद दे दिए गए, जिससे फिल्म बहुत ही सस्ती व घटिया स्तर की बन कर रह गयी.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो बाबूलाल के किरदार में पंकज त्रिपाठी ने अपनी तरफ से  सर्वश्रेष्ठ देने का प्रयास किया, मगर लेखक की तरफ से उन्हें दिए गए संवादों ने सारा बेड़ा गर्क कर दिया. अब्बास के किरदार में अपारशक्ति खुराना जरुर अपने अभिनय की छाप छोड़ने में कामयाब हुए हैं. कार्तिक आर्यन व कृति सैनन कुछ दृश्यों में जरुर अच्छे लगते हैं, मगर पूरी फिल्म के परिप्रेक्ष्य में निराशा होती है.

Kartik-Aaryan-and-Kriti-Sanon-21

दो घंटे छह मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘लुका छुपी’’ का निर्माण दिनेश वीजन ने ‘मैडौक फिल्मस’’ के बैनर तले किया है. फिल्म के निर्देशक लक्ष्मण उतेकर, लेखक रोहण शंकर, संगीतकार तनिष्क बागची, व्हाइट नौयजव अभिजीत वघाणी, कैमरामैन मिलिंद जोग तथा कलकार हैं- कार्तिक आर्यन, कृति सैनन, अपारशक्ति खुराना, पंकज त्रिपाठी, अतुल श्रीवास्तव, विनय पाठक, अरूण सिंह व अन्य.

फिल्म रिव्यू : सोन चिड़िया

रेटिंग : दो स्टार 

‘इश्किया’, ‘डेढ़ इश्किया’, ‘उड़ता पंजाब’ जैसी गाली गलौज और हिंसा प्रधान फिल्मों के निर्देशक अभिषेक चौबे इस बार सत्तर के दशक के चंबल के बीहड़ की पृष्ठभूमि पर डाकुओं की कहानी लेकर आए हैं, जिसमें उन्होंने श्राप, अंतर आत्मा की आवाज को सुनने से लेकर जातिवाद यानी कि गुर्जर बनाम ठाकुर की लड़ाई पेश की है. मगर पूरी फिल्म कहीं से भी प्रभावित नहीं करती.

फिल्म की कहानी के केंद्र में डाकू मान सिंह (मनोज बाजपेयी) का गिरोह है, जो कि ठाकुरों का गिरोह है. यह गिरोह औरतों पर हाथ नहीं उठाता. मगर इन पर गुर्जर जाति को समूल नष्ट करने के लिए एक पांच वर्ष की लड़की का श्राप है. इस गैंग में लखना (सुशांत सिंह राजपूत),वकील सिंह (रणवीर शौरी) जैसे कई डाकुओं का समावेश है. मगर इस डाकुओं के इस गिरोह को समूल नष्ट करने के लिए मध्य प्रदेश पुलिस के इंस्पेक्टर वीरेंद्र सिंह गुज्जर (आषुतोश राणा) ने कसम खा रखी है. इधर मान सिंह का गिरोह ईश्वर में आस्था रखने के साथ ही अपने वजूद को लेकर सवाल उठाने के अलावा अपने जीने की वजहें भी तलाशता रहता है. डाकू लखना सहित कुछ के मन में यह विचार आ रहा है कि वह सरकार के सामने आत्मसमर्पण करके नई जिंदगी जिए. बीहड़ के जंगलों में भटकते हुए एक दिन अचानक इस गिरोह को रास्ते में मरा हुआ सांप मिलता है, जिसके कुछ हिस्से गिद्ध नोंच चुके हैं, गिरोह के सदस्य चाहते हैं कि रास्ता बदल दिया जाए,मगर मान सिंह अपनी बंदूक से उस सांप को उठाकर एक किनारे पर रखकर गिरोह को आगे बढ़ने का आदेश देते हैं.उसके बाद लच्छू आकर उन्हे सूचना देता है कि ब्राम्हणपुरी के गांव में सुनार की बेटी की शादी है. इसे यह गिरोह लूटने जाता है, जबकि लच्छू ने मानसिंह को बताया था कि वह पुलिस के कहने पर ही सूचना देने आया है और लच्छू के पिता को पुलिस ने बंदी बना रखा है. मानसिंह अपने गिरोह के साथ सुनार के यहां पहुंचते हैं, जहां पुलिस इंस्पेक्टर वीरेंद्र सिंह गुज्जर अपने साथी पुलिस वालों की मदद से मान सिंह सहित कई डाकुओं को मौत के घाट उतार देते हैं. जबकि लखना व वकील सिंह जैसे कुछ डाकू सुरक्षित भागने में कामयाब हो जाते हैं. उधर रास्ते में मजबूर  इंदूमती तोमर (भूमि पेडणेकर) व बलात्कार की शिकार अछूत जाति की छोटी लड़की सोन चिड़िया मिलती है, जिसकी मदद करने के लिए लखना तैयार हो जाता है. मगर यहीं से लखना व वकील के बीच दूरी हो जाती है. अब यह गिरोह दो भागां में विभाजित हो जाता है. कहानी कई मोड़ों से गुजरती है. अंततः वकील सिंह व लखना सहित तमाम डाकू मारे जाते हैं. पर अंत में एक ठाकुर जाति का पुलिस सिपाही, पुलिस इंस्पेक्टर वीरेंद्र सिंह गुज्जर को मौत दे देता है.

movie review of son chidiya

फिल्म में प्रकृति के नियम का उल्लेख है कि ‘सांप, चूहे का शिकार करता है और बाज सांप का. यानी कि नियम है कि मारने वाला भी एक दिन मारा जाएगा. प्रकृति के इसी नियम को ढाल बनाकर फिल्मकार अभिषेक चौबे ने बीहड़ के डाकुओं की कहानी के साथ साथ जातिप्रथा, पितृसत्तात्मक सोच, लिंग भेद, अंधविश्वास का चित्रण करने के साथ ही न्याय करने और बदला लेने के बीच के अंतर का जिक्र करते हुए पूरी फिल्म को चूं चूं का मुरब्बा बनाकर रख दिया है. फिल्म में गंदी गालियों, बंदूकों की आवाज, खूनखराबे की ही भरमार है. फिल्म 70 के दशक कें डाकुओं के जीवन को सही परिप्रेक्ष्य में चित्रित करने में भी बुरी तरह से असफल रहती है. फिल्मकार पूरी तरह से भटके हुए नजर आते हैं. काश फिल्मकार अभिषेक चौबे ने 1996 की निर्देशक शेखर कपूर की फिल्म ‘बैंडिट क्वीन’ और 2012 में तिग्मांशु धुलिया की फिल्म ‘पान सिंह तोमर’ देखकर कुछ सीखा होता, तो वह तमाम गलतियां करने से बच जाते. बीहड़ में भटक रहे डाकुओं को अपने माथे पर तिलक लगाने की फुर्सत नही होती है. पूरी फिल्म यथार्थ से कोसों दूर है. फिल्म में संवादों की भरमार है.

फिल्म का नाम सोन चिड़िया है यानी कि सोने की चिड़िया की तलाश. मगर फिल्मकार इसके साथ भी न्याय नहीं कर पाए. फिल्म में एक अछूत बलात्कार की शिकार छोटी लड़की के हाथ पर उसका नाम सोन चिड़िया लिखा हुआ है, मगर इसे ठीक से फिल्म की कहानी का हिस्सा बना पाने में अभिषेक चौबे असफल रहे हैं.

इतना ही नहीं 21वीं सदी में यह फिल्म बनाते हुए अभिषेक चौबे ने फिल्म में दो महिला पात्र खास तौर पर रखे हैं और इन पात्रों को महज ‘संपत्ति’ के रूप में ही उपयोग किया है. जातिगत संघर्ष पर रोशनी डालते हुए फिल्म में एक संवाद है- ‘‘औरत की जाति अलग होती है’’ अपने आप में गाल पर तमाचा है. क्या इस तरह के संवाद होने चाहिए? यह सवाल तमाम दर्शक पूछते नजर आए.

movie review of son chidiya

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो मान सिंह के छोटे से किरदार में मनोज बाजपेयी को छोड़कर सभी कलाकार अपने किरदारों के साथ न्याय करने में पूरी तरह से विफल रहे हैं. भूमि पेडणेकर के करियर की यह चौथी, मगर सबसे कमतर अभिनय वाली फिल्म रही. गुर्जर जाति के पुलिस इंस्पेक्टर वीरेंद्र सिंह के किरदार में आशुतोष राणा जरुर याद रह जाते हैं.

फिल्म के कैमरामैन अनुज राकेश धवन की जितनी तारीफ की जाए, उतनी कम है. उन्होने अपने कैमरे के माध्यम से वीरान चंबल की घाटी को बहुत ही उत्कृष्ट तरीके से परदे पर उकेरा है. फिल्म का गीत संगीत भी प्रभावित नहीं करता.

दो घंटे 23 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘सोन चिड़ैया’’ का निर्माण रौनी स्क्रूवाला ने ‘‘आरएसवीपी मूवीज’’के बैनर तले किया गया है. फिल्म के निर्देशक अभिषेक चौबे, लेखक अभिषेक चौबे व सुदीप शर्मा, संगीतकार विशाल भारद्वाज, कैमरामैन अनुज राकेश धवन तथा कलाकार हैं- सुशांत सिंह राजपूत,भूमि पेडणेकर, मनोज बाजपेयी,रणवीर शौरी,आशुतोष राणा,अमित सियाल, महेश बलराज, श्रीधर दुबे, मंजोत सिंह, सुहेल नायर, शाहबाज खान, अंशुमन झा, जतिन समा, जितेन समीन, अब्दुल कादिर अमीन, भौमिक रंजन,देव उपाध्याय, नवदीप तोमर, विवेक सिंह, धीरज सिंह व अन्य.

डिप्रेशन से बचना है तो करिए जौगिंग

खराब लाइफस्टाइल और खराब खानपान का नतीजा है लोगों में बढ़ते डिप्रेशन का कारण. डिप्रेशन से बचने के लिए लोग तरह तरह की दवाइयों का सेवन करते हैं. पर इस खबर में हम आपको डिप्रेशन से बचने के लिए एक बेहद आसान तरीका बताने वाले हैं. अगर आप रोज 15 मिनट रोज जौगिंक करती हैं या कोई व्यायाम करती हैं तो डिप्रेशन का खतरा काफी कम हो सकता है.

हाल ही में हुई एक स्टडी की माने तो अगर हम हर रोज सिर्फ 15 मिनट जौगिंक करते हैं तो डिप्रेशन की खतरा काफी कम हो सकता है. अगर आप जौगिंग नहीं करना चाहती तो इसकी जगह पर आप कोई भी शारीरिक व्यायाम कर सकती हैं.

बहुत से एक्सपर्ट्स का मानना है कि जो लोग डिप्रेशन के शिकार हैं अगर वो रोज सुबह जैगिंग करते हैं तो उनके लिए ये बेहद कारगर होगा. ऐसा करने से हार्ड 50 प्रतिशत और तेजी से पंप करने लगता है. आपको बता दें कि इस स्टडी में 6 लाख से अधिक लोग शामिल थे. इन लोगों में से कुछ को एक्सेलेरोमीटर पहनाए गए थे, वहीं कुछ ने अपने फिजिकल वर्क की सेल्फ रिपोर्टिंग  की थी. इस एक्सपेरिमेंट से ये समझ में आया कि जिन लोगों ने एक्सेलेरोमीटर पहने थे और एक्सरसाइज भी की थी, उनमे डिप्रेशन का खतरा कम था उन लोगों के तुलना में जिन्होंने एक्सेलेरोमीटर नहीं पहने थे. स्टडी से ये भी साफ हो गया है कि आपके डीनए (DNA)का डिप्रेशन से कोई लेना देना नहीं है.

डिप्रेशन जेनेटिक परेशानी नहीं है, इसका ये मतलब हुआ कि अगर आपके माता, पिता को ये समस्या है तो जरूरी नहीं कि ये आपको भी हो. ऐसे में आप 20 30 मिनट जौगिंग कर के इस समस्या से निजात पा सकती हैं.

अगर सफर के दौरान दिखना चाहती हैं तरोताजा

जब आप लम्बी यात्रा करती हैं  बेशक आप बोर होती होंगी. और पूरे रास्‍ते सोने की कोशिश करती होंगी. पर क्या आप जानती हैं कि सोने से भी आपकी चेहरे की ताजगी चली जाती है. यात्रा के दौरान भी आपको फ्रेश दिखना जरूरी होता है. तो आइए बताते हैं आप कैसे यात्रा के दौरान तरोताजा और ऊर्जावान दिख सकती हैं.

– यात्रा के दौरान आपकी स्किन सही रहे, इसके लिए अपने खाने का पूरा ध्‍यान रखें. समय पर खाएं और  ड्राई फ्रूट्स खाते रहें.

– अपनी यात्रा के दौरान अपने बैग में मौइश्‍चराइजिंग लोशन जरूर रखें. स्किन के ड्राई होने पर ये आपकी    काफी मदद करेगा.

– जहां भी जाएं पानी खूब पीएं, इससे आपका शरीर स्वस्थ रहे और चेहरा तरोताजा और खिला नजर आए. शरीर को हाइड्रेट रखने से आपको यात्रा के दौरान होने वाली थकान और सिरदर्द का सामना नहीं करना पड़ेगा.

– कहीं भी जाने से पहले वहां के मौसम की पूरी जानकारी हासिल कर लें, ताकि आप उसके अनुसार क्रीम   का सेलेक्‍शन कर सकें.

– यात्रा के दौरान होठों की देखभाल भी जरूरी है, क्योंकि यह फट सकते हैं, इसलिए होंठ में कोमलता व     नमी बनाए रखने के लिए लिप बाम या लिप ग्लास जरूर लगाएं.

– यात्रा के दौरान पसीना पोंछने या चेहरा साफ करने के लिए क्लीजिंग वाइप्स जरूर अपने साथ रखें. रात   में क्लीजिंग मिल्क से चेहरा साफ करना नहीं भूलें.

– घूमने-फिरने के दौरान स्वस्थ आहार लें. फलों और सब्जियों का सेवन करें. जंक फूड के सेवन से आपकी   सेहत खराब हो सकती है और चेहरा भी नीरस और रूखा नजर आ सकता है.

चटपटे दही वड़ा रेसिपी

सामग्री :

– दही (1/2 लीटर)

– धोई उड़द की दाल (250 ग्राम)

– शक्कर (02 बड़े चम्मच)

– किशमिश (01 बड़ा चम्मच)

– भुना जीरा (डेढ़ छोटा चम्मच)

– हरी मिर्च (03 नग)

– ज़ीरा (01 छोटा चम्मच)

– हींग (1/4 छोटा चम्मच)

– चाट मसाला पाउडर (02 छोटे चम्मच)

– तेल (तलने के लिए)

– नमक (स्वादानुसार)

दही वड़ा बनाने की विधि :

– सबसे पहले उड़द की दाल आठ घंटे के लिए भि‍गा दें.

– उसके बाद दाल ग्राइंडर में दाल, हरी मिर्च, ज़ीरा, हींग डाल कर पीस लें.

– पिसी हुई दाल में किशमिश मिलाकर उसके छोटे-छोटे बरे बना लें.

– उसके बाद एक पैन में तेल गर्म करें और बरों को अच्छी तरह से तल लें.

– तले हुए बरों को दो से तीन मिनट के लिए पानी में डाल दें.

– उसके बाद उन्हें निकाल कर एक बर्तन में रख लें.

– दही को अच्छी तरह से फेंट कर उसमें शक्कर और भुना जीरा मिला लें.

– आवश्यकतानुसार दही में पानी मिलाकर गाढ़ा घोल बना लें.

– उसके बाद दही में बड़े डाल कर फ्रीज़ में रख दें.

– अब आपकी दही वड़ा बनाने की विधि कम्‍प्‍लीट हुई.

इन चीजों को डाइट में शामिल कर दूर करें जोड़ों का दर्द

बढ़ते उम्र के साथ लोगों को घुटने में दर्द की शिकायत होने लगती है. इसे आर्थराटिस भी कहते हैं. ये कई तरह के होते हैं. पर प्रमुखता से इसे दो हिस्सों में बांटा गया है. औस्टियोआर्थराइटिस और ह्यूमनौयड आर्थराइटिस. आम तौर पर लोग इसका सही से देखभाल नहीं करते हैं, पर सही देखरेख में इसका इलाज संभव है. दवाइयों के अलावा आर्थराइटिस के मरीजों को अच्छे खानपान की भी जरूरत होती है. इस खबर में हम आपको कुछ खाद्य पदार्थों के बारे में बताएंगे जिनको अपनी डाइट में शामिल कर
आप इस बीमारी से नीजात पा सकती हैं.

लहसुन

इस बीमारी में लहसुन काफी असरदार होता है. इसके सेवन से जोड़ के दर्द में खासा आराम मिलता है.

हल्दी

हल्दी में करक्यूमिन पाई जाती है जो आर्थराइटिस में काफी मददगार होती है. इससे जोड़ों का दर्द कम होता है. आर्थराइटिस के मरीज अपनी डाइट में हल्दी जरूर शामिल करें. इसके अलावा कास्टर औयल में मिलाकर हल्दी को अपने जोड़ों पर भी लगा सकते हैं.

फैटी फिश

सेलमन, कोड, टूना जैसी मछलियां फैटी फिश हैं. इनमें ओमेगा-3 फैटी एसिड और निटामिन डी भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. मांसपेशियों के सूजन को दूर करने में ये काफी लाभकारी होता है. इसके अलावा सोयाबीन, अखरोट का सेवन करना भी काफी असरदार होता है.

फल और सब्जियां

इस बीमारी में फल और सब्जियों का सेवन बेहद जरूरी है. आर्थराइटिस के मरीजों को फल और सब्जियों का सेवन करते रहना चाहिए. फल और सब्जियों में डाइजेस्टिव एंजाइम्स, एंटी-इंफ्लामेट्री कंपाउंड शामिल होते हैं, जो आर्थराइटिस की समस्या को दूर करते हैं. इसके अलावा फलों में पपीता, पाइनएप्पल भी काफी असरदार होते हैं.

आयकर से रिफंड पाना है तो आज ही कराएं ये काम

अगले महीने से आयकर विभाग विभाग इलेक्ट्रौनिक मोड से करदाताओं के खाते में रिफंड ट्रांसफर करेगा. इसके लिए जरूरी शर्त है कि करदाताओं को अपने बैंक खाते से पैन कार्ड को लिंक करना होगा.

आयकर विभाग का कहना है कि जैसे ही रिफंड जारी किया जाएगा रकम को सीधे करदाताओं के खाते में ट्रांसफर कर दिया जाएगा. आयकर विभाग मार्च 2019 के ई-रिफंड जारी करेगा. विभाग की ओर से बुधवार को जारी की गई पब्लिक एडवाइजरी में कहा गया कि अपना रिफंड सीधे, आसान और सुरक्षित तरीके से प्राप्त करने के लिए अपने पैन नंबर को बैंक खाते से लिंक करा लें. एडवाइजरी में कहा गया है कि बैंक अकाउंट सेविंग (बचत), करेंट (चालू), नकद या ओवरड्राफ्ट खाता हो सकता है.

वर्तमान स्थिति की बात करें तो आयकर विभाग करदाताओं का रिफंड बैंक खाते में या चेक के माध्यम से देता है. विभाग ने वेबसाइट पर जानकारी दी कि करदाता विभाग की ई-फाइलिंग वेबसाइट https://www.incometaxindiaefiling.gov.in/ पर लौग इन करके यह पता कर सकते हैं कि उनका बैंक खाता पैन से जुड़ा है या नहीं. जनकारी में ये भी कहा गया है कि जिन लोगों का पैन खात से नहीं लिंक है वो नजदीकी शाखा में जा कर अपने बैंक खाते को पैन कार्ड से लिंक कर लें और इसे आयकर विभाग की ई-फाइलिंग की वेबसाइट पर जा कर वैलिडेट कर लें.

मुझे इंडस्ट्री एक गैम्बल लगती है : कार्तिक आर्यन

फिल्म ‘प्यार का पंचनामा’ से फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखने वाले अभिनेता कार्तिक आर्यन मध्यप्रदेश के ग्वालियर के हैं. बचपन से ही वे शरारती थे और पढाई में बिल्कुल मन नहीं लगता था, जिससे उन्हें कई बार अपने माता-पिता से डांट भी पड़ती थी, लेकिन अभिनय करना उन्हें पसंद था और वे स्कूल कौलेज में अधिकतर नाटकों में भाग लिया करते थे. स्कूल की पढाई के बाद वे दिल्ली और फिर मुंबई पढाई के लिए आए और यहां पर पढ़ाई के साथ – साथ फिल्मों में काम के लिए औडिशन भी देने लगे. ऐसे ही उन्हें पहली फिल्म मिली और वे पढाई छोड़कर अभिनय के क्षेत्र में आ गए. पहली फिल्म की सफलता के बाद उनकी पहचान बनी और उन्होंने कई फिल्मों में काम किया. विनम्र और हंसमुख स्वभाव के कार्तिक से फिल्म ‘लुकाछिपी’ के प्रमोशन पर बात करना रोचक था, पेश है कुछ अंश.

ये फिल्म लिव इन रिलेशनशिप पर आधारित है, आप इस पर कितना विश्वास करते हैं?

मैंने कभी इस बारें में सोचा नहीं है कि ये सही है या गलत. मेरे हिसाब से जब दो लोग साथ रहने का निश्चय लेते हैं तो उसमें कुछ गलत नहीं होता. हां ये सही है कि जिस समाज में हम रहते हैं वहां इसे सही नहीं कहा जाता. असल में ये सब आपकी सोच पर निर्भर करता है. मेरे साथ शादी करने वाली लड़की अगर शादी से पहले मेरे साथ रहकर देखना चाहे कि वह मेरे साथ शादी कर रह सकती है या नहीं, तो मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी.

अभी आपको अच्छी फिल्में मिल रही हैं, सभी निर्देशक आपको नोटिस कर रहे हैं, आपका इस बारें में क्या कहना है?

मैं बहुत खुश हूं कि केवल इंडस्ट्री ही नहीं, बल्कि दर्शक भी मेरे काम की सराहना कर रहे हैं. सालों बाद फिल्म ‘सोनू के टीटू की स्वीटी’ की सफलता के बाद वह रात आई है, जिसकी मेरी इच्छा थी. 7 साल के संघर्ष के बाद मुझे स्टारडम मिला है. भविष्य में भी ऐसा रहे, लोग मुझे नयी-नयी भूमिका में देखें, ऐसा कोशिश करता रहूंगा.

एक्टिंग एक इत्तफाक था या बचपन से ही आप इस क्षेत्र में आना चाहते थे?

बचपन से मुझे अभिनय का शौक था. मैं तब फिल्में बहुत देखता था और मेरा रुझान ग्लैमर की तरफ अधिक था. उस समय मैं ग्वालियर में एक साधारण परिवार से था, एक्टिंग क्या होती है, कुछ भी पता नहीं था, लेकिन ये करना है इसकी सोच मेरे अंदर कक्षा नौ से आ चुकी थी.

स्टारडम मिलने के बाद आपने कुछ मानक तैयार किये हैं, ताकि आप ग्राउंडेड रहें ?

ऐसा कुछ तय नहीं किया है. मैं एक साधारण परिवार से हूं, जहां बचपन की तरह आज भी कुछ गलत करने पर माता-पिता डांटते हैं. मुझे इंडस्ट्री एक गैम्बल लगती है. जहां हर दिन एक नया संघर्ष रहता है.

आउटसाइडर होने की वजह से मुश्किलें क्या रहीं?

अपनी पहचान बनाना बहुत मुश्किल था. मुझे इंडस्ट्री और विज्ञापनों के बारें में कुछ भी पता नहीं था. एक लम्बा सफर था. मैं बेलापुर से रोज अंधेरी जाता था और फिर रिजेक्ट होकर वापस आता था. ढाई से तीन साल तक मैं औडिशन की लाइन में लगता था और बाहर से अनफिट सुनकर ही रिजेक्ट हो जाता था. ये सही है कि परिवार का कोई भी इंडस्ट्री से न होने पर पहला चांस मिलना ही मुश्किल हो जाता है. काफी औडिशन के बाद पहला काम मिलने पर भी संघर्ष था, क्योंकि फिल्म इंडस्ट्री एक व्यवसाय है और यहां उन्हें ही काम मिलता है, जिनकी फैन फोलोइंग अधिक हो, जिसे लोग देखना चाहे. इससे लोग आप पर पैसा लगाना चाहते हैं. मेरे साथ पहली फिल्म के बाद भी वैसा नहीं था. मुझे कम लोग जानते थे. फिल्म ‘सोनू के टीटू की स्वीटी’ के बाद मुझे काम मिलना शुरू हुआ.

आपके यहां तक पहुंचने में माता-पिता का सहयोग कैसा रहा?

पहले वे सहयोग नहीं करते थे, लेकिन आज खुश हैं. जब मैं ग्वालियर से मुंबई आया तो माता-पिता को बताकर नहीं आया था, क्योंकि मुझे डर था कि मेरे बताने पर वे मुझे ये काम करने नहीं देंगे. वे चाहते थे कि में पढ़ाई करूं. मैंने मुंबई और आस-पास के सभी कौलेजों के लिए परीक्षा दी, ताकि मैं मुंबई पहुंच जाऊं. नवी मुंबई के एक कौलेज में मुझे इंजीनियरिंग पढ़ने का चांस मिला और मैं यहां आकर 10 से 12 छात्रों के बीच में रहा. पैसे नहीं थे और मैंने अपने रूम मेट को भी नहीं बताया था, कि मैं एक्टर बनना चाहता हूं, क्योंकि वे भी एक्टर ही बनना चाहते थे. जब मैं फिल्म ‘प्यार का पंचनामा’ के औडिशन पर पहुंचा और 6 महीने बाद मुझे पता लगा कि मुझे फिल्म मिली है, तब मैंने रोते हुए मां को बताया था कि मैं अभिनय के लिए ही यहां आया हूं और इंजीनियरिंग की पढाई नहीं करना चाहता. मां को अभी भी मेरे काम की चिंता है, पर पिता बहुत खुश हैं.

आप किस तरह की लड़की को अपना जीवन साथी बनाना पसंद करेंगे?

जो लड़की अपने काम को लेकर ‘पैशनेट’ हो, साथ ही एक दूसरे पर विश्वास और इमानदार रहने की भी जरुरत है.

आपका ड्रीम प्रोजेक्ट क्या है?

मुझे डार्क चरित्र बहुत अच्छे लगते हैं. निर्देशक श्रीराम राघवन के साथ काम करने की इच्छा है. मैं बहुत सकारात्मक हूं, पर ऐसे चरित्र बहुत पसंद है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें