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मेरा बौयफ्रैंड सैक्स करने के बाद कौल-मैसेज का जवाब नहीं दे रहा… मैं क्या करूं ?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं एक लड़के से 3 सालों से प्यार करती हूं, लेकिन हम औनलाइन ही मिले थे. पहले हम दोस्त बने, बाद में हम एकदूसरे से प्यार करने लगे. हालांकि फोन,वीडियो कौल्स के जरिए हम लगातार टच में रहें. वह एक हफ्ते के लिए मेरे शहर आया था. हम रोजाना मिलते थे. 3-4 बार मैंने उसके साथ बेड भी शेयर किया. उसने मुझसे कई वादे किए. उसने ये भी कहा कि वह मेरे घरवालों से हमदोनों की शादी की बात करेगा. लेकिन मेरे शहर से जाने के बाद न उसने मुझे कौल किया है और न मैसेज. जब मैं उसे कौल करती हूं, तो उसका फोन बंद बताता है. मुझे ये भी डर लगा रहता है कि मैंने उसके साथ सैक्स किया है, तो कहीं मैं प्रेग्नेंट न हो जाऊं ? आप ही बताएं कि ऐसे में मैं क्या करूं ?

जवाब

देखिए आजकल लोग औनलाइन डेटिंग करते हैं, कई लोगों को सच्चा पार्टनर मिल जाता है. तो वहीं कुछ लोग फ्रौड के शिकार हो जाते हैं. कुछ लोग तो औनलाइन प्यार का नाटक कर लड़कियों का फायदा उठाते हैं. आप इसी जाल में फंस गई हैं.

उस लड़के ने अपनी मीठीमीठी बातों से आपको फंसाया और आपसे मिला. आपने ये भी बताया कि आप दोनों के बीच फिजिकली रिलेशन बना और उसके बाद फोन भी बंद है. वह आपको धोखा दिया है. आप खुद को संभालने की कोशिश करें और आगे से ऐसे धोखेबाज लड़कों के चंगुल में न फंसे.

पहली बार कर रही है औनलाइन डेटिंग, तो ध्यान रखें ये बातें

औनलाइन डेटिंग का चलन बढ़ता जा रहा है और लोग घर बैठे पार्टनर ढूढ़ लेते हैं. कई लोग सिर्फ टाइम पास करने के लिए औनलाइन डेटिंग करते हैं, तो वहीं कुछ लोग लाइफ पार्टनर की तलाश करने के लिए औनलाइन डेटिंग करते हैं.

  • अगर आप किसी को औनलाइन डेट करने जा रही हैं, अगर वह डेटिंग के लिए इच्छुक न हो, तो उसके जवाब से आप इससे दुखी या हताश न हो. उस पर ज्यादा सोच-विचार न करें और मूव औन हो जाएं.
  • पहली बार औनलाइन डेटिंग काफी मजेदार लगता है. कई बार लोग एक साथ कई लोगों को मैसेज भेजना शुरू कर देते हैं. ऐसा करने से बचें.
  • कई बार औनलाइन दोस्ती ठगी में बदल जाती है, इससे सतर्क रहें.
  • जब भी आप औनलाइन पार्टनर से मिलने जाए, तो ज्यादा शो औफ न करें.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर 8588843415 पर  भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Anupamaa : बेटे को जेल भेजवाएगी अनुपमा, अंकुश को सबक सिखाएगा अनुज

राजन शाही का शो अनुपमा में इन दिनों दर्शकों को हाई वोल्टेज ड्रामा देखने को मिल रहा है. रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना की स्टारर सीरियल दर्शकों के बीच छाया हुआ है. शो के अपकमिंग एपिसोड में क्या होने वाला है, इस सीरियल के दर्शकों को ट्विस्ट का बेसब्री से इंतजार रहता है.

शो के बिते एपिसोड में आपने देखा था कि लीप के बाद अनुज अपनी याद्दाश्त खो चुका था, क्योंकि उसे लगा था कि उसकी बेटी इस दुनिया में नहीं है, लेकिन अनुपमा हार नहीं मानी और अपनी बेटी को ढूढ़ लाई. शो के अपकमिंग एपिसोड में धमाकेदार ट्विस्ट आने वाला है, आइए जानते हैं..

शाह हाउस में तांडव मचाएगा तोशु

अनुपमा में आज आप देखेंगे कि अनुज-अनुपमा और आद्या बाला के साथ ओणम फैस्टिवल सेलिब्रैट करेंगे. अनुज अपनी हक की लड़ाई भी लड़ेगा. अनुज-अनुपमा मिलकर बरखा और अंकुश को सड़क पर भी लाएंगे. दूसरी तरफ तोशु शाह हाउस में तांडव मचा रहा है. ऐसे में अनुपमा उसे सबक सिखाएगी. वह उसके खिलाफ पुलिस से शिकायत करेगी.

तोशु को पुलिस करेगी गिरफ्तार

दरअसल शो में यह देखने को मिलेगा कि अनुपमा कहेगी कि तोशु ने धोखधड़ी की है और शाह हाउस को सड़क पर ला दिया है. इसलिए पुलिस तोशु को गिरफ्तार करेगी. शो में आगे दो नए मजेदार एंगल दिखाया जाएगा. पहला कि तोशु अपनी इस बेइज्जती का अनुपमा से कैसे बदला लेगा और दूसरा कि क्या अनुज अपनी डूबती बिजनेस को कैसे बरखा और अंकुश से बचाएगा?

मीनू-सागर की सच्चाई

शो के लेटेस्ट एपिसोड में दिखाया गया कि अनुजअनुपमा अपनी नयी शुरुआत करने का फैसला लेते हैं.  अनुज औफिस के लिए तैयार होकर अनुपमा के पास आता है. अनुपमा अनुज के माथे पर किस करती है, दोनों का रोमंटिक पल सामने आता है. अनुज-अनुपमा डांस करते हैं. दूसरी तरफ सागर सपने में बड़बड़ाता है, मैं मीनू से प्यार करता हूं, अनुणी मुझे माफ कर दो.  तो दूसरी तरफ डौली मीनू को भड़काती है कि सागर जैस लड़के लड़कियों को फंसाते हैं और अनुपमा भाभी तुम्हारा फायदा उठा रही है. लेकिन मीनू कुछ नहींं सुनती है और वह कहती है कि सागर अच्छा लड़का है. दूसरी तरफ किंजल मीनू को समझाती है कि वह अपने और सागर के रिश्ते की सच्चाई अनुपमा को बता दे. ऐसे में मीनू फैसला लेती है कि मीनू अपने प्यार की सच्चाई अनुपमा को बता देगी.

अनुपमा सीरियल लगातार टीआरपी चार्ट में टौप पर रहता है. कुछ दिनों पहले ही शो में वनराज के किरदान निभाने  वाले सुधाशु पांडे यानी वनराज ने शो को अलविदा कहा था. अब बताया जा रहा है कि वनराज की औनस्क्रीन वाइफ काव्या यानी मदालशा शर्मा ने शो को क्विट किया है.

गलत फैसला: क्या हुआ था प्रशांत के साथ

जयश्री को गुजरे एक महीना भी नहीं हुआ था कि उस के मम्मीपापा उस के ससुराल आ धमके. लगभग धमकीभरे लहजे में अपने दामाद प्रशांत से बोले, ‘‘राजन मेरे पास रहेगा.’’

‘‘क्यों आप के पास रहेगा? उस का बाप जिंदा है,’’ प्रशांत ने भी उसी लहजे में जवाब दिया.

‘‘उस की परवरिश करना तुम्हारे वश में नहीं,’’ वे बोले.

‘‘बड़े होने के नाते मैं आप की इज्जत करता हूं लेकिन यह हमारा निजी मामला है.’’

‘‘निजी कैसे हो गया? राजन मेरी बेटी का पुत्र है. उस की उम्र अभी मात्र 6 महीने है. तुम नौकरी करोगे कि बेटा पालोगे,’’ प्रशांत के ससुर रामानंद बोले.

‘‘आशा दीदी के हाथों वह सुरक्षित है,’’ प्रशांत ने सफाई दी.

‘‘तो भी यह बच्चा तुम्हें मुझे देना ही होगा,’’ रामानंद ‘देना’ शब्द पर जोर दे कर बोले.

‘‘रवि, तू अंदर जा कर बच्चा ले आ,’’ रवि उन का इकलौता बेटा था. भले ही उम्र के 40वें पायदान पर था तथापि स्वभाव से उद्दंडता गई न थी. आशा दौड़ कर कमरे में गई और राजन को सीने से लगा कर शोर मचाने लगी. प्रशांत ने भरसक प्रतिरोध किया लेकिन रवि ने उसे झटक दिया. रवि की उद्दंडता से नाराज प्रशांत, रवि को थप्पड़ मारने ही जा रहा था कि रामानंद बीच में आ गए. तब तक आसपड़ोस की भीड़ इकट्ठी हो गई. भीड़ के भय से रामानंद ने अपने पांव पीछे खींच लिए. उस रोज वे खाली हाथ लौट गए जिस का उन्हें मलाल था. प्रसंगवश, यह बता देना आवश्यक है कि प्रशांत और जयश्री का अतीत क्या था.

प्रशांत की जयश्री से शादी हुए 16 साल हो चुके थे. इन सालों में जब जयश्री गर्भवती नहीं हुई तो उन दोनों ने टैस्टट्यूब बेबी का सहारा लिया. इस तरह जयश्री की गोद भर गई. जब तक जयश्री मां न बन सकी थी तब तक प्रशांत ने उसे सरकारी नौकरी में जाने की पूरी छूट दे रखी थी. इसी का परिणाम था कि वह एक सरकारी स्कूल में अध्यापिका बन गई. नौकरी मिलते ही जयश्री के मांबाप, भाईबहन सब उस के इर्दगिर्द मंडराने लगे. जयश्री का मायका मोह अब भी नहीं छूटा था. कहने के लिए वह प्रशांत की बीवी थी पर रायमशवरा वह मायके से ही लेती. एक दिन रामानंद जयश्री से बोले, ‘बेटी, तुम्हारे पास रुपयों की कोई कमी न रही. तुम दोनों सरकारी नौकरी में हो.’ जयश्री चुपचाप उन की बात सुनती रही.

वे आगे बोले, ‘तुम्हारी छोटी बहन लता जमीन खरीदना चाहती है. हो सके तो तुम उस की मदद कर दो.’

रामानंद व उन की बीवी दोनों बड़े चापलूस और मक्कार किस्म के थे. उन का बेटा रवि भी उन्हीं के नक्शेकदम पर चलता. शादी के बाद भी वे लोग जयश्री पर छाए रहे. जयश्री कभी भी पूर्णतया ससुराल की हो कर न रह पाई थी. छोटीछोटी समस्याओं के लिए अपने मम्मीपापा और भाई रवि पर निर्भर रहती. उन की राय के बिना एक कदम न बढ़ाती. यहां तक कि लता को 2 लाख रुपए उस ने चोरी से लोन ले कर दे दिए. यह बात प्रशांत तक को पता न थी. लोन के पैसे वेतन से कटते. जयश्री ने अपने सारे गहने मायके में रख छोड़े थे. प्रशांत ने आपत्ति की तो उस ने यह कह कर उन्हें शांत कर दिया कि वहां लौकर में सुरक्षित हैं. मांबाप कहीं बेटी का हक थोड़े ही मारते हैं. इस के पीछे उसे डर अपनी बड़ी ननद आशा को ले कर था. वे अकसर आती रहतीं. प्रशांत उन से कुछ ज्यादा घुलामिला था. आशा की जयश्री से कभी नहीं पटी.

आशा सोचती कि प्रशांत के मांबाप नहीं रहे, इसलिए उसी ने उस की शादी का जिम्मा लिया तो प्रशांत की तरह जयश्री भी उस से दब कर रहे. जयश्री सोचती, आशा प्रशांत की बहन है, वे चाहे उस से जैसे भी पेश आएं, मैं क्यों उन के तलवे चाटूं. इन्हीं सब बातों को ले कर दोनों में तनातनी रहती. जयश्री को अपने मायके से जुड़ाव का एक बहुत बड़ा कारण यह भी था. जयश्री की इसी कमजोरी का फायदा उस के मांबाप, भाईबहनों ने उठाया. वे कोई न कोई बहाना बना कर उस से रुपए ऐंठते रहते. उस दोपहर अचानक जयश्री की तबीयत बिगड़ी. प्रशांत ने नजदीक के एक प्राइवेट अस्पताल में उसे भरती कराया. 2 दिन इलाज चला. तीसरे दिन अचानक उसे बेचैनी महसूस हुई. डाक्टरों ने भरसक कोशिश की परंतु उसे बचा न सके.

जयश्री की मृत्यु की खबर सुन कर उस के मायके के लोग भागेभागे आए. आते ही प्रशांत को कोसने लगे, ‘तुम ने मेरी बेटी का ठीक से इलाज नहीं करवाया.’ गनीमत थी कि वह प्राइवेट अस्पताल में मरी. अगर घर में मरती तो निश्चय ही वे कोई न कोई आरोप लगा कर प्रशांत को जेल भिजवा देते.

‘ये आप क्या कह रहे हैं, बाबूजी. वह मेरी पत्नी थी. मैं भला उस के इलाज में कोताही क्यों बरतूंगा,’ प्रशांत बोला.

‘बरतोगे,’ व्यंग्य के भाव उन के चेहरे पर तिर गए, ‘16 साल के वैवाहिक जीवन में वह एक दिन भी खुश नहीं रही.’

‘यह आप कैसे कह सकते हैं?’

‘क्यों नहीं कहूंगा? तुम्हें फिट आते थे. क्या तुम ने शादी के पहले इस का जिक्र किया था?’

‘गड़े मुर्दे उखाड़ने से क्या फायदा?’ प्रशांत बात टालने की नीयत से बोला.

‘इसीलिए कह रहा हूं, अगर फायदा होता तो नहीं उखाड़ता.’

‘दोष तो आप की बेटी में भी था.’

‘दोष? तुम्हारा दिमाग तो नहीं खराब हो गया है.’

‘16 साल इलाज किया, लाखों रुपए खर्च हुए, तब भी वह मां न बन सकी. जानते हैं क्यों? क्योंकि उस के बच्चेदानी में टीबी थी, जो शादी के पहले से थी. अगर समय रहते आप लोगों ने उस की समुचित चिकित्सा की होती तो यह दिन न देखना पड़ता.’ ‘बेकार की बातें मत करो,’ रामानंद का स्वर किंचित तेज था, ‘जो भी खामी आई वह सब तुम्हारे माहौल का दोष है. मेरे यहां तो वह भलीचंगी थी.’

‘झूठ मत बोलिए, आप 5 बेटियों के पिता हैं. आप भला क्यों इलाज कराएंगे. आप तो चाहेंगे कि वह मरमरा जाए तो अच्छा है.’ प्रशांत की बात उन्हें कड़वी लगी, तथापि संयत रहे.

‘जबान को लगाम दीजिए, जीजाजी,’ रवि उखड़ा.

‘सत्य बात हमेशा कड़वी लगती है.’

‘तब आप ने उस सच को उजागर क्यों नहीं किया?’

‘कौन सा सच?’

‘आप के फिट आने का,’ रवि बोला.

‘फिट कोई लाइलाज बीमारी नहीं. मुख्य बात यह है कि मुझे बीमारी से कोई शिकायत नहीं. मैं अपने पैरों पर खड़ा हूं. बिना मदद के अपने औफिस जाता हूं. अच्छीखासी तनख्वाह पाता हूं. अपने परिवार का भरणपोषण करने में सक्षम हूं और क्या चाहिए एक पुरुष से?’

‘मेरी बहन हमेशा आप की बीमारी को ले कर चिंतित रहती थी. इसी ने उस की जान ली,’ रवि बोला.

‘और शादी के 16 साल बाप न बनने की जो चिंता मुझे हुई, क्या उस चिंता ने मुझे चैन से जीने दिया? आप के पिता ने एक पुत्र के लिए 5 बेटियां जनीं. मुझे तो सिर्फ 1 पुत्री की आस थी. वह भी जयश्री के बीमारी के चलते पूरी न हो सकी. हार कर मुझे टैस्टट्यूब बेबी का सहारा लेना पड़ा,’ प्रशांत भावुक हो उठा.

‘जैसे भी हो, आप बाप बन गए न,’ रवि बोला.

‘‘इस बच्चे के बारे में क्या सोचा है?’’ रामानंद का स्वर सुन कर प्रशांत अपनी सोच से बाहर आ गया, ‘‘सोचना क्या है, बच्चा मेरे पास रहेगा.’’

कुछ सोच कर रामानंद बोले, ‘ठीक है. तुम्हारे पास ही रहेगा लेकिन इस शर्त पर कि बीचबीच में मैं इसे देखने आता रहूंगा. फोन से भी इस की खबर लेता रहूंगा. अगर इस की परवरिश में लापरवाही हुई तो बच्चा तुम्हें देना पड़ेगा,’ वे अपनी बात पर थोड़ा जोर दे कर बोले. प्रशांत को यह नागवार लगा. उस रोज सब चले गए. तेरहवीं के रोज जब आए तो वही बात दोहराई, ‘‘बच्चा मुझे दे दो. तुम्हारे वश में संभालना संभव नहीं,’’ प्रशांत की सास बोलीं.

‘‘मम्मीजी, आप बारबार बच्चा लेने की बात क्यों करती हैं. बच्चा मेरा है, मैं उस की बेहतर परवरिश कर सकता हूं.’’

‘‘किस के भरोसे?’’

‘‘अभी तो आशा दीदी हैं, बाद का बाद में देखा जाएगा.’’

‘‘आशा दीदी क्या पालेंगी? बांझ को बच्चा पालने का क्या अनुभव?’’ प्रशांत की सास मुंह बना कर बोलीं.

प्रशांत चाहता तो उन्हें धक्के मार कर निकाल सकता था पर चुप रहा. अब हर दूसरे दिन कभी रवि तो कभी रामानंद का फोन बच्चे के हालचाल के लिए आता. फोन पर अकसर वे बच्चे की आड़ में अनापशनाप बकते. मसलन, ‘कहां थी अब तक, कब से फोन लगा रहा हूं. बच्चा नहीं संभलता तो हमें दे दीजिए,’ रवि तीखे स्वर में आशा से कहता. आशा लाख कहती कि उस ने फोन उठाने में देरी नहीं की, फिर भी रवि उसे अनापशनाप बोलता रहता. उस की हरकतों से आजिज आ कर प्रशांत ने वकील से सलाह ली.

‘‘देखिए, जब तक आप की शादी नहीं हो जाती तब तक बच्चे पर हक नानानानी का ही बनता है. आप के मांबाप हैं नहीं,’’ वकील ने कानूनी पक्ष सामने रखा.

‘‘तो क्या किया जाए?’’

‘‘अतिशीघ्र शादी. तब तक उन से कोई बैर मोल मत लीजिए. जितनी सहूलियत से बोलबतिया सकते हैं बतियाइए वरना…’’

‘‘वरना क्या?’’

‘‘कानूनन वे कुछ भी कर सकते हैं. यहां तक कि बच्चा भी ले सकते हैं. जब तक कि आप शादी नहीं कर लेते हैं.’’

प्रशांत को सारा माजरा अब समझ में आया कि वे लोग क्यों इतने ताव से बातें करते हैं. जयश्री के मरने के 1 महीने के अंदर ही जब उन सब ने बच्चा उठाने की नीयत से उस के घर पर धावा बोला था तब भी इसी कानून का सुरक्षा कवच उन के पास था. वह तो महल्ले वालों के भय से वे अपने मिशन में कामयाब न हो सके वरना…

उस रोज के एक हफ्ते बाद सबकुछ शांत था. प्रशांत के लिए जोरशोर से लड़की देखी जाने लगी. विवाह की बात थी. हड़बड़ी दिखाना, वह भी 6 महीने के 1 बच्चे की परवरिश के लिए किसी को भी ब्याह कर के लाना उचित न था. प्रशांत खूब सोचसमझ कर किसी लड़की से शादी करना चाहता था ताकि बच्चे को ले कर कोई टकराव की स्थिति न बने. इधर, रामानंद ने जो सोचा था वह न हो पाने के कारण बेचैन वे थे. वे चाहते थे कि किसी तरह बच्चा उन के पास आ जाए ताकि प्रशांत को वे उंगलियों पर नचा सकें. उंगलियों पर नचाने का भी उन का अपना मकसद था. जब तक जयश्री जिंदा थी, अपनी कमाई का ज्यादातर हिस्सा मायके पर खर्च करती थी. अब एकाएक वह चली गई तो वह स्रोत बंद हो गया. लालची किस्म के रामानंद को यह बात सीने पर नश्तर की तरह चुभती. वे बच्चे के बहाने प्रशांत से और भी कुछ ऐंठना चाहते थे, जैसे पीएफ व बीमे के रुपए जिन्हें वे अपनी बेटी का मानते थे.

प्रशांत उन की बदनीयती से कुछकुछ वाकिफ हो चुका था. जयश्री के मरने के बाद जब प्रशांत उस के औफिस बकाया पीएफ व बीमे के लिए गया तो पता चला कि 2 लाख रुपए का उस पर कर्जा है जो उस के वेतन से कटता है. अब सरकार तो छोड़ेगी नहीं, जो भी फंड जयश्री के नाम होगा उसी से भरपाई करेगी. उसी समय प्रशांत को भान हो गया था कि जयश्री के मांबाप किस प्रवृत्ति के हैं व उस से क्या चाहते हैं. बच्चे से प्रेम महज बहाना था. जिसे अपनी बेटी से प्रेम नहीं वह भला अपनी बेटी के पुत्र से स्नेह क्यों रखने लगा?

एक रोज रवि सपत्नी आया, ‘‘पापा ने राजन को देखने के लिए लखनऊ बुलाया है.’’

‘‘इतने छोटे से बच्चे को कौन ले जाएगा? वे खुद नहीं आ सकते?’’ प्रशांत बोला.

‘‘वे बीमार हैं,’’ रवि का जवाब था.

‘‘ठीक हो जाएं तब आ कर देख जाएं.’’

‘‘नहीं, उन्होंने अभी देखने की इच्छा जाहिर की है.’’

‘‘यह कैसे संभव है?’’ प्रशांत लाचार स्वर में बोला.

‘‘मैं ले जाऊंगा,’’ रवि का यह कथन प्रशांत को अच्छा न लगा.

‘‘यह असंभव है.’’

‘‘कुछ भी असंभव नहीं. आप राजन को मुझे दे दीजिए. मैं सकुशल उसे पापा से मिलवा कर आप के पास पहुंचा दूंगा.’’

प्रशांत कुछ देर शांत था. फिर एकाएक उबल पड़ा, ‘‘आप लोग झूठ बोल रहे हैं. किसी को राजन से प्रेम नहीं है. साफसाफ बताइए, आप लोग चाहते क्या हैं?’’

रवि के चेहरे पर एक कुटिल मुसकान तैर गई. वह धीरे से बोला, ‘‘दीदी के पीएफ और बीमे के रुपए.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि वे मेरी बहन की कमाई के थे.’’

‘‘वह मेरी कुछ नहीं थी?’’

‘‘तो ठीक है, राजन को हमें दे दीजिए.’’

प्रशांत की आंखें भर आईं. ‘‘क्या रुपयापैसा खून के रिश्ते से ज्यादा अहमियत रखने लगे हैं? क्या रिश्तेनाते, संस्कार गौण हो गए हैं?’’ किसी तरह उस ने अपने जज्बातों पर नियंत्रण रखा. 5 लाख रुपए बीमे की रकम व 3 लाख रुपए का पीएफ. यही कुल जमापूंजी जयश्री की थी. गनीमत थी कि रामानंद ने नवनिर्मित मकान में हिस्सेदारी का सवाल नहीं खड़ा किया.

‘‘2 लाख रुपए उस ने लोन लिए थे,’’ प्रशांत ने कहा.

‘‘लोन?’’ रवि चिहुंका.

‘‘चिहुंकने की कोई जरूरत नहीं. आप अच्छी तरह जानते हैं कि वे लोन के रुपए किस के काम आए,’’ प्रशांत के कथन पर वह बगलें झांकने लगा, फिर बोला, ‘‘गहने?’’

‘‘वे सब आप के पास हैं.’’

‘‘फिर भी कुछ तो होंगे ही?’’

प्रशांत ने जयश्री के कान के टौप्स, चूड़ी, एक सिकड़ी ला कर दे दी जो जयश्री के बदन पर मरते समय थे. 8 लाख रुपए का चैक काट कर प्रशांत ने अपने बेटे का सौदा कर लिया. उस रोज के बाद रामानंद ने भूले से भी कभी अपने नाती राजन का हाल नहीं लिया.

सुगंध: धनदौलत के घमंड में डूबे राजीव को क्या पता चली रिश्तों की अहमियत

अ पने दोस्त राजीव चोपड़ा को दिल का दौरा पड़ने की खबर सुन कर मेरे मन में पहला विचार उभरा कि अपनी जिंदगी में हमेशा अव्वल आने की दौड़ में बेतहाशा भाग रहा मेरा यार आखिर जबरदस्त ठोकर खा ही गया.

रात को क्लिनिक कुछ जल्दी बंद कर के मैं उस से मिलने नर्सिंग होम पहुंच गया. ड्यूटी पर उपस्थित डाक्टर से यह जान कर कि वह खतरे से बाहर है, मेरे दिल ने बड़ी राहत महसूस की थी.

मुझे देख कर चोपड़ा मुसकराया और छेड़ता हुआ बोला, ‘‘अच्छा किया जो मुझ से मिलने आ गया पर तुझे तो इस मुलाकात की कोई फीस नहीं दूंगा, डाक्टर.’’

‘‘लगता है खूब चूना लगा रहे हैं मेरे करोड़पति यार को ये नर्सिंग होम वाले,’’ मैं ने उस का हाथ प्यार से थामा और पास पड़े स्टूल पर बैठ गया.

‘‘इस नर्सिंग होम के मालिक डाक्टर जैन को यह जमीन मैं ने ही दिलाई थी. इस ने तब जो कमीशन दिया था, वह लगता है अब सूद समेत वसूल कर के रहेगा.’’

‘‘यार, कुएं से 1 बालटी पानी कम हो जाने की क्यों चिंता कर रहा है?’’

‘‘जरा सा दर्द उठा था छाती में और ये लोग 20-30 हजार का बिल कम से कम बना कर रहेंगे. पर मैं भी कम नहीं हूं. मेरी देखभाल में जरा सी कमी हुई नहीं कि मैं इन पर चढ़ जाता हूं. मुझ से सारा स्टाफ डरता है…’’

दिल का दौरा पड़ जाने के बावजूद चोपड़ा के व्यवहार में खास बदलाव नहीं आया था. वह अब भी गुस्सैल और अहंकारी इनसान ही था. अपने दिल के दौरे की चर्चा भी वह इस अंदाज में कर रहा था मानो उसे कोई मैडल मिला हो.

कुछ देर के बाद मैं ने पूछा, ‘‘नवीन और शिखा कब आए थे?’’

अपने बेटेबहू का नाम सुन कर चोपड़ा चिढ़े से अंदाज में बोला, ‘‘नवीन सुबहशाम चक्कर लगा जाता है. शिखा को मैं ने ही यहां आने से मना किया है.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘अरे, उसे देख कर मेरा ब्लड प्रेशर जो गड़बड़ा जाता है.’’

‘‘अब तो सब भुला कर उसे अपना ले, यार. गुस्सा, चिढ़, नाराजगी, नफरत और शिकायतें…ये सब दिल को नुकसान पहुंचाने वाली भावनाएं हैं.’’

‘‘ये सब छोड़…और कोई दूसरी बात कर,’’ उस की आवाज रूखी और कठोर हो गई.

कुछ पलों तक खामोश रहने के बाद मैं ने उसे याद दिलाया, ‘‘तेरे भतीजे विवेक की शादी में बस 2 सप्ताह रह गए हैं. जल्दी से ठीक हो जा मेरा हाथ बंटाने के लिए.’’

‘‘जिंदा बचा रहा तो जरूर शामिल हूंगा तेरे बेटे की शादी में,’’ यह डायलाग बोलते हुए यों तो वह मुसकरा रहा था, पर उस क्षण मैं ने उस की आंखों में डर, चिंता और दयनीयता के भाव पढ़े थे.

नर्सिंग होम से लौटते हुए रास्ते भर मैं उसी के बारे में सोचता रहा था.

हम दोनों का बचपन एक ही महल्ले में साथ गुजरा था. स्कूल में 12वीं तक की शिक्षा भी  साथ ली थी. फिर मैं मेडिकल कालिज में प्रवेश पा गया और वह बी.एससी. करने लगा.

पढ़ाई से ज्यादा उस का मन कालिज की राजनीति में लगता. विश्वविद्यालय के चुनावों में हर बार वह किसी न किसी महत्त्वपूर्ण पद पर रहा. अपनी छात्र राजनीति में दिलचस्पी के चलते उस ने एलएल.बी. भी की.

‘लोग कहते हैं कि कोई अस्पताल या कोर्ट के चक्कर में कभी न फंसे. देख, तू डाक्टर बन गया है और मैं वकील. भविष्य में मैं तुझ से ज्यादा अमीर बन कर दिखाऊंगा, डाक्टर. क्योंकि दौलत पढ़ाई के बल पर नहीं बल्कि चतुराई से कमाई जाती है,’ उस की इस तरह की डींगें मैं हमेशा सुनता आया था.

उस की वकालत ठीक नहीं चली तो वह प्रापर्टी डीलर बन गया. इस लाइन में उस ने सचमुच तगड़ी कमाई की. मैं साधारण सा जनरल प्रेक्टिशनर था. मुझ से बहुत पहले उस के पास कार और बंगला हो गए.

हमारी दोस्ती की नींव मजबूत थी इसलिए दिलों का प्यार तो बना रहा पर मिलनाजुलना काफी कम हो गया. उस का जिन लोगों के साथ उठनाबैठना था, वे सब खानेपीने वाले लोग थे. उस तरह की सोहबत को मैं ठीक नहीं मानता था और इसीलिए हम कम मिलते.

हम दोनों की शादी साथसाथ हुई और इत्तफाक से पहले बेटी और फिर बेटा भी हम दोनों के घर कुछ ही आगेपीछे जन्मे.

चोपड़ा ने 3 साल पहले अपनी बेटी की शादी एक बड़े उद्योगपति खानदान में अपनी दौलत के बल पर की. मेरी बेटी ने अपने सहयोगी डाक्टर के साथ प्रेम विवाह किया. उस की शादी में मैं ने चोपड़ा की बेटी की शादी में आए खर्चे का शायद 10वां हिस्सा ही लगाया होगा.

रुपए को अपना भगवान मानने वाले चोपड़ा का बेटा नवीन कालिज में आने तक एक बिगड़ा हुआ नौजवान बन गया था. उस की मेरे बेटे विवेक से अच्छी दोस्ती थी क्योंकि उस की मां सविता मेरी पत्नी मीनाक्षी की सब से अच्छी सहेली थी. इन दोनों नौजवानों की दोस्ती की मजबूत नींव भी बचपन में ही पड़ गई थी.

‘नवीन गलत राह पर चल रहा है,’ मेरी ऐसी सलाह पर चोपड़ा ने कभी ध्यान नहीं दिया था.

‘बाप की दौलत पर बेटा क्यों न ऐश करे? तू भी विवेक के साथ दिनरात की टोकाटाकी वाला व्यवहार मत किया कर, डाक्टर. अगर वह पढ़ाई में पिछड़ भी गया तो कोई फिक्र नहीं. उसे कोई अच्छा बिजनेस मैं शुरू करा दूंगा,’’ अपनी ऐसी दलीलों से वह मुझे खीज कर चुप हो जाने को मजबूर कर देता.

आज इस करोड़पति इनसान का इकलौता बेटा 2 कमरों के एक साधारण से किराए वाले फ्लैट में अपनी पत्नी शिखा के साथ रह रहा था. नर्सिंग होम से सीधे घर न जा कर मैं उसी के फ्लैट पर पहुंचा.

नवीन और शिखा दोनों मेरी बहुत इज्जत करते थे. इन दोनों ने प्रेम विवाह किया था. साधारण से घर की बेटी को चोपड़ा ने अपनी बहू बनाने से साफ मना कर दिया, तो इन्होंने कोर्ट मैरिज कर ली थी.

चोपड़ा की नाराजगी को नजरअंदाज करते हुए मैं ने इन दोनों का साथ दिया था. इसी कारण ये दोनों मुझे भरपूर सम्मान देते थे.

चोपड़ा को दिल का दौरा पड़ने की चर्चा शुरू हुई, तो नवीन उत्तेजित लहजे में बोला, ‘‘चाचाजी, यह तो होना ही था.’’ रोजरोज की शराब और दौलत कमाने के जनून के चलते उन्हें दिल का दौरा कैसे न पड़ता?

‘‘और इस बीमार हालत में भी उन का घमंडी व्यवहार जरा भी नहीं बदला है. शिखा उन से मिलने पहुंची तो उसे डांट कर कमरे से बाहर निकाल दिया. उन के जैसा खुंदकी और अकड़ू इनसान शायद ही दूसरा हो.’’

‘‘बेटे, बड़ों की बातों का बुरा नहीं मानते और ऐसे कठिन समय में तो उन्हें अकेलापन मत महसूस होने दो. वह दिल का बुरा नहीं है,’’ मैं उन्हें देर तक ऐसी बातें समझाने के बाद जब वहां से उठा तो मन बड़ा भारी सा हो रहा था.

चोपड़ा ने यों तो नवीन को पूरी स्वतंत्रता से ऐश करने की छूट हमेशा दी, पर जब दोनों के बीच टकराव की स्थिति पैदा हुई तो बाप ने बेटे को दबा कर अपनी चलानी चाही थी.

जिस घटना ने नवीन के जीवन की दिशा को बदला, वह लगभग 3 साल पहले घटी थी.

उस दिन मेरे बेटे विवेक का जन्मदिन था. नवीन उसे नए मोबाइल फोन का उपहार देने के लिए अपने साथ बाजार ले गया.

वहां दौलत की अकड़ से बिगडे़ नवीन की 1 फोन पर नीयत खराब हो गई. विवेक के लिए फोन खरीदने के बाद जब दोनों बाहर निकलने के लिए आए तो शोरूम के सुरक्षा अधिकारी ने उसे रंगेहाथों पकड़ जेब से चोरी का मोबाइल बरामद कर लिया.

‘गलती से फोन जेब में रह गया है. मैं ऐसे 10 फोन खरीद सकता हूं. मुझे चोर कहने की तुम सब हिम्मत कैसे कर रहे हो,’ गुस्से से भरे नवीन ने ऐसा आक्रामक रुख अपनाया, पर वे लोग डरे नहीं.

मामला तब ज्यादा गंभीर हो गया जब नवीन ने सुरक्षा अधिकारी पर तैश में आ कर हाथ छोड़ दिया.

उन लोगों ने पहले जम कर नवीन की पिटाई की और फिर पुलिस बुला ली. बीचबचाव करने का प्रयास कर रहे विवेक की कमीज भी इस हाथापाई में फट गई थी.

पुलिस दोनों को थाने ले आई. वहीं पर चोपड़ा और मैं भी पहुंचे. मैं सारा मामला रफादफा करना चाहता था क्योंकि विवेक ने सारी सचाई मुझ से अकेले में बता दी थी, लेकिन चोपड़ा गुस्से से पागल हो रहा था. उस के मुंह से निकल रही गालियों व धमकियों के चलते मामला बिगड़ता जा रहा था.

उस शोरूम का मालिक भी रुतबेदार आदमी था. वह चोपड़ा की अमीरी से प्रभावित हुए बिना पुलिस केस बनाने पर तुल गया.

एक अच्छी बात यह थी कि थाने का इंचार्ज मुझे जानता था. उस के परिवार के लोग मेरे दवाखाने पर छोटीबड़ी बीमारियों का इलाज कराने आते थे.

उस की आंखों में मेरे लिए शर्मलिहाज के भाव न होते तो उस दिन बात बिगड़ती ही चली जाती. वह चोपड़ा जैसे घमंडी और बदतमीज इनसान को सही सबक सिखाने के लिए शोरूम के मालिक का साथ जरूर देता, पर मेरे कारण उस ने दोनों पक्षों को समझौता करने के लिए मजबूर कर दिया.

हां, इतना उस ने जरूर किया कि उस के इशारे पर 2 सिपाहियों ने अकेले में नवीन की पिटाई जरूर की.

‘बाप की दौलत का तुझे ऐसा घमंड है कि पुलिस का खौफ भी तेरे मन से उठ गया है. आज चोरी की है, कल रेप और मर्डर करेगा. कम से कम इतना तो पुलिस की आवभगत का स्वाद इस बार चख जा कि कल को ज्यादा बड़ा अपराध करने से पहले तू दो बार जरूर सोचे.’

मेरे बेटे की मौजूदगी में उन 2 पुलिस वालों ने नवीन के मन में पुलिस का डर पैदा करने के लिए उस की अच्छीखासी धुनाई की थी.

उस घटना के बाद नवीन एकाएक उदास और सुस्त सा हो गया था. हम सब उसे खूब समझाते, पर वह अपने पुराने रूप में नहीं लौट पाया था.

फिर एक दिन उस ने घोषणा की, ‘मैं एम.बी.ए. करने जा रहा हूं. मुझे प्रापर्टी डीलर नहीं बनना है.’

यह सुन कर चोपड़ा आगबबूला हो उठा और बोला, ‘क्या करेगा एम.बी.ए. कर के? 10-20 हजार की नौकरी?’

‘इज्जत से कमाए गए इतने रुपए भी जिंदगी चलाने को बहुत होते हैं.’

‘क्या मतलब है तेरा? क्या मैं डाका डालता हूं? धोखाधड़ी कर के दौलत कमा रहा हूं?’

‘मुझे आप के साथ काम नहीं करना है,’ यों जिद पकड़ कर नवीन ने अपने पिता की कोई दलील नहीं सुनी थी.

बाद में मुझ से अकेले में उस ने अपने दिल के भावों को बताया था, ‘चाचाजी, उस दिन थाने में पुलिस वालों के हाथों बेइज्जत होने से मुझे मेरे पिताजी की दौलत नहीं बचा पाई थी. एक प्रापर्टी डीलर का बेटा होने के कारण उलटे वे मुझे बदमाश ही मान बैठे थे और मुझ पर हाथ उठाने में उन्हें जरा भी हिचक नहीं हो रही थी.

‘दूसरी तरफ आप के बेटे विवेक के साथ उन्होंने न गालीगलौज की, न मारपीट. क्यों उस के साथ भिन्न व्यवहार किया गया? सिर्फ आप के अच्छे नाम और इज्जत ने उस की रक्षा की थी.

‘मैं जब भी उस दिन अपने साथ हुए दुर्व्यवहार को याद करता हूं, तो मन शर्म व आत्मग्लानि से भर जाता है. मैं आगे इज्जत से जीना चाहता हूं…बिलकुल आप की तरह, चाचाजी.’

अब मैं उस से क्या कहता? उस के मन को बदलने की मैं ने कोशिश नहीं की. चोपड़ा ने उसे काफी डराया- धमकाया, पर नवीन ने एम.बी.ए. में प्रवेश ले ही लिया.

इन बापबेटे के बीच टकराव की स्थिति आगे भी बनी रही. नवीन बिलकुल बदल गया था. अपने पिता के नक्शेकदम पर चलने में उसे बिलकुल रुचि नहीं रही थी. किसी भी तरह से बस, दौलत कमाना उस के जीवन का लक्ष्य नहीं रहा था.

फिर उसे अपने साथ पढ़ने वाली शिखा से प्यार हो गया. वह शिखा से शादी करना चाहता है, यह बात सुन कर चोपड़ा बेहद नाराज हुआ था.

‘अगर इस लड़के ने मेरी इच्छा के खिलाफ जा कर शादी की तो मैं इस से कोई संबंध नहीं रखूंगा. फूटी कौड़ी नहीं मिलेगी इसे मेरी दौलत की,’ ऐसी धमकियां सुन कर मैं काफी चिंतित हो उठा था.

दूसरी तरफ नवीन शिखा का ही जीवनसाथी बनना चाहता था. उस ने प्रेमविवाह करने का फैसला किया और पिता की दौलत को ठुकरा दिया.

नवीन और शिखा ने कोर्ट मैरिज की तो मेरी पत्नी और मैं उन की शादी के गवाह बने थे. इस बात से चोपड़ा हम दोनों से नाराज हो गया पर मैं क्या करता? जिस नवीन को मैं ने गोद में खिलाया था, उसे कठिन समय में बिलकुल अकेला छोड़ देने को मेरा दिल राजी नहीं हुआ था.

नवीन और शिखा दोनों नौकरी कर रहे थे. शिखा एक सुघड़ गृहिणी निकली. अपनी गृहस्थी वह बड़े सुचारु ढंग से चलाने लगी. चोपड़ा ने अपनी नाराजगी छोड़ कर उसे अपना लिया होता तो यह लड़की उस की कोठी में हंसीखुशी की बहार निश्चित ले आती.

चोपड़ा ने मेरे घर आना बंद कर दिया. कभी किसी समारोह में हमारा आमनासामना हो जाता तो वह बड़ा खिंचाखिंचा सा हो जाता. मैं संबंधों को सामान्य व सहज बनाने का प्रयास शुरू करता, तो वह कोई भी बहाना बना कर मेरे पास से हट जाता.

अब उसे दिल का दौरा पड़ गया था. शराब, सिगरेट, मानसिक तनाव व बेटेबहू के साथ मनमुटाव के चलते ऐसा हो जाना आश्चर्य की बात नहीं थी.

उसे अपने व्यवहार व मानसिकता को बदलना चाहिए, कुछ ऐसा ही समझाने के लिए मैं अगले दिन दोपहर के वक्त उस से मिलने पहुंचा था.

उस दिन चोपड़ा मुझे थकाटूटा सा नजर आया, ‘‘यार अशोक, मुझे अपनी जिंदगी बेकार सी लगने लगी है. आज किसी चीज की कमी नहीं है मेरे पास, फिर भी जीने का उत्साह क्यों नहीं महसूस करता हूं मैं अपने अंदर?’’

उस का बोलने का अंदाज ऐसा था मानो मुझ से सहानुभूति प्राप्त करने का इच्छुक हो.

‘‘इस का कारण जानना चाहता है तो मेरी बात ध्यान से सुन, दोस्त. तेरी दौलत सुखसुविधाएं तो पैदा कर सकती है, पर उस से अकेलापन दूर नहीं हो सकता.

‘‘अपनों के साथ प्रेमपूर्वक रहने से अकेलापन दूर होता है, यार. अपने बहूबेटे के साथ प्रेमपूर्ण संबंध कायम कर लेगा तो जीने का उत्साह जरूर लौट आएगा. यही तेरी उदासी और अकेलेपन का टौनिक है,’’ मैं ने भावुक हो कर उसे समझाया.

कुछ देर खामोश रहने के बाद उस ने उदास लहजे में जवाब दिया, ‘‘दिलों पर लगे कुछ जख्म आसानी से नहीं भरते हैं, डाक्टर. शिखा के साथ मेरे संबंध शुरू से ही बिगड़ गए. अपने बेटे की आंखों में झांकता हूं तो वहां अपने लिए आदर या प्यार नजर नहीं आता. अपने किए की माफी मांगने को मेरा मन तैयार नहीं. हम बापबेटे में से कोई झुकने को तैयार नहीं तो संबंध सुधरेंगे कैसे?’’

उस रात उस के इस सवाल का जवाब मुझे सूझ गया था. वह समाधान मेरी पत्नी को भी पसंद आया था.

सप्ताह भर बाद चोपड़ा को नर्सिंग होम से छुट्टी मिली तो मैं उसे अपने घर ले आया. सविता भाभी भी साथ में थीं.

‘‘तेरे भतीजे विवेक की शादी हफ्ते भर बाद है. मेरे साथ रह कर हमारा मार्गदर्शन कर, यार,’’ ऐसी इच्छा जाहिर कर मैं उसे अपने घर लाया था.

‘‘अरे, अपने बेटे की शादी का मेरे पास कोई अनुभव होता तो मार्गदर्शन करने वाली बात समझ में आती. अपने घर में दम घुटेगा, यह सोच कर शादीब्याह वाले घर में चल रहा हूं,’’ उस का निराश, उदास सा स्वर मेरे दिल को चीरता चला गया था.

नवीन और शिखा रोज ही हमारे घर आते. मेरी सलाह पर शिखा अपने ससुर के साथ संबंध सुधारने का प्रयास करने लगी. वह उन्हें खाना खिलाती. उन के कमरे की साफसफाई कर देती. दवा देने की जिम्मेदारी भी उसी को दे दी गई थी.

चोपड़ा मुंह से तो कुछ नहीं कहता, पर अपनी बहू की ऐसी देखभाल से वह खुश था लेकिन नवीन और उस के बीच खिंचाव बरकरार रहा. दोनों औपचारिक बातों के अलावा कोई अन्य बात कर ही नहीं पाते थे.

शादी के दिन तक चोपड़ा का स्वास्थ्य काफी सुधर गया था. चेहरे पर चिंता, नाराजगी व बीमारी के बजाय खुशी और मुसकराहट के भाव झलकते.

वह बरात में भी शामिल हुआ. मेरे समधी ने उस के आराम के लिए अलग से एक कमरे में इंतजाम कर दिया था. फेरों के वक्त वह पंडाल में फिर आ गया था.

हम दोनों की नजरें जब भी मिलतीं, तो एक उदास सी मुसकान चोपड़ा के चेहरे पर उभर आती. मैं उस के मनोभावों को समझ रहा था. अपने बेटे की शादी को इन सब रीतिरिवाजों के साथ न कर पाने का अफसोस उस का दिल इस वक्त जरूर महसूस कर रहा होगा.

बहू को विदा करा कर जब हम चले, तब चोपड़ा और मैं साथसाथ अगली कार में बैठे हुए थे. सविता भाभी, मेरी पत्नी, शिखा और नवीन पहले ही चले गए थे नई बहू का स्वागत करने के लिए.

हमारी कार जब चोपड़ा की कोठी के सामने रुकी तो वह बहुत जोर से चौंका था.

सारी कोठी रंगबिरंगे बल्बों की रोशनी में जगमगा रही थी. जब चोपड़ा मेरी तरफ घूमा तो उस की आंखों में एक सवाल साफ चमक रहा था, ‘यह सब क्या है, डाक्टर?’

मैं ने उस का हाथ थाम कर उस के अनबुझे सवाल का जवाब मुसकराते हुए दिया, ‘‘तेरी कोठी में भी एक नई बहू का स्वागत होना चाहिए. अब उतर कर अपनी बहू का स्वागत कर और आशीर्वाद दे. रोनेधोने का काम हम दोनों यार बाद में अकेले में कर लेंगे.’’

चोपड़ा की आंखों में सचमुच आंसू झलक रहे थे. वह भरे गले से इतना ही कह सका, ‘‘डाक्टर, बहू को यहां ला कर तू ने मुझे हमेशा के लिए अपना कर्जदार बना लिया… थैंक यू… थैंक यू वेरी मच, मेरे भाई.’’

चोपड़ा में अचानक नई जान पड़ गई थी. उसे अपनी अधूरी इच्छाएं पूरी करने का मौका जो मिल गया था. बडे़ उत्साह से उस ने सारी काररवाई में हिस्सा लिया.

विवेक और नई दुलहन को आशीर्वाद देने के बाद अचानक ही चोपड़ा ने नवीन और शिखा को भी एक साथ अपनी छाती से लगाया और फिर किसी छोटे बच्चे की तरह बिलख कर रो पड़ा था.

ऐसे भावुक अवसर पर हर किसी की आंखों से आंसू बह निकले और इन के साथ हर तरह की शिकायतें, नाराजगी, दुख, तनाव और मनमुटाव का कूड़ा बह गया.

‘‘तू ने सच कहा था डाक्टर कि रिश्तों के रंगबिरंगे फूल ही जिंदगी में हंसीखुशी और सुखशांति की सुगंध पैदा करते हैं, न कि रंगीन हीरों की जगमगाहट. आज मैं बहुत खुश हूं क्योंकि मुझे एकसाथ 2 बहुओं का ससुर बनने का सुअवसर मिला है. थैंक यू, भाई,’’ चोपड़ा ने हाथ फैलाए तो मैं आगे बढ़ कर उस के गले लग गया.

मेरे दोस्त के इस हृदय परिवर्तन का वहां उपस्थित हर व्यक्ति ने तालियां बजा कर स्वागत किया.

लव हारमोंस लाएं बैडरूम में रोमांच, जानें इसके बारे में खास बातें

हमारे मन में तरहतरह की भावनाएं उत्पन्न होती रहती हैं. कभी क्रोध, कभी प्यार, कभी किसी के लिए ममता की भावनाएं उमड़ती हैं, कभी अनायास ही किसी से लड़ने का मन हो उठता है, तो कभी किसी मनपसंद व्यक्ति को देख कर उस के करीब आने का मन करने लगता है. इन सभी भावनाओं के पीछे हारमोंस काम करते हैं. हारमोंस के रिसाव से ही मन में अलगअलग फीलिंग्स आने लागती हैं. शरीर के अंदर होने वाली गतिविधियों का हमें ज्ञान नहीं होता है. हम सिर्फ उन्हीं भावनाओं को ऐंजौय करते रहते हैं जो ऊपर से दिखाई देती हैं. यहां हम शरीर के अंदर उठने वाली भावनाओं और उन के कारणों के विषय में विस्तार से बता रहे हैं.

जब इंसान के मन में कोई भी भावना पैदा होती है तो यह उस के चेहरे पर स्पष्ट दिखाई पड़ने लगती है सिर्फ बाहर ही नहीं, बल्कि शरीर के भीतर भी प्रतिक्रियाएं होती है जिस के परिणाम स्वरूप ‘हारमोन’ निकलते हैं जैसे जब किसी को गुस्सा आता है तो किसी अलग हारमोन का प्रवाह होता है, जब कोई खुश होता है तो डिफरैंट हारमोंस प्रवाहित होते हैं. इसी प्रकार जब शारीरिक संबंध या सैक्स की भावना मन में उठती है तो जो हारमोन प्रवाहित होता है वह एक भिन्न हारमोन प्रवाहित होता है.

आइए, आज हम इन ही अलगअलग भावनाओं में से एक विशेष भावना जो सैक्स संबंध के समय उत्पन्न होती है उस हारमोन के बारे में आप को बताते हैं. मन में शारीरिक संबंध उत्पन्न होने पर मुख्यत: इन 4 हारमोंस का रिसाव होता है- ‘डोपामाइन,’ ‘सैरोटोनिन,’ ‘ऐंडोरफिन’ और ‘औक्सिटोसिन.’ चूंकि ये चारों हारमोंस आनंद देते हैं तन और मन में खुशी और गुदगुदी प्रदान करते हैं इसलिए इन्हें प्लेजर हारमोंस या लव हारमोंस भी कहा जाता है.

कैसे पड़ा नाम

सब से पहले 1994 में इस विषय पर कैलीफौर्निया यूनिवर्सिटी के प्रोफैसर राबर्ट डब्ल्यू स्मिथ ने एक बुक लिखी थी, ‘ए टैक्स्ट बुक औन लव हारमोंस.’ इसी बुक में इन हारमोंस के गुणों के आधार पर इन्हें लव हारमोंस का नाम दिया था. इन चारों हारमोंस का रिसाव तभी होता है जब मन में कोई खुशी, आनंद या प्रेम की भावना उमड़ती है.

इसी विषय पर विस्तार से जानने के लिए मैं पुणे की अमनोरा कालोनी में अपना क्लीनिक चलाने वाली स्त्रीरोग विशेषज्ञा डाक्टर सुहासिनी बेंद्रे से मिला. मेरा प्रश्न सुन कर उन्होंने बड़ी गंभीरता से जवाब दिया, ‘‘जब भी कोई मनपसंद चीज प्राप्त होती है तो आप का मन खुश हो उठता है. यह पसंदीदा चीज कुछ भी हो सकती है.’’

‘‘आप पुरुष हो या नारी, जब भी अपने पार्टनर के करीब जाते हैं और मन में उस के साथ शारीरिक संबंध बनाने की इच्छा हो रही हो तो मन इस की सूचना तुरंत मस्तिष्क को देता है. सूचना मिलते ही मस्तिष्क संबंधित ग्रंथियों को जागृत करने लगता है. इस प्रक्रिया को ‘सोमैटो सैंसौरी’ कहते हैं.

‘‘मस्तिष्क तुरंत ऐंडोक्राइन नामक ग्लाइंड को मैसेज भेजता है. इस के लिए वह ब्लड और टिशुओं का सहारा लेता है. नसों में बहते खून और टिशू के जरीए ये उन के विशेष अंगों को स्पर्श करते हैं और उन्हें जगाना शुरू कर देते हैं. ज्योंज्यों अंगों में जाग्रति आती है हारमोंस का प्रवाह भी बढ़ता जाता है. यह सब देख कर मस्तिष्क अगला आदेश देता है कि अब वह डोपामाइन नामक हारमोन को रिलीज कर दे. डोपामाइन के रिसाव होते ही तनमन दोनों में सिहरन होने लगती है.’’

हिम्मत देता है

‘‘ज्योंज्यों डोपामाइन का रिसाव बढ़ता जाता है धड़कनें तेज होने लगती हैं, अंगों में तनाव बढ़ता जाता है, रोमांटिक बातें शुरू हो जाती हैं जो दोनों पार्टनर को अच्छा लगने लगता है. उचित समय देख कर मस्तिष्क एक और आदेश देता है और सैरोटोनिन नामक हारमोन भेजने का आदेश देता है. ग्रंथियां सैरोटोनिन का रिसाव शुरू कर देती हैं. यह आप को हिम्मत प्रदान करता है. इस तरह दोनों पार्ट्नर्स इन हारमोन के कारण और करीब आ जाते हैं. दोनों के बीच किस और आलिंगन का आदानप्रदान शुरू हो जाता है और दोनों ही आगे बढ़ने लगते हैं.

‘‘दोनों पार्ट्नर्स के बीच अभी भी हिचकिचाहट रहती है. इस की सूचना जब मस्तिष्क को मिलती है तो वह तुरंत ग्रंथियों को आदेश देता है कि वह एक और हारमोन ऐंडोरफिन का रिलीज करे. इस का रिसाव होते ही मन के सारे संकोच पर से अंकुश हट जाता है. इन्हीं हारमोन की वजह से विशेष अंगों में पूर्ण से तनाव आ जाता है. शारीरिक संबंध के अंतिम भाग में पहुंच जाते हैं. मस्तिष्क का भी पूरी तरह से सहयोग रहता है. हारमोन की अधिक मात्रा देख कर मस्तिष्क तुरंत अपनी ग्रंथी को एक और हारमोन रिलीज करने की हिदायत देता है. ग्रंथी तुरंत इस का रिसाव शुरू कर देती है. इस हारमोन का नाम है औक्सिटोसिन जिस का मुख्य कार्य है पार्ट्नर्स की सैक्स प्रक्रिया की ओर अग्रसर करना, बोल्ड बनाना और मन के सारे विवेक को हर लेना. यहीं अच्छेबुरे का फर्क खत्म हो जाता है और बिना हिचक के दोनों सैक्स संबंध में रत हो जाते हैं.’’

एक सैक्स प्रक्रिया

डा. सुहासिनी ने आगे यह कह कर हमें चौंका दिया कि इन लव हारमोंस की वजह से ही 2 पार्ट्नर्स के बीच सैक्स प्रक्रिया होती है. इन के अनुसार बलात्कार या रेप जो होता है, उस प्रक्रिया में रेप करने वाले के साथसाथ कहीं न कहीं इन हारमोंस का भी उतना ही दोष होता है. यह लौजिक मैडिकली भले ही प्रूव हो जाए पर सामाजिक, कानूनन या मानवीय दृष्टिकोण से यह कदापि सही नहीं है.

इंदौर के मनोचिकित्सक प्रोफैसर डा. युवराज शिंदे ने बताया, ‘‘सैक्स संबंध पूर्णत: ब्रेन गेम है न कि शारीरिक. लव हारमोंस सिर्फ सैक्स के वक्त ही नहीं बल्कि किसी भी आनंददायक भावना के फलस्वरूप पैदा होते हैं और ग्रंथियों से एक प्रकार का रिसाव होने लगता है. जैसे कोई पसंदीदा किताब पढ़ते हुए पसंद की फिल्म देखते हुए भी लव हारमोंस प्रवाहित होते हैं.’’

डा. शिंदे के ही एक पेशैंट 30 वर्षीय अविनाश मल्होत्रा और उन की 24 वर्षीय पत्नी नेहा से हमारी मुलाकात हुई तो नेहा ने बताया, ‘‘हमारी शादी को अभी 2 साल ही हुई है, मगर हमारी सैक्स लाइफ… बोलतेबोलते नेहा रुक गईं.’’

सकारात्मक सोच

नेहा हिचकिचाई तो उन के पति अविश्वास मल्होत्रा ने बात आगे बढ़ाई, ‘‘सर, हमारी सैक्स लाइफ बहुत ही मस्त और ऐंजौएइंग थी पर पिछले 1 साल से हम सैक्स में बोर होने लगे हैं. इस की वजह से हमारा खूब  झगड़ा भी होने लगा था. हम ने तो अलग हो जाने का भी फैसला कर लिया था. तभी एक दोस्त की सलाह पर हम डाक्टर शिंदे से मिले.

इन के पास कल हमारी तीसरी मिटिंग थी. इन के साथ फर्स्ट मिटिंग के बाद से ही हम दोनों में एक पौजिटिव चेंज आने लग गया था. अब हमारी सैक्स लाइफ में फिर से जान आ गई. है.’’

मुंबई के जुहू में अपना क्लीनिक चलाने वाले सैक्सोलौजिस्ट डा. परेश नेरूलकर बताते हैं, ‘‘आजकल की भागदौड़ की जिंदगी में ऐेसे केस ज्यादा आने लगे हैं. पैसे कमाने की होड़ में सैक्स के प्रति रु झान बहुत कम हो गया है. पश्चिमी देशों में तो बच्चे पैदा करने के लिए सरकार इंसैटिव यानी बोनस भी देती है.

‘‘सैक्स की प्रक्रिया के वक्त बौडी से जो हारमोन रिलीज होता है वह है टेस्टोस्टेरोन. पुरुषों में इस की मात्रा सामान्यत: 280 से 1100 नैनोग्राम प्रति डैसीलिटर होती है जबकि फीमेल में सिर्फ 15 से 70 नैनोग्राम प्रति डैसीलिटर होती है. ऐक्चुअली टेस्टोस्टेरोन की मात्रा ही मुख्य कारण है कि पुरुष सैक्स क्रिया में बहुत जल्दी उत्तेजित हो जाते हैं और महिलाओं को उत्तेजित होने में ज्यादा वक्त लग जाता है.’’

यह भी जानें

अमेरिकन यूरोलौजिकल ऐसोसिएशन की सीईओ एनी वर्डस्वर्थ की बुक ‘ए टैक्स्ट बुक औन लव हारमोंस’ में लिखा है कि सैक्स पूर्णत: एक मैंटल गेम है. ज्यादातर लोग इसे शारीरिक प्रक्रिया सम झने की भूल कर बैठते हैं. जहां तक लव हारमोंस की बात है यही वे हारमोंस हैं जो सैक्स की भावना को जगाते हैं और उसे क्लाइमैक्स तक पहुंचाने में मदद भी करते हैं.

लेकिन आज का युवावर्ग पैसे कमाने में इतना व्यस्त है कि वह सैक्स के लिए समय ही नहीं निकाल पाता है जिस की वजह से टेस्टोस्टेरोन, डोपामाइन आदि हारमोंस शरीर से या तो रिलीज ही नहीं हो पाते हैं या इतनी कम मात्रा में रिलीज होते हैं कि सैक्स भावना को जगा ही नहीं पाते हैं.

त्यौहार पर बनाएं ये खास रेसिपी, जानें चूरमा मिल्क केक बनाने की विधि

त्योहारों पर बाजार में मिलने वाली मिठाइयां न तो सेहतमंद होती हैं और न ही बजट फ्रैंडली. इसलिए बाजार से मिठाई लाने की अपेक्षा यदि थोड़ी सी कोशिश से घर पर ही मिठाई बना ली जाए तो बचत भी होती है और सेहत के लिए भी अच्छी होती है.

आज हम आप को गेहूं के आटे से ऐसी ही एक मिठाई बनाना बता रहे हैं जिसे आप बहुत आसानी से घर पर बना सकती हैं. इसे हम ने केवल 2 चम्मच घी और गुड़ से बनाया है इसलिए यह काफी हैल्दी भी है. तो आइए, देखते हैं कि इसे कैसे बनाया जाता है :

कितने लोगों के लिए : 8
बनने में लगने वाला समय : 20 मिनट
मील टाइप : वेज

सामग्री
गेहूं का आटा : 1 कप
मलाई : 1 कप
दूध : 1 कप
घी : 2 टेबलस्पून
बारीक कटी मेवा : 2 टेबलस्पून
इलायची पाउडर : 1 कप
नारियल बुरादा : 1 टीस्पून
मिल्क पाउडर : 2 टेबलस्पून
रोज पेटल सजाने के लिए

विधि
गेहूं के आटे में मलाई मिला कर धीरेधीरे दूध डालते हुए पूरी जैसा सख्त आटा लगा कर 20 मिनट के लिए ढक कर रख दें. 20 मिनट बाद आटे को 3 भाग में बांट कर 3 मोटीमोटी रोटियां बना कर गैस पर सेंक लें. ध्यान रखें कि रोटियां गैस पर बहुत हलका सा सेकें ताकि काली चिकत्ती न आने पाएं. ठंडा होने पर इसे तोङ कर मिक्सी में पीस लें. अब इस पिसे मिश्रण को 1 टीस्पून घी में 5 मिनट तक धीमी आंच पर भून कर एक प्लेट में निकाल लें. अब कढ़ाई में शेष बचा घी डाल दें और कटी मेवा को सुनहरा होने तक भून कर प्लेट में निकाल लें. बचे घी में गुड़, 1 टेबलस्पून पानी और मिल्क पाउडर डाल कर धीमी आंच पर गुड़ के पूरी तरह पिघलने तक पकाएं. अब पिसा रोटी का मिश्रण और इलायची पाउडर डाल कर अच्छी तरह चलाएं. जब मिश्रण पैन के किनारे छोड़ने लगें तो गैस बंद कर दें. मेवा मिलाएं और तैयार मिश्रण को एक चिकनाई लगी ट्रे में जमाएं. ऊपर से नारियल बुरादा बुरकें. गुनगुनी में ही मनचाहे आकार में पीसेज काटें और रोज पेटल से गार्निश कर के मेहमानों को सर्व करें.

किराए का ब्राइडल लहंगा, बजट के साथ फैशन भी

अन्वी की शादी नवंबर माह में होनी है जिस के चलते आजकल वह शौपिंग करने में व्यस्त है. किसी भी लड़की की शादी में शादी वाले दिन पहना जाने वाला लहंगा शौपिंग का मुख्य विषय होता है. अन्वी भी पिछले 15 दिनों से अपने लहंगे को ले कर परेशान है क्योंकि जो लहंगा उसे पसंद आता है वह उस की रेंज से बहुत ऊपर होता है. अब उसे समझ नहीं आ रहा है कि करे तो क्या करे ताकि मम्मीपापा का बजट भी न बिगड़े और उस का अपना शौक भी पूरा हो जाए.

तनीषा की 1 वर्ष पूर्व ही शादी हुई है. अपनी शादी का लहंगा उस ने ₹80 हजार का खरीदा था. उस समय मन में सिर्फ एक ही बात थी कि शादी बारबार तो नहीं होती, जिंदगी में एक बार ही होती है। इस भावना के चलते खरीद तो लिया पर अब वह पछता रही है। शादी के बाद सिर्फ एक बार अपने देवर की शादी में ही पहना है. अब बारबार तो एक ही ड्रैस नहीं पहन सकती न.

लेकिन अब लग रहा है कि इतने पैसे यदि म्यूचुअल फंड या सेविंग में डाले होते तो आज काम आ जाते.

लहंगा शादी वाले दिन पहनने के लिए आज दुलहनों की पहली पसंद है. पहले की अपेक्षा आज फैशन बहुत तेजी से बदलता है. इसलिए आज जो फैशन है कल वह नहीं रहेगा. ऐसे में लहंगे पर हजारों या लाखों रुपये खर्च करना कहां की बुद्धिमानी है. अकसर महंगेमहंगे दामों पर शादी वाले दिन के लिए खरीदे गए लहंगे एकाध बार ही दोबारा पहने जाते हैं अन्यथा वे कवर्ड में पड़े धूल खाते रहते हैं.

आजकल सोशल मीडिया का जमाना है जहां पर एक ही ड्रैस की फोटो को तो दोबारा डालने में युवतियां पसंद नहीं करतीं. ऐसे में एक ही लहंगे की दोबारा फोटो नहीं डाली जा सकती.

किराए का लहंगा है अच्छा विकल्प

तान्या ने अपनी शादी पर किराया का लहंगा लिया था. वह कहती है,”मेरे बजट में कोई भी अच्छा और मनपसंद लहंगा नहीं मिल पा रहा था, फिर जब मैं ने किराए के लहंगे की तलाश की तो मेरे बजट से चौथाई से भी कम रेंज में बहुत सुंदर, ट्रैंडी और फैशनेबल लहंगा विद ज्वैलरी मिल गई. यही नहीं, मेरे उस लहंगे की हर किसी ने भरपूर तारीफ भी की। मैं खुश हूं कि मेरे शौक के लिए मेरे पेरैंट्स को परेशान नहीं होना पड़ा. अब मैं किसी भी विशेष अवसर पर खरीदने की अपेक्षा किराए पर ही लहंगा खरीदना पसंद करती हूं.”

क्या होता है रेंट

भोपाल की अरेरा कालोनी में ब्राइडल लहंगा रखने वाली मायरा कलैक्शन की मालकिन रेनू सिंह के अनुसार, बड़ेबड़े ब्रैंड के लहंगों के पैटर्न की रेप्लिका कौपी बनाए जाने से रेंट के लहंगे ट्रैंडी और फैशनेबल होते हैं. एक वीयर के का रेंट ₹3,500 से शुरू हो कर अधिकतम ₹15,000 तक होता है. पसंद आने के बाद लहंगे को पहनने वाले की बौडी के अनुसार फिटिंग और ड्राईक्लीन करवा कर दिया जाता है.

रखें इन बातों का ध्यान

-किराए पर लहंगा लेने जाने से पहले से इंटरनैट से फैशन, ट्रैड और अपनी पसंद को क्लीयर कर के जाएं ताकि आप को सिलैक्शन करने में आसानी रहे.

-सदैव अच्छे और प्रतिष्ठित दुकान से ही रेंट का लहंगा लें ताकि एनवक्त कोई परेशानी न हो.

-रेंट वाले स्टोर्स लहंगे की मैचिंग ज्वैलरी भी रखते हैं। लहंगा फाइनल करने से पहले ज्वैलरी और लहंगे को एकसाथ पहन कर देख लें ताकि आप दोनों को एकसाथ जज कर सकें. साथ ही लहंगे को फिटिंग के लिए भी दे सकें. आप चाहें तो ज्वैलरी अलग से भी ले सकतीं हैं.

-सभी स्टोर्स रेंट की अपनी अलग अलग पौलिसी रखते हैं। कुछ वीयर के हिसाब से तो कुछ दिन के हिसाब से रेंट तय करते हैं. आप अपनी सुविधानुसार मनचाही पौलिसी चुन सकती हैं.

-आजकल औनलाइन भी रेंट पर लहंगे मिलने लगे हैं। इन्हें लेने से पूर्व रिटर्न पौलिसी और अन्य नियमों को बहुत ध्यान से पढ़ लें.

-लहंगे को शादी वाले दिन से एक दिन पूर्व ही घर पर डिलीवर करवाएं ताकि आप किसी भी प्रकार के तनाव में न आएं.

-अतिरिक्त तनाव से बचने के लिए औनलाइन की अपेक्षा औफलाइन लहंगा लेने को प्राथमिकता दें.

प्रकृति के रंग में रंगना है तो जाएं इस्तांबुल, यहांं करीब से देखें इस शहर का इतिहास

घर से कुछ समय निकाल कर कहीं घूमने जाना हमेशा ही नया अनुभव देता है. यात्रा के दौरान बहुत से नए लोगों को, नई चीजों को देखते हैं जिस से दुनिया के बारे में हमें नया नजरिया मिलता है. जब भी संभव होता है मैं कहीं घूमने जरूर निकलती हूं. आजकल के व्यस्त जीवन से कुछ दिन निकाल कर परिवार के साथ थोड़ा समय बिताना अब जरूरी सा लगने लगा है वरना वही हाथ में फोन लिए ?ाकी हुई गरदनें या लैपटौप को घंटों घूरती आंखें, दिनरात की भागदौड़. इस से हट कर कुछ दिन रिलैक्स हो कर बिताना हैल्थ के लिए भी जरूरी है.

सो अब की बार सपरिवार घूमने का प्रोग्राम बना तो टर्की फाइनल हुआ. मुंबई से टर्किश एअरलाइंस से इस्तांबुल की फ्लाइट बुक की गई. 8 घंटे की फ्लाइट थी पर आजकल एअरपोर्ट पर इंटरनैशनल फ्लाइट के लिए 4 घंटे पहले जाना पड़ता है.

तुर्किए

इस देश का नाम राष्ट्रपति रेसेप तैयप एडोर्गन के कहने पर ही बदला गया था. घरेलू स्तर पर तुर्की को तुर्किए ही कहते हैं मगर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस का नाम तुर्किए हो गया था जिसे अंगरेजी में लोग टर्की कहने लगे थे. संयुक्त राष्ट्र संघ की तरफ से 2022 में तुर्की का नाम आधिकारिक तौर पर तुर्किए कर दिया गया था.

इस्तांबुल तुर्की का सब से बड़ा शहर और प्रमुख बंदरगाह है. यह बीजान्टिन साम्राज्य और आटोमन साम्राज्य दोनों की राजधानी रहा है लेकिन जब आधुनिक तुर्की गणराज्य की स्थापना हुई और अंकारा को नई राजधानी के रूप में चुना गया तो इस ने राजधानी के रूप में अपनी स्थिति खो दी.

इस्तांबुल एअरपोर्ट बहुत बड़ा और सुंदर बना हुआ है. वहां इमीग्रेशन की बहुत लंबी लाइन थी. फ्लाइट में इंडियंस भी काफी थे. बैल्ट से सामान लिया तो देखा, हमारे एक बड़े बैग का हैंडल टूट गया है. हम ने वहीं के एक स्टाफ को बताया तो उस ने कहा कि बैगेज हैंडलिंग औफिस में बात कर लो. वहां जा कर हम ने अपना बैग दिखाया. उन्होंने हमारे बैग पर लगा टैग लिया और तुरंत एक नया बड़ा बैग दे दिया. यह हमारे लिए बड़ी हैरानी की बात थी. हम ने वहीं अपना सामान नए बैग में रखा और उन्हें थैंक्स कह कर एअरपोर्ट से बाहर निकले.

जब एअरपोर्ट से बाहर निकले ठंड से हालत खराब हो गई जो जैकेट और पैंट पहनी हुई थी लगा इसे तो ठंडी हवा उड़ा कर ले जाएगी. यह मार्च के आखिरी दिन थे. टैक्सी का इंतजार कर ही रहे थे कि बारिश शुरू हो गई. ठंडी हवा से कांपते हुए खड़ेखड़े इधरउधर नजर डाली तो एक अलग ही माहौल था.

इतने खूबसूरत और स्टाइलिश लोग कभी नहीं देखे थे. लोगों के चेहरों से नजर ही नहीं हट रही थी. कमाल की खूबसूरती ने मन मोह लिया. टैक्सी आ गई. जो होटल बुक किया था, वह सिटी सैंटर में था जो एअरपोर्ट से 1 घंटा दूर था. यह होटल इसलिए बुक किया था वहां से हर देखने की जगह 20-25 मिनट चल कर पहुंचा जा सकता था.

होटल पहुंचने में दोपहर के 3 बज रहे थे. जा कर लंच किया, फिर बच्चे बराबर वाले अपने रूम में सोने चले गए. चारों थके थे, सब सो गए. शाम को उठे तो आसपास घूमने, डिनर करने निकले.

साफसुथरी जगह

डिनर जिस रेस्तरां में किया वह काफी अच्छी जगह थी. लाइव म्यूजिक चल रहा था जो सम?ा तो नहीं आ रहा था पर धुनें बहुत अच्छी थीं. टूरिस्ट्स इस म्यूजिक पर डांस भी कर रहे थे. धुन कर्णप्रिय थी. मेन्यू पर हाथ रखरख कर वेटर को इशारों से सम?ाया गया कि क्या चाहिए. यहां बहुत कम लोगों को अंगरेजी भाषा आती है. टर्किश भाषा ही चलती है. घूमटहल कर हम अपने होटल देर रात लौट आए.

अगले दिन हम सुबह नाश्ता कर के होटल से बस 5 मिनट दूर इस्तांबुल यूनिवर्सिटी का एरिया देखने गए. बहुत ही विशाल परिसर में बहुत ही सुंदर साफसुथरी यूनिवर्सिटी है. इस के एक एरिया में एक विशाल, आलीशान मसजिद बनी हुई है. जैसे हमारे देश में हर 10 मिनट पर एक मंदिर है, यूरोप में चर्च हैं.

यहां हम ने आधा घंटा बिताया. उस के बाद हम ने फेरी बुक की हुई थी. फेरी से आधा घंटा दूर एशियन साइड आफ इस्तांबुल जाना था. फेरी से यह टूर यहां की फेमस चीजों में से एक है. इस्तांबुल दुनिया का एकमात्र शहर है जो 2 अलगअलग महाद्वीपों पर स्थित है. यूरोप और एशिया. एक दिन के लिए फेरी से जा कर एक नई जगह देखी जा सकती है. फेरी से जाते हुए कई सुंदर दृश्य दिखते हैं. हजारों सफेद, सुंदर सीगल लगातार उड़ती दिखती हैं. बहुत ही मनोहर दृश्य होता है. इस तरफ लाइंस से टूरिस्ट्स के लिए सुंदर रेस्तरां हैं. यूरोपीय की तुलना में यहां कीमतें थोड़ी कम हैं.

हागिया सोफिया

1935 में कमाल अतातुर्क ने चर्च और मसजिद के रूप को समाप्त कर के उसे म्यूजियम बना दिया था जिस के बाद जुलाई, 2020 में दोबारा उसे मसजिद बना दिया गया. हागिया  सोफिया को तुर्की भाषा में आया सोफिया कहा जाता है. अंगरेजी में कभीकभी उसे सेंट सोफिया भी कहा जाता है. रोम में सेंट पीटर बेसिलिका के बाद हागिया सोफिया दुनिया का सब से बड़ा लटकता हुआ गुंबद है. यह इस्तांबुल में यूनैस्को की विश्व धरोहर का हिस्सा है.

इस के बनने के बाद लगभग एक सहस्त्राब्दी तक यह पूरे ईसाई जगत में सब से बड़ा चर्च था. इस ने बीजांटिन दुनिया के लिए धार्मिक, राजनीतिक और कलात्मक जीवन के केंद्र के रूप में कार्य किया. अया (पवित्र, संत) और सोफोस (ज्ञान) शब्दों से बना है जिस का अर्थ पवित्र ज्ञान है. यह इमारत धार्मिक परिवर्तनों को साफसाफ दिखाती है.

ड्यूटी पर स्टाफ काफी सख्ती से तैनात हैं. उस ने हमें सिर ढकने के लिए कहा. यहां बेहतरीन मार्बल के खभे हैं जिन्हें उन के रंग और विविधता के लिए चुना गया है. हम ने गाइड लिया था ताकि इतनी प्रसिद्द जगह के बारे में अच्छी तरह से जान सकें. वह जरमन था पर अंगरेजी भाषा में बोल रहा था.

यह एक बार फिर महसूस किया कि हर दौर में राजनीति और धर्म सरकार के हिसाब से बदलते रहते हैं. इस इमारत को कभी चर्च, कभी मसजिद, कभी म्यूजियम होना पड़ा. यहां एक जगह स्वास्तिक भी बना है. गाइड ने एक बात और मजेदार बताई. एक जगह एक रानी का चित्र  बना हुआ था. जो भी राजा बना, उस का चित्र उस रानी के साथ बना दिया गया. इस तरह रानी के साथ 3 राजाओं के चित्र बने. एक का चित्र खुरच दिया जाता और दूसरे का बना दिया जाता था.

हर जगह सुंदर काम हुआ है, दीवारों से नजर नहीं हटती. कहीं वर्जिन मेरी का चित्र बना है, कहीं अल्लाह, हसन हुसैन लिखा है, कहीं स्वास्तिक. गाइड ने एक मजबूत दरवाजा दिखाते हुए कहा कि इस के बारे में कहा जाता है कि यह कयामत तक खुला रहेगा. शायद दुनिया में हर जगह धार्मिक मान्यताओं का बोलबाला है.

यहां घूमने में 3 घंटे लगे. यह बहुत लंबीचौड़ी जगह है. टूरिस्ट्स बहुत थे पर कहीं कोई धक्कामुक्की नहीं, कोई शोर नहीं, सब शांत. यहां बहुत सारे ट्यूलिप दिखे. पहले कभी ट्यूलिप नहीं देखे थे. बहुत ही मैंटेन्ड गार्डन में सफेद, लाल सुंदर से फूल बहुत आकर्षक लगे.

ग्रैंड बाजार

यह एक भूलभुलैया जैसा पुराना बाजार है जो कई छोटीछोटी गलियों में स्थित है. आर्टिफिशियल ज्वैलरी की हजारों दुकानें हैं, गिफ्ट्स आइटम्स हैं, चीजें बहुत सुंदर हैं पर बार्गेनिंग बहुत होती है. यहां के मसाले बहुत मशहूर हैं. ले कर आई हूं. किसी भी चीज में डाल रही हूं, अलग ही स्वाद आ रहा है.

ब्लू मास्क

हजारों नीली टाइल्स इस संरचना को इसे यह नाम देती हैं. 1985 से यूनैस्को की विश्व धरोहर स्थल, ब्लू मसजिद अपनी आश्चर्यजनक वास्तुकला सुविधाओं, इतिहास, स्थान और अपने इंटीरियर के लिए प्रसिद्ध है. इस के वास्तुशिल्प डिजाइन में ओटोमन शैली और बीजांटिन के तत्त्व दोनों हैं. इस के इंटीरियर में हरे, लाल हुए सोने जैसे सहायक रंगों के साथ नीली इज्निक टाइल्स के पैटनर्स हैं.

इसे आटोमन काल की कला और 20वीं सदी की अन्य कलाओं से सजाया गया है. यहां प्रवेश नि:शुल्क है. इसे सुलतान अहमत मसजिद के नाम से भी जाना जाता है.

अगले दिन हम ने एक फेरी ट्रिप लिया. इस में बहुत से टूरिस्ट्स थे. यह साफसुथरा, खूब सजा हुआ था. इस के अंदर सुंदर चेयर्स, टेबल लगी हुई थीं. कुछ टूरिस्ट्स बाहर रेलिंग के पास खड़े हो कर वीडियो बना रहे थे. अनगिनत सुंदर सीगल पानी में तैर रही थीं. मु?ो उन की गतिविधियां देखने में विशेष आनंद आ रहा था. ?ांड की ?ांड  सीगल समुद्र की लहरों को छूतीं.

कुछ देर उन पर टिकतीं, फिर डुबकी मार कर उड़ जातीं. इस फेरी ने पूरे शहर को दिखाया. 2 घंटे का शानदार चक्कर था. इस शिप में 19-20 साल का एक लड़का था जो रेलिंग पर खड़े फोटो खिंचवाते लोगों के फोटो अपने प्रोफैशनल कैमरे से खींचने लगा. उन के पोज बनवाने लगा, हम भी उन में से थे. थोड़ी देर बाद जब हम अंदर आ कर चेयर्स पर बैठ गए, वह एक अलबम में अपने खींचे फोटो लगा कर लाया. उस ने हम चारों की बहुत से फोटो, कुछ सोलो, कुछ साथ में खींचे हुए थे और कहने लगा कि इस में से आप कुछ छांट कर 70 यूरो में खरीद सकते हैं. यह तो बहुत महंगा लगा, फिर थोड़ी बार्गेनिंग शुरू हुई फोटोज बहुत अच्छे आए थे.

अनमोल यादें

आखिर में हम ने कुछ फोटो छांटे और 30 यूरो में खरीद लिए. जब शिप से उतरने का टाइम आया, हम ने हंसीमजाक में उससे कहा कि अरे, तुम पैसा लेना भूल गए हो. अपने पैसे तो ले लो. वह याद दिलाने पर बहुत खुश हुआ. उस ने बहुत थैंक्स कहा. फिर हम ने कहा कि हमारे बाकी फोटो भी दे दो. ये सब तुम्हारे काम के भी तो नहीं हैं. भाषा की समस्या थी. अब तक सिर्फ अंगरेजी के कुछ शब्दों में ही बात हो रही थी.

उस ने अपने होंठों पर हाथ रख कर चुप रहने का इशारा किया और जल्दी से नीचे जा कर हमारे सारे फोटो हमें ला कर दे दिए. शायद वह उस के पैसे याद दिलाने से बहुत खुश हो गया था.

यहां घूम कर हम 3 रात के लिए फ्लाइट से अंतालिया चले गए जो फ्लाइट से 1 घंटे की दूरी पर स्थित बेहद खूबसूरत जगह है. यहां हम ने डुडेन फाल्स देखा. बहुत ही सुंदर. इस जगह ने मन मोह लिया. समुद्र का नीला, हरा सा पानी, उस पर ये फाल्स. वाह, क्या नैसर्गिक सौंदर्य था, तेज धूप थी पर जब एक बार यहां पहुंच गए तो ठंडी फ्रैश हवा ने सारी गरमी भुला दी. इस्तांबुल की अपेक्षा यहां का मौसम गरम था.

यहां हम ने जिस बड़े से सुंदर रेस्तरां में लंच किया वह समुद्र से कुछ ही दूर था और यहां ज्यादा स्टाफ नहीं था. जो खाना सर्व कर रहा था वह काफी जौली नेचर का था. एक लड़की कुछ ले कर आई. उस ने पूछा कि इंडियंस? हमारे ‘हां’ कहने पर उस ने ओह शाहरुख खान कहते हुए हाथ से दिल का साइन बनाया. हम हंस दिए. इस यात्रा में ऐसा कई बार हुआ. शाहरुख खान के जलवे विदेशों में कई बार देखे.

एक दिन हम ओल्ड टाउन गए. यह जगह ऐसे अनुभव देगी जिसे आप कभी नहीं भूल सकते. आप यहां शानदार हैड्रियन गेट, निजी समुद्र तट, वाचटावर और बोहेमियन कैफे देख सकते हैं. यहां बहुत पतलीपतली साफसुंदर, सजी हुई गलियां हैं, जिन्हें देखने से मन नहीं भरता.

यहां हर चीज को बहुत खूबसूरती से सजाया गया है. यहां हम ने एक दिन की बोट राइड ली क्योंकि बच्चों को स्कूबा डाइविंग करनी थी. इस बोट पर गुरुग्राम के 2 युवा लड़के भी मिल गए. बोट पर 4 लोगों का स्टाफ था जो बहुत ही केयरिंग था. उन में जो सब से सीनियर था. वह खुद हमारी बेटी को जो पहली बार स्कूबा डाइविंग से अचानक डरने लगी. उसे पानी में ले कर उतरा. बहुत ही अच्छी सेफ व्यवस्था थी. हर तैराक के साथ वह सीनियर और स्टाफ में से कोई एक रहता. हम दोनों बस उन सब को मछलियां बनते देख कर ऐंजौय करते रहे. हम पानी में नहीं उतरे.

बच्चों ने 1 घंटा बहुत ऐंजौय किया. फिर सब को सैंडविच और कोल्ड ड्रिंक्स दी गई. स्टाफ ने ही बहुत सी विक्ट्री के साइन के साथ कई तरह के फोटो लिए, पानी के अंदर के वीडियो बनाए. इन फोटो को लेने के लिए 6 हजार देने होते हैं. बच्चों ने इस यादगार दिन की मैमोरीज रखने के लिए सब ले लिए. उन्होंने सब मेल कर दिए.

एक दिन हम यहां मूरतपासा गए. यह भी एक बीच है. यहां भी बहुत से होटल्स हैं. यहां बहुत शांति थी. बीच बहुत साफ था. फिर हम वापस इस्तांबुल लौट आए.

बकलावा

अगर आप टर्की में हैं तो यहां की सब से फेमस स्वीट डिश खाए बिना लौट ही नहीं सकते. यह एक बहुत ही स्वादिष्ठ पेस्ट्री जैसी चीज होती है जो कई ड्राई फ्रूट्स से भरी होती है. हम ने हैल्थ के सब नियम भूल कर लंच और डिनर के बाद रोज बकलावा खाया. जब कभी होटल में खाना खाते हुए अच्छा बड़ा और्डर हो जाता है, यहां बकलावा कौंप्लिमैंटरी सर्व कर दिया जाता है.

टर्किश टी

जब आप टर्की में हों तो यहां की चाय और काफी जरूर चखें. इसे बहुत ही छोटेछोटे बेहद खूबसूरत कपों में सर्व किया जाता है. यह कई फ्लेवर की मिलती है. ज्यादा महंगी भी नहीं है. कई होटल इसे कौंप्लिमैंटरी सर्व करते हैं. अपना एक अनुभव बताना चाहती हूं. मैं ने बचपन से ही दूध वाली, अदरक की चाय पी है. यह आदत छूटती ही नहीं थी. जब टर्किश चाय पी, सालों की यह आदत इस का एक कप पी कर छूट गई. मु?ो अपनी चाय एक बार भी याद नहीं आई. जो ले कर आई हूं, वही पी रही हूं. इस के बहुत से हैल्थ बैनिफिट्स भी हैं. इस में कुछ नहीं करना होता है, बस गरम पानी मिलाना होता है जैसे लोग हर्बल टी पीते हैं. पर इस के जैसा स्वाद किसी और चाय में नहीं है. यहां की करेंसी लीरा है.

खुशमिजाज लोग

जहांजहां भी खाना खाया. सब से पहले कौंप्लिमैंटरी ब्रैड आती है. यह बहुत बड़ी और बहुत अच्छी तरह से सिंकी होती है जो कुछकुछ भठूरे की शेप में होती है पर तली हुई नहीं होती. रोटी की तरह सिंकी होती है. वेटर्स बहुत खुशमिजाज हैं. कोईकोई तो उठते समय पूछता है कि गुड फूड?‘यस कहने पर हाई फाइव देता है. यहां भुट्टे बहुत बिक रहे थे. यहां हम पैदल बहुत चले. एक दिन तो 19 किलोमीटर चले. ट्राम भी थी पर इधरउधर खूबसूरत लोग. सुंदर चीजों को देखते हुए पैदल चलने में आनंद आ रहा था. न कोई पौल्यूशन न कोई भीड़.

इस्तांबुल में कुछ दिन बिता कर लौटने का समय आ गया. पैकिंग कर होटल से निकले. इस्तांबुल एअरपोर्ट पर काफी समय बिताया. बहुत सुंदर चीजें थीं. कुछ ड्यूटी फ्री में खरीद लीं. वहां के हिसाब से 8 बजे की फ्लाइट थी.

जब सुबह 5 बजे फ्लाइट ने मुंबई लैंड किया. सुंदर अनुभवों के साथ घर वापसी हो चुकी थी. यात्रा कई दिनों तक मनमिजाज खुश रखती  है.

प्रेग्रेंसी के दौरान इन स्किन केयर प्रौडक्ट्स से बनाएं दूरी

जब आप प्रेग्रेंसी प्लान कर रही होती हैं और इसी बीच आपको जब पता चलता है कि आपने  कंसीव कर लिया है तो आपकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता.  ऐसा लगने लगता है जैसे हमारी पूरी दुनिया ही बदलने वाली हो.  यही बात स्किन केयर प्रोडक्ट्स पर भी लागू होती है. भले ही आपकी कैबिनेट क्रीम से भरी हुई हो, जो आपकी  स्किन को खूबसूरत व ग्लोइंग बनाने का काम करती हो, लेकिन प्रेग्रेंट होते ही आपके शरीर की तरह आपकी स्किन में भी कई तरह के बदलाव आने शुरू हो जाते हैं.  क्योंकि होर्मोन्स का संतुलन बिगड़ने की वजह से स्किन में नमी कम होने के साथ स्किन ज्यादा सेंसिटिव जो होने लगती है. इसलिए अब न तो आप पहले की तरह अपने रूटीन को फॉलो कर पाती हैं और न ही स्किन केयर रूटीन को.  बल्कि अब आपको जरूरत होती है अपने स्किन केयर रूटीन में उन ब्यूटी प्रोडक्ट्स को शामिल करने की, जो प्रेग्रेंसी में आपके व आपके बच्चे के लिए सही व सेफ हो.

अनेक रिसर्च में यह साबित हुआ है कि प्रेग्रेंट महिला को प्रेग्रेंसी के दौरान निर्म बताए केमिकल्स से दूरी बना कर रखना बहुत जरूरी है, तो जानते हैं उन केमिकल्स के बारे में कॉस्मोटोलॉजिस्ट पूजा नागदेव से.

1. रेटिनोइड्स

अच्छी त्वचा , प्रजनन संबंधी व आंखों की अच्छी हैल्थ के लिए विटामिन ए बहुत ही आवश्यक तत्व माना जाता है. लेकिन जब हम इसे लेते हैं या फिर स्किन के जरिए अवशोषित करते हैं तो हमारा शरीर इसे रेटिनोल में बदल देता है. बता दें कि बहुत सारे एंटी एजिंग स्किन केयर प्रोडक्ट्स में रेटिनोइड्स होते हैं , जो एक तरह का रेटिनोल होता है. जिसमें एक्ने व झुर्रियों से लड़ने की क्षमता होती है. रेटिनोइड्स डेड स्किन को एक्सफोलिएट करके तेजी से कोलेजन के निर्माण में मदद करता है. लेकिन आपको बता दें कि ओवर द काउंटर मेडिसिन्स की तुलना में प्रेसक्राइब्ड मेडिसिन में काफी ज्यादा मात्रा में रेटिनोइड्स होते हैं. लेकिन जब जरूरत से ज्यादा इसका इस्तेमाल किया जाता है तो ये बच्चे में कई समस्याओं का कारण बन सकता है. इसलिए इनका इस्तेमाल प्रेग्रेंसी के दौरान स्किन केयर प्रोडक्ट्स में करने से बचना चाहिए.

2. सैलिसिलिक एसिड 

ज्यादा मात्रा में सैलिसिलिक एसिड में एस्पिरिन की तुलना में एंटी इंफ्लेमेटरी प्रोपर्टीज होती हैं , जो आमतौर पर हमेशा एक्ने को ठीक करने के लिए इस्तेमाल की जाती हैं.  इसलिए डाक्टर के बिना पूछे आप सैलिसिलिक एसिड युक्त क्रीम्स का इस्तेमाल प्रेग्रेंसी के दौरान न करें. क्योंकि अकसर डाक्टर जरूरत पड़ने पर 2 पर्सेंट से कम वाले सैलिसिलिक एसिड का इस्तेमाल करने की ही सलाह देते हैं. लेकिन अगर आप ज्यादा मात्रा में इसका इस्तेमाल करती हैं तो ये नुकसान ही पहुंचाने का काम करेगा.

3. फथालेट्स

फथालेट्स एक ऐसा तत्व है, जो होर्मोनेस के संतुलन को बिगाड़ने के लिए जिम्मेदार माना जाता है. यहां तक कि इसका इस्तेमाल ढेरों कोस्मेटिक्स व पर्सनल केयर प्रोडक्ट्स में किया जाता है. रिसर्च में यह साबित हुआ है कि जानवरों की प्रजनन क्षमता व होर्मोनेस के संतुलन को बिगाड़ने के लिए इसे जिम्मेदार माना जाता है.तो आप समझ ही गए होंगे कि ये केमिकल कितना नुकसानदायक है.  इसलिए इस केमिकल से दूरी बनाने में ही समझदारी है.

4. केमिकल सनस्क्रीन 

सनस्क्रीन में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला अल्ट्रा वायलेट फ़िल्टर ऑक्सीबेंज़ोन व इसके विभिन प्रकार हैं. हालांकि ये स्किन को प्रोटेक्ट करने का काम करता है. लेकिन ऑक्सीबेंज़ोन स्वास्थय व पर्यावरण के लिए सही नहीं माना जाता. क्योंकि ऑक्सीबेंज़ोन एक एंडोक्राइन डिसरूपतर है. इसलिए ये आशंका है कि प्रेग्रेंसी के दौरान ये तत्व होर्मोनेस का संतुलन बिगड़ने के साथसाथ मां व बच्चे दोनों को नुकसान पहुंचा सकता है.

5. हेयर डाई 

बता दें कि हेयर कलर्स में अमोनिया और पेरोक्साइड होता है. जो स्कैल्प के जरिए शरीर में जाकर जलन , एलर्जी व कई नकारात्मक प्रभाव डालने का काम करता है.

6. ब्लीच 

ब्लीच में हाइड्रोजन पेरोक्साइड होता है,  जो स्किन को डैमेज करने के साथसाथ आंखों के टिश्यू को भी नुकसान पहुंचाने का काम करता है. इसलिए प्रेग्रेंसी में तो इसका इस्तेमाल करने से बचना ही चाहिए , साथ ही वैसे भी आप ब्लीच का जितना हो सके, कम से कम ही इस्तेमाल करें.

अब जानते हैं अल्टरनेटिव 

सेफ स्किन केयर इंग्रीडिएंट्स के बारे में

1. एक्ने एंड हाइपरपिगमेंटेशन 

अगर आप प्रेग्रेंसी के दौरान एक्ने व स्किन पिगमेंटेशन की समस्या से परेशान हैं , जो इस समय की यह आम समस्या है तो आप रेटिनोइड बेस्ड कोस्मेटिक्स की जगह, जिसमें ग्ल्य्कोलिक एसिड इंग्रीडिएंट हो, उसका इस्तेमाल करें. क्योंकि ये हैल्दी स्किन सेल्स को प्रमोट करके आपके प्रेग्रेंसी के ग्लो को भी बनाए रखने का काम करता है.

2. एंटी एजिंग 

विटामिन सी जिस तरह से आपकी इम्युनिटी को बूस्ट करने का काम करता है, उसी तरह से विटामिन सी जैसा एन्टिओक्सीडेंट कोलेजन को बनाए रखने व स्किन को फ्री रेडिकल्स से बचाए रखने का भी काम करता है. इसी के साथ आप प्रेग्रेंसी के दौरान अन्य एन्टिओक्सीडैंट्स जैसे विटामिन इ, विटामिन के , विटामिन बी- 3 व ग्रीन टी का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.

3. ड्राई स्किन एंड स्ट्रेक्च मार्क्स 

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि प्रेग्रेंसी के दौरान शरीर पर काफी दबाव व भार पड़ता है. और गर्भ में पल रहे शिशु को किसी भी समय पानी की जरूरत होती है, तो वो आपसे ही इसकी पूर्ति करता है. जिससे स्किन ड्राई हो जाती है. रूखी त्वचा इसका व होर्मोनेस के असंतुलन का ही परिणाम है. ऐसे में अगर आप स्ट्रेच मार्क्स से बचना चाहती हैं तो आपको इस बात का ध्यान रखना होगा कि आपकी स्किन ड्राई न हो. इसके लिए आप स्वीट आलमंड आयल, सीसम या ओलिव आयल का इस्तेमाल कर सकती हैं. आप लैवेंडर आयल, रोज आयल, जैसमिन आयल का भी बिना डरे इस्तेमाल करके ड्राई स्किन व स्ट्रेच मार्क्स की समस्या से निजात पा सकती हैं.

4. सन प्रोटेक्शन 

स्किन को धूप से बचाना बहुत जरूरी होता है. क्योंकि अगर आपकी स्किन धूप से बची रहेगी तो स्किन कैंसर के साथसाथ झुर्रियों का खतरा भी काफी हद तक कम हो जाएगा. ऐसे में आप प्रेग्रेंसी के दौरान नेचुरल सनस्क्रीन के तौर पर रसभरी सीड आयल का इस्तेमाल कर सकती हैं. आप इस बात का ध्यान रखें कि प्रेग्रेंसी के दौरान आप केमिकल वाले सनस्क्रीन की जगह मिनरल बेस्ड सनस्क्रीन का ही इस्तेमाल करें.

नौकरानी नहीं रानी हूं मैं

ओ मैडमजी, आप की हिम्मत कैसे हुई मुझे कामवाली बाई, नौकरानी, महरी जैसे नामों से पुकारने की? बुलाना हो तो मुझे प्यार से मेरे नाम से पुकारें या मेड सर्वेंट अथवा मेड ही कहें. कान खोल कर सुन लो बीवीजी, मैं नौकरानी नहीं हूं. मैं जिस घर में भी जाती हूं रानी बन कर रहती हूं. नौकरानी तो मुझे कोई कह ही नहीं सकता. नौकरी को तो मैं अपनी जूती की नोक पर रखती हूं. जब मन चाहे ऐसी दोटकिया नौकरी को ठोकर मार कर चल देती हूं. गरज तो आप को है मेरी. मुझे नौकरी के लाले नहीं पड़े हैं. बहुतेरी नौकरियां मेरी राह में बिछी हैं. एक घर छोड़ू तो 10 घर मुझे हाथोंहाथ झेल लेंगे. रखना हो तो रखो, नहीं तो मैं तो चली…

एक बात अच्छी तरह समझ लो बीवीजी, काम तो मैं अपनी शर्तों पर करती हूं. अगर आप को मुझे काम पर रखना है, तो टाइम की पाबंदी का कोई नाटक नहीं चलेगा. मैं आप की या आप के साहब की तरह औफिस में काम नहीं करती हूं जहां समय पर पहुंचना जरूरी होता है. मैं तो आराम से अपने घर के काम निबटा कर, सजधज कर काम पर पहुंचती हूं, इसलिए टाइम को ले कर मुझ से झिकझिक करने का नहीं, समझीं आप?

एक और जरूरी बात. मेरे पास अपना मोबाइल है. मैं अपने मोबाइल से किसी से भी, कितनी भी देर, कभी भी, कैसी भी बातें करूं, आप को कोई ऐतराज करने का हक नहीं कि काम पड़ा है और न जाने इतनी देर से किस से बतिया रही है? यह भी जान लो मुझे जब भी, जितनी भी बार चाय की तलब लगे मुझे कड़क, मीठी, स्पैशल चाय चाहिए. उस के बगैर तो मेरे हाथपैर ही नहीं चलते. चाय के लिए आप मुझे रोकेंगीटोकेंगी नहीं.

और हां मेम साहब, यह तो बताना मैं भूल ही गई हूं कि दोपहर को मुझे टीवी पर अपने पसंदीदा सीरियल भी देखने होते हैं. यदि मैं फुलस्पीड पर पंखा चला कर सीरियल या मूवी देखूं तो यह आप की आंखों में खटकना नहीं चाहिए. यह भी तो सोचिए टीवी पर आने वाले विज्ञापनों ने मेरी जनरल नौलेज में कितनी वृद्धि की है. मैं ने उन्हीं से जाना है कि किस बरतन साफ करने वाले पाउडर में सौ नीबुओं की शक्ति है और किस डिटर्जैंट में 10 हाथों की धुलाई का दम है. ये सारे विज्ञापन हम जैसी मेड सर्वेंट के लिए ही तो बने हैं ताकि हमें मेहनत कम करनी पड़े और हाथ मुलायम बने रहें. मैं कहूं उस के पहले ही आप को ये सब चीजें बाजार से ला कर रखनी होंगी.

मैडमजी, पहले ही बता देना आप के सासससुर तो आप के साथ आ कर नहीं रहते हैं? मैं ऐसे घरों में काम नहीं लेती हूं जहां बूढ़े सासससुर भी साथ रहते हों. जितनी देर काम करो उतनी देर खूसट बुढि़या डंडा लिए सिर पर ही सवार रहती है कि यह कर, वह कर, यह क्यों नहीं किया, वह क्यों नहीं किया. असल बात तो यह है कि बहू पर तो उन की चलती नहीं, इसलिए सारी कसर वे हम जैसे लोगों पर ही निकालती हैं.

और हां बीवीजी, अगर आप के घर में छोटे बच्चे हैं और मैं कभी प्यार से उन्हें एकाध चपत लगा दूं तो सीधे थाने में रिपोर्ट करने मत चली जाना, समझीं आप? मेरे खुद के भी तो बालबच्चे हैं कि नहीं? वे परेशान करते हैं तो मैं उन्हें भी तो कूटपीट देती हूं. आप के बच्चों को भी मैं अपने बच्चों की ही तरह पालूंगी. कभी एकाध बार जरा सा हाथ उठा दिया तो उस के लिए हायतोबा मचाने की जरूरत नहीं. घर में सीसीटीवी कैमरे लगे होने की धमकी तो देना ही मत. सीसीटीवी कैमरे की आंखों में और आप की आंखों में भी धूल झोंकना हमें खूब आता है. एक बात और जान लो मेमसाहब, मेरे अपने भी कुछ रूल्स ऐंड रैग्यूलेशंस हैं. मेरा उसूल है कि नौकरी जौइन करने से पहले ही मैं इस मुद्दे पर डिस्कस कर लेना ठीक समझती हूं कि महीने में 4 छुट्टियां (हफ्ते में 1 छुट्टी) तो मुझे चाहिए ही चाहिए. आप की और साहब की नौकरी में ‘फाइव डेज वीक’ का प्रावधान है तो फिर मैं तो ‘सिक्स डेज वीक’ पर काम करने को तैयार हूं. पर सिर्फ इतनी छुट्टियां मेरे लिए काफी नहीं होंगी. गाहेबगाहे तीजत्योहार की छुट्टियां भी तो मुझे मिलेंगी कि नहीं?

इस के अलावा कभी मैं खुद बीमार पड़ी तब तो कभी अपने पति, बच्चों को बीमार बता कर छुट्टी करूंगी. कभी रिश्तेदारी में शादी, तो कभी मौत का बहाना बना कर छुट्टी करूंगी. इस के अलावा जब आप के घर में मेहमान आने वाले हों तब तो मेरा छुट्टी करना बनता ही है. बहानों की कोई कमी नहीं है मेरे पास. आप कहो तो छुट्टी करने के 101 बहानों पर किताब लिख दूं. पर क्या करूं बीवीजी, आप की तरह पढ़ीलिखी तो हूं नहीं. पर पढ़ेलिखों के भी कान कतरती हूं. बीवीजी, अब ऐडवांस लेने के बारे में भी बात कर लें तो अच्छा रहेगा. ऐडवांस लेने के भी 101 बहाने हैं मेरे पास. गरज तो आप को है मेरी. थोड़ी नानुकर के बाद ऐडवांस तो आप को देना ही पड़ेगा, क्योंकि कोई दूसरा चारा ही नहीं है आप के पास. क्व4-5 हजार का ऐडवांस तो ऊंट के मुंह में जीरा है मेरे लिए. इस ऐडवांस की रकम मैं हर महीने वेतन में से सिर्फ सौ 2 सौ ही कटवा कर चुकाऊंगी और किसी दिन सिर घूम गया तो आप को छोड़ कर ऐडवांस ले कर रफूचक्कर हो जाऊंगी.

हाथ की सच्ची हूं, यह तो मैं डंके की चोट पर कहती हूं. जहां भी मैं ने काम किया है, उन से पूछ कर देख लो. आज तक उन की एक सूई भी गायब नहीं हुई. सूई मैं क्यों गायब करूंगी, हाथ की सच्ची हूं न. सूई तो नहीं, पर बाकी चीजें तो इतनी सफाई से गायब होती हैं कि कोई मुझ पर तो शंका कर ही नहीं सकता. क्योंकि मैं खुद तो कुछ नहीं करती हूं पर दूसरों को खबर तो कर सकती हूं न? घर के सारे लोगों की दिनचर्या मुझ से ज्यादा किसे मालूम हो सकती है? घर में कौन कब आता है, कौन कब जाता है, अलमारी की चाबी कहां रहती है, कीमती चीजें कहां रखी रहती हैं, कब छुट्टियां मनाने शहर से बाहर जाने का प्रोग्राम है, इस सब की मुझे खबर रहती है. मैं कुछ नहीं करती, मुझ से भेद ले कर हाथ की सफाई तो कोई और ही दिखाता है. मुझे रंगे हाथों पकड़ना आप के बस की बात नहीं है.

मैडमजी, अब थोड़ी पर्सनल बात भी हो जाए. थोड़ी रोमांटिक बात है यह. वह क्या है कि आप के साहब या जवान हो रहे साहबजादे को रिझाने के भी 101 तरीके हैं मेरे पास. अब झाड़ूपोंछा करते समय मेरी साड़ी पिंडलियों से ऊपर हो जाए (और वह तो होगी ही) या आप के दिए ‘लोकट’ ब्लाउज के अंदर उन की निगाहें फिसलफिसल जाएं और उन्हें कुछकुछ होने लग जाए तो आप मुझे कोई दोष न देना. यह ‘लोकट’ ब्लाउज तो आप ने ही दिया था न मुझे? फिर उस के बाद साहब मौका देख कर किसी न किसी बहाने से या आप के नौजवान साहबजादे कालेज के पीरियड गोल कर वक्तबेवक्त घर आने लग जाएं तो इस में मेरी क्या गलती? साहब या साहबजादे आप से छिपा कर थोड़ीबहुत बख्शीश मुझे दे दें तो आप को ऐतराज नहीं होना चाहिए, वैसे ऐसी बातों की मैं आप को कानोंकान खबर होने दूं तब न?

बीवीजी, एक मजेदार बात तो आप को मालूम ही नहीं. आप तो सपने में भी सोच नहीं सकतीं कि आप लोगों के घरों में काम करने वाली हमारी जैसी मेड सर्वेंट जब आपस में मिलती हैं तो कैसीकैसी बातें करती हैं. आप सुनेंगी तो हंसेंगी या फिर गुस्सा करेंगी कि हमारी बातचीत का मेन टौपिक, हमारा टारगेट तो बस आप लोग ही रहती हैं  सब ने अपनीअपनी मालकिन के उन के रंगरूप और स्वभाव के अनुसार कई मजेदार निकनेम रख रखे हैं. किसी की मालकिन उस की नजर में काली मोटी भैंस है, तो कोई अजगर की तरह सारा दिन बिस्तर पर अलसाई पड़ी रहती है. किसी की मालकिन बिल्ली की तरह चटोरी है, तो कोई फैशन कर दिन भर मेढकी की तरह फुदकती रहती है. कोई बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम है, तो कोई जासूस करमचंद की तरह जासूसी करती है. अरे बीवीजी, हम ने तो आप लोगों के ऐसेऐसे नाम रखे हैं, आप की ऐसीऐसी मिमिक्री करती हैं, ऐसीऐसी नकल उतारती हैं कि आप सुन लें तो चुल्लू भर पानी में डूब मरें. किसी दिन हम छुट्टी कर दें तो घर के काम करने में कैसे आप को नानी याद आती है, इस की ऐक्टिंग कर के तो हम लोटपोट हो जाती हैं.

हमारे मन का गुबार या पेट का अफारा कई तरह से निकलता है. कालोनी में किस के घर क्या चल रहा है, किस का किस के साथ चक्कर है, कौन किस के साथ रंगे हाथों पकड़ी गई, किस के घर में तीसरी औरत या तीसरे मर्द को ले कर पतिपत्नी में कुत्तों की तरह लड़ाई छिड़ी रहती है, इन झूठीसच्ची खबरों को तिल का ताड़ बना कर, अपनी तरफ से ढेरों नमकमिर्च लगा कर हम अपना तो मनोरंजन करती ही हैं, फिर ये ही खबरें हमारे मुखारविंद से घरघर जा कर मालकिन के सामने भी ब्रौडकास्ट होती हैं (सिवा उन के खुद के घर की खबरों के). हमारा यह न्यूज चैनल बहुत लोकप्रिय है. अपनी मालकिन को ब्लैकमेल करना भी मुझे बहुत आता है. त्योहारों पर इनाम और दीवाली पर तो 1 महीने का वेतन बोनस मैं धरा ही लेती हूं, हर नए साल पर वेतन बढ़वा लेना भी मुझे खूब आता है. इस के अलावा उन की किसी पड़ोसिन ने अपनी मेड सर्वेंट को क्या दिया है, इस की खबर भी बढ़ाचढ़ा कर सुना कर अपनी मालकिन को ब्लैकमेल करने में पीछे नहीं रहती हूं ताकि वे उस से भी बढ़चढ़ कर मुझ पर कपड़े, बरतन, खानेपीने का सामान लुटाने में पीछे न रह जाएं. अंत में मैं स्पष्ट कर दूं (चाहे तो इसे धमकी भी समझ सकती हैं) कि हम घरेलू कामवाली मेड सर्वेंट ने अपनी यूनियन भी बना रखी है जिस की मैं अध्यक्ष हूं. हम सब की मंथली मीटिंग होती है, जिस में हम अपने वेतन, छुट्टियों, काम के घंटों आदि पर कंट्रोल रखती हैं. मांगें पूरी न होने पर हड़ताल करना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है. शिकायत ले कर थाना, कचहरी जाने में भी हमें कोई डर नहीं है, क्योंकि अंतत: जीत तो हमारी ही होनी है. कानून तो हमेशा (चाहे कोई भी दोषी हो) ससुराल विरुद्ध बहू के केस में बहू का, मकानमालिक विरुद्ध किराएदार में किराएदार का पक्ष लेता है, इसलिए मालकिन विरुद्ध नौकरानी में नौकरानी का ही पक्ष लेगा, इस का हमें पूर्ण विश्वास है. हम सर्वव्यापी हैं, सर्वशक्तिमान हैं. आप को काम पर रखना हो तो रखो, नहीं तो, मैं तो चली…

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