यूनीक स्टफ्ड आलू

सामग्री

4 गोल आलू द्य 3 बड़े चम्मच चीज स्प्रैड

1/4 कप कसा मोजरेला चीज

1/2 कप सूजी द्य 1/2 कप दूध

1 उबला आलू द्य 1 चुटकी कालीमिर्च

थोड़ी सी धनियापत्ती द्य 1-2 हरीमिर्च

तेल तलने के लिए द्य नमक स्वादानुसार.

विधि

सूजी में थोड़ा नमक व कालीमिर्च डाल कर थोड़े दूध में घोल लें. गाढ़ा होने पर थोड़ा और दूध डाल कर पकौड़ों के बेसन जैसा घोल बना लें. आलू छील कर गोल स्लाइस काट लें. प्रत्येक स्लाइस के बीच में एक गोल छेद कर लें. उबले आलू का मसल लें. उस में मोजरेला चीज, हरीधनिया, हरीमिर्च, नमक व कालीमिर्च मिला कर छोटीछोटी गोलियां बना लें. आलू का एक स्लाइस लें. उस पर चीज स्प्रैड फैलाएं. ऊपर दूसरा स्लाइस रखें. बीच के खाली गोले में बनाई हुई गोली भर दें. सारे स्लाइस ऐसे ही तैयार कर लें. एक कड़ाही में तेल गरम करें. 1-1 भरवां स्लाइस उठाएं और सूजी में डुबा कर गरम तेल में सुनहरा होने तक तल लें. गरमगरम परोसें.

Kheema Masala

Hi,
Here we present a delicious recipe for you

Kheema Masala is a delicious Indian recipe served as a Side Dish.

Ingredients for Kheema masala:
200gms Mutton Mice(kheema)
2 1/2 tbs Ghee
2 Medium Chopped Onions
2 Medium Tomatoes
Green Chillies seeded 3 garlic chopped 5-6
Ginger Chopped 1 inch piece
Turmeric Powder 1/2 tsp
Red chilli powder 3/4 tsp
Salt to taste
Chopped Corrainder
Chopped Mint
Basmati Rice-2 cups
Water – 4 cups

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दिमागी शक्ति बढ़ाता आहार

हमारे मस्तिष्क का अनगिनत तंत्रतंत्रिकाओं का विस्तृत नैटवर्क एक कंप्यूटर के समान है, जो हमें निर्देश देता है कि किस प्रकार विभिन्न संवेदों, जैसे गरम, ठंडा, दबाव, दर्द आदि के प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त की जाए. इस के साथ ही यह बोनसस्वरूप हमें भावनाओं व विचारों को सोचनेसमझने की शक्ति भी देता है. हम जो चीज खाते हैं, उस का सीधा असर हमारे मस्तिष्क के कार्य पर पड़ता है. यह सिद्ध किया जा चुका है कि सही भोजन खाने से हमारा आई.क्यू. बेहतर होता है, मनोदशा (मूड) अच्छी रहती है, हम भावनात्मक रूप से ज्यादा मजबूत बनते हैं, स्मरणशक्ति तेज होती है व हमारा मस्तिष्क जवान रहता है. यही नहीं, यदि मस्तिष्क को सही पोषक तत्त्व दिए जाएं तो हमारी चिंतन करने की क्षमता बढ़ती है, एकाग्रता बेहतर होती है व हम ज्यादा संतुलित व व्यवस्थित व्यवहार करते हैं.

ऐजिंग का असर

ऐजिंग का हमारी सीखने की शक्ति व याददाश्त पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. कई शोधों से यह बात सामने आई है कि मुक्त मूलकों (फ्री रैडिकल्स) द्वारा होने वाले ‘औक्सीडेटिव डैमेज’ व ‘ब्रेन स्टारवेशन’ दिमागी कमजोरी के 2 मुख्य कारण हैं. लेकिन अन्य अंगों, जैसे हृदय, लीवर आदि की तरह हम अपने मस्तिष्क को भी स्वस्थ रख सकते हैं. ऐजिंग की प्रक्रिया को स्लो करने व मस्तिष्क को स्वस्थ रखने के लिए ब्रेन बूस्टिंग यानी दिमागी शक्ति को बढ़ाने वाला ऐसा आहार लें, जो विटामिंस, ऐंटीऔक्सीडेंट्स, ओमेगा-3 फैटी ऐसिड्स व डी.एच.ए. से भरपूर हो. यह आहार न सिर्फ ऐजिंग की प्राकृतिक प्रक्रिया को संतुलित करने में सहायक होगा, बल्कि डिप्रैशन से भी सुरक्षा प्रदान करने में मदद करेगा.

निम्न फलों और खाद्यपदार्थों पोषक तत्त्वों से भरपूर होने की वजह से बहुत लाभकारी हैं-

सेब: सेब में विटामिन सी के साथसाथ ‘कुएरसीटिन’ नामक पदार्थ भी पाया जाता है, जो एक ‘फ्लावोनोइड’ है (फ्लावोनोइड पौधों में पाए जाने वाले पिगमेंट होते हैं, जो पत्तियों को पीला, लाल, नीला या अन्य रंग देते हैं). विटामिन सी व ‘कुएरसीटिन’ दोनों ही ऐंटीऔक्सीडेंट की तरह कार्य करते हैं. ये मुक्त मूलकों के द्वारा किए जाने वाले नर्व डैमेज को रोकते हैं. पार्किंसंस व एल्जिमेर्स जैसी न्यूरोडीजनरेटिव डिजीज से सुरक्षा करते हैं. इस बात का ध्यान रखें कि सेब के छिलकों में कीटनाशक के अंश पाए जाते हैं. अत: और्गेनिक तरीके से उगाए गए सेब खरीदें अथवा सेब को अच्छी तरह धो कर प्रयोग में लाएं. छिलके न निकालें, क्योंकि इन में कई सारे पोषक तत्त्व पाए जाते हैं.

टिप: एप्पल शेक बनाएं व उस में 1/4 चम्मच दालचीनी का पाउडर डालें. इस से न सिर्फ स्वाद में वृद्धि होगी, बल्कि दालचीनी में प्रचुर मात्रा में ऐंटीऔक्सीडेंट तत्त्व होने की वजह से यह बच्चों के लिए लाभकारी भी होगा.

काले अंगूर: काले अंगूरों के बीज में ‘गामा लिनोलिक ऐसिड’ नामक फैटी ऐसिड पाया जाता है, जोकि एक ओमेगा-6 फैटी ऐसिड है. यह स्ट्रैस के दुष्प्रभाव से भी ब्रेन की रक्षा करता है. अन्य फलों की तरह इस में भी विटामिन सी प्रचुर मात्रा में होता है.

टिप: बीज सहित इस का रस निकालें व प्रयोग करें.

हरी पत्तेदार सब्जियां: रक्त में लौह की कमी को कमजोर स्मरणशक्ति से जोड़ा गया है.  रक्त में लौह की कमी होगी, तो रक्त कोशिकाएं कम मात्रा में बनेंगी, जिस का अर्थ है मस्तिष्क तक कम मात्रा में औक्सीजन का पहुंचना और अधिक ‘औक्सीडेटिव स्ट्रैस’ होना. ऐसा न हो, इस के लिए हरी पत्तेदार सब्जियों, जैसे पालक, सरसों, मेथी, शलगम के पत्तों, लेट्स, पत्तागोभी व अन्य मौसमी सब्जियों का प्रयोग करें. इन में प्रचुर मात्रा में ‘केरोटीनोइड्स’ भी पाए जाते हैं, जोकि ‘ऐंटीऔक्सीडेंट्स’ हैं.

टिप: सलाद में अच्छी तरह से साफ व धुली हुई पत्तेदार सब्जियां उपयोग में लें, औलिव औयल में सिरका या नीबू का फ्रैश रस डाल कर प्रयोग करें.

ग्रीन टी: पानी के बाद ग्रीन टी को दुनिया का सब से बेहतरीन पेयपदार्थ माना जाता है. दिन भर में 2 कप ग्रीन टी न सिर्फ आप की स्मरणशक्ति को बढ़ाएगी, बल्कि आप की एकाग्रता को भी बेहतर करेगी. ग्रीन टी में ‘पौली फिनौल्स’ प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं, जो शक्तिशाली ‘ऐंटीऔक्सीडेंट्स’ हैं और ब्रेन की रक्षा करते हैं.

डार्क चौकलेट: डार्क चौकलेट में पाए जाने वाले ‘प्रोसायनेडीस’ व ‘एपीकेटचिन’ नामक फ्लावोनोइड्स मस्तिष्क की तरफ रक्त प्रवाह को बेहतर बनाते हैं. मस्तिष्क के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक पोषक तत्त्वों की आपूर्ति सुनिश्चित करते हैं.

हैल्दी औयल: औलिव औयल, अलसी का तेल, सफेद सरसों का तेल, कच्ची घानी सरसों का तेल व सनफ्लावर औयल में ओमेगा- 3 फैटी ऐसिड पाया जाता है. यह एक प्रकार का आवश्यक ‘फैटी ऐसिड’ होता है, जो हमारे शरीर में नहीं बनता, इसलिए इसे डाइट के द्वारा लेना आवश्यक है. यह हमारी कोशिकाओं की टूटफूट की रिपेयर, उन के उचित रखरखाव, हमारे शरीर से हानिकारक पदार्थों को निकालने और उचित पोषण प्राप्त करने के लिए जरूरी है.

चूंकि इन औयल्स का स्मोकिंग पौइंट कम होता है, इसलिए इन में पाया जाने वाला फैटी ऐसिड उच्च तापमान पर नष्ट हो जाता है. इसलिए इस बात का ध्यान रखें कि इन्हें डीप फ्राइंग के लिए प्रयोग न करें. इन का प्रयोग सलाद ड्रैसिंग करने के लिए करें या फिर इन्हें कच्चा ही इस्तेमाल करें.

फिश: कई शोधों से पता चला है कि यदि आप डाइट में मछली का सेवन नियमित रूप से करते हैं तो आप के मस्तिष्क पर ऐजिंग का इतना प्रभाव नहीं पड़ता. सालमोन, सारडिंस, ट्यूना, हैलिबट, कोड, वाइट फिश आदि में प्रचुर मात्रा में डी.एच.ए. व ओमेगा-3-फैटी ऐसिड पाए जाते हैं. यह एक प्रकार की उत्तम वसा है. यह न सिर्फ हमारे मस्तिष्क को स्वस्थ रखती है, बल्कि हमारे हृदय के लिए भी अति फायदेमंद है.     

परिवार का सहयोग नहीं मिला : श्रद्धा कपूर

बचपन से अभिनय में रुचि रखने वाली 26 वर्षीय अभिनेत्री श्रद्धा कपूर को बचपन से फिल्में देखने का शौक था. फिल्मी माहौल में पलीबढ़ी श्रद्धा ने कुछ फिल्में तो कईकई बार देखीं. ‘प्यासा’ फिल्म उन की सब से पसंदीदा फिल्म है. अभिनेता शक्ति कपूर और शिवांगी कपूर की बेटी श्रद्धा ने ग्रैजुएशन की पढ़ाई के लिए जब बोस्टन यूनिवर्सिटी में ऐडमिशन लिया तभी उन्हें ‘तीन पत्ती’ फिल्म में काम करने का अवसर मिला. तब श्रद्धा ने पढ़ाई बीच में छोड़ दी. मगर फिल्म फ्लौप रही. इस के बाद उन्होंने यशराज की फिल्म ‘लव का दि ऐंड’ में काम किया, मगर वह भी कुछ खास नहीं चली. फिर ‘आशिकी 2’ ने श्रद्धा को रातोंरात स्टार बना दिया. इस के बाद की उन की ‘एक विलेन’, ‘हैदर’, ‘एबीसीडी-2’ आदि फिल्में सुपरहिट रहीं. बचपन की बातों को जब श्रद्धा याद करती हैं, तो उन्हें खुद पर हंसी आती है. फिल्मों में उन के पिता खलनायक की भूमिका निभाते थे, तो उन्हें अच्छा नहीं लगता था. स्कूल में भी लड़कियां उन के खलनायक की बेटी होने की वजह से उन से दोस्ती नहीं करती थीं. इसलिए जब वे पिता को खलनायक की भूमिका में देखती थीं तो चिल्लाने लगती थीं. उस समय मां उन्हें समझाती थीं कि वे केवल भूमिका निभा रहे हैं. पिता के हास्य किरदार श्रद्धा को बहुत पसंद हैं. असल जिंदगी में उन के पिता बेहद मजाकिया स्वभाव के हैं. घर में हमेशा फिल्मों से संबंधित बातें ही होती हैं और किसी फिल्म को चुनते समय वे मातापिता की राय अवश्य लेती हैं.

श्रद्धा कपूर सिर्फ अभिनेत्री ही नहीं वरन अच्छी सिंगर भी हैं. उन्हें सादगी बहुत पसंद है. वे फिल्मों में जैसी रोमांटिक भूमिकाएं निभाती हैं असल जिंदगी में भी वैसी ही रोमांटिक हैं. श्रद्धा जीवन में प्यार को बहुत अहमियत देती हैं. वे कहती हैं कि प्यार में दीवानगी होनी जरूरी है. वे लाइफ पार्टनर भी ऐसा चाहती हैं, जो उन की जिंदगी को दिलचस्प बना दे. लैक्मे की ब्रैंड ऐंबैसेडर बनी श्रद्धा कपूर से बात करना काफी दिलचस्प रहा. पेश हैं, उसी बातचीत के कुछ रोचक अंश:

एक बार फिर से लैक्मे के साथ जुड़ना कैसा लग रहा है?

पहली बार जब लैक्मे की फेस बनी थी, तो अभिनय का मौका मिला. दूसरी बार भी अच्छा लग रहा है.

किसी ब्रैंड से जुड़ते वक्त किस बात का ध्यान रखती है?

मैं सब से पहले उस की गुणवत्ता को परखती हूं. मैं खुद उसे प्रयोग करती हूं, क्योंकि यह मेरी जिम्मेदारी बनती है कि मैं किसी ब्रैंड के बारे में लोगों तक सही जानकारी पहुंचाऊं.

आप का अब तक का फिल्मी सफर कैसा रहा?

मुझे कभी असफलता तो कभी सफलता मिली, पर मैं ने दोनों हालात में तालमेल बैठाना सीखा. मुझे दोनों का अनुभव है लेकिन मैं हमेशा अच्छा काम करने की कोशिश करती हूं.

आप के काम में परिवार का सहयोग कितना रहा?

सच कहूं तो परिवार का ज्यादा सहयोग नहीं रहा. लेकिन फिल्मी माहौल में पलीबढ़ी होने की वजह से धीरेधीरे मैं खुद सब संभालती गई.

कंट्रोवर्सी को कैसे लेती हैं?

यह निर्भर करता है कि कंट्रोवर्सी कैसी है. कुछ पर दुखी होती हूं तो कुछ से मुंह फेर लेती हूं.

फिल्मों में अंतरंग दृश्यों को ले कर क्या कहना चाहेंगी?

अंतरंग दृश्य भी बाकी दृश्यों की तरह ही होते हैं. मैं अभिनेत्री होने के नाते निर्देशक की सोच को दिमाग में रख कर अभिनय करती हूं.

ऐक्टिंग में आने के बाद जीवन में क्या बदलाव आया?

मैं ने बचपन के सारे ड्रीम्स छोड़ दिए हैं. मैं इस जीवन के हर पल को अच्छी तरह जीना चाहती हूं.

जीवन की खट्टीमीठी यादें कौनकौन सी हैं?

अगर आप ने सपना देखा है तो उसे सच करना भी आप के हाथ में है. इस में मुझे मेरे मातापिता ने बहुत सहयोग दिया. उन्होंने अच्छे स्कूलोें में मेरी स्कूल की शिक्षा पूरी करवाई. बोस्टन यूनिवर्सिटी में एक साल पढ़ने के बाद जब मैं ने फिल्मों में काम करने का फैसला लिया तो उन्होंने मेरे इस फैसले का सम्मान किया. मेरे जीवन की बैस्ट अचीवमैंट मेरी वे फिल्में हैं, जिन्हें दर्शकों ने पसंद किया.  

एक वारदात कई सवाल

अपनी ही सगी बेटी की अपने ही हाथों गला घोंट कर हत्या कर उस की लाश को दूर जंगल में जला कर फेंक देना और फिर 3 साल तक कैमरों की चकाचौंध में दिनरात ऐसे बिता देना मानो कुछ हुआ ही नहीं, एक आश्चर्य की बात है. पीटर मुखर्जी और इंद्राणी मुखर्जी की जोड़ी अरसे से टैलीविजन स्क्रीनों में देखी जा रही थी, क्योंकि वह स्टार टीवी और आईएनएक्स मीडिया से जुड़ी थी और कुछ आर्थिक मामलों में उलझी भी थी. पर उस तरह का अपराध मां ने किया हो, पचता नहीं है. जीवन बड़ा कठिन है. जो मां वर्षों पहले अपने पहले और दूसरे पति को छोड़ चुकी हो, जिस ने पहले ही दिन बेटी के जन्म प्रमाणपत्र पर मातापिता का नाम कुछ और लिखाया हो, जो नए तीसरे पति से गलबहियां करते हुए दूसरे पति से भी संपर्क रख रही हो, ऐसी विलक्षण औरत पर पूरी बात तो किसी मोटी किताब से ही पता चलेगी. फिलहाल इंद्राणी मुखर्जी अपने ड्राइवर और पति नंबर 2 के साथ जेल में है और उस ने गुनाह कैसे किया इस की परतें खुल रही हैं पर ये परतें उसे अपराधी बनाएंगी, यह कहा नहीं जा सकता.

फिलहाल तो यही कहा जा सकता है कि कुछ औरतें जीवन में हुई गलतियों को छिपाने के लिए और गलतियां करती हैं और गलतियां करते हुए सही का ध्यान ही भूल जाती हैं. उन्हें लगता है कि वे अपने सुंदर सौम्य चेहरे से क्लियोपैट्रा की तरह सब गुनाह छिपा सकती हैं. इतिहास, साहित्य और समाज इन औरतों के कारनामों को कुछ बढ़ाचढ़ा कर दर्शाने का आदी है, क्योंकि उस ने तो बड़ी मेहनत से औरत को एक बेचारी, गऊ जैसी, निरीह, धर्म और परिवार के जुल्मों से सताई औरत बनाने में हजारों साल लगाए हैं और जो इस फ्रेमवर्क को तोड़ दे वह औरत समाज को मंजूर नहीं है. इंद्राणी मुखर्जी या सुनंदा पुष्कर समाज को मंजूर नहीं है और इस पूरे मामले ने भी अखबारों की सुर्खियां और टीवी की हैडलाइन पर कब्जा किया हुआ है, तो इसीलिए कि उस ने वह किया जिस की अपेक्षा न थी, इजाजत न थी.इंद्राणी मुखर्जी कैसे नएनए नामों से अवतरित हुई, कैसे बच्चों के बावजूद उस का रंगरूप बना रहा, कैसे उस ने नए व पुराने पतियों को सहा, कैसे वह अपने छोड़े बच्चों को संभालती रही और फिर भी कैसे उस का सुंदर खिलखिलाता चेहरा दिखता रहा, यह परियों की प्रेम कहानियों जैसा है जिस में रहस्य, रोमांच तो दर्शाया जा रहा है पर उस औरत का दर्द नहीं, जिस ने न जाने क्याक्या भोगा होगा और न जाने क्यों और कैसे महत्त्वाकांक्षा को चेहरे पर आत्मविश्वास के साथ बनाए रखा होगा. इंद्राणी और सुनंदा जैसी औरतों को अपवाद माना जाता है, क्योंकि समाज के नियमों की परवाह न कर के सही या गलत करार पर उन्होंने पुरुषों के कू्रर समाज में जगह बनाने की कोशिश की, इस में  कोई शक नहीं है.

इंद्राणी मुखर्जी का विवाह टिकेगा या नहीं, वह जेल में रहेगी या छूट जाएगी, उस पर आरोप सिद्ध हो पाएंगे या नहीं, यह कहना फिलहाल कठिन है पर इतना अवश्य है कि उस ने वह कर दिखाया जो पुरुषों का एकाधिकार माना जाता है. उस ने समाज की बनाई लाइनों को तोड़ा है चाहे बेहद गलत काम कर के पर वह साबित करने में सफल रही है कि जिस तरह बुद्धिमान पुरुष बुद्धि के बल पर राज करते हैं उसी तरह सुंदर औरत सुंदरता के बल पर शक्ति पा सकती है.

दलाल नहीं तो मकान नहीं

शहरों के बढ़ते आकार और आबादी ने देश भर में दलालों का एक बड़ा वर्ग तैयार कर दिया है, जो किराए पर मकान ढूंढ़ने की समस्या को हल करता है. 20-25 साल पहले की तरह आज भी मनमाफिक मकान किराए पर हासिल करना आसान काम नहीं है. खासतौर से उस हालत में, जब परिचय का दायरा और संपर्कों का संसार दोनों छोटे होते जा रहे हैं मकानमालिक को आजकल ऐसा किराएदार चाहिए, जो वक्त पर किराया दे और बेवजह का झमेला खड़ा न करे. रैंटल सर्विसेज चलाने वाले ब्रोकर इस मानसिकता को बेहतर समझते हैं और यह भी जानते हैं कि जिसे किराए के मकान की जरूरत है, वह अकसर अपनी इच्छाओं और जरूरतों से समझौता करने को तैयार हो जाता है. वजह है किसी भी नए शहर में किराए का मकान ढूंढ़ना बेहद मुश्किल काम है.बैंक अधिकारी बी.के. सक्सेना मई, 2010 में दिल्ली से तबादला होने पर भोपाल आए, तो रहने की समस्या उन के सामने मुंह बाए खड़ी थी. दिल्ली से कुछ परिचितों से उन के परिचितों के फोन नंबर भी वे लाए थे. बातचीत कर के परेशानी बताई तो सभी ने हाथ खड़े कर दिए. एक ने तो साफसाफ कह दिया कि आप हमारे यहां खाना खा लीजिए, जरूरत पड़े तो वाहन ले जाइए, दूसरा कोई सामान भी ले लीजिए, पर किराए के मकान की जिम्मेदारी मत सौंपिए. भोपाल में मकानों की कमी नहीं है पर हमारे पास वक्त की बेहद कमी है.

मिला मनपसंद मकान

हफ्ता भर होटल में गुजारने के बाद बी.के. सक्सेना को ज्ञात हो गया कि बगैर दलाल की मदद के उन की समस्या का हल नहीं होने वाला. लिहाजा, उन्होंने एक दलाल को मकान ढूंढ़ने का काम सौंप दिया. दूसरे दिन ही दलाल उन के होटल में हाजिर था कि चलिए अपनी जरूरत के मुताबिक 4 मकान देख लीजिए, जो पसंद आए उसे फाइनल कर लीजिए. सक्सेनाजी का बैंक व्यावसायिक इलाके एम.पी. नगर में था और उन्हें महज 1 कमरा 3 हजार रुपए महीने तक का चाहिए था. दलाल के साथ वे गए तो पहला ही मकान उन्हें भा गया, जो बैंक से महज 2 किलोमीटर दूर था और किराया भी 3 हजार रुपए ही था. मकानमालिक ने उन से ज्यादा बात नहीं की, क्योंकि दलाल ने सारी शर्तें पहले ही समझा दी थीं कि 2 महीने का किराया अग्रिम देना पड़ेगा. 11 महीने का करार स्टांप पेपर पर करना होगा और अगर इस अवधि के बाद भी रहना है तो सालाना 10 फीसदी की दर से किराया बढ़ेगा. मकान देख कर बी.के. सक्सेनाजी ने हां कर दी और सारी शर्तें भी पूरी कर दीं. अखरा तो केवल यह कि दलाल को 1 महीने का किराया3 हजार रुपए बतौर फीस देना पड़ा. 1 साल पूरा होने को आ रहा है. सक्सेनाजी सुकून से किराए के मकान में रह रहे हैं, लेकिन कभीकभार उन के मन में आ ही जाता है कि खुद भागदौड़ कर लेते तो 3 हजार रुपए बच जाते. जाहिर है, सक्सेनाजी को लग यह रहा है कि एक छोटे से काम की ज्यादा फीस उन्हें देनी पड़ी पर बारीकी से देखें तो वे काफी सस्ते में निबट गए. वक्त पर मकान नहीं मिलता तो होटल के दड़बेनुमा कमरे के 600 रुपए रोज उन्हें देने पड़ते और मकान ढूंढ़ने में रोजाना 100-200 रुपए आटोरिकशा में खर्च होते. इस पर भी मकान मिल ही जाता, इस बात की भी कोई गारंटी नहीं थी.

दलाल है हल

दलाल के जरिए किराए का मकान लेना या फिर किराए पर देना यह सेवा आजकल दोनों पक्षों की विवशता बन गई है. भोपाल के एक दलाल जो मामाजी के नाम से मशहूर हैं कहते हैं, ‘‘हमारा काम बेशक दो कौड़ी का और महंगा लगता है, लेकिन हकीकत इस के उलट है. हमें इलाके के सारे मकानों की जानकारी रखनी पड़ती है. मकानमालिक का स्वभाव देख कर किराएदार बताना पड़ता है और यह जरूरी नहीं कि सौदा पट ही जाए. कोई यह नहीं देखता कि हमारा कितना पैट्रोल जलता है, वक्त लगता है और फोन का भारीभरकम बिल हर महीने आता है.’’ मामाजी 20 सालों से इस पेशे में हैं और अब तक हजारों लोगों को मकान दिला चुके हैं. पहले शहर में महज 5 लोग यह काम करते थे, मगर जैसेजैसे मकान बढ़ने लगे, दलालों की तादाद भी बढ़ती गई. अधिकांश दलाल इलाकेवार काम करते हैं. सभी के पास किराए के मकानों की जानकारी होती है और मकानमालिकों से पहचान भी होती है. किराए के मकान की दलाली का धंधा विज्ञापनों से चलता है. कहीं भी कैसा भी मकान चाहिए, दलाल के पास पूरी जानकारी रहती है. विज्ञापन देख कर ग्राहक उन से संपर्क करते हैं. आमतौर पर मकानमालिक इन्हें दलाली नहीं देते, लेकिन मकान बड़ा और किराया ज्यादा हो तो दोनों पार्टियों से दलालों को पैसा मिलता है.

अब तो बाकायदा दफ्तर खोल कर दलाल यह धंधा करने लगे हैं और सहायक भी रखने लगे हैं. मोबाइल फोन ने इन का काम काफी हद तक आसान कर दिया है. अगर किसी दूसरे इलाके का ग्राहक फोन करता है, तो वे कमीशन पर उस इलाके के दलाल को ग्राहक सौंप देते हैं. आमतौर पर यह डील नकद न हो कर अदलाबदली के सिद्धांत पर चलती है.

समय पर किराया

एक युवा दलाल राजीव की मानें तो जरूरी नहीं कि दलाली यानी फीस में 1 महीने का किराया ही मिले. बढ़ती प्रतिस्पर्धा के चलते यह काम सस्ते में भी होने लगा है. मकानमालिक के दरवाजे सभी दलालों के लिए खुले रहते हैं. जो दलाल बैंक कर्मी, बड़ी कंपनी का मुलाजिम या सरकारी कर्मचारी ले कर आता है उसे वाजिब पैसा मिल जाता है. हर मकानमालिक चाहता है कि किराएदार की आमदनी नियमित हो, जिस से वह वक्त पर किराया चुका सके और तबादले वाला हो ताकि लंबे वक्त तक न टिके. ऐसे लोगों से कानूनी लड़ाई लड़ने की नौबत नहीं आती. वे खुद वक्त पर मकान खाली कर के चले जाते हैं. पुराने जमे दलालों की आमदनी महीने में 1 लाख रुपए तक की है तो नए दलाल 5 हजार रुपए भी मुश्किल से बना पाते हैं. जाहिर है, दलाली का काम अनुभव और संबंधों का है. अब तो बड़े शहरों की तर्ज पर छोटे शहरों के दलाल भी मकानमालिक को टोकन मनी दे कर मकान एंगेज करने का जोखिम भी उठाने लगे हैं. इस में कई बार पैसा डूब भी जाता है.

इस के अलावा किराए के मकानों के दलालों पर नया खतरा छात्रों का मंडरा रहा है, जो सीधे जा कर मकान ले लेते हैं और मकानमालिक दे भी देते हैं. वजह, छात्रों के अभिभावक हैं, जो अपनेआप वक्त पर पैसा देने की गारंटी हैं. हालत यह है कि इस सहूलियत के चलते अधिकांश मकानमालिक छात्रों को मकान देने में प्राथमिकता देने लगे हैं.

फायदे का दलाल जरूरी

दलाल सुबह 8 से ले कर रात 8 बजे तक अपने काम में लगे रहते हैं. ग्राहक को मकान दिखाना, मकानमालिक को तैयार करना, सौदा पटाना और स्टांप पर लिखापढ़ी करवाने में इन के खासे पैसे खर्च हो जाते हैं. फिर भी एक सौदे में कम से कम हजार रुपए इन्हें बच ही जाते हैं. किसी भी नए शहर में किराए का मकान ढूंढ़ने से पहले कायदे का दलाल ढूंढ़ना ज्यादा अहम हो चला है. इस में खासी मदद अखबारों के किराए वाले वर्गीकृत विज्ञापन करते हैं. दलालों के विज्ञापन अलग ही समझ आ जाते हैं. आमतौर पर इन के विज्ञापनों में शहर के 5-6 इलाकों का जिक्र होता है और टैलीफोन नंबर भी 2 से ज्यादा होते हैं. किराएदार के मकान में दाखिल होने के साथ ही दलाल का रोल खत्म हो जाता है. वह किसी किस्म की गारंटी नहीं लेता, सिवा मकान दिलाने की गारंटी के. बगैर परिवार वालों और युवतियों को कौन मकान दे सकता है, यह जानकारी भी इन्हीं के पास रहती है और इसी सेवा की कीमत ये वसूलते हैं. असंगठित तौर पर चल रहा यह धंधा वाकई दिलचस्प है, दलाली का धंधा शुरू करने के लिए कोई बड़ा पूंजी निवेश नहीं करना पड़ता, इसलिए कहा जा सकता है कि हींग लगे न फिटकरी रंग भी चोखा आए कहावत इस धंधे पर पूरी तरह लागू होती है. मगर इस से दूसरों को सहूलियत ही मिलती है.

जी स्पौट ढूंढ़ा क्या

स्त्रीपुरुष के बीच शारीरिक संबंधों में पुरुष के आनंद को ले कर स्थिति बिलकुल साफ रही है. स्त्री अंगों से मिलने वाले सुख के अलावा जननांग में घर्षण और अंत में स्खलन पुरुष के आनंद की प्रमुख वजहें हैं. लेकिन स्त्री के मामले में ऐसा नहीं है. लंबे समय से यह रहस्य रहा है और अभी भी है कि जननांग के किस हिस्से में घर्षण से स्त्री को ज्यादा सुख या परमसुख की अनुभूति होती है? वैज्ञानिक भी लंबे समय से इस पर अध्ययन करते रहे हैं और उसी का नतीजा ‘जी स्पौट’ की खोज के रूप में सामने आया है. जी स्पौट का पूरा नाम ‘ग्रैफेनबर्ग स्पौट’ है. 1944 में जरमनी के गाइनोकोलौजिस्ट ग्रैफेनबर्ग ने इस की खोज की थी. उन्होंने अपनी खोज को मूत्रनली (युरेथरा) से जोड़ा था, जो बाहर आते समय स्त्री जननांग की सामने की दीवार से सट कर गुजरती है. ग्रैफेनबर्ग ने कहा था कि जब इस हिस्से पर पुरुष जननांग का दबाव पड़ता है तो युरेथरा पर भी दबाव पड़ता है और इस हिस्से के टिशूज फूल कर महिला को चरमआनंद की अनुभूति कराते हैं.

30-40 साल तक ग्रैफेनबर्ग की इस खोज पर दुनिया में किसी ने भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया. 80 के दशक में यह मसला फिर से चर्चा में आया और डाक्टर एडिगो ने इसे ग्रैफेनबर्ग के नाम पर जी स्पौट का नाम दिया. इसी दशक में हुए अन्य अध्ययनों से दुनिया भर में जी स्पौट की चर्चा शुरू हो गई और यह माना जाने लगा कि यह वास्तव में वह स्थान है, जिस के जरीए कोई महिला चरमआनंद हासिल करती है. इतना होने के बावजूद वैज्ञानिक बिरादरी में जी स्पौट को ले कर संशय बना रहा, क्योंकि अभी तक यह स्पौट स्कैन नहीं हो पाया था. 2008 में इटली के वैज्ञानिकों ने यह दावा किया कि उन्होंने अल्ट्रासाउंड के जरीए कुछ महिलाओं में वैजाइना और युरेथरा के बीच में एक उभरा क्षेत्र पाया है, लेकिन 2 साल बाद ही लंदन के वैज्ञानिकों ने 1 हजार महिलाओं से बातचीत के आधार पर घोषणा की कि जी स्पौट जैसी कोई चीज होती ही नहीं है. फिर उसी साल यानी 2010 में फ्रांस के वैज्ञानिकों ने लंदन के वैज्ञानिकों की बात को नकारते हुए कहा कि आधी से ज्यादा महिलाओं में यह स्पौट होता है.

ढूंढ़ पाना आसान नहीं

वैसे अभी तक मैडिकल साइंस की किताबों में इस स्पौट के बारे में कोई जिक्र नहीं है, इसी कारण मैडिकल के छात्रों को इस के बारे में पढ़ाया भी नहीं जाता. कई डाक्टर कहते हैं कि उन्होंने औपरेशन के दौरान ऐसा कोई स्पौट किसी महिला में नहीं देखा है. इस के बावजूद अनेक वैज्ञानिक इस की उपस्थिति को मानते हैं. उन के अनुसार जी स्पौट की लोकेशन महिलाओं में अलगअलग मिलती है और इसे ढूंढ़ पाना मुश्किल होता है. ऐसा भी हो सकता है कि अनेक महिलाओं में यह उपस्थित ही न हो. जी स्पौट में यकीन करने वाले वैज्ञानिक मानते हैं कि जी स्पौट स्त्री जननांग की सामने की दीवार में होता है. यह हर स्त्री में अलगअलग स्थान पर होता है, इसलिए इस की खोज आसान नहीं, लेकिन आमतौर पर यह जननांग में करीब 5 सैंटीमीटर अंदर होता है.

ग्रैफेनबर्ग ने जी स्पौट को युरेथरा से जोड़ा था, लेकिन एक अवधारणा यह भी है कि यह क्लीटोरिस (जननांग क्षेत्र के बाहर और ऊपरी हिस्से में मटर के दाने जैसी बाहर को उभरी रचना को क्लीटोरिस कहते हैं. यह इस का सिर होता है, जो हमें दिखाई देता है, जबकि वास्तविक रचना अंदर काफी बड़ी होती है. इस में बहुत सारी संवेदनशील नर्व ऐंडिंग (करीब 8 हजार) होती हैं, जिस से इस में किसी भी प्रकार का घर्षण या दबाव आनंद देता है.) का ही पीछे का विस्तारित हिस्सा है, जो स्त्री जननांग की अंदरूनी दीवारों तक आता है. इसी पर दबाव पड़ने से स्त्री को ज्यादा आनंद मिलता है. कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार जी स्पौट से मिलने वाले इस आनंद की वजह जननांग की दीवारों के बजाय स्कीने नाम की ग्रंथियां हैं. ये ग्रंथियां महिलाओं में बिलकुल उसी तरह होती हैं जैसे पुरुषों में प्रोस्टेट ग्रंथियां होती हैं. कुछ वैज्ञानिक कहते हैं कि जी स्पौट वह स्थान है जहां संवेदनशील नर्व ऐंडिंग एक गुच्छा बना लेती हैं. इसी से उस स्थान पर पुरुष जननांग की रगड़ से स्त्री को ज्यादा आनंद की अनुभूति होती है.

कुछ वैज्ञानिकों की यह रिपोर्ट भी है कि कुछ स्त्रियों में जी स्पौट पर पड़ने वाला दबाव चरम सुख के बजाय कुछ और ही नतीजा देता है. इन स्त्रियों ने वैज्ञानिकों को बताया कि इस स्थान पर ज्यादा जोर पड़ने से उन में आनंद के बजाय मूत्र विसर्जन की इच्छा जाग्रत होती है. बहरहाल, जी स्पौट है या नहीं है, इस पर वैज्ञानिकों की अलगअलग राय है. लेकिन यह तो तय है कि स्त्री जननांग का शुरू का एकतिहाई हिस्सा काफी संवेदनशील होता है और यह पूरा हिस्सा सहवास के दौरान पुरुष जननांग के आघात से स्त्री को आनंद की अनुभूति कराता है.

अब सवाल यह उठता है कि अगर जी स्पौट है, तो क्या आम स्त्रीपुरुष शारीरिक संबंध के दौरान इसे ढूंढ़ सकते हैं? वैज्ञानिक कहते हैं कि हां, अगर पतिपत्नी में परस्पर प्रेम, तालमेल और सहवास के दौरान बेहतर संवाद हो तो ऐसा हो सकता है. पत्नी बड़ी आसानी से पति को बता सकती है कि किस काममुद्रा में किस स्थान पर विशेष दबाव या घर्षण से उसे ज्यादा आनंद मिल रहा है. ऐसी काममुद्रा जिस में स्त्री जननांग की सामने वाली दीवार पर जोर पड़ता है, जी स्पौट के नजरिए से उत्तम मानी जाती है. वैज्ञानिकों के अनुसार महिला जननांग में हाथ की बीच की 2 उंगलियों के प्रवेश और फिर उन्हें ऊपर की तरफ दबा कर पता लगा सकते हैं कि किस स्थान पर जी स्पौट है. पहचान यह है कि अगर जी स्पौट वास्तव में है तो एक क्षण के लिए महिला को ऐसा महसूस होता है जैसे मूत्र विसर्जन की इच्छा जाग्रत हो रही हो, लेकिन तुरंत ही यह लक्षण गायब हो जाता है और उस स्थान को लगातार उत्तेजित करने से आनंद की अनुभूति होने लगती है. 

कैबेज पोटली

सामग्री

10-15 बंदगोभी के बड़े साफ पत्ते

2 बड़े उबले आलू द्य 1 हरीमिर्च

1 बड़ा चम्मच कटे काजू

3-4 अंजीर द्य 1 बड़ा चम्मच कौर्न

1 छोटा चम्मच चाटमसाला

1 बड़ा चम्मच मक्खन द्य 1 छोटा चम्मच जीरा

नमक स्वादानुसार.

विधि

अंजीर को कुछ देर भिगो कर बारीक काट लें. काजू को तल कर बारीक काट लें. उबले आलू मसल लें. एक पैन में मक्खन गरम करें. उस में जीरा भून कर अंजीर, काजू, आलू, कौर्न, चाटमसाला, नमक, हरीमिर्च मिला कर अच्छी तरह मिक्स कर लें. बंदगोभी के पत्तों को कुछ देर नमक मिले गरम पानी में डुबा कर रखें. फिर निकाल कर अच्छे से सुखा लें. 2-3 पत्तों को एक के ऊपर एक कर के रखें. बीच में तैयार स्टफ भरें. फिर पोटली बना कर टूथपिक से बंद कर दें. कैबेज पोटली तैयार है. परोसने से पहले माइक्रोवेव में गरम कर लें.

भरवां परवल

सामग्री

8-10 परवल

1 कप उबला राजमा

1 बड़ा चम्मच बारीक कटी पीली शिमलामिर्च

1 चुटकी बारीक कटा अदरक

1 हरा प्याज पत्तों सहित बारीक कटा

1 बड़ा चम्मच लाल हौट ऐंड सौर सौस

1 बड़ा चम्मच टोमैटो सौस

1 चुटकी औरिगैनो

1 बड़ा चम्मच मक्खन.

विधि

सभी परवल छील कर उन में बीच में चीरा लगाएं तथा बीज निकाल कर नमक मिले गरम पानी में रख दें. एक पैन में मक्खन गरम करें. अदरक व प्याज डाल कर भूनें. फिर बाकी सारी सब्जी, मसाले व सौस मिक्स कर दें. इस भरावन को ठंडा होने दें. परवलों को पानी में से निकालें व सुखा लें. उन में चम्मच की सहायता से भरावन भरें. एक भारी तले की कड़ाही में थोड़ा सा तेल या मक्खन डाल कर परवल उस में रखें और ढक कर नर्म होने तक पका लें. गरमगरम परोसें.

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