इलैक्ट्रोनिक डिवाइसों से बचने के लिए सनस्क्रीन लगाना चाहिए? 

सवाल-

आज हम तमाम डिवाइसों से घिरे हुए हैं. घर में रहने के दौरान भी हम लैपटौप, मोबाइल फोन, टैबलेट आदि का प्रयोग करते हैं. इनसे निकलने वाली हानिकारक विकिरणों का दुष्प्रभाव हमारी त्वचा पर पड़ती है. क्या हमें इन से बचने के लिए घर में भी सनस्क्रीन लगाना चाहिए?

जवाब-

जी हां, घर से बाहर हों या घर के अंदर, दोनों ही स्थितियों में स्किन की देखभाल जरूरी है. इस दुष्प्रभाव को कुछ हद तक सीमित रखने के लिए अपने डिजिटल उपकरणों पर ब्लू लाइट्स शील्ड का प्रयोग करें और घर के अंदर रहने के दौरान भी चेहरे पर सनस्क्रीन लगाएं. अपनी त्वचा की देखभाल के लिए केयोलिन क्ले और ऐलोवेरा युक्त सनस्क्रीन का प्रयोग करें जो त्वचा से गंदगी को दूर करता है.यूवीए और यूवीबी किरणों से त्वचा की सुरक्षा के लिए और्गेनिक सनस्क्रीन का प्रयोग किया जा सकता है. घर में रहने के दौरान भी हर 2-3 घंटे बाद चेहरे को साफ कर इसे दोबारा अप्लाई करें.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
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यह भेदभाव क्यों

गुजरात, जी महान गुजरात जहां गांधी हुए थे और जो आज आर्थिक व राजनीतिक सत्ता का केंद्र है, औरतों से कैसे व्यवहार करता है, इस का एक नमूना एक औरत का 6ठे बच्चे के पैदा होने से मिलता है, जिस ने नसबंदी करा रखी थी.

कलोल जिले के थेरिसा गांव की सुनीता ठाकोर ने फरवरी, 2007 में नसबंदी कराई थी. उसे आश्चर्य हुआ कि नसबंदी के बाद भी उस का एक अपंग बच्चा हो गया.

इस औरत ने प्राइमरी हैल्थ सैंटर के साथ लड़ने की ठानी और अदालत से उसे लंबी सुनवाइयों और तारीखों के बाद ₹3-4 लाख का मुआवजा भी मिल गया.

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सवाल मुआवजे का या प्राइमरी हैल्थ सैंटर की लापरवाही का तो है ही, सब से बड़ा सवाल है कि पति ने यह औपरेशन क्यों नहीं कराया? सारे देश में यह हो रहा है कि नसबंदी अगर कराई जाती है तो औरतों की कराई जा रही है, क्योंकि मर्द अपने को नपुंसक कहलाने को तैयार नहीं है.

औरतों की नसबंदी को लौटाया नहीं जा सकता और कठिन होती है पर फिर भी होती है, क्योंकि मर्द अपने को कमजोर कहलवाना नहीं चाहते. बहुत मर्दों के दिमाग में होता है कि कहीं पत्नी ने तलाक ले लिया या मर गई तो क्या होगा. दूसरी से वे बच्चे पैदा नहीं कर सकेंगे. वे औरत को मजबूर करते हैं. औरतें जानती हैं कि एक बच्चे को पालना और संभालना कितना कठिन और खर्चीला है? इसलिए वे यह अन्याय भी सह लेती हैं.

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इस मामले में जिस भी अदालत ने औरत को मुआवजा दिलाया उसे पति पर भी फाइन लगाना चाहिए था ताकि पत्नियों को बदला मिल सके कि वे कभी अकेली औपरेशन न कराएं. हमेशा पतिपत्नी दोनों का औपरेशन हो. बच्चे पैदा करने का जिम्मा पति का भी उतना ही है जितना पत्नी का. अनचाहे बच्चों को रोकने की जिम्मेदारी दोनों को एकसाथ लेनी चाहिए.

Winter special: घर पर आसानी से बनाएं हैल्दी मल्टीग्रेन नाचोज

बच्चों को पूरे दिन कुछ ऐसा खाने को चाहिए जिसे वे चलते फिरते खा सकें. चिप्स, पॉपकॉर्न, कुरकुरे और नाचोज ऐसे ही छुटपुट खाद्य पदार्थ हैं ये बच्चों के फेवरेट भी होते हैं. बाजार में मिलने वाले ये पैकेट्स महंगे तो होते ही हैं साथ ही पौष्टिकता भी न के बराबर होती है तो आइए क्यों न इन्हें घर पर ही बना लिया जाए जिससे ये सस्ते तो पड़ेंगे ही साथ ही बच्चे भी शुद्ध, ताजे और पौष्टिक नाचोज खा सकेंगे. तो आइए जानते हैं कि इन्हें कैसे बनाया जाता है-

मल्टीग्रेन नाचोज

कितने लोंगो के लिए 4
बनने में लगने वाला समय 40 मिनट
मील टाइप वेज

सामग्री (नाचोज के लिए)

मक्के का आटा 1/2कप
मैदा 1/4 कप
गेहूं का आटा 1/2कप
नमक स्वादानुसार
हल्दी पाउडर 1/4टीस्पून
अदरक, लहसुन पेस्ट 1/2 टीस्पून
वेनेगर 1 टीस्पून
सामग्री (नाचोज मसाले के लिए)
जीरा 1 टेबलस्पून
साबुत धनिया 1 टेबलस्पून
नमक 1 टीस्पून
कश्मीरी लाल मिर्च 1 टेबलस्पून
अमचूर पाउडर 1/2 टीस्पून
सूखा ओरेगेनो 1 टीस्पून

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विधि

नाचोज का मसाला तैयार करने के लिए जीरा और धनिया को मंदी आंच पर हल्का सुनहरा भून लें. ठंडा हो जाने पर इसमें नमक, ओरेगेनो, कश्मीरी लाल मिर्च मिलाकर ग्राइंड कर लें. मक्के के आटे को हल्का सा भूनकर एक बाउल में निकाल लें. अब इसमें गेहूं का आटा, मैदा, अदरक, लहसुन पेस्ट, नमक, हल्दी और वेनेगर मिलाकर पानी की सहायता से कड़ा गूंथकर 30 मिनट के लिए सूती कपड़े से ढककर रख दें. 30 मिनट के बाद तैयार आटे से बड़ी सी रोटी बनाकर कांटे से छेद कर लें. अब इन रोटियों को तवे पर दोनों तरफ से हल्का सा सेंक लें. इसी प्रकार सारी रोटियां तैयार करें. अब रोटियों को नाचोज के आकार में तिकोना काटकर गर्म तेल में सुनहरा होने तक तलकर बटर पेपर पर निकाल लें. मसाला मिलाकर एयरटाइट जार में भरकर रखें. किसी भी डिप, टोमेटो सॉस या कटे खीरा, टमाटर और प्याज के साथ सर्व करें.

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लड़कियां कहां करती हैं खर्च

पहनावे में ब्रैंडेड जींस, नाभि दिखाता टौप, पांव में डै्रस से मैच करती जूतियां, कानों में बड़े डैंगलर्स, होंठों पर रंग बदलती लिपस्टिक, हाथ में महंगा लेटैस्ट डिजाइन का मोबाइल और फिटनैस निखारने के लिए स्लीमिंग सैंटर, ब्यूटीपार्लर और फिटनैस सैंटर की मैंबरशिप. एक मौड कहलाने वाली लड़की का यह साजोसामान है. लुक्स निखारने के लिए अब छोटे शहरों की लड़कियां भी भारीभरकम खर्च करने लगी हैं. ऐसे खर्च के लिए लड़कियां हर माह कम से कम 6 से 8 हजार रुपए तक का बजट रखती हैं.

अब स्कूल और कालेज के समय से ही ये खर्च बढ़ रहे हैं. नौकरी करने वाली लड़कियों के लिए तो ऐसे खर्च उन की मजबूरी है. निजी नौकरियों में लड़कियों की बढ़ती मांग के कारण यह जरूरी भी हो गया है. पहले नौकरी करने वाली लड़की अपने काम को ही प्राथमिकता देती थी. आज के समय में उस को काम के साथसाथ खुद को प्रैजेंटेबल रखना होता है जिस के लिए उसे टिपटौप बन कर रहना पड़ता है.

