सस्टेनेबल फैशन में हाथ बढाने, आगे आये कई सेलेब्स

पिछले कई सालों से फैशन इंडस्ट्री को सस्टेनेबिलिटी के साथ जोड़ा जाता रह है, क्योंकि फैशन इंडस्ट्री का एनवायर्नमेंटल पोल्यूशन में एक बड़ा हाथ रहा है, क्योंकि फैशन प्रोडक्ट से एक बहुत बड़ी मात्रा में वेस्ट प्रोडक्ट निकलता है, जिसका सही रूप में प्रयोग करना जरुरी है, इसलिए सभी डिज़ाइनर इस बात का ध्यान रखने की कोशिश करते है कि स्लो फैशन हो, ताकि अंधाधुंध कपडे न खरीदकर एक अच्छी और खूबसूरत पोशाक पर व्यक्ति पैसे खर्च करें जो सालों साल एक जेनरेशन से दूसरी जेनरेशन को हस्तांतरित की जा सकें. इस बार की लेक्मे फैशन वीक 2023 जो फैशन डिजाइनिंग काउंसलिंग ऑफ़ इंडिया के पार्टनरशिप के साथ शुरू की गयी, जिसमे पहले दिन इको फैशन पर आधारित शो में आईएनआईऍफ़डी जेन नेक्स्ट के विजेता ‘कोयटोय’ ने ब्राइट कलर्स और ब्राइट मोटिफ्स से सबके मन को मोहा, राज त्रिवेदी की कलेक्शन "Scintilla" ने मेटेलिक पोशाक को रैंप पर जगह दी. हीरू के कलेक्शन की स्मार्ट लेयरिंग फ्री फ्लो फैशन पर अधिक ध्यान दिया, जिसमें स्टोन वाशिंग, चुन्नटे, प्लीट्स और स्मोकिंग पर अधिक काम किया गया. जैकेट, पलाज़ो पेंट, स्कर्ट, फ्रॉक्स आदि सभी मेलेनियल पोशाक जो यूथ हर अवसर पर पहन सकते है, उसको प्राथमिकता दी गई.

सस्टेनेबल साडी की बात करें, तो इसमें डिज़ाइनर अनाविला मिश्रा की पोशाक ‘डाबू’ की खूबसूरती देखने लायक थी. 10 साल के उनके इस अनुभव में उन्होंने साड़ी पहनने को एक नया रूप दिया है, जो मॉडर्न, लाइट एंड ऑथेंटिक रही. इसमें डिज़ाइनर ने ब्लाक प्रिंटिंग, वेजिटेबल डाई आदि का प्रयोग किया है, जो बहुत ही स्टाइलिंग और अलग दिखे. उनके कॉटन साडीज, जो धोती पैटर्न, जुड़े के साथ सबके आकर्षक का केंद्र बनी, ये स्टाइल अनाविला मिश्रा ने बंगाल के शान्तिनिकेतन से प्रेरित हो कर क्रिएट किया है, वह कहती है कि आजकल की लडकिया साड़ी ड्रेपिंग नहीं जानती, उन्हें ये कठिन लगता है. मैंने बंगाल के फुलिया से प्रेरित मसलिन फेब्रिक को साड़ी में प्रयोग किया है, जो बहुत सॉफ्ट और आरामदायक है और इसे सालों से बंगाल में महिलाएं बिना ब्लाउज के पहना करती थी, जिसे आज की लड़कियों ने कभी देखा और जाना नहीं, ये कपडे बहुत ही सॉफ्ट और सालों साल पहने जा सकते है. इसमें उन्होंने ब्लाक प्रिंट के लिए मड यानि कीचड़ का प्रयोग किया है, जिसमे कपडे पर पहले कीचड़ को स्प्रे कर बाद में रंगों का स्प्रे किया जाता है, जो पर्यावरण के हिसाब से भी हानिकारक नहीं होता और कूल फील देता है.

दिल्ली की डिज़ाइनर डूडल एज ने भी रिसायकलड वेस्ट मटेरियल से बने पोशाक रैम्प पर उतारें, जिसमे 90 के दशक के सुंदर फ्लोरल प्रिंट्स, सॉलिड कलर्स, डेनिम प्रस्तुत किये. दूसरी सबसे अच्छी रुचिका सचदेवा की ब्रांड बोडीस रही, जिसके कैजुअल आउटफिट काफी सुंदर रहे, जिसमे प्लेटेड शर्ट्स, फ्लेयर्ड ट्राउजर्स, असमान टॉप, जो किसी भी दिन और रात को पहनने के लिए परफेक्ट पोशाक है, उसे दिखाया गया.

इस दिन एक्ट्रेस रकुल प्रीत सिंह डिज़ाइनर श्रुति संचेती के लिए शो स्टॉपर रही, जबकि अभिनेता विजय वर्मा दिव्यम मेहता के लिए और अभिनेत्री, मॉडल आर माँ नेहा धूपिया आईएनआईऍफ़डी लांचपैड के लिए रैम्प पर वाक् किया और नए डिजाईनरों को सस्टेनेबल फैशन के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया. इसके अलावा इस दिन कोंकना सेन शर्मा, सोनाली बेंद्रे और मंदिरा बेदी भी सस्टेनेबल फैशन को सपोर्ट करने के लिए इंडियन ऑउटफिट में दिखाई पड़ी.

‘ये रिश्ता’ की ‘नायरा’ हुई बीमार, शिवांगी जोशी ने शेयर की अस्पताल की फोटो

टीवी की मशहूर एक्ट्रेस शिवांगी जोशी इन दिनों काफी चर्चा में बनी हुई हैं. जल्द ही एक्ट्रेस शालीन भनोट और ईशा सिंह के ‘बेकाबू‘ में भी नजर आएंगी. हालांकि उनका रोल शो में ज्यादा बड़ा नहीं है, लेकिन प्रोमो में शिवांगी और जैन की केमिस्ट्री देख लोग भी ‘बेकाबू’ दिखाई दिये. इन सबसे इतर हाल ही में शिवांगी जोशी की तबीयत बिगड़ गई, जिससे उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया. दरअसल, शिवांगी जोशी को किडनी में इंफेक्शन हो गया है और इस बात की जानकारी उन्होंने इंस्टाग्राम पर फोटो शेयर कर दी है. एक्ट्रेस ने बताया है कि उनकी तबीयत पहले से कहीं बेहतर है. शिवांगी की पोस्ट को देखने के बाद फैंस से लेकर सितारे तक उनके जल्दी से जल्दी ठीक होने की कामना कर रहे हैं.

 

शिवांगी जोशी ने शेयर की फोटो 

शिवांगी जोशी ने हॉस्पिटल से फोटो शेयर की, जिसमें वह नारियल पानी के साथ पोज देती दिखाई दीं.  इस हालत में भी एक्ट्रेस मुस्कुराती हुई नजर आईं.  उन्होंने पोस्ट साझा कर लिखा, “हेलो दोस्तों. बीते कुछ दिन काफी मुश्किल रहे हैं.  मुझे किडनी में इंफेक्शन हो गया था, लेकिन आप लोगों को बताना चाहती हूं कि परिवार, दोस्तों, डॉक्टर, हॉस्पिटल स्टाफ और भगवान के रहमों करम से मैं अच्छा महसूस कर रही हूं.  ये आप लोगों को याद दिलाने के लिए है कि आप लोग अपने शरीर, दिमाग और आत्मा का ख्याल रखें.  सबसे बड़ी बात पानी पीते रहें. आप सभी को मेरा ढेर सारा प्यार.”

 

लोगों ने किया मैसेज 

शिवांगी जोशी ने अपने कैप्शन में आगे लिखा, “मैं जल्द ही लौटूंगी. फिल्हाल धीरे-धीरे ठीक हो रही हूं.” शिवांगी जोशी की इस पोस्ट पर टीवी सितारों ने कमेंट कर उनके जल्द से जल्द ठीक होने की कामना की. श्रद्धा आर्या ने लिखा, “अरे नहीं…जल्दी ठीक हो जाओ राजकुमारी. तुम्हें हमारा ढेर सारा प्यार. ” रुबीना दिलैक ने लिखा, “जल्दी से पूरी तरह ठीक हो जाओ.” सुधांशु पांडे ने लिखा, “तुम्हारे जल्दी ठीक होने की दुआ करता हूं.” इनके अलावा धीरज धूपर, श्रेणू पारेख, श्वेता तिवारी और चेतना पांडे जैसे सितारों ने भी कमेंट कर उनके जल्द से जल्द ठीक होने की कामना की.

Anupamaa: महान बनने के चक्कर में अनुपमा हुई अनुज से दूर ,क्या खत्म होगा Maan का रिश्ता!

स्टार प्लस का धमाकेदार सीरियल ‘अनुपमा’ इन दिनों काफी चर्चा में बना हुआ है। रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर ‘अनुपमा‘ की पूरी कहानी इन दिनों छोटी अनु के इर्द-गिर्द घूम रही है. शो में दिखाया जाएगा कि छोटी अनु, अनुज और अनुपमा को छोड़कर चली जाएगी. लेकिन उसके जाने के बाद अनुज और अनुपमा के बीच दूरियां आ जाएंगी. ये दूरियां इस कदर बढ़ जाएंगी कि अनुज अपना 26 साल का प्यार भुला बैठेगा और अनुपमा को सारी चीजों का जिम्मेदार ठहराएगा. इससे जुड़ा रुपाली गांगुली के ‘अनुपमा’ का प्रोमो वीडियो भी रिलीज हो गया है, जिसने फैंस का भी दिल तोड़ दिया है.

 

 

View this post on Instagram

 

A post shared by anupama (@anupamaa.2023)

क्या अनुज- अनुपमा हुए एक दूसरे से दूर!

अनुपमा के इस प्रोमो वीडियो में देखने को मिला कि छोटी अनु के जाने के बाद अनुज बिल्कुल बेसुध हो जाता है. अनुपमा उसे संभालने की कोशिश करती है, लेकिन वह उल्टा उसी पर भड़क जाता है. अनुज छोटी अनु की तस्वीरें देखकर आंसू बहाता है. ऐसे में अनुपमा उसके पास आकर कहती है, “सोएंगे नहीं तो नींद कैसे आएगी. छोटी को खोने का दुख मुझे भी है.” इसपर अनुज भड़क जाता है और कहता है, “क्या खोया है तुमने? तुम्हारे तीनों बच्चे तुम्हारे पास हैं. तुम्हारा पूरा परिवार तुम्हारे पास है. अकेला मैं रह गया हूं मैं. तुम्हारी ये बातें मुझे बार-बार छोटी अनु की याद दिलाती है. तुम्हारा साया मुझे अंधेरों में घेर लेता है. दम घुटता है मेरा तुम्हारे साथ, दम घुटता है.

 

 

View this post on Instagram

 

A post shared by anupama (@anupamaa.2023)

अनुपमा का प्रोमो देखकर भड़के फैंस

अनुज के इस व्यवहार से अनुपमा बिल्कुल टूट जाती है और कांपने लगती है. ‘अनुपमा’ के इस प्रोमो वीडियो को देखने के बाद फैंस को भी झटका लगा. उन्होंने अनुज के साथ-साथ मेकर्स पर नाराजगी जहिर की, साथ ही अनुज की तुलना वनराज से भी की. एक यूजर ने प्रोमो वीडियो पर नाराजगी जाहिर करते हुए लिखा, “अनुज क्या पहले अंधा था. पहले उसे पता नहीं था कि अनुपमा के 3 बचे हैं. अनुज पर अब वनराज से भी ज्यादा गुस्सा आ रहा है. बेचारी अनुपमा क्या करे. उसके खुद के बच्चों को फेंक दे क्या अब. बुद्धू अनुज.”

 

 

View this post on Instagram

 

A post shared by anupama (@anupamaa.2023)

नाराजगी दिखा रहे है दर्शक

‘अनुपमा’ के प्रोमो पर नाराजगी जाहिर करने वाले यहीं नहीं रुके. एक यूजर ने लिखा, “अनुपमा को देखकर लगता है कि सच में इतना अच्छा होना ठीक नहीं है.” एक यूजर ने अनुज पर गुस्सा निकालते हुए लिखा, “सब के सब एक जैसे ही हैं. वनराज ने भी यही किया था. लेकिन अनुज तुम्हारे ऊपर तो शर्म आ रही है. तुमसे ये उम्मीद नहीं थी. यही था 25 साल का प्यार, ऐसे व्यवहार कर रहा है कल की आई बच्ची के लिए. खुद की बेटी होती तो पता नहीं क्या करता ये आदमी.”

 

 

View this post on Instagram

 

A post shared by anupama (@anupamaa.2023)

भांडा तो फूटा है मगर होगा क्या

लड़कियां मजबूत होंगी तो वे सैक्सुअल हैरेसमैंट से बच सकती हैं और उन्हें सैल्फ डिफेंस सीखना चाहिए. कुश्ती संघ के उधड़े जख्मों से अब साफ है कि वह बेकार है. जरूरत लड़कियों को शारीरिक रूप से मजबूत होने की नहीं है, उस सामाजिक ढांचे को पटकनी देने की है जो औरतों को एक पूरी जमात के तौर पर दबा कर रखता है.

भाजपा के ऊंची जाति के सांसद ब्रज भूषण सिंह खुद कुश्ती खेलना न जानते हों, वे ‘रैसलिंग फैडरेशन औफ इंडिया’ के प्रैसिडैंट हैं और उन के शैडो में सैकड़ों रैसलर सैक्सुअल हैरेसमैंट की शिकायतें ले कर उठ खड़ी हुई हैं.

रैसलिंग कैंपों, विदेशी टूरों, सिलैक्शन में कोचों और न जाने किनकिन को खुश करना पड़ता है तब महिला रैसलर विदेश व देश में मैडल पाने का मौका पाती हैं. हर महिला रैसलर की कहानी शायद मैडल के पीछे लगी पुरुष वीर्य की बदबू से भरी है. कदकाठी और ताकत में मजबूत होने के बाद रैसलरों को न जाने किसकिस को ‘खुश’ करना पड़ता है. रैसलर महिलाओं के साथ जो बरताव होता है उस के पीछे एक कारण है कि वे पिछड़ी जातियों से ज्यादा आती हैं जिन के बारे में हमारे धर्मग्रंथ चीखचीख कर कहते हैं कि वे तो जन्म ही सिर्फ सेवा करने के लिए लेती हैं. देश के देह व्यापार में यही लड़कियां छाई हुई हैं. जाति और समाज के बंधन रैसलर लड़कियों को सैक्सुअल हैरेसमैंट से मुक्ति नहीं दिला सकते. ऐसा बहुत से क्षेत्रों में होता है जहां औरतें अकेली रह जाती हैं. एक युग में जब काशी और वृंदावन हिंदू ब्राह्मण विधवाओं से भरे थे, जिन के घर वालों ने उन्हें त्याग दिया था. वहीं के पंडित संरक्षकों ने उन्हें विदेश ले जाए जा रहे गिरमिटिया मजदूरों के साथ भिजवाया था.

एक तरह से वे जापानी सेना की कंफर्ट वूमंस की तरह थीं जिन्हें कोरियाई सेना के साथ सैनिकों को सुख देने के लिए पकड़ कर रखा था. यह द्वितीय विश्वयुद्ध में हुआ था जब जापान ने कोरिया पर कब्जा कर लिया था. कोरियाई लड़कियां शारीरिक रूप से कमजोर थीं और जब देश ही हार गया हो तो वे क्या करें? अफसोस यह है कि बड़ीबड़ी बातें करने वाला समाज तुलसीदास का कथन औरतों को ताड़न का अधिकारी ही मानता है और सरकार समर्थक अपनी बात पर अड़े रहने के लिए ताड़ना शब्द का नयानया अर्थ रोज निकालते हैं. यही रैसलिंग फैडरेशन में होता है, सभी खेलों में होता है जहां चलती पुरुषों की है पर खेलती लड़कियां हैं. गांवों से आने वाली कम पढ़ीलिखी लड़कियां केवल कपड़े न उतारने की जिद के कारण चमकदमक, विदेशी दौरों, बढि़या रिहाइश का मौका नहीं खोना चाहतीं.

उन्हें बचपन से सिखाया गया है कि पिता, भाई, पति, ससुर के हर हुक्म को सिरआंखों पर रख कर मान लो. अब यह भांड़ा फूटा है पर होगा क्या? होगा यह कि विद्रोह करने वाली लड़कियों को शहद की बूंदों पर मंडराने वाली घरेलू मक्खियों की तरह मार दिया जाएगा. सरकारी आदेशों की हिट उन पर छिड़क दी जाएगी. अगले दौर में उन लड़कियों को लिया जाएगा जो पहले दिन से सर्वस्व देने को तैयार हों. न समाज बदलने वाला, न पुरुषों की लोलुपता और कामुकता. ऊपर से रामायण, महाभारत के किस्से स्पष्ट करते रहेंगे कि औरतो, तुम तो बनी ही यातनाएं सहने को, तुम्हें लक्ष्मण रेखाओं में रहना है, तुम्हें अग्नि में जलना है या भूमि में समाना है, तुम्हें एक नहीं कई पतियों को खुश रखना है, वंश चलाने के लिए व नपुंसक पतियों की इज्जत बचाने के लिए तुम्हें दूसरे पुरुषों के हवाले किया जा सकता है. वह स्वर्ण पौराणिक युग फिर लौट आया है. राम और कृष्ण की जन्मभूमियों को नमन करो और फैडरेशन के अफसरों को खुश करो वरना न पैसा मिलेगा, न 2 वक्त की कुछ दिन अच्छी रोटी मिलेगी.

बच्चों के टिफिन के लिए बनाएं ये रेसिपी

बच्चों के रिजल्ट्स आ चुके है और स्कूल फिर से खुल गए हैं. माताओं के लिए सबसे बड़ी समस्या होती है उनके लिए ऐसा लंच बॉक्स तैयार करना जिसमें उन्हें पर्याप्त पोषण भी मिले आए स्वाद भी. आमतौर पर बच्चों को फ़ास्ट फ़ूड बहुत पसंद होता है तो बाजार के रेडीमेड फ़ास्ट फ़ूड की अपेक्षा घर पर ही हैल्दी फ़ास्ट फ़ूड तैयार किया जाए इसी तारतम्य में हम आज ऐसी रेसिपी बना रहे हैं बहुत हैल्दी भी हैं और स्वादिष्ट भी साथ ही इन्हें बहुत आसानी से घर पर बनाया भी जा सकता है तो आइए देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाया जाता है-

1-मैक्रोनी अप्पे

कितने लोगों के लिए 4
बनने में लगने वाला समय 30 मिनट
मील टाइप वेज

सामग्री

अप्पे के लिए

सूजी 1 कप
ताजा दही 1 कप
नमक 1/4 टीस्पून
जीरा 1/8 टीस्पून
ईनो फ्रूट सॉल्ट 1 सैशे
घी या बटर 1 टेबलस्पून
सामग्री (भरावन के लिए)
उबली मैक्रोनी 1 कप
बारीक कटी शिमला मिर्च 1 टेबलस्पून
बारीक कटी गाजर 1 टेबलस्पून
बारीक कटी प्याज 1 टेबलस्पून
नमक 1/4 टीस्पून
कश्मीरी लाल मिर्च 1/4 टीस्पून
नीबू का रस 1/4 टीस्पून
चिली फ्लैक्स 1चुटकी
कटी हरी धनिया 1 टेबलस्पून
तेल 1 टीस्पून

विधि

सूजी को दही और नमक के साथ घोलकर 20 मिनट के लिए ढककर रख दें. अब एक पैन में तेल डालकर सभी सब्जियां डाल दें और नमक डालकर सब्जियों के गलने तक पकाएं. जब सब्जियां गल जाएं तो मैक्रोनी, कश्मीरी लाल मिर्च, चिली फ्लैक्स और नींबू का रस डालकर अच्छी तरह चलाएं. जब पानी बिल्कुल सूख जाए तो कटी हरी धनिया डाल कर गैस से उतार लें.
अब सूजी में ईनो फ्रूट और जीरा डालकर अच्छी तरह चलाएं. अप्पे के सांचे में बटर लगाएं और तैयार सूजी का 1 चम्मच मिश्रण डालकर 1 चम्मच भरावन डालें और इसे फिर से सूजी का मिश्रण डालकर कवर कर दें. ढककर दोनों तरफ से चिकनाई लगाकर सुनहरा होने तक पका लें, इसी प्रकार सारे अप्पे तैयार करें और टोमेटो सॉस या चटनी के साथ सर्व करें.

2 -नूडल्स उत्तपम

सामग्री (उत्तपम के लिए)

कितने लोगों के लिए 4
बनने में लगने वाला समय 30 मिनट
मील टाइप वेज
धुली मूंग दाल 1 कप
नमक 1/4 टीस्पून
तेल सेंकने के लिए
बेकिंग सोडा 1/4 टीस्पून
बारीक कटी हरी धनिया 1 टीस्पून

सामग्री ( भरावन के लिए)

उबले नूडल्स 1 कप
बारीक कटी प्याज 1
बारीक कटी शिमला मिर्च 1/2
बारीक कटी बीन्स 1/2 कप
उबले कॉर्न 1 टेबलस्पून
बारीक कटा पनीर 1 टेबलस्पून
तेल 1 टीस्पून
टोमेटो सॉस 1 टीस्पून
वेनेगर 1/4 टीस्पून
सोया सॉस 1/4 टीस्पून
चिली सॉस 1/4 टीस्पून

विधि

बनाने से 3-4 घण्टे पहले मूंग दाल को भिगो दें. पानी निकालकर इसे मिक्सी में पीसकर बेकिंग सोडा और नमक डालकर अच्छी तरह फेंट लें.
एक नॉनस्टिक पैन में तेल डालकर सभी सब्जियां और नमक डाल दें. सब्जियों के गल जाने पर पनीर, कॉर्न, नूडल्स, वेनेगर और सभी सॉसेज डालकर अच्छी तरह चलाएं. अब एक नॉनस्टिक पैन पर चिकनाई लगाकर मूंग दाल का एक चम्मच मिश्रण पतला पतला फैला दें. जैसे ही हल्का सा सिक जाए तो 1 चम्मच भरावन फैलाएं और पुनः मूंग के बेटर से इसे कवर कर दें. पलटकर दोनों तरफ से सुनहरा होने तक सेंकें. इसे आप बच्चों के टिफिन में टोमेटो सॉस के साथ रखें.

स्तन कैंसर: निदान संभव है

भारत में 40 वर्ष से अधिक आयु की महिलाओं में स्तन कैंसर सबसे अधिक प्रचलित कैंसर है. ऐसे मामले विश्व स्तर पर हर साल लगभग 2% की दर से बढ़ रहे हैं. यह महिलाओं में कैंसर संबंधित मौतों का सबसे आम कारण भी है.

आज हमारे पास स्तन कैंसर से होने वाली मौतों को कम करने का मौका है. स्तन कैंसर को जल्दी पकड़ा जा सकता है ओर हारमोन थेरेपी, इम्यूनो थेरेपी और टारगेटेड थेरेपी जैसी नई विकसित के जरीए पहले की तुलना में अधिक विश्वास के साथ इसका इलाज किया जा सकता है.

सेल्फ एग्जामिनेशन

यदि प्रारंभिक चरण में कैंसर का पता लग जाता है तो उपचार अधिक प्रभावी ढंग से हो सकता है. इस अवस्था में कैंसर छोटा और स्तन तक सीमित होता है.

शुरुआत में एक छोटी गांठ की उपस्थिति या स्तन के आकार में बदलाव के अलावा कोई कथित लक्षण नहीं होता है, जिसे रोगियों द्वारा आसानी से अनदेखा किया जा सकता है. यही वह समय है जब स्क्रीनिंग जरूरी है. स्क्रीनिंग टेस्ट से स्तन कैंसर के बारे में जल्दी पता लगाने में मदद मिलती है. ऐसे में जब कोई खास लक्षण दिखाई नहीं देते तब भी स्क्रीनिंग के द्वारा हमें इस बीमारी का पता चल सकता है. स्क्रीनिंग के लिए नियमित रूप से डाक्टर के पास जाना चाहिए ताकि रोगी महिला के स्तन की पूरी तरह से जांच कर सकें. डाक्टर अकसर इस के जरीए ब्रेस्ट में छोटीछोटी गांठ या बदलाव का पता लगा लेते हैं. वे महिलाओं को सेल्फ एग्जामिनेशन करना भी सिखा सकते हैं ताकि महिलाएं खुद भी इन परिवर्तनों को पकड़ सकें.

हालांकि मैमोग्राफी स्तन कैंसर की जांच का मुख्य आधार है. यह एक एक्स-रे एग्जामिनेशन है और गांठ दिखने से पहले ही स्तनों में संदिग्ध कैंसर से जुड़े परिवर्तनों का पता लगाने में मदद करता है.

पहला मैमोग्राम कराने और इसके बाद भी कितनी बार मैमोग्राम कराना है. यह इस पर निर्भर करता है कि उस महिला को ब्रेस्ट कैंसर होने का रिसक कितना है. जिन महिलाओं के रक्त संबंधी स्तन कैंसर या ओवेरियन कैंसर से पीडि़त हैं और जिनको पहले भी स्तनों से जुड़ी कुछ असामान्यताओं जैसे स्तनों में गांठ, दर्द या डिस्चार्ज आदि का सामना करना पड़ा है उन्हें जोखिम ज्यादा रहता है. ऐसी महिलाओं को 30 साल की उम्र के बाद हर साल मैमोग्राफ कराना चाहिए. दूसरों को 40 साल की उम्र के बाद हर साल या हर 2 साल में जांच करवानी चाहिए.

टेस्टिंग

अगर मैमोग्राम में कैंसर का कोई संदिग लक्षण दिखता है तो पक्के तौर पर कैंसर है या नहीं इसका पता लगाने के लिए बायोप्सी की जाती है. इस प्रक्रिया में संदिग्ध क्षेत्र से स्तन ऊतक के छोटे हिस्से को निकाल लिया जाता है और कैंसर सेल्स का पता लगाने के लिए प्रयोगशाला में विश्लेषण किया जाता है.

उच्च जोखिम वाल महिलाओं के लिए, बीआरसीए म्युटेशन जैसी जेनेटिक असामान्यताओं का पता लगाने के लिए जेनेटिक टेस्टिंग की भी सिफारिश की जाती है. ‘बीआरसीए’ दरअसल ब्रेस्ट कैंसर जीन का संक्षिप्त नाम है. क्चक्त्रष्ट्न१ और क्चक्त्रष्ट्न२ दो अलगअलग जीन हैं तो किसी व्यक्ति के स्तन कैंसर के विकास की संभावनाओं को प्रभावित करते हैं. जिन महिलाओं में ये असामान्यताएं होती हैं उन सभी को स्तन कैंसर हो ऐसा जरूरी नहीं, मगर उनमें से 50% को यह जिंदगी में कभी न कभी जरूर होता है.

वीआरसीए जीन असामान्यता वाली महिलाओं को अतिरिक्त सतर्क रहना चाहिए और नियमित रूप से वार्षिक मैमोग्राम कराने से चूकता नहीं चाहिए. जो महिलाएं नियमित रूप से जांच नहीं कराती हैं उनके लिए यह संभावना बढ़ जाती है कि उनके स्तन कैंसर का पता लेटर स्टेज या एडवांस स्टेज पर लगेगा. इस स्तर पर कैंसर संभावित रूप से स्तन या शरीर के कुछ दूसरे हिस्सों में फैल सकता है. ऐसे में इलाज एक चुनौती बन जाती है, लेकिन जब डाइग्रोसिस शुरुआती स्टेज में हो जाती है तब इलाज के कई तरह के विकल्प मौजूद होते हैं जो कैंसर का सफलतापूर्वक कर पाते हैं और इसके फिर से होने की संभावना पर भी रोक लगाते हैं.

आपके लिए कौन सा इलाज अच्छा

होगा यह प्रत्येक कैंसर की प्रोटीन असामान्यताओं पर निर्भर करता है, जिसका पता कुछ खास जांच द्वारा लगाया जाता है. एडवांस्ड थैरेपीज जिसे इम्मुनोथेरेपी, टार्गेटेड थेरेपी और हारमोनल थेरेपी इन विशेष अब्नोर्मिलिटीज पर काम करती है और बेहतर परिणाम देती हैं.

कुछ रोगियों के लिए ये उपचार पारंपरिक कीमोथेरेपी की जगह भी ले सकते हैं. कुछ उपचार जो कैंसर दोबारा होने से रोकते हैं उन्हें गोलियों के रूप में मौखिक रूप से भी लिया जा सकता है. यह अर्ली स्टेज के स्तन कैंसर की मरीज को भी एक अच्छी जिंदगी जीने को संभव बनाते हैं.

प्रारंभिक अवस्था में स्तन कैंसर डायग्नोज होने वाली महिलाओं में से 90% से अधिक इलाज के बाद लंबे समय तक रोग मुक्त जिंदगी जी सकती हैं. लेकिन भारत में स्तन कैंसर से पीडि़त महिलाओं की 5 साल तक जीवित रहने की दर महज 42-60% है. ऐसा इसलिए है क्योंकि लगभग आधे रोगियों का पता केवल अंतिम चरण में चलता है.

हम इसे बदल सकते हैं. यदि महिलाएं अपने थर्टीज में स्तन कैंसर की जांच की योजना बनाती हैं और लक्षणों के प्रकट होने की प्रतीक्षा नहीं करती हैं.

स्तन कैंसर का डायग्नोज होना अब मौत की सजा की तरह नहीं होना चहिए क्योंकि हम कैंसर का जल्द पता लगा सकते हैं और हमारे पास इसके सफल उपचार के लिए इफेक्टिव थेरेपीज हैं.

क्लाउड किचन: कम लागत अधिक मुनाफा

बिजनैस छोटा हो या बड़ा हमें औफलाइन ग्राहकों के साथसाथ औनलाइन ग्राहकों को भी ध्यान में रख कर अपनी व्यवसायिक रणनीति तय करनी होती है, तभी ज्यादा से ज्यादा फायदा हो सकता है क्योंकि आज हर किसी के मोबाइल में असीमित डाटा है. अब ज्यादातर काम औनलाइन ही हो रहे हैं. तभी तो क्लाउड किचन बिजनैस भारत और दुनियाभर में सब से ट्रैंडिंग बिजनैस में से एक है.

क्लाउड किचन जिसे अकसर ‘घोस्ट किचन’ या ‘वर्चुअल किचन’ के रूप में भी जाना जाता है, एक प्रकार का ऐसा रैस्टोरैंट है जहां सिर्फ टेक अवे और्डर ही दिए जा सकते हैं. औनलाइन फूड और्डरिंग सिस्टम के माध्यम से ग्राहकों को भोजन उपलब्ध कराने के लिए एक व्यवसाय स्थापित किया जाना ही क्लाउड किचन है. जोमैटो और स्विग्गी जैसे फूड डिलीवरी ऐप्लिकेशंस का इन से टाईअप होता है.

2019 में भारत में लगभग 5,000 क्लाउड किचन थे. औनलाइन फूड और्डरिंग ऐप्स और वैबसाइटों के सहयोग से क्लाउड किचन को बड़ा समर्थन मिला है. आज भारत में 30,000 से अधिक क्लाउड किचन हैं.

सही प्लानिंग करें

आप महज क्व5 से 6 लाख में इस काम की शुरुआत अच्छे स्तर पर कर सकते हैं. महिलाएं भी इस बिजनैस में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं. हम ने बात की ऐसे ही एक क्लाउड किचन ‘द छौंक’ की कोफाउंडर मंजरी सिंह और हिरण्यमि शिवानी से. कोविड-19 के समय जब लोग अपने घरों में बंद थे तब हिरण्यमि शिवानी भी फंस गई थीं और अपने घर नहीं जा पाई थीं. उसी दौरान उन्हें क्लाउड किचन शुरू करने का खयाल आया. वह बिहार से ताल्लुक रखती हैं. इसलिए उन्होंने लोगों को घर के खाने का स्वाद देने खासकर स्वादिष्ठ बिहारी भोजन उपलब्ध कराने के मकसद से बिहारी कुजीन के साथ जुलाई, 2021 में ‘द छौंक’ की शुरुआत गुरुग्राम से की. इस काम में उन की बहू मंजरी सिंह ने भी साथ दिया और दोनों ने मिल कर इस बिजनैस में कदम रखा.

बढ़ चुका है काम

मंजरी सिंह बताती हैं कि शुरू में उन्होंने अपना बिजनैस घर से ही शुरू किया था और घर में ही खाना तैयार कर के औनलाइन फूड डिलीवरी ऐप्प के द्वारा लोगों को खाना डिलीवर करते थे. आज दिल्ली/एनसीआर में उन के 5 आउटलेट्स हैं. अधिकांश सिस्टम औटोमेटिक और औनलाइन है. स्विगी, जोमैटो के साथ भोजन की डिलीवरी के लिए जुड़े हुए हैं.

अभी सालाना टर्नओवर लगभग 2 करोड़ प्रोजेक्टेड है और इस साल 15-16% प्रौफिट ऐक्सपेक्ट कर रहे हैं. अभी उन के पास कुल

28 स्टाफ है जिन में से 6 स्टाफ बैक औफिस में है और बाकी किचन में है.

जाहिर है आज काम काफी बढ़ चुका है. महिला होने की वजह से सिर्फ एक मुश्किल यह होती है कि वे सोर्सिंग में बहुत ज्यादा इन्वौल्व नहीं हो पाती हैं. रा मैटेरियल जैसे सब्जी, मसाले, अनाज आदि सोर्स करने होते हैं. मार्केट में कुछ नई चीज आई हो तो वह भी देखने जाना होता है. मगर ज्यादातर मंडियां बहुत क्राउडेड और इंटीरियर एरिया में होती हैं जहां महिलाएं बारबार नहीं जा पातीं.

वैसे भी दोनों होम मेकर हैं और साथ ही बच्चों का भी ध्यान रखना होता है. इस समस्या से निबटने के लिए उन्होंने सोर्सिंग मैनेजर और कई कर्मचारी रखे हैं जो इन चीजों में उन की काफी मदद करते हैं.

इस के अलावा कोई परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा है.

जीएसटी और फाइनैंशियल इश्यूज

रैस्टोरैंट और क्लाउड किचन बिजनैस में 5% जीएसटी लगाया जाता है. अगर और्डर जोमैटो और स्विग्गी के जरीए आ रहा है तो एग्रीगेटर्स जीएसटी रिटर्न फाइल करेंगे. अगर वैबसाइट के माध्यम से और्डर आ रहा है तो क्लाउड किचन को 5% जीएसटी सरकार को जमा करना होगा. इस के अलावा कोई अप्रत्यक्ष कर शामिल नहीं हैं. यही कारण है कि हम देखते हैं कि क्लाउड किचन उद्योग में कोई कर विनियमन जटिलताएं नहीं हैं.

किस तरह की परेशानियां आ सकती हैं

– ऐग्रीगेटर के हाई कमीशन (करीब 30%) के कारण यह बहुत कम मार्जिन वाला व्यवसाय है. इसलिए रिटर्न की तुलना में तकनीकी खर्च बहुत अधिक है. ग्राहक से डायरैक्ट संपर्क का अभाव होता है. प्रतिक्रिया और समीक्षा के लिए ग्राहकों के साथ कोई सीधा संवाद नहीं. ऐग्रीगेटर्स कस्टमर का डायरैक्ट कौंटैक्ट नहीं देते.

– यही नहीं इस फील्ड में बहुत सारे ब्रैंड और कैटेगरीज आ गई हैं इसलिए बहुत प्रतियोगिता है. एक क्लाउड किचन का लिमिटेशन 6 से 7 किलोमीटर का होता है. इतनी दूरी में ही करीब 2-3 हजार रैस्टोरैंट्स हैं. लिमिटेड लोकेशन में

1000+ब्रैंड्स हैं. इस वजह से कस्टमर को बहुत से औप्शन मिलते हैं. ऐसे में आप को मार्केटिंग पर काफी खर्च करना होता है ताकि आप का रैस्टोरैंट ऊपर दिखे. बहुत से औफर देने पड़ते हैं. इस से प्रौफिट का काफी हिस्सा ऐसे ही चला जाता है.

– अधिकांश ब्रैंड संगठित नहीं हैं और भोजन और काम करने का तरीका और्गनाइज्ड नहीं है. रसोइया/स्टाफ कम सैलरी में अपनी नौकरी बदलते रहते हैं जिस से स्वाद को बनाए रखना मुश्किल हो जाता है. न्यू स्टाफ को बारबार ट्रेंड करना पड़ता है. ट्रेंड होने के बाद वे कहीं और चले जाते हैं इस से हमारा लौस होता है. उपभोक्ता सेम नहीं होते हैं और बड़ी संख्या में ब्रैंडों के कारण वे भी बदलते रहते हैं. इसलिए विज्ञापन पर खर्च बहुत अधिक होता है.

-क्लाउड किचन के लिए कोई अलग सरकारी नीति नहीं है और उन्हें अभी भी डाइन इन रेस्तरां के रूप में माना जा रहा है जबकि दोनों बहुत अलग हैं. उन का कमीशन कम जाता है. प्रौफिट मार्जिन ज्यादा है जिस से पौलिसी उन के फेवर में चली जाती है.

ये परेशानियां सामान्य किस्म की हैं जो हर बिजनैस में किसी न किसी रूप में आती ही हैं. हर बिजनैस के अपने फायदे और नुकसान होते हैं. जहां तक क्लाउड किचन की बात है तो इस के कई फायदे भी हैं:

इस में कम इन्वैस्टमैंट में ज्यादा प्रौफिट

की अपेक्षा की जा सकती है. काम करना भी आसान होता है और आप घर संभालते हुए यह काम कर सकते हैं. अन्य पारंपरिक रेस्तरां और डाइनिंग की तुलना में क्लाउड किचन में मैटेरियल मैनेजमैंट कौस्ट, ओवरहेड कौस्ट, लेबर कौस्ट बहुत कम है. यहां केवल खाना बनता है और पैक हो कर डिलीवर हो जाता है, जिस से ज्यादा कर्मचारी नहीं रखने होते और साफसफाई में भी कम मेहनत लगती है.

शौक को बनाएं बिजनैस

क्लाउड किचन के लिए कम जगह की आवश्यकता होती है और इसे शहर के किसी भी हिस्से में स्थापित किया जा सकता है. महिलाएं घर से भी शुरुआत कर लेती हैं. आप को सिर्फ इस बात का खयाल रखना है कि आप का घर शहर के व्यवसायिक क्षेत्र में होना चाहिए. बाद में व्यवसाय बढ़ने पर अलग जगह ले सकते हैं.

लौंग टर्म प्रौफिट

आप यदि चाहें तो औफलाइन बाजार भी खोल सकते हैं जैसे कि किसी रैस्टोरैंट को रैगुलर सप्लाई करना, हौस्टल और कौरपोरेट औफिस तक रोज लगने वाले टिफिन की जरूरत को पूरा करना, पार्टियों के कैटरिंग और्डर लेना आदि. वहीं त्योहारों के समय कुछ खास तरह के पकवानों के और्डर ले सकते हैं.

भारत में क्लाउड किचन शुरू करने की प्रक्रिया

स्थान: आप के पास एक ऐसा स्थान ऐसा होना चाहिए जहां आप अपने द्वारा पेश किए जाने वाले फूड की बड़ी डिमांड की अपेक्षा कर सकें. साथ ही आप को उस स्थान पर व्यवसाय चलाने की सारी सुविधाएं भी मिलें.

लाइसेंस: बिना लाइसेंस के कोई भी व्यवसाय स्थापित करना असंभव है. क्लाउड किचन शुरू करने के पहले कुछ लाइसेंस की आवश्यकता होती है. इस में शामिल हैं:

– एफएसएसएआई लाइसेंस

– जीएसटी रजिस्ट्रेशन

– लेबर लाइसेंस

– फायर क्लीयरैंस

रसोई के उपकरण: हमें काम शुरू करने के लिए स्टोव, ओवन, माइक्रोवेव, डीप फ्रीजर, रैफ्रिजरेटर, चाकू जैसे रसोई के उपकरण जरूरत पड़ते हैं.

पैकेजिंग: खाना कितना भी स्वादिष्ठ या अच्छी तरह से पका हुआ क्यों न हो जब तक इसे अच्छी तरह से पैक नहीं किया जाता है यह बाजार में ज्यादा नहीं बिकता है. इसलिए आकर्षक पैकेजिंग भी जरूरी है.

औनलाइन कनैक्टिविटी: इंटरनैट और मोबाइल फोन की आवश्यकता होगी क्योंकि डिजिटल रूप से सक्रिय रहना होगा.

मार्केटिंग: आप को जोमैटो और स्विग्गी जैसी फूड वैबसाइटों के साथ रजिस्ट्रेशन करना आवश्यक होगा क्योंकि उन के पास लाखों ग्राहक हैं, जो अपना और्डर देते हैं.

कर्मचारी: रसोई के लिए स्टाफ सदस्य का चयन क्लाउड किचन की स्थापना में सब से महत्त्वपूर्ण पहलुओं में से एक है. आप को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे अच्छी तरह से प्रशिक्षित, कुशल स्टाफ हों जो आप के क्लाउड किचन के कामकाज को अच्छी तरह संभालने के लिए आवश्यक कौशल रखते हैं.

इस के बाद रा मैटेरियल, वेंडर्स और मैनपावर फाइनल किए जाते है. सारे लाइसेंस आते ही काम शुरू किया जा सकता है.

उकसाता है मर्दानगी का मजाक

आए दिन बलात्कार की घटनाएं हमें ?ाकझोर कर रख देती हैं, पर हम इन्हें रोकने के लिए कुछ खास कर नहीं पाते. सरकारें और पुलिस भी इन्हें घटने से रोक नहीं पा रहीं. गूगल, यूट्यूब पर बेशुमार वल्गर वीडियोज, घटिया फिल्म, विज्ञापन, गलत परवरिश, मर्दानगी साबित करने की बलवती इच्छा, बदला, दुश्मनी, जगहजगह नशे की दुकानें, मौडर्न सोच दिखा कर लड़कों पर अंधा भरोसा करती लड़कियां, दोहरे अर्थ वाले संवाद, घटिया सोच, घटती इंसानियत इत्यादि.

एक और बहुत बड़ा और महत्त्वपूर्ण कारण है लड़कों की मर्दानगी का मजाक उड़ाना या उन्हें उकसाना, जिस में कभी दोस्त, कभी रिश्तेदार तो कभी खुद लड़कियां शामिल होती हैं. ‘अरे यह तो मूंछों वाला बच्चा है’, ‘इस के तो अभी दूध के भी दांत नहीं टूटे’, ‘कहीं तीसरा जैंडर तो नहीं…’ आदि. घृणित वाक्यों से लड़कों की मर्दानगी को ठेस पहुंचते हैं जो उन के लिए असहनीय हो जाती हैं. इस से आहत हो कर वे अपनी मर्दानगी साबित करने के लिए बलात्कार जैसा अनैतिक व घृणित कदम उठा लेते हैं.

बेतुकी बातें

बचपन से ही लड़कों के दिमाग में ये बातें अच्छी तरह बैठा दी जाती हैं कि ‘तुम लड़की नहीं मर्द हो, ताकतवर हो’, ‘लड़के रोते थोड़े ही हैं, रोती तो लड़कियां है’. मतलब यह कि तुम ज्यादा भावुक, जज्बाती भी नहीं हो सकतें.

लड़के घर में भी बहन, मां, बूआ, चाची, लड़कियों को देखते हैं कि उन्हें देर रात बाहर नहीं जाने दिया जाता क्योंकि बाहर उन्हें मर्दों से खतरा रहता है, कोई उन से जोरजबरदस्ती कर सकता है. पर लड़कों को कोई डर नहीं क्योंकि वे मर्द हैं. समाज में उन का बलात्कार अथवा यौन शोषण हो जाए तो उसे कलंक की भी संज्ञा नहीं दी जाती.

सामाजिक दृष्टि से लड़के अपने भविष्य के लिए भी निश्चिंत होते हैं क्योंकि उसी घरपरिवार में इज्जत से उन्हें हमेशा रहना है. उन्हें मालूम है कि उन्हें विदा हो कर कहीं और नहीं जाना. वे ही घरपरिवार के वारिस हैं. वे दिल से हिम्मती और शरीर से बलवान भी इसलिए जन्म से ही शारीरिक, मानसिक और सामाजिक सभी स्थितियों से मजबूत, स्वतंत्र और भारतीय समाज में शुरू से ही लड़कियों से ऊंची पोजीशन पर रखे जाते हैं.

यह बात उन्हें घुट्टी में पिलाई जाती है, जो उन के मनमस्तिष्क में घर कर लेती है और जो उन में कुछ ज्यादा ही आत्मविश्वास भर अपनेआप को उच्चतम मान लेने की सोच देती है.

ऐसे में वे जब किशोर, जवान होने लगते

हैं तब किसी ने भी यदि उन की मर्दानगी पर शब्दों के प्रहार किए तो वे बेहद आहत हो उठते हैं. तब चोट खाए वे अपनी मर्दानगी साबित करने के लिए कुछ भी कर डालते हैं. यहां तक कि किसी भी उम्र की, किसी भी लड़की, महिलाका बलात्कार जैसे कुकृत्य भी कर डालते हैं. कभीकभी तो पीडि़ता की हत्या तक भी कर डालते हैं.

समाज में कई तरह के वर्गों का आपस में मेलजोल शुरू होता है. पहले पिछड़े लोग ऊंचे घरों को डर की नजर से देखते थे. पिछड़ों की लड़कियों के साथ जुल्म किया जाना आम था पर अब उलटा भी होने लगा है व पैसा और पावर वाली पिछड़ी जातियां बिना जाति पूछे मौके का काम उठा लेती हैं.

लड़कियों को भी एकदूसरे वर्ग के तौरतरीकों का ज्यादा पता नहीं होता. वे सोचती हैं कि हर लड़का उन के घर जैसा होगा पर कुछ घरों में बहुत कुछ छिपा हुआ चलता है चाहे उसे हमेशा नकारा ही क्यों न जाता हो.

सम्मान दें सम्मान पाएं

स्वार्थ, सुख, मजा, पैसा ही जब इंपौर्टैंट तो ऐसे में दूसरे के दर्द, पीड़ा के वैसे ही कोई माने नहीं रह गए हैं. पैसा, सुविधा, स्वार्थ और मजा आदमी को मशीनी बना रही है. भावनाएं शून्य होती जा रही हैं. दूसरे की भावनाओं से खिलवाड़ कभीकभी बहुत महंगा भी पड़ जाता है. इसलिए किशोर से युवा बन रहे अथवा बन चुके लड़कों की कोमल मनोस्थिति को सम?ों, उन की भावनाओं से खिलवाड़ कर उन का मजाक उड़ाने से बचें. उन की मर्दानगी का मजाक महिलाओं के बल, बुद्धि, योग्यता और साहस का महत्त्व भी सम?ाना होगा.

बलात्कार जैसे कुकृत्य से भले लड़के अपने ईगो को संतुष्ट कर लें पर जब ऐसी घटनाएं खुद उन के अपनों पर घटती हैं तो वे उन के लिए भी असहनीय होती हैं.

बदली परिपाटी: मयंक को आखिर कैसी सजा मिली

लगता है रात में जतिन ने फिर बहू पर हाथ उठाया. मुझ से यह बात बरदाश्त नहीं होती. बहू की सूजी आंखें और शरीर पर पड़े नीले निशान देख कर मेरा दिल कराह उठता है. मैं कसमसा उठता हूं, पर कुछ कर नहीं पाता. काश, पूजा होती और अपने बेटे को समझाती पर पूजा को तो मैं ने अपनी ही गलतियों से खो दिया है.

यह सोचतेसोचते मेरे दिमाग की नसें फटने लगी हैं. मैं अपनेआप से भाग जाना चाहता हूं. लेकिन नहीं भाग सकता, क्योंकि नियति द्वारा मेरे लिए सजा तय की गई है कि मैं पछतावे की आग में धीरेधीरे जलूं.

‘‘अंतरा, मैं बाजार की तरफ जा रहा हूं, कुछ मंगाना तो नहीं.’’

‘‘नहीं पापाजी, आप हो आइए.’’ मैं चल पड़ा यह सोच कर कि कुछ देर बाहर निकलने से शायद मेरा मन थोड़ा बहल जाए. लेकिन बाहर निकलते ही मेरा मन अतीत के गलियारों में भटकने लगा…

‘मुझ से जबान लड़ाती है,’ एक भद्दी सी गाली दे कर मैं ने उस पर अपना क्रोध बरसा दिया.

‘आह…प्लीज मत मारो मुझे, मेरे बच्चे को लग जाएगी, दया करो. मैं ने आखिर किया क्या है?’ उस ने झुक कर अपनी पीठ पर मेरा वार सहन करते हुए कहा.

कोख में पल रहे बच्चे पर वह आंच नहीं आने देना चाहती थी. लेकिन मैं कम क्रूर नहीं था. बालों से पकड़ते हुए उसे घसीट कर हौल में ले आया और अपनी बैल्ट निकाल ली. बैल्ट का पहला वार होते ही जोरों की चीख खामोशी में तबदील होती चली गई. वह बेहोश हो चुकी थी.

‘पागल हो गया क्या, अरे, उस के पेट में तेरी औलाद है. अगर उसे कुछ हो गया तो?’ मां किसी बहाने से उसे मेरे गुस्से से बचाना चाहती थीं.

‘कह देना इस से, भाड़े पर लड़कियां लाऊं या बियर बार जाऊं, यह मेरी अम्मा बनने की कोशिश न करे वरना अगली बार जान से मार दूंगा,’ कहते हुए मैं ने 2 साल के नन्हे जतिन को धक्का दिया, जो अपनी मां को मार खाते देख सहमा हुआ सा एक तरफ खड़ा था. फिर गाड़ी उठाई और निकल पड़ा अपनी आवारगी की राह.

उस पूरी रात मैं नशे में चूर रहा. सुबह के 6 बज रहे होंगे कि पापा के एक कौल ने मेरी शराब का सारा नशा उतार दिया. ‘कहां है तू, कब से फोन लगा रहा हूं. पूजा ने फांसी लगा ली है. तुरंत आ.’ जैसेतैसे घर पहुंचा तो हताश पापा सिर पर हाथ धरे अंदर सीढि़यों पर बैठे थे और मां नन्हे जतिन को चुप कराने की बेहिसाब कोशिशें कर रही थीं.

अपने बैडरूम का नजारा देख मेरी सांसें रुक सी गईं. बेजान पूजा पंखे से लटकी हुई थी. मुझे काटो तो खून नहीं. मांपापा को समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए. पूजा ने अपने साथ अपनी कोख में पल रहे मेरे अंश को भी खत्म कर लिया था. पर इतने खौफनाक माहौल में भी मेरा शातिर दिमाग काम कर रहा था. इधरउधर खूब ढूंढ़ने के बाद भी पूजा की लिखी कोई आखिरी चिट्ठी मुझे नहीं मिली.

पुलिस को देने के लिए हम ने एक ही बयान को बारबार दोहराया कि मां की बीमारी के चलते उसे मायके जाने से मना किया तो जिद व गुस्से में आ कर उस ने आत्महत्या कर ली. वैसे भी मेरी मां का सीधापन पूरी कालोनी में मशहूर था, जिस का फायदा मुझे इस केस में बहुत मिला. कुछ दिन मुझे जरूर लौकअप में रहना पड़ा, लेकिन बाद में सब को देदिला कर इस मामले को खत्म करने में हम ने सफलता पाई, क्योंकि पूजा के मायके में उस की खैरखबर लेने वाला एक शराबी भाई ही था जिसे अपनी बहन को इंसाफ दिलाने में कोई खास रुचि न थी.

थोड़ी परेशानी से ही सही, लेकिन 8-10 महीने में केस रफादफा हो गया पर मेरे जैसा आशिकमिजाज व्यक्ति ऐसे समय में भी कहां चुप बैठने वाला था. इस बीच मेरी रासलीला मेरे एक दोस्त की बहन लिली से शुरू हो गई. लिली का साथ मुझे खूब भाने लगा, क्योंकि वह भी मेरी तरह बिंदास थी. पूजा की मौत के डेढ़ साल के भीतर ही हम ने शादी कर ली. वह तो शादी के बाद पता चला कि मैं सेर, तो वह सवा सेर है. शादी होते ही उस ने मुझे सीधे अपनी अंटी में ले लिया.

बदतमीजी, आवारगी, बदचलनी आदि गुणों में वह मुझ से कहीं बढ़ कर निकली. मेरी परेशानियों की शुरुआत उसी दिन हो गई जिस दिन मैं ने पूजा समझ कर उस पर पहली बार हाथ उठाया. मेरे उठे हाथ को हवा में ही थाम उस ने ऐसा मरोड़ा कि मेरे मुंह से आह निकल गई. उस के बाद मैं कभी उस पर हाथ उठाने की हिम्मत न कर पाया.

घर के बाहर बनी पुलिया पर आसपास के आवारा लड़कों के साथ बैठी वह सिगरेट के कश लगाती जबतब कालोनी के लोगों को नजर आती. अपने दोस्तों के साथ कार में बाहर घूमने जाना उस का प्रिय शगल था. रात को वह शराब के नशे में धुत हो घर आती और सो जाती. मैं ने उसे अपने झांसे में लेने की कई नाकाम कोशिशें कीं, लेकिन हर बार उस ने मेरे वार का ऐसा प्रतिवार किया कि मैं बौखला गया. उस ने साफ शब्दों में मुझे चेतावनी दी कि अगर मैं ने उस से उलझने की कोशिश की तो वह मुझे मरवा देगी या ऐसा फंसाएगी कि मेरी जिंदगी बरबाद हो जाएगी. मैं उस के गदर से तभी तक बचा रहता जब तक कि उस के कामों में हस्तक्षेप न करता.

तो इस तरह प्रकृति के न्याय के तहत मैं ने जल्द ही वह काटा, जो बोया था. घर की पूरी सत्ता पर मेरी जगह वह काबिज हो चुकी थी. शादी के सालभर बाद ही मुझ पर दबाव बना कर उस ने पापा से हमारे घर को भी अपने नाम करवा लिया. और फिर हमारा मकान बेच कर उस ने पौश कालोनी में एक फ्लैट खरीदा और मुझे व जतिन को अपने साथ ले गई. मेरे मम्मीपापा मेरी बहन यानी अपनी बेटी के घर में रहने को मजबूर थे. यह सब मेरी ही कारगुजारियों की अति थी जो आज सबकुछ मेरे हाथ से मुट्ठी से निकली रेत की भांति फिसल चुका था.

अपना मकान बिकने से हैरानपरेशान पापा इस सदमे को न सह पाने के कारण हार्टअटैक के शिकार हो महीनेभर में ही चल बसे. उन के जाने के बाद मेरी मां बिलकुल अकेली हो गईं. प्रकृति मेरे कर्मों की इतनी जल्दी और ऐसी सजा देगी, मुझे मालूम न था.

नए घर में शिफ्ट होने के बाद भी उस के क्रियाकलाप में कोई खास अंतर नहीं आया. इस बीच 5 साल के हो चुके जतिन को उस ने पूरी तरह अपने अधिकार में ले लिया. उस के सान्निध्य में पलताबढ़ता जतिन भी उस के नक्शेकदम पर चल पड़ा. पढ़ाईलिखाई से उस का खास वास्ता था नहीं. जैसेतैसे 12वीं कर उस ने छोटामोटा बिजनैस कर लिया और अपनी जिंदगी पूरी तरह से उसी के हवाले कर दी. उन दोनों के सामने मेरी हैसियत वैसे भी कुछ नहीं थी. किसी समय अपनी मनमरजी का मालिक मैं आजकल उन के हाथ की कठपुतली बन, बस, उन के रहमोकरम पर जिंदा था.

इसी रफ्तार से जिंदगी के कुछ और वर्ष बीत गए. इस बीच लिली एक भयानक बीमारी एड्स की चपेट में आ गई और अपनेआप में गुमसुम पड़ी रहने लगी. अब घर की सत्ता मेरे बेटे जतिन के हाथों में आ गई. हालांकि इस बदलाव का मेरे लिए कोई खास मतलब नहीं था. हां, जतिन की शादी होने पर उस की पत्नी अंतरा के आने से अलबत्ता मुझे कुछ राहत जरूर हो गई, क्योंकि मेरी बहू भी पूजा जैसी ही एक नेकदिल इंसान थी.

वह लिली की सेवा जीजान से करती और जतिन को खुश करने की पूरी कोशिश भी. पर जिस की रगों में मेरे जैसे गिरे इंसान का लहू बह रहा हो, उसे भला किसी की अच्छाई की कीमत का क्या पता चलता. सालभर पहले लिली ने अपनी आखिरी सांस ली. उस वक्त सच में मन से जैसे एक बोझ उतर गया और मेरा जीवन थोड़ा आसान हो गया.

इस बीच, जतिन के अत्याचार अंतरा के प्रति बढ़ते जा रहे थे. लगभग रोज रात में जतिन उसे पीटता और हर सुबह अपने चेहरे व शरीर की सूजन छिपाने की भरसक कोशिश करते हुए वह फिर से अपने काम पर लग जाती. कल रात भी जतिन ने उस पर अपना गुस्सा निकाला था.

मुझे समझ नहीं आता था कि आखिर वह ये सब क्यों सहती है, क्यों नहीं वह जतिन को मुंहतोड़ जवाब देती, आखिर उस की क्या मजबूरी है? तमाम बातें मेरे दिमाग में लगातार चलतीं. मेरा मन उस के लिए इसलिए भी परेशान रहता क्योंकि इतना सबकुछ सह कर भी वह मेरा बहुत ध्यान रखती थी. कभीकभी मैं सोच में पड़ जाता कि आखिर औरत एक ही समय में इतनी मजबूत और मजबूर कैसे हो सकती है?

ऐसे वक्त पर मुझे पूजा की बहुत याद आती. अपने 4 वर्षों के वैवाहिक जीवन में मैं ने एक पल भी उसे सुकून का नहीं दिया. शादी की पहली रात जब सजी हुई वह छुईमुई सी मेरे कमरे में दाखिल हुई थी, तो मैं ने पलभर में उसे बिस्तर पर घसीट कर उस के शरीर से खेलते हुए अपनी कामवासना शांत की थी.

काश, उस वक्त उस के रूपसौंदर्य को प्यारभरी नजरों से कुछ देर निहारा होता, तारीफ के दो बोल बोले होते तो वह खुशी से अपना सर्वस्व मुझे सौंप देती. उस घर में आखिर वह मेरे लिए ही तो आई थी. पर मेरे लिए तो प्यार की परिभाषा शारीरिक भूख से ही हो कर गुजरती थी. उस दौरान निकली उस की दर्दभरी चीखों को मैं ने अपनी जीत समझ कर उस का मुंह अपने हाथों से दबा कर अपनी मनमानी की थी. वह रातों में मेरे दिल बहलाने का साधनमात्र थी. और फिर जब वह गर्भवती हुई तो मैं दूसरों के साथ इश्क लड़ाने लगा, क्योंकि वह मुझे वह सुख नहीं दे पा रही थी. वह मेरे लिए बेकार हो चुकी थी. इसलिए मुझे ऐसा करने का हक था, आखिर मैं मर्द जो था. मेरी इस सोच ने मुझे कभी इंसान नहीं बनने दिया.

हे प्रकृति, मुझे थोड़ी सी तो सद्बुद्धि देती. मैं ने उसे चैन से एक सांस न लेने दी. अपनी गंदी हरकतों से सदा उस का दिल दुखाया. उस की जिंदगी को मैं ने वक्त से पहले खत्म कर दिया.

उस दिन उस ने आत्महत्या भी तो मेरे कारण ही की थी, क्योंकि उसे मेरे नाजायज संबंधों के बारे में पता चल गया था और उस की गलती सिर्फ इतनी थी कि इस बारे में मुझ से पूछ बैठी थी. बदले में मैं ने जीभर कर उस की धुनाई की थी. ये सब पुरानी यादें दिमाग में घूमती रहीं और कब मैं घर लौट आया पता ही नहीं चला.

‘‘पापा, जब आप मार्केट गए थे. उस वक्त बूआजी आई थीं. थोड़ी देर बैठीं, फिर आप के लिए यह लिफाफा दे कर चली गईं.’’ बाजार से आते ही अंतरा ने मुझे एक लिफाफा पकड़ाया.

‘‘ठीक है बेटा,’’ मैं ने लिफाफा खोला. उस में एक छोटी सी चिट और करीने से तह किया हुआ एक पन्ना रखा था. चिट पर लिखा था, ‘‘मां के जाने के सालों बाद आज उन की पुरानी संदूकची खोली तो यह खत उस में मिला. तुम्हारे नाम का है, सो तुम्हें देने आई थी.’’ बहन की लिखावट थी. सालों पहले मुझे यह खत किस ने लिखा होगा, यह सोचते हुए कांपते हाथों से मैं ने खत पढ़ना शुरू किया.

‘‘प्रिय मयंक,

‘‘वैसे तो तुम ने मुझे कई बार मारा है, पर मैं हमेशा यह सोच कर सब सहती चली गई कि जैसे भी हो, तुम मेरे तो हो. पर कल जब तुम्हारे इतने सारे नाजायज संबंधों का पता चला तो मेरे धैर्य का बांध टूट गया. हर रात तुम मेरे शरीर से खेलते रहे, हर दिन मुझ पर हाथ उठाते रहे. लेकिन मन में एक संतोष था कि इस दुखभरी जिंदगी में भी एक रिश्ता तो कम से कम मेरे पास है. लेकिन जब पता चला कि यह रिश्ता, रिश्ता न हो कर एक कलंक है, तो इस कलंक के साथ मैं नहीं जी सकती. सोचती थी, कभी तो तुम्हारे दिल में अपने लिए प्यार जगा लूंगी. लेकिन अब सारी उम्मीदें खत्म हो चुकी हैं. मायके में भी तो कोई नहीं है, जिसे मेरे जीनेमरने से कोई सरोकार हो. मैं अपनी व्यथा न ही किसी से बांट सकती हूं और न ही उसे सह पा रही हूं. तुम्हीं बताओ फिर कैसे जिऊं. मेरे बाद मेरे बच्चों की दुर्दशा न हो, इसलिए अपनी कोख का अंश अपने साथ लिए जा रही हूं. मासूम जतिन को मारने की हिम्मत नहीं जुटा पाई. खुश रहो तुम, कम से कम जतिन को एक बेहतर इंसान बनाना. जाने से पहले एक बात तुम से जरूर कहना चाहूंगी. ‘मैं तुम से बहुत प्यार करती हूं.’

‘‘तुम्हारी चाहत के इंतजार में पलपल मरती…

तुम्हारी पूजा.’’

पूरा पत्र आंसुओं से गीला हो चुका था, जी चाह रहा था कि मैं चिल्लाचिल्ला कर रो पड़ूं. ओह, पूजा माफ कर दे मुझे. मैं इंसान कहलाने के काबिल नहीं, तेरे प्यार के काबिल भला क्या बनूंगा. हे प्रकृति, मेरी पूजा को लौटा दे मुझे, मैं उस के पैर पकड़ कर अपने गुनाहों की माफी तो मांग लूं उस से. लेकिन अब पछताए होत क्या, जब चिडि़या चुग गई खेत.

भावनाओं का ज्वार थमा तो कुछ हलका महसूस हुआ. शायद मां को पूजा का यह सुसाइड लैटर मिला हो और मुझे बचाने की खातिर यह पत्र उन्होंने अपने पास छिपा कर रख लिया हो. यह उन्हीं के प्यार का साया तो था कि इतना घिनौना जुर्म करने के बाद भी मैं बच गया. उन्होंने मुझे कालकोठरी की सजा से तो बचा लिया, परंतु मेरे कर्मों की सजा तो नियति से मुझे मिलनी ही थी और वह किसी भी बहाने से मुझे मिल कर रही.

पर अब सबकुछ भुला कर पूजा की वही पंक्ति मेरे मन में बारबार आ रही थी, ‘‘कम से कम जतिन को एक बेहतर इंसान बनाना.’’ अंतरा के मायके में भी तो उस की बुजुर्ग मां के अलावा कोई नहीं है. हो सकता है इसलिए वह भी पूजा की तरह मजबूर हो. पर अब मैं मजबूर नहीं बनूंगा…कुछ सोच कर मैं उठ खड़ा हुआ. अंतरा को आवाज दी.

‘‘जी पापा,’’ कहते हुए अंतरा मेरे सामने मौजूद थी. बहुत देर तक मैं उसे सबकुछ समझाता रहा और वह आंखें फाड़फाड़ कर मुझे हैरत से देखती रही. शायद उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि जतिन का पिता होने के बावजूद मैं उस का दर्द कैसे महसूस कर रहा हूं या उसे यह समझ नहीं आ रहा था कि अचानक मैं यह क्या और क्यों कर रहा हूं, क्योंकि वह मासूम तो मेरी हकीकत से हमेशा अनजान थी.

पास के पुलिसस्टेशन पहुंच कर मैं ने अपनी बहू पर हो रहे अत्याचार की धारा के अंतर्गत बेटे जतिन के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई. मेरे कहने पर अंतरा ने अपने शरीर पर जख्मों के निशान उन्हें दिखाए, जिस से केस पुख्ता हो गया. थोड़ा वक्त लगा, लेकिन हम ने अपना काम कर दिया था. आगे का काम पुलिस करेगी. जतिन को सही राह पर लाने का एक यही तरीका मुझे कारगर लगा, क्योंकि सिर्फ मेरे समझानेभर से बात उस के पल्ले नहीं पड़ेगी. पुलिस, कानून और सजा का खौफ ही अब उसे सही रास्ते पर ला सकता है.

पूजा के चिट्ठी में कहे शब्दों के अनुसार, मैं उसे रिश्तों की इज्जत करना सिखाऊंगा और एक अच्छा इंसान बनाऊंगा, ताकि फिर कोई पूजा किसी मयंक के अत्याचारों से त्रस्त हो कर आत्महत्या करने को मजबूर न हो. औटो में वापसी के समय अंतरा के सिर पर मैं ने स्नेह से हाथ फेरा. उस की आंखों में खौफ की जगह अब सुकून नजर आ रहा था. यह देख मैं ने राहत की सांस ली.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें