Job Search : मेरे बहनोई बेरोजगार हैं और वह नौकरी नहीं करना चाहते, मैं क्या करूं?

Job Search :  अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं अपनी एक पारिवारिक समस्या से परेशान हूं. मेरी बहन की शादी को अभी सिर्फ 6 महीने हुए हैं और तभी से मेरे बहनोई बेरोजगार हैं. कुछ समय पहले उन्हें एक नौकरी मिली भी थी, जिसे उन्होंने सिर्फ 2 महीने बाद ही छोड़ दिया, यह कह कर कि उन्हें अपने बौस का रवैया ठीक नहीं लगा. कहते हैं कि वे वहीं नौकरी करेंगे जहां उन्हें सब अच्छा लगेगा. जहां अच्छा नहीं लगेगा वहां नौकरी नहीं कर सकते. बहुत ही जिद्दी स्वभाव के हैं. इस के अलावा हम लड़की वाले हैं. लड़की वालों का यों भी दामाद को कोई नसीहत देना नहीं बनता. कृपया कोई ऐसा उपाय बताएं कि वे समझ जाएं कि उन्हें घरपरिवार के लिए नौकरी करनी ही होगी.

जवाब

आप के घर वालों ने अपनी बेटी का विवाह तय करते समय लड़के की नौकरी वगैरह के बारे में मालूमात नहीं की होगी वरना एक बेरोजगार लड़के से अपनी बेटी की शादी नहीं करते. उस समय स्थिति जो भी हो अब भले ही आप लड़की वाले हैं, तो भी दामाद को थोड़ी शालीनता से समझा सकते हैं कि अब वे अकेला नहीं हैं. उन पर अपने घरपरिवार (जो निश्चय ही बढ़ेगा भी) की जिम्मेदारी भी है. इसलिए वे टिक कर नौकरी करें. उन के घर वालों से भी कह सकते हैं कि वे अपने बेटे को दुनियादारी समझाएं. उसे समझाएं कि नौकरी में सब कुछ उस के मनमाफिक नहीं मिलेगा. इसलिए जब तक कोई बेहतर नौकरी न मिले नौकरी छोड़ने की भूल न करें, क्योंकि नौकरी छोड़ना जितना आसान है नौकरी मिलना उतना ही कठिन है. अत: मेहनत और लगन से अपनेआप को साबित करना हर नौकरी में जरूरी होता है.

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क्या आप अपनी नौकरी, व्यापार या पेशे के लिए बोझिल मन से जाते हैं? वर्कप्लेस पर जाने का टाइम हो गया, इसलिए अब जाना ही पड़ेगा, ऐसा सोचते हैं? क्या जौब पर जाते समय आप की मनोदशा उस बकरे जैसी होती है जिसे कोई कसाई काटने के लिए घसीट कर ले जाता है या फिर उस बच्चे जैसी जिसे उस की मां घसीट कर स्कूल ले जाती है?

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Best Hindi Stories : आवारगी – आखिर क्यों माही को प्यार में धोखा मिला?

Best Hindi Stories : माही ने अपने दोस्त पीयूष के गले में हाथ डाल लिया था और पीयूस ने भी उस के गले में हाथ डाल लिया था. दोनों के गाल एकदूसरे के गाल से स्पर्श करने लगे थे. अब माही ने अपने मोबाइल से सैल्फी ली. दोनों खिलखिला कर हंस पड़े. हलकी सी हंसी सामने बैठे माही के पति प्रशांत के चेहरे पर भी तैर गई पर उस का चेहरा ही बता रहा था कि उस की इस हंसी के पीछे एक गुस्सा भी था. वे तो आज होटल में खाना खाने आए थे. पीयूष ने ही होटल में खाना खाने के लिए आमंत्रित किया था. हालांकि उस का आमंत्रण तो केवल माही के लिए ही था. यह बात माही भी जानती थी पर वह अपने पति को छोड़ कर नहीं जा सकती थी. एक तो इसलिए कि उसे पति के लिए खाना बनाना ही पड़ेगा और दूसरे इसलिए भी कि कहीं पति नाराज न हो जाए. वैसे वह जानती थी कि पति नाराज हो भी जागा तो अपनी नाराजी व्यक्त नहीं करेगा और यह कोई पहला अवसर तो है नहीं. गाहेबगाहे माही अपने दोस्तों के साथ ऐसी पार्टियां करती रहती है.

प्रशांत कई बार नहीं भी जाता तो माही और भी स्वच्छंदता के साथ अपने दोस्तों के साथ हंसीमजाक करती. कहती, ‘‘अरे, यह मस्ती है, इस में गलत क्या है? ये मेरे दोस्त हैं तो हंसीमजाक तो चलेगा ही,’’ और उस के चेहरे पर खिलखिलाहट दौड़ पड़ती.

पीयूष अपनी पत्नी को ले कर नहीं गया था. वह जानता था कि उस की पत्नी को माही की ये हरकतें पसंद नहीं है और पत्नी को ही क्यों किसी को भी माही का यह इतना बोल्ड हो कर खुलना पसंद नहीं आ सकता. होटल में भीड़ थी. रात्रि में ज्यादातर होटलों में भीड़ होती है. माही और पीयूष की खिलखिलाहट होटल के चारों ओर गूंज रही थी. जब माही ने पीयूष के साथ सैल्फी ली तो सारे लोग उन की ओर देखने लगे. माही को इन सब की कोई चिंता नहीं थी. वह अब भी पीयूष के गले में हाथ डाले बैठी थी और दूसरे हाथ से 1-1 कौर बना कर पीयूष को खिला रही थी.

पीयूष अब सकुचा रहा था. उसे लग रहा था कि वहां बैठे सारे लोगों की नजरें उन के ऊपर ही लगी हुई हैं. उस ने हौले से माही को अपने से अलग किया. माही तो उस से अलग होना ही नहीं चाहती थी पर जब पीयूष ने जबरदस्ती उसे अपने से अलग किया तो उस ने उस के गालों पर किस कर दिया. पीयूष का चेहरा शर्म से लाल हो गया. उस ने चारों ओर नजरें घुमाईं. सभी लोग उस की ओर ही देख रहे थे. माही मुसकराती हुई टेबल के दूसरी ओर आ कर अपने पति के बाजू में बैठ गई. प्रशांत का चेहरा भी मलिन पड़ चुका था. हर बार माही ऐसी ही हरकतें किया करती थी.

प्रशांत कुछ बोलता तो माही उस पर भड़क पड़ती, ‘‘इस में गलत क्या है? वह मेरा मित्र है तो मित्रों के साथ ऐसा ही व्यवहार किया जाता है. इस में गलत क्या है?’’ माही का टका सा जवाब सुन कर प्रशांत चुप हो जाता.

माही बहुत चंचल स्वभाव की लड़की थी और हमेशा आत्मविश्वास से भरी रहती थी. वह बेधड़क हो कर बात करती और अपरिचित को भी छेड़ देती. छेड़ कर वह स्वयं ही खिलखिला कर हंस पड़ती. मुसकान उस के होंठों पर होती तो कोई भी व्यक्ति उस की ओर सहज ही आकर्षित हो जाता.

माही गाना भी बहुत अच्छा गाती थी. उस की आवाज में गजब की मिठास थी. गाने का चयन उस का ऐसा होता कि गाते समय पांव थिरक ही जाते. वह अकसर कहती, ‘‘उदास गाने मु?ो पसंद नहीं हैं. जिंदगी को जिंदादिली से जीओ.’’

लोग उस के इस व्यवहार का अर्थ अपने हिसाब से लगा लेते.

प्रशांत और माही की शादी को ज्यादा वक्त नहीं हुआ था. माही की जब शादी हुई तब वह महज 20 साल की ही थी. वह तो दूसरे शहर के कालेज में डिप्लोमा कर रही थी. उसे पता ही नहीं था कि उस के पिता ने उस की शादी तय कर दी है. हालांकि उसे इस बात का अंदाजा तो था कि कुछ महीने पहले जब वह अपने घर गई थी तो कोई उसे देखने आया था और उस से उन्होंने बातें भी की थीं. उस ने अपने अल्हड़पन से ही उन बातों का उत्तर भी दिया था. उसे इस बात का एहसास तक नहीं था कि अभी ही उस की शादी तय भी हो जाएगी. वैसे भी उसे तो अभी आगे पढ़ना था. उस ने फैशन डिजाइनिंग कोर्स करने का मन बना लिया था. वह नौकरी करना चाहती थी. पर एक दिन अचानक पापा का फोन आया, ‘‘सुनो माही… मैं ने तुम्हारी शादी तय कर दी है… तुम घर आ जाओ…’’

पापा की कड़क आवाज से माही चौंक गई. वैसे तो पापा उसे बहुत प्यार करते थे पर बात जब भी करते कड़क आवाज में ही करते. वह अपने पापा से बहुत भय भी खाती थी.

‘‘पर पापा… मैं अभी शादी नहीं करना चाहती… मुझे पढ़ना है…’’

‘‘ये सब छोड़ो तुम अपना सामान समेटो और घर लौट आओ… अगले महीने तुम्हारी शादी है,’’ कह कर पापा ने उस का उत्तर सुने बगैर फोन रख दिया.

माही बहुत देर तक अपने हाथों में रिसीवर पकड़े बैठी रही. वह जानती थी कि उस के पापा का निर्णय अब नहीं बदलेगा. मम्मी से भी कुछ कहने का कोई मतलब नहीं है क्योंकि मम्मी भी पापा की बात को काट नहीं सकती थीं.

माही की शादी हो ही गई. माही शादीब्याह का मतलब तो जानती थी पर वह अपनी किशोरावस्था के अल्हड़पन से दूर नहीं हो पा रही थी. वैसे तो उस के पति प्रशांत की उम्र भी ज्यादा नहीं थी. पतिपत्नी युक्त परिपक्वता दोनों में नहीं थी. ससुराल में

उसे बहू बन कर रहना कठिन समझ में आने लगा. दोनों अपने वैवाहिक जीवन को स्वतंत्रता के साथ जीना चाहते थे पर ससुराल में यह संभव नहीं था. प्रशांत की माताजी अपने पुराने विचारों को तिलांजलि दे नहीं सकती थीं और माही इस कैद में रह नहीं पा रही थी. माही को ससुराल में बहू बन कर रहना पसंद नहीं आ

रहा था. वह स्वतंत्र विचारों वाली थी और ससुराल वाले अब भी पुराने विचारों को ही अपनाए हुए थे. उस की सास उसे टोकती रहतीं, ‘‘बहू यह मायका नहीं है, ससुराल है. यहां सूट नहीं साड़ी पहनी जाती है और हां सिर पर पल्ला भी रहना चाहिए.’’

माही को इन सब की आदत नहीं थी. प्रशांत की भी नईनई नौकरी लगी थी, शादी के ख्वाब उस ने भी देखे थे. वह अपनी पत्नी के साथ अपनी जवानी का आनंद लेना चाहता था

जो उस के घर में तो संभव था ही नहीं. परिणामतया प्रशांत ने अपना ट्रांसफर करा लेना ही बेहतर समझ.

प्रशांत ने अपना ट्रासंफर अपनी ससुराल यानी माही के शहर में करा लिया. माही की सलाह पर ही उस के मातापिता के घर के ठीक सामने एक किराए का मकान ले लिया और दोनों रहने लगे. अपने मातापिता का संरक्षण को पा कर माही का अल्हड़पन सबाव पर आ गया. वह लगभग यह भूलती चली गई कि वह एक शादीशुदा स्त्री बन चुकी है.

एक पढ़ने वाले स्टूडैंट जैसा उस का स्वभाव था. वह एक बड़े शहर में रह कर पढ़ रही थी. वैसे तो वह गर्ल्स होस्टल में रहती थी इस कारण से भी आजाद खयालों को पूरा करने में कोई दिक्कत महसूस नहीं करती थी. कालेज के दोस्तों के साथ मस्ती करना उस की आदत में था. वैसे तो वह संस्कार वाली लड़की थी पर कालेज में रहते हुए उस ने अपनेआप को इतने आजाद खयाल में ढाल लिया था कि उसे लगता था कि मस्ती करना ही जीवन है. वह मस्ती करने में कोई बुराई सम?ाती भी नहीं थी. उस के लिए लड़की और लड़का एकजैसे थे. जब वह मस्ती करने पर उतर आती तो यह भूल जाती कि उसे लड़कों के साथ एक दूरी बना कर बात करना चाहिए.

प्रशांत अपने औफिस चला जाता और माही मकान बंद कर अपनी मां के यहां पहुंच जाती.  मायके में रहने के कारण उसे अपन आजाद स्वभाव को पूर्णता प्रदान करने में कोई परेशानी थी भी नहीं. वह अपने पुराने दोस्तों के साथ मस्ती करती रहती और कभीकभार कालेज के दिनों के दोस्तों से मिलने के लिए बाहर भी

चली जाती. शुरूशुरू में तो प्रशांत इस सब को अनदेखा करता रहा पर जब बात बढ़ने लगी तो उस ने माही को टोकना शुरू कर दिया. प्रशांत का यों टोकना माही को बुरा लगा. माही ने इस की शिकायत अपने पिताजी से की तो उन्होंने ने रौद्र रूप दिखा दिया. प्रशांत भय के मारे कुछ नहीं बोला.

अवकाश का दिन था. प्रशांत के औफिस की आज छुट्टी थी इसलिए वह अपने घर में ही था. माही उसे खाना खिला कर मां के घर जा चुकी थी. माही जब यकायक दोपहर को घर आ गई तो उसे प्रशांत के कमरे से जोरजोर से बातें करने की आवाज आ रही थी. माही को लगा जैसे उस के कमरे में कोई है. उस ने उत्सुकतावश कमरे का दरवाजा खोल दिया. प्रशांत फोन पर किसी से बात कर रहा था जिस से बात कर रहा था वह कोई महिला ही थी उस की बातों से तो साफ  समझ में आ रहा था. प्रशांत बातें करने में इतना मशगूल था कि उसे माही के अंदर आ जाने का पता ही नहीं चला. वह अब भी वैसे ही बातें कर रहा था, ‘‘हां तो फिर कब मिल रही हो…’’ माही को दूसरी ओर का उत्तर सुनाई नहीं दिया.

‘‘अच्छा ठीक है… मैं टाकीज पहुंच जाऊंगा… बाय…’’

प्रशांत ने फोन रखा तो उसे अपने सामने माही खड़ी दिखाई दी. माही के चेहरे पर गुस्सा था. प्रशांत सकपका गया जैसे उस की चोरी पकड़ी गई हो. उस ने कुछ नहीं बोला. बोला तो माही ने भी कुछ नहीं केवल फड़फड़ाती हुई अपने मायके चली गई.

माही अपने मातापिता के साथ कुछ ही देर में लौट आई. अब वह तेज स्वर में प्रशांत से बातें कर रही थी. उस ने उस अनजानी महिला के साथ उस के संबंध होने का आरोप लगा दिया. इस में माही के मातापिता ने भी उस का ही साथ दिया और प्रशांत को बुराभला कहा. प्रशांत अपनी सफाई देता रहा पर उस की कोई बात किसी ने नहीं सुनी. बात निकल कर महल्लापड़ोस तक जा पहुंची. प्रशांत ने इज्जत के भय से वह मकान छोड़ दिया. वैसे भी इस घटना के बाद माही ने प्रशांत के साथ रहने से मना कर दिया.

प्रशांत अपनेआप को अकेला महसूस करने लगा था. उस ने माही की कितनी ही हरकतों को अनदेखा किया. यह ही गलती शायद उस से हुई थी यदि वह पहले ही उस को रोक देता तो बात इतनी आगे नहीं बढ़ती. वह तो अपना अच्छाभला घर छोड़ कर केवल माही के लिए ही यहां रहने आया था. वह जानता था कि माही गलत नहीं है पर इस के बाद भी उस की हरकतें उचित नहीं हैं. उस दिन वह गलत नहीं था पर माही ने जानबूझ कर उस को आरोपों के घेरे में ले लिया. तो क्या माही उस से अलग होना ही चाह रही थी? उस के दिलदिमाग में कई प्रश्न थे.

माही ने उस से किसी भी किस्म का रिश्ता रखने से मना कर दिया. उस का मन अब इस शहर में नहीं लग रहा था. उस ने ट्रांसफर के लिए आवेदन दे दिया. पर जब तक ट्रांसफर नहीं हो जाता उसे तो यहां नौकरी करते ही रहना है. दूर एक कालोनी में कमरा किराए पर ले लिया. हालांकि, वह यहां कम ही रुकता था. वह तो अपडाउन करने लगा था.

एक दिन दोपहर में वह बाजार में होटल से खाना खा कर निकल रहा था तभी उसे माही किसी के साथ बाइक पर बैठी दिखाई दी. माही अपनी आदत के अनुसार ही उस के साथ सट कर बैठी थी. उस का एक हाथ उस की पीठ पर था. बाइक चलाने वाला हैलमेट लगाए था तो वह उसे पहचान नहीं पाया. माही ने प्रशांत को नहीं देखा पर प्रशांत ने माही को देख लिया.

उस का खून खौल उठा पर वह कुछ बोल नहीं सकता था. अत: चुपचाप औफिस लौट आया. उस ने तय कर लिया कि अब वह माही से कोई रिश्ता नहीं रखेगा.

प्रशांत का ट्रांसफर एक ग्रामीण क्षेत्र में हो गया था. ग्रामीण क्षेत्र उस ने जानबूझ कर ही चुना था. उसे अब शांति चाहिए थी. वह किसी भी मोड़ पर माही के सामने नहीं पड़ना चाह रहा था. उस के दिमाग में इतनी नफरत भरा चुकी थी कि माही का स्मरण होते ही गुस्से के मारे उस के हाथपांव कांपने लगते थे. उस ने 1-2 बार माही से तलाक ले लेने तक का विचार किया पर पारिवारिक कारणों से उस ने इस विचार को त्याग दिया. इधर माही अपने मातापिता की शह पा कर स्वच्छंदतापूर्वक रह रही थी. प्रशांत से दूर होने का दर्द उसे बिलकुल नहीं था.

समय अबाध गति से आगे बढ़ रहा था. लगभग 1 साल गुजर चुका था.

इस 1 साल में न तो माही ने और न ही माही के मातापिता ने उस से कोई संपर्क किया. संपर्क तो प्रशांत ने भी नहीं किया पर उस की माता का मन नहीं मान रहा था तो गाहेबगाहे माही से बात कर लेती थीं. माही हर बार प्रशांत को ही कठघरे में खड़ा कर देती. प्रशांत की मां के दिमाग में भी यह बात जम चुकी थी कि माही तो बहुत अच्छी पर प्रशांत की हरकतों के कारण ही वह उसे छोड़ कर गई है. वे हर बार माही को फिर से प्रशांत की जिंदगी में आ जाने का न्योता देतीं और माही हर बार मना कर देती. इन सारी बातों से प्रशांत अनजान था.

प्रशांत को तो बहुत देर में पता चला कि माही का ऐक्सीडैंट हो गया है पर उस की मां तक यह खबर पहले ही पहुंच गई थी. मां न ही उसे बताया कि बहू का ऐक्सीडैंट हो गया है और वह इसी शहर के अस्पताल में भरती है. मां ने उसे सु?ाव भी दिया कि उसे माही का हालचाल लेने अस्पताल जाना चाहिए जिसे प्रशांत ने सिरे से खारिज कर दिया. पर मां नहीं मानीं. वे खुद ही प्रशांत के छोटे भाई को साथ ले कर माही को देखने अस्पताल चली गईं.

प्रशांत जब शाम को औफिस से लौटा तो मां ने उसे बताया कि माही जीवनमत्यु से संघर्ष कर रही है. ऐसे में उसे सामाजिक तौर पर ही सही अस्पताल देखने जाना चाहिए.

माही सीरियस है यह जान कर पहली बार प्रशांत को दुख महसूस हुआ. उस ने कपड़े भी नहीं बदले और सीधा अस्पताल पहुंच गया.

माही के सारे शरीर में पट्टियां बंधी थीं. वह जिस बाइक के पीछे बैठी थी उस बाइक को कार ने टक्कर मारी थी. माही को तो वह कार कुछ दूर तक घसीटते हुए ले गई थी. उस का सारा शरीर छिल गया था. सिर पर गहरी चोट थी. माही ने प्रशांत को गहरी नजरों से देखा, उस की नजरों में दर्द दिखाई दे रहा था. प्रशांत उस के बैड के पास आ कर खड़ा हो गया. उस ने अपने कांपते हाथों से उस के चेहरे को छूआ. माही की आखों से आंसू बह निकले. प्रशांत बहुत देर तक अस्पताल में रुका रहा.

अस्पताल से लौटने के बाद भी प्रशांत का मन अशांत ही रहा. दूसरे दिन वह औफिस तो गया पर उस का मन किसी काम में नहीं लगा. औफिस से लौटने के बाद वह अस्पताल चला गया और बहुत देर तक माही के पास गुमसुम सा बैठा रहा. माही की स्थिति में सुधार हो रहा था. माही की मां प्रशांत को कृतज्ञता भरी नजरों से देख रही थीं.

माही पूरी तरह स्वस्थ हो कर अपने घर जा चुकी थी. अब प्रशांत का मन माही के बगैर नहीं लग रहा था. इतने दिनों में वह रोज माही से मिलता रहा था. उस की नाराजगी भी दूर होती चली गई थी. प्रशांत को लग रहा था कि माही के बगैर उस की जिंदगी अधूरी सी है. आज वह औफिस नहीं गया सीधे माही के घर चला गया. माही जैसे उस का ही इंतजार कर रही थी.

माही के मां ने भी उस का स्वागत दामाद जैसा ही किया. वह दिनभर माही के पास ही बैठा रहा. शाम को जब वह घर लौट रहा था तो माही की आंखें भीग रही थीं.

प्रशांत और माही के बीच समझौता हो चुका था. अब दोनों फिर से साथ रहने लगे थे. प्रशांत ने अपना घर बनाने के लिए प्लाट खरीद लिया था और उस पर घर बनाने का काम भी शुरू हो गया था. माही के पिताजी ने मकान बनवाने की जिम्मेदारी अपने सिर पर ले ली थी. कुछ ही महीनों में माही और प्रशांत अपने नए घर में रहने लगे. दोनों के बीच अब तनाव महसूस नहीं हो रहा था. प्रशांत ने माही को नई ऐक्टिवा दिला दी थी.

‘‘तुम्हारी मां का घर दूर है न तो इस से चली जाया करो वैसे भी दिनभर अकेले घर में रह कर बोर ही हो जाओगी.’’

माही ने कृतज्ञताभरी नजरों से उस की ओर देखा. माही को अब आनेजाने के लिए साधन मिल चुका था. वह दिन में अपना काम निबटा कर निकल जाती और कोशिश करती कि शाम को प्रशांत के आने के पहले घर लौट आए पर कई बार वह ऐसा कर नहीं पाती तो भी प्रशांत उस से कुछ नहीं बोलता था. सप्ताह में एकाध बार वे होटल में खाना खाने जाते. कई बार माही अपने दोस्तों के साथ भी बाहर खाना खाने चली जाती तो भी प्रशांत उसे रोकताटोकता नहीं.

माही एक बार फिर अपने पुराने रंगढंग में ढलने लगी थी. वह पहले की तरह ही अपने मित्रों के साथ मस्ती करती. उस के मित्रों के गु्रप में मस्ती भरे मैसेजों का आदानप्रदान होता. वह देर रात तक कभी फोन पर तो कभी मैसेजों में व्यस्त रहती. देर रात तक जागती तो सुबह देर से उठती. दोपहर को वह कोई न कोई बहाना निकाल कर घर से निकल जाती. कभीकभी तो वह देर रात को ही घर लौटती. प्रशांत तो समय पर घर आ जाता और लेट जाता. माही जब घर लौटती तब खाना बनाती. प्रशांत को गुस्सा तो आता पर वह सब्र किए रहता. उसे उस का अपने पुरुष मित्रों के साथ बेतकल्लुफ होना जरा भी नहीं सुहाता था.

आज प्रशांत शाम को जब घर लौटा तो उसे घर का गेट खुला मिला. अंदर से माही के खिलखिलाने की आवाजें आ रही थीं. उस के कदम ठिठक गए. पर वह

दिन भर का थकाहारा था तो उसे घर के अंदर तो जाना ही था. ड्रांइगरूम में माही किसी पुरुष की बगल में बैठ कर मोबाइल पर कुछ देख रही थी. इस व्यक्ति को प्रशांत ने पहली बार देखा. वह चौंक गया, ‘‘कौन है यह?’’

माही बेतकल्लुफ सी उस से सट कर बैठी थी. प्रशांत के आने की आहट उसे मिली तो उस ने केवल अपना चेहरा उठा कर प्रशांत की ओर देखा पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की. उस व्यक्ति को जरूर कुछ संकोच हुआ तो उस ने माही से कुछ दूरी बनाने और मोबाइल को बंद करने की कोशिश की. प्रशांत अनमाने भाव से अपन बैडरूम की ओर बढ़ गया. उस के चेहरे पर गुस्सा साफ दिखाई दे रहा था.

प्रशांत हाथपैर धो कर अपने बिस्तर पर पड़ा था. बाहर से जोरजोर से हंसने की आवाजें आ रही थीं. उसे भूख लगी थी. उसे तो यह भी नहीं पता था कि माही ने खाना बनाया भी है या नहीं. वह तो अपने दोस्त में ही उलझ थी. प्रशांत के चेहरे पर गुस्सा उबाल लेता जा रहा था. गुस्से से तमतमाया प्रशांत जब बैडरूम से निकल कर ड्राइंगरूम में पहुंचा तो उस समय माही उस व्यक्ति की गोद में बैठ कर सैल्फी ले रही थी.

प्रशांत का गुस्सा बाहर निकलने लगा, ‘‘माही, क्या है यह? तुम्हें सम?ा में नहीं आता कि मैं दिनभर का थका घर आया हूं भूख लगी है.’’

‘‘तो ले लो अपने हाथों से खाना. किचन में रखा हुआ है.’’

माही अब भी उस दोस्त के साथ गले में बांहें डाले बैठी थी.

‘‘यह है कौन?’’

‘‘मेरा दोस्त. भोपाल से आया है. हम दोनों साथ कालेज में पढ़ते थे,’’ कहते हुए माही ने अपने दोस्त को अपनी बांहों में दबोच लिया.

प्रशांत का गुस्सा 7वें आसमान पर जा चुका था. उस ने गुस्से में माही का हाथ पकड़ कर खींच लिया, ‘‘तो ऐसे चिपक कर बैठोगी क्या?’’

माही को प्रशांत के ऐसे गुस्से की उम्मीद नहीं थी. वह खींचे जाने से लड़खड़ा कर गिर पड़ी.

माही के दोस्त ने स्थिति को बिगड़ते हुए महसूस कर लिया. सो चुपचाप वहां से निकल गया.

माही अपने दोस्त के सामने प्रशांत द्वारा की गई बेइज्जती से बौखला गई. वह बिफर पड़ी, ‘‘यह क्या हरकत है? तुम ने मेरे दोस्त के सामने मेरी बइज्जती कर दी.’’

‘‘और तुम जो उस के साथ चिपक कर बैठी थी वह हरकत ठीक थी?’’

‘‘हम तो मस्ती कर रहे थे. बहुत दिनों बाद मेरा दोस्त आया था तो इस में बुरा

क्या है?’’

‘‘एक अनजान व्यक्ति को अकेले घर में बुलाना और फिर उस के साथ…’’ प्रशांत ने जानबू?ा कर वाक्य पूरा नहीं किया. उस का गुस्सा अब भी उबल रहा था.

‘‘कौन अनजान, कहा न कि वह मेरा दोस्त है. कालेज के दिनों के समय का. फिर अनजान क्यों हुआ और हम तो कालेज के दिनों में इस से ज्यादा मस्ती करते थे. दोनों एकदूसरे के गले में बांहें डाल कर रातभर सोए भी रहते थे,’’ माही अपनी धुन में बोलती जा रही थी और गुस्से में थी तो और जोरजोर से बोल रही थी. उन की आवाजें उन के घर से निकल कर बाहर तक जाने लगी थीं.

‘‘तुम्हें शर्म भी नहीं आ रही ऐसी बातें मुझ से कहते हुए?’’

‘‘हम तो ऐसे ही हैं,’’ माही की आवाज और तेज हो चुकी थी.

महल्ले के लोग भी माही की हरकतों को स्वीकार नहीं करते थे, यह अलग बात थी कि उन्होंने कभी इस का विरोध भी नहीं किया कि अरे जब उस के पति को ही कोई ऐतराज नहीं है तो फिर हमें क्या पड़ी है. पर आज उन्होंने एक अनजान व्यक्ति को सुबह ही जब प्रशांत घर से निकला था तब ही आते देख लिया था पर उन्हें लगा कि

कोई रिश्तेदार होगा. माही के चिल्लाने की आवाज से महल्ले वालों को पता चला कि माही तो दिनभर से किसी अनजान व्यक्ति के साथ घर के अंदर है तो उन का गुस्सा भी बरसने लगा.

माही अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रही थी या उस का स्वभाव ही ऐसा बन गया था, यह प्रशांत नहीं सम?ा पा रहा था. एक दिन कुछ ऐसा घटा जिस ने माही को सोचने पर मजबूर कर दिया. उस दिन माही को विजय बहुत दिनों बाद दिखाई दिया था, आज उस के साथ कोई लड़की थी जिसे माही पहचानती नहीं थी. माही ने उस लड़की को ज्यादा तवज्जो नहीं दी और सीधे जा कर विजय के कंधे पर हाथ मार कर उस का हाथ पकड़ लिया, ‘‘कहां थे जनाब इतने दिनों से?’’

विजय को माही के ऐसे व्यवहार की उम्मीद नहीं थी सो वह असहज हो गया.

‘‘अरे शरमा तो ऐसे रहे हो जैसे मैं ने तुम्हारी इज्जत पर हाथ डाल दिया हो,’’ इतना कह कर माही खुद ही खिलखिला कर हंस पड़ी.

विजय के चेहरे पर शर्मिंदगी के भाव उभर आए. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या उत्तर दे. विजय के साथ साक्षी थी. वह यह नजारा देख रही थी.

साक्षी और विजय लंबे समय से ‘कभी जुदा न होंगे हम…’ वाली पोजीशन में रह रहे थे इस बात को सभी जानते थे और दोनों इसे छिपाते भी नहीं थे. साक्षी माही की हरकतों को सहन नहीं कर पा रही थी.

‘‘आप कौन? आप को किसी से बात करने की तमीज नहीं है क्या?’’ साक्षी गुस्सा नहीं दबा पाई और चिल्ला पड़ी.

माही कुछ देर तक तो असमंजस में रही फिर अपनी झेंप मिटाते हुए बोली, ‘‘ओह, लगता है आप को मेरा विजय को छूना पसंद नहीं आया,’’ कहते हुए जानबूझ कर विजय के गले में बांहें डाल दीं.

यह देख कर साक्षी तमतमा गई. उस ने आव देखा न ताव माही के गाल पर यह कहते हुए जोर से तमाचा मार दिया, ‘‘तुम बहुत बेशर्म लड़की हो, तुम जैसी लड़कियां ही महिलाओं को बदनाम करती हैं.’’

माही सहम गई. साक्षी का गुस्सा अभी भी बना हुआ था, ‘‘बेवकूफ लड़की अपने मांबाप से संस्कार सीख लेती कुछ.’’

माही की आंखों से अब आंसू बहने लगे थे. वह तेजतेज कदमों से वहां से चली गई.

माही को जाते देख कर भी साक्षी का गुस्सा शांत नहीं हुआ, ‘‘यही आवारगी कहलाती है… अपनेआप को सुधार लो नहीं तो बदनाम हो जाओगी.’’

माही ने सुना पर अपने कदमों को रोका नहीं. उसे भी शायद एहसास हो रहा था

कि उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था. उसे एहसास हो रहा था कि उस ने वाकई कोई तो गलती की है. हर उम्र का व्यवहार अपनी उम्र में अच्छा लगता है. वह घर आ कर सोफे पर बैठीबैठी सुबकती रही. लगभग आधी रात को मजबूत इरादों के साथ वह उस कमरे की तरफ बढ़ी जहां प्रशांत सो रहा था. वैसे तो प्रशांत को भी नींद कहां आ रही थी.

1-1 घटनाक्रम उस की आंखों के सामने चलचित्र की भांति गुजर रहा था.

‘‘आखिर यह तो होना ही था,’’ उस ने गहरी सांस ली. उसे कमरे में किसी के आने की आहट सुनाई दी. उस के पैरों के पास माही खड़ी थी. उस का चेहरा आंसुओं से भरा था.

प्रशांत ने प्रश्नवाचक नजरों से माही की ओर देखा. वह उसे ही देख रही थी.

‘‘सौरी…’’ माही की आवज धीमी थी पर आवाज में नमी थी.

प्रशांत ने कोई उत्तर नहीं दिया. उस ने करवट बदल कर अपने सिर को दूसरी ओर घुमा लिया.

अब की बार माही ने प्रशांत के पैरों को पकड़ लिया, ‘‘सौरी, अब कभी गलती नहीं होगी,’’ और वह फफकफफक कर रोने लगी. उस के आंसुओं से प्रशांत के पैर नम होते जा रहे थे.

प्रशांत कुछ देर तक यों ही मौन लेटा रहा. वह माही को रो लेने देना चाह रहा था. कुछ देर बाद प्रशांत उठा और उस ने माही को अपनी बांहों में भर लिया.

‘‘सौरी प्रशांत अब ऐसा कभी नहीं होगा,’’ माही अभी भी रो रही थी. उस की सिसकियां कमरे में गूंज रही थीं.

Hindi Moral Tales : मी टाइम

Hindi Moral Tales : द वाई टाइम से ले लेना. खाना ठीक से खाना. फोन औफ मत करना, अपने पास ही साइलैंट मोड पर रख कर अच्छी तरह सोना,’’ अपने टूर के लिए बैग पैक करते हुए अनंत के उपदेश जारी थे और मैं मन ही मन इन 2 दिनों के अपने प्रोग्राम सोच रही थी जो मैं ने अनंत के टूर की डेट पता चलते ही अपनी फ्रैंड्स के साथ बना लिए थे. अनंत अकसर वर्क फ्रौम होम ही करते हैं.

इस बार बड़े दिनों बाद टूर पर जा रहे हैं और मेरी तो छोड़ो, मेरी फ्रैंड्स विभा, गौतमी और मिताली भी अनंत के जाने पर खुश हो रही हैं कि चलो, शुभा अब फ्री तो हुई. इन तीनों के पति औफिस जाते हैं. हमारे बच्चों युग और तनिका की तरह इन के बच्चे भी बाहर हैं. पति दिनभर औफिस तो अब इन का अलग ही रूटीन रहता है.

अनंत घर पर रहते हैं तो मेरा रूटीन अनंत के आसपास घूमता है और वैसे भी अनंत की आदत है कि उन्हें काम करते हुए घर में मेरी उपस्थिति अच्छी लगती है. चाहे दिनभर मीटिंग में व्यस्त रहें, आपस में पूरा दिन बात भी न हो, पर घर में मेरा होना उन्हें अच्छा लगता है.

हां, तो अनंत की सुबह फ्लाइट है, दिल्ली जा रहे हैं. मुंबई से दिल्ली पहुंचने में ज्यादा वक्त नहीं लगता है पर फिर भी इतने निर्देश दिए जा रहे हैं कि पूछिए मत. एक बड़ी टीम उन के अंडर काम करती है तो मैं कई बार कहती भी हूं कि भई मैं तुम्हारी जूनियर नहीं हूं. सुन कर हंस देते हैं. इस बात पर चिढ़ते नहीं हैं. वैसे भी इतने सालों बाद पत्नी की किसी बात पर कोई समझदार पति चिढ़ कर पंगा नहीं लेता.

पैकिंग कर के अनंत ने कहा, ‘‘चलो, फटाफट डिनर करते हैं, जल्दी सोऊंगा, सुबह 5 बजे उठना है.’’

‘‘हां, खाना लगाती हूं.’’

खाना खा ही रहे थे कि तनिका ने फैमिली गु्रप पर वीडियो कौल किया. युग ने भी जौइन किया. तनिका बैंगलुरु और युग देहरादून में पोस्टेड हैं. हलकेफुलके हंसीमजाक के साथ कौल चल रही थी.

तनिका ने मुझे छेड़ा, ‘‘मम्मी, कल से अपने मी टाइम के लिए ऐक्साइटेड हो?’’

बेटियां मां को कितना जानती हैं न. मुझे हंसी आ गई.

युग ने अपनी तरह से मुझे छेड़ा, ‘‘पापा, क्यों जा रहे हो? मम्मी बहुत ऐंजौय करने वाली हैं. उन के चेहरे की चमक देखो. मम्मी, थोड़ा तो उदास हो कर दिखा दो.’’

मैं ने खुल कर ठहाका लगाया. कौल पर मुझे मजा आया, बच्चे दूर हों तो फैमिली कौल्स अच्छी लगती ही हैं. रोज के काम मैं ने जरा जल्दी निबटाए, सुबह जल्दी उठना था. अनंत कितने बजे भी निकलें, मैं उन के लिए हमेशा नाश्ता बनाती हूं. वे कितना भी कहें, एअरपोर्ट पर खा लूंगा, परेशान मत हो पर मुझे पता है कि एअरपोर्ट पर उन्हें कुछ पसंद नहीं आता. सोने लेटे तो मैं आदतानुसार उन की बांह पर सिर रख कर लेट गई, कितना सुकून मिलता है अनंत की बांहों में. फिर सिर उन के सीने पर टिका दिया तो उन्होंने भी सिर उठा कर मेरे बालों को चूम लिया. बोले, ‘‘मिस करोगी?’’

अब वह पत्नी ही क्या जो मौका मिलते ही उलाहने न दे, मैं ने कहा, ‘‘सारा दिन लैपटौप पर ही तो रहते हो, बीचबीच में ही तो अपने काम से रूम से निकलते हो. सोच लूंगी कि अंदर अपना काम कर रहे हो, तुम कौन सा सारा दिन मेरे साथ वक्त बिताते हो.’’

‘‘बाप रे इतनी शिकायतें,’’ कहते हुए अनंत ने मुझे कस कर अपने सीने से लगा लिया. हंस कर पूछा, ‘‘अच्छा, बताओ इतना काम किस के लिए करता हूं?’’

बस, यहीं, यहीं एक पत्नी को अकसर जवाब नहीं सूझता. मुझे भी नहीं सूझा. मैं ने कहा, ‘‘चलो, अब सो जाओ, सुबह जल्दी उठना है.’’

सुबह नाश्ता करते हुए अनंत को मैं ने ध्यान से देखा, कितने अच्छे लगते हैं अनंत. 50 के हो रहे हैं, पर लगते नहीं. ब्लैक टीशर्ट और जीन्स कितनी अच्छी लग रही है उन पर. बाल पहले से थोड़े हलके हो गए हैं पर क्या फर्क पड़ता है. यह सब तो उम्र के साथ होता ही है. मेरे बाल भी अब पहले जैसे कहां रहे.

डाइनिंगटेबल पर मैं अनंत को निहार ही रही थी कि उन्होंने हंसते हुए मुझे देखा, फिर कहा, ‘‘नजर लगाने का इरादा है?’’

मैं ने उठ कर उन के गाल को चूम लिया.

‘‘अरे वाह, जब जा रहा हूं तो प्यार कर रही हो. मी टाइम सोच कर मुझ पर प्यार आया है न?’’

मैं हंस दी. अनंत चले गए. सचमुच थोड़ा टाइम अपने साथ गुजारने का मन था, अपनी मरजी से, अपने मूड से हर काम करने का मन था. 6 बज रहे थे. सोचा, 1 कप चाय पी कर

मैं भी सैर पर चली जाती हूं, खूब लंबी सैर कर के आऊंगी. आज तो जल्दी आने का भी प्रैशर नहीं. हर काम आरामआराम से करूंगी. सोचतीसोचती मैं ड्रैसिंगटेबल के सामने खड़ी हो गई. खुद को ध्यान से देखा. अनंत काफी अच्छे लगते हैं. मैं भी ठीकठाक दिखती हूं. अपनी जोड़ी बढि़या है.

मैं इस समय नाइट गाउन में थी. यह सैक्सी गाउन अनंत की ही पसंद का है. स्लीवलैस, गुलाबी रंग, पारदर्शी. मैं इस में अच्छी लग रही थी. अपनी फिगर पर मेरी पूरी नजर रहती है, बिगड़ने न पाए. चाय बना कर मैं ने अपना मोबाइल फोन उठाया. व्हाट्सऐप खोलते ही इतनी जोर से हंसी आई कि चाय छलकतीछलकती बची. शैतान सहेलियों ने एक बार फिर चारों के गु्रप का नाम बदल दिया था. गु्रप के नाम बदलते रहते हैं. इस बार नाम रखा गया था शुभा का मी टाइम और अनंत का भी एक मैसेज था- आई लव यू. अभी तो अनंत कैब में ही थे, फिर मैं ने भी लव यू टू लिख कर एक किस वाली इमोजी भेज दी. इमोजी आजकल अपना काम अच्छा कर रही हैं. कम शब्दों में काम चल जाता है, फीलिंग्स भी शेयर हो जाती हैं.

आज आराम से सैर की. आते हुए गरमगरम डोसे बनाने वाले उसी ठेले वाले को देखा जिस पर इस समय खूब भीड़ रहती है. रोज मन मारती हुई निकल जाती हूं कि इतनी भीड़ में कौन खड़ा हो कर पार्सल ले और अनंत जिम जाते हैं. वे इस रास्ते पर आते नहीं. आज सोचा, पार्सल की क्या जरूरत है, स्लिंग बैग में पैसे रहते ही हैं, आराम से अपनी बारी का इंतजार करने लगी.

डोसे वाले ने पूछा, ‘‘मैडम, पार्सल?’’

मैं ने कहा, ‘‘नहीं, यहीं.’’

आराम से 2 डोसे खाए, मजा आ गया. मैं 8 बजे तक घूमतीटहलती वापस घर आई. वर्षा बाई 10 तक आती है. घर आते ही लगा, अनंत सोफे पर बैठ कर अपने फोन में बिजी होंगे, मैं फिर ताना मारूंगी कि ‘बस फोन ले कर बैठे रहना. वे सफाई देंगे कि अरे, औफिस का काम भी होता है.

मैं ने सोचा, थोड़ा घर संभाल लेती हूं.

अनंत का टौवेल अभी तक चेयर पर रखा था, इसे धो देती हूं, यों ही उसे सूंघ लिया. अनंत की खुशबू कितनी अच्छी लगती है. उन का रूम ठीक कर देती हूं, बिखरा हुआ सामान इधरउधर करती रही. लंच पर तो मी टाइम गु्रप बाहर जा ही रहा था. फैमिली गु्रप पर सब एकदूसरे से टच में थे ही. अनंत के रूम में जितनी देर रही, उन का ध्यान आता रहा. कितनी मेहनत करते हैं. प्रोग्राम था कि पहले लंच के लिए एक शानदार रेस्तरां जाया जाएगा. हम

चारों बोरीवली में एक ही सोसाइटी में रहती हैं, यहां एक ‘साउथ बांबे’ नाम से साउथ इंडियन खाने के लिए फेमस होटल है जहां हम कई बार आते हैं. कार विभा ही निकालती है. इस एरिया के ट्रैफिक में कार चलाने की पेशैंस उसी में है. यह होटल बहुत चलता है. दूर से ही यहां के सांभर की खुशबू मन खुश कर देती है. दोसे की इतनी वैरायटी है कि क्या कहा जाए. यहां पहले से बुकिंग की हुई थी वरना यहां लंबी लाइन होती है. कार पार्क कर के हम अंदर जाने के लिए बड़ी.

गौतमी ने कहा, ‘‘यार, कितना अच्छा लगता है मी टाइम. कितनी मुश्किल से शुभा को यह टाइम मिलता है. हमारा क्या है, हमारे वाले तो औफिस निकल जाते हैं, बेचारी यही अनंत का यह, अनंत का वह करती रह जाती है. यार. अनंत को बोल वर्क फ्रौम है तो इस का मतलब यह नहीं कि तू घर की चौकीदार है.

अब तक मुझे समझ आ गया था कि मेरी खिंचाई हो रही है. मैं ने कहा, ‘‘बकवास बंद करो. जल्दी चलो, कितनी अच्छी खुशबू आ रही है.’’

हम चारों अपनी रिजर्व्ड टेबल पर बैठ गए. मुझे इन का मेनू देख कर हंसी आई, ‘‘यार, ये डोसे इतनी तरह से कैसे बना लेते हैं? बताओ. पावभाजी डोसा? चीज डोसा? वैसे मैं ने तो आज सुबह भी ठेले वाला डोसा खाया है. मेरा मी टाइम सुबह से स्टार्ट हो चुका है. लग रहा है, क्याक्या न कर डालूं.’’

मिताली ने एक ठंडी सांस ली, ‘‘देखा, ऐसा भी नहीं कि हमारे पति हमें कहीं आनेजाने से टोकते हैं या मना करते हैं पर कहीं जाने के बारे में बात करो तो तुरंत दुमछल्ले की तरह साथ में टंग जाते हैं यार. उन का प्यार भारी पड़ जाता है न कभीकभी? मैं कई बार सुधीश से कहती हूं कि तुम बिजी हो तो मैं चली जाती हूं. बंदा तुरंत कहता है कि अरे, मैं हूं न. मेरे मी टाइम की ऐसीतैसी हो जाती है.’’

हम खुल कर हंसे तो विभा ने कहा, ‘‘अब यही देख ले. पति के साथ आते हैं तो ऐसे ठहाके लगते हैं क्या?’’

मैं ने कहा, ‘‘चल पहले और्डर कर दें?’’

‘हां’ कहतेकहते विभा ने यों ही इधरउधर देखा और जोर से किसी को ‘हाय’ किया. उस के चेहरे की चमक बता रही थी कि उस ने किसी खास दोस्त को देखा है. हम ने उस की नजरों का पीछा किया. पास की ही टेबल पर 3 हमारी ही उम्र के पुरुष बैठे थे. उन में से एक उठ कर आया, ‘‘विभा, क्या हाल हैं? यहां कैसे?’’

‘‘तुम अभी भी उतने ही इंटैलिजैंट हो जैसे कालेज में थे… अरे, होटल में कोई क्या करने आएगा?’’

वह जो भी था जोर से हंसा, ‘‘तुम्हारा सैंस औफ ह्यूमर अभी भी वैसा ही है जैसा कालेज

में था.’’

फिर विभा ने हम तीनों से उस का परिचय करवाया, ‘‘यह सुमित है. हम साथ ही पढ़े हैं, यह भी यहीं मुंबई में ही रहता है.’’

और फिर सुमित ने अपने दोनों साथियों को पास आने का इशारा किया, ‘‘ये मेरे कलीग्स हैं, अरविंद और संजय.’’

हम सब ने एकदूसरे से हाथ मिलाया, परिचय अच्छी तरह से लियादिया गया. विभा काफी बहिर्मुखी है. उसे सब से मिलनेमिलाने में बड़ा मजा आता है. उस ने कहा, ‘‘सुमित, चलो साथ ही बैठ जाते हैं. लंच करते हुए बातें भी हो जाएंगी. बहुत दिन बाद मिले हैं.’’

उन 3 अजनबियों को क्या दिक्कत होनी थी जब सामने से अच्छी कंपनी मिल रही हो, अपनी कंपनी को इसलिए अच्छा कह रही हूं कि मुझे पता है कि हम ठीकठाक दिख रही थीं और हम बातें करने वाला तो ढूंढ़ते ही हैं. फैमिली के बिना यह एक नया बदलाव ठीक लग रहा था.

विभा ने और बड़ा मजाक कर दिया, ‘‘प्लीज फोन कोई मत निकालना. आज शुभा का मी टाइम डे है.’’

और हमारी बातें सुनसुन कर तीनों बहुत हंसे. लंच बड़ा भारी और्डर किया गया. 7 लोग, सब की अलगअलग पसंद. मजा आया.

संजय ने कहा, ‘‘शुभा, तुम्हारी बातें सुन कर लग रहा है कि हमारी पत्नियां भी हमारे बाहर जाने पर ऐसे ही खुश होती होंगी क्या?’’

मिताली ने जवाब दिया, ‘‘और क्या. यह बात लिख कर ले लो. हर पत्नी पति और बच्चों से थोड़ी देर तो छुट्टी चाहती ही है. तुम लोग हमें बहुत नचाते हो.’’

अरविंद ने कहा, ‘‘तुम लोग हमें आज क्यों मिल गईं? हमें तो लग रहा है जैसे हम अपनी पत्नी के साथ रोज रह कर कोई गुनाह कर रहे हैं.’’

मुझे इस बात पर बहुत हंसी आई, फिर  अरविंद से पूछ लिया, ‘‘वैसे आप लोग यहां कैसे? यह तो औफिस टाइम है न?’’

‘‘हम तीनों की पत्नियां भी मायके गई हैं. कल आएंगी. वैसे आप लोग कहां से हैं?आप लोगों की हिंदी तो साफ लग रही है, यूपी से हैं?’’

मैं हंसी, ‘‘अरे वाह, हां मैं नैनी इलाहाबाद से हूं…’’

‘‘प्रयागराज?’’ उस ने मेरी दुखती नस पर हाथ रख दिया था.

मैं ने कहा, ‘‘मैं तो इलाहाबाद में जन्मी, पलीबढ़ी हूं, वहीं लाइफ के 22 साल बीते. हमारे दिल में तो इलाहाबाद बसता है. प्रयागराज बसतेबसते बसेगा.’’

उस ने गहरी सांस ली, ‘‘हां, यह तो सही बात कही. मैं भी नैनी का हूं. रमेश कपड़े वाले हैं न, उन का छोटा बेटा हूं मैं.’’

‘‘क्या? आप की दुकान पर तो मैं कई बार अपने बिट्टू भैया के साथ जाती थी.’’

‘‘क्या? आप बिट्टू की बहन हो?’’

‘‘हां.’’

‘‘लो भाई, आज तो मजा आ गया.’’

अब उसे क्या बताती कभी उस का भाई क्रश था मेरा. मुझे बहुत मजा आया. मैं इस इत्तफाक पर खूब हंसी. सब ही हंसे.

हमारा और्डर आ चुका था. हम ने एकदूसरे के और्डर को टेस्ट भी किया. अब तक टेबल्स साथ जुड़वा ली गई थीं. आज तो जैसे इत्तफाकों का दिन था. खाना खाते पता चला कि संजय और गौतमी की बेटियां बैंगलुरु में एक ही कालेज में पढ़ रही हैं. बातें करने के लिए इतना कुछ था कि खाना खत्म हो गया, बातें खत्म नहीं हुईं. हमें यहां 2 घंटे हो गए थे. अब 3 बज रहे थे. विभा ने जोमैटो से बुकिंग की थी तो उसे डिस्काउंट मिला था. इसलिए बिल उस ने दिया. बाकी सब ने शेयर कर लिया. हम बाहर निकले तब तक एक अच्छी दोस्ती की बौंडिंग हम सब के बीच हो चुकी थी.

विभा ने कहा, ‘‘तुम लोग घर जा रहे हो?’’

‘‘नहीं, लंच टाइम में औफिस से उठ कर आ गए थे. अब औफिस निकलते हैं.’’

‘‘ऐसी क्या नौकरी कर रहे हो जिस में इतनी देर लंच करने का टाइम मिल गया?’’

वे तीनों जोर से हंसे, ‘‘आज बौस नहीं

आए हैं.’’

गौतमी ने कहा, ‘‘थोड़ा प्रोग्राम और बना

लें फिर?’’

अरविंद ने कहा, ‘‘क्या? वैसे हम फ्री हैं.’’

‘‘आनंद हौल में एक पेंटिंग की प्रदर्शनी लगी है, वहीं एक प्ले भी चल रहा है, बर्फ. थ्रिलर है. चलो, बढि़या दिन बिताएं. तभी विभा का मी टाइम का सपना पूरा होगा. क्यों विभा?’’

मैं मचल गई, मेरे मुंह से निकल गया, ‘‘चलो न सब. कितना मजा आएगा. कितना नया दिन बीतेगा.’’

सब तैयार. मैं खुश. और मुझे आज क्या चाहिए था.

वे तीनों सुमित की कार में, हम चारों पहले की तरह विभा की कार से आनंद हौल पहुंचे.

पहली फ्लोर पर प्रदर्शनी थी, दूसरी फ्लोर पर प्ले. तय हुआ कि पुरुष दोनों का टिकट्स ले लेंगे, जिस की बाद में हम पेमैंट कर देंगी क्योंकि

लाइन अभी लंबी थी. हम चारों वौशरूम गईं.

हम ने अपने बाल ठीक किए, मैं अचानक अपने बैग से अपनी लिपस्टिक निकाल कर दोबारा लगाने लगी.

गौतमी को मौका मिल गया, ‘‘क्यों विभा, पहले कभी शुभा को यों दोबारा लिपस्टिक लगाते, बाल ठीक करते, अपनेआप को चारों तरफ से निहारते देखा है क्या?’’

‘‘न भई, आज कुछ कालेजगर्ल वाली हरकत कर रही है यह तो? नैनी वाले से कुछ पुराना याराना तो नहीं है न?’’

‘‘तुम सब बहुत बेकार हो. जरा सा बाल क्या ठीक कर लिए, पीछे पड़ गईं.’’

‘‘फिर लिपस्टिक क्यों ठीक की?’’

मैं हंस दी, ‘‘देखो यार, यह तो मानना

पड़ेगा कि आज कुछ अलग दिन जा रहा है. ऐंजौय करने दो.’’

‘‘वह नैनी वाला तुम्हें देख तो रहा था.’’

‘‘हां, तो आंखें हैं उस की, देखेगा ही.’’

थोड़ी बकवास कर के एकदूसरे को छेड़ कर हम पेंटिंग की प्रदर्शनी की तरफ चल दिए. हम सभी यहां पहली बार आए थे. वहां जा कर हमें समझ आ गया कि बस मुझे और मिताली को ही पेंटिंग्स में रुचि है बाकी सब टाइम पास ही कर रहे हैं. किसी को मौडर्न पेंटिंग समझ नहीं आ रही थी. हम जल्दी वहां से निकल लिए.

सुमित ने पूछा, ‘‘प्ले का टाइम हो रहा है, 1-1 कप चाय या काफी पी लें?’’

इस में ज्यादा सोचने की जरूरत थी ही नहीं. सब को चाय पीनी थी. एक स्टौल पर जा कर सब ने चाय ली और कोने में खड़े हो कर चाय पीने लगे. प्ले के लिए भीड़ बढ़ने लगी थी. मैं और अनंत अकसर प्ले देखते हैं. मुंबई में कई लोगों को प्ले देखने का एक नशा सा है. मैं भी उन  में से एक हूं. कलाकारों को सामने अभिनय करते देखना वाकई बहुत रोमांचक और सुखद अनुभव होता है.

चाय पी कर हम सभी थिएटर में अपनीअपनी सीट पर जा कर बैठ गए. 7 बज

रहे थे, प्ले 9 बजे खत्म होने वाला था. थिएटर देखने वाली जनता भी कुछ अलग होती है. थ्रिलर प्ले में 3 ही कलाकार थे. हमारे साथी पुरुष पहली बार कोई प्ले देख रहे थे. वे ज्यादा उत्साहित थे. सौरभ की ऐक्टिंग तो फिल्मों में देख ही चुके हैं, प्ले में इतना सन्नाटा था कि सूई भी गिरे तो आवाज हो. दम साधे सब ने शो देखा. प्ले इतना बढि़या था कि खत्म होने के बाद भी देर तक तालियां बजती रहीं.

पुरुष साथी तो इतने जोर से तालियां

बजा रहे थे कि विभा ने धीरे से टोका, ‘‘बस

कर दो भाई.’’

एक अच्छा अनुभव ले कर हम सातों बाहर निकल आए, अब फोन नंबर लिएदिए गए.

मिताली ने कहा, ‘‘फिर मिलते हैं, आज का दिन याद रहेगा.’’

संजय ने पूछ लिया, ‘‘फिर मिलें?’’

गौतमी ने कहा, ‘‘हां, कभी ऐसे ही मिल लेंगे. बस हम 7. फैमिली का पुछल्ला रहने देंगे.’’

पुरुष साथियों को तो यह बात बेहद पसंद आई. सब ने तुरंत ‘हां, हां’ की.

हंसतेबोलते एकदूसरे से हाथ मिला कर बाय कहते हुए हम विभा की कार की तरफ बढ़ चलीं. मैं ने कार में बैठते हुए कहा, ‘‘भई, कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसा मी टाइम मिलेगा. वाह, आनंद आ गया. एक दिन तो ऐसा मिलना ही चाहिए यार. है न?’’

गौतमी ने मुझे चिढ़ाया, ‘‘10 बज रहे हैं, बस पूरा दिन आवारागर्दी में बिता दिया तुम ने. तुम्हारा हो गया मी टाइम डे और यहां हमारे  पति हमारा इंतजार कर रहे हैं. अब जा कर कोई कहानी सुनानी पड़ेंगी कि कहां देर हुई.’’

‘‘मुंबई में कहानियों की कहां कमी. अभी बोल दो ट्रैफिक में फंसी हुई हो इतनी देर से. इतना टायर्ड साउंड करो कि उसे ही तुम पर तरस आ जाए. ऐसा करो, अभी कार का शीशा नीचे कर के उसे फोन करो, ट्रैफिक की आवाज वह सुन ही लेगा,’’ मैं ने उसे आइडिया दिया तो उस ने मुझे घूरा, ‘‘नैनी वाले से मिल कर यह हिम्मत आ गई क्या?’’

‘‘बकवास बंद करो और गाड़ी चलाओ,’’ मैं हंस पड़ी. पर वह सचमुच अब वैसा ही कर रही थी जैसा मैं ने आइडिया दिया था. हम तीनों अब उस की ऐक्टिंग देख रहे थे.

घर पहुंच कर मैं ने कपड़े बदले. जल्दी से शौवर लिया. फोन देखा. अनत की, बच्चों की कई कौल्स थीं. मैं उन्हें बीचबीच में मैसेज करती रही थी. कहां हूं, बताती रही थी. अब चैन से बैठ कर फैमिली कौल की. फिर बैड पर आंखें बंद कर लेट गई. आज का दिन कितना सुंदर बीता. एक पूरा दिन अपने लिए अपनी मरजी से. फुल मी टाइम.

फैमिली वीडियो कौल भी हो गई. लंच हैवी किया था, अब रात में सिर्फ फ्रूट्स खाए. सोने से पहले दरवाजा 4 बार चैक किया होगा. वरना अनंत ही देख लेते हैं. ठीक से नींद नहीं आई थी. जो खर्राटे रोज एक शोर लगते हैं, आज उस शोर के बिना सोया नहीं गया.

सुबह फिर वही सैर, आते हुए डोसे खाए. लंच में खिचड़ी, शाम तक कितने दोस्तों, रिश्तेदारों को फोन कर लिया, एक नौवेल भी शुरू कर दिया. शाम को मी टाइम गु्रप आया तो अच्छा लगा. हम सुमित, अरविंद और संजय की कुछ बातों पर हंसते रहे.

गौतमी ने कहा, ‘‘फिर मिलना है कभी इन लोगों से?’’

मैं हंसी, ‘‘देखेंगे. अभी तो कोई मूड नहीं. कल का दिन अच्छा बीता, इस में कोई शक नहीं. पर आगे का अभी नहीं सोचते हैं. अपने पतियों की शराफत का इतना फायदा भी नहीं उठाएंगे कि इन लोगों के साथ प्रोग्राम बनने लगें.’’

सब ने सहमति दी. मैं ने सब के लिए गरमगरम पकौड़े और चाय बनाई. गप्पें मारीं, विभा डांस बहुत अच्छा करती है, उस के साथसाथ गौतमी ने भी म्यूजिक लगा कर डांस किया. मिताली और मैं देखते रहे. ऐसा लग रहा था कि जैसे कालेज की फ्रैंड्स बैठी हैं पर यह सच तो नहीं था. सब पर घरगृहस्थी की जिम्मेदारियां थीं. अपनेअपने पति के औफिस से आने के टाइम सब भाग गईं.

मैं भी बाकी काम निबटा कर के फैमिली कौल में व्यस्त हो गई. सब मेरे मी टाइम के शौक पर, इन 2 दिनों के रूटीन पर हंसते रहे.  सच कह रही हूं, मी टाइम जरूरी है. तनमन की बैटरी रिचार्ज हो जाती है.

Famous Hindi Stories : आप कौन हैं सलाह देने वाले

Famous Hindi Stories :  अभी उस दिन एक बहुत पुरानी मित्र बाजार में मिल गई. हम दोनों अंबाला में साथसाथ रहे थे. पता चला, पिछले दिनों उन का तबादला भी इसी शहर में हो गया है.

उस दिन बाजार में भीड़भाड़ कुछ कम थी. मुझे देखते ही मीना सड़क के किनारे खींच ले गई और न जाने कितना सब याद करती रही. हम दोनों कुछ बच्चों की, कुछ घर की और कुछ अपनी कहतेसुनते रहे.

‘‘आप की बहुत याद आती थी मुझे,’’ मीना बोली, ‘‘आप से बहुत कुछ सीखा था मैं ने…याद है जब एक रात मेरी तबीयत बहुत खराब हो गई थी तब आप ने कैसे संभाला था मुझे.’’

‘‘मैं बीमार पड़ जाती तो क्या तुम न संभालतीं मुझे. जीवन तो इसी का नाम है. इतना तो होना ही चाहिए कि मरने के बाद कोई हमें याद करे…आज तुम किसी का करो कल कोई तुम्हारा भी करेगा.’’

मेरा हाथ कस कर पकड़े थी मीना. उम्र में मुझ से छोटी थी इसलिए मैं सदा उस का नाम लेती थी. वास्तव में कुछ बहुत ज्यादा खट्टा था मीना के जीवन में जिस में मैं उस के साथ थी.

‘‘याद है दीदी, वह लड़की नीता, जिस ने बुटीक खोला था. अरे, जिस ने आप से सिलाई सीखी थी. बड़ी दुआएं देती है आप को. कहती है, आप ने उस की जिंदगी बना दी.’’

याद आया मुझे. उस के पति का काम कुछ अच्छा नहीं था इसलिए मेरी एक क्लब मेंबर ने उसे मेरे पास भेजा था. लगभग 2 महीने उस ने मुझ से सिलाई सीखी थी. उस का काम चला या नहीं मुझे पता नहीं, क्योंकि उसी दौरान पति का तबादला हो गया था. वह औरत जब आखिरी बार मेरे पास आई थी तो हाथों में कुछ रुपए थे. बड़े संकोच से उस ने मेरी तरफ यह कहते हुए बढ़ाए थे:

‘दीदी, मैं ने आप का बहुत समय लिया है. यह कुछ रुपए रख लीजिए.’

‘बस, तुम्हारा काम चल जाए तो मुझे मेरे समय का मोल मिल जाएगा,’ यह कहते हुए मैं ने उस का हाथ हटा दिया था.

सहसा कितना सब याद आने लगा. मीना कितना सब सुनाती रही. समय भी तो काफी बीत चुका न अंबाला छोड़े. 6 साल कम थोड़े ही होते हैं.

‘‘तुम अपना पता और फोन नंबर दो न,’’ कह कर मीना झट से उस दुकान में चली गई जिस के आगे हम दोनों घंटे भर से खड़ी थीं.

‘‘भैया, जरा कलमकागज देना.’’

दुकानदार हंस कर बोला, ‘‘लगता है, बहनजी कई साल बाद आपस में मिली हैं. घंटे भर से मैं आप की बातें सुन रहा हूं. आप दोनों यहां अंदर बेंच पर बैठ जाइए न.’’

क्षण भर को हम दोनों एकदूसरे का मुंह देखने लगीं. क्या हम इतना ऊंचाऊंचा बोल रही थीं. क्या बुढ़ापा आतेआते हमें असभ्य भी बना गया है? मन में उठे इन विचारों को दबाते हुए मैं बोली, ‘‘क्याक्या सुना आप ने, भैयाजी. हम तो पता नहीं क्याक्या बकती रहीं.’’

‘‘बकती नहीं रहीं बल्कि आप की बातों से समझ में आता है कि जीवन का अच्छाखासा निचोड़ निकाल रखा है आप ने.’’

‘‘क्या निचोड़ नजर आया आप को, भाई साहब,’’ सहसा मैं भी मीना के पीछेपीछे दुकान के अंदर चली गई तो वह अपने स्टूल पर से उठ कर खड़ा हो गया.

‘‘आइए, बहनजी. अरे, छोटू…जा, जा कर 2 चाय ला.’’

पल भर में लगा हम बहुत पुराने दोस्त हैं. अब इस उम्र तक पहुंचतेपहुंचते नजर पढ़ना तो आ ही गया है मुझे. सहसा मेरी नजर उस स्टूल पर पड़ी जिस पर वह दुकानदार बैठा था. एक सवा फुट के आकार वाले स्टूल पर वह भारीभरकम शरीर का आदमी कैसे बैठ पाता होगा यही सोचने लगी. इतनी बड़ी दुकान है, क्या आरामदायक कोई कुरसी नहीं रख सकता यह दुकानदार? तभी एक लंबेचौड़े लड़के ने दुकान में प्रवेश किया. मीना कागज पर अपने घर का पता और फोन नंबर लिखती रही और मैं उस ऊंचे और कमचौड़े स्टूल को ही देखती रही जिस पर अब उस का बेटा बैठने जा रहा था.

‘‘नहीं भैयाजी, चाय मत मंगाना,’’ मीना मना करते हुए बोली, ‘‘वैसे भी हम बहुत देर से आप के कान पका रहे हैं.’’

‘‘बेटा, तुम इस इतने ऊंचे स्टूल पर क्या आराम से बैठ पाते हो? कम से कम 12 घंटे तो तुम्हारी दुकान खुलती ही होगी?’’ मेरे होंठों से सहसा यह निकल गया और इस के उत्तर में वह दुकानदार और उस का बेटा एकदूसरे का चेहरा पढ़ने लगे.

‘‘तुम्हारी तो कदकाठी भी अच्छी- खासी है. एक 6 फुट का आदमी अगर इस ऊंचे और छोटे से स्टूल पर बैठ कर काम करेगा तो रीढ़ की हड्डी का सत्यानाश हो जाएगा…शरीर से बड़ी कोई दौलत नहीं होती. इसे सहेजसंभाल कर इस्तेमाल करोगे तो वर्षों तुम्हारा साथ देगा.’’

बेटे ने तो नजरें झुका लीं पर बाप बड़े गौर से मेरा चेहरा देखने लगा.

‘‘मेरे पिताजी भी इसी स्टूल पर पूरे 50 साल बैठे थे उन की पीठ तो नहीं दुखी थी.’’

‘‘उन की नहीं दुखी होगी क्योंकि वह समय और था, खानापीना शुद्ध हुआ करता था. आज हम हवा तक ताजा नहीं ले पाते. खाने की तो बात ही छोडि़ए. हमारे जीने का तरीका वह कहां है जो आप के पिताजी का था. मुझे डर है आप का बेटा ज्यादा दिन इस ऊंचे स्टूल पर बैठ कर काम नहीं कर पाएगा. इसलिए आप इस स्टूल की जगह पर कोई आरामदायक कुरसी रखिए.’’

मैं और मीना उस दुकान पर से उतर आए और जल्दी ही पूरा प्रसंग भूल भी गए. पता नहीं क्यों जब भी कहीं कुछ असंगत नजर आता है मैं स्वयं को रोक नहीं पाती और अकसर मेरे पति मेरी इस आदत पर नाराज हो जाते हैं.

‘‘तुम दादीअम्मां हो क्या सब की. जहां कुछ गलत नजर आता है समझाने लगती हो. सामने वाला चाहे बुरा ही मान जाए.’’

‘‘मान जाए बुरा, मेरा क्या जाता है. अगर समझदार होगा तो अपना भला ही करेगा और अगर नहीं तो उस का नुकसान वही भोगेगा. मैं तो आंखें रहते अंधी नहीं न बन सकती.’’

अकसर ऐसा होता है न कि हमारी नजर वह नहीं देख पाती जो सामने वाली आंख देख लेती है और कभीकभी हम वह भांप लेते हैं जिसे सामने वाला नहीं समझ पाता. क्या अपना अहं आहत होने से बचा लूं और सामने वाला मुसीबत में चला जाए? प्रकृति ने बुद्धि दी है तो उसे झूठे अहं की बलि चढ़ जाने दूं?

‘‘क्या प्रकृति ने सिर्फ तुम्हें ही बुद्धि दी है?’’

‘‘मैं आप से भी बहस नहीं करना चाहती. मैं किसी का नुकसान होता देख चुप नहीं रह सकती, बस. प्रकृति ने बुद्धि  तो आप को भी दी है जिस से आप बहस करना तो पसंद करते हैं लेकिन मेरी बात समझना नहीं चाहते.’’

मैं अकसर खीज उठती हूं. कभीकभी लगने भी लगता है कि शायद मैं गलत हूं. कभी किसी को कुछ समझाऊंगी नहीं मगर जब समय आता है मैं खुद को रोक नहीं पाती हूं.

अभी उस दिन प्रेस वाली कपड़े लेने आई तो एक बड़ी सी गठरी सिर पर रखे थी. अपने कपड़ों की गठरी उसे थमाते हुए सहसा उस के पेट पर नजर पड़ी. लगा, कुछ है. खुद को रोक ही नहीं पाई मैं. बोली, ‘‘क्यों भई, कौन सा महीना चल रहा है?’’

‘‘नहीं तो, बीबीजी…’’

‘‘अरे, बीबीजी से क्यों छिपा रही है? पेट में बच्चा और शरीर पर इतना बोझ लिए घूम रही है. अपनी सुध ले, अपने आदमी से कहना, तुझ से इतना काम न कराए.’’

टुकुरटुकुर देखती रही वह मुझे. फिर फीकी सी हंसी हंस पड़ी.

‘‘पूरी कालोनी घूमती हूं, किसी ने इतना नहीं समझाया और न ही किसी को मेरा पेट नजर आया तो आप को कैसे नजर आ गया?’’

पता नहीं लोग देख कर भी क्यों अंधे बन जाते हैं या हमारी संवेदनाएं ही मर गई हैं कि हमें किसी की पीड़ा, किसी का दर्द दिखाई नहीं देता. ऐसी हालत में तो लोग गायभैंस पर भी तरस खा लेते हैं यह तो फिर भी जीतीजागती औरत है. कुछ दिन बाद ही पता चला, उस के घर बेटी ने जन्म लिया. धन्य हो देवी. 9 महीने का गर्भ कितनी सहजता से छिपा रही थी वह प्रेस वाली.

मैं ने हैरानी व्यक्त की तो पति हंसते हुए बोले, ‘‘अब क्या जच्चाबच्चा को देखने जाने का भी इरादा है?’’

‘‘वह तो है ही. सुना है पीछे किसी खाली पड़ी कोठी में रहती है. आज शाम जाऊंगी और कुछ गरम कपड़े पड़े हैं, उन्हें दे आऊंगी. सर्दी बढ़ रही है न, उस के काम आ जाएंगे.’’

‘‘नमस्कार हो देवी,’’ दोनों हाथ जोड़ मेरे पति ने अपने कार्यालय की राह पकड़ी.

मुझे समझ में नहीं आया, मैं कहां गलत थी. मैं क्या करूं कि मेरे पति भी मुझे समझने का प्रयास करें.

कुछ दिन बाद एक और समस्या मेरे सामने चली आई. इन के एक सहयोगी हैं जो अकसर परिवार सहित हमारे घर आते हैं. 1-2 मुलाकातों में तो मुझे पता नहीं चला लेकिन अब पता चल रहा है कि जब भी वह हमारे घर आते हैं, 1 घंटे में लगभग 4-5 बार बाथरूम जाते हैं. बारबार चाय भी मांगते हैं.

बाथरूम जाना या चाय मांगना मेरी समस्या नहीं है, समस्या यह है कि उन के जाने के बाद हमारा बाथरूम चींटियों से भर जाता है. सफेद बरतन एकदम काला हो जाता है. हो न हो इन्हें शुगर हो. पति से अपने मन की बात बता कर पूछ लिया कि क्या उन से इस बारे में बात करूं?

‘‘खबरदार, हर बात की एक सीमा होती है. किसी के फटे में टांग मत डाला करो. मैं ने कह दिया न.’’

‘‘एक बार तो पूछ लो,’’ मन नहीं माना तो पति से जोर दे कर बोली, ‘‘शुगर के मरीज को अकसर पता नहीं चलता कि उसे शुगर है और बहुत ज्यादा शुगर बढ़ जाए तभी पेशाब में आती है. क्या पता उन्हें पता ही न हो कि उन्हें शुगर हो चुकी है.’’

‘‘कोई जरूरत नहीं है और तुम ज्यादा डाक्टरी मत झाड़ो. दुनिया में एक तुम ही समझदार नहीं हो.’’

‘‘उन्हें कुछ हो गया तो… देखो उन के छोटेछोटे बच्चे हैं और कुछ हो गया तो क्या होगा? क्या उम्र भर हम खुद को क्षमा कर पाएंगे?’’

अपने पति से जिद कर मैं एक दिन जबरदस्ती उन के घर चली गई. बातोंबातों में मैं ने उन के बाथरूम में जाने की इच्छा व्यक्त की.

‘‘क्या बताऊं, दीदी, हमारा बाथरूम साफ होता ही नहीं. इतनी चींटी हैं कि क्या कहूं इतना फिनाइल डालती हूं कि पूछो मत.’’

‘‘आप के घर में किसी को शुगर तो नहीं है न?’’

‘‘नहीं तो, आप ऐसा क्यों पूछ रही हैं?’’

अवाक् रह गई थी वह. धीरे से अपनी बात कह दी मैं ने. रो पड़ी वह. मैं ने कहा तो मानो उसे भी लगने लगा कि शायद घर में किसी को शुगर है.

‘‘हां, तभी रातरात भर सो नहीं पाते हैं. हर समय टांगें दबाने को कहते हैं. बारबार पानी पीते हैं… और कमजोर भी हो रहे हैं. दीदी, कभी खयाल ही नहीं आया मुझे. हमारे तो खानदान में कहीं किसी को शुगर नहीं है.’’

उसी पल मेरे पति उन को साथ ले कर डाक्टर के पास गए. रक्त और पेशाब की जांच की. डाक्टर मुंहबाए उसे देखने लगा.

‘‘इतनी ज्यादा शुगर…आप जिंदा हैं मैं तो इसी पर हैरान हूं.’’

वही हो गया न जिस का मुझे डर था. उसी क्षण से उन का इलाज शुरू हो गया. मेरे पति उस दिन के बाद से मुझ से नजरें चुराने से लगे.

‘‘आप न बतातीं तो शायद मैं सोयासोया ही सो जाता…आप ने मुझे बचा लिया, दीदी,’’ लगभग मेरे पैर ही छूने लगे वह.

‘‘बस…बस…अब दीदी कहा है तो तुम्हारा नाम ही लूंगी…देखो, अपना पूरापूरा खयाल रखना. सदा सुखी रहो,’’ मैं उसे आशीर्वाद के रूप में बोली और अपने पति का चेहरा देखा तो हंसने लगे.

‘‘जय हो देवी, अब प्रसन्न हो न भई, तुम्हारा इलाज हफ्ता भर पहले भी शुरू हो सकता था अगर मैं देवीजी की बात मान लेता. आज भी यह जिद कर के लाई थीं. मेरा ही दोष रहा जो इन का कहा नहीं माना.’’

उस रात मैं चैन की नींद सोई थी. एक बार भी ऐसा नहीं लगा कि उन पर मैं कोई कृपा, कोई एहसान कर के लौटी हूं. बस, इतना ही लग रहा था कि अपने भीतर बैठे अपने चेतन को चिंतामुक्त कर आई हूं. कहीं न कहीं अपनी जिम्मेदारी निभा आई हूं.

अगले दिन सुबहसुबह दरवाजे पर एक व्यक्ति को खड़ा देखा तो समझ नहीं पाई कि इन्हें कहां देखा है. शायद पति के जानकार होंगे. उन्हें भीतर बिठाया. पता चला, पति से नहीं मुझ से मिलने आए हैं.

‘‘कौन हैं यह? मैं तो इन्हें नहीं जानती,’’ पति से पूछा.

‘‘कह रहे हैं कि वह तुम्हें अच्छी तरह पहचानते हैं और तुम्हारा धन्यवाद करने आए हैं.’’

‘‘मेरा धन्यवाद कैसा?’’ मैं कुछ याद करते हुए पति से बोली, ‘‘हां, कहीं देखा तो लग रहा है लेकिन याद नहीं आ रहा,’’ रसोई का काम छोड़ मैं हाथ पोंछती हुई ड्राइंगरूम में चली आई. प्रश्नसूचक भाव से उन्हें देखा.

‘‘बहनजी, आप ने पहचाना नहीं. चौक पर मेरी दुकान है. कुछ समय पहले आप और आप की एक सखी मेरी दुकान के बाहर…’’

‘‘अरे हां, याद आया. मैं और मीना मिले थे न,’’ पति को बताया मैं ने.

‘‘कहिए, मेरा कैसा धन्यवाद?’’

‘‘उस दिन आप ने मेरे बेटे से कहा था न कि वह ऊंचे स्टूल पर न बैठे. दरअसल, उसी सुबह वह पीठ दर्द की वजह से 7 दिन अस्पताल रह कर ही लौटा था. डाक्टरों ने भी मुझे समझाया था कि उस स्टूल की वजह से ही सारी समस्या है.’’

‘‘हां तो समस्या क्या है? आप कुरसी नहीं खरीद सकते क्या?’’

‘‘कुरसी तो लड़का 6 महीने पहले ही ले आया था, जो गोदाम में पड़ी सड़ रही है. मैं ही जिद पर अड़ा था कि वह स्टूल वहां से न हटाया जाए. वह मेरे पिताजी का स्टूल है और मुझे वहम ही नहीं विश्वास भी है कि जब तक वह स्टूल वहां है तब तक ही मेरी दुकान सुरक्षित है. जिस दिन स्टूल हट गया लक्ष्मी भी हम से रूठ जाएगी.’’

हम दोनों अवाक् से उस आदमी का मुंह देखते रहे.

‘‘मेरा बच्चा रोतापीटता रहा, मेरी बहू मेरे आगे हाथपैर जोड़ती रही लेकिन मैं नहीं माना. साफसाफ कह दिया कि चाहो तो घर छोड़ कर चले आओ, दुकान छोड़ दो पर वह स्टूल तो वहीं रहेगा.

‘‘मैं तो सोचता रहा कि लड़का बहाना कर रहा होगा. अकसर बच्चे पुरानी चीज पसंद नहीं न करते. सोचा डाक्टर भी जानपहचान के हैं, उन से कहलवाना चाहता होगा लेकिन आप तो जानपहचान की न थीं. और उस दिन जब आप ने कहा तो लगा मेरा बच्चा सच ही रोता होगा.

‘‘एक दिन मेरा बच्चा ही किसी काम का न रहा तो मैं लक्ष्मी का भी क्या करूंगा? पिताजी की निशानी को छाती से लगाए बैठा हूं और उसी का सर्वनाश कर रहा हूं जिस का मैं भी पिता हूं. मेरा बच्चा अपने बुढ़ापे में मेरी जिद याद कर के मुझे याद करना भी पसंद नहीं करेगा. क्या मैं अपने बेटे को पीठदर्द विरासत में दे कर मरूंगा.

‘‘उसी शाम मैं ने वह स्टूल उठवा कर कुरसी वहां पर रखवा दी. मेरे बेटे का पीठदर्द लगभग ठीक है और घर में भी शांति है वरना बहू भी हर पल चिढ़ीचिढ़ी सी रहती थी. आप की वजह से मेरा घर बच गया वरना उस स्टूल की जिद से तो मैं अपना घर ही तोड़ बैठता.’’

मिठाई का एक डब्बा सामने मेज पर रखा था. उस पर एक कार्ड था. धन्यवाद का संदेश उन महाशय के बेटे ने मुझे भेजा था. क्या कहती मैं? भला मैं ने क्या किया था जो उन का धन्यवाद लेती?

‘‘आप की वह सहेली एक दिन बाजार से गुजरी तो मैं ने रोक कर आप का पता ले लिया. फोन कर के भी आप का धन्यवाद कर सकता था. फिर सोचा मैं स्वयं ही जाऊंगा. अपने बेटे के सामने तो मैं ने अपनी गलती नहीं मानी लेकिन आप के सामने स्वीकार करना चाहता हूं, अन्याय किया है मैं ने अपनी संतान के साथ… पता नहीं हम बड़े सदा बच्चों को ही दोष क्यों देते रहते हैं? कहीं हम भी गलत हैं, मानते ही नहीं. हमारे चरित्र में पता नहीं क्यों इतनी सख्ती आ जाती है कि टूट जाना तो पसंद करते हैं पर झुकना नहीं चाहते. मैं स्वीकार करना चाहता हूं, विशेषकर जब बुढ़ापा आ जाए, मनुष्य को अपने व्यवहार में लचीलापन लाना चाहिए. क्यों, है न बहनजी?’’

‘‘जी, आप ठीक कह रहे हैं. मैं भी 2 बेटों की मां हूं. शायद बुढ़ापा गहरातेगहराते आप जैसी हो जाऊं. इसलिए आज से ही प्रयास करना शुरू कर दूंगी,’’ और हंस पड़ी थी मैं. पुन: धन्यवाद कर के वह महाशय चले गए.

पति मेरा चेहरा देखते हुए कहने लगे, ‘‘ठीक कहती हो तुम, जहां कुछ कहने की जरूरत हो वहां अवश्य कह देना चाहिए. सामने वाला मान ले उस की इच्छा न माने तो भी उस की इच्छा… कम से कम हम तो एक नैतिक जिम्मेदारी से स्वयं को मुक्त कर सकते हैं न, जो हमारी अपनी चेतना के प्रति होती है. लेकिन सोचने का प्रश्न एक यह भी है कि आज कौन है जो किसी की सुनना पसंद करता है. और आज कौन इतना संवेदनशील है जो दूसरे की तकलीफ पर रात भर जागता है और अपने पति से झगड़ा भी करता है.’’

पति का इशारा मेरी ओर है, मैं समझ रही थी. सच ही तो कह रहे हैं वह, आज कौन है जो किसी की सुनना या किसी को कुछ समझाना पसंद करता है?

Hindi Love Stories : प्रेम का दूसरा नाम – क्या हो पायी उन दोनों की शादी

Hindi Love Stories : दियाबाती कर अभी उठी ही थी कि सांझ के धुंधलके में दरवाजे पर एक छाया दिखी. इस वक्त कौन आया है यह सोच कर मैं ने जोर से आवाज दी, ‘‘कौन है?’’

‘‘मैं, रोहित, आंटी,’’ कुछ गहरे स्वर में जवाब आया.

रोहित और इस वक्त? अच्छा है जो पूर्वा के पापा घर पर नहीं हैं, यदि होते तो भारी मुश्किल हो जाती, क्योंकि रोहित को देख कर तो उन की त्यौरियां ही चढ़ जाती हैं.

‘‘हां, भीतर आ जाओ बेटा. कहो, कैसे आना हुआ?’’

‘‘कुछ नहीं, आंटी, सिर्फ यह शादी का कार्ड देने आया था.’’

‘‘किस की शादी है?’’

‘‘मेरी ही है,’’ कुछ शरमाते हुए वह बोला, ‘‘अगले रविवार को शादी और सोमवार को रिसेप्शन है, आप और अंकल जरूर आना.’’

आज तक हमेशा उसे शादी के लिए उत्साहित करने वाली मैं शादी का कार्ड हाथ में थामे मुंहबाए खड़ी थी.

‘‘चलूं, आंटी, देर हो रही है,’’ रोहित बोला, ‘‘कई जगह कार्ड बांटने हैं.’’

‘‘हां बेटा, बधाई हो. तुम शादी कर रहे हो, आएंगे हम, जरूर आएंगे…’’ मैं जैसे सपने से जागती हुई बोली.

बहुत खुश हो कर कहा था यह सब पर ऐसा लगा कि रोहित मेरा अपना दामाद, मेरा अपना बेटा किसी और का हो रहा है. उस पर अब मेरा कोई हक नहीं रह जाएगा.

रोहित हमारी ही गली का लड़का है और मेरी बेटी पूर्वा के साथ बचपन से स्कूल में पढ़ता था. पूर्वा की छोटीछोटी जरूरतों का खयाल करता था. पेंसिल की नोंक टूटने से ले कर उसे रास्ता पार कराने और उस का होमवर्क पूरा कराने तक. बचपन से ही रोहित का हमारे घर आनाजाना था. बच्चों के बचपन की दोस्ती ?पर पूर्वा के पापा ने कभी कोई ध्यान नहीं दिया लेकिन जैसे ही दोनों बच्चे जवानी की ओर कदम बढ़ाने लगे वह रोहित को देखते ही नाकभौं चढ़ा लेते थे. रोहित और पूर्वा दोनों ही पापा की इस अचानक उपजी नाराजगी का कारण समझ नहीं पाते थे.

पापा का व्यवहार पहले जैसा क्यों नहीं रहा, यह बात 12वीं तक जातेजाते वे अच्छी तरह से समझ गए थे क्योंकि उन के दिल में फूटा हुआ प्रेम का नन्हा सा अंकुर अब विशाल वृक्ष बन चुका था. पापा को उन का साथ रहना क्यों नहीं अच्छा लगता है, इस का कारण वे समझ गए थे. छिप कर पूर्वा रोहित के घर जा कर नोट्स लाती थी और रोहित का तो घर के दरवाजे पर आना भी मना था.

रोहित और पूर्वा ने एकदूसरे को इतना चाहा था कि सपने में भी किसी और की कल्पना करना उन के लिए मुमकिन न था. मेरे सामने ही दोनों का प्रेम फलाफूला था. अब इस पर यों बिजली गिरते देख कर वह मन मसोस कर रह जाती थी.

एक और कारण से पूर्वा के पापा को रोहित पसंद नहीं था. वह कारण उस की गरीबी थी. पिता साधारण सी प्राइवेट कंपनी में क्लर्क थे. घर में उस के एक छोटा भाई और एक बहन थी. 3 बच्चों का भरणपोषण, शिक्षा आदि कम आय में बड़ी मुश्किल से हो पाता था. इस कारण रोहित की मां भी साड़ी में पीकोफाल जैसे छोटेछोटे काम कर के घर खर्चे में पति का हाथ बंटाती थीं. हमारी कपड़ों की 2 बड़ीबड़ी दुकानें थीं. शहर के प्रतिष्ठित व्यापारी परिवार की इकलौती बेटी पूर्वा राजकुमारी की तरह रहती थी.

रुई की तरह हलके बादलों के नरम प्यार पर जब हकीकत की बिजली कड़कड़ाती है तो क्या होता है? आसमान का दिल फट जाता है और आंसुओं की बरसात शुरू हो जाती है. मैं कभी यह समझ नहीं पाई कि दुनिया बनाने वाले ने दुनिया बनाई और इस में रहने वालों ने समाज बना दिया, जिस के नियमानुसार पूर्वा रोहित के लिए नहीं बनी थी.

तभी फोन की घंटी बजी. लंदन से पूर्वा का फोन था. फोन पर पूछ रही थी, मम्मी, कैसी हो? यहां विवेक का काम ठीक चल रहा है, सोहम अब स्कूल जाने लगा है. तुम कब आओगी? पापा की तबीयत कैसी है? और भी जाने क्याक्या.

मैं कहना चाह रही थी कि रोहित के बारे में नहीं पूछोगी, उस की शादी है, बचपन की दोस्ती क्या कांच के खिलौने से भी कच्ची थी जो पल में झनझना कर टूट गई…पर कुछ न कह सकी और न ही रोहित की शादी होने वाली है यह खुशखबरी उसे सुना सकी.

दामाद विवेक के साथ बेटी पूर्वा खुश है, मुझे खुश होना चाहिए पर रोहित की आंखों में जब भी गीलापन देखती थी, खुश नहीं हो पाती थी. विवेक लंदन की एक बड़ी फर्म में इंजीनियर है. अच्छी कदकाठी, गोरा रंग, उच्च कुल के साथसाथ उच्च शिक्षित, क्या नहीं है उस के पास. पहले पूर्वा जिद पर अड़ी थी कि शादी करेगी तो रोहित से वरना कुंआरी ही रह जाएगी. पर दुनिया की ऊंचनीच के जानकार पूर्वा के पापा ने खुद की बहन के घर बेटी को ले जा कर उस को कुछ ऐसी पट्टी पढ़ाई कि वह सोचने को मजबूर हो गई कि रोहित के छोटे से घर में रहने से बेहतर है विवेक के साथ लंदन में ऐशोआराम से रहना.

बूआ के घर से वापस आ कर जब पूर्वा ने शरमाते हुए मुझ से कहा कि मुझे विवेक पसंद है, तब मेरा दिल धक् कर रह गया था. मैं अपना दिल पत्थर का करना चाहूं तो भी नहीं कर पाती और यह लड़की…मेरी अपनी लड़की सबकु छ भूल गई. लेकिन यह मेरी भूल थी.

लंदन में सबकुछ होते हुए भी वह रोहित के बेतहाशा प्यार को अभी भी भूल नहीं पाई थी.

पूर्वा के पापा आ गए थे. बोले, ‘‘क्या हुआ, आज बड़ी अनमनी सी लग रही हो?’’

‘‘कुछ नहीं,’’ उन के हाथ से बैग लेते हुए मैं बोली, ‘‘पूर्वा की याद आ रही है.’’

‘‘तो फोन कर लो.’’

‘‘अभी थोड़ी देर पहले ही तो उस का फोन आया था, आप को याद कर रही थी.’’

‘‘हां, सोचता हूं, अगले माह तक हम लंदन जा कर पूर्वा से मिल आते हैं. और यह किस की शादी का कार्ड रखा है?’’

‘‘रोहित की.’’

‘‘चलो, अच्छा हुआ जो वह शादी कर रहा है. हां, लड़की कौन है?’’

‘‘फैजाबाद की किसी मिडिल क्लास परिवार की लगती है.’’

‘‘अच्छा है, जितनी चादर हो उतने ही पांव पसारने चाहिए.’’

मैं रसोई में जा कर उन के लिए थाली लगाने लगी. वह जाने क्याक्या बोल रहे थे. मेरा ध्यान रोहित की ओर गया, जिसे मैं बेटे से बढ़ कर मानती हूं. उस के खिलाफ एक शब्द भी नहीं सुन सकती.

पूर्वा के विवाह वाले दिन वह कैसे सुन्न खड़ा था. मैं ने देखा था और देख कर आंखें भर आई थीं. कुछ और तो न कर सकी, बस, पीठ पर हाथ फेर कर मैं ने मूक दिलासा दिया था उसे.

उस का यह उदास रूप देख कर हाथ में रखी द्वाराचार के लिए सजी थाली मनों भारी हो गई थी, पैर दरवाजे की ओर उठ नहीं रहे थे. मैं पूर्वा की मां हूं, बेटी की शादी पर मुझे बहुत खुश होना चाहिए था पर भीतर से ऐसा लग रहा था कि जो कुछ हो रहा है, गलत हो रहा है. शादी के लिए जिस पूर्वा को जोरजबरदस्ती से तैयार किया था, वह जयमाला से पहले फूटफूट कर रो पड़ी थी. तब मैं ने उसे कलेजे से लगा लिया था.

बिदाई के समय पीछे मुड़मुड़ कर पूर्वा की आंखें किसे ढूंढ़ रही थीं वह भी मुझे मालूम था. उस समय दिल से आवाजें आ रही थीं :  पूर्वा, रूपरंग और दौलत ही सबकुछ नहीं होते, इस प्यार के सागर को ठुकराएगी तो उम्रभर प्यासी रह जाएगी.

पता नहीं ये आवाजें उस तक पहुंचीं कि नहीं, पर उस के जाने के बाद मानो सारा घरआंगन चीखचीख कर कह रहा था, मन के रिश्ते कोई और होते हैं, जो किसी को दिखाए नहीं जाते और निभाने के रिश्ते कोई और होते हैं जो सिर्फ निभाए जाते हैं. तब से जब भी रोहित को देखती हूं दिल फट जाता है.

पूर्वा की शादी को अब पूरे 7 बरस हो गए हैं और रोहित इन 7 वर्षों तक उस की याद में तिलतिल जलने के बाद अब ब्याह कर रहा है. कितने दिनों से उसे समझा रही थी कि अब नौकरी लग गई है. बेटा, तू भी शादी कर ले तो वह हंस कर टाल जाता था. पिता के रिटायर होने पर उन की जगह ही उसे काम मिला था और घर में बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता है. उस से अच्छीखासी कमाई हो जाती है. 2 साल हुए उस ने छोटी बहन की अच्छे घर में शादी कर दी है और भाई को इंजीनियरिंग करवा रहा है. मां का काम उस ने छुड़वा दिया है और मुझे लगता है कि मां को आराम मिले इस के लिए ही उस ने शादी की सोची है.

रोहित जैसा गुणी और आज्ञाकारी पुत्र इस जमाने में मिलना कठिन है. मेरे तो बेटा ही नहीं है, उसे ही बेटे के समान मानती थी. उस की शादी फैजाबाद में थी. वहां जाना नहीं हो सकता था इसलिए बहू की मुंहदिखाई और स्वागत समारोह में जाना मैं ने उचित समझा.

रोहित के लिए सुंदर रिस्टवाच और बहू के लिए साड़ी और झुमके खरीदे थे. बहुत खुशी थी अब मन में. इन 7 वर्षों के अंतराल में रिश्ते उलटपुलट गए थे. रोहित, जिसे मैं दामाद मानती थी, बेटा बन चुका था. अब मेरी बहू आ रही थी. पता नहीं कैसी होगी बहू…पगले ने फोटो तक नहीं दिखाई.

स्वागत समारोह के उस भीड़- भड़क्के में रोहित ने पांव छू कर मुझे नमस्कार किया. उस की देखादेखी अर्चना भी नीचे झुकने लगी तो मैं ने उसे बांहों में भर झुकने से मना किया.

अर्चना सांवली थी पर तीखे नैननक्श के कारण भली लग रही थी. उपहार देते हुए मैं चंद पलों को उन्हें निहारती रह गई. परिचय कराते वक्त रोहित ने अर्चना से धीरे से कहा, ‘‘ये पूर्वा के मम्मीपापा हैं.

उस लड़की ने नमस्कार के लिए एक बार और हाथ जोड़ दिए. जेहन में फौरन सवाल उभरा, ‘क्या पूर्वा के बारे में सबकुछ रोहित ने इसे बता दिया है.’ मैं असमंजस में पड़ी खड़ी थी. तभी रोहित की मां हाथ पकड़ कर खाना खिलाने के लिए लिवा ले गईं.

अर्चना ने रोहित का घर खूब अच्छे से संभाल लिया था. अपनी सास को तो वह किसी काम को हाथ नहीं लगाने देती थी. कभीकभी मेरे पास आती तो पूर्वा के बारे में ही बातें करती रहती थी. न जाने कितने प्रकार के व्यंजन बनाने की विधियां मुझ से सीख कर गई और बड़े प्रयत्नपूर्वक कोई नया व्यंजन बना कर कटोरा भर मेरे लिए ले आती थी.

पूर्वा के पापा का ब्लडप्रेशर पिछले दिनों कुछ ज्यादा ही बढ़ गया था, अत: हमारा लंदन जाने का कार्यक्रम स्थगित हो चुका था. अब की सितंबर में पूर्वा आ रही थी. विवेक को छुट्टी नहीं थी. पूर्वा और सोहम दोनों ही आ रहे थे. जिस रोहित से पूर्वा लड़तीझगड़ती रहती थी, जिस पर अपना पूरा हक समझती थी, अब उसे किसी दूसरी लड़की के साथ देख कर उस पर क्या बीतेगी, मैं यही सोच रही थी.

रोहित की शादी के बारे में मैं ने उसे फोन पर बताया था. सुन कर उस ने सिर्फ इतना कहा था कि चलो, अच्छा हुआ शादी कर ली और कितने दिन अकेले रहता.

अभी पूर्वा को आए एक दिन ही बीता था. रोहित और अर्चना तैयार हो कर कहीं जा रहे थे. मैं ने पूर्वा को खिड़की पर बुलाया तो रोहित के बाजू में अर्चना को चलते देख मानो उस के दिल पर सांप लोट रहा था. मैं ने कहा, ‘‘वह देख, रोहित की पत्नी अर्चना.’’

अर्चना को देख कर पूर्वा ने मुंह बना कर कहा, ‘‘ऊंह, इस कालीकलूटी से ब्याह रचाया है.’’

‘‘ऐसा नहीं बोलते, अर्चना बहुत गुणी लड़की है,’’ मैं ने उसे समझाते हुए कहा.

‘‘हूं, जब रूप नहीं मिलता तभी गुण के चर्चे किए जाते हैं,’’ उपेक्षित स्वर में पूर्वा बोली.

‘‘छोड़ यह सब, चल, सोहम को नहला कर खाना खिलाना है,’’ मैं ने उस का ध्यान इन सब बातों से हटाने के लिए कहा.

पर अर्चना को देखने के बाद पूर्वा अनमनी सी हो गई थी. दोपहर को बोली, ‘‘मम्मी, मुझे रोहित से मिलना है.’’

‘‘शाम 6 बजे के बाद जाना, तब तक वह आफिस से आ जाता है. हां, पर भूल कर भी अर्चना के सामने कुछ उलटासीधा न कहना.’’

‘‘नहीं, मम्मी,’’ पूर्वा मेरे गले में हाथ डाल कर बोली, ‘‘पागल समझा है मुझे.’’

मैं, सोहम और पूर्वा शाम को रोहित के घर गए. गले में फंसी हुई आवाज के साथ पूर्वा उसे विवाह की बधाई दे पाई. रोहित ने कुछ देर को उस के और विवेक के बारे में पूछा फिर सोहम के साथ खेलने लगा. इतने में अर्चना चायनाश्ता बना लाई. मैं, अर्चना और रोहित की मां बातें करने लगे.

खेलखेल में सोहम ने रोहित की जेब से पर्स निकाल कर जब हवा में उछाल दिया तो नोटों के साथ कुछ गिरा था. वह रोहित और पूर्वा के बचपन की तसवीर थी जिस में दोनों साथसाथ खडे़ थे.

तसवीर देख कर हम मांबेटी भौचक्के रह गए पर अर्चना ने पैसों के साथ वह तसवीर भी वापस पर्स में रख दी और हंस कर कहा, ‘‘पूर्वा दीदी, बचपन में कटे बालों में आप बहुत सुंदर दिखती थीं. रोहित को देख कर तो मैं बहुत हंसती हूं…इस ढीलेढाले हाफ पैंट में जोकर नजर आते हैं.’’

बात आईगई हो गई पर हम समझ चुके थे कि अर्चना पूर्वा के बारे में सब जानती है. पूर्वा जिस दिन लंदन वापस जा रही थी, अर्चना उपहार ले कर आई थी.

‘‘लो, दीदी, मेरी ओर से यह रखो. आप रोहित का पहला प्यार हैं, मैं जानती हूं, वह अभी तक आप को नहीं भूले हैं. वह आप को बहुत चाहते हैं और मैं उन्हें बहुत चाहती हूं. इसलिए वह जिसे चाहते हैं मैं भी उसे बहुत चाहती हूं.’’

उस की यह सोच पूर्वा की समझ से बाहर की थी. पूर्वा ने धीरे से ‘थैंक्यू’ कहा.

आज तक रोहित पर अपना एकाधिकार जताने वाली पूर्वा समझ चुकी थी कि प्रेम का दूसरा नाम त्याग है. आज अर्चना के प्रेम के समक्ष उसे अपना प्रेम बौना लग रहा था.

लेखक- ज्योति गजभिये

Hindi Stories Online : नई सुबह – शराबी पति को नीता ने कैसे सिखाया सबक?

Hindi Stories Online : ‘‘बदजात औरत, शर्म नहीं आती तुझे मुझे मना करते हुए… तेरी हिम्मत कैसे होती है मुझे मना करने की? हर रात यही नखरे करती है. हर रात तुझे बताना पड़ेगा कि पति परमेश्वर होता है? एक तो बेटी पैदा कर के दी उस पर छूने नहीं देगी अपने को… सतिसावित्री बनती है,’’ नशे में धुत्त पारस ऊलजलूल बकते हुए नीता को दबोचने की चेष्टा में उस पर चढ़ गया.

नीता की गरदन पर शिकंजा कसते हुए बोला, ‘‘यारदोस्तों के साथ तो खूब हीही करती है और पति के पास आते ही रोनी सूरत बना लेती है. सुन, मुझे एक बेटा चाहिए. यदि सीधे से नहीं मानी तो जान ले लूंगा.’’

नशे में चूर पारस को एहसास ही नहीं था कि उस ने नीता की गरदन को कस कर दबा रखा है. दर्द से छटपटाती नीता खुद को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी. अंतत: उस ने खुद को छुड़ाने के लिए पारस की जांघों के बीच कस कर लात मारी. दर्द से तड़पते हुए पारस एक तरफ लुढ़क गया.

मौका पाते ही नीता पलंग से उतर कर भागी और फिर जोर से चिल्लाते हुए बोली,

‘‘नहीं पैदा करनी तुम्हारे जैसे जानवर से एक और संतान. मेरे लिए मेरी बेटी ही सब कुछ है.’’

पारस जब तक अपनेआप को संभालता नीता ने कमरे से बाहर आ कर दरवाजे की कुंडी लगा दी. हर रात यही दोहराया जाता था, पर आज पहली बार नीता ने कोई प्रतिक्रिया दी. मगर अब उसे डर लग रहा था. न सिर्फ अपने लिए, बल्कि अपनी 3 साल की नन्ही बिटिया के लिए भी. फिर क्या करे क्या नहीं की मनोस्थिति से उबरते हुए उस ने तुरंत घर छोड़ने का फैसला ले लिया.

उस ने एक ऐसा फैसला लिया जिस का अंजाम वह खुद भी नहीं जानती थी, पर इतना जरूर था कि इस से बुरा तो भविष्य नहीं ही होगा.

नीता ने जल्दीजल्दी अलमारी में छिपा कर रखे रुपए निकाले और फिर नन्ही गुडि़या को शौल से ढक कर घर से बाहर निकल गई. निकलते वक्त उस की आंखों में आंसू आ गए पर उस ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. वह घर जिस में उस ने 7 साल गुजार दिए थे कभी अपना हो ही नहीं पाया.

जनवरी की कड़ाके की ठंड और सन्नाटे में डूबी सड़क ने उसे ठंड से ज्यादा डर से कंपा दिया पर अब वापस जाने का मतलब था अपनी जान गंवाना, क्योंकि आज की उस की प्रतिक्रिया ने पति के पौरुष को, उस के अहं को चोट पहुंचाई है और इस के लिए वह उसे कभी माफ नहीं करेगा.

यही सोचते हुए नीता ने कदम आगे बढ़ा दिए. पर कहां जाए, कैसे जाए सवाल निरंतर उस के मन में चल रहे थे. नन्ही सी गुडि़या उस के गले से चिपकी हुई ठंड से कांप रही थी. पासपड़ोस के किसी घर में जा कर वह तमाशा नहीं बनाना चाहती थी. औटो या किसी अन्य सवारी की तलाश में वह मुख्य सड़क तक आ चुकी थी, पर कहीं कोई नहीं था.

अचानक उसे किसी का खयाल आया कि शायद इस मुसीबत की घड़ी में वे उस की मदद करें. ‘पर क्या उन्हें उस की याद होगी? कितना समय बीत गया है. कोई संपर्क भी तो नहीं रखा उस ने. जो भी हो एक बार कोशिश कर के देखती हूं,’ उस ने मन ही मन सोचा.

आसपास कोई बूथ न देख नीता थोड़ा आगे बढ़ गई. मोड़ पर ही एक निजी अस्पताल था. शायद वहां से फोन कर सके. सामने लगे साइनबोर्ड को देख कर नीता ने आश्वस्त हो कर तेजी से अपने कदम उस ओर बढ़ा दिए.

‘पर किसी ने फोन नहीं करने दिया या मयंकजी ने फोन नहीं उठाया तो? रात भी तो कितनी हो गई है,’ ये सब सोचते हुए नीता ने अस्पताल में प्रवेश किया. स्वागत कक्ष की कुरसी पर एक नर्स बैठी ऊंघ रही थी.

‘‘माफ कीजिएगा,’’ अपने ठंड से जमे हाथ से उसे धीरे से हिलाते हुए नीता ने कहा.

‘‘कौन है?’’ चौंकते हुए नर्स ने पूछा. फिर नीता को बच्ची के साथ देख उसे लगा कि कोई मरीज है. अत: अपनी व्यावसायिक मुसकान बिखेरते हुए पूछा, ‘‘मैं आप की क्या मदद कर सकती हूं?’’

‘‘जी, मुझे एक जरूरी फोन करना है,’’ नीता ने विनती भरे स्वर में कहा.

पहले तो नर्स ने आनाकानी की पर फिर

उस का मन पसीज गया. अत: उस ने फोन आगे कर दिया.

गुडि़या को वहीं सोफे पर लिटा कर नीता ने मयंकजी का नंबर मिलाया. घंटी बजती रही पर फोन किसी ने नहीं उठाया. नीता का दिल डूबने लगा कि कहीं नंबर बदल तो नहीं गया है… अब कैसे वह बचाएगी खुद को और इस नन्ही सी जान को? उस ने एक बार फिर से नंबर मिलाया. उधर घंटी बजती रही और इधर तरहतरह के संशय नीता के मन में चलते रहे.

निराश हो कर वह रिसीवर रखने ही वाली थी कि दूसरी तरफ से वही जानीपहचानी आवाज आई, ‘‘हैलो.’’

नीता सोच में पड़ गई कि बोले या नहीं. तभी फिर हैलो की आवाज ने उस की तंद्रा तोड़ी तो उस ने धीरे से कहा, ‘‘मैं… नीता…’’

‘‘तुम ने इतनी रात गए फोन किया और वह भी अनजान नंबर से? सब ठीक तो है? तुम कैसी हो? गुडि़या कैसी है? पारसजी कहां हैं?’’ ढेरों सवाल मयंक ने एक ही सांस में पूछ डाले.

‘‘जी, मैं जीवन ज्योति अस्पताल में हूं. क्या आप अभी यहां आ सकते हैं?’’ नीता ने रुंधे गले से पूछा.

‘‘हां, मैं अभी आ रहा हूं. तुम वहीं इंतजार करो,’’ कह मयंक ने रिसीवर रख दिया.

नीता ने रिसीवर रख कर नर्स से फोन के भुगतान के लिए पूछा, तो नर्स ने मना करते हुए कहा, ‘‘मैडम, आप आराम से बैठ जाएं, लगता है आप किसी हादसे का शिकार हैं.’’

नर्स की पैनी नजरों को अपनी गरदन पर महसूस कर नीता ने गरदन को आंचल से ढक लिया. नर्स द्वारा कौफी दिए जाने पर नीता चौंक गई.

‘‘पी लीजिए मैडम. बहुत ठंड है,’’ नर्स बोली.

गरम कौफी ने नीता को थोड़ी राहत दी. फिर वह नर्स की सहृदयता पर मुसकरा दी.

इसी बीच मयंक अस्पताल पहुंच गए. आते ही उन्होंने गुडि़या के बारे में पूछा. नीता ने सो रही गुडि़या की तरफ इशारा किया तो मयंक ने लपक कर उसे गोद में उठा लिया. नर्स ने धीरे से मयंक को बताया कि संभतया किसी ने नीता के साथ दुर्व्यवहार किया है, क्योंकि इन के गले पर नीला निशान पड़ा है.

नर्स को धन्यवाद देते हुए मयंक ने गुडि़या को और कस कर चिपका लिया. बाहर निकलते ही नीता ठंड से कांप उठी. तभी मयंक ने उसे अपनी जैकेट देते हुए कहा, ‘‘पहन लो वरना ठंड लग जाएगी.’’

नीता ने चुपचाप जैकेट पहन ली और उन के पीछे चल पड़ी. कार की पिछली सीट पर गुडि़या को लिटाते हुए मयंक ने नीता को बैठने को कहा. फिर खुद ड्राइविंग सीट पर बैठ गए. मयंक के घर पहुंचने तक दोनों खामोश रहे.

कार के रुकते ही नीता ने गुडि़या को निकालना चाहा पर मयंक ने उसे घर की चाबी देते हुए दरवाजा खोलने को कहा और फिर खुद धीरे से गुडि़या को उठा लिया. घर के अंदर आते ही उन्होंने गुडि़या को बिस्तर पर लिटा कर रजाई से ढक दिया. नीता ने कुछ कहना चाहा तो उसे चुप रहने का इशारा कर एक कंबल उठाया और बाहर सोफे पर लेट गए.

दुविधा में खड़ी नीता सोच रही थी कि इतनी ठंड में घर का मालिक बाहर सोफे पर और वह उन के बिस्तर पर… पर इतनी रात गए वह उन से कोई तर्क भी नहीं करना चाहती थी, इसलिए चुपचाप गुडि़या के पास लेट गई. लेटते ही उसे एहसास हुआ कि वह बुरी तरह थकी हुई है. आंखें बंद करते ही नींद ने दबोच लिया.

सुबह रसोई में बरतनों की आवाज से नीता की नींद खुल गई. बाहर निकल कर देखा मयंक चायनाश्ते की तैयारी कर रहे थे.

नीता शौल ओढ़ कर रसोई में आई और धीरे से बोली, ‘‘आप तैयार हो जाएं. ये सब मैं कर देती हूं.’’

‘‘मुझे आदत है. तुम थोड़ी देर और सो लो,’’ मयंक ने जवाब दिया.

नीता ने अपनी भर आई आंखों से मयंक की तरफ देखा. इन आंखों के आगे वे पहले भी हार जाते थे और आज भी हार गए. फिर चुपचाप बाहर निकल गए.

मयंक के तैयार होने तक नीता ने चायनाश्ता तैयार कर मेज पर रख दिया. नाश्ता करते हुए मयंक ने धीरे से कहा, ‘‘बरसों बाद तुम्हारे हाथ का बना नाश्ता कर रहा हूं,’’ और फिर चाय के साथ आंसू भी पी गए.

जातेजाते नीता की तरफ देख बोले, ‘‘मैं लंच औफिस में करता हूं. तुम अपना और गुडि़या का खयाल रखना और थोड़ी देर सो लेना,’’ और फिर औफिस चले गए.

दूर तक नीता की नजरें उन्हें जाते हुए देखती रहीं ठीक वैसे ही जैसे 3 साल पहले देखा करती थीं जब वे पड़ोसी थे. तब कई बार मयंक ने नीता को पारस की क्रूरता से बचाया था. इसी दौरान दोनों के दिल में एकदूसरे के प्रति कोमल भावनाएं पनपी थीं पर नीता को उस की मर्यादा ने और मयंक को उस के प्यार ने कभी इजहार नहीं करने दिया, क्योंकि मयंक नीता की बहुत इज्जत भी करते थे. वे नहीं चाहते थे कि उन के कारण नीता किसी मुसीबत में फंस जाए.

यही सब सोचते, आंखों में भर आए आंसुओं को पोंछ कर नीता ने दरवाजा बंद किया और फिर गुडि़या के पास आ कर लेट गई. पता नहीं कितनी देर सोती रही. गुडि़या के रोने से नींद खुली तो देखा 11 बजे रहे थे. जल्दी से उठ कर उस ने गुडि़या को गरम पानी से नहलाया और फिर दूध गरम कर के दिया. बाद में पूरे घर को व्यवस्थित कर खुद नहाने गई. पहनने को कुछ नहीं मिला तो सकुचाते हुए मयंक की अलमारी से उन का ट्रैक सूट निकाल कर पहन लिया और फिर टीवी चालू कर दिया.

मयंक औफिस तो चले आए थे पर नन्ही गुडि़या और नीता का खयाल उन्हें बारबार आ रहा था. तभी उन्हें ध्यान आया कि उन दोनों के पास तो कपड़े भी नहीं हैं… नई जगह गुडि़या भी तंग कर रही होगी. यही सब सोच कर उन्होंने आधे दिन की छुट्टी ली और फिर बाजार से दोनों के लिए गरम कपड़े, खाने का सामान ले कर वे स्टोर से बाहर निकल ही रहे थे कि एक खूबसूरत गुडि़या ने उन का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया, तो उन्होंने उसे भी पैक करवा लिया और फिर घर चल दिए.

दरवाजा खोलते ही नीता चौंक गई. मयंक ने मुसकराते हुए सारा सामान नीचे रख नन्हीं सी गुडि़या को खिलौने वाली गुडि़या दिखाई. गुडि़या खिलौना पा कर खुश हो गई और उसी में रम गई.

मयंक ने नीता को सारा सामान दिखाया. बिना उस से पूछे ट्रैक सूट पहनने के लिए नीता ने माफी मांगी तो मयंक ने हंसते हुए कहा, ‘‘एक शर्त पर, जल्दी कुछ खिलाओ. बहुत तेज भूख लगी है.’’

सिर हिलाते हुए नीता रसोई में घुस गई. जल्दी से पुलाव और रायता बनाने लग गई. जितनी देर उस ने खाना बनाया उतनी देर तक मयंक गुडि़या के साथ खेलते रहे. एक प्लेट में पुलाव और रायता ला कर उस ने मयंक को दिया.

खातेखाते मयंक ने एकाएक सवाल किया, ‘‘और कब तक इस तरह जीना चाहती हो?’’

इस सवाल से सकपकाई नीता खामोश बैठी रही. अपने हाथ से नीता के मुंह में पुलाव डालते हुए मयंक ने कहा, ‘‘तुम अकेली नहीं हो. मैं और गुडि़या तुम्हारे साथ हैं. मैं जानता हूं सभी सीमाएं टूट गई होंगी. तभी तुम इतनी रात को इस तरह निकली… पत्नी होने का अर्थ गुलाम होना नहीं है. मैं तुम्हारी स्थिति का फायदा नहीं उठाना चाहता हूं. तुम जहां जाना चाहो मैं तुम्हें वहां सुरक्षित पहुंचा दूंगा पर अब उस नर्क से निकलो.’’

मयंक जानते थे नीता का अपना कहने को कोई नहीं है इस दुनिया में वरना वह कब की इस नर्क से निकल गई होती.

नीता को मयंक की बेइंतहा चाहत का अंदाजा था और वह जानती थी कि मयंक कभी मर्यादा का उल्लंघन नहीं करेंगे. इसीलिए तो वह इतनी रात गए उन के साथ बेझिझक आ गई थी.

‘‘पारस मुझे इतनी आसानी से नहीं छोड़ेंगे,’’ सिसकते हुए नीता ने कहा और फिर पिछली रात घटी घटना की पूरी जानकारी मयंक को दे दी.

गरदन में पड़े नीले निशान को धीरे से सहलाते हुए मयंक की आंखों में आंसू आ गए, ‘‘तुम ने इतनी हिम्मत दिखाई है नीता. तुम एक बार फैसला कर लो. मैं हूं तुम्हारे साथ. मैं सब संभाल लूंगा,’’ कहते हुए नीता को अपनी बांहों में ले कर उस नीले निशान को चूम लिया.

हां में सिर हिलाते हुए नीता ने अपनी मौन स्वीकृति दे दी और फिर मयंक के सीने पर सिर टिका दिया.

अगले ही दिन अपने वकील दोस्त की मदद से मयंक ने पारस के खिलाफ केस दायर कर दिया. सजा के डर से पारस ने चुपचाप तलाक की रजामंदी दे दी.

मयंक के सीने पर सिर रख कर रोती नीता का गोरा चेहरा सिंदूरी हो रहा था. आज ही दोनों ने अपने दोस्तों की मदद से रजिस्ट्रार के दफ्तर में शादी कर ली थी. निश्चिंत सी सोती नीता का दमकता चेहरा चूमते हुए मयंक ने धीरे से करवट ली कि नीता की नींद खुल गई. पूछा, ‘‘क्या हुआ? कुछ चाहिए क्या?’’

‘‘हां. 1 मिनट. अभी आता हूं मैं,’’ बोलते हुए मयंक बाहर निकल गए और फिर कुछ ही देर में वापस आ गए, उन की गोद में गुडि़या थी उनींदी सी. गुडि़या को दोनों के बीच सुलाते हुए उन्होंने कहा, ‘‘हमारी बेटी हमारे पास सोएगी कहीं और नहीं.’’

मयंक की बात सुन कर नन्ही गुडि़या नींद में भी मुसकराने लग गई और मयंक के गले में हाथ डाल कर फिर सो गई. बापबेटी को ऐसे सोते देख नीता की आंखों में खुशी के आंसू आ गए. मुसकराते हुए उस ने भी आंखें बंद कर लीं नई सुबह के स्वागत के लिए.

Hindi Kahaniyan : उजाले की ओर – नीरजा और निल की अटूट प्रेम कहानी

Hindi Kahaniyan : राशी कनाट प्लेस में खरीदारी के दौरान एक आवाज सुन कर चौंक गई. उस ने पलट कर इधरउधर देखा, लेकिन कोई नजर नहीं आया. उसे लगा, शायद गलतफहमी हुई है. उस ने ज्योंही दुकानदार को पैसे दिए, दोबारा ‘राशी’ पुकारने की आवाज आई. इस बार वह घूमी तो देखा कि धानी रंग के सूट में लगभग दौड़ती हुई कोई लड़की उस की तरफ आ रही थी.

राशी ने दिमाग पर जोर डाला तो पहचान लिया उसे. चीखती हुई सी वह बोली, ‘‘नीरजा, तू यहां कैसे?’’

दरअसल, वह अपनी पुरानी सखी नीरजा को सामने देख हैरान थी. फिर तो दोनों सहेलियां यों गले मिलीं, मानो कब की बिछड़ी हों.

‘‘हमें बिछड़े पूरे 5 साल हो गए हैं, तू यहां कैसे?’’ नीरजा हैरानी से बोली.

‘‘बस एक सेमिनार अटैंड करने आई थी. कल वापस जाना है. तुझे यहां देख कर तो विश्वास ही नहीं हो रहा है. मैं ने तो सोचा भी न था कि हम दोनों इस तरह मिलेंगे,’’ राशी सुखद आश्चर्य से बोली, ‘‘अभी तो बहुत सी बातें करनी हैं. तुझे कोई जरूरी काम तो नहीं है? चल, किसी कौफीहाउस में चलते हैं.’’

‘‘नहीं राशी, तू मेरे घर चल. वहां आराम से गप्पें मारेंगे. अरसे बाद तो मिले हैं,’’ नीरजा ने कहा.

राशी नीरजा से गप्पें मारने का मोह छोड़ नहीं पाई. उस ने अपनी बूआ को फोन कर दिया कि वह शाम तक घर पहुंचेगी. तब तक नीरजा ने एक टैक्सी रोक ली. बातोंबातों में कब नीरजा का घर आ गया पता ही नहीं चला.

‘‘अरे वाह नीरजा, तू ने दिल्ली में फ्लैट ले लिया.’’

‘‘किराए का है यार,’’ नीरजा बोली.

तीसरी मंजिल पर नीरजा का छोटा सा फ्लैट देख कर राशी काफी प्रभावित हुई. फ्लैट को सलीके से सजाया गया था. बैठक गुजराती शैली में सजा था.

नीरजा शुरू से ही रिजर्व रहने वाली लड़की थी, पर राशी बिंदास व मस्तमौला थी. स्कूल से कालेज तक के सफर के दौरान दोनों सहेलियों की दोस्ती परवान चढ़ी थी. राशी का लखनऊ में ही मैडिकल कालेज में दाखिला हो गया था और नीरजा दिल्ली चली गई थी. शुरूशुरू में तो दोनों सहेलियां फोन व पत्रों के माध्यम से एकदूसरे के संपर्क में रहीं. फिर धीरेधीरे दोनों ही अपनी दुनिया में ऐसी उलझीं कि सालों बाद आज मुलाकात हुई.

राशी ने उत्साह से घर आतेआते अपने कैरियर व शादी तय होने की जानकारी नीरजा को दे दी थी, परंतु नीरजा ऐसे सवालों के जवाबों से बच रही थी.

राशी ने सोफे पर बैठने के बाद उत्साह से पूछा, ‘‘नीरजा, शादी के बारे में तू ने अब तक कुछ सोचा या नहीं?’’

‘‘अभी कुछ नहीं सोचा,’’ नीरजा बोली, ‘‘तू बैठ, मैं कौफी ले कर आती हूं.’’

राशी उस के घर का अवलोकन करने लगी. बैठक ढंग से सजाया गया था. एक शैल्फ में किताबें ही किताबें थीं. नीरजा ने आते वक्त बताया था कि वह किसी पब्लिकेशन हाउस में काम कर रही थी. राशी बैठक में लगे सभी चित्रों को ध्यान से देखती रही. उस की नीरजा से जुड़ी बहुत सी पुरानी यादें धीरेधीरे ताजा हो रही थीं. उस ने सोचा भी नहीं था कि उस की नीरजा से अचानक मुलाकात हो जाएगी.

राशी बैठक से उस के दूसरे कमरे की तरफ चल पड़ी. छोटा सा बैडरूम था, जो सलीके से सजा हुआ था. राशी को वह सुकून भरा लगा. थकी हुई राशी आरामदायक बैड पर आराम से सैंडल उतार कर बैठ गई.

‘‘नीरजा यार, कुछ खाने को भी ले कर आना,’’ वह वहीं से चिल्लाई.

नीरजा हंस पड़ी. वह सैंडविच बना ही रही थी. किचन से ही वह बोली, ‘‘राशी, तू अभी कितने दिन है दिल्ली में?’’

‘‘मुझे तो आज रात ही 10 बजे की ट्रेन से लौटना है.’’

‘‘कुछ दिन और नहीं रुक सकती है क्या?’’

‘‘नीरजा… मां ने बहुत मुश्किल से सेमिनार अटैंड करने की इजाजत दी है. कल लड़के वाले आ रहे हैं मुझे देखने,’’ राशी चहकते हुए बोली.

‘‘राशी, तू अरेंज मैरिज करेगी, विश्वास नहीं होता,’’ नीरजा हंस पड़ी.

‘‘इंदर अच्छा लड़का है, हैंडसम भी है. फोटो देखेगी उस की?’’ राशी ने कहा उस से. फिर अचानक उस ने उत्सुकतावश नीरजा की एक डायरी उठा ली और बोली उस से, ‘‘ओह, तो मैडम को अभी भी डायरी लिखने का समय मिल जाता है.’’

तभी कुछ तसवीरें डायरी से नीचे गिरीं. राशी ने वे तसवीरें उठा लीं और ध्यानपूर्वक उन्हें देखने लगी. तसवीरों में नीरजा किसी पुरुष के साथ थी. वे अंतरंग तसवीरें साफ बयां कर रही थीं कि नीरजा का रिश्ता उस शख्स से बेहद गहरा था. राशी बारबार उन तसवीरों को देख रही थी. उस के चेहरे पर कई रंग आ जा रहे थे. उसे कमरे की दीवारें घूमती सी नजर आईं.

तभी नीरजा आ गई. उस ने जल्दी से ट्रे रख कर राशी के हाथ से वे तसवीरें लगभग छीन लीं.

राशी ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘नीरजा, बात क्या है?’’

नीरजा उस से आंखें चुरा कर विषय बदलने की कोशिश करने लगी, परंतु नाकामयाब रही. राशी ने कड़े शब्दों में पूछा तो नीरजा की आंखें भर आईं. फिर जो कुछ उस ने बताया, उसे सुन कर राशी के पांव तले जमीन खिसक गई.

नीरजा ने बताया कि 4 साल पहले जब वह दिल्ली आई, तो उस की मुलाकात नील से हुई. दोनों स्ट्रगल कर रहे थे. कालसैंटर की एक नौकरी के इंटरव्यू में दोनों की मुलाकात हुई थी. धीरेधीरे उन की मुलाकात दोस्ती में बदल गई. नीरजा को नौकरी की सख्त जरूरत थी, क्योंकि दिल्ली में रहने का खर्च उठाने में उस के मातापिता असमर्थ थे. नीरजा ने इस नौकरी का प्रस्ताव यह सोच कर स्वीकार कर लिया कि बाद में किसी अच्छे औफर के बाद यह नौकरी छोड़ देगी. औफिस की वैन उसे लेने आती थी, लेकिन उस के मकानमालिक को यह पसंद नहीं था कि वह रात में बाहर जाए.

इधर नील को भी एक मामूली सी नौकरी मिल गई थी. वह अपने रहने के लिए एक सुविधाजनक जगह ढूंढ़ रहा था. एक दिन कनाट प्लेस में घूमते हुए अचानक नील ने एक साझा फ्लैट किराए पर लेने का प्रस्ताव नीरजा के आगे रखा. नीरजा उस के इस प्रस्ताव पर सकपका गई.

नील ने उस के चेहरे के भावों को भांप कर कहा, ‘‘नीरजा, तुम रात के 8 बजे जाती हो और सुबह 8 बजे आती हो. मैं सुबह साढ़े 8 बजे निकला करूंगा तथा शाम को साढ़े 7 बजे आया करूंगा. सुबह का नाश्ता मेरी जिम्मेदारी व रात का खाना तुम बनाना. इस तरह हम साथ रह कर भी अलगअलग रहेंगे.’’

नीरजा सोच में पड़ गई थी. संस्कारी नीरजा का मन उसे इस ऐडजस्टमैंट से रोक रहा था, परंतु नील का निश्छल व्यवहार उसे मना पाने में सफल हो गया. दोनों पूरी ईमानदारी से एकदूसरे का साथ देने लगे. 1 घंटे का जो समय मिलता, उस में दोनों दिन भर क्या हुआ एकदूसरे को बताते. दोनों की दोस्ती एकदूसरे के सुखदुख में काम आने लगी थी. नीरजा ने उस 2 कमरे के फ्लैट को घर बना दिया था. उस ने नील की पसंद के परदे लगवाए, तो नील ने भी रसोई जमाने में उस की पूरी सहायता की थी.

इतवार की छुट्टी का रास्ता भी नील ने ईमानदारी से निकाला. दिन भर दोनों घूमते. शाम को नीरजा घर आ जाती तो नील अपने दोस्त के यहां चला जाता. इंसानी रिश्ते बड़े अजीब होते हैं. वे कब एकदूसरे की जरूरत बन जाते हैं, यह उन्हें स्वयं भी पता नहीं चलता. नीरजा और नील शायद यह समझ ही नहीं पाए कि जिसे वे दोस्ती समझ रहे हैं वह दोस्ती अब प्यार में बदल चुकी है.

नीरजा अचानक रुकी. उस ने अपनी सांसें संयत कर राशी को बताया कि उस दिन बरसात हो रही थी. जोरों का तूफान था. टैक्सी या कोई भी सवारी मिलना लगभग असंभव था. वे दोनों यह सोच कर बाहर नहीं निकले कि बरसात थमने पर नील अपने दोस्त के यहां चला जाएगा. पर बरसात थमने का नाम ही नहीं ले रही थी.

नील शायद उस तूफानी रात में निकल भी जाता, पर नीरजा ने उसे रोक लिया. वह तूफानी रात नीरजा की जिंदगी में तूफान ला देगी, इस का अंदेशा नीरजा को नहीं था. तेज सर्द हवाएं उन के बदन को सिहरा जातीं. नीरजा व नील दोनों अंधेरे में चुपचाप बैठे थे. बिजली गुल थी. नीरजा को डर लग रहा था. नील ने मजबूती से उस का हाथ थाम लिया.

तभी जोर की बिजली कड़की और नीरजा नील के करीब आ गई. दोनों अपनी बढ़ी हुई धड़कनों के सामने कुछ और न सुन सके. दिल में उठे तूफान की आवाज के सामने बाहर के तूफान की आवाज दब गई थी. नीरजा के अंतर्मन में दबा नील के प्रति प्रेम समर्पण में परिवर्तित हो गया. नील ने नीरजा को अपनी बांहों में भर लिया. नीरजा प्रतिकार नहीं कर पाई. दोनों अपनी सीमारेखा का उल्लंघन यों कर गए, मानो उफनती नदी आसानी से बांध तोड़ कर आगे निकल गई हो.

तूफान सुबह तक थम गया था, लेकिन इस तूफान ने नीरजा की जिंदगी बदल दी थी. नीरजा ने अपने इस प्रेम को स्वीकार कर लिया था. नीरजा का प्रेम अमरबेल सा चढ़ता गया. उस के बाद किसी भी रविवार को नील अपने दोस्त के यहां नहीं गया. नीरजा को नील के प्रेम का बंधन सुरक्षा का एहसास कराता था.

एक दिन नीरजा ने नील को प्यार करते हुए कहा, ‘‘हमें अब शीघ्र ही विवाह कर लेना चाहिए.’’

नील ने प्यार से नीरजा का हाथ थामते हुए कहा, ‘‘नीरजा, मेरे प्यार पर भरोसा रखो. मैं अभी शादी के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं हूं. ऐसा नहीं है कि मैं तुम्हारी जिम्मेदारी उठाने से डरता हूं. लेकिन इस वक्त मुझे तुम्हारा साथ और सहयोग दोनों ही अपेक्षित हैं.’’

उन दोनों के सीधेसुलझे प्यार के तार उस वक्त उलझने लगे, जब नीरजा की बड़ी बहन रमा दीदी व जीजाजी अचानक दिल्ली आ पहुंचे. नीरजा बेहद घबरा गई थी. उस ने नील से जुड़ी हर चीज को छिपाने की काफी कोशिश की, लेकिन रमा दीदी ने भांप लिया था. उन्होंने नील को बुलाया. नील इस परिस्थिति के लिए तैयार नहीं था. रमा ने नील पर विवाह के लिए दबाव बनाया, जो नील को मंजूर नहीं था.

रमा दीदी को भी उन के रिश्ते का कोई भविष्य नजर नहीं आ रहा था. उन्होंने अपने देवर विपुल के साथ नीरजा की शादी का मन बना लिया था. नील इसे बरदाश्त न कर पाया. बिना कुछ कहेसुने उस ने दिल्ली छोड़ दी. नीरजा के नाम एक लंबा खत छोड़ कर नील मुंबई चला गया.

नीरजा अंदर से टूट गई थी. उस ने रमा दीदी को सब सचसच बता दिया. उस दिन से नीरजा के रिश्ते अपने घर वालों से भी टूट गए. नीरजा फिर कभी कालसैंटर नहीं गई. वह इस का दोष नील को नहीं देना चाहती थी. उस ने नील के साथ बिताए लमहों को एक गुनाह की तरह नहीं, एक मीठी याद बना कर अपने दिल में बसा लिया.

कुछ दिनों बाद उसे एक पब्लिकेशन में नौकरी मिल गई. वह दिन भर किताबों में डूबी रहती, ताकि नील उसे याद न आए. उम्मीद का एक दीया उस ने अपने मन के आंगन में जलाए रखा कि कभी न कभी उस का नील लौट कर जरूर आएगा. उस का अवचेतन मन शायद आज भी नील का इंतजार कर रहा था. इसी कारण उस ने घर भी नहीं बदला. हर चीज वैसी ही थी, जैसी नील छोड़ कर गया था.

नीरजा का अतीत एक खुली किताब की तरह राशी के सामने आ चुका था. वह हतप्रभ बैठी थी. रात 10 बजे राशी की ट्रेन थी. नीरजा के अतीत पर कोई टिप्पणी किए बगैर राशी ने उस से विदा ली. सफर के दौरान राशी की आंखों में नींद नहीं थी. वह नीरजा की उलझी जिंदगी के बारे में सोचती रही.

अगले दिन शाम को इंदर अपनी मां व बहन के साथ आया. राशी ने ज्योंही बैठक में प्रवेश किया, सब से पहले लड़के की मां को शिष्टता के साथ नमस्ते किया. फिर वह लड़के की तरफ पलटी और अपना हाथ बढ़ा कर परिचय दिया, ‘‘हेलो, आई एम डा. राशी.’’

इंदर ने भी खड़े हो कर हाथ मिलाया, ‘‘हैलो, आई एम इंद्रनील.’’

कुछ औपचारिक बातों के बाद राशी ने इंदर की मां से कहा, ‘‘आंटी, आप बुरा न मानें तो मैं इंद्रनील से कुछ बातें करना चाहती हूं.’’

‘‘हांहां क्यों नहीं,’’ इंद्रनील की मां अचकचा कर बोलीं.

वे दोनों ऊपर टैरेस पर चले गए. कुछ चुप्पी के बाद राशी बोली, ‘‘मुंबई से पहले तुम कहां थे?’’

अचानक इस प्रश्न से इंद्रनील चौंक उठा, ‘‘दिल्ली.’’

‘‘इंद्रनील, मैं तुम्हें नील बुला सकती हूं? नीरजा भी तो इसी नाम से बुलाती थी तुम्हें,’’ राशी ने कुछ तल्ख आवाज में कहा.

इंद्रनील के चेहरे के भाव अचानक बदल गए. वह चौंक गया था, मानो उस की चोरी पकड़ी गई हो.

राशी आगे बोली, ‘‘तुम ने नीरजा के साथ ऐसा क्यों किया? अच्छा हुआ कि तुम से शादी होने से पहले मेरी मुलाकात नीरजा से हो गई. तुम्हारी फोटो नीरजा के साथ न देखती तो पता ही न चलता कि तुम ही नीरजा के नील हो.’’

नील के पास कोई जवाब न था. वह हैरानी से राशी को देखे जा रहा था, जिस ने उस के जख्मों को कुरेद कर फिर हरा कर दिया था, ‘‘लेकिन तुम नीरजा को कैसे…’’ आधी बात नील के हलक में ही फंसी रह गई.

‘‘क्योंकि नीरजा मेरे बचपन की सहेली है,’’ राशी ने कहा.

नील मानो आकाश से नीचे गिरा हो, ‘‘लेकिन वह तो सिर्फ एक दोस्त की तरह…’’ उस की बात बीच में काट कर राशी बोली, ‘‘अगर तुम एक दोस्त के साथ ऐसा कर सकते हो, तो मैं तो तुम्हारी कुछ भी नहीं. नील, तुम्हें नीरजा का जरा भी खयाल नहीं आया. कहीं तुम्हारी यह मानसिकता तो नहीं कि नीरजा ने शादी से पहले तुम से संबंध बनाए. अगर तुम्हारी यह सोच है, तो तुम ने मुझ से शादी का प्रस्ताव मान कर मुझे धोखा देने की कैसे सोची. जो अनैतिक संबंध तुम्हारे लिए सही है, वह नीरजा के लिए गलत कैसे हो सकता है. तुम नीरजा को भुला कर किसी और से शादी के लिए कैसे राजी हुए? नीरजा आज तक तुम्हारा इंतजार कर रही है.’’

कुछ चुप्पी के बाद नील बोला, ‘‘मैं ने कई बार सोचा कि नीरजा के पास लौट जाऊं, लेकिन मेरे कदम आगे न बढ़ सके. उस के पास वापस जाने के सारे दरवाजे मैं ने खुद ही बंद कर दिए थे.’’

‘‘नीरजा आज भी तुम्हारा शिद्दत से इंतजार कर रही है. जानते हो नील, जब मुझे तुम्हारे और नीरजा के संबंध का पता चला, तो मुझे बहुत गुस्सा आया था. फिर सोचा कि मैं तो तुम्हारी जिंदगी में बहुत बाद में आई हूं, पर नीरजा और तुम्हारा रिश्ता कच्चे धागों की डोर से बहुत पहले ही बुन चुका था. अभी देर नहीं हुई है नील, नीरजा के पास वापस चले जाओ. मैं जानती हूं कि तुम्हारा दिल भी यही चाहता है. जिस रिश्ते को सालों पहले तुम तोड़ आए थे, उसे जोड़ने की पहल तो तुम्हें ही करनी होगी,’’ राशी ने नील को समझाते हुए कहा.

नील कुछ कहता इस से पहले ही राशी ने अपने मोबाइल से नीरजा का नंबर मिलाया. ‘‘हैलो राशी,’’ नीरजा बोली, तो जवाब में नील की भीगी सी आवाज आई, ‘‘कैसी हो नीरजा?’’

नील की आवाज सुन कर नीरजा चौंक गई.

‘‘नीरजा, क्या तुम मुझे कभी माफ कर पाओगी?’’ नील ने गुजारिश की तो नीरजा की रुलाई फूट पड़ी. उस की सिसकियों में नील के प्रति प्यार, उलाहना, गिलेशिकवे, दुख, अवसाद सब कुछ था.

‘‘बस, अब और नहीं नीरजा, मुझे माफ कर दो. मैं कल ही तुम्हें लेने आ रहा हूं. रोने से मैं तुम्हें नहीं रोकूंगा. मैं चाहता हूं तुम्हारा सारा गम आंसू बन कर बह जाए, क्योंकि उन का सामना शायद मैं नहीं कर पाऊंगा.’’

फोन पर बात खत्म हुई तो नील की आंखें नम थीं. वह राशी के दोनों हाथ पकड़ कर कृतज्ञता से बोला, ‘‘थैंक्यू राशी, मुझे इस बात का एहसास कराने के लिए कि मैं क्या चाहता हूं, वरना नीरजा के बगैर मैं कैसे अपना जीवन निर्वाह करता.’’

नील व नीरजा की जिंदगियों ने अंधेरी गलियों को पार कर उजाले की ओर कदम रख दिया था.

Relationship Tips : कहीं आप का रिश्ता भी तो नहीं बदल गया ऐंबिवेलैंट रिलेशनशिप में ?

Relationship Tips :  जिंदगी की भागादौड़ में कब हमारे रिश्तों में दरार आने लगती है, हमें पता ही नहीं चलता. छोटीछोटी बातें राई का पहाड़ बनने लगती हैं. कभी पार्टनर एकदूसरे पर प्रेम और लगाव न्यौछावर करते हैं, तो कभी पलभर में ही पार्टनर की शक्ल तक देखना नापसंद कर देते हैं.

ऐसे में रिश्ता खुशियों भरा कम व तनावपूर्ण ज्यादा होता जाता है जोकि न सिर्फ शारारिक बल्कि मानसिक रूप से भी पीड़ादायक होती है. इस परिस्थिति का एक कारण रिश्ते में विश्वास की कमी होना भी है. ऐसा रिश्ता सिर्फ पतिपत्नी का ही नहीं बल्कि किसी के साथ भी हो सकता है फिर चाहे भाई-बहन, माता पिता, दोस्त कोई भी हो.

बात यदि लाइफ पार्टनर की करें तो यह जीवनभर के लिए कड़वा अनुभव होता है क्योंकि यह एक दीर्घकालिक संबंध है. इस रिश्ते में 2 लोग एकदूसरे से गहराई से जुड़े होते हैं, जिन के बीच न सिर्फ प्रेम बल्कि टकराव, संघर्ष जैसी भावनाएं भी मौजूद होती हैं. लेकिन जब प्रेम कम और टकराव रिश्ते में घर करने लगें तो समझ लें की रिश्ता ऐंबिवेलैंट रिलेशनशिप की तरफ जा रहा है, जिसे समय रहते समझ लिया जाए तो रिश्ता टूटने से बचाया जा सकता है.

ऐंबिवेलैंट रिलेशनशिप एक ऐसा रिश्ता है, जिस में व्यक्ति के मन में एक ही व्यक्ति के प्रति मिश्रित भावनाएं होती हैं. जैसेकि पलभर में ही प्रेम और घृणा का एकसाथ होना या कभी पार्टनर की और आकर्षित होना तो दूसरे ही पल उसे अस्वीकृत करना.

कारण को समझें :

● पार्टनर के बीच में संवाद की कमी का होना जिस कारण एकदूसरे की बातों को सही से समझ नहीं पाते.

● दोनों की सोच और प्राथमिकताएं एकदूसरे सेअलग होना.

● पार्टनर से अत्यधिक अपेक्षा रखना.

● बचपन की परवरिश में अस्थिर स्नेह या असुरक्षित परवरिश का प्रभाव का होना.

प्रभाव :

● अत्यधिक मानसिक तनाव, चिंता और डिप्रेशन जैसी स्थिति की संभावना बढ़ जाती है.

● रिश्ते में विश्वास व भावनात्मक रूप से जुड़ाव कम होना.

● रिश्ते से बाहर निकलने के बारे में सोचना लेकिन पार्टनर को खोने का डर भी साथ में बने रहना.

समाधान :

● गुस्सा शांत होने पर एकदूसरे से खुल कर बात करें.

● अत्यधिक अपेक्षाओं को हावी न होने दें. रिश्ते में सामंजस्य लाने का प्रयास करें.

● ममता और वात्सल्य बनाए रखें.

● एकदूसरे की खामियों को नजरअंदाज करने की आदत डालें.

● काउंसलिंग या थेरैपी की सहायता लें.

● आत्मविश्वास में कमी न आने दें.

● एक-मदूसरे के साथ क्‍वालिटी टाइम बिताएं.

● एकदूसरे के प्रति सम्मान की भावना बनाए रखें.

Solo Trip पर निकले हैं तो ब्यूटीफुल भी दिखें

Solo Trip : आमतौर पर सोलो ट्रैवलिंग का यह मतलब निकाला जाता है कि अकेले सैरसपाटे पर निकलना, अलगअलग शहरों की खूबसूरती को देखना, वेशभूषा, खानपान से रूबरू होना आदि. पर क्या सोलो ट्रिप सिर्फ बाहरी सुख का पर्याय है या खुद की खोज का एक जरीया?

उत्तर इस बात में छिपा है कि आखिर इंसान सोलो ट्रिप क्यों करता है? जब रोजमर्रा की जिंदगी में बोरियत महसूस होने लगती हो या कहें कि जब इंसान खुद में कशमकश कर रहा होता है, जब इंसान तनाव में हो और जिंदगी की रुकी हुई गाड़ी को ऐक्सिलेटर पर लाना चाहता है, तो ऐसे में सोलो ट्रिप एक इंसान को उस के अंतरात्मा से जुड़ने में मदद करता है.

सोलो ट्रिप यानी खुद की खोज में निकलना, अपनेआप के साथ वक्त गुजारना, खुद को समझना, दुनिया को अपने नजरिए से देखना और नईनई जगहों की खूबसूरती को ऐक्सप्लोर करना. लेकिन इस सफर में अकसर ऐसा होता है कि हम अपनी खुद की खूबसूरती के साथ कंप्रोमाइज कर बैठते हैं. यह सोच कर कि छोड़ो न यार यह स्किन केयर, अकेले घूमने जा रहे हैं तो कौन देख रहा है हमें? लेकिन क्या यह सफर सिर्फ बाहरी दुनिया को देखने का है या खुद को बेहतर और कौन्फिडेंट फील कराने का भी?

ब्यूटी = कौन्फिडेंस

सोलो ट्रिप पर होने का मतलब है इंसान खुद पर फोकस करना चाहता है और जब आप खुद अच्छे और फ्रेश और सुंदर दिखते हैं, तो आप के अंदर कौन्फिडेंस आता है जिस से आपको पौजिटिव वाइव्स मिलती है.

सुंदर दिखना केवल दूसरों के लिए नहीं, बल्कि खुद के लिए भी जरूरी है. पहाड़ों की सैर पर निकले हों या फिर रेगिस्तान की रेत में, बर्फीले चोटियों पर ट्रेकिंग हो या जंगल में ऐडवेंचर आप की ग्लोइंग स्किन, फ्रेश लुक और ड्रैसिंग स्टाइल आप का मूड अच्छा बनाए रखता है.

सोलो ट्रैवलर के लिए ब्यूटी मंत्र

नदी किनारे, पहाड़ की चोटियों पर या जंगलों के बीचों बीच में ऐडवेंचर तो बहुत है पर ब्यूटी पार्लर नहीं. ऐसे में अच्छा दिखने के लिए जरूरी है कि आप अपने साथ स्किन केयर के कुछ सामान ले कर चलें.

मिनिमल स्किनकेयर किट

फेशवाश, सनस्क्रीन, मॉइश्चराइजर, लिप बाम और एक लाइट मेकअप किट. वजन ज्यादा न हो इसलिए इन्हें आप आवश्यकतानुसार छोटे डब्बे में डाल लें. इस से आप के लगेज का भार नहीं बढ़ेगा.

स्कार्फ, सनग्लासेज और हैट

ट्रिप के लिए बैग पैक करते वक्त स्कार्फ, सनग्लासेज और हैट जरूर रखें. ये आप को धूप से बचाने के साथसाथ स्टाइलिश लुक भी देते हैं. साथ ही अगर आप बर्फीले पहाड़ों की सैर पर निकले हैं तो रंगबिरंगे मफलर और टोपी साथ रखें. ये आप को ठंड से बचाएंगे और मफलर के अलगअलग रंग आप की खूबसूरती में चार चांद लगाएंगे.

बूट्स और स्पोर्ट्स शूज

घर से निकलते वक्त अपने ट्रिप और डैस्टिनेशन को ध्यान में रखते हुए जूतों का चयन करें.

कंफर्टेबल और स्टाइलिश आउटफिट्स

सफर के दौरान आप की पोशाक आरामदायक होनी चाहिए, लेकिन अपने स्टाइल से समझौता न करें. कपड़ों की कौंबिनेशन अच्छे से बनाएं. किस रंग की कार्गो, किस रंग की टी शर्ट के साथ जाएगी इस का चयन घर से निकलने के पहले कर लें ताकि जल्दबाजी में अपने स्टाइलिंग कौंबिनेशन से कंप्रोमाइज न करना पड़े.

हाइजीन का ध्यान

सुंदर दिखने के साथसाथ हैल्दी और हाइजीनिक रहना भी सेल्फ केयर का ही हिस्सा है. सफर में अपने हाइजीन पर खास ध्यान दें और  हैल्दी भोजन करें. इस से आप के चेहरे और हैल्थ पर खासा असर दिखेगा.

सोलो ट्रैवल का मतलब यह नहीं कि दुनिया देखने के चक्कर में खुद को नजरअंदाज किया जाए. जहां भी जाइए, ब्यूटी और कौन्फिडेंस साथ ले कर जाइए. इस से प्रकृति की खूबसूरती और आप की खूबसूरती के बीच एक रिश्ता बनता है जो आप को पौजिटिव वाइब से भर देता है .

यकीन कीजिए, जब आप खुद खुश   होंगे, आप का हर लम्हा, हर सफर अकेले ही पर खुदबखुद खूबसूरत और यादगार बनता जाएगा.

Vegan Icecream : क्या है वीगन आइसक्रीम और आजकल इसे युवा क्यों कर रहे हैं पसंद

Vegan Icecream : कुछ समय पूर्व तक हम सिर्फ कुल्फी और आइसक्रीम के बारे में ही सुनते थे, जिसे दूध, शक्कर और कौर्नफ्लोर आदि से बनाया जाता था पर आजकल वीगन आइसक्रीम काफी चलन में है जिसे युवाओं द्वारा काफी पसंद किया जा रहा है. इसे डेयरी के दूध के स्थान पर पौधों से प्राप्त फलों और बीजों से बनाया जाता है.

चूंकि गाय, भैंस आदि के दूध में फैट होता है जिस के कारण अपने वजन के प्रति जागरूक युवा दूध की आइसक्रीम को खाना पसंद नहीं करते, वहीं कुछ लोगों को लैक्टोज इंटौलरेंस यानि उन का पाचनतंत्र दूध को नहीं पचा पाता इसलिए ये लोग भी वीगन आइसक्रीम को ही प्राथमिकता देते हैं.

इस सब से इतर कुछ पर्यावरण प्रेमी युवाओं का मानना है कि डेयरी बेस्ड आइसक्रीम की अपेक्षा प्लांट बेस्ड आइसक्रीम खाने से दूध की खपत कम होगी जिस से पशुओं का अनावश्यक शोषण कम हो सकेगा.

क्या है वीगन आइसक्रीम

वीगन आइसक्रीम को शाकाहारी आइसक्रीम भी कहा जाता है यह एक ऐसी आइसक्रीम होती है जिसे दूध, क्रीम, मिल्क पाउडर और अंडा जैसे डेयरी उत्पादों के स्थान पर नारियल, बादाम, नट्स, सोया और फलों की प्यूरी के साथ बनाया जाता है.

इन में डेयरी के दूध के स्थान पर सोया, ओट्स, बादाम, काजू और नारियल को पानी के साथ पीस कर व छान कर पहले दूध तैयार किया जाता है फिर इस दूध में शक्कर, एसेंस, फूड कलर और फलों की प्यूरी को मिला कर बनाया जाता है.

ऐसे बनाएं वीगन आइसक्रीम

वनीला आइसक्रीम : 1/2 कप काजू को ओवरनाइट पानी में भिगो कर सुबह पानी से निकाल लें. अब एक ब्लेंडर में काजू, 1/2 कप ओट्स का दूध (ओट्स को 1 कप पानी में मिला कर छान लें), ¾ कप चीनी और 4-5 बूंदें वनीला एसेंस डाल कर अच्छी तरह ब्लेंड कर लें. इसे बितर से 15 मिनट तक फेंट कर मोल्ड में जमाएं. जब हलकी सी जम जाए तो एक बार फिर से ब्लेंड कर के जमाएं. 6-7 घंटे बाद जम जाने पर सर्व करें.

चौकलेट आइसक्रीम : पके हुए 4 केलों को छील कर छोटेछोटे टुकड़ों में काट कर रातभर के लिए डीप फ्रीजर में रख दें. 15 बादाम को भी रातभर के लिए भिगो दें और सुबह इन्हें छील कर मिक्सी के जार में 1/2 कप पानी और 4 बूंदें चौकलेट एसेंस के साथ पीस लें. इस प्रकार बादाम का दूध तैयार हो जाएगा. अब इस में ¼ कप कोको पाउडर, 4 बीज निकले खजूर डाल कर अच्छी तरह पीस लें. फ्रोजन केले डाल कर फिर से बहुत अच्छी तरह ब्लेंड करें ताकि मिश्रण एकदम स्मूद हो जाए. अब इस तैयार मिश्रण को आइसक्रीम कंटेनर में डाल कर ऊपर से बारीक कटे काजू और चोको चिप्स डाल कर 6-7 घंटे तक जमा कर सर्व करें.

रखें इन बातों का ध्यान :

● वीगन आइसक्रीम बनाने के लिए आप ओट्स, नारियल, काजू, बादाम के दूध का ही प्रयोग करें.

● हमेशा ताजे और अच्छी तरह पके हुए फलों का ही प्रयोग करें। कच्चे और सड़े फल आप की आइसक्रीम के स्वाद को बिगाड़ सकते हैं.

● यदि आप शुगर पेशेंट हैं तो चौकलेट आइसक्रीम खाने से बचें क्योंकि चौकलेट की कड़वाहट को बैलेंस करने के लिए इस में अतिरिक्त शुगर मिलानी पड़ती है.

● यदि आप वजन कम करना चाहते हैं तो चीनी के स्थान पर मिठास के लिए खजूर और मिश्री का प्रयोग करें.

● चूंकि इसे प्लांट बेस्ड मिल्क से बनाया जाता है इसलिए बहुत अधिक मात्रा में बनाने से बचें क्योंकि हर किसी को इन का स्वाद कम पसंद आता है.

● आप एक बार बेस आइसक्रीम बना कर उस में अपनी इच्छानुसार फूड कलर और एसेंस मिला कर तरहतरह की आइसक्रीम बना सकते हैं.

● किसी भी फ्लेवर की आइसक्रीम को फलों के टुकड़े डाल कर सर्व किया जा सकता है.

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