पाकिस्तानी एक्ट्रेस के कारण Diljit Dosanjh बुरी तरह फंसे, जानें पूरा मामला

Diljit Dosanjh : गायक और एक्टर दिलजीत दोसांझ हाल ही में बुरी तरह आलोचना के शिकार हुए. जिसकी वजह है पाकिस्तानी एक्ट्रेस हानिया अमीर. दिलजीत दोसांझ ने अपनी फिल्म सरदार जी 3 में पाकिस्तानी एक्ट्रेस हानिया अमीर को कास्ट किया, हाल ही में हुए पहलगाम अटैक के बावजूद जबकि हिंदुस्तान पाकिस्तान का रिलेशन पूरी तरह खराब हो चुका है, दिलजीत दोसांझ ने पाकिस्तानी एक्ट्रेस को अपनी फिल्म से नहीं हटाया.

हाल ही में जब इस फिल्म का ट्रेलर रिलीज हुआ तो पाकिस्तानी एक्ट्रेस हानिया अमीर फिल्म में नजर आई, उसके बाद हर जगह बवाल मच गया और हर तरफ दिलजीत दोसांझ की आलोचना होने लगी, कई लोगों ने उन्हें देश का गद्दार तक कह दिया. सोशल मीडिया पर दिलजीत बुरी तरह ट्रोल हो गए. लेकिन बावजूद इसके दिलजीत दोसांझ टस से मस नहीं हुए और उन्होंने अपनी फिल्म हिन्दुस्तान के बजाय लंदन से रिलीज करने की तैयारी शुरू कर दी.

जिसके बाद और ज्यादा बवाल हो गया और फिल्म इंडस्ट्री ने दिलजीत का बायकाट कर दिया और उनकी आने वाली सभी फिल्मों पर भी रोक लगा दी गई. खबरों के अनुसार बौर्डर 2 में दिलजीत दोसांझ का खास रोल था, जिसे FWICE के कहने पर इस फिल्म बार्डर 2 से हटाने के लिए कहा गया है, खबरों के अनुसार बार्डर 2 से दिलजीत दोसांझ का पत्ता कट हो गया है और उनकी जगह पंजाबी एक्टर एम्मी विर्क को ले लिया गया है.

दिलजीत ने उड़ता पंजाब क्राईम थ्रिलर, एक्टर शाहिद कपूर और आलिया भट्ट के साथ, अक्षय कुमार करीना कपूर के साथ गुड न्यूज़, और अमर सिंह चमकीला आदि फिल्मों में अभिनय किया है, इसके अलावा कई रियलिटी शोज में भी बतौर जज नजर आए हैं. लेकिन अब, पाकिस्तानी एक्टरों की तरह दिलजीत दोसांझ भी अब हिंदी फिल्मों में फिर से नजर आएंगे यह कहना मुश्किल है.

Urmila Matondkar : 51 की उम्र में रंगीला गर्ल का बौडी ट्रांसफौर्मेशन देख लोगों ने किया ट्रोल

Urmila Matondkar :  अपने सेक्सी, बोल्ड लुक और इम्प्रेसिव एक्टिंग टैलेंट के बल पर 90 के दशक में बिग स्क्रीन पर राज करने वाली बौलीवुड एक्ट्रेस उर्मिला मातोंडकर इन दिनों अपनी गजब के बौडी ट्रांसफार्मेशन के वजह से चर्चा में छाई हुई हैं. उनके इस लुक को देख कर लोग हैरान हो कर कमैंट्स भी कर रहे हैं. कुछ लोगों ने तो उन्हें ट्रोल भी किया है.

यूजर्स के कमैंट्स-

इंस्टा पर शेयर की फोटोज में उर्मिला पहले से काफी स्लिम और फिट भी दिख रही हैं. कुछ लोग तो उन्हें देखकर अंदाजा लगा रहे हैं कि उनके चेहरा काफी स्लिम और लिप्स मोटे दिख रहे हैं. एक्ट्रेस की यूजर्स ने जम कर तारीफ की लेकिन कुछ ऐसे भी हैं, जिन्होंने जमकर ट्रोल कर दिया. एक यूजर लिखती हैं कि- ”इन्होंने अपने मुंह पर क्या करवा लिया.” तो दूसरे ने कहा-  “या तो यह 10 जीबी एआई का काम है, या फिर 10 KG ozempic का.” एक और ब्यूटी आर्टिफिशियल शो औफ में खो गई” वही दूसरे यूजर ने सवाल किया क्या यह AI फोटो है या फिर सर्जरी का कमाल है. वहीं कुछ ने ये कहा कि कौन सी जड़ी बूटी खा रही हैं. जो 51 में भी 25 की लग रहीं.

एक यूजर ने तो उनकी तुलना अमिताभ बच्चन की बेटी श्वेता बच्चन से भी करती. वही एक ने लिखा कि ‘यह सब तो बोटोक्स फिलर्स और सर्जरी का कमाल है. इसके बाद एक 51 साल की एक्ट्रेस 22 23 साल की लगने लगती है.’ एक फैन ऐसा भी जिसने उर्मिला के इस न्यू और चेंज और सिजलिंग लुक को देखकर खूब तारीफ की हैं.

बौडी ट्रांसफार्मेशन बना चर्चा का विषय-

आपको बता दें पौलिटिशियन, एक्ट्रेस और सोशल एक्टिविस्ट उर्मिला मातोंडकर सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं. उनके इंस्टाग्राम पर लगभग 1 मिलियन फौलोअर्स हैं. वो अक्सर एक से बढ़कर एक ग्लैमरस तस्वीरें शेयर करती रहती हैं. इसके साथ ही वो अपनी फिटनेस को लेकर काफी फोक्स्ड हैं. बढ़ती उम्र में ऐसी फिटनेस देखकर लोग भी उनकी खूब तारीफ करते हैं. हाल ही में उर्मिला ने अपने इंस्टाग्राम हैंडल पर अपने बौडी ट्रांसफॉर्मेशन के न्यू लुक को दिखाते हुए फोटोज शेयर की हैं. जिसमें वो गजब की सिल्म-ट्रिम नजर आ रही हैं. 51 की उम्र में उनका ये लुक देख कर उनके फैंस समझ ही नहीं पा रहे हैं ये उर्मिला ही हैं? फोटोज में वो बिलकुल अलग ही दिख रही हैं.

स्टाइलिश ड्रेस के साथ ग्लैमरस मेकअप-

इंस्टाग्राम पर शेयर की गई बौडी ट्रांसफौर्मेशन की फोटोज में उर्मिला ने बेबी पिंक शार्ट स्कर्ट के साथ बेबी पिंक वेस्ट स्टाइल हाफ स्लीव्स क्रॉप टॉप पहना हुआ हैं. जिसकी नेकलाइन सिंपल राउंड हैं. टॉप में पॉकेट की तरह दोनों तरफ डिजाइन भी दिया हैं, जिसमे पर दोनों तरफ गोल्डन बटन लगाकर हाइलाइट किया, इसके साथ ही नेकलाइन के नीचे भी तीन गोल्डन बटन लगे हैं. क्रॉप टॉप में क्यूट वाइब्स देने के लिए लुक में ग्लैम कोशेंट भी ऐड किया हैं. अगर बात करें उनके मेकअप की तो उन्होंने सॉफ्ट, ग्लैमरस मेकअप और हेयर में ब्लो-ड्राई किया हुआ हैं.

फिल्मी करियर-

राम गोपाल वर्मा की फिल्म ‘रंगीला’ से रातोंरात स्टार बनने वाली उर्मिला मातोंडकर ने 1977 में आई फिल्म ‘करम’ से बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट डेब्यू किया था, लेकिन ‘मासूम’ फिल्म से उन्हें प्रसिद्धि हासिल हुई थी. उर्मिला साउथ में भी काम कर चुकी हैं. उन्होंने मलयालम सिनेमा में फिल्म ‘चारणक्यन’ से डेब्यू किया था. इसके बाद उर्मिला ने सुपरहिट फिल्म ‘नरसिम्हा’ (1991) से बौलीवुड में डेब्यू किया. ‘नरसिम्हा’ के बाद, उर्मिला ने एक और हिट ‘चमत्कार’ में काम किया, लेकिन इसके बाद ‘श्रीमान आशिक’ और ‘बेदर्दी’ जैसी फ्लॉप फिल्में आईं. 1995 में, उर्मिला को ‘रंगीला’ में मिली के किरदार के रूप में भूमिका मिली थी. जिसे उन्होंने बहुत जबरदस्त तरीके से निभाया था. इस फिल्म में उर्मिला के सेक्सी लुक और इम्प्रेसिव एक्टिंग ने उन्हें स्टार बना दिया. रंगीला के बाद, उर्मिला ने बैक-टू-बैक हिट फिल्में दीं, जिनमें ‘इंडियन’, ‘जुदाई’, ‘सत्या’, ‘कौन’, ‘दीवानगी’, ‘भूत’, ‘मस्त’, ‘प्यार तूने क्या किया’, आदि फिल्मों में काम किया था.

Ear Pain Causes : कान के दर्द को न करें नजरअंदाज, हो सकती है गंभीर समस्या

Ear Pain Causes : कान का दर्द एक आम लेकिन उपेक्षित समस्या है, जो बच्चों से लेकर बड़ों तक किसी को भी हो सकती है. अक्सर लोग इसे मामूली समझकर घरेलू उपायों से निपटने की कोशिश करते हैं, जिससे स्थिति और बिगड़ सकती है. विशेषज्ञों के अनुसार, कान के दर्द की अनदेखी गंभीर समस्याओं जैसे बहरेपन का कारण बन सकती है.

कान दर्द के दो प्रकार होते हैं – प्राथमिक (जो सीधे कान की बीमारी से जुड़ा होता है) और निर्दिष्ट (जो शरीर के अन्य हिस्सों की समस्याओं जैसे दांत दर्द, जुकाम या गले के संक्रमण से संबंधित होता है). प्रमुख कारणों में मध्य कान का संक्रमण (ओटाइटिस मीडिया), कान में वैक्स का जमाव, साइनस इंफेक्शन, कान का पर्दा फटना, फंगल संक्रमण (ऑटोमीकोसिस) और एयर प्रेशर बदलाव (इयर बैरोट्रॉमा) शामिल हैं.

बच्चों में यह समस्या अधिक पाई जाती है, खासकर जब वे करवट लेकर दूध पीते हैं, जिससे दूध यूस्टेचियन ट्यूब के जरिए कान तक पहुंच जाता है और संक्रमण हो सकता है. वैक्स या मेल जमा होने से भी दर्द और सुनाई देने में कमी आती है.

बचाव के उपायों में शामिल हैं:

कान में पिन, चाबी, तिल्ली जैसी चीजें डालने से बचें.

नहाने या तैरने के बाद कान को सूखा रखें.

प्लेन यात्रा के दौरान च्युइंग गम चबाएं या वाल्साल्वा व्यायाम करें.

कान की नियमित सफाई डौक्टर की सलाह से कराएं.

बच्चों को दूध पिलाते समय उनके सिर को ऊंचा रखें.

उपचार के तौर पर हल्की सिकाई, पेरासिटामोल या इबुप्रोफेन जैसी दर्दनिवारक दवाएं और डौक्टर द्वारा सुझाई गई ईयर ड्राप्स उपयोगी होती हैं. लेकिन अगर दर्द दो-तीन दिनों से अधिक बना रहे या कान से मवाद निकले तो तुरंत ENT विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए. कान की सेहत को नजरअंदाज न करें. समय पर उपचार से गंभीर दिक्कतों से बचा जा सकता है.

Monsoon 2025 : स्नैक्स में परोसें लौकी कटलेट, फौलो करें ये स्टेप्स

Monsoon 2025 :

सामग्री

1 कप लौकी कद्दूकस

1/2 कप भुने चने का पाउडर

1/2 कप ब्रैडक्रंब्स

2 बड़े चम्मच चावल का आटा

1 बड़ा चम्मच धनियापत्ती कटी

मिर्च

चाट मसाला

नमक स्वादानुसार

भरावन की सामग्री

100 ग्राम पनीर कद्दूकस किया

1/4 छोटा चम्मच कालीमिर्च चूर्ण

8 किशमिश छोटे टुकड़ों में कटी

2 छोटे चम्मच पुदीनापत्ती कटी

शैलो फ्राई करने के लिए थोड़ा सा रिफाइंड औयल

नमक स्वादानुसार

विधि

कद्दूकस की लौकी को दोनों हाथों से कस कर निचोड़ें ताकि सारा पानी निकल जाए. फिर इस में सारी सामग्री मिला लें.

इसी तरह पनीर में भी सारी सामग्री मिला लें. लौकी वाले मिश्रण से बड़े नीबू के बराबर मिश्रण ले कर बीच में पनीर वाला मिश्रण भर कर बंद करें.

इच्छानुसार आकार दें और नौनस्टिक पैन में थोड़ा सा तेल डाल कर कटलेट को सुनहरा होने तक तल लें. सौस या चटनी के साथ सर्व करें.

Kurta Styling Tips : मौनसून में कुर्ते को ऐसे करें स्टाइल, अट्रैक्टिव लुक के साथ मिलेगा कंफर्ट

Kurta Styling Tips : बारिश का मौसम लगभग प्रारम्भ हो चुका है इसे में सबसे बड़ी समस्या आउटफ़िट को लेकर होती है कि ऐसा क्या पहना जाए जो स्टाइलिश भी लगे और जिसे कैरी करना भी आसान हो. कुर्ता आजकल एक ऐसा आउटफिट है जो प्रत्येक महिला के पास होता है साथ यह एक ऐसा परिधान है जिसे विविध प्रकार से किसी के भी साथ पेयर करके ऑफ़िस, पार्टी, वॉकिंग या फिर मार्केट में पहना जा सकता है. आज हम आपको ऐसे ही कुछ टिप्स बता रहे हैं जिन्हें ध्यान में रखकर आप कुर्ते को कई तरह से स्टाइल कर सकतीं हैं-

स्नीकर लुक

किसी भी शॉर्ट कुर्ते को आप प्लाजो, प्लाजो पेंट्स, के साथ कैरी करके आकर्षक लुक दे सकती हैं. सिल्क कुर्ते को पैराशूट पैंट्स के साथ, हैंड वोवन कुर्ता बॉक्सर शॉर्ट्स के साथ, चिकनकारी कुर्ता बास्केटबॉल स्नीकर्स के साथ आप अपने अंदाज में पेयर कर सकती हैं. यह आपकी पर्सनैलिटी को एक आकर्षक लुक देगा.

जींस के साथ

वाइड लेग जींस, विंटेज वाश, यूटिलिटी इंस्पायर्ड कार्गो पेंट्स के साथ किसी भी लाइट कलर के कुर्ते को पेयर करके आराम से पहन सकतीं हैं. इसके साथ कोल्हापुरी चप्पल, क्लार्कस या स्मार्ट स्नीकर्स कुछ भी कैरी किया जा सकता है.

ओवरसाइज्ड ट्राउजर

क्रिस्पी कॉटन या लिनेन शर्ट कुर्ता को आप वाइड लेग जींस, प्लेटेड ट्राउजर्स, या ढीले ढाले पैंट्स के साथ पहनें. कलर पेलेट को हल्का फुल्का रखें ताकि कपड़ो का ओरिजिनल लुक उभर कर आए. इसके साथ आप बैंगल्स पहनकर लेदर के सैंडल्स पहन सकती हैं.

जैकेट देगी नया लुक

जब आप यह तय न कर पायें कि क्या पहनें तो किसी भी कुर्ते पर जैकेट पहन लें. ये जैकेट सीक्वेंस, अजरख, सिल्क या मिरर वर्क की हो सकती है. जैकेट का चुनाव आप अवसर के अनुकूल कर सकतीं हैं. इसके साथ आप सैम कलर का पलाजो, लेगिंग्स या पैंट्स कैरी कर सकतीं हैं. पर्सनेलिटी को आकर्षक बनाने के लिए आप इसके साथ हाई हील सैंडल्स पहन सकतीं हैं.

कुर्ते को दें ड्रेस लुक

अगर आपका कुर्ता मिड काफ़ तक या उससे भी लम्बा है तो आप इसे ड्रेस की तरह पहनें पार्टी वीयर और अधिक आकर्षक लुक के लिए आप इस पर बेल्ट भी कैरी कर सकतीं हैं. इसके साथ आप ब्लॉक हील्स सैंडल या फ्लैट्स भी पेयर कर सकतीं हैं. ऐसे कुर्तों पर आप फ़ैन्सी दुपट्टा भी कैरी कर सकतीं हैं.

अनारकली स्टाइल

कली ऑए घेरदार कुर्ते को अनारकली स्टाइल में पहनें. इसे चुन्नी और चूड़ीदार पजामे के साथ कैरी करें. पैरों में जयपुरी या कोल्हापुरी चप्पल पहनें.

रखें इन बातों का ध्यान

बारिश में बहुत अधिक हैवी और क़ीमती फैब्रिक के कुर्ते पहनने से बचें.

मानसून में सिंथेटिक, चिकन और कॉटन फेब्रिक से बने कुर्ते पहनें ताकि भीगने पर ये जल्दी से सूख जायें.

किसी भी पुराने कुर्ते को आप जैकेट के साथ पेयर करके एकदम नया लुक दे सकते हैं.

किसी भी खास अवसर पर हर बार नया कुर्ता खरीदने की अपेक्षा आप पुराने कुर्ते के साथ मिक्स एंड मैच करके उसे नया लुक दे सकतीं हैं.

कुर्ते के साथ बैंगल्स, पर्स, ट्रेडिशनल और ऑक्सीडाइजड ज्वैलरी कैरी अवश्य करें ये आपकी पर्सनेलिटी में चार चांद लगा देंगीं.

बारिश में यदि आप भीग गईं हैं तो सर्वप्रथम घर आकर अपने कुर्ते को साफ पानी से धोकर सुखाएं ताकि इसका रंग और शेप बरकरार रहे.

Health Issue : ज्यादा देर बैठ रहने से मेरी रीढ़ में दर्द होने लगता है, मै क्या करूं?

Health Issue  : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक पढ़ें

सवाल-

मैं 32 साल की कामकाजी महिला हूं. मेरा सारा काम कंप्यूटर पर होता है, इसलिए ज्यादा देर बैठने से मेरी रीढ़ में दर्द होने लगता है. कृपया इस से छुटकारा पाने का उपाय बताएं?

जवाब-

इस उम्र में हड्डियों की समस्या शुरू होना आम बात है विशेषकर कंप्यूटर पर काम करने वालों में यह समस्या अधिक देखने को मिलती है. ठंड के दौरान रीढ़ में जकड़न होने की संभावना ज्यादा होती है. जब आप एक ही स्थिति में कई घंटों तक बैठे रहते हैं तो हड्डी में दर्द की समस्या होती है. ठंड में जकड़न के कारण डिस्क की नसों पर दबाव पड़ने लगता है, जिस से दर्द तेज हो जाता है. दर्द से बचाव के लिए काम के दौरान बीचबीच में ब्रेक ले कर बौडी स्ट्रैच करें. आगे और पीछे की ओर  झुकने वाली ऐक्सरसाइज करें. बैठने का पोस्चर सही रखें. दर्द से बचाव के लिए सही आहार लें और पानी का ज्यादा सेवन करें. समय मिलने पर पीठ की कुनकुने तेल से मालिश कराएं. हलके हाथों से की गई मालिश दर्द से राहत दिलाएगी.

जो लोग कामगर हैं, जिन्हें पूरे दिन कंप्यूटर पर बैठ के काम करना पड़ता है उन्हें गर्दन और पीठ दर्द की शिकायत रहती है. पर क्या आपको पता है कि अपने बैठने की आदत में बदलाव कर के आप इस परेशानी से निजात पा सकती हैं. आपको बता दें कि कंप्यूटर के सामने अधिक देर तक बैठने से आपके गर्दन और रीढ़ की हड्डियों पर काफी नुकसान पहुंचता है. इससे आपको अधिक थकान, सिर में दर्द और एकाग्रता में कमी जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. अगर आप अधिक देर तक इसी अवस्था में बैठी रहती हैं तो आपके स्पाइनल कौर्ड में भी घाव हो सकता है.

इस मुद्दे पर शोध कर रहे जानकारों का मानना है कि इन परेशानियों के लिए बैठने का गलत तरीका जिम्मेदार है. अगर आप सीधे बैठें तो इन परेशानियों से निजात पा सकती हैं. अगर आप सीधे बैठती हैं तो आपकी पीछे की मांसपेशियां आपके गर्दन और सिर के भार को सहारा देती हैं.

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभाई-8, रानी झांसी  मार्गनई दिल्ली-110055.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें. 

