Met Gala 2025 : डिजाइनर गौरव गुप्ता की ड्रेस में कियारा करेंगी मेट गाला में डेब्यू

Met Gala 2025 : भारतीय सिनेमा की सबसे चर्चित और खूबसूरत एक्ट्रेस कियारा आडवाणी, 2025 मेट गाला में अपने बहुप्रतीक्षित डेब्यू के लिए पूरी तरह तैयार है. इस खास मौके पर वह पहने नजर आएंगी मशहूर भारतीय डिजाइनर गौरव गुप्ता की विशेष रूप से तैयार की गई ड्रेस में, जो उन्हें अलग ही अंदाज देगा .

मेट गाला 2025 का आयोजन

आपको बता दें मेट गाला 2025 का आयोजन 5 मई, 2025 को न्यूयार्क के मेट्रोपौलिटन म्यूजियम औफ आर्ट में हो रहा है. कियारा का डेब्यू निश्चित रूप से रात के मुख्य आकर्षणों में से एक होगा, और फैंस उन्हें गौरव गुप्ता की शानदार कृति में देखने के लिए बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं.

मेट गाला थीम

आपको बता दें इस साल मेट गाला का थीम “सुपरफाइन: टेलरिंग ब्लैक स्टाइल” है, जो ब्लैक आइडेंटिटी की (Cultural heritage and artistic depth) सांस्कृतिक विरासत और कलात्मक गहराई को समर्पित है. इस मौके पर कियारा की उपस्थिति भारतीय कारीगरी और ग्लोबल फैशन के संगम का प्रतीक बनेगी. इस साल की ड्रेस कोड “टेलर्ड बाय यू” एक व्यक्तिगत कहानी को सामने लाने का निमंत्रण है और कियारा इसे अपने खास अंदाज़ में अपना रही हैं.

फैशन स्टेटमेंट नहीं ग्रैंड एक्सप्रेशन हैं

फैशन के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ने वाला है और सभी की निगाहें अब कियारा पर हैं. कियारा का रेड कार्पेट पर यह लुक सिर्फ एक फैशन स्टेटमेंट नहीं, बल्कि स्त्रीत्व, पहचान और बदलते प्रभाव की एक भव्य अभिव्यक्ति है. यह न केवल अभिनेत्री के लिए बल्कि भारतीय फैशन के लिए भी एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है, जो वैश्विक मंचों पर अपनी जगह लगातार मजबूत कर रहा है. इस डेब्यू के साथ, कियारा आडवाणी उन भारतीय आइकनों की कतार में शामिल हो रही हैं जिन्होंने मेट गाला जैसे प्रतिष्ठित मंच पर देश का प्रतिनिधित्व किया है और एक विशिष्ट भारतीय आवाज़ को फैशन की इस वैश्विक विरासत में शामिल किया है.

क्रिएटिव पार्टनरशिप

भारतीय डिजाइनर गौरव गुप्ता अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान प्राप्त है. अपने मूर्तिकला जैसे, अवां-गार्डे डिज़ाइनों के लिए प्रसिद्ध गुप्ता के डिज़ाइन कान्स से लेकर ऑस्कर तक के रेड कार्पेट पर छा चुके हैं. कियारा के साथ यह सहयोग स्वाभाविक है. उनकी खूबसूरती और गौरव के आर्किटेक्चरल स्टाइल का मेल एक ऐसा लुक पेश करेगा जो सुर्खियां बटोरने वाला है. कियारा की डिज़ाइनर पसंद को लेकर कुछ लोग हैरान थे. कई लोगों को उम्मीद थी कि वह मनीष मल्होत्रा, सब्यसाची या तरुण तहिलियानी जैसे मशहूर डिज़ाइनर को चुनेंगी. लेकिन गौरव गुप्ता ही हैं जो इस खास मौके पर उन्हें ड्रेस पहनाएंगे.

हौलीवुड और बौलीवुड हस्तियां शामिल

कियारा आडवाणी के साथ शाहरुख खान और प्रियंका चोपड़ा जोनास जैसे अन्य भारतीय सितारे भी मेट गाला में भाग ले रहे हैं. यह कार्यक्रम निश्चित रूप से ग्लैमर से भरपूर होगा, जिसमें हॉलीवुड और बॉलीवुड दोनों ही तरह की हस्तियां शामिल होंगी.

कस्टम ड्रेस

कियारा आडवाणी, जो 2025 मेट गाला में अपनी बहुप्रतीक्षित शुरुआत करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं, भारतीय डिजाइनर गौरव गुप्ता द्वारा डिजाइन की गई एक कस्टम ड्रेस पहनेंगी. कियारा के लिए यह एक बड़ा पल है, क्योंकि यह न केवल उनका मेट गाला डेब्यू है, बल्कि यह भी है कि वह सिद्धार्थ मल्होत्रा ​​के साथ अपने पहले बच्चे की उम्मीद कर रही हैं.

सिग्नेचर स्कल्पचरल स्टाइल

कियारा की ड्रेस गौरव गुप्ता की सिग्नेचर स्कल्पचरल स्टाइल को प्रदर्शित करेगी. यह पोशाक 2025 मेट गाला की भव्य थीम के साथ फिट होगी, जिसे ‘सुपरफाइन: टेलरिंग ब्लैक स्टाइल’ कहा जाता है. फैंस कियारा को इस अनोखे डिजाइन में देखने के लिए उत्साहित हैं जो उन्हें प्रतिष्ठित कार्यक्रम में सबसे अलग बनाएगा.

इंस्टाग्राम पोस्ट के जरिए वायरल

कियारा के मेट गाला लुक की खबर सबसे पहले डाइट सब्या के इंस्टाग्राम पोस्ट के जरिए वायरल हुई, जो फैशन वाचडाग है और पर्दे के पीछे की जानकारियों और अनफ़िल्टर्ड सेलिब्रिटी अपडेट को शेयर करने के लिए जाना जाता है। इस पोस्ट में कियारा द्वारा इस अवसर के लिए गौरव गुप्ता को चुने जाने का खुलासा किया गया, जिससे उत्साह और अटकलों को बढ़ावा मिला.

एक्ट्रेस कियारा शुरू में प्रेग्नेंट होने के दौरान मेट गाला में शामिल होने को लेकर अनिश्चित थीं. हालांकि, अब उन्होंने इस प्रतिष्ठित कार्यक्रम का हिस्सा बनने का फैसला किया है.

पब्लिक टौयलेट्स : सावधानी में ही सुरक्षा है

Public Toilets : होस्टल में रहने वली 21 वर्षीय इशिता को एक दिन तेज बुखार आया. उसे इतनी कमजोरी थी कि चल कर डाक्टर के पास पहुंचना मुश्किल हो रहा था. उस की सहेली उसे सहारा दे कर डाक्टर के पास ले गई. जांच से पता चला कि उसे यूरिनरी ट्रेक इन्फैक्शन यानि यूटीआई की समस्या है. कई दिनों की इलाज के बाद वह ठीक हो पाई. इशिता को इस इन्फैक्शन के होने की वजह होस्टल में गंदे टौयलेट के प्रयोग से है.

डाक्टर ने उसे कई प्रकार की सावधानियां बरतने की सलाह दी हैं, जिस में टौयलेट जाते समय एक बालटी साफ पानी से टौयलेट को साफ कर लेना है.

असल में घर से बाहर होस्टल हो या मौल या किसी अन्य स्थान पर जब आप जाते हैं, तो अकसर सार्वजनिक शौचालय का उपयोग करना पड़ता है, ऐसे में टौयलेट कितना साफ है, इस में किसी बीमारी की बैक्टीरिया या वायरस के ब्रीडिंग ग्राउंड है या नहीं, पता लगाना संभव नहीं होता.

ऐसे में महिलाओं के लिए यूरिनरी और जैनिटल क्षेत्रों में संक्रमण के बढ़ने का खतरा होता है. इस रिस्क को देखते हुए सार्वजनिक शौचालयों में जाने से पहले उस की हाइजीनिक कंडीशन को देख लेना जरूरी होता है, जो आप के वश में नहीं होता, ऐसे में किसी प्रकार की बीमारी से बचने के लिए खुद ही कुछ उपाय करनी पड़ती है, ताकि किसी भी प्रकार की बीमारी से खुद को बचाया जाए, क्योंकि समय रहते अगर इन बीमारियों को न रोका जाए, तो बाद में यही बीमारियां गंभीर रूप ले लेती हैं.

सार्वजनिक टौयलेट से होने वाली बीमारियां

इस बारें में मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हौस्पिटल के कंसल्टैंट, यूरोलौजिस्ट और रीनल ट्रांसप्लांट सर्जन डाक्टर श्याम वर्मा कहते हैं कि सार्वजनिक टौयलेट से होने वाली बीमारियां आम हैं, इसलिए हर महिला को इस के लिए जागरूक होने की जरूरत है, ताकि किसी प्रकार की यूरिन संबंधी बीमारियों से बचा जा सके.

डाक्टर आगे कहते हैं कि सार्वजनिक शौचालयों में बैक्टीरिया, वायरस और फंगी जैसे खतरनाक रोगाणु हो सकते हैं, इन से महिलाओं को होने वाले संक्रमण निम्न हैं :

  • यूरिनरी ट्रैक्ट संक्रमण (UTIs) में अकसर ईकोलाई जैसे बैक्टीरिया होते हैं, जो मूत्रमार्ग पर आक्रमण करते हैं. तब यूटीआई होने की संभावना होती है. इस के लक्षण हैं पेशाब करते समय जलन, बारबार पेशाब आना और पेट के निचले हिस्से में दर्द होना वगैरह.
  • कैंडीडिओसिस जैसे फंगल संक्रमण गंदे सतहों के संपर्क में आने से हो सकते हैं, इस से बचना जरूरी होता है. इस के लक्षण खुजली, जलन और अत्यधिक दुर्गंधयुक्त स्राव होता है.
  • बैक्टीरियल वैजिनोसिस ऐसी बीमारी है, जो अधिकतर हानिकारक रोगाणु के संपर्क में आने से वेजाइना में बैक्टीरिया का असंतुलन हो सकता है, जिस के परिणामस्वरूप वैजिनोसिस हो सकता है, जिस में मछली जैसी गंध आना, स्राव होना और दर्द होता है.
  • योनी से फैलने वाले संक्रमण (STIs) के अंतर्गत शरीर के फ्लूइड से दूषित सतहें हर्पीज या ट्राइकोमोनिएसिस जैसे संक्रमण फैला सकती हैं, हालांकि यह बहुत कम देखा गया है.

रिस्क फैक्टर

सार्वजनिक शौचालय से संक्रमण का जोखिम भी कई कारकों पर निर्भर करता है, मसलन शौचालय की सफाई, विषाणुजनक रोगजनकों की उपस्थिति और व्यक्तिगत स्वच्छता की आदतों में कमी होना है.

हालांकि एसटीआई जैसे गंभीर संक्रमण कम होते हैं, लेकिन यूटीआई और फंगल संक्रमण के मामले अधिक देखने को मिलते हैं. स्त्रियों की योनि बहुत अधिक संवेदनशील होती है, क्योंकि उन का मूत्रमार्ग मलद्वार के करीब होता है, इसलिए बैक्टीरिया आसानी से बहते हैं और उस भाग को संक्रमित करते हैं.

क्या है इलाज

सार्वजनिक शौचालय में जाने से संक्रमण होने पर तुरंत डाक्टर से परामर्श करना चाहिए, ताकि संक्रमण की प्रकृति के अनुसार उपचार किया जा सके, यूटीआई संक्रमित बैक्टीरिया को हटाने के लिए आमतौर पर ऐंटीबायोटिक्स दिए जाते हैं. ऐंटीबायोटिक शुरू करने के 1-2 दिनों के भीतर लक्षण ठीक हो जाते हैं। लगभग 1 सप्ताह में संक्रमण पूरी तरह से ठीक हो जाता है.

फंगल इन्फैक्शन

संक्रमण को ठीक करने के लिए ऐंटीफंगल क्रीम, सपोसिटरी या ओरल पिल्स दी जाती हैं. ऐंटीफंगल थेरैपी से मामूली मामले 3 से 7 दिनों में ठीक हो जाते हैं.

बैक्टीरियल वैजिनोसिस

सामान्य योनि बैक्टीरिया संतुलन को वापस लाने के लिए ऐंटीबायोटिक्स या ऐंटीमाइक्रोबियल जैल दिए जाते हैं. उपचार शुरू करने के कुछ दिनों के भीतर लक्षण ठीक हो जाते हैं, लेकिन समस्या फिर से हो सकती है, इसलिए हमेशा सावधान रहने की जरूरत होती है.

इस प्रकार इस के ठीक होने की अवधि संक्रमण के प्रकार और गंभीरता पर आधारित होती है.

सावधानियां

डाक्टर श्याम बताते हैं कि किसी प्रकार की संक्रमण को ठीक होने में समय लगता है और रोकथाम इलाज से बेहतर होता है. इसलिए जब भी आप बाहर जाएं कुछ सावधानियां जरूर बरतें, ताकि ऐसे इन्फैक्शन न हों.

सार्वजनिक शौचालय का उपयोग करते समय बरती जाने वाली सावधानियां इस प्रकार हैं :

  • स्वच्छ शौचालय चुनें, जो अच्छी जगहों पर अच्छी तरह से रखे गए हों, गंदे या खराब तरीके से रखे गए शौचालयों का उपयोग न करें.
  • यदि टौयलेट सीट कवर उपलब्ध है, तो उस का उपयोग करें, यदि नहीं, तो अपनी त्वचा और सीट के बीच अवरोध की तरह सीट पर टौयलेट पेपर की एक परत रख लें.
  • जब भी बाहर जाएं, अपने साथ कीटाणुनाशक वाइप्स साथ रखें, जिसे टौयलेट सीट, फ्लश हैंडल और दरवाजे के हैंडल को उपयोग करने से पहले अच्छी तरह से पोंछ लें, इस से कोरोना वायरस जैसे खतरनाक रोगाणुओं के संपर्क में आने की संभावना कम हो जाती है.
  • हमेशा डिस्पोजेबल टौयलेट सीट कवर पर बैठें या सीट को टौयलेट पेपर से ढकें. फ्लश हैंडल या दरवाजे को छूते समय अपने हाथ को ढंकने के लिए टौयलेट पेपर का उपयोग करें.
  • मलद्वार से मूत्रमार्ग या योनि पर बैक्टीरिया फैलने से बचने के लिए आगे से पीछे की ओर पोंछें.
  • शौचालय जाने के बाद कम से कम 20 सैकंड के लिए साबुन और पानी से अपने हाथ धोएं. यदि साबुन और पानी उपलब्ध नहीं हैं, तो कम से कम 60% अल्कोहलयुक्त हैंड रब का उपयोग करें.
  • व्यक्तिगत स्वच्छता आइटम्स अपने साथ लाना न भूलें। अपने बैग में एक छोटी किट लाएं, जिस में तत्काल उपयोग के लिए हैंड सैनिटाइजर, कीटाणुनाशक वाइप्स और टिश्यू जैसी जरूरी चीजें होने चाहिए.
  • फर्श से कीटाणुओं से बचने के लिए अपने पर्स या बैग को हुक पर टांग लें या अपने हाथ में रखें.
  • खुद को हमेशा हाइड्रेटेड रखना बहुत जरूरी होता है, ऐसे में बहुत पानी पीने से आप के यूरिनरी ट्रैक्ट से बैक्टीरिया बाहर निकल जाते हैं, जिस से यूटीआई का खतरा कम हो जाता है.
  • अधिक समस्या होने पर डाक्टर की सलाह तुरंत लें, ताकि बीमारी गंभीर रूप न लें. इन बीमारियों में घरेलू उपचार कभी कामयाब नहीं होते, बल्कि रोग बढ़ते जाते हैं.

सार्वजनिक शौचालय से दूर रहना संभव नहीं होता है, लेकिन कुछ सरल सावधानियां संक्रमण को काफी हद तक रोक सकती हैं. जागरूक रहने और उचित स्वच्छता रखने से महिलाएं सार्वजनिक शौचालय के उपयोग की परेशानी और स्वास्थ्य परिणामों से सुरक्षित रह सकती हैं. देखा जाए तो आप का स्वास्थ्य आप के हाथों में है, इसलिए जागरूक रहें, तैयार रहें और स्वस्थ रहें.

Skin Care Tips : स्किन को दें नैचुरल ग्लो

Skin Care Tips : समर सीजन में स्किन की खास केयर न की जाए तो वह डल होने लगती है. डस्ट और पौल्यूशन का सब से बुरा असर चेहरे की त्वचा पर पड़ता है जो कोमल होती है. इसलिए फेस स्किन की देखभाल के लिए नैचुरल प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करना ही सही विकल्प है क्योंकि कैमिकल वाले प्रोडक्ट्स आप की स्किन खराब भी कर सकते हैं.

फेस स्किन को डस्ट और पौल्यूशन के असर से बचाने के लिए दिन में 2-3 बार फेस वाश करना जरूरी है. फेस वाश ऐसा चुनें जिस में पपाया, नीम, ऐलोवेरा या फिर वाइन की नैचुरल प्रौपर्टीज का इस्तेमाल किया गया हो. इन सभी में चेहरे के नैचुरल ग्लो को बनाए रखने की प्रौपर्टी पाई जाती है. खासतौर पर वाइन का इस्तेमाल स्किन के लिए पहले भी किया जाता रहा है.

वाइन के गुणों वाला फेस वाश

वाइन में ऐंटीऔक्सीडैंट्स के साथसाथ कुछ ऐसे कंपाउंड्स भी पाए जाते हैं जो फ्री रैडिकल्स की समस्या से निबटने में मदद कर सकते हैं और स्किन में कोलोजन प्रोडक्शन को बढ़ा सकते हैं. इतना ही नहीं, वाइन के गुणों वाले फेस वाश का इस्तेमाल करने से यूवी किरणों से होने वाले बैड इंपैक्ट को भी कम किया जा सकता है. आइए, जानें इस के गुणों के बारे में:

वाइन में पाए जाने वाले फ्लैवोनोइड्स और टैनिंस जैसे ऐंटीऔक्सीडैंट्स फ्री रैडिकल्स से फाइट कर के स्किन को औक्सीडेटिव स्ट्रैस से बचाते हैं.

इसमें कोलोजन प्रोडक्शन को बूस्ट करने की प्रौपर्टी होती है, जिस से चेहरे पर रिंकल्स आने का चांस थोड़ा कम हो जाता है.

वाइन के गुण वाले फेस वाश का इस्तेमाल स्किन को हाइड्रेट रखने में सहायक है.

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वूमन इंपावरमैंट : जिम्मेदारियों का बोझ

Women Empowerment : औरतों के रोजमर्रा के जीवन पर आधारित फिल्म ‘मिसेज’ इन दिनों काफी चर्चा में है. इस फिल्म में एक ऐसी महिला की कहानी को दिखाया गया जिस की चाहत और सपने सिलबट्टे पर चटनी की तरह पिस कर रह गए. इस फिल्म में यह दिखाने की कोशिश की गई है कि कैसे शादी के बाद एक महिला का जीवन घर की चारदीवारी में घुट कर रह जाता है. कैसे एक महिला का सारा जीवन घरपरिवार की देखभाल और किचन में ही बीत जाता है.

घरेलू कामों का नाता लड़कियों के जीवन से जुड़ा हुआ है. भले ही कोई लड़की किसी समाज, परिवार में पैदा हुई हो, उसे बचपन से ही घर के कामों की शिक्षा दी जाती है यह कह कर कि उसे दूसरे घर जाना है. बुजुर्गों का कहना है कि चाहे लड़कियां कितनी ही पढ़लिख जाएं पर अपनी ससुराल जा कर उन्हें बनानी तो रोटियां हीं हैं.

सदियों से एक प्रथा चली आ रही है कि चाहे जो भी हो, घर के कामों की जिम्मेदारी तो महिलाओं की ही बनती है. उन्हें यह एहसास दिलाया जाता है कि खाना पकाना, कपड़े धोना, बरतन मांजना और घर के सभी सदस्यों का खयाल रखना महिला की ही जिम्मेदारी है. एक ही परिवार में लड़कों को पूरी आजादी दे दी जाती है और लड़कियों को रीतिरिवाजों और संस्कारों की बेडि़यों में बांध दिया जाता है. घर की जिम्मेदारियों के साथ उन्हें धार्मिक कर्मकांडों का भी हिस्सा बनना पड़ता है. आए दिन व्रतउपवास भी करने पड़ते हैं, चाहे उन की मरजी हो या न हो या चाहे वे शारीरिक रूप से कमजोर ही क्यों न हों, उन्हें अपने बेटे, पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए यह सब करना ही पड़ता है. लेकिन समाज ने पुरुषों के लिए ऐसा कोई नियम नहीं बनाया है.

कोई क्यों नहीं समझता

शालिनी वर्किंग वूमन है. रोज सुबह 4 बजे उठ जाती है. घर का सारा काम करती है, नाश्ता बना कर, बच्चों को उठा कर उन्हें तैयार कर स्कूल भेजती है. फिर पति और सास के लिए लंच तैयार कर 9 बजे तक अपने औफिस के लिए निकल जाती है. रोज उसे औफिस जानेआने में करीब 3 घंटे लग जाते हैं. शाम को थक कर जब घर पहुंचती है तो कोई उसे एक गिलास पानी के लिए भी नहीं पूछता, उलटे वही सब के लिए चाय बनाती है और फिर रात के खाने की तैयारी में लग जाती है. उसे बिस्तर पर जातेजाते रात के 11 बज जाते हैं. यही रोज का नियम है.

संडे को शालिनी घर के पैंडिंग काम निबटाती है. लेकिन घर के किसी सदस्य से उसे कोई मदद नहीं मिलती है. सब को यही लगता है कि शालिनी के 10 हाथ हैं और वह सबकुछ चुटकियों में कर लेगी. मगर वह भी एक इंसान है, वह भी थकती है, उस के भी शरीर में दर्द होता है, उसे भी आराम की जरूरत है, यह कोई नहीं सम झता.

शालिनी के पति का अपना बिजनैस है. उन की हार्डवेयर का दुकान है. वे 11 बजे आराम से अपनी दुकान पर जाते हैं. लेकिन शालिनी के साथ ऐसा नहीं है, उसे तो रोज टाइम से औफिस जाना होता है. वह कहती है कि मन करता है नौकरी छोड़ दूं. लेकिन बढ़ती महंगाई और फिर बच्चों की महंगी शिक्षा को देखते हुए नौकरी भी नहीं छोड़ सकती है.

यह कहानी केवल शालिनी की नहीं है बल्कि दुनिया की लगभग सभी औरतों की है.

खुद के लिए समय नहीं

माधुरी टीचर है और पति, आलोक भी इसी फील्ड में हैं. दोनों एक ही समय स्कूल के लिए निकलते हैं और घर भी सेम टाइम पहुंचते हैं. लेकिन घर आ कर जहां आलोक टीवी खोल कर बैठ जाते हैं, फोन पर दोस्तों से हाहा, हीही करते हैं, रील्स देखते हैं, वहीं माधुरी किचन में खाना पकाने घुस जाती है, बच्चों का होमवर्क कराती है और फिर बिखरे हुए घर को व्यवस्थित करती है क्योंकि सुबह उस के पास इतना टाइम नहीं होता कि यह सब कर सके.

माधुरी कहती है कि फिर भी कोई न कोई काम रह ही जाता है. घर का काम ठीक से नहीं कर पाने का मु झे मलाल होता है लेकिन मैं भी क्या करूं, कहां से लाऊं ऐक्स्ट्रा समय. मु झे तो खुद के लिए भी टाइम नहीं मिलता. बाल सफेद दिखते हैं, पर उन में कलर करने का टाइम नहीं है मेरे पास. फेशियल करवाए महीनों हो जाते हैं. रात में सोने से पहले भी दिमाग में यही चलता रहता है कि सुबह ब्रेकफास्ट और लंच में क्या बनाऊंगी? कभीकभी तो नींद में भी ऐसे सपने आते हैं कि बच्चों की स्कूल बस छूट गई और मैं हड़बड़ा कर उठ जाती हूं.

पूरा दिन काम और रात को भी ठीक से आराम न मिल पाने के कारण सिर भारीभारी सा लगता है. लेकिन किस से कहूं मैं अपना दुख?

सुनीता वैसे तो हाउसवाइफ है लेकिन २४?७ की जौब है उस की. वह कहती है कि उस के परिवार में 7 लोग हैं और सब के लिए उसे सवेरे उठ कर सुबह का नाश्ता, दोपहर और रात का खाना बनाना पड़ता है. उसे अपने लिए जरा सा भी समय नहीं मिल पाता है क्योंकि खाना और साफसफाई के आलावा भी घर में और कई काम होते हैं. वह रोज सुबह 5 बजे उठ जाती है और फिर रात के 11 बजे तक ही सो पाती है. थक कर इतनी चूर हो गई होती है कि बिस्तर पर जाते ही नींद आ जाती है. सुनीता अपने घरपरिवार में ऐसी उल झी है कि घर से बाहर जाने का भी समय नहीं मिल पाता. कईकई दिन हो जाते हैं उसे घर से बाहर निकले.

चौंकाने वाले आंकड़े

घरेलू कामों के बो झ के चलते भारतीय शहरों में भी लगभग आधी महिलाएं दिन में एक बार भी घर से बाहर नहीं निकल पाती हैं और जो महिलाएं कामकाजी हैं, उन का दौर भी सिर्फ घर से औफिस तक ही होता है क्योंकि एक जौब से लौट कर दूसरी जौब में लगना पड़ता है. यह चौंकाने वाला तथ्य है- ‘ट्रैवल बिहेवियर ऐंड सोसायटी’ नामक जर्नल में प्रकाशित शोधपत्र का.

आईआईटी दिल्ली के ‘ट्रांसपोटेशन रिसर्च ऐंड इंजरी प्रिवैशन’ के राहुल गोयल द्वारा लिखित अध्ययन में यह कहा गया है कि भारत में पुरुषों और महिलाओं के बीच मोबिलिटी की तुलना की जाए तो इस में व्यापक अंतराल है जो अपनेआप में दुनियाभर में बेहद दुर्लभ है.

भारत सरकार के नैशनल सैंपल सर्वे औफिस ने 2019 में दैनिक जीवन को ले कर कई आंकड़े जुटाए थे. आईआईएम अहमदाबाद के एक प्रोफैसर ने इन आंकड़ों का विश्लेषण कर के बताया कि 15 से 60 साल की स्त्रियां रोजाना औसतन 7.2 घंटे घरेलू काम करती हैं. पुरुषों का योगदान इस का आधा भी नहीं है. यही नहीं, आय अर्जित करने वाली महिलाएं भी कमाऊ पुरुषों की तुलना में घर के कामों को दोगुना वक्त देती हैं.

दयनीय होती स्थिति

ज्यादातर कामकाजी महिलाएं जीवनशैली से जुड़ी समस्याओं जैसे मोटापा, थायराइड, ऐनीमिया, विटामिन डी की कमी, मधुमेह और रक्तचाप जैसी समस्याओं से जू झ रही हैं. माहवारी के समय तो उन की स्थिति और भी दयनीय हो जाती है क्योंकि उसी अवस्था में उन्हें घर के सारे काम करने पड़ते हैं. लेकिन हमारे समाज और परिवार में इस समस्या पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है क्योंकि लोगों की यह सोच बनी हुई है कि महिलाएं बीमार नहीं पड़तीं, वे थकती नहीं हैं.

पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं की भूमिका और उन के काम के कुछ मानदंड बनाए हुए हैं, जिन का पालन करना उन की जिम्मेदारी बना दी गई है. कोई भी महिला अगर पितृसत्तात्मक समाज द्वारा तय मानकों के अनुसार बरताव नहीं करती है तो समाज में उस की आलोचना सब से पहले होती है क्योंकि पूरी दुनिया में घरपरिवार को संभालने की पहली जिम्मेदारी महिलाओं की मानी जाती है. पूरी दुनिया में कोई भी वर्ग हो, कितनी भी संपन्नता हो, घरपरिवार की देखभाल की जिम्मेदारी औरतों की ही मानी गई है.

भारत हो या दुनिया का कोई भी देश हर जगह से जुड़े आंकड़े एकजैसी ही तसवीर पेश करते हैं जिन में घर के कामों में ज्यादा समय महिलाएं व्यतीत करती हैं. दुनियाभर में एक सोच बनी हुई है कि घर के काम तो महिलाओं के ही हैं. भले ही आप कामकाजी महिला हों या फिर हाउसवाइफ, आप बीमार हों या फिर शारीरिक रूप से कमजोर, घरपरिवार और  बच्चेबुजुर्गों की देखभाल की जिम्मेदारी तो

उन्हीं की बनती है. पुरुष अगर बेरोजगार घर में बैठा है तब भी घरेलू कामों की जिम्मेदारी महिला ही संभालती है क्योंकि दिमाग में एक सोच बैठा दी गई है कि घरेलू कामों की जिम्मेदारी महिलाओं की ही है और उन्हें करने ही होंगे चाहे जैसे करें.

किसी भारतीय महिला के जीवन को 3 शब्दों में परिभाषित किया जा सकता है ‘काम, काम और काम.

प्रभावित होता स्वास्थ्य

हाल ही में विश्व आर्थिक मंच और मैं किन से हैल्थ इंस्टिट्यूट के शोध से पता चला है कि अगर महिलाओं के स्वास्थ्य में सुधार किया जाए तो 2040 तक दुनियाभर की जीडीपी में सालाना 34.50 लाख करोड़ की बढ़ोतरी हो सकती है. ‘ब्लूप्रिंट टू क्लोज द वूमन हैल्थ गैप: हाउ टू इंप्रूव लाइफ ऐंड इकौनौमीज फौर आल’ नामक यह रिपोर्ट बताती है कि पुरुषों की तुलना में महिलाएं अपने जीवन का 25% हिस्सा खराब स्वास्थ्य में बिता रही हैं. यह रिपोर्ट सभ्य समाज को कठघरे में खड़ा करती है. इस बात में जरा भी संदेह नहीं है कि पूरी दुनिया में महिलाओं का स्वास्थ्य गंभीर मुद्दा नहीं रहा है.

अकसर देखा गया है कि महिलाओं के घर के काम को उतना महत्त्व नहीं दिया जाता है और न ही उन के स्वास्थ्य को ही उतनी गंभीरता से लिया जाता है. उन के खराब स्वास्थ्य  को उन के भावनात्मक अतिरेक से जोड़ कर देखा जाता है.

2021 में ‘जर्नल औफ पेन’ द्वारा प्रकाशित मियामी विश्वविद्यालय के शोष ने यह बात सामने रखी कि एक मरीज की दर्द प्रतिक्रियाओं को उन के लिंग के आधार पर आंका जाता है. यह अध्ययन बताता है कि 70त्न अमेरिकी महिलाएं जोकि पुराने दर्द से पीडि़त हैं, उन के द्वारा अनुभव किए जाने वाले दर्द को अकसर पुरुषों के दर्द की तुलना में गंभीरता से नहीं लिया जाता है. वहीं ‘जनरल औफ द अमेरिकन हार्ट ऐसोसिएशन’ द्वारा 2020 में प्रकाशित शोध ‘सैक्स डिफरैंसेज इन कार्डियोवैस्क्सुलर इन मैडिकेशन प्रैस्क्रिप्शन इन प्राइमरी केस: अ सिस्टेमैटिक रिव्यू ऐंड मेटाऐनालिसिस’ में पाया गया कि महिलाओं में पुरुषों की तुलना में एस्परीन, कोलैस्ट्रौल कम करने वाले स्टैंटिन और रक्तचाप की दवाएं प्राप्त करने की संभावना काफी कम थी, जोकि हृदय रोग के लिए सामान्य उपचार से संबंधित है.

भारत में महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए सब से बड़ी बाधा पोषण युक्त भोजन की कमी है. काम के चक्कर में महिलाएं न तो समय पर खाना खा पाती हैं न ही पौष्टिक आहार लेती हैं. सैर, योग, ध्यान जैसी गतिविधियों के लिए भी उन के पास समय नहीं होता. बीमार होते हुए भी व्रतउपवास में दवाई न लेना, उन के शारीरिक स्वास्थ्य को बुरी तरह बिगाड़ देती है.

बयान पर बवाल

इन्फोसिस के मुखिया नारायण मूर्ति ने कहा था कि भारतीय युवाओं को हफ्ते में 70-80 घंटे काम करने चाहिए जिस पर बवाल भी उठा था कि कैसे कोई इतने घंटे काम कर सकता है. लेकिन भारतीय महिलाएं घरेलू कामों में इस से भी कहीं ज्यादा समय बिताती हैं.

टाइम यूज के मुताबिक, महिलाएं हर दिन घर के कामों में 299 मिनट लगाती हैं यानी 5 घंटे. वहीं पुरुष दिन में सिर्फ 97 मिनट घर के काम मे लगाते हैं यानी डेढ़ घंटा.

महिलाएं घर के सदस्यों की देखभाल और उन का खयाल रखने में रोज 134 मिनट लगाती हैं यानी 2 घंटे से भी ज्यादा वहीं पुरुष इस काम में सिर्फ 76 मिनट खर्च करते हैं.

घरेलू कामों में महिला का योगदान: जैसे घर की सफाई, खाना पकाना, बच्चों की देखभाल, बीमार बुजुर्गों की सेवा, परिवार के सदस्यों की देखभाल आदि में उन्हें घंटों खपाना पढ़ता है.उस पर भी कई पतियों का कहना होता है कि तुम घर पर करती ही क्या हो? अरे काम ही कितना होता है घर में जो काम का रोना रोती रहती हो? लेकिन कभी आप ने यह सोचा है कि जिस टेबल पर बैठ कर आप ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर करते हैं उसे बनाने में एक महिला को कितनी मेहनत करनी पड़ती है? कभी यह सोचा आप ने कि जो कपड़े पहन कर आप औफिस जाते हैं, उन्हें धोने और प्रैस करने में महिलाओं की कमर पर बल पड़ जाते है? घर में और भी कितने छिपे हुए काम होते हैं, जिन्हें माप पाना मुश्किल है क्योंकि ये एक तरह से अदृश्य होते हैं और इन्हें अन्य कामों के साथसाथ किए जाने की जरूरत होती है.

सचाई यह भी है

2019 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से सोशियोलौजी और सोशल पौलिसी में पीएचडी कर रही एलिसन डेमिंगर ने 35 जोडि़यों पर एक शोध किया. इस में भाग लेने वाली अधिकतर जोड़ी को यह एहसास हुआ कि घर के काम का बहुत बड़ा हिस्सा महिलाओं के जिम्मे आता है.

दुनिया तेजी से बदल रहा है. महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल रही हैं. लेकिन सचाई यह है कि भारत में ही नहीं, ब्रिटेन और अमेरिका जैसे कई देशों में भी महिलाएं पुरुषों की तुलना में घर का ज्यादा काम करती हैं. ग्रीस में भी महिलाएं घर के काम सब से ज्यादा करती हैं.यहां रोजाना खाना पकाने और घर के काम करने वाली 85 फीसदी महिलाओं को देश के सिर्फ 16 फीसदी पुरुषों से ही मदद मिलती है. भारत में भी पुरुषों के मुकाबले महिलाएं बहुत ज्यादा काम करती हैं.

फिर भी उन के कामों को उतना महत्त्व नहीं दिया जाता जितना पुरुषों के कामों को. वह इसलिए क्योंकि महिलाओं के कामों से किसी प्रकार की धन की उत्पत्ति नहीं होती. इसलिए महिलाओं के घर के काम को उन का कर्तव्य मान कर कम आंका जाता है.

भारत में महिलाओं के घरेलू काम का मेहनताना अगर होता तो कितना होता?

2021 में एक राजनीतिक पार्टी ने वादा किया था कि अगर वह सत्ता में आती है तो घरगृहस्थी संभाल रही महिलाओं को वेतन दिया जाएगा. एक सांसद ने भी इस बात का समर्थन किया था और कहा था कि गृहस्थी संभाल रही महिलाओं को उन की सेवाओं के लिए पैसे देने से उन की ताकत और स्वायत्तता बढ़ेगी और इस से एक यूनिवर्सल बेसिक इनकम पैदा होगी. खासतौर पर ऐसे वक्त में जबकि महिलाएं नौकरियों में जगह गंवा रही हैं.

पूरी दुनिया में महिलाएं घरगृहस्थी के कामों में घंटों लगाती हैं और इस के लिए उन्हें कोई पैसा नहीं मिलता. ‘इंटरनैशन लेबर और्गनाइजेशन’ के मुताबिक, बिना किसी पगार वाले काम करने में सब से ज्यादा समय इराक की महिलाएं लगाती हैं जो हर दिन 345 मिनट घरेलू कामों में लगाती हैं.

आज भी कई घरों में लड़कियां कम उम्र में ब्याह दी जाती हैं. फिर साल 2 साल में वे 1-2 बच्चों की मां भी बन जाती हैं. कम उम्र में ही बच्चों की जिम्मेदारी और पारिवारिक बो झ तले लड़कियां ऐसी दबती हक्े कि फिर उठ नहीं पाती हैं और एक दिन उसी चारदीवारी में घुट कर मर जाती हैं.

भारत में ऐसी महिलाओं की संख्या 16 करोड़ से भी कहीं ज्यादा है जो घरगृहस्थी संभाल रही हक्े. लेकिन उन्हें कोई पगार नहीं मिलती. कानूनी जानकार गौतम भाटिया तर्क देते हैं कि बिना पगार वाला घरेलू कामकाज जबरन मजदूरी है.

दिसंबर, 2020 में एक अदालत ने सड़क हादसे में मारी गई एक 33 साल की घरेलू महिला के परिवार को 17 लाख रुपए का मुआवजा दिए जाने का आदेश दिया. इस आदेश में अदालत ने महिला की मासिक सैलरी 5 हजार रुपए महीना मानी थी.

एक फैसले में जजों ने शादियों को एक ‘समान आर्थिक भागीदारी’ के तौर पर देखा और इस तरह से घरेलू महिला की सैलरी पति की सैलरी की आधी बैठी. लेकिन सिर्फ कानून ही बना, ठीक तरह से लागू नहीं हो पाया. अगर होता तो महिलाओं की स्थिति कुछ और बेहतर हो पाती.

काम बराबर वेतन कम

यूरोप से ले कर अमेरिका तक दुनिया के सारे देशों में महिला कर्मचारी को पुरुषों के बराबर वेतन नहीं मिलता है. लेकिन घरपरिवार की पूरी जिम्मेदारी औरतों पर लाद दी गई है. बौलीवुड ऐक्ट्रैस प्रियंका चोपड़ा ने कहा था कि उन्हें बौलीवुड में कभी मेल ऐक्टर के बराबर फीस नहीं मिलती. मेल कोस्टार की सैलरी की 10% ही फीस उन्हें मिलती है. कामकाजी महिलाओं को घर और बाहर दोनों जगहों पर भेदभाव का सामना करना पड़ता है.

घर के कामों का बो झ कुछ औरतों को विरासत में मिला है, लेकिन कुछ ने इसे खुद ही ओढ़ रखा है. बहुत सी महिलाएं सामाजिक दबावों और अपेक्षाओं के मुताबिक खुद को ढाल लेती हैं. वे उस से बाहर निकलने के लिए छटपटाती तो हैं लेकिन निकल नहीं पाती हैं क्योंकि यहां ‘गुड वुमन’ या ‘प्लीजिंग’ टैग काम करता है.

टौक्सिक फैमिनिटी

हमारे समाज ने महिलाओं के लिए कुछ ऐसे निश्चित मानक स्थापित किए हैं, जिन का पालन अनिवार्य माना जाता है. अगर कोई उन्हें फौलो न करे तो उसे आलोचना का सामना करना पड़ता है. परिणामस्वरूप अकसर हम अपनी असली पहचान और क्षमताओं को दबा कर उन आदर्शों के अनुसार खुद को ढालने की कोशिश करते हैं. यहीं से जन्म लेता है ‘टौक्सिक फैमिनिटी’ यह वह सोच है जो महिलाओं को गलत मानकों और अपेक्षाओं में बांध देती है और उन की स्वाभाविक पहचान को बाधित कर देती है. यह केवल महिलाओं को दबाने का एक तरीका नहीं है बल्कि इस से समाज के हर व्यक्ति की मानसिकता और विकास प्रभावित होता है. कई महिलाएं जानबू झ कर भी इस का शिकार बन जाती हैं.

हमारे समाज में उन महिला की ज्यादा अच्छी छवि मानी जाती है जो अपनी भावनाओं को दबा कर अपने से जुड़े लोगों की परवाह करने में जुटी रहती हैं. चाहे वे कितनी भी तकलीफ में क्यों न हों लेकिन सब के लिए उन की पसंद का खाना बनाएंगी, उन की छोटीछोटी जरूरतों का खयाल रखेंगी. समाज में इसे प्लीजिंग पर्सनैलिटी वाली स्वीकृति पाने के लिए बहुत सी महिलाएं ‘टौक्सिक फैमिनिटी’ के दायरे में रहने लगती हैं.

जैसे कि अपनी क्षमताओं को कम दिखाना ताकि पुरुष पार्टनर को कमजोर न दिखना पड़े.

मेल पार्टनर का सहारा लेना, यह मान कर कि आप अपना कोई काम खुद नहीं कर सकतीं.

समाज के नियमों के चलते खुद को परेशान करना ताकि वे खुश रहें.

खुद से पहले पुरुषों की इच्छा को आगे रखना आदि.

कमजोर नहीं है औरत

आप यह समझिए कि औरत होने का मतलब कमजोर होना नहीं है. असल में औरत होने का मतलब एक महिला की अपनी पहचान, उस की ताकत, संवेदनशीलता, आत्मनिर्भरता और व्यक्तित्व से है. महिलाओं को अपनी सोच और मानसिकता को ठीक तरह से सम झना चाहिए. उन्हें इस बात की सम झ होनी चाहिए कि ऐसे कौन से सामाजिक दबाव हैं जो समाज में उन्हें पीछे धकेल रहे हैं. खुद को याद दिलाएं कि आप किसी से कम नहीं हैं. सैल्फ लव और आत्मनिर्भता को प्राथमिकता दें.

जरूरी है कि महिलाएं अपने जीवन के फैसले बिना किसी बाहरी दबाव के लें और सब का खयाल रखने से पहले अपनी सेहत का ध्यान रखें. यह सम झें कि आप अपनी जिंदगी की नायिका हैं. शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक देखभाल को प्राथमिकता दें क्योंकि जब आप खुद को पोषित करती हैं तब आप दूसरों के लिए भी मददगार साबित हो सकती हैं. अपनी देखभाल करने से महिलाएं समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकती हैं.

Divorce : मेरे रिश्ते में तलाक की नौबत आ गई है, क्या करूंं?

Divorce :  अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 37 साल का हूं. मैं अपनी पत्नी को सैक्सुअली सैटिस्फाइड नहीं कर पाता हूं, जिस वजह से हमारे बीच कम्युनिकेशन गैप आने लगा. अब हालत यहां तक पहुंच गई है कि बात तलाक तक आ गई है. कृपया कोई उपाय बताएं?

जवाब-

अपनी पार्टनर से सैक्स प्रौब्लम्स के बारे में खुल कर बात करें. ऐसा समय तय करें जब आप दोनों फ्री और रिलैक्स्ड हों. अपनी ऐक्सपैक्टेशंस, फीयर्स, डिजायर्स को ले कर बात करें. आप चाहें तो सैक्सोलौजिस्ट की मदद भी ले सकते हैं.

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बौलीवुड अदाकारा करिश्मा कपूर ने अपने पति संजय कपूर से तलाक लेने का फैसला किया. दोनों ने सुप्रीम कोर्ट में आपसी रजामंदी से तलाक लेने और विवादों का निबटारा करने के कागजात पर दस्तखत किए थे.

करिश्मा कपूर ने 29 सितंबर, 2003 को दिल्ली के बिजनैसमैन संजय कपूर से शादी की थी. लेकिन 2012 में दोनों अलग हो गए. दोनों के 2 बच्चे समायरा और कियान हैं. करिश्मा संजय कपूर की दूसरी पत्नी थीं. उन की पहली शादी डिजाइनर नंदिता मथानी से हुई थी. संजय और नंदिता पढ़ाई के दौरान मिले थे. दोनों ने लव मैरिज की, मगर यह अधिक दिनों तक नहीं टिक सकी.

नंदिता से तलाक लेने के महज 10 दिनों बाद ही संजय ने करिश्मा से शादी कर ली. मगर यह शादी भी आखिर टूट गई और वजह रही संजय का प्रिया सचदेव से रिश्ता.

इसी तरह 33 साल की हौलीवुड अदाकारा बिली पाइपर ने भी अपने दूसरे पति लौरेंस फौक्स से कुछ समय पहले तलाक लेने की घोषणा की.

दरअसल, बिली पाइपर की पहली शादी तब हुई थी जब वे महज 19 साल की थीं. उन का पहला पति क्रिस इवेंस 35 वर्ष का था. दोनों ने लास वेगास में चुपके से शादी की थी, पर 3 साल बाद ही दोनों अलग हो गए. उस वक्त उन के तलाक को ले कर किसी को आश्चर्य नहीं हुआ था, क्योंकि बिली तब परिपक्व नहीं थीं. उन की कोई संतान भी नहीं थी, इसलिए तलाक के बाद वे जल्दी मजबूत बन कर फिर उभर आईं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे… 

गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Relationship : क्या है थ्री एल बैलेंस

Relationship : किसी  भी रिश्ते की मजबूती के लिए इन 3 एल का बैलेंस होना जरूरी होता है- पहला एल यानी लौयल,  दूसरा एल मतलब लव और  तीसरा एल मतलब लिबर्टी.

बी लौयल

रिश्ते में वफादार या ईमानदार होना: हमारे जीवन में परिवार, रिश्ते और दोस्त बहुत महत्त्व रखते हैं, किसी भी रिलेशनशिप में चाहे वह पतिपत्नी की हो या फिर मातापिता और बच्चों की या फिर दोस्ती की एकदूसरे पर भरोसा होना बेहद जरूरी होता है. यह आप के रिश्ते को मजबूत बनाने में मदद करता है.

एक शादीशुदा जिंदगी में लौंग और हैल्दी रिलेशनशिप के लिए सिर्फ प्यार ही नहीं लौयल होना भी जरूरी होता है. एक महिला हमेशा ऐसा पार्टनर चाहती है जो उसे स्पैशल महसूस कराए, उस के इमोशन का ध्यान रख सके. मगर कई बार महिलाएं अपने लिए केयरिंग, अंडरस्टैंडिंग और सम झदार पार्टनर की तलाश में यह भूल जाती हैं कि रिलेशनशिप में लौयल होना बेहद जरूरी है क्योंकि यह आप के रिश्ते को मजबूत बनाने में मदद करता है.

आज के दौर में रिश्तों की गहराई कम होती जा रही है, रिश्ते में भरोसा व ईमानदारी जैसे गुण खत्म होते जा रहे हैं. ऐसे में ये विशेषताएं रिश्ते को अटूट बनाती हैं, साथ ही आप यह भी जानेंगे कि क्या आप का पार्टनर या दोस्त लौयल है या नहीं:

मुश्किल समय में आप के साथ रहे

सभी के जीवन में उतारचढ़ाव, सुखदुख, सफलताअसफलता आतीजाती रहती है. ऐसे में हम हमेशा चाहते हैं कि हमारा पार्टनर या दोस्त मुश्किल समय में हमारे साथ हो. अगर आप का पार्टनर, दोस्त ऐसे समय में आप की मदद करता हो तो वह आप के लिए लौयल है.

भरोसेमंद हो

अकसर हमारे मन में बहुत सी बातें चलती रहती हैं पर हमेशा उन बातों को खुल कर नहीं बोला जा सकता है लेकिन जब आप का पार्टनर, दोस्त भरोसेमंद हो यानी लौयल हो तो उन बातों और चिंताओं को पार्टनर, दोस्त के साथ शेयर करना बेहद आसान हो जाता है. इस से आप का तनाव भी कम हो जाता है.

बिताएं क्वालिटी टाइम

आजकल के भागदौड़ वाले लाइफस्टाइल के बीच कई बार अपनी पार्टनर, परिवार, दोस्तों के लिए भी समय निकलना थोड़ा मुश्किल होता है. अगर ऐसे में आप का पार्टनर या दोस्त आप के लिए समय निकाल कर आप के साथ क्वालिटी टाइम बिताए तो  आप जान लें वह आप के लिए लौयल है.

सोशल मीडिया ऐक्टिविटी

आज के समय में सोशल मीडिया और इंटरनैट पर अपनी ऐक्टिविटी को ले कर पार्टनर संग ईमानदार रहना आप के रिश्ते को मजबूती देता है क्योंकि जब हम स्वयं में सच्चे व ईमानदार होते हैं तो हमें कुछ भी छिपाने की जरूरत नहीं पड़ती जैसे यदि आप का पार्टनर अपने फोन में लौक नहीं लगाता, साथ ही पिन या लौकपैटर्न आप के साथ शेयर करता है और वह कभी भी आप से अपनी सोशल मीडिया गतिविधि को छिपाने की कोशिश नहीं करता तो वह लौयल है. वहीं दूसरी ओर यदि आप के पास आते ही पार्टनर अपनी स्क्रीन को हाइड कर देता है या दूसरी स्क्रीन पर शिफ्ट हो जाता है तो यह एक संकेत है कि आप का पार्टनर रिश्ते को ले कर ईमानदार नहीं है.

एकदूसरे से बातचीत करना

रिश्ते में ईमानदारी के लिए एकदूसरे से बातचीत करना बहुत जरूरी है खासतौर पर जब आप को रिश्ते में किसी बात को ले कर समस्या या गलतफहमी होती है क्योंकि जब पार्टनर ईमानदार होता है तो वह रिश्ते को सफल बनाने के लिए अपनी तरफ से प्रयास करता है, साथ ही कोशिश करता है कि उस मुद्दे को ले कर दोबारा रिश्ते में समस्या पैदा न हो. इस के लिए आप अपने सीक्रेट्स, व्यक्तिगत आकांक्षाओं, आदतों को सा झा करने से भी नहीं कतराते हैं तब एकदूसरे से बातचीत गलतफहमी और मन ही मन विचारों की उथलपुथल को रोकने में मदद मिलती है.

किसी भी रिश्ते में सब से जरूरी होता है भरोसा. आप का पार्टनर, दोस्त कितना भी अच्छा क्यों न हो लेकिन अगर वह ईमानदार नहीं है तो फिर रिश्ते का लंबे समय तक टिक पाना संभव नहीं है.

लव

प्यार यानी प्रेम प्राय: शारीरिक आकर्षण पर आधारित होता है, जबकि रिश्ते भावनात्मक जुड़ाव पर आधारित होते हैं. अगर आप किसी से प्यार करते हैं तो उसे बताना, इजहार करना भी जरूरी है, फिर चाहे वह संबंध कोई भी हो जैसे मांबाप का हो या पतिपत्नी का हो हर रिश्ते में प्यार का इजहार करना जरूरी है. किसी भी रिलेशनशिप की लंबी उम्र के लिए रिश्ते में प्यार होना बेहद जरूरी है. चाहे महिलाएं हों या पुरुष सभी चाहते हैं कि उन्हें एक ऐसा पार्टनर मिले जो उन का ध्यान रखे और उन्हें बहुत प्यार करे.

आजकल कपल्स के बीच एकदूसरे के साथ समय बिताने का मौका कम ही मिलता है. ऐसे में आप इन ऐक्टिविटीज को कर के आपस में प्यार को बढ़ा सकते हैं.

खुल कर बातें करें

आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में रिश्तों को संभालना और प्यार बनाए रखना थोड़ा मुश्किल हो गया है. ऐसे में एकदूसरे से बातें करना, साथी की बातों को ध्यान से सुनना और भावनाओं को सम झना बहुत जरूरी है. अगर आप अपने साथी से अपनी भावनाएं और बातें खुल कर शेयर करेंगे तो रिश्ते में गलतफहमी की गुंजाइश कम होगी और इस से रिश्ते में मजबूती आएगी तथा आप के बीच प्यार और गहरा होगा.

रिश्ते में सरप्राइज देने से खुशी और प्यार बना रहता है. अपने साथी को कभीकभी एक छोटा सा गिफ्ट दें या उस की छोटीछोटी बातों की तारीफ करें. इस से उसे खुशी महसूस होगी और आपका रिश्ता और भी मजबूत होगा.

एकदूसरे के साथ क्वालिटी समय बिताना

एकदूसरे के साथ क्वालिटी समय बिताने के लिए आप ये ऐक्टिविटीज कर सकते हैं जैसे एकदूसरे के साथ खाना खाना, बनाना, टहलने जाना या फिल्म देखना, एकदूसरे के लिए शौपिंग करना, केयर करना, काम में हाथ बंटाना. ये सब छोटीछोटी बातें रिश्ते में प्यार को बढ़ाने का काम करती हैं.

एक दूसरे की गलतियों को करें माफ

रिश्तों में छोटीमोटी गलतियां होती रहती हैं. इन्हें माफ कर आगे बढ़ें, एकदूसरे को सम्मान दें. गलती होने पर नीचा दिखाने से बचें. माफी देने से रिश्ते में कड़वाहट कम होती है और आप दोनों के बीच प्यार बढ़ता है, रिश्ता मजबूत होता है.

लिबर्टी

रिश्ते में दें एकदूसरे को लिबर्टी: यदि किसी रिश्ते में एकदूसरे को अपनी मरजी का काम करने और लाइफ को अपने हिसाब से जीने को मिल जाए तो यह रिश्ता और भी खूबसूरत हो जाता है क्योंकिउसे किसी भी प्रकार का बंधन महसूस नहीं होता. तब पतिपत्नी एकदूसरे की केयर बहुत अच्छे से करते हैं.

कुछ कपल्स चाहते हैं कि हर छोटीछोटी बात एकदूसरे से पूछ कर की जाए और न पूछने पर  झगड़ा भी करते हैं जैसे कहां गई थी या गए थे बता कर नहीं गए, पार्टी करने से पहले एक बार पूछ लेते या लेती, मु झ से बिना पूछे इतनी सारी शौपिंग कैसे कर ली, आज फ्रैंड्स से मिलने जाना है एक बार बता देती, क्या मैं ऐसा कर लूं आदि. ये बहुत छोटीछोटी बातें हैं लेकिन एक हैल्दी रिलेशनशिप के लिए बहुत माने रखती हैं.

जब किसी को कोई भी काम करने के पहले पूछना पड़े और अपनी मरजी का कोई काम न कर पाए तो फिर रिश्ते में हर समय उस के बिगड़ने का खतरा बना रहता है. एक अच्छे और सच्चे रिश्ते में आप को बारबार सफाई नहीं देनी पड़ती है कि अपने ऐसा क्यों किया या ऐसा क्यों नहीं किया आदि. यदि आप एकदूसरे को आजादी देना चाहते हैं या देते हैं तो एकदूसरे पर भरोसा होना अति आवश्यक है ताकि आप पार्टनर को ले कर बेफिक्र रहें ताकि जो भी आप करना चाहते हैं उसे बिना किसी परेशानी एवं टोकाटाकी से पूरा कर सकें जिस से दोनों के बीच किसी भी प्रकार के शक की गुंजाइश न रहे.

इस तरह अपने रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए इन एल के बीच बैलेंस बनाना जरूरी होता है. यदि एक भी चीज कमजोर हुई तो रिश्ते की नींव कमजोर पड़ सकती है जिस से आप का रिश्ता गड़बड़ा सकता है.

Mother’s Day 2025 : फैसला – बेटी के एक फैसले से टूटा मां का सपना

Mother’s Day 2025 : मेरे सामने आज ऐसी समस्या आ खड़ी हुई है, जिस का हल मुझे अभी  निकालना है. मम्मी मेरे कमरे में कई बार झांक कर जा चुकी हैं, लेकिन मैं अभी तक कोई फैसला नहीं कर पाई हूं. अगर मैं ने जल्दी अपना फैसला न सुनाया तो मम्मी आ कर कहेंगी, ‘नेहा, बेटे तुम ने क्या सोचा. देखो, वे लोग अमेरिका से आ कर हमारे फैसले के इंतजार में बैठे हुए हैं. वे चाहते हैं तुम समीर से शादी के लिए हां कर दो.’

हम एक बार रिश्ता खत्म कर चुके हैं, फिर दोबारा उसे जोड़ने की जिद क्यों. मम्मी सोचती हैं कि समीर अच्छा लड़का है, अमेरिका में जमाजमाया बिजनैस है. वे यह क्यों भूल जाती हैं कि समीर की मम्मी ने हमारी सगाई पर दिए गए तोहफों को ले कर उन्हें कैसी खरीखोटी सुनाई थी. क्या हम यह भी भूल गए हैं कि समीर के पापा होटल का बिल चुकाए बिना अमेरिका लौट गए थे और बिल पापा को चुकाना पड़ा था. इस तरह की  गलती को कोई कैसे अनदेखा कर सकता है. फिर इस बात की क्या गारंटी है कि आगे ऐसा कुछ नहीं दोहराया जाएगा. अगर कभी ऐसा हुआ तो उस का अंजाम क्या होगा? मैं कहीं की नहीं रहूंगी.

अपनी बेटी को अमेरिका भेजने के लालच में कोई और मांबाप समीर को बेटी दे देंगे. वरना तब तक मैं राहुल को खो चुकी होउंगी. मैं राहुल को खोना नहीं चाहती, मां.

पिछले साल इन्हीं दिनों समीर से मेरी सगाई हुई थी. मेरी एक आंटी अमेरिका से आईर् हुई थीं, उन्होंने यह रिश्ता बताया था. जब भी मेरी शादी की बात चलती, मम्मीपापा आह भर कर कहते, ‘काश, हमारी बेटी की शादी भी इंगलैंड या अमेरिका में हो जाती.’ पड़ोस में किसी के बेटे की शादी इंगलैंड से हुई है तो किसी की बेटी अमेरिका में सैटल्ड है. मेरे मम्मीपापा भी चाहते थे कि उन की बेटी भी विदेश में सैटल हो जाए, तब वे भी गर्व से कह सकेंगे कि उन की बेटी अमेरिका में रहती है, बहुत बड़ा बंगला है, बड़ीबड़ी गाडि़यां हैं और तो और घर में स्विमिंग पूल भी है.

बस, इसी लालच के चलते जैसे ही अमेरिका में रहने वाले लड़के का औफर आंटी ने दिया, मम्मी इस रिश्ते के लिए आंटी पर जोर डालने लगीं. आंटी ने कहा कि जब वे अमेरिका लौटेंगी, तब बात कर लेंगी. लेकिन मम्मी को सब्र कहां. आंटी से जिद कर के अमेरिका फोन करवा दिया. वे लोग इंडिया आने वाले थे, लेकिन अभी उन का कार्यक्रम रीशैड्यूल हो रहा है. 2 दिन में आने की डेट बता देंगे.

मम्मी ने 2 दिन बाद ही फिर आंटी से अमेरिका फोन करवा दिया. वे लोग 21 तारीख को आ रहे हैं. इंडिया में 2 हफ्ते तक रुकेंगे. मम्मी ने गिनती कर ली, आज 7 तारीख है, 2 हफ्ते बाद इंडिया आ जाएंगे. मम्मी ने आंटी से कह दिया कि यहां बात पक्की हो जाए तो नेहा अमेरिका शिफ्ट हो जाएगी. हम भी सालछह महीने में चक्कर लगा लिया करेंगे.

तनवी आंटी ने बताया कि समीर अच्छा लड़का है. उन का वहां सालों से जमा हुआ बिजनैस है. शहर में 4 बड़े स्टोर हैं. आंटी ने बढ़चढ़ कर उन की तारीफ कर दी. मम्मी को यह सुन कर अच्छा लगा.

‘यहीं बात पक्की हो जाए तो नेहा की तरफ से हम निश्चिंत हो जाएंगे,’ मम्मी ने आंटी से कह दिया, ‘जैसे ही वे लोग इंडिया आएं, अगले दिन हमारे यहां चाय पर बुला लेना. नेहा को देख कर कोई कैसे मना कर सकता है. रंगरूप में कोईर् कमी नहीं, गोरीचिट्टी, स्लिम और स्मार्ट. हम शादी में कोई कसर छोड़ने वाले नहीं. फाइव स्टार होटल में शादी करेंगे. लेनदेन में भी कोई कमी नहीं रखेंगे.’

जिस दिन वे लोग इंडिया पहुंचे, आंटी ने अगले ही दिन उन्हें चाय पर बुला लिया. मम्मी ने मुझे अच्छी तरह तैयार होने के लिए पहले से ही कह दिया था. आंटी के कहने पर समीर और उस के मम्मीपापा हमारे घर पहुंचे. आंटी ने उन का परिचय करवाया, ‘मीट मिसेज शिखा, मिस्टर हरीश और इन का बेटा समीर.’

समीर की मम्मी ने आंटी को झट टोक दिया, ‘समीर नहीं तनवी, सैमी, इसे हिंदुस्तानी नाम बिलकुल पसंद नहीं.’

‘सैमी… औल राइट,’ शिखा ने जिस सख्ती से विरोध किया, तनवी आंटी ने उतनी ही सहजता से उन की बात मान ली.

‘सौरी मिसेज शिखा, मैं खास व्यक्ति से तो इंट्रोड्यूस करवाना भूल ही गई,‘ आंटी मुझे आते देख उठ खड़ी हुईं. ‘मीट द मोस्ट चार्मिंग गर्ल, नेहा.’ आंटी ने मेरी कमर में हाथ डाल कर बड़े दुलार से उन के आगे मुझे पेश कर दिया, जैसे मैं कोई बड़ी नायाब चीज हूं.

‘नेहा बड़ी होनहार लड़की है, वैरी स्मार्ट, ब्यूटीफुल ऐंड औफकौर्स वैरी वैल ऐजुकेटेड’, आंटी ने मेरे गुणों का बखान कर दिया.

आंटी हमारे बारे में अच्छी बातें बता कर उन्हें प्रभावित कर रही थीं. ‘मिसेज शिखा, नेहा अच्छे संस्कारों वाली लड़की है, इसे अपनी बहू बना लोगी तो हमेशा मेरी आभारी रहोगी.’

आंटी ने उन्हें आश्वस्त कर दिया. शादी में किसी प्रकार की कमी नहीं रहेगी. फाइव स्टार होटल में शादी होगी… वगैरा…वगैरा…

समीर की मम्मी स्वभाव से घमंडी लग रही थीं, अमेरिका में रहती हैं न, शायद इसीलिए. समीर के पापा ज्यादा नहीं बोले, बस पत्नी की ओर देखते रहे, जैसे कहना चाहते हों, ‘श्रीमतीजी, अब बोलिए.’

समीर की मम्मी ने जब सारे घर का अच्छी तरह मुआयना कर लिया, तब मेरी मम्मी से कहा, ‘देखिए, मिसेज रजनी, हमारा इंडिया आने का मकसद समीर के लिए लड़की देखने का नहीं था. तनवी ने जब यह प्रपोजल दिया तो हम ने सोचा, देख लेते हैं. उस के कहने पर हम आप के घर आ गए. नेहा हमें पसंद है, लेकिन हम आप को जल्दी में कोई जवाब नहीं दे सकेंगे. हमें एक हफ्ते का समय चाहिए, वी विल टेक सम टाइम टु डिसाइड, आई होप यू कैन अंडरस्टैंड,’ कहते हुए वे खड़ी हो गईं और साथ ही समीर और उस के पापा भी खड़े हो गए.

‘ओके, मिसेज रजनी, नाइस टु मीट यू औल. तनवी तुम अमेरिका कब लौट रही हो?

‘अभी कुछ दिन यहीं इंडिया में हूं. मेरे भतीजे की शादी है. यहां बहुत से रिश्तेदार हैं. सब से मिलना है. आप अचानक उठ क्यों गए, बैठिए न. चाय तो लीजिए प्लीज,’ आंटी ने कहा.

‘नहीं तनवी, अब चलेंगे. तुम्हारे कहने पर आ गए… ओके…‘ बायबाय कर के वे तीनों बाहर निकल गए.

‘तनवी, लगता है उन्हें बात जमी नहीं. ठीक से चाय भी नहीं पी. मैं ने इतनी अच्छी तैयारी की थी,‘ मेरी मम्मी ने अपनी चिंता जताई.

‘भाभी, आप चिंता न करें,’ शिखा का व्यवहार ही ऐसा है. मैं उन से बात कर के पता लगाऊंगी.

5 दिन गुजर गए, उन की तरफ से कोई खबर नहीं आई. मम्मी आंटी को फोन करने की सोच रही थीं कि तभी आंटी आ पहुंचीं. ‘2 दिन के लिए कानपुर चली गई थी, छोटी बहन के पास. भाभी, मैं अभी मिसेज शिखा से बात कर के आई हूं. कह रही हैं शाम तक बताएंगे.’

शाम तक कोई खबर नहीं आई. रात 9 बजे आंटी का फोन आया. मेरी मम्मी खुशी से उछल पड़ीं. जरूर अच्छी खबर होगी.

‘मिसेज शिखा ने कहा है कि हम सोच रहे हैं.’ आंटी ने बताया, ‘पौजिटिव हैं.’ अगले दिन मैसेज आ गया कि उन्हें रिश्ता मंजूर है.

आंटी ने कहा, ‘जल्दी किसी बड़े होटल में सगाई समारोह करना होगा. आज… या ज्यादा से ज्यादा कल तक.’

अगले ही दिन एक शानदार होटल में बड़ी धूमधाम से समीर के साथ मेरी सगाई हो गई. समीर के परिवार में सभी को बहुत महंगे तोहफे दिए गए. डायमंड की अंगूठियां व महंगी घडि़यों से ले कर डिजाइनर साडि़यां व सूट आदि सभी तोहफे बहुत महंगे थे.

मेरी मम्मी बहुत खुश थीं. पापा को भी सब ठीक लग रहा था. मम्मी की खुशी छिपाए नहीं छिप रही थी. आखिरकार उन की बेटी अब अमेरिका चली जाएगी. वे भी सालछह महीने में एक बार वहां हो आएंगे.

अमेरिका में सैटल्ड लड़के के साथ मेरी सगाई की बधाइयां अभी भी आ ही रही थीं कि अमेरिका लौटने के अगले ही दिन समीर की मम्मी का फोन आ गया, ‘मिसेज रजनी, आप ने जो तोहफे दिए हैं, वे हमारे किस काम के. यहां अमेरिका में कौन पहनेगा इतनी हैवी साडि़यां और डै्रसेज. डायमंड ऐंड गोल्ड ज्वैलरी इज ओके बट वट टु डू विद दीज हैवी सारीज ऐंड सिल्ली ड्रैसेज. ये सब हमारे लिए बेकार हैं. यही पैसे आप ने समझदारी से खर्च किए होते… इट वुड हैव गिवन सम वैल्यू टु अस.’

समीर की मम्मी का ऐसा रूखा व्यवहार देख कर मम्मी ने अपनी गलती मान ली, ‘शिखाजी, हम से गलती हो गई. आप बुरा न मानें. आगे हम ध्यान रखेंगे.’

मम्मी ने स्वीकार कर लिया ताकि वे नाराज न हो जाएं और आगे सावधानी बरतने का विश्वास भी उन्हें दिला दिया. मुझे समीर की मम्मी का व्यवहार और अपनी मम्मी का गलती मान लेना अच्छा नहीं लगा, लेकिन मैं चुप रही.

‘मिसेज रजनी, हम डायमंड ज्वैलरी और वे गिफ्ट जो हमें ठीक लगे, साथ ले आए हैं, बाकी सब वहीं तनवी के पास छोड़ आए हैं. आप मंगवा लेना, शायद आप के किसी काम आ जाएं.’ मिसेज शिखा ने मम्मी को खूब खरीखोटी सुनाई. मम्मी जीजी करती उन की बेतुकी डांट चुपचाप सुनती रहीं.

सगाई के बाद अमेरिका लौट कर समीर की मम्मी का यह पहला फोन था. मम्मी उम्मीद कर रही थीं कि सगाई की रस्म कम वक्त में इतने बढि़या तरीके से करने पर वे उन का थैंक्स कहेंगी और हमारे दिए तोहफों के लिए आभार जताएंगी, लेकिन इतने करीबी और नएनए जुड़े रिश्ते का भी खयाल न रखते हुए उन्होंने जिस तरह मम्मी के साथ व्यवहार किया, उन्हें उस की जरा भी उम्मीद नहीं थी.

कुछ दिन तक मम्मी बहुत परेशान रहीं. पापा को सारी बात न बता कर इतना बताया कि हमारे तोहफे उन्हें पसंद नहीं आए, इसलिए शादी के वक्त हमें ध्यान रखना होगा. रिश्तों की गरिमा को ताक पर रख कर समीर की मम्मी के कड़वे बोलों ने उन्हें चिंता में डाल दिया था.

अपनी चिंता आंटी से शेयर करने के लिए मम्मी ने उन के भाई के घर फोन किया. वहां से पता चला कि वे अमेरिका लौट गई हैं. उन्होंने उसी वक्त आंटी को अमेरिका फोन कर दिया. आंटी ने मम्मी को विश्वास दिलाया, ‘चिंता की कोई बात नहीं. वे उन लोगों से बात कर के हमें वापस फोन करेंगी.‘

सगाई के बाद जब भी समीर से मेरी बात हुई, वह बेहद फीकी रही. न रोमांचक, न रोचक. जब भी मैं ने कुछ पूछा, उस ने हमेशा सधा सा जवाब दे दिया, ‘जब मैं वहां पहुंचूंगी, सब जान लूंगी.’ कई बार तो बात बस हां और ना पर ही खत्म हो जाती. समीर का इस तरह अनमना व्यवहार मुझे अच्छा नहीं लगा. मैं ने मम्मीपापा को समीर के रूखे व्यवहार के बारे में कुछ नहीं बताया, लेकिन मुझे बहुत बुरा लगा. मैं चुप रही. मम्मी के लिए एक और चिंता खड़ी करने से अच्छा है, चुप रहना.

मैं मम्मी को किसी नई चिंता में उलझने से कहां तक बचा पाती, क्योंकि अगले दिन तनवी आंटी का फोन आ गया. उन्होंने जो बताया, उस से हमारा सारा उत्साह फीका पड़ गया.

‘भाभी, यहां कुछ ठीक नहीं लग रहा. आप जानती हैं अमेरिका में मंदी आने से बिजनैस पर असर पड़ा है और बिजनैस मंदी की वजह से बुरे दौर से गुजर रहा है. वे लोग भी परेशान हैं. मुझे यह भी पता चला है कि वे लोग इंडिया वापस आने की भी सोच रहे हैं.

पिछली बार इंडिया आने का उन का मकसद यहां सही अवसर देखने के साथ समीर के लिए लड़की देखना भी था. उन्होंने नेहा के अलावा और भी 3-4 लड़कियां देखी थीं. मिसेज शिखा ने तब झूठ बोला

था कि वे मेरे कहने पर नेहा को देखने आ गए थे. यहां आ कर जो कुछ मुझे पता चला है, मैं ने आप को बता दिया. अब आप जैसा ठीक समझें.’

तनवी आंटी ने जो बताया, वह मम्मीपापा के लिए एक बड़ी चिंता का कारण बन गया. वे लोग वापस इंडिया लौटने की सोच रहे हैं. नेहा के अलावा उन्होंने और लड़कियां भी देखीं. मिसेज शिखा कह रही थीं, तनवी ने प्रपोजल दिया, इसलिए हम आ गए.

मम्मी अपना गुस्सा समीर की मम्मी पर निकालने लगीं, ‘वाह शिखाजी, डायमंड ज्वैलरी और महंगे तोहफे तो साथ ले गईं. बाकी यहां छोड़ गईं. ऐसा सामान देते जिस की हमें वैल्यू मिलती. वैल्यू की बड़ी पहचान है आप को.’

मेरे पापा पहले ही उन से नाराज बैठे थे. कुछ दिन पहले समीर के पापा ने अमेरिका से फोन कर अपने लिए होटल बुक करवाने के लिए कहा था और होटल का बिल हमारे नाम करवा कर चले गए. अमेरिका लौट कर फोन पर सौरी कह कर अपनेआप को बचा लिया.

कुछ दिन घर में उदासी छाई रही. मम्मीपापा दोनों परेशान थे. मैं भी असमंजस की स्थिति में थी. इसी उधेड़बुन में 3 महीने से ज्यादा निकल गए. इस बीच न उधर से कोई फोन आया, न ही हम ने उन से बातचीत करने की पहल की. जो भी हुआ हम उसे भुलाने की कोशिश में थे कि अचानक तनवी आंटी का अमेरिका से फोन आ गया. आंटी समीर की मम्मी के पास बैठ कर वहीं से फोन कर रही थीं. उन्होंने मम्मी को बताया कि शिखा ने फोन पर उन्हें जो बुराभला कहा था, उस के लिए वे मेरी मम्मी को सौरी कहना चाहती हैं.

आंटी ने फोन समीर की मम्मी को दे दिया, ‘मिसेज रजनी, मैं शिखा, समीर की मम्मी. दैट डे आई वाज इन ए वैरी बैड मूड. मेरा मकसद आप का दिल दुखाने का नहीं था. आई एम रियली सौरी. नेहा हमें बड़ी अच्छी लगी. शी इज ए लवली गर्ल और हम उसे अपनी बहू बनाना चाहते हैं. आई होप यू विल नौट डिसअपौइंट अस. आप मेरी बात मान लीजिए. मैं आप को फिर एक बार सौरी बोल रही हूं’.

‘शिखाजी, आप ऐसा न कहिए, आप को सौरी बोलने की जरूरत नहीं. आप लोग हमें बड़े अच्छे लगे. आप जैसे लोगों से रिश्ता जोड़ने में हमें कोई प्रौब्लम नहीं है. मैं नेहा के पापा से बात कर के आप को…’

समीर की मम्मी बीच में ही बोल पड़ीं, ‘मिसेज रजनी आप को अपनी बेटी के बारे में फैसला लेने का पूरा हक है. नेहा के पापा आप से क्यों असहमत होने लगे. नाऊ ऐवरीथिंग इज क्लीयर बिटवीन अस. आप जब कहेंगे, हम इंडिया आ जाएंगे. लीजिए, आप तनवी से बात कीजिए,‘ और उन्होंने फोन आंटी को दे दिया.

आंटी फिर उन की वकालत करने लगीं, ‘उन का बिजनैस अब अच्छा चल रहा है. वे लोग 2 और स्टोर खोल रहे हैं. समीर के लिए अलग से घर खरीद लिया है. भाभी, आप जानती हैं अमेरिका में बच्चे बड़े होने पर मांबाप के साथ नहीं रहते. वे अलग रहना पसंद करते हैं, इसलिए समीर शादी के बाद अपने अलग घर में शिफ्ट हो जाएगा.‘

ये सब सुन कर मेरी मम्मी का मन फिर डोलने लगा. अमेरिका सैटल्ड लड़के के साथ मेरे रिश्ते का लालच फिर उन के मन में प्रबल हो उठा.

आंटी ने जैसे ही फोन रखा, मम्मी मेरे पास आ कर बैठ गईं. वे देखना चाहती थीं कि आंटी की बातें सुन कर मुझे कितना अच्छा लगा है. मम्मी चाहती थीं कि मैं समीर से शादी कर के अमेरिका सैटल हो जाऊं. मम्मी की यह चाह कैसे पूरी होगी, मैं नहीं जानती, लेकिन मैं हैरान हूं कि मम्मी हमेशा यह क्यों भूल जाती हैं कि हमारी सगाई पर दिए गए तोहफों को ले कर समीर की मम्मी ने उन्हें कैसे फटकारा था और कैसे झूठ बोल कर हम पर रोब जमाने की कोशिश करती रही थीं. तब मेरी मम्मी से कह रही थीं कि तनवी ने प्रपोजल दिया तो हम नेहा को देखने आ गए, जबकि उन्होंने समीर के लिए और भी लड़कियां देखी थीं.

आंटी के फोन के 2 दिन बाद समीर का फोन आया. फोन मैं ने ही उठाया, मम्मी के पूछने पर मैं ने बताया कि समीर का फोन है. समीर का नाम सुनते ही उन की आंखों में चमक आ गई. वे पहले मेरे नजदीक खड़ी रहीं, फिर दूर जा कर हमारी बातें सुनने की कोशिश करती रहीं.

‘समीर का फोन आने की मुझे उम्मीद नहीं थी, लेकिन मैं जानती थी कि मैं उसे कोई भाव देने वाली नहीं थी. मेरे हैलो करने पर जैसे ही उस ने ‘हैलो, मैं समीर… अमेरिका से,’ बोला, मैं ने अपने अंदर भरे आक्रोश को उगलना शुरू कर दिया, ‘ओह समीर… नहीं…नहीं… सैमी… हिंदुस्तानी नाम तो आप को पसंद नहीं. आप सैमी कहते, तब भी मैं पहचान लेती. क्योंकि मेरी आप से सगाई हो चुकी है.

कब से शादी के सपने देख रही हूं, क्यों न देखूं आखिर सगाई के बाद अगला कदम शादी ही है न. मिस्टर सैमी आप रहते अमेरिका में हैं, लेकिन पत्नी हिंदुस्तानी चाहिए क्योंकि वह तेजतर्रार नहीं होती, बड़ों का मानसम्मान करना जानती है, मुश्किलों में साथ निभाती है जबकि अमेरिकी लड़कियां जराजरा सी बात पर तलाक के कागज भेजने की धमकी दे देती हैं.’

‘प्लीज डोंट मिसअंडरस्टैंड मी. वैन वी टौक, आई वाज टैरिबली अपसैट… इनफैक्ट आई वाज इन ए वैरी बैड मूड…’

‘क्या आप अपनी मम्मी की तरह हमेशा बैड मूड में ही रहते हैं. कुछ दिन पहले आप की मम्मी ने इसी बैड मूड के लिए मेरी मम्मी से सौरी कहने के लिए फोन किया था और आज उन के बेटे ने…’

‘आप इतनी नाराज क्यों हो रही हैं…’

‘शायद आज मैं बैड मूड में हूं… इसलिए.’

‘आई एम रियली सौरी. आप जो चाहे मुझे सजा दें. बट…बट प्लीज डोंट स्पौयल…’

‘मिस्टर सैमी, आप और आप की मम्मी दोनों इस रिश्ते को बिगाड़ने के लिए जिम्मेदार हैं. मेरी मम्मी तो आज भी आप की मम्मी के बेहद रूखे और डांटडपट वाले व्यवहार को भूल कर इस रिश्ते को स्वीकार करने के लिए तैयार बैठी हैं, लेकिन मिस्टर सैमी अब ऐसा कभी नहीं हो पाएगा.’

‘प्लीज डोंट से दैट. आई विल बी डिसअपौइंटेड…’

‘आप डिसअपौइंट क्यों हो रहे हैं. आप को हिंदुस्तानी लड़की से ही शादी करनी

है, बड़े शौक से करिए. यहां आप कुछ और लड़कियां देख गए थे. चुन लीजिए, उन में से कोई. मेरी मम्मी की तरह अमेरिका भेजने के लालच में कोई और मातापिता आप को अपनी बेटी देने के लिए तैयार हो जाएंगे.’

‘आई कैन अंडरस्टैंड योर ऐंगर. आई स्वीयर इन फ्यूचर नथिंग लाइक दिस विल हैपन.’

‘आप के स्वीयर करने या सौरी कहने से क्या हमारी तकलीफें कम हो जाएंगी? हाऊ मच वी हैव सफर्ड, यू कांट इमैजिन. मैं दुआ करती हूं कि आप को जल्दी एक हिंदुस्तानी लड़की मिल जाए और आप की मम्मी को उन के दिए गए तोहफों की पूरी वैल्यू न मिलने पर खरीखोटी सुनाने का मौका एक बार फिर मिल जाए,’ कह कर मैं ने फोन रख दिया.

जैसे ही मैं ने फोन रखा, मम्मी गुस्से से घूरती हुई मुझे डांटने लगीं, ‘नेहा

बेटे, यह कैसा तरीका है समीर से बात करने का.’

‘क्यों मम्मा, क्या मैं कहती कि समीरजी कब से हम आप का इंतजार कर रहे थे. आप कब सेहरा बांध कर हमारे घर आओगे. जिन राहों से आप आने वाले थे, उन पर हम ने अब भी फूल बिछा रखे हैं वगैरा…वगैरा… ‘

मम्मी का गुस्सा अब भी बरकरार था, ‘बसबस बेटा, जो तुम ने किया वह ठीक नहीं था. उसे बहुत बुरा लगा होगा.’

‘बुरा लगा हो… जरूर लगे. हमें कोई परवा नहीं. अब हम क्या चाहते हैं, यह समीर की समझ में आ गया होगा. मम्मी आप की बेटी अब अमेरिका जाने वाली नहीं. वह यहीं रहेगी आप के आसपास. अब आप समीर का नाम हमेशा के लिए भूल जाएं. मम्मी, मैं आप को विश्वास दिलाती हूं, राहुल के साथ मेरी जिंदगी बड़े मजे में कटेगी. मैं खुश रहूंगी और आप भी निश्चिंत रहेंगे. आप राहुल को जानती हैं, कालेज के दिनों में वह 2 बार हमारे घर आ चुका है. जब आप उसे देखेंगी, एकदम पहचान लेंगी. कालेज के दिनों से हमारी आपस में खूब जमती थी.’

लगभग 5 साल बाद राहुल से मेरी मुलाकात बड़े अजीब तरीके से हुई. समीर के साथ रिश्ता खत्म होने के बाद मैं ने पापा से जौब करने की अनुमति ले ली थी. जिस कंपनी में मुझे जौब मिली थी, राहुल वहां सीनियर पोस्ट पर था. जौब जौइन करने के पहले दिन जब मैं औफिस में ऐंटर कर रही थी तो उसी वक्त राहुल भी औफिस पहुंच रहा था. गार्ड ने जैसे ही दरवाजा खोला, राहुल ने मुझे पहले अंदर जाने के लिए इशारा किया. मैं ने उस की ओर देखा. मुझे उस का चेहरा कुछ जानापहचाना सा लगा. राहुल ने दोबारा मेरी ओर देखा और हैरानी से बोला, ‘नेहा… मैं राहुल…’

‘ओ, राहुल…, कैसे हो, कहां हो.’

‘ठीक हूं, यहीं तुम्हारे शहर में हूं. इसी कंपनी में जौब कर रहा हूं. तुम ने सोचा, राहुल दुनिया से गया… अभी इतनी जल्दी नहीं है… अभी बहुत कुछ करना है. शादी करनी है, बच्चे होंगे… पापापापा बुलाएंगे… फिर उन के बच्चे…’

इतने सालों बाद मिलने पर भी राहुल सबकुछ इतना सहज कह गया, मुझे हैरानी हुई, लेकिन मैं ने सावधानी बरतते हुए तपाक से कह दिया, ‘तुम नहीं बदलोगे राहुल, उसी तरह मस्तमौला, शरारती.’

‘और बताओ नेहा जौब क्यों, तुम्हें तो वर्किंग वूमन नहीं बनना था, वाए चेंज औफ माइंड?’ राहुल ने पूछा.

इसी तरह बातें करतेकरते हम औफिस में ऐंटर कर गए.

कालेज के दिनों की लाइफ में कितनी बेफिक्री और मौजमस्ती थी. हम एकदूसरे को चाहते थे, ऐसा कुछ नहीं था. राहुल कभी मेरा हाथ थाम लेता, कभी अजीब नहीं लगता. अब 5 साल बाद मिलने पर उस तरह की सहजता इतनी जल्दी नहीं आ पाई, लेकिन धीरेधीरे हम पहले की तरह घुलनेमिलने लगे. कईर् बार वह मुझे अपनी बाइक पर घर ड्रौप कर देता.

पिछले 3-4 महीने में राहुल कई बार हमारे घर चायकौफी पर आया था. हम दोनों कितनी बार रैस्टोरैंट में बैठे गपशप कर चुके थे. एक दिन लंच टाइम में राहुल ने पूछा, ‘क्या आज शाम हम कौफी पीने जा सकते हैं?’

‘हां… क्यों नहीं,’ मैं सोच में पड़ गई. कई बार पहले भी हम जा चुके हैं. आखिर आज क्या कुछ नया है. हम उसी रैस्टोरैंट में जा बैठे जहां आमतौर पर जाया करते थे. वेटर कौफी और सैंडविच टेबल पर रख गया. अभी हम ने कौफी पीनी शुरू नहीं की थी कि राहुल ने मेरे हाथ पर अपना हाथ रख दिया. मुझे हलका कंपन हुआ. पहले कितनी बार राहुल ने मेरा हाथ थामा होगा,  लेकिन कभी ऐसा नहीं लगा, जैसा आज… मुझे लगा हमारे बीच आज कुछ नया घटता जा रहा है, जो पहले से बहुत अलग है.

राहुल कुछ कहना चाहता था, लेकिन नहीं कह सका. कौफी पीने के बाद राहुल ने मुझे घर ड्रौप कर दिया. वह बिना कुछ बोले बाय कर हाथ हिला कर चला गया. अगले दिन औफिस आते समय राहुल की बाइक तेज गति से आती कार से टकरा गई. उसे गंभीर चोटें आईं. उस की सर्जरी हुई और टांग में रौड डाली गई.

एक हफ्ते बाद राहुल को अस्पताल से छुट्टी मिल गई. जब राहुल औफिस आया  तो उसे देख कर मुझे अच्छा लगा लेकिन उस के हंसमुख चेहरे पर हलकी उदासी देख कर मुझे चिंता भी हुई, ‘राहुल, तुम्हें इतना बुझाबुझा पहले कभी नहीं देखा.’

राहुल की उदासी दूर करने के लिए मैं उस जैसे शरारती अंदाज में उसे ‘बकअप’ करने लगी, ‘राहुल भूल गए, तुम ने कहा था शादी करनी है, बच्चे होंगे, पापापापा बुलाएंगे. फिर उन के बच्चे…’

राहुल का शरारती चेहरा अपने असली रंग में आ गया. चंचल, मौजमस्ती वाला. मुझे लगा राहुल का असली रूप कितना लुभावना है.

राहुल ने चुटकी बजा कर मुझे सचेत किया. वह मेरी ओर देख रहा था… लगातार… उस की आंखों में एक प्रश्न था, जिस का उत्तर वह मुझ से मांग रहा था.

मैं ने ‘हां’ में सिर हिला कर उस के प्रश्न का उत्तर दे दिया. मुझे लगा हमारे बीच नए रिश्ते की नन्ही सी, प्यारी सी कोंपल फूट आई है.

मेरी मम्मी कमरे के आसपास थीं. उन्हें बुला कर मैं ने कह दिया, ‘मैं ने फैसला कर लिया है मम्मी, समीर से कह दो वह यहां किसी उम्मीद से न आए. मैं ने राहुल को अपना बनाने का फैसला कर लिया है, लेकिन अफसोस मम्मी, अब आप यह नहीं कह सकेंगी कि आप की बेटी अमेरिका में सैटल्ड है और न ही आप सालछह महीने में अपनी बेटी के पास अमेरिका जा पाएंगी.

मेरी शरारत भरी चुटकी मम्मी को पसंद आई कि नहीं, नहीं जानती, लेकिन मेरा फैसला उन्हें अच्छा नहीं लगा.

Short Stories in Hindi : नि:शुल्क मोटापा मुक्ति कैंप

Short Stories in Hindi : उस दिन औफिस से हारेथके हम घर पहुंचे ही थे कि श्रीमतीजी ने दरवाजा खोलते ही अपना अभिभाषण शुरू कर दिया, ‘‘आप ने सुना… आज बहुत बड़ी खुशी की बात. वह कहावत है न कि जिसे ढूंढ़ते थे हम गलीगली, अरे वह तो हमें घर के दरवाजे पर ही मिल गई. फ्लैट के सामने वह जो पार्क है न, उसी में मोटापा से मुक्ति का कैंप लग रहा है.’’

‘‘अरे तो इस में खुशी की क्या बात हो गई? नगर में जबतब मोटापा मुक्ति कैंप लगते रहते हैं,’’ हम ने इतना कहा ही था कि श्रीमतीजी फिर बिफर गईं, ‘‘आप तो रिटायरमैंट से पहले मस्तिष्क से पूरी तरह रिटायर्ड हो चुके हो. अरे, आप ही तो रोजरोज कहते हो, मैं बहुत मोटी हो रही हूं. पार्टियों में मुझे साथ ले जाते हुए आप को शर्म आती है. राजीव कपूर की पार्टी में आप मुझे साथ नहीं ले जा रहे थे. कह रहे थे, कपूर की बीवी रश्मि के सामने बेलन सी लगोगी. अरे, उसी मोटापे को खत्म करने के लिए मोटापा मुक्ति कैंप लग रहा है… संडे को कैंप का उद्घाटन होगा. आप को यह तो बताना ही भूल गई कि कैंप नि:शुल्क लग रहा है. है न मजेदार बात? मोटापा भी नष्ट होगा और कोई पैसा भी नहीं खर्च करना पड़ेगा.’’

‘‘नि:शुल्क मोटापा कैंप में चली जाना… पर कैंप के चक्कर में क्या आज कुछ चायनाश्ता नहीं कराओगी? औफिस से बहुत थकेहारे घर लौट रहे हैं हम,’’ श्रीमतीजी के भाषण के बीच हम ने उन्हें याद दिलाया.

‘‘हां, हां, चायनाश्ते की याद है…

भुलक्कड़ तो आप हो ही. संडे तक का पता नहीं आप का… कितनी बार नि:शुल्क मोटापा मुक्ति कैंप की बात याद दिलानी पड़ेगी,’’ यह कहते हुए श्रीमतीजी पांव पटकती हुई किचन में चली गईं. किचन से बरतनों के आपस में टकराने की आवाज से श्रीमतीजी के गुस्से का पता चलता रहा.

एक दिन बाद ही संडे था. शानिवार की रात को फ्लैट के सामने बड़ेबड़े शामियाने लगा कर कैंप बना दिया गया था. सुबह से ही कैंप के प्रवेशद्वार पर मोटे स्त्रीपुरुषों की लाइनें लगने लगी थीं. कैंप के मुख्य दरवाजे पर 3 मेजों के पास कुरसियों पर 3 सुंदरी बालाएं बैठी थीं. उन बालाओं को कैंप में आने वालों के रजिस्ट्रेशन के लिए बैठाया गया था.

कैंप में मोटापा कम करने वालों के लिए 50 रजिस्ट्रेशन फीस थी. स्त्रीपुरुष 50-50 के नोट बरसा रहे थे. नि:शुल्क मोटापा कैंप में नोट बरसाने वालों की कोई कमी नहीं थी. आखिर श्रीमतीजी ने 50 दे कर रजिस्ट्रेशन करा लिया.

एक दिन मोटापा मुक्ति कैंप में संयासियों जैसे बड़ेबड़े कुरते पहने, लंबीलंबी दाढ़ी वाले कुछ लोगों ने भाषण दिए. मोटापे पर भाषण के दौरान उन्होंने चाटपकौड़ी नहीं खाने पर लंबेलंबे भाषण दिए. उसी कैंप की एक साइड में बहुत सी खानेपीने की दुकानें भी सजी थीं.

उन दुकानों के बीच कुछ रेस्तरां भी बने थे. उन रेस्तरां में पिज्जा, डोसा, इडली, समोसे, कचौड़ी के बैनर भी लगे थे. सभी रेस्तराओं के आगे स्त्रीपुरुषों की भीड़ लगी थी. कैंप के नुक्कड़ पर एक गोलगप्पे का स्टाल था. मोटापा मुक्ति कैंप में सब से ज्यादा उस स्टाल के आगे स्त्रियों की भीड़ थी. शायद उस दिन सभी स्त्रियां गोलगप्पे खा कर अपने मोटापे से मुक्ति पा लेना चाहती थीं.

मोटापे पर भाषण देने वाले संयासी कुरते पहने लोगों ने मोटापे से डायबिटीज, हार्ट अटैक, हाई ब्लडप्रैशर, किडनी फेल्योर, जोड़ों का दर्र्द होने की बात कहते हुए कैंसर भी मोटे स्त्रीपुरुषों को होने की बात कही. आजकल स्त्रीपुरुष किसी महानुभावक की बातें चाहे न मानें, लेकिन संन्यासी जैसे रंगीन कुरते पहने लोगों की बातें अवश्य मानते हैं. तभी तो देश में सभी साधुसंन्यासी प्रवचन करतेकरते बड़ेबड़े व्यापारी बन गए हैं. सभी साधुसंन्यासियों ने लोगों को मोटापा और दूसरी बीमारियों को नष्ट करने वाली दवाएं बेचना शुरू कर दिया है. एक बड़े संन्यासी बाबा तो प्रवचन करतेकरते, दवा बेचतेबेचते जेल चले गए. सुना है कि बाबा जेल में रहतेरहते भी खुद दवा बेच रहे हैं.

2-3 दिन मोटापे पर भाषण देने के बाद मंच से घोषणा की गई कि जो स्त्रीपुरुष डायबिटीज, हृदय रोग, हाई ब्लडप्रैशर आदि रोगों से पीडि़त हैं वे कैंप में लगे स्टालों से अपनीअपनी बीमारी की दवा खरीद लें. बीमारी नष्ट किए बिना मोटापा कम नहीं होता है. बस फिर क्या था, सभी स्त्रीपुरुष कैंप में लगे दवा के स्टालों की ओर दौड़ पड़े. दवा के स्टालों के आगे लंबीलंबी लाइनें लगने लगीं.

उस दिन हम श्रीमतीजी के साथ किसी दवा के स्टाल पर नहीं जा सके, क्योंकि उस दिन हमें औफिस से छुट्टी नहीं मिल सकी थी. मोटापा मुक्ति कैंप में श्रीमतीजी के साथ निपटने के लिए औफिस से 4 छुट्टियां ले चुके थे हम. उस दिन शाम को औफिस से घर पहुंचे तो श्रीमतीजी ने मेज पर कई डब्बे और शीशियां सजा दी.

आज मोटापा मुक्ति कैंप में 500 की दवा खरीद कर लाई हूं. बाबाजी ने कहा था कि बीमारी के चलते मोटापा कम नहीं होता है.

‘‘लेकिन आप को तो कोई बीमारी नहीं थी? फिर इतनी मंहगी दवा क्यों खरीद लाईं?’’ हम ने पूछा तो श्रीमतीजी तुनक कर बोलीं,

‘‘आप को क्या पता है कि हमें क्या बीमारी है. अरे, कब्ज की बीमारी है बाबाजी ने बताया है कि कब्ज के कारण ही मोटापा हुआ है.

मोटापा कम करने के लिए पहले कब्ज को नष्ट करना होगा.’’

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‘‘कब्ज नष्ट करने के लिए 500 की दवा? अरे, कब्ज तो आधा किलो पपीता खाने से नष्ट हो जाती है.’’

‘‘आप तो 500 की बात सुन कर ही घबरा रहे हो, बाबाजी ने तो कहा है कि 500-600 की दवा कई बार खानी पड़ेगी तभी कब्ज नष्ट हो पाएगी. आप यह क्यों नहीं सोचते कि नि:शुल्क मोटापा मुक्ति कैंप लगा है. आखिर दवागोली पर कुछ तो खर्च करना पड़ेगा. बाबाजी मोटापे से मुक्ति दिलाने पर कुछ तो मांग नहीं रहे,’’ कह श्रीमती पांव पटकती हुई किचन में चली गईं तो हम अपना सिर पकड़ कर बैठ गए.

अगले दिन मोटापा मुक्ति कैंप में सभी स्त्रीपुरुषों को मोटापा कम करने के लिए योगासनों का अभ्यास कराया गया. उत्तानपादासन, भुजंगासन, धनुरासन, चक्रासन आदि का प्रदर्शन कर के एक संन्यासी वेशभूषा वाले बाबाजी ने घर पर जा कर सर्वांगासन करने के लिए बताया.

उस दिन रविवार होने के कारण देर तक सोने को मन कर रहा था. तभी दूसरे कमरे से श्रीमतीजी के जोरजोर से चिल्लाने की आवाजें सुन कर उन के कमरे में पहुंचे तो श्रीमतीजी फर्श पर बिखरी पड़ी जोरजोर से कराह रही थीं, ‘‘आह, मर गई… मेरी तो गरदन टूट गई.’’

हम ने पास जा कर पूछा, ‘‘सुबहसुबह क्यों चिल्ला रही हो? सुबहसुबह पास के फ्लैट वाले आप की आवाजें सुनेंगे तो सब हाल पूछने आ धमकेंगे और फिर सब को चायनाश्ता कराना पड़ेगा. आप की सहेलियां तो चायनाश्ता किए बिना सोफे से उठने का नाम नहीं लेगीं.’’

‘‘अरे, अब खड़ेखड़े भाषण ही देते रहोगे… मुझे उठा कर डाक्टर के पास ले चलने की तैयारी करो. सर्वांगासन करते हुए मेरी तो गरदन ही टूट गई. आह… बहुत दर्द हो रहा है… आह मैं मर गई.’’

श्रीमतीजी की चीखपुकार निरंतर बढ़ रही थी. पड़ोस के लोगों की सहायता से श्रीमतीजी को उठा कर पास के नर्सिंग होम में ले जाना पड़ा. उस दिन शाम तक उस नर्सिंग होम में रहना पड़ा. सर्वांगासन करने में श्रीमतीजी के कंधे में चोट लगी थी और डाक्टर ने प्लास्टर चढ़ा दिया था. शाम तक नर्सिंग होम में रहने और प्लास्टर कराने का 3 हजार से अधिक का बिल बन गया था.

मोटापा मुक्ति कैंप में जाने से श्रीमतीजी का मोटापा तो 1 इंच भी कम नहीं हो पाया, उलटे 5 हजार का बिल चुकाना पड़ा… अभी तो प्लास्टर चढ़ा है पता नहीं आगे नर्सिंग होम के कितने बिल चुकाने पड़ेंगे.

Mother’s Day 2025 : क्या उसे औलाद का सुख मिला?

Mother’s Day 2025 : चिकित्सा के उन्नत कहे जाने वाले युग को ऐसा कहा भी जाए या नहीं, कुछ घटनाएं घटते समय यह प्रश्न खड़ा कर देती हैं. वे घटनाएं आएदिन घट कर चिकित्सकों को तो अपना अभ्यस्त बना देती हैं लेकिन उन की कसमसाहट मिनटों, घंटों या कुछ दिनों तक ही सीमित रह जाती है. हद से हद फुरसत के क्षणों में कोई इक्कादुक्का डाक्टर उन्हें अपनी डायरी के पन्नों पर उतार लेता है. परंतु जिन के साथ वे घटी होती हैं उन के सीने में तो दर्द की स्थायी कील गाड़ देती हैं. विद्या दी अदने से मच्छर के कारण हुए डेंगू में अपने 10 वर्षीय बेटे को खो कर अपने सीने में दर्द की ऐसी ही अनगिनत कीलें गाड़ लाई थीं.

विवाह के कई वर्ष बाद, ऐलोपैथी, होम्योपैथी, गंडेतावीज, झाड़फूंक और निरी मन्नतों की बैसाखियों पर चढ़ कर पैदा हुआ था वह. दुख का उत्पीड़न सहती विद्या दी अपना मानसिक संतुलन लगभग खो ही बैठी थीं. 3 बहनों में सब से बड़ी विद्या दी की ऐसी अवस्था देख मझली सारिका ने अपना नवजात शिशु, जो उस की दूसरी संतान था, विद्या दी की गोद में डाल कर उन्हें उन के करोड़ों के व्यवसाय का उत्तराधिकारी दे दिया. बेटे को खो देने के दुख को, बेटा पा कर विद्या दी तहखानों के ढीठ अंधेरों में धकेल आईं. आरंभिक उदास, संकोची सी खुशी कुछ ही दिनों में उन के बुझे हुए चेहरे पर उन्मुक्त हो कर खिलखिला उठी.

इसे विडंबना ही कहेंगे कि तीनों बहनों में छोटी जूही के विवाह के 10 बरस बाद भी संतान का सुख प्राप्त नहीं हुआ था. ताउम्र निसंतान रह जाने से पतिपत्नी ने किसी बालक को गोद ले लेना बेहतर समझा. घर वाले विद्या दी की तरह ही किसी नातेदार के बच्चे को गोद लेने पर जोर देने लगे. परंतु उस दंपती के विचार में उस बच्चे को जिस दिन से उन रिश्तेदारों का अपने मातापिता होना पता चलेगा उसी दिन से वे दोनों उस के नाममात्र के ही मातापिता रह जाएंगे उन्होंने किसी ऐसे अनाथ बच्चे को गोद लेने का निश्चय किया जो उन की गोद में आने के बाद किसी और का न रह जाता हो.

परंतु लोगों ने किसी अनजाने अनाथ को गोद लेने में सैकड़ों भयानक खतरे बता डाले. जैसे, कौन जाने कौन जात का होगा, क्या पता किसी चोरउचक्के का ही खून हो. आंखों का, कानों का, गले का, दिलदिमाग का या फिर सब से बड़ा रोग एड्स ही ले कर आए. अनेक तर्कवितर्कों के बाद सम्मति बनी कि जानीमानी वंशपरंपरा के अभाव में सभ्य, संस्कारी लोग किसी अनजाने बच्चे को गोद नहीं ले सकते. परंतु जूही और उस के पति का निर्णय किसी के बहकाए नहीं बहका. उन्होंने बच्चे को सिर्फ और सिर्फ बच्चा जात का माना. तर्क रखा कि हमारे सभी रिश्तेदार हम से ज्यादा पैसे वाले हैं. ऐसे में हम उन के बच्चे की अधिक सुविधा वाली जिंदगी छीन कर अपना मध्यवर्गीय स्तर दे कर उस के साथ अन्याय ही करेंगे. हम क्यों न किसी ऐसे बच्चे को मातापिता के रिश्ते की सघन छांव दें जिस ने उस छांव के तले क्षणभर गुजारे बगैर ही उसे खो दिया. रही बच्चे के साथ आने वाले संभावित रोगों की बात, तो क्या आज तक किसी का अपना बच्चा कोई रोग ले कर नहीं आया. रोगों का तो आजकल क्या भरोसा, न जाने कितने लोगों को अस्पताल की गलती से एड्स से संक्रमित रोगी का रक्त चढ़ा दिया गया है. उन को एड्स होना तय है फिर वे कौन सी वंशपरंपरा के कहलाएंगे. ऐसे ही अनेक तर्क दे कर एक बड़े अस्पताल की नर्सरी से एक ऐसा शिशु गोद ले लिया गया जिस के मातापिता हमेशा जूही और उस का पति ही सिद्ध होने थे.

हर नवजात अपनी मां के लिए अनचीन्हा, अनदेखा ही होता है. कौन जाने अस्पतालों में स्टाफ की गलती से या कभी जानबूझ कर बच्चे बदल भी दिए जाते हों, कहां पहचान पाती हैं माताएं अपने नवजात को. विज्ञान के अनुसार, शिशु भले अपनी मां के गर्भ में ही उस की आवाज पहचानना सीख जाता हो पर बाहर आने पर वह भी उस के संकेत धीरेधीरे ही दे पाता है.

जूही के अनजाने बच्चे ने भी धीरेधीरे अपनी प्यारी मां को पहचान लेने के संकेत ठीक वैसे ही देने शुरू कर दिए थे जैसे कोई उस की अपनी ही कोख से जन्म ले कर देता. जब वह मातापिता को देख कर अद्भुत रूप भर मुसकराता तो कईकई पूर्व जन्मों से स्वयं को उन का अनन्य हिस्सा साबित कर देता. उस की किलकारियों के संगीत की नूतन धुनें उस दंपती के कानों में ठीक वैसे ही रस घोलतीं जैसे उन के खुद के जन्मे बच्चे की घोल पातीं. जब वह अपनी नन्हीनन्ही कोमल बांहें जूही और उस के पति के गले में पहना देता तो एक से एक नायाब फूलों की माला की रंगत भी पल में फीकी पड़ जाती. जब वह थोड़ा बड़ा हुआ तो उस दंपती को उस के हाथों अपनी वंशपरंपरा सुरक्षित दिखने लगी. उन्हें विश्वास हो गया कि अगर वे किसी संतान को जन्म दे पाते तो उस में और इस नन्हे बच्चे में कोई खास फर्क तो नहीं ही होता. विद्या दी का बेटा विलास और जूही का बेटा अविरल खूब लाड़प्यार में पलने लगे, विशेषकर विद्या दी का बेटा विलास. उस के अधिक लाड़प्यार का पहला कारण विद्या दी के दुख से जुड़ा था. अपने इकलौते बेटे को खो देने के बाद उस के हिस्से का लाड़प्यार वे स्वयं पर ऋण सरीखा समझती थीं, सो उसे विलास पर उड़ेल कर उऋण हो जाना चाहती थीं. दूसरा और शायद अधिक महत्त्वपूर्ण कारण था कि विद्या दी मझली के पति और उस के ससुरालियों को यह दिखा देना चाहती थीं कि उन की अपेक्षा उन के बेटे को उन से अधिक लाड़प्यार दे कर पाल रही हैं.

तीसरा कारण दूसरे से जुड़ा था, यह दिखाने का प्रयास कि उन की अपेक्षा वे उसे अधिक सुखसुविधाओ में पाल रही हैं. इसी धुन में विलास की हर जायजनाजायज बात मान ली जाती. परिणामस्वरूप उस की इच्छाएं दिन पर दिन बढ़ने लगी थीं. वह जो भी चीज जितनी मांगता, उस से अधिक मिलती. यही बात रुपयों पर भी लागू थी. विद्या दी के विवेकहीन प्यार का दुष्परिणाम जल्दी ही सामने आने लगा. विलास का ध्यान पढ़ाईलिखाई से पूरी तरह हट गया था. उस ने पैसे खर्च करना सीखने की उम्र से पहले ही उसे बरबाद करने के सैकड़ों तरीके खोज निकाले. उस ने धीरेधीरे विद्या दी के करोड़ों के कारोबार से अपना हाथ खींचना आरंभ कर दिया. करोड़ों का व्यापार लाखों में सिमटा, लाखों का हजारों में और हजारों से नीचे आने का अर्थ था पूरी तरह सिमटना. ‘जो चीज बढ़ती नहीं, घट जाती है,’ कहावत चरितार्थ हो गई.

विलास की आदतें बिगड़ैल रईसों के जैसी हो गई थीं. पर विद्या दी में उस की जिदें पूरी करने की सामर्थ्य अब नहीं रह गई थी. शुरू में तो पैसों के लिए वह उन से मौखिक लड़ाइयां करता, बाद में उस ने धक्कामुक्की तक करना शुरू कर दिया. एक बार तो जूही और उस के बेटे अविरल के सामने ही उस ने विद्या दी को धक्का दे दिया था. उस दिन अविरल ने ही उन्हें गिरने से बचाया था और विलास को ऐसा न करने के लिए समझाना चाहा था पर वह उसे भी धकिया कर घर से बाहर निकल गया था. उस दिन विद्या दी ने अश्रुविगलित हो कर आंखों ही आंखों में जूही के तथाकथित संस्कारविहीन बेटे को सराहा था. उन की आंखों में ऐसी निरीहता दिखाई दी थी कि जैसे उस गाय की आंखों में जिसे कसाई बस काटना ही चाहता हो. उस दिन विद्या दी अपनी लाचारी पर तो बहुत रोईं परंतु स्वयं के अपने व्यवहार को उस दिन भी दोष नहीं दिया.

मझली बहन सारिका ने जब अपना बेटा विलास विद्या दी को सौंपा था तब विद्या दी सर्वसंपन्न थीं और सारिका सुखसुविधाओं में उन से काफी पीछे. परंतु अब सारिका के पति का व्यापार काफी बढ़ चुका था. अब सारिका स्वयं संपन्नता में रह कर अपने बेटे को पैसेपैसे के लिए लड़ते देख पश्चात्ताप से भर उठती. पैसे की कमी ने विलास को चोरी की लत लगा दी थी. अब उस के घर जो भी आता, वह उस के पर्स का बोझ थोड़ा हलका कर के ही भेजता. हद तो तब हो गई जब विलास ने स्कूल टीचर के पर्स से पैसे उड़ा लिए, एक बार नहीं कईकई बार. अनेक बार चेतावनी देने के बाद भी जब उस ने अपनी गलती को नहीं सुधारा बल्कि मारपिटाई और करने लगा तो प्रिंसिपल ने उसे स्कूल से निकाल दिया. अब उस की आवारगी प्रमाणित थी. उस की बरबादी का मार्ग पूरी तरह तब प्रशस्त हो गया जब विद्या दी के पति को लकवा मार गया और वे बिस्तर पर आ टिके. अथाह दौलत की मालकिन विद्या दी को घर का खर्च चलाने के लिए भी घर का आधा हिस्सा किराए पर देना पड़ा था.

विलास अब पूरी तरह स्वतंत्र था. अपनी आवारगी को अंजाम देने के लिए घर के सामान तक बेच आता. शराब पीता, ड्रग्स लेता, आएदिन लोगों से झगड़ा करता. पड़ोसियों ने उस की आदतों से आजिज आ कर उसे पुलिस के हवाले कर दिया. उस दिन उसे सारिका और उस का पति ही छुड़ा कर लाए, इस वादे के साथ कि वह जेल तक पहुंचने की कोई भी राह फिर कभी नहीं पकड़ेगा. परंतु वादों का स्थायित्व आचरण का अनुगामी होता है. वादा जल्दी ही टूट गया. जूही का बेटा अविरल सत्य से अनभिज्ञ था और वह दंपती अनभिज्ञ हो जाना चाहता था. सत्य की इस सुखद अनभिज्ञता में उन दोनों के चेतन मन तक ने धीरेधीरे सत्य को सचमुच ही धुंधला दिया. पुत्र से प्रेम और भी प्रगाढ़ हो गया. अब तो बस यही सच था कि जूही और उस का पति ही उस बच्चे के सगे मातापिता हैं जिन्होंने उस की राह के सब कांटों को समूल नष्ट कर दिया है. वरना क्या उन्हें उस के सगे मातापिता कहना होगा जिन्होंने निष्ठुरता की हद पार कर के उसे क्षणभर में अनाथ बना कर उस के रास्ते को अंगारों से पाट दिया था.

जूही और उस के पति ने अपने उस तथाकथित वंशहीन, जातिहीन, संस्कारविहीन संभावित रोगों की खान बेटे का पालनपोषण, सूझबूझ भरे मातापिता बन कर किया. उन्होंने अपनी शिक्षा और संस्कारों से उसे आपादमस्तक नहला दिया, अपने मनचाहे व्यवहार की शिक्षा को उस की रगरग में बहना सिखा दिया. कोरे कैनवास जैसे उस मासूम पर उन्होंने अपने मनपसंद दृष्टि लुभाते शीतल रंगों के साथ मनचाहे चित्र उकेरे. एक साधारण से बच्चे को असाधारण प्रयास कर समाज के हर क्षेत्र में मुंहबाए खड़ी प्रतियोगिताओं की कतार में सब से आगे ला खड़ा किया, जैसे किसी देसी आम के पौधे पर किसी बेहतरीन किस्म के आम की कलम लगा कर स्वादिष्ठ फल उतारे जाएं. उन दोनों के संतुलित लाड़प्यार और देखरेख ने उस अबोध के मन की सभी अवांछनीय उमंगों को स्थायी रूप से समाप्त कर दिया. विद्या दी अपनी संस्कारी बहन के निश्चित रूप से संस्कारी निकलने वाले पुत्र को भी अपनी अक्षम्य भूलों के अंधड़ में पाल कर संस्कारी नहीं बना पाई थीं. हर किसी की तरह अति ने उन्हें भी बुरा ही फल दिया था.

एक दिन विलास ने विद्या दी की अनुपस्थिति में उन के बचेखुचे गहनों को निकाल कर बेच दिया और हफ्तों के लिए घर से गायब हो गया. बिस्तर पर पड़े विद्या दी के पति विलास की विलासिता की जीत के आगे अपने जीवन की जंग हार गए. जिस दिन के लिए हिंदू समाज में लोग पुत्र की कामना करते हैं उसी दिन वह उन के साथ नहीं था और जब वह लौटा विद्या दी के पति के सभी कार्य हमेशा के लिए पूरे हो चुके थे. अब घर में विद्या दी और विलास ही रह गए थे. अब बेचने के लिए बरतनों और कपड़ों के सिवा कुछ बचा नहीं था. अपने नशे की आदतों को संतुष्ट करने के लिए विलास उन्हें भी बेच आता. विद्या दी को दबा माल निकालने का आदेश करता, नहीं मानने पर जान से मार डालने की भयावह धमकी देता. उस की सारी बांहें नशे के इंजैक्शन की सुइयों से छिदी रहतीं, घर में जगहजगह उस का संस्कारी खून टपका पड़ा रहता. अब उस के साथ विद्या दी को अपना जीवन खतरे में दिखाई देने लगा था. उन की अमीरी के समय उन की गोद में अपनी संतान डाल जाने वाली बहन ने उन की मुश्किल घड़ी में उन्हें दुखी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. अपने बेटे की बरबादी का दोष उस ने अकेली विद्या दी के सिर ही मढ़ा, किसी क्षण उन्हें अपने बेटे को गोद लेने के पश्चात्ताप से मुक्त नहीं होने दिया.

जूही ने अपने बच्चे को उस के छिन जाने के डर से रहित किसी के उलाहनों से भी इतर हो स्वतंत्र रूप से सिर्फ अपनी तरह पाला. अपनी उपस्थिति से वातावरण को सकारात्मक ऊर्जा से भर देने वाला उस का बेटा अब हट्टाकट्टा जवान हो कर नौसेना में इंजीनियर के पद पर कार्यरत था. उस ने अपने मातापिता को समाज में और भी सम्मानित बना दिया था. विद्या दी एक आवारा, नशेड़ी के साथ अपमानित और मृत्यु से मिलताजुलता जीवन जीने को अभिशप्त थीं. अपमानों और अभिशापों से भरे सैकड़ों दिनों में उस एक दिन विद्या दी के स्नान करते समय विलास ने उन की पुरानी अलमारी का ताला तोड़ लिया. कागजों से मेलजोल तो नहीं था उस का पर कुछ रुपए मिल जाने की फिराक में वह कागजों को उलटनेपलटने लगा. विद्या दी स्नान कर जल्दी ही आ गईं, उन्होंने उस के हाथ से वह फाइल छीननी चाही. फाइल की छीनाझपटी में एक पुराना सा पीला पड़ गया लिफाफा हवा में तैरता हुआ जमीन पर जा गिरा. विद्या दी उसे उठाने के लिए झुकी ही थीं कि विलास ने उन्हें धक्का दे कर वह लिफाफा उठा लिया. धक्का खा कर विद्या दी का सिर दीवार से टकराया और वे जमीन पर गिर गईं. उन की तरफ ध्यान दिए बगैर विलास लिफाफे को खोल कर पढ़ने लगा जिस में उस की सगी मां सारिका का उसे विद्या दी को सौंपने को ले कर पश्चात्ताप से भरा पत्र था जिस में उस ने अपने बेटे को वापस मांगने का विनम्र आग्रह किया था. परंतु विद्या दी का मन विलास से ऐसे जुड़ गया था जैसे जल से मीन. सो उन्होंने उस की वापसी से इनकार कर दिया.

सारिका ने बड़ी बहन की बात तो रखी परंतु कभी उन के घर जा कर, कभी विलास को अपने घर बुला कर उन्हें बताए बिना, किसी जरूरत के भी बिना उसे मुट्ठियां भरभर नोट पकड़ाने शुरू कर दिए. विद्या दी का विलास के लिए अंधा प्यार तो उसे बरबाद कर देने का सब से बड़ा अपराधी था ही, सारिका के कुतर्की व्यवहार ने भी छोटी भूमिका तो नहीं ही निभाई थी उसे आवारा बनाने में. विलास ने पत्र पढ़ लिया था. अब उस के हाथ कुबेर का दूसरा खजाना आ गया था बरबाद करने के लिए. वह विद्या दी से लड़ने के पूर्व कृत्य में उन्हें झंझोड़ने लगा था. पर वे अपने लाड़ले विलास को खो देने और फिर से निसंतान हो जाने के डर से भयभीत हो चुपचाप निकल गई थीं जीवन की जद्दोजहद से.

Hindi Love Stories : क्या मानसी अपने पति को धोखा दे रही थी?

Hindi Love Stories : अचानक शुरू हुई रिमझिम ने मौसम खुशगवार कर दिया था. मानसी ने एक नजर खिड़की के बाहर डाली. पेड़पौधों पर झरझर गिरता पानी उन का रूप संवार रहा था. इस मदमाते मौसम में मानसी का मन हुआ कि इस रिमझिम में वह भी अपना तनमन भिगो ले.

मगर उस की दिनचर्या ने उसे रोकना चाहा. मानो कह रही हो हमें छोड़ कर कहां चली. पहले हम से तो रूबरू हो लो.

रोज वही ढाक के तीन पात. मैं ऊब गई हूं इन सब से. सुबहशाम बंधन ही बंधन. कभी तन के, कभी मन के. जाओ मैं अभी नहीं मिलूंगी तुम से. मन ही मन निश्चय कर मानसी ने कामकाज छोड़ कर बारिश में भीगने का मन बना लिया.

क्षितिज औफिस जा चुका था और मानसी घर में अकेली थी. जब तक क्षितिज घर पर रहता था वह कुछ न कुछ हलचल मचाए रखता था और अपने साथसाथ मानसी को भी उसी में उलझाए रखता था. हालांकि मानसी को इस बात से कोई आपत्ति नहीं थी और वह सहर्ष क्षितिज का साथ निभाती थी. फिर भी वह क्षितिज के औफिस जाते ही स्वयं को बंधनमुक्त महसूस करती थी और मनमानी करने को मचल उठती थी.

इस समय भी मानसी एक स्वच्छंद पंछी की तरह उड़ने को तैयार थी. उस ने बालों से कल्चर निकाल उन्हें खुला लहराने के लिए छोड़ दिया जो क्षितिज को बिलकुल पसंद नहीं था. अपने मोबाइल को स्पीकर से अटैच कर मनपसंद फिल्मी संगीत लगा दिया जो क्षितिज की नजरों में बिलकुल बेकार और फूहड़ था.

अत: जब तक वह घर में रहता था, नहीं बजाया जा सकता था. यानी अब मानसी अपनी आजादी के सुख को पूरी तरह भोग रही थी.

अब बारी थी मौसम का आनंद उठाने की. उस के लिए वह बारिश में भीगने के लिए आंगन में जाने ही वाली थी कि दरवाजा खटखटाने की आवाज आई.

इस भरी बरसात में कौन हो सकता है. पोस्टमैन के आने में तो अभी देरी है. धोबी नहीं हो सकता. दूध वाला भी नहीं. तो फिर कौन है? सोचतीसोचती मानसी दरवाजे तक जा पहुंची.

दरवाजे पर वह व्यक्ति था जिस की वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी.

‘‘आइए,’’ उस ने दरवाजा खोलते हुए कुछ संकोच से कहा और फिर जैसे ही वह आगंतुक अंदर आने को हुआ बोली, ‘‘पर वे तो औफिस चले गए हैं.’’

‘‘हां, मुझे पता है. मैं ने उन की गाड़ी निकलते देख ली थी,’’ आगंतुक जोकि उन के महल्ले का ही था ने अंदर आ कर सोफे पर बैठते हुए कहा.

यह सुन कर मानसी मन ही मन बड़बड़ाई कि जब देख ही लिया था तो फिर क्यों चले आए हो… वह मन ही मन आकाश के बेवक्त यहां आने पर कु्रद्ध थी, क्योंकि उन के आने से उस का बारिश में भीगने का बनाबनाया प्रोग्राम चौपट हो रहा था. मगर मन मार कर वह भी वहीं सोफे पर बैठ गई.

शिष्टाचारवश मानसी ने बातचीत का सिलसिला शुरू किया, ‘‘कैसे हैं आप? काफी दिनों बाद नजर आए.’’

‘‘जैसा कि आप देख ही रहीं… बिलकुल ठीक हूं. काम पर जाने के लिए निकला ही था कि बरसात शुरू हो गई. सोचा यहीं रुक जाऊं. इस बहाने आप से मुलाकात भी हो जाएगी.’’

‘‘ठीक किया जो चले आए. अपना ही घर है. चायकौफी क्या लेंगे आप?’’

‘‘जो भी आप पिला दें. आप का साथ और आप के हाथ हर चीज मंजूर है,’’ आकाश ने मुसकरा कर कहा तो मानसी का बिगड़ा मूड कुछ हद तक सामान्य हो गया, क्योंकि उस मुस्कराहट में अपनापन था.

मानसी जल्दी 2 कप चाय बना लाई. चाय के दौरान भी कुछ औपचारिक बातें होती रहीं. इसी बीच बूंदाबांदी कम हो गई.

‘‘आप की इजाजत हो तो अब मैं चलूं?’’ फिर आकाश के चेहरे पर वही मुसकराहट थी.

‘‘जी,’’ मानसी ने कहा, ‘‘फिर कभी फुरसत से आइएगा भाभीजी के साथ.’’

‘‘अवश्य यदि वह आना चाहेगी तो उसे भी ले आऊंगा. आप तो जानती ही हैं कि उसे कहीं आनाजाना पसंद नहीं,’’ कहतेकहते आकाश के चेहरे पर उदासी छा गई.

मानसी को लगा कि उस ने आकाश की दुखती रग पर हाथ रख दिया हो, क्योंकि वह जानती थी कि आकाश की पत्नी मानसिक रूप से अस्वस्थ है और इसी कारण लोगों से बात करने में हिचकिचाती है.

‘‘क्या मैं अंदर आ सकता हूं?’’ अगले दिन भी जब उसी मुसकराहट के साथ आकाश ने पूछा तो जवाब में मानसी भी मुसकरा दी और दरवाजा खोल दिया.

‘‘चाय या कौफी?’’

‘‘कुछ नहीं… औपचारिकता करने की आवश्यकता नहीं. आज भी तुम से दो घड़ी बात करने की इच्छा हुई तो फिर चला आया.’’

‘‘अच्छा किया. मैं भी बोर ही हो रही थी,’’ मानसी जानती थी कि उन्हें यह बताने की आवश्यकता नहीं थी कि क्षितिज कहां है, क्योंकि निश्चय ही वे जानते थे कि वे घर पर नहीं हैं.

इस तरह आकाश के आनेजाने का सिलसिला शुरू हो गया वरना इस महल्ले में किसी के घर आनेजाने का रिवाज कम ही था. यहां अधिकांश स्त्रियां नौकरीपेशा थीं या फिर छोटे बालबच्चों वाली. एक वही अपवाद थी जो न तो कोई जौब करती थी और न ही छोटे बच्चों वाली थी.

मानसी का एकमात्र बेटा 10वीं कक्षा में बोर्डिंग स्कूल में पढ़ता था. अपने अकेलेपन से जूझती मानसी को अकसर अपने लिए एक मित्र की आवश्यकता महसूस होती थी और अब वह आवश्यकता आकाश के आने से पूरी होने लगी थी, क्योंकि वे घरगृहस्थी की बातों से ले कर फिल्मों, राजनीति, साहित्य सभी तरह की चर्चा कर लेते थे.

आकाश लगभग रोज ही आफिस जाने से पूर्व मानसी से मिलते हुए जाते थे और अब स्थिति यह थी कि मानसी क्षितिज के जाते ही आकाश के आने का इंतजार करने लग जाती थी.

एक दिन जब आकाश नहीं आए तो अगले दिन उन के आते ही मानसी ने पूछा, ‘‘क्या हुआ, कल क्यों नहीं आए? मैं ने कितना इंतजार किया.’’

आकाश ने हैरानी से मानसी की ओर देखा और फिर बोले, ‘‘क्या मतलब? मैं ने रोज आने का वादा ही कब किया है?’’

‘‘सभी वादे किए नहीं जाते… कुछ स्वयं ही हो जाते हैं. अब मुझे आप के रोज आने की आदत जो हो गई है.’’

‘‘आदत या मुहब्बत?’’ आकाश ने मुसकरा कर पूछा तो मानसी चौंकी, उस ने देखा कि आज उन की मुसकराहट अन्य दिनों से कुछ अलग है.

मानसी सकपका गई. पर फिर उसे लगा कि शायद वे मजाक कर रहे हैं. अपनी सकपकाहट से अनभिज्ञता का उपक्रम करते हुए वह सदा की भांति बोली, ‘‘बैठिए, आज क्षितिज का जन्मदिन है. मैं ने केक बनाया है. अभी ले कर आती हूं.’’

‘‘तुम ने मेरी बात का जवाब नहीं दिया.’’ आकाश फिर बोले तो उसे बात की गंभीरता का एहसास हुआ.

‘‘क्या जवाब देती.’’

‘‘कह दो कि तुम मेरा इंतजार इसलिए करती हो कि तुम मुझे पसंद करती हो.’’

‘‘हां दोनों ही बातें सही हैं.’’

‘‘यानी मुहब्बत है.’’

‘‘नहीं, मित्रता.’’

‘‘एक ही बात है. स्त्री और पुरुष की मित्रता को यही नाम दिया जाता है,’’ आकाश ने मानसी की ओर हाथ बढ़ाते हुए कहा.

‘‘हां दिया जाता है,’’ मानसी ने हाथ को हटाते हुए कहा, ‘‘क्योंकि साधारण स्त्रीपुरुष मित्रता का अर्थ इसी रूप में जानते हैं और मित्रता के नाम पर वही करते हैं जो मुहब्बत में होता है.’’

‘‘हम भी तो साधारण स्त्रीपुरुष ही हैं.’’

‘‘हां हैं, परंतु मेरी सोच कुछ अलग है.’’

‘‘सोच या डर?’’

‘‘डर किस बात का?’’

‘‘क्षितिज का. तुम डरती हो कि कहीं उसे पता चल गया तो?’’

‘‘नहीं, प्यार, वफा और समर्पण को डर नहीं कहते. सच तो यह है कि क्षितिज तो अपने काम में इतना व्यस्त है कि मैं उस के पीछे क्या करती हूं, वह नहीं जानता और यदि मैं न चाहूं तो वह कभी जान भी नहीं पाएगा.’’

‘‘फिर अड़चन क्या है?’’

‘‘अड़चन मानसिकता की है, विचारधारा की है.’’

‘‘मानसिकता बदली जा सकती है.’’

‘‘हां, यदि आवश्यकता हो तो… परंतु मैं इस की आवश्यकता नहीं समझती.’’

‘‘इस में बुराई ही क्या है?’’

‘‘बुराई है… आकाश, आप नहीं जानते हमारे समाज में स्त्रीपुरुष की दोस्ती को उपेक्षा की दृष्टि से देखने का यही मुख्य कारण है. जानते हो एक स्त्री और पुरुष बहुत अच्छे मित्र हो सकते हैं, क्योंकि उन के सोचने का दृष्टिकोण अलग होता है. इस से विचारों में विभिन्नता आती है. ऐसे में बातचीत का आनंद आता है, परंतु ऐसा नहीं होता.’’

‘‘अकसर एक स्त्री और पुरुष अच्छे मित्र बनने के बजाय प्रेमी बन कर रह जाते हैं और फिर कई बार हालात के वशीभूत हो कर एक ऐसी अंतहीन दिशा में बहने लगते हैं जिस की कोई मंजिल नहीं होती.’’

‘‘परंतु यह स्वाभाविक है, प्राकृतिक है, इसे क्यों और कैसे रोका जाए?’’

‘‘अपने हित के लिए ठीक उसी प्रकार जैसे हम ने अन्य प्राकृतिक चीजों, जिन से हमें नुकसान हो सकता है, पर नियंत्रण पा लिया है.’’

‘‘यानी तुम्हारा इनकार है,’’ ऐसा लगता था आकाश कुछ बुझ से गए थे.

‘‘इस में इनकार या इकरार का प्रश्न ही कहां है? मुझे आप की मित्रता पर अभी भी कोई आपति नहीं है बशर्ते आप मुझ से अन्य कोई अपेक्षा न रखें.’’

‘‘दोनों बातों का समानांतर चलना बहुत मुश्किल है.’’

‘‘जानती हूं फिर भी कोशिश कीजिएगा.’’

‘‘चलता हूं.’’

‘‘कल आओगे?’’

‘‘कुछ कह नहीं सकता.’’

सुबह के 10 बजे हैं. क्षितिज औफिस चला गया है पर आकाश अभी तक नहीं आए. मानसी को फिर से अकेलापन महसूस होने लगा है.

‘लगता है आकाश आज नहीं आएंगे. शायद मेरा व्यवहार उन के लिए अप्रत्याशित था, उन्हें मेरी बातें अवश्य बुरी लगी होंगी. काश वे मुझे समझ पाते,’ सोच मानसी ने म्यूजिक औन कर दिया और फिर सोफे पर बैठ कर एक पत्रिका के पन्ने पलटने लगीं.

सहसा किसी ने दरवाजा खटखटाया. मानसी दरवाजे की ओर लपकी. देखा दरवाजे पर सदा की तरह मुसकराते हुए आकाश ही थे. मानसी ने भी मुसकरा कर दरवाजा खोल दिया. उस ने आकाश की ओर देखा. आज उन की वही पुरानी चिरपरिचित मुसकान फिर लौट आई थी.

इसी के साथ आज मानसी को विश्वास हो गया कि अब समाज में स्त्रीपुरुष के रिश्ते की उड़ान को नई दिशाएं अवश्य मिल जाएंगी, क्योंकि उन्हें वहां एक आकाश और मिल गया है.

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