Top 10 Best Raksha Bandhan Story in Hindi: टॉप 10 बेस्ट रक्षा बंधन कहानियां हिंदी में

Raksha Bandhan Stories in Hindi: इस आर्टिकल में हम आपके लिए लेकर आए हैं गृहशोभा की 10 Raksha Bandhan Stories in Hindi 2021. इन कहानियों में भाई-बहन के प्यार और रिश्तों से जुड़ी 10 दिलचस्प कहानियां हैं जो आपके दिल को छू लेगी और जिससे आपको रिश्तों का नया मतलब जानने को मिलेगा. इन Raksha Bandhan Stories से आप कई अहम बाते भी जान सकते हैं कि आखिर भाई-बहन के प्यार की जिंदगी में क्या अहमियत है और क्या होता है जब किसी की जिंदगी में ये प्यार नही होता. तो अगर आपको भी है संजीदा कहानियां पढ़ने का शौक तो यहां पढ़िए गृहशोभा की Raksha Bandhan Stories in Hindi.

1. समय चक्र- अकेलेपन की पीड़ा क्यों झेल रहे थे बिल्लू भैया?

samay

शिमला अब केवल 5 किलोमीटर दूर था…य-पि पहाड़ी घुमाव- दार रास्ते की चढ़ाई पर बस की गति बेहद धीमी हो गई थी…फिर भी मेरा मन कल्पनाओं की उड़ान भरता जाने कितना आगे उड़ा जा रहा था. कैसे लगते होंगे बिल्लू भैया? जो घर हमेशा रिश्तेदारों से भरा रहता था…उस में अब केवल 2 लोग रहते हैं…अब वह कितना सूना व वीरान लगता होगा, इस की कल्पना करना भी मेरे लिए बेहद पीड़ादायक था. अब लग रहा था कि क्यों यहां आई और जब घर को देखूंगी तो कैसे सह पाऊंगी? जैसे इतने वर्ष कटे, कुछ और कट जाते.

कभी सोचा भी न था कि ‘अपने घर’ और ‘अपनों’ से इतने वर्षों बाद मिलना होगा. ऐसा नहीं था कि घर की याद नहीं आती थी, कैसे न आती? बचपन की यादों से अपना दामन कौन छुड़ा पाया है? परंतु परिस्थितियां ही तो हैं, जो ऐसा करने पर मजबूर करती हैं कि हम उस बेहतरीन समय को भुलाने में ही सुकून महसूस करते हैं. अगर बिल्लू भैया का पत्र न आया होता तो मैं शायद ही कभी शिमला आने के लिए अपने कदम बढ़ाती.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए क्लिक करें…

2. चमत्कार- क्या बड़ा भाई रतन करवा पाया मोहिनी की शादी?

chamat

‘‘मोहिनी दीदी पधार रही हैं,’’ रतन, जो दूसरी मंजिल की बालकनी में मोहिनी के लिए पलकपांवडे़ बिछाए बैठा था, एकाएक नाटकीय स्वर में चीखा और एकसाथ 3-3 सीढि़यां कूदता हुआ सीधा सड़क पर आ गया.

उस के ऐलान के साथ ही सुबह से इंतजार कर रहे घर और आसपड़ोस के लोग रमन के यहां जमा होने लगे.

‘‘एक बार अपनी आंखों से बिटिया को देख लें तो चैन आ जाए,’’ श्यामा दादी ने सिर का पल्ला संवारा और इधरउधर देखते हुए अपनी बहू सपना को पुकारा.

‘‘क्या है, अम्मां?’’ मोहिनी की मां सपना लपक कर आई थीं.

‘‘होना क्या है आंटी, दादी को सिर के पल्ले की चिंता है. क्या मजाल जो अपने स्थान से जरा सा भी खिसक जाए,’’ आपस में बतियाती खिलखिलाती मोहिनी की सहेलियों, ऋचा और रीमा ने व्यंग्य किया था.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए क्लिक करें…

3. भैया- 4 बहनों को मिला जब 1 भाई

bhaiya

कीर्ति ने निशा का चेहरा उतरा हुआ देखा और समझ गई कि अब फिर निशा कुछ दिनों तक यों ही गुमसुम रहने वाली है. ऐसा अकसर होता है. कीर्ति और निशा दोनों का मैडिकल कालेज में दाखिला एक ही दिन हुआ था और संयोग से होस्टल में भी दोनों को एक ही कमरा मिला. धीरेधीरे दोनों के बीच अच्छी दोस्ती हो गई.

कीर्ति बरेली से आई थी और निशा गोरखपुर से. कीर्ति के पिता बैंक में अधिकारी थे और निशा के पिता महाविद्यालय में प्राचार्य.

गंभीर स्वभाव की कीर्ति को निशा का हंसमुख और सब की मदद करने वाला स्वभाव बहुत अच्छा लगा था. लेकिन कीर्ति को निशा की एक ही बात समझ में नहीं आती थी कि कभीकभी वह एकदम ही उदास हो जाती और 2-3 दिन तक किसी से ज्यादा बात नहीं करती थी.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए क्लिक करें…

4. तोबा मेरी तोबा- अंजली के भाई के साथ क्या हुआ?

tauba

मेरे सिगरेट छोड़ देने से सभी हैरान थे. जिस पर डांटफटकार और समझानेबुझाने का भी कोई असर नहीं हुआ वह अचानक कैसे सुधर गया? जब मेरे दोस्त इस की वजह पूछते तो मैं बड़ी भोली सूरत बना कर कहता, ‘‘सिगरेट पीना सेहत के लिए हानिकारक है, इसलिए छोड़ दी. तुम लोग भी मेरी बात मानो और बाज आओ इस गंदी आदत से.’’

मुझे पता है, मेरे फ्रैंड्स  मुझ पर हंसते होंगे और यही कहते होंगे, ‘नौ सौ चूहे खा कर बिल्ली हज को चली. बड़ा आया हमें उपदेश देने वाला.’ मेरे मम्मीडैडी मेरे इस फैसले से बहुत खुश थे लेकिन आपस में वे भी यही कहते होंगे कि इस गधे को यह अक्ल पहले क्यों नहीं आई? अब मैं उन से क्या कहूं? यह अक्ल मुझे जिंदगी भर न आती अगर उस रोज मेरे साथ वह हादसा न हुआ होता.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए क्लिक करें…

5. रेतीला सच- शिखा की बिदाई के बाद क्या था अनंत का हाल

ret

‘तुम्हें वह पसंद तो है न?’’ मैं  ने पूछा तो मेरे भाई अनंत  के चेहरे पर लजीली सी मुसकान तैर गई. मैं ने देखा उस की आंखों में सपने उमड़ रहे थे. कौन कहता है कि सपने उम्र के मुहताज होते हैं. दिनरात सतरंगी बादलों पर पैर रख कर तैरते किसी किशोर की आंखों की सी उस की आंखें कहीं किसी और ही दुनिया की सैर कर रही थीं. मैं ने सुकून महसूस किया, क्योंकि शिखा के जाने के बाद पहली बार अनंत को इस तरह मुसकराते हुए देख रही थी.

शिखा अनंत की पत्नी थी. दोनों की प्यारी सी गृहस्थी आराम से चल रही थी कि एक दर्दनाक एहसास दे कर यह साथ छूट गया. शिखा 5 साल पहले अनंत पर उदासी का ऐसा साया छोड़ गई कि उस के बाद से अनंत मानो मुसकराना ही भूल गया.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए क्लिक करें…

6. मेरे भैया- अंतिम खत में क्या लिखा था खास

mere

सावनका महीना था. दोपहर के 3 बजे थे. रिमझिम शुरू होने से मौसम सुहावना पर बाजार सुनसान हो गया था. साइबर कैफे में काम करने वाले तीनों युवक चाय की चुसकियां लेते हुए इधरउधर की बातों में वक्त गुजार रहे थे. अंदर 1-2 कैबिनों में बच्चे वीडियो गेम खेलने में व्यस्त थे. 1-2 किशोर दोपहर की वीरानगी का लाभ उठा कर मनपसंद साइट खोल कर बैठे थे.  तभी वहां एक महिला ने प्रवेश किया. युवक महिला को देख कर चौंके, क्योंकि शायद बहुत दिनों बाद एक महिला और वह भी दोपहर के समय, उन के कैफे पर आई थी. वे व्यस्त होने का नाटक करने लगे और तितरबितर हो गए.

महिला किसी संभ्रांत घराने की लग रही थी. चालढाल व वेशभूषा से पढ़ीलिखी भी दिख रही थी. छाता एक तरफ रख कर उस ने अपने बालों को जो वर्षा की बूंदों व तेज हवा से बिखर गए थे, कुछ ठीक किए. फिर काउंटर पर बैठे लड़के से बोली, ‘‘मुझे एक संदेश टाइप करवाना है. मैं खुद कर लेती पर हिंदी टाइपिंग नहीं आती है.’’

पूरी कहानी पढ़ने के लिए क्लिक करें…

7. तृप्त मन- राजन ने कैसे बचाया बहन का घर

tript

पिछले दिनों से थकेहारे घर के सभी सदस्य जैसे घोड़े बेच कर सो रहे थे. राशी की शादी में डौली ने भी खूब इंज्वाय किया लेकिन राजन की पत्नी बन कर नहीं बल्कि उस की मित्र बन कर.

अमेरिका में स्थायी रूप से रह रहे राजन के ताऊ धर्म प्रकाश को जब खबर मिली कि उन के भतीजे राजन ने आई.टी. परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया है तो उन्होंने फौरन फोन से अपने छोटे भाई चंद्र प्रकाश को कहा कि वह राजन को अमेरिका भेज दे…यहां प्रौद्योगिकी में प्रशिक्षण के बाद नौकरी का बहुत अच्छा स्कोप है.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए क्लिक करें…

8. राखी का उपहार

rakhi-ka

इस समय रात के 12 बज रहे हैं. सारा घर सो रहा है पर मेरी आंखों से नींद गायब है. जब मुझे नींद नहीं आई, तब मैं उठ कर बाहर आ गया. अंदर की उमस से बाहर चलती बयार बेहतर लगी, तो मैं बरामदे में रखी आरामकुरसी पर बैठ गया. वहां जब मैं ने आंखें मूंद लीं तो मेरे मन के घोड़े बेलगाम दौड़ने लगे. सच ही तो कह रही थी नेहा, आखिर मुझे अपनी व्यस्त जिंदगी में इतनी फुरसत ही कहां है कि मैं अपनी पत्नी स्वाति की तरफ देख सकूं.

‘‘भैया, मशीन बन कर रह गए हैं आप. घर को भी आप ने एक कारखाने में तबदील कर दिया है,’’ आज सुबह चाय देते वक्त मेरी बहन नेहा मुझ से उलझ पड़ी थी. ‘‘तू इन बेकार की बातों में मत उलझ. अमेरिका से 5 साल बाद लौटी है तू. घूम, मौजमस्ती कर. और सुन, मेरी गाड़ी ले जा. और हां, रक्षाबंधन पर जो भी तुझे चाहिए, प्लीज वह भी खरीद लेना और मुझ से पैसे ले लेना.’’

पूरी कहानी पढ़ने के लिए क्लिक करें…

9. स्लीपिंग पार्टनर- मनु की नजरों में अनुपम भैया

sleeping

मनु को एक दिन पत्र मिलता है जिसे देख कर वह चौंक जाती है कि उस की भाभी यानी अनुपम भैया की पत्नी नहीं रहीं. वह भैया, जो उसे बचपन में ‘डोर कीपर’ कह कर चिढ़ाया करते थे.

पत्र पढ़ते ही मनु अतीत के गलियारे में भटकती हुई पुराने घर में जा पहुंचती है, जहां उस का बचपन बीता था, लेकिन पति दिवाकर की आवाज सुन कर वह वर्तमान में लौट आती है. वह अनुपम भैया के पत्र के बारे में दिवाकर को बताती है और फिर अतीत में खो जाती है कि उस की मौसी अपनी बेटी की शादी के लिए कुछ दिन सपरिवार रहने आ रही हैं. और सारा इंतजाम उन्हें करने को कहती हैं.

आखिर वह दिन भी आ जाता है जब मौसी आ जाती हैं. घर में आते ही वह पूरे घर का निरीक्षण करना शुरू कर देती हैं और पूरे घर की जिम्मेदारी अपने हाथों में ले लेती हैं. पूरे घर में उन का हुक्म चलता है.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए क्लिक करें…

10. मत बरसो इंदर राजाजी

mat

भाई की चिट्ठी हाथ में लिए ऋतु उधेड़बुन में खड़ी थी. बड़ी  प्यारी सी चिट्ठी थी और आग्रह भी इतना मधुर, ‘इस बार रक्षाबंधन इकट्ठे हो कर मनाएंगे, तुम अवश्य पहुंच जाना…’

उस की शादी के 20 वर्षों  आज तक उस के 3 भाइयों में से किसी ने भी कभी उस से ऐसा आग्रह नहीं किया था और वह तरसतरस कर रह गई थी.  उस की ससुराल में लड़कियों के यहां आनाजाना, तीजत्योहारों का लेनादेना अभी तक कायम था. वह भी अपनी इकलौती ननद को बुलाया करती थी. उस की ननद तो थी ही इतनी प्यारी और उस की सास कितनी स्नेहशील.  जब भी ऋतु ने मायके में अपनी ससुराल की तारीफ की तो उस की मंझली भाभी उषा, जो मानसिक रूप से अस्वस्थ रहती थीं, कहने लगीं, ‘‘जीजी, ससुराल में आप की इसलिए निभ गई क्योंकि आप की सासननद अच्छी हैं, हमारी तो सासननदें बहुत ही तेज हैं.’’

पूरी कहानी पढ़ने के लिए क्लिक करें…

Hemoglobin की सही मात्रा है जरूरी

हीमोग्लोबिन हमारे शरीर की सभी प्रक्रियाओं को सुचारू रूप से काम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. लेकिन जब रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा कम हो जाती है तो हम एनीमिया का शिकार हो जाते हैं. यानी शरीर में रेड ब्लड सेल्स की मात्रा कम होने लगती है, जिस से शरीर के अंगों तक औक्सीजन फ्लो काफी कम हो जाता है. जिससे न सिर्फ हमारी शारीरिक बल्कि मानिसक हैल्थ पर भी काफी प्रभाव पड़ता है. इसके कारण थकान होना, चक्कर आना, स्किन का पीला पड़ना, सांस लेने में दिक्कत महसूस होना, सिर दर्द, ठंड लगना, दिल की धड़कन का तेज होना आदि लक्षण दिखाई देने लगते हैं. इसलिए जरूरी है शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा का सही होना.

हीमोग्लोबिन का नार्मल स्तर

नार्मल हीमोग्लोबिन इन वूमन- 12-15 ग्राम/डीएल

नार्मल हीमोग्लोबिन इन प्रैगनैंट  वूमन- 12-16 ग्राम/डीएल

नार्मल हीमोग्लोबिन इन मैन- 14-17 ग्राम/डीएल

नार्मल हीमोग्लोबिन इन 6-12 ईयर किड्स- 13.5 ग्राम/डीएल

लो हीमोग्लोबिन लेवल इन वूमन- 12 से कम मतलब आयरन की कमी और 10 से कम का मतलब आप एनिमिक हैं.

लो हीमोग्लोबिन लेवल इन मैन- 12 से कम मतलब शरीर में खून की कमी है.

कौन से कारण हैं जिम्मेदार

–  संतुलित आहार नहीं लेना.

–  शरीर में विटामिंस और मिनरल्स की कमी हो जाना.

–  पीरियड्स के दौरान नोर्मल से ज्यादा ब्लीडिंग होना.

ये भी पढ़ें- Breast Feeding बढ़ाएं Baby की Immunity

क्या है उपचार

शरीर में जब हीमोग्लोबिन की मात्रा कम होने लगती है, तब डाक्टर जरूरी जांचों जैसे ब्लड टेस्ट, विटामिन बी-9, विटामिन बी-12, विटामिन डी जैसे जरूरी टेस्ट्स करवा कर उसके रिजल्ट के आधार पर ही उपचार देते हैं. लेकिन आपको बता दें कि शरीर में खून की कमी होने पर हेमाटीनिक्स एजेंट्स जो न्यूट्रिएंट होते हैं, जो शरीर में ब्लड को बनाने का काम करते हैं. जिसमें मुख्य रूप से आयरन, फोलिक एसिड और विटामिन बी-12 का समावेश होता है, दिया जाता है ताकि शरीर की कमियां दूर हो कर हम पहले जैसा जीवन जी सके. इसके साथ ही विटामिन डी भी लेना जरूरी होता है. जानते हैं इनके बारे में:

कैसे काम करता है

आयरन:

शरीर में हीमोग्लोबिन को बनाने के लिए आयरन की जरूरत होती है. जो रेड ब्लड सेल्स में पाया जाता है. ऐसे में हेमाटीनिक्स से शरीर को आयरन मिलने से ये औक्सीजन को अंगों व ऊतकों तक पहुंचाने का काम करता है. जिस से शरीर में आयरन की कमी भी दूर हो जाती है और शरीर के विभिन्न अंगों को औक्सीजन भी मिल जाता है.

विटामिन बी-12:

शरीर में विटामिन  बी-12 की कमी होने से थकान व कमजोरी महसूस होती है. यहां तक कि शरीर में विटामिन बी-12 की कमी एनीमिया का कारण बनने के साथसाथ इससे नर्वस डैमेज होने के साथ आपकी सोचने, समझने की क्षमता पर भी असर पड़ता है. जबकि हेमाटीनिक्स शरीर में विटामिन बी-12 के लेवल को बनाए रखने का काम करता है. क्योंकि इसका रेड ब्लड सेल्स को बनाने में अहम रोल जो होता  है.

फोलेट:

फोलिक एसिड की जरूरत हैल्दी सेल्स को बनाने के लिए की जाती है. खासकर के रेड ब्लड सेल्स को. लेकिन अगर शरीर में फोलिक एसिड की कमी होने लगती है, तो शरीर असामान्य रूप से बड़े रेड ब्लड सेल्स बनाना शुरू कर देता है, जिससे वे सही ढंग से काम नहीं करने के कारण शरीर में खून की कमी होने लगती है. लेकिन हेमाटीनिक्स शरीर में फोलिक एसिड के स्तर को बनाए रखने का काम करता है.

ये भी पढ़ें- सेहत के लिए वरदान मल्टीग्रेन आटा

विटामिन डी भी जरूरी:

बता दें कि शरीर में विटामिन डी आयरन, कैल्शियम, जिंक, मैग्नीशियम, फास्फेट को अवशोषित करने में अहम भूमिका निभाता है. साथ ही इससे हड्डियों व मांसपेशियों को भी मजबूती मिलती है. वरना शरीर में विटामिन डी की कमी होने से थकान, हड्डियां कमजोर होने के साथसाथ आप डिप्रेशन की भी गिरफ्त में आ सकते हैं. इसलिए शरीर की सभी कमियों को दूर करें हेमाटीनिक्स न्यूट्रिएंट से.

सतरीठा और शिकाकाई से बालों की देखभाल

आज बाजार में हेयर केयर से जुड़े तमाम तरह के औयल और शैंपू मौजूद है. बहुत सारे प्रोडक्ट्स ऐसे होते  हैं जो बालों की ऊपर से देखभाल करते हैं. उनको कुछ समय  के लिए काले और चमकदार बना देते हैं. जिससे वह हेल्दी नजर आने लगते हैं. इनमें से जो प्रोडक्ट्स केमिकल बेस्ड बने होते हैं उनका खराब प्रभाव कुछ दिनों के बाद बालों और स्कैल्प को नुकसान पहुंचाने लगते हैं. बाल रूखे और बेजान नजर आने लगते हैं. बहुत सारे लोग अब हेयर केयर के लिए घरेलू उपाय करना लोग बेहतर समझने लगे हैं. इसके साथ ही साथ सतरीठा ओर शिकाकाई से बने प्रोडक्ट्स शैंपू और हेयर औयल ज्यादा प्रयोग कर रहे हैं. इनके उपयोग को समझना जरूरी है.

सतरीठा का प्रयोग बालों को धोने में किया जाता  है. इस कारण इसको शैंपू के रूप में ज्यादा प्रयोग किया जाता है. सतरीठा का एक पेड़ होता है. सतरीठा के पेड़ पर गर्मियों में फूल आते हैं. जोकि आकार में बहुत छोटे हैं. इनका रंग हल्का हरा होता है. सतरीठा का फल जुलाई और अगस्त तक आ जाता है जोकि नवंबर और दिसंबर तक पकता है. इस फल को लोग मार्केट में बेच देते हैं. सुखाया गया फल शैंपू, डिटर्जैंट या फिर हाथ धोने वाले साबुन के रूप में प्रयोग किया जाता है. इसके प्रयोग से बालों को मजबूत बनाने, चमकदार और घना बनाने में किया जाता है.

सतरीठा से औयल भी निकलता है. इसका प्रयोग को शैंपू में एक खास तत्व के रूप में किया जाता है. यह बालों के स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा होता है. अगर बालों में जुंएं हैं तो सतरीठा के प्रयोग से जुंएं एक दम खत्म हो जाएंगे. सूखे सतरीठा को पेस्ट के रूप में प्रयोग करने के लिए उसमें 1 अंडा, 1 चम्मच आमला पाउडर, सूखा रीठा और शिकाकाई पाउडर मिलाइए. इसे सिर की त्वचा पर मसाज करें और 30 मिनट के लिए छोड़ दें. फिर किसी हलके शैंपू से सिर को धोएं. 2 माह तक सप्ताह में 2 बार ऐसा करने से बाल झड़ना कम हो जाएंगे. सतरीठा का प्रयोग करते समय ध्यान रखें कि यह आंखों से दूर रहे.

ये भी पढ़ें- Raksha Bandhan Special: इन 5 टिप्स से पाएं बेदाग चेहरा

बालों के लिए बड़े काम का शिकाकाई

सतरीठा की ही तरह से शिकाकाई का प्रयोग भी बालों की केयर के लिए किया जाता है. कई बार दोनों आपस में मिलाकर भी प्रयोग किया जाता है. शिकाकाई एक जड़ी-बूटी है. शिकाकाई का वैज्ञानिक नाम एकेशिया कॉनसिना है. इसका पेड़ जल्दी बढ़ने वाला और छोटे-छोटे कांटों से भरा होता है. यह भारत के गर्म मैदानों में पाया जाता है. शिकाकाई में एंटीऑक्सिडेंट्स और विटामिन जैसे पोषक तत्व होते हैं जो बालों के स्वास्थ्य और मजबूत करने का काम करते हैं. शिकाकाई का प्रयोग बालों की ग्रोथ को बढ़ाता है. इसमें मौजूद एंटीऑक्सिडेंट बालों और स्कैल्प को नुकसान पहुंचाने वाले फ्री-रेडिकल्स से लड़ने में  मदद करते हैं.

हेल्दी स्कैल्प बालों की ग्रोथ को बढ़ाता है. शिकाकाई में एंटी-बैक्टीरियल और एंटिफंगल गुण होते हैं. यह स्कैल्प में इंफ्लेमेशन को  कम करता है और इस के स्वास्थ्य को बेहतर करता है साथ ही स्कैल्प के पीएच स्तर को बनाए रखने में भी मदद करता है जिससे बाल भी हेल्दी रहते हैं. रूसी यानि डैंड्रफ का खतरा भी नहीं रहता है. बालों का झड़ना कम हो जाता  है. शिकाकाई से बने शैंपू या हेयर मास्क में शिकाकाई पाउडर का इस्तेमाल करने से बाल को कोमल और मुलायम हो जाते हैं. बाल घने और मजबूत हो जाते हैं. यह बालों को जड़ों को मजबूत करके टूटने से रोकता है.

दो मुंहे बालों की परेशानी

दो मुंहे बालों की परेशानी से बचने में भी शिकाकाई मदद करती है. केमिकल हेयर ट्रीटमेंट, स्ट्रेटनिंग और फ्री-रेडिकल के कारण बालों में स्प्लिट एंड्स यानि दो मुंहे बाल हो जाते हैं. एक बार जब स्प्लिट एंड्स हो जाते हैं, तो इन्हें ठीक करने के लिए बालों को काटने के अलावा और कोई उपाय नहीं है. उसके बाद भी, जब आपके बाल बढ़ते हैं तो ये फिर से आ सकते हैं. शिकाकाई के प्रयोग से यह परेशानी काफी कम  जाती है. शिककाई में भरपूर सैपोनिन, विटामिन और एंटीऑक्सीडेंट होते हैं जो आपके बालों को शाइनी बनाते हैं. शिकाकाई आपके स्कैल्प में सीबम को रिलीज करने में भी मदद करता है जिससे बाल मॉइस्चराइज होते हैं और स्प्लिट एंड्स को रोकने में मदद मिलती है.

ये भी पढ़ें- Raksha Bandhan Special: मेकअप से ऐसे पायें नेचुरल निखार

शिकाकाई का हेयर मास्क बनाने के लिए शिकाकाई पाउडर, आंवला पाउडर और सतरीठा पाउडर को 2 अंडे, 2-3 चम्मच नीबू का रस और थोड़ा गुनगुने पानी के साथ मिला लें. इस मास्क को बालों और उसकी जड़ों तक आधे घंटे के लिए लगाएं. जब यह सूख जाए तो इसे धो लें और बालों की कंडीशनिंग कर लें. इस तरह से शिकाकाई और सतरीठा से बने प्रोडक्ट्स भी हेयर केयर के लिए बहुत उपयोगी होते हैं.

Raksha Bandhan 2021: एक अटूट बंधन है राखी

हर रिश्ते का कोई ना कोई नाम होता है, ठीक उसी प्रकार एक पावन रिश्ता भी होता है एक औरत और आदमी के बीच. वो रिश्ता सब से पवित्र और अनूठा होता है, जिसे हम भाई बहन का रिश्ता कहते है. यह रिश्ता हर रिश्ते से मीठा होता है ,और सच्चा होता है, यह रिश्ता केवल धागे से बंधी डौर पर ही निर्भर नही करता, उस डौर में छुपा होता है एक अटूट विश्वास और स्नेह. यह रिश्ता भले ही कच्चे  धागे से बंधा हो लेकिन इसकी मिठास दोनों के दिलो में पक्के विश्वास से बंधी होती है. जो हर रिश्ते से मजबूत डौर होती है. यही प्यार रक्षाबंधन के दिन भाई को अपनी बहन के पास खीच लाता है. राखी के अटूट बंधन पर प्रकाश डाल रहे है –

सभी त्यौहार में रक्षाबंधन एक अनूठा त्यौहार है. यह केवल त्यौहार ही नही बल्कि हमारी परम्पराओ का प्रतीक है, जो आज भी हमें अपने देश,, परिवार व संस्कृति से जोड़े रखे हुए है. चाहे भाई विदेश में हो या बहन लेकिन वह राखी के इस त्यौहार पर एक दुसरे को याद जरुर करते है. बहन  राखी भी भेजना नही भूलती. यही सब त्यौहार आज भी हमें अपने देश की मिटी से जोड़े हुए है.

रक्षाबंधन बहन की प्रतिबद्धता का दिन है, जिस दिन भाई अपनी बहन को हर मुसीबत से बचाने का  वचन देता है. उसका साथ निभाने का और उसका ख्याल रखने का वचन देता है. साल भर बहन   अपने भाई से मिलने के लिए इस दिन की रहा तकती है, क्योंकि जब बहन की शादी हो  जाती है या भाई कही दूर रहता है तो उनके मिलन का दिन यही होता है. इस दिन वो सब काम छोड़ कर एक दुसरे  से मिलते है, और बहन  भाई की कलाई पर राखी बांध कर अपने रिश्ते को और भी मजबूत  बनती है और भाई सदा उसका साथ निभाने का वादा करता है.

कब और कैसे मनाते है राखी का त्यौहार

यह त्यौहार श्रवण मास की पूर्णिमा (जुलाई -अगस्त ) को मनाया जाता है. इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बंधती है और उसके माथे पर रोली का तिलक लगाती  है और उसे मीठा खिलाती है तथा सदैव  उसकी दीर्घ आयु की कामना करती है व विजयी होने  की कामना करती है. भाई अपनी लाडली बहन को कोई ना कोई तोहफा या पैसे देता है ,लेकिन असल तोहफा  उसका वह  वचन ही होता है कि वह हर प्रकार के अहित से उसकी रक्षा करेगा और अपनी बहन का सदैव ख्याल रखेगा और हर दु:ख सुख मे उसका साथ निभाएगा.

ये भी पढ़ें- बच्चों की मस्ती पर न लगाएं ब्रैक

गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर ने 1905 में शान्तिनिकेतन रक्षाबंधन की शुरुआत की थी.  और यह परम्परा आज भी शांति निकेतन  मे चल रही है, लेकिन वहा भाई बहन के बीच राखी नही बल्कि मित्रो के बीच यह त्यौहार मनाया जाता है. ताकि उनके बीच मधुर सम्बन्ध  बने रहे.

बदलता ट्रेंड

इस साल यह त्यौहार 03 अगस्त को मनाया जायेगा. हर साल दुकानों पर नये नये डिजाईन की राखी आती है, जो सभी बहनो को खूब लुभाती है.  सभी बहन चाहती है कि वो अपने भाई को ऐसी राखी बांधे जो सब से सुन्दर हो और मजबूत हो जो पुरे साल उसके भाई की कलाई पर सजी रहे. बाज़ार मे रेशम के धागे से लेकर सोने चांदी की राखी उपलब्ध है और अब तो हीरे   की राखी भी बजारों मे मिल रही है. वैसे देखा जाये तो असल राखी कलावे की होती है. लेकिन आज-कल नई  चीजो का दौर  है, तो त्यौहार को ही क्यों ना नये जमाने के चार चाँद लगाएं.  पहले बहन   मिठाई का डब्बा दिया करती थी, लेकिन अब वो  अपने भाई को चाकलेट, अप्पी, फ्रूटी ,बिस्कुट के पक्केट भी देने लगी है क्योंकि आज कल के लोगो को स्नैक्स  जैसी चीजे अधिक पसंद होती है, इसलिए वो भी चाहते  है की जो उनके भाई को पसंद हो और यही नया ट्रेंड बनता जा रहा है.

मुहबोली बहन अथवा भाई बनाने का फैशन ही भाई बहन के पवित्रता से बने  रिश्ते को संदेहस्पद  बनाता है. बहनों और भाइयों दोनों को रिश्तों कि नाजुकता को ध्यान मे रखना चाहिये, नये पीढ़ी अभी इन बातों से वंचित है कि भावनओं का अनादर एवं विश्वास के साथ घात अशोभनीय है.

इतिहास के पन्नो में 

रक्षा बंधन का जिक्र इतिहास की कहानियों में भी मिलता है महाभारत में द्रौपदी ने श्री क्रषण के हाथ में अपनी साड़ी का किनारा फाड़ कर बांधा था. जब श्री कृष्ण ने खुद को घायल कर लिया था और उनके हाथों से खून बहने लगा था. तब द्रौपदी ने ही अपना पल्ला फाड़ कर बांधा इसी प्रकार उन दोनों के बीच भाई- बहन का रिश्ता विकसित  हुआ. श्री कृष्ण  ने उसकी रक्षा करने का वचन दिया था. इस त्यौहार को विश्वास की डौर ने परस्पर आज भी बांधा हुआ है. रक्षा का अर्थ होता है- बचाव करना.

हुमायूँ के समय  मे चित्तोड़  की रानी कर्मावती ने दिल्ली   के मुग़ल बादशाह हुमांयू को राखी भेज कर भाई बनाया था. उस समय चित्तोड़ पर गुजरात के राजा ने आक्रमण किया था. तब कर्मावती ने हुमांयू को राखी भेज कर मद्दद की गुजारिस की थी.  इस राखी से भावुक हुआ हुमायूँ फ़ौरन रानी की मदद के लिये पहुचा और राखी की इज्ज़त  और सम्मान के लिये गुजरात के बादशाह से युद्ध किया.

पुरु बने ग्रीक की रानी के भाई

300 बीसी में अलेक्ज़ेन्डर की पत्नी ने भारत में राखी के महत्व को जानकर पुरु को अपना भाई बनाया था. जो की पश्चिमी  भारत के एक महान युधा  थे. उन्हे राखी बांधी और अलेक्ज़ेन्डर पर हमला ना करने की गुजारिश की. पुरु ने भी ग्रीक की रानी को बहन मानते हुए उनके सुहाग की रक्षा की और उनकी राखी का सम्मान किया.

ये भी पढ़ें- रिश्तों की अजीब उलझनें

राजपूतों का इतिहास

कहा जाता है कि जब राजपूत युद्ध के लिए निकलते थे, तो पहले औरते उनके माथे पर तिलक और हाथों  मे कलाई पर रक्षा का धागा बंधती थी.   यह धागा जीत का शुभ चिन्ह माना जाता था. कई बार राजपूत और मराठी रानियों ने मुस्लिम राजाओं को अपना भाई बनाया था, जिससे वो उनके पति के खिलाफ युद्ध  करने से रुक जाएँ. वो उस  धागे को  भेज कर राजाओं से भाई बनने की पेशकश करती थी  और उन्होने अपने सुहाग की रक्षा की गुहार लगाई.

भाई बहन का लगाव व स्नेह  ताउम्र बरकरार रहता है, क्योंकि बहन कभी बाल सखा तो कभी माँ तो कभी पथ प्रदर्शक बन भाई को सिखाती है. हमेशा उसकी विपत्ति मे, उसको हर मुश्किल का सामना करना सिखाती है, उसे जिन्दगी मे आगे बढऩा सिखाती है.  इस उत्सव का मुख्य उदेश्य  परिवारों को जोडऩा है हमेशा रिश्ते बनाये रखना है.

बड़ी-बड़ी असफलताएं न होतीं …तो हैरत करती शानदार सफलताएं भी न होतीं

थामस अल्वा एडीसन बल्ब बनाने में दिन-रात एक किये हुए थे. कई महीने नहीं बल्कि एक साल से ऊपर हो चुका था; लेकिन सफलता कहीं आसपास फटकती भी नजर नहीं आ रही थी. उनके प्रतिद्वंदियों को पता था कि वह आजकल बल्ब बनाने में दिन-रात एक किये हुए हैं. लेकिन कोई सफलता नहीं मिल रही. प्रतिद्वंदियों के लिए यह एडीसन की खिंचाई का बढ़िया मौका था. एक दिन एक सज्जन पहुंच गये. थोड़ी इधर उधर की बात के बाद कहने लगे, ‘पता चला है तुम बल्ब बनाने के क्रम 500 बार असफल हो चुके हो?’

एडीसन ने कहा, ‘नहीं तो, मैं तो बल्कि 500 प्रयोगों से यह जान चुका हूं कि इस तरह से बल्ब नहीं बन सकता. यह जानकारी भविष्य के लिए बहुत काम आयेगी.’ जो प्रतिद्वंदी वैज्ञानिक एडीसन को नीचा दिखाने के ख्याल से उनके पास गये थे, एडीसन का मुंह देखते रह गये. जी, हां! अगर इस तरह की असफलताओं और उनसे हार न मानने का जज्बा नहीं होता तो शायद ही आज दुनिया इतनी खूबसूरत होती. वास्तव में दुनिया को इतनी खूबसूरत और समृद्ध बनाने में असफलाओं का भी जबरदस्त योगदान है.

अब भला यह बात कौन सोच सकता है कि आज जिस फोन के बिना दुनिया का एक पल गुजारा नहीं है, कभी इसी फोन के बारे में अमरीकी राष्ट्रपति का अनुमान था कि इसे कोई इस्तेमाल नहीं करेगा. जबकि आज स्थिति यह है कि दुनिया की आबादी करीब 8 अरब है और दुनिया में फोनों की संख्या कोई 13 अरब है. इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि आज की जीवनशैली में फोन कितना महत्वपूर्ण हो गया है.

ये भी पढ़ें- घटते फासले बढ़ती नाराजगी

लेकिन जब ग्राहम बेल ने टेलीफोन का आविष्कार किया और इसका बहुत जोर शोर से तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति रदरफोर्ड हेज(1877-81) के सामने प्रदर्शन किया तो टेलीफोन का प्रदर्शन देखकर राष्ट्रपति प्रभावित तो हुए, ग्राहम बेल की पीठ भी थपथपायी लेकिन बड़ी मासूमियत से अफसोस के भाव वाला चेहरा बनाकर कहा, ‘आविष्कार तो ठीक है किंतु इस चीज को भला कौन इस्तेमाल करना चाहेगा?’
यकीन मानिए अगर अमरीकी राष्ट्रपति की इस नकारात्मक टिप्पणी से ग्राहम बेल हतोत्साहित हो गए होते तो आज टेलीफोन की मौजूदा सपनीली दुनिया भला कहां होती? राष्ट्रपति की टिप्पणी से ग्राहम बेल थोड़े परेशान तो हुए लेकिन वो अपने भरोसे पर मजबूती से खड़े रहे कि उनका आविष्कार एक दिन दुनिया बदल देगा. आज बेल भले अपनी जिद की कामयाबी देखने के लिए मौजूद न हो लेकिन दुनिया के सामने उनकी कामयाबी का परचम फहर रहा है.

आज भले इस पर किसी को विश्वास न हो लेकिन एक जमाना था, जब रेलगाड़ी की कामयाबी को लेकर आशंकाएं थीं और ये आशंकाएं आम लोगों से लेकर कई महान तकनीकी विशेषज्ञों तक को थीं. यहां तक कि यूनिवर्सिटी कालेज, लंदन के विद्वान प्रोफेसर डाॅ. लार्डर ने भी घोषणा कर दी थी कि तेज गति से रेल यात्रा सम्भव ही नहीं है. सिर्फ इतना ही नहीं डाॅ. लार्डर के इस निष्कर्ष के चलते ब्रिटेन की पार्लियामेंट में तत्कालीन विपक्षी दल के नेताओं ने सरकार के इस रवैय्ये पर सवालियां निशान लगा दिए थे कि वह रेल के विकास पर आंख मूंदकर  विश्वास करने का जोखिम क्यों ले रही है. लेकिन ब्रिटिश सरकार अपने विश्वास पर कायम रही और इतिहास गवाह है कि उसका विश्वास किस कदर कामयाब हुआ. आज पूरी दुनिया में भूतल परिवहन का सबसे बड़ा आधार रेल यातायात ही है. भले इन दिनों कोरोना के कहर के चलते बहुत कम लोग रेल यात्रा कर रहे हों, लेकिन आज भी हर दिन अरबों टन सामान ढोया जा रहा है.

लेकिन आशंकाएं तो आशंकाएं हैं. सिर्फ रेलगाड़ी को लेकर ही नहीं हवाई जहाज को लेकर भी तमाम नकारात्मक अनुमान व्यक्त किए गए थे, जो इस धारणा के पक्ष में थे कि हवा से भारी उड़ने वाली मशीनों का निर्माण असम्भव है. प्रख्यात वैज्ञानिक एवं ब्रिटिश रायल सोसायटी के अध्यक्ष लार्ड केल्विन ने 1895 में यह भविष्यवाणी की थी. किंतु इंसान उड़ा और वह भी महज 8 साल बाद ही सन 1903 में. सिर्फ लार्ड केल्विन ने ही नहीं बल्कि महान वैज्ञानिक एडिसन भी यही मानते थे कि उड़ने वाली मशीन का निर्माण सम्भव नहीं है. भले आज इन वैज्ञानिकों का मजाक यूनान और इटली के उन शासकों की तरह न उड़ाया जाता हो जिन्होंने एक दौर में अपनी जड़ धारणाओं के चलते कई महान वैज्ञानिकों को उनकी वैज्ञानिक धारणाओं के लिए सजाएं दी थीं, मगर इनकी आशंकाएं भी जोरदार रही हैं. जिस तरह उड़ने वाली मशीन यानी विमान को लेकर इसके मूर्त रूप लेने के पहले तक तमाम जिद्दी आशंकाएं व्यक्त की जा रही थीं.

उसी तरह हवाई जहाज बन जाने के बाद भी उसी दुनिया के तमाम तकनीकी विशेषज्ञ यह मानने को तैयार नहीं थे कि शुरुआती दौर के हवाई जहाजों से बड़ा और उन्नत हवाई जहाज भी किसी दिन अस्तित्व में आयेगा. साल 1933 में बोइंग 247 की उड़ान देखने के बाद बोइंग के ही एक इंजीनियर ने कहा कि दुनिया में कभी इससे बड़ा विमान नहीं बनाया जा सकेगा. गौरतलब है कि उस विमान में सिर्फ 10 लोगों के बैठने की जगह थी, जबकि आज दुनिया में ऐसे सुपर जम्बो बोइंग विमानों का अस्तित्व है जिनमें 800 लोग तक एक साथ सफर कर सकते हैं. हालांकि अभी तक ये व्यवहारिक तौरपर नहीं चलाए जा रहे लेकिन इसके सफल प्रयोग हो चुके हैं. 725 से ज्यादा लोग एक साथ हवा में उड़ चुके हैं. सिर्फ यात्री विमानों को लेकर ही नहीं एक दौर था जब लड़ाकू विमानों के बारे में भी खूब मजाक उड़ाया गया था. साल 1904 में प्रोफेसर ऑफ स्ट्रेटजी मार्सेल फर्डिनांड फोच ने सार्वजनिक तौरपर यह बात कही थी कि एयरोविमान इंट्रेस्टिंग खिलौने तो जरूर हैं, लेकिन युद्ध के लिए इनका कोई खास इस्तेमाल नहीं है.

ये  भी पढ़ें-  किसानों को आत्महत्या से बचाना ही संस्था का मुख्य काम है – विनायक चंद्रकांत हेगाणा

एक व्यक्ति ही नहीं कई बार समूह का समूह अपनी नकारात्मक आशंकाओ के प्रति इस कदर आस्था रखता है कि बिना अनदेखे भविष्य की चिंता किए बड़ी से बड़ी बात कह देता है, जिसकी बाद में भरपायी करते नहीं बनती. जब एडिसन विद्युत बल्ब बनाने की अपनी परियोजना पर काम कर रहे थे, तब ब्रिटिश पार्लियामेंट के विद्वान सांसदों की एक समिति ने मजाक करते हुए कहा था कि यह चीज यानी विद्युत बल्ब, अटलांटिक के पार के हमारे मित्रों (अमेरिकी लोगों) के लिये ठीक हो सकती है, लेकिन विज्ञान एवं व्यावहारिकता की समझ रखने वालों के लिए यह ध्यान देने लायक नहीं है.

आज जिस परमाणु ऊर्जा की बदौलत दुनिया की बड़ी तादाद में बिजली की जरूरतें पूरी हो रही हैं, साथ ही जिसे अथाह ऊर्जा का स्रोत भी माना जा रहा है, उसी परमाणु ऊर्जा पर उस वैज्ञानिक को भी भरोसा नहीं था जिसने इतिहास में पहली बार परमाणु विखण्डन संभव करके दिखाया था. जी, हां! हम ब्रिटेन के महान वैज्ञानिक रदरफोर्ड की ही बात कर रहे हैं. जिन्होंने पहली बार परमाणु विखंडन में सफलता पायी थी. उनका कहना था कि इसमें निहित ऊर्जा बहुत ही कम है. अतः इसको ‘ऊर्जा स्रोत’ के रूप में नहीं देखा जा सकता. आज फ्रांस की तकरीबन 90 फीसदी ऊर्जा जरूरतें परमाणु ऊर्जा से ही हासिल हो रही हैं.

घर के लिए कंप्यूटर कौन खरीदेगा? यह सवाल भारत के किसी साधु सन्यासी का नहीं है बल्कि 80 के दशक में यह बात डिजिटल इक्विपमेंट कॉर्प के फाउंडर केन ओस्लॉन ने कहा था. उनके मुताबिक घरों में कंप्यूटर की कोई जरूरत नहीं है. जल्द ही उन्हें उनके कई साथी संगियों ने साथ देना शुरु कर दिया. उनके बाद ही एक और भविष्यवाणी थॉमस वाटसन की आ गई जो उस समय आईबीएम के चेयरमैन हुआ करते थे. उनके मुताबिक दुनिया में पांच कंप्यूटर बेचने के लिए भी मार्केट नहीं है. आज भले कोई भी कंप्यूटर के विरोध में एक शब्द न कह सकता हो, लेकिन कुछ सालों पहले दुनिया की मशहूर बहुराष्ट्रीय कंपनी औरेकल के सीईओ लैरी एलिसन ने भी पीसी को लेकर यही कहा था कि यह विचित्र मशीन है. हममें से ज्यादातर लोग भले इस बात को लेकर साफ साफ राय न बना पाए कि पीसी विचित्र मशीन है या नहीं लेकिन इस बात में कोई दो राय नहीं है कि आज की दुनिया में पीसी हमारी जिंदगी का इतना महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसके बिना कुछ सोचा ही नहीं जा सकता.

ये भी पढ़ें- ताकि दोबारा न हो तलाक

अति सर्वत्र वर्जएत

लेखक- विनय कुमार पाठक

“माँ! अब मैं थक चुकी हूँ. आपमेरी  भलाई चाहती हैं यह मैं जानती हूँ. आपमेरा बहुत खयाल रखती हैं. जरूरत से कहीं ज्यादा. और आपका यह जरूरत से ज्यादा खयाल मेरे अरमानों का मेरे स्वतन्त्रता का गला घोंट देती है. आप बात-बात पर उदाहरण देती हैं न कि अति सर्वत्र वर्जएत. यहाँ भी अति हो रहा है और इससे आपको परहेज करना चाहिए.” सपना ने तमतमाते हुए कहा.

दर असल अभी-अभी उसका बॉय फ्रेंड उमेश उसे छोड़कर वापस गया था और उसकी माँ कल्याणी ने उसके प्रति अपनी नापसंदगी जताई थी.

“लेकिन बेटा हम तुम्हारी भलाई के लिए ही तो कुछ कहते हैं. मुझे उमेश जरा भी पसंद नहीं है. उसकी पर्सनाल्टी तुम्हारे सामने कुछ भी नहीं है.” कल्याणी ने अपनी बेटी को समझाया.

“माँ वह मेरा फ्रेंड है. मुझे पसंद है उसका साथ. आपके पसंद होने न होने से क्या मतलब है? मैं अब बालिग हूँ और अपना भला बुरा समझ सकती हूँ.” सपना ने गुस्से से कहा.

“देखो, तुम बालिग जरूर हो गई हो. पर मेरे लिए तुम हमेशा बच्ची ही रहोगी और तुम्हारी भालाई सुनिश्चित करना मेरा अधिकार भी है और कर्तव्य भी.” कल्याणी ने क्रोधपूर्वक कहा. पर उसके क्रोध में भी प्यार झलक रहा था.

“आज तक आपको मेरा कोई भी दोस्त ठीक नहीं लगा. किसी न किसी कारण से आपने सबसे मुझे दूरी बनाने की सलाह दी. आपको हमेशा यही लगता रहा कि मुझे और अच्छे लड़के से दोस्ती करनी चाहिए. आपके स्टैंडर्ड तक पहुंचना मेरे लिए संभव नहीं है और न ही मैं पहुंचाना चाहती हूँ. आप कैसे व्यक्ति को पसंद करती हैं शायद आपको भी नहीं पता.” सपना ने पैर पटकते हुए कहा और अपने कमरे में जाकर दरवाजा बंद कर पलंग पर निढाल पड़ गई.

इतना ज्यादा प्यार भी बच्चों से माँ बाप को नहीं होना चाहिए. सपना ने सोचा. उमेश उसका चौथा बॉयफ्रेंड था जिसके प्रति माँ ने अपनी नापसंदगी जताई थी.और पापा? पापा तो बस अपने काम में व्यस्त रहते हैं. माँ के किसी भी निर्णय के खिलाफ वह जा ही नहीं सकते. और अपना कोए निर्णय उनका है ही नहीं. अतः उनसे कोई अपेक्षा किया जाए या नहीं यह समझना भी मुश्किल था.

उसका पहला दोस्त था दीपक.दीपक उसका बचपन का दोस्त था. साथ-साथ दोनों ने स्कूल में पढ़ाई की थी. कॉलेज में भले ही दोनों अलग हो गए थे परंतु साथ बना रहा था. जन्मदिन, नववर्ष, पर्व-त्योहार पर बधाई देना, बीच-बीच में किसी होटल में डिनर करना, साथ में मल्टीप्लेक्स जाना होता रहता था। दीपक ने कभी उसका साथ नहीं छोड़ा था. काफी दिनों के बाद उसने अपने प्यार का इजहार भी कर दिया था. वैसे उसने कभी दीपक को इस नजर से नहीं देखा था. उसने कहा भी था कि उसे कुछ दिनों की मोहलत चाहिए सोचने के लिए. घर में उसने अपनी माँ से दीपक के बारे में बात की तो माँ ने नाक भौं सिकोड़ लिया था. कारण बस एक ही था. दीपक संयुक्त परिवार में रहता था. उसका एक छोटा भाई और एक छोटी बहन थी. माँ का कहना था कि संयुक्त परिवार में आज के जमाने में एडजस्ट करना मुश्किल है. माँ की बात मान उसने दीपक को सॉरी बोल दिया था. धीरे-धीरे दीपक उससे दूर होता चला गया था. और अब वह उसका दोस्त भी नहीं रहा था. अब वह उससे किसी भी मौके पर संपर्क नहीं रखता था. फेसबुक से पता चला था कि उसने शादी कर ली है. उसने बधाई भी दी थी उसे पर उसने उसके कमेन्ट को न लाइक किया न ही कोई प्रतिक्रिया दी.

विनीत दूसरा दोस्त था उसका. विनीत उसके ऑफिस में काम करता था. काफी अंतर्मुखी और संकोची स्वभाव का था विनीत. उसे वह अलग हट कर इसलिए लगा था क्योंकि उसने कभी भी उसे अपने या किसी और महिला सहकर्मी के शरीर को घूरते या किसी से अनावश्यक संपर्क बनाने की कोशिश करते हुए नहीं देखा था. जबकि अन्य सहकर्मी चोरी छिपे महिला सहकर्मियों के शरीर का मुआयना करते हुए प्रतीत होते थे. हाँ! जब वह उसके पास जाती थी तो जरूर वह उसका स्वागत करता था. बात बात पर उसका शरमा जाना सपना को बहुत भाता था. बल्कि उस वर्ष रोजडे पर उसने उसे लाल गुलाब देने का मन भी बना लिया था. जब उसने अपनी माँ से इस बारे में बताया तो माँ ने साफ मना कर दिया. और कारण क्या था.? कारण यह था कि विनीत ने अपनी पत्नी को तलाक दे दिया था. पर माँ ने यह नहीं देखा था कि उसने तलाक क्यों दिया था. वास्तव में लड़की वालों ने धोखे से उसके पल्ले एक ऐसी असाध्य रोग से ग्रसित रोगिणी को बांध दिया था जिसके साथ रहना काफी खतरनाक था. माँ के सलाह पर उसने विनीत से प्यार का इजहार ही नहीं किया था.

तीसरा दोस्त निशांत था. उससे उसकी जान पहचान एक रिश्तेदार के घर किसी पारिवारिक समारोह में हुई थी. निशांत देखने में बड़ा ही आकर्षक था. बात व्यवहार में भी बड़ा ही भला था. एक बार जान पहचान होने के बाद सोशल मीडिया पर दोनों जुड़ गए थे. फिर मिलना जुलाना शुरू हो गया था. कई बार वह उसकी सहायता भी करता था. जब माँ को यह अहसास हुई कि वह निशांत के प्रति कोमल भावनाएँ रखती है तो उसने आगाह किया था, “बेटा निशांत से ज्यादा नजदीकी बनाना ठीक नहीं है.”

“क्यों माँ?क्या कमी हैं निशांत में? कितना सहयोग करता है मेरे साथ?”सपना ने मासूमियत से पूछा था.

“बेटा, उसके भाई ने अंतर्जातीय विवाह किया है. उसके परिवार को समाज में ठीक निगाह से नहीं देखा जाता है.” माँ ने बताया था.

“माँ! आज जात-पात को कौन मानता है? जमाना बादल गया है. ऐसी बातें आज के जमाने में कौन देखता है?” उसने अपना पक्ष रखा था.

“जमाना बादल गया होगा बेटा, पर मैं नहीं बदली. मैं तो इस तरह की शादी करने वालों के सख्त खिलाफ हूँ. और तुम्हें भी हिदायत देती हूँ. दोस्ती तक ठीक है पर उससे आगे बढ़ाने की सोचना भी मत.” माँ का सख्त निर्देश मिला था.और फिर निशांत से भी उसकी दोस्ती खतम हो गई थी.

अब बारी थी उमेश की. उमेश उसकी सहकर्मी, शिखा का भाई था. शिखा के घर आते-जाते उसका संपर्क उससे हो गया था. शिखा ने ही बातों-बातों में उसे बताया था कि उसका भाई उमेश उसे पसंद करता है और उसके साथ जीवन बिताना चाहता है. सपना भी पढ़ाई पूरी करने के बाद कई वर्षों से नौकरी कर रही थी. वह भी अब अपना घर बसाना चाहती थी.माँ की अपेक्षा होने वाले दामाद से इतनी अधिक थी कि कोई लड़का उन्हें पसंद ही नहीं आ रहा था.पापा तो मानो माँ के राज में ममोली प्रजा थे. उनकी पसंद नापसंद का कोई महत्व नहीं था.उमेश भी उन्हें नापसंद था और इसका कारण भी क्या था? उमेश की सांवला होना.

अब सपना थक चुकी थी.माँ की अपेक्षाओं के पहाड़ को पार करना उसके वश में नहीं था. पर वह करे क्या समझ नहीं पा रही थी.

पापा! उसके जेहन में पापा आए. वे माँ की इच्छा के सामने सामान्य तौर पर कुछ नहीं बोलते थे और अपने काम में व्यस्त रहते थे. क्या वे उसकी सहायता करेंगे या फिर माँ की हाँ में हाँ मिलाएंगे? पर बात करने में क्या हर्ज है? पर पापा नहीं माने तो? उसके दिल और दिमाग में कशमकश चल रहा था. पापा भी नहीं माने तो भी वह उमेश से शादी करेगी ही. अब वह बालिग है, अपने पैरों पर खड़ी है. अपना भला बुरा समझ सकती है.

उसने पापा के कमरे का दरवाजे पर दस्तक दी. पापा प्रायः अपने रूम बंद करके काम करते रहते थे.

“अंदर आ जाओ.” उन्होने कहा.

सपना दरवाजा खोल अंदर गई.

पापा डेस्कटॉप पर कुछ काम कर रहे थे. उन्होने तुरंत स्क्रीन ऑफ कर दिया और सपना की ओर मुखातिब हुए. यह उनका स्टाइल था. कोई भी उनसे मिलने आता तो वे पूरी तरह उस पर ध्यान केन्द्रित करते थे. यदि टीवी देख रहे हों तो टीवी बंद करते थे, मोबाइल पर कुछ काम कर रहे हों तो मोबाइल किनारे रख देते थे.

“बोलो बेटा.” उन्होने सपना की ओर प्रश्नभरी निगाहों से देखा.

“क्या बोलूँ पापा? आपके पास ऐसे बैठने नहीं आ सकती क्या?” सपना ने तुनकने का अभिनय किया.

“अरे बैठ क्यों नहीं सकती? पर आई हो कुछ विशेष काम से. इसलिए बता दो. फिर बैठना आराम से.” पापा ने कहा.

“पापा! मैं उमेश के साथ शादी करना चाहती हूँ और इस बार आपलोगों के अड़ंगे को मैं नहीं मानूँगी.”

“अड़ंगा? मैंने कभी अड़ंगा नहीं लगाया. तुमने अपने जीवन की बागडोर अपनी माँ के हाथों में दे रखी है. माँ से बात करो.” पापा ने कहा.

“माँ को तो कोई लड़का पसंद ही नहीं आता. मेरे तीन दोस्तों को रिजेक्ट कर चुकी है.” सपना ने निराश स्वर में कहा.

“देखो! मैं तुम्हारे साथ हूँ.मुझे तुम्हारे किसी भी निर्णय पर पूरा भरोसा है. यदि तुम उमेश के साथ शादी करना चाहती हो तो मेरा अपूरा समर्थन है. इसके लिए मैं तुम्हारी माँ से भी लड़ सकता हूँ. वैसे मेरी हिम्मत नहीं होती तुम्हारी माँ के सामने बोलने की पर तुम्हारे लिए मैं किसी भी मुसीबत से टकरा सकता हूँ. तुम्हारी माँ से भी.” पापा ने हँसते हुए कहा.

“पापा!” सपना ने अपना सर पापा के कंधे पर रख दिया. उसे विश्वास नहीं हो रहा था की पापा इतनी जल्द उसके बात मान जाएंगे.पापा ने प्यार से उसके सर पर हाथ रख दिया.

रात में जब आशीष कल्याणी से मिले तो उसे समझाया,” सपना अपने पसंद के लड़के से शादी कर रही है तो तुम क्यों बीच में बाधा बन रही हो.”

कल्याणी ने तल्ख शब्दों में कहा,”मैं बाधा नहीं बन रही, उसके भलाई के लिए कह रही हूँ. कहीं से भी उमेश टिकता है हमारी सपना के सामने. कहाँ सपना गोरी सुंदर कहाँ उमेश सांवला और देखने में एकदम साधारण.”

“भई हम भी तो साँवले और बिलकुल साधारण है. आपके गोरे रंग और सुंदरता के सामने मेरा क्या मोल. पर हम सुखद जीवन जी रहे हैं कि नहीं. यदि मेरे स्थान पर कोई गोरा सुंदर व्यक्ति आपका पति होता पर उतनी स्वतन्त्रता नहीं देता जितनी मैं देता हूँ तो क्या यह ठीक होता?” आशीष ने समझाया.

कुछ देर तर्क वितर्क होता रहा पर अंत में कल्याणी की समझ में बात आई कि रंग और सुंदरता से ज्यादा महत्वपूर्ण है आपसी समझ. और उमेश और सपना के बीच आपसी समझ काफी बेहतर है इसमें कोई दो मत तो था नहीं.

दूसरे दिन सुबह सपना को पापा की ओर से हरी झंडी मिल चुकी थी.और इस बार माँ की ओर से भी सहमति थी. अब सपना अपने पसंद के लड़के से शादी करने जा रही थी.

प्रमाणित किया जाता है कि “माँ! अब मैं थक चुकी….” शब्दों से प्रारंभ होने वाली  रचना ‘अति सर्वत्र वर्जएत’मेरी  स्वरचित मूल रचना है. इसे दिल्ली प्रेस प्रकाशन की पत्रिकाओं में प्रकाशन हेतु ‘विचारार्थ प्रेषित किया जा रहा है. यह कहीं  प्रकाशित  नहीं हुई है.

अपने तरीके से जीने दें बेटे की पत्नी को

भारत के विक्रांत सिंह चंदेल ने रूस की ओल्गा एफिमेनाकोवा से शादी की. शादी के बाद वे गोवा में रहने लगे. कारोबार में नुकसान होने के बाद ओल्गा पति के साथ उस के घर आगरा रहने आ गई. लेकिन विक्रांत की मां ने ओल्गा को घर में आने देने से साफ मना कर दिया. कारण एक तो यह शादी उस की मरजी के खिलाफ हुई थी, दूसरा सास को विदेशी बहू का रहनसहन पसंद नहीं था.

सुलह का कोई रास्ता न निकलता देख ओल्गा को अपने पति के साथ घर के बाहर भूख हड़ताल पर बैठना पड़ा. ओल्गा का कहना था कि उस की सास दहेज न लाने और उस के विदेशी होने के कारण उसे सदा ताने देती रही है.

जब मामला तूल पकड़ने लगा तो विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को हस्तक्षेप करते हुए राज्य के मुख्यमंत्री से विदेशी बहू की मदद करने के लिए कहना पड़ा. उस के बाद सास और ननद के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए गए. तब जा कर सास ने बहू को घर में रहने की इजाजत दी और कहा कि अब वह उसे कभी तंग नहीं करेगी.

नहीं देती प्राइवेसी

सास-बहू के रिश्ते को ले कर न जाने कितने ही किस्से हमें देखने और सुनने को मिलते हैं. सास को बहू एक खतरे या प्रतिद्वंद्वी के रूप में ही ज्यादा देखती है. इस की सब से बड़ी वजह है सास का अपने बेटे को ले कर पजैसिव होना और बहू को अपनी मनमरजी से जीने न देना. सास का हस्तक्षेप ऐसा मुद्दा है जिस का सामना बेटाबहू दोनों ही नहीं कर पाते हैं. वे नहीं समझ पाते कि पजैसिव मां को अपनी प्राइवेसी में दखल देने से कैसे रोकें कि संबंधों में कटुता किसी ओर से भी न आए.

ये भी पढ़ें- बच्चों की मस्ती पर न लगाएं ब्रैक

अधिकांश बहुओं की यही शिकायत होती है कि सास प्राइवेसी और बहू को आजादी देने की बात को समझती ही नहीं हैं. उन्हें अगर इस बात को समझाना चाहो तो वे फौरन कह देती हैं कि तुम जबान चला रही हो या हमारी सास ने भी हमारे साथ ऐसा ही व्यवहार किया था, पर हम ने उन्हें कभी पलट कर जवाब नहीं दिया.

आन्या की जब शादी हुई तो उसे इस बात की खुशी थी कि उस के पति की नौकरी दूसरे शहर में है और इसलिए उसे अपनी सास के साथ नहीं रहना पड़ेगा. वह नहीं चाहती थी कि नईनई शादी में किसी तरह का व्यवधान पड़े. वह बहुत सारे ऐसे किस्से सुन चुकी थी और देख भी चुकी थी जहां सास की वजह से बेटेबहू के रिश्तों में दरार आ गई थी.

शुरुआती दिनों में पतिपत्नी को एकदूसरे को समझने के लिए वक्त चाहिए होता है और उस समय अगर सास की दखलंदाजी बनी रहे तो मतभेदों का सिलसिला न सिर्फ नवयुगल के बीच शुरू हो जाता है बल्कि सासबहू में भी तनातनी होने लगती है.

आन्या अपने तरीके से रोहन के साथ गृहस्थी बसाना, उसे सजानासंवारना चाहती थी. उस की सास बेशक दूसरे शहर में रहती थी पर वह हर 2 महीने बाद एक महीने के लिए उन के पास रहने चली आती थी क्योंकि उसे हमेशा यह डर लगा रहता था कि उस की नौकरीपेशा बहू उस के बेटे का खयाल रख भी पा रही होगी या नहीं.

आन्या व्यंग्य कसते हुए कहती है कि आखिर अपने नाजों से पाले बेटे की चिंता मां न करे तो कौन करेगा. लेकिन समस्या तो यह है मेरी सास को हददरजे तक हस्तक्षेप करने की आदत है, वे सुबह जल्दी जाग जातीं और किचन में घुसी रहतीं. कभी कोई काम तो कभी कोई काम करती ही रहतीं.

मुझे अपने और रोहन के लिए नाश्ता व लंच पैक करना होता था पर मैं कर ही नहीं पाती थी क्योंकि पूरे किचन में वे एक तरह से अपना नियंत्रण  रखती थीं. यही नहीं, वे लगातार मुझे निर्देश देती रहतीं कि मुझे क्या बनाना चाहिए, कैसे बनाना चाहिए और उन के बेटे को क्या पसंद है व क्या नापसंद है.

सुबहसुबह उन का लगातार टोकना मुझे इतना परेशान कर देता कि मेरा सारा दिन बरबाद हो जाता. यहां तक कि गुस्से में मैं रोहन से भी नाराज हो जाती और बात करना बंद कर देती. मुझे लगता कि रोहन अपनी मां को ऐसा करने से रोकते क्यों नहीं हैं?

सब से ज्यादा उलझन मुझे इस बात से होती थी कि जब भी मौका मिलता वे यह सवाल करने लगतीं कि हम उन्हें उन के पोते का मुंह कब दिखाएंगे? हमें जल्दी ही अपना परिवार शुरू कर लेना चाहिए. जो भी उन से मिलता, यही कहतीं, ‘मेरी बहू को समझाओ कि मुझे जल्दी से पोते का मुंह दिखा दे.’ रोहन को भी वे अकसर सलाह देती रहतीं. प्राइवेसी नाम की कोई चीज ही नहीं बची थी.

रोहन का कहना था कि  हर रोज आन्या को मेरी मां से कोई न कोई शिकायत रहती थी. तब मुझे लगता कि मां हमारे पास न आएं तो ज्यादा बेहतर होगा. मैं उस की परेशानी समझ रहा था पर मां को क्या कहता. वे तो तूफान ही खड़ा कर देतीं कि बेटा, शादी के बाद बदल गया और अब बहू की ही बात सुनता है.

मैं खुद उन दोनों के बीच पिस रहा था और हार कर मैं ने अपना ट्रांसफर बहुत दूर नए शहर में करा लिया ताकि मां जल्दीजल्दी न आ सकें. मुझे बुरा लगा था अपनी सोच पर, पर आन्या के साथ वक्त गुजारने और उसे एक आरामदायक जिंदगी देने के लिए ऐसा करना आवश्यक था.

ये भी पढ़ें- रिश्तों की अजीब उलझनें

परिपक्व हैं आज की बहुएं

मनोवैज्ञानिक विजयालक्ष्मी राय मानती हैं कि ज्यादातर विवाह इसलिए बिखर जाते हैं क्योंकि पति अपनी मां को समझा नहीं पाता कि उस की बहू को नए घर में ऐडजस्ट होने के लिए समय चाहिए और वह उन के अनुसार नहीं बल्कि अपने तरीके से जीना चाहती है ताकि उसे लगे कि वह भी खुल कर नए परिवेश में सांस ले रही है, उस के निर्णय भी मान्य हैं तभी तो उस की बात को सुना व सराहा जाता है.

बहू के आते ही अगर सास उस पर अपने विचार थोपने लगे या रोकटोक करने लगे तो कभी भी वह अपनेपन की महक से सराबोर नहीं हो सकती.

बेटेबहू की जिंदगी की डोर अगर सास के हाथ में रहती है तो वे कभी भी खुश नहीं रह पाते हैं. सास को समझना चाहिए कि बहू एक परिपक्व इंसान है, शिक्षित है, नौकरी भी करती है और वह जानती है कि अपनी गृहस्थी कैसे संभालनी है. वह अगर उसे गाइड करे तो अलग बात है पर यह उम्मीद रखे कि बहू उस के हिसाब से जागेसोए या खाना बनाए या फिर हर उस नियम का पालन करे जो उस ने तय कर रखे हैं तो तकरार स्वाभाविक ही है.

आज की बहू कोई 14 साल की बच्ची नहीं होती, वह हर तरह से परिपक्व और बड़ी उम्र की होती है. कैरियर को ले कर सजग आज की लड़की जानती है कि उसे शादी के बाद अपने जीवन को कैसे चलाना है.

फैमिली ब्रेकर बहू

आर्थिक तौर पर संपन्न होने और अपने लक्ष्यों को पाने के लिए एक टारगेट सैट करने वाली बहू पर अगर सास हावी होना चाहेगी तो या तो उन के बीच दरार आ जाएगी या फिर पतिपत्नी के बीच भी स्वस्थ वैवाहिक संबंध नहीं बन पाएंगे.

एक टीवी धारावाहिक में यही दिखाया जा रहा है कि मां अपने बेटे को ले कर इतनी पजैसिव है कि वह उसे उस की पत्नी के साथ बांटना ही नहीं चाहती थी. बेटे का खयाल वह आज तक रखती आई है और बहू के आने के बाद भी रखना चाहती है, जिस की वजह से पतिपत्नी के बीच अकसर गलतफहमी पैदा हो जाती है.

फिर ऐसी स्थिति में जब बहू परिवार से अलग होने का फैसला लेती है तो उसे फैमिली यानी घर तोड़ने वाली ब्रेकर कहा जाता है. सास अकसर यह भूल जाती है कि बहू को भी खुश रहने का अधिकार है.

विडंबना तो यह है कि बेटा इन दोनों के बीच पिसता है. वह जिस का भी पक्ष लेता है, दोषी ही पाया जाता है. मां की न सुने तो वह कहती है कि जिस बेटे को इतने अरमानों से पाला, वह आज की नई लड़की की वजह से बदल गया है और पत्नी कहती है कि जब मुझ से शादी की है तो मुझे भी अधिकार मिलने चाहिए. मेरा भी तो तुम पर हक है. बेटे और पति पर हक की इस लड़ाई में बेटा ही परेशान रहता है और वह अपने मातापिता से अलग ही अपनी दुनिया बसा लेता है.

शादी किसी लड़की के जीवन का एक महत्त्वपूर्ण व नया अध्याय होता है. पति के साथ वह आसानी से सामंजस्य स्थापित कर लेती है, पर सास को बहू में पहले ही दिन से कमियां नजर आने लगती हैं. उसे लगता है कि बेटे को किसी तरह की दिक्कत न हो, इस के लिए बहू को सुघड़ बनाना जरूरी है. और वह इस काम में लग जाती है बिना इस बात को समझे कि वह बेटे की गृहस्थी और उस की खुशियों में ही सेंध लगा रही हैं.

ये भी पढ़ें- जानें क्या हैं Married Life के 9 वचन

इस का एक और पहलू यह है कि बेटे के मन में मां इतना जहर भर देती है कि  उसे यकीन हो जाता है कि उस की पत्नी ही सारी परेशानियों की वजह है और वह नहीं चाहती कि वह अपने परिवार वालों का खयाल रखे या उन के साथ रहे.

जरूरी है कि सास बेटे की पत्नी को खुल कर जीने का मौका दें और उसे खुद

ही निर्णय लेने दें कि वह कैसे अपनी जिंदगी संवारना व अपने पति के साथ जीना चाहती है. सास अगर हिदायतें व रोकटोक करने के बजाय बहू का मार्गदर्शन करती है तो यह रिश्ता तो मधुर होगा ही साथ ही, पतिपत्नी के संबंधों में भी मधुरता बनी रहेगी.

सेलिब्रेशन पर छाया अनुपमा की हसीनाओं का लुक, फोटोज वायरल

सीरियल अनुपमा के हाल ही में एक एपिसोड में किंजल की परेशानी दूर करने के बाद पूरा शाह परिवार 15 अगस्त के सेलिब्रेशन के साथ मामा जी का बर्थडे मनाता नजर आया. इस दौरान अनुपमा और पूरी शाह फैमिली का नया अंदाज भी देखने को मिलता है. भारत के अलग-अलग हिस्सों की वेशभूषा पहने अनुपमा की हसीनाओं का लुक सोशलमीडिया पर सुर्खियां बटोर रहा है. अनुपमा से लेकर किंजल तक. हर किसी का लुक सोशलमीडिया पर छाया हुआ है. आइए आपको दिखाते हैं अनुपमा सीरियल की हसीनाओं के स्वतंत्रता दिवस के लुक्स की झलक…

मराठी लुक में दिखी अनुपमा

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Rups (@rupaliganguly)

सीरियल अनुपमा में लीड एक्ट्रेस के रोल में नजर आने वाली रुपाली गांगुली स्वतंत्रता दिवस सेलिब्रेशन में मराठी मुलगी बने नजर आईं. हरे कलर की ट्रैडिशनल साड़ी के साथ मैचिंग महाराष्ट्र की ट्रैडिशनल ज्वैलरी में रुपाली गांगुली फोटोज के लिए पोज देती नजर आईं. वहीं सोशलमीडिया पर फैंस उनके इस लुक की तारीफें करते नहीं थक रहे हैं.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Tassnim sheikh (@tassnim_nerurkar)

ये भी पढ़ें- Bigg Boss OTT में हौट लुक्स से फैंस का दिल जीत रही हैं नेहा भसीन, देखें फोटोज

शरारा में काव्या का था अलग अंदाज

काव्या का सीरियल अनुपमा में आए दिन नया अंदाज देखने को मिलता है. वहीं हाल ही में हुए सेलिब्रेशन में काव्या यानी मदालसा शर्मा शरारा पहने नजर आईं, जिसके साथ मैचिंग ज्वैलरी उनके लुक को और भी खूबसूरत बना रहा था.

बंगाली बाला बनी किंजल

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Nidhi Shah (@nidz_20)

किंजल इस सेलिब्रेशन में बंगाली ट्रैडिशनल लुक में नजर आईं. वाइट और रेड कलर के कौम्बिनेशन वाली साड़ी को बंगाली अंदाज में पहनकर किंजल यानी निधि शाह बेहद खूबसूरत लग रही थीं. फैंस उनके इस लुक की फोटोज सोशलमीडिया पर वायरल कर रहे हैं.

बा भी नही रही पीछें

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Alpana Buch (@alpanabuch19)

अनुपमा में बा सिंपल गुजराती अंदाज में नजर आती हैं. लेकिन सेलिब्रेशन में वह राजस्थानी अंदाज में नजर आईं. राजस्थानी लहंगे के साथ बा यानी अल्पना बुच ने ट्रैडिशनल ज्वैलरी भी कैरी की थी.

ये भी पढ़ें- Bigg Boss OTT: पौलीथिन ड्रैस में उर्फी जावेद का लुक हुआ वायरल, एक से बढ़कर हैं लुक्स

कश्मीर की कली बनीं नंदिनी

नंदिनी के लुक की बात करें तो वह कश्मीर की कली की बनी नजर आईं. ट्रैडिशनल ज्वैलरी और कपड़ों के साथ नंदिनी यानी अनघा भोसले बेहद खूबसूरत लग रही थीं.

प्रेग्नेंसी में मौर्निंग सिकनेस कब तक रहती है, कृपया बताएं ?

सवाल-

हाय डाक्टर, मैं 24 वर्ष की हूं और गर्भावस्था का यह मेरा तीसरा सप्ताह है. मैंने जानना चाहती हूं की मौर्निंग सिकनेस कब तक चलेगी? इसे कम करने के लिए मैं क्या कर सकती हूं?

जवाब-

उत्तर- आमतौर पर मौर्निंग सिकनेस दूसरे महीने से शुरू होती है और तीसरे से थोड़ा ज्यादा दिनों तक चलती है. कुछ महिलाओं को यह पूरे गर्भव्स्था के दौरान तक रहता है. इस से बचने के लिए आप कम तेल वाला भोजन करें, ज्यादा तीखा खाना न खाएं. इसके अलावा मॉर्निंग सिकनेस को कम करने के लिए कुछ दवाइयां भी है जो आप अपनी डाक्टर के सलाह से ले सकती हैं.

ये भी पढ़ें- प्रेग्नेंसी में तनाव होने से मेरे बच्चे को कोई खतरा तो नहीं?

27 वर्षीय अंजलि को प्रैगनैंट होते ही मौर्निंग सिकनेस की समस्या शुरू हो गई, लेकिन उस ने इस पर अधिक ध्यान नहीं दिया, क्योंकि परिवार वालों ने कहा था कि यह आम बात है. 2-3 महीनों में यह समस्या ठीक हो जाती है. मगर अंजलि के साथ ऐसा नहीं हुआ. धीरेधीरे वह कमजोर होती गई. और फिर एक वक्त ऐसा आया कि चलने फिरने में भी असमर्थ महसूस करने लगी.

परेशान हो कर जब डाक्टर के पास आई तो उन्होंने बताया कि वह डिहाइड्रेशन की शिकार हो चुकी है, जो इस अवस्था में बिलकुल ठीक नहीं है और किसी भी वक्त मिस कैरेज हो सकता है. अंजलि को हौस्पिटल में दाखिल कर आईवी के द्वारा पानी और दवा दी गई. 2-3 दिनों में वह स्वस्थ हो गई. बाद में एक हैल्दी बच्चे को जन्म दिया.

बीमारी नहीं है यह

असल में प्रैगनैंसी में मौर्निंग सिकनेस आम बात है. यह कोई बीमारी नहीं, क्योंकि इस दौरान महिलाएं कई हारमोनल बदलावों से गुजरती हैं. पहली तिमाही में मौर्निंग सिकनेस ज्यादा होती है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- प्रेग्नेंसी में होती है मौर्निंग सिकनेस? ऐसे करें ठीक

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

क्यों, आखिर क्यों : मां की ममता सिर्फ बच्चे को देखती है

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें