90’s के मेकअप ट्रेंड को फौलो करती हैं सुहाना खान, लिप लाइनर लगाकर जीतती हैं फैंस का दिल

आपके पास लिप ग्लॉस और लिक्विड लिपस्टिक का स्टॉक हो सकता है, लेकिन अगर आप सही शुरुआत नहीं करते, तो दोपहर तक आपके होठों का लुक खराब हो सकता है. ऐसे में 90’s के ट्रेंड में मशहूर मेकअप ट्रिक डार्क शेड लिप लाइनर की आपको जरूरत होगी. तो लिप लाइनर लगाने के लिए इन बातों का रखे ख्याल.

90’s के दशक के सुपर मॉडल, पॉप स्टार को किसी डार्क शेड के लिप लाइनर के साथ अपने होंठों की आउटलाइन करते हुए काफी बार देखा गया है. यह ट्रेंड इतना लोकप्रिय था कि हम अपनी मम्मी को भी इसकी नकल करते हुए देखते थे. खैर इस बात मैं कोई शक नही की 90’s के दशक का हर फैशन ग्लॉसी और अनोखा था जिसकी अब धीरे धीरे  वापसी हो रही है और अब सभी जगह 90’s के दशक का जलवा देखने को मिल रहा है. इसी में ही लिप मेकअप का भी ट्रेंड शामिल है और जब मेकअप की बात आती है, तो शाहरुख खान की बेटी सुहाना खान किसी प्रोफेशनल से कम नही है.उसकी इंस्टाग्राम पेज , मेकअप इंस्पिरेशन से भरा हुआ है. सुहाना खान आज कल ’90 के डार्क शेड लिप लाइनर के ट्रेंड को बढ़ावा दे रही है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Suhana Khan (@suhanakhan2)

लेकिन अगर आप लिप लाइनर को इस्तेमाल करती हैं या करना चाहती है तो आपका यह जानना जरूरी है कि इसे किस तरह से इस्तेमाल करना है. तो चलिए आज हम आपको लिप लाइनर लगाने के सही तरीके के बारे में बता रहे हैं-

ये भी पढ़ें- ये 10 गलत आदतें बढ़ाती हैं मुंहासों की समस्या

लिप्स को करें रेडी :

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Suhana Khan (@suhanakhan2)

अगर आप अपने लिप्स को  खूबसूरत बनाना चाहती हैं तो लिप लाइनर लगाने से पहले लिप्स को रेडी करें.आपके लिप्स का स्मूथ होना बहुत जरूरी है.  कुछ महिलाएं सोचती हैं कि लिप मेकअप का पहला स्टेप लिप लाइनर लगाना है, जबकि ऐसा नहीं है. लिप लाइनर लगाने से पहले आप अपने टूथब्रश पर चीनी और शहद डालें और इसे धीरे से मलें. यह आपके लिप्स के डेड स्किन सेल्स को हटाकर उसे खूबसूरत बनाएगा. इसके बाद लिप्स पर बाम लगाएं. कुछ देर बाद ही आप लिप लाइनर का यूज करें.

एक जैसे लिप लाइनर और लिप कलर का करें इस्तेमाल :

लिप लाइनर के इस्तेमाल से पहले यह जरूरी है कि आप अपने लिए सही लिप लाइनर का चयन करें. कुछ महिलाएं अपने लिपस्टिक के कलर से बिलकुल अलग  कलर के लिप लाइनर को यूज करती हैं, जिसके कारण उनके लिप्स की आउटलाइनिंग अलग से नजर आती हैं. जो देखने में बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगती. इसलिए यह जरूरी है कि आप अपने लिपस्टिक के कलर से मैचिंग लिप लाइनर को ही अपने मेकअप का हिस्सा बनाएं. लिप लाइनर गहरा होना चाहिए लेकिन लिप कलर से भी मैच होना चाहिए. अगर आप लाल रंग की लिपस्टिक लगा रही हैं तो ब्रिक कलर्ड लिप लाइनर का इस्तेमाल करें. बेज लिप्स के साथ ब्राउन लिप लाइनर का प्रयोग करें.

पहले लगाए लिप लाइनर फिर लिप्स को करें फील :

अगर आप चाहती हैं कि आपकी लिपस्टिक फैले न तो अपने होंठो पर सबसे पहले लिप लाइनर ही लगाएं. कभी भी लिप लाइनर को बार बार ना लगाएं, इससे यह मोटा हो जाएगा और अच्छा नहीं लगेगा. लिप लाइनर को वहीं से लगाएं जहां से आपके होठों की नेचुरल लिप लाइन बनी हुई है और फिर अपने लिप्स को लिपस्टिक से फील करें.

ये भी पढ़ें- जानें क्या हैं हेयर स्ट्रेटनर के 9 साइड इफैक्ट्स

इन टिप्स को पढ़ने के बाद आप भी अपने होंठों की खूबसूरती को कई गुना बढ़ा पाएंगी. अगर आप अपने लिप्स को बेहद ब्यूटीफुल दिखाना चाहती हैं तो आपको लिप लाइनर लगाते समय इन बातों का खास ध्यान रखना होगा. इन टिप्स को फॉलो करें और अपने लिप्स को बनाए ग्लॉसी.

Mother’s Day Special: बच्चों के लिए बनाएं कैरेमल ब्रेड नगेट्स

इस समय कोरोना के कारण बच्चे बड़े सभी घरों में कैद हैं. बच्चे चाहे छोटे हों या बड़े उन्हें हर समय खाने के लिए कुछ न कुछ चाहिए होता है. ब्रेड तो बच्चों को यूं भी बहुत पसंद होती है और लगभग हर घर में उपलब्ध भी रहती है. आजकल तो ब्राउन, होल व्हीट, मल्टीग्रेन, गार्लिक, स्वीट, ओट्स जैसे कई फ्लेवर्स में ब्रेड आने लगी है. व्हाइट ब्रेड की अपेक्षा मल्टीग्रेन और ब्राउन ब्रेड खाना अधिक लाभप्रद होता है क्योंकि इसमें फाइबर अधिक मात्रा में पाया जाता है. अधिक मात्रा में या नियमित रूप से ब्रेड का सेवन करना सेहत के लिए नुकसानदेह हो सकता है इसलिए ब्रेड का सीमित मात्रा में प्रयोग करना चाहिए. कई बार प्रयोग करने के बाद ब्रेड के कुछ स्लाइस बच जाते हैं आज हम आपको ऐसी ही एक आसान रेसिपी बता रहे हैं जिनमें आप ताजी के साथ साथ रखी और बचे ब्रेड स्लाइस का उपयोग भी कर सकतीं हैं. तो आइए देखते हैं कि इसे कैसे बनाते हैं-

कितने लोंगों के लिए         6

बनने में लगने वाला समय    25 मिनट

मील टाइप                         वेज

सामग्री

ब्रेड स्लाइस             4

शकर                     2 टेबलस्पून

साल्टेड बटर            1 टेबलस्पून

ये भी पढ़ें- Mother’s Day Special: लंच में बनाएं कॉर्नफ्लैक्स स्टफ्ड कुकम्बर

दूध                         1 टीस्पून

वनीला एसेंस            1 टीस्पून

कटे बादाम पिस्ता      1 टीस्पून

पानी                         1 टीस्पून

विधि

ब्रेड स्लाइस को आधे इंच के चौकोर टुकड़ों में काट लें. इन्हें एक नॉनस्टिक पैन में बिना चिकनाई के करारा होने तक रोस्ट करें. इन्हें एक प्लेट में निकालकर ठंडा होने रख दें. अब पैन में शकर और पानी डालकर एकदम मंदी आंच कर दें. जब शकर पूरी तरह घुल जाए और रंग हल्का सा ब्राउन होने लगे तो दूध और बटर डालकर अच्छी तरह चलाएं. जैसे ही शकर एकदम डार्क ब्राउन रंग में बदलने लगे तो वनीला एसेंस डालकर चलाएं और रोस्टेड ब्रेड के टुकड़े डालकर चलाएं और गैस बंद कर दें. इस दौरान आंच धीमी ही रखें.  तैयार नगेट्स को एक प्लेट में निकालकर कटे पिस्ता बादाम डालें. इन्हें एक चम्मच की सहायता से अलग अलग कर दें वरना ये आपस में चिपक जाएंगे. जब बच्चे कुछ मीठा खाने को मांगे तो आप उन्हें दें. इन्हें आप एयरटाइट जार में भरकर फ्रिज में एक हफ्ते तक स्टोर कर सकतीं हैं.

ये भी पढ़ें- Mother’s Day Special: बच्चों को खिलाएं फ्रूट आइसक्रीम

अपनी सेवा और मेहनत से समृद्ध गांव बना चुकी हैं एक्ट्रेस राजश्री देशपांडे

अ भिनेत्री राजश्री देशपांडे अभिनय के क्षेत्र में डंका बजाने के साथ ही महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त गांव पांधरी में जलसंरक्षण की व्यवस्था कर पूरा वर्ष पानी की सहूलियत मुहैया कराते हुए इस गांव में 1 नहर, 200 शौचालय और स्कूल आदि का निर्माण करवा कर इसे एक समृद्ध गांव बना दिया. तो अब वह दूसरे गांव में काम कर रही है.

हाल ही में उन्हें ‘जलसंरक्षण’ के लिए पुरस्कृत भी किया गया. 2018 में उन्होंने ‘नभांगण फाउंडेशन’ की स्थापना की. कोविड-19 व लौक डाउन के वक्त 30 गांवों में राजश्री देशपांडे ने काम किया.

प्रस्तुत हैं, उन से हुए सवालजवाब:

अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में बताएं?

मेरी मां का नाम सुनंदा और पिताजी का बलवंत है. मुझ से बड़ी मेरी 2 बहनें हैं. मेरे मातापिता औरंगाबाद में एक छोटे से गांव के रहने वाले हैं. मेरे पिताजी भी किसानी करते थे, पर हमारी जमीन चली जाने के बाद मेरे पिता ने औरंगाबाद शहर में आ कर काम करना शुरू किया.

हमारे मातापिता ने कई तरह के हालात से गुजरते हुए हम 3 बहनों का पालनपोषण किया है. हमें बड़ा करना, उचित शिक्षा दिलाना, इस के लिए उन्होंने बहुत मेहनत की. मैं उन के संघर्ष को कभी नहीं भुला सकती. मेरी सब से बड़ी बहन डाक्टर और वकील हैं. इन दिनों वे एक इंश्योरैंश कंपनी में कार्यरत हैं. मेरी बीच वाली बहन ने इंजीनियरिंग की है.

ये भी पढ़ें- कोरोना में बतौर नर्स काम कर चुकी हैं ये एक्ट्रेस, पढ़ें खबर

मैं ने पुणे के सिंबौसिस लौ स्कूल से वकालत की डिगरी हासिल करने के बाद ‘सिंबौसिस इंटरनैशनल यूनिवर्सिटी से एडवरटाइजिंग में परा स्नातक की डिगरी हासिल की. कुछ समय बाद मैं ने मुंबई के ‘व्हिशलिंग वूड्स इंटरनैशनल’ से फिल्म मेकिंग में डिप्लोमा हासिल किया. पूरे 16 सालों से बाहर ही घूम रही हूं. मेरे पति नवदीप पुराणिक नौकरी कर रहे हैं और हमारा वैवाहिक जीवन काफी सुखद चल रहा है.

पिता के संघर्ष की याद के चलते गांवों की उन्नति के लिए काम करने की दिशा में सोचा?

ऐसा कह सकते हैं. पढ़ाई पूरी करने के बाद अच्छी जिंदगी जीने की चाहत में हम इतना व्यस्त हो जाते हैं कि अपने आसपास की जिंदगियों की तरफ ध्यान ही नहीं जाता. जब मैं ने ऐडवरटाइजिंग कंपनी की नौकरी छोड़ कर अभिनय की तरफ रुख किया, तब मैं पुन: जिंदगी, किताबों, यात्रा से जुड़ सकी. सोचनेविचारने की शक्ति आने के बाद हम ने पाया कि देश को आजाद हुए 75 वर्ष के बाद आज भी किसानों की हालत ठीक नहीं है.

सरकार की अपनी नीतियां बनी हुई हैं, मगर नीचे जमीन तक वे पहुंच नहीं पा रही हैं. अगर ये नीतियां जमीनी सतह तक लागू नहीं होंगी, तो इन का क्या फायदा? मुझे लगता है कि यदि मेरे 2 हाथ गांव की तरक्की में काम आ रहे हैं, तो मेरे साथ 10 अन्य हाथ भी जुड़ें.

आप ने 5 साल पहले ‘पांधरी’ गांव को ही क्यों गोद लिया था?

देखिए, 2015 में जब नेपाल में भूकंप आया, तब मैं ने सब से पहले एक अंतर्राष्ट्रीय एनजीओ के साथ नेपाल जा कर भूकंपग्रस्त क्षेत्र में काम किया था. मुंबई में बच्चों के लिए काम कर रही थी. महाराष्ट्र के बाढ़ग्रस्त इलाकों में भी काम कर चुकी थी. पर मैं ने ये सब काम वालंटियर के तौर पर किए थे. काम खत्म होने के बाद मैं इन से संपर्क नहीं रख पाई थी. तो मैं ने सोचा कि मैं जिस इलाके को जानती हूं, वहां के लोगों के लिए कुछ किया जाए.

मैं मराठवाड़ा से हूं. औरंगाबाद में मेरी शिक्षादीक्षा हुई है. किसानों के साथ गांव में ही पलीबढ़ी हूं. गांवों को अच्छी तरह से जानती हूं. इसलिए मैं ने सोचा कि महाराष्ट्र के सर्वाधिक सूखाग्रस्त मराठवाड़ा इलाके के गांवों में काम किया जाए.

फिर स्थिति का आंकलन शुरू किया. मैं करीब 3 माह तक 1 से दूसरे गांव भटकती रही. उन्हीं में से एक छोटा गांव पांधरी था, जहां की बुजुर्ग महिला ने मुझ से कहा कि आप सिर्फ बोलने आई हैं, या आप काम भी करेंगी. यों तो उस ने गलत नहीं कहा था क्योंकि आमतौर पर लोग गांव जा कर हालात देख कर उस के बारे में सोशल मीडिया पर लिख कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं.

मैं भी अपना सारा गुस्सा सोशल मीडिया पर निकाल कर उसे भूल जाती पर मैं ने सोचा कि मुझे तो इन के लिए काम करना है. फिर उस महिला की बात ने मेरे दिल को कुरेदा. दूसरी बात उस वक्त मैं बहुत बड़ा काम नहीं कर सकती थी. क्योंकि उतना धन व साधन मेरे पास नहीं थे. इसलिए मैं ने पांधरी गांव से शुरुआत की.

पांधरी गांव में जब आप ने काम करना शुरू किया था, तब गांव वालों से किस तरह की प्रतिक्रियाएं मिली थीं?

देखिए, मैं यह मान कर चालती हूं कि जब आप सही काम करने के लिए कदम उठाएंगे, तो विरोध सहन करना पड़ सकता है. तो शुरुआत में गांव के किसानों की समझ में नहीं आ रहा था. वे कह रहे थे कि आप हम से काम क्यों करवा रही हो. यदि आप एनजीओ से हैं, तो पैसा दे कर जाइए. मैं ने कहा कि मेरे पास पैसे नहीं हैं. हम तो आप के साथ मिलजुल कर काम करने आए हैं.

ये भी पढ़ें- बच्चों की जिंदगी बचाना ही Music की जर्नी का मकसद मानती हैं पलक, पढ़ें इंटरव्यू

पहले तो मेरे साथ सिर्फ 5 लोग ही खड़े हुए थे, फिर धीरेधीरे लोग मेरे साथ जुड़ते गए. मैं ने उन्हें प्यार से समझया कि ये सब उन के अपने बच्चों के लिए ही है.

आगे क्या योजना है?

हम योजना नहीं बनाते. हमें सिर्फ गांवों के विकास के लिए काम करना है. मैं व्यवसायी नहीं हूं. यदि किसी गांव का स्कूल ठीकठाक है, तो उसे तोड़ कर ठीक नहीं करना है. मेरी कोशिश यह है कि गांव में जिस चीज की जरूरत हो, उस पर काम करना.

लौट आओ मौली: भाग 2- एक गलतफहमी के कारण जब आई तलाक की नौबत

पहला भाग पढ़ने के लिए- लौट आओ मौली: भाग-1

लेखक- नीरजा श्रीवास्तव

‘‘क्यों तुम्हारे मियां को ताजा हवा अखरती है?’’ शशांक के प्रश्न पर एक उदास मलिन सी रेखा मौली के चेहरे पर उभर आई, जिसे उस ने बनावटी मुसकान से तुरंत छिपा लिया.

‘‘अब यहीं खड़ेखड़े सब जान लोगे या कहीं बैठोगे भी?’’

‘‘अरे तो तुम बाइक पर बैठो तभी तो… या वहां तक पैदल घसीटता हुआ अपनी ब्रैंड न्यू बाइक की तौहीन करूं… हा हा…’’

‘‘कुछ ही देर में शशांक के जोक्स से हंसतेहंसते मौली के पेट में बल पड़ गए. बहुत दिनों बाद वह खुल कर हंसी थी.’’

‘‘अब बस शशांक…’’ उस ने पेट पकड़ते हुए कहा, ‘‘सो रैग्युलेटेड, हाऊ

बोरिंग… न साथ में घूमना, न मूवी, न बाहर खाना, न किसी पार्टीफंक्शन में जाना. हद है यार, शादी करने की जरूरत ही क्या थी… अच्छा उन के लिए समोसे ले चलते हैं, कैसे नहीं खाएंगे देखता हूं. तुम झट अदरकइलायची वाली चाय बनाना, कौफी नहीं…’’ वह बिना संकोच किए मौली को घर छोड़ने को क्या मलय के साथ चाय भी पीने को तैयार था. मौली कैसे मना करे उसे, पता नहीं मलय क्या सोचे इसी उलझन में थी.

‘‘सोच क्या रही हो, बैठो मेरे इस घोड़े पर… अब देर नहीं हो रही?’’ अपनी बाइक की ओर इशारा कर के वह समोसे का थैला रख मुसकराते हुए फटाफट बाइक पर सवार हो गया.

घबरातेसकुचाते मौली को मलय से शशांक को मिलाना ही पड़ा. शशांक के बहुत जिद करने पर मलय ने समोसे का एक टुकड़ा तोड़ लिया था. चाय का एक सिप ले कर एक ओर रख दिया तो मौली झट उस के लिए कौफी बना लाई. शशांक ने कितनी ही मजेदार घटनाएं, जोक्स सुनाए पर मलय के गंभीर चेहरे पर कोई असर न हुआ. उस के लिए सब बचकानी बातें थीं. उस के अनुसार तो एक उम्र के बाद आदमी को धीरगंभीर हो जाना चाहिए. बड़ों को बड़ों जैसे ही बर्ताव करना चाहिए… कितनी बार मौली को उस से झाड़ पड़ चुकी थी इस बात के लिए.

ये भी पढ़ें- कामयाब: पंडित की भविष्यवाणी ने क्यों बदल दी चंचल-अभिनव की जिंदगी

मलय उकता कर उठने को हुआ तो शशांक भी उठ खड़ा हुआ, ‘‘मैं चलता हूं. काफी बोर किया आप को, मगर जल्दी ही फिर आऊंगा, तैयार रहिएगा.’’

गेट तक आ कर मौली को धीरे से बोला, ‘‘जल्दी हार मानने वाला नहीं. इन्हें इंसान बना कर ही रहूंगा. कैसे आदमी से ब्याह कर लिया तुम ने. मिलता हूं कल शाम को… बाय.’’

इस से पहले मौली कुछ कहती वह किक मार फटाफट निकल गया.

दूसरे दिन 5 ही बजे शशांक मौली के घर उपस्थित था, ‘‘जल्दी तैयार हो जाओ, खड़ूसजी कहां हैं? उन्हें भी कहो गैट रैडी फास्ट,’’ मौली को हैरानी से अपनी ओर देखते हुए देख उस ने हंसते हुए हवा में आसमानी रंग के मूवी टिकट लहराए, जैसे कोई जादू दिखा रहा हो.़

‘‘रोहित शेट्टी की नई फिल्म की 3 टिकटें हैं.’’

‘‘तुम्हें बताया था न, नहीं जाते हैं मूवीशूवी और ऐसी कौमेडी टाइप तो बिलकुल भी नहीं.’’

‘‘अरे बुलाओ तो उन्हें, ब्लैक कौफी वहीं पिलवा दूंगा और रात का डिनर भी

मेरी तरफ से. उन के जैसा सादा शुद्ध भोजन. ऐसे मत देखो, मैं यहां नया हूं यार. मेरा यहां कोई रिश्तेदार भी नहीं. वह तो अच्छा हुआ जो तुम मिल गईं…. चलोचलो जल्दी करो. कैब बुक कर दी है 20 मिनट में पहुंच जाएगी,’’ शशांक बेचैन हो रहा था.

मलय मना ही करता रह गया पर शशांक की जिद के आगे उस की एक न चली. जबरदस्ती मूवी देखनी पड़ी थी उसे. लौट कर हत्थे से उखड़ गया, खूब बरसा था मौली पर.

‘‘अपने दोस्त को समझा लो वरना मैं ही कुछ उलटा बोल दूंगा तो रोती फिरोगी कि मेरे दोस्त को ऐसावैसा बोल दिया. तुम को जाना है तो जाओ, उस के बेवकूफी भरे जोक्स तुम ही ऐंजौय करो. बहुत टाइम है न तुम्हारे पास फालतू…’’

ये भी पढ़ें- बेवजह

मांपापा के जाने का दुख मौली को भी था पर मलय जितना नहीं होगा यह भी सही है पर जिंदगी तो चलानी ही है. कब तक यों ही मुंह लटकाए रहा जा सकता है. मौली याद करती जब अपने पापा को खोया था तो उस की उम्र 20 साल की रही होगी… कुछ दिनों तक लगता था कि सब खत्म हो गया पर जल्द ही खुद को संभाल लिया. फिर पूरे घर का माहौल खुशनुमा बना दिया था. अपनी पढ़ाई भी पूरी की. टीचिंग शुरू कर मां की घर चलाने में मदद भी करने लगी थी.

यहां मलय को खुश करने की सारी कोशिश बेकार थी. 2 साल हो गए थे मगर हर समय मायूसी छाई रहती. टीवी में भी उस की कोई दिलचस्पी न थी. मौली के पसंद के शोज को वह बकवास, बच्चों वाले, मैंटल के खिताब भी दे डालता. हार कर मौली ने पास ही में स्कूल जौइन कर लिया कि कुछ तो दिल लगेगा, घर पर भी ट्यूशंस लेने लगी. अब कुछ अच्छा लगने लगा था उसे. समय कैसे गुजर जाता पता ही नहीं चलता. काम के साथसाथ सब से हंसनाबोलना भी हो जाता. पर शनिवार को मलय घर होता, बच्चों का शोरगुल उसे कतई रास न आता. भुनभुन करता ही रहता. मौली कोशिश करती कि शनिवार को बच्चों को न बुलाए पर परीक्षा हो तो बुलाना ही पड़ता.

उस के व्यस्त रहने और कुछ मलय की बेरुखी समझने के कारण शशांक का घर आना कम हो गया था. पर शनिवार को वे अवश्य मिल लेते. मौली पेट भर हंस लेती जैसे हफ्ते भर का कोटा पूरा कर रही हो. इधर स्कूल का भी काम बढ़ने लगा था. बच्चों की परीक्षाएं आ गई थीं, मौली को अधिक समय देना पड़ता.

मौली ने खाना बनाने के लिए कामवाली रख ली. लाख कोशिशों के बाद भी मौली सास के बने खाने जैसा स्वाद नहीं ला सकी थी… मलय को चिड़चिड़ तो करनी ही थी, हो सकता है कामवाली के हाथ का खाना पसंद आ जाए.

ये भी पढ़ें- जिम्मेदारी बनती है कि नहीं: क्यों प्यार की कद्र ना कर पाई बुआ

मौली हरदम खुद को संवार के रखती कि इसी बहाने कभी तो प्यार के 2 मीठे बोल बोले, कुछ प्यारी सी टिप्पणी कर दे, पर वह कभी कुछ न बोलता. बात वह पहले भी कहां करता था. हंसीठिठोली उसे पसंद नहीं थी, यह सब उसे बचकानी हरकतें लगतीं. उस के खट्टेमीठे अनुभव में उस की कोई दिलचस्पी न थी.

आगे पढ़ें- मौली बच्चों के साथ हैप्पी बर्थडे गीत गा कर…

पीरियड्स के ‘बर्दाश्त ना होने वाले दर्द’ को चुटकियों में करें दूर

पीरियड्स के दौरान महिलाओं को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. कई बार इस दौरान महिलाओं को बहुत तेज दर्द का सामना करना पड़ता है. ऐसे में वो दवाइयों का सहारा लेने लगती हैं. पीरियड्स पेन में इस्तेमाल होने वाले पेन किलर्स हाई पावर वाले होते हैं. स्वास्थ पर उनका काफी बुरा असर होता है.

इस खबर में हम आपको पांच घरेलू टिप्स के बारे में बताएंगे जिनको अपना कर आप हर महीने होने वाले इस परेशानी से राहत पा सकेंगी.
तो आइए शुरू करें.

1. तले आहार से करें परहेज

पीरियड्स में आपको अपनी डाइट पर खासा ख्याल रखना होगा. इस दौरान तले, भुने खानों से दूर रहें. अपनी डाइट में हरी सब्जियों और फलों को शामिल करें. ये काफी असरदार होते हैं.

2. तेजपत्ता

तेजपत्ता से होने वाले स्वास्थ लाभ के बारे में बहुत कम लोगों को पता होता है. पीरियड्स से होने वाली परेशानियों में तेजपत्ता काफी कारगर होता है. महावारी के दर्द को दूर करने के लिए महिलाएं इसका इस्तेमाल करती हैं.

ये भी पढ़ें- इन छोटे संकेतों से पहचाने दिल की बीमारी का खतरा

3. हौट बैग

पीरियड्स में होने वाले दर्द में हौट बैग काफी कारगर होता है. इसको पेट के उस हिस्से पर रखना होता है जहां दर्द महसूस हो रहा है. ऐसा करने से आपको आराम मिलेगा.

4. कैफीन से रहें दूर

पीरियड्स के दौरान काफीन से दूरी बनाएं रखें. इस वक्त में इसके सेवन से गैस की परेशानी होती है. गैस के कारण कई बार दर्द बढ़ जाता है.

5. एक्सरसाइज को अपनी रूटीन में शामिल करें

डेली रूटीन में एक्सरसाइज को शामिल करने से आपको दर्द में काफी राहत मिलेगी. इससे ब्लौटिंग की परेशानी में भी काफी राहत मिलती है.  ब्लौटिंग की वजह से ही दर्द महसूस होता है. ऐसे में लाइट एक्‍सरसाइज करने से आपकी मसल्‍स रिलैक्‍स महसूस करेंगी.

ये भी पढ़ें- Health Tips: पैरों में जलन को न करें नजरअंदाज

6. नमक से भी बना लें दूरी

पीरियड्स में ब्लौटिंग होना एक आम बात है. ऐसे में अगर आप पीरियड्स से कुछ समय पहले ही नमक का सेवन कम कर देती हैं तो आपकी किडनी को अत्यधिक पानी निकालने में मदद मिलने के साथ आपको दर्द में भी राहत मिलेगी.

घर के इंटीरियर में जरूर शामिल करें ये 5 चीजें

पूरा साल व्यस्त रहने के कारण हम चाह कर भी घर के इंटीरियर के साथ छेड़छाड़ नहीं कर पाते और उसे देखदेख कर ऊब जाते हैं. अगर आप भी उन्हीं में शामिल हैं तो इस दीवाली अपने घर के इंटीरियर में इन 5 चीजों को शामिल कर घर को दें नया व शानदार लुक:

1. ऐंट्रैंस डोर से पाएं फैस्टिव साउंड

दीवाली के खुशनुमा माहौल में ऐंट्रैंस डोर की सजावट भी फीकी नहीं रहनी चाहिए, क्योंकि यह न सिर्फ घर में अपनों को प्रवेश देता है, बल्कि उन्हें बांधे भी रखता है. ऐसे में जरूरी है कि डोर की खास सजावट हो. आप इसे पेंट द्वारा नया बना सकते हैं, साथ ही तोरण व बंदनवार से भी सजाएं, क्योंकि इन के बिना त्योहार की सजावट अधूरी ही लगती है.

आप चाहें तो फूलों से सजा तोरण डोर पर लगा सकती हैं या फिर घंटी, रिबन, मिरर वर्क से बनी बंदनवार सभी डोर के आकर्षण को बढ़ाने का काम करेंगे. खासकर डोर पर लगी डैकोरेटिव रिंगिंग बैल्स से निकलने वाली आवाजें जब कानों में गूंजेंगी तो मन खुशी से झूम उठेगा.

ये भी पढ़ें- बड़े काम के हैं ये 6 किचन एप्लायंसेज

2. थोड़ा रीअरेंज थोड़ा रीलुक

एकजैसा लुक, एकजैसा स्टाइल किसी को भी बारबार देखना पसंद नहीं होता है. खासकर तब जब बात हो त्योहारों की. इस समय तो मन कुछ हट कर करने व सोचने को करता है. यहां सबकुछ बदलने की जरूरत नहीं वरन थोड़े रिअरेंज और थोड़े रीलुक से अपने लिविंगरूम को मनचाहा लुक दे सकती हैं.

इस के लिए आप सब से पहले अपने लिविंग रूम की स्पेस चैक करें. अगर रूम काफी स्पेशियस है तो आप साइड कौर्नर्स लगा कर उन की खूबसूरती को उभार सकती हैं. इस के अलावा कोई सुंदर सा इंडोर प्लांट भी घर की खूबसूरती को बढ़ाने का काम करेगा. हां, अगर रूम में स्पेस कम है, तो आप अपने सोफे की सैटिंग में थोड़ा फेरबदल कर के रूम को स्पेशियस बनाएं. सोफे के साथ बड़ी टेबल की जगह छोटी कौफी टेबल रखें, जो अलग दिखने के साथसाथ जगह भी कम घेरेगी.

रूम में चेंज लाने के लिए दीवारों पर पेंट करवाने की जगह वौलपेपर भी ट्राई कर सकती हैं, यकीन मानिए यह दीवारों के साथसाथ घर में भी नई जान डालेगा और देखने वाले भी देखते रह जाएंगे.

3. लेटैस्ट कुशन कवर्स

हर दीवाली पर सोफा चेंज करना संभव नहीं होता, मगर उस के लुक को बदलना हमारे हाथ में होता है, जो न सिर्फ सोफे को नया लुक देता है, बल्कि रूम में भी नया बदलाव लाता है. मार्केट में ढेरों लेटैस्ट डिजाइनों के कवर्स उपलब्ध हैं, जिन में प्रमुख हैं- प्रिंटेड, ऐंब्रौयडर्ड, थीम बेस्ड, स्टोन वर्क, गोटा पट्टी वर्क, मल्टी कलर्ड कुशन कवर्स, टैक्स्ट वर्क, ब्लौक प्रिंट कुशन कवर, टील कवर, सिल्क कवर, वैलवेट कुशन कवर, हैंडमेड कुशन कवर्स आदि.

4. परदों से निखारें इंटीरियर

घर में परदों के बिना खिड़कीदरवाजों की रौनक फीकी सी लगती है. ऐसे में अगर आप इस दीवाली घर को पेंट करवाने के मूड में नहीं हैं तो सिर्फ परदे बदल कर घर को दें नया लुक. इस के लिए कौटन के परदों से थोड़ा हट कर सोचें, क्योंकि अब उन की जगह नैट, टिशू, लिनेन, क्रश व सिल्क के परदों ने ले ली है. तो फिर इस फैस्टिव सीजन आप नैट के परदों के बीच सिल्क या टिशू के परदों के स्टाइल को भी कैरी कर सकती हैं.

ये भी पढ़ें- लड़कियां कहां करती हैं खर्च

5. बालकनी की सजावट भी हो खास

बालकनी की सजावट के लिए शुरुआत करें गमलों को सजाने से फिर घर के मुख्यद्वार व बालकनी में रंगोली बनाएं. यह न सिर्फ आप के हुनर का प्रदर्शन करेगी, बल्कि घरको भी खूबसूरत बनाएगी. बालकनी में लाइटिंग की भी खास व्यवस्था रखें. इस बात का खास ध्यान रखें कि लडि़यां ब्रैंडेड हों ताकि उन के खराब होने पर आप की मेहनत पर पानी न फिरे. छोटेछोटे दीयों व हैंगिंग झूमर से भी बालकनी को डैकोरेट कर सकती हैं.

Serial Story: मध्यांतर भी नहीं हुआ अभी

Serial Story: मध्यांतर भी नहीं हुआ अभी- भाग 2

चंद्रा खड़ी थी सामने. तो क्या श्रीमती गोयल अपनी चंद्रा ही हैं जिस के लेख अकसर देश की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में छपते हैं?

‘‘जरा किस्मत देखो, पति शादी के 5 साल बाद अपने से आधी उम्र की लड़की के साथ भाग गया. औलाद कोई है नहीं. अफसोस होता है मुझे श्रीमती गोयल के लिए.’’

काटो तो रक्त नहीं रहा मेरी शिराओं में. आंखें फाड़फाड़ कर मैं अपने सहयोगी का चेहरा देखने लगा जो बड़बड़ा भी रहा था और बड़ी रुचि ले कर चंद्रा को सुन भी रहा था. इस सत्य का इतना बड़ा धक्का लगेगा मुझे मैं नहीं जानता था. ब्लड प्रेशर का मरीज तो हूं ही मैं, उसी का दबाव इतना बढ़ गया कि लंच बे्रेक तक पहुंच ही नहीं पाया मैं. तबीयत इतनी ज्यादा खराब हो गई कि अस्पताल में जा कर ही मेरी आंख खुली.

‘‘सोम, क्या हो गया तुम्हें? क्या सुबह कुछ परेशानी थी?’’

चंद्रा ही तो थी मेरे पास. इतने लोगों की भीड़ में बस चंद्रा. शायद 22 वर्ष पुरानी दोस्ती का ही नाता था जिस का प्रभाव चंद्रा की आंखों में था. माथे पर उस का हाथ और शब्दों में ढेर सारी चिंता.

‘‘अब कैसे हो, सोम?’’

50 के आसपास पहुंच चुका हूं मैं. वर्माजी, वर्मा साहब सुनसुन कर कान इतने पथरा गए हैं कि अपना नाम याद ही नहीं था मुझे. मांबाप अब जिंदा नहीं हैं और छोटी बहन भाई कह कर पुकारती है. बरसों बाद कोई नाम से पुकार रहा है. कल से यही आवाज है जो कानों में रस घोल रही है और आज भी यही आवाज है जो संजीवनी सी घुल रही है कानों में.

यह भी पढ़ें- सुगंध

‘‘सोम, क्या हुआ? तुम्हारे घर में सब ठीक तो हैं न…क्या परेशानी है…मुझ से बात करो.’’

क्या बात करूं मैं चंद्रा से? समझ नहीं पा रहा हूं क्या कहूं. डाक्टर ने आ कर मेरी पूरी जांच की और बताया… अभी भी मैं पूरी तरह सामान्य नहीं हूं. सुबह तक यहीं रुकना होगा.

‘‘तुम्हारे घर से बुला लूं किसी को, तुम्हारी पत्नी को, बच्चों को, अपने घर का नंबर दो.’’

अधिकार के साथ आज भी चंद्रा ने मेरा सामान टटोला और मेरा कार्ड निकाल कर घर का नंबर मिलाया. एक बार 2 बार, 10 बार.

‘‘कोई फोन नहीं उठा रहा. घर पर कोई नहीं है क्या?’’

मैं ने इशारे से चंद्रा को पास बुलाया. बड़ी हिम्मत की मुसकराने में.

‘‘ऐसा कुछ नहीं है. सब ठीक है…’’

‘‘तो कोई फोन क्यों नहीं उठाता. तुम भी परेशान हो और मुझ से कुछ छिपा रहे हो?’’

‘‘हमारे पास छिपाने को है ही क्या, चंद्रा? तुम भी खाली हाथ हो और मैं भी. मेरे घर पर जब कोई है ही नहीं तो फोन का रिसीवर कौन उठाएगा.’’

‘‘क्या मतलब?’’

अब चौंकने की बारी चंद्रा की थी. हंसने लगा मैं. तभी हमारे कुछ सहयोगी मुझे देखने चले आए. मुझे हंसते देखा तो आंखें तरेरने लगे.

‘‘वर्माजी, यह क्या तमाशा है. हमें दौड़ादौड़ा कर मार दिया और आप यहां तमाशा करने में लगे हैं.’’

‘‘इन के परिवार का पता है क्या आप के पास? कृपया मुझे दीजिए. मैं इन की पत्नी को बुला लेना चाहती हूं. ऐसी हालत में उन का यहां होना बहुत जरूरी है.’’

पलट कर चंद्रा ने उन आने वालों से सारी बात करना उचित समझा. कुछ पल को चुप हो गए सब के सब. बारीबारी से एकदूसरे का चेहरा देखा और सहसा सब सच सुना दिया.

‘‘इन की तो शादी ही नहीं हुई… पत्नी का पता कहां से लाएंगे…वर्माजी, आप ने इन्हें बताया नहीं है क्या?’’

‘‘अपनी सहपाठी से इतने सालों बाद मिले, कल रात देर तक पुरानी बातें भी करते रहे तो क्या आप ने अपने बारे में इतना सा भी नहीं बताया?’’

‘‘इन्होंने पूछा ही नहीं, मैं बताता कैसे?’’

‘‘श्रीमती गोयल, आप वर्माजी के साथ पढ़ती थीं. ऐसी कौन लड़की थी जिस की वजह से वर्माजी ने शादी ही नहीं की. क्या आप को जानकारी है?’’

‘‘नहीं तो, ऐसी तो कोई नहीं थी. मुझे तो याद नहीं है…क्यों सोम? कौन थी वह?’’

‘‘सब के सामने क्यों पूछती हो. कुछ तो मेरी उम्र का खयाल करो. तुम्हारी यह आदत मुझे आज भी अच्छी नहीं लगती.’’

यह भी पढ़ें-मैं तो कुछ नहीं खाती

‘‘कौन थी वह, सोम? जिस का मुझे ही पता नहीं चला.’’

‘‘बस, हो गया न मजाक,’’ मैं जरा सा चिढ़ गया.

‘‘तुम जाओ चंद्रा. मैं अब ठीक हूं. यह लोग रहेंगे मेरे पास.’’

‘‘कोई बात नहीं. मैं भी रहूंगी यहां. कुछ मुझे भी तो पता चले, आखिर इस उच्च रक्तचाप का कारण क्या है. कोई चिंता नहीं, कोई तनाव नहीं, कल ठीक थे न तुम, आज सुबहसुबह ऐसा क्या हो गया कि सीधे यहीं आ पहुंचे.’’

मैं ने चंद्रा को बहुत समझाना चाहा लेकिन वह गई नहीं. सच यह भी है कि मन से मैं भी नहीं चाहता था कि वह चली जाए. उथलपुथल का सैलाब जितना मेरे अंदर था शायद उस से भी कुछ ज्यादा अब उस के मन में होगा.

सब चले गए तो हम दोनों रह गए. वार्ड ब्वाय मेरा खाना दे गया तो उसे चंद्रा ने मेरे सामने परोस दिया.

‘‘आज सुबह ही मुझे तुम्हारे बारे में पता चला कि श्रीमती गोयल तुम हो…तुम्हारे साथ इतना सब बीत गया. उसी से दम इतना घुटने लगा था कि समझ ही नहीं पाया, क्या करूं.’’

अवाक् सी चंद्रा मेरा चेहरा देखने लगी.

‘‘तुम्हारे सुखी भविष्य की कल्पना की थी मैं ने. तुम मेरी एक अच्छी मित्र रही हो. जब भी तुम्हें याद किया सदा हंसती मुद्रा में नजर आती रही हो. तुम्हारे साथ जो हो गया तुम उस लायक नहीं थीं.

‘‘मैं तुम्हारा सिर थपथपाया करता था और तुम मुझे ‘पापा’ कह कर चिढ़ाती थीं. आज ऐसा ही लगा मुझे जैसे मेरे किसी बच्चे का जीवन नर्क हो गया और मैं जान ही नहीं पाया.’’

‘‘वे सब पुरानी बातें हैं, सोम, लगभग 17-18 साल पुरानी. इतनी पुरानी कि अब उन का मुझ पर कोई असर नहीं होता तो तुम ने उन्हें अपने दिल पर क्यों ले लिया? वह इनसान मेरे लायक नहीं था. इसीलिए वहीं चला गया जहां उस की जगह थी.’’

उबला दलिया अपने हाथों से खिलातेखिलाते गरदन टेढ़ी कर चंद्रा हंस दी.

‘‘तुम छोटे बच्चे हो क्या सोम, जो इतनी सी बात पर इतने परेशान हो गए. जीवन में कई बार गलत लोग मिल जाते हैं, कुछ देर साथ रह कर पता चलता है हम तो ठीक दिशा में नहीं जा रहे… सो रास्ता बदल लेने में क्या बुराई है.’’

‘‘रास्ता ही खो जाए तो?’’

‘‘तो वहीं खडे़ रहो, कोई सही इनसान आएगा… सही रास्ता दिखा देगा.’’

‘‘दुखी नहीं होती हो, चंद्रा.’’

‘‘कम से कम अपने लिए तो कभी नहीं होती. खुशनसीब हूं…मेरे पास कुछ तो है. दालरोटी मिल रही है…समाज में मानसम्मान है…ढेरों पत्र आते हैं जो मुझे अपने बच्चों जैसे प्यारे लगते हैं. इतने साल कट गए हैं सोम, आगे भी कट ही जाएंगे. जो होगा देख लेंगे.’’

‘‘बस चंद्रा, और खाया नहीं जाएगा,’’ पतला दलिया मेरे गले में सूखे कौर जैसा अटकने लगा था. उस का हाथ रोक लिया मैं ने.

‘‘शुगर के मरीज हो न, भूखे रहोगे तो शुगर कम हो जाएगी…अच्छा, एक और चीज है मेरे पास तुम्हारे लिए…सुबह होस्टल में ढोकला बना था तो मैं ने तुम्हारे लिए पैक करवा लिया था…सोचा, क्या पता आज फिर से सेमिनार लंबा ख्ंिच जाए और तुम भूख से परेशान हो कर कुछ खाने को बाहर भागो.’’

ये भी पढ़ें- दोस्ती: अनिकेत के समझौते के खिलाफ क्या था आकांक्षा का फैसला

‘‘मेरी इतनी चिंता रही तुम्हें?’’

‘‘अब अपना है कौन जिस की चिंता करूं? कल बरसों बाद अपना नाम तुम्हारे होंठों से सुना तो ऐसा लगा जैसे कोई आज भी ऐसा है जो मुझे नाम से पुकार सकता है. कोई आज भी ऐसा है जो बिना किसी बनावट के बात शुरू भी कर सकता है और समाप्त भी. बहुत चैन मिला था कल तुम से मिल कर. सुबह नाश्ते में भी तुम्हारा खयाल आया.’’

आगे पढ़ें- मेरा प्याला तो पहले ही छलकने के कगार पर था….

Serial Story: मध्यांतर भी नहीं हुआ अभी- भाग 3

चंद्रा रो पड़ी थी. मेरा प्याला तो पहले ही छलकने के कगार पर था. सच ही तो कह रही है चंद्रा…अब अपना है ही कौन जो चिंता करे. मेरी चिंता करने वाले मेरे मांबाप भी अब नहीं हैं और शायद चंद्रा के भी अब इस संसार में नहीं होंगे.

देर तक एकदूसरे के सामने बैठे हम अपने बीते कल और अकेले आज पर आंसू बहाते रहे, न उस ने मुझे चुप कराना चाहा और न मैं ने ही उसे रोका.

काफी समय बीत गया. जब लगा मन हलका हो गया तब हाथ उठा कर चंद्रा का सिर थपथपा दिया मैं ने.

‘‘बस करो, अब और कितना रोओगी?’’

रोतेरोते हंस पड़ी चंद्रा. आंखें पोंछ अपना पर्स खोला और मेरे लिए लाया ढोकला मुझे दिखाया.

‘‘जरा सा चखना चाहोगे, मुंह का स्वाद अच्छा हो जाएगा.’’

लगा, बरसों पीछे लौट गया हूं. आज भी हम जवान ही हैं…जब आंखों में हजारोंलाखों सपने थे. हर किसी की मुट्ठी बंद थी. कौन जाने हाथ की लकीरों में क्या होगा. अनजान थे हम अपने भविष्य को ले कर और अनजाने रहने में ही कितना सुख था. आज सबकुछ सामने है, कुछ भी ढकाछिपा नहीं. पीछे लौट जाना चाहते हैं हम.

‘‘मन नहीं हो रहा चंद्रा…भूख भी नहीं लग रही.’’

‘‘तो सो जाओ, रात के 9 बज गए हैं.’’

ये भी पढ़ें- लाली: नेत्रहीन लाली और रोशन की बचपन की दोस्ती में क्यों आ गई दरार

‘‘तुम होस्टल चली जातीं तो आराम से सो पातीं.’’

‘‘यहां क्या परेशानी है मुझे? पुराना साथी सामने है, पुरानी यादों का अपना ही मजा है, तुम क्या जानो.’’

‘‘मैं कैसे न जानूं, सारी समझदारी क्या आज भी तुम्हारी जेब में है?’’

मेरे शब्दों पर पुन: चौंक उठी चंद्रा. मुझे ठीक से लिटा कर मुझ पर लिहाफ ओढ़ातेओढ़ाते उस के हाथ रुक गए.

‘‘झगड़ा करना चाहते हो क्या?’’

‘‘इस में नया क्या है? बरसों पहले जब हम अलग हुए थे तब भी तो एक झगड़ा हुआ था न हमारे बीच.’’

‘‘याद है मुझे, तो क्या आज हारजीत का निर्णय करना चाहते हो?’’

‘‘हां, आखिर मैं एक पुरुष हूं. जाहिर सी बात है जीतना तो चाहूंगा ही.’’

‘‘मैं हार मानती हूं, तुम जीत गए.’’

‘‘चंद्रा, मेरी बात सुनो…’’ सामने बेंच की ओर बढ़ती चंद्रा का हाथ पकड़ लिया मैं ने. पहली बार ऐसा प्रयास किया है मैं ने और मेरा यह प्रयास एक अधिकार से ओतप्रोत है.

‘‘मेरे पास बैठो, यहां.’’

एक उलझन उभर आई है चंद्रा की आंखों में. शायद मेरा यह प्रयास मेरी अधिकार सीमा में नहीं आता.

‘‘सब के सामने तो तुम पूछती हो कि मेरा परिवार कहां है? मेरी पत्नी कहां है? अगर शादी नहीं की तो क्यों नहीं की? अकेले में क्यों नहीं पूछतीं? अभी हम अकेले हैं न. पूछो मुझ से कि मैं किस की चाह में अकेला रहा सारी उम्र?’’

मेरे हाथ से अपना हाथ नहीं छुड़ाया चंद्रा ने. मेरी बगल में चुपचाप बैठ गई.

‘‘बरसों पहले भी मैं तुम से हारना नहीं चाहता था. तब भी मेरे जीतने का मतलब अलग होता था और आज भी अलग है…

‘‘तुम्हें हरा कर जीतना मैं ने कभी नहीं चाहा. तब भी जब तुम सही प्रमाणित हो जाती थीं तो मुझे खुशी होती थी और आज भी तुम्हारी ही जीत में मेरी जीत है.

‘‘चंद्रा, तुम्हारे सुख की कामना में ही मेरा पूरा जीवन चला गया और आज पता चला मेरा चुप रह जाना किसी भी काम नहीं आया. मेरा तो जीनामरना सब बस, यों ही…

‘‘देखो चंद्रा, जो हो गया उस में तुम्हारा कोई दोष नहीं. वही हुआ जो होना था. स्वयं पर गुस्सा आ रहा है मुझे. जिस की चाह में अकेला रहा सारी उम्र, कम से कम कभी उस का हाल तो पूछ लेता. तुम जैसी किसी को खोजखोज कर थक गया. थक गया तो खोज समाप्त कर दी. तुम जैसी भला कोई और हो भी कैसे सकती थी. सच तो यह है कि तुम्हारी जगह कोई और न ले सकती थी और न ही मैं ने वह जगह किसी को दी.’’

डबडबाई आंखों से चंद्रा मुझे देखती रही.

‘‘मेरे दिल पर इसी सत्य ने प्रहार किया है कि मेरा चुप रह जाना आखिर किस के काम आया. न तुम्हारे न ही मेरे. एक घर जो कभी बस सकता था… बस ही नहीं पाया… किसी का भी भला नहीं हुआ. खाली हाथ तुम भी हो और मैं भी.’’

‘‘कल से तुम्हें महसूस कर रही हूं मैं सोम. 50 के आसपास तो मैं भी पहुंच चुकी हूं. तुम जानते हो न मेरी छटी इंद्री की सूचना कभी गलत नहीं होती…जिस इनसान से मेरी शादी हुई थी वह कभी मुझे अपना सा नहीं लगा था. और सच में वह मेरा कभी था भी नहीं…उस के बाद हिम्मत ही नहीं हुई किसी पर भरोसा कर पाऊं.’’

यह भी पढ़ें- वो जलता है मुझ से

‘‘क्या मुझ पर भी भरोसा नहीं कर पाओगी?’’

‘‘तुम तो सदा से अपने ही थे सोम, पराए कभी लगे ही नहीं थे. आज इतने सालों बाद भी लगता नहीं कि इतना समय बीत गया. तुम पर भरोसा है तभी तो पास बैठी हूं…अच्छा, मैं पूछती हूं तुम से…

‘‘सोम, तुम ने शादी क्यों नहीं की?’’

‘‘मत पूछना, क्योंकि अपनी बरबादी का सारा जिम्मा मैं तुम्हीं पर डाल दूंगा जो शायद तुम्हें बुरा लगेगा. तुम्हारे बाद रास्ता ही खो गया. वहीं खड़ा रहा मैं…दाएंबाएं कभी नहीं देखा. तनमन से वैसा ही हूं जैसा तुम ने छोड़ा था.’’

‘‘तनमन से मैं तो वैसी नहीं हूं न. 2 संतानें मेरे गर्भ में आईं और चली गईं. पहले उन्हीं को याद कर के दुखी हो लेती थी फिर सोचा पागल हूं क्या मैं? जिंदा पति किसी बदनाम औरत का हाथ पकड़ गंदगी में समा गया. उसे नहीं बचा पाई तो उन बच्चों का क्या रोना जिन्हें कभी न देखा न सुना. कभीकभी तो लगता है पत्थर बन गई हूं जिस पर सुखदुख का कोई असर नहीं होता.’’

‘‘असर होता है. असर कैसे नहीं होता?’’ और इसी के साथ मैं ने चंद्रा को अपने पास खींच लिया. फिर सस्नेह उस का माथा सहला कर सिर थपथपा दिया.

‘‘असर होता है तुम पर चंद्रा. समय की मार से हम समझदार हो गए हैं, पत्थर तो नहीं बने. पत्थर बन जाते तो एकदूसरे के आरपार कभी नहीं देख पाते.’’

मेरे हाथों की ही सस्नेह ऊष्मा थी जिस ने दर्द की परतों को उघाड़ दिया.

‘‘यदि आज भी एकदूसरे का हम सहारा पा लें तो शायद 100 साल जी जाएं और उस हिसाब से तो अभी मध्यांतर भी नहीं हुआ.’’

नन्ही बच्ची की तरह रो पड़ी चंद्र्रा. बांहों में छिपा कर माथा चूम लिया मैं ने. छाती में जो हलकाफुलका दर्द सुबह शुरू हुआ था सहसा कहीं खो सा गया.

यह भी पढ़ें- लाली

Serial Story: मध्यांतर भी नहीं हुआ अभी- भाग 1

‘‘आप का परिवार कहां है,

सोम? अब तो बच्चे बड़े

हो गए होंगे. मैं ने तो सोचा भी नहीं था, इस तरह अचानक हमारा मिलना हो जाएगा.’’

‘‘सब के सामने आप यह कैसा सवाल पूछने लगी हैं, चंद्राजी. कहां के बच्चे… कैसे बच्चे…अभी तो हमारी उम्र खेलनेखाने की है.’’

चंद्रा के चेहरे की मुसकान फैलतेफैलते रुक गई. उस ने आगेपीछे देखा मानो जो सुना उसी पर अविश्वास करने के लिए किसी का समर्थन चाहती हो. उस ने गौर से मेरा चेहरा देखा और बोली, ‘‘अरे भई, बाल काले कर लेना कोई बड़ी बात नहीं. उम्र छिपा कर दिखाओ तो मानें. आंखों का बढ़ता नंबर और चाल में आए ठहराव को छिपाया नहीं जा सकता. हां, अगर अपना नाम ही बदल लो तो मैं मान लूंगी कि पहचानने में मैं ही भूल कर गई हूं. आप सोम नहीं हैं न?’’

ये भी पढ़ें- पदचिह्न: क्या किया था पूजा ने?

चंद्रा के शब्दों का तर्क आज भी वही है जो बरसों पहले था. वह आज भी उतनी ही सौम्य है जितनी बरसों पहले थी. बल्कि उम्र के साथ पहले से भी कहीं ज्यादा गरिमामय लग रहा है चंद्रा का स्वरूप. मुसकरा पड़ा मैं. हाथ बढ़ा कर चंद्रा का सर थपथपा दिया.

‘‘याद है तुम मुझे क्या कहा करती थीं जब हम पीएच.डी. कर रहे थे. वह आदत आज भी बदली नहीं. निहायत निजी बातें तुम सब के सामने पूछने लगती हो…’’

‘‘पहचान लिया है मैं ने. आज भी मेरे पापा की तरह सर थपथपा रहे हो. तब भी तुम मुझे मेरे पापा जैसे लगते थे…आज भी वैसे ही हो…तुम जरा भी नहीं बदले हो, सोम.’’

20-22 साल पुरानी दोस्ती और सौहार्द्र आंखों में नमी बन कर तैरने लगा था. सुबह से सेमिनार में व्यस्त था. पहचान तो बहुत लोगों से थी लेकिन कोई अपना सा पा कर यों लगने लगा है जैसे बुझते दिए में किसी ने तेल डाल दिया हो.

‘‘तुम कहां ठहरी हो, चंद्रा?’’

‘‘यहीं होस्टल में ही हमारा इंतजाम किया गया है.’’

‘‘भूख नहीं लगी तुम्हें, 7 बज रहे हैं. आओ, चलो मेरे साथ…कुछ खा कर आते हैं.’’

मैं ने कहा तो साथ चल पड़ी चंद्रा. हम ने टैक्सी पकड़ी और 5-10 मिनट बाद ही हम उसी जगह पर खडे़ थे जहां अकसर 20-22 साल पहले हमारा गु्रप खानेपीने आया करता था.

‘‘क्या खाओगी, चंद्रा, बोलो?’’

‘‘कुछ भी हलकाफुलका मंगवा लो. भारी खाना मुझे पचता नहीं है.’’

‘‘मैं भी मीठा नहीं ले पाऊंगा, शुगर का मरीज हूं. इसीलिए भूख सह नहीं पाता. मुझे घबराहट होने लगती है.’’

डोसा और इडली मंगवा लिया चंद्रा ने. कुछ पेट में गया तो शरीर की झनझनाहट कम हुई.

‘‘तुम्हें खाने की कोई चीज पास रखनी चाहिए थी, सोम.’’

‘‘क्या पास रखनी चाहिए थी? यह देखो, है न पास में. अब क्या इन से पेट भर सकता है?’’

जेब से मीठीनमकीन टाफियां निकाल सामने रख दीं मैं ने. दोपहर में खाना खाया था. उस के बाद सेमिनार इतना लंबा ख्ंिच गया कि शाम के 7 बज गए. 6 घटे में क्या मेरी तबीयत खराब नहीं हो जाती.

मुसकरा पड़ी चंद्रा, ‘‘इस का मतलब है अब हम बूढे़ हो गए हैं. तुम्हें शुगर है, मेरा जिगर ठीक से काम नहीं करता. लगता है हमारी एक्सपायरी डेट पास आ रही है.’’

‘‘नहीं तो, ऐसा क्यों सोचती हो. हम बूढे़ नहीं हो रहे बडे़ हो रहे हैं, ऐसा सोचो. जीवन का सार हमारे सामने है. बीता कल अपना अनुभव लिए है जिस का उपयोग हम भविष्य को सुधारने में लगा सकते हैं.’’

पुरानी बातों का सिलसिला चला और खूब चला. चंद्रा के साथ विश्वविद्यालय के भव्य पार्क में हम रात 10 बजे तक बैठे रहे.

‘‘अच्छा समय था वह भी. बहुत याद आता है वह एकएक पल,’’ ठंडी सांस ली थी चंद्रा ने.

‘‘क्या बीता समय लौटाया नहीं जा सकता?’’

ये भी पढ़ें- Mother’s Day Special: बस कुछ घंटे- क्यों मानने के लिए तैयार नही थी मां

‘‘हमारे बच्चे हमारा बीता कल ही तो हैं, जो हमें नहीं मिला वह बच्चों को दिला कर हम अपनी इच्छा की पूर्ति कर सकते हैं. जीवन इसी का नाम है…पुराना गया नया आया.’’

मुझे होटल तक पहुंचतेपहुंचते साढ़े 10 बज गए. मैं थक गया हूं फिर भी मन प्रफुल्लित है. अपनी सहपाठी से जो मिला हूं इतने बरसों बाद. बहुत अच्छी दोस्ती थी मेरी चंद्रा के साथ. अच्छे इनसान अकसर कम होते हैं और इन्हीं कम लोगों में अकसर मैं चंद्रा की गिनती  किया करता था. कभीकभी हमारे बीच झगड़ा भी हो जाया करता था जिस की वजह हमारी निजी कमी नहीं होती थी. उसूलों की धनी थी चंद्रा और यही उसूल अकसर टकरा जाते थे.

मैं कभी चंद्रा को झुकने को कह देता तो उस का जवाब होता था, ‘‘मैं केंचुआ बन कर नहीं जी सकती. प्रकृति ने मुझे रीढ़ की हड्डी दी है न. मैं वैसी ही हूं जैसी मुझ से प्रकृति उम्मीद करती है.’’

‘‘तुम्हारी फिलासफी मेरी समझ में नहीं आती.’’

‘‘तो मत समझो, तुम जैसे हो रहो न वैसे. मैं ने कब कहा मुझे समझो.’’

7-8 लड़केलड़कियों का गु्रप था हमारा जिस में हर स्वभाव का इंसान था… बस, चंद्रा ही थी जो अपनी सीमाओं, अपनी दलीलों में बंधी थी.

मैं चंद्रा की नसनस से वाकिफ था. उस के चरित्र और बातों में गजब की पारदर्शिता थी, न कहीं कोई लागलपट न हेरफेर. कभी कोई गोलमोल बात करने लगता तो वह झुंझला जाती.

‘‘यह जलेबी क्यों पका रहे हो? सीधी तरह मुद्दे की बात पर क्यों नहीं आते…साफसाफ कहो क्या कहना चाहते हो?’’

‘‘कोई भी बात कभीकभी इतनी सीधी सरल नहीं न होती चंद्रा जिसे हम झट से कह दें…कुछ बातें छिपानी भी पड़ती हैं.’’

‘‘तो छिपाओ उन्हें, आधीअधूरी भी क्यों बतानी. तुम्हें अगर लगता है बात छिपाने वाली है तो सब के सामने उस का उल्लेख भी क्यों करना. पूरी तरह छिपा लो न.’’

मुझे आज भी याद है जब हम आखिरी बार मिले थे तब भी झगड़ कर ही अलग हुए थे. वह दिल्ली लौट गई थी और मैं आगरा. उस के बाद कभी नहीं मिले थे. उस की शादी की खबर मिली थी जिस पर इक्कादुक्का मित्र ही पहुंच पाए थे.

दूसरे दिन विश्वविद्यालय पहुंचे तो नजरें चंद्रा को ही खोजती रहीं. कहने को तो ढेर सारी बातें कल हम ने की थीं लेकिन अपनी निजी एक भी बात हम नहीं कर पाए थे.

‘‘किसे खोज रहे हैं, वर्माजी? किसी का इंतजार है क्या?’’

मेरी नजरों को भांप गए थे मेरे एक सहयोगी.

‘‘हां, वह मेरी सहपाठी मिल गई थीं कल मुझे. आज भी उन्हीं को खोज रहा हूं.’’

‘‘लंचब्रेक में ढूंढ़ लीजिएगा. अभी जरा इन की बातें सुनिए. इन की बातों का मैं सदा ही कायल रहता हूं. मिसेज गोयल की फिलासफी कमाल की होती है. कभी इन के लेख नहीं पढे़ आप ने…कमाल की सोच है.’’

आगे पढ़ें- काटो तो रक्त नहीं रहा मेरी शिराओं में….

यह भी पढ़ें- मां, पराई हुई देहरी तेरी

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें