संपूर्णा: भाग 1- पत्नी को पैर की जूती समझने वाले मिथिलेश का क्या हुआ अंजाम

बंगले में प्रवेश करते वक्त रिद्धी बिलकुल निश्चिंत थी कि अभी यहां सिर्फ मिथिलेश ही उसे मिलेगा. मिथिलेश अपने बैडरूम में लैपटौप पर औफिस का काम रहा था. उस की पीठ दरवाजे की तरफ थी. रिद्धी ने मिथिलेश की पीठ पर धीरे से एक चपत लगाई.

मिथिलेश चौंक गया. फिर तुरंत संभलते हुए बोला, ‘‘ओह. साली साहिबा आप?’’

‘‘क्यों जीजू आप क्या दीदी का इंतजार कर रहे थे? वह तो अभीअभी क्लीनिक गई होगी.’’

‘‘अरे नहींनहीं, मैं तो तुम्हें ही याद कर रहा था.’’

‘‘ऐसा है तो एक अच्छी सी सैल्फी लेती हूं… आप की शादी के 5 साल हो गए, इकलौती साली के साथ आप की एक भी सैल्फी नहीं,’’ रिद्धी ने शिकायत की.

‘‘कैसे हो सैल्फी? तुम तो इन 5 सालों में दुधमुंही बच्ची थी. कहां फटकती थी मेरे पास,’’ मिथिलेश नजदीकी बढ़ाते हुए रिद्धी की आंखों में देखने लगा.

रिद्धी के शरीर में धीरेधीरे चूहल दौड़ने लगी. वह जीजू के साथ लिपट कर  इस तरह सैल्फी खींचने लगी कि मिथिलेश की सांसें उखड़ गईं. रिद्धी के मन की पोटली मिथिलेश के सामने छितर गई थी. सैल्फी के बाद चुप्पी के शुन्य को भरते हुए वह बोल पड़ी, ‘‘देखो जीजू, सैल्फी में भी हम एकदूसरे के साथ कितने अच्छे लग रहे हैं.’’

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मिथिलेश लैपटौप को छोड़ अपने बिस्तर पर आ गया और फिर एक झटके में रिद्धी को अपनी बांहों में भर लिया.

‘‘जीजू दीदी को पता चला तो?’’

‘‘महीनेभर से तुम्हारे दिल का हाल मैं साफ पढ़ रहा हूं, अब भूल जाओ दीदी को. घरवाली को वश में रखना मुझे बखूबी आता है.’’

रिद्धी अब तक मिथिलेश से लगभग लिपट चुकी थी. 23 साल की नवयौवना ने 35 साल के मिथिलेश के पौरुष को वशीभूत कर लिया था. प्रथम अनुभूति की लीला जब थमी, रिद्धी का मन कुछ बेचैन हो उठा. बोली, ‘‘जीजू, क्या मुझ से गलती हो गई?’’

मिथिलेश ने उस के होंठों को अपने चुंबन में जकड़ने के बाद आश्वस्त किया, ‘‘हमारी परंपरा है कि पत्नियां अपने पतियों को सदा खुश रखें. अब खुश मैं कैसे होता

हूं यह जानने की कोई जरूरत ही नहीं. ज्यादा मत सोचो, तुम कालेज की पढ़ाई खत्म कर लो, फिर अपने विभाग में लगवा दूंगा… 11 बजने को हैं, मुझे भी औफिस के लिए निकलना है.’’

रिद्धी के लिए नौकरी की बात भी एक बड़ा लालच थी, जिसे वह अनदेखा नहीं कर पाई तो रिद्धी और मिथिलेश ने अपनी सुविधानुसार अपना दर्शन बना कर रिश्ते के विश्वास को दरकिनार कर दिया. उन की रंगरलियां बिना किसी रोकटोक के चलती रहीं.

आज से 5 साल पहले उस दिन दोपहर 3 बजे के करीब 24 साल की सिद्धी वाहन के इंतजार में यूनिवर्सिटी के बाहर खड़ी थी. अचानक सामने से बाइक पर बैठा चिन्मय आता दिखा. सिद्धी को देख वह रुक गया, ‘‘अरे चिन्मय? 2 साल से कहां थे?’’

‘‘एमकौम और बैंक परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था,’’ तुम बताओ?

‘‘चलोचलो गांधी मैदान चलते हैं,’’ सिद्धी ने फूरती दिखाई.

चिन्मय ने कहा, ‘‘बैठो बाइक पर.’’

बिना किसी औपचारिकता के वह पीछे बैठ तो  गई, लेकिन यहां लोगों के पास बातें बनाने के लिए ऐसे मसले मिल जाएं तो उन के पास वक्त की कमी नहीं रहती. खैर, इस मुलाकात को वह जाया नहीं करना चाहती थी.

पटना के प्रसिद्ध गोलघर के पास ही है गांधी मैदान. लोगों की तफरीह के लिए अच्छा खुला इलाका है. दोनों ने पर्यटकों के लिए बने बेंच पर अपना आसन जमाया. शाम होने में वक्त था. लोग न के बराबर थे.

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‘‘और सुनाओ?’’ पहले की तरह ही शरमीले चिन्मय ने मंदमंद मुसकराते हुए पूछा.

‘‘साइकोलौजी में मास्टर पूरा हुआ. 80% है… और तुम्हारा?’’ सिद्धी की उत्सुकता बढ़ गई थी चिन्मय के बारे में जानने को.

‘‘बैंक की नौकरी ही मेरे हिस्से समझे. तुम अब क्या करोगी?’’

‘‘एक चपत लगाऊंगी तुम्हें. ऐसी भेदभरी नजरों से क्यों देख रहे हो? मन में कोई चोर है क्या?’’ सिद्धी ने बिंदास अंदाज में पूछा.

‘‘चोर नहीं, जो है वह बताना तो चाहता हूं, मगर ?िझक रहा हूं.’’

‘‘बता भी दो, हमारी दोस्ती 10वीं कक्षा के बाद से है. अब नई दुलहन की तरह शरमाना छोड़ो,’’ सिद्धी ने अधिकार से कहा. यह सुन चिन्मय बोला, ‘‘शादी कर लो मुझ से, परीक्षाएं बेहतर गईं हैं, नौकरी की गारंटी दे सकता हूं.’’

सिद्धी का मजाकिया लहजा अचानक गायब हो गया. बोली, ‘‘क्या बोल रहे हो, चिन्मय? एक तो तुम मेरे हमउम्र, दूसरे तुम कायस्थ और मैं ब्राह्मण. मेरे घर वाले काट डालेंगे दोनों को. मेरे पापा इनकम टैक्स विभाग में अच्छे पद पर हैं, इसलिए बड़ी उम्र तक पढ़लिख रही हूं, गांव में तो 15-16 साल तक लड़कियों की शादी हो जाती है. फिर अभी मेरा इरादा क्लीनिक खोलने का है. ये सब कह कर मैं पापा को गुस्सा नहीं दिलवा सकती.’’

चिन्मय कमजोर और दुखी महसूस करने लगा  था. उस ने अनुनय के स्वर में कहा, ‘‘सच कह दो सिद्धी मैं तुम्हें कभी पसंद नहीं था?’’

सिद्धी अपने दिल के हरेक कोने में फैली छोटेछोटे जुगनुओं की रोशनी को अनदेखा नहीं कर पाई. उस के करीब जा कर उस के हाथों को अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘तुम मेरे लिए क्या हो इतनी जल्दीबाजी में मैं बता नहीं सकती. मगर शादी पसंद करने से हो नहीं सकती. सच कहूं तो दोस्त पति नहीं बन सकता. उस का रोब हो तो वह इज्जत देने के काबिल बनता है… उसे समर्पण किया जा सकता है. कुछ बातें व्यावहारिक होती हैं.’’

‘‘काश, तुम मुझे समझ पाती,’’ निराश चिन्मय की आंखें छलछला आई थीं.

‘‘चिन्मय, हमारे घर वालों और गांव वालों की जातिवादी कट्टरता को तुम नहीं जानते. मैं तुम्हें उन से दूर ही रखना चाहती हूं.’’

और तब से वह फोन नंबर के रूप में सिद्धी के मोबाइल के कौंटैक्ट लिस्ट में बस सेव हो कर रह गया.

मिथिलेश इनकम टैक्स विभाग में सिद्धी के पापा से ऊंचे औहदे पर आसीन था. सिद्धी के पापा को ऐसा दामाद हीरों में कोहिनूर लगा था.

रूप की धनी, हंसमुख, उच्चशिक्षिता सिद्धी रोबदार अफसर के बंगले में राजलक्ष्मी सी रौनक ले कर बसने आ गई.

सालभर उन दोनों के बीच आर्कषण का जादू चलता रहा. मगर सिद्धी के इज्जतदार, रोबदार पति के आकर्षण का सच धीरेधीरे सामने आने लगा.

सिद्धी अब काउंसिलिंग के लिए अपना क्लीनिक खोलना चाहती थी. उस ने पति के अकाउंट में जमा पिता के दिए 15 लाख कैश में से 2 लाख मांगे. मिथिलेश अनसुना करता रहा.

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रात को उस ने सोते वक्त भी यही दोहराया तो मिथिलेश का जवाब था, ‘‘जब तक बच्चे नहीं हो जाते तुम कुछ भी नहीं करोगी.’’

‘‘मगर मेरे लिए यह बहुत जरूरी है.’’

‘‘अभी जरूरी है विस्तर पर पति को खुश करना, ज्यादा बातें मत बनाओ.’’

सिद्धी व्याकुल हो गई. बोली, ‘‘ये क्या कि बच्चे जब तक…’’

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लाली: भाग 2- नेत्रहीन लाली और रोशन की बचपन की दोस्ती में क्यों आ गई दरार

लेखक- वेद प्रकाश गुंजन

स्कूल में सीखे हुए इंद्रधनुष के सारे तथ्य उस ने लाली को बता दिए लेकिन उसे खुद इन बातों में भरोसा नहीं था. जैसे इंद्रधनुष के 7 रंग.

उस ने 5 रंग बैगनी, नीला, हरा, पीला और लाल से ज्यादा रंग कभी इंद्रधनुष में नहीं देखे थे. और भी मास्टरजी की कई बातों पर उसे भरोसा नहीं होता था जैसे धरती गोल है, सूरज हमारी धरती से बड़ा है…इन सारी बातों पर कोई पागल ही भरोसा करेगा.

लेकिन दूसरे बच्चों पर अपनी धौंस जमाने के लिए ये बातें वह अकसर बोला करता था.

अपनी आंखों के सामने अंधेरा छाता देख माखन समझ गया अब उस का अंतिम समय आ गया है. रोशन को अंतिम बार देखने के लिए उस ने अपनी सांसें रोक रखी थीं, उस ने अपनी आंखें दरवाजे पर टिका रखी थीं. लेकिन जितनी सांसें उस के जीवन की थीं शायद सारी खत्म हो चुकी थीं. आत्मा ने शरीर का साथ छोड़ दिया था. बस, बचा रह गया था उस का ठंडा शरीर और इंतजार करती दरवाजे की ओर देखती आंखें.

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बाबा को गुजरे 1 साल हो गया था. रोशन ने टे्रन की सफाई के साथसाथ घर भी छोड़ दिया था. जब भी वह घर जाता उसे लगता बाबा का भूत सामने खड़ा है और बारबार उसे बारूद के कारखाने में काम करने से मना कर रहा है. टे्रन का काम रोशन को कभी पसंद नहीं था लेकिन बाबा के दबाव में वह कारखाने में काम नहीं कर पाया था. बाबा ने उस से वादा भी किया था कि उन के मरने के बाद रोशन बारूद के कारखाने में काम नहीं करेगा, लेकिन वह उस वादे को निभा नहीं पाया.

लाली को भी घर से निकलना पड़ा. उस के चाचा से अंधी लड़की का बोझ संभाला नहीं गया और अनाथ लड़की को अनाथ आश्रम में शरण लेनी पड़ी. शायद अच्छा ही हुआ था उस के साथ. आश्रम की पढ़ाई में उस का मन नहीं लगता था. पूरे दिन उसे बस, संगीत की कक्षा का इंतजार रहता और उस के बाद वह इंतजार करती रोशन का. रोज शाम को आधे घंटे के लिए बाहर वालों से मिलने की इजाजत होती थी. पर समय तो मुट्ठी में रखी रेत की तरह होता है, जितनी जोर से मुट्ठी बंद करो रेत उतनी ही जल्दी फिसल जाती है.

आज बेसब्री से लाली रोशन का इंतजार कर रही थी. जैसे ही रोशन के आने की आहट हुई उस की आंखों के बांध को तोड़ आंसू छलक पड़े.

‘मुझे यहां नहीं रहना रोशन, मुझे यहां से ले चलो.’

‘क्यों, क्या हुआ लाली?’ रोशन ने लड़खड़ाते स्वर में पूछा.

‘मुझे यहां सभी अंधी कोयल कह कर बुलाते हैं. मैं और यह सब नहीं सुन सकती.’

‘अरे, बस इतनी सी बात, शुक्र मना, वे तुझे काली कौवी कह कर नहीं बुलाते या काली लाली नहीं बोलते.’

‘क्या मतलब है तुम्हारा. मैं काली हूं और मेरी आवाज कौवे की तरह है?’

‘अरे, तू तो बुरा मान गई. मैं तो मजाक कर रहा था. तेरी आवाज कोयल की तरह है तभी तो सभी तुझे कोयल कह कर बुलाते हैं और रोशन के रहते तेरी आंखों को रोशनी की जरूरत ही नहीं है,’ रोशन ने खुद की तरफ इशारा करते हुए कहा.

‘पर मुझे यहां नहीं रहना, मुझे यहां से ले चलो.’

‘लाली, मैं ने तुझे पहले भी बोला है कि कुछ दिन सब्र कर, मुझे कुछ रुपए जमा कर लेने दे फिर मैं तुझे मुंबई ले चलूंगा और बहुत बड़ी गायिका बनाऊंगा,’ रोशन ने खांसते हुए कहा.

‘देख, रोशन, मुझे गायिका नहीं बनना. तू बारूद के कारखाने में काम करना बंद कर दे. बाबा भी नहीं चाहते थे कि तू वहां काम करे. मुझे तेरी जान की कीमत पर गायिका नहीं बनना. मैं देख नहीं सकती, इस का मतलब यह तो नहीं कि मैं महसूस भी नहीं कर सकती. तेरी हालत खराब हो रही है,’ लाली ने परेशान होते हुए कहा.

लाली की परेशानी बेवजह नहीं थी. रोशन सचमुच बीमार रहने लगा था. दिन- रात बारूद का काम करने के कारण उस की छाती में जलन होने लगी थी, लेकिन लाली को गायिका बनाने का सपना उसे दिनरात काम करने की प्रेरणा देता था.

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आज रोशन की खुशी का ठिकाना नहीं था. टे्रन सपनों की नगरी मुंबई पहुंचने ही वाली थी. उस के साथसाथ लाली का वर्षों का सपना पूरा होने वाला था. बारबार वह अपनी जेब में रखे 10 हजार रुपयों को देखता और सोचता क्या इन रुपयों से वह अपना सपना पूरा कर पाएगा. इन रुपयों के लिए ही तो उस ने जीवन के 4 साल कारखाने की अंधेरी कोठरी में गुजारे थे. लाली साथ वाली सीट पर बैठी थी. नाबालिग होने के कारण आश्रम ने उसे रोशन के साथ जाने की इजाजत नहीं दी लेकिन वह सब की नजरों से बच कर रोशन के पास आ गई थी.

मुंबई की अट्टालिकाओं को देख कर रोशन को लगा कि लोगों के इस महासागर में वह एक कण मात्र ही तो है. उस ने अपने को इतना छोटा कभी नहीं पाया था. अब तो बस, एक ही सवाल उस के सामने था कि क्या वह अपने सपनों को सपनों की इस नगरी में यथार्थ रूप दे पाएगा.

काफी जद्दोजहद के बाद मुंबई की एक गंदी सी बस्ती में एक छोटा कमरा किराए पर मिल पाया. कमरे की खोज ने रोशन को एक सीख दी थी कि मुंबई में कोई काम करना आसान नहीं होगा. उस ने खुद को आने वाले दिनों के लिए तैयार करना शुरू कर दिया था.

आज सुबह रोशन और लाली को अपने सपने को सच करने की शुरुआत करनी थी अत: दोनों निकल पड़े अपने उद्देश्य को पूरा करने. उन्होंने कई संगीतकारों के दफ्तर के चक्कर काटे पर कहीं भी अंदर जाने की इजाजत नहीं मिली. यह सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा. लाली का धैर्य और आत्म- विश्वास खत्म होने लगा और खत्म होने लगी उन की पूंजी भी. लेकिन रोशन इतनी जल्दी हार मानने वाला कहां था. वह लाली को ले कर हर दिन उम्मीद क ी नई किरण अपनी आंखों में बसाए निकल पड़ता.

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उस दिन रोशन को सफलता मिलने की पूरी उम्मीद थी, क्योंकि वह लाली को ले कर एक गायन प्रतियोगिता के चुनाव में जा रहा था, जिसे जीतने वाले को फिल्मों में गाने का मौका मिलने वाला था. रोशन को भरोसा था कि लाली इस प्रतियोगिता को आसानी से जीत जाएगी. हर दिन के रियाज और आश्रम में मिलने वाली संगीत की शिक्षा ने उस की आवाज को और भी अच्छा बना दिया था.

प्रतियोगिता भवन में हजारों लोगों की भीड़ अपना नामांकन करवाने के लिए आई हुई थी. करीब 3 घंटे के इंतजार के बाद एक चपरासी ने उन्हें एक कमरे में जाने को कहा. वहां एक बाबू प्रतियोगिता के लिए नामांकन करा रहे थे.

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भूल: भाग 1- शिखा के ससुराल से मायके आने की क्या थी वजह

मेरीसास सुचित्रा देवी विधवा हैं और स्कूल में पढ़ाती हैं. इकलौती ननद अर्चना मायके में रह रही है. उस की ससुराल में निभी नहीं. पति शराब पी कर मारपीट करता था. उस ने तलाक लेने की प्रक्रिया शुरू कर रखी है.

शिखा के देवर संजीव की शादी अपने बड़े भाई राजीव की शादी के 3 साल बाद हुई. उस की देवरानी रितु के आते ही हम मांबेटी ने उस के घर से अलग होने का अभियान तेज कर दिया.

मुझे अपनी छोटी बेटी की सुंदरता पर नाज है. राजीव उस के रंगरूप का दीवाना है. शादी के साल भर बाद 1 बेटे की मां बनने के बावजूद शिखा गजब की खूबसूरत नजर आती है. घरगृहस्थी तब पनपी जब मैं संयुक्त परिवार से अलग हुई. सच, मनचाहे ढंग से जिंदगी जीने का अपना अलग ही मजा है.

अपनी दोनों बेटियों की खुशियों को ध्यान में रखते हुए मैं ने हमेशा चाहा कि वे भी जल्दी से जल्दी ससुराल से अलग हो कर रहने लगें.

मेरी बड़ी बेटी सविता ने अपनी शादी की पहली वर्षगांठ अपने फ्लैट में मनाई थी. उस की नौकरी अच्छी है, इसलिए अलग होने में उसे ज्यादा दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ा.

छोटी बेटी शिखा ज्यादा पढ़ी नहीं है. वह शादी से पहले एक कंपनी में रिसैप्शनिस्ट थी. अपनी सास व पति की इच्छा को ध्यान में रख कर उस ने शादी के बाद नौकरी नहीं की. उस की सास सुचित्रा देवी विधवा हैं और स्कूल में पढ़ाती हैं. इकलौती ननद अर्चना मायके में रह रही है. उस की ससुराल में निभी नहीं. पति शराब पी कर मारपीट करता था. उस ने तलाक लेने की प्रक्रिया शुरू कर रखी है.

शिखा के देवर संजीव की शादी अपने बड़े भाई राजीव की शादी के 3 साल बाद हुई. उस की देवरानी रितु के आते ही हम मांबेटी ने उस के घर से अलग होने का अभियान तेज कर दिया.

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मुझे अपनी छोटी बेटी की सुंदरता पर नाज है. राजीव उस के रंगरूप का दीवाना है. शादी के साल भर बाद 1 बेटे की मां बनने के बावजूद शिखा गजब की खूबसूरत नजर आती है.

मेरी चांद सी सुंदर बेटी संयुक्त परिवार में पिसती रहे, यह न उसे स्वीकार था, न मुझे. हम दोनों ने राजीव पर घर से अलग होने के लिए बड़ी होशियारी से दबाव बनाना शुरू कर दिया.

मेरी सलाह पर शिखा ने ससुराल में घर के कामों से हाथ खींचना शुरू कर दिया. सास सुचित्रा ने उसे डांटा, पर वह खामोश रही. जिस दिन उस की ननद अर्चना उस पर चिल्लाई, शिखा उस से खूब झगड़ी और खूब रोई.

ऐसे झगड़े 2-4 बार हुए, तो शिखा तबीयत खराब होने का बहाना बना कर कमरे से नहीं निकली. सास, ननद व देवरानी ने उस की उपेक्षा की, तो वह जिद कर के अपने पति के साथ मायके मेरे पास आ गई. उस के यहां आने के बाद राजीव को किराए के मकान में अलग रहने के लिए राजी करना हम दोनों के लिए आसान हो गया.

‘‘मम्मी, हमारे घर में न जगह की कमी है, न सुखसुविधाओं की. अपनी विधवा मां को छोड़ कर अलग होते हुए मुझे दुख होगा,’’ राजीव की ऐसी दलीलों की काट मुझे अच्छी तरह से मालूम थी.

मेरी जिम्मेदारी थी राजीव को पूरा मानसम्मान देते हुए उस की खूब खातिर करना. शिखा उस के मनोरंजन, सुख और खुशियों का पूरा ध्यान रखती. मेरे घर में उस का बड़ा अच्छा समय व्यतीत होता. इसी कारण वह हर दूसरीतीसरी रात ससुराल में बिताता.

मेरी बड़ी बेटी सविता और उस के पति अरुण ने भी राजीव का मन बदलने में अपना पूरा योगदान दिया. अपने घर में रहने के फायदे गिनाते दोनों की जबान न थकती.

करीब महीना भर मायके में रह कर शिखा ससुराल लौट गई. उस का यह कदम हमारी योजना का ही हिस्सा था. आगामी 3 महीनों में वह लड़ाईझगड़ा कर के 4 बार फिर मायके भाग आई. इस के बाद दोनों तरफ की सहनशक्ति जवाब दे गई.

घर की सुखशांति के लिए सुचित्रा ने अपने बड़े बेटे को किराए के मकान में जाने की इजाजत दे दी. अपने देवर की शादी के मात्र 6 महीनों के बाद शिखा मेरे घर के बहुत नजदीक एक किराए के मकान में रहने आ गई. सिवा शिखा के पिता के हम सब खूब खुश हुए. वे जरा भावुक किस्म के इंसान हैं… आज की दुनिया की चाल को कम समझते हैं.

‘‘हमारी शिखा घरगृहस्थी के कामों में कुशल नहीं है. उसे बस हवा में उड़ना आता है. तुम ने उसे अलग करवा कर ठीक नहीं किया, शोभा,’’ उन्हें यों परेशान देख कर मैं मन ही मन हंस पड़ी थी.

शिखा की घरगृहस्थी अच्छी तरह से जमाने के लिए मैं ने खुशीखुशी अपनी जेब से खर्चा किया. राजीव और नन्हे रोहित को कोई शिकायत या परेशानी न हो, इस का मैं ने विशेष ध्यान रखा. अपनी बेटी का कामकाज में हाथ बंटाने मैं रोज ही उस के घर चली जाती थी.

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राजीव कुछ दिनों तक बुझाबुझा और नाराज सा रहा, पर फिर सहज व सामान्य हो गया. अब स्वतंत्र जीवन जी रही शिखा का खिला चेहरा देख मैं खूब प्रसन्न होती.

शिखा ससुराल बहुत कम जाती. उस का अपनी नईपुरानी सहेलियों के साथ ज्यादा समय गुजरता. रोहित को तब मुझे संभालना पड़ता. मैं यह काम खुशीखुशी करती, पर उस का बढ़ता चिड़चिड़ापन कभीकभी मुझे बहुत परेशान कर डालता.

जी भर के घूमनाफिरना कर लेने के बाद शिखा के सिर पर नौकरी करने का भूत सवार हुआ. मैं ने उस के इस कदम का दबी जबान से विरोध किया, पर उस का कोई फायदा नहीं हुआ, क्योंकि उस ने राजीव को राजी कर लिया था.

अपने आकर्षक व्यक्तित्व के कारण शिखा फिर से अपनी पुरानी कंपनी में रिसैप्शनिस्ट का पद पा गई. सप्ताह में 6 दिन रोहित को मैं संभालने लगी. अपनी बेटी की खुशी की खातिर मैं ने इस जिम्मेदारी को खुशीखुशी निभाना शुरू कर दिया.

मुझे लग रहा था कि मेरी छोटी बेटी की विवाहित जिंदगी में सब कुछ बढि़या चल रहा है, पर मेरा यह अंदाजा रोहित के तीसरे जन्मदिन की पार्टी के दौरान गलत साबित हुआ.

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Mother’s Day Special: फैसला- भाग 3- बेटी के एक फैसले से टूटा मां का सपना

 मुल्क राज ग्रोवर

ये सब सुन कर मेरी मम्मी का मन फिर डोलने लगा. अमेरिका सैटल्ड लड़के के साथ मेरे रिश्ते का लालच फिर उन के मन में प्रबल हो उठा.

आंटी ने जैसे ही फोन रखा, मम्मी मेरे पास आ कर बैठ गईं. वे देखना चाहती थीं कि आंटी की बातें सुन कर मुझे कितना अच्छा लगा है. मम्मी चाहती थीं कि मैं समीर से शादी कर के अमेरिका सैटल हो जाऊं. मम्मी की यह चाह कैसे पूरी होगी, मैं नहीं जानती, लेकिन मैं हैरान हूं कि मम्मी हमेशा यह क्यों भूल जाती हैं कि हमारी सगाई पर दिए गए तोहफों को ले कर समीर की मम्मी ने उन्हें कैसे फटकारा था और कैसे झूठ बोल कर हम पर रोब जमाने की कोशिश करती रही थीं. तब मेरी मम्मी से कह रही थीं कि तनवी ने प्रपोजल दिया तो हम नेहा को देखने आ गए, जबकि उन्होंने समीर के लिए और भी लड़कियां देखी थीं.

आंटी के फोन के 2 दिन बाद समीर का फोन आया. फोन मैं ने ही उठाया, मम्मी के पूछने पर मैं ने बताया कि समीर का फोन है. समीर का नाम सुनते ही उन की आंखों में चमक आ गई. वे पहले मेरे नजदीक खड़ी रहीं, फिर दूर जा कर हमारी बातें सुनने की कोशिश करती रहीं.

‘समीर का फोन आने की मुझे उम्मीद नहीं थी, लेकिन मैं जानती थी कि मैं उसे कोई भाव देने वाली नहीं थी. मेरे हैलो करने पर जैसे ही उस ने ‘हैलो, मैं समीर… अमेरिका से,’ बोला, मैं ने अपने अंदर भरे आक्रोश को उगलना शुरू कर दिया, ‘ओह समीर… नहीं…नहीं… सैमी… हिंदुस्तानी नाम तो आप को पसंद नहीं. आप सैमी कहते, तब भी मैं पहचान लेती. क्योंकि मेरी आप से सगाई हो चुकी है.

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कब से शादी के सपने देख रही हूं, क्यों न देखूं आखिर सगाई के बाद अगला कदम शादी ही है न. मिस्टर सैमी आप रहते अमेरिका में हैं, लेकिन पत्नी हिंदुस्तानी चाहिए क्योंकि वह तेजतर्रार नहीं होती, बड़ों का मानसम्मान करना जानती है, मुश्किलों में साथ निभाती है जबकि अमेरिकी लड़कियां जराजरा सी बात पर तलाक के कागज भेजने की धमकी दे देती हैं.’

‘प्लीज डोंट मिसअंडरस्टैंड मी. वैन वी टौक, आई वाज टैरिबली अपसैट… इनफैक्ट आई वाज इन ए वैरी बैड मूड…’

‘क्या आप अपनी मम्मी की तरह हमेशा बैड मूड में ही रहते हैं. कुछ दिन पहले आप की मम्मी ने इसी बैड मूड के लिए मेरी मम्मी से सौरी कहने के लिए फोन किया था और आज उन के बेटे ने…’

‘आप इतनी नाराज क्यों हो रही हैं…’

‘शायद आज मैं बैड मूड में हूं… इसलिए.’

‘आई एम रियली सौरी. आप जो चाहे मुझे सजा दें. बट…बट प्लीज डोंट स्पौयल…’

‘मिस्टर सैमी, आप और आप की मम्मी दोनों इस रिश्ते को बिगाड़ने के लिए जिम्मेदार हैं. मेरी मम्मी तो आज भी आप की मम्मी के बेहद रूखे और डांटडपट वाले व्यवहार को भूल कर इस रिश्ते को स्वीकार करने के लिए तैयार बैठी हैं, लेकिन मिस्टर सैमी अब ऐसा कभी नहीं हो पाएगा.’

‘प्लीज डोंट से दैट. आई विल बी डिसअपौइंटेड…’

‘आप डिसअपौइंट क्यों हो रहे हैं. आप को हिंदुस्तानी लड़की से ही शादी करनी

है, बड़े शौक से करिए. यहां आप कुछ और लड़कियां देख गए थे. चुन लीजिए, उन में से कोई. मेरी मम्मी की तरह अमेरिका भेजने के लालच में कोई और मातापिता आप को अपनी बेटी देने के लिए तैयार हो जाएंगे.’

‘आई कैन अंडरस्टैंड योर ऐंगर. आई स्वीयर इन फ्यूचर नथिंग लाइक दिस विल हैपन.’

‘आप के स्वीयर करने या सौरी कहने से क्या हमारी तकलीफें कम हो जाएंगी? हाऊ मच वी हैव सफर्ड, यू कांट इमैजिन. मैं दुआ करती हूं कि आप को जल्दी एक हिंदुस्तानी लड़की मिल जाए और आप की मम्मी को उन के दिए गए तोहफों की पूरी वैल्यू न मिलने पर खरीखोटी सुनाने का मौका एक बार फिर मिल जाए,’ कह कर मैं ने फोन रख दिया.

जैसे ही मैं ने फोन रखा, मम्मी गुस्से से घूरती हुई मुझे डांटने लगीं, ‘नेहा

बेटे, यह कैसा तरीका है समीर से बात करने का.’

‘क्यों मम्मा, क्या मैं कहती कि समीरजी कब से हम आप का इंतजार कर रहे थे. आप कब सेहरा बांध कर हमारे घर आओगे. जिन राहों से आप आने वाले थे, उन पर हम ने अब भी फूल बिछा रखे हैं वगैरा…वगैरा… ‘

मम्मी का गुस्सा अब भी बरकरार था, ‘बसबस बेटा, जो तुम ने किया वह ठीक नहीं था. उसे बहुत बुरा लगा होगा.’

‘बुरा लगा हो… जरूर लगे. हमें कोई परवा नहीं. अब हम क्या चाहते हैं, यह समीर की समझ में आ गया होगा. मम्मी आप की बेटी अब अमेरिका जाने वाली नहीं. वह यहीं रहेगी आप के आसपास. अब आप समीर का नाम हमेशा के लिए भूल जाएं. मम्मी, मैं आप को विश्वास दिलाती हूं, राहुल के साथ मेरी जिंदगी बड़े मजे में कटेगी. मैं खुश रहूंगी और आप भी निश्चिंत रहेंगे. आप राहुल को जानती हैं, कालेज के दिनों में वह 2 बार हमारे घर आ चुका है. जब आप उसे देखेंगी, एकदम पहचान लेंगी. कालेज के दिनों से हमारी आपस में खूब जमती थी.’

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लगभग 5 साल बाद राहुल से मेरी मुलाकात बड़े अजीब तरीके से हुई. समीर के साथ रिश्ता खत्म होने के बाद मैं ने पापा से जौब करने की अनुमति ले ली थी. जिस कंपनी में मुझे जौब मिली थी, राहुल वहां सीनियर पोस्ट पर था. जौब जौइन करने के पहले दिन जब मैं औफिस में ऐंटर कर रही थी तो उसी वक्त राहुल भी औफिस पहुंच रहा था. गार्ड ने जैसे ही दरवाजा खोला, राहुल ने मुझे पहले अंदर जाने के लिए इशारा किया. मैं ने उस की ओर देखा. मुझे उस का चेहरा कुछ जानापहचाना सा लगा. राहुल ने दोबारा मेरी ओर देखा और हैरानी से बोला, ‘नेहा… मैं राहुल…’

‘ओ, राहुल…, कैसे हो, कहां हो.’

‘ठीक हूं, यहीं तुम्हारे शहर में हूं. इसी कंपनी में जौब कर रहा हूं. तुम ने सोचा, राहुल दुनिया से गया… अभी इतनी जल्दी नहीं है… अभी बहुत कुछ करना है. शादी करनी है, बच्चे होंगे… पापापापा बुलाएंगे… फिर उन के बच्चे…’

इतने सालों बाद मिलने पर भी राहुल सबकुछ इतना सहज कह गया, मुझे हैरानी हुई, लेकिन मैं ने सावधानी बरतते हुए तपाक से कह दिया, ‘तुम नहीं बदलोगे राहुल, उसी तरह मस्तमौला, शरारती.’

‘और बताओ नेहा जौब क्यों, तुम्हें तो वर्किंग वूमन नहीं बनना था, वाए चेंज औफ माइंड?’ राहुल ने पूछा.

इसी तरह बातें करतेकरते हम औफिस में ऐंटर कर गए.

कालेज के दिनों की लाइफ में कितनी बेफिक्री और मौजमस्ती थी. हम एकदूसरे को चाहते थे, ऐसा कुछ नहीं था. राहुल कभी मेरा हाथ थाम लेता, कभी अजीब नहीं लगता. अब 5 साल बाद मिलने पर उस तरह की सहजता इतनी जल्दी नहीं आ पाई, लेकिन धीरेधीरे हम पहले की तरह घुलनेमिलने लगे. कईर् बार वह मुझे अपनी बाइक पर घर ड्रौप कर देता.

पिछले 3-4 महीने में राहुल कई बार हमारे घर चायकौफी पर आया था. हम दोनों कितनी बार रैस्टोरैंट में बैठे गपशप कर चुके थे. एक दिन लंच टाइम में राहुल ने पूछा, ‘क्या आज शाम हम कौफी पीने जा सकते हैं?’

‘हां… क्यों नहीं,’ मैं सोच में पड़ गई. कई बार पहले भी हम जा चुके हैं. आखिर आज क्या कुछ नया है. हम उसी रैस्टोरैंट में जा बैठे जहां आमतौर पर जाया करते थे. वेटर कौफी और सैंडविच टेबल पर रख गया. अभी हम ने कौफी पीनी शुरू नहीं की थी कि राहुल ने मेरे हाथ पर अपना हाथ रख दिया. मुझे हलका कंपन हुआ. पहले कितनी बार राहुल ने मेरा हाथ थामा होगा,  लेकिन कभी ऐसा नहीं लगा, जैसा आज… मुझे लगा हमारे बीच आज कुछ नया घटता जा रहा है, जो पहले से बहुत अलग है.

राहुल कुछ कहना चाहता था, लेकिन नहीं कह सका. कौफी पीने के बाद राहुल ने मुझे घर ड्रौप कर दिया. वह बिना कुछ बोले बाय कर हाथ हिला कर चला गया. अगले दिन औफिस आते समय राहुल की बाइक तेज गति से आती कार से टकरा गई. उसे गंभीर चोटें आईं. उस की सर्जरी हुई और टांग में रौड डाली गई.

