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रील बनाने की सनक में गंवाई जान, पूरा परिवार हुआ खत्म

रील्स बनाने की सनक लोगों के सिर परवान चढ़ने लगी है ऐसे लोग ना जगह देखते हैं ना इन्हें मौत का भय सताता है. इन्हें सिर्फ मतलब है तो सोशल मीडिया पर फेमस होने से. हाल ही में हुआ एक ऐसा ही हादसा बताता है कि लोग रील्स की सनक में कैसे अपनी और अपनों की जीवन लीला समाप्त करने पर तुले हुए हैं.
यह हादसा है लखीमपुर खीरी का, जहां रील बनाने के चक्कर में ट्रेन की चपेट में आने से दंपती और उनके इकलौते बेटे की मौत हो गई. ये तीनों रेलवे ट्रैक पर रील बना रहे थे इसी समय लखनऊ-पीलीभीत पैसेंजर ट्रेन आ गई.

यह देख दंपती भागे. हड़बड़ी में ढाई साल का मासूम बेटा गोद से छिटककर पटरी पर गिर गया. उसे उठाने में तीनों ट्रैन की चपेट में आ गए और तीनों इंजन के अगले हिस्से में फंसने के बाद दो सौ मीटर तक घिसटते चले गए. ऐसा ही एक मामला नरकटियागंज के बसंतपुर गांव से आया जहां करताहा नदी में छलांग लगाकर रील्स बनाने गए चार छात्रों में तीन नदी में डूब गए, जिसमें दो किशोरों की मौत हो गई है. ग्रामीण गोताखोरों के करीब 4:30 घंटे के प्रयास के बाद डूबे दोनों किशोरों का शव नदी से निकाला गया.
यह मामला पहला नहीं है ऐसे ना जाने हर साल कितने लोग मौत के शिकार महज सोशल मीडिया पर फेमस होने के चक्कर में मौत को गले लगा लेते हैं.

कोई उल्टा लटक कर वीडियो बनाने की सनक में जान गवा रहा है तो कोई खतरनाक खाई, झरनों के पास शूट करने के चक्कर में जान से हाथ धो बैठते है. आए दिन हो रही ऐसी वारदात बेहद चिंताजनक है जहां एक तरफ सोशल मीडिया से हम दूर दराज बैठे लोगों के बारे में जान पाते हैं आज उसी प्लेटफौर्म पर नाम व पैसा कमाने के चक्कर में खतरे को बिना भापे जान गवाना भी आम हो गया है जरूरी है कि हमें समझदारी के साथ चीजों का सदुपयोग करने का ज्ञान हो.

ब्यूटी प्रौडक्ट खरीदने से पहले ध्यान रखें ये बातें, स्किन डैमेज से बच सकती हैं आप

महिलाएं सुंदर दिखने के लिए हजारों सालों से ब्यूटी प्रसाधनों का इस्तेमाल करती आ रही हैं. मगर पहले ये ब्यूटी प्रौडक्ट प्राकृतिक चीजों जैसे हलदी, नीबू, मेहंदी, चंदन, फूलों इत्यादि से तैयार किए जाते थे, जिन के इस्तेमाल करने पर बिना किसी दुष्प्रभाव के सौंदर्यवर्धन होता था पर आज अधिकांश ब्यूटी प्रसाधनों में अनेक रसायनों का उपयोग होता है, जिन का स्किन पर दुष्प्रभाव हो सकता है.

 

इसके अलावा आज नामी कंपनियों की नकल के सस्ते ब्यूटी प्रसाधनों की भी बाजारों में भरमार है. साथ ही कुछ महिलाएं सस्ते के चक्कर में ब्रैंडेड ब्यूटी प्रौडक्ट न खरीद कर नकली व लोकल खरीद कर खुद ही मुसीबत से दोचार होती हैं. इन डुप्लीकेट ब्यूटी प्रसाधनों के निर्माण में घटिया और हानिकारक रसायनों का इस्तेमाल होता है.

आइए जानते हैं कि ब्यूटी प्रसाधनों को खरीदने से पहले किनकिन बातों पर गौर करना जरूरी है.

ब्यूटी प्रसाधनों के संभावित दुष्प्रभाव

ब्यूटी प्रौडक्ट में मौजूद विभिन्न रसायनों के प्रभाव से संवेदनशील स्किन वालों को श्वसन तंत्र की ऐलर्जी हो सकती है. स्किन में लालिमा, खुजली, दाने, चकत्ते आदि हो सकते हैं. फिर ऐलर्जी के कारण जुकाम, आंखों में जलन, लालिमा, पानी बहना यहां तक कि दमा भी हो सकता है.

अनेक ब्यूटी प्रसाधनों के निर्माण में कोलतार का उपयोग किया जाता है, जो ऐलर्जी कर सकता है. साथ ही यह कैंसर का कारक भी माना जाता है. इस के प्रभाव से मूत्राशय कैंसर, नौनहौजकिन लिंफोमा आदि की भी संभावना बढ़ जाती है.

कुछ चेहरे के दाग, मुंहासे, दाने मिटाने वाले ब्यूटी प्रौडक्ट के उपयोग से संवेदनशील स्किन वालों में अल्ट्रावायलेट किरणों के प्रति संवेदनशीलता उत्पन्न होने के कारण दाने, मुंहासे खत्म होने के बजाय और बढ़ सकते हैं.

  • टैलकम, डस्टिंग पाउडर, कौंपैक्ट इत्यादि का उपयोग करने से स्किन के रोमछिद्र बंद हो सकते हैं, जिस के कारण मुंहासे, झुर्रियां, चकत्ते हो सकते हैं. लंबे समय तक इन का इस्तेमाल करने से स्किन की प्राकृतिक कोमलता नष्ट हो जाती है. वह खुरदरी, निस्तेज, अनाकर्षक हो जाती है.
  • घटिया क्वालिटी की लिपस्टिक को लंबे समय तक लगाने से होंठों की श्लेष्मा झिल्ली सिकुड़ने लगती है. होंठ काले, ओजहीन, खुरदरे हो जाते हैं. लिपस्टिक में मौजूद रसायनों की कुछ मात्रा शरीर के अंदर भी पहुंचती है, जिस के हानिकारक प्रभाव हो सकते हैं.
  • नेलपौलिश के अत्यधिक उपयोग से नाखूनों की प्राकृतिक चमक कम हो जाती है. वे कमजोर, खुरदरे हो सकते हैं, टूट सकते हैं. कुछ युवतियों को ऐलर्जी के कारण नाखूनों की जड़ों में दाने, खुजली हो सकती है.
  • आंखें नाजुक अंग हैं. काजल, आईलाइनर, आईशैडो, मसकारा, आईलैशेज, आईब्रोज पैंसिल आदि का इस्तेमाल आंखों की सुंदरता बढ़ाने के लिए किया जाता है. इन से ऐलर्जी के कारण आंखों में खुजली, आंखों के नीचे काले घेरे, स्किन का खुरदरापन, पलकों के बालों का कड़ा हो कर झड़ना इत्यादि समस्याएं हो सकती हैं.
  • बिंदी के पीछे लगे ऐडहैसिव से बिंदी लगाने के स्थान पर खुजली, लालिमा, संक्रमण, दाग हो सकते हैं.
  • सिंदूर, पैंसिल वाली बिंदियों में तरल रूप से लगाई जाने वाली बिंदियां भी समस्या पैदा कर सकती हैं.
  • डाई के भी संश्लेषित रसायनों से निर्मित होने के कारण उस से भी ऐलर्जी, बाल झड़ने, जल्दी सफेद होने जैसी समस्याएं हो सकती हैं. कार्बनिक रंजकों से निर्मित हेयर डाई के लंबे समय तक इस्तेमाल करने से कैंसर की संभावना भी बढ़ जाती है.
  • बालों को सैट करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली क्रीमें, जैल, स्प्रे, लोशन, तेल में मौजूद रसायन, सुगंध भी बालों की जड़ों को कमजोर कर सकती हैं. बाल जल्दी सफेद हो सकते हैं, उन की नैसर्गिक कोमलता व चमक समाप्त हो सकती है.
  • हेयर रिमूविंग क्रीम लोशन, साबुन भी पूरी तरह से दुष्प्रभावरहित नहीं होते हैं. इन के उपयोग से भी ऐलर्जी, कालापन, रूखापन, धब्बे इत्यादि परेशानियां हो सकती हैं.

सलाह

ब्यूटी प्रसाधनों के लिए यथा संभव कृत्रिम पदार्थों के स्थान पर प्राकृतिक ब्यूटी प्रसाधनों का उपयोग करें. कृत्रिम, संश्लेषित रसायनों से निर्मित कौस्मैटिक उत्पादों का उपयोग कम से कम करें. प्रतिष्ठित कंपनियों के द्वारा निर्मित ब्यूटी प्रसाधनों का ही प्रयोग करें और उन्हें विश्वसनीय दुकानों से ही खरीदें ताकि सही मूल्य पर असली कौस्मैटिक मिले. कोलतार मिले कौस्मैटिक को आंखों, पलकों पर न लगाएं.

एक जगह के लिए बने ब्यूटी प्रौडक्ट को दूसरे ब्यूटी प्रौडक्ट की जगह जैसे लिपस्टिक को ब्लशर की और आईशैडो को गीला कर आईलाइनर की जगह इस्तेमाल न करें वरना ऐलर्जी या अन्य समस्याएं हो सकती हैं.

यदि किसी ब्यूटी प्रौडक्ट से ऐलर्जी है या कोई और समस्या होती है, तो उस का इस्तेमाल भविष्य में कभी न करें. सोने से पहले मेकअप जरूर उतार लें.

ध्यान रखें कि चेहरे की स्किन काफी संवेदनशील होती है. इसलिए ब्यूटी प्रौडक्ट केवल नामी कंपनियों वाले अथवा ब्रैंडेड ही खरीदें.

कब जाओगे प्रिय: क्या गलत संगत में पड़ गई थी कविता

अपना बैग पैक करते हुए अजय ने कविता से बहुत ही प्यार से कहा, ‘‘उदास मत हो डार्लिंग, आज सोमवार है, शनिवार को आ ही जाऊंगा. फिर वैसे ही बच्चे तुम्हें कहां चैन लेने देते हैं. तुम्हें पता भी नहीं चलेगा कि मैं कब गया और कब आया.’’

कविता ने शांत, गंभीर आवाज में कहा, ‘‘बच्चे तो स्कूल, कोचिंग में बिजी रहते हैं… तुम्हारे बिना कहां मन लगता है.’’

‘‘सच मैं कितना खुशहाल हूं, जो मुझे तुम्हारे जैसी पत्नी मिली. कौन यकीन करेगा इस बात पर कि शादी के 20 साल बाद भी तुम मुझे इतना प्यार करती हो… आज भी मेरे टूअर पर जाने पर उदास हो जाती हो… आई लव यू,’’ कहतेकहते अजय ने कविता को गले लगा लिया और फिर बैग उठा कर दरवाजे की तरफ बढ़ गया. कविता का उदास चेहरा देख कर फिर प्यार से बोला, ‘‘डौंट बी सैड, हम फोन पर तो टच में रहते ही हैं, बाय, टेक केयर,’’ कह कर अजय चला गया.

कविता दूसरी फ्लोर पर स्थित अपने फ्लैट की बालकनी में जा कर जाते हुए अजय को देखने लगी. नीचे से अजय ने भी टैक्सी में बैठने से पहले सालों से चले आ रहे नियम का पालन करते हुए ऊपर देख कर कविता को हाथ हिलाया और फिर टैक्सी में बैठ गया.

कविता ने अंदर आ कर घड़ी देखी. सुबह के 10 बज रहे थे. वह ड्रैसिंगटेबल के शीशे में खुद को देख कर मुसकरा उठी. फिर उस ने रुचि को फोन मिलाया, ‘‘रुचि, क्या कर रही हो?’’

रुचि हंसी, ‘‘गए क्या पति?’’

‘‘हां.’’

‘‘तो क्या प्रोग्राम है?’’

‘‘फटाफट अपना काम निबटा, अंजलि से भी बात करती हूं, मूवी देखने चलेंगे, फिर लंच करेंगे.’’

‘‘तेरी मेड काम कर के गई क्या?’’

‘‘हां, मैं ने उसे आज 8 बजे ही बुला लिया था.’’

‘‘वाह, क्या प्लानिंग होती है तेरी.’’

‘‘और क्या भई, करनी पड़ती है.’’

रुचि ने ठहाका लगाते हुए कहा, ‘‘ठीक है, आधे घंटे में मिलते हैं.’’

कविता ने बाकी सहेलियों अंजलि, नीलम और मनीषा से भी बात कर ली. इन सब की आपस में खूब जमती थी. पांचों हमउम्र थीं,

सब के बच्चे भी हमउम्र ही थे. सब के बच्चे इतने बड़े तो थे ही कि अब उन्हें हर समय मां की मौजूदगी की जरूरत नहीं थी. कविता और रुचि के पति टूअर पर जाते रहते थे. पहले तो दोनों बहुत उदास और बोर होती थीं पर अब पतियों के टूअर पर जाने का जो समय पहले इन्हें खलता था अब दोनों को उन्हीं दिनों का इंतजार रहता था.

कविता ने अपने दोनों बच्चों सौरभ और सौम्या को घर की 1-1 चाबी सुबह ही स्कूल जाते समय दे दी थी. आज का प्रोग्राम तो उस ने कल ही बना लिया था. नियत समय पर पांचों सहेलियां मिलीं. रुचि की कार से सब निकल गईं. फिर मूवी देखी. उस के बाद होटल में लंच करते हुए खूब हंसीमजाक हुआ.

मनीषा ने आहें भरते हुए कहा, ‘‘काश, अनिल की भी टूरिंग जौब होती तो सुबहशाम की पतिसेवा से कुछ फुरसत मुझे भी मिलती और मैं भी तुम दोनों की तरह मौज करती.’’

रुचि ने छेड़ा, ‘‘कर तो रही है तू मौज अब भी… अनिल औफिस में ही हैं न इस समय?’’

‘‘हां यार, पर शाम को तो आ जाएंगे न… तुम दोनों की तो पूरी शाम, रात तुम्हारी होगी न.’’

कविता ने कहा, ‘‘हां भई, यह तो है. अब तो शनिवार तक आराम ही आराम.’’

मनीषा ने चिढ़ने की ऐक्टिंग करते हुए कहा, ‘‘बस कर, हमें जलाने की जरूरत नहीं है.’’

नीलम ने भी अपने दिल की बात कही, ‘‘यहां तो बिजनैस है, न घर आने का टाइम है न जाने का, पता ही नहीं होता कब अचानक आ जाएंगे. फोन कर के बताने की आदत नहीं है. न घर की चाबी ले जाते हैं. कहते हैं, तुम तो हो ही घर पर… इतना गुस्सा आता है न कभीकभी कि क्या बताऊं.’’

रुचि ने पूछा, ‘‘तो आज कैसे निकली?’’

‘‘सासूमां को कहानी सुनाई… एक फ्रैंड हौस्पिटल में ऐडमिट है. उस के पास रहना है. हर बार झूठ बोलना पड़ता है. मेरे घर में मेरा सहेलियों के साथ मूवी देखने और लंच पर जाना किसी को हजम नहीं होगा.’’

कविता हंसी, ‘‘जी तो बस हम रहे हैं न.’’

यह सुन तीनों ने पहले तो मुंह बनाया, फिर हंस दीं. बिल हमेशा की तरह सब ने शेयर किया और फिर अपनेअपने घर चली गईं.

सौरभ और सौम्या स्कूल से आ कर कोचिंग जा चुके थे. जब आए तो पूछा, ‘‘मम्मी, कहां गई थीं?’’

‘‘बस, थोड़ा काम था घर का,’’ फिर जानबूझ कर पूछा, ‘‘आज डिनर में क्या बनाऊं?’’

बाहर के खाने के शौकीन सौरभ ने पूछा, ‘‘पापा तो शनिवार को आएंगे न?’’

‘‘हां.’’

‘‘आज पिज्जा मंगवा लें?’’ सौरभ की आंखें चमक उठीं.

सौम्या बोली, ‘‘नहीं, मुझे चाइनीज खाना है.’’

कविता ने गंभीर होने की ऐक्टिंग की, ‘‘नहीं बेटा, बाहर का खाना बारबार और्डर करना अच्छी आदत नहीं है.’’ को घर का ही खाना पसंद है. आप हमेशा घर पर ही तो बनाती हैं… आज तो कुछ चेंज होने दो.’’

कविता ने बच्चों पर एहसान जताते हुए कहा, ‘‘ठीक है, आज मंगवा लो पर रोजरोज जिद मत करना.’’

सौम्या बोली, ‘‘हां मम्मी, बस आज और कल, आज इस की पसंद से, कल मेरी पसंद से.’’

‘‘ठीक है, दे दो और्डर,’’ दोनों बच्चे चहकते हुए और्डर देने उठ गए.

कविता मन ही मन हंस रही थी कि उस का कौन सा मूड था खाना बनाने का, अजय को घर का ही खाना पसंद है, बच्चे कई बार कहते हैं पापा का तो टूअर पर चेंज हो जाता है, हमारा क्या… वह खुद बोर हो जाती है रोज खाना बनाबना कर. आज बच्चे अपनी पसंद का खा लेंगे. उस ने हैवी लंच किया था. वह कुछ हलका ही खाएगी. फिर वह सैर पर चली गई. सोचती रही अजय टूअर पर जाते हैं तो सैर काफी समय तक हो जाती है नहीं तो बहुत मुश्किल से 15 मिनट सैर कर के भागती हूं. अजय के औफिस से आने तक काफी काम निबटा कर रखना पड़ता है.

शाम की सैर से संतुष्ट हो कर सहेलियों से गप्पें मार कर कविता आराम से लौटी. बच्चों का पिज्जा आ चुका था. उस ने कहा, ‘‘तुम लोग खाओ, मैं आज कौफी और सैंडविच लूंगी.’’

बच्चे पिज्जा का आनंद उठाने लगे. अजय से फोन पर बीचबीच में बातचीत होती रही थी. बच्चों के साथ कुछ समय बिता कर वह घर के काम निबटाने लगी. बच्चे पढ़ने बैठ गए. काम निबटा कर उस ने कपड़े बदले, गाउन पहना, अपने लिए कौफी और सैंडविच बनाए और बैडरूम में आ गई.

अजय टूअर पर जाते हैं तो कविता को लगता है उसे कोई काम नहीं है. जो मन हो बनाओ, खाओ, न घर की देखरेख, न आज क्या स्पैशल बना है जैसा रोज का सवाल. गजब की आजादी, अंधेरा कमरा, हाथ में कौफी का मग और जगजीतचित्रा की मखमली आवाज के जादू से गूंजता बैडरूम.

अजय को साफसुथरा, चमकता घर पसंद है. उन की नजरों में घर को साफसुथरा देख कर अपने लिए प्रशंसा देखने की चाह में ही वह दिनरात कमरतोड़ मेहनत करती रहती है. कभीकभी मन खिन्न भी हो जाता है कि बस यही है क्या जीवन?

ऐसा नहीं है कि अजय से उसे कम प्यार है या वह अजय को याद नहीं करती, वह अजय को बहुत प्यार करती है. यह तो वह दिनरात घर के कामों में पिसते हुए अपने लिए कुछ पल निकाल लेती है, तो अपनी दोस्तों के साथ मस्ती भरा, चिंता से दूर, खिलखिलाहटों से भरा यह समय जीवनदायिनी दवा से कम नहीं लगता उसे.

अजय के वापस आने पर तनमन से और ज्यादा उस के करीब महसूस करती है वह खुद को. उस ने बहुत सोचसमझ कर खुद को रिलैक्स करने की आदत डाली है. ये पल उसे अपनी कर्मस्थली में लौट कर फिर घरगृहस्थी में जुटने के लिए शक्ति देते हैं. अजय महीने में 7-8 दिन टूअर पर रहते हैं. कई बार जब टूअर रद्द हो जाता है तो ये कुछ पल सिर्फ अपने लिए जीने का मौका ढूंढ़ते हुए उस का दिमाग जब पूछता है, कब जाओगे प्रिय, तो उस का दिल इस शरारत भरे सवाल पर खुद ही मुसकरा उठता है.

भूख : लाजो अपने बच्चों के लिए खाने का इंतजाम कैसे करती थी

लाजो आज घर से भूखे पेट ही काम पर निकली थी. कल शाम बंगलों से मिले बचे-खुचे भोजन को उसने सुबह बच्चों की थाली में डाल दिया था. बच्चे कुछ ज्यादा ही भूखे थे. जरा देर में थाली सफाचट हो गयी थी. लाजो के लिए दो निवाले भी न बचे. लाजो ने लोटा भर पानी हलक में उंडेला और काम पर निकल गयी. सोचा किसी बंगले की मालकिन से कुछ मांग कर पेट भर लेगी.

लाजो एक रिहायशी कॉलोनी के करीब बसी झुग्गी-बस्ती में रहती है. पास की पांच-छह कोठियों में उसने झाड़ू-पोंछे और बर्तन मांजने का काम पकड़ रखा है. पांच बरस पहले जब उसका पति ज्यादा शराब पीने के कारण मरा था तब उसका सोनू पेट में ही था. उसके ऊपर दो बिटियां थीं. तीन बच्चों का पेट पालना इस मंहगाई में अकेली लाजो के लिए कितना मुश्किल था, यह सिर्फ वो ही जानती है. किराए की झुग्गी है. बच्चों को पास के प्राइमरी स्कूल में डाल रखा है. घर के किराए, बच्चों के कपड़े, फीस, किताबों में उसकी सारी कमाई छूमंतर हो जाती है. महीने बीत जाते हैं बच्चों को दूध-दही का स्वाद चखे. घर में खाना कभी-कभी ही बनता है. सच पूछो तो बंगलों से मिलने वाली जूठन पर ही उसका परिवार पल रहा है.

लाजो, पहली कोठी में काम के लिए घुसी तो मेमसाहब ने कहा, ‘लाजो, आज बर्तन नहीं है, साफ-सफाई के बाद ये लिस्ट लेकर सामने किराने की दुकान पर चली जाना. यह सारा सामान ले आना. साहब बात कर आये हैं. आज से नवरात्रे हैं. साराउपवास का सामान है. हाथ अच्छी तरह धो कर जाना.’

लाजो थैला लेकर किराने की दुकान पर पहुंची तो लिस्ट में लिखा सामान लाला ने निकाल कर उसके सामने रख दिय. प्लास्टिक की थैलियों में भरे मखाने, छुहारे, राजगिरी, सूखे मेवे, आलू और अरारोट के चिप्स, पापड़, देसी घी के डिब्बे और न जाने क्या-क्या, जिनके बारे में लाजो ने न कभी सुना था और न ही देखा था. उपवास में ऐसा भोजन? इसका मतलब आज उसको इस घर से बचा-खुचा रोटी-दाल नहीं मिलने वाला. उसका मन भारी हो गया. बच्चों के भूखे चेहरे आंखों के सामने नाचने लगे. उसके बाद के दो घरों में भी व्रत-पूजा के कारण लाजो को रोटी नहीं मिली. बस एक घर में चाय ही मिल पायी, जो उसके पेट की आग का दमन करने में असमर्थ रही. लाजों को अब ज्यादा चिन्ता इस बात की होने लगी कि अगर किसी घर से बचा हुआ खाना न मिला तो दोपहर को घर लौट कर वह बच्चों की थाली में क्या रखेगी?

उसका ध्यान धोती के छोर में बंधे पैसों की ओर गया. उसने खोल कर देखा. एक दस का नोट और पांच के तीन नोट के साथ चंद सिक्के ही थे. पूरा महीना सिर पर था, यह पैसे भी खर्च नहीं कर सकती थी. वह तेजी से चौथे बंगले की ओर चल दी. मल्होत्रा साहब की कोठी थी. ये लोग आर्यसमाजी थे. लाजो ने उनके वहां धार्मिक कर्मकांड कभी नहीं देखे थे. उनकी औरत तो व्रत-उपवास भी नहीं करती थी. उसको उम्मीद थी कि वहां तो जरूर रोटी मिल जाएगी.

गी थी. लोग कई कई गुटों में खड़े बातचीत कर रहे थे. लाजो का दिल किसी अनहोनी से धड़कने लगा. बाहर खड़ी एक महिला से पूछा तो पता चला मल्होत्रा साहब नहीं रहे. आज ग्यारह बजे उनका देहावसान हो गया. अंदर फर्श पर अर्थी पड़ी थी. घर की औरतें अर्थी को घेरे विलाप कर रही थीं. लाजो एक कोने में जाकर बैठ गयी. दो घंटे बीत गये. लोगों का तांता लगा हुआ था, अर्थी उठने का नाम ही नहीं ले रही थी. लाजो को खीज लगने लगी. उसकी आंतें भूख से कुलबुला रही थीं. उसे रह-रह कर अपने बच्चे भी याद आ रहे थे. कोठरी के दरवाजे पर मां का इंतजार करते भूखे बैठे होंगे.

दोपहर 2 बजे जाकर कहीं अर्थी उठी. मल्होत्रा मेमसाहब के दारुण क्रंदन से लाजो की आंखें भी भर आयीं. स्वयं के साथ घटित घटनाक्रम चलचित्र की तरह आंखों के सामने घूम गया, जब उसके पति की मृत्यु हुई थी. स्वयं का विलाप और दोनों बेटियों का हिचकियां लेकर रोना याद कर उसका गला रुंध गया.

अर्थी जा चुकी थी. घर में मरघर सा सन्नाटा पसरा था. रिश्तेदार अपने-अपने घर लौट गये थे. मेमसाहब बच्चों सहित अपने कमरे में बंद हो गयी थीं. जवानी में सुहाग उजड़ गया. छोटे-छोटे बच्चे थे. बेचारी. लाजो ने ड्राइंगरूम ठीक करना शुरू किया. सारा फर्नीचर जो अर्थी रखने के लिए इधर-उधर खिसका दिया गया था, लाजो ने अकेले खींच-खींच कर जगह पर लगाया. फिर पूरे घर में झाड़ू पोछा किया. सारा काम निपटाते-निपटाते साढ़े तीन बज गये. उसकी भूख भी खत्म हो चुकी थी, मगर बच्चों की भूख याद करके उसकी चिन्ता बढ़ती जा रही थी. काम खत्म करके वह मल्होत्रा साहब की बूढ़ी मां के पास आकर बैठ गयी. थोड़ी देर बाद बड़ी मुश्किल से बोली, ‘अम्माजी, मैं जाऊं क्या? कोई काम हो तो छह बजे तक फिर से आ जाऊंगी. बच्चे घर में अकेले मेरी प्रतीक्षा कर रहे होंगे. भूखे होंगे.’

अम्माजी ने हामी भरी तो वह उठी. घर जाकर पहले नहाना होगा. फिर कुछ न कुछ तो पकाना ही पड़ेगा. चाहे पन्द्रह रुपये के चावल ही जाते वक्त खरीद लेगी. वह चलने को हुई तो पीछे से अम्माजी की आवाज आयी, ‘लाजो, जरा रुकना.

लाजो पलट कर उनके पास पहुंची तो बूढ़ी औरत ने धीमे स्वर में कहा, ‘लाजो, घर से मिट्टी उठी है, सूतक लगा है. आज दोपहर का भोजन तो पक चुका था. मगर खाएगा तो कोई नहीं. रसोई में पड़ा है. सारा तू ले जा.’

लाजो की आंखें एकबारगी चमक उठीं. भागते कदमों से रसोई में पहुंची. रसोई में कढ़ाई भर कर पत्तागोभी की सब्जी, दाल, पनीर का तरी वाली सब्जी, गर्म डिब्बे में रखी रोटियां, भात, पापड़, अचार और न जाने क्या-क्या रखा था. अम्माजी ने कुछ साफ पोलिथीन की थैलियां लाजो को पकड़ा दीं. लाजो ने फटाफट सारा खाना भर लिया. वह तेजी से दरवाजे की ओर बढ़ी कि जल्दी-जल्दी पहुंच कर बच्चों का पेट भर दे कि अचानक उसके कदम ठिठक गये. यह खाना उस घर का था, जहां से अभी-अभी एक अर्थी उठी थी. सूतक लगे घर का खाना. क्या यह खाना वह अपने बच्चों को खिलाएगी? कोई अपशगुन तो न हो जाएगा? वह सन्न खड़ी हो गयी कि सूतक लगे घर का खाना लेकर जाए या न जाए? बंगलों से बचा-खुचा ले जाना अभी तक उसकी नियति थी. उसकी परिस्थितियां ही ऐसी थीं. ऐसे में सूतक लगे घर का खाना ले जाना भी तो परिस्थितियों के साथ समझौता ही था. पेट के आगे क्या शगुन, क्या अपशगुन?

दीवार घड़ी ने चार बजने के घंटे बजाए तो उसकी तंद्रा भंग हुई. कशमकश की दलीलों और तर्कों पर स्वयं उसकी और बच्चों की भूख हावी हो चुकी थी. हाथ में खाने का बड़ा सा पैकेट संभाले वह लंबे-लंबे डग भरते हुए घर की ओर भागी जा रही थी. आज मुद्दतों बाद उसको और उसके बच्चों को कम से कम दो वक्त भरपेट और अच्छा खाना नसीब होने वाला था. उसको याद नहीं पड़ता इससे पहले उसने रोटी, सब्जी, दाल, चावल इकट्ठे कब खाये थे?

