Summer Special: एवोकैडो Oil से मिलते हैं स्किन को कई फायदे

नैचुरल चीजें ही हमारी सभी परेशानियों का एक हल हैं, फिर चाहें वो त्वचा संबंधी परेशानी हो या सेहत से जुड़ी हुई या फिर कुछ और. नेचर इन सब चीजों का एक ही सॉल्यूशन है.इस वजह से आज हम आपके लिए एवोकैडो ऑयल से त्वचा को होने वाले कुछ कमाल के फायदे लेकर आए हैं. एवोकैडो डायबिटीज और शुगर में लाभदायक होता है, वहीं इसका तेल खाने के पोषण में वृद्धि करता है. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि जितना फायदेमंद यह तेल सेहत के लिए है, सुंदरता बढ़ाने में इसका तेल उतना ही गुणकारी होता है. आइए जानते हैं की अपनी ब्यूटी किट में क्यों शामिल करना चाहिए यह तेल .

गुणों का खजाना है एवोकैडो

एवोकैडो बहुत पौष्टिक होते हैं और इसमें विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व होते हैं जैसे  विटामिन K , फोलेट ,विटामिन सी , पोटेशियम ,विटामिन बी 5 ,विटामिन बी 6, विटामिन ई. एवोकैडो ऑयल न्यूट्रिएंट्स से भरपूर होता है. यह एंटीऑक्सीडेंट होता है, इसमें जरूरी फैटी एसिड्स होते हैं, मिनरल्स होते हैं और विटामिन्स होते हैं. इस ऑयल को स्किन पर डायरेक्ट अप्लाई करने या अन्य ब्यूटी प्रोडक्ट्स के साथ डायल्यूट करके इसका इस्तेमाल कर सकते हैं. एवोकैडो ऑयल प्राकृतिक सनब्लॉक की तरह काम करता है. सुबह नहाने के बाद आप इसे पूरी बॉडी पर सकती हैं. साथ ही रात को सोने से पहले भी इसे मॉइश्चराइजर या नाइट क्रीम की जगह इस्तेमाल कर सकती हैं. यह त्वचा को नम और सॉफ्ट बनाए रखने में मददगार है.

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एंटी एजिंग गुण

जैसे जैसे उम्र बढ़ती है , हमे कई त्वचा की समस्याओं का सामना करना पड़ता है . जैसे की ड्राई स्किन , झुर्रियां , मुंहासे , कोलेजन का न बनना आदि . एवोकैडो तेल में मौजूद पोषक तत्व त्वचा को नमी देते हैं, झुर्रियों को रोकते हैं, कोलेजन के बनने को बढ़ावा देते हैं व साथ ही सूजन को रोकते हैं. ये सभी लाभ त्वचा को लंबे समय तक जवां बनाए रखते हैं.

फ्री रेडिकल्स से लड़ता है

फ्री रेडिकल्स न केवल बीमारी में योगदान करते हैं, बल्कि वे एज स्पॉट्स , झुर्रियां और स्किन कैंसर जैसी अधिक गंभीर बीमारियों सहित कई प्रकार के अवांछित त्वचा परिवर्तनों को भी बढ़ाते हैं. पोषक तत्वों और एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा से भरपूर, एवोकैडो तेल फ्री रेडिकल्स से होने वाले नुकसान से लड़ने में मदद करता है.

सनबर्न को शांत करने में करता है मदद

क्योंकि एवोकैडो तेल विटामिन ई, बीटा-कैरोटीन, विटामिन डी, प्रोटीन, लेसिथिन और फैटी एसिड से भरपूर होता है, इसलिए यह त्वचा को शांत करने और सनबर्न के नकारात्मक प्रभावों को कम करने में मदद करता है . एवोकैडो तेल में पॉलीहाइड्रोक्सिलेटेड फैटी अल्कोहल होते हैं जो यू.वी.ए और यू.वी.बी किरणों से होने वाले नुकसान को रोकते हैं और उनका इलाज करते हैं. एवोकैडो तेल से भरपूर सनस्क्रीन लगाएं या जब आप धूप में रहने के बाद अंदर आते हैं तो शुद्ध एवोकैडो तेल लगाएं.

सूजन और त्वचा की जलन कम करने में ता है काम

एंटीऑक्सीडेंट और विटामिन के गुणों से भरपूर एवोकैडो एक्जिमा और सोरायसिस से जुड़ी रूखी, खुरदरी और परतदार त्वचा को ठीक करने में मदद करता है . धूप और प्रदूषण के प्रभाव की वजह से अक्सर त्वचा में जलन होती है . इसको दूर करने के लिए एवोकैडो तेल का उपयोग फायदेमंद हो सकता है.

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उत्कृष्ट मॉइश्चराइजेशन गुण जो मुँहासे की रोकथाम में करते है भी मदद

त्वचा की सबसे बाहरी परत, जिसे एपिडर्मिस के नाम से जाना जाता है, एवोकैडो तेल में मौजूद पोषक तत्वों को आसानी से अब्जॉर्ब कर लेती है, जो नई त्वचा बनाने में भी मदद करती है. इसमें मौजूद फाइट स्टेरोल्स और ओलिक एसिड त्वचा को गहराई से मॉइस्चराइज करके दूसरी परत तक पहुंचाता है . यह संवेदनशील और बेहद रूखी त्वचा वाले लोगों के लिए भी उपयुक्त है. एवोकैडो तेल में लिनोलिक एसिड होता है जो मुंहासे होने से  रोकता है. यह रोम छिद्रों को बंद किए बिना भी त्वचा को हाइड्रेट रखता है जो मुहांसों के खतरे को कम करता है.

अगर आपको त्वचा में खुजली, पैचेज, ड्राईनेस जैसी दिक्कतें हो रही हों तो एवोकैडो ऑयल जरूर लगाएं. इससे आपको इन परेशानियों से जल्द राहत मिलेगी. साथ ही अल्ट्रा वॉयलट किरणों से बचने के लिए भी आप इस तेल को अप्लाई कर सकते हैं.

अलग हो जाना समस्या का हल नहीं है

सुनीता और रंजन और उन के 2 बच्चे- एकदम परफैक्ट फैमिली. संयुक्त परिवार का कोई झंझट नहीं, पर पुनीता और रंजन की फिर भी अकसर लड़ाई हो जाती है. रंजन इस बात को ले कर नाराज रहता है कि वह दिन भर खटता है और पुनीता का पैसे खर्चने पर कोई अंकुश नहीं है. वह चाहता है कि पुनीता भी नौकरी करे, पर बच्चों को कौन संभालेगा, यह सवाल उछाल कर वह चुप हो जाती है. वैसे भी वह नौकरी के झंझट में नहीं पड़ना चाहती है.

पैसा कहां और किस तरह खर्चा जाए, इस बात पर जब भी उन की लड़ाई होती है, वह अपने मायके चली जाती है. बच्चों पर, घर पर और अपने शौक पूरे करने में खर्च होने वाले पैसे को ले कर झगड़ा होना उन के जीवन में आम बात हो गई है. वह कई बार रंजन से अलग हो जाने के बारे में सोच चुकी है. रंजन उसे बहुत हिसाब से पैसे देता है और 1-1 पैसे का हिसाब भी लेता है. पुनीता को लगता है इस तरह तो उस का दम घुट जाएगा. रंजन की कंजूसी की आदत उसे खलती है.

सीमा हाउसवाइफ है और उस के पति मेहुल की अच्छी नौकरी और कमाई है, इसलिए पैसे को ले कर उन के जीवन में कोई किचकिच नहीं है. लेकिन उन के बीच इस बात को ले कर लड़ाई होती है कि मेहुल उसे समय नहीं देता है. वह अकसर टूर पर रहता है और जब शहर में होता है तो भी घर लेट आता है. छुट्टी वाले दिन भी वह अपना लैपटौप लिए बैठा रहता है. उस का कहना है कि उस की कंपनी उसे काम के ही पैसे देती है और जैसी शान की जिंदगी वे जी रहे हैं, उस के लिए 24 घंटे भी काम करें तो कम हैं.

सीमा मेहुल के घर आते ही उस से समय न देने के लिए लड़ना शुरू कर देती है. वह तो उसे धमकी भी देती है कि वह उसे छोड़ कर चली जाएगी. इस बात को मेहुल हंसी में उड़ा देता है कि उसे कोई परवाह नहीं है.

सोनिया को अपने पति से कोई शिकायत नहीं है, न ही संयुक्त परिवार में रहने पर उसे कोई आपत्ति है. विवाह को 6 वर्ष हो गए हैं, 2 बच्चे भी हैं. लेकिन इन दिनों वह महसूस कर रही है कि उस के और उस के पति के बीच बेवजह लड़ाई होने लगी है और उस की वजह हैं उन के रिश्तेदार, जो उन के बीच के संबंधों को बिगाड़ने में लगे हैं. कभी उस की ननद आ कर कोई कड़वी बात कह जाती है, तो कभी बूआसास उस के पति को उस के खिलाफ भड़काने लगती हैं.

रिश्तेदारों की वजह से बिगड़ते उन के संबंध धीरेधीरे टूटने के कगार तक पहुंच चुके हैं. वह कई बार अपने पति को समझा चुकी है कि इन फुजूल की बातों पर ध्यान न दें, पर वह सोनिया की कमियां गिनाने का कोई भी अवसर नहीं छोड़ता है.

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नमिता और समीर के झगड़े की वजह है समीर की फ्लर्ट करने की आदत. वह नमिता के रिश्ते की बहनों और भाभियों से तो फ्लर्ट करता ही है, उस की सहेलियों पर भी लाइन मारता है. इस बात को ले कर उन का अकसर झगड़ा हो जाता है. नमिता उस की इस आदत से इतनी तंग आ चुकी है कि वह उस से अलग होना चाहती है.

गलत आप भी हो सकती हैं

इन चारों उदाहरणों में आपसी झगड़े की वजहें बेशक अलगअलग हैं, पर पति की ज्यादतियों की वजह से पत्नियां पति से अलग हो जाने की बात सोचती हैं. उन की नजरों में उन के पति सब से बड़े खलनायक हैं, जिन से अलग हो कर ही उन को सुकून मिलेगा. लेकिन अलग हो जाना, मायके चले जाना या फिर तलाक लेना परेशानी का सही हल हो सकता है? कहना आसान है कि आपस में नहीं बनती, इसलिए अलग होना चाहती हूं, पर उस से क्या होगा? पति से अलग हो कर आजादी की सांस लेने से क्या सारी मुसीबतों से छुटकारा मिल जाएगा?

एक बार अपने भीतर झांक कर तो देखिए कि क्या आप के पति ही इन झगड़ों के लिए दोषी हैं या आप भी उस में बराबर की दोषी हैं. सीधी सी बात है कि ताली एक हाथ से नहीं बजती. फिर रिश्ता तोड़ कर क्या हासिल हो जाएगा? आप तो जैसी हैं, वैसी रहेंगी. इस तरह तो किसी के साथ भी ऐडजस्ट करने में आप को दिक्कत आ सकती है.

तलाक का अर्थ ही है बदलाव और यह समझ लें कि किसी भी तरह के बदलाव का सामना करना आसान नहीं होता है. कई बार मन पीछे की तरफ भी देखता है. नई जिंदगी की शुरुआत करते समय जब दिक्कतें आती हैं तो मन कई बार बीती जिंदगी को याद कर एक गिल्ट से भी भर जाता है. पति की गल्तियां निकालने से पहले यह तो सोचें कि क्या आप अपने को बदल सकती हैं? अगर नहीं तो पति से इस तरह की उम्मीद क्यों रखती हैं? उस के लिए भी तो बदलना आसान नहीं है, फिर झगड़े से क्या फायदा?

कोई साथ नहीं देता

झगड़े से तंग आ कर तलाक लेने का फैसला अकसर हम गुस्से में या दूसरों के भड़काने पर करते हैं, पर उस के दूरगामी परिणामों से पूरी तरह बेखबर होते हैं. मायके वाले या रिश्तेदार कुछ समय तो साथ देते हैं, फिर यह कह कर पीछे हट जाते हैं कि अब आगे जो होगा उसे स्वयं भुगतने के लिए तैयार रहो.

अंजना की ही बात लें. उस का पति से विवाह के बाद से किसी न किसी बात पर झगड़ा होता रहता था. वह उस की किसी बात को सुनती ही नहीं थी, क्योंकि उसे इस बात पर घमंड था कि उस के मायके वाले बहुत पैसे वाले हैं और जब वह चाहे वहां जा कर रह सकती है. एक बार बात बहुत बढ़ जाने पर भाई ने उस के पति को घर से निकल जाने को कहा तो वह अड़ गया कि बिना कोर्ट के फैसले के वह यहां से नहीं जाएगा. जब भाई जाने लगे तो अंजना ने पूछा कि अगर रात को उस के पति ने उसे मारापीटा तो वह क्या करेगी? इस पर भाई बोला कि 100 नंबर पर फोन कर के पुलिस को बुला लेना.

उस के बाद कुछ दिन तो भाई उसे फोन पर अदालत में केस फाइल करने की सलाह देते रहे. पर जब उस ने कहा कि वह अकेली अदालत नहीं जा सकती है तो भाई व्यस्तता का रोना ले कर बैठ गया. अंजना ने 1-2 बार अदालत के चक्कर अकेले काटे, पर उसे जल्द ही एहसास हो गया कि तलाक लेना आसान नहीं है. आज वह अपने पति के साथ ही रह रही है और समझ चुकी है कि जिन मायके वालों के सिर पर वह नाचती थी, वे दूर तक उस का साथ नहीं देंगे. न ही वह अकेले अदालत के चक्कर लगा सकती है.

ऐडजस्ट कर लें

तलाक की प्रक्रिया कितनी कठिन है, यह वही जान सकते हैं, जो इस से गुजरते हैं. अखबारों में पढ़ें तो पता चल जाएगा कि तलाक के मुकदमे कितनेकितने साल चलते हैं. मैंटेनैंस पाने के लिए क्याक्या करना पड़ता है. फिर बच्चों की कस्टडी का सवाल आता है. बच्चे आप को मिल भी जाते हैं तो उन की परवरिश कैसे करेंगी? जहां एक ओर वकीलों की जिरहें परेशान करती हैं, वहीं दूसरी ओर अदालतों के चक्कर लगाते हुए बरसों निकल जाते हैं. अलग हो जाने के बाद भय सब से ज्यादा घेर लेता है. बदलाव का डर, पैसा कमाने का डर, मानसिक स्थिरता का डर, समाज की सोच और सुरक्षा का डर, ये भय हर तरह से आप को कमजोर बना सकते हैं.

कोई भी कदम उठाने से पहले यह अच्छी तरह सोच लें कि क्या आप आने वाली जिंदगी अकेली काट सकती हैं. नातेरिश्तेदार कुछ दिन या महीनों तक आप का साथ देंगे, फिर कोई आगे बढ़ कर आप की मुश्किलों का समाधान करने नहीं आएगा.

आप का मनोबल बनाए रखने के लिए हर समय कोई भी आप के साथ नहीं होगा. कोई भी फैसला लेने से पहले जिस से आप की जिंदगी पूरी तरह से बदल सकती हो, ठंडे दिमाग से आने वाली दिक्कतों के बारे में हर कोण से सोचें. बच्चे अगर आप के साथ हैं तो भी वे आप को कभी माफ नहीं कर पाएंगे. वे आप को हमेशा अपने पिता से दूर करने के लिए जिम्मेदार मानते रहेंगे. हो सकता है कि बड़े हो कर वे आप को छोड़ पिता का पास चले जाएं.

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मान लेते हैं कि आप दूसरा विवाह कर लेती हैं तब क्या वहां आप को ऐडजस्ट नहीं करना पड़ेगा? बदलना तो तब भी आप को पड़ेगा और हो सकता है पहले से ज्यादा, क्योंकि हर बार तो तलाक नहीं लिया जा सकता. फिर पहले ही क्यों न ऐडजस्ट कर लिया जाए. पहले ही थोड़ा दब कर रह लें तो नौबत यहां तक क्यों पहुंचेगी. पति जैसा भी है उसे अपनाने में ही समझदारी है, वरना बाकी जिंदगी जीना आसान नहीं होगा.

झगड़ा होता भी है तो होने दें, चाहें तो आपस में एकदूसरे को लाख भलाबुरा कह लें, पर अलग होने की बात अपने मन में न लाएं. घर तोड़ना आसान है पर दोबारा बसाना बहुत मुश्किल है. जिंदगी में तब हर चीज को नए सिरे से ढालना होता है. जब आप तब ढलने के लिए तैयार है, तो पहले ही यह कदम क्यों न उठा लें.

डिलीवरी के बाद बढ़ता डिप्रेशन

समीरा की बेबी अभी मात्र डेढ़ माह की है. लेकिन समीरा की स्थिति देख कर पूरे परिवार के लोग काफी उल झन में हैं. उस के पति विमल को आफिस से छुट्टी ले कर घर बैठना पड़ रहा है. इतना ही नहीं, स्थिति यहां तक आ गई कि हार कर उसे गांव से अपनी मां को भी बुलाना पड़ गया. बच्ची की देखभाल का जिम्मा उन्हीं के कंधों पर है. करीब 2 साल पहले जब समीरा का अचानक गर्भपात हो गया था तब भी इसी तरह की परेशानी हुई थी. तब गोद में बच्चा नहीं था, लेकिन इस बार परेशानी थोड़ी ज्यादा है. करीब 2 सप्ताह से समीरा मानसिक परेशानी और अवसाद के दौर से गुजर रही है और हमेशा अपनेआप में खोई रहती है, सदा चिंतित व परेशान तो रहती ही है खानेपीने की भी कोई सुध नहीं. रात को ठीक से सो भी नहीं पाती, मन ही मन कुछ न कुछ बुदबुदाती रहती है. नन्ही बिटिया की ओर तो वह ताकती तक नहीं.

ऐसी बात भी नहीं कि प्रसव से पहले या बाद में उसे किसी तरह की परेशानी हुई हो. डिलीवरी भी शहर के अच्छे प्राइवेट नर्सिंगहोम में हुई थी, बिना किसी कंप्लीकेशन के. लड़की होने पर वह काफी खुश हुई थी. उस की इच्छा भी थी कि लड़की हो. लेकिन अब वह एकदम से सुधबुध खो बैठी है. जब पानी सिर से ऊपर गुजरने लगा तो विमल उसे ले कर उसी अस्पताल में गया, जहां उस की डिलीवरी हुई थी. जांच करने के बाद पति से डाक्टर ने कहा कि समीरा पोस्टपार्टम डिप्रेशन की शिकार हो गई है. इसी कारण वह इस तरह का व्यवहार कर रही है. लेकिन घबराने की कोई बात नहीं, सब कुछ ठीक हो जाएगा. हां, थोड़े दिनों तक मां तथा बच्ची दोनों की निगरानी रखने की जरूरत पड़ेगी.

गंभीर रोग

स्त्रीरोग विशेषज्ञ इसे गंभीर रोग मानते हैं. प्रसव के कुछ माह के बाद कई महिलाएं मानसिक परेशानियों का शिकार होने लगती हैं. इसे चिकित्सकीय भाषा में पोस्टपार्टम डिपे्रशन कहते हैं. ऐसा गर्भपात हो जाने या मृत शिशु के जन्म के बाद भी हो सकता है. ऐसी स्थिति में प्रसूता मानसिक तनाव और डिप्रेशन के दौर से गुजरने लगती है और अपनेआप को एकदम असहाय समझने लगती है. गर्भपात होने या फिर मृत शिशु के जन्म से वह काफी परेशान हो जाती है. भीतर से एकदम से टूट जाती है. लेकिन सुंदर और स्वस्थ बच्चा होने के बावजूद जब प्रसूता डिप्रेशन का शिकार होती है तब वह अपनी संतान के प्रति काफी लापरवाह रहने लगती है. ये लक्षण कुछ माह तक रह सकते हैं और कई बार धीरेधीरे ठीक हो जाते हैं. लेकिन कई बार यह रोग विकराल रूप धारण कर लेता है, जिसे पोस्टपार्टम साइकोसिस कहते हैं.

19 वर्षीय गौरी के बेटे अंकुर की उम्र फिलहाल डेढ़ साल है. जब वह मात्र डेढ़ माह का था तो गौरी को भी समीरा की ही तरह अचानक डिप्रेशन के दौरे पड़ने लगे थे. ऐसी बात नहीं कि उसे ससुराल में किसी चीज की कमी रही हो, न ही पति के साथ किसी तरह का मनमुटाव था. कभी दोनों के बीच तनावपूर्ण संबंध भी नहीं रहे. उस का पति एक बैंक में अधिकारी है और वे अच्छा सा 2 रूम का फ्लैट ले कर कानपुर के एक पौश इलाके में रह रहे हैं. लेकिन अंकुर जब 1 माह का था, तभी गौरी के स्वभाव में अचानक परिवर्तन होने लगा था. मानसिक तनाव और अवसाद के कारण खाने के प्रति उसे एकदम अरुचि हो गई थी. इन चीजों की ओर वह देखना भी नहीं चाहती थी.

धीरेधीरे नींद भी कम आने लगी थी. रातरात भर वह जागती रहती. पति बारबार इस का कारण जानने की कोशिश करते, पर वह कुछ नहीं बोलती थी. ज्यादा कुरेदने पर पति से ही  झगड़ने लगती. धीरेधीरे उस की समस्या कम होने के बजाय बढ़ती चली गई. जब स्थिति ज्यादा बिगड़ने लगी तो उस के पति उसे शहर के एक प्रसिद्ध मानसिक रोग विशेषज्ञ के पास ले कर गए. चिकित्सक ने पति को बताया कि गौरी पोस्टपार्टम साइकोसिस नामक रोग से पीडि़त है, जो पोस्टपार्टम डिप्रेशन का वीभत्स रूप है. ऐसी मरीज कई बार आत्महत्या की कोशिश भी कर सकती है. इतना ही नहीं, कई बार ऐसी मरीज अपने नवजात शिशु को भी शारीरिक क्षति पहुंच सकती है. इसलिए बिना देर किए ऐसी मरीज को इलाज के लिए किसी योग्य चिकित्सक के पास ले जाना चाहिए.

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रोग के कारण

प्रश्न उठता है कि प्रसव के बाद होने वाले इस तरह के मानसिक रोग के क्या कारण हैं? क्यों प्रसव के बाद कोई महिला इस तरह का व्यवहार करने लगती है? प्रसूति विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसा गर्भधारण के बाद शरीर में पाए जाने वाले कई तरह के हरमोंस के स्तर में परिवर्तन की वजह से होता है. इस कारण कोई भी महिला प्रसव के बाद कुछ महीनों में ऐसा व्यवहार कर सकती है. बच्चा किसी भी तरह का हो सकता है- जीवित, स्वस्थ या फिर मृत. इस तरह के लक्षण गर्भपात के बाद भी देखने को मिल सकते हैं, क्योंकि इस स्थिति में भी शरीर में हारमोंस में बदलाव होते हैं.

इस के अतिरिक्त कई और दूसरे कारण भी हैं. वे महिलाएं, जो प्रसव के पहले से ही डिप्रेशन नामक रोग की शिकार होती हैं या फिर पोस्टपार्टम डिप्रेशन की शिकार पहले भी हो चुकी होती हैं, उन्हें भी दोबारा इस के होने की संभावना ज्यादा होती है. यदि परिवार, पति या दोस्तों का सपोर्ट नहीं मिलता है तो भी वे इस तरह की परेशानियों की शिकार हो सकती हैं. ऐसा देखा गया है कि जिन महिलाओं का परिवार के साथ मधुर संबंध नहीं होता या फिर दांपत्य जीवन में हमेशा तनाव रहता है, वे अकसर इस तरह की परेशानियों से घिर जाती हैं यानी परिवार तथा घरेलू वातावरण का प्रभाव गर्भावस्था, प्रसव के समय या फिर प्रसवोपरांत तो पड़ता ही है.

शीघ्र इलाज कराएं

ऐसा नहीं है कि इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है या फिर यह भूतप्रेत के कुप्रभाव का प्रतिफल है. इस का इलाज संभव है. इस के लिए चिकित्सक डिप्रेशन को दूर करने वाली दवा तो देते ही हैं, काउंसलिंग की भी सहायता ली जाती है. कई मरीजों को जब परेशानियां ज्यादा होने लगती हैं तो उन्हें काउंसलिंग और दवा दोनों की जरूरत पड़ती है. वे महिलाएं, जो स्तनपान कराती हैं, उन्हें ऐसी एंटीडिप्रेसिव दवा दी जाती है, जो सुरक्षित हो.

परिवार का सपोर्ट जरूरी

ऐसी स्थिति में पति का सहयोग बहुत जरूरी है. इस के बिना मरीज की समस्या दिनोंदिन बढ़ती जाएगी और समय रहते इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो आगे चल कर वह पागलपन की भी शिकार हो सकती है. मरीज को कभी नहीं लगना चाहिए कि परिवार के लोग उस की उपेक्षा कर रहे हैं. कई बार अपेक्षित संतान नहीं होने यानी लड़के की चाह में लड़की हो जाने के कारण भी पति या परिवार के दूसरे सदस्य प्रसूता के साथ ठीक व्यवहार नहीं करते. इस कारण भी महिलाएं इस तरह की समस्या की गिरफ्त में आ जाती हैं. इसलिए जरूरी है कि ऐसी स्थिति आने पर मरीज के साथ घर के लोगों का व्यवहार सामान्य तथा सौहार्दपूर्ण हो.

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मरीज और बच्चे को कभी भी एकांत में नहीं छोड़ना चाहिए. मरीज को न तो उदास होने का मौका देना चाहिए और न ही ऊलजलूल सोचने का. एकांत मिलने के साथ ही ऐसे मरीजों के मन में कई तरह के अच्छेबुरे विचार आते हैं. यदि मरीज अपनी संतान के प्रति उपेक्षापूर्ण व्यवहार अपनाती है, उस की उचित देखभाल करने में कोताही बरतती है तो बच्चे की देखभाल के लिए अलग से कोई व्यवस्था करनी चाहिए. समय पर दूध पिलाने, मलमूत्र साफ करने, नहलानेधुलाने आदि कार्यों के लिए बच्चे को घर की बुजुर्ग महिलाओं के सिपुर्द कर देना चाहिए.

सही इलाज से मरीज अपनेआप बेहतर महसूस करने लगती है. मामूली लक्षणों की स्थिति में मरीज को दवा की जरूरत नहीं होती है. सिर्फ काउंसलिंग के द्वारा ही मरीज को कुछ दिनों में ही फायदा होने लगता है. धीरेधीरे भूख लगने लगती है, चेहरे से मायूसी, तनाव, उल झन और अवसाद के लक्षण गायब होने लगते हैं. शारीरिक स्फूर्ति लौटने लगती है. मन में बुरे विचार आने बंद होने लगते हैं. कई बार मरीज को चिकित्सक कुछ व्यायाम तथा योग करने की भी सलाह देते हैं ताकि तनाव दूर हो और रात को अच्छी नींद आने से मरीज अपनेआप को हलका महसूस करे.

जीवनज्योति- भाग 1: क्या पूरा हुआ ज्योति का आई.पी.एस. बनने का सपना

लेखक- मनोज सिन्हा

‘‘इस घर में रुपए के पेड़ नहीं लगा रखे हैं मैं ने कि जब चाहूं नोट तोड़तोड़ कर तुम सब की हर इच्छा पूरी करता रहूं. जूतियों के नीचे दब कर मुनीमगीरी करता हूं उस सेठ की बारह घंटे, तब जा कर एक दिन का अनाज इस परिवार के पेट में डाल पाता हूं.

वर्षों से दरक रही किसी वेदना का बांध अचानक आज ध्वस्त हो गया था. चोट खाए सिंह की भांति दहाड़ उठे थे मुंशी रामप्यारे सहाय.

आंखों से चिंगारियां बरसने लगी थीं. मन के अंदर फूट पड़े ज्वालामुखी का खौलता लावा शब्दों के रूप में बाहर आ कर सब को झुलसानेजलाने लगा था.

सुमित्रा इस घटना से हतप्रभ थी. उस ने आत्मीयता के शीतल जल से इस धधकती ज्वाला को शांत करने की भरसक कोशिश की थी.

‘‘सब जानते हैं जी और समझते भी हैं कि किस मुसीबत से आप इस घर का…’’

‘‘खाक समझते हैं. एक साधारण मुनीम की औलाद होने का उन्हें जरा भी एहसास है? नखरे तो ऐसे हैं इन के जैसे इन का बाप मैं नहीं, कोई कलक्टर, गवर्नर है.’’

‘‘छि:छि:, अब इन बच्चों के साथसाथ आप मुझे भी गाली दे रहे हैं जी, कहां जाएंगे ये? अब आप से अपनी जरूरतों को नहीं कहेंगे तो क्या दूसरे से कहेंगे?’’

‘‘तो क्या करूं मैं? चोरी करूं, डाका डालूं या आत्महत्या कर लूं इन की जरूरतों की खातिर…और यह सब तुम्हारी शह का नतीजा है. बच्चे अच्छे स्कूल- कालिज में पढ़ेंगे, बड़े आदमी बनेंगे, सिर ऊंचा कर के जिएंगे? कुछ नहीं करेंगे ये तीनों. बस, मुझे बेमौत मारेंगे.’’

एक पल को पसर आए सन्नाटे के बाद दूसरे ही पल यह बवंडर ज्योति की ओर बढ़ चला था, ‘‘और तू, किस ने कहा था तुझ से हर महीने फार्म भरने, परीक्षा देने के नाम पर पैसे उड़ाने को? कभी रिटेन, कभी पीटी तो कभी इंटरव्यू, हर महीने मेमसाहब की सवारी तैयार. कभी दिल्ली, कभी पटना, कभी कोलकाता…’’

तिरस्कार का यह अपदंश बिलकुल नया था ज्योति के लिए. बाबूजी का यह विकराल रूप उसे पहले कभी देखने को नहीं मिला था. बड़ीबड़ी आंखों में पानी की एक परत उमड़ आई थी जिसे पलकों पर ही संभाल लिया था ज्योति ने.

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भावनाओं की यह उमड़घुमड़ सुमित्रा की नजरों से छिप न सकी थी. कचोट उठा था मां का दिल, ‘‘देखिए, जो कहना है आप मुझ से कहिए न…ज्योति अब बच्ची नहीं रही, बड़ी हो गई है. एक जवान बेटी को भला इस तरह दुत्कारना…’’

‘‘हां… हां, जवान हो गई है तभी तो कह रहा हूं कि क्यों बोझ बन कर जिंदा है ये मेरी जिंदगी में. किसी नदी, तालाब में जा कर डूब क्यों नहीं मरती. कम से कम एक दायित्व से तो मुझे मुक्ति मिलती.’’

सर्वस्व झनझना उठा था ज्योति का. आहत भावनाएं इस से पहले कि रुदन बन कर बाहर आतीं, दुपट्टे से भींच कर दबा दिया था उस ने अपने मुंह को.

स्वयं को रोकतेथामते सुमित्रा भी बिफर उठी थीं, ‘‘कुछ होश भी है आप को?’’

‘‘होश है, तभी तो बोल रहा हूं कि आज अगर इस की जगह घर में बेटा होता तो कमा कर लाता. परिवार का सहारा होता. मगर यह लड़की तो अभिशाप है, एक अभिशाप.’’

‘‘हद करते हैं आप भी, अगर यह लड़की है तो क्या यह इस का दोष है?’’

‘‘हां, यह लड़की है. यही दोष है इस का. मुझ गरीब की कुटिया में सांसें ले कर इतनी जल्दी जवान हो गई, यह दोष है इस का. और इस घर में 3-3 लड़कियां ही पैदा कीं तुम ने. यह दोष है तुम्हारा,’’ कहतेकहते मुंशीजी का स्वर रुंधने लगा था.

‘‘आज पता नहीं क्या हो गया है आप को. आप जैसा धैर्यवान और समझदार इनसान भी ऐसी घटिया बात सोच सकता है. इस मानसिकता के साथ बोल सकता है, मैं ने तो कभी कल्पना तक नहीं की थी.’’

‘‘तो मैं ने कब कल्पना की थी कि सीमित आय की जरूरतें इतनी असीमित हो जाएंगी. तुम्हीं बताओ कि खानेदाने के लिए अपनी पगार खर्च करूं या पेट पर पत्थर बांध कर इस के ब्याह के लिए रोकड़े जमा करूं. उस पर से इस लड़की के यह चोंचले कि बड़ा आफीसर ही बनना है. कंगले की ड्योढ़ी पर बैठ कर आसमान झुकाने चली है. जब तक जिंदा रहेगी इस बाप की छाती पर बैठ कर मूंग ही तो दलेगी…’’ और इसी के साथ फफक पड़े थे स्वयं मुंशीजी भी.

मुंशीजी की यह हुंकार आर्तनाद बन इस कमरे में पसर गई थी और वहां खड़ा हर व्यक्ति सन्नाटे की चादर को ओढ़ कर खुद को इस हादसे का कारण मान बैठा था.

ज्योति इस बार दिल्ली से सिविल सर्विसेज का साक्षात्कार दे आई थी. संतुष्ट तो थी ही इस परीक्षा से, मगर उस के भरोसे ही बैठ जाना, संघर्षों की इतिश्री करना न तो बुद्धिमानी थी न ही उस की मानसिकता. बैंक प्रोबेशनरी आफीसर का फार्म भरना था, कल 150 रुपए का ड्राफ्ट बनवाना है उसे, बस, इतना ही तो मां से बाबूजी को कहलवाया था कि वह हत्थे से उखड़ गए थे. क्याक्या नहीं कह डाला उन्होंने.

नीतू और पिंकी ने भी बाबूजी का ऐसा रौद्र रूप पहले कभी नहीं देखा था. दोनों अब तक भीतर ही भीतर कांप रही थीं.

इस हादसे ने ज्योति की हर आकांक्षा, हर उम्मीद का गला घोंट दिया था. सकते का आवरण ढीला पड़ते ही मनोबल और धैर्य भी साथ छोड़ गए थे. अचानक टीसने लगा उस का अंतर्मन. सुबकती, सिसकती ज्योति एक चीत्कार के साथ रो पड़ी थी. और इन असह्य परिस्थितियों का बोझ उठाए सरपट वह अपने कमरे की ओर भागी थी.

‘‘चैन मिल गया आप को. दूर हो गया सारा पागलपन, क्याक्या नहीं कह डाला आप ने ज्योति को?

‘‘एक छोटी सी बात पर इतना बड़ा कुहराम…जवान बेटी है, इतना भी नहीं सोचा आप ने. यदि उस ने कुछ ऊंचनीच कर लिया तो कहीं मुंह दिखाने लायक भी नहीं रहेंगे हम…’’ सुमित्रा के रुंधते गले ने शब्दों का दामन छोड़ दिया था. टपकते आंसुओं को पोंछती हुई वह भी कमरे से निकल गई थी. नीतू और पिंकी भी मां के पीछेपीछे चल पड़ी थीं.

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इस कमरे में अकेले मुंशीजी ठगे से रह गए थे. एक ऐसा दावानल जिस की तपिश में झुलस कर सभी अपने उन से दूर हो गए थे. आंखें अब भी नम थीं. मुंशीजी खुद ब खुद ही बुदबुदा उठे थे, ‘ताना मारेगी, दुनिया मुझ पर थूकेगी. एक मैं ही तो बचा हूं सारी दुनिया में अकेला. सब का दोषी है ये मुंशी रामप्यारे सहाय. ढाई हजार पगार पाने वाला, 3-3 लड़कियों का गरीब, लाचार बाप.’

उधर कमरे में कुहनियों के बीच मुंह छिपा कर ज्योति रोती ही जा रही थी. मां का स्नेहिल स्पर्श भी आज उसे ममता- विहीन लग रहा था. उसे लग रहा था जैसे वह सचमुच एक लाश है, एक चेतना -शून्य देह. कोई बाहरी स्पर्श, कोई अनुभूति, कोई संवेदना, कोई सांत्वना उसे अर्थहीन लग रही थी. बस, कलेजे में रहरह कर एक हूक सी उठती थी और अविरल अश्रुधार निकल पड़ती थी.

सुमित्रा ने खूब सहलायासमझाया था उसे. वस्तुस्थिति के इस पीड़ादायक धरातल पर बाबूजी की मनोदशा विश्लेषित करती हुई सुमित्रा ने यह जताने की कोशिश की थी कि किसी भी व्यक्ति के लिए इस तरह अचानक बरस पड़ना कोई असामान्य बात नहीं थी. नीतू और पिंकी ने भी दीदी को बहलाने, गुदगुदाने, रिझाने की बहुत कोशिश की थी, मगर सब व्यर्थ.

जिज्ञासावश नीतू ने मां से एक संजीदा सा सवाल पूछ ही लिया, ‘‘मां, लड़की होना क्या सच में एक सामाजिक अभिशाप है?’’

‘‘नहीं, बेटी, इस संसार में लड़की हो कर पैदा होना बड़े सौभाग्य की बात है, गर्व की बात है. हां, ‘औरत’ जाति नहीं नीतू, ‘गरीबी’ अभिशाप है… गरीबी?’’ यह वाक्य सुमित्रा का सिर्फ उत्तर ही नहीं, बल्कि भोगा हुआ यथार्थ था.

शरद की सर्द रात. घर में एक अजीब सी खामोशी थी. नीतू और पिंकी तो गहरी नींद में थीं मगर ज्योति, सुमित्रा और मुंशीजी की बंद आंखों में शाम की घटना का असर अब तक भरा था. मुंशीजी बारबार करवट बदल रहे थे. सुमित्रा ने जानबूझ कर उन्हें छेड़ना उचित नहीं समझा था.

कहने को तो मुंशीजी सबकुछ कह गए थे मगर अब अवसादों ने उन्हें धिक्कारना शुरू कर दिया था. उन के मुंह से निकला एकएक शब्द उन्हें नागफनी के बड़ेबड़े झाड़ में तब्दील हो कर उन की आत्मा तक को छलनी कर रहा था.

मुंशीजी की आंखों के सामने ज्योति का रोताबिलखता चेहरा जितनी बार घूम जाता उतनी बार वह कलप उठते थे.

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फिल्मों की शूटिंग शुरू करने की इजाजत के लिए FWICE ने महाराष्ट्र CM से लगाई गुहार, पढ़ें खबर

कोरोना की दूसरी लहर के चलते महाराष्ट्र में पिछले दो माह से फिल्म,टीवी सीरियल,लघु फिल्मों व वेब सीरीज की शूटिंग सहित सारे काम काज बंद हैं. इससे फिल्म इंडस्ट्री को कई हजार करोड़ का नुकसान हो चुका है. डेली वेजेस वर्करों की आर्थिक हालात जरुरत से ज्यादा खराब है. पिछले माह ‘फेडरेशन आफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्पलॉइज’और फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े कई संगठनो ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर मंुबई व उसके आसपास,जहां पर कोरोना के मामले कम आ रहे हैं,वहां पर शूटिंग शुरू करने की इजाजत देने की मांग की थी. लेकिन महाराष्ट् के मुख्यमंत्री के आश्वासन के बावजूद एक जून से छूट नही मिली,बल्कि प्रतिबंध ही लगे हुए हैं.

परणिामतः फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्पलॉइज (एफडब्लूआइसीई)  और कोआर्डिनेशन कमेटी ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को एक बार फिर पत्र लिखकर मांग की है कि  इंटरटेनमेंट इंडस्ट्रीज का काम फिर से शुरू करने की वह अनुमति दें.   इस पत्र  में एफडब्लूआइसीई ने और कोआर्डिनेशन कमेटी  लिखा है कि कोरोना की दूसरी लहर ने इस साल भी फिल्म इंडस्ट्री को काफी नुकसान पहुंचाया है. महाराष्ट्र में कोरोना के बढ़ते केसेज के मद्देनजर अप्रैल 2021 के बाद से टीवी सीरियलों,फिल्म, वेब सीरीज की शूटिंग पर पाबंदी लगा दी गई थी. शूटिंग बंद होने के कारण एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री से जुड़े कई कलाकार के हाथ से उनका काम निकल गया,जबकि कई लोग हैदराबाद, गुजरात, राजस्थान जैसे दूसरे शहर चले गए. फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्पलॉइज (एफडब्लूआइसीई) ने सोमवार को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को खत लिखकर मीडिया एंड एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री को काम वापस शुरू करने,फिल्मों आदि की शूटिंग व अन्य पोस्ट प्रोडक्शन वर्क करने  की इजाजत देने का अनुरोध किया है.  इस पत्र में एफडब्लूआइसीई  के अध्यक्ष बीएन तिवारी,महासचिव अशोक दुबे, कोषाध्यक्ष गंगेश्वर लाल श्रीवास्तव, चीफ एडवाइजर अशोक पंडित और चीफ एडवाइजर शरद शेलार के हस्ताक्षर हैं.

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पत्र में एफडब्लूआइसीई ने लिखा कि उनकी तरफ से कई बार मुख्यमंत्री को इस विषय पर लिखा गया,पर मुख्यमंत्री ऑफिस ने इसका कोई जवाब नहीं दिया ना ही इसपर कोई फैसला लिया गया.  फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्प्लॉयज (एफडब्लूआइसीई) ने कहा है कि लाखों कलाकार, वर्कर और टेक्नीशीयन पिछले डेढ़ साल से बेरोजगार हैं और फिल्म इंडस्ट्री ही उनका एकमात्र कमाई का जरिया है. लॉकडाउन की वजह से कई मजदूरों की जिंदगियां प्रभावघ्ति हुई है.

एफडब्लूआइसीई  ने आगे लिखा कि महाराष्ट्र में लॉकडाउन को अगले 15 दिन के लिए बढ़ाने से कलाकारों, वर्कर्स और टेक्नशीयंस को झटका लगा है और इंडस्ट्री की इकोनॉमी पर भी असर होगा. इसकी वजह से निर्माता भी प्रभावित हुए हैं जिन्होंने अपनी निर्माणाधीन फिल्मो में पैसे लगाए और लॉकडाउन के कारण वह फिल्में रुक गयी. पत्र में  एफडब्लूआइसीई के पदाधिकारियों ने समस्या बताते हुए लिखा कि उन्हें रोज कई फोन आते हैं और सभी काम दोबारा शुरू किए जाने का अनुरोध करते हैं.

एफडब्लूआइसीई की तरफ से मुख्यमंत्री  उद्धव ठाकरे से शूटिंग का काम दोबारा शुरू किए जाने की स्पेशल इजाजत मांगी गई है. इसके साथ ही एफडब्लूआइसीई ने यह आश्वासन दिया है कि वह काम के समय कोरोना से बचाव के लिए सरकार द्वारा जारी सभी नियमों का पालन करेंगे.

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अल्पसंख्यक समुदाय के टीकाकरण पर उत्तर प्रदेश का जोर

कोरोना टीकाकरण को लेकर मुख्य मंत्री योगी आदित्यसनाथ की जनता से की गई अपील का असर मंगलवार को नजर आया. खासकर अल्पलसंख्यरक समुदाय के लोगों में टीकाकरण को लेकर काफी उत्सा ह नजर आया. लख्न ऊ के छोटे इमामबाड़े में बनाए गए कोविड टीकाकरण केन्द्रत पर सुबह से ही टीका लगवाने के लिए लम्बी् लाइन दिखाई दी. इसे पहले इस्लाकमिक सेंटर आफॅ इंडिया ईदगाह में वैक्सीीनेशन सेंटर बनाया गया है. इस मौके पर शिया धर्मगुरू मौलाना कल्बे जवाद व जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश ने टीकाकरण केन्द्रस पहुंच कर व्ययवस्थानओं का जायजा लिया. इस दौरान उन्हों ने लोगों को टीकाकरण के फायदे बताए .

यूपी में मंगलवार से विश्वो के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान की शुरूआत हुई है. इस पूरे अभियान के दौरान एक करोड़ से अधिक लोगों का टीकाकरण किया जाएगा. उत्तर प्रदेश में 18 से 44 वर्ष की आयु के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में दो-दो और शहरी क्षेत्र में तीन-तीन विशेष टीकाकरण केंद्र बनाए गए हैं. बड़े जिलों में आवश्यकता के अनुसार दो केंद्र बढ़ाने की अनुमति दी गई है. वहीं 12 वर्ष से कम आयु के बच्चों के अभिभावकों के लिए भी दो-दो विशेष टीकाकरण केंद्र बनाए गए हैं.

अल्पकसंख्यएक समुदाय में उत्साह

लखनऊ में हुसैनाबाद स्थित छोटे इमामबाड़े में कोरोना वैक्सी्नेशन के लिए बड़ा केन्द्रक बनाया गया था. सुबह से ही लोग उत्साहह के साथ टीकाकरण अभियान में शामिल हो रहे थे. इस मौके पर इमाम ए जुमा मौलाना कल्बेय जवाद ने टीकाकरण केन्द्रब पहुंच कर लोगों को टीके के फायदे बताए . उन्होंेने कहा कि कोरोना से बचाव का एक मात्र तरीका कोरोना टीका है. उन्होंोने लोगों से अपील की वह किसी भी तरह की अफवाह में न आए और अपना टीकाकरण कराए. टीकाकरण को लेकर अफवाहे फैलाने वाले मुस्लिम समुदाय के दुश्मलन है.

हुसैनाबाद निवासी शहजाद ने बताया कि सरकार ने पुराने लखनऊ में बड़ा केन्द्र बनाकर लोगों को राहत दी है. पुराने लखनऊ के लोगों को टीका लगवाने के लिए काफी दूर जाना पड़ रहा था. ऐसे में जिन लोगों के पास साधन नहीं थे, वह टीका नहीं लगवा रहे थे. सरकार छोटा इमामबाड़े में केन्द्र लगाने से लोगों को काफी राहत पहुंची है. छोटे इमामबाड़े में 18 से 44 साल के लोगों का अलग टीकाकरण किया जा रहा था जबकि 44 से ऊपर के लोगों का टीकाकरण अलग से किया जा रहा था. टीकाकरण केन्द्रं पर सेल्फीि प्वाजइंट भी बनवाया गया था. जहां पर युवाओं ने टीका लगवाने के बाद अपनी सेल्फी ली. वहीं, मौके पर मौजूद सिविल डिफेंस कर्मी लोगों के बीच सोशल डि‍स्टेंपसिंग बनाने का काम कर रहे थे.

टीकाकरण केन्द्र पर बड़े पैमाने पर मुस्लिम महिलाएं भी उपस्थित थी. जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश ने छोटा इमामबाड़ा स्थित टीकाकरण केन्द्र का निरीक्षण किया. उन्होंरने कहा कि जिला प्रशासन की ओर से आसपास के इलाकों से टीकाकरण केन्द्रे तक लाने के लिए विशेष बसों का संचालन भी किया गया था. इसमें बिल्लौसचपुरा, अकबरीगेट आदि से बसें लोगों को टीकाकरण केन्द्रे तक ला रही थी. वहीं, सरकार ने जून महीने में एक करोड़ टीके लगाकर इस संख्या को तीन करोड़ तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है.

काव्या को शादी का गिफ्ट देगी अनुपमा तो वनराज को देगी ये ताना

सीरियल ‘अनुपमा’ की कहानी इन दिनों धमाकेदार मोड़ ले रही है. जहां काव्या की शादी के सपनों पर पानी फिरता हुआ नजर आ रहा है तो वहीं अनुपमा के सामने नई चुनौतियां आने वाली हैं. इसी बीच शो के मेकर्स ने दर्शकों के लिए एक नया प्रोमो रिलीज किया है, जिसमें अनुपमा, काव्या और वनराज को उनकी नई जिंदगी की शुरुआत के लिए गिफ्ट देती नजर आ रही हैं. आइए आपको बताते हैं क्या है प्रोमो में खास…

वनराज को अनुपमा मारेगी ताना

 

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अपकमिंग एपिसोड्स की झलक दिखाते हुए अनुपमा के मेकर्स ने प्रोमो रिलीज किया है, जिसमें वनराज (Sudhanshu Pandey) काव्या की मांग भरता हुआ नजर आ रहा है. वहीं इस दौरान अनुपमा दोनों को एक तोहफा भी दे रही है. दरअसल, प्रोमो में अनुपमा, काव्या (Madalsha Sharma) को शगुन के कंगन और खानदानी जेवर, जो कि स्त्री धन की निशानी है. वह काव्या को देती नजर आ रही है. हालांकि बा इस बात से नाराज दिखाई दे रही हैं. लेकिन अनुपमा किसी की नहीं सुनती. दूसरी तरफ अनुपमा, वनराज को ताना मारते हुए काव्या संग इस रिश्ते को ईमानदारी के साथ निभाने की सलाह देती नजर आ रही है.

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काव्या ने दी थी अनुपमा को धमकी

 

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बीते एपिसोड की बात करें तो वनराज, काव्या संग शादी से पहले गायब हो गया था, जिसके बाद काव्या गुस्से में अनपुमा को फोन करके उसे उसके परिवार को जेल भेजने की धमकी देते हुए नजर आती है.वहीं अनुपमा पर हाथ उठाने की भी कोशिश करती हुई दिखती है. हालांकि अनुपमा काव्या की इस हरकत का करारा जवाब देती नजर आती है.

 

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बता दें. अपकमिंग एपिसोड में अनुपमा के नए सफर की शुरुआत होगी, जिसमें वह अकेले अपने सपनों की ओर कदम बढ़ाती हुई नजर आएगी. वहीं अब देखना ये है कि उसे अपने सपनों की मंजिल मिलेगी.

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करण मेहरा के आरोपों पर वाइफ निशा रावल ने तोड़ी चुप्पी, किए ये खुलासे

ये रिश्ता क्या कहलाता है फेम करण मेहरा और निशा रावल का मामला इन दिनों सुर्खियों में हैं. निशा रावल ने करण मेहरा पर घरेलू हिंसा का केस कर दिया था तो वहीं जमानत मिलने के बाद करण मेहरा ने अपना पक्ष सामने रखते हुए निशा और उनके भाई में पर मारपीट का आरोप लगाया था. हालांकि निशा ने अब इस मामले में अपनी चुप्पी तोड़ दी है. आइए आपको बताते हैं क्या कहती हैं निशा रावल…

मीडिया के सामने बयां किया दर्द

दरअसल, एक्ट्रेस निशा रावल ने हाल ही में अपने घर के बाहर मीडिया से बात करते हुए कहा कि करण की आज और 14 साल पहले की इमेज में कोई बदलाव नहीं आया है. चूंकि स्क्रीन और फैंस के बीच उनकी इमेज एक आदर्श लड़के की रही है तो मैंने भी कोशिश की है कि उनकी इमेज ऐसी ही बनी रही. क्योंकि इससे उनके करियर पर असर पड़ता. वह हर बार गलती करते और कहते थे कि ऐसी गलती नहीं होगी.

 

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अब्यूज करते हैं करण मेहरा

अपने रिश्ते को लेकर निशा आगे कहती हैं कि मैंने करण से इस रिश्ते को खत्म करने के लिए कहा था, जिसके लिए वह राजी हो गए थे. इसके लिए हमने अपने अपने वकील से भी बात कर ली थी. वहीं चंडीगढ़ से आने के बाद क्वांरटीन होने के बाद सोमवार रात को हमारी बहस हुई. वह हमेशा मुझे फिजिकली, मेंटली और इमोशनली अब्यूज करते रहे हैं और अब लगता है कि मुझे स्टैंड लेना चाहिए था, जिसके बाद सोमवार रात कहा कि मुझे तुम्हारी शक्ल पसंद नहीं है मैं तुम्हारे साथ नहीं रहना चाहता. मेरे भाई पिछले चार दिनों से रिश्ते को ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने मेरी सारी ज्वैलरी ले ली. रही बात एलि‍मनी की, मैंने उनसे यही कहा कि आप पर भी भार न आए, हमारे ऊपर भार न आए.

 

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बेटे के लिए उठाई आवाज

घरेलू हिंसा के बारे में निशा कहती हैं कि यह पहली बार नहीं है कि करण ने पीटा है. एक्टर होने के कारण वह जानते हैं कि कौन से रूम में कैमरा और कहां नजर नहीं आना चाहिए. कितनी बार मेरे आंखों में काले घेरे पड़े हैं और चोंटे आई हैं, जिसका हिसाब नहीं है. मैंने उन्हें नहीं छोड़ा, क्योंकि मैं उनसे प्यार करती थी और आज भी मैं उनसे प्यार करती हूं, तभी तो उनका अफेयर होने के बावजूद मैं थप्पड़ खा रही हूं. मैं अपने बेटे काविश के लिए बुरा उदाहरण नहीं बनना चाहती इसीलिए आज यहां आई हूं. मैं अपने बेटे के लिए करण जैसा पिता नहीं चाहती. कल उसने मुझे मारा और मेरा गला दबाने की कोशिश की.

 

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पति के आरोपों का दिया जवाब

 

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करण के बाइपोलर वाले आरोप पर निशा कहती हैं, करण अपने बचाव के लिए कहेंगे ही. यह मेरे लिए शॉकिंग नहीं है. मैं अपना सिर क्यों फोडूंगी, मैं एक एक्टर हूं अपने चेहरे से मुझे प्यार है. मेरा एक बच्चा है, मैं क्यों रिस्क लूंगी. मुझे बाइपॉलर है.  लेकिन मैं पागल नहीं हूं. 2014 सितंबर में मैनें पांच महीने का बच्चा खोया था. इसी बीच हस्बैंड आपको मार रहे हैं. तो मैं डॉक्टर से जाकर मिली, मेंटल हेल्थ से अवेयरनेस बहुत जरूरी है. मैं करण की वजह से डिप्रेशन में चली गई थी.

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बच्चे की कस्टडी लेंगी निशा

 

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बेटे की कस्टडी को लेकर निशा कहती हैं कि मैं अपने बच्चे की जिम्मेदारी लूंगी. मुझे नहीं लगता कि करण काविश की कस्टडी में इंट्रेस्टेड हैं. मैंने जब पूछा कि अगर काविश तुम्हारे पास रहता है, तो क्या करोगे. उन्होंने सीधा जवाब दिया कि शूटिंग के वक्त इसे पापा-मम्मी के पास दिल्ली छोड़कर आऊंगा. आप ही बताएं, हमारी तो बच्चे की कस्टडी को लेकर कोई बहस ही नहीं हुई. वह काविश के साथ रहना चाहते ही नहीं हैं.

बता दें बीते दिन जमानत मिलने के बाद निशा और उनके भाई पर मारपीट का आरोप लगाया है, वहीं दूसरी तरफ निशा के सपोर्ट में उनके दोस्त भी खड़े हो गए हैं. अब देखना है कि करण के सपोर्ट में कौन खड़ा होता हुआ नजर आता है.

लौकडाउन- भाग 2 : जब बिछड़े प्यार को मिलवाया तपेश के दोस्त ने

लेखिका- सावित्री रानी

सभी दोस्त वापस होस्टल चले गए.

सुबह जब पीयूष की आंख खुली तो देखा कि तपेश भी वहीं बराबर वाले बैड पर सो रहा था.

‘‘अरे, तू यहां क्या कर रहा है? तु  झे तो रात भर पढ़ना था न?’’ पीयूष ने हैरानी से पूछा

‘‘अरे नहीं यार. सोना ही था, तो यहीं सो गया.’’

तभी कंपाउंडर और डाक्टर दोनों साथ में दाखिल हुए. कंपाउंडर डाक्टर से बोला, ‘‘सौरी डाक्टर साहब रात को नींद लग गई तो

हर घंटे पर बुखार चैक नहीं कर सका, लेकिन मैं ने इंजैक्शन दे दिया था.’’

डाक्टर ने पीयूष के बैड साइड से चार्ट उठाते हुए कहा, ‘‘लेकिन चार्ट में तो हर घंटे की रीडिंग है.’’

इस के साथ ही पीयूष की निगाहें तपेश की ओर घूमीं तो वह आंखें मिचका कर मुसकरा दिया.

थोड़ी देर में पीयूष की मां का फोन आया, ‘‘बेटा अब कैसी तबीयत है?’’

‘‘ठीक है मां.’’

‘‘तपेश तेरे पास ही था न?’’

‘‘हां मां, लेकिन आप को कैसे पता?’’

‘‘मैं ने ही उसे तेरा ध्यान रखने को बोला था, जब वह हमारे घर आया था. बहुत प्यारा लड़का है. आज तु  झे भी बोल रही हूं. हमेशा उस का ध्यान रखना. प्रौब्लम में उसे कभी अकेला मत छोड़ना.’’

‘‘कभी नहीं मां.’’

वक्त की रफ्तार यूनिवर्सिटी में कुछ ज्यादा ही तेज होती है. 4 साल पलक   झपकते ही बीत गये. कालेज के इन 4 सालों ने सभी दोस्तों को इंजीनियरिंग की डिगरी दे कर उन के पंखों को नई उड़ान के लिए मजबूत कर दिया था और उन्हें एक नए आकाश पर अपने नाम लिखने के लिए खुला छोड़ दिया था.

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पीयूष और रिया की खूबसूरत जोड़ी के प्यार का पौधा भी अब तक एक विशाल वृक्ष का रूप ले चुका था.

फिर हरकोई अपने कैरियर के चलते कहांकहां जा बसा, हिसाब रखना भी मुश्किल हो गया. इन की उड़ान देश के हर शहर से ले कर विदेशों तक उड़ चली थी.

धीरेधीरे सब की शादियां होने लगीं. तपेश की शादी एक मध्यवर्गीय  परिवार की पढ़ीलिखी लड़की शालू से हो गई. जाहिर है अरेंज्ड मैरिज थी, लेकिन दोनों की अच्छी निभ रही थी. 1 साल बाद शालू ने बेटे को जन्म दिया तो ऐसा लगा कि घर खुशियों से भर गया.

उधर पीयूष और रिया दोनों को भी अच्छी नौकरी मिल गई थीं. लेकिन वे दोनों अभी शादी नहीं करना चाहते थे. कुछ और दिन अपनी बैचलर लाइफ ऐंजौय करना चाहते थे. कभीकभी तपेश को लगता कि पीयूष यहां भी बाजी मार गया. जहां वह घरगृहस्थी की जिम्मेदारियां निभा रहा था वहीं पीयूष अभी भी बैचलर लाइफ की मस्ती ले रहा था.

लेकिन अपने प्यारे से बेटे को गोद में ले कर जब तपेश उसे प्यार करता तो उस के सामने दुनिया की हर नेमत छोटी लगती थी. जब उस ने अपना पहला शब्द ‘पप्पा’ बोला तो तपेश उसे गोद में उठा कर खुशी से   झूम उठा और जैसे खुद से ही बोला कि इस एक पल पर सारी मस्तियां वारी जा सकती हैं.

अगले साल बड़ी धूमधाम से पीयूष और रिया की भी शादी हो गई. शादी के कुछ दिन बाद ही पीयूष को किसी असाइनमैंट के लिए विदेश जाना पड़ा. फिर पता नहीं क्यों और कैसे, लेकिन वापस आते ही रिया ने उस के सामने तलाक की मांग रख दी.

पीयूष का प्यार आज तक उस की किसी मांग को नकार नहीं सका था लिहाजा, इस मांग को भी उस की खुशी मान कर न नहीं कर पाया. म्युचुअल कंसर्न से तलाक हो गया. यह शादी उतने दिन भी नहीं चली जितने दिन उस की तैयारियां चली थीं. गलती किस की थी या क्या थी, इन सब बातों की फैसले के बाद कोई अहमियत नहीं रह जाती. कुछ दिन बाद उड़ती सी खबर सुनी कि रिया ने उस से शादी कर ली, जिस के लिए उस ने पीयूष को छोड़ा था.

इधर तपेश की पत्नी शालू ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया. परिवार में इस इजाफे के साथ ही उन का परिवार भी पूरा हो गया और हर अरमान भी.

उधर पीयूष का तलाक हुए काफी वक्त बीत चुका था. सभी के सम  झानेबु  झाने के बाद भी फिर उस का मन किसी की ओर नहीं   झुका. रिया से टूटे हुए रिश्ते ने उस को इस कद्र तोड़ दिया कि फिर वह किसी से जुड़ ही नहीं सका.

अब तपेश को साफ दिखाई दे रहा था कि पीयूष के नंबर कहां कटे हैं. अब वह सौ नंबर वाली फिलौसफी उसे पूरी तरह कन्विनसिंग लग रही थी.

पीयूष की उम्र पैसा कमाने और दोस्तों से मिलनेमिलाने में ही बीत रही थी. उस का मिलनसार व्यवहार और गाने का शौक हर महफिल में जान डाल देता था. अपने हर दोस्त के घर उस का स्वागत प्यार से होता था. हर परिवार में उस के दिए गए तोहफे न सिर्फ यूजर मैनुअल के साथ आते, बल्कि इस इंस्ट्रक्शन के साथ भी आते कि घर में उन को कहां रखना है.

अपने कलात्मक सु  झाव और मस्तमौला अंदाज के कारण वह दोस्तों की पत्नियों के बीच भी उतना ही पौपुलर था जितना दोस्तों के बीच. दुनिया के न जाने कितने देशों में अपने काम के सिलसिले में पीयूष का जाना हुआ, लेकिन हर बार अपने नीड़ में पंछी अकेला ही लौटा.

अब 45 साल की उम्र में गुरुग्राम के एक लग्जरी अपार्टमैंट में वह अकेला रह रहा था.

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सारी रात तपेश इन्हीं यादों में डूबतातैरता रहा. तभी सूरज की एक किरण ने उस के बैडरूम की खिड़की पर दस्तक दी. शालू की आंख खुली तो वह तपेश की ओर देख कर बोली, ‘‘अरे आज तो बड़ी जल्दी उठ गए.’’

‘‘नहीं, असल में मैं सोया ही नहीं,’’ कह कर उस ने शालू को पीयूष के बारे में सब बताया.

‘‘उफ, सो सैड…’’ तो चलो फिर हम अस्पताल चलते हैं.

‘‘नहीं, तुम घर पर बच्चों के पास रुको, मैं जाता हूं.’’

तपेश तैयार हो कर वक्त से कुछ पहले ही अस्पताल पहुंच गया और आईसीयू की विंडो से पीयूष को देखता रहा. डाक्टर ने उसे बताया, बात कर के उसे पता चला कि रात को करीब 1 बजे उसे अस्पताल लाया गया था. हार्टअटैक सीवियर था, लेकिन कुदरत का शुक्र है कि समय पर सहायता मिल गई. अब स्थिति काबू में है. बाकी अपडेट्स शाम को दे पाऊंगा,’’ कह कर डाक्टर जल्दी से चला गया.

तपेश पूछता ही रह गया. अरे, लेकिन डाक्टर उसे अस्पताल लाया कौन था?

तभी उस ने देखा कि एक औरत उसी डाक्टर को आवाज लगाती हुई आई और उस  से पीयूष के बारे में पूछताछ करने लगी. तपेश हैरानी से उस की ओर देख रहा था. वह करीब 35-40 साल की खूबसूरत औरत थी, जो इंडियन तो नहीं थी. वह फ्रैंच एकसैंट में इंग्लिश बोल रही थी, उस से साफ जाहिर था कि वह किसी इंग्लिश स्पीकिंग देश से भी नहीं है.

पहनावे से तो वह काफी कुछ आजकल की मौडर्न औरतों जैसी ही लग रही थी, लेकिन नैननक्श से कुछकुछ अरबी लग रही थी. लेकिन उस की फ्रैंच एकसैंट में इंग्लिश सुन कर तपेश को लगा कि शायद वह लैबनान या ईजिप्ट से हो सकती है.

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आप भी खूबसूरत हैं

प्रतिभा उस समय 22 साल की थी और मैनेजमेंट की पढ़ाई कर रही थी. उसी कॉलेज का बेहद आकर्षक लड़का अनुराग अक्सर प्रतिभा के आसपास मंडराता रहता. प्रतिभा खुद काफी साधारण शक्ल सूरत वाली सांवली सी लड़की थी जो एक औसत मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती थी. जबकि अनुराग बहुत बड़े घर का इकलौता बेटा था. अनुराग ने कई बार प्रतिभा को एहसास दिलाया कि वह उस से बेहद प्यार करता है. प्रतिभा को समझ में नहीं आता कि आखिर अनुराग जैसा हैंडसम लड़का उस की जैसी साधारण सी लड़की को क्यों पसंद करता है.

एक दिन उस ने अपनी यह शंका अनुराग के आगे जाहिर की तो वह हंसता हुआ बोला,” प्रतिभा तुम्हारी यह जो आंखें हैं न, बहुत गहराई है इन में. ऐसा लगता है जैसे बहुत कुछ छिपा हुआ है इन में. मेरा दिल करता है मैं इन आँखों में डूब जाऊं और फिर तुम्हारा यह जो लेखन है, शब्दों को इतनी सहजता से पिरोती हो, यह तुम्हारे दिल की पवित्रता और खूबसूरती को दर्शाता है. तुम्हारा व्यक्तित्व दूसरों से हट कर है. यही मुझे अपनी तरफ खींचता है. ”

प्रतिभा के लिए अनुराग के मुंह से अपने बारे में यह सब सुनना बेहद सुखद था. मगर कहीं न कहीं प्रतिभा को इस बात का डर अब भी था कि क्या सच में अनुराग के मन में उस के लिए यह प्यार हमेशा ऐसा ही बना रहेगा या कभी किसी खूबसूरत लड़की से मिल कर वह उस की तरफ आकर्षित हो जाएगा. एक हीनभावना या यों कहिए कि खुद को आकर्षक न मानने की वजह से वह पूरे दिल से अनुराग को स्वीकार नहीं कर पा रही थी और उस से दूर दूर भाग रही थी.

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इस तरह की बातें अक्सर हमारी जिंदगी में देखने को मिलती हैं जब हम अपनी ही हीनभावना में फंस कर कुछ अच्छा पाने की उम्मीद खो बैठते हैं. दरअसल बचपन से लड़कियों के मन में यह बात भर दी जाती है कि उस के लिए सुन्दर दिखना कितना जरूरी है. उस के अबोध मन को समझाया जाता है कि सुन्दर लड़कियों को ही राजकुमार मिलते हैं. बदसूरत लड़कियों को कोई पसंद नहीं करता. उन की शादी होने में भी बहुत परेशानी होती है.

36 साल की प्रिया गोस्वामी अपना बचपन याद करते हुए कहती हैं,” जब में छोटी थी तो अभी से ज्यादा सांवली थी. दुबलीपतली भी थी और नाकनक्स भी बहुत साधारण थे. मेरे विपरीत मेरी बहन दूध सी गोरी और चपल सयानी थी. दिखने में बहुत प्यारी थी. पापा उसे शहजादी पुकारा करते. हम दोनों बहनों के लिए नए कपड़े आते तो वह उन्हें पहन कर खिल जाती. पापा तारीफ़ करते और वह उछलती हुई मोहल्ले में सब को दिखाने भाग जाती जब कि मैं घर में घुसी रहती. क्योंकि कोई मेरी तारीफ नहीं करता. बड़ी होने के बाद भी मेरे अंदर हीनभावना बनी रही. मैं ने पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगाया. खाली समय में पेंटिंग किया करती. लोग मेरी पेंटिंग की तारीफ करते. मेरी पेंटिंगें काफी महंगी कीमत में बिकने लगीं. इधर मैं ने पीसीएस भी कम्पीट कर लिया. अब घर में हर कोई मेरी तारीफ करता है. मेरे स्वभाव, काबिलियत और हुनर की हर जगह चर्चा होती है. लोगों ने मेरी आंतरिक खूबसूरती को पहचाना और अब मुझे कोई शिकायत नहीं.”

यह सच है कि हम जैसे हैं हमें खुद को उसी रूप में स्वीकार करना चाहिए. अपने मन में कोई ग्लानि या हीनभावना नहीं रखनी चाहिए. खुश और संतुष्ट रहना चाहिए. अपनी काबिलियत बढ़ानी चाहिए. आत्मविश्वास और सकारात्मक सोच रखनी चाहिए. इस से चेहरे पर एक तेज और चमक आती है और आप खूबसूरत दिखती हैं. साथ ही आप को हमेशा अपनी फिटनेस का ख़याल रखना चाहिए. इस से आप का फिगर भी मेन्टेन रहेगा. मातापिता को भी हमेशा अपनी बच्ची का हौसला बढ़ाना चाहिए.

अक्सर हम यह देख कर चकित रह जाते हैं कि किसी बेमेल जोड़ी में बेहद प्यार है. दरअसल प्यार सिर्फ सूरत देख कर नहीं होता. ऐसी बहुत सी बातें हैं जो सामने वाले को अट्रैक्ट कर सकती हैं. भले ही आप को लगता है कि आप खूबसूरत नहीं या आप अट्रैक्टिव नहीं. मगर कहीं न कहीं कुछ ऐसी चीजें होती हैं जो हम खुद भी नहीं समझ पाते कि हमारे अंदर यह कितना खूबसूरत है.

खूबसूरती के मायने

खूबसूरती दो तरह की होती है. एक होती है बाहरी खूबसूरती यानी आप का रंगरूप. आप खूबसूरत कही जाएंगी यदि आप गोरी हैं, आप के लंबे काले बाल हैं, बड़ीबड़ी खूबसूरत आंखें हैं, आप का फिगर बिलकुल परफेक्ट है, आप के बोलने का अंदाज खूबसूरत है, आवाज मधुर है और इंग्लिश फ़्लूएंट है. आप की चाल में और बातचीत में आत्मविश्वास झलकता है. यह सब चीजें बाहरी रूप से किसी को भी एक नजर में आकर्षित कर सकती है. सामान्यतया लोग इस बाहरी खूबसूरती को ही वास्तविक सुंदरता समझते हैं.

मगर वास्तव में देखा जाए तो बाहरी खूबसूरती के साथसाथ एक और खूबसूरती होती है और वह है आंतरिक खूबसूरती. आप का दिल खूबसूरत हो, आप के कर्म सुंदर हो, आप की आंखों में गहराई हो, बातों में एक आकर्षण हो, आप के बोलने का लहजा भले ही बहुत खूबसूरत न हो मगर आप जो बोल रही हैं उस बात मे या उन शब्दों में एक आकर्षण होना चाहिए. आप की सोच, आप के विचार, किसी चीज को समझने की आप की शक्ति, किसी बात या किसी चीज को ले कर आप का नज़रिया, ये सब बातें किसी को आकर्षक बनाने में बहुत मायने रखती है.

आप का हुनर आप को खूबसूरत बनाता है

इसी तरह कई लोगों में कुछ खास गुण होते हैं, कुछ ऐसा हुनर होता है जो उन को खास बनाता है. जैसे कोई लेखन करता है, शब्दों के खूबसूरत जाल बुन कर नई रचनाओं को जन्म देता है, कोई खूबसूरत पेंटिंग बनाता है, किसी की आवाज बहुत मधुर होती है और वह बहुत सुरीला गाता है, कोई डांस करने में माहिर होता है, कोई अदभुत कलाकृतियां या मूर्तियां बनाने में माहिर हो सकता है. कोई हाथ के काम करने या कढ़ाईसिलाई में माहिर होता है. कुछ लोगों में आदमी को पहचानने की समझ होती है. ये खूबियां आप को खूबसूरत बनाती हैं.

स्वभाव भी बनाता है खूबसूरत

यदि आप मिलनसार हैं, दूसरों को समझती हैं, किसी से आप का झगड़ा नहीं होता, आप सब के साथ मीठी बातें बोलती हैं, मिलजुल कर रहना जानती हैं तो ये सारी खूबियां आप को दूसरों की नजरों में अट्रैक्टिव बनाती हैं. आप लोगों को तब भी आकर्षक लग सकती हैं जब वे आप के साथ कंफर्टेबल फील करते हैं. आप उन के कहने से पहले उन के मन की बात समझ लेती हैं. उन के लिए हर समय मदद को तैयार रहती हैं. बिना बोले भी दूसरों की मदद करती हैं. दूसरों की जिंदगी में खुशिया लाती हैं. चेहरे पर मुस्कान सजाती हैं. माहौल में रंग भर देती हैं. आप एक फ्रेंडली बिहेवियर रखना जानती हैं. आप उन के दुःख से दुखी और सुख से सुखी होती हैं.

अगर आप के अंदर यह क्वालिटी है कि कोई इंसान कितना भी परेशान या उदास क्यों न हो, आप उसे हंसा सकें, उस के मन में खुशी पैदा कर सकें तो यह स्वभाव आप को खूबसूरत बनाता है. अगर आप एक ईजी गोइंग लेडी हैं, कोई भी बात बहुत सोचसमझ कर कर कहती हैं, ऐसा नहीं है कि जो मन में आया बोल दिया, दूसरे को कंफर्टेबल फील करा सकती हैं , कॉम्प्लिकेटेड नहीं है, आप के अंदर सरलता है तो यह भी आप की एक बहुत बड़ी क्वालिटी है. इसे आप खुद महसूस नहीं कर सकती पर सामने वाला यह बात महसूस कर पाता है. वह आप की खूबसूरती को पहचान पाता है.

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मन की सुंदरता

इसी तरह यदि आप बड़ों को पूरा सम्मान देती हैं और सब के साथ विनम्रता से पेश आती हैं, अपने वचन की पक्की हैं, सहनशील हैं मगर कभी अन्याय नहीं सहतीं. भले ही आप इन खूबियों को महत्वपूर्ण न मानें मगर सामने वाले को आप के मन की यह सुंदरता आकर्षित कर सकती है.

यदि आप आशावादी हैं, सकारात्मक सोच रखती हैं, कैसी भी परिस्थिति आ जाए अपने चेहरे से हंसी गायब नहीं होने देती और यही हुनर दूसरों को सिखाती हैं तो आप के साथ रहने वाले व्यक्ति खुद भी पॉजिटिव एनर्जी से भर जाते है. यह आप के व्यक्तित्व की एक बहुत खास विशेषता है. आप की इस खूबी की वजह से लोग आप के प्रति आकर्षित होंगे.

इसलिए कभी यह न सोचे कि बस जो बाहरी खूबसूरती है वही महत्वपूर्ण है बल्कि अपनी आंतरिक खूबसूरती को पहचानिये. आप के स्वभाव की खूबसूरती, सहजता, आप का आत्मविश्वास और आप के अंदर की खूबियां किसी को आकर्षित करने की बहुत बड़ी वजह हो सकती हैं.

खूबसूरत दिखने के ये अजबगजब प्रयास ( बॉक्स मैटर )

कई जगह महिलाएं खूबसूरत दिखने के लिए कुछ अजीबअजीब से तरीके भी आजमाती हैं;

1. महिलाओं की लंबी गर्दन सुंदरता की निशानी

म्यांमार से भाग कर थाईलैंड बसने वाले कयान लाहवी कबीले की महिलाएं अपनी गर्दन में पीतल के मोटे छल्‍ले पहनती हैं जिस से गर्दन लंबी हो सकें. इस समाज में लंबी गर्दन होने का मतलब खूबसूरत और आकर्षक होता है. 5 साल की उम्र से लड़कियों को ये छल्ले पहना दिए जाते हैं. इस का वजन 10 किलो तक होता है. जैसेजैसे इन की उम्र बढ़ती है गर्दन के छल्‍लों की संख्या भी बढ़ने लगती है. ये औरतें थाईलैंड आने वाले पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं.

2. ईरान में सर्जिकल नाक

लम्बी नाक खूबसूरती में अहम् भूमिका निभाती है मगर इस के पीछे पागल हो जाना सामान्य बात नहीं. ईरान में इसे फैशन कहा जाता है. यहां के लोग सीधी नाक के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं. सीधी नाक को यहां के लोग खूबसूरत ही नहीं बल्कि समाजिक प्रतिष्ठा को बढ़ाने वाला भी मानते हैं. वहां लगभग 100 में 20 महिलाएं राइनोप्लास्टी सर्जरी कराती हैं.

3 . अफ्रीका में महिलाओं के लंबे कान

अफ्रीका में मसाई जनजाति की महिलाएं अपने कान को लंबे और सुन्दर बनाने के लिए पत्थरों से बने भारी गहने पहनना पसंद करती है.

4. न्यूजीलैंड की महिलाओं का टैटू

न्यूजीलैंड में रहने वाली माओरी जनजाति की महिलाएं पारंपरिक तौर पर पुरुषों को आकर्षित करने के लिए अपनी होठों पर और होंठ के नीचे टैटू बनवाती हैं. इस प्रथा को टामोको कहते हैं.

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