तोषू मांगेगा अनुपमा से माफी तो काव्या के साथ मिलकर राखी चलेगी नई चाल

स्टार प्लस के सीरियल ‘अनुपमा’ में परेशानियों के बाद जश्न का माहौल देखने क मिला है. दरअसल, किंजल के साथ औफिस में हुए हादसे से पूरा परिवार बीते दिनों परेशान नजर आया. हालांकि अनुपमा के साहस ने एक बार फिर शाह परिवार की खुशियां वापस ला दी है. लेकिन अपकमिंग एपिसोड में एक बार फिर अनुपमा की जिंदगी में परेशानियों का दौर शुरु हो जाएगा. आइए आपको बताते हैं शो की आगे की कहानी…

शाह परिवार ने मनाया जश्न

अब तक आपने देखा कि किंजल की परेशानी दूर करने के बाद पूरा शाह परिवार 15 अगस्त के सेलिब्रेशन के साथ मामा जी का बर्थडे मनाने का प्लान बनाता है, जिसकी तैयारियों में पूरा शाह परिवार साथ में नजर आता है. इसी के साथ अनुपमा और पूरी फैमिली का नया अंदाज देखने को मिलता है. अलग-अलग अवतार में पूरा परिवार जश्न मनाते हुए नजर आता है.

 

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काव्या करती है अनुपमा की तारीफ

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि वनराज काम में काव्या की मदद करेगा और उसे समझाएगा कि नौकरी मिल जाएगी, जिसके जवाब में वनराज को समझाते हुए काव्या कहेगी कि जरूरी नहीं है कि हर लड़की हाउसवाइफ बने. साथ ही अनुपमा की तारीफ करते हुए काव्या कहेगी कि उसने अनुपमा को घर का काम करते हुए देखा है. वो कितना मुश्किल है. वो जानती है. कुछ लड़कियां घर के लिए होती हैं और कुछ घर के बाहर के कामों के लिए होती है, जिसे सुनकर वनराज, काव्या को हिम्मत देगा कि उसे जल्द ही उसे एक अच्छी नौकरी मिल जाएगी.

परितोष मांगेगा माफी

दूसरी तरफ आप देखेंगे कि तोषू को अपनी गलतियों का पछतावा होगा और वह अनुपमा और वनराज से अपनी गलती के लिए माफी मांगेगा. ये देखकर राखी दवे गुस्से में नजर आएगी. इसी के साथ वह नया प्लान बनाएगी. दरअसल, राखी दवे अपनी कंपनी में काव्या को एक नौकरी ऑफर देगी, जिसमें काम का लोड कम और सैलरी ज्यादा होगी, जिसे सुनकर काव्या चौंक जाएगी. वहीं राखी दवे काव्या से वनराज को मनाने के लिए भी कहेगी. हालांकि काव्या उसके साथ नौकरी करने के लिए तैयार हो जाएगी.

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आखिर Actor विनय पाठक को किस बात का है पछतावा, पढ़ें इंटरव्यू

अभिनेता विनय पाठक का नाम आज दिग्गज कलाकारों की सूची में शामिल है. उन्होंने कभी ह्यूमर के साथ हंसाया,तो कभी संजीदा अभिनय से दर्शकों को रुलाया. यही वजह है कि उन्हें हर निर्माता, निर्देशक अपनी फिल्मों में कास्ट करना चाहते है. विनय पाठक ने अभिनय की शुरुआत थिएटर से किया, इसके बाद विदेश में पढ़ाई करते हुए उन्होंने फिल्म ‘खोसला का घोसला’ और ‘भेजा फ्राई’ दो फिल्में की. दोनोंफिल्मों के हिट होने के बाद उन्हें पीछे मुड़कर देखना नहीं पड़ा. विनय पाठक अभिनेता के अलावा टीवी प्रेजेंटर और निर्माता भी है. बिहार के रहने वाले विनय पाठक थिएटर में काम करना सबसे अधिक पसंद करते है.वे सामाजिक काम करते है, पर किसी से बताना पसंद नहीं करते. उनके हिसाब से हर व्यक्ति को अपने आसपास कुछ काम दूसरों के लिए करते रहना चाहिए. अमेजन मिनी टीवी पर उनकी एंथोलोजी ‘काली पिली टेल्स’ रिलीज होने वाली है. उन्होंने अपनी जर्नी को शेयर किया, आइये जाने उन्हीँ से.

सवाल- इस तरह की एंथोलोजी में  कामकरने की वजह क्या रही?

मुझे निर्देशक ने कहानी सुनाई और मुझे लगा कि ये फीचर फिल्म है, लेकिन जब काम करने गया तब पता चला कि ये शार्ट फिल्म की फोर्मेट पर मुंबई की मॉडर्न लाइफ, जिसमें प्यार , रिश्ते, बेवफाई, समलैंगिक, शादी आदि विषयों को लेकर 6 छोटी-छोटी कहानियोंपर बनी एंथोलोजी है, जिसमें मैं और सोनी राजदान एक कपल की भूमिका निभा रहे है, हमारी शादी नहीं हुई है, पर एक बेटी है. इसके अलावा नयी कांसेप्ट, स्क्रिप्ट और सोनी राजदान के साथ काफी सालों बाद अभिनय करना मेरे लिए खास थी.

सवाल- इस तरह की एंथोलोजी को ओटीटी प्लेटफार्म पर दर्शक अभी कोविड पीरियड में एन्जॉय कर रहे है, क्या सबकुछ नार्मल होने के बाद दर्शकों को थिएटर तक लाना कठिन होगा?

अभी हम सब ने इन नन्ही-नन्ही फिल्मों को बनाया है और दर्शक घर पर बैठकर इसे एन्जॉय करें,क्योंकि लॉकडाउन की वजह से लोग घरों में है और उनका मनोरंजन करवाना मेरा दायित्व है.

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सवाल- आजकल ओटीटी पर काफी अच्छी-अच्छी कहानियों की फिल्में और वेब सीरीज आ रही है,लोग दिन-रात मोबाइल पर लगे है, लेकिन मुंबई जैसे शहर में लोग पहले भी मोबाइल पर फिल्म देखते हुए लोकल ट्रेन में चढ़ते-उतरते थे, जिससे कई बार हादसे की शिकार होने सेलड़कियां बची है, इस बारें में आपकी सोच क्या है?

लोकल ट्रेन की बात करें, तो हर शहर का मिजाज अलग होता है. कोलकाता जैसी शहर में उतनी भीड़ लोकल ट्रेन में नहीं होती, जितनी मुंबई में होती है. मनोरंजन हर किसी के लिए जरुरी है, लेकिन समय के अनुसार करने पर किसी प्रकार की समस्या नहीं होती.

सवाल- आप हर फिल्म में अपनी एक जगह बना लेते है और दर्शक आपको याद रखते है, इसे कैसे कर पाते है?

ये तो स्क्रिप्ट और डायरेक्टर का कमाल होता है.  मैं तो उनके अनुसार काम करता रहता हूं. इसके अलावा सोनी राजदान के साथ काम कर बहुत अच्छा लगा, क्योंकि अभिनय की शुरुआत में मैंने सोनी राजदान  के साथ एक सीरीज ‘साहिल’ की एक दृश्य में अभिनय किया था और अब हम दोनों एक कपल के रूप में आये है. बहुत मजा आया, बहुत सारी बातें राजनीति, आसपास की घटनाओं के बारें में चर्चा की है.

सवाल- आपने एक लम्बी जर्नी इंडस्ट्री में तय की है, कैसे इसे लेते है?

मैं अपने आपको बहुत ही सौभाग्यशाली समझता हूं, क्योंकि मैंने कभी किसी भी काम के लिए कोई प्लान नहीं किया था. प्लान करें भी, तो वैसा जिंदगी में होता नहीं है. अच्छी बात यह है कि मुझे हमेशा अच्छे लोगों का साथ मिला. शुरुआत मैंने रंगमंच के साथ किया. अभी भी मैं नाटकों में काम करता हूं. इससे मुझे अच्छे कलाकार दोस्त मिले. मुझे बहुत सीखने को मिला और मैं आगे बढ़ता गया.

सवाल- आप अभिनय के बाद अपने चरित्र को कितने समय में भूल पाते है? क्या यह मुश्किल होता है?कभी अपने काम से पछतावा हुआ?

मैंने अपने अभिनय को तीन प्लगों में बांटा है. लाल रंग के प्लग, जिसमें बहुत ही सीरियस भूमिका ,सफ़ेद प्लग जो कॉमिक रोल के लिए होता है और काली प्लग ऐसी है, जिसमें मैं अपनी भूमिका को समझ नहीं पाता और निर्देशक के कहने पर कर देता हूं. इसी तरह प्लग केअनुसार मैं अपनी भूमिका निभाता हूं. जिससे एक्टिंग करने में आसानी होती है और घर मैं किसी चरित्र को भी लेकर नहीं जाता. जब मैं किसी भी कहानी को सुनता हूं और वह अगर पसंद आ जाती है तो उसी में कूद पड़ता हूं. बाद में गलत समझ आने पर भी कुछ नहीं कर पाता. पछतावा होता है, क्योंकि पछतावे के बिना कोई जिंदगी नहीं.

सवाल- हंसी का सफ़र आपके जिंदगी में कबसे शुरू हुआ?

ये मुझे आजतक भी पता नहीं चल पाया कि ये कैसे शुरू हो गया. मैंने कभी कुछ क्रिएट नहीं किया. परिस्थिति के अनुसार होता गया. कॉमेडी वही है,जिसमें आप जो सोचते है, होता कुछ और है, जिससे दर्शकों और पाठकों को हंसी आती है.

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सवाल- अभिनय के अलावा और क्या करना पसंद करते है?

मैं थिएटर करता हूं ,इसके अलावा समय मिले, तो लिखता और बहुत भ्रमण करता हूं. मेरा पहला प्यार ट्रेवल है, इसके बाद आर्ट आती है. मैंने कहानी लिखी है, उसकी फिल्म बनाने की इच्छा है.

सवाल- आपके यहाँ तक पहुँचने में परिवार का सहयोग कितना रहा है?

परिवार के सहयोग के बिना कोई भी व्यक्ति सफल नहीं हो सकता. मैं एक मध्यमवर्गीय परिवार से हूं, जहाँ पैसे की हमेशा कमी होती है औरमैं अपनी इच्छा के अनुसार काम नहीं कर पाता था. सामंजस्य हर जगह करनी पड़ती है. मेरे माता-पिताने बहुत सपोर्ट किया है.उनका कहना था कि तुम जिस क्षेत्र में जा रहे हो, मुझे पता नहीं और हम चाहे भी तो कुछ तुम्हारे लिए नहीं कर सकते,क्योंकि उस क्षेत्र के बारें में मेरी जानकारी नहीं है. मैं अपनी मंशा से इस क्षेत्र मेंआया.माता-पिता अगर बच्चों के सपनों को पूरा करने मेंमानसिक सहयोग देते है, तो ये बहुत बड़ी बात होती है. अभी मुझे मेरी पत्नी और बच्चे भी सहयोग देते है.

मम्मी-पापा का सिरदर्द बनता नई पीढ़ी का शब्दकोश

आपके बच्चों ने जवानी की दहलीज पर कदम रख लिया है? हां. ..तो आपके सामने सबसे बड़ी चुनौती क्या है? मालूम नहीं, कुछ कह नहीं सकते. आपको मालूम तो है, बस आप अपनी जबान पर लाना नहीं चाहते, कोई बात नहीं, चलिए मैं ही आपको बताता हूं.

सबसे बड़ी चुनौती यह है कि आपके जवान बच्चे आपकी आस्थाओं व एक्शंस पर निरंतर ऐसी भाषा व अल्पाक्षरों में सवाल उठाते हैं, जिसकी जानकारी आपको नहीं होती. आज के इंटरनेट युग के ये युवा, जिनमें मेरे भी दो बच्चे शामिल हैं, ऐसे शब्दों का प्रयोग करते हैं, जो सुनने में तो अंग्रेजी के से प्रतीत होते हैं, लेकिन उस अंग्रेजी के नहीं जो मैंने अपने स्कूल के दिनों में पढ़ी थी. ‘वोक’ के बारे में मेरी जानकारी सिर्फ इतनी थी कि यह ‘वेक’ यानी नींद खुलने का भूतकाल है और ‘जागा/जागी’ के लिए प्रयोग होता है. लेकिन जब आपके बच्चे आपको आपके ‘वोकनेस’ पैमाने पर परखते हैं, तब बड़ी मुश्किल से ही आपको मालूम हो पाता है कि आजकल ‘वोक’ का अर्थ यह भी है कि आप कितने जागृत या जागरूक हैं अर्थात आपको कितनी जानकारी है.

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बहरहाल, जब पहली बार मेरे बच्चों ने मुझे मेरे ‘वोकनेस’ पैमाने पर परखा तो मैं ठीकठाक नंबरों से पास तो हो गया, लेकिन इससे मेरी आंखें भी खुल गईं. मुझे लगा कि मैं वह अपने में गुम इंटेलेक्चुअल हूं जिसे यह गलतफहमी होती है कि उसे सब कुछ पता है और जो नहीं पता, वह पता करने के लायक ही नहीं है. लेकिन पिछले साल 15 अगस्त को मेरी आंखें खुल गई जब मेरी छोटी बेटी जो बंग्लुरु में एक इंस्टिट्यूट से एमबीए कर रही है, का व्हाट्सएप्प मैसेज आया, लिखा था- ‘हाई पप्पा, कांग्रट्स! हिड.” कांग्रट्स को तो मैंने समझ लिया कि मुबारकबाद दे रही है, लेकिन किस चीज की- ‘हिड’ की? यह ‘एच आई डी’ हिड क्या बला है, ‘छुपना’ है? क्या है? कोई ‘छुपने’ की मुबारकबाद क्यों देगा? मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था, रह रहकर बस गालिब का यह शेर याद आ रहा था- ‘बक रहा हूं जुनूं में क्या क्या कुछ/कुछ न समझे खुदा करे कोई’.

ओह! फिर अचानक मेरी कैलंडर पर नजर गई. आज अगस्त की 15 तारीख है, हमारा स्वतंत्रता दिवस. तो यह ‘हिड’ यानी ‘एच आई डी’ ‘हैप्पी इंडिपेंडेंस डे’ के लिए अल्पाक्षर है. चलो इस इम्तिहान में भी बाइचांस पास हुआ.  कुछ दिन पहले मेरा एक जानकार मुझसे मिलने मेरे घर आया. उसे बातचीत करते हुए 10-15 मिनट ही हुए थे कि मेरी बड़ी बेटी ने धीरे से मेरे कान में कहा, “यह आपको गैसलाइटिंग कर रहा है.” ‘गैसलाइटिंग’ शब्द मैंने पहली बार सुना था. मैंने अपने सामने बैठे शख्स को गौर से देखा, उसके हाथ में कोई लाइटर नहीं था, उसकी बगलों से भी बदबू नहीं आ रही थी. तो फिर मेरी बेटी किस बारे में बोल रही थी? मेरे चेहरे में बेचारगी के भाव थे. आखिरकार जब वह जानकार गया तो मैंने बेटी से कहा ये ‘गैसलाइटिंग’ क्या है? बेटी ने समझाया, “यह एक प्रकार की होशियारी या चालाकी है जिसमें दूसरा व्यक्ति आपको आपके ही दृष्टिकोण पर सवाल उठाने के लिए विवश कर देता है.”

तब मुझे एहसास हुआ कि मेरा वह जानकार वाकई मेरे घर में ही मुझे नीचा दिखाने की कोशिश कर रहा था. मेरी बेटी की ‘गैसलाइटिंग’ प्रतिक्रिया इसी संदर्भ में थी. मेरे कई जानकार पहले भी मेरे साथ ऐसा कर चुके हैं, लेकिन मैं तब यह सब सोचकर नजरंदाज कर देता था कि शायद मेरे समझने में कोई भूल हुई है. “पप्पा, वह आपके साथ इस प्रकार का व्यवहार काफी लम्बे समय से कर रहा है और आपको यह एहसास तक नहीं होता कि वह आपकी गैसलाइटिंग कर रहा है.” तब मुझे महसूस हुआ कि इंटरनेट लिंगो (भाषा) में ढेर सारे शब्द हैं जिनके बारे में मैं जानता ही नहीं हूं. मेरी शिक्षा अभी पूर्ण नहीं हुई है बल्कि अभी शुरू हुई है.

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मेरी छोटी बेटी के कॉलेज में एक समारोह हुआ था. मैंने मालूम किया कि कैसा था? जवाब मिला- ‘वेरी लिट!’ मैंने सोचा कि समारोह में बहुत सारी लाइट लगी होंगी, खूब जगमगाता हुआ होगा, या ‘लिट’ से लिटरेचर भी बनता है तो समारोह अति साहित्यक होगा, लेकिन नहीं! मेरा अंदाजा फिर गलत निकला. ‘लिट’ तो ‘कूल’ के लिए बोला जाता है यानी समारोह अच्छा था, पसंद करने योग्य था. इन नये शब्दों व अल्पाक्षरों के लिए अलग से एक शब्दकोश तैयार किया जाना चाहिए. अगर ऐसा नहीं होगा और जल्द नहीं होगा तो मेरा ‘स द स फ’ हो जायेगा यानी ‘सिर दर्द से फट’ जायेगा. क्यों? अब तो पत्नी भी बच्चों की भाषा में बोलने लगी है. उस दिन शाम को दफ्तर से लौटते ही बोली, “जल्दी से तैयार हो जाओ, रमेश के यहां डीडी पर जाना है.” मैं बोला, “अगर तुम्हें रात में ही रमेश के यहां डीडी पहुंचाना है तो दफ्तर से लौटते हुए ही यह काम कर आते और फिर अब मुझे साथ ले जाने की क्या जरूरत है?”

वह हंसी, खूब जोर से हंसी मैं फिर अचकचा गया, तब वह बोली, “अरे, डिमांड ड्राफ्ट नहीं, डीडी…यानी डिनर विद दारू पर आमंत्रित किया है, जल्दी तैयार हो जाओ, सब कुछ ‘एफ ओ सी’ है.” मुझे गुस्सा तो बहुत आया (पत्नी पर ही तो गुस्सा आता है), लेकिन मैं आगे कुछ कहे बिना तैयार होने के लिए उठ खड़ा हुआ. ‘एफ ओ सी’ को जानने की जरुरत नहीं थी, अनेक बार पहले सुन चुका हूं कि यह ‘फ्री ऑफ कास्ट’ (सब कुछ मुफ्त में) के लिए बोला जाता है.

Raksha Bandhan Special: ईवनिंग स्नैक्स में बनाएं सत्तू चीज बॉल्स

आजकल के दिन बड़े होते हैं, दोपहर का भोजन किये भी 3-4 घण्टे हो जाते हैं ऐसे में शाम को भूख लगना स्वाभाविक सी बात है. हर दिन तला भुना खाना भी सेहतमंद नहीं होता तो क्यों न कुछ ऐसा बनाया जाए कि वह सेहतमंद भी हो और सबको पसन्द भी आये. आज हम आपको ऐसे ही एक स्नैक के बारे में बता रहे हैं जिसे हमने सत्तू से बनाया है. सत्तू भुने चने और भुने गेहूं व जौ से बना खाद्य पदार्थ है जो बहुत सेहतमंद और लो कैलोरी वाला होता है. यह बिहार, उड़ीसा और उत्तरप्रदेश में बहुत प्रयोग किया जाता है चूंकि इसमें नाममात्र की कैलोरी होती है इसलिए यह वजन को संतुलित रखने में भी कारगर है. तो आइये देखते हैं कि इसे कैसे बनाते हैं-

कितने लोंगों के लिए           6

 बनने में लगने वाला समय    30मिनट

मील टाइप                          वेज

सामग्री

सत्तू का आटा                  1 कप

बारीक कटा प्याज             1

कटी हरी मिर्च                   4

मोटी किसी गाजर              1

बारीक कटी शिमला मिर्च     1

किसा अदरक                      1 इंच

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नमक                             स्वादानुसार

जीरा                                 1/4 टीस्पून

हल्दी पाउडर                       1/4 टीस्पून

लाल मिर्च पाउडर                 1/2 टीस्पून

गरम मसाला                        1/4 टीस्पून

अमचूर पाउडर                     1/2 टीस्पून

कटा हरा धनिया                   2 टेबलस्पून

चीज क्यूब्स                         3

ब्रेड क्रम्ब्स                           1/2 कप

कॉर्नफ्लोर                           2 टेबलस्पून

तलने के लिए तेल पर्याप्त मात्रा में

विधि

सत्तू को एक बाउल में डालकर सभी मसाले व सब्जियां डाल दें. इन्हें हाथ से अच्छी तरह मिलाएं. अब पानी की सहायता से इसे रोटी के आटे जैसा गूंध लें. चीज को किसकर 6 छोटे छोटे बॉल्स बना लें. अब तैयार सत्तू के मिश्रण में से 1 टेबलस्पून मिश्रण लेकर हथेली पर फैलाएं.बीच में चीज की बॉल रखकर चारों तरफ से दबाकर गोल कर लें. इसी तरह सारे बॉल्स तैयार करें. अब कॉर्नफ्लोर को 1 टेबलस्पून पानी में घोल लें. तैयार बॉल्स को कॉर्नफ्लोर में डुबोकर ब्रेड क्रम्ब्स में लपेट लें. गरम तेल में डालकर सुनहरा होने तक तलकर बटर पेपर पर निकालें. गर्मागर्म बॉल्स को टोमेटो सॉस या हरे धनिये की चटनी के साथ सर्व करें.

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चुने नौन कोमेडोगेनिक प्रोडक्ट

अकसर औयली स्किन वालों को ही पोर्स के क्लोग होने की दिक्कत होती है और जब पोर्स क्लोग होते हैं तो वे बड़े होने के साथ ज्यादा नजर आने लगते हैं. ऐसे में आप अपने चेहरे पर जो भी ब्यूटी प्रोडक्ट अप्लाई करें, देखें कि वह नौनकोमेडोगेनिक व औयल फ्री हो यानी वह प्रोडक्ट पोर्स को क्लोग नहीं करता हो.

स्किन पर किसी भी तरह का कोई भी दागधब्बा किसी को भी पसंद नहीं होता है. लेकिन दागधब्बे तो दूर स्किन पर जब बड़ेबड़े ओपन पोर्स दिखाई देने लगते हैं तो स्किन का अट्रैक्शन कम होने के साथ ही वह भद्दी ही दिखने लगती है. साथ ही और ढेरों स्किन प्रौब्लम्स जैसे ऐक्ने, ब्लैकहेड्स जैसी समस्याएं भी पैदा होने लगती हैं.

वैसे तो इस समस्या से निबटने के लिए मार्केट में ढेरों सौलूशंस उपलब्ध हैं, लेकिन हम आप की स्किन को कैमिकल्स से दूर रख कर आप को कुछ ऐसी होममेड रेमेडीज के बारे में बताएंगे, जो उपलब्ध होने में आसान होने के साथ ही आप की स्किन को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगी.

आइए, इस संबंध में जानते हैं कौस्मैटोलौजिस्ट पूजा नागदेव से:

आइस क्यूब (Ice Cube)

क्या आप जानते हैं कि बर्फ में स्किन टाइटनिंग प्रौपर्टीज होती हैं, जो बड़े पोर्स को छोटा करने व ऐक्सैस औयल को कम करने का काम करती है, साथ ही यह फेशियल ब्लड सर्कुलेशन को इंप्रूव कर के स्किन की हैल्थ को भी इंप्रूव करने का काम करती है, इसे अप्लाई करने के कुछ देर बाद ही स्किन स्मूद व सौफ्ट नजर आने लगती है. इस के लिए आप एक साफ कपड़े में बर्फ को ले कर उस से कुछ देर चेहरे की अच्छे से मसाज करें या फिर बर्फ के ठंडे पानी से स्किन को वाश कर सकती हैं. ऐसा आप एक महीने तक रोजाना कुछ सैकंड तक करें, फर्क आप को खुद दिखाई देने लगेगा.

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ऐप्पल साइडर विनेगर (Apple Cider Vinegar)

ऐप्पल साइडर विनेगर में ऐंटीइनफ्लैमेटरी व ऐंटीबैक्टीरियल प्रोपर्टीज होने के कारण यह ऐक्ने के ट्रीट करने के साथ स्किन के पीएच लैवल को भी बैलेंस में रखता है. साथ ही बड़े पोर्स को छोटा कर के स्किन टाइटनिंग का भी काम करता है.

इस के लिए आप एक बाउल में 1 छोटा चम्मच ऐप्पल साइडर विनेगर ले कर उस में 2 छोटे चम्मच पानी मिलाएं. फिर रुई की मदद से तैयार मिक्स्चर को फेस पर अप्लाई कर के 5-10 मिनट के लिए छोड़ दें. फिर फेस को धो कर उस पर मौइस्चराइजर अप्लाई कर लें. ऐसा आप कुछ महीनों तक हफ्ते में 2-3 बार करें. इस से बड़े पोर्स श्रिंक होने लगेंगे और आप का खोया अट्रैक्शन फिर लौटने लगेगा.

शुगर स्क्रब (Sugar Scrub)

वैसे तो आप ने यही सुना होगा कि अगर आप के चेहरे पर बड़ेबड़े पोर्स हैं तो आप को स्क्रबिंग को अवौइड ही करना चाहिए. लेकिन आप को बता दें कि हफ्ते में एक बार स्क्रबिंग हर किसी के लिए जरूरी है क्योंकि इस से स्किन में जमी हुई गंदगी व जर्म्स निकल जाते हैं.

अगर बात करें शुगर स्क्रब की तो यह स्किन को बहुत ही अच्छे तरीके से ऐक्सफौलिएट कर पोर्स से अतिरिक्त औयल व गंदगी को रिमूव करने का काम करता है. यह स्किन के पोर्स को भी कुछ ही हफ्तों में छोटा करने में मदद करता है. इस के लिए आप नीबू के छोटे टुकड़े पर शुगर लगाएं.

फिर इसे हलके हाथों से चेहरे पर रब करते हुए जूस व शुगर क्रिस्टल्स को चेहरे पर 15 मिनट के लिए लगा छोड़ दें, फिर धो लें. महीने भर में आप को स्किन में सुधार नजर आने लगेगा.

बेकिंग सोडा (Baking Soda)

बेकिंग सोडा में स्किन के पीएच लैवल को बैलेंस में रखने की क्षमता होती है. इस में ऐंटीइनफ्लैमेटरी व ऐंटीबैक्टीरियल प्रौपर्टीज होने के कारण यह ऐक्ने और पिंपल्स को ट्रीट करने का काम करता है. इस के लिए बस आप को  2 बड़े चम्मच बेकिंग सोडे में 2 बड़े चम्मच पानी मिला

कर इस मिक्स्चर से चेहरे की सर्कुलर मोशन में मसाज करें.

फिर इसे चेहरे पर 5 मिनट के लिए लगा छोड़ दें और फिर ठंडे पानी से चेहरे को क्लीन कर लें.

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टोमैटो स्क्रब (Tomato Scrub)

टमाटर में ऐस्ट्रिंजेंट प्रौपर्टीज होने के कारण यह स्किन के अतिरिक्त औयल को कम करने के साथसाथ स्किन को टाइट कर बड़े पोर्स को श्रिंक करने का काम करता है, साथ ही टमाटर में बड़ी मात्रा में ऐंटीऔक्सीडैंट्स होने के कारण यह ऐजिंग प्रोसैस को भी धीमा करता है. इस के लिए आप 1 चम्मच टमाटर के रस में 3-4 बूंदें नीबू के रस की डाल कर इस पेस्ट को चेहरे पर 20 मिनट तक अप्लाई करें, फिर ठंडे पानी से धो लें.

आप को एक ही यूज के बाद अपने चेहरे पर ग्लो नजर आने लगेगा और बड़े पोर्स की प्रौब्लम भी

1-2 महीनों में ठीक हो जाएगी. लेकिन इस के लिए आप को इस पैक को हफ्ते में

3 बार जरूर अप्लाई करना होगा.

आधी आबादी लीडर भी निडर भी

किचन से कैबिनेट और घर की चारदीवारी से खेल के मैदान तक, गुपचुप घर में सिलाईबुनाई करती, पापड़बडि़यां तोड़ने से बोर्डरूम तक एक लंबा सफर तय करने वाली आधी आबादी ने यह सिद्ध कर दिखाया है कि वह घर के साथसाथ बाहर का काम भी उतने ही बेहतर तरीके से संभाल सकती है. व्रतउपवास, कर्मकांड और उस के पांव में बेडि़यां डालने के लिए धर्म के माध्यम से फैलाए जा रहे अंधविश्वासों के घेरे से वह निकल सकती है, यह बात भी उस ने साबित कर दी है.

यह सही है कि किसी भी बड़े बदलाव के लिए जरूरी है समाज की सोच बदलना. बेशक अभी पुरुष समाज की सोच में 50% ही बदलाव आया हो, लेकिन महिलाओं ने अब ठान लिया है कि वे नहीं रुकेंगी और तमाम बाधाओं के बावजूद चलती रहेंगी. फिर चाहे वे शहरी महिला हो या किसी पिछड़े गांव की जो आज सरपंच बनने की ताकत रखती है और खाप व्यवस्था को चुनौती भी देती है.

बहुत समय पहले बीबीसी के एक कार्यक्रम में अभिनेत्री मुनमुन सेन ने कहा था कि महिलाएं किसी भी स्तर पर हों, किसी भी जाति या वर्ग से हों, वे एक ही होती हैं. उन के कुछ मसले एकजैसे होते हैं, उन में आपस में यह आत्मीयता होती है. आज वे मिलजुल कर अपने मसले जुटाने और अपनी पहचान की स्वीकृति पर मुहर लगाने में जुटी हैं, फिर चाहे कोई पुरुष साथ दे या न दे वे सक्षम हो चुकी हैं.

कर रही हैं निरंतर संघर्ष

यह समाज की विडंबना ही तो है कि घर हो या दफ्तर, राजनीति हो या देश, जब कभी और जहां भी महिलाओं को सशक्त बनाने, उन को मजबूत करने पर चर्चा होती है, तो ज्यादातर बात ही होती है, कोई कोशिश नहीं होती. लेकिन वे अपने स्तर पर कोशिश कर रही हैं और कामयाब भी हो रही हैं.

जिस देश की संसद में महिलाएं अब तक 33 फीसदी आरक्षण के लिए संघर्ष कर रही हैं, उसी देश के दूसरे कोनों में ऐसी भी महिलाएं हैं, जो अपने हिस्से का संघर्ष कर छोटीबड़ी राजनीतिक कामयाबी तक पहुंच रही हैं.

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की पत्नी और अमेरिका की फर्स्ट लेडी होने के अलावा दुनियाभर में मिशेल ने अपनी एक अलग पहचान बनाई जो उन्होंने खुद अपने दम पर हासिल की. प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने के बाद हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से ला किया. सिडले और आस्टिसन के लिए काम करने के बाद मिशेल ने एक पब्लिलकएलाइजशिकागो ‘अमेरीकोर्प नैशनल सर्विस प्रोग्राम’ की स्थापना की.

उन का बचपन मुश्किलों भरा था, लेकिन मिशेल ने बहुत पहले ही यह सम झ लिया था कि उन्हें मुश्किलों के बीच से रास्ता बना कर जीत हासिल करनी है. मिशेल को अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा था, इसलिए उन्होंने 2015 में ‘लेट गर्ल्सलर्न’ इनीशिएटिव की शुरुआत की, जहां उन्होंने अमेरिकी लोगों को उच्च शिक्षा में जाने के लिए प्रोत्साहित किया.

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पा ली है मंजिल

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस आते ही औरतों की प्रगति, उन की समस्याओं, उन के साथ होने वाली हिंसा, अत्याचार, उन की असुरक्षा से घिरे प्रश्नों यानी उन से जुड़े हर तरह के सवालों की विवेचना व अवलोकन होना आरंभ हो जाता है. कहीं सेमीनार आयोजित किए जाते हैं तो कहीं नारीवादी संगठन फेमिनिज्म की बयार को और हवा देने के लिए नारेबाजी पर उतर आते हैं. इंटरनैशनल वूमंस डे की शुरुआत औरतों के काम करने के अधिकार, उन्हें समाज में सुरक्षा प्रदान करने के लक्ष्य के साथ हुई थी, लेकिन आज जब औरतों ने हर क्षेत्र में अपना वर्चस्व कायम कर लिया है और वे कामयाबी का परचम लहरा रही हैं.

आईटी, बीपीओ या बड़ीबड़ी कंपनियों में औरतों की उपस्थिति को देखा जा सकता है. वे मैनेजर हैं, बैंकर हैं, सीईओ हैं, फाउंडर है और प्रेसीडेंट भी है. आज बिजनैस के कार्यक्षेत्र में जैंडर को ले कर की जाने वाले भिन्नता के कोई माने नहीं रह गए हैं. वैसे भी अगर आर्थिक अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करना है तो औरतों की सक्रिय भूमिका को स्वीकारना ही होगा.

वास्तव में देखा जाए तो अब नकारने की स्थिति है भी नहीं. हर ओर से महिलाएं उठ खड़ी हुई हैं. ममता बनर्जी हों या सोनिया की पीढ़ी या फिर मलाला और ग्रेटा कम उम्र की युवतियां, बदलाव की आंधी हर ओर से चल रही है.

रख चुकी हैं हर पायदान पर कदम

बेहद प्रभावशाली भाषण से संयुक्त राष्ट्र की बोलती बंद करने वाली ग्रेटा थनबर्ग किसान आंदोलन के दौरान भारत के खिलाफ दुष्प्रचार करने के आरोप में विवादों में अवश्य हैं, पर संयुक्त राष्ट्र में जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर अपनी बातों से दुनियाभर के नेताओं का ध्यान आकर्षित करने वाली 16 वर्षीय स्वीडिश छात्रा ग्रेटा थनबर्ग को टाइम मैगजीन ने 2019 का ‘पर्सन औफ द ईयर’ घोषित किया.

मलाला विश्व की कम उम्र में शांति का नोबेल पुरस्कार पाने वाली पहली युवती है. पाकिस्तान में तालिबानी आतंकवादियों ने इस की हत्या का प्रयास किया क्योंकि मलाला लड़कियों को पढ़ाने का काम कर रही थी जबकि तालिबान ने पढ़ाई पर रोक लगाई हुई थी.

आज वह करोड़ों लड़कियों की प्रेरणा बन चुकी है. उस के सम्मान में संयुक्त राष्ट्र ने प्रत्येक वर्ष 12 जुलाई को मलाला दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की.

जरमनी की चांसलर ऐंजेला मर्केल दुनिया की तीसरी सब से शक्तिशाली हस्ती हैं. उन्हें दुनिया की सब से शक्तिशाली महिला भी कहा जाता है. कमला हैरिस ने तो इतिहास ही रच दिया है. वे अमेरिका की पहली अश्वेत और पहली एशियाई अमेरिकी उप राष्ट्रपति हैं.

तोड़ रही हैं अंधविश्वासों की बेडि़यां

हर क्षेत्र में ऐसी महिलाओं के नामों की सूची इतनी लंबी है कि उन की उपस्थिति को सैल्यूट किए बिना नहीं रहा जा सकता है खासकर भारतीय समाज में जहां उन से केवल घर संभालने और धार्मिक कर्मकांडों में उल झे रहने की ही उम्मीद की जाती थी. सदियों से वे कभी पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती आ रही हैं, कभी बच्चों की सलामती के लिए पूजा करती आ रही हैं तो कभी घर की सुखशांति के लिए हवन और भजन करती आ रही हैं.

उन की कंडीशनिंग इस तरह की गई कि वे घर के बाहर जा कर अपनी पहचान बनाने के बारे में सोचेंगी तो उन्हें पाप लगेगा. लेकिन उन्होंने तमाम मिथकों को तोड़ा, परंपराओं का उल्लंघन किया, अपने अस्तित्व को आकार दिया. इस सब के बावजूद घर को भी बखूबी संभाला और परिवार की डोर को भी थामे रखा. असफल होने के डर से खुद को बाहर निकाला और जो थोड़ा डर अभी भी धार्मिक कुरीतियों के कारण उन के भीतर व्याप्त है उसे भी वह सांप की केंचुल की तरह छोड़ने को तत्पर हैं.

सपोर्ट सिस्टम खड़ा करना होगा

समाजशास्त्री मानते हैं कि औरतों को सब से पहले अपनी असफलताओं को ले कर परेशान होना छोड़ देना चाहिए. उन्हें परिवार व कैरियर के बीच एक बैलेंस बनाए रखना होगा क्योंकि समाज में ऐसी ही सोच व्याप्त है. पर इस मुश्किल से उभरने के लिए उन्हें एक सपोर्ट सिस्टम खड़ा करना होगा. उन्हें बीच राह में प्रयास करना छोड़ नहीं देना चाहिए.

कई औरतें जब डिलिवरी के बाद दोबारा काम पर आती हैं तो उन्हें लगता है कि इतने दिनों में जो एडवांस्मैंट हो चुकी है, वह कहीं उन्हें पीछे न धकेल दे. अपडेट रहना तरक्की की पहली शर्त है, इसलिए तमाम व्यवधानों के बावजूद अगर वे पुन: कोचिंग लें तो उन्हें सहायता मिलेगी. किसी गाइड की मदद ली जा सकती है. ताकि इन्फोसिस जैसी कंपनियां अपने कर्मचारियों को किसी बाहरी गाइड से मदद लेने के लिए प्रोत्साहित करती हैं जिस से उन के मानसिक क्षितिज का विस्तार हो सके. कार्यक्षेत्र में उन के लिए एक सपोर्ट सिस्टम की जरूरत है.

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जमीन से जुड़ी महिलाएं

  सोनी सोढ़ी

(आदिवासी समाज की लीडर)

एक छोटे से स्कूल में बच्चों को पढ़ाने वाली सोनी की जिंदगी 2011 में हुई उस घटना के बाद से हमेशाहमेशा के लिए बदल गई.

इस आदिवासी युवती को उस के भाई की पत्रकारिता की कीमत चुकानी पड़ी. जेल, लगातार बलात्कार और मानसिक शोषण, यहां तक कि गुप्तांग में पत्थर डाल कर उसे निहायत शर्मनाक ढंग से प्रताडि़त किया गया. उसे नक्सली बनाने पर तुली छत्तीसगढ़ सरकार को आखिरकार उसे रिहा करना ही पड़ा. जेल से मर्मस्पर्शी पत्र लिख कर अपने समर्थकों का हौसला बनाए रखा. अपने पर किए हर अत्याचार को उस ने अश्रु की स्याही से न लिख कर हिम्मत और शक्ति की लेखनी से लोगों तक पहुंचाया.

सोनी बताती है कि जब ये सब उस के साथ हुआ तो उसे लगा कि अब वह खड़ी नहीं हो पाएगी. औरतों को सिखाया जाता है कि उन की इज्जत ही उन का सबकुछ है. मैं भी यही सोचती थी और जब मेरे साथ ये सब हुआ तो मु झे लगा कि मैं अब किसी काबिल नहीं रह गई हूं. पर उसे हिम्मत देने वाली भी दो औरतें ही थीं. जेल में उसे दो औरतें मिलीं, जिन्होंने उसे अपने स्तन दिखाए. उन के निपल काट दिए गए थे. तभी सोनी ने ठान लिया कि वह लड़ेगी. उन्होंने अपने गुरु को एक चिट्ठी लिखी और यहीं से शुरु हुई उन की लड़ाई. आज सोनी बस्तर में आदिवासियों के हक के लिए उठने वाली एक बुलंद आवाज है.

शहनाज खान

(युवा सरपंच)

राजस्थान के भरतपुर जिले में रहने वाली  25 साल की शहनाज वहां की कामां पंचायत से सरपंच चुनी गई है. वह राजस्थान की पहली महिला एमबीबीएस डाक्टर सरपंच है. वह कहती है, ‘‘मु झ से पहले मेरे दादाजी भी यहां से सरपंच थे. लेकिन उन के बाद यह बात उठी कि चुनाव में कौन खड़ा होगा. परिवार वालों ने मु झे चुनाव में खड़ा होने को कहा और मैं जीत गई.’’

शहनाज मानती है कि लोग आज भी अपनी बेटियों को पढ़ने के लिए स्कूल नहीं भेजते हैं, इसलिए वह लड़कियों की शिक्षा पर काम करना चाहती है और उन सभी अभिभावकों के सामने अपना उदाहरण रखना चाहती है जो बेटियों को पढ़ने नहीं भेजते.

  सैक्सुअलिटी एक छोटा सा हिस्सा है

महिलाओं को आजादी व बराबरी का हक तभी सही मानों में मिल पाएगा जब स्त्री और पुरुष के बीच के अंतर को जरूरत से ज्यादा महत्त्व देना बंद कर दिया जाएगा. सैक्सुअलिटी जीवन का महज एक छोटा सा हिस्सा है. जैंडर का हमारे जीवन में रोल तो है पर यही सबकुछ नहीं है. यह हमारे जीवन का एक हिस्सा भर है. प्रजनन अंगों को हमारे जीवन में बस एक काम करना होता है, पर इसे पूरा जीवन तो नहीं माना जा सकता. लेकिन फिलहाल मानव आबादी इसी काम को पूरा जीवन बनाने में लगी है. 90 फीसदी आबादी के दिमाग में एक औरत का मतलब कामुकता है. इस सोच को बदलने के लिए ही आधी आबादी आज कटिबद्ध है.

महिलाओं और पुरुषों को 2 अलग प्रजातियां की तरह देखना ठीक नहीं है. अगर हम ने ऐसा किया तो आने वाले समय में अगर संघर्ष हुआ तो एक बार फिर से पुरुषों का वर्चस्व हो जाएगा. अगर फिर से युद्ध के हालात बने तो महिलाओं को चारदीवारी के भीतर जाना होगा.

यहां उन महिलाओं की जिम्मेदारी बढ़ जाती है जो समाज में किसी मुकाम पर पहुंच गई हैं. वे एक बदलाव ला सकती हैं. स्त्री और पुरुष की लड़ाई बनाने के बजाय आधी आबादी को समाज में अपनी काबिलीयत से पहचान बनानी होगी और वह इस में सफल भी हो गई है. कुछ कदम बेशक उसे और चलने हैं, उस के बाद मंजिल उस की मुट्ठी में होगी. महिलाओं ने खुद को सम झना शुरू कर दिया है. वे अपने अस्तित्व को जानने लगी हैं, अपनी शक्ति को पहचानने लगी हैं. नतीजतन समाज में बदलाव की हवा चलने लगी है.

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  बिना डरे बिना घबराए

दुनियाभर में हो रहीं रिसर्च बताती हैं कि औरतें मल्टीटास्किंग होती हैं. अब हर परीक्षा में लड़कियां लड़कों को पीछे छोड़ रही हैं. हर लिहाज से औरतें ज्यादा ताकतवर हैं, लेकिन यह भी एक कड़वी सचाई है कि दुनिया की फौर्च्यून 500 कंपनियों में सिर्फ 4 फीसदी महिलाएं सीईओ हैं. समान वेतन और समान अधिकार तथा काम करने के बेहतर माहौल जैसी चीजों के लिए महिलाएं संघर्ष कर रही हैं. हैरानी की बात है कि इन अधिकारों की बात करने वाली महिलाओं को फेमनिस्ट कह कर नकार दिया जाता है. जरा सोचिए अगर आधी आबादी भी पूरी क्षमता से काम करे तो क्या होगा? नुकसान आधी आबादी का नहीं, पूरी मानवता का हो रहा है.

महिलाएं अब पहले की तरह पुरुषों की परछाईं में दुबक नहीं रहीं बल्कि उस से बाहर  निकल कर नुमाइंदगी कर रही हैं, दिशा दिखा रही हैं और वह भी बिना डरे, बिना घबराए.

बच्चों की मस्ती पर न लगाएं ब्रैक

कोरोनाकाल में विशाल का बर्थडे फिर पास आ रहा था वह अब तक अपना बर्थडे बहुत ही जोशखरोश के साथ मनाता आया था. उस के दोस्त संदली, तनु, मयंक और रजत चारों उस से वीडियो कौल पर बात कर रहे थे.

संदली ने कहा, ‘‘यार तेरा पिछला बर्थडे भी ऐसे ही चला गया था. लौकडाउन में ही तेरा पिछला बर्थडे निकल गया. घर में रहरह कर पक गए हैं. तेरा बर्थडे मिस करने का तो मन ही नहीं करता.’’

विशाल ने कहा, ‘‘देखो, तुम लोग भी घर से नहीं निकल रहे हो. मैं भी घर पर ही रहता हूं. मेरी मम्मी कह रही हैं कि सब लोग एक दिन के लिए मेरे घर आ कर ही रहो. बढि़या सैलिब्रेशन करते हैं. मम्मी तुम सब को बहुत मिस करती हैं. प्रोग्राम बनाओ, सब आ जाओ.’’

तो तय हो ही गया कि विशाल का बर्थडे तो इस बार जरूर मनेगा. सारा दिन लैपटौप पर बैठे बच्चे इस प्रोग्राम को ऐंजौय करने का मोह नहीं छोड़ पाए.

 मस्ती मगर कैसे

मुंबई में अंधेरी में ही आसपास सब रहते थे. यह 25 से 30 साल के युवाओं का गु्रप था. लंबे समय से कोरोना में हुए लौकडाउन के कारण घर में बंद था. विशाल और उस की मम्मी सुधा बस घर में 2 ही लोग थे. विशाल के पिता थे नहीं, मम्मी वर्किंग थीं जो अब वर्क फ्रौम होम कर रही थीं.

घर में 2 ही लोग थे. टू बैडरूम फ्लैट था. बच्चों को मस्ती करने के लिए काफी जगह मिल जाती थी पर सब बच्चे विशाल की मम्मी सुधा आंटी के बारे में सोचते तो जाने का सारा उत्साह ठंडा पड़ जाता पर आपस में मिल कर मजा भी आता था और अब तो घर में बंद हो कर ही बहुत समय बिता लिया था तो विशाल के बर्थडे के लिए सब ने अपने घर वालों को जाने देने के लिए मना ही लिया.

संदली अपनी मम्मी से हंसते हुए कह रही थी, ‘‘सब जा तो रहे हैं, औफिस से सब ने छुट्टी भी ले ली है. रात उस के घर रुकने तो जा रहे हैं पर देखते हैं. आंटी इस बार ऐंजौय करने देंगीं या नहीं क्योंकि उन्हें भी इतने दिन से कोई मिला नहीं होगा, काफी भरी होंगी.’’

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 दिल खोल कर स्वागत

सब बच्चे विशाल के घर पहुंचे तो सुधा ने दिल खोल कर उन का स्वागत किया. सब आपस में बहुत दिन बाद मिले थे. बहुत कुछ था जो कहनासुनना था. गेम्स खेलने का प्रोग्राम था. साथ बैठ कर कोई मूवी देखनी थी. फोन पर टच में रहना अलग था. सामने मिल कर बातें करने में अलग मजा आता है. सुधा ने हमेशा की तरह खानेपीने की बहुत अच्छी तैयारी की थी. काफी चीजें और्डर भी की गईं ताकि सुधा पर ज्यादा काम का बो झ न पड़े.

जब तक बच्चे डिनर कर के फ्री हो कर साथ बैठे, सुधा भी हमेशा की तरह उन के बीच आ बैठीं. इस समय रात के 10 बज रहे थे. सुधा ने सब को अब ध्यान से देखा. संदली काफी हैल्थ कौंशस थी. जंक फूड से बहुत दूर रहती. काफी स्लिमट्रिम थी. सुधा खुद काफी भारी शरीर की महिला थीं. संदली से बोलीं, ‘‘यह क्या हाल बना लिया है तुम ने अपना?’’

‘‘क्यों आंटी, क्या हुआ?’’

‘‘इतना स्लिम क्यों हो गई?’’

‘‘आंटी, मोटा हो कर क्या करना है,’’ संदली हंसी.

‘‘तुम्हारी मम्मी क्या तुम्हारी डाइट का ध्यान नहीं रखतीं?’’

‘‘अरे आंटी क्यों नहीं रखेंगी?’’

‘‘चलो, अपनी पूरी डाइट बताओ दिन  की मु झे.’’

‘‘आंटी, नाश्ते में कभी पोहा, कभी उपमा, कभी आमलेट तो कभी परांठा खाती हूं. लंच में दाल, सब्जी, रायता होता है तो कभी कुछ…’’

सुधा बीच में ही बोलीं, ‘‘फू्रट्स कहां हैं तुम्हारी डाइट में?’’

‘‘आंटी, फ्रूट्स 4-5 बजे खाती हूं, फिर 8 बजे डिनर.’’

‘‘इस डाइट में कमी लग रही है. स्वीट्स में क्या खाती हो?’’

‘‘आंटी, स्वीट्स का तो मु झे शौक नहीं है.’’

‘‘पर ऐनर्जी कैसे मिलेगी?’’

‘‘आंटी, मैं ठीक हूं, कोई परेशानी नहीं है मु झे,’’ अंदर ही अंदर इन बातों पर चिढ़ती संदली बाहर से मुसकराते हुए पानी पीने का बहाना कर के उठ गई.

उस के जाते ही सुधा तनु से बोलीं, ‘‘बेटा, आप के पेरैंट्स आप की शादी का क्या सोच  रहे हैं?’’

अब तनु के इंटरव्यू का नंबर था, ‘‘आंटी, मैं ने मम्मीपापा को कह दिया है कि अभी मु झे थोड़ा टाइम चाहिए.’’

‘‘तुम्हारे कहने से क्या होता है. उन्हें सोचना चाहिए. अब तुम 26 की हो गई न?’’

‘‘आंटी, उन्हें मेरी बात सम झ आ गई है. वे मु झ पर प्रैशर नहीं डाल रहे हैं.’’

‘‘अब उन्हें सोचना चाहिए. उन्होंने तुम्हारे लिए शादी की क्याक्या तैयारी की है.’’

‘‘अभी क्या करें? जब कोई बात ही नहीं  है अभी.’’

‘‘फिर भी सोना तो खरीद कर रखना ही चाहिए न.’’

फिर उन की नजर मयंक पर गई, ‘‘मयंक, तुम कितनी सेविंग करते हो?’’

मयंक ने बताया, ‘‘काफी, आंटी, कई इंश्योरैंस प्लान ले रखे हैं.’’

‘‘क्यों? इतने क्यों? अरे, खाओपीयो, ऐंजौय करो, किस के लिए बचाना है?’’

सब बच्चे इस बात पर उन का मुंह देखने लगे और वे सब को यही सम झाती रहीं कि लाइफ में बचत की जरूरत क्या है, ऐंजौय करना चाहिए.

बच्चों के साथ ऐंजौय

सब बच्चे अपने पेरैंट्स से मिले सु झाव  से बिलकुल उलट इस ज्ञान पर हैरान रह गए.  2 घंटे सिर्फ सुधा ही बोलती रहीं. बच्चे आपस  में बिलकुल बात नहीं कर पाए और रात के  12 बजे विशाल के बर्थडे केक काटने की तैयारी होने लगी. तब जा कर सुधा से बच्चों को थोड़ा ब्रेक मिला.

केक और स्नैक्स में एक घंटा और बीत गया. इस दौरान सुधा ने भी बच्चों के साथ बहुत ऐंजौय किया. फिर सुधा बच्चों के साथ ही बैठ गईं तो विशाल ने कहा, ‘‘मम्मी, अब आप सो जाओ न. हम लोग कोई मूवी देखेंगे.’’

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‘‘हां, देखो, मैं भी सब के साथ देखती हूं.’’

‘‘ऊफ, मम्मी, आप सो जाओ न. इतनी रात हो गई है.’’

‘‘बाद में सो जाऊंगी,’’ सुधा ने फिर  बच्चों के साथ ही मूवी देखी. फिर संदली,  तनु और प्रिया सुधा के ही रूम में सोईं. विशाल, मयंक और रजत एकसाथ सो गए. सोते समय  भी सुधा प्रिया से कह रही थीं, ‘‘तम्हारे पेरैंट्स  ने तुम्हारे लिए कोई लड़का देखना शुरू किया?’’

प्रिया ने ऐसी ऐक्टिंग की जैसे वह बहुत नींद में है और जल्दी से ‘न’ कह कर चादर मुंह तक ओढ़ ली.

सब सुबह सो कर उठीं तो देखा सुधा रूम में नहीं थीं. प्रिया ने कहा, ‘‘यार, आंटी का क्या करें? आपस में तो बात कर ही नहीं पाते. इंटरव्यू ही देते रह जाते हैं.’’

तनु ने कहा, ‘‘यार संदली, जब तेरे घर आते हैं, कितनी शांति रहती है, कितना स्पेस देती हैं तेरी मम्मी. थोड़ी देर हम सब से मिल कर उठ जाती हैं. यहां तो ऐसे लगता है जैसे आंटी की जेल में बंद हो गए.’’

संदली फुसफुसाई, ‘‘धीरे बोल, कहीं आंटी अभी फिर न आ जाएं. मेरा तो रात में मन कर रहा था कि कार निकालूं और घर चली जाऊं. हर बार यही होता है कि हम आपस में कभी समय बिता ही नहीं पाते. ठीक है, आंटी को हमारे साथ अच्छा लगता होगा पर हमें तो जरा भी ऐंजौय नहीं करने देतीं. कितनी पर्सनल बातों पर कमैंट करती हैं. जरा भी अच्छा नहीं लगता. मेरी डाइट तो उन का प्रिय टौपिक है. ऐसे कहती हैं जैसे मेरे पेरैंट्स मु झे खिलाते ही नहीं.’’

इतने में सुधा आ गईं, ‘‘अरे, उठ गए तुम लोग. चलो, फ्रैश हो जाओ. नाश्ता बनाया है. उन लोगों को भी उठाती हूं. फिर बैठ कर थोड़ी बातें करते हैं.’’

संदली, तनु और प्रिया ने एकदूसरे को देखा और बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी रोकी. सुधा ने बड़े प्यार से सब बच्चों को नाश्ता करवाया.

फिर संदली ने कहा, ‘‘आंटी, बहुत अच्छा लगा आ कर, अब हम घर चलते हैं.’’

‘‘अरे, चले जाना, इतने दिन बाद तो  आए हो.’’

कोई फायदा नहीं

सुधा ने फिर शुरू किया अपने परिवार के बारे में वही सब बताना जो बच्चे पिछले कई सालों से सुनते आ रहे थे. अब तो बच्चों को ये किस्से याद हो गए थे. उन के रिश्तेदारों के नाम तक याद हो चुके थे.

विशाल ने बीचबीच में कहा, ‘‘मम्मी, बस कर दो न. आप पिछली बार भी तो यही सब बता रही थीं.’’

पर कोई फायदा नहीं था. 2 घंटे सुधा ने अपने किस्से हमेशा की तरह सुनाए जिन में किसी की भी रुचि नहीं थी. विशाल अपने दोस्तों के चेहरे देख रहा था पर सब उस के इतने अच्छे पुराने दोस्त थे कि कोई भी ऐसा रिएक्शन न देते जिस से किसी भी तरह का सुधा के लिए अपमान दिखे. सुधा ने कहा, ‘‘अरे, बच्चो, तुम्हें पता है मैं ने तुम लोगों के साथ आज टाइम पास करने के लिए छुट्टी ली हुई है, शाम तक जाना.’’

बच्चे रुक सकते थे पर हमेशा की तरह वे उन की बातों से मानसिक रूप से इतने थक  गए थे कि जैसे उन की सारी ऐनर्जी खत्म हो गई है. सब घर जाने के लिए उठ ही गए.

संदली ही अपनी कार से प्रिया और तनु को उन के घर तक छोड़ रही थी. सब एक ही एरिया के थे.

प्रिया ने कहा, ‘‘यह ब्रेक लिया हम ने? थका देती हैं यार आंटी तो. मैं हर बार सोचती हूं कि नहीं जाऊंगी, पर विशाल की वजह से फिर आ जाती हूं. इस से तो अच्छा कि मैं छुट्टी ले कर आराम से घर पर सो लेती, अच्छा ब्रेक मिलता.’’

तनु ने कहा, ‘‘आंटी को शायद हम लोगों से बातें करना अच्छा लगता है. थोड़ी देर तो हमें भी अच्छा लगता है पर आंटी तो हम लोगों को आपस में भी कोई बात नहीं करने देतीं लगातार बोलती  हैं यार.’’

‘‘इन की अपनी फ्रैंड्स नहीं हैं क्या, यार?’’

संदली ने ठंडी सांस लेते हुए कहा, ‘‘बस अब तुम लोग अपनी बात कर लो. भई, अब भी आंटी की ही बातें करनी हैं क्या? घर आने वाला है. मु झे तो लगता है हम बस अब फिर फोन पर ही बातें कर पाएंगें अपनी.’’

सवालों की बौछार

शामली में रहने वाली मीता अपनी सहेली अनु के घर जब भी जाती, उस की तलाकशुदा बुआ जो अनु के घर ही रहती थीं, उन दोनों के पास आ कर बैठतीं और ऐसेऐसे सवाल पूछतीं कि मीता घबरा जाती, ‘‘बौयफ्रेंड है? बहन अपने ससुराल में खुश है? लड़कों से दोस्ती है तुम्हारी?’’

फिर अगर अनु मीता के लिए कुछ चाय, पानी लेने किचन में जाती तो उस के जाते ही बुआ मीता से पूछती, ‘‘इस अनु का कोई बौयफ्रैंड तो नहीं है? कालेज में लड़कों से ज्यादा बातें करती है क्या? तुम तो इस की सहेली हो, सब जानती होगी, जल्दी बताओ कुछ.’’

मीता बस यही मनाती कि अनु जल्दी से आ जाए और बूआ के सवाल बंद हों.

ओमैक्स रैजीडैंसी, लखनऊ में रहने वाली अरीशा की कालेज में आरती से बहुत अच्छी दोस्ती हो गयी थी. वे बताती हैं, ‘‘मेरे डैड हमेशा उस समय मेरे आसपास घूमते, हमारी बातें सुनने की पूरी कोशिश करते जब भी आरती घर आती. मेरी बड़ी बहन अंजुम को तो हमेशा यही खोजबीन करनी होती कि आरती का कोई भाई तो नहीं है. जब पता चला, 2 भाई हैं, तो मैं जब भी आरती के घर जाने की बात करती, तो मेरी बहन कहतीं कि क्यों कर रखी है उस से दोस्ती.

‘‘कालेज में जितनी बात हो जाए हो जाए. एकदूसरे के घर बैठ कर तो बात करना ही मुश्किल था. हमारी बातें सुनने के लिए सब अपना काम छोड़ कर हमारे आसपास मंडराते कि पता नहीं क्या बातें कर लेंगे. जब घर में ही आराम से किसी दोस्त के साथ बैठ कर बातें न कर पाएं तो बड़ी कोफ्त होती है.’’

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एक अजीब स्थिति

मेरठ में रहने वाली रिद्धि का ऐक्सीडैंट हुआ. उस का पैर टूट गया था जिस वजह से बैड पर लेटेलेटे उस का कुछ वजन बढ़ गया था. सब बच्चे उसे देखने गए. उस की दादी भी वहीं आ कर बैठ गईं. एक एक बच्चे को ध्यान से देखती रहीं और फिर रिद्धि से कहने लगीं, ‘‘तू मोटी  हो जाएगी लेटेलेटे, देख इन में से कोई मोटा  नहीं है.’’

फिर ग्रुप में जो 2 लड़के भी उसे देखने गए थे, दादी ने उन से उन के घरपरिवार के बारे में इतने सवाल पूछे कि बच्चे जल्द ही शर्मिंदगी से भाग खड़े हुए. रिद्धि को अपनी दादी के सवाल बहुत नागवार गुजरे.

कई बार ऐसी गलतियां कर के बड़े बच्चों और उन के दोस्तों को एक अजीब स्थिति में डाल देते हैं जिन का उन्हें अंदाजा नहीं होता. कहीं आप भी तो यह गलती नहीं करतीं जब आप के बच्चों के दोस्त आप के घर आते हैं? युवा पीढ़ी से बात करते हुए बहुत सी बातों का ध्यान रखते हुए तालमेल बैठाना होता है.

आजकल इतने स्ट्रैस के माहौल में जब बच्चे दोस्तों के साथ इकट्ठे बैठ कर हंसनाबोलना चाहें तो उन्हें एक स्पेस दें. उन से मिलें, कुछ देर बातें भी करें पर अपना टाइम पास करने के चक्कर में उन के सिर पर न बैठे रहें. अपनी भपियाने की आदत पर कंट्रोल रखें. युवा बच्चों से उन की पर्सनल लाइफ पर सवाल करने की गलती न करें.

किसको कहे कोई अपना

Family Story In Hindi

Breast Feeding बढ़ाएं Baby की Immunity

कोरोना जैसी महामारी से निबटने के लिए जितना हो सके अपनी  इम्यूनिटी को बढ़ाना बहुत जरूरी है. इसे बढ़ाने के लिए मार्केट में ढेरों सप्लिमैंट्स उपलब्ध हैं. लेकिन अगर बात हो शिशुओं की,  तो उन की इम्यूनिटी को बढ़ाने के लिए मां के दूध से बेहतर कुछ और नहीं हो सकता. तभी तो हर न्यू मौम को यह सलाह दी जाती है कि वह शुरुआती 6 महीने अपने बच्चे को सिर्फ अपना दूध ही पिलाए क्योंकि मां का दूध विटामिंस, मिनरल्स व ढेरों न्यूट्रिएंट्स का खजाना जो  होता है.

ब्रैस्ट फीडिंग से बढ़ती है इम्यूनिटी

अकसर न्यू मौम्स अपनी फिगर को मैंटेन रखने के लिए व बच्चे की भूख को शांत करने के लिए उसे शुरुआती जरूरी महीनों में ही फौर्मूला मिल्क देना शुरू कर देती हैं. भले ही इस से उन की भूख शांत हो जाती हो, लेकिन शरीर की न्यूट्रिशन संबंधित जरूरतें पूरी नहीं हो पाती. जबकि मां का दूध प्रोटीन, फैट्स, शुगर, ऐंटीबौडीज व प्रोबायोटिक से भरपूर होता है, जो बच्चे को मौसमी बीमारियों से बचा कर उस की इम्यूनिटी को बूस्ट करने का काम करता है.

अगर मां किसी इन्फैक्शन की चपेट में आ भी जाती है, तो उस इन्फैक्शन से लड़ने के लिए शरीर ऐंटीबौडीज बनाना शुरू कर देता है और फिर यही ऐंटीबौडीज मां के दूध के जरीए बच्चे में पहुंच कर उस की इम्यूनिटी को बढ़ाने का काम करती है. तो हुआ न मां का दूध फायदेमंद.

कई रिसर्च में यह साबित हुआ है कि जो बच्चे शुरुआती 6 महीनों में सिर्फ ब्रैस्ट फीड करते हैं, उन में किसी भी तरह की ऐलर्जी, अस्थमा व संक्रमण का खतरा काफी हद तक कम हो जाता है. इसलिए मां का दूध बच्चे के लिए दवा का काम करता है.

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 ब्रैस्ट फीडिंग वीक

महिलाओं में ब्रैस्ट फीडिंग के लिए जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हर साल 1 से  7 अगस्त के बीच विश्व स्तर पर ब्रैस्ट फीडिंग वीक मनाया जाता है. उन्हें हर साल जगहजगह पर आयोजित कार्यक्रमों के जरीए शिक्षित किया जाता है कि मां के दूध से न सिर्फ बच्चा ही बीमारियों से दूर रहता है बल्कि मां भी इस से ओवेरियन व ब्रैस्ट कैंसर के रिस्क से बच सकती है. इस से रिलीज होने वाला हारमोन औक्सीटोसिन के कारण यूटरस अपने पहले वाले आकार में तो आ ही जाता है, साथ ही ब्लीडिंग भी कम हो जाती है. ब्रैस्ट फीडिंग करवाने से कैलोरीज बर्न होने के कारण महिला की बौडी को शेप में आने में आसानी होती है. इसलिए जागरूक बन कर बच्चे को करवाएं ब्रैस्ट फीड.

जानते हैं ब्रैस्ट फीडिंग के अन्य फायदे

न्यूट्रिशन ऐंड प्रोटैक्शन:

मां के स्तनों से आने वाले पहले दूध को कोलोस्ट्रम कहते हैं, जिसे बेकार सम झ कर बरबाद न करें क्योंकि यह न्यूट्रिएंट्स का खजाना होने के साथ इस में फैट की मात्रा भी बहुत कम होती है, जिस से बच्चे के लिए इसे पचाना काफी आसान हो जाता है, साथ ही यह बच्चे के शरीर में ऐंटीबौडीज बनाने का भी काम करता है.

स्ट्रौग बौंड बनाने में मददगार:

बचपन से ही मां और बच्चे का बौंड स्ट्रौंग बने, इस के लिए ब्रैस्ट फीडिंग का अहम रोल होता है. ब्रैस्ट फीड करवाने से मां और बच्चा एकदूसरे का स्पर्श पाते हैं. ब्रैस्ट फीडिंग करवाने से औक्सीटोसिन हारमोन, जिसे बौंडिंग हारमोन भी कहते हैं रिलीज होता है. यही हारमोन जब आप किसी अपने को किस या हग करते हैं, तब भी रिलीज होता है.

ब्रैस्ट फीड बेबी मोर स्मार्ट:

विभिन्न शोधकर्ताओं ने ब्रैस्ट फीडिंग व ज्ञानात्मक विकास में सीधा संबंध बताया है. अनेक शोधों से यह निष्कर्ष निकाला गया है कि जिन बच्चों को लंबे समय तक ब्रैस्ट फीड करवाया जाता है, उन का आईक्यू लैवल काफी तेज होने के साथसाथ वे हर चीज में काफी स्मार्ट भी होते हैं क्योंकि मां के दूध में दिमाग को तेज करने वाले न्यूट्रिएंट्स कोलैस्ट्रौल, ओमेगा-3 फैटी ऐसिड पाए जाते हैं.

ब्रैस्ट मिल्क को बच्चा आसानी से पचा लेता है क्योंकि इस में फैट की मात्रा बहुत कम होती है, जिस से बच्चे को कब्ज जैसी शिकायतों का भी सामना नहीं करना पड़ता, जबकि बच्चे के लिए फौर्मूला मिल्क को पचाना काफी मुश्किल हो जाता है और जब यह पचता नहीं है तो बच्चे को उलटी, पेट दर्द जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इसलिए पाचनतंत्र को दुरुस्त रखने के लिए ब्रैस्ट फीड है बैस्ट.

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एसआईडीएस का खतरा कम:

एक शोध से यह पता चला है कि कम से कम 2 महीने तक ब्रैस्ट फीडिंग करवाने से एसआईडीएस मतलब सडन इन्फैंट डैथ सिंड्रोम का खतरा 50% तक कम हो जाता है. ऐसा माना जाता है कि जो बच्चे स्तनपान करते हैं, वे आसानी से अच्छी नींद सोते हैं, जो उन की इम्यूनिटी को बढ़ाने में भी अहम रोल निभाता है. तो फिर अपने शिशु को हैल्दी रखने के लिए करवाएं ब्रैस्ट फीड.

Travel Special: चलिए बावड़ियों के गांव आभानेरी

आभानेरी राजस्थान का एक प्रसिद्ध गांव है, जिसे बावड़ियों का गांव भी कहा जाता है. यहां विश्व की सबसे बड़ी बावड़ी के साथ कई छोटी-छोटी अन्य बावड़ियां भी हैं. इन बावड़ियों के साथ आभानेरी का हर्षत माता मंदिर भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है. आभानेरी गांव का नाम आभा नगरी(चमकने वाला शहर) था, लेकिन धीरे-धीरे भाषा की तोड़ मरोड़ से इसका नाम आभानेरी पड़ गया.

आभानेरी के ये दोनों ही आकर्षण के केंद्र वास्तुकला के अद्भुत नमूने हैं. प्राचीन काल में वास्तुविदों और नागरिकों द्वारा जल संरक्षण के लिए बनाई गई इस प्रकार की कई बावड़ियां इस क्षेत्र में मौजूद हैं, जिनमें काफी पानी जमा रहता है और जो क्षेत्र के निवासियों के काम आता है. चांद बावड़ी इन सभी बावड़ियों में सबसे बड़ी और लोकप्रिय है.

विश्व की सबसे बड़ी बावड़ी, चांद बावड़ी

विश्व की सबसे बड़ी बावड़ी चाँद बावड़ी का निर्माण राजा चांद ने 8वीं या 9वीं शताब्दी में कराया था. इसे ‘अंधेरे उजाले की बावड़ी’ भी कहा जाता है. चांदनी रात में यह बावड़ी एकदम सफेद दिखायी देती है. बावड़ी के तह तक पहुंचने के लिए लगभग 1300 सीढ़ियां बनाई गयीं हैं जो एक अद्भुत कला का उदाहरण है. भुलभुल्लैया जैसी बनी इन सीढ़ियों के बारे में कहा जाता है, कि कोई व्यक्ति जिस सीढ़ी से नीचे उतरता है वह वापस कभी उसी सीढ़ी से ऊपर नहीं आ पाता है. यह वर्गाकार बावड़ी चारों ओर स्तंभयुक्त बरामदों से घिरी हुई है.

इस बावड़ी में एक सुंरगनूमा गुफा भी है जो 17 किलोमीटर लंबी है. यह गुफा पास ही स्थित भंडारेज गांव में निकलती है. कहा जाता है कि कई सालों पहले एक बारात इस गुफा के अंदर गयी जो दोबारा कभी वापस नहीं लौटी. कथानुसार कहा जाता है कि इस बावड़ी और इसके पास ही कुछ अन्य बावड़ियों को एक रात में ही बना कर तैयार किया गया था.

बावड़ी की सबसे निचली मंजिल पर बने दो ताखों में स्थित गणेश एवं महिषासुर मर्दिनी की भव्य प्रतिमाएं इसकी खूबसूरती में चार चांद लगा देती है. बावड़ी के एक शिलालेख में राजा चांद का भी उल्लेख किया गया है.

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यह वर्गाकार बावड़ी चारों तरफ से 35 मीटर चौड़ी है. ऊपर से नीचे तक पक्की बनी सीढ़ियों के कारण पानी का स्तर चाहे जो भी हो यहां हमेशा आसानी से पानी भरा जा सकता है. इस बावड़ी के पास ही स्थित हर्षत माता का मंदिर भी लोगों के लिए मुख्य आकर्षण का केंद्र है.

हर्षत माता मंदिर

चांद बावड़ी के पास ही स्थित हर्षत माता का मंदिर पत्थरों पर नक्काशी का एक बेजोड़ नमूना है. इस मंदिर पर कई विदेशी आक्रमण की वजह से यहां की प्रतिमाएं क्षत विक्षत पड़ी हैं. बताया जाता है कि 1021-26 के काल में मोहम्मद गजनवी ने इस मंदिर को तोड़ दिया तथा सभी मूर्तियों को खंडित कर दिया था.

10वीं शताब्दी में निर्मित इस मन्दिर में आज भी प्राचीन काल की वास्तुकला और मूर्तिकला के दर्शन होते हैं. आभानेरी की ये बावड़ियां और मंदिर इस जगह को एक विचित्र और चकित कर देने वाला पर्यटक स्थल बनाती हैं.

यह भी कहा जाता है कि चांद बावड़ी का निर्माण भूतों ने किया है, और जानबूझकर इसे इतनी गहरी और अत्यधिक सीढ़ियों वाली बनाई है कि यदि इसमें एक सिक्का उछाला जाये तो उसे वापस पाना लगभग असंभव है. आभानेरी में चांद बावड़ी और अन्य बावड़ियों के बीचोंबीच एक बड़ा गहरा तालाब है, जो इलाके को गर्मी के दिनों में भी ठण्डा रखता है.

बावड़ियों के इस नगर में वास्तुकला के नमूने और यहां की विशिष्टता देख आप दंग रह जाएंगे.

यहां पहुंचें कैसे?

आभानेरी नगर राजस्थान के दौसा जिले से करीब 33 किलोमीटर की दूरी पर है और जयपुर से लगभग 95 किलोमीटर की दूरी पर. जयपुर और दौसा से कई बसों की सुविधा यहां तक के लिए उपलब्ध हैं.

तो अपने अगले राजस्थान या जयपुर की यात्रा में विश्व की सबसे बड़ी बावड़ी चांद बावड़ी की यात्रा करना ना भूलें, जहां की वास्तुकला आपको अचंभित कर देगी.

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