Moving Abroad? उस से पहले यह जरूर जान लें, वरना पछताना पड़ेगा

Things to Consider Before Moving Abroad: हमारे देश में लोगों को विदेश जाने का बहुत क्रेज रहता है. सोचते हैं विदेश जा कर बस जाएंगे तो जैसे कोई खजाना हाथ लग जाएगा. किसी की नौकरी विदेश में लगती है तो परिवार वाले, दोस्त, रिश्तेदार सब उम्मीद लगाते हैं कि बस किसी तरह वह उन्हें भी विदेश बुला ले. कई बार ऐसा हो भी जाता है लेकिन उस के बाद क्या?

उस के बाद शुरू होती हैं असली मुश्किलें. जी हां, किसी देश का वीजा लगने से कहीं ज्यादा मुश्किल है उस देश के मुताबिक खुद को ढालना. बहुत कम लोग हैं जो इस पर खरा उतरते हैं. कितने ही इंडियन पश्चिमी और एशियन देशों की जेलों में लंबी सजा काट रहे हैं. कुछ तो जानकारी के अभाव में हुई गलतियों की सजा भुगत रहे हैं.

बच्चों की परवरिश

अमेरिका में 8 साल के एक बच्चे ने अपनी मदर का फोन ले कर अमेजन से 70 हजार लौलीपौप और्डर कर दिए. 4 हजार डौलर का बिल देख कर महिला के होश उड़ गए.

सोचिए, अगर किसी इंडियन बच्चे ने ऐसा किया होता तो पेरैंट्स क्या करते? जाहिर है, गुस्से में बच्चे को पीटने लगते. लेकिन अमेरिकी मौम ने ऐसा कुछ नहीं किया.

पश्चिमी देशों में आप अपने बच्चे पर हाथ नहीं उठा सकते. बच्चों को हाथ से खाना नहीं खिला सकते. माना जाएगा कि आप जबरदस्ती उन के मुंह में खाना ठूंस रहे हैं. वहां इसे ‘फोर्स फीडिंग’ कहा जाता है. बच्चों का कमरा और बिस्तर आप से अलग होना चाहिए. वे आप के साथ नहीं सो सकते. उन के कमरे में उन की उम्र के मुताबिक खिलौने होने जरूरी हैं.

नाबालिग बच्चे के सामने बैठ कर शराब नहीं पी सकते. उस के सामने गाली दे कर बात नहीं कर सकते. उस के सामने एकदूसरे पर चिल्ला नहीं सकते. ऐसा कुछ भी करते हैं तो आप को अयोग्य पेरैंट्स करार दे कर बच्चों को चाइल्ड केयर एजेंसी के हवाले किया जा सकता है.

कुछ साल पहले रानी मुखर्जी की एक फिल्म आई थी, ‘मिसेज चटर्जी वर्सेज नार्वे.’ यह फिल्म सागरिका चक्रवर्ती की असली जिंदगी पर आधारित है जो पति के साथ नार्वे चली गई थी. सरकारी एजेंसियों को भनक पड़ी कि सागरिका अपने बच्चों को हाथ से खाना खिलाती है. उन के घर पर निगरानी होने लगी. निगरानी करने वाली टीम ने नैगेटिव रिपोर्ट दी तो उन के दोनों बच्चों को चाइल्ड केयर एजेंसी को सौंप दिया गया.

सालों की लंबी लड़ाई के बाद सागरिका को अपने बच्चे वापस मिले. नार्वे सरकार ने उसे कस्टडी न दे कर, बच्चों को उस के रिश्तेदारों को ही सौंपा क्योंकि उन की नजर में वह एक अनफिट मां थी. सागरिका ने अपनी औटोबायोग्राफी ‘द जर्नी औफ ए मदर’ में इस पूरे संघर्ष का जिक्र किया है.

बच्ची के साथ क्रूरता

मगर गुजरात का एक और परिवार है, जिस की बच्ची फोस्टर केयर में पल रही है. एक दिन बच्ची के डायपर में खून आया. वे उसे डाक्टर के पास ले कर गए. डाक्टर ने दवाई दी. फौलोअप के लिए दोबारा गए तो बच्ची को उन के साथ घर नहीं आने दिया गया. कहा गया कि पेरैंट्स ने बच्ची के साथ क्रूरता की है. चाइल्ड केयर एजेंसी की टीम क्लीनिक से ही बच्ची को ले कर चली गई. उस समय बच्ची 7 महीने की थी. सालों बीत गए, वह परिवार अब तक बच्ची को वापस पाने के लिए संघर्ष कर रहा है.

ऐसे मामलों में अगर पेरैंट्स खुद को बेकुसूर साबित नहीं कर पाते हैं तो बच्चा 18 साल की उम्र तक फोस्टर केयर में रहता है. मतलब चाइल्ड केयर एजेंसी कुछ लोगों को बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी देती है. ये लोग फोस्टर पेरैंट्स कहलाते हैं. इन्हें सरकार की तरफ से, ऐसे बच्चों को पालने की तनख्वाह मिलती है. 18 साल के बाद बच्चे की मरजी होती है.

मनप्रीत सालों पहले पंजाब से यूरोप जा कर बस गया था. एक दिन गुस्से में पत्नी पर हाथ उठा दिया. पत्नी ने पुलिस को फोन कर दिया. वह अरैस्ट हो गया. पत्नी ने बताया कि उस ने बच्चों के सामने उस पर हाथ उठाया था. इन्वैस्टिगेशन में यह भी पता चला कि वह रोज शराब पीता था और वह भी बच्चों के सामने तो कोर्ट और ज्यादा सख्ती से पेश आया. सालों की सजा काटने के बाद जेल से छूटा तो भी घर नहीं जा सका क्योंकि कोर्ट ने माना कि वह बच्चों के सामने फिर से ऐसा कर सकता है और बच्चों के लिए ऐसा माहौल ठीक नहीं है. वह घर के कम से कम 100 फुट के दायरे में नहीं जा सकता.

रिस्ट्रेनिंग और्डर

इस और्डर को रिस्ट्रेनिंग और्डर कहा जाता है. अगर वह इसे नहीं मानता है तो उसे फिर से जेल भेजा जा सकता है. उसे बच्चों से केवल निगरानी वाली मुलाकात की इजाजत दी गई. मतलब बच्चों के साथ कोई और बालिग हो तभी वह बच्चों से मिल सकता है वह भी घर के बाहर.

कई लोगों को तो कोर्ट जीपीएस ऐंकल ब्रेसलेट पहनने का भी हुक्म देता है ताकि कोर्ट को पता चलता रहे कि कहीं वह रिस्ट्रेनिंग और्डर का उल्लंघन तो नहीं कर रहा है.

शैलजा कुछ साल पहले पति और बच्चों के साथ मुंबई से यूके जा कर बस गई. एक दिन पड़ोसियों ने उस के घर से लड़ाई की और बच्चों के जोरजोर से रोने की आवाजें सुनीं और पुलिस को फोन कर दिया. पुलिस ने उसे और उस के पति को अरैस्ट कर लिया और बच्चों को चाइल्ड केयर एजेंसी ले गई. कोर्ट ने उन्हें अच्छे पेरैंट्स नहीं माना. बच्चों की कस्टडी के लिए दोनों को करीबी रिश्तेदारों के नाम देने के लिए कहा गया. वहां करीबी रिश्तेदारों जैसे दादादादी, नानानानी, चाचाचाची आदि को ईएंड टैंडेर फैमिली कहा जाता है. शैलजा के पेरैंट्स नहीं थे, न कोई और जो उस के बच्चों की जिम्मेदारी ले पाता. लिहाजा उस के पति ने अपने पेरैंट्स के नाम दिए.

यूके से एक टीम छानबीन करने मुंबई दादादादी के घर आई. जांच हुई कि दादादादी के पास कमाई का क्या साधन है, उन का बैंक बैलैंस कितना है, उन का लाइफस्टाइल कैसा है, वे बच्चों को कहां रखेंगे, उन की पढ़ाई कैसे होगी, उन के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान कैसे रखा जाएगा, बच्चों के पोषण के लिए वे उन्हें क्या खिलाएंगे, बच्चों को आसपास का कैसा माहौल मिलेगा, बच्चे किस के साथ खेलेंगे. जी हां, आप को जान कर शायद हैरानी होगी कि वे बच्चों के कमरे का साइज तक चैक करते हैं. बहुत गहन छानबीन के बाद उन्होंने दादादादी को बच्चों की परवरिश के लिए फिट नहीं पाया. अब बच्चे फोस्टर केयर में पल रहे हैं.

आसान नहीं देखभाल

प्राइवेट डिटैक्टिव राहुल राय गुप्ता बताते हैं, ‘‘वैस्टर्न कंट्रीज में बच्चों को ले कर कानून बेहद सख्त है. बच्चों को कार में ले कर जा रहे हैं तो गोद में नहीं बैठा सकते. उन के लिए अलग से सीट इंस्टौल करानी पड़ती है और वह भी उन की उम्र के मुताबिक अलगअलग होती है. अगर स्कूल में बच्चे के सिर में जूएं मिल जाएं, कपड़े अच्छी तरह से धुले हुए न हों या प्रैस न किए हुए हों तो टीचर के माइंड में यह मैसेज जाता है कि पेरैंट्स बच्चों का खयाल नहीं रखते. किसी बौडी पार्ट पर हलकीफुलकी चोट दिखाई दे तो इन्वैस्टिगेशन होती है.

अगर बच्चा कह दे कि उस के मम्मी या पापा या बड़े भाईबहन ने उसे धक्का दिया था या मारा था या फिर कुछ न भी कहे तो भी स्कूल चाइल्ड केयर एजेंसी को खबर कर देता है. पेरैंट्स की इन्वैस्टिगेशन की जाती है. चाइल्ड केयर एजेंसी वाले बच्चे के घर जाते हैं. पूरा सैटअप देखते हैं, बच्चे को कैसे सुलाया जाता है, क्या और कैसे खिलाया जाता है. चूंकि हमारे देश का सिस्टम बिलकुल अलग है. पेरैंट्स को पता ही नहीं होता कि टीम आए तो उस के सामने बच्चे के साथ कैसे पेश आना है. लिहाजा ज्यादातर पेरैंट्स उस इन्वैस्टिगेशन में फेल हो जाते हैं.

‘‘इन देशों में 18 साल के होने पर बच्चों की लाइफ पेरैंट्स का अधिकार पूरी तरह से खत्म हो जाता है. पेरैंट्स उन को किसी भी चीज के लिए फोर्स नहीं कर सकते. कई बच्चे बालिग होते ही पेरैंट्स से अलग रहने लगते हैं. आप बालिग बच्चों के रहनसहन, पहननेघूमने पर रोकटोक नहीं कर सकते. उन के दोस्तों पर सवाल नहीं उठा सकते. शादी के लिए उन के साथ जबरदस्ती नहीं कर सकते. टोकाटाकी करेंगे तो भी वे पुलिस को फोन कर सकते हैं. इसलिए विदेश जाने से पहले पेरैंट्स को खुद से सवाल करना चाहिए कि क्या वे इस के लिए तैयार हैं.’’

कमर कस लें

नताशा के पति की कनाडा में नौकरी लगी तो पूरी फैमिली कनाडा जा कर बस गई. वहां सारा काम खुद करना पड़ता था. नताशा उम्मीद करती थी कि पति उस का हाथ बंटाए लेकिन पति को लगता था कि वह जौब नहीं करती तो घर का काम वही करे. एक दिन लड़ाई के दौरान नताशा के पति ने उसे धक्का दे दिया. नताशा ने पुलिस को काल कर के कहा कि उस का पति उसे मार रहा है. पुलिस तुरंत पहुंच गई और उस के पति को अरैस्ट कर लिया.

विदेश जा कर बसने से पहले समझ लें कि खाना बनाना, बरतन धोना, घर साफ करना, कपड़े धोना, प्रैस करना, फ्रिज साफ करना, बाथरूम, टौयलेट साफ करना, पौधों की देखभाल करना, ए टू जैड काम खुद करने होंगे.

सफाई वाला कूड़ा घर से ले कर नहीं जाएगा. वहां हर घर में सूखे, गीले, प्लास्टिक के कचरे के अलगअलग बड़ेबड़े कूड़ेदान होते हैं. प्लास्टिक कचरे वाली डस्टबिन को रिसाइक्लिंग बौक्स या रिसाइक्लिंग बिन कहा जाता है. जिस दिन कूड़े का पिक अप हो यानी सरकारी गाड़ी आनी हो, उस दिन औफिस जाने से पहले वे कूड़ेदान बाहर रखने होंगे. वह भी साफसुथरी हालत में. कूड़ेदान गंदे होंगे या निर्धारित डब्बों में कूड़ा नहीं रखा होगा तो गाड़ी कूड़ा नहीं ले कर जाएगी. मोटा फाइन भी लग सकता है.

ऐसे देश जा रहे हैं, जहां बर्फ पड़ती है तो जान लें कि अपने घर के आगे की बर्फ खुद साफ करनी पड़ेगी. कार पर रोजाना बर्फ की मोटी परत जम जाती है, वह भी रोज साफ करनी होगी वरना जुरमाना लग जाएगा.

सरकारी गाडि़यां केवल गलियों में से बर्फ साफ करती हैं. नमक भी बिछाया जाता है. बर्फ गिरने के दिनों में आप अपनी गाड़ी गली में पार्क नहीं कर सकते वरना मोटा जुरमाना देना पड़ेगा. बर्फ हटाने और नमक बिछाने की गाडि़यों को गली के अंदर आने के लिए पूरी जगह चाहिए होती है. बुजुर्गों या विकलांग व्यक्तियों के लिए घर की बर्फ हटाने के लिए सरकारी सहायता मुफ्त मिलती है. उस का लाभ लिया जा सकता है.

पालतू जानवरों का शौक है तो

घर में डौग वगैरह पालने के लिए अलग नियम हैं. ज्यादातर देशों में डौग पार्क बने होते हैं. वहां उन्हें खुला छोड़ सकते हैं. बाकी किसी भी पार्क के बाहर लिखा होता है कि पालतू जानवरों को अंदर जाने की परमिशन है या नहीं. लेकिन वहां भी उन्हें बिना जंजीर के नहीं रख सकते. नियमों को न मानने पर मोटा जुरमाना लगेगा.

डौग रास्ते या पार्क में टौयलेट कर दें तो उसे उठाना पड़ेगा. उस के लिए वहां के लोग साथ में पौलीबैग ले कर चलते हैं. जैसे ही पालतू जानवर टौयलेट करता है वे तुरंत उसे उस बैग में उठा लेते हैं. ऐसा न करने पर भी जुरमाना लगता है.

चाहे डौग पालें या बिल्ली, कबूतर, मुरगा या मुरगी, उस का लाइसैंस लेना जरूरी है. पालतू जानवर को टैग लगाने की सिफारिश भी की जाती है. मतलब, उस के गले में उस का नाम, उम्र, मालिक का नाम, पता, लाइसैंस नंबर लिख कर लटकाना. इस से गुम होने की स्थिति में डिपार्टमैंट को उसे वापस मालिक से मिलाने में आसानी होती है. कुछ देशों में एक परिवार 3 से ज्यादा डौग नहीं रख सकता. पालतू जानवरों की बुनियादी जरूरतें जैसे भोजन, पानी, रहने की जगह, व्यायाम करने या खुले में घूमने के लिए अलग जगह, साफसफाई, सुरक्षा प्रदान करना उस के मालिक की जिम्मेदारी है. इस में कमी पाई गई तो सजा हो सकती है.

  कुछ जरूरी टिप्स पर ध्यान दें

– ड्राइव करते हैं तो गाड़ी तय स्पीड लिमिट में ही चलानी होगी. पैदल चलने वालों के लिए

अलग ट्रैफिक लाइट होती है. बिना लाइट के भी कोई सड़क पार कर रहा हो तो भी आप को ही ध्यान देना पड़ेगा. आप की नजर चूकी और ऐक्सिडैंट हो गया तो कोर्ट में यह सफाई नहीं चलेगी कि वह अचानक आप की गाड़ी के आगे आ गया. गलती चाहे पैदल चलने वाले की हो, सजा आप को मिलेगी कि गाड़ी क्यों नहीं रोकी. वहां ड्राइविंग लाइसैंस देते समय ऐसी ट्रेनिंग दी जाती है.

– घर के पिछले हिस्से (वहां इसे बैकयार्ड कहा जाता है) में लौन की बेकार घास को बढ़ने से पहले ही काटना जरूरी है. कई जगह नियम है कि ये 6 इंच से बड़ी नहीं होनी चाहिए. लौन में टूटाफूटा सामान स्टोर नहीं कर सकते. इन नियमों को न मानने पर फाइन लगता है.

– वहां छोटे से छोटे जुर्म को भी काफी सीरियसली लिया जाता है. चाहे जानबूझ कर हुआ हो या अनजाने में. लंबी सजा भी मिलती है. नियम न मानने की आदत है तो इस आदत को बदल लें या फिर विदेश बसने का खयाल.

– अमेरिका में गन कल्चर काफी बढ़ रहा है. किसी से बहस करने से बचें. कोई गलत करे तो उस से उलझने के बजाय पुलिस को खबर कर दें.

– दुकान या स्टोर से शराब खरीदने का भी समय तय होता है. किसीकिसी दुकानदार के पास सुबह शराब बेचने का परमिट नहीं होता. इसलिए आप उसे इस के लिए फोर्स नहीं कर सकते.

– बार या रैस्टोरैंट में तय लिमिट से ज्यादा शराब सर्व नहीं की जाती. अगर बार या रेस्टोरेंट में आने से पहले कहीं पी है तो तय लिमिट से कम शराब ही सर्व की जाएगी. वेटर को पूरी ट्रेनिंग मिली होती है, यह पहचानने की कि व्यक्ति ने कितनी शराब पी हुई है. थोड़ा भी ऊंचा बोलते या वेटर से बहस करते हैं तो जेल की हवा खानी पड़ेगी.

– कई देशों में हर घर में धुएं के अलार्म हमेशा चालू स्थिति में होने जरूरी हैं. बैटरियों को साल में एक बार बदलना जरूरी होता है. अलार्म में कोई खराबी हो तो तुरंत ठीक करा लें. वरना जुरमाना लगेगा.

– किसी की हैल्प करने से पहले सोच लें. अमेरिका में रहने वाला करीब 60 साल का एक इंडियन वहां के एक स्टोर में गया. उस ने देखा कि किसी महिला का बच्चा गिर गया है. बच्चे को उठाने के लिए नीचे ?ाका तो महिला ने शोर मचा दिया कि वह उस के बच्चे को किडनैप कर रहा है. पुलिस आई और उसे अरैस्ट कर के ले गई. सीसीटीवी फुटेज में उस के खिलाफ कुछ नहीं मिला तब वह जेल से छूटा.

– पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करते समय ध्यान रखें कि बस, ट्रेन, ट्राम बिलकुल टाइम पर चलती हैं.

– लाइन में लगना ही पड़ेगा. चाहे कितनी भी जल्दी क्यों न हो. धक्कामुक्की करेंगे तो जेल जा सकते हैं. कई जगह 2 लोग हों तो भी लाइन में खड़े होते हैं.

– वहां आम लोगों के लिए मनोरंजन केंद्र होते हैं. उन में कुछ न कुछ ऐक्टिविटीज और फैस्टिवल चलते रहते हैं. क्या फ्री है, किस ऐक्टिविटी पर फीस लगती है, इस के बारे में पहले से पता कर लें.

How To Gain Weight: बीमारी के बाद ऐसे बढ़ाएं वजन

How To Gain Weight: शरीर का वजन बढ़ना अपने साथ जहां मोटापा और शर्मिंदगी लाता है, वहीं वजन का कम होना भी कोई अच्छी बात नहीं. फिर वजन किसी बीमारी की वजह से कम हुआ हो या फिर आप की अपनी लापरवाही से, या फिर आप अपनी हैल्थ का ध्यान नहीं रखते, लेकिन अगर वजन कम है तो उसे बढ़ाना चाहिए.

कई लोग अपना वजन बढ़ाने के लिए कुछ भी खानेपीने लगते हैं और सोचते हैं कि अब तो मोटा हो ही जाऊंगा/जाऊंगी. लेकिन यह सही तरीका नहीं है वजन बढ़ाने के लिए.

डाक्टर रिया अग्रवाल यहां कुछ ऐसे ही तरीके बता रही हैं, जिन से आप सही तरीके से अपना वजन बढ़ा सकते हैं.

भोजन में कैलोरी की मात्रा को बढ़ा दें

जिस तरह वजन कम करने के लिए कैलोरी कम लेना जरूरी होता है, उसी तरह वजन बढ़ाने के लिए अपने खाने में कैलोरी की मात्रा को बढ़ा देना सही रहता है. कैलोरी का मुख्य कार्य शरीर में ऊर्जा और ऊतकों का निर्माण करना है, जिस से शरीर को आवश्यक ईंधन भी मिलता है. लेकिन कैलोरी लेने का मतलब यह नहीं है कि बस आप मीठा या कोई भी जंक फूड खाने लग जाएं. बल्कि जो भी खाएं हैल्दी और घर का बना शुद्ध खाना.

मैक्रोन्यूट्रिऐंट्स भी है जरूरी

मैक्रोन्यूट्रिऐंट्स वजन बढ़ाने के लिए बहुत जरूरी होता है. इस में कार्ब्स भी जरूरी है जोकि ऐनर्जी देने का काम भी करता है. हमें हर रोज अपने कामों को करने के लिए 45-65% कार्ब्स की जरूरत होती है.

इस के साथ ही प्रोटीन का इंटेक बढ़ाना भी सही रहेगा. मांसपेशियों के निर्माण और रिपेयर के लिए प्रोटीन की आवश्यकता होती है. यही नहीं बल्कि अपनी ऐनर्जी को सेव करने के लिए और हारमोंस की ग्रोथ के लिए वसा भी बहुत जरूरी है.

विटामिन डी भी है जरूरी

विटामिन डी वेट कंट्रोल के लिए अच्छा माना जाता है और यह शरीर को स्वस्थ रखने का काम भी करता है.

यदि व्यक्ति सही मात्रा में विटामिन का सेवन करता है तो शरीर कैल्सियम को अवशोषित करने में सक्षम होता है. इस से हड्डियों का वजन बढ़ता है, खासकर कमजोर लोगों के लिए यह काफी अच्छा रहता है. इसलिए अपने डाक्टर से पूछ कर और टेस्ट करवाने के बाद ही विटामिन डी लें.

लाइफस्टाइल सही करें

खाना खाने का समय निश्चित करें और उसी हिसाब से समय पर रोज खाना खाएं. खाने को जल्दबाजी में न खाएं बल्कि टेस्टी खाना बनाएं और स्वाद लेते हुए आराम से ऐंजौय करते हुए खाएं, तभी खाना शरीर को लगेगा. रात के उल्लू न बनें और रात को जल्दी सोना और सुबह जल्दी उठने की अपनी साइकिल बना लें. हां, 7-8 घंटे की नींद जरूर लें. नियमित एक्सरसाइज करें.

अच्छी नींद लें

हर रोज 7-8 घंटे की भरपूर नींद लें ताकि शरीर फिट रहे. इस से मानसिक थकावट भी दूर होती है.

खाने में क्या शामिल करें जिस से वजन बढ़े

*पीनट बटर : वजन बढ़ाने के लिए पीनट बटर सब से अच्छी चीजों में से एक है. 2 बड़े चम्मच पीनट बटर रोज खाएं. इस में कैलोरी, प्रोटीन, फैट और कार्बोहाइड्रेट होते हैं. मूंगफली अमीनो एसिड होते हैं जो इम्यून सिस्टम को मजबूत करते हैं और वजन भी बढ़ाते हैं. आप इसे कैसे भी खा सकते हैं, मसलन ब्रैड पर लगा कर या फिर रोटी के साथ. इस में हाई कैलोरी तो होती ही है साथ ही कार्बोहाइड्रेट्स भी भरपूर मात्रा में होते हैं.

*अनार :रोजाना अनार का जूस पीने से वजन तेजी से बढ़ता है.

*चना और खजूर : पतले लोग अगर चने के साथ खजूर खाएं तो वे बहुत जल्दी वेट गेन करते हैं.

*अखरोट  और शहद : किशमिश को दूध मिला कर खाने से भी वजन बढ़ता है. इस के अलावा अगर अखरोट में शहद मिला कर खाया जाए तो पतले लोग जल्दी मोटे होते हैं.

*केला खाएं : आप मोटे होने की दवा के रूप में केले खा सकते हैं. दिन में कम से कम 3-4 केले खाएं. केला पौष्टिक एवं पोषक तत्त्वों से भरपूर होता है. इसे दूध या दही के साथ खा सकते हैं. यह वजन में वृद्धि करने में मदद करता है. बनाना शेक पीना भी बहुत अच्छा रहता  इस से वेट बढ़ता है.

*बींस से वजन बढ़ता है : बींस को मोटे होने के लिए दवा के रूप  में ले सकते हैं. सब्जी में बींस का प्रयोग अधिक करें. यह पौष्टिक होने के साथसाथ वजन बढ़ाने में भी मदद करता है.

*सोयाबीन का प्रयोग : नाश्ते में सोयाबीन एवं अंकुरित अनाज का सेवन करें. इस में भरपूर मात्रा में प्रोटीन होता है. शरीर को मजबूत बनाने और वजन में वृद्धि के लिए इसे मोटा होने की दवा के रूप में उपयोग किया जाता है. How To Gain Weight

Raksha Bandhan Gift Ideas: भाईबहन के लिए गिफ्ट चाहिए, ये रहे बजट फ्रैंडली आइडियाज

Raksha Bandhan Gift Ideas: रक्षाबंधन का त्यौहार भाई-बहन का खास त्यौहार है, इस दिन को मनाने के लिए बहने पूरे साल इंतजार करती है, भाई भी अपनी कलाई पर राखी बंधवाकर ख़ुशी का अनुभव करता है. इसके बाद होती है गिफ्ट का आदान-प्रदान, जो भाई-बहन एक दूसरे को देते है. यहां कुछ गिफ्टिंग आईडियाज लाये हैं, जो बजट फ्रेंडली होने के साथ-साथ आपके गिफ्टिंग सर्च  को आसान बनाने वाली है.

भाई के लिए गिफ्ट आईडियाज

  • रिस्टवाच, एक सुंदर आप्शन है, रिस्टवाच बजट के अनुसार भाई को दिया जा सकता है, जो दिखने में सुंदर और एलीगेंट हो.
  • डिज़ाइनर कप मग पर भाई का नाम लिखवाकर राखी के साथ दिया जा सकता है.
  • फोटो फ्रेम में भाई बहन के बचपन के कई तस्वीरों के कोलाज बनाकर लगाने से एक यादगार और अलग गिफ्ट हो सकता है.
  • प्रेरणादायक बुक्स भी एक अच्छा आप्शन भाई के लिए होता है.
  • कस्टमाइज्ड वालेट जिसपर भाई का नाम लिखवाकर गिफ्ट किया जा सकता है.
  • आजकल के लड़के हेयर स्टाइल करते है, इसलिए हेयर ड्रायर भी उनके लिए अच्छा साबित होगा.
  • संगीत के प्रेमी भाई के लिए इयर बड्स काफी अच्छा गिफ्ट है, इसे ऑनलाइन ख़रीदा जा सकता है.
  • फिटनेस लवर भाई को ग्रूमिंग किट्स, जिम के सब्सक्रिप्शन, गिफ्ट वाउचर, डेकोरेटिव पीस, सुंदर टीशर्ट आदि है.
  • इसके अलावा कई तरह के परफ्यूम या बौडी स्प्रे भी एक अच्छा आप्शन गिफ्ट के लिए है.

पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए इकोफ्रेंडली राखियाँ गार्गी डिजाईनर्स ने निकाले है, ये राखियाँ प्लास्टिक मुक्त, और रीसाइकल्ड डेनिम राखियाँ है.

बहन के लिए गिफ्ट आईडियाज

  • बहन के लिए को ट्रेंडी ज्वेलरी रियल या आर्टिफिसियल, जो हर बजट में उपलब्ध है, अपने पॉकेट के अनुसार दिया जा सकता है, एलीगेंट चैन के साथ लॉकेट, ब्रेसलेट्स, इयररिंग्स आदि स्टाइलिश और ट्रेंडी होने के साथ-साथ आकर्षक भी होते है.
  • वैसे तो घडी पहनने का ट्रेंड ख़त्म हो चुका है, लेकिन स्टाइलिश, ट्रेंडी घडियां जो दिखने में ब्रेसलेट्स की तरह सुंदर होती है, गिफ्ट के रूप में दिया जा सकता है.
  • स्किनकेयर और ब्यूटी प्रोडक्ट भी महिलाओं की पसंद का होता है, इसमें उन्हें पार्लर या जिम के सबस्क्रिप्शन, गिफ्ट वाउचर एक अच्छा आप्शन है. रक्षा बंधन पर मिलाप कास्मेटिक का ट्रू ब्लैक मस्कारा गिफ्ट किया जा सकता है.
  • बुक्स पढने की शौकीन महिलाओं को बुक्स या किसी महिला मैगज़ीन के सबस्क्रिप्शन भी दिए जा सकते है.
  • प्लांट के शौकीन बहनों के लिए कलरफुल प्लांट्स भी एक अच्छा गिफ्ट आप्शन है. इसके अलावा हेड फ़ोन, विंड बेल, डेकोरेटिव पीस, परफ्यूम आदि भी एक अच्छा गिफ्ट है.
  • फैशन एक्सेसरीज महिलाओं की खास पसंदीदा है, जिसे वे अपने अनुसार प्रयोग कर सकती है. फैशन और एक्सेसरीज डिज़ाइनर केमेलिया दलाल कहती है कुछ पर्सनलाइज्ड गिफ्ट जो खास बहन की मनपसंद हो, उसे भी दे सकते है, जिसमे हैण्ड बैग्स या बटुआ, डिज़ाइनर शूज आदि अच्छा आप्शन है, जो हैण्डमेड होने के साथ-साथ कलरफुल बीड्स, जिप्सी एम्ब्रायडरी, बोहो स्टाइल के होते है, जो यूनिक होते है और किसी भी पार्टी या अवसर पर एक अलग लुक देती है.

Social Story in Hindi: अदला-बदली: क्यूं परेशान थी अलका

Social Story in Hindi: राजीव और अलका के स्वभाव में जमीन- आसमान का फर्क था. जहां अलका महत्त्वाकांक्षी और सफाईपसंद थी. मेरे पति राजीव के अच्छे स्वभाव की परिचित और रिश्तेदार सभी खूब तारीफ करते हैं. उन सब का कहना है कि राजीव बड़ी से बड़ी समस्या के सामने भी उलझन, चिढ़, गुस्से और परेशानी का शिकार नहीं बनते. उन की समझदारी और सहनशीलता के सब कायल हैं.

राजीव के स्वभाव की यह खूबी मेरा तो बहुत खून जलाती है. मैं अपनी विवाहित जिंदगी के 8 साल के अनुभवों के आधार पर उन्हें संवेदनशील, समझदार और परिपक्व कतई नहीं मानती.

शादी के 3 दिन बाद का एक किस्सा  है. हनीमून मनाने के लिए हम टैक्सी से स्टेशन पहुंचे. हमारे 2 सूटकेस कुली ने उठाए और 5 मिनट में प्लेटफार्म तक पहुंचा कर जब मजदूरी के पूरे 100 रुपए मांगे तो नईनवेली दुलहन होने के बावजूद मैं उस कुली से भिड़ गई.

मेरे शहंशाह पति ने कुछ मिनट तो हमें झगड़ने दिया फिर बड़ी दरियादिली से 100 का नोट उसे पकड़ाते हुए मुझे समझाया, ‘‘यार, अलका, केवल 100 रुपए के लिए अपना मूड खराब न करो. पैसों को हाथ के मैल जितना महत्त्व दोगी तो सुखी रहोगी. ’’

‘‘किसी चालाक आदमी के हाथों लुटने में क्या समझदारी है?’’ मैं ने चिढ़ कर पूछा था.

‘‘उसे चालाक न समझ कर गरीबी से मजबूर एक इनसान समझोगी तो तुम्हारे मन का गुस्सा फौरन उड़नछू हो जाएगा.’’

गाड़ी आ जाने के कारण मैं उस चर्चा को आगे नहीं बढ़ा पाई थी, पर गाड़ी में बैठने के बाद मैं ने उन्हें उस भिखारी का किस्सा जरूर सुना दिया जो कभी बहुत अमीर होता था.

एक स्मार्ट, स्वस्थ भिखारी से प्रभावित हो कर किसी सेठानी ने उसे अच्छा भोजन कराया, नए कपडे़ दिए और अंत में 100 का नोट पकड़ाते हुए बोली, ‘‘तुम शक्लसूरत और व्यवहार से तो अच्छे खानदान के लगते हो, फिर यह भीख मांगने की नौबत कैसे आ गई?’’

‘‘मेमसाहब, जैसे आप ने मुझ पर बिना बात इतना खर्चा किया है, वैसी ही मूर्खता वर्षों तक कर के मैं अमीर से भिखारी बन गया हूं.’’

भिखारी ने उस सेठानी का मजाक सा उड़ाया और 100 का नोट ले कर चलता बना था.

इस किस्से को सुना कर मैं ने उन पर व्यंग्य किया था, पर उन्हें समझाने का मेरा प्रयास पूरी तरह से बेकार गया.

‘‘मेरे पास उड़ाने के लिए दौलत है ही कहां?’’ राजीव बोले, ‘‘मैं तो कहता हूं कि तुम भी पैसों का मोह छोड़ो और जिंदगी का रस पीने की कला सीखो.’’

उसी दिन मुझे एहसास हो गया था कि इस इनसान के साथ जिंदगी गुजारना कभीकभी जी का जंजाल जरूर बना करेगा.

मेरा वह डर सही निकला. कितनी भी बड़ी बात हो जाए, कैसा भी नुकसान हो जाए, उन्हें चिंता और परेशानी छूते तक नहीं. आज की तेजतर्रार दुनिया में लोग उन्हें भोला और सरल इनसान बताते हैं पर मैं उन्हें अव्यावहारिक और असफल इनसान मानती हूं.

‘‘अरे, दुनिया की चालाकियों को समझो. अपने और बच्चों के भविष्य की फिक्र करना शुरू करो. आप की अक्ल काम नहीं करती तो मेरी सलाह पर चलने लगो. अगर यों ही ढीलेढाले इनसान बन कर जीते रहे तो इज्जत, दौलत, शोहरत जैसी बातें हमारे लिए सपना बन कर रह जाएंगी,’’ ऐसी सलाह दे कर मैं हजारों बार अपना गला बैठा चुकी हूं पर राजीव के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती.

बेटा मोहित अब 7 साल का हो गया है और बेटी नेहा 4 साल की होने वाली है अपने ढीलेढाले पिता की छत्रछाया में ये दोनों भी बिगड़ने लगे हैं. मैं रातदिन चिल्लाती हूं पर मेरी बात न बच्चों के पापा सुनते हैं, न ही बच्चे.

राजीव की शह के कारण घर के खाने को देख कर दोनों बच्चे नाकभौं चढ़ाते हैं क्योंकि उन की चिप्स, चाकलेट और चाऊमीन जैसी बेकार चीजों को खाने की इच्छा पूरी करने के लिए उन के पापा सदा तैयार जो रहते हैं.

‘‘यार, कुछ नहीं होगा उन की सेहत को. दुनिया भर के बच्चे ऐसी ही चीजें खा कर खुश होते हैं. बच्चे मनमसोस कर जिएं, यह ठीक नहीं होगा उन के विकास के लिए,’’ उन की ऐसी दलीलें मेरे तनबदन में आग लगा देती हैं.

‘‘इन चीजों में विटामिन, मिनरल नहीं होते. बच्चे इन्हें खा कर बीमार पड़ जाएंगे. जिंदगी भर कमजोर रहेंगे.’’

‘‘देखो, जीवन देना और उसे चलाना प्रकृति की जिम्मेदारी है. तुम नाहक चिंता मत करो,’’ उन की इस तरह की दलीलें सुन कर मैं खुद पर झुंझला पड़ती.

राजीव को जिंदगी में ऊंचा उठ कर कुछ बनने, कुछ कर दिखाने की चाह बिलकुल नहीं है. अपनी प्राइवेट कंपनी में प्रमोशन के लिए वह जरा भी हाथपैर नहीं मारते.

‘‘बौस को खाने पर बुलाओ, उसे दीवाली पर महंगा उपहार दो, उस की चमचागीरी करो,’’ मेरे यों समझाने का इन पर कोई असर नहीं होता.

समझाने के एक्सपर्ट मेरे पतिदेव उलटा मुझे समझाने लगते हैं, ‘‘मन का संतोष और घर में हंसीखुशी का प्यार भरा माहौल सब से बड़ी पूंजी है. जो मेरे हिस्से में है, वह मुझ से कोई छीन नहीं सकता और लालच मैं करता नहीं.’’

‘‘लेकिन इनसान को तरक्की करने के लिए हाथपैर तो मारते रहना चाहिए.’’

‘‘अरे, इनसान के हाथपैर मारने से कहीं कुछ हासिल होता है. मेरा मानना है कि वक्त से पहले और पुरुषार्थ से ज्यादा कभी किसी को कुछ नहीं मिलता.’’

उन की इस तरह की दलीलों के आगे मेरी एक नहीं चलती. उन की ऐसी सोच के कारण मुझे नहीं लगता कि अपने घर में सुखसुविधा की सारी चीजें देखने का मेरा सपना कभी पूरा होगा जबकि घरगृहस्थी की जिम्मेदारियों को मैं बड़ी गंभीरता से लेती हूं. हर चीज अपनी जगह रखी हो, साफसफाई पूरी हो, कपडे़ सब साफ और प्रेस किए हों, सब लोग साफसुथरे व स्मार्ट नजर आएं जैसी बातों का मुझे बहुत खयाल रहता है. मैं घर आए मेहमान को नुक्स निकालने या हंसने का कोई मौका नहीं देना चाहती हूं.

अपनी लापरवाही व गलत आदतों के कारण बच्चे व राजीव मुझ से काफी डांट खाते हैं. राजीव की गलत प्रतिक्रिया के कारण मेरा बच्चों को कस कर रखना कमजोर पड़ता जा रहा है.

‘‘यार, क्यों रातदिन साफसफाई का रोना रोती हमारे पीछे पड़ी रहती हो? अरे, घर ‘रिलैक्स’ करने की जगह है. दूसरों की आंखों में सम्मान पाने के चक्कर में हमारा बैंड मत बजाओ, प्लीज.’’

बड़ीबड़ी लच्छेदार बातें कर के राजीव दुनिया वालों से कितनी भी वाहवाही लूट लें, पर मैं उन की डायलागबाजी से बेहद तंग आ चुकी हूं.

‘‘अलका, तुम तेरामेरा बहुत करती हो, जरा सोचो कि हम इस दुनिया में क्या लाए थे और क्या ले जाएंगे? मैं तो कहता हूं कि लोगों से प्यार का संबंध नुकसान उठा कर भी बनाओ. अपने अहं को छोड़ कर जीवनधारा में हंसीखुशी बहना सीखो,’’ राजीव के मुंह से ऐसे संवाद सुनने में बहुत अच्छे लगते हैं, पर व्यावहारिक जिंदगी में इन के सहारे चलना नामुमकिन है.

बहुत तंग और दुखी हो कर कभीकभी मैं सोचती हूं कि भाड़ में जाएं ये तीनों और इन की गलत आदतें. मैं भी अपना खून जलाना बंद कर लापरवाही से जिऊंगी, लेकिन मैं अपनी आदत से मजबूर हूं. देख कर मरी मक्खी निगलना मुझ से कभी नहीं हो सकता. मैं शोर मचातेमचाते एक दिन मर जाऊंगी पर मेरे साहब आखिरी दिन तक मुझे समझाते रहेंगे, पर बदलेंगे रत्ती भर नहीं.

जीवन के अपने सिखाने के ढंग हैं. घटनाएं घटती हैं, परिस्थितियां बदलती हैं और इनसान की आंखों पर पडे़ परदे उठ जाते हैं. हमारी समझ से विकास का शायद यही मुख्य तरीका है.

कुछ दिन पहले मोहित को बुखार हुआ तो उसे दवा दिलाई, पर फायदा नहीं हुआ. अगले दिन उसे उलटियां होने लगीं तो हम उसे चाइल्ड स्पेशलिस्ट के पास ले गए.

‘‘इसे मैनिन्जाइटिस यानी दिमागी बुखार हुआ है. फौरन अच्छे अस्पताल में भरती कराना बेहद जरूरी है,’’ डाक्टर की चेतावनी सुन कर हम दोनों एकदम से घबरा उठे थे.

एक बडे़ अस्पताल के आई.सी.यू. में मोहित को भरती करा दिया. फौरन इलाज शुरू हो जाने के बावजूद उस की हालत बिगड़ती गई. उस पर गहरी बेहोशी छा गई और बुखार भी तेज हो गया.

‘‘आप के बेटे की जान को खतरा है. अभी हम कुछ नहीं कह सकते कि क्या होगा,’’ डाक्टर के इन शब्दों को सुन कर राजीव एकदम से टूट गए.

मैं ने अपने पति को पहली बार सुबकियां ले कर रोते देखा. चेहरा बुरी तरह मुरझा गया और आत्मविश्वास पूरी तरह खो गया.

‘‘मोहित को कुछ नहीं होना चाहिए अलका. उसे किसी भी तरह से बचा लो,’’ यही बात दोहराते हुए वह बारबार आंसू बहाने लगते.

मेरे लिए उन का हौसला बनाए रखना बहुत कठिन हो गया. मोहित की हालत में जब 48 घंटे बाद भी कोई सुधार नहीं हुआ तो राजीव बातबेबात पर अस्पताल के कर्मचारियों, नर्सों व डाक्टरों से झगड़ने लगे.

‘‘हमारे बेटे की ठीक से देखभाल नहीं कर रहे हैं ये सब,’’ राजीव का पारा थोड़ीथोड़ी देर बाद चढ़ जाता, ‘‘सब बेफिक्री से चाय पीते, गप्पें मारते यों बैठे हैं मानो मेले में आएं हों. एकाध पिटेगा मेरे हाथ से, तो ही इन्हें अक्ल आएगी.’’

राजीव के गुस्से को नियंत्रण में रखने के लिए मुझे उन्हें बारबार समझाना पड़ता.

जब वह उदासी, निराशा और दुख के कुएं में डूबने लगते तो भी उन का मनोबल ऊंचा रखने के लिए मैं उन्हें लेक्चर देती. मैं भी बहुत परेशान व चिंतित थी पर उन के सामने मुझे हिम्मत दिखानी पड़ती.

एक रात अस्पताल की बेंच पर बैठे हुए मुझे अचानक एहसास हुआ कि मोहित की बीमारी में हम दोनों ने भूमिकाएं अदलबदल दी थीं. वह शोर मचाने वाले परेशान इनसान हो गए थे और मैं उन्हें समझाने व लेक्चर देने वाली टीचर बन गई थी.

मैं ये समझ कर बहुत हैरान हुई कि उन दिनों मैं बिलकुल राजीव के सुर में सुर मिला रही थी. मेरा सारा जोर इस बात पर होता कि किसी भी तरह से राजीव का गुस्सा, तनाव, चिढ़, निराशा या उदासी छंट जाए. ’’

4 दिन बाद जा कर मोहित की हालत में कुछ सुधार लगा और वह धीरेधीरे हमें व चीजों को पहचानने लगा था. बुखार भी धीरेधीरे कम हो रहा था.

मोहित के ठीक होने के साथ ही राजीव में उन के पुराने व्यक्तित्व की झलक उभरने लगी.

एक शाम जानबूझ कर मैं ने गुस्सा भरी आवाज में उन से कहा, ‘‘मोहित, ठीक तो हो रहा है पर मैं इस अस्पताल के डाक्टरों व दूसरे स्टाफ से खुश नहीं हूं. ये लोग लापरवाह हैं, बस, लंबाचौड़ा बिल बनाने में माहिर हैं.’’

‘‘यार, अलका, बेकार में गुस्सा मत हो. यह तो देखो कि इन पर काम का कितना जोर है. रही बात खर्चे की तो तुम फिक्र क्यों करती हो? पैसे को हाथ का मैल…’’

उन्हें पुराने सुर में बोलता देख मैं मुसकराए बिना नहीं रह सकी. मेरी प्रतिक्रिया गुस्से और चिढ़ से भरी नहीं है, यह नोट कर के मेरे मन का एक हिस्सा बड़ी सुखद हैरानी महसूस कर रहा था.

मोहित 15 दिन अस्पताल में रह कर घर लौटा तो हमारी खुशियों का ठिकाना नहीं रहा. जल्दी ही सबकुछ पहले जैसा हो जाने वाला था पर मैं एक माने में बिलकुल बदल चुकी थी. कुछ महत्त्वपूर्ण बातें, जिन्हें मैं बिलकुल नहीं समझती थी, अब मेरी समझ का हिस्सा बन चुकी थीं.

मोहित की बीमारी के शुरुआती दिनों में राजीव ने मेरी और मैं ने राजीव की भूमिका बखूबी निभाई थी. मेरी समझ में आया कि जब जीवनसाथी आदतन शिकायत, नाराजगी, गुस्से जैसे नकारात्मक भावों का शिकार बना रहता हो तो दूसरा प्रतिक्रिया स्वरूप समझाने व लेक्चर देने लगता है.

घरगृहस्थी में संतुलन बनाए रखने के लिए ऐसा होना जरूरी भी है. दोनों एक सुर में बोलें तो यह संतुलन बिगड़ता है.

मोहित की बीमारी के कारण मैं भी बहुत परेशान थी. राजीव को संभालने के चक्कर में मैं उन्हें समझाती थी. और वैसा करते हुए मेरा आंतरिक तनाव, बेचैनी व दुख घटता था. इस तथ्य की खोज व समझ मेरे लिए बड़ी महत्त्वपूर्ण साबित हुई.

आजकल मैं सचमुच बदल गई हूं और बहुत रिलेक्स व खुश हो कर घर की जिम्मेदारियां निभा रही हूं. राजीव व अपनी भूमिकाओं की अदलाबदली करने में मुझे महारत हासिल होती जा रही है और यह काम मैं बड़े हल्केफुल्के अंदाज में मन ही मन मुसकराते हुए करती हूं.

हर कोई अपने स्वभाव के अनुसार अपनेअपने ढंग से जीना चाहता है. अपने को बदलना ही बहुत कठिन है पर असंभव नहीं लेकिन दूसरे को बदलने की इच्छा से घर का माहौल बिगड़ता है और बदलाव आता भी नहीं अपने इस अनुभव के आधार पर इन बातों को मैं ने मन में बिठा लिया है और अब शोर मचा कर राजीव का लेक्चर सुनने के बजाय मैं प्यार भरे मीठे व्यवहार के बल पर नेहा, मोहित और उन से काम लेने की कला सीख गई हूं. Social Story in Hindi

Hindi Story: किस्सा कुकरी कोर्स का

Hindi Story: ‘‘भई, रोजरोज की घिसीपिटी सब्जियों और उबली दाल से मैं तंग आ चुका हूं. यह उबाऊ खाना मेरी बरदाश्त से बिलकुल बाहर है. यही हाल रहा तो जीभ एक दिन अच्छे खाने का स्वाद ही भूल जाएगी. दीपा भाभी को देखो, रोज नएनए पकवानों से स्वागत करती है विनोद का. लगता है कि उन के हाथों में कोई जादू है, जो खाने में रस सा घोल देता है और हमारा दिनभर मेहनत करने के बाद भी उसी बेस्वाद मूंग की दाल और आलूटमाटर से पाला पड़ता है. देखो तो यूट्यूब तरहतरह की रैसिपीज से भरा रहता है.’’ एक तरफ पति झगड़े पर उतारू थे तो दूसरी दोनों तरफ बच्चे मुंह बनाए बैठे रहते थे.

खाने की मेज पर हर तरफ विद्रोह के झंडे गाड़ते रहते थे जैसे मेरे खिलाफ बगावत की पूरी योजना बनाई गई हो. कभीकभी उभरने वाले मामूली असंतोष ने अब विकराल रूप धारण कर लिया था. एक तरफ मैं अकेली थी और दूसरी तरफ पति और बच्चों का संयुक्त मोरचा. पहले ही दफ्तर का काम कर के आओ और फिर रसोई में घुसो. मेड तो खाने के नाम पर सब्जियां, दाल उबाल जाती या फिर उन में मसाले भर जाती. औनलाइन फूड के खिलाफ भी सैकड़ों बातें आ रही थीं.

मुझे अपने पाकचातुर्य को बढ़ाने के लिए 1 महीने का नोटिस दे दिया गया. पति ने सलाह दी, ‘‘क्यों न दीपा भाभी से ही इस बारे में कुछ मदद ली जाए. शुभ काम में देरी कैसी? चलो, अभी चलें. उन्होंने औफलाइन क्लास भी लेनी शुरू कर दी हैं.’’ मैं ने बहाना बनाया कि रसोई अव्यवस्थित पड़ी है, एक प्रेजैंटेशन भी तैयार करना है फिर अब मेड भी आने वाली है. मगर अपने उत्साह में इन्होंने कुछ नहीं सुना और तुरंत बाहर निकाल कार स्टार्ट कर दी. किसी तरह मैला नाइट सूट बदल कर चप्पलें घसीटती हुई मैं बाहर भागी. सुबहसुबह किसी को तंग करते हुए मुझे बड़ी शर्म आ रही थी.

लेकिन विशेष अपनी धुन में मेरी बात सुनने को तैयार ही नहीं थे. मेरा खयाल था कि घंटी की आवाज सुन कर दीपा सुबह की मीठी नींद से उठ कर झल्लाती हुई दरवाजा खोलेंगी लेकिन सामना हुआ पसीने में सराबोर, मैलेकुचैले गाउन पर ऐप्रन पहने और तरहतरह की गंधों में लिपटे उन के भारीभरकम व्यक्तित्व से. पता चला कि अगले दिन विनोदजी के बौस ने 20 जनों का खाना और्डर किया है, उसे सप्लाई करना है.

सर्वथा नवीन पकवानों की फरमाइश हुई है. इसलिए झलसा देने वाली गरमी में बेचारी एक दिन पहले ही नए पकवान बना कर देख रही हैं. बड़ा तरस आया उन की हालत देख कर, कहां एसी की ठंडक का आराम और कहां रसोईघर में 4-4 बर्नर्स पर पकती चीजें. अपनी हालत पर कुछ शर्मिंदा सी होती हुई दीपा बोलीं, ‘‘कहिए, आज सुबहसुबह कैसे निकलना हुआ.’’ ‘‘आप के फेसबुक पर डाले गए स्वादिष्ठ पकवानों का जादू ही हमें यहां खींच लाया है.

भाभीजी सचमुच आप के हाथ का खाना बहुत लजीज होता है, चाहे मुगलई चिकन हो, चाहे चाऊमिन हो या चाहे वही सदियों पराने दहीबड़े. मैं तो बहुत दिनों से रमा से कह रहा हूं कि न हो तो दीपा भाभी से ही कुछ सीख लो. हमारा भी जी खुश हो जाएगा,’’ मेरे मुंह खोलने से पहले ही पति बोल पड़े. उन की आवाज में अपने लिए तो इतनी प्रशंसा का भाव मैं ने कभी महसूस नहीं किया.

रसोईघर से आती मसालों की जोरदार खुशबू ने शायद उन की लारग्रंथियों के साथसाथ उन की वाणी को भी उत्तेजित कर दिया था. दीपा अपनी प्रशंसा सुन कर चहक उठीं. ‘‘अरे, विशेषजी आप तो यों ही तारीफ के पुल बांध देते हैं. मैं भला किस लायक हूं? दरअसल, पकानेखाने का अपना शौक तो पुश्तैनी है. फिर पिछले साल मैं ने एक कुकरी कोर्स भी किया था फिर औफलाइन क्लास भी लेती हूं जिस ने रहीसही कसर पूरी कर दी.’’ उन का कुकरी कोर्स क्या रंग लाया है, यह तो उन की देहयष्टि से साफ जाहिर था. उन की स्थूल काया नित नवीन भोजन के असर से कुछ ज्यादा ही फैल गई थी.

पता चला कि जिम जौइन किया था पर उस ने उन से अनुरोध किया कि वे न आया करें क्योंकि दूसरी कास्टमर्स उन्हें देख कर बिदक रही हैं. ‘‘रमा, क्यों न तुम भी वह कुकरी कोर्स कर लो. भाभीजी से सारा विवरण मालूम कर लो. मैं अपनी तरफ से तुम्हें पूरे सहयोग की गारंटी देता हूं,’’ विशेष उत्साह भरे स्वर में बोले. अब मरता क्या न करता. मुझे हामी भरनी ही पड़ी. कोई लीनाजी हैं जो हमारे घर से 15 मील दूर शहर के दूसरे कोने में रहती हैं. 1 महीने के कोर्स की 12 हजार रुपए फीस लेती हैं.

वर्किंग वूमन के लिए रोजाना 6 से 7 बजे तक उन के घर पर ही कुकरी कक्षा लगती है सप्ताह में 3 दिन. घर लौटते समय रास्ते भर मैं विशेष से बहस करती रही कि रोज इतनी दूर दफ्तर के बाद आनाजाना कैसे संभव होगा. वहां तक किरायाभाड़ा के साथसाथ इतनी ज्यादा फीस अपने बूते से बिलकुल बाहर की चीज है. लेकिन पति पर तो जैसे कुकरी कोर्स का भूत सवार था. कहने लगे, ‘‘दफ्तर से कुछ जल्दी निकल कर तुम औटो कर के वहां चली जाया करना. दफ्तर से वापस आते मैं ले आया करूंगा. रही बात फीस की तो 12 हजार की ही तो बात है. सैलरी से जमा किए गए काफी पैसे तुम्हारे पास हैं. आखिर वे किस दिन काम आएंगे? नई ड्रैस फिर कभी खरीद लेना. पार्टी में लोग तुम्हारी डिशेज रखेंगे, तुम्हारी ड्रैसों को नहीं.’’ क्लास खत्म होने पर बाहर निकली तो उबर, औटो, बैटरी रिकशाओं को ढूंढ़ते लोगों की भीड़ दिखी.

घर पहुंचे तो बच्चे, पति किचन में लगे थे. वे हम से भी ज्यादा बेस्वाद खाना बना रहे थे. कोर्स करने के लिए उन्होंने खुद ही तो जोर दिया था. इसलिए कुछ कहने की गुंजाइश ही नहीं थी. घर पहुंचते ही बच्चे पीछे पड़ गए कि आज जो सीखा है, अगले ही दिन बना कर खिलाऊं. दूसरे दिन बारी आई पाइनऐप्पल केक की. केक का बैटर फेंटतेफेंटते बांहें दुख गईं, लेकिन लीनाजी को तसल्ली ही नहीं हो रही थी. खैर, किसी तरह ओवन में केक रखा गया. लीनाजी की बहन का फोन आ गया और वे भूल ही गईं कि केक ओवन में रखा है. जब तक वे बहन के ऊटी के किस्से सुनना खत्म करतीं केक ज्यादा पक गया. नतीजा वह हुआ जो नहीं होना चाहिए था. स्पंज केक की जगह चमड़ा केक बन कर तैयार हुआ.

यह देख कर मैं बिलकुल रोंआसी हो गई. इस तरह एक और कुकिंग ऐक्सपर्ट के मेरे अनुभवों में दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि होने लगी और दूसरी ओर घर वालों की फरमाइश पर नएनए पकवानों को बनाने और ग्रौसरी बरबाद करने में मेरा सारा बजट डांवांडोल हो गया. महीनेभर का घी, आटा, मसाले और चीनी 10 ही दिन में खत्म हो गए. कभी नूडल्स, कभी चौकलेट पाउडर खरीदने में पिछले महीनों में की गई मेरी सारी बचत पर पानी फिर गया. उस पर आए दिन देर रात तक मेरी और पति की मित्रमंडली धावा बोलने लगी.

शहर में रहने वाले दूरदूर के जानपहचान वाले जो सालों सूरत तक नहीं दिखाते थे, नईनई डिशेजका जायका लेने के लिए मौकाबेमौका पधारने लगे. फिर बच्चे क्या किसी से कम थे? उन्हें भी अपने साथियों पर रोब झड़ने का अच्छा मौका मिल गया. रोज टिफिन में ले जाने के लिए नईनई चीजों की फरमाइश होती. कभी चीज आर्मलेड बेक्ड सैंडविच चाहिए तो कभी मुगलई परांठा. पूरी सोसायटी में खबर फैल गई कि मैं कुकरी कोर्स कर ऐक्सपर्ट हो गई हूं. जैसे ही मैं शाम को दफ्तर से घर लौटती किसी न किसी पड़ोसिन की वीडियो काल आ जाती. कमला को बिरयानी बनाने की विधि चाहिए, सुमन का केक बारबार खराब हो जाता था, इसलिए वह पीछे पड़ गई कि एक बार अपनी देखरेख में बनवा दूं, शीलाजी की लड़की अपने बौयफ्रैंड के घर वालों को बुला कर ला रही है सो अनुरोध किया कि कुछ बढि़या पकवान बना दूं, जिन्हें परोस कर वे लड़के वालों को प्रभावित कर सके.

उन्हें मालूम था कि लड़का समझदार व मोटे वेतन वाली पोस्ट पर है. कांता के पति के नए बौस अपनी अजरबेजानी पत्नी के साथ पहली बार उन के घर खाने के लिए आमंत्रित थे. यह अजरबेजानी लड़की उन्हें गोवा में मिली थी. मक्खनबाजी का इस से अच्छा और क्या तरीका था कि वे मुझ से पश्चिमी ढंग का खाना बनवा कर प्रस्तुत करें. आखिर उन के पति की प्रमोशन का मामला था. यह सब अत्याचार शायद ही कम था. इसीलिए सोसायटी के लेडीज क्लब की प्रैसिडैंट ने तय किया कि इस महीने क्लब की कपल मीटिंग हमारे घर पर ही होगी, जिस से सभी कपल मेरी पाककला का आनंद उठा सकें.

आखिर उन का भी तो हक था. 2 दिन तक रसोई में जुट कर मैं ने एक से एक बढि़या चीजें बनाईं. मुझे आशा थी कि सहेलियों और उन के पतियों पर इस बात का रोब पड़ेगा और तारीफ के पुल बंध जाएंगे. लेकिन हुआ उलटा ही. खाने की सजी मेज देखते ही सब सहेलियां प्लेटों पर टूट पड़ीं. खाने के साथसाथ वे फबतियां भी कसती गईं, ‘‘चारू, केक कुछ और स्पंजी होना चाहिए था. कबाब कुछ फीका है, नानखताई जरा कुरकुरी कम है. सैंडविच का मक्खन शायद कुछ पुराना हो गया है,’’ हर तरफ से आलोचना की बौछार ने मेरा दिल तोड़ दिया. मैं ने कान पकड़ लिए कि आगे से कभी लेडीज क्लबकी बैठक में घर पर कोई चीज नहीं बनाऊंगी.

महीनेभर का कुकरी कोर्स तो खत्म हो गया लेकिन मेरे लिए हमेशा की मुसीबत छोड़ गया. कभी मन होता है कि आज खाना बाहर खाया जाए या बाहर से मंगाया जाए तो पति टाल जाते हैं, ‘‘अरे, इस से अच्छा खाना तो तुम घर पर बना लेती हो. सच पूछो तो बाहर के खाने में अब कोई मजा ही नहीं आता,’’ जबकि मन में बात यह होती कि अपनी जेब क्यों हलकी की जाए? यह तो पक्का ही था कि किचन का खर्च अब बढ़ गया था. मेड भी अब दोगुने पैसे लेने लगी थी क्योंकि बरतन बहुत होते. छुट्टी का सारा दिन रसोई के कामों में ही गुजरता है. त्योहारों पर भी मैं जब मिठाई लाने के लिए कहती हूं तो जवाब मिलता है, ‘‘बाजार की मिठाई में बड़ी मिलावट होती है. क्यों न घर पर ही कोक और पुडिंग बना लो?’’ जैसे मैं बाइफ नहीं, कोई हलवाई हूं.

अब हालत यह है कि उस घड़ी को कोसती हूं जब मैं ने कुकरी कोर्स जौइन करने की गलती की थी. कहीं भी कुकरी कोर्स का विज्ञापन पढ़ते ही मेरा खून खौलने लगता है. सोचती हूं, मेरी तरह न जाने और कितनी अच्छीभली औरतों को इस मुसीबत को गले लगाने की सिफारिश की जा रही है. अगर आप भी उन में से एक हैं तो मेरे अनुभवों से फायदा उठा कर फिर अपने निर्णय पर अच्छी तरह से विचार कर लीजिए. यह कुकरी कोर्स एक कौंस्पीरेसी है आप को जंजीर में बांधने की.

फियामा जैपनीज होक्काइदो मिल्कबार सैलिब्रेशन पैक फियामा मौइस्चराइजिंग बार्स का नया सैलिब्रेशन पैक एक शानदार अनुभव प्रदान करता है, जो नहाने की रोजमर्रा की प्रक्रिया को एक रिचुअल जैसा बना देता है. इस में जापानी होक्काइदो मिल्क की अच्छाई और 3 अनोखे वैरिएंट- अकाई बेरी, गोजी बेरी और ब्लूबेरी शामिल हैं, जो त्वचा को गहराई से पोषण और तरावट देते हैं. इस साबुन में मौजूद 1/3 स्किन मौइस्चराइजर त्वचा को मुलायम और हाइड्रेटेड बनाए रखता है, जिस से स्नान के बाद अलग से बौडी लोशन की आवश्यकता महसूस नहीं होती. इस का रिच और क्रीमीपन त्वचा को कोमलता से साफ करता है, बिना उस की प्राकृतिक नमी को छीने. साथ ही, इस में मौजूद विटामिन एफ और इस की मूड-अपलिफ्टिंग फ्रैगरैंस पूरे अनुभव को सुखद और ताजगीभरा बना देती है.

यह न सिर्फ स्किन के लिए लाभकारी है, बल्कि हर दिन की शुरुआत को एक पौजिटिव और रिफै्रशिंग टोन पर सैट करता है. फियामा का यह नया पैक निश्चित रूप से उन लोगों के लिए उपयुक्त है जो स्किनकेयर के साथसाथ एक संपूर्ण स्नान अनुभव की तलाश में हैं.  Hindi Story

Sad Hindi Story: दीवारों पर उपजे दर्द

Sad Hindi Story: ‘‘तूने मनोज का नाम भी लिया तो हमारी दोस्ती टूट जाएगी. मैं फिर कभी तुझ से बात नहीं करूंगी. तुझे याद है न,’’ नेहा ने गुस्से से कहा. ‘‘हां, मैं पिछले 4 सालों से यह बात बहुत बार सुन चुकी हूं. मगर अब दोस्ती टूटती है तो टूट जाए. मुझे जो कहना है वह मैं कह कर ही रहूंगी. इन 4 सालों से तू हर महीने अपने पिताजी के लिए गुमशुदा की तलाश में यह आर्टिकल भेज रही है, कुल 48 बार भेज चुकी है.

इस का हमें कोई जवाब नहीं मिला है. तूने अपनेआप को जीतेजी मार डाला है.’’ ‘‘मरने जैसी बात भी तो है, यह जिंदगी बेकार ही हो गई. जो लड़की अपने पिता के गुमशुदा होने की जिम्मेदार है और अपनी मां की मृत्यु का कारण भी वही बनी है, उस के भाई को लंदन से अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ कर आना पड़ा और अब वह बेमन से हमारा बिजनैस देख रहा है, इतने सारे गुनाह सिर पर ले कर एक इंसान जिंदा नहीं रहता है, जीतेजी लाश बन जाता है. बस, मुझ में हिम्मत नहीं है, खुद का गला घोट लेने की, शायद इसीलिए मैं जिंदा हूं. एक आस भी है, किसी दिन पापा लौट आएं और मैं उन्हें देख सकूं?’’ ‘‘उन्हें देख सकेगी या नहीं, इस का जवाब आज तक कोई नहीं दे पाया है पर जो तेरी राह देखतेदेखते 4 साल से 1-1 पल गिन रहा है उस का क्या? तूने हर महीने पर अपनी आस टिकाई है उस ने तो 1-1 पल पर खुद को रोका हुआ है.

क्या जवाब दूं उसे? आज तुझे यह बात पूरी करनी ही होगी, उस के बाद मैं भी तेरे लिए मर गई.’’ ‘‘जो दुख मिले हैं वे कम हैं क्या जो अब तू भी दूर हो रही है?’’ ‘‘मैं दूर नहीं हो रही हूं पर जो पास आना चाहता है, जो तेरा इंतजार कर रहा है उस के लिए बात करनी ही होगी.’’ ‘‘तो जा कर उस से कह दे कि मैं उस से शादी नहीं कर सकती हूं. वह मेरा इंतजार न करे. किसी और से शादी कर ले. मेरे लिए पापा को देखे बिना शादी के बारे में सोचना भी असंभव है.’’ ‘‘जो हुआ वह नहीं होना था पर अब कहने से भी क्या होगा? तेरे पापा को जो करना था वे कर चुके. इस सब की सजा से पहले तू अपनी गलती को तो समझ ले.’’ ‘‘क्या समझं, सबकुछ साफ दिखता नहीं है क्या? मैं नासमझ का नाटक करूं क्या? यह सब हिस्से में ही लिखा था. जो होना हो, होकर ही रहता है.

यह सब कह देने से कोई तसल्ली नहीं मिलती है. मुझे अपना गुनाह साफ दिखता है.’’ ‘‘मैं तो यह नहीं कह रही हूं. मैं तो बस इतना समझना चाहती हूं कि तूने गलती क्या की थी? वही मुझे समझ दे?’’ ‘‘मैं मनोज से शादी करना चाहती थी.’’ ‘‘तो इस में गलत क्या था? तुम दोनों ने एमबीए साथ किया था. शिक्षा एकसाथ पूरी हुई, मन भी मिल गया था और क्या चाहिए था?’’ ‘‘सारी अड़चन जाति की थी.’’ ‘‘वह तो हम ने ही बनाई है. उस का दोष किस को दें? तुझे पता होता कि तेरी शादी की बात से तेरे पापा घर छोड़ कर चले जाएंगे तो तू उन से यह बात कभी नहीं कहती. तूने जब पापा को मनोज का पूरा नाम बताया था, तुझे तभी समझ आया था कि इस में जाति की दीवार है. तुम दोनों जाति की ऊंचनीच से अनजान थे.

जो हुआ वह किसी ने सोचा ही नहीं था तो गुनाह कैसे हुआ?’’ ‘‘मेरे कारण मां मर गईं.’’ ‘‘हां, यह सच है. मां, पापा की आस में कितना तड़पीं हम समझ ही नहीं सकते हैं. उस से भी बड़ी बात यह हुई कि मां ने कभी तुझे कोसा नहीं. उन्होंने भी वैसे ही हर पल को गिना होगा, अपने जीवनसाथी के लिए. वे कैसे उन की बाट जोहती होंगी? कितनी बार सोते से जाग उठती होंगी? हर बार फोन की घंटी हो या दरवाजे की, यही एहसास दिलाती होगी कि शायद उन की कोई खबर आ जाए. उन की आस का हर दिन टूटना ही उन की मौत का कारण बना.

अब वही हाल आज मनोज का है, तेरे इंतजार में. मुझे लगता है एक दिन वह भी…’’ ‘‘पागल हो गई है क्या? जो मुंह में आया बोल रही है…’’ ‘‘डर लगता है न? यही डर ले कर मैं जी रही हूं. उसे रोज औफिस में मशीन की तरह काम करते हुए देखती हूं. वह थक रहा है. खुद को संभाल नहीं पा रहा है.’’ ‘‘क्या हो गया है उसे?’’ ‘‘तुझे क्या करना? तू तो डूबी रह अपने दुख में.’’ ‘‘यार, प्लीज. बोल न.’’ ‘‘उस के परिवार ने उस का जीना मुश्किल कर दिया है. जब से उस का पैकेज दोगुना हुआ है, प्रमोशन हुआ है वे उस की शादी करने पर तुले हैं. इसे बड़ा दहेज मिलेगा, जिस से दोनों बहनों की शादी हो जाएगी.

4 साल तक लक्ष्मी को घर आने से रोकना आसान नहीं है. अब तो उस की बहनें भी उसे ऐसे ही देखती हैं कि उन की शादी की सब से बड़ी रुकावट मनोज की जिद ही है. अभी किसी बड़े घर से रिश्ता आया था, मनोज ने मेहमानों के सामने ही कह दिया कि वह कभी शादी नहीं करेगा, फिर यह सब क्यों किया जा रहा है? उस के बाद के हंगामे ने ही उस की हालत खराब कर दी है. उस ने घर में बात करना बंद ही कर दिया है. घर के झगड़े इतने बढ़ गए हैं कि कल उस का बीपी 220 हो गया था.

औफिस में वह अपनी ही कुरसी से गिर गया. उस को सिर पर चोट आई है और अभी वह हौस्पिटल में भरती है.’’ ‘‘क्या, वह हौस्पिटल में है? यह बात कहने में इतनी देर क्यों कर दी? तुझ से आते ही नहीं कहा गया? अब बैठी क्या है उठ न? कौन से अस्पताल जाना है?’’ नेहा ने गुस्से से स्मिता से कहा. दोनों तेजी से घर से बाहर निकलीं. नेहा बहुत बेचैन हो गई थी. ‘‘ड्राइव मैं कर रही हूं, तू उस तरफ से…’’ दाईं तरफ नेहा के बढ़ते कदम को रोकते हुए स्मिता ने कहा जो अपनी ही धुन में आगे बढ़ रही थी. गाड़ी में चाबी लगाते ही नेहा को देखते हुए स्मिता बोली, ‘‘परेशान मत हो. पीछे टिक कर बैठ. 15 मिनट में हम मनोज के पास होंगे.’’ ‘‘स्मिता…’’ नेहा इतना ही कह पाई और उस के आंसु बहने लगे. ‘‘सब अच्छा होगा. चिंता मत कर,’’ नेहा के हाथ को दबाते हुए स्मिता बोली. स्मिता के हाथ को छू कर वे सिर ही हिला पाई. उसे यह 15 मिनट का रास्ता मुश्किल लग रहा है तो मनोज ने 4, नहीं 9 साल कैसे गुजारे होंगे? सोच कर नेहा सिहर उठी. मनोज से उस की पुरानी दोस्ती थी. दोनों का एकसाथ ही आईआईएम में एडमिशन हो गया था. नेहा को उस के पिता ने साफ मना कर दिया है, ‘‘आगे पढ़ने की कोई जरूरत नहीं है.

उज्ज्वल साहब की ओर से रिश्ता खुद चल कर आया है. वे 2 महीनों में ही शादी के लिए कह रहे हैं.’’ यह बात जब नेहा ने मनोज को बताई तो उस ने उस से पूछा, ‘‘एक बहुत बड़े घर में शादी हो रही है. तुम भी यदि उस जीवन को पसंद करती हो तो पढ़ाई और शादी में से शादी को चुना जा सकता है.’’ ‘‘और पढ़ाई ही एकमात्र उद्देश्य हो तो…?’’ ‘‘फिर यह बात घर में नहीं बताई जा सकती है. लड़के से किसी तरह मिल कर उसे अपनी मरजी बता दो. समझदार हुआ तो बात संभाल लेगा?’’ ‘‘समझदार नहीं हुआ तो?’’ ‘‘फिर तूफान को झेलने की हिम्मत करो.’’ ‘‘पर उस लड़के से मीटिंग कैसे होगी?’’ ‘‘वह भी मुझे ही करना है क्या?’’ सिर हिला कर ही हां कह पाई थी नेहा. मनोज ने उन की मीटिंग ही नहीं कराई थी, उसे रैस्टोरैंट तक ले कर भी गया था. वहां उस की जिद पर वह बाहर बैठा उस का इंतजार करता रहा था.

वह मनोज के साथ चेहरे को दुपट्टे से ढक कर गई थी कि कहीं कोई उसे देख न ले. उज्ज्वल एक बहुत समझदार इंसान थे. उन्होंने पूरी बात सुनते ही कहा, ‘‘आप आराम से एमबीए कीजिए. मैं बात को संभाल लूंगा. बस, एक बात पूछना चाहता हूं?’’ ‘‘जी, बोलिए.’’ ‘‘आप इतनी सुंदर हैं कि फिर कोई रिश्ता आ गया तो…’’ ‘‘हर बार यही करूंगी जो आज किया है.’’ नेहा के जवाब पर उज्ज्वल जोर से हंस पड़े. ‘‘औल द बैस्ट,’’ कह कर वे दोनों विदा हो गए. उस दिन नेहा ने मनोज को उस का हाथ पकड़ कर शुक्रिया कहा था. बीबीए करते समय से जानती थी वह मनोज को, सरस्वती उस के साथ थीं पर लक्ष्मी बहुत दूर ही रही थीं.

कालेज में यह फर्क बड़ी आसानी से दिखता है, दोस्त और दोस्ताना भी इसे देख कर ही आगे बढ़ पाता है. तभी से नेहा की उस से दोस्ती है. मनोज की सादगी, उस का आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ना उसे बहुत अच्छा लगता था. जब पूरी क्लास कैंटीन में जाती थी तो मनोज लाइब्रेरी में चला जाता था. पैसे को बचाने और ज्ञान को बढ़ाने का इस से बेहतर बहाना क्या होता? जब नेहा भी उस के साथ लाइब्रेरी जाने लगी थी.

उस के दोस्त उससे कहते थे ‘‘यार, मनोज को तो लाइब्रेरी जाना ही पड़ेगा, तुझे ऐसी क्या दिक्कत है, जो तू भी लाइब्रेरी में चली जाती है?’’ ‘‘घर में इतनी किताबें एक साथ नहीं मिलती हैं और अपने नोट्स बनाने की मुझे आदत है,’’ इस से ज्यादा किसी को क्या समझना? नेहा ने वही कहा जो समझ जा सकता है. वह अमीरीगरीबी की परवाह नहीं करती है. इंसान से दोस्ती उस के गुणों को देख करनी चाहिए, यह बात किसी से भी कहने की नहीं है. जिन्हें भेद की समझ है वे समझते हैं और जिन्हें नहीं समझना है उन्हें समझना बेकार ही होगा.

आईआईएम में दोनों का एडमिशन एक ही जगह होना, एक सुखद संयोग ही रहा था. मनोज के लिए किसी संस्था ने फीस का इंतजाम किया था. नेहा को उस के पापा ने यह कह कर भेज दिया था कि जब तक कोई रिश्ता पक्का न हो तब तक वह अपनी इच्छा पूरी कर ले. जैसे ही रिश्ता पक्का हुआ, पढ़ाई छोड़नी पड़ेगी. अब नेहा जान गई थी कि शादी को अपने से दूर कैसे रखना है. वह पापा की शर्त पर एमबीए के लिए अहमदाबाद चली गई. एक बार जब नेहा छुट्टियों में घर आई तो उस के पापा बोले, ‘‘ऐसा क्यों होता है कि लड़का तुझ से मिलने के बाद शादी के लिए इनकार कर देता है?’’ ‘‘सुंदर लड़की ढूंढ़ रहे होंगे,’’ नेहा का जवाब सुन कर उस के पापा ने उसे घूर कर देखा. उस दिन बड़ी मुश्किल से उस ने अपनी हंसी को रोका.

एमबीए पूरा होने के बाद नेहा ने ही मनोज से पूछा, ‘‘मुझ से शादी करोगे?’’ ‘‘तुम…’’ कुछ बोल ही नहीं पाया वह. उस दिन शब्द गले में अटक गए और आंखों की झल में आ कर चमकने लगे थे. ‘‘क्यों, कोई कमी है क्या मुझ में?’’ मनोज की आंखों के दर्द से वह वाकिफ थी. ‘‘क्या बोल रही हो? तुम में कोई कमी?’’ ‘‘तो फिर रिश्ता पक्का समझं?’’ ‘‘जो कभी नहीं कह सकता था…’’ ‘‘जानती हूं, मुझे वह हर पल याद है जब तुम ने अपनेआप को मुझ से छिपाया था. तुम न कह पाओगे, यह मैं जानती थी. मुझे आज के दिन का इंतजार था. आज तक तो रुकना ही था क्योंकि आज से पहले पापा की जिद से मेरी शादी हो जाती तो शायद मैं कुछ भी न कह पाती.

अब तुम्हारे पास एक अच्छी नौकरी है और मैं पापा से तुम्हारे लिए बात कर सकती हूं.’’ ‘‘कभी सोचा भी नहीं था कि ऐसा होगा.’’ ‘‘हां, मुझे स्कूटर पर घुमाने वाला और मेरी शादी को रोकने में मेरा साथ देने वाला इंसान यह सोच भी नहीं सकता है कि मैं उस से यह कहूंगी. कहना तो उसी दिन चाहती थी, जिस दिन पहली बार मैं ने तुम्हारा हाथ पकड़ कर तुम्हें थैंक्यू कहा था और तुम ने मेरी आंखों में देखने की जगह अपनी नजरें झका ली थीं. तुम्हारी झकी पलकों का भीगापन मैं ने महसूस कर लिया था.

मगर वह समय नहीं था, तुम से कुछ भी कहने का. वह समय था शायद कामनाओं का, हम दोनों के पैरों की मजबूती का. आज हम दोनों अपनी बात कहने का हक रखते हैं. हम अपने घरों के आर्थिक दायरे से बाहर निकल आए हैं.’’ ‘‘आज से खुशी का दिन कभी नहीं आएगा.’’ ‘‘यही सच है इस से बड़ी खुशी जिंदगी में कोई और कभी नहीं हो सकती है.’’ उस दिन नेहा ने अपने पापा को बताया कि वह मनोज से शादी करना चाहती है. ‘‘करता क्या है?’’ ‘‘मेरे साथ ही एमबीए किया है पर उस का प्लेसमैंट मुझ से बेहतर हुआ है.’’ ‘‘उस का परिवार और पूरा नाम क्या है?’’ ‘‘उस के पिता एक फैक्टरी में काम करते हैं और उस का पूरा नाम मनोज सुथार है.’’ ‘‘क्या, तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या? उस की जाति और औकात कितनी नीची है?’’ ‘‘पापा, जाति से क्या फर्क पड़ता है? मनोज बहुत नेक इंसान है. मैं ने ही उस से शादी की बात…’’ ‘‘अच्छा तो इसीलिए आज तक तुम्हारा कोई रिश्ता पक्का नहीं हो सका है.’’ ‘‘मैं अपना निर्णय जाति के कारण नहीं बदल सकती हूं.

फिर बेकार है हमारी पढ़ाई जो हमें सिखाती है कि हम जातिपांति के भेदभाव से दूर रहें. सब को अपना…’’ ‘‘मुझे तुम्हारा भाषण नहीं चाहिए. अब एक शब्द भी नहीं. यह शादी नहीं होगी. समाज में हमारी एक ऊंची जगह है. वहां से इतना नीचे कैसे आ सकते हैं? अपने दिमाग में यह बात बैठा लो.’’ ‘‘ऐसे कैसे पापा, मैं इस बात को नहीं मानती. आप को एकबार मनोज से मिलना होगा.’’ ‘‘असंभव.’’ ‘‘मेरे लिए मनोज को छोड़ना असंभव है. मैं उसी से शादी करूंगी. मैं जाति और अमीरगरीब वाली दोनों बातें मानने से इनकार करती हूं,’’ नेहा ने एक सांस में ही पूरे आत्मविश्वास के साथ अपनी बात पूरी कर दी. नेहा सोच भी नहीं सकती थी कि यह तकरार उस के पापा को घर छोड़ने पर मजबूर कर देगी.

सुबह की बहस के बाद बापबेटी अपनेअपने कमरे में चले गए. रात को मां नेहा के कमरे में आई और बोलीं, ‘‘तेरे पापा का फोन स्विच्डऔफ आ रहा है. रात के 12 बज गए हैं.’’ वह पल और उस के बाद के 4 साल कैसे बीते कोई नहीं समझ सकता है सिर्फ जाति की बात पर क्या कोई पिता अपनी बेटी से इतना नाराज हो सकता है कि घर छोड़ दें? वे कहां गए, क्या किया, कुछ पता नहीं. उन की याद में तड़पतड़प कर उन की पत्नी ने जान दे दी और बेटी अपनी गलतियों का पश्चात्ताप कर रही है.

नेहा के पापा के गुमशुदा होने के 2 दिन बाद ही मनोज ने उसे फोन किया, ‘‘नेहा, मैं मिलना चाहता हूं,’’ बहुत ठंडी आवाज में वह बोल रहा था. स्मिता ने जो घर में हुआ उसे वह सब बता दिया. घर में हंगामे का हाल इतना बुरा था कि रिश्तेदार, पुलिस और दिनभर के फोन ने नेहा का दिमाग सुन्न कर दिया था. वह अपनेआप को एक बहुत बड़ा गुनहगार समझने लगी थी. उस समय नेहा ने मनोज से कह दिया, ‘‘आज के बाद फोन मत करना. हमारे कारण मेरे पिताजी घर छोड़ कर चले गए हैं और कब मिलेंगे हम नहीं जानते. जब तक उन का चेहरा न देखूं, तुम से बात नहीं करूंगी. मुझे अब अपने लिए मरा हुआ ही समझना,’’ दूसरी तरफ क्या हुआ यह समझने की ताकत उस वक्त नेहा में नहीं थी.

वह बहुत घबरा गई थी, डर गई थी. जिंदा पिता से जिद करना बहुत आसान था. पिता का गुमशुदा हो जाना बहुत अलग बात थी. आज जब मनोज भी बीमार पड़ गया तो अचानक नेहा को खयाल आया कि वह क्या कर रही है? किसी ऐसे इंसान को सजा दे रही है, जिस में उस की कोई गलती ही नहीं है. उस की जाति छोटी, उस के घर में पैसे कम पर उस का दिल कितना बड़ा है, यह उस ने बीते सालों में बता दिया. आज की इस दुनिया में कौन, किस के लिए रुकता है. सब आगे बढ़ जाते हैं. वह आज भी वहीं ठहरा है उस के लिए मजबूती से अपने पैर जमाए हुए, बिना किसी भरोसे के. इस से ज्यादा ताकतवर, इस से ज्यादा बड़े दिल का, इस से ज्यादा अमीर क्या दुनिया में कोई और हो सकता है? हम कब तक इंसान को उस के बाहर के आवरण के साथ ही देखेंगे? भीतर की ताकत को समझने की इच्छा हम में कब जागेगी? जब तक हम भीतर की ताकत को नहीं समझेंगे, हम यों ही गिरते और भागते रहेंगे.

जीने के लिए मन की ताकत चाहिए, वह मनोज के पास है. जातियों के दर्द ने न जाने कितने लोगों को एकदूसरे से जुदा किया या उन की जान ही ले ली. इस दर्द को, इन दीवारों को, तोड़ने की बहुत जरूरत है. जब तक ये दीवारें नहीं टूटेंगी, ये दर्द पनपते रहेंगे और जिंदगी को नासूर बनाते रहेंगे. फोन की आवाज से नेहा का ध्यान स्मिता की ओर गया. ‘‘हां मनोज नेहा मेरे साथ ही है. हम अस्पताल पहुंचने ही वाले हैं.’’ ‘‘उसे फोन देना. उस की हालत ठीक नहीं है. वह बोल नहीं पाएगी.’’ ‘‘मैं उस का मौन भी समझ लूंगा.’’ स्मिता ने फोन नेहा की ओर बढ़ा दिया. नेहा ने फोन कान से लगा लिया. गिरते आंसुओं से भारी आवाज किस की हो सकती है? Sad Hindi Story

Family Kahani: पत्नी का अफेयर

Family Kahani: मधु कल ही बाजार से एक खूबसूरत पर्पल कलर का सूट ले कर आई थी. उसे इस सूट को पहन कर किसी को दिखाने की ऐक्साइटमैंट बहुत ज्यादा थी. वैसे तो नए कपड़े पहन कर बाहर निकलने और लोगों की तारीफ भरी नजरों का सामना करने का अलग ही मजा होता है मगर यहां बात और थी. मधु को अपने पति, सहेलियों, रिश्तेदारों या परिचितों के तारीफ की चाहत नहीं थी. उसे तो बस अपने घर के सामने वाले घर के बरामदे में खड़े शख्स की आंखों में अपने लिए तारीफ देखनी थी. मधु ने सुबह जल्दीजल्दी अपने सारे काम निबटा लिए. उस का पति 9 बजे के करीब औफिस के लिए निकल जाता था.

मधु ने टिफिन वगैरह तैयार कर दिया. बच्चे को नहला और खिलापिला कर प्ले स्कूल छोड़ आई. फिर पति के जाने के बाद उस ने अपने बाल धोए. दरअसल, धोने के बाद उस के बाल बेहद खूबसूरत लगते थे. घने, काले और लंबे होने के साथसाथ उस के बालों में अलग ही चमक थी. बालों को उस ने खुला छोड़ दिया था. अब मधु ने जल्दी से अपना नया सूट पहना और बालों को सुखाने के बहाने बालकनी में आ कर खड़ी हो गई.

उसे पता था कि 10 बजे के आसपास सामने रहने वाला वह शख्स जिम से आ जाता है और कुछ देर के लिए बालकनी में खड़ा हो कर इधरउधर आतेजाते लोगों को देखता रहता है या बैठ कर मोबाइल चलाता है. यही वक्त था जब मधु अकसर कपड़े सुखाने या पौधों में पानी डालने के लिए बालकनी में निकलती थी. उस की वाशिंगमशीन भी बालकनी में ही रखी थी इसलिए वह करीब आधा घंटा बालकनी में कपडे़ धोने का काम भी रोज करती थी. आज भी जैसे ही मधु बाहर निकली लड़के की आंखों से उस की नजरें टकराईं. उन आंखों में अपने लिए तारीफ और आकर्षण देख कर उस का दिल खिल उठा.

वह बेपरवाह हो कर कपड़े सुखाने का दिखावा करने लगी मगर नजरें बारबार उस से टकरा जातीं. पिछले 1 सप्ताह पहले मधु के सामने के घर यानी गली की दूसरी तरफ वाली बिल्डिंग की चौथी फ्लोर पर यह शख्स और उस की बूढ़ी मां नए किराएदार के रूप में आए थे. वह खुद भी चौथी फ्लोर पर ही रहती थी इसलिए सामने रहने वालों को अच्छी तरह देख सकती थी. तब से वह उस शख्स को देख रही थी. देख क्या रही थी उस की आंखों में खो गई थी. उस शख्स की उम्र भी लगभग मधु के समान ही थी. गठीला बदन, घुंघराले बाल, डौलेशौले और उन सब के बीच चमकती हुई 2 कातिल निगाहें. उन निगाहों ने गजब ढाया था. उन निगाहों से निगाहों का मिलना और मिलते ही दिल का धड़कना, यह एहसास मधु को बेकाबू किए जाता था.

वह जानती थी कि वह शख्स भी उसे पसंद करता है और उसे एक नजर देखने के लिए 1-1 घंटे तक भी बाहर बालकनी में खड़ा रहता है. फिर जैसे ही मधु निकलती दोनों की नजरें मिलतीं और नजरों ही नजरों में बातें होतीं. उस के बाद मधु का पूरा दिन बहुत खूबसूरत गुजरता. वह लड़का दोपहर के बाद बाइक निकालता और अपने काम पर चला जाता. मधु भी घर के काम निबटा कर 2-3 बजे बाहर बालकनी में आती क्योंकि उसे पता था कि यही वह समय है जब लड़का बाइक ले कर अपनी जौब पर निकलता है. उस की ड्रैस, बैग और बाकी चीजों को देख कर मधु को अंदाजा हो गया था कि वह जोमैटो में काम करता है. 3 बजे के बाद उस की शिफ्ट शुरू होती और देर रात घर लौटता. इधर मधु का पति दिनभर काम के बाद 5-6 बजे के करीब वापस आता. पूरा दिन मधु उस लड़के को देखने की चाह में बालकनी में आतीजाती रहती. वे एकदूसरे को देख कर सुकून पाते.

दोपहर के बाद जब वह लड़का निकल जाता तब मधु के लिए बालकनी में निकलने की ऐक्साइटमैंट खत्म हो जाती. कभी कुछ खाने की जरूरत होती मधुर तुरंत मंगा देता. मधु का एक फोन और वह सामान हाजिर हो जाता. मधु की विनोद के साथ अरेंज्ड मैरिज हुई थी. शादी से पहले दोनों एकदूसरे से अनजान थे और शायद आज तक एकदूसरे को समझ नहीं सके थे. विनोद अलग ही स्वभाव का था. उस में थोड़ा ऐटीट्यूड और थोड़ा सनकीपन था.

विनोद उम्र में भी मधु से काफी बड़ा था. पैसे अच्छेखासे कमा लेता था पर हमेशा मधु से ज्यादा अपने दोस्तों को अहमियत देता था. उस की जिंदगी में मधु से ज्यादा दूसरे लोग महत्त्वपूर्ण थे. रात में वह मधु के करीब आता मगर बस एक रूटीन पूरा करने के लिए. दिल से उन दोनों के बीच कोई जुड़ाव नहीं था. विनोद को मधु से कोई कहने लायक शिकायत नहीं थी क्योंकि वह अच्छा खाना बनाती थी, घर संभाल कर रखती थी, सारी चीजें सही जगह साफ सुथरी कर के रखती. गाहेबगाहे कभी विनोद का कोई रिश्तेदार आ जाए तो उस की खातिरदारी में भी कोई कमी नहीं रखती. दोनों का एक बेटा भी हो गया था.

उस का नाम अंशुल रखा था. अंशुल की देखभाल करना, उसे स्कूल भेजना, उस के लिए नाश्ता बनाना, उसे पढ़ाना सारे काम मधु बिना किसी शिकायत के करती. वह ज्यादा पढ़ीलिखी भले ही नहीं थी मगर घर संभालने का सलीका आता था. एक दिन मधु ने देखा सामने के घर में कोई डाक्टर आया है और वह बुजुर्ग महिला को चैक कर रहा है. थोड़ी देर में डाक्टर चला गया और वह लड़का बालकनी में आया तो मधु ने पूछ लिया, ‘‘कोई बीमार है क्या आप के यहां? आंटी की तबीयत सही नहीं है?’’ ‘‘जी मम्मी को 2 दिन से फीवर है. खाना बनाते हुए कल रात चक्कर आ गया सो डाक्टर को बुलाया था मैं ने.’’ ‘‘फिर उन के लिए आज कुछ हलकाफुलका खाना बनाना होगा. उन के और आप के लिए खाना कौन बनाएगा? क्या आप को आता है बनाना?’’ ‘‘नहीं बस चावल बना सकता हूं और कुछ नहीं,’’ उस ने झिझकते हुए बताया. ‘‘कोई बात नहीं मैं खाना बना कर लाती हूं,’’ मधु ने मुसकराते हुए कहा तो उस लड़के का चेहरा खिल उठा.

यह उन के बीच पहली बातचीत थी और उस दिन पहली दफा खाना ले कर मधु उस के घर पहुंची. उस ने बूड़ी मां को अपने हाथों से खाना खिलाया और फिर लड़के की तरफ मुखातिब हुई, ‘‘आप के लिए स्पैशल मटरपनीर की सब्जी बनाई है. खा कर बताइएगा कि कैसी बनी है.’’ ‘‘जरूर बताऊंगा और थैंक्स आप ने मेरे लिए इतना किया,’’ कहते हुए वह मधु के करीब खड़ा हो गया. मधु की धड़कन बढ़ गई और दिल की ख्वाहिशें जवां हो उठीं. थोड़ी देर बातचीत करने के बाद मधु घर लौट आई मगर अपना दिल वहीं छोड़ आई. समय के साथ दोनों के बीच फोन पर लंबी बातें होने लगीं. उस लड़के का नाम मधुर था. नाम में समानता के साथ दोनों के स्वभाव और सोच में भी समानता थी.

मधु को लगने लगा जैसे मधुर को उस के लिए ही बनाया गया है. यही हाल मधुर का भी था. उसे मधु का साथ बहुत पसंद था. अब उन के बीच का फासला काफी कम हो चुका था. दोनों फोन पर अपने एहसासों को शब्दों के जरीए एकदूसरे को बताने लगे थे और इस से मधु की जिंदगी का खालीपन खत्म हो चुका था. पति के जाते ही मधु मधुर के खयालों में खो जाती. कभी फोन पर बातें होतीं तो कभी आंखों ही आंखों में. मधु किसी भी बहाने उस के घर जाती रहती. मधुर की मां भी मधु को काफी पसंद करने लगी थीं.

मधु अपने बच्चे को कभीकभी मां के पास छोड़ जाती. कभी मधु को कहीं जाना होता तो वह मधुर से कह देती. वह बाइक ले कर उसे छोड़ आता और उसे ले कर भी आता. उस के काम करता. उस के लिए खाना मंगाता. मधु भी कई बार अपने हाथों से बढि़या खाना बना कर मधुर के यहां दे आती. कभी उस की मां की तबीयत खराब होती तो उन की देखभाल करती. उन की मालिश करती. इस तरह दोनों को करीब रहने का मौका मिल जाता. उधर विनोद को धीरेधीरे एहसास होने लगा था कि मधु की जिंदगी में उस के सिवा कोई और आ चुका है और यह समझने में भी उसे ज्यादा वक्त नहीं लगा कि वह कोई और कौन है. एक दिन वह औफिस से जल्दी आ गया और तब उस ने देखा कि मधु सामने वाली बिल्डिंग से निकल रही है.

मधु के घर की खिड़कियों के शीशे ऐसे थे जिन से बाहर का नजारा दिखता था मगर बाहर वालों को यह पता नहीं चलता कि अंदर से कोई देख रहा है. कई बार विनोद ने बंद खिड़की से देखा कि कैसे सामने वाला लड़का मधु को निहार रहा है और मधु भी आंखों ही आंखों में बातें कर रही है. यही नहीं एक दिन जब वह दोस्तों के साथ लंच टाइम में किसी काम से औफिस से बाहर निकला और पास के बाजार में पहुंचा तो उस ने देखा कि मधु उसी लड़के के साथ बाइक पर बैठी कहीं जा रही है.

घर आ कर जब विनोद ने मधु से उस लड़के के बारे में सवाल किया तो मधु ने साफ जवाब देते हुए कहा, ‘‘वह लड़का सामने रहता है तुम जानते ही हो. उस की मां मुझ से अकसर बातें करती रहती हैं. आज मुझे अंशुल की दवा लेने जाना था इसलिए उस से मदद ले ली.’’ विनोद के पास कोई ऐसा पौइंट नहीं था कि वह मधु को डांटताफटकारता या अवैध संबंधों का शक करता. पड़ोसी के रूप में कोई सामने रहता हो तो इतनी दोस्ती तो हो ही जाती है. मगर जो आकर्षण उस ने दोनों की आंखों में देखा था एकदूसरे के लिए वह बात विनोद की नींदें उड़ा रही थी. समय बीतता गया.

मधु और मधुर के बीच का रिश्ता गहरा होता गया और विनोद को इस बात का पूरा एहसास था. वह जानता था कि उन के बीच बहुत कुछ चल रहा है. कई बार विनोद ने देखा मधु अब ज्यादा अच्छे से तैयार होती है. संडे को या किसी और दिन सुबहसुबह विनोद की आंखें खुलतीं तो देखता मधु बालकनी में खड़ी है और सामने वह लड़का भी है. विनोद को समझते देर नहीं लगती कि उन के दिलों में क्या चल रहा है. मगर साफसाफ ऐसा नहीं था जिस के लिए वह एतराज जता सके. न तो मधु को घर से निकाल सकता था और न मधु पर बेवजह आरोप लगा सकता था. मधु उस का हर काम समय पर पहले की तरह करती थी.

विनोद को रोज सुबह औफिस जाना होता था और औफिस जाने के बाद घर में क्या हो रहा है वह नहीं जानता था. दरअसल, वह जानना भी नहीं चाहता था. कहीं न कहीं उसे पता था कि मधु उस से उतनी खुश नहीं है जितना होना चाहिए. ऐसे में अगर कहीं और से उसे खुशी मिल रही है तो फिर वह गलत कहां है. विनोद अपने मन को समझ लेता कि दोनों अच्छे पड़ोसी की तरह एकदूसरे की हैल्प कर देते या बातें कर लेते हैं. इस से ज्यादा तो कुछ नहीं करते. मगर फिर एक दिन विनोद ने मधु को उस लड़के के साथ सिनेमाहाल के बाहर देखा और तब उस का माथा ठनका कि उन का रिश्ता तो काफी आगे बढ़ चुका है. यह सोचसोच कर वह रातभर बेचैन रहा.

औफिस में भी दिनभर उस से काम नहीं हो पा रहा था. वह कल्पनाएं करने लगा कि दोनों क्याक्या कर रहे होंगे. विनोद मधु से सवाल करना चाहता था. मगर क्या कहता? मधु कहीं उसे पलट कर जवाब न दे दे यह सोच कर वह चुप रहता. कई बार उन पर नजर रखने के लिए जल्दी घर आ जाता या फिर औफिस जाने के बहाने ऐसे ही कहीं रुक कर देखता रहता कि दोनों क्या कर रहे हैं. एक दिन जब विनोद औफिस से जल्दी आया तो उस ने देखा कि मधु घर में नहीं है. फोन करने पर पता चला कि वह सामने मधुर के घर में है. मधु के लौटने पर जब विनोद ने सवाल किया तो मधु ने बिना घबराए कहा, ‘‘उस की मां की तबीयत खराब थी इसलिए मैं उन की देखभाल करने गई थी. फिर हमारा बच्चा भी तो अकसर उन के पास रहता है तो थोड़ा हमारा भी फर्ज बनता है कि मैं उन के लिए भी करूं.’’

विनोद के पास मधु को डांटने के लिए कोई वाजिब वजह नहीं थी सो वह चुप रहा. कहीं न कहीं यह सच था कि मधुर की वजह से घर अच्छी तरह संभल रहा था. सारे काम सही हो रहे थे. हाल यह था कि मधु को जब जरूरत होती अंशुल मधुर उस की मां रख लेती थी. जब खाना मंगाना होता तो मधुर जोमैटो से तुरंत मंगा देता. जब कोई बड़ा काम करने की जरूरत होती तो भी मधुर सहायता के लिए हाजिर रहता और तब विनोद भी ऐतराज नहीं कर पाता. कभी बच्चे की तबीयत खराब होती तो मधुर ही जल्दी से उसे मधु के साथ डाक्टर के पास ले जाता. विनोद खुद तो औफिस में होता. ऐसे में इमरजेंसी में अगर कोई हैल्प करने वाला है तो बुरा क्या है. विनोद की समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. वह मधुर को अपनी पत्नी से दूर तो रखना चाहता था मगर यह संभव भी नहीं दिखता था. अगर वह कहता तो मधुर सारे काम करना छोड़ देता. कई बार उस ने सोचा कि घर बदल ले लेकिन घर बदलना आसान नहीं था.

बहुत मुश्किल से यह घर कम किराए पर मिल गया था. विनोद को यह भी लगता कि अगर वह घर बदल भी ले तो क्या पता नए घर में मधु को कोई और मिल जाए. यही सब वजहें थीं कि आजकल विनोद काफी पशोपेश में रहने लगा था. कई बार उसे समझ ही नहीं आता वह क्या करे. न मधु को डांट सकता था और न उसे किसी और के करीब जाता देख सकता था. हर समय मधु से कटाकटा सा जरूर रहने लगा था मगर पूरी तरह रिश्ते को तोड़ना भी आसान नहीं था. एक दिन विनोद के मांबाप कुछ दिनों के लिए उस के पास रहने आए. विनोद को मौका मिल गया.

एक दिन जब मधु घर में नहीं थी तो उस ने अपनी मां से दिल की बात शेयर की और बताया कि मधु का सामने वाले लड़के के साथ चक्कर चल रहा है और वह घर बदलने की सोच रहा है. मधुर की सोच के विपरीत मां ने उसी पर सवाल दाग दिए, ‘‘अच्छा यह बता कितनी जगह घर बदलेगा? अरे जवान औरत है. उस की भी तमन्नाएं होंगी. अगर किसी को देख कर या किसी के साथ बातें कर खुशी मिलती है तो खुश रहने दे न उसे. ऐसा क्या गजब कर रही है वह? तेरा तो हर काम कर रही है न?’’ ‘‘अरे मां यह आप क्या कह रही हो? क्या इस तरह का रिश्ता रखना सही है? क्या मैं इस तरह का रिश्ता रख रहा हूं?’’ विनोद ने चिढ़े हुए स्वर में कहा. ‘‘तुझे कौन घास डालेगी बेटा अपनी उम्र तो देख. जबकि मधु तुझ से काफी छोटी है. उस की अपनी तमन्नाएं होंगी. वैसे भी बेटा ऐसा हर जगह होता रहता है. तू कितना भी भाग लेने की कोशिश कर, मधु को कितना भी रोक पर जो होना है वह तो होगा ही,’’ मां ने उसे समझने की कोशिश की.

‘‘पर मां आप भी तो कभी मधु की उम्र के थे. आप ने तो ऐसा गलत नहीं किया. आप के और बाबूजी की उम्र में भी बहुत अंतर था. मगर गांव की औरतें इतनी हिम्मत नहीं कर सकतीं. तभी तो मैं सोच रहा हूं मधु को ले कर गांव रहने आ जाऊं.’’ ‘‘तुझे क्या पता बेटा गांवों में क्या नहीं होता है. तू मुझे कह रहा है कि मेरी भी उम्र थी तो बता दूं. मैं ने अपनी उम्र में बहुत गुल खिलाए हैं. तुझे मालूम है गांव में किस तरह के रिश्ते आगे बढ़ते रहते हैं, अरे साली के साथ, भौजाई के साथ, दोस्त की बहन के साथ, पत्नी की सहेली के साथ, पड़ोसी के साथ. वहां तो किसी के भी साथ ऐसे रिश्ते बन जाते हैं.

खेतों में जा कर देख क्याक्या होता है. मधु की क्या कहूं मैं तो खुद भी यह सब कर चुकी हूं. कोई था हमारे पड़ोस में और मैं उस पर लट्टू थी. हम कई बार मिले हैं. कभी बगीचे में घूमते रहते थे तो कभी खेतों में निकल जाते. एकदूसरे के हाथों में हाथ डाले घूमते रहते. सब जगह चलता है बेटा परेशान मत हो.’’ ‘‘मगर वह मुझे धोखा दे रही है और मैं चुप रहूं?’’ ‘‘तुझे क्या पता क्या धोखा दे रही है? किसी से बात कर लेने का मतलब धोखा देना नहीं हो जाता,’’ मां ने डपटते हुए कहा. ‘‘मुझे क्या पता वे लोग दिन में क्या करते हैं? कहां तक रिश्ता पहुंचा है? क्या पता उस के साथ सोई भी हो?’’ विनोद ने अपना शक जाहिर किया. ‘‘यह सब इतना आसान नहीं है बेटा. वह भी यहां शहर में इतनी भीड़ में. पता है तुझे मैं तेरे घर आती हूं तो रास्ते में ही 10 लोग मिल जाते हैं. कोई सीढि़यों पर, कोई गेट पर, कोई गली में.

अगर मधु बारबार उस के घर जाएगी तो क्या लोगों की नजर नहीं उठेगी? वह कभी जरूरत हो तो ही किसी काम से जाती होगी और फिर देख तेरा घर कितने अच्छे से संभाल रखा है. खाना भी इतना अच्छा बनाती है. कभी किसी काम के लिए मना नहीं करती. तू सैलरी ज्यादा लाए या कम उसे कोई फर्क नहीं पड़ता. तू इतना बड़ा है उस से पर कभी उस ने कोई शिकायत नहीं की.

मेरी कितनी सेवा करती है जो भी कहो तुरंत कर देती है. मेरे लिए साडि़यां खरीद लाती है. सारे काम, घर की सारी जिम्मेदारियां उसी के ऊपर हैं. अगर वह लड़का उस की मदद कर देता है तो क्या बुरा है? और अगर इन दोनों के बीच कुछ चल भी रहा है तो तू क्या कर लेगा? अरे तू अपनी जिंदगी खराब करेगा क्या? आजकल लड़कियां मिलती कहां हैं? दूसरी शादी कहां से हो जाएगी तेरी? अभी सब संभला हुआ है. बच्चा भी है. उसे छोड़ देगा तो तू कहां जाएगा? तेरा क्या होगा? इसलिए मेरी मान और शांति से बैठ. मेरी बहू पर नजर रखना छोड़. अपने काम से काम रख. समझ?’’ मां ने समझया.

मां की बातें सुन कर विनोद को भी समझ आ गया कि वह नाहक मधु को ले कर इतना अपसैट है. थोड़ा भरोसा और थोड़े सब्र के साथ ही जीवननैया आगे बढ़ती है. जीवनसाथी से जितना मिल रहा है उसी में खुश रहना अच्छा है. बंधन ज्यादा कसने पर टूट ही जाता है. वैसे भी शादी के लिए लड़कियां आसानी से मिलती नहीं. जो मिली हुई है उस को खोने से जिंदगी बोझ बन जाएगी.  Family Kahani

Social Story in Hindi: आई एम ए बिग डील

Social Story in Hindi: मानो कल की ही तो बात थी जब चेष्ठा पहली बार अमन से मिली थी. हाई स्कूल का सब से हैंडसम लड़का अमन जो सिर्फ चेष्ठा को देखता था. अमन और चेष्ठा की जोड़ी स्कूल की सब से हैपनिंग जोड़ी थी. स्कूल के दिनों से ही अमन को फोटोग्राफी का शौक था और चेष्ठा को पेंटिंग का. एक खूबसूरती को डीएसएलआर से कैमरे में कैद करता और दूसरा मन की आंखों से देख उन्हें पेंटिंग से बयां करता. शायद दोनों के बीच की कैमिस्ट्री इसी वजह से बनी. आगे जा कर दोनों के कालेज भले अलग हो गए लेकिन साथ कभी अलग नहीं हुआ. दोनों के घरों में एकदूसरे के आर्ट दीवारों पर सजे रहते थे.

उन की जोड़ी उन के मांबाप बहुत पहले स्वीकार कर चुके थे. दोनों ही हाई सोसाइटी परिवार से थे, जहां प्रेम संबंधों को ले कर खयाल खुले होते हैं. दोनों परिवारों का स्टैटस भी मैच होता था तो कभी बच्चों के प्रेम पर पाबंदी नहीं लगी. वैसे भी प्रेम को ले कर हायतोबा अकसर मध्यवर्गीय परिवारों में ही होती है. कालेज की फाइनल परीक्षा हो चुकी थी और दोनों अपने आगे के लक्ष्य के लिए तैयार थे. एक रात हमेशा की तरह दोनों वीडियो कौल पर थे. ‘‘लंदन जा कर कोई गोरा मत पटा लेना,’’ अमन ने टांग खिंची. ‘‘हां बस आसीए एडमिशन मिल जाए फिर मैं पक्का तुम्हें भूल जाऊंगी.’’ ‘‘अच्छा मैडम. वैसे अमन रस्तोगी जैसा कोई नहीं.

स्ट्रौंग, हैंडसम, रस्तोगी डिजाइन का नैक्स्ट डिजाइन हैड.’’ ‘‘क्या? क्या?’’ चेष्ठा चौंक गई. ‘‘चौंक गई न. आज डैड के साथ कंपनी गया था. वहां जा कर काफी अच्छा लगा. लोग पसंद करते हैं मुझे. चाहते हैं मैं जल्द ही कंपनी जौइन करूं.’’ ‘‘ऐसा लोग चाहते हैं या तुम्हारे डैड या तुम?’’ ‘‘क्या फर्क पड़ता है.

आखिर है तो सब मेरा ही. देखो डैड चाहते हैं कि मैं कंपनी जौइन करूं, अपना बिजनैस संभालूं.’’ ‘‘तुम्हारा बिजनैस?’’ ‘‘औफकोर्स मेरा. डैड ने आज खुद कहा कि सन इट्स आल यौर्स. यह सुन सीना इतना चौड़ा हुआ कि क्या बताऊं. अब बस एमबीए हो जाए, फिर सब मेरे हाथों में होगा.’’ ‘‘एमबीए. मगर तुम तो डौक्यूमैंट्री इंटरशिप के लिए बैंगलुरु जाने वाले थे? तुम्हें तो रेहान क्रोकेविएल की तरह बनना था. अपना पैशन छोड़ तुम्हें डैस्क जौब करनी है?’’ ‘‘क्या डैस्क जौब वह जौब नहीं मेरा फर्ज है और मेरा हक भी. मेरे डैड का बिजनैस आखिर मेरा ही तो है.’’ ‘‘मगर अमन…’’ ‘‘कोई मगर नहीं. यह मेरा अपना डिसीजन है. लोगों की आड़ीटेढ़ी तसवीरें अपने शौक के लिए खींचता हूं और शौक बदलते रहते हैं. चेष्ठा देखना एक दिन तुम्हारा भी पिकासो बनने का भूत उतर जाएगा.’’

अमन की बातें चेष्ठा की समझ से परे होती जा रही थीं. उस ने काल कट कर दी और अपनी नई पेंटिंग को देखने लगी. यह नई पेंटिंग अमन का बर्थडे गिफ्ट थी. एक तसवीर जिसे चेष्ठा ने अपने हाथ से बनाया था. आज जब 2 हफ्तों बाद यह कंप्लीट हुई तो अमन ने अपने आइडियल रेहान क्रोकेविएल को डिच ही कर दिया. वह रेहान जिस की खींची तसवीर अमन दोगुनी कीमत पर भी खरीदता था. चेष्ठा बेचैन थी, शायद इस की वजह अमन का बिजनैस जौइन करने का डिसिजन था. चेष्ठा को इस बात से दिक्कत नहीं थी कि अमन ने बिजनैस चुना उसे दिक्कत इस बात से थी कि उस ने अपने ड्रीम से पहले बिजनैस को चुना.

अगर वह अपनी फोटोग्राफी इंटरशिप पूरी कर के बिजनैस जौइन करता तो चेष्ठा को दुख नहीं होता. एक शाम चेष्ठा छोटी बहन निष्ठा और मांबाप के साथ अमन की बर्थडे पार्टी मे पहुंची है. दोनों परिवार एकदूसरे से खुशीखुशी मिले. बिजनैस, स्पोर्ट्स, बौलीवुड की बहुत जोरशोर से चर्चा हो रही थी. पार्टी बहुत बड़ी थी और उस से भी बड़े उस में आए लोग. तभी एक गैस्ट के आने से पार्टी का रंगीन माहौल एकदम से संजीदा हो गया है. ‘‘क्या वह नीरज कुमार है?’’ ‘‘एमएलए नीरज कुमारजी,’’ अमन ने चेष्ठा को सही किया. ‘‘जी और इस अमन पर 2 साल पहले ही रेप चार्ज लगा था और तुम ने इसे यहां बुलाया है?’’ ‘‘चेष्ठा धीरे बोलो. मत भूलो वह एक एमएलए है और डैड का गैस्ट भी.’’ तभी अमन के डैड ने उसे इशारा कर बुला लिया तो अमन और चेष्ठा उन के पास पहुंचे. ‘‘अच्छा आप ही का जन्मदिन है. बहुत बधाई हो,’’ एमएलए बधाई दे कर अमन के गले में एक सोने की चेन पहनाई.

डैड के इशारे पर अमन ने एमएलए के पैर छुए जो चेष्ठा को बिलकुल पसंद नहीं आया. तभी एमएलए की नजर चेष्ठा के नाराज चेहरे पर पड़ी बोले, ‘‘और यह कौन? आप की कोई बेटी तो है नहीं. फिर?’’ ‘‘बेटी जैसी है… अमन की दोस्त है,’’ अमन के डैड ने कहा. ‘‘गर्लफ्रैंड बोल दीजिए अजयजी. हम भी खुले विचारों के हैं. जोड़ी सुंदर है और वैसे भी आजकल के बच्चे प्यार, रिश्ता, हनीमून सब खुद ही तय कर लेते हैं.’’ अमन के पापा ने मुसकरा कर अमन को इशारा किया और अमन ने चेष्ठा को.

चेष्ठा अमन का इशारा तो समझ गई थी लेकिन एमएलए का व्यंग्य सुन अमन ने उसे अवौइड कर दिया. कुछ देर बाद, ‘‘यह क्या था चेष्ठा?’’ कह अमन ने गुस्से में अपने कमरे का दरवाजा बंद कर लिया. ‘‘क्या?’’ ‘‘नादान मत बनो. तुम अगर उस के पैर छू लेती तो क्या होता? डैड को यह अच्छा नहीं लगा ओके.’’ ‘‘अमन मेरी ड्रैस कटवाली है तो नीचे कैसे झकती और अगर मैं ने साड़ी भी पहनी होती तो भी मैं उस रैपिस्ट के पैर नहीं छूती.’’ ‘‘धीरे बोलो चेष्ठा.’’ ‘‘क्या धीरे? तुम खुद कालेज के दिनों में सब को बोलते थे उसे वोट न करने को और अब उस की दी चेन पहने फिर रहे हो.’’ ‘‘पहले तो मुझे अब फर्क नहीं पड़ता उस ने क्या किया क्या नहीं? दूसरा यह चेन सिर्फ दिखावा है. उस का हमारे साथ होना बिजनैस को फायदा दिलाएगा. सो प्लीज रिस्पैक्ट हिम, झठा ही सही.’’ ‘‘मगर अमन…’’ ‘‘कोई मगर नहीं. मेरे बर्थडे के दिन मत लड़ो.’’ फिर दोनों कुछ देर चुपचाप बैठे रहे. ‘‘वैसे मेरा गिफ्ट कहां है?’’ कह चेष्ठा अमन के कमरे में रखे एक बड़े से गिफ्ट को अनरैप करने लगी.

‘‘ओह, गोश. तुम ने मेरे लिए बनाया,’’ अमन रेहान का पोर्ट्रेट देख शौक्डहो गया. ‘‘यह तो बहुत कमाल का है. लगता है अभी बोल पड़ेगा,’’ अमन अपना गिफ्ट देख बहुत खुश था. उस ने अपने कमरे में लगे सैंटर पीस को हटा कर वह पेंटिंग वहां रख दी. ‘‘वी आर यंग, हमें पहले अपना ड्रीम पूरा करना चाहिए..़’’ चेष्ठा का इशारा अमन की इंटरशिप की तरफ था. ‘‘एक बार मास्टर हो जाए, फिर कुछ दिन का ब्रेक लें… यह भी कर लेंगे.’’ ‘‘यह पहले कर लो… तुम्हारे डैड जानते थे कि तुम्हें क्या करना है और वे चाहते भी थे कि तुम अपने सपने पूरे करो.’’ ‘‘हां चेष्ठा वे मुझे नहीं रोक रहे. बस यह चाहते हैं कि मैं अपनी जिम्मेदारियां जल्दी समझूं तो इस में गलत क्या है और फोटो तो मैं कभी भी, कहीं भी ले सकता हूं,’’ और अमन अपना कैमरा उठा चेष्ठा की तसवीरें लेने लगा. तभी कमरे के दरवाजे खटखटाने की आवाज आई, ‘‘यह पार्टी तुम्हारी है अमन. चेष्ठा के अलावा भी लोग हैं दुनिया में जो तुम से मिलना चाहते हैं,’’ अमन के मामा की आवाज में एक फटकार थी.

अमन की मां चेष्ठा के लिए कभी ऐसी टोन इस्तेमाल नहीं करती थीं. इसलिए दोनों थोड़ा हैरान थे. जब दोनों कमरे से बाहर आए तो बहुत सी बातें जान चौंक गए. जैसे चेष्ठा का परिवार घर जा चुका था. दरअसल, चेष्ठा की मां उसी अखबार की ऐडिटर हैं जिस ने एमएलए के रेप केस को बहुत तूल दिया था. जब एमएलए और चेष्ठा की मां का आमनासामना हुआ तो दोनों के बीच थोड़ी व्यंग्यबाजी हुई. शायद इस वजह से दोनों पार्टी से जल्दी चले गए. कुछ देर बाद अमन भी चेष्ठा को घर छोड़ने निकल पड़ा. ‘‘क्या शानदार बर्थडे रहा मेरा.’’ ‘‘मां तुम्हारा बर्थडे तो स्पौइल नहीं करेगी न?’’ ‘‘हां मुझे पता है. उन का कोई इंटैंसन नहीं होगा. वे तो बस उन के तीखे आर्टिकल. वे थोड़ा ब्लंट बोलती और लिखती हैं.

खैर उन का प्रोफैशन ही ऐसा है. मुझे ध्यान रखना होगा नैक्स्ट टाइम दोनों न मिलें.’’ अपनी मां के लिए तीखे, ब्लंट जैसे वर्ड सुन चेष्ठा अमन को घूरने लगी. चेष्ठा अमन को पसंद थी उस का एक कारण उस की मां ही थी. उस की मां के लेख की सचाई और असामाजिक तत्त्वों के सामने हिम्मत से खड़े होने वाली शक्ति को देख अमन इतना प्रभावित होता था कि फोटोग्राफी छोड़ जर्नलिस्ट बनने की सोचता था. तो कैसे आज वही अमन उन लेखों को तीखे, ब्लंट बोल रहा है. ‘‘वैसे उन का सर्वाइकल कैसा है? किस तरह वे दिनरात अपने काम में खोई रहती हैं. अपनी सेहत का ध्यान नहीं रखतीं. उन्हें अब आराम करना चाहिए.

रिटायरमैंट या बड़ा ब्रेक ले कर किसी हौलिडे पर निकल जाएं. मे बी सैकंड हनीमून. शी नीड ब्रेक. कितना काम करेंगी. तुम और निष्ठा अपना ध्यान रख सकते हो. उन्हें सच में आराम करना चाहिए.’’ अमन को अपनी मां की चिंता कर देख चेष्ठा को अच्छा लगा. घर पर सब सो चुके थे तो चेष्ठा भी कपड़े बदल सो गई. सुबह ब्रेकफास्ट पर चेष्टा की मां ने पूछा, ‘‘पार्टी कैसी रही?’’ ‘‘सब ठीक रहा. आप तो कल की बात से नाराज या…’’ ‘‘नहींनहीं चेष्ठा हमारे और नेताओं के लिए तो यह रोज की खींचातानी है.

इस से फर्क नहीं पड़ता. तुम और अमन तो…’’ ‘‘नहीं हमारे बीच सब ठीक है.’’ ‘‘गुड,’’ चेष्ठा की मां यह कह अपने औफिस के लिए निकल गईं. चेष्ठा निष्ठा से बोली, ‘‘आज पापा टैनिस कुछ ज्यादा लंबा नहीं खेल रहे. क्लब से अभी तक नहीं आए.’’ ‘‘शायद टैनिस कोर्ट में अपना गुस्सा निकाल रहे हों,’’ निष्ठा ने कहा. ‘‘गुस्सा. लेकिन मां तो शांत थीं?’’ ‘‘मां को यह सब हैंडल करना आता है. लेकिन पापा… वैसे भी एमएलए ने जो अमन के डैड से कहा पापा उस बात से नाराज हैं.’’ ‘‘ऐसा क्या कहा था उस ने?’’ ‘‘यही कि अजयजी समधी अपना नफानुकसान देख कर बनाने चाहिए.’’ ‘‘क्या ऐसा कहा उस ने?’’ ‘‘हां और जातेजाते मां को सलाह दे रहा था, ‘‘श्वेताजी, 30 साल से काम कर रही हैं, अब रिटायरमैंट ले लीजिए.’’ निष्ठा की बात सुनते ही चेष्ठा के माथे पर शिकन आ गई. उसे अच्छे से समझ आ गया कि अमन के मन में उस की मां की तबीयत और रिटायरमैंट की बात कैसे आई. ‘‘क्या? गुरुजी? 5 सालों में तो कभी नहीं बुलाया मिलने,’’ चेष्ठा ने अपनी मां से कहा. ‘‘तब तुम बच्ची थी शायद इसलिए. वैसे मैंने तो बहाना कर दिया कि मुझे मीटिंग के लिए मुंबई जाना है तो अब तुम अपना देख लो. तुम्हें वैसे भी पता है मैं इन गुरुबाबाओं के चक्करों से दूर रहती हूं और अगर पास जाऊंगी तो हैडलाइन बना दूंगी.’’ ‘‘मां मुझे भी इन चक्करों में नहीं पड़ना.’’ ‘‘बेटा वे अमन की मां के गुरु हैं तो तुम तो हमेशा के लिए इन चक्करों मे बंध गई हो.

अमन की मां ने फोन कर रिक्वैस्ट की है तुम्हारे लिए. बाकी तुम्हारी मरजी.’’ न चाहते हुए भी चेष्ठा को अमन और उस की मां के साथ गुरुजी के पास जाना पड़ता. पूरा रास्ते अमन की मां गुरुजी की महिमा सुना रही थीं और यह भी चेता दिया कि आज चेष्ठा ने सूटसलवार डाला है तो ड्रैस में कट है बहाना नहीं चलेगा. ‘‘पता है गुरुजी को भविष्य भी दिखता है. तेरे ममेरे भाई के लड़का होगा या लड़की यह पूछा था मैं ने गुरुजी से. उन्होंने कहा था कि लड़की होगी और देख लड़की हुई न. इतना बड़ा बिजनैस और हुई लड़की. अब कौन देखेगा वह सारा.’’ अमन की मां की बात पर चेष्ठा कोई प्रतिक्रिया देती उस से पहली अमन बोल पड़ा, ‘‘अब लड़कालड़की में क्या फर्क? लड़कियां भी बिजनैस संभाल रही हैं और बहुत सक्सैसफुल हैं.

चेष्ठा को देखो. इतनी टेलैंटेड है. अपना पैशन पूरा कर रही है और निष्ठा भी ला पढ़ रही है. लेकिन बाद में अंकल का बिजनैस ये दोनों ही तो संभालेगी.’’ ‘‘और घरपरिवार को?’’ अमन की मां बोली. ‘‘चेष्ठा बहुत टेलैंटेड है मां. वह सब देख लेगी.’’ पहले तो चेष्ठा अमन के इंटरशिप छोड़ने के डिसिजन से खुश नहीं थी लेकिन अब अमन और उस की मां के चेष्ठा के लिए फ्यूचर प्लान को सुन कर और भी टैंशन मे आ गई. तभी आश्रम आ गया. आश्रम बहुत बड़ा और खूबसूरत था. चारों तरफ फूल ही फूल थे. ‘‘मुझे अपना कैमरा लाना चाहिए था.’’ अमन के ये शब्द सुन चेष्ठा को थोड़ी राहत मिली कि उस के अंदर का आर्टिस्ट अभी जिंदा है और क्या पता वह बिजनैस वारिश पर कब हावी हो जाए. तभी सामने से गुरुजी आ गए.

मां के इशारे पर अमन झट से उन के पैरों मे गिर गया है. चेष्ठा ने भी उन का आदर करते हुए उन के पैर छुए है. गुरुजी अमन की पीठ जोर से ठोंक उसे आशीर्वाद देते हैं. लेकिन जब वे चेष्ठा के सिर पर हाथ रख आशीर्वाद देते हैं तो चेष्ठा झिझक से पीछे हट गई. ‘‘क्या हुआ?’’ गुरुजी ने चेष्ठा से पूछा. चेष्ठा ने संकोच से अमन की तरफ देखा, ‘‘शायद उसे लगा आप उस की भी पीठ तोड़ दोगे…’’ अमन की बात सुन गुरुजी जोर से हंस दिए, ‘‘अरे नहीं, ऐसा आशीर्वाद सिर्फ जवान लड़कों को मिलता है.

कोमल बालिकाओं को तो सिर्फ प्यार से आशीर्वाद मिलता है.’’ कुछ देर के प्रवचन के बाद गुरुजी और अमन की मां एक कोने में बैठ कुछ बातें करने लगे. ‘‘यह आदमी अच्छा नहीं है.’’ ‘‘कौन आदमी?’’ ‘‘यह तुम्हारा गुरु. उस ने मुझे छुआ.’’ ‘‘उस ने मुझे छुआ. अब यह क्या बकवास है. मैं 1 मिनट भी तुम से दूर नहीं हुआ तो फिर ऐसी ओछी बात कहां से आ गई?’’ ‘‘उस ने जब आशीर्वाद दिया तब उस ने मुझे छुआ मेरे सिर में.’’ ‘‘आशीर्वाद सिर छू कर ही देते हैं चेष्ठा.’’ ‘‘ठीक वैसे ही जैसे तुम छूते हो अमन?’’ अमन चेष्ठा को घूरने लगा. ‘‘वह सिर के बालों को यों सहला रहा था जैसे तुम करते हो.’’ भला यह आशीर्वाद नहीं होता तो क्या होता?’’ ‘‘आई नो गुड टच ऐंड बैड टच अमन.’’ अमन कुछ बोल नहीं पाया. वह कभी चेष्ठा को देखे तो कभी उस गुरु को.

थोड़ी देर बाद अमन की मां मिठाई का डब्बा चेष्ठा को पकड़ा कर बोलीं, ‘‘गुरुजी ने तुम्हारे लिए भेजी है. बोले लड़की बहुत अच्छी है, दुनिया में नाम करेगी. कुंडली भी बहुत अच्छी है तुम दोनों की. बस अब एमबीए हो जाए फिर तुम दोनों की सगाई और शादी.’’ ‘‘क्या?’’ अमन चिल्ला पड़ा है. ‘‘हां तो. जब तुम दोनों के साथ से दोनों परिवार खुश हैं तो देर क्यों करें? मुझे भी घर की जिम्मेदारियों से रिटायरमैंट लेना है. अब कुछ साल बाद सब चेष्ठा देखेगी और मैं अपने गुरुजी के आश्रम में सेवा करूंगी.’’

अमन की मां का रिटायरमैंट प्लान सुन चेष्ठा सुन्न रह गई. वह बस इंतजार कर रही थी कि कब अमन उसे अकेले मिले और वह उस पर बरस पड़े. अपनी मां को घर छोड़ जब अमन चेष्ठा को उस के घर ले जा रहा था तो दोनों की बहस शुरू हो गई. अमन पूरा रास्ते उसे समझता रहा कि वह सच में शादी की बात नहीं जानता था.

घर में आ चेष्ठा अपने कमरे में घुस गई. उस के पैरों की आवाज से उस के बिगड़े मूड को भांप उस की मां उस के पास गईं. पूछा, ‘‘क्या हुआ? झगड़ा हुआ तुम दोनों का?’’ चेष्ठा ने लंबी सांस ली और सब उगल दिया सिवा गुरु के आशीर्वाद के नहीं तो कल सच में चेष्ठा की मां गुरुजी को हैडलाइन बना देतीं. ‘‘तो इस में गुस्सा क्यों हो? शादी नहीं करनी या अमन से शादी नहीं करनी?’’ ‘‘आई लव हिम मौम, मगर 22 साल की उम्र में मुझे इन चीजों में नहीं पड़ना.’’ ‘‘तो यह बात बोल दो अमन और उस की मां को. वैसे भी उन के हिसाब से तो 2 साल हैं सगाई को.’’ ‘‘और आप के?’’ चेष्ठा की मां थोड़ा सोच कर बोलीं, ‘‘मेरे लिए तुम 2 क्या 5 या 10, जितने साल लेना चाहो ले लो. आखिर शादी कर के तुम्हें अमन के साथ रहना मुझे नहीं. यह तुम्हारा फैसला होना चाहिए न कि मेरा, न अमन की मां का.

सिर्फ तुम्हारा और अमन का. चेष्ठा स्टैंड औनली फौर योरसैल्फ नौट टू प्लीज ऐनीवन.’’ उसी रात डिनर पर चेष्ठा अपने पापा से बोली, ‘‘पापा, आप ने कभी यह सोचा कि आप के रिटायरमैंट के बाद आप के बिजनैस का क्या होगा? आई मीन मैं पेंटर हूं, निष्ठा वकील बनेगी तो आप का बिजनैस कौन संभालेगा?’’ चेष्ठा के पापा ने एक मोहक मुसकान लिए कहा, ‘‘वही जो मेरे बोर्ड में काबिल होगा. मेरा बिजनैस मेरा पैशन, मेरा ड्रीम था तो उस की जिम्मेदारी मेरी है तुम्हारी नहीं. हां तुम दोनों में किसी एक की भी बिजनैस में रुचि होती तो मैं उसे बिजनैस खुशीखुशी दे देता.

लेकिन तुम दोनों ने अपनी राह चुन ली है और मुझे पता है तुम दोनों इस में सक्सैसफुल भी रहेंगी. मैं ने वह किया जो मुझे पसंद था. तुम वह करो जो तुम्हें पसंद हो.’’ चेष्ठा ने जब यह बात अमन को बताई तो वह कुछ नहीं बोला. ‘‘कुछ बोलो अमन?’’ ‘‘मैं बस तुम्हारे पापा की बात से हैरान हूं. आखिर अपना बिजनैस किसी और के हाथों में देना तो कोई समझदारी की बात नहीं हुई. खैर, यह तुम्हारे पापा का डिसिजन है मुझे इस में कुछ और नहीं कहना.’’ अमन से बात करते वक्त चेष्ठा की नजर अपने लैपटौप पर आए एक मेल पर पड़ी, जिस के खुलते ही वह जोर से चिल्ला पड़ी, ‘‘वह आ गया… वह आ गया.’’

चेष्ठा का शोर सुन उस के पेरैंट्स कमरे में आ गए. ‘‘क्या हुआ?’’ चेष्ठा के पापा ने पूछा. ‘‘आ गया पापामां. आरसीए का मेल आ गया. उन्हें मेरी पेंटिंग पसंद आई, वे मुझे स्कौलरशिप दे रहे हैं. अब मैं लंदन जाऊंगी.’’ ‘‘हमें सैलिब्रैट करना चाहिए,’’ चेष्ठा के पापा बोले. अगली रात चेष्ठा के घर डिनर पर अमन आया. सब चेष्ठा के लिए बहुत खुश हुए. उस के जाने की प्लानिंग शुरू करने की बातें हुईं. इसी बीच चेष्ठा अमन को अपने कमरे में ले जा जोर से हग कर बोली, ‘‘मुझे भूल मत जाना.’’ ‘‘नहीं भूलूंगा.

लेकिन बहुत याद आएगी तुम्हारी. वैसे यह भी अच्छा है. जब मैं एमबीए के लिए हैदराबाद रहूंगा तब तक तुम भी अपना पिकासो ड्रीम मतलब मास्टर पूरा कर लोगी.’’ ‘‘हां, हां तुम देखना अब जल्द ही लंदन आर्ट गैलरी में मेरी बनाई पेंटिंग्स होंगी.’’ ‘‘हां गुरुजी ठीक बोल रहे थे लड़की दुनिया में नाम करेगी.’’ ‘‘अमन, फिर गुरुजी की महिमा मत शुरू करो.’’ ‘‘अच्छा अब तुम ही देखो, कल ही तुम उन से मिली और आज यह चमत्कार हो गया.’’ ‘‘चमत्कार?’’ यह हार्डवर्क है मेरा.’’ ‘‘चेष्ठा सिर्फ 28% चांस होते हैं आरसीए में एडमिशन के. उन 28% में तुम्हारा नाम. यह चमत्कार ही हुआ न?’’ ‘‘तुम्हारा मतलब यह चांस मुझे मेरे हार्डवर्क से नहीं चमत्कार से मिला है. ऐसा है तो मैं सिर्फ एक फार्म सबमिट कर देती न कोई वर्क न पोर्टफोलियो. तो क्या तब भी मेरा नाम आता? अमन मुझे सिर्फ एडमिशन नहीं स्कौलरशिप मिली है जो किसी का काम, हार्डवर्क, पेंटिंग देख कर दी जाती है न कि एक सिंपल ऐप्लिकेशन देख कर.’’

अमन झेंप कर बोला, ‘‘मुझे कुछ नहीं कहना.’’ ‘‘लेकिन मुझे कहना है. मैं अभी सिर्फ अपने कैरियर के बारे में सोचना चाहती हूं. आरसीए, खुद का आर्ट स्टूडियो. तो मुझे अभी इस शादी के चक्कर से दूर रखो.’’ ‘‘तो तुम इस बात से अभी तक नाराज हो. मां ने शादी करने को नहीं कहा. वे सिर्फ उस की बात कर रही थीं. इतनी जल्दी शादी मुझे भी नहीं करनी. हां लेकिन करनी तुम से ही है इतना तो तय है. मगर तुम्हारा तय है या नहीं वह मुझे अब नहीं पता,’’ और फिर नाराजगी में अमन डिनर किए बिना ही चला गया. जैसेजैसे चेष्ठा के लंदन जाने के दिन नजदीक आ रहे थे, चेष्ठा और अमन की दूरी बढ़ती जा रही थी. 17 साल की उम्र में जो तितलियां अमन को देख चेष्ठा के आजूबाजू उड़ती थीं वे आज न जाने कहां गायब हो गई थीं.

जिस अमन को चेष्ठा जानती थीं वह भी थोड़ा बदल चुका था या शायद पूरा ही. चेष्ठा का अमन अंधविश्वासों से दूर रहता था, खुद की काबिलीयत साबित करना चाहता था, दुनिया के कोनेकोने ऐक्स्प्लोर करना चाहता था लेकिन यह अमन खुद को अपने डैड के चैंबर में कैद करना चाहता है और चेष्ठा को अपने घर में. इसी दुख को लिए चेष्ठा अपनी मां के पास गई, ‘‘जो आप के आर्टिकल पढ़ कर इंस्पायर होता था आज उसी को आप के आर्टिकल ब्लंट लगते है. मैं ने सोचा था मैं और अमन, आप और पापा की तरह कूल कपल रहेंगे जो एकदूसरे को मोटीवेट करेंगे, सपोर्ट देंगे. मगर…’’ ‘‘मगर तुम्हें हमारे जैसा बनना ही क्यों है? यह गलत है. तुम्हें मेरा जैसा या अमन को तुम्हारे पापा जैसा क्यों बनाना है? क्या मैं और तुम्हारे पापा अपने पेरैंट्स जैसे हैं? नहीं न? अपना परफैक्ट कपल थीम तुम दोनों खुद बनाओ न कि हमें या किसी और को कौपी कर.

तुम्हारे पापा व्हाइट पसंद करते हैं और मैं ब्लैक. उन्हें टैनिस पसंद है और मुझे क्रिकेट. हम दोनों ने अपनी पसंद को अपनाए रखा और अपनी पसंद एकदूसरे पर थोपे बिना साथ निभाया. इसलिए अपना टाइम लो और फिर कोई डिसिजन लो.’’ अपनी मां की राय चेष्ठा ने अच्छे से सुनी और समझ. अगले दिन वह अमन से मिलने उस के घर गई. उस ने सोचा आज सारे गिलेशिकवे मिटा ठंडे दिमाग से बात कर दोनों अपनी दूरिया तय करेंगे. घर में घुसते ही चेष्ठा ने अमन की मां को ग्रीट किया लेकिन वे उसे नजरअंदाज कर चली गईं. 5 सालों में ऐसा पहली बार था कि अमन की मां ने उस से रूखा बरताव किया. अमन किसी के साथ काल पर था इसलिए चेष्ठा चुपचाप उस के कमरे में बैठ गई. तभी 2 हैल्पर अमन का कुछ सामान पैक करने आए. एक कुछ बौक्स उठा ले गया और एक रेहान की पेंटिंग ले जा रहा था कि चेष्ठा ने उसे टोका और पेंटिंग वापस कमरे में रखने को कहा. हैल्पर पेंटिंग रख चला गया.

अमन काल पर काफी देर तक बात करता रहा. इस बीच दोनों के लिए कौफी भी आ गई. चेष्ठा ने कौफी के 2 घूंट लिए कि अमन ने उस के पास बैठ उस का माथा चूमते हुए कहा, ‘‘चलो तुम्हारा गुस्सा शांत हुआ.’’ ‘‘सामान कहां जा रहा है?’’ ‘‘वह कल हैदराबाद के लिए निकलूंगा इसलिए कुछ सामान साथ ले जा रहा हूं.’’ ‘‘क्या कल? तुम ने बताया भी नहीं?’’ ‘‘अरे सब सडन डिसाइड किया. वैसे अभी तुम्हारे ही पास आने वाला था.’’ चेष्ठा को इस बात का बुरा तो लगा कि अमन ने उसे अपने जाने का पहले नहीं बताया लेकिन उसे इस बात की खुशी भी थी कि अमन उस की बनाई पेंटिंग साथ ले जा रहा है.

आज तुम पूरा दिन मेरे साथ हो. तो बोलो कहीं बाहर चलना या मेरे साथ इस कमरे में बंद होना है. चेष्ठा अमन से लिपट कर बोली, ‘‘मुझे तुम्हारी बहुत याद आएगी.’’ ‘‘जिस तरह आजकल तुम लड़ रही हो न, तो याद का ऐसा लगता नहीं.’’ ‘‘तुम लड़ते हो… तुम बदल गए हो अमन.’’ ‘‘अच्छाजी, अपनी जिम्मेदारियों को समझना और मैच्योर बिहेव करना अगर बदलना है तो यह बदलाव अच्छा है और ऐसे बदलाव की थोड़ी जरूरत तुम्हें भी है.’’ ‘‘मुझे?’’ ‘‘हां तुम्हें. अगर मैं चेंज हो डैड की जगह ले रहा हूं तो तुम्हें भी कुछ चेंज कर मां की तरह बनना पड़ेगा. तभी तो हम परफैक्ट कपल बनेंगे. मेरे मांडैड की तरह.’’ ‘‘लेकिन हमें तुम्हारे मांडैड की तरह क्यों बनना है?’’ ‘‘तो क्या तुम्हारे डैड की तरह बनें जो पति टैनिस खेलता रहता और बीवी दिनरात लोगों की लाइफ को मासलेदार सुर्खिया बनाती है.’’ अमन की टिप्पणी में अभद्रता थी. उस का उपहास भरा स्वर सुन चेष्ठा को बहुत क्रोध आया. वह कुछ कहती तभी हैल्पर दोबारा कमरे में आया.

अमन ने उसे आंखें दिखा कहा, ‘‘अब फिर क्यों आए हो?’’ ‘‘सर वह एमएलएजी का सामान ले जाना है या नहीं? वही पूछना था.’’ ‘‘हां ले जाना है. अभी तक ले क्यों नहीं गए?’’ ‘‘वह मैडम ने रखवा दिया था.’’ ‘‘अच्छा कोई नहीं अब ले जाओ.’’ जैसे ही हैल्पर रेहान का पोर्टे्रट उठाने लगा चेष्ठा ने अमन को घूर कर देखा. अमन बहुत कूल हो बोला, ‘‘अरे वह कल नीरजजी आए थे. पापा उन्हें तुम्हारी बनाई पेंटिंग दिखा रहे थे. उन्हें बहुत पसंद आई. उन्होंने कहा कि तुम उन का भी पोर्ट्रेट बना देना. उन के कैंपेन को अच्छा प्रमोट मिलेगा. और हां रेहान उन को अपने बेटे जैसा दिखा तो पापा ने इसे गिफ्ट करने को कहा.’’ ‘‘क्या?’’ चेष्ठा तिलमिलाई. अमन फिर कूल बन बोला, ‘‘अरे इतना नाराज मत हो. तुम तो ऐसे और भी बना सकती हो. इट्स नौट अ बिग डील.’’ अमन की बातें चेष्ठा के तनमन में आग लगा चुकी थीं. उस की आंखें जितनी आंसुओं से भरी थीं उतनी ही लाल भी हो चुकी थीं.

अमन की हरकत देख चेष्ठा अपना आपा खो रही थी. उस ने आव देखा न ताव और सीधा अपनी कौफी रेहान की तसवीर पर फेंक अमन से बोली, ‘‘यह मेरी पेंटिंग है जिस के लिए न वह रैपिस्ट डिजर्व करता है और न तुम जैसा मौकापरस्त, जिस की विचारधारा इतनी खोखली है जो बिजनैस प्रौफिट्स के लिए अपनी बुद्धि, अपनी संवेदना ही बेच दे.’’ ‘‘चेष्ठा,’’ अमन गुस्से से आगबबूला हो उठा. मगर चेष्ठा भी उस के सामने खड़ी हो जार से चिल्लाई, ‘‘इट्स ओवर अमन. मुझे तुम्हारे मांडैड की तरह परफैक्ट नहीं बनना, न अपने मांपापा की तरह. मुझे सिर्फ अपने जैसे बने रहना है. माई पेंटिंग, माई चौइस, माई फीलिंग्स आर बिग डील. इट्स आलवेज अ बिग डील अमन रस्तोगी.’’   Social Story in Hindi

Hindi Suspense Story: क्लीन स्लेट

Hindi Suspense Story: रात काली होती ही है लेकिन वह रात मुझे जरूरत से ज्यादा काली लग रही थी. केवल काली ही नहीं, भयावह भी. सन्नाटा दिल को चीर रहा था. पलकें नींद से बोझिल थीं पर मन की बेचैनी आंखों और नींद के बीच एक दूरी स्थापित किए हुए थी. मस्तिष्क पर इधरउधर के खयालों का ऐसा बोझ था कि माथे की नसें चटकती सी महसूस हो रही थीं, उफ, मैं ने भी यह क्या कर डाला. शाम को जब अरुण और में दोनों दफ्तर से एकसाथ घर में समय से पहले ही आए तो मैं ने हड़बड़ाहट में अपना मोबाइल किचन कैबिनेट में रख दिया. अकसर हम दोनों एकदूसरे की मोबाइल रिंग बजने पर उठा लेते थे. दोनों को एकदूसरे के पासवर्ड भी पता थे.

चायनाश्ता करने के बाद मैं रात के खाने की तैयारी में लग गईर् और जब मैं ने खाना मेज पर लगाया तो देखा कि अरुण उसी कैबिनेट में कुछ खोज पढ़ रहे हैं. मेरा सिर चकराने लगा. मुझे ऐसा लगा कि मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक रही है. मुंह से यह भी नहीं निकला कि खाना लग गया है. अचानक अरुण की निगाह मुझ पर पड़ी और बोले, ‘‘अरे आशा, तुम ने कहा क्यों नहीं कि खाना लगा दिया? बस, जरा यह बींस का कैन निकाल लूं. कल सुबह टोस्ट और बींस का ब्रेक फास्ट करूंगा.’’

बींस का कैन निकालते समय मोबाइल अरुण के हाथ नहीं लगा. उस के बाद अरुण ने खाना खाया और रोज की तरह थकेहारे से बिस्तर पर लेट गए. वे सो रहे थे और मैं एक आशंका से घिरी आकाश में टिमटिमाते हुए तारों को निहार रही थी. यह सोच कर दिल धकधक करने लगता कि कहीं अरुण ने मोबाइल उठा कर खोल तो नहीं लिया. उन्होंने यह भी नहीं पूछा कि मोबाइल वहां क्यों रखा है.

कहीं अरुण को मेरे और सुनील के मोबाइल उठा कर खोल कर संबंधों का पता तो नहीं लग चुका है? मेरी शादी हुए कुल 6 महीने ही हुए थे और अरुण ने इस बीच मुझे बेइंतहा प्यार दिया था. इसी प्यार ने हमारे वैवाहिक जीवन में शहद जैसी मिठास घोल रखी थी. मैं सोचने लगी, यदि अरुण ने सुनील के मैसेज पढ़ लिए तो यह मिठास एक ऐसी कड़वाहट में बदल जाएगी, जिसे जीवनभर गले से नीचे जबरदस्ती उतारना पड़ेगा. सुनील ने वह मैसेज बहुत लंबा लिखा था. उस ने हमारे पुराने प्यारभरे दिनों की स्मृति को ताजा किया था. चैट में हम दोनों के बहुत से सीक्रेट थे.

विवाह के बाद मैं उस से कहांकहां मिलती रही, इस सब के बारे में डेट टाइम प्लेस कहींकहीं लिखा हुआ था. किसिंग वाली ईमेजी भी थीं. मेरा बिकिनी वाला फोटो भी था. उस समय वह फिर इसी शहर में था और होटल में ठहरा हुआ था. अगले दिन दोपहर के 3 बजे उस ने मुझे वहां मिलने के लिए लिखा था. पुरानी यादें मस्तिष्क में उभरने लगीं और स्मृतिपटल पर सुनील का मुसकराता हुआ चेहरा अंकित हो गया. सुनील मुझे बहुत चाहता था और मैं भी उसे दिल की गहराइयों से चाहती थी.

हम दोनों के विवाह में एक ही रोड़ा था. वह था जाति का. सुनील पंजाबी था और मैं ब्राह्मण जाति की थी. हम दोनों के मांबाप इस रिश्ते के लिए कतई राजी नहीं थे. मेरे पौलिटिक्स में लगे पिता ने जल्द ही मेरी मंगनी अरुण से कर दी. अरुण देखने में सुंदर एवं स्वस्थ थे. अरुण को देख कर मेरी सहेलियों ने खूब चुटकिया ली थीं, ‘‘अरे, हमें भी ऐसा जीवनसाथी मिल जाए तो बात बन जाए.’’ सब ठहाके मार कर हंस रही थीं और मैं इसी चिंता में घुली जा रही थी कि सुनील को छोड़ कर अरुण के साथ कैसे निर्वाह कर पाऊंगी.

शादी में हजारों लोग थे. मैं चाह कर कुछ नहीं कर सकती थी. विवाह के पहले दिन ही अरुण ने मुझ पर इतना प्यार बरसाया था जैसे रुके हुए बादलों को बसरने की इजाजत मिल गईर् हो. अरुण का संपूर्ण व्यक्तित्व आकर्षणयुक्त था. वे कर्तव्यनिष्ठ तथा कर्मनिष्ठ थे. दुनियादारी भी खूब आती थी. अरुण का निश्छल प्यार पा कर मैं कुछ दिनों के लिए सुनील को भूल गई कि अचानक सुनील के खत का सिलसिला प्रारंभ हुआ और पुराना प्यार दिल में हिलोरें मारने लगा. सुनील जब भी इस शहर में आता, मैसेज द्वारा सूचित कर देता और मैं औफिस से निकल कर उस के बताए स्थान पर मिलने चली जाती. यह गलत कदम था या सही, यह मैं नहीं जानती थी.

मैं तो बस इतना जानती थी कि मैं सुनील के बिना नहीं रह सकती हूं और न ही अरुण के बिना मेरा कोई अस्तित्व है. मन के समंदर में विचारों की लहरें न जाने कब तक गोते खाती रहीं, मुझे कुछ पता नहीं चला. जब नींद के कारण मेरी आंखें जबरन बंद होने लगीं तो मैं भी बिस्तर पर लेट गई और लेटते ही नींद के आगोश में समा गई. सुबह देर से आंख खुली. 8 बज चुके थे. मैं जल्दी से उठी और सब से पहले अरुण को देखने लगी. बैठक में अरुण आराम से बैठे अखबार पढ़ रहे थे. पास ही मेज पर रखे प्याले को उठा कर चाय की चुसकियां भी लेते जा रहे थे. मैं फटाफट हाथमुंह धो कर खाना बनाने में लग गई. अरुण खाना खा कर दफ्तर चले गए. सबकुछ सहज रूप से होता गया.

लगता था, अरुण ने मैसेज नहीं पढ़े थे. अगर पढ़े होते तो कोई प्रतिक्रिया जरूर होती. मैं मैसेज डिलीट भी नहीं करना चाहती थी. वे मेरे सुनील से प्यार के इकलौते गवाह थे. मैं ने इन 6 महीनों में कितनी ही बार उन्हें बारबार पढ़ा था और हर बार मैं बेहद ऐक्साइटेड होती थी. मैं आश्वस्त हो गई और 3 बजे सुनील से मिलने होटल चली गई. 3-4 दिन यों ही व्यतीत हो गए. इधर अरुण का प्यार, उधर सुनील की चाहत, लगता था दोनों जहान मेरे हाथों में हैं. ‘‘आशा, मैं 5-6 दिन तक शाम को 8-9 बजे आया करूंगा. दफ्तर में बहुत काम है,’’ अरुण ने कार स्टार्ट करते हुए कहा.

अब तो मैं सुनील के साथ आराम से 7 बजे तक घूमती और फिर घर आ जाती. सुनील इस शहर में 15 दिनों के लिए ठहरा था. वह मेरे लिए आया था या कुछ और काम था पता नहीं. एक दिन जब 6 बजे मैं सुनील से मिल कर लौट रही थी तो रास्ते में अचानक मेरी दृष्टि एक रैस्टोरैंट पर पड़ी. अरुण एक खूबसूरत लड़की के साथ बैठे गपशप मार रहे थे. लड़की बहुत सुंदर थी, बड़ीबड़ी आंखें, तीखे नैननक्श, घुंघराले बाल, वह शादीशुदा थी. मुझे ऐसा लगा कि इस लड़की को मैं ने कहीं देखा है मगर दिमाग पर बहुत जोर देने के बाद भी मुझे यह ध्यान नहीं आ रहा था कि कहां देखा है.

शाम को जब अरुण आए तो आते ही सोफे पर धम से लेट गए और मुझ से बोले, ‘‘फटाफट चाय लाओ, आज बड़ी थकान है.’’ ‘‘तुम अतिरिक्त काम कर के कितना थक जाते हो. छोड़ो इस जंजाल को. कल से 6 बजे तक आ जाया करो,’’ मैं ने अरुण का लैपटौप एक तरफ रखते हुए कहा. ‘‘क्या बच्चों जैसी बातें करती हो, आशा. अभी तो कुछ दिन और दफ्तर में अतिरिक्त समय काम करना होगा. काम इतना ज्यादा है कि 7 बजे तक सांस लेने की भी फुरसत नहीं मिलती और तुम कहती हो कि देर तक न रुकूं. आखिर क्यों?’’ मैं ने कुछ नहीं कहा, चुप रही.

दूसरे और तीसरे दिन भी मैं जानबूझ कर उसी सस्ते में आपनी कार से लौटी और कार रोक कर देखा. अरुण उसी लड़की के साथ उसी रैस्टोरैंट में दिखाई दिए. वैसे अरुण का प्यार मेरे प्रति पूर्ववत ही था. कहीं कोई कमी नहीं थी. दफ्तर जाने से पहले वही प्यारभरी छेड़छाड़ और दफ्तर से आते ही मुझे अपनी बाहों में ले लेना. मुझे अजीब सी घुटन महसूस होती. ऐसा लगता कि लोहे के 2 हाथ जबरन मुझे भींच रहे हैं और मैं उन बांहों से अलग होने के लिए छटपटा रही हूं.

अपनी मनोस्थिति को मैं ने कभी भी अरुण पर अभिव्यक्त नहीं होने दिया. उस लड़की का चेहरा मेरे दिमाग में घूमता और दिमाग को मथता चला जाता. मेरे दिमाग ने काम करना छोड़ दिया था. हालांकि मैं भी सुनील से छिपछिप कर मिलती थी. लेकिन पता नहीं क्यों अरुण को उस लड़की के साथ बरदाश्त नहीं कर पा रही थी. ऐसा लगता था कि कहीं से मेरी अपनी चीज कोई छीन रहा है. जिस प्यार पर केवल मेरा अधिकार है, उस पर किसी और का अधिकार मैं नहीं सह सकती.

मन में विचारों की गुत्थियां बनती जा रही थीं. मेरे दिल में से आवाज उठी, ‘नहीं, मैं अरुण के प्यार को 2 भागों में विभक्त नहीं होने दूंगी. मेरा एकाधिकार है उस पर. मैं ऐसा नहीं होने दूंगी.’ दिल में से एक और आवाज उठी, ‘आशा, तुम आज अरुण के प्यार में अपना एकाधिकार ढूंढ़ रही हो. तुम ने स्वयं अरुण को क्या दिया? क्या तुम ने अरुण का वह एकाधिकार नहीं छीना जो एक पत्नी केवल अपने पति को देती है? क्या तुम ने विवाह के बाद सुनील से प्यार कर के अरुण के मन को नहीं छला?’ इन विचारों से मेरे माथे पर पसीने की बूंदें छलक आईं कि ठीक ही तो है, यदि मैं अरुण के प्यार को सिर्फ अपने लिए चाहती हूं तो अरुण भी तो मेरे प्यार को सिर्फ अपने लिए चाहने की इच्छा रख सकता है.

उफ, अब मुझे एहसास हो रहा है कि मैं खुद गुमराह हो रही थी. 2 राहों पर चल कर कोई भी व्यक्ति अपनी मंजिल प्राप्त नहीं कर सकता, हां भटक जरूर सकता है. मैं सोचने लगी कि अब तो मुझे कुछ करना होगा. मुझे एक ही राह चुननी होगी, वह राह जिस से मुझे मंजिल मिल सके. मैं ने तुरंत निर्णय लिया और मेज की दराज से लैटरपैड निकाला. फिर सुनील को आखिरी पत्र लिखने बैठ गई. उस पत्र में मैं ने सुनील को अच्छी तरह समझ दिया कि अब वह मेरी जिंदगी से हमेशा के लिए चला जाए.

इस निर्णय से मुझे बहुत राहत मिली. यों महसूस हुआ जैसे मेरे शरीर के किसी कोमल हिस्से में एक शीशा चुभा हुआ था, जिसे मैं ने अब निकाल कर फेंक दिया है. मैं ने जानबूझ कर मैसेज नहीं भेजा क्योंकि मेरा इरादा लैटर उस के होटल की रिसैप्शन पर छोड़ने का था. मगर उस लड़की का क्या होगा? कैसे पाऊंगी उस से छुटकारा? इसी ऊहापोह में रात के 2 बज गए. सुबह जब अरुण दफ्तर के लिए जाने लगे तो मैं ने कहा, ‘‘आज जरा जल्दी आ जाना, कुछ जरूरी चीजें खरीदनी हैं.’’ ‘‘कुछ दिनों बाद खरीद लेना, अभी मुझे फुरसत ही कहां है?’’ अरुण तो चले गए, मगर मुझे जरूरी चीजें खरीदनी थीं, इसलिए मैं ने सोचा अकेली ही चली जाऊं. बाजार में सारा सामान खरीदने के बाद मैं जब लौट रही थी तो एक डैस की दुकान पर अरुण को उसी लड़की के साथ देख कर चौंक गई. दिल जल कर राख हो गया.

मैं ने सोचा, आज तो फैसला हो ही जाना चाहिए. इस पार या उस पार. जब अरुण 7 बजे घर आए तो मैं उन के आते ही उन पर बरस पड़ी, ‘‘मेरे साथ बाजार चलने के लिए समय नहीं था और उस के लिए समय था.’’ ‘‘किस के लिए?’’ अरुण ने प्रश्न किया. ‘‘उसी के लिए जिस के साथ आज तुम डै्रस की दुकान में घूम रहे थे, उसी के लिए जिस के साथ रोज तुम रैस्टोरैंट में जाते रहते हो, उसी के लिए जिस के कारण मेरा तुम्हारे प्यार पर वह अधिकार नहीं रहा जो एक पत्नी का अपने पति पर होना चाहिए,’’ कह कर मैं रो पड़ी.

मेरे काफी देर तक रो लेने के बाद अरुण ने मेरे कंधे पर अपना हाथ रखा और कहा, ‘‘सोचता हूं अब तुम्हें बता दूं कि वह लड़की कौन है.’’ मैं ने प्रश्नवाचक दृष्टि से अरुण की ओर देखा. ‘‘वह लड़की कोई और नहीं, मोहन चाचा की लड़की नीलम है.’’ ‘‘क्या, वह नीलम दीदी हैं? तुम्हारे सगे चाचा की बड़ी लड़की जो शादी पर नहीं आ सकी थीं?’’ मैं ने आश्चर्यभरे स्वर में कहा. ‘‘हां, उस की शादी मेरी शादी से कुछ दिन पहले ही हुई थी, इसलिए वह मेरी शादी पर नहीं आ सकी थी. आजकल चाचाजी के यहां आई हुई है. मैं ने तुम्हें उस का फोटो भी दिखाया था. मुझे डर था, कहीं तुम उसे पहचान न जाओ.’’ ‘‘लेकिन तुम ने ऐसा क्यों किया? ओवरटाइम का बहाना बना कर नीलम दीदी से क्यों मिलते रहे?’’ ‘‘केवल तुम्हें यह एहसास दिलाने के लिए कि शादी के बाद पतिपत्नी के प्यार पर एकदूसरे का एकाधिकार होता है और तुम सुनील से मिल कर उस एकाधिकार का हनन कर रही थी.’’ मैं आश्चर्यचकित हो कर अरुण की तरफ देखने लगी.

मेरे चेहरे का रंग सफेद पड़ गया. शर्म के मारे मेरी निगाहें धरती पर पड़ गईं. अरुण ने अपनी बात आगे बढ़ाई, ‘‘आशा, उस दिन किचन कैबिनेट में मैं ने तुम्हारा मोबाइल देख लिया था और फिर कमरे में आ कर खोला था. मुझे शक हुआ कि तुम ने क्यों मोबाइल छिपा कर रखा है. मैं ने सुनील की चैट पढ़ी और तब से यह जान लिया कि शादी के बाद भी तुम अपने प्रेमी को नहीं छोड़ सकी हो. 2-3 दिन तक मैं बहुत परेशान रहा.

मैं जोरजबरदस्ती कर के तुम्हारे प्यार का यह सिलसिला छुड़ाना नहीं चाहता था. मैं चाहता था कि तुम खुद एहसास करो कि तुम गलत कदम उठा रही हो. ‘‘एक दिन नीलम का मेरे दफ्तर में फोन आया कि वह आ रही है. फिर मैं ने और नीलम ने मिल कर यह योजना बनाई. मैं जानबूझ कर होटल के पास रैस्टोरैट में नीलम के साथ जाता रहा ताकि तुम मुझे देख सको. जब तुम ने होटल जाना बंद कर दिया तब मैं सुनील से मिलने गया. वहां मैं ने तुम्हारा आखिरी पत्र भी पढ़ा जो रिसैप्शन से सुनील को मिला था,’’ यह सब कह कर अरुण चुप हो गए थे. मैं हैरान सी अरुण की ओर देख रही थी. एक अपराधिन के रूप में मैं उन के समक्ष खड़ी थी. आज उन की महानता के आगे मैं एकदम बौनी हो गई थी.

अगर वे चाहते तो उस दिन सुनील की चैट पढ़ने पर मुझे बुरी तरह डांटडपट सकते थे. गलती मेरी थी, वे मुझे अच्छी तरह जलील कर सकते थे पर उन्होंने धैर्य, संयम तथा विवेक से काम लिया और सुनील को मेरे मन से हटाने के लिए क्रोध अथवा मारपीट का इस्तेमाल न कर के मनोवैज्ञानिक ढंग से सुनील को मेरे मन से हमेशा के लिए हटा दिया. ‘‘क्या सोच रही हो?’’ अरुण ने प्यार से अपने दोनों हाथों से मेरा चेहरा ऊपर उठाते हुए पूछा. मेरे मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे. होंठ तो जैसे चिपक कर रह गए थे. थोड़ी ही देर में अरुण की बांहें मेरे इर्दगिर्द फैल गईं. फिर उन का घेरा कसता ही चला गया.

अब मुझे कोई घुटन या छटपटाहट महसूस नहीं हुई बल्कि ऐसा लगा कि काली रात के अंधियारे को चीरने के लिए आकाश पर प्रकाश छिड़कती हुई चांदनी छिटक गई है. ‘‘देखो शादी से पहले न जाने कितनों से मिलनाजुलना होता रहता है. आज की लड़कियां इंडिपैंडैंट हैं. उन्हें बंद कर के नहीं रखा जा सकता. शादी का मतलब है पिछली स्लेट क्लीन कर के नई कहानी लिखना. तुम्हारा सुनील से किस तरह का संबंध रहा है, उस से मुझे कोई मतलब नहीं और न तुम्हें कोई गिल्ट होनी चाहिए.

शादी के बाद हम एकदूसरे के लिए बने रहें, सिर्फ एकदूसरे के लिए. तीसरे की गुंजाइश नहीं होती. नीलम दीदी की भी नहीं और इसीलिए मैं ने उन्हें सुनील के बारे में कुछ नहीं बताया.’’ Hindi Suspense Story

Brother-Sister Relation: शादी के बाद भाईबहनों में क्यों बढ़ जाती हैं दूरियां

Brother-Sister Relation: एक कड़वा सच है कि पैसा, प्रौपर्टी, द्वेष और जलन के चलते खून के रिश्ते में बंधे भाईबहन भी कई बार एकदूसरे के लिए मेहमान और अनजान से हो जाते हैं. बचपन में जो एक ही परिवार में पले, एकदूसरे का हाथ थामे बड़े हो जाते हैं, शादी के बाद अपने खुद के परिवार के चलते कब एकदूसरे के लिए मेहमान बन जाते हैं पता ही नहीं चलता.

बचपन में पूरे हक से अपने प्यारे भाई से रक्षाबंधन पर गिफ्ट लेने के लिए बहन जहां अपने भाई पर हक जताते हुए बिना किसी संकोच के राखी का नेग लेती है, वहीं बड़े होने के बाद अपनीअपनी जिंदगी में व्यस्त यही भाईबहन एकदूसरे के लिए इतने अजनबी हो जाते हैं कि आपस में बात करने से पहले 10 बार सोचते हैं कि कहीं मुंह से कोई गलत बात न निकल जाए और रिश्ते में दरार न पड़ जाए.

बचपन के साथी भाईबहन, जो एकदूसरे का हर राज सीक्रेट रखते थे और अपनी हर बात एकदूसरे से शेयर करते थे, बड़े होने के बाद अचानक ऐसा क्या हो जाता है कि यही भाईबहन एकदूसरे के लिए अजनबी से बेमानी रिश्ते में बंध जाते हैं? पेश हैं, इसी सिलसिले पर एक नजर :

कड़वाहट की वजह

भाईबहनों के रिश्ते में कड़वाहट तभी कदम रखती है जब उन के बीच प्यार के बजाय स्वार्थ, द्वेष, अमीरीगरीबी का भेदभाव, बहन या भाई का महंगा शोऔफ वाला लाइफस्टाइल सच्चे दिल से जुड़े रिश्तों के आड़े आ जाता है. ऐसे में बहुत कम भाईबहन ही होते हैं जो इन सब नकली बातों को साइड में रख कर भाईबहन का रिश्ता प्यार से निभाते हैं.

ऐसे प्यार करने वाले भाई या बहन, जिन्हें पक्का यकीन होता है कि यह बंधन प्यार का बंधन है और कभी नहीं टूटेगा, वह किसी भी हाल में अपना रिश्ता निभाते हैं. लेकिन जो भाई या बहन स्वार्थ के चलते सिर्फ मतलब का रिश्ता निभाते हैं उन का रिश्ता कुछ समय के बाद खत्म हो जाता है.

कई बार इस में गलती भाई या बहन की ही नहीं होती बल्कि मांबाप की भी होती है. भाई और बहन से जुड़े अन्य रिश्ते जैसे भाई की पत्नी और बहन का पति की दखलंदाजी भी भाईबहन के रिश्ते को खराब करने में अहम भूमिका निभाती है.

भाईबहन के रिश्ते में दरार डालने वाले रिश्तेदार

भाईबहन का रिश्ता जिस में झगड़े होते हैं लेकिन निबट जाते हैं, नाराजगी होती है लेकिन मना लिए जाते हैं, उस वक्त बेगाने हो जाते हैं जब किसी तीसरे की ऐंट्री होती है.

यों शादी के बाद बहन उतनी पराई नहीं होती जितना कि भाई पराया हो जाता है. जो भाई शादी से पहले बहन को हर बात पर टोकने वाला, रोकटोक करने वाला या दूसरे शब्दों में कहें तो प्रोटैक्ट करने वाला, घर में सब से ज्यादा बहन से प्यार करने वाला होता है, अचानक ही वह उस वक्त पराया हो जाता है, जब उस की जिंदगी में उस की पत्नी की ऐंट्री हो जाती है. ऐसे में अगर उस भाई की पत्नी यानि भाभी ननद की इज्जत करती है, आवभगत करती है, तो भाई भी बहन के साथ अच्छे से पेश आता है. लेकिन अगर कहीं भाभी और ननद में नहीं बनती, तो भाभी को ननद फूटी आंख भी नहीं भाती और फिर भाई बहन से कन्नी काटने लगता है.

वहीं दूसरी तरफ अगर जीजा और साले में नहीं जमती तो इस का भी बुरा असर भाईबहन के रिश्ते पर पड़ता है क्योंकि इस के बाद बहन को ससुराल से मायके आने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

कड़वाहट की वजह

कई बार इस रिश्ते में कड़वाहट की वजह खुद उन के मांबाप भी बन जाते हैं जो कई बार अनजाने में भाईबहन में भेदभाव करते हैं. भाई को ज्यादा प्यार और सम्मान, प्रौपर्टी में पूरा हक दे कर और बहन को गरीबी में ही मरने के लिए छोड़ देने के चलते रिश्ते दरकने लगते हैं.

वहीं, बाहरी रिश्ते खून के रिश्ते को कमजोर कर देते हैं और समझदारी के बजाय घमंड और स्वार्थ के चलते भाईबहन का रिश्ता इतना कमजोर हो जाता है कि रक्षाबंधन पर भी राखी के लिए भाई बहन से मिलने नहीं आता.

समझदारी जरूरी

ऐसे में बहुत जरूरी है कि समझदारी दिखाते हुए कड़वाहट को भूल कर इस रिश्ते को पूरी ईमानदारी से और बिना किसी लालच के निभाएं और रक्षाबंधन जैसे पवित्र त्योहार को हंसीखुशी मिल कर पूरे दिल से सैलिब्रेट करें क्योंकि पैसा, पावर अलग चीज है, लेकिन अच्छा रिश्ता हर समय आप की ताकत बन कर सामने रहेगा. इसलिए भाई और बहन एकदूसरे को अकेला न छोड़ें, बल्कि इस रिश्ते में मजबूती से रहें और किसी के कहने से रिश्ते को टूटने न दें, सिर्फ रक्षाबंधन पर ही नहीं हर समय प्यारभरा साथ रहे. Brother-Sister Relation

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