Relationship Problems: शिफ्ट ड्यूटी से हो रही रिश्तों में शिफ्टिंग, क्या करें?

मैं 31 वर्षीय वर्किंग वूमन हूं. पति भी वर्किंग हैं. हमारी शिफ्ट ड्यूटी की वजह से हमारे बीच ठीक से बातचीत नहीं हो पाती है. यह हमारे झगड़े का कारण बन गया है. अब तो हालत यह हो गई है कि लीव वाले दिन भी हम बात नहीं करते. हमारे बीच प्यार खत्म सा हो गया है. कई बार मुझे यह भी लगता है कि मेरे पति का किसी और के साथ अफेयर है. बताएं मैं क्या करूं?

पतिपत्नी के रिश्ते में कभी प्यार तो कभी तकरार होना स्वाभाविक है. आप की लाइफ इतनी बिजी हो गई है कि आप अपने परिवार के साथ ज्यादा टाइम नहीं बिना पाते. पतिपत्नी के रिश्ते को मजबूत करने के लिए एकदूसरे को समय दें. एकदूसरे की रिस्पैक्ट करना बहुत जरूरी है. जो भी बात आप को परेशान कर रही हो उसे अपने पार्टनर से शेयर करें और फिर साथ मिल कर उस का समाधान निकालें. फिर भी समाधान न निकल पाए तो काउंसलर या कपल थेरैपिस्ट की मदद लें.

 

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मैं 34 साल का हूं और प्राइवेट सैक्टर में काम करता हूं. घर की टैंशन और औफिस की टैंशन की वजह से मुझे रात को नींद नहीं आती है. इस वजह से मैं ने नींद की गोलियां खानी शुरू कर दीं. मगर कुछ प्रौब्लम खत्म नहीं हुई, बल्कि और बढ़ गई. प्लीज मुझे गाइड करें?

हैल्दी जीवन गुजारने के लिए यह बहुत जरूरी है कि हम कम से कम तनाव लें. सब से पहले तो आप अपने थौट्स और फीलिंग्स पर गौर करें. जानें कि आप को क्या बात परेशान कर रही है. फिर उन्हें दूर करने की कोशिश करें. मैडिटेटिंग ऐक्टिविटीज जैसे ब्रीदिंग ऐक्सरसाइज करने से आप का माइंड रिलैक्स होगा और आप अपने काम पर फोकस कर पाएंगे. अपनी फैमिली के साथ समय बिताएं. उन से बातचीत करें, उन को समझें. धीरेधीरे आप अपनी लाइफ ऐंजौय करने लगेंगे.

मैं 30 साल की हूं. 1 साल से लीविंग रिलेशनशिप में थी. कुछ वक्त पहले मुझे पता चला कि वह लड़का किसी और से शादी कर रहा है. यह जानने के बाद मैं मैंटली ब्रेकडाउन हो गई हूं. मेरी जौब भी चली गई है. मैं मैंटल स्ट्रैस में हूं. कृपया बताएं मैं क्या करूं?

ब्रेकअप इमोशनली या मैंटली डिस्टर्ब कर देता है. हमें अकसर ऐसे खयाल आते हैं जैसे सब खत्म हो गया हो. मगर आप यह जानें कि यह बस बिगनिंग है, थोड़ी सी गाइडैंस से आप अपनेआप को संभाल सकती हैं. अपने पास्ट के बारे में सोच कर दुखी न हों. अपने फ्यूचर पर फोकस करें. उस की औनलाइन या औफलाइन ऐक्टिविटीज का ट्रैक नहीं रखें. इस से आप को ही तकलीफ होगी या आप आगे बढ़ पाएंगी. अपनी फीलिंग्स शेयर करें. सब से जरूरी यह है कि आप अपनेआप को थोड़ा वक्त दें. मैं 34 साल और 2 बच्चों की मां हूं. मैं

स्कूल टीचर हूं. मुझे हर समय मरने के खयाल आते हैं अगर मेरी तबीयत हलकी सी भी खराब हो जाए तो मुझे ऐसा लगता है कि मैं मरने वाली हूं. बस से सफर करते समय ऐसा लगता है जैसे बस का ऐक्सिडैंट हो जाएगा और मैं मर जाऊंगी. ये खयाल मेरे दिमाग में हमेशा रहते हैं. जो मुझे मैंटल स्ट्रैस में डाल रहे हैं. इस डर से मैं ने बाहर आनाजाना भी छोड़ दिया है. बताएं मैं क्या करूं?

सब से पहले तो इस बात पर गौर करें कि आप को ये थौट्स कब और किस सिचुएशन में आते हैं. जब भी आप को ये थौट्स परेशान करें आप उन्हें डायरी में रिकौर्ड करें. जब आप को वे थौट्स समझ आ जाएं और कि किस सिचुएशन में आते हैं यह समझ आ जाए तो फिर उन्हें पौजिटिव थौट्स से बलदने की कोशिश करें. अपना ध्यान उन चीजों पर लगाएं जो आप के नियंत्रण में हों. मैडिटेटिंग ऐक्टिविटीज का सहारा लें. अगर फिर भी सिचुएशन कंट्रोल में न आए तो थेरैपिस्ट की मदद लें.

मैं 27 साल की हूं. शादी को ले कर मेरे घर वाले मुझ पर प्रैशर डाल रहे हैं. कई लड़कों से मिली, लेकिन बात नहीं बनी. भविष्य को ले कर काफी टैंशन में हो जाती हूं और अपना वर्तमान समय उस से खराब कर लेती हूं. जब ऐसे विचार आते हैं तब ऐसा लगता जैसे भविष्य एकदम अंधकारमय है. मैं कुछ नहीं कर पाऊंगी. बताएं मैं क्या करूं?

कभीकभार फैमिली का प्रैशर हमें कुछ निर्णय लेने पर मजबूर कर देता है. मगर शादी एक बहुत ही अहम निर्णय है. इसे किसी के दबाव में आ कर न लिया जाए. जब आप को लगे कि आप इमोशनली, मैंटली और फाइनैंशियली तैयार हैं तभी शादी करने का निर्णय लें. फैमिली मैंबर्स से बात कर उन्हें समझएं कि आप फिलहाल शादी के लिए तैयार नहीं हैं. जब हो जाएंगी तब खुद उन्हें बता देंगी. आप के ऐसा करने से वे रिलैक्स फील करेंगे.

 

  • पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभा, ई-8, रानी झंसी मार्ग, नई दिल्ली-110055 कृपया अपना मोबाइल नंबर जरूर लिखें. sms, व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

स्टाइल और ऐलिगैंस की बात हो तो Modern Handloom का जवाब नहीं…

Modern Handloom: एक समय हैंडलूम का मतलब सिर्फ साडि़यां और दुपट्टे हुआ करते थे. लेकिन आज की फैशन इंडस्ट्री ने हैंडलूम को एक नया रंग, नया रूप और नई पहचान दे दी है. अब यह केवल परंपरा नहीं बल्कि ट्रेंड बन चुका है और वह भी ग्लोबल ट्रेंड. आजकल युवा हों या उम्रदराज, जहां स्टाइल और ऐलिगैंस को जोड़ कर देखा जाए वहां आप को स्टाइल में हैंडलूम का तड़का जरूर देखने को मिलेगा. आजकल लड़कियां फ्लोरल प्रिंट्स से ज्यादा जयपुरी स्टैंप पैंट और बांधनी प्रिंट को पहन कर ज्यादा कौन्फिडैंट फील करती हैं.

ब्रोकेड फैब्रिक का इस्तेमाल

अब ब्रोकेड के जंपसूट्स और कोटपैंट सैट काफी ट्रेंड में हैं. खादी को पहले जहां धोती तक सीमित रखा जाता था वहीं अब उस कौटन की मिनी ड्रैस, हैंडलूम कोआर्ड सैट्स, जैकेटपैंट औफिस वियर और यहां तक कि कैजुअल स्ट्रीट स्टाइल तक में मौडर्न हैंडलूम की ?ालक दिखती है. डिजाइनर्स ने इसे केवल साडि़यों या शालों तक सीमित न रख कर वर्सेटाइल फैशन ऐलिमैंट बना दिया है जो वैस्टर्न और इंडियन दोनों सिलुएट्स में खूबसूरती से फिट होता है.

तो आइए जानते हैं कैसे अब हैंडलूम टाइम टेकिंग कपड़ा न रह कर पहले से अधिक किफायती हो गया है और हमारे देश के हर स्टेट में कौन सा हैंडलूम सदियों से फैमस है उसे अब नई पहचान दी जा रही है.

हैंडलूम की रफ्तार अब मशीनों के साथ

पहले एक बुनकर को एक जटिल डिजाइन वाली साड़ी या कपड़ा तैयार करने में कई दिन, कभीकभी महीने भी लग जाते थे लेकिन आज टैक्नोलौजी की मदद से वही डिजाइनें कुछ घंटों में तैयार हो जाती हैं, जिन में कुछ ट्रैडिशनल और कुछ मौडर्न टैक्नोलौजी इस्तेमाल की जाती है जैसे सेमी औटोमैटेड करघे, जैक्वार्ड और डौबी तकनीक.

जैक्वार्ड वीविंग में हर धागा अलगअलग कंट्रोल किया जा सकता है. इस की मदद से बहुत मुश्किल और डिटेल्ड पैटर्न बनाए जाते हैं जैसे फूल, पत्तियां, जालीदार डिजाइन, जानवर आदि. इस का इस्तेमाल भी आसान है. करघे यानी लूम पर एक जैक्वार्ड अटैचमैंट जोड़ा जाता है जो हर धागे को इंडिविजुअली उठा या गिरा कर बदल सकता है.

पहले यह मैन्युअल पंच कार्ड से चलता था, अब डिजिटल जैक्वार्ड भी है. इस तकनीक से बनारसी ब्रोकेड साड़ी, कांजीवरम सिल्क, जरी वाले भारी फैब्रिक बनाए जाते हैं. थोड़ी डिटेल्ड होने के चलते यह प्रोसैस थोड़ा टाइम टेकिंग जरूर है लेकिन इस में बहुत ही बारीक डिजाइनें बनाइ जाती हैं और इस मशीन से एकसाथ हजारों धागों को इस साथ कंट्रोल किया जा सकता है.

वीविंग की दूसरी तकनीक है डाबी

ये थोड़े छोटे और रिपीटेड पैटर्न जैसे जिओमैट्रिक और सिंपल मोटिफ्स के लिए होती है. इस में डौबी मैकेनिज्म को करघे पर सैट कर के कुछ खास धागों को उठायागिराया जाता है, जिस से सिंपल डिजाइनें बनती हैं जैसे चैक्स, डायमंड्स, डौट्स, जिगजैग आदि. इस तकनीक से खादी कुरता फैब्रिक, लिनन या कौटन जैकेट मैटीरियल बनाया जाता है. कुछ ओडिशा की परंपरागत इकत और संबलपुरी डिजाइनों में भी डौबी का प्रयोग होता है.

डिजिटल डिजाइन टूल्स के आने से बुनाई न केवल आसान हुई है बल्कि इस का उत्पादन और कमर्शियल स्कोप भी बढ़ा है. इस ने न केवल हमारी विरासत को नया जीवन दिया है बल्कि यह बुनकरों और डिजाइनर्स दोनों के लिए आमदनी और रोजगार का नया जरीया भी बन गया है.

परंपरा से ट्रेंड तक की कहानी

भारतीय हैंडलूम की गिनती दुनिया की सब से पुरानी और समृद्ध कला परंपराओं में होती है. यह सिर्फ एक कपड़ा बुनने की प्रक्रिया नहीं बल्कि संस्कृति, शिल्प, धैर्य और आत्मनिर्भरता का भी प्रतीक है. सदियों से बुनकर अपने करघों पर सिर्फ धागों को नहीं बल्कि कहानियों, परंपराओं और भावनाओं को भी बुनते आए हैं. बहुत से बुनकरों ने तो साडि़यों पर महाभारत और रामायण तक ऊकेर दी है. कहीं बुनाई में सोने, चांदी का संगम देखने को मिलता है. लेकिन टाइम के साथ बढ़ती टैक्सटाइल की डिमांड में हथकरघा कहीं पीछे छूट गया था. लेकिन अब मौडर्न हैंडलूम के रूप में पारंपरिक हथकरघा को एक नया जीवन मिल रहा है.

भारत की फेमस हैंडलूम का जिक्र करें तो राज्यवार यह जानना जरूरी है कि कौन से राज्य में कौन से हैंडलूम प्रचलित हैं और उन का अब कैसे नए सिरे से इस्तेमाल किया जा रहा है.

उत्तर प्रदेश: बनारसी ब्रोकेड

बनारसी साडि़यों में जरी का बारीक काम, मुगलकालीन डिजाइन और सोनेचांदी के धागों का इस्तेमाल होता था. ट्रैडिशनल तरीके से बनाई जाने वाली एक भारी बनारसी साड़ी बुनने में 15 से 30 दिन तक लग सकते हैं. आज इसी ब्रोकेड फैब्रिक से जंपसूट, जैकेट्स और कोआर्ड सैट्स तैयार किए जा रहे हैं. युवा अपनी मां के वार्डरोब में रखी सालों पुरानी साडि़यों को भी रियूज कर उन्हें नया जीवनदान दे रहे हैं ताकि वे कपड़े सिर्फ अलमारियों की भीड़ न बन कर पार्टी की जान बन सकें.

पश्चिम बंगाल: जामदानी और तांत

जामदानी की बुनाई इतनी मुश्किल होती है कि हर डिजाइन को धागों के बीच अलग से इंसर्ट करना पड़ता है. इस में महीन कौटन इस्तेमाल होता है और एक साड़ी बनाने में 20 से 60 दिन तक लग सकते हैं. लेकिन अब इस का प्रोडक्शन नई तकनीक के इस्तेमाल से कुछ आसान हुआ है. आज इस कपड़े से टेपरड ड्रैसेस और कैप स्टाइल कुरतियां बनती हैं, साथ ही इस के बने काफतान भी लोग काफी पसंद कर रहे हैं.

तमिलनाडु: कांजीवरम सिल्क

कांजीवरम साड़ी को साडि़यों की रानी कहा जाता है. मोटी रेशमी जरी वाली इस बुनाई में साड़ी के बौर्डर और पल्लू अलग बुन कर जोड़े जाते हैं. पारंपरिक तरीके से इस की वीविंग में एक से डेढ़ महीना लग सकता है. अब इस के मोटिफ्स से क्लच बैग्स, ब्लेजर और इंडोवैस्टर्न गाउन भी बन रहे हैं.

तेलंगाना: पोचमपल्ली इकत

इकत एक खास बुनाई तकनीक है, जिस में पहले धागे को रंग कर फिर बुनाई की जाती है. इस में सिंक्रनाइज डिजाइन का मिलान बहुत मुश्किल होता है, इसलिए इसे मैथेमैटिक्स औफ थ्रैड भी कहा जाता है. अब पोचमपल्ली इकत से फ्लोई ड्रैस, पैंट और कुरता सैट बनते हैं जो हर वर्ग में काफी पौपुलर हैं.

ओडिशा: संबलपुरी और पासापल्ली इकत

संबलपुरी इकत की बुनाई में मुश्किल जिओमैट्रिक डिजाइनें बनाई जाती हैं. एक ड्रैस मैटेरियल तैयार करने में 2-3 सप्ताह लगते हैं. अब इस के ब्लौक पैटर्न का इस्तेमाल स्कर्ट और जैकेट जैसे आउटफिट्स बनाने में भी किया जा रहा है.

राजस्थान और गुजरात: बंधेज और पटोला

बंधेज यानी टाईडाई और पटोला बुनाई दोनों ही काफी पुरानी कारीगरी हैं. पटोला डबल इकत में आता है जो सब से कठिन बुनाई में गिना जाता है. पटोला की एक साड़ी में 5 महीने तक का समय लग सकता है. साडि़यों के अलावा अब इस से दुपट्टे, काफतान और कैप्सूल ड्रैसेज तैयार की जा रही हैं. जो काफी ऐलिगैंट लगती हैं.

हैंडलूम की मौडर्न वापसी

मौडर्न हैंडलूम की खासीयत यही है कि यह परंपरा को तोड़ता नहीं बल्कि उसे आज के फैशन में ढाल देता है. ब्रोकेड के जंपसूट, इकत की मिनी ड्रैसेज, खादी कौटन का औफिस वियर जैकेटपैंट, जामदानी की मैक्सी ड्रैस या संबलपुरी की ऐथनिक स्कर्ट्स, ये सब दिखाते हैं कि कैसे हैंडलूम अब सिर्फ शोपीस नहीं बल्कि डेली वियर फैशन का हिस्सा बन गया है.

टैक्नोलौजी और ट्रैडिशन की भागीदारी

फिलहाल हैंडलूम डिजाइनर सिर्फ हाथों से नहीं, कंप्यूटर डिजाइन सौफ्टवेयर से भी डिजाइनें बनाते हैं. सीएडी यानी कंप्यूटर ऐडेड डिजाइन टूल से डिजाइन तैयार कर जैक्वार्ड या डाबी करघों में ट्रांसलेट किया जाता है. इस से कपड़ा बुनने से पहले उस की डिजाइन को तैयार करने में काफी समय की बचत होती है, साथ ही इस से न सिर्फ प्रोडक्शन टाइम में बचत हुई बल्कि बुनकरों को नई डिजाइन में काम करने का मौका भी मिला है. इस से प्रोडक्शन भी बढ़ा है.