कई विज्ञापन और फैशन शो में काम कर रही कानपुर की रहने वाली शिखा शुक्ला कहती हैं, ‘‘टिपटौप रहना समय और काम दोनों की जरूरत बन गया है. अब इस के बिना काम नहीं चलता है. अपने लुक्स को निखारने के लिए सब से ज्यादा खर्च कौस्मैटिक पर करना पड़ता है. कौस्मैटिक जितनी अच्छी क्वालिटी का होता है उतना ही महंगा होता है. यह महंगा इसलिए इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि खराब कौस्मैटिक का त्वचा पर बुरा प्रभाव पड़ता है.’’ शिखा मानती है, ‘‘हर माह कम से कम 2 बार लड़की को ब्यूटीपार्लर जरूर जाना पड़ता है जहां पर उस की पूरी बौडी का ट्रीटमैंट एकसाथ हो जाए.’’

जागरूकता जरूरी

लड़कियों के पहनावे को ले कर अब परिवार पहले की तरह से टीकाटिप्पणी नहीं करते हैं. वे लड़कियों की जरूरत को देखते हुए सहयोग भी कर करते हैं. आज के समय में औनलाइन शौपिंग के जरिए लड़कियां किफायती शौपिंग करने लगी हैं. ऐसे में वे अपने बजट के हिसाब से स्मार्ट शौपिंग करती हैं.

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स्किन रोग विशेषज्ञ डाक्टर पंकज गुप्ता कहते हैं, ‘‘सुंदर दिखने के लिए टीनएज से ही जो लड़कियां कौस्मैटिक का जरूरत से ज्यादा प्रयोग कर रही हैं वह ठीक नहीं है. इस का स्किन पर खराब प्रभाव पड़ता है. कई बार स्किन इतनी खराब हो जाती है कि बाद में वह किसी भी तरह से ठीक नहीं हो पाती. ऐसे में लड़कियों को यह बात समझने की जरूरत है.’’

लड़कियों के खर्च पर देखने वाली बात यह है भी होती है कि अगर लड़की जरूरत से ज्यादा खर्च कर रही हो तो उस को देखें और जानने की कोशिश करें कि वे इतना सारा खर्च कैसे कर रही हैं. आज के दौर में लड़कियों का शोषण करने वाले भी कम नहीं हैं. लालच दे कर लोग लड़कियों को फंसा लेते हैं जो बाद में बहुत नुकसानदेय हो जाता है. अभी भी समाज लड़कियों को ले कर बहुत उदार नहीं हैं. लड़कियों को हर फैसला बहुत सोचसमझ कर करना चाहिए. बड़ी होती बेटी को अच्छाबुरा समझाने का काम एक समझदार मां का होता है. लड़की को अच्छेबुरे का पता चल जाता है तो वह आने वाली परेशानियों से बच सकती है.

शुरुआत में लड़कियों को यह समझ नहीं आता कि कोई उन की मदद क्यों कर रहा? उन को मुफ्त में गिफ्ट क्यों दे रहा? जब एक बार लड़की उन के जाल में फंस जाती है तो वे उन का शोषण करते हैं. लड़कियों को यह बात समझनी जरूरी है कि कोई भी काम मुफ्त में नहीं होता है. ऐसे में कोई गिफ्ट उन को भारी न पड़े, यह सोचना जरूरी है.

कभी भी अपने पेरैंट्स से कोई बात न छिपाएं. लड़कियों के लिए मुसीबत तभी से शुरू होती है जब वे अपने पेरैंट्स से बात छिपाने लगती हैं. अपने ऊपर खर्च करें पर खर्च के लिए ऐसे किसी की मदद न लें जो बाद में मुसीबत बन जाए.

कहां कैसे खर्च

प्रति माह करती हैं लड़कियां  (रुपए में)

मोबाइल फोन  500

कौस्मैटिक    500-1,000

ब्यूटीपार्लर    2,000-3,000

स्लिमिंग सैंटर 1,000-2,000

पोशाक और एसेसरीज 1,000-2,000

कन्वैंस 600-800

सुंदरता के साथ फिटनैस जरूरी

आप सुंदर और ग्लैमरस कपडे़ तभी पहन सकते हैं जब आप की बौडी का शेप ठीक रहे. इस के लिए फिटनैंस सैंटर या जिम जाना बहुत जरूरी होता है. अच्छे फिटनैस सैंटर की सालाना सदस्यता लेना ठीक रहता है. सालाना सदस्यता से यह काम काफी किफायती दाम में पड़ जाता है. आज के जमाने में अपने को दूसरे पर भारी साबित करने के लिए गुड लुक्स और स्मार्ट होना जरूरी होता है. इस के लिए अगर कुछ पैसा खर्च करना पड़ता है तो कोई खराब बात नहीं है.

आखिर लड़कियां नौकरी कर के जो पैसा कमा रही हैं उसे अपने में क्यों न खर्च करें. आप हर तरह के फैशनेबल कपडे़ तभी पहन सकती हैं जब आप की बौड़ी फिट हो.

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कई सौंदर्य प्रतियोगिताएं जीत चुकी अनीता सिंह कहती हैं, ‘‘लड़कियों को पहले अपने खर्चो के लिए घर में पैसा मांगना पड़ता था जिस से उन को घर वालों की डांट भी सहनी पड़ती थी. अब लड़कियां अपने पैसे खर्च कर रही हैं तो घर के लोग भी ज्यादा टीकाटिप्पणी नहीं करते हैं. लड़कियां सब से ज्यादा खर्च अपने मोबाइल और पोशाकों पर करती हैं. पहले लोग सिंपल लिविंग और हाई थिंकिंग पर चलते थे पर आज हाई लिविंग और हाई थिंकिंग की बात होती है. मोबाइल अब केवल बात करने के लिए ही नहीं रह गए, उन में तमाम अच्छे फीचर्स आ गए हैं. ऐसे में हर साल नया मोबाइल जरूरी हो गया है.’’

जो लड़कियां पढ़ रही हैं उन की भी पूरी कोशिश रहती है कि वह पार्टटाइम जौब कर अपने खर्च पूरा कर सकें. इस तरह की लड़कियां भी चाहती हैं कि उन का पहनावा ऐसा रहे जिस से लोग उन को नोटिस करें. लड़कियों को एक ही चीज रोज देखना और पहनना पसंद नहीं होता है. वे बदलाव चाहती हैं. बीकौम कर चुकी एक निजी कंपनी में काम कर रहीं स्वाति गुप्ता इस बदलाव को ही पर्सनल ग्रूमिंग मानती हैं. लुक्स निखारने में लगीं ये लड़कियां पहनावे, मेकअप और कौस्मैटिक के अलावा बातचीत करने और चलनेफिरने में भी बदलाव लाना चाहती हैं. लड़कियां मानती हैं कि जमाना आगे बढ़ रहा है. कुछ जरा सी कमी रह जाती है तो लगता है जैसे कहीं पिछड़ापन न रह जाए. ऐसे में वे जमाने के साथ कदम से कदम मिला कर चलना चाहती हैं.

फैशन का बदलता ट्रैंड

लुक्स निखारने में जुटीं लड़कियों का मानना है कि इस के लिए पहरावा आधुनिक होना बहुत जरूरी होता है. लेटैस्ट ट्रैंड के बारे में जानकारी देते हुए अभिनेत्री गरिमा रस्तोगी कहती हैं, ‘‘नए टैं्रड में स्कर्ट का जोर तेजी पर है. दूसरे नंबर पर जींस पैंट और फिर सब से नीचे डिजाइनर सलवार सूट का नंबर आता है. अब स्कर्ट के तमाम ऐसे डिजाइन सामने आ गए हैं जिन को पहन कर औफिस भी जाया जा सकता है. शहर में कहीं और जाना हो तो भी जा सकते हैं. स्कर्ट में जो फैब्रिक इस्तेमाल किया जाता है वह भी कुछ इस तरह का होता है कि जो आप को कूल और स्मार्ट दिखाता है. स्कर्ट ऐसा पहनावा है जिस को आराम से पार्टी में भी पहना जा सकता है. कई रंगों के स्कर्ट काफी सस्ते भी पड़ते हैं.’’

अपने लुक्स को निखारने के लिए लड़कियां जो खर्च करती हैं उस के लिए वे तमाम तरह से इंतजाम करती हैं. ज्यादातर लड़कियां पार्टटाइम जौब करती हैं. कुछ बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती हैं. कुछ लड़कियां नौकरी करती हैं. कुछ लड़कियां अपने जेबखर्च में कटौती कर के लुक्स को निखारने लायक पैसे जमा करती हैं. अगर पैसे कम हों तो खर्च को कम करने के तरीके लड़कियों को खूब आते हैं. लड़कियों के इस तरह लुक्स निखारने में होने वाले खर्चों पर उन के घरपरिवार के लोग ज्यादा टीकाटिप्पणी नहीं करते हैं. कई मातापिता ऐसे भी हैं जो जरूरत के हिसाब से खर्च करने के लिए पैसा भी देते हैं.

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लेन नं 5: क्या कोई कर पाया समस्या का समाधान

लेखिका – सुधा थपलियाल 

पानी बरसने के कारण पूरी गली पानी से भरी हुई थी. गली में कहींकहीं ईंटें पड़ी हुई थीं. निर्मलजी एक हाथ में सब्जी का थैला पकड़े व दूसरे में छाता संभाले उन्हीं पर चलने की कोशिश कर रहे थे कि अचानक तेजी से आती मोटरसाइकिल पर सवार 2 लड़कों ने उन के सारे प्रयास पर पानी फेर दिया.

निर्मलजी चिल्लाए, ‘‘दिखाई नहीं देता क्या?’’

लड़के अभद्रता से हंसते हुए निकल गए.

‘‘मैं अभी गली के सभी लोगों से मिलता हूं, सारे के सारे सोए हुए हैं,’’ निर्मलजी गुस्से से बुदबुदाए.

लेन नं. 5 में संभ्रांत लोगों का निवास था. वे न केवल उच्च शिक्षित थे वरन उच्च पदों पर भी आसीन थे. कुछ तो विदेशों में भी सर्विस कर चुके थे. पिछले वर्ष सीवर लाइन डालने के लिए गली खोदी गई थी. सीवर लाइन पड़े भी अरसा हो गया था, मगर गली अब भी ऊबड़खाबड़ पड़ी थी. जगहजगह ईंटों व मिट्टी के ढेर लगे थे. पानी का सही निकास न होने के कारण बरसात के दिनों में गली पानी से लगभग भर जाती थी, जिस कारण चलना मुश्किल हो जाता था.

‘‘आइएआइए निर्मलजी,’’ घंटी बजने पर उन्हें दरवाजे पर खड़ा देख सुभाषजी बोले.

‘‘अरे सुनती हो, 1 कप चाय भेजना, निर्मलजी आए हैं,’’ सुभाषजी पत्नी अनीता को आवाज दे कर निर्मलजी की ओर उन्मुख हो कर बोले, ‘‘कहिए, आज कैसे आने का कष्ट किया?’’

‘‘आप तो गली का हाल देख ही रहे हैं,’’ सुबह हुए हादसे का असर अभी भी दिमाग पर छाया हुआ था. अत: जबान पर उस की कड़वाहट आ ही गई.

‘‘मैं भी परेशान हूं. 1 साल से गली का यह हाल है. पहले खुदी तब परेशान हुए, अब बन नहीं रही है,’’ सुभाषजी भी अपनी भड़ास निकालते हुए बोले.

‘‘ऐसा है, सभी लेन के लोगों को बुला कर मीटिंग करते हैं, नगर निगम के औफिस जा कर शिकायत दर्ज कराते हैं, तभी कुछ होगा.’’

‘‘आप बिलकुल सही कह रहे हैं,’’ निर्मलजी की बात का समर्थन करते हुए सुभाषजी बोले.

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‘‘क्या कह रहे थे निर्मलजी?’’ उन के जाने के बाद सुभाषजी की पत्नी अनीता ने पूछा.

‘‘वही गली के बारे में कह रहे थे,’’ अखबार में नजर गड़ाए सुभाषजी बोले.

‘‘आप उन से कहते कि पहले अपने नौकर को तो समझाएं, जो रोज कूड़ा हमारे घर के सामने फेंक जाता है,’’ अनीताजी ने भी अपनी भड़ास निकालते हुए कहा.

‘‘तुम फिर शुरू हो गईं,’’ झुंझला कर अखबार एक तरफ फेंक कर सुभाषजी बोले.

‘‘क्या बात है, कर्नल विक्रमजी नहीं दिखाई दे रहे हैं,’’ शाम को मीटिंग के लिए एकत्र होने पर उन्हें उपस्थित न देख कर निर्मलजी व्यंग्य से बोले.

‘‘कहीं उठा रहे होंगे रास्ते से कूड़ा,’’ सुभाषजी ने कहा तो सभी ठहाका लगा कर हंस पड़े.

‘‘अरे भई, उन से कहो यह कैंट नहीं है, जहां सिर्फ आर्मी के लोग रहते हैं. यहां सभी का आनाजाना लगा रहता है. कितनी भी कोशिश कर लो, यह लेन ऐसी ही गंदी रहेगी.’’

मीटिंग शुरू हुई. सभी लोग न केवल गली के हाल से परेशान थे वरन एकदूसरे के व्यवहार से भी क्षुब्ध थे. कोई किसी के पानी के अपने गेट के पास इकट्ठा होने से परेशान था, कोई गली गंदी करने के कारण से, कोई किसी के आचरण से, कोई बच्चों की गेंद बारबार घर आने से, तो कोई अपने गेट के पास किसी की गाड़ी की पार्किंग से.

‘‘मैं तो रोज एक शिकायती पत्र ईमेल करता हूं, मेयर साहब को,’’ विदेश में 10 वर्ष रह चुके दिनेशजी बोले.

उन पर विदेशी अनुभव पूरी तरह छाया हुआ था, अपनी मातृभूमि का प्रभाव कहीं नजर नहीं आ रहा था.

‘‘आप ईमेल की बात करते हैं. आप तो सशरीर भी उन के सामने उपस्थित हो जाएं तब भी वे आप को न पढ़ें,’’ निर्मलजी की बात पर फिर सब हंसने लगे.

‘‘तभी तो इस देश का कुछ नहीं हो रहा,’’ खीज कर चिरपरिचित जुमला हवा में उछालते हुए दिनेशजी बोले.

अंत में यह तय हुआ कि एक शिकायती पत्र लिख कर उस पर सब के हस्ताक्षर करा कर नगर निगम के औफिस जा कर जमा कराया जाए. पत्र को निर्मलजी और सुभाषजी ले कर जाएंगे. कारण, दोनों सेवानिवृत्त थे और दोनों के पास पर्याप्त समय था इन कार्यों को करने का.

अगले दिन निर्मलजी और सुभाषजी पत्र ले कर कर्नल विक्रमजी के घर पहुंचे, ‘‘आप मीटिंग में उपस्थित नहीं थे. हम सब एक शिकायती पत्र पर सब के हस्ताक्षर करा कर नगर निगम के औफिस में जमा करा रहे हैं. उसी संबंध में आप से इस पत्र पर हस्ताक्षर कराने आए हैं,’’ गर्व से निर्मलजी बोले.

‘‘बहुत अच्छा किया,’’ कह कर विक्रमजी ने हस्ताक्षर कर दिए.

शिकायती पत्र को नगर निगम के कार्यालय में दिए 1 महीने से ऊपर समय बीत जाने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं हो रही थी. जब भी उन के पास जाते एक ही जवाब सुनने को मिलता कि फंड नहीं है.

प्रशासन को कोसते हुए लेन नं. 5 के निवासियों की सहनशक्ति दिनबदिन कम होती जा रही थी.

‘‘तुम्हारी हिम्मत कैसे होती है हमारे घर के पास कूड़ा फेंकने की?’’ सुभाषजी की पत्नी अनीताजी दहाड़ते हुए बोलीं.

एकाएक हुए इस आक्रमण से निर्मलजी का नौकर सकपका गया.

‘‘जब देखो तब कूड़ा हमारे घर के पास फेंक देता है,’’ रात के 10 बजे अनीताजी की बुलंद आवाज से आसपास के सभी लोग घरों से बाहर निकल आए.

‘‘आप के घर के पास कहां फेंका? आप बिना वजह नाराज हो रही हैं,’’ निर्मलजी की पत्नी आशा नाराजगी से बोलीं.

‘‘आप जरा देखिए…आप ने अपने नौकर को इतने भी मैनर्स नहीं सिखा रखे.’’

‘‘आप ज्यादा मैनर्स की बातें न करें तो अच्छा रहेगा.’’

‘‘क्या कहा?’’

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‘‘और नहीं तो क्या. आप के पोते, जो इतना शोर मचाते हुए खेलते हैं…कई बार गेंद हमारे घर आती है. गेंद के लिए जब देखो तब गेट खोलते रहते हैं. तब आप कुछ नहीं सोचतीं,’’ आशाजी हाथ नचाती हुई बोलीं.

दोनों एकदूसरे को गलत ठहरा रही थीं. कोई अपनी गलती मानने को तैयार नहीं थी, सारा पड़ोस तमाशा देख रहा था, दोनों के पति बीचबचाव करने में लगे हुए थे.

 

उस दिन के बाद वातावरण बेहद तनावग्रस्त हो गया. 2 खेमों में विभाजित हो गई लेन नं. 5. एक सुभाषजी का पक्षधर तो दूसरा निर्मलजी का. गली की समस्या अपनी जगह ज्यों की त्यों थी.

एक दिन जब मलबे से भरा ट्रैक्टर गली में आया तो सब चौंक उठे. कर्नल विक्रम ने 2 मजदूरों की सहायता से गली में जहांजहां  पानी भरा था वहां मलबा डलवाना शुरू कर दिया.

‘‘यह आप क्या करा रहे हैं कर्नल साहब?’’ निर्मलजी बोले.

‘‘मलबे से भरा यह ट्रैक्टर जा रहा था. मैं ने इन से यहां फेंकने के लिए कहा तो ये तैयार हो गए. पानी इकट्ठा होने से मच्छर आदि पैदा होने से कई बीमारियां पैदा होने का खतरा भी है.’’

‘‘यह काम तो प्रशासन का है. हम टैक्स देते हैं.’’

‘‘लेकिन परेशानी तो हमें हो रही है,’’ निर्मलजी के पोते को चिप्स खाने के बाद रैपर को सड़क पर फेंकते देख कर्नल साहब ने टोका, ‘‘नहीं बेटा, रैपर सड़क पर नहीं फेंकते. इसे कूड़ेदान में फेंकना चाहिए.’’

‘‘यहां पर तो सभी फेंकते हैं. एक इस के न फेंकने से गली साफ तो नहीं हो जाएगी?’’

कर्नल साहब द्वारा अपने पोते को इस तरह टोकना निर्मलजी को अच्छा नहीं लगा. लेकिन जब उन्होंने कर्नल साहब को रैपर उठा कर अपने घर ले जाते देखा तो कुछ सोचने पर मजबूर हो गए.

दूसरे दिन सुबह जब कूड़ा उठाने वाली एक ठेली के साथ एक सफाई कर्मचारी को निर्मलजी के घर से कूड़ा ले जाते देखा तो दिनेशजी से रहा न गया और वे पूछ ही बैठे, ‘‘निर्मलजी, यह तो आप ने बहुत अच्छा किया. मैं भी काफी दिनों से इस विषय में सोच रहा था,’’ फिर सफाई कर्मचारी की ओर उन्मुख हो कर बोले, ‘‘कहां ले कर जाते हो इस कूड़े को? पता चला यहां से उठा कर किसी और के घर के सामने फेंक दिया.’’

‘‘जी, नहीं. हम इस कूड़े को 2 हिस्सों में अलगअलग कर देते हैं. एक हिस्से में फलों व सब्जियों के छिलके, बचा हुआ खाना, कागज, पत्ते आदि रखते हैं, जिन्हें आसानी से खाद में बदला जा सकता है और दूसरे में वे चीजें, जिन्हें सड़ाया न जा सके. जैसे, पौलिथीन बैग्स आदि. इन्हें हम सुरक्षित तरीकों से नष्ट कर देते हैं,’’ सफाई कर्मचारी बोला.

‘‘तभी तो सरकार पौलिथीन बैग्स के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा रही है, क्योंकि ये अपनेआप नहीं सड़ते. वैसे हम इन वस्तुओं से अपने घरों में भी खाद बना सकते हैं?’’ निर्मलजी ने पूछा.

‘‘बिलकुल, अगर आप के पास किचन गार्डन है तो आप उस में छोटा सा गड्ढा खोद कर उस के अंदर फलों व सब्जियों के छिलके, सूखे पत्ते, बचा खाना डालते रहें, जब गड्ढा भर जाए तो उसे मिट्टी से बंद कर उस में पानी का छिड़काव करते रहें. 3-4 महीनों में ये सब वस्तुएं सड़ जाती हैं और खाद में परिवर्तित हो जाती हैं, जिन्हें आप खाद के रूप में अपने गमलों व क्यारियों में इस्तेमाल कर सकते हैं,’’ सफाई कर्मचारी बोला.

‘‘अगर लोग सफाई के प्रति थोड़ी सी भी जागरूकता दिखाएं तो सड़कों के किनारे इतनी गंदगी नहीं दिखाई देगी,’’ दिनेशजी बोले.

‘‘कैसे?’’

‘‘सड़कों, गलियों आदि को भी अपने घरों की तरह साफ रखने की कोशिश करें और कोई भी गंदगी सड़कों व गलियों में न फेंकें. मैं तो कहता हूं कि हमें भी विदेशों की तरह थोड़ीथोड़ी दूरी पर कूड़ेदान रखने चाहिए ताकि  रास्ते में कोई गंदगी न फेंके और अगर फेंके तो हम उसे कूड़ेदान में फेंकने के लिए कहें. विदेशों में इसीलिए इतनी सफाई रहती है, क्योंकि वहां सड़कों पर कोई भी गंदगी नहीं फेंकता. सभी सड़कों और लेन आदि को साफ रखना अपना नैतिक कर्तव्य समझते हैं. वहां सार्वजनिक स्थानों पर तो क्या लोग निर्जन स्थानों पर भी कूड़ा नहीं फेंकते. यह उन की आदत है न कि किसी दबाव के कारण, क्योंकि बचपन से वे यह सब देखते आए हैं.

‘‘हमारा देश प्रत्येक क्षेत्र में प्रगति कर रहा है, लेकिन सफाई के प्रति हम जरा भी सचेत नहीं हैं. इतना भी नहीं सोचते कि इन सब का कितना बुरा प्रभाव पड़ता है. हमारा देश इतना सुंदर है. पर्यटन से हमें आय की कितनी संभावनाएं हैं. लेकिन यहां जगहजगह फैली गंदगी को देख कर विदेशी पर्यटक

चाह कर भी यहां आने से कतराते हैं,’’ अपना विदेश का अनुभव बताते हुए दिनेशजी बोले.

कुछ सोचते हुए निर्मलजी बोले, ‘‘सड़कों पर तो प्रशासन ही कूड़ेदान रखेगा, लेकिन अपनी गली में हम आपसी सहयोग से कूड़ेदान रख सकते हैं और इसी सफाई कर्मचारी से उन की सफाई कराते रहेंगे. चलिए, सब से बात कर के देखते हैं.’’

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कूड़ेदान के प्रस्ताव पर सब सहर्ष तैयार हो गए. सब के सहयोग से लेन नं. 5 में कूड़ेदान भी आ गए. कर्नल विक्रमजी के मलबा डलवाने, सफाई कर्मचारी के कूड़ा उठाने व कूड़ेदान रखने से लेन नं. 5 साफ और व्यवस्थित रहने लगी. घर के पास कूड़ा न पड़ने के कारण अब अनीताजी ने भी अपने पोतों पर लगाम लगानी शुरू कर दी.

‘‘देखिए, सब के थोड़े से प्रयास और सफाई के प्रति थोड़ा सा सजग रहने से लेन कितनी साफ रहने लगी है,’’ निर्मलजी बोले.

‘‘इस सब का श्रेय तो कर्नल साहब को देना चाहिए,’’ गोद में 3 वर्ष की पोती को उठाए सुभाषजी बोले.

‘‘आप बिलकुल ठीक कह रहे हैं.’’

तभी कर्नल विक्रमजी की कार ने लेन में प्रवेश किया.

‘‘कहां से आ रहे हैं कर्नल साहब?’’ सुभाषजी बोले.

‘‘नगर निगम के औफिस से आ रहा हूं.’’

‘‘आप और नगर निगम के औफिस से?’’

‘‘क्यों नहीं? मैं भी इस देश का नागरिक हूं और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हूं.’’

‘‘क्या कहा उन्होंने?’’ उत्सुकता से सुभाषजी ने पूछा.

‘‘उन्होंने कहा, फंड आ गया है, जल्द ही काम शुरू हो जाएगा.’’

तभी सुभाषजी की पोती गोद से उतरने के लिए मचलने लगी. जब वह नहीं मानी तो सुभाषजी को उसे गोद से उतारना पड़ा. गोद से उतरते ही अपने नन्हे कदमों से चल कर चौकलेट का रैपर, जो उस के हाथ से गिर गया था, को उठा कर कूड़ेदान में डालने की कोशिश करने लगी.

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Serial Story: केलिकुंचिका- भाग 3

माधुरी ने उस से कहा, ‘‘तुम वेदों को इतना महत्त्व क्यों दे रही हो? मैं ने तो सुना है कि वेद स्त्रियों के लिए नहीं हैं.’’ दुर्गा बोली, ‘‘तू उस की छोड़, क्लासिकल भाषाओं के अच्छे जानकारों की जरूरत हमेशा रहेगी. हर युग में उन्हें नए ढंग से पढ़ा और समझा जाता है.’’ जब तक दुर्गा माधुरी के साथ रही, उस ने दुर्गा की आर्थिक सहायता भी की. कुछ पैसे दुर्गा ट्यूशन पढ़ा कर भी कमा लेती थी. इस बीच, दुर्गा का बेटा शलभ 2 साल का हो चुका था. तभी जरमनी से संस्कृत टीचर के लिए उस का बुलावा आ गया.

कोलकाता के जरमन कौन्सुलेट से दुर्गा और बेटे शलभ को वीजा भी मिल गया. वह जरमनी के हीडेलबर्ग यूनिवर्सिटी गई.

जरमनी पहुंच कर दुर्गा को बिलकुल अलग माहौल मिला. जरमनी के लगभग एक दर्जन से ज्यादा शीर्ष विश्वविद्यालयों हीडेलबर्ग, एलएम यूनिवर्सिटी म्यूनिक, वुर्जबर्ग यूनिवर्सिटी, टुएबिनजेन यूनिवर्सिटी आदि में संस्कृत की पढ़ाई होती है. उसे देख कर खुशी हुई कि जरमनी के अतिरिक्त अन्य यूरोपियन देश और अमेरिका के विद्यार्थी भी संस्कृत पढ़ते हैं. वे जानना चाहते हैं कि भारत के प्राचीन इतिहास व विचार किस तरह इन ग्रंथों में छिपे हैं. भारत में संस्कृत की डिगरी तो नौकरी के लिए बटोरी जाती है लेकिन जरमनी में लोग अपना ज्ञान बढ़ाने के लिए संस्कृत पढ़ने आते हैं. इन विद्यार्थियों में हर उम्र के बच्चे, किशोर, युवा और प्रौढ़ होते हैं. दुर्गा ने देखा कि इन में कुछ नौकरीपेशा यहां तक कि डाक्टर भी हैं. दुर्गा को पता चला कि अमेरिका और ब्रिटेन में जरमन टीचर संस्कृत पढ़ाते हैं. हम अपनी प्राचीन संस्कृति और भाषा की समृद्ध विरासत को सहेजने में सफल नहीं रहे हैं. यहां का माहौल देख कर ऐसा प्रतीत होता है कि जरमन लोग ही शायद भविष्य में संस्कृत के संरक्षक हों. वे दूसरी लेटिन व रोमन भाषाओं को भी संरक्षित करने की कोशिश कर रहे हैं.

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दुर्गा का बेटा शलभ भी अब बड़ा

हो रहा था. वह जरमन के अतिरिक्त हिंदी, इंगलिश और संस्कृत भी सीख रहा था. दुर्गा ने कुछ प्राचीन पुस्तकों, कौटिल्य का अर्थशास्त्र, कालिदास का अभिज्ञान शाकुंतलम, गीता और वेद के जरमन अनुवाद भी देखे और कुछ पढ़े भी. जरमन विद्वानों का कहना है कि भारत के वेदों में बहुतकुछ छिपा है जिन से वे काफी सीख सकते हैं. सामान्य बातें और सामान्य ज्ञान से ले कर विज्ञान के बारे में भी वेद से सीखा जा सकता है.

जरमनी आने पर भी दुर्गा हमेशा अपनी सहेली माधुरी के संपर्क में रही थी. उस ने माधुरी को कुछ पैसे भी लौटा दिए थे जिस के चलते माधुरी थोड़ा नाराज भी हुई थी. माधुरी से ही दुर्गा को मालूम हुआ कि उस की दीदी अमोलिका और पापा दीनानाथ अब नहीं रहे. अमोलिका का बेटा बंटी कुछ साल नानी के साथ रहा था, बाद में वह अपने पापा जतिन के पास चला गया. उस की नानी भी उसी के साथ रहती थी. बंटी 16 साल का हो चुका था और कालेज में पढ़ रहा था. इधर, दुर्गा का बेटा शलभ 15 साल का हो गया था. वह भी अगले साल कालेज में चला जाएगा. दुर्गा के निमंत्रण पर माधुरी जरमनी आई थी. वह करीब एक महीने यहां रही. दुर्गा ने उसे बर्लिन, बोन, म्युनिक, फ्रैंकफर्ट, कौंलोन आदि जगहें घुमाईं. माधुरी इंडिया लौट गई.

दुर्गा से यूनिवर्सिटी की ओर से वेद पढ़ाने को कहा गया. उस से वेद के कुछ अध्यायों व श्लोकों का समुचित विश्लेषण करने को कहा गया. दुर्गा ने वेदों का अध्ययन किया था, इसलिए उसे पढ़ाने में कोई परेशानी नहीं हुई. उस के पढ़ाने के तरीके की विद्यार्थियों और शिक्षकों ने खूब प्रशंसा की. दुर्गा अब यूनिवर्सिटी में प्रतिष्ठित हो चुकी थी, बल्कि उसे अन्य पश्चिमी देशों में भी कभीकभी पढ़ाने जाना होता था.

5 वर्षों बाद शलभ फिजिक्स से ग्रेजुएशन कर चुका था. उसे न्यूक्लिअर फिजिक्स में आगे की पढ़ाई करनी थी. पीजी में ऐडमिशन से पहले उस ने मां से इंडिया जाने की पेशकश की तो दुर्गा ने उस की बात मान ली. दुर्गा ने उस के जन्म की सचाई अब उसे बता दी थी. सच जान कर उसे अपनी मां पर गर्व हुआ. अकेले ही काफी दुख झेल कर, अपने साहस के बलबूते पर मां खुद को और मुझे सम्मानजनक स्थिति में लाई थी. शलभ को अपनी मां पर गर्व हो रहा था. हालांकि वह किसी संबंधी के यहां नहीं जाना चाहता था लेकिन दुर्गा ने उसे अपने पिता जतिन और नानी से मिलने को कहा. माधुरी ने दुर्गा को जतिन का ठिकाना बता दिया था. जतिन आजकल नागपुर के पास वैस्टर्न कोलफील्ड में कार्यरत था.

इंडिया आ कर शलभ ने पहले देश के विभिन्न ऐतिहासिक व प्राचीन नगरों का भ्रमण किया. बाद में वह पिता से मिलने नागपुर गया. उस दिन रविवार था, जतिन और नानी दोनों घर पर ही थे. डोरबैल बजाने पर जतिन ने दरवाजा खोला. शलभ ने उस के पैर छुए. जतिन बोला, ‘‘मैं ने तुम को पहचाना नहीं.’’ शलभ बोला, ‘‘मैं एक जरमन नागरिक हूं. भारत घूमने आया हूं. मैं अंदर आ सकता हूं. मेरी मां ने मुझे आप से मिलने के लिए कहा है.’’

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शलभ का चेहरा एकदम अपनी मां से मिलता था. तब तक उस की नानी भी आई तो उस ने नानी के भी पैर छू कर प्रणाम किया. जतिन और नानी दोनों शलभ को बड़े गौर से देख रहे थे. शलभ ने देखा कि शोकेस पर उस की मौसी और मां दोनों की फोटो पर माला पड़ी हुई है. शलभ ने दोनों तसवीरों की ओर संकेत करते हुए पूछा, ‘‘ये महिलाएं कौन हैं?’’

जतिन ने बताया, ‘‘एक मेरी पत्नी अमोलिका, दूसरी उन की छोटी बहन दुर्गा है, अब दोनों इस दुनिया में नहीं हैं.’’

‘‘एस तुत मिर लाइट,’’ शलभ बोला. ‘‘मैं समझा नहीं,’’ जतिन ने कहा.

‘‘आई एम सौरी, यही पहले मैं ने जरमन भाषा में कहा था,’’ शलभ बोला. ‘‘अरे वाह, कितनी भाषाएं जानते हो,’’ जतिन ने हैरानी जताई.

‘‘सब मेरी मां की देन है,’’ शलभ ने कहा. फिर दुर्गा की फोटो को दिखाते हुए शलभ बोला, ‘‘तो ये आप की केलिकुंचिका हैं.’’

‘‘व्हाट?’’ ‘‘केलिकुंचिका यानी साली, सिस्टर इन लौ.’’

‘‘यह कौन सी भाषा है…जरमन?’’ ‘‘जी नहीं, संस्कृत.’’

‘‘तो तुम संस्कृत भी जानते हो?’’ ‘‘जी, आप की केलिकुंचिका संस्कृत की विदुषी हैं, उन्हीं ने मुझे संस्कृत भी सिखाई है.’’

‘‘वह तो बहुत पहले मर चुकी है.’’ ‘‘आप के लिए मृत होंगी.’’

‘‘व्हाट? हम लोगों ने उसे ढूढ़ने की बहुत कोशिश की थी, पर वह नहीं मिली. आखिर में हम ने उसे मृत मान लिया.’’ ‘‘अच्छा, तो अब चलता हूं, कल दिल्ली से मेरी फ्लाइट है.’’

शलभ ने उठ कर दोनों के पैर छुए और बाहर निकल गया. ‘‘अरे, जरा रुको तो सही, हमारी बात तो सुनते जाओ, शलभ…’’

वे दोनों उसे पुकारते रहे, पर उस ने एक बार भी मुड़ कर उन की तरफ नहीं देखा.

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Serial Story: केलिकुंचिका- भाग 1

दीनानाथजी बालकनी में बैठे चाय पी रहे थे. वे 5वीं मंजिल के अपने अपार्टमैंट में रोज शाम को इसी समय चाय पीते और नीचे बच्चों को खेलते देखा करते थे. उन की पत्नी भी अकसर उन के साथ बैठ कर चाय पिया करती थीं. पर अभी वे किचन में महरी से कुछ काम करा रही थीं. तभी बगल में स्टूल पर रखा उन का मोबाइल फोन बजा. उन्होंने देखा कि उन की बड़ी बेटी अमोलिका का फोन था. दीनानाथ बोले, ‘‘हां बेटा, बोलो, क्या हाल है?’’

अमोलिका बोली, ‘‘ठीक हूं पापा. आप कैसे हैं? मम्मी से बात करनी है.’’ ‘‘मैं ठीक हूं बेटा. एक मिनट होल्ड करना, मम्मी को बुलाता हूं,’’ कह कर उन्होंने पत्नी को बुलाया.

उन की पत्नी बोलीं, ‘‘अमोल बेटा, कैसी तबीयत है तेरी? अभी तो डिलीवरी में एक महीना बाकी है न?’’ ‘‘वह तो है, पर डाक्टर ने कहा है कि कुछ कौंप्लिकेशन है, बैडरैस्ट करना है. तुम तो जानती हो जतिन ने लवमैरिज की है मुझ से अपने मातापिता की मरजी के खिलाफ. ससुराल से किसी प्रकार की सहायता नहीं मिलने वाली है. तुम 2-3 महीने के लिए यहां आ जातीं, तो बड़ा सहारा मिलता.’’

‘‘मैं समझ सकती हूं बेटा, पर तेरे पापा दिल के मरीज हैं. एक हार्टअटैक झेल चुके हैं. ऐसे में उन्हें अकेला छोड़ना ठीक नहीं होगा.’’ ‘‘तो तुम दुर्गा को भेज सकती हो न? उस के फाइनल एग्जाम्स भी हो चुके हैं.’’

‘‘ठीक है. मैं उस से पूछ कर तुम्हें फोन करती हूं. अभी वह घर पर नहीं है.’’

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दुर्गा अमोलिका की छोटी बहन थी. वह संस्कृत में एमए कर रही थी. अमोलिका की शादी एक माइनिंग इंजीनियर जतिन से हुई थी. उस की पोस्ंिटग झारखंड और ओडिशा के बौर्डर पर मेघाताबुरू में एक लोहे की खदान में थी. वह खदान जंगल और पहाड़ों के बीच में थी, हालांकि वहां सारी सुविधाएं थीं. बड़ा सा बंगला, नौकरचाकर, जीप आदि. कंपनी का एक अस्पताल भी था जहां सभी जरूरी सुविधाएं उपलब्ध थीं. फिर भी अमोलिका को बैडरैस्ट के चलते कोई अपना, जो चौबीसों घंटे उस के साथ रहे, चाहिए था. अमोलिका के मातापिता ने छोटी बेटी दुर्गा से इस बारे में बात की. दुर्गा बोली कि ऐसे में दीदी का अकेले रहना ठीक नहीं है. वह अमोलिका के यहां जाने को तैयार हो गई. उस के जीजा जतिन खुद आ कर उसे मेघाताबुरू ले गए.

दुर्गा के वहां पहुंचने के 2 हफ्ते बाद ही अमोलिका को पेट दर्द हुआ. उसे अस्पताल ले जाया गया. डाक्टर ने उसे भरती होने की सलाह दी और कहा कि किसी भी समय डिलीवरी हो सकती है. अमोलिका ने भरती होने के तीसरे दिन एक बेटे को जन्म दिया. पर बेटे को जौंडिस हो गया था, डाक्टर ने बच्चे को एक सप्ताह तक अस्पताल में रखने की सलाह दी. जतिन और दुर्गा प्रतिदिन विजिटिंग आवर्स में अस्पताल आते और खानेपीने का सामान दे जाते थे. एक दिन जतिन ने जीप को कुछ जरूरी सामान, दवा आदि लेने के लिए शहर भेज दिया था. दुर्गा मोटरसाइकिल पर ही उस के साथ अस्पताल आई थी. उस दिन मौसम खराब था. अस्पताल से लौटते समय बारिश होने लगी. दोनों बुरी तरह भीग गए थे. दुर्गा मोटरसाइकिल से उतर कर गेट का ताला खोल रही थी. उस के गीले कपड़े उस के बदन से चिपके हुए थे जिस के चलते उस के अंगों की रेखाएं स्पष्ट झलक रही थीं. जतिन के मन में तरंगें उठने लगी थीं.

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ताला खुलने पर दोनों अंदर गए. बिजली गुल थी. दुर्गा सीधे बाथरूम में गीले कपड़े बदलने चली गई. इस बात से अनजान जतिन तौलिया लेने के लिए बाथरूम में गया. वह रैक पर से तौलिया उठाना चाहता था. दुर्गा साड़ी खोल कर पेटीकोट व ब्लाउज में थी. उस ने नहाने की सोच कर हैंडशावर हाथ में ले रखा था. उस ने दरवाजा थोड़ा खुला छोड़ दिया था ताकि कुछ रोशनी अंदर आ सके. अचानक किसी की उपस्थिति महसूस होने पर उस ने पूछा, ‘‘अरे आप, जीजू, अभी क्यों आए? निकलिए, मैं बंद कर लेती हूं.’’ इतना कह कर उस ने खेलखेल में हैंडशावर से जतिन को गीला कर दिया. जतिन बोलता रहा, ‘‘यह क्या कर रही हो? मुझे पता नहीं था कि तुम अंदर हो़’’

‘‘मुझे भी पता नहीं, अंधेरे में पानी किधर जा रहा है,’’ और वह हंसने लगी. ‘‘रुको, मैं बताता हूं पानी किधर छोड़ा है तुम ने. यह रहा मैं और यह रही तुम,’’ इतना बोल कर जतिन ने उसे बांहों में भर लिया. दुर्गा को भी लगा कि उस का गीला बदन तप रहा है.

‘‘क्या कर रहे हैं आप? छोडि़ए मुझे.’’ ‘‘अभी कहां कुछ किया है मैं ने?’’

दुर्गा को अपने भुजबंधन में लिए हुए ही एक चुंबन उस के होंठों पर जड़ दिया जतिन ने. इस के बाद तपिश खत्म होने पर ही अलग हुए वे दोनों. दुर्गा बोली, ‘‘जो भी हुआ, वह हरगिज नहीं होना चाहिए था. क्षणिक आवेश में आ कर हम दोनों ने अपनी सीमाएं तोड़ डालीं. जरा सोचिए, दीदी को जब कभी यह बात मालूम होगी तो उस पर क्या गुजरेगी.’’

जतिन बोला, ‘‘अब जाने दो, जो हुआ सो हुआ. उसे बदला तो नहीं जा सकता. ठीक तो मैं भी नहीं समझता हूं, पर बेहतर होगा अमोलिका को इस बारे में कुछ भी पता न चले.’’

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इस घटना के एक सप्ताह बाद अमोलिका भी अस्पताल से घर आई. उस का बेटा बंटी ठीक हो गया था. घर में सभी खुश थे. दुर्गा भी मौसी बन कर प्रसन्न थी. वह अपनी दीदी और भतीजे की देखभाल अच्छी तरह कर रही थी. जतिन ने शानदार पार्टी दी थी. अमोलिका के मातापिता भी आए थे. एक सप्ताह रह कर वे लौट गए. लगभग 2 महीने तक सबकुछ सामान्य रहा. दुर्गा की तबीयत ठीक नहीं रह रही थी. अमोलिका ने जतिन से कहा, ‘‘इसे थोड़ा डाक्टर को दिखा लाओ.’’

दुर्गा को अपने अंदर कुछ बदलाव महसूस होने लगा था. पीरियड मिस होने से वह अंदर से डरी हुई थी. जतिन दुर्गा को ले कर अस्पताल गया. वहां लेडी डाक्टर ने चैक कर कहा कि घबराने की कोई बात नहीं है, सबकुछ नौर्मल है. दुर्गा मां बनने वाली है. जतिन और दुर्गा एकदूसरे को आश्चर्य से देख रहे थे. पर डाक्टर के सामने बनावटी मुसकराहट दिखाते रहे ताकि डाक्टर को सबकुछ नौर्मल लगे.

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Serial Story: केलिकुंचिका- भाग 2

छोटे से माइनिंग वाले शहर में सभी अफसर एकदूसरे को अच्छी तरह जानतेपहचानते थे. थोड़ी ही देर में डाक्टर ने अमोलिका को फोन कर कहा, ‘‘मुबारक हो, शाम को मैं आ रही हूं, मिठाई खिलाना.’’ ‘‘श्योर, दरअसल हम लोगों ने जिस दिन पार्टी दी थी आप छुट्टी ले कर बाहर गई थीं.’’

‘‘वह तो ठीक है, मैं तुम्हारी मौसी बनने की खुशी में मिठाई मांग रही हूं. ठीक है, शाम को डबल मिठाई खा लूंगी.’’ डाक्टर से बात करने के बाद अमोलिका के चेहरे की हवाइयां उड़ने लगीं. उस के मन में संदेह हुआ क्योंकि दुर्गा और जतिन के अलावा घर में तीसरा और कोई नहीं था, कहीं यह बच्चा जतिन का न हो. उसे अपनी बहन पर क्रोध आ रहा था. साथ ही, उसे नफरत भी हो रही थी.

अभी तक दुर्गा और जतिन दोनों अस्पताल से घर भी नहीं लौटे थे. दोनों की समझ में नहीं आ रहा था कि आने वाले भीषण तूफान से कैसे निबटा जाए. कुछ पलों का आनंद इतनी बड़ी मुसीबत बन जाएगा, उन्होंने इस की कल्पना भी नहीं की थी. दोनों सोच रहे थे कि आज नहीं तो कल अमोलिका को यह बात तो पता चलेगी ही, तब उस के सामने कैसे मुंह दिखाएंगे.

घर पहुंच कर दुर्गा बंटी के लिए दूध बना कर ले गई. उस ने दूध की बोतल अमोलिका को दी. वह बहुत गंभीर थी. दुर्गा वापस जाने को मुड़ी ही थी कि अमोलिका ने उसे हाथ पकड़ कर रोक लिया. पहले तो वह सोच रही थी कि सारा गुस्सा अभी के अभी उतार दे, पर उस ने बात बदलते हुए पूछा, ‘‘अब तो तुम्हारा एमए भी पूरा हो गया है. अगले महीने तुम्हारा कौन्वोकेशन भी है.’’ दुर्गा बोली, ‘‘हां.’’

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‘‘आगे के लिए क्या सोचा है? और तुम ने संस्कृत ही क्यों चुनी? इनफैक्ट संस्कृत की तो यहां कोई कद्र नहीं है.’’ ‘‘आजकल जरमनी में लोग संस्कृत में रुचि ले रहे हैं. बीए करने के बाद मैं एक साल स्कूल में पार्टटाइम संस्कृत टीचर थी. मैं ने जरमनी की एक यूनिवर्सिटी में संस्कृत ट्यूटर के लिए आवेदन दिया था. मैं ने जरमन भाषा का भी एक शौर्टटर्म कोर्स किया है. मुझे उम्मीद है कि जरमनी से जल्दी ही बुलावा आएगा.’’

‘‘कब तक जाने की संभावना है?’’ ‘‘कुछ पक्का नहीं कह सकती हूं, पर 6 महीने या सालभर लग सकता है. उन्होंने कहा है कि अभी तुरंत वैकेंसी नहीं है, होने पर सूचित करेंगे.’’

‘‘तब तक तुम्हारा ये बच्चा…’’ अमोलिका के मुंह से अचानक यह सुनना दुर्गा के लिए अनपेक्षित था. इस अप्रत्याशित प्रश्न के लिए वह तैयार नहीं थी. उसे चुप देख कर अमोलिका ने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘तुम्हें शर्म नहीं आई दीदी के यहां आ कर यह सब गुल खिलाने में. वैसे तो मैं समझ सकती हूं तेरे पेट में किस का अंश है, फिर भी मैं तेरे मुंह से सुनना चाहती हूं.’’

दुर्गा सिर नीचे किए रो रही थी, कुछ बोल नहीं पा रही थी. अमोलिका ने ही फिर कड़क कर कहा, ‘‘यह किस का काम है? बंटी के सिर पर हाथ रख कर कसम खा तू, किस का काम है यह?’’ दुर्गा फिर चुप रही. तब अमोलिका ने ही कहा, ‘‘जतिन का ही दुष्कर्म है न यह? सच बता तुझे बंटी की कसम.’’

‘‘तुम्हारी खामोशी को मैं तुम्हारी स्वीकृति समझ रही हूं. बाकी मैं जतिन से समझ लूंगी.’’ दुर्गा वहां से चली गई. अमोलिका ने अपनी मां को फोन कर कहा, ‘‘मां, मैं कुछ दिनों के लिए वहां आ कर तुम लोगों के साथ रहना चाहती हूं.’’

मां ने कहा, ‘‘बेटा, यह तेरा घर है. जब चाहे आओ और जितने दिन चाहो आराम से रहो.’’ उस रात अमोलिका और जतिन में काफी कहासुनी हुई. उस ने जतिन से कहा, ‘‘तुम्हारे दुष्कर्म के बाद मुझे तुम से घिन हो रही है. मुझे नहीं लगता, मैं यहां और रह पाऊंगी.’’

जतिन के माफी मांगने और मना करने के बावजूद दूसरे दिन अमोलिका दुर्गा के साथ पीहर आ गई. उस ने मेघाताबुरू की कहानी मां को बताई. उस की मां भी बहुत क्रोधित हुईं और उन्होंने दुर्गा से कहा, ‘‘अरे, तू अपनी सगी बहन के घर में आग लगा बैठी.’’ दुर्गा के पास कोई जवाब न था. वह चुप रही. मां ने कहा, ‘‘मैं तेरी जैसी कुलटा को अपने घर में नहीं रख सकती. तू निकल जा मेरे घर से. हम लोग तुम्हारा मुंह नहीं देखना चाहते.’’

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उस रात दुर्गा को नींद नहीं आ रही थी. वह रात में एक बैग ले कर दरवाजा खोल कर घर से निकलना ही चाहती थी कि अमोलिका जग उठी. उस ने कहा, ‘‘कहां जा रही हो?’’ दुर्गा बोली, ‘‘कुछ सोचा नहीं है, या तो आत्महत्या करूंगी या फिर सब से दूर कहीं चली जाऊंगी.’’

‘‘एक पाप तो तूने पहले ही किया, दूसरा पाप आत्महत्या करने का होगा.’’ ‘‘तो मैं क्या करूं?’’

‘‘तू एबौर्शन करा ले, उस के बाद आगे की जिंदगी का रास्ता साफ हो जाएगा.’’

‘‘एबौर्शन कराना भी तो एक पाप ही होगा.’’ ‘‘तू अभी चुपचाप घर में बैठ. कुछ दिनों में हम सब लोग मिलजुल कर बात कर कोई समाधान ढूंढ़ लेंगे.’’

दुर्गा ने महसूस किया कि उस के मातापिता दोनों ने ही उस से बोलचाल बंद कर दी है. वह तो अमोलिका की गुनाहगार थी, फिर भी दीदी कभीकभी उस से बात कर लेती थीं. उस को अंदर से ग्लानि थी कि उस की एक छोटी सी भूल की सजा दीदी और बंटी को भी मिल रही है. 2 दिनों बाद ही दुर्गा अचानक घर छोड़ कर कहीं चली गई. उस ने अपना कोई अतापता किसी को नहीं बताया. दुर्गा अपने साथ पढ़ी एक सहेली माधुरी के यहां कोलकाता आ गई. दोनों ने 12वीं तक साथ पढ़ाई की थी. उस ने उसे अपनी कहानी बताई और कहा, ‘‘प्लीज, मेरा पता किसी को मत बताना. मुझे कुछ दिनों के लिए पनाह दे, फिर मैं कहीं दूरदराज चली जाऊंगी.’’

माधुरी अविवाहित थी और नौकरी करती थी. वह बोली, ‘‘तू कहीं नहीं जाएगी. तू जब तक चाहे यहां रह सकती है. तू तो जानती ही है कि इस दुनिया में मेरा अपना निकटसंबंधी कोई नहीं है. तू यहीं रह, तू मां बनेगी और मैं मौसी.’’

वहीं दुर्गा ने एक बालक को जन्म दिया. उस ने वहीं रह कर इग्नू से 2 साल का मास्टर इन वैदिक स्टडीज का कोर्स किया. इसी बीच, उस ने झारखंड में धनबाद के निकट काको मठ और महाराष्ट्र में नासिक के निकट वेद पाठशालाओं में वहां के संतों व गुरुजनों से भी वेद पर विशेष चर्चा कर वेद के बारे में अपना ज्ञान बढ़ाया.

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वेब सीरीज को सर्टिफिकेशन से कोई खतरा नहीं – माही गिल

पंजाबी फिल्मों से अभिनय के क्षेत्र में कदम रखने वाली अभिनेत्री माही गिल ने हमेशा अपनी शर्तों पर काम किया और अपनी एक अलग जगह बनाई है. माही को बचपन से अभिनय का शौक था, जिसमें साथ दिया उनके पेरेंट्स ने. माही को हिंदी फिल्मों में परिचय करवाया निर्देशक अनुराग कश्यप ने फिल्म ‘डेव डी’ से, जो आधुनिक देवदास की कहानी थी, जिसमें माही ने पारो की भूमिका निभाई थी. इसके बाद उन्होंने कई फिल्में की और अब वेब सीरीज में भी अच्छा काम कर रही है. अभी हॉट स्टार स्पेशल्स पर माही की वेब सीरीज 1962, द वार इन द हिल्स’ रिलीज पर है, जिसमें उन्होंने एक फौजी की पत्नी की भूमिका निभाई है. उनसे बात करना रोचक था. पेश है कुछ अंश.

सवाल-इस वेब सीरीज में एक फौजी की पत्नी की भूमिका निभाना कितना चुनौतीपूर्ण रहा ?

इसमें सबसे बड़ी चुनौती इसके इमोशन थे. इसके अलावा मेरे ग्रेंड पेरेंट्स आर्मी में थे, इसलिए मैंने आर्मी के लोगों की रहन-सहन को नजदीक से देखा है. इतना ही नहीं मैं खुद भी आर्मी में सेलेक्ट हो गयी थी, किसी कारणवश नहीं जा पायी. मैं इस माहौल से जुडी रहने की वजह से मेरा अनुभव इस फील्ड में है, लेकिन मेरी भूमिका बहुत भावनात्मक है. मेरा इस फिल्म को करने का एक ही मकसद रहा है. इसमें मैं आर्मी की महिलाओं के जीवन के बारें में सबको बताना चाहती थी. सबको ये जानना भी बहुत जरुरी है. जब उनके पति सीमा पर जाते है, तो घरवालों पर क्या गुजरती है. 

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सवाल-इसमें आपको तैयारियां कितनी करनी पड़ी?

जब कोई अच्छी स्क्रिप्ट मेरे पास आती है, तो उसे करने में भी बहुत अच्छा लगता है. उसकी तैयारी मैं जल्दी ही कर लेती हूं. मैंने देखा है, जब आर्मी के लोग जंग के लिए सीमा पर जाकर खुद को बलिदान कर देते है. वही घर पर रहने वाली महिलाएं भी चुपचाप खुद को उसी त्याग से जोड़ लेती है, क्योंकि महिलाएं अगर मजबूत नहीं हुई, तो आगे की जेनरेशन मजबूत नहीं हो पाएगा. देखा जाय तो ये महिलाएं भी बिना यूनिफार्म के सोल्जर्स है. आर्मी, नेवी, या एयरफोर्स आदि में काम करने वाला व्यक्ति जब घर से बाहर निकलता है, तो उसके घर लौटने की कोई गारंटी नहीं होती. इसके अलावा कई ऐसे अवसर होते है, जब उनका परिवार अकेले ही उस त्यौहार को मनाते है. कई बार बच्चे के जन्म के समय भी उनके पिता पास नहीं होते. 

सवाल-काफी लोग सेना की नौकरी से बहुत प्रेरित होते है, वे देश के लिए अपने बेटों को सेना की नौकरी में जाने देते है, ऐसी प्रथा कुछ घरों में सालों साल चलती है, लेकिन कई यूथ ऐसे भी है जो अपने देश को छोड़ विदेश में जाते है और वापस नहीं आते, क्या आपको आज के अधिक पढ़े-लिखे यूथ में देश-प्रेम की भावना कम दिखाई नहीं पड़ती ?

ये सही है कि अधिक कमाई के लिए पढ़े-लिखे यूथ बाहर जाते है और लौटकर वापस नहीं आते, इसकी वजह वहां उन्हें काम करने के काफी संसाधन उपलब्ध है. वहां जिंदगी इतनी कठिन नहीं, लेकिन इससे मेरा जज्बा कम नहीं होता. मेरे लिए मेरा देश ही सबसे प्यारा है.

सवाल-क्या अभिनय के क्षेत्र में आना एक इत्तफाक था या बचपन से सोचा था? 

मैंने अभिनय के बारें में कभी सोचा नहीं था. मैं अपनी पढाई कर रही थी और मेरा पैशन आर्मी था. मैंने जिंदगी में कभी सोचा नहीं था कि मैं मुंबई रहूंगी और फिल्मों में काम करुँगी. मुझे नयी जिंदगी मिली, मैंने पंजाब में थिएटर ज्वाइन किया और कई पंजाबी फिल्में की. इससे मेरा कैरियर अभिनय में शुरू हो गया था. इसके अलावा जब मेरी माँ यंग थी, तो उन्हें फिल्मों में अभिनय के लिए मौका मिला था, लेकिन नाना ने जाने नहीं दिया था, क्योंकि तब फिल्म इंडस्ट्री को ख़राब नजरों से देखा जाता था, अब तो परिवार वाले खुद अपने बच्चे को फिल्म इंडस्ट्री में डालना चाहते है. वही पैशन शायद मेरे अंदर आ गया और मैंने अभिनय को ही अपना प्रोफेशन बना लिया.

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सवाल-किसी भी फिल्म को चुनते समय किस बात का अधिक ध्यान रखती है?

 सबसे पहले स्टोरी आती है, जिसे करने को मेरा मन करें और मुझे संतुष्टि भी मिले. मैं ऐसी चीज नहीं चुनना चाहती, जिसे करने के लिए मेरा मूड नहीं है. इसके अलावा पैसे और समय की बर्बादी हो, वह भी मुझे पसंद नहीं. इसके साथ-साथ मेरे साथ काम करने वाले लोग, बैनर, फिल्म का समय पर रिलीज होना आदि कई है. 

सवाल-क्या ओटीटी प्लेटफॉर्म पर वेब सीरीज के लिए सर्टिफिकेशन के होने से कोई खतरा है?

मेरे हिसाब से वेब सीरीज को सर्टिफिकेशन देने से कोई खतरा नहीं, क्योंकि इससे पेरेंट्स समझ जायेंगे कि बच्चा क्या देख रहा है, क्योंकि डिजिटल मीडिया पर ऐसे करोड़ों वेबसाईट है, जहाँ आपत्तिजनक चीजे कोई भी देख सकता है. सर्टिफिकेशन से माता-पिता थोड़े निश्चिन्त हो सकेंगे. ये सही है कि निर्देशक और कलाकार जो भी अपने आस-पास देखते है, उसे पर्दे पर लाने की कोशिश करते है और करते भी रहेंगे. सर्टिफिकेशन से लोग समझ जायेंगे कि उन्हें क्या देखना है, क्या नहीं.

सवाल-इतने सालों में इंडस्ट्री में किस तरह के बदलाव आप देखती है?

जब मैंने फिल्म ‘डेव डी’ आज से 10 साल पहले की थी, तो कहानी कहने का नया दौर शुरू हुआ था. स्टोरी टेलिंग में काफी परिवर्तन आज है. बहुