लौकडाउन में दिल मिल गए: भाग-3

ओंकार पुरानी फिल्मों व गाने के बहुत शौकीन थे. इधर सविता भी बहुत अच्छा गाती थी लेकिन वक्त के बहाव ने इस शौक को धूमिल कर दिया था. लेकिन अब ओंकार की संगत में उसे अपने पुराने दिनों की याद हो आई और एक दिन बातों ही बातों में इस का पता चलते ही ओंकार उस से गाने का हठ कर बैठे.

“दिल की गिरह खोल दो चुप न बैठो कोई गीत गाओ… “सविता द्वारा यह गीत छेड़ते ही मानो फिजां में एक रुमानियत सी घुल गई.

“हम तुम न हम तुम रहे अब कुछ और ही हो गए…सपनों के झिलमिल जहां में जाने कहां खो गए अब…” तन्मय हो कर गाने की अगली कड़ी को गाते हुए ओंकार जैसे कहीं खो से गए.

दोनों ने नज्म की रूह को महसूस करते हुए गाने को पूरा किया.

“वाह दीदी, आप तो बड़ी छुपी रूस्तम निकलीं. पिछले 2 सालों से मुझे अपनी इस कला की भनक भी न लगने दी और साहब आप की प्रतिभा को भी मानना पड़ेगा.”

गाना सुन कर पार्वती ने सविता से झूठमूठ की नाराजगी जताई.

“वाकई मैं तो आप की सुमधुर आवाज में खो कर रह गया.”

“वह तो ऐसे ही…” कहते हुए सविता की आंखे ओंकार से जा मिलीं और उस के चेहरे पर उभर आई हया की हलकी लालिमा पार्वती की अनुभवी निगाहों से न छिप न सकी.

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लौकडाउन की बोरियत छंटने लगी थी. कभी सविता तो कभी ओंकार के घर गपशप के साथ चाय के दौर पर दौर चलते. किसी दिन चेस की बाजी लगती तो कभी तीनों मिल कर देर रात तक लूडो खेला करते. कभी दोनों के युगल गीतों से शाम रंगीन हो उठती और खूबसूरत समां सा बंध जाता.

ओंकार और सविता की दोस्ती धीरेधीरे चाहत में बदलती जा रही थी. जहां ओंकार की जीवंतता ने सविता के अंदर जिंदगी जीने की लालसा पैदा कर दी थी, वहीं सविता की सादगी ने ओंकार के दिल को सहज ही अपने आकर्षण में बांध लिया था.

पार्वती को भी दोनों के बीच पनप रहे इस इमोशनल टच का अंदेशा हो चुका था क्योंकि वह अपनी दीदी सविता में नित नए बदलाव देख रही थी. हमेशा अपने कालेज के कामों में खोई, स्वभाव से तनिक गंभीर सविता अब बातबात पर खिलखिला उठती थी. उस के व्यक्तित्व का एक दूसरा पहलू अब खुल कर सामने आ रहा था. सविता अभी 53-54 साल की हो चली थी मगर अब वे एक तरुणी के समान व्यवहार करती दिखाई देती थीं. अब उन के चेहरे पर उजास उमंग से भरी एक आभा दिखाई देती थी.

“दीदी, एक बात कहूं अगर आप बुरा न मानें तो?” एक दिन पार्वती ने कहा तो गुनगुनाते हुए डस्टिंग कर रही सविता के हाथ रुक गए.

“क्या जो मैं सोच रही हूं वह सही है?”

“हां, पार्वती… तुम मेरी अंतरंग सहेली ही नहीं सब से बड़ी शुभचिंतक भी हो. तुम्हें ये जानने का पूरा हक है कि मेरी जिंदगी में आखिर क्या चल रहा है?” कह कर सविता ने पार्वती का हाथ पकड़ कर उसे अपने साथ सोफे पर बैठा लिया.

“प्रतीक के जाने के बाद मेरे जीवन का एक कोना उदास, खाली और वीरान हो चुका था, पर उस वक्त 40 वर्षीया सविता यानी मुझे सामने सिर्फ अपना 16 वर्षीय मासूम बेटा नजर आ रहा था, जिसे पालने की जद्दोजेहद में मुझे अपनी उदासी और अकेलेपन का भान ही न रहा. उस की शादी के वक्त मेरी उम्र 50 पार कर चुकी थी और ढलती उम्र में अपने बारे में सोचना मुझे बचकानी बात लग रही थी. लेकिन पार्वती यह समय है और इस में अगले पल क्या होना है हमें कुछ भी पता नहीं.

“कभी यह बिना इजाजत हम से हमारी सब से प्यारी चीज छीन लेता है और कभी बिना मांगे ही हमारी झोली खुशियों से भर देता है. इतने सालों से मेरे दिल में प्रतीक की जगह कोई नहीं ले पाया और न ही कोई ले पाएगा. पर ओंकार से मिल कर उस कोने की उदासी और अकेलापन दूर हो गया जो प्रतीक के जाने के बाद वीरान था.

“जिंदगी तो पहले भी कट रही थी मगर अब इस के हर पल को जैसे मैं जीने लगी हूं. तुम्हें नहीं पता ओंकार ने भी क्या कुछ झेला है…” कहतेकहते सविता कुछ देर को रुकी,

“फौजी होने के नाते सीमा पर वह दुश्मनों से लड़ने में व्यस्त रहा और इधर उस की पत्नी उसे धोखा देने में. पता चलने पर जब उस ने सवाल किया तो इकलौते बेटे को ले कर वह अलग हो गई. एलिमनी राशि और साथ में अपना पैतृक घर उसे सौंपने के बाद खुद दरबदर हो किराए के फ्लैट में अकेले अपनी जिंदगी बिता रहा है.

“तुम ही बताओ क्या गलती थी उस की? उस के जैसे सभ्य और जीवंत इंसान के साथ कोई बेवफाई कैसे कर सकता है? देशसेवा का उसे यह कैसा इनाम मिला? पता नहीं कैसी होगी वह स्त्री जिस ने सिर्फ शारीरिक सुख के लिए ओंकार जैसे व्यक्ति को धोखा दिया.

“इतना होने पर भी ओंकार ने जीने का हौंसला नही छोड़ा. मालूम है, अपने घर के अकेलेपन से घबरा कर वह बहाने से हमारे घर कभी अदरक तो कभी शक्कर मांगने आ जाता था, ताकि कुछ देर तो किसी से बात कर सके. बेटाबहू अपनी जिंदगी में खुश हैं. कुछ यारदोस्त थे, पर लौकडाउन के चलते उन से भी मुलाकात नहीं हो पा रही थी.

“मैं ने जी है अकेली जिंदगी पार्वती, इसलिए मुझे उस की तकलीफ का अंदाजा है. सोचो हमें तो एकदूसरे का सहारा भी है. लेकिन वह किस के संग अपने गम अपनी खुशियों को बांटे? वैसे भी ओंकार का साथ मुझे खुशी देता है, उस के साथ वक्त बिताना मुझे अच्छा लगता है, कह कर सविता चुप हो गईं.

“लेकिन दीदी, अब आगे क्या, मेरा मतलब भैया को पता चला तो?”

“तो क्या पार्वती, उस की अपनी जिंदगी है जिस में वह पूरी तरह खुश है. पर अब अपनी मुट्ठी में कैद खुशियों को मैं जीना चाहती हूं. मेरा भी जिंदगी को गले लगाने को जी चाहता है और मुझे इस का पूरा हक है.

“ऐ जिंदगी गले लगा ले…” गाने को गुनगुनाते हुए सविता ने तुरंत पार्वती के दोनों हाथ थामे और उस के साथ हौल में थिरकने लगीं. उस की चमकती आंखें जैसे सुनहरे सपनों की अंगड़ाइयां ले रहे थे.

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2-4 दिनों बाद सविता ने घुमाफिरा कर पूछा,”ओंकार, तुम बाकी जिंदगी बिताने के बारे में क्या सोचते हो?”

ओंकार समझ गया कि मामला अब गंभीर है. उस ने बहुत संजीदगी से सविता के दोनों हाथ अपने हाथों में ले कर कहा,”सविता, इतने साल मैं जानबूझ कर किराए के मकानों में रहता रहा हूं ताकि एक जगह ऊब जाने के बाद नई जगह जाने की गुंजाइश रहे. अब मैं जिंदगी में ठहराव चाहता हूं, तुम्हारे साथ. पर मैं यह भी जानता हूं कि हमारे बच्चों को हम से ज्यादा हमारी संपत्ति की चिंता है.”

सविता को भी यही डर था. वह जीवन के फैसले बच्चों से पूछ कर कैसे ले सकती है? फिर क्या करें? उस ने गेंद ओंकार के पाले में डाल दी, “हम साथ रह कर भी अलग रहेंगे. मैं अपना फ्लैट खरीद लेता हूं, परमानैंट ठिकाना हो जाएगा. हमेशा साथ रहेगा. तुम मेरा घर संभालोगी और मैं तुम्हें. बच्चों से छिपाने की जरूरत नहीं पर उन्हें नहीं लगेगा कि हमारे बाद घरबार उन को नहीं मिल पाएगा.”

“ठीक है, फिर आज इसी खुशी में मैं एक बड़ी पार्टी दूंगी जो दोनों फ्लैटों में एकसाथ चलेगी,” सविता पुलकित हो कर बोली.

“और फिर कोरोना का डर खत्म होने और तुम्हारे फ्लैट की कागजी काररवाई के बाद हम दोनों लंबी छुट्टी पर चलेंगे,”सविता ने जोड़ा.

“कमरे 2 लेंगे या एक बड़े किंगसाइज वाले बैड वाला?” ओंकार ने चुटकी ली.

सविता शर्मा कर बोली,”तुम्हें पैसे बरबाद करने की जरूरत नहीं, एक ही में ऐडजस्ट कर लेंगें न…”

फिर दोनों एकसाथ हंस पङे.

लौकडाउन में दिल मिल गए: भाग-2

‘मान न मान मैं तेरा मेहमान…’ मन ही मन भुनभुनाते हुई पार्वती चाय बनाने को उठ खड़ी हुई.

“सुनो पार्वती, अदरक थोड़ी ज्यादा ही रखना. बिना अदरक के चाय भी कोई चाय है. दरअसल, मेरे पास आज ही अदरक खत्म हो चुकी है तो मैं ने सोचा….”

“जी हां, क्यों नहीं. पार्वती, तुम साहब के लिए 2-4 अदरक की टुकङी भी ले आना,” सविता ने किचन की ओर मुंह कर के आवाज लगाई.

“बंदे को ओंकार कहते हैं. एक रिटायर्ड फौजी. बस यही छोटी सी पहचान है अपनी,” बेबाकी से ओंकार ने अपना परिचय दिया.

बातों की श्रृंखला में एक हलका सा अल्पविराम आ गया जब पार्वती ने चाय का मग और अदरक के 2 टुकड़े ला कर जरा जोर से सैंटर टेबल पर रखे.

“पार्वती, बस इतना ही…” सविता ने आंखें तरेरीं.

“हां दीदी, अब ज्यादा अपने पास भी नहीं है.”

“अरे, इतना बहुत है मेरे लिए. कम से कम 3-4 दिन चलेगा. वैसे चाय बहुत बढ़िया बनाई है तुम ने,” पहला सिप लेते हुए ओंकार बोल पङे.

उन के जाने के बाद पार्वती ने बड़बड़ाते हुए पूरी जगह को अच्छे से सैनेटाइज किया और अपने काम में लग गई. उस की मुखमुद्रा देख सविता के चेहरे पर हंसी आ गई.

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उस दिन सविता का जन्मदिन था. मना करतेकरते भी पार्वती ने उस की पसंदीदा रैसिपी छोलेकुलछे बना लिए. उस दिन स्वाद ही स्वाद में वे कुछ ज्यादा ही खा गईं. शाम होतेहोते उन का जी मितलाया और उन्हें  उलटी हो गयी. पार्वती ने जल्दी से  ग्लूकोज का पानी पिलाया पर थोड़ी देर बाद फिर हुई उलटी हुई. बाद में 3-4 उलटियां और होने से शरीर में पानी की कमी के चलते सविता को बहुत कमजोरी व चक्कर आने लगे. पेट मे रहरह कर मरोड़ भी उठने लगी थी. वे लगातार कराह रही थीं.

रात के 1बजे थे. पार्वती को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. कहीं डायरिया की नौबत आ गई तो कैसे क्या होगा? घर मे उलटी की कोई दवा भी नहीं थी. कोई और रास्ता न देख उस ने फौरन ही जा कर ओंकार के फ्लैट की घंटी बजा दी…

“साहब, दीदी को बहुत उलटियां हो रही हैं. पेट में दर्द भी है. घरेलू नुसखों से भी कोई आराम नहीं मिला,” यह कह कर पार्वती रोआंसी हो गई.

“लगता है फूड पौइजिनिंग हो गई है. रुको, मेरे पास मैडिसीन है. मैं ले कर आता हूं, तब तक हो सके तो तुम गरम पानी से उन के पेट की सिंकाई करो.”

2-3 मिनट बाद ही वे मैडिसीन का पूरा पत्ता हाथ में लिए सविता के सामने खड़े थे.

“यह एक गोली अभी ले लीजिए और देखिए तुरंत आराम मिल जाएगा.”

“जी धन्यवाद, पर आप ने तकलीफ क्यों की? पार्वती से भिजवा दिया होता,” सविता ने कराहते हुए कहा.

“अरे तकलीफ किस बात की? मैं तो वैसे भी अकेले बोर ही होता रहता हूं,” कहते हुए ओंकार ठठा कर हंस पड़े.

उत्तर में सविता भी धीरे से मुसकराई और उठने की कोशिश करने लगी.

आज पहली बार उस ने ओंकार के चेहरे पर एक भरपूर नजर डाली और फिर देखती रह गई. लंबा कद, रौबीले चेहरे पर घनी व तावदार मूंछें. हां, उम्र का अंदाजा उन के चेहरे से लगाना मुश्किल था, क्योंकि बढ़ती उम्र के बोझ से बेअसर उन के चेहरे की रौनक बता रही थी कि वे अपने जीवन में कितने अनुशासित रहे हैं. कुल मिला कर आकर्षक व्यक्तित्व के धनी ओंकार ने आज पहली बार उसे काफी प्रभावित किया था. अभी तक तो बिन बुलाया मेहमान मान वह उन से ढंग से बात भी न करती थी.

“आप बैठिए न,” सामने पड़ी कुरसी की ओर सविता ने इशारा किया.

“जी जरूर…” तभी पार्वती ट्रे में पानी ले आई, “क्या लेंगे आप, ठंडा या चायकौफी?” उस ने प्रश्नवाचक निगाह उन पर डाली.

“फिलहाल कुछ नहीं. आप की चाय ड्यू रही.” ओंकार फिर खिलखिला उठे.

बच्चों जैसी उन की मासूम निश्छल हंसी सविता के दिल को छू गई. थोड़ी देर बाद ही दवा ने अपना प्रभाव दिखाया और सविता को तनिक आराम मिला. ओंकार से बात करतेकरते वे न जाने कब सो गईं.

“साहब आप भी जा कर सो जाइए. 3 बज रहे हैं,” पार्वती ने ओंकार का धन्यवाद अदा करते हुए कहा.

“1-2 घंटे और देख लेते हैं, वैसे भी मुझे जागने का अच्छा अभ्यास है. जाओ तुम सो जाओ,” साइड टेबल पर पड़ी गृहशोभा मैगजीन उठाते हुए ओंकार ने कहा.

सुबह 5 बजे के करीब जब पार्वती की आंखें खुलीं तो सविता गहरी नींद में सो रही थी और कुरसी पर बैठेबैठे ओंकार भी ऊंघ रहे थे.

उस ने उन्हें उठाया और घर भेजा. “ठीक है, जब सविता जी उठें तो उन्हें 1-2 बिस्कुट खिला कर फिर यह दवा दे देना,” कह कर ओंकार चले गए.

सुबह 11 बजे के करीब बेल बजने पर पार्वती ने जा कर दरवाजा खोला, “क्या कह रही हैं? अब आप की तबियत कैसी है?” ड्राइंगरूम में प्रवेश करते ही सामने बैठी सविता को देख ओंकार ने पूछा.

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“जी काफी आराम है और अब तो भूख भी लग रही है.”

“मैं जानता था, इसलिए ही मूंगदाल की पानी वाली खिचड़ी बना कर ले आया हूं. यही इस वक्त आप के हाजमे के लिए बैस्ट है,” ओंकार आदतन हंस पड़े.

“पर आप ने क्यों तकलीफ उठाई, मैं बना देती न…” इस बार सविता को बोलने का मौका दिए बिना पार्वती बोल उठी.

“तुम तो रोज ही बनाती हो पार्वती. आज मेरे हाथ का सही. जाओ 3 प्लैटें ले आओ. तुम भी खा कर बताओ जरा कैसी बनी है?” ओंकार ने कैसरोल खोलते हुए कहा.

हींग की सोंधी महक वाली खिचड़ी वाकई बहुत स्वादिष्ठ बनी थी. उस के साथ भुने पापड़ों के जोड़ ने खाने के स्वाद को दोगुना कर दिया. सविता का पेट भर गया पर थोड़ी खिचड़ी और लेने की लालसा वह रोक नहीं सकी और खिचड़ी परोसने के लिए अपनी प्लेट आगे बढ़ाई.

“बस अब ज्यादा न खाएं. भूख से थोड़ा कम ही खाएं तो जल्दी ठीक होंगी,” कहते हुए ओंकार ने साधिकार उस के हाथ से प्लेट ले ली और किचन की तरफ बढ़ चले. सविता चकित हो उन्हें निहारती रह गई.

उस दिन काफी देर बातों का सिलसिला जारी रहा. ओंकार के व्यवहार की सादगी और स्पष्टता ने पार्वती के दिल में भी उन के लिए सम्मान की भावना जगा दी थी.

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लौकडाउन में दिल मिल गए: भाग-1

सविता बारबार घर की बालकनी से नीचे झांक रही थी. पार्वती अभी तक आई नहीं थी. बेकार ही सामान मंगवाया, सबकुछ तो रखा था. थोड़ा कम में काम चल जाता पर बेवजह अधिक जमा करने के चक्कर में उस बेचारी को दौड़ा दिया. तभी नीचे पार्वती को आता देख उन्होंने राहत की सांस ली और लगभग दौड़ कर दरवाजा खोला.

लगभग हांफती हुई पार्वती ने दोनों थैले घर के कोने पर पड़ी एक टेबल पर रखे और नीचे बैठ गई.

“बड़ी मुश्किल से मिला है दीदी, सभी दुकानों पर भारी भीड़ थी. सोसाइटी की दुकान पर तो खड़े होने की जगह भी नहीं थी, फिर बाहर जा कर कोने वाली एक दुकान से खरीद कर ले  आई हूं.”

“ओह, इतनी दूर क्यों गईं, नहीं मिलता तो न सही, ऐसी भी क्या जरूरत थी?”

“नहीं दीदी, पता नही यह लौकडाउन कब तक चलेगा? स्थिति बहुत खराब हो चली है. बाहर निकलना खतरे से खाली नहीं. बस, आप को किसी चीज की कमी नहीं होनी चाहिए.”

“कितनी चिंता करती है मेरी? चल सब से पहले हाथों और सामान को सैनेटाइज कर लें.”

रात को बिस्तर पर सोते समय सविता की आंखों से नींद कोसों दूर थी. सच में कितना करती है पार्वती उस के लिए. अगर वह नहीं होती तो उस का क्या होता? सोचते हुए सविता 2 साल पहले उन यादों के झरोखे में जा पहुंची जहां पति के अत्याचारों से तंग पार्वती से वह पहली बार अपने कालेज में मिली थी.

वह जिस कलेज में पढ़ाती थी, वहां पार्वती भी बाई का काम करती थी. लगभग रोज ही उस का सूजा चेहरा और जगहजगह पड़े नील स्याह के निशान पति के दुर्दांत जुल्मों की इंतहा की याद दिलाते रहते. उस की नौकरी के बल पर ऐयाशी करने वाला उस का शराबी पति बातबात पर उसे पीटा करता था. उन दोनों की एक ही लड़की थी जो शादी कर अपनी ससुराल जा चुकी थी.

उस वक्त उस ने आगे बढ़ कर न सिर्फ उस की मदद की थी बल्कि उस के पति को सलाखों के पीछे भी पहुंचाया था. दुखी पार्वती को घर लाते वक्त उसे बोध भी न था कि जिसे निराश्रित, निस्सहाय समझ वह मानवता के नाते आश्रय दे रही है, वही कल को उस का सब से बड़ा संबल बन जाएगी.

सविता के पति पहले ही एक सड़क दुर्घटना में उसे छोड़ कर जा चुके थे. इकलौता बेटा बहू के साथ कनाडा में रह रहा था. बेटेबहू के बहुत कहने के बावजूद वह उन के साथ कनाडा नहीं शिफ्ट हुई थीं. क्योंकि हाथपांव के चलते रहने तक वे किसी पर बोझ नहीं बनना चाहती थीं. वैसे भी नौकरी के 8-10 साल बचे थे और स्वावलंबी सविता अपने बल पर ही अपनी जिंदगी जीना चाहती थीं.

तब से वे अपने फ्लैट पर अकेली रहती आई थीं. वैसे तो कालेज में बच्चों के बीच वह काफी व्यस्त रहती थी, पर छुट्टी का दिन उस से काटे न कटता था.

हां, पार्वती के आने से उस की जिंदगी बेहद आसान हो चली थी. पार्वती के रूप में उसे एक सखी, सहायक और शुभचिंतक मिल गई थी, जिस ने बड़ी कुशलता से उस के घर को संभाल लिया था और इस तरह दोनों एकदूसरे का सहारा बन कर अपनी जिंदगी जिए जा रही थीं. हालांकि बेटेबहू ने बारबार उसे पार्वती के लिए चेताया था.

उन का कहना था कि किसी पर इतनी जल्दी ऐसा भरोसा करना ठीक नहीं. शायद वे अपनी जगह सही भी थे. मगर कोई रिश्ता न होते हुए भी पार्वती उस की कितनी अपनी हो चुकी है यह बात सिर्फ वही समझती थी. यही सब सोचतेसोचते जाने कब सविता को नींद ने आ घेरा.

सुबह सविता की नींद कुछ देर से खुली. घर का काम निबटा कर पार्वती नहाधो चुकी थी. सविता को उठा देख वह झटपट चाय बना लाई. बालकनी में बैठे वे दोनों चाय की चुसकियां ले ही रही थीं कि दरवाजे की बेल बजी.

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लौकडाउन के दौरान किसी के कहीं भी आनेजाने पर पूर्णतः पाबंदी लगी हुई है. फिर कौन हो सकता है?

“दीदी, मैं देखती हूं, जो भी होगा बाहर से चलता कर दूंगी,” चेहरे पर मास्क लगाए पार्वती ने उठ कर दरवाजा खोला.

“माफ कीजिएगा, थोड़ी शक्कर मिल सकती है क्या?”

“आप यहीं ठहरिए, मैं दीदी से पूछ कर बताती हूं,” कह कर पार्वती ने दरवाजा चिपका दिया.

“दीदी, सामने वाले फ्लैट में जो नए किराएदार आए हैं उन्हें शक्कर चाहिए,” पार्वती ने सविता पर प्रश्नवाचक नजर डाली.

“मना कर दूं क्या, कल ही लौकडाउन की घोषणा हुई है, तो क्या ला कर नहीं रख सकते थे? एक बार दिया तो बारबार किसी भी चीज को मांगने आ जाएंगे.”

“नहींनहीं… ऐसा कर, एक डब्बे में आधा किलोग्राम के करीब दे दे. अपने पास कोई कमी नहीं, बहुत रखी है,” सविता ने चाय का कप उसे पकड़ाते हुए कहा.

“लेकिन दीदी…”

“अरे जितना कहा है उतना कर दे न,” सविता ने झूठमूठ की त्योरियां चढ़ाईं.

“यह लीजिए शक्कर…” पार्वती ने आगंतुक को घूरा.

“आप की मैडम नहीं दिखाई नहीं दे रहीं?”

“आप को मैडम चाहिए या शक्कर?” पार्वती ने अपनी खीझ उतारी. हाथ में शक्कर की थैली लिए वे महानुभाव जैसे आए थे वैसे ही अपने फ्लैट में वापस लौट गए.

“बड़ा अजीब था. आप के बारे में पूछने लगा. भला यह क्या बात हुई? ऐसे लोगों से तो थोड़ी दूरी ही अच्छी है,” पार्वती के स्वर में झल्लाहट थी.

“जाने दे पार्वती, अभी नएनए आए हैं. ज्यादा किसी को जानते नहीं होंगे इसलिए पूछे होंगे,” कह कर सविता ने बात खत्म की.

सरकार द्वारा लौकडाउन का दूसरा चरण और भी सख्ती से लागू कर दिया गया था. कुछ दिन बाद शाम के वक्त सविता और पार्वती टीवी पर कोरोना के बारे में न्यूज देख रही थीं कि तभी बेल बजी. चिटकनी खोलते ही फिर वही सज्जन दरवाजे पर खड़े दिखाई दिए.

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“ओहो… चाय का दौर चालू है.” कह कर बड़ी ही बेतकल्लुफी से वे सामने वाले सोफे पर जा विराजे.

“अभी बस पी कर खत्म ही की है. आप चाहें तो आप के लिए भी…” अभी सविता की बात पूरी भी न होने पाई थी कि आगंतुक ने कहा, “हांहां… क्यों नहीं, चाय के लिए मना मैं कभी कर ही नहीं सकता… हाहाहाहाहा….”

आगे पढ़ें- उन के जाने के बाद पार्वती ने…

अगर आप भी हैं कौलेज में दाखिले के लिए परेशान तो पढ़ें ये खबर

बारहवीं के बाद बात ग्रेजुएशन में दाखिले की हो या फिर ग्रेजुएशन के बाद पोस्ट ग्रेजुएशन की. रिसर्च पाठ्यक्रमों में दाखिला हो या फिर फेलोशिप को लेकर जानकारी आपकी हर मुश्किल का हल आगामी 9 जून, रविवार को दिल्ली विश्वविद्यालय के दयाल सिंह कौलेज में उपलब्ध रहेगा. जी हां, यूथ यूनाइटेड फौर विजन एंड एक्शन (युवा,  YUVA) एनजीओ के उदय इनिशिएटिव के अंतर्गत रविवार को डीयू, जेएनयू, इग्नू व आईपी यूनिवर्सिटी सहित कई अन्य विश्वविद्यालययों के विशेषज्ञ दाखिले की हर मुश्किल का हल लेकर उपलब्ध रहेंगे.

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मुख्य रूप से 12वीं की परीक्षा में पास विद्यार्थियों के मार्गदर्शन के लिए आयोजित इस करियर काउंसलिंग सत्र में ग्रेजुएशन व पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद के अवसरों पर भी परमर्श का अवसर उपलब्ध रहेगा. युवा नामक संगठन के ‘उदय’ इस इनिशिएटिव के जरिये विद्यार्थियों को 12वीं कक्षा के बाद कौलेज में एडमिशन और पाठ्यक्रम संबंधी हर जानकारी प्रदान की जाएगी .जिन विद्यार्थियों ने हाल ही में 12वीं कक्षा की परीक्षा पास की है और वे अपने करियर को लेकर असमंजस की स्थिति में हैं, वे 9 जून को दयाल सिंह कौलेज के औडिटोरियम में सुबह 10 बजे बाद पहुंचकर इस काउंसलिंग के अवसर का लाभ उठा सकते है. स्टूडेंट्स इस इवेंट के बारे में युवा की वेबसाइट yuva.net.in पर जाकर विस्तृत में जानकारी ले सकते हैं.

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युवा संगठन के मुताबिक उदय इनिशिएटिव के जरिए दिल्ली विश्वविद्यालय, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, इंद्रप्रस्थ कौलेज फौर वुमन, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, अंबेडकर विश्वविद्यालय, जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय और दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय समेत सभी प्रमुख कौलेजों और विश्वविद्यालयों के संबंध में छात्रों को परामर्श की सुविधा उपलब्ध रहेगी. युवा संगठन के इस करियर काउंसलिंग सत्र में जेएनयू के रजिस्ट्रार, इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी के उप रजिस्ट्रार, हिमगिरी जी यूनिवर्सिटी के कुलपति समेत हंसराज कौलेज, दौलत राम कौलेज, पीजीडीएवी कौलेज और दयाल सिंह कौलेज के प्रिंसिपल और एसआरसीसी कौलेज के  प्रोफेसर विशेषज्ञ के रूप में शामिल होंगे. ये काउंसलिंग निःशुल्क होगी.

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यहां बता दे कि युवा एक गैर सरकारी संगठन है, जिसकी स्थापना 2016 में हुई थी. इस संगठन युवाओं पर आधारित है और इसे चलाने वाले भी युवा ही हैं. इस संगठन का उद्देश्य छात्रों की शैक्षणिक और सामाजिक, सांस्कृतिक गतिविधियों को बेहतर बनाना है. युवा संगठन ने अभी तक एक लाख से भी ज्यादा स्टूडेंट्स की मदद की है. साथ ही युवा संगठन आईआईटी दिल्ली, एम्स, आईआईएमसी समेत कई प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों के साथ मिलकर काम करता है. संगठन  शिक्षाविदों और एक्सपर्ट्स के साथ मिलकर कई बार चर्चाएं भी आयोजित करता हैं. पिछले साल युवा संगठन ने इंटर्निशप प्रोग्राम भी आयोजित किया था जिसमें ला, मास कम्युनिकेशन, साइंस एंड टेक्नोलौजी, सामाजिक सेवा, अंतरराष्ट्रीय संबंध के विद्यार्थियों ने हिस्सा लिया था. वर्तमान में युवा संगठन से जुड़े कई छात्र देश के बड़े संस्थानों में कार्यरत हैं.

क्या सच में सलमान नें ‘भारत’ के डायरेक्टर को घर से निकाला…? जानिए क्या है सच्चाई.

बौलीवुड के दबंग खान यानी सलमान खान की ईद पर रीलिज हुई फिल्म भारत बौक्स औफिस पर अपना कमाल दिखा रही हैं. भारत फिल्म के डायरेक्टर अली अब्बास जफर और सलमान खान के बीच की जबरदस्त केमिस्ट्री जहां परदे पर धूम मचा रही है,  वहींं दूसरी तरफ खबरें हैं कि फिल्म की शूटिंग के दौरान सलमान ने फिल्म के डायरेक्टर को घर से बाहर निकाल दिया. जानें क्या है पूरी सच्चाई…

सलमान ने गुस्से में कहा- ‘मेरे घर से अभी निकल जाओ.’ 

फिल्म ‘भारत’ की रिलीज से पहले ऐसी खबरें भी सामने आई थीं कि शूटिंग के दौरान डायरेक्टर अली अब्बास जफर और भाईजान के बीच कुछ क्रिएटिव डिफरेंसेज के चलते एक दिन भाईजान का पारा इतना चढ़ गया कि उन्होंने डायरेक्टर से गुस्से में कह डाला, ‘मेरे घर से अभी निकल जाओ.’ वहीं यह भी सुनने में आया था कि, ‘अली अब्बास जफर और सलमान खान के बीच फिल्म को लेकर कुछ बहस होने के कारण ‘भारत’ के सेट पर तनाव का माहौल बन गया था.

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डायरेक्टर अली अब्बास जफर ने खबरों को कहा था बकवास

हाल ही में डायरेक्टर अली अब्बास जफर सामने आए और बताया कि ‘सलमान खान के साथ उनकी लड़ाई की जो खबरें सामने आई थीं, वो पूरी तरह से बकवास थीं. सलमान खान को मैं अपने बड़े भाई की तरह मानता हूं और सब जानते हैं कि हम एक परिवार की तरह काम करते हैं. जिस किसी ने भी ये अफवाहें फैलाई थीं उसके लिए मैं बस एक ही बात कहूंगा कि हम जल्द ही एक और प्रोजेक्ट भी शुरू करने वाले हैं.’

फिल्म ‘भारत’ को बौक्स औफिस को ईद पर मिल चुका है धमाकेदार शुरूआत

ट्रेड एक्सपर्ट ने यह अनुमान भी लगा लिया है कि पहले वीकेंड में ही यह फिल्म 120 करोड़ रुपये तक पहुंच सकती है. फिल्म ‘भारत’ को बौक्स औफिस पर मिली ज़बरदस्त ओप्निंग से यह बात तो तय हो गई है कि अली अब्बास जफर और सलमान खान के बीच जबरदस्त केमिस्ट्री है, जो पर्दे पर साफ नजर आती है. दोनों ने साथ में अब तक लगभग तीन फिल्में की हैं और तीनों ही सुपर-हिट रही हैं.

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बता दें, अली अब्बास जफर और सलमान खान फिल्म ‘भारत’ से पहले ‘टाइगर जिंदा है’ और ‘सुल्तान’ जैसी फिल्मों  में भी साथ काम कर चुके हैं. वहीं ये अनुमान भी लगाया जा रहा है कि ‘अली अब्बास जफर और सलमान खान अपनी चौथी फिल्म साल 2021 तक शुरू कर सकते है.’

Written by Karan Manchanda

कई बार जब औडिशन के दौरान रिजेक्शन का सामना करना पडा – रुचा इनामदार

मौडलिंग और हिंदी फिल्मों से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाली एक्ट्रेस रुचा इनामदार ने मराठी कमर्शियल फिल्म ‘भिकारी’ से मराठी फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा, जिसमें उनके साथ स्टार स्वप्निल जोशी थे. इसके अलावा उन्होंने पंजाबी और कई वेब सीरीज में भी काम किये है. और अब उनकी मराठी फिल्म ‘वेडिंग चा सिनेमा’ रिलीज हो चुकी है, जिसमें उनका रोल आलोचकों को काफी पसंद आ रहा है. रुचा हर नयी फिल्म को चुनौती समझती है और इसके प्रोसेस को एन्जौय करती है. पेश है उनसे हुई बातचीत के अंश…

सवाल- फिल्मों में आने की प्रेरणा कैसे मिली? परिवार का सहयोग कैसा था?

बचपन से ही मुझे अभिनय का शौक था. मैंने 3 साल की उम्र से अभिनय करना शुरू कर दिया था. मुझे स्टेज और परफोर्मेंस से बहुत लगाव हो गया था. मैं गाना, डांस और पेंटिंग्स सबकुछ सीखती हुई बड़ी हुई. मेरा एकेडमिक परफोर्मेंस भी बहुत अच्छा था. परिवार वालों की इच्छा थी कि मैं डौक्टर बनूं और मैंने वैसा ही किया, पर वे जानते थे कि मैं इसमें खुश नहीं. फिर एक दिन मां ने ही मुझे अपनी रूचि को आगे बढ़ाने की सलाह दी और मैं एक्टिंग के करियर में आ गयी. मां का सहयोग था, इसलिए काम करना मुश्किल नहीं था. मेरा परिवार और मेरे दोस्त ही मेरे लिए सबकुछ है.

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सवाल- पहला ब्रेक कैसे मिला ?

इंडस्ट्री में मेरी कोई पहचान नहीं थी, इसलिए पहले मैंने एक निर्देशक को एसिस्ट करने का काम शुरू किया. वही अभिनेता आनंद अभ्यंकर ने एक मौडल कोर्डिनेटर का नंबर दिया और तस्वीरें खिचवाकर औडिशन देने को कहा. मैंने वही किया और कई औडिशन देने के बाद मुझे निर्देशक सुजित सरकार के साथ एक विज्ञापन करने का मौका मिला. इसके बाद तो विज्ञापनों की झड़ी लग गयी. मैंने अमिताभ बच्चन, शाहरुख़ खान, आमिर खान, जौन अब्राहम आदि कई बड़े एक्टर्स के साथ कई विज्ञापन किये है. इससे मेरी पहचान बनी और मुझे पहली हिंदी फिल्म ‘चिल्ड्रेन औफ वार’ मिली, जिसमें मैंने एक बांग्लादेशी लड़की की भूमिका निभाई थी. आलोचकों ने मेरे काम की काफी तारीफें की. इसके बाद एक और हिंदी फिल्म ‘अंडर द सेम’ में काम करने का अवसर मिला. इसमें मेरा किरदार एक राजस्थानी लड़की की थी. ये फिल्म इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में भी गयी. इससे लोग मुझे जानने लगे और गणेश आचार्य ने मुझे मराठी फिल्म ‘भिकारी’ में लीड रोल दिया.

सवाल- कितना संघर्ष था?

संघर्ष अधिक नहीं था, क्योंकि फिल्मों में काम करना मेरी सोच थी. जीने का तरीका मेरे लिए अलग होता है. हर दिन कुछ अच्छा हो ये जरुरी नहीं. मैंने एक जर्नी तय किया है,जिसके द्वारा मैं ग्रो हुई. मैं अभी कथक भी सीख रही हूं. कौलेज में मैं एक ग्रेसफुल डांसर हुआ करती थी. मैंने मराठी फिल्म ‘वेडिंग चा सिनेमा’ में गोंधर स्टाइल में डांस किया है, जिसे करना बहुत मुश्किल था. मैंने सेट पर इस डांस को सीखा है. ख़ुशी की बात ये है कि ये डांस दर्शकों को पसंद आई. मेरे लिए संघर्ष कुछ भी नहीं है, क्योंकि हर क्षेत्र में अच्छा काम करने के लिए संघर्ष रहता है.

सवाल- मराठी और हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के काम करने के तरीकों में क्या अंतर पाती है?

दोनों का वर्किंग स्टाइल अलग होता है, क्योंकि दोनों की प्रोडक्शन वैल्यू भी अलग होता है. भावनात्मक रूप में दोनों समान है. इसके अलावा मराठी में परिवारवाद के जैसे माहौल होता है, जिसमें आप आराम से काम कर सकते है. मुझे हिंदी में भी मुश्किलें नहीं हुई, क्योंकि मुझे सभी अच्छे लोग मिले थे, जिन्होंने मुझसे अच्छा व्यवहार किया और अभिनय करना आसान हुआ.

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सवाल- क्या कोई ड्रीम प्रोजेक्ट है?

कलाकार के रूप में मैंने जिन चरित्रों को जिया नहीं है उसे करने की इच्छा है, लेकिन अगर फिल्म मेकर ऋषिकेश मुखर्जी की कहानियों जैसी फिल्मों में काम करने का मौका मिले, तो मजा आयेगा. उनकी कहानियां आज भी हर घर में होती है. उनकी फिल्मों के चरित्र, हर व्यक्ति के दिल के साथ जोड़ने वाली होती थी.

सवाल- जीवन में आये नकारात्मक बातों को कैसे दूर करती है?

मैं बहुत सकारात्मक हूं और नकारात्मक चीजों को भी पौजिटिव रूप में ही लेती हूं. कई बार जब औडिशन के दौरान रिजेक्शन का सामना करना पडा, तो पहले ख़राब लगा, लेकिन बाद में मैंने ये सोचा कि इससे मुझे सीख क्या मिली और इसे और अधिक बेहतर बनाने के लिए करना क्या चाहिए? मेरे लिए हर दिन खुश रहना बहुत जरुरी है.

सवाल- आपको कभी महिला होने पर खेद हुआ?

मैं मुंबई में पली-बड़ी हुई हूं, इसलिए मेरे घर में महिला और पुरुष में कोई अंतर नहीं है. मैंने जैसे चाहा वैसे ग्रो हुई, किसी ने कभी रोका या टोका नहीं. मुझे ट्रेवलिंग बहुत पसंद है और बहुत घूमती भी हूं.

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सवाल- समय मिलने पर क्या करना पसंद करती है?

अभिनय के अलावा मेरी कई सारी हौबी है, मसलन लिखना, फिल्म डायरेक्ट करना आदि. जिसे मैं काम के बीच-बीच में करती रहती हूं.

Edited by Rosy

मलाइका की उम्र पर लोगों ने किया कमेंट तो अर्जुन ने ऐसे की बोलती बंद

बौलीवुड एक्ट्रेस मलाइका अक्सर किसी न किसी वजह से ट्रोलिंग का शिकार होती रहती हैं, जिसमें अर्जुन कपूर और मलाइका अरोड़ा के रिलेशनशिप भी एक वजह है. अर्जुन और मलाइका के बीच उम्र के गैप के कारण दोनों अक्सर सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग का शिकार हो जाते हैं. पर इस बार एक्टर अर्जुन कपूर ने ट्रोलर्स को करारा जवाब दिया है.

ट्रोलर्स को अर्जुन का करारा जवाब, ये कहा…

 

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#malaikaarora snapped at #divayoga

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हाल ही में अर्जुन कपूर ने मीडिया से इंटरनेट पर होने वाली इसी ट्रोलिंग के बारे में बात करते हुए कहा है कि उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है.

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मलाइका और अपने रिश्ते पर ट्रोलिंग को लेकर दिया ये बयान

 

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#malaikaarora today for her pilates class #viralbhayani @viralbhayani

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अर्जुन कपूर और मलाइका अरोड़ा को उम्र के कारण ट्रोलिंग को लेकर अर्जुन कपूर ने बताया है, ‘मैं ऐसे लोगों के बारे में बिल्कुल भी बात नहीं करना चाहता हूं, क्योंकि अगर मैं इनके बारे में बात करूंगा तो उन्हें महत्व दूंगा, जो मेरी लाइफ में कोई महत्व नहीं रखते हैं.’

शादी के सवाल पर अर्जुन ने दिया ये बयान

एक इंटरव्यू के दौरान अर्जुन कपूर ने शादी के बारे में बात करते हुए बताया है कि, ‘मैंने अपनी असल जिंदगी में शादी को लेकर चाहें जो भी एक्सपीरियंस किया हो लेकिन मेरा शादी में पूरा भरोसा है. हालांकि मैं इतना बड़ा कदम उठाने से पहले पूरी तरह से आश्वस्त होना चाहता हूं. मुझे शादी की कोई जल्दबाजी नहीं है और जब भी मैं ऐसा कोई फैसला करूंगा तो मीडिया को जरूर बताऊंगा.’

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मलाइका के बेटे अरहान भी हो चुके हैं ट्रोलिंग का शिकार

 

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Serial Chiller.

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हाल ही में अरबाज खान और मलाइका अरोड़ा के बेटे अरहान की कुछ दिन पहले एक मिस्ट्री गर्ल के साथ  फोटोज सोशल मीडिया पर वायरल हो गई थी, जिसके बाद वह ट्रोलिंग का शिकार हो गए थे.

मैट्रो में खुलती निजी बातें

आजकल मुझे मैट्रो का सफर कहीं घूम आने से कम नहीं लगता. आखिर लगेगा भी क्यों, क्योंकि इतना मनोरंजक जो होता है. मैट्रो में लोग सफर नहीं करते वरन करती हैं उन की ढेरों बातें और राज. ये राज कोई किसी से पूछता नहीं, बल्कि लोग खुद ही अपने राज परतदरपरत खोलते चले जाते हैं.

कुछ दिन पहले की ही बात है. मैं द्वारका सैक्टर 9 से मैट्रो में चढ़ी थी. मेरा गंतव्य स्थान झंडेवाला था तो मेरे पास अच्छाखासा समय था कि अपनी किताब खोल कर पढ़ सकूं. मेरी बगल वाली सीट पर 2 लड़कियां आ कर बैठीं और इतनी जोरजोर से बातें करने लगीं कि मेरा ध्यान अपनी किताब से हट कर उन दोनों की बातों पर जा टिका.

‘‘यार यह लिपस्टिक कितनी अच्छी है, तू भी खरीद ले,’’ पहली लड़की ने कहा.

‘‘कितने की है?’’ दूसरी ने पूछा.

‘‘बस 300 की.’’

‘‘इतनी महंगी?’’ दूसरी का मुंह खुला का खुला रह गया, ‘‘मुझे नहीं चाहिए. क्व100 की होती तो शायद मैं ले भी लेती.’’

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‘‘कोई नहीं मैं तुझे दूसरी ला कर दे दूंगी. ठीक है?’’

फिर दोनों थोड़ा धीरे बातें करनी लगीं तो मेरा ध्यान भी उन से हट गया. मगर अभी कुछ ही मिनट हुए थे कि मेरे कानों में उन की आवाज फिर से गूंजने लगी. इस बार बात थोड़ी ज्यादा मजेदार थी.

‘‘यार, मैं शादी कर के एक गरीब घर में जाना चाहती हूं,’’ दूसरी लड़की ने कहा.

‘‘क्यों?’’ पहली लड़की ने पूछा.

‘‘क्योंकि मैं चाहती हूं कि मैं जिस घर में जाऊं उस में मेरी चले, मैं अपनी मेहनत से घर बसाऊं और मेरा पति भी मुझे प्यार दे, इज्जत दे और पी कर न आए, मेरी सुने.’’

यह सुन कर मेरी हंसी बस छूटने ही वाली थी, क्योंकि उस लड़की की उम्र अभी 19 साल की भी नहीं लग रही थी, लेकिन उसे पता था उसे क्या चाहिए, पति और अधिकार, वहीं दूसरी तरफ मैं थी जिस से यह तक नहीं सोचा जा रहा कि उसे लंच में क्या खाना है.

खैर, यह केवल एक बात नहीं जिस पर मेरे कान जा कर रुके. तभी मेरे सामने एक अधेड़ उम्र की महिला आ कर खड़ी हुई. वह फोन पर शायद अपनी किसी दोस्त से बातें कर रही थी. उस के बातों के कुछ अंश मेरे कानों में पड़े, ‘‘हांहां, वे तो जलती ही हैं मुझ से और मेरे बच्चों से. मेरी बेटियां तो उन्हें फूटी आंख नहीं सुहातीं. पता नहीं उन्हें उन से क्या प्रौब्लम है.’’

इस के बाद उस महिला का स्टेशन आ गया और वह उतर गई. अभी मैं द्वारका मोड़ ही पहुंची थी कि मेरे सामने एक बुजुर्ग महिला आ कर खड़ी हुई तो मैं ने अपनी सीट उन्हें दे दी. मैं खड़ी हो गई. मेरी बगल में एक लड़का और एक लड़की खड़े थे, जो शायद दोस्त थे. लड़की अपने दोस्त को चैट्स पढ़वा रही थी जो शायद उसे किसी लड़के ने परेशान करने के लिए भेजे थे. लड़की थोड़ी परेशान दिख रही थी. उस का दोस्त चैट्स पढ़ कर उसे चिढ़ा रहा था. उन्हीं के पास खड़ा एक लड़का टेढ़ी नजर से चैट्स पढ़ कर मंदमंद मुसकरा रहा था. उस लड़के को देख कर साफ पता चल रहा था कि उसे मैसेज को चोरीचोरी पढ़ने में बहुत आनंद आ रहा है.

कुछ ही देर हुई थी कि मेरे सामने एक प्रेमी जोड़ा आ कर खड़ा हो गया. उन दोनों की आपस में जो बातें चल रही थीं वे शायद मेरे अलावा बाकी सब को भी साफ सुनाई दे रही थीं.

‘‘तुझे डर लग रहा है?’’ लड़के ने लड़की से पूछा.

‘‘नहीं, बस पहली बार है न इसलिए,’’ लड़की ने जवाब दिया.

‘‘अरे, कुछ नहीं होता… जगह भी सही है.’’

‘‘इतनी तेजतेज मत बोल.’’

‘‘हां तो क्या हुआ, पहली बार बस मीटिंग में ही तो जा रहे हैं, उस से क्या?’’

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हालांकि लड़के ने बात को कवर करने का प्रयास किया, लेकिन उन दोनों की शक्लें और हावभाव सब बयां कर रहे थे. मैं ही नहीं थी जिसे पूरी बात समझ आ रही थी, बल्कि और भी बहुत लोग थे जो सब समझ रहे थे. उन दोनों में कुछ देर ‘कुछ नहीं, होगा,’ ‘मैं जल्दबाजी भी नहीं करूंगा,’ ‘लैट्स नौट टौक अबाउट इट हियर,’ जैसी बातें हुईं और फिर कीर्ति नगर स्टेशन आने पर दोनों मैट्रो से उतर गए.

पटेल नगर तक आतेआते मैट्रो में भीड़ थोड़ी कम हो गई थी. मुझे सीट भी मिल गई थी. मेरी बगल में करीब 60 वर्ष की महिला आ कर बैठ गईं. वे व्हाट्सऐप के कुछ मैसेज पढ़ रही थीं. उन्होंने फोन इतना नीचे कर के पकड़ा हुआ था कि अनायास ही मेरी नजरें उन के मैसेज पर पड़ गईं. मैं ने उन के 3-4 मैसेज पढ़े तो मेरे होश ही उड़ गए. वे किसी व्यक्ति के साथ हुई अपनी बातों को पढ़ रही थीं. वे बातें बहुत निजी थीं. असल में सैक्सचैट थीं. मुझे पहले तो थोड़ा अचंभा हुआ पर फिर हंसी आने लगी. मैं मन ही मन यह कहने लगी कि सही है आंटी, आप ठीक हैं. एक हम हैं जो अब तक सिंगल बैठे हैं. मेरे चेहरे पर आ रही मुसकराहट को शायद वे भांप गईं और फिर अगले ही स्टेशन पर उतर गईं.

अब मेरी बगल में आ कर जो लड़की बैठी वह बेचारी शक्ल से इतनी दुखी दिख रही थी, मतलब इतनी दुखी दिख रही थी कि मुझे लगा कहीं रोने न लग जाए. उस ने कानों में हैंड्सफ्री लगा रखा था, जिस में बज रहा गाना मुझे इतना साफ सुनाई दे रहा था जैसे हैंड्सफ्री मेरे ही कानों में लगा हो. गाना था, ‘तुम साथ हो या न हो क्या फर्क है, बेदर्द थी जिंदगी बेदर्द है… अगर तुम साथ हो…’

गाना सुन कर उस के दिल का हाल तो मैं अच्छी तरह समझ गई. शायद ब्रेकअप हुआ था उस का.

अब मेरी नजर 2 सहेलियों पर पड़ी, तो उन की हरकतें देख कर मुझे हंसी कम आई और आजकल की जैनरेशन होने पर दुख ज्यादा महसूस हुआ. एक सहेली खुलने वाले गेट की एक तरफ और दूसरी दूसरी तरफ हाथ में कैमरा लिए खड़ी थी.

‘‘सुनसुन बाहर की तरफ देख,’’ पहली दोस्त ने कहा.

‘‘ऐसे या आंखें नीची करते हुए?’’ दूसरी

ने पूछा.

‘‘कैंडिड पोज दे कैंडिड.’’

‘‘यार लेकिन पाउट में मैं ज्यादा अच्छी लगती हूं.’’

‘‘इस ड्रैस में अच्छा नहीं लग रहा पाउट.’’

‘‘तो फिर ऐसे?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘अच्छा ऐसे?’’

‘‘नहीं.’’

उन दोनों का यह तसवीर खींचने का सिलसिला तब तक चला जब तक मेरा स्टेशन नहीं आ गया. झंडेवाला स्टेशन आने की अनाउंसमैंट हो रही थी. स्टेशन बस आने ही वाला था कि अचानक मुझे 2 औरतों की आवाजें सुनाई देने लगीं.

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‘‘वर्षा ने सुमित को छोड़ दिया और तू सोच भी नहीं सकती किस के लिए,’’ पहली औरत ने कहा.

‘‘किस के लिए?’’ दूसरी ने बड़ी उत्सुकता से पूछा.

‘‘अरे यार तुझे यकीन ही नहीं होगा कि किस के लिए छोड़ा.’’

‘‘हां बता तो किस के लिए?’’

‘‘गेस कर.’’

‘‘जल्दी बता ऐसे ही.’’

तभी मैट्रो का दरवाजा खुल गया और मुझे यह सुने बिना ही उतरना पड़ा कि आखिर किस के लिए वर्षा ने सुमित को छोड़ा. अब यह ग्लानि जीवनभर मेरे साथ रहने वाली है.

Edited by Rosy

मैंगाई सदाम (कच्चे आम के टेस्ट वाले चावल)

अगर आप चावल को नया टेस्ट देकर कुछ अच्छा और टेस्टी ट्राई करना चाहती हैं, तो ये डिश आपके लिए परफेक्ट है. आपने लेमन राइस तो ट्राई किया होगा, लेकिन क्या आपने कभी मेंगो राइस ट्राई किया है, इसे बनाना आसान है. इसे आप कभी भी बनाकर अपनी फैमिली और फ्रैंड्स को खिला सकते.

हमें चाहिए

उबला हुआ चावल 500 ग्राम

चना दाल 1 बड़ा चम्मच

सरसों के बीज 1/4 चम्मच

तेल 1 बड़ा चम्मच

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उड़द दाल 1 चम्मच

मूंगफली 1 t -tbsp

करी पत्ते 5- 6

2-3 सूखी साबुत लाल मिर्च

अदरक 1 चम्मच

कच्चे आम 100 ग्राम

सूखे नारियल 2 बड़े चम्मच

हल्दी पाउडर ½ छोटा चम्मच

हरी मिर्च- 2

नमक  मसाला स्वाद के लिए

बनाने का तरीका

– चावल को पहले से पका लें, तब तक एक पैन में तेल गरम करके सरसों के बीज, पत्तियां, दालें, मूंगफली, मिर्च और सौस डालकर भूनें.

– इसमें हल्दी और कुचली हुई अदरक और कद्दूकस किया हुआ कच्चा आम डालें और पकाएं.

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– फिर इसमें नारियल डालकर मिक्स करके थोड़ी देर तक औप भूने.

– फिर उबले हुए चावल डालकर बैलेंस करके टौस करें और मसाला मिलाकर गरमागरम परोसें.

Edited by Rosy

5 टिप्स: जानें क्यों है स्किन के लिए जामुन फायदेमंद

गरमियों में स्किन का ख्याल रखना मुश्किल है. हर कोई चाहता है कि बौलीवुड एक्ट्रेसेस जैसे हमारी स्किन भी सौफ्ट और शाइनी हो, लेकिन यह डेली बिजी लाइफस्टाइल में मुश्किल हो जाता है. जिससे हमारी स्किन डैमेज भी हो जाती है, लेकिन कुछ चीजें ऐसी है जिनका इस्तेमाल करके आप अपनी स्किन को बिना किसी साइड इफेक्ट के ब्यूटीफुल बना सकते हैं. जामुन हर किसी को खाने में अच्छा लगता है. यह जितना आपकी हेल्थ के लिए फायदेमद होता है उना ही स्किन के लिए भी अच्छा होता है. यह आपको बिना किसी साइड इफेक्ट के सौफ्ट और शाइनी स्किन देता है. आइए आपको बताते है स्किन के लिए जामुन के कुछ फायदे…

1. स्किन को खूबसूरत बनाने में नेचुरली मदद करता है जामुन

जामुन खाने से स्किन ब्यूटीफुल हो जाती है, क्योंकि जामुन में विटामिन ए और विटामिन सी पर्याप्त मात्रा में होते हैं. जिससे स्किन से जुड़ी प्रौबल्म्स दूर होती हैं और स्किन भी हेल्दी बनती है.

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2. स्किन को हाइड्रेट करने में मदद करता है जामुन

गरमी में स्किन को हाइड्रेट रखना जरूरी है. जामुन में 85 प्रतिशत पानी होता है इसलिए यह स्किन को हाइड्रेट रखने के लिए फायदेमंद है. जामुन खाने से स्किन ड्राई और बेजान नहीं होती.

3. ग्लोइंग स्किन के लिए बेस्ट है जामुन

जामुन में मौजूद एंटी-औक्सीडेंट्स स्किन से सभी तरह के दाग-धब्बों को साफ करके स्किन को ग्लोइंग बनाता है. इसके लिए जामुन की गुठलियों को सुखाकर इसका पाउडर बना लें और बेसन व दूध के साथ स्किन पर फेसपैक की तरह 20 मिनट लगाकर रखें. इस फेसपैक के इस्तेमाल से कुछ ही दिनों में स्किन ब्यूटीफुल बनती है.

4. बालों के लिए भी है फायदेमंद जामुन

जामुन में विटामिन सी होता है जो कि कोलेजन को पैदा करने में मददगार होता है. यह एंटी-औक्सीडेंट बालों को पौल्यूशन और सूर्य की किरणों के बुरे असर से बचाता है और बालों को ब्यूटीफुल बनाए रखता है.

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5. औयली स्किन के लिए परफेक्ट है जामुन

जामुन में एस्ट्रिजेंट गुण होते हैं जो कि औयली स्किन को ब्यूटीफुल बनाने के लिए परफेक्ट होते हैं. इसके लिए जामुन के गूदे को आंवला के रस और गुलाब जल के साथ मिलाकर फेसपैक बनाकर लगाएं. इस फेसपैक के इस्तेमाल से स्किन पर से स्किन का एक्स्ट्रा औयल बनना बंद हो जाता है.

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