Prem Kahani : शहादत – खूबसूरत पड़ोसिन को देख जब पत्नीव्रता पति का मन डोला

विश्वास कीजिए, मैं एक अदद पत्नी का पत्नीव्रता पति और एक जोड़ी बच्चों का बौड़म सा पिता हूं. दुनिया की ज्यादातर महिलाएं मेरे लिए मांबहन के समान हैं. ज्यादातर सद्गृहस्थों की तरह मैं भी घर से नाक की सीध में आफिस जाता हूं और इसी तरह वापस आता हूं.

अपने छोटे से परिवार के साथ मैं एक बड़े से मल्टीस्टोरी कांप्लेक्स में सुखपूर्वक रह रहा था. मेरे ऊपर मुसीबतों का पहाड़ तब टूटा जब मेरे पड़ोस वाले फ्लैट में एक फुलझड़ी रहने आ गई. आप की तरह मेरी भी तबीयत खूबसूरत पड़ोसिन को देख कर झक्क हो गई. किंतु मेरे दिल का गुब्बारा अगले ही दिन पिचक गया जब पता चला कि वह एक पुलिस इंस्पेक्टर की अघोषित पत्नी है.

जैसे सरकारी बाबुओं की घोषित संपत्ति के अलावा अनेक अघोषित संपत्तियां होती हैं वैसे ही समझदार पुलिस वालों की घोषित पत्नी के अलावा अनेक अघोषित पत्नियां होती हैं. बेचारों को जनता की सेवा में दिनरात पूरे शहर की खाक छाननी पड़ती है. चौबीसों घंटे की ड्यूटी. थक कर चूर हो जाना लाजमी है. ऐसे में वे शहर के जिस कोने में हों वहीं थकावट दूर कर तरोताजा होने की व्यवस्था को उन की जनसेवा का ही अभिन्न अंग माना जाना चाहिए.

अपनी खूबसूरत पड़ोसिन के बारे में जो सूचना मुझ तक पहुंची उस के अनुसार कुछ दिनों पहले तक हमारी पड़ोसिन निराश्रित और जमाने के जुल्मों की शिकार थीं. एक बार मदद लेने की आस में पुलिस स्टेशन पहुंचीं तो इंस्पेक्टर साहब ने उन्हें पूरा संरक्षण प्रदान कर दिया. रोटी, कपड़ा और मकान के साथसाथ सारी मूलभूत आवश्यकताओं (आप समस्याएं भी कह सकते हैं) का जिम्मा अपने सिर ले लिया. बेचारे कुछ दिनों तक तो हर रात अबला को सुरक्षा प्रदान करने आते रहे किंतु वह लोकतांत्रिक व्यवस्था के पैरोकार थे. इसलिए किसी एक का पक्षपात करने के बजाय उन्होंने सप्ताह में अपना एक दिन हमारी पड़ोसिन के लिए आरक्षित कर दिया.

वह जब भी आते उन के दोनों हाथ भारीभरकम पैकेटों से लदे रहते. कई बार उन के साथ मजदूर टाइप के दोचार लोग भी होते जो कभी टीवी, कभी फ्रिज तो कभी वाशिंग मशीन जैसी चीजें उठाए रहते.

जिस दिन वह आते पड़ोसिन के फ्लैट में बड़ी चहलपहल रहती. बाकी के 6 दिन उन की आंखों में दुख का सागर लहराता रहता. कई बार मन में आता कि पड़ोसी धर्म का पालन कर उन के दुखदर्द को बांटूं किंतु इंस्पेक्टर का ध्यान आते ही सारा जोश फना हो जाता.

एक दिन मेरा बेटा नए मोबाइल के लिए जिद कर रहा था. मैं काफी देर तक उसे समझाता रहा और आखिर में अधिकांश भारतीय पिताआें की तरह उसे चांटा जड़ दिया. वह भी सच्चा सपूत था. रोरो कर बंदे ने आसमान सिर पर उठा लिया.

अगले दिन मैं आफिस जाने के लिए निकला तो लिफ्ट में पड़ोसिन मिल गईं. संयोग से वहां हम दोनों के अलावा और कोई न था. उन्होंने मेरी ओर अपनत्व भरी नजर से देखा फिर संजीदा होती हुई बोलीं, ‘‘देखिए, बच्चों का मन मारना अच्छी बात नहीं होती है. आप उस के लिए एक नया मोबाइल खरीद ही लीजिए.’’

‘‘जी, महीने का आखिरी चल…’’ मैं चाह कर भी अपना वाक्य पूरा नहीं कर पाया.

पड़ोसिन अत्यंत आत्मीयता से मुसकराईं और पर्स से 3 हजार रुपए निकाल कर मेरी ओर बढ़ाती हुई बोलीं, ‘‘यह लीजिए, मेरी ओर से खरीद दीजिएगा.’’

‘‘लेकिन मैं आप से रुपए कैसे ले सकता हूं,’’ मैं अचकचा उठा.

‘‘अरे, हम पड़ोसी हैं. एकदूसरे के सुखदुख में काम आना पड़ोसी का कर्तव्य होता है,’’ कहतेकहते उन्होंने इतने अधिकार से मेरी जेब में रुपए ठूंस दिए कि मैं न नहीं कर सका.

इस के बाद पड़ोसिन अकसर मुझे लिफ्ट में मिल जातीं और मेरी मदद कर देतीं. पता नहीं उन्हें मेरी जरूरतों के बारे में कैसे पता चल जाता था. जाने वह जादू जानती थीं या हम नौकरीपेशा गृहस्थों के चेहरे पर जरूरतों का बोर्ड टंगा रहता है. जो भी हो, मैं धीरेधीरे उन के एहसानों तले दबता चला जा रहा था.

मैं कमरतोड़ मेहनत करता था फिर भी बहुत मुश्किल से गाड़ी खींचने लायक कमा पाता था. उधर उन के पास जैसे जादू की डिबिया थी जिस में रुपए कभी कम ही नहीं होते थे. एक दिन मैं ने उन से पूछा तो वह खिलखिला पड़ीं, ‘‘जादू की डिबिया तो नहीं लेकिन मेरे पास जादू की पुडि़या जरूर है.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘अब आप से क्या छिपाना,’’ पड़ोसिन ने अपने पर्स से एक छोटी सी पुडि़या निकाली. उस में सफेद पाउडर जैसा कुछ भरा हुआ था. वह उसे दिखाती हुई मुसकराईं, ‘‘मुझे जितने पैसों की जरूरत होती है इन्हें बता देती हूं. ये इस पुडि़या के दम पर उतने पैसे किसी से भी मांग लेते हैं.’’

‘‘लेकिन कोई ऐसे ही पैसे कैसे दे देगा,’’ मुझे उस पुडि़या की जादुई शक्तियों पर भरोसा नहीं हुआ.

‘‘क्यों नहीं देगा,’’ वह रहस्यमय ढंग से मुसकराईं फिर मेरे कान में फुसफुसाते हुए बोलीं, ‘‘अगर इस पुडि़या में रखी कोकीन की बरामदगी आप की जेब से दिखा दी जाए तो आप क्या करेंगे? अपनी इज्जत बचाने की खातिर मुंहमांगी रकम देंगे या नहीं?’’

‘‘क्या वास्तव में यह कोकीन है?’’ मेरा सर्वांग कांप उठा.

‘‘यह तो फोरेंसिक रिपोर्ट आने के बाद कोर्ट में ही पता चलेगा, लेकिन तब तक आप की इज्जत का फलूदा बन जाएगा. सारे रिश्तेदार मान लेंगे कि इसी के दम पर आप कार पर घूमते थे,’’ उन्होंने बताया.

‘‘लेकिन कार तो मैं ने लोन ले कर खरीदी है,’’ मैं ने बचाव की कोशिश की.

‘‘सभी जानते हैं कि लोन आयकर वालों की आंखों में धूल झोंकने के लिए लिया जाता है,’’ उन्होंने मेरे रक्षाकवच को फूंक मार कर उड़ा दिया.

यह सुन कर मेरे चेहरे का रंग उड़ गया. यह देख वह हलका सा मुसकराईं फिर मेरे कंधे पर हाथ मारते हुए बोलीं, ‘‘लेकिन आप क्यों परेशान हो रहे हैं. आप तो हमारे शुभचिंतक हैं.’’

मेरी जान में जान आई और मैं सांस भरते हुए बोला, ‘‘इस का मतलब इंस्पेक्टर साहब जिस आदमी की चाहें उस की इज्जत मिनटों में धो सकते हैं?’’

‘‘आदमी की ही क्यों वह औरत की भी इज्जत धो सकते हैं,’’ वह नयनों को तिरछा कर मुसकराईं.

‘‘वह कैसे?’’

‘‘दुनिया के सब से पुराने व्यापार में लिप्त बता कर. सभी जानते हैं कि आजकल अमीर घराने की महिलाएं अपने शौक की खातिर, मिडिल क्लास महिलाएं अपने ख्वाब पूरा करने की खातिर और गरीब महिलाएं अपना पेट पालने के लिए इस धंधे में लिप्त रहती हैं. इसलिए जिस पर चाहो हाथ धर दो, जनता सच मान लेगी,’’ उन्होंने सत्य उजागर किया.

‘‘बाप रे, तब तो आप के वह बहुत खतरनाक आदमी हुए,’’ मैं हड़बड़ाते हुए बोला.

‘‘लेकिन मेरे इशारों पर नाचते हैं,’’ वह गर्व से मुसकराईं और कंधे उचकाते हुए चली गईं.

2 दिन के बाद मेरी श्रीमतीजी अचानक कुछ काम से मायके चली गईं. उन के बिना खाली फ्लैट काटने को दौड़ता था लेकिन मजबूरी थी. शाम को मैं मुंह लटकाए आफिस से लौट रहा था कि लिफ्ट में पड़ोसिन मिल गईं.

‘‘सुना है भाभीजी मायके गई हैं?’’ उन्होंने अत्यंत शालीनता से पूछा.

‘‘जी हां.’’

‘‘अकेले में तो बड़ी बोरियत होती होगी,’’ उन्होंने मेरी आंखों में झांका.

‘‘मजबूरी है,’’ मेरे होंठ हिले.

‘‘मैं रात को आप के फ्लैट में आ जाऊंगी. सारी बोरियत दूर हो जाएगी,’’ उन्होंने मादक निगाहों से मेरी ओर देखा.

‘‘न, न…आप मेरे फ्लैट पर मत आइएगा,’’ मैं बुरी तरह घबरा उठा.

‘‘ठीक है, तो तुम मेरे फ्लैट पर आ जाना,’’ वह बड़े अधिकार के साथ आप से तुम पर उतर आईं.

मैं कुछ कहने जा ही रहा था कि लिफ्ट रुक गई. कुछ लोग बाहर खड़े थे.

‘‘मेरी बात ध्यान में रखना,’’ उन्होंने आदेशात्मक स्वर में कहा और लिफ्ट का दरवाजा खुलते ही तेजी से बाहर निकल गईं.

मैं पसीने से लथपथ हो गया. हांफते हुए अपने फ्लैट में आया और ब्रीफकेस फेंक बिस्तर पर गिर पड़ा.

आज मेरी समझ में आ गया कि वह गाहेबगाहे मेरी मदद क्यों करती थीं. खुद तो किसी की रखैल थीं और मुझे अपना… छी…उन्होंने मुझे बिकाऊ माल समझ रखा है. मेरा अंतर्मन वितृष्णा से भर उठा. टाइम पास करने के लिए मैं ने एक पत्रिका उठा ली. किंतु उस के पन्नों पर भी पड़ोसिन का चेहरा उभर आया. उस की मादक हंसी मुझे पास आने के लिए मौन निमंत्रण दे रही थी किंतु मैं एक सदचरित्र गृहस्थ था. किसी भी कीमत पर उस नागिन के जाल में नहीं फंसूंगा. मैं ने पत्रिका को दूर उछाल दिया.

रिमोट उठा कर मैं ने टीवी चला दिया. एक आइटम गर्ल का उत्तेजक डांस आ रहा था. यह मेरा पसंदीदा गाना था. बच्चों से छिप कर मैं अकसर इस का आनंद लेता रहता था. आज तो घर में कोई नहीं था. मैं निश्ंिचत भाव से उसे देखने लगा. अचानक आइटम गर्ल की गर्दन पर पड़ोसिन का चेहरा चिपक गया. अपनी मादक अदाआें से वह मुझे पास आने का आमंत्रण दे रही थी. मेनका की तरह मेरी तपस्या भंग कर देने के लिए आतुर थी.

‘तुम मुझे अपनी तरह दलदल में नहीं घसीट सकतीं,’ मैं ने झल्लाते हुए टीवी बंद कर दिया और बिस्तर पर लेट गया.

धीरेधीरे रात गहराने लगी. मेरी भूखप्यास गायब हो चुकी थी. नींद मुझ से कोसों दूर थी. काफी देर तक मैं करवटें बदलता रहा. पड़ोसिन के शब्द मेरे कानों में अंगार की तरह दहक रहे थे. मेरे बारे में ऐसा सोचने की उस चरित्रहीन की हिम्मत कैसे हुई? अपमान से मेरा पूरा शरीर दहकने लगा था. अगर मेरे परिवार और रिश्तेदारों को इस बारे में पता चल जाए तो मैं तो किसी को मुंह दिखाने के लायक नहीं रहूंगा.

अचानक मेरी सोच को झटका लगा, ‘अगर मैं ने उस का कहना नहीं माना और उस ने इंस्पेक्टर से कह कर वह जादू की पुडि़या मेरी जेब से बरामद करवा दी तो क्या होगा? अपने जिस चरित्र को मैं बचाना चाहता हूं क्या उस की धज्जियां नहीं उड़ जाएंगी? क्या समाज के सामने मेरी इज्जत दो कौड़ी की नहीं रह जाएगी?

‘कुछ भी हो मैं उस के जाल में नहीं फंसने वाला. बड़ेबड़े महापुरुषों को सद्चरित्रता दिखलाने पर कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है. मेरी भी जो बेइज्जती होगी उसे सह लूंगा,’ मैं ने अटल निर्णय ले लिया.

‘ठीक है. तुम तो महापुरुषों की श्रेणी में आ जाओगे लेकिन यदि उस घायल नागिन ने बदला लेने की खातिर इंस्पेक्टर से कह कर तुम्हारी पत्नी के दामन पर दाग लगवा दिया तो? क्या वह बेचारी बेमौत नहीं मारी जाएगी? उस की पवित्रता का दामन तारतार नहीं हो जाएगा? जिस ने जीवन भर तुम्हारी निस्वार्थ सेवा की है, क्या अपने स्वार्थ की खातिर उस का जीवन बरबाद हो जाने दोगे?’ तभी मेरी अंतरआत्मा ने दस्तक दी.

एकएक प्रश्न हथौड़े की भांति मेरे मनोमस्तिष्क पर बरसने लगा. तेज कोलाहल से मेरे कान के परदे फटने लगे.

‘‘नहीं,’’ मैं अपने हाथों को दोनों कानों पर रख कर सिसक पड़ा. पत्नी की इज्जत की रक्षा करना तो पति का कर्तव्य होता है. मैं ने भी सात फेरों के समय इस बात की शपथ खाई थी. चाहे मेरा सर्वस्व ही क्यों न बरबाद हो जाए, मैं उस के चरित्र पर आंच नहीं आने दूंगा.

मैं ने मन ही मन एक कठोर फैसला लिया और अपने परिवार की इज्जत बचाने की खातिर पड़ोसिन के समक्ष आत्म- समर्पण करने चल दिया.

Hindi Satire : फर्क कथनी और करनी का

Hindi Satire : सुच्चामल हमारी कालोनी के दूसरे ब्लौक में रहते थे. हर रोज मौर्निंग  वाक पर उन से मुलाकात होती थी. कई लोगों की मंडली बन गई थी. सुबह कई मुद्दों पर बातें होती थीं, लेकिन बातों के सरताज सुच्चामल ही होते थे. देशदुनिया का ऐसा कोई मुद्दा नहीं होता था जिस पर वे बात न कर सकें. उस पर किसी दूसरे की सहमतिअसहमति के कोई माने नहीं होते थे, क्योंकि वे अपनी बात ले कर अड़ जाते थे. उन की खुशी के लिए बाकी चुप हो जाते थे. बड़ी बात यह थी कि वे, सेहत के मामले में हमेशा फिक्रमंद रहते थे. एकदम सादे खानपान की वकालत करते थे. मोटापे से बचने के कई उपाय बताते थे. दूसरों को डाइट चार्ट समझा देते थे. इतना ही नहीं, अगले दिन चार्ट लिखित में पकड़ा देते थे. फिर रोज पूछना शुरू करते थे कि चार्ट के अनुसार खानपान शुरू किया कि नहीं. हालांकि वे खुद भी थोड़ा थुलथुल थे लेकिन वे तर्क देते थे कि यह मोटापा खानपान से नहीं, बल्कि उन के शरीर की बनावट ही ऐसी है.

एक दिन सुबह मुझे काम से कहीं जाना पड़ा. वापस आया, तो रास्ते में सुच्चामल मिल गए. मैं ने स्कूटर रोक दिया. उन के हाथ में लहराती प्लास्टिक की पारदर्शी थैली को देख कर मैं चौंका, चौंकाने का दायरा तब और बढ़ गया जब उस में ब्रैड व बड़े साइज में मक्खन के पैकेट पर मेरी नजर गई. मैं सोच में पड़ गया, क्योंकि सुच्चामल की बातें मुझे अच्छे से याद थीं. उन के मुताबिक वे खुद भी फैटी चीजों से हमेशा दूर रहते थे और अपने बच्चों को भी दूर रखते थे. इतना ही नहीं, पौलिथीन के प्रचलन पर कुछ रोज पहले ही उन की मेरे साथ हुई लंबीचौड़ी बहस भी मुझे याद थी.

वे पारखी इंसान थे. मेरे चेहरे के भावों को उन्होंने पलक झपकते ही जैसे परख लिया और हंसते हुए पिन्नी की तरफ इशारा कर के बोले, ‘‘क्या बताऊं भाईसाहब, बच्चे भी कभीकभी मेरी मानने से इनकार कर देते हैं. कई दिनों से पीछे पड़े हैं कि ब्रैडबटर ही खाना है. इसलिए आज ले जा रहा हूं. पिता हूं, बच्चों का मन रखना भी पड़ता है.’’

‘‘अच्छा किया आप ने, आखिर बच्चों का भी तो मन है,’’ मैं ने मुसकरा कर कहा.

‘‘नहीं बृजमोहन, आप को पता है मैं खिलाफ हूं इस के. अधिक वसा वाला खानपान कभीकभी मेरे हिसाब से तो बहुत गलत है. आखिर बढ़ते मोटापे से बचना चाहिए. वह तो श्रीमतीजी भी मुझे ताना देने लगी थीं कि आखिर बच्चों को कभी तो यह सब खाने दीजिए, तब जा कर लाया हूं.’’ थोड़ा रुक कर वे फिर बोले, ‘‘एक और बात.’’

‘‘क्या?’’ मैं ने उत्सुकता से पूछा, तो वे नाखुशी वाले अंदाज में बोले, ‘‘मुझे तो चिकनाईयुक्त चीजें हाथ में ले कर भी लगता है कि जैसे फैट बढ़ रहा है, चिकनाई तो दिल की भी दुश्मन होती है भाईसाहब.’’

‘‘आइए आप को घर तक छोड़ दूं,’’ मैं ने उन्हें अपने स्कूटर पर बैठने का इशारा किया, तो उन्होंने सख्त लहजे में इनकार कर दिया, ‘‘नहीं जी, मैं पैदल चला जाऊंगा, इस से फैट घटेगा.’’

आगे कुछ कहना बेकार था क्योंकि मैं जानता था कि वे मानेंगे ही नहीं. लिहाजा, मैं अपने रास्ते चला गया.

2 दिन सुच्चामल मौर्निंग वौक पर नहीं आए. एक दिन उन के पड़ोसी का फोन आया. उस ने बताया कि सुच्चामल को हार्टअटैक आया है. एक दिन अस्पताल में रह कर घर आए हैं. अब मामला ऐसा था कि टैलीफोन पर बात करने से बात नहीं बनने वाली थी. घर जाने के लिए मुझे उन की अनुमति की जरूरत नहीं थी. यह बात इसलिए क्योंकि वे कभी भी किसी को घर पर नहीं बुलाते थे बल्कि हमारे घर आ कर मेरी पत्नी और बच्चों को भी सादे खानपान की नसीहतें दे जाते थे.

मैं दोपहर के वक्त उन के घर पहुंच गया. घंटी बजाई तो उन की पत्नी ने दरवाजा खोला. मैं ने अपना परिचय दिया तो वे तपाक से बोलीं, ‘‘अच्छाअच्छा, आइए भाईसाहब. आप का एक बार जिक्र किया था इन्होंने. पौलिथीन इस्तेमाल करने वाले बृजमोहन हैं न आप?’’

‘‘ज…ज…जी भाभीजी.’’ मैं थोड़ा झेंप सा गया और समझ भी गया कि अपने घर में उन्होंने खूब हवा बांध रखी है हमारी. सुच्चामल के बारे में पूछा, तो वे मुझे अंदर ले गईं. सुच्चामल ड्राइंगरूम के कोने में एक दीवान पर पसरे थे. मैं ने नमस्कार किया, तो उन के चेहरे पर हलकी सी मुसकान आई. चेहरे के भावों से लगा कि उन्हें मेरा आना अच्छा नहीं लगा था. हालचाल पूछा, ‘‘बहुत अफसोस हुआ सुन कर. आप तो इतना सादा खानपान रखते हैं, फिर भी यह सब कैसे हो गया?’’

‘‘चिकनाई की वजह से.’’ जवाब सुच्चामल के स्थान पर उन की पत्नी ने थोड़ा चिढ़ कर दिया, तो मुझे बिजली सा झटका लगा, ‘‘क्या?’’

‘‘कैसे रोकूं अब इन्हें भाईसाहब. ऐसा तो कोई दिन ही नहीं जाता जब चिकना न बनता हो. कड़ाही में रिफाइंड परमानैंट रहता है. कोई कमी न हो, इसलिए कनस्तर भी एडवांस में रखते हैं.’’ उन की बातों पर एकाएक मुझे विश्वास नहीं हुआ.

‘‘लेकिन भाभीजी, ये तो कहते हैं कि चिकने से दूर रहता हूं?’’

‘‘रहने दीजिए भाईसाहब. बस, हम ही जानते हैं. किचेन में दालों के अलावा आप को सब से ज्यादा डब्बे तलनेभूनने की चीजों से भरे मिलेंगे. बेसन का 10 किलो का पैकेट 15 दिन भी नहीं चलता. बच्चे खाएं या न खाएं, इन को जरूर चाहिए. बारिश की छोडि़ए, आसमान में थोड़े बादल देखते ही पकौड़े बनाने का फरमान देते हैं.’’

यह सब सुन कर मैं हैरान था. सुच्चामल का चेहरा देखने लायक था. मन तो किया कि उन की हर रोज होने वाली बड़ीबड़ी बातों की पोल खोल दूं, लेकिन मौका ऐसा नहीं था. सुच्चामल हमेशा के लिए नाराज भी हो सकते थे. यह राज भी समझ आया कि सुच्चामल अपने घर हमें शायद पोल खुलने के डर से क्यों नहीं बुलाना चाहते थे. इस बीच, डाक्टर चैकअप के लिए वहां आया. डाक्टर ने सुच्चामल से उन का खानपान पूछा, तो वह चुप रहे. लेकिन पत्नी ने जो डाइट चार्ट बताया वह कम नहीं था. सुच्चामल सुबह मौर्निंग वाक से आ कर दबा कर नाश्ता करते थे.

हर शाम चाय के साथ भी उन्हें समोसे चाहिए होते थे. समोसे लेने कोई जाता नहीं था, बल्कि दुकानदार ठीक साढ़े 5 बजे अपने लड़के से 4 समोसे पैक करा कर भिजवा देता था. सुच्चामल महीने में उस का हिसाब करते थे. रात में भरपूर खाना खाते थे. खाने के बाद मीठे में आइसक्रीम खाते थे. आइसक्रीम के कई फ्लेवर वे फ्रिजर में रखते थे. मैं चलने को हुआ, तो मैं ने नजदीक जा कर समझाया, ‘‘चलता हूं सुच्चामल, अपना ध्यान रखना.’’

‘‘ठीक है.’’

‘‘चिकने से परहेज कर के सादा खानपान ही कीजिए.’’

‘‘मैं तो सादा ही…’’ उन्होंने सफाई देनी चाही, लेकिन मैं ने बीच में ही उन्हें टोक दिया, ‘‘रहने दीजिए, तारीफ सुन चुका हूं. डाक्टर साहब को भी भाभीजी ने आप की सेहत का सारा राज बता दिया है.’’ मेरी इस सलाह पर वे मुझे पुराने प्राइमरी स्कूल के उस बच्चे की तरह देख रहे थे जिस की मास्टरजी ने सब से ज्यादा धुनाई की हो. अगले दिन मौर्निंग वाक पर गया, तो हमारी मंडली के लोगों को मैं ने सुच्चामल की तबीयत के बारे में बताया, तो वे सब हैरान रह गए.

‘‘कैसे हुआ यह सब?’’ एक ने पूछा, तो मैं ने बताया, ‘‘अजी खानपान की वजह से.’’

एक सज्जन चौंक कर बोले, ‘‘क्या…? इतना सादा खानपान करते थे, ऐसा तो नहीं होना चाहिए.’’

‘‘अजी काहे का सादा.’’ मेरे अंदर का तूफान रुक न सका और सब को हकीकत बता दी. मेरी तरह वे भी सुन कर हैरान थे. सुच्चामल छिपे रुस्तम थे. कुछ दिनों बाद सुच्चामल मौर्निंग वाक पर आए, लेकिन उन्होंने खानपान को ले कर कोई बात नहीं की. 1-2 दिन वे बोझिल और शांत रहे. अचानक उन का आना बंद हो गया.

एक दिन पता चला कि वे दूसरे पार्क में टहल कर लोगों को अपनी सेहत का वही ज्ञान बांट रहे हैं जो कभी हमें दिया करते थे. हम समझ गए कि सुच्चामल जैसे लोग ज्ञान की गंगा बहाने के रास्ते बना ही लेते हैं. यह भी समझ आ गया कि कथनी और करनी में कितना फर्क होता है. सुच्चामल से कभीकभी मुलाकात हो जाती है, लेकिन वे अब सेहत के मामले पर नहीं बोलते.

Love Story In Hindi : दिल को देखो – प्रतीक में कौनसा बदलाव देख हैरान थी श्रेया

Love Story In Hindi : सुबह से ही अनिलजी ने पूरे घर को सिर पर उठा रखा था, ‘‘अभी घर की पूरी सफाई नहीं हुई. फूलदान में ताजे फूल नहीं सजाए गए, मेहमानों के नाश्तेखाने की पूरी व्यवस्था नहीं हुई. कब होगा सब?’’ कहते हुए वे झुंझलाए फिर रहे थे. अनिलजी की बेटी श्रेया को इतने बड़े खानदान के लोग देखने आ रहे थे. लड़का सौफ्टवेयर इंजीनियर था. बहन कालेज में लैक्चरर और पिता शहर के जानेमाने बिजनैसमैन. अनिलजी सोच रहे थे कि यहां रिश्ता हो ही जाना चाहिए. अनिलजी आर्थिक रूप से संपन्न थे. सरकारी विभाग में ऊंचे पद पर कार्यरत थे. शहर में निजी फ्लैट और 2 दुकानें भी थीं. पत्नी अध्यापिका थीं. बेटा श्रेयांश इंटरमीडिएट के बाद मैडिकल की तैयारी कर रहा था और श्रेया का बैंक में चयन हो गया था. फिर भी लड़के के पिता विष्णुकांत के सामने उन की हैसियत कम थी. विष्णुकांत के पास 2 फैक्ट्रियां, 1 प्रैस और 1 फौर्महाउस था, जिस से उन्हें लाखों की आमदनी थी. इसी कारण से उन के स्वागतसत्कार को ले कर अनिलजी काफी गंभीर थे.

दोपहर 1 बजे कार का हौर्न सुनाई दिया तो अनिलजी तुरंत पत्नी के साथ अगवानी के लिए बाहर भागे. थोड़ी ही देर में ड्राइंगरूम में विष्णुकांत अपनी पत्नी और बेटी के साथ पधारे, परंतु श्रेया जिसे देखना चाहती थी, वह कहीं नजर नहीं आ रहा था. तभी जोरजोर से हंसता, कान पर स्मार्टफोन लगाए एक स्टाइलिश युवक अंदर आया. लंबे बाल, बांहों पर टैटू, स्लीवलैस टीशर्ट और महंगी जींस पहने वह युवक अंदर आते ही अनिलजी व उन की पत्नी को हैलो कह कर सोफे पर बैठ गया.

‘‘श्रेया,’’ मां ने आवाज दी तो श्रेया नाश्ते की ट्रे ले कर ड्राइंगरूम में पहुंची.

‘‘बैठो बेटी,’’ कह कर विष्णुकांत की पत्नी ने उसे अपने पास ही बैठा लिया. उन्होंने परिचय कराया, ‘‘प्रतीक, इस से मिलो, यह है श्रेया.’’

‘ओह तो प्रतीक है इस का नाम,’ सोचते हुए श्रेया ने उस पर एक उड़ती नजर डाल कर बस ‘हाय’ कह दिया. खुशनुमा माहौल में चायनाश्ते और लंच का दौर चला. सब की बातचीत होती रही, लेकिन प्रतीक तो जैसे वहां हो कर भी नहीं था. वह लगातार अपने स्मार्टफोन पर ही व्यस्त था. ‘‘अच्छा अनिलजी, अब हम चलते हैं. मुलाकात काफी अच्छी रही. अब प्रतीक और श्रेया एकदूसरे से दोचार बार मिलें और एकदूसरे को समझें, तभी बात आगे बढ़ाई जाए,’’ कह कर विष्णुकांतजी सपरिवार रवाना हो गए.

ना है आप ने मेरे लिए. कितना बिगड़ा हुआ लग रहा था.’’ अनिलजी श्रेया को समझाते हुए बोले, ‘‘ऐसा नहीं है बेटा, किसी की सूरत से उस की सीरत का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. उस से दोचार बार मिलोगी तो उसे समझने लगोगी.’’ इस के 3 दिन बाद श्रेया सुबह बैंक जा रही थी. देर होने के कारण वह स्कूटी काफी तेज गति से चला रही थी कि तभी सड़क पर अचानक सामने आ गए एक कुत्ते को बचाने के चक्कर में उस की स्कूटी सड़क पार कर रहे एक बुजुर्ग से जा टकराई. स्कूटी एक ओर लुढ़क गई और श्रेया उछल कर दूसरी ओर सड़क पर गिरी. श्रेया को ज्यादा चोट नहीं लगी, पर बुजुर्ग को काफी चोट आई. उन का सिर फट गया था और वे बेहोश पड़े थे. श्रेया का तो दिमाग ही काम नहीं कर रहा था कि क्या करे. तभी प्रतीक वहां से गाड़ी से गुजर रहा था. उस ने यह दृश्य देखा तो वह फौरन अपनी गाड़ी से उतर कर श्रेया के पास आ कर बोला, ‘‘आर यू ओके.’’ फिर वह उन बुजुर्ग की ओर लपका, ‘‘अरे, ये तो बहुत बुरी तरह घायल हैं.’’

सुनसान सड़क पर मदद के लिए कोई नहीं था. अपनी चोटों की परवा न करते हुए श्रेया उठी और घायल बुजुर्ग को गाड़ी में डालने में प्रतीक की मदद करने लगी. ‘‘आइए, आप भी बैठिए. आप को भी इलाज की जरूरत है. मैं अपने मैकेनिक को फोन कर देता हूं, वह आप की स्कूटी ले आएगा.’’ श्रेया को भी गाड़ी में बैठा कर प्रतीक बड़ी तेजी से नजदीक के जीवन ज्योति हौस्पिटल पहुंचा. ‘‘डाक्टर अंकल, एक ऐक्सीडैंट का केस है. घायल काफी सीरियस है. आप प्लीज देख लीजिए.’’

‘‘डौंट वरी, प्रतीक बेटा, मैं देखता हूं.’’ डाक्टर साहब ने तुरंत घायल का उपचार शुरू कर दिया. एक जूनियर डाक्टर श्रेया के जख्मों की मरहमपट्टी करने लगी. प्रतीक जा कर कैंटीन से 2 कप चाय ले आया. चाय पी कर श्रेया ने राहत महसूस की.

‘‘हैलो पापा, मेरा एक छोटा सा ऐक्सीडैंट हो गया है पर आप चिंता न करें. मुझे ज्यादा चोट नहीं लगी पर एक बुजुर्ग को काफी चोटें आई हैं. आप जल्दी से आ जाइए. हम यहां जीवन ज्योति हौस्पिटल में हैं,’’ श्रेया ने पापा को फोन पर बताया. अब वह अपने को कुछ ठीक महसूस कर रही थी.

‘‘थैंक्यू वैरी मच, आप ने ऐनवक्त पर आ कर जो मदद की है, उस के लिए तो धन्यवाद भी काफी छोटा महसूस होता है. मैं आप का यह एहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगी.’’

‘‘अरे नहीं, यह तो मेरा फर्ज था. मैं ने डाक्टर अंकल को कह दिया है कि वे पुलिस को इन्फौर्म न करें. हौस्पिटल में सब मुझे जानते हैं, मेरे पिता इस हौस्पिटल के ट्रस्टी हैं.’’ तभी अनिलजी भी पत्नी सहित वहां पहुंच गए. श्रेया ने उन्हें घटना की पूरी जानकारी दी तो वे बोले, ‘‘प्रतीक बेटा, यदि आप वहां न होते तो बहुत मुसीबत हो जाती. थैंक्यू वैरी मच.’’

अनिलजी डाक्टर से बोले, ‘‘इन बुजुर्ग के इलाज का पूरा खर्च मैं दूंगा. प्लीज, इन से रिक्वैस्ट कीजिए कि पुलिस से शिकायत न करें.’’

‘‘डौंट वरी अनिलजी. विष्णुकांतजी इस हौस्पिटल के ट्रस्टी हैं. आप को कोई पैसा नहीं देना पड़ेगा,’’ डा. साहब मुसकराते हुए बोले. अगली शाम श्रेया कुछ फलफूल ले कर बुजुर्ग से मिलने हौस्पिटल पहुंची. उस ने उन से माफी मांगी. उस की आंखें भर आई थीं. ‘‘नहीं बेटी, तुम्हारी गलती नहीं थी. मैं ने देखा था कि तुम कुत्ते को बचाने के चक्कर में स्कूटी पर से नियंत्रण खो बैठी थी, तभी यह ऐक्सीडैंट हुआ. और फिर तुम्हें भी तो चोट लगी थी.’’

‘‘अरेअरे श्रेयाजी, रोइए मत. सब ठीक है,’’ तभी अंदर आता हुआ प्रतीक बोला.

‘‘आइए, कैंटीन में कौफी पीते हैं. यू विल फील बैटर,’’ दोनों कैंटीन में जा बैठे. कौफी पीने और थोड़ी देर बातचीत करने के बाद श्रेया घर वापस आ गई. फिर तो मुलाकातों का सिलसिला चल पड़ा. एक दिन जब श्रेया और प्रतीक रैस्टोरैंट में बैठे थे कि

तभी प्रतीक का एक दोस्त भी वहां आ गया. वे दोनों किसी इंस्टिट्यूट के बारे में बात करने लगे. श्रेया के पूछने पर प्रतीक ने बताया कि वह और उस के 3 दोस्त हर रविवार को एक कोचिंग इंस्टिट्यूट में मुफ्त पढ़ाते हैं, जहां होनहार गरीब छात्रों को इंजीनियरिंग की तैयारी कराई जाती है. यही नहीं वे लोग उन छात्रों की आर्थिक सहायता भी करते हैं. श्रेया यह सुन कर अवाक रह गई. उस दिन घर पहुंच कर प्रतीक के बारे में ही सोचती रही. सुबह काफी शोरगुल सुन कर उस की आंख खुली तो बाहर का नजारा देख कर उस की जान ही निकल गई. उस ने देखा कि पापा को खून की उलटी हो रही है और मम्मी रो रही हैं. श्रेयांश किसी तरह पापा को संभाल रहा था. किसी तरह तीनों मिल कर अनिलजी को अस्पताल ले गए. जीवन ज्योति हौस्पिटल के सीनियर डाक्टर उन्हें देखते ही पहचान गए. तुरंत उन का उपचार शुरू हो गया. श्रेया को तो कुछ समझ नहीं आ रहा था कि पापा को अचानक क्या हो गया है. उस ने प्तीक को भी फोन कर दिया था. आधे घंटे में प्रतीक भी वहां पहुंच गया.

डाक्टरों ने अनिलजी का ब्लड सैंपल ले कर जांच के लिए भेज दिया था और शाम तक रिपोर्ट भी आ गई. रिपोर्ट देख कर डाक्टर का चेहरा उतर गया. प्रतीक को कुछ शक हुआ तो वह वार्ड में अलग ले जा कर डाक्टर साहब से रिपोर्ट के बारे में पूछने लगा. डा. साहब ने अनिलजी की ओर देखा और उन्हें सोता समझ कर धीरे से बोले, ‘‘अनिलजी को ब्लड कैंसर है, वह भी लास्ट स्टेज पर. अब कोई इलाज काम नहीं कर सकता.’’

प्रतीक को बड़ा धक्का लगा. उस ने पूछा, ‘‘फिर भी अंकल, क्या चांसेज हैं? कितना समय है अंकल के पास?’’

‘‘बस महीना या 15 दिन,’’ वे बोले.

तभी आहट सुन कर दोनों ने पलट कर देखा. अनिलजी फटी आंखों से उन की ओर देख रहे थे. दोनों समझ गए कि उन्होंने सबकुछ सुन लिया है. अनिलजी की आंखों से आंसू बह निकले, ‘‘ओह, यह क्या हो गया? अभी तो मेरे बच्चे ठीक से बड़े भी नहीं हुए. अभी तो मैं श्रेया को डोली में बैठाने का सपना देख रहा था. अब क्या होगा?’’ तभी विष्णुकांतजी भी पत्नी सहित वहां आ पहुंचे, ‘‘अनिलजी, आप पहले ठीक हो जाइए, शादीवादी की बात बाद में देखेंगे,’’ वे बोले.

‘‘मेरे पास ज्यादा समय नहीं है, मैं ने सब सुन लिया है. प्रतीक और श्रेया एकदूसरे को पसंद करते हैं. उन की शादी जल्दी हो जाए तो मैं चैन से मर सकूंगा.’’

‘‘कैसी बातें करते हैं आप? शादी की तैयारियों के लिए समय चाहिए. आखिर हमारी कोई इज्जत है, समाज में,’’ विष्णुकांतजी रुखाई से बोले. ‘‘नहीं पापा, मुझे धूमधाम वाली शादी नहीं चाहिए. इतने खराब हालात में इज्जत की चिंता कौन करे. अंकल आप चिंता न करें. यह शादी आज ही और यहीं अस्पताल में होगी,’’ श्रेया का हाथ पकड़ कर अंदर आता प्रतीक तेज स्वर में बोला. श्रेया हैरानी से प्रतीक का मुंह देख रही थी कि तभी वार्डबौय के मोबाइल की रिंगटोन बज उठी, ‘दिल को देखो, चेहरा न देखो… दिल सच्चा और चेहरा झूठा…’ श्रेया के होंठों पर फीकी मुसकान दौड़ गई. पापा सच ही कह रहे थे कि किसी की सूरत से उस की सीरत का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. दिखने में मौडर्न प्रतीक कितना संवेदनशील इंसान है. प्रतीक के तेवर देख कर विष्णुकांतजी भी नरम पड़ गए. पूरे अस्पताल को फूलों से सजाया गया. वार्ड में ही प्रतीक और श्रेया की शादी हुई. अस्पताल का हर कर्मचारी और मरीज इस अनोखी शादी में शामिल हो कर खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा था.

 

Stories : परछाई – मायका या ससुराल, क्या था माही का फैसला?

Stories :  माही को 2 शादियों के कार्ड एकसाथ मिले. एक भाई की बेटी की शादी का और एक जेठजी की बेटी की शादी का. दोनों शादियां भी एक ही दिन थीं और दोनों ही रिश्ते ऐसे कि शादी में जाना टाला नहीं जा सकता था.

माही कार्ड को उलटपुलट कर ऐसे देखने लगी, जैसे ध्यान से देखने पर कोई न कोई सुराग मिल जाएगा या कोई दूसरी तारीख मिल जाएगी. या फिर कोई दूसरी सूरत मिल जाएगी दोनों शादियां अटैंड करने की. वह क्या करेगी अब? भाई की बेटी की शादी में शामिल नहीं हो पाएगी तो भैयाभाभी की नाराजगी झेलनी पड़ेगी और अगर जेठजी की बेटी की शादी में शामिल नहीं हुई तो जेठजेठानी उस की मजबूरी समझ कर कुछ कहेंगे नहीं पर उन के प्यार भरे उलाहने का सामना कैसे करेगी?

किंकर्तव्यविमूढ़ सी वह पास पड़ी कुरसी पर बैठ गई. विभव से पूछेगी तो वे तपाक से कह देंगे कि जो तुम्हें ठीक लगता है वह करो. वह फिर दोराहे पर खड़ी हो जाएगी. या फिर बहुत अच्छे मूड में होंगे तो कह देंगे कि तुम अपने

भाई की बेटी की शादी में शामिल हो जाओ और मैं अपने भाई की बेटी की शादी में शामिल हो जाता हूं. लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकती. शाम होने को थी, अंधेरा धीरेधीरे चारों तरफ फैल रहा था.

उस का दिल वहां पहुंच गया जब उमंगें थीं, रंगीन इंद्रधनुषी सपने थे, मातापिता थे. उस की कुलांचे भरने वाली उम्र थी. वे 2 भाईबहन थे. मातापिता की इकलौती लाडली बेटी. भाई के बाद लगभग 10 सालों के बाद हुई, इसलिए भाई का भी लाड़प्यार भरपूर मिला. वह 20 साल की थी जब भाई की शादी हुई. आम लड़कियों की तरह उस के भी कई अरमान थे भाई की शादी के… काफी लड़कियां देखने के बाद सिमरन पसंद आ गई. भाई के सेहरा बांधे देख हर बहन की तरह वह भी खुश थी.

भाभी ने जब घर में कदम रखा तो खुशियां जैसे उन के घर के दरवाजे पर हाथ बांधे खड़ी हो गईं. भाभी 23 साल की थीं, उम्र का फासला कम था. उसे लगा उसे हमउम्र एक सहेली मिल गई. अभी तक तो घर में सभी बडे़ थे. 3 साल उसे भाभी के सान्निध्य में रहने का मौका मिला. 23 साल की उम्र में उस की भी शादी हो गई. पहले मां काम करती थीं तो वह निश्चिंत हो कर अपनी पढ़ाई करती थी. मां भाभी की भी किचन में पूरी मदद करती थीं. पर भाभी न जाने क्यों उस से हमेशा चिढ़ी सी ही रहती थीं. शायद उन्हें लगता था कि यह आराम से अपनी पढ़ाई कर रही है. बाकी सारा काम मुझे ही करना पड़ता है. नई होने के कारण वे अधिक नहीं बोल पाती थीं पर भावभंगिमाओं से सब जता देती थीं.

भाभी के हावभाव समझ कर वह भी किचन में हाथ बंटाने की कोशिश करने लगी तो मां ने टोक दिया, ‘तू जा…अपनी पढ़ाई कर… ये काम तो जिंदगी भर करने हैं…’ वह जाने को हुई तो भाभी बोल पड़ीं, ‘पर काम आएगा नहीं तो आगे करेगी कैसे?’ उसे समझ नहीं आया कि भाभी की बात माने कि मां की. वह एम.एससी. कर रही थी. पढ़ने में वह हमेशा कक्षा में अच्छे विद्यार्थियों में गिनी जाती रही. भाभी अपनी चुप्पी के पीछे से भी पूरी दबंगता दिखा देती थीं. भाई भी उस से अब पहले की तरह बेतकल्लुफ नहीं रहते थे. पहले की तरह भाई से फरमाइश करने की उस की अब हिम्मत नहीं पड़ती थी.

भाई कहीं बाहर तो जाते तो भाभी के लिए कई चीजें खरीद कर लाते. वह बहुत उम्मीद से देखती कि शायद उस के लिए भी कुछ खरीद कर लाए हों, पर ऐसा होता नहीं था. उसे किसी बात की कमी नहीं थी पर भाई का कुछ न लाना जता देता कि अब उन की जिंदगी में उस की कोई अहमियत नहीं रह गई है. उस ने यह मासूम सी शिकायत मां से की तो उन्होंने उसे ही समझा दिया, ‘ऐसा तो होता ही है पगली. तेरी शादी होगी तो तेरा पति भी तेरे लिए ऐसे ही लाएगा, पति के लिए पत्नी सब कुछ होती है.’

‘और लोग कुछ नहीं होते?’

‘होते हैं… पर पत्नी से कम ही होते हैं.’ 2 साल तक भाभी का व्यवहार समझते हुए भी उस ने अधिक ध्यान नहीं दिया. उस के लिए भाभी फिर भी अपनी थीं पर भाभी उसे कभी अपना नहीं समझ पाईं. उस के 23 की होतेहोते मातापिता ने उस के लिए लड़का देखना शुरू कर दिया. विभव बैंक में अफसर थे. उन के घर में 2 भाई व 1 बहन और मां थीं. वहां सब कुछ अच्छा देख कर उस का रिश्ता तय हो गया और फिर उस की शादी हो गई. उस ने सोचा कि अब भाभी के साथ उस के रिश्ते सहज हो जाएंगे, जब वह कभीकभी आएगी तो भाभी भी उसे पूरा सम्मान देंगी.

 

ससुराल में सभी ने उसे हाथोंहाथ लिया पर घर में जेठानी का ही राज था. वे पूरे परिवार पर छाई हुई थीं. सास, ननद व यहां तक की उस के पति के दिलोदिमाग पर भी वही राज कर रही थीं. वह अनायास ही ईर्ष्या से भर उठी. मायके जाती तो वहां सब कुछ भाभी का तो यहां सब कुछ जेठानी का.

धीरेधीरे न चाहते हुए भी उस के मन में जेठानी के प्रति ईर्ष्या की भावना घर कर गई. पति से कुछ भी पूछती तो एक ही जवाब मिलता कि भाभी से पूछ लो.

‘साड़ी खरीदनी है साथ चलो,’ तो उसे जवाब मिलता, ‘भाभी के साथ चली जाओ’ या फिर, ‘चलो भाभी को भी साथ ले चलते हैं, उन की पसंद बहुत अच्छी है.’’

‘खाने में क्या बनाऊं…’

‘भाभी से पूछ लो.’

सास भी बड़ी बहू से पूछे बिना कुछ न करतीं. उसे सब प्यार करते पर महत्त्व बड़ी को ही देते. जेठानी के साथ समझौता करना उसे अच्छा नहीं लगता था. जेठानी उस का रुख समझ कर बहुत संभल कर चलतीं पर कुछ न कुछ हो ही जाता. जेठजेठानी कहीं जाते तो बच्चे घर छोड़ जाते. बच्चों की चाचा के साथ घूमने की आदत तो पहले से ही थी. अब चाची भी आ गईं. तो क्या… वे दोनों कहीं भी जाना चाहते तो दोनों बच्चे भी उन के साथ लग लेते. वह विभव पर भुनभुनाती, ‘नई शादी हमारी हुई है या जेठजेठानी की? वे दोनों तो अकेले जाते हैं और हमारे साथ ये दोनों लग लेते हैं.’

‘तो क्या हुआ माही… उन्हें इस बात की समझ थोड़े ही है… बच्चे ही तो हैं.’

‘ये ऐसे ही हमारे साथ जाते रहे तो जब तक ये बड़े होंगे तब तक हम बूढ़े हो जाएंगे…’

‘अरे, जब हमारे चुनमुन होंगे तो उन्हें भाभी संभालेगी तब हम खूब अकेले घूमेंगे.’

‘जरूर संभालेंगी… अपने तो संभलते नहीं…’

जेठानी उस का मूड समझ कर बच्चों को जबरन रोकतीं. न मानने पर 1-2 थप्पड़ तक जड़ देतीं. बच्चे रोते तो उन्हें रोता देख कर विभव का मूड खराब हो जाता. और विभव का खराब मूड देख कर उस का मूड खराब हो जाता और जाने का सारा मजा किरकिरा हो जाता. उसे जेठानी पर तब और भी गुस्सा आता. लेकिन जिन बातों में वह जेठानी के साथ समझौता नहीं करना चाहती थी, उन्हीं बातों में भाभी के साथ समझौता करने की कोशिश करती. उन्हें खुश रखने का प्रयास करती ताकि उन के साथ संबंध अच्छे बने रहें.

भैयाभाभी कहीं जाते तो थोड़े दिन के लिए मायके आने के बावजूद वह भाई के बच्चों की देखभाल करती, उन्हें अपने साथ घुमाने ले जाती, चौकलेट, आइसक्रीम वगैरह खिलाती पर भाभी उसे फिर भी खास तवज्जो न देतीं. माही उस घर को अभी भी अपना घर समझती. फिर वही पहले वाला हक ढूंढ़ती. पर उस की सारी कोशिशें बेकार हो जातीं. भाभी उस से मतलब का रिश्ता निभातीं, इसलिए उन में आत्मीयता कभी नहीं आ पाई.

वह जबजब भाभी के साथ किचन में कुछ करने की कोशिश करती, तो भाभी उसे साफ जता देतीं कि अब उन को उस का अपने किचन में छेड़खानी करना पसंद नहीं. वह 2-4 दिन के लिए आई है. मां के साथ बैठे और जाए. फिर उस के बच्चे हुए तो सास बुजुर्ग होने की वजह से उस की अधिक देखभाल नहीं कर पाईं पर जेठानी ने अपना तनमन लगा दिया, मां जैसी देखभाल की उन की.

‘देखा माही… भाभी कितना खयाल रखती है तुम्हारा… मैं कहता था न कि उन्हें समझने में तुम गलती कर रही हो.’

जेठानी की देखभाल से वह पिघलने को होती तो विभव की बात से जलभुन जाती. पहले बच्चे के समय जब मां ने बारबार कहा कि अब थोड़े दिन के लिए मायके आ जा तो सवा महीने के बच्चे को ले कर वह मायके चली आई. विभव से कह आई कि बहुत दिनों बाद जा रही हूं, इसलिए आराम से रहूंगी. तुम्हें तो वैसे भी मेरी जरूरत नहीं है.

जेठानी ने जाने की बात सुनी तो मना किया, ‘तुम अभी कमजोर हो माही… खुद की व बच्चे की देखभाल नहीं कर पाओगी… यहीं रहो, थोड़े महीने बाद चली जाना.’

‘मेरी मां व भाभी मेरी देखभाल करेंगी…’ भाभी का स्वभाव जानते हुए भी वह बोली. मायके पहुंची तो खुश थी वह. इस बार लंबे समय के लिए आई थी. जब घर पहुंची तो, भावुक हो कर मां व भाभी से मिलना चाहा पर भाभी का उखड़ा मूड देख कर उत्साह पर पानी फिर गया. मां भी बहुत उत्साहित नहीं दिखीं, लगा मां ने रीतरिवाज निभाने व उस का मन रखने के लिए उसे मायके आने को कहा था. शायद उन्हें सचमुच विश्वास नहीं था कि वह आ जाएगी.

ससुराल में जेठानी उस के आगेपीछे घूम कर उस का ध्यान रखतीं, बच्चे की पूरी देखभाल करतीं, सास हर समय सब से उस का ध्यान रखने को कहतीं, उस का बेटा सब की आंखों का तारा था वहीं मायके में मां की भी काम के करने की एक सीमा थी, फिर भी उन का पहला ध्यान अपने पोतेपोतियों पर रहता था, नहीं तो बहू की नाराजगी मोल लेनी पड़ती. भाभी को तो उस की देखभाल से मतलब ही नहीं था. जो खाना सब के लिए बनता वही उस के लिए भी बनता.

एक दिन रात में तबीयत खराब होने की वजह से वह बच्चे की देखभाल भी नहीं कर पा रही थी. मां ने रोते हुए बच्चे को उठा लिया पर उस का पेट दर्द रुक नहीं पा रहा था. मां ने हार कर उस के भाई के कमरे का दरवाजा खटखटा दिया. बहुत मुश्किल से भाई की नींद खुली, उस ने दरवाजा खोला.

‘बेटा माही की तबीयत ठीक नहीं है. पेट में दर्द हो रहा है…’

‘क्या मां… तुम भी न. छोटीछोटी बातों के लिए जगा देती हो. अरे परहेज वगैरह वह कुछ करती नहीं… हाजमा बिगड़ गया होगा. कोई दवादे देती. बेकार में नींद खराब कर दी.’

‘सब कुछ कर के देख लिया बेटा, पर दर्द रुक नहीं रहा.’

‘तो दर्द की कोई गोली दे दो. इतनी रात में मैं क्या कर सकता हूं. और तुम भी मां… कहां की जिम्मेदारी ले ली. उसे अपने घर भेजने की तैयारी करो. उन की जिम्मेदारी है वही संभालें. सो जाओ अभी सुबह देखेंगे.’ कह कर भाई ने दरवाजा बंद कर दिया.

मां लौट आईं. न माही ने कुछ पूछा. न मां ने कुछ कहा.

उस ने सब कुछ सुन लिया था. सारी रात वह दर्द से तड़पती रहीं, मां सिराहने बैठी रही, पर भाईभाभी ने सहानुभूति जताने की कोशिश भी न की. सुबह पेट दर्द कम हो गया पर तबीयत फिर भी ठीक नहीं थी लेकिन भैयाभाभी ने यह पूछने की जहमत नहीं उठाई कि रात में तबीयत ठीक नहीं थी अब कैसी है, वह सोच रही थी कि उस की इतनी तकलीफ में तो ससुराल में रात में पूरा घर हिल जाता. यहां तक की बच्चे भी उठ कर बैठ जाते, यहां मां के अलावा सब सो रहे थे.

सोचतेसोचते उस का मन भारी सा हो गया. किस मृगतृष्णा में बंधी हुई वह बारबार यहां आती है और भैयाभाभी के द्वारा अपमानित होती है. क्या खून के रिश्ते ही सब कुछ होते हैं? जेठजेठानी उस पर जान छिड़कते हैं, लेकिन उन्हें वह अपना नहीं समझ पाती, उलटा चाहती है कि उस का पति भी उन्हें अधिक तवज्जो न दे.

वह बिस्तर पर गमगीन सी बैठी हुई थी तभी मां चाय ले कर आ गईं. माही रात की बात से दुखी होगी, यह तो वे जानती थीं पर उन के हाथ में था भी क्या.

‘क्या हुआ माही. अब कैसी तबीयत है तेरी?’ मां स्नेह से उस का सिर सहलाते हुए बोलीं.

‘अब ठीक है मां. आप को भी रात भर सोने नहीं दिया मैं ने.’

‘अरे… कैसी बात कर रही है तू. अच्छा चल मुंहहाथ धो ले और चाय पी ले.’

माही चुपचाप चाय पीने लगी. मां ने अपना कप उठा लिया. दोनों चुप थे पर दोनों के दिल की बातों से परेशान थे.

‘मां, मेरी तबीयत अगर ऐसी ससुराल में खराब होती तो मेरे जेठजेठानी सारा घर सिर पर उठा लेते,’ अचानक माही बोली तो मां समझ गईं कि माही क्या कहना चाहती है. वे धीरे से उस के पास खिसक आईं, ‘माही, तू जिन रिश्तों की जड़ों को सींचना चाह रही है वे खोखली हैं. सूखी हुई हैं बेटा. खून के रिश्ते ही सब कुछ नहीं होते. जितनी कोशिश उन्हें अपनी भाभी के साथ बनाने की करती है, उस का अंशमात्र भी अपने जेठजेठानी के साथ करेगी तो वे रिश्ते लहलहा उठेंगे. जो रिश्ते तेरी तरफ कदम बढ़ा रहे हैं उन्हें थाम. उन का स्वागत कर. जो तुझ से दूर भाग रहे हैं उन के पीछे क्यों भागती है?’ मां उस के और अपने मन के झंझावतों को शब्द देती हुई बोलीं.

‘‘ये तेरी मृगतृष्णा है कि कभी न कभी भाभी तेरे प्यार को समझेगी और तेरी तरफ कदम बढ़ाएगी. कुछ लोग प्यार की भाषा को कभी नहीं समझ पाते. पर तू प्यार की कीमत समझ माही. अपने जेठजेठानी के प्यार को समेट ले… वही हैं तेरे भैयाभाभी, जो तेरे दुखसुख में काम आते हैं. तेरा खयाल रखते हैं. तेरे अच्छेबुरे व्यवहार को तेरी नादानी समझ कर भुला देते हैं.’

मां उसे पहले भी यह बात कई बार समझाना चाहती थीं, उस के प्यार का बहाव ससुराल की तरफ मोड़ना चाहती थीं पर माही समझना ही नहीं चाहती थी. पर आज पता नहीं क्यों मां की बात समझने का दिल कर रहा था. उन की बातें उस के अंतर्मन को छू रही थीं. मां चली गईं तो वह अपनेआप में गुमसुम सी हो गई. जब उस का गाल ब्लैडर की पथरी का औपरेशन हुआ था तब भी कैसे सास व जेठजेठानी ने दिनरात एक कर दिया था और भैयाभाभी ने बस एक फोन कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली थी. जेठजेठानी ने तनमनधन लगा दिया था. ननद भी औपरेशन के समय 2 दिन के लिए उस के पास आ गई थी.

आज पिछली सारी बातें जैसे साफ हो रही थीं, उस की आंखों पर पड़ा भ्रम व मोह का परदा हट रहा था. आज पहली बार वह समझ रही थी कि जो उसे अपनाना चाह रहे थे उन्हें वह ठुकरा रही थी और जो उसे ठुकरा रहे थे उन रिश्तों के पीछे वह भाग रही थी. सच वे भी तो भैयाभाभी हैं जिन से उसे प्यार मिलता है, उस के न सही उस के पति के हैं तो उस के भी हैं. वे रिश्ते भी तो उस के अपने हैं.

वह उठ कर चुपचाप सामान पैक करने लगी तभी मां कमरे में आ गई, ‘क्या कर रही है माही?’ उसे सामान पैक करते देख कर मां बोलीं.

‘अपने घर जा रही हूं मां. अपने भैयाभाभी के पास.’

मां चुप हो गईं. दोनों मांबेटी बिना शब्दों के कहे भी एकदूसरे के दिल की बात समझ गईं थीं. दूसरे दिन माही ससुराल लौट आई. उसे वापस आया देख कर घर में सास, पति, जेठजेठानी सभी खुश हो गए. किसी ने उस से नहीं पूछा कि वह इतनी जल्दी क्यों लौट आई.

 

धीरेधीरे समय कुछ साल आगे सरक गया. उस के बच्चे थोड़े बड़े हो गए. फिर उन का तबादला दिल्ली से कानपुर हो गया. समय धीरेधीरे सरकता रहा. मातापिता व सास का साथ समय के साथ छूट गया. मां के जाने के बाद मेरठ जाना बंद हो गया. लेकिन दिल्ली जेठजेठानी के पास त्योहार व छुट्टियों में आनाजाना बना रहा. तभी घंटी की आवाज सुन कर वह चौंक गई, शायद विभव औफिस से लौट आए थे. वह वर्तमान में लौट आई उस ने उठ कर दरवाजा खोल दिया.

‘‘क्या बात है माही… बहुत गमगीन सी लग रही हो… तबीयत ठीक नहीं है क्या? विभव उसे इस कदर उदास देख कर बोले.’’

‘‘नहीं कुछ नहीं सब ठीक है… दिल्ली से सोनिया की शादी का कार्ड आया है. जाने की तैयारी करनी है. रिजर्वेशन कराना है, यही सब सोच रही थी,’’ वह उत्साहित होते हएु बोली.

‘‘और यह दूसरा किस का है?’’ विभव दूसरा कार्ड उठाते हुए बोले.

‘‘यह मेरठ से आया है.’’ माही लापरवाही दिखाते हुए बोली, ‘‘आप बैठ कर देख लो मैं चाय बना कर लाती हूं,’’ कह कर माही उठ कर किचन में चली गई. थोड़ी देर बाद 2 कप चाय बना कर ले आई.

‘‘अरे यह तो साले साहब की बेटी की शादी का कार्ड है. वहां भी तो जाना होगा. तुम वहां चली जाओ मैं…’’

‘‘नहीं…’’ माही बीच में बात काटती हुई बोली, ‘‘वहां आप उपहार भेज दो, हम दोनों ही दिल्ली जाएंगे… और थोड़े दिन पहले जाएंगे. क्योंकि शादी में मदद भी तो करनी है,’’ माही पूरे आत्मविश्वास से बोली और शांत भाव से चाय पीने लगी.

विभव ने चौंक कर उस की तरफ देखा, सब कुछ समझा और चुपचाप चाय पीने लगे. समझ गए कि प्यार व स्नेह के रिश्ते खून के रिश्तों पर भारी पड़ गए हैं. आपस में प्यार और विश्वास नहीं है तो खून के रिश्तों के धागे भी कच्चे पड़ जाते हैं. इसलिए परछाइयों के पीछे भागने के बजाय हकीकत को अपनाना चाहिए.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें