पोस्ट कोविड में स्किन की देखभाल करना है जरुरी 

सुमन और उसके पूरे परिवार को कोविड हुआ. सभी घर पर क्वारेंटीन रहकर डॉक्टर की सलाह से दवाइयां ली और कुछ दिनों बाद सभी की रिपोर्ट निगेटिव आ गई, बच्चे से लेकर पति-पत्नी सभी कमजोरी महसूस करने लगे. थोड़े दिनों में वह भी ठीक हो गया, लेकिन सुमन के स्किन पर रैशेज होने लगे, जिसमें बहुत खुजली होने लगी. उन्होंने डॉक्टर से सलाह ली, तो पता चला कि ये पोस्ट कोविड का रिएक्शन है. डॉक्टर ने उन्हें कुछ दवाइयां और लोशन लगाने के लिए दिए, जिससे वह करीब एक महीने बाद में ठीक हो पायी. 

असल में कोविड महामारी की दूसरी लहर ने हर व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर बना दिया है, लेकिन वे लोग जो कोविड से बाहर निकले है, जो निगेटिव हो चुके है,  उन्हें कुछ महीनो तक कोविड के बाद साइड इफेक्ट देखने को मिला, खासकर त्वचा और हेयर की समस्या उनमें अधिक रहती है. इस बारें में अमृतसर की आर एम एस्थेटिक्स की सेलेब्रिटी डर्मेटोलोजिस्ट & बोटॉक्स स्पेशलिस्ट डॉ. अमीषा महाजन कहती है कि ये समस्या कोविड के 1 से 3 महीने बाद शुरू होता है, जिसमें हेयर फॉल ख़ास होता है. कुछ लोगों को कोविड के तुरंत बाद केशों के गिरने की वजह कोविड के दौरान ली गई दवाइयां हो सकती है. लेकिन एक महीना या 3 महीने के बाद हेयर फॉल पोस्ट कोविड में ही होता है. इसके अलावा कोविड के बाद त्वचा पर खुजली या रैशेज भी आने की संभावना रहती है, इसकी दो वजह है,

  • कोविड के वायरस की वजह से खुजली का होना,
  • पोस्ट कोविड में त्वचा ड्राई होने की वजह से खुजली होना. 

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ये भी सही है कि ड्राईनेस स्किन को अधिक प्रभावित करती है उसे कंट्रोल करना जरुरी है, कई लोगों को इससे बाद में एक्जिमा भी हो जाया करती है. अगर स्किन सम्बन्धी कोई बीमारी है, तो एंटीबेक्टेरियल साबुन का प्रयोग न करें, ये त्वचा के लिए बहुत ही कठोर होते है, अगर त्वचा में अधिक रैशेज हो, तो मुलायम साबुन या पुराने ज़माने के जैसे दूध या दही से भी नहा सकते है. कुछ गाइडलाइन्स पोस्ट कोविड से बचने के निम्न है,

हेयरफॉल 

जब शरीर कोविड या किसी घातक बीमारी का शिकार होता है, तो व्यक्ति बहुत तनावग्रस्त हो जाता है, जिसका प्रभाव बालों पर अधिक रहता है. वैज्ञानिक रूप से इसे टेलोगेन एफ्फ्लुवियम अर्थात शरीर में शॉक बीमारी की वजह से है, इससे सिर के बाल आसानी से झड़ने लगते है.ये केश अधिकतर गुच्छों में नहाने या बाल झाड़ने के वक्त गिरते है. ये लक्षण कोविड के 2 से 3 महीने बाद दिखती है. ये किसी भी व्यक्ति के लिए बहुत चिंता का विषय होता है, क्योंकि केशों का झड़ना, 6 से 9 महीने तक चलता रहता है, लेकिन अच्छी बात ये है कि बालों का फिर से उगना भी जारी रहता है. मेरे हिसाब से ऐसे समय में केशों पर तेल न लगायें, क्योंकि इससे कमजोर जड़ों से हेयर फिर से गिरने लगते है. बालों के लिए सप्लीमेंट्स और हेयर सीरम बहुत अच्छा होता है, जो मजबूत बाल ग्रो करने में सहायता करती है.   

अधिक ड्राईनेस 

कोविड के बाद स्किन का ड्राई होना बहुत ही कॉमन है. त्वचा रुखी होने के साथ-साथ उससे पपड़ी भी निकल सकती है, ऐसे में हमेशा मुलायम साबुन या क्लींजर के प्रयोग के साथ-साथ थिक मोयस्चराईजिंग क्रीम कम से कम दिन में 2 से 3 बार लगाने की जरुरत होती है, ताकि खुजली और रैशेज से जल्दी छुटकारा मिले. ड्राई स्किन में हमेशा खुजली अधिक होती है, लेकिन इसका सबसे बढ़िया इलाज गाढ़ा क्रीम और ओलिव आयल लगाना ही है, जो मोयास्चराईजर को अंदर से सील कर देती है. एंटी बेक्टेरियल साबुन, क्लींजर से दूर रहे, क्योंकि ये स्किन के लिए कठोर होती है. 

एक्ने का बढ़ना 

कोविड के बाद कील-मुहांसे और रोजेसिया बढ़ जाती है, इसके लिए डॉक्टर की सलाह लेकर एंटी-एक्ने मेडिसिन लें और क्रीम लगाते रहे, ताकि आपके कील-मुहांसे और रोजेसिया यानि गुलाबी पैच जो त्वचा पर होती है, वह पूरी तरह से ठीक हो सकें.

त्वचा का डार्क हो जाना 

यह एक कॉमन साइड इफ़ेक्ट है, जो कोविड वायरस के संक्रमण के बाद होती है और धीरे-धीरे अपने आप ठीक हो जाती है, लेकिन इसे जल्दी ठीक करने के लिए मोयस्चराईजर और माइल्ड डीपिगमेंटेशन क्रीम का प्रयोग करना अच्छा होता है. वैसे भी स्किन की डार्कनेस कम होने में महीनो लगते है. अधिक से अधिक रिच एंटी ऑक्सीडेंटस भोजन और स्किन सप्लीमेंट्स भी त्वचा के रंग को ठीक करने में मदद करती है. बहुत अधिक पिगमेंटेशन कोविड के दौरान दी गयी दवाइयों से भी हो सकती है. अगर आपकी पिगमेंटेशन ठीक नहीं हो रही है, तो किसी स्किन स्पेशलिस्ट डॉक्टर की सलाह लेकर मेडिसिन लेने की कोशिश करें.

इसके आगे डॉ.अमीषा कहती है कि कोविड के निगेटिव होने बाद कुछ न कुछ समस्या हमारे शरीर में आएगी और सबको ये समझना पड़ेगा, ऐसे में अगर कुछ विटामिन्स की जरुरत हो तो उसे भी लेना पड़ेगा. कोविड के दौरान विटामिन सी और जिंक के टेबलेट लोग लेते है. कोविड के बाद भी उसे कुछ समय लेने की सलाह दी जाती है. पोस्ट कोविड में मैंने सबसे अधिक हेयर फॉल देखा है. इसमें बाल गुच्छों में उतरते है. नहाते समय पूरी जाली हेयर से भर जाती है. कई बार लोग समझ भी नहीं पाते है कि कोविड की वजह से बाल झड़ रहे है. कई बार तीन महीने के बाद भी बाल झड़ने लगते है. ये समस्या पोस्ट कोविड के बाद अधिक देखा है. इसके अलावा  अगर किसी को स्किन की कोई बीमारी पहले थी, कोविड के बाद फिर से दिखाई पड़ सकती है. हेयर फाल को कंट्रोल करने में दो से तीन महीने लगते है. अच्छी बात यह है कि झड़ने वाले सारे बाल फिर से अच्छी तरह उग आते है. घबराने की जरुरत नहीं होती. ये बॉडी की एक रिएक्शन है, जो थोड़े दिनों में ठीक हो जाता है. केवल धैर्य की जरुरत होती है.

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 इसके अलावा कोविड के बाद चिल्ब्लैन्स यानि हाथ या पांव की उँगलियों में सूजन और लाली की वजह से खुजली होना, ये अधिकतर ठंडी के मौसम में अधिक ठण्ड से होता है. इसकी कोई दूसरी वजह न दिखने से समझ में आया कि ये पोस्ट कोविड का रिएक्शन है. ये समस्या बहुत कम लोगों में देखा गया है. अब इसका इलाज़ हो रहा है और चिंता की कोई वजह नहीं है. हेयर फॉल की समस्या 30 प्रतिशत लोगों में देखी  गयी. इस समय प्रोटीन रिच डाइट जिसमें कार्बोहाइड्रेट, नट्स, फ्रूट्स और फैट सब लेना जरुरी होता है.

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कोरोना में Stress दूर करने के लिए इन 5 Essential Oil का करें इस्तेमाल

यह एक लंबा समय रहा है कि हम कोविड 19 जैसी महामारी के साथ रह रहे हैं, और हमारे राष्ट्र और प्रिय लोगों की स्थिति के साथ बुरे से बदतर होता देख , दुखी , तनावग्रस्त और उदास महसूस करना सामान्य है. ये समय आसान नहीं हैं, और ऐसे में खुद को यह विश्वास दिलाना की एक दिन सब बेहतर हो जाएगा , बहुत मुश्किल है. अगर आप भी तनाव महसूस कर रहे हैं और बेचैनी को झेलना मुश्किल हो रहा है, तो आप भी अपने मन को शांत करने के लिए एसेंशियल ऑयल की मदद ले सकते हैं.

स्ट्रेस दूर करने में काम आते हैं ये एसेंशियल ऑयल :

तनाव से भरा दिमाग़ शायद आजकल देशभर में एक आम बात हो गई है. कोरोना वायरस की महामारी से आज पूरी दुनिया जूझ रही है. ऐसे में हम आशा करते हैं कि सभी इस आपदा से मज़बूती से लड़ेंगे. आप जानते हैं कि तनाव, उदासी और डिप्रेशन आपके हार्मोन पर बहुत बुरा प्रभाव डाल सकते हैं और शारीरिक बीमारी और मानसिक बीमारी का कारण बन सकते हैं. ऐसे में  खुद को शांत करने के लिए एसेंशियल ऑयल का उपयोग करना चाहिए. अपने आप को आराम देने के लिए आप इन तेलों को अलग-अलग तरीकों से उपयोग में ला सकते हैं ,  जैसे कि  इसे अपने नहाने के पानी में उपयोग कर सकते हैं , या अपने पैरों पर लगा सकते हैं , या अपने कमरे में छिड़क सकते हैं. हमने उन तेलों की एक सूची तैयार की है , जिनका आपको इस समय में उपयोग करना चाहिए:

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1. चंदन का तेल

आपको तनाव से मुक्त करने के लिए सबसे अच्छा तेल चंदन का तेल है. आप इसे एक डिफ्यूज़र या अपने नहाने के पानी में डाल सकते हैं या हर दिन इत्र के रूप में उपयोग कर सकते हैं और यह निश्चित रूप से यह आपको तनाव मुक्त कर  देगा. यही कारण है कि लोग चंदन का उपयोग तिलक के रूप में करते हैं क्योंकि यह आपके दिमाग को तुरंत ठंडा कर देता है.

2. जैस्मीन ऑयल

एक अन्य तेल जो तनाव और डिप्रेशन से निपटने में बहुत मदद करता है, वह है जैस्मिन ऑयल. यह तेल शादियों और मंदिरों में बहुत उपयोग किया जाता है क्योंकि यह तेल आपको तुरंत शांत करता है और आपकी मसल्स को आराम देता है.

3. रोज़ ऑयल

चिंता का इलाज करने के लिए एक और  अद्भुत तेल है , वो है रोज़ ऑयल या गुलाब का तेल है. इस तेल का आप अपने नहाने के पानी में या इत्र के रूप में प्रयोग करें.

4. लैवेंडर ऑयल

हम सभी कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों को देख वास्तव में चिंतित हैं. वायरस से जुड़ी हर रोज़ आ रही ख़बरें हम सभी को काफी तनाव दे रही हैं जिससे रात में नींद आने में भी तकलीफ होती है , इसलिए नींद आने में मदद करने के लिए आप लैवेंडर ऑयल का उपयोग करें. यह तेल एक  एंटी-स्ट्रेस और एंटी-वायरल तेल है जो आपको सोने में मदद करता है. आप अपने मन को शांत करने के लिए इसे डिफ्यूज़र या अपने नहाने के पानी में इस्तेमाल कर सकते हैं. या फिर आप इसकी कुछ बूंदें लें और अपने पैरों के तलवों और हथेली पर मलें  जिससे आपको सोने में सहायता मिलेगी.

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5. इलंग इलंग ऑयल

अपने घर के बुजुर्गों की देखभाल करना महत्वपूर्ण है. उनके पास कई ऐसी समस्या होती है जिन्हे वे किसी से नहीं बताते. उनकी चिंता और डिप्रेशन को दूर करने में , उनकी मदद करने के लिए इलंग इलंग ऑयल का उपयोग करें. नहाने के बाद इसे उनके बालों पर लगाएं, या आप उनके  पैरों को इलंग इलंग के पानी में भिगो सकते हैं या वे इसे हर दिन इत्र के रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं.

तनाव इंसान की सेहत को किस हद तक बिगाड़ सकता है, यह बात किसी से छुपी नहीं है. स्ट्रेस से शरीर की सुंदरता को भी नुकसान पहुंचता है. यही वजह है कि सेहत सौंदर्य और खुशी के लिए तनाव दूर किया जाना बेहद जरूरी होता है. तो यह कुछ एसेंशनल ऑयल है जो जरूर आपको तनाव से मुक्त कर देंगे और आप फिर से अच्छा महसूस करेंगे.

Mother’s Day Special: एक आसान मातृत्व के लिए कुछ सुझाव

एक औरत की ज़िन्दगी में माँ बनने का सुख हर सुख से परे है और वह एक अनूठा अनुभव है क्योंकि मातृत्व का सुख ,उसका एहसास सब रिश्तो से अलग होता है. इसमें एक औरत की खुद अपनी परछाई से मुलाकात होती है, जो उसे अपनी औलाद के रूप में मिलती है. पहली बार मां बनने का अहसास बहुत ही अलग होता है.

शिशु के आने से एक औरत की जिम्मेदारी बढ़ जाती है. वह अपना सारा ध्यान व समय अपने शिशु को समर्पित कर देती है. माँ और शिशु का रिश्ता बड़ा ही अनमोल होता है. माँ ही शिशु के लालन -पोषण का ध्यान रखती है , उसकी हर छोटी -बड़ी जरूरत का ख्याल रखती है.

ऐसे में माँ को भी अपना ध्यान रखना चाहिए. आजकल ऐसे बहुत से प्रोडक्ट्स उपलब्ध है जो की एक आसान मातृत्व में सहायक होते हैं. नयी माताएं इन्हे इस्तेमाल करके अपनी रोज़मर्रा की दिनचार्य में शामिल कर सकती है.

नीचे कुछ सुझाव व प्रोडक्ट्स बताये गए है जिससे नयी माताएं अपनी जीवनशैली में एक स्मार्ट और सुखी मातृत्व का आनंद ले सकती है.

1. बेबी कन्वर्टबल चेयर –

यह एक 4 इन 1 समाधान है. आप इसे अपने शिशु की शांतिपूर्ण नींद के लिए एक पालने के रूप में उपयोग कर सकते हैं और खिलोने लगाकर शिशु को व्यस्त भी रख सकते है. आप डाइनिंग टेबल पर अपने साथ शिशु को खाना खिलाने के लिए इसे हाई चेयर के रूप में भी परिवर्तित कर सकते है . और जब शिशु स्वयं खाना शुरू करते हैं, तो यह आसानी से कुर्सी के रूप में भी परिवर्तित की जा सकती है . ये एक मल्टिफंक्शन प्रोडक्ट है जो कि शिशु के खाने, सोने और खेलने में सहायक होता है.

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2. माताओं के लिए ब्रैस्ट फीडिंग पम्पस –

यह माताओं को न केवल ब्रैस्ट मिल्क एक्सट्रेक्ट करने बल्कि आसानी से स्टोर करने में भी मदद प्रदान करते हैं ताकि माँ की अनुपस्थिति में माँ का दूध व उसके गुण शिशु को उपलब्ध हो सकें. ब्रैस्ट पम्प का चुनाव करते समय माताओं को विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए कि ब्रैस्ट पम्प प्रभावी एवं सौम्य ढंग से दूध एक्सट्रेक्ट कर सके और साथ ही माँ के हाथ व बाजु पर प्रेशर न डाले जिससे कि वह लम्बे समय तक शिशु को ब्रैस्ट मिल्क के गुण उपलब्ध करा पाएं.

3. बाथिंग जेल –

यह 100% साबुन मुक्त फार्मूला से बनाया गया है जो शिशु की नाजुक त्वचा को जेंटली साफ करता है, और उसे सॉफ्ट बनाता है . यह नो टीयर्स फार्मूला इस तरह बनाया गया है की यह शिशु की नाजुक आँखों में जलन ना करे और क्योंकि यह जेल मैरीगोल्ड और ग्लिसरीन जैसी प्राकृतिक चीज़ो से मिलकर बना है, इसलिए यह हर रोज शिशु की नाजुक त्वचा के लिए प्रयोग किया जा सकता है जिससे शिशु की त्वचा सॉफ्ट और मॉइस्चरीज़ड बनी रहे.

4. शिशु के खाने की चीजों और सरफेस को स्वच्छ रखें-

आज कल शिशु उत्पादों और खाद्य पदार्थों को केवल पानी से धोना काफी नहीं है , बैक्टीरिया और कीटाणुओं को खत्म करने के लिए एक अच्छे डिसइंफेक्टेंट का उपयोग करना और इसे अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाना बहुत महत्वपूर्ण है. खरीदते समय माता पिता को एक ऐसे डिसइंफेक्टेंट का चुनाव करना चाहिए जो विशेष रूप से शिशु की वस्तुओं के लिए बनाया गया हो और एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-फंगल गुणों से युक्त हो .

5. बच्चों के लिए फेस मास्क –

बाज़ार में बच्चो के लिए स्पेशल फेस मास्क उपलब्ध हैं जो आज के समय में बच्चों की सुरक्षा के लिए अत्यधिक आवश्यक हैं. बच्चे के लिए कॉटन के कपडे का मास्क खरीदे जो सॉफ्ट और 6 लेयर प्रोटेक्शन वाला हो जिससे बच्चा आसानी से सांस ले सकता है. थोड़े समय के लिए भी घर से बाहर निकलते वक्त बच्चों को मास्क अवश्य पहनाएं.

6. शिशु के लिए हाइजीन का ध्यान रखना –

शिशु के आस-पास साफ़ – सफाई का बहुत ध्यान रखना चाहिए. शिशु को खाना खिलाने के बाद उसके हाथ व मुँह को बेबी वाइप्स से साफ़ करना चाहिए , उसके हाथ -पैरो पर मॉस्क्वीटो जेल /स्प्रे लगाना चाहिए जिससे आप उन्हें मच्छरों से बचा सकते हैं.

7. शिशु के साथ ज़्यादा से ज़्यादा समय व्यतीत करें –

रोज़ कुछ टाइम अपने बच्चे के लिए ज़रूर निकालें जिनमे उनके साथ क्रिएटिव एक्टिविटीज जैसे – म्यूजिक, डांस, पेंटिंग करे , कविता सुनाये , कहानियां पढ़े व सुनाएं ताकि उनके शारीरिक व मानसिक विकास में सहायक हो.़

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8. शिशु की ओरल हेल्थ –

शिशु के दांतों और मुंह के स्वास्थ्य का ध्यान रखना भी अत्यधिक आवश्यक है. एक सॉफ्ट ब्रिस्स्ल टूथब्रश का उपयोग करे जिसकी ब्रिस्स्ल सॉफ्ट होने के साथ साथ ब्रश हेड का शेप मुँह के कोने कोने में सफाई करने में सहायक हो. बहुत छोटे शिशु के लिए फ्लोराइड फ्री टूथपेस्ट ही उपयोग करें क्यूंकि अक्सर शिशु टूथपेस्ट को निगल भी सकते हैं. फ्लोराइड फ्री टूथपेस्ट पेट में जाने पर भी शिशु को नुकसान नहीं पहुंचाती है. हर बार खाने खाने के बाद बच्चे को पानी से कुल्ला ज़रूर करवाएं.

राजेश वोहरा, चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर, आर्ट्साना ग्रुप (Chicco), इन एसोसिएशन विद कीको (Chicco) रिसर्च सेंटर

3 महीनों में एक बार पीरियड्स आते हैं, इसका असर प्रैग्नेंसी पर तो नहीं होगा?

सवाल-

मुझे पीरियड्स को ले कर काफी समस्या है. 2-3 महीनों में एक बार पीरियड्स आते हैं. शादी को 7 साल हो गए, लेकिन मेरी कोई संतान नहीं है. क्या मैं कभी मां नहीं बन पाऊंगी?

जवाब-

2-3 महीनों में एक बार पीरियड्स आना पीसीओडी (पौलिसिस्टिक ओवरी डिसऔर्डर) की ओर संकेत देता है. यह आज एक आम समस्या है. खानपान व जीवनशैली में बदलाव और मोटापा इस के सब से प्रमुख कारण हैं. लेकिन इस का उपचार भी बहुत आसान है. आप रोज वर्कआउट करें, ताजा फल, सब्जियां खाएं, कार्बोहाइड्रेट (रोटी, चावल, ब्रैड) का सेवन कम करें, रिफाइंड शुगर का सेवन बंद कर दें और अपना वजन सामान्य बनाए रखें. इन बदलावों से आप की माहवारी सामान्य हो जाएगी. लेकिन इस के बाद भी अगर गर्भधारण करने में परेशानी आ रही है तो किसी स्त्री रोग विशेषज्ञा को दिखाएं. दवा, इंजैक्शन आदि उपचारों के द्वारा पीसीओडी के मामलों में आसानी से गर्भधारण किया जा सकता है.

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हर वर्ष सितंबर महीने के अंतिम बुधवार को राष्‍ट्रीय महिला स्‍वास्‍थ्‍य और तंदुरुस्‍ती दिवस के रूप में मनाया जाता है. इसका उद्देश्‍य महिलाओं की तंदुरुस्‍ती और मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य के बारे में जागरूकता पैदा करना है. इस बारें में नवी मुंबई के रिलायंस हॉस्पिटल की हेड ऑफ ऑब्‍स्‍टेट्रिक्‍स एंड गायनकोलॉजी, डॉ. बंदिता सिन्‍हा कहती है कि कोविड महामारी के समय में स्वास्थ्य की देखभाल करने का महत्‍व और अधिक बढ़ गया है. महामारी की स्थिति महिलाओं के लिए चिंताजनक है. वे घर से काम कर रही हैं और घर के लिए काम कर रही हैं, और इस भाग-दौड़ में अपने स्‍वयं की देखभाल की अनदेखी कर देती है. महिलाओं को यह समझना चाहिए कि अब उनकी जिम्‍मेदारियां कई गुना बढ़ गई हैं और ऐसे में, उनके लिए अपने स्‍वयं के स्‍वास्‍थ्‍य की देखभाल और अधिक महत्‍वपूर्ण हो गया है. कुछ आसान बातें निम्न है, जो ध्‍यान देने योग्‍य है,

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 बराबरी का हक: हालात बदले पर सोच नही

37 साल की अनुषा देओल महिला कालेज में लैक्चरर है. उस ने मनोविज्ञान में पीएचडी कर के अपने लिए यह फील्ड चुनी. उस का पति साधारण ग्रैजुएट है और प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता है. घर में पति के अलावा सासससुर और तलाकशुदा जेठ है. अनुषा को घर में अकसर कहा जाता है कि वह जौब छोड़ दे, मगर अनुषा इस के लिए तैयार नहीं होती. उसे लगता है कि जौब के बहाने कुछ समय तो वह इस घर की चारदीवारी से दूर समय बिता लेती है.

अनुषा ने बहुत मुश्किल से घर में सब को राजी कर जौब कंटीन्यू की है. कालेज जाने से पहले उसे घर का सारा काम करना पड़ता है. नाश्ते के साथ ही लंच की पूरी तैयारी कर दौड़तीभागती कालेज पहुंचती है. पूरा दिन काम कर शाम में थकीहारी लौटती है तो कोई उसे एक कप चाय भी बना कर नहीं देता. सास कोई न कोई शिकायत ले कर जरूर पहुंच जाती है.

बेटी को पढ़ाना हो या कोई और काम करना हो सब उसे ही करना होता है. पति उस पर हर समय हुक्म चलाता रहता है.

जब भी वह किसी गलत बात का विरोध कर अपना पक्ष रखना चाहती है तो पति उसे डांटता हुआ कहता है, ‘‘खुद को बहुत पढ़ालिखा सम  झ कर मु  झ से जबान लड़ाती है. जबान खींच कर हाथ में दे दूंगा.’’

पीछे से सास भी आग में घी डालने का काम करते हुए कहती है, ‘‘कितना कहा था पढ़ीलिखी लड़कियां किसी काम की नहीं होतीं. जबान गज भर की और काम का सलीका जरा भी नहीं. उस पर तेवर ऐसे जैसे यही हमारा घर चला रही हो. याद रख तेरे कुछ हजार रुपयों से हमारा खजाना नहीं भर गया, जो आंखें दिखाएगी. बहू है तो बहू की तरह रह वरना जा अपने बाप के घर. वहीं जा कर नखरे दिखाना.’’

भेदभाव की शिकार

उसे इस तरह की धमकियां और पति के द्वारा मारपीट अकसर सहनी पड़ती है पर वह खामोश रह जाती है. अकेले में खामोशी से आंसू बहा कर जी हलका कर लेती है और फिर काम में लग जाती है. उसे पता है कि मायके में भी कोई उस की नहीं सुनने वाला. बचपन से मांबाप ने भी भाई और उस में भेदभाव ही किए थे. वैसे वह इतना कमाती है कि अपना और बच्ची का गुजारा अच्छी तरह कर सकती है, मगर वह जानती है कि अकेली रह रही महिलाओं के साथ समाज का नजरिया कैसा होता है.

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ज्यादातर मध्यवर्गीय परिवार की महिलाएं इसी तरह की परिस्थितियों से जू  झ रही हैं. वे भले ही कितना भी पढ़लिख लें, मगर जब बात आती है घर में मिलने वाली इंपौर्टैंस और केयर की तो उन्हें निराश ही होना पड़ता है. यदि वे अविवाहित हैं तो घर में भाई की तूती बोलती है और यदि विवाहित हैं तो पति भले ही कम पढ़ालिखा हो, मगर वह पत्नी पर अकड़ दिखाना अपना जन्मसिद्ध अधिकार सम  झता है.

महिला यदि जौब नहीं करती तो उस का पूरा दिन नौकरानियों की तरह काम करते गुजरता है पर घर में कोई उसे अहमियत नहीं देता. यदि वह जौब करती है तो उसे घर के साथसाथ औफिस का काम भी करना पड़ता है. घर में कोई उस की मदद करने का प्रयास भी नहीं करता. दोहरी जिम्मेदारियों के बावजूद कहीं भी उस की कद्र नहीं होती.

शिक्षा है जरूरी

हम सब इस बात को मानते हैं कि हमारे स्वाभिमान को जगाने और आजादी दिलाने का रास्ता शिक्षा है. शिक्षा वह सीढ़ी है जिस पर चढ़ कर ही महिलाओं को अपने कानूनी और संवैधानिक अधिकारों का पता चलता है और सफलता के नए रास्ते खुलते हैं. शिक्षा ही महिलाओं के सशक्तीकरण की पहली शर्त होती है. मगर जब शिक्षा के साथ  महिलाओं की ओवरऔल स्थिति पर ध्यान दें तो पता चलता है शिक्षा के बावजूद महिलाएं कितने बुरे हालात से गुजर रही हैं.

दुनियाभर में लड़कियों की स्थिति शिक्षा के मामले में भले ही बेहतर हुई है, लेकिन इस के बावजूद उन्हें हिंसा और भेदभाव सहना पड़ रहा है. यूनिसेफ की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा होना अब भी आम है. रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 20 सालों में स्कूल न जाने वाली लड़कियों की तादाद 7 करोड़ 90 लाख कम हुई है और पिछले 1 दशक में सैकंडरी स्कूल में लड़कों के मुकाबले लड़कियों की संख्या बढ़ी है.

अगर भारत की बात की जाए तो भारत में शिक्षा के क्षेत्र में लड़कियों और लड़कों के लिंगानुपात की स्थिति बेहतर हुई है. प्राथमिक विद्यालयों में लैंगिक अनुपात सुधरा है, जिस के कारण बाल विवाहों में कमी आई है.

चौंकाने वाली बात यह है कि इस के बावजूद दुनियाभर में 15 से 19 साल की उम्र की 1 करोड़ 30 लाख लड़कियां यानी हर 20 में से

1 लड़की बलात्कार की शिकार हुई है.

भारत में राष्ट्रीय स्वास्थ्य परिवार सर्वेक्षण के 2015-16 के आंकड़ों के मुताबिक 15 साल की उम्र तक भारत में हर 5 में से 1 लड़की यानी 1 करोड़ 20 लाख लड़कियों ने शारीरिक हिंसा   झेली है. वहीं 15 से 19 साल की हर तीन में से 1 लड़की (34%) ने चाहे वह शादीशुदा हो या परिवार के साथ रहती हो, अपने पति या पार्टनर से शारीरिक, मानसिक या यौन हिंसा सही है.

राष्ट्रीय स्वास्थ्य परिवार सर्वेक्षण के अनुसार, 65 तो 16 फीसदी लड़कियों (15-19) ने अपने साथ हुई शारीरिक हिंसा की बात बताई है. 3 फीसदी ने यौन हिंसा की बात कही है. वहीं 15 से 49 साल की शादीशुदा महिलाओं में से 31% ने पति की ओर से शारीरिक, यौन या मानसिक प्रताड़ना सही है.

काम के क्षेत्र में भेदभाव

28 साल की मिस जूली ने हाल ही में कंपनी जौइन की थी. वह कंपनी में ऐड डैवलैपर के तौर पर नियुक्त हुई थी. उस दिन मीटिंग में जब नए सौफ्ट ड्रिंक के लौंच की तैयारी पर बात हो रही थी और मैनेजर ने बोतल के कलर पर बात की तो जूली ने औरेंज कलर चूज करने की सलाह दी.

यह एक नौर्मल बात थी जिसे पास बैठे एक पुरुष कलीग ने कुछ अलग ही नजरिया देते हुए कहा, ‘‘मिस जूली आप तो औरेंज कलर कहेंगी ही. आखिर यह कलर आप की लिपस्टिक से जो मैच करता है.’’

उस के ऐसा कहते ही मीटिंग में बैठे सभी पुरुष सदस्य ठहाके लगा कर हंस पड़े जबकि जूली   झेंप गई. अकसर महिलाओं को इस तरह की लिंग आधारित भेदभाव पूर्ण टिप्पणियों का सामना करना पड़ता है. इस तरह की टिप्पणियां अकसर पुरुष सहकर्मी महिलाओं को नीचा दिखाने या मजाक बनाने के लिए करते हैं. उन्हें लगता है जैसे महिलाओं को फैशन और मेकअप के अलावा कुछ नहीं दिखता.

पुरुष कभी भी दिमागी तौर पर स्त्रियों को अपने बराबर या अपने से ज्यादा मानने को तैयार नहीं होते. यह मानसिकता उस पुरुषवादी सोच को प्रतिबिंबित करती है, जिसे पूरी तरह से खत्म होने में सदियां लगेंगी.

बराबरी का दर्जा

हाल ही में फोर्ब्स द्वारा जारी विश्व की सब से शक्तिशाली महिलाओं की सूची में टौप 100 में सिर्फ 4 भारतीय महिलाएं ही आ सकीं. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जो टौप की 500 कंपनियां हैं उन में सिर्फ 10% महिलाएं ही सीनियर मैनेजर हैं. भारत में 3% से भी कम महिलाएं सीनियर मैनेजर के पद पर हैं. हकीकत यही है कि प्रमुख निर्णायक और प्रतिष्ठित जगहों पर महिलाओं की गिनती न के बराबर रहती है.

दरअसल, बहुत कम पुरुष ऐसे हैं, जो महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने के लिए तैयार होते हैं.

आज भले ही पुरुष और महिलाएं कंधे से कंधा मिला कर काम कर रहे हैं, लेकिन समाज में लिंग आधारित भेदभाव अब भी मौजूद है. कभी योग्य कैंडिडेट को महज इसलिए पदोन्नति नहीं दी जाती क्योंकि वह लड़की है और नियोक्ता को यह भय होता है कि जल्द ही उस की शादी हो जाएगी. इस से वह अपने काम के प्रति लापरवाह हो जाएगी और औफिस में पूरा समय नहीं दे पाएगी.

इसी तरह कई बार मैटरनिटी लीव के बाद महिलाओं को वापस काम पर नहीं लिया जाता. कई महिलाओं या लड़कियों को औफिस में पुरुष सहकर्मियों से लिंग के आधार पर भेदभाव भरी टिप्पणियां सुनने को मिलती हैं.

अकसर महिलाओं की काबिलीयत पर भी सवाल उठाए जाते हैं, उन के सही फैसलों को गलत ठहराया जाता है. जब पुरुष दृढ़ता से फैसले लेता है तो उसे डायनेमिक सम  झा जाता है, लेकिन जब महिला उसी किस्म की दृढ़ता प्रदर्शित करती है तो वह पुरुषों की आंख की किरकिरी बन जाती है.

कभीकभी महिलाओं को कार्यस्थल पर सैक्सुअल पौलिटिक्स का भी सामना करना पड़ता है. कुछ पुरुष अपनी महिला कलीग के प्रति यह राय बना कर चलते हैं कि स्त्री होने के कारण उसे बौस की फेवर मिलती है. उस की मेहनत और कार्य के प्रति समर्पण को नजरअंदाज कर पीठ पीछे उस का मजाक भी उड़ाया जाता है.

जब तक इस तरह की मानसिकता नहीं बदलेगी लड़कियों को कितना भी पढ़ा लिया जाए उन के साथ भेदभाव बदस्तूर चलता रहेगा.

बचपन से ही पढ़ाया जाता है भेदभाव

आप कभी बच्चों के स्कूल की किताबें खोल कर देखिए. ज्यादातर किताबों में लड़कियों को या तो परंपरागत भूमिकाओं में दिखाया जाता है या फिर किताब में लड़कियों की तसवीर न के बराबर होती है. लगभग हर क्लास की किताबों में इस तरह का भेदभाव देखा जा सकता है, जिस के बारे में हम कभी सोचते भी नहीं.

‘यूनाइटेड नेशन ऐजुकेशनल साइंटिफिक ऐंड कल्चर और्गेनाइजेशन’ ने हाल ही में अपनी ग्लोबल ऐजुकेशन मौनिटरिंग रिपोर्ट 2020 जारी की. ऐनुअल रिपोर्ट के इस चौथे संस्करण के मुताबिक अलगअलग देशों के पाठ्यक्रम में महिलाओं को किताबों में कम प्रतिष्ठित पेशे वाला दर्शाया गया है, साथ ही महिलाओं के स्वभाव को भी अंतर्मुखी और दब्बू बताया गया. किताबों में एक ओर यदि पुरुषों को डाक्टर दिखाया जाता है तो वहीं महिलाओं की भूमिका एक नर्स के रूप में दर्शायी जाती है.

अपनी रिपोर्ट में यूनेस्को ने यह भी कहा कि महिलाओं को सिर्फ फूड, फैशन और ऐंटरटेनमैंट से जुड़े विषयों में दिखाया जाता है.

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यूनेस्को की इस रिपोर्ट के मुताबिक फारसी और विदेशी भाषा की 60, विज्ञान की 63 और सामाजिक विज्ञान की 74 फीसदी किताबों में महिलाओं की कोई तसवीर नहीं है.

पितृसत्तात्मक सोच

एक मलयेशियाई प्राथमिक स्कूल की किताब में सलाह दी गई है कि लड़कियां अगर अपने शील की रक्षा नहीं करतीं तो उन्हें शर्मिंदा होने और बहिष्कार किए जाने का खतरा है. अमेरिका में अर्थशास्त्र की किताबों में महिलाओं के सिर्फ 18% किरदार ही थे. वह भी खाने, फैशन और मनोरंजन से संबंधित थे.

इस रिपोर्ट में 2019 की महाराष्ट्र की उस पहल का भी जिक्र किया गया है, जिस में किताबों से लिंग आधारित रूढि़यों को हटाने के लिए किताबों के चित्रों की समीक्षा की गई थी. समीक्षा के बाद किताबों में महिला और पुरुष दोनों को घर के कामों में हाथ बंटाते दिखाया गया.

यही नहीं महिला एक डाक्टर के रूप में तो पुरुष की तसवीर शैफ के रूप में दिखाई गई. बच्चों को इन चित्रों पर ध्यान देने और इन पर चर्चा करने के लिए कहा गया.

हमारे सामज में पितृसत्तात्मक सोच हावी है, जो किताबों में भी दिखाई पड़ती है. भले ही इन किताबों को शिक्षित लोग तैयार करते हैं, लेकिन वे भी कहीं न कहीं पुरुषवादी सोच से संचालित होते हैं. ऐसे में महिलाओं को रूढि़वादी भूमिकाओं में रखा जाता है और उन की भागीदारी कम दिखाई जाती है.

जब बच्चे ऐसी किताबें पलटते या पढ़ते हैं तो बचपन से उन के मन में स्त्रीपुरुष से जुड़ी भेदभाव की लकीर गहरी होने लगती है. महाराष्ट्र की तरह हर जगह एक पहल करने की जरूरत है.

जाहिर है कि आप किसी को नीचा दिखाना चाहते हैं, तंग करना चाहते हैं तो उस के घर की महिलाओं से केंद्रित गालियां देना शुरू कर

दीजिए ताकि वह विचलित हो जाए. यह मानसिकता दिखाती है कि महिलाएं चाहे कितना भी पढ़लिख लें, ऊंचे ओहदों पर पहुंच जाएं, मगर उन्हें नीचा दिखाने के लिए लोग उन्हें आपसी रंजिश में भी घीसीटने से नहीं चूकते. अगर सामान्य रूप से दी गई गालियों को देखा जाए तो करीब 30 से 40% गालियां महिलाओं को नीचा दिखाने वाली मिलेंगी.

दरअसल, हमारे समाज में पुराने समय से स्त्रियों को पुरुषों की संपत्ति माना जाता रहा है. मांबहन की गाली दे कर पुरुष अपने अहंकार की तुष्टि करते हैं और दूसरे को नीचा दिखाते हैं. किसी को अपमानित करना है तो उस के घर की महिला को गाली दे दो. किसी पुरुष से बदला लेना हो तो बोल दो कि तुम्हारी स्त्री/बहन को उठा लेंगे. पहले ऐसी गालियां समाज के निचले पायदान पर रहने वाले लोग ही देते थे, लेकिन अब आम पढ़ेलिखे लोग भी देने लगे हैं. लोग अपने घर की लड़कियों को पढ़ा जरूर रहे हैं, मगर उन के प्रति अपनी सोच नहीं बदल सके हैं.

जरूरी है सोच में बदलाव

दरअसल, महिलाओं को शिक्षा प्रदान करना ही काफी नहीं है. हमें लोगों का बरताव और लड़कियों के प्रति उन की सोच को भी बदलना होगा. महिलाओं और लड़कियों के साथ हिंसा और भेदभाव होने की मूल वजह हमारा पितृसत्तात्मक समाज है. पुरुषों की यह स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है कि वे खुद को सुपीरियर सम  झते हैं. महिलाओं पर ताकत दिखाने और नियंत्रण रखने के लिए पुरुष कभी भी उन्हें बराबरी का हक नहीं देना चाहते. महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव दूर करने के लिए जरूरी है कि शिक्षा के साथसाथ इस पितृसत्तात्मक सोच में भी बदलाव लाया जाए.

बचपन से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से भी बच्चों को समानता का पाठ पढ़ाया जाए. लड़कों की मनमानियों पर रोक लगाई जाए. लड़कियों को बचपन से सिखाया जाए कि जुल्म सहने के बजाय उस के खिलाफ आवाज उठाएं. यही नहीं अकसर महिलाएं ही महिलाओं की दुश्मन होती हैं. घर की औरतें अपनी बेटियों को भाई से दबना सिखाती हैं. घर की सास अपनी बहू को घर के पुरुषों की दासी बन कर रहने की सीख देती है. इस तरह की सोच बदलनी होगी. महिलाओं को महिलाओं का साथ देना होगा वरना जब तक पुरुष और महिला की बराबरी समाज में स्वीकार नहीं की जाएगी तब तक महिलाओं पर हिंसा भी होती रहेगी और भेदभाव भी चलता रहेगा.

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खांसी में भूलकर भी न खाएं ये 5 चीजें, हो सकता है नुकसान

सर्दी, प्रदूषण या फिर किसी तरह की दवाईयों के साइड इफेक्ट की वजह से आपको भी खांसी हो सकती है. ऐसे में गला सूखने की वजह से कुछ भी खाने में तकलीफ होती है. वैसे तो मौसम के बदलते ही सर्दी-खांसी की समस्या होना बेहद ही आम बात है, पर यदि ज्यादा लम्बे समय तक खांसी की समस्या रहती है तो यह चिन्ता का विषय है, क्योंकि ऐसी खांसी टीवी जैसी गम्भीर बीमारी का कारण बन सकती है. इसलिए खांसी के दौरान क्या खाया जाए और किन चीजों से परहेज किया जाए, यह जानना बेहद जरूरी है.

सूप, अदरक, शहद, विटामिन सी और मसालेदार खाना खांसी में फायदेमंद होता है. कुछ ऐसे भी भोजन होते हैं जिनका खांसी के दौरान सेवन करना नुकसान पहुंचाता है. आज हम आपको ऐसे ही खाद्य पदार्थों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनका खांसी के दौरान सेवन नहीं करना चाहिए, नहीं तो हालत और बिगड़ने की संभावना रहती है.

1. दूध

खांसी में दूध का सेवन करना आपके लिए काफी नुकसानदेह हो सकता है. खांसी में दूध और दूध से बने उत्पाद खाने से श्वसन क्षेत्र, फेफड़ों और गले में बलगम इकट्ठा हो जाता है. इसलिए बेहतर है कि जब तक खांसी ठीक न हो जाए दूध से दूर ही रहें.

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2. प्रोसेस्ड फूड

खांसी के दौरान प्रोसेस्ड फूड जैसे व्हाइट ब्रेड, व्हाइट पाश्ता, बेक्ड फूड, चिप्स आदि का सेवन करने से बचें. यह आपकी खांसी की समस्या को और बड़ा सकता है, इसलिए प्रोसेस्ड फूड का सेवन करने की बजाय हरी पत्तेदार सब्जियों और पोषण देने वाले खाद्यों का सेवन करना फायदेमंद होता है.

3. फ्राइड फूड्स

तला भूना पदार्थ यानी फ्राइड फूड्स खांसी में आपको बहुत नुकसान पहुंचा सकती हैं. इसलिए चिप्स, फ्रेंच फ्राइज और जंक फूड को खांसी में खाने से बचना चाहिए.

4. साइट्रस फ्रूट

साइट्रस एसिड से भरपूर फल खांसी को और बढ़ा सकते हैं ऐसे में साइट्रस फलों से पूरी तरह से परहेज करना चाहिए और हो सकें तो खासी के दौरान किसी भी तरह का फल खाने से परहेज करे ताकि जल्द से जल्द खांसी से छुटकारा पाया जा सकें.

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5. डिहाइड्रेशन

खांसी के दौरान गला सूख जाने जैसी समस्या पैदा होती है, जिसकी वजह से कुछ भी निगलने आदि में परेशानी होती है. ऐसी अवस्था में डाक्टर ज्यादा से ज्यादा मात्रा में तरल पदार्थ लेने की सलाह देते हैं. लेकिन चाय, काफी और एनर्जी ड्रिंक्स की फिर भी मनाही होती है.

Mother’s Day Special: बस कुछ घंटे- क्यों मानने के लिए तैयार नही थी मां

– मंजुला श्रीवास्तव

अस्पताल का वह आईसीयू का कमरा. बैड नंबर 7 अब भी मेरे जेहन में किसी भूचाल से कम हलचल पैदा नहीं करता. हम सब उस के सामने खड़े थे. मौन, सन्नाटे को समेटे हुए अपनेआप में भयभीत. सांसें जोरजोर से चल रही थीं हरपल जैसे एक युग के बराबर गुजर रहा हो. आतेजाते डाक्टरों पर हमारी नजरें टिकी हुई, उन के चेहरे को पढ़ती रहीं.

वह रोने को आतुर थी, पर हम सब उसे दबाए हुए थे. वह हम भाईबहनों में सब से छोटी थी. शादी जैसे बंधन से मुक्त. उस की हर सांस मां की सांसों से जुड़ी थी. जुड़े तो हम भी थे पर फिर भी हमारी गृहस्थी बस चुकी थी.

‘‘कल क्या हुआ था?’’ मैं ने अपने भाई की हथेली को अपनी हथेली में समेटते हुए पूछा. उस ने मुझे भरी हुई नजरों से देखा. फिर मेरा स्पर्श पा बिलख पड़ा बच्चों की तरह. दुधमुंहे बच्चे की तरह अपनी मां की खातिर. कहते हैं न, मां के लिए बच्चा हमेशा बच्चा ही रहता है. उस की आंखों में लाल डोरे खिंच आए थे. मेरी बातें सुन कर उस ने अपनेआप को संयमित किया. फिर बताने लगा, ‘‘कुछ दिनों से मां ठीक नहीं लग रही थीं. ऐसा मैं, छोटी और पिताजी महसूस कर रहे थे. पर हम जब भी पूछते तो वे कहतीं कि मैं ठीक हूं, परेशान न करो. इधर 2 दिनों से वे खाना भी नहीं खा रही थीं. ज्यादा कहने पर बिगड़ जातीं कि खाना मुझे खाना है परेशानी तुम लोगों को है.

‘‘‘मां, लेकिन खाने के बगैर…’ मैं ने कहा था.

‘‘‘जब मुझे भूख लगेगी मैं मांग कर खा लूंगी,’ वे कहतीं. और फिर कल रात वे अचानक बाथरूम जाते वक्त गिर पड़ीं. अचेत अवस्था में थीं जब हम उन्हें यहां ले आए. दीदी, मां ठीक तो हो जाएंगी न,’’ भाई ने मुझ से ऐसे पूछा जैसे मेरे कहने मात्र से मां ठीक हो जाएंगी.

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‘‘हां, वे जरूर ठीक हो जाएंगी. हमसब की दुआ उन के साथ है,’’ मैं ने कहा.

कुछ पल हम दोनों के बीच चुप्पी छाई रही. एकदूसरे की धड़कन गिनने वाली चुप्पी.

कुछ देर बाद भाई ने मुझे थपथपाते हुए कहा, ‘‘दीदी, मां की स्थिति ठीक नहीं है. सांसें बड़ी मुश्किल से ऊपर चढ़ पाई हैं. डाक्टरों ने बताया है कि उन के हृदय की धमनियां लगभग ब्लौक हो चुकी हैं. इस स्थिति में उन का बचना शायद…’’

‘‘भैया, ऐसा मत बोलो,’’ इस बार मैं टूटती हुई नजर आ रही थी. पुरुष के सीमेंट रूपी धैर्य के आगे मेरा नारी धैर्य बालू की दीवार था जो एक झटके से ढह रहा था और शायद इसी कारण उन्होंने यह मुझे थपथपाते हुए कहा था.

मैं सुबक पड़ी थी. आंसू की बूंदें गोलगोल बनती हुई मेरे गालों पर ढुलक आई थीं.

मां के न रहने की कल्पना हमसब के लिए असहनीय थी. सच पूछो तो मैं ने अपने जीवन के 40 मौसम में मां रूपी मजबूत पेड़ नहीं देखा था जो जिंदगी के आंधीतूफान, यहां तक कि बवंडर को भी सहजता से सह लेता हो. हम छोटे थे तब पिताजी की आय सीमित थी. संयुक्त परिवार में पिताजी को ही सबकुछ देखना पड़ता था.

हम 5 भाईबहनों को पढ़ानालिखाना, दादादादी की रोज नई बीमारियों का सामना करना. दोनों बूआओं की शादी. इतने खर्च में मां अपने लिए कुछ नहीं बचा पातीं. चूड़ीबिंदी जैसी वस्तुएं भी बड़ी मुश्किल से जुट पातीं. फिर भी वे खुश रहतीं. विषम परिस्थितियों में भी हमसब ने मुसकराते हुए देखा था उन्हें.

फिर जैसेतैसे कर के वह भंवर भी टल गया था. पिताजी की आमदनी बढ़ गई थी और खर्चे कम होने लगे. पर मां को अचानक सांस की बीमारी ने जकड़ लिया था. वह समय बिलकुल वैसा ही था जैसे बुझती हुई चिता पर एक मन लकड़ी और रख दी गई हो.

डाक्टरों के कितने चक्कर हमेशा लगते रहते पर बीमारी कम होने का नाम नहीं लेती. डाक्टरों ने कहा, ‘सांस की बीमारी तो सांस के साथ ही जाती है.’

हमसब ने जब यह सुना तो लगा जैसे एकाएक हमसब पर बिजली गिर गई हो.

पर मां पर कोई असर नहीं हुआ था. वे फिर भी खुश रहतीं. अब वे खानेपीने में परहेज करने लगी थीं. दवा समय से लेतीं और व्यायाम करने लगी थीं. वे अपना सब काम खुद करतीं. फिर धीरेधीरे हम तीनों बहनों की शादी हो गई.

समय की गाड़ी चल रही थी. लाख कोशिशों के बावजूद मां की बीमारी बढ़ती ही गई. समयसमय पर डाक्टरों के चक्कर लगने लगे थे. हम जब मां के लिए चिंतित होते तो मां कहतीं, ‘‘मैं बिलकुल ठीक हूं, चिंता की कोई बात नहीं,’’ वे हमसब को समझातीं, ‘‘इस शरीर को एक दिन खत्म होना ही है. फिर वह चाहे बीमारी से हो या यों ही हो.’’

आईसीयू का दरवाजा खुला, हम सब सतर्क हो गए. बिलकुल वैसे ही जैसे कोई भूचाल आने वाला हो. डाक्टर त्रिवेदी बाहर निकले. मेरा भाई उन की ओर लपका, ‘‘सर…’’

उन्होंने उड़ती नजरों से भाई को देखा और उसे अपने केबिन में आने का इशारा किया. भाई उन के साथ उन के केबिन में गया. हमसब परिवारजन एकदूसरे को देख कर मौन भाषा में पूछ रहे थे कि डाक्टर क्या कहेगा…

कुछ मिनटों बाद भाई दौड़ता हुआ केबिन से लौटा और हमसब के बीच बैंच पर बैठ गया. पूछने के पहले ही वह रो पड़ा. बोला कि मां की स्थिति ठीक नहीं है. डाक्टर ने कहा है कि जिस मशीन की उन्हें आवश्यकता है वह उन के पास नहीं है. या फिर उन्हें वैंटिलेटर पर ले जाना पड़ेगा तब शायद कुछ दिन और…

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यह कह कर वह पिताजी की गरदन से झूल सा गया और जोर से चिल्लाने लगा, ‘‘पिताजी, वैंटिलेटर पर से लौटना भी मां के लिए मुमकिन नहीं है.’’

‘‘मां के बिना जी पाना हमारे लिए मुश्किल है, पिताजी,’’ हमसब भी उस के क्रंदन में शामिल हो गए थे.

समय की रफ्तार में पुरानी डोर, जिस में हमसब पिरोए हुए थे, टूटती नजर आ रही थी.

हम एकएक कर दौड़ पड़े थे आईसीयू के बाहर दरवाजे पर लगे शीशे से देखने के लिए. मां को बैठाया गया था. 4 डाक्टर उन के बैड के आसपास खड़े थे.  आगेपीछे कुछ मशीनें लगी थीं.

सभी लोग मां को शीशे से देख रहे थे लेकिन मैं बाहर खड़ीखड़ी एक डाक्टर से हठ करने लगी, ‘‘मैं अंदर जा कर उन से मिलना चाहती हूं.’’

डाक्टर ने बड़ी मुश्किल से मुझे अंदर जाने की इजाजत दी. मैं तेज कदमों से अंदर गई मां के पास. मां के मुंह में औक्सीजन लगी थी. आंखें उन की बंद थीं. मैं ने उन के हाथों पर अपनी हथेली रखी और पूछा, ‘‘मां, आप ठीक तो हैं न?’’

उन्होंने ‘हां’ में अपना सिर हिलाया और फिर आंखें बंद कर लीं. डाक्टर ने इशारे से मुझे बाहर जाने को कहा और मैं बाहर आ गई. मन यह मानने को तैयार नहीं था कि मां, बस कुछ घंटों की मेहमान हैं.

मैं ने डाक्टर से कहा कि वे तो कह रही हैं वे बिलकुल ठीक हैं.

वह मुसकराया और बोला, ‘‘सभी मरीज ऐसा ही कहते हैं,’’ वह कुछ देर चुप रहा, फिर बोला, ‘‘लगता है आप सब से बड़ी बेटी हैं इन की.’’

‘‘जी.’’

‘‘तो फिर मैं आप से एक बात कहता हूं कि आप अपने मन को समझा लीजिए, बस कुछ घंटे और.’’

मैं लगभग चिल्ला पड़ी, ‘‘डाक्टर, ऐसा नहीं हो सकता.’’

‘‘तो फिर वैंटिलेटर पर रखिए, शायद…’’

मैं डाक्टर की बातें सुन कर दौड़ती हुई अपनों के बीच आ गई थी. कुरसी पर बैठते ही फूटफूट कर रो पड़ी. फिर अपनेआप को संयमित कर बोली, ‘‘पापा, मां को वैंटिलेटर पर रख देते हैं.’’

पापा हमसब को निहार रहे थे. अपने बाग के माली को जाते हुए देख कर उन का मन रो रहा था. उन के लिए फैसला लेना मुश्किल हो रहा था कि क्या

किया जाए?

तब भाई ने एकाएक फैसला लिया, ‘‘मां वैंटिलेटर पर नहीं जाएंगी,’’ लगा जैसे कोई शक्ति उस का पथप्रदर्शक बन कर खड़ी हो. वह बोला, ‘‘क्योंकि मैं जानता हूं कि वैंटिलेटर से लौटना मां के लिए मुमकिन नहीं.’’

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उस ने अपना फैसला डाक्टर को सुनाया, ‘‘हम इन्हें वैंटिलेटर पर नहीं रख सकते. आप अगर कुछ कर सकते हैं तो करें वरना हम इन्हें कहीं और ले जाएंगे.’’

इस समय वह चट्टान की तरह दृढ़ बन गया था.

कुछ देर डाक्टरों के बीच बातचीत होती रही. फिर उन्होंने कहा, ‘‘वाइपेप मशीन बाहर से आ गई है.’’

डाक्टरों की बातें सुन कर हम एकदूसरे का मुंह देखने लगे.

‘‘कब आई यह वाइपेप मशीन…? कुछ देर पहले तक तो वह यहां नहीं थी और न ही हम ने उस मशीन को लाते देखा, फिर अचानक कहां से…’’

पर यह बहस करने का समय नहीं था. आलीशान नर्सिंगहोम की चारदीवारी के अंदर क्या कुछ होता है यह शायद हमसब को मालूम पड़ गया था.

कुछ देर बाद डाक्टर ने आ कर कहा कि मशीन ठीक से लग गई है और वह ठीक से काम कर रही है.

उस की बातें सुन कर हमारे चेहरे की मायूसी कुछ हटी थी. बवंडर के टलने के संकेत से हमसब शांत थे.

2-3 दिनों बाद हमसब यह सोचने पर विवश हुए कि आखिर कब तक इन्हें ऐसे रखना होगा क्योंकि डाक्टर के कहे अनुसार, मशीन के हटते ही उन का बचना मुश्किल था. सुबह जब नर्सिंगहोम की चार्जशीट आती तो वह हर दिन 4-5 हजार रुपए की होती. महंगीमहंगी दवाएं ही 2-3 हजार की होती थीं उस में. तब मन सोचने पर विवश हो जाता कि क्या इतनी दवाएं प्रतिदिन उन्हें दी जा रही हैं? समझ में नहीं आता.

3 दिन बाद मां हमें बुला कर बोलीं, ‘‘मैं ठीक हूं. तुम लोग मुझे यहां से ले चलो.’’

‘‘मां, लेकिन…’’

‘‘नहीं, मैं बिलकुल ठीक हूं और घर जाना चाहती हूं. यहां रहूंगी तो शायद मैं सचमुच मर जाऊंगी.’’

तब हमसब मां के सामने विवश हो गए. हम जानते थे कि मां का दृढ़निश्चय, भरपूर आत्मविश्वास अपनेआप को जीवित रखने के लिए काफी था क्योंकि ‘वे’ वह स्तंभ थीं जिसे तोड़ पाना आसान नहीं था.

आज 4 साल बाद जब मैं उन के पास गई तो वे मुसकराते हुए हमारा स्वागत कर रही थीं. और मैं उन्हें गौर से निहार रही थी.

आज याद आ रहे थे डाक्टर के कहे वे शब्द, ‘बस, कुछ घंटे ही हैं इन के पास.’

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भूल: भाग 2- शिखा के ससुराल से मायके आने की क्या थी वजह

पिछला भाग- भूल: भाग-1

पार्टी का सारा मजा रोहित के लगातार रोतेकिलसते रहने से किरकिरा हो गया. वह अपनी मां से चिपटा रहना चाहता था, पर शिखा को और भी कई काम थे.

शिखा की ससुराल से सब लोग आए जरूर, पर किसी ने पार्टी के आयोजन में सक्रिय हिस्सा नहीं लिया. सारी देखभाल सविता और मुझे करनी पड़ी. शिखा अपने औफिस के सहयोगियों की देखभाल में बेहद व्यस्त रही.

शिखा की कंपनी के मालिक के बड़े बेटे तरुण विशेष मेहमान के रूप में आए. रोहित के लिए वह छोटी साइकिल का सब से महंगा उपहार दे कर गए. अपने हंसमुख, सहज व्यवहार से उन्होंने सभी का दिल जीत लिया. शिखा और राजीव दोनों ही उन के सामने बिछबिछ जा रहे थे.

तरुण के आने से पहले राजीव और शिखा के बीच में मैं ने अजीब सा तनाव महसूस किया था. मेरे दामाद की आंखों में अपनी पत्नी के लिए भरपूर प्यार के भाव कोई भी पढ़ सकता था, पर शिखा जानबूझ कर उन भावों की उपेक्षा कर रही थी.

अपने पति को देख कर वह बारबार मुसकराती, पर उस की मुसकराहट आंखों तक नहीं पहुंचती. कोई ऐसी बात जरूर थी, जो शिखा को बेचैन किए हुए थी. उस बात की मुझे कोई जानकारी न होना मेरे लिए चिंता का कारण बन रहा था.

तरुण को विदा करने के लिए राजीव और शिखा दोनों बाहर गए. मैं पहली मंजिल की खिड़की से नीचे का सारा दृश्य देख रही थी.

तरुण की कार के पास पहुंचने के बाद शिखा ने राजीव से कहा, तो वह लौट पड़ा.

शिखा कार से सट कर खड़ी हो गई. तरुण उस के नजदीक खड़े थे. दोनो हंसहंस कर बातें कर रहे थे.

उन्हें कोई भी देखता तो किसी तरह के शक का कोई कारण उस के मन में शायद पैदा न होता, लेकिन मेरे मन में कोई शक नहीं रहा कि मेरी बेटी का तरुण के साथ अवैध प्रेम संबंध कायम हो चुका है.

मैं ने साफ देखा कि तरुण का एक हाथ कार से सट कर खड़ी शिखा की कमर व कूल्हों को बड़े मालिकाना अंदाज में सहला रहा था.

तरुण की इस हरकत को सामने से आता इंसान नहीं देख सकता था, पर पहली मंजिल की खिड़की से मुझे सब साफ नजर आया.

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कुछ देर बाद राजीव मिठाई का छोटा डब्बा ले कर उन के पास पहुंचा. तरुण ने अपनी गलत हकरत रोक कर अपने हाथ छाती पर बांध लिए. राजीव को उन के गलत रिश्ते का अंदाजा होना असंभव था.

उस रात मैं बिलकुल नहीं सो पाई. राजीव शिखा को बहुत प्यार करता था. शिखा के तरुण के साथ बने अवैध प्रेम संबंध को वह कभी स्वीकार नहीं कर पाएगा, मुझे मालूम था.

अवैध प्रेम संबंध को छिपाए रखना असंभव है. देरसवेर राजीव को भी इस के गलत संबंध की जानकारी होनी ही थी.

‘तब क्या होगा?’ इस सवाल का जवाब सोच कर मेरा कलेजा कांप उठा.

राजीव अपनी जान दे सकता था, तो शिखा की जान ले भी सकता था. कम से कम तलाक तो दोनों के बीच जरूर होगा, अपनी बेटी के घर के बिखरने की यों कल्पना करते हुए मैं रो पड़ी.

शिखा ससुराल से अलग न हुई होती, तो यह मुसीबत कभी न आती. अलग होने के इस बीज के अंकुरित होने में मेरा अहम योगदान था. उस रात करवटें बदलते हुए मैं ने खुद को अपनी उस गलत भूमिका के लिए खूब कोसा. मैं ने कभी नहीं चाहा था कि मेरी बेटी का तलाक हो और वह 40 साल के अमीर विवाहित पुरुष की रखैल के रूप में बदनाम हो.

मेरी मूर्ख बेटी अपनी विवाहित जिंदगी की सुरक्षा पर मंडरा रहे खतरे को समझ नहीं रही थी. उसे सही राह पर लाने की जिम्मेदारी मेरी ही थी और इस कार्य को पूरा करने का संकल्प पलपल मेरे मन में मजबूती पकड़ता गया.

मैं ने राजीव की मां से फोन पर बातें कीं, ‘‘बहनजी, मैं ने कल की पार्टी में रोहित को पूरा समय रोते ही देखा. उस का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता. वह दुबला भी होता जा रहा है,’’ ऐसी इधरउधर की कुछ बातें करने के बाद मैं ने वार्त्तालाप इच्छित दिशा में मोड़ा.

‘‘यह सब तो होना ही था, क्योंकि आप की बेटी के पास उस का उचित पालनपोषण करने के लिए समय ही नहीं है,’’ सुचित्रा की आवाज में फौरन शिकायत के भाव पैदा हो गए.

‘‘उस के पास न समय है और न ही बच्चे को सही ढंग से पालने की कुशलता.’’

‘‘यह बात आप को बड़ी देर से समझ आई,’’ सुचित्रा की आवाज में रोष के साथसाथ हैरानी के भाव भी मौजूद थे.

‘‘ठीक कह रही हैं आप. हम सब की गलती का एहसास मुझे अब है, बहनजी. मेरी एक प्रार्थना आप स्वीकार करेंगी?’’

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‘‘कहिए,’’ उन का स्वर कोमल हो उठा.

‘‘मेरी मूर्ख बेटी को वापस अपने पास आने की इजाजत दे दीजिए,’’ अपना गला रुंध जाने पर मुझे खुद को भी काफी हैरानी हुई.

‘‘यह घर उसी का है, पर उस ने लौटने की इच्छा मुझ से जाहिर नहीं की.’’

‘‘वह ऐसा जल्दी करेगी… मैं उसे समझाऊंगी.’’

‘‘उस का यहां हमेशा स्वागत होगा, बहनजी. हम सब को बहुत खुशी होगी,’’ इस बार भावावेश के कारण सुचित्रा का गला रुंध गया.

उस पूरे हफ्ते मैं ने अपनी बेटी की जासूसी की. उस ने 2 बार रेस्तरां में तरुण के साथ कौफी पी. 1 बार लंच के बाद छुट्टी कर के शहर के बाहरी हिस्से में बने सिनेमाहौल में फिल्म देखी. इन अवसरों पर तरुणउसे घर से दूर मुख्य सड़क पर कार से छोड़ गया.

इन 5 दिनों तक रोहित के नाना ने उसे संभाला. मेरे घर से गायब रहने की चर्चा शिखा या राजीव से हम दोनों ने बिलकुल नहीं की.

आगामी सोमवार की सुबह शिखा के औफिस जाने के बाद राजीव जब रोहित को मेरे घर छोड़ने आया, तो मैं ने उसे रोक कर अपने पास बैठा लिया.

‘‘मैं तुम से कुछ जरूरी बात करना चाहती हूं, बेटा,’’ मैं ने गंभीर लहजे में उस से वार्त्तालाप शुरू किया.

राजीव का सारा ध्यान फौरन मुझ पर केंद्रित हो गया.

‘‘मेरी दिली इच्छा है कि तुम दोनों अपने घर लौट जाओ.’’

‘‘शिखा तैयार नहीं होगी लौटने को,’’ अपनी हैरानी को छिपाते हुए राजीव ने जवाब दिया.

‘‘तुम तो लौटना चाहते हो न?’’

‘‘बिलकुल.’’

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लाली: नेत्रहीन लाली और रोशन की बचपन की दोस्ती में क्यों आ गई दरार

लाली: भाग 4- नेत्रहीन लाली और रोशन की बचपन की दोस्ती में क्यों आ गई दरार

लेखक- वेद प्रकाश गुंजन

लेकिन रोशन समझने को तैयार कहां था, ‘सचाई यह नहीं है लाली. सच तो यह है कि पंडितजी की तरह तू भी नहीं चाहती कि गंदी बस्ती का कोई आदमी आ कर तुझ से मिले. तू बदल गई है लाली, तू अब लालिमा शास्त्री जो बन गई है,’ रोशन ने कटाक्ष किया.

‘सच तो यह है रोशन कि तू मेरी सफलता से जलने लगा है. तू पहले भी मुझ से जलता था जब मैं टे्रन में तुझ से ज्यादा पैसे लाती थी. सच तो यह है, तू नहीं चाहता कि मैं तुझ से आगे रहूं. मैं नहीं जा रही गांव, तुझे जाना है तो जा,’ लाली के होंठों से लड़खड़ाती आवाज निकली.

रोशन आगे कुछ नहीं बोल पाया. बस, उस की आंखें भर आईं. जिस की सफलता के लिए उस ने अपने शरीर को जला दिया आज उसी ने अपनी सफलता से जलने का आरोप उस पर लगाया था. ‘खुश रहना, मैं जा रहा हूं,’ यह कह कर रोशन कमरे से बाहर निकल आया.

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रोशन गांव तो चला गया पर गांव में पुलिस 1 साल से उस की तलाश कर रही थी. आश्रम वालों ने उस के खिलाफ नाबालिग लड़की को भगाने की रिपोर्ट लिखा दी थी. गांव पहुंचते ही पुलिस ने उसे पकड़ लिया और कोर्ट ने उसे 1 साल की सजा सुनाई.

इधर 1 साल में लालिमा शास्त्री ने लोकप्रियता की नई ऊंचाइयों को छुआ. उस के चाहने वालों की संख्या रोज बढ़ती जा रही थी और साथ ही बढ़ रहा था अकेलापन. रोशन के लौट आने की कामना वह रोज करती थी.

जेल से छूटने के बाद रोशन खुद को लाली से और भी दूर पाने लगा. उस की हालत उस बच्चे की तरह थी जो ऊंचाई में रखे खिलौने को देख तो सकता है मगर उस तक पहुंच नहीं सकता.

उस ने बारूद के कारखाने में फिर से काम करना शुरू कर दिया. वह सारा दिन काम करता और शाम को चौराहे पर पीपल के पेड़ के नीचे निर्जीव सा बैठा रहता. जब भी अखबार में लाली के बारे में छपता वह हर आनेजाने वाले को पढ़ कर सुनाता और फिर अपने और लाली के किस्से सुनाना शुरू कर देता. सभी उसे पागल समझने लगे थे.

रोशन ने कई बार मुंबई जाने के बारे में सोचा लेकिन बस, एक जिद ने उसे रोक रखा था कि जब लाली को उस की जरूरत नहीं है तो उसे भी नहीं है. कारखाने में काम करने के कारण उस की तबीयत और भी खराब होने लगी थी. खांसतेखांसते मुंह से खून आ जाता. उस ने अपनी इस जर्जर काया के साथ 4 साल और गुजार दिए थे.

एक दिन वह चौराहे पर बैठा था, कुछ नौजवान उस के पास आए, एक ने चुटकी लेते हुए कहा, ‘अब तेरा क्या होगा पगले, लालिमा शास्त्री की तो शादी हो रही है. हमें यह समझ नहीं आ रहा कि आखिर तेरे रहते वह किसी और से शादी कैसे कर सकती है,’ यह कह कर उस ने अखबार उस की ओर बढ़ा दिया और सभी हंसने लगे.

अखबार देखते ही उस के होश उड़ गए. उस में लाली की शादी की खबर छपी थी. 2 दिन बाद ही उस की शादी थी. अंत में उस ने फैसला किया कि वह मुंबई जाएगा.

वह फिर मुंबई आ गया. वहां 12 साल में कुछ भी तो नहीं बदला था सिवा कुछ बहुमंजिली इमारतों के. आज ही लाली की शादी थी. वह सीधे पंडितजी के बंगले में गया. पूरे बंगले को दुलहन की तरह सजाया गया था. सभी को अंदर जाने की इजाजत नहीं थी. सामने जा कर देखा तो पंडितजी को प्रवेशद्वार पर अतिथियों का स्वागत करते पाया.

‘पंडितजी,’ आवाज सुन कर पंडितजी आवाज की दिशा में मुड़े तो पागल की वेशभूषा में एक व्यक्ति को खड़ा पाया.

‘पंडितजी, पहचाना मुझे, मैं रोशन… लाली का दोस्त.’

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पंडितजी उसे अवाक् देखते रहे, उन्हें समझ में नहीं आ रहा था वह क्या करें. पिछले 5-6 साल के अथक प्रयास के बाद वह लाली को शादी के लिए मना पाए थे. लाली ने रोशन के लौटने की उम्मीद में इतने साल गुजारे थे लेकिन जब पंडितजी को शादी के लिए न कहना मुश्किल होने लगा तो अंत में उस ने हां कर दी थी.

‘पंडितजी, मैं लाली से मिलना चाहता हूं,’ इस आवाज ने पंडितजी को झकझोरा. उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें, अगर रोशन से मिल कर लालिमा ने शादी से मना कर दिया तो? और पिता होने के नाते वह अपनी बेटी का हाथ किसी पागल जैसे दिखने वाले आदमी को कैसे दे सकते हैं. इसी कशमकश में उन्होंने कहा.

‘लालिमा तुम से मिलना नहीं चाहती, तुम्हारे ही कारण वह पिछले 5-6 साल से दुख में रही है, अब और दुख मत दो उसे, चले जाओ.’

‘बस, एक बार पंडितजी, बस एक बार…मैं फिर चला जाऊंगा,’ रोशन ने गिड़गिड़ाते हुए पंडितजी के पैर पकड़ लिए.

पंडितजी ने हृदय को कठोर करते हुए कहा, ‘नहीं, रोशन. तुम जाते हो या दरबान को बुलाऊं,’ यह सुन कर रोशन बोझिल मन से उठा और थोड़ी दूर जा कर बंगले की चारदीवारी के सहारे बैठ गया. पंडितजी उसे वहां से हटने के लिए नहीं कह पाए. वह रोशन की हालत को समझ रहे थे लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी.

रोशन की जब आंख खुली तो उस ने लाली को दुलहन के लिबास में सामने पाया. उसे लगा जैसे वह सपना देख रहा हो. आसपास देखा तो खुद को अस्पताल के बिस्तर में पाया. उस ने पिछली रात की बात को याद करने की कोशिश की तो उसे याद आया उस की छाती में काफी तेज दर्द था, 1-2 बार खून की उलटी भी हुई थी…उस के बाद उसे कुछ भी याद नहीं था. शायद उस के बाद उस ने होश खो दिया था. पंडितजी को जब पता चला तो उन्होंने उसे अस्पताल में भरती करा दिया था.

लाली ने रोशन के शरीर में हलचल महसूस की तो खुश हो कर रोशन के चेहरे को छू कर कहा, ‘‘रोशन…’’ और फिर वह रोने लगी.

‘‘अरे, पगली रोती क्यों है, मैं बिलकुल ठीक हूं. अभी देख मेरा पूरा चेहरा लाल है,’’ खून से सने अपने चेहरे को सामने दीवार पर लगे आईने में देखते हुए उस ने कहा, ‘‘अच्छा है, तू देख नहीं सकती नहीं तो आज मेरे लाल रंग को देख कर तू मुझ से ही शादी करती.’’

यह सुन कर लाली और जोर से रोने लगी.

‘‘मेरी बहुत इच्छा थी कि मैं तुझे दुलहन के रूप में देखूं, आज मेरी यह इच्छा भी पूरी हो गई,’’ अब रोशन की आंखों में भी आंसू थे.

‘‘रोशन, तू ने बहुत देर कर दी…’’ बस, इतना ही बोल पाई लाली.

इस के बाद रोशन भी कुछ नहीं बोल पाया. बस, आंसू भरी निगाहों से दुलहन के लिबास में बैठी, रोती लाली को देखता रहा.

आंखों में सफेद पट्टी बांधे लाली अस्पताल के एक अंधेरे कक्ष में बैठी थी. रोशन को गुजरे 12 दिन हो गए थे. जातेजाते रोशन लाली को अपनी आंखें दान में दे गया था. आज लाली की आंखों की पट्टी खुलने वाली थी, लेकिन वह खुश नहीं थी, क्योंकि उस के जीवन में रोशनी भरने वाला रोशन अब नहीं था. डाक्टर साहब ने धीरेधीरे पट्टी खोलना शुरू कर दिया था.

‘‘अब आप धीरेधीरे आंखें खोलें,’’ डाक्टर ने कहा.

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लाली ने जब आंखें खोलीं तो सामने पंडितजी को देखा. पंडितजी काफी खुश थे. वह लाली को खिड़की के पास ले गए और बोले, ‘‘लालिमा, यह देखो इंद्रधनुष, प्रकृति की सब से सुंदर रचना.’’

लाली को इंद्रधनुष शब्द सुनते ही रोशन की इंद्रधनुष के बारे में कही बातें याद आ गईं. उस ने ऊपर आसमान की तरफ देखा तो रंगबिरंगी आकृति आसमान में लटकी देखी, और सब से सुंदर रंग ‘लाल’ को पहचानते देर नहीं लगी उसे. आखिर वह इंद्रधनुष रोशन की आंखों से ही तो देख रही थी.

उस की आंखों से 2 बूंद आंसू की निकल पड़ीं.

‘‘पिताजी, उस ने बहुत देर कर दी आने में,’’ यह कह कर लालिमा ने पंडितजी के कंधे पर सिर रख दिया और आंखों का बांध टूट गया.

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