लंबे समय तक जीना है… तो आराम से न बैठें, हर दिन काम करें

लगभग हर समाज में इंसान बुढ़ापे के अपने सहारे सोचकर रखता है. लेकिन ज्यादातर लोगों की दिली इच्छा यही होती है कि जिंदगी में किसी के भरोसे न रहना पड़े. इसके लिए जरूरी है कि हम मौत के एक दिन पहले तक न केवल दिमागी और जिस्मानी रूप से सक्रिय रहें बल्कि कामकाज भी करते रहें ताकि हमारी नियमित आय का जरिया बना रहे और हमें अपने गुजर बसर करने के लिए किसी के सामने हाथ फैलाने की जरूरत न पड़े.

अगर आपको लगता है कि यह कोरी कल्पना है तो भूल जाइए. बहुत कम ही सही लेेकिन कई ऐसे लोगों के बारे में आपने सुना होगा या देखा होगा जो स्वभाविक मौत के एक सप्ताह पहले तक और कई तो बस, एक दो दिन पहले तक सक्रिय रूप से कामकाजी रहे होते हैं. सवाल है क्या यह जिस्मानी क्षमता के बदौलत संभव है या इसके लिए हमें दिमागी रूप से मजबूत और कठोर संकल्पों वाला होना पड़ता है. विषेषज्ञ कहते हैं दूसरा विकल्प ही कारगर है. दरअसल शरीर की निश्चित क्षमताएं नहीं होतीं, उसे आप चाहे तो जितना क्षमतावान बना सकते हैं. इसके लिए आपको दिमागी रूप से मजबूत होने की जरूरत होती है और बेहद अनुशासन प्रिय होने की भी.

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तकरीबन 100 साल उम्र तक बतौर मनोचिकित्सक सक्रिय रहे जैसन बर्क कहते हैं, ‘हर दिन काम करना जीने को लुत्फपूर्ण बना देता है, यह एक थैरेपी जैसा है, जो आपको हर दिन अपनी नियमित गतिविधि के साथ तरोताजा कर देता है.’ कहने का मतलब यह कि आप काम से थकते नहीं हैं, ऊबते नहीं हैं, असमर्थ नहीं होते बल्कि तरोताजा होते हैं और सामथ्र्यवान भी बनते हैं. दुनिया में सबसे ज्यादा देर तक आॅस्ट्रलियाई लोग काम करते हैं. एक औसतन आॅस्ट्रेलियाई मरने के कुछ महीने पहले तक कामकाजी रूप से सक्रिय रहता है. दुनिया में जहां औसतन रिटायमेंट की उम्र 60 साल है, वहीं आॅस्ट्रेलिया में यह 65 साल है लेकिन साल 2035 से कानूनी तौरपर इसे बढ़ाकर 70 साल किये जाने का कानून बन चुका है.

मगर व्यवहार में तमाम निजी संस्थानों ने अभी से इसे 70 साल कर दिया है. कहने का मतलब आॅस्ट्रेलिया में ज्यादातर लोग 60 या 65 साल के बजाय 70 साल तक सक्रिय कामकाजी जीवन बिताते हैं. निश्चित रूप से देर तक काम करने में एक बड़ी सहूलियत हमारा शरीर मुहैय्या करता है, लेकिन अगर शरीर की तरह ही दिमाग स्वस्थ नहीं है तो यह संभव नहीं हो सकता. इसलिए देर तक काम करने के लिए जरूरी है कि हम दिमागी तौरपर स्वस्थ रहें और दिमागी रूप से स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है कि हम हर दिन नियमित तौरपर काम करें. निष्क्रियता हमें शारीरिक रूप से असहज और दिमागी रूप से कुंद बनाती है. बहरहाल जरूरी ये जानना है कि आखिर देर तक काम करने के लिए करें क्या? इसके लिए सबसे पहले जरूरी है कि हम सिर्फ वही काम करें जो हमें पसंद हो और उस काम को मजबूरी के तौरपर न करें बल्कि जुनून के तौरपर करें.

देर तक काम करने का एक बहुत जरूरी सूत्र यह है कि बिना नागा हर दिन काम करें. इससे हमारी जिस्मानी ताकत भी बढ़ती है और जेहनी ताकत में भी इजाफा होता है. स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं अगर 80 साल या इससे ज्यादा तक स्वस्थ और सक्रिय रहते हुए जीना है तो जरूरी है कि हर दिन औसतन 8 घंटे काम करें बिना नागा, बिना तनाव. देर तक काम करने का एक जरूरी आधार यह भी है कि हम ऐसे काम करें जो महत्वपूर्ण हों यानी हमें एहसास हो कि हमारे किये गये काम के बिना बहुत जरूरी चीजें रूक सकती हैं या यूं कहें कि हमारा काम तात्कालिक तौरपर ही महत्वपूर्ण हो, सिर्फ काम करने के लिए काम न करें. लंबे समय तक स्वस्थ और सक्रिय रहने के लिए लगातार नयी नयी तकनीकियों को सीखें, अपने आपको चुनौतियों से दोचार करें और लक्ष्य को पूरा करने के लिए एक वास्तविक किस्म का न्यूनतम तनाव भी पालें.

कुल मिलाकर लगे कि आप सचमुच में एक तय समय पर अपने काम को पूरा करने के लिए चिंतित हैं. बहुत आराम से किया गया काम गुणवत्ता में भले बेहतर उत्पाद के रूप में सामने आता हो, आपको बहुत सक्रिय और महत्वपूर्ण नहीं बनाता. बिना इंसेटिव यानी कुछ प्राप्ति के कभी काम न करें क्योंकि ऐसे काम दिमागी रूप से आपको गैर महत्वपूर्ण और निर्मूल्य बनाते हैं जो स्वास्थ्य के लिए कतई फायदेमंद नहीं होते. अगर आप वरिष्ठ उम्र में भी मिलने वाले अपने साप्ताहिक या पखवाड़े वाले वेतन का इंतजार करते हैं, उसमें कुछ बढ़ोत्तरी की ख्वाहिश पालते हैं और संभव होने पर रोमांचित होते हैं तो आप सही दिशा में हैं, यह काम आपको जेब से भी मजबूत बनायेगा और शरीर से भी. अमरीका में 2010 के गैलप द्वारा किये गये एक वृहद सर्वेक्षण के दौरान यह बात सामने आयी थी कि महिलाएं 65 साल के बाद भी कामकाजी बनी रहना चाहती हैं, जबकि पुरुष 70 साल के बाद भी न सिर्फ कामकाजी बने रहना चाहते हैं बल्कि उन्हें इसकी चुनौतियां भी पसंद हैं.

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बहरहाल निष्कर्ष कुल मिलाकर यही हैं कि इस धारणा को दिलो दिमाग से निकाल दीजिये कि आराम से रहेंगे तो ज्यादा दिन जीयेंगे. न… बिल्कुल नहीं. आराम के चक्कर में पड़ेंगे तो जल्दी भी मरेंगे और तमाम तरह की परेशानियों के साथ भी जीयेगे. इसलिए सक्रिय और सेहतमंद रहना है तो हर दिन बेहद अनुशासन के साथ दिल लगाकर काम करिये और मानिये कि जिसने भी यह कहा था, सही कहा था, काम ही पूजा है.

कोरोना से बढ़ते मौत के आंकड़े

कोविड से अस्मय मौतों की गिनती बेहद बढ़ गई है और ये मौतें होती भी 10-15 दिन में हैं जब तक निकट संबंधी तैयार भी नहीं हो पाते. होने को उस तरह की मृत्यु कार एक्सीडैंटों या दूसरी अचानक होने वाली बिमारियों में भी होती है पर जिस तरह से बाढ़ आई है जिन में निकट संबंधी समझ ही नही पा रहे कि क्या हुआ. कैसे हुआ, पहली बार हो रहा है.

कोरोना वायरस के बावजूद ऐसे समय मृतक के निकट संबंधियों को साहस देना, समय देना एक सामाजिक कर्तव्य है. यह उतना ही जरूरी है जितना अस्पताल बनाना. यह वह औक्सीजन है जो मृतक के संबंधी, दोस्त, सहकर्मी परिवार, पत्नी, पति, बच्चों मां, पिता को दे सकते हैं. जहां घर बड़े कई सदस्य एक छत के नीचे रहते हैं वहां तो काम चल जाता है पर जहां मरने वाला किसी पत्नी, पति या बेटेबेटी की अकेला छोड़ जाए वहां एक बड़ी जिम्मेदारी दूसरों पर आ जाती है.

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आमतौर पर इसे दखल देना मान कर लोग मृतक के निकट के लोगों को अकेले दुख मनाने के लिए छोड़ देते हैं पर यह गलत है. मृतक के निकटतम लोग सांत्वना के शब्दों के साथ यह अहसास भी चाहते हैं कि कोई उन का इंतजार कर रहा है. कोई कभीकभार उन की ङ्क्षचता कर लेना है.

समयसमय पर खाने पर बुला लेना, खाना बना कर भेज देना, फालतू के समय बिताने चले जाना, बहुत छोटेमोटे काम कर देना ऐसी बातें हैं जो मृतक के खालीपन को भुलाने में बहुत काम आती हैं.
निकट की औरतों के लिए तो यह काम आसान भी है और सुखदायी भी. मृतक के परिवार का हाल जानना या उसे किसी काम में सहयोग देने में कतई कंजूसी न करें. जब तक यह न लगने लगे कि मृतक का निकटतय अकेलापन में हो गए भुलाना चाहता है, दूसरों की दखल नहीं.

यह काम इलाज से ज्यादा महत्व का है क्योंकि कोविड से हुई अचानक मृत्यु परिवारजनों को गहरा आघात दे जाती है जो एक कार एक्सीडैंट से भी ज्यादा होती है. इस में हर समय सवाल खड़े रहते है कि यदि सरकार ने अस्पताल बनवाए होते, यदि डाक्टर होते, यदि बैंटीलेटर होते, यदि पैसे की कमी नहीं होती, यदि औक्सीजन का सिलेंडर मिल गया तो शायद मृतक बच जाता, हमें यूं छोड़ कर नहीं जाता.

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इस दुख में आक्रोश भी शामिल है और असहायता भी. अपना जना हमारी आंखों के सामने तड़पता चला गया और हम कुछ नहीं कर पाए जबकि 4-5 दिन पहले तो वह इच्छा भला था. यह दुख वर्षों रहता है. इस दुख में हिस्सा बनने में कंजूसी न करें. आप अस्पताल नहीं बनवा सकते, डाक्टर पैदा नहीं कर सकते. नर्सें नहीं दे सकते वैंक्सीन नहीं खोज सकते पर जो बचे हैं उन्हें जीवन देते रह सकते हैं.

बढ़ती उम्र बांझपन का कारण तो नहीं बन जाएगी?

सवाल-

मेरी उम्र 34 साल है. अगले 5 सालों तक मैं और मेरे पति दोनों कैरियर पर फोकस करना चाहते हैं. कहीं बढ़ती उम्र बांझपन का कारण तो नहीं बन जाएगी और हम अपनी प्रजनन क्षमता कैसे सुरक्षित रख सकते हैं?

जवाब- 

34 साल महिलाओं के लिए प्रजनन क्षमता के हिसाब से एक महत्त्वपूर्ण उम्र है, क्योंकि हर महिला एक निश्चित संख्या में अंडों के साथ जन्म लेती है, जिसे ओवेरियन रिजर्व कहते हैं. उम्र के साथ यह रिजर्व घटता जाता है और 35 के बाद ये ओवेरियन रिजर्व तेजी से कम होने लगते हैं. इसलिए

35 के पहले ही फैमिली प्लानिंग कर लेनी चाहिए. बहुत देर नहीं करनी चाहिए. लेकिन आज कई लोग बहुत सारे कारणों से 35 के बाद फैमिली प्लानिंग करते हैं.

ऐसी स्थिति में हमारे पास कई विकल्प उपलब्ध हैं, जैसे एग फ्रीजिंग और ऐंब्रयो फ्रीजिंग आदि. अगर आप यह विकल्प नहीं चुनना चाहती हैं, तो एएमएच ब्लड टैस्ट करा लें, जिस से आप को पता चल जाएगा कि आप की प्रजनन क्षमता कैसी है और आप कितना डिले कर सकती हैं. इस के अलावा आप अपने खानपान पर ध्यान दें. अपनी डाइट में फल, सब्जियां, सूखे मेवे, खजूर आदि शामिल करें. ये सेहत के लिए जरूरी हैं और अंडाशय और गर्भाशय की सेहत के लिए भी महत्त्वपूर्ण हैं. अपनी प्रजनन क्षमता को बेहतर बनाए रखने के लिए शराब और धूम्रपान से दूर रहें, क्योंकि इन का सीधा प्रभाव अंडों और गर्भाशय पर पड़ता है.

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महिलाओं के जीवन में मां बनना सबसे बड़ा सुख माना जाता है लेकिन आजकल की आधुनिक जीवनशैली और अन्‍य कारणों की वजह से अब महिलाओं में बांझपन यानि इनफर्टिलिटी की समस्‍या बढ़ रही है. अगर आप भी बांझपन का शिकार हैं या इससे बचना चाहती हैं तो आइए जानते हैं औनलाइन हेल्थकेयर कंपनी myUpchar से इसके कारण, लक्षण और इलाज के बारे में.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- आधुनिक महिलाओं में बांझपन की बीमारी का कारण और निदान

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
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मोटापा बढ़ाती हैं हमारे बच्चों की ये 8 आदतें

मोटापा किसी के लिए भी परेशानी का सबब बन सकता है. मोटापा यानी बीमारी का घर. यही वजह है कि मोटापे से हर कोई दूर रहना चाहता है. अधिकतर लोगों का मानना है कि मोटापा महज खानपान से बढ़ता है. जबकि ऐसा कतई नहीं है. मोटापे के लिए हमारी जीवनशैली अहम भूमिका निभाती है. कहने का मतलब यह है कि हम दिनभर में ऐसी तमाम मासूम गलतियां करते हैं जिस कारण मोटापा हमें जकड़ लेता है. आइये इन मासूम गलतियों के बारे में जानते हैं.

1. बार-बार वजन देखना-

भला वजन नापने से मोटापे का क्या रिश्ता? मगर है. भला कैसे? दरअसल जब हम नियमित अपना वजन देखते हैं यदि उसमें जरा भी बदलाव न महसूस करें तो हमें तनाव होने लगता है. तनाव हमारे असंतुलित हारमोन के लिए जिम्मेदार होता है. यही नहीं तनाव के कारण मोटापा भी बढ़ता है. सो, बार बार वजन करके मोटापे को न्योता न दें.

2. बार-बार मीठा खाना-

हमारी बढ़ती क्रय शक्ति ने हमें खाने पीने का बेहद शौकीन बना दिया है. आॅफिस हो या घर, मीठे से हम दूर नहीं भागते. मीठे का जुबान पर जादू इस कदर हावी हो जाता है कि एक बार मीठा खाने के बाद बार-बार खाने का जी करता है. हमें यह पता भी होता है कि मीठा खाने से हम ज्यादा कैलोरीज कंज्यूम करते हैं, लेकिन मीठे के बारे में तो दिल है कि मानता ही नहीं. इस तरह बार-बार मीठा खाने से हमारे शरीर में अतिरिक्त वसा जमा होती है जो मोटापे को आमंत्रित करती है. मीठे के शौकीन होने के बावजूद कम खाएं. फिट रहेंगे.

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3. देर तक सोना-

बस पांच मिनट और…. हर घर में सुबह-सुबह इसी तरह के जुमले सुनने को मिलते हैं. सर्दी हो या गर्मी एक बार बिस्तर में घुस गये तो उससे बाहर निकलने का दिल नहीं करता. गर्मी में बिस्तर की गरमाहट बिस्तर से बाहर आने की कल्पना से परेशानी का कारण बनती है तो गर्मी में एसी की कूलिंग में दिल नहीं करता कि बिस्तर से निकलकर बाहर गर्मी में जायें. इस बात में कोई शक नहीं है कि स्वस्थ रहने के लिए पर्याप्त नींद लेना हमारी जरूरत है. लेकिन बदलती जीवनशैली ने शारीरिक गतिविधियों को काफी सीमित कर दिया है, ऐसे में देर सुबह तक सोना हमारे शरीर के बेडौल होने के लिए काफी हद तक जिम्मेदार होता है.

4. टीवी देखते हुए खाना-

टीवी देखते हुए हाथ में चिप्स, कुरकुरे, कुकीज जैसी न जाने कितनी चीजें होती हैं. जब मजा ज्यादा बढ़ाना हो तो कोल्ड ड्रिंक्स भी इसमें शामिल कर ली जाती है. लेकिन टीवी देखने के दौरान आपको यह नहीं पता चलता कि आप बैठे-बैठे कितनी ज्यादा कैलोरीज कंज्यूम कर गये हैं और ज्यादा कैलोरीज ही तो  मोटापे के लिए जिम्मेदार है.

5. हर रिसर्च पर अमल करना-

विभिन्न समाचार पत्रों और पत्र पत्रिकाओं में छपने वाली शोध जिनका संबंध हमारी खानपान और स्वास्थ्य से होता है, हमें खासतौर पर आकर्षित करते हैं और उन पर अमल करके हम स्वस्थ रहने के लिए क्या खाएं और क्या न खाएं इस पर अपना पूरा ध्यान लगा देते हैं. लेकिन हर शोध और हर रिसर्च को फालो करना न तो आसान होता है और न ही प्रैक्टिकल होता है. अब काॅफी को ही लें. इस बात में कोई शक की गुंजाइश नहीं है कि काॅफी से हमें कई तरह के फायदे होते हैं. काॅफी हमें चुस्ती और ताजगी देती है. यह टाइप-2 डायबिटीज से बचाती है. कुछ ऐसे कैंसर हैं जिनसे यह हमारा बचाव करती हैं. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप एक ही दिन में कई कप काॅफी पी जाएं. बार-बार काॅफी पीना यानी मोटापे को गले लगाना है.

6. नाश्ता न खाना-

लड़कियां की तो यह सोच ही होती है कि उन्हें नाश्ता नहीं करना चाहिए. सुबह-सुबह कुछ भी हैवी खाने से तो वो खासतौर पर परहेज बरतती हैं, उन्हें लगता है कि नाश्ता न खाने से वह पतली रहेंगी. लेकिन वे यह भूल जाती हैं कि नाश्ता न करने से पतली तो होंगी नहीं बल्कि कमजोर हो जाएंगी. इतना ही नहीं नाश्ता न करने से और भोजन के बीच लंबा अंतराल होने से भूख ज्यादा लगती है और दोपहर का लंच इतना हैवी हो जाता है कि उसमें कैलोरीज की मात्रा जरूरत से ज्यादा हो जाती है और ऐसे में मोटापा आना स्वाभाविक है. ध्यान रखें कि कमजोरी सिर्फ पतले लोगों में ही नहीं होती बल्कि मोटे लोगों में भी कमजोरी होती है.

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7. समूह में खाना-

जब भी हम समूह में खाते हैं, तो हम अच्छी चीजें ही खाते हैं, अच्छी का मतलब है फैट और ज्यादा कैलोरीज वाली चीजें. दूसरों के साथ खाने के समय हमें पता ही नहीं चलता कि हम भूख से ज्यादा खा जाते हैं. समूह में अकसर हम 35 से 40 फीसदी ज्यादा खा जाते हैं. हैरानी तब होती है जब हम 6-7 के समूह में तकरीबन 75 फीसदी ज्यादा खा जाते हैं. कहने का मतलब यह है कि समूह में खाना अकसर मोटापे से दोस्ती करना होता है. जबकि अकेले में हम उतना ही खाते हैं, जितने की हमें जरूरत होती है.

8. फास्ट फूड खाना-

फास्ट फूड देखते ही दिल कहता है ‘जी ललचाए, रहा न जाए’. बच्चों से लेकर जवान और वृद्ध तक फास्ट फूड के स्वाद के दीवाने होते हैं. फास्ट फूड का स्वाद उन्हें उनके स्वास्थ्य पर होने वाले नुकसान की बात सुनने की भी फुर्सत नहीं देता. इसके बावजूद वह इसे खाते हैं, हम सब जानते हैं कि फास्ट फूड शरीर के लिए कितना हानिकारक है. यह हमारे शरीर में कोलेस्ट्रोल के स्तर को बढ़ाता है. फास्ट फूड से शरीर में अतिरिक्त वसा जमा हो जाती है. मतलब यह कि फास्ट फूड से मोटापा भी फास्ट आता है. सो, इस मासूम सी दिखने वाली गलती से हर हाल में दूर रहें.

Mother’s Day Special: फैसला- भाग 1- बेटी के एक फैसले से टूटा मां का सपना

 मुल्क राज ग्रोवर

मेरे सामने आज ऐसी समस्या आ खड़ी हुई है, जिस का हल मुझे अभी  निकालना है. मम्मी मेरे कमरे में कई बार झांक कर जा चुकी हैं, लेकिन मैं अभी तक कोई फैसला नहीं कर पाई हूं. अगर मैं ने जल्दी अपना फैसला न सुनाया तो मम्मी आ कर कहेंगी, ‘नेहा, बेटे तुम ने क्या सोचा. देखो, वे लोग अमेरिका से आ कर हमारे फैसले के इंतजार में बैठे हुए हैं. वे चाहते हैं तुम समीर से शादी के लिए हां कर दो.’

हम एक बार रिश्ता खत्म कर चुके हैं, फिर दोबारा उसे जोड़ने की जिद क्यों. मम्मी सोचती हैं कि समीर अच्छा लड़का है, अमेरिका में जमाजमाया बिजनैस है. वे यह क्यों भूल जाती हैं कि समीर की मम्मी ने हमारी सगाई पर दिए गए तोहफों को ले कर उन्हें कैसी खरीखोटी सुनाई थी. क्या हम यह भी भूल गए हैं कि समीर के पापा होटल का बिल चुकाए बिना अमेरिका लौट गए थे और बिल पापा को चुकाना पड़ा था. इस तरह की  गलती को कोई कैसे अनदेखा कर सकता है. फिर इस बात की क्या गारंटी है कि आगे ऐसा कुछ नहीं दोहराया जाएगा. अगर कभी ऐसा हुआ तो उस का अंजाम क्या होगा? मैं कहीं की नहीं रहूंगी.

अपनी बेटी को अमेरिका भेजने के लालच में कोई और मांबाप समीर को बेटी दे देंगे. वरना तब तक मैं राहुल को खो चुकी होउंगी. मैं राहुल को खोना नहीं चाहती, मां.

पिछले साल इन्हीं दिनों समीर से मेरी सगाई हुई थी. मेरी एक आंटी अमेरिका से आईर् हुई थीं, उन्होंने यह रिश्ता बताया था. जब भी मेरी शादी की बात चलती, मम्मीपापा आह भर कर कहते, ‘काश, हमारी बेटी की शादी भी इंगलैंड या अमेरिका में हो जाती.’ पड़ोस में किसी के बेटे की शादी इंगलैंड से हुई है तो किसी की बेटी अमेरिका में सैटल्ड है. मेरे मम्मीपापा भी चाहते थे कि उन की बेटी भी विदेश में सैटल हो जाए, तब वे भी गर्व से कह सकेंगे कि उन की बेटी अमेरिका में रहती है, बहुत बड़ा बंगला है, बड़ीबड़ी गाडि़यां हैं और तो और घर में स्विमिंग पूल भी है.

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बस, इसी लालच के चलते जैसे ही अमेरिका में रहने वाले लड़के का औफर आंटी ने दिया, मम्मी इस रिश्ते के लिए आंटी पर जोर डालने लगीं. आंटी ने कहा कि जब वे अमेरिका लौटेंगी, तब बात कर लेंगी. लेकिन मम्मी को सब्र कहां. आंटी से जिद कर के अमेरिका फोन करवा दिया. वे लोग इंडिया आने वाले थे, लेकिन अभी उन का कार्यक्रम रीशैड्यूल हो रहा है. 2 दिन में आने की डेट बता देंगे.

मम्मी ने 2 दिन बाद ही फिर आंटी से अमेरिका फोन करवा दिया. वे लोग 21 तारीख को आ रहे हैं. इंडिया में 2 हफ्ते तक रुकेंगे. मम्मी ने गिनती कर ली, आज 7 तारीख है, 2 हफ्ते बाद इंडिया आ जाएंगे. मम्मी ने आंटी से कह दिया कि यहां बात पक्की हो जाए तो नेहा अमेरिका शिफ्ट हो जाएगी. हम भी सालछह महीने में चक्कर लगा लिया करेंगे.

तनवी आंटी ने बताया कि समीर अच्छा लड़का है. उन का वहां सालों से जमा हुआ बिजनैस है. शहर में 4 बड़े स्टोर हैं. आंटी ने बढ़चढ़ कर उन की तारीफ कर दी. मम्मी को यह सुन कर अच्छा लगा.

‘यहीं बात पक्की हो जाए तो नेहा की तरफ से हम निश्चिंत हो जाएंगे,’ मम्मी ने आंटी से कह दिया, ‘जैसे ही वे लोग इंडिया आएं, अगले दिन हमारे यहां चाय पर बुला लेना. नेहा को देख कर कोई कैसे मना कर सकता है. रंगरूप में कोईर् कमी नहीं, गोरीचिट्टी, स्लिम और स्मार्ट. हम शादी में कोई कसर छोड़ने वाले नहीं. फाइव स्टार होटल में शादी करेंगे. लेनदेन में भी कोई कमी नहीं रखेंगे.’

जिस दिन वे लोग इंडिया पहुंचे, आंटी ने अगले ही दिन उन्हें चाय पर बुला लिया. मम्मी ने मुझे अच्छी तरह तैयार होने के लिए पहले से ही कह दिया था. आंटी के कहने पर समीर और उस के मम्मीपापा हमारे घर पहुंचे. आंटी ने उन का परिचय करवाया, ‘मीट मिसेज शिखा, मिस्टर हरीश और इन का बेटा समीर.’

समीर की मम्मी ने आंटी को झट टोक दिया, ‘समीर नहीं तनवी, सैमी, इसे हिंदुस्तानी नाम बिलकुल पसंद नहीं.’

‘सैमी… औल राइट,’ शिखा ने जिस सख्ती से विरोध किया, तनवी आंटी ने उतनी ही सहजता से उन की बात मान ली.

‘सौरी मिसेज शिखा, मैं खास व्यक्ति से तो इंट्रोड्यूस करवाना भूल ही गई,‘ आंटी मुझे आते देख उठ खड़ी हुईं. ‘मीट द मोस्ट चार्मिंग गर्ल, नेहा.’ आंटी ने मेरी कमर में हाथ डाल कर बड़े दुलार से उन के आगे मुझे पेश कर दिया, जैसे मैं कोई बड़ी नायाब चीज हूं.

‘नेहा बड़ी होनहार लड़की है, वैरी स्मार्ट, ब्यूटीफुल ऐंड औफकौर्स वैरी वैल ऐजुकेटेड’, आंटी ने मेरे गुणों का बखान कर दिया.

आंटी हमारे बारे में अच्छी बातें बता कर उन्हें प्रभावित कर रही थीं. ‘मिसेज शिखा, नेहा अच्छे संस्कारों वाली लड़की है, इसे अपनी बहू बना लोगी तो हमेशा मेरी आभारी रहोगी.’

आंटी ने उन्हें आश्वस्त कर दिया. शादी में किसी प्रकार की कमी नहीं रहेगी. फाइव स्टार होटल में शादी होगी… वगैरा…वगैरा…

समीर की मम्मी स्वभाव से घमंडी लग रही थीं, अमेरिका में रहती हैं न, शायद इसीलिए. समीर के पापा ज्यादा नहीं बोले, बस पत्नी की ओर देखते रहे, जैसे कहना चाहते हों, ‘श्रीमतीजी, अब बोलिए.’

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समीर की मम्मी ने जब सारे घर का अच्छी तरह मुआयना कर लिया, तब मेरी मम्मी से कहा, ‘देखिए, मिसेज रजनी, हमारा इंडिया आने का मकसद समीर के लिए लड़की देखने का नहीं था. तनवी ने जब यह प्रपोजल दिया तो हम ने सोचा, देख लेते हैं. उस के कहने पर हम आप के घर आ गए. नेहा हमें पसंद है, लेकिन हम आप को जल्दी में कोई जवाब नहीं दे सकेंगे. हमें एक हफ्ते का समय चाहिए, वी विल टेक सम टाइम टु डिसाइड, आई होप यू कैन अंडरस्टैंड,’ कहते हुए वे खड़ी हो गईं और साथ ही समीर और उस के पापा भी खड़े हो गए.

‘ओके, मिसेज रजनी, नाइस टु मीट यू औल. तनवी तुम अमेरिका कब लौट रही हो?

‘अभी कुछ दिन यहीं इंडिया में हूं. मेरे भतीजे की शादी है. यहां बहुत से रिश्तेदार हैं. सब से मिलना है. आप अचानक उठ क्यों गए, बैठिए न. चाय तो लीजिए प्लीज,’ आंटी ने कहा.

‘नहीं तनवी, अब चलेंगे. तुम्हारे कहने पर आ गए… ओके…‘ बायबाय कर के वे तीनों बाहर निकल गए.

‘तनवी, लगता है उन्हें बात जमी नहीं. ठीक से चाय भी नहीं पी. मैं ने इतनी अच्छी तैयारी की थी,‘ मेरी मम्मी ने अपनी चिंता जताई.

‘भाभी, आप चिंता न करें,’ शिखा का व्यवहार ही ऐसा है. मैं उन से बात कर के पता लगाऊंगी.

5 दिन गुजर गए, उन की तरफ से कोई खबर नहीं आई. मम्मी आंटी को फोन करने की सोच रही थीं कि तभी आंटी आ पहुंचीं. ‘2 दिन के लिए कानपुर चली गई थी, छोटी बहन के पास. भाभी, मैं अभी मिसेज शिखा से बात कर के आई हूं. कह रही हैं शाम तक बताएंगे.’

शाम तक कोई खबर नहीं आई. रात 9 बजे आंटी का फोन आया. मेरी मम्मी खुशी से उछल पड़ीं. जरूर अच्छी खबर होगी.

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‘मिसेज शिखा ने कहा है कि हम सोच रहे हैं.’ आंटी ने बताया, ‘पौजिटिव हैं.’ अगले दिन मैसेज आ गया कि उन्हें रिश्ता मंजूर है.

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डायबिटीज पैरों का दुश्मन

आजकल जैसे जैसे डायबिटीज के मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है, वैसेवैसे ही उन के पैरों की दुर्दशा भी हो रही है. अपने देश में डायबिटीज के मरीजों के पैर कटने की प्रतिवर्ष की औसत दर अब 10% है यानी 100 डायबिटीज के मरीजों में से 10 मरीज हर साल अपने पैर खोते हैं. लोग यह नहीं जानते कि डायबिटीज के मरीजों को पैर कटने का खतरा बिना डायबिटीज वाले लोगों की तुलना में लगभग डेढ़ गुना ज्यादा होता है. लंबे समय से चल रही डायबिटीज, खून में शुगर की अनियंत्रित मात्रा, पेशाब में ऐल्ब्यूमिन का होना, आंखों की रोशनी का कम होना, पैरों में झनझनाहट की शिकायत रहना व खून की सप्लाई का कम होना आदि बातें डायबिटीज के मरीजों में पैर खोने का प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष कारण बनती हैं.

डायबिटीज शरीर के सारे अंगों को देरसवेर दबोच लेती है. दिल और दिमाग पर तो इस का खास असर होता है, पर टांगें भी इस की शिकार होती हैं.

लापरवाही बरतें

डायबिटीज के मरीज यह नहीं समझते कि डायबिटीज पैरों का सब से बड़ा दुश्मन है. और तो और लोग भ्रमवश यह भी समझते हैं कि डायबिटीज के मरीज के घास पर नंगे पैर चलने से शरीर के सभी अंगों, विशेषकर पैरों को बड़ा लाभ मिलता है. चलने से पैरों में अगर दर्द व झनझनाहट होती है, तो उस को नजरअंदाज कर दिया जाता है. लोग नहीं समझते कि डायबिटीज के मरीज द्वारा बरती गई लापरवाही उस के विकलांग होने का सीधा कारण बन सकती है. पैर की तो छोड़ो, लोग अपने खून में शुगर की मात्रा नियंत्रित करने को ले कर ही गंभीर नहीं होते. इस का परिणाम यह होता है कि खून में शुगर की अनियंत्रित मात्रा दिनोंदिन बढ़ती चली जाती है.

अगर चलने से पैरों में दर्द होता है और ज्यादा चलने से पीड़ा असहनीय हो जाती है तो डायबिटीज के मरीज को समझ लेना चाहिए कि उस के पैरों का स्वास्थ्य ठीक नहीं है. डायबिटीज में पैरों को सब से ज्यादा नुकसान 2 चीजें पहुंचाती हैं. एक तो न्यूरोपैथी और दूसरी टांगों की रक्त नली में जाने वाली शुद्ध खून की मात्रा में कमी होना.

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पैरों में शुद्ध खून की सप्लाई में कमी होने के 2 कारण होते हैं. एक तो टांगों की खून की नली के अंदर निरंतर चरबी व कैल्सियम जमा होना, जिस के कारण नली में सिकुड़न आ जाती है. इस का परिणाम यह होता है कि पैरों में जाने वाली शुद्ध खून की सप्लाई में बाधा पहुंचती है और अगर समय रहते रोकथाम न की गई तो खून की सप्लाई पूरी तरह से बंद हो जाती है. यह एक गंभीर अवस्था है.

दूसरा कारण एक विशेष किस्म की न्यूरोपैथी का होना होता है, जिसे मैडिकल भाषा में ए.एस.एन. (औटोनौमिक सिंपैथेटिक न्यूरोपैथी) कहते हैं. इस विशेष न्यूरोपैथी के कारण शुद्ध खून त्वचा में स्थित अपने गंतव्य स्थान तक नहीं पहुंच पाता है. इस की वजह शुद्ध खून की शौर्ट सर्किटिंग होना होता है. ठीक उसी तरह जैसे कोई रेल यात्री निर्धारित स्टेशन तक न पहुंच कर बीच रास्ते में ही वापसी की ट्रेन पकड़ने लगे.

टांगों में असहनीय पीड़ा

इस तरह से खून की सप्लाई में महत्त्वपूर्ण कमी आने पर टांगों में असहनीय दर्द होता है व त्वचा का रंग बदलने लगता है. डायबिटीज के मरीज को चाहिए कि वह ऐसी दशा में तुरंत किसी वैस्क्युलर सर्जन से परामर्श ले.

डायबिटीज के मरीज के पैरों को एक दूसरी न्यूरोपैथी (सेंसरी व मोटर) भी अपनी चपेट में ले लेती है, जिस के कारण पैरों में विशेषकर पैर के तलुओं व एड़ी में दर्द व झनझनाहट की समस्या खड़ी हो जाती है. होता यह है कि पैर की मांसपेशियां, न्यूरोपैथी की वजह से हलके

फालिज का शिकार हो जाती हैं, जिस से पैर की हड्डियों को आवश्यक आधार न मिलने के कारण उन पर अनावश्यक दबाव पड़ने लगता है. इस के साथ ही जोड़ों की क्रियाशीलता में भी कमी आ जाती है. इन सब समस्याओं का असर यह होता है कि पैरों में दर्द व झनझनाहट की शिकायत हमेशा बनी रहती है और चलने से और बढ़ जाती है.

डायबिटीज में पैर की त्वचा में कभीकभी जरूरत से ज्यादा खुश्की पैदा हो जाती है. इस खुश्की की वजह से त्वचा में फटन व चटकन होने लगती है और गड्ढे बन जाते हैं, जो पैरों में इन्फैक्शन पैदा होने का सबब बन जाते हैं.

डायबिटीज में त्वचा के खुश्क होने का बहुत बड़ा कारण डायबेटिक ओटौनौमिक न्यूरोपैथी का होना है, जिस की वजह से पसीने को पैदा करने वाली और त्वचा को चिकना बनाने वाली ग्रंथियां सुचारु रूप से काम करना बंद कर देती हैं. इसी खुश्की व फटन के कारण डायबिटीज के मरीजों के पैरों में जल्दी घाव बनते हैं और इन्फैक्शन अंदर तक पहुंच जाता है. इन्फैक्शन को नियंत्रण में लाने में बड़ी दिक्कत का सामना करना पड़ता है. कभीकभी तो इस में औपरेशन की जरूरत पड़ती है.

डायबिटीज में पैर की हड्डियों पर मांसपेशियों के कमजोर हो जाने से दबाव बढ़ जाता है. इस निरंतर पड़ने वाले दबाव के कारण त्वचा में दबाव वाले स्थानों पर गोखरू का निर्माण हो जाता है. इस गोखरू के कारण डायबिटीज के मरीज को ऐसा लगता है जैसे जूते के अंदर कोई कंकड़ रखा हुआ है. इस गोखरू की वजह से पैरों में दर्द और असहनीय हो जाता है और इन्फैक्शन होने की संभावना बहुत बढ़ जाती है.

इलाज

अगर डायबिटीज के मरीज को चलने से पैरों में दर्द होता है या रात में बिस्तर पर लेटने पर झनझनाहट की शिकायत रहती है तो वह किसी वैस्क्युलर सर्जन की सलाह ले. दर्द का कारण जानना बहुत जरूरी है. अकसर लोग इस तरह के रोग को गठिया या सियाटिका का दर्द समझ लेते हैं और हड्डी विशेषज्ञ से परामर्श लेने पहुंच जाते हैं. दर्द का कारण जानने के लिए कुछ विशेष जांचें. जैसे डाप्लर स्टडी व मल्टी स्लाइस सी.टी. ऐंजियोग्राफी का सहारा लेना पड़ता है. किसी ऐसे अस्पताल में जाएं जहां इन सब जांचों की सुविधा हो. इन विशेष जांचों के परिणाम के आधार पर ही आगे इलाज की दिशा का निर्धारण होता है.

डायबिटीज में पैरों को कटने से बचाने के लिए टांगों की बाईपास सर्जरी का सहारा लिया जाता है, जिस से पैरों को जाने वाली खून की सप्लाई को बढ़ाया जा सके. इस से घाव को भरने में मदद मिलती है. कुछ विशेष परिस्थितियों में ऐंजियोप्लास्टी का भी सहारा लेना पड़ता है.

जांघ के नीचे की जाने वाली ऐंजियोप्लास्टी व इंस्टैंटिंग ज्यादा सफल नहीं रहती, क्योंकि इस के परिणाम शुरुआती दिनों में लुभावने लगते हैं पर ज्यादा दिनों तक इस से मिलने वाला लाभ टिकाऊ नहीं रहता. इसलिए इलाज की दिशा निर्धारण करने में बहुत सोचसमझ कर काम करना पड़ता है. हमेशा ऐसे अस्पताल में जाएं जहां किसी अनुभवी वैस्क्युलर सर्जन की उपलब्धता हो और पैरों की बाईपास सर्जरी नियमित रूप से होती हो. पैरों की रक्त सप्लाई को बढ़ाने के लिए कुछ विशेष जरूरी दवाओं का भी सहारा लेना पड़ता है.

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पैर को बचाने की दिशा में किए गए सारे प्रयास असफल हो जाते हैं, अगर डायबिटीज के मरीज ने धूम्रपान व तंबाकू का सेवन पूर्णतया बंद नहीं किया. यह बात अच्छी तरह समझ लें कि सिगरेट की संख्या व तंबाकू की मात्रा कम कर देने से पैरों के स्वास्थ्य में कोई फर्क नहीं पड़ता इसलिए सिगरेट या तंबाकू मैं ने कम कर दी हैं की दलील दे कर अपनेआप को झुठलाएं नहीं. इस बात को समझें कि अगर धूम्रपान व तंबाकू से पूरी तरह से नाता नहीं तोड़ा तो टांगों की बाईपास सर्जरी फेल हो जाएगी.

इलाज को असफल करने में एक और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अगर आप ने 5-6 किलोमीटर चलने का नियम बरकरार नहीं रखा और कोलैस्ट्रौल, शुगर व वजन पर अंकुश नहीं लगाया तो देरसवेर पैर खोने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. चाहे कितनी भी अच्छी सर्जरी व इलाज हुआ हो.

डायबिटीज का मरीज कभी भी घर के अंदर व बाहर नंगे पांव न चले और जूते कभी भी बगैर मोजों के न पहने. डायबिटीज के मरीजों के लिए विशेष किस्म के जुराब व जूते आजकल उपलब्ध हैं, जिन का चुनाव अपने वैस्क्युलर सर्जन की सलाह पर करना चाहिए. इस के अलावा डायबिटीज के मरीज को चाहिए कि वह प्रतिदिन 5 से 6 किलोमीटर पैदल चले. नियमित चलना पैरों की शुद्ध खून की सप्लाई को बढ़ाने व न्यूरोपैथी का पैरों पर प्रभाव कम करने का सब से उत्तम उपाय है. पैरों को स्वच्छ व नमीरहित रखें और रक्त में हमेशा ग्लूकोज की मात्रा को नियंत्रण में रखें. रक्त में अनियंत्रित शुगर का होना भविष्य में पैर खोने का साफ संकेत है. इस के साथ ही टांगों की त्वचा को खुश्की व सूखेपन से बचाएं और गोखरू को पनपने न दें.

हर 3 महीने में अपने पैरों की जांच किसी वैस्क्युलर सर्जन से जरूर कराएं. अगर किसी भी अवस्था में पैरों में फफोले व लाल चकत्ते दिखें तो बगैर लापरवाही किए किसी वैस्क्युलर सर्जन से तुरंत परामर्श लें.

डा. के.के. पांडेय

सीनियर वैस्क्युलर एवं कार्डियो थोरेसिक सर्जन, इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल, नई दिल्ली.

टैनिंग गहरी हो जाए तो अपनाएं ये टिप्स

गरमियों का मौसम यानी छुट्टियों और मौजमस्ती का मौसम. उस में बीच पर मस्ती, फैशनेबल कपड़े और ट्रैंडी लुक, ये सब मिल कर आप की छुट्टियों को यादगार बना देते हैं, लेकिन समुद्र की लहरों के साथ देर तक खेलने का रोमांच और बीच पर किसी खूबसूरत शेड के नीचे रिलैक्स करने का आनंद तब सदमा पहुंचाता है, जब छुट्टियों के बाद सूरज की किरणों में लंबा समय बिताने के कारण शरीर पर जगहजगह डार्क पैचेज और टैन नजर आने लगता है. इस से न केवल गरमियों में स्लीवलेस, बैकलेस या फिर शौर्ट्स पहनने का मजा छिन जाता है, बल्कि दोबारा ऐसे ट्रिप में जाने का डर भी मन में समा जाता है.

आमतौर पर हर महिला अपनी रंगत और त्वचा को दागधब्बे रहित बनाए रखने के लिए काफी सावधानी बरतती है, लेकिन धूप में ज्यादा समय व्यतीत करने या इस तरह के ट्रिप के बाद आप की सारी मेहनत बेकार हो जाती है. त्वचा की गहरी रंगत या काले धब्बों के परिणामस्वरूप आप बीच या वाटर पार्क में मौजमस्ती का खयाल भी अपने मन से निकाल देती हैं. लेकिन अब आप को त्वचा पर पड़ने वाली सूर्य की घातक किरणों के असर के लिए चिंतित होने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि समुद्र किनारे मौजमस्ती के दौरान कुछ सावधानियों के साथ टैन को कम करने के कुछ उपाय अपना कर आप अगले साल बीच हौलीडेज पर जाने की तैयारी में जुट सकती हैं.

बरतें सावधानियां

सूरज की किरणों के संपर्क में आने से पहले सनस्क्रीन से अपनी त्वचा को सुरक्षा कवच तो दें पर इस के पहले यह जरूर जान लें कि आप के लिए कैसी सनस्क्रीन उचित रहेगी: 

सनस्क्रीन चुनाव: सनस्क्रीन और उस के महत्त्व के बारे में हम सभी जानते हैं, लेकिन क्या आप यह जानती हैं कि यूवीए और यूवीबी युक्त सनस्क्रीन प्रोटैक्शन के लिए सब से बेहतर होते हैं? सनस्क्रीन लेते वक्त उस पर लिखे तत्त्वों की सूची जरूर पढ़ें. विस्तृत सूची वाले सनस्क्रीन टैनिंग से बचाने के साथसाथ कई अन्य चीजों से भी सुरक्षा प्रदान करते हैं.

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इस्तेमाल: सनस्क्रीन का उचित रूप से प्रयोग भी आप को सन टैन से बचाता है. धूप में निकलने से कम से कम आधा घंटा पहले इसे त्वचा पर लगाएं. यह लगभग 2 घंटे तक आप की त्वचा को सुरक्षा प्रदान करता है. लेकिन हर 2 घंटे पर सनस्क्रीन लगाना जरूरी होता है.

क्या आप जानती हैं

एसपीएफ 20 और 90 में सुरक्षा के मामले में केवल 5% का अंतर है. भारतीय जलवायु के अनुसार एसपीएफ 20 यहां के लोगों की त्वचा की रक्षा के लिए पर्याप्त माना जाता है.

यूवीए कंपोनैंट्स सन टैन से प्रोटैक्ट करते हैं जबकि स्किन कैंसर से यूवीबी युक्त कंपोनैंट्स बचाते हैं. हालांकि भारतीय परिदृश्य में एसपीएफ (जो यूवीबी पैमाने वाला हो) पर्याप्त है.

यूवीए का पैमाना यूवीए रेटिंग द्वारा तय किया जाता है. 4 या 5 बूट स्टार रेटिंग टैन कंट्रोल के लिए पर्याप्त होती है. जैसे सनक्रौस यूवीए सनस्क्रीन जैल, ऐक्ने, यूवी जैल, फोटोस्टेबल सनस्क्रीन, फेसगार्ड सनस्क्रीन आदि.

जिन लोगों की त्वचा औयली और ऐक्ने प्रोन होती है, उन्हें जैल आधारित सनस्क्रीन जबकि रूखी त्वचा वालों को क्रीम या लोशन बेस्ड सनस्क्रीन का इस्तेमाल करना चाहिए. जैसे ऐंसोलर 60 सनस्क्रीन लोशन, रिवेला सनस्क्रीन और सनग्रेस टोटर सनस्क्रीन लोशन.

स्पोर्ट्स पर्सन द्वारा प्रयोग किए जाने वाले सनस्क्रीन में ज्यादा फिजिकल बैरियर्स होते हैं. जैसे जिंक औक्साइड जो आमतौर पर क्रिकेट मैच के दौरान खिलाडि़यों के चेहरे पर लगा नजर आता है. कुछ और सनस्क्रीन्स के नाम हैं, सनक्रौस सौफ्ट सनस्क्रीन क्रीम, मैट फिनिश वाला ला शील्ड सनस्क्रीन और टिंट इफैक्ट वाला रिवेला टिंट सनस्क्रीन.

टैन दूर करने के उपाय

अगर टैन ज्यादा खतरनाक स्थिति में आ जाता है तब उस का ट्रीटमैंट करवाने की जरूरत पड़ सकती है. इस के लिए माइक्रोडर्मब्रोशन, सुपरफेशियल कैमिकल पील्स और विभिन्न लेजर थेरैपी द्वारा ट्रीटमैंट किया जाता है, जिस से त्वचा निखरी और मुलायम नजर आती है. इस के अलावा विभिन्न प्रकार के क्रीम और सीरम्स के कौंबिनेशन भी टैन को रिमूव करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं.

आइए अब जानें कुछ खास उपायों के बारे में:

कैमिकल पील्स

यह एक ऐक्सफोलिएटिंग प्रक्रिया है, जो त्वचा की बेजान परत को हटाने का काम करती है. 2-3 सिटिंग्स के बाद आप की त्वचा की हलकी परत दिखने लग जाती है. यह प्रक्रिया बेहद आसान होती है और इस के लिए आप को सिर्फ 15-20 मिनटों के लिए त्वचा रोग विशेषज्ञ के पास जाना पड़ता है. हालांकि आप को इस की कितनी सिटिंग की जरूरत है, यह बात त्वचा पर हुई टैनिंग पर निर्भर करती है. इस प्रक्रिया में त्वचा की ऊपरी परत को ऐक्सफोलिएट करने के लिए एक कैमिकल का इस्तेमाल किया जाता है.

पील का इस्तेमाल

कौंप्लैक्शन यानी त्वचा की रंगत ठीक करने के लिए आमतौर पर ग्लायकोलिक पील, विट सी पील और लैक्टिक पील का इस्तेमाल किया जाता है. प्रक्रिया खत्म होने के बाद त्वचा पर टैनिंग का कोई भी निशान नहीं छूटता और आप की त्वचा तरोताजा और चमकदार हो जाती है. कैमिकल पील्स के बाद त्वचा को सन ऐक्सपोजर से प्रोटैक्शन देने की आवश्यकता होती है, क्योंकि इस प्रक्रिया के बाद त्वचा थोड़ी सैंसिटिव हो जाती है. इस के लिए ब्रौड स्पैक्ट्रम के साथ कम से कम 30 एसपीएफ वाले सनस्क्रीन का प्रयोग करें. साथ ही नियमित रूप से त्वचा में मौइश्चराइजर लगाएं, क्योंकि कैमिकल पील के बाद त्वचा को अतिरिक्त मौइश्चराइजर की आवश्यकता होती है.

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औक्सीजन फेशियल

इस प्रक्रिया में मैडिकल ग्रेड औक्सीजन का इस्तेमाल होता है. इस के तहत तेज दबाव के साथ कंप्रैस्ड औक्सीजन को पूरे चेहरे पर फैलाया जाता है. लेकिन इस से पहले औक्सीजन को विभिन्न प्रकार के पोषक तत्त्वों, विटामिंस और हाइड्रेटर्स से भरपूर बनाया जाता है जोकि त्वचा के लिए बेहद फायदेमंद होते हैं. इस के बाद हाई प्रैशर जैट से चेहरे पर औक्सीजन दिया जाता है. इस से औक्सीजन और पोषण का यह संयोजन बाहरी त्वचा के निचले हिस्से तक पहुंचता है. यह मिक्सचर त्वचा की कोशिकाओं की नवीनीकरण प्रक्रिया को तेज करता है और कोलेजन का उत्पादन बढ़ाता है जोकि त्वचा की कोशिकाओं को दुरुस्त रखने और उन के विकास में मददगार होता है.

माइक्रोडर्मब्रोशन

इस में मैकैनिकल ऐक्सफोलिएशन का प्रयोग कर कौर्नियम परत और डैड स्किन सैल्स को त्वचा से रिमूव किया जाता है. इस के बाद त्वचा पर नए और स्वस्थ स्किन सैल्स आते हैं जिस से त्वचा फ्रैश और ग्लोइंग नजर आती है. केवल एक ट्रीटमैंट के बाद त्वचा की स्मूदनैस को महसूस किया जा सकता है.

मैडी फेशियल प्रोसिजर

मैडी फेशियल प्रोसिजर में त्वचा को नमी देने के लिए कैमिकल पील्स और लेजर दोनों का इस्तेमाल किया जाता है, जिस से त्वचा निखरी और जवां बन जाती है. आजकल कई तरह के मैडी फेशियल उपलब्ध हैं, जो त्वचा की जरूरत के हिसाब से इस्तेमाल किए जाते हैं ताकि आप को मुंहासों, टैन, रूखेपन और दागधब्बों से नजात मिल सके. ये फेशियल कोलेजन बनने में मदद करते हैं, जिस से नई कोशिकाओं का विकास होता है और त्वचा चमकदार बनती है. इस फेशियल में 1 घंटे का समय लगता है और इस से मिलने वाली चमक लाजवाब होती है.

लेजर

अनईवेन स्किन टोन को लेजर थेरैपी द्वारा खूबसूरत बनाया जाता है. सामान्यतया यह दूसरे हाइपरपिग्मैंटेशन ट्रीटमैंट के समान ही काम करता है, जिस में त्वचा की बाहरी परत के डैड और ड्राई सैल्स को रिमूव कर के त्वचा की रंगत एकसमान करता है. इस थेरैपी का सब से बड़ा फायदा यह है कि प्रभावित क्षेत्र पर गहरा असर दिखाता है. डर्मैटोलौजिस्ट विभिन्न प्रकार की लेजर थेरैपी का प्रयोग करते हैं.

घरेलू उपाय

टैन रिमूव करने के कुछ घरेलू उपाय भी हैं:

मोनालिसा बाथ: मोनालिसा बाथ यानी दही से स्नान. दही में लैक्टिक ऐसिड पाया जाता है. अगर हफ्ते में 2 बार इस से स्नान किया जाए तो यह टैन को साफ कर देता है.

गहरे दाग: अगर टैनिंग बहुत ज्यादा और गहरी है, तो आप गैप फेस फेयरनैस या इंस्टा व्हाइटनिंग कौकटेल ट्रीटमैंट ले सकती हैं. यह न केवल आप की त्वचा को टैन मुक्त बनाएगा, बल्कि आप की त्वचा दमकने लगेगी.

आलू: आलू भी ऐंटी टैन सब्जी माना जाता है. आलू को मिक्सी में पीस लें और चेहरे व माथे के प्रभावित क्षेत्र पर लगाएं. 15 मिनट बाद ठंडे पानी से धो दें. बेहतर परिणाम के लिए ऐसा प्रतिदिन करें.

दही और बेसन: आवश्यक मात्रा में बेसन, नीबू का रस और दही मिल लें. इस पेस्ट को माथे गरदन और चेहरे पर लगाएं. 15 मिनट बाद ठंडे पानी से धो लें.

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स्क्रब: गरदन की टैन हटाने के लिए घर पर ही स्क्रब तैयार करें. इस के लिए नीबू, चीनी और तेल को मिला कर पेस्ट बनाएं और गरदन पर धीरेधीरे मलें.               

– डा. रोहित बत्रा , सर गंगाराम हौस्पिटल

Mother’s Day Special: प्रेग्नेंसी के आखिरी दिनों में भी फैशन का ख्याल रखती हैं ये एक्ट्रेस

बौलीवुड एक्ट्रेसेस अपने फैशन के लिए अक्सर सुर्खियां बटोरती हैं. वहीं बौलीवुड एक्ट्रेस करीना कपूर से लेकर लीजा हेडन तक प्रैग्नेंसी में अपने बेबी बंप को नए लुक में फ्लौंट करती नजर आती हैं, जिसे फैंस ट्राय करने की कोशिश करते नजर आती हैं. इसी बीच बौलीवुड एक्ट्रेस लीजा हेडन ने अपनी प्रैग्नेंसी के आखिरी महीने में कुछ लुक्स शेयर की हैं, जो प्रैग्नेंसी के लिए स्टाइलिश और कंफरटेबल हैं. आइए आपको दिखाते हैं लीजा हेडन के लुक्स…

प्रैग्नेंसी में ड्रेस भी है अच्छा औप्शन

प्रैग्नेंसी के आखिरी दिनों में फैशन की बात करें तो हर महिला अपना बेबी बंप अक्सर छिपाती हुई नजर आती हैं. लेकिन बौलीवुड एक्ट्रेसेस की बात करें तो वह अपने लुक्स अक्सर शेयर करती हैं, जो स्टाइलिश और कंफरटेबल होते हैं. वहीं हाल ही में लीजा हेडन ने फॉरेस्ट ग्रीन आउटफिट पहना था, जिसमें स्वीटहार्ट नेकलाइन के साथ ब्रॉड कट शोल्डर्स डिजाइन और फुल स्लीव्स पैटर्न उनके लुक को स्टाइलिश बना रहा था. वहीं कपड़े की बात करें तो यह काफी स्ट्रैचेबल है, जो कंफर्ट लेवल को बनाए रखता है.

 

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कंफर्ट के लिए ट्राय करें ये लुक

 

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लीजा हेडन ने अपने कई लुक फैंस के साथ शेयर किए हैं, जिनमें ब्लैक कलर का आउटफिट भी शामिल है. शॉर्ट लेंथ ड्रेस के साथ स्पगैटी स्लीव्स बस्ट लाइन को कंफर्ट के अनुसार डिजाइन किया गया है, जो लीजा के लुक को ट्रैंडी और कंफर्टेबल बना रहा है.

मिनी ड्रेस है बेस्ट औप्शन

 

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समर में प्रैग्नेंसी वेकेशन के लिए अगर आप कोई औप्शन तलाश कर रही हैं तो लीजा की ये वाइट कलर की कॉटन के कपड़े वाली मिनी ड्रैस काफी अच्छा औप्शन है. रफ्फल पैटर्न वाली लीजा की ये ड्रैस कंफर्ट लेवल के हिसाब से अच्छा औशन है.

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पार्टी के लिए परफेक्ट लुक

 

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अगर आप प्रैग्नेंसी के आखिरी दिनों में सिंपल लुक के साथ पार्टी का हिस्सा बनना चाहती हैं तो लीजा हेडन की ये प्लैन यैलो और क्रीम कौम्बिनेशन वाली ड्रैस काफी अच्छा औप्शन है. प्रैग्नेसी के आखिरी दिनों में ये लुक आपके कंफर्ट और स्टाइल का ख्याल रखेगा.

लॉकडाउन में अगर आपकी भी नौकरी चली गई है…तो फिर से पाने की ऐसे करें कोशिश

यह दोहराने की जरूरत नहीं है कि कोरोना वायरस के चलते दो महीने से ज्यादा समय तक रहे लॉकडाउन में हिंदुस्तान के करोड़ों लोगों की नौकरियां चली गई हैं. लेकिन यह अकेले हिंदुस्तान में ही नहीं हुआ. पूरी दुनिया बेरोजगारी के इस महासंकट से गुजर रही है. इसलिए आखिर कब तक हम इस बात का रोना रोते रहेंगे कि काश! कोरोना न आया होता (..और याद रखिए अभी ये गया नहीं,उल्टे बढ़ रहा है) तो ये होता, तो वो होता.

अब हमें इन रोनों गानों को पीछे छोड़कर आगे बढ़ना चाहिए. क्योंकि कोरोना अभी तक किस्सा नहीं हुआ और कब होगा ये बात कोई भी दावे से नहीं कह सकता. अतः अब जरूरी है कि हम अपने उन तमाम कौशलों को इकट्ठा करें कि ऐसे संकटकाल में नौकरी कैसे और कहां पायी जा सकती है.

इसमें कोई दो राय नहीं है कि जहां कोरोना की विभीषिका ने बहुत सारे क्षेत्रों में रोजगार के लिहाज से भयानक कहर ढाया है. मसलन- टूरिज्म, हाॅस्पिटैलिटी, फैशन, इंटरटेनमेंट आदि. वहीं कोरोना संकट के चलते कई क्षेत्रों में रोजगार की बढ़ोत्तरी भी हुई है. मसलन- हेल्थ केयर, हेल्थ टेक्नोलाॅजी, नियो बैंकिंग, फार्मा सेक्टर तथा पैक्ड ग्रोसरी इंडस्ट्रीज. करीब 70 दिन हिंदुस्तान पूरी तरह से लॉकडाउन में रहा है और अभी भी सीमित अर्थों में देश के दो तिहाई हिस्सों में लॉकडाउन लागू है. जाहिर है इन दिनों ज्यादातर काम लोगों ने अपने घरों से किया है. इसलिए अगर कहा जाए कि हिंदुस्तान में कोरोना के चलते एक झटके में वर्क फ्राम होम की कल्चर आ गई है तो इसमें कतई अतिश्योक्ति नहीं होगी.

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एक अनुमान के मुताबिक पिछले ढाई महीनों में अगर बड़े पैमाने पर वर्क फ्राम होम नहीं हुआ होता तो करीब 80,000 करोड़ रुपये का अर्थव्यवस्था को और नुकसान हुआ होता. अगर यही कोरोना संकट आज के 30 साल पहले आया होता, जब देश में वर्क फ्राम होम का चलन नहीं था, तो आर्थिक हालात आज से कहीं ज्यादा बिगड़े होते.

कहने की बात यह है कि अब वर्क फ्राम होम हमारी वर्किंग कल्चर से नहीं जाने वाला. इसलिए अगर अब तक आपको वर्क फ्राम होम करने में रूचि नहीं रही या आप इसमें दक्ष नहीं रहे तो अब अपनी ऐसी मर्जी या कमी को आगे मत बढ़ने दीजिए. तुरंत घर से काम करने की कुशलता हासिल करिये और उससे भी ज्यादा जरूरी यह है कि अगर घर से काम करने के लिए जरूरी सुविधा आपके पास नहीं है यानी घर में डेस्कटौप या लैपटौप नहीं है, 4जी का मोबाइल नहीं है और ब्राड बैंड कनेक्शन नहीं है तो मान लीजिए आप बहुत पिछड़े हुए हैं, जितना जल्दी हो सके इन सुविधाओं को हासिल करिये, जिससे घर में काम करने की स्थितियां बन सकें. चूंकि इस समय देश ही नहीं पूरी दुनिया में बड़े पैमाने पर लोग बेरोजगार हैं, इसलिए लॉकडाउन के बाद अनलौक हुए टाइम में अगर नौकरी चाहिए तो कई तरह की कोशिशें एक साथ करनी होगीं. मसलन-

– सबसे पहले तो अपने तमाम संपर्कों में यह जानने की कोशिश करिये कि क्या कहीं कोई ऐसी नौकरी है, जिसे आप कर सकते हैं? जान पहचान की जगहों में इस समय नौकरी ढूंढ़ने को इसलिए प्राथमिकता देनी चाहिए; क्योंकि नौकरियां कम है और चाहने वाले बहुत बहुत ज्यादा हैं. ऐसे में अजनबी लोगों से ज्यादा जान पहचान वालों को नौकरी मिलने की उम्मीद रहेगी.

– जहां पहले काम कर चुके हैं और वहां कोई जगह खाली है, यदि यह बात आपको पता है तो बिना देर किये इसके लिए आवेदन कर दीजिए और व्यक्तिगत रूप से जाकर मिल भी लीजिए. क्योंकि उन्हें भी आपको नौकरी देने में सहूलियत रहेगी.

– भले दिन रात अखबारों और दूसरी मीडिया में आपको यह पढ़ने, सुनने और देखने में मिल रहा हो कि नौकरियों का बहुत अभाव है, कहीं नौकरियां नहीं बचीं, बावजूद इसके आप अपनी तरफ से नौकरी ढूंढ़ने की कोशिश न बंद करें. कई बार सुनी, देखी और पढ़ी बातों से हकीकत बिल्कुल भिन्न होती है.

– चूंकि इन दिनों नौकरियों की जरूरत ही नहीं, नौकरी ढूंढ़ने के तौर तरीके और इसके लिए मिलने जुलने की पारंपरिक तरीके में काफी बदलाव आ गये हैं. इसलिए बहुत संभव है कि आपको बजाय नियोक्ता के सामने बैठकर वीडियो इंटरव्यू देना पड़े. इसलिए जितना जल्दी हो सके, इन नयी तकनीकों से खुद को लैस कर लें. क्योंकि बिना नयी तकनीक की जानकारी के अब काम मिलना बहुत मुश्किल होगा.

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– यूं तो हमेशा उसी क्षेत्र में नौकरी को प्राथमिकता देनी चाहिए, जिस क्षेत्र की आपको जानकारी हो, जिस क्षेत्र में आपकी विशेषज्ञता हो या जिस क्षेत्र की आप बुनियादी कुशलता रखते हों. लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि नौकरी के अकाल में भी इस तरह की रिजिडिटी दिखाएं. अगर नौकरी नहीं मिल रही और यह हमारे अस्तित्व के लिए संकट बन रही है तो अपने ही क्षेत्र के अन्य विभागों में भी नौकरी की जा सकती है. यही नहीं अगर किसी खास तकनीकी दक्षता का सवाल नहीं है तो बिल्कुल अलग क्षेत्र में भी नौकरी की जा सकती है, जिस क्षेत्र की अभी तक आपको एबीसीडी तक का पता न हो. अगर ऐसी स्थिति हो तो निःसंकोच आगे बढ़ें.

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