Latest Hindi Stories : ताजपोशी

Latest Hindi Stories : मम्मी की मृत्यु के बाद पिताजी बहुत अकेले हो गए थे, रचिता के साथ राहुल मेरठ पहुंचा, तेरहवीं के बाद बच्चों का स्कूल और अपने बैंक आदि की बात कह कर जाने की जुगत भिड़ाने लगा.

‘‘पापा, आप भी हमारे साथ इंदौर चलें,’’ रचिता ने कह तो दिया किंतु उस का दिल आधा था, इंदौर में उन का 3 कमरों का फ्लैट था, उस में पापा को भी रखना एक समस्या थी.

‘‘मैं इस घर को छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगा,’’ पापा ने जब अपना अंतिम फैसला सुनाया तो उन की जान में जान आई.

‘‘लेकिन पापा तो अस्वस्थ हैं, वे अकेले कैसे रहेंगे?’’ रचिता के प्रश्न ने राहुल को कुछ सोचने पर विवश कर दिया. उसे ननिहाल की रजनी मौसी की याद आई जो विधवा थीं, उन की एक लड़की थी किंतु ससुराल वालों ने घर से निकाल दिया, भाईभावज ने भी खोजखबर न ली तो अपने परिश्रम से मजदूरी कर के अपना और अपनी बच्ची का पेट पालने लगी.

राहुल ने ननिहाल में एक फोन किया और 2 दिन के अंदर रजनी मौसी मय पुत्री मेरठ हाजिर हो गईं, कृशकाय, अंदर को धंसी आंखों वाली रजनी मौसी के चेहरे पर नौकरी मिल जाने का नूर चमक रहा था, वे लगभग 40 वर्ष की मेहनतकश स्त्री थीं, बोलीं, ‘‘मैं आप की मां को दीदी कहा करती थी, रिश्ते में आप की मौसी हूं, इस घर को अपना मानूंगी और जीजाजी की सेवा में आप को शिकायत का मौका नहीं दूंगी.’’

‘‘आप चायनाश्ता बनाएंगी, खाना, दवा, देखभाल आप करेंगी, महरी बाकी झाड़ूपोछा, बरतन कर ही लेगी, पगार कितनी लेंगी?’’ रचिता ने पूछा.

‘‘मौसी भी कह रही हैं और पगार पूछ कर शर्मिंदा भी कर रही हैं. हम मांबेटी को खानेरहने का ठौर मिल गया और क्या चाहिए. जो आप की इच्छा हो दे दीजिएगा.’’

रचिता चुप हो गई, बात जितने कम में तय हो उतना अच्छा, राहुल के चेहरे पर भी संतोष था. उस का कर्तव्य था पापा की सेवा करना किंतु वह असमर्थ था, अब कोई मामूली रकम में उस कर्तव्य की भरपाई कर रहा था. पापा गमगीन थे. एक तो पत्नी का शोक, ऊपर से बेटाबहू, बच्चे सब जा रहे थे.

रचिता ने धीरे से राहुल के कान में कहा, ‘‘मम्मी की अलमारी में साडि़यां, जेवर व दूसरे कीमती सामान रखें हैं, पापा अब अकेले हैं. घर में बाहर के लोग भी रहेंगे. सो हमें उस की चाबी ले लेनी चाहिए.’’

‘‘पापा, अलमारी की चाबी कभी नहीं देंगे. अचानक तुम्हें जेवर, कपड़ों की चिंता क्यों होने लगी, धैर्य रखो, सब तुम्हें ही मिलेगा,’’ राहुल मुसकरा कर बोला.

बीचबीच में आने की बात कह कर राहुल, रचिता इंदौर रवाना हो गए, इंदौर में भी वे पापा, घर, अलमारी, बैंक के रुपयों, प्रौपर्टी की बातें करते रहते, उन्हें चिंता होती. चिंताग्रस्त हो कर वे फिर मेरठ रवाना हो गए, लगभग डेढ़ महीने में यह उन की दूसरी यात्रा थी.

घर के बाहर लौन साफसुथरा था, सारे पौधों में पानी डाला गया था, कई नए पौधे भी लगाए गए थे, दरवाजा खुलने पर रजनी मौसी ने मुसकराते हुए स्वागत किया, ‘‘आइए, आप का, फोन मिला था.’’

कुछ ही देर में मिठाई, पानी लिए फिर हाजिर हुईं, पूरा घर साफसुथरा सुव्यवस्थित था, उस की लड़की ने चाय बनाने से पहले सूचित किया, ‘‘बड़े साहब सो रहे हैं.’’

रचिता ने मांबेटी का निरीक्षण किया. दोनों ने बढि़या कपड़े पहने थे, बाल भी सुंदर तरीके से सेट थे, रजनी ने चूडि़यों, टौप्स के साथ बिंदी वगैरह भी लगाई हुई थी.

‘‘तुम्हारी मौसी का तो कायाकल्प हो गया,’’ रचिता फुसफुसाई.

‘‘भूखे, नंगे को सबकुछ मिलने लगेगा तो कायाकल्प तो होगा ही,’’ राहुल ने मुंह बना कर कहा.

दोनों असंतुष्टों की तरह चाय पीते पापा के जगने का इंतजार करते रहे. पापा को देख कर उन्हें और आश्चर्य हुआ. वे पहले से अधिक स्वस्थ और ताजादम लग रहे थे. पहले के झुकेझुके से पापा अब सीधे तन कर चल रहे थे. मम्मी के जाने के बाद हंसना भूल गए पापा ने मुसकराते हुए पूछा, ‘‘बड़ी जल्दी मिलने चले आए?’’

‘‘अब आप अकेले हो गए हैं तो हम ने सोचा…’’

‘‘अकेले कहां, रजनी है, उस की लड़की सरला है, उस को यहीं इंटर कालेज में डाल दिया है, शाम को एक घंटा पढ़ा दिया करता हूं, तेज है.’’

पापा सरला का गुणगान करते रहे फिर उसे पढ़ाने बैठ गए. रजनी मौसी सब के चाय, नाश्ते के बाद रात के खाने में जुट गईं. सबकुछ ठीक चल रहा था किंतु राहुल, रचिता असंतुष्ट मुखमुद्रा में बैठे थे. वे पापा के किसी काम नहीं आ पा रहे थे और अब उन को इन की कोई जरूरत भी नहीं रही.

रात को पापा सीरियल्स देखते हुए रजनी से उस के बारे में पूछताछ करते खूब हंसते रहे. सरला से पढ़ाई संबंधी बातें भी करते रहे, जीवन से निराश पापा को जीने की वजह मिल गई थी. रात में खाना खाते समय सब चुपचाप थे. खाना स्वादिष्ठ और मिर्चमसालेरहित था. रजनी मौसी एकएक गरम रोटी इसरार से खिलाती रहीं, अंत में खीर परोसी गई. पापा संतुष्ट एवं खुश थे. राहुल, रचिता संदेहास्पद दृष्टि से रजनी को घूर रहे थे. रात में टीवी कार्यक्रम की चर्चा रजनी और सरला से करते पापा कई बार बेटेबहू की उपस्थिति ही भूल गए, नातीपोतों का हालचाल भी नहीं पूछा. रात में सोते समय राहुल बोला, ‘‘यदि हम उसी समय अपने साथ पापा को ले चलते तो आज वे इस तरह मांबेटी में इनवौल्व न होते.’’

‘‘अरे, यहां क्या बुरा है, स्वस्थ हट्टेकट्टे हैं, खुश हैं, वहां 3 कमरों के डब्बे में कहां एडजस्ट करते इन्हें,’’ रचिता बोली.

‘‘तुम मूर्ख हो. तुम से बहस करना बेकार है. अब मामला हमारे हाथ से निकल रहा है. मुझे ही बात आगे बढ़ानी होगी.’’

‘‘बात क्या बढ़ाओगे?’’

‘‘अरे, तुम ही न कहती थीं इस बंगले को बेच कर इंदौर में अपने फ्लैट के ऊपर एक शानदार फ्लैट बनाओगी और बाकी रुपया बच्चों के नाम फिक्स कर दोगी?’’

‘‘हां, हां, लेकिन अब यह कहां संभव है?’’

‘‘अब पापा दिनप्रतिदिन स्वस्थ होते जा रहे हैं, उन की मृत्यु की प्रतीक्षा में तो हमारी उम्र बीत जाएगी, उन्हें इंदौर ले चलते हैं.’’

‘‘जैसा तुम उचित समझो, मैं एडजस्ट कर लूंगी,’’ रचिता बोली. उसे सास की अलमारी की भी चिंता थी जिस में कीमती गहने और अन्य महंगे सामान थे. उसे उन्हें देखनेभालने की प्रचुर इच्छा थी किंतु सासूमां के रहते इच्छा पूरी नहीं हुई और अब भी स्थितियां प्रतिकूल हो रही थीं.

अगले दिन दोनों ने रजनी मौसी का सेवाभाव देखा, नाश्ता, खाना, पापा के सारे कपड़े, बैडशीट, तौलिया आदि धोना, पापा के पूरे शरीर और सिर की जैतून की तेल से घंटेभर मालिश करना. उस दौरान पापा के चेहरे पर अपरिमित सुखशांति छाई रहती थी. तुरंत गुनगुने पानी से स्नान जिस में मौसी पूरी मदद करतीं. फिर उन का हलका नाश्ता करना यानी चपाती, सब्जी, ताजा मट्ठा आदि. किंतु रजनी मौसी ने राहुलरचिता के लिए अलग से देशी घी का हलवा और पोहा बनाया था, सब ने मजे ले कर खाया.

राहुल समझ गया था कि पापा के स्वास्थ्य में निरंतर सुधार का कारण क्या है, वह उन की इतनी सेवा कभी कर ही नहीं सकता था तब भी हिम्मत जुटा कर उस ने शब्दों द्वारा पापा को बांधने का प्रयास किया, ‘‘पापा, आप यहां कब तक दूसरों की दया पर निर्भर रहेंगे, हमारे साथ इंदौर चलिए, वहां नातीपोतों का साथ मिलेगा, सब साथ रहेंगे.’’

‘‘मैं किसी की दया पर निर्भर नहीं हूं. रजनी काम करती है, उस का पैसा देता हूं. वहां तुम्हारा घर छोटा है, तुम लोग मुश्किल में पड़ जाओगे.’’

‘‘इसीलिए तो अपने फ्लैट के ऊपर एक और वैसा ही फ्लैट बनवाना चाहता हूं,’’ राहुल ने कहा.

‘‘बिलकुल बनवाओ,’’ पापा ने कहा.

‘‘इस बंगले को बेच कर जो रकम मिलती उसी से फ्लैट बनवाता यदि आप हम लोगों के साथ चल कर रहते.’’

‘‘मैं अपने जीतेजी यह बंगला नहीं बेचूंगा. तुम लोन ले कर अपने बलबूते पर फ्लैट बनवाओ. आखिर बैंक औफिसर हो, अच्छा कमाते हो?’’

‘‘लेकिन 2 घरों की देखभाल…’’

‘‘उस की चिंता तुम मत करो?’’

एक आशा खत्म होने पर राहुल व्यग्र हो गया, ‘‘कम से कम अलमारी की चाबी ही दे दीजिए, रचिता अपने साथ मम्मी के गहने और जेवर ले जाना चाहती है.’’

‘‘तुम्हारी पत्नी के पास कपड़ों, गहनों का अभाव तो नहीं है, कम से कम मेरे मरने की प्रतीक्षा करो.’’

राहुल, रचिता मायूस हो कर इंदौर लौट आए. रास्ते में रचिता बोली, ‘‘पापा कहीं रजनी मौसी से प्रेम का चक्कर तो नहीं चला रहे?’’

राहुल को रचिता की बातें स्तरहीन लगीं किंतु वह चुप रहा, अगली बार वे बच्चों सहित जल्दी ही मेरठ पहुंचे. वहां रजनी को मां की साड़ी और गले में सोने की जंजीर पहने देख उन्हें शक हुआ. अच्छे खानपान से शरीर भर गया था. वे सुंदर लग रही थीं, उन की लड़की अच्छी शिक्षादीक्षा के कारण संभ्रांत और सुरुचिपूर्ण लग रही थी.

‘‘आप में बड़ा परिवर्तन आया है रजनी मौसी?’’ राहुल बोला. उस वक्त पापा वहां न थे.

‘‘कैसा परिवर्तन, वैसी ही तो हूं,’’ रजनी ने विनम्रता से कहा.

‘‘आप कामवाली कम, घरवाली ज्यादा लग रही हैं.’’

‘‘ऐसा कह कर पाप का भागी न बनाएं, हम तो मालिक की सेवा में प्राणपण एक किए रहते हैं. सो, कभीकभी इनाम मिल जाता है,’’ रजनी मौसी ने उन के घृणास्पद आक्षेप को भी अपनी विनम्रता से ढकने का प्रयास किया,

राहुलरचिता के ईर्ष्या, संदेह से दग्ध हृदय को तनिक राहत मिली, किंतु पापा राहुल की स्वार्थपूर्ण योजनाओं, प्रौपर्टी, धन, संपत्ति की बातों से चिढ़ गए. बोले, ‘‘बेटा, बाप की मृत्यु के बाद ही तो बेटे की ताजपोशी होती है. तू तो मेरे जीतेजी ही व्यग्र हुआ जा रहा है.’’

राहुल कैसे कहता जीर्णशीर्ण, कुम्हलाए पापा को रजनी मौसी अपने परिश्रम से दिनोंदिन स्वस्थ, प्रसन्न करती जा रही हैं. सो, दूरदूर तक उन की मृत्यु के आसार नजर नहीं आ रहे थे और उस के गाड़ीवाड़ी, बैंक बैलेंस आदि के सपने धराशायी हो गए थे. पापा के जीवित रहते ही उन्हें हथियाना चाह रहा था तो पापा के अडि़यल रवैये से वह सब संभव नहीं लग रहा था. रात के खाने के बाद साधारण बातचीत ने झगड़े का रूप ले लिया. राहुल अपनी असलियत पर उतर आया, बोला, ‘‘पापा, कहीं आप दूसरी शादी के चक्कर में तो नहीं हैं? यदि ऐसा है तो इस से शर्मनाक कुछ हो ही नहीं सकता.’’

पापा की बोलती बंद हो गई. वे हक्केबक्के इकलौते पुत्र का मुंह देखते रह गए लेकिन फिर जल्दी ही संभल गए, बोले, ‘‘आज तुझे अपना पुत्र कहते लज्जा का अनुभव होता है. एक निस्वार्थ स्त्री, जिस ने तेरे मरते हुए बाप को आराम और सुख के दो पल दिए, उसे तू ने गाली दी. साथ ही, अपने जन्मदाता को शर्मसार किया. मैं तुझे एक पल यहां बरदाश्त नहीं कर सकता. सुबह होते ही अपने परिवार सहित यहां से कूच कर जाओ. ऐसे पुत्र से तो निसंतान होना बेहतर है.’’

पापा के रुख को देख कर राहुल की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. अगले ही दिन वे इंदौर लौट गए. फिर 1 वर्ष तक उस ने मेरठ का रुख नहीं किया. रजनी मौसी स्वयं फोन कर के पापा की खबर देती रहती थीं.

एक दिन पता चला, पापा बाथरूम में गिर गए हैं और उन के कूल्हे की हड्डी टूट गई है. राहुल एक दिन के लिए आया अवश्य किंतु कूल्हे की हड्डी के औपरेशन के कारण उन्हें हाई डोज एनीस्थीसिया दी गई थी, सो पापा से भेंट नहीं हुई. औपरेशन के बाद राहुल अगले ही दिन लौट आया, उस का एक वकील मित्र था मनमोहन, उस ने और रजनी मौसी ने बढ़चढ़ कर पापा की सेवा की इसलिए राहुल निश्ंिचत भी था. चूंकि मनमोहन पापा की प्रौपर्टी और धन की देखभाल करता था इसलिए राहुल उस से संपर्क बनाए रखता था.

पापा फिर बिस्तर से उठ नहीं पाए. वे बिस्तर के हो कर रह गए थे. रजनी, मनमोहन ने राहुल, रचिता को आने के लिए कहा किंतु उन्होंने बच्चों की परीक्षा और अन्य व्यस्तताओं का बहाना बनाया. अंत में उन्हें पापा की मृत्यु का समाचार मिला और राहुल, पत्नी व बच्चों सहित तुरंत मेरठ पहुंच गया.

वहां पिता के निस्पंद शरीर को देख कर उस की आंखों में आंसू नहीं आए. लोग रजनी मौसी की बहुत प्रशंसा कर रहे थे कि उस ने जितनी पापा की सेवा की वह घर का सदस्य नहीं कर सकता था. किंतु राहुल कुछ सुन नहीं रहा था. एक अजीब सा भाव उस के मनमस्तिष्क और शरीर में छाया था, गुरुत्तर भाव, सबकुछ मेरा. मैं इस घर, खेतखलिहान, बैंकबैलेंस सब का मालिक. मेरे ऊपर कोई नहीं, जो इच्छा हो, करो. कोई डांटडपट, आदेश, अवज्ञा नहीं. राहुल को लगा कि वह सिंहासन पर बैठा है और उस की ताजपोशी हो रही है. यह एहसास नया नहीं था, एक पीढ़ी के गुजर जाने के बाद दूसरी पीढ़ी के ‘बड़े’ को यह ‘सत्तासुख’ हमेशा ही ऐसा आनंदित करता है. तब बच्चे बुजुर्गों की मृत्यु से दुख नहीं वरन संतोष का अनुभव करते हैं. अचानक उस की वक्रदृष्टि रजनी मौसी पर पड़ी, उस ने धीरे किंतु विषपूर्ण स्वर में कहा, ‘‘तेरहवीं के बाद तुम मांबेटी को मैं एक क्षण यहां नहीं देखना चाहता.’’

इस तरह पिता की मृत देह की उपस्थिति में उस ने रजनी मौसी, जिस ने उस के और रचिता के कर्तव्यों का बखूबी निर्वाह किया था, का पत्ता काट दिया. मनमोहन ने कुछ बोलने का प्रयास किया किंतु उस ने इशारों से उसे चुप करा दिया. वह अंतिम संस्कार के पूर्व किसी प्रकार का ‘तमाशा’ नहीं चाहता था, रजनी चुपचाप रोती रहीं.

अंतिम संस्कार के बाद राहुल की महत्ता जैसे और बढ़ गई. पिता को मुखाग्नि दे कर वह समाज के संभ्रांत लोगों के बीच बैठा दीनदुनिया की बातें करता रहा. उन के जाते ही उस के भीतर शांत बैठा परिवार का मुखिया फिर जाग गया. वह मनमोहन से पिता की संपत्ति का ब्यौरा लेने लगा और रजनी मौसी को अगले ही दिन जाने का आदेश सुना दिया. मनमोहन ने उसे समझाया, ‘‘राहुल, रुक जाओ, तेरहवीं तो हो जाने दो.’’

‘‘बिलकुल नहीं, तुम्हें नहीं पता इस स्त्री के कारण ही मेरे पिता मुझ से दूर हो गए, मुझे अंतिम समय कुछ न कर पाने का पितृकर्ज चढ़ गया.’’

‘‘किंतु रजनी मौसी ने अथक परिश्रम तो किया. तो कम से कम तेरहवीं की रस्म…’’

‘‘कैसी तेरहवीं? उस के लिए हम फिर आएंगे, इतनी लंबी छुट्टी न मुझे मिलेगी न बच्चों को स्कूल से, पर उस के पूर्व मैं घर लौक कर के जाऊंगा, लौकर से गहने निकलवा लूंगा, रुपए अपने खाते में ट्रांसफर करवा लूंगा, घर, अलमारी के कीमती सामान ठिकाने लगा दूंगा.’’

‘‘किंतु तुम ऐसा नहीं कर सकते.’’

‘‘अच्छा, भला कौन रोकेगा मुझे?’’

‘‘तुम्हारे पिता की वसीयत. उन्होंने तेरहवीं के दिन मुझ से वसीयत पढ़ने को कहा था. किंतु तुम्हारी जल्दबाजी के कारण आज ही मुझे तुम को बताना है कि यह घर वे रजनी मौसी के नाम कर गए हैं, बैंक के रुपयों का 50 प्रतिशत वे किसी अनाथाश्रम को दे कर गए हैं और बाकी 50 प्रतिशत तुम्हारे बच्चों के नाम कर गए हैं जो उन्हें बालिग होने पर मिलेगा. अलमारी और लौकर के जेवर वे तुम्हारी पत्नी को दे कर गए हैं.’’

राहुल के पैरों तले जमीन खिसक गई, वह विस्मय से मुंह खोले मनमोहन को ताकता रहा.

‘‘स्त्रीपुरुष का केवल एक ही रिश्ता नहीं होता, तुम ने उन पर, एक वृद्ध व्यक्ति पर चरित्रहीनता का आक्षेप लगा कर अंतिम समय में उन्हें बहुत कष्ट पहुंचाया जिस का तुम्हें पश्चात्ताप करना होगा,’’ मनमोहन ने अपनी वाणी को विराम दिया और उसे हिकारत से देखते हुए चला गया, सिसकसिसक कर रोती रजनी के सामने आंखें उठाने की हिम्मत नहीं रह गई थी राहुल में, वह वैसे ही सिर झुकाए बैठा रह गया.

Hindi Kahaniyan : किराएदार

Hindi Kahaniyan : ‘‘बस, यों समझो कि मकान जो खाली पड़ा था, तुम ने किराए पर उठा दिया है,’’ डाक्टर उसे समझा रही थी, लेकिन उस की समझ से कहीं ऊपर की थीं डाक्टर की बातें, सो वह हैरानी से डाक्टर का चेहरा देखने लगी थी.

‘‘और तुम्हें मिल जाएगा 3 या 4 लाख रुपया. क्यों, ठीक है न इतनी रकम?’’

वह टकटकी लगाए देखती रही, कुछ कहना चाहती थी पर कह न सकी, केवल होंठ फड़फड़ा कर रह गए.

‘‘हां, बोलो, कम लगता है? चलो, पूरे 5 लाख रुपए दिलवा दूंगी, बस. आओ, अब जरा तुम्हारा चैकअप कर लूं.’’

खिलाखिला चेहरा और कसी देहयष्टि. और क्या चाहिए था डा. रेणु को. उसे उम्मीद के मुताबिक सफलता दिखाई देने लगी.

अस्पताल से घर तक का रास्ता तकरीबन 1 घंटे का रहा होगा. पर यह फासला उस के कदमों ने कब और कैसे नाप लिया, पता ही न चला. वह तो रास्तेभर सपने ही देखती आई. सपना, कि पक्का घर हो जहां आंधीतूफानवर्षा में घोंसले में दुबके चूजों की तरह उस का दिल कांपे न. सपना, कि जब बेटी सयानी हो तो अच्छे घरवर के अनुरूप उस का हाथ तंग न रहे. सपना, कि उस के मर्द का भी कोई स्थायी रोजगार हो, दिहाड़ी का क्या ठिकाना? कभी हां, कभी ना के बीच दिखाई देते कमानेखाने के लाले न पड़ें.

भीतर कदम रखते ही देसी शराब का भभका बसंती के नथुनों से टकराया तो दिमाग चकरा गया, ‘‘आज फिर चढ़ा ली है क्या? तुम्हें तो बहाना मिलना चाहिए, कभी काम मिलने की खुशी तो कभी काम न मिलने का गम.’’

‘‘कहां से आ रही है छम्मकछल्लो, हुंह? और तेरी ये…तेरी मुट्ठी में क्या भिंचा है, री?’’

एकबारगी उस ने मुट्ठी कसी और फिर ढीली छोड़ दी. नोट जमीन पर फैल गए. चंदू ऐसे लपका जैसे भूखा भेडि़या.

‘‘हजारहजार के नोट? 1,2,3,4 और यह 5…यानी 5 हजार रुपए? कहां से ले आई? कहां टांका फिट करा के आ रही है?’’

उस ने गहरी नजरों से बसंती को नीचे से ऊपर तक निहारा. फिर अपने सिर पर हाथ फेरते हुए बोला, ‘‘बोल खोपड़ी, सही समय पर सही सवाल. तू बताती है कि मैं बताऊं, कहां से आई इतनी रकम?’’

‘‘डाक्टरनी मैडम ने दिए हैं.’’

‘‘क्या, क्या? पगला समझा है क्या? डाक्टर लोग तो रुपए लेते हैं, देने कब से लगे, री? तू मुझे बना रही है…मुझे? ये झूठी कहानी कोई और सुन सकता है, मैं नहीं. मुझे तो पहले ही शक था कि कोई न कोई चक्कर जरूर चला रखा है तू ने. कहीं वह लंबू ठेकेदार तो नहीं?’’

उस ने एक ही सांस में पूरी बोतल गटक ली, ‘‘मैं नहीं छोड़ूंगा. तुझे भी और उसे भी. किसी को नहीं,’’ कहते- कहते वह लड़खड़ा कर सुधबुध खो बैठा.

पूरी रात उधेड़बुन में बीती. बसंती सोचती रही कि वह किस दोराहे पर आ खड़ी हुई है. एक तरफ उस का देहधर्म है तो दूसरी ओर पूरे परिवार का सुनहरा भविष्य. और इन दोनों के बीच उस का दिल रहरह कर धड़क उठता कि आखिर कैसे वह किसी अनजान चीज को अपने भीतर प्रवेश होने देगी? पराए बीज को अपनी धरती में सिंचित करना. और फिर फसल बेगानों को सौंप देना. समय आने पर घर कर चुके किराएदार को अपने हाड़मांस से विलग कर सकेगी? अपने और पराए का फर्क क्या उस की कोख को स्वीकार्य होगा? अनुत्तरित प्रश्नों से लड़तीझगड़ती बसंती ने अपने और चंदू के बीच दीवार बना दी. सुरूर में जबजब चंदू ने कोशिश की तो तकिया ही हाथ आया. बसंती भावनाओं में बह कर सुनहरे सपनों को चकनाचूर नहीं होने देना चाहती थी. अलगाव की उम्र भी बरसभर से कम कहां होगी?

अपने मर्द के साथ बसंती ने डा. रेणु के क्लीनिक में प्रवेश किया तो डा. रेणु का चेहरा खिल उठा. डाक्टर ने परिचय कराया, ‘‘दिस इज बसंती…योर बेबीज सेरोगेट,’’ और फिर बसंती से मुखातिब हो कहने लगी, ‘‘ये ही वे ब्राउन दंपती हैं जिन्हें तुम दोगी हंसताखेलता बच्चा. तुम्हारी कोख से पैदा होने वाले बच्चे के कानूनी तौर पर मातापिता ये ही होंगे.’’

डाक्टर, बसंती के आगे सारी बातें खोल देना चाहती थी, ‘‘बच्चे से तुम्हारा रिश्ता जन्म देने तक रहेगा. बच्चा पैदा होने से अगले 3 महीने तक यानी अब से पूरे 1 साल तक का बाकायदा ऐग्रीमैंट होगा. जिस में ये सभी शर्तें दर्ज होंगीं. तुम्हारी हर जरूरत का खयाल ये रखेंगे और इन की जरूरत की हिफाजत तुम्हें करनी होगी. अपने से ज्यादा बच्चे की हिफाजत. समझ गईं न? कोई लापरवाही नहीं. सोनेजागने से खानेपीने तक मेरे परामर्श में अब तुम्हें रहना है और समयसमय पर चैकअप के लिए आना होगा. जरूरत पड़ी तो अस्पताल में ही रहना होगा.’’

डाक्टर की हर बात पर बसंती का सिर हिलाना चंदू को कुछ जंचा नहीं. वह बुदबुदाया, ‘बोल खोपड़ी, सही समय पर सही सवाल,’ और वह उठ खड़ा हुआ, ‘‘ये सब नहीं होगा, कहे देते हैं. इतने में तो बिलकुल नहीं, हां. यह तो सरासर गिरवी रखना हुआ न. तिस पर वो क्या कहा आप ने, हां किराएदार. पूरे एक बरस दीवार बन कर नहीं खड़ा रहेगा हम दोनों के बीच? आखिर कितना नुकसान होगा हमें, हमारे प्यार को, सोचा आप ने? इतने में नहीं, बिलकुल भी नहीं. डबल लगेगा, डबल. हम कहे देते हैं, मंजूर हो तो बोलो. नहीं तो ये चले, उठ बसंती, उठ.’’

‘‘हो, हो, ह्वाट ही से, ह्वाट? टेल मी?’’ ब्राउन ने जानने की उत्कंठा जाहिर की. डाक्टर को खेल बिगड़ता सा लगा तो वह ब्राउन की ओर लपकी, ‘‘मनी, मनी, मोर मनी, दे वांटेड.’’

‘‘हाऊमच?’’

‘‘डबल, डबल मनी वांटेड.’’

‘‘ओके, ओके. टैन लैख, आई एग्री. नथिंग मोर फौर अ बेबी. यू नो डाक्टर, इट इज मच चीपर दैन अदर कंट्रीज. टैन, आई एग्री,’’ ब्राउन ने दोनों हाथों की दसों उंगलियां दिखाते हुए चंदू को समझाने की कोशिश की और कोट की जेब से 50 हजार रुपए की गड्डी निकाल कर मेज पर पटक दी.

शुरूशुरू में तो बसंती को जाने  कैसाकैसा लगता रहा. एक लिजलिजा एहसास हर समय बना रहता. मानो, कुछ ऐसा आ चिपका है भीतर, जिसे नोच फेंकने की इच्छा हर पल होती. लेकिन बिरवे ने जाने कब जड़ें जमानी शुरू कर दीं कि उसे पता ही नहीं चला. अब पराएपन का एहसास मानो जाता रहा. सबकुछ अपनाअपना सा लगने लगा. डाक्टर ने पुष्टि कर दी कि उस के बेटा ही होगा तब से उसे अपनेआप पर अधिक प्यार आने लगा था.

लेकिन कभीकभी रातें उसे डराने लगी थीं. वह सपनों से चौंकचौंक जाती कि दूर कहीं जो बच्चा रो रहा है, वह उस का अपना बच्चा है. बिलखते बच्चे को खोजती वह जंगल में निकल जाती, फिर पहाड़ और नदीनालों को लांघती सात समुंदर पार निकल जाती. फिर भी उसे बच्चा दिखाई नहीं देता. लेकिन बच्चे का रुदन उस का पीछा नहीं छोड़ता और अचानक उस की नींद खुल जाती. तब अपनेआप जैसे वह निर्णय कर बैठती कि नहीं, वह बच्चा किसी को नहीं देगी, किसी भी कीमत पर नहीं.

सचाई यही है कि वह बच्चे की मां है. बच्चे को जन्म उसी ने दिया है, बच्चे का बाप चाहे कोई हो. उस का मन उसे दलीलें देता है कि एक बच्चे को अपनी मां से कोई छीन ले, अलग कर दे, ऐसा कानून धरती के किसी देश और अदालत का नहीं हो सकता. लिहाजा, बच्चा उसी के पास रहेगा. यदि फिर भी कुछ ऐसावैसा हुआ तो वह बच्चे को ले कर छिप जाएगी. ऐसेवैसे जाने कैसेकैसे सच्चेझूठे विचार उस का पीछा नहीं छोड़ते. और वह पैंडुलम की तरह कभी बच्चा देने और कभी न देने के निर्णय के बीच झूलती रहती.

आज और कल करतेकरते आखिर वह उन घडि़यों से गुजरने लगी जब कोई औरत जिंदगी और मौत की देहरी पर होती है. तब जब कोई मां अपने होने वाले बच्चे के जीवन की अरदास करती है, दुआ मांगती है कि या तो उस का बच्चा उस से दूर न होने पाए या फिर बच्चा मरा हुआ ही पैदा हो ताकि उस के शरीर का अंश उसी के देश और धरती में रहे, दफन हो कर भी. उस के न होने का विलाप वह कर लेगी…लेकिन…लेकिन देशदुनिया की इतनी दूरी वह कदापि नहीं सह सकेगी कि उम्रभर उस का मुंह भी न देख सके.

बेहोश होतेहोते उस के कान इतना सुनने में समर्थ थे कि ‘केस सीरियस हो रहा है. मां और बच्चे में से किसी एक को ही बचाया जा सकेगा. औपरेशन करना होगा, अभी और तुरंत.’

उस की आंख खुली तो नर्स ने गुडमौर्निंग कहते हुए बताया कि 10 दिन की लंबी बेहोशी के बाद आज वह जागी है. नर्स ने ही बताया कि उस ने बहुत सुंदरसलोने बेटे को जन्म दिया है. चूंकि उस का सीजेरियन हुआ है इसलिए उसे अभी कई दिन और करवट नहीं लेनी है.

‘‘बच्चा कैसा दिखता है?’’ उस ने पूछा तो नर्स उसे इंजैक्शन देती हुई कहने लगी, ‘‘नीली आंखों और गोल चेहरे वाला वह बच्चा सब के लिए अजूबा बना रहा. डाक्टर कह रही थी कि बच्चे की आंखें बाप पर और चेहरा मां पर गया है.

इंजैक्शन का असर था कि उस की आंखें फिर मुंदने लगी थीं. उस ने पास पड़े पालने में अपने बच्चे को टटोलना चाहा तो उसे लगा कि पालना खाली है. पालने में पड़े कागज को उठा कर उस ने अपनी धुंधलाती आंखों के सामने किया. चैक पर 9 लाख 45 हजार रुपए की रकम दर्ज थी.

शिथिल होते उस के हाथ से फिसल कर चैक जमीन पर आ गिरा और निद्रा में डूबती उस की पलकों से दो आंसू ढलक गए.

Viji Venkatesh: A Pioneer in Cancer Care and Beyond

Viji Venkatesh, a healthcare advocate and actress, has been working in the field of cancer care for decades. Even at 71, her confidence and energy defy her age, making her an inspiring figure.

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Viji Venkatesh exemplifies that it’s never too late to chase new dreams while driving meaningful change. Her remarkable contributions made her the rightful winner of the Grihshobha Inspire Awards 2025 in the “New Beginnings” category. At 71, she continues to break barriers and achieve milestones relentlessly.

A Powerhouse in Healthcare and Acting

With over 37 years in patient advocacy, Viji has been a driving force in improving cancer care accessibility. As the Regional Head for India and South Asia at The Max Foundation, she played a pivotal role in ensuring life-saving treatments reached cancer patients in low- and middle-income countries. Her work has helped countless families navigate the challenges of cancer treatment.

Her Cancer Care Journey Began in 1987

Starting with grassroots fundraising, she visited Nariman Point’s corporate offices to Kalwa and Belapur’s mills, where workers earning ₹1,200 donated ₹25 to support the cause. She educated herself by reading cancer research books from the British Council Library and launched tobacco awareness campaigns and breast self-examination workshops for workers and their wives—addressing key cancer risk factors.

Her relentless efforts have since:

  • Provided life-saving therapies to over 60,000 cancer patients across South Asia.

  • Ensured treatment for 30,000+ chronic myeloid leukemia (CML) patients.

Remarkably, Viji had no personal experience with cancer, yet she felt compelled to contribute, raise funds, and spread awareness.

Age is Just a Number: Venturing into Acting

After dedicating three-and-a-half decades to cancer care, Viji stepped into acting. She made her cinematic debut in Akhil Sathyan’s “Pachuvum Albhuthavilakkum” (Pachu and the Magic Lamp), co-starring Fahadh Faasil.

Her Message to Women

At the Grihshobha Inspire Awards, when asked what advice she’d give women, she said:

“Listen to your heart. Do what you feel is right. Be fearless. You have the power to bring joy and help others—hold onto that strength. When opportunities come, don’t hesitate; seize them.”

She believes that awards and recognition events motivate women to achieve greatness. Celebrating women’s accomplishments publicly empowers them to move forward without fear.

Achievements

  • Lifetime Achievement Award by a Global Health Organization.

  • Honored by the International CML Foundation (iCMLf) for her contributions to cancer care in South Asia.

Viji Venkatesh is a true inspiration, proving that passion and purpose have no age limit.

Best Hindi Stories : टेढ़ा है पर मेरा है

Best Hindi Stories :  नेहा को सारी रात नींद नहीं आई. उस ने बराबर में गहरी नींद में सोए अनिल को न जाने कितनी बार निहारा. वह 2-3 चक्कर बच्चों के कमरे के भी काट आई थी. पूरी रात बेचैनी में काट दी कि कल से पता नहीं मन पर क्या बीतेगी. सुबह की फ्लाइट से नेहा की जेठानी मीना की छोटी बहन अंजलि आने वाली थी. नेहा के विवाह को 7 साल हो गए हैं. अभी तक उस ने अंजलि को नहीं देखा था. बस उस के बारे में सुना था.

नेहा के विवाह के 15 दिन बाद ही मीना ने ही हंसीहंसी में एक दिन नेहा को बताया था, ‘‘अनिल तो दीवाना था अंजलि का. अगर अंजलि अपने कैरियर को इतनी गंभीरता से न लेती, तो आज तुम्हारी जगह अंजलि ही मेरी देवरानी होती. उसे दिल्ली में एक अच्छी जौब का औफर मिला तो वह प्यारमुहब्बत छोड़ कर दिल्ली चली गई. उस ने यहीं हमारे पास लखनऊ में रह कर ही तो एमबीए किया था. अंजलि शादी के बंधन में जल्दी नहीं बंधना चाहती थी. तब मांजी और बाबूजी ने तुम्हें पसंद किया… अनिल तो मान ही नहीं रहा था.’’

‘‘फिर ये विवाह के लिए कैसे तैयार हुए?’’ नेहा ने पूछा था.

‘‘जब अंजलि ने विवाह करने से मना कर दिया… मांजी के समझाने पर बड़ी मुश्किल से तैयार हुआ था.’’

नेहा चुपचाप अनिल की असफल प्रेमकहानी सुनती रही थी. रात को ही अंजलि का फोन आया था. उस का लखनऊ तबादला हो गया था. वह सीधे यहीं आ रही थी. नेहा जानती थी कि अंजलि ने अभी तक विवाह नहीं किया है.

मीना ने तो रात से ही चहकना शुरू कर दिया था, ‘‘अंजलि अब यहीं रहेगी, तो कितना मजा आएगा नेहा, तुम तो पहली बार मिलोगी उस से… देखना, कितनी स्मार्ट है मेरी बहन.’’

नेहा औपचारिकतावश मुसकराती रही. अनिल पर नजरें जमाए थी. लेकिन अंदाजा नहीं लगा पाई कि अनिल खुश है या नहीं. नेहा व अनिल और उन के 2 बच्चे यश और समृद्धि, जेठजेठानी व उन के बेटे सार्थक और वीर, सास सुभद्रादेवी और ससुर केशवचंद सब लखनऊ में एक ही घर में रहते थे और सब की आपस में अच्छी अंडरस्टैंडिंग थी. सब खुश थे, लेकिन अंजलि के आने की खबर से नेहा कुछ बेचैन थी. अंजलि सुबह अपने काम में लग गई. मीना बेहद खुश थी. बोली, ‘‘नेहा, आज अंजलि की पसंद का नाश्ता और खाना बना लेते हैं.’’

नेहा ने हां में सिर हिलाया. फिर दोनों किचन में व्यस्त हो गईं. टैक्सी गेट पर रुकी, तो मीना ने पति सुनील से कहा, ‘‘शायद अंजलि आ गई, आप थोड़ी देर बाद औफिस जाना.’’

‘‘मुझे आज कोई जल्दी नहीं है… भई, इकलौती साली साहिबा जो आ रही हैं,’’ सुनील हंसा.

अंजलि ने घर में प्रवेश कर सब का अभिवादन किया. मीना उस के गले लग गई. फिर नेहा से परिचय करवाया. अंजलि ने जिस तरह से उसे ऊपर से नीचे तक देखा वह नेहा को पसंद नहीं आया. फिर भी वह उस से खुशीखुशी मिली.

जब अंजलि सब से बातें कर रही थी, तो नेहा ने उस का जायजा लिया… सुंदर, स्मार्ट, पोनीटेल बनाए हुए, छोटा सा टौप और जींस पहने छरहरी अंजलि काफी आकर्षक थी. जब अनिल फ्रैश हो कर आया, तो अंजलि ने फौरन अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘हाय, कैसे हो?’’

अनिल ने हाथ मिलाते हुए कहा, ‘‘मैं ठीक हूं, तुम कैसी हो?’’

‘‘कैसी लग रही हूं?’’

‘‘बिलकुल वैसी जैसे पहले थी.’’

नेहा के दिल को कुछ हुआ, लेकिन प्रत्यक्षतया सामान्य बनी रही. सुभद्रादेवी और केशवचंद उस से दिल्ली के हालचाल पूछते रहे. मीना व अंजलि के मातापिता मेरठ में रहते हैं. नेहा के मातापिता नहीं हैं. एक भाई है जो विदेश में रहता है.

नाश्ता हंसीमजाक के माहौल में हुआ. सब अंजलि की बातों का मजा ले रहे थे. बच्चे भी उस से चिपके हुए थे. यश और समृद्धि थोड़ी देर तो संकोच में रहे, फिर उस से हिलमिल गए. नेहा की बेचैनी बढ़ रही थी. तभी अंजलि ने कहा, ‘‘दीदी, अब मेरे लिए एक फ्लैट ढूंढ़ दो.’’

मीना ने कहा, ‘‘चुप कर, अब हमारे साथ ही रहेगी तू.’’

सुनील ने भी कहा, ‘‘अकेले कहीं रहने की क्या जरूरत है? यहीं रहो.’’

सुनील और अनिल अपनेअपने औफिस चले गए. केशवचंद पेपर पढ़ने लगे. सुभद्रादेवी तीनों से बातें करते हुए आराम से बाकी काम में मीना और नेहा का हाथ बंटाने लगीं.

नेहा को थोड़ा चुप देख कर अंजलि हंसते हुए बोली, ‘‘नेहा, क्या तुम हमेशा इतनी सीरियस रहती हो?’’

मीना ने कहा, ‘‘अरे नहीं, वह तुम से पहली बार मिली है… घुलनेमिलने में थोड़ा समय तो लगता ही है न…’’

अंजलि ने कहा, ‘‘फिर तो ठीक है वरना मैं ने तो सोचा अगर ऐसे ही सीरियस रहती होगी तो बेचारा अनिल तो बोर हो जाता होगा. वह तो बहुत हंसमुख है… दीदी, अनिल अब भी वैसा ही है शरारती, मस्तमौला या फिर कुछ बदल गया है? आज तो ज्यादा बात नहीं हो पाई.’’

मीना हंसी, ‘‘शाम को देख लेना.’’

नेहा मन ही मन बुझती जा रही थी. लंच के बाद अपने कमरे में थोड़ा आराम करने लेटी तो विवाह के शुरुआती दिन याद आ गए. अनिल काफी सीरियस रहता था, कभी हंसताबोलता नहीं था. चुपचाप अपनी जिम्मेदारियां पूरी कर देता था. नवविवाहितों वाली कोई बात नेहा ने महसूस नहीं की थी. फिर जब मीना ने अनिल और अंजलि के बार में उसे बताया तो उस ने अपने दिल को मजबूत कर सब को प्यार और सम्मान दे कर सब के दिल में अपना स्थान बना लिया. अब कुल मिला कर उस की गृहस्थी सामान्य चल रही थी, तो अब अंजलि आ गई. नेहा यश और समृद्धि को होमवर्क करवा रही थी कि अंजलि उस के रूम में आ गई.

नेहा ने जबरदस्ती मुसकराते हुए उसे बैठने के लिए कहा, तो वह सीधे बैड पर लेट गई. बोली, ‘‘नेहा, अनिल कब तक आएगा?’’

‘‘7 बजे तक,’’ नेहा ने संयत स्वर में कहा.

‘‘उफ, अभी तो 1 घंटा बाकी है… बहुत बोर हो रही हूं.’’

‘‘चाय पीओगी?’’ नेहा ने पूछा.

‘‘नहीं, अनिल को आने दो, उस के साथ ही पीऊंगी.’’

नेहा को अंजलि का अनिल के बारे में बात करने का ढंग अच्छा नहीं लग रहा था. लेकिन करती भी क्या.

कुछ कह नहीं सकती थी  अनिल आया, तो अंजलि चहक उठी फिर ड्राइंगरूम में सोफे पर अनिल के बराबर में बैठ कर ही चाय पी. घर के बाकी सभी सदस्य वहीं बैठे हुए थे. अंजलि ने पता नहीं कितनी पुरानी बातें छेड़ दी थीं.

नेहा का उतरा चेहरा देख कर अनिल ने पूछा, ‘‘नेहा, तबीयत तो ठीक है न? बड़ी सुस्त लग रही हो?’’

‘‘नहीं, ठीक हूं.’’

यह सुन कर अंजलि ने ठहाका लगाया. बोली, ‘‘वाह अनिल, तुम तो बहुत केयरिंग पति बन चुके हो… इतनी चिंता पत्नी की? वह दिन भूल गए जब मुझे जाता देख कर आंहें भर रहे थे?’’

यह सुन कर सभी घर वाले एकदूसरे का मुंह देखने लगे.

तब मीना ने बात संभाली, ‘‘क्या कह रही हो अंजलि… कभी तो कुछ सोचसमझ कर बोला कर.’’

‘‘अरे दीदी, सच ही तो बोल रही हूं.’’

नेहा ने बड़ी मुश्किल से स्वयं को संभाला. दिल पर पत्थर रख कर मुसकराते हुए चायनाश्ते के बरतन समेटने लगी. सब थोड़ी देर और बातें कर के अपनेअपने काम में लग गए. डिनर के समय भी अंजलि अनिलअनिल करती रही और वह उस की हर बात का हंसतेमुसकराते जवाब देता रहा. अगले दिन अंजलि ने भी औफिस जौइन कर लिया. सब के औफिस जाने के बाद नेहा ने चैन की सांस ली कि अब कम से कम शाम तक तो वह मानसिक रूप से शांत रहेगी.

ऐसे ही समय बीतने लगा. सुबह सब औफिस निकल जाते. शाम को घर लौटने पर रात के सोने तक अंजलि अनिल के इर्दगिर्द ही मंडराती रहती. नेहा दिनबदिन तनाव का शिकार होती जा रही थी. अपनी मनोदशा किसी से शेयर भी नहीं कर पा रही थी. कुछ कह कर स्वयं को शक्की साबित नहीं करना चाहती थी. वह जानती थी कि उस ने अनिल के दिल में बड़ी मेहनत से अपनी जगह बनाई थी. लेकिन अब अंजलि की उच्छृंखलता बढ़ती ही जा रही थी. वह कभी अनिल के कंधे पर हाथ रखती, तो कभी उस का हाथ पकड़ कर कहीं चलने की जिद करती. लेकिन अनिल ने हमेशा टाला, यह भी नेहा ने नोट किया था. मगर अंजलि की हरकतों से उसे अपना सुखचैन खत्म होता नजर आ रहा था. क्या उस की घरगृहस्थी टूट जाएगी? क्या करेगी वह? घर में सब अंजलि की हरकतों को अभी बचपना है, कह कर टाल जाते.

नेहा अजीब सी घुटन का शिकार रहने लगी.

एक रात अनिल ने उस से पूछा, ‘‘नेहा, क्या बात है, आजकल परेशान दिख रही हो?’’

नेहा कुछ नहीं बोली. अनिल ने फिर कुछ नहीं पूछा तो नेहा की आंखें भर आईं, क्या अनिल को मेरी परेशानी की वजह का अंदाजा नहीं होगा? इतने संगदिल क्यों हैं अनिल? बच्चे तो नहीं हैं, जो मेरी मनोदशा समझ न आ रही हो… जानबूझ कर अनजान बन रहे हैं. नेहा रात भर मन ही मन घुटती रही. बगल में अनिल गहरी नींद सो रहा था.

एक संडे सब साथ लंच कर के थोड़ी देर बातें कर के अपनेअपने रूम में आराम करने जाने लगे तो किचन से निकलते हुए नेहा के कदम ठिठक गए. अंजलि बहुत धीरे से अनिल से कह रही थी, ‘‘शाम को 7 बजे छत पर मिलना.’’

अनिल की कोई आवाज नहीं आई. थोड़ी देर बाद नेहा अपने रूम में आ गई. अनिल आराम करने लेट गया. फिर नेहा से बोला, ‘‘आओ, थोड़ी देर तुम भी लेट जाओ.’’

नेहा मन ही मन आगबबूला हो रही थी. अत: जानबूझ कर कहा, ‘‘बच्चों के लिए कुछ सामान लेना है… शाम को मार्केट चलेंगे?’’

‘‘आज नहीं, कल,’’ अनिल ने कहा.

नेहा ने चिढ़ते हुए पूछा, ‘‘आज क्यों नहीं?’’

‘‘मेरा मार्केट जाने का मूड नहीं है… कुछ जरूरी काम है.’’

‘‘क्या जरूरी काम है?’’

‘‘अरे, तुम तो जिद करने लगती हो, अब मुझे आराम करने दो, तुम भी आराम करो.’’

नेहा को आग लग गई. सोचा, बता दे उसे पता है कि क्या जरूरी काम है… मगर चुप रही. आराम क्या करना था… बस थोड़ी देर करवटें बदल कर उठ गई और वहीं रूम में चेयर पर बैठ कर पता नहीं क्याक्या सोचती रही. 7 बजे की सोचसोच कर उसे चैन नहीं आ रहा था… क्या करे, क्या मांबाबूजी से बात करे, नहीं उन्हें क्यों परेशान करे, क्या कहेगी अंजलि अनिल से, अनिल क्या कहेंगे… उस से बातें करते हुए खुश तो बहुत दिखाई देते हैं.

7 बजे के आसपास नेहा जानबूझ कर बच्चों को पढ़ाने बैठ गई. मांबाबूजी पार्क में टहलने गए हुए थे. मीना और सुनील अपने रूम में थे. उन के बच्चे खेलने गए थे. तनाव की वजह से नेहा ने यश और समृद्धि को खेलने जाने से रोक लिया था. बच्चों में मन बहलाने का असफल प्रयास करते हुए उस ने देखा कि अनिल गुनगुनाते हुए बालों में कंघी कर रहा है. उस ने पूछा, ‘‘कहीं जा रहे हैं?’’

‘‘क्यों?’’

‘‘बाल ठीक कर रहे हैं.’’

अनिल ने उसे चिढ़ाने वाले अंदाज में कहा, ‘‘क्यों, कहीं जाना हो तभी बाल ठीक करते हैं?’’

‘‘आप हर बात का जवाब टेढ़ा क्यों देते हैं?’’

‘‘मैं हूं ही टेढ़ा… खुश? अब जाऊं?’’

नेहा की आंखें भर आईं, कुछ बोली नहीं. यश की नोटबुक देखने लगी. अनिल सीटी बजाता हुआ रूम से निकल गया.

5 मिनट बाद नेहा बच्चों से बोली, ‘‘अभी आई, तुम लोग यहीं रहना,’’ और कमरे से निकल गई. अनिल छत पर जा चुका था. उस ने भी सीढि़यां चढ़ कर छत के गेट से अपना कान लगा दिया. बिना आहट किए सांस रोके खड़ी रही.

तभी अंजलि की आवाज आई, ‘‘बड़ी देर लगा दी?’’

‘‘बोलो अंजलि, क्या बात करनी है?’’

‘‘इतनी भी क्या जल्दी है?’’

नेहा को उन की बातचीत का 1-1 शब्द साफ सुनाई दे रहा था.

अनिल की गंभीर आवाज आई, ‘‘बात शुरू करो, अंजलि.’’

‘‘अनिल, यहां आने पर सब से ज्यादा खुश मैं इस बात पर थी कि तुम से मिल सकूंगी, लेकिन तुम्हें देख कर तो लगता है कि तुम मुझे भूल गए… मुझे तो उम्मीद थी मेरा कैरियर बनने तक तुम मेरा इंतजार करोगे, लेकिन तुम तो शादी कर के बीवीबच्चों के झंझट में पड़ गए. देखो, मैं ने अब तक शादी नहीं की, तुम्हारे अलावा कोई नहीं जंचा मुझे… क्या किसी तरह ऐसा नहीं हो सकता कि हम फिर साथ हो जाएं?’’

‘‘अंजलि, तुम आज भी पहले जैसी ही स्वार्थी हो. मैं मानता हूं नेहा से शादी मेरे लिए एक समझौता था, अपनी सारी भावनाएं तो तुम्हें सौंप चुका था… लगता था नेहा को कभी वह प्यार नहीं दे पाऊंगा, जो उस का हक है, लेकिन धीरेधीरे यह विश्वास भ्रम साबित हुआ. उस के प्यार और समर्पण ने मेरा मन जीत लिया. हमारे घर का कोनाकोना उस ने सुखशांति और आनंद से भर दिया. अब नेहा के बिना जीने की सोच भी नहीं सकता. जैसेजैसे वह मेरे पास आती गई, मेरी शिकायतें, गुस्सा, दर्द जो तुम्हारे लिए मेरे दिल में था, सब कुछ खत्म हो गया. अब मुझे तुम से कोई शिकायत नहीं है. मैं नेहा के साथ बहुत खुश हूं.’’

गेट से कान लगाए नेहा को अनिल की आवाज में सुख और संतोष साफसाफ महसूस हुआ.

अनिल आगे कह रहा था, ‘‘तुम भाभी की बहन की हैसियत से तो यहां आराम से रह सकती हो लेकिन मुझ से किसी भी रिश्ते की गलतफहमी दिमाग में रख कर यहां मत रहना… मेरे खयाल में तुम्हारा यहां न रहना ही ठीक होगा… नेहा का मन तुम्हारी किसी हरकत पर आहत हो, यह मैं बरदाश्त नहीं करूंगा. अगर यहां रहना है तो अपनी सीमा में रहना…’’

इस के आगे नेहा को कुछ सुनने की जरूरत महसूस नहीं हुई. उसे अपना मन पंख जैसा हलका लगा. आंखों में नमी सी महसूस हुई. फिर वह तेजी से सीढि़यां उतरते हुए मन ही मन यह सोच कर मुसकराने लगी कि टेढ़ा है पर मेरा है.

Robotic Dog Champak : बच्चों की पत्रिका ‘चंपक’ नाम के इस्तेमाल को लेकर घिरा बीसीसीआई

Robotic Dog Champak : दिल्ली प्रेस पत्र प्रकाशन की ओर से प्रकाशित हाेने वाली बच्चों की पत्रिका ‘चंपक’ ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया है. प्रकाशन समूह की ओर से उस ‘रोबोटिक डॉग’ को लेकर आपत्ति जताई गई है जिसका इस्तेमाल बीसीसीआई एक आकर्षण के रूप में इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के दौरान कर रही है. दरअसल, इस ‘रोबोटिक डॉग’ का नाम ‘चंपक’ है. प्रकाशक की ओर से न्यायमूर्ति सौरभ बनर्जी ने मुकदमे को लेकर नोटिस जारी किया है. प्रकाशक का आरोप है कि बीसीसीआई ने अपने ‘रोबोटिक डॉग’ को ‘चंपक’ नाम देकर पत्रिका के पंजीकृत ट्रेडमार्क का उल्लंघन किया है. हाईकोर्ट में इस मामले पर अगली सुनवाई 9 जुलाई को होगी.

यह इस्तेमाल अनाधिकृत

इस मामले पर दिल्ली प्रेस की ओर से एडवोकेट अमित गुप्ता ने अदालत में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि ‘चंपक’ पत्रिका बच्चों के बीच बेहद पॉपुलर है. ऐसे में, बीसीसीआई की ओर से आईपीएल में इसके नाम का इस्तेमाल करना प्रकाशक के पंजीकृत ट्रेडमार्क का स्पष्ट उल्लंघन है. प्रकाशक समूह का पक्ष रखते हुए अमित गुप्ता ने यह भी कहा कि कथित तौर पर फैन वोटिंग के आधार पर 23 अप्रैल को इस एआई टूल ‘रोबोटिक डॉग’ का नाम चंपक रखा गया. मीडिया में इस ‘रोबोटिक डॉग’ को लेकर लगातार खबरें आ रही है. हालांकि इस पर अदालत की ओर से यह पूछा गया कि नाम के इस तरह के इस्तेमाल किए जाने से प्रकाशकों को क्या हानि हो रही है, तो इसके जवाब में अमित गुप्ता का कहना था कि यह इस्तेमाल अनाधिकृत है.

विराट कोहली का नाम आया सामने

सुनवाई के दौरान अदालत का सवाल था कि क्या ‘चीकू’ चंपक पत्रिका का एक पात्र है? और क्या यही नाम क्रिकेटर विराट कोहली का उपनाम भी है? इस पर अमित गुप्ता ने स्वीकार किया कि ‘चीकू’ वास्तव में पत्रिका का पात्र है, तो इस पर अदालत का कहना था कि फिर इस उपयोग को लेकर कोई मुकदमा नहीं किया गया.
इस पर अमित गुप्ता ने प्रकाशक का पक्ष रखते हुए कहा कि आमतौर पर लोग कॉमिक बुक्स और फिल्मों के पात्रों के आधार पर उपनाम रखते हैं. इसके बाद कोर्ट की ओर से एडवोकेट से पूछा कि इस मामले में व्यावसायिक दोहन और अनुचित लाभ का दावा कैसे किया जा सकता है.
इस पर अभियोजन पक्ष के वकील अमित गुप्ता ने जवाब दिया कि प्रकाशक इस नाम का पंजीकृत स्वामी है और बीसीसीआई बिना अनुमति के उपयोग कर रही है.
एडवाेकेट अमित गुप्ता का पक्ष, “मेरी पत्रिका पशु-पात्रों (एनिमल कैरेक्टर्स) के लिए जानी जाती है. मान लेते हैं कि उत्पाद अलग है, लेकिन नाम का उपयोग ही नुकसान पहुंचा रहा है. यह नाम की प्रतिष्ठा को कमजोर कर रहा है.
हालांकि, अदालत ने टिप्पणी की कि याचिका में अनुचित लाभ का कोई स्पष्ट आरोप नहीं लगाया गया है.
अदालत की ओर से कहा गया कि रिकॉर्ड में ऐसा कुछ नहीं है जिससे यह सिद्ध हो कि इससे कोई क्षति या नाम की प्रतिष्ठा में कमी आई हो.

कोहली कोई उत्पाद नहीं लॉन्च कर रहे

इस पर एडवाेकेट अमित गुप्ता ने तर्क दिया कि उत्पाद का विज्ञापन और विपणन ही व्यावसायिक दोहन को दर्शाने के लिए पर्याप्त है. उन्होंने कहा कि आईपीएल एक व्यावसायिक उपक्रम है.
इस पर अदालत ने व्यंग्यात्मक रूप से कहा कि प्रकाशक विराट कोहली के खिलाफ ‘चीकू’ नाम के उपयोग पर रॉयल्टी कमा सकता था लेकिन गुप्ता ने कहा कि विराट कोहली कोई उत्पाद नहीं लॉन्च कर रहे हैं. अगर कोहली ‘चीकू’ नाम से कोई उत्पाद लॉन्च करते, तो वह व्यावसायिक दोहन माना जाता. दूसरी ओर, गुप्ता ने कहा कि चंपक एक पंजीकृत ट्रेडमार्क है और इसका व्यावसायिक उपयोग उल्लंघन माना जाएगा.
बीसीसीआई की ओर से कोर्ट में पेश हुए सीनियर एडवोकेट जे. साई दीपक ने तर्क दिया कि चंपक एक फूल का नाम भी है. उनकी ओर से यह भी कहा गया कि रोबोटिक डॉग एक सीरीज के पात्र से जुड़ा है, न कि पत्रिका से. इसका हवाला टीवी शो ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ से दिया.
अदालत ने इस मामले में नोटिस जारी किया है और अगली सुनवाई के लिए तारीख तय की है लेकिन यह भी कहा कि फिलहाल एकतरफा अंतरिम राहत देने का कोई ठोस आधार नहीं है.

Nikita Dutta को ‘इस हफ्ते के लोकप्रिय भारतीय सेलिब्रिटीज’ सूची में मिला पहला स्थान, जानें इस ऐक्ट्रैस के बारे में…

Nikita Dutta : अभिनेत्री निकिता दत्ता  ने इस हफ्ते IMDb की प्रतिष्ठित ‘लोकप्रिय भारतीय सेलिब्रिटीज’ सूची में पहला स्थान प्राप्त कर लिया है, जो उनके तेजी से आगे बढ़ते करियर की एक और बड़ी उपलब्धि है.अपनी दिलकश स्क्रीन प्रेज़ेंस और बहुमुखी अभिनय क्षमता के लिए जानी जाने वाली निकिता का इस सूची में शीर्ष पर पहुंचना इस साल उनके प्रति दर्शकों और समीक्षकों की बढ़ती प्रशंसा और लोकप्रियता को दर्शाता है  खासतौर पर उनके हालिया प्रोजेक्ट्स ‘ज्वेल थीफ’ और ‘द वेकिंग औफ अ नेशन’ में उनके शानदार प्रदर्शन के लिए.

यह सूची हाल ही में सबसे अधिक खोजे गए सेलिब्रिटीज के आधार पर तैयार की जाती है, जिसमें वे कलाकार शामिल होते हैं जो चर्चा में रहे हैं और जिन्होंने काफी ध्यान आकर्षित किया है. निकिता के हाल के कार्यों और उनकी आकर्षक शख्सियत ने उन्हें इस सूची के शीर्ष स्थान पर पहुंचा दिया है, जहां उन्होंने कई स्थापित सितारों को भी पीछे छोड़ दिया है.

फैन्स उन्हें उनके अनोखे और प्रभावशाली परफौर्मेंस के लिए खूब सराह रहे हैं, जिनमें वे हर किरदार में पूरी तरह ढल जाती हैं. इस रैंकिंग से यह साफ हो जाता है कि निकीता सिर्फ एक उभरती हुई प्रतिभा नहीं, बल्कि वह नाम बन चुकी हैं जिससे हर हफ्ते ज्यादा से ज्यादा दर्शक जुड़ रहे हैं.

निकिता दत्ता का सफर, उनके डेब्यू से लेकर IMDb की इस रैंकिंग में शिखर तक पहुंचना, उनकी कड़ी मेहनत, समर्पण और अद्भुत आकर्षण का प्रमाण है.इंडस्ट्री में जैसे-जैसे वह और चमक रही हैं, यह IMDb रैंकिंग उनके लिए बड़ी सफलताओं की सिर्फ शुरुआत है.

Mango Roll : घर पर बनाएं मैंगो रोल, बस ट्राई करें ये रेसिपी

Mango Roll : चिलचिलाती गर्मी में हर समय ठंडी ठंडी चीजें खाने का ही मन करता रहता है. इन दिनों आम, तरबूज, खरबूज और लीची जैसे फलों की भी बाजार में बहार छाई हुई है. चूंकि इस मौसम में हमारे शरीर से पसीने के रूप में पानी निकलता रहता है इसलिए इन फलों का सेवन अवश्य करना चाहिए क्योंकि ये फल हमारे शरीर में पानी की कमी को पूरा करते रहते हैं..यूं तो सेहत की दृष्टि से इनका साबुत ही प्रयोग किया जाना उचित रहता है  परन्तु यदि आप साबुत प्रयोग नहीं कर पा रहे हैं तो जूस के रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है. आज हम आपको इन्हीं फलों से कुछ मिठाईयां बनाना बता रहे हैं जिन्हें आप आसानी से अपने घर में बना सकती हैं तो आइए देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाया जाता है-

-मैंगो रोल

कितने लोगों के लिए             4

बनने में लगने वाला समय       30 मिनट

मील टाइप                           वेज

सामग्री

पके आम                         500 ग्राम

शकर                              200ग्राम

पीला फ़ूड कलर              1 बून्द

पनीर                              250 ग्राम

पिसी शकर                    1 टीस्पून

बारीक कटे बादाम          1 टीस्पून

इलायची पाउडर             1/4 टीस्पून

घी                                1/2 टीस्पून

पिस्ता कतरन(सजाने के लिए)

विधि

आम को छीलकर छोटे छोटे टुकड़ों में काट लें. इन्हें शकर और फ़ूड कलर के साथ मिक्सी में पीस लें. एक पैन में गर्म घी में पिसे आम के पेस्ट को गाढ़ा होने तक पकाएं. जब गाढ़ा होकर गोली सी बनने लगे तो चिकनाई लगी ट्रे में एकदम पतला पतला फैला दें.

पनीर को मैश करके पिसी शकर, इलायची पाउडर और कटे बादाम अच्छी तरह मिलाएं और एक टीस्पून मिश्रण को हाथों से रोल करके 1 इंच का सिलेंडर जैसा बना लें. जमे आम से 1-1इंच की स्ट्रिप काट लें. अब आम की स्ट्रिप को पनीर के चारों ओर लपेटकर  रोल  तैयार कर लें. इसी प्रकार सारे रोल तैयार करके पिस्ता कतरन से सजाकर सर्व करें.

-वाटरमेलन बॉल्स

कितने लोगों के लिए          6

बनने में लगने वाला समय   30 मिनट

मील टाइप                       वेज

सामग्री

साबुत तरबूज                  1किलो

शकर                               250 ग्राम

स्ट्राबेरी फ़ूड कलर            2 बून्द

खोया                              250 ग्राम

मिल्क पाउडर                  250 ग्राम

इलायची पाउडर              1/4 टीस्पून

पिसी शकर                     1 टीस्पून

नारियल बुरादा                 100 ग्राम

घी                                    1/4 टीस्पून

विधि

तरबूज को पीलर से छीलकर बिना काटे ही हरे वाले भाग से स्कूपर से 6 बॉल्स निकाल लें. शकर में एक कप पानी और फ़ूड कलर डालकर 1 तार की चाशनी बनाएं. कटे तरबूज के बॉल्स डालकर 5 मिनट तक पकाएं. जब बॉल्स हल्के से नरम हो जाएं तो गैस बंद कर दें, ठंडा होने पर चलनी से छानकर चाशनी अलग कर दें. खोया को घी में हल्का सा भूनकर प्लेट में निकाल लें. अब खोया में इलायची पाउडर और पिसी शकर अच्छी तरह मिलाएं . 1 चम्मच खोया का मिश्रण लेकर तरबूज के बॉल्स के ऊपर इस तरह लपेटें कि बॉल पूरी तरह से ढक जाएं. एक प्लेट में नारियल बुरादा और मिल्क पाउडर को मिला लें अब तैयार बॉल्स को मिल्क पाउडर और नारियल बुरादा में लपेटकर सर्व करें.

Pedicure At Home : घर पर ही बढ़ाएं पैरों की खूबसूरती, ऐसे करें पेडिक्योर

Pedicure At Home : हम सारा दिन अपने पैरों पर खड़े रहते हैं, ऑफिस में हाईहील पहनकर उन पर भयानक प्रेशर डालते हैं. गंदी सड़कों पर चलते हैं और प्रदूषण औऱ गरमी में पसीने की चपेट में पैरों को ला देते हैं.

पैर भी शरीर का हिस्‍सा हैं, उन्‍हें भी देखभाल की आवश्‍यकता होती है. सिर्फ नहाते समय साबुन मलकर धो लेने भर से पैर हमेशा स्‍वस्‍थ नहीं रह सकते हैं. अगर आप वर्किंग वूमन हैं तो महीने में कम से कम दो बार पेडिक्‍योर अवश्‍य करें. इससे पैरों की त्‍वचा स्‍वस्‍थ और मुलायम बनी रहती है. लाइफस्‍टाइल ट्रैंड के अनुसार, इन गर्मियों में मिल्‍क से पेडिक्‍योर करना ज्‍यादा अच्‍छा रहेगा. इससे पैर मुलायम होंगे और धूप का असर भी कम हो जाएगा.

मिल्‍क पेडिक्‍योर करने के लिए आवश्‍यक सामग्री:

3 कप मिल्‍क

1बाल्‍टी गुनगुना पानी

1 चम्‍मच नमक

1 कप व्‍हाइट सुगर

1/2 कप ब्राउन सुगर

पैडीक्‍योर ब्रश

किस प्रकार तैयारी करें:

पैरों को साफ पानी से धो लें. नेलपॉलिश आदि को निकाल दें, ताकि नाखून भी साफ हो पाएं. बाल्‍टी में दूध, नमक, सुगर मिला लें. अगर चाहें तो गुलाब जल भी डाल सकती हैं. गुनगुने पानी को मिक्‍स करें.

किस प्रकार पैडीक्‍योर करें

– बाल्‍टी में बने मिश्रण में धुले हुए पैरों को डालें और रखे रहें. 10 मिनट तक पैरों को भिगने दें.

– इसके बाद, पैरों को पेडिक्‍योर ब्रश से क्‍लीन कर लें. अगर नाखूनों को काटना हो, तो काट लें. इस दौरान नाखून बहुत मुलायम हो जाते हैं तो आसानी से कट जाते हैं.

फायदे

मिल्‍क के पेडिक्‍योर के कई फायदे होते हैं. इसमें डाली जाने वाली हर सामग्री, त्‍वचा के लिए लाभकारी होती है. अगर पैरों में थकान हो, तो टी ट्री ऑयल भी डाला जा सकता है.

अंतिम चरण

पैरों को पानी से निकालने के बाद, साफ पानी से धो लें. तौलिए से पोंछ लें और कोई क्रीम लगाएं. इससे आपके पैर बहुत मुलायम हो जाएंगे.

Tillotama Shome: My Hard Work, My Journey, My Films Are My Identity

Tillotama Shome: Today, Tillotama Shome has reached a position where she stands as an inspiration for the women of tomorrow—all through her sheer dedication and talent.

A Steadfast Presence in Bollywood

In an industry where stars rise and fade quickly, sustaining a career for 25 years is no small feat. Tillotama Shome has carved her niche in Bollywood purely through her acting prowess, earning accolades, including a Filmfare Critics Award. Born in Kolkata to Anupam Shome, an Indian Air Force officer, she entered films with Mira Nair’s Monsoon Wedding (2001) in a supporting role.

Since then, she has left an indelible mark with films like:

  • Titli (2003)

  • Shadows of Time (2004)

  • Shanghai (2012)

  • A Death in the Gunj (2017)

  • Sir (2018) – Filmfare Critics Award for Best Actress

  • Raahgir (2019)

  • Lust Stories 2 (2023)

  • Mirror (2024)

  • Shadowbox (2025)

From TV to OTT: A Versatile Performer

Beyond films, Shome has excelled in television and OTT platforms. Her performances in:

  • Delhi Crime (2022)

  • The Night Manager (2023) – Filmfare OTT Award

  • Patal Lok (2025)
    have cemented her reputation as a powerhouse performer.

Theatre Roots and Global Exposure

A graduate of Delhi’s Lady Shri Ram College, Shome joined Arvind Gaur’s Asmita Theatre Group before pursuing a Master’s in Theatre at New York University. Her unique experience teaching theatre to convicted murderers in a U.S. prison profoundly shaped her perspective.

Breaking Barriers in a Nepotism-Driven Industry

With no Bollywood connections, Shome’s success is purely merit-based—a rarity in an industry often criticized for favoring star kids. Her journey is a testament to perseverance.

An Inspiration for Women

Tillotama Shome’s relentless hard work has made her a role model for aspiring actresses. Recognized with the Grihshobha Inspire Award, she sees such honors as motivation to keep pushing boundaries.

Today, she stands tall—not just as an actor bu

पहलगाम अटैक के बाद पाकिस्तानी एक्ट्रेस Hania Aamir का भारत आने का सपना टूटा, इस फिल्म से हो गई आउट

Hania Aamir : जब देश में कोई भी विवादित मामला होता है खासतौर पर हिंदुस्तान पाकिस्तान कश्मीर में आतंकवाद , आदि तो इसका सीधा असर पाकिस्तान के उन कलाकारों पर होता है जो भारत की फिल्मों में काम करना चाहते हैं या काम कर रहे हैं. पाकिस्तानी कलाकार जो भारत की फिल्मों में काम करने के लिए आतुर रहते है, हिंदुस्तानी फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ने के लिए अपनी पी आर टीम को अच्छा खासा पैसा भी देते हैं ताकि वह हिंदी फिल्मों में काम कर सके और पूरे वर्ल्ड में नाम कमा सके.

बौलीवुड इंडस्ट्री भी पाकिस्तानी कलाकारों को हाथों हाथ लेती है जिसके चलते कई पाकिस्तानी कलाकार हिंदी फिल्मों से जुड़ चुके हैं जैसे फवाद खान, वीणा मालिक, अली जफर, माहिरा खान ,सबा कमर आदि
लेकिन पाकिस्तान और हिंदुस्तान का राजनीतिक तौर पर हमेशा पंगा रहा है जिसके चलते जब भी पाकिस्तान और हिंदुस्तान के बीच कोई विवाद होता है या खटास आती है तो पाकिस्तानी कलाकारों को सबसे पहले यहां से भगाया जाता है. जैसे कि पाकिस्तानी एक्टर फवाद खान की फिल्म अबीर गुलाल जो जल्द ही रिलीज होने वाली थी, उसको भारत में पूरी तरह बैन कर दिया गया है. फवाद की फिल्म रिलीज होने से दो हफ्ते पहले जहां फिल्म पर बैन लगाया गया, वही फवाद के सारे इंडियन प्रोजेक्ट को बायकाट किया जा रहा है.

पाकिस्तानी अन्य हीरोइन की तरह वहां की आलिया भट्ट कहलाने वाली हानिया आमिर, जो कि पाकिस्तान में बहुत प्रसिद्ध है उनकी दिल्ली तमन्ना थी भारत में अपने अभिनय के जौहर दिखाने की. हानिया दिलजीत दोसांझ की फिल्म सरदार जी 3 में काम करने वाली थी. जो अब संभव नहीं हो पाएगा, उनकी पी आर टीम हानिया हानिया आमिर के भारत में कई प्रोजेक्ट पाने के लिए काम कर रही थी, जिसके चलते जहां हानिया का वरुण धवन के साथ फोटोशूट एक प्रोजेक्ट के लिए करवाया था , वही रैपर बादशाह से उनके लिंकअप के चर्चे हो रहे थे . इंडियन एक्टर्स के साथ दोस्ती की झलक सोशल मीडिया पर, यहां तक की इंस्टा में बिंदी लगाकर फोटोस और बौलीवुड गानों पर डांस करते हुए रील बनाकर हानिया आमिर ने अपनी पी आर टीम के साथ मिलकर बहुत मेहनत की . इस मेहनत का फल उनको मिलने ही वाला था कि कश्मीर में आतंकवादियों द्वारा नरसंहार का पूरा क्रेडिट पाकिस्तान को दिया गया , जिसके बाद सिर्फ हानिया आमिर ही नहीं बल्कि पाकिस्तानी एक्टरों के लिए हिंदुस्तान में काम करना फिलहाल नामुमकिन सा हो गया है.

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