9 टिप्स: जब न लगे बच्चे का पढ़ाई में मन

जरूरी नहीं की जो मुझ मे काबिलियत है वो तुम मे भी हो ,या जो तुम्हें  आता है वो मुझे भी आये.ये कथन हर किसी के  लिये स्टिक है चाहे बच्चा हो या बड़ा. ऐसा मुमकिन नहीं है की हर बच्चे की  बुद्धि का विकास  एक समान होता है. कुछ पढ़ाई मे ज्यादा अच्छे  होते  हैं तो कोई खेल में.प्रत्येक बच्चे  के अंदर एक सामान्य ऊर्जा होती है बस जरूरत है तो उस ऊर्जा को नया आयाम देने की . बच्चे की प्रतिभा को अच्छी तरह सिर्फ उसके माता -पिता या टीचर्स ही समझ सकते हैं इसीलिये इन्ही को जरूरत है उस कमजोर बच्चे की पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान देने की और उसमे एक नया आत्मविश्वास जगाने की. उसके  मन मे   एकग्रता बढ़ाने  की .

कैसे पढ़ाएं बच्चे को

अगर आपका बच्चा पढ़ाई मे कमजोर है तो ये टिप्स आजमाएं और अपने बच्चे मे फर्क पाएं-

1. सही जगह का करें चुनाव

परिवेश और वातावरण का पढ़ाई पर बहुत असर पड़ता है.  बच्चे मे एकग्रता लाने के  लिये जरूरी है  की उसे एक अलग कमरे मे  पढ़ाएं .बच्चे को टेबल चेयर पर बैठ कर पढ़ने की आदत डालें क्युकी चेयर पर पढ़ने से रीढ़ की हड्डी सीधी रहती है जिस से एकग्रता बनी रहती है . जब तक आप बच्चे को पढ़ाएं किसी को  भी डिस्टर्ब न करने दे.

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2. बच्चे की नहीं करें पिटाई

अगर बच्चे की समझ मे कोई चीज़ नहीं आ रही है तो उस पर चिल्लाये नहीं और न ही उसकी पिटाई करे ऐसा करने से बच्चे के मन मे डर  बैठ जाता  है व पढ़ाई से जी चुराने लगता है .इसलिये उसे प्यार से समझाए .और अगर बच्चा पढ़ाई से ऊब गया हैं तो जबरदस्ती न करें थोड़ी देर उसे उसकी पसंद का काम करने दें .

3. बच्चे की परेशानी समझें

कभी कभी बच्चे को लिखी हुई चीज़े    समझ नहीं आती  इसलिये उसे बोल कर समझाए उसको आसान तरीके मे बदल कर समझाएं  और बच्चे को लिख कर  याद करने की आदत डालें .लिखा हुआ बच्चे को ज्यादा समय तक याद रहता है .

4. पढ़ते वक़्त न करें डिस्टर्ब

जबतक उसका मन पढ़ाई में लगे उसको पढ़ने दें , किसी कार्य के लिए उसे न उठाए. और घर मे आने   जाने वालो से भी उसकी पढ़ाई मैं डिस्टर्बेंस न होने दें .

5. डेली कराएं पढ़ाई

पढ़ाई का एक निश्चित टाइम टेबल बनाये .निर्धारित समय अनुसार पढ़ाई करने बैठे और एक योजना बना कर पढ़ाई करें. रोजाना के जरूरी कार्यो की तरह पढ़ाई को भी यही अहमियत दें. टाइम टेबल को कठिन नहीं बल्कि आसान बनाए जिससे आपको पढ़ाई उबाऊ नहीं लगेगी, बीच-बीच में ब्रेक जरूर लें .

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6. खेलना भी हैं जरूरी

खेलना भी बहुत जरूरी होता है क्यों की खेलने से नई ऊर्जा मिलती है और मानसिक विकास होता है .बच्चे को खेलने का भी निश्चित समय रखें.

7. पर्याप्त  नींद है जरूरी

अच्छी नींद से हॉर्मोन सही तरीके से रेगुलेट होते हैं जिससे माइंड तेज होता है और शरीर को भी आराम मिलता है जिससे पढ़ा हुआ याद रखने में मदद मिलती है. 7 -8घंटे की नींद बच्चे  को जरूर लेने दें .

8. योग की डालें आदत

रोजाना सुबह 20 मिनट तक योगा करें , इससे  पढ़ाई में एकाग्रता बढ़ेगी ,और  दिमाग के ध्यान लगाने की क्षमता तेज होगी , शरीर पूरे दिन ऊर्जावान रहेगा .

9. खान पान का रखें ध्यान

बच्चे की उम्र के हिसाब से खाना  खिलाये .पोस्टिक तथा बुद्धिवर्धक चीज़े दें जैसे – रोज़ कम से कम दस बादाम रात में पानी में भिगोकर दें, सूखे मेवा दें ,दूध अवश्य दें, अगर आप शाकहारी हैं तो अपने बच्चे को हफते में दो बार मछली अवश्य खिलाये, हरी सब्ज़ी , फल , दूध से बनी हुई प्रोटीन तथा आयरन कैल्शियम से युक्त चीज़े उसे अवश्य खिलाए.

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शादी बाजार में राजदार है सोशल मीडिया

अभी 1 महीने पहले ही माही और सत्यम की शादी हुई है. मोबाइल गैलरी और कंप्यूटर फोल्डर शादी और हनीमून के फोटो से भरे पड़े थे. माही का जी खूब कुलबुला रहा था पर पापा से की गई प्रौमिस बारबार हाथ उस के हाथों को रोक देते और वह उन्हें सोशल मीडिया पर पोस्ट नहीं करती. उसे सालभर पहले घटी बातें याद आने लगी थीं…

माही ने एक इंजीनियरिंग कालेज से पढ़ाई की थी। वह सोशल मीडिया पर खूब सक्रिय भी थी. उस की फ्रैंडलिस्ट भी खूब समृद्ध थी। घरपरिवार के अलावा स्कूल, कालेज और फिर नौकरीपेशा वाले लोग उस की फ्रैंडलिस्ट में शामिल थे. पर उसे इस सामाजिक प्लेटफौर्म की लक्ष्मण रेखा का सदैव से भान था.

वह कभी भी कोई आपत्तिजनक पोस्ट या फोटो इत्यादि पोस्ट भी नहीं करती थी। उस की लिस्ट में उस के पापामम्मी भी हैं, यह उसे हमेशा ध्यान रहता.

टूट गई शादी

1-2 साल पहले उस की शादी रोहित से तय हुई। घर वालों की रजामंदी से दोनों मिले. रोहित हर तरह से सुलझा हुआ लड़का था, जिसे उस की पढ़ाई और नौकरी की कद्र थी. मंगनी होने के साथ ही माही के पास रोहित के रिश्तेदारों के फ्रैंड रिक्वैस्ट आने लगे. अब तक दोनों परिवारों ने इसे राज ही रखा था.

माही ने अपनी मंगनी की कुछ तसवीरें साझा कर दीं. 2 ही दिनों के बाद रोहित की मम्मी का फोन माही की मम्मी के पास आया कि उन्हें यह रिश्ता नामंजूर है.

“आप की बेटी काफी खुले विचारों वाली लगती है. उस के दोस्त भी अजीबअजीब से हैं. जाने कालेज के दिनों में किसकिस से इस ने दोस्ती कर रखी थी, जिस के इश्तेहार फेसबुक पर डले पड़े हैं. काफी पार्टी गोइंग टाइप की लड़की समझ में आ रही है. पढ़ीलिखी और नौकरी वाली लङकी होने का यह मतलब तो कतई नहीं कि बहू इतनी खुले विचारों की हो. मेरे सभी रिश्तेदार तो थूथू कर रहे हैं…”

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रोहित की मम्मी बोल रही थीं और माही की मम्मी चुपचाप सुन रही थीं.
माही ने रोहित को फोन किया तो उस ने बदले में उसे ढेरों फोटो भेज दिए, जिस में माही किसी न किसी लड़के के साथ खड़ी फोटो में मुसकरा रही थी. कुछ फोटो दफ्तर में उस के या किसी के जन्मदिन के अवसर के थे.

माही बैठ कर सभी फोटो को अपने प्रोफाइल में खोजना शुरू किया तो देखा ये सब फोटो उस ने नहीं बल्कि उस के दोस्तों ने पोस्ट किया था। किसीकिसी ने उसे टैग भी किया था।

उस की आंखों में आंसू आ गए। उस ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी. अपने बैच में वह अकेली लड़की थी, जिस ने शालीनता और गरिमा के साथ 4 सालों का सफर पूरा किया था.

उसे फाइनल ईयर का अपना बैच फोटोग्राफी सैशन याद आ गया, जब विदाई समारोह के बाद कालेज कैंपस में सब भावुक हो कर फोटो खिंचवा रहे थे.

सारे लड़के सूट पहन इठला रहे थे और वह साड़ी संभालती एक जगह खड़ी थी. मगर जो होना था वह हो चुका था।

शादी से इनकार

“पापा, मैं भी नहीं करना चाहूंगी ऐसे संकीर्ण परिवार में शादी. मेरे साथ की कितनी लड़कियों ने अपने पसंद की शादियां कीं, उन की प्रोफाइल भी तो ऐसी ही तसवीरों से भरी पड़ी हैं. यों कहूं तो सब कितना बिंदास हो कर तसवीरें डालती हैं, छोटे कपड़ों में भी और दोस्तों के गले लग कर भी…”

“माही, अब मुझे उन दोनों परिवारों द्वारा न का कारण भी समझ आने लगा है, जिन्होंने पिछले दिनों तुम से शादी के लिए इनकार किया है. बेटा, मेरे पास अभी भी कुछ और लड़कों की जानकारी है जहां मैं तुम्हारे रिश्ते की बात चला सकता हूं. पर उस से पहले तुम्हें इस फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया से हमेशा के लिए विदा लेना होगा,”माही के पापा ने कहा।

फेसबुक से तोबा

वह दिन और आज का दिन, माही ने अपने निष्क्रिय प्रोफाइल को फिर से सक्रिय नहीं किया है और न करने का विचार रखती है.

आज के युग में सोशल मीडिया जीवन का एक हिस्सा बनता जा रहा है. हर कुछ हर किसी को बता देने की एक हड़बड़ी रहती है. देखा जाए तो यह उतना बुरा भी नहीं है यदि ठीक से हैंडल किया जाए.

कितनों के लिए यह हुनर प्रदर्शन का प्लेटफौर्म बना तो कितनों के अकेलेपन का साथी भी. बहुत लोगों ने तो इस के जरीए असल जिंदगी से अच्छे दोस्त और रिश्ते बनाए.

एक ओर तो इस की बहुत सारी अच्छाइयां हैं, तो वहीं दूसरी ओर यह रिश्तों में नीबू निचोड़ने का भी काम करता है.

जासूसी का माध्यम

सूचना प्रसारण आज की युग की क्रांति है। कहीं भी कोई डेटा या सूचना गोपनीय नहीं है. हर हाथ मोबाइल या कंप्यूटर ने बेहद द्रुत गति से इस ऐप का प्रसार किया है. कब किस क्षण की कोई पोस्ट या तसवीर गले की फांस बन जाए कहा नहीं जा सकता.

आजकल फेसबुक को लोग जासूसी के लिए भी उपयोग कर रहे हैं. किसी के बारे में जानना हो तो झट से लोग सोशल मीडिया खंगालने लगते हैं.

पहले जब शादियां तय होती थीं, लोगबाग जानपहचान वालों से पूछ रिश्ता तय कर देते थे. पर अब सोशल मीडिया एक सशक्त माध्यम हो गया है.

लङके भी बनते हैं शिकार

रमणीक और आरोग्य की शादी के 1 महीने बाद ही रिश्ते में खटास आने लगी, जब रमणीक ने आरोग्य की बहुत पुरानी पोस्ट को पढ़ना शुरू किया. आरोग्य सफाई देतेदेते थक गया कि बात पुरानी हो गई है. इतने वर्ष पूर्व के उस के स्टेटस को देख आज वह शक न करे। पर शक का कीड़ा तो तभी पनप गया था जब रमणीक ने 4 वर्ष पुरानी उस की स्टेटस में उसे एक लड़की के साथ देखा.

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इसी तरह देवेंद्र की होने वाली पत्नी को शक हुआ कि कहीं वह समलैंगिक तो नहीं, क्योंकि उस का फेसबुक प्रोफाइल लड़कों के साथ चिपके सटे तसवीरों से भरे पड़े थे और तो और उस ने किसी पोस्ट पर इन रिश्तों की वकालत भी की थी.

कहीं खुल न जाएं भेद

आजकल अरैंज्ड शादियां होनी यों ही बेहद मुश्किल कार्य है. पहले जहां सिर्फ लड़के वालों की मरजी चलती थी, वहीं आज की पढ़ीलिखी लड़की भी अपनी चाहतों और स्वप्नों की एक फिहरिस्त रखती है. एक कड़ी को जोड़ने के लिए कई सिरे मिलाने होते हैं. इन सब के बीच फेसबुक मोहल्ले की उस बुआ का किरदार निभा रहा है जिस के पास सब की जन्मकुंडली है यानी सब के भेद हैं.

पहले जब कोई रिश्ता जुड़ने को तत्पर होता था तो जानपहचान के लोगों या बीच के रिश्तेदारों से छिपाया जाता था कि कहीं वे लोग दूसरे पक्ष को कोई नकारात्मक बात न बोल दें। आज वही रोल सोशल मीडिया निभा रहा है। यदि वह सब की बातें उजागर कर रहा है तो कितनों की ही पोल खोल भी रहा है.

किस की कौन सी बात कब की और कौन सी तसवीर या विचार अगले पर क्या प्रभाव डालेगा और उस का क्या अंजाम होगा यह कहना मुश्किल है.

खुद को सीमित रखें

लव मैरिज में जोड़े पूर्व परिचित होते हैं. परिवार और रिश्तेदार बाद में उन के जीवन में आते हैं जो चाह कर भी किसी फोटो या पोस्ट से उन के संबंधों को खंडित नहीं कर पाते. पर अरैंज्ड शादियों में सब शामिल होते हैं, सब के विचार भी अहमियत रखते हैं. तो बेहतर है कि अपनी सूचनाओं के प्रसारण को सीमित रखा जाए. संभावित वरवधू अपनी आज की असल व्यक्तित्व और पहचान के साथ मिलें.

बेहतर होगा कि सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफौर्म से खुद को समेट लें.

शादी के बाजार में राजदार है सोशल मीडिया इसलिए इस से दूर ही रहें तो बेहतर है.

सुरक्षित शारीरिक संबंध बनाने के बाद भी दर्द का कारण क्या है?

सवाल

मैं 23 साल की युवती हूं. कुछ दिनों पहले अपने बौयफ्रैंड के साथ शारीरिक संबंध स्थापित किया. हालांकि इस दौरान बौयफ्रैंड ने कंडोम का प्रयोग कर सैक्स किया पर दूसरे दिन सुबह मेरे यूटरस में दर्द होने लगा और मु झे बुखार भी हो गया. अत: बताएं कि सुरक्षित संबंध बनाने के बाद भी दर्द क्यों हुआ?

जवाब-

सैक्स संबंध हमेशा सुरक्षित ही बनाना चाहिए. सैक्स क्रिया में कंडोम एक सरल व सहज गर्भनिरोधक है, जिस से अनचाहे गर्भधारण से बचा जा सकता है.

यूटरस में दर्द और बुखार होने का सुरक्षित सैक्स संबंध बनाने से कोई वास्ता नहीं है. संभव है कि आप के साथ कोई अंदरूनी वजह रही होगी. बेहतर होगा कि आप अपने डाक्टर से मिल कर सलाह लें.

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महान मनौवेज्ञानिक सिगमंड फ्रौयेड ने कहा था, ‘कोई महिला-पुरुष जब आपस में शारीरिक सम्बन्ध बनाते हैं, तो उन दोनों के दिमाग में 2 और व्यक्ति मौजूद रहते हैं. जो उसी लम्हे में हमबिस्तर हो रहे होते हैं.’ इस बात को पढ़ते हुए मैं अचरज में था कि क्या ऐसा सच में होता है? अगर होता है तो ऐसा क्यों होता है?

यह साल था 2007. मैं उस वक्त 15 साल का टीनेज था और 9वीं क्लास में पढ़ रहा था. मुझे आज भी याद है, पहली बार क्लास में मेराएक क्लासमैटएक ‘पीले साहित्य की किताब’ ले कर आया था. जिस के कवर पेज पर एक जवान नग्न महिला की तस्वीर थी. किसी महिला को इस तरह नग्न देखना शायद मेरा पहला अनुभव था. जिसे देख कर उत्तेजना के साथ घबराहट भी होने लगी थी. आज के नवयुवक पीला साहित्य से परिचित नहीं हों तो उन्हें बता दूं यह आज के विसुअल पोर्न का प्रिंटेड वर्जन था.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- आपकी पोर्न यात्रा में रुकावट के लिए खेद है…

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लड़कियां बिन गलती मांगें माफी

वो कहते हैं न कोई भी चीज अति की भली नहीं होती. फिर चाहे आदत अच्छी हो या बुरी. ऐसी ही एक अच्छी आदत है माफी मांगना. जो किसी भी शख्स के अच्छे व्यक्तिव की निशानी होती है. पर क्या आपको मालूम है कि एक जमात ऐसी भी है जो यूं ही माफी मांग लेती हैं फिर, चाहे जरूरत हो या फिर न हो? अगर नहीं तो जान लीजिए. वो है आधी आबादी. शोध भी इस बात की पुष्टी करते हैं कि महिलाएं ज्यादा माफी मांगती हैं. इसका यह मतलब नहीं कि पुरुष माफी नहीं मांगते. शोध में पाया गया है कि महिलाएं और पुरुष समान माफी मांगते हैं  लेकिन, महिलाएं कई बार तब भी माफी मांग लेती हैं जब उनकी गलती न हो. इसके पीछे कारण महिलाओं और पुरुषों के व्यक्तित्व का अंतर कहा जा सकता है.

ज्यादा भावनात्मक होती हैं महिलाएं

ऐसा नहीं है कि पुरुषों में भाव नहीं होते लेकिन यह भी उतना ही सही है कि महिलाएं पुरुषों से ज्यादा भाव प्रधान होती है. अपने इसी स्वभाव के चलते वह कई बार गलती न होने के बावजूद भी माफी मांग लेती हैं. महिलाएं कई बार माफी सिर्फ इस वजह से मांग लेती है कि कहीं उनकी कही बात किसी का दिल न दुखा दे. अक्सर देखा गया है कि वह अपने भावों की गम्भीरता को व्यक्त करने के लिए भी माफी का सहारा लेती हैं. जैसे कि किसी सामान के कम पड़ जाने वो कह देती हैं कि माफ कीजिएगा यह इतना ही बचा था. इस परिस्थिति में वह माफी मांगकर सिर्फ और सिर्फ अपने भाव व्यक्त कर रही है. जबकि सामान की कमी परिस्थितजन्य है.

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परवरिश भी है एक कारण

लड़कियां जब छोटी होती हैं तब ही से उन्हें सिखाया जाता है कि लोग क्या कहेंगे? सबकी सुना करो. लिहाजा, वो हमेशा से ही दूसरे के नजरिए के हिसाब से चलना सीखती हैं. ऐसे में अगर वह अपने वाक्य कि शुरुआत माफ कीजिएगा से करती हैं तो अचम्भे की कोई बात नहीं है. कई बार उनकी सोच दूसरे के हिसाब से चलती है. नतीजा, बिना गलती के भी उन्हें महसूस होता है कि उनसे कोई गलती हो गई है. इतने पर ही बस नहीं होता महिला जमात के कंधों पर जिम्मेदारी भी ज्यादा डाली जाती है. इसी के फलस्वरूप वो वह जिम्मेदारी लेती हैं जिसे उन्हें लेना है साथ ही वह भी ले लेती हैं जिससे उनका कोई लेना देना नहीं है.

आत्मविश्वास की कमी भी है कारण

आत्मविश्वास में कमी भी आपको हर दम गलत होने का अहसास कराती है और आप उसकी माफी मांगते हैं. ऐसा महिलाओं के साथ भी होता है. ऐसा न हो इसके लिए जरूरी है कि अपने आत्मविश्वास के स्तर में बठोत्तरी की जाए.

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बीवी जब जीजा, साढ़ू की दीवानी हो

लेखक- धीरज कुमार

अंजली की नईनई शादी हुई थी. उस की दिलचस्पी नए घरपरिवार में सामंजस्य बैठाने में कम थी, अपने बड़े जीजा से मोबाइल पर बात करने में ज्यादा थी. जब तक उस का जीजा मोबाइल पर ‘किस‘ नहीं देता था, वह खाती भी नहीं थी.

शादी के कुछ दिन बाद ही उस का जीजा उस से मिलने आ गया था. घर के लोगों ने यह समझा कि ससुराल में अंजली नईनई आई है, इसलिए उस का मन नहीं लग रहा है. इसलिए उस का जीजा मिलने आ गया है.

उस दिन उस का पति काम पर गया था. कुछ जरूरी काम होने के कारण फैक्टरी से पहले लौट आया था, तो उस ने देखा कि उस की पत्नी अंजली अपने जीजा के साथ आपत्तिजनक स्थिति में है.

फिर क्या था…? पतिपत्नी में काफी लड़ाईझगड़ा हुआ. हलांकि उस का साढ़ू मौके की नजाकत को समझ कर वहां से खिसक चुका था. परंतु पतिपत्नी में काफी तनाव भर गया था. दोनों के रिश्ते बिगड़ने लगे थे.

शादी के बाद जीजा से हंसीमजाक करना तो ठीक है, परंतु एकदूसरे से प्यार करना और जिस्मानी संबंध बनाना काफी नुकसानदायक है. शादी के बाद कोई भी पति अपनी पत्नी को किसी के प्रति ऐसा लगाव पसंद नहीं करता है. वह चाहता है कि उस की पत्नी सिर्फ उसी से प्यार करे. यह पुरुष का स्वाभाविक गुण है. पुरुष ही क्यों, कोई भी पत्नी अपने पति को दूसरे के साथ रिश्ता रखना पसंद नहीं करती है. यही बातें पुरुषों पर भी लागू होती हैं.

सरला सरकारी स्कूल में पढ़ाती है. जब वह घर से निकलती है, तो उस के कान मोबाइल पर ही लगे रहते हैं. बस पकड़ने से ले कर स्कूल पहुंचने तक वह मोबाइल पर ही लगी रहती है. एक दिन सड़क पार करते हुए दुर्घटना होने से वह बालबाल बची थी.

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जब इस की जानकारी उस के पति को हुई, तो उस ने सड़क पर चलते हुए मोबाइल पर बात करने से मना किया. फिर भी इस में कोई सुधार नहीं हुआ. तब उस ने उस के मोबाइल काल डिटेल को खंगालना शुरू किया.

सरला के काल डिटेल से पता चला कि दिनभर में लगभग 2 से ढाई घंटे तक वह अपने जीजा से बात करती रहती है. आखिर इतनी बातचीत जीजा से क्यों? तभी उसे समझ में आया कि जब भी वह मोबाइल पर काल करता है, तो उस का मोबाइल बिजी बताता है.

उस के पति का शक और गहराने लगा, जब सैलरी मिलते ही कोई न कोई गिफ्ट अपने दीदी और जीजा के लिए जरूर खरीदती है और अपने बहन के यहां जाने की बातें करती है. बातबात में अपने जीजा का उदाहरण देती है. इसीलिए अब पतिपत्नी के बीच खटास पैदा होने लगा था. उस का पति समझदार था, इसीलिए उस ने समझाने की कोशिश की.

जीजासाली का रिश्ता ही कुछ ऐसा होता है, जिस में दोनों को मीठीमीठी बातें करने की छूट रहती है. इसीलिए घर के लोग भी अनदेखा करते हैं, परंतु कुछ चालाक किस्म के जीजा अपनी सालियों के साथ जिस्मानी संबंध तक बना लेते हैं, जबकि ऐसी स्थिति रिश्ते की मर्यादा को तारतार कर देती है.

जब लड़की कुंवारी रहती है, तो कुछ बातें तो छुपाई जा सकती हैं, किंतु विवाह के बाद लड़की पराए घर की हो जाती है. वहां उस का अपना घरपरिवार होता है, वहां उस का पति होता है. उस नवविवाहिता का पूरा ध्यान अपने घरपरिवार में ही रहना चाहिए. हां, अपने जीजा से संबंध मर्यादित ही होना चाहिए. संबंध ऐसा होना चाहिए, जिस से रिश्ते में खटास नहीं आए. उस के परिवारिक जीवन को तहसनहस न करें.

कई बार देखा गया है कि लड़कियां अपनी बड़ी बहन की शादी के बाद जीजा से लगाव तो रखती हैं, परंतु यह लगाव इतना बढ़ जाता है कि अपनी शादीशुदा जिंदगी में भी आग लगा लेती हैं. ससुराल वाले भी इतना लगाव जीजा के साथ उचित नहीं समझते हैं. कभीकभी यह लगाव उन्हें कहीं का नहीं छोड़ता है. नतीजतन, दोनों परिवारों के बीच झगड़े का रूप ले लेता है.

जूही को अपने जीजा से काफी लगाव हो चुका था. जब उस की शादी हो गई तो भी अपने जीजा से लगाव कम नहीं हुआ था. उन दिनों वह अपने ससुराल से बड़ी बहन के बच्चा जन्मने के समय जीजा के घर आई थी. उस के जीजा ने उसे इधरउधर खूब घुमायाफिराया. होटल, रेस्त्रां में खिलायापिलाया. उस की बड़ी बहन जब अस्पताल में भरती थी, तो जीजा से उस के जिस्मानी संबंध भी बन गए थे. एक दिन जीजा ने बहलाफुसला कर उस से मंदिर में शादी कर ली.

जब इस बात की जानकारी जूही के पति को हुई, तो काफी झगड़ा हुआ. यह मामला कोर्ट तक चला गया. इस के बाद जूही का पति अपने घर ले जाने के लिए तैयार नहीं हुआ.

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इस प्रकार जूही ने अपनी बड़ी बहन के साथसाथ खुद की भी खुशहाल जिंदगी बरबाद कर ली. इस का आभास उसे कुछ ही दिन बाद होने लगा था, क्योंकि जो अपनापन, प्यार, दुलार अपनी बड़ी बहन से प्राप्त कर रही थी, वह कुछ ही दिन में झगड़े में बदल गए थे. हालांकि इस बात से साफ हो गया था कि उस का जीजा काफी चालाक इनसान था.

इसलिए हर लड़की को इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि अपने जीजा के साथ लगाव इतना ही रखना चाहिए, जिस से मनोरंजन हो सके. हंसीमजाक, ठिठोली तक तो ठीक है, इस के बाद मर्यादा का उल्लंघन करना रिश्ते को जोखिम में तो डालना है ही, साथ ही, लड़की का भविष्य भी खराब हो सकता है. लड़की कहीं की नहीं रह जाती है.

कई बार तो ऐसा होता है कि लड़की की शादी के बाद किसी प्रकार से उस के पति को पता चल जाता है, तो भी शादीशुदा जिंदगी में खटास पैदा होने लगती है. इसलिए हर हाल में लड़की को मर्यादित व्यवहार करना चाहिए.

जीजा के साथ रिश्ता अमर्यादित नहीं होना चाहिए, क्योंकि अमर्यादित रिश्ते की भनक जब परिवार के लोगों को हो जाती है, तो दोनों परिवारों में तल्खी आ जाती है. रिश्ते बदनाम हो जाते हैं सो अलग. जब कभी एकदूसरे की मदद की जरूरत पड़ती है, तो चाहते हुए भी पीछे हट जाना पड़ता है. रिश्ते में आई खटास के कारण ऐसा होता है.

दोनों परिवारों के बीच संबंध मधुर बना रहे, इस की जिम्मेदारी सिर्फ लड़की की ही नहीं है, बल्कि लड़के यानी जीजा की भी होनी चाहिए. जीजा को भी सोचना चाहिए कि उस की पत्नी की बहन आधी घरवाली नहीं है, बल्कि सिर्फ उस की पत्नी की बहन है. उस की इज्जत का खयाल रखना उस की भी जिम्मेदारी है.

शुरू में तो मातापिता लड़कियों को काफी बंदिशों में रखते हैं. लेकिन उस घर में बेटी का पति आता है, तो उस का चरित्र जाने बिना ही अपनी बेटी को उस के साथ घूमनेफिरने की काफी छूट दे देते हैं, जबकि ऐसी स्थिति में भी मां का दायित्व बनता है कि बेटी को यह सीख देनी चाहिए कि अपने जीजा के साथ भी संतुलित व्यवहार रखना उचित है. जीजा भी आम इनसान है. जिस प्रकार से दूसरे लोगों से बचने का प्रयास करती है, वैसे ही जीजा से भी खुद को बचाए रखना जरूरी है. यही बातें शादी के बाद भी याद रखना जरूरी है.

देखा गया है कि ऐसे हालात में कई बार झगड़े की नौबत आ जाती है. पति अपना आपा खो देता है और पत्नी से लड़ाईझगड़ा करने लगता है. कभीकभी पतिपत्नी के बीच के ये झगड़े कानूनी विवाद का रूप भी ले लेते हैं. ऐसे में बच्चों पर भी बुरा असर पड़ता है. लेकिन ऐसी स्थिति में पति को भी शांत रहना चाहिए और अपने परिवारिक जीवन को बचाने का प्रयास करना चाहिए.

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पत्नी को भरपूर प्यार मिले, इस का ध्यान रखना चाहिए. अकसर विवाहित औरतें अपने पति से शारीरिक जरूरतें पूरी न होने के कारण अपने जीजा से संबंध रखना उचित समझती हैं. लेकिन ऐसा सब के साथ नहीं होता है. कभीकभी जीजा की मीठीमीठी बातों के कारण भी पत्नी बहक जाती है. थोड़ा संयम से काम लिया जाए, तो ऐसी परिस्थिति को टाला जा सकता है और पुनः सुखमय जीवन जिया जा सकता है.

क्यों बढ़ रही बच्चों की नाराजगी

एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक युवा बच्चे आजकल बड़ी संख्या में साइकोलौजिस्ट के पास जाने लगे हैं. इसे तनाव व दुश्चिंता की महामारी के रूप में देखा जा सकता है. आलम यह है कि युवा खुद को हानि पहुंचाने से भी नहीं डरते. ऐसे में सवाल यह उठता है कि आज जबकि बच्चों के पास मोबाइल, लैपटौप से ले कर अच्छे से अच्छे कैरियर औप्शंस और अन्य सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं तो फिर उन के मन में पेरैंट्स के प्रति नाराजगी और जिंदगी से असंतुष्टि क्यों है?बच्चों के साथ कुछ तो गलत है. कहीं न कहीं बच्चों के जीवन में कुछ बहुत जरूरी चीजें मिसिंग हैं और उन में सब से महत्त्वपूर्ण है घर वालों से घटता जुड़ाव और सोशल मीडिया से बढ़ता लगाव. पहले जब संयुक्त परिवार हुआ करते थे तो लोग मन लगाने, जानकारी पाने और प्यार जताने के लिए किसी गैजेट पर निर्भर नहीं रहते थे. आमनेसामने बातें होती थीं. तरहतरह के रिश्ते होते थे और उन में प्यार छलकता था. मगर आज अकेले कमरे में मोबाइल या लैपटौप ले कर बैठा बच्चा लौटलौट कर मोबाइल में हर घंटे यह देखता रहता है कि क्या किसी ने उस के पोस्ट्स लाइक किए? उस की तसवीरों को सराहा? उसे याद किया?

आज बच्चों को अपना अलग कमरा मिलता है जहां वे अपनी मरजी से बिना किसी दखल जीना चाहते हैं. वे मन में उठ रहे सवालों या भावों को पेरैंट्स के बजाय दोस्तों या सोशल मीडिया से शेयर करते हैं. अगर पेरैंट्स इस बात की चिंता करते हैं कि बच्चे मोबाइल या लैपटौप का ओवरयूज तो नहीं कर रहे तो वे उन से नाराज हो जाते हैं. केवल अकेलापन या सोशल मीडिया का दखल ही बच्चों की पेरैंट्स से नाराजगी या दूरी की वजह नहीं. ऐसे बहुत से कारण हैं जिन की वजह से ऐसा हो रहा है:

1. बढ़ती रफ्तार

फैशन, लाइफस्टाइल, कैरियर, ऐजुकेशन सभी क्षेत्रों में आज के युवाओं की रफ्तार बहुत तेज है. सच यह भी है कि उन्हें इस रफ्तार पर नियंत्रण रखना नहीं आता. सड़कों पर युवाओं की फर्राटा भरती बाइकें और हादसों की भयावह तसवीरें यही सच बयां करती हैं. ‘करना है तो बस करना है, भले ही कोई भी कीमत चुकानी पड़े’ की तर्ज पर जिंदगी जीने वाले युवाओं में विचारों के झंझावात इतने तेज होते हैं कि वे कभी किसी एक चीज पर फोकस नहीं कर पाते. उन के अंदर एक संघर्ष चल रहा होता है, दूसरों से आगे निकलने की होड़ रहती है. ऐसे में पेरैंट्स का किसी बात के लिए मना करना या समझाना उन्हें रास नहीं आता. पेरैंट्स की बातें उन्हें उपदेश लगती हैं.

मातापिता की उम्मीदों का बोझ: अकसर मातापिता अपने सपनों का बोझ अपने बच्चों पर डाल देते हैं. वे जिंदगी में खुद जो बनना चाहते थे न बन पाने पर अपने बच्चों को वह बनाने का प्रयास करने लगते हैं, जबकि हर इंसान की अपनी क्षमता और रुचि होती है. ऐसे में जब पेरैंट्स बच्चों पर किसी खास पढ़ाई या कैरियर के लिए दबाव डालते हैं तो बच्चे कन्फ्यूज हो जाते हैं. वे भावनात्मक और मानसिक रूप से टूट जाते हैं और यही बिखराव उन्हें भ्रमित कर देता है. पेरैंट्स यह नहीं समझते कि उन के बच्चे की क्षमता कितनी है. यदि बच्चे में गायक बनने की क्षमता और इच्छा है तो वे उसे डाक्टर बनाने की कोशिश करते हैं. बच्चों को पेरैंट्स का यह रवैया बिलकुल नहीं भाता और फिर वे उन से कटने लगते हैं.

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समय न देना

आजकल ज्यादातर घरों में मांबाप दोनों कामकाजी होते हैं. बच्चे भी 1 या 2 से ज्यादा नहीं होते. पूरा दिन अकेला बच्चा लैपटौप के सहारे गुजारता है. ऐसे में उस की ख्वाहिश होती है कि उस के पेरैंट्स उस के साथ समय बिताएं. मगर पेरैंट्स के पास उस के लिए समय नहीं होता.

दोस्तों का साथ

इस अवस्था में बच्चे सब से ज्यादा अपने दोस्तों के क्लोज होते हैं. उन के फैसले भी अपने दोस्तों से प्रभावित रहते हैं. दोस्तों के साथ ही उन का सब से ज्यादा समय बीतता है, उन से ही सारे सीक्रैट्स शेयर होते हैं और भावनात्मक जुड़ाव भी उन्हीं से रहता है. ऐसे में यदि पेरैंट्स अपने बच्चों को दोस्तों से दूरी बढ़ाने को कहते हैं तो बच्चे इस बात पर पेरैंट्स से नाराज रहते हैं. पेरैंट्स कितना भी रोकें वे दोस्तों का साथ नहीं छोड़ते उलटा पेरैंट्स का साथ छोड़ने को तैयार रहते हैं.

गर्ल/बौयफ्रैंड का मामला

इस उम्र में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण चरम पर होता है. वैसे भी आजकल के किशोर और युवा बच्चों के लिए गर्ल या बौयफ्रैंड का होना स्टेटस इशू बन चुका है. जाहिर है कि युवा बच्चे अपने रिश्तों के प्रति काफी संजीदा होते हैं और जब मातापिता उन्हें अपनी गर्लफ्रैंड या बौयफ्रैंड से मिलने या बात करने से रोकते हैं तो उस वक्त उन्हें पेरैंट्स दुश्मन नजर आने लगते हैं.

दिल टूटने पर पेरैंट्स का रवैया

इस उम्र में दिल भी अकसर टूटते हैं और उस दौरान वे मानसिक रूप से काफी परेशान रहते हैं. ऐसे में पेरैंट्स की टोकाटाकी उन्हें बिलकुल सहन नहीं होती और वे डिप्रैशन में चले जाते हैं. पेरैंट्स से नाराज रहने लगते हैं. उधर पेरैंट्स को लगता है कि जब वे उन के भले के लिए कह रहे हैं तो बच्चे ऐसा क्यों कर रहे हैं? इस तरह पेरैंट्स और बच्चों के बीच दूरी बढ़ती जाती है.

बच्चे तलाशते थ्रिल

युवा बच्चे जीवन में थ्रिल तलाशते हैं. दोस्तों का साथ उन्हें ऐसा करने के लिए और ज्यादा उकसाता है. ऐसे बच्चे सब से आगे रहना चाहते हैं. इस वजह से वे अकसर अलकोहल, रैश ड्राइविंग, कानून तोड़ने वाले काम, पेरैंट्स की अवमानना, अच्छे से अच्छे गैजेट्स पाने की कोशिश आदि में लग जाते हैं. युवा मन अपना अलग वजूद तलाश रहा होता है. उसे सब पर अपना कंट्रोल चाहिए होता है, पर पेरैंट्स ऐसा करने नहीं देते. तब युवा बच्चों को पेरैंट्स से ही हजारों शिकायतें रहने लगती हैं.

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जो करूं मेरी मरजी

युवाओं में एक बात जो सब से आम देखने में आती है वह है खुद की चलाने की आदत. आज लाइफस्टाइल काफी बदल गया है. जो पेरैंट्स करते हैं वह उन के लिहाज से सही होता है और जो बच्चे करते हैं वह उन की जैनरेशन पर सही बैठता है. ऐसे में दोनों के बीच विरोध स्वाभाविक है.

ग्लैमर और फैशन

मौजूदा दौर में फैशन को ले कर मातापिता और युवाओं में तनाव होता है. वैसे भी पेरैंट्स लड़कियों को फैशन के मामले में छूट देने के पक्ष में नहीं होते. धीरेधीरे उन के बीच संवाद की कमी भी होने लगती है. बच्चों को लगता है कि पेरैंट्स उन्हें पिछले युग में ले जाना चाहते हैं.

हर क्षेत्र में प्रतियोगिता

आज के समय में जीवन के हर क्षेत्र में प्रतियोगिता है. बचपन से बच्चों को प्रतियोगिता की आग में झोंक दिया जाता है. पेरैंट्स द्वारा अपेक्षा की जाती है कि बच्चे हमेशा हर चीज में अव्वल आएं. उन का यही दबाव बच्चों के जीवन की सब से बड़ी ट्रैजिडी बन जाता है.

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बनें एक-दूसरे के राजदार

रिश्ते हमारे जीवन में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं और इन्हीं रिश्तों में सब से खास और करीबी रिश्ता होता है पतिपत्नी का, जिन्हें एकदूसरे का अंग माना जाता है. जीवन की गाड़ी इन्हीं 2 पहियों पर चलती है, इसलिए यह माना जाता है कि इन दोनों का एकदूसरे के साथ सहयोग बना कर प्रेम से चलना बहुत जरूरी है. यह माना गया है कि महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा भावुक होती हैं, उन पर किसी भी अच्छीबुरी या छोटीबड़ी बात का प्रभाव जल्दी पड़ता है. लेकिन यही औरतें दिल से पुरुषों की तुलना में अधिक मजबूत होती हैं. इसी कारण वे बड़े से बड़ा दर्द भी सह लेती हैं और किसी से कुछ नहीं कहतीं, अपने पति से नहीं. लेकिन इस रिश्ते में प्यार बनाए रखने के लिए जरूरी यह होता है कि दोनों एकदूसरे के राजदार बनें.

पतिपत्नी से जुड़े इस विषय पर हम ने गुजरावाला टाउन, दिल्ली के सीनियर मनोरोग विशेषज्ञ डा. गुरमुख सिंह से बात की, जिस में उन्होंने कुछ प्रश्नों के तार्किक उत्तर इस तरह दिए:

पतिपत्नी का रिश्ता कैसा होना चाहिए?

पतिपत्नी को हमेशा एक अच्छे दोस्त या साथी की ही तरह होना चाहिए. केवल पत्नी को ही नहीं, बल्कि पति को भी अपनी पत्नी को अपना राजदार बनाना चाहिए.

जब मां बाप ही लगें पराए

पतिपत्नी दोस्त कैसे बन सकते हैं?

हमारे यहां आज भी जौइंट फैमिली में बहुत से लोग रहते हैं, जिस में कभीकभी समस्याएं और कठिनाइयां भी आने लगती हैं. ऐसे में पति को चाहिए कि वह अपनी पत्नी और अपनी मां दोनों को समय दे. पत्नी को भी ध्यान रखना चाहिए कि वह केवल अपने बारे में नहीं, बल्कि पूरे परिवार के बारे में सोचे और थोड़ाथोड़ा स्वयं को भी बदलने का प्रयास करे.

क्या ऐसा केवल लव मैरिज में ही संभव है या अरेंज्ड मैरिज वाले पतिपत्नी भी दोस्त बन सकते हैं?

एकदूसरे के साथ सामंजस्य बना कर रखना किसी भी तरह की शादी का मूलमंत्र है. शादी के लव या अरेंज्ड होने का इस पर कोई खास असर नहीं पड़ता. जरूरी है कि एकदूसरे के प्रति लव और केयर दोनों तरफ से हो.

कितना जरूरी होता है एकदूसरे को राजदार बनाना?

आज के समय में पतिपत्नी दोनों ज्यादातर वर्किंग ही होते हैं. ऐसे में एकदूसरे पर विश्वास की कमी रहती है. दिमाग में हमेशा एक शक पनपता रहता है. इसलिए यह बहुत जरूरी है कि दोनों एकदूसरे से सब कुछ शेयर करें ताकि यह विश्वास पनप सके कि मुझ से कुछ भी नहीं छिपाया जा रहा. लेकिन कभीकभी सब कुछ शेयर नहीं भी करना चाहिए, क्योंकि 100% राजदार बनाने से आप का यह पवित्र बंधन टूटने के कगार पर भी पहुंच सकता है. कुछ बातें या राज ऐसे होते हैं, जिन का राज रहना ही सही रहता है.

अगर पति एक्सप्रैसिव न हो तो तालमेल कैसे बैठाएं?

सब की अपनी, अलग पर्सनैलिटी होती है. यह तो कुछ समय बाद हर किसी को एकदूसरे के बारे में समझ में आने लगता है. बस हमें स्वयं अपनी भावनाओं पर संयम रखना आना चाहिए और समय के अनुकूल ही कहना और अपेक्षा करनी चाहिए.

आप के पास इस तरह के कितने केस आते हैं और आप उन्हें कैसे सुलझाते हैं?

हमारे यहां ऐसे बहुत से केस आते हैं, जहां पतिपत्नी के रिलेशन में फ्रैंडशिप की कमी होती है. इस तरह के केसेज में हम दोनों पक्षों की बात सुनते हैं और फिर सुलझाते हैं.

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जब मां बाप ही लगें पराए

रीतेश अपनी क्लास का मेधावी छात्र था. पर पिछले दिनों उस का नर्वस ब्रेक डाउन हो गया. इस से उस की योग्यता का ग्राफ तो गिरा ही दिनप्रतिदिन के व्यवहार पर भी बहुत असर पड़ा. खासतौर पर मां और भाई के प्रति उस का आक्रामक व्यवहार इतना बढ़ गया कि उसे मनोचिकित्सालय में भरती कराना पड़ा. उस के साथसाथ घर वालों की भी पर्याप्त काउंसलिंग की गई. तब 3 महीने बाद यह मनोरोगी फिर ठीक हुआ. उस के मांबाप को बच्चों के साथ बराबर का व्यवहार करने की राय दी गई.

  1. क्यों पड़ी यह जरूरत

डा. विकास कुमार कहते हैं, दरअसल किसी भी मनोरोग की जड़ हमेशा रोगी के मनमस्तिष्क में नहीं होती. परिवार, परिवेश और परिचित से भी उस का जुड़ाव होता है, उस का असर अच्छेभले लोगों पर पड़ता है. हम औरों की दृष्टि से नहीं सोच पाते.

अकसर मनोचिकित्सकों के पास ऐसे केस आते रहते हैं. ‘सिबलिंग राइवलरी’ बहुत कौमन है. ऐसा छोटेछोटे बच्चों में भी होता है, जिन बच्चों में उम्र का अंतर कम होता है उन में खासतौर पर. यदि मांबाप वैचारिक या अधिकार अथवा व्यवहार में बच्चों में ज्यादा भेद करें तो भाईबहनों में यह प्रवृत्ति आ जाती है.

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  1. मां-बाप हैं इस की जड़

छोटेछोटे बच्चे छोटे होने के बावजूद भाईबहनों को स्वाभाविक रूप से प्यार करते हैं. अकेला बच्चा मांबाप से पूछता है, औरों के भाईबहन हैं पर उस के नहीं. उस को भाई या बहन कब मिलेंगे? बच्चा बहुत निर्मल मन से उन का स्वागत करता है पर धीरेधीरे वह देखता है कि उस के भाईबहन को ज्यादा लाड़प्यार दिया जा रहा है, ज्यादा अटैंशन दी जा रही है तो अनजाने ही वह पहले उस बच्चे को और फिर मांबाप को अपना शत्रु समझने लगता है. फिर अपनी बुद्धि के अनुसार बदला लेने लगता है.

रिलेशनशिप काउंसलर निशा खन्ना कहती हैं, ‘‘अकसर मांबाप बच्चों को चीजें बराबर दिलाते हैं, खिलातेपिलाते एकजैसा हैं पर वे मन के स्तर पर एकरूपता नहीं रख पाते. जैसे किसी बच्चे की ज्यादा प्रशंसा करेंगे, उसे भविष्य की आशा बताएंगे, अपने सपनों को साकार करने वाला बताएंगे. वे यह भूल जाते हैं कि हर एक बच्चे का बौद्धिक व भावनात्मक स्तर भिन्न होता है. इसलिए मांबाप को चाहिए कि वे बच्चों के साथ डेटूडे व्यवहार में चौकस रहें. उन से बराबरी का व्यवहार करें वरना एक बच्चा कुंठित, झगड़ालू, ईर्ष्यालु और हिंसक तक हो सकता है. इस के दुष्परिणाम हत्या, आत्महत्या, तोड़फोड़ मनोरुग्णता जैसे कई रूपों में हो सकते हैं.’’

  1. पेरैंटिंग सब से बड़ी चुनौती

गृहिणी राजू कहती हैं, ‘‘बच्चों को पैदा करने से ज्यादा मुश्किल है प्रौपर पेरैंटिंग. यह आज की सब से बड़ी चुनौती है. पहले बच्चा संयुक्त परिवार में पलता था, उस की भीतरी, आंतरिक और भावनात्मक शेयरिंग के लिए दादादादी, बूआ, चाचाताऊ आदि थे. उन के पास बच्चों के लिए अवसर था. फिर अभाव भी थे तो बच्चे थोड़े में संतुष्ट थे परंतु आज का बच्चा जागरूक है. मीडिया के माध्यम से सबकुछ घर में देखता है, इसलिए वह मांबाप से अपने अधिकार चाहता है. वह तर्कवितर्क करता है, बहस में जरा भी संकोच नहीं करता. ऐसे में मांबाप को चाहिए कि वे सजग हो कर पेरैंटिंग करें. पैसा खर्च कर के कर्तव्य की इतिश्री न करें.’’

मांबाप अकसर बच्चों के प्रति सोचविचार कर व्यवहार नहीं करते. किशोर बबली कहती है, ‘‘मेरे मांबाप मेरी टौपर बहन पर जान छिड़कते हैं. मैं घर के सारे काम करती हूं, दादी का ध्यान रखती हूं. उन्हें इस से कोई मतलब नहीं. दीदी तो पानी तक हाथ से ले कर नहीं पीतीं. ऐसे में मैं टौपर बनूं तो कैसे?’’

दादी उस के मनोभावों का उद्वेलन शांत करती हैं पर मांबाप की ओर से वह खास संतुष्ट नहीं है. वह उन से अपने काम का रिटर्न और प्यार चाहती है.

  1. शेयरिंग है जरूरी

रमन मल्टीनैशनल कंपनी में ऊंचे ओहदे पर हैं. मांबाप का खूब खयाल रखते हैं. उन की बैंक मैनेजर पत्नी भी पूरा ध्यान रखती है. पर उन को यह बड़ा ही शौकिंग लगा जब माता-पिता ने छोटे बेटे के साथ रहने का निर्णय लिया. छोटा बेटा मांबाप पर खास ध्यान भी नहीं देता, न ही उस के बच्चे. उस की घरेलू पत्नी भी अपने में ही मगन थी. मांबाप के इस निर्णय पर रमन व उन की पत्नी बहुत नाराज हो गए. फूटफूट कर रोए. एक पड़ोसिन ने रमन के मांबाप को यह बात बताई तो मांबाप को लगा सचमुच उन से गलती हो गई.

वे रमन और उन की पत्नी को अपनी ओर से श्रीनगर घुमाने ले गए. वहां उन्होंने बताया कि छोटा लड़का कम कमाता है. उस की बीवी भी नौकरी नहीं करती. दोनों के बच्चे भी आज्ञाकारी नहीं हैं. ऐसे में वे साथ रहेंगे तो उन्हें कुछ आर्थिक मदद भी मिल जाएगी और बच्चों की पढ़ाईलिखाई व पालनपोषण भी अच्छा रहेगा. भले ही उन्हें रमन के साथ सुख ज्यादा है पर 8-10 साल भी हम जी गए तो उस की गृहस्थी निभ जाएगी वरना रोज की चिकचिक से मामला बिगड़ जाएगा.

रमन व उन की पत्नी ने काफी हलका महसूस किया, साथ ही हकीकत जान कर उन का छोटे भाई के प्रति नजरिया भी बदला. उन्होंने भी आर्थिक स्तर के चलते जो दूरियां आने लगी थीं उन्हें समय रहते पाट दिया.

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  1. पैसा ही सबकुछ नहीं

डा. जय अपने माता-पिता को हर माह खर्च के लिए अच्छी राशि देते हैं पर उन्हें लगता है कि उन के मांबाप रिश्तेदारों में छोटे भाई का गुणगान ज्यादा करते हैं जिस ने कभी उन की हथेली पर कुछ नहीं रखा. इस के चलते परिवार में 2 गुट होने लगे. तब जय के माता-पिता ने स्पष्ट किया कि बेटा, पैसे की मदद बहुत बड़ी है पर तुम्हारे छोटे भाई का पूरा परिवार भी कम मदद नहीं करता, राशनपानी लाना, कहीं लाना, ले जाना, छोड़ना, सामाजिकता निभाने में मदद करना. अगर हम इन्हीं कामों को पैसे से तौलें तो तुम्हारे पैसे से ज्यादा ही रहेगी यह मदद. कोई नापने में समझता है तो कोई तौलने में. डा. जय को भी लगा कि यह बात तो सही है कि पैसे देने के बाद वे माता-पिता की खैरखबर नहीं ले पाते. उन को पिता के हार्टअटैक के समय छोटे भाई के ससुराल वालों की दौड़भाग भी याद आई.

  1. नजरिए का विस्तार

सुरंजय और संजय मांबाप से खूब लड़ते हैं. उन के मंझले भाई अजय इन दोनों से अलग हैं. अजय शराब नहीं छूते. वे आज्ञाकारी व मांबाप के सहायक हैं. फिर भी मांबाप उन दोनों को भी बराबर प्यार देते हैं. उस के अच्छे होने का फायदा ही क्या? अजय के इस कौन्फ्लिक्ट पर मांबाप ने समझाया, ‘शरीर का कोई अंग जब तक ठीक होने लायक हो तब तक उस की पूरी परवा की जाती है. उन की संगत ठीक नहीं थी, हमारे प्यार से वह सुधरी, आगे और भी सुधार संभव है. तुम पर जो नाजविश्वास हमें है, उस का तो कहना ही क्या पर हम इन दोनों को नजरअंदाज नहीं कर सकते तुम्हारी मांग जायज होने के बावजूद. अजय की शिकायत काफी कम हो गई. वे समझ सके कि सब को बराबर प्यार देना मांबाप की जिम्मेदारी है. यही उन के भाइयों को भी करना चाहिए पर वे अपरिपक्व हैं.

  1. कमजोर बच्चे की ओर झुकाव

मांबाप का मन अकसर छोटे और कमजोर बच्चों की ओर ज्यादा रहता है. वे सब बच्चों को समान व स्तरीय देखना चाहते हैं. ऐसे में कभीकभी भेदभाव जैसा व्यवहार लगता है पर असल में उन का भाव वैसा नहीं होता. बड़े बच्चों के साथ मांबाप दोस्ताना होते हैं. वे उन्हें जिम्मेदार समझ कर उन से उम्मीद करते हैं कि वे छोटे भाईबहनों का भी ध्यान रखें.

  1. सही सलाह भी जरूरी

प्रकाश वैसे आईआईटी का छात्र है पर उसे लगता है कि उस के विकलांग भाई के पीछे मांबाप पागल हैं. अगर उस पर इस से आधा भी प्यार लुटाते तो वह 2 चांस नहीं गंवाता. उसे उस के दोस्तों ने समझाया, ‘तुम समर्थ हो, सबल हो. तुम्हारा बड़ा भाई हर काम के लिए उन पर निर्भर है. इसलिए अगर वे राधूराधू करें तो तुम परेशान मत हुआ करो. तुम्हारे पास बाहर की पूरी दुनिया है. राधू के पास व्हीलचेयर, किताबें, टीवी और इक्कादुक्का लोगों के अलावा कौन है? इतने पराधीन जीवन में मांबाप ही उस का साथ नहीं देंगे तो वह जी ही नहीं पाएगा.’ प्रकाश को लगा कि उस की सोच भी दोस्तों जैसी परिपक्व व सकारात्मक होनी चाहिए.

  1. देने-लेने में फर्क

चाहे किसी के पास कितना ही धन हो पर अधिकार की प्राप्ति सब बराबर चाहते हैं. एक प्रोफैसर मां कहती हैं, मेरे बेटे का 5 लाख रुपए महीने का पैकेज है पर फिर भी वह छोटीछोटी बातों पर लड़ता है. उस के भाई को 20 हजार रुपए मिलते हैं. दो पैसा उसे दे दूं तो रूठ कर मेरी चीज मेरे सामने ही रख जाता है. तब मेरी सखी ने समझाया, ‘इस व्यवहार से तुम बेटेबहू दोनों खो दोगी.’ तब मैं ने समझा पैसे से भी ज्यादा जरूरी है भावनात्मकता व्यक्त करना. अब से मैं होलीदीवाली सब को बराबर देती हूं. भाईभाई आपस में कन्सर्न रख कर अब कुछ तरक्की पर हैं. बड़े भाई ने छोटे भाई के बिजनैस को प्रौफिटेबल बनाने में भी मदद की. होड़ और ईर्ष्या की जगह अच्छे अनुकरण ने ली.

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बलवीर कहते हैं, ‘‘मेरे बड़े बेटे के पास अकूत दौलत है. मैं ने अपनी प्रौपर्टी बांटी तो हिस्सा उस के हाथ से कराया. उस ने यादगार के तौर पर मामूली चीजें लीं बाकी भाईबहनों को दे दीं. उन सब में प्रेम भी खूब है. छोटा बेटा नशे का शिकार था उसे भी संभाला.’’ मनोचिकित्सक डा. विकास कहते हैं, ‘‘एकजैसी परवरिश पाने पर लगभग सब बच्चे एकजैसे योग्य निकल सकते हैं. उन में 19-20 का अंतर होता है. यह नैचुरल व ऐक्सेप्टेबल होता है.’’

क्या कोरोना में ओरल और वैजाइनल सैक्स करना सेफ है?

सवाल-

मैं 26 साल की युवती हूं. मेरा बौयफ्रैंड 28 साल का है और हमारी दोस्ती पिछले कई सालों से है. वह मेरे साथ सुरक्षित यौन संबंध बनाना चाहता है. मैं यह जानना चाहती हूं कि अभी जबकि कोरोना का कहर है क्या ओरल और वैजाइनल सैक्स करना सेफ है? इस के अलावा अगर वैजाइना के अंदर ही कंडोम फट जाए तो क्या गर्भधारण हो सकता है? अगर हम सिर्फ ओरल सैक्स ही करें  तो इस के लिए सही कंडोम कौन सा हो सकता है?

जवाब-

विवाहपूर्व सैक्स संबंध बनाना कतई उचित नहीं होता मगर यदि इस में दोनों पार्टनर की सहमति हो तो संबंध बनाने से पहले जरूरी ऐहतियात जरूर बरतें.

यों सैक्स संबंध में कंडोम जरूरी सुरक्षा देने में सस्ता और बेहतर विकल्प जरूर है मगर कंडोम हमेशा ब्रैंडेड ही खरीदना सही रहता है. ब्रैंडेड कंडोम अधिक समय तक साथ देता है और जल्द फटता भी नहीं.

रही बात कोरोनाकाल में सैक्स संबंध को ले कर, तो अगर आप व आप का बौयफ्रैंड पिछले कई दिनों से शारीरिक रूप से स्वस्थ हैं, सर्दी, खांसी या बुखार नहीं है तो सैक्स संबंध बनाने में कोई हरज नहीं.

रही बात ओरल सैक्स के दौरान कंडोम की, तो आजकल बाजार में कई फ्लैवर्स में कंडोम्स उपलब्ध हैं जो सैक्स को अधिक जोशिला और रोमांच देने में सक्षम हैं.

मगर जो भी करें सोचसमझ कर व आपसी रजामंदी से ही. जोश में चूक हो जाए और फिर पछताना पङे इस के लिए आप और आप का बौयफ्रैंड दोनों ही सचेत रहें तो ज्यादा बेहतर है.

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4साल की लंबी कोर्टशिप के बाद जब नेहा और शेखर ने अचानक अपनी दोस्ती खत्म कर ली तो सभी को बहुत आश्चर्य हुआ. ‘‘हम सब तो उन की शादी के निमंत्रण की प्रतीक्षा में थे. आखिर ऐसा क्या घटा उन दोनों में जो बात बनतेबनते बिगड़ गई?’’ जब नेहा से पूछा तो वह बिफर पड़ी, ‘‘सब लड़के एक जैसे ही होते हैं. पिछले 2 साल से वह मुझे शादी के लिए टाल रहा है. कहता है, इसी तरह दोस्ती बनाए रखने में क्या हरज है? असल में वह जिम्मेदारियों से दूर भागने वाला, बस, मौजमस्ती करने वाला एक प्लेबौय किस्म का इनसान है. आखिर मुझे भी तो कोई सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा चाहिए.’’

पूरी खबर पढ़ने के लिए- करते हैं प्यार पर शादी से इनकार क्यों?

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असमान पड़ोस में कैसे निभाएं

विनय एक डाक्टर है. उस की प्रैक्टिस अच्छी चलती है. लेकिन इन दिनों वह एक अजीब समस्या से परेशान है. कुछ वर्षों पहले उस ने एक सरकारी कालोनी में घर बनाने के लिए भूखंड खरीदा था. उस समय वहां अधिक बसावट नहीं थी, इसलिए वह अपने पिता के साथ अपने पैतृक घर में ही रह रहा है. अब चूंकि नई कालोनी में बसावट होने लगी है तो उस ने भी वहां घर बनाने का निश्चय किया.

नक्शा बनवाने के लिए जब विनय सिविल इंजीनियर के साथ साइट पर गया तो सड़क के दूसरी तरफ बने घरों को देख कर उस का माथा ठनक गया. वे मकान बेहद छोटे आयवर्ग के थे. विनय मन ही मन उन के और अपने रहनसहन की तुलना करने लगा. हालांकि उसे यह तुलना करना बहुत ही ओछा काम लग रहा था लेकिन मन था कि सहज हो ही नहीं पा रहा था.

“आजकल किसे फुरसत है आसपड़ोस में बैठने की. वे अपना कमाएखाएंगे, हम अपना. आप नाहक परेशान हो रहे हैं,” पत्नी ने समझाया.

“इसे बेच कर दूसरा प्लौट खरीदना आसान काम नहीं है. फिर तुम्हें इतनी फुरसत भी कहां है. बेकार ही दलालों के चक्कर में उलझ जाओगे. बहू ठीक कहती है. इसी जमीन पर बनवा लो,” पिता ने भी राय दी तो विनय बुझेमन से घर बनवाने के लिए तैयार हुआ.

अभी मकान का काम चलते कुछ ही दिन हुए थे कि एक दिन सड़क के दूसरी तरफ वाले किसी घर से एक व्यक्ति आया.

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“अच्छा है. पड़ोस में कोई डाक्टर होगा तो रातबेरात काम आएगा,” उस ने विनय को नमस्कार करते हुए कहा. सुनते ही विनय का मूड फिर से उखड़ गया.

जैसेजैसे मकान का काम पूर्णता की तरफ बढ़ रहा था वैसेवैसे विनय का उत्साह फीका पड़ता जा रहा था. जब भी वह अपनी कार किसी पेड़ के नीचे खड़ी करता, कई सारे बच्चे उस के आगेपीछे घूमने लगते. कोई उसे छू कर देखता तो कोई सहला कर. विनय मन ही मन डरता रहता कि कहीं कोई शैतान बच्चा महंगी कार पर खरोंच न लगा दे.

विनय के मित्ररिश्तेदार बनते हुए मकान को देखने आते तो उस के पड़ोस को देख कर व्यंग्य से मुसकरा देते. कुछ तो ‘मखमल में टाट का पैबंद’ कह कर हंस भी देते.

“कहीं हमारे बच्चे भी इन की आदतसंस्कार न सीख लें,” एक दिन पड़ोस के बच्चों को आपस में झगड़ते देख कर पत्नी ने चिंता जाहिर की तो विनय का रहासहा उत्साह भी मर गया. उस ने उसी दिन एक दलाल से कह कर उस मकान को बेचने की बात कर ली.

सानिया की समस्या भी कुछ कम नहीं है. जब भी वह वैस्टर्न ड्रैस पहने अपनी कार चलाती हुई सोसाइटी से बाहर निकलती है तो कई जोड़ी आंखें उस की पीठ पर चिपक जाती हैं. उस के साथ आने वाले दोस्तों में भी आसपास के लोग खासी दिलचस्पी रखते हैं. कई बार तो बीच पार्टी में पडोसी का कोई बच्चा किसी न किसी बहाने से भीतर आने की कोशिश भी करता है. ताकझांक करती ये आंखें उसे दोस्तों के सामने शर्मिंदा कर देती हैं. सानिया मन ही मन घुटती रहती है क्योंकि न तो इस फ्लैट को बेच कर दूसरा खरीदना हो रहा है और न ही निजता का यह अतिक्रमण सहन हो रहा है.

विनय और सानिया जैसी स्थिति किसी के भी सामने आ सकती है. लेकिन घर बेचना या घुटघुट कर जीना इस समस्या का समाधान नहीं है. अनेक आवासीय कालोनियों में इस तरह का असमान भूखंड वितरण देखने में आता है जहां एक तरफ बड़े साइज़ तो उसी के सामने छोटे आकार के भूखंड होते हैं. इसी तरह बड़े शहरों की सोसाइटियों में भी वन बीएचके से ले कर थ्रीफोर बीएचके तक के फ्लैट्स होते हैं.

यह कोई बुरी बात नहीं है. समाज में सभी आयवर्ग के लोग होते हैं और सभी को एक अच्छी आवासीय कालोनी या सोसाइटी में रहने का अधिकार है. हालांकि यह भी सच है कि हर व्यक्ति अपने सामाजिक स्तर, शौक, स्वभाव और आय के अनुसार अपने मित्र चुन लेता है लेकिन फिर भी इस तरह की असमानता कई बार परेशानी का कारण बन जाती है. न केवल उच्च आयवर्ग के लिए बल्कि निम्न या मध्य आयवर्ग के लिए भी.

क्या होती हैं परेशानियां

1. यदि पड़ोस में आप से कम आयवर्ग के लोग रहते हैं तो उन्हें देख कर आप से मिलने आने वाले मित्ररिश्तेदार नाक चढ़ाते हैं. कई बार बातों ही बातों में ताने भी कसते हैं.

2. चूंकि पड़ोस में यही बच्चे हैं तो आपस में खेलेंगे भी. और खेलखेल में झगड़ामनमुटाव होना भी स्वाभाविक है. ऐसे में एकदूसरे की आदतें, संस्कार आदि का स्थानान्तरण होना लाज़िमी है.

3. असमान स्टेटस के कारण उच्च आयवर्ग के लोगों के घर में होने वाली पार्टी आदि निम्न आयवर्ग के लिए कौतुक का विषय होते हैं. जिज्ञासावश लोग ताकझांक करने की कोशिश भी करते हैं जो निजता में सेंध सी लगती है.

4. इस तरह के समारोह में जब बच्चे अपने अन्य मित्रों के साथ आसपड़ोस के दोस्तों को भी आमंत्रित करते हैं तो विचित्र सी स्थिति पैदा हो जाती है. दोनों ही वर्गों के बच्चे आपस में घुलनेमिलने में संकोच करते हैं. नतीजतन, एक अदृश्य खिंचाव सा उत्पन्न हो जाता है.

कैसे निभाएं

1. यहां मकसद किसी को छोटा या निम्न दर्शाना नहीं है. लेकिन, यह सत्य है कि हर आयवर्ग का अपना लिविंग स्टेटस होता है. बेहतर है कि अपने पडोसी को उस की सीमारेखा स्पष्ट जतला दी जाए.

2. यदि पड़ोसी को सचमुच आप की मदद की आवश्यकता है तो बिना किसी पूर्वाग्रह के आगे आएं और यथासंभव उस की मदद करें. इस से आप की इज्जत में इजाफ़ा ही होगा.

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3. यदि आप के परिवार में होने वाला समारोह वृहद स्तर पर हो रहा है तो बिना किसी शर्मशंका के अपने पड़ोसियों को भी अवश्य आमंत्रित करें.

4. पड़ोसियों द्वारा दिए गए उपहारों या लिफाफे को तुरंत खोल कर उन को असहजता की स्थिति में न लाएं. इस में आप का ही बड़प्पन है.

5. यदि बच्चे पड़ोसियों के बच्चों के साथ खेलते हैं तो उन्हें मना न करें. समय के साथ बच्चे अपने साथी अपने अनुसार चुन लेते हैं.

आयवर्ग के अनुसार रहनसहन के स्तर में असमानता न केवल आसपड़ोस बल्कि परिवार में भी देखी जा सकती है. यह शाश्वत सत्य है कि इस तरह की असमानता समाज का हिस्सा है और इसे स्वीकार करने में ही समझदारी है. जिस तरह से पारिवारिक रिश्तों को निभाने में कभी झुकना तो कभी झुकाना पड़ता है वैसी ही व्यावहारिकता आसपड़ोस में भी दिखानी चाहिए.

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