जामदानी सिल्क को देते हैं मॉडर्न लुक, पढ़ें खबर

सालों से फैशन इंडस्ट्री में नाम कर चुके बेस्ट कॉस्टयूम डिजाईन नेशनल अवार्ड 2019 पुरस्कार विजेता टेक्सटाइल और फैशन डिज़ाइनर गौरांग शाह ने विलुप्त होती कारीगरी को नए रूप में लाकर इस विधा में काम करने वालों के हौसले को बढाया है, पहले जो कारीगर अपनी रोजी-रोटी के लिए तरस रहे थे, उन्हें काम और भरपेट भोजन मिला. गौरांग ने हर एक कारीगरी को अलग रंग और फैब्रिक देकर आज के परिवेश में पहनने योग्य बनाया है. वे मानते है कि हैण्डलूम टाइमलेस होता है और किसी भी डिजाईन में उसे बनाने पर खुबसूरत दिखता है. इसलिए हैंडलूम कपड़ों की सुन्दरता कभी ख़त्म नहीं होती.

मुश्किल है विलुप्त कारीगरी को बचाना

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फैशन के क्षेत्र में 20 साल से अधिक समय गुजार चुके गौरांग को हर एक विलुप्त होती कारीगरी को रैंप पर लाने की चुनौती आकर्षित करती है. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा है कि हैंडलूम, पॉवरलूम के आने से ख़त्म हो चुकी थी, क्योंकि पॉवरलूम से बने कपडे जल्दी बनने की वजह से सस्ते होते है, जबकि हैंडलूम से बने कपडे महंगे हुआ करते है, क्योंकि इसे बनाने में समय अधिक लगता है.इसलिए हैंडलूम को मॉस में पहुँचाना मुश्किल होता है. FDCIलेक्मे फैशन वीक विंटर कलेक्शन में डिज़ाइनर गौरांग ने ‘चाँद’ कांसेप्ट पर आधारित कपडे रैम्प पर उतारे.

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चाँद जैसी खूबसूरती

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कांसेप्ट ‘चाँद’की गरिमा को उन्होंने अलग तरीके से प्रस्तुत कीहै. उनके अनुसार चाँद के उगने परजब उसकी शीतल किरणें धरती पर पड़ती है, तो पूरी धरती पर मानो सफ़ेद चादर बिछ जाती है, इसी कल्पना के साथ उन्होंने पूरे भारत की कारीगरी को जामदानी सिल्क साड़ियों में उतारा. शो की शुरुआत को अधिक आकर्षक बनाने के लिए उन्होंने ग़ज़ल सम्राट अनूप जलोटा की ग़ज़ल‘चाँद अंगड़ाईयाँ ले रही है, चांदनी मुस्कुराने लगी है…… का लाइव सिंगिग प्रस्तुत किया. इससे रैंप पर उतरी मॉडल्स की भव्य प्रस्तुति भी देखने लायक रही. शो स्टोपरअभिनेत्री तापसी पन्नू कीजामदानी सिल्क साड़ी पर ‘वाइड फ्लोरल बॉर्डर’और अनूप जलोटा द्वारा लाइव गीत ‘चौदहवी का चाँद हो……गाने ने इस शो में चार चाँद लगाये.

जामदानी की तकनीक है कठिन

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डिज़ाइनर गौरांग कोविड 19 के लॉकडाउन के बाद पहली बार ‘चाँद’कलेक्शन को रैंप पर उतारे है. इस कांसेप्ट के बारें में उनका कहना है किये कलेक्शन मानव क्रिएटिविटी को कपड़ों के द्वारा प्रस्तुत करने काएक बेहतरीन उदाहरण है,जो लगातार जारी है. ये कला फैशन से हटकर महिला को एक अलग दुनिया के बारें में सोचने का मौका देती है, जो रोमांस और टाइमलेस सोफिस्टीकेशन होने का एहसास दिलाती है.

जामदानी कपड़ो की बुनाई की तकनीक सबसे कठिन होती है, ये कला ढाका, बनारस, कोटा, श्रीकाकुलम, उप्पदा, वेंकटगिरी, कश्मीर और पैठन में बुनी जाती है. इसे मॉडर्न लुक देने के लिए गौरांग ने पेस्टल, लाइट पिंक, लाइट ग्रीन जैसे आकर्षक रंगों के साथ कढ़ाई की सहायता ली है. इन 40 साड़ियों को बुनकरों ने पेंडेमिक और लॉकडाउन के दौरान पिछले 3 सालों से अपने-अपने घरों में बैठकर तैयार किया है.

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पेंड़ेमिक का असर फैशन इंडस्ट्री पर पड़ने के बारें में गौरांग का कहना है कि कोविड 19 की वजह से काम थोडा धीमा था, क्योंकि इसका असर कारीगरों पर अधिक हुआ है, उनकी रोजी-रोटी ख़त्म हो रही थी,लेकिन अब वे धीरे-धीरे सामान्य होते जा रहे है. फैशन का काम जो पहले महीनों में पूरा होता था, अब कोविड की वजह से पूरा साल लग गया है और नए-नए डिजाईनों पर अधिक काम नहीं हो पाया है.इसके अलावा कोविड की वजह से शोरूम बंद करने पड़े, जिससे कपड़ों की बिक्री पर काफी प्रभाव पड़ा है. अभी मेरे सारे शो रूम फिर से खुल चुके है.

सेंसर बोर्ड की लापरवाही से फिल्म #Theconversion के प्रदर्शन को लेकर गहराया रहस्य

‘‘लव जेहाद’’ और जबरन धर्म परिवर्तन का एक लड़की पर क्या असर होता है,इस विशय पर फिल्मकार विनोद तिवारी ने सोचने पर मजबूर करने वाली फिल्म ‘द कन्वर्जन‘ बनायी है,जिसे वह आठ अक्टूबर को देश के सिनेमाघरों में प्रदर्षित करना चाहते थें,लेकिन अफसोस की बात यह है कि सेंसर बोर्ड की लापरवाही के चलते ऐसा संभव ही नही हो पाया.हालात यह हैं कि ‘‘केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड’’ यानी कि सेंसर बोर्ड ने अभी तक फिल्म ‘‘द कंवर्जन’’ को प्रमाणपत्र ही नही दिया है,जबकि फिल्म के निर्माताओं ने अपनी तरफ से सेंसर बोर्ड की मांग के अनुरूप सारे कागज,फिल्म व रकम समय पर ही अदा कर दी थी.

निर्माता ने अपनी फिल्म ‘‘द कंवर्जन’’ को ‘‘केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड ’’ से प्रमाणित करवाने के लिए  16 अगस्त को ही निवेदन कर दिया था.लेकिन यह फिल्म तभी से सेंसर बोर्ड के पास अटकी हुई है.सेंसर बोर्ड की परीक्षण समिति अब तक तीन बार फिल्म को देख चुका है.लेकिन सेंसर बोर्ड शायद खुद किसी निर्णय पर नही पहुॅच पा रहा है, इसीलिए अभी तक सेंसर बोर्ड ने फिल्म में दृश्यों या संवादों पर किसी भी आपत्ति के बारे में निर्माताओं को सूचित नहीं किया है.मगर सेंसर बोर्ड की लापरवाही का आलम यह है कि फिल्म के निर्माता व निर्देशक द्वारा बार बार गुहार लगाने और फिल्म क ेप्रदर्षन की तारीख के बारे में सूचित किए जाने के बावजूद सेंसर बोर्ड फिल्म ‘‘द कंवर्जन’’को पारित या अस्वीकार करने को लेकर किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा है.अब तक फिल्म के निर्माता को सेंसर बोर्ड से इस संबंध में लिखित में कोई जवाब नही मिला है.

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आठ अक्टूबर की तारीख टलने के बाद अब फिल्म के निर्माता ‘‘द कंवर्जन’’को देशभर और विदेशों में 15 अक्टूबर को प्रदर्षन करने के लिए पूरी तैयारी कर ली है.पूरे भारत में सिनेमाघरों में प्रमोशन के लिए पोस्टर भेजे जा चुके हैं. सिनेमाघरों को तो ठीक कर दिया गया है, लेकिन ऐसे समय में सेंसर बोर्ड के निर्णय की कमी से फिल्म को भारी नुकसान हो सकता है.

फिल्म ‘द कन्वर्जन‘ के निर्माता का कहना है कि अगर फिल्म 15 अक्टूबर को प्रदर्षित नहीं होगी, तो इससे उन्हें करोड़ो का आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा.इससे पहले भी निर्माता अपनी फिल्म के प्रदर्षन की तारीख दो बार बदल चुके हैं.मगर सेंसर बोर्ड का रवैया समझ से परे हैं.

बनारस के खूबसूरत घाटों पर फिल्माई गई फिल्म ‘‘द कंवर्जन’’ भारत में प्रेम विवाह के दौरान होने वाले धार्मिक रूपांतरणों की दुविधा की पड़ताल करती है.यानी कि यह फिल्म ‘लव जेहाद’ को लेकर है.इस फिल्म के संबंध में कुछ समय पहले निर्देशक विनोद तिवारी ने कहा था-‘‘यह कालेज की पृष्ठभूमि में एक त्रिकोणीय प्रेम कहानी है.किस एक लड़की ‘लव’ट्ैप में फंसती है,किस तरह प्रेम में पड़ती है और फिर किस किस पीड़ा से गुजरती है,उसकी इसी दर्दनाक यात्रा की दास्तान है फिल्म ‘‘द कंवर्जन’’.मैं आपसे साफ साफ कहता हॅूं कि हमारी यह फिल्म किसी भी जाति, किसी भी धर्म,किसी भी मजहब,किसी भी संप्रदाय के खिलाफ नही है.यह फिल्म एक पीड़ा है.यह फिल्म एक गंदी सोच के खिलाफ लड़ाई है.इंसान बुरा नही होता,इंसान की सोच बुरी होती है. ’’

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फिल्म ‘‘द कंवर्जन’’को अभिनय से संवारने वाले कलाकार हैं-विंध्या तिवारी, रवि भाटिया, प्रतीक शुक्ला, विभा छिब्बर, अमित बहल, मनोज जोशी, सुनीता रजवार, संदीप यादव, सुशील सिंह.

दो युवतियां: भाग 4- क्या हुआ था प्रतिभा के साथ

प्रवीण जितना कर सकता था, कर रहा था. उस ने मेरे ऊपर काफी रुपया खर्च किया. अधिकांश रुपया तो होटल और रिसोर्ट्स में खर्च हुआ था. बाकी मेरे उपहारों पर… फिर भी मैं संतुष्ट नहीं थी. उपहारों से तो थी, पर शरीर की मांग बढ़ती ही जा रही थी और इसे पूरा करने में प्रवीण खुद को असमर्थ पा रहा था. मैं जितना मांगती, उतना ही वह पीछे हटता जाता.

आखिर प्रवीण मेरी बढ़ती मांग से परेशान हो गया. अब वह मुझ से कटने लगा, लेकिन मैं उसे कहां छोड़ने वाली थी. अभी कुछ छुट्टियां बाकी थीं. मैं ने उस से कहा, ‘‘छुट्टियां खत्म होने से पहले एक बार वाटर पार्क चलते हैं. रात को रिसोर्ट में  ही रुकेंगे.’’

प्रवीण कुछ सोच कर बोला, ‘‘यार, मैं ने काफी पैसा खर्च कर दिया है. अभी छुट्टियां हैं. पिताजी से मांगना मुश्किल है. मैं क्या बताऊंगा उन्हें? मम्मी का पर्स मैं ने खाली कर दिया है. कालेज बंद है इसलिए  कौपीकिताबों का बहाना भी नहीं चल सकता.’’

‘‘तो फिर… कुछ न कुछ करो.’’

‘‘मैं एक काम करता हूं. मैं अपने कुछ दोस्तों से बात करता हूं. हम सभी मिल कर प्रोग्राम बनाते हैं. इस से रिसोर्ट और वाटर पार्क का खर्च आपस में बंट जाएगा. किसी एक के ऊपर बोझ भी नहीं पड़ेगा.’’

‘‘लेकिन तुम और मैं…’’

‘‘हम दोनों अलग कमरे में रह कर मौज करेंगे.’’

मैं ने ज्यादा नहीं सोचा, मान गई. अगले ही दिन प्रवीण अपने 4 दोस्तों के साथ मुझे ले कर एक बहुत अच्छे रिसोर्ट कम वाटर पार्क में चला गया. दिन भर हम लोगों ने वाटर पार्क में मस्ती की. शाम को खाना खाया. प्रवीण ने अपने दोस्तों के साथ बियर पी. कुछ ने शायद ड्रिंक भी ली थी. मैं ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया. मुझे तो खाना खा कर कमरे में जाने की जल्दी थी, ताकि मैं प्रवीण के साथ अपने कामसुख को प्राप्त कर सकूं.

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उस दिन पहली बार ऐसा हुआ जब खाना खातेखाते मुझे झपकी आने लगी. खाना खत्म होने तक मैं मदहोश सी हो गई थी. मुझे याद है, प्रवीण मुझे सहारा दे कर कमरे में लाया था. कमरे के अंदर आते ही मैं ने अनिद्रा में उस को कस कर भींच लिया था. फिर मैं उस को अपने ऊपर लिए पलंग पर गिर पड़ी.

कैसी थी वह रात… भयानक और लिजलिजी सी. सारी रात मैं जागतीसोती सी अवस्था में रही. जब भी मेरी तंद्रा टूटती मुझे लगता, कोई पहाड़ मेरे ऊपर सरक रहा है. मैं फूल सी मसलती जाती और लगता, जैसे मेरे अंदर कोई गरम लावा बह रहा था. बेहोशी के आलम में मैं कुछ समझ न पाती कि मेरे साथ क्या हो रहा था, पर जो भी हो रहा था, वह बहुत घिनौना और भयानक था. पूरी रात न तो मेरी बेहोशी टूटी, न मेरे ऊपर से पहाड़ हटा, मैं टूटी ही नहीं, मसल दी गई थी, पूरी तरह से. अब मैं किसी मंदिर का फूल नहीं थी, मैं सड़क पर गिरा हुआ एक फूल थी, जिस के ऊपर से सैकड़ों लोगों के पैर गुजर चुके थे.

अगले दिन दोपहर को जब मेरी तंद्रा टूटी, तब मुझे एहसास हुआ कि मेरे साथ क्या हुआ था. पूरी रात मुझे 5 दरिंदों ने झिंझोड़ा ही नहीं, नोच कर खाया भी था. मेरे शरीर के खून की एकएक बूंद उन पांचों वहशियों ने पी थी, उन के मुख लाल थे और मैं रक्तविहीन, अर्द्धबेहोशी की हालत में लुटी, असहाय बिस्तर पर निर्वस्त्र पड़ी थी. मुझ में इतनी भी ताकत नहीं बची थी कि मैं उठ कर अपनी अस्मत को कपड़े के एक टुकड़े से ढक सकती.

वे पांचों कुटिलता से मुसकरा रहे थे. मेरा शरीर जल रहा था, लेकिन मैं उठ कर उन के रक्त से सने मुख नहीं नोच सकती थी. मैं ने अपने मुरदा हाथों को उठा कर किसी तरह अपनी जांघों के बीच रखा, तभी प्रवीण की कुटिलता भरी हंसी की ध्वनि मेरे कानों में पड़ी. वह कह रहा था, ‘‘आशा है, अब तुम्हारी कामेच्छा शांत हो गई होगी. इस के बाद अब तुम्हें किसी और के पास जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी.’’

सुनतेसुनते मैं फिर से बेहोश होने लगी थी और इसी अर्द्धबेहोशी की हालत में मैं ने देखा कि पांचों भेडि़यों के जबड़े फैलने लगे थे. उन की आंखों में क्रूरता और पिपासा के भाव जाग्रत हो रहे थे. वे फिर से मेरे ऊपर हमला करने के लिए स्वयं को तैयार कर रहे थे.

अंतिम हमला मैं ने कैसे झेला, मुझे नहीं पता.

शहर वाली युवती…

प्रतिमा की आंखों में इंद्रधनुषी सपने थे, लेकिन सपने देखने वाला व्यक्ति यह भूल जाता है कि नींद टूटने के बाद केवल सुबह का उजाला ही नहीं दिखाई पड़ता है, कभीकभी चारों तरफ नीरव रात का अंधेरा भी होता है. इंद्रधनुषी आसमान में घनघोर घटाएं भी घिरती हैं जो कभीकभी अतिवृष्टि से धरा को जलमग्न कर देती हैं. तब चारों ओर सैलाब का हाहाकार होता है, जिस में सबकुछ बह जाता है.

मुझे यह महसूस हो रहा था, प्रतिमा प्रेम के रंग में नहीं, बल्कि आधुनिकता की बंधनहीन स्वतंत्रता और उच्छृंखलता के बीच भटक गई थी. वह प्रेम की पवित्रता और मर्यादा को तोड़ कर पाश्चात्य सभ्यता के नवनिर्मित उन्मुक्त संसार में विचरने लगी थी. इस उन्मुक्त संसार में कोई नैतिक मूल्य नहीं थे. युवकों और युवतियों को जो अच्छा लग रहा था, वही कर रहे थे. मेरा मानना है कि प्रेम को उन्मुक्त नहीं होना चाहिए. बिना किसी प्रतिबंध और प्रतिबद्धता के जब हम कोई कार्य करते हैं, तो उस के दुष्परिणाम भी भयंकर होते हैं.

आज का युवा जिस संसार में सामाजिक मूल्यों को तोड़ कर रह रहा है, उस के दुष्परिणाम दोचार साल में ही सामने आने लगते हैं. एकदूसरे के ऊपर आरोपप्रत्यारोप, अत्याचार, शोषण और बलात्कार के मुकदमे दर्ज हो रहे हैं. जो जीवन में कभी नहीं होता था, वह युवा अपने छात्र जीवन में ही एक अपराधी की तरह झेलने को मजबूर हो जाता है. यही आधुनिक प्रेम की परिणति है.

प्रतिमा कितनी सीधी और शर्मीली थी, लेकिन आज उस ने शर्म और संकोच के सभी बंधन तोड़ दिए हैं. जो व्यक्ति कभी घर से नहीं निकलता है, वह बाहर की धूप में आ कर चौंधिया जाता है, रास्ते उसे भरमाते हैं, तो हवाएं उसे मदहोश कर देती हैं. ऐसे में उस का भटकना स्वाभाविक होता है. प्रतिमा के साथ भी यही हो रहा था. अचानक कसबे से शहर आई तो यहां की चकाचौंध ने उसे भ्रमित कर दिया. चारों तरफ चमकदमक थी और वह उस रंगीन दुनिया में भटक गई.

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मैं उस के बारे में चिंतित हूं. मुझे पता चल गया है कि वह प्रवीण के साथ कौन सा खेल खेल रही थी. मैं उसे समझाना चाहती हूं, पर वह मुझ से बात ही नहीं करती, जैसे मैं प्रवीण को उस से छीन लूंगी. मुझे क्या पड़ी है?

प्रवीण को तो मैं ने ही ठुकराया था. फिर मुझे युवकों की क्या कमी? सारे तो मेरे पीछे पड़े रहते हैं, लेकिन प्रतिमा ने ऐसा क्यों किया? चटाक से सारे बंधन तोड़ दिए और परदों को खींच कर फाड़ दिया. क्या कोई विश्वास करेगा कि कुछ दिन पहले तक वह एक शर्मीली युवती थी. इतनी शर्मीली कि युवतियों से भी बात करने में उस की जबान लड़खड़ाने लगती थी, लेकिन आज वह युवकों के साथ तितलियों की तरह उड़ती फिर रही है.

प्रेम की बयार न जाने उसे ले कर कहां पटकेगी?

यों ही एक दिन मेरे मन में आया कि अचानक जा कर प्रतिमा से मिलूं. मैं उस के होस्टल गई, वह वहां नहीं थी. किसी को पता भी नहीं था कि कहां गई है? छुट्टियां थीं, इसलिए वार्डन को भी परवा नहीं थी. मैं ने उस का मोबाइल मिलाया लेकिन वह बंद था. मुझे चिंता हुई. उस के होस्टल के चौकीदार से बस इतना पता चला कि 3-4 दिन से वह होस्टल नहीं आई थी.

कुछ सोच कर मैं ने प्रवीण को फोन मिलाया. उस का फोन भी स्विच औफ था. अचानक दिमाग में आया कि उन दोनों के साथ कोई हादसा तो नहीं हो गया. मैं ने अपनी कुछ क्लासमेट्स से बात की. उन्हें भी उन का कुछ पता नहीं था. प्रतिमा मुझ से विरक्त थी, पर मुझे उस की चिंता थी. पहले मैं ने अपने मम्मीपापा से बात की. उन्होंने भी चिंता व्यक्त की कि कुछ भी हो सकता है. फिर हमसब कालेज प्रशासन से मिले. उन्होंने तत्काल प्रतिमा के घर संपर्क करने के लिए कहा. कालेज रिकौर्ड से उस के घर का पता और फोन नंबर मिल गया. पता चला कि प्रतिमा घर भी नहीं गई थी.

सब ने सलाह की कि पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवा दी जाए. यह कालेज प्रशासन की तरफ से हुआ. पुलिस ने सब से पहला काम यह किया कि मेरे कहने पर प्रवीण और प्रतिमा के कौल डिटेल्स निकलवाए. उन से पता चला कि प्रतिमा की अंतिम बातचीत प्रवीण के फोन पर हुई थी और उस की अंतिम लोकेशन रोहतक रोड का एक रिसोर्ट था. प्रवीण के फोन की भी यही लोकेशन थी. हालांकि प्रवीण के फोन से बाद में अन्य लोगों से भी बात हुई थी और उस की अंतिम बातें शहर की लोकेशन से हुई थीं. इस से यह साबित हो गया कि अंतिम समय में प्रतिमा और प्रवीण एकसाथ थे.

पुलिस ने सक्रियता दिखाई और सब से पहले प्रवीण के घर पर छापा मारा. वह घर पर निश्चिंत और बेखौफ था. उसे थाने लाया गया. उस से पूछताछ हुई, पर हर पेशेवर अपराधी की तरह उस ने भी मनगढ़ंत कहानियां सुनाईं, पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की, लेकिन फोन के कौल डिटेल्स अलग ही कहानी बयां कर रहे थे. उन के आधार पर प्रवीण टूट गया. फिर जो उस ने कहानी सुनाई, वह प्रतिमा के जोशीले प्रेम के दर्दनाक अंत की कहानी थी.

प्रतिमा ने जब प्रेम के मैदान में कदम रखा तो वह बहुत तेज दौड़ने लगी. प्रवीण उस की हर जरूरत पूरी करता, पर हर रोज प्रतिमा की शारीरिक जरूरत पूरी करना न तो प्रवीण के वश में था, न यह संभव था. इस के लिए वक्त और धन दोनों की आवश्यकता थी. वह प्रतिमा से मना करने लगा तो वह उग्र होने लगी और उसे धमकियां देती कि बलात्कार के मामले में फंसा देगी. तंग आ कर प्रवीण ने उस से छुटकारा पाने का एक खतरनाक तरीका अपनाया.

एक सोचीसमझी साजिश के तहत प्रवीण प्रतिमा को अपने मित्रों के साथ ले कर लोनावला के एक रिसोर्ट में गया. उस ने शाम के खाने में प्रतिमा को बेहोशी की दवा दे दी थी. फिर रात भर उन पांचों ने मिल कर उस के साथ बुरी तरह बलात्कार किया और यह सिलसिला अगले दिन शाम तक जारी रहा. तब तक प्रतिमा मृतप्राय सी हो गई थी. वे भी थक गए थे. रात को उन सब ने मिल कर तय किया कि प्रतिमा को उसी हालत में जंगल में फेंक कर भाग जाएंगे. खुले जंगल में कोई जानवर उसे खा जाएगा या फिर वह यों ही समाप्त हो जाएगी.

मृतप्राय प्रतिमा को ये लोग जंगल में फेंक कर रात को ही शहर भाग आए थे. अब प्रतिमा का पता नहीं था.

पुलिस ने तुरंत प्रवीण के अन्य चारों दोस्तों को गिरफ्तार कर लिया. उन्हें साथ ले कर वह घटनास्थल पर पहुंचे, जहां प्रतिमा को जीवित या मृत अवस्था में फेंका गया था. वहां न कोई लाश मिली, न उस के अवशेष. संबंधित थाने में पता किया गया, तो पता चला कि 2 दिन पहले एक युवती नग्नावस्था में बेहोश जंगल में कुछ गांव वालों को मिली थी. उन्होंने पुलिस को खबर की, पुलिस ने युवती को कसबे के अस्पताल में भरती करवा दिया था और अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर तफतीश आरंभ कर दी थी.

स्थानीय पुलिस को घटनास्थल से ऐसा कोई सूत्र नहीं मिला, जिस से वह अपनी कार्यवाही आगे बढ़ा सके. प्रतिमा अभी तक बेहोश थी. उस का बयान दर्ज नहीं हुआ था.

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अस्पताल जा कर जब मैं ने प्रतिमा की हालत देखी, तो मैं स्वयं बेहोश होतेहोते बची. कोई भेडि़या भी उस को इस तरह नोच कर नहीं खाता, जिस तरह से प्रवीण और उस के दोस्तों ने उस के शरीर के साथ अत्याचार किया था.

काश, प्रतिमा यह बात समझ पाती कि प्रेम जीवन के लिए आवश्यक है, पर इतना भी आवश्यक नहीं कि उस के लिए अपनेआप को ही हवन कर दिया जाए. अगर वह समय पर समझ लेती, तो उस की यह दुर्दशा न होती.

प्रतिमा जाने कब होश में आएगी. जब उसे होश आएगा, तब क्या वह किसी पुरुष को फिर से प्यार करने की हिम्मत जुटा पाएगी? अधिकांश प्रेमसंबंधों का अंत विरह में होता है, पर ऐसा कभी नहीं होता, जैसा प्रतिमा के प्रेम का हुआ था.

Udaariyaan: #Fatejo को अलग करने के लिए जैस्मीन की नई चाल, वापस लौटेगा तेजो का पहला पति!

सीरियल उड़ारियां में इन दिनों तेजो की जिंदगी में खुशियां देखने को मिल रही है. लेकिन आने वाले दिनों में तेजो की जिंदगी में उसके अतीत की वापसी के साथ फतेह और उसका रिश्ता नया मोड़ लेने वाला है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

तेजो की जिंदगी में होगी जस की वापस

 

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हाल ही में सीरियल उड़ारियां के मेकर्स ने एक प्रोमो जारी किया है, जिसमें फतेह और तेजो खुश नजर आ रहे हैं. वहीं सिमरन ये देखकर गुस्से में नजर आ रहे हैं. इसी बीच तेजो को देकर धोखा देकर भागने वाला जस नजर आ रहा है. वहीं जस को देखते ही तेजो टूटती नजर आ रही है.

 

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जस ने दिया था धोखा

जस का जिंदगी में आना तेजो के लिए मुसीबत बनने वाला है. दरअसल, जस वही इन्सान है, जो तेजो से शादी करके सारे गहने और कैश लेकर भाग गया था, जिसके कारण तेजो तो बदनामी का सामना करना पड़ा था. वहीं इसके कारण ही फतेह की तेजो से शादी हुई थी. अब देखना होगा कि जस की वापसी से तेजो और फतेह का रिश्ता टूटता है या मजबूत होता है.  इसी के साथ देखना होगा कि जस की वापसी एक इत्तेफाक है या सिमरन की सोची समझी साज़िश.

जैस्मिन ने बताया सिमरन औऱ कैंडी का सच

जैस्मिन को पता चल चुका है कि कैंडी, सिमरन का बेटा है, जिससे बाउजी नफरत करते हैं क्योंकि सिमरन घर से भाग गई थी. वहीं जैस्मिन इसी बात का फायदा उठाकर तेजो को घर से निकालने का प्लान और पूरी फैमिली को कैंडी का सच बता चुकी है, जिसके बाद बाउजी तेजो से काफी नाराज हैं और सिमरन और कैंडी को घर से निकलने के लिए कहेंगे. हालांकि बाद में बाउजी मान जाएंगे.

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फ्लाइट में Anuj और Anupama का रोमांटिक डांस, देखें वीडियो

टीआरपी चार्ट में पहले नंबर पर राज करने वाला स्टार प्लस का सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupama) इन दिनों दर्शकों के बीच छाया हुआ है. सीरियल में जहां काव्या और वनराज के रिश्ते में दरार पड़ती नजर आ रही है तो वहीं अनुज और अनुपमा की दोस्ती गहरी हो रही है. इसी बीच एक वीडियो सोशलमीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें अनुपमा और अनुज रोमांस करते नजर आ रहे हैं. आइए आपको दिखाते हैं वायरल वीडियो की झलक…

डांस करते दिखे अनुपमा और अनुज

 

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जहां सीरियल में अनुपमा और अनुज (Anupama And Anuj) की दोस्ती दर्शकों का दिल जीत रही है तो वहीं औफस्क्रीन रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना की कैमेस्ट्री भी फैंस को काफी पसंद आ रही है, जिसका अंदाजा इस वायरल वीडियो से लगाया जा सकता है. दरअसल, वीडियो में अनुपमा और अनुज फ्लाइट में एक रोमांटिक गाने पर नाचते नजर आ रहे हैं. इसी बीच फ्लाइट होस्टेस आ जाती है, जिसे देखकर अनुपमा और अनुज चौंक जाते हैं. फैंस को ये वीडियो काफी पसंद आ रहा है और वह मजेदार रिएक्शन देते नजर आ रहे हैं.

 

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समर की जान पड़ेगी खतरे में

 

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सीरियल की बात करें तो अपकमिंग एपिसोड में काफी ड्रामा देखने को मिलने वाला है. जहां एक तरफ बेटी पाखी के लिए वनराज और अनुपमा साथ नजर आएंगे तो वहीं समर की जान खतरे में पड़ जाएगी.  में अनुपमा (Anupama) की कहानी बदल जाएगी. दरअसल, नंदिनी घर छोड़कर जाने की कोशिश करेगी और अनुपमा उसे रोक लेगी और उससे कारण पूछेगी, जिसके जवाब में नंदिनी कहेगी कि अगर वह समर से दूर नहीं गई तो रोहन उसे जान से मार देगा. हालांकि अनुपमा इस बात को संभालते हुए नंदिनी को जाने से रोकेगी. वहीं अनुज की मदद भी मांगती नजर आएगी.

 

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Festive Special: अब घर बैठे मिनटों में करें वैक्स

आप को फ्रैंड की बर्थडे पार्टी में जाना हो और आप यह सोचसोच कर परेशान हो रही हों कि बिना हेयर रिमूव किए कैसे पार्टी में जाऊं, इस से तो मेरी पूरी ड्रैस की शोभा ही बिगड़ जाएगी. अभी मेरे पास इतना टाइम भी नहीं है कि पार्लर से अपौइंटमैंट लूं और अगर लिया भी तो टाइम खराब होने के साथसाथ जल्दबाजी में ज्यादा पैसे भी देने पड़ेंगे तो ऐसे में आप परेशान न हों बल्कि वीट कोल्ड वैक्स स्ट्रिप्स से कुछ ही मिनटों में बनें खूबसूरत.

पार्लर जैसी फिनिशिंग घर में ही

ये आप को बिलकुल पार्लर जैसी फिनिशिंग देने के साथसाथ आपकी स्किन को स्मूदनैस व मौइश्चर देने का काम करेगी.

हौट वैक्स की जलन से छुटकारा

बौडी पर हौट वैक्स से हेयर रिमूव कराने से हर कोई डरता है, क्योंकि इस प्रक्रिया में गरम वैक्स की वजह से जलने का डर भी रहता है. लेकिन कोल्ड वैक्स स्ट्रिप्स यूज करने में ईजी है. इस के लिए आप को बस स्ट्रिप्स को आराम से ओपन कर के हेयरी एरिया पर अप्लाई कर के हेयर की दिशा में पुल करना है. इस से दर्द भी न के बराबर होता है और बाल जड़ से भी निकल जाते हैं.

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खास बात यह है कि स्ट्रिप्स का साइज अच्छाखासा है, जिस से काफी बड़ा एरिया कवर हो जाता है और आप को महीने भर तक इस की जरूरत महसूस नहीं होती. यह 1.5 एमएम के छोटे बालों को भी निकालने में सक्षम है.

आप इस की हर स्ट्रिप तब तक यूज कर सकती हैं जब तक यह अपनी चिपचिपाहट न खो दे. आप हेयर रिमूवल के बाद परफैक्ट फिनिश वाइप से बची वैक्स को भी आसानी से हटा सकते हैं.

टेनिंग रिमूव करने में कारगर

सिर्फ हेयर ही नहीं बल्कि टेनिंग रिमूव करने के साथसाथ ये डैड सैल्स को भी हटाने का काम करता है. ये 20 स्ट्रिप्स पैक जिस की कीमत क्व174 और 8 स्ट्रिप्स पैक जिस की कीमत क्व90 है में उपलब्ध है.

इसे ड्राई, नौर्मल और सैंसिटिव स्किन को ध्यान में रख कर डिजाइन किया गया है. इस्तेमाल करते वक्त यह ध्यान रखें कि सनबर्न व कटी हुई स्किन पर इसे अप्लाई न करें.

तो फिर तैयार हैं न घर पर वैक्स करने के लिए.

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सुनिए भी और सुनाइए भी…..

लेखिका- प्रीता जैन

प्रणव तेरी लखनऊ वाली ज़मीन कितने की बिकी, किसने ली कहाँ का रहने वाला है, कब तक पैसे मिलेंगे क्या सौदा हुआ वगैरा-वगैरा. एक के बाद एक कई सवाल और उससे अधिक सभी कुछ जानने की इच्छा, प्रणव के बड़े भाई फ़ोन पर पूछताछ कर रहे थे वैसे तो प्रणव उनसे कुछ नहीं छिपाता था पर आज ज़्यादा बताने का उसका मन नहीं हो रहा था वजह एक-एक बात पूछ लेना और अपने बारे में कुछ ना बताना, बस! इतना कह देना सब ठीक है.

इसी तरह अंजू और उसकी बहन की बातचीत हो रही थी बातों-बातों में अंजू की दीदी ने पूछा, तेरी कुछ बचत भी है या नहीं कुछ ज्वैलरी भी लेकर रखी थी ना तूने– हाँ! दीदी अविनाश ने हर महीने की बचत के साथ कुछ पैसे की मेरे नाम एफडी करा दी है इसके अलावा कुछ दिन पहले हमने ज्वैलरी (सोने का एक सेट) भी खरीदी है सब सहेज कर रख दिया है तुम चिंता ना करो. तुम बताओ दीदी क्या सेविंग्स हो रही है क्या-क्या खरीदा? अरे! अंजू तुझे तो पता ही है मैं सब खर्च देती हूँ, बस! यूँ समझ ले अभी तो मेरे पास कुछ भी नहीं है. दीदी तुम पिछले महीने तो ज्वैलर्स के यहां गई थी और सुना था कुछ प्रॉपर्टी भी ली है अरे! वो तो सब थोड़ा-बहुत ऐसे ही है, चल छोड़ तू फ़िक्र ना कर और अपनी कुछ बता…..

ऐसा सिर्फ प्रणव या अंजू के साथ ही ना होकर हममें से कई लोग ऐसे ही अनुभव अहसास से गुज़रते हैं. कुछ ऐसे परिचितों से बातचीत होती है जो आमने-सामने या फिर फ़ोन पर ही निजी बातें मालुम करने में माहिर होते हैं, वे इतनी जानकारी लेते हैं कि दूसरा व्यक्ति वास्तव में परेशान हो जाता है और ये विशेषता होती है कि अपने बारे में ज़रा नहीं बताना चाहते, टालमटोल ही करते रहते हैं. कई दफ़ा तो रोज़मर्रा तक की बातें अक्सर ही मालुम करते रहते हैं मसलन– आज खाने में क्या बनाया, सारा दिन क्या-क्या किया कौन आया कौन गया, कहां-कहां फ़ोन पर बातचीत की वगैरा-वगैरा. और हाँ! पूछते-पूछते यदि उन्हें कोई बात सही नहीं लगती तो अपनी सलाह भी देने लगते हैं ऐसा करना चाहिए वैसा करना चाहिए, यह सही वो गलत……

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क्या ऐसा करना उचित है? हर किसी समझदार व्यावहारिक इंसान की यही राय होगी ऐसा करना सही नहीं है, दूसरे की हर बात जानने की यदि जिज्ञासा रहती है तो स्वयं की भी बताएं अन्यथा किसी तरह की रूचि ना लें. यदि दूसरा  व्यक्ति अपनी इच्छानुसार कुछ भी बताना चाहे तो अवश्य सुनें किन्तु हर बात जानने की और सलाह देने की पहल कदापि ना करें, यदि सुनना भी चाहें तो अपनी भी बताएं इसी में आपकी समझदारी तथा बड़प्पन माना जाता है. सबसे अहम् ऐसा करने से आपसी रिश्ते-नातों में स्नेह व लगाव बना रहता है और आपसी सम्बन्ध अधिक प्रगाढ़ घनिष्ठ होते हैं, वर्षों तक परस्पर स्नेह की गांठ बंधी रहती है ढीली नहीं होती.

हम सभी भलीभांति जानते हैं व्यस्तता से परिपूर्ण ये जीवन अपनों के और पारिवारिक संबंधों के बिना नहीं बिताया जा सकता, प्रतिपल ख़ुशी-ख़ुशी भरपूर जीने के लिए नाते-रिश्तों का हमारे साथ होना बेहद ज़रूरी है इससे मानसिक अवसाद भी कम होने से काफी हद तक तनावमुक्त रहा जाता है. अतः कुछ बातों का ध्यान रख सालोंसाल प्रियजनों का संग-साथ पाकर खुशहाल जीवन बिताएं–

1. हरेक की अपनी पर्सनल लाइफ व बातें होती हैं, जिन्हें कई बार दूसरों के साथ साझा नहीं किया जा सकता. चाहे कोई कितना भी अपना सगा हो फिर भी उसके जीवन की हर घटना या बात जानने का प्रयास अथवा कोशिश कदापि ना करें.

2. किसी की व्यक्तिगत बातों की जानकारी इधर-उधर से भी मालुम करने की आदत स्वयं में विकसित ना करें, ऐसा करना हमारी अव्यवहारिकता और नासमझी दर्शाता है.

3. अन्य व्यक्ति इच्छुक हो अथवा ज़रुरत मुताबिक आपसे कोई अपनी बात शेयर करना चाहता हो तभी अपनी रुचि ज़ाहिर करें अन्यथा सुनने या मालुम करने में कोई उतावलापन ना दिखाएं. साथ ही अपनी राय-मशविरा बात-बात में देने की आदत से भी बचें.

4. यदि सामने वाले से आप कुछ बातों की जानकारी लेते हैं तो आवश्यकतानुसार ही लें ज़रूरत से ज़्यादा इच्छुक होना अच्छी बात नहीं है. और हाँ! स्वयं के बारे में भी विस्तारपूर्वक सही ढंग से बताएं, किसी तरह का दुराव-छिपाव आपस में ना होने दें इससे दूरियां भी नज़दीकियां बन जाती हैं रिश्तों में सदा अपनत्व बना रहता है.

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5. रिश्तों को बहुत ही सहेजकर- संभालकर रखा जाता है इन्हीं के सहारे ज़िन्दगी की हर चुनौती का सामना कर लिया जाता है, इसलिए आवश्यकता से अधिक एक-दूसरे की बातों या पर्सनल मामलों में हस्तक्षेप ना किया जाए ना ही पारिवारिक मामलों में बिन मांगे

सलाह-मशविरा दिया जाए. यदि लम्बे समय तक रिश्तों में स्नेह-प्यार लगाव व अपनापन रखना है तो आसपास बेफिज़ूल ध्यान केंद्रित करने की बजाय मैं और मेरा जीवन तक ही सोचें इसी में सुख व खुशियां निहित हैं.

अतः! थोड़ी सी सूझबूझ व समझदारी से प्यारे आत्मीय रिश्तों का बगीचा अपनों की खुशबू से महकते हुए सदैव आनंदमय सुखमय बना रहता है.

हमारे देश की महिलाएं पुरुषों की कितनी हमकदम?

हमारे देश में महिलाओं को पुरुषों का हमकदम बनाने के लिए महिला आयोग बनाया गया है. हर राज्य में आयोग की एक फौज है, जहां महिलाओं की परेशानियाँ सुनी और सुलझाई जाती है. लेकिन बीते कुछ समय से महिला आयोग संस्था की चाबियों का गुच्छा कुछ ज्यादा ही भारी हो गया इसलिए ये संभाले नहीं संभल रहा है और जमीन पर गिरने लगा है. केरल महिला आयोग में भी ऐसा ही कुछ हुआ.

आयोग की अध्यक्ष एम सी जोसेफिन ने घरेलू हिंसा की शिकार एक महिला को रूखा सा जवाब देते हुए टरका दिया.दरअसल, आयोग अध्यक्ष टीवी पर लाइव में महिलाओं की परेशानी सुन रही थीं, इसी बीच घरेलू हिंसा की शिकार एक महिला, आयोग की अध्यक्ष को फोन पर अपनी आपबीती सुनाते हुए कहने लगी कि उसके पति और ससुराल वाले उसे काफी परेशान करते हैं. अध्यक्ष को जब पता चला कि लगातार हिंसा सहने के बाद भी महिला ने कभी उसकी शिकायत पुलिस में नहीं की, तो वे भड़क गईं और रूखे अंदाज में कहा ,‘अगर हिंसा सहने के बाद भी पुलिस में शिकायत नहीं करोगी तो ‘भुगतो’ उनका पीड़िता पर झल्लाने का वीडियो वायरल हुआ तो उन्होंने अपने पद का ही त्याग कर दिया.

लेकिन जाते-जाते वे कहना न भूलीं कि औरतें फोन करके शिकायत तो करती हैं, लेकिन जैसे ही पुलिसिया कार्यवाई की बात आती है, पीछे हट जाती हैं. इसके बाद से आयोग अध्यक्ष घेरे में आ गई कि कैसे इतने ऊंचे पद पर बैठी महिला, तकलीफ में जीती किसी औरत से इस तरह रुखाई से बात कर सकती है ! बात भले ही आकर अध्यक्ष की रुखाई पर सिमट गयी. लेकिन गौर करें तो मसाला कुछ और ही है. दरअसल मारपीट की शिकायत लेकर आई महिला चाहती थी कि आयोग की दबंग दिखने वाली महिला उसके पति को बुलाकर समझाए या सास पर रौब जमाकर उसे डरा दे कि बहू को तंग किया न, तो तुम्हारी खैर नहीं. वरना, क्या वजह है कि औरतें शिकायत लेकर आती तो हैं लेकिन पुलिस की दखल की बात सुनते ही वापस लौट जाती हैं.

ममता, बदला हुआ नाम’ के पति और सास उसपर जुल्म करते हैं. रोती-कलपती वह अपने मायके पहुँच जाती है. पर उसमें इतनी हिम्मत नहीं है कि उनकी शिकायत लेकर पुलिस में जाए. कारण, एक डर की अगर पति को पुलिस पकड़ कर ले गयी और बाद में जब वह छूट कर घर आएंगे, तो उस पर और जुल्म होगा. दूसरी बात ये भी की, पति के घर के सिवा दूसरा आसरा नहीं है, तो वह कहाँ जाएगी ?ममता दो बच्चों की माँ है और उसका मायका उतना मजबूत नहीं है, इसलिए वह पति और सास का जुल्म सहने को मजबूर है.

अक्सर पति ससुराल के हाथों हिंसा की शिकार महिला पुलिस के पास शिकायत लेकर नहीं जाती है यह सोचकर की घर की बात घर में ही रहनी चाहिए. और अगर पति का घर छूट गया तो वह कहाँ जाएगी ? लेकिन आसरा छूट जाने का और घर की बात घर में ही रहने वाली जनाना सोच औरतों पर काफी भारी पड़ रही है.UN वीमन का डेटा बताता है कि हर 3 में से 1 औरत अपने पति या प्रेमी के हाथों हिंसा की शिकार होती है. इसमें रेप छोड़कर बाकी सारी बातें शामिल है. जैसे पत्नी को मूर्ख समझना, बात-बात पर उसे नीचा दिखाना, उसे घर बैठने को कहना, बच्चे की कोई ज़िम्मेदारी न लेना या फिर मारपीट भी.

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भारत में महिलाओं पर सबसे ज्यादा यौन हिंसा होती है, वह भी पति या प्रेमी के हाथों. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे ने साल 2016 में लगभग 7 लाख महिलाओं पर एक सर्वे किया था. इस दौरान लंबे सवाल-जवाब हुए थे, जिससे पता चला कि शादी-शुदा भारतीय महिलाओं के यौन हिंसा झेलने का खतरा दूसरे किस्म की हिंसाओं से लगभग 17 गुना ज्यादा होता है, लेकिन ये मामले कभी रिपोर्ट नहीं होते हैं. बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड जैसे कम साक्षरता दर वाले राज्यों के अलावा लिखाई-पढ़ाई के मामले में अव्वल राज्य जैसे केरल और कर्नाटक की औरतें भी पति या प्रेमी की शिकायत पुलिस में करते झिझकती है.देश की राजधानी दिल्ली के एक सामाजिक संगठन द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में यह बात सामने आई कि देश में लगभग 5 करोड़ महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार होती हैं लेकिन इनमें से केवल 0.1 प्रतिशत महिलाओं ने ही इसके खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज़ कराई है.

लेकिन हिंसा का यह डेटा तो सिर्फ एक बानगी है. असल कहानी तो काफी लंबी और खौफनाक है. लेकिन बात फिर आकर वहीं अटक जाती है कि जुल्म सहने के बाद भी महिलाएं चुप क्यों हैं ?

घरेलू हिंसा का मुख्य कारण क्या है ?

हमारे समाज में बचपन से ही लड़कियों को दबाया जाना, उसे बोलने न देना, लड़कियों के मन में लचारगी और बेचारगी का एहसास ऐसे भरा जाना, जैसे लड़कों में पोषण, घरेलू हिंसा का मुख्य कारण है. अक्सर माँ-बाप और रिश्तेदार यह कह कर लड़की का मनोबल तोड़ देते हैं कि बाहर अकेली जाओगी ? जमाना देख रही हो ? ज्यादा मत पढ़ो. शादी के बाद वैसे ही तुम्हें चूल्हा ही फूंकना है. ज्यादा पढ़ लिख गई, तो फिर लड़का ढूँढना मुश्किल हो जाएगा. राजनीतिक में जाओगी तो अपना ही घर बर्बाद करोगी, वगैरह वगैरह. फिर होता यही है कि चाहे लड़की कितनी भी पढ़ी लिखी, ऊंचे ओहदे पर चली  जाए, रिश्ता निभाना ही है, यह बात उसके जेहन में बैठ जाती है और सहना भी आ जाता है.  बचपन में पोलियो की घुट्टी से ज्यादा जनानेपन  की घुट्टी पिलाने के बाद भी अगर लड़की न समझे, तो दूसरे रास्ते भी होते हैं.

लड़की अपना दुख तकलीफ अगर माँ से कहे तो, नसीहतें मिलती है कि जहां चार बर्तन होते हैं, खड़कते ही हैं.यहाँ तक की गलत होने पर भी दामाद को नहीं, बल्कि बेटी को ही कठघरे में खड़ा कर दिया जाता है कि ताकि रिश्ता न टूटे और बेटी अपने ससुराल में टिकी रहे.लड़की को समझ में आ जाता है कि मायका उसके लिए सच में पराया बन गया. और जब अपने ही उसकी बात नहीं सुन रहेहैं, फिर पुलिस में शिकायत कर के क्या हो जाएगा ? और रिश्ता ही बिगड़ेगा. यह सोचकर लड़की उसे ही अपनी किस्मत मान लेती है.

घरेलू हिंसा सहना और चुप्पी की एक वजह आर्थिक निर्भरता भी है. आमतौर पर महिलाओं को लगता है कि अगर पति का आसरा छूट गया तो वे कहाँ जाएंगी ? बच्चे कैसे पलेंगे ? बच्चे-पति के बीच महिला अपनी पढ़ाई-लिखाई को भी भूल जाती है.  उनके पास भी कोई डिग्री है, याद नहीं उन्हें. रोज खुद को मूर्ख सुनते हुए वे अपनी काबिलियत को ही भूल चुकी होती हैं. वे मान चुकी होती हैं कि पति की शिकायत पुलिस में करने के बाद उम्मीद का आखिरी धागा भी टूट जाएगा और वे बेसहारा हो जाएंगी. तो औरतें सहना ही अपना नसीब मान लेती हैं. लेकिन पुलिस में शिकायत के बाद भी क्या महिला को इंसाफ मिल पाता है ?

कहने को तो लगभग हर साल औरत-मर्द के बीच फासला जांचने के लिए कोई सर्वे होता है, रिसर्च होती है, कुछ कमेटियां बैठती है. लेकिन फर्क आसमान में ओजोन के सुराख से भी ज्यादा बड़ा हो चुका है.

पितृसत्तात्मक माने जाने वाले भारतीय समाज में, जहां शादियों को पवित्र रिश्ता का नाम दिया गया है, वहाँ एक पति का अपनी पत्नी के साथ रेप करना अपराध नहीं माना जाता.मुंबई की एक महिला ने सेशन कोर्ट में जब कहा कि पति ने उसके साथ जबर्दस्ती संबंध बनाए और जिसके चलते उसे कमर तक लकवा मार गया, इसके साथ ही उस महिला ने अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का केस भी किया, तो कोर्ट ने कहा कि महिला के आरोप कानून के दायरे में नहीं आते हैं. साथ ही कहा कि पत्नी के साथ सहवास करना अवैध नहीं कहा जा सकता है. पति ने कोई अनैतिक काम नहीं किया है. लेकिन साथ में कोर्ट ने महिला का लकवाग्रस्त होना दुर्भाग्यपूर्ण भी बताया. लेकिन यह भी कहा कि इसके लिए पूरे परिवार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है.

2017 में केंद्र सरकार ने कहा था कि मैरिटल रेप का अपराधीकारण भारतीय समाज में विवाह की व्यवस्था को अस्थिर कर सकता है. वहीं 2019 में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने की कोई जरूरत नहीं है.

मैरिटल रेप क्या है ?

जब एक पुरुष अपनी पत्नी की सहमति के बिना उसके साथ सेक्सुअल इंटरकोर्स करता है तो इसे मैरिटल रेप कहा जाता है. मैरिटल रेप में पति किसी भी तरह के बल का प्रयोग करता है.

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मैरिटल रेप को लेकर भारत का क्या है कानून?

भारत के कानून के मुताबिक, रेप में अगर आरोपी महिला का पति है तो उस पर रेप का केस दर्ज नहीं हो सकता.IPC की धारा 375 में रेप को परिभाषित किया गया है, ये कानून मैरिटल रेप को अपवाद मानता है. इसमें कहा गया है कि अगर पत्नी की उम्र 18 साल से अधिक है तो पुरुष का अपनी पत्नी के साथ सेक्सुअल इंटरकोर्स रेप नहीं माना जाएगा. भले ही ये इंटरकोर्स पुरुष द्वारा जबर्दस्ती या पत्नी की मर्ज़ी के खिलाफ किया गया हो.

2021 के अगस्त में भारत की अलग-अलगअदालतों में 3 मैरिटल रेप के मामलों में फैसला सुनाया गया. केरल हाई कोर्ट ने 6 अगस्त को एक फैसले में कहा था कि मैरिटल रेप क्रूरता है और यह तलाक का आधार हो सकता है. फिर 12 अगस्त को मुंबई सिटी एडिशनल सेशन कोर्ट ने कहा कि पत्नी की इच्छा के बिना यौन संबंध बनाना गैरकानूनी नहीं है. और 26 अगस्त को छत्तीसगढ़ कोर्ट ने मैरिटल रेप के एक आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया कि हमारे यहां मैरिटल रेप अपराध नहीं है. मैरिटल रेप के चार केस कोर्ट तक पहुंचे लेकिन उन्हें खारिज कर दिया गया.सोशल मीडिया पर इस फैसले को लेकर बहस छिड़ गयी. जेंडर मामलों की रिसर्चर कोटा नीलिमा ने ट्विटर पर लिखा कि अदालतें कब महिलाओं के पक्ष में विचार करेंगी ?’उनके ट्विटर के जवाब में कई लोगों ने कहा कि इस पुराने कानूनी प्रावधान को बदल दिया जाना चाहिए. लेकिन कुछ लोग इस बात से सहमत नहीं दिखें. एक ने तो आश्चर्य जताते हुए पूछा कि ‘किस तरह की पत्नी मैरिटल रेप की शिकायत करेगी ? तो दूसरे ने कहा उसके चरित्र में ही कुछ खराबी होगी.

ब्रितानी औपनिवेशिक दौर का ये कानून भारत में साल 1860 से लागू है. इसके सेक्शन 375 में एक अपवाद का जिक्र है जिसके अनुसार अगर पति अपनी पत्नी के साथ सेक्स करे और पत्नी की उम्र 15 साल से कम की न हो तो इसे रेप नहीं माना जाता है. इस प्रावधान के पीछे मान्यता है कि शादी में सेक्स की सहमति छुपी हुई होती है और पत्नी इस सहमति को बाद में वापस नहीं ले सकती है.

लेकिन दुनिया भर में इस विचार को चुनौती दी गई और दुनिया के 185 देशों में से 151 देशों में मैरिटल रेप अपराध माना गया. खुद ब्रिटेन ने भी साल 1991 में मैरिटल रेप को ये कहते हुए अपराध की श्रेणी  में रख दिया कि ‘छुपी हुई सहमति को अब गंभीरता से लिया जा सकता है. लेकिन मैरिटल रेप को अपराध करार देने के लिए लंबे समय से चली आ रही मांग के बावजूद भारत उन 36 देशों में शामिल है जहां मैरिटल रेप को अपराध नहीं माना जाता है.भारत के कानून में आरोपी अगर महिला का पति है तो उस पर रेप का केस दर्ज नहीं हो सकता.और इसी वजह से कई महिलाएं शादी-शुदा ज़िंदगी में हिंसा का शिकार होने को मजबूर हैं.

फरवरी 2015 में सुप्रीम कोर्ट में एक मैरिटल रेप का मामला पहुंचा. दिल्ली में काम करने वाली एक MNC एग्जीक्यूटिव ने पति पर आरोप लगाया,‘ मैं हर रात उनके लिए सिर्फ एक खिलौने की तरह थी. जिसे वो अलग-अलग तरह से इस्तेमाल करना चाहते थे.जब भी हमारी लड़ाई होती थी तो वे सेक्स के दौरान मुझे टोर्चर करते थे. तबीयत खराब होने पर अगर कभी मैंने मना किया तो उन्हें यह बात बर्दाश्त नहीं होती थी’ 25 साल की इस लड़की के मामले को सुप्रीम कोर्ट ने यह कह कर खारिज कर दिया कि किसी एक महिला के लिए कानून नहीं बदला जा सकता है.

तो क्या भारत में महिला के पास पति के खिलाफ अत्याचार की शिकायत का अधिकार नहीं है ?

सीनियर एडवोकेड आभा सिंह कहती हैं कि इस तरह की प्रताड़ना की शिकार हुई महिला पति के खिलाफ सेक्शन 498A के तहत सेक्सुअल असोल्ट का केस दर्ज करा सकती हैं.इसके साथ ही 2005 के घरेलू हिंसा के खिलाफ बने कानून में भी महिलाएं अपने पति के खिलाफ सेक्सुअल असोल्ट का केस कर सकती हैं . इसके साथ ही अगर आपको चोट लगी है तो आप IPC की धाराओं में भी केस कर सकती हैं.लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि मैरिटल रेप को साबित करना बहुत बड़ी चुनौती  होगी. चारदीवारी के अंदर हुए गुनाह का सबूत दिखाना मुश्किल होगा.वो कहती हैं कि जिन देशों में मैरिटल रेप का कानून हैं वहाँ ये कितना सफल रहा है इससे कितना गुनाह रुका है ये कोई नहीं जानता .

एक तिहाई पुरुष मानते हैं कि वो जबरन संबंध बनाते हैं—–

  • इन्टरनेशनल सेंटर फॉर वुमेन और यूनाइटेड नेशन्स पॉपूलेशन फंड की ओर से साल 2014 में कराये गए एक सर्वे के अनुसार एक-तिहाई पुरुषों ने खुद यह माना कि वे अपनी पत्नियों के साथ जबरन सेक्स करते हैं.
  • नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे—3 के मुताबिक, भारत के 28 राज्यों में 10% महिलाओं का कहना है कि उनके पति जबरन उनके साथ शारीरिक संबंध बनाते हैं जबकि ऐसा करना दुनिया के 151 देशों में अपराध है.
  • एक सरकारी सर्वे के मुताबिक, 31 फीसदी विवाहित महिलाओं पर उनके पति शारीरिक, यौन और मानसिक उत्पीड़न करते हैं.यूनिवर्सिटी ऑफ वॉरविक और दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे उपेंद्र बख़्शी का कहना है कि ‘मेरे विचार से इस कानून को खत्म कर दिया जाना चाहिए. वो कहते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में भारत में महिलाओं के खिलाफ होने वाले घरेलू हिंसा और यौन हिंसा से जुड़े कानूनों में कुछ प्रगति जरूर हुई है लेकिन वैवाहिक बलात्कार रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया है. साल 1980 में प्रोफेसर बख़्शी उन जाने-माने वकीलों में शामिल थे जिन्होंने सांसदों की समिति को भारत में बलात्कार से जुड़े क़ानूनों में संशोधन को लेकर कई सुझाव भेजे थे. उनका कहना था कि समिति ने उनके सभी सुझाव स्वीकार कर लिए थे, सिवाय मैरिटल रेप को अपराध घोषित कराने के सुझाव को. उनका मानना है कि शादी में बराबरी होनी चाहिए और एक पक्ष को दूसरे पर हावी होने की इजाजत नहीं होनी चाहिए. आप अपने पार्टनर से ‘सेक्सुअल सर्विस’ की डिमांड नहीं कर सकते.

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लेकिन सरकार ने तर्क दिया कि वैवाहिक कानून का आपराधिकरण विवाह की संस्था को ‘अस्थिर’ कर सकता है और महिलाएं इसका इस्तेमाल पुरुषों को परेशान करने के लिए कर सकती हैं. लेकिन हाल के वर्षों में कई दुखी पत्नियाँ और वकीलों ने अदालतों में याचिका दायर के इस ‘अपमानजनक कानून’ को खत्म करने की मांग की है. संयुक्त राष्ट्र, ह्यूमन राइट्स वॉच और एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी भारत के इस रवैये पर चिंता जताई है.

कई जजों ने भी स्वीकार किया है कि एक पुराने कानून का आधुनिक समाज में कोई स्थान नहीं है. उनका ये भी कहना है कि संसद को वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित कर देना चाहिए.

नीलिमा कहती हैं कि ये कानून महिलाओं के अधिकारों का ‘स्पष्ट उल्लंघन है और इसमें पुरुषों को मिलने वाली इम्यूनिटी ‘अस्वभाविक है. इसी वजह से इससे संबन्धित अदालती मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है. वो कहती है कि भारत में आधुनिकता एक मुखौटा है. अगर आप सतह को खंरोचें तो असली चेहरा दिखाता. महिला अपने पति की संपत्ति बनी रहती है. 1947 में भारत का आधा हिस्सा आजाद हुआ था. बाकी आधा अभी भी गुलाम है.

नीलिमा कहती हैं कि इसमें हस्तक्षेप की जरूरत है और इसे हमारे जीवनकाल में बदलना चाहिए. बात जब वैवाहिक बलात्कार की आती है तो बाधाएं अधिक ऊंची होती हैं. ये मामला पहले ही सुलझ जाना चाहिए था. हम आने वाली पीढ़ियों के लिए नहीं लड़ रहे हैं. हम अभी भी इतिहास की गलतियों से लड़ रहे हैं और यह लड़ाई महत्वपूर्ण है.

इस वक़्त दुनिया के कितने देशों में मैरिटल रेप अपराध है ?

19वीं सदी में फेमिनिस्ट प्रोटेस्ट के बाद भी शादी-शुदा पुरुषों को पत्नी के साथ सेक्स का कानूनी अधिकार था.साल 1932 में पोलेंड दुनिया का पहला देश बना जिसने मैरिटल रेप को अपराध घोषित किया.1970 तक स्वीडन, नार्वे, डेनमार्क, सोवियत संघ जैसे देशों ने भी मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में डाल दिया था. 1976 में ऑस्ट्रेलिया और 80 के दशक में साउथ अफ्रीका, आयरलैंड, कनाडा, अमेरिका, न्यूजीलैंड, मलेशिया, घाना और इज़राइल ने भी इसे अपराध की लिस्ट में डाल दिया.

संयुक्त राष्ट्र यानि UN की प्रोग्रेस ऑफ वर्ल्ड वुमन रिपोर्ट 2018 के मुताबिक, दुनिया के 185 देशों में 77 देश ऐसे हैं जहां मैरिटल रेप को अपराध बताने वाले स्पष्ट कानून हैं. जबकि 74 ऐसे हैं जहां पत्नी को पति के खिलाफ रेप के लिए आपराधिक शिकायत दर्ज कराने का अधिकार है. भारत के पड़ोसी देश भूटान में भी मैरिटल रेप अपराध है.

लेकिन सिर्फ 34 देश ही ऐसे हैं जहां न तो मैरिटल रेप अपराध है और न ही पत्नी अपने पति के खिलाफ रेप के लिए आपराधिक शिकायत दर्ज करा सकती है. इनमें चीन, बांगलादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, सऊदी अरब और भारत देश है. इसके अलावा दुनिया के 12 देशों में इस तरह के प्रावधान हैं जिसमें बलात्कार का आरोपी अगर महिला से शादी कर लेता है तो उसे आरोपों से बरी कर दिया जाता है. यूएन इसे बेहद भेदभाव मानवाधिकारोंके खिलाफ मानता है.

वैवाहिक बलात्कार महिलाओं के लिए एक अपमान की तरह है, क्योंकि यहाँ दूसरे पुरुषों की तरह ही अपने पति द्वारा यौन उत्पीड़न, छेड़छाड़,द्र्श्यरतिकता और जबरन नग्न करने जैसे कृत्य पत्नियों के लिए किसी अपमान से कम नहीं है.पतियों द्वारा वैवाहिक बलात्कार महिलाओं में तनाव, अवसाद, भावनात्मक संकट और आत्महत्या के विचारों जैसे मानसिक स्वास्थय प्रभाव उत्पन्न कर सकता है. वैवाहिक बलात्कार और हिंसक आचरण बच्चों के स्वास्थ्य और सेहत को भी प्रभावित कर सकता है. पारिवारिक हिंसक  माहौल उन्हें मनोवैज्ञानिक रूप से प्रभावित कर सकता है. स्वयं और बच्चों की देखरेख में महिलाओं की क्षमता कमजोर पड़ सकती है.बलात्कार की परिभाषा में वैवाहिक बलात्कार को अपवाद के रूप में रखना महिलाओं की गरिमा, समानता और स्वायत्तता के विरुद्ध है.

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Festive Special: Newly Weds के लिए होम डेकोर टिप्स

जहां तक घर सजाने का सवाल है इसमें पुरुष और महिलाओं की पसंद अलग-अलग होती है. नव विवाहितों के लिए घर सजाना ज्यादा परेशानी भरा होता है. आपको समझ नहीं आएगा कि घर को कैसे सजाएं? नवविवाहित जोड़ों के लिए घर सजाने के कुछ आइडिया आपकी मदद कर सकते हैं.

अपने पहले घर को सजाने में आप दोनों के आइडिया भी आपस में टकरा सकते हैं. यह खास तौर पर तब होता है यदि आप दोनों अलग-अलग माहौल में पले बढ़े हैं. झुंझलाने की बजाय दोनों के आइडियाज को आपस में मिलाकर घर को एक विशेष लुक देते हुये इस समस्या का समाधान किया जा सकता है.

नव विवाहितों के लिए घर सजाने के टिप्स-

जगह

नए घर को सेट करते समय कमरों की स्पेस और साइज पर ध्यान दें. यदि आपके पास जगह कम है तो आप मल्टी-परपज फर्नीचर ले सकते हैं. उदाहरण के लिए कम वजन वाला सोफा जो कि बैड का रूप भी ले लेता है. यदि आपके पास जगह ज्यादा है तो आप उस जगह को डिवाइड कर छोटे हिस्से कर लें. उदाहरण के लिए आप लिविंग रूम के छोटे हिस्से में कॉफी टेबल के पास सोफा या चारों और कुर्सियां लगाकर ग्रुप टॉक की जगह बना सकते हैं. नव विवाहितों के लिए घर सजाने का यह एक अच्छा आइडिया है.

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बजट

आपको घर को सेट करने की शुरुआत बजट का हिसाब लगाकर करना चाहिए. निर्धारित करें कि घर में क्या जरूरी सामान चाहिए? और फिर अपने बजट के अनुसार सामान खरीदें. होम स्टोर्स में जाएं, जरूरी चीजों की कीमतें देखें और फिर खरीदें. नए घर को सेट करते समय यह बहुत ध्यान देने वाली बात है.

फर्नीचर

घर को फर्नीचर से ज्यादा ना भरें. घर की जरूरी चीजें जैसे सोफा, बैड, डायनिंग सैट और स्टोरेज कैबिनेट आदि पर ज्यादा ध्यान दें. ट्रेंड्स को फॉलो करने में अंधे ना बने. बीन बैग्स, आर्ट वर्क, शो-पीस आदि चीजों को जरूरी चीजों के बाद खरीदें. सब चीजें तरीके से खरीदें. यह भी नव विवाहितों के लिए घर सजाने का अच्छा आइडिया है.

रिसर्च

घर के कमरों को ध्यान से देख लें और खास तौर पर बिना किसी साज-सज्जा के. यदि आप अपनी बालकनी को सुस्ताने की जगह बनाना चाहते हैं तो यहां पर झूला या किताब की दराज लगा दें. यह घर सजाने का बहुत महत्वपूर्ण बिन्दु है.

सुविधा

घर होता है सुविधा के लिए. इसलिए घर को ज्यादा नहीं भरें. हर चीज को साफ-सुथरे तरीके से रखें. अगर फर्नीशिंग ज्यादा हो जाये तो भी अफसोस ना करें. आप इसे समय के साथ ठीक कर सकते हैं. हाल-फिलहाल आपका ध्यान घर को रहने की एक सुविधाजनक जगह बनाने पर होना चाहिए.

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शांति से काम करें

घर सेट करते समय शांति और समझौते से काम लेना बहुत जरूरी है. आपकी तरह ही आपके पार्टनर के लिए भी घर सजाना नई बात है. एक दूसरे की पसंद और आइडिया का सही तालमेल बिठाएं और दोनों के दिमाग से घर को एक शानदार और खास लुक दें. नवविवाहित जोड़ों के लिए घर सजाना नया है इसलिए आपको अपने पर्याप्त विचार रखने चाहिए.

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