Mother’s Day Special: बच्चों को खिलाएं फ्रूट आइसक्रीम

समर सीजन में अगर आप अपने बच्चों को हेल्दी और टेस्टी रेसिपी ट्राय करके खिलाना चाहती हैं तो फ्रूट आइसक्रीम आप ट्राय कर सकती है. ये आसानी से आप बना सकती हैं.

सामग्री

– 1 आम पका

– 2 कीवी

– 4 बड़े चम्मच अनार के दाने

ये भी पढ़ें- Mother’s Day Special: बच्चों के लिए बनाएं पनीर आम रोल्स

– 1 सेब

– 1 केला

– 150 ग्राम वैनिला आइसक्रीम

– थोड़े से बारीक कटे बादाम.

विधि

सभी फलों को छोटेछोटे टुकड़ों में काट लें. एक बाउल में वैनिला आइसक्रीम को अच्छी तरह फेंट कर उस में कटे फल मिला दें. सर्विंग बाउल में तैयार फ्रूटी आइसक्रीम डालें और बादाम से गार्निश कर सर्व करें.

ये भी पढ़ें- Mother’s Day Special: नाश्ते में बनाएं क्रिस्पी पत्तागोभी बॉल्स

6 टिप्स: घर में होगी काकरोच की ‘नो एंट्री’

घरों में अक्सर सीलन बढ़ जाती है और काकरोचों के पनपने के लिए ये सबसे अनुकूल समय होता है. इनके सबसे अधि‍क पनपने की जगहें किचन और स्टोर रूम होती है.

बाजार में ऐसे कई उत्पाद मौजूद हैं जो ये दावा करते हैं कि उनके इस्तेमाल से काकरोच हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगे लेकिन इन रासायनिक चीजों का इस्तेमाल स्वास्थ्य के लिए खतरा भी साबित हो सकता है. खासतौर पर तब जब आपके घर में छोटे बच्चें हो. ऐसे में बेहतर होगा कि आप घरेलू उपाय अपनाएं.

1. तेजपत्ते का इस्तेमाल

तेजपत्ते की गंध से काकरोच भागते हैं. घर के जिस कोने में काकरोच हों वहां तेजपत्ते की कुछ पत्ति‍यों को मसलकर रख दें. काकरोच उस जगह से भाग जाएंगे. दरअसल, तेजपत्ते को मसलने पर आपको हाथों में हल्का तेल नजर आएगा. इसी की गंध से काकरोच भागते हैं. समय-समय पर पत्ति‍यां बदलते रहें.

ये भी पढ़ें- हैल्थ पौलिसी लेते समय रखें इन 14 बातों का ध्यान

2. बेकिंग पाउडर और चीनी

एक कटोरे में बराबर मात्रा में बेकिंग पाउडर और चीनी मिलाएं और इस मिश्रण को जहां काकरोच की आवाजाही होती है वहां छिड़क दें. चीनी का मीठा स्वाद काकरोचों को आकर्षि‍त करता है और बेकिंग सोडा उन्हें मारने का काम करता है. समय-समय पर इसे बदलते रहें.

3. लौंग की गंध

तेज गंध वाली लौंग भी काकरोचों को भगाने के लिए एक अच्छा उपाय है. किचन की दरवाजों और स्टोर रूम की अलमारियों में लौंग की कुछ कलियों को रख दीजिए. इस उपाय से काकरोच भाग जाएंगे.

4. बोरेक्स

प्रभावित जगहों पर बोरेक्स पाउडर का छिड़काव कर दें. इससे काकरोच भाग जाते हैं लेकिन ये खतरनाक भी साबित हो सकता है. बोरेक्स पाउडर का छिड़काव करने के समय ये ध्यान रखें कि वो बच्चों की पहुंच से दूर हो.

5. केरोसिन आयल

केरोसिन आयल के इस्तेमाल से भी काकरोच भाग जाते हैं लेकिन इसकी बदबू से निपटने के लिए आपको तैयार रहना पड़ेगा.

ये भी पढ़ें- अब घर में नहीं मचेगा चूहों का आतंक

6. कुछ अन्य टिप्स

– पानी के निकास वाली सभी जगहों पर जाली लगी होनी चाहिए.

– फल-सब्जी के छिलकों को ज्यादा समय तक घर में न रहने दें.

– काकरोचों की संख्या बढ़ने से पहले ही हरकत में आ जाएं.

– स्प्रे करने के दौरान अपनी त्वचा को ढककर रखें.

बच्चों की जिंदगी बचाना ही Music की जर्नी का मकसद मानती हैं पलक, पढ़ें इंटरव्यू

‘एक था टाइगर,’ ‘आशिकी 2,’ ‘किक,’ ‘प्रेम रतन धन पायो,’ ‘काबिल,’ ‘बागी,’ ‘एमएस धोनी,’ ‘लव यात्री’ सहित सैकड़ों फिल्मों के अति लोकप्रिय गीत गा चुकीं बौलीवुड गायिका पलक मुच्छल दिल के रोगी व निर्धन बच्चों की काफी सहायता करती हैं. वे म्यूजिकल कंसर्ट से होने वाली कमाई से दिल के मरीज बच्चों के औपरेशन करवा कर उन्हें नई जिंदगी दिलाती हैं. अब तक वे 2,368 बच्चों के हृदय के औपरेशन का सारा खर्च उठा कर उन्हें नई जिंदगी दिला चुकी हैं.

प्रस्तुत हैं, पलक मुच्छल से हुई ऐक्सक्लूसिब बातचीत के कुछ अहम अंश:

अपने व अपने परिवार के संबंध में जानकारी देंगी?

मेरा जन्म 30 मार्च, 1992 को इंदौर, मध्य प्रदेश में हुआ था. मेरे पिता राज कुमार मुच्छल अकाउंटैंट और मां अमिता मुच्छल गृहिणी हैं. मैं 8 साल की उम्र से चैरिटी स्टेज शो में गा कर पैसा इकट्ठा कर के गरीब बच्चों के दिल का औपरेशन कराती आ रही हूं. अब तक 2,368 निर्धन बच्चों के दिलों का औपरेशन करवा चुकी हूं. ये सभी बच्चे अब खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं, जबकि कई सौ बच्चे अभी भी मेरी मदद की आस लिए प्रतीक्षा सूची में हैं.

लोगों की मदद करने का विचार मन में  कब आया?

जहां तक मुझे याद है मैं ने सर्वप्रथम 6 साल की उम्र में नेत्रहीन बच्चों के लिए स्टेज पर गा कर धन इकट्ठा किया था. उस के बाद कारगिल के जवानों के लिए दुकानदुकान पर जा कर दुकान में मौजूद लोगों को ‘ऐ मेरे वतन के लोगो…’ गीत सुना कर चंदा मांगते हुए क्व25 हजार इकट्ठा कर के दिए थे. वास्तव में मेरी शुरू से ही लोगों की मदद करने की इच्छा रही है.

ये भी पढ़ें- बराबरी का हक: हालात बदले पर सोच नही

गरीब व दिल के मरीज बच्चों के मुफ्त  में औपरेशन करवाने का सिलसिला कब शुरू किया था?

मार्च, 2000 की बात है. एक दिन हमारे घर पर मदद की उम्मीद ले कर राधेश्याम कुरील आए थे. उन के 6 साल के बेटे लोकेश के हृदय में दो छेद थे. राधेश्याम कुरील उन दिनों एक मोची की दुकान पर क्व75 रोज कमाते थे. उन के लिए अपने बेटे के दिल की सर्जरी करवाना असंभव था.

जब उन्होंने हमारे घर पर मेरे मातापिता के सामने अपना यह दुख बयां किया, तो मैं ने 8 मार्च, 2000 की शाम अपना पहला चैरिटी शो कर दिल के मरीज उस बच्चे के लिए क्व51 हजार एकत्रित किए. मीडिया ने इस कार्यक्रम को प्रचारित कर दिया, जिसे एक चैनल पर उन दिनों बंगलुरु के ‘मणिपाल हार्ट हाउंडेशन’ में कार्यरत डाक्टर देवी शेट्टी ने देखा, तो वे लोकेश का औपरेशन नि:शुल्क करने को तैयार हो गईं. 24 मार्च, 2000 को लोकेश का औपरेशन हो गया और मणिपाल हार्ट फाउंडेशन की दरियादिली से मेरे इकट्ठा किए क्व51 हजार बच गए. मैं ने यह क्व51 हजार लोकेश को ही देने चाहे. पर गरीबी के बावजूद उस के मांबाप ने यह रकम लेने से मना करते हुए किसी अन्य गरीब हृदयरोगी बच्चे के औपरेशन पर खर्च करने के लिए कहा. तब मेरे मातापिता ने स्थानीय समाचारपत्रों में यह खबर प्रकाशित कराई.

खबर के छपते ही हमारे पास चारों ओर से आग्रह आने लगे और हफ्तेभर में ही गुजारिशों का अंबार लग गया. उस वक्त तक हमें पता नहीं था कि शहर में इतने बच्चे हृदयरोगी, जिन के पास इलाज करवाने के लिए धन की कमी है. उस के बाद मैं ने केवल उन्हीं बच्चों को मदद के लिए चुनने का निश्चय किया, जो बहुत ही गरीब और 17 वर्ष से कम उम्र के थे. मैं ने उस वक्त 11 साल की उम्र के 7 बच्चों का औपरेशन इंदौर के ‘भंडारी अस्पताल व रिसर्च सैंटर’ में करवाया. तब से मैं अपने ज्यादातर बच्चों के औपरेशन इंदौर के ‘भंडारी अस्पताल व रिसर्च सैंटर’ में ही करवाती हूं. उस के बाद मैं ने गरीब बच्चों के दिल का औपरेशन करवाना अपनी समाज सेवा का मिशन बना लिया.

तो क्या आप सिर्फ भारतीय बच्चों की ही मदद करती हैं या…?

हम ने अपने इस मिशन को सरहद की सीमाओं में नहीं बांधा है, बल्कि हम ने कई विदेशी हृदयरोगियों के बच्चों के खर्च को भी वहन किया है. जुलाई, 2003 में पाकिस्तान के नदीम दंपती अपनी बेटी नूर फातिमा के दिल के छेद का इलाज करवाने बंगलुरु आए थे, जिस का खर्च हम ने वहन किया था.

कोरोना व लौकडाउन में तो आप का काम बंद रहा होगा?

मेरा अपना म्यूजिक स्टूडियो है. मेरा भाई संगीतकार है. मैं खुद गीत लिखती हूं, तो हम ने कई फिल्मों के लिए अपने स्टूडियो में लौकडाउन के समय गीत तैयार किए. इस के अलावा हम ने अपनी संगीत कंपनी और यूट्यूब चैनल ‘पर्ल म्यूजिक’ भी शुरू किया, जिस के एक लाख से अधिक सब्सक्राइबर हो गए हैं.

इस के अलावा लौकडाउन के दौरान जब सारे म्यूजिकल कंसर्ट बंद हो गए, तब हमारे म्यूजीशियनों को तकलीफ हुई. मुझे अपने ही एक म्यूजीशियन से जानकारी मिली, तब मैं ने अपनी ‘डौल्स’ को बेच कर मध्य प्रदेश के 400 म्यूजीशियनों तक पूरे 5 माह तक राशन आदि सामग्री भिजवाई. मेरे पास 50 से अधिक डौल्स थीं.

ये भी पढ़ें- कोरोना से बढ़ते मौत के आंकड़े

अब तक आप किन भाषाओं में गा चुकी हैं?

मैं 17 भाषाओं में गाती हूं. मैं शास्त्रीय गीत ज्यादा गाती हूं. शमशाद बेगम, नूरजहां, लता मंगेशकर, सुनिधि चौहान के गाए गीतों को ज्यादा गाती हूं, पर हर शो में ‘ऐ मेरे वतन के लोगो…’ गीत जरूर गाती हूं.

पदचिह्न: भाग 2- क्या किया था पूजा ने?

लेखिका- रेनू मंडल

जिंदगी भर मैं ने अपने सासससुर की उपेक्षा की. उन की ममता को उन की विवशता समझ कर जीवनभर अनदेखा करती रही. मैं ने कभी नहीं चाहा, मेरे सासससुर मेरे साथ रहें. उन का दायित्व उठाना मेरे बस की बात नहीं थी. अपनी स्वतंत्रता, अपनी निजता मुझे अत्यधिक प्रिय थी. समीर पर मैं ने सदैव अपना आधिपत्य चाहा. कभी नहीं सोचा, बूढ़े मांबाप के प्रति भी उन के कुछ कर्तव्य हैं. इस पीड़ा और उपेक्षा को झेलतेझेलते मेरे सासससुर कुछ साल पहले इस दुनिया से चले गए.

वास्तव में इनसान बहुत ही स्वार्थी जीव है. दोहरे मापदंड होते हैं उस के जीवन में, अपने लिए कुछ और, दूसरे के लिए कुछ और. अब जबकि मेरी उम्र बढ़ रही है, शरीर साथ छोड़ रहा है, मेरे विचार, मेरी प्राथमिकताएं बदल गई हैं. अब मैं हैरान होती हूं आज की युवा पीढ़ी पर. उस की छोटी सोच पर. वह क्यों नहीं समझती कि बुजुर्गों का साथ रहना उन के हित में है.

आज के बच्चे अपने मांबाप को अपने बुजुर्गों के साथ जैसा व्यवहार करते देखेंगे वैसा ही व्यवहार वे भी बड़े हो कर उन के साथ करेंगे. एक दिन मैं ने नेहा से कहा था, ‘‘घर के बड़ेबुजुर्ग आंगन में लगे वट वृक्ष के समान होते हैं, जो भले ही फल न दें, अपनी छाया अवश्य देते हैं.’’

मेरी बात सुन कर नेहा के चेहरे पर व्यंग्यात्मक हंसी तैर गई थी. उस की बड़ीबड़ी आंखों में अनेक प्रश्न दिखाई दे रहे थे. उस की खामोशी मुझ से पूछ रही थी कि क्यों मम्मीजी, क्या आप के बुजुर्ग आंगन में लगे वट वृक्ष के समान नहीं थे, क्या वे आप को अपनी छाया, अपना संबल प्रदान नहीं करते थे? जब आप ने उन के संरक्षण में रहना नहीं चाहा तो फिर मुझ से ऐसी अपेक्षा क्यों?

आहत हो उठी थी मैं उस के चेहरे के भावों को पढ़ कर और साथ ही साथ शर्मिंदा भी. उस समय अपने ही शब्द मुझे खोखले जान पड़े थे. इस समय मन की अदालत में न जाने कितने प्रसंग घूम रहे थे, जिन में मैं स्वयं को अपराधी के कटघरे में खड़ा पा रही थी. कहते हैं न, इनसान सब से दूर भाग सकता है किंतु अपने मन से दूर कभी नहीं भाग सकता. उस की एकएक करनी का बहीखाता मन के कंप्यूटर में फीड रहता है.

यह भी पढ़ें- हिंदी व्याकरण में सियासत

मैं ने चेहरा घुमा कर खिड़की के बाहर देखा. शाम ढल चुकी थी. रात्रि की परछाइयों का विस्तार बढ़ता जा रहा था और इसी के साथ नर्सिंग होम की चहल पहल भी थक कर शांत हो चुकी थी. अधिकांश मरीज गहरी निद्रा में लीन थे किंतु मेरी आंखों की नींद को विचारों की आंधियां न जाने कहां उड़ा ले गई थीं. सोना चाह कर भी सो नहीं पा रही थी, मन बेचैन था. एक असुरक्षा की भावना मन को घेरे हुए थी. तभी मुझे अपने नजदीक आहट महसूस हुई, चेहरा घुमा कर देखा, समीर मेरे निकट खड़े थे.

मेरे माथे पर हाथ रख स्नेह से बोले, ‘‘क्या बात है पूजा, इतनी परेशान क्यों हो?’’

‘‘मैं घर जाना नहीं चाहती हूं,’’ डूबते स्वर में मैं बोली.

‘‘मैं जानता हूं, तुम ऐसा क्यों कह रही हो? घबराओ मत, कल का सूरज तुम्हारे लिए आशा और खुशियों का संदेश ले कर आ रहा है. तुम्हारे बेटाबहू तुम्हारे पास आ रहे हैं.’’

समीर के कहे इन शब्दों ने मुझ में एक नई चेतना, नई स्फूर्ति भर दी. सचमुच रजत और नेहा का आना मुझे उजली धूप सा खिला गया. आते ही रजत ने अपनी बांहें मेरे गले में डालते हुए कहा, ‘‘यह क्या हाल बना लिया मम्मी, कितनी कमजोर हो गई हो? खैर कोई बात नहीं. अब मैं आ गया हूं, सब ठीक हो जाएगा.’’

एक बार फिर से इन शब्दों की भूलभुलैया में मैं विचरने लगी. एक नई आशा, नए विश्वास की नन्हीनन्ही कोंपलें मन में अंकुरित होने लगीं. व्यर्थ ही मैं चिंता कर रही थी, कल से न जाने क्याक्या सोचे जा रही थी, हंसी आ रही थी अब मुझे अपनी सोच पर. जिस बेटे को 9 महीने अपनी कोख में रखा, ममता की छांव में पालपोस कर बड़ा किया, वह भला अपने मांबाप की ओर से आंखें कैसे मूंद सकता है? मेरा रजत ऐसा कभी नहीं कर सकता.

नर्सिंग होम से मैं घर वापस आई तो समीर और बेटेबहू क्या घर की दीवारें तक जैसे मेरे स्वागत में पलकें बिछा रही थीं. घर में चहलपहल हो गई थी. धु्रव की प्यारीप्यारी बातों ने मेरी आधी बीमारी को दूर कर दिया था. रजत अपने हाथों से दवा पिलाता, नेहा गरम खाना बना कर आग्रहपूर्वक खिलाती. 6-7 दिन में ही मैं स्वस्थ नजर आने लगी थी.

यह भी पढ़ें- एक दिन का सुलतान

एक दिन शाम की चाय पीते समय रजत ने कहा, ‘‘पापा, मुझे आए 10 दिन हो चुके हैं. आप तो जानते हैं, प्राइवेट नौकरी है. अधिक छुट्टी लेना ठीक नहीं है.’’

‘‘तुम ठीक कह रहे हो. कब जाना चाहते हो?’’ समीर ने पूछा.

‘‘कल ही हमें निकल जाना चाहिए, किंतु आप दोनों चिंता मत करना, जल्दी ही मैं फिर आऊंगा.’’

अपनी ओर से आश्वासन दे कर रजत और नेहा अपने कमरे में चले गए. एक बार फिर से निराशा के बादल मेरे मन के आकाश पर छाने लगे. हताश स्वर में मैं समीर से बोली, ‘‘जीवन की इस सांध्य बेला में अकेलेपन की त्रासदी झेलना ही क्या हमारी नियति है? इन हाथ की लकीरों में क्या बच्चों का साथ नहीं लिखा है?’’

‘‘पूजा, इतनी भावुकता दिखाना ठीक नहीं. जिंदगी की हकीकत को समझो. रजत की प्राइवेट नौकरी है. वह अधिक दिन यहां कैसे रुक सकता है?’’ समीर ने मुझे समझाना चाहा.

मेरी आंखों में आंसू आ गए. रुंधे कंठ से मैं बोली, ‘‘यहां नहीं रुक सकता किंतु हमें अपने साथ दिल्ली चलने को तो कह सकता है या इस में भी उस की कोई विवशता है. अपनी नौकरी, अपनी पत्नी, अपना बच्चा बस, यही उस की दुनिया है. बूढ़े होते मांबाप के प्रति उस का कोई कर्तव्य नहीं. पालपोस कर क्या इसीलिए बड़ा किया था कि एक दिन वह हमें यों बेसहारा छोड़ कर चला जाएगा.’’

ये भी पढ़ें- छिपकली

‘‘शांत हो जाओ, पूजा,’’ समीर बोले, ‘‘तुम्हारी सेहत के लिए क्रोध करना ठीक नहीं. ब्लडप्रेशर बढ़ जाएगा, रजत अभी उतना बड़ा नहीं है जितना तुम उसे समझ रही हो. हम ने आज तक उसे कोई दायित्व सौंपा ही कहां है? पूजा, अकसर हम अपनों से अपेक्षा रखते हैं कि हमारे बिना कुछ कहे ही वे हमारे मन की बात समझ जाएं, वही बोलें जो हम उन से सुनना चाहते हैं और ऐसा न होने पर दुखी होते हैं. रजत पर क्रोध करने से बेहतर है, तुम उस से अपने मन की बात कहो. देखना, यह सुन कर कि हम उस के साथ दिल्ली जाना चाहते हैं, वह बहुत प्रसन्न होगा.’’

आगे पढ़ें- कुछ देर खामोश बैठी मैं समीर की बातों पर…

पदचिह्न: भाग 3- क्या किया था पूजा ने?

लेखिका- रेनू मंडल

कुछ देर खामोश बैठी मैं समीर की बातों पर विचार करती रही और आखिर रजत से बात करने का मन बना बैठी. मैं उस की मां हूं, मेरा उस पर अधिकार है. इस भावना ने मेरे फैसले को बल दिया और कुछ समय के लिए नेहा की उपस्थिति से उपजा एक अदृश्य भय और संकोच मन से जाता रहा.

मैं कुरसी से उठी. तभी दूसरे कमरे में परदे के पीछे से नेहा के पांव नजर आए. मैं समझ गई परदे के पीछे खड़ी वह हम दोनों की बातें सुन रही थी. मेरा निश्चय कुछ डगमगाया किंतु अधिकार की बात याद आते ही पुन: कदमों में दृढ़ता आ गई. रजत के कमरे के बाहर नेहा के शब्द मेरे कानों में पड़े, ‘मम्मी ने स्वयं तो जीवनभर आजाद पंछी बन कर ऐश की और मुझे अभी से दायित्वों के बंधन में बांधना चाहती हैं. नहीं रजत, मैं साथ नहीं रहूंगी.’

नेहा से मुझे कुछ ऐसी ही नासमझी की उम्मीद थी. अत: मैं ने ऐसा दिखाया मानो कुछ सुना ही न हो. तभी मेरे कदमों की आहट सुन कर रजत ने मुड़ कर देखा, बोला, ‘‘अरे, मम्मी, तुम ने आने की तकलीफ क्यों की? मुझे बुला लिया होता.’’

‘‘रजत बेटा, मैं तुम से कुछ कहना चाहती हूं,’’ कहतेकहते मैं हांफने लगी.

रजत ने मुझे पलंग पर बैठाया फिर स्वयं मेरे नजदीक बैठ मेरा हाथ सहलाते हुए बोला, ‘‘हां, अब बताओ मम्मी, क्या कह रही हो?’’

‘‘बेटा, अब मेरा और तुम्हारे पापा का अकेले यहां रहना बहुत कठिन है. हम दोनों तुम्हारे पास दिल्ली रहना चाहते हैं. अकेले मन भी नहीं लगता.’’

इस से पहले कि रजत कुछ कहता, समीर भी धु्रव को गोद में उठाए कमरे में चले आए. बात का सूत्र हाथ में लेते हुए बोले, ‘‘रजत, तुम तो देख ही रहे हो अपनी मम्मी की हालत. इन्हें अकेले संभालना अब मेरे बस की बात नहीं है. इस उम्र में हमें तुम्हारे सहारे की आवश्यकता है.’’

‘‘पापा, आप दोनों का कहना अपनी जगह ठीक है किंतु यह भी तो सोचिए, लखनऊ का इतना बड़ा घर छोड़ कर आप दोनों दिल्ली के हमारे 2 कमरों के फ्लैट में कैसे एडजस्ट हो पाएंगे? जहां तक मन लगने की बात है, आप दोनों अपना रुटीन चेंज कीजिए. सुबहशाम घूमने जाइए. कोई क्लब अथवा संस्था ज्वाइन कीजिए. जब आप का यहां मन नहीं लगता है तो दिल्ली में कैसे लग सकता है? वहां तो अगलबगल रहने वाले आपस में बात तक नहीं करते हैं.’’

‘‘मन लगाने के लिए हमें पड़ोसियों का नहीं, अपने बच्चों का साथ चाहिए. तुम और नेहा जौब पर जाते हो, इस कारण धु्रव को कै्रच में छोड़ना पड़ता है. हम दोनों वहां रहेंगे तो धु्रव को क्रैच में नहीं भेजना पड़ेगा. हमारा भी मन लगा रहेगा और धु्रव की परवरिश भी ठीक से हो सकेगी.’’

ये भी पढ़ें- जब हमारे साहबजादे क्रिकेट खेलने गए

‘‘क्रैच में बच्चों को छोड़ना आजकल कोई समस्या नहीं है पापा. बल्कि क्रैच में दूसरे बच्चों का साथ पा कर बच्चा हर बात जल्दी सीख जाता है, जो घर में रह कर नहीं सीख पाता.’’

‘‘इस का मतलब तुम नहीं चाहते कि हम दोनों तुम्हारे साथ दिल्ली में रहें,’’ समीर कुछ उत्तेजित हो उठे थे.

‘‘कैसी बातें करते हैं पापा? चाहता मैं भी हूं कि हम लोग एकसाथ रहें किंतु प्रैक्टिकली यह संभव नहीं है.’’

तभी नेहा बोल उठी, ‘‘इस से बेहतर विकल्प यह होगा पापा कि हम लोग यहां आते रहें बल्कि आप दोनों भी कुछ दिनों के लिए आइए. हमें अच्छा लगेगा.’’

‘कुछ’ शब्द पर उस ने विशेष जोर दिया था. उन की बात का उत्तर दिए बिना मैं और समीर अपने कमरे में चले आए थे.

शाम का अंधेरा गहराता जा रहा था. मेरे भीतर भी कुछ गहरा होता जा रहा था. कुछ टूट रहा था, बिखर रहा था. हताश सी मैं पलंग पर लेट कर छत को निहारने लगी. वर्तमान से छिटक कर मन अतीत के गलियारे में विचरने लगा था.

आगरा में मेरे सासससुर उन दिनों बीमार रहने लगे थे. समीर अकसर बूढ़े मांबाप को ले कर चिंतित हो उठते थे. रात के अंधेरे में अकसर उन्हें फर्ज और कर्तव्य जैसे शब्द याद आते, खून जोश मारता, बूढ़े मांबाप को साथ रखने को जी चाहता किंतु सुबह होतेहोते भावुकता व्याव- हारिकता में बदल जाती. काम की व्यस्तता और मेरी इच्छा को सर्वोपरि मानते हुए वह जल्दी ही मांबाप को साथ रखने की बात भूल जाते.

एक बार मैं और समीर दीवाली पर आगरा गए थे. उस समय मेरी सास ने कहा था, ‘समीर बेटे, मेरी और तुम्हारे बाबूजी की तबीयत अब ठीक नहीं रहती. अकेले पड़ेपड़े दिल घबराता है. काम भी नहीं होता. यह मकान बेच कर तुम्हारे साथ लखनऊ रहना चाहते हैं.’

ये भी पढ़ें- विदाई

इस से पहले कि समीर कुछ कहें मैं उपेक्षापूर्ण स्वर में बोल उठी थी, ‘अम्मां मकान बेचने की भला क्या जरूरत है? आप की लखनऊ आने की इच्छा है तो कुछ दिनों के लिए आ जाइए.’ ‘कुछ’ शब्द पर मैं ने भी विशेष जोर दिया था. इस बात से अम्मां और बाबूजी बेहद आहत हो उठे थे. उन के चेहरे पर न जाने कहां की वेदना और लाचारी सिमट आई थी. फिर कभी उन्होंने लखनऊ रहने की बात नहीं उठाई थी. काश, वक्त रहते अम्मां की आंखों के सूनेपन में मुझे अपना भविष्य दिखाई दे जाता.

तो क्या इतिहास स्वयं को दोहरा रहा है? जैसा मैं ने किया वही मेरे साथ भी.. मन में एक हूक सी उठी. तभी एक दीर्घ नि:श्वास ले कर समीर बोले, ‘‘मैं सोच भी नहीं सकता था पूजा कि हमारा रजत इतना व्यावहारिक हो सकता है. किस खूबसूरती से उस ने अपने फर्ज, अपने दायित्व यहां तक कि अपने मांबाप से भी किनारा कर लिया.’’

‘‘इस में उस का कोई दोष नहीं, समीर. सच पूछो तो मैं ने उसे ऐसे संस्कार ही कहां दिए जो वह अपने मांबाप के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह करे. उन की सेवा करे. मैं ने हमेशा रजत से यही कहा कि मांबाप की सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं है. इस बात को मैं भूल ही गई कि बच्चों के ऊपर मांबाप के उपदेशों का नहीं बल्कि उन के कार्यों का प्रभाव पड़ता है.’’

‘‘चुप हो जाओ पूजा, तुम्हारी तबीयत खराब हो जाएगी.’’

ये भी पढ़ें- वसंत लौट गया

‘‘नहीं, आज मुझे कह लेने दो, समीर. रजत और नेहा तो फिर भी अच्छे हैं. बीमारी में ही सही कम से कम इन दिनों मेरा खयाल तो रखा. मैं ने तो कभी अम्मां और बाबूजी से अपनत्व के दो शब्द नहीं बोले. कभी नहीं चाहा कि वे दोनों हमारे साथ रहें, यही नहीं तुम्हें भी सदैव तुम्हारा फर्ज पूरा करने से रोका. जब पेड़ ही बबूल का बोया हो तो आम के फल की आशा रखना व्यर्थ है.’’

समीर ने मेरे दुर्बल हाथ को अपनी हथेलियों के बीच ले कर कहा, ‘‘इस में दोष अकेले तुम्हारा नहीं, मेरा भी है लेकिन अब अफसोस करने से क्या फायदा? दिल छोटा मत करो पूजा. बस, यही कामना करो, हम दोनों का साथ हमेशा बना रहे.’’

मैं ने भावविह्वल हो कर समीर का हाथ कस कर थाम लिया, हृदय की संपूर्ण वेदना चेहरे पर सिमट आई, आंखों की कोरों से आंसू बह निकले, जो चेहरे की लकीरों में ही विलीन हो गए. आज मुझे समझ में आ रहा था कि समय की रेत पर हम जो पदचिह्न छोड़ जाते हैं, आने वाली पीढ़ी उन्हीं पदचिह्नों का अनुसरण कर के आगे बढ़ती है.

पदचिह्न: भाग 1- क्या किया था पूजा ने?

लेखिका- रेनू मंडल

बात बहुत छोटी सी थी किंतु अपने आप में गूढ़ अर्थ लिए हुए थी. मेरा बेटा रजत उस समय 2 साल का था जब मैं और मेरे पति समीर मुंबई घूमने गए थे. समुद्र के किनारे जुहू बीच पर हमें रेत पर नंगे पांव चलने में बहुत आनंद आता था और नन्हा रजत रेत पर बने हमारे पैरों के निशानों पर अपने छोटेछोटे पांव रख कर चलने का प्रयास करता था. उस समय तो मुझे उस की यह बालसुलभ क्रीड़ा लगी थी किंतु आज 25 वर्ष बाद नर्सिंग होम के कमरे में लेटी हुई मैं उस बात में छिपे अर्थ को समझ पाई थी.

हफ्ते भर पहले पड़े सीवियर हार्टअटैक की वजह से मैं जीवन और मौत के बीच संघर्ष करती रही थी, मैं समझ सकती हूं वे पल समीर के लिए कितने कष्टकर रहे होंगे, किसी अनिष्ट की आशंका से उन का उजला गौर वर्ण स्याह पड़ गया था. माथे पर पड़ी चिंता की लकीरें और भी गहरा गई थीं, जीवन की इस सांध्य बेला में पतिपत्नी का साथ क्या माने रखता है, इसे शब्दों में जाहिर कर पाना नामुमकिन है.

ये भी पढ़ें- शोकसभा

नर्सिंग होम में आए मुझे 6 दिन बीत गए थे. यद्यपि मुझे अधिक बोलने की मनाही थी फिर भी नर्सों की आवाजाही और परिचितों के आनेजाने से समय कब बीत जाता था, पता ही नहीं चलता था. अगली सुबह डाक्टर ने मेरा चेकअप किया और समीर से बोले, ‘‘कल सुबह आप इन्हें घर ले जा सकते हैं किंतु अभी इन्हें बहुत एहतियात की जरूरत है.’’

घर जाने की बात सुनते ही हर्षित होने के बजाय मैं उदास हो गई थी. मन में बेचैनी और घुटन का एहसास होने लगा था. फिर वही दीवारें, खिड़कियां और उन के बीच पसरा हुआ भयावह सन्नाटा. उस सन्नाटे को भंग करता मेरा और समीर का संक्षिप्त सा वार्तालाप और फिर वही सन्नाटा. बेटी पायल का जब से विवाह हुआ और बेटा रजत नौकरी की वजह से दिल्ली गया, वक्त की रफ्तार मानो थम सी गई है. शुरू में एक आशा थी कि रजत का विवाह हो जाएगा तो सब ठीक हो जाएगा. किंतु सब ठीक हो जाएगा जैसे शब्द इनसान को झूठी तसल्ली देने के लिए ही बने हैं. सबकुछ ठीक होता कभी नहीं है. बस, एक झूठी आशा, झूठी उम्मीद में इनसान जीता रहता है.

मैं भी, इस झूठी आशा में कितने ही वर्ष जीती रही. सोचती थी, जब तक समीर की नौकरी है, कभी बेटाबहू हमारे पास आ जाया करेंगे, कभी हम दोनों उन के पास चले जाया करेंगे और समीर के रिटायरमेंट के बाद तो रजत अपने साथ हमें दिल्ली ले ही जाएगा किंतु सोचा हुआ क्या कभी पूरा होता है? रजत के विवाह के बाद कुछ समय तक आनेजाने का सिलसिला चला भी. पोते धु्रव के जन्म के समय मैं 2 महीने तक दिल्ली में रही थी. समीर रिटायर हुए तो दिल्ली के चक्कर अधिक लगने लगे. बेटेबहू से अधिक पोते का मोह अपनी ओर खींचता था. वैसे भी मूलधन से ब्याज अधिक प्यारा होता है.

धु्रव की प्यारी मीठीमीठी बातों ने हमें फिर से हमारा बचपन लौटा दिया था. धु्रव के साथ खेलना, उस के लिए खिलौने लाना, छोटेछोटे स्वेटर बनाना, कितना आनंददायक था सबकुछ. लगता था धु्रव के चारों तरफ ही हमारी दुनिया सिमट कर रह गई थी. किंतु जल्दी ही मुट्ठी में बंद रेत की तरह खुशियां हाथ से फिसल गईं. जैसेजैसे मेरा और समीर का दिल्ली जाना बढ़ता गया, नेहा का हमारे ऊपर लुटता स्नेह कम होने लगा और उस की जगह ले ली उपेक्षा ने. मुंह से उस ने कभी कुछ नहीं कहा. ऐसी बातें शायद शब्दों की मोहताज होती भी नहीं किंतु मुझे पता था कि उस के मन में क्या चल रहा था. भयभीत थी वह इस खयाल से कि कहीं मैं और समीर उस के पास दिल्ली शिफ्ट न हो जाएं.

ये भी पढ़ें- वसंत लौट गया

ऐसा नहीं था कि रजत नेहा के इस बदलाव से पूरी तरह अनजान था, किंतु वह भी नेहा के व्यवहार की शुष्कता को नजरअंदाज कर रहा था. मन ही मन शायद वह भी समझता था कि मांबाप के उस के पास आ कर रहने से उन की स्वतंत्रता में बाधा पड़ेगी. उस की जिम्मेदारियां बढ़ जाएंगी जिस से उस का दांपत्य जीवन प्रभावित होगा. उस के और नेहा के बीच व्यर्थ ही कलह शुरू हो जाएगी और ऐसा वह कदापि नहीं चाहता था. मैं ने अपने बेटे रजत का विवाह कितने चाव से किया था. नेहा के ऊपर अपनी भरपूर ममता लुटाई थी किंतु…

मैं ने एक गहरी सांस ली. मन में तरहतरह के खयाल आ रहे थे. शरीर में और भी शिथिलता महसूस हो रही थी. मन न जाने कैसाकैसा हो रहा था. मांबाप इतने जतन से बच्चों को पालते हैं और बच्चे क्या करते हैं मांबाप के लिए? बुढ़ापे में उन का सहारा तक बनना नहीं चाहते. बोझ समझते हैं उन्हें. आक्रोश से मेरा मन भर उठा था. क्या यही संस्कार दिए थे मैं ने रजत को?

इस विचार ने जैसे ही मेरे मन को मथा, तभी मन के भीतर कहीं छनाक की आवाज हुई और अतीत के आईने में मुझे अपना बदरंग चेहरा नजर आने लगा. अतीत की न जाने कितनी कटु स्मृतियां मेरे मन की कैद से छुटकारा पा कर जेहन में उभरने लगीं.

ये भी पढ़ें- Short Story: काश, मेरा भी बौस होता

मेरा समीर से जिस समय विवाह हुआ, वह आगरा में एक सरकारी दफ्तर में एकाउंट्स अफसर थे. वह अपने मांबाप के इकलौते लड़के थे. मेरी सास धार्मिक विचारों वाली सीधीसादी महिला थीं. विवाह के बाद पहले दिन से ही उन्होंने मां के समान मुझ पर अपना स्नेह लुटाया. मेरे नाजनखरे उठाने में भी उन्होंने कमी नहीं रखी. सारा दिन अपने कमरे में बैठ कर मैं या तो साजशृंगार करती या फिर पत्रिकाएं पढ़ती रहती थी और वह अकेली घर का कामकाज निबटातीं.

उन में जाने कितना सब्र था कि उन्होंने मुझ से कभी कोई गिलाशिकवा नहीं किया. समीर को कभीकभी मेरा काम न करना खटकता था, दबे शब्दों में वह अम्मां की मदद करने को कहते, किंतु मेरे माथे पर पड़ी त्योरियां देख खामोश रह जाते. धीरेधीरे सास की झूठीझूठी बातें कह कर मैं ने समीर को उन के खिलाफ भड़काना शुरू कर दिया, जिस से समीर और उन के मांबाप के बीच संवादहीनता की स्थिति आ गई. आखिर एक दिन अवसर देख कर मैं ने समीर से अपना ट्रांसफर करा लेने को कहा. थोड़ी नानुकूर के बाद वह सहमत हो गए. अभी विवाह को एक साल ही बीता था कि मांबाप को बेसहारा छोड़ कर मैं और समीर लखनऊ आ गए.

आगे पढ़ें- जिंदगी भर मैं ने अपने सासससुर की उपेक्षा की….

मौजूदा समय की मांग है ऑनलाइन क्लासेस, लेकिन रहें सावधान

इस कोरोना काल में ऑनलाइन क्लासे की मांग जहां एक ओर बढ़ने के साथ जरूरी भी है वहीं इसके कारण कई दिक्कतों का सामना बच्चों को और उनके परिवार को करना पड़ रहा है.क्योंकि बच्चों को अब काफी समय तक स्कूल नहीं जाना है वहीं घर में बैठ कर पढ़ाई करनी है साथ ही घर से ही परीक्षा भी देनी है. बड़े बच्चे तो चलो समझदार होते हैं वो समझते हैं की उन्हें क्या करना है क्या नहीं या कैसे पढ़ना है और कैसे नहीं लेकिन जो छोटे बच्चे होते हैं उन्हें संभालना और इस तरह से पढ़ाई करवाना वो भी ऑनलाइन तो बड़ा ही मुश्किल है.

1.घर में बच्चे जब तक पढ़ाई करते हैं तब तक उन पर नजर बनाए रखना बहुत ही जरूरी है यदि आपकी नजर हटी तो कुछ भी हो सकता है वैसे भी आजकल के कुछ बच्चे थोड़ से नॉटी या बदमाश तो होते ही है शैतानियां करते हैं क्या पता सिस्टम ही बंद कर दें या फिर कोई उल्टे सीधे बटन दबा दें.

ये भी पढ़ें- 6 टिप्स: मौनसून में ऐसे रखें अनाज को सेफ

2. घर से बच्चे पढ़ रहे हैं तो उनके हैबिट्स में क्या-क्या असर आएगा इसका भी ध्यान रखना है जिसमें परिवार की जिम्मेदारी काफी हद तक बढ़ गई है और खासतौर पर माता पिता की जिम्मेदारी.परीक्षा भी बच्चे घर से दे रहे हैं तो माता-पिता को नजर बनाए रखने की जरूरत होती है उन्हें स्कूल से इंस्ट्रक्शन्स मिलते हैं कि आपको बच्चे के साथ बैठना है तब तक जब की वो अपनी परीक्षा खतम ना कर लें ऐसा इसलिए ताकि बच्चे कुछ गलत ना करें और नकल ना करें.

3.चलो ये सब तो फिर भी ठीक है लेकिन इसमें जो सबसे ज्यादा ध्यान देने वाली बात है वो ये कि स्कूल में पढ़ाई करना और घर से ऑनलाइन क्लासेस करने में बहुत अंतर होता है और इसका असर आपके बच्चे की आंखों पर पढ़ सकता है क्योंकि ज्यादा फोन चलाने से या टीवी ज्यादा देखने सें जब बच्चों की आंखे खराब हो जा रही हैं और उन्हें छोटी सी उम्र में चश्मा लग जा रहा है तो जाहिर है कि ज्यादा देर कंप्यूटर या लैपटॉप में ऑनलाइन क्लास करने से भी बच्चों की आंखों पर असर पड़ेगा इसलिए इस बात का खास ख्याल रखें की उनकी आंखें सेफ रहें.आप चाहें तो बिना पावर का चश्मा लगावाकर उन्हें पढ़ते वक्त लगाने को कहें इससे बच्चे की आंख सही रहेगी.

4.जितना हो सके उसे टीवी और फोन से थोड़ा दूर रखे क्योंकि वो पहले ही ऑनलाइन क्लासेस भी कर चुका होगा.तो आंखों को राहत देना बहुत जरूरी है.

ये भी पढ़ें- पेशा तय करता है भविष्य

एचआरडी मंत्रालय ने भी डीजिटल क्लास के लिए कुछ दिशा-निर्देश दिए हैं जिसके मुताबिक प्री-प्राइमरी के बच्चों के लिए ऑनलाइन क्लास की जो समय सीमा होगी वो मात्र 30 मिनट ही होगी इससे ज्यदा नहीं.क्लास 1 से 8 तक के बच्चों के लिए दो ऑनलाइन क्लास होंगे जिसमें 45 मिनट ही समय सीमा होगी और 9 से 12 तक के बच्चों के लिए भी 30 से 45 मिनट की क्लास होगी चार सेशन होंगे.इससे ज्यादा कोई भी ऑनलाइन क्लास नहीं चलेगी तो इस बात की भी जानकारी परिवार जन को होनी चाहिए ताकि स्कूल की तरफ से कोई मनमानी ना हो.क्योंकि आपको बच्चों की शिक्षा के साथ-साथ उनके हेल्थ का भी ध्यान रखना होगा.

पाखी की नई चाल, विराट से कभी न मिलने का वादा करेगी सई

स्टार प्लस के सीरियल गुम हैं किसी के प्यार में इन दिनों पाखी की नई चालें कामयाब होती नजर आ रही हैं. जहां एक तरफ सई घर छोड़ कर चली गई है तो वहीं वह धीरे-धीरे विराट को उससे दूर करने की कोशिश में कामयाब हो रही है. इस बीच विराट के साथ हुआ एक हादसा सई को उससे पूरी तरह दूर करने वाला है. आइए आपको बताते हैं शो में क्या होगा आगे….

विराट को लगती है गोली

शो में अब तक आपने देखा कि सई, विराट के लिए अपने प्यार के एहसास को समझ नहीं पा रही है. इस बीच  विराट एक मिशन पर जाता है, जहां उसे गोली लग जाती है. वहीं जब सई को इस बात का पता चलता है तो वह विराट से बात करने की कोशिश करती है. लेकिन वह बात नहीं कर पाती, जिसके कारण वह टूट जाती है.

ये भी पढ़ें- विराट को लगेगी गोली तो सई को दूर रखने की कोशिश करेगी पाखी, कहानी में आएगा नया ट्विस्ट

पाखी को मिलेगी वार्निंग

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि जहां विराट मिशन पर होगा तो वहीं सई उसकी सलामती की दुआ मांगती नजर आएगी. इस बीच विराट की मां पाखी को आगाह करती नजर आएगी. दरअसल, विराट की मां, पाखी को सई के घर लौटने के बाद दोनों की शादीशुदा जिंदगी से दूर रहने के लिए कहेगी, जिसके कारण पाखी को बड़ा झटका लगेगा.

ये भी पढ़ें- Anupamaa की बीमारी के बीच धूमधाम से होगी समर और नंदिनी की सगाई, फोटोज वायरल

सई लेगी ये फैसला

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Follow Me🙏 (@ghkkpm_update)

पाखी को वार्निंग मिलने के बाद पूरा परिवार अस्पताल पहुंचेगा. जहां सई भी भागती-भागती पहुंचेगी. लेकिन पाखी उसे विराट और पूरे परिवार से मिलने नहीं देगी और कहेगी कि विराट तुमसे कभी नहीं मिलना चाहेगा. हालांकि सई, पाखी से कहती नजर आएगी कि वह विराट के होश में आने का इंतजार करेगी और अगर वह होश में आते ही मुझसे मिलने के लिए नहीं कहेगा तो वह कभी उसका चेहरा नहीं देखेगी. अब देखना ये है कि पाखी, सई को विराट से दूर रखने के लिए कौनसी चाल चलती नजर आएगी.

Anupamaa की बीमारी के बीच धूमधाम से होगी समर और नंदिनी की सगाई, फोटोज वायरल

स्टार प्लस के पौपुलर सीरियल अनुपमा में इन दिनों उतार चढाव देखने को मिल रहा है. जहां वनराज तलाक की कशमकश में फंसा है तो वहीं शाह परिवार अनुपमा की बीमारी के कारण परेशान है. इसी बीच शो के सेट से कुछ फोटोज वायरल हो रही हैं, जिससे शो में आने वाले ट्विस्ट का अंदाजा लगाया जा सकता है. आइए आपको दिखाते हैं वायरल फोटोज…

समर-नंदिनी का होगा रिश्ता

सुधांशु पांडे (Sudhanshu Pandey) और रूपाली गांगुली (Rupali Ganguly) फेम सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupamaa) में इन दिनों गम का माहौल है. हालांकि अपकमिंग एपिसोड्स दर्शकों को सेलिब्रेशन का महौल भी नजर आने वाला है. दरअसल, अनुपमा की बीमारी को देखते हुए बा शाह हाउस में पूजा का ऐलान करती हैं. वहीं इस पूजा में समर और नंदिनी के रिश्ते का भी ऐलान होता हुआ नजर आने वाला है, जिसका सबूत सोशलमीडिया पर वायरल फोटोज हैं.

सेलिब्रेशन के माहौल में नजर आएगा शाह परिवार

 

View this post on Instagram

 

A post shared by @_paras_fanpage_

ये भी पढ़ें- विराट को लगेगी गोली तो सई को दूर रखने की कोशिश करेगी पाखी, कहानी में आएगा नया ट्विस्ट

जहां टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ में नंदिनी लाल रंग की साड़ी में नजर आ रही हैं. तो वहीं अनुपमा भी बेहद खूबसूरत लग रही हैं. इस बीच शो में अनुपमा ने वनराज को परिवार वालों को तलाक होने का सच बताने के लिए कहा है. दरअसल, वनराज, अनुपमा को तलाक देने के लिए मना करता है. वहीं काव्या इस बात से नाराज होकर उसे तलाक लेने के लिए कहती हुई नजर आती है. दूसरी तरफ अनुपमा, वनराज से कहती है कि नंदिनी और समर के लिए रखी गई पूजा के बाद वह परिवार को तलाक के बारे में बता दे, जिसे सुनकर वनराज परेशान हो जाता है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by starplus (@starplus_gossip)

काव्या संग होगी वनराज की शादी

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Anupama (@anupamaserial)

समर नंदिनी के सगाई के इस ट्रैक के साथ-साथ काव्या और वनराज के शादी का ट्विस्ट भी अपकंमिंग एपिसोड में देखने को मिलने वाले है. दरअसल, अपकमिंग एपिसोड में अनुपमा, वनराज को काव्या से शादी करने के लिए कहती हुई नजर आएगी, जिसे सुनकर सभी हैरान होंगे.

ये भी पढ़ें- Dia Mirza समेत इन 5 सेलेब्स ने लिए कोरोना कहर के बीच सात फेरे, देखें फोटोज

वर्क फ्रॉम होम में कपल्स ऐसे बिठाएं तालमेल, रिलेशनशिप रहेगा ठीक

कोविड-19 ने सभी वर्क करने वाले लोगों को घर पर रहने और घर से ही काम करने को मजबूर कर दिया है. वैसे तो ज्यादातर घर के पुरुष ही वर्क करते हैं और पैसे कमाते हैं अपने परिवार के लिए लेकिन अब चूंकि जमाना बदल चुका है और लड़के- लड़कियां सभी नौकरी करते हैं.इस दौर में ज्यादातर परिवारों में पति-पत्नी दोनों ही वर्किंग हैं. वर्क फ्रॉम होम में पति-पत्नियों को कई तरहों की समस्याओं को झेलना पड़ रहा है, जिस वजह से पति- पत्नी के आपसी रिश्ते में दूरियां बढ़ने लगी हैं.

जैसे कि उनकी क्या टाइमिंग है ऑफिस की उसके कारण आमतौर पर पति-पत्नी जब बाहर काम करते थें तो वो अपने ऑफिस की सारी टेंशन सारी थकान सब बाहर ही छोड़ कर आते थें और घर में अपना फैमिली टाइम बिताते थे. लेकिन अब चूंकि कोरोना काल चल रहा है तो ऐसे में पति-पत्नी दोनों ही वर्क फ्रॉम होम कर रहे है.लेकिन इसका उनकी नीजि जिंदगी पर कोई असर ना पड़े और वो दोनों बेहतर तरीके से एक-दूसरे को समय दे पाएं ये बहुत ही जरूरी है.जिसके लिए उन्हें खुद भी इन बातों का खयाल एक-दूसरे के बारे में सोच कर रखना होगा.

1. काम के बीच- बीच में ब्रेक लेकर अपने पाटर्नर से बात करते रहें,उनके साथ थोड़ी सी मस्ती करें. ऐसा करने से मानसिक तनाव भी नहीं होगा और आपका रिश्ता भी मजबूत होगा। अपने जीवनसाथी को खुश रखने के लिए आप चाय या कॅाफी ब्रेक ले सकते हैं आप अपने वाइफ के साथ वक्त निकाल कर थोड़ा सा किचन में भी हेल्प कर सकते हैं.इससे आप दोनों का ही मूड फ्रेश होगा और खाना भी जल्दी बन जाएगा और फिर से अपना काम जल्दी कर सकते हैं.

ये भी पढ़ें- जब पति फूहड़ कह मारपीट करने लगे

2. पति-पत्नी को साथ मिलकर घर के काम करने चाहिए.वर्किंग कपल्स को इस बात को समझना होगा कि इस कोरोना काल में काम का दबाव दोनों पर है क्योंकि उन्हें घर और ऑफिस दोनों संभालना है इसलिए घर के सभी काम मिलकर किए जाएं। ऐसा करने से किसी एक व्यक्ति पर दबाव भी नहीं पड़ेगा और घर के काम भी जल्दी हो जाएंगे। एक साथ घर के काम करने से आप दोनों का रिलेशनशिप भी मजबूत होगा।

3. घर से काम कर रही महिलाएं को भी कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है क्योंकि उन्हें जयादातर घरों में जो वर्किंग वुमन हैं उन्हें ऑफिस के साथ घर का और यदि वो फैमिली में हैं तो पूरी फैमिली का भी ध्यान रखना होता है.घर के हर सदस्य को यह समझाएं कि आपके लिए जितना जरूरी घर का काम है, उतना ही जरूरी ऑफिस के काम भी है। छोटे-छोटे कामों का तनाव लेने के बजाय काम को घर के हर सदस्य के साथ शेयर करें और ऐसी और ऐसी सिचुएशन में पुरुषों को भी अपनी पार्टनर का पूरा ध्यान रखना चाहिए और साथ ही उनकी मदद भी करनी चाहिए.

4. पति-पत्नी को इस बात का ध्यान जरूर रखना चाहिए कि उन्हें अपनी प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ को अलग रखना है। अपने ऑफिस के काम के समय सिर्फ काम करें और घर के काम करते वक्त सिर्फ घर की बातें और घर के काम हों. पर्सनल और प्रोफेशन को कभी भी आपस में ना मिलाएं. अगर इस बात खयाल दोनों रखें तो रिश्ते बने रहने के साथ ही मजबूत भी होते हैं.

5. कभी-कभी काम के प्रेशर में आप इरिटेट होने लगते हैं लेकिन इसका मतलब बिल्कुल भी नहीं है कि आप पर काम का दबाव अधिक और अचानक से आपको गुस्सा आ जाए तो आप वो गुस्सा किसी पर भी या अपनी पत्नी पर निकाल दें.ऐसा कभी ना करें. बल्कि आपको अपने गुस्से पर नियंत्रण में रखना है और अपने पाटर्नर से प्यार से बातें करनी हैं. इस समय आपका पाटर्नर आपसे गुस्से में कुछ बोल दे तो उस ओर ध्यान न दें.

ये भी पढ़े- जब किसी पुरूष का टूटता है दिल

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें