परिचय की आड़ में प्रताड़ना का खेल

केरल के कोझिकोड जिला अस्पताल में भरती 19 वर्षीय एक दलित छात्रा अस्वथी के.पी. अगर बच भी गई तो उस के लिए जिंदगी शायद मौत से ज्यादा बदतर होगी, क्योंकि उस की 5 सीनियर्स ने उसे टौयलेट साफ करने वाला कीटनाशक पीने को मजबूर कर दिया था.

कर्नाटक के गुलबर्गी जिले के कालेज अल उमर कालेज औफ नर्सिंग में दाखिला लेने वाली अधिकांश छात्राएं केरल की होती हैं, जो देश भर में नर्सें देने के लिए जाना जाता है. करीब 5 महीने पहले अस्वथी ने बड़े उत्साह से इस कालेज में प्रवेश लिया था. पर उस के साथ रैगिंग के नाम पर जो हुआ वह एक दिल दहला देने वाला हादसा है.

9 मई, 2016 को हुए इस हादसे की एफ.आई.आर. 22 जून, 2016 को कोझिकोड में दर्ज की गई तो सहज समझा जा सकता है कि इस हादसे में कितनी लापरवाही बरती गई. उजागर यह भी हुआ कि रैगिंग संबंधी कानून कितने कमजोर हैं. 9 मई को अस्वथी को उस के सीनियर्स ने होस्टल में फिनाइल पीने को मजबूर किया कि जाओ और उसे पी कर मर जाओ.

बकौल अस्वथी उस ने भागने की कोशिश की पर सीनियर्स ने उसे दोबारा पकड़ कर फिनाइल पीने को मजबूर कर दिया. फिनाइल पीने के बाद वह गिर गई तो उस की दोस्तों ने इलाज के लिए उसे अस्पताल में भरती कराया जहां बजाय सुधरने के उस की हालत और बिगड़ी तो उसे उस के गृह राज्य केरल भेज दिया गया.

डाक्टरों के मुताबिक अस्वथी के आंतरिक अंग जल गए हैं और उसे एक बड़ी सर्जरी की जरूरत है, क्योंकि कैमिकल्स ने उस की आहार नली को गंभीर रूप से क्षतिगस्त कर दिया है. कैमिकल ने उस के गले और पेट के बीच का हिस्सा भी जला दिया है. उसे ठीक होने में 4 महीने लग जाएंगे. पर ऐसे मामलों में मरीज ठीक होता भी है तो कहने भर को. जिंदगी भर उस के तमाम अंग ठीक नहीं होते.

अस्वथी को पहले ही दिन से रैगिंग के नाम पर तंग और प्रताडि़त किया जा रहा था. लेकिन उस की गुहार सुनने वाला कोई नहीं था खासतौर से कालेज प्रबंधन, जिस ने ऐंटीरैगिंग कानन को धता बताते हुए पुलिस काररवाई की नौबत ही नहीं आने दी.

आरोपी सीनियर्स को एफ.आई.आर. दर्ज होने के बाद गिरफ्तार किया गया तो गुलबर्गी की जिला अदालत ने उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया. कृष्णप्रिया, अथिरा और लक्ष्मी वे सीनियर्स हैं, जिन्होंने अस्वथी से न जाने कौन सा बदला निकाला. एक सीनियर शिल्पा जीसे फरार हो गई.

इधर अस्पताल में बैठी अस्वथी की मां जो पेशे से दिहाड़ी मजदूर हैं सूनी आंखों से कुछ नेताओं और पत्रकारों के पूछने पर एक ही जवाब देतीं कि जो पीड़ा उसे हो रही है उस पीड़ा से कोई भी मां नहीं गुजरी होगी. इस मामले में केरल विधान सभा में विपक्ष के नेता रमेश चेन्निथला ने हंगामा मचाया तब कहीं जा कर लोगों को पता चला कि रैगिंग का हिंसक रूप अभी जिंदा है जिस से निबटने का कोई तरीका कारगर साबित नहीं हो पा रहा.

हिंसक होती रैगिंग

बीते 50 सालों से रैगिंग के तौर तरीके कुछ खास नहीं बदले हैं सिवा इस चिंताजनक बात के कि यह दिनोंदिन अमानवीय और हिंसक होती जा रही है. परिचय और कैंपस के माहौल में ढालने  के नाम से शुरू हुई रैगिंग पहले पिटाई और छोटीमोटी यंत्रणाओं तक ही सीमित रहती थी पर पिछले 15 सालों से यह बेहद क्रूर होती जा रही है.

दोहरी यंत्रणा

पैसों की मार तो छात्र एक दफा बरदाश्त कर जाते हैं पर शारीरिक और मानसिक यंत्रणा लंबे वक्त तक उन्हें सालती रहती है.

रैगिंग की हदें तय नहीं हैं, इसलिए भी सीनियर्स की कुंठा तरहतरह से जूनियर्स पर निकलती हैं, जिन की दलील यह रहती है कि हमारी भी तो हुई थी, हम भी इस दौर से गुजरे हैं. तभी पक पाए हैं, इसलिए जूनियर्स को दुनियादारी दिखा रहे हैं.

क्या तरहतरह से जूनियर्स को बेवजह प्रताडि़त करना दुनियादारी सिखाना है? इस सवाल को उठाते हुए भोपाल की एक नौकरीपेशा सविता शाक्य बताती हैं कि इस रैगिंग ने उन के इकलौते बेटे का जीवन तबाह कर दिया जिसे 6 साल पहले बैंगलुरु के नामी इंस्टिट्यूट में एम.बी.ए. में दाखिला मिला था. मम्मीपापा दोनों बेटे को खुशीखुशी छोड़ने गए पर बेटा 15 दिन बाद ही बगैर पूर्व सूचना दिए घर लौट आया.

बेटे ने बताया कि वह रैगिंग से आजिज आ कर बैंगलुरु छोड़ आया है और अब मर जाएगा पर कभी उस कालेज में नहीं जाएगा.

भूमिका अभिभावकों की

बच्चों को दूसरे शहर में पढ़ाना व उन्हें होस्टल में रखना मजबूरी है. लेकिन वहां सुरक्षा बेहद जरूरी है. पर यह कैसे हो, यह सवाल अनुत्तरित ही है. फिर भी कुछ बातें हैं जिन पर अभिभावक अमल करें तो एक हद तक बच्चों को रैगिंग फ्री नहीं तो उस के कहर से बचाया जरूर जा सकता है.

– अभिभावक नियमित बच्चों के टैलीफोनिक संपर्क में रहें.

– शुरू में 1-2 महीने एक बार होस्टल जा कर खुद देखें, उस के दोस्तों से मिलें और सीनियर्स से भी. इस से उन में डर बैठेगा.

– दूसरे शहर में परिचितों व रिश्तेदारों से नजदीकियां बढ़ाएं, जिस से वे बच्चे का यथासंभव ध्यान रखें.

– होस्टलों में रैगिंग देर रात ज्यादा होती है इसलिए रात 11-12 बजे के लगभग उस से फोन पर बात करें. अगर फोन इस समय लगातार 2-3 दिन बंद मिले तो समझ जाएं कि मामला गड़बड़ है.

– जब वह घर आए और असहज या तनाव में  दिखे तो उसे विश्वास दिलाएं कि आप उसके अभिभावक ही नहीं, बल्कि शुभचिंतक व दोस्त भी हैं जो समस्याएं सुलझा सकते हैं. तब वह अपनी परेशानी बता सकता है.

भोपाल के एक प्रोफैसर का बेटा जयपुर एक प्रबंधन पाठ्यक्रम में पढ़ने गया था जहां उस की जम कर रैगिंग हुई तो वह घबरा गया और अभिभावकों को बताए बगैर एक धर्मशाला में रहने लगा. दोस्तों के जरीए पिता को यह बात पता चली तो वे भागेभागे जयपुर गए. पापा को देखते ही बेटा उन के गले लग कर फूटफूट कर रोने लगा और बताया कि कालेज में उस की बहुत पिटाई होती है और वह यहां नहीं रहना चाहता.

प्रोफैसर साहब हालात और बेटे की मानसिकता को समझते हुए उसे घर ले आए. कुछ महीनों बाद सामान्य होने पर बेटे ने बताया कि अगर वह वापस नहीं आता तो शायद धर्मशाला में ही खुदकुशी कर लेता.

लड़कियों के मामले में तो दोहरा ध्यान देने की जरूरत है. लड़के तो अनजान शहर में भी होस्टल से भाग कर किसी लौज या धर्मशाला में रहकर या किसी दोस्त के यहां जा कर खुद को बचा लेते हैं पर लड़कियां ऐसा नहीं कर पातीं. जरूरी है कि उन्हें आश्वस्त किया जाए कि वे अभिभावकों से कुछ न छिपाएं. इस में मां की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है.

लचर कानून

रैगिंग के दोषियों को सजा देने के लिए ऐंटीरैगिंग कानून वजूद में है पर दिक्कत यह है कि रैगिंग की तादाद के मुकाबले शिकायतें बहुत कम होती हैं. वजह सीनियर्स द्वारा जूनियर्स को आतंकित रखना और जूनियर्स की अपने भविष्य की चिंता है.

हर कालेज में रैगिंग रोकने के लिए, शिकायतों पर काररवाई करने के लिए ऐंटीरैगिंग कमेटी बनाई जाती है पर यह अफसोस की बात है कि वह उम्मीद के मुताबिक काम नहीं करती. जूनियर्स जब शिकायत करते हैं तो पहली बार में सीनियर्स पर काररवाई करने के बजाय उन्हें समझाया जाता है कि थोड़ाबहुत तो होता रहता है ज्यादा हो तो बताना.

ऐंटीरैगिंग कमेटी या प्रकोष्ठ में आमतौर पर कालेज के प्रोफैसर्स ही रहते हैं, जिन के लिए रैगिंग रोकना जबरदस्ती थोपा हुआ काम लगता है. अलावा इस के कालेज की प्रतिष्ठा की खातिर उन की पहली कोशिश यह रहती है कि बात आईगई हो जाए.

दूसरी अहम वजह सीनियर्स का डर भी है. भोपाल एन.आई.टी. के एक प्रोफेसर के अनुसार तो हम भी घरगृहस्थी वाले हैं. अब अगर आधी रात को किसी होस्टल में सीनियर्स रैगिंग ले रहे हैं तो हम क्या कर सकते हैं? क्या हम होस्टल में सोएं और शिकायत मिलने पर दोषियों को समझानेबुझाने की कोशिश करें भी तो वे इतने बेखौफ हो चुके होते हैं कि हम से भी नहीं डरते. अब अगर हम पुलिस में शिकायत करें तो डर इस बात का रहता है कि कहीं हम ही मुश्किल में न पड़ जाएं.

यानी ऐंटीरैगिंग कानून दूसरे कानूनों की तरह कहने भर को ही है. इस कानून में दोषियों को 2 साल तक की सजा और 10 हजार तक के जुर्माने का प्रावधान है पर दोष यानी रैगिंग साबित हो जाने के बाद. सीधेसीधे कहा जाए तो आईपीसी के कानूनों का रूपांतरण कर उसे ऐंटीरैगिंग कानून नाम दे दिया गया है, जिस के तहत पहले एफ.आई.आर. दर्ज हेती है, मुलजिम गिरफ्तार होते हैं, उन की जमानत भी होती है फिर केस डायरी में दाखिल होता है और मुकदमा चलता है. यह ठीक है कि दोषी छात्र को निकाल देने का अधिकार कालेज प्रबंधन को है, पर ऐसा अपवादस्वरूप ही देखने में आता है कि उस बडे़ स्तर पर दोषियों का निष्कासन हुआ हो जितने बड़े स्तर पर रैगिंग होती है.

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और दूसरी एजेंसियां सिर्फ सिफारिशें करती हैं और चेतावनियां देती हैं कि रैगिंग किसी भी हाल में नहीं होनी चाहिए. इस के बाद भी रैगिंग हो रही है. इस साल मई तक सिर्फ 40 के लगभग शिकायतें देश भर से पहुंची थीं जबकि हकीकत एकदम उलट है. अब यह सरकार और उस की एजेंसियों के सोचने की बात है कि वे रैगिंग की मानसिकता और परंपरा खत्म करने के कारगर कदम उठाएं वरना हादसे होते रहेंगे, छात्र बेकाबू होते रहेंगे, मारपीट होती रहेगी, कहींकहीं टौयलेट क्लीनर भी पिलाया जाएगा और कहीं कोई देश का भविष्य व कर्णधार कहा जाने वाला छात्र खुदकुशी करने को मजबूर हो जाएगा.

मिशन ऐडमिशन के 4 नियम

अधिकांश छात्र 12वीं कक्षा के बाद कालेज में ऐडमिशन लेते समय कुछ ऐसी गलतियां कर बैठते हैं, जिन का खमियाजा उन्हें आगे चल कर भुगतना पड़ता है. तब उन के पास पछताने के अलावा और कोई उपाय नहीं बचता. दरअसल, होता यह है कि ऐडमिशन के समय छात्र कालेज, इंस्टीट्यूट के लुभावने विज्ञापनों, अन्य छात्रों से सुनीसुनाई बातों पर विश्वास कर के गलत कालेज का चुनाव कर लेते हैं, जो उन के कैरियर के लिए गलत साबित होता है.

रुद्राक्षी ने 12वीं कक्षा के बाद अपने दोस्त शिवम के कहने पर एक ऐसे कालेज में ऐडमिशन ले लिया जो न तो मान्यताप्राप्त था और न ही उस में वे सब सुविधाएं उपलब्ध थीं जो ऐडमिशन के समय बताई गई थीं. लेकिन अब रुद्राक्षी के पास पछताने के अलावा और कोई उपाय नहीं बचा था, क्योंकि अब तो ऐडमिशन की प्रक्रिया भी पूरी हो चुकी थी और फिर उस ने पूरी फीस भी डिपौजिट करवा दी थी. अगर आप भी इस साल कालेज में ऐडमिशन लेने जा रहे हैं, तो कालेज का चुनाव करने से पहले निम्न महत्त्वपूर्ण बातों का ध्यान जरूर रखें ताकि आप के साथ भी रुद्राक्षी जैसा धोखा न हो:

कालेज की मान्यता

अकसर दूसरे राज्यों से आए छात्र बड़े कालेजों की चमकदमक से प्रभावित हो कर बिना जांचपड़ताल किए ऐडमिशन ले लेते हैं, जिन की डिग्री की कोई मान्यता नहीं होती और यह उन्हें तब पता चलता है जब वे नौकरी के लिए आवेदन करते हैं. हर साल हजारों छात्र ऐसी फर्जी यूनिवर्सिटी या कालेजों के झांसे में आ कर उन का शिकार बन जाते हैं. इसलिए भावी छात्र होने के नाते कालेज में ऐडमिशन लेने से पूर्व आप को कालेज की मान्यता के बारे में पूरी रिसर्च करनी होगी ताकि आप के साथ ऐसा धोखा न हो.

यह भी जान लें कि अगर वह संस्थान ऐफिलिएटेड है तो संस्थान की ऐफिलिएशन किस आधार पर है. जिस आधार पर कालेज या यूनिवर्सिटी को मान्यता मिली है वह उस पर खरा उतरता है या नहीं. यूजीसी (यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन) यूनिवर्सिटीज पर नजर रखने के साथसाथ उन्हें मान्यता भी प्रदान करता है. इसीलिए यदि आप किसी कालेज या यूनिवर्सिटी से कोई भी एकैडेमिक या प्रोफैशनल डिग्री लेने की सोच रहे हैं तो सब से पहले यूजीसी की वैबसाइट पर जांचिए कि उक्त कालेज या यूनिवर्सिटी मान्यता प्राप्त है या नहीं.

प्लेसमैंट व इंटर्नशिप

कोई भी अभिभावक यह सोच कर अपने बच्चे को उच्च शिक्षा दिलाता है कि शिक्षा पूरी होने के बाद उन का बच्चा अच्छी नौकरी कर सकेगा. लेकिन कई बार डिग्री हासिल करने के बाद भी छात्रों का भविष्य अधर में लटका रहता है, क्योंकि डिग्री हासिल करने के बाद भी उन्हें नौकरी नहीं मिलती. कालेज की शिक्षा पर इतना खर्च करने के बाद आप को उस का पूरा फल मिले, इस के लिए किसी भी संस्थान में ऐडमिशन लेने से पूर्व यह जान लें कि वह संस्थान उसे डिग्री देने से पहले इंटर्नशिप या प्लेसमैंट उपलब्ध करवाएगा अथवा नहीं. आप चाहें तो उस संस्थान से पासआउट छात्रों से भी यह जानकारी हासिल कर सकते हैं या फिर पिछले 5 वर्षों का प्लेसमैंट रिकौर्ड व प्लेसमैंट देने वाली कंपनियों की लिस्ट से जानकारी हासिल कर सकते हैं.

मूलभूत सुविधाएं

चूंकि आप को उस शिक्षा संस्थान में अपनी जिंदगी के बहुमूल्य साल गुजारने हैं और वहां प्राप्त शिक्षा व सुविधाओं के आधार पर ही आप का भविष्य तय होगा, इसलिए ऐडमिशन के लिए किसी भी संस्थान का चुनाव करने से पहले कालेज द्वारा प्रस्तावित ऐकैडेमिक प्रोग्राम, कालेज द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाला स्टडी मैटीरियल, अगर होस्टल सुविधा लेंगे तो होस्टल में दी जाने वाली सुविधाएं (खानपान, सुरक्षा), अगर डे स्कौलर हैं, तो ट्रांसपोर्ट की सुविधा, रिसर्च के लिए लाइब्रेरी, लैबोरेटरी, प्लेग्राउंड, इंटरनैट आदि की जानकारी ले लें. कुल मिला कर आप जिस संस्थान में ऐडमिशन लेने जा रहे हैं वहां छात्र के लिए शिक्षा ग्रहण करने का सुरक्षित व आरामदेह माहौल है या नहीं, इस की जांच अवश्य कर लें. आप चाहें तो इस की वास्तविक जानकारी मौजूदा छात्रों व संस्थान की वैबसाइट पर मौजूद स्टूडैंट फौरम से भी हासिल कर सकते हैं.

फैकल्टी

किसी भी शिक्षा संस्थान से छात्र कैसी शिक्षा ले कर निकलेंगे ये उस संस्थान के शिक्षकों यानी फैकल्टी पर भी निर्भर करता है. यदि किसी संस्थान की फैकल्टी यानी वहां के शिक्षक पूर्ण प्रशिक्षित व योग्य हैं तो छात्रों को बेहतर शिक्षा मिलने की संभावना बढ़ जाती है. इसलिए इंस्टिट्यूशन का चुनाव करते समय संस्थान के शिक्षकों की शिक्षा, उन का अनुभव, उन की विशेषज्ञता आदि का पता कर लें ताकि आप का भविष्य शिक्षित व विशेषज्ञ अध्यापकों के हाथों संवर सके. कुछ संस्थानों में किसी विषय विशेष की फैकल्टी यानी शिक्षक ज्यादा योग्य व अनुभवी होते हैं. इसलिए आप जिस विषय में महारत हासिल करना चाहते हैं उस विषय के विशेषज्ञों वाले कालेज में दाखिला लें. साथ ही, यह भी देख लें कि उक्त संस्थान में अध्यापकों व छात्रों का अनुपात क्या है, क्योंकि कई बार छात्र अधिक होते हैं व शिक्षक कम जिस से छात्रों को सही शिक्षा व गाइडैंस नहीं मिल पाती.

कालेज व कोर्स में से एक को चुनना हो तो अपनी पसंद के कोर्स को अहमियत दें, क्योंकि जिस कोर्स या विषय में आप की रुचि होगी आप उसी में बेहतर प्रदर्शन कर पाएंगे. कई बार छात्र अपने दोस्तों की देखादेखी ऐसे कालेज या विषय में दाखिला ले लेते हैं, जिस में उन की रुचि नहीं होती. ऐसा करना गलत है, क्योंकि हो सकता है वह कालेज और वह कोर्स आप के उस दोस्त को बेहतर भविष्य दे सकता हो, पर यह जरूरी नहीं कि वह आप के लिए भी सही ही हो.

स्वस्थ रहना है तो डालें ये आदतें

बच्चों को शुरू से साफसफाई और हाइजीन के बारे में बताया जाना चाहिए. यह आदत बचपन से डालने पर ही बच्चे इस पर अमल करते हैं. सिर्फ बच्चों को ही नहीं, मातापिता को खुद भी इस की आदत होनी चाहिए. बच्चे केवल कहने से इस का पालन नहीं करते, बल्कि वे मातापिता को देख कर ही अपनेआप इसे अपना लेते हैं. साफसफाई और हाइजीन बच्चों को कई बीमारियों से राहत दिलाती है. समर और मौनसून में संक्रमण वाली बीमारियां अपने पैर ज्यादा पसारती हैं. ऐसे में इन मौसमों में हाइजीन का ध्यान रखना बहुत ही जरूरी है.

एक सर्वे के अनुसार भारत में 47% बच्चे कुपोषण के शिकार होते हैं. इस की वजह पेट का इन्फैक्शन है, क्योंकि लगातार इन्फैक्शन होने से उन के शरीर से पोषक तत्त्व नष्ट होने लगते हैं, जिस का असर उन के मस्तिष्क पर पड़ता है. इतना ही नहीं, पुअर हाइजीन की वजह से 5 साल से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु दर भी अधिक है.

मुंबई के एसआरवी हौस्पिटल के बालरोग विशेषज्ञ डा. विशाल बालदुआ का कहना है कि हमेशा स्वस्थ शरीर में स्वस्थ दिमाग रहता है

और यह सही भी है, क्योंकि हाइजीन कई प्रकार के होते हैं, जिन में खास हैं डैंटल, नेल्स, हेयर ऐंड फुलबौडी.

साफसफाई से जुड़े ये टिप्स मातापिता बच्चों को दे सकते हैं:

– जब बच्चा बड़ा हो जाए तो उसे ब्रश और पेस्ट दें. ब्रश करने की विधि भी बताएं. साथ में खुद भी ब्रश करें ताकि आप को देख कर उसे में भी ऐसा करने की इच्छा पैदा हो. ऐसा न करने से कम उम्र में कैविटी होने की संभावना रहती है. अगर कैविटी मसूढ़ों तक चली जाती है, तो दूध के दांत निकल जाने के बाद भी समस्या नए दांतों में आ सकती है. इस के अलावा कुछ बच्चे बड़ी उम्र तक बोतल से दूध पीते हैं. इस से भी कैविटी होती है. ऐसे में जरूरी है कि दूध पीने के बाद उन्हें थोड़ा पानी पिलाएं.

– नेल्स हाइजीन के बारे में बच्चों को अवश्य बताएं. बच्चे धूलमिट्टी में खेलते हैं, इस से उन के हाथों और नाखूनों के द्वारा जर्म्स उन के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं. गंदे हाथों से शरीर या सिर खुजलाने से फोड़ेफुंसिया हो जाते हैं. इसे स्कैबिज इन्फैक्शन कहते हैं. अगर बिना हाथ धोए उन हाथों को मुंह में डालते हैं, तो इन्फैक्शन पेट में जाता है. अगर एक दिन में बच्चा नाखून न कटवाना चाहे तो 2 दिन में काटें. नाखून काटते वक्त बच्चे इस की अच्छाइयों के बारे में भी बताती जाएं. इस के अलावा खाना खाने से पहले हाथ धोने की भी आदत डलवाएं.

पुअर हाइजीन से कई बीमारियां बच्चों को हो जाती हैं, इन में  कैविटी, टायफाइड, हैजा, हैपेटाइटिस ए और इ आदि कौमन हैं. लेकिन ऐसा नहीं है कि बच्चा खेलने बाहर न जाए, उसे बाहर जाने दें, खेलने भी दें, पर जब घर आए उसे नहाने की आदत डालें. साबुन हमेशा मैडिकेटेड ही लें. समर और मौनसून में हाइजीन का खास ध्यान रखें ताकि आप का बच्चा सही आदतों से हमेशा स्वस्थ रहे. अगर बच्चा स्वस्थ रहेगा तो उस का मानसिक विकास भी अच्छा होगा.         

पब्लिक प्लेस पर हाइजीन

संक्रमण से फैलने वाली बीमारियों की चपेट में आने का खतरा घर से बाहर ज्यादा रहता है. खासतौर पर जब आप या आप का बच्चा पब्लिक टौयलेट का इस्तेमाल करे. आजकल बाजार में ऐसे उत्पाद उपलब्ध हैं जिन का इस्तेमाल कर के आप पब्लिक प्लेस में भी हाइजीन का ध्यान रख सकती हैं. स्प्रे के रूप में बाजार में उपलब्ध इन उत्पादों को कैरी करना भी आसान है. पब्लिक प्लेस पर टौयलेट इस्तेमाल करने से पहले टौयलेट सीट पर स्प्रे का प्रयोग करें और संक्रमण से बचें.

आहट सांवले साम्राज्य की

जमशेदपुर की ज्योति मध्यवर्गीय युवती है, जो बैंगलुरु की एक कंपनी में इंजीनियर है. ज्योति आत्मविश्वासी, आत्मनिर्भर व शिक्षित है पर उस के अभिभावकों को उस की शादी की कुछ ज्यादा ही चिंता थी, क्योंकि उन की इकलौती सांवली है. कुछ दिन पहले उस के मातापिता ने उस की शादी तय कर दी पर भावी ससुराल वाले उस के सांवलेपन की अप्रत्यक्ष दुहाई दे कर दहेज के लिए मुंह फाड़ने लगे, तो ज्योति ने सख्ती दिखाते हुए खुद रिश्ते से इनकार कर दिया. हालांकि इस के पहले उस ने होने वाले पति को भी टटोला था पर उसे निराशा ही हाथ लगी, क्योंकि उस का कहना था कि वह इस मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकता.

यह जवाब सुन कर ज्योति को समझ आ गया कि ऐसे परिवार में शादी करना घाटे का सौदा और भविष्य के लिहाज से नुकसानदेह है. इस आपबीती पर ज्योति की भड़ास सोशल मीडिया के जरिए निकली, तो लोगों ने उसे हाथोंहाथ लिया. उस के फैसले व हिम्मत की दाद दी. बकौल ज्योति उन हजारोंलाखों युवतियों के लिए लिख रही है, जो इन हालात से गुजरती हैं पर कुछ बोल नहीं पातीं.

ज्योति के मामले में नया इतनी पुष्टि भर होना है कि सांवलेपन के प्रति सामाजिक नजरिया यथावत है, बावजूद इस के कि हम सांवले देश में रहते हैं, जहां की लगभग 70 फीसदी आबादी सांवलों की है. सच यह भी है कि सांवलेपन की त्रासदी लड़की को ही भुगतनी पड़ती है और वह भी जन्म से. अगर लड़की पैदा हो तो मातापिता का मुंह उतर जाता है और अगर वह सांवली भी हो तो बात नीम चढ़ा करेला सरीखी हो जाती है. उलट इस के अगर लड़का एकदम कालाकलूटा हो तो भी किसी के चेहरे पर शिकन तक नहीं आती.

अच्छी बात यह है कि इस हालत में थोड़ा सुधार हुआ है, पर वह बेहद दोहरापन लिए है. अपनी सांवली बिटिया हर किसी को खूबसूरत लगती है, लेकिन जब बारी बहू लाने की आती है, तो पैमाना और इच्छा बदल जाती है. 80-90 के दशक तक सांवली लड़की की शादी करना दुष्कर काम था, जिस का हल तगड़े दहेज से हो कर ही निकलता था. पर अब हालात बदले हैं.

बीते 30 सालों में सांवलेपन को शिक्षा और रोजगार के जरीए निखार मिला है. केवल ज्योति ही नहीं, बल्कि लाखोंकरोड़ों सांवली युवतियों के आत्मविश्वास की वजह शिक्षा और आत्मनिर्भरता है. इसी के पीछे चलती है जागरूकता, जो बेहद जरूरी हो चली है.

सांवलेपन के प्रति पूर्वाग्रह और भेदभाव केवल शादीविवाह तक सिमटा नहीं रह गया है. यह अब कौरपोरेट जगत में भी पैर पसार रहा है. कैरियर में भी आड़े आने लगा है. बराबरी की शैक्षणिक योग्यता और अनुभव में अधिकांशतया गोरी उम्मीदवार के चुने जाने का रोना आज भी सांवली युवतियां रोती नजर आती हैं. लेकिन इस से एक सुखद बात यह उजागर होती है कि सांवलियों की भरमार हर जगह हो चली है, जिन की दिक्कत यह है कि हर परिवार से ले कर दफ्तरों, कंपनियों तक में सांवलेपन का नंबर गोरेपन के बाद आता है.

यह एक स्पष्ट भेदभाव है, जिस के चलते ही अनफेयर ऐंड लवली जैसी मुहिम परवान चढ़ती है और लोगों को यह समझाने में कामयाब भी रहती है कि सौंदर्य के माने सिर्फ गोरा रंग नहीं, बल्कि शिक्षा, प्रतिभा गुण और सामाजिक आत्मविश्वास भी है.

हालांकि यह धारणा तथ्य के रूप में स्थापित अभी नहीं हो पाई है, लेकिन पहल हो चुकी है. तो लगता है वह दिन दूर नहीं जब सांवलापन सहज स्वीकार्य होगा. सिर्फ रंगत के आधार पर किसी स्त्री का संपूर्ण मूल्यांकन गंभीर त्रुटि है, जिसे दूर किया जाना जरूरी है.

गोरेपन के प्रति आकर्षण की वजहें क्या और क्यों हैं निश्चित रूप से इन का पहला जिम्मेदार धर्म है, जिस में राम और कृष्ण जैसे नायक सांवले तो बताए गए हैं, पर इस से उन के पुरुषत्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है उलट इस के गौरवर्ण महिला को ही सौंदर्य साम्राज्ञी मान लिया गया है. सीता, राधा वगैरह तमाम पौराणिक पात्र गोरी बताई गई हैं. धर्माचार्यों ने भी ज्यादती यह कहते की है कि औरत का सौंदर्य ही उस का गुण है. कैकेयी, त्रिजटा और शूर्पणखा जैसी पात्रों का चित्रण कुरूप और सांवली रंगत में जानबूझ कर किया है, ताकि देवियों का रंग चमकता रहे. आधुनिकता में जीने का दावा करते रहने वाला भारतीय समाज दरअसल में हर माने में धर्म को ही आदर्श मानता रहा है. स्त्रियों की रंगत और सौंदर्य इस से अछूते नहीं रहे हैं. रंग को ले कर ऐसेऐसे धार्मिक षड्यंत्र रचे और प्रचारित किए गए हैं, जिन्हें सुन कर ही मन में वितृष्णा पैदा होती है. इस से यह भी स्पष्ट होता है कि दलितों की तरह स्त्रियों को भी दबाने में धर्म चूका नहीं है. अपवादस्वरूप ही सांवले सौंदर्य का चित्रण किया गया है पर वह साहित्य और फिल्मों में ज्यादा हुआ है.

दूसरी अहम बात देश का लंबे समय तक अंगरेजों का गुलाम रहना समझ आती है. चूंकि मुट्ठी भर अंगरेजों ने हम पर हुकूमत की, इसलिए भारतीयों ने यह भी मान लिया कि बुद्धि भी गोरों में ही होती है. हकीकत एकदम उलट है. हर क्षेत्र में सांवली महिलाओं ने सफलता के झंडे गाड़ते हुए साबित किया है कि सांवलेपन का बुद्धि से कोई संबंध नहीं. लेकिन गोरी मेमों को देख एक धारणा पिछली सदी में स्थापित हुई थी, जिस के अवशेष आज भी पर्यटन स्थलों पर देखे जा सकते हैं. जब कोई यूरोपियन पर्यटक दिखती है, तो आम लोगों के होंठ सीटी बजाने की मुद्रा में गोल होने लगते हैं. यह शिष्ट और अकसर अशिष्ट हो जाने वाली छेड़छाड़ गोरे रंग के प्रति खिंचाव ही बताती है.

ये भी हैं मिसाल

मई आतेआते यह मुहिम हालांकि धीमी पड़ी, लेकिन यह भी जता गई कि देश में हर क्षेत्र में कामयाब महिलाओं में सब से ज्यादा संख्या सांवलियों की है. ग्लैमर और सौंदर्य का पर्याय मानी जाने वाली फिल्म इंडस्ट्री इस की मिसाल है, जिस में हेमा मालिनी, रेखा, माधुरी दीक्षित, सुष्मिता सेन, स्मिता पाटिल से ले कर काजोल और बिपाशा बसु तक सांवली हैं पर चूंकि ये नायिकाएं हैं, इसलिए इन का सांवलापन इन की अभिनय प्रतिभा के चलते आम सांवली महिलाओं सरीखा नहीं दिखता यानी आम महिलाएं भी अगर आकर्षक दिखने के लिए घर में ही या ब्यूटीपार्लर जा कर नियमित सजें-संवरें तो एक हद तक सांवलेपन से तो नहीं पर उस के अनाकर्षक दिखने से छुटकारा पा सकती हैं.

लता मंगेशकर-आशा भोंसले

पार्श्व गायिका लता मंगेशकर और उन की बहन आशा भोंसले सांवली हैं, लेकिन इन की गायिकी कभी सांवलेपन का शिकार नहीं हुई. मंगेशकर बहनों का उदाहरण बताता है कि असाधारण प्रतिभा कैसे रंग पर भारी पड़ती है. राजनीति में भी सांवली महिलाएं ज्यादा सफल हुई हैं.

ममता बनर्जी

इन में सब से प्रमुख नाम ममता बनर्जी का है, जिन की पार्टी टीएमसी ने हाल ही में पश्चिम बंगाल की सत्ता में दोबारा वापसी की. ममता का भावहीन चेहरा काफी कुछ कहता रहता है. बंगाल हालांकि सांवले सौंदर्य के लिए ही पहचाना जाता है पर ममता की कामयाबी बताती है कि मेहनत और लक्ष्य के प्रति प्रतिबद्धता रंग के आगे कुछ नहीं.

मायावती

यही हाल मायावती का है, जो लगातार आक्रामक राजनीति करती रही हैं और वक्तबेवक्त उसूल बदलने में भी माहिर हैं. सांवला रंग कभी उन के आड़े नहीं आया. नजमा हेपतुल्ला, स्मृति ईरानी और पूर्व लोक सभा अध्यक्ष मीरा कुमार का नाम भी सांवलियों में शुमार होता है.

जयललिता

तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता भी सांवली हैं, जिन्होंने ममता बनर्जी की तरह सिर्फ अपने दम पर फिर सत्ता में वापसी की. चूंकि वे अपने जमाने की मशहूर अभिनेत्री हैं, इसलिए सजसंवर कर रहती हैं, जिन्हें देख कोई कह नहीं सकता कि वे गोरी नहीं हैं. जाहिर है सांवलेपन को आकर्षक बनाने में वे भी पीछे नहीं रही हैं.

इसी तरह खिलाडि़यों में पीटी उषा और शायनी अब्राहम जैसी दर्जनों खिलाडि़यों का सांवलापन कहीं सफलता में आड़े नहीं आया. इन दोनों ने भी अपनी मेहनत और प्रतिभा के दम पर एक बेहतर मुकाम हासिल किया था.

ये चंद उदाहरण बताते हैं कि प्रतिभा को निखारते रहने से रंग के कोई माने नहीं रह जाते. न्यूज चैनल्स पर सांवली ऐंकर्स की भरमार है. आकर्षक दिखना उन के पेशे की शर्त है, इसलिए वे दर्शकों को भाती हैं.

लेकिन असल परेशानी आम युवतियों की है. जरूरी नहीं कि वे इतने बड़े मुकाम पर पहुंचें, लेकिन साफ यह भी दिख रहा है कि अगर वे शिक्षित और आत्मनिर्भर बनें, तो सांवलापन का रास्ते का रोड़ा नहीं, बल्कि मंजिल का रास्ता भी बन सकता है. पर इस के लिए उन्हें जतन तो करने पड़ेंगे. चूंकि मैं सांवली हूं, इसलिए सुंदर नहीं दिख सकती जैसी मानसिकता उन्हें खारिज करने वालों को शह देने वाली साबित होती है.

बात जहां तक पुरुषों की मानसिकता की है, तो उन की प्राथमिकता गोरा रंग हमेशा से रही है. इस की बड़ी वजह सांवली महिलाओं की सौंदर्य के प्रति उदासीनता और लापरवाही भी है वरना पुरुष एक महिला में जो ढूंढ़ता है वह सांवली में मौजूद रहता है. दोहराना जरूरी है कि उसे निखारना जरूरी है.

सफलता के शिखर पर अधिकतर सांवली महिलाएं ही हैं और वे ही रहेंगी, क्योंकि देश का रंग सांवला है. यहां ध्यान देने वाली बात, प्यार देने वाली बात यह है कि बहुत ज्यादा गोरा रंग भी भारतीय मानसिकता को नहीं भाता. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी शायद पहली महिला हैं, जिन्हें भारतीय रंग में रंगने के लिए भारतीय परिवेश का सहारा लेना पड़ा. वे जब साड़ी पहनती हैं तभी भारतीय लगती हैं. भाषा व उच्चारण एक अलग और स्वाभाविक मुद्दा है वरना तो विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भी गोरी नहीं सांवली हैं. इन दोनों नेत्रियों के माथे पर सलीके से लगी बिंदी इन्हें लोकप्रिय बताती है न कि इन का रंग.

त्वचा का रंग एक भौगोलिक कारण है और कई जातियों और परिवारों से आनुवंशिक है, इसलिए सांवलापन कतई हीनता या शर्म की बात नहीं. दिक्कत यह है कि भारतीय महिलाएं अपनी रंगत और सौंदर्य के प्रति हद से ज्यादा लापरवाह रहती हैं और एक उम्र के बाद जिंदगी खत्म हुई मान लेती हैं. यह मानसिकता दरअसल में सांवलेपन के प्रति पूर्वाग्रह और भेदभाव को बढ़ावा देने वाली है, जिस से बचना जरूरी है.  

अनफेयर ऐंड लवली

‘हां, हम खूबसूरत हैं, क्योंकि हम सांवले हैं’ इस नारे को ले कर एक औनलाइन अभियान टैक्सास से शुरू हो कर एशिया (भारत) तक पहुंच चुका है. दूसरा नाम अनफेयर ऐंड लवली है, जिस का उद्देश्य एक सामाजिक बुराई रंगभेद को खत्म करना है.

इस अभियान की शुरुआत बड़े दिलचस्प तरीके से इसी साल मार्च के महीने से हुई. यूनिवर्सिटी औफ टैक्सास के एक

21 वर्षीय छात्र पाक्स जान्स की मानें तो अनफेयर ऐंड लवली शुरू करने का आइडिया उन्हें अपनी 2 दोस्तों की कहानी सुन कर आया. मिरूशा और यानुषा दोनों श्रीलंका की हैं. एक दिन जब पाक्स इन दोनों के फोटो क्लिक कर रहा था तब दोनों ने दुखी होते हुए बताया कि कैसे उन के सांवले रंग को ले कर भद्देभद्दे कटाक्ष होते हैं.

पाक्स ने इन दोनों के फोटो खींचे और उन के नीचे मिरूशा और यानुषा ने लिखा ‘रंगभेद सामाजिक बुराई है.’

सोशल मीडिया पर जब यह तसवीर वायरल हुई तो हजारों की संख्या में युवतियां इस से जुड़ने लगीं.

रिस्पौंस मिलते देख इन दोनों बहनों ने सोशल मीडिया पर इसे हैश टैग करते अनफेयर ऐंड लवली शीर्षक दे दिया.

बकौल पाक्स, ‘‘सांवली महिलाओं के लिए यह साझा मंच है, जो एकतरफा सांस्कृतिक अधिकारों को खारिज करता है. हमारा मकसद रंगभेद खत्म करना है.’’

इस अभियान का व्यापक असर हुआ और हजारों सांवली युवतियों ने अपने अनुभव साझा किए कि कैसे वे अपने सांवले रंग को ले कर हीनभावना की शिकार थीं. अब अनफेयर ऐंड लवली से जुड़ कर खुद को तनावमुक्त महसूस कर रही हैं.

सुंदर दिखना संभव है

इंदौर ब्यूटीपार्लर ऐसोसिएशन की अध्यक्षा मीनाक्षी पौराणिक के पास करीब 50% क्लाइंट्स सांवली आती हैं. वे सभी गोरा होने या दिखने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहती हैं.

मीनाक्षी कहती हैं, ‘‘हालांकि त्वचा का रंग नहीं बदला जा सकता पर सांवली महिलाएं उपयुक्त मेकअप करें और ड्रैस का चुनाव सही करें तो यकीन मानिए गोरी महिलाओं से ज्यादा सुंदर और आकर्षक दिख सकती हैं.’’

मीनाक्षी बताती हैं कि हैरानी की बात यह है कि गोरी विदेशी महिलाएं डार्क लुक ज्यादा पसंद करती हैं और इस के लिए वे बाकायदा सैलून में जा कर टैन लुक करवाती हैं. सांवली युवतियों को सुंदर व आकर्षक दिखने के लिए वे कहती हैं कि त्वचा की नियमित देखभाल जरूर करनी चाहिए और हेयरस्टाइल व पोशाक के चुनाव में सावधानी बरतनी चाहिए.

पुरुष पहल करें

‘‘यों तो हर महिला को अपनेआप को साबित करने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है, लेकिन सांवली महिला को तो कदमकदम पर अपनी काबिलीयत और कौशल के प्रमाण देने पड़ते हैं. इस के बाद भी गोरी महिलाओं की अपेक्षा उन्हें मौके कम मिलते हैं. ‘सांवलीसलोनी तेरी…’ जैसे गाने सुनने में ही खूबसूरत लगते हैं. वास्तविकता इस के कहीं भयावह है. शादी के वक्त तो कभीकभी यह वास्तविकता क्रूरता में बदल जाती है.

‘‘हालांकि अब बदलाव नजर आने लगा है. कई सफल युवक सांवली युवतियों से शादी कर रहे हैं. लेकिन उन की संख्या अभी बेहद कम है. न जाने वह समय कब आएगा जब स्त्री का मूल्यांकन बजाय उस के रंग के गुणों के आधार पर किया जाएगा. किसी भी क्षेत्र में देख लें सफल सांवली महिलाओं की भरमार है पर इस के बाद भी लोगों का नजरिया नहीं बदल रहा तो बात चिंताजनक तो है ही.

‘‘लगता नहीं कि इस परेशानी का कोई स्थाई हल है. हां, पुरुष पहल करें तो बात बन सकती है. वे हर मामले खासतौर से शादी के भावी जीवनसाथी की शिक्षा, प्रतिभा और गुणों पर ध्यान दें, तो माहौल बदल सकता है. निश्चित रूप से सांवली महिलाओं को आत्मविश्वास के अलावा खुद में दूसरे गुण भी विकसित करने होंगे, तभी वे दूसरों का ध्यान अपनी तरफ खींच पाएंगी.’’

-रितु कालरा, फैशन डिजाइनर भोपाल, म.प्र.

सुंदरता के मानक बदलें

‘‘समाज के नजरिए से रंग आज भी संवेदनशील मुद्दा है, क्योंकि गोरे रंग को ही नारी का अस्तित्व मान लिया गया है. उस के गुणों का मूल्यांकन तो काफी बाद में होता है. समाज में हालांकि शिक्षा और ज्ञान के चलते काफी बदलाव आए हैं, लेकिन इन का उपयोग लोग कम ही करते हैं. सांवले रंग की युवतियों को कभी न कभी भेदभाव का शिकार होना ही पड़ता है.

‘‘बचपन से ही लड़कियों के दिमाग में कूटकूट कर यह बात बैठा दी जाती है कि गोरी लड़कियां ही सुंदर होती हैं, इसलिए सांवली लड़कियों के दिलोदिमाग में हीनता, डर और असुरक्षा के भाव आ जाते हैं, जिस का खमियाजा वे जिंदगी भर भुगतती रहती हैं. 21वीं सदी में ज्ञान, कौशल और समझ में तो वृद्धि हुई है, लेकिन लड़कियों की रंगत को ले कर सोच में कोई खास बदलाव नजर नहीं आ रहा है.

‘‘रंगभेद हमें संस्कारों में मिलता आया है, जिस का प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि हर कोई वंशवृद्धि हेतु गोरी यानी सुंदर बहू चाहता है. अपवादस्वरूप ही फिल्मी या दूसरी पत्रिकाओं के कवर पेज पर सांवली युवती का फोटो छापा जाता है. इतना ही नहीं, अधिकांश होटलों सहित हर जगह फ्रंट सीट पर गोरी लड़की के चयन को प्राथमिकता दी जाती है. यही हाल विज्ञापनों का है. सिर्फ गोरेपन की क्रीम या उत्पाद में सांवली औरत दिखाई जाती है. कृष्णकली नाम के उपन्यास को छोड़ दें तो पूरा साहित्य गोरी नायिकाओं के वर्णन चित्रण से भरा पड़ा है.

‘‘जरूरत इस बात की है कि सुंदरता के मानक बदले जाने के लिए पहल की जाए जो केवल शिक्षा और आत्मनिर्भरता से ही संभव है.’’            

-बिंदु पांडेय विजेता,शिक्षिका, शहडोल, म.प्र.

चांदी के सिक्के पर दिखेंगे रजनीकांत

केरल की कंपनी ‘मुथूट फिनकोर्प’ ने सुपरस्टार रजनीकांत की आने वाली फिल्म ‘कबाली’ के साथ साझेदारी की है. इस साझेदारी के तहत विशेष तरह के चांदी के सिक्के जारी होंगे, जो देश में कंपनी की सभी ब्रांच में उपलब्ध हैं.

इन 999 शुद्ध चांदी के सिक्कों में रजनीकांत की छवि नजर आएगी. ‘मुथूट पप्पाचान ग्रुप’ में ‘प्रीसियश मेटल’ के मुख्य कार्यकारी अधिकारी केयूर शाह ने बताया, ‘ये चांदी के सिक्के पांच ग्राम (350 रुपये), 10 ग्राम (700 रुपये) और 20 ग्राम (1400 रुपये) में उपलब्ध होंगे. हालांकि, ये सिक्के फिल्म की रिलीज पर ही मिलेंगे.’

पा.रंजीत निर्देशित फिल्म ‘कबाली’ में रजनीकांत को डॉन के किरदार में देखा जाएगा. यह फिल्म 22 जुलाई को रिलीज होगी.

सलमान-सनी ने सबको पछाड़ा

बॉलीवुड सुपरस्टार सलमान खान और सनी लियोन गूगल पर पिछले दशक में सबसे ज्यादा सर्च किए जाने वाले एक्टर और एक्ट्रेस हैं.

गूगल की ओर से जारी पांच सबसे ज्यादा सर्च किये जाने वाले इंडियन एक्टर्स लिस्ट में सलमान खान के बाद शाहरुख खान, अक्षय कुमार और अमिताभ बच्चन का नाम है.

तमिल सुपरस्टार रजनीकांत भी टॉप पांच एक्टर्स में शामिल हैं. सर्च किये जाने वाले बाकी 10 टॉप एक्टर्स में रितिक रोशन, शाहिद कपूर, रणबीर कपूर, आमिर खान और इमरान हाशमी हैं.

सबसे ज्यादा सर्च की जाने वाली एक्ट्रेस की लिस्ट में सनी लियोन, कटरीना कैफ, करीना कपूर, काजल अग्रवाल, दीपिका पादुकोण, ऐश्वर्या राय, प्रियंका चोपड़ा, तमन्ना भाटिया, आलिया भट्ट और सोनाक्षी सिन्हा का नाम शामिल है.

सबसे ज्यादा सर्च किये जाने वाले डायरेक्टर्स की लिस्ट की में फिल्म मेकर प्रभुदेवा टॉप पर हैं. करण जौहर, फरहान अख्तर, राज कपूर, राम गोपाल वर्मा, फराह खान अन्य में शामिल हैं जिन्हें सबसे ज्यादा सर्च किया गया.

पिछले 10 साल में सबसे ज्यादा सर्च की जाने वाली फिल्मों में आमिर खान स्टारर ‘पीके’ को लोगों ने सर्च किया. इसके बाद ‘कहानी’, ‘बाहुबली’, ‘आशिकी 2’, ‘धूम 3’, ‘किक’, ‘बजरंगी भाईजान’, ‘हैप्पी न्यू ईयर’, ‘हीरो’, ‘एक विलेन’ का नाम है.

सबसे ज्यादा सर्च किये जाने वाले एक्टर्स की लिस्ट के अलावा बिग बी क्लासिक एक्टर लिस्ट में भी शीर्ष पर रहे जबकि रेखा सबसे ज्यादा सर्च की जाने वाली क्लासिक एक्ट्रेस हैं.

भारतीय गायकों में सबसे ज्यादा रैपर हनी सिंह का नाम सर्च किया गया. इसके साथ ही आतिफ असलम, अरिजीत सिंह, लता मंगेशकर, सोनू निगम, किशोर कुमार, श्रेया घोषाल, कुमार सानू, हिमेश रेशमिया और सुनिधि चौहान का नाम शामिल है.

रणवीर पर कुर्सी मारना चाहता था

हमें कहते हुए अफसोस हो रहा है, लेकिन सलमान खान ने कहा, ‘मैं रणवीर सिंह के सिर पर कुर्सी तोड़कर मारना चाहता था…’ दरअसल, पिछले दिनों रणवीर आदित्य चोपड़ा की फिल्म बेफिक्रे की शूटिंग के लिए पेरिस में थे. जहां उन्होंने थिएटर में जाकर सुल्तान देखी.

लेकिन सिर्फ देखी ही नहीं,  बल्कि ‘बेबी को बेस पसंद है’ गाने पर थिएटर में ही डांस भी किया. बस फिर क्या था, वहां बैठे दर्शक भी रणवीर सिंह के साथ हो लिये. रणवीर सिंह का यह अंदाज सबको बहुत पसंद आया और इसकी काफी चर्चा भी हुई.

जब इस बारे में सलमान खान से बात की गई तो उन्होंने मजाकिये अंदाज में जवाब दिया, “मैं उसे जान से मार देना चाहता था. मैं उस पर कुर्सी तोड़ देना चाहता था. वह फिल्म देखने गया था या डांस करने?  मैं कह रहा हूं, वह चाहता था सब लोग उसे देंखे.”

कोई शक नहीं कि सलमान खान ने ये बातें मजाक में कहीं हैं. क्योंकि रणवीर-सलमान के बीच काफी अच्छी बनती है और दोनों एक दूसरे के काम की काफी इज्ज़त करते हैं.

…तो बहुत लोगों को मरना पड़ेगा

सलमान खान की लाइफ को जानने के लिए उनके फैंस उतावले रहते हैं. ऐसे में यदि उनकी बॉयोपिक पर कोई फिल्म बनाई जाए तो क्या बात होगी.

लेकिन बता दें, सलमान खान खुद नहीं चाहते कि उनकी लाइफ पर बॉयोपिक फिल्म बने. सलमान खान को लगता है कि उनकी लाइफ बोरिंग है और कोई उसपर क्यों बॉयोपिक बनाएगा.

हाल ही में जब दबंग खान से यह सवाल किया गया कि क्या वो कभी किसी फिल्ममेकर को बॉयोपिक बनाने की मंजरी देंगे?  तो सलमान ने झट से कहा, नहीं, कभी नहीं. सलमान ने कहा कि मेरी लाइफ बहुत बोरिंग है. कोई इतनी बोरिंग लाइफ पर बॉयोपिक नहीं बनाता. मेरी बॉयोपिक में बहुत लोग मर जाएंगे.

उन्होंने कहा इसके लिए किसी को मेरी बॉयोपिक लिखनी पड़ेगी. और जो यह लिख सकता. वह या तो मैं खुद, या मेरे भाई और बहन. वो भी कुछ एक घटना ही, क्योंकि उन्हें भी सब कुछ नहीं पता.

इसके साथ ही सलमान खान ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि मेरा किरदार कोई और एक्टर पर्दे पर निकाल पाएगा. वैसे कोई शक नहीं कि किसी और एक्टर के लिए सलमान बनना आसान नहीं होगा.

स्वादिष्ट लीची रसमलाई

सामग्री

– 1 लिटर फुलक्रीम मिल्क

– 1 बड़ा चम्मच किशमिश पेस्ट

– 1 बड़ा चम्मच बादाम पाउडर

– 2 बड़े चम्मच कोकोनट पोम शुगर

– 1/4 छोटा चम्मच छोटी इलायची चूर्ण

– 10 लीची 

– 50 ग्राम खोया

– 1 बड़ा चम्मच बादाम बारीक कटे

– 2 छोटे चम्मच पिस्ता बारीक कटा 

– 10-12 धागे केसर

– 1 छोटा चम्मच पोम शुगर

विधि

– दूध को आधा रहने तक उबालें. इस में बादाम पाउडर, किशमिश पेस्ट व पोम शुगर मिला कर  2 मिनट और पकाएं.

– फ्रिज में रख कर ठंडा कर लें. लीची छील लें. खोए में थोड़ा सा बादाम व पिस्ता, इलायची चूर्ण और 1 छोटा चम्मच पोम शुगर मिला लें.

– लीची के बीज निकालें और खोए वाला मिश्रण भर दें. गाढ़े दूध वाले मिश्रण को सर्विंग डिश में पलटें और उस में स्ट्फ्ड लीची रख दें.

– बादाम व पिस्ता और केसर के धागों से सजा कर सर्व करें. रसमलाई तैयार है. 

ऐसे बचें इनकम टैक्स के बोझ से

बहुत से लोगों को इनकम टैक्‍स का नाम सुनकर ही बुखार आ जाता है. हर कोई इनकम टैक्‍स बचाने की कोशिश करता है. इसके लिए हर रोज नए-नए तरीके और उपाय खोजे जाते हैं, बहुत से लोगों का आधे से ज्‍यादा समय टैक्‍स बचाने की युक्ति खोजने में ही निकल जाता है.

यदि आप यहां बताए गए तरीकों से कोई इनकम हासिल करते हैं तो इसके लिए आपको एक रुपए का भी इनकम टैक्‍स नहीं देना होगा. इस लेख में हम अपने पाठकों को कुछ इनकम पर मिलने वाले टैक्‍स छूट की जानकारी देने जा रहे हैं.

1. सेविंग बैंक एकाउंट पर मिलने वाला इंटरेस्‍ट

वर्ष 2013 में सेक्शन 80 TTA पेश किया गया, जिसमें सेविंग एकाउंट में एक वित्‍त वर्ष में अधिकतम 10,000 रुपए तक का इंटरेस्‍ट टैक्‍स योग्‍य नहीं है. इसलिए अगर सेविंग बैंक इंटरेस्ट एक साल के लिए 20,000 रुपए है तो इसमें से 10,000 रुपए टैक्स छूट के दायरे में आएगा और शेष 10,000 टैक्सेबल इनकम में जोड़ दिया जाएगा.

2. एनआरई (नॉन रेजिडेंट एक्सटर्नल) एकाउंट पर मिलने वाला ब्याज

एनआरई एकाउंट पर मिलने वाला ब्याज भारत में 100 फीसदी टैक्स फ्री होता है. इसमें फिक्स्ड डिपॉजिट और सामान्य सेविंग एकाउंट इंटरेस्‍ट दोनों शामिल हैं. एनआरआई के लिए यह दोनों टैक्स फ्री होती हैं. यह एनआरआई की ओर से की गई सेविंग्स पर ब्याज कमाने का अच्छा विकल्प है. कई लोग यूएई या सिंगापुर जैसे देशों में लोन लेते है जहां ब्याज दरें 2 से 3 फीसदी होती हैं और उस राशि को भारत के एनआरई एकाउंट में जमा कर देते हैं, जिसपर उन्हें 8 फीसदी से 9 फीसदी तक का ब्याज मिलता है. एनआरई एकाउंट डिपॉजिट पर टीडीएस नहीं कटता क्योंकि इसमें किसी भी तरह का कोई टैक्स नहीं लगाया जाता.

3. प्रोफिट का एक हिस्सा फर्म के पार्टनर को देना

अगर पार्टनरशिप फर्म के तौर पर आपने कोई मुनाफा कमाया और उसे शेयर ऑफ प्रॉफिट के तौर कुछ हिस्‍सा पार्टनर को दिया जाए तो पार्टनर के लिए यह इनकम टैक्स फ्री होगी, क्‍योंकि कंपनी पहले ही इस पर टैक्स अदा कर चुकी होती है.

4. लाइफ इंश्योरेंस की मैच्योरिटी या फिर क्लेम राशि

लाइफ इंश्योरेंस कंपनी की ओर से दी जाने वाली राशि 100 फीसदी टैक्स फ्री होती है अगर उसका प्रीमियम सम एश्योर्ड के 20 फीसदी से कम हो.

फाइनेंस एक्ट 2003 में हुए संशोधन के तहत सम एश्योर्ड के 20 फीसदी ज्यादा का प्रीमियम कर योग्य है. उदाहरण के तौर पर अगर सालाना प्रीमियम 10,000 रुपए है तो टैक्स छूट के दायरे में आने के लिए सम एश्योर्ड 50,000 रुपए का होना चाहिए.

5. नियोक्ता की ओर से दिया गया एलटीए

कई कंपनियां अपने कर्मचारियों को हर वर्ष एलटीए देती हैं, जिसे कर्मचारी अपने परिवार के साथ घूमने के लिए इस्तेमाल करता है. यात्रा का प्रमाण देने पर इस राशि पर टैक्‍स नहीं लगता है. यदि आपकी कंपनी आपको एलटीए नहीं देती है तो आप अपनी सैलरी का कुछ हिस्‍सा एलटीए के मद में डालने के लिए अपने नियोक्‍ता से कह सकते हैं. क्‍योंकि हम साल में कुछ पैसा यात्रा पर तो खर्च करते ही हैं.

6. वीआरएस स्कीम के तहत 5 लाख रुपए तक की राशि

अगर किसी व्यक्ति ने वीआरएस यानि कि वॉलेंटरी रिटायरमेंट स्कीम लिया है तो 5 लाख रुपए तक की प्राप्त राशि टैक्स फ्री होगी. इसके लिए सब लोग योग्य नहीं है. केवल सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां या फिर केंद्र या राज्य सरकार की ऑथोरिटी के कर्मचारी ही योग्य है.

7. पांच साल के बाद ईपीएफ एकाउंट पर मिलने वाली राशि

ईपीएफ एकाउंट से मिलने वाली राशि टैक्स फ्री होती है, लेकिन यह सर्विस के 5 वर्ष के बाद की गई निकासी पर योग्य होता है. कई बार निवेशक अपनी नौकरी 3 से 4 साल के भीतर ही बदल लेते हैं और ईपीएफ का पैसा निकाल लेते हैं. ऐसे में उन्‍हें टैक्‍स देना पड़ता है.

8. एक साल के बाद शेयर्स या इक्विटी म्यूचुअल फंड्स पर मिलने वाला प्रॉफिट

एक साल के बाद शेयर्स या इक्विटी म्यूचुअल फंड्स को बेचने पर मिलने वाला प्रॉफिट टैक्स फ्री होता है. यदि आप खरीदे गए शेयर या म्‍यूचुअल फंड्स को अपने पास कम से कम एक साल तक रखते हैं तो उन्हें लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन कहा जाता है. यह 100 फीसदी टैक्स फ्री होता है.

9. शेयर्स या इक्विटी म्यूचुअल फंड्स पर मिलने वाला लाभांश

स्टॉक या फिर इक्विटी म्यूचुअल फंड्स पर मिलेन वाला लाभांश टैक्स फ्री होता है. कंपनी अपने शेयरहोल्डर्स को लाभांश देने से पहले सरकार को डिविडेंड डिस्ट्रिब्यूशन टैक्स का भुगतान कर चुकी होती हैं. इसकी वजह से आपको कंपनी के प्रॉफिट में कम हिस्‍सा मिलता है, लेकिन जो भी मिलता है वह टैक्‍स फ्री होता है.

10. शादी पर मिलने वाले गिफ्ट्स

शादी पर उपहार के रूप में मिलने वाली राशि और कीमती चीजें भी टैक्स फ्री होती हैं. शादी पर दोस्त या रिश्तेदारों से मिले गिफ्ट्स टैक्स फ्री होते हैं. लेकिन इसके लिए जरूरी है कि यह सुनिश्चित कर लें कि आपकी शादी की तारीख और उपहार मिलने की तारीख एक जैसी है. आप ऐसा नहीं कर सकते कि शादी के दो साल बाद उपहार के रूप में मिली राशि पर टैक्‍स छूट का दावा नहीं कर सकते.

11. वसीयत या विरासत में मिली राशि

भारत में अभी तक किसी तरह का इनहेरिटेंस टैक्स नहीं है. मसलन, वसीयत या फिर विरासत में मिली संपत्ति या राशि टैक्स फ्री होती है. वह आपकी प्रॉपर्टी बन जाती है और उस पर केवल कमाए गए इंटरेस्‍ट पर ही टैक्‍स देना होता है.

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