मौडर्न हैंडलूम सिर्फ फैशन ट्रेंड नहीं, इस में हम अपनी विरासत को सम्मान भी देते हैं, कारीगर को रोजगार मिलता है और फैशन को स्टैबिलिटी मिलती है. हैंडलूम पहनना सिर्फ स्टाइलिश होना ही नहीं, समझदारी और सामाजिक जिम्मेदारी भी है क्योंकि इस से हमारी लोकल इकौनोमी भी स्ट्रौंग होती है.  Modern Handloom

Youth Future Planning: भविष्य तय करते हैं जिंदगी के ये 5 साल

Youth Future Planning: युवा किताबें छोड़ मोबाइल पकड़े हुए हैं और आर्ट ऐंड डिजाइन की जगह बेतुकी रील्स बना रहे हैं. युवा निर्भय और बेशर्म हो अपना निजी जीवन इन रील्स में एक चटपटी मूवी की तरह दुनिया को दिखा रहे हैं. ये रील्स बनाने की प्रतिस्पर्धा मे यों लगे हैं जैसे आगे निकलने वाला देश का नया प्रैसिडैंट बनेगा.

एक आम व्यक्ति का जीवन लगभग 80 वर्ष का होता है और इन्हीं 80 वर्षों में 5 साल का एक ऐसा पड़ाव आता है जो बहुत महत्त्वपूर्ण होता है और वह पड़ाव है 16 से 20 की उम्र का. ये 5 साल खास व कीमती इसलिए हैं क्योंकि इन्हीं 5 सालों में किसी भी विद्यार्थी के पूरे जीवन की रूपरेखा तैयार होती है. इन 5 सालों में स्कूल व कालेज में चुने गए विषयों का गहन अध्ययन कर सफलता हासिल करनी होती है. यहां अगर वह अपने लक्ष्य से भटक गया तो उस का खमियाजा पूरे 65 वर्ष उठाना पड़ सकता है.

भविष्य की नींव इन्हीं 5 सालों में रखी जाती है. हमें भविष्य में क्या करना है, कैसे करना है और उस कार्य में कैसे सफल हों उस की रणनीति तैयार करनी होती है. ये 5 साल न केवल शैक्षणिक विकास के लिए महत्त्वपूर्ण हैं बल्कि कैरियर बनने के लिए भी. हायर स्टडी, स्कौलरशिप, मशहूर यूनिवर्सिटी में एडमिशन, प्रतियोगी परीक्षाओं, टौप एमएनसी की जौब इन सभी तक पहुंचने की सीढ़ी यहीं से शुरू होती है.

रूट टू प्रोग्रैस: स्कूल के वे 2 अंतिम वर्ष अर्थात 11वीं और 12वीं कक्षा आगे की पढ़ाई का मार्ग तैयार करती हैं. अगर इन 2 वर्षों मे खासकर अंतिम वर्ष में विद्यार्थी अच्छे अंक प्राप्त करने में असफल रहा तो विशेष कालेज और यूनिवर्सिटी में एडमिशन पाने की रेस से बाहर निकल जाएगा. इसलिए अति आवश्यक है कि वह अपना पूरा ध्यान सिर्फ और सिऊर् अपनी पढ़ाई पर दे.

स्कौलरशिप बूस्टर: कुछ बच्चे कठिन परिश्रम कर स्कौलरशिप प्राप्त करते हैं. यह एक तरह का इनाम है जो किसी विद्यार्थी को हार्ड वर्क से मिलता है. यह केवल उसे वित्तीय सहायता नहीं देता है बल्कि उस का उत्साह, उस का कौन्फिडैंस भी बूस्ट करता है. साथ ही जब इस तरह का इनाम आप के प्रोफाइल व रिज्यूम में लिखा जाता है तो आप की काबिलीयत भी दिखती है जो आगे के कंपीटिशन या इंटरव्यू में एक अच्छा इंप्रैशन जमाती है.

अर्निंग ऐंड डैवलपमैंट: अगर इन 5 सालों में पूरा परिश्रम करें तो उस का फल एक अच्छी अर्निंग के रूप में मिल सकता है. कोई भी बड़ी कंपनी उन्हीं कैंडीडेट्स को हायर करती है जिन्होंने ऊंच अंक की डिगरी प्राप्त कर अपनी काबिलीयत दिखाई हो. एक बड़ी कंपनी में नौकरी केवल ज्यादा कमाई का साधन नहीं होती बल्कि अपनी खुद की योग्यता को निखारने और विस्तार करने का माध्यम भी होती है.

स्टैबिलिटी ऐंड रिलायबिलिटी: युवा इन 5 सालों का सही उपयोग करें तो आने वाले कल में उन का जीवन स्टैबल तो बनेगा ही साथ में एक स्टैबिलिटी भी आ जाती है. अच्छे अंकों से डिगरी प्राप्त कर किसी कंपनी को जौइन करेंगे तो वे आर्थिक रूप से इंडिपैंडैंट ऐंड कौन्फिडैंट बनेगे. अपनी यह सफलता देख उन का खुद पर विश्वास भी बढ़ेगा, साथ ही उन का परिवार भी उन पर विश्वास करेगा कि वे भौतिक और आ्रिथक रूप से उन का सहारा बनने में सक्षम हैं.

पर्सनल ग्रोथ: केवल शैक्षणिक योग्यता एवं कैरियर के लिहाज से ही नहीं मानसिक और व्यक्तिगत रूप से भी यह समय बहुत महत्त्वपूर्ण होता है. इस समय किसी भी विद्यार्थी का मनमस्तिष्क दुनिया के उतारचढ़ाव, उस की तेज दौड़ से, उस के बदलाव से मानसिक व भावनात्मक रूप से जुड़ता है और खुद को भी इस दुनिया में चली आ रही रेस के लिए तैयार करने की कोशिश करता है.

आपातकालीन परेशानियों से बचाव: अगर युवा इन 5 सालों में मेहनत कर अपने जीवन में स्टैबिलिटी ऐंड रिलायबिलिटीज पता हैं तो भविष्य में आने वाली आपातकालीन परेशानियों जैसे कोई गंभीर बीमारी का खर्चा, आकस्मिक पारिवारिक खर्चा या किसी अन्य आर्थिक विपत्ति का सामना करने की हिम्मत रखता है.

मगर इन 5 सालों का सही उपयोग करना इतना भी आसान नहीं होता बल्कि ये साल अब बड़ी चुनौती बनते जा रहे हैं और इस के पीछे का कारण है भटकाव और इस भटकाव के कई कारण हैं जैसे:

अनिश्चितता: बहुत से युवाओं को यह पता नहीं होता कि उन्हें अपना कैरियर किस फील्ड में बनाना है. आगे पढ़ाई में विषय क्या लेना है. या तो वे एक विकल्प का चयन नहीं कर पाते या उन्हें सारे ही विकल्प पसंद होते हैं या कोई भी नहीं.कभी तो अपना चयन किया विषय ही उन्हें बेकार या कठिन लगने लगता है. अपने विषयों के प्रति अनिश्चतता उन्हें अपना लक्ष्य निर्धारित करने से रोकती है.

कूल दिखने की होड़: हमारे युवा कूल दिखने की होड़ में गलत रास्ते पर निकल पड़े हैं. उन्हें लगता है सिगरेट की डिबिया खत्म करने से या शराब पीने की रेस में आगे निकलने से वे कूल दिख रहे हैं और लोगों को इंप्रैस कर रहे हैं जबकि सत्य यही है कि सिगरेट उन के फेफड़ों को जला रही है और शराब उन का लिवर व किडनियां सड़ा रही है. लेकिन यह बात उन्हें तब तक समझ नहीं आती जब तक वे स्वयं इस घात को देख नहीं लेते.

रिलेशनशिप हाई स्टेटस: कूल दिखने की होड़ के साथ एक और होड़ चली आ रही है और वह है रिलेशनशिप की. युवाओं को लगता कि किसी के साथ प्रेम संबंध में होना उन का स्टेटस अपने फ्रैंड सर्कल मे ऊंचा उठा देगा. यह होड़ युवा लड़कियों में अब अधिक हो गई है जिस उम्र में उन्हें प्रेम शब्द का वास्तविक अर्थ भी नहीं पता होता उस उम्र में वे भ्रमित प्रेम संबंधों में पड़ कर अपना भविष्य खराब कर रहे होते हैं.

नो टाइम मैनेजमैंट: टाइम इसे युवा अनेक नामों से जानते होंगे लेकिन इस का सदुपयोग तो बिलकुल नहीं. पूरा जीवन सिर्फ समय के सही उपयोग पर टिका है. मगर आज के युवा इस पर ध्यान नहीं देते हैं. न तो उन्हें समय पर पढ़ाई करने का होश है, न खाना खाने का, न सोने का और न ही किसी अन्य कार्य को सही समय पर करने का. उन के लिए टाइम का मतलब है डेटिंग टाइम, चैटिंग टाइम, हैंग आउट टाइम और ब्रेक टाइम. ब्रेक भी पढ़ाई से. पढ़ाई को तो टाइम दिया जाता ही नहीं. व्यर्थ के कामों के लिए उन का शेड्यूल बना रहता है. लेकिन अपने भविष्य की योजना और उस पर परिश्रम के लिए उन्हें समय मिलता ही नहीं.

रील्स किंग: पहले रील्स शब्द म्यूजिक, थिएटर, कैमरा के लिए बोलासुना जाता था, मगर अब यह किसी की पर्सनैलिटी, उस के लाइफस्टाइल से जुड़ चुका है. युवा किताबें छोड़ मोबाइल पकड़े हुए हैं और आर्ट ऐंड डिजाइन की जगह बेतुकी रील्स बना रहे हैं. युवा निर्भय और बेशर्म हो अपना निजी जीवन इन रील्स में एक चटपटी मूवी की तरह दुनिया को दिखा रहे हैं. ये रील्स बनाने की प्रतिस्पर्धा मे यों लगे हैं जैसे आगे निकलने वाला देश का नया प्रैसिडैंट बनेगा.

मांबाप के पैसे का कचरा: बच्चों को मातापिता बचपन से बचत कैसी करनी है सिखाते आ रहे हैं लेकिन बहुत कम है जो इस सीख से कुछ सीख पाए. 16-20 साल की उम्र मे इन्हें बचत का मंत्र अपना लेना चाहिए. इस उम्र में पैसे का मूल्य जान गए तो पूरा जीवन आर्थिक परेशानियों से बच सकता है. लेकिन बचत मंत्र छोड़ ये खर्चा धुन अपनाए हुए हैं. अपनी पौकेट मनी तो ये फुजूल की चीजों पर खत्म करते ही हैं, साथ मातापिता की पूंजी को भी उड़ा रहे होते हैं. इन्हें लगता है इन का परिवार धन कमा ही सिर्फ इसलिए रहा हैं कि ये अपने शौक पूरे कर सकें. इन्हें यह कैसे समझएं कि धन कमाने और बचत करने से बढ़ता है न कि अंधाधुंध खर्च करने से. इन्हें यह भी याद रखना चाहिए की हमेशा के लिए न तो मातापिता का धन रहेगा और न ही कमाने के लिए मातापिता.

बीमारियों को न्योता: इन का लाइफस्टाइल इतना दूषित हो चुका है कि लाइफ कितनी लंबी और स्वस्थ्य होगी इस की शंका बन गई है. जहां हम 80 वर्ष जीवनआयु की बात कर रहे हैं इन के 40-60 वर्ष पूरे न होने का भय भी है. इन का खानापान बहुत अनहाईजीनिक हो चुका. पोषण मिले ऐसा भोजन तो इन्हें भाता ही नहीं. रैडी टू ईट, जंकफूड, स्ट्रीट फूड और क्वीन के नाम पर बहुत मात्र में केवल अनहैल्दी फूड ही खाया जा रहा है जो इन्हें कम उम्र मे ही फैटी लिवर, डायबिटीज, ओबीसीटी, पीसीओडी, डाइजेशन प्रौब्लम जैसी तकलीफें दे कर न सिर्फ शरीर बीमार कर रहा है बल्कि इन का भविष्य भी.

मानसिक कैद: इस उम्र में कल्पनाओं को नई उड़ान मिलती है. उस उम्र में युवा कूल बनने के चक्कर में प्रेम प्रसंगों, नशे की लत में फंस खुद के लिए कई मानसिक पीड़ा पैदा कर लेते हैं. जिस समय इस का मस्तिष्क सृजनात्मक कार्यों व कलाओं में व्यस्त होना चाहिए, उस समय ये डिप्रैशन, ऐंग्जाइटी, लोअर कौन्फिडैंस, सैल्फ इनसिक्यूरिटी से घिर रहे हैं.

फेक इंडिपैंडैंट: अकसर युवा इंडिपैंडैंस का गलत मतलब निकाल लेते हैं. उन्हें लगता है इंडिपैंडैंट होना सिर्फ अपनी मरजी का करना, परिवार की बातों को अनसुना करना और सामाजिक मूल्यों व नियमों को तोड़ना है. इस तरह का आचरण कर ये खुद को इंडिपैंडैंस बोलते हैं जबकि सचाई इस के विपरीत है. पहले तो ये हर रूप से अपने परिवार पर डिपैंडैंट होते हैं दूसरा अगर ये अपने किसी कार्य व व्यवहार के कारण किसी मुश्किल में आ गए तो उस का जिम्मा भी अपनों या दूसरों पर डाल देते हैं कि उन्होंने समय पर उन्हें क्यों नहीं समझया या रोका. यह पीढ़ी अपनी गलतियों का न बीड़ा उठाना चाहती है और न ही उस से सीख ले कर सुधरना.

खोखले रोल मौडल: युवा अवस्था में कोई रोल मौडल होना आम बात है. बहुत युवा अपने रोल मौडल से प्रभावित हो, प्रेरणा ले स्वयं को सफल बनाते हैं लेकिन ये तब जब प्रेरणा लेने वाला दृढ़ निश्चय वाला हो और प्रेरणा देने वाला योग्य व सफल. परंतु आज युवाओं के रोल मौडल खोखले विचार और चरित्र वाले होते हैं. आज रोल मौडल वे हैं जो सोशल मीडिया पर बिना तर्क की बातों का लैक्चर दिए जा रहे हैं, शरीर या पैसे का दिखावा कर रहे हों या आर्ट, पैशन और फ्रीडम के नाम पर किसी भी तरह की गंदगी दिखा व फैला रहे हों.

खानाबदोश बनने का ट्रेंड: बहुत से युवा फिल्मों को देख या सोशल मीडिया पर ट्रैवलिंग इन्फ्लुएंसर को देख इतने प्रभावित होते है कि स्वंय भी एक बैग उठा जीवन के सफर पर निकल पड़ते हैं. इन्हें लगता दुनिया में यों ही घूमते रहना ही जीवन है. ये यह भूल जाते हैं कि इन का जीवन न कोई मूवी है न ये कोई ऐक्टर, जिन्हें किसी जंगल या जटिल माहौल में पूरी सुखसुविधा के साथ सरवाइवल औफ द फिटैस्ट की सिर्फ ऐक्टिंग करनी होती है.

बड़ों को नाकाबिल समझना: युवाओं को अपने बड़ेबुजुर्ग ओल्ड फैशंड सामान की तरह लगते है और उन की बात और सलाह बेबुनियाद या मूर्खतापूर्ण. उन के लिए उन का अपना जीवनअनुभव ही काफी है दुनिया के उतारचढ़ाव समझने के लिए. इन्हें यह पता ही नहीं कि जिसे वे जीवन का अनुभव समझ रहे हैं वह केवल जीवन का एक छोटा सा समय है. जो ज्ञान उन्हें उन लोगों से मिल सकता है जो किसी ने जीवन के 60 वर्षों में अर्जित किया है, उस ज्ञान को वे सिर्फ कुछ समय में हुए व्यवहारों के आगे नकार देते हैं, साथ ही अगर वे देखते हैं कि उन के मातापिता आम जीवन जी रहे हैं, किसी बड़ी पूंजी, बड़ी पोस्ट या समाज के बड़े ठेकेदारों में से एक नहीं तो वे नाकाबिल हैं. इन के अनुसार जो अपने जीवन मे अमीर न बन सके, उन्हें अपने बच्चों को किसी भी तरह की सलाह या ज्ञान नहीं देना चाहिए. Youth Future Planning

Moving Abroad? उस से पहले यह जरूर जान लें, वरना पछताना पड़ेगा

Things to Consider Before Moving Abroad: हमारे देश में लोगों को विदेश जाने का बहुत क्रेज रहता है. सोचते हैं विदेश जा कर बस जाएंगे तो जैसे कोई खजाना हाथ लग जाएगा. किसी की नौकरी विदेश में लगती है तो परिवार वाले, दोस्त, रिश्तेदार सब उम्मीद लगाते हैं कि बस किसी तरह वह उन्हें भी विदेश बुला ले. कई बार ऐसा हो भी जाता है लेकिन उस के बाद क्या?

उस के बाद शुरू होती हैं असली मुश्किलें. जी हां, किसी देश का वीजा लगने से कहीं ज्यादा मुश्किल है उस देश के मुताबिक खुद को ढालना. बहुत कम लोग हैं जो इस पर खरा उतरते हैं. कितने ही इंडियन पश्चिमी और एशियन देशों की जेलों में लंबी सजा काट रहे हैं. कुछ तो जानकारी के अभाव में हुई गलतियों की सजा भुगत रहे हैं.

बच्चों की परवरिश

अमेरिका में 8 साल के एक बच्चे ने अपनी मदर का फोन ले कर अमेजन से 70 हजार लौलीपौप और्डर कर दिए. 4 हजार डौलर का बिल देख कर महिला के होश उड़ गए.

सोचिए, अगर किसी इंडियन बच्चे ने ऐसा किया होता तो पेरैंट्स क्या करते? जाहिर है, गुस्से में बच्चे को पीटने लगते. लेकिन अमेरिकी मौम ने ऐसा कुछ नहीं किया.

पश्चिमी देशों में आप अपने बच्चे पर हाथ नहीं उठा सकते. बच्चों को हाथ से खाना नहीं खिला सकते. माना जाएगा कि आप जबरदस्ती उन के मुंह में खाना ठूंस रहे हैं. वहां इसे ‘फोर्स फीडिंग’ कहा जाता है. बच्चों का कमरा और बिस्तर आप से अलग होना चाहिए. वे आप के साथ नहीं सो सकते. उन के कमरे में उन की उम्र के मुताबिक खिलौने होने जरूरी हैं.

नाबालिग बच्चे के सामने बैठ कर शराब नहीं पी सकते. उस के सामने गाली दे कर बात नहीं कर सकते. उस के सामने एकदूसरे पर चिल्ला नहीं सकते. ऐसा कुछ भी करते हैं तो आप को अयोग्य पेरैंट्स करार दे कर बच्चों को चाइल्ड केयर एजेंसी के हवाले किया जा सकता है.

कुछ साल पहले रानी मुखर्जी की एक फिल्म आई थी, ‘मिसेज चटर्जी वर्सेज नार्वे.’ यह फिल्म सागरिका चक्रवर्ती की असली जिंदगी पर आधारित है जो पति के साथ नार्वे चली गई थी. सरकारी एजेंसियों को भनक पड़ी कि सागरिका अपने बच्चों को हाथ से खाना खिलाती है. उन के घर पर निगरानी होने लगी. निगरानी करने वाली टीम ने नैगेटिव रिपोर्ट दी तो उन के दोनों बच्चों को चाइल्ड केयर एजेंसी को सौंप दिया गया.

सालों की लंबी लड़ाई के बाद सागरिका को अपने बच्चे वापस मिले. नार्वे सरकार ने उसे कस्टडी न दे कर, बच्चों को उस के रिश्तेदारों को ही सौंपा क्योंकि उन की नजर में वह एक अनफिट मां थी. सागरिका ने अपनी औटोबायोग्राफी ‘द जर्नी औफ ए मदर’ में इस पूरे संघर्ष का जिक्र किया है.

बच्ची के साथ क्रूरता

मगर गुजरात का एक और परिवार है, जिस की बच्ची फोस्टर केयर में पल रही है. एक दिन बच्ची के डायपर में खून आया. वे उसे डाक्टर के पास ले कर गए. डाक्टर ने दवाई दी. फौलोअप के लिए दोबारा गए तो बच्ची को उन के साथ घर नहीं आने दिया गया. कहा गया कि पेरैंट्स ने बच्ची के साथ क्रूरता की है. चाइल्ड केयर एजेंसी की टीम क्लीनिक से ही बच्ची को ले कर चली गई. उस समय बच्ची 7 महीने की थी. सालों बीत गए, वह परिवार अब तक बच्ची को वापस पाने के लिए संघर्ष कर रहा है.

ऐसे मामलों में अगर पेरैंट्स खुद को बेकुसूर साबित नहीं कर पाते हैं तो बच्चा 18 साल की उम्र तक फोस्टर केयर में रहता है. मतलब चाइल्ड केयर एजेंसी कुछ लोगों को बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी देती है. ये लोग फोस्टर पेरैंट्स कहलाते हैं. इन्हें सरकार की तरफ से, ऐसे बच्चों को पालने की तनख्वाह मिलती है. 18 साल के बाद बच्चे की मरजी होती है.

मनप्रीत सालों पहले पंजाब से यूरोप जा कर बस गया था. एक दिन गुस्से में पत्नी पर हाथ उठा दिया. पत्नी ने पुलिस को फोन कर दिया. वह अरैस्ट हो गया. पत्नी ने बताया कि उस ने बच्चों के सामने उस पर हाथ उठाया था. इन्वैस्टिगेशन में यह भी पता चला कि वह रोज शराब पीता था और वह भी बच्चों के सामने तो कोर्ट और ज्यादा सख्ती से पेश आया. सालों की सजा काटने के बाद जेल से छूटा तो भी घर नहीं जा सका क्योंकि कोर्ट ने माना कि वह बच्चों के सामने फिर से ऐसा कर सकता है और बच्चों के लिए ऐसा माहौल ठीक नहीं है. वह घर के कम से कम 100 फुट के दायरे में नहीं जा सकता.

रिस्ट्रेनिंग और्डर

इस और्डर को रिस्ट्रेनिंग और्डर कहा जाता है. अगर वह इसे नहीं मानता है तो उसे फिर से जेल भेजा जा सकता है. उसे बच्चों से केवल निगरानी वाली मुलाकात की इजाजत दी गई. मतलब बच्चों के साथ कोई और बालिग हो तभी वह बच्चों से मिल सकता है वह भी घर के बाहर.

कई लोगों को तो कोर्ट जीपीएस ऐंकल ब्रेसलेट पहनने का भी हुक्म देता है ताकि कोर्ट को पता चलता रहे कि कहीं वह रिस्ट्रेनिंग और्डर का उल्लंघन तो नहीं कर रहा है.

शैलजा कुछ साल पहले पति और बच्चों के साथ मुंबई से यूके जा कर बस गई. एक दिन पड़ोसियों ने उस के घर से लड़ाई की और बच्चों के जोरजोर से रोने की आवाजें सुनीं और पुलिस को फोन कर दिया. पुलिस ने उसे और उस के पति को अरैस्ट कर लिया और बच्चों को चाइल्ड केयर एजेंसी ले गई. कोर्ट ने उन्हें अच्छे पेरैंट्स नहीं माना. बच्चों की कस्टडी के लिए दोनों को करीबी रिश्तेदारों के नाम देने के लिए कहा गया. वहां करीबी रिश्तेदारों जैसे दादादादी, नानानानी, चाचाचाची आदि को ईएंड टैंडेर फैमिली कहा जाता है. शैलजा के पेरैंट्स नहीं थे, न कोई और जो उस के बच्चों की जिम्मेदारी ले पाता. लिहाजा उस के पति ने अपने पेरैंट्स के नाम दिए.

यूके से एक टीम छानबीन करने मुंबई दादादादी के घर आई. जांच हुई कि दादादादी के पास कमाई का क्या साधन है, उन का बैंक बैलैंस कितना है, उन का लाइफस्टाइल कैसा है, वे बच्चों को कहां रखेंगे, उन की पढ़ाई कैसे होगी, उन के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान कैसे रखा जाएगा, बच्चों के पोषण के लिए वे उन्हें क्या खिलाएंगे, बच्चों को आसपास का कैसा माहौल मिलेगा, बच्चे किस के साथ खेलेंगे. जी हां, आप को जान कर शायद हैरानी होगी कि वे बच्चों के कमरे का साइज तक चैक करते हैं. बहुत गहन छानबीन के बाद उन्होंने दादादादी को बच्चों की परवरिश के लिए फिट नहीं पाया. अब बच्चे फोस्टर केयर में पल रहे हैं.

आसान नहीं देखभाल

प्राइवेट डिटैक्टिव राहुल राय गुप्ता बताते हैं, ‘‘वैस्टर्न कंट्रीज में बच्चों को ले कर कानून बेहद सख्त है. बच्चों को कार में ले कर जा रहे हैं तो गोद में नहीं बैठा सकते. उन के लिए अलग से सीट इंस्टौल करानी पड़ती है और वह भी उन की उम्र के मुताबिक अलगअलग होती है. अगर स्कूल में बच्चे के सिर में जूएं मिल जाएं, कपड़े अच्छी तरह से धुले हुए न हों या प्रैस न किए हुए हों तो टीचर के माइंड में यह मैसेज जाता है कि पेरैंट्स बच्चों का खयाल नहीं रखते. किसी बौडी पार्ट पर हलकीफुलकी चोट दिखाई दे तो इन्वैस्टिगेशन होती है.

अगर बच्चा कह दे कि उस के मम्मी या पापा या बड़े भाईबहन ने उसे धक्का दिया था या मारा था या फिर कुछ न भी कहे तो भी स्कूल चाइल्ड केयर एजेंसी को खबर कर देता है. पेरैंट्स की इन्वैस्टिगेशन की जाती है. चाइल्ड केयर एजेंसी वाले बच्चे के घर जाते हैं. पूरा सैटअप देखते हैं, बच्चे को कैसे सुलाया जाता है, क्या और कैसे खिलाया जाता है. चूंकि हमारे देश का सिस्टम बिलकुल अलग है. पेरैंट्स को पता ही नहीं होता कि टीम आए तो उस के सामने बच्चे के साथ कैसे पेश आना है. लिहाजा ज्यादातर पेरैंट्स उस इन्वैस्टिगेशन में फेल हो जाते हैं.

‘‘इन देशों में 18 साल के होने पर बच्चों की लाइफ पेरैंट्स का अधिकार पूरी तरह से खत्म हो जाता है. पेरैंट्स उन को किसी भी चीज के लिए फोर्स नहीं कर सकते. कई बच्चे बालिग होते ही पेरैंट्स से अलग रहने लगते हैं. आप बालिग बच्चों के रहनसहन, पहननेघूमने पर रोकटोक नहीं कर सकते. उन के दोस्तों पर सवाल नहीं उठा सकते. शादी के लिए उन के साथ जबरदस्ती नहीं कर सकते. टोकाटाकी करेंगे तो भी वे पुलिस को फोन कर सकते हैं. इसलिए विदेश जाने से पहले पेरैंट्स को खुद से सवाल करना चाहिए कि क्या वे इस के लिए तैयार हैं.’’

कमर कस लें

नताशा के पति की कनाडा में नौकरी लगी तो पूरी फैमिली कनाडा जा कर बस गई. वहां सारा काम खुद करना पड़ता था. नताशा उम्मीद करती थी कि पति उस का हाथ बंटाए लेकिन पति को लगता था कि वह जौब नहीं करती तो घर का काम वही करे. एक दिन लड़ाई के दौरान नताशा के पति ने उसे धक्का दे दिया. नताशा ने पुलिस को काल कर के कहा कि उस का पति उसे मार रहा है. पुलिस तुरंत पहुंच गई और उस के पति को अरैस्ट कर लिया.

विदेश जा कर बसने से पहले समझ लें कि खाना बनाना, बरतन धोना, घर साफ करना, कपड़े धोना, प्रैस करना, फ्रिज साफ करना, बाथरूम, टौयलेट साफ करना, पौधों की देखभाल करना, ए टू जैड काम खुद करने होंगे.

सफाई वाला कूड़ा घर से ले कर नहीं जाएगा. वहां हर घर में सूखे, गीले, प्लास्टिक के कचरे के अलगअलग बड़ेबड़े कूड़ेदान होते हैं. प्लास्टिक कचरे वाली डस्टबिन को रिसाइक्लिंग बौक्स या रिसाइक्लिंग बिन कहा जाता है. जिस दिन कूड़े का पिक अप हो यानी सरकारी गाड़ी आनी हो, उस दिन औफिस जाने से पहले वे कूड़ेदान बाहर रखने होंगे. वह भी साफसुथरी हालत में. कूड़ेदान गंदे होंगे या निर्धारित डब्बों में कूड़ा नहीं रखा होगा तो गाड़ी कूड़ा नहीं ले कर जाएगी. मोटा फाइन भी लग सकता है.

ऐसे देश जा रहे हैं, जहां बर्फ पड़ती है तो जान लें कि अपने घर के आगे की बर्फ खुद साफ करनी पड़ेगी. कार पर रोजाना बर्फ की मोटी परत जम जाती है, वह भी रोज साफ करनी होगी वरना जुरमाना लग जाएगा.

सरकारी गाडि़यां केवल गलियों में से बर्फ साफ करती हैं. नमक भी बिछाया जाता है. बर्फ गिरने के दिनों में आप अपनी गाड़ी गली में पार्क नहीं कर सकते वरना मोटा जुरमाना देना पड़ेगा. बर्फ हटाने और नमक बिछाने की गाडि़यों को गली के अंदर आने के लिए पूरी जगह चाहिए होती है. बुजुर्गों या विकलांग व्यक्तियों के लिए घर की बर्फ हटाने के लिए सरकारी सहायता मुफ्त मिलती है. उस का लाभ लिया जा सकता है.

पालतू जानवरों का शौक है तो

घर में डौग वगैरह पालने के लिए अलग नियम हैं. ज्यादातर देशों में डौग पार्क बने होते हैं. वहां उन्हें खुला छोड़ सकते हैं. बाकी किसी भी पार्क के बाहर लिखा होता है कि पालतू जानवरों को अंदर जाने की परमिशन है या नहीं. लेकिन वहां भी उन्हें बिना जंजीर के नहीं रख सकते. नियमों को न मानने पर मोटा जुरमाना लगेगा.

डौग रास्ते या पार्क में टौयलेट कर दें तो उसे उठाना पड़ेगा. उस के लिए वहां के लोग साथ में पौलीबैग ले कर चलते हैं. जैसे ही पालतू जानवर टौयलेट करता है वे तुरंत उसे उस बैग में उठा लेते हैं. ऐसा न करने पर भी जुरमाना लगता है.

चाहे डौग पालें या बिल्ली, कबूतर, मुरगा या मुरगी, उस का लाइसैंस लेना जरूरी है. पालतू जानवर को टैग लगाने की सिफारिश भी की जाती है. मतलब, उस के गले में उस का नाम, उम्र, मालिक का नाम, पता, लाइसैंस नंबर लिख कर लटकाना. इस से गुम होने की स्थिति में डिपार्टमैंट को उसे वापस मालिक से मिलाने में आसानी होती है. कुछ देशों में एक परिवार 3 से ज्यादा डौग नहीं रख सकता. पालतू जानवरों की बुनियादी जरूरतें जैसे भोजन, पानी, रहने की जगह, व्यायाम करने या खुले में घूमने के लिए अलग जगह, साफसफाई, सुरक्षा प्रदान करना उस के मालिक की जिम्मेदारी है. इस में कमी पाई गई तो सजा हो सकती है.

  कुछ जरूरी टिप्स पर ध्यान दें

– ड्राइव करते हैं तो गाड़ी तय स्पीड लिमिट में ही चलानी होगी. पैदल चलने वालों के लिए

अलग ट्रैफिक लाइट होती है. बिना लाइट के भी कोई सड़क पार कर रहा हो तो भी आप को ही ध्यान देना पड़ेगा. आप की नजर चूकी और ऐक्सिडैंट हो गया तो कोर्ट में यह सफाई नहीं चलेगी कि वह अचानक आप की गाड़ी के आगे आ गया. गलती चाहे पैदल चलने वाले की हो, सजा आप को मिलेगी कि गाड़ी क्यों नहीं रोकी. वहां ड्राइविंग लाइसैंस देते समय ऐसी ट्रेनिंग दी जाती है.

– घर के पिछले हिस्से (वहां इसे बैकयार्ड कहा जाता है) में लौन की बेकार घास को बढ़ने से पहले ही काटना जरूरी है. कई जगह नियम है कि ये 6 इंच से बड़ी नहीं होनी चाहिए. लौन में टूटाफूटा सामान स्टोर नहीं कर सकते. इन नियमों को न मानने पर फाइन लगता है.

– वहां छोटे से छोटे जुर्म को भी काफी सीरियसली लिया जाता है. चाहे जानबूझ कर हुआ हो या अनजाने में. लंबी सजा भी मिलती है. नियम न मानने की आदत है तो इस आदत को बदल लें या फिर विदेश बसने का खयाल.

– अमेरिका में गन कल्चर काफी बढ़ रहा है. किसी से बहस करने से बचें. कोई गलत करे तो उस से उलझने के बजाय पुलिस को खबर कर दें.

– दुकान या स्टोर से शराब खरीदने का भी समय तय होता है. किसीकिसी दुकानदार के पास सुबह शराब बेचने का परमिट नहीं होता. इसलिए आप उसे इस के लिए फोर्स नहीं कर सकते.

– बार या रैस्टोरैंट में तय लिमिट से ज्यादा शराब सर्व नहीं की जाती. अगर बार या रेस्टोरेंट में आने से पहले कहीं पी है तो तय लिमिट से कम शराब ही सर्व की जाएगी. वेटर को पूरी ट्रेनिंग मिली होती है, यह पहचानने की कि व्यक्ति ने कितनी शराब पी हुई है. थोड़ा भी ऊंचा बोलते या वेटर से बहस करते हैं तो जेल की हवा खानी पड़ेगी.

– कई देशों में हर घर में धुएं के अलार्म हमेशा चालू स्थिति में होने जरूरी हैं. बैटरियों को साल में एक बार बदलना जरूरी होता है. अलार्म में कोई खराबी हो तो तुरंत ठीक करा लें. वरना जुरमाना लगेगा.

– किसी की हैल्प करने से पहले सोच लें. अमेरिका में रहने वाला करीब 60 साल का एक इंडियन वहां के एक स्टोर में गया. उस ने देखा कि किसी महिला का बच्चा गिर गया है. बच्चे को उठाने के लिए नीचे ?ाका तो महिला ने शोर मचा दिया कि वह उस के बच्चे को किडनैप कर रहा है. पुलिस आई और उसे अरैस्ट कर के ले गई. सीसीटीवी फुटेज में उस के खिलाफ कुछ नहीं मिला तब वह जेल से छूटा.

– पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करते समय ध्यान रखें कि बस, ट्रेन, ट्राम बिलकुल टाइम पर चलती हैं.

– लाइन में लगना ही पड़ेगा. चाहे कितनी भी जल्दी क्यों न हो. धक्कामुक्की करेंगे तो जेल जा सकते हैं. कई जगह 2 लोग हों तो भी लाइन में खड़े होते हैं.

– वहां आम लोगों के लिए मनोरंजन केंद्र होते हैं. उन में कुछ न कुछ ऐक्टिविटीज और फैस्टिवल चलते रहते हैं. क्या फ्री है, किस ऐक्टिविटी पर फीस लगती है, इस के बारे में पहले से पता कर लें.

How To Gain Weight: बीमारी के बाद ऐसे बढ़ाएं वजन

How To Gain Weight: शरीर का वजन बढ़ना अपने साथ जहां मोटापा और शर्मिंदगी लाता है, वहीं वजन का कम होना भी कोई अच्छी बात नहीं. फिर वजन किसी बीमारी की वजह से कम हुआ हो या फिर आप की अपनी लापरवाही से, या फिर आप अपनी हैल्थ का ध्यान नहीं रखते, लेकिन अगर वजन कम है तो उसे बढ़ाना चाहिए.

कई लोग अपना वजन बढ़ाने के लिए कुछ भी खानेपीने लगते हैं और सोचते हैं कि अब तो मोटा हो ही जाऊंगा/जाऊंगी. लेकिन यह सही तरीका नहीं है वजन बढ़ाने के लिए.

डाक्टर रिया अग्रवाल यहां कुछ ऐसे ही तरीके बता रही हैं, जिन से आप सही तरीके से अपना वजन बढ़ा सकते हैं.

भोजन में कैलोरी की मात्रा को बढ़ा दें

जिस तरह वजन कम करने के लिए कैलोरी कम लेना जरूरी होता है, उसी तरह वजन बढ़ाने के लिए अपने खाने में कैलोरी की मात्रा को बढ़ा देना सही रहता है. कैलोरी का मुख्य कार्य शरीर में ऊर्जा और ऊतकों का निर्माण करना है, जिस से शरीर को आवश्यक ईंधन भी मिलता है. लेकिन कैलोरी लेने का मतलब यह नहीं है कि बस आप मीठा या कोई भी जंक फूड खाने लग जाएं. बल्कि जो भी खाएं हैल्दी और घर का बना शुद्ध खाना.

मैक्रोन्यूट्रिऐंट्स भी है जरूरी

मैक्रोन्यूट्रिऐंट्स वजन बढ़ाने के लिए बहुत जरूरी होता है. इस में कार्ब्स भी जरूरी है जोकि ऐनर्जी देने का काम भी करता है. हमें हर रोज अपने कामों को करने के लिए 45-65% कार्ब्स की जरूरत होती है.

इस के साथ ही प्रोटीन का इंटेक बढ़ाना भी सही रहेगा. मांसपेशियों के निर्माण और रिपेयर के लिए प्रोटीन की आवश्यकता होती है. यही नहीं बल्कि अपनी ऐनर्जी को सेव करने के लिए और हारमोंस की ग्रोथ के लिए वसा भी बहुत जरूरी है.

विटामिन डी भी है जरूरी

विटामिन डी वेट कंट्रोल के लिए अच्छा माना जाता है और यह शरीर को स्वस्थ रखने का काम भी करता है.

यदि व्यक्ति सही मात्रा में विटामिन का सेवन करता है तो शरीर कैल्सियम को अवशोषित करने में सक्षम होता है. इस से हड्डियों का वजन बढ़ता है, खासकर कमजोर लोगों के लिए यह काफी अच्छा रहता है. इसलिए अपने डाक्टर से पूछ कर और टेस्ट करवाने के बाद ही विटामिन डी लें.

लाइफस्टाइल सही करें

खाना खाने का समय निश्चित करें और उसी हिसाब से समय पर रोज खाना खाएं. खाने को जल्दबाजी में न खाएं बल्कि टेस्टी खाना बनाएं और स्वाद लेते हुए आराम से ऐंजौय करते हुए खाएं, तभी खाना शरीर को लगेगा. रात के उल्लू न बनें और रात को जल्दी सोना और सुबह जल्दी उठने की अपनी साइकिल बना लें. हां, 7-8 घंटे की नींद जरूर लें. नियमित एक्सरसाइज करें.

अच्छी नींद लें

हर रोज 7-8 घंटे की भरपूर नींद लें ताकि शरीर फिट रहे. इस से मानसिक थकावट भी दूर होती है.

खाने में क्या शामिल करें जिस से वजन बढ़े

*पीनट बटर : वजन बढ़ाने के लिए पीनट बटर सब से अच्छी चीजों में से एक है. 2 बड़े चम्मच पीनट बटर रोज खाएं. इस में कैलोरी, प्रोटीन, फैट और कार्बोहाइड्रेट होते हैं. मूंगफली अमीनो एसिड होते हैं जो इम्यून सिस्टम को मजबूत करते हैं और वजन भी बढ़ाते हैं. आप इसे कैसे भी खा सकते हैं, मसलन ब्रैड पर लगा कर या फिर रोटी के साथ. इस में हाई कैलोरी तो होती ही है साथ ही कार्बोहाइड्रेट्स भी भरपूर मात्रा में होते हैं.

*अनार :रोजाना अनार का जूस पीने से वजन तेजी से बढ़ता है.

*चना और खजूर : पतले लोग अगर चने के साथ खजूर खाएं तो वे बहुत जल्दी वेट गेन करते हैं.

*अखरोट  और शहद : किशमिश को दूध मिला कर खाने से भी वजन बढ़ता है. इस के अलावा अगर अखरोट में शहद मिला कर खाया जाए तो पतले लोग जल्दी मोटे होते हैं.

*केला खाएं : आप मोटे होने की दवा के रूप में केले खा सकते हैं. दिन में कम से कम 3-4 केले खाएं. केला पौष्टिक एवं पोषक तत्त्वों से भरपूर होता है. इसे दूध या दही के साथ खा सकते हैं. यह वजन में वृद्धि करने में मदद करता है. बनाना शेक पीना भी बहुत अच्छा रहता  इस से वेट बढ़ता है.

*बींस से वजन बढ़ता है : बींस को मोटे होने के लिए दवा के रूप  में ले सकते हैं. सब्जी में बींस का प्रयोग अधिक करें. यह पौष्टिक होने के साथसाथ वजन बढ़ाने में भी मदद करता है.

*सोयाबीन का प्रयोग : नाश्ते में सोयाबीन एवं अंकुरित अनाज का सेवन करें. इस में भरपूर मात्रा में प्रोटीन होता है. शरीर को मजबूत बनाने और वजन में वृद्धि के लिए इसे मोटा होने की दवा के रूप में उपयोग किया जाता है. How To Gain Weight

Raksha Bandhan Gift Ideas: भाईबहन के लिए गिफ्ट चाहिए, ये रहे बजट फ्रैंडली आइडियाज

Raksha Bandhan Gift Ideas: रक्षाबंधन का त्यौहार भाई-बहन का खास त्यौहार है, इस दिन को मनाने के लिए बहने पूरे साल इंतजार करती है, भाई भी अपनी कलाई पर राखी बंधवाकर ख़ुशी का अनुभव करता है. इसके बाद होती है गिफ्ट का आदान-प्रदान, जो भाई-बहन एक दूसरे को देते है. यहां कुछ गिफ्टिंग आईडियाज लाये हैं, जो बजट फ्रेंडली होने के साथ-साथ आपके गिफ्टिंग सर्च  को आसान बनाने वाली है.

भाई के लिए गिफ्ट आईडियाज

  • रिस्टवाच, एक सुंदर आप्शन है, रिस्टवाच बजट के अनुसार भाई को दिया जा सकता है, जो दिखने में सुंदर और एलीगेंट हो.
  • डिज़ाइनर कप मग पर भाई का नाम लिखवाकर राखी के साथ दिया जा सकता है.
  • फोटो फ्रेम में भाई बहन के बचपन के कई तस्वीरों के कोलाज बनाकर लगाने से एक यादगार और अलग गिफ्ट हो सकता है.
  • प्रेरणादायक बुक्स भी एक अच्छा आप्शन भाई के लिए होता है.
  • कस्टमाइज्ड वालेट जिसपर भाई का नाम लिखवाकर गिफ्ट किया जा सकता है.
  • आजकल के लड़के हेयर स्टाइल करते है, इसलिए हेयर ड्रायर भी उनके लिए अच्छा साबित होगा.
  • संगीत के प्रेमी भाई के लिए इयर बड्स काफी अच्छा गिफ्ट है, इसे ऑनलाइन ख़रीदा जा सकता है.
  • फिटनेस लवर भाई को ग्रूमिंग किट्स, जिम के सब्सक्रिप्शन, गिफ्ट वाउचर, डेकोरेटिव पीस, सुंदर टीशर्ट आदि है.
  • इसके अलावा कई तरह के परफ्यूम या बौडी स्प्रे भी एक अच्छा आप्शन गिफ्ट के लिए है.

पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए इकोफ्रेंडली राखियाँ गार्गी डिजाईनर्स ने निकाले है, ये राखियाँ प्लास्टिक मुक्त, और रीसाइकल्ड डेनिम राखियाँ है.

बहन के लिए गिफ्ट आईडियाज

  • बहन के लिए को ट्रेंडी ज्वेलरी रियल या आर्टिफिसियल, जो हर बजट में उपलब्ध है, अपने पॉकेट के अनुसार दिया जा सकता है, एलीगेंट चैन के साथ लॉकेट, ब्रेसलेट्स, इयररिंग्स आदि स्टाइलिश और ट्रेंडी होने के साथ-साथ आकर्षक भी होते है.
  • वैसे तो घडी पहनने का ट्रेंड ख़त्म हो चुका है, लेकिन स्टाइलिश, ट्रेंडी घडियां जो दिखने में ब्रेसलेट्स की तरह सुंदर होती है, गिफ्ट के रूप में दिया जा सकता है.
  • स्किनकेयर और ब्यूटी प्रोडक्ट भी महिलाओं की पसंद का होता है, इसमें उन्हें पार्लर या जिम के सबस्क्रिप्शन, गिफ्ट वाउचर एक अच्छा आप्शन है. रक्षा बंधन पर मिलाप कास्मेटिक का ट्रू ब्लैक मस्कारा गिफ्ट किया जा सकता है.
  • बुक्स पढने की शौकीन महिलाओं को बुक्स या किसी महिला मैगज़ीन के सबस्क्रिप्शन भी दिए जा सकते है.
  • प्लांट के शौकीन बहनों के लिए कलरफुल प्लांट्स भी एक अच्छा गिफ्ट आप्शन है. इसके अलावा हेड फ़ोन, विंड बेल, डेकोरेटिव पीस, परफ्यूम आदि भी एक अच्छा गिफ्ट है.
  • फैशन एक्सेसरीज महिलाओं की खास पसंदीदा है, जिसे वे अपने अनुसार प्रयोग कर सकती है. फैशन और एक्सेसरीज डिज़ाइनर केमेलिया दलाल कहती है कुछ पर्सनलाइज्ड गिफ्ट जो खास बहन की मनपसंद हो, उसे भी दे सकते है, जिसमे हैण्ड बैग्स या बटुआ, डिज़ाइनर शूज आदि अच्छा आप्शन है, जो हैण्डमेड होने के साथ-साथ कलरफुल बीड्स, जिप्सी एम्ब्रायडरी, बोहो स्टाइल के होते है, जो यूनिक होते है और किसी भी पार्टी या अवसर पर एक अलग लुक देती है.

Social Story in Hindi: अदला-बदली: क्यूं परेशान थी अलका

Social Story in Hindi: राजीव और अलका के स्वभाव में जमीन- आसमान का फर्क था. जहां अलका महत्त्वाकांक्षी और सफाईपसंद थी. मेरे पति राजीव के अच्छे स्वभाव की परिचित और रिश्तेदार सभी खूब तारीफ करते हैं. उन सब का कहना है कि राजीव बड़ी से बड़ी समस्या के सामने भी उलझन, चिढ़, गुस्से और परेशानी का शिकार नहीं बनते. उन की समझदारी और सहनशीलता के सब कायल हैं.

राजीव के स्वभाव की यह खूबी मेरा तो बहुत खून जलाती है. मैं अपनी विवाहित जिंदगी के 8 साल के अनुभवों के आधार पर उन्हें संवेदनशील, समझदार और परिपक्व कतई नहीं मानती.

शादी के 3 दिन बाद का एक किस्सा  है. हनीमून मनाने के लिए हम टैक्सी से स्टेशन पहुंचे. हमारे 2 सूटकेस कुली ने उठाए और 5 मिनट में प्लेटफार्म तक पहुंचा कर जब मजदूरी के पूरे 100 रुपए मांगे तो नईनवेली दुलहन होने के बावजूद मैं उस कुली से भिड़ गई.

मेरे शहंशाह पति ने कुछ मिनट तो हमें झगड़ने दिया फिर बड़ी दरियादिली से 100 का नोट उसे पकड़ाते हुए मुझे समझाया, ‘‘यार, अलका, केवल 100 रुपए के लिए अपना मूड खराब न करो. पैसों को हाथ के मैल जितना महत्त्व दोगी तो सुखी रहोगी. ’’

‘‘किसी चालाक आदमी के हाथों लुटने में क्या समझदारी है?’’ मैं ने चिढ़ कर पूछा था.

‘‘उसे चालाक न समझ कर गरीबी से मजबूर एक इनसान समझोगी तो तुम्हारे मन का गुस्सा फौरन उड़नछू हो जाएगा.’’

गाड़ी आ जाने के कारण मैं उस चर्चा को आगे नहीं बढ़ा पाई थी, पर गाड़ी में बैठने के बाद मैं ने उन्हें उस भिखारी का किस्सा जरूर सुना दिया जो कभी बहुत अमीर होता था.

एक स्मार्ट, स्वस्थ भिखारी से प्रभावित हो कर किसी सेठानी ने उसे अच्छा भोजन कराया, नए कपडे़ दिए और अंत में 100 का नोट पकड़ाते हुए बोली, ‘‘तुम शक्लसूरत और व्यवहार से तो अच्छे खानदान के लगते हो, फिर यह भीख मांगने की नौबत कैसे आ गई?’’

‘‘मेमसाहब, जैसे आप ने मुझ पर बिना बात इतना खर्चा किया है, वैसी ही मूर्खता वर्षों तक कर के मैं अमीर से भिखारी बन गया हूं.’’

भिखारी ने उस सेठानी का मजाक सा उड़ाया और 100 का नोट ले कर चलता बना था.

इस किस्से को सुना कर मैं ने उन पर व्यंग्य किया था, पर उन्हें समझाने का मेरा प्रयास पूरी तरह से बेकार गया.

‘‘मेरे पास उड़ाने के लिए दौलत है ही कहां?’’ राजीव बोले, ‘‘मैं तो कहता हूं कि तुम भी पैसों का मोह छोड़ो और जिंदगी का रस पीने की कला सीखो.’’

उसी दिन मुझे एहसास हो गया था कि इस इनसान के साथ जिंदगी गुजारना कभीकभी जी का जंजाल जरूर बना करेगा.

मेरा वह डर सही निकला. कितनी भी बड़ी बात हो जाए, कैसा भी नुकसान हो जाए, उन्हें चिंता और परेशानी छूते तक नहीं. आज की तेजतर्रार दुनिया में लोग उन्हें भोला और सरल इनसान बताते हैं पर मैं उन्हें अव्यावहारिक और असफल इनसान मानती हूं.

‘‘अरे, दुनिया की चालाकियों को समझो. अपने और बच्चों के भविष्य की फिक्र करना शुरू करो. आप की अक्ल काम नहीं करती तो मेरी सलाह पर चलने लगो. अगर यों ही ढीलेढाले इनसान बन कर जीते रहे तो इज्जत, दौलत, शोहरत जैसी बातें हमारे लिए सपना बन कर रह जाएंगी,’’ ऐसी सलाह दे कर मैं हजारों बार अपना गला बैठा चुकी हूं पर राजीव के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती.

बेटा मोहित अब 7 साल का हो गया है और बेटी नेहा 4 साल की होने वाली है अपने ढीलेढाले पिता की छत्रछाया में ये दोनों भी बिगड़ने लगे हैं. मैं रातदिन चिल्लाती हूं पर मेरी बात न बच्चों के पापा सुनते हैं, न ही बच्चे.

राजीव की शह के कारण घर के खाने को देख कर दोनों बच्चे नाकभौं चढ़ाते हैं क्योंकि उन की चिप्स, चाकलेट और चाऊमीन जैसी बेकार चीजों को खाने की इच्छा पूरी करने के लिए उन के पापा सदा तैयार जो रहते हैं.

‘‘यार, कुछ नहीं होगा उन की सेहत को. दुनिया भर के बच्चे ऐसी ही चीजें खा कर खुश होते हैं. बच्चे मनमसोस कर जिएं, यह ठीक नहीं होगा उन के विकास के लिए,’’ उन की ऐसी दलीलें मेरे तनबदन में आग लगा देती हैं.

‘‘इन चीजों में विटामिन, मिनरल नहीं होते. बच्चे इन्हें खा कर बीमार पड़ जाएंगे. जिंदगी भर कमजोर रहेंगे.’’

‘‘देखो, जीवन देना और उसे चलाना प्रकृति की जिम्मेदारी है. तुम नाहक चिंता मत करो,’’ उन की इस तरह की दलीलें सुन कर मैं खुद पर झुंझला पड़ती.

राजीव को जिंदगी में ऊंचा उठ कर कुछ बनने, कुछ कर दिखाने की चाह बिलकुल नहीं है. अपनी प्राइवेट कंपनी में प्रमोशन के लिए वह जरा भी हाथपैर नहीं मारते.

‘‘बौस को खाने पर बुलाओ, उसे दीवाली पर महंगा उपहार दो, उस की चमचागीरी करो,’’ मेरे यों समझाने का इन पर कोई असर नहीं होता.

समझाने के एक्सपर्ट मेरे पतिदेव उलटा मुझे समझाने लगते हैं, ‘‘मन का संतोष और घर में हंसीखुशी का प्यार भरा माहौल सब से बड़ी पूंजी है. जो मेरे हिस्से में है, वह मुझ से कोई छीन नहीं सकता और लालच मैं करता नहीं.’’

‘‘लेकिन इनसान को तरक्की करने के लिए हाथपैर तो मारते रहना चाहिए.’’

‘‘अरे, इनसान के हाथपैर मारने से कहीं कुछ हासिल होता है. मेरा मानना है कि वक्त से पहले और पुरुषार्थ से ज्यादा कभी किसी को कुछ नहीं मिलता.’’

उन की इस तरह की दलीलों के आगे मेरी एक नहीं चलती. उन की ऐसी सोच के कारण मुझे नहीं लगता कि अपने घर में सुखसुविधा की सारी चीजें देखने का मेरा सपना कभी पूरा होगा जबकि घरगृहस्थी की जिम्मेदारियों को मैं बड़ी गंभीरता से लेती हूं. हर चीज अपनी जगह रखी हो, साफसफाई पूरी हो, कपडे़ सब साफ और प्रेस किए हों, सब लोग साफसुथरे व स्मार्ट नजर आएं जैसी बातों का मुझे बहुत खयाल रहता है. मैं घर आए मेहमान को नुक्स निकालने या हंसने का कोई मौका नहीं देना चाहती हूं.

अपनी लापरवाही व गलत आदतों के कारण बच्चे व राजीव मुझ से काफी डांट खाते हैं. राजीव की गलत प्रतिक्रिया के कारण मेरा बच्चों को कस कर रखना कमजोर पड़ता जा रहा है.

‘‘यार, क्यों रातदिन साफसफाई का रोना रोती हमारे पीछे पड़ी रहती हो? अरे, घर ‘रिलैक्स’ करने की जगह है. दूसरों की आंखों में सम्मान पाने के चक्कर में हमारा बैंड मत बजाओ, प्लीज.’’

बड़ीबड़ी लच्छेदार बातें कर के राजीव दुनिया वालों से कितनी भी वाहवाही लूट लें, पर मैं उन की डायलागबाजी से बेहद तंग आ चुकी हूं.

‘‘अलका, तुम तेरामेरा बहुत करती हो, जरा सोचो कि हम इस दुनिया में क्या लाए थे और क्या ले जाएंगे? मैं तो कहता हूं कि लोगों से प्यार का संबंध नुकसान उठा कर भी बनाओ. अपने अहं को छोड़ कर जीवनधारा में हंसीखुशी बहना सीखो,’’ राजीव के मुंह से ऐसे संवाद सुनने में बहुत अच्छे लगते हैं, पर व्यावहारिक जिंदगी में इन के सहारे चलना नामुमकिन है.

बहुत तंग और दुखी हो कर कभीकभी मैं सोचती हूं कि भाड़ में जाएं ये तीनों और इन की गलत आदतें. मैं भी अपना खून जलाना बंद कर लापरवाही से जिऊंगी, लेकिन मैं अपनी आदत से मजबूर हूं. देख कर मरी मक्खी निगलना मुझ से कभी नहीं हो सकता. मैं शोर मचातेमचाते एक दिन मर जाऊंगी पर मेरे साहब आखिरी दिन तक मुझे समझाते रहेंगे, पर बदलेंगे रत्ती भर नहीं.

जीवन के अपने सिखाने के ढंग हैं. घटनाएं घटती हैं, परिस्थितियां बदलती हैं और इनसान की आंखों पर पडे़ परदे उठ जाते हैं. हमारी समझ से विकास का शायद यही मुख्य तरीका है.

कुछ दिन पहले मोहित को बुखार हुआ तो उसे दवा दिलाई, पर फायदा नहीं हुआ. अगले दिन उसे उलटियां होने लगीं तो हम उसे चाइल्ड स्पेशलिस्ट के पास ले गए.

‘‘इसे मैनिन्जाइटिस यानी दिमागी बुखार हुआ है. फौरन अच्छे अस्पताल में भरती कराना बेहद जरूरी है,’’ डाक्टर की चेतावनी सुन कर हम दोनों एकदम से घबरा उठे थे.

एक बडे़ अस्पताल के आई.सी.यू. में मोहित को भरती करा दिया. फौरन इलाज शुरू हो जाने के बावजूद उस की हालत बिगड़ती गई. उस पर गहरी बेहोशी छा गई और बुखार भी तेज हो गया.

‘‘आप के बेटे की जान को खतरा है. अभी हम कुछ नहीं कह सकते कि क्या होगा,’’ डाक्टर के इन शब्दों को सुन कर राजीव एकदम से टूट गए.

मैं ने अपने पति को पहली बार सुबकियां ले कर रोते देखा. चेहरा बुरी तरह मुरझा गया और आत्मविश्वास पूरी तरह खो गया.

‘‘मोहित को कुछ नहीं होना चाहिए अलका. उसे किसी भी तरह से बचा लो,’’ यही बात दोहराते हुए वह बारबार आंसू बहाने लगते.

मेरे लिए उन का हौसला बनाए रखना बहुत कठिन हो गया. मोहित की हालत में जब 48 घंटे बाद भी कोई सुधार नहीं हुआ तो राजीव बातबेबात पर अस्पताल के कर्मचारियों, नर्सों व डाक्टरों से झगड़ने लगे.

‘‘हमारे बेटे की ठीक से देखभाल नहीं कर रहे हैं ये सब,’’ राजीव का पारा थोड़ीथोड़ी देर बाद चढ़ जाता, ‘‘सब बेफिक्री से चाय पीते, गप्पें मारते यों बैठे हैं मानो मेले में आएं हों. एकाध पिटेगा मेरे हाथ से, तो ही इन्हें अक्ल आएगी.’’

राजीव के गुस्से को नियंत्रण में रखने के लिए मुझे उन्हें बारबार समझाना पड़ता.

जब वह उदासी, निराशा और दुख के कुएं में डूबने लगते तो भी उन का मनोबल ऊंचा रखने के लिए मैं उन्हें लेक्चर देती. मैं भी बहुत परेशान व चिंतित थी पर उन के सामने मुझे हिम्मत दिखानी पड़ती.

एक रात अस्पताल की बेंच पर बैठे हुए मुझे अचानक एहसास हुआ कि मोहित की बीमारी में हम दोनों ने भूमिकाएं अदलबदल दी थीं. वह शोर मचाने वाले परेशान इनसान हो गए थे और मैं उन्हें समझाने व लेक्चर देने वाली टीचर बन गई थी.

मैं ये समझ कर बहुत हैरान हुई कि उन दिनों मैं बिलकुल राजीव के सुर में सुर मिला रही थी. मेरा सारा जोर इस बात पर होता कि किसी भी तरह से राजीव का गुस्सा, तनाव, चिढ़, निराशा या उदासी छंट जाए. ’’

4 दिन बाद जा कर मोहित की हालत में कुछ सुधार लगा और वह धीरेधीरे हमें व चीजों को पहचानने लगा था. बुखार भी धीरेधीरे कम हो रहा था.

मोहित के ठीक होने के साथ ही राजीव में उन के पुराने व्यक्तित्व की झलक उभरने लगी.

एक शाम जानबूझ कर मैं ने गुस्सा भरी आवाज में उन से कहा, ‘‘मोहित, ठीक तो हो रहा है पर मैं इस अस्पताल के डाक्टरों व दूसरे स्टाफ से खुश नहीं हूं. ये लोग लापरवाह हैं, बस, लंबाचौड़ा बिल बनाने में माहिर हैं.’’

‘‘यार, अलका, बेकार में गुस्सा मत हो. यह तो देखो कि इन पर काम का कितना जोर है. रही बात खर्चे की तो तुम फिक्र क्यों करती हो? पैसे को हाथ का मैल…’’

उन्हें पुराने सुर में बोलता देख मैं मुसकराए बिना नहीं रह सकी. मेरी प्रतिक्रिया गुस्से और चिढ़ से भरी नहीं है, यह नोट कर के मेरे मन का एक हिस्सा बड़ी सुखद हैरानी महसूस कर रहा था.

मोहित 15 दिन अस्पताल में रह कर घर लौटा तो हमारी खुशियों का ठिकाना नहीं रहा. जल्दी ही सबकुछ पहले जैसा हो जाने वाला था पर मैं एक माने में बिलकुल बदल चुकी थी. कुछ महत्त्वपूर्ण बातें, जिन्हें मैं बिलकुल नहीं समझती थी, अब मेरी समझ का हिस्सा बन चुकी थीं.

मोहित की बीमारी के शुरुआती दिनों में राजीव ने मेरी और मैं ने राजीव की भूमिका बखूबी निभाई थी. मेरी समझ में आया कि जब जीवनसाथी आदतन शिकायत, नाराजगी, गुस्से जैसे नकारात्मक भावों का शिकार बना रहता हो तो दूसरा प्रतिक्रिया स्वरूप समझाने व लेक्चर देने लगता है.

घरगृहस्थी में संतुलन बनाए रखने के लिए ऐसा होना जरूरी भी है. दोनों एक सुर में बोलें तो यह संतुलन बिगड़ता है.

मोहित की बीमारी के कारण मैं भी बहुत परेशान थी. राजीव को संभालने के चक्कर में मैं उन्हें समझाती थी. और वैसा करते हुए मेरा आंतरिक तनाव, बेचैनी व दुख घटता था. इस तथ्य की खोज व समझ मेरे लिए बड़ी महत्त्वपूर्ण साबित हुई.

आजकल मैं सचमुच बदल गई हूं और बहुत रिलेक्स व खुश हो कर घर की जिम्मेदारियां निभा रही हूं. राजीव व अपनी भूमिकाओं की अदलाबदली करने में मुझे महारत हासिल होती जा रही है और यह काम मैं बड़े हल्केफुल्के अंदाज में मन ही मन मुसकराते हुए करती हूं.

हर कोई अपने स्वभाव के अनुसार अपनेअपने ढंग से जीना चाहता है. अपने को बदलना ही बहुत कठिन है पर असंभव नहीं लेकिन दूसरे को बदलने की इच्छा से घर का माहौल बिगड़ता है और बदलाव आता भी नहीं अपने इस अनुभव के आधार पर इन बातों को मैं ने मन में बिठा लिया है और अब शोर मचा कर राजीव का लेक्चर सुनने के बजाय मैं प्यार भरे मीठे व्यवहार के बल पर नेहा, मोहित और उन से काम लेने की कला सीख गई हूं. Social Story in Hindi

Hindi Story: किस्सा कुकरी कोर्स का

Hindi Story: ‘‘भई, रोजरोज की घिसीपिटी सब्जियों और उबली दाल से मैं तंग आ चुका हूं. यह उबाऊ खाना मेरी बरदाश्त से बिलकुल बाहर है. यही हाल रहा तो जीभ एक दिन अच्छे खाने का स्वाद ही भूल जाएगी. दीपा भाभी को देखो, रोज नएनए पकवानों से स्वागत करती है विनोद का. लगता है कि उन के हाथों में कोई जादू है, जो खाने में रस सा घोल देता है और हमारा दिनभर मेहनत करने के बाद भी उसी बेस्वाद मूंग की दाल और आलूटमाटर से पाला पड़ता है. देखो तो यूट्यूब तरहतरह की रैसिपीज से भरा रहता है.’’ एक तरफ पति झगड़े पर उतारू थे तो दूसरी दोनों तरफ बच्चे मुंह बनाए बैठे रहते थे.

खाने की मेज पर हर तरफ विद्रोह के झंडे गाड़ते रहते थे जैसे मेरे खिलाफ बगावत की पूरी योजना बनाई गई हो. कभीकभी उभरने वाले मामूली असंतोष ने अब विकराल रूप धारण कर लिया था. एक तरफ मैं अकेली थी और दूसरी तरफ पति और बच्चों का संयुक्त मोरचा. पहले ही दफ्तर का काम कर के आओ और फिर रसोई में घुसो. मेड तो खाने के नाम पर सब्जियां, दाल उबाल जाती या फिर उन में मसाले भर जाती. औनलाइन फूड के खिलाफ भी सैकड़ों बातें आ रही थीं.

मुझे अपने पाकचातुर्य को बढ़ाने के लिए 1 महीने का नोटिस दे दिया गया. पति ने सलाह दी, ‘‘क्यों न दीपा भाभी से ही इस बारे में कुछ मदद ली जाए. शुभ काम में देरी कैसी? चलो, अभी चलें. उन्होंने औफलाइन क्लास भी लेनी शुरू कर दी हैं.’’ मैं ने बहाना बनाया कि रसोई अव्यवस्थित पड़ी है, एक प्रेजैंटेशन भी तैयार करना है फिर अब मेड भी आने वाली है. मगर अपने उत्साह में इन्होंने कुछ नहीं सुना और तुरंत बाहर निकाल कार स्टार्ट कर दी. किसी तरह मैला नाइट सूट बदल कर चप्पलें घसीटती हुई मैं बाहर भागी. सुबहसुबह किसी को तंग करते हुए मुझे बड़ी शर्म आ रही थी.

लेकिन विशेष अपनी धुन में मेरी बात सुनने को तैयार ही नहीं थे. मेरा खयाल था कि घंटी की आवाज सुन कर दीपा सुबह की मीठी नींद से उठ कर झल्लाती हुई दरवाजा खोलेंगी लेकिन सामना हुआ पसीने में सराबोर, मैलेकुचैले गाउन पर ऐप्रन पहने और तरहतरह की गंधों में लिपटे उन के भारीभरकम व्यक्तित्व से. पता चला कि अगले दिन विनोदजी के बौस ने 20 जनों का खाना और्डर किया है, उसे सप्लाई करना है.

सर्वथा नवीन पकवानों की फरमाइश हुई है. इसलिए झलसा देने वाली गरमी में बेचारी एक दिन पहले ही नए पकवान बना कर देख रही हैं. बड़ा तरस आया उन की हालत देख कर, कहां एसी की ठंडक का आराम और कहां रसोईघर में 4-4 बर्नर्स पर पकती चीजें. अपनी हालत पर कुछ शर्मिंदा सी होती हुई दीपा बोलीं, ‘‘कहिए, आज सुबहसुबह कैसे निकलना हुआ.’’ ‘‘आप के फेसबुक पर डाले गए स्वादिष्ठ पकवानों का जादू ही हमें यहां खींच लाया है.

भाभीजी सचमुच आप के हाथ का खाना बहुत लजीज होता है, चाहे मुगलई चिकन हो, चाहे चाऊमिन हो या चाहे वही सदियों पराने दहीबड़े. मैं तो बहुत दिनों से रमा से कह रहा हूं कि न हो तो दीपा भाभी से ही कुछ सीख लो. हमारा भी जी खुश हो जाएगा,’’ मेरे मुंह खोलने से पहले ही पति बोल पड़े. उन की आवाज में अपने लिए तो इतनी प्रशंसा का भाव मैं ने कभी महसूस नहीं किया.

रसोईघर से आती मसालों की जोरदार खुशबू ने शायद उन की लारग्रंथियों के साथसाथ उन की वाणी को भी उत्तेजित कर दिया था. दीपा अपनी प्रशंसा सुन कर चहक उठीं. ‘‘अरे, विशेषजी आप तो यों ही तारीफ के पुल बांध देते हैं. मैं भला किस लायक हूं? दरअसल, पकानेखाने का अपना शौक तो पुश्तैनी है. फिर पिछले साल मैं ने एक कुकरी कोर्स भी किया था फिर औफलाइन क्लास भी लेती हूं जिस ने रहीसही कसर पूरी कर दी.’’ उन का कुकरी कोर्स क्या रंग लाया है, यह तो उन की देहयष्टि से साफ जाहिर था. उन की स्थूल काया नित नवीन भोजन के असर से कुछ ज्यादा ही फैल गई थी.

पता चला कि जिम जौइन किया था पर उस ने उन से अनुरोध किया कि वे न आया करें क्योंकि दूसरी कास्टमर्स उन्हें देख कर बिदक रही हैं. ‘‘रमा, क्यों न तुम भी वह कुकरी कोर्स कर लो. भाभीजी से सारा विवरण मालूम कर लो. मैं अपनी तरफ से तुम्हें पूरे सहयोग की गारंटी देता हूं,’’ विशेष उत्साह भरे स्वर में बोले. अब मरता क्या न करता. मुझे हामी भरनी ही पड़ी. कोई लीनाजी हैं जो हमारे घर से 15 मील दूर शहर के दूसरे कोने में रहती हैं. 1 महीने के कोर्स की 12 हजार रुपए फीस लेती हैं.

वर्किंग वूमन के लिए रोजाना 6 से 7 बजे तक उन के घर पर ही कुकरी कक्षा लगती है सप्ताह में 3 दिन. घर लौटते समय रास्ते भर मैं विशेष से बहस करती रही कि रोज इतनी दूर दफ्तर के बाद आनाजाना कैसे संभव होगा. वहां तक किरायाभाड़ा के साथसाथ इतनी ज्यादा फीस अपने बूते से बिलकुल बाहर की चीज है. लेकिन पति पर तो जैसे कुकरी कोर्स का भूत सवार था. कहने लगे, ‘‘दफ्तर से कुछ जल्दी निकल कर तुम औटो कर के वहां चली जाया करना. दफ्तर से वापस आते मैं ले आया करूंगा. रही बात फीस की तो 12 हजार की ही तो बात है. सैलरी से जमा किए गए काफी पैसे तुम्हारे पास हैं. आखिर वे किस दिन काम आएंगे? नई ड्रैस फिर कभी खरीद लेना. पार्टी में लोग तुम्हारी डिशेज रखेंगे, तुम्हारी ड्रैसों को नहीं.’’ क्लास खत्म होने पर बाहर निकली तो उबर, औटो, बैटरी रिकशाओं को ढूंढ़ते लोगों की भीड़ दिखी.

घर पहुंचे तो बच्चे, पति किचन में लगे थे. वे हम से भी ज्यादा बेस्वाद खाना बना रहे थे. कोर्स करने के लिए उन्होंने खुद ही तो जोर दिया था. इसलिए कुछ कहने की गुंजाइश ही नहीं थी. घर पहुंचते ही बच्चे पीछे पड़ गए कि आज जो सीखा है, अगले ही दिन बना कर खिलाऊं. दूसरे दिन बारी आई पाइनऐप्पल केक की. केक का बैटर फेंटतेफेंटते बांहें दुख गईं, लेकिन लीनाजी को तसल्ली ही नहीं हो रही थी. खैर, किसी तरह ओवन में केक रखा गया. लीनाजी की बहन का फोन आ गया और वे भूल ही गईं कि केक ओवन में रखा है. जब तक वे बहन के ऊटी के किस्से सुनना खत्म करतीं केक ज्यादा पक गया. नतीजा वह हुआ जो नहीं होना चाहिए था. स्पंज केक की जगह चमड़ा केक बन कर तैयार हुआ.

यह देख कर मैं बिलकुल रोंआसी हो गई. इस तरह एक और कुकिंग ऐक्सपर्ट के मेरे अनुभवों में दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि होने लगी और दूसरी ओर घर वालों की फरमाइश पर नएनए पकवानों को बनाने और ग्रौसरी बरबाद करने में मेरा सारा बजट डांवांडोल हो गया. महीनेभर का घी, आटा, मसाले और चीनी 10 ही दिन में खत्म हो गए. कभी नूडल्स, कभी चौकलेट पाउडर खरीदने में पिछले महीनों में की गई मेरी सारी बचत पर पानी फिर गया. उस पर आए दिन देर रात तक मेरी और पति की मित्रमंडली धावा बोलने लगी.

शहर में रहने वाले दूरदूर के जानपहचान वाले जो सालों सूरत तक नहीं दिखाते थे, नईनई डिशेजका जायका लेने के लिए मौकाबेमौका पधारने लगे. फिर बच्चे क्या किसी से कम थे? उन्हें भी अपने साथियों पर रोब झड़ने का अच्छा मौका मिल गया. रोज टिफिन में ले जाने के लिए नईनई चीजों की फरमाइश होती. कभी चीज आर्मलेड बेक्ड सैंडविच चाहिए तो कभी मुगलई परांठा. पूरी सोसायटी में खबर फैल गई कि मैं कुकरी कोर्स कर ऐक्सपर्ट हो गई हूं. जैसे ही मैं शाम को दफ्तर से घर लौटती किसी न किसी पड़ोसिन की वीडियो काल आ जाती. कमला को बिरयानी बनाने की विधि चाहिए, सुमन का केक बारबार खराब हो जाता था, इसलिए वह पीछे पड़ गई कि एक बार अपनी देखरेख में बनवा दूं, शीलाजी की लड़की अपने बौयफ्रैंड के घर वालों को बुला कर ला रही है सो अनुरोध किया कि कुछ बढि़या पकवान बना दूं, जिन्हें परोस कर वे लड़के वालों को प्रभावित कर सके.

उन्हें मालूम था कि लड़का समझदार व मोटे वेतन वाली पोस्ट पर है. कांता के पति के नए बौस अपनी अजरबेजानी पत्नी के साथ पहली बार उन के घर खाने के लिए आमंत्रित थे. यह अजरबेजानी लड़की उन्हें गोवा में मिली थी. मक्खनबाजी का इस से अच्छा और क्या तरीका था कि वे मुझ से पश्चिमी ढंग का खाना बनवा कर प्रस्तुत करें. आखिर उन के पति की प्रमोशन का मामला था. यह सब अत्याचार शायद ही कम था. इसीलिए सोसायटी के लेडीज क्लब की प्रैसिडैंट ने तय किया कि इस महीने क्लब की कपल मीटिंग हमारे घर पर ही होगी, जिस से सभी कपल मेरी पाककला का आनंद उठा सकें.

आखिर उन का भी तो हक था. 2 दिन तक रसोई में जुट कर मैं ने एक से एक बढि़या चीजें बनाईं. मुझे आशा थी कि सहेलियों और उन के पतियों पर इस बात का रोब पड़ेगा और तारीफ के पुल बंध जाएंगे. लेकिन हुआ उलटा ही. खाने की सजी मेज देखते ही सब सहेलियां प्लेटों पर टूट पड़ीं. खाने के साथसाथ वे फबतियां भी कसती गईं, ‘‘चारू, केक कुछ और स्पंजी होना चाहिए था. कबाब कुछ फीका है, नानखताई जरा कुरकुरी कम है. सैंडविच का मक्खन शायद कुछ पुराना हो गया है,’’ हर तरफ से आलोचना की बौछार ने मेरा दिल तोड़ दिया. मैं ने कान पकड़ लिए कि आगे से कभी लेडीज क्लबकी बैठक में घर पर कोई चीज नहीं बनाऊंगी.

महीनेभर का कुकरी कोर्स तो खत्म हो गया लेकिन मेरे लिए हमेशा की मुसीबत छोड़ गया. कभी मन होता है कि आज खाना बाहर खाया जाए या बाहर से मंगाया जाए तो पति टाल जाते हैं, ‘‘अरे, इस से अच्छा खाना तो तुम घर पर बना लेती हो. सच पूछो तो बाहर के खाने में अब कोई मजा ही नहीं आता,’’ जबकि मन में बात यह होती कि अपनी जेब क्यों हलकी की जाए? यह तो पक्का ही था कि किचन का खर्च अब बढ़ गया था. मेड भी अब दोगुने पैसे लेने लगी थी क्योंकि बरतन बहुत होते. छुट्टी का सारा दिन रसोई के कामों में ही गुजरता है. त्योहारों पर भी मैं जब मिठाई लाने के लिए कहती हूं तो जवाब मिलता है, ‘‘बाजार की मिठाई में बड़ी मिलावट होती है. क्यों न घर पर ही कोक और पुडिंग बना लो?’’ जैसे मैं बाइफ नहीं, कोई हलवाई हूं.

अब हालत यह है कि उस घड़ी को कोसती हूं जब मैं ने कुकरी कोर्स जौइन करने की गलती की थी. कहीं भी कुकरी कोर्स का विज्ञापन पढ़ते ही मेरा खून खौलने लगता है. सोचती हूं, मेरी तरह न जाने और कितनी अच्छीभली औरतों को इस मुसीबत को गले लगाने की सिफारिश की जा रही है. अगर आप भी उन में से एक हैं तो मेरे अनुभवों से फायदा उठा कर फिर अपने निर्णय पर अच्छी तरह से विचार कर लीजिए. यह कुकरी कोर्स एक कौंस्पीरेसी है आप को जंजीर में बांधने की.

फियामा जैपनीज होक्काइदो मिल्कबार सैलिब्रेशन पैक फियामा मौइस्चराइजिंग बार्स का नया सैलिब्रेशन पैक एक शानदार अनुभव प्रदान करता है, जो नहाने की रोजमर्रा की प्रक्रिया को एक रिचुअल जैसा बना देता है. इस में जापानी होक्काइदो मिल्क की अच्छाई और 3 अनोखे वैरिएंट- अकाई बेरी, गोजी बेरी और ब्लूबेरी शामिल हैं, जो त्वचा को गहराई से पोषण और तरावट देते हैं. इस साबुन में मौजूद 1/3 स्किन मौइस्चराइजर त्वचा को मुलायम और हाइड्रेटेड बनाए रखता है, जिस से स्नान के बाद अलग से बौडी लोशन की आवश्यकता महसूस नहीं होती. इस का रिच और क्रीमीपन त्वचा को कोमलता से साफ करता है, बिना उस की प्राकृतिक नमी को छीने. साथ ही, इस में मौजूद विटामिन एफ और इस की मूड-अपलिफ्टिंग फ्रैगरैंस पूरे अनुभव को सुखद और ताजगीभरा बना देती है.

यह न सिर्फ स्किन के लिए लाभकारी है, बल्कि हर दिन की शुरुआत को एक पौजिटिव और रिफै्रशिंग टोन पर सैट करता है. फियामा का यह नया पैक निश्चित रूप से उन लोगों के लिए उपयुक्त है जो स्किनकेयर के साथसाथ एक संपूर्ण स्नान अनुभव की तलाश में हैं.  Hindi Story

Sad Hindi Story: दीवारों पर उपजे दर्द

Sad Hindi Story: ‘‘तूने मनोज का नाम भी लिया तो हमारी दोस्ती टूट जाएगी. मैं फिर कभी तुझ से बात नहीं करूंगी. तुझे याद है न,’’ नेहा ने गुस्से से कहा. ‘‘हां, मैं पिछले 4 सालों से यह बात बहुत बार सुन चुकी हूं. मगर अब दोस्ती टूटती है तो टूट जाए. मुझे जो कहना है वह मैं कह कर ही रहूंगी. इन 4 सालों से तू हर महीने अपने पिताजी के लिए गुमशुदा की तलाश में यह आर्टिकल भेज रही है, कुल 48 बार भेज चुकी है.

इस का हमें कोई जवाब नहीं मिला है. तूने अपनेआप को जीतेजी मार डाला है.’’ ‘‘मरने जैसी बात भी तो है, यह जिंदगी बेकार ही हो गई. जो लड़की अपने पिता के गुमशुदा होने की जिम्मेदार है और अपनी मां की मृत्यु का कारण भी वही बनी है, उस के भाई को लंदन से अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ कर आना पड़ा और अब वह बेमन से हमारा बिजनैस देख रहा है, इतने सारे गुनाह सिर पर ले कर एक इंसान जिंदा नहीं रहता है, जीतेजी लाश बन जाता है. बस, मुझ में हिम्मत नहीं है, खुद का गला घोट लेने की, शायद इसीलिए मैं जिंदा हूं. एक आस भी है, किसी दिन पापा लौट आएं और मैं उन्हें देख सकूं?’’ ‘‘उन्हें देख सकेगी या नहीं, इस का जवाब आज तक कोई नहीं दे पाया है पर जो तेरी राह देखतेदेखते 4 साल से 1-1 पल गिन रहा है उस का क्या? तूने हर महीने पर अपनी आस टिकाई है उस ने तो 1-1 पल पर खुद को रोका हुआ है.

क्या जवाब दूं उसे? आज तुझे यह बात पूरी करनी ही होगी, उस के बाद मैं भी तेरे लिए मर गई.’’ ‘‘जो दुख मिले हैं वे कम हैं क्या जो अब तू भी दूर हो रही है?’’ ‘‘मैं दूर नहीं हो रही हूं पर जो पास आना चाहता है, जो तेरा इंतजार कर रहा है उस के लिए बात करनी ही होगी.’’ ‘‘तो जा कर उस से कह दे कि मैं उस से शादी नहीं कर सकती हूं. वह मेरा इंतजार न करे. किसी और से शादी कर ले. मेरे लिए पापा को देखे बिना शादी के बारे में सोचना भी असंभव है.’’ ‘‘जो हुआ वह नहीं होना था पर अब कहने से भी क्या होगा? तेरे पापा को जो करना था वे कर चुके. इस सब की सजा से पहले तू अपनी गलती को तो समझ ले.’’ ‘‘क्या समझं, सबकुछ साफ दिखता नहीं है क्या? मैं नासमझ का नाटक करूं क्या? यह सब हिस्से में ही लिखा था. जो होना हो, होकर ही रहता है.

यह सब कह देने से कोई तसल्ली नहीं मिलती है. मुझे अपना गुनाह साफ दिखता है.’’ ‘‘मैं तो यह नहीं कह रही हूं. मैं तो बस इतना समझना चाहती हूं कि तूने गलती क्या की थी? वही मुझे समझ दे?’’ ‘‘मैं मनोज से शादी करना चाहती थी.’’ ‘‘तो इस में गलत क्या था? तुम दोनों ने एमबीए साथ किया था. शिक्षा एकसाथ पूरी हुई, मन भी मिल गया था और क्या चाहिए था?’’ ‘‘सारी अड़चन जाति की थी.’’ ‘‘वह तो हम ने ही बनाई है. उस का दोष किस को दें? तुझे पता होता कि तेरी शादी की बात से तेरे पापा घर छोड़ कर चले जाएंगे तो तू उन से यह बात कभी नहीं कहती. तूने जब पापा को मनोज का पूरा नाम बताया था, तुझे तभी समझ आया था कि इस में जाति की दीवार है. तुम दोनों जाति की ऊंचनीच से अनजान थे.

जो हुआ वह किसी ने सोचा ही नहीं था तो गुनाह कैसे हुआ?’’ ‘‘मेरे कारण मां मर गईं.’’ ‘‘हां, यह सच है. मां, पापा की आस में कितना तड़पीं हम समझ ही नहीं सकते हैं. उस से भी बड़ी बात यह हुई कि मां ने कभी तुझे कोसा नहीं. उन्होंने भी वैसे ही हर पल को गिना होगा, अपने जीवनसाथी के लिए. वे कैसे उन की बाट जोहती होंगी? कितनी बार सोते से जाग उठती होंगी? हर बार फोन की घंटी हो या दरवाजे की, यही एहसास दिलाती होगी कि शायद उन की कोई खबर आ जाए. उन की आस का हर दिन टूटना ही उन की मौत का कारण बना.

अब वही हाल आज मनोज का है, तेरे इंतजार में. मुझे लगता है एक दिन वह भी…’’ ‘‘पागल हो गई है क्या? जो मुंह में आया बोल रही है…’’ ‘‘डर लगता है न? यही डर ले कर मैं जी रही हूं. उसे रोज औफिस में मशीन की तरह काम करते हुए देखती हूं. वह थक रहा है. खुद को संभाल नहीं पा रहा है.’’ ‘‘क्या हो गया है उसे?’’ ‘‘तुझे क्या करना? तू तो डूबी रह अपने दुख में.’’ ‘‘यार, प्लीज. बोल न.’’ ‘‘उस के परिवार ने उस का जीना मुश्किल कर दिया है. जब से उस का पैकेज दोगुना हुआ है, प्रमोशन हुआ है वे उस की शादी करने पर तुले हैं. इसे बड़ा दहेज मिलेगा, जिस से दोनों बहनों की शादी हो जाएगी.

4 साल तक लक्ष्मी को घर आने से रोकना आसान नहीं है. अब तो उस की बहनें भी उसे ऐसे ही देखती हैं कि उन की शादी की सब से बड़ी रुकावट मनोज की जिद ही है. अभी किसी बड़े घर से रिश्ता आया था, मनोज ने मेहमानों के सामने ही कह दिया कि वह कभी शादी नहीं करेगा, फिर यह सब क्यों किया जा रहा है? उस के बाद के हंगामे ने ही उस की हालत खराब कर दी है. उस ने घर में बात करना बंद ही कर दिया है. घर के झगड़े इतने बढ़ गए हैं कि कल उस का बीपी 220 हो गया था.

औफिस में वह अपनी ही कुरसी से गिर गया. उस को सिर पर चोट आई है और अभी वह हौस्पिटल में भरती है.’’ ‘‘क्या, वह हौस्पिटल में है? यह बात कहने में इतनी देर क्यों कर दी? तुझ से आते ही नहीं कहा गया? अब बैठी क्या है उठ न? कौन से अस्पताल जाना है?’’ नेहा ने गुस्से से स्मिता से कहा. दोनों तेजी से घर से बाहर निकलीं. नेहा बहुत बेचैन हो गई थी. ‘‘ड्राइव मैं कर रही हूं, तू उस तरफ से…’’ दाईं तरफ नेहा के बढ़ते कदम को रोकते हुए स्मिता ने कहा जो अपनी ही धुन में आगे बढ़ रही थी. गाड़ी में चाबी लगाते ही नेहा को देखते हुए स्मिता बोली, ‘‘परेशान मत हो. पीछे टिक कर बैठ. 15 मिनट में हम मनोज के पास होंगे.’’ ‘‘स्मिता…’’ नेहा इतना ही कह पाई और उस के आंसु बहने लगे. ‘‘सब अच्छा होगा. चिंता मत कर,’’ नेहा के हाथ को दबाते हुए स्मिता बोली. स्मिता के हाथ को छू कर वे सिर ही हिला पाई. उसे यह 15 मिनट का रास्ता मुश्किल लग रहा है तो मनोज ने 4, नहीं 9 साल कैसे गुजारे होंगे? सोच कर नेहा सिहर उठी. मनोज से उस की पुरानी दोस्ती थी. दोनों का एकसाथ ही आईआईएम में एडमिशन हो गया था. नेहा को उस के पिता ने साफ मना कर दिया है, ‘‘आगे पढ़ने की कोई जरूरत नहीं है.

उज्ज्वल साहब की ओर से रिश्ता खुद चल कर आया है. वे 2 महीनों में ही शादी के लिए कह रहे हैं.’’ यह बात जब नेहा ने मनोज को बताई तो उस ने उस से पूछा, ‘‘एक बहुत बड़े घर में शादी हो रही है. तुम भी यदि उस जीवन को पसंद करती हो तो पढ़ाई और शादी में से शादी को चुना जा सकता है.’’ ‘‘और पढ़ाई ही एकमात्र उद्देश्य हो तो…?’’ ‘‘फिर यह बात घर में नहीं बताई जा सकती है. लड़के से किसी तरह मिल कर उसे अपनी मरजी बता दो. समझदार हुआ तो बात संभाल लेगा?’’ ‘‘समझदार नहीं हुआ तो?’’ ‘‘फिर तूफान को झेलने की हिम्मत करो.’’ ‘‘पर उस लड़के से मीटिंग कैसे होगी?’’ ‘‘वह भी मुझे ही करना है क्या?’’ सिर हिला कर ही हां कह पाई थी नेहा. मनोज ने उन की मीटिंग ही नहीं कराई थी, उसे रैस्टोरैंट तक ले कर भी गया था. वहां उस की जिद पर वह बाहर बैठा उस का इंतजार करता रहा था.

वह मनोज के साथ चेहरे को दुपट्टे से ढक कर गई थी कि कहीं कोई उसे देख न ले. उज्ज्वल एक बहुत समझदार इंसान थे. उन्होंने पूरी बात सुनते ही कहा, ‘‘आप आराम से एमबीए कीजिए. मैं बात को संभाल लूंगा. बस, एक बात पूछना चाहता हूं?’’ ‘‘जी, बोलिए.’’ ‘‘आप इतनी सुंदर हैं कि फिर कोई रिश्ता आ गया तो…’’ ‘‘हर बार यही करूंगी जो आज किया है.’’ नेहा के जवाब पर उज्ज्वल जोर से हंस पड़े. ‘‘औल द बैस्ट,’’ कह कर वे दोनों विदा हो गए. उस दिन नेहा ने मनोज को उस का हाथ पकड़ कर शुक्रिया कहा था. बीबीए करते समय से जानती थी वह मनोज को, सरस्वती उस के साथ थीं पर लक्ष्मी बहुत दूर ही रही थीं.

कालेज में यह फर्क बड़ी आसानी से दिखता है, दोस्त और दोस्ताना भी इसे देख कर ही आगे बढ़ पाता है. तभी से नेहा की उस से दोस्ती है. मनोज की सादगी, उस का आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ना उसे बहुत अच्छा लगता था. जब पूरी क्लास कैंटीन में जाती थी तो मनोज लाइब्रेरी में चला जाता था. पैसे को बचाने और ज्ञान को बढ़ाने का इस से बेहतर बहाना क्या होता? जब नेहा भी उस के साथ लाइब्रेरी जाने लगी थी.

उस के दोस्त उससे कहते थे ‘‘यार, मनोज को तो लाइब्रेरी जाना ही पड़ेगा, तुझे ऐसी क्या दिक्कत है, जो तू भी लाइब्रेरी में चली जाती है?’’ ‘‘घर में इतनी किताबें एक साथ नहीं मिलती हैं और अपने नोट्स बनाने की मुझे आदत है,’’ इस से ज्यादा किसी को क्या समझना? नेहा ने वही कहा जो समझ जा सकता है. वह अमीरीगरीबी की परवाह नहीं करती है. इंसान से दोस्ती उस के गुणों को देख करनी चाहिए, यह बात किसी से भी कहने की नहीं है. जिन्हें भेद की समझ है वे समझते हैं और जिन्हें नहीं समझना है उन्हें समझना बेकार ही होगा.

आईआईएम में दोनों का एडमिशन एक ही जगह होना, एक सुखद संयोग ही रहा था. मनोज के लिए किसी संस्था ने फीस का इंतजाम किया था. नेहा को उस के पापा ने यह कह कर भेज दिया था कि जब तक कोई रिश्ता पक्का न हो तब तक वह अपनी इच्छा पूरी कर ले. जैसे ही रिश्ता पक्का हुआ, पढ़ाई छोड़नी पड़ेगी. अब नेहा जान गई थी कि शादी को अपने से दूर कैसे रखना है. वह पापा की शर्त पर एमबीए के लिए अहमदाबाद चली गई. एक बार जब नेहा छुट्टियों में घर आई तो उस के पापा बोले, ‘‘ऐसा क्यों होता है कि लड़का तुझ से मिलने के बाद शादी के लिए इनकार कर देता है?’’ ‘‘सुंदर लड़की ढूंढ़ रहे होंगे,’’ नेहा का जवाब सुन कर उस के पापा ने उसे घूर कर देखा. उस दिन बड़ी मुश्किल से उस ने अपनी हंसी को रोका.

एमबीए पूरा होने के बाद नेहा ने ही मनोज से पूछा, ‘‘मुझ से शादी करोगे?’’ ‘‘तुम…’’ कुछ बोल ही नहीं पाया वह. उस दिन शब्द गले में अटक गए और आंखों की झल में आ कर चमकने लगे थे. ‘‘क्यों, कोई कमी है क्या मुझ में?’’ मनोज की आंखों के दर्द से वह वाकिफ थी. ‘‘क्या बोल रही हो? तुम में कोई कमी?’’ ‘‘तो फिर रिश्ता पक्का समझं?’’ ‘‘जो कभी नहीं कह सकता था…’’ ‘‘जानती हूं, मुझे वह हर पल याद है जब तुम ने अपनेआप को मुझ से छिपाया था. तुम न कह पाओगे, यह मैं जानती थी. मुझे आज के दिन का इंतजार था. आज तक तो रुकना ही था क्योंकि आज से पहले पापा की जिद से मेरी शादी हो जाती तो शायद मैं कुछ भी न कह पाती.

अब तुम्हारे पास एक अच्छी नौकरी है और मैं पापा से तुम्हारे लिए बात कर सकती हूं.’’ ‘‘कभी सोचा भी नहीं था कि ऐसा होगा.’’ ‘‘हां, मुझे स्कूटर पर घुमाने वाला और मेरी शादी को रोकने में मेरा साथ देने वाला इंसान यह सोच भी नहीं सकता है कि मैं उस से यह कहूंगी. कहना तो उसी दिन चाहती थी, जिस दिन पहली बार मैं ने तुम्हारा हाथ पकड़ कर तुम्हें थैंक्यू कहा था और तुम ने मेरी आंखों में देखने की जगह अपनी नजरें झका ली थीं. तुम्हारी झकी पलकों का भीगापन मैं ने महसूस कर लिया था.

मगर वह समय नहीं था, तुम से कुछ भी कहने का. वह समय था शायद कामनाओं का, हम दोनों के पैरों की मजबूती का. आज हम दोनों अपनी बात कहने का हक रखते हैं. हम अपने घरों के आर्थिक दायरे से बाहर निकल आए हैं.’’ ‘‘आज से खुशी का दिन कभी नहीं आएगा.’’ ‘‘यही सच है इस से बड़ी खुशी जिंदगी में कोई और कभी नहीं हो सकती है.’’ उस दिन नेहा ने अपने पापा को बताया कि वह मनोज से शादी करना चाहती है. ‘‘करता क्या है?’’ ‘‘मेरे साथ ही एमबीए किया है पर उस का प्लेसमैंट मुझ से बेहतर हुआ है.’’ ‘‘उस का परिवार और पूरा नाम क्या है?’’ ‘‘उस के पिता एक फैक्टरी में काम करते हैं और उस का पूरा नाम मनोज सुथार है.’’ ‘‘क्या, तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या? उस की जाति और औकात कितनी नीची है?’’ ‘‘पापा, जाति से क्या फर्क पड़ता है? मनोज बहुत नेक इंसान है. मैं ने ही उस से शादी की बात…’’ ‘‘अच्छा तो इसीलिए आज तक तुम्हारा कोई रिश्ता पक्का नहीं हो सका है.’’ ‘‘मैं अपना निर्णय जाति के कारण नहीं बदल सकती हूं.

फिर बेकार है हमारी पढ़ाई जो हमें सिखाती है कि हम जातिपांति के भेदभाव से दूर रहें. सब को अपना…’’ ‘‘मुझे तुम्हारा भाषण नहीं चाहिए. अब एक शब्द भी नहीं. यह शादी नहीं होगी. समाज में हमारी एक ऊंची जगह है. वहां से इतना नीचे कैसे आ सकते हैं? अपने दिमाग में यह बात बैठा लो.’’ ‘‘ऐसे कैसे पापा, मैं इस बात को नहीं मानती. आप को एकबार मनोज से मिलना होगा.’’ ‘‘असंभव.’’ ‘‘मेरे लिए मनोज को छोड़ना असंभव है. मैं उसी से शादी करूंगी. मैं जाति और अमीरगरीब वाली दोनों बातें मानने से इनकार करती हूं,’’ नेहा ने एक सांस में ही पूरे आत्मविश्वास के साथ अपनी बात पूरी कर दी. नेहा सोच भी नहीं सकती थी कि यह तकरार उस के पापा को घर छोड़ने पर मजबूर कर देगी.

सुबह की बहस के बाद बापबेटी अपनेअपने कमरे में चले गए. रात को मां नेहा के कमरे में आई और बोलीं, ‘‘तेरे पापा का फोन स्विच्डऔफ आ रहा है. रात के 12 बज गए हैं.’’ वह पल और उस के बाद के 4 साल कैसे बीते कोई नहीं समझ सकता है सिर्फ जाति की बात पर क्या कोई पिता अपनी बेटी से इतना नाराज हो सकता है कि घर छोड़ दें? वे कहां गए, क्या किया, कुछ पता नहीं. उन की याद में तड़पतड़प कर उन की पत्नी ने जान दे दी और बेटी अपनी गलतियों का पश्चात्ताप कर रही है.

नेहा के पापा के गुमशुदा होने के 2 दिन बाद ही मनोज ने उसे फोन किया, ‘‘नेहा, मैं मिलना चाहता हूं,’’ बहुत ठंडी आवाज में वह बोल रहा था. स्मिता ने जो घर में हुआ उसे वह सब बता दिया. घर में हंगामे का हाल इतना बुरा था कि रिश्तेदार, पुलिस और दिनभर के फोन ने नेहा का दिमाग सुन्न कर दिया था. वह अपनेआप को एक बहुत बड़ा गुनहगार समझने लगी थी. उस समय नेहा ने मनोज से कह दिया, ‘‘आज के बाद फोन मत करना. हमारे कारण मेरे पिताजी घर छोड़ कर चले गए हैं और कब मिलेंगे हम नहीं जानते. जब तक उन का चेहरा न देखूं, तुम से बात नहीं करूंगी. मुझे अब अपने लिए मरा हुआ ही समझना,’’ दूसरी तरफ क्या हुआ यह समझने की ताकत उस वक्त नेहा में नहीं थी.

वह बहुत घबरा गई थी, डर गई थी. जिंदा पिता से जिद करना बहुत आसान था. पिता का गुमशुदा हो जाना बहुत अलग बात थी. आज जब मनोज भी बीमार पड़ गया तो अचानक नेहा को खयाल आया कि वह क्या कर रही है? किसी ऐसे इंसान को सजा दे रही है, जिस में उस की कोई गलती ही नहीं है. उस की जाति छोटी, उस के घर में पैसे कम पर उस का दिल कितना बड़ा है, यह उस ने बीते सालों में बता दिया. आज की इस दुनिया में कौन, किस के लिए रुकता है. सब आगे बढ़ जाते हैं. वह आज भी वहीं ठहरा है उस के लिए मजबूती से अपने पैर जमाए हुए, बिना किसी भरोसे के. इस से ज्यादा ताकतवर, इस से ज्यादा बड़े दिल का, इस से ज्यादा अमीर क्या दुनिया में कोई और हो सकता है? हम कब तक इंसान को उस के बाहर के आवरण के साथ ही देखेंगे? भीतर की ताकत को समझने की इच्छा हम में कब जागेगी? जब तक हम भीतर की ताकत को नहीं समझेंगे, हम यों ही गिरते और भागते रहेंगे.

जीने के लिए मन की ताकत चाहिए, वह मनोज के पास है. जातियों के दर्द ने न जाने कितने लोगों को एकदूसरे से जुदा किया या उन की जान ही ले ली. इस दर्द को, इन दीवारों को, तोड़ने की बहुत जरूरत है. जब तक ये दीवारें नहीं टूटेंगी, ये दर्द पनपते रहेंगे और जिंदगी को नासूर बनाते रहेंगे. फोन की आवाज से नेहा का ध्यान स्मिता की ओर गया. ‘‘हां मनोज नेहा मेरे साथ ही है. हम अस्पताल पहुंचने ही वाले हैं.’’ ‘‘उसे फोन देना. उस की हालत ठीक नहीं है. वह बोल नहीं पाएगी.’’ ‘‘मैं उस का मौन भी समझ लूंगा.’’ स्मिता ने फोन नेहा की ओर बढ़ा दिया. नेहा ने फोन कान से लगा लिया. गिरते आंसुओं से भारी आवाज किस की हो सकती है? Sad Hindi Story

Family Kahani: पत्नी का अफेयर

Family Kahani: मधु कल ही बाजार से एक खूबसूरत पर्पल कलर का सूट ले कर आई थी. उसे इस सूट को पहन कर किसी को दिखाने की ऐक्साइटमैंट बहुत ज्यादा थी. वैसे तो नए कपड़े पहन कर बाहर निकलने और लोगों की तारीफ भरी नजरों का सामना करने का अलग ही मजा होता है मगर यहां बात और थी. मधु को अपने पति, सहेलियों, रिश्तेदारों या परिचितों के तारीफ की चाहत नहीं थी. उसे तो बस अपने घर के सामने वाले घर के बरामदे में खड़े शख्स की आंखों में अपने लिए तारीफ देखनी थी. मधु ने सुबह जल्दीजल्दी अपने सारे काम निबटा लिए. उस का पति 9 बजे के करीब औफिस के लिए निकल जाता था.

मधु ने टिफिन वगैरह तैयार कर दिया. बच्चे को नहला और खिलापिला कर प्ले स्कूल छोड़ आई. फिर पति के जाने के बाद उस ने अपने बाल धोए. दरअसल, धोने के बाद उस के बाल बेहद खूबसूरत लगते थे. घने, काले और लंबे होने के साथसाथ उस के बालों में अलग ही चमक थी. बालों को उस ने खुला छोड़ दिया था. अब मधु ने जल्दी से अपना नया सूट पहना और बालों को सुखाने के बहाने बालकनी में आ कर खड़ी हो गई.

उसे पता था कि 10 बजे के आसपास सामने रहने वाला वह शख्स जिम से आ जाता है और कुछ देर के लिए बालकनी में खड़ा हो कर इधरउधर आतेजाते लोगों को देखता रहता है या बैठ कर मोबाइल चलाता है. यही वक्त था जब मधु अकसर कपड़े सुखाने या पौधों में पानी डालने के लिए बालकनी में निकलती थी. उस की वाशिंगमशीन भी बालकनी में ही रखी थी इसलिए वह करीब आधा घंटा बालकनी में कपडे़ धोने का काम भी रोज करती थी. आज भी जैसे ही मधु बाहर निकली लड़के की आंखों से उस की नजरें टकराईं. उन आंखों में अपने लिए तारीफ और आकर्षण देख कर उस का दिल खिल उठा.

वह बेपरवाह हो कर कपड़े सुखाने का दिखावा करने लगी मगर नजरें बारबार उस से टकरा जातीं. पिछले 1 सप्ताह पहले मधु के सामने के घर यानी गली की दूसरी तरफ वाली बिल्डिंग की चौथी फ्लोर पर यह शख्स और उस की बूढ़ी मां नए किराएदार के रूप में आए थे. वह खुद भी चौथी फ्लोर पर ही रहती थी इसलिए सामने रहने वालों को अच्छी तरह देख सकती थी. तब से वह उस शख्स को देख रही थी. देख क्या रही थी उस की आंखों में खो गई थी. उस शख्स की उम्र भी लगभग मधु के समान ही थी. गठीला बदन, घुंघराले बाल, डौलेशौले और उन सब के बीच चमकती हुई 2 कातिल निगाहें. उन निगाहों ने गजब ढाया था. उन निगाहों से निगाहों का मिलना और मिलते ही दिल का धड़कना, यह एहसास मधु को बेकाबू किए जाता था.

वह जानती थी कि वह शख्स भी उसे पसंद करता है और उसे एक नजर देखने के लिए 1-1 घंटे तक भी बाहर बालकनी में खड़ा रहता है. फिर जैसे ही मधु निकलती दोनों की नजरें मिलतीं और नजरों ही नजरों में बातें होतीं. उस के बाद मधु का पूरा दिन बहुत खूबसूरत गुजरता. वह लड़का दोपहर के बाद बाइक निकालता और अपने काम पर चला जाता. मधु भी घर के काम निबटा कर 2-3 बजे बाहर बालकनी में आती क्योंकि उसे पता था कि यही वह समय है जब लड़का बाइक ले कर अपनी जौब पर निकलता है. उस की ड्रैस, बैग और बाकी चीजों को देख कर मधु को अंदाजा हो गया था कि वह जोमैटो में काम करता है. 3 बजे के बाद उस की शिफ्ट शुरू होती और देर रात घर लौटता. इधर मधु का पति दिनभर काम के बाद 5-6 बजे के करीब वापस आता. पूरा दिन मधु उस लड़के को देखने की चाह में बालकनी में आतीजाती रहती. वे एकदूसरे को देख कर सुकून पाते.

दोपहर के बाद जब वह लड़का निकल जाता तब मधु के लिए बालकनी में निकलने की ऐक्साइटमैंट खत्म हो जाती. कभी कुछ खाने की जरूरत होती मधुर तुरंत मंगा देता. मधु का एक फोन और वह सामान हाजिर हो जाता. मधु की विनोद के साथ अरेंज्ड मैरिज हुई थी. शादी से पहले दोनों एकदूसरे से अनजान थे और शायद आज तक एकदूसरे को समझ नहीं सके थे. विनोद अलग ही स्वभाव का था. उस में थोड़ा ऐटीट्यूड और थोड़ा सनकीपन था.

विनोद उम्र में भी मधु से काफी बड़ा था. पैसे अच्छेखासे कमा लेता था पर हमेशा मधु से ज्यादा अपने दोस्तों को अहमियत देता था. उस की जिंदगी में मधु से ज्यादा दूसरे लोग महत्त्वपूर्ण थे. रात में वह मधु के करीब आता मगर बस एक रूटीन पूरा करने के लिए. दिल से उन दोनों के बीच कोई जुड़ाव नहीं था. विनोद को मधु से कोई कहने लायक शिकायत नहीं थी क्योंकि वह अच्छा खाना बनाती थी, घर संभाल कर रखती थी, सारी चीजें सही जगह साफ सुथरी कर के रखती. गाहेबगाहे कभी विनोद का कोई रिश्तेदार आ जाए तो उस की खातिरदारी में भी कोई कमी नहीं रखती. दोनों का एक बेटा भी हो गया था.

उस का नाम अंशुल रखा था. अंशुल की देखभाल करना, उसे स्कूल भेजना, उस के लिए नाश्ता बनाना, उसे पढ़ाना सारे काम मधु बिना किसी शिकायत के करती. वह ज्यादा पढ़ीलिखी भले ही नहीं थी मगर घर संभालने का सलीका आता था. एक दिन मधु ने देखा सामने के घर में कोई डाक्टर आया है और वह बुजुर्ग महिला को चैक कर रहा है. थोड़ी देर में डाक्टर चला गया और वह लड़का बालकनी में आया तो मधु ने पूछ लिया, ‘‘कोई बीमार है क्या आप के यहां? आंटी की तबीयत सही नहीं है?’’ ‘‘जी मम्मी को 2 दिन से फीवर है. खाना बनाते हुए कल रात चक्कर आ गया सो डाक्टर को बुलाया था मैं ने.’’ ‘‘फिर उन के लिए आज कुछ हलकाफुलका खाना बनाना होगा. उन के और आप के लिए खाना कौन बनाएगा? क्या आप को आता है बनाना?’’ ‘‘नहीं बस चावल बना सकता हूं और कुछ नहीं,’’ उस ने झिझकते हुए बताया. ‘‘कोई बात नहीं मैं खाना बना कर लाती हूं,’’ मधु ने मुसकराते हुए कहा तो उस लड़के का चेहरा खिल उठा.

यह उन के बीच पहली बातचीत थी और उस दिन पहली दफा खाना ले कर मधु उस के घर पहुंची. उस ने बूड़ी मां को अपने हाथों से खाना खिलाया और फिर लड़के की तरफ मुखातिब हुई, ‘‘आप के लिए स्पैशल मटरपनीर की सब्जी बनाई है. खा कर बताइएगा कि कैसी बनी है.’’ ‘‘जरूर बताऊंगा और थैंक्स आप ने मेरे लिए इतना किया,’’ कहते हुए वह मधु के करीब खड़ा हो गया. मधु की धड़कन बढ़ गई और दिल की ख्वाहिशें जवां हो उठीं. थोड़ी देर बातचीत करने के बाद मधु घर लौट आई मगर अपना दिल वहीं छोड़ आई. समय के साथ दोनों के बीच फोन पर लंबी बातें होने लगीं. उस लड़के का नाम मधुर था. नाम में समानता के साथ दोनों के स्वभाव और सोच में भी समानता थी.

मधु को लगने लगा जैसे मधुर को उस के लिए ही बनाया गया है. यही हाल मधुर का भी था. उसे मधु का साथ बहुत पसंद था. अब उन के बीच का फासला काफी कम हो चुका था. दोनों फोन पर अपने एहसासों को शब्दों के जरीए एकदूसरे को बताने लगे थे और इस से मधु की जिंदगी का खालीपन खत्म हो चुका था. पति के जाते ही मधु मधुर के खयालों में खो जाती. कभी फोन पर बातें होतीं तो कभी आंखों ही आंखों में. मधु किसी भी बहाने उस के घर जाती रहती. मधुर की मां भी मधु को काफी पसंद करने लगी थीं.

मधु अपने बच्चे को कभीकभी मां के पास छोड़ जाती. कभी मधु को कहीं जाना होता तो वह मधुर से कह देती. वह बाइक ले कर उसे छोड़ आता और उसे ले कर भी आता. उस के काम करता. उस के लिए खाना मंगाता. मधु भी कई बार अपने हाथों से बढि़या खाना बना कर मधुर के यहां दे आती. कभी उस की मां की तबीयत खराब होती तो उन की देखभाल करती. उन की मालिश करती. इस तरह दोनों को करीब रहने का मौका मिल जाता. उधर विनोद को धीरेधीरे एहसास होने लगा था कि मधु की जिंदगी में उस के सिवा कोई और आ चुका है और यह समझने में भी उसे ज्यादा वक्त नहीं लगा कि वह कोई और कौन है. एक दिन वह औफिस से जल्दी आ गया और तब उस ने देखा कि मधु सामने वाली बिल्डिंग से निकल रही है.

मधु के घर की खिड़कियों के शीशे ऐसे थे जिन से बाहर का नजारा दिखता था मगर बाहर वालों को यह पता नहीं चलता कि अंदर से कोई देख रहा है. कई बार विनोद ने बंद खिड़की से देखा कि कैसे सामने वाला लड़का मधु को निहार रहा है और मधु भी आंखों ही आंखों में बातें कर रही है. यही नहीं एक दिन जब वह दोस्तों के साथ लंच टाइम में किसी काम से औफिस से बाहर निकला और पास के बाजार में पहुंचा तो उस ने देखा कि मधु उसी लड़के के साथ बाइक पर बैठी कहीं जा रही है.

घर आ कर जब विनोद ने मधु से उस लड़के के बारे में सवाल किया तो मधु ने साफ जवाब देते हुए कहा, ‘‘वह लड़का सामने रहता है तुम जानते ही हो. उस की मां मुझ से अकसर बातें करती रहती हैं. आज मुझे अंशुल की दवा लेने जाना था इसलिए उस से मदद ले ली.’’ विनोद के पास कोई ऐसा पौइंट नहीं था कि वह मधु को डांटताफटकारता या अवैध संबंधों का शक करता. पड़ोसी के रूप में कोई सामने रहता हो तो इतनी दोस्ती तो हो ही जाती है. मगर जो आकर्षण उस ने दोनों की आंखों में देखा था एकदूसरे के लिए वह बात विनोद की नींदें उड़ा रही थी. समय बीतता गया.

मधु और मधुर के बीच का रिश्ता गहरा होता गया और विनोद को इस बात का पूरा एहसास था. वह जानता था कि उन के बीच बहुत कुछ चल रहा है. कई बार विनोद ने देखा मधु अब ज्यादा अच्छे से तैयार होती है. संडे को या किसी और दिन सुबहसुबह विनोद की आंखें खुलतीं तो देखता मधु बालकनी में खड़ी है और सामने वह लड़का भी है. विनोद को समझते देर नहीं लगती कि उन के दिलों में क्या चल रहा है. मगर साफसाफ ऐसा नहीं था जिस के लिए वह एतराज जता सके. न तो मधु को घर से निकाल सकता था और न मधु पर बेवजह आरोप लगा सकता था. मधु उस का हर काम समय पर पहले की तरह करती थी.

विनोद को रोज सुबह औफिस जाना होता था और औफिस जाने के बाद घर में क्या हो रहा है वह नहीं जानता था. दरअसल, वह जानना भी नहीं चाहता था. कहीं न कहीं उसे पता था कि मधु उस से उतनी खुश नहीं है जितना होना चाहिए. ऐसे में अगर कहीं और से उसे खुशी मिल रही है तो फिर वह गलत कहां है. विनोद अपने मन को समझ लेता कि दोनों अच्छे पड़ोसी की तरह एकदूसरे की हैल्प कर देते या बातें कर लेते हैं. इस से ज्यादा तो कुछ नहीं करते. मगर फिर एक दिन विनोद ने मधु को उस लड़के के साथ सिनेमाहाल के बाहर देखा और तब उस का माथा ठनका कि उन का रिश्ता तो काफी आगे बढ़ चुका है. यह सोचसोच कर वह रातभर बेचैन रहा.

औफिस में भी दिनभर उस से काम नहीं हो पा रहा था. वह कल्पनाएं करने लगा कि दोनों क्याक्या कर रहे होंगे. विनोद मधु से सवाल करना चाहता था. मगर क्या कहता? मधु कहीं उसे पलट कर जवाब न दे दे यह सोच कर वह चुप रहता. कई बार उन पर नजर रखने के लिए जल्दी घर आ जाता या फिर औफिस जाने के बहाने ऐसे ही कहीं रुक कर देखता रहता कि दोनों क्या कर रहे हैं. एक दिन जब विनोद औफिस से जल्दी आया तो उस ने देखा कि मधु घर में नहीं है. फोन करने पर पता चला कि वह सामने मधुर के घर में है. मधु के लौटने पर जब विनोद ने सवाल किया तो मधु ने बिना घबराए कहा, ‘‘उस की मां की तबीयत खराब थी इसलिए मैं उन की देखभाल करने गई थी. फिर हमारा बच्चा भी तो अकसर उन के पास रहता है तो थोड़ा हमारा भी फर्ज बनता है कि मैं उन के लिए भी करूं.’’

विनोद के पास मधु को डांटने के लिए कोई वाजिब वजह नहीं थी सो वह चुप रहा. कहीं न कहीं यह सच था कि मधुर की वजह से घर अच्छी तरह संभल रहा था. सारे काम सही हो रहे थे. हाल यह था कि मधु को जब जरूरत होती अंशुल मधुर उस की मां रख लेती थी. जब खाना मंगाना होता तो मधुर जोमैटो से तुरंत मंगा देता. जब कोई बड़ा काम करने की जरूरत होती तो भी मधुर सहायता के लिए हाजिर रहता और तब विनोद भी ऐतराज नहीं कर पाता. कभी बच्चे की तबीयत खराब होती तो मधुर ही जल्दी से उसे मधु के साथ डाक्टर के पास ले जाता. विनोद खुद तो औफिस में होता. ऐसे में इमरजेंसी में अगर कोई हैल्प करने वाला है तो बुरा क्या है. विनोद की समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. वह मधुर को अपनी पत्नी से दूर तो रखना चाहता था मगर यह संभव भी नहीं दिखता था. अगर वह कहता तो मधुर सारे काम करना छोड़ देता. कई बार उस ने सोचा कि घर बदल ले लेकिन घर बदलना आसान नहीं था.

बहुत मुश्किल से यह घर कम किराए पर मिल गया था. विनोद को यह भी लगता कि अगर वह घर बदल भी ले तो क्या पता नए घर में मधु को कोई और मिल जाए. यही सब वजहें थीं कि आजकल विनोद काफी पशोपेश में रहने लगा था. कई बार उसे समझ ही नहीं आता वह क्या करे. न मधु को डांट सकता था और न उसे किसी और के करीब जाता देख सकता था. हर समय मधु से कटाकटा सा जरूर रहने लगा था मगर पूरी तरह रिश्ते को तोड़ना भी आसान नहीं था. एक दिन विनोद के मांबाप कुछ दिनों के लिए उस के पास रहने आए. विनोद को मौका मिल गया.

एक दिन जब मधु घर में नहीं थी तो उस ने अपनी मां से दिल की बात शेयर की और बताया कि मधु का सामने वाले लड़के के साथ चक्कर चल रहा है और वह घर बदलने की सोच रहा है. मधुर की सोच के विपरीत मां ने उसी पर सवाल दाग दिए, ‘‘अच्छा यह बता कितनी जगह घर बदलेगा? अरे जवान औरत है. उस की भी तमन्नाएं होंगी. अगर किसी को देख कर या किसी के साथ बातें कर खुशी मिलती है तो खुश रहने दे न उसे. ऐसा क्या गजब कर रही है वह? तेरा तो हर काम कर रही है न?’’ ‘‘अरे मां यह आप क्या कह रही हो? क्या इस तरह का रिश्ता रखना सही है? क्या मैं इस तरह का रिश्ता रख रहा हूं?’’ विनोद ने चिढ़े हुए स्वर में कहा. ‘‘तुझे कौन घास डालेगी बेटा अपनी उम्र तो देख. जबकि मधु तुझ से काफी छोटी है. उस की अपनी तमन्नाएं होंगी. वैसे भी बेटा ऐसा हर जगह होता रहता है. तू कितना भी भाग लेने की कोशिश कर, मधु को कितना भी रोक पर जो होना है वह तो होगा ही,’’ मां ने उसे समझने की कोशिश की.

‘‘पर मां आप भी तो कभी मधु की उम्र के थे. आप ने तो ऐसा गलत नहीं किया. आप के और बाबूजी की उम्र में भी बहुत अंतर था. मगर गांव की औरतें इतनी हिम्मत नहीं कर सकतीं. तभी तो मैं सोच रहा हूं मधु को ले कर गांव रहने आ जाऊं.’’ ‘‘तुझे क्या पता बेटा गांवों में क्या नहीं होता है. तू मुझे कह रहा है कि मेरी भी उम्र थी तो बता दूं. मैं ने अपनी उम्र में बहुत गुल खिलाए हैं. तुझे मालूम है गांव में किस तरह के रिश्ते आगे बढ़ते रहते हैं, अरे साली के साथ, भौजाई के साथ, दोस्त की बहन के साथ, पत्नी की सहेली के साथ, पड़ोसी के साथ. वहां तो किसी के भी साथ ऐसे रिश्ते बन जाते हैं.

खेतों में जा कर देख क्याक्या होता है. मधु की क्या कहूं मैं तो खुद भी यह सब कर चुकी हूं. कोई था हमारे पड़ोस में और मैं उस पर लट्टू थी. हम कई बार मिले हैं. कभी बगीचे में घूमते रहते थे तो कभी खेतों में निकल जाते. एकदूसरे के हाथों में हाथ डाले घूमते रहते. सब जगह चलता है बेटा परेशान मत हो.’’ ‘‘मगर वह मुझे धोखा दे रही है और मैं चुप रहूं?’’ ‘‘तुझे क्या पता क्या धोखा दे रही है? किसी से बात कर लेने का मतलब धोखा देना नहीं हो जाता,’’ मां ने डपटते हुए कहा. ‘‘मुझे क्या पता वे लोग दिन में क्या करते हैं? कहां तक रिश्ता पहुंचा है? क्या पता उस के साथ सोई भी हो?’’ विनोद ने अपना शक जाहिर किया. ‘‘यह सब इतना आसान नहीं है बेटा. वह भी यहां शहर में इतनी भीड़ में. पता है तुझे मैं तेरे घर आती हूं तो रास्ते में ही 10 लोग मिल जाते हैं. कोई सीढि़यों पर, कोई गेट पर, कोई गली में.

अगर मधु बारबार उस के घर जाएगी तो क्या लोगों की नजर नहीं उठेगी? वह कभी जरूरत हो तो ही किसी काम से जाती होगी और फिर देख तेरा घर कितने अच्छे से संभाल रखा है. खाना भी इतना अच्छा बनाती है. कभी किसी काम के लिए मना नहीं करती. तू सैलरी ज्यादा लाए या कम उसे कोई फर्क नहीं पड़ता. तू इतना बड़ा है उस से पर कभी उस ने कोई शिकायत नहीं की.

मेरी कितनी सेवा करती है जो भी कहो तुरंत कर देती है. मेरे लिए साडि़यां खरीद लाती है. सारे काम, घर की सारी जिम्मेदारियां उसी के ऊपर हैं. अगर वह लड़का उस की मदद कर देता है तो क्या बुरा है? और अगर इन दोनों के बीच कुछ चल भी रहा है तो तू क्या कर लेगा? अरे तू अपनी जिंदगी खराब करेगा क्या? आजकल लड़कियां मिलती कहां हैं? दूसरी शादी कहां से हो जाएगी तेरी? अभी सब संभला हुआ है. बच्चा भी है. उसे छोड़ देगा तो तू कहां जाएगा? तेरा क्या होगा? इसलिए मेरी मान और शांति से बैठ. मेरी बहू पर नजर रखना छोड़. अपने काम से काम रख. समझ?’’ मां ने समझया.

मां की बातें सुन कर विनोद को भी समझ आ गया कि वह नाहक मधु को ले कर इतना अपसैट है. थोड़ा भरोसा और थोड़े सब्र के साथ ही जीवननैया आगे बढ़ती है. जीवनसाथी से जितना मिल रहा है उसी में खुश रहना अच्छा है. बंधन ज्यादा कसने पर टूट ही जाता है. वैसे भी शादी के लिए लड़कियां आसानी से मिलती नहीं. जो मिली हुई है उस को खोने से जिंदगी बोझ बन जाएगी.  Family Kahani

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