मैंने अपने बौयफ्रैंड के साथ सैक्स किया है, अगर ये बात मेरे पति को पता चल गया तो…

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मेरा एक बौयफ्रैंड था, जिसके साथ मैं कई बार सैक्स कर चुकी हूं, लेकिन अब मेरी शादी होने वाली है. मुझे हमेशा डर लगा रहता है कि अगर मेरे पति को पता चल गया कि मैं शादी से पहले किसी के बेड शेयर कर चुकी हूं, तो मेरी लाइफ बर्बाद हो जाएगी. मुझे समझ नहीं आ रहा, मैं क्या करूं?

जवाब

देखिए आप अपनी शादी की अच्छे से तैयारी करें. जब तक आप नहीं बताएंगी तब तक हसबैंड को पता नहीं चलेगा कि आपने किसी और लड़के के साथ सैक्स किया है. आप अपनी मैरिड लाइफ को खुशहाल बनाना चाहती हैं, तो पास्ट की बातें हसबैंड से शेयर न करें. हर किसी का पास्ट होता है, शादी के बाद लाइफ में आगे बढ़ने के लिए पास्ट को भुलाना पड़ता है. कई बार रिश्ते को बचाने के लिए झूठ बोलना अच्छा होता है.

पति से अपने प्यार को इस तरह करें जाहिर

  • कई बार अपने हसबैंड से प्यार जाहिर करना बहुत जरूरी होता है. आप उन्हें इस बात का जरूर एहसास करवाएं कि वो आपके लिए कितना स्पैशल हैं.
  • छोटीछोटी चीजें भी बहुत मायने रखती हैं. आप उनके पसंद और नापसंद का ख्याल रखें. समय-समय पर उनकी तारीफ करें, इससे आप दोनों के बीच प्यार बढ़ेगा.
  • प्यार जताने के लिए किसी स्पैशल डे का इंतजार न करें. जब वो किसी बात पर आपसे नाराज हो जाएं, तो उन्हें मना लें और उन्हें आई लव यू बोलने में जरा भी देरी न करें. आप उन्हें कुछ रोमांटिक नोट्स भी लिखकर दे सकती हैं.
  • अकसर हसबैंड ही डेट या ट्रिप प्लान करते हैं, तो क्यों न इस बार आप डेट पर उन्हें इनवाइट करें.  या घर पर ही उनके पसंद का डिश और्डर करें और आप दोनों डिनर डेट एंजौय करें.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर 8588843415 पर  भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

आकर्षक ब्रैस्ट साइज पाने का जरिया इंप्लांट, जानें इसका खर्च और जरूरी बातें

Breast Implant : हर लड़की एक परफैक्ट फिगर की चाहत रखती है. इसके लिए सबसे जरूरी है, ब्रैस्ट साइज का सही आकार और शेप होना, लेकिन कई लड़कियों के ब्रैस्ट साइज काफी छोटे होते हैं, जिसकी वजह उनका कौन्फिडैंस लेवल लो हो जाता है. कई बार छोटे ब्रैस्ट साइज के कारण लड़कियां शर्मिंदा भी महसूस करती हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक यूएस में हर 1 हजार महिलाओं में 8.08 महिलाओं ने ब्रैस्ट इंप्लांट करवाया है. कहा जाता है कि 98 प्रतिशत तक सर्जरी सफल होती हैं. सिर्फ एक या दो प्रतिशत मामलों में ही कौम्प्लेक्स देखने को मिलते हैं.

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लड़कियों की बौडी को सुडौल बनाने के लिए ब्रैस्ट साइज का सही होना बहुत जरूरी है. बढ़ती तकनीक के कारण छोटे ब्रैस्ट साइज की समस्या को भी सुलझाया जा रहा है. इन दिनों लड़कियों में ब्रैस्ट इंप्लांट का क्रेज बढ़ता जा रहा है. जिन लड़कियों के ब्रैस्ट साइज छोटे होते है, वो आकर्षक दिखने के लिए ब्रैस्ट इंप्लांट की मदद लेती हैं. आइए जानते हैं इसके बारे में कुछ जरूरी बातें…

a woman is putting a bra on a womans chest

क्या है ब्रैस्ट इंप्लांट

जानकारी के अनुसार, ब्रैस्ट इंप्लांट एक सर्जिकल प्रक्रिया है. जिसमें महिला के ब्रैस्ट की साइज को बढ़ाने के लिए यह सर्जरी की जाती है. इस सर्जरी को औग्मेंटेशन मैमोप्लास्टी के नाम से भी जाना जाता है. खासकर मेट्रो सिटी में रहने वाली लड़कियां ब्रैस्ट इंप्लांट करवाती हैं.

ब्रैस्ट इंप्लांट महिलाओं के लिए जरूरत बनती जा रही है. यह सर्जरी ब्रैस्ट के साइज को बढ़ा सकती है. इसमें सिलिकन जेली का उपयोग किया जाता है. इस सर्जरी में ब्रैस्ट ऊतक के नीचे फैट को स्थानांतरित करके की जाती है.

ब्रैस्ट इंप्लांट का क्या है खर्च

रिपोर्ट्स के अनुसार, ब्रैस्ट इंप्लांट पर कुल खर्च 70, 000 से लेकर 1,00,000 रुपये तक है. हालांकि ब्रैस्ट इंप्लांट का खर्च तकनीक और वहां के लोकेशन पर भी डिपेंड करता है.

ब्रैस्ट इंप्लांट का कोई साइड इफैक्ट है ?

18 साल की उम्र या बढ़ती उम्र की महिलाएं के लिए ब्रैस्ट इंप्लांट स्वीकृत है. ब्रैस्ट सर्जरी के बाद इसे सामान्य होने में पूरे 6 हफ्ते लगते हैं. हालांकि ब्रैंस्ट इंप्लांट में कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं, वो हैं इंफेक्शन, निपल में बदलाव या कमी. माना जाता है कि ब्रैस्ट इंप्लांट के बाद ब्रैस्टफीडिंग करवाने में प्रौब्लम हो सकती है. लेकिन सर्जरी करवाने से पहले आप डौक्टर की सलाह जरूर लें ताकि कोई परेशानी न हो.

कितने तरह के होते हैं इंप्लांट

यह ब्रैस्ट साइज बढ़ाने की प्रक्रिया है, जो तीन प्रकार के होते हैं.

सेलाइन इंप्लांट: सिलिकौन इलास्टोमेर का एक मजबूत खोल होता है और यह सर्जरी के समय एक स्टेराइल सेलाइन सल्‍यूशन से भरा होता है.

अल्टरनेटिव-कम्पोजीशन इंप्लांट : यह कई फिलर्स से भरे होते हैं. सोया औयल, पौलीप्रोपाइलीन स्ट्रिंग जैसी चीजें होती हैं.

सिलिकौन इंप्लांट : ये एक चिपचिपा सिलिकौन जेल से भरे होते हैं.

यह कौस्मेटिक सर्जरी सुरक्षित है. इसकी मदद से महिलाओं को  ब्रैस्ट में काफी बदलाव आता है. इससे छोट ब्रैस्ट साइज की महिलाओं के आत्मविश्वास में बढ़ोत्तरी होती है. आमतौर पर महिलाएं ब्रेस्ट इम्प्लांट का औप्शन चुनती हैं ताकि वे महसूस कर सकें कि उनके ब्रेस्‍ट का साइज परफैक्ट हैं.

एक जहां प्यार भरा: क्या रिद्धिमा और इत्सिंग मिल पाए?

कहते हैं इंसान को जब किसी से प्यार होता है तो जिंदगी बदल जाती है. खयालों का मौसम आबाद हो जाता है और दिल का साम्राज्य कोई लुटेरा लूट कर ले जाता है.

प्यार के सुनहरे धागों से जकड़ा इंसान कुछ भी करने की हालत में नहीं होता सिवाए अपने दिलबर की यादों में गुम रहने के. कुछ ऐसा ही होने लगा था मेरे साथ भी. हालांकि मैं सिर्फ अपने एहसासों के बारे में जानती थी.

इत्सिंग क्या सोचता है इस बारे में मुझे जानकारी नहीं थी. इत्सिंग से परिचय हुए ज्यादा दिन भी तो नहीं हुए थे. 3 माह कोई लंबा वक्त नहीं होता.

मैं कैसे भूल सकती हूं 2009 के उस दिसंबर महीने को जब दिल्ली की ठंड ने मुझे रजाई में दुबके रहने को विवश किया हुआ था. कभी बिस्तर पर, कभी रजाई के अंदर तो कभी बाहर अपने लैपटौप पर चैटिंग और ब्राउजिंग करना मेरा मनपसंद काम था.

हाल ही में मैं ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से चाइनीज लैंग्वेज में ग्रैजुएशन कंप्लीट किया था.

आप सोचेंगे मैं ने चाइनीज भाषा ही क्यों चुनी? दरअसल, यह दुनिया की सब से कठिन भाषा मानी जाती है और इसी वजह से यह पिक्टोग्राफिक भाषा मुझे काफी रोचक लगी. इसलिए मैं ने इसे चुना. मैं कुछ चीनी लोगों से बातचीत कर इस भाषा में महारत हासिल करना चाहती थी ताकि मुझे इस के आधार पर कोई अच्छी नौकरी मिल सके.

मैं ने इंटरनैट पर लोगों से संपर्क साधने का प्रयास किया तो मेरे आगे इत्सिंग का प्रोफाइल खुला. वह बीजिंग की किसी माइन कंपनी में नौकरी करता था और खाली समय में इंटरनैट सर्फिंग किया करता.

मैं ने उस के बारे में पढ़ना शुरू किया तो कई रोचक बातें पता चलीं. वह काफी शर्मीला इंसान था. उसे लौंग ड्राइव पर जाना और पेड़पौधों से बातें करना पसंद था. उस की हौबी पैंटिंग और सर्फिंग थी. वह जिंदगी में कुछ ऐसा करना चाहता था जो दुनिया में हमेशा के लिए रह जाए. यह सब पढ़ कर मुझे उस से बात करने की इच्छा जगी. वैसे भी मुझे चाइनीस लैंग्वेज के अभ्यास के लिए उस की जरूरत थी.

काफी सोचविचार कर मैं ने उस से बातचीत की शुरुआत करते हुए लिखा, “हैलो इत्सिंग.”

हैलो का जवाब हैलो में दे कर वह गायब हो गया. मुझे कुछकुछ अजीब सा लगा लेकिन मैं ने उस का पीछा नहीं छोड़ा और फिर से लिखा,” कैन आई टौक टू यू?”

उस का एक शब्द का जवाब आया, “यस”

“आई लाइक्ड योर प्रोफाइल,” कह कर मैं ने बात आगे बढ़ाई.

“थैंक्स,” कह कर वह फिर खामोश हो गया.

उस ने मुझ से मेरा परिचय भी नहीं पूछा. फिर भी मैं ने उसे अपना नाम बताते हुए लिखा,” माय सैल्फ रिद्धिमा फ्रौम दिल्ली. आई हैव डन माई ग्रैजुएशन इन चाइनीज लैंग्वेज. आई नीड योर हैल्प टू इंप्रूव इट. विल यू प्लीज टीच मी चाइनीज लैंग्वेज?”

इस का जवाब भी इत्सिंग ने बहुत संक्षेप में दिया,” ओके बट व्हाई मी? यू कैन टौक टू ऐनी अदर पीपल आलसो.”

“बिकौज आई लाइक योर थिंकिंग. यू आर वेरी डिफरैंट. प्लीज हैल्प मी.”

“ओके,” कह कर वह खामोश हो गया पर मैं ने हिम्मत नहीं हारी. उस से बातें करना जारी रखा. धीरेधीरे वह भी मुझ से बातें करने लगा. शुरुआत में काफी दिन हम चाइनीज लैंग्वेज में नहीं बल्कि इंग्लिश में ही चैटिंग करते रहे. बाद में उस ने मुझे चाइनीज सिखानी भी शुरू की. पहले हम ईमेल के द्वारा संवाद स्थापित करते थे. पर अब तक व्हाट्सएप आ गया था सो हम व्हाट्सएप पर चैटिंग करने लगे.

व्हाट्सएप पर बातें करतेकरते हम एकदूसरे के बारे में काफी कुछ जाननेसमझने लगे. मुझे इत्सिंग का सीधासाधा स्वभाव और ईमानदार रवैया बहुत पसंद आ रहा था. उस की सोच बिलकुल मेरे जैसी थी. वह भी अन्याय बरदाश्त नहीं कर सकता था. शोशेबाजी से से दूर रहता और महिलाओं का सम्मान करता. उसे भी मेरी तरह फ्लर्टिंग और बटरिंग पसंद नहीं थी.

आज हमें बातें करतेकरते 3-4 महीने से ज्यादा समय गुजर चुका था. इतने कम समय में ही मुझे उस की आदत सी हो गई थी. वह मेरी भाषा नहीं जानता था पर मुझे बहुत अच्छी तरह समझने लगा था. उस की बातों से लगता जैसे वह भी मुझे पसंद करने लगा है. मैं इस बारे में अभी पूरी तरह से आश्वस्त नहीं थी. पर मेरा दिल उसे अपनाने की वकालत कर चुका था. मैं उस के खयालों में खोई रहने लगी थी. मैं समझ नहीं पा रही थी कि उस से अपनी फीलिंग्स शेयर करूं या नहीं.

एक दिन मेरी एक सहेली मुझ से मिलने आई. उस वक्त मैं इत्सिंग के बारे में ही सोच रही थी. सहेली के पूछने पर मैं ने उसे सब कुछ सचसच बता दिया.

वह चौंक पड़ी,”तुझे चाइनीज लड़के से प्यार हो गया? जानती भी है कितनी मुश्किलें आएंगी? इंडियन लड़की और चाइनीज लड़का…. पता है न उन का कल्चर कितना अलग होता है? रहने का तरीका, खानापीना, वेशभूषा सब अलग.”

“तो क्या हुआ? मैं उन का कल्चर स्वीकार कर लूंगी.”

“और तुम्हारे बच्चे? वे क्या कहलाएंगे इंडियन या चाइनीज?”

“वे इंसान कहलाएंगे और हम उन्हें इंडियन कल्चर के साथसाथ चाइनीज कल्चर भी सिखाएंगे.”

मेरा विश्वास देख कर मेरी सहेली भी मुसकरा पड़ी और बोली,” यदि ऐसा है तो एक बार उस से दिल की बात कह कर देख.”

मुझे सहेली की बात उचित लगी. अगले ही दिन मैं ने इत्सिंग को एक मैसेज भेजा जिस का मजमून कुछ इस प्रकार था,”इत्सिंग क्यों न हम एक ऐसा प्यारा सा घर बनाएं जिस में खेलने वाले बच्चे थोड़े इंडियन हों तो थोड़े चाइनीज.”

“यह क्या कह रही हैं आप रिद्धिमा? यह घर कहां होगा इंडिया में या चाइना में?” इत्सिंग ने भोलेपन से पूछा तो मैं हंस पड़ी,”घर कहीं भी हो पर होगा हम दोनों का. बच्चे भी हम दोनों के ही होंगे. हम उन्हें दोनों कल्चर सिखाएंगे. कितना अच्छा लगेगा न इत्सिंग.”

मेरी बात सुन कर वह अचकचा गया था. उसे बात समझ में आ गई थी पर फिर भी क्लियर करना चाहता था.

“मतलब क्या है तुम्हारा? आई मीन क्या सचमुच?”

“हां इत्सिंग, सचमुच मैं तुम से प्यार करने लगी हूं. आई लव यू.”

“पर यह कैसे हो सकता है?” उसे विश्वास नहीं हो रहा था.

“क्यों नहीं हो सकता?”

“आई मीन मुझे बहुत से लोग पसंद करते हैं, कई दोस्त हैं मेरे. लड़कियां भी हैं जो मुझ से बातें करती हैं. पर किसी ने आज तक मुझे आई लव यू तो नहीं कहा था. क्या तुम वाकई…? आर यू श्योर ?”

“यस इत्सिंग. आई लव यू.”

“ओके… थोड़ा समय दो मुझे रिद्धिमा.”

“ठीक है, कल तक का समय ले लो. अब हम परसों बात करेंगे,” कह कर मैं औफलाइन हो गई.

मुझे यह तो अंदाजा था कि वह मेरे प्रस्ताव पर सहज नहीं रह पाएगा. पर जिस तरह उस ने बात की थी कि उस की बहुत सी लड़कियों से भी दोस्ती है. स्वाभाविक था कि मैं भी थोड़ी घबरा रही थी. मुझे डर लग रहा था कि कहीं वह इस प्रस्ताव को अस्वीकार न कर दे. सारी रात मैं सो न सकी. अजीबअजीब से खयाल आ रहे थे. आंखें बंद करती तो इत्सिंग का चेहरा सामने आ जाता. किसी तरह रात गुजरी. अब पूरा दिन गुजारना था क्योंकि मैं ने इत्सिंग से कहा था कि मैं परसों बात करूंगी. इसलिए मैं जानबूझ कर देर से जागी और नहाधो कर पढ़ने बैठी ही थी कि सुबहसुबह अपने व्हाट्सएप पर इत्सिंग का मैसेज देख कर मैं चौंक गई.

धड़कते दिल के साथ मैं ने मैसेज पढ़ा. लिखा था,”डियर रिद्धिमा, कल पूरी रात मैं तुम्हारे बारे में ही सोचता रहा. तुम्हारा प्रस्ताव भी मेरे दिलोदिमाग में था. काफी सोचने के बाद मैं ने फैसला लिया है कि हम चीन में अपना घर बनाएंगे पर एक घर इंडिया में भी होगा. जहां गरमी की छुट्टियों में बच्चे नानानानी के साथ अपना वक्त बिताएंगे.”

“तो मिस्टर इन बातों का सीधासीधा मतलब भी बता दीजिए,” मैं ने शरारत से पूछा तो अगले ही पल इत्सिंग ने बोल्ड फौंट में आई लव यू टू डियर लिख कर भेजा. साथ में एक बड़ा सा दिल भी. मैं खुशी से झूम उठी. वह मेरी जिंदगी का सब से खूबसूरत पल था. अब तो मेरी जिंदगी का गुलशन प्यार की खुशबू से महक उठा था. हम व्हाट्सएप पर चैटिंग के साथ फोन पर भी बातें करने लगे थे.

कुछ महीने के बाद एक दिन मैं ने इत्सिंग से फिर से अपने दिल की बात की,”यार, जब हम प्यार करते ही हैं तो क्यों न शादी भी कर लें.”

“शादी?”

“हां शादी.”

“तुम्हें अजीब नहीं लग रहा?”

“पर क्यों? शादी करनी तो है ही न इत्सिंग या फिर तुम केवल टाइमपास कर रहे हो?” मैं ने उसे डराया था और वह सच में डर भी गया था.

वह हकलाता हुआ बोला,”ऐसा नहीं है रिद्धिमा. शादी तो करनी ही है पर क्या तुम्हें नहीं लगता कि यह फैसला बहुत जल्दी का हो जाएगा? कम से कम शादी से पहले एक बार हमें मिल तो लेना ही चाहिए,”कह कर वह हंस पड़ा.

इत्सिंग का जवाब सुन कर मैं भी अपनी हंसी रोक नहीं पाई.

अब हमें मिलने का दिन और जगह तय करना था. यह 2010 की बात थी. शंघाई वर्ल्ड ऐक्सपो होने वाला था. आयोजन से पहले दिल्ली यूनिवर्सिटी में इंडियन पैविलियन की तरफ से वालंटियर्स के सिलैक्शन के लिए इंटरव्यू लिए जा रहे थे.
मैं ने जरा सी भी देर नहीं की. इंटरव्यू दिया और सिलैक्ट भी हो गई.

इस तरह शंघाई के उस वर्ल्ड ऐक्सपो में हम पहली दफा एकदूसरे से मिले. वैसे तो हम ने एकदूसरे की कई तसवीरें देखी थीं पर आमनेसामने देखने की बात ही अलग होती है. एकदूसरे से मिलने के बाद हमारे दिल में जो एहसास उठे उसे बयां करना भी कठिन था. पर एक बात तो तय थी कि अब हम पहले से भी ज्यादा श्योर थे कि हमें शादी करनी ही है.

ऐक्सपो खत्म होने पर मैं ने इत्सिंग से कहा,”एक बार मेरे घर चलो. मेरे मांबाप से मिलो और उन्हें इस शादी के लिए तैयार करो. उन के आगे साबित करो कि तुम मेरे लिए परफैक्ट रहोगे.”

इत्सिंग ने मेरे हाथों पर अपना हाथ रख दिया. हम एकदूसरे के आगोश में खो गए. 2 दिन बाद ही इत्सिंग मेरे साथ दिल्ली एअरपोर्ट पर था. मैं उसे रास्ते भर समझाती आई थी कि उसे क्या बोलना है और कैसे बोलना है, किस तरह मम्मीपापा को इंप्रैस करना है.

मैं ने उसे समझाया था,”हमारे यहां बड़ों को गले नहीं लगाते बल्कि आशीर्वाद लेते हैं. नमस्कार करते हैं.”

मैं ने उसे सब कुछ कर के दिखाया था. मगर एअरपोर्ट पर मम्मीपापा को देखते ही इत्सिंग सब भूल गया और हंसते हुए उन के गले लग गया. मम्मीपापा ने भी उसे बेटे की तरह सीने से लगा लिया था. मेरी फैमिली ने इत्सिंग को अपनाने में देर नहीं लगाई थी मगर उस के मम्मीपापा को जब यह बात पता चली और इत्सिंग ने मुझे उन से मिलवाया तो उन का रिएक्शन बहुत अलग था.

उस के पापा ने नाराज होते हुए कहा था,”लड़की की भाषा, रहनसहन, खानपान, वेशभूषा सब बिलकुल अलग होंगे. कैसे निभाएगी वह हमारे घर में? रिश्तेदारों के आगे हमारी कितनी बदनामी होगी.”

इत्सिंग ने उन्हें भरोसा दिलाते हुए कहा था,”डोंट वरी पापा, रिद्धिमा सब कुछ संभाल लेगी. रिद्धिमा खुद को बदलने के लिए तैयार है. वह चाइनीज कल्चर स्वीकार करेगी.”

“पर भाषा? वह इतनी जल्दी चाइनीज कैसे सीख लेगी?” पापा ने सवाल किया.

“पापा वह चाइनीज जानती है. उस ने चाइनीज लैंग्वेज में ही ग्रैजुएशन किया है. वह बहुत अच्छी चाइनीज बोलती है,” इत्सिंग ने अपनी बात रखी.

यह जवाब सुन कर उस के पापा के चेहरे पर हलकी सी मुसकान आ गई. थोड़ी नानुकर के बाद उस के मांबाप ने भी मुझे अपना लिया. उस के पिता हमारी शादी के लिए तैयार तो हो गए मगर उन्होंने हमारे सामने एक शर्त रखते हुए कहा,” मैं चाहता हूं कि तुम दोनों की शादी चीनी रीतिरिवाज के साथ हो. इस में मैं किसी की नहीं सुनूंगा.”

“जी पिताजी,” हम दोनों ने एकसाथ हामी भरी.

बाद में जब मैं ने अपने मातापिता को यह बात बताई तो वे अड़ गए. वे मुझे अपने घर से विदा करना चाहते थे और वह भी पूरी तरह भारतीय रीतिरिवाजों के साथ. मैं ने यह बात इत्सिंग को बताई तो वह भी सोच में डूब गया. हम किसी को भी नाराज नहीं कर सकते थे. पर एकसाथ दोनों की इच्छा पूरी कैसे करें यह बात समझ नहीं आ रही थी.

तभी मेरे दिमाग में एक आईडिया आया,” सुनो इत्सिंग क्यों न हम बीच का रास्ता निकालें. ”

“मतलब?”

“मतलब हम चाइनीज तरीके से भी शादी करें और इंडियन तरीके से भी.”

“ऐसा कैसे होगा रिद्धिमा?”

“आराम से हो जाएगा. देखो हमारे यहां यह रिवाज है कि दूल्हा बारात ले कर दुलहन के घर आता है. सो तुम अपने खास रिश्तेदारों के साथ इंडिया आ जाना. इस के बाद हम पहले भारतीय रीतिरिवाजों को निभाते हुए शादी कर लेंगे उस के बाद अगले दिन हम चाइनीज रिवाजों को निभाएंगे. तुम बताओ कि चाइनीज वैडिंग की खास रस्में क्या हैं जिन के बगैर शादी अधूरी रहती है?”

“सब से पहले तो बता दूं कि हमारे यहां एक सैरिमनी होती है जिस में कुछ खास लोगों की उपस्थिति में कोर्ट हाउस या गवर्नमैंट औफिस में लड़केलड़की को कानूनी तौर पर पतिपत्नी का दरजा मिलता है. कागजी काररवाई होती है.”

“ठीक है, यह सैरिमनी तो हम अभी निबटा लेंगे. इस के अलावा बताओ और क्या होता है?”

“इस के अलावा टी सैरिमनी चाइनीज वैडिंग का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है. इसे चाइनीज में जिंग चा कहा जाता है जिस का अर्थ है आदर के साथ चाय औफर करना. इस के तहत दूल्हादुलहन एकदूसरे के परिवार के प्रति आदर प्रकट करते हुए पहले पेरैंट्स को, फिर ग्रैंड पेरैंट्स को और फिर दूसरे रिश्तेदारों को चाय सर्व करते हैं. बदले में रिश्तेदार उन्हें आशीर्वाद और तोहफे देते हैं.”

“वह तो ठीक है इत्सिंग, पर इस मौके पर चाय ही क्यों?”

“इस के पीछे भी एक लौजिक है.”

“अच्छा वह क्या?” मैं ने उत्सुकता के साथ पूछा.

“देखो, यह तो तुम जानती ही होगी कि चाय के पेड़ को हम कहीं भी ट्रांसप्लांट नहीं कर सकते. चाय का पेड़ केवल बीजों के जरीए ही बढ़ता है. इसलिए इसे विश्वास, प्यार और खुशहाल परिवार का प्रतीक माना जाता है.”

“गुड,” कह कर मैं मुसकरा उठी. मुझे इत्सिंग से चाइनीज वैडिंग की बातें सुनने में बहुत मजा आ रहा था.

मैं ने उस से फिर पूछा,” इस के अलावा और कोई रोचक रस्म?”

“हां, एक और रोचक रस्म है और वह है गेटक्रशिंग सैशन. इसे डोर गेम भी कह सकती हो. इस में दुलहन की सहेलियां तरहतरह के मनोरंजक खेलों के द्वारा दूल्हे का टैस्ट लेती हैं और जब तक दूल्हा पास नहीं हो जाता वह दुलहन के करीब नहीं जा सकता.”

इस रिवाज के बारे में सुन कर मुझे हंसी आ गई. मैं ने हंसते हुए कहा,”थोड़ीथोड़ी यह रस्म हमारे यहां की जूता छुपाई रस्म से मिलतीजुलती है.”

“अच्छा वही रस्म न जिस में दूल्हे का जूता छिपा दिया जाता है और फिर दुलहन की बहनों द्वारा रिश्वत मांगी जाती है? ”

मैं ने हंसते हुए जवाब दिया,”हां, यही समझ लो. वैसे लगता है तुम्हें भी हमारी रस्मों के बारे में थोड़ीबहुत जानकारी है.”

“बिलकुल मैडम जी, यह गुलाम अब आप का जो बनने वाला है.”

उस की इस बात पर हम दोनों हंस पड़े.

“तो चलो यह पक्का रहा कि हम न तुम्हारे पेरैंट्स को निराश करेंगे और न मेरे पेरैंट्स को,” मैं ने कहा.

“बिलकुल.”

और फिर वह दिन भी आ गया जब दिल्ली के करोलबाग स्थित मेरे घर में जोरशोर से शहनाइयां बज रही थीं. हम ने संक्षेप में मगर पूरे रस्मोरिवाजों के साथ पहले इंडियन स्टाइल में शादी संपन्न की जिस में मैं ने मैरून कलर की खूबसूरत लहंगाचोली पहनी. इत्सिंग ने सुनहरे काम से सजी हलके नीले रंग की बनारसी शाही शेरवानी पहनी थी जिस में वह बहुत जंच रहा था. उस ने जिद कर के पगड़ी भी बांधी थी. उसे देख कर मेरी मां निहाल हो रही थीं.

अगले दिन हम ने चीनी तरीके से शादी की रस्में निभाई. मैं ने चीनी दुल्हन के अनुरूप खास लाल ड्रैस पहनी जिसे वहां किपाओ कहा जाता है. चेहरे पर लाल कपड़े का आवरण था. चीन में लाल रंग को खुशी, समृद्धि और बेहतर जीवन का प्रतीक माना जाता है. इसी वजह से दुलहन की ड्रैस का रंग लाल होता है.

सुबह में गेटक्रैशिंग सेशन और टी सैरिमनी के बाद दोपहर में शानदार डिनर रिसैप्शन का आयोजन किया गया. दोनों परिवारों के लोग इस शादी से बहुत खुश थे. इस शादी को सफल बनाने में हमारे रिश्तेदारों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका भी निभाई थी. दोनों ही तरफ के रिश्तेदारों को एकदूसरे की संस्कृति और रिवाजों के बारे में जानने का सुंदर अवसर भी मिला था.

इसी के साथ मैं ने और इत्सिंग ने नए जीवन की शुरुआत की. हमारे प्यारे से संसार में 2 फूल खिले. बेटा मा लोंग और बेटी रवीना. हम ने अपने बच्चों को इंडियन और चाइनीज दोनों ही कल्चर सिखाए थे.

आज दीवाली थी. हम बीजिंग में थे मगर इत्सिंग और मा लोंग ने कुरतापजामा और रवीना ने लहंगाचोली पहनी हुई थी.

व्हाट्सएप वीडियो काल पर मेरे मम्मीपापा थे और बच्चों से बातें करते हुए बारबार उन की आंखें खुशी से भीग रही थीं.

सच तो यह है कि हमारा परिवार न तो चाइनीज है और न ही इंडियन. मेरे बच्चे एक तरफ पिंगपोंग खेलते हैं तो दूसरी तरफ क्रिकेट के भी दीवाने हैं. वे नूडल्स भी खाते हैं और आलू के पराठों के भी मजे लेते हैं. वे होलीदीवाली भी मनाते हैं और त्वान वू या मिड औटम फैस्टिवल का भी मजा लेते हैं. हर बंधन से परे यह तो बस एक खुशहाल परिवार है. यह एक जहान है प्यार भरा.

गोविंदा की पत्नी सुनीता हैं अपने घर की बिग बौस, ‘इस शो के कंटेस्टेंट्स को बताया कचरा’

बिग बौस 18 जल्दी ही शुरू होने वाला है जिस वजह से आए दिन बौलीवुड के प्रसिद्ध लोगों के नाम इस शो को लेकर जुड़ते रहते हैं. जैसा की कहावत है चाय से केतली ज्यादा गर्म होती है. वैसे ही बौलीवुड में स्टार से ज्यादा उनकी पत्नियां इतराती नजर आती हैं. ऐसा ही कुछ हाल गोविंदा की पत्नी सुनीता का भी है. हाल ही में जब उनको बिग बौस 18 के लिए बतौर प्रतियोगी जाने के बारे में पूछा गया. तो सुनीता ने तनतनाते हुए कहा कि क्या आप यह सवाल शाहरुख खान की पत्नी गौरी से पूछ सकते हैं ? आपको ऐसा लगता है कि मुझे पैसों की इतनी कमी है कि मैं बिग बौस में जाकर बर्तन धोऊंगी या लैट्रिन साफ करूंगी.

मुझे पैसों की कोई कमी नहीं है कि मुझे बिग बौस में बतौर प्रतियोगी जाना पड़े. बिग बौस में बतौर होस्ट सलमान खान के साथ होस्टिंग करने का मौका मिले तो मैं जरूर बिग बौस करना चाहूंगी. गोविंदा की पत्नी सुनीता ने अपने कमेंट के जरिए भाग लेने वाले प्रतियोगियों का पूरा कचरा कर दिया. उन लोगों का भी जो उनके घर के ही सदस्य हैं, जो बिग बौस का हिस्सा रह चुके हैं . जैसे कश्मीरा शाह और आरती सिंह, जो कृष्णा अभिषेक अथार्थ गोविदा के भांजे की बीवी और आरती यानी गोविदा की भांजी है.

हालांकि गोविंदा की पत्नी सुनीता अपने घर की बिग बौस हैं और उनकी परमिशन के बगैर पत्ता तो दूर की बात है खुद उनके पति गोविंदा भी नहीं हिलते. गौरतलब है सुनीता की इसी तानाशाही के चलते कृष्णा अभिषेक और उनकी पत्नी कश्मीरा शाह का सुनीता से 36 का आंकड़ा है. कश्मीरा ने तो खुलेआम सोशल मीडिया पर सुनीता को भला बुरा कहा है और मामा गोविंदा को सम्मान देने की बात कही है.

कृष्णा की पत्नी कश्मीरा शाह ने खुले शब्दों में मीडिया के सामने गोविंदा की पत्नी सुनीता की बुराई भी की है. इतना ही नहीं कृष्णा अभिषेक ने भी सोशल मीडिया पर अपने मामा गोविंदा की नाराजगी का जिम्मेदार मामी सुनीता को ही बताया है. ऐसे में यह कहना गलत ना होगा कि जिस तरह एक मयान में दो तलवार नहीं रह सकती वैसे ही एक बिग बौस हाउस में दो बिग बौस नहीं रह सकते. अगर बिग बौस में सुनीता पहुंच गई तो असली बिग बौस को बाहर होना पड़ेगा जो हमेशा कहते नजर आते हैं बिग बौस चाहते हैं.

निश्चय: क्या सुधा ने लिया मातृत्व का गला घोंटने का फैसला?

सुधा और अनिल ने एकसाथ डाक्टरी की पढ़ाई की थी. दोनों की यही इच्छा थी कि वे अमेरिका जा कर अपना काम शुरू करें और साथसाथ पढ़ाई भी जारी रखें. दोनों के परस्पर विवाह पर भी मातापिता की ओर से कोई रुकावट नहीं हुई थी. इसलिए दोनों विवाह के कुछ समय बाद ही अमेरिका आ गए.

अमेरिका का वातावरण उन्हें काफी रास आया. अनिल और सुधा ने यहां आ कर 5 वर्ष में काफी तरक्की कर ली थी. अब अनिल ने नौकरी छोड़ कर अपना क्लीनिक खोल लिया था, लेकिन सुधा अभी भी नौकरी कर रही थी. उस का कहना था, ‘नौकरी में बंधेबंधाए घंटे होते हैं. उस के साथसाथ घर पर भी समया- नुसार काम और आराम का समय मिलता है, जबकि अपने काम में थोड़ा लालच भी होता है और यह भी निश्चित होता है कि जब तक अंतिम रोगी को देख कर विदा न कर दिया जाए, डाक्टर अपना क्लीनिक नहीं छोड़ सकता.’  खैर, जो भी हो, सुधा को नौकरी करना ही ज्यादा उचित लगा था. शायद पैसों के पीछे भागना उसे अच्छा नहीं लगता था और न ही वह उस की जरूरत समझती थी. वह अब एक भरापूरा घरपरिवार चाहती थी. भरेपूरे परिवार से उस का मतलब था कि घर में बच्चे हों, हंसी- ठिठोली हो. जीवन के एक ही ढर्रे की नीरसता से वह ऊबने लगी थी.

पहलेपहल जब वे यहां आए थे तो दोनों की ही इच्छा थी कि अभी 3-4 वर्ष पढ़ाई पूरी करने के पश्चात अपनी प्रैक्टिस जमा लें और आर्थिक स्थिति मजबूत कर लें, फिर बच्चों का सोचेंगे. अब सुधा को लगने लगा था कि वह समय आ गया है, जब वह एकाध वर्ष छुट्टी ले कर या नौकरी छोड़ कर आराम कर सकती है और मां बनने की अपनी इच्छा पूरी कर सकती है. इसी आशय से एक दिन उस ने अनिल से बात भी चलाई थी, लेकिन वह यह कह कर टाल गया था कि ‘नहीं, अभी तो हमें बहुत कुछ करना है.’ यह ‘बहुत कुछ करना’ जो था, वह सुधा अच्छी तरह जानती थी.

वास्तव में अनिल यहां आ कर इतना ज्यादा भौतिकवादी हो गया था कि दिनरात रुपए के पीछे भागता फिरता था. वे केवल 2 ही प्राणी थे. रहने को अच्छा बड़ा सा मकान था, जो सभी सुखसुविधाओं से सुसज्जित था. दोनों के पास गाडि़या थीं. अपना एक क्लीनिक भी था, लेकिन अनिल पर तो नर्सिंगहोम खोलने की धुन सवार थी. नर्सिंगहोम खोलने से सुधा ने कभी इनकार नहीं किया था, लेकिन वह अब थोड़ा आराम भी करना चाहती थी. उसे लगता था कि पिछले कितने वर्ष भागदौड़ में ही बीत गए हैं.

कभी चैन से छुट्टियां बिताने का भी समय दोनों को नहीं मिल पाया. वैसे भी सुधा अब वास्तव में मातृत्व का सुख भी लेना चाहती थी.  प्राय: जब अनिल क्लीनिक से घर लौटने में देर कर देता तो सुधा अकेली बैठीबैठी यही सब सोचा करती कि कैसी मशीनी जिंदगी जी रहे हैं, वे लोग. बाहर से थक कर आओ तो घर का काम करना होता था. अपने लिए तो कोई समय ही नहीं बचता था. रोज ही वह सोचती कि अनिल से बात करेगी पर हर रोज अनिल किसी न किसी बहाने से बच्चे की बात को टाल जाता.

धीरेधीरे सुधा की शादी को 8 साल बीत गए. पहले पढ़ाईलिखाई के कारण ही उस ने विवाह औसत आयु की अपेक्षा देर से किया था. फिर काम और अनिल की बढ़ती महत्त्वाकांक्षाओं के कारण वह अपनी इच्छा को पूरा नहीं कर पाई थी, लेकिन एक डाक्टर होने के नाते अब वह जानती थी कि वैसे ही बच्चे को जन्म देने की दृष्टि से उस की आयु बढ़ती जा रही है. दूसरी ओर अनिल की ओर से कोई उत्साह भी नहीं दिखाई देता था. अंत में उस ने यही तय किया कि वह अनिल से साफसाफ कह देगी कि उस के नर्सिंगहोम और दूसरी इच्छाओं की खातिर वह अपने अरमानों का गला नहीं घोंटेगी. वह अब और अधिक प्रतीक्षा नहीं करेगी.

अनिल जब रात को लौटा तो सुधा टीवी के सामने बैठी उस की प्रतीक्षा कर रही थी. अनिल ने जब आराम से खाना वगैरह खा लिया तो सुधा ने धीरेधीरे बात आरंभ की, लेकिन अनिल ने उत्साह दिखाना तो दूर, उसे फटकार दिया, ‘‘यह  क्या बेवकूफी भरी हरकत है. अभी मेरे पास समय नहीं है, इन सब बातों के लिए. अभी मुझे बहुत आगे बढ़ना है, सफलता प्राप्त करनी है. अपने इलाके में एक शानदार नर्सिंगहोम खोलना है, जिस में तुम्हारी सहायता की आवश्यकता भी होगी. अभी कम से कम 3 साल तक इस विषय में सोचना भी असंभव है.’’

सुधा की अवस्था एक चोट खाई हुई नागिन जैसी हो गई. वह चिल्ला कर बोली, ‘‘भाड़ में जाए तुम्हारी सफलता, तुम्हारा पैसा और भाड़ में जाए नर्सिंगहोम…मुझे नहीं चाहिए यह सब- कुछ…  बात बिगड़ते देख कर अनिल ने बड़ी चतुराई से स्थिति को संभालने की कोशिश की. सुधा को पुचकार कर समझाने लगा और अपनी ओर से पूरा प्रयत्न कर के उसे शांत किया.

इस झगड़े के लगभग 4 महीने पश्चात एक दिन सुधा को लगा कि वह गर्भवती है. इस बात से वह बहुत प्रसन्न थी. डाक्टर से जांच करवाने के पश्चात ही वह अनिल को यह समाचार देना चाहती थी. वह एक दोपहर अपने ही अस्पताल की डाक्टर के पास जांच करवाने गई. जांच रिपोर्ट ने यही बताया कि अब वह मां बनने वाली है. शाम को जब सुधा घर आई तो वह अपने को रोक नहीं पा रही थी. उस ने 2 बार रिसीवर उठाया कि अनिल को बताए, लेकिन फिर यह सोच कर रुक गई कि यदि वह फोन पर बता देगी तो अनिल के चेहरे पर आने वाले खुशी और आनंद के भावों को कैसे देख सकेगी.

रात को जब अनिल घर आया तो सुधा ने उसे बड़े उत्साह से यह खुशखबरी सुनाई. अनिल तो सुन कर भौचक्का रह गया. वह गुस्से से बोला, ‘‘तुम्हें ऐसा करने को किस ने कहा था? मेरी सारी योजनाओं को तुम ने मिट्टी में मिला दिया. कोई जरूरत नहीं, अभी इस की. कल जा कर गर्भपात करवा लो. मैं डाक्टर से समय ले दूंगा.’’

इतना सुनते ही सुधा चीख कर बोली, ‘‘मैं इस बच्चे को जन्म दूंगी. मैं ने कितनी प्रतीक्षा के बाद इसे पाया है. इतने चाव से इस की प्रतीक्षा की और आज मैं इस की हत्या कर दूं? ऐसा कभी नहीं हो सकता.’’

अनिल बोला, ‘‘तुम यह तो सोचो कि इस से मुझे कितनी मुश्किल होगी. कम से कम 1 साल तक तो तुम बंध ही जाओगी और मुझे तुम्हारे होते हुए दूसरे डाक्टरों की नियुक्ति करनी पड़ेगी. तुम तो जानती ही हो कि यहां डाक्टरों को कितना ज्यादा वेतन देना पड़ता है. मैं ने तुम से कहा था कि हमें अभी किसी बच्चे की कोई आवश्यकता नहीं है…अभी हमारे पास फुरसत ही कहां है, इन सब झमेलों के लिए.’’

‘‘आवश्यकता तो मुझे है…मेरा मन करता है कि मैं भी मां बनूं. मेरी भी इच्छा होती है कि एक नन्हामुन्ना बच्चा मेरे इस सूने, नीरस से घर और जीवन को अपनी मीठी आवाज और किलकारियों से भर दे,’’ सुधा बोली.

‘‘तो तुम नहीं जाओगी डाक्टर के पास?’’ अनिल ने क्रोध में भर कर पूछा.

‘‘हरगिज नहीं,’’ सुधा फिर चीखी.

‘‘तो फिर कान खोल कर सुन लो, अगर तुम इस बच्चे को रखना चाहती हो तो मुझे खोना होगा,’’ इतना कह कर अनिल घर का द्वार बंद कर बाहर चला गया.

कुछ क्षणों में ही अनिल की कार के स्टार्ट होने की आवाज आई. सुधा टूट कर पलंग पर गिर पड़ी और फूटफूट कर रोने लगी. सोचने लगी कि क्या करे, क्या न करे. उसे लगता कि 2 नन्हीनन्ही बांहें उस की ओर बढ़ रही हैं. उसे लगा, कोई नन्हा शिशु उस की गोद में आने को मचल रहा है. न जाने कब सुधा रोतेरोते कल्पना के जाल बुनतीबुनती सो गई. सवेरा हुआ तो वह उठी. रोज की भांति तैयार हुई और अपने अस्पताल की ओर चल पड़ी. दिन भर सोचती रही कि शायद अनिल का फोन आएगा या वह स्वयं आ कर उसे मना लेगा, लेकिन कोई फोन नहीं आया.

सुधा भारी मन से घर लौटी. देर तक टीवी देखने के बहाने अनिल का इंतजार करती रही, लेकिन अनिल घर ही नहीं आया. अगले दिन सवेरे अनिल आया और कुछ जरूरी सामान उठा कर बोला, ‘‘अगर तुम ने अपना फैसला नहीं बदला तो मेरी भी एक बात सुन लो, मैं भी अब इस घर में कभी कदम नहीं रखूंगा. मैं ने वहीं एक फ्लैट ले लिया है और वहीं रह कर अपना क्लीनिक संभालूंगा. बाद में नर्सिंगहोम का काम भी मैं खुद ही संभाल लूंगा. तुम्हारा और मेरा अब कोई संबंध नहीं है.’’

अनिल के जाते ही सुधा का निश्चय और भी पक्का हो गया. धीरेधीरे मन को समझाबुझा कर उस ने भी कामकाज में स्वयं को व्यस्त कर लिया. अगर कभी अनिल का खयाल आया भी तो उस ने अपनेआप को किसी न किसी बहाने से बहलाने की ही कोशिश की और स्वयं को किसी भी क्षण दुर्बल नहीं होने दिया. कभीकभार दोनों की मुलाकात हो भी जाती तो दोनों चुपचाप एकदूसरे से किनारा कर लेते. समय गुजरता गया. सुधा ने एक सुंदर, स्वस्थ बेटे को जन्म दिया. वह शिशु को पा कर बहुत प्रसन्न थी. अनिल के पास भी उस ने सूचना भिजवाई, लेकिन वह अपनी संतान को देखने भी नहीं आया.

अनिल अब दिनबदिन अधिक व्यस्त होता जा रहा था. उस के नर्सिंगहोम की ख्याति फैल रही थी. एक दिन अचानक अनिल को अपने नर्सिंगहोम से फोन आया. उसे जल्दी ही बुलाया गया था. एक महिला का गंभीर औपरेशन होना था. महिला दिल की मरीज थी और डाक्टरों ने उसे कहा था कि यदि वह बच्चा पैदा करने का साहस करेगी तो उस की जान को खतरा है.

वही महिला आज डाक्टर अनिल के पास गर्भावस्था में आ पहुंची थी. उस के बचने की संभावना बिलकुल नहीं थी. औपरेशन तो करना ही था, सो किया गया, लेकिन अनिल जच्चाबच्चा को न बचा सका. बड़ा ही दुखद दृश्य था. उस महिला का पति फूटफूट कर बच्चों की तरह रो रहा था. थोड़ी देर तक जी भर कर रो लेने के पश्चात जब उस का आवेग थोड़ा सा कम हुआ तो अनिल ने एक ही प्रश्न पूछा, ‘‘यदि तुम्हारी पत्नी गंभीर हालत में थी तो तुम ने उसे डाक्टर के मना करने पर भी ऐसा करने से रोका क्यों नहीं?’’

उस व्यक्ति ने भीगी आंखों से उत्तर दिया, ‘‘मेरी पत्नी जानती थी कि मुझे बच्चों से बहुत लगाव है. मैं आसपास के बच्चों को ही प्यार कर के अपना जी बहला लेता था.

‘‘आखिरी समय तक मैं उस से प्रार्थना करता रहा कि उस का स्वास्थ्य ठीक नहीं और वह बच्चे को जन्म देने के योग्य नहीं, लेकिन वह मुझे प्रसन्न करने के लिए अकसर कहती, ‘यदि मैं मर भी गई तो यह बच्चा तो हम दोनों के प्यार और रिश्ते की यादगार के रूप में तुम्हारे पास रहेगा ही. मुझे इसी से बेहद खुशी मिलेगी.’

‘‘अंत में जिस बात के लिए उस ने इतना बड़ा बलिदान दिया, वह भी पूरी न हुई. न वह रही, न बच्चा. मैं उसे मना करता रहा, लेकिन उस ने मेरी एक न सुनी,’’ और वह व्यक्ति फिर रोने लगा.

अनिल भारी मन से घर आया. सहसा उसे अपनी सुधा की बहुत याद आने लगी. उस ने साहस बटोर कर घर के बाहर खड़ी गाड़ी स्टार्ट की और सुधा के घर के सामने जा पहुंचा. अनिल ने दरवाजे पर लगी घंटी बजाई. थोड़ी देर में दरवाजा खुला. सुधा अवाक् अनिल को देखती रह गई. कुछ क्षणों तक दोनों उसी अवस्था में खड़े रहे. फिर धीरे से अनिल ने कहा, ‘‘माफी यहीं से ही मांग लूं या अंदर आने की मुझे अनुमति है?’’ थोड़ी देर के लिए सुधा कुछ सोचती रही. फिर दरवाजा छोड़ कर उस ने अनिल के अंदर आने के लिए रास्ता बना दिया.

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