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अरविन्द केजरीवाल ने भाजपा को दिया है गिफ्ट, ‘दिल्ली की नई मुख्यमंत्री आतिशी’

बात 2015 की है. अन्ना आंदोलन से उभरे अरविन्द केजरीवाल ने जब 2012 में आम आदमी पार्टी का गठन किया, तब आंदोलन से जुड़े अनेक धुरंधरों ने उनकी पार्टी को ज्वाइन किया. जिसमें कुमार विश्वास, योगेंद्र यादव, आशुतोष, प्रशांत भूषण जैसे बहुतेरे नाम थे. आम आदमी पार्टी के गठन के तीन साल बाद ही इसमें एक बड़ा भूचाल आया. पार्टी के दो दिग्गज नेताओं योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण की अरविन्द केजरीवाल से ठन गयी. उस वक्त योगेंद्र यादव की करीबी आतिशी पार्टी की प्रवक्ता थीं. आतिशी को आम आदमी पार्टी में योगेंद्र यादव ही लेकर आये थे. पार्टी में बगावत हुई और योगेंद्र यादव, कुमार विश्वास, प्रशांत भूषण, आशुतोष जैसे अनेक लोग पार्टी से अलग हो गए. आतिशी पार्टी में बानी रहीं मगर उनको प्रवक्ता पद से हटा दिया गया.

उस वक्त आतिशी ने योगेंद्र यादव का साथ छोड़ कर अरविन्द केजरीवाल पर भरोसा जताया था. आतिशी का वह फैसला 9 साल बाद उनके लिए मास्टरस्ट्रोक साबित हुआ और आतिशी दिल्ली में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने वाली तीसरी महिला मुख्यमंत्री बनने जा रही हैं. उनसे पहले सुषमा स्वराज और शीला दीक्षित इस पद को सुशोभित कर चुकी हैं. 17 सितम्बर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन के अवसर पर अरविन्द केजरीवाल ने आतिशी को अपना उत्तराधिकारी चुन कर दिल्ली की जनता को ही नहीं, बल्कि भाजपा को भी गिफ्ट दिया है. आतिशी एक जुझारू और ईमानदार नेता हैं. उच्च शिक्षित हैं, स्ट्रेट फॉरवर्ड हैं, सख्त हैं, हिम्मती हैं और उनका दामन फिलहाल दाग मुक्त है. केजरीवाल के इस दांव पर भाजपा चकराई हुई है. दिल्ली की राजनीति में एलजी के जरिये मोदी सरकार ने केजरीवाल के हाथ-पैर बाँध रखे थे. जमानत मिलने के बाद भी उन पर अनेक प्रतिबन्ध हैं जिसके कारण जनता से जुड़े कार्य वे नहीं कर सकते थे. आतिशी को मुख्यमंत्री बना कर उन्होंने मोदी सरकार को ना सिर्फ जबरदस्त धोबीपाट दिया है बल्कि अब वे हरियाणा विधानसभा चुनाव में प्रचार के लिए बिलकुल मुक्त हैं. उधर भाजपा जो जरा जरा सी बात पर केजरीवाल के कान उमेठने में लगी रहती थी, अब एक महिला मुख्यमंत्री पर कोई आरोप मढ़ने से पहले उसे काफी आगापीछा सोचना पड़ेगा.

केजरीवाल ने खुद पर गिरफ्तारी की तलवार लटकने से पहले ही आतिशी को ना सिर्फ 9 मार्च 2023 को कैबिनेट मंत्री बनाया था, बल्कि सबसे ज्यादा मंत्रालय भी दिए थे. आतिशी ना सिर्फ दिल्ली सरकार में इकलौती महिला मंत्री हैं, बल्कि उनके पास इस वक्त दिल्ली सरकार में सबसे ज्यादा मंत्रालय भी हैं. वे ही शिक्षा विभाग, पीडब्ल्यूडी, जल विभाग, राजस्व, योजना और वित्त विभाग संभाल रही हैं.

आतिशी पिछले 9 साल से पार्टी के लिए काम कर रही हैं. 2020 में जब कालकाजी सीट से चुनाव जीत कर वे विधानसभा पहुंची थीं तब पार्टी ने उन्हें मीडिया के सामने अपना प्रमुख चेहरा बनाया था. मनीष सिसोदिया के साथ आतिशी ने दिल्ली के बच्चों की शिक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण कार्य किये. आज दिल्ली के सरकारी स्कूल किसी प्राइवेट इंग्लिश मीडियम स्कूल से ज्यादा बेहतर हैं. शिक्षा के क्षेत्र में दिल्ली सरकार ने जो अभूतपूर्व कार्य किये उसमें आतिशी की अहम भूमिका रही है.

कथित शराब घोटाले में मनीष सिसोदिया कर सत्येंद्र जैन के जेल जाने के बाद आतिशी को केजरीवाल कैबिनेट में शामिल किया गया और उन्हें शिक्षा और बिजली समेत 18 विभागों की जिम्मेदारी सौंपी गयी. आतिशी ने केजरीवाल और सिसोदिया के जेल में रहते संगठन और सरकार में बहुत जिम्मेदारी से महत्वपूर्ण कार्य किये और पार्टी का प्रमुख चेहरा बनकर उभरीं. महिला होने के साथ प्रशासनिक अनुभव उन्हें इस पद के लायक भी बनाता है.

अरविन्द केजरीवाल ने शायद जेल में रहते हुए ही यह तय कर लिया था कि जेल से बाहर आकर वे इस्तीफा देंगे और जनता के बीच जाकर उसका भरोसा फिर से जीतेंगे. और इस दौरान वे अपना उत्तराधिकारी आतिशी को बनाएंगे. यह बात इसलिए कही जा रही है क्योंकि केजरीवाल के जेल में बंद रहते जब यह सवाल उठा था कि 15 अगस्त को तिरंगा कौन फहरायेगा तब केजरीवाल ने जेल से एलजी के नाम एक पत्र लिखा था कि आतिशी को यह मौक़ा दिया जाए. इस बात से ही दिल्ली को यह संकेत मिल गया था कि आतिशी का कद अब दिल्ली सरकार में सबसे ऊपर है.

अपनी नई मुख्यमंत्री के बारे में जानने के लिए दिल्ली वाले बेकरार हैं

पंजाबी राजपूत परिवार से ताल्लुक रखने वाली आतिशी को केजरीवाल का करीबी सहयोगी और विश्वासपात्र माना जाता है. वे अन्ना आंदोलन के समय से संगठन में सक्रिय हैं. इस समय उनके पास सबसे ज्यादा मंत्रालयों की जिम्मेदारी है. वे अरविंद केजरीवाल कैबिनेट में सबसे हैवीवेट मंत्री रही हैं. अब जबकि आतिशी सिंह दिल्ली की तीसरी महिला मुख्यमंत्री बनने जा रहीं हैं तो दिल्ली की जनता को उनके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने की इच्छा भी बलवती हो रही है. तो बताते चलें कि दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर विजय कुमार सिंह और त्रिप्ता वाही के घर जन्मी आतिशी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा नई दिल्ली के स्प्रिंगडेल स्कूल में ली. उन्होंने सेंट स्टीफंस कॉलेज से इतिहास में डिग्री हासिल की, जहां उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय में शीर्ष स्थान हासिल किया. इसके बाद, उन्हें ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से मास्टर डिग्री हासिल करने के लिए शेवनिंग छात्रवृत्ति मिली. बाद में, उन्होंने ऑक्सफोर्ड में शैक्षिक अनुसंधान में रोड्स स्कॉलर के रूप में अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाया, और अपनी दूसरी मास्टर डिग्री हासिल की. अपनी शैक्षणिक साख के अलावा, आतिशी एक समर्पित सामाजिक कार्यकर्ता रहीं, जिन्होंने मध्य प्रदेश के एक छोटे से गाँव में ग्राम वासियों के लिए कार्य करते सात साल बिताए हैं. उन्होंने विभिन्न गैर-लाभकारी संगठनों के साथ सहयोग करते हुए जैविक खेती और प्रगतिशील शिक्षा पहलों में सक्रिय रूप से भाग लिया,इसी दौरान उनकी मुलाकात आम आदमी पार्टी के नेताओं से हुई और उन्होंने पार्टी ज्वाइन की.

आम आदमी पार्टी की सदस्य बनने से पहले, आतिशी ने आंध्र प्रदेश के ऋषि वैली स्कूल में इतिहास और अंग्रेजी पढ़ाने के लिए कुछ समय दिया था. पार्टी में शामिल होने के बाद आतिशी ने 2013 के विधानसभा चुनाव के लिए घोषणा पत्र मसौदा समिति के प्रमुख सदस्य के रूप में पार्टी की नीतियों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

आतिशी को दिल्ली में शैक्षणिक संस्थानों के पुनरुद्धार में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के लिए जाना जाता है. उन्होंने सरकारी स्कूलों के बुनियादी ढांचे को बढ़ाने, शिक्षा के अधिकार अधिनियम के अनुसार स्कूल प्रबंधन समितियों की स्थापना करने, निजी स्कूलों द्वारा मनमानी फीस वृद्धि को रोकने के लिए सख्त नियमों को लागू करने और ‘खुशी’ पाठ्यक्रम शुरू करने में उल्लेखनीय काम किया है.

2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान, पार्टी ने उन्हें पूर्वी दिल्ली निर्वाचन क्षेत्र के लिए नामित किया. कांग्रेस नेता अरविंदर सिंह लवली और भाजपा उम्मीदवार गौतम गंभीर के खिलाफ एक मजबूत उम्मीदवार के रूप में देखे जाने के बावजूद, आतिशी पर्याप्त वोट हासिल करने में विफल रहीं और हार गयीं. मगर 2020 में उन्होंने विधानसभा चुनाव लड़ा और कालकाजी क्षेत्र से विधायक बनीं. उन्होंने भाजपा उम्मीदवार धर्मवीर सिंह को 11 हजार 393 वोटों से हराया था. 2023 में पहली बार केजरीवाल सरकार में मंत्री बनीं. और अब एक साल के अंदर ही वो मुख्यमंत्री बनने जा रही हैं.

पंजाबी राजपूत परिवार से ताल्लुक रखने वाली आतिशी के पति का नाम प्रवीण सिंह है. प्रवीण एक रिसर्चर और एजुकेटर हैं. वह सद्भावना इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी जैसे संस्थानों के साथ जुड़े हुए हैं. प्रवीण सिंह आईआईटी दिल्ली से पढ़े हैं और फिर आईआईएम अहमदाबाद से भी उन्होंने पढ़ाई की है. उन्होंने करीब 8 साल तक कॉर्पोरेट सेक्टर में काम किया. भारत और अमेरिका की कंसल्टेंसी फर्म्स में भी काम किया. इसके बाद सोशल सर्विस में उतर गए. वह सार्वजनिक तौर पर कम ही नजर आते हैं.

Anupamaa : शाह हाउस पर गुंडे लगाएंगे ताला, पूरे परिवार को आशा भवन ले जाएगी अनुपमा

टीवी सीरियल अनुपमा (Anupamaa) में रोज नाया ड्रामा दिखाया जा रहा है, इसिलिए यह शो दर्शकों का फेवरेट बना हुआ है. कल हमने आपको बताया था कि तोशु शाह हाउस को सड़क पर ला दिया है. उसने अपने परिवार को धोखा दिया है और इसकी सजा अनुपमा अपने बेटे को देगी. आज के एपिसोड में हाई वोल्टेज ड्रामा दिखाया जाएगा. जिसमें अनुपमा तोशु और पाखी को सबक सिखाएगी.

शाह परिवार पर टूटेगा दुखों का पहाड़

शो में आप देखेंगे कि शाह हाउस पर दुखों का पहाड़ टूटेगा. पहले ही वनराज शाह घर छोड़कर चला गया है, उसके जाते ही सारे लेनदार शाह परिवार को परेशान करने लगे हैं. शो के पिछले एपिसोड में भी दिखाया गया था कि शाह हाउस को बिल्डर का अल्टीमेटम आया है और एक घंटे में घर खाली करने को कहा है.

घर का सामान गुंडे फेकेंगे बाहर

आज के एपिसोड में दिखाया जाएगा कि बिल्डर के गुंडे शाह हाउस आते हैं और घर का सारा सामान बाहर फेंकने लगते हैं. अनुपमा-अनुज और पूरा शाह परिवार बस देखते रह जाते हैं, कोई चाहकर भी कुछ नहीं कर सकता. इतना ही नहीं गुंडे शाह हाउस पर ताला भी लगा देते हैं.

शाह परिवार को सहारा देगी अनुपमा

शाह परिवार की हालत एकदम खराब हो जाती है. बा, बापूजी और परिवार के अन्य सदस्य फूटफूट कर रोते हैं. अनुपमा-अनुज सभी को दिलासा देते हैं और शाह परिवार को आशा भवन ले जाने की बात कहते हैं. तो दूसरी तरफ तोशु और पाखी अपनी आदतों से बाज नहीं आते हैं और वो आशा भवन जाने से मना करते हैं. ऐसे में अनुपमा उनका करारा जवाब देती है और कहती है कि अगर वो आशा भवन नहीं जाना चाहते हैं, तो दोनों न जाए और बाकी शाह परिवार को लेकर अनु आशा भवन जाती है.

तोशु और पाखी भी जाएंगे आशा भवन

तूफान आने की वजह से पाखी और तोशु को भी आशा भवन जाना पड़ता है और वो दोनों वहां जाते ही अपने नखड़े दिखाने शुरू कर देते हैं. अनुपमा जरा भी उनके नखरे बर्दाश्त नहीं करती है और पाखी को फटकार लगाती है. अनुपमा अपनी बेटी के मुंह पर गीला गमछा मारती है. इसके बाद वह ये भी कहती है कि आशा भवन में सब अपना काम खुद करेंगे.

बा और बापूजी की बिगड़ी हालत

इतना ही नहीं वह डौली और डिम्पी को भी समझा जाती है. अनुपमा कहती है कि सभी को रहने के लिए छत दी गई है, तो सिर पर चढ़कर बैठने की कोशिश न करे. दूसरी तरफ अनुज बा और बापूजी को संभालने की कोशिश करता है. अब शो में ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या अनुपमा शाह हाउस को बचा पाएदगी ?

तेरी देहरी : अनुभव पर क्यों डोरे डाल रही थी अनुभा

लेखक- आनंद बिल्थरे

क्लासरूम से बाहर निकलते ही अनुभा ने अनुभव से कहा, ‘‘अरे अनुभव, कैमिस्ट्री मेरी समझ में नहीं आ रही है. क्या तुम मेरे कमरे पर आ कर मुझे समझा सकते हो?’’

‘‘हां, लेकिन छुट्टी के दिन ही आ पाऊंगा.’’

‘‘ठीक है. तुम मेरा मोबाइल नंबर ले लो और अपना नंबर दे दो. मैं इस रविवार को तुम्हारा इंतजार करूंगी. मेरा कमरा नीलम टौकीज के पास ही है. वहां पहुंच कर मुझे फोन कर देना. मैं तुम्हें ले लूंगी.’’

रविवार को अनुभव अनुभा के घर में पहुंचा. अनुभा ने बताया कि उस के साथ एक लड़की और रहती है. वह कंप्यूटर का कोर्स कर रही है. अभी वह अपने गांव गई है.

अनुभव ने अनुभा से कहा कि वह कैमिस्ट्री की किताब निकाले और जो समझ में न आया है वह

पूछ ले. अनुभा ने किताब निकाली और बहुत देर तक दोनों सूत्र हल करते रहे.

अचानक अनुभा उठी और बोली, ‘‘मैं चाय बना कर लाती हूं.’’

अनुभव मना करना चाह रहा था लेकिन तब तक वह किचन में पहुंच गई थी. थोड़ी देर में वह एक बडे़ से मग में चाय ले कर आ गई. अनुभव ने मग लेने के लिए हाथ बढ़ाया, तभी मग की चाय उस की शर्टपैंट पर गिर गई.

‘‘सौरी अनुभव, गलती मेरी थी. मैं दूसरी चाय बना कर लाती हूं. तुम्हारी शर्टपैंट दोनों खराब हो गई हैं. ऐसा करो, कुछ देर के लिए तौलिया लपेट लो. मैं इन्हें धो कर लाती हूं. पंखे की हवा में जल्दी सूख जाएंगे. तब मैं प्रैस कर दूंगी.’’

अनुभव न… न… करता रहा, लेकिन अनुभा उस की ओर तौलिया उछाल कर भीतर चली गई.

अनुभव ने शर्टपैंट उतार कर तौलिया लपेट लिया. तब तक अनुभा दूसरे मग में चाय ले कर आ गई थी. वह शर्टपैंट ले कर धोने चली गई.

अनुभव ने चाय खत्म की ही थी कि अनुभा कपड़े फैला कर वापस आ गई. उस ने ढीलाढाला गाउन पहन रखा था. अनुभव ने सोचा शायद कपड़े धोने के लिए उस ने ड्रैस बदली हो.

अचानक अनुभा असहज महसूस करने लगी मानो गाउन के भीतर कोई कीड़ा घुस गया हो. अनुभा ने तुरंत अपना गाउन उतार फेंका और उसे उलटपलट कर देखने लगी.

अनुभव ने देखा कि अनुभा गाउन के भीतर ब्रा और पैंटी में थी. वह जोश और संकोच से भर उठा. एकाएक हाथ बढ़ा कर अनुभा ने उस का तौलिया खींच लिया.

अनुभव अंडरवियर में सामने खड़ा था. अनुभा उस से लिपट गई. अनुभव भी अपनेआप को संभाल नहीं सका. दोनों वासना के दलदल में रपट गए.

अगले रविवार को अनुभा ने फोन कर अनुभव को आने का न्योता दिया. अनुभव ने आने में आनाकानी की, पर अनुभा के यह कहने पर कि पिछले रविवार की कहानी वह सब को बता देगी, वह आने को तैयार हो गया.

अनुभव के आते ही अनुभा उसे पकड़ कर चूमने लगी और गाउन की चेन खींच कर तकरीबन बिना कपड़ों के बाहर आ गई. अनुभव भी जोश में था. पिछली बार की कहानी एक बार फिर दोहराई गई. जब ज्वार शांत हो गया, अनुभा उसे ले कर गोद में बैठ गई और उस के नाजुक अंगों से खेलने लगी.

अनुभा ने पहले से रखा हुआ दूध का गिलास उसे पीने को दिया. अनुभव ने एक ही घूंट में गिलास खाली कर दिया.

अभी वे बातें कर ही रहे थे कि भीतर के कमरे से उस की सहेली रमा निकल कर बाहर आ गई.

रमा को देख कर अनुभव चौंक उठा. अनुभा ने कहा कि घबराने की कोई बात नहीं है. वह उस की सहेली है और उसी के साथ रहती है.

रमा दोनों के बीच आ कर बैठ गई. अचानक अनुभा उठ कर भीतर चली गई.

रमा ने अनुभव को बांहों में भींच लिया. न चाहते हुए भी अनुभव को रमा के साथ वही सब करना पड़ा. जब अनुभव घर जाने के लिए उठा तो बहुत कमजोरी महसूस कर रहा था. दोनों ने चुंबन ले कर उसे विदा किया.

इस के बाद से अनुभव उन से मिलने में कतराने लगा. उन के फोन आते ही वह काट देता.

एक दिन अनुभा ने स्कूल में उसे मोबाइल फोन पर उतारी वीडियो क्लिपिंग दिखाई और कहा कि अगर वह आने से इनकार करेगा तो वह इसे सब को दिखा देगी.

अनुभव डर गया और गाहेबगाहे उन के कमरे पर जाने लगा.

एक दिन अनुभव के दोस्त सुरेश ने उस से कहा कि वह थकाथका सा क्यों लगता है? इम्तिहान में भी उसे कम नंबर मिले थे.

अनुभव रोने लगा. उस ने सुरेश को सारी बात बता दी.

सुरेश के पिता पुलिस इंस्पैक्टर थे. सुरेश ने अनुभव को अपने पिता से मिलवाया. सारी बात सुनने के बाद वे बोले, ‘‘तुम्हारी उम्र कितनी है?’’

‘‘18 साल.’’

‘‘और उन की?’’

‘‘इसी के लगभग.’’

‘‘क्या तुम उन का मोबाइल फोन उठा कर ला सकते हो?’’

‘‘मुझे फिर वहां जाना होगा?’’

‘‘हां, एक बार.’’

अब की बार जब अनुभा का फोन आया तो अनुभव काफी नानुकर के बाद हूबहू उसी के जैसा मोबाइल ले कर उन के कमरे में पहुंचा.

2 घंटे समय बिताने के बाद जब वह लौटा तो उस के पास अनुभा का मोबाइल फोन था.

मोबाइल क्लिपिंग देख कर इंस्पैक्टर चकित रह गए. यह उन की जिंदगी में अजीब तरह का केस था. उन्होंने अनुभव से एक शिकायत लिखवा कर दोनों लड़कियों को थाने बुला लिया.

पूछताछ के दौरान लड़कियां बिफर गईं और उलटे पुलिस पर चरित्र हनन का इलजाम लगाने लगीं. उन्होंने कहा कि अनुभव सहपाठी के नाते आया जरूर था, पर उस के साथ ऐसीवैसी कोई गंदी हरकत नहीं की गई.

अब इंस्पैक्टर ने मोबाइल क्लिपिंग दिखाई. दोनों के सिर शर्म से झुक गए. इंस्पैक्टर ने कहा कि वे उन के मातापिता और प्रिंसिपल को उन की इस हरकत के बारे में बताएंगे.

लड़कियां इंस्पैक्टर के पैर पकड़ कर रोने लगीं. इंस्पैक्टर ने कहा कि इस जुर्म में उन्हें सजा हो सकती है. समाज में बदनामी होगी और स्कूल से निकाली जाएंगी सो अलग. उन के द्वारा बारबार माफी मांगने के बाद इंस्पैक्टर ने अनुभव की शिकायत पर लिखवा लिया कि वे आगे से ऐसी कोई हरकत नहीं करेंगी.

अनुभव ने वह स्कूल छोड़ कर दूसरे स्कूल में दाखिला ले लिया. साथ ही उस ने अपने मोबाइल की सिम बदल दी.

इस घटना को 7 साल गुजर गए.

अनुभव पढ़लिख कर कंप्यूटर इंजीनियर बन गया. इसी बीच उस के पिता नहीं रहे. मां की जिद थी कि वह शादी कर ले.

अनुभव ने मां से कहा कि वे अपनी पसंद की जिस लड़की को चुनेंगी, वह उसी से शादी कर लेगा.

अनुभव को अपनी कंपनी से बहुत कम छुट्टी मिलती थी. ऐन फेरों के दिन वह घर आ पाया. शादी खूब धूमधाम से हो गई.

सुहागरात के दिन अनुभव ने जैसे ही दुलहन का घूंघट उठाया, वह चौंक पड़ा. पलंग पर लाजवंती सी घुटनों में सिर दबाए अनुभा बैठी थी.

‘‘तुम…?’’ अनुभव ने चौंकते हुए कहा.

‘‘हां, मैं. अपनी गलती का प्रायश्चित्त करने के लिए अब जिंदगीभर के लिए फिर तुम्हारी देहरी पर मैं आ गई हूं. हो सके तो मुझे माफ कर देना,’’ इतना कह कर अनुभा ने अनुभव को गले लगा लिया.

कल्लो : कैसे बचाई उस रात कल्लो ने अपनी इज्जत

उस पूरे इलाके में पीली कोठी के नाम से उन का घर जाना जाता था. रायसाहब अपने परिवार के साथ बाहर रहते थे. दिल्ली, लखनऊ, जयपुर, पटना वगैरह बड़ेबड़े शहरों में उन की बड़ीबड़ी कोठियां थीं. बाहरी लोग उन्हें ‘डीआईजी साहब’ के नाम से जानते थे.

वे गरमी की छुट्टियां हमेशा गांव में ही बिताते थे. अम्मां और बाबूजी की वजह से गांव में आना उन की मजबूरी थी.

पुलिस महकमे में डीआईजी के पद पर पहुंचतेपहुंचते नामचीन साहित्यकारों में रायसाहब की एक खास पहचान बन चुकी थी.

रायसाहब के गांव आने पर कोठी की रंगत ही बदल जाती. 10-20 लोगों का जमावड़ा हमेशा ही लगा रहता. उन दिनों नौकर रामभरोसे की बात ही कुछ और होती. वह सुबहशाम का अपना कामधाम जल्दीजल्दी निबटाता और लकधक हो कर रायसाहब की खुशामद में लग जाता.

कोठी के ठीक पीछे रामभरोसे का अपना एक छोटा सा घर था. उस की 2 बेटियां थीं, जिन में वह बड़ी बेटी की शादी कर चुका था और छोटी बेटी कल्लो ने पिछले साल 12वीं जमात पास की थी.

कोठी में झाड़ूपोंछा लगाना, खाना पकाना, दूधदही के काम सुखिया और कल्लो के जिम्मे थे, जबकि खेतीबारी जैसे बाहरी काम रामभरोसे के जिम्मे था. इस की एवज में उसे बचाखुचा खाना मिल जाता था.

रायसाहब साल में 2-4 हजार रुपए की माली मदद भी उसे दे देते थे. कुछ पुराने कपड़े दे जाते, जिन्हें सुखिया, कल्लो और रामभरोसे सालभर पहनते, जो उन के लिए हमेशा नए होते थे.

रायसाहब के बाबूजी और अम्मां को कभीकभी बड़ी जलन होती और वे कल्लो, सुखिया और रामभरोसे को उलटासीधा कहने लगते.

रायसाहब अकेले में बैठ कर अम्मांबाबूजी को समझाते, ‘‘मैं यहां रहता नहीं हूं और रह भी नहीं सकता. आप की देखभाल के लिए वही तो हैं. हारीबीमारी, हाटबाजार के पचासों काम होते हैं घर के. इतना भरोसेमंद और सस्ता नौकर कहां मिलेगा.’’

हर साल की तरह इस साल भी रायसाहब गरमी की छुट्टियां बिताने

गांव आए थे. अब की बार उन का बेटा कौशल और बेटी रचना भी साथ में थे. कौशल कहीं विदेश में पढ़ाई कर रहा था, जबकि रचना देशी यूनिवर्सिटी में ही पढ़ रही थी. उन की पत्नी तारिका देवी को इस उम्र में भी कोई 40 साल से ऊपर की नहीं कह सकता था.

जून का महीना था. तारिका देवी और रायसाहब दोनों बगीचे में बैठे बातचीत कर रहे थे. दोनों के बीच में एक मेज रखी थी. उन के हाथ एकदूसरे से दूर थे, लेकिन मेज के नीचे से दोनों के पैर आपस में अठखेलियां कर रहे थे. रचना और कौशल किसी बहस में मसरूफ थे.

रायसाहब की चाय का समय हो गया था. कल्लो ने धीरे से दरवाजा खोला. उस ने दहलीज पर पैर रखा ही था कि कौशल बोल उठा, ‘‘ओ हो, हाऊ आर यू कल्लो?’’

कल्लो ने मुड़ कर देखा और चुपचाप वहीं खड़ी हो गई.

कौशल रचना की ओर देख कर हंस दिया, फिर बोला, ‘‘डू यू अंडरस्टैंड, मेरा मतलब…’’

‘‘हां, समझ गई,’’ कल्लो ने बीच में ही बात काटते हुए कहा.

‘‘ह्वाट?’’

‘‘यही कि आप इंडियन हैं और मैं हिंदुस्तानी,’’ इतना कह कर कल्लो हंसते हुए रसोईघर की ओर चली गई.

इतना सादगी भरा और तीखा मजाक सुन कर रायसाहब के कान खड़े हो गए. इस ने बात करने का यह ढंग कहां से सीखा?

सुबह के 8 बजे कल्लो चाय लिए खड़ी थी.

रायसाहब ने चाय का कप हाथ में ले कर कल्लो को सामने सोफे पर बैठने का इशारा किया.

कल्लो अभी भी खड़ी थी. रायसाहब ने फिर कहा, ‘‘बैठ जाओ.’’

कल्लो बैठ गई. उन्होंने चाय पीते हुए कल्लो से पूछा, ‘‘तुम किस क्लास में पढ़ती हो?’’

‘‘अब नहीं पढ़ती.’’

‘‘क्यों?’’

कल्लो कोई जवाब न दे सकी और आंखें नीचे किए बैठी रही.

उन्होंने फिर पूछा, ‘‘क्या हाईस्कूल पास कर लिया?’’

‘‘जी सर…’’ कुछ रुक कर वह बोली, ‘‘मैं ने पिछले साल इंटर पास किया है,’’ इतना कह कर वह बिना इजाजत लिए ही कमरे से बाहर

निकल गई.

शाम को रायसाहब ने रामभरोसे को अपनी बैठक में बुलाया. दरवाजे के ठीक सामने रायसाहब तकिया लगाए शाही अंदाज में बैठे थे. सामने सोफे पर रचना और कौशल बैठे थे.

रायसाहब ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आप की लड़की बहुत चतुरचालाक है भरोसे भैया.’’

‘‘यह सब आप की मेहरबानी है साहब.’’

‘‘लड़की पढ़ने में बहुत तेज है. उसे और आगे पढ़ाना चाहिए था आप को.’’

‘‘साहब…’’

‘‘आगे सोच लो, लड़की होनहार है,’’ कहते हुए रायसाहब के चेहरे पर एक हलकी सी मुसकान आई और वे बोले, ‘‘कल्लो ही है न उस का नाम?’’

‘‘नहीं साहब, कागजों में उस का नाम कृष्ण कली है.’’

‘‘वाह, कितना अच्छा नाम है.’’

एक पल के लिए उन्हें शेक्सपीयर की कविता ‘ब्लैक रोज’ याद हो आई, फिर वे बोले, ‘‘इसे हमारे साथ भेज देना. मैं वहीं पर दाखिला दिलवा दूंगा.’’

रचना की ओर देखते हुए वे बोले, ‘‘क्यों रचना?’’

‘‘बहुत अच्छा रहेगा,’’ कौशल ने जवाब दिया, जैसे वह पहले से ही इसी इंतजार में बैठा हो.

‘‘अच्छी बात है साहब. उस की मां से पूछ लें, तब बताएंगे.’’

छप्पर के आगे रामभरोसे खटिया डाले बैठा था. उसी के आगे जमीन पर सुखिया बैठी थी. कल्लो छत पर थी.

रामभरोसे ने सुखिया से कहा, ‘‘साहब कह रहे थे कि कल्लो को उन के साथ भेज दो…’’

सुखिया ने बीच में ही बात काटते हुए कहा, ‘‘सयानी बेटी को हम किसी के साथ नहीं भेजेंगे.’’

‘‘साहब के बारे में ऐसा सोचना भी पाप है. वे हमें बहुत चाहते हैं,’’ रामभरोसे ने सुखिया को डांटते हुए कहा.

‘‘हम ने सब सुन लिया. बड़े आदमी की बातें बड़ी होती हैं. इन के चरित्र को हम खूब जानते हैं. बराबर का लड़का है घर में.’’

‘‘वह तो विदेश में पढ़ता है.’’

‘‘तो…’’

‘‘बराबर की लड़की भी तो है घर में… ऐसे कुछ नहीं होता,’’ रामभरोसे ने एक बार फिर झिड़कते हुए कहा.

सुखिया ने भी उसी तेवर में जवाब दिया, ‘‘क्या तुम नहीं जानते कि औरत और दौलत दुनिया में कोई नहीं छोड़ता?’’

‘‘सवेरे तुम ही साहब से मना कर देना. मैं तो नहीं कर सकता,’’ रामभरोसे ने खिसिया कर कहा.

सुबह रामभरोसे ने कल्लो को रायसाहब के साथ जाने के लिए कह दिया गया.

इधर कल्लो जाने की भी तैयारी करती जा रही थी, उधर उस के दिमाग में चल रहा था कि बड़े लोग हैं, इन के साथ कैसे निभेगी? बापू की हालत को देख कर वह मना भी नहीं कर सकती थी. जब वह गाड़ी में बैठने लगी, तो उस की आंखें छलक आईं.

रामभरोसे के हाथ रायसाहब के सामने जुड़ गए. उस ने भरे गले से कहा, ‘‘साहब…’’ वह इतना ही कह सका. सुखिया रामभरोसे के पीछे खड़ी सिसक रही थी.

रायसाहब ने रामभरोसे को अपने कंधे से लगा कर भरोसा दिलाया, कुछ रुपए उस के हाथ में दबा कर वे कार में बैठ गए.

कौशल ने एक नजर पीछे सीट पर बैठी कल्लो पर डाली और कार स्टार्ट कर आगे बढ़ा दी. कल्लो शीशे से अपने अम्मांबापू को देखते रही.

10-15 दिन सबकुछ ठीकठाक चलता रहा. इस दौरान कल्लो का दाखिला हो चुका था. उस की पढ़ाईलिखाई का पूरा इंतजाम कर दिया गया था. कौशल भी 2-4 दिन रुक कर विदेश जा चुका था.

तारिका देवी ने एक दिन झाड़ूपोंछा करने वाली का हिसाब कर दिया. कुछ दिनों बाद खाना बनाने वाली की भी छुट्टी कर दी.

कल्लो झाड़ूपोंछा करती और दोनों वक्त का खाना, नाश्ता वगैरह बनाती. उसे इस में कोई तकलीफ नहीं हुई. इतना सब करने के बाद भी वह पढ़ाई के लिए पूरा समय निकाल लेती थी.

एक दिन रायसाहब तारिका देवी से अचानक पूछ बैठे, ‘‘झाड़ूपोंछा वाली और महाराजिन क्यों नहीं आतीं?’’

‘‘मैं ने उन की छुट्टी कर दी.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘काम ही क्या है. बच्चियों को भी तो सीखने दो. कल के दिन पराए घर जाएंगी, पता नहीं कौन कैसा मिलेगा. किसी को पत्नी के हाथ का खाना पसंद हो तब?’’ सवाल के लहजे में तारिका देवी ने जवाब दिया.

‘‘फिर भी…’’ रायसाहब आगे कुछ कह पाते, इस से पहले ही तारिका देवी तड़प उठीं, ‘‘फिर क्या, चार रोटियां सुबह, चार शाम को बनानी हैं…’’

रायसाहब कुछ कह न पाए, इसलिए तारिका देवी ने अपनी बात को सही ठहराने के लिए बात कहना जारी रखा, ‘‘अपनी याद करो. जब मैं इस घर में आई थी, तुम्हीं कहते थे कि जब तक तुम्हारे हाथ की बनाई रोटी नहीं खा लेता, तब तक पेट नहीं भरता.’’

रचना और कल्लो उन्हीं की ओर चली आ रही थीं. रायसाहब मुसकराए और अपने स्टडीरूम की ओर चले गए.

धीरेधीरे कल्लो का बैडरूम और बाथरूम सबकुछ अलग कर दिया गया. वह अच्छी तरह समझ रही थी कि उसे उस की हैसियत का एहसास कराया जा रहा है. उसे इस में उलझन तो हुई, लेकिन इस बात की तसल्ली थी कि रात को तो वह चैन से सो सकेगी.

कल्लो घर का सारा काम करती और खूब मन लगा कर पढ़ती. धीरेधीरे उस का काम और बढ़ गया. सब के कपड़े धोना और उन पर इस्तिरी करना उस के काम में और जुड़ गए थे.

रचना ने एक बार इस का विरोध करते हुए अपनी मां से कहा था, ‘‘मम्मी उसे घरेलू नौकर समझना आप की सब से बड़ी भूल होगी.’’

‘‘काम करना बुरा नहीं होता, काम की आदत डालना अच्छी बात है.’’

‘‘जब मैं उस के साथ काम करती हूं, तो आप मुझे क्यों रोकती हैं?’’

‘‘तू अपनी तुलना उस से करेगी?’’ इतना कह कर तारिका देवी वहां से चली गईं.

दिसंबर का महीना था. कौशल घर आया हुआ था. एक दिन कल्लो बाथरूम में नहा रही थी. बाथरूम का दरवाजा अंदर से बंद नहीं होता था. उस की सिटकनी टूट गई थी.

कौशल ने दरवाजे को धक्का दिया. कल्लो ने अंदर से दरवाजा लगाना चाहा, लेकिन तब तक कौशल ने उसे अपनी बांहों में जकड़ लिया था.

कल्लो ने पूरी ताकत से उसे बाहर धकेल कर एक जोरदार थप्पड़ उस के गाल पर जड़ दिया.

कौशल की मर्दानगी काफूर हो चुकी थी. वह गालियां बकता हुआ अपने कमरे की ओर चला गया.

तारिका देवी भी अपने बेटे का साथ देते हुए गालियां बकने लगीं, ‘‘गटर के कीड़े को वहीं पड़ा रहने देते. इस ने हमारे घर को भी गंदा कर दिया.’’

कल्लो को दौरा सा पड़ गया. वह अपने कमरे में टूटी शाख की तरह औंधे मुंह गिर पड़ी. सारा दिन वह कमरे से नहीं निकली थी.

रायसाहब आज सुबह से ही कहीं पार्टी में गए हुए थे. रात को तकरीबन 10-11 बजे लौट कर आए. कार खड़ी की और सीधा अपने बैडरूम की ओर बढ़ गए.

रायसाहब अभी कपड़े भी नहीं बदल पाए थे कि तारिका देवी और कौशल ने नमकमिर्च लगा कर सारी कहानी बयां कर दी.

रचना बैठी चुपचाप सुनती रही. उस के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था. जो कुछ हुआ, उस के लिए वह कल्लो को कुसूरवार मानने के लिए तैयार नहीं थी. उस के दिमाग में एक ही सवाल बारबार उठता था कि आखिर कौशल वहां गया ही क्यों था?

रायसाहब ने उन्हें समझाबुझा कर वापस भेज दिया.

कुछ देर बाद रायसाहब कल्लो के कमरे की ओर गए. कमरा खुला था. कल्लो अभी भी औंधे मुंह बिस्तर पर पड़ी थी. आहट सुन कर वह हड़बड़ा कर खड़ी हुई और कमरे का दरवाजा बंद करने लगी.

रायसाहब ने छड़ी से इशारा करते हुए उसे अपने साथ आने को कहा.

रायसाहब के बैडरूम की ओर जाते हुए कल्लो के पैर कांप रहे थे. कमरे में दूधिया रोशनी फैली हुई थी. रायसाहब बिस्तर पर बैठे हुए थे. कल्लो जा कर उन के सामने खड़ी हो गई.

रायसाहब ने अपनी बगल में उसे बैठा कर कहा, ‘‘क्या बात थी?’’

कल्लो चुपचाप बैठी रही. रायसाहब ने जैसे ही उस का सिर अपनी गोद में रखा, वह फफक पड़ी.

रायसाहब काफी देर तक सिर पर हाथ फेरते हुए उसे तसल्ली देते रहे. वह भी गोद में पड़ीपड़ी सिसकती रही.

धीरेधीरे रायसाहब के हाथों का दबाव उस के बदन पर बढ़ने लगा. यह देख कर अचानक कल्लो का सिसकना बंद हो गया. उस ने जैसे ही छूटने की कोशिश की, वैसे ही रायसाहब ने दबोच कर उस की छाती पर दांत गड़ा दिए.

कल्लो पूरा जोर लगा कर खड़ी हुई और उन्हें एक ओर धकेल दिया. अभी वह संभल भी न पाई थी कि रायसाहब उस पर कामुक सांड़ की तरह टूट पड़े. जब तक रायसाहब उसे पकड़ते, रैक पर रखी उन की पिस्तौल कल्लो के हाथ में थी.

शोर सुन कर तारिका देवी, रचना और कौशल सभी अपनेअपने कमरों से निकल कर आ गए थे. सभी अपनेअपने तरीके से उसे गालियां देने लगे.

कल्लो को ले कर भी रचना के दिमाग में वही सवाल उठा, जो कौशल को ले कर उठा था. इतनी रात को यह पापा के कमरे में क्यों आई?

रचना के माथे पर बल पड़ने लगे. उस के दिमाग के तार झनझना उठे. उस ने कल्लो को डांटते हुए कहा, ‘‘जवानी के नशे में यह तो देख लिया होता कि कौन किस उम्र का है. बदमिजाज कहीं की…’’

कल्लो चिल्ला पड़ी, ‘‘हां, मैं बदमिजाज हूं…’’ कह कर उस ने अपना कुरता फाड़ डाला और रचना का हाथ पकड़ कर अपनी छाती पर रखा और बोली, ‘‘देखो.’’

सब चुप रहे, तो कल्लो बिफर पड़ी, ‘‘अब तक मैं अच्छी तरह जान चुकी हूं कि आप लोगों की उदारता के पीछे धूर्तता और मक्कारी कूटकूट कर भरी होती है.’’

रचना ने गुस्से में आ कर रायसाहब की ओर सवालिया नजरों से देखा, फिर पलट कर कौशल और तारिका देवी की ओर देखा. सब की नजरें झुकी हुई थीं.

रचना ने कल्लो की बांह पकड़ी और मुख्य दरवाजे की ओर चल पड़ी. अभी उस ने दरवाजा खोला ही था कि रायसाहब लड़खड़ाते हुए कमरे से निकले और चिल्ला पड़े, ‘‘बेटी, कहां जा रही है इतनी रात को. गुंडेमवाली…’’

रचना गरज उठी, ‘‘खामोश जो दोबारा इस जबान से बेटी कहा. घटिया लोगों की कोई मां, बहन, बेटी नहीं होती. हो सकता है, गुंडेमवालियों में कोई प्यार करने वाला ही मिल जाए.’’

कल्लो ने पिस्तौल रायसाहब की ओर फेंक दी और वे दोनों बाहर निकल गईं.

रात के सन्नाटे में सिर्फ कुत्तों के भूंकने की आवाजें सुनाई दे रही थीं.

मुझे मोबाइल फोबिया हो गया है, इससे पढ़ाई में भी मन नहीं लगता मैं क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

19 वर्षीय युवती हूं. मुझे मोबाइल फोबिया हो गया है. हर 3-4 महीने के बाद लेटैस्ट मोबाइल खरीदने का मुझे शौक है. देर रात तक मोबाइल पर गेम्स खेलना और चैटिंग करना मेरी आदत में शुमार है. इस वजह से पढ़ाई में भी मन नहीं लगता. इस से मेरा रिजल्ट भी प्रभावित हो रहा है. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

मोबाइल से चिपके रहना न सिर्फ शारीरिक रूप से नुकसानदायक है, बल्कि मानसिक रूप से भी व्यक्ति को कमजोर कर देता है. आप को अभी अपने कैरियर पर ध्यान देना चाहिए. इस के लिए मोबाइल को छोड़ पत्रपत्रिकाओं में ध्यान लगाएं. अच्छा साहित्य पढ़ें. इस से आप का सामान्य ज्ञान बढ़ेगा. रूटीन लाइफ और अच्छा साहित्य पढ़ना शुरू करेंगी तो स्वत: ही मोबाइल की गंदी लत से छुटकारा मिल जाएगा.

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31 साल की कामकाजी महिला नीलम शादी के 3 वर्षों बाद भी बच्चा न होने से घबराई. वह डाक्टर के पास गई. शुरुआती जांच के बाद डाक्टर ने पाया कि सबकुछ ठीक है. सिर्फ औव्यूलेशन सही समय पर नहीं हो रहा है. उस की काउंसलिंग की गई, तो पता चला कि उस के मासिकधर्म का समय ठीक नहीं. इस की वजह जानने पर पता चला कि उस का कैरियर ही उस की इस समस्या की जड़ है. उस की चिंता और मूड स्विंग इतना ज्यादा था कि उसे नौर्मल होने में समय लगा और करीब एक साल के इलाज के बाद वह आईवीएफ द्वारा ही मां बन पाई.

आज की भागदौड़भरी जिंदगी में पूरे दिन का बड़ा भाग इंसान अपने मोबाइल फोन से चिपके हुए बिताता है. खासकर, आज के युवा पूरे दिन डिजिटल वर्ल्ड में व्यस्त रहते हैं. ऐसे में उन की शारीरिक अवस्था धीरेधीरे बिगड़ती जाती है, जिस में फर्टिलिटी की समस्या सब से अधिक दिखाई पड़ रही है.

वर्ल्ड औफ वूमन की फर्टिलिटी ऐक्सपर्ट डा. बंदिता सिन्हा का कहना है, ‘‘डिजिटल वर्ल्ड के आने से इस की लत सब से अधिक युवाओं को लगी है. वे दिनभर मोबाइल पर व्यस्त रहती हैं. 19 से 25 तक की युवतियां कुछ सुनना भी नहीं चाहतीं, मना करने पर वे विद्रोही हो जाती हैं. इस वजह से आज 5 में से एक लड़की को कोई न कोई स्त्रीरोग जनित समस्या है.’’

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चौथा कंधा : क्या कौलगर्ल के दाग को हटा पाई पारो

अन्य पिछड़ा वर्ग का दीना कोलकाता के एक उपनगर संतरागाछी में रहता था. वहीं एक गली में उस की झोंपड़ी थी. उसी झोंपड़ी के आगे उस की छोटी सी दुकान थी, जहां उस ने एक सिलाई मशीन लगा रखी थी. दुकान में वह रैक्सीन के साथसाथ कपड़ों के बैग भी तैयार करता था. साथ में कुछ चप्पलें भी बनाता था.

दीना की पत्नी मीरा महल्ले में मजदूरी का काम करती थी या फिर गल्ले की दुकानों में चावल, गेहूं, मसाले की सफाई करती थी. बदले में नकद मजदूरी या अनाज मिल जाता था.

दीना के 4 बेटे थे, सब से बड़ा बेटा गोलू, उस के बाद पिंकू, टिंकू और सब से छोटा सोनू. चारों बेटे स्कूल जाते थे. बीचबीच में दोनों बड़े बेटे शहर जा कर सामान बेचा करते थे. परिवार की गुजरबसर हो जाती थी.

एक दिन दीना ने अपनी पत्नी मीरा से कहा, ‘‘हम दोनों कितने भाग्यवान हैं. हमारी मौत पर कंधा देने वाले चारों बेटे हैं. बाहरी कंधे की जरूरत नहीं पड़ेगी.’’

देखतेदेखते गोलू और पिंकू दोनों बीए पास कर गए. इत्तिफाक से राज्य के नए मुख्यमंत्री भी अन्य पिछड़ा वर्ग से थे. उन्होंने फरमान जारी किया कि अन्य पिछड़ा वर्ग के कोटे के खाली पदों पर फौरन बहाली कर ऐक्शन टेकन रिपोर्ट सरकार को सौंपी जाए. दीना के दोनों बेटों को राज्य सरकार में आरक्षण के बल पर क्लर्क की नौकरी मिल गई थी. एक की पोस्टिंग बर्दवान थी और दूसरे की आसनसोल में हो गई.

कुछ साल तक वे दोनों परिवार की माली मदद करते रहे और बीचबीच में अपने घर भी आया करते थे. टिंकू और सोनू भी अपनी पढ़ाई में लग गए थे. मीरा ने अब बाहर का काम करना बंद कर दिया था. इधर दोनों बड़े बेटों ने अपनी मरजी से शादी कर ली. वे अपनीअपनी गृहस्थी में बिजी रहने लगे. घर में पैसे भेजना बंद कर दिया था.

टिंकू बीए फाइनल में था और सोनू मैट्रिक पास था. दीना को खांसी और दमे की पुरानी बीमारी थी. अब उस से काम नहीं होता था.

एक दिन सोनू ने पिता से कहा, ‘‘टिंकू भैया तो कुछ दिनों में बीए पास कर लेगा. उसे कुछ न कुछ काम जरूर मिल जाएगा. तब तक भैया को पढ़ने दें, आप का काम मैं संभाल लूंगा. भैया को नौकरी मिलते ही मैं अपनी पढ़ाई फिर से शुरू कर दूंगा.’’

दुकान का काम अब मीरा देखती थी. सोनू रोज कुछ बैग और चप्पलें ले कर बेचने निकल जाता था. रोज की तरह सोनू उस दिन भी दोनों कंधों पर एकएक थैला लिए था. एक थैले में कुछ जोड़ी चप्पलें थीं, कुछ जैट्स और कुछ लेडीज. दूसरे कंधे पर भी थैला होता था, जिस में रैक्सीन और कपड़े के बैग थे.

अकसर प्लैनेटोरियम इलाके से थोड़ा आगे सड़क के किनारे एक सुंदर लड़की उसे दिखती थी. जब भी उसे देखता, वह पूछता ‘‘दीदी, कुछ लोगी?’’वह मना करते हुए बोलती, ‘‘मुझे कुछ नहीं चाहिए, तुम अपना समय बरबाद न करो.’’

एक छुट्टी के दिन सोनू फिर उस लड़की के सामने रुक कर बोला, ‘‘दीदी, कुछ चाहिए आज? आप की चप्पलें काफी घिसी हुई लगती हैं.’’

लड़की ने अपनी साड़ी खींच कर नीचे कर चप्पलों को ढक लिया, फिर वह बोली, ‘‘कुछ नहीं चाहिए, पर तुम रोजरोज मुझ से ही क्यों पूछते हो? यहां तो थोड़ीथोड़ी दूरी पर हर खंभे पर लड़कियां खड़ी हैं, तुम उन से क्यों नहीं पूछते?’’

‘‘दीदी, आप मुझे अच्छी लगती हो. बस रुक कर दो पल आप से बात कर लेता हूं, बिक्री हो न हो.’’

‘‘अच्छा, अपना नाम बताओ?’’

‘‘मैं सोनू… और आप?’’

‘‘मैं पारो.’’

‘‘और, आप का देवदास कौन है?’’

‘‘सारा शहर मेरा देवदास है. चल भाग यहां से… बित्ते भर का छोकरा और गजभर की जबान,’’ पारो बोली.

सोनू हंसते हुए आगे बढ़ गया और पारो भी हंसने लगी थी.

अगले दिन फिर सोनू की मुलाकात पारो से हुई. उस ने पूछा, ‘‘दीदी, आप रोज यहां खड़ीखड़ी क्या करती हो?’’

‘‘मैं भी कुछ बेचती हूं.’’

‘‘क्या?’’

‘‘तुम नहीं समझोगे,’’ बोल कर पारो ने आगे वाले खंभे के पास खड़ी लड़की की तरफ दिखा कर कहा, ‘‘देख, जो वह करती है, मैं भी वही करती हूं.’’

सोनू ने देखा कि उस लड़की के पास एक लड़का आया और उस के साथ2 मिनट बात की, फिर वे दोनों एक टैक्सी में बैठ कर निकल गए.अगले दिन सोनू फिर उसी जगह पारो से मिला. दोनों ने आपस में एकदूसरे के परिवार की बातें कीं.

सोनू ने कहा, ‘‘मैं काम कर के घर का खर्च और बड़े भाई की पढ़ाई का खर्च जुटाने की कोशिश करता हूं.’’

पारो बोली, ‘‘तू तो बड़ा अच्छा काम कर रहा है. मैं भी अपने छोटे भाई को पढ़ा रही थी. वह बीए पास कर चुका है. कुछ जगह नौकरी की अर्जी दी है. उसे काम मिलने के बाद मैं यहां नहीं मिलूंगी.’’

कुछ दिनों तक ऐसे ही चलता रहा था. सोनू की अकसर पारो से मुलाकात होती रहती थी. टिंकू बीए पास कर चुका था. नौकरी के लिए उस ने भी अर्जी दे रखी थी. पर साहब को रिश्वत चाहिए थी, इसलिए औफर लैटर रुका हुआ था.

पिछले 2-3 दिनों से सोनू सामान बेचने नहीं निकल सका था. उस के पिता की तबीयत ज्यादा खराब थी. उन्हें सरकारी अस्पताल में भरती किया गया था. उन की हालत में कोई सुधार नहीं था. टिंकू पिता के पास अस्पताल में था.

आज सोनू बाजार निकला था. पारो ने सोनू को आवाज दे कर कहा, ‘‘तू कहां था? मैं तुझे खुशखबरी देने के लिए ढूंढ़ रही थी. मेरे भाई को नौकरी मिल गई है आसनसोल के कारखाने में. सोमवार को उसे जौइन करना है. बस, अब 2-4 दिन बाद मैं यहां नहीं मिलूंगी.’’

‘‘मुबारक हो दीदी, तो मिठाई नहीं खिलाओगी? मेरे पिता अस्पताल में भरती हैं, इसलिए मैं नहीं आ सका था.’’

‘‘घबराओ नहीं, सब ठीक हो जाएगा,’’ बोल कर पारो ने मिठाई उस के मुंह में डाल दी.

‘‘क्या ठीक होगा, टिंकू भैया की नौकरी रुकी है. वैसे, आरक्षण कोटे में औफर तो मिलना है, पर साहब ने घूस के लिए अभी तक लैटर इशू नहीं किया है.’’

‘‘तुम उस साहब का पता बताओ, मैं उन से रिक्वैस्ट करूंगी.’’

‘‘कोई फायदा नहीं, हम लोगों ने बहुत नाक रगड़ी उन के सामने, वह बिना रिश्वत लिए मानने वाला नहीं है.’’

‘‘अरे, तुम बताओ तो सही. हो सकता है कि कोई पहचान वाला हो और काम बन जाए.’’

‘‘ठीक है. बताता हूं, पर घूस की बात वह घर पर करता है.’’

‘‘ठीक है, घर पर ही मिल लूंगी.’’

उस दिन शाम को पारो उस साहब के घर पर मिली. एक काली मोटी सी औरत ने कहा, ‘‘मैं साहब की पत्नी हूं. कहो, क्या काम है?’’

पारो बोली, ‘‘मुझे भाई की नौकरी के सिलसिले में उन से बात करनी है.’’

‘‘ठीक है, तुम यहीं रुको. मैं उन्हें भेजती हूं,’’ बोल कर वह अंदर चली गई.

साहब आए, तो पारो को ऊपर से नीचे तक गौर से देखते रह गए. पारो ने अपने आने की वजह बताई, तो वे बोले, ‘‘तुम लोगों को पता होना चाहिए कि दफ्तर का काम मैं घर पर नहीं करता हूं.’’

पारो ने सीधे मुद्दे पर आते हुए धीमी आवाज में कहा, ‘‘सर, मैं ज्यादा रुपए तो नहीं दे सकती हूं, हजार डेढ़ हजार रुपए से काम हो जाता, तो बड़ी मेहरबानी होगी.’’

साहब ने धीरे से कहा, ‘‘मैं तुम से ज्यादा लूंगा भी नहीं. बस जो तुम्हारे पास है, उतने से मैं काम कर दूंगा. तुम कल शाम को इस होटल में मिलना. याद रहे, अकेले में प्राइवेट मीटिंग होगी,’’ और उन्होंने होटल और कमरा नंबर पारो को बता दिया.

अगले दिन साहब ने दफ्तर जाते समय पत्नी से कहा, ‘‘लंच के बाद मुझे बर्दवान जाना है. एक जरूरी मीटिंग है. आतेआते रात के 12 बज जाएंगे.’’

दूसरे दिन पारो सोनू को रोज वाली जगह पर नहीं मिली. वह तो साहब के साथ होटल के कमरे में मीटिंग में थी. रात के 12 बजे तक साहब ने पारो के साथ इस उम्र में खूब मौजमस्ती की. पारो ने पूछा, ‘‘मेरा काम तो हो जाएगा न सर?’’

साहब बोले, ‘‘मैं इतना बेईमान नहीं हूं. तुम ने मेरा काम कर दिया, तो समझो तुम्हारा काम हो चुका है. और्डर मैं ने आज साइन कर दिया है. मेरे ही दराज में है. कल सुबह भाई को अपना आईडी प्रूफ ले कर दफ्तर भेज देना. डाक से पहुंचने में कुछ दिन लग जाएंगे. सरकारी तौरतरीके तो जानती ही हो.’’

‘‘जी सर, मैं भाई को भेज दूंगी,’’ साड़ी लपेटते हुए पारो बोली. अगले दिन सुबहसुबह पारो सोनू के घर पहुंची. सोनू और टिंकू घर पर ही थे. उन की मां अस्पताल में थीं. पारो ने टिंकू से दफ्तर जा कर बहाली का और्डर लेने को कहा.

सोनू बोला, ‘‘कितनी घूस देनी पड़ी?’’

पारो बोली, ‘‘मेरे पास ज्यादा कुछ था भी नहीं. थोड़े में ही मान गए वे.’’

‘‘ओह दीदी, तुम कितनी अच्छा हो,’’ बोल कर सोनू उस के पैर छूने को झुका, तो पारो ने उसे रोक कर गले लगाया. टिंकू ने दफ्तर से और्डर ले कर उसी दिन जौइन भी कर लिया. दीना को यह खुशखबरी सोनू ने दे दी थी.

दीना बोला, ‘‘अब मैं चैन से मर सकूंगा. टिंकू अपनी मां और छोटे भाई की देखभाल करेगा.’’

उसी शाम को दीना चल बसा, इत्तिफाक से पारो और उस का भाई तपन उस दिन अस्पताल में दीना से मिलने गए थे. सोनू ने दोनों बड़े भाइयों को पिता की मौत की खबर उसी समय दे दी और कहा कि दाहसंस्कार कल सुबह होना है.

बड़ा बेटा गोलू तो 2 घंटे की दूरी पर बर्दवान में था. वह बोला, ‘‘मैं तो नहीं आ सकूंगा, बहुत जरूरी काम है, तेरहवीं के दिन आने की कोशिश करूंगा.’’ दूसरा बेटा पिंकू आसनसोल से उसी रात आ गया, पर उस की पत्नी नहीं आई. सुबह अर्थी उठने वाली थी. पारो भी अपने भाई के साथ आई थी.

टिंकू ने सोनू से कहा, ‘‘हम तीन भाई तो हैं ही. जा कर पड़ोस से किसी को बुला ला, कंधा देने के लिए.’’

पारो आगे बढ़ कर बोली, ‘‘चौथा कंधा मेरा भाई तपन देगा.’’

मीरा अपने पति की अंतिम विदाई के समय फूटफूट कर रो रही थी. उसे पति की कही बात याद आ गई. कितने फख्र से कहते थे कि मरने पर मेरे चारों बेटे हैं ही कंधा देने के लिए.कुछ दिनों बाद सोनू का घर सामान्य हो चला था. पारो अकसर आती रहती थी. सोनू अपनी पढ़ाई में लग गया.

एक दिन मीरा ने पारो से कहा, ‘‘बेटी, तुम ने बड़े एहसान किए हैं हम लोगों पर. एक और एहसान कर सकोगी?’’

‘‘मां, मैं ने कोई एहसान नहीं किया है. आप बोलिए, मैं क्या कर सकती हूं?’’

‘‘सोनू को अपना देवर बना लो, वह तुम्हारी बड़ी तारीफ करता है. हां, अगर टिंकू तुम्हें ठीक लगे तो…’’टिंकू भी उस समय घर में था, उस ने खामोश रह कर स्वीकृति दे दी थी और पारो की ओर देख कर उस के जवाब का इंतजार कर रहा था.

पारो बोली, ‘‘आप लोगों को मैं अंधेरे में नहीं रखना चाहती हूं. मैं कुछ दिन पहले तक कालगर्ल थी. पता नहीं, टिंकू मुझे पसंद करेंगे या नहीं.’’

‘‘कौन सी गर्ल, वह क्या होता है?’’ मां ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं मां. सेल्स गर्ल समझो. सोनू इस के बारे में मुझे सब बताया करता था. पारो बहुत अच्छी लड़की है. अब फैसला इसे करने दो.’’सोनू पारो के पास आ कर बोला, ‘‘मान जाओ न दीदी… नहीं भाभी.’’ पारो ने नजरें झुका लीं. उस ने सिर पर पल्लू रख कर मां के पैर छुए.

नपुसंक बना सकता है तम्बाकू और धूम्रपान, जानें कैसे

सभी जानते है कि हमारे देश में युवाओं की आबादी अधिक है, लेकिन आज की आधुनिक जीवन शैली और केयर फ्री स्वभाव का उनपर बहुत प्रभाव दिखता है, इसमें किसी भी खास अवसर हो या नाईट क्लब, युवाओं की एक बड़ी समुदाय उस पल को अच्छी तरह से जी लेना चाहते है, ऐसे में तम्बाकू और धुम्रपान लगातार चलता रहता है. इसकी लत इतनी ख़राब होती है कि चाहकर भी इससे बाहर निकल पाना मुश्किल होता है. इस तरह के नशे इतने ख़राब होते है कि इससे इनका शरीर घर-परिवार सब धीरे-धीरे ख़त्म हो जाता है.

इस बारें में एसआरव्ही हॉस्पिटल, चेंबूर मुंबई की हेड एंड नेक ओरल ऑन्कोसर्जनडॉ खोजेमा फतेहीकहते है कि तंबाकू केलगातार सेवन से कैंसर जैसी बिमारी के साथ-साथ मनुष्य को नपुंसक भी बना देता है, क्योंकितंबाकू के सेवन से दिमाग और नर्व सिस्टम कमजोर हो जाता है, इससे इंसान के दिमाग से लेकर सेक्स लाइफ पर असर पड़ता है. अगर इन बीमारियों से बचना है,तो इसकी लत को छोड़ने की जरुरत है.

मुंह के कैंसर में लगातार वृद्धि

एक सर्वे में यह पाया गया है कि भारत में तंबाकू सेवन से मुंह के कैंसर में लगातार वृद्धि हो रही है, जिसमें 90 प्रतिशत फेफड़ों के कैंसर और अन्य कैंसर का कारण धूम्रपान ही है. दरअसल अधिक धूम्रपान से हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है, क्योंकि धूम्रपान के कारण रक्तचाप में अचानक वृद्धि से हृदय को रक्त की आपूर्ति में कमी हो जाती है, इससे दिल का दौरा या स्ट्रोक हो सकता है. इसके अलावा तंबाकू और धूम्रपान की वजह से महिलाओं में गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है, जबकि पुरुषों में नपुंसकता का कारण बनता है.

तम्बाकू है क्या

असल में तंबाकू में चार हजार से अधिक रसायन होते है. इन रसायनों में निकोटीन एक ऐसा रसायन है, जो व्यक्ति को थोड़ी देर के लिए अच्छा महसूस करवाती है. इसलिए व्यक्ति  तंबाकू का सेवन करता है,निकोटिन के अलावा फिनाईल, नायटोअमाईड, डेनझिन, कार्बन मोनोऑक्साइडआदि होते है, जिससे व्यक्ति के शरीर पर इसका असर पड़ता है, जिसमें  मुंह, होंठ, जबड़े, फेफड़े, गले, पेट, गुर्दे और मूत्राशय का कैंसर होने की संभावना रहती है.

खतरनाक होते है केमिकल्स

डॉक्टर खोजेमा आगे कहते है कि तंबाखू एक ऐसा पदार्थ है, जिसमें कई ऐसे केमिकल है, जिसका मनुष्य के स्वास्थ्य पर गलत असर पडता है और उन्हें कई रोगों का शिकार बनाने के अलावा नपुंसकता की ओर अग्रसर भी करता है.खासकर युवा वर्ग को इससे बचना होगा, क्योंकि 80 प्रतिशत युवा वर्ग इस दलदल में फंस चुका है. कुछ असर निम्न है,

होती है बांझपन

तम्बाकू सेवन करनेवालों को तम्बाकू न सेवनकरने वालों की तुलना में बांझपन का सामना करना पडता है. तंबाकू की वजह से अंडे और शुक्राणू की डीएनए क्षतिग्रस्त हो जाता है. प्रजनन समस्याओं का सामना करने वाले पुरूषों के अलावा नशे की लत वाली महिलाओं में भी गर्भ धारण करने की संभावना कम हो जाती है, क्योंकि अंडे के खराब होने के पीछे निकोटीन, कार्बन मोनोऑक्साइड और साइनाइड मुख्य कारण होता है.

शीघ्र पतन की समस्या

अधिक धुम्रपान के कारण पुरूषों में नपुंसकता बढती है, उनके सेक्सुअल लाइफ पर असर पड़ता है. धुम्रपान से पुरूषों में शीघ्र पतन की समस्या भी शुरू हो जाती है.

आती है यौन क्षमता में कमी

तंबाकू का स्वाद बढाने के लिए जिस केमिकल का उपयोग किया जाता है.उससे व्यक्ति की शारीरिक क्षमता पर असर पडता है. अधिक मात्रा में इन तंबाकू का सेवन, धीरे-धीरे उसकी यौनक्षमता में कमी आ जाती है.

इलाज करें ऐसे

इस तरह की नशे से खुद को छुड़ाने के लिए किसी संस्था या डॉक्टर की सलाह लेना आवश्यक  है, किसी प्रकार की झाड़-फूंक और पूजा पाठ से बचें, ताकि आपको सही सलाह मिले और आप धुम्रपान और तम्बाकू से खुद को छुड़ाने में समर्थ हो.

अंत में यह कहना सही होगा कि तम्बाकू और धुम्रपान से रक्त वाहिकाओं के सिकुड़ने से स्नायुबंधन की कठोरता कम हो जाती है और नपुंसकता का खतरा रहता है. लत जितनी लंबी होगी, प्रभाव उतना ही अधिक होगा. इसलिए ऐसे पुरुषों को यौन समस्याओं का खतरा भी अधिक रहता है.इतना ही नहीं, तंबाकू उत्पादों में गुटखा भी पुरुष वीर्य में पुरुष शुक्राणु की गति को धीमा कर देता है, इससे पुरुषों में भी बांझपन होता है. अपने सेक्सुअल लाइफ को हानिकारक प्रभाव से बचाने के लिए तम्बाकू के आदी पुरुषों, जिसमे खासकर युवाओं को विशेष सलाह दी जाती है कि यदि आप एक पुरुष के रूप में अच्छी जिंदगी जीना चाहते है,तो तम्बाकू और गुटखा से दूर रहे.

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डिलीवरी के बाद बदलती मैरिड लाइफ, लेकिन पति का सहयोग है जरूरी

‘‘तुम क्या पहली औरत हो, जो मां बनी हो?’’

‘‘डिलीवरी के बाद तुम्हारे अंदर कितना बदलाव आ गया है, सिवा बच्चे के, तुम्हें तो और कुछ सूझता ही नहीं है.’’

‘‘लगता है, तुम्हारा बच्चा ही तुम्हारे लिए महत्त्वपूर्ण हो गया है, तभी तो मेरे पास तक आने में हिचकिचाने लगी हो.’’ इस तरह की न जाने कितनी बातें औरतें शिशु जन्म के बाद अपने पतियों से सुनती हैं, क्योंकि पति की यौन संबंध बनाने की मांग को ठुकराने की गलती उन से होती है. मगर प्रसव के बाद कुछ महीनों तक न तो औरत की यौन संबंध बनाने की इच्छा होती है, न ही डाक्टर ऐसा करने की सलाह देते हैं.

शारीरिक व मानसिक थकान

बच्चे के जन्म के बाद मानसिक व शारीरिक तौर पर एक औरत का थकना स्वाभाविक है. चूंकि प्रैग्नैंसी के 9 महीनों के दौरान उसे कई तरह के उतारचढ़ावों से गुजरना पड़ता है. बच्चे को जन्म देने के बाद भी उस के अंदर अनेक सवाल पल रहे होते हैं. कमजोरी और शिशु जन्म के साथ बढ़ती जिम्मेदारियां, रात भर जागना और दिन का शिशु के साथ उस की जरूरतें पूरी करतेकरते गुजर जाना आम बात होती है. औरत के अंदर उस समय चिड़चिड़ापन भर जाता है. नई स्थिति का सामना न कर पाने के कारण अकसर वह तनाव या डिप्रैशन का शिकार भी हो जाती है. मां बनने के बाद औरत कई कारणों की वजह से सैक्स में अरुचि दिखाती है. सब से प्रमुख कारण होता है टांकों में सूजन होना. अगर ऐसा न भी हो तो भी गर्भाशय के आसपास सूजन या दर्द कुछ समय के लिए वह महसूस करती है. थकावट का दूसरा बड़ा कारण होता है 24 घंटे शिशु की देखभाल करना, जो शारीरिक व मानसिक तौर पर थकाने वाला होता है. इसलिए जब भी वह लेटती है, उस के मन में केवल नींद पूरी करने की ही इच्छा होती है. कई औरतों की तो सैक्स की इच्छा कुछ महीनों के लिए बिलकुल ही खत्म हो जाती है.

अपने शरीर के बदले हुए आकार को ले कर भी कुछ औरतों के मन में हीनता घिर जाती है, जिस से वे यौन संबंध बनाने से कतराने लगती हैं. उन्हें लगने लगता है कि वे पहले की तरह सैक्सी नहीं रही हैं. स्टे्रच मार्क्स या बढ़ा हुआ वजन उन्हें अपने ही शरीर से प्यार करने से रोकता है. बेहतर होगा कि इस तरह की बातों को मन में लाने के बजाय जैसी हैं, उसी रूप में अपने को स्वीकारें. अगर वजन बढ़ गया है, तो ऐक्सरसाइज रूटीन अवश्य बनाएं.

दर्द होने का डर

अकसर पूछा जाता है कि अगर डिलीवरी नौर्मल हुई है, तो यौन संबंध कब से बनाने आरंभ किए जाएं? इस के लिए कोई निर्धारित नियम या अवधि नहीं है, फिर भी डिलीवरी के 11/2 महीने बाद सामान्य सैक्स लाइफ में लौटा जा सकता है. बच्चे के जन्म के बाद कई औरतें सहवास के दौरान होने वाले दर्द से घबरा कर भी इस से कतराती हैं. औरत के अंदर दोबारा यौन संबंध कायम करने की इच्छा कब जाग्रत होगी, यह इस पर भी निर्भर करता है कि उस की डिलीवरी कैसे हुई है. जिन औरतों का प्रसव फोरसेप्स की सहायता से होता है, उन्हें सैक्स के दौरान निश्चिंत रहने में अकसर लंबा समय लगता है. ऐसा ही उन औरतों के साथ होता है, जिन के योनिमार्ग में चीरा लगता है. सीजेरियन केबाद टांके भरने में समय लगता है. उस समय किसी भी तरह का दबाव दर्द का कारण बन सकता है. फोर्टिस ला फेम की गायनाकोलौजिस्ट डा. त्रिपत चौधरी कहती हैं, ‘‘प्रसव के बाद 2 से 6 हफ्तों तक सैक्स संबंध नहीं बनाने चाहिए, क्योंकि बच्चे के जन्म के बाद औरत न सिर्फ अनगिनत शारीरिक परिवर्तनों से गुजरती है, वरन मानसिक व भावनात्मक बदलाव भी उस के अंदर समयसमय पर होते रहते हैं. चाहे डिलीवरी नौर्मल हुई हो या सीजेरियन से, दोनों ही स्थितियों में कुछ महीनों तक यौन संबंध बनाने से बचना चाहिए. ‘‘डिलीवरी के बाद के जिन महीनों को पोस्टपार्टम पीरियड कहा जाता है, उस दौरान औरत के अंदर सैक्स संबंध बनाने की बात तक नहीं आती. प्रसव के बाद कुछ हफ्तों तक हर औरत को ब्लीडिंग होती है. ब्लीडिंग केवल रक्त के रूप में ही नहीं होती है, बल्कि कुछ अंश निकलने व डिस्चार्ज की तरह भी हो सकती है. वास्तव में यह पोस्टपार्टम ब्लीडिंग औरत के शरीर से प्रैग्नैंसी के दौरान बचे रह गए अतिरिक्त रक्त, म्यूकस व प्लासेंटा के टशू को बाहर निकालने का तरीका होती है. यह कुछ हफ्तों से ले कर महीनों तक हो सकती है.

‘‘डिलीवरी चाहे नौर्मल हुई हो या सीजेरियन से औरत के योनिमार्ग में सूजन आ जाती है और टांकों को भरने में समय लगता है. अगर इस दौरान यौन संबंध बनाए जाएं तो इन्फैक्शन होने की अधिक संभावना रहती है. औरत किसी भी तरह के इन्फैक्शन का शिकार न हो जाए, इस के लिए कम से कम 6 महीनों बाद यौन संबंध बनाने की सलाह दी जाती है. योनिमार्ग या पेट में सूजन, घाव, टांकों की वजह से सहवास करने से उसे दर्द भी होता है.’’

क्या करें

अगर बच्चा सीजेरियन से होता है, तो कम से कम 6 हफ्तों बाद यौन संबंध बनाने चाहिए. लेकिन उस से पहले डाक्टर से जांच करवानी जरूरी होती है कि आप के टांके ठीक से भर रहे हैं कि नहीं और आप की औपरेशन के बाद होने वाली ब्लीडिंग रुकी कि नहीं. यह ब्लीडिंग यूट्रस के अंदर से होती है, जहां पर प्लासेंटा स्थित होता है. यह ब्लीडिंग हर गर्भवती महिला को होती है, चाहे उस की डिलीवरी नौर्मल हुई हो या सीजेरियन से. अगर डाक्टर सैक्स संबंध बनाने की इजाजत दे देते हैं, तो इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि टांके अगर पूरी तरह भरे नहीं हैं तो किस पोजीशन में संबंध बनाना सही रहेगा. पति साइड पोजीशन रखते हुए संबंध बना सकता है, जिस से औरत के पेट पर दबाव नहीं पड़ेगा. अगर उस दौरान स्त्री को दर्द महसूस हो, तो उसे ल्यूब्रिकेंट का इस्तेमाल करना चाहिए, क्योंकि कई बार थकान या अनिच्छा की वजह से योनि में तरलता नहीं आ पाती. अगर औरत को दर्द का अनुभव होता हो तो पति पोजीशन बदल कर या ओरल सैक्स का सहारा ले सकता है. साथ ही, वैजाइनल ड्राईनैस से बचने के लिए ल्यूब्रिकेंट का इस्तेमाल करना अनिवार्य होता है. चूंकि प्रैग्नैंसी के बाद वैजाइना बहुत नाजुक हो जाती है और उस में एक स्वाभाविक ड्राईनैस आ जाती है, इसलिए नौर्मल डिलीवरी के बाद भी सैक्स के दौरान औरत दर्द महसूस करती है.

पोस्टपार्टम पीरियड बहुत ही ड्राई पीरियड होता है, इसलिए बेहतर होगा कि उस के खत्म होने के बाद ही यौन संबंध बनाए जाएं. प्रसव के 1-11/2 महीने बाद यौन संबंध बनाने के बहुत फायदे भी होते हैं. सैक्स के दौरान स्रावित होने वाले हारमोंस की वजह से संकुचन होता है, जिस से यूट्रस को सामान्य अवस्था में आने में मदद मिलती है और साथी के साथ दोबारा से शारीरिक व भावनात्मक निकटता कायम करने में यौन संबंध महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. प्रसव के बाद कुछ महीनों तक पीरियड्स अनियमित रहते हैं, जिस की वजह से सुरक्षित चक्र के बारे में जान पाना असंभव हो जाता है. इस दौरान गर्भनिरोध करने के लिए कौपर टी का इस्तेमाल करना या ओरल पिल्स लेना सब से अच्छा रहता है. अगर प्रसव के बाद कई महीनों तक औरत के अंदर यौन संबंध बनाने की इच्छा जाग्रत न हो तो ऐसे में पति को बहुत धैर्य व समझदारी से उस से बरताव करना चाहिए.

पति का सहयोग

जैसे ही औरत शारीरिक व भावनात्मक रूप से सुदृढ़ हो जाती है, संबंध बनाए जा सकते हैं. इस दौरान पति के लिए इस बात का ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है कि वह पत्नी पर किसी भी तरह का दबाव न डाले या जबरदस्ती सैक्स संबंध बनाने के लिए बाध्य न करे. हफ्ते में 1 बार अगर संबंध बनाए जाते हैं, तो दोनों ही इसे ऐंजौय कर पाते हैं और वह भी बिना किसी तनाव के. पति को चाहिए कि वह इस विषय में पत्नी से बात करे कि वह संबंध बनाने के लिए अभी तैयार है कि नहीं, क्योंकि प्रसव के बाद उस की कामेच्छा में भी कमी आ जाती है, जो कुछ समय बाद स्वत: सामान्य हो जाती है.

ब्‍लश लगाते समय फौलो करें ये टिप्स, बढ़ेगी चेहरे की खूबसूरती

जब भी कौस्‍मेटिक को खरीदें और उसका चयन करें तो कुछ बातों को हमेशा ध्‍यान में रखना चाहिए. ऐसा करने से आपकी त्‍वचा हमेशा स्‍वस्‍थ और सुंदर बनी रहेगी और भविष्‍य में भी किसी प्रकार की कोई समस्‍या नहीं होगी.

मेकअप किट में सबसे महत्‍वपूर्ण प्रोडक्‍ट, ब्‍लश होता है जो चेहरे पर दमक लाने के काम आता है. आपको किस प्रकार का ब्‍लश कैसे इस्‍तेमाल करना चाहिए और इस दौरान किन-किन बातों को ध्‍यान में रखना चाहिए, हम आपको बताएंगे.

ब्‍लश को खरीदते समय ध्‍यान दें

1. अपनी त्‍वचा के रंग के हिसाब से ब्‍लश टोन लें. ऐसा करने से आपके चेहरे पर भद्दापन नजर नहीं आएगा. महिलाओं के लिए, खासकर गोरी महिलाओं के लिए सॉफ्ट पिंक, लाइट कोरल और पीच कलर के ब्‍लश मार्केट में उपलब्‍ध होते हैं. अगर डार्क लुक देना हो, इसमें ही डार्क शेड भी मिल जाते हैं.

2. जिन महिलाओं की त्‍वचा का रंग डार्क होता है उन्‍हें डीप फुशिया, वॉर्म ब्राउन और टैंगेराइन कलर का इस्‍तेमाल करना चाहिए.

3. अगर आप पहली बार ब्‍लश ले रही हैं तो कभी ऑनलाइन न लें. इससे गड़बड़ी हो सकती है और सही शेड व टोन नहीं मिल सकता है क्‍योंकि आपको अंदाजा ही नहीं होगा. सैम्‍पलर से ट्राई करने के बाद ही खरीदें.

ब्‍लश को लगाते समय ध्‍यान रखने योग्‍य बातें

1. मेकअप में फाउंडेशन, लिपस्टिक, आईलाइनर, आईशैडो और बाकी का मेकअप करने के बाद ब्‍लश लगाएं. लिपस्टिक के रंग का ही ब्‍लश लगाएं, इससे मेकअप में चार चांद लगा जाएंगे.

2. ब्‍लश लगाने के लिए किट के साथ आने वाला ब्रश लगभग बेकार होता है. इसकी वजाए ब्रश की किट से ही निकालकर ब्रश का इस्‍तेमाल करें. ब्रश को धोते रहें ताकि संक्रमण न हो.

3. ब्‍लश को गाल पर ऊपर की ओर ले जाते हुए लगाएं. इससे  चेहरे पर किए गए मेकअप में क्रैक नहीं पड़ते हैं.

4. अगर चेहरा चौखाने आकार का हो, तो गालों पर ब्‍लश को ऊपरी हिस्‍से पर ही लगाएं, लेकिन अगर चेहरा दिल के आकार का हो, तो नीचे से ऊपर की ओर ब्‍ल्‍श को लगाएं.

5. अंडाकार चेहरे पर ब्‍लश को गालों पर लगाकर ऊपर की ओर ले जाएं. वहीं गोल चेहरे पर पूरे गालों पर हलके हाथों से ब्‍लश एप्‍लाई करें.

6. एंग्‍लड ब्रश के साथ क्रीम ब्‍लश को अवश्‍य लगाना चाहिए. इसे सावधानीपूर्वक लगाने की आवश्‍यकता होती है. इससे चेहरे पर शाइन आती है.

7. चेहरे पर अधिक ब्‍लश न लगाएं. इसके लिए बेहतर विकल्‍प है कि थोड़ा – थोड़ा करके लगाएं और जब सही शेड आ जाये तो बंद कर दें.

कुरसी का करिश्मा : कलावती कैसे बन गयी रानी

लेखक- विजय कुमार साह

दीपू के साथ आज मालिक भी उस के घर पधारे थे. उस ने अंदर कदम रखते ही आवाज दी, ‘‘अजी सुनती हो?’’

‘‘आई…’’ अंदर से उस की पत्नी कलावती ने आवाज दी.

कुछ ही देर बाद कलावती दीपू के सामने खड़ी थी, पर पति के साथ किसी अनजान शख्स को देख कर उस ने घूंघट कर लिया.

‘‘कलावती, यह राजेश बाबू हैं… हमारे मालिक. आज मैं काम पर निकला, पर सिर में दर्द होने के चलते फतेहपुर चौक पर बैठ गया और चाय पीने लगा, पर मालिक हालचाल जानने व लेट होने के चलते इधर ही आ रहे थे.

‘‘मुझे चौक पर देखते ही पूछा, ‘क्या आज काम पर नहीं जाना.’

‘‘इन को सामने देख कर मैं ने कहा, ‘मेरे सिर में काफी दर्द है. आज नहीं

जा पाऊंगा.’

‘‘इस पर मालिक ने कहा, ‘चलो, मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूं.’

‘‘देखो, आज पहली बार मालिक हमारे घर आए हैं, कुछ चायपानी का इंतजाम करो.’’

कलावती थोड़ा सा घूंघट हटा कर बोली, ‘‘अभी करती हूं.’’

घूंघट के हटने से राजेश ने कलावती का चेहरा देख लिया, मानो उस पर आसमान ही गिर पड़ा. चांद सा दमकता चेहरा, जैसे कोई अप्सरा हो. लंबी कदकाठी, लंबे बाल, लंबी नाक और पतले होंठ. सांचे में ढला हुआ उस का गदराया बदन. राजेश बाबू को उस ने झकझोर दिया था.

इस बीच कलावती चाय ले आई और राजेश बाबू की तरफ बढ़ाती हुई बोली, ‘‘चाय लीजिए.’’

राजेश बाबू ने चाय का कप पकड़ तो लिया, पर उन की निगाहें कलावती के चेहरे से हट नहीं रही थीं. कलावती दीपू को भी चाय दे कर अंदर चली गई.

‘‘दीपू, तुम्हारी बीवी पढ़ीलिखी कितनी है?’’ राजेश बाबू ने पूछा.

‘‘10वीं जमात पास तो उस ने अपने मायके में ही कर ली थी, लेकिन यहां मैं ने 12वीं तक पढ़ाया है,’’ दीपू ने खुश होते हुए कहा.

‘‘दीपू, पंचायत का चुनाव नजदीक आ रहा है. सरकार ने तो हम लोगों के पर ही कुतर दिए हैं. औरतों को रिजर्वेशन दे कर हम ऊंची जाति वालों को चुनाव से दूर कर दिया है. अगर तुम मेरी बात मानो, तो अपनी पत्नी को उम्मीदवार बना दो.

‘‘मेरे खयाल से तो इस दलित गांव में तुम्हारी बीवी ही इंटर पास होगी?’’ राजेश बाबू ने दीपू को पटाने का जाल फेंका.

‘‘आप की बात सच है राजेश बाबू. दलित बस्ती में सिर्फ कलावती ही इंटर पास है, पर हमारी औकात कहां कि हम चुनाव लड़ सकें.’’

‘‘अरे, इस की चिंता तुम क्यों करते हो? मैं सारा खर्च उठाऊंगा. पर मेरी एक शर्त है कि तुम दोनों को हमेशा मेरी बातों पर चलना होगा,’’ राजेश बाबू ने जाल बुनना शुरू किया.

‘‘हम आप से बाहर ही कब थे राजेश बाबू? हम आप के नौकरचाकर हैं. आप जैसा चाहेंगे, वैसा ही हम करेंगे,’’ दीपू ने कहा.

‘‘तो ठीक है. हम कलावती के सारे कागजात तैयार करा लेंगे और हर हाल में चुनाव लड़वाएंगे,’’ इतना कह कर राजेश बाबू वहां से चले गए.

कुछ दिन तक चुनाव प्रचार जोरशोर से चला. राजेश बाबू ने इस चुनाव में पैसा और शराब पानी की तरह बहाया. इस तरह कलावती चुनाव जीतने में कामयाब हो गई.

कलावती व दीपू राजेश बाबू की कठपुतली बन कर हर दिन उन के यहां दरबारी करते. खासकर कलावती तो कोई भी काम उन से पूछे बिना नहीं करती थी.

एक दिन एकांत पा कर राजेश बाबू ने घर में कलावती के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘कलावती, एक बात कहूं?’’

‘‘कहिए मालिक,’’ कलावती राजेश बाबू के हाथ को कंधे से हटाए बिना बोली.

‘‘जब मैं ने तुम्हें पहली बार देखा था, उसी दिन मेरे दिल में तुम्हारे लिए प्यार जाग गया था. तुम को पाने के लिए ही तो मैं ने तुम्हें इस मंजिल तक पहुंचाया है. आखिर उस अनपढ़ दीपू के हाथों

की कठपुतली बनने से बेहतर है कि तुम उसे छोड़ कर मेरी बन जाओ. मेरी जमीनजायदाद की मालकिन.’’

‘‘राजेश बाबू, मैं कैसे यकीन कर लूं कि आप मुझ से सच्चा प्यार करते हैं?’’ कलावती नैनों के बाण उन पर चलाते हुए बोली.

‘‘कल तुम मेरे साथ चलो. यह हवेली मैं तुम्हारे नाम कर दूंगा. 5 बीघा खेत व 5 लाख रुपए नकद तुम्हारे खाते में जमा कर दूंगा. बोलो, इस से ज्यादा भरोसा तुम्हें और क्या चाहिए.’’

‘‘बस… बस राजेश बाबू, अगर आप इतना कर सकते हैं, तो मैं हमेशा के लिए दीपू को छोड़ कर आप की हो जाऊंगी,’’ कलावती फीकी मुसकान के साथ बोली.

‘‘तो ठीक है,’’ राजेश ने उसे चूमते हुए कहा, ‘‘कल सवेरे तुम तैयार रहना.’’

दूसरे दिन कलावती तैयार हो कर आई. राजेश बाबू के साथ सारा दिन बिताया. राजेश बाबू ने अपने वादे के मुताबिक वह सब कर दिया, जो उन्होंने कहा था.

2 दिन बाद राजेश बाबू ने कलावती को अपने हवेली में बुलाया. वह पहुंच गई, तो राजेश बाबू ने उसे अपने आगोश में भरना चाहा, तभी कलावती अपने कपड़े कई जगह से फाड़ते हुए चीखी, ‘‘बचाओ… बचाओ…’’

कुछ पुलिस वाले दौड़ कर अंदर आ गए, तो कलावती राजेश बाबू से अलग होते हुए बोली, ‘‘इंस्पैक्टर साहब, यह शैतान मेरी आबरू से खेलना चाह रहा था. देखिए, मुझे अपने घर बुला कर किस तरह बेइज्जत करने पर तुल गया. यह भी नहीं सोचा कि मैं इस पंचायत की मुखिया हूं.’’

इंस्पैक्टर ने आगे बढ़ कर राजेश बाबू को धरदबोचा और उस के हाथों में हथकड़ी डालते हुए कहा, ‘‘यह आप ने ठीक नहीं किया राजेश बाबू.’’

राजेश बाबू ने गुस्से में कलावती को घूरते हुए कहा, ‘‘धोखेबाज, मुझ से दगाबाजी करने की सजा तुम्हें जरूर मिलेगी. आज तू जिस कुरसी पर है, वह कुरसी मैं ने ही तुझे दिलाई है.’’

‘‘आप ने ठीक कहा राजेश बाबू. अब वह जमाना लद गया है, जब आप लोग छोटी जातियों को बहलाफुसला कर खिलवाड़ करते थे. अब हम इतने बेवकूफ नहीं रहे.

‘‘देखिए, इस कुरसी का करिश्मा, मुखिया तो मैं बन ही गई, साथ ही आप ने रातोंरात मुझे झोंपड़ी से उठा कर हवेली की रानी बना दिया. लेकिन अफसोस, रानी तो मैं बन गई, पर आप राजा नहीं बन सके. राजा तो मेरा दीपू ही होगा इस हवेली का.’’

राजेश बाबू अपने ही बुने जाल में उलझ गए.

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