जब दिल की बीमारी में हो जाए Pregnancy

गंभीर मामले

1. यदि आप का हार्ट वाल्व दोषपूर्ण है या विकृत है या फिर आप को कृत्रिम वाल्व लगाया गया है तो आप को गर्भधारण के दौरान अधिक जोखिमपूर्ण स्थिति का सामना करना पड़ सकता है.

2. गर्भावस्था के दौरान रक्तप्रवाह स्वत: बढ़ जाता है, इसलिए आप के हार्ट वाल्व को इस बदले हालात से निबटने के लिए स्वस्थ रहने की जरूरत है अन्यथा बढ़े हुए रक्तप्रवाह को बरदाश्त करने में परेशानी भी उत्पन्न हो सकती है.

3. जरूरी सलाह यही है कि गर्भधारण से पहले संभावित खतरे की विस्तृत जांच करा ली जाए.

4. जिन महिलाओं को कृत्रिम वाल्व लगे हैं, उन्हें अकसर रक्त पतला करने वाली दवा भी दी जाती है जबकि कुछ दवाओं का इस्तेमाल गर्भावस्था के दौरान वर्जित माना जाता है.

5. यदि आप में जन्म से ही कोई हृदय संबंधी गड़बड़ी है, तो आप का गर्भधारण जोखिमपूर्ण हो सकता है, दिल की जन्मजात गड़बडि़यों से पीडि़त महिलाओं से जुड़े जोखिम मां और भ्रूण दोनों को प्रभावित कर सकते हैं और इस के परिणामस्वरूप मां तथा बच्चे की परेशानियां बढ़ सकती हैं.

2 साल पहले 32 वर्षीय समीरा की जांच से पता चला कि उसे ऐरिथमिया यानी अनियमित रूप से दिल धड़कने की बीमारी है. हालांकि उस की स्थिति बहुत ज्यादा गंभीर नहीं थी यानी उसे बड़े इलाज की जरूरत नहीं थी, लेकिन समीरा को चिंता थी कि इस बीमारी का असर कहीं उस के होने वाले बच्चे पर न पड़े. शिशुरोग विशेषज्ञ और कार्डियोलौजिस्ट से विचारविमर्श के बाद ही वह आश्वस्त हो पाई कि गर्भावस्था के दौरान उस के ऐरिथमिया को काबू में रखा जा सकता है और इस से उस के होने वाले बच्चे के स्वास्थ्य को कोई खतरा नहीं होगा. हमारे समाज में महिलाओं की स्वास्थ्य स्थितियों को ले कर अकसर गलत धारणा बनी रहती है कि महिला की किसी बीमारी का असर उस के होने वाले बच्चे पर पड़ेगा. कुछ लोग यह समझते हैं कि मां की बीमारी बच्चे में हस्तांतरित हो सकती है, जबकि कुछ लोगों की चिंता मां बनने जा रही महिला की सेहत को ले कर रहती है. ऐसा बहुत कम ही होता है कि गर्भावस्था के दौरान किसी मरीज की दिल की बीमारी पर काबू नहीं पाया जा सके. नियमित निगरानी और प्रबंधन से गर्भावस्था का वक्त बीमारी हस्तांतरित किए बगैर काटा जा सकता है.

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गर्भावस्था के दौरान सामान्य हालात में भी दिल पर बहुत ज्यादा अतिरिक्त दबाव पड़ता है. अपने शरीर में एक और जिंदगी को 9 महीने तक ढोते रहने के लिए महिला के हृदय और रक्तनलिकाओं में बहुत ज्यादा बदलाव आ जाता है. गर्भावस्था के दौरान रक्त की मात्रा 30 से 50% तक बढ़ जाती है और शरीर के सभी अंगों तक अधिक रक्तसंचार करने के लिए दिल को ज्यादा रक्त पंप करना पड़ता है. इस अतिरिक्त रक्तप्रवाह के कारण रक्तचाप कम हो जाता है.

डाक्टरी परामर्श जरूरी

स्वस्थ हृदय तो इन सभी परिवर्तनों को आसानी से झेल लेता है, लेकिन जब कोई महिला दिल के रोग से पीडि़त होती है, तो उस की गर्भावस्था को सुरक्षित तरीके से प्रबंधित करने के लिए बहुत ज्यादा देखभाल और सावधानी बरतने की जरूरत पड़ती है. ऐसे ज्यादातर मामलों में नियमित निगरानी तथा दवा निर्बाध गर्भधारण और स्वस्थ बच्चे को जन्म देना सुनिश्चित करती है. दिल की किसी बीमारी से पीडि़त महिला को मां बनने के बारे में सोचने से पहले डाक्टर से सलाह लेनी चाहिए. यदि संभव हो तो ऐसे डाक्टर के पास जाएं जो अत्यधिक जोखिमपूर्ण गर्भाधान मामलों में विशेषज्ञता रखता हो. जोखिमपूर्ण स्थितियों वाली किसी मरीज की स्थिति का निर्धारण करने का सब से आसान तरीका यह देखना है कि वह प्रतिदिन के सामान्य कार्य आसानी से पूरा कर सकती है या नहीं. यदि ऐसा संभव है तो महिला में निर्बाध गर्भधारण करने की संभावना प्रबल है, भले ही उसे दिल की कोई बीमारी ही क्यों न हो.

ऐरिथमिया एक आम बीमारी है और कई महिलाओं में तो इस बीमारी का पता भर नहीं चल पाता जब तक कि उन्हें बेहोशी या दिल के असहनीय स्थिति में धड़कनें जैसे लक्षणों से दोचार नहीं होना पड़े. ऐरिथमिया के ज्यादातर मामले हलकेफुलके होते हैं. इन में चिकित्सा सहायता की जरूरत नहीं पड़ती. लेकिन किसी महिला के गर्भधारण से पहले उसे और उस के डाक्टर को स्थिति का अंदाजा लगा लेना जरूरी है ताकि मरीज के जोखिम का स्तर पता चल सके और जरूरत पड़ने पर उचित उपाय किए जा सकें. ऐरिथमिया के कुछ मामले गर्भधारण के दौरान ज्यादा बिगड़ जाते हैं. जरूरत पड़ने पर ऐसी स्थिति पर काबू रखने के लिए कुछ दवाओं का इस्तेमाल सुरक्षित माना जाता है.

गर्भधारण के किसी भी मामले में दिल के धड़कने की गति में थोड़ीबहुत असामान्यता आ ही जाती है. इसे ले कर ज्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए. उच्च रक्तचाप एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या है. अकसर यह समस्या गर्भधारण काल में बढ़ जाती है. इस समस्या का साइडइफैक्ट प्रीक्लैंपसिया के रूप में देखा जा सकता है यानी एक ऐसा डिसऔर्डर जिस में उच्च रक्तचाप रहता है और इस पर यदि नियंत्रण नहीं रखा गया तो इस से महिला के जोखिम का खतरा बढ़ सकता है और एक स्थिति के बाद महिला और बच्चे की मौत भी हो सकती है. ज्यादातर मामलों में अभी तक दवा और बैड रैस्ट से ही गर्भावस्था की स्थिति सामान्य हो जाती है. माइट्रल वाल्व प्रोलैप्स (एमवीपी) एक ऐसी स्थिति है, जिस में माइट्रल वाल्व के 2 वाल्व फ्लैप अच्छी तरह नहीं जुडे़ होते हैं और जब स्टैथोस्कोप से हार्टबीट की जांच की जाती है तो कई बार इस में भनभनाहट जैसी आवाज आती है.

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कुछ मामलों में वाल्व के जरीए प्रोलैप्स्ड वाल्व थोड़ी मात्रा में रक्तस्राव भी कर सकता है. ज्यादातर मामलों में यह स्थिति पूरी तरह नुकसानरहित रहती है और जब तक अचानक किसी स्थिति का पता नहीं चल जाता, इस ओर ध्यान भी नहीं दिया जाता है. ईको ड्रौप्लर की मदद से डाक्टर आप के एमवीपी से जुड़े खतरे की जांच कर सकते हैं. कुछ मामलों में ऐसी स्थिति के उपचार की जरूरत पड़ती है, लेकिन एमवीपी से ग्रस्त ज्यादातर गर्भवती महिलाओं का गर्भकाल सामान्य और बगैर किसी परेशानी के ही गुजरता है.

– डा. संजय मित्तल   कंसल्टैंट कार्डियोलौजी, कोलंबिया एशिया हौस्पिटल, गाजियाबाद

रिश्तों में थोड़ी दूरी है जरूरी

24 वर्षीय राखी (बदला हुआ नाम) को अभी तक समझ नहीं आ रहा है कि यह सब कैसे हो गया. खूबसूरत राखी सदमे में है. उस के साथ जो हादसा हुआ वह वाकई अप्रत्याशित था. तेजाबी हमला केवल शरीर को ही नहीं झुलसाता, बल्कि मन पर भी फफोले छोड़ जाता है. इस के दर्द से छुटकारा पाने में कभीकभी जिंदगी गुजर जाती है.

ऐसा भी नहीं है कि राखी ने हिम्मत हार ली हो, बल्कि अच्छी बात यह है कि वह अपनी तरफ से इस हादसे से उबरने की पूरी कोशिश कर रही है. उसे जरूरत है, तो एक अच्छे माहौल, सहयोग और सहारे की, जो उस की हिम्मत बनाए रखे.

अल्हड़ और चंचल राखी भोपाल करीब 7 साल पहले पढ़ने के लिए सिवनी से आई थी, तो उस के मन में खुशी के साथसाथ उत्साह और रोमांच भी था. उस की बड़ी बहन भी भोपाल के एक नर्सिंग कालेज में पढ़ रही थी.

राखी के पिता उसे पढ़ालिखा कर काबिल बनाना चाहते थे, क्योंकि बदलते वक्त को उन्होंने सिवनी जैसे छोटे शहर में रहते भी भांप लिया था कि लड़कियों को अच्छा घरवर और नौकरी मिले, इस के लिए जरूरी है कि वे खूब पढ़ेंलिखें. इस बाबत कोई कमी उन्होंने अपनी तरफ से नहीं छोड़ी थी. लड़कियों को अकेले छोड़ने पर दूसरे अभिभावकों की तरह यह सोचते हुए उन्होंने खुद को तसल्ली दे दी थी कि अब जमाना लड़कियों का है और शहरों में उन्हें कोई खतरा नहीं है बशर्ते वे अपनी तरफ से कोई गलती न करें.

अपनी बेटियों पर उन्हें भरोसा था, तो इस की एक वजह उन की संस्कारित परवरिश भी थी. वैसे भी राखी समझदार थी. उसे नए जमाने के तौरतरीकों का अंदाजा था. उसे मालूम था कि अपना लक्ष्य सामने रख कर कदम बढ़ाने हैं. इसीलिए किसी तरह की परेशानी या भटकाव का सवाल ही नहीं उठता था.

ऐसा हुआ भी. देखते ही देखते राखी ने बीई की डिग्री ले ली. भोपाल का माहौल उसे समझ आने लगा था कि थोड़ा खुलापन व एक हद तक लड़केलड़कियों की दोस्ती बुरी नहीं, बल्कि बेहद आम और जरूरी हो चली है. दूसरी मध्यवर्गीय लड़कियों की तरह उस ने अपनी तरफ से पूरा एहतियात बरता था कि ऐसा कोई काम न करे जिस से मांबाप की मेहनत, उम्मीदें और प्रतिष्ठा पर आंच आए. इस में वह कामयाब भी रही थी.

डिग्री लेने के बाद नौकरी के लिए राखी को ज्यादा भटकना नहीं पड़ा. उसे जल्द ही भोपाल के एक पौलिटैक्निक कालेज में लैक्चरर के पद पर नियुक्ति मिली, तो खुशी से झूम उठी. कोई सपना जब साकार हो जाता है, तो उस की खुशी क्या होती है, यह राखी से बेहतर शायद ही कोई बता पाए. हालांकि तनख्वाह ज्यादा नहीं थी, पर इतनी तो थी कि वह अब अपना खर्चा खुद उठा पाए और कुछ पैसा जमा भी कर सके.

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राखी बहुत खुश थी कि अब अपने पिता का हाथ बंटा पाएगी जो न केवल सिवनी, बल्कि पूरे समाज व रिश्तेदारी में बड़े गर्व से बताते रहते हैं कि एक बेटी नर्सिंग की पढ़ाई पूरी करने वाली है, तो दूसरी पौलिटैक्निक कालेज में लैक्चरर बन गई है. उस के पिता का परंपरागत व्यवसाय टेलरिंग और सिलाई मशीनों का है, जिस से आमदनी तो ठीकठाक हो जाती है पर इस में खास इज्जत नहीं है. अब उस के पिता गर्व से सिर उठा कर कहते हैं कि बेटियां भी बेटों की तरह नाम ऊंचा करने लगी हैं. बस उन्हें मौका व सुविधाएं मिलनी चाहिए.

अब राखी ने भोपाल के पौश इलाके की अरेरा कालोनी में किराए का कमरा ले लिया. उस के मकानमालिक एसपी सिंह इलाहाबाद बैंक में मैनेजर हैं. उन की पत्नी दलबीर कौर देओल से राखी की अच्छी पटने लगी थी. अपने हंसमुख स्वभाव और आकर्षक व्यक्तित्व के चलते जल्द ही महल्ले वाले भी उस के कायल हो गए थे, क्योंकि राखी अपने काम से काम रखती थी.

फिर कहां चूक हुई

पर राखी की जिंदगी में सब कुछ ठीकठाक नहीं था. तमाम एहतियात बरततेबरतते भी एक चूक उस से हो गई थी, जिस का खमियाजा वह अभी तक भुगत रही है.

हुआ यों कि राखी 2 साल पहले अपनी चचेरी बहन की शादी में गई थी. वहां अपने हंसमुख स्वभाव के कारण घराती और बराती सभी के आकर्षण का केंद्र बन गई. चूंकि वह अपनी जिम्मेदारी को बखूबी समझती थी, इसलिए शादी के कई काम उसे सौंप दिए गए. बाहर पढ़ रही लड़कियां ऐसे ही मौकों पर अपने तमाम रिश्तेदारों और समाज के दूसरे लोगों से मिल पाती हैं. ऐसे समारोहों में नए लोगों से भी परिचय होता है.

शादी के भागदौड़ भरे माहौल में किसी ने उसे अपनी कजिन के जेठ से मिलवाया तो राखी ने उन्हें सम्मान देते हुए बड़े जीजू संबोधन दिया और पूरे शिष्टाचार से उन से बातचीत की. पर राखी को उस वक्त कतई अंदाजा नहीं था कि बड़े जीजू, जिस का नाम त्रिलोकचंद है नौसिखिए और नएनए लड़कों की तरह उस पर पहली ही मुलाकात में लट्टू हो गया है. लव ऐट फर्स्ट साइट यह राखी ने सुना जरूर था पर ऐसा उस के साथ वह भी इस रिश्ते में और इन हालात में होगा, उसे यह एहसास कतई नहीं था.

हंसतेखेलते मस्ती भरे माहौल में शादी संपन्न हो गई. राखी वापस भोपाल आ गई. लेकिन पूरी शादी के दौरान त्रिलोकचंद उस के पीछे जीजासाली के रिश्ते की आड़ में पड़ा रहा, तो उस ने इसे अन्यथा नहीं लिया, क्योंकि शादियों में ऐसा होता रहता है और फिर अपनेअपने घर जा कर सब अपने काम में व्यस्त हो जाते हैं. दोबारा मुद्दत बाद ही ऐसे किसी फंक्शन में मिलते हैं.

लेकिन त्रिलोकचंद राखी को नहीं भूल पाया. वह रिश्ते की इस शोख चुलबुली साली को देख यह भूल गया कि वह 2 बच्चों का बाप और जिम्मेदार कारोबारी है. छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ शहर में उस की मोबाइल की दुकान है.

भोपाल आए 3-4 दिन ही गुजरे थे कि राखी के मोबाइल पर त्रिलोकचंद का फोन आया, जिसे शिष्टाचार के नाते वह अनदेखा नहीं कर सकी. बातचीत हुई फिर हलका हंसीमजाक हुआ जीजासालियों जैसा. तब भी राखी ताड़ नहीं पाई कि त्रिलोकचंद की असल मंशा क्या है.

धीरेधीरे त्रिलोकचंद के रोज फोन आने लगे. वह बातें भी बड़ी मजेदार करता था, जो राखी को बुरी नहीं लगती थीं. इन्हीं बातों में कभीकभी वह राखी की खूबसूरती की भी तारीफ कर देता, तो उसे बड़ा सुखद एहसास होता था. लेकिन यह तारीफ एक खास मकसद से की जा रही है, यह वह नहीं समझ पाई.

धीरेधीरे राखी त्रिलोकचंद से काफी खुल गई. तब वह खुल कर बातें करने लगी. यही वह मुकाम था जहां वह अपने सोचनेसमझने की ताकत खो चुकी थी. अपने बहनोई से बौयफ्रैंड की तरह बातें करना कितना बड़ा खतरा साबित होने वाला है यह वह नहीं सोच पाई. उलटे उसे इन बातों में मजा आने लगा था.

यों ही बातचीत में एक दिन त्रिलोकचंद ने उसे बताया कि वह कारोबार के सिलसिले में भोपाल आ रहा है और उस से मिलना चाहता है तो राखी ने तुरंत हां कह दी, क्योंकि अब इतनी और ऐसी बातें जीजासाली के बीच हो चुकी थीं कि उस में न मिलने की कोई वजह नहीं रही थी.

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त्रिलोकचंद भोपाल आया तो राखी के लिए यह एक नए किस्म का अनुभव था. वह बड़े जीजू के साथ घूमीफिरी, होटलों में खायापीया और जो बातें कल तक फोन पर होती थीं वे आमनेसामने हुईं, तो उस की रहीसही झिझक भी जाती रही. अब वह पूरी तरह से त्रिलोकचंद को अपना दोस्त और हमदर्द मानने लगी थी.

जब बात समझ आई

अब त्रिलोकचंद हर महीने 700 किलोमीटर दूर डोंगरगढ़ से भोपाल राखी से मिलने आने लगा, तो राखी की यह समझ आने में कोई वजह नहीं रह गई थी कि कारोबार तो बहाना है. बड़े जीजू सिर्फ उस से मिलने आते हैं. इस से उस के दिल में गुदगुदी होने लगी कि कोई उस पर इस हद तक मरता है.

हर महीने त्रिलोकचंद भोपाल आता और राखी पर दिल खोल कर पैसे खर्च करता. शौपिंग कराता, घुमाताफिराता. 2-3 दिन रुक कर चला जाता. राखी उस से प्यार नहीं करने लगी थी पर यह तो समझने लगी थी कि त्रिलोकचंद सिर्फ उस के लिए भोपाल आता है. अब उसे उस के साथ स्वच्छंद घूमनेफिरने और बतियाने में कोई झिझक महसूस नहीं होती थी.

दुनिया देख चुके त्रिलोकचंद ने जब देखा कि राखी उस के जाल में फंस चुकी है, तो एक दिन उस ने बहुत स्पष्ट कहा कि राखी मैं तुम से प्यार करने लगा हूं और अपनी पत्नी को तलाक दे कर तुम से शादी करना चाहता हूं. अब मेरी ख्वाहिशों और जिंदगी का फैसला तुम्हारे हाथ में है.

इतना सुनना था कि राखी के पैरों तले की जमीन खिसक गई. जिस मौजमस्ती, दोस्ती और बातचीत को वह हलके में ले रही थी उस की वजह अब जब उस की समझ में आई तो घबरा उठी, क्योंकि त्रिलोकचंद के स्वभाव को वह काफी नजदीक से समझने लगी थी.

इस प्रस्ताव पर सकते में आ गई राखी तुरंत न नहीं कह पाई तो त्रिलोकचंद के हौसले बुलंद होने लगे. उसे अपनी मुराद पूरी होती नजर आने लगी. उसे उम्मीद थी कि देरसवेर राखी हां कह ही देगी, क्योंकि लड़कियां शुरू में इसी तरह चुप रहती हैं.

अब राखी नौकरी करते हुए एक नई जिम्मेदारी से रूबरू हो रही थी, जिस में सम्मान भी था और कालेज की प्रतिष्ठा भी उस से जुड़ गई थी. अब वह अल्हड़ लड़की से जिम्मेदार टीचर में तबदील हो रही थी. उस का उठनाबैठना समाज के प्रतिष्ठित लोगों से हो चला था.

अब उसे त्रिलोकचंद की पेशकश अपने रुतबे के मुकाबले छोटी लग रही थी, साथ ही रिश्तेदारी के लिहाज से भी यह बात रास नहीं आ रही थी. लेकिन दिक्कत यह थी कि अपने इस गले पड़े आशिक से एकदम वह खुद को अलग भी नहीं कर पा रही थी, क्योंकि उसे जरूरत से ज्यादा मुंह भी उस ने ही लगाया था.

जून महीने के पहले हफ्ते से ही त्रिलोकचंद राखी के पीछे पड़ गया था कि इस बार दोनों जन्मदिन एकसाथ मनाएंगे. राखी का जन्मदिन 21 जून को था और उस का 22 जून को. कल तक जो बड़ा जीजू शुभचिंतक और प्रिय लगता था वह एकाएक गले की फांस बन गया तो राखी की समझ में नहीं आया कि अब वह क्या करे. अब वह फोन पर पहले जैसी इधरउधर की ज्यादा बातें नहीं करती थी और कोशिश करती कि जल्द बात खत्म हो.

इस बदलाव को त्रिलोकचंद समझ रहा था. वह चिंतित रहने लगा था. लिहाजा वह 17 जून को मोटरसाइकिल से डोंगरगढ़ से भोपाल आया और कारोबारी इलाके एम.पी. नगर के एक होटल में ठहरा. उस के इरादे नेक नहीं थे. वह आर या पार का फैसला करने आया था. इस के लिए वह अपने एक दोस्त राहुल तिवारी को भी साथ लाया था.

तेजाबी हमला

18 जून की सुबह राखी रोज की तरह कालेज जाने को तैयार हो रही थी. तभी त्रिलोकचंद का फोन आया और उस ने बर्थडे साथ मनाने की बाबत पूछा तो राखी ने उसे टरका दिया. उसे अंदाजा ही नहीं था कि त्रिलोकचंद डोंगरगढ़ नहीं, बल्कि भोपाल में ही है और रात को अपने साथी सहित उस के आनेजाने के रास्ते की रैकी कर चुका है.

राखी का जवाब सुन कर उसे समझ आ गया कि अब वह नहीं मानेगी. तब एक खतरनाक फैसला उस ने ले लिया. सुबह करीब 9 बजे जब राखी घर से कालेज जाने के लिए बसस्टौप पैदल जा रही थी. तभी एक मोटरसाइकिल उस के पास आ कर रुकी, जिसे राहुल चला रहा था. उस के पीछे बुरके में एक औरत बैठी थी. राहुल को राखी नहीं पहचानती थी. राहुल जैसे ही राखी से पता पूछने लगा पीछे बुरके में बैठे त्रिलोकचंद ने उस के ऊपर तेजाब फेंक दिया और फिर मोटरसाइकिल तेज गति से चली गई.

तेजाब की जलन से राखी चिल्लाते हुए घर की तरफ भागी. तेजाब की जलन से बचने के लिए उस ने दौड़तेदौड़ते अपने कपड़े उतार दिए. उस की चिल्लाहट सुन कर लोगों ने उसे देखा जरूर पर मदद के लिए कोई आगे नहीं आया. आखिरकार एक परिचित महिला उषा मिश्रा ने उसे पहचाना और सहारा दिया. मकानमालकिन की मदद से वे उसे अस्पताल ले गईं. सारे शहर में खबर फैल गई कि एक लैक्चरर पर ऐसिड अटैक हुआ.

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नाटकीय तरीके से त्रिलोकचंद डोंगरगढ़ में गिरफ्तार हुआ और उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. फिर सारी कहानी सामने आई. त्रिलोकचंद ने कहा कि उस ने राखी पर लाखों रुपए खर्च किए हैं. पहले वह शादी के लिए राजी थी पर लैक्चरर बनने के बाद किसी और से प्यार करने लगी थी, इसलिए उस की अनदेखी करने लगी थी. यह बात उस से बरदाश्त नहीं हुई तो इस धोखेबाज साली को सबक सिखाने की गरज से उस ने उस पर तेजाब फेंक दिया.

एक सबक

राखी अब धीरेधीरे ठीक हो रही है पर इस घटना से यह सबक मिलता है कि नजदीकी रिश्तों में भी तयशुदा दूरी जरूरी है, क्योंकि जब रिश्तों की सीमाएं और मर्यादाएं टूटती हैं, तो ऐसे हादसों का होना तय है.

राखी की गलती यह भी थी कि उस ने जीजा को जरूरत से ज्यादा मुंह लगाया, शह दी और नजदीकियां बढ़ाईं, जो अकेली रह रही लड़की के लिए कतई ठीक नहीं. जब त्रिलोकचंद उस पर पैसे खर्च कर रहा था तभी उसे समझ जाना चाहिए था कि उस की नीयत में खोट है वरना कोई क्यों किसी पर लाखों रुपए लुटाएगा.

लड़कियां इस बात पर इतराती हैं कि कोई उन पर मरता है, रोमांटिक बातें करता है, उन के एक इशारे पर कुछ भी करने को तैयार रहता है. उन्हें राखी की हालत से सीख लेनी चाहिए कि ऐसे रोमांस का अंजाम क्या होता है.

नजदीकी रिश्तों में हंसीमजाक में हरज की बात नहीं. हरज की बात है हदें पार कर जाना. मन में शरीर हासिल कर लेने की इच्छा इन्हीं बातों और शह से पैदा होती है. अकेली रह रही लड़कियां जल्दी त्रिलोकचंद जैसे मर्दों के जाल में फंसती हैं और जब वे सैक्स या शादी के लिए दबाव बनाने लगते हैं, तो उन से कन्नी काटने लगती हैं.

मर्दों को बेवकूफ समझना लड़कियों की दूसरी बड़ी गलती है, जो पुरुष लड़कियों पर पैसा और वक्त जाया कर रहा है, वह बेवजह नहीं है. उस की कीमत वह वसूलने पर उतारू होता है तो लड़कियों के सामने 2 ही रास्ते रह जाते हैं- या तो हथियार डाल दें या फिर किनारा कर लें. लेकिन दोनों हालात में नुकसान उन्हीं का होता है.

ऐसे में जरूरी यह है कि ऐसी नौबत ही न आने दी जाए. जीजा, देवर, दूरदराज के कजिन, अंकल, मुंहबोले भाई और दूसरे नजदीकी रिश्तेदारों से एक दूरी बना कर रहा और चला जाए तो उन की हिम्मत इतनी नहीं बढ़ती. अगर अनजाने में ऐसा हो भी जाए तो जरूरी है कि शादी या सैक्स की पेशकश होने पर जो एक तरह की ब्लैकमेलिंग और खर्च किए गए पैसे की वसूली है पर तुरंत घर वालों को सारी बात सचसच बता दी जाए, क्योंकि ऐसे वक्त में वही आप की मदद कर सकते हैं.

वैसे भी घर से दूर शहर में रह रही युवतियों को ऐसे पुरुषों से सावधान रहना चाहिए. उन से मोबाइल पर ज्यादा बात नहीं करनी चाहिए. एसएमएस नहीं करने चाहिए और सोशल मीडिया पर भी ज्यादा चैट नहीं करना चाहिए. तोहफे तो कतई नहीं लेने चाहिए और न ही अकेले में मिलना चाहिए. इस के बाद भी कोई गलत पेशकश करे तो तुरंत मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए.

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6 Tips: सुकुन भरे रिटायरमेंट के लिए शुरू करें प्लानिंग

हम पूरी जिंदगी डटकर काम करते हैं जिससे हम अपने परविार के साथ सुकून भरी लाइफ जी सकें. लेकिन हम तब तक ही कमा सकते हैं कि जब तक हमारा शरीर साथ देता है. सरकारी नौकरी में हम 58 या 60 साल पर रिटायर हो जाते हैं. लेकिन प्राइवेट जॉब में अक्‍सर लोग तब तक काम करते हैं, जब तक उनकी हेल्‍थ उन्‍हें काम करने देती है. ऐसे में सिक्‍योर्ड फ्यूचर के लिए समय रहते रिटायरमेंट की प्‍लानिंग करना बेहद समझदारी भरा कदम है. लेकिन अक्‍सर रिटायरमेंट के लिए किसी भी सरकारी या निजी कंपनी की स्‍कीम में अंधाधुंध निवेश कर डालते हैं. लेकिन इसके लिए प्रोपर प्‍लानिंग के साथ समझदारी पूर्ण निवेश करना बहुत जरूरी है.

1. पब्लिक प्राविडेंट फंड

पब्लिक प्राविडेंट फंड यानि कि पीपीएफ पैसा बचाने के लिए बेहतरीन विकल्पों में से एक है. इसमें न सिर्फ पैसा जमा करने से टैक्‍स बचता है बल्कि इस पर ब्याज भी टैक्‍स फ्री होता है. पीपीएफ डेट में सबसे अच्छा विकल्प है और इसका रिटर्न पूरी तरह टैक्स फ्री होता है. आप बैंक ऑर पोस्ट ऑफिस से पीपीएफ खोल सकते हैं. यह सुरक्षित निवेश का जरिया है.

2. इंप्‍लॉई प्रोविडेंट फंड

इंप्‍लॉई प्रोविडेंट फंड यानि कि ईपीएफ भी बेहतर रिटायरमेंट फंड है. सैलरी में से 12 फीसदी ईपीएफ में जाता है. इसकी ब्याज दर 8.75 फीसदी है. ये रिटयरमेंट सेविंग्स स्कीम है. सैलरी पाने वाले ही इसका फायदा उठा सकते हैं. लेकिन आप पूरी रिटायरमेंट प्लानिंग नहीं कर सकते हैं.

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3. न्‍यू पेंशन स्‍कीम

न्‍यू पेंशन स्‍कीम यानि की एनपीएस खासतौर पर रिटायरमेंट के लिए डिजाइन की गई है. न्यू पेंशन स्कीम इसमें 80 सी के तहत 10 फीसदी टैक्स बचत हो सकती है. इसमें 6 अलग अलग फंड में निवेश की सुविधा है. इसमें निवेश की कोई ऊपरी सीमा नहीं है. इसमें सालाना न्यूनतम निवेश 6,000 रुपये का होता है. 30 फीसदी टैक्स स्लैब में आते हैं तो एनपीएस में सालाना 15,000 रुपये बचा सकते हैं. इसमें 18 साल से 55 साल की उम्र तक के लोग निवेश कर सकते हैं.

4. इंश्योरेंस

आप भविष्‍य की जरूरतों के लिए यूलिप, पेंशन प्रोडेक्ट, ट्रेडिशनल पॉलिसी के जरिए निवेश कर सकते हैं. लंबी अवधि में यूलिप के जरिए निवेश कर सकते हैं. 58 साल से पहले पेंशन प्रोडेक्ट से पैसे निकालने पर एक्जिट लोड लगता है. पेंशन प्लान, रिटायरमेंट प्लान जैसे कई इंश्योरेंस विकल्प चुन सकते हैं.

5. म्यूचुअल फंड

अगर लंबी अवधि के लिए निवेश करना है तो म्यूचुअल फंड में एसआईपी कर सकते हैं. इसमें भी 2 विकल्प हैं. चाहें तो आप म्यूचुअल फंड में निवेश कर सकते हैं और चाहे तो इक्विटी में सीधा निवेश भी कर सकते हैं.

6. टैक्स फ्री बॉन्ड

जब आपके रिटायरमेंट के लिए 1-2 साल बचें और आपके पास कुछ कोष इकट्ठा हो जाए तो आप टैक्स फ्री बॉन्ड में निवेश कर सकते हैं. इसमें 10-20 साल का लॉक इन पीरियड होता है और ये सुरक्षिच निवेश का जरिया होता है. इसके ब्याज पर कोई टैक्स नहीं होता है.

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सरदार उधमः क्रांतिकारी सरदार उधम सिंह के जीवन से जुड़े कुछ ऐतिहासिक तथ्यों का पुनः निर्माण

रेटिंगः तीन स्टार

निर्माताः राइजिंग सन और कीनो वक्र्स

निर्देशकः शूजीत सरकार

कलाकारः विक्की कौशल, स्टीफन होगन,  शॉन स्कॉट,  कर्स्टी एवर्टन,  एंड्रयू हैविल,  बनिता संधू,  अमोल पाराशर व अन्य.

अवधिः दो घंटे 43 मिनट 50 सेकंड

ओटीटी प्लेटफार्मः अमैजान प्रइम वीडियो

13 अ्रपैल 1919 के दिन ब्रिटिश हुकूमत के समय पंजाब प्रांत के गर्वनर माइकल ओ डायर ने रोलिड एक्ट के विरोध में शांतिपूर्ण विरोध दर्ज करा रहे निहत्थे भारतीयों पर पंजाब के जलियां वाला बाग में जघन्य नरसंहार करवाया था, जिसमें बीस हजार से अधिक लोग मारे गए थे. इससे क्रांतिकारी सरदार उधम सिंह का खून खौल उठा था, उसके बाद वह माइकल ओडायर की हत्या करने के मकसद से लंदन पहुॅचे और कई प्रयासों के बाद 13 मार्च 1940 को लंदन के कार्टन हाल में माइकल ओ डायर की हत्या कर जलियांवाला बाग कांड का बदला लिया था, जिसे सरदार उधम सिंह ने खुद ही अपना क्रांतिकारी फैसला बताया था और खुद को क्रांतिकारी होने की बात कही थी. जिसकी वजह से ब्रिटिश सरकार ने उन्हे फांसी पर लटका दिया था. पर आज तक ब्रिटेन ने इस दुष्कृत्य के लिए माफी नही मांगी है. भारत में राजनीतिक रस्साकशी के चलते हाशिए पर ढकेल दिए गए क्रांतिकारी उधम सिंह के जीवन को विस्तार से लोगों के सामने रखने के लिए फिल्मकार शूजीत सरकार ऐतिहासिक फिल्म ‘‘सरदार उधम’’ लेकर आए हैं, जो कि 16 अक्टूबर से अमैजान प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम हो रही है.

कहानीः

फिल्म की कहानी 1931 में पंजाब में जेल से शेर सिंह उर्फ उधम सिंह (विक्की कौशल) के जेल से रिहा होने से शुरु होती है, जो कि जेल से निकलकर खैबर गेस्ट हाउस पहुंचता है. जहां नंदा सिंह उन्हे सलाह देते है कि वह अफगानिस्तान पहुंचे जहां उन्हे पिस्तौल मिल जाएगी. फिर यूएसएसआर रूस होते हुए वह 1934 में लंदन पहुंचे. लंदन पहुंचकर उधम सिंह वहंा मौजूद कुछ ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ यानी कि ‘एच एस आर ए’ से जुड़े खोपकर सहित कई लोगों से मिलते हैं. एक ब्रिटिश महिला एलीन (कर्स्टी एवर्टन) से दोस्ती करते हैं. उधम सिंह लंदन में जनरल माइकल ओ ड्वायर (शॉन स्कॉट) की तलाश करते है. अंततः उधम सिंह इस सिरफिरे अंग्रेज को ढूंढ निकालते हंै और एक दिन सेल्समैन बनकर उन्हे मुफ्त में पेन का बैग देते हैं. फिर कुछ दिन जनरल माइकल ओड्वायर से के घर मे नौकरी करते हुए उनके जूते पॉलिश करते हैं. जनरल ओडायर के मन में जलियावाला बाग कंाड के लिए कोई अपराध बोध नही है, वह बार बार उधम सिंह से कहते हैं कि वह भारतीय जनता को सबक सिखाना चाहते थे.  फिर 13 मार्च 1940 को कॉर्टन हाल के जलसे में जनरल ड्वायर को उधम सिंह गोली मार देते हैं. पर भागते नहीं है और पुलिस को गिरफ्तारी देते हैं.  इसके बाद उधम पर अंग्रेज पुलिस के जुल्म और अदालती मुकदमा चलता है. पुलिस के पूछताछ के ही दौरान उधम सिंह के जीवन के कई घटनाक्रम फ्लैशबैक में आते हैं. तभी वह बताते है कि किशोर वय में उन्होने जलियंावाला बाग कांड देखा था, जिसकी वजह से उनके अंदर जनरल ओड्वायर की हत्य कर बदला लेने का गुस्सा पनपा था. उनके पास कई नाम के पासपोर्ट भी होते हैं. अंत में उधम बताते है कि जलियांवाला बाग कांड के कारण उन्होने जनरल ड्वायर को मारने का संकल्प लिया था. अदालत में उधम सिंह ‘हीर रांझा’ किताब पर हाथ रखकर सच बोलने की कसम खाते हैं. फिर बिना ज्यादा बहस के अंग्रेज न्यायाधीश फांसी का फैसला लिख देता है.

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लेखन व निर्देशनः

दो घंटे 44 मिनट लंबी अवधि की अति धीमी गति से कम संवादो वाली इस फिल्म को देखने के लिए धैर्य की जरुरत है. फिल्म की कहानी धीरे धीरे आगे बढ़ती है, जिसमें संवाद कम हैं. फिल्मकार ने इसे दृश्यों के माध्यम से चित्रित करने का प्रयास किया है.  वैसे फिल्मकार ने इस ऐतिहासिक फिल्म को पेश करते हुए फिल्म का नाम सरदार उधम सिंह की बजाय सिर्फ सरदार उधम ही रखा है और शुरूआत में ही डिस्क्लैमर देकर सारी मुसीबतों व विवादों से छुटकारा भी पाया है. डिस्क्लैमर काफी लंबा चैड़ा है. इसमें फिल्मकार ने घोषित किया है कि यह फिल्म सत्य एैतिहासिक घटनाक्रमांे प आधारित है, मगर ऐतिहासिक तथ्यों को इसमें न खोजा जाए. फिल्म सरदार उधम सिंह के जीवन पर जरुर आधारित है, मगर इसे सरदार उधम सिंह की बायोपिक फिल्म के तौर पर न देखा जाए. ‘रचनात्मक स्वतंत्रता और सिनेमाई अभिव्यक्ति के लिए घटनाओं को नाटकीय बनाने‘ के सामान्य अस्वीकरण के साथ फिल्मकार हमेशा अपनी जिम्मेदारी से बचने का प्रयास क्या करते हैं. यदि वह सच कहने से डारते हैं,  तो फिल्म ही नही बनानी  चाहिए. हम सभी जानते है कि भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के कई शहीदों को अभी न्याय और सम्मान मिलना बाकी है. कई क्रातिकारी इतिहास के पन्नों में कुछ पंक्तियों में सिमट गए और वह भी जो राजनीतिक रस्साकशी में हाशिये पर ढकेल दिए गए.  इस लिहाज से सरदार उधम की कहानी विस्तार से बताने के लिए शुजित सरकार का यह एक बड़ा कदम माना जा सकता है. क्योंकि उन्होंने इसे सिर्फ फिल्म न रखते हुए किसी दस्तावेज की तरह पर्दे पर उतारा है.

फिल्मकार ने उधम सिंह के अफगानिस्तान व रूस होते हुए इंग्लैंड पहंॅुचने को बहुत विस्तार से चित्रित किया है. फिल्म के अंतिम चालिस मिनट में जब जलियांवाला बाग कांड आता है, तब अंग्रेजों के अत्याचार आदि की कहानी नजर आती है.

फिल्म में तमाम ऐसे घटनाक्रम हैं, जिनका इतिहास में कहीं जिक्र नही है. फिल्मकार का दावा है कि उधम सिंह से संबंधित तमाम तथ्य अभी तक सार्वजनिक नही किए गए हैं. फिल्मकार ने फिल्म में उस दौर में चल रही वैश्विक उथल-पुथल और आंदोलनों का भी चित्रण किया है. फिल्मकार ने इस बात पर रोशनी डालने का प्रयास किया है कि आजादी की लड़ाई कई अलग-अलग स्तरों पर चल रही थी. देश में आजादी के दीवाने सड़कों पर उतर कर जेल जा रहे थे तो कई विदेश में रह कर मदद कर रहे थे या फिर मदद हासिल करने के लिए प्रयासरत थे.

फिल्मकार एक जगह यह बताते हैं कि उधम सिंह को अंग्रेजी  भाषा का ज्ञान था, तो फिर पुलिस पूछताछ के दौरान अनुवादक रखने की जरुरत क्यों महसूस की गयी?क्या यह निर्देशक की कमजोर कड़ी का परिचायक नही है?

फिल्मकार ने उधम और प्यारी रेशमा (बनिता संधू) के बीच रोमांस को ठीक से चित्रित नही किया है, जबकि फ्लैशबैक में कई बार इसका संकेत देते हैं. पर फिल्मकार ने जलियांवाला बाग हत्याकांड का आदेश देने वाले पुरुषों की क्रूर क्रूरता, भीड़ पर लगातार गोलीबारी, अपने जीवन को बचाने की कोशिश कर रहे निहत्थे भारतीय,  मृतकों और मरने वालों की हृदय विदारक दृश्यों का यथार्थपरक चित्रण किया है. शूजित ने अपनी इस फिल्म में 1919 से 1941 के दौर में भारत और लंदन को जीवंतता प्रदान की है,  फिर चाहे रूस के बर्फीले जंगल व पहाड़ी हों या भारत व लंदन की  जगहें-इमारतें-सड़कें हों,  सभा भवन हों,  किरदारों के परिधान हों,  उस समय का माहौल हो या दृश्यों में नजर आने वाली तमाम प्रॉपर्टी.  जी हॉ!1933 से 1940 के लंदन का सेट,  विंटेज एम्बुलेंस,  डबल डेकर बस,  पुलिस वैन,  हाई हील्स के साथ दौड़ती महिलाएं,  सबकुछ प्रामाणिकता का एहसास कराती हैं.

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अभिनयः

जलियावाला बाग कांड के गवाह बने उधम सिंह की पीड़ा,  क्रांतिकारी बनने, बदला लेने के जोश आदि को विक्की कौशल ने परदे पर अपने उत्कृष्ट अभिनय से जीवंतता प्रदान की है. 19 वर्षीय किशोर वय में जलियांवाला बाग के घायलों को अस्पताल पहुॅचाते वक्त चेहरे  पर आ रही पीड़ा व गुस्सा हो अथवा जासूस की तरह रहस्यमय इंसान की तरह लंदन की सड़कों पर चलना हो, माइकल ड्वायर पर गोली चलाने से लेकर पुलिस की यातना सहने तक के हर दृश्य में विक्की याद रह जरते हैं. विक्की कौशल का अभिनय व हावभाव काफी सधे हुए हैं. भगतसिंह के किरदार में अमोल पाराशर के हिस्से करने को कुछ आया ही नहीं. उधम सिंह की प्रेमिका रेशमा के भोलेपन व मासूमियत को बनिता बंधू ने अपने अभिनय से जीवंतता प्रदान की है. वह बिना संवाद महज हाव-भाव से असर पैदा करने में कामयाब रहती हैं.  माइकल ओ डवायर के किरदार में शॉन स्कॉट का अभिनय काफी दमदार है.  उधम के वकील के रूप में स्टीफन होगन का अभिनय ठीक ठाक है.

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फिल्म ‘मसान’ में एक बनारसी लड़के की भूमिका निभा चुके अभिनेता विक्की कौशल को इस फिल्म के लिए इंटरनेशनलइंडियन फिल्म अकेडमी अवार्ड्स के तहत बेस्ट मेल डेब्यू का पुरस्कार मिला है.विक्की के पिता श्याम कौशल एक एक्शन एंड स्टंट डायरेक्टर है,उन्होंने क्रिश 2, बजरंगी भाईजान,स्लमडॉग मिलेनियर, 3 इडियट्स आदि कई फिल्मों में एक्शन दिया है. विक्की को हमेशा से अभिनय की इच्छा रही. मेकेनिकल इंजिनीयरिंग की पढाई पूरी करने के बाद उन्होंने एक्टिंग की ट्रेनिंग ली और अभिनय के क्षेत्र में उतरे. इससे पहले उन्होंने फिल्म ‘गैंग्स ऑफ़ वासेपुर’ में निर्देशक अनुराग कश्यप के साथ सहायक निर्देशक के रूप मेंकाम किया और कुछ फिल्मों में छोटी-छोटी भूमिका निभाई, जिससे उन्हें अभिनय की बारीकियों को सीखने का मौका मिला. विक्की स्पष्टभाषी और हँसमुख स्वभाव के है. उनकी फिल्म ‘सरदार उधम’ अमेजन प्राइम विडियो पर रिलीज हो चुकी है, जो सरदार उधम सिंह के जीवनी पर बनी है, जिसमें विक्की के अभिनय की बहुत प्रसंशा की जा रही है. विक्की से ज़ूम कॉल पर बात हुई. आइये जाने विक्की से उनकी कुछ खास बातें.

सवाल-ये फिल्म आपके लिए बहुत खास है, क्या इसकी शूटिंग करते हुए कभी ऐसा एहसास हुआ?

हां, कई बार मेरे साथ हुआ है, क्योंकि जलियांवाला बाग़ को रिक्रिएट करना बहुत ही मुश्किल था. स्क्रिप्ट मुझे हिलाकर रख देता था और कई बार आँखे नम हो जाती थी. कहानी पता होती थी, लेकिन जब इसे रियल में शूट करना होता है, तो वही भाव मेरे अंदर आ जाता था. इसके अलावा निर्देशक शूजित सरकार का सेट हमेशा ही दृश्य के अनुसार रियल और गंभीर होता था. मेरा खून सूख जाता था. हर रात को मैं सोचता रहा कि आज से सौ साल पहले 20 हजार की भीड़ ने एक मैदान में इस दृश्य को देखा है, जहाँ से उन्हें भागने का कोई रास्ता नहीं था. सिर्फ एक रास्ता था, जिससे फौजी लगातार निहत्थे लोगों पर गोलियां चला रहे थे. उस भीड़ में बच्चे, बूढ़े, जवान सभी थे. इस दृश्य ने मुझे झकझोर कर रख दिया था.

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सवाल-इस फिल्म को इरफ़ान खान करने वाले थे, लेकिन उनकी अचानक मृत्यु से ये फिल्म आपको मिली, क्या आपको लगता है कि इरफ़ान आपसे अच्छा अभिनय कर पाते?

अभिनेता इरफ़ान खान एक प्रतिभाशाली कलाकार थे और पूरे विश्व में प्रसिद्ध थे. उन्होंने कई सफल फिल्में की है और मुझसे अच्छा अभिनय अवश्य कर पाते. मैं अगर उनके जैसे एक प्रतिशत भी काम करने में सफल हुआ, तो ये मेरे लिए बड़ी बात होगी.यहाँ मेरा सौभाग्य के साथ-साथ दायित्व भी है कि मैं इस भूमिका को अच्छी तरह से निभाऊँ. ये फिल्म मेरी तरफ से उनके लिए एक छोटा सा ट्रिब्यूट है.

सवाल-निर्देशक शुजित सरकार के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?

अनुभव बहुत ही अच्छा रहा, क्योंकि मैंने उनके साथ काम कर कई चीजे सीखी है. उनके साथ काम करने से पहले मुझे खुद को एक खाली कप की तरह पेश करना पड़ा, ताकि उनके निर्देश को मैं अपने अंदर पूरी तरह भर सकूँ. शुजित सरकार ने इस फिल्म की कल्पना आज से 20 साल पहले की थी और इसकी वजह से वे दिल्ली से मुंबई आये थे, लेकिन यहाँ भी उन्हें कोई प्रोड्युसर नहीं मिला था, क्योंकि तब वे नए थे और इस तरह की फिल्मों का चलन नहीं था. आज ये बायोपिक फिल्म बन दर्शकों तक पहुंची है और सबको पसंद आ रही है.

सवाल-इस फिल्म में आपने एक फ्रीडम फाइटर सरदार उधम सिंह की भूमिका निभाई है, कितना चुनौतीपूर्ण था और किस भाग को करना बहुत कठिन था?

इसमें मैंने शारीरिक रूप से खुद की तैयारी कर ली थी, क्योंकि इसमें एक बार 20 साल के सरदार उधम तो कही 40 वर्ष के सरदार उधम की भूमिका निभानी पड़ी, जो बहुत चुनौतीपूर्ण रही. दो दिन में मुझे 14 से 15 किलो घटाने थे, जो बहुत कठिन था. उस भाग को शूट करने के बाद दुबारा 25 दिनों में फिर से 14, 15 किलो बढ़ाने थे. इसके लिए मुझे कुछ फोटो सोशल मीडिया पर मिले तो कुछ पुरानी किताबों से पता चला है कि सरदार उधम सिंह बहुत ही बलशाली और मजबूत इंसान थे. इसलिए खुद को थोडा वजनी, चेहरे की भारीपन को लाना पड़ा. इसके अलावा उन्होंने अलग-अलग देशों में अलग लुक्स और नाम को बदलते थे. ऐसे में मुझे भी लुक्स के साथ जीना सीखना पड़ा. इसके लिए प्रोस्थेटिक का सहारा लिया गया, जिसके लिए रूस, सर्बिया और यहाँ की टीम ने मिलकर काम किया, क्योंकि टीम उस दौर की सभी चीजों को वास्तविक दिखाने की कोशिश की है, ताकि दर्शक को दृश्य रियल लगे. उस इन्सान का दर्द और दुःख जैसे मानसिक भाव को चेहरे पर लाने के लिए शुजित सरकार ने काफी मदद की है.

सवाल-इस तरह की गहन चरित्र निभाने के बाद क्या आप में कुछ परिवर्तन आया?

थोडा संयम और धीरज मेरे अंदर आया है, क्योंकि एक इंसान ने जलियांवाला बाग़ के दर्द को  21 साल तक अपने अंदर रखा और 21 साल बाद उसका बदला लंदन जाकर लिया था. इसमें धैर्य की बहुत जरुरत होती है और मुझमे भी धैर्य का कुछ भाव अवश्य आया होगा.

सवाल-क्या आप सरदार उधम सिंह की जीवनी से परिचित थे, क्योंकि स्कूल में बहुत कम सरदार उधम सिंह के बारें में लिखी गयी है,क्या आप मानते है कि इन स्वतंत्रता सेनानियों के बारें में और अधिक पढ़ी और सुनी जानी चाहिए?

मुझे सरदार उधम सिंह के बारें में पता है, क्योंकि पंजाब में मेरा गांव होशियारपुर से जलियांवालाबाग़ केवल 2 घंटे की दूरी पर है और इतिहास की किताब में इसका जिक्र होने पर मैं अपने पेरेंट्स से इसकी जानकारी लेता था, क्योंकि उस ज़माने में फ्रीडम और इक्वलिटी, बार-बार भेष बदलकर पूरे विश्व में घूमना आदि बातें फिल्म के दौरान पता चली.

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इन स्वतंत्रता सेनानियों के बारें में किताबो, फिल्मों और संगीत के माध्यम से याद किये जाने की आवशयकता है, क्योंकि ये डेमोक्रेसी जो हमें मिली है, वह ऐसे बहुतों के त्याग और बलिदान के फलस्वरूप मिली है. इसे बचाकर रखना बहुत जरुरी है, क्योंकि उस ज़माने में 200 साल तक राज कर रहे अंग्रेजों को हटाना आसान नहीं था. शुजित सरकार ने इसी वजह से इस फिल्म को बनाने के लिए 20 साल तक इन्तजार किया है.

सवाल-आप को किस बात से गुस्सा आता है और गुस्सा आने पर इसे मैनेज कैसे करते है?

जब मैं बहुत थका हुआ महसूस करता हूँ या तेज भूख लगी हो, तो मैं गुस्सा हो जाता हूँ. इसे मैं खुद को अकेला रखकर या खाना खाकर शांत कर लेता हूँ. किसी से बात नहीं करता, क्योंकि तब किसी के कुछ कहने पर मैं एकदम से फूट पड़ता हूँ.

Bigg Boss 15: करण-तेजस्वी ने कही दिल की बात, फैंस हुए खुशी से पागल

कलर्स का पौपुलर रियलिटी शो बिग बौस का 15 सीजन फैंस के बीच धमाल रहा है. जहां पहले ही हफ्ते में दो कंटेस्टेंट की लव स्टोरी ने फैंस को चौंका दिया था तो वहीं अब देख एक नई लव स्टोरी की शुरुआत फैंस को देखने को मिल रही है. इसी के चलते सोशलमीडिया पर #tehran ट्रैंड कर रहा है. दरअसल, टीवी एक्टर करण कुंद्रा (Karan Kundrra) और तेजस्वी प्रकाश (Tejasswi Prakash) की दोस्ती फैंस को बेहद पसंद आ रही है. इसी बीच करण कुंद्रा ने तेजस्वी को अपने दिल की बात कही है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

करण-तेजस्वी ने कही ये बात

दरअसल, बीते एपिसोड में करण कुंद्रा और तेजस्वी प्रकाश ने अपने दिल की बात करते हुए कहा- ‘मैं कुछ दिनों से आपसे दूरी महसूस कर रही हूं. आपसे बातचीत करना या आपको अप्रोच करना थोड़ा मुश्किल हो रहा है. यह बात कई बार काफी परेशान भी करती है. हमने कभी एक दूसरे से ऐसे बात नहीं की. मुझे लगता है कि यह पहली बार है, जब हमारी फुटेज कैमरे पर दिखेगी. जब आपने कहा हमारी वाइब्स मैच होती हैं तो हम बात कर सकते हैं. यह अच्छा होगा. लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है.’

 

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करण ने कही दिल की बात

दूसरी तरफ तेजस्वी की बातों का जवाब देते हुए करण ने कहा- ‘मुझे भी तुम अच्छी लगती हो. जब तुम मुख्य घर में जा रही थीं तो तो मैं खुश नहीं था. मैं चेहरे भी बना रहा था. मुझे यह कहने में काफी समय लगा कि तेजू मैं तुझे सच में काफी मिस कर रहा हूं. ऐसा हो सकता है कि हमने कभी बात नहीं की हो. लेकिन मुझे अपनी फीलिंग्स को एक्सप्रेस करने में मुश्किल होती है.’  हालांकि तेजस्वी शिकायत भी करती हैं कि जब वो अपसेट होती है तो करण कुछ नहीं करते हैं. लेकिन करण कहते हैं कि जब भी कोई हंगामा होता है तो मैं आपके पीछे खड़ा होता हूं. इसलिए अब हमारी बात होने के बाद आप जानती हो तो मैं हमेशा आपके सपोर्ट में खड़ा रहूंगा.

बता दें, सोशलमीडिया पर #tejran पहले से ही सोशलमीडिया पर ट्रैंड कर रहा है. फैंस को दोनों की दोस्ती काफी पसंद है. वहीं शो की बात करें तो हाल ही में फराह खान ने करण कुंद्रा और तेजस्वी बिग को पहले और दूसरे नंबर पर स्ट्रोंग कंटेस्टेंट बताया है, जिसके बाद दोनों की पौपुलैरिटी बेहद बढ़ गई है.

 

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खतरे में पड़ेगी अनुपमा की जान, वनराज या अनुज कौन बचाएगा?

रुपाली गांगुली स्टारर सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupama) में एक के बाद एक नये ट्विस्ट आ रहे हैं. जहां नंदिनी के एक्स बौयफ्रेंड के कारण समर की जान खतरे में है. वहीं वनराज को अनुज की अनुपमा के लिए चाहत का एहसास हो गया है, जिसके कारण उसकी जलन और बढ़ गई है. वहीं अपकमिंग एपिसोड में कुछ ऐसा होने वाला है, जिससे दर्शकों की धड़कने और बढ़ जाएंगी. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

अनुपमा और शाह परिवार होगा गरबे के लिए तैयार

 

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अब तक आपने देखा कि अनुपमा (Anupama) समेत परा शाह परिवार मिलकर गरबे की तैयारी करता है. जहां पूरा परिवार तैयार होगा तो वहीं वेदिका, अनुपमा को अनुज का गिफ्ट किया लहंगा देगी, जिसे पहनकर वह गरबा में जाएगी. वहीं गरबे में पहुंचकर अनुज, अनुपमा को देखकर खुश होता है. इसी बीच अनुपमा पूरे परिवार तस्वीरें खींचेगी और वीडियो बनाती है.

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रोहन की होगी शाह हाउस में एंट्री

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि समर, नंदिनी के एक्स बौयफ्रेंड रोहन को लेकर चिंता में होगा कि वह दोबारा कोई मुसीबत ना खड़ी कर दे, जिसके चलते वह अनुज से बात करेगा. वहीं  समर के कहने पर अनुज गरबे के पंडाल पर सिक्योरिटी गार्ड्स का इंतजाम करवाएगा. हालांकि रोहन कड़ी निगरानी के बाद भी पंडाल में आ जाएगा.

खतरे में होगी अनुपमा की जान

 

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दूसरी तरफ अनुपमा का रंग-बिरंगा लहंगा सभी को बेहद पसंद आएगा. वहीं अनुपमा, अनुज को गरबा के लिए रोकेगी और कहेगी कि वो भी उनके साथ सेलिब्रेट करे. वहीं पंडाल में घुस आया रोहन अपना शिकार ढूंढेगा, जिसके चलते वह अनुपमा पर पीछे से डंडे से मारने के कोशिश करेगा. लेकिन अनुज की नजर पड़ा जाएगी और वो अनुपमा को बचा लेगा, जिसके देखकर जहां पूरा परिवार जहां खुश होगा तो वहीं वनराज की जलन और बढ़ जाएगी.

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प्रकृति की गोद में बसे हैं भारत के ये 5 Tourist Spot

बात अगर इको फ्रेंडली टूरिस्ट डेस्टिनेशन के बारे में की जाए तो भारत में ऐसी कई जगहें है जहां जाकर आप प्रकृति का पूरा आनंद उठा सकतीं हैं. वैसे तो इन जगहों पर साल भर पर्यटकों का आना जाना लगा रहता है लेकिन कुछ कुछ मौसमों में तो ये और भी रोमांटिक लगने लगते हैं. इन जगहों पर आने के बाद आपको एहसास होगा की आप प्रकृति की गोद में बैठी हैं.

तो आज हम आपको ऐसे ही भारत के कुछ इको फ्रेंडली पर्यटन स्थलों के बारें में बताएंगे और उम्मीद करते हैं आपको ये जगहें पसंद आएंगी, क्योकि ये ट्रिप आपके लिये पैसा वसूल ट्रिप होगा.

केरल

इको फ्रेंडली टूरिस्ट डेस्टिनेशन के लिस्ट में केरल का नाम पहले आता है, केरल बहुत ही खूबसूरत और हरी भरी जगह है. यहां किसी भी मौसम में घूमा जा सकता है. केरल में प्रकृति‍ का एक अनोखा रूप देखने को मिलता है. इको-फ्रेंडली टूरिस्‍ट प्‍लेस पसंद करने वाले पयर्टकों के लिए यहां खूबसूरत रेतीले समुद्र तट, ताड़ के पेड़ और बैकवौटर जैसी चीजे हैं. जिनका अच्‍छे से मजा लिया जा सकता है. यहां की संस्कृति और परंपराएं भी पयर्टकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं.

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कुर्ग

कुर्ग भी इको-फ्रेंडली टूरिस्ट डेस्टिनेशंस में से एक है. यह भारत के लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में भी गिना जाता है. यहां हर साल बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं. मिस्टी पहाड़ियों, घने जंगल और कोहरे वाली शाम पयर्टकों को बहुत पसंद आती हैं. इतना ही नहीं यहां बहने वाली कावेरी नदी इस स्थान को और ज्‍यादा खूबसूरत बनाती है. इसके अलावा वन्य जीव स्‍थल पुष्‍पागिरि वन्‍यजीव अभयारण्‍य भी घूमा जा सकता है.

गोवा

इको-फ्रेंडली टूरिस्ट डेस्टिनेशंस में गोवा का नाम न हो ऐसा शायद ही हो. यह भी भारत के खूबसूरत पयर्टन स्‍थलों में से एक है. गोवा की प्राकृतिक सुंदरता की भी जितनी तारीफ की जाए कम है. समुद्र तट के अलावा यहां बोंडला या कोटीगाओ वन्यजीव अभयारण्य जैसे स्‍थानों पर पयर्टकों को बहुत अच्‍छा लगता है. गोवा की यात्रा में सुंदर मंदिरों, चर्चों, किले और ऐतिहासिक स्मारकों को घूमा जा सकता है.

सिक्किम

हिमालय में एक छोटा सा पहाड़ी राज्य सिक्किम अपनी हरी भरी वनस्पति, घने जंगलों और असख्‍ंय किस्‍मों के फूलों से पयर्टकों को आकर्षित करता है. इसके अलावा यहां पयर्टकों को गहरी घाटियों, खूबसूरत झरनों और लहराती नदियों के किनारे शाम के समय वक्‍त बिताना अच्‍छा लगता है. एक खूबसूरत पयर्टन स्‍थल के रूप में सिक्किम के पास सबकुछ है. यहां पर विदेशी पयर्टकों की भी भीड़ रहती है.

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उत्तराखंड

उत्तराखंड धरती का स्वर्ग है. यह राज्‍य पूरे पहाड़ी इलाकों और खूबसूरत परिदृश्यों के लिए लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है. गंगा और यमुना दो नदियां हैं जो उत्तराखंड में हिमालयी ग्लेशियरों से शुरू होती हैं. उत्तराखंड बहुत समृद्ध वनस्पतियों और जीवों का घर है. यहां हमेशा शुष्क सा मौसम बना रहता है. जिस वजह से पर्यटक इन जगहों के मुरीद हैं.

कितना सहेगी आनंदिता

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फैशन के मामले में तेजो को टक्कर देती हैं Udaariyaan की जैस्मिन, फतेह भी हार बैठेगा दिल

कलर्स का सीरियल उडारियां (Udaariyaan) इन दिनों दर्शकों को बेहद पसंद आ रहा है. सीरियल की कहानी में तेजो के पहले पति जस की एंट्री होने से जैस्मिन (Isha Malviya) जहां खुश नजर आ रही है तो वहीं फतेह और तेजो के रिश्ते पर मुसीबत आ गई है. अपकमिंग एपिसोड की बात करें तो जैस्मिन की दुश्मनी उसे तेजो की जान के खिलाफ ले जाएगी. लेकिन आज हम आपको उड़ारियां के किसी ट्विस्ट की नहीं बल्किन जैस्मिन के रोल में नजर आने वाली ईशा मालवीय (Isha Malviya) के फैशन के बारे में बताने वाले हैं. आइए आपको दिखाते हैं जैस्मिन के लुक्स की झलक…

इंडियन लुक्स में लगती हैं कमाल

 

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सीरियल उड़ारियां में जैस्मिन इंडियन लुक्स में नजर आती हैं. लहंगा हो या साड़ी हर लुक में जैस्मिन का लुक बेहद खूबसूरत लगता है. जैस्मिन यानी ईशा (Isha Malviya) के ये लुक लुक्स वेडिंग हो या फेस्टिव सीजन में ट्राय कर सकती हैं. इन लुक्स से आप पार्टी में चार चांद लगा सकते हैं.

 

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सूट में लगती हैं खूबसूरत

 

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जैस्मिन सीरियल में पंजाबी लुक में नजर आती हैं, जिसमें वह अलग-अलग तरह के सूट कैरी करते हुए नजर आती हैं, जिसमें वह बेहद खूबसूरत लगती है. वहीं इन लुक्स को वह फैंस के साथ शेयर करके अपने लुक्स के लिए तारीफें बटोरती हैं.

 

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ज्वैलरी का रखती हैं शौक

 

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जैस्मिन के लुक्स के अलावा ज्वैलरी की बात करें तो वह हैवी ज्वैलरी कैरी करते नजर आती हैं, जिसे फैंस काफी पसंद करते हैं. इन ज्वैलरी को वेडिंग या फेस्टिव सीजन में ट्राय किया जा सकता है, जो आपके लुक पर चार चांद लगा देगा.

 

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