Traditional Dishes : ट्रैडिशनल डिशेज खासकर फेस्टिवल के दौरान बनाई जाती है, लेकिन आप इन रेसिपी की मदद से इन डिशेज को किसी भी दिन बना सकती हैं.
वैज अप्पम
सामग्री
200 ग्राम मसाला ओट्स , 1 बड़ा चम्मच सूजी ड्राई रोस्ट द्य 1 गाजर कद्दूकस की द्य 8-10 बींस कटी द्य थोड़े से करीपत्ते, 1/2 कप दही, 2-3 हरीमिर्चें कटी, 1 छोटा प्याज बारीक कटा, 1 छोटा चम्मच तेल, नमक स्वादानुसार.
विधि
एक बाउल में ओट्स, सूजी, नमक, हरी मिर्चें मिला कर मिश्रण तैयार करें. अब एक पैन में तेल गरम कर करीपत्ते प्याज, बींस व गाजर भून कर ओट्स के मिश्रण में मिला दें. इस में दही व जरूरतानुसार पानी मिला कर अप्पम का मिश्रण तैयार करें. अप्पम पैन में चिकनाई लगा कर अप्पम दोनों तरफ से सेंक कर तैयार करें और हरी चटनी के साथ सर्व करें.
‘हरेभरे पकौड़े स्टार्टर के लिए बैस्ट हैं.’ छोलिया पकौड़े
सामग्री
200 ग्राम छोलिया, 100 ग्राम लहसुन की पत्ती कटी, 3/4 कप चावल का आटा, 1 छोटा चम्मच अदरकलहसुन का पेस्ट, 1 छोटा चम्मच हरी मिर्चों का पेस्ट, 1 छोटा चम्मच गरममसाला, तलने के लिए पर्याप्त तेल, नमक स्वादानुसार.
विधि
छोलिया धो कर दरदरी ग्राइंड कर लें. अब एक बाउल में छोलिया मिश्रण के साथ लहसुन की पत्तियां, चावल का आटा, अदरकलहसुन का पेस्ट, हरीमिर्चों का पेस्ट, नमक व गरममसाला पाउडर मिक्स कर फ्रिटर्स बनाएं और गरम तेल में तल कर परोसें.
‘ बेसन की जगह इस बार सत्तू के लड्डू ट्राई करें. ’
सत्तू लड्डू
सामग्री
250 ग्राम सत्तू द्य 200 ग्राम पीसी चीनी, 50 ग्राम क्रिस्टल शुगर, 1 बड़ा चम्मच इलायची पाउडर, 1 बड़ा चम्मच काजू, बादाम बारीक कटे, थोड़ा सा बादाम गार्निश के लिए.
विधि
एक पैन में घी गरम कर सत्तू मध्यम आंच पर भूनें. अब अलग पैन में थोड़ा सा घी गरम कर काजू और बादाम सेंक लें. अब सत्तू में क्रिस्टल शुगर, पीसी चीनी, इलायची पाउडर व काजूबादाम डाल कर अच्छी तरह मिक्स कर लें. अब गरमगरम ही इस मिश्रण के लड्डू बनाएं व बादाम के छोटे टुकड़ों से गार्निश कर स्टोर करें या तुरंत सर्व करें.
‘पनीर को चटपटा बनाएं और पूरी के साथ सर्व करें.’
चटपटा पनीर
सामग्री
250 ग्राम पनीर, 2 बड़े चम्मच कौर्नफ्लोर, 2 बड़े चम्मच मैदा, 1 चम्मच अदरकलहसुन पेस्ट, 2 बड़े चम्मच पानी निकला गाढ़ा दही, 1 छोटा चम्मच चाटमसाला, 1 छोटा चम्मच तंदूरी मसाला, 1/2 छोटा चम्मच हरीमिर्च का पेस्ट, 1 छोटा चुकंदर, 1 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर, तलने के लिए तेल, नमक स्वादानुसार.
विधि
चुकंदर को छील कर टुकड़ों में काट कर गलने तक पका लें. फिर पीस कर पेस्ट बना लें. इस पेस्ट में पनीर को छोड़ कर बाकी सारी सामग्री मिला दें. अच्छी तरह मिक्स करें. इस पेस्ट में पनीर के टुकड़े काट कर मिला दें. फिर इसे कुछ देर ऐसे ही रखा रहने दें. यदि पेस्ट ज्यादा गाढ़ा लगे तो उस में थोड़ा पानी मिला सकती हैं. पनीर के टुकड़ों को गरम तेल में तल कर चटनी के साथ परोसें.
‘दाल के करारे पकौड़े शाम की चाय का स्वाद बढ़ा देंगे.’
दाल पकौड़े
सामग्री
1 कप चना दाल, 1/2 कप चावल का आटा, 1/2 छोटा चम्मच अजवाइन, 1 चुटकी हींग, तेल तलने के लिए, 1/2 छोटा चम्मच हलदी, नमक स्वादानुसार.
विधि
चने की दाल को 1 कटोरी पानी के साथ उबाल लें. बचा पानी निथार लें. दाल में चावल का आटा, नमक, हलदी, हींग और अजवाइन डालें. 1 बड़ा चम्मच मोयन मिला कर आटा गूंध लें. आटा थोड़ा कड़ा होना चाहिए. आवश्यकता हो तो थोड़ा पानी मिला लें. इसे 10-15 मिनट ढक कर रख दें. अब इस आटे की छोटीछोटी लोइयां बना कर रोटी जैसा बेलें. थोड़ा मोटा रखें. अब चाकू की सहायता से रोटी की लंबी पट्टियां काट लें. इन्हें मनचाहा आकार दे कर तलें और चाय के साथ परोसें.
Mumbai Businesss Hub : आज बड़ीबड़ी गगनचुंबी इमारतें, लंबीलंबी सड़कों का जाल और करोड़ों की भीड़भाड़ वाले शहर मुंबई जो कभी बांबे के नाम से जाना जाता था पहले ऐसा न था. समुद्र की ऊंचीऊंची लहरें, जो खूबसूरत संगीत की धुन का एहसास कराती थीं, सुंदर वातावरण, सुकून भरी जिंदगी, चलचित्र जगत का केंद्र, सड़कों पर चलते ट्राम, बसों और लोकल ट्रेन के अलावा चालों में रहने वाले लोग आपस में भाईचारे के साथ और खुश रहना जानते थे. समय के साथसाथ इस में परिवर्तन इतनी जल्दी हुआ कि आज मुंबई में कहीं जाना एक समस्या बन चुका है. कहीं भी जाएं लोगों का हुजूम सड़कों से ले कर लोकल ट्रेन, मैट्रो तक में इतना अधिक है कि पांव रखना भी मुश्किल हो जाता है. आखिर सपनों की इस मायानागरी मुंबई की इस दुर्दशा की वजह क्या है?
मायानगरी मुंबई
असल में यह एक सपनों का शहर है, जिसे मायानगरी कहा गया क्योंकि यहां आने वाला कोई भी व्यक्ति इसे छोड़ कर नहीं जाता क्योंकि यहां हर व्यक्ति के लिए भोजन और शैल्टर मिल जाता है. इस के बारे में यह भी प्रचलित है कि यह शहर कभी सोता नहीं. यह एक ऐसा शहर है जो हमेशा आगे बढ़ना चाहता है. 7 टापुओं को जोड़ कर बनाए गए इस शहर की कहानी बहुत दिलचस्प है.
मुंबई का इतिहास
पहले मुंबई 7 टापुओं का समूह था, जिन के नाम छोटा कोलाबा, वरली, माजगांव, परेल, कोलाबा, माहिम और बांबे टापू था. ओंकार करंबेलकर बीबीसी के एक आर्टिकल में मुंबई के इतिहास से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा बताते हैं. 1930 की बात है, जब ब्रिटिश फौज के एक अधिकारी कोलाबा के पास बीच पर टहल रहे थे. जब उन की नजर एक पत्थर पर पड़ी तो उन्होंने पत्थर को गौर से देखा. यह कोई सामान्य पत्थर नहीं था. यह स्टोन एजके मनुष्यों का हथियार था. थोड़ी और खोजबीन हुई तो पता चला वहां बहुत से ऐसे पत्थर थे, जिन्हें हमारे पूर्वज हथियारों के रूप में इस्तेमाल करते थे अर्थात मुंबई जो पहले महज कुछ द्वीपों का समूह था यहां स्टोन एज से लोग रहते आए थे. सभ्यता के विकास के बाद जो इतिहास दर्ज किया गया उस की बात करें तो
मुंबई के विकास, इस की स्थापना के 4 चरण माने जाते हैं.
हुआ समुद्र का अतिक्रमण
उस समय मुंबई में कोली और आगरी लोग रहते थे. 18वीं सदी के मध्य में मुंबई एक अहम व्यापारिक शहर बन गया था. 1817 के बाद मुंबई को बड़े पैमाने पर सिविल कार्यों से नया रूप दिया गया. मुंबई के सभी 7 टापुओं को जोड़ कर एक शहर बनाने की परियोजना हार्नबी वेलार्ड नाम के एक पुल ने की थी. मुंबई को मुंबई बनाने के लिए समुद्र का अतिक्रमण भी किया गया. उमरखेड़ी की खाड़ी, जो बांबे को माजगांव से अलग करती थी, आज इस इलाके का नाम पायधोनी है,समुद्र यहां चट्टानों के पैर धोता था. यह समंदर से जमीन वापस लेने का पहला केस था. इस सारी प्रक्रिया में खूब उठापटक हुई. पहाडि़यों को समतल किया गया, दलदले इलाकों में मलबा भर कर उन्हें पक्का बनाया गया. यों धीरेधीरे मुंबई के अलगअलग टापुओं को जोड़ कर एक सुंदर शहर की शक्ल दी गई.
बना प्रमुख बंदरगाह
मुंबई पर कई राजवंशों ने शासन किया है, जिन में सातवाहन, अभिरस, वाकाटक, कलचुरी, कोंकण मौर्य, चालुक्य, राष्ट्र कूट, सिल्हारा और चोल प्रमुख हैं. इन के अलावा मुंबई पर पुर्तगालियों, गुजरात के सुलतानों और ब्रिटिशों ने भी शासन किया है. करीब साढ़े तीन सौ साल तक अंगरेजों ने मुंबई पर एकछत्र राज किया. उस दौरान मुंबई को प्रमुख बंदरगाह शहर बनने के लिए एक बड़ा स्टेशन बनाया गया. इस का नाम तत्कालीन भारत की महारानी रानी विक्टोरिया के नाम पर विक्टोरिया टर्मिनस रखा गया. स्टेशन का डिजाइन सलाहकार ब्रिटिश वास्तुकार फ्रेडरिक विलियम स्टीवंस ने तैयार किया था. इस शहर को पहले बांबेबांबे प्रैसिडैंसी के नाम से जाना जाता था और आजादी के बाद बांबे नाम दिया गया.
बनी आर्थिक राजधानी
मुंबई विश्व के सर्वोच्च 10 वाणिज्यिक केंद्रों में से एक है. भारत के अधिकांश बैंक एवं सौदागरी कार्यालयों के प्रमुख कार्यालय एवं कई महत्त्वपूर्ण आर्थिक संस्थान जैसे भारतीय रिजर्व बैंक, बंबई स्टौक ऐक्सचेंज, नैशनल स्टौक ऐक्सचेंज एवं अनेक भारतीय कंपनियों के निगमित मुख्यालय तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियां मुंबई में स्थित हैं. इसलिए इसे भारत की आर्थिक राजधानी भी कहते हैं. हिंदी चलचित्र एवं दूरदर्शन उद्योग भी यहां पर स्थित है जो बौलीवुड नाम से प्रसिद्ध है. मुंबई की व्यावसायिक औपरच्युनिटी और उच्च जीवन स्तर पूरे भारतवर्ष के लोगों को आकर्षित करता है, जिस के कारण यह नगर विभिन्न समाजों व संस्कृतियों का मिश्रण बन गया है. मुंबई पत्तन भारत के लगभग आधे समुद्री माल की आवाजाही करता है. मुंबई महानगरपालिका में करीब 227 नगरसेवक हैं. मुंबई महानगर पालिका पूरे विश्व में पैसों के मामले में सब से अधिक अमीर महानगरपालिका मानी जाती है.
खिसकने लगे बिजनैस हब
पिछले कई सालों से साउथ मुंबई से बिजनैस हब नार्थ मुंबई की ओर शिफ्ट होने लगा. इस की वजह वहां जगह की कमी और रियल स्टेट के बढ़ते दाम का होना है.
इस बारे में 75 वर्षीय साउथ मुंबई के रहने वाले सातारा संपर्क प्रमुख दगड़ू सकपाल कहते हैं कि मुंबई की लाइफ पहले बहुत शांत और सुकून वाली हुआ करती थी. यहां बड़ीबड़ी बिल्डिंग्स नहीं थीं. रास्ते पर ट्राम चलती थीं, बाद में बैस्ट की बसें आईं, साथ में लोकल ट्रेनें शुरू हुईं. उस समय मुंबई बहुत खाली हुआ करता था. यहां के लोग चाल में रहते थे. यहां बड़ी इमारतें नहीं थीं. पब्लिक बहुत कम थी और चारों तरफ हरियाली थी, कई प्रकार के पक्षी और जानवर आसपास रहते थे.
महंगी जमीन बड़ी वजह
दगड़ू सकपाल कहते हैं कि इस से इमारतों की संख्या बढ़ने लगी, हर जातिधर्म के लोगों ने अपने लिए अलगअलग इमारतें बनानी शुरू कीं, जिस से जमीन के दाम आसमान छूने लगे और जितने भी व्यवसायी और औफिस वाले साउथ मुंबई में थे, उन की जमीन अच्छी कीमतों पर बिकने लगी. उन्हें अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए जगह मिलनी बंद हो गई. इस से वे साउथ मुंबई से आगे की ओर शिफ्ट होते गए, जिस में साउथ मुंबई, अंधेरी, फिर बांद्रा कुर्ला कौंप्लैक्स, गोरेगांव और दहिसर जहां कम दाम में लोगों को व्यवसाय करने की बड़ी जगह मिलती रही और उन में काम करने वाले कर्मचारियों को भी अधिक ट्रैवल नहीं करना पड़ता क्योंकि पहले कर्मचारियों को दूरदराज से ट्रैवल कर साउथ मुंबई की तरफ आना पड़ता था, लेकिन अब वे कम समय और कम खर्च में अपने औफिस जाने लगे. इसलिए सभी कंपनियों ने अपनी ब्रांचेज बांद्रा कुर्ला कौंप्लैक्स, मालाड, गोरेगांव और नवी मुंबई में खोल लीं. आज यहां भी जगह की कमी होने लगी है, इसलिए वे दहिसर की तरफ जाने लगे हैं.
बढ़ती आबादी सिसकती मुंबई
सकपाल का कहना है कि आज मुंबई में पानी की कमी है क्योंकि सारे पाइपलाइन पुराने हो चुके हैं, उन्हें बदलने की जरूरत है जो नहीं बदले जाते. प्रदूषण अधिक है क्योंकि पूरा साल कंस्ट्रक्शन का काम चलता है. जनसंख्या का भार इस शहर पर बहुत अधिक है. मुंबई की आबादी में लगातार वृद्धि हो रही है. 2001 की जनगणना के मुताबिक, मुंबई की आबादी 1,19,14,398 थी, जो 2011 तक 1,24,42,373 हो चुकी थी. अगस्त 2024 तक मुंबई की अनुमानित आबादी 21.67 करोड़ हो चुकी है, जो पिछले साल से 1.77त्न ज्यादा है. यही वजह है कि हर साल मुंबई बरसात के मौसम में पानीपानी हो जाता है.
Relationship : एक दिलचस्प वाकेआ याद आ रहा है. मैं उस वक्त एक न्यूज पेपर औफिस में जर्नलिस्ट थी और फीचर सैक्शन का काम देखती थी. वहां काम करने वाली नीरजा के साथ धीरेधीरे मेरी दोस्ती हो गई और मैं उस के सुखदुख की साथी भी बन गई.
नीरजा का एक बौयफ्रैंड था जो एक बड़ी प्राइवेट कंपनी में सैक्शन हैड था. ठीक है, थोड़ा गुरूर और रुतबे में रहता था लेकिन नीरजा को उस के प्यार में कोई कमी नहीं दिखती थी. सुयश उसी शहर का था जहां नीरजा नौकरी करती थी लेकिन नीरजा पास के शहर से यहां आ कर किराए के फ्लैट में रहती थी. दोनों की उम्र 27-28 के आसपास होगी.
औफिस के बाद कभीकभी मैं यों ही मन बहलाने के लिए नीरजा के साथ उस के फ्लैट जाया करती थी. कुछ देर बैठ गपशप करती. इस समय औफिस के बाद सुयश आ जाता और देर रात तक रुकता या कभीकभी पूरी रात भी रुकता. हम लोग चूंकि पहले ही पहुंच कर कौफी और गपशप का आनंद उठा चुके होते तो सुयश के आने के बाद मैं कुछ ही मिनटों में रवाना हो जाती.
उस दिन आते ही सुयश मेरे सामने ही नीरजा पर बरस पड़ा कि फील्ड वर्क में तुम्हारे साथ शैलेश क्यों था? अपनी गाड़ी में तुम अकेली क्यों नहीं गई? उस के साथ पीछे बैठ कर जाने में बहुत मजा आ रहा था क्या?
मैं तो हैरान थी. मुझे उठ कर जाने का मौका भी नहीं मिल रहा था, फिर सहेली के लिए मैं चिंता में पड़ गई कि यह कैसा लड़का है, प्रेमिका का अपना भी एक वजूद और व्यक्तित्व है, नौकरी करते हुए फील्ड वर्क में किसी के साथ जाने की जरूरत हो सकती है.
नीरजा शांत हो कर उसे सम झाने की जितनी कोशिश कर रही थी, सुयश उतना ही उत्तेजित हो रहा था. अंतत: उस ने नीरजा को इस बहाने एक थप्पड़ जड़ दिया कि वह उस के साथ जबान लड़ा रही है.
मैं ने उन दोनों के बीच कुछ कहा नहीं और नीरजा को इशारा कर निकल आई. दूसरे दिन जब मैं ने नीरजा से इस बारे में बात की तो उस के अंदर का दर्द फूट कर बाहर आ गया यानी इस रिश्ते के पहाड़ के नीचे ज्वालामुखी बड़े दिनों से तैयार हो रहा था. पता चला सुयश उसे आए दिन किसी न किसी बात को ले कर टोकता रहता है. उस ने अपने फ्लैट में अपने ही पैसे से फ्रिज लिया, सुयश ने उस की कलर चौइस को ले कर 4 बातें सुना दीं. कहांकहां नीरजा ने अपने रुपए इन्वैस्ट किए हैं, उस की सारी खबर सुयश को चाहिए होती है. घर वालों को क्याक्या उस ने खरीद कर दिया इस की पूरी जानकारी लेने के बाद नीरजा को इतना खर्च करने के लिए फटकारता है.
हां, जब शारीरिक संबंध बनाने की उस की इच्छा होती तब बड़े प्यार से फुसलाता कि वह अपनी गर्लफ्रैंड को इतना प्यार करता है कि उस के भलेबुरे का बिना सोचे वह रह ही नहीं पाता. बड़ी बात नीरजा को उस का यह व्यवहार पसंद न आने के बावजूद वह यह भ्रम पाले थी कि यह सुयश के उस के प्रति प्यार की अभिव्यक्ति है. क्या वास्तव में ऐसा था?
ट्यूलिप के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था. वह और उस का बौयफ्रैंड दोनों उस समय साथ अपनेअपने घर से दूर दूसरे शहर में एमबीए कर रहे थे. इस बार ट्यूलिप को जन्मदिन पर उस के घर वाले घर बुला रहे थे. उस ने तब तक अपने इस रिश्ते के बारे में घर पर नहीं बताया था. उसे थोड़ा समय चाहिए था. ट्यूलिप के बौयफ्रैंड ने शर्त लगा दी कि उसे छोड़ वह अगर अपने घर चली गई तो वह इसे ब्रेकअप मान लेगा. बर्थडे यानी इस पर सिर्फ उस के बौयफ्रैंड का अधिकार है. ट्यूलिप कशमकश में पड़ गई. उस ने घर जाना टाल तो दिया लेकिन आगे भी यही होता रहा. कब तक झेलती. बौयफ्रैंड की इस जबरदस्ती की आदत के कारण आखिर ट्यूलिप को इस रिश्ते से पीछे हटना पड़ा.
उधर नीरजा को उस के इस हाल में छोड़ना मुनासिब नहीं था और उसे सही दिशा की जरूरत थी. इधर ट्यूलिप जैसी लड़कियों के लिए भी कुछ पौइंट्स थे जिन से इन जैसी लड़कियों को अपनी जिंदगी का फैसला सही तरीके से लेने में आसानी हो.
यद्यपि भारतीय समाज का पति अकसर या ज्यादातर पत्नी को अपनी मिल्कियत समझता है और हर वक्त पत्नी को कंट्रोल में रखने की कोशिश करता है. मगर यह भी सच है कि भारतीय समाज में परिवार के मुखिया के रूप में पति की अहम भूमिका होती है और कानूनी और सामाजिक रूप से पति को अधिकारों के साथसाथ कुछ कर्तव्यों का भी निर्वाह करना होता है. कहा जाए तो पतिपत्नी के अधिकार और कर्तव्यों के सुनियोजित उपयोग से इन का रिश्ता जन्मभर बना रहता है.
लेकिन बौयफ्रैंड का रिश्ता और अधिकार तब तक ही होता है जब तक प्रेमिका उस के भाव और प्रभाव को माने. सामाजिक, कानूनी और पारिवारिक तौर पर बौयफ्रैंड को वे अधिकार नहीं होते कि वह अपनी गर्लफ्रैंड की स्वतंत्रता नष्ट करे या अनाधिकार उस के अधिकार क्षेत्र में प्रवेश करे.
जब बौयफ्रैंड दोस्त सा न रहे: एक दोस्त को उस की दोस्ती का अधिकार सामने वाले की स्वतंत्रता का सम्मान बनाए रखने पर ही मिलता है. अगर बौयफ्रैंड अपनी गर्लफ्रैंड पर अपने विचार और पसंद थोपता है अथवा अपनी उस की इच्छा का सम्मान नहीं करता अथवा रूढि़वादी सोच से उसे आंकता है तो यह बौयफ्रैंड कभी रिश्ता सही नहीं निभा पाएगा.
जब प्रेमी बातबात पर प्रेमिका को गलत कहे या सुधारे: जो चीजें एक लड़के को गलत लग रही हैं, कभीकभी एक लड़की की परिस्थितियों में वह सही हो सकती हैं. पति की तरह अगर बौयफ्रैंड अपनी फ्रैंडको बातबात पर गलत ठहराने और सुधारने की कोशिश करे तो रिश्ता आगे नहीं टिकेगा क्योंकि लड़की जैसी है उसे वैसा ही स्वीकार नहीं पा रहा बौयफ्रैंड.
प्रेमिका के घर वालों से हो परेशानी: जब बौयफ्रैंड खुद का प्रेमिका पर ज्यादा हक जताता है और वह लगभग खुद को उस का पति ही समझ लेता है तो प्रेमिका के घर वालों के मामले में भी प्रेमिका को नसीहत देने लगता है या उन से कुछ ईर्ष्याग्रस्त हो जाता है. ऐसे बौयफ्रैंड से भी तोबा करें जो प्रेमिका का फायदा भी उठाता है और उस के घर वालों से बैर भी रखना नहीं छोड़ता.
प्रेमिका के पैसों पर हक जताए: प्रेमिका के पिता की संपत्ति हो या उस की खुद की अर्जित संपत्ति अपनेपन के बहाने अगर बौयफ्रैंड उस की संपत्ति और डिपोजिट के बारे में जानकारी रखना अपना हक समझे या बिन मांगे कोई आर्थिक सलाह दे और उसे मानने को मजबूर करे तो बौयफ्रैंड के तौर पर उस का यह अपने दायरे का उल्लंघन माना जाएगा. प्रेमिका को अपने रिश्ते को ले कर सचेत हो जाना चाहिए.
प्रेमिका के खर्च पर कंट्रोल: शादी के बाद जब परिवार की प्लानिंग और बजट की बात आती है तब पति अगर पत्नी के अनुचित खर्चे पर रोकटोक करे तो यह सर्वथा मान्य है लेकिन बौयफ्रैंड जिस की अभी अगर प्रेमिका से शादी की बात काफी दूर है और तब भी वह उस के खुद के पैसे के खर्च को ले कर हमेशा रोकटोक करे या प्रेमिका को पैसे और खर्च के बारे में पूछताछ कर के उस पर अपना कंट्रोल बनाना चाहे तो यह पूरी तरह अमान्य है और ऐसे लड़के लालची भी हो सकते हैं, जिन्हें प्रेमिका के पैसों में हो सकता है ज्यादा रुचि हो.
प्रेमिका के रंगरूप और साजसज्जा पर नैगेटिव कमैंट: यह तो सही है कि प्रेमिका किस तरह और ज्यादा खूबसूरत लग सकती है या उस पर क्या ज्यादा मैच करता है यह बौयफ्रैंड बता ही सकता है और ऐसा बताने पर प्रेमिका के साथ उस का अपनापन बढ़ता ही है लेकिन यहां बात हो रही है नैगेटिव कमैंट की. यानी प्रेमिका के रंगरूप या साजसज्जा पर ऐसा मंतव्य करना जिस से प्रेमिका का दिल दुखे और वह खुद को छोटा महसूस करे. मसलन, अरे तुम में ड्रैस सैंस ही नहीं है. तुम आजकल ज्यादा मोटी लग रही हो? इतना मेकअप क्यों थोपती हो? किसी लड़की का उदाहरण दे कर कहना कि उस लड़की को देखो कितनी अच्छी लगती है, खुद को कितना अच्छा मैंटेन करती है आदि इस तरह कहने वाला बौयफ्रैंड प्रेमिका के साथ अपनापन महसूस नहीं करता बल्कि उसे अपने भोग की चीज सम झता है और कोई कमी महसूस होने पर उसे नीचा दिखाने में कसर नहीं छोड़ता. ऐसा बौयफ्रैंड आगे चल कर चीट भी कर सकता है. अत: सावधान होने की जरूरत है.
प्रेमिका को उस के नएपुराने दोस्तों से दूर करे: यदि बौयफ्रैंड अपनी प्रेमिका को उस के दोस्तों से कट कर सिर्फ उसके साथ ही रिश्ता रखने को बाध्य करता है या लड़की का उस के दूसरे परिचित लड़कों के साथ सामान्य बातचीत रखने पर भी वह खफा होता है तो बौयफ्रैंड के साथ लड़की का रिश्ता ज्यादा स्वस्थ नहीं माना जाएगा.
शारीरिक संबंध बनाने पर जोर: यदि लड़कालड़की दोनों बालिग हैं और लड़की की भी इच्छा है कि शारीरिक संबंध बने तो लड़की अपने रिस्क पर यह चयन करती है लेकिन शादी होने तक अगर प्रेमिका शारीरिक संबंध से बचना चाहती है और तब यदि प्रेमी यह कह कर दबाव बनाए कि अगर शारीरिक संबंध नहीं बना तो बौयफ्रैंड लड़की से शादी नहीं करेगा या रिश्ता नहीं रखेगा तो यह बहुत बड़ा रैड फ्लैग है. इस रिश्ते पर फिर से विचार करने की दरकार होगी.
घर वालों की सेवा या खुशामद में लगाए: थोड़ाबहुत मेलजोल या प्रेमिका को अपने घर वालों के स्वभाव के बारे में बताना तक सही है लेकिन प्रेमिका की व्यस्तता के बावजूद शादी से पहले प्रेमिका को अपने घर वालों के लिए हाजिर रहने को मजबूर करना या अपने घर वालों का खयाल न रखने के लिए प्रेमिका को उलाहने देना एक तरह से प्रेमिका को कंट्रोल में रखने जैसा ही है. इस बात को भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए.
गर्लफ्रैंड से हमेशा उम्मीद रखना: घरगृहस्थी बसा लेने के बाद पति और पत्नी दोनों को एकदूसरे से कुछ उम्मीदें होती हैं, चाहतें होती हैं यह स्वाभाविक है क्योंकि एकदूसरे को अपनी जरूरत सम झाना और एकदूसरे की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए एकदूसरे को प्रेरित करना परिवार की नींव है. मगर बौयफ्रैंड अगर प्रेमिका से हमेशा उस की उम्मीदों पर खरा उतरने की चाहत रखता है या ऐसा नहीं होने पर मुंह फुलाता है तो यह सरासर प्रेमी की नासम झी है.
People Safety : कुछ लोगों की जिंदगी जब पटरी से उतर जाए तो कुछ भी हो सकता है, यह दिल्ली में एक 42 साल की औरत और उस की 5 साल व 18 साल की बेटियों की आत्महत्या के मामले में दिखता है. जो थोड़ेबहुत फैक्ट सामने आए हैं उन के अनुसार एक विवाह टूटने के बाद पूजा नाम की इस औरत के कई आदमियों से संबंध हुए. वह दिल्ली के मोलरबंद एरिया में एक कमरे के फ्लैट में रहती थी.
उस पर अपने एक लिव इन पार्टनर की हत्या का आरोप भी लगा था जिस के कारण उसे और उस के 25 साल के बेटे को जेल में रहना पड़ा था पर उसे कुछ समय पहले जमानत मिल गई थी. उस के दूसरे लिव इन पार्टनर की मौत भी कुछ दिन पहले हो गई थी और उस की अपनी जौब भी छूट गई थी. हताश औरत ने दोनों बेटियों के साथ आत्महत्या कर ली.
जो बातें अभी सामने नहीं आई हैं कि इस तरह की औरतों की जिंदगी किस तरह टेढ़ीमेढ़ी ही सही आखिर चल कैसे पाती है. 25 साल का बेटा, 18 साल की बड़ी बेटी, 5 साल की छोटी बेटी, किराए का एक कमरे का ही सही मकान, साफसुथरे कपड़े, फोटो के हिसाब से खातीपीती औरत, सही सामान्य बेटियां आखिर कैसे चला पाती हैं जिंदगी को?
अब इस तरह के लोगों की जिन में लड़कियां भी शामिल हैं, गिनती बहुत तेजी से बढ़ रही है क्योंकि अब सपोर्ट करने वाले फैमिली मैंबर कम होते जा रहे हैं. अब मांबाप अगर मरते नहीं हैं पर यह संभव है कि अलग रहने लगे हों, बच्चों की परवाह किए बिना अपनी खुद की बिखरी जिंदगी को जैसेतैसे संभालने की कोशिश करते हुए जी रहे हैं.
सब से बड़ी दुख वाली बात है कि समाज या सरकार और इन सब के ऊपर बैठा धर्म इन परेशान घरों का कोई खयाल नहीं करता. समाज अपने नियम थोपता है, सरकारें हर तरह से टैक्स वसूल करती हैं, धर्म सपने दिखा कर और बहकाफुसला कर दानदक्षिणा बटोर ले जाता है पर परेशान औरतों का कोई खयाल रखने को तैयार नहीं होता.
सही व गलत का अंतर भूल चुकी ये औरतें अपने पहले पति या बाद के प्रेमियों और लिव इन पार्टनर्स की शिकार होती हैं या उन्हें अपना शिकार बनाती हैं, यह बात जानने की कोशिश कोई नहीं करती और अपनीअपनी बिजी लाइफ में कोई नई बाहर की आफत को पालना नहीं चाहती. पर क्यों?
समाज में, समूह में, शहर में, कानूनों व देश के नियमों में, नियमों में बंधे लोगों को सही रास्ता दिखाने वाले, हाथ थामने वाले, बच्चों को संभालने वाले आखिर क्यों नहीं हैं? इतना बड़ा ढांचा जो आदमी ने आज बनाया है, विज्ञान ने एकदूसरे से जोड़ दिया है, वहां आखिर कैसे और क्यों लोगों की जिंदगियों की गाडि़यां बीच सड़क पर रुक जाती हैं जहां से धकेल कर उन्हें सड़क के किनारे से ढलान पर फेंक दिया जाता है, किस काम का है?
पूजा ने कुछ गलतियां की होंगी. कुछ गलतियां उस के साथ वालों ने की होंगी पर इस का अंत बेगुनाहों की हत्या या आत्महत्या में हो, यह बड़े अफसोस की बात है. यह मरने वाले की गलती निकालने की बात नहीं है, उस समाज की गलती निकालने की बात है जो बिखरे लोगों को सुरक्षा नहीं दे सकता, सपोर्ट नहीं कर सकता.
Parvathy Thiruvothu : 2017 की सर्दियां पार्वती थिरुवोथु के लिए आने वाले तूफान का संकेत थीं. उस साल दिसंबर के महीने में मलयालम, तमिल और हिंदी फिल्मों में अपने काम के लिए जानी जाने वाली अभिनेत्री ने सिनेमा में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के बारे में एक पैनल डिस्कशन में भाग लिया था.
इस चर्चा में उन्होंने एक मलयालम फिल्म पर अपनी निराशा व्यक्त की थी, जिस में ‘एक उत्कृष्ट अभिनेता’ ने एक महिला को ऐसे संवाद बोले, जो बेहद अपमानजनक ही नहीं बल्कि निराशाजनक भी थे.
इस डिस्कशन में उन्होंने फिल्म का नाम नहीं बताया लेकिन जब एक सहपैनलिस्ट ने उन से ऐसा करने का आग्रह किया, तो उन्होंने खुलासा किया कि वह 2016 की क्राइम थ्रिलर और बौक्स औफिस पर हिट रही ‘कसाबा’ का जिक्र कर रही थीं, जिस में बड़े कद के अभिनेता ममूटी ने अभिनय किया था.
फिल्म के रिलीज होने के बाद कई फिल्म समीक्षकों और यहां तक कि केरल महिला आयोग ने भी ‘कसाबा’ की रिलीज के बाद उस के महिला विरोधी संवादों की आलोचना की थी.
इस फिल्म में एक दृश्य है जिस में ममूटी, जो एक पुलिस अधिकारी की भूमिका निभा रहे हैं, एक वरिष्ठ महिला सहकर्मी को इशारों में यौन उत्पीड़न की धमकी देते हैं.
पार्वती की यह टिप्पणी वायरल हो गई और वे एक नफरत भरे औनलाइन अभियान का निशाना बन गईं. सोशल मीडिया यूजर्स ने उन्हें बेरहमी से ट्रोल किया. कुछ ने तो बलात्कार करने और जान से मारने की धमकी भी दी.
फिल्म उद्योग के कई अंदरूनी लोगों ने भी उन की निंदा की. ‘कसाबा’ के निर्माता जौबी जौर्ज ने पार्वती को कथित रूप से अपमानजनक संदेश भेजने के आरोप में केरल पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए एक व्यक्ति को सार्वजनिक रूप से नौकरी की पेशकश की. हालांकि पार्वती डटी रहीं.
इसी समय पार्वती ने मलयालम फिल्म ‘टेक औफ’ (2017) के लिए एक प्रतिष्ठित पुरस्कार जीता. इस फिल्म में इराक में आतंकवादियों द्वारा किडनैप की गईं भारतीय नर्सों की वास्तविक पीड़ा को दिखाया गया है.
जब वे पुरस्कार लेने और अपना स्वीकृति भाषण देने के लिए मंच पर गईं तो दर्शकों ने तालियों की गड़गड़ाहट से उन का अभिवादन किया. तालियों की यह गड़गड़ाहट उन के समर्थन में नहीं बल्कि उन की आवाज को दबाने की एक चाल थी.
कोच्चि के ली मैरिडियन होटल में कौफी पीते हुए पार्वती ने बताया, ‘‘मैं मन ही मन खुद से कह रही थी कि वहां जाओ, अपनी बात कहो, लड़खड़ाओ मत, उन्हें संतुष्टि मत दो.’’
पार्वती के काम को उन की जटिल भूमिकाओं और भावनात्मक गहराई के लिए जाना जाता है. फोटो साभार : पार्वती थिरुवोथु
उस रात अपने होटल के कमरे में पहुंचते ही पार्वती का पूरा शरीर कांपने लगा और वे पतनावस्था में पहुंच गईं. उन्होंने कहा, ‘‘मेरा शरीर नफरत और कटुता को बरदाश्त नहीं कर सका. मैं पहले कभी इतनी नहीं टूटी.’’
कुछ महीने बाद जब वे विदेश में शूटिंग से भारत लौटीं और केरल फिल्म राज्य पुरस्कार समारोह में एक और पुरस्कार लेने के लिए जाने की तैयारी कर रही थीं, तब वे अपने होटल के कमरे में बेहोश हो गईं. उन्होंने याद करते हुए कहा, ‘‘हाउसकीपिंग स्टाफ ने मुझे जगाया. उन्होंने मेरे चारों ओर एक साड़ी लपेटी और तब मैं मंच पर गई.’’
धमकियां बंद नहीं हुईं और न ही पार्वती ने आवाज उठाना बंद किया. उन्होंने शानदार काम करना जारी रखा, जिस ने उन्हें सम्मान और प्रशंसा दोनों दिलाए. काम के साथ उन्होंने अपनी आवाज भी बुलंद रखी. लेकिन उन के इस फैसले की वजह से उन्हें एक महत्त्वपूर्ण व्यक्तिगत और पेशेवर कीमत चुकानी पड़ी.
पार्वती ने बताया, ‘‘ये ऐसी बातें नहीं हैं जिन के बारे में लोग सुनते हैं बल्कि एक इंसान है जो इस स्थिति से गुजर रहा है, जो खुद को फिर से संभाल रहा है और कह रहा है कि अपना कवच फिर से पहनो, अपने शरीर और दिमाग को फिर से व्यवस्थित करो, फिर से ऊपर जाओ क्योंकि तुम्हारे पास ऐसा न करने का कोई विकल्प नहीं है.’’
पार्वती ने कहा कि ऐसा करना निस्स्वार्थ नहीं है. उन्होंने कहा, ‘‘मैं एक पूर्ण जीवन जीना चाहती हूं, मुझे इस का अधिकार है और मैं यह सुनिश्चित करने जा रही हूं कि मैं इसे प्राप्त कर सकूं. मैं किसी की हीरो भी नहीं हूं… यह मैं अपने लिए कर रही हूं, मैं यह अपनी भतीजी के लिए कर रही हूं उस के बाद बाकी सभी के लिए.’’
लगभग 2 दशक लंबे कैरियर में पार्वती ने खुद को भारतीय सिनेमा की सब से बहुमुखी अभिनेत्रियों में से एक के रूप में स्थापित किया है. पिछले 1 साल में उन्होंने मलयालम फिल्मों ‘उल्लोझक्कु’ (अंडरकरंट), (2024) में शानदार अभिनय के लिए कई पुरस्कार जीते हैं, जो पारिवारिक संघर्षों को दिखाते हैं. उन्होंने मलयालम ऐंथोलौजी ‘मनोरथंगल’ (माइंडस्केप्स), (2024) के एक ऐपीसोड में भी बेहतरीन अभिनय किया. यह प्रसिद्ध लेखक, पटकथा लेखक और निर्देशक एमटी वासुदेवन नायर की लघु कहानियों पर आधारित सीरीज है.
पार्वती के परिवार का फिल्म इंडस्ट्री से कोई कनैक्शन नहीं रहा, फिर भी उन्होंने मेहनत और अनुशासित कार्यशैली से अपनी अलग पहचान बनाई. फोटो साभार : पार्वती थिरुवोथु
पार्वती का काम उन के द्वारा निभाई गई जटिल भूमिकाओं और उन की भावनात्मक गहराई से विशिष्ट है. ‘उयारे’ (अप अबव), (2019) में उन्होंने ऐसिड अटैक सर्वाइवर का किरदार निभाया जो अपने जीवन और कैरियर को फिर से शुरू करती है.
‘एन्नु निन्टे मोइदीन’ (योर्स ट्रुली मोइदीन), (2015) में उन्होंने एक अंतरधार्मिक जोड़े की मार्मिक और सच्ची कहानी को जीवंत किया. ‘पुझ’ (वर्म), (2022) में उन्होंने अंतर्जातीय विवाह के इर्दगिर्द बनी एक तनावपूर्ण कहानी में ममूटी की बहन की भूमिका निभाई.
वहीं वह ‘बैंगलुरु डेज’ (2014) में सहज दिखीं. यह एक ऐसी फिल्म है जिस में मलयालम सिनेमा के कुछ सब से बड़े सितारों ने एकसाथ काम किया. उन्होंने तमिल फिल्म ‘मैरीन,’ (इम्मोर्टल), (2013) में भी अपनी अलग पहचान बनाई, जिस में उन्हें हाई प्रोफाइल अभिनेता धनुष के साथ काम किया.
2017 में उन्होंने रोमांटिक कौमेडी ‘करीब करीब सिंगल’ के साथ हिंदी फिल्म में अपनी शुरुआत की, जिस में उन्होंने बेहद आकर्षक इरफान खान के साथ काम किया और स्क्रीन पर छा गईं.
हालांकि पार्वती किसी फिल्म उद्योग के किसी बड़े परिवार से संबंध नहीं रखती हैं, उस के बाद भी उन्होंने अनुशासित कार्य नीति का पालन करते हुए अपने लिए एक रास्ता बनाया. वे स्क्रिप्ट पढ़े बिना फिल्में साइन करना पसंद नहीं करती हैं.
कभी भी एक समय में एक से ज्यादा प्रोजैक्ट पर काम नहीं करती हैं और जिस भी भाषा में काम करती हैं, उस में खुद डबिंग करने पर जोर देती हैं.
औफस्क्रीन पार्वती ने भारतीय अभिनेताओं में एक दुर्लभ गुण का प्रदर्शन किया है- अन्याय के खिलाफ बोलने का साहस. ‘वुमन इन सिनेमा कलेक्टिव’ (डब्ल्यूसीसी) की सब से मुखर और दृश्यमान सदस्यों में से एक के रूप में, उन्होंने बारबार मलयालम सिनेमा में व्याप्त लैंगिक भेदभाव की ओर ध्यान आकर्षित किया है.
केरल के एक प्रमुख अभिनेता के यौन उत्पीड़न के बाद 2017 में गठित डब्ल्यूसीसी ने तब से उद्योग को अधिक समावेशी, सुरक्षित और समान बनाने की कोशिश की है.
पार्वती कहती हैं, ‘‘मेरा शरीर मेरा चरित्र और मेरा हथियार दोनों हैं. इसलिए निरंतर जांच, सवाल और सक्रियता- एकसाथ यह सब बहुत भारी होता है.’’
वे खुद से लगातार बातचीत करती रहती हैं ताकि यह सुनिश्चित कर सकें कि वे न केवल अपने उद्देश्य के प्रति बल्कि अपनी शारीरिक और मानसिक सेहत के प्रति भी सजग हैं.
वे कहती हैं, ‘‘मैं एक सैनिक हूं और मैं जिस तरह से काम करना चाहती हूं, वैसे ही काम करती रहूंगी. मैं लड़ना चाहती हूं.’’
शुरुआत में पार्वती के मातापिता दोनों ही वकील थे जिन्होंने बाद में एक बैंकर के रूप में अपने कैरियर को आगे बढ़ाया क्योंकि आर्थिक सुरक्षा की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए वे अपनी कलात्मक रुचियों को आगे नहीं बढ़ा सकते थे, इसलिए उन्होंने सुनिश्चित किया कि उन के बड़े भाई और उन्हें कला को तलाशने का हर अवसर मिले.
वे कहती हैं कि एक नारीवादी पिता के साथ एक समतावादी घर में बड़ा होना एक विशेषाधिकार था, जो घर के कामों से नहीं बचते थे. मां के साथ हमेशा रसोई में हाथ बंटाते थे. अब भी मैं घर में घुस कर सोफे पर लेट सकती हूं और पापा को एक कप चाय के लिए कह सकती हूं.
पार्वती के भाई, जो टोरंटो में कौरपोरेट स्पेस में काम करते हैं, एक स्वशिक्षित फोटोग्राफर और फिल्म निर्माता हैं. वे उन्हें अपने जीवन में सब से महत्त्वपूर्ण प्रभावों में से एक मानती हैं. अपनी किशोरावस्था के दौरान जब युवा पुरुष अवांछित प्रस्ताव रखते थे तो पार्वती अपने भाई की ओर मुड़ती थीं.
उन का जवाब हमेशा एकजैसा होता था, ‘‘तुम्हारी रक्षा करना मेरा काम नहीं है. अगर तुम्हें इस की जरूरत होगी तो मैं तुम्हारी मदद करूंगा, लेकिन तुम्हें खुद की रक्षा करना सीखना होगा. तुम्हें आत्मनिर्भर होना होगा.’’
उस समय यह सुनना अच्छा नहीं लगता था लेकिन जैसेजैसे बड़ी हुई, मैं ने उन के इस व्यवहार के महत्त्व को जाना.
हम दोनों के बीच एक महत्त्वपूर्ण और मजबूत संबंध है, जिस ने वयस्कता के साथ एक नया आकार लिया. जब वे छोटे थे, तब उन्होंने मेरा अंगरेजी संगीत से परिचय कराया और अब वे मुझ से धार्मिक और आध्यात्मिक ग्रंथ साझा करते हैं.
आपस में उन की बातचीत बहुत विस्तृत होती है, जिस में अकसर समानांतर ब्रह्मांड, आत्मा, अस्तित्व, सहानुभूति, मानवता जैसे विषयों पर चर्चा होती है.
हालांकि पितृसत्तात्मक मूल्य दूसरे अन्य पारिवारिक रिश्तों पर हावी थे. पार्वती याद करते हुए बताती हैं, ‘‘मेरी दादी ऐसी दुनिया से आई थी जहां लड़कों को अधिक महत्त्व दिया जाता था.’’
पार्वती ने आगे बताया, ‘‘कुछ भी अति नहीं, लेकिन लड़कियों से थोड़ा ओथुक्कम (व्यक्तिगत संयम) रखने की उम्मीद की जाती थी.’’
2017 में पार्वती ने इरफान खान के साथ फिल्म ‘करीब करीब सिंगल’ से अपने हिंदी फिल्म कैरियर की शुरुआत की. फोटो साभार : पार्वती थिरुवोथु
पार्वती अपनी चचेरी बहनों में सब से ज्यादा शैतान थीं. केरल में फसल आने के समय मनाए जाने वाले उत्सव ओणम के दौरान बच्चे मंदिर बनाते थे. उन्हें बताया कि वे पुजारी की भूमिका नहीं निभा सकतीं क्योंकि वे लड़की हैं. इस घटना को याद करते हुए वे बताती हैं, ‘‘मुझे अपने अंदर का वह गुस्सा याद है.’’
वे समझ नहीं पा रही थी कि लड़की होने के कारण उन की संभावनाएं सीमित क्यों हैं, ‘‘और इसी वजह से मेरे अंदर एक आग लग गई,’’ पार्वती ने कहा.
मगर इन लैंगिक भिन्नताओं के बारे में लगातार पूछताछ से संतोषजनक जवाब नहीं मिले. पार्वती ने कहा, ‘‘समय के साथ मुझे एहसास हुआ कि ज्यादातर वयस्क महिलाएं और पुरुष के पास इन सवालों के जवाब नहीं होते हैं.’’
उन्होंने जल्द ही परिवार में सब से कम विनम्र और सब से ज्यादा समस्याग्रस्त के रूप में ख्याति अर्जित कर ली, वह भी केवल इसलिए क्यों वे सवाल बहुत पूछती थीं.
पार्वती ने बचपन में कुछ साल दिल्ली में बिताए. इस शहर ने उन पर गहरी छाप छोड़ी. वे कहती हैं, ‘‘यह अजीब है कि मुझे दिल्ली का वह सब कितनी अच्छी तरह से याद है- मद्रास स्टोर, मां से निरुला की आइसक्रीम मांगना, मेरे बौयकट, साइकिल रिकशा जिस से मैं एक बार गिर गई थी. होली, दीवाली, वह छोटा सा फ्लैट जिस में हम रहते थे. दिल्ली ने मुझे मेरे बचपन की कुछ प्रमुख यादें दीं.’’
हालांकि इस के तुरंत बाद उन के पिता का तबादला तिरुवनंतपुरम हो गया. पार्वती ने वहां एक केंद्रीय विद्यालय में पढ़ाई की. वे खुद को बहुभाषी मानती हैं और इस का श्रेय अपनी शिक्षा को देती हैं. उन्होंने कहा, ‘‘भाषा मेरे लिए एक तरह से भावनात्मक मसला है, त्वचा पर तेल की तरह है. यह गतिशील है और अभिनय में भी काम आती है.’’
पार्वती की मां एक प्रशिक्षित भरतनाट्यम डांसर हैं. उन्होंने अपनी बेटी को इस कला से परिचित कराया. उन के पिता को खेल और संगीत का शौक था.
पार्वती ने हमें बताया, ‘‘जब बिजली कटौती होती थी तो वे अकसर अपना वायलिन बजाते थे, भाई गिटार बजाता था और हम सब गाते थे.’’
हालांकि पार्वती के नृत्य शिक्षकों ने उन के मातापिता से कहा था कि उन में पेशेवर रूप से इस कला को अपनाने की प्रतिभा है, इस के बावजूद उन में से किसी ने भी उन की इच्छा के विपरीत जा कर इस को एक पेशे के तौर पर अपनाने के लिए जोर नहीं दिया.
उन्होंने कहा कि मातापिता बनने का चलन शुरू होने से बहुत पहले वे इस का अभ्यास करते थे. वे चाहते थे कि हम बिना किसी दबाव के कला का आनंद लें.
एक किशोर होती लड़की के रूप में पार्वती को हिंदी फिल्म निर्माता करण जौहर की फिल्में देखना बहुत पसंद था. वे निर्माता एकता कपूर के लोकप्रिय और नाटकीय धारावाहिकों की भी प्रशंसक थीं. जब ‘कसौटी जिंदगी की’ के मुख्य पात्रों में से एक की मृत्यु हुई तो पार्वती रात भर रोती रहीं.
पार्वती याद करते हुए बताती हैं, ‘‘युवावस्था में मुझे कई तरह के दुख और उलझन भरे अनुभव हुए. मुझे ऐसे लोग नहीं मिल रहे थे, जो मुझे वैसे ही पसंद करते हों, जैसी मैं हूं. इसलिए मैं स्कूल के शुरुआती दिनों में लोगों को खुश करने वाला व्यवहार करने लगी. लोगों को खुश करने के लिए मैं ने ‘हार्डी बौयज’ और ‘नैंसी डू’ की जासूसी किताबें भी पढ़ीं.’’
2017 में एक जानीमानी मलयाली अभिनेत्री के साथ यौन उत्पीड़न की घटना के बाद स्थापित संस्था ‘वुमन इन सिनेमा कलेक्टिव’ इंडस्ट्री को महिलाओं के लिए सुरक्षित और समान बनाने की प्रयास कर रही है. फोटो साभार : वुमन इन सिनेमा कलेक्टिव WCC कोच्चि प्रेस कौन्फ्रैंस
अपनी हाई स्कूल शिक्षा के अंत में पार्वती ने एक छोटे स्तर की स्थानीय टैलीविजन प्रतियोगिता जीती. इस प्रतियोगिता के माध्यम से उन्हें एक क्षेत्रीय चैनल पर 2 लाइव संगीत शो के लिए वीडियो जौकी के रूप में पहली नौकरी मिली. जिस समय यह सब हो रहा था उस समय वे 12वीं कक्षा में थीं.
पार्वती बताती हैं कि यह उन के लिए पूरी तरह से अलग दुनिया थी. उन के मातापिता के लिए भी यह स्वीकार कर पाना आसान नहीं था कि वे हमेशा उन की रक्षा के लिए आसपास नहीं होंगे. उन्होंने मेरे निर्णयों का समर्थन किया. जब वे 19 साल की थीं, तब उन्होंने अभिनय में कैरियर बनाने के लिए कोच्चि जाने का फैसला किया.
पार्वती की पहली फिल्म ‘नोटबुक’ (2006) है, जो एक मलयालम ड्रामा है जिस में उन्होंने एक किशोर छात्रा की भूमिका निभाई है. फिल्म की शूटिंग से पहले फिल्म के निर्देशक और लेखक ने उन्हें अपने किरदार को लेकर किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में सोचने के लिए प्रोत्साहित किया जिसे वे जानती हैं. इस के लिए उन्होंने उस से काल्पनिक सवाल पूछे कि उन के किरदार को कौन सा टूथपेस्ट इस्तेमाल करना पसंद था, उसे कौन सी करी खाना पसंद था.
पार्वती को एहसास हुआ कि इन विवरणों ने उन्हें किरदार को वास्तविक बनाने, उस की पसंद को समझने और उस के साथ सहानुभूति रखने में मदद की. उन्होंने कहा कि यह इस माध्यम को समझने की मेरी शुरुआत थी.
यह एक ऐसा तरीका है जिसे पार्वती आज भी प्रयोग करती हैं. उन्होंने कहा, ‘‘मैं पृष्ठभूमि के संदर्भ में यथासंभव अधिक से अधिक चीजें करती हूं.’’
इस में उन के किरदार की आर्थिक स्थिति, उन्हें जातिगत गौरव या जातिगत उत्पीड़न महसूस होता है या नहीं, वे क्या खाना खाते हैं या यहां तक कि वे किस ब्रैंड के अंडरगारमैंट पहनना पसंद करते हैं, इस तरह के और भी बहुत सारे विवरण शामिल हो सकते हैं.
चूंकि पार्वती ने अभिनय में कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं लिया था, इसलिए वे लगातार अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए नए तरीकों की तलाश में रहती थीं. वे पागलपन की हद तक ‘इनसाइड द ऐक्टर्स स्टूडियो’ देखती थीं.
यह एक अमेरिकन टैलीविजन सीरीज है जिस में लेखक और अभिनेता जेम्स लिप्टन कई फिल्म निर्माताओं का साक्षात्कार लिया था. उन्होंने अपने सहकलाकारों द्वारा सुझाई गई किताबें पढ़ीं. अपनी प्रदर्शन तकनीकों को बेहतर बनाने के लिए वे पांडिचेरी स्थित थिएटर कंपनी ‘आदिशक्ति’ में भी शामिल हो गईं.
हालांकि उन की सार्वजनिक छवि कभीकभी उन की औनस्क्रीन भूमिकाओं से अलग होती है. पार्वती ने कहा, ‘‘जितना ज्यादा मैं खुद को ऐक्टिविस्ट के रूप में पेश करती हूं, उतना ही कम मैं एक किरदार के रूप में विश्वसनीय होती हूं और मुझे लोगों को यह विश्वास दिलाने के लिए उतनी ही ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है कि मैं कोई अंजू या पल्लवी या कुछ और हूं.’’
उन का तर्क है कि एक बेहतर ऐक्टिविस्ट होते हुए एक बेहतर अभिनेता होने की तरफ भी जाया जा सकता है. पहले वे अपने द्वारा देखे गए और अनुभव किए गए अन्याय पर क्रोध से भरी हुई महसूस करती थीं. लेकिन अब क्रोध को अपनी कला के माध्यम से प्रदर्शित करती हैं.
वे कहती हैं, ‘‘दर्द से लड़ने और उस का प्रतिरोध करने के बजाय मैं अब सोचती हूं कि अरे यह तुम्हें कुछ सिखा रहा है.’’
पार्वती और अधिक भूमिकाओं के लिए औडिशन देना चाहती हैं. ऐसी भूमिकाएं करना चाहती हैं जिन के बारे में उन्होंने अभी तक सोचा भी नहीं है.
भावी निर्देशकों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘मैं ने जो किया है, उस पर मत जाइए क्योंकि मुझे लगता है कि मैं और भी बहुत कुछ कर सकती हूं.’’
मलयालम फिल्मों को भारतीय सिनेमा में सब से ज्यादा प्रगतिशील फिल्मों में से एक माना जाता है. लेकिन फरवरी, 2017 में इस को उस संस्कृति के साथ तालमेल बैठाने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिसे उस ने खुद बढ़ावा दिया था, जो स्त्रीद्वेष और यौन शोषण से भरी हुई थी. उस महीने एक प्रमुख महिला अभिनेत्री का अपहरण कर, उस की ही कार में उस का यौन उत्पीड़न किया गया.
मलयालम सिनेमा के एक शक्तिशाली और प्रभावशाली सुपरस्टार दिलीप को इस मामले में आरोपी बनाया गया जिस ने अपराधियों की सहायता से इस घटना को अंजाम दिया.
इस मामले में उन्हें 3 महीने की जेल हुई और बाद में जमानत पर रिहा कर दिया गया. वर्तमान में इस मामले की सुनवाई केरल के एक उच्च न्यायालय में चल रही है.
पार्वती और इरफान खान फिल्म ‘करीब करीब सिंगल’ के एक प्रोमोशनल इंटरव्यू के दौरान. फोटो साभार : आलोक सैनी/हिंदुस्तान टाइम्स
हमले के बाद के 8 वर्षों में यह मामला केरल की फिल्म बिरादरी के लिए एक लिटमस टेस्ट बन गया. जहां कई महिलाएं अपनी सहकर्मियों के साथ एकजुटता में खड़ी थीं, वहीं शक्तिशाली पुरुष दिलीप के इर्दगिर्द मंडरा रहे थे. मोहनलाल जैसे दिग्गज अभिनेता ने यौन उत्पीड़न के मुद्दों को तुच्छ बताया.
मोहनलाल उस समय ऐसोसिएशन औफ मलयालम मूवी आर्टिस्ट्स (एएमएमए) के अध्यक्ष थे. यह केरल में सब से शक्तिशाली फिल्मी संस्था है. उन्होंने प्तमीटू आंदोलन का भी जिक्र किया किया, जिस के जरीए दुनियाभर की महिलाएं अपने अनुभवों के साथ आगे आईं. उन्होंने इसे एक सनक बताया.
वुमन इन सिनेमा क्लेटिव के सदस्यों ने बदलाव की मांग करने के वाले प्रयासों का नेतृत्व किया जिन्हें गंभीर प्रतिक्रियाओं का सामना करना पड़ा. उन्होंने सैट पर यौन शोषण की शिकायतों की जांच के लिए आधिकारिक समितियों की वकालत, कानूनी सुधारों की वकालत की. संस्थागत पूर्वाग्रहों को उजागर किया और सिनेमा में समान कार्यस्थलों की आवश्यकता को बढ़ाया.
इस बीच केरल की राज्य सरकार ने हेमा समिति का गठन किया, जिस का नाम सेवानिवृत्त न्यायाधीश के नाम पर रखा गया, जिन्होंने इस का नेतृत्व किया था. इस ने लैंगिक अन्याय और दुर्व्यवहार के मामलों की जांच कर इस का दस्तावेजीकरण किया और 2019 के अंत में अपनी रिपोर्ट दायर की.
5 साल की देरी के बाद अगस्त, 2024 में संशोधित रूप में यह रिपोर्ट दोबारा से जारी की गई. इस में उन तरीकों को उजागर किया, जिन से मलयालम फिल्म उद्योग ने दुर्व्यवहार, कम भुगतान और असुरक्षित परिस्थितियों के माध्यम से महिला कलाकारों को निराश किया है. रिपोर्ट के जारी होने से केरल में प्तमीटू आंदोलन फिर से शुरू हो गया, जिस से पीडि़तों ने अपनी कहानियां साझा कीं.
एएमएमए एक ऐसा माहौल बनाने के लिए जांच के दायरे में आया, जिस में अपराधी बिना किसी डर के अपना काम करते थे. रिपोर्ट जारी होने के बाद इस के सभी कार्यकारी सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया.
यह बहुत मुश्किल से मिली जीत थी. इस को याद करते हुए पार्वती ने कहा, ‘‘हम जो कर रहे थे, उस के लिए कोई भी हमें तैयार नहीं कर सकता था.’’
2017 में जब उन्होंने और डब्ल्यूसीसी के अन्य सदस्यों ने देर रात की कौल के दौरान अपनी कार्ययोजना बनाई तो पार्वती ने तनाव से निबटने का एक अनूठा तरीका खोजा.
वे अपने चेहरे से कई प्रकार की शक्लें बनातीं, अपनी आंखों को लाइन करतीं, थोड़ा आईलाइनर लगातीं, खुद की तसवीरें लेतीं, सोशल मीडिया पर भी कुछ पोस्ट नहीं करतीं, मेकअप हटातीं और सो जातीं.
उन्होंने बताया कि मेकअप भी एक कला है. महिलाओं को एक तरह से विकल्प दिया जाता है या तो घमंडी बनें या बौद्धिक बनें. मैं दोनों होने का अधिकार सुरक्षित रखती हूं.
फिल्म सैट पर पार्वती हमेशा हाथ में एक किताब रखती हैं. उन्होंने कहा कि मैं 9वीं कक्षा तक बहुत ज्यादा पढ़ने वालों में नहीं थी. लेकिन एक बार जब उन्होंने काम करना शुरू किया तो किताबें ‘एक सुरक्षा योजना’ बन गईं. उन्होंने पहले भी कई अन्य महिला अभिनेताओं से इस के बारे में सुना था, जिन्होंने फिल्म सैट पर व्यापक लैंगिक भेदभाव और लगातार गपशप से खुद को बचाने के लिए किताबों का इस्तेमाल किया था.
पार्वती ने कहा, ‘‘लेकिन मुझे यह भी एहसास हुआ कि एक अभिनेता के तौर पर मैं हमेशा इस बात से वाकिफ रहती हूं कि लोग मेरी हर हरकत पर नजर रख रहे हैं. लगातार मेरी निगरानी की जा रही है. किताबों ने मुझे इस भावना से बाहर निकलने में मदद की.’’
पार्वती अपने लिए सही जगह की चाहत को ले कर अपराधबोध से जूझती रहीं. फिर उन्होंने सवाल करना शुरू किया कि आखिर वे दोषी क्यों महसूस कर रही थीं.
पार्वती ने कहा, ‘‘मैं इसे कुलस्त्रीकाल कहती हूं यानी एक सामान्य परिवार में पारंपरिक लिंग भूमिकाओं से बंधी एक महिला के पैर की लगभग अनैच्छिक प्रतिक्रिया,’’ पार्वती आगे कहती हैं, ‘‘आप खाने की मेज पर बैठे हैं और पास में एक आदमी खड़ा है जो अभी तक खाने के लिए शामिल नहीं हुआ है और अचानक एक पैर बाहर निकल आता है. जैसेकि वह उठ कर उस आदमी के लिए प्लेट लाने को तैयार हो,’’ जब
भी वे खुद को किसी पुरुष की जरूरतों को अपनी जरूरतों से ज्यादा अहमियत देते हुऐ पाती हैं, ‘‘मुझे उस पैर को पीछे खिंचना पड़ता है और खुद से कहना पड़ता है कि वह अपनी प्लेट खुद ले सकता है.’’
पार्वती को इस बात पर हैरानी होती है कि वे ऐसा महसूस करती हैं जबकि उन के अपने मातापिता ने कठोर लैंगिक भेदभाव वाले व्यवहार से दूरी बना कर रखी थी. वे कहती हैं, ‘‘यह किस तरह की डीएनए की कंडीशनिंग है. यह मेरी मां से नहीं आया है, यह तो तय है कि यह पूर्वजों से ही आया होगा.’’
मलयालम फिल्म उद्योग में पार्वती को स्वच्छता सुविधाओं की मांग करने के लिए ‘बाथरूम पार्वती’ कहा जाता था. यह उपहासपूर्ण उपनाम एक गंभीर मुद्दे को महत्त्वहीन बनाता था. जबकि वे बुनियादी सुविधाओं की कमी को उजागर कर रही थीं. पार्वती याद करती हैं कि सालों तक उन्होंने सैट पर पानी पीने से परहेज किया क्योंकि उन्हें पता था कि वे लगातार 10-12 घंटों तक वाशरूम नहीं जा पाएंगी. ब्रेक न लेने का एक अघोषित नियम सा था और इसे गैरजरूरी काम माना जाता था.
उन्होंने कहा, ‘‘मैं ने अपनी बुनियादी मानवीय जरूरतों को छोड़ दिया था और ऐसा कर के मैं ने अपने अधिकारों को भी छोड़ दिया.’’
पार्वती ने 2013 में ‘मर्यान’ के सैट पर बिताए एक खास दिन को याद किया. हिट तमिल फिल्म में वे एक शांत और दृढ़ महिला की भूमिका में हैं. दिखने में तो विनम्र लेकिन मन से दृढ़ जो समुद्र के किनारे बसे एक गांव में रहती है. जब वे समुद्र में कुछ दृश्य शूट कर रहे थे तो मुख्य अभिनेता धनुष पर बिसलेरी की बोतलों से पानी डाला जा रहा था. इस बीच पार्वती ने कहा, ‘‘मुझे सीधे समुद्र से भर कर बालटियों से पानी डाला जा रहा था जबकि उस दौरान उन के पीरियड्स चल रहे थे, गीले सैनिटरी नैपकिन से खून बह रहा था.’’
पार्वती जानती थीं कि उन के पास कपड़े बदलने के लिए ब्रेक मांगने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. इस साधारण अनुरोध पर तुरंत और बहुत ठंडी प्रतिक्रिया मिली. उन्होंने याद करते हुए कहा, ‘‘मेरे साथ एक उपद्रवी की तरह व्यवहार किया गया. पुरुष या महिला किसी ने भी थोड़ी सी भी सहानुभूति नहीं दिखाई.’’
सैट पर एक महिला जो उन के साथ थी उस ने जल्द से जल्द सभी काम पूरे करवाए. ऐसी उदासीनता को ऐसे उद्योग में बढ़ावा दिया जाता है जो एकदूसरे का समर्थन करने वाली महिलाओं के प्रति शत्रुतापूर्ण है. पार्वती ने कहा, ‘‘अगर आप को किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा जाता है जो बुनियादी सम्मान की मांग करने वाली महिला का समर्थन करता है तो आप को निशाने पर लिया जाता है, अब आप ‘नारीवादी’ हैं. आप पुरुषों द्वारा पसंद किए जाने के लाभ को खो देते हैं.’’
ऐसा नहीं है कि भारत में अन्य फिल्म उद्योग इस से बेहतर हैं. उन्होंने अब तक अपनी असमानताओं को संबोधित करने से परहेज किया है. पार्वती ने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि अधिकांश जगहों पर इस के लिए जगह है. उन में से अधिकांश इस से डर रहे हैं.’’
उन्होंने इस चुप्पी के लिए इन पदों पर बैठे लोगों को जिम्मेदार ठहराया जो केवल अपने पद की रक्षा करना चाहते हैं.
उन्होंने कहा, ‘‘मैं उन लोगों के बारे में बात कर रही हूं जिन के पास पैसे, वित्त, सुरक्षा का विशेषाधिकार है, बस संरक्षित होने के मामले में वे सत्ता संरचना की ओर अधिक झांक रहे हैं. वे बोल कर इसे बढ़ावा दे रहे हैं.’’
स्थायी परिवर्तन के लिए सहयोगियों की एकजुटता की आवश्यकता होती है. पार्वती ने कहा, ‘‘एक पुरुष सहकर्मी का सहयोगी होना हमें कई साल आगे ले जाता है.’’
पार्वती ने हौलीवुड के उदाहरणों की तरफ इशारा भी किया, जहां कुछ पुरुष अभिनेताओं ने यह सुनिश्चित करने के लिए कुछ परियोजनाओं पर वेतन में कटौती की कि उन के महिला सहकलाकारों को समान वेतन मिले. उन्होंने अपने पुरुष सहकर्मियों को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘हमें इंसन समझें. हमें जो हमारा है वे मिलने से असल में आप का कुछ भी नहीं छिनता. इस से हम सभी के लिए बेहतर होता है. यहां सभी के लिए समानता के साथ जीने और रहने के लिए जगह है.’’ –
Sudhir Yaduvanshi : फिल्म ‘किल’ के टाइटल ट्रेक ‘कावा कावा…’ गा कर चर्चित हुए सिंगर सुधीर यदुवंशी बौलीवुड में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुए हैं और आज कई फिल्मों में वे गा भी रहे हैं. उन्होंने फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र’, ‘पंचायत’, ‘अंगारें’, ‘उड़ जा काले कावा’ आदि कई फिल्मों के गाने गाए हैं.
बिना गौडफादर के यहां तक का उन का सफर कभी आसान नहीं रहा, क्योंकि उन्हें हर बार यह प्रूव करना पड़ा है कि वे अच्छा गा सकते हैं. इस के लिए वे गाने बना कर हर बड़े संगीतकार के स्टूडियो के बाहर घंटों उन्हें अपनी संगीत सुनाने का इंतजार करते, लेकिन उन्हें उस का मौका कम ही मिल पाता था.
लाइव शो की लोकप्रियता ने उन्हें संगीत में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया और वे आगे बढ़ते गए. वे हमेशा से सिंगर कैलाश खेर के गानों को पसंद करते हैं और उन की तरह लोकप्रिय सिंगर बनना चाहते हैं.
पहले उन्हें क्रिकेटर बनने का बहुत शौक था, क्योंकि क्रिकेटर मेहनत बहुत करते हैं, लेकिन उन की लाइफ लग्जरी वाली होती है और लोग उन से बहुत प्यार करते हैं, जो सुधीर को बहुत पसंद था. वे हमेशा खेलकूद में भी भाग लेते थे.
इन दिनों सुधीर कई हिंदी फिल्मों के लिए गाने गा रहे हैं. उन्होंने खास गृहशोभा से बात की और अपनी जर्नी को शेयर किया. पेश हैं, कुछ खास अंश :
मेहनत से मिलती है सफलता
सुधीर इन दिनों लाइव शो की तैयारी करने के साथसाथ कुछ फिल्मों के गाने भी रिकौर्ड कर रहे हैं. वे कहते हैं कि मैं 3 बार ग्रामी अवार्ड विनर रिकी केज के साथ उन के लाइव शो के लिए उन के बैंड में मुख्य गायक के रूप गाने की प्रैक्टिस कर रहा हूं. साथ ही कुछ फिल्मों के गाने की रिकौर्डिंग भी कर रहा हूं. मुझे खुशी है कि पिछले साल मेरे कई सौंग रिलीज हुए थे. मैं अधिकतर फिल्मों में गाने की कोशिश करता हूं और मुझे अवसर भी मिलता है. फिल्मों में गाने के लिए करीब 100 गाने रिकौर्ड कराने पड़ते हैं, जिस में केवल 10 गाने ही फिल्मों में आते हैं, क्योंकि पहले की तरह स्टोरी के अनुसार गाने नहीं बनाए जाते और न ही गाने फिक्स होते हैं.
वे कहते हैं कि एक गाने को फिल्मों में लाने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है. आज गाना पहले गाया जाता है और बाद में कहानी में उसे फिट कर दिया जाता है. मैं ने अभी आने वाली 15 से 20 फिल्मों के लिए गाने गाए हैं. ये गाने अगर सिचुऐशन के हिसाब से सूट करेंगे, तो उन्हें लिया जाएगा। इस में भी फैन फौलोइंग के अनुसार सिंगर के गाने को फिल्म मेकर चुनते हैं. इस तरह से बहुत सारी चीजों से गुजर कर ही गाना फिल्मों में आता है.
पारिश्रमिक
वे आगे कहते है कि कुछ संगीतकार गाना गाने के बाद सिंगर को पारिश्रमिक देते हैं, तो कुछ लोग नहीं देते, क्योंकि उन की सोच होती है कि वे सिंगर के लिए फेवर कर रहे हैं, क्योंकि गाना फिल्म में आने से सिंगर की पौपुलैरिटी बढ़ती है, जिस से वे स्टेज शो कर सकते हैं और वहां उन्हें पैसा मिलता है. इसलिए कई बार वे थोड़ाबहुत पैसा ही देते हैं. अगर गाना हिट हुआ तो अच्छाखासा पैसा मिलता है और मुझे मिला भी है.
श्रोताओं की पसंद ने बनाया सिंगर
सुधीर ने कभी संगीत के क्षेत्र में आने के बारे में सोच नहीं था, लेकिन कई स्टेज शो पर उन्होंने दूसरे सिंगर के कई गाने गाए, जिसे श्रोताओं ने पसंद किया। इस से उन्हें लगने लगा कि वे इस फील्ड में भी कुछ कर सकते हैं, इसलिए उन्होंने खुद को ग्रूम करने के लिए गाने सीखे और कई कंपीटिशन में भाग ले कर जीत भी गए। इस से उन्हें गाना गाने की प्रेरणा मिली.
उन्होंने कई रियलिटी शोज के लिए औडिशन दिया. रियलिटी शो ‘हुनरबाज’ में करण जौहर के सामने परफौर्म किया. उस शो के 2 साल बाद उन्हें करण जौहर ने गाने का मौका दिया.
सुधीर कहते हैं कि ‘कावा कावा…’ गाने से मुझे काफी प्रसिद्धि मिली. इस के बाद जब मैं ने गाना ‘शंभू…’ गाया था, उस समय कुछ फाइनल नहीं था कि यह गाना फिल्म में जाएगा या इस में कौन ऐक्टिंग करेगा. यह गाना अक्षय कुमार पर शूट हो गया था, लेकिन मुझे बिलकुल भी नहीं बताया गया, क्योंकि मेरे लिए यह एक सरप्राइज था.
वे कहते हैं कि मेरे पास अचानक कौल आया और मुझे बताया कि गाना ‘शंभू…’ रिलीज होने वाला है और इस में अक्षय कुमार ऐक्टिंग कर रहे हैं. यह बात सुन कर मैं काफी ज्यादा खुश हुआ था. इस गाने को काफी पौपुलैरिटी मिली. ‘द वौयस शो’ मे भी मैं ने परफौर्म किया और उस में मुझे बैस्ट परफौर्मर का खिताब मिला था, लेकिन मैं उस में अंत तक नहीं पहुंच पाया था.
मिली मायूसी
सुधीर कहते हैं कि मैं ने लाइव शोज से अपना कैरियर शुरू किया था और उस से ही मुझे पता चला कि अच्छी संगीत भी लोगों के दिलों में जगह बना सकती है और लोग इसे सालों तक याद रखते हैं. यहीं से मेरा सपना शुरू हुआ और मैं ने इसे ही अपना कैरियर बना लिया. मैं ने अपना एक बैंड भी बना लिया था लेकिन एक रियलिटी शो में गाने और ऐक्ट करने का मौका मिला, पर कुछ कारणों से मैं सिलैक्ट नहीं हुआ. तब मैं मायूस हुआ था, लेकिन उस दिन से मैं ने कुछ अच्छा करने की ठान ली और फिर अपने स्तर पर फिल्मों में गाने की कोशिश के साथ शोज करने लगा और काम मिलता गया.
परिवार का सहयोग
मेरे परिवार वालों ने कभी मुझे इस क्षेत्र में आने के लिए सहयोग नहीं दिया। उन्होंने शुरू से मना कर दिया, क्योंकि कोई भी मेरे परिवार का व्यक्ति संगीत से जुड़ा हुआ नहीं है और न ही उन्होंने किसी व्यक्ति को संगीत से पैसे कमाते देखा है. ऐसे में, मेरा संगीत के क्षेत्र में आना संभव नहीं था। पिता ने एकदम मना कर दिया. हालांकि मेरे पिता और दादा शौकिया कभीकभी माइथोलौजिकल शो के लिए गाते थे, लेकिन किसी ने प्रोफैशनली इसे नहीं अपनाया. कालेज खत्म होने के बाद 21 साल की उम्र में मैं ने क्लासिकल संगीत की 3 साल की ट्रेनिंग ली है और साथसाथ शोज करता रहा. मैं क्लासिकल बेस के साथ वर्ल्ड म्यूजिक में विश्वास रखता हूं, ताकि भाषा कोई भी हो, संगीत का आनंद सभी उठा सकें.
होती है मायूसी
सुधीर कहते हैं कि मैं ने संगीत निर्देशक जोड़ी सलीम सुलेमान के लिए गाने गाए हैं, लेकिन फिल्मों में उसे लिया नहीं गया और यही दस्तूर इंडस्ट्री का है. अगर एक गाना किसी ने नहीं लिया, तो बिना सोचे आगे बढ़ जाना पड़ता है, क्योंकि गाने को उन्होंने कंपोज किया है, मैं ने केवल आवाज दिया है, ऐसे में सिंगर का उस गाने पर कोई अधिकार नहीं होता. इस से मायूसी होती है, लेकिन मैं पीछे की जिंदगी को देखता हूं, जब मैं पैसे बचाने के लिए कभीकभी कालेज से घर पैदल चला जाता था. बहुत सारे अभाव जिंदगी में थे, जो अब नहीं हैं. अब मैं अपने हिसाब से वह सब कर सकता हूं, जिस की मुझे इच्छा है.
धीरज और मेहनत जरूरी
सुधीर जो सोच कर मुंबई आए और जो उन्हें मिला, उस बारे में वे कहते हैं कि धीरेधीरे वह मिल रहा है, जो मैं ने चाहा था, लेकिन यहां धीरज और मेहनत के साथ आगे बढ़ना पड़ता है. यहां कोई आप को कुछ देता नहीं है, उसे पाने के लिए मेहनत करनी पड़ती है. मैं ने एक रियलिटी शो में एआर रहमान के सामने गाने गाए, जहां मुझे बैस्ट परफौर्मर का अवार्ड मिला है. अभी मैं उन के संगीत निर्देशन में एक गाना गाने की इच्छा रखता हूं. इस के अलावा एमएम करीम की गाना गाने की इच्छा है.
सुधीर यदुवंशी की जर्नी अभी बहुत लंबी है, लेकिन उन की धीरज और मेहनत ही उन्हें आगे ले जा सकेगी, जिस के लिए वे निरंतर प्रयासरत हैं.
Save Water : जिस तरह साल दर साल गरमी का पारा बढ़ता जा रहा है, उसी तरह पानी घरों में कम आता है. कई बार तो कईकई दिनों तक पानी नहीं आता. ऐसे में हम सभी की जिम्मेदारी है कि हम पानी को बरबाद होने से बचाएं और उस का उपयोग सही तरीके से करें.
हमलोग रोज कई घंटे अपने पौधों को पानी देते हैं और गाड़ियों को धोने में जाने कितना पानी यों ही सड़कों पर बहा देते हैं. एक ओर पानी की बरबादी के नजारे आम हैं, तो दूसरी ओर दूरदराज से पानी लाने का संघर्ष भी नजर आता है.
नलकूप, कुएं और जलाशय सूख रहे हैं. साल में एक बार जब विश्व जल संरक्षण दिवस के मौके पर फिर से सेमिनार होंगे. तभी हम लोगों को पानी का महत्त्व याद दिलाया जाएगा. उस के बाद फिर से हम लोग सब भूल जाते हैं और उसी तरह बिना सोचेसमझे पानी की बरबादी में लग जाते हैं. हमें लगता है कि भला अकेले हमारे पानी बचाने से क्या होगा.
क्या कहती है रिसर्च
क्या आप जानते हैं कि पूरे उत्तर भारत में 1951-2021 की अवधि के दौरान मौनसून के मौसम (जून से सितंबर) में बारिश में 8.5% की कमी आई है?
इस बारे में हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय भूभौतिकी अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआई) के शोधार्थियों के एक दल ने कहा कि मौनसून के दौरान कम बारिश होने और सर्दियों के दौरान तापमान बढ़ने के कारण सिंचाई के लिए पानी की मांग बढ़ेगी और इस के कारण ग्राउंड वाटर रिचार्ज में कमी आएगी, जिस से उत्तर भारत में पहले से ही कम हो रहे भूजल संसाधन पर और अधिक दबाव पड़ेगा. हालांकि यह स्थिति लगभग हर शहर की है.
केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) के अनुसार, उत्तर प्रदेश के कई जिलों में भूजल स्तर में सालाना 10-20 सेंटीमीटर की गिरावट देखी जा रही है. 2017 के संसाधन मूल्यांकन में 9 जिले (आगरा, अमरोहा, फिरोजाबाद, गौतमबुद्ध नगर, गाजियाबाद, हापुड़, हाथरस, संभल और शामली) अत्यधिक दोहन की श्रेणी में थे, जहां दोहन 100% से अधिक था.
गाजियाबाद में यह 128% तक पहुंच गया है. पिछले 5 साल (2020-2025) के लिए ब्लौकवार आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में 900 ब्लौक में भूजल का दोहन गंभीर हो चुका है. भूजल स्तर खतरनाक स्तर तक पहुंच चुका है. अनुमान है कि गंगा बेसिन के क्षेत्रों में दोहन 70% की सुरक्षित सीमा को पार कर चुका है.
कई रिसर्च में कहा जा रहा है कि भारतीय शहरों में भूजल यानी ग्राउंड वाटर के खत्म हो जाने की संभावना है. अगर ऐसा हुआ तो इस से करीब 10 करोड़ लोग प्रभावित होंगे. गौर करने वाली बात तो यह है कि इन शहरों में चैन्नई और दिल्ली जैसे देशों के नाम शामिल हैं, जोकि जल संकट का सामना कर रहे हैं.
पानी न होने की कल्पना तक हम नहीं कर सकते
अब आप जरा एक बार खुद सोचिए की गरमी के मौसम में पानी न मिले, इस बात की कल्पना क्या आप कर सकते हैं, शायद नहीं. यही वजह थी कि जो पुराने लोग थे या बुजुर्ग कहें वे हर चीज की बचत कर के चलते थे. किसी भी चीज को व्यर्थ बरबाद नहीं करते थे, चाहे वह धन हो, भोजन हो या पानी.
तब ट्यूबवेल और नल का समय नहीं था. वे कुएं से पानी लाते थे और कुएं के आसपास भी ऐसे गड्ढा बना दिया जाता था, जो वहां उपयोग होने वाला पानी से भर जाए जिस में पशुपक्षी पानी पी सकें. पर आधुनिकता के युग में पानी का अव्यय भोजन को बनाने से ले कर हर जगह बहुत होने लगा है.
पानी की बचत करने के लिए एक सार्थक प्रयास की आवश्यकता होती है और वह सार्थक प्रयास घर से ही शुरू किया जा सकता है. आप को जितना पानी की आवश्यकता है, चाहे नहाने में, कपड़े धोने में या पीने में उतना ही उपयोग करें .
खाना पकाते समय भी व्यर्थ का पानी न बहाएं. ऐसी छोटीछोटी कोशिशों से हम पानी की बचत कर सकते हैं. आप ने देखा होगा कि आएदिन आसपास लोग गाड़ी धोते दिखाई दे जाएंगे, मकान धोते दिखाई दे जाएंगे और तो और सड़क पर पानी डालते दिखाई दे जाएंगे. यदि हम इस तरह की व्यर्थ बह जा रहे पानी को रोक सकें तो यह भी एक सार्थक प्रयास हो सकता है .
आइए, जानें अपने घर पर ही छोटीछोटी बातों का ध्यान रख कर कैसे पानी को वैस्ट होने से बचाएं :
फिश ऐक्वेरियम के पानी को रीयूज करें
फिश ऐक्वेरियम के पानी में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटैशियम और अमोनियम आदि तत्त्व होते हैं. यह एक नैचुरल फर्टिलाइजर है. इसलिए इस पानी को चैंज करते समय फेंकने के बजाए अपने घर के पेड़पौधों में डालें. इस से पानी की भी बचत होगी और ऊपर से यह पानी पौधों के लिए अच्छा भी रहेगा. लेकिन एक बात का ध्यान रखें कि इस पानी में नमक नहीं मिला होना चाहिए.
पौधों को पानी देने के लिए वाटरिंग कैन का प्रयोग
यदि हम पौधों को बाल्टी या मग की मदद से पानी देते हैं तो पानी का उपयोग ज्यादा होता है. वहीं अगर हम पानी देने के लिए वाटरिंग कैन का प्रयोग करते हैं तो पानी की काफी बचत कर सकते हैं.
क्लौथ वाशिंग के पानी को फेकें नहीं
कई बार जब हम मशीन के बजाए हाथ से कपड़े धोते हैं तो उस पानी को बार बार फेंकते रहते हैं, लेकिन ऐसा करने के बजाए हम इस पानी से बाथरूम, बालकनी धो सकते हैं. यह पानी पौट में भी डाला जा सकता है.
लो फ्लश टौयलेट लगवाएं
आजकल मौडर्न टौयलेट्स में डबल फ्लश सिस्टम मौजूद होता है जोकि पानी की बड़ी मात्रा को बचाने में मदद करते हैं. इस से आप हर रोज कई लीटर पानी बचा सकते हैं. यदि आप नया टौयलेट लगवाने में खर्चा नहीं कर सकते हैं तो अपने पुराने स्टाइल वाले टौयलेट के लिए वाटर सैविंग बैग ले आएं.
किचन में भी पानी को करें रीयूज
जिस पानी में आप ने चावल उबाले हैं, आप उस पानी में सब्जी भी बौयल कर सकते हैं या फिर उस पानी को दाल और सब्जी बनाने के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हैं. यह पौष्टिक ही होगा.
इसी तरह सब्जियों को उबलने के बाद बचे हुए पानी को फेंकें नहीं बल्कि उस पानी से आटा मांङ लें या फिर उस में और सब्जियां मिला कर सूप बना लें. इस से पानी भी सेव होगा और खाना ज्यादा पौष्टिक भी बनाएगा.
आरओ (RO) से निकलने वाले पानी का रीयूज करें
आरओ में से 1 लीटर पानी फिल्टर होने पर 3 लीटर वैस्ट पानी निकलता है. इस के पाइप को हम वाश बेसिन के अंदर डाल देते हैं जिस से यह पानी सीधा नाली में जाकर बरबाद होता रहता है. लेकिन अगर हम चाहें तो इस के पाइप को एक बाल्टी में लगा सकते हैं. इस के बाद जब बाल्टी भर जाए तो पानी से बालकनी की धुलाई, गाड़ी की धुलाई आदि कर सकते हैं.
ब्रश करते समय नल को बंद रखें
कई लोगों की आदत होती है कि वे ब्रश करते समय नल को बंद ही नहीं करते और इस वजह से काफी पानी बरबाद हो जाता है. इसलिए अपनी यह आदत बना लें कि या तो ब्रश करने के लिए एक मग में पानी लें या फिर बारबार नल बंद करने की आदत बना लें. ऐसा कर के आप बहुत सा पानी बचा सकते हैं.
वाशिंग मशीन को पूरा भर कर ही कपडे धोएं
कई बार हम थोड़ेथोड़े कपड़े मशीन में डाल कर धोते हैं. इस से पानी की बहुत बरबादी होती है. लेकिन अगर हम एक ही बार में पूरी मशीन भर कर कपड़े धोएं तो पानी कम खर्च होता है. इसलिए सभी गंदे कपड़ों को एकसाथ इकट्ठा कर के ही धोएं. कपड़े धोने में कम पानी की जरूरत वाला साबुन या डिटर्जेंट या पाउडर उपयोग में लाएं.
बर्तन धोने का साबुन ऐसा हो जिस में कम पानी की जरूरत हो
ऐसे बर्तन धोने का साबुन, लिक्विड या पाउडर इस्तेमाल करें, जिस में कम पानी की जरूरत हो. बर्तन धोने के पानी की निकासी किचन गार्डन की तरफ रखें ताकि वहां फलों, सब्जियों के पौधों को पानी मिलता रहे .
कार या स्कूटर को ऐसे साफ करें
कार या स्कूटर को नल के पानी से नहीं नहलाएं. इन्हें 2-3 गीले कपङे से एक या अधिक बार साफ करें. हर बार पोंछने के लिए नया साफ गीला कपड़ा उपयोग करें.
वाटर लीकेज को सही कराएं
हम अकसर हमारे घर में हो रहे वाटर लीकेज को इग्नोर कर देते हैं लेकिन हम यह नहीं सोचते कि उस कारण से बहुत सारा पानी हर रोज बरबाद चला जाता है. किचन में या वाशरूम में अकसर नल लीक हो जाता है. इन्हें तुरंत फिक्स कराएं. बिना आवाज के टपकने वाले फ्लश टैंक से प्रतिदिन 30-500 गैलन पानी बरबाद हो सकता है.
पब्लिक प्लेस की लीकेज की कंप्लेंट करें
सिर्फ घरों के ही नहीं बल्कि पब्लिक पार्क, गली, मोहल्ले, अस्पतालों, स्कूल और भी ऐसी किसी जगहों में नल की टोटियां खराब हों या पाइप लीक हो रहा हो, तो उस के बारे में संबंधित विभाग में सूचना दें. इस से हजारों लीटर पानी की बरबादी को रोका जा सकता है.
पौधों को पानी कुछ ऐसे दें
गार्डन में दिन के बजाए रात में पानी देना सही होता है. इस से पानी का वाष्पीकरण नहीं हो पाता. कम पानी से ही सिंचाई भी हो जाती है और पेड़पौधे सूखते भी नहीं.
पौधों को अधिक पानी न दें और न ही इतनी तेजी से दें कि पौधे की मिट्टी उतनी जल्दी पानी को सोख न पाए. यदि पानी बाग से बह कर किनारे के चलने वाले रास्ते तक पहुंच रहा है तो पानी डालने का समय कम करें या पौधों को पानी 2 बार डालें जिस से पानी को जमीन में सोख जाने का समय मिल जाए.
Health Tips : क्या आप भी उन लोगों में से हैं जो एसी वाले औफिस में काम करके खुद को खुशनसीब समझते हैं? क्या आप जब घर में होते हैं तो उस वक्त भी एसी औन ही रहता है और आप ठीक उसके सामने बैठना ही पसंद करते हैं?
अगर आप भी ऐसा करने वालों में से हैं तो आपको बता दें कि ऐसा करना खतरनाक हो सकता है और आपको अपनी इस आदत के बारे में एकबार और सोचने की जरूरत है.
एक अध्ययन में पाया गया है कि भले ही लोग एसी को लग्जरी लाइफस्टाइल से जोड़कर देखते हों लेकिन सच्चाई ये है कि एसी में 24 घंटे बैठे रहना सेहत के लिए खतरनाक हो सकता है.
बीते कुछ समय में एसी का इस्तेमाल अचानक से बढ़ गया है. गर्मियों में प्रदूषण और ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से धरती का तापमान इतना अधिक हो जाता है कि एसी के बिना काम भी नहीं चलता.
ऐसे में जो लोग अफोर्ड कर पाते हैं वो एसी लगवाने में जरा भी देर नहीं करते हैं. रही बात औफिसों की तो आज के समय में ज्यादातर दफ्तरों में एसी लगा ही होता है. ये मूलभूत जरूरत हो चुकी है.
पर सोचने वाली बात ये है कि एक आर्टिफिशियल टेंपरेचर में बहुत देर तक रहना किस हद तक खतरनाक हो सकता है, इस ओर कभी भी हमारा ध्यान ही नहीं जाता है. इस टेंपरेचर के बदलाव का सबसे बुरा असर हमारे इम्यून सिस्टम पर पड़ता है.
अगर आपको लगता है कि आप अक्सर ही बीमार पड़ने लगे हैं, तो हो न हो आपकी इस आदत ने आपके इम्यून सिस्टम को कमजोर कर दिया है.
एसी के सामने ज्यादा वक्त बिताने वालों को हो सकती हैं ये हेल्थ प्रौब्लम्स-
1. साइनस की प्रौब्लम
प्रोफेशनल्स की मानें तो जो लोग एसी में चार या उससे अधिक घंटे रहते हैं , उनमें साइनस इंफेक्शन होने की आशंका बहुत बढ़ जाती है. दरअसल, बहुत देर तक ठंड में रहने से मांसपेशियां सख्त हो जाती हैं.
2. थकान
अगर आप एसी को बहुत लो करके सोते हैं या उसके सामने बैठते हैं तो आपको हर समय कमजोरी और थकान रहने लगेगी.
3. वायरल इंफेक्शन
बहुत अधिक देर तक एसी में बैठने से, फ्रेश एयर सर्कुलेट नहीं हो पाती है. ऐसे में फ्लू, कॉमन कोल्ड जैसी बीमारियां होने का खतरा बहुत बढ़ जाता है.
4. आंखों का ड्राई हो जाना
एसी में घंटों बिताने वालों में ये प्रौब्लम सबसे ज्यादा कौमन है. एसी में बैठने से आंखों ड्राई हो जाती हैं. एसी में बैठने का ये असर स्किन पर भी नजर आता है.
5. एलर्जी
कई बार ऐसा होता है कि लोग एसी को टाइम टू टाइम साफ करना भूल जाते हैं, जिससे एसी की ठंडी हवा के साथ ही डस्ट पार्टिकल भी हवा में मिल जाते हैं. सांस लेने के दौरान ये डस्ट पार्टिकल शरीर में प्रवेश कर जाते हैं, जिससे इम्यून सिस्टम पर असर पड़ता है.
“Who says the sky can’t be pierced? Just throw a stone with determination.” Sheetal Devi proved this saying true at the age of just 17 when she won a bronze medal in mixed compound archery at the Paris Paralympics 2024. Her achievement inspired countless young women to believe that real strength lies not in the body, but in the spirit.
Motivated by her success, many girls turned toward sports, with archery becoming a chosen path for several. In recognition of her incredible journey, Sheetal Devi was honored at the Grihshobha Inspire Awards on March 20 at Travancore House in Delhi.
She became India’s youngest Paralympic medalist in archery and the second armless archer in Paralympic history to win a medal — an extraordinary feat by any measure.
A Journey from a Remote Village to Global Recognition
Sheetal hails from a small village called Loidhar in Jammu & Kashmir. Born with a rare condition called phocomelia, which causes underdevelopment of limbs, she grew up without fully developed arms. But this challenge never broke her spirit.
Turning Disability into Determination
Instead of viewing her physical condition as a limitation, Sheetal turned it into her strength. She made history by becoming the first armless female archer to win a medal at the 2023 World Archery Para Championships, where she claimed a silver medal on her international debut. That same year, she clinched a gold medal at the Asian Para Games.
Her path was far from easy. Behind her remarkable achievements lay years of struggle, resilience, and intense practice.
As a child, Sheetal loved climbing trees — a playful activity that significantly strengthened her upper body. Her passion for movement and strength found direction thanks to the Indian Army, which played a key role in launching her para archery career.
Discovery and Determination
In 2021, during a youth activity program in Kishtwar, Jammu & Kashmir, the Indian Army discovered her talent. Initially, her coach considered training her with prosthetics, but this method didn’t work effectively. After further research, they learned about Matt Stutzman, an American armless archer who won a silver medal at the London 2012 Paralympics using his feet.
Inspired by Stutzman’s technique, Sheetal adopted the same method—using her feet and toes to hold the bow and her shoulder to draw the string. She trained at the academy of former archer Kuldeep Vedwan, where her journey as a world-class athlete truly began.
A Role Model for Millions
Today, Sheetal Devi is much more than a medalist — she’s a symbol of courage, resilience, and empowerment. Her story reminds us that with enough determination, nothing is impossible. Despite being born with physical challenges, she turned every obstacle into an opportunity and rose to international glory.
For countless young girls, Sheetal is not just an athlete but a beacon of hope and strength. Her life proves that no matter the circumstances, if you have the willpower, you can overcome anything.
Soumya Swaminathan recently served as the first Chief Scientist at the World Health Organization (WHO). Upon returning to India, she assumed the position of Chairperson at the MS Swaminathan Research Foundation (MSSRF) in February 2023. She has also served as the Director General of the Indian Council of Medical Research (ICMR).
Dr. Swaminathan is one of India’s most renowned pediatricians and a globally recognized researcher in tuberculosis (TB) and HIV. With over 40 years of experience in clinical care and research, she has dedicated her career to translating research into impactful health programs.
From 2015 to 2017, Dr. Swaminathan served as the Secretary of Health Research for the Government of India and as Director General of ICMR. Between 2009 and 2011, she worked in Geneva as the Coordinator of the UNICEF/UNDP/World Bank/WHO Special Programme for Research and Training in Tropical Diseases.
A Stellar Career
She received academic training in India, the United Kingdom, and the United States. Dr. Swaminathan is a fellow of the U.S. National Academy of Medicine, the Academy of Medical Sciences in the UK, and all major Indian science academies. She holds several honorary doctorates from prestigious institutions including Karolinska Institute, EPFL, Lausanne, and the London School of Hygiene & Tropical Medicine. She serves on multiple national and international advisory boards and committees and holds adjunct professor positions at Karolinska Institute (Sweden) and Tufts University (USA).
She is a board member of organizations such as Bioversity International, the Coalition for Epidemic Preparedness Innovations (CEPI), FIND, and the Population Foundation of India. Dr. Swaminathan also serves on the Governing Council of the Tamil Nadu Climate Change Mission and chairs the Scientific Advisory Board of ICMR.
As the inaugural Chief Scientist at WHO, she helped establish the organization’s Science Division, focusing on research, quality assurance, standards, and digital health.
Leadership and Impact
During the COVID-19 pandemic, she played a critical role in coordinating WHO’s global scientific response and helped shape COVAX, with an emphasis on equitable vaccine distribution in low- and middle-income countries. Recently, India’s Ministry of Health appointed her as Principal Advisor to the National Tuberculosis Elimination Program.
Her current work focuses on addressing the health impacts of climate change—especially those affecting women and children—and transforming food systems to enhance nutrition security across India and the region. In recognition of her outstanding leadership in public health and scientific research, Dr. Swaminathan was honored with the Nation Building Icon Award under the Grihshobha Inspired Awards.
Women like Dr. Soumya Swaminathan prove why the world holds the intellect and contributions of women in high regard. Whether in science, technology, or social development, women are not only matching their male counterparts but often surpassing them. In the field of public health and research, Dr. Swaminathan’s tireless dedication continues to inspire and pave the way for the next generation. It is vital for women to draw inspiration from such role models and make their own unique mark in the world.