शम्मी कपूर के कारण जब Sharmila Tagore घबराहट के मारे हुईं परेशान

Sharmila Tagore : बौलीवुड अभिनेत्री शर्मिला टैगोर अपने जमाने की सबसे खूबसूरत और ग्लैमरस हीरोइन में एक मानी जाती थी. उनकी पहली फिल्म कश्मीर की कली में कश्मीरी लड़की के किरदार में दर्शकों के दिलों में खास जगह बना ली थी. शर्मिला उन दिनों अपने बोल्ड अंदाज के लिए भी जानी जाती थी, वह एक ऐसी हीरोइन थी जिन्होंने उस जमाने में स्वीम सूट और बिकनी पहन कर शॉर्ट दिया था.

शर्मिला टैगोर ने कई फिल्में शम्मी कपूर के साथ की है. उनकी पहली फिल्म कश्मीर की कली के पहले हीरो भी शम्मी कपूर ही थे .

हाल ही में एक इंटरव्यू में शर्मिला टैगोर ने अपना शम्मी कपूर के साथ काम करने के अनुभव को लेकर मजेदार बाते बताई शर्मिला के अनुसार शम्मी कपूर बहुत ही अनप्रिडिक्टेबल थे. वह फिल्म के सीन के रिहर्सल के टाइम कुछ और करते थे और जब शॉर्ट टेक होता था तो वह कुछ अलग ही करने लगते थे , उस दौरान मेरी उम्र काफी कम थी, 17-18 साल की थी. जब मैं उनके साथ पहली फिल्म कश्मीर की कली कर रही थी, उस वक्त तारीफ करूं क्या उसकी गाने में अचानक ही उन्होंने जो लटके झटके दिए, यहां तक की बोट से पानी में भी गिर गए, आश्चर्य के साथ-साथ मैं डर भी गई थी.

उसके बाद जब मैंने इवनिंग इन पेरिस फिल्म की उनके साथ मेरा जो पानी में ड्राइव करने का शॉर्ट था और शम्मी कपूर हेलीकॉप्टर से मुझे फॉलो कर रहे थे , उस दौरान जो गाना था आसमान से आया फरिश्ता प्यार का सबक … की शूटिंग हो रही थी , मै पानी में क्योंकि ड्राइव कर रही थी , इसलिए मेरा पूरा ध्यान अपने सीन पर था . तभी अचानक शम्मी कपूर जी ने हेलीकॉप्टर से बोट के अंदर जंप मार दी. उस वक्त तो मेरी सांस ही रुक गई. क्योंकि रिहर्सल में ऐसा कुछ नहीं हुआ था और हेलीकॉप्टर से जंप करना वो भी गहरे पानी के बीच बोट में बहुत ज्यादा रिस्की था . इसलिए मेरे साथ-साथ पूरी टीम टेंशन में आ गई थी. लेकिन शम्मी कपूर एकदम नॉर्मल थे क्योंकि वह इस तरह की मस्ती करने के आदि थे. जो नॉर्मल गाने में भी जान डाल देता था. उनके जैसा मजेदार और एनर्जी वाला एक्टर शायद ही कोई और हो. मेरा शम्मी जी के साथ फिल्मों में काम करने का अनुभव काफी अच्छा रहा.

Love Story In Hindi : मुखौटे – माधव ने शादी से इनकार क्यों किया

Love Story In Hindi : ‘‘अभीअभी खबर मिली है रुकि…’’

‘‘क्या खबर?’’ रुकि ने बीच में ही सवाल जड़ दिया.

‘‘तुम्हारे ही काम की खबर है. हमारे स्कूल में एक नए रंगमंच शिक्षक आ रहे हैं.’’

‘‘अच्छा सच?’’ रुकि अपने कला के कक्ष में थी. उस ने एक मुखौटे को सजाते हुए प्रतिक्रिया दी. एक के बाद दूसरा मुखौटा सजाती हुई रुकि अपने ही काम में मगन दिखाई दी, तो उसे यह सूचना देने वाली अध्यापिका सरला भी अपना काम करने वहां से चली गई.

सरला के जाते ही रुकि ने मुखौटा एक तरफ रखा और खुश हो कर जोर से ताली बजाई और फिर नाचने लगी थी. 2 दिन तक यही हाल रहा रुकि का. वह सब के सामने तो काम करती पर एकांत ही कमर मटका कर नाचने लगती.

तीसरे दिन प्रार्थनासभा में प्राचार्य ने एक नए महोदय को माला पहना कर उन का स्वागत किया और फिर एक घोषणा करते हुए कहा, ‘‘प्यारे बच्चो, आज हमारे विद्यालय परिवार में शामिल हो रहे हैं माधव सर. ये रंगमंच के कलाकार हैं. इन्होंने सैकड़ों नाटक लिखे हैं. ये आज से ही हमारे विद्यालय के रंगमंच विभाग में शामिल हो रहे हैं.’’

यह खबर सब के लिए सुखद थी. स्कूल में यह एक नया ही प्रयोग होने जा रहा था. सब फुसफुसाने लगे पर आज भी रुकि का चेहरा एकदम सामान्य था. वह एकदम निर्विकार भाव से तालियां बजा रही थी. पूरा विद्यालय बारबार माधवजी के पास जा कर उन से मिल रहा था पर एक रुकि ही थी जो बस अपने कक्ष में मुखौटे ही ठीक किए जा रही थी.

अगले दिन दोपहर बाद जब कक्षा का खेल पीरियड था तो उस समय मौका पा कर माधव लपक कर रुकि के पास जा पहुंचा.

‘‘ओह रुकि,’’ कह कर उस ने जैसे ही उसे बाहों में लिया रुकि के हाथ से मुखौटा गिर गया.

वह एकदम संयत हुई और बोली, ‘‘माधव, हाथ हटाओ, शाम 6 बजे मिलते हैं. मैं फोन पर लोकेशन भेज दूंगी,’’ और फिर वह फटाफट कक्ष से बाहर निकल आई.

माधव ने हंस कर मुखौटा अपने चेहरे पर पहन लिया. शाम को दोनों एकदूसरे के पास बैठे थे.

माधव बोला, ‘‘अच्छा, पगली वहां तो बंद कमरा था… मैं आया था मिलने पर तुम डर कर भाग गई पर यह जगह जहां सबकुछ खुलाखुला है निडरता से मेरे इतने करीब बैठी हो.

रुकि ने उस की नाक पकड़ कर कहा, ‘‘तुम भी न माधव कमाल के दुस्साहसी हो. तुम ने तो आते ही दिनदहाड़े रोमांचकारी कदम उठा लिया. हद है.’’

मगर माधव को तो रुकि से चुहल करने में मजा आ रहा था. वह चहकते हुए बोला, ‘‘अच्छा, हद तो तुम्हारी है रुकि. मैं तो एक फक्कड़ रंगकर्मी था पर यहां आया बस तुम्हारे लिए… तुम्हें उदासी से बचाने के लिए.’’

रुकि सब चुपचाप सुन रही थी.

माधव बोला, ‘‘तुम ने मुझे महीनों पहले ही स्कूल प्रशासन की यह मंशा कि एक रंगकर्मी की जरूरत है और वीडियो भेज कर इस स्कूल के चप्पेचप्पे से इतना वाकिफ करा दिया था कि फोन पर जब मेरा साक्षात्कार हुआ तो पता है प्राचार्य तक सकते में आ गए कि मुझे कैसे पता है कि स्कूल के खुले मंच के दोनों तरफ बोगनबेलिया लगा है.’’

‘‘ओह, माधव फिर?’’ यह सुना तो रुकि की तो सांस ही रुक गई थी.

‘‘फिर क्या था मैं ने पूरे आत्मविश्वास से कह दिया कि मैं ने एक न्यूज चैनल में सालाना जलसे की रिपोर्ट देखी थी.’’

यह सुन कर रुकि की जान में जान आई. बोली, ‘‘माधव तुम सचमुच योग्य थे, इसीलिए तुम्हें चुना गया, अब अलविदा. आज की मुलाकात बस इतनी ही. अब चलती हूं. कल स्कूल में मिलते,है,’’ कह कर रुकि ने अपना बैग लिया, चप्पलें पहनीं और फटाफट चली गई.

अब वे इसी तरह मिलने लगे. एक दिन ऐसी ही शाम को दोनों साथ थे तो माधव बोला, ‘‘रुकि मैं और तुम तो इकदूजे के लिए बने थे न और तुम हमेशा कहती थी कि माधव कालेज में साथसाथ पढ़ते हैं अब जीवन भी साथसाथ गुजार देंगे. जब हम दोनों को एकदूसरे से बेहद प्यार था, तो तुम ने शादी क्यों कर ली रुकि?’’

‘‘तो फिर क्या करती माधव बोलो न. तुम तो बस्तियों में, नुक्कड़ में, चौराहे पर नाटक मंडली ले कर धूल और माटी से खेलते थे. मैं क्या करती?’’

माधव ने फट से कहा, ‘‘रुकि, तुम मेरा इंतजार करतीं.’’

अच्छा, चोरी और सीनाजोरी, मेरे बुद्धू माधव जरा याद करो. मैं ने सौ बार कहा था कि मेरी एक छोटी बहन है. मेरे बाद ही उस का घर बसेगा. मातापिता भी ताऊजी की दया पर निर्भर हैं. मु?ो विवाह करना है. तुम गृहस्थी बसाना चाहते हो तो चलो आज पिताजी से बात करते हैं माताजी से मिलते हैं, पर तुम ने याद है मुझे क्या जवाब दिया था?’’

माधव बेहद प्यार से बोला, ‘‘ओहो, बोलो न, तुम ही बोलो रुकि मैं तो सब भूल गया हूं,’’

‘‘अच्छा तो सुनो तुम ने कहा था कि रुकि यह घरबारपरिवार सब ढकोसला है. मैं आजाद रहना चाहता हूं और उस के 2 दिन बाद तुम 1 महीने की नाट्य यात्रा पर आसाम, मेघालय, मणिपुर चले गए. माधव तुम मुझे मजाक में लेने लगे थे.’’

‘‘रुकि वह समय ऐसा ही था. तब मैं 21 साल का था.’’

‘‘बिलकुल और मैं 20 साल की… मैं ने घर वालों के सामने हथियार डाल दिए. विवाह हो गया,’’ रुकि उदास हो कर बोली.

‘‘हां तो, गबरू जवान फौजी की बीवी बन कर तो मजा आया होगा न रुकि.’’

तुम माधव बारबार यही सवाल किसलिए पूछते हो? हजारों बार तो बताया है कि वे जम्मू में रहते हैं. मैं यहां इस कसबे में निजी स्कूल में कला की शिक्षा देती हूं,’’ रुकि की आवाज में बेहद दर्द भर आया था.

कुछ देर रुक कर रुकि आगे बोली, ‘‘मैं ने 2 साल तक मुंह में दही जमा कर सबकुछ सहा. परिवार, बंधन, जिम्मेदारी, संस्कार, तीजत्योहार सारे नाटक सबकुछ… मगर तब भी मेरे पति मुझे अपने साथ नहीं ले गए तो मैं ने भी एक मानसिक करार सा कर लिया.’’

‘‘मानसिक करार, मैं समझ नहीं रुकि?’’ माधव को अजीब लगा कि आज 30 साल की रुकि ये कैसी बहकीबहकी बातें कर रही है.

‘‘हां माधव करार नहीं तो और क्या. यह एक करार है कि मैं उन की संतान का पालन कर रही हूं. मगर अपनी आजादी के साथ. वे जो रुपए देते हैं अब मैं उन में से एक धेला भी खुद पर खर्च नहीं करती हूं. सारे बच्चों की पढ़ाई में लगा कर रसीद उन के बाप को कुरियर कर देती हूं. ताकि…’’

‘‘ताकि क्या रुकि?’’ माधव ने पूछा.

‘‘ताकि माधव सनद रहे कि रुकि उन के दिए पैसों पर नहीं पल रही. मैं अपनी कमाई खाती हूं… अपने वेतन से कपड़ा खरीद कर पहनती हूं,’’ कहतीकहती रुकि एकदम खामोश हो गई तो माधव ने उस का हाथ थाम लिया.

‘‘ओह माधव,’’ रुकि के पूरे बदन में सनसनाहट सी होने लगी.

‘‘अरेअरे क्या रुकि कोई देख लेगा.’’

‘‘अरे नहीं, माधव. यही तो एक पूरी तरह से सुरक्षित जगह है. इधर हमारा कोई भी परिचित नहीं आ सकता,’’ कह कर वह भी भावुक हो गई और माधव से लिपट गई.

कुछ पल तक दोनों ऐसे ही खामोश रहे और अचानक रुकि बोली, ‘‘अब चलती हूं. मेरी छोटी बिटिया केवल 7 साल की है. वह मुझे देख रही होगी.’’

समय इसी तरह गुजरता रहा. माधव को लगभग 3 महीने हो गए थे. उस ने इस दौरान बच्चों को रंगमंच के अच्छे गुर भी सिखा दिए थे. माधव ने इतना बढि़या प्रशिक्षण दिया था कि स्कूल के सीनियर छात्र अब खुद ही नाटक लिख कर तैयार करने लगे थे. स्कूल में तो हरकोई माधव को पसंद करने लगा था. हरकोई माधव को अपने घर बुलाना चाहता, उस के साथ समय बिताना चाहता, पर इस माधव का मन एक जगह कभी टिकता ही नहीं था.

एक दिन रुकि ने पूछ ही लिया, ‘‘माधव एक निजी स्कूल में पहली बार काम कर रहे हो. तुम ने अभी तक बताया नहीं कि कैसा लग रहा है? वैसे प्रिंसिपल सर ने तुम्हें अपने बंगले के साथ लगा कमरा मुफ्त में रहने को दे दिया है तो ऐसी तंगी तो शायद रहती नहीं होगी न?’’

‘‘ओहो रुकि, यह भी कोई सवाल हुआ? मुझे धनदौलत से भला कैसा लगाव और इस निजी स्कूल की नौकरी की ही बात की है तुम ने तो रुकि मेरी जान, अरे मैं तो बस तुम्हारी गुहार पर ही यहां आया हूं.’’

‘‘पर माधव तुम ने यह सब कैसा जीवन कर लिया. न रुपया न पैसा. बस सारा समय नाटक लिखना और मंचन करना यह कैसा जीवन है?’’

‘‘रुकि मेरी बात समझने के लिए तुम्हें एक घटना सुननी होगी.’’

‘‘तो सुनाओ न,’’ रुकि बैचैन हो कर बोली.

‘‘मैं तो सुनाने और सुनने के ही लिए आया पर तुम बीच में ही उठ कर चली जाओगी कि घर पर बच्चे अकेले हैं.’’

‘‘अरे नहीं तुम आज की शाम एकदम बिंदास हो कर सुनाओ.’’

‘‘आज तुम ने घर नहीं जाना?’’

‘‘जाना है पर बच्चों की कोई चिंता नहीं है. वे दोनों आज एक जन्मदिन समारोह में गए हैं. खाना खा कर ही वापस आएंगे.’’

‘‘अच्छा,’’ यह सुन कर माधव को बेहद सुकून मिला. बोला, ‘‘रुकि, मैं जब 7 साल का था न तब से नानाजी के गांव जरूर जाता था. मेरे नानाजी के पास सौ बीघा खेत और 2 बीघे का एक बगीचा था. कुल मिला कर नानाजी के पास दौलत ही दौलत थी.’’

‘‘अच्छा,’’ रुकि बीच में बोल ली.

‘‘एक बार गांव में भयंकर बारिश हुई और बाढ़ के हालात हो गए. जो जहां था वहीं रह गया. मैं भी तब नानाजी के गांव गया था. सड़क जाम हो गई थी. 2 बसें भर कर कुछ कलाकार मदद की गुहार लगाते हुए हमारे गांव आ गए. वे सब फंस गए थे. आगे जा नहीं सकते थे. उन की बात सुन कर नानाजी तथा उन के कुछ दोस्तों ने उन्हें रहने की जगह दे दी. वे अपना भोजन बनाते थे और दोपहर में रियाज करते थे. इस तरह जब तक सड़क ठीक नहीं हुई यानी 7 दिन तक वह नाटक मंडली गांव में रही. तब मैं ने देखा कि नानाजी उन कलाकारों में ही रमे रहते थे. नानाजी उन के साथ तबला बजाते थे, ढोल बजाते थे, नाचते थे, गाते थे.

‘‘रकि ने अपने नानाजी को इतना खुश पहले कभी देखा ही नहीं था. जब मंडली चली गई तो मैं भी अपने घर जाने की तैयारी करने लगा. मैं, नानाजी के कमरे में उन से यही बात करने गया तो पता है नानाजी अपनेआप से बातें कर रहे थे. इतनी दौलत है. इस का मैं आखिर करूंगा क्या. मैं तो कलाकार हूं. मैं ने अपने भीतर का कलाकार दबा कर रख दिया. मैं यह सुन कर ठिठक गया. वहीं खड़ा रहा और लौट गया. उस दिन मेरे दिल में एक बात आई कि धन और विलासिता सब बेकार है. अपने भीतर की आवाज सुननी चाहिए.’’

‘‘हूं तो इसीलिए तुम रंगकर्मी बन गए. मगर जीने के लिए तो रुपए चाहिए न माधव,’’ रुकि ने अपनी बात रखी.

‘‘अरे, बिलकुल,’’ माधव ने रुकि की हां में हां मिलाई.

‘‘तो माधव तुम अपने लिए न सही मातापिता के लिए तो कमाओ.’’

‘‘पर रुकि उन के पास बैंकों में भरभर कर रुपया है.’’

‘‘अरे वह कैसे?’’

‘‘अरे मेरी मां मेरे नानाजी की अकेली औलाद तो सब खेतबगीचे मेरी माताजी के और अब मेरे बडे़ भाई ने डेयरी और खोल ली है. बडे़ भाई के बच्चे भी खेतखलिहान पसंद करते हैं. इस तरह मेरे मातापिता को न अकेलापन सताता है और न पैसे की कोई तंगी है.’’

‘‘तो इसीलिए तुम अपने मातापिता की तरफ से लापरवाह हो कर ऐसे खानाबदोश बने हो. है न?’’ रुकि ने उसे उलाहना दिया.

‘‘नहींनहीं रुकि, मुझे नाट्य विधा पसंद है और मैं सड़क का आदमी ही बनना चाहता हूं. मैं जरा से वेतन पर बेहद खुश हूं.’’

‘‘अच्छा माधव तुम भी न मुझे लगता है कि मैं तुम्हारे साथ 3 साल तक पढ़ती रही पर तुम्हें समझ ही नहीं सकी. जब मैं ने रिश्ते की बात कही थी तब तुम ने कहा कि मैं तो फकीर आदमी हूं. यह नानाजी के खेतखलिहान और धनदौलत की बात तब ही बता देते तो मैं अपने मातापिता को समझ कर मना लेती,’’ रुकि को अफसोस हो रहा था.

‘‘यह तो और भी गलत होता रुकि. तब तुम्हें सब की गुलामी करनी होती, जबकि तुम तो खुद भी आजाद रहना चाहती हो.’’

‘‘हां यह तो सही है माधव. पर मैं अपने प्रेमी माधव के लिए शायद यह कर लेती.’’

‘‘शायद का तो कोई पकका मतलब होता नहीं रुकि कह कर माधव खड़ा हो गया.

‘‘अरे… माधव आज तो तुम अलविदा कह रहे हो.’’

‘‘ओह रुकि, अब चलता हूं अलविदा,’’ कह कर माधव ने अपनी चप्पलें पहन लीं और दोनों अलगअलग दिशा में चल दिए.

अगले दिन रुकि स्कूल आई तो एक सनसनीखेज खबर सुनने को मिली कि माधव सर सुबह ही दक्षिण भारत की तरफ रवाना हो गए हैं. वे अपना इस्तीफा भी सौंप गए हैं.

‘‘हैं, रुकि को सदमा लगा. उस ने खुद को सामान्य किया, जबकि सारा दिन स्कूल में यही चर्चा का विषय रहा. हरकोई माधव सर का फैन बन गया था. रुकि जानती थी कि यह फक्कड़ एक जगह नहीं रुकता. स्कूल की छुटटी के बाद घर लौटते हुए रुकि ने माधव को फोन लगाया.

‘‘अरे रुकि मैं बस में बैठा हूं. अभी दिल्ली जा रहा हूं. रात को केरल के लिए रवानगी.’’

‘‘तुम तो अब एक थप्पड़ खाने वाले हो माधव… कल रात तक मेरे साथ थे और बताया भी नहीं.’’

‘‘अगर बताता तो बस एक उसी बात पर अटक जाते हम दोनों और कोई बात हो ही नहीं पाती रुकि. बाकी तुम अब वह पुरानी रुकि तो रही नहीं. तुम एक मजबूत औरत, एक बेहतरीन माता और एक सजग प्रेमिका हो गई हो… तुम और मैं जीवनभर प्रेमी रहने वाले हैं. यह वादा है. कल फोन करता हूं,’’ कह कर माधव ने फोन बंद कर दिया.

रुकि को उस पर प्यार और गुस्सा दोनों एकसाथ आ रहे थे.

Vaping : वेपिंग एक खराब लत, युवा क्यों कर रहे हैं इसे पसंद

Vaping : वेपिंग यानी ई सिगरेट एक नया और कम समझ गया खतरा बन चुका है खासकर युवाओं और किशोरों के बीच.

इस कहानी में हम 3 पात्रों के माध्यम से वेपिंग की सचाई, इस से होने वाले नुकसान और इस की लत से बाहर निकलने के उपायों को समझेंगे.

कहानी शुरू होती है…

एक दिन अनुष्का और उस की दोस्त रिया सुबह पार्क में टहल रही थीं. रास्ते में वेपिंग की महक आती है. अनुष्का चौंक कर पूछती है.

अनुष्का: रिया, क्या तुम्हें भी यह अजीब सी महक आ रही है? कहीं कोई वेपिंग तो नहीं कर रहा?

रिया (मुसकराते हुए): हां, शायद. आजकल यह बहुत कौमन हो गया है खासकर टीनएजर्स के बीच. लेकिन लोग समझते नहीं कि यह कितनी खतरनाक है.

अनुष्का: हां, मेरे कजिन ने भी वेप पेन खरीद लिया है. कहता है इस से सिगरेट की लत छूट जाएगी.

रिया: यही सब से बड़ा भ्रम है. शाम को डा. निधि की हैल्थ टौक भी है जो टोबैको सैंसेशन स्पैशलिस्ट हैं.

वेपिंग क्या है

वेपिंग का मतलब है ई सिगरेट से निकले ऐरोसोल को सांस के साथ अंदर लेना. इस में निकोटिन, फ्लेवर और कई जहरीले कैमिकल होते हैं.

वेपिंग डिवाइस के 3 पार्ट्स

कार्ट्रिज: निकोटिन और फ्लेवर वाला लिक्विड हीटर/एटोमाइजर लिक्विड को ऐरोसोल में बदलता है.

बैटरी: डिवाइस को पावर देती है.

निकोटिन का जादू या जाल?

रिया: निकोटिन सीधे दिमाग पर असर करता है और डोपामिन रिलीज कराता है यानी वह कैमिकल जो खुशी का एहसास देता है. धीरेधीरे यह दिमाग को यह यकीन दिला देता है कि यह खानापानी से भी ज़्यादा ज़रूरी है.

निकोटिन दिमाग की प्राथमिकताएं बदल देता है. इसे कहते हैं ‘सर्वाइवल आफ हराकी’ का हाइजैक?

किशोर सब से ज्यादा खतरे में क्यों हैं?

किशोरों का दिमाग अभी विकसित हो रहा होता है, इसलिए निकोटिन उसे जल्दी अपनी पकड़ में ले लेता है. 21 साल की उम्र तक दिमाग स्थिर नहीं होता, जिस से लत लगने का खतरा बहुत ज्यादा होता है.

शाम को हैल्थ टौक में रिया और अनुष्का हैल्थ सेमिनार में जाती हैं जहां मंच पर डा. निधि  बोल रही हैं:

डा. निधि: नमस्कार दोस्तो. आज हम बात करेंगे एक ऐसी आदत की जो हमें लगती है कूल पर अंदर ही अंदर हमारी सेहत को खा रही है और यह है वेपिंग.

वेपिंग के प्रमुख स्वास्थ्य जोखिम

फेफड़ों की बीमारी (पौपकार्न लंग डिजीज).

दिल के रोग (ब्लड क्लौट्स, हार्ट अटैक).

मुंह  की बीमारियां (सड़न, कैंसर).

हारमोनल गड़बड़ी (बांझपन, इरैक्टाइल डिस्फंक्शन).

कैंसर (फोर्मल्डिहाइड जैसे तत्त्व).

इम्यूनिटी पर असर.

थर्ड हैंड स्मोक से बच्चों और पालतू जानवर को नुकसान.

क्या वेपिंग तनाव दूर करता है? बहुत से लोग सोचते हैं कि वेपिंग स्ट्रैस कम करता है पर असल में निकोटिन पहले स्ट्रैस बढ़ाता है और फिर थोड़ा आराम देता है और वह भी सिर्फ विथड्रावल सिंपटम्स (नशा वापसी लक्षण) रोकने के लिए.

यहां कुछ सामान्य नशा वापसी लक्षण दिए गए हैं:

चिंता और घबराहट: नशा छुड़ाने के दौरान व्यक्ति अकसर चिंतित, घबराया हुआ या बेचैन महसूस कर सकता है.

पसीना आना: कुछ लोगों को अचानक पसीना आने की समस्या हो सकती है.

मतली और उलटी: नशा छुड़ाने के दौरान कुछ लोगों को मतली और उलटी का अनुभव हो सकता है.

तेज हृदय गति: नशा छुड़ाने के दौरान हृदय गति तेज हो सकती है.

अनिद्रा: नशा छुड़ाने के दौरान नींद न आने की समस्या हो सकती है.

दर्द और मांसपेशियों में दर्द: नशा छुड़ाने के दौरान व्यक्ति को दर्द और मांसपेशियों में दर्द हो सकता है.

अन्य लक्षण: अन्य लक्षणों में भूख में बदलाव, वजन में बदलाव और मनोदशा में बदलाव शामिल हो सकता है.

यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि नशा वापसी लक्षण हर व्यक्ति में अलगअलग होते हैं. कुछ लोगों को हलके लक्षण अनुभव होते हैं, जबकि कुछ लोगों को गंभीर लक्षण अनुभव होते हैं. यदि आप को नशा छुड़ाने के लक्षणों का अनुभव हो रहा है तो तुरंत डाक्टर से परामर्श करना महत्त्वपूर्ण है. वेपिंग तनाव का इलाज नहीं वह खुद तनाव का कारण है.

कैसे पता करें कि बच्चा वेप कर रहा है?

रिया: अनुष्का, अगर तुम्हें अपने कजिन की आदत पर शक है तो ये लक्षण पहचानो :

वेपिंग के संकेत

मीठी/फ्रूटी खुशबू.

बारबार गला साफ करना या खांसी.

मूड स्विंग्स, चिड़चिड़ापन.

बारबार प्यास लगना या नाक से खून आना.

वेपिंग कैसे छोड़ें

डा निधि की सलाह: याद रखें,

निकोटिन की लत सिर्फ आदत नहीं, ब्रेन डिजीज है. इसे छुड़ाने के लिए पूरा सिस्टेमैटिक प्लान चाहिए जिस में आप की मदद तंबाकू के स्पैशलिस्ट करेंगे.

गहरी सांस लें.

हाथ ऊपर उठाएं.

मुट्ठी बांधें, तनाव समेटें.

‘आह’ कह कर फेंकें.

इस ऐक्सरसाइज से स्ट्रैस दूर होता है.

तंबाकू छोड़ने के उपचार के लिए गैरऔषधीय व्यायाम:

हंसी चिकित्सा.

निर्देशित कल्पना.

गहरी सांस लेने के व्यायाम.

संगीत चिकित्सा.

पर्यावरण संशोधन

छोड़ने के बाद क्या फायदे मिलते हैं?

फायदे टाइमलाइन के अनुसार: 20 मिनट  बीपी और पल्स सामान्य.

8 घंटे: कार्बन मोनोऔक्साइड घटती है.

48 घंटे स्वाद और गंध लौटती है.

1 साल: हार्ट डिजीज का रिस्क आधा.

5 साल: कैंसर और स्ट्रोक का खतरा बहुत घटता है.

15 साल: आप की उम्र एक नौनस्मोकर जैसी हो जाती है.

अनुष्का: अब समझ आया कि एक छोटी सी डिवाइस कितनी बड़ी मुसीबत बन सकती है. सही समय है बदलाव का. छोड़ने का फैसला सबसे बड़ी जीत होती है. जिंदगी निकोटिन की गुलाम नहीं, सफलता और आजादी की कहानी होनी चाहिए. स्वस्थ रहें, मुसकराते रहें.

-डा. रिया गुप्ता

(डैंटल सर्जन, टोबैको सैंसेशन स्पैशलिस्ट) 

Hindi Story : स्वयंवरा – मीता ने आखिर पति के रूप में किस को चुना

Hindi Story : टेक्सटाइल डिजाइनर मीता रोज की तरह उस दिन भी शाम को अकेली अपने फ्लैट में लौटी, परंतु वह रोज जैसी नहीं थी. दोपहर भोजन के बाद से ही उस के भीतर एक कशमकश, एक उथलपुथल, एक अजीब सा द्वंद्व चल पड़ा था और उस द्वंद्व ने उस का पीछा अब तक नहीं छोड़ा था.

सुलभा ने दीपिका के बारे में अचानक यह घोषणा कर दी थी कि उस के मांबाप को बिना किसी परिश्रम और दानदहेज की शर्त के दीपिका के लिए अच्छाखासा चार्टर्ड अकाउंटैंट वर मिल गया है. दीपिका के तो मजे ही मजे हैं. 10 हजार रुपए वह कमाएगा और 4-5 हजार दीपिका, 15 हजार की आमदनी दिल्ली में पतिपत्नी के ऐशोआराम के लिए बहुत है.

दीपिका के बारे में सुलभा की इस घोषणा ने अचानक ही मीता को अपनी बढ़ती उम्र के प्रति सचेत कर दिया. सब के साथ वह हंसीबोली तो जरूर परंतु वह स्वाभाविक हंसी और चहक अचानक ही गायब हो गई और उस के भीतर एक कशमकश सी जारी हो गई.

जब तक मीता इंस्टिट्यूट में पढ़ रही थी और टेक्सटाइल डिजाइनिंग की डिगरी ले रही थी, मातापिता उस की शादी को ले कर बहुत परेशान थे. लेकिन जब वह दिल्ली की इस फैशन डिजाइनिंग कंपनी में 4 हजार रुपए की नौकरी पा गई और अकेली मजे से यहां एक छोटा सा फ्लैट ले कर रहने लगी, तब से वे लोग भी कुछ निश्ंिचत से हो गए.

मीता जानती है, उस के मातापिता बहुत दकियानूसी नहीं हैं. अगर वह किसी उपयुक्त लड़के का स्वयं चुनाव कर लेगी तो वे उन के बीच बाधा बन कर नहीं खड़े होंगे. परंतु यही तो उस के सामने सब से बड़ा संकट था. नौकरी करते हुए उसे यह तीसरा साल था और उस के साथ की कितनी ही लड़कियां शादी कर चुकी थीं. वे अब अपने पतियों के साथ मजे कर रही थीं या शहर छोड़ कर उन के साथ चली गई थीं. एक मीता ही थी जो अब तक इस पसोपेश में थी कि क्या करे, किसे चुने, किसे न चुने.

ऐसा नहीं था कि कहीं गुड़ रखा हो और चींटों को उस की महक न लगे और वे उस की तरफ लपकें नहीं. अपने इस खयाल पर मीता बरबस ही मुसकरा भी दी, हालांकि आज उस का मुसकराने का कतई मन नहीं हो रहा था.

राखाल बाबू प्राय: रोज ही उसे कंपनी बस से रास्ते में लौटते हुए मिलते हैं. एकदम शालीन, सभ्य, शिष्ट, सतर्क, मीता की परवा करने वाले, उस की तकलीफों के प्रति एक प्रकार से जिम्मेदारी अनुभव करने वाले, बुद्धिजीवी किस्म के, कम बोलने वाले, ज्यादा सुननेगुनने वाले. समाज की हर गतिविधि पर पैनी नजर. आंखों पर मोटे लैंस का चश्मा, गंभीर सा चेहरा, ऊंचा ललाट, कुछ कम होते जा रहे बाल. सदैव सफेद कमीज और सफेद पैंट ही पहनने वाले. जेब में लगा कीमती कलम, हाथ में पोर्टफोलियो के साथ दबे कुछ अखबार, पत्रिकाएं, किताबें.

जब तक मीता आ कर उन की सीट के पास खड़ी न हो जाती, वे बेचैन से बाहर की ओर ताकते रहते हैं. जैसे ही वह आ खड़ी होती है, वे एक ओर को खिसक कर उस के बैठने लायक जगह हमेशा बना देते हैं. वह बैठती है और नरम सी मुसकराहट उस के अधरों पर उभर आती है.

ऐसा नहीं है कि वे हमेशा असामान्य सी बातें करते हैं, परंतु मीता ने पाया है, वे अकसर सामान्य लोगों की तरह लंपटतापूर्ण न व्यवहार करते हैं, न बातें. उन के हर व्यवहार में एक गरिमा रहती है. एक श्रेष्ठता और सलीका रहता है. एक प्रकार की बहुत बारीक सी नफासत.

‘‘कहो, आज का दिन कैसा बीता…?’’ वे बिना उस की ओर देखे पूछ लेते हैं और वह बिना उन की ओर देखे जवाब दे देती है, ‘‘रोज जैसा ही…कुछ खास नहीं.’’

‘‘मीता, कैसी अजीब होती है यह जिंदगी. इस में जब तक रोज कुछ नया न हो, जाने क्यों लगता ही नहीं कि आज हम जिए. क्यों?’’ वे उत्तर के लिए मीता के चेहरे की रगरग पर अपनी पैनी नजरों से टटोलने लगते हैं, ‘‘जानती हो, मैं ने अखबारों से जुड़ी जिंदगी क्यों चुनी…? महज इसी नएपन के लिए. हर जगह बासीपन है, सिवा अखबारों के. यहां रोज नई घटनाएं, नए हादसे, नई समस्याएं, नए लोग, नई बातें, नए विचार…हर वक्त एक हलचल, एक उठापटक, एक संशय, संदेह भरा वातावरण, हर वक्त षड्यंत्र, सत्ता का संघर्ष. अपनेआप को बनाए रखने और टिकाए रखने की जीतोड़ कोशिशें… मित्रों के घातप्रतिघात, आघात और आस्तीनों के सांपों का हर वक्त फुफकारना… तुम अंदाजा नहीं लगा सकतीं मीता, जिंदगी में यहां कितना रोमांच, कितनी नवीनता, कितनी अनिश्चितता होती है…’’

‘‘लेकिन आप के धीरगंभीर स्वभाव से आप का यह कैरियर कतई मेल नहीं खाता…कहां आप चीजों पर विभिन्न कोणों से गंभीरता से सोचने वाले और कहां अखबारों में सिर्फ घटनाएं और घटनाएं…इन के अलावा कुछ नहीं. आप को उन घटनाओं में एक प्रकार की विचारशून्यता महसूस नहीं होती…? आप को नहीं लगता कि जो कुछ तेजी से घट रहा है वह बिना किसी सोच के, बिना किसी प्रयोजन के, बेकार और बेमतलब घटता चला जा रहा है?’’

‘‘यहीं मैं तुम से भिन्न सोचता हूं, मीता…’’

‘‘आजकल की पत्रपत्रिकाओं में तुम क्या देख रही हो…? एक प्रकार की विचारशून्यता…मैं इन घटनाओं के पीछे व्याप्त कारणों को तलाशता हूं. इसीलिए मेरी मांग है और मैं अपनी जगह बनाने में सफल हुआ हूं. मेरे लिए कोई घटना महज घटना नहीं है, उस के पीछे कुछ उपयुक्त कारण हैं. उन कारणों की तलाश में ही मुझे बहुत देर तक सोचते रहना पड़ता है.

‘‘तुम आश्चर्य करोगी, कभीकभी चीजों के ऐसे अनछुए और नए पहलू उभर कर सामने आते हैं कि मैं भी और मेरे पाठक भी एवं मेरे संपादक भी, सब चकित रह जाते हैं. आखिर क्यों…? क्यों होता है ऐसा…?

‘‘इस का मतलब है, हम घटनाओं की भीड़ से इतने आतंकित रहते हैं, इतनी हड़बड़ी और जल्दबाजी में रहते हैं कि इन के पीछे के मूल कारणों को अनदेखा, अनसोचा कर जाते हैं जबकि जरूरत उन्हें भी देखने और उन पर भी सोचने की होती है…’’

राखाल बाबू किसी भी घटना के पक्ष में सोच लेते हैं और विपक्ष में भी. वे आरक्षण के जितने पक्ष में विचार प्रस्तुत कर सकते थे, उस से ज्यादा उस के विपक्ष में भी सोच लेते थे. गजरौला के कानवैंट स्कूल की ननों के साथ घटी बलात्कार और लूट की घटना को उन्होंने महज घटना नहीं माना. उस के पीछे सभ्यता और संस्कृति से संपन्न वर्ग के खिलाफ, उजड्ड, वहशी और बर्बर लोगों का वह आदिम व्यवहार जिम्मेदार माना जो आज भी आदमी को जानवर बनाए हुए है.

मीता राखाल बाबू से नित्य मिलती और प्राय: नित्य ही उन के नए विचारों से प्रभावित होती. वह सोचती रह जाती, यह आदमी चलताफिरता विचारपुंज है. इस के साथ जिंदगी जीना कितना स्तरीय, कितना श्रेष्ठ और कितना अच्छा होगा. कितना अर्थपूर्ण जीवन होगा इस आदमी के साथ. वह महीनों से राखाल बाबू की कल्पनाओं में खोई हुई है. कितना अलग होगा उस का पति, सामान्य सहेलियों के साधारण पतियों की तुलना में. एक सोचनेसमझने वाला, चिंतक, श्रेष्ठ पुरुष, जिसे सिर्फ खानेपीने, मौज करने और बिस्तर पर औरत को पा लेने भर से ही मतलब नहीं होगा, जिस की जिंदगी का कुछ और भी अर्थ होगा.

लेकिन दूसरे क्षण ही मीता को अपनी कंपनी के निर्यात प्रबंधक विजय अच्छे लगने लगते. गोरा रंग, आकर्षक व्यक्तित्व, करीने से रखी गई दाढ़ी. चमकदार, तेज आंखें. हर वक्त आगे और आगे ही बढ़ते जाने का हौसला. व्यापार की प्रगति के लिए दिनरात चिंतित. कंपनी के मालिक के बेहद चहेते और विश्वासपात्र. खुला हुआ हाथ. खूब कमाना, खूब खर्चना. जेब में हर वक्त नोटों की गड्डियां और उन्हें हथियाने के लिए हर वक्त मंडराने वाली लड़कियां, जिन में एक वह खुद…

‘‘मीता, चलो आज 12 से 3 वाला शो देखते हैं.’’

‘‘क्यों साहब, फिल्म में कोई नई बात है?’’

मीता के चेहरे पर मुसकराहट उभरती है. जानती है, विजय जैसा व्यस्त व्यक्ति फिल्म देखने व्यर्थ नहीं जाएगा और लड़कियों के साथ वक्त काटना उस की आदत नहीं.

‘‘और क्या समझती हो, मैं बेकार में 3 घंटे खराब करूंगा…? उस में एक फ्रैंच लड़की है, क्या अनोखी पोशाक पहन रखी है, देखोगी तो उछल पड़ोगी. मैं चाहता हूं कि तुम उस में कुछ और नया प्रभाव पैदा कर उसे डिजाइन करो… देखना, यह एक बहुत बड़ी सफलता होगी.’’

कितना फर्क है राखाल बाबू में और विजय में. एक जिंदगी के हर पहलू पर सोचनेविचारने वाला बुद्धिजीवी और एक अलग किस्म का आदमी, जिस के साथ जीवन जीने का मतलब ही कुछ और होगा. नए से नए फैशन का दीवाना. नई से नई पोशाकों की कल्पना करने वाला, हर वक्त पैसे से खेलने वाला…एक बेहद आकर्षक और निरंतर आगे बढ़ते चले जाने वाला नौजवान, जिसे पीछे मुड़ कर देखना गवारा नहीं. जिसे एक पल ठहर कर सोचने की फुरसत नहीं.

तीसरा राकेश है, राजनीति विज्ञान का विद्वान. पड़ोस की चंद्रा का भाई. अकसर जब यहां आता है तो होते हैं उस के साथ उस के ढेर सारे सपने, तमाम तमन्नाएं. अभी भी उस के चेहरे पर न राखाल बाबू वाली गंभीरता है, न विजय वाली व्यस्तता. बस आंखों में तैरते बादलों से सपने हैं. कल्पनाशील चेहरा एकदम मासूम सा.

‘‘अब क्या इरादा है, राकेश?’’ एक दिन उस ने यों ही हंसी में पूछ लिया था.

‘‘इजाजत दो तो कुछ प्रकट करूं…’’ वह सकुचाया.

‘‘इजाजत है,’’ वह कौफी बना लाई थी.

‘‘अपने इरादे हमेशा नेक और स्पष्ट रहे हैं, मीताजी,’’ राकेश ने कौफी पीते हुए कहा, ‘‘पहला इरादा तो आईएएस हो जाना है और वह हो कर रहूंगा, इस बार या अगली बार. दूसरा इरादा आप जैसी लड़की से शादी कर लेने का है…’’

राकेश एकदम ऐसे कह देगा इस की मीता को कतई उम्मीद नहीं थी. एक क्षण को वह अचकचा ही गई, पर दूसरे क्षण ही संभल गई, ‘‘पहले इरादे में तो पूरे उतर जाओगे राकेश, लेकिन दूसरे इरादे में तुम मुझे कच्चे लगते हो. जब आईएएस हो जाओगे और कोरा चैक लिए लड़की वाले जब तुम्हें तलाशते डोलेंगे तो देखने लगोगे कि किस चैक पर कितनी रकम भरी जा सकती है. तब यह 4 हजार रुपल्ली कमाने वाली मीता तुम्हें याद नहीं रहेगी.’’

‘‘आजमा लेना,’’ राकेश कह उठा, ‘‘पहले अपने प्रथम इरादे में पूरा हो लूं, तब बात करूंगा आप से. अभी से खयाली पुलाव पकाने से क्या फायदा?’’

एक दिन दिल्ली में आरक्षण विरोध को ले कर छात्रों का उग्र प्रदर्शन चल रहा था और बसों का आनाजाना रुक गया था. बस स्टाप पर बेतहाशा भीड़ देख कर मीता सकुचाई, पर दूसरे ही क्षण उसे अपनी ओर आते हुए राखाल बाबू दिखाई दिए, ‘‘आ गईं आप…? चलिए, पैदल चलते हैं कुछ दूर…फिर कहीं बैठ कर कौफी पीएंगे तब चलेंगे…’’

एक अच्छे रेस्तरां में कोने की एक मेज पर जा बैठे थे दोनों.

‘‘जीवन में क्या महत्त्वपूर्ण है राखाल बाबू…?’’ उस ने अचानक कौफी का घूंट भर कर प्याले की तरफ देखते हुए उन पर सवाल दागा था, ‘‘एक खूब कमाने वाला आकर्षक पति या एक आला दर्जे का रुतबेदार अफसर अथवा जीवन पर विभिन्न कोणों से हर वक्त विचार करते रहने वाला एक चिंतक…एक औरत इन में से किस के साथ जीवन सुख से बिता सकती है, बताएंगे आप…?’’

एक बहुत ही अहम सवाल मीता ने

राखाल बाबू से पूछ लिया था जिस

सवाल का उत्तर वह स्वयं अपनेआप को कई दिनों से नहीं दे पा रही थी. वह पसोपेश में थी, क्या सही है, क्या गलत? किसे चुने? किसे न चुने?

राखाल बाबू को वह बहुत अच्छी तरह समझ गई थी. जानती थी, अगर वह उन की ओर बढ़ेगी तो वे इनकार नहीं करेंगे बल्कि खुश ही होंगे. विजय ने तो उस दिन सिनेमा हौल में लगभग स्पष्ट ही कर दिया था कि मीता जैसी प्रतिभाशाली फैशन डिजाइनर उसे मिल जाए तो वह अपनी निजी फैक्टरी डाल सकता है और जो काम वह दूसरों के लिए करता है वह अपने लिए कर के लाखों कमा सकता है. और राकेश…? वह लिखित परीक्षा में आ गया है, साक्षात्कार में भी चुन लिया जाएगा, मीता जानती है. लेकिन इन तीनों को ले कर उस के भीतर एक सतत द्वंद्व जारी है. वह तय नहीं कर पा रही, किस के साथ वह सुखी रह सकती है, किस के साथ नहीं…?

बहुत देर तक चुपचाप सोचते रहे राखाल बाबू. अपनी आदत के अनुसार गरम कौफी से उठती भाप ताकते हुए अपने भीतर कहीं डूबे रहे देर तक. जैसे भीतर कहीं शब्द ढूंढ़ रहे हों…

‘‘मीता…महत्त्वपूर्ण यह नहीं है कि इन में से औरत किस के साथ सुखी रह सकती है…महत्त्वपूर्ण यह है कि इन में से कौन है जो औरत को सचमुच प्यार करता है और करता रहेगा. औरत सिर्फ एक उपभोग की वस्तु नहीं है मीता. वह कोई व्यापारिक उत्पादन नहीं है…न वह दफ्तर की महज एक फाइल है, जिसे सरसरी नजर से देख कर आवश्यक कार्रवाई के लिए आगे बढ़ा दिया जाए. जीवन में हर किसी को सबकुछ तो नहीं मिल सकता मीता…अभाव तो बने ही रहेंगे जीवन में…जरूरी नहीं है कि अभाव सिर्फ पैसे का ही हो. दूसरों की थाली में अपनी थाली से हमेशा ज्यादा घी किसी न किसी कोण से आदमी को लगता ही रहेगा…ऐसी मृगतृष्णा के पीछे भागना मेरी समझ से पागलपन है. सब को सब कुछ तो नहीं लेकिन बहुत कुछ अगर मिल जाए तो हमें संतोष करना सीखना चाहिए.

‘‘जहां तक मैं समझता हूं, आदमी के लिए सिर्फ बेतहाशा भागते जाना ही सब कुछ नहीं है…दिशाहीन दौड़ का कोई मतलब नहीं होता. अगर हमारी दौड़ की दिशा सही है तो हम देरसवेर मंजिल तक भी पहुंचेंगे और सहीसलामत व संतुष्ट होते हुए पहुंचेंगे. वरना एक अतृप्ति, एक प्यास, एक छटपटाहट, एक बेचैनी जीवन भर हमारे इर्दगिर्द मंडराती रहेगी और हम सतत तनाव में जीते हुए बेचैन मौत मर जाएंगे.

‘‘मैं नहीं जानता कि तुम मेरी इन बातों से किस सीमा तक सहमत होगी, पर मैं जीवन के बारे में कुछ ऐसे ही सोचता हूं…’’

और मीता को लगा कि वह जीवन के सब से आसन्न संकट से उबर गई है. उसे वह महत्त्वपूर्ण निर्णय मिल गया है जिस की उसे तलाश थी. एक सतत द्वंद्व के बाद उस का मन एक निश्छल झील की तरह शांत हो गया और जब वह रेस्तरां से बाहर निकली तो अनायास ही उस ने अपना हाथ राखाल बाबू के हाथ में पाया. उस ने देखा, वे उसे एक स्कूटर की तरफ खींच रहे हैं, ‘‘चलो, बस तो मिलेगी नहीं, तुम्हें घर छोड़ दूं.’’

Best Short Story : बिना कुछ कहे

Best Short Story : दिसंबर की वह शायद सब से सर्द रात थी, लेकिन कुछ था जो मुझे अंदर तक जला रहा था और उस तपस के आगे यह सर्द मौसम भी जीत नहीं पा रहा था.

मैं इतना गुस्सा आज से पहले स्नेहा पर कभी नहीं हुआ था, लेकिन उस के ये शब्द, ‘पुनीत, हमारे रास्ते अलगअलग हैं, जो कभी एक नहीं हो सकते,’ अभी भी मेरे कानों में गूंज रहे थे. इन शब्दों की ध्वनि अब भी मेरे कानों में बारबार गूंज रही थी, जो मुझे अंदर तक झिंझोड़ रही थी.

जो कुछ भी हुआ और जो कुछ हो रहा था, अगर इन सब में से मैं कुछ बदल सकता तो सब से पहले उस शाम को बदल देता, जिस शाम आरती का वह फोन आया था.

आरती मेरा पहला प्यार थी. मेरी कालेज लाइफ का प्यार. कोई अलग कहानी नहीं थी, मेरी और उस की. हम दोनों कालेज की फ्रैशर पार्टी में मिले और ऐसे मिले कि परफैक्ट कपल के रूप में कालेज में मशहूर हो गए.

मैं आरती को बहुत प्यार करता था. हमारे प्यार को पूरे 5 साल हो चुके थे, लेकिन अब कुछ ऐसा था, जो मुझे आरती से दूर कर रहा था. मेरी और आरती की नौकरी लग चुकी थी, लेकिन अलगअलग जगह हम दोनों जल्दी ही शादी करने के लिए भी तैयार हो चुके थे. आरती के पापा के दोस्त का बेटा विहान भी आरती की कंपनी में ही काम करता था. वह हाल ही में कनाडा से यहां आया था. मैं उसे बिलकुल पसंद नहीं करता था और उस की नजरें भी साफ बताती थीं कि कुछ ऐसी ही सोच उस की भी मेरे प्रति है.

‘‘देखो आरती, मुझे तुम्हारे पापा के दोस्त का बेटा विहान अच्छा नहीं लगता,‘‘ मैं ने एक दिन आरती को साफसाफ कह दिया.

‘‘तुम्हें वह पसंद क्यों नहीं है?‘‘ आरती ने मुझ से पूछा.

‘‘उस में पसंद करने लायक भी तो कुछ खास नहीं है आरती,‘‘ मैं ने सीधीसपाट बात कह दी.

‘तो तुम्हें उसे पसंद कर के क्या करना है,‘‘ यह कह कर आरती हंस दी.

मेरे मना करने का उस पर खास फर्क नहीं पड़ा, तभी तो एक दिन वह मुझे बिना बताए विहान के साथ फिल्म देखने चली गई और यह बात मुझे उस की बहन से पता चली.

मुझे छोटीछोटी बातों पर बहुत जल्दी गुस्सा आ जाता है, शायद इसीलिए उस ने यह बात मुझ से छिपाई. उस दिन मेरी और उस की बहुत लड़ाई हुई थी और मैं ने गुस्से में आ कर उस को साफसाफ कह दिया था कि तुम्हें मेरे और अपने उस दोस्त में से किसी एक को चुनना होगा.

‘‘पुनीत, अभी तो हमारी शादी भी नहीं हुई है और तुम ने अभी से मुझ पर अपना हुक्म चलाना शुरू कर दिया है. मैं कोई पुराने जमाने की लड़की नहीं हूं, कि तुम कुछ भी कहोगे और मैं मान लूंगी. मेरी भी खुद की अपनी लाइफ है और खुद के अपने दोस्त, जिन्हें मैं तुम्हारी मरजी से नहीं बदलूंगी.‘‘

सीधे तौर पर न सही, लेकिन कहीं न कहीं उस ने मेरे और विहान में से विहान की तरफदारी कर मुझे एहसास करा दिया कि वह उस से अपनी दोस्ती बनाए रखेगी.

आरती और मैं हमउम्र थे. उस का और मेरा व्यवहार भी बिलकुल एकजैसा था. मुझे लगा कि अगले दिन आरती खुद फोन कर के माफी मांगेगी और जो हुआ उस को भूल जाने को कहेगी, लेकिन मैं गलत था, आरती की उस दिन के बाद से विहान से नजदीकियां और बढ़ गईं.

मैं ने भी अपनी ईगो को आगे रखते हुए कभी उस से बात करने की कोशिश ही नहीं की और उस ने भी बिलकुल ऐसा ही किया. उस को लगता था कि मैं टिपिकल मर्दों की तरह उस पर अपना फैसला थोप रहा हूं, लेकिन मैं उस के लिए अच्छा सोचता था और मैं नहीं चाहता था कि जो लोग अच्छे नहीं हैं, वे उस के साथ रहें. एक दिन उस की सहेली ने बताया कि उस ने साफ कह दिया है कि जो इंसान उस को समझ नहीं सकता, उस की भावनाओं की कद्र नहीं कर सकता, वह उस के साथ अपना जीवन नहीं बिता सकती.

आरती और मेरे रास्ते अब अलगअलग हो चुके थे. मैं उसे कुछ समझाना नहीं चाहता था और वह भी कुछ समझना नहीं चाहती थी.

मुझे बस हमेशा यह उम्मीद रहती थी कि अब उस का फोन आएगा और एक माफी से सबकुछ पहले जैसा हो जाएगा, लेकिन शायद कुछ चीजें बनने के लिए बिगड़ती हैं और कुछ बिगड़ने के लिए बनती हैं.

हमारी कहानी तो शायद बिगड़ने के लिए ही बनी थी. 5 साल का प्यार और साथ सबकुछ खत्म सा हो गया था.

मेरे घर में अब मेरे रिश्ते की बात चलने लगी थी, लेकिन किसी और लड़की से. मां मुझे रोज नएनए रिश्तों के बारे में बताती थीं, लेकिन मैं हर बार कोई न कोई बहाना या कमी निकाल कर मना कर देता था.

मुझे भीड़ में भी अकेलापन महसूस होता था. सब से ज्यादा तकलीफ जीवन के वे पल देते हैं, जो एक समय सब से ज्यादा खूबसूरत होते हैं. वे जितने मीठे पल होते हैं, उन की यादें भी उतनी ही कड़वी होती हैं.

धीरेधीरे वक्त बीतता गया. मेरे साथ आज भी बस, आरती की यादें थीं. मुझे क्या पता था आज मैं किसी से मिलने वाला हूं. आज मैं स्नेहा से मिला. हम दोनों की मुलाकात मेरे दोस्त की शादी में हुई थी.

स्नेहा आरती की चचेरी बहन थी. साधारण नैननक्श वाली स्नेहा शादी में बिना किसी की परवा किए, सब से ज्यादा डांस कर रही थी. 21-22 साल की वह लड़की हरकतों से एकदम 10-12 साल की बच्ची लग रही थी.

‘‘बेटा, तुम्हारी गाड़ी में जगह है?‘‘ मेरे जिस दोस्त की शादी थी, उस की मम्मी ने आ कर मुझ से पूछा.

‘‘हां आंटी, क्यों?‘‘ मैं ने पूछा.

‘‘तो ठीक है, कुछ लड़कियों को तुम अपनी गाड़ी में ले जाना. दरअसल, बस में बहुत लोग हो गए हैं. तुम घर के हो तो तुम से पूछना ठीक समझा.‘‘

सजीधजी 3 लड़कियां मेरी कार में पीछे की सीट पर आ कर बैठ गईं. एक मेरे बराबर वाली सीट पर आ कर बैठ गई.

मेरे यह कहने से पहले कि सीट बैल्ट बांध लो, उस ने बड़ी फुर्ती से बैल्ट बांध ली. वे सब अपनी बातों में मशगूल हो गईं.

मुझे ऐसा एहसास हो रहा था जैसे मैं इस कार का ड्राइवर हूं, जिस से बात करने में किसी को कोई दिलचस्पी नहीं थी.

तभी स्नेहा ने मुझ से पूछा, ‘‘आप रजत या के दोस्त हैं न.‘‘

‘‘जी,‘‘ मैं ने बस, इतना ही उत्तर दिया.

न तो इस से ज्यादा हमारी कोई बात हुई और  ही मुझे कोई दिलचस्पी थी.

आजकल के हाईटैक युग में जिस से आप आमनेसामने बात करने से हिचकें उस के लिए टैक्नोलौजी ने एक नया नुसखा कायम किया है, जो आज के समय में काफी कारगर है, और वह है चैटिंग. स्नेहा ने मुझे फेसबुक पर रिक्वैस्ट भेजी और मैं ने भी स्वीकार कर ली.

हम दोनों धीरेधीरे अच्छे दोस्त बन गए. बातोंबातों में उस ने मुझे बताया कि उसे अपने कालेज के सैमिनार में एक प्रोजैक्ट बनाना है. मैं ने कहा, ‘‘तो ठीक है, मैं तुम्हारी मदद कर देता हूं.‘‘

इतने सालों बाद मैं ने उस के लिए दोबारा पढ़ाई की थी उस का प्रोजैक्ट बनवाने के लिए. कभी वह मेरे घर आ जाया करती थी तो कभी मैं उस के घर चला जाता. दरअसल, वह अपने कालेज की पढ़ाई की वजह से रजत के घर ही रहती थी. जब भी वह प्रोजैक्ट बनवाने के लिए आती तो बस, बोलती ही जाती थी. मेरे से बिलकुल अलग थी, वह.

एक दिन बातोंबातों में उस ने पूछा, ‘‘आप की कोई गर्लफ्रैंड नहीं है?‘‘

मैं उस को न कह कर बात वहीं पर खत्म भी कर सकता था, लेकिन मैं ने उस को अपने और आरती के बारे में सबकुछ सचसच बता दिया.

‘‘ओह,‘‘ स्नेहा ने दुख जताते हुए कहा, ‘‘मुझे सच में बहुत दुख हुआ यह सब सुन कर. क्या तब से आप दोनों की एक बार भी बात नहीं हुई?‘‘ स्नेहा ने पूछा.

मैं ने गहरी सांस लेते हुए कहा, ‘‘नहीं, और अब करनी भी नहीं है,‘‘ यह कह कर हम दोनों प्रोजैक्ट बनाने लग गए.

आज जब स्नेहा आई तो कुछ बदलीबदली सी लग रही थी. आते ही न तो उस ने जोर से आवाज लगा कर डराया और न ही हंसी.

मैं ने पूछा, ‘‘सब ठीक तो है न?‘‘

वह बोली, ‘‘कुछ बताना था आप को, आप मुझे बताना कि सही है या गलत.‘‘

हम अच्छे दोस्त बन गए थे. मैं ने उस से कहा, ‘‘हांहां जरूर, क्यों नहीं,‘‘ बोलो.

उस ने एक गहरी सांस लेते हुए कहा, ‘‘मुझे किसी से प्यार हो गया है.‘‘

मैं ने कहा, ‘‘कौन है वह और क्या वह भी तुम से प्यार करता है?‘‘

उस ने कहा, ‘‘मालूम नहीं?‘‘

‘‘ओह, तुम्हारे ही कालेज में है क्या?‘‘ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं,‘‘ उस ने बस छोटा सा जवाब दिया.

‘‘वह मेरा दोस्त है जो मुझ से 7 साल बड़ा है. उस की पहले एक गर्लफ्रैंड थी, लेकिन अब नहीं है. उस को गुस्सा भी बहुत जल्दी आता है.

‘‘वह मेरे बारे में क्या सोचता है, पता नहीं, लेकिन जब वह मेरी मदद करता है, तो मुझे बहुत अच्छा लगता है. उस का नाम…‘‘ यह कह कर वह रुक गई.

‘‘उस का नाम,‘‘ स्नेहा ने मेरी आंखों में देखते हुए कहा, ‘‘बहुत मजा आ रहा है न आप को. सबकुछ जानते हुए भी पूछ रहे हो और वैसे भी इतने बेवकूफ आप हो नहीं, जितने बनने की कोशिश कर रहे हो.‘‘

मैं बहुत तेज हंसने लगा.

उस ने कहा, ‘‘अब क्या फिल्मों की तरह प्रपोज करना पड़ेगा?‘‘

मैं ने कहा, ‘‘नहींनहीं, उस की कोई जरूरत नहीं है. यह जानते हुए भी कि मैं उम्र में तुम से 7 साल बड़ा हूं और मेरे जीवन में तुम से पहले कोई और थी, तब भी..‘‘

‘‘हां, और वैसे भी प्यार में उम्र, अतीत ये सबकुछ भी माने नहीं रखते.‘‘

मैं ने उस को गले लगा लिया और कहा, ‘‘हमेशा मुझे ऐसे ही प्यार करना.‘‘

वह खुश हो कर मेरी बांहों में आ गई. अब मेरे जीवन में भी कोई आ गया था जो मेरा बहुत खयाल रखता था. कहने को तो उम्र में मुझ से 7 साल छोटी थी, लेकिन मेरा खयाल वह मेरे से भी ज्यादा रखती थी. हम दोनों आपस में सारी बातें शेयर करते थे. अब मैं खुश रहने लगा था.

उस शाम मैं और स्नेहा साथ ही थे, जब मेरा फोन बजा. फोन पर दूसरी तरफ से एक बहुत धीमी लेकिन किसी के रोने की आवाज ने मुझे अंदर तक हिला दिया. वह कोई और नहीं बल्कि आरती थी.

वह आरती जिस को मैं अपना अतीत समझ कर भुला चुका था या फिर स्नेहा के प्यार के आगे उस को भूलने की कोशिश कर रहा था.

‘‘हैलो, कौन?‘‘

‘‘मैं आरती बोल रही हूं पुनीत,‘‘ आरती ने कहा.

‘‘आज इतने दिन बाद तुम्हारा फोन…‘‘ इस से आगे मैं और कुछ कहता, वह बोल पड़ी, ‘‘तुम ने तो मेरा हाल भी जानने की कोशिश नहीं की. क्या तुम्हारा अहंकार हमारे प्यार से बहुत ज्यादा बड़ा हो गया था?‘‘

‘‘तुम ने भी तो एक बार फोन नहीं किया, तुम्हें आजादी चाहिए थी. कर तो दिया था मैं ने तुम्हें आजाद. फिर अब क्या हुआ?‘‘

‘‘तुम यही चाहते थे न कि मैं तुम से माफी मांगू. लो, आज मैं तुम से माफी मांगती हूं. लौट आओ पुनीत, मेरे लिए. मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है.‘‘

मैं बस उस की बातों को सुने जा रहा था बिना कुछ कहे और स्नेहा उतनी ही बेचैनी से मुझे देखे जा रही थी.

‘‘मुझे तुम से मिलना है,‘‘ आरती ने कहा और बस, इतना कह कर आरती ने फोन काट दिया.

‘‘क्या हुआ, किस का फोन था?‘‘ स्नेहा ने फोन कट होते ही पूछा.

कुछ देर के लिए तो मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था. स्नेहा के दोबारा पूछने पर मैं ने धीमी आवाज में कहा, ‘‘आरती का फोन था.‘‘

‘‘ओह, तुम्हारी गर्लफ्रैंड का,‘‘ स्नेहा ने कहा.

मैं ने स्नेहा से अब तक कुछ छिपाया नहीं था और अब भी मैं उस से कुछ छिपाना नहीं चाहता था. मैं ने सबकुछ उस को सचसच बता दिया.

सारी बात सुनने के बाद स्नेहा ने कहा, ‘‘मुझे लगता है आप को एक बार आरती से जरूर मिलना चाहिए. आखिर पता तो करना चाहिए कि अब वह क्या चाहती है.‘‘

यह जानते हुए भी कि वह मेरा पहला प्यार थी. स्नेहा ने मुझे उस से मिल कर आने की इजाजत और सलाह दी.

अगले दिन मैं आरती से मिला और आरती ने मुझे देख कर कहा, ‘‘तुम बिलकुल नहीं बदले, अब भी ऐसे ही लग रहे हो जैसे कालेज में लगा करते थे.‘‘

‘‘आरती अब इन सब बातों का कोई मतलब नहीं है,‘‘ मैं ने जवाब दिया.

‘‘क्यों?‘‘ आरती ने पूछा, ‘‘कोई आ गई है क्या तुम्हारे जीवन में?‘‘

‘‘हां, और उस को सब पता है. उसी के कहने पर मैं यहां तुम से मिलने आया हूं.‘‘

‘‘क्या तुम उसे भी उतना ही प्यार करते हो जितना मुझे करते थे, क्या तुम उस को मेरी जगह दे पाओगे?‘‘

मैं शांत रहा. मैं ने धीरे से कहा, ‘‘हां, वह मुझे बहुत प्यार करती है.‘‘

‘‘ओह, तो इसलिए तुम मुझ से दूर जाना चाहते हो. मुझ से ज्यादा खूबसूरत है क्या वह?‘‘

‘‘आरती,‘‘ मैं गुस्से में वहां से उठ कर चल दिया. मुझे लग रहा था कि अब वह वापस क्यों आई? अब तो सब ठीक होने जा रहा था.

उस रात मुझे नींद नहीं आई. एक तरफ वह थी, जिस को कभी मैं ने बहुत प्यार किया था और दूसरी तरफ वह जो मुझ को बहुत प्यार करती थी.

अगली सुबह मैं स्नेहा के घर गया, तो वह कुछ उदास थी. उस ने मुझ से कहा, ‘‘मुझे लगता है कि हम एकदूसरे के लिए नहीं बने हैं और हमारे रास्ते अलग हैं,‘‘ यह कह कर वह चुपचाप ऊपर अपने कमरे में चली गई.

मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि इतना प्यार करने वाली लड़की इस तरह की बातें कैसे कर सकती है.

आरती का फोन आते ही मैं अपने खयालों से बाहर आया. मुझे स्नेहा पर बहुत गुस्सा आ रहा था.

‘‘आरती, इस समय मेरा बात करने का बिलकुल मन नहीं है. मैं तुम से बाद में बात करता हूं,‘‘ मेरे फोन रखने से पहले ही आरती बोली, ‘‘क्यों, क्या हुआ?‘‘

‘‘आरती, मैं स्नेहा को ले कर पहले से ही बहुत परेशान हूं,‘‘ मैं ने कहा.

‘‘वह अभी भी बच्ची है, शायद इन सब बातों का मतलब नहीं जानती, इसलिए कह दिया होगा.‘‘

उस के इतना कहते ही मैं ने फोन रख दिया और उसी समय स्नेहा के घर के लिए निकल गया.

मैं ने स्नेहा के घर के बाहर पहुंच कर स्नेहा से कहा, ‘‘सिर्फ एक बार मेरी खुशी के लिए बाहर आ जाओ,‘‘ स्नेहा ना नहीं कर पाई और मुझे पता था कि वह ना कर भी नहीं सकती, क्योंकि बात मेरी खुशी की जो थी.

स्नेहा की आंखों में आंसू थे. मैं ने स्नेहा को गले लगा लिया और कहा, ‘‘पगली, मेरे लिए इतना बड़ा बलिदान करने जा रही थी.‘‘

स्नेहा ने चौंक कर मेरी तरफ देखा.

‘‘तुम मुझ से झूठ बोलने की कोशिश भी नहीं कर सकती. अब यह तो बताओ कि आरती ने क्या कहा, तुम से मिल कर.‘‘

स्नेहा ने रोते हुए कहा, ‘‘आरती ने कहा कि अगर मैं तुम से प्यार करती हूं और तुम्हारी खुशी चाहती हूं तो…. मैं तुम से कभी न मिलूं, क्योंकि तुम्हारी खुशी उसी के साथ है,‘‘ यह कह कर स्नेहा फूटफूट कर रोने लगी.

मैं ने उस का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, ‘‘ओह, मेरा बच्चा मेरे लिए इतना बड़ा बलिदान करना चाहता था. इतना प्यार करती हो तुम मुझ से.‘‘

उस ने एक छोटे बच्चे की तरह कहा,  ‘‘इस से भी ज्यादा.‘‘

मैं ने उस को हंसाने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘कितना ज्यादा?‘‘

वह मुसकरा दी.

‘‘लेकिन तुम्हें कैसे पता चला कि वह मुझ से मिली? क्या उस ने तुम्हें बताया?‘‘

‘‘नहीं,‘‘ मैं ने कहा.

‘‘फिर,‘‘ स्नेहा ने पूछा.

मैं ने जोर से हंसते हुए कहा, ‘‘उस ने तुम्हें बच्ची बोला,‘‘ इसीलिए.

इतने में ही मेरा फोन दोबारा बजा, वह आरती का फोन था. मैं ने अपने फोन को काट कर मोबाइल स्विच औफ कर दिया और स्नेहा को गले लगा लिया. बिना कुछ कहे मेरा फैसला आरती तक पहुंच गया था.

Dance Benefits : शौक के साथ ऐक्सरसाइज भी

Dance Benefits :  चिलचिलाती धूप और गरमी में मार्निंग वौक से ले कर जिम जाने तक सभी तरह का वर्कआउट हम समय पर नहीं कर पाते हैं। लेकिन अब इस से परेशान होने की जरूरत नहीं है क्योंकि डांस भी एक तरह की ऐक्सरसाइज है जिस से तन और मन दोनों स्वस्थ रहते हैं और साथ ही डांस करने का शौक भी पूरा हो जाता है.

आप को डांस नहीं आता लेकिन फिर भी तेज म्यूजिक पर आप अपने पैरों को थिरकने से नहीं रोक पाते.

रिपोर्ट्स की मानें तो दिन में कुछ देर बस ऐसे ही थिरकने से शरीर को कई फायदे होते हैं.

कैलोरी तेजी से बर्न होती है

डांस एक प्रकार की कार्डियो ऐक्सरसाइज है, जिसे करने से शरीर में कैलोरी तेजी से बर्न होती है. करीब 1 घंटा डांस करने से लगभग 500 से 800 कैलोरी बर्न होती है, जो वजन घटाने में काफी फायदेमंद है. इससे मेटाबौलिज्म की प्रक्रिया भी तेज होती है, जिस से शरीर में जमा वसा की मात्रा आसानी से पिघलती है.

वजन घटाने के लिए आप रोजाना कम से कम 15 से 20 मिनट तक डांस कर सकते हैं.

अमेरिका के स्वास्थ्य और मानव सेवा विभाग के अनुसार अगर आप का वेट 150 पाउंड्स है, तो सिर्फ 30 मिनट नाचने से आप अच्‍छीखासी कैलोरीज बर्न कर सकते हैं. अच्‍छी बात यह कि ज्‍यादा वजन वाले लोग भी कैलोरी बर्न करने के इस अंदाज को आजमा सकते हैं.

नींद अच्छी आएगी

दिनभर में की गई आधे घंटे की डांस थेरैपी से आप रात में चैन की नींद सो पाएंगे. दरअसल, डांस करने से शरीर के सभी अंग हिलतेडुलते हैं, जिस से शरीर में थकान का भी अनुभव रहता है। ऐसे में रात को अच्छी नींद आती है.

वर्क कैपिसिटी भी बढ़ती है

डांस से हमारा दिमाग पूरी तरह से फ्रैश हो जाता है और हम बाकी सभी चिंताओं से खुद को मुक्त कर के केवल डांस पर ही फोकस करते हैं. इस से हमारे अंदर एकाग्रता बढ़ने लगती है और हम आसानी से किसी काम को पूरे मन से कर पाते हैं। दिनभर में कुछ मिनटों तक डांस करना सेहत के लिए तो फायदेमंद होता ही है, साथ ही आप को मानसिक तौर पर भी मजबूत बनाता है। इस से आप की वर्क कैपिसिटी भी बढ़ती है.

भूख नहीं लगने की समस्या भी दूर होगी

अगर आप को भूख नहीं लगती और वजन धीरेधीरे कम हो रहा है तो दिन में 1 मघंटा डांस करना शुरू कर दें. इस से थकान होगी और भूख और प्यास दोनों लगने लगेगी. जब डाइट लेंगे तो वजन भी अपनेआप सही हो जाएगा.

श्वसनतंत्र में सुधार

नाचने से श्वसनतंत्र में सुधार होता है, क्योंकि इस में म्यूजिक के साथ कूदना भी शामिल होता है और यह हाई इंटेंसिटी स्टैप्स होते हैं। नाचने से ब्रीथिंग रेट बढ़ता है जिस से फेफड़े स्वस्थ रहते हैं.

मसल्स स्ट्रौंग होती हैं

जुंबा, साल्सा, पोल डांस, बैलेट आदि डांस करने से हड्डियां मजबूत रहती हैं.

यों तो ये केवल कुछ नाम हैं, पर आप डांस कोई भी करें आप का पूरा शरीर उस समय काम कर रहा होता है। नृत्य करने से हमारी मसल्स स्ट्रौंग होती हैं। बौडी स्ट्रेच होती है।

वेट लूज करता है डांस

आजकल सोशल मीडिया पर हरकोई अपनी अपनी तरह से वजन कम करने के लिए बहुत सा ज्ञान दे रहा है लेकिन कई स्टडी में साबित हो गया है कि डांस करने से शरीर की कैलोरी बर्न होती है.

शोधकर्ताओं की मानें तो नियमित तौर पर डांस करने से बौडी मास इंडैक्स, बौडी मास, कमर की चरबी कम होने के साथ ही फैट पर्सेंटेज भी काफी हद तक कम होता है.

डांस नहीं करने वाले लोगों की तुलना में रोजाना डांस करने वाले लोगों में फैट की मात्रा आसानी से कम होती है.

स्टडी की मानें तो यह ऐक्टिविटी आप की फीजिकल और मैंटल हैल्थ को दुरुस्त रखने के साथ ही मोटापे से बचाने में भी लाभकारी होती है.

अगर आप वजन या फिर फैट कम करना चाहते हैं तो नियमित तौर पर इस शारीरिक गतिविधि में शामिल हो सकते हैं.

फ्लेक्सिबिलिटी में सुधार

डांस करने से फ्लेक्सिबिलिटी में सुधार होता है, क्योंकि इस में कई तरह के मूव्स शामिल होते हैं जो किसी कसरत से कम नहीं है. ये डांसिंग मूव्स आप के शरीर की संपूर्ण कसरत करवाते हैं और आप को थकान भी महसूस नहीं होती.

कई बीमारियों से बचाता है डांस

जो लोग डायबिटीज या हाई ब्लड प्रेशर की समस्या से जूझ रहे हैं, उन के लिए डांस करना फायदेमंद साबित हो सकता है. रोजाना डांस करने से हाई कोलेस्ट्रोल, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, हार्ट डिजीज, मोटापा समेत कई गंभीर बीमारियों का खतरा कम हो सकता है.

डांस करते समय किन बातों का धयान रखें :

● किसी भी तरह की ऐक्सरसाइज शुरू करने से पहले वार्मअप करना बहुत जरूरी है. यह बात डांस करने पर भी लागू होती है.

● डांस करते समय इस बात का ध्यान रखें कि पानी का इंटेक पूरा होना चाहिए. इसलिए डांस के बीचबीच में भी पानी पिया जा सकता है.

● डांस नंगे पैर न करें बल्कि आरामदायक जूते पहन कर करें. वर्ना पैरों में दर्द की शिकायत हो सकती है.

● स्ट्रेचिंग सहित डांस सेशन के बाद खुद को कूल डाउन करें और अपनी बौडी को आराम दें.

मोटापा माइनस पौइंट नहीं : Prisha Dhatwalia

Prisha Dhatwalia : किसी इंसान का मोटा होना उस का सब से बड़ा माइनस पौइंट होता है क्योंकि उस के मोटापे के सामने उस के सारे गुण छिप जाते हैं और वह टेलैंटेड होने के बावजूद समाज में हमेशा मजाक का पात्र बना रहता है. कई बार कुछ लोग ऐसे मोटे लोगों को अपने आसपास भी फटकने नहीं देते. खासतौर पर हैंडसम लड़के जिन्हें सिर्फ खूबसूरत और स्लिमट्रिम लड़कियां पसंद होती हैं. उन की जिंदगी में अगर कोई मोटी लड़की आ जाए तो वे उसे जरा भी बरदाश्त नहीं कर पाते. फिर चाहे वह लड़की कितनी ही टेलैंटेड या अच्छे स्वभाव की हो.

ऐसा ही कुछ टीवी सीरियल ‘मेरी भव्या लाइफ’ में एक मोटी लड़की की कहानी के जरीए दर्शाया गया है. इस सीरियल का हीरो ऋषभ भव्या के मोटे होने की वजह से बातबात पर उस की बेइज्जती करता है और उसे नीचा दिखाता रहता है, जबकि भव्या उसी ऋषभ का जिम डिजाइन करने आती है. लेकिन बाद में हालात के चलते इसी हैंडसम फिटनैस के पीछे पागल और मोटे लोगों से नफरत करने वाले ऋषभ को भव्या से शादी करनी पड़ती है.

भव्या का किरदार निभाने वाली प्रीशा धतवालिया से हाल ही में हमारी बातचीत हुई जोकि एक खूबसूरत और क्यूट ऐक्ट्रैस हैं. प्रीशा अर्थात भव्या के अनुसार उन्हें इस किरदार के लिए अपना वजन 85 किलोग्राम तक बढ़ाना पड़ा. भव्या ने इस से पहले कभी ऐक्टिंग नहीं की थी लेकिन ऐक्टिंग का शौक उन्हें बचपन से था. हालांकि उन के घर में ज्यादातर इंजीनियर और हाई ऐजुकेशन वाले सदस्य हैं. प्रीशा भी पहले पत्रकारिता से जुड़ी हुई थीं और उन्होंने रेडियो मिर्ची और एबीपी न्यूज के लिए काम भी किया है.

एक दोस्त के कहने पर प्रीशा ने मजाकमजाक में इस सीरियल के लिए औडिशन दे दिया और जब इस के लिए प्रीशा का चुनाव हो गया तो उन के मन में पहला खयाल क्या आया? अभिनय से कोसों दूर रहने वाली प्रीशा मेरी भव्या लाइफ में काम करने के बाद अभिनय कैरियर को ले कर कितनी सचेत हुई हैं? जैसेकि भव्या को शादी का औफर सीरियल के हीरो ऋषभ की तरफ से आया है ऐसे ही अगर कोई हैंडसम लड़का जो उन को बिलकुल पसंद नहीं करता उस की तरफ से अगर शादी का औफर आया तो प्रीशा की क्या प्रतिक्रिया होगी?

एक वार्तालाप के दौरान ऐसे ही कई दिलचस्प सवालों के जवाब दिए प्रीशा ने अपने दिलचस्प अंदाज में:

जब आप को ‘मेरी भाव लाइफ’ के लिए भाव का किरदार निभाने का मौका मिला तो पहली प्रतिक्रिया आप की क्या थी?

सच कहूं तो मैं ने एक दोस्त के कहने पर इस सीरियल के लिए औडिशन दिया था. मुझे बिलकुल भी आशा नहीं थी कि मुझे भाव के किरदार के लिए सलैक्ट किया जाएगा क्योंकि इस से पहले मैं ने न तो ऐक्टिंग की थी और न ही मेरी बैकग्राउंड ऐक्टिंग कैरियर वाली है. मैं ने इंग्लिश लिटरेचर में ग्रैजुएशन किया है. बस शौक के तौर पर दिल्ली में मैं नुक्कड़ नाटक अपने दोस्तों के साथ किया करती थी. उसी दौरान शौकिया तौर पर मैं ने यूट्यूब चैनल के लिए बैंक का एक ऐड किया. इस ऐड में मेरा काम देख कर मुझे औडिशन के लिए बुलाया गया क्योंकि मैं दिल्ली की रहने वाली हूं इसलिए मैं मुंबई औडिशन देने आई यह सोच कर कि इसी बहाने मुझे मुंबई घूमने को मिल जाएगा.

लेकिन सलैक्शन के बाद जब मुझे मुंबई शिफ्ट होने का चैनल ने संदेश भेजा तो मेरे मन में एक खयाल सब से पहले आया कि मैं इतनी भी मोटी नहीं हूं कि मुझे इस रोल के लिए सलैक्ट किया. अभी कोई मोटा अपनेआप को मोटा नहीं समझता. लेकिन क्योंकि मुझे ऐक्टिंग का शौक था इसलिए मैं ने अपने घर वालों को इस के लिए मनाया और मुंबई शिफ्ट हो गई.

जैसाकि आप ने बताया आप की बैकग्राउंड हाई ऐजुकेशन वालों के साथ जुड़ी हुई है और आप के घर में सभी इंजीनियर व आर्मी में हैं. ऐसे में आप के घर वालों ने क्या आसानी से ऐक्टिंग करने की इजाजत दे दी?

नहीं, शुरुआत में ऐग्री नहीं थे. मैं अपने पिताजी के बहुत क्लोज हूं इसलिए उन्होंने मुझे सपोर्ट किया क्योंकि उन को पता है मुझे ऐक्टिंग का शौक है. इस से पहले पिताजी ने भी यही कहा कि क्या जरूरत है इस लाइन में जाने की कोई सिक्युरिटी नहीं है. मैं ने अपने पिताजी को आश्वासन देते हुए कहा कि जब सीरियल वालों ने खुद से मुझे चुना है और बुलाया है मुंबई तो कुछ तो सही होगा, बावजूद इस के मेरे पिताजी मेरे साथ मुंबई आए, सारे मैंबर लोगों से मिले, मेरे रहने का सही इंतजाम किया उस के बाद ही मुझे मुंबई रुकने की इजाजत मिली.

आप ने बताया इस से पहले आप ने कभी ऐक्टिंग नहीं की है तो इस सीरियल में आप ऐक्टिंग के लिए क्या तैयारी करती हैं?

मैं डाइरैक्टर के कहे अनुसार ऐक्टिंग करती हूं और सैट पर मौजूद सभी सीनियर ऐक्टरों से  ऐक्टिंग को ले कर टिप्स लेती रहती हूं ताकि मैं धीरेधीरे सीखसीख कर अभिनय करने की कोशिश कर सकूं.

इस सीरियल का हीरो ऋषभ आप के मोटे होने की वजह से आप से नफरत करता है. ऐसे में पर्सनल लाइफ में उन का स्वभाव आप के साथ कैसा है?

ऋषभ बहुत अच्छे स्वभाव का है. वह बहुत फूडी भी है. अच्छे खाने वाली जगह पर वही मुझे ले जाता है. हमारे विचार भी बहुत मिलते हैं. शूटिंग के दौरान हमारी अच्छी दोस्ती हो गई है. वह सीरियल में जैसा खड़ूस और गुस्सैल दिखता है असल में वह बिलकुल वैसा नहीं है.

इस शो में आप की उस के साथ शादी भी दिखाई गई है. ऋषभ के पिता की वजह से आप की जबरन उस से शादी हो जाती है. असल लाइफ में अगर ऐसी सिचुएशन आ जाए तो पृष्ठ का आप का क्या रिएक्शन होगा?

मैं तो बिलकुल भी ऐसे लड़के से शादी नहीं करूंगी जो मुझे पसंद नहीं करता या मुझ से नफरत करता है. मेरे हिसाब से शादी का मतलब 2 लोगों के बीच सम्मान, अंडरस्टैंडिंग और प्यार होना है. अगर 2 लोगों के बीच में सम?ाते की वजह से शादी होती है तो वह ज्यादा समय तक नहीं टिकती. जहां तक भव्या का सवाल है तो वह अपने से ज्यादा अपने परिवार की चिंता करती है. वह अपने परिवार के सदस्यों की खुशी के लिए किसी भी हद तक जा सकती है क्योंकि उस की वजह से घर में सब को बहुत तकलीफें हैं. उस की छोटी बहन की शादी भी नहीं हो रही. मातापिता भी तकलीफ में हैं इसलिए वह शादी करने के लिए तैयार हो जाती है. कभीकभी हालात भी इंसान को वह करने पर मजबूर कर देते हैं जो वह नहीं करना चाहता.

क्या आप प्रौपर दिल्ली की रहने वाली हैं या दिल्ली से पहले कहीं और रहती थीं?

नहीं मैं दिल्ली के रहने वाली नहीं हूं. मैं और मेरा पूरा परिवार पिताजी के वजह से दिल्ली आए क्योंकि उन्होंने दिल्ली में अपना बिजनैस सैटल किया. ऐक्चुअली मैं पूरी तरह पहाड़न हूं. जिला हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश में एक छोटा सा गांव है जिस का नाम करनेड़ा है वहां मेरी दादी का घर है. मैं वहीं पर पैदा हुई और पहाड़ों की वादियों में ही मेरा बचपन गुजरा. लेकिन बाद में पिताजी को बिजनैस सैटल करना था इसलिए हम दिल्ली आ गए. लेकिन हमारा पूरा खानदान हिमाचल के करनेड़ा गांव में ही रहता है. इसलिए हम साल में 2-3 बार उधर जाते रहते हैं.

आज के समय में कई सारे ऐसे लोग हैं जो मोटे होने के बावजूद प्रसिद्धि के शिखर पर हूं जैसे एक समय में अदनान सामी बहुत मोटे थे, भारती सिंह कौमेडियन, सरोज खान और गणेश हेगडे़ इन्होंने भी भारी वजन के साथ ही लोगों को डांस सिखाया और कई सारे अवार्ड भी जीते. ऐसे में ‘मेरी भव्या लाइफ’ के जरीए आप समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं?

मैं यही कहना चाहती हूं कि मोटापा माइनस पौइंट नहीं है, इनफैक्ट मोटे या पतले का कोई पौइंट ही नहीं होना चाहिए, इंसान की परख उस के टेलैंट और उस के स्वभाव से होनी चाहिए न कि उस के शारीरिक गठन से. अगर आप का वेट ज्यादा है लेकिन आप पूरी तरह से ऐक्टिव हों, निरोगी हों और अपनी जिंदगी में वह सबकुछ अचीव किया है जो एक पतला इंसान नहीं कर पाया, आप का खानापीना भी उतना ही है जितना कि एक नौर्मल इंसान का होता है.

आप के मोटापे के पीछे कोई बीमारी का कारण है लेकिन आप बावजूद उस के बहुत ज्यादा ऐक्टिव हों, टेलैंटेड हों, लेकिन इस के विपरीत अगर कोई पतला और खूबसूरत इंसान बदतमीज है, अवगुण से भरा हुआ है, टेलैंट नाम की चीज नहीं है साथ ही घमंडी भी है, आप ऐसे इंसान को अपने साथ रखना पसंद करोगे? किसी भी इंसान को उस के मोटापे को ले कर जज नहीं करना चाहिए क्योंकि हरेक की कदकाठी, शारीरिक बनावट प्राकृतिक होती है. कई बार चाह कर भी मोटा आदमी पतला नहीं हो पाता तो क्या हुआ जीना ही छोड़ दे? हम ने अपने शो के जरीए भव्य के किरदार के जरीए यही बात कहने की कोशिश की है. भव्य इंजीनियर है, ईमानदार है, अपने परिवार से प्यार करती है लेकिन क्योंकि वह मोटी है इसलिए तिरस्कार का सामना करना पड़ता है लेकिन वह हार नहीं मानती और अपनी जिंदगी में पूरे आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ती है.

आजकल बौडी शेमिंग बहुत ज्यादा होती है इसलिए लोग पतले होने की दौड़ में शामिल हैं. आप पर्सनली इस बात से कितनी सहमत हैं?

मैं पतला होने के खिलाफ नहीं हूं. मगर इस सोच के खिलाफ हूं कि मोटा इंसान बेकार है, वह कुछ नहीं कर सकता. कई लोग पतला होने के चक्कर में जरूरत से ज्यादा भूखे रहते हैं, गलत डाइट फौलो करते हैं, बहुत ज्यादा ऐक्सरसाइज करते हैं, जिस के लिए वे स्टेराइड का इस्तेमाल करते हैं और इस चक्कर में कई बार जान भी गवां बैठते हैं. मेरे हिसाब से लोगों को अपनी काबिलीयत पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए न कि फिगर पर.

अच्छी सेहत जरूरी है न कि मोटापा या पतलापन. जहां तक बौडी शेमिंग की बात है तो समाज का चुभता हुआ पहलू है कि वह किसी न किसी तरह लोगों को नीचा दिखाने के लिए नएनए तरीके अपनाता रहता है. जैसे बहुत ज्यादा मोटा, बहुत ज्यादा पतला, बहुत ज्यादा काला आदि लोगों को बौडी शेमिंग का शिकार होना ही पड़ता है. इसलिए लोगों की परवाह नहीं करनी चाहिए और अपनी मस्ती में जीना चाहिए.

क्यों नहीं होती Vibes मैच

Vibes : 22  साल की सिमरन को औफिस की वाइब्स अच्छी नहीं लगीं इसलिए उस ने उस जौब को छोड़ कर दूसरी कंपनी जौइन कर ली. वहां भी केवल 6 महीने काम किया. वहां भी वाइब्स मैच नहीं हुईं और उसे छोड़ कर अब घर बैठी है तथा नई जौब की तलाश कर रही है. यहां सिमरन से जब पूछा गया कि वाइब्स हैं क्या? तब वह केवल इतना बता पाई कि पता नहीं लेकिन वाइब्स के मैच न करने पर काम करना मुश्किल होता है.

यह रही सिमरन की बात जो औफिस वाइब्स सही न होने की वजह से बारबार जौब छोड़ रही है, जबकि स्मिता की पिछले 4 साल से एक लड़के से दोस्ती है, जब उस के परिवार वालों ने स्मिता से उस लड़के से शादी करने की बात कही तो उस ने सिरे से मना कर दिया और पेरैंट्स को बताया कि उस लड़के के साथ उस की वाइब्स मैच नहीं कर रही हैं, इसलिए वह उस के साथ शादी कर घर नहीं बसा सकती.

वाइब्स का अर्थ

वाइब्स आखिर यह शब्द है क्या जिसे आज की जैन जी बहुत अधिक प्रयोग करती है? अकसर हमें सुनने को मिलता है कि यार फलां से मेरी वाइब्स मैच नहीं हुईं. फलां औफिस में वाइब्स अच्छी नहीं थीं. फलां से गुड वाइब्स आती हैं. ऐसे वाक्य काफी आम हो गए हैं.

आइए, जानते हैं असल जिंदगी में इस का अर्थ और इस के पीछे की साइकोलौजी जानने की कोशिश करते हैं:

कई बार ऐसा देखा गया है कि कभीकभी कोई इंसान, कोई कमरा, कोई औफिस या कोई माहौल अजीब सा लगता है. बिना किसी ठोस वजह के हम कह देते हैं कि यहां वाइब्स अजीब हैं या फिर इन से मिल कर बहुत अच्छा फील हुआ, पौजिटिव ऐनर्जी मिली. क्या ये फीलिंग्स एक भ्रम हैं या इन का कोई वैज्ञानिक आधार भी है?

क्या कहती है रिसर्च

एक नई रिसर्च में यह बात सामने आई है कि वाइब्स केवल कल्पना नहीं बल्कि हमारे ब्रेन और नर्वस सिस्टम की एक अनदेखी प्रक्रिया का हिस्सा हैं. डा. हेडी मौवार्ड ने ठ्ठद्गह्वह्म्शद्यशद्द4द्यद्ब1द्ग.ष्शद्व की लेख में लिखा है कि हमारा दिमाग हमारे आसपास के लोगों के हावभाव, आवाज के उतारचढ़ाव और माइक्रो ऐक्सप्रैशंस से ढेर सारी अनकही बातें पकड़ लेता है. यह प्रक्रिया इतनी जल्दी होती है कि हमें इस का पता नहीं चल पाता, बस व्यक्ति कह देता है कि यह मुझे सही नहीं लग रहा है या बहुत अच्छा महसूस हो रहा है.

मनोवैज्ञानिक आधार

इस बारे में मनोवैज्ञानिक हेमलता ठाकुर कहती हैं कि वाइब्स का अर्थ किसी के साथ खुद को कनैक्ट कर पाना होता है, अगर ऐसा नहीं हो पाता तो आज की जेनरेशन आसान शब्दों में वाइब्स कह देती है, जो उन के साथ मैच नहीं होती क्योंकि इमोशनली वे उस परिस्थिति से जुड़ नहीं पाते, जिस में उन के विचार आसपास के परिवेश से मेल नहीं खाते.

हेमलता आगे कहती है कि जैसा अकसर सुनने में आता है कि फलां लाइक माइंडेड है, फलां नहीं. असल में उस व्यक्ति के जीवन में कुछ ऐसी घटना पास्ट में हुई होगी, जिस से उस सामने वाले व्यक्ति के साथ वाइब्स मैच नहीं कर रहा है और यह उस का इंटरप्रिटेशन है जो किसी दूसरे का साथ अलग हो सकता है. इसे समझना और व्याख्या करना आसान नहीं. किसी के लिए पांव छू कर रिसपैक्ट दिखानी होती है, जबकि कुछ बिना पांव छूए ही अदब से पेश आने को रिस्पैक्ट मानते हैं. इस में आप का सैंसरी आर्गन किसी बात को कैसे इंटरप्रेट करता है, यह देखना पड़ता है.

अनुभूति मस्तिष्क की

दरअसल, हमारे दिमाग की यह वह अनुभूति है जो अतीत के अनुभवों और वर्तमान की इनपुट्स को मिला कर एक इमोशनल निष्कर्ष निकालती है. यह कई बार अवचेतन मन से आता है, जब हम किसी व्यक्ति या जगह से पहली बार मिलते हैं तो उन की सोच या परिवेश से अनभिज्ञ रहते हैं. ऐसे में सामने वाले का रहनसहन और व्यवहार उस स्थान को परिचित बनाता है. कई बार एक स्थान किसी के लिए सकारात्मक तो किसी के लिए नकारात्मक भी हो सकता है.

लड़कियों में संवेदनशीलता

नीदरलैंड में हुई एक स्टडी में यह सामने आया कि इंसानों के पसीने और आंसुओं में मौजूद रासायनिक संकेत दूसरों के मूड पर असर डाल सकते हैं, जबकि वह इंसान वहां पर होता भी नहीं है. एक ऐक्सपैरिमैंट में डर के समय लिया गया बौडी ओडर सूंघने पर वालंटियर्स की बौडी लैंग्वेज भी डर जैसी हो गई. हमारा मस्तिष्क महज आंखकान तक सीमित नहीं है. हमारी त्वचा, नाक, कान और आंतें भी इमोशनल सिग्नलस को पकड़ती हैं. कुछ लोग इसे आसानी से सम?ा लेते हैं, कुछ नहीं खासकर लड़कियों में यह संवेदनशीलता अधिक होती है. इन्हें हम इंट्यूटिव कह सकते हैं और यही अधिकतर वाइब्स शब्द का प्रयोग करते हैं.

जब हम किसी नैगेटिव माहौल में होते हैं तो खुद को थका हुआ, चिड़चिड़ा या लो महसूस कर सकते हैं. वहीं पौजिटिव माहौल में ऊर्जा, उत्साह और प्रेरणा महसूस होती है, इसे इमोशनल कंटैजियन यानी भावनाओं का फैलाव कहा जा सकता है, जिस में एक हंसता हुआ इंसान पूरी मीटिंग को हलका कर सकता है.

बदल सकती हैं वाइब्स

जब हम अपने आसपास पौजिटिव बातचीत, अच्छी खुशबू, प्रकृति का स्पर्श और अच्छी लाइटिंग करते हैं तो वाइब्स चेंज होने का एहसास होता है. इस के अलावा हमारे विचार, बोलचाल और बौडी लैंग्वेज भी एक ऐनर्जी फील्ड बनाते हैं जो हमारे कार्यक्षेत्र और आसपास के माहौल को बदल सकती है.

मनोवैज्ञानिक हेमलता कहती हैं कि वाइब्स कोई जादुई चीज नहीं. इस में अपनी सोच को बदल कर इसे बदला जा सकता है. आज इस शब्द को नई जैनरेशन बहुत प्रयोग करती है लेकिन इस में जैन जी के अंदर पेशंस और टौलरैंस को बढ़ाने की जरूरत है. जो चीज उन्हें कुछ समय के लिए सही नहीं लग रही है, थोड़े समय के बाद करने पर वह अच्छी लग सकती है. इसे कार्यक्षेत्र के अलावा रिलेशनशिप में भी दिखाना आवश्यक है, जो आज उन्हें करना जरूरी है क्योंकि बौर्डर पर लड़ने वाला अगर आप के बर्थडे पर विश नहीं करता है तो उस की समस्या को समझें और औफिस में जौब करने वाली ने अगर किसी दिन खाना नहीं भी बनाया तो उस की समस्या को समझने की कोशिश करें क्योंकि ये परिस्थितियां आज की जैनरेशन के साथ हैं.

इस प्रकार वाइब्स हमारे मस्तिष्क और शरीर का एक कोलाज है, जिसे ध्यान देने पर व्यक्ति खुद ही इसे अपने लिए हो या दूसरों के लिए बेहतर बना सकता है और यह आज के समय में जैन जी को आगे बढ़ने के लिए समझना बहुत जरूरी है.

मैं एक लड़के से प्यार करती हूं, जाति अलग होने की वजह से घरवाले शादी के लिए तैयार नहीं हो रहे…

Relationship : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक पढ़ें

सवाल

मैं 19 साल की हूं और अपने से 2 साल बड़े लड़के से प्यार करती हूं. हम ने कई बार सैक्स का आनंद भी उठाया है. वह मुझे बहुत प्यार करता है और मुझसे शादी करना चाहता है. उस के घर वालों को भी कोई ऐतराज नहीं है पर मेरे घर वाले तैयार नहीं हो रहेक्योंकि वह अलग जाति का है और मैं अलग जाति की. हमारे रिश्ते के बारे में घर वालों को पता चला तो मेरी पढ़ाई छुड़वा दी और मोबाइल भी ले लिया. फिर भी मैं लड़के से चोरीछिपे बात कर लेती हूं. बौयफ्रैंड मुझसे बिना बात किए नहीं रह सकता. इस की वजह से उस की पढ़ाई भी डिस्टर्ब हो रही है. वह कह रहा है कि अगर घर वाले नहीं मान रहे तो अभी रुको4 साल बाद जब मेरी पढ़ाई पूरी हो जाएगी तो हम शादी कर लेंगे. मगर इस दिल को कैसे तसल्ली दूंजो दिनरात उसी के लिए धड़क रहा हैबताएं मैं क्या करूं?

जवाब 

अभी आप की उम्र काफी छोटी है. यह उम्र पढ़लिख कर कुछ बनने की होती है. मगर आप कच्ची उम्र में ही गलती कर बैठीं. यहां तक कि जिस्मानी संबंध भी बना लिए. आप के पेरैंट्स का सोचना सही है. वे भी यही चाहते होंगे कि पहले आप अपने पैरों पर अच्छी तरह खड़ी हो जाएंकैरियर बना लें तभी शादी की सोचेंगे.

खैरजो होना था सो हो गया. अब सम?ादारी इसी में है कि आप पहले अपने घर वालों को विश्वास में ले कर अपनी पढ़ाई जारी रखें. बौयफ्रैंड को भी अपना कैरियर बनाने दें.

अगर वह 4 साल इंतजार करने को कह रहा है तो उस का सोचना भी सही है. अगर वह आप से सच्ची मुहब्बत करता है तो 4 साल बाद ही सहीआप से जरूर विवाह करेगा. रही बात एकदूसरे की जाति अलगअलग होने कीतो आज के समय में ये सब दकियानूसी बातें हैं. समाज में ऐसी शादियां खूब हो रही हैं.

देरसवेर आप के पेरैंट्स भी मान जाएंगे. अगर न मानें तो आप दोनों कोर्ट मैरिज कर सकते हैं. फिलहाल यही जरूरी है कि आप दोनों ही अपनेअपने कैरियर पर ध्यान दें.

Monsoon Special Food : बच्चों के लिए बनाएं सौफ्ट टाकोज, खाने का मजा हो जाएगा दोगुना

Monsoon Special Food : अगर आप बच्चों के लिए उनके मनपसंद टाकोज बनाना चाहती है तो आज हम आपको सौफ्ट टाकोज का आसान रेसिपी बताएंगे. सौफ्ट टाकोज आसान के साथ हेल्दी रेसिपी है, जिसे आपके बच्चे चाव से खाएंगे.

 हमें चाहिए

आटा 1/4 कप

मैदा 1 कप

कॉर्नफ्लोर 3 छोटी चम्मच

नमक 1 छोटी चम्मच

बेकिंग पाउडर चुटकी भर

चिली फ्लेक्स 1 छोटी चम्मच

ऑरेगैनो 1 छोटी चम्मच और आटा गूँथने के लिए दूध

फूलगोभी 1

तेल 2 छोटी चम्मच

पिसी काली मिर्च 1 छोटी चम्मच

मक्के का आटा 2 छोटी चम्मच

नमक 1 छोटी चम्मच

बटर 2 छोटी चम्मच

नींबू का रस 3 छोटी चम्मच और हरा धनिया.

बनाने का तरीका

बाउल में आटा, मैदा, कॉर्नफ्लोर, नमक, बेकिंग पाउडर, चिली फ्लेक्स, ओरेगैनो डालकर थोड़ा-थोड़ा दूध डालकर परांठे जैसा आटा गूंथकर बीस मिनट के लिए ढक कर अलग रखें. जैसे ही बीस मिनट हो जाये, आटे की बराबर लोई बना लें और बेलकर तवे पर ही दोनों तरफ से अच्छे से सेक लें.

फूलगोभी के छोटे-छोटे फूल अलग-अलग करके गरम पानी में थोड़ा सा नमक डालकर गोभी डालकर साफ करें. माइक्रोवेव प्रूफ बाउल में फूलगोभी और थोड़ा सा पानी डालकर हाई पॉवर में 2 मिनट के लिए गोभी को ब्लांच करें.

फूलगोभी को बाउल में निकालकर तेल, पिसी काली मिर्च, मक्के का आटा और नमक डालकर अच्छे से मिला लें, फूलगोभी को बेकिंग ट्रे में फैला कर 180℃ पर ब्राउन होने तक बेक करें.

टाकोज में स्प्रेड करने के लिए क्रीम-

बंधा हुआ दही 1 कप, पनीर क्रम्बल किया हुआ 1/2 कप,  बारीक कटी हुई पत्तागोभी 2 छोटी चम्मच, हरी शिमला मिर्च बारीक कटी हुई 2 छोटी चम्मच, गाजर 1 किसा हुआ, लहसुन पाउडर 1/2 छोटी चम्मच, पेपरिका मिर्च 1 छोटी चम्मच, नमक 1/2 छोटी चम्मच और बारीक कटा हरा धनिया 2 छोटी चम्मच.

क्रीम की विधि-

दही और पनीर को अच्छे से मिलाकर फेंट कर एक क्रीम तैयार कर लें. ( चाहें तो मिक्सी जार में डालकर फेंट सकते है )  तैयार क्रीम में कटी पत्तागोभी, शिमला मिर्च, किसी गाजर, लहसुन पाउडर, पेपरिका मिर्च, हरा धनिया और नमक डालकर मिला लें.

सर्व करने की विधि-

तैयार टाकोज रोटी को प्लेट में रखकर बटर स्प्रेड कर इसके बाद रोटी के बीच में तैयार क्रीम लगा दें, बेक्ड की हुए गोभी के थोड़े-थोड़े टुकड़े डालकर ऊपर से नींबू का रस और हरा धनिया डालकर रोल कर लें और सर्व करें.

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