एक हफ्ते बाद राहुल को अस्पताल से छुट्टी मिल गई. जब राहुल औफिस आया  तो उसे देख कर मुझे अच्छा लगा लेकिन उस के हंसमुख चेहरे पर हलकी उदासी देख कर मुझे चिंता भी हुई, ‘राहुल, तुम्हें इतना बुझाबुझा पहले कभी नहीं देखा.’

राहुल की उदासी दूर करने के लिए मैं उस जैसे शरारती अंदाज में उसे ‘बकअप’ करने लगी, ‘राहुल भूल गए, तुम ने कहा था शादी करनी है, बच्चे होंगे, पापापापा बुलाएंगे. फिर उन के बच्चे…’

राहुल का शरारती चेहरा अपने असली रंग में आ गया. चंचल, मौजमस्ती वाला. मुझे लगा राहुल का असली रूप कितना लुभावना है.

राहुल ने चुटकी बजा कर मुझे सचेत किया. वह मेरी ओर देख रहा था… लगातार… उस की आंखों में एक प्रश्न था, जिस का उत्तर वह मुझ से मांग रहा था.

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मैं ने ‘हां’ में सिर हिला कर उस के प्रश्न का उत्तर दे दिया. मुझे लगा हमारे बीच नए रिश्ते की नन्ही सी, प्यारी सी कोंपल फूट आई है.

मेरी मम्मी कमरे के आसपास थीं. उन्हें बुला कर मैं ने कह दिया, ‘मैं ने फैसला कर लिया है मम्मी, समीर से कह दो वह यहां किसी उम्मीद से न आए. मैं ने राहुल को अपना बनाने का फैसला कर लिया है, लेकिन अफसोस मम्मी, अब आप यह नहीं कह सकेंगी कि आप की बेटी अमेरिका में सैटल्ड है और न ही आप सालछह महीने में अपनी बेटी के पास अमेरिका जा पाएंगी.

मेरी शरारत भरी चुटकी मम्मी को पसंद आई कि नहीं, नहीं जानती, लेकिन मेरा फैसला उन्हें अच्छा नहीं लगा.

Mother’s Day Special: डायपर्स की दुनिया

नवजात शिशु को, अर्पिता  की सासू माँ के हाथों में ,जब डॉक्टर ने सोंपा तो अर्पिता  ने तुरंत पूछा. इसे होम मेड कपड़े की लंगोट पहना सकते हैं या बाज़ार के डायपर्स ? डॉक्टर ने मुस्कुरा के जवाब दिया “अभी आप कपड़े की लंगोट पहनाइए और मुझे शाम को रिपोर्ट करें कि आपने कितनी लँगोट बदली. हमें बच्चे के यूरीन पास के समय अंतराल को चेक करना हैं ” डॉक्टर के जाते ही सास ने तुरंत बच्चे को लगोट पहना दी और गर्व से बहु की तरफ देखा.बहु भी मुस्कुरा उठी.बच्चे की डिलीवरी से पहले दोनों इस विषय पर चर्चा कर चुके थे कि कपड़े की लंगोट बेहतर हैं या बाज़ार के डायपर.हम भी आज इसी विषय में चर्चा करेगें.

कपड़े की लंगोट, डायपर के बाज़ार में छा जाने से पहले तक,सभी ख़ुशी ख़ुशी प्रयोग में लाते थे.अब डायपर ने नवप्रसूताओं को असमंजस में डाल दिया हैं जहाँ घर के बड़े लंगोट के फायदे गिनाते हैं वही उनके हमउम्र डायपर की हिमायत करते हैं.

कपड़े की लंगोट और डायपर का अंतर 

कपड़े की लंगोट यदि घर में ही ,पुरानी सूती साड़ी या मर्दानी सूती धोती से बनी हो तो लागत जीरो आती हैं.यदि बाज़ार से दो,चार मीटर सूती कपड़ा लेकर ,दर्जी से सिलवाया जाये तो भी यह रेडीमेड कपड़े की लंगोट से सस्ती होती हैं.इसके अतिरिक्त कपड़े की रेडीमेड लंगोट भी आती हैं.ये आसानी से साबुन से धोकर धूप में सुखाई जा सकती हैं.इसका अनेक बार प्रयोग किया जा सकता हैं.

इसके अतिरिक्त पॉकेट लंगोट भी आती हैं जिनके अंदर मुलायम पेड लगा कर रखते हैं और पेड के गीला होने पर ,केवल पेड बदल देते हैं यह नवजात शिशुओं के लिये प्रयोग की जाती हैं.

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डायपर केवल एक बार के प्रयोग में आते हैं.विभिन्न कम्पनी  चार से सात घंटे तक, शिशु की स्किन को सूखा  रखने का दावा करती हैं. इसके अतिरिक्त आल नाईट डायपर भी आते हैं. डायपर  की दुनिया ,विविध ब्रांड से भरी हुई हैं. जिनमें  हगीस वंडर पेंट्स  ,पैमपर न्यू डायपर  ,हिमालया टोटल केयर ,मेमी पोको पेंट्स  , सपल्स बेबी पेंट ,पैपिमो बेबी पैन्ट्,बेम्बिका बेबी पौकेट क्लाथ डायपर  ,पॉ पॉ रियुजेबल क्लाथ डायपर, सॉफ्टसप्न माइक्रोफाईबर फोर लेयर बेबी पॉकेट डायपर आदि शामिल हैं.

लंगोट और डायपर की विशेषताएं 

लंगोट सूती कपड़े से बने होते हैं इसी से अत्यंत मुलायम होते हैं.इनका सावधानी पूर्वक प्रयोग ,यानि बच्चे के गीला करते ही तुरंत बदल देने पर ,किसी भी प्रकार का स्किन विकार पैदा  नहीं होता हैं.लेकिन  इसे धोना ,सुखाना अतिरिक्त कार्य बढ़ा देता हैं.शिशु की लंगोट हर आधे घंटे में जांचनी चाहिये.

डायपर पहने बच्चे का बिस्तर व् कपड़ा गीला नहीं होता.यह अल्ट्रा एब्सोर्स  कोर ,एलोवेरा लोशन और डबल लीक गार्ड के साथ भी आते हैं.जिससे रिसाव नहीं होता.ऊपरी भाग काटन का बना होता हैं जिससे ये बहुत मुलायम होते हैं. डायपर बारह  घंटे की भी सुरक्षा देते हैं..लेकिन  देर तक पहने रहने के कारण शिशु की  स्किन में लाल धब्बे दिखने लगते हैं.इसका सही से निस्तारण करना भी बहुत जरूरी हैं.

डायपर के  प्रकार 

डायपर अपनी बनावट व् उपयोगिता के आधार पर  बाज़ार में उपलब्ध हैं. दो तरफा टेप लगे डायपर से आप नवजात शिशु से लेकर पांच छह महिने तक या शिशु के बैठने लायक होने तक ,इस्तेमाल कर सकते हैं.इन्हें लेटे हुए शिशु को पहनाना और उतारना आसान होता हैं.  इसके अतिरिक्त स्विम डायपर ,पौटी ट्रेनिग  डायपर व् प्री  मेच्योर शिशु के लिए प्रीमी डायपर उपलब्ध हैं. पेंट की बनावट के डायपर, बच्चों को पहनाने और उतारने में आसान हैं.

मूल्य निर्धारण 

कम्पनियों ने डायपर की गुणवत्ता के आधार पर इसका अलग अलग मूल्य निर्धारण किया हैं. i इसके अतिरिक्त डायपर के साइज़ बढ़ने पर मूल्य भी बढ़ता जाता हैं.पेम्पर्स न्यू बेबी डायपर 2298  रूपये में  172 स्माल साइज़ बेबी  डायपर हैं जिनकी कास्ट 13.36 रूपये प्रति नग हो जाती हैं. मेमी पोको कम्पनी रूपये  371  के  46  स्माल पेंट स्टायल लगभग   8 रूपये  में प्रति नग  उपलब्ध हैं. लिबेरो कम्फर्ट  कम्पनी रूपये 799  के     48   स्मॉल साईंज का मूल्य  निर्धारित किया हैं. प्रति नग यह  रूपये 16.64 का होता हैं.हगीस वंडर  कम्पनी ने रूपये 199    के 24   स्माल ( 8.29,प्रति नग ) ,लिटिल एंजिल 999  के  74 ( 13.5 ,प्रति नग ) मूल्य  निर्धारित किया हैं.हिमालया टोटल केयर  कम्पनी ने रूपये 980   के 74 ( 13.24 ,प्रति नग ) एक्स्ट्रा लार्ज,वही सप्पल्स 620  में 64 (9.68 ,प्रति नग ) ,बेम्बो नेचर 1049  के एक्स्ट्रा लार्ज  19 डायपर पेंट (57.78 ,प्रति नग ) मूल्य निर्धारित किया हैं

सभी कम्पनी ने  डायपर पैकेट में, डायपर  की  मात्रा के  बढ़ने पर, प्रति डायपर मूल्य घटाया हैं. इसी से बड़े पैकेट लेने में ही फायदा होता हैं. इसके अतिरिक्त ऑनलाइन मँगाने पर ,दस से पैतीस प्रतिशत तक की छूट पर उपलब्ध हैं.

डायपर का चुनाव 

डायपर का चुनाव करते समय ,उसकी सोखने की क्षमता, नेप्पी बदलने के  अन्तराल की  समय सीमा  देखने के साथ ही उसका मूल्य और अपने बच्चे के  आकार, बच्चे के वजन , को भी ध्यान में रखना  चाहिए.इसके अतिरिक्त यदि हम सफर में हैं.तो हमें  नई जगह में  डायपर की उपलब्धता  को भी ध्यान  में रखना चाहिए.

नेपी को बदलते  समय आवश्यक सामग्री 

बच्चे के जन्म के समय पूर्व ही उसका बेबी बैग तैयार कर लेना चाहिए. घर में हो या सफर में हमें  डायपर  के साथ अन्य सामान ,मेट ,रुई के फाहे ,सौम्य क्लींजर ,बेबी ऑयल , बेबी वाईप्स ,नैपी रेश क्रीम ,गंदे नेपकिन के निस्तारण के लिए ,पुराने अखबार या  पोलीथिन बैग  ,बच्चे के दो जोड़ी  कपड़े ,खिलौना टीदर या सॉफ्ट टॉयज  आदि सामान एक छोटे बैग में हमेशा तैयार रखना चाहिए.

नेप्पी या डायपर निस्तारण 

गंदे डायपर को कूड़ेदान में सीधे ही नहीं फेंकना चाहिए.इसे किसी लिफाफे या अखबार में लपेट कर ही कूड़ेदान में डालना चाहिये. ये बायोडीग्रेडीब्ल  सामान से नहीं बनते हैं.ये पर्यावरण के अनुकूल नही होते  हैं. इनसे पृथ्वी पर  कचरा ही बढ़ रहा हैं. घर में डायपर निस्तारण का डिब्बा अलग रखना चाहिये जिसे प्रत्येक दिन उचित तरीके से निस्तारित किया जा सके.

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डायपर का खर्च 

बच्चे के जन्म के साथ ही अन्य खर्चों के साथ डायपर का खर्च भी बढ़ जाता हैं. इस खर्चे को यदि हम कम करना चाहे तो हमें घर में बने सूती लंगोट को भी इस्तेमाल में लाना चाहिए.रात में या घर से बाहर, शिशु को ले जाते समय हम डायपर का इस्तेमाल करे और  घर में अपनी देखरेख में इसे सूती लंगोट या पॉकेट डायपर का इस्तेमाल करे.पाकेट डायपर के पेड  गीले होने पर निस्तारित कर दिए जाते हैं फिर भी ये डायपर पेंट की तुलना में सस्ते होते हैं.

घर में बने सूती कपड़े के लंगोट या बाज़ार के बने लंगोट धुलकर दोबारा प्रयोग में आ जाते हैं.इनका मूल्य भी डायपर की तुलना में बेहद कम होता हैं.

Mother’s Day Special: नाश्ते में बनाएं क्रिस्पी पत्तागोभी बॉल्स

पत्तागोभी जिसे बंद गोभी के नाम से भी जाना जाता है, बैगनी, सफेद, या हल्के हरे रंग में मिलती है. अंग्रेजी में इसे ब्रेसिका ओलेरेसिया कहा जाता है. चायनीज व्यंजनों में बहुतायत से प्रयोग किये जाने के अतिरिक्त भारतीय भोजन में इसे सलाद और सब्जी के रूप में खाया जाता है. इसमें एंटीऑक्सीडेंट, मिनरल्स, विटामिन्स और फाइबर भरपूर मात्रा में पाये जाते हैं. अपने इन्हीं गुणों के कारण यह पाचन क्षमता को दुरुस्त रखने और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में भी सहायक है. चूंकि इसमें कैलोरी नाममात्र की और फाइबर बहुतायत में होते हैं इसलिए वजन कम करने के इच्छुक लोगों को इसका सेवन अवश्य करना चाहिए. आज हम पत्तागोभी से क्रिस्पी बॉल्स बनाएंगे जो अत्यधिक स्वादिष्ट तो है ही साथ ही लॉक डाउन के इस दौर में आप घर में उपलब्ध सामग्री से ही इन्हें बहुत आसानी से बना सकतीं हैं. तो आइए जानते हैं कि इन्हें कैसे बनाते हैं-

कितने लोगों के लिए 6
बनाने में लगने वाला समय 30 मिनट
मील टाइप वेज

सामग्री

पत्तागोभी 250 ग्राम
प्याज 2
बेसन 4 टेबलस्पून
चावल का आटा 2 टेबलस्पून
हरी मिर्च 4
अदरक 1 छोटी गांठ
बारीक कटा हरा धनिया 2 टेबलस्पून

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साबुत दरदरा धनिया 1/2 टीस्पून
नमक स्वादानुसार
कुटी लाल मिर्च 1/2 टीस्पून
जीरा 1/4 टीस्पून
हींग चुटकी भर
अजवाइन 1/4 टीस्पून
तलने के लिए पर्याप्त मात्रा में तेल

विधि

पत्तागोभी, प्याज, हरी मिर्च और अदरक को लम्बाई में काट लें. अब इसमें सभी मसाले डालकर बेसन और चावल का आटा धीरे धीरे लगभग 5 मिनट तक भली भांति मिलाएं ताकि बेसन पत्तागोभी पर कोट हो जाये. पानी बिल्कुल भी न मिलाएं. इसमें 1 टेबलस्पून गर्म तेल मिलाएं और हल्के हाथ से बॉल्स बनाकर गर्म तेल में सुनहरा होने तक मध्यम आंच पर तलकर बटर पेपर पर निकालें. यदि आप डीप फ्रायड नहीं खाना चाहें तो इन्हें अप्पे के सांचे में कम तेल में भी बना सकती हैं. तैयार क्रिस्पी पत्तागोभी बॉल्स को टोमेटो सॉस या हरे धनिए की चटनी के साथ सर्व करें.

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विराट को लगेगी गोली तो सई को दूर रखने की कोशिश करेगी पाखी, कहानी में आएगा नया ट्विस्ट

स्टार प्लस के टीवी सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) की कहानी में नए-नए मोड़ आ रहे हैं. जहां एक तरफ विराट और सई एक दूसरे से इन दिनों अलग है तो वहीं पाखी पूरी कोशिश कर रही है कि दोनों एक दूसरे के करीब ना आएं. इसी बीच विराट के साथ ऐसा हादसा होने वाला है, जिससे पाखी और सई की जिंदगी नया मोड़ लेने वाली हैं. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

विराट को हुआ गलती का एहसास

‘गुम है किसी के प्यार में’ में अब तक आपने देखा कि पुलकित और देवयानी की शादी के चलते सई को गलत ठहराने वाले विराट (Neil Bhatt) को हाल ही में अपनी गलती का एहसास हुआ है, जिसके बाद वह सई को वापस घर आने के लिए मनाने भी गया था. हालांकि सई ने उसके साथ आने से साफ इंकार कर देती हैं. वहीं सई अपने रिश्ते को थोड़ा समय देने का फैसला करती है.

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भवानी करेगी ये काम

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि जहां देवयानी अपनी बेटी से मिलेगी तो वहीं उसकी बेटी सभी के सामने उसका मजाक उड़ाते हुए नजर आएगी. इसी बीच चौहान हाउस (Chavan House) में अश्विनी, भवानी और सभी के सामने सई को वापस लाने की गुजारिश करेगी. लेकिन भवानी उसे भला बुरा कहती नजर आएगी. हालांकि मोहित हर किसी को करारा जवाब देगा और सई को घर वापस लाने के लिए कहेगा. लेकिन पाखी मोहित को ही चुप रहने के लिए कहेगी.

सई को होगा प्यार का एहसास

 

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दूसरी तरफ सई, विराट के लिए अपने प्यार के एहसास को समझ नहीं पा रही है. लेकिन आने वाले एपिसोड में विराट के साथ कुछ ऐसा होगा, जिससे सई को अपने प्यार का एहसास हो जाएगा. दरअसल, अपकमिंग एपिसोड में विराट एक मिशन पर जाएगा जहां उसे गोली लग जाएगी. वहीं सई को इस बात का पता चलेगा तो वह विराट के पास जाएगी. और उसे अपने प्यार का भी पता लग जाएगा, जिसके चलते वह चौहान हाउस वापस आएगी. हालांकि पाखी पूरी कोशिश करेगी कि विराट को सई से अलग रख सके. अब देखना है कि इससे क्या होता है.

 

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Dia Mirza समेत इन 5 सेलेब्स ने लिए कोरोना कहर के बीच सात फेरे, देखें फोटोज

कोरोना का कहर पिछले साल से ज्यादा खतरनाक देखने को मिल रहा है. दिन प्रतिदिन कोरोना के मामले नया रिकौर्ड बना रहे हैं. वहीं इसमें मौतों का भी सिलसिला जारी है. लेकिन इस बीच कुछ सितारे ऐसे हैं जो इस मुश्किल के समय़ में अपनी जिंदगी की नई शुरुआत कर चुके हैं. आइए आपको बताते हैं एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री के सितारों के बारे में जिन्होंने इस मुश्किल घड़ी में शादी करने का फैसला लिया है.

सुगंधा मिश्रा और संकेत भोसले

टीवी की जानी मानी कॉमेडियन और सिंगर सुगंधा मिश्रा ने 26 अप्रेल को डौक्टर संकेत भोसले (Sugandha Mishra And Sanket Bhosale) संग शादी की है. इस कपल की फोटोज इन दिनों सोशलमीडिया पर छाई हुई है. वहीं सेलेब्स दोनों को बधाइया देने में जुट गए हैं. बता दें, कोरोना के कहर के चलते सुगंधा मिश्रा और संकेत भोसले की शादी में केवल परिवार और कुछ खास दोस्त ही शामिल हुए थे, जिनका पहले कोरोना का टेस्ट करवाया गया था.

विक्रम सिंह चौहान और स्‍नेहा शुक्‍ला

 

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‘कुबूल है’ फेम विक्रम सिंह चौहान (Vikram Singh Chauhan) ने अपनी लॉन्गटाइम गर्लफ्रेंड स्‍नेहा शुक्‍ला (Sneha Shukla) के साथ हाल ही में शादी की है, जिसका ऐलान स्टार प्लस के सुपरहिट सीरियल ये जादू है जिन्न का (Yehh Jadu Hai Jinn Ka) एक्टर विक्रम सिंह चौहान ने सोशलमीडिया के जरिए किया है. इस दौरान उनकी शादी में केवल फैमिली मेंबर्स ही नजर आए. दोनों की शादी की फोटोज सोशलमीडिया पर छाई हुई हैं.

विष्णु विशाल और ज्वाला गुट्टा

 

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भारत की पौपुलर बैडमिंटन प्लेयर ज्वाला गुट्टा ने अपने साउथ स्टार और बॉयफ्रेंड विष्णु विशाल (Vishnu Vishal and Jwala Gutta) के साथ 22 अप्रैल को शादी की थी. हालांकि ज्वाला और विष्णु विशाल की शादी में कम ही लोग नजर आए थे. बता दें, ज्वाला गुट्टा की यह दूसरी शादी है, जिसके कारण वह सुर्खियों में छा गई है.

दिया मिर्जा और वैभव रेखी

 

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बॉलीवुड एक्ट्रेस दिया मिर्जा ने 15 फरवरी को अपने बॉयफ्रेंड वैभव रेखी (Dia Mirza and Vaibhav Rekhi) के साथ अचानक शादी कर ली थी, जिसके कारण फैंस हैरान थे. दरअसल, दिया के अचानक शादी के फैसले के चलते ये फंक्शन काफी प्राइवेट रखा गया था. हालांकि दोनों ने मीडिया के सामने पोज भी दिए थे. वहीं शादी के बाद कुछ ही दिनों में दिया मिर्जा ने अपनी प्रैग्नेंसी का खुलासा भी कर दिया था, जिसके कारण वह ट्रोलिंग का शिकार भी हुई थीं.

प्रियांक शर्मा और शाजा मोरानी (Priyaank Sharma and Shaza Morani)

 

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बॉलीवुड एक्ट्रेस पद्मिनी कोल्हापुरी के बेटे प्रियांक शर्मा ने भी अपनी गर्लफ्रेंड और फिल्म प्रोड्यूसर करीम मोरानी की बेटी शाजा मोरानी के साथ 4 फरवरी को बीते महीने शादी कर ली है. वहीं बीते दिनों वह कोरोना के चलते सुर्खियों में भी थीं.

ऑनलाइन पढ़ाई से बच्चों पर पड़ रहा बुरा असर

कोविड-19 की वजह से स्कूल, कॉलेज सब बंद हो गए हैं और बच्चों को घर में ही ऑनलाइन पढ़ाई करनी पड़ रही है.भले ही बच्चे को इससे कुछ फायदा हो भी जाए लेकिन इस ऑनलाइन पढ़ाई से जो मानसिक और शारीरिक तनाव हो रहा है उसका क्या ? इस बीमारी को फैलने से रोकने के लिए भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर के कई देशों में लॉकडाउन किया गया, लोगों का घरों से बाहर निकलना बंद हो गया और स्कूल-कॉलेज तो पिछले कई महीने से पूरी तरह से बंद हैं और इसी कारण से ऑनलाइन क्लासेस शुरु हुए लेकिन इससे होने वाली बीमारी ने न सिर्फ लोगों की सेहत पर बुरा असर डाला है बल्कि उनकी रोजमर्रा की जिंदगी भी पूरी तरह से बदल गयी है. बच्चों की पढ़ाई पर बुरा असर तो पढ़ ही रहा है लेकिन जो ऑनलाइन पढ़ाई की शुरुआत हुई उससे उनके सेहत पर भी बुरा असर पड़ रहा है.

स्कूल में पढ़ाई के साथ कई और नई चीजें सीखते हैं बच्चे

जब बच्चे स्कूल जाते हैं तो वहां वे सिर्फ पढ़ाई ही नहीं करते बल्कि साथ ही साथ वे नए लोगों से मिलते हैं दूसरों के साथ खेलते हैं यहां तो कोविड ने उनका बाहर तक खेलना बंद करवा दिया दोस्त सामाजिक कुछ रूल-रेगुलेशन में रहना सीखते हैं जो कि घर पर बिल्कुल भी संभव नहीं है.स्कूल में खेलते-कूदते हैं, शारीरिक गतिविधियां करते हैं,लेकिन घर से ऑनलाइन क्लासेज के कारण बच्चे ये सारी चीजें नहीं कर पा रहे हैं और इसका भी उनकी सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है.

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लैपटॉप और फोन का इस्तेमाल

घर से पढ़ाई करने का मतलब है कि बच्चे अब उन चीजों का ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं जिसे इस्तेमाल करने से पैरंट्स पहले उन्हें मना करते थे।टीवी, लैपटॉप, कम्प्यूटर, मोबाइल जितनी भी ऑनलाइन क्लासेज हैं इनकी वजह से बच्चे घंटो मोबाइल और लैपटॉप स्क्रीन के सामने बैठे रहते हैं जिसका उनकी शारीरिक और मानसिक सेहत पर भी बुरा असर पड़ रहा है.

बच्चे की शारीरिक सेहत पर असर

कम्प्यूटर, लैपटॉप, आईपैड या मोबाइल फोन के सामने घंटों बैठे रहने की वजह से बच्चों के शरीर पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ता है,जब बच्चा बहुत देर तक एक ही जगह पर एक ही पोजिशन में बैठा रहेगा तो जाहिर है कि शरीर पर इसका असर अच्छा तो बिल्कुल नहीं होगा.

आंखें पर बुरा असर और सिरदर्द

टीवी, कम्प्यूटर या फोन की स्क्रीन को घंटों तक लगातार देखते रहने से बच्चों की आंखों की रोशनी कमजोर होने लगती है और उन्हें ज्यादा पावर का चश्मा लगाने की जरूरत पड़ने लगती है. अगर समय रहते इन समस्याओं पर ध्यान न दिया जाए तो ये आगे चलकर बढ़ सकती हैं. बच्चों की मांसपेशियों और जोड़ों में भी दर्द की समस्या हो सकती है इसलिए इसका भी खास खयाल रखें.

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पैरंट्स को इन बातों का ध्यान रखना चाहिए

• बच्चे लगातार स्क्रीन की तरफ न देखें बल्कि बीच-बीच में पलकों को झपकाते रहना जरूरी है
• बच्चों की आंखों की रोशनी ठीक रहे और उन्हें आंखों से जुड़ी कोई समस्या न हो इसके लिए उन्हें गाजर, पालक, कद्दू का जूस और हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन जरूर कराएं.
• मोबाइल या लैपटॉप को बच्चे की आंखों से कम से कम 2 फीट की दूरी पर रखें
• बच्चे के स्क्रीन टाइम पर पैरंट्स नजर रखें, पढ़ाई के अलावा बहुत ज्यादा देर तक गैजट्स का इस्तेमाल न करने दें.
• बच्चे की आंखों की जांच करवाएं.

Mother’s Day Special: फैसला- भाग 2- बेटी के एक फैसले से टूटा मां का सपना

 मुल्क राज ग्रोवर

आंटी ने कहा, ‘जल्दी किसी बड़े होटल में सगाई समारोह करना होगा. आज… या ज्यादा से ज्यादा कल तक.’

अगले ही दिन एक शानदार होटल में बड़ी धूमधाम से समीर के साथ मेरी सगाई हो गई. समीर के परिवार में सभी को बहुत महंगे तोहफे दिए गए. डायमंड की अंगूठियां व महंगी घडि़यों से ले कर डिजाइनर साडि़यां व सूट आदि सभी तोहफे बहुत महंगे थे.

मेरी मम्मी बहुत खुश थीं. पापा को भी सब ठीक लग रहा था. मम्मी की खुशी छिपाए नहीं छिप रही थी. आखिरकार उन की बेटी अब अमेरिका चली जाएगी. वे भी सालछह महीने में एक बार वहां हो आएंगे.

अमेरिका में सैटल्ड लड़के के साथ मेरी सगाई की बधाइयां अभी भी आ ही रही थीं कि अमेरिका लौटने के अगले ही दिन समीर की मम्मी का फोन आ गया, ‘मिसेज रजनी, आप ने जो तोहफे दिए हैं, वे हमारे किस काम के. यहां अमेरिका में कौन पहनेगा इतनी हैवी साडि़यां और डै्रसेज. डायमंड ऐंड गोल्ड ज्वैलरी इज ओके बट वट टु डू विद दीज हैवी सारीज ऐंड सिल्ली ड्रैसेज. ये सब हमारे लिए बेकार हैं. यही पैसे आप ने समझदारी से खर्च किए होते… इट वुड हैव गिवन सम वैल्यू टु अस.’

समीर की मम्मी का ऐसा रूखा व्यवहार देख कर मम्मी ने अपनी गलती मान ली, ‘शिखाजी, हम से गलती हो गई. आप बुरा न मानें. आगे हम ध्यान रखेंगे.’

मम्मी ने स्वीकार कर लिया ताकि वे नाराज न हो जाएं और आगे सावधानी बरतने का विश्वास भी उन्हें दिला दिया. मुझे समीर की मम्मी का व्यवहार और अपनी मम्मी का गलती मान लेना अच्छा नहीं लगा, लेकिन मैं चुप रही.

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‘मिसेज रजनी, हम डायमंड ज्वैलरी और वे गिफ्ट जो हमें ठीक लगे, साथ ले आए हैं, बाकी सब वहीं तनवी के पास छोड़ आए हैं. आप मंगवा लेना, शायद आप के किसी काम आ जाएं.’ मिसेज शिखा ने मम्मी को खूब खरीखोटी सुनाई. मम्मी जीजी करती उन की बेतुकी डांट चुपचाप सुनती रहीं.

सगाई के बाद अमेरिका लौट कर समीर की मम्मी का यह पहला फोन था. मम्मी उम्मीद कर रही थीं कि सगाई की रस्म कम वक्त में इतने बढि़या तरीके से करने पर वे उन का थैंक्स कहेंगी और हमारे दिए तोहफों के लिए आभार जताएंगी, लेकिन इतने करीबी और नएनए जुड़े रिश्ते का भी खयाल न रखते हुए उन्होंने जिस तरह मम्मी के साथ व्यवहार किया, उन्हें उस की जरा भी उम्मीद नहीं थी.

कुछ दिन तक मम्मी बहुत परेशान रहीं. पापा को सारी बात न बता कर इतना बताया कि हमारे तोहफे उन्हें पसंद नहीं आए, इसलिए शादी के वक्त हमें ध्यान रखना होगा. रिश्तों की गरिमा को ताक पर रख कर समीर की मम्मी के कड़वे बोलों ने उन्हें चिंता में डाल दिया था.

अपनी चिंता आंटी से शेयर करने के लिए मम्मी ने उन के भाई के घर फोन किया. वहां से पता चला कि वे अमेरिका लौट गई हैं. उन्होंने उसी वक्त आंटी को अमेरिका फोन कर दिया. आंटी ने मम्मी को विश्वास दिलाया, ‘चिंता की कोई बात नहीं. वे उन लोगों से बात कर के हमें वापस फोन करेंगी.‘

सगाई के बाद जब भी समीर से मेरी बात हुई, वह बेहद फीकी रही. न रोमांचक, न रोचक. जब भी मैं ने कुछ पूछा, उस ने हमेशा सधा सा जवाब दे दिया, ‘जब मैं वहां पहुंचूंगी, सब जान लूंगी.’ कई बार तो बात बस हां और ना पर ही खत्म हो जाती. समीर का इस तरह अनमना व्यवहार मुझे अच्छा नहीं लगा. मैं ने मम्मीपापा को समीर के रूखे व्यवहार के बारे में कुछ नहीं बताया, लेकिन मुझे बहुत बुरा लगा. मैं चुप रही. मम्मी के लिए एक और चिंता खड़ी करने से अच्छा है, चुप रहना.

मैं मम्मी को किसी नई चिंता में उलझने से कहां तक बचा पाती, क्योंकि अगले दिन तनवी आंटी का फोन आ गया. उन्होंने जो बताया, उस से हमारा सारा उत्साह फीका पड़ गया.

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‘भाभी, यहां कुछ ठीक नहीं लग रहा. आप जानती हैं अमेरिका में मंदी आने से बिजनैस पर असर पड़ा है और बिजनैस मंदी की वजह से बुरे दौर से गुजर रहा है. वे लोग भी परेशान हैं. मुझे यह भी पता चला है कि वे लोग इंडिया वापस आने की भी सोच रहे हैं.

पिछली बार इंडिया आने का उन का मकसद यहां सही अवसर देखने के साथ समीर के लिए लड़की देखना भी था. उन्होंने नेहा के अलावा और भी 3-4 लड़कियां देखी थीं. मिसेज शिखा ने तब झूठ बोला

था कि वे मेरे कहने पर नेहा को देखने आ गए थे. यहां आ कर जो कुछ मुझे पता चला है, मैं ने आप को बता दिया. अब आप जैसा ठीक समझें.’

तनवी आंटी ने जो बताया, वह मम्मीपापा के लिए एक बड़ी चिंता का कारण बन गया. वे लोग वापस इंडिया लौटने की सोच रहे हैं. नेहा के अलावा उन्होंने और लड़कियां भी देखीं. मिसेज शिखा कह रही थीं, तनवी ने प्रपोजल दिया, इसलिए हम आ गए.

मम्मी अपना गुस्सा समीर की मम्मी पर निकालने लगीं, ‘वाह शिखाजी, डायमंड ज्वैलरी और महंगे तोहफे तो साथ ले गईं. बाकी यहां छोड़ गईं. ऐसा सामान देते जिस की हमें वैल्यू मिलती. वैल्यू की बड़ी पहचान है आप को.’

मेरे पापा पहले ही उन से नाराज बैठे थे. कुछ दिन पहले समीर के पापा ने अमेरिका से फोन कर अपने लिए होटल बुक करवाने के लिए कहा था और होटल का बिल हमारे नाम करवा कर चले गए. अमेरिका लौट कर फोन पर सौरी कह कर अपनेआप को बचा लिया.

कुछ दिन घर में उदासी छाई रही. मम्मीपापा दोनों परेशान थे. मैं भी असमंजस की स्थिति में थी. इसी उधेड़बुन में 3 महीने से ज्यादा निकल गए. इस बीच न उधर से कोई फोन आया, न ही हम ने उन से बातचीत करने की पहल की. जो भी हुआ हम उसे भुलाने की कोशिश में थे कि अचानक तनवी आंटी का अमेरिका से फोन आ गया. आंटी समीर की मम्मी के पास बैठ कर वहीं से फोन कर रही थीं. उन्होंने मम्मी को बताया कि शिखा ने फोन पर उन्हें जो बुराभला कहा था, उस के लिए वे मेरी मम्मी को सौरी कहना चाहती हैं.

आंटी ने फोन समीर की मम्मी को दे दिया, ‘मिसेज रजनी, मैं शिखा, समीर की मम्मी. दैट डे आई वाज इन ए वैरी बैड मूड. मेरा मकसद आप का दिल दुखाने का नहीं था. आई एम रियली सौरी. नेहा हमें बड़ी अच्छी लगी. शी इज ए लवली गर्ल और हम उसे अपनी बहू बनाना चाहते हैं. आई होप यू विल नौट डिसअपौइंट अस. आप मेरी बात मान लीजिए. मैं आप को फिर एक बार सौरी बोल रही हूं’.

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‘शिखाजी, आप ऐसा न कहिए, आप को सौरी बोलने की जरूरत नहीं. आप लोग हमें बड़े अच्छे लगे. आप जैसे लोगों से रिश्ता जोड़ने में हमें कोई प्रौब्लम नहीं है. मैं नेहा के पापा से बात कर के आप को…’

समीर की मम्मी बीच में ही बोल पड़ीं, ‘मिसेज रजनी आप को अपनी बेटी के बारे में फैसला लेने का पूरा हक है. नेहा के पापा आप से क्यों असहमत होने लगे. नाऊ ऐवरीथिंग इज क्लीयर बिटवीन अस. आप जब कहेंगे, हम इंडिया आ जाएंगे. लीजिए, आप तनवी से बात कीजिए,‘ और उन्होंने फोन आंटी को दे दिया.

आंटी फिर उन की वकालत करने लगीं, ‘उन का बिजनैस अब अच्छा चल रहा है. वे लोग 2 और स्टोर खोल रहे हैं. समीर के लिए अलग से घर खरीद लिया है. भाभी, आप जानती हैं अमेरिका में बच्चे बड़े होने पर मांबाप के साथ नहीं रहते. वे अलग रहना पसंद करते हैं, इसलिए समीर शादी के बाद अपने अलग घर में शिफ्ट हो जाएगा.‘

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