टूट रहे भविष्य के सपने

सरकार ने कोविड-19 के बढ़ते मामलों को देखते हुए 12वीं  कक्षा की परीक्षाओं को स्थगित कर दिया है और 10वीं कक्षा की परीक्षाएं लिए बिना सब के 11वीं कक्षा में भेज दिया है. मातापिता व छात्रों ने थोड़ी राहत की सांस ली है पर यह एक बड़ा बो झ है, जो वर्षों तक कीमत मांगेगा.

12वीं कक्षा की परीक्षाओं का टलना मतलब आगे के प्रवेश बंद. कालेजों, टैक्नीकल इंस्टिट्यूटों, विदेशी कालेजों आदि में सैकड़ों एडमीशनें 12वीं कक्षा की समय पर होने वाली परीक्षाओं पर टिकी हैं. 12वीं कक्षा की परीक्षा न केवल युवाओं के लिए चैलेंज है वरन उन के मांबाप की परीक्षा भी है और बेहद मोटा खर्च भी. यह परीक्षा उन सब के सिर पर सवार रहेगी और खर्च चालू रहेगा. 12वीं कक्षा की परीक्षा महीने 2 महीने बाद होगी और तब तक तैयारी करते रहना होगा.

इस बीच कितनी जगह प्रवेश परीक्षाओं का शैड्यूल है. कुछ पोस्टपोन कर देंगे कुछ नहीं. जब तिथि आएगी तो पता चलेगा कि डेट्स क्लैश कर रही हैं. युवाओं ने पहले फौर्म भर रखे थे यह देख कर कि कोई परीक्षा क्लैश न हो. अब नए सिरे से डेट्स मिलेंगी तो क्लैश तो होंगी ही.

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शिक्षा उद्योग भी अब सब से ज्यादा लाभदायक उद्योगों में आता है, जो बेहद क्रूर और लुटेरा है. इस में मांग ज्यादा है, सप्लाई कम. इसलिए हर व्यापारी अपने नियम बनाने में स्वतंत्र है बिना दूसरों की चिंता किए, बिना यह सोचे कि यदि कोविड-19 के कारण डेट्स क्लैश कर रही हैं या युवा परीक्षा में आ नहीं सकते तो क्या करना है. हर व्यापारी को खुद की कमाई की लगी है और हर मांबाप की जेब खाली हो रही है.

यही नहीं यदि कहीं 1 साल बरबाद हो गया तो जीवनभर का रास्ता हो सकता बंद हो जाए. हर संस्थान अपने नियम बनाता है और अपनी सुविधा के अनुसार उन्हें बदलेगा.

पिछले टाइमटेबल के अनुसार युवाओं ने कोर्स चुन लिए थे पर अब सब गड़बड़ हो जाएगा और कोई किसी की नहीं सुनेगा. युवाओं पर कोविड-19 से ज्यादा कहर शिक्षण संस्थानों के नियमों व हठधर्मी का वार होगा. कोविड-19 से तो वे बच निकलेंगे पर यह दुविधा उन्हें ले डूबेगी.

चूंकि शिक्षण संस्थानों में सीटों की सप्लाई मांग से कम है, यदि कहीं से कोई आदेश आ भी गया कि शिक्षण संस्थान लचीलापन दिखाएं, युवा बिना परीक्षाओं में बैठे सीटें खो देंगे, क्योंकि और उन्हें पा लेंगे. जो एक बार घुस गया, उसे निकालना मुश्किल भी है, सही भी नहीं है.

युवाओं के प्रेमप्रसंग भी मार खाएंगे. एक तो कोविड-19 की वजह से मिलनाजुलना कम हो गया ऊपर से 12वीं कक्षा ही नहीं बीए, एमए आदि हर तरह की परीक्षाओं के टल जाने के कारण नौकरी कर घर बसाने के सपने चूर होने लगेंगे.

कोविड-19 की एक मार उन निजी संबंधों पर पड़ेगी, जिन में सरकारी दखल कम से कम सीधे तौर पर तो नहीं है.

एक छोटी सी बीमारी कितना बड़ा कहर ढा सकती है यह आज की पीढ़ी को पता चलेगा. यह यूरोप ने 1939 से 1945 में जो सहा या वियतनाम व कंबोडिया ने 60-70 के दशक में सहा या सीरियाई आज सह रहे हैं, उस जैसा दर्द दे रहा है. बस फर्क इतना है कि खून नहीं बह रहा, पैसे की लूट भी हो रही है, मौतें भी हो रही हैं और भविष्य के सपने भी टूट रहे हैं.

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विश्वास के घातक टुकड़े- भाग 1 : इंद्र को जब आई पहली पत्नी पूर्णिमा की याद

रात का सन्नाटा पसरा हुआ था. घर के सभी लोग गहरी नींद सोए थे, लेकिन पूर्णिमा की आंखों में नींद का नामोनिशान तक नहीं था. बगल में लेटा उस का पति इंद्र निश्चिंत हो कर सो रहा था, जबकि पूर्णिमा अंदर ही अंदर घुट रही थी. पूर्णिमा को इंद्र के व्यवहार में आए परिवर्तन ने बेचैन कर रखा था.

पूर्णिमा की शादी को 5 साल गुजर गए थे, लेकिन वह मां नहीं बन पाई थीं. इलाज जरूर चल रहा था, लेकिन परिणाम की हालफिलहाल कोई आशा नहीं थी. रात के तीसरे पहर इंद्र की नींद खुली. बिस्तर टटोला तो उसे पूर्णिमा नजर नहीं आई. उस ने उठ कर बल्ब का स्विच औन किया. देखा, पूर्णिमा बिस्तर के एक कोने पर घुटनों में मुंह छिपाए बैठी थी. उसे इस हालत में देख कर इंद्र ने पूछा, ‘‘पूर्णिमा, तुम अभी तक सोई नहीं?’’

‘‘मुझे नींद नहीं आ रही,’’ पूर्णिमा का स्वर बुझा हुआ था.

‘‘क्यों?’’ इंद्र ने पूछा.

‘‘बस, यूं ही.’’ पूर्णिमा ने टालने वाले अंदाज में जवाब दिया.

‘‘पूर्णिमा, मैं जानता हूं कि तुम्हें नींद क्यों नहीं आ रही है. मैं तुम्हारा दुख समझ सकता हूं. थोड़ा इंतजार करो, सब ठीक हो जाएगा.’’ इंद्र का इतना कहना भर था कि पूर्णिमा उस के सीने से लग कर सुबकने लगी.

‘‘इंद्र, तुम मुझे छोड़ तो नहीं दोगे?’’ पूर्णिमा ने अनायास पूछा. पत्नी के इस सवाल पर इंद्र गंभीर हो गया. वह कुछ सोच कर बोला, ‘‘कैसी पागलों वाली बातें कर रही हो?’’

बीते दिन की ही बात थी. पूर्णिमा हमेशा की तरह इंद्र की अलमारी के कपड़ों को हैंगर में लगा रही थी, तभी गलती से एक शर्ट नीचे गिर गई. शर्ट की जेब से एक फोटो निकल कर जमीन पर जा गिरा. पूर्णिमा ने सहज भाव से फोटो को उठाया, किसी लड़की का फोटो था. लड़की देखने में आकर्षक लग रही थी. उस की उम्र 25 के आसपास रही होगी. वह इंद्र के पास जा पहुंची, वह अखबार पढ़ रहा था.

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जैसे ही पूर्णिमा ने फोटो दिखाई, वह अखबार छोड़ कर उस के हाथ से फोटो लेते हुए बोला, ‘‘यह फोटो तुम्हें कहां से मिली? ‘‘तुम औरतों की यही खामी है, टटोलना नहीं छोड़ सकतीं.’’ कहते हुए इंद्र ने फोटो अपनी जेब में रख ली.

‘‘तुम्हारे कपड़े ठीक कर रही थी. मुझे क्यापता था कि तुम जेब में इतने महत्त्वपूर्ण दस्तावेज रखते हो.’’ पूर्णिमा ने चुहलबाजी की.

इंद्र मुसकरा कर बोला, ‘‘मेरे ही विभाग की है.’’

‘‘तो जेब में क्या कर रही थी?’’

‘‘फिर वही सवाल. एक फार्म पर लगानी थी, गलती से मेरे साथ चली आई.’’ वह बोला.

पूर्णिमा इधर कुछ महीनों से महसूस कर रही थी कि भले ही इंद्र उस के साथ बिस्तर पर सोता है, लेकिन अब पहले जैसी बात नहीं थी. पतिपत्नी का संबंध महज औपचारिकता बन कर रह गया था. एक दिन उस से न रहा गया तो पूछ बैठी, ‘‘इंद्र, तुम बदल गए हो.’’

‘‘यह तुम कैसे कह सकती हो?’’ वह सकपकाते हुए बोला.

‘‘तुम्हारे व्यवहार से महसूस कर रही हूं.’’ पूर्णिमा ने कहा.

‘‘ऐसी बात नहीं है. औफिस में काम का बोझ बढ़ गया है.’’ उस ने सफाई दी तो पूर्णिमा ने मामले को ज्यादा तूल नहीं दिया.

दिन के 10 बज रहे होंगे. इंद्र का औफिस से फोन आया, ‘‘पूर्णिमा, आज मेरा मोबाइल चार्जिंग पर ही लगा रह गया. क्या तुम उसे मुझ तक पहुंचा सकती हो?’’

‘‘जरूर, तुम औफिस से बाहर आ कर ले लेना.’’ कह कर पूर्णिमा ने जैसे ही फोन चार्जर से निकाला एक लड़की का फोन आ गया, ‘‘इंद्र सर, आज मैं औफिस नहीं आ सकूंगी.’’

पूर्णिमा ने कोई जवाब नहीं दिया तो वह बोली, ‘‘आप कुछ बोल नहीं रहे. क्या नाराज हो मुझ से. माफी मांगती हूं, कल मेरा मूड नहीं था. घर पर कुछ रिश्तेदार आए थे, मम्मी ने जल्दी आने के लिए कहा, इसलिए आप के साथ कौफी पीने नहीं जा सकी.’’

पूर्णिमा को समझते देर नहीं लगी कि इंद्र शाम को देर से क्यों आता है. सोच कर पूर्णिमा का दिल बैठने लगा. वह खुद पर नियंत्रण करते हुए बोली, ‘‘मैं उन की बीवी बोल रही हूं. आज वह अपना मोबाइल घर पर ही छोड़ गए हैं.’’

पूर्णिमा का इतना कहना भर था कि उस ने फोन काट दिया.

पूर्णिमा का मन आशंकाओं से भर गया. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि इंद्र से कैसे पेश आए. वह सोचने लगी कि इस लड़की से इंद्र का क्या संबंध है. ऐसे ही विचारों में डूबी पूर्णिमा पति को मोबाइल देने के लिए निकल गई. इंद्र के औफिस पहुंच कर उस ने फोन कर दिया, इंद्र औफिस के बाहर आ गया. फोन देते समय पूर्णिमा ने उस लड़की का जिक्र किया तो वह बोला, ‘‘मैं बात कर लूंगा.’’

शाम को इंद्र घर आया तो आते ही पूर्णिमा से बोला, ‘‘मैं 2 दिनों के लिए औफिस के काम से लखनऊ जा रहा हूं. मेरा सामान पैक कर देना.’’

‘‘अकेले जा रहे हो?’’ पूर्णिमा के इस सवाल पर वह असहज हो गया.

‘‘क्या पूरा औफिस जाएगा?’’

‘‘मेरे कहने का मतलब यह नहीं था.’’ पूर्णिमा ने कहा तो अचानक इंद्र को न जाने क्या सूझा कि एकाएक सामान्य हो गया. वह पूर्णिमा को बाहों में भरते हुए बोला, ‘‘मुझे क्षमा कर दो.’’

इस के बाद पूर्णिमा भी सामान्य हो गई. उस ने पति के कपड़े वगैरह बैग में रख दिए. पति के जाने के बाद वह अकेली रह गई. घर में बूढ़ी सास के अलावा कोई नहीं था. वह किसी से ज्यादा नहीं बोलती थी. इसीलिए वह चाह कर भी अपने मन की बात किसी से शेयर नहीं कर पाती थी.

रात को आंगन में चांदनी बिखरी थी, जो पूर्णिमा को शीतलता देने की जगह शूल की तरह चुभ रही थी. मन में असंख्य सवाल उठ रहे थे. कभी लगता यह सब झूठ है तो कभी लगता उस का वैवाहिक जीवन खतरे में है. तभी अचानक सास की नजर पूर्णिमा पर पड़ी.

‘‘यहां क्यों बैठी हो?’’

‘‘नींद नहीं आ रही है.’’ कह कर पूर्णिमा उठने लगी.

‘‘इंद्र चला गया इसलिए?’’ इस सवाल का पूर्णिमा ने कोई जवाब नहीं दिया.

इंद्र को ले कर उस के मन में जो चल रहा था, वह उस की निजी सोच थी. उसे सास से साझा करने का कोई औचित्य नहीं था. अनायास उस का मन अतीत की ओर चला गया. पूर्णिमा अपने मांबाप की एकलौती संतान थी. आर्थिक रूप से कमजोर होने के बावजूद उस के पिता ने सिर्फ इंद्र की अच्छी नौकरी देखी और कर दी शादी. काफी दहेज दिया था उन्होंने उस की शादी में. एक ही रात में इंद्र की सामाजिक हैसियत का ग्राफ ऊपर उठ गया था.

तब उसे क्या पता था कि ऐसा भी वक्त आएगा, जब रुपयापैसा सब गौण हो जाएगा. हर महीने सैकड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद उस के मां बनने की संभावना क्षीण नजर आती थी. कभीकभी इंद्र खीझ जाता, तो पूर्णिमा अपनी मम्मी से दवा पर होने वाले खर्चे की बात करती. संपन्न मांबाप उस के खाते में तत्काल हजारों रुपए डाल देते थे.

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इधर कुछ महीने से इंद्र उखड़ाउखड़ा सा रहने लगा था. दोनों में बात कम ही हो पाती थी. उसे भावनात्मक सहारे की जरूरत थी. सोचतेसोचते उस का मन भर आया. अगले दिन अचानक पूर्णिमा के मम्मीपापा आ गए. उन्हें देखते ही वह फफक कर रो पड़ी. बेटी का दुख उन्हें पता था. बोले, ‘‘मायके चलो.’’

पूर्णिमा के लिए यह राहत की बात थी. लेकिन उसे इंद्र की मां का खयाल था. इसलिए मातापिता से कहा, ‘‘सास अकेली रह जाएंगी. इंद्र औफिस के काम से बाहर गए हुए हैं.’’

‘‘कोई बात नहीं, मैं 2 दिन उस का इंतजार कर लूंगा.’’ पूर्णिमा के पापा बोले.

तीसरे दिन इंद्र आया तो पूर्णिमा ने कहा, ‘‘मैं मायके जाना चाहती हूं.’’

‘‘बिलकुल जाओ,’’ इंद्र निर्विकार भाव से बोला, ‘‘तुम कुछ दिनों के लिए मायके चली जाओगी तो माहौल चेंज हो जाएगा. एक ही माहौल में रहतेरहते ऊब होने लगी है.’’

‘‘पति के साथ रहने में कैसी ऊब? कहीं तुम मुझ से ऊब तो नहीं गए?’’ लेकिन इंद्र ने एक शातिर खिलाड़ी की तरह चुप्पी साध ली. पूर्णिमा बेमन से मायके चली गई.

आगे पढ़ें- पूर्णिमा मायके चली जरूर गई थी, लेकिन…

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Nisha Rawal के सिर से बहता खून देख Rakhi Sawant ने कही ये बात

टीवी कपल निशा रावल (Nisha Rawal) और करण मेहरा (Karan Mehra) की लड़ाई  इन दिनों स्टार्स के बीच सुर्खियों में हैं. जहां हर कोई उनकी लड़ाई में अपना सपोर्ट जाहिर कर रहा है तो वहीं अब इस मामले में राखी सावंत ने भी अपनी रिएक्शन दिया है. साथ ही राखी ने अपनी शादी को लेकर भी बयान दिया है. आइए आपको बताते हैं क्या कहती हैं इस मामले में राखी सावंत…

राखी सावंत को लगा शादी से डर

 

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दरअसल, हाल ही में निशा रावल के दोस्त ने उनकी एक फोटो शेयर की थी, जिसमें उनके सिर से खून निकलता हुआ नजर आ रहा था. हालांकि ये फोटो सोशलमीडिया पर काफी वायरल हो रही हैं. वहीं अब इस फोटो को देखने के बाद राखी सावंत (Rakhi Sawant) ने इस मुद्दे पर मीडिया से बात करते हुए कहा है कि ये देखकर उनका शादी से विश्वास ही उठ गया है. राखी सावंत को विश्वास नही हो रहा है कि  करण मेहरा ने अपनी पत्नी के साथ ऐसा कुछ किया है.

 

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गौरव चोपड़ा ने कही ये बात

 

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करण मेहरा औऱ निशा रावल के मामले में कई एक्टर्स का रिएक्शन सामने आया था, जिनमें गौरव चोपड़ा का भी नाम शामिल है. एक रिपोर्ट के मुताबिक बिग बौस फेम गौरव चोपड़ा ने कहा है, अगर हम पब्लिक में रिलेशनशिप को लेकर बात करते हैं, भले ही वो मदद के लिए हो, जो भी ये सब पढ़ता है उसे पर्सनल स्पेस में घुसने का मौका मिल जाता है और लोग अपने हिसाब से जजमेंट पास करने लगते हैं. मैं ऐसा तो अपने दोस्तों के साथ नहीं होने देना चाहूंगा. मैं चाहता हूं कि गरिमा बनाए रखी जाए.

 

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बता दें, निशा रावल ने करण मेहरा पर घरेलू हिंसा का केस कर दिया था तो वहीं जमानत मिलने के बाद करण मेहरा ने अपना पक्ष सामने रखते हुए निशा और उनके भाई में पर मारपीट का आरोप लगाया था. साथ निशा रावल ने भी मीडिया के सामने आकर करण मेहरा के अफेयर होने की बात बताकर अपना दर्द बयां किया था.

 

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Anupamaa: काव्या का गृहप्रवेश नहीं करेगी बा तो परिवार छोड़ेगा वनराज का साथ

स्टार प्लस के सीरियल अनुपमा के मेकर्स टीआरपी चार्ट्स में पहले नंबर पर जगह बनाने के लिए पूरी कोशिश कर रहे हैं, जिसके चलते सीरियल की कहानी में नए-नए मोड़ आ रहे हैं. जहां एक तरफ वनराज, काव्या से शादी करने के लिए वापस आ गया है तो वहीं अनुपमा अपनी जिंदगी की नई शुरुआत करने के लिए पुरानी जिंदगी को पीछे छोड़ चुकी है. इसी बीच काव्या के गृहप्रवेश पर बड़ा ड्रामा देखने को मिलने वाला है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

काव्या पर बरसा वनराज

अब तक आपने देखा कि वनराज अपनी शादी से गायब हो जाता है, जिसके कारण काव्या गुस्से में अनुपमा और शाह परिवार के खिलाफ पुलिस केस करने की बात कहती हैं. वहीं जब ये बात वनराज को पता चलती है तो वह काव्या पर बरसता हुआ नजर आता है. गुस्से में वनराज कहता है कि आगे से गलती कभी मत करना. इसके बाद दोनों शादी कर लेते हैं. वहीं अनुपमा, काव्या को खानदानी कंगन गिफ्ट देती हुई नजर आती है.

 

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अनुपमा को ताना मारेगी काव्या

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि काव्या अपनी शादी को लेकर बेहद खुश होती हुई नजर आएगी, जिसके कारण वह अनुपमा पर ताना कसते हुए कहेगी कि तुमने मेरा मंगलसूत्र देखा. वहीं कव्या को जवाब देते हुए अनुपमा कहेगी कि ये मंगलसूत्र उसी ने दान में दिया है, जिसके कारण काव्या गुस्से से लाल हो जाएगी.

बा और परिवार छोड़ेगा वनराज का साथ

 

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दूसरी तरफ बा और बापूजी काव्या को अपनी बहू मानने से इंकार करते दिखेंगे और कहेंगे कि अनुपमा उनकी बहू थी और हमेशा रहेगी. उसकी जगह वह काव्या को नहीं दे सकते. वहीं वनराज का साथ उसका पूरा परिवार छोड़ कर चला जाएगा, जिसके चलते वनराज दुखी नजर आएगा तो वहीं काव्या की ख्वाहिश पूरी होती नजर आएगी.

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Fashion Tips: Personality में चार चांद लगातीं हैं स्कर्ट्स

कमर के नीचे पहनी जाने वाली स्कर्ट आजकल महिलाओं में बहुत लोकप्रिय है. एक प्रकार से घाघरा और पेटीकोट का आधुनिक रूप है स्कर्ट. फैशन इंडस्ट्री में आये बदलावों से आजकल बाजार में भांति भांति के फेब्रिक,  स्टाइल, लेंथ और डिजाइन्स की स्कर्ट मौजूद हैं. आजकल डेली यूज़ से लेकर शादी समारोह जैसे बड़े आयोजन में भी स्कर्ट अपना जादू बिखेर रही है. यही नहीं विभिन्न स्टाइल की स्कर्ट पहनकर आप अपने व्यक्तित्व में चार चांद लगा लेती हैं. स्कर्ट के कुछ लोकप्रिय स्टाइल इस प्रकार हैं-

-मर्मेड स्कर्ट

मर्मेड अर्थात जलपरी, इसे फिशकट स्कर्ट भी कहा जाता है. ऊपर से संकरी और नीचे से घेरदार यह स्कर्ट देखने में एकदम जलपरी जैसी लगती है. चूंकि यह कमर से लेकर घुटने के नीचे तक एकदम फिट होती है इसलिए यह दुबली पतली छरहरे बदन वाली महिलाओं पर खूब फबती है. इसे पहनते समय बहुत ध्यान से चलना होता है क्योंकि यह नीचे से बहुत अधिक घेरदार होती है. आमतौर पर इसे बनाने के लिए लिनेन या जॉर्जेट जैसे नरम फेब्रिक का प्रयोग किया जाता है.

-बॉक्स प्लीटेड स्कर्ट

सामान्य घेर वाली यह स्कर्ट हर बेहद आरामदायक और हर साइज की महिलाओं पर अच्छी लगती है. इसे कपड़े पर लगभग 3 से 4 इंच चौड़ी चौड़ी बॉक्स जैसी दिखने वाली प्लीट्स  बनाया जाता है.  स्कूली छात्रों और नर्सेज की स्कर्ट में अक्सर इन्हीं प्लीट्स का प्रयोग किया जाता है. पैंट जैसे मोटे फेब्रिक से इसे बनाना उचित रहता है साथ ही इसकी बॉक्स प्लीट्स को प्रेस के द्वारा मेन्टेन करना आवश्यक होता है.

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-हिप्पी स्कर्ट

हिप्पी शब्द का शाब्दिक अर्थ है समाज के नियम कायदों को न मानने वाला. हिप्पी स्टाइल इंडियन और वेस्टर्न दोनों का ही प्रतिनिधित्व करता है. इसे हल्के और पतले फेब्रिक से छोटी छोटी प्लीट्स से अलग अलग रंगों से मिक्स मैच करके अथवा एक रंग से बनाया जाता है.

-रेट्रो विद डेनिम

यह स्टाइल 60 के दशक के बहु प्रचलित स्टाइल था. इसे डेनिम फेब्रिक से विभिन्न डिजाइन्स में बनाया जाता है. यह सामने से 3-4 इंच तक खुली, बॉडी फिट और घुटनों से ऊपर तक ही  होती है. यह पतली, दुबली और छरहरे बदन वाली महिलाओं और लड़कियों पर अच्छी लगती है.

-नाइफ स्टाइल प्लीटेड

बॉक्स प्लीट्स को जहां दोनों तरफ से फोल्ड करके बनाया जाता है वहीं नाइफ स्टाइल प्लीट्स को एक ही दिशा में फोल्ड करके लगभग 1-1इंच की प्लीट्स डालकर मोटे फेब्रिक से बनाया जाता है. इसे हर तरह की पर्सनैलिटी पर पहना जा सकता है.

-पेंसिल स्कर्ट

यह हर उम्र और हर बॉडी शेप पर फबती है परन्तु इसके साथ टॉप और फुटवेयर की पेयरिंग करना बहुत जरूरी होता है. मसलन गहरे रंग की पेंसिल स्कर्ट के साथ टक इन प्लेन शर्ट, प्लैन ब्लैक स्कर्ट के साथ प्लेन ब्लैक ब्लाउज और गर्मियों में फ्लोरल प्रिंट टॉप अच्छा लगेगा. इसके साथ फुटवेयर के तौर पर ब्लॉक हील सैंडल या बूट्स पहनना उचित रहता है.

-लॉन्ग स्कर्ट

यह भी प्रत्येक उम्र और बॉडी शेप पर अच्छी लगती है. यह फ्लो लेंथ वाले प्लेन और प्रिंटेड फेब्रिक से कमर से पंजों तक की लम्बाई में ओरेव और चुन्नट दोनों प्रकार से बनाई जाती है. इसकी खासियत है कि आप इसकी स्टाइलिंग विविध प्रकार से कर सकतीं हैं. इसके साथ डेनिम जैकेट भी बहुत अपीलिंग लगती है.

इसके अतिरिक्त मिनी स्कर्ट, माइक्रो मिनी स्कर्ट, एसिमेट्रिकल भी स्कर्ट के कुछ अन्य प्रकार हैं.

पुरानी साड़ियों से बनाएं स्कर्ट

आप अपनी कवर्ड में रखीं उन साड़ियों से भी बहुत अच्छी और यूनिक डिजाइन की स्कर्ट बड़ी आसानी से बना सकतीं हैं जिन्हें आप प्रयोग नहीं कर रहीं हैं. साड़ी से स्कर्ट बनाते ध्यान रखें कि यदि साड़ी का फेब्रिक मोटा है तो पतला और यदि फेब्रिक पतला है तो अस्तर के लिए मोटे फेब्रिक का प्रयोग करें. साड़ी से आप प्लीटेड, लांग, नाइफ स्टाइल और हिप्पी स्टाइल स्कर्ट बड़ी आसानी से बना सकतीं हैं. साड़ी से स्कर्ट बनाते समय उसके बॉर्डर को निकाल देना उचित रहता है. पल्लू यदि बहुत अच्छे डिजाइन का है तो उससे ब्लाउज या टॉप बनाया जा सकता है.

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रखें कुछ बातों का ध्यान

-यदि आप ऑफिस में पहनने के लिए स्कर्ट खरीद रहीं हैं तो नी लेंथ तक कि स्कर्ट खरीदें ताकि उसे पहनने पर आप ऑड न लगें.

-डेट, डिनर अथवा हॉलीडे आदि के लिए स्कर्ट अपनी बॉडी शेप को ध्यान में रखकर खरीदें. यदि आपके पैर बहुत अधिक मोटे हैं तो मिनी स्कर्ट खरीदने से बचें.

-फेब्रिक पर अवश्य ध्यान दें कि वह बहुत पारदर्शी तो नहीं है. आजकल बाजार में ट्विल, सिल्क, लिनेन, वूल, कॉटन, विस्कॉस जैसे अनेकों फेब्रिक में स्कर्ट मौजूद हैं. मुलायम या नरम फेब्रिक हिप लाइन पर चिपक जाता है वही मोटा फेब्रिक आपके लोअर बॉडी को शेप दे देता है.

-ध्यान रखें कि स्कर्ट आपकी कमर पर अच्छी तरह फिट होनी चाहिए न अधिक ढीली और न अधिक टाइट अर्थात जिसे पहनकर आप कम्फर्टेबल फील करें.

-नी अथवा उससे कम लेंथ की स्कर्ट पहनकर कुर्सी पर बैठते समय अपने घुटनों को पास पास रखें अथवा पैरों को क्रॉस करके या फिर एक एंकल को दूसरे के पीछे रखें.

Summer Special: बचे चावलों से झटपट बनाएं मैक्सिकन फ्राइड राइस

बच्चों को चायनीज, इटैलियन और मैक्सिकन जैसी कॉन्टिनेंटल डिशेज बहुत पसंद आती हैं. आजकल कोरोना के कारण बाहर से खाना मंगवाना भी सम्भव नहीं है, यही नहीं बच्चे लंबे समय से घरों में कैद हैं, और घर में रहते हुए दिन में विविधतापूर्ण भोजन भी उनकी डिमांड में शामिल रहता ही है. आमतौर पर घर में चावल बच ही जाते हैं.  घर में बचे इन्हीं चावलों से आप बड़ी आसानी से उन्हें मेक्सिकन राइस बनाकर खिला सकतीं हैं. तो आइए जानते हैं कि इन्हें कैसे बनाया जाता है.

बनने में लगने वाला समय      20 मिनट

कितने लोंगों के लिए              4

मील टाइप                           वेज

सामग्री

पके चावल                        2 कप

उबला लोबिया                   1/4 कप

उबला राजमा                      1/4 कप

कटा प्याज                          1

गाजर बारीक कटी                1

शिमला मिर्च बारीक कटी       1

टमाटर कटे                       1/2 कप

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उबले कॉर्न                         1/4 कप

कटा प्याज                         1

लहसुन की कली                 3

तेल                                   2 टेबलस्पून

जीरा                                  1/4 टीस्पून

धनिया पाउडर                      1/2 टीस्पून

ऑरिगेनो                              1/2 टीस्पून

लाल मिर्च पाउडर                   1/2 टीस्पून

चीज क्यूब                              2

टोमैटो सॉस                          1 टेबलस्पून

विधि

गर्म तेल में जीरा तड़काकर प्याज और लहसुन डालकर सॉते करें. अब शिमला मिर्च, गाजर, टमाटर और नमक डालकर ढक दें ताकि टमाटर गल जाएं. लोबिया, राजमा, कॉर्न तथा सभी मसाले डालकर 5 मिनट तक ढककर पकाएं. 5 मिनट बाद पके चावल और टोमेटो सॉस डालकर भली भांति चलाएं. सर्विंग डिश में डालकर ऊपर से चीज किसें. हरे धनिया से गार्निश करके सर्व करें.

नोट-मैक्सिकन राइस बनाने के लिए ताजे की अपेक्षा रखे हुए चावलों का प्रयोग करना सही रहता है.

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मेरे सहकर्मी को हार्ट फेल्योर की शिकायत रहती है, इसका क्या मतलब है?

सवाल- 

मेरे सहकर्मी को हार्ट फेल्योर की शिकायत रहती है. इस का क्या मतलब है? क्या हृदय वाकई काम करना बंद कर देता है?

जवाब-

हार्ट फेल्योर एक स्थिति है जिस में कमजोर हृदय खून की सामान्य मात्रा पंप करने में सक्षम नहीं होता. इस से वह पूरे शरीर में औक्सीजन और पोषक तत्त्व प्रभावी ढंग से नहीं पहुंचा पाता. हार्ट फेल्योर को बीमारी नहीं कहा जा सकता. यह एक क्रौनिक सिंड्रोम है, जो आमतौर पर धीरेधीरे विकसित होता है. इस से शरीर को सामान्य ढंग से काम करते रहने के लिए पोषण मिलना कम होता जाता है.

हार्ट फेल्योर की स्थिति अकसर इसलिए बनती है कि या तो आप की मैडिकल स्थिति ऐसी बन जाती है या फिर पहले से ऐसी होती है. इस में कोरोनरी आर्टरी डिजीज, हार्ट अटैक या उच्च रक्तचाप शामिल है. इस से आप का हृदय क्षतिग्रस्त हो गया होता है या उस पर अतिरिक्त कार्यभार पड़ गया होता है. इसे भले ही हार्ट फेल्योर कहा जाता है पर इस का मतलब यह नहीं कि आप का हृदय काम करना बंद करने वाला है. इस का मतलब है कि आप के हृदय को आप के शरीर की जरूरतें पूरी करने में खासकर गतिविधियों के दौरान मुश्किल हो रही है.

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हार्ट अटैक एक बहुत ही गंभीर स्थिति होती है जिसमें हमारी जान जाने तक का खतरा भी होता है. इसमें हमारा रक्त प्रवाह ब्लॉक हो जाता है और हमारे ह्रदय की मसल्स डेमेज होने लगती हैं. जैसा कि हमने आज तक देखा या सुना है हम सोचते हैं कि हार्ट अटैक के लक्षण केवल छाती में दर्द होना या फिर जमीन पर गिरना ही होते हैं. परन्तु असल में जब आप को हार्ट अटैक आने की सम्भावना होती है तो यह लक्षण आप के आस पास भी नहीं फिरते हैं. हार्ट अटैक के कुछ लक्षण बहुत ही अजीब व हैरान पूर्वक भी हो सकते हैं जिनमें से एक लक्षण होता है उबासियां लेना. क्या आप चौंक गए? चलिए जानते हैं इसके बारे में.

उबासी लेने हार्ट अटैक के बीच का सम्बन्ध

आम तौर पर हम उबासी लेने को नींद आने का एक लक्षण मानते हैं या जब हम बहुत अधिक थक जाते हैं और हमें सोने की जरूरत होती है तब हमें उबासी आती है. परन्तु यदि आप ने नींद भी ले ली और आप थके हुए भी नहीं है तो भी अगर आप को उबासियां आ रही हैं तो यह एक गंभीर लक्षण हो सकता है. आप को इसे हल्के में नहीं टाल देना चाहिए.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- अधिक उबासी लेना हो सकता है आने वाले हार्ट अटैक का संकेत

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
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Summer Special: एवोकैडो Oil से मिलते हैं स्किन को कई फायदे

नैचुरल चीजें ही हमारी सभी परेशानियों का एक हल हैं, फिर चाहें वो त्वचा संबंधी परेशानी हो या सेहत से जुड़ी हुई या फिर कुछ और. नेचर इन सब चीजों का एक ही सॉल्यूशन है.इस वजह से आज हम आपके लिए एवोकैडो ऑयल से त्वचा को होने वाले कुछ कमाल के फायदे लेकर आए हैं. एवोकैडो डायबिटीज और शुगर में लाभदायक होता है, वहीं इसका तेल खाने के पोषण में वृद्धि करता है. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि जितना फायदेमंद यह तेल सेहत के लिए है, सुंदरता बढ़ाने में इसका तेल उतना ही गुणकारी होता है. आइए जानते हैं की अपनी ब्यूटी किट में क्यों शामिल करना चाहिए यह तेल .

गुणों का खजाना है एवोकैडो

एवोकैडो बहुत पौष्टिक होते हैं और इसमें विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व होते हैं जैसे  विटामिन K , फोलेट ,विटामिन सी , पोटेशियम ,विटामिन बी 5 ,विटामिन बी 6, विटामिन ई. एवोकैडो ऑयल न्यूट्रिएंट्स से भरपूर होता है. यह एंटीऑक्सीडेंट होता है, इसमें जरूरी फैटी एसिड्स होते हैं, मिनरल्स होते हैं और विटामिन्स होते हैं. इस ऑयल को स्किन पर डायरेक्ट अप्लाई करने या अन्य ब्यूटी प्रोडक्ट्स के साथ डायल्यूट करके इसका इस्तेमाल कर सकते हैं. एवोकैडो ऑयल प्राकृतिक सनब्लॉक की तरह काम करता है. सुबह नहाने के बाद आप इसे पूरी बॉडी पर सकती हैं. साथ ही रात को सोने से पहले भी इसे मॉइश्चराइजर या नाइट क्रीम की जगह इस्तेमाल कर सकती हैं. यह त्वचा को नम और सॉफ्ट बनाए रखने में मददगार है.

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एंटी एजिंग गुण

जैसे जैसे उम्र बढ़ती है , हमे कई त्वचा की समस्याओं का सामना करना पड़ता है . जैसे की ड्राई स्किन , झुर्रियां , मुंहासे , कोलेजन का न बनना आदि . एवोकैडो तेल में मौजूद पोषक तत्व त्वचा को नमी देते हैं, झुर्रियों को रोकते हैं, कोलेजन के बनने को बढ़ावा देते हैं व साथ ही सूजन को रोकते हैं. ये सभी लाभ त्वचा को लंबे समय तक जवां बनाए रखते हैं.

फ्री रेडिकल्स से लड़ता है

फ्री रेडिकल्स न केवल बीमारी में योगदान करते हैं, बल्कि वे एज स्पॉट्स , झुर्रियां और स्किन कैंसर जैसी अधिक गंभीर बीमारियों सहित कई प्रकार के अवांछित त्वचा परिवर्तनों को भी बढ़ाते हैं. पोषक तत्वों और एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा से भरपूर, एवोकैडो तेल फ्री रेडिकल्स से होने वाले नुकसान से लड़ने में मदद करता है.

सनबर्न को शांत करने में करता है मदद

क्योंकि एवोकैडो तेल विटामिन ई, बीटा-कैरोटीन, विटामिन डी, प्रोटीन, लेसिथिन और फैटी एसिड से भरपूर होता है, इसलिए यह त्वचा को शांत करने और सनबर्न के नकारात्मक प्रभावों को कम करने में मदद करता है . एवोकैडो तेल में पॉलीहाइड्रोक्सिलेटेड फैटी अल्कोहल होते हैं जो यू.वी.ए और यू.वी.बी किरणों से होने वाले नुकसान को रोकते हैं और उनका इलाज करते हैं. एवोकैडो तेल से भरपूर सनस्क्रीन लगाएं या जब आप धूप में रहने के बाद अंदर आते हैं तो शुद्ध एवोकैडो तेल लगाएं.

सूजन और त्वचा की जलन कम करने में ता है काम

एंटीऑक्सीडेंट और विटामिन के गुणों से भरपूर एवोकैडो एक्जिमा और सोरायसिस से जुड़ी रूखी, खुरदरी और परतदार त्वचा को ठीक करने में मदद करता है . धूप और प्रदूषण के प्रभाव की वजह से अक्सर त्वचा में जलन होती है . इसको दूर करने के लिए एवोकैडो तेल का उपयोग फायदेमंद हो सकता है.

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उत्कृष्ट मॉइश्चराइजेशन गुण जो मुँहासे की रोकथाम में करते है भी मदद

त्वचा की सबसे बाहरी परत, जिसे एपिडर्मिस के नाम से जाना जाता है, एवोकैडो तेल में मौजूद पोषक तत्वों को आसानी से अब्जॉर्ब कर लेती है, जो नई त्वचा बनाने में भी मदद करती है. इसमें मौजूद फाइट स्टेरोल्स और ओलिक एसिड त्वचा को गहराई से मॉइस्चराइज करके दूसरी परत तक पहुंचाता है . यह संवेदनशील और बेहद रूखी त्वचा वाले लोगों के लिए भी उपयुक्त है. एवोकैडो तेल में लिनोलिक एसिड होता है जो मुंहासे होने से  रोकता है. यह रोम छिद्रों को बंद किए बिना भी त्वचा को हाइड्रेट रखता है जो मुहांसों के खतरे को कम करता है.

अगर आपको त्वचा में खुजली, पैचेज, ड्राईनेस जैसी दिक्कतें हो रही हों तो एवोकैडो ऑयल जरूर लगाएं. इससे आपको इन परेशानियों से जल्द राहत मिलेगी. साथ ही अल्ट्रा वॉयलट किरणों से बचने के लिए भी आप इस तेल को अप्लाई कर सकते हैं.

अलग हो जाना समस्या का हल नहीं है

सुनीता और रंजन और उन के 2 बच्चे- एकदम परफैक्ट फैमिली. संयुक्त परिवार का कोई झंझट नहीं, पर पुनीता और रंजन की फिर भी अकसर लड़ाई हो जाती है. रंजन इस बात को ले कर नाराज रहता है कि वह दिन भर खटता है और पुनीता का पैसे खर्चने पर कोई अंकुश नहीं है. वह चाहता है कि पुनीता भी नौकरी करे, पर बच्चों को कौन संभालेगा, यह सवाल उछाल कर वह चुप हो जाती है. वैसे भी वह नौकरी के झंझट में नहीं पड़ना चाहती है.

पैसा कहां और किस तरह खर्चा जाए, इस बात पर जब भी उन की लड़ाई होती है, वह अपने मायके चली जाती है. बच्चों पर, घर पर और अपने शौक पूरे करने में खर्च होने वाले पैसे को ले कर झगड़ा होना उन के जीवन में आम बात हो गई है. वह कई बार रंजन से अलग हो जाने के बारे में सोच चुकी है. रंजन उसे बहुत हिसाब से पैसे देता है और 1-1 पैसे का हिसाब भी लेता है. पुनीता को लगता है इस तरह तो उस का दम घुट जाएगा. रंजन की कंजूसी की आदत उसे खलती है.

सीमा हाउसवाइफ है और उस के पति मेहुल की अच्छी नौकरी और कमाई है, इसलिए पैसे को ले कर उन के जीवन में कोई किचकिच नहीं है. लेकिन उन के बीच इस बात को ले कर लड़ाई होती है कि मेहुल उसे समय नहीं देता है. वह अकसर टूर पर रहता है और जब शहर में होता है तो भी घर लेट आता है. छुट्टी वाले दिन भी वह अपना लैपटौप लिए बैठा रहता है. उस का कहना है कि उस की कंपनी उसे काम के ही पैसे देती है और जैसी शान की जिंदगी वे जी रहे हैं, उस के लिए 24 घंटे भी काम करें तो कम हैं.

सीमा मेहुल के घर आते ही उस से समय न देने के लिए लड़ना शुरू कर देती है. वह तो उसे धमकी भी देती है कि वह उसे छोड़ कर चली जाएगी. इस बात को मेहुल हंसी में उड़ा देता है कि उसे कोई परवाह नहीं है.

सोनिया को अपने पति से कोई शिकायत नहीं है, न ही संयुक्त परिवार में रहने पर उसे कोई आपत्ति है. विवाह को 6 वर्ष हो गए हैं, 2 बच्चे भी हैं. लेकिन इन दिनों वह महसूस कर रही है कि उस के और उस के पति के बीच बेवजह लड़ाई होने लगी है और उस की वजह हैं उन के रिश्तेदार, जो उन के बीच के संबंधों को बिगाड़ने में लगे हैं. कभी उस की ननद आ कर कोई कड़वी बात कह जाती है, तो कभी बूआसास उस के पति को उस के खिलाफ भड़काने लगती हैं.

रिश्तेदारों की वजह से बिगड़ते उन के संबंध धीरेधीरे टूटने के कगार तक पहुंच चुके हैं. वह कई बार अपने पति को समझा चुकी है कि इन फुजूल की बातों पर ध्यान न दें, पर वह सोनिया की कमियां गिनाने का कोई भी अवसर नहीं छोड़ता है.

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नमिता और समीर के झगड़े की वजह है समीर की फ्लर्ट करने की आदत. वह नमिता के रिश्ते की बहनों और भाभियों से तो फ्लर्ट करता ही है, उस की सहेलियों पर भी लाइन मारता है. इस बात को ले कर उन का अकसर झगड़ा हो जाता है. नमिता उस की इस आदत से इतनी तंग आ चुकी है कि वह उस से अलग होना चाहती है.

गलत आप भी हो सकती हैं

इन चारों उदाहरणों में आपसी झगड़े की वजहें बेशक अलगअलग हैं, पर पति की ज्यादतियों की वजह से पत्नियां पति से अलग हो जाने की बात सोचती हैं. उन की नजरों में उन के पति सब से बड़े खलनायक हैं, जिन से अलग हो कर ही उन को सुकून मिलेगा. लेकिन अलग हो जाना, मायके चले जाना या फिर तलाक लेना परेशानी का सही हल हो सकता है? कहना आसान है कि आपस में नहीं बनती, इसलिए अलग होना चाहती हूं, पर उस से क्या होगा? पति से अलग हो कर आजादी की सांस लेने से क्या सारी मुसीबतों से छुटकारा मिल जाएगा?

एक बार अपने भीतर झांक कर तो देखिए कि क्या आप के पति ही इन झगड़ों के लिए दोषी हैं या आप भी उस में बराबर की दोषी हैं. सीधी सी बात है कि ताली एक हाथ से नहीं बजती. फिर रिश्ता तोड़ कर क्या हासिल हो जाएगा? आप तो जैसी हैं, वैसी रहेंगी. इस तरह तो किसी के साथ भी ऐडजस्ट करने में आप को दिक्कत आ सकती है.

तलाक का अर्थ ही है बदलाव और यह समझ लें कि किसी भी तरह के बदलाव का सामना करना आसान नहीं होता है. कई बार मन पीछे की तरफ भी देखता है. नई जिंदगी की शुरुआत करते समय जब दिक्कतें आती हैं तो मन कई बार बीती जिंदगी को याद कर एक गिल्ट से भी भर जाता है. पति की गल्तियां निकालने से पहले यह तो सोचें कि क्या आप अपने को बदल सकती हैं? अगर नहीं तो पति से इस तरह की उम्मीद क्यों रखती हैं? उस के लिए भी तो बदलना आसान नहीं है, फिर झगड़े से क्या फायदा?

कोई साथ नहीं देता

झगड़े से तंग आ कर तलाक लेने का फैसला अकसर हम गुस्से में या दूसरों के भड़काने पर करते हैं, पर उस के दूरगामी परिणामों से पूरी तरह बेखबर होते हैं. मायके वाले या रिश्तेदार कुछ समय तो साथ देते हैं, फिर यह कह कर पीछे हट जाते हैं कि अब आगे जो होगा उसे स्वयं भुगतने के लिए तैयार रहो.

अंजना की ही बात लें. उस का पति से विवाह के बाद से किसी न किसी बात पर झगड़ा होता रहता था. वह उस की किसी बात को सुनती ही नहीं थी, क्योंकि उसे इस बात पर घमंड था कि उस के मायके वाले बहुत पैसे वाले हैं और जब वह चाहे वहां जा कर रह सकती है. एक बार बात बहुत बढ़ जाने पर भाई ने उस के पति को घर से निकल जाने को कहा तो वह अड़ गया कि बिना कोर्ट के फैसले के वह यहां से नहीं जाएगा. जब भाई जाने लगे तो अंजना ने पूछा कि अगर रात को उस के पति ने उसे मारापीटा तो वह क्या करेगी? इस पर भाई बोला कि 100 नंबर पर फोन कर के पुलिस को बुला लेना.

उस के बाद कुछ दिन तो भाई उसे फोन पर अदालत में केस फाइल करने की सलाह देते रहे. पर जब उस ने कहा कि वह अकेली अदालत नहीं जा सकती है तो भाई व्यस्तता का रोना ले कर बैठ गया. अंजना ने 1-2 बार अदालत के चक्कर अकेले काटे, पर उसे जल्द ही एहसास हो गया कि तलाक लेना आसान नहीं है. आज वह अपने पति के साथ ही रह रही है और समझ चुकी है कि जिन मायके वालों के सिर पर वह नाचती थी, वे दूर तक उस का साथ नहीं देंगे. न ही वह अकेले अदालत के चक्कर लगा सकती है.

ऐडजस्ट कर लें

तलाक की प्रक्रिया कितनी कठिन है, यह वही जान सकते हैं, जो इस से गुजरते हैं. अखबारों में पढ़ें तो पता चल जाएगा कि तलाक के मुकदमे कितनेकितने साल चलते हैं. मैंटेनैंस पाने के लिए क्याक्या करना पड़ता है. फिर बच्चों की कस्टडी का सवाल आता है. बच्चे आप को मिल भी जाते हैं तो उन की परवरिश कैसे करेंगी? जहां एक ओर वकीलों की जिरहें परेशान करती हैं, वहीं दूसरी ओर अदालतों के चक्कर लगाते हुए बरसों निकल जाते हैं. अलग हो जाने के बाद भय सब से ज्यादा घेर लेता है. बदलाव का डर, पैसा कमाने का डर, मानसिक स्थिरता का डर, समाज की सोच और सुरक्षा का डर, ये भय हर तरह से आप को कमजोर बना सकते हैं.

कोई भी कदम उठाने से पहले यह अच्छी तरह सोच लें कि क्या आप आने वाली जिंदगी अकेली काट सकती हैं. नातेरिश्तेदार कुछ दिन या महीनों तक आप का साथ देंगे, फिर कोई आगे बढ़ कर आप की मुश्किलों का समाधान करने नहीं आएगा.

आप का मनोबल बनाए रखने के लिए हर समय कोई भी आप के साथ नहीं होगा. कोई भी फैसला लेने से पहले जिस से आप की जिंदगी पूरी तरह से बदल सकती हो, ठंडे दिमाग से आने वाली दिक्कतों के बारे में हर कोण से सोचें. बच्चे अगर आप के साथ हैं तो भी वे आप को कभी माफ नहीं कर पाएंगे. वे आप को हमेशा अपने पिता से दूर करने के लिए जिम्मेदार मानते रहेंगे. हो सकता है कि बड़े हो कर वे आप को छोड़ पिता का पास चले जाएं.

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मान लेते हैं कि आप दूसरा विवाह कर लेती हैं तब क्या वहां आप को ऐडजस्ट नहीं करना पड़ेगा? बदलना तो तब भी आप को पड़ेगा और हो सकता है पहले से ज्यादा, क्योंकि हर बार तो तलाक नहीं लिया जा सकता. फिर पहले ही क्यों न ऐडजस्ट कर लिया जाए. पहले ही थोड़ा दब कर रह लें तो नौबत यहां तक क्यों पहुंचेगी. पति जैसा भी है उसे अपनाने में ही समझदारी है, वरना बाकी जिंदगी जीना आसान नहीं होगा.

झगड़ा होता भी है तो होने दें, चाहें तो आपस में एकदूसरे को लाख भलाबुरा कह लें, पर अलग होने की बात अपने मन में न लाएं. घर तोड़ना आसान है पर दोबारा बसाना बहुत मुश्किल है. जिंदगी में तब हर चीज को नए सिरे से ढालना होता है. जब आप तब ढलने के लिए तैयार है, तो पहले ही यह कदम क्यों न उठा लें.

डिलीवरी के बाद बढ़ता डिप्रेशन

समीरा की बेबी अभी मात्र डेढ़ माह की है. लेकिन समीरा की स्थिति देख कर पूरे परिवार के लोग काफी उल झन में हैं. उस के पति विमल को आफिस से छुट्टी ले कर घर बैठना पड़ रहा है. इतना ही नहीं, स्थिति यहां तक आ गई कि हार कर उसे गांव से अपनी मां को भी बुलाना पड़ गया. बच्ची की देखभाल का जिम्मा उन्हीं के कंधों पर है. करीब 2 साल पहले जब समीरा का अचानक गर्भपात हो गया था तब भी इसी तरह की परेशानी हुई थी. तब गोद में बच्चा नहीं था, लेकिन इस बार परेशानी थोड़ी ज्यादा है. करीब 2 सप्ताह से समीरा मानसिक परेशानी और अवसाद के दौर से गुजर रही है और हमेशा अपनेआप में खोई रहती है, सदा चिंतित व परेशान तो रहती ही है खानेपीने की भी कोई सुध नहीं. रात को ठीक से सो भी नहीं पाती, मन ही मन कुछ न कुछ बुदबुदाती रहती है. नन्ही बिटिया की ओर तो वह ताकती तक नहीं.

ऐसी बात भी नहीं कि प्रसव से पहले या बाद में उसे किसी तरह की परेशानी हुई हो. डिलीवरी भी शहर के अच्छे प्राइवेट नर्सिंगहोम में हुई थी, बिना किसी कंप्लीकेशन के. लड़की होने पर वह काफी खुश हुई थी. उस की इच्छा भी थी कि लड़की हो. लेकिन अब वह एकदम से सुधबुध खो बैठी है. जब पानी सिर से ऊपर गुजरने लगा तो विमल उसे ले कर उसी अस्पताल में गया, जहां उस की डिलीवरी हुई थी. जांच करने के बाद पति से डाक्टर ने कहा कि समीरा पोस्टपार्टम डिप्रेशन की शिकार हो गई है. इसी कारण वह इस तरह का व्यवहार कर रही है. लेकिन घबराने की कोई बात नहीं, सब कुछ ठीक हो जाएगा. हां, थोड़े दिनों तक मां तथा बच्ची दोनों की निगरानी रखने की जरूरत पड़ेगी.

गंभीर रोग

स्त्रीरोग विशेषज्ञ इसे गंभीर रोग मानते हैं. प्रसव के कुछ माह के बाद कई महिलाएं मानसिक परेशानियों का शिकार होने लगती हैं. इसे चिकित्सकीय भाषा में पोस्टपार्टम डिपे्रशन कहते हैं. ऐसा गर्भपात हो जाने या मृत शिशु के जन्म के बाद भी हो सकता है. ऐसी स्थिति में प्रसूता मानसिक तनाव और डिप्रेशन के दौर से गुजरने लगती है और अपनेआप को एकदम असहाय समझने लगती है. गर्भपात होने या फिर मृत शिशु के जन्म से वह काफी परेशान हो जाती है. भीतर से एकदम से टूट जाती है. लेकिन सुंदर और स्वस्थ बच्चा होने के बावजूद जब प्रसूता डिप्रेशन का शिकार होती है तब वह अपनी संतान के प्रति काफी लापरवाह रहने लगती है. ये लक्षण कुछ माह तक रह सकते हैं और कई बार धीरेधीरे ठीक हो जाते हैं. लेकिन कई बार यह रोग विकराल रूप धारण कर लेता है, जिसे पोस्टपार्टम साइकोसिस कहते हैं.

19 वर्षीय गौरी के बेटे अंकुर की उम्र फिलहाल डेढ़ साल है. जब वह मात्र डेढ़ माह का था तो गौरी को भी समीरा की ही तरह अचानक डिप्रेशन के दौरे पड़ने लगे थे. ऐसी बात नहीं कि उसे ससुराल में किसी चीज की कमी रही हो, न ही पति के साथ किसी तरह का मनमुटाव था. कभी दोनों के बीच तनावपूर्ण संबंध भी नहीं रहे. उस का पति एक बैंक में अधिकारी है और वे अच्छा सा 2 रूम का फ्लैट ले कर कानपुर के एक पौश इलाके में रह रहे हैं. लेकिन अंकुर जब 1 माह का था, तभी गौरी के स्वभाव में अचानक परिवर्तन होने लगा था. मानसिक तनाव और अवसाद के कारण खाने के प्रति उसे एकदम अरुचि हो गई थी. इन चीजों की ओर वह देखना भी नहीं चाहती थी.

धीरेधीरे नींद भी कम आने लगी थी. रातरात भर वह जागती रहती. पति बारबार इस का कारण जानने की कोशिश करते, पर वह कुछ नहीं बोलती थी. ज्यादा कुरेदने पर पति से ही  झगड़ने लगती. धीरेधीरे उस की समस्या कम होने के बजाय बढ़ती चली गई. जब स्थिति ज्यादा बिगड़ने लगी तो उस के पति उसे शहर के एक प्रसिद्ध मानसिक रोग विशेषज्ञ के पास ले कर गए. चिकित्सक ने पति को बताया कि गौरी पोस्टपार्टम साइकोसिस नामक रोग से पीडि़त है, जो पोस्टपार्टम डिप्रेशन का वीभत्स रूप है. ऐसी मरीज कई बार आत्महत्या की कोशिश भी कर सकती है. इतना ही नहीं, कई बार ऐसी मरीज अपने नवजात शिशु को भी शारीरिक क्षति पहुंच सकती है. इसलिए बिना देर किए ऐसी मरीज को इलाज के लिए किसी योग्य चिकित्सक के पास ले जाना चाहिए.

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रोग के कारण

प्रश्न उठता है कि प्रसव के बाद होने वाले इस तरह के मानसिक रोग के क्या कारण हैं? क्यों प्रसव के बाद कोई महिला इस तरह का व्यवहार करने लगती है? प्रसूति विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसा गर्भधारण के बाद शरीर में पाए जाने वाले कई तरह के हरमोंस के स्तर में परिवर्तन की वजह से होता है. इस कारण कोई भी महिला प्रसव के बाद कुछ महीनों में ऐसा व्यवहार कर सकती है. बच्चा किसी भी तरह का हो सकता है- जीवित, स्वस्थ या फिर मृत. इस तरह के लक्षण गर्भपात के बाद भी देखने को मिल सकते हैं, क्योंकि इस स्थिति में भी शरीर में हारमोंस में बदलाव होते हैं.

इस के अतिरिक्त कई और दूसरे कारण भी हैं. वे महिलाएं, जो प्रसव के पहले से ही डिप्रेशन नामक रोग की शिकार होती हैं या फिर पोस्टपार्टम डिप्रेशन की शिकार पहले भी हो चुकी होती हैं, उन्हें भी दोबारा इस के होने की संभावना ज्यादा होती है. यदि परिवार, पति या दोस्तों का सपोर्ट नहीं मिलता है तो भी वे इस तरह की परेशानियों की शिकार हो सकती हैं. ऐसा देखा गया है कि जिन महिलाओं का परिवार के साथ मधुर संबंध नहीं होता या फिर दांपत्य जीवन में हमेशा तनाव रहता है, वे अकसर इस तरह की परेशानियों से घिर जाती हैं यानी परिवार तथा घरेलू वातावरण का प्रभाव गर्भावस्था, प्रसव के समय या फिर प्रसवोपरांत तो पड़ता ही है.

शीघ्र इलाज कराएं

ऐसा नहीं है कि इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है या फिर यह भूतप्रेत के कुप्रभाव का प्रतिफल है. इस का इलाज संभव है. इस के लिए चिकित्सक डिप्रेशन को दूर करने वाली दवा तो देते ही हैं, काउंसलिंग की भी सहायता ली जाती है. कई मरीजों को जब परेशानियां ज्यादा होने लगती हैं तो उन्हें काउंसलिंग और दवा दोनों की जरूरत पड़ती है. वे महिलाएं, जो स्तनपान कराती हैं, उन्हें ऐसी एंटीडिप्रेसिव दवा दी जाती है, जो सुरक्षित हो.

परिवार का सपोर्ट जरूरी

ऐसी स्थिति में पति का सहयोग बहुत जरूरी है. इस के बिना मरीज की समस्या दिनोंदिन बढ़ती जाएगी और समय रहते इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो आगे चल कर वह पागलपन की भी शिकार हो सकती है. मरीज को कभी नहीं लगना चाहिए कि परिवार के लोग उस की उपेक्षा कर रहे हैं. कई बार अपेक्षित संतान नहीं होने यानी लड़के की चाह में लड़की हो जाने के कारण भी पति या परिवार के दूसरे सदस्य प्रसूता के साथ ठीक व्यवहार नहीं करते. इस कारण भी महिलाएं इस तरह की समस्या की गिरफ्त में आ जाती हैं. इसलिए जरूरी है कि ऐसी स्थिति आने पर मरीज के साथ घर के लोगों का व्यवहार सामान्य तथा सौहार्दपूर्ण हो.

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मरीज और बच्चे को कभी भी एकांत में नहीं छोड़ना चाहिए. मरीज को न तो उदास होने का मौका देना चाहिए और न ही ऊलजलूल सोचने का. एकांत मिलने के साथ ही ऐसे मरीजों के मन में कई तरह के अच्छेबुरे विचार आते हैं. यदि मरीज अपनी संतान के प्रति उपेक्षापूर्ण व्यवहार अपनाती है, उस की उचित देखभाल करने में कोताही बरतती है तो बच्चे की देखभाल के लिए अलग से कोई व्यवस्था करनी चाहिए. समय पर दूध पिलाने, मलमूत्र साफ करने, नहलानेधुलाने आदि कार्यों के लिए बच्चे को घर की बुजुर्ग महिलाओं के सिपुर्द कर देना चाहिए.

सही इलाज से मरीज अपनेआप बेहतर महसूस करने लगती है. मामूली लक्षणों की स्थिति में मरीज को दवा की जरूरत नहीं होती है. सिर्फ काउंसलिंग के द्वारा ही मरीज को कुछ दिनों में ही फायदा होने लगता है. धीरेधीरे भूख लगने लगती है, चेहरे से मायूसी, तनाव, उल झन और अवसाद के लक्षण गायब होने लगते हैं. शारीरिक स्फूर्ति लौटने लगती है. मन में बुरे विचार आने बंद होने लगते हैं. कई बार मरीज को चिकित्सक कुछ व्यायाम तथा योग करने की भी सलाह देते हैं ताकि तनाव दूर हो और रात को अच्छी नींद आने से मरीज अपनेआप को हलका महसूस करे.

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