नीति आयोग की रैकिंग में यूपी के 7 जिले टॉप 10 में शामिल

नीति आयोग ने जुलाई-अगस्त 2021 के सर्वे के आधार पर देश के अतिपिछड़े 112 जिलों की डेल्टा रैंकिंग जारी कर दी है. नीति आयोग की तरफ से जारी जुलाई- अगस्त 2021 डेल्टा रिपोर्ट में देश के आकांक्षात्मक जनपदों की सूची में प्रदेश के 8 जनपदों में से 7 जनपदों ने टॉप 10 में स्थान बनाया है. यह जनपद सिद्धार्थनगर, बहराइच, सोनभद्र, श्रावस्ती, फतेहपुर, चित्रकूट, चंदौली है.

फतेहपुर ने नीति आयोग के निर्धारित मानकों पर कार्य करते हुए पूरे देश में विकास के क्षेत्र में दूसरा स्थान हासिल किया है. वहीं तीसरे स्थान पर सिद्धार्थनगर, चौथे पर सोनभद्र, पांचवें पर चित्रकूट, सातवें पर बहराइच, आठवें पर श्रावस्ती और नौवें पर चंदौली ने स्थान बनाया है.

उत्तर प्रदेश के आठ आकांक्षात्मक जिलों में चित्रकूट और चित्रकूट ने नीति आयोग के मानकों पर उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है. आयोग ने इन जिलों को विकास कार्यों के लिए अतिरिक्त बजट आवंटित किया है. नीति आयोग की ओवरआल डेल्टा रैंकिग में चित्रकूट ने शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण सहित अनेक मानकों पर देश में पांचवा स्थान हासिल किया है.

डेल्टा रैंकिंग द्वारा छह विकासात्मक क्षेत्र स्वास्थ्य और पोषण, शिक्षा, कृषि और जल संसाधन, वित्तीय समावेश, कौशल विकास और बुनियादी ढांचा विकास हैं, जिन्हें रैंकिंग के लिए ध्यान में रखा गया. आकांक्षी जिलों की रैंकिंग हर महीने जारी की जाती है. आकांक्षी जिला कार्यक्रम जनवरी 2018 में शुरू किया गया. इसका उद्देश्य उन जिलों को आगे बढ़ाना है जिनमें महत्वपूर्ण सामाजिक क्षेत्रों में कम प्रगति देखी गई है और कम विकसित इलाके के तौर पर सामने आये हैं.

गांव-गांव युवाओं का संबल बनी ग्राम स्वरोजगार योजना

राज्य सरकार युवाओं को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाने के लिए बड़े प्रयास कर रही है. खाद्य प्रसंस्करण की योजनाएं गांव-गांव में बदलाव ला रही हैं. युवा खुद का स्वरोजगार तो स्थापित कर ही रहे हैं साथ में दूसरों को भी रोजगार दे रहे हैं.

महात्मा गांधी खाद्य प्रसंस्करण ग्राम स्वरोजगार योजना इसकी बड़ी मिसाल बनी है. इस योजना का लाभ लेकर गांव के किसान और युवा, उद्यमी बनने के साथ आर्थिक रूप से समृद्ध हो रहे हैं.

सरकार की प्राथमिकता गांवों में स्वरोजगार के इच्छुक युवाओं को प्रशिक्षण देकर उनको आत्मनिर्भर बनाने की है. जिससे युवाओं को आर्थिक लाभ होने के साथ गांव का विकास भी संभव हो सके. महात्मा गांधी खाद्य प्रसंस्करण ग्राम स्वरोजगार योजना इसमें बड़ी सहायक बनी है.

पंचायत स्तर पर युवाओं को 03 दिवसीय खाद्य प्रसंस्करण जागरूकता शिविर से जोड़ा जा रहा है. योजना से जुड़े युवाओं को 01 महीने का उद्यमिता विकास प्रशिक्षण दिया जा रहा है. प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद किसान और युवा फल-सब्जी, मसाला, दुग्ध, अनाज प्रसंस्करण की इकाईयां स्थापित कर रहे हैं. खाद्य प्रसंस्करण की इकाई स्थापित करने वाले युवा गांव के बेरोजगार युवकों को भी अपने यहां रोजगार दे रहे हैं.

योजना के तहत खाद्य प्रसंस्करण की इकाई स्थापित करने वाले युवाओं को मशीन या उपकरण की लागत का अधिकतम 50 प्रतिशत और 01 लाख रुपये का अनुदान भी दिया जा रहा है. जिससे गांव के किसान और युवाओं को संबल मिला है और वे स्वयं का रोजगार स्थापित करने में सफल हो रहे हैं.

स्वास्थ्य बीमा योजनाओं के प्रेरणास्रोत है प्रधानमंत्री जी

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने कहा है कि देश की सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में सबको स्वास्थ्य बीमा का कवर प्रदान कर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के सपने को पूरा किया जा रहा है. प्रधानमंत्री जी ने 03 वर्ष पूर्व दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा कवर योजना आयुष्मान भारत प्रारम्भ की थी. आयुष्मान भारत योजना के अन्तर्गत देश में 50 करोड़ लोगों को स्वास्थ्य बीमा कवर दिया जा रहा है. इस योजना से प्रदेश में 06 करोड़ लोग प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं.

मुख्यमंत्री जी लोक भवन में आयोजित एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री जन आरोग्य अभियान के अन्तर्गत अन्त्योदय राशन कार्ड धारकों को आयुष्मान कार्ड का वितरण कर रहे थे. इस अवसर पर मुख्यमंत्री जी ने 15 लाभार्थियों को आयुष्मान कार्ड अपने कर कमलों से प्रदान किए. उल्लेखनीय है कि आज प्रदेश के प्रत्येक जनपद में ब्लाॅक स्तर पर एक ही दिन में लगभग 01 लाख पात्र लोगों को इस योजना के अन्तर्गत आयुष्मान कार्ड का वितरण किया जा रहा है.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि 2011 की जनगणना के अनुसार एस0ई0सी0सी0 की सूची में कुछ परिवार आयुष्मान भारत योजना से वंचित रह गये थे. प्रदेश सरकार द्वारा मुख्यमंत्री जन आरोग्य अभियान से 8.45 लाख वंचित परिवारों के लगभग 45 लाख व्यक्तियों को जोड़ा गया. प्रदेश के 40 लाख से अधिक अन्त्योदय परिवार, जो आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना से आच्छादित होने से रह गये थे, उन परिवारों को मुख्यमंत्री जन आरोग्य अभियान के अन्तर्गत आच्छादित किया जा रहा है. इससे प्रदेश की एक बड़ी आबादी लाभान्वित होगी.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि राज्य सरकार प्रदेश के सभी प्रवासी एवं निवासी श्रमिकों, जिनका रजिस्ट्रेशन श्रम विभाग में है, उनको 02 लाख रुपये का सामाजिक सुरक्षा कवर एवं 05 लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा कवर उपलब्ध करा रही है. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री जी इन सभी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं के प्रेरणास्रोत हैं. उन्होंने कहा कि आयुष्मान भारत योजना ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में जागरूकता के साथ-साथ आमजन को जीने की एक राह दिखायी है. इसके अन्तर्गत लाभार्थी आयुष्मान भारत योजना में इम्पैनल्ड किसी अस्पताल में अपना उपचार करा सकता है.

चिकित्सा शिक्षा मंत्री श्री सुरेश खन्ना ने कहा कि लौकिक व अलौकिक जगत में जो मानवीय कार्य किये जाते हैं, वे दूसरों की जिन्दगी बनाते हैं. उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में एक करोड़ से अधिक परिवारों को स्वास्थ्य बीमा का कवर प्रदान किया जा रहा है. पूर्ववर्ती सरकार में मात्र 30 हजार रुपये स्वास्थ्य बीमा का कवर प्रदान किया गया था. प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व एवं मार्गदर्शन में वर्तमान में 05 लाख रुपये तक का स्वास्थ्य बीमा कवर प्रदान किया जा रहा है. मुख्यमंत्री जी द्वारा प्रधानमंत्री जी का अनुकरण करते हुए प्रदेश में सबसे निचले स्तर पर खड़े व्यक्ति के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए आज 40 लाख से अधिक परिवारों को मुख्यमंत्री जन आरोग्य अभियान के अन्तर्गत जोड़ा जा रहा है.

चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री श्री जय प्रताप सिंह ने कहा कि अन्तिम पायदान के 40 लाख अन्त्योदय राशन कार्डधारक परिवारों को मुख्यमंत्री जन आरोग्य योजना के अन्तर्गत जोड़ा जा रहा है.

इस अवसर पर चिकित्सा एवं स्वास्थ्य राज्य मंत्री श्री अतुल गर्ग, नीति आयोग के सदस्य डाॅ0 विनोद पाॅल, मुख्य सचिव श्री आर0के0 तिवारी, अपर मुख्य सचिव गृह श्री अवनीश कुमार अवस्थी, अपर मुख्य सचिव स्वास्थ्य श्री अमित मोहन प्रसाद, अपर मुख्य सचिव सूचना एवं एम0एस0एम0ई0 श्री नवनीत सहगल, निदेशक आई0आई0टी0 कानपुर श्री अभय करंदीकर, टीम-09 के सभी सदस्य, सूचना निदेशक श्री शिशिर तथा अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे.

ज्ञातव्य है कि उत्तर प्रदेश के 40.79 लाख अन्त्योदय राशन कार्डधारक परिवारों के 1.30 करोड़ सदस्यों को मुख्यमंत्री जन आरोग्य अभियान में शामिल किया गया है. शुरुआती 10 दिनों में ही लगभग 02 लाख लोगों ने इस योजना के अन्तर्गत अपना कार्ड बनवा लिया. समय-समय पर ‘मुख्यमंत्री जन आरोग्य अभियान’ के अन्तर्गत नई श्रेणियों को जोड़े जाने की भी व्यवस्था प्रदेश सरकार ने की और यह सुनिश्चित किया कि प्रदेश का कोई भी गरीब और वंचित परिवार योजना के दायरे से बाहर न रहे.

इसी क्रम में श्रम विभाग में पंजीकृत 11.65 लाख निर्माण श्रमिक परिवारों को भी योजना की पात्रता सूची में जोड़ा गया.
‘मुख्यमंत्री जन आरोग्य अभियान’ के माध्यम से प्रदेश के लगभग 61 लाख परिवारों के 1.87 करोड़ व्यक्तियों को 05 लाख रुपए तक के निःशुल्क इलाज की सुविधा मिलना सम्भव हो सका है.

प्रारम्भ में ‘प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना’ के अन्तर्गत प्रदेश की 24 प्रतिशत आबादी को स्वास्थ्य बीमा का लाभ मिल रहा था, लेकिन प्रदेश में ‘मुख्यमंत्री जन आरोग्य अभियान’ लागू होने से 13 प्रतिशत अतिरिक्त परिवारों को स्वास्थ्य बीमा कवर से जोड़ा गया. इसका परिणाम है कि आज प्रदेश की लगभग 37 प्रतिशत आबादी को 05 लाख रुपए तक की निःशुल्क उपचार सुविधा का लाभ मिल रहा है. इससे सतत विकास लक्ष्य के तहत गरीबी उन्मूलन और सबके लिए स्वास्थ्य के लक्ष्यों की पूर्ति में मदद मिलेगी.

त्योहारों के समय में निर्बाध विद्युत आपूर्ति आवश्यक – मुख्यमंत्री

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने प्रदेश के ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में सायं 06 बजे से प्रातः 07 बजे तक निरन्तर विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं. उन्होंने कहा है कि वर्तमान समय पर्वों एवं त्योहारों का है. प्रदेशवासी नवरात्रि का पर्व हर्षोल्लास के साथ मना रहे हैं. विभिन्न स्थलों पर रामलीला आदि का आयोजन किया जा रहा है. ऐसे समय में रात्रि में निर्बाध विद्युत आपूर्ति आवश्यक है.

मुख्यमंत्री जी आज यहां अपने सरकारी आवास पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से प्रदेश में विद्युत व्यवस्था की समीक्षा कर रहे थे. सभी मण्डलायुक्त, जिलाधिकारी, ए0डी0जी0, बिजली विभाग के वरिष्ठ अधिकारी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से समीक्षा बैठक में सम्मिलित हुए. उन्होंने यू0पी0पी0सी0एल0 के चेयरमैन को प्रदेश में विद्युत संयंत्रों को कोयले की आपूर्ति के सम्बन्ध में गहन समीक्षा करने के निर्देश दिए. उन्होंने कहा कि प्रदेश के विद्युत संयंत्रों को पर्याप्त कोयला आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए जाएं.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि प्रत्येक उपभोक्ता बिजली के बिल का भुगतान करना चाहता है. त्रुटिपूर्ण विद्युत बिलों से उपभोक्ता परेशान होता है, जिससे विद्युत बिल का कलेक्शन प्रभावित होता है. त्रुटिपूर्ण विद्युत बिलों के कारण उपभोक्ता को परेशानी नहीं होनी चाहिए. एग्रीमेण्ट के अनुसार कार्य न करने वाली विद्युत बिलिंग एजेंसियों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की जाए. ऐसी एजंेसियों की सिक्योरिटी जब्त की जाए, उनके विरुद्ध एफ0आई0आर0 कराने के साथ ही ब्लैक लिस्ट भी किया जाए.

मुख्यमंत्री जी ने विद्युत बिलों के सम्बन्ध में शीघ्र ही एकमुश्त समाधान योजना (ओ0टी0एस0) लागू करने के निर्देश दिए. उन्होंने कहा कि खराब ट्रांसफार्मर्स को निर्धारित व्यवस्था के अनुसार ग्रामीण इलाकों में 48 तथा शहरी क्षेत्रों में 24 घण्टों में आवश्यक रूप से बदला जाए. बदले गए ट्रांसफार्मर की गुणवत्ता भी परखी जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि ट्रांसफार्मर्स की क्षमता वृद्धि के सम्बन्ध में पूर्व में लागू व्यवस्था को पुनः क्रियान्वित किया जाए.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी के सम्बन्ध में तत्काल कार्यवाही की जाए. ट्यूबवेल के कनेक्शन समयबद्ध ढंग से प्रदान किए जाएं. जिस किसी किसान ने ट्यूबवेल के कनेक्शन के सम्बन्ध में भुगतान कर दिया है, उन्हें तत्काल विद्युत कनेक्शन प्रदान कर दिए जाएं. ऐसे मामलों को लम्बित न रखा जाए. सौभाग्य योजना सहित अन्य योजनाओं के लाभार्थियों के विद्युत बिलों में गड़बड़ी के मामलों का तत्काल समाधान कराया जाए.

मुख्यमंत्री जी ने पूर्वांचल, मध्यांचल, दक्षिणांचल, पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगमों तथा केस्को के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ विद्युत व्यवस्था की विस्तृत समीक्षा की. उन्होंने सभी विद्युत वितरण निगमों को विद्युत व्यवस्था सुचारु बनाए रखने तथा लाइन लॉस को कम करने के निर्देश दिए.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि बैठक में दिए गए निर्देशों के सम्बन्ध में सभी विद्युत वितरण निगमों के प्रबन्ध निदेशक फीडर स्तर पर जवाबदेही तय कर कार्य करें. यू0पी0पी0सी0एल0 के चेयरमैन के स्तर पर प्रतिदिन इनकी समीक्षा विद्युत वितरण निगमवार होनी चाहिए. हर दूसरे दिन अपर मुख्य सचिव ऊर्जा द्वारा प्रगति की समीक्षा की जाए तथा रिपोर्ट ऊर्जा मंत्री को उपलब्ध करायी जाए. ऊर्जा मंत्री द्वारा प्रगति की साप्ताहिक समीक्षा की जाए.

इस अवसर पर ऊर्जा मंत्री श्री श्रीकान्त शर्मा, मुख्य सचिव श्री आर0के0 तिवारी, कृषि उत्पादन आयुक्त एवं अपर मुख्य सचिव ऊर्जा श्री आलोक सिन्हा, पुलिस महानिदेशक श्री मुकुल गोयल, यू0पी0पी0सी0एल0 के चेयरमैन श्री एम0 देवराज, अपर मुख्य सचिव मुख्यमंत्री श्री एस0पी0 गोयल, प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री एवं सूचना श्री संजय प्रसाद, उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उत्पादन निगम एवं पारेषण निगम के प्रबन्ध निदेशक श्री पी0 गुरुप्रसाद, सूचना निदेशक श्री शिशिर सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे.

आदित्य का Imlie पर भरोसा तोड़ने के लिए मालिनी बनाएगी प्लान, देखें वीडियो

स्टार प्लस के सीरियल इमली में इन दिनों काफी ट्विस्ट एंड टर्न्स देखने को मिल रहे हैं, जिसके चलते शो दर्शकों को काफी पसंद आ रहा है. दो बहनें बनी सौतन की कहानी दर्शकों का दिल जीत रही है. लेकिन अपकमिंग एपिसोड में कुछ ऐसा होने वाला है, जिससे मालिनी(Mayuri Deshmukh), इमली (Sumbul Touqeer Khan) को बेइज्जत करती नजर आएगी. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

इमली को मिली इंटर्नशिप

अब तक आपने देखा कि इमली की इंटर्नशिप रुकवाने के लिए मालिनी नई चाले चलती है. लेकिन इमली (Sumbul Touqeer Khan) हार नहीं मानती है. हालांकि मालिनी पूरी कोशिश करती है कि आदित्य के ऑफिस में इमली को इंटर्नशिप करने से रोक पाए. इसी के चलते वह इमली का फौर्म फाड़ देगी. लेकिन इमली फटे हुए फॉर्म को जोड़कर भर देगी, जिसके कारण उसे आदित्य के साथ काम करने के लिए एक महीने की इंटर्नशिप मिलेगी. दूसरी तरफ मालिनी की मां अनु मीठी को बेइज्जत करती नजर आती है. हालांकि वह उसे करारा जवाब देती है.

 

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आदित्य का इमली पर भरोसा तोड़ेगी मालिनी

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि दुर्गा पंडाल के आयोजन को लेकर पूरा परिवार तैयारियां करना शुरु करेगा. वहीं आदित्य और त्रिपाठी परिवार, इमली को इस उत्सव की जिम्मेदारी देगा. लेकिन मालिनी इस बात से खुश नही होगी और वह इमली के खिलाफ नया प्लान बनाएगी और उसे आदित्य की नजरों से गिराने की कोशिश करेगी. दरअसल, आदित्य का इमली पर भरोसा देखकर मालिनी दुर्गा पंडाल में इमली की गलती निकालने की कोशिश करेगी. वह 9 मुर्तियों में से 1 मूर्ति छिपा देगी और अपने कमरे में ले जाएगी. हालांकि आदित्य की मां उसके कमरे में पहुंच जाएगी. लेकिन मालिनी मूर्ति को छिपाने में कामयाब हो जाएगी. अब देखना होगा कि इमली कैसे मालिनी की इस नई चाल का जवाब देगी.

 

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पाखी के कारण जौब छोड़ेगी अनुपमा! अनुज का होगा बुरा हाल

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupama) में इन वनराज और बा का गुस्सा देखने को मिल रहा है. जहां एक तरफ वनराज (Sudhanshu Pandey), काव्या के अनुज की कंपनी जौइन करने के कारण गुस्से में है तो वहीं बा अनुपमा को इस पूरी लड़ाई का कारण बताती नजर आ रही है. इसी बीच पाखी का माता-पिता के लिए गुस्सा अनुपमा-वनराज की लाइफ में एक बार फिर बदलाव लाने वाला है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

समर की जान पड़ी खतरे में

अब तक आपने देखा कि पाखी के लिए वनराज और अनुपमा साथ नजर आ रहे हैं तो वहीं समर की जान खतरे में पड़ती दिख रही है. दरअसल, नंदिनी घर छोड़कर जाने की कोशिश करती है. लेकिन अनुपमा उसे रोककर कारण पूछती है, जिसके जवाब में नंदिनी कहती है कि अगर वह समर से दूर नहीं गई तो रोहन उसे जान से मार देगा. दूसरी तरफ पाखी के सोशलमीडिया पर अनुपमा औऱ वनराज को साथ देखकर अनुज काफी परेशान नजर आता है.

 

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अनुज का हुआ बुरा हाल

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि अनुपमा, ऑफिस आकर पाखी के स्ट्रेस वाली बात अनुज को सुनाएगी और उसके साथ काम करने से मना कर देगी. वहीं अनुपमा का ये फैसला जानकर अनुज घबरा जाएगा और अनुपमा से मिन्नतें करके कहेगा कि वह वह ऐसा नहीं कर सकती और उसे रोकना चाहेगा. हालांकि ये सब अनुज का एक बुरा सपना साबित होगा, जिससे उठकर वह घबरा जाएगा और जीके उसे संभालते नजर आएंगे.

 

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अनुपमा को लगेगा झटका

दूसरी तरफ, पाखी के कारण वनराज पूरी कोशिश करेगा कि वह अनुपमा के साथ अपना रिश्ता सुधार सके. इसी बीच अपकमिंग एपिसोड में अनुपमा को बड़ा झटका लगता नजर आने वाला है. दरअसल, पाखी के साथ सब ठीक होने के बाद अनुपमा अनुज के साथ अपने होटल की शुरुआत करने के लिए कदम बढ़ाएगी. वहीं अनुज एक कुकिंग कॉम्पिटिशन भी रखेगा. जहां किंजल और देविका के साथ दोनों डांस करते नजर आएंगे. इसी बीच अनुपमा किसी को देखकर चौंकती नजर आएगी. अब देखना होगा कि अनुपमा के साथ क्या होने वाला है.

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वारिस : सुरजीत के घर में कौन थी वह औरत

family story in hindi

सास नहीं मां बनें

आज सुहानी जब औफिस में आई तो उखड़ीउखड़ी सी दिख रही थी. 2 वर्ष पूर्व ही उस का विवाह उसी की जाति के लड़के विवेक से हुआ था. विवाह क्या हुआ, मानो उस के पैरों में रीतिरिवाजों की बेडि़यां डाल दी गईं. यह पूजा है, इस विधि से करो. आज वह त्योहार है, मायके की नहीं, ससुराल की रस्म निभाओ. ऐसी ही बातें कर उसे रोज कुछ न कुछ अजीबोगरीब करने पर मजबूर किया जाता.

समस्या यह थी कि पढ़ीलिखी और कमाऊ बहू घर में ला कर उसे गांवों के पुराने रीतिरिवाजों में ढालने की कोशिश की जा रही थी. पहनावे से आधुनिक दिखने वाली सास असलियत में इतने पुराने विचारों की होगी, कोई सोच भी नहीं सकता था.

बेचारी सुहानी लाख कोशिश करती कि उस का अपनी सास से विवाद न हो, फिर भी किसी न किसी बहाने दोनों में खटपट हो ही जाती. सास तो ठहरी सास, कैसे बरदाश्त कर ले कि बहू पलट कर जवाब दे व उसे सहीगलत का ज्ञान कराए.

सो, बहू के बारे में वह अपने सभी रिश्तेदारों से बुराइयां करने लगी. यह सब सुहानी को बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा था. और तो और, उस के पति को भी उस की सास ने रोधो कर और सुहानी की कमियां गिना कर अपनी मुट्ठी में कर रखा था. नतीजतन, पति से भी सुहानी का रोजरोज झगड़ा होने लगा था.

हमारे आसपास में ही न जाने ऐसे कितने उदाहरण होंगे जिन में सासें अपनी बहुओं को बदनाम करती हैं और सभी रिश्तेदारों को अपने पक्ष में करने की कोशिश में सारी जिंदगी बहुओं की बुराई करने में बिता देती हैं.

एटीएम न मिलने का दुख

12 और 8 वर्षीय बेटियों की मां योगिता कहती हैं, ‘‘शादी होते ही जब मैं ससुराल गई तो मेरी सास ने तय कर रखा था कि पढ़ीलिखी बहू है, नौकरी तो करेगी ही और उस की तनख्वाह पर उन्हीं का ही हक होगा. लेकिन मेरे पति ने मुझे लेटेस्ट कंप्यूटर कोर्स करना शुरू करवा दिया. उन का कहना था कि अभी विवाह के कारण तुम अपनी पुरानी नौकरी छोड़ कर आई हो, नया कोर्स कर लोगी तो आगे भी नौकरी में फायदा रहेगा. मैं ने उन की बात मान कर कोर्स करना शुरू कर दिया.

पूरे दिन मेरी सास घर के बाहर ही रहतीं, उन्हें घूमनेफिरने का बहुत शौक है. मैं सुबह नाश्ते से ले कर रात का डिनर तक सब संभालती. उस के अलावा कंप्यूटर क्लास भी जाती और उस की पढ़ाई

भी करती. घर में साफसफाई के लिए कामवाली आती थी. सास मुझे ताने दे कर कहती कि क्या जरूरत है कामवाली की, तुम नौकरी तो कर नहीं रही हो. कभी कहतीं जब नौकरी करो तो ही सलवार सूट पहनो. अभी रोज साड़ी पहना करो.

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हमारी आर्थिक स्थिति उच्चमध्यवर्गीय थी. सो, मुझे समझ नहीं आया कि कामवाली और पहनावे का नौकरी से क्या ताल्लुक. लेकिन मैं ने कामवाली को नहीं हटाया. सास रोज किसी न किसी तरह मेरे काम में कमी निकाल कर उलटेसीधे ताने मारतीं. मुझे तो समझ ही न आया कि वे ये सब क्यों करती हैं.

मेरे पति से वे आएदिन अपनी विवाहित बेटी की जरूरतों को पूरा करने के लिए पैसे मांगती रहतीं. मेरे पति धीरेधीरे सब समझने लगे थे कि मम्मी की पैसों की डिमांड बढ़ती जा रही है. यदि हम अपने घर में कुछ नया सामान लाते तो वे झगड़ा करतीं और देवर के विवाह की जिम्मेदारी हमें बतातीं.

ऐसा चलते एक वर्ष बीत गया और तो और, मुझ से कहतीं, ‘अभी बच्चा पैदा मत करना.’ जबकि मेरी उम्र 29 वर्ष हो गई थी. मुझे समझ ही न आता कि यह कैसी सास है जो अपनी बहू को बच्चा पैदा करने पर रोक लगाती है.

मुझे हर बात पर टोकतीं और पति के साथ मुझे समय भी न बिताने देतीं. जैसे ही पति दफ्तर से घर आते, वे हमारे कमरे में आ कर बैठ जातीं.

एक दिन जब उन्होंने मुझे किसी बात पर टोका तो मैं ने भी पलट कर जवाब दिया. तो वे गुस्से में आगबबूला हो गईं और बोलीं, ‘‘नौकरी भी नहीं की तू ने, न जाने पढ़ीलिखी भी है कि नहीं, यदि करती तो तनख्वाह मुझे थोड़ी दे देती तू.’’

इतना सुन कर मुझे हकीकत समझते देर न लगी और मैं ने भी पलट कर कहा, ‘‘यही प्रौब्लम है न आप को, कि तनख्वाह नहीं आ रही. इसलिए घर की सारी जिम्मेदारी उठाने पर भी आप मुझे चैन से नहीं रहने देतीं. घर की कामवाली बना रखा है. माफ कीजिए आप को बहू नहीं, एटीएम मशीन चाहिए थी. वह न मिली तो आप मुझे चौबीसों घंटों की नौकरानी की तरह इस्तेमाल कर रही हैं. बेटा पूरी कमाई आप के हाथ में देदे और बहू चौबीसों घंटे आप की चाकरी करे.’’

बस, उसी दिन के बाद से उन्होंने मेरे देवरननद को मेरे खिलाफ भड़काना शुरू कर दिया. रिश्तेदारों से जा कर कहने लगीं, बहू को आजादी चाहिए, इसलिए बच्चा भी पैदा नहीं करती. मेरे ससुर को भी झूठी पट्टी पढ़ा कर मेरे खिलाफ कर दिया. कल तक जो ससुर मेरे पढ़ीलिखी होने के साथ घरेलू गुणों की तारीफ करते न थकते थे, अब मुझे बांझ पुकारने लगे थे.

रोजरोज के झगड़ों से परेशान हो कर मेरे पति ने अलग घर ले लिया और किसी तरह उन से पीछा छुड़ाया. अब हम उन्हें हर महीने पैसे दे देते हैं, वे चाहे जैसे रहें. उन्हें सिर्फ पैसा चाहिए, वे न तो मेरी बेटियों से मिलना चाहती हैं और न ही मैं उन की सूरत देखना चाहती हूं. बस, मेरे पति कभीकभी उन से मां होने के नाते, मिल लेते हैं.

संयुक्त परिवार नहीं चाहिए

25 वर्षीया रीता कहती है, ‘‘मेरे विवाह के समय मेरे पति विदेश में रहते थे. सो मैं भी विवाह होते ही उन के साथ चली गई. 2 वर्षों बाद जब हम अपने देश लौट आए और सास के साथ रहे, तब 2 महीने भी मेरी सास ने मुझे चैन से न रहने दिया. सारे दिन अपनी तारीफ करतीं और मुझे नीचा दिखाने की कोशिश करतीं. सब से पहले उन्होंने कहा कि मैं जींस और वैस्टर्न कपड़े न पहनूं क्योंकि आसपास में कई रिश्तेदार रहते हैं. मैं ने उन की वह  बात मान ली. लेकिन हर बात में बेवजह टोकाटाकी देख कर ऐसा लगता जैसे उन्हें हमारा साथ में रहना नहीं भाया.

‘‘जब तक बेटा विदेश में काम कर उन्हें पैसे देता था, सब ठीक था. लेकिन जैसे ही हम यहां आए, न जाने कौन सा तूफान आ गया. वे बारबार मेरे ससुर की आड़ में मुझे ताने देतीं. मेरे ससुर सीधेसादे रिटायर्ड बुजुर्ग हैं. उन से भी वे खूब झगड़ा करतीं. मैं फिर भी चुप रहती क्योंकि मैं जानती थी कि वे ससुर से भी बेवजह झगड़ा कर रही हैं, यदि मैं बीच में कुछ बोलूंगी तो वे मुझ से झगड़ना शुरू कर देंगी.

‘‘लेकिन हद तो तब हो गई जब मैं ने एक दिन खाना बना कर परोसा और वे मेरे हाथ के बने खाने में कमी निकाल कर मुझे नीची जाति का कहने लगीं. जबकि मैं और मेरे पति एक ही ब्राह्मण जाति के हैं. तो मैं ने भी पलट कर कह दिया, ‘आप ही मुझे लेने बरात ले कर आए थे तो मैं यहां आई हूं, तब मेरी जाति नजर नहीं आई आप को?’

‘‘बस, अगली ही सुबह जैसे ही मेरे पति औफिस गए, वे कहने लगीं, ‘‘मैं ने चावल में रखी कीटनाशक गोली खा ली है.’’ पहले तो मैं समझी नहीं, लेकिन मेरे ससुर भी मुझे कोसने लगे और कहने लगे कि डाक्टर को बुलाओ. तो मैं ने अपनी पति को फोन किया. वे बोले कि मम्मी को अस्पताल ले कर जाओ. मैं उन्हें अस्पताल ले कर गई और वहां भरती करवाया.

‘‘इस बीच, मैं ने अपनी जेठानी को भी फोन कर बुला लिया था, जो उसी शहर में ही अलग रहती थीं. क्योंकि मैं जान गई थी कि वे मेरे से ज्यादा अनुभवी हैं और मैं ने यह भी सुन रखा था कि सास के बुरे व्यवहार के कारण ही वे अलग रहने लगी थीं.

‘‘मेरी जेठानी ने वहां आ कर मुझे बताया कि यह पुलिस केस बनेगा तो मैं बहुत घबरा गई और मेरी आंखों से आंसू बह निकले. तब तक मेरे पति दफ्तर से छुट्टी ले कर अस्पताल पहुंच गए, उस से पहले अस्पताल वालों ने पुलिस को खबर कर दी थी कि आत्महत्या की कोशिश का केस आया है. मेरी जेठानी ने पुलिस से बात कर मामला सुलझा दिया.

‘‘नजदीकी रिश्तेदार यह खबर सुनते ही अस्पताल में जमा हो गए. मेरे ससुर ने सभी से कहा कि सासबहू का रात को झगड़ा हुआ. सब ने सोचा कि नई बहू बहुत खराब है और मेरे पति ने भी मुझे डांटा कि मम्मी से रात को उलझने की क्या जरूरत थी. सब से बुरी बात तो यह हुई कि जब अस्पताल में टैस्ट हुए और रिपोर्ट आई तो मालूम हुआ कि उन्होंने कोई कीटनाशक गोली नहीं खाई थी. यह सब मुझे बदनाम करने के लिए किया गया एक ड्रामा था ताकि मैं आगे से उन के सामने पलट कर जवाब देने की हिम्मत ही न करूं.

‘‘आज मैं, अपने पति के साथ विदेश में ही रहती हूं. लेकिन जब भी भारत आती हूं, अपनी सास से नहीं मिलना चाहती.’’

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रीता ने जब मुझे यह सब बताया तो वह आंसुओं में डूबी हुई थी और अपनी जेठानी का बहुत धन्यवाद कर रही थी. लेकिन अपनी सास के लिए उस के मन में नफरत के सिवा कुछ भी नहीं था.

सारी सासें एक सी

योगिता और रीता के किस्सों से मुझे अपनी एक चाइनीज सहेली की याद आई. उस चाइनीज सहेली का नाम है ब्रेंडा. वह शंघाई की रहने वाली थी और मलयेशिया में नौकरी करने गईर् थी. वहीं उसे एक रशियन लड़के से प्यार हो गया और दोनों ने विवाह भी कर लिया. विवाह को 6 वर्ष बीते और उस के पति का तबादला भारत में हो गया. उस का पति होटल इंडस्ट्री में कार्यरत था.

मेरी ब्रेंडा से मुलाकात हुई और हम सहेलियां बन गईं. हम दोनों अंगरेजी में ही बात किया करते थे.

3 वर्ष हम साथ रहे और उस ने मुझे अपनी सास से होने वाले झगड़ों के बारे में बताया. मैं आश्चर्यचकित थी कि क्या विदेशी सासें, जो देखने में बहुत मौडर्न लगती हैं, भी बुरा व्यवहार करती हैं? तो उस ने कहा, ‘‘यस, देयर आर सम ड्रैगन लेडीज हू कीप डूइंग समथिंग दिस ओर दैट टू स्पौयल अवर इमेज ऐंड शो देयर सैल्फ गुड’’ यानी कि कुछ महिलाएं ड्रैगन के समान बुरी होती हैं, जो अपनेआप को भली दिखाने के लिए हमारा नाम खराब करती रहती हैं. वह मुझे शंघाई और मलयेशिया की सासों के और भी बहुत किस्से सुनाया करती.

जब वह भारत में भी थी, उन 3 वर्षों में एक बार उस की रशियन सास भारत में उस के घर आईं और 2 महीने तक उस के साथ रहीं. उन दिनों ब्रेंडा रोज ही घर में सास द्वारा किए गए बुरे व्यवहार के किस्से सुनाया करती. साथ ही, उस ने यह भी बताया कि अपार्टमैंट में जो दूसरे रशियन लोग हैं, जिन से उस के पति की अच्छी दोस्ती भी है, उन से उस की सास ने उस के बारे में बहुत बुराइयां की.

उस के बाद ब्रेंडा कहती थी कि मैं अपनी मदर इन ला को भारत बुलाना ही नहीं चाहती. वे दूर रहें तो अच्छा है.

सुहानी, रीता, योगिता और ब्रेंडा सभी के किस्से सुन कर ऐसा लगता है कि यह यूनिवर्सल ट्रुथ है कि सास खाए बिना रह सकती है, पर बोले बिना नहीं.

कैसे पटेगा एकतरफा सौदा

सासबहू के रिश्ते में मधुरता की उम्मीद के साथ कोईर् भी पिता अपनी बेटी को दूसरी महिला के हाथ में सौंप देता है, जोकि उस की बेटी की मां की उम्र की होती है. इस में वह क्यों उस बहू के साथ बराबरी का कंपीटिशन बना लेती है. या यों कहिए कि देने के सिवा सिर्फ लेने का सौदा तय करना चाहती है. और यदि वह न मिले तो उसे सरेआम बदनाम करती है ताकि वह दुनिया की नजरों में अपनेआप को बेचारी साबित कर सके. क्योंकि वह एक नई लड़की के घर में कदम रखते ही घर में बरसों से चलती आई रामायण को महाभारत में बदल देती है, और सिर्फ स्वयं ही नहीं, घर के अन्य सदस्यों समेत उस पर चढ़ाई करने लगती  है?

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इसी बात पर एक बार ब्रेंडा ने कहा था, ‘‘एक्चुअली, शी यूज टू बी द क्वीन औफ द हाउस, नाऊ शी कैन नौट टोलरेट एनीबडी एल्स इन द हाउस.’’ यानी कल तक सास ही घर की रानी होती थी, सारा राजपाट उसी का था, अब वह किसी और को घर में राज करते कैसे बरदाश्त करे.’’ शायद ब्रेंडा ने सही ही कहा था, लेकिन क्या इस रिश्ते में खींचातानी की जगह प्यार व मिठास नहीं भरी जा सकती?

यदि गहराई से सोचा जाए तो इस मिठास के लिए सास को राजदरबार की रानी की तरह नहीं, एक मालिन की तरह का व्यवहार करना चाहिए. जिस तरह से मालिन नर्सरी से लाए नए पौधे उगा कर, उन्हें सींच कर हरेभरे पेड़ में बदल देती है, उसी तरह से अगर सास भी पराएघर से आई बेटी को अपने घर की मिट्टी में जड़ें फैलाने के लिए खादपानी व धूप का पूरा इंतजाम कर दे तो बहूरूपी वह पौधा हराभरा हो सकेगा और निश्चित रूप से मीठे फल मिलेंगे ही.

Financial Planning करते वक्त रखें 7 बातों का ख्याल

कम उम्र में जिम्मेदारियां कम होती हैं. ऐसे में सेविंग और लॉन्ग-टर्म फाइनैंशल प्लानिंग शुरू करने का यह सबसे अच्छा वक्त है. यंगस्टर्स को किस तरह करनी चाहिए अपनी फाइनैंशल प्लानिंग

1. बजट बनाएं और सेविंग करें

आप कितना कमा रहे हैं और कितनी बचत कर रहे हैं, इसका पूरा लेखा-जोखा रखने के लिए बजटिंग पहला कदम है. सबसे पहले महीने में आप जो भी खर्च कर रहे हैं, उसका हिसाब रखें. सामान्य डायरी, एक्सेल शीट या मोबाइल ऐप में से किसी का भी इस्तेमाल करके महीने का खर्च लिख सकते हैं.

तीन से चार महीने तक इस तरह की बजटिंग कर लेने के बाद आप अपने खर्चों को मुख्यत: तीन कैटिगरी में बांट सकते हैं. ये हैं: अनिवार्य खर्च, ऐसे खर्च जिन्हें रोका जा सकता है और मनोरंजन पर होने वाले खर्च.

2. फाइनैंशल लक्ष्य बनाएं

आप पैसा बचा तो रहे हैं लेकिन क्या इस पैसे से 10 साल बाद घर खरीद पाने की स्थिति में होंगे? या पांच साल बाद कार खरीद सकेंगे? दरअसल, सेविंग करते वक्त आपको इसी तरह से लक्ष्य बनाने की जरूरत है. लक्ष्यों को आप तीन कैटिगरी में बांट सकते हैं: शॉर्ट-टर्म, मीडियम टर्म और लॉन्ग-टर्म.

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हरेक को साफ-साफ लिखें और यह भी लिखें कि उन्हें पाने के लिए आपके पास कितने साल का समय है और आपको कितने पैसे की जरूरत होगी. यहां महंगाई दर को भी ध्यान में रखें. आज अगर किसी कार की कीमत 5 लाख है और आप लक्ष्य बनाते हैं कि सात साल बाद आपको वह कार खरीदनी है तो उस वक्त उस कार की कीमत 8.5 लाख के करीब होगी, इसलिए लक्ष्य 8.5 लाख का बनाएं, 5 लाख का नहीं.

3. सही इन्स्ट्रूमेंट में इन्वेस्टमेंट

यंगस्टर्स को आमतौर पर यह उलझन होती है कि वे किस इंस्ट्रूमेंट में पैसा लगाएं. शुरुआत करने के लिए आसान तरीके मसलन आरडी या एफडी अपनाए जा सकते हैं. अगर आप इंस्ट्रूमेंट्स के बारे में गहराई से नहीं जानते हैं तो आपको बैंक जैसी अपेक्षाकृत आसान सी जगहों पर अपना पैसा इन्वेस्ट करना चाहिए.

इंस्ट्रूमेंट का तरीका अपने लक्ष्य और उस लक्ष्य के लिए लगने वाले समय के आधार पर चुनना चाहिए. अगर लक्ष्य शॉर्ट-टर्म है तो आपको पैसा डेट में लगाना चाहिए. अगर लॉन्ग-टर्म है तो पैसा इक्विटी में लगाने का रास्ता चुनना चाहिए. मीडियम टर्म लक्ष्यों के लिए आपको इक्विटी और डेट का मिक्स चुनना चाहिए.

4. ज्यादा से ज्यादा टैक्स सेविंग

टैक्स सेविंग ज्यादातर यंगस्टर्स के लिए कोई खास मुद्दा नहीं है क्योंकि उनकी सैलरी उतनी ज्यादा नहीं होती, फिर भी जितनी जल्दी हो सके, अपनी टैक्स प्लानिंग कर लेना अच्छा ही रहता है. ऐसे इंस्ट्रूमेंट में पैसा इन्वेस्ट करना शुरू करें, जो 80 सी में आपको डेढ़ लाख तक की टैक्स छूट का फायदा देते हैं. पीपीएफ, ईपीएफ, एनपीएस, यूलिप आदि ऐसे तरीके हैं. इनमें से ऐसे ऑप्शन चुनें जो आपके लक्ष्यों की जरूरतों को पूरा करते हों या उन्हें चुनें जो अपने आप हो रहे हैं.

जो अपने आप हो रहे हैं, उनमें आप ईपीएफ को शामिल कर सकते है. एक अहम चीज यह भी है कि आप टैक्स आदि की गणना करने के बाद सही रिटर्न भी कैलकुलेट करें. इसके अलावा टैक्स बचाने के लिए आप अपने एम्प्लॉयर से भी बात कर सकते हैं कि वह आपको ऐसा सैलरी स्ट्रक्चर बनाए जिससे आपकी अधिकतम टैक्स बचत हो सके.

5. सही इंश्योरेंस का चुनाव

इंश्योरेंस का मूल मकसद यह है कि यह आपके जीवन में आने वाले रिस्क को कवर करता है. इससे रिटर्न की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए. कई बार लोग इंश्योरेंस और इन्वेस्टमेंट को मिक्स कर देते हैं क्योंकि बाजार में दोनों चीजें ऑफर करने वाले कई प्रॉडक्ट हैं. जहां तक लाइफ इंश्योरेंस की बात है तो टर्म प्लान में आप कम प्रीमियम देकर मोटी रकम का कवर ले सकते हैं, लेकिन इसकी खासियत यह है कि आपको कोई रिटर्न नहीं मिलता.

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6. इमरजेंसी के लिए बचाएं

कार, घर आदि लक्ष्यों को तो यंगस्टर्स ध्यान में रख लेते हैं, लेकिन उनका ध्यान इमरजेंसी की ओर नहीं जाता. अचानक जॉब चले जाने का खतरा हो या मेडिकल इमरजेंसी, आपको इमरजेंसी की स्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए. दूसरी तमाम सेविंग करने से पहले जरूरी है कि आप एक इमरजेंसी फंड बनाएं. यह आपके घर के 3 से 6 महीने के खर्च के बराबर रकम होनी चाहिए. अगर लोन की किस्त चल रही है तो वह रकम भी इसमें अलग से शामिल हो.

7. उधार के जाल में न फंसें

जब आप कम उम्र में होते हैं, तो इस बात के चांस ज्यादा होते हैं कि आप उधार के जाल में फंस जाएं. जिम्मेदारी कम होती है, पैसा और क्रेडिट कार्ड की सुविधा आपके पास आ ही जाती है. आपको जरूरत और शौक के बीच के फर्क को समझना चाहिए. क्रेडिट कार्ड का यूज करने वालों को कुछ बातों का ध्यान हमेशा रखना चाहिए. भूलकर भी क्रेडिट कार्ड के ड्यू को आगे के महीनों पर टालना नहीं चाहिए. ​ होम लोन और कार लोन चलते रहने के बाद भी अगर आप पर्सनल लोन लेते हैं तो आप बुरी तरह फंस सकते हैं.

कहीं खतना तो कहीं खाप… कब समाप्त होंगे ये शाप

“हद हो चुकी है बर्बरतां की. ऐसा लगता है जैसे हम आदिम युग में जी रहे हैं. महिलाओं को अपने तरीके से जीने का अधिकार ही नहीं है. बेचारियों को सांस लेने के लिए भी अपने घर के मर्दों की इजाजत लेनी पड़ती होगी.” विनय रिमोट के बटन दबाते हुए बार-बार न्यूज़ चैनल बदल रहा था और साथ ही साथ अपना गुस्सा जाहिर करते हुए बड़बड़ा भी रहा था. उसे भी टीवी पर दिखाए जाने वाले समाचार विचलित किए हुए हैं. वह अफगानी महिलाओं की जगह अपने घर की बहू-बेटी की कल्पना मात्र से ही सिहर उठा.

“अफगानी महिलाओं को इसका विरोध करना चाहिए. अपने हक में आवाज उठानी चाहिए.” पत्नी रीमा ने उसे चाय का कप थमाते हुए अपना मत रखा. उसे भी उन अपरिचित औरतों के लिए बहुत बुरा लग रहा था.

“अरे, वैश्विक समाज भी तो मुंह में दही जमाए बैठा है. मानवाधिकार आयोग कहाँ गया? क्यों सब के मुंह सिल गए.” विनय थोड़ा और जोश में आया. तभी उनकी बहू शैफाली ऑफिस से घर लौटी. कार की चाबी डाइनिंग टेबल पर रखती हुई वह अपने कमरे की तरफ चल दी. विनय और रीमा का ध्यान उधर ही चला गया. लंबी कुर्ती के साथ खुली-खुली पेंट और गले में झूलता स्कार्फ… विनय को बहू का यह अंदाज जरा भी नहीं सुहाता.

“कम से कम ससुर के सामने सिर पर पल्ला ही डाल लें. इतना लिहाज तो घर की बहू को करना ही चाहिए.” विनय ने रीमा की तरफ देखते हुए नाखुशी जाहिर की. रीमा मौन रही. उसकी चुप्पी विनय की नाराजगी पर अपनी सहमति की मुहर लगा रही थी.

“अब क्या कहें? आजकल की लड़कियाँ हैं. अपनी मर्जी जीती हैं.” कहते हुए रीमा ने मुँह सिकोड़ा.

शैफाली के कानों में शायद उनकी बातचीत का कोई अंश पड़ गया था. वह अपने सास-ससुर के सामने सवालिया मुद्रा में जा खड़ी हुई.

“आपको क्या लगता है? तालिबानी सिर्फ किसी मजहब या कौम का नाम है?” कहते हुए शैफाली ने अपना प्रश्न अधूरा छोड़ दिया. बहू का इशारा समझकर विनय गुस्से में तमतमाता हुआ घर से बाहर निकल गया. रीमा भी बहू के सवालों से बचने का प्रयास करती हुई रसोई में घुस गई.

यह कोई मनगढ़ंत या कपोलकल्पित घटना नहीं है बल्कि हकीकत है. यदि गौर से देखें तो हम पाएंगे कि हमारे आसपास भी अनेक छद्म तालिबानी मौजूद हैं. चेहरे और लिबास बेशक बदल गया हो लेकिन सोच अभी भी वही है.

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इन दिनों हर तरफ एक ही मुद्दा छाया हुआ है और वो है अफगानिस्तान पर तालिबानियों का कब्जा. चाहे किसी समाचार पत्र का मुखपृष्ठ हो या किसी न्यूज़ चैनल पर बहस… हर समाचार, हर दृश्य सिर्फ एक ही तस्वीर दिखा-सुना रहा है और वो है अफगानिस्तान में तालिबानी शासन के बाद महिलाओं की दुर्दशा… बुद्धिजीवी और विचारक केवल एक ही बात पर मंथन कर रहे हैं कि वहाँ महिलाओं पर हो रही अमानवीयता को कैसे रोका जाए. सोशल मीडिया पर तालिबानियों को भर-भर के कोसा जा रहा है. महिलाओं को उनके ऊपर हो रहे अत्याचारों के विरोध में आवाज बुलंद करने के लिए जगाया जा रहा है. सिर्फ मीडिया ही नहीं बल्कि आम घरों के लिविंग रूम में भी यही खबरें माहौल को गर्म किए हुए हैं.

कहाँ है बराबरी

कहने को भले ही हमारे संविधान ने महिलाओं को प्रत्येक स्तर पर बराबरी का दर्जा दिया हो लेकिन समाज आज भी उसे स्वीकार नहीं कर पाया है. महिलाओं और लड़कियों को स्वतंत्रता देना अभी भी उसे रास नहीं आता.

किसी और का उदाहरण क्या दीजिये, खुद कानून बनाने वाले और संविधान के तथाकथित रखवाले भी महिलाओं को लेकर कितने ओछे विचार रखते हैं इसकी बानगी देखिये.

“महिलाएं ऐसे तैयार होती हैं जिससे लोग उत्तेजित हो जाते हैं.” भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय.

“लड़के, लड़के होते हैं, उनसे गलतियाँ हो जाती हैं. लड़कियां ही लड़कों से दोस्ती करती हैं, फिर लड़ाई होने पर रेप हो जाता है.” सपा नेता मुलायम सिंह यादव.

“अगर दो मर्द एक औरत का रेप करें तो इसे गैंगरेप नहीं कह सकते.” जेके जोर्ज.

“शादी के कुछ समय बाद औरतें अपना चार्म खो देती हैं. नई-नई जीत और नई शादी का अपना महत्त्व होता है. वक्त के साथ जीत की याद पुरानी हो जाती है. जैसे-जैसे वक्त बीतता है, बीवी पुरानी होती जाती है और वो मजा नहीं रहता.” कांग्रेस नेता श्रीप्रकाश जायसवाल.

सिर्फ बड़े नेता ही नहीं बल्कि स्वयं देश के प्रधानमंत्री पर भी महिलाओं को लेकर दिए गए अभद्र बयान के छींटे हैं. 2012 में उन्होंने एक चुनाव सभा में शशि थरूर की पत्नी सुनन्दा थरूर को “पचास लाख की गर्लफ्रेंड” कहकर विवाद को जन्म दिया था.

इसके अतिरिक्त महिलाओं को “टंचमाल” कहकर दिग्विजय सिंह, “परकटी” कहकर शरद यादव, और “टनाटन” कहकर बंशीलाल महतो भी विवादों में घिर चुके हैं.

आज भी केवल भाई, पति, पिता और बेटा ही नहीं बल्कि हर पुरुष रिश्तेदार के लिए स्त्री की आजादी एक चुनौती बनी हुई है.

“फलां की लड़की बहुत तेज है. फलां ने अपनी बहू को सिर पर चढ़ा रखा है. सिर पर नाचने न लगे तो कहना.” जैसे जुमले किसी भी आधुनिक पौशाक पहनी, कार चलाती या फिर बढ़िया नौकरी करती अपने मन से जीने की कोशिश करती महिला के लिए सुने जा सकते हैं.

धर्म या समुदाय चाहे कोई भी क्यों न हो, महिलाओं को सदा निचली सीढ़ी ही मिलती है. एक उम्र के बाद खुद महिलाऐं भी इसे स्वीकार कर लेती हैं और फिर वे भी महिलाओं के प्रतिद्वंद्वी पाले में जा बैठती हैं. यह स्थिति संघर्षरत महिला बिरादरी के लिए बेहद निराशाजनक होती है.

जानवर जिंदा है

हर व्यक्ति मूल रूप से एक जानवर ही होता है जिसे समाज में रहने के लिए विशेष प्रकार से प्रशिक्षित किया जाता है. अवसर मिलते ही व्यक्ति के भीतर का जानवर खूंखार हो उठता है जिसकी परिणति बलात्कार, हत्या, लूट जैसी घटनाएं होती हैं. यही पाशविक प्रवृत्ति उसे महिलाओं के प्रति कोमल नहीं होने देती.

धर्म और संस्कृति के नाम पर सदियों से महिलाओं के साथ बर्बरता पूर्ण व्यवहार किया जाता रहा है. विभिन्न धर्मों में इसे भिन्न-भिन्न नाम से परिभाषित किया जाता है किन्तु मूल में सिर्फ एक ही तथ्य है और वो ये कि महिलाओं की उत्पत्ति पुरुषों को खुश रखने और उनकी सेवा करने के लिए ही हुई है. महिलाओं की यौनिच्छा को भी बहुत हेय दृष्टि से देखा जाता है. यहाँ तक कि विभिन्न प्रयासों से इस नैसर्गिक चाह को दबाने पर भी बल दिया जाता है.

मुस्लिम समुदाय की खतना प्रथा यानी फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन को इन प्रयासों में शामिल किया जा सकता है. वर्ष 2020 में यूनिसेफ द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार दुनिया भर में करीब 20 करोड़ बच्चियों और महिलाओं के जननांगों को नुकसान पहुंचाया गया है. हाल ही में “इक्विटी नाउ” द्वारा जारी नई रिपोर्ट के अनुसार खतना प्रथा विश्व के 92 से अधिक देशों में जारी है. इस प्रथा के पीछे धारणा यह रहती है कि ऐसा करने से स्त्री की यौनेच्छा खत्म हो जाती है.

महिलाओं को अपनी संपत्ति समझे जाने के प्रकरण आदिकाल से सामने आते रहे हैं. बहुपत्नी प्रथा इसी का एक उदाहरण है. मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार मुसलमानों को चार शादियां करने की छूट है. हिन्दू और ईसाइयों में हालांकि बहुपत्नी प्रथा को कानूनन प्रतिबंधित कर दिया गया है लेकिन यदाकदा इसकी सूचनाएं आती रहती हैं.

गुजरात प्रान्त में “मैत्री करार” नामक प्रथा प्रचलित थी जो कहीं-कहीं लुकेछिपे आज भी जरी है. इसमें स्त्री-पुरुष बाकायदा करार करके साथ रहना स्वीकार करते थे. यह करार “लिव इन रिलेशनलशिप” जैसा ही होता है. फर्क सिर्फ इतना है कि इसमें लिखित में करार होने के कारण शायद महिलाएं मानसिक दबाव में रहती हैं और पुरुष के खिलाफ किसी तरह की कोई शिकायत कहीं दर्ज नहीं करवाती होंगी. मैत्री प्रथा में पुरुष हमेशा शादीशुदा होता है. हालाँकि गुजरात के उच्च न्यायलय ने मीनाक्षी जावेरभाई जेठवा मामले में इसे शून्य आदित घोषित कर दिया था.

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स्त्री-पुरुष संबंधी मूल क्रिश्चियन मान्यता के अनुसार गॉड ने मैन को अपनी इमेज से बनाया और वुमन को उसकी पसली से. पुरुष को यह चाहिए कि वह महिला को दबाकर रखे और उससे खूब आनंद प्राप्त करे.

दोषी कौन?

ताजा हालातों के अनुसार अफगानिस्तान की महिलाएं पूरे विश्व क्व लिय्व सहानुभूति और दया की पात्र बनी हुई हैं क्योंकि तालिबानियों द्वारा लगातार उनकी स्वतंत्रता को कैद करने वाले फरमान जारी किये जा रहे हैं. उन पर विभिन्न तरह की पाबंदियां लगाईं जा रही हैं.

तालिबान शासन में लड़कियों को पढने की इजाजत तो दी गई है लेकिन इस पाबंदी के साथ कि वे लड़कों से अलग पढ़ेंगी और उनसे किसी तरह का कोई सम्पर्क नहीं रखेंगी. यूँ देखा जाये तो इस तरह की व्यवस्था भारत सहित अन्य कई देशों में भी है लेकिन यहाँ इसे महिलाओं के लिए की गई विशेष व्यवस्था के नाम पर देखा और इसे महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के रूप में प्रचारित किया जाता है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के अनुसार तालिबान में 90 प्रतिशत महिलाएं हिंसा का शिकार है और 17 प्रतिशत ने यौन हिंसा झेली है. मगर मात्र अफगानिस्तान ही नहीं बल्कि विश्व के प्रत्येक कोने से लड़कियों और युवा महिलाओ के लिए इस तरह की आचार संहिता या फतवे जारी होने की खबरें अक्सर पढ़ने-सुनने में आती रहती हैं.

वैश्विक समुदाय के परिपेक्ष में देखें तो राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार भारत में महिलाओं के खिलाफ हर घण्टे लगभग 39 अपराध होते हैं जिनमें 11 प्रतिशत हिस्सेदारी बलात्कार की है

यूरोप में महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर हुए ताजा सर्वे बताते हैं कि लगभग एक तिहाई यूरोपीय महिलाएं शारीरिक या यौन हिंसा की शिकार हुई हैं.

पेरिस स्थित एक थिंक टैंक फाउंडेशन “जीन सॉरेस” के मुताबिक देश की करीब 40 लाख महिलाओं को यौन हिंसा का शिकार होना पड़ा. यह कुल महिला आबादी का 12 प्रतिशत है यानी देश की हर 8 वीं महिला अपनी जिंदगी में रेप का शिकार हुई है.

जनवरी 2014 में व्हाइट हाउस की एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि दुनिया के सबसे विकसित कहे जाने वाले देश में भी महिलाओं की स्थिति कुछ खास अच्छी नहीं है. यहाँ भी हर पांचवीं महिला कभी न कभी रेप की शिकार हुई है. चौंकाने वाली बात ये है कि इनमें से आधी से अधिक महिलाएं 18 वर्ष से कम उम्र में इसका शिकार हुई हैं.

न्याय विभाग द्वारा 2000 के अध्ययन में पाया गया कि जापान में केवल 11 प्रतिशत यौन अपराधों की सूचना ही दी जाती है और बलात्कार संकट केंद्र का मानना है कि 10-20 गुना अधिक मामलों की रिपोर्ट के साथ स्थिति बहुत खराब होने की संभावना है.

कहीं खतना, कहीं खाप तो कहीं ओनर किलिंग… हर तरफ से मरना तो केवल स्त्री को ही है. यह भी गौरतलब है कि इस तरह के फरमान अधिकतर युवा महिलाओं के लिए ही जारी किए जाते हैं और इनका विरोध भी इसी पीढी द्वारा ही किया जाता है. तो क्या उम्रदराज महिलाएं इन फरमानों या शोषण किये जाने वाले रीतिरिवाजों से सहमत होती हैं? क्या उन्हें अपनी आजादी पर पहरा स्वीकार होता है? या फिर चालीस-पचास तक आते-आते उनकी संघर्ष करने की शक्ति समाप्त हो चुकी होती है?

उम्रदराज महिला नेत्रियों के उदाहरण देखें तो बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी बलात्कार के मामलों में लड़कों पर अधिक दोषारोपण नहीं करती वहीं दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भी लड़कियों को ही नसीहत देती नजर आई कि उन्हें एडवेंचर से दूर रहना चाहिए.

अमूमन घर की बड़ी-बूढ़ियां समाज के ठेकेदारों द्वारा निर्धारित इन नियमों को लागू करवाने में महत्ती भूमिका निभाती हैं. एक प्रकार से वे अपने-अपने घर में इन फैसलों का पालन करवाने के लिए अघोषित जिम्मेदारी भी लेती हैं. कहीं ये युवा पीढी के प्रति उनकी ईर्ष्या या जलन तो नहीं? कहीं ये विचार तो उनसे ये सब नहीं करवाता कि जो सुविधाएं या आजादी भोगने में वे नाकामयाब रही वह स्वतंत्रता आने वाली पीढ़ी को क्यों मिले. ठीक वैसे ही जैसे आम घरों में सास-बहू के बीच तनातनी देखी जाती है. सास ने अपने समय में अपनी सास की हुकूमत मन मारकर झेली थी, वह यूँ ही बिना किसी अहसान के अपनी बहू को सत्ता कैसे सौंप दे? या फिर उम्रदराज महिलाओं के इस आचरण के पीछे भी कोई गहरा राज तो नहीं? कहीं ऐसा तो नहीं कि पुरूष प्रधान समाज का कोई डर उनके अवचेतन मन में जड़ें जमाए बैठा है और वही डर महिलाओं से अपने ही प्रजाति की खिलाफत खड़ा कर रहा हो.

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प्रश्न बहुत से हैं और उत्तर कोई नहीं. जितना अधिक गहराई में जाते हैं उतना ही अधिक कीचड़ है. चाहे किसी भी धर्म की तह खंगाल लो, स्त्री को सदा “नर्क का द्वार” या फिर “शैतान की बेटी” ही समझा जाता रहा है और उसके सहवास को महापाप. सदियां गुजर चुकी हैं लेकिन अभी भी कोई तय तिथि नहीं है जिस पर स्त्री की दशा पूरी तरह से सुधरने का दावा किया जा सके. हजारों सालों से जिस व्यवस्था में कोई परिवर्तन नहीं आ सका उसकी उम्मीद क्या आने वाले समय में की जा सकती है?

उम्मीद पर दुनिया कायम है या आशा ही जीवन है जैसे वाक्य मात्र छलावा ही दे सकते हैं कोई उम्मीद नहीं.

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