17 एक्टरों के साथ बनाई गई Housefull 5, जिसे दर्शकों ने कहा ‘वाहियात फिल्म’

Housefull 5 : हाल ही में लंबी चौड़ी स्टार कास्ट के साथ प्रस्तुत हुई फिल्म हाउसफुल 5 को लेकर इतनी ज्यादा पब्लिसिटी और चर्चा थी कि सिनेमाघरों के मालिकों को लगा कि पहले ही शो में दर्शक फिल्म देखने के लिए टूट पड़ेंगे. जिसके चलते सिनेमाघर मालिकों ने इस फिल्म का सुबह में शो रख दिया, लेकिन सुबह के शो में पूरा थिएटर खाली था क्योंकि अक्षय कुमार, अभिषेक बच्चन, फरदीन खान, रितेश देशमुख जैसे प्रसिद्ध कलाकारों से सजी फिल्म में घटिया और वाहियाद चीप कौमेडी , बेतुके सीन , अश्लील प्रेम प्रसंगों से भरी फिल्म परिवार के साथ तो क्या दोस्तों के शायद साथ भी देखने लायक नहीं थी.

ऐसे में अपनी फिल्म की सफलता को लेकर कॉन्फिडेंट अक्षय कुमार खुद मास्क पहन के रिव्यू लेने पहुंच गए, जहां पर दर्शकों ने उनसे ठीक ढंग से बात तक नहीं की, क्योंकि थिएटर से दर्शक पूरी तरह नाराज होकर निकल रहे थे.

हाउसफुल 5 को हाउसफुल करवाने में मार्केटिंग टीम और पी आर टीम जुड़ी हुई थी, अभी फिल्म अपनी लागत भी नहीं वसूल कर पाई थी की फिल्म को हिट सुपरहिट कहना शुरू कर दिया गया, इस फिल्म की हीरोइनों को देखकर आंखें बंद करने का दिल किया, अक्षय की कौमेडी टाइमिंग के चलते सभी दर्शकों को उम्मीद थी कि हाउसफुल 5 एक अच्छी कौमेडी फिल्म होगी. लेकिन अक्षय की एक्टिंग को देखकर ऐसा लगा कि वह भांग खा के एक्टिंग कर रहे हैं, ऐसे में कहना गलत ना होगा 17 सुपरस्टारों वाली बिग बजट फिल्म का पूरी तरह बंटाधार है. बशर्ते मेकर्स सलमान खान की सिकंदर की तरह ईमानदारी से कबूल करें की फिल्म सुपर फ्लॉप है .

Makeup Tips : चेहरे के रंग को गोरा करने के लिए क्या प्रौमिनैंट मेकअप सही है?

 Makeup Tips : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक पढ़ें

सवाल-

मैंने प्रौमिनैंट मेकअप के बारे में काफी सुना है. अपने चेहरे के रंग को गोरा करने के लिए क्या प्रौमिनैंट फाउंडेशन लगाया जा सकता है?

जवाब-

वैसे तो आईब्रोज, आईलाइनर, काजल, लिपस्टिक, लिप लाइनर परमानैंट मेकअप में लगाया जाता है, पर आजकल परमानैंट फाउंडेशन भी लगाया जा रहा है. यह 20 दिन से 1 महीने तक टिकता है.

इस में डर्मा रोलर की सहायता से फाउंडेशन को स्क्रीन के ऊपर लगा कर थोड़ा डीप पहुंचाया जाता है और वह फाउंडेशन या ब्लशर स्किन के अंदर जा कर रंग में फर्क डालता है और स्किन को ग्लो भी देता है. आमतौर पर प्रौमिनैंट मेकअप 2 से 15 साल तक टिकता है, पर फाउंडेशन ऐंड ब्लशर 20 दिन से 1 महीने तक ही टिकता है.

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चेहरा हमारे व्यक्तित्व का आईना होता है और इस आईने को बेदाग व खूबसूरत बनाने के लिए फेस मेकअप की सही जानकारी जरूरी है. किसी भी मेकअप की शुरुआत बेस से होती है. इसीलिए उसे स्किन का बैकड्रौप माना जाता है, जो मेकअप के लिए परफैक्ट स्किन देता है. आमतौर पर हम सभी अपने चेहरे के लिए बेस का चयन अपनी स्किनटोन के मुताबिक करते हैं. लेकिन परफैक्ट स्किन के लिए यह जरूरी है कि आप का बेस आप की स्किन के भी अनुसार हो.

आइए, जानें कि बेस का चयन कैसे करें:

बेस फौर ड्राई स्किन

यदि आप की स्किन ड्राई है तो आप टिंटिड मौइश्चराइजर, क्रीम बेस्ड फाउंडेशन या सूफले का इस्तेमाल कर सकती हैं.

टिंटिड मौइश्चराइजर

यदि आप की त्वचा साफ, बेदाग व निखरी हुई है, तो आप बेस बनाने के लिए केवल टिंटिड मौइश्चराइजर का इस्तेमाल कर सकती हैं. इसे लगाना बेहद आसान है. अपने हाथ में मौइश्चराइजर की कुछ बूंदें लें और अपनी उंगली से चेहरे पर जगहजगह डौट्स लगा कर एकसार फैला लें. यह एसपीएफ यानी सनप्रोटैक्शन फैक्टर के साथ भी आता है, जिस के कारण यह हमारी त्वचा को सुरक्षा प्रदान करता है. इस के अलावा यह हमारी स्किन को तेज हवाओं व अन्य वजह से होने वाली ड्राईनैस से बचा कर मौइश्चराइज भी करता है.

क्रीम बेस्ड फाउंडेशन

यह स्किन के रूखेपन को कम कर के उसे मौइश्चराइज करता है, इसलिए यह ड्राई स्किन वालों के लिए काफी अच्छा होता है. इसे लगाने से स्किन को प्रौपर मौइश्चर मिलता है. इसे यूज करना भी आसान है. स्पैचुला से थोड़ा सा बेस हथेली पर लें और स्पंज या ब्रश की मदद से एकसार पूरे फेस पर लगा लें. इसे सैट करने के लिए पाउडर की एक परत लगाना जरूरी है. इस से बेस ज्यादा देर तक टिका रहता है.

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गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055 कृपया अपना मोबाइल नंबर जरूर लिखें. स्रूस्, व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

Relationship Tips : घुटनों के बल बैठ कर लड़कियां भी कर सकती हैं इजहार-ए-इश्क

Relationship Tips : निधी दिखने में जितनी खूबसूरत थी, पढ़ने में उतनी ही तेज थी. उस का सपना डाक्टर बनने का था. कुछ महीनों पहले ही मैडिकल कालेज में उस ने ऐडमिशन लिया था. कालेज में उस के कई लड़के दोस्त बने. उन लड़कों में रोहन निधी से कम बात करता था, निधी भी उसे नजरअंदाज ही करती थी.

एक दिन ब्लैक जिंस और व्हाइट टीशर्ट में रोहन बहुत ही हैंडसम दिखाई दे रहा था। पहली बार निधी का दिल रोहन को देख कर जोर से धड़का. उसे समझ नहीं आ रहा था कि रोहन को देख कर उसे क्या हो रहा है. फिर उस ने खुद को संभाला और अपनी नजरें हटा लीं. रातभर निधी के सामने बारबार रोहन का चेहरा सामने आ रहा था.

वह सोच रही थी कि वह रोहन को कैसे प्रपोज कर सकती है, उस ने तो सुना था कि सिर्फ लड़के ही लड़कियों को प्रपोज करते हैं. निधी अपनी रूममेट सुमन से अपने दिल की बातें शेयर की. सुमन ने उसे समझाया कि अगर रोहन को पसंद करती हो, तो तुम उसे प्रपोज कर सकती हो, लड़कियां भी लड़कों को प्रपोज करती हैं, अब वह जमाना गया जिस में सिर्फ लड़के ही अपने रिश्ते की बात करते थे.

प्यार का एहसास

निधी ने ठान लिया कि वह खुद अपने दिल की बात रोहन से कहेगी. निधी जैसी न जाने कितनी लड़कियां होंगी जो लड़कों को प्रपोज करने से कतराती होंगी.

यह कहना गलत होगा कि पहले लड़के ही लड़कियों को प्रपोज करें. लड़कियां भी लड़कों को प्रपोज कर सकती हैं.

लड़कों को प्रपोज करते समय

इस बात का जरूर ध्यान रखें कि जब भी आप किसी लड़के को प्रपोज करने जाएं, तो उसे यह न लगे कि आप उस लड़के को पटा रही हैं या केवल अपना काम निकलवाने के लिए उस के साथ फ्लर्ट कर रही हैं. जब आप किसी लड़के से अपने प्यार का इजहार करें, तो बिना किसी बनावट के सच्चे दिल से अपनी बातों को कहें.

प्रपोज करने के लिए सही जगह का चुनाव

सब से पहले आप सही जगह का चुनाव करें, जहां आप और वह लड़का दोनों सहज महसूस कर सकें. कई बार लोग पब्लिक प्लेस में ही अपने प्यार का इजहार कर देते हैं, ये गलतियां करने से बचें.

अपने दिल की बात कहने के लिए सही लोकेशन का चुनाव जरूरी है. प्रपोज करने के लिए आप उस लड़के के साथ लौंग ड्राइव का प्लान कर सकती हैं या इस के अलावा कैंडिल लाइट डिनर भी बैस्ट औप्शन है.

इजहार करने से पहले स्पैशल मोमेंट का इंतजार करें

किसी लड़के को प्रपोज करने से पहले अच्छी तरह प्लान कर लें, ताकि हड़बड़ाहट में आप कुछ उलटा न बोल दें, जिस से बात बनने से पहले ही बिगड़ जाए. कुल मिला कर आप को उस मोमेंट के लिए खुद को रेडी करना होगा. हां, सब से जरूरी बात यह कि कभी भी यह न सोचें कि आप के प्रपोजल को स्वीकारा ही जाएगा। यह जरूरी नहीं है कि अगर आप किसी से प्यार करती हैं, तो वह भी आप से उतना ही प्यार करेगा.

रिजैक्शन के लिए भी रहें तैयार

आप जिसे पसंद करती हैं, उसे प्रपोज करें. लेकिन रिजैक्शन के लिए भी तैयार रहें. जी हां, प्रपोज करने के दौरान सामने से आप को रिजैक्शन ‍भी मिल सकता है. इसलिए पहले से खुद को तैयार रखें. आप उस से जबरदस्ती कभी न करें. उस के फैसले का सम्मान करें.

किसी भी लड़के को प्रपोज करने से पहले उस का बैकग्राउंड जरूर चैक करें. उस की पसंद या नैचर के बारे में भी जानने की कोशिश करें.

Kahani In Hindi : करणकुंती – कैसी थी रंजीत की असली मां

Kahani In Hindi : ‘‘रंजीतचल यार, कुछ खा कर आते हैं. आज मैरीडियन में सिजलर्स स्पैशल डे है.’’

समीर के उत्साह पर रंजीत ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. जैसे कुछ सुना ही नहीं. पत्थर की तरह बैठा रहा.

‘‘मैं भी देख रहा हूं, जब से तू अपने गांव से आया है, बहुत डल फील कर रहा है. आखिर बात क्या है यार?’’

रंजीत से अब रहा न गया. बोला, ‘‘मम्मीपापा ने ऐसा सच बताया, जिसे मैं अभी तक बरदाश्त नहीं कर पा रहा हूं, समीर,’’ उस का गला भर आया. आगे कुछ न बोल सका.

‘‘रोता क्यों है, हर समस्या का कोई न कोई हल होता है. तेरी प्रौब्लमक्या है?’’ समीर को बड़ा अजीब लग रहा था.

रंजीत ने एक लंबी सांस ली, ‘‘मैं मम्मीपापा का बेटा नहीं हूं. उन्होंने बताया कि मैं उन्हें ट्रेन

में मिला था. कोई मुझे ट्रेन के डब्बे में छोड़ गया था. मैं तब 6 महीने का था. मम्मीपापा ने पुलिस में शिकायत दी और उस की इजाजत से मुझे घर ले गए. जब 1 साल के बाद भी मुझे लेने कोई नहीं आया तो उन्होंने मुझे कानूनी तौर पर गोद

ले लिया.’’

‘‘अच्छा तो यह बात है…अब तू मायूस

क्यों है?’’

‘‘मुझे इतना बड़ा सच मालूम हो और

मुझ पर कोई असर न पड़े, यह कैसे हो सकता

है यार?’’

‘‘कम औन रंजीत, तुझे तो कुदरत का शुक्रगुजार होना चाहिए, जिस ने तुझे इतने अच्छे मांबाप दिए. तुम्हारे मांबाप ने तुझे इतना प्यार दिया, पढ़ायालिखाया. तुझे इस लायक बनाया कि तू दुनिया के आगे सिर उठा कर जी सके… तुझे तो उन का शुक्रगुजार होना चाहिए.’’

‘‘वह तो है. अब उन के प्रति मेरा प्रेम, अभिमान और भी ज्यादा हो गया है.’’

‘‘तो यह उदासी क्यों?’’

‘‘मेरी सगी मां, मुझ से मुंह फिरा कर क्यों चली गई? कहते हैं, बुरा बेटा हो सकता है, मगर मां बुरी नहीं. एक 6 महीने के बच्चे में क्या बुराई हो सकती है, जो वे मुझे छोड़ गईं या फिर वे मजबूर थीं. किसी ने उन के साथ बलात्कार कर के उन्हें समाज के सामने मुंह दिखाने लायक न रखा हो और वे मुझे छोड़ने पर मजबूर हो गईं.’’

‘‘अरे छोड़ न तू… अपने गुजरे कल पर रो क्यों रहा है? अच्छा हुआ जो तू किसी अनाथालय नहीं पहुंचा और न ही बुरे लोगों के चंगुल में… तेरे साथ सब अच्छा ही हुआ है… रोता क्यों है?’’

‘‘हां, तू बिलकुल ठीक कहता है मैं अपने मम्मीपापा का शुक्रगुजार हूं. फिर भी मैं अपनी असली मां को ढूंढ़ कर ही रहूंगा. यह मेरा

जनून है.’’

समीर ने उस की पीठ थपथपा कर कहा, ‘‘मैं तेरे साथ हूं.’’

अगले 2-3 दिनों तक रंजीत अपने औफिस में व्यस्त था. वह एक नामी कंपनी

में सौफ्टवेयर टैक्निशियन था. उस ने एमसीए किया था. प्रोग्रामिंग में कुछ नएनए कंप्यूटर कोर्स भी किए थे. 25वें साल में ही अपनी उम्र से दोगुनी से भी अधिक तनख्वाह पाता था. मांबाप का एकलौता बेटा था. पिताजी स्कूल मास्टर थे. अपने कम वेतन में भी उसे किसी भी चीज की कमी नहीं होने दी. मां तो आज भी उसे बच्चा

ही समझतीं.

एक दिन अचानक मां का बीपी डाउन होने की वजह से उन्हें अस्पताल में भरती किया गया. वह सारे काम छोड़ कर मां के पास बैठ गया. मां की तबीयत बिगड़ती गई. रंजीत ने पानी की तरह पैसा बहाया. उन्हें दिल्ली ले जा कर बड़े अस्पताल में भरती करवा कर इलाज करवाया. मां तो बच गईं. मगर उन्होंने अपनी बीमारी के दिनों में वह सच जाहिर कर दिया जिसे सुन रंजीत पूरी तरह हिल गया था.

उसे अपने बचपन के दिनों की याद आई. पड़ोस की आंटी उसे काला कौआ कह कर चिढ़ाया करती थीं.

‘‘तेरी मम्मी तो दूध जैसी गोरी है रे. पापा भी इतने काले नहीं, तो तू क्यों ऐसा है?’’

आंटी के सवाल पर रोतेरोते मम्मी के पास जा कर उस ने वही सवाल दोहराया था.

मम्मी ने प्यार से उस का माथा चूम कर कहा था, ‘‘बेटा, मैया यशोदा भी गोरी थीं, मगर कृष्ण काले थे…कोई नियम नहीं है बच्चे बिलकुल अपने मांबाप पर जाएं. तुम अपने दादादादी, नानानानी या परदादा, परदादी पर भी जा सकते हो. ऐसी बातों से मन खराब मत करो. जाओ अपने दोस्तों के साथ खेलो.’’

फिर मां ने उस पड़ोसिन को बच्चों के मन को दुखाने वाली ऐसी बातें करने के लिए काफी कटु वचन सुनाए थे.

रंजीत को एक और किस्सा याद आया. पापा का तबादला होने पर वे एक नए जिले में गए थे. मांबेटे का प्यार देख कर, घर की कामवाली को आश्चर्य हुआ था.

‘‘आप का बहुत बड़ा दिल है मालकिन. सौतन के बच्चे से कोई इतना प्यार

नहीं करता.’’

‘‘तुम्हें किस ने कहा कि यह मेरी सौतन का बच्चा है?’’

‘‘रंजीत बाबा की शक्ल आप दोनों से नहीं मिलती तो मैं ने सोचा, यह बच्चा साहब की पहली बीवी का तो नहीं.’’

मम्मी ने गुस्से में आ कर उसे काम से निकाल दिया.

रंजीत सोच रहा था बचपन से ही मांबाप से मेरी शक्लसूरत से भिन्नता को कई लोगों ने पहचाना. मगर मम्मीपापा के प्यार में डूबे मेरे मन में कभी इस बारे में कोई हैरानी पैदा नहीं हुई.

औफिस के काम निबटा कर उस ने सोचना शुरू किया कि अब अपनी मां को ढूंढ़े कैसे? पहले उस ने पुलिस की मदद लेने की कोशिश की. समीर के साथ कई बार पुलिस स्टेशन के चक्कर भी काट आया. मगर उन की प्रतिक्रिया निराशाजनक थी.

‘‘रंजीत हम आप की भावनाओं को समझ सकते हैं. मगर जो फाइल 25 साल पहले सी रिपोर्ट के दौरान बंद हुई हो, उस का पता हम कैसे लगा सकते हैं? 25 साल पहले भी इस बारे में तहकीकात हुई थी. मगर बच्चे को छोड़ कर जाने वाले के बारे में कुछ भी पता न लगने के कारण ही सी रिपोर्ट डाली गई थी और वह फाइल बंद भी हुई थी. सौरी, अब हम इस मामले में कोई मदद नहीं कर सकते.’’

समीर उसे बाहर ले आया था. होटल में चाय पीते वक्त बोला, ‘‘सुन हम खुद ढूंढ़ते हैं. मैं रेलवे की इनफौर्मेशन निकालता हूं और 25 साल पहले के उस ट्रेन के डब्बे की रिजर्वेशन लिस्ट निकालता हूं. शुक्र है, तुझे छोड़ कर जाने वाले कम से कम रिजर्वेशन के डब्बे में तो आए. अगर जनरल में आते तो कोई तुझे ढूंढ़ नहीं पाता.’’

‘‘काम तो मुश्किल है समीर. उस के साथसाथ हम क्यों न दूसरा रास्ता भी अपनाएं?’’

‘‘क्या?’’

‘‘बचपन से लोग मेरी और मम्मीपापा की शक्लसूरत की भिन्नता को पहचान रहे हैं. मतलब मैं अपनी असली मां या पिता के रूप से मिलताजुलता हूं. क्यों न मैं अपनी तसवीर फेसबुक पर डालूं और अपनी कहानी सुना कर लोगों से अपने मांबाप को ढूंढ़ने में मदद मांगू?’’

‘‘आइडिया तो अच्छा है. कोशिश करते हैं.’’

फेसबुक पर उस के पोस्ट पर उम्मीद से ज्यादा प्रतिक्रियाएं आईं. वृद्धाश्रम, अनाथालय में रही कुछ बूढि़यों की तसवीरें भी आईं, जिन्हें अपने किए पर पछतावा था. वे दोनों जा कर उन से मिल कर भी आए. वे उसी इलाके की रहने वाली थीं. जवानी में भूल के कारण बच्चे को जन्म दे कर उसे त्यागना पड़ा था. मगर किसी ने भी ट्रेन में नहीं छोड़ा था. 1-2 ने कहा था, उन्होंने बच्चा तो दूसरों के हाथ में दिया था. फिर पता नहीं आगे क्याक्या हुआ होगा… उन लोगों ने बच्चे के जन्म की जो तारीख बताई, उन में से कोई भी

रंजीत की जन्मतिथि की आसपास वाली नहीं थी.

समीर बड़े प्रयत्न के बाद रेलवे से रिजर्वेशन लिस्ट भी ले आया. पहले तो उन लोगों ने उन पतों को इंटरनैट में रही वोटर्स लिस्ट के साथ मैच किया. कुछ नाम और पते तो आज भी वही थे, पर कुछ में वे नाम नहीं थे. रंजीत की मां ने बताया था कि जब वह बच्चा उन्हें मिला था तो वह आराम से सो रहा था और उस डब्बे में कोई नहीं था.

‘‘पूरे डब्बे के लोग एकसाथ कैसे खाली हो सकते हैं?’’

समीर के सवाल पर मां ने समाधान दिया था, ‘‘उस समय वहां मेला लगा था बेटा. दूरदूर के लोग मेले में आते थे बेटा.’’

‘‘छोटे बच्चे को सोते छोड़ जाना मतलब उस की मां भी साथ में आई होगी. उसे दूध पिला कर, उसे चैन से सुला कर छोड़ गई होगी ताकि उसे छोड़ते वक्त किसी की नजर न पड़े. अगर वह रोने लगता तो सब की नजरें उस पर पड़ जातीं. जिस बर्थ पर तुम्हें छोड़ा गया था यदि उस के आजूबाजू वालों को ढूंढ़ कर उन से पूछें तो शायद कुछ पता चले.’’

‘‘यू आर सर्चिंग ए नीडल इन ए हेस्टैक,’’ रंजीत खुद निराश था.

‘‘ऐटलिस्ट देयर इज हेस्टैक,’’ समीर मुसकराया.

‘‘शुक्रिया. जो मेरे लिए इतना कष्ट उठा रहे हो,’’ रंजीत ने दोस्त को गले से लगाया.

दोनों औफिस से छुट्टी ले कर रिजर्वेशन लिस्ट में दर्ज नामों की तलाश में जुट गए. कुछ ने मकान बदल दिए थे तो कुछ लोगों के पतेठिकाने मिल गए. दोनों घरघर जाने लगे. बहुत से घरों में कोई सहयोग नहीं मिला.

उन्होंने कहा, ‘‘25 साल पुरानी रेल यात्रा के हमसफरों की याद भला किसे रह सकती है?’’

एक वृद्धा की याददाश्त तेज थी. बोली, ‘‘हां बेटा उस कोने की सीट पर एक लड़की अपने नवजात शिशु के साथ बैठी थी, साथ में उस की मां भी थी. उन लोगों के कपड़ों व बातचीत से लगता था वे लोग ब्राह्मण हैं और किसी मंदिरवंदिर के पुजारियों के परिवार वाले हैं. वे दोनों किसी के साथ भी बातचीत नहीं कर रहे थे. मुझे नहीं पता कि वे कौन थे.’’

‘‘दादीजी, क्या यह याद है कि वे लोग कहां से उस ट्रेन में चढ़े थे?’’

‘‘हां बेटा, दोनों भारतीपुर से चढ़े थे.’’

‘‘शुक्रिया दादीजी,’’ उस वृद्धा के चरण छू कर दोनों वहां से चल दिए.

रंजीत ने कंप्यूटर में अपने फोटो को मौर्फ कर के एक औरत की तसवीर में बदल दिया. करीब 45 साल की औरत की उस तसवीर को भारतीपुर की वोटर लिस्ट में रही सभी औरतों की तसवीरों के साथ तुलना करने पर भी कोई फायदा नहीं हुआ.

‘‘भारतीपुर

के मंदिरों और पुजारियों का अतापता लगाते हैं.’’

वहां के कई मंदिरों और पुजारियों के दर्शन के बाद शिव मंदिर के पुजारी 80 साल के शंकर शास्त्रीजी ने कहा, ‘‘बेटा, तुम अपनी मां को ढूंढ़ने के लिए इतना प्रयत्न कर रहे हो…अगर तुम ने अपनी मां का पता लगा भी लिया और मिलने गए तो जानते हो उस औरत के जीवन में कितना बड़ा तूफान उठ सकता है… उस की बसीबसाई जिंदगी बिगड़ जाएगी बेटा.’’

‘‘बाबाजी, मैं वादा करता हूं, मैं किसी की भी जिंदगी बरबाद नहीं करूंगा. मैं तो बस अपनी मां को देखना चाहता हूं. अगर मेरे जन्म के कारण से वह इस समाज में बाधित हुई हो तो मैं उसे अपने साथ ले जाने के लिए भी तैयार हूं. मगर यदि मेरे प्रवेश से उस की जिंदगी में तूफान उठ सकता है, तो मैं दूर से ही उसे एक बार देख लूंगा. प्लीज बताइए पंडितजी आप मेरी मां के बारे में कुछ जानते हैं?’’

‘‘मैं ज्यादा कुछ नहीं जानता बेटा, मैं पूछताछ कर के बताऊंगा. तुम अपना नंबर मुझे दे दो बेटा.’’

दोनों को यकीन हो गया कि वे रंजीत की मां के बारे में जानते हैं. शायद उस की इजाजत लेने के बाद, रंजीत को इस बारे में बताएंगे. अब इंतजार करने के अलावा और कोई चारा नहीं था.

2 हफ्तों के बाद शास्त्रीजी के बेटे ने कौल की, ‘‘पिताजी आप से मिलना चाहते हैं. क्या इस इतवार को फुरसत निकाल कर आ सकते हैं आप?’’

दोनों बड़ी बेसब्री से इतवार की प्रतीक्षा करने लगे. वह दिन आ भी गया. दोनों भारतीपुर पहुंचे. शास्त्रीजी ने उन के खाने का इंतजाम किया था. खाने के बाद घर के बरामदे में ही बातचीत शुरू हुई. घर वाले अंदर थे.

शास्त्रीजी ने गला ठीक किया और बड़ी मुश्किल से बात शुरू की, ‘‘देखो बेटा, तुम ने उस दिन अपने बारे में बताया और अपनी मां को देखने की इच्छा व्यक्त की. मैं ने उस औरत से बात भी की. उसे भी इस बात पर बड़ा दुख है. आखिर वह भी एक मां है बेटा. मंगर उस की जिंदगी में कुछ और लोग भी हैं और उसे स्वयं अपने जीवन का भी तो खयाल करना है, इसलिए वह दुनिया के सामने तुम्हें अपना नहीं सकती.’’

‘‘मैं समझ सकता हूं पंडितजी, मगर वह कौन है? क्या मैं उसे देख सकता हूं?’’

‘‘वह मेरी भानजी है बेटा. 16वें साल में उस से हुई एक नादानी का

फल तुम हो… जब उसे अपनी भूल का एहसास हुआ था, तब तक बहुत देर हो चुकी थी. डाक्टर ने कहा बच्चे को जन्म देने के अलावा और कोई चारा नहीं है. इसलिए वह अपने शहर से दूर मेरे घर आई थी तुम्हें जन्म देने.

‘‘तुम यहीं पर पैदा हुए थे बेटा. तुम्हारी शक्लसूरत बिलकुल तुम्हारी मां से मिलतीजुलती है बेटा. उस का नाम राजेश्वरी है बेटा. उस जमाने में एक कुंआरी मां का इस समाज में जीना असंभव था बेटा. इसलिए उसे मजबूरन तुम्हें त्यागना ही पड़ा. वह इस घर में जैसे अज्ञातवास में थी. हमेशा घर के अंदर छिपी रहती थी दुनिया की नजरों से दूर.

‘‘तुम्हारे जन्म के 15वें दिन तुम्हें त्यागना पड़ा. रातभर रो रही थी वह. फिर 4 साल बाद उस की शादी हो गई. 2 बेटे भी हुए. अपनी जिंदगी में व्यस्त हो गई. जब मैं ने तुम्हारे बारे में बताया तो उस से रहा न गया. फौरन चली आई. अपनी मां से मिलोगे बेटा. मैं अभी उसे भेजता हूं,’’ और वे अंदर चले गए.

अंदर से हूबहू उसी की शक्त से मिलतीजुलती एक औरत आई. भले ही 40 साल की थी, मगर उम्र का एहसास नहीं हो रहा था. उस ने अपनी सुंदरता को बरकरार रखा था. कमरे में आ कर बस रंजीत को एक टक देखती रही. कुछ बोली नहीं. फिल्मों की तरह दौड़ कर आ कर लिपटी नहीं और न ही आंसू बहाने लगी.

रंजीत मां कहते हुए उस के चरण छूने चला तो राजेश्वरी ने बीच ही में उसे रोक दिया. बोली, ‘‘मुझे माफ कर दो बेटा. मैं मजबूर थी.’’

‘‘मैं समझ सकता हूं मां. कम से कम आज तो मुझ से मिलने आई. इतना ही काफी है,’’ और फिर रंजीत ने अपने बारे में बताया. अपने मम्मीपापा, पढ़ाईलिखाई, नौकरी, समीर अन्य दोस्त वगैरह सभी के बारे में.

उस की परवरिश की कथा सुन कर राजेश्वरी की आंखें भर आईं, ‘‘भले ही मैं ने तुम्हारा साथ छोड़ दिया हो, मगर कुदरत तुम्हारे साथ है बेटा. मुझे खुशी है कि तुम्हें इतनी अच्छी जिंदगी मिली.’’

3 घंटों के मांबेटे के मिलाप के बाद उसे वहां से निकलना ही पड़ा. उस ने मां को अपना नंबर दिया और जब भी फुरसत मिले कौल करने को कहा. मां अपना नंबर देने के लिए झिझक रही थी. उसे डर था कि अपने पति और बच्चों के सामने यदि इस बेटे की कौल आई तो क्या करेगी? तब रंजीत ने समझाया. फिर उस ने न

ही मां के नंबर के लिए जिद की और न ही

ऐड्रैस पूछा.

3 महीने बीत गए. न मां का फोन आया और न कोई खबर मिली. रंजीत निराश था. दोस्त के सामने अपनी निराशा व्यक्त भी की, ‘‘मैं तो सोचता था मेरी मां भी मेरी ही तरह बेटे को देखने के लिए तरस रही होगी. अगर वह मेरे जन्म के कारण इस दुनिया की कू्ररता का शिकार हुई होगी तो मैं उसे अपने साथ रखने के लिए भी तैयार था. अगर उस के अपने परिवार में किसी चीज की जरूरत हो तो मैं उसे पूरा करने के लिए भी तैयार था, मगर वह तो अपनेआप में ही मगन है. मेरे बारे में सोचने के लिए भी तैयार नहीं है.’’

‘‘तुझे बुरा न लगे तो इस का जवाब दूं?’’

‘‘यही न कि मैं पागल हूं?’’

‘‘अगर वह तुम से प्यार करती या तुम्हारे लिए तरसती तो तुम्हें छोड़ती क्यों? वह दुनिया की क्रूरता का शिकार तब होती, जब वह तुम्हें साथ रखती. इस से बचने के लिए ही तो उस ने तुम्हें छोड़ा. इस का मतलब तो यही हुआ न कि उसे अपनी जिंदगी के सुकून से प्यार था. आज भी वह सिक्योर्ड है अपने परिवार में. उन के कानों में तुम्हारे बारे में भनक भी नहीं पड़ने देगी. अच्छा हुआ जो रास्ते में छोड़े जाने पर भी तू भिखारी नहीं बना.’’

‘‘हां, मम्मीपापा ही मेरे लिए सबकुछ हैं. मगर मां मुझ से मिली क्यों? आखिर यह राज उस ने जाहिर क्यों किया?’’

‘‘डर कर.’’

‘‘सच…?’’

‘‘और नहीं तो क्या? जो लड़का 25 साल बाद भी न जाने कहांकहां से पता

लगा कर अपने जन्मस्थान तक पहुंच गया,

क्या जाने वह कल को उस के घर तक पहुंच

गया तो? उस की तो बसीबसाई गृहस्थी बिखर जाएगी यार.’’

रंजीत मायूस हो गया. समीर ने उसे गले लगा कर कहा, ‘‘जाने दे छोड़… पूरी दुनिया ही मतलबी है.’’

और 3 महीने बीत गए. रंजीत मां को धीरेधीरे भूलने लगा. उस रात उस के मोबाइल पर अनजान नंबर से कौल आई. रंजीत ने तीसरी बार रिंग होने पर उठाया.

‘‘मैं राजेश्वरी बोल रही हूं. कैसे हो बेटा?’’

‘‘मां, बड़े दिनों बाद इस गरीब की याद कैसे आई?’’ वह खुशी से उछल रहा था.

‘‘सौरी बेटा, घरगृहस्थी के झंझट तो तुम जानते ही हो. तुम ठीक तो हो?’’

‘‘मैं ठीक हूं मां. आप कैसी हैं?’’

‘‘हमारा क्या है बेटा, बस जैसेतैसे जिंदगी काट रहे हैं. तुम जरा मेहरबानी दिखा दो तो हम भी जरा चैन की सांस लेंगे.’’

‘‘क्या बात है मां?’’

‘‘मेरा बेटा राजीव पिछले हफ्ते तुम्हारी ही कंपनी में इंटरव्यू देने आया था. उस इंटरव्यू कमेटी में तुम भी थे. मेरे बेटे ने तुम्हारा नाम बताया. तुम जरा बड़ा दिल दिखा कर अपने भाई को चुन लोगे तो तुम्हारी मां जिंदगीभर इस एहसान को नहीं भूलेगी बेटा.’’

‘‘मैं कुछ नहीं कह सकता मां. यह मुझ अकेले के फैसले पर निर्भर नहीं है. वैसे मेरे भाई को मेरे बारे में बताया है आप ने?’’

‘‘जो बातें मुंह से नहीं कह सकते, मन

ही उन्हें बता देता है बेटा… तुम उस कंपनी में इतने बड़े ओहदे पर हो… तुम्हारे लिए मुश्किल क्या है बेटा?’’

रंजीत ने फोन काट दिया.

‘‘क्या बात है?’’ समीर ने पूछा.

टीवी पर महाभारत आ रहा था, जिस में कुंती करण से युद्ध में पाडवों को खासकर

अर्जुन को कोई हानि न पहुंचाने का वचन मांग रही थी,’’ रंजीत उसी दृश्य की ओर इशारा कर बोला, ‘‘यही.’’

Family Story : यही दस्तूर है

Family Story : कालिज से लौट कर गरिमा ने जैसे ही अपने फ्लैट का दरवाजा खोला सामने के फ्लैट से रोहित निकल कर आ गए.

‘‘आप का पत्र कोरियर से आया है,’’ एक लिफाफा उस की तरफ बढ़ाते हुए रोहित ने कहा.

‘‘ओह…आइए न,’’ पत्र थाम कर गरिमा अंदर आ गई. रोहित भी अंदर आ गए.

‘‘पत्र विदेशी है. बेटे का ही होगा?’’ रोहित की बात पर गरिमा ने पलट कर उन्हें देखा. मानो कोई चुभती हुई बात उन के मुंह से निकल गई हो.

फिर वह खुद को संभालते हुए बोली, ‘‘आप बैठिए, मैं कौफी बनाती हूं.’’

‘‘पर खत तो पढ़ लीजिए.’’

‘‘कोई जल्दी नहीं है, पहले कौफी बना लूं.’’

रोहित को आश्चर्य नहीं हुआ यह देख कर कि बेटे का पत्र पढ़ने की उसे कोई जल्दी नहीं है. इतने दिन से गरिमा को देख रहे हैं. इतना तो जानते हैं कि यह विदेशी पत्र उसे विचलित कर गया है. कुछ तो है मांबेटे के बीच पर वह कभी पूछने का साहस नहीं कर पाए हैं.

गरिमा के बारे में सिर्र्फ इतना जानते हैं कि 30 वर्ष पूर्व गरिमा के पति नहीं रहे थे. तब वह मात्र 20 वर्ष की थी. समीर गोद में आ गया था. अपना पूरा यौवन उस ने बेटे को बड़ा करने में लगा दिया था. मांबाप ने एकाध जगह बात पक्की की पर बेटे के साथ उसे अपनाने वाला कोई उचित वर न मिला. भैयाभाभी उस से विशेष मतलब नहीं रखते. मां को अस्थमा का अकसर दौरा पड़ता था, इस के बावजूद वह समीर को अपने पास रखने को तैयार थीं. पर गरिमा ने खुद को बच्चे से अलग नहीं किया. मांपिताजी के पास रह कर उस ने बी.एड. किया और एक स्कूल में पढ़ाने लगी. 5 वर्ष पूर्व इस फ्लैट में आई है. बेटे को कभी आते नहीं देखा. बस, इतना पता है कि वह विदेश में है.

‘‘कौफी…’’ गरिमा की आवाज पर रोहित की तंद्रा टूटी. प्याला हाथ में ले कर गरिमा भी वहीं बैठ गई.

‘‘गरिमा, मैं ने आप से एक प्रश्न किया था, आप ने जवाब नहीं दिया?’’

अचानक पूछे गए इस प्रश्न पर गरिमा चौंक पड़ी. हां, रोहित ने 2 दिन पूर्व उन के सामने एक बात रखी थी. अपनी बोझिल पलकों को उठा कर उस ने रोहित की तरफ देखा. यह आदमी उन्हें अपनी पत्नी बनाना चाहता है.

बचे हुए जीवन के दिनों को हंसीखुशी से जी लेने का उस का भी दिल करता है. बेटे के कृत्य के लिए वह खुद को दोषी क्यों ठहराए. मगर इन 5-6 वर्षों में वह समीर के कुसूर को भूल नहीं पाई  है, उसे माफ नहीं कर पाई है.

रोहित के जाने के बाद उस ने समीर का पत्र खोला, लिखा था, ‘‘जानता हूं अभी तक नाराज हो. कुछ तो है जो अभिशाप बन कर हमारे बीच पसर गया है. शिखा 2 बार मां बनतेबनते रह गई. मां, जानता हूं तुम्हारा दिल दुखाया है, उसी की सजा मिल रही है. क्या मुझे क्षमा नहीं करोगी?’’

समीर के पत्र ने उस के जख्मों को फिर हरा कर दिया. शैल्फ पर रखी तसवीर पर उस की नजर अटक गई. लाख चाह कर भी वह इस तसवीर को हटा नहीं पाई है. आखिर है तो मां ही. तसवीर में समीर मां की गरदन में बांहें डाले था. उसे देखते हुए वह अतीत में खो गई.पति के समय का ही एक माली था नंदू. माली कम सेवक ज्यादा. पति की बस दुर्घटना में मृत्यु हो गई  थी. नंदू ने काम छोड़ने से मना कर दिया था, ‘बचपन से खिलाया है रवि भैया को, उन के न रहने पर तो मेरी जिम्मेदारी और बढ़ जाती है. मैं यहीं रहूंगा.’

रवि की मृत्यु के बाद आफिस का फ्लैट भी चला गया था. वह मां के पास रह कर बी.एड. करने लगी तो नंदू ने ही समीर को संभाला. फिर नौकरी लगने पर वह नंदू और समीर को ले कर दूसरे शहर आ गई.

समीर बड़ा हो गया और नंदू बूढ़ा. एक दिन वह गांव गया तो कई दिनों तक नहीं लौटा. उस की पत्नी की मृत्यु पहले ही हो चुकी थी. गांव से लौटा तो 17-18 वर्ष की एक सांवलीसलोनी सी पोती भी उस के साथ थी, ‘बहूजी, इस के 4 भाईबहन हैं. गांव में कुछ सीख नहीं पाती. पढ़ना चाहती है, सो अपने साथ ले आया हूं. आप की छत्रछाया में कुछ गुण ढंग सीख लेगी.’

ज्योति नाम था उस का. 8वीं तक पढ़ी थी. 9वीं में एक स्कूल में नाम लिखवा दिया उस का. फिर तो हिरनी सी कुलांचें भरती कटोरी जैसी आंखों वाली वह छरहरी काया पूरे घर पर शासन कर बैठी. घर का सारा काम उस ने अपने ऊपर ले लिया. समीर इंजीनियरिंग कर रहा था. उस के पास जाने में वह थोड़ी झेंपती थी. लेकिन यह संकोच भी टूट गया जब उसे पढ़ाई में विज्ञान एवं गणित कठिन लगने लगे तब गरिमा ने ही समीर से कहा कि वह ज्योति की मदद कर दिया करे.

समीर की महत्त्वाकांक्षा काफी ऊंची थी. उस की इच्छा विदेश जा कर पढ़ने की थी. जहां भी कुछ अवसर मिलता वह फौरन आवेदन कर देता. पासपोर्र्ट उस ने बनवा रखा था. मां अकेली कैसे रहेगी, पूछने पर कहता, ‘मैं तुम्हें भी जल्दी ही बुला लूंगा. यहां इंडिया में अपना है ही कौन.’

पर गरिमा ने निश्चय कर लिया था कि वह अपना देश नहीं छोड़ेगी. उसे लगता कि ऐसी पढ़ाई से क्या फायदा जब बच्चे पढ़ते इंडिया में हैं और बसने विदेश चले जाते हैं. पर बेटे की महत्त्वाकांक्षा के सामने वह मौन हो जाती.

ज्योति ने समीर से पढ़ना शुरू किया तो दोनों एकदूसरे से काफी खुल गए. गरिमा इसे दोनों की नोकझोंक समझती रही. समीर ज्योति की बड़ीबड़ी आंखों में खो गया. प्रेम की यह पींग काफी ऊंची उड़ान ले बैठी. इतनी ऊंची कि झूला टूट कर गिर गया.

उस दिन वाशिंगटन से समीर के नाम एक पत्र आया था कि वह फैलोशिप के लिए चुन लिया गया है. इधर घर में एक जबरदस्त विस्फोट हुआ जब नंदू उस के सामने बिलख उठा, ‘बहूजी, मैं तो बरबाद हो गया. ज्योति ने तो मुझे मुंह दिखाने लायक नहीं रखा. मैं क्या करूं. कहां ले कर जाऊं इस कलंक को.’

ज्योति के मुंह से समीर का नाम सुनते ही वह सुलग उठी. उसे यह बात सच लगी कि हर व्यक्ति के अंदर एक जानवर होता है जो मौका पड़ते ही जाग जाता है. समीर के अंदर का जानवर भी जाग उठा था. समीर ने मां के विश्वास के सीने में छुरा घोंपा था.

दोषी तो ज्योति भी थी. उस ने समीर को इतने पास आने ही क्यों दिया कि अपनी अस्मत ही गंवा बैठी. गरिमा का जी चाहा कि वह जोरजोर से चीखे, रोए. पर कैसी लाचार हो गई थी वह. कहीं कोई सुन न ले, इस डर से मुंह से सिसकी भी न निकाली.

2 दिन तक गरिमा घर में पड़ी रही. क्या करे, कुछ समझ में नहीं आ रहा था. उधर समीर जो घर से गया तो 2 दिन तक लौटा ही नहीं. तीसरे दिन जरा सी आंख लगी ही थी कि आहट पर खुल गई. दरवाजा खुला छोड़ कर कोई बाहर गया था. ‘कौन है…’ वह बड़बड़ाते हुए उठी. देखा तो कमरे से समीर के कपड़े, अटैची सब गायब थे. एक पत्र जरूर मिला. लिखा था, ‘टिकट के पैसे नहीं हैं. कुछ रुपए और आप का हार लिए जा रहा हूं. हो सके तो क्षमा कर दीजिएगा.’

अरे, बेशर्म, क्षमा हार की मांग रहा है, पर जो कुकर्म किया है उस की क्षमा उसे कैसे मिलेगी. ज्योति की तरफ देख कर वह बिलख उठी थी. चाह कर भी वह उस के साथ न्याय नहीं कर पा रही थी. कौन अपनाएगा इसे. सबकुछ तितरबितर हो गया. क्या सोचा था, क्या हो गया. आंखों से आंसुओं की झड़ी भी सूख चली. बुद्घि, विवेक सबकुछ मानो किसी ने छीन लिया हो.

और एक दिन नंदू भी लड़की को ले कर कहीं चला गया. तब से अकेली है. पुराना मकान छोड़ कर नई कालोनी में यह फ्लैट ले लिया था, ताकि समीर को उस का पता न लग सके. पर जाने कहां से उस ने पता कर ही लिया है. पत्र भेजता है. पत्रों में उसे बुलाने का ही आग्रह होता है. शादी कर ली है….पर वह तो उसे आज तक क्षमा नहीं कर पाई है.

डोर बेल बजने पर वह अतीत से बाहर आई. बाई थी. उसे तो समय का ध्यान ही नहीं रहा कि रात के 8 बज चुके हैं. बाई ने उसे अंधेरे में बैठा देख कर पूछा, ‘‘क्या बात है, बहूजी. तबीयत तो ठीक है न. यह अंधेरा क्यों?’’

‘‘यों ही आंख लग गई थी.’’

‘‘खाना क्या बनाऊं, बहूजी.’’

‘‘मेरे लिए कुछ नहीं बनाना. तेरा जो खाने का दिल करे बना ले.’’

‘‘पर आप….’’

‘‘मैं कुछ नहीं लूंगी.’’

‘‘तो फिर कौफी, दूध…कुछ तो ले लीजिए.’’

‘‘ठीक है दूध दे जाना कमरे में,’’ कहती हुई गरिमा अपने कमरे में चली गई.

समीर का पत्र एक बार फिर पढ़ा उस ने. बहू की फोटो भेजी थी समीर ने. एक बार देख कर उस ने तसवीर को अलमारी में रख दिया. सोचती रही, क्या करे. रोहित भी जवाब मांग रहे हैं. मां- पिताजी अब रहे नहीं. अपना कहने वाला कोई नहीं है. मां की अस्थमा की बीमारी उसे भी हो गई है. ऐसे में रोहित ही उस की देखभाल करते हैं. जब वह यहां आई थी तब रोहित से कटती रहती थी पर आमने- सामने रहने से कभीकभार की मुलाकात से परिचय गहरा हो गया. यही परिचय अब अच्छी मित्रता में बदल चुका है.

रोहित का व्यक्तित्व बहुत मोहक है. कम बोलना, पर जो बोलना सोचसमझ कर. 2 बच्चे हैं, बेटा पत्नी के साथ बंगलौर में है. बेटी कनाडा में है. 2 साल पहले पति के साथ आई थी. उसे बहुत पसंद करती है. जाने से पहले उस का हाथ अपने हाथ में ले कर अपने पिता से बोली थी, ‘‘जाने के बाद अब यह सोच कर तसल्ली होगी कि अब आप अकेले नहीं हैं.’’

वह चौंकी थी कि रोहित पर उस का क्या अधिकार है. कहीं रोहित ने ही तो बेटी से कुछ नहीं कहा. उन के बेटे से भी वह मिल चुकी है. जब भी आता है, उस के पैर छूता है. रोहित के प्रस्ताव में, लगता है दोनों बच्चों की सहमति भी छिपी है. रोहित के शब्द उस के कानों में गूंजने लगे, ‘गरिमाजी, मेरा और आप का रास्ता एक ही है तो क्यों न मंजिल तक साथ ही चलें. मुझ से शादी करेंगी?’

वह कोई निर्णय नहीं ले पा रही थी. आज समीर के पत्र ने उसे झकझोर दिया था. उस ने कभी भी बेटे को कोसा नहीं है. आखिर क्यों कोसे? अब वह किसी का पति है. आखिर उस की पत्नी का क्या दोष? वह मां बनना चाहती है तो इस में वह क्या सहयोग कर सकती है सिवा इस के कि उसे अपनी शुभकामना दे. आखिर उस ने बहू शिखा को पत्र लिखने का निश्चय कर लिया.

दूसरे दिन उस ने शिखा को पत्र लिखा, ‘‘बेटी, हम दोनों एकदूसरे से अब तक नहीं मिले हैं, पर हमारे बीच आत्मीय दूरी नहीं है. तुम मेरी बहू हो और मैं तुम्हारी सास. तुम मां बनो और मैं दादी यह हृदय से कामना करती हूं. तुम्हारी मां.’’

पत्र मोड़ कर लिफाफे में रखते हुए गरिमा सोच रही थी कि उसे रोहित का प्रस्ताव अब मान लेना चाहिए. जीवन के बाकी दिन खुद के लिए भी तो जी लें.

Hindi Story : रोटी – क्या था अम्मा के संदूक में छिपा रहस्य

 Hindi Story : ढाई बजे तक की अफरातफरी ने पंडितजी का दिमाग खराब कर के रख दिया था. ये लाओ, वो लाओ, ये दिखाइए, वो दिखाइए, ऐसा क्यों है, कहां है, किस तरह है? इस का सुबूत…उस का साक्ष्य?

पारिवारिक सूची क्या बनी, पूरे खानदान की ही फेहरिस्त तैयार हो गई. पूरे 150 नाम दर्ज हो गए, सभी के पते, फोन नंबर, मोबाइल नंबर, उन का व्यवसाय और उन सब के व्यवसायों से जुड़े दूसरेदूसरे लोग.

पंडित खेलावन ने बेटी की सगाई पिछले माह ही की थी. उन्हें डर था कि कहीं ऐसा कुछ न हो कि उन के संबंधों पर आंच आए, सो कह उठे, ‘‘देखिए शर्मा साहब, आप को मेरे परिवार और मेरे धंधे के बाबत जो कुछ पूछना और जानना है, पूछिए किंतु मेरे समधी को इस में न घसीटिए, प्लीज. बेटी के विवाह का मामला है. कहीं ऐसा न हो कि…’’

पंडित खेलावन को बीच में टोकते हुए शर्माजी बोले, ‘‘देखिए पंडितजी, जिस तरह से आप को अपने संबंधों की परवा है उसी तरह मुझे भी अपनी नौकरी की चिंता है. यह सब तो आप को बताना ही होगा. आखिर आप का, आप के व्यापार का किसकिस से और कैसाकैसा संबंध है, यह मुझे देखना है और यही मेरे काम का पार्र्ट है.’’

तमाम जानकारियां दर्ज कर शर्माजी लंच के लिए बाहर निकल गए थे किंतु पीछे अपनी पूरी फौज छोड़ गए थे. घर के हर सदस्य पर पैनी नजर रखने के लिए आयकर विभाग का एकएक कर्मचारी मुस्तैद था.

पलंग पर निढाल हो पंडित खेलावन ने सारी स्थितियों पर गौर करना शुरू किया. आयकर वालों की ऐसी रेड पड़ी थी कि छिपनेछिपाने की तनिक भी मोहलत नहीं मिली. यह शनि की महादशा ही थी कि सुबहसुबह हुई दस्तक ने उन्हें जैसे सड़क पर नंगा ला कर खड़ा कर दिया हो.

पंडित खेलावन का दिमाग हर समय हर बात को धंधे की तराजू पर तोलता रहता था. पलड़ा अपनी तरफ झुके तभी फायदा है, इसी सिद्धांत को उन्होंने अपनाना सीखा था. और पलड़ा अपनी ओर झुकाने के लिए साम, दाम, दंड, भेद की नीति ही कारगर सिद्ध  होती थी, होती आई है. इसीलिए पूरे जीवन को उन्होंने धंधे की तराजू पर तोला था.

‘‘मुझे, नहीं खाना कुछ भी,’’ कह कर पंडित खेलावन ने थाली परे सरका दी.

‘‘हमारी तो तकदीर ही फूटी थी जो यह दिन देखना पड़ रहा है,’’ पत्नी ने पीड़ा पर मरहम लगाते हुए कहा, ‘‘मैं कहती थी न कि अपने दुश्मनों से होशियार रहो. कहने को भाई हैं तुम्हारे मांजाए. पर हैं नासपीटे…यह सबकुछ उन्हीं का कियाधरा है, नहीं तो…’’ कहतेकहते पंडिताइन सिसकसिसक कर रोने लगीं.

‘‘देख लूंगा…एकएक को देख लूंगा…किसी को नहीं छोड़ं ूगा. मुझे बरबाद करने पर तुले हैं…उन को भी आबाद नहीं रहने दूंगा. क्या मैं उन की रगरग को नहीं जानता हूं कि उन की औलादें क्याक्या गुल खिलाती फिरती हैं? मेरे मुंह खोलने की देर भर है, सब लपेटे में आ जाएंगे.’’

पंडितजी जोरजोर से चिल्ला रहे थे. वह जानते थे कि दीवार के उस पार जरूर भाइयों के कान लगे होंगे, भाभियों को चटखारे लेने का आज अच्छा मौका जो मिला था.

आयकर जांच अधिकारी ने लंच से लौटते ही एकएक चीज का मूल्यांकन करना शुरू किया. पत्नी के काननाक को भी उन्होंने नहीं छोड़ा.

‘‘हर चीज सामने होनी चाहिए…सोना, चांदी, हीरा, मोती, नकदी, बैंकबैलेंस, जमीनजायदाद, फैक्टरी, दुकान, घर, मकान, कोठी, बंगला, खेत खलिहान… सबकुछ नामे या बेनामे.’’

ज्योंज्यों लिस्ट बढ़ती जा रही थी त्योंत्यों पंडित खेलावन का दिल बैठता जा रहा था.

कोई जगह, कोई  कोना, कोई तहखाना नहीं छोड़ा था रेड पार्टी ने. हर कमरे की तलाशी, गद्दोंतकियों को छू- दबा कर देखा तो देखा, दीवारों के प्लास्टर को भी ठोकबजा कर देखने से नहीं चूके.

पंडितजी कुछ कहने को होते तो शर्मा साहब उन्हें बीच में ही रोक देते, ‘‘हम, अच्छी तरह जानते हैं, कहां क्या हो सकता है. टैक्स बचाने के चक्कर में आप लोगों का बस चले तो क्या कुछ नहीं कर सकते?’’

आखिरी कमरा बचा था अम्मां वाला. शर्माजी ने कहा, ‘‘इसे भी देखना होगा.’’

‘‘इस में क्या रखा है…बूढ़ी मां का कमरा है. जाओजाओ, अब उसे भी देख लो…कोई कसर बाकी नहीं रहनी चाहिए पंडितजी की इज्जत का फलूदा बनाने में…’’ झल्लाहट में पंडित खेलावन बड़बड़ा रहे थे.

समाज में इज्जत बनाने के लिए और बाजार में अपनी साख कायम रखने के लिए पंडित खेलावन ने क्याक्या नहीं किया था. थोड़ीबहुत राजनीति में भी दखल रखने का इरादा था. इसीलिए उन्होंने हाथ जोड़ कर नमस्कार करते हुए अपने एक चित्र को परचे पर छपवाया और इस खूबसूरत परचे को शहर के कोनेकोने में चस्पां करवा डाला था. गली, महल्ला, टैक्सी, जीप, बस और रेल के डब्बों में भी उन की पहचान कायम थी.

सबकुछ धो डाला है आज के मनहूस दिन ने. हो न हो, कहीं यह सामने वाली पार्टी की करतूत तो नहीं? हो भी सकता है क्योंकि अभी वह पार्टी पावर में है. उन का मानना था कि अगले चुनाव में केंद्र वाली पार्टी ही राज्य में भी आएगी, इसलिए उस से ही जुड़ना ठीक होगा. पर इस बार के अनुमान में वह गच्चा खा गए.

अम्मां 80 को पार कर रही थीं. इस आयु में तो हर कोई सठिया जाता है. बातबात पर बच्चों जैसी जिद…अब वह क्या जानें कि ये आयकर क्या होता है वह तो जिद पर अड़ी हैं कि अपने कमरे में किसी को नहीं आने देंगी.

आंख से भले ही पूरा दिखाई न देता हो पर किसी बच्चे के पैरों की आहट भी सुनाई दे जाती है तो कोहराम मचा देती हैं…रोने लगती हैं. उन्हें अकेले पड़े रहना ही सुहाता है. अब अम्मां को कौन समझाए कि ये रेड पार्टी वाले जो ठान लेते हैं कर के ही दम लेते हैं, उन्हें तो यह कमरा भी चेक कराना ही होगा.

शर्माजी समय की नजाकत को जानते थे और जांचपड़ताल के दौरान किस के साथ कैसा व्यवहार कर के जड़ तक पहुंचना है, खूब जानते थे. उन्होंने सभी को रोक कर अकेले अम्मां के कमरे में प्रवेश किया.

‘‘अम्मां, पांव लागूं. कैसी हो अम्मां जी. बहुत दिनों से सुनता था कि बड़ेबूढ़ों का आशीर्वाद जीवन में पगपग पर कामयाबी देता है, क्या ऐसा वरदान आप मुझे नहीं देंगी?’’

‘‘बेटा, सब करनी का फल है… आशीषों से क्या होता है? पर तुम हो कौन? सुबह से इस घर में कोहराम मचा हुआ है. क्यों परेशान कर रखा है मेरे बच्चों को?’’ अम्मां के शब्दों में तल्खी भी थी और आर्तनाद भी, जैसे वह सबकुछ जानतीसमझती हों.

शर्माजी ने अम्मां को जैसे समझाने का प्रयास किया, ‘‘हम लोग सरकारी आदमी हैं, अम्मां. हमारा काम है गलत तरीकों से कमाए गए रुपएपैसों की पड़ताल करना…खरी कमाई पर खरा टैक्स लेना सरकार का कायदा है. अब देखिए न अम्मांजी, मैं ठहरा सरकारी मुलाजिम. मुझे आदेश मिला है कि पंडित खेलावन पर टैक्स चोरी का मुआमला है, उस की छानबीन करो…सो आदेश तो बजाना ही होगा न…अब बताइए अम्मां, इस में मेरा क्या दोष है? जो खरा है तो खरा ही रहेगा…पंडितजी ने कोई गुनाह किया नहीं है तो उन्हें सजा कैसे मिल सकती है पर खानापूर्ति तो करनी ही होगी न…’’

‘‘सो तो है, बेटा…तुम आदमी भले लगते हो. मुझ से क्या चाहते हो? सारे घर का हिसाब तो तुम ले ही चुके हो…लो, मेरा कमरा भी देख लो. यही चाहते हो न…पूरी कर लो अपनी ड्यूटी,’’ शर्माजी की बातों से अम्मां प्रभावित हुई थीं.

पुराने कमरे में क्या लुकाधरा है लेकिन शर्माजी की पैनी नजर ने संदेह तो खड़ा कर ही दिया था.

‘‘इस संदूक में क्या है? अम्मां, जरा खोल कर दिखाओ तो,’’ शर्माजी ने कहा तो अम्मां जैसे फिर बिफर पड़ीं, ‘‘नहीं… नहीं, इसे नहीं खोलने दूंगी. तुम इसे नहीं देख सकते…’’

‘‘लेकिन ऐसा भी क्या है, अम्मां, संदूक को जरा देख तो लेने दो,’’ शर्माजी बोले, ‘‘आप ने ही तो कहा है कि मुझे मेरी ड्यूटी पूरी करने देंगी. सो समझिए कि मेरी ड्यूटी में हर बंद चीज को खोल कर देखना शामिल है.’’

अम्मां ने अब और जिद नहीं की. खटिया से उठीं, दरवाजा भीतर से बंद किया.

संदूक का नाम सुनते ही पंडिताइन के मन में खटका हुआ था कि हो न हो, बुढि़या ने सब से छिपा कर जरूर कुछ बचा रखा है. इसीलिए वह अपने संदूक के पास किसी को फटकने तक नहीं देती थीं. जरूर कुछ ऐसा है जिसे शर्माजी ताड़ गए हैं, नहीं तो…

इधर पंडितजी भी शंकालु हो उठे तो पंडिताइन से कहने लगे, ‘‘अम्मां रहती हैं मेरे यहां और मन लगा रखा है दूसरे बेटों के साथ. भले ही वे उन्हें न पूछते हों. कहीं ऐसा तो नहीं है कि बड़के भैया के लिए कुछ रख छोड़ा हो. चलो, जो भी होगा, आज सामने आ ही जाएगा.’’

बंद कमरे में पसरे अंधकार में पिछली खिड़की से जो थोड़ी रोशनी की लकीर  आ रही थी उसी रोशनी में संदूक रखा था. ताला खोल कर ज्यों अम्मां ने संदूक का ढक्कन उठाया तो शर्माजी अवाक् रह गए.

‘‘रोटियां, ये क्या अम्मां… रोटियां और संदूक में?’’

‘‘हां, बेटे, यही जीवन का सत्य है… रोटियां. इन्हीं के लिए इनसान दुनिया में जीता है, जीवन भर भागता फिरता है, रातदिन एक करता है, बुरे से बुरा काम करता है. किस के लिए ? रोटी के लिए ही तो. खानी उसे सिर्फ दो रोटी ही हैं. फिर भी न जाने क्यों…’’ कहतेकहते अम्मां का गला भर उठा था.

‘‘लेकिन मांजी, ये तो सूखी रोटियां हैं. आप ने इन्हें संदूक में सहेज कर क्यों रख छोड़ा है?’’ शर्माजी इस गुत्थी को सुलझा नहीं पा रहे थे, भले ही उन्होंने बड़ी से बड़ी गुत्थियों को सुलझा दिया हो.

‘‘सप्ताह में एक दिन ऐसा भी आता है बेटे, जब कोई भी घर में नहीं रहता. इतवार को सभी बाहर खाना खाते हैं. उस दिन घर में रोटी नहीं बनती. उसी दिन के लिए मैं इन्हें बचाए रखती हूं. दो रोटियों को पानी में भिगो देती हूं और फिर किसी न किसी तरह से उन्हें चबा कर पेट भर ही लेती हूं…लो बेटे, तुम ने तो देख ही लिया है… अब इस कटुसत्य को पूरे घर के सामने भी जाहिर हो जाने दो…न जाने मेरे बच्चे क्या सोचेंगे.’’ आंसू पोंछते हुए अम्मां ने बंद दरवाजा खोल दिया.

Moral Story : केले का छिलका

Moral Story :  ‘‘देहरादून के सिर पर ताज की तरह विराजमान मसूरी की अपनी निराली छटा है. सागर तल से लगभग 2,005 मीटर की ऊंचाई पर 65 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली मसूरी से एक ओर घाटी का मनोरम दृश्य दिखाई देता है तो दूसरी ओर बर्फीले हिमालय की ऊंचीऊंची चोटियां. मसूरी को ‘पहाड़ों की रानी’ यों ही नहीं कहा जाता.

‘‘यहां के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में गनहिल, कैमल्सबैक रोड, नगरनिगम उद्यान, चाइल्ड्स लौज, झड़ीपानी निर्झर, कैंप्टी फौल, धनोल्टी प्रमुख हैं.’’

गाइड अपनी लच्छेदार भाषा में रटारटाया भाषण दिए जा रहा था. अधिकतर यात्री एकाग्रचित्त हो कर सुन रहे थे, लेकिन कुछ लोग खिड़की से बाहर मनोहर और लुभावने दृश्य देख रहे थे.

अचानक ईशान ने महसूस किया कि कुछ गड़बड़ है. उस के पास बैठी लड़की की आंखों से आंसू टपक रहे थे. वह अपनी सिसकियों को दबाने का असफल प्रयास कर रही थी और इसी ने ईशान का ध्यान आकर्षित किया था. जब पास में बैठी कोई लड़की, जो खूबसूरत भी हो, अगर इतने सुहावने वातावरण के बावजूद रो रही हो तो एक सुसंस्कृत युवक का क्या कर्तव्य बनता है?

ईशान एक अमेरिकन बैंक में योजना अधिकारी था. वेतन इतना मिलता था कि भारत सरकार के उच्च अधिकारियों को भी एक बार ईर्ष्या हो जाती. वर्ष में एक बार 15 दिन की अनिवार्य छुट्टी पूरे वेतन के साथ मिलती थी. स्थान के लिहाज से सब से अच्छे होटल में रहना और सुबह का नाश्ता मुफ्त. घूमनेफिरने और हर दिन के कड़े काम की उकताहट से उबरने के लिए इस से बड़ा प्रोत्साहन और क्या हो सकता है.

ईशान का विवाह पिछले वर्ष बड़े धूमधाम से हुआ था. पत्नी गर्भवती थी और प्रसूति के लिए मायके गई हुई थी. कुछ सहयोगी, जो कुछ समय पहले मसूरी हो कर आए थे, इतनी प्रशंसा कर रहे थे कि उस ने भी मसूरी घूमने का निश्चय किया. वैसे तो घूमनेफिरने का आनंद पत्नी के साथ ही आता है, बिलकुल दूसरे हनीमून जैसा. परंतु इस समय ईशान की पत्नी पहाड़ों पर जाने की स्थिति में नहीं थी इसलिए वह अकेला ही निकल पड़ा था.

मसूरी के एक वातानुकूलित होटल में कमरा पहले से आरक्षित किया जा चुका था. कुछ समय तक कमरे में बैठेबैठे ही खिड़की खोल कर ईशान दूरदूर तक फैली हरियाली और कीड़ेमकोड़ों की तरह दिखते मकानों को निहारता रहा. कभीकभी आवारा बादल कमरे में ही घुस आते थे और तब वह सिहर कर अपनी पत्नी गौरी की कमी महसूस करता.

होटल की स्वागतिका से कह कर ईशान ने आसपास घूमने के लिए बस में सीट आरक्षित करवा ली थी. उस समय वह बस में बैठा हुआ था जब पास बैठी लड़की की सिसकियों ने उस का ध्यान अपनी ओर खींचा.

जब नहीं रहा गया तो उस ने शालीनता से पूछा, ‘‘क्षमा कीजिए, आप को कुछ कष्ट है क्या? क्या मैं आप की कुछ मदद कर सकता हूं?’’

लड़की ने कोई उत्तर नहीं दिया, केवल सिसकती रही. ईशान की समझ में नहीं आ रहा था कि अपने काम से काम रखे या अंगरेजी फिल्मों के नायक की तरह अपना रूमाल उसे पेश करे.

आखिर एक लंबी सांस छोड़ते हुए उस ने कहा, ‘‘देखिए, मैं आप के मामले में कोई दखल नहीं देना चाहता. हां, अगर आप समझती हैं कि एक अजनबी से कुछ मदद ले सकती हैं तो मैं हाजिर हूं.’’

सिसकियां दबाते हुए लड़की ने कहा, ‘‘मेरा सिर चकरा रहा है. मैं कहीं खुली जगह में बैठना चाहती हूं.’’

‘‘ओह, तबीयत खराब है?’’

‘‘नहीं,’’ लड़की ने कराहते हुए कहा.

‘‘तो फिर…’’ ईशान झिझका, ‘‘खैर, मैं अभी बस रुकवाता हूं,’’ सोचा, लड़की की तबीयत खराब होना भी एक नाजुक मामला है.

जब उस ने थोड़ी चहलपहल वाली जगह पर बस रुकवाई तो सारे पर्यटक आश्चर्य से उसे देखने लगे.

लड़की के हाथ में केवल एक पर्स था, वह झट से उतर गई. ईशान अपनी सीट पर बैठने ही वाला था कि उसे कुछ बुरा लगा. सोचने लगा कि अकेली मुसीबत में पड़ी लड़की को यों ही छोड़ देना ठीक नहीं. शायद उसे मदद की आवश्यकता हो?

इस से पहले कि चालक बे्रक पर से पैर हटाता, वह अपना बैग उठा कर लड़की के पीछेपीछे उतर गया. बस उन्हें छोड़ कर आगे बढ़ गई.

सड़क के किनारे एक खाली बेंच थी. लड़की जा कर उस पर बैठ गई. फिर उस ने आंखें बंद कर लीं और सिर पीछे टिका लिया. ईशान भी पास ही बैठ गया. पर अब महसूस कर रहा था कि वह किस चक्कर में पड़ गया.

लगभग 2 मिनट की चुप्पी के बाद लड़की ने क्षीण स्वर में कहा, ‘‘मुझे अफसोस है. आप बेकार में ही मेरे लिए इतना परेशान हो रहे हैं.’’

पहली बार ईशान का ध्यान लड़की की टांगों पर गया. वह स्कर्टब्लाउज पहने थी. गोरीगोरी टांगें रेशम की तरह मुलायम लग रही थीं. घुटने से ऊपर तक के मोजे पहने थे, देखने में वे पारदर्शी और टांगों के रंग से मिलतेजुलते थे.

ईशान ने सिर झटका, ‘मूर्ख कहीं का, इस तरह मत भटक.’

‘‘परेशानी तो कुछ नहीं,’’ ईशान ने जल्दी से कहा, ‘‘हां, अगर आप के कुछ काम आया तो खुशी होगी.’’

अचानक लड़की की आंखों से फिर से ढेर सारे आंसू निकल पड़े तो ईशान भौचक्का रह गया.

‘‘मैं अपने मातापिता के साथ कुछ रोज पहले यहां आई थी,’’ लड़की ने सिसकते हुए कहा.

‘‘ओह, ये बात है,’’ ईशान कुछ न समझते हुए बोला.

‘‘मुझे क्या मालूम था…’’ लड़की फिर रो पड़ी.

‘‘धीरज से काम लीजिए,’’ ईशान ने सहानुभूति से कहा. सोचा, ‘शायद कुछ हादसा हो गया है.’

लड़की अब आंसू पोंछने लगी, फिर बोली, ‘‘क्षमा कीजिए. मेरा नाम वैरोनिका है. वैसे सब मुझे ‘रौनी’ कहते हैं.’’

ईशान मुसकराया. औपचारिकता के लिए बोला, ‘‘बड़ा अच्छा नाम है. आप बैठिए, मैं आप के लिए कुछ लाता हूं. कौफी या शीतल पेय?’’

रौनी ने झिझकते हुए कहा, ‘‘बड़ी मेहरबानी होगी, अगर आप मेरे लिए इतना कष्ट न उठाएं.’’

‘‘नहींनहीं, कष्ट किस बात का…आप ने अपनी पसंद नहीं बताई?’’ ईशान ने जोर दिया.

‘‘गरम कौफी ले आइए,’’ रौनी ने अनिच्छा से कहा.

सामने ही ‘कौफी कौर्नर’ था. ईशान

2 कप कौफी ले आया. वह कौफी पीने लगा. पर लग रहा था कि रौनी केवल होंठ गीले कर रही है.

‘‘क्या हुआ आप के मांबाप को?’’ थोड़ी देर बाद ईशान ने पूछा.

‘‘उन की हाल ही में मौत हो गई,’’ रौनी फिर रो पड़ी.

ईशान ने उस के हाथ से कप ले लिया, क्योंकि कौफी उस के अस्थिर हाथों से छलकने ही वाली थी.

‘‘माफ कीजिएगा, आप का दिल दुखाने का मेरा कतई इरादा नहीं था,’’ ईशान ने शीघ्रता से कहा.

‘‘कोई बात नहीं,’’ आंसुओं पर काबू पाते हुए रौनी ने कहा, ‘‘कोई सुनने वाला भी नहीं. मेरा दिल भरा हुआ है. आप से कहूंगी तो दुख कम ही होगा.’’

‘‘ठीक है. पहले कौफी पी लीजिए,’’ कप आगे करते हुए उस ने कहा.

जब रौनी स्थिर हुई तो बोली, ‘‘मेरी मां को कैंसर था. बहुत इलाज के बाद भी हालत बिगड़ती जा रही थी. एक दिन हम सब टीवी देख रहे थे. पर्यटकों के लिए अच्छेअच्छे स्थानों को दिखाया जा रहा था. बस, मां ने यों ही कह दिया कि काश, वे भी किसी पहाड़ की सैर कर रही होतीं तो कितना मजा आता.’’

रौनी ने कौफी खत्म कर के कप पीछे फेंक दिया. ईशान उत्सुकता से उस की कहानी सुन रहा था.

‘‘पिताजी के मन में आया कि मां की अंतिम इच्छा पूरी करना उन का कर्तव्य है. हम लोग मध्यवर्ग के हैं. फिर मां की बीमारी पर भी काफी खर्च हो रहा था. काफी रुपया उधार ले चुके थे,’’ रौनी ने गहरी सांस छोड़ी.

‘‘आप की तबीयत ठीक नहीं है,’’ ईशान ने कहा, ‘‘अभी थोड़ा आराम कर लीजिए.’’

‘‘नहीं, मैं ठीक हूं. कहने से मन हलका ही होगा,’’ रौनी ने अपने ऊपर नियंत्रण करते हुए कहा, ‘‘किसी तरह से पिताजी ने उधार ले कर और कुछ जेवर बेच कर मसूरी आने का कार्यक्रम बनाया. यहां आ कर हम तीनों एक सस्ते होटल में ठहरे.

‘‘एक दिन कैमल्सबैक गए. इतनी ऊंचाई पर जब वह पहाड़ी दिखाई दी, जो ऊंट की पीठ के आकार की थी, मां के आनंद का ठिकाना न रहा. वे बच्चों की तरह प्रसन्न हो कर किलकारियां मारने लगीं. अचानक वे अपना नियंत्रण खो बैठीं और नीचे को गिरने लगीं. पिताजी ने जैसे ही देखा, उन्हें पकड़ने की कोशिश की. पर वे स्वयं भी अपने पर नियंत्रण न रख सके. दोनों एकसाथ गिर पड़े. नीचे इतनी गहराई थी कि लाशें भी नहीं मिलीं.’’

रौनी फिर से सिसकने लगी.

ईशान ने हिम्मत कर के रौनी का हाथ अपने हाथों में ले लिया और कहा, ‘‘मुझे आप के साथ पूरी सहानुभूति है. आप का दुख समझ सकता हूं. अब क्या इरादा है?’’

‘‘कुछ नहीं. कुछ दिन और रुकूंगी. शायद कुछ पता लगे. फिर तो वापस जाना ही है,’’ रौनी ने उदास हो कर कहा, ‘‘पता नहीं क्या करूंगी?’’

‘‘घबराइए मत. कोई न कोई रास्ता निकल ही आएगा,’’ ईशान ने घड़ी की ओर देखते हुए कहा, ‘‘भूख लग रही है. चलिए, कुछ खाते हैं.’’

‘‘मेरी तो भूखप्यास ही खत्म हो गई है. आप मेरी वजह से परेशान न हों.’’

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है? मैं खाऊं और आप भूखी रहें?’’ ईशान ने दिलेरी से कहा, ‘‘वैसे मुझे अकेले खाने की आदत भी नहीं है.’’

‘‘देखिए. मैं आप के ऊपर कोई बोझ नहीं बनना चाहती,’’ रौनी ने दयनीय भाव से कहा, ‘‘आप की सहानुभूति मिली, इसी से मुझे बड़ा सहारा मिला.’’

‘‘रौनी,’’ इस बार ईशान ने जोर दे कर कहा, ‘‘अगर तुम मेरे साथ खाना खाओगी तो यह मेरे ऊपर तुम्हारी मेहरबानी होगी.’’

‘‘ओह, आप तो बस…’’ रौनी की आंखों में पहली बार मुसकान की झलक दिखाई दी.

‘‘बस, अब उठ कर चलो मेरे साथ,’’ ईशान ने उठ कर उस की ओर हाथ बढ़ाया.

वह रौनी को एक अच्छे होटल में ले गया. दोनों ने बहुत महंगा भोजन किया. रौनी अब पिछले हादसों से उबर रही थी.

‘‘अब क्या करोगी? घूमने चलोगी या आराम करोगी?’’ ईशान ने बाहर आ कर पूछा.

‘‘आराम कहां है मेरी जिंदगी में,’’ रौनी ने आह भर कर कहा.

‘‘देखो, अब ऐसी बातें मत करो. सामान्य होने की कोशिश करो,’’ ईशान ने अब अधिकार से उस के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘मैं सोचता हूं, तुम्हें कुछ देर अब आराम करना चाहिए. चलो, तुम्हारे होटल छोड़ आता हूं. शाम को फिर मिलेंगे.’’

‘‘होटल,’’ रौनी से उदासी से कहा, ‘‘होटल तो मैं ने बहुत पहले छोड़ दिया था. रहने के लिए रुपया चाहिए और सारा रुपया पिताजी की जेब में था. वह तो होटल का मालिक इतना सज्जन था कि उस ने मुझ से कोई हिसाब नहीं मांगा.’’

‘‘तो फिर कहां रहती हो?’’ ईशान ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘कालीबाड़ी में. इतने सारे लोग रोज आतेजाते हैं, मुझे कोई परेशानी नहीं होती,’’ रौनी ने लापरवाही से कहा.

ईशान ने कुछ क्षणों तक सोचा और फिर कहा, ‘‘तुम्हें कालीबाड़ी में रहने की कोई जरूरत नहीं है. चलो, अपना सामान उठाओ और मेरे होटल में आ जाओ. मैं तुम्हारे लिए कमरा आरक्षित करवा दूंगा.’’

रौनी ने आशंका और अविश्वास से ईशान को देखा और कहा, ‘‘आप मेरे लिए इतना सब क्यों करेंगे? मैं नादान और कमसिन जरूर हूं पर भोली भी नहीं हूं.’’

ईशान के ऊपर बिजली सी गिर पड़ी. शीघ्रता से बोला, ‘‘विश्वास करो रौनी, मेरा कोई बुरा आशय नहीं है. मैं कोई नाजायज फायदा भी नहीं उठाना चाहता. हां, एक दोस्त की हैसियत से तुम्हें कुछ लमहे खुशी के दे सकता हूं तो इनकार कर के मेरा दिल तो न तोड़ो.’’

रौनी ने शरारतभरी मुसकराहट से कहा, ‘‘बुरा मान गए? दरअसल, हम लड़कियों को हर पल चौकन्ना और होशियार रहना पड़ता है. अच्छे और बुरे की पहचान करना कोई आसान काम है क्या?’’

ईशान ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम ने तो मुझे डरा ही दिया था. अपने ही आईने में भेडि़या नजर आने लगा.’’

‘‘अब छोडि़ए भी. हां, इतना फिर कहूंगी कि मैं जहां हूं, ठीक हूं. आप मेरी चिंता मत कीजिए,’’ उस ने जोर दिया.

‘‘रौनी, कृपा कर के अब यह संवाद अधिक मत दोहराओ. तुम मेरी खातिर चलो. मुझे अच्छा लगेगा,’’ रौनी का हाथ ईशान ने मजबूती से पकड़ लिया.

रौनी के साथ ईशान कालीबाड़ी गया और उस का सामान उठवाया. केवल एक सूटकेस और स्लीपिंग बैग देख कर उसे आश्चर्य तो हुआ, पर कुछ बोला नहीं.

रौनी ने अपनेआप ही सफाई दी, ‘‘रुपए की जरूरत पड़ी तो बाकी सामान बेच दिया.’’

ईशान ने कोई उत्तर नहीं दिया. होटल पहुंच कर रौनी के लिए कमरा लिया. शाम की कौफी, नाश्ता भी वहीं किया और फिर रात को मसूरी का आनंद लेने के लिए निकल पड़े. रौनी से धीरेधीरे ईशान की घनिष्ठता बढ़ गई. शर्म व झिझक भी कम होती जा रही थी.

जिस किसी दुकान पर वह कोई पोशाक या आभूषण ठिठक कर देखने लगती, ईशान तुरंत खरीद कर भेंट कर देता. धीरेधीरे ईशान का एहसान अधिकार में बदलने लगा. रौनी अब खुल कर फरमाइश भी कर देती थी. अच्छा खातीपीती थी और खूब खरीदती थी.

ईशान जितने रुपए साथ लाया था, सब कभी के खत्म हो चुके थे. अब वह अपने बैंक का ‘क्रैडिट कार्ड’ इस्तेमाल कर रहा था. सोच कर आया था कि अपनी पत्नी गौरी के लिए ढेर सारी चीजें खरीदेगा और अपने होने वाले बच्चे के लिए ढेर सारे खिलौने व कपड़े, पर रौनी के चक्कर में फुरसत ही न मिली. साथ ही अब तो इफरात से खर्च करने के कारण आर्थिक स्थिति भी डांवांडोल हो रही थी. ठीक पता नहीं था कि क्रैडिट कार्ड कब तक साथ देगा.

15 दिन कैसे निकल गए, पता नहीं लगा. ईशान को रौनी अच्छी लगने लगी थी. कभीकभी तो लगता कि वह उसे प्यार करने लगा है. काश, कहीं रौनी की ओर से कोई संकेत मिल जाता.

परंतु रौनी ने ऐसा कुछ नहीं किया. मौजमस्ती ने उस का दुख मिटा दिया था, उस की खिलखिलाहट में एक खिलाड़ी का स्वर गूंजता था. इसी से ईशान बड़ा सुकून महसूस करता था.

‘‘कल सुबह तो मैं चला जाऊंगा,’’ ईशान ने डूबी हुई आवाज में कहा, ‘‘अब तुम क्या करोगी?’’

‘‘अब तुम ही चले परदेस…’’ रौनी ने शरारत से ठुमका लगा कर कहा, ‘‘लगा के ठेस तो अब हम क्या करेगा?’’

ईशान ने हंस कर कहा, ‘‘शैतानी से बाज नहीं आओगी. सुनो, मेरे साथ चलोगी?’’

‘‘न बाबा,’’ रौनी ने अपने कानों को हाथ लगाते हुए कहा, ‘‘तुम्हारी गौरी से जूते खाने हैं क्या?’’

‘‘तो तुम से कब और कैसे भेंट होगी?’’ ईशान ने पूछा.

‘‘यह मुझ पर छोड़ दो. पहले अपना ठिकाना ढूंढ़ लूं. फिर तो तुम्हें कहीं से भी पकड़ लाऊंगी,’’ रौनी ने हंसते हुए कहा.

‘‘तुम्हें मजाक सूझ रहा है और मेरी जान पर बनी है,’’ ईशान ने नाराजगी का फिल्मी इजहार किया.

रौनी ने केवल जीभ दिखा दी. फिर उस की प्रार्थना पर ईशान ने होटल का 2 दिन का किराया और दे दिया. साथ ही कुछ रुपए खानेपीने के लिए दिए.

ईशान जब घर पहुंचा तो एकदम कड़का था. बैंक से भी पता लगा कि उस ने बचत से कहीं अधिक खर्च कर डाला है, इसलिए अब उधार पर अधिक सूद देना पड़ेगा. लेकिन रौनी की मधुरस्मृति ने दुखी नहीं होने दिया. सोचने लगा, कब याद करेगी अब?

कुछ समय बाद ईशान की पत्नी गौरी गोलमटोल बबलू को ले कर घर आ गई. उस ने पति के बरताव में कुछ बदलाव सा महसूस किया. लेकिन उस ने खामोश रहना ही बेहतर समझा.

ईशान ने एकाध बार सोचा कि क्यों न गौरी को बता दे कि कैसे उस ने एक मुसीबत में फंसी लड़की को सहारा दिया. तब गौरी अवश्य ही उस की प्रशंसा करेगी. फिर यह सोच कर रह जाता था कि बहादुरी दिखाने के बजाय विवेक से काम लेना अधिक अच्छा होता है. हो सकता है, गौरी इस का गलत अर्थ लगाए.

वर्ष बीत रहा था और रौनी के संपर्क न करने से ईशान को बेचैनी सी होने लगी थी. कभी यह भी सोचता था कि चलो, अच्छा हुआ, पीछा छूटा. कहीं उस का संबंध गहरा हो जाता तो अपना पारिवारिक जीवन ही डांवांडोल हो जाता. उन क्षणों में वह गौरी से आवश्यकता से अधिक ही प्रेम जताने लगता.

जब छुट्टी लेने का समय आया तो उस ने फिर से मसूरी ही जाने का निश्चय किया.

‘‘पिछले साल ही तो मसूरी गए थे?’’ गौरी ने पूछा, ‘‘क्या हमारे महान देश में पर्यटक स्थलों की कमी पड़ गई है?’’

‘‘गौरी, एक बार मसूरी चलो तो सही. तुम देखते ही उस से प्यार करने लगोगी,’’ ईशान ने हंस कर कहा, ‘‘मेरा तो मन करता है, वहां ही कोई घर ले लूं.’’

गौरी को दार्जिलिंग अधिक अच्छा लगता था. इस बात पर अकसर दोनों में गरम बहस भी होती थी.

वे मसूरी पहुंचे तो ठहरे उसी पुराने होटल में.

दोपहर का सुहावना मौसम था. वे घूमने निकल पड़े. बादल छाए हुए थे और ठंडी हवा के झोंके बदन में सिहरन भर रहे थे. गौरी ने बबलू को कंबल में लपेट कर गोद में लिटा रखा था. ईशान पास ही बैठा उस से अपने अनुभवों का वर्णन कर रहा था.

अचानक एक परिचित स्वर कानों में पड़ा. ईशान चौंक गया. मुड़ कर देखा, वही थी. साथ में एक मोटा आदमी था. पीछे वाली बैंच पर दोनों बैठे थे. ईशान की तरफ उन की पीठ थी.

‘‘मैं अपने मांबाप के साथ कुछ रोज पहले यहां आई थी,’’ रौनी सिसकते हुए कह रही थी, ‘‘मुझे क्या मालूम था… क्षमा कीजिए, मेरा नाम वैरोनिका है, वैसे सब मुझे ‘रौनी’ कहते हैं…मेरी मां को कैंसर था…’’

ईशान का दिल डूबने लगा. वह गौरी से आंखें न मिला सका. ऐसा लगा, जैसे उस ने उस की चोरी पकड़ ली हो.

2 आदमी हाथों में मूंगफली की पुडि़या लिए सामने से निकले. दोनों वार्त्तालाप में मस्त थे.

‘‘किसी शायर ने क्या खूब कहा है,’’ एक आदमी कह रहा था, ‘‘औरत केले के छिलके की तरह होती है, पैर पड़ा नहीं कि फिसल गए.’’

दोनों ठहाका मार कर हंस रहे थे. क्या खूब कहा था.

Romantic Stories Hindi : यह कैसा प्यार – क्या दूर हुई शिवानी की नफरत

Romantic Stories Hindi : आज मैं ने वह सब देखा जिसे देखने की मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी. कालिज से घर लौटते समय मुझे डैडी अपनी कार में एक बेहद खूबसूरत औरत के साथ बैठे दिखाई दिए. जिस अंदाज में वह औरत डैडी से बात कर रही थी, उसे देख कर कोई भी अंदाजा लगा सकता था कि वह डैडी के बेहद करीब थी.

10 साल पहले जब मेरी मां की मृत्यु हुई थी तब सारे रिश्तेदारों ने डैडी को दूसरा विवाह करने की सलाह दी थी लेकिन डैडी ने सख्ती से मना करते हुए कहा था कि मैं अपनी बेटी शिवानी के लिए दूसरी मां किसी भी सूरत में नहीं लाऊंगा और डैडी अपने वादे पर अब तक कायम रहे थे, लेकिन आज अचानक ऐसा क्या हो गया, जो वह एक औरत के करीब हो कर मेरे वजूद को उपेक्षा की गरम सलाखों से भेद रहे थे.

मुझे अच्छी तरह  से याद है कि मम्मी और डैडी के बीच कभी नहीं बनी थी. मम्मी के खानदान के मुकाबले में डैडी के खानदान की हैसियत कम थी, इसलिए मम्मी बातबात पर अपनी अमीरी के किस्से बयान कर के डैडी को मानसिक पीड़ा पहुंचाया करती थीं. मेरी समझ में आज तक यह बात नहीं आई कि जब डैडी और मम्मी के विचार आपस में मिलते नहीं थे तब डैडी ने उन्हें अपनी जीवनसंगिनी क्यों बनाया था.

कालिज से घर आते ही काकी मां ने मुझ से चाय के लिए पूछा तो मैं उन्हें मना कर अपने कमरे मेें आ गई और अपने आंसुओं से तकिए को भिगोने लगी.

5 बजे के आसपास डैडी का फोन आया तो मैं अपने गुस्से पर जबरन काबू पाते हुए बोली, ‘‘डैडी, इस वक्त आप कहां हैं?’’

‘‘बेटे, इस वक्त मैं अपनी कार ड्राइव कर रहा हूं,’’ डैडी बडे़ प्यार से बोले.

‘‘आप के साथ कोई और भी है?’’ मैं ने शक भरे अंदाज में पूछा.

‘‘अरे, तुम्हें कैसे पता चला कि इस समय मेरे साथ कोई और भी है. क्या तुम्हें फोन पर किसी की खुशबू आ गई?’’ डैडी हंसते हुए बोले.

‘‘हां, मैं आप की इकलौती बेटी हूं, इसलिए मुझे आप के बारे में सब पता चल जाता है. बताइए, कौन है आप के साथ?’’

‘‘देखा तुम ने अरुणिमा, मेरी बेटी मेरे बारे मेें हर खबर रखती है.’’

मुझे समझते देर नहीं लगी कि डैडी के साथ कार में बैठी औरत का नाम अरुणिमा है.

‘‘जनाब, यहां आप गलत फरमा रहे हैं,’’ डैडी के मोबाइल से मुझे एक औरत की खनकती आवाज सुनाई दी, ‘‘अब वह आप की नहीं, मेरी भी बेटी है.’’

उस औरत का यह जुमला जहरीले तीर की तरह मेरे सीने में लगा. एकाएक मेरे दिमाग की नसें तनने लगीं और मेरा जी चाहा कि मैं सारी दुनिया को आग लगा दूं.

‘‘शिवानी बेटे, तुम लाइन पर तो हो न?’’ मुझे डैडी का बेफिक्री से भरा स्वर सुनाई दिया.

‘‘हां,’’ मैं बेजान स्वर में बोली, ‘‘डैडी, यह सब क्या हो रहा है? आप के साथ कौन है?’’

‘‘बेटे, मैं तुम्हें घर आ कर सब बताता हूं,’’ इसी के साथ डैडी ने फोन काट दिया और मैं सोचती रह गई कि यह अरुणिमा कौन है? यह डैडी के जीवन में कब और कैसे आ गई?

डैडी और अरुणिमा के बारे में सोचतेसोचते कब मेरी आंख लग गई, मुझे पता ही नहीं चला.

7 बजे शाम को काकी मां ने मुझे उठाया और चिंतित स्वर में बोलीं, ‘‘बेटी शिवानी, क्या बात है? आज तुम ने चाय नहीं पी. तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘काकी मां, मेरी तबीयत ठीक है. डैडी आ गए?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हां, और वह तुम्हें बुला रहे हैं. उन्होंने कहा है कि तुम अच्छी तरह से तैयार हो कर आना,’’ इतना कह      कर काकी मां कमरे से बाहर निकल गईं.

थोड़ी देर बाद मैं ड्राइंगरूम में आई तो मुझे सोफे पर वही औरत बैठी दिखाई दी जिसे आज मैं ने डैडी के साथ उन की कार में देखा था.

‘‘अरु, यह है मेरी बेटी, शिवानी,’’ डैडी उस औरत से मेरा परिचय कराते हुए बोले.

न चाहते हुए भी मेरे हाथ नमस्कार करने की मुद्रा में जुड़ गए.

‘‘जीती रहो,’’ वह खुद ही उठ कर मेरे करीब आ गईं और फिर मेरा चेहरा अपने हाथों में ले कर उन्होंने मेरे माथे पर एक प्यारा चुंबन अंकित कर दिया.

‘‘अगर मेरी कोई बेटी होती तो वह बिलकुल तुम्हारे जैसी होती. सच में तुम बहुत प्यारी हो.’’

‘‘अरु, यह भी तो तुम्हारी बेटी है,’’ डैडी हंसते हुए बोले.

डैडी के ये शब्द पिघले सीसे की तरह मेरे कानों में उतरते चले गए. मेरा जी चाहा कि मैं अपने कमरे में जाऊं और खूब फूटफूट कर रोऊं. आखिर डैडी ने मेरे विश्वास का खून जो किया था.

‘‘बेटी, तुम करती क्या हो?’’  अरुणिमाजी ने मुझे अपने साथ बैठाते हुए पूछा.

उस वक्त मेरी हालत बड़ी अजीब सी थी. जिस औरत से मुझे नफरत करनी चाहिए थी वह औरत मेरे वजूद पर अपने आप छाती जा रही थी.

मैं उन्हें अपनी पढ़ाई के बारे में बताने लगी. हम दोनों के बीच बहुत देर तक बातें हुईं.

‘‘काकी मां, देखो तो कौन आया है?’’ डैडी ने काकी मां को आवाज दी.

‘‘मैं जानती हूं, कौन आया है,’’ काकी मां ने वहां चाय की ट्राली के साथ कदम रखा.

‘‘अरे, काकी मां आप,’’  अरुणिमा उन्हें देखते ही खड़ी हो गईं.

चाय की ट्राली मेज पर रख कर काकी मां उन की तरफ बढ़ीं. फिर दोनों प्यार से गले मिलीं तो मैं दोनों को उलझन भरी निगाहों से देखने लगी.

अरुणिमा का इस घर से पूर्व में गहरा संबंध था, यह बात तो मैं समझ गई थी, लेकिन कोई सिरा मेरे हाथों में नहीं आ रहा था.

‘‘काकी मां, आप इन्हें जानती हैं?’’ मैं ने हैरत भरे स्वर में काकी मां से पूछा.

काकी मां के बोलने से पहले ही डैडी बोल पड़े, ‘‘बेटी, अरुणिमाजी का इस घर से गहरा संबंध रहा है. हम दोनों एक ही स्कूल और एक ही कालिज में पढ़े हैं.’’

तभी अरुणिमाजी ने डैडी को इशारा किया तो डैडी ने फौरन अपनी बात पलटी और सब को चाय पीने के लिए कहने लगे.

अब मेरी समझ में कुछकुछ आने लगा था कि मम्मीडैडी के बीच ऐसा क्या था जो वे एकदूसरे से बात करना तो दूर, देखना तक पसंद नहीं करते थे. निसंदेह डैडी शादी से पहले इसी अरुणिमाजी से प्यार करते थे.

चाय पीने के दौरान मैं ने अरुणिमाजी से काफी बातें कीं. वह बहुत जहीन थीं. वह हर विषय पर खुल कर बोल सकती थीं. उन की नालेज को देख कर मेरी उन के प्रति कुछ देर पहले जमी नफरत की बर्फ तेजी से पिघलने लगी.

उन की बातों से मुझे यह भी पता चला कि वह एक प्रोफेसर थीं. कुछ साल पहले उन के पति का देहांत हो गया था. उन का अपना कहने को इकलौता बेटा नितिन था, जो बिजनेस के सिलसिले में कुछ दिनों के लिए लंदन गया हुआ था.

रात का डिनर करने के बाद जब अरुणिमा गईं तो मैं अपने कमरे में आ गई. मैं ने कहीं पढ़ा था कि कुछ औरतों की भृकुटियों में संसार भर की राजनीति की लिपि होती है, जब उन की पलकें झुक जाती हैं तो न जाने कितने सिंहासन उठ जाते हैं और जब उन की पलकें उठती हैं तो न जाने कितने राजवंश गौरव से गिर जाते हैं.

अरुणिमाजी भी शायद उन्हीं औरतों में एक थीं, तभी डैडी ने दूसरी शादी न करने की जो कसम खाई थी, उसे आज वह तोड़ने के लिए हरगिज तैयार नहीं होते. मैं बिलकुल नहीं चाहती कि इस उम्र में डैडी अरुणिमाजी से शादी कर के दीनदुनिया की नजरों में उपहास का पात्र बनें.

सुबह टेलीफोन की घंटी से मेरी आंख खुली. मैं ने फोन उठाया तो मुझे अरुणिमाजी की मधुर आवाज सुनाई दी. ‘‘स्वीट बेबी, मैं ने तुम्हें डिस्टर्ब तो नहीं किया?’’

‘‘नहीं, आंटीजी,’’ मैं जरा संभल कर बोली, ‘‘आज मेरे कालिज की छुट्टी थी, इसलिए मैं देर तक सोने का मजा लेना चाह रही थी.’’

‘‘इस का मतलब मैं ने तुम्हारी नींद में खलल डाला. सौरी, बेटे.’’

‘‘नहीं, आंटीजी, ऐसी कोई बात नहीं है. कहिए, कैसे याद किया?’’

‘‘आज तुम्हारी छुट्टी है. तुम मेरे घर आ जाओ. हम खूब बातें करेंगे. सच कहूं तो बेटे, कल तुम से बात कर के बहुत अच्छा लगा था.’’

‘‘लेकिन आंटी, डैडी की इजाजत के बिना…’’ मैं ने अपना वाक्य जानबूझ कर अधूरा छोड़ दिया.

‘‘तुम्हारे डैडी से मैं बात कर लूंगी,’’ वह बडे़ हक से बोली, ‘‘वह मना नहीं करेंगे.’’

उस पल जेहन में एक ही सवाल परेशान कर रहा था कि जिस से मुझे बेहद नफरत होनी चाहिए, मैं धीरेधीरे उस के करीब क्यों होती जा रही हूं?

1 घंटे बाद मैं अरुणिमाजी के सामने थी.

उन्होंने पहले तो मुझे गले लगाया, फिर बड़े प्यार से सोफे पर बैठाया. इस के बाद वह मेरे लिए नाश्ता बना कर लाईं. नाश्ते के दौरान मैं ने उन से पूछा, ‘‘आंटी, मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि आप से मिले हुए मुझे अभी सिर्फ 1 दिन हुआ है. सच कहूं तो मैं कल से सिर्फ आप के बारे में ही सोचे जा रही हूं. अगर आप मुझे पहले मिल जातीं तो कितना अच्छा होता,’’ यह कह कर मैं उन के घर को देखने लगी.

उन का सलीका और हुनर ड्राइंग रूम से बैडरूम तक हर जगह दिखाई दे रहा था. हर चीज करीने से रखी हुई थी. उन का घर इतना साफसुथरा और खूबसूरत था कि वह मुझे मुहब्बतों का आईना जान पड़ा.

उन के सलीके और हुनर को देख कर मेरे दिल में एक हूक सी उठ रही थी. मैं सोच रही थी कि काश, उन के जैसी मेरी मां होतीं. तभी मेरी आंखों के सामने मेरी मम्मी का चेहरा घूम गया. मेरी मम्मी एक मगरूर औरत थीं, उन्होंने अपनी जिंदगी का ज्यादातर वक्त डैडी से लड़ते हुए बिताया था.

मेरी मम्मी ने बेशक मेरे डैडी के शरीर पर कब्जा कर लिया था, लेकिन वह उन के दिल में जगह नहीं बना पाई थीं, जोकि एक स्त्री अपने पति के दिल में बनाती है.

अब अरुणिमाजी की जिंदगी एक खुली किताब की तरह मेरे सामने आ गई थी. उन के दिल के किसी कोने में मेरे डैडी के लिए जगह जरूर थी. लेकिन उन्होंने डैडी से शादी क्यों नहीं की थी, यह बात मेरी समझ से बाहर थी.

शाम होते ही डैडी मुझे लेने आ गए. रास्ते में मैं ने उन से पूछा, ‘‘डैडी, अगर आप बुरा न मानें तो मैं आप से एक बात पूछ सकती हूं?’’

डैडी ने बड़ी हैरानी से मुझे देखा, फिर आहत भाव से बोले, ‘‘बेटे, मैं ने आज तक  तुम्हारी किसी बात का बुरा माना है, जो आज तुम ऐसी बात कह रही हो. तुम जो पूछना चाहती हो पूछ सकती हो. मैं तुम्हारी किसी बात का बुरा नहीं मानूंगा.’’

‘‘आप अरुणिमाजी से प्यार करते हैं न?’’ मैं ने बिना किसी भूमिका के कहा.

डैडी पहले काफी देर तक चुप रहे फिर एक गहरी सांस छोड़ते हुए बोले, ‘‘यह सच है कि एक वक्त था जब हम दोनों एकदूसरे को हद से ज्यादा चाहते थे और हमेशा के लिए एकदूसरे का होने का फैसला कर चुके थे.’’

‘‘ऐसी बात थी तो आप ने एकदूसरे से शादी क्यों नहीं की?’’

‘‘क्योंकि तुम्हारे दादा ने मुझे अरुणिमा से शादी करने से मना किया था. तब मैं ने अपने मांबाप की मर्जी के बिना घर से भाग कर अरुणिमा से शादी करने का फैसला किया, लेकिन उस वक्त अरुणिमा ने मेरा साथ नहीं दिया था. तब उस का यही कहना था कि हमारे मांबाप के हम पर बहुत एहसान हैं, हमें उन के एहसानों का सिला उन के अरमानों का खून कर के नहीं देना चाहिए. उन की खुशियों के लिए हमें अपने प्यार का बलिदान करना पडे़गा.

‘‘मैं ने तब अरुणिमा को काफी समझाया, लेकिन वह नहीं मानी. इसलिए हमें एकदूसरे की जिंदगी से दूर जाना पड़ा. कुछ दिन पहले वह मुझे एक पार्टी में नहीं मिलती तो मैं उसे तुम्हारी मम्मी कभी नहीं बना पाता. आज की तारीख में उस का एक ही लड़का है, जिसे अरुणिमा के तुम्हारी मम्मी बनने से कोई एतराज नहीं है.’’

‘‘लेकिन डैडी, मुझे एतराज है,’’ मैं कड़े स्वर में बोली.

‘‘क्यों?’’ डैडी की भवें तन उठीं.

‘‘क्योंकि मैं नहीं चाहती कि आप की जगहंसाई हो.’’

‘‘मुझे किसी की परवा नहीं है,’’ डैडी सख्ती से बोले, ‘‘तुम्हें मेरा कहा मानना ही होगा. तुम अपने को दिमागी तौर पर तैयार कर लो. कुछ ही दिनों        में वह तुम्हारी मम्मी बनने जा रही है.’’

उस वक्त मुझे अपने डैडी एक इनसान न लग कर एक हैवान लगे थे, जो दूसरों की इच्छाओं को अपने नुकीले नाखूनों से नोंचनोंच कर तारतार कर देता है.

2 दिन पहले ही अरुणिमाजी का इकलौता बेटा नितिन लंदन से वापस लौटा तो उन्होंने उस से सब से पहले मुझे मिलाया. नितिन के बारे में मैं केवल इतना ही कहूंगी कि वह मेरे सपनों का राजकुमार है. मैं ने अपने जीवन साथी की जो कल्पना की थी वह हूबहू नितिन जैसा ही था.

कितनी अजीब बात है, जिस बाप को शादी की उम्र की दहलीज पर खड़ी अपनी औलाद के हाथ पीले करने के बारे में सोचना चाहिए वह बाप अपने स्वार्थ के लिए अपनी औलाद की खुशियों का खून कर के अपने सिर पर सेहरा बांधने की सोच रहा है.

आज अरुणिमाजी खरीदारी के लिए मुझे अपने साथ ले गई थीं. मैं उन के साथ नहीं जाना चाहती थी, लेकिन डैडी के कहने पर मुझे उन के साथ जाना पड़ा.

शौपिंग के दौरान जब अरुणिमाजी ने एक नई नवेली दुलहन के कपड़े और जेवर खरीदे, तो मुझे उन से भी नफरत होने लगी थी.

मैं ने मन ही मन निश्चय कर अपनी डायरी में लिख दिया कि जिस दिन डैडी अपने माथे पर सेहरा बांधेंगे, उसी दिन इस घर से मेरी अर्थी उठेगी.

आज मुझे अपने नसीब पर रोना आ रहा है और हंसना भी. रोना इस बात पर आ रहा है कि जो मैं ने सोचा था वह हुआ नहीं और जो मैं ने नहीं सोचा था वह हो गया.

यह बात मुझे पता चल गई थी कि डैडी को अरुणिमा आंटी को मेरी मां बनाने का फैसला आगे आने वाले दिन 28 नवंबर को करना था और यह विवाह बहुत सादगी से गिनेचुने लोगों के बीच ही होना था.

28 नवंबर को सुबह होते ही मैं ने खुदकुशी करने की पूरी तैयारी कर ली थी. मैं ने सोच लिया था कि डैडी जैसे ही अरुणिमा आंटी के साथ सात फेरे लेंगे, वैसे ही मैं अपने कमरे में आ कर पंखे से लटक कर फांसी लगा लूंगी.

दोपहर को जब मैं अपने कमरे में मायूस बैठी थी तभी काकी मां ने कुछ सामान के साथ वहां कदम रखा और धीमे स्वर में बोलीं, ‘‘ये कपड़े तुम्हारे डैडी की पसंद के हैं, जोकि उन्होंने अरुणिमा बेटी से खरीदवाए थे. उन्होंने कहा है कि तुम जल्दी से ये कपड़े पहन कर नीचे आ जाओ.’’

मैं काकी मां से कुछ पूछ पाती उस से पहले वह कमरे से बाहर निकल गईं और कुछ लड़कियां मेरे कमरे में आ कर मुझे संवारने लगीं.

थोड़ी देर बाद मैं ने ड्राइंगरूम में कदम रखा तो वहां काफी मेहमान बैठे थे. मेहमानों की गहमागहमी देख कर मेरी समझ में कुछ नहीं आया.

मैं सोफे पर बैठी ही थी कि वहां अरुणिमाजी आ गईं. उन के साथ नितिन नहीं आया था.

‘‘शिशिर, हमें इजाजत है?’’ उन्होंने डैडी से पूछा.

‘‘हां, हां, क्यों नहीं, यह रही तुम्हारी अमानत. इसे संभाल कर रखिएगा,’’  डैडी भावुक स्वर में बोले.

तभी वहां नितिन ने कदम रखा, जो दूल्हा बना हुआ था.

मेरा सिर घूम गया. मैं ने उलझन भरी निगाहों से डैडी की तरफ देखा तो वह मेरे करीब आ कर बोले, ‘‘मैं ने तुम से कहा था न कि मैं अरुणिमा आंटी को तुम्हारी मम्मी बनाऊंगा. आज से अरुणिमा आंटी तुम्हारी मम्मी हैं. इन्हें हमेशा खुश रखना.’’

एकाएक मेरी रुलाई फूट पड़ी. मैं डैडी के गले लग गई और फूटफूट कर रोने लगी.

इस के बाद पवित्र अग्नि के सात फेरे ले कर मैं नितिन की हमसफर और अरुणिमाजी की बेटी बन गई.

Hindi Love Stories : अतीत के झरोखे

Hindi Love Stories : राधा और अविनाश न्यूयौर्क एअरपोर्ट से ज्योंही बाहर निकले आकाश उन से लिपट गया. इतने दिनों के बाद बेटे को देख कर दोनों की आंखें भर आईं. तभी उन के सामने एक गाड़ी आ कर रुकी. आकाश ने उन का सामान डिक्की में रखा और उन दोनों को बैठने को कह आगे जा बैठा. जूही ने पीछे मुड़ कर अपनी मोहिनी मुसकान बिखेरते हुए उन दोनों का आंखों से ही अभिवादन किया तो राधा को ऐसा लगा मानों कोई परी धरती पर उतर आई हो.

राधा ने मन ही मन बेटे के पसंद की दाद दी. करीब घंटे भर की ड्राइव के बाद गाड़ी एक अपार्टमैंट के सामने रुकी. उतरते ही जूही का उन दोनों का पैर छू कर प्रणाम करना राधा का मन मोह गया. बड़े प्यार से उन्होंने जूही को गले लगा लिया. आकाश का 1 कमरे का घर अच्छा ही लगा उन्हें. जूही और आकाश दोनों मिल कर सामान अंदर ले आए. जब वे दोनों फ्रैश हो गए, तो जूही चाय बना लाई.

चाय पीते हुए राधा जूही को निहारती रहीं. लंच कर अविनाश और राधा सो गए.

‘‘उठिए न मम्मी… आप के उठने का इंतजार कर के जूही चली गई.’’

उठने की इच्छा न होते हुए भी राधा को उठना पड़ा. फिर बड़े दुलार से बेटे का माथा सहलाती हुई बोलीं, ‘‘अरे, चिंता क्यों कर रहा है? मुझे और तेरे पापा को तेरी जूही बहुत पसंद है… सब कुछ अपने जैसा ही तो है उस में… अमेरिका में भी तुम ने अपनी बिरादरी की लड़की ढूंढ़ी यही क्या कम है हमारे लिए? अब जल्दी से उस के परिवार वालों से मिलवा दे. जब यहीं पर शादी करनी है, तो फिर इंतजार क्यों?’’

राधा की बातों से आकाश उत्साहित हो उठा. बोला, ‘‘उस के परिवार में केवल उस के पापा हैं. अपनी मां को तो वह बचपन में ही खो चुकी है. उस के पापा ने फिर शादी नहीं की. जूही को उस की नानी ने ही पाला है. उस के पापा चाहते हैं कि शादी के बाद हम उन्हीं के साथ रहें. लेकिन मैं ने इनकार कर दिया. जिस घर में हम शिफ्ट करने वाले हैं वह उसी एरिया में है. कल चल कर देख लीजिएगा.’’

बेटे की बातों से राधा भावविभोर हो रही थीं. उन के अमेरिका आने से पहले आकाश की पसंद को ले कर सभी ने उन्हें कितना भड़काया था. आकाश तो वैसा ही है… कहीं कोई बदलाव नहीं है उस में… दूसरों की खुशी देख कर लोग जलते भी तो हैं. ऐसे भी आकाश स्कूल से ले कर इंजीनियरिंग करने तक टौप ही तो करता रहा था. आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका आ रहा था तो भी लोगों को कितनी जलन हुई थी. शादी के बाद जूही को ले कर जब इंडिया जाऊंगी तो उस के रूपरंग को देख कर सभी ईर्ष्या करेंगे, ऐसा सोचते ही राधा मुसकरा उठीं.

‘‘क्या सोच कर मुसकरा रही हैं मां?’’ आकाश के पूछने पर राधा वर्तमान में लौट आईं.

‘‘कुछ भी तो नहीं रे… सब कुछ ठीक हो जाए तो सियाटल से अनीता और आदित्य भी आ जाएंगे… सारा इंतजाम कर के मैं आई ही हूं,’’ राधा बोलीं.

आकाश ने फोन पर ही जूही को बता दिया कि वह मम्मी को बहुत पसंद है. दूसरे दिन सवेरे ही जूही पहुंच गई. देखते ही राधा ने उसे गले लगा लिया. फिर उस के घर के बारे में पूछने लगीं.

जूही भी उन से कुछ खुल गई. उस ने उन से पूछा, ‘‘आकाश की तरह क्या मैं भी आप दोनों को मम्मीपापा कह सकती हूं?’’

राधा खुशी से बोलीं, ‘‘क्यों नहीं? अब आकाश से तुम अलग थोड़े ही हो,’’ कुछ ही दिनों की बात है जब तुम भी पूरी तरह से हमारी हो जाओगी.’’

राधा की बात पर जूही ने शरमा कर सिर झुका लिया.

‘‘अच्छा तो मम्मीजी आप लोग पापा और नानी से मिलने कब चल रहे हैं? वे दोनों आप से मिलने के लिए उत्सुक हैं.’’

फिर अगले दिन का करार ले कर ही जूही मानी.

दूसरे दिन सुबह से ही राधा को जूही के घर जाने के लिए जरूरत से ज्यादा उत्साहित देख कर अविनाश उन से छेड़खानी कर रहे थे. इसी बीच जूही गाड़ी ले कर आ गई.

तैयार हो कर राधा और अविनाश कमरे से बाहर निकले. ‘एक युवा बेटे की मां भी इस उम्र में इतनी कमनीय हो सकती है?’ सोच जूही मुसकरा उठी.

रास्ते में सड़क के दोनों ओर की प्राकृतिक सुंदरता देख कर राधा मुग्ध हो उठीं कि सच में अमेरिका परियों और फूलों का देश है.

1 घंटे के बाद फूलों से सजे एक बड़े से घर के सामने गाड़ी रुकी तो उतरते ही एक बड़ी उम्र की संभ्रांत महिला ने सौम्य मुसकान के साथ उन का स्वागत किया, जो जूही की नानी थीं. लिविंगरूम में जूही के पापा अविनाश के पास आ कर बैठ गए. राधा की ओर मुड़े ही थे कि वे चौंक  गए और उन के अभिवादन में उठे हाथ हवा में झूल गए. उधर राधा के जुड़े हाथ भी उन की गोद में गिर गए, जिसे अविनाश के सिवा और कोई न देख सका. राधा के चेहरे पर स्तब्धता थी. सारी खुशियां काफूर हो गई थीं. उन की महीनों की चहचहाट पर अचानक चुप्पी का कुहरा छा गया था. वे असहज हो कर सिर को इधरउधर घुमाते हुए अपनी हथेलियों को मसल रही थीं.

जूही की नानी ही बोले जा रही थीं.

माहौल गरम हो गया था जिसे सहज बनाने का अविनाश अपनी ओर से पूरा प्रयास कर रहे थे.

लंच के समय भी अनमनी सी राधा को देख कर आकाश और जूही हैरान थे कि अचानक इन्हें क्या हो गया?

आखिर जूही की नानी ने राधा को टोक ही दिया, ‘‘क्या बात है राधाजी, क्या मैं और आशीष आप को पसंद नहीं आए? हमें देखते ही चुप हो गईं… छोडि़ए, आप को हमारी जूही तो पसंद है न?’’

यह सुनते ही राधा सकुचा तो गईं, लेकिन बड़े ही रूखे शब्दों में कहा, ‘‘ऐसी कोई बात नहीं है… अचानक सिरदर्द होने लगा.’’

‘‘कुछ भी कहिए, लेकिन अमेरिका में जन्म लेने के बावजूद जूही की परवरिश बेमिसाल है. इस का सारा श्रेय आप लोगों को जाता है. जूही हम दोनों को बहुत पसंद है… शायद इंडिया में भी हम आकाश के लिए ऐसी लड़की नहीं ढूंढ़ पाते… क्यों राधा ठीक कहा न मैं ने?’’

राधा ने उन की बातें अनसुनी कर दीं.

अविनाश की बातों से आशीष थोड़ा मुखर हो उठे. बोले, ‘‘तो अब बताइए कि कैसे आगे का कार्यक्रम रखा जाए?’’

जवाब में राधा ने कहा, ‘‘हम आप को सूचित कर देंगे… अब हम चलना चाहेंगे. आकाश, उठो और टैक्सी बुलाओ… मुझे मानहट्टन होते हुए जाना है… क्यों न हम नीति से मिलते चलें. मामामामी के आने से वह भी बड़ी उत्साहित है. इन सब बातों के लिए जूही को तकलीफ देना ठीक नहीं है.’’

राधा की बातों से सभी चौंक गए.

‘‘इस में तकलीफ जैसी कोई बात नहीं है,’’ आशीषजी बोले, ‘‘अविनाशजी, अगर आप की इजाजत हो तो 2 मिनट मैं अकेले में आप की पत्नीजी से कुछ बातें करना चाहूंगा… जूही जब मात्र 10 साल की थी तभी उस की मां गुजर गईं. अपने कुछ किए गलत कामों का प्रायश्चित्त करने के लिए सभी के आग्रह करने के बावजूद मैं ने दूसरी शादी नहीं की… मैं ने अकेले ही मांबाप दोनों का प्यार, संस्कार दे कर उसे पाला है… जब तक मैं राधाजी की सहमति से पूर्ण संतुष्ट नहीं हो जाता इस रिश्ते के लिए स्वयं को कैसे तैयार कर पाऊंगा?

जवाब में अविनाश का हंसना ही सहमति दे गया. फिर आशीषजी और राधा को छोड़ कर बाकी सभी बाहर निकल गए.

आशीष राधा के समक्ष जा कर खड़े हो गए और फिर भर आए गले से बोले, ‘‘राधा, तुम से छल करने वाला, तुम्हें रुसवा करने वाला तुम्हारे सामाने खड़ा है… जो भी सजा दोगी मुझे मंजूर होगी… मेरी बेटी का कोई कुसूर नहीं है इस में… तुम से मेरी यही प्रार्थना है कि जूही और आकाश को कभी अलग नहीं करना वरना दोनों टूट जाएंगे. एकदूसरे के बगैर वे जी नहीं पाएंगे… सभी की खुशियां अब तुम्हारे हाथ में हैं. जूही ही तुम लोगों को छोड़ने जाएगी. इतनी ही देर में उस का चेहरा उदास हो कर कुम्हला गया है,’’ कह कर आशीष बाहर निकल आए और फिर जूही को इन सब के साथ जाने को कहा तो जूही और आकाश के मुरझाए चेहरे खिल उठे.

पूरा रास्ता राधा आंखें बंद किए चुप रहीं. लौटने के बाद भी वे अनमनी सी लेट गईं, जबकि बाहर से आ कर बिना चेंज किए बैड पर जाना उन्हें कतई पसंद नहीं था.

अविनाश लिविंग रूम में बैठ कर टीवी देखते रहे. शाम हो गई थी. राधा उठ गई थीं. बोलीं, ‘‘सुनिए मैं सामने ही घूम रही हूं. आकाश आ जाए तो आप भी आ जाइएगा,’’ और फिर चप्पलें पहनते हुए सीढि़यां उतर गईं.

बच्चों के पार्क में रखी बैंच पर जा बैठीं. आंखें बंद करते ही 32 साल से बंद अतीत चलचित्र की तरह आंखों के आगे घूम गया…

बड़ी ही धूमधाम से राधा की मंगनी आशीष के साथ हुई थी. किसी फंक्शन में आशीष ने उन्हें देखा था और फिर उस की नजरों में बस गई थीं. मंगनी होने के बाद वे आशीष से कुछ ज्यादा ही खुल गई थीं. तब मोबाइल का जमाना नहीं था. सब के सो जाने के बाद धीरे से वे फोन को उठा कर अपने कमरे में ले जाती. और फिर शुरू होता प्यार भरी बातों का सिलसिला जो देर रात तक चलता. 2 महीने बाद ही शादी का मुहूर्त्त निकला था. इसी बीच अचानक आशीष को किसी प्रोजैक्ट वर्क के सिलसिले में 6 महीने के लिए न्यूयौर्क जाना पड़ा.

शादी नवंबर तक के लिए टल गई. वे मन मसोस कर रह गईं. लेकिन आशीष उज्ज्वल भविष्य के सपनों को आंखों में लिए अमेरिका के लिए रवाना हो गया. फिर राधा अपनी एम.एससी. की परीक्षा की तैयारी में लग गईं. आशीष फिर कभी नहीं लौटा. अमेरिका जाने पर आशीष एक गुजराती परिवार में पेइंगगैस्ट बन कर रहने लगे. अमेरिका उन्हें इतना भाया कि वह वहां से न लौटने का निश्चय कर किसी कीमत पर वहां रहने का जुगाड़ बैठाता रहा. यहां तक कि अपनी कंपनी की नौकरी भी छोड़ दी. सब से सरल उपाय यही था कि वह वहां की किसी नागरिकता प्राप्त लड़की से ब्याह कर ले. फिर आशीष ने उसी गुजराती परिवार की इकलौती लड़की से शादी कर ली. उस के इस धोखे से राधा टूट गई थी. उन्हें ब्याह नाम से चिढ़ सी हो गई थी. फिर कुछ महीने बाद अविनाश के घर से आए रिश्ते के लिए न नहीं की. सब कुछ भुला अविनाश की पत्नी बन गईं. समय के साथ 2 बच्चों की मां भी बन गईं. दोनों बच्चों की अच्छी परवरिश की. पढ़नेलिखने में ही नहीं, बल्कि सारी गतिविधियों में दोनों बड़े काबिल निकले. बी.टैक करते ही बेटी की शादी सुयोग्य पात्र से कर दी. बेटी यहीं सियाट्टल में है. दोनों मल्टीनैशनल कंपनी में कार्यरत हैं. बड़े अरमान के साथ बेटे की शादी का सपना आंखों में लिए यहां आई थीं.

टैनिस टूरनामैंट में आकाश और जूही पार्टनर बने और विजयी हुए. ऐसे ही मिलतेजुलते दोनों एकदूसरे को पसंद करने लगे. आकाश ने फेसबुक पर मां यानी राधा से जूही का परिचय करा दिया था. राधा को जूही में कोई कमी नजर नहीं आई. सलिए उन के रिश्ते पर अपनी स्वीकृति की मुहर लगा दी. अब तक के जीवन में सभी प्रमुख निर्णय राधा ही लेती आई थीं, तो अविनाश को क्यों ऐतराज होता? राधा की खुशी ही उन के लिए सर्वोपरि थी. चूंकि जूही की मां नहीं थी और उसे नानी ने ही पाला था और वे इंडिया आने में लाचार थे, इसलिए निर्णय यही हुआ था कि अगर सब कुछ ठीकठाक हुआ तो वहीं शादी कर देंगे. इस निर्णय से उन की बेटी और दामाद दोनों बहुत खुश हुए. जूही के पिता के परिवार के बारे में उन्होंने ज्यादा छानबीन नहीं की और यहीं धोखा खा गईं. कितना सुंदर सब कुछ हो रहा था कि इस मोड़ पर वे आशीष से टकरा गईं और बंद स्मृतियों के कपाट खुल कर उन्हें विचलित कर गए… बेटे से भी नहीं कह सकतीं कि इस स्वार्थी, धोखेबाज की बेटी के साथ रिश्ता न जोड़ो… सिर से पैर तक उस के प्यार में डूबा हुआ है. वह भी क्यों मानने लगा अपनी मां की बात. दर्द से फटते माथे को दोनों हाथों से थाम वे सिसक उठीं.

तभी अचानक कंधों पर किसी का स्पर्श पा कर मुड़ीं तो पीछे अविनाश को खड़ा पाया.

राधा के हाथों को सहलाते हुए वे उन की बगल में बैठ गए और बड़े सधे स्वर में कहने लगे, ‘‘राधा, अंदर से तुम इतनी कमजोर हो, मैं ने कभी सोचा न था. इतनी छोटी बात को दिल से लगाए बैठी हो. कुछ सुना था और कुछ अनुमान लगा लिया. अरे, आशीष ने तुम्हारे साथ जो किया वह कोई नई बात थोड़े है. यह देश उसे सपनों की मंजिल लगा. जूही की सुंदरता से साफ पता चलता है कि उस की मां कितनी सुंदर रही होगी… वीजा, फिर नागरिकता, रहने को घर, सुंदर पत्नी, सारी सुखसुविधाएं जब उसे इतनी सहजता से मिल गईं तो वह क्या पागल था कि देश लौट आता सिर्फ इसलिए कि उस की मंगनी हुई है? फिर जीवन में सब कुछ होना पहले से ही निर्धारित रहता है तुम्हारी ही तो ऐसी सोच है. तुम्हें मेरी बनना था तो ये महाशय तुम्हें कैसे ले जाते? माना कि बहुत सारी सुखसुविधाएं तुम्हें नहीं दे पाया लेकिन मन में संचित सारे प्यार को अब तक उड़ेलता रहा हूं. अचानक कल से मम्मी को हो क्या गया है, पापा? आकाश का यह पूछना मुझे पसोपेश में डाल गया है. हो सकता है वह सब कुछ समझ भी रहा हो. इतना नासमझ भी तो नहीं है.’’

राधा की आंखों से बहते आंसुओं ने अविनाश को आगे और कुछ नहीं कहने दिया. कुछ देर बाद आंचल से अपने आंसुओं को पोंछती हुई राधा ने कहा, ‘‘मैं कल से सोच रही हूं कि अगर जूही का जैनेटिक्स भी अपने बाप जैसा हुआ तो यह हमारे बेटे को हम से छीन लेगी… कितनी निर्ममता से आशीष अपनों को भूल गया था… उसे देखने के लिए मांबाप की आंखें सारी उम्र तरसती रह गईं और वह घरजमाई बन कर रह गया. इस की बेटी ने कहीं मेरे सीधेसादे बेटे को घरजमाई बना लिया तो हम भी बेटे को देखने को तरसते रह जाएंगे.’’

राधा की बातें सुन कर अविनाश को हंसी आ गई. तभी आकाश भी उन दोनों को खोजते हुए वहां आ गया. सकुचाई हुई मम्मी और हंसते हुए पापा को देख कर प्रश्न भरी आंखों से उन्हें देखा. अविनाश अपनेआप को अब रोक नहीं सके और सारी बात बता दी.

इतना सुनना था कि आकाश छोटे बच्चे की तरह राधा से लिपट गया. बोला, ‘‘मम्मी, आप के लिए जूही तो क्या पूरी दुनिया को छोड़ सकता हूं… इतना ही जाना है आप ने अपने बेटे को? फिर आप दोनों को भी मेरे साथ ही रहना है… आप दोनों के लिए ही तो इतना बड़ा घर लिया है… ऐसे भी इंडिया में है ही कौन आप दोनों का…. एक घर ही तो है? आराम से अब मेरे पास रहें. बीचबीच में दीदी से भी मिलते रहें.’’

आकाश की बातों से राधा के सारे गिलेशिकवे दूर हो गए और फिर से 2 हफ्ते बाद ही बड़ी धूमधाम के साथ आकाश और जूही शादी के बंधन में बंध कर हनीमून के लिए स्विट्जरलैंड चले गए.

1 महीने बाद आने का वादा ले कर बेटी, दामाद एवं नाती सियाट्टल चले गए तो अविनाश ने भी हंसते हुए राधा से कहा, ‘‘क्यों न हम भी हनीमून मना लें… हमारी शादी के बाद तो हमारे साथ हमारे पूरे परिवार ने भी हनीमून मनाया था… याद तो होगा तुम्हें… तुम से मिलने को भी हम तरस कर रह जाते थे. अब बेटे ने विदेश में अवसर दिया है तो हम क्यों चूकें और फिर अभी हम इतने बूढ़े भी तो नहीं हुए हैं.’’

अविनाश की बातें सुन राधा मुसकरा दीं और फिर शरमा कर अविनाश से लिपटते हुए अपनी सहमति जता दी.

Plane Crash : कांपते हाथों, बहते आंसुओं संग बुढ़े बाप ने पायलट बेटे सुमित को कहा अलविदा 

Plane Crash : May Day, May Day, नो पावर, नो थ्रस्ट, गोइंग डाउन…. ये मैसेज पायलट सुमित सभरवाल ने एयर ट्रैफिक कंट्रोल को भेजे थे. उन्हें खतरे का अहसास हो गया था.  एयर इंडिया का बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर क्रैश होने के ठीक पहले बोले गए ये शब्द उनके आखिरी शब्द बन गए. यह घटना 12 जून को हुई थी.
इस घटना में विमान में सवार 242 लोगों में से 241 मारे गए, जिसमें कैप्टन सुमित सभरवाल भी शामिल थे. आज उनके पार्थिव शरीर को मुंबई लाया गया, जहां पवई स्थित उनके आवास पर उन्हें अंतिम विदाई दी गई.    

 Plane Crash :  8200 घंटे की उड़ान का अनुभव

अभी तक सोशल मीडिया के जरिए ,एयर इंडिया के पायलट सुमित सभरवाल की जो भी तस्वीरें सामने आई हैं, सभी में वह मुसकुरा रहे हैं. चेहरे से सौम्य दिखने वाले सुमित के पास उड़ान का गहरा अनुभव था.  नागरिक उड्डयन महानिदेशालय यानि डीजीसीए की ओर से जारी बयान में कहा गया था कि सुमित के पास 8200 घंटे की उड़ान का अनुभव था. 

90 साल के पिता ने बेटे को दी अंतिम विदाई

17 जून को कैप्टन सुमित के शव को जब मुंबई में उनके घर लाया तो सभी उन्हें अंतिम बार देखने को उमड़ पड़े. ऐसे में वहां मौजूद लोगों के लिए यह देखना बेहद दुखद था कि करीब 90 साल का पिता अपने बेटे को किस तरह रो रो कर आखिरी विदाई दे रहा है.
जिस बेटे को उंगुली पकड़ कर चलना सिखाया था वह हमेशा के लिए उनसे हाथ छुड़ा कर चला गया. जिसे अपने बुर्जुग पिता का सहारा बनना था, वह खुद गहरी नींद में सो चुका था. उसके शव के सामने आंखों में आंसू लिए बुढ़ा बाप अपने कांपते हाथों को जोड़ कर अपने जिगर के टुकड़े को अलविदा कह रहा था.
ह क्षण बेहद मार्मिक था.
बुर्जुग पिता रोतेरोते बेटे के शव पर झुक जा रहे थे, यह दृश्य किसी को भी रोने पर मजबूर करने वाला था. सुमित ने तीन दिन पहले अपने पापा से कहा था कि मैं अब नौकरी छोड़ कर आपकी सेवा करूंगा लेकिन नौकरी छोड़ने के पहले वह दुनिया छोड़ कर चला गया. Plane Crash ने उनका सबकुछ छीन लिया था.

अब कौन रखेगा ख्याल 

कैप्टन सुमित के पिता नागर विमानन महानिदेशालय यानि डीजीसीए के रिटायर्ड अधिकारी रह चुके हैं. कैप्टन सुमित अनमैरिड थे. जब कभी वह फ्लाइट लेकर जाते थे तो पड़ोसियों को अपने पापा का ध्यान रखने के लिए कहते थे. सुमित की बहन उनके साथ रहती थी. उनके भतीजे भी कमर्शियल पायलट हैं.  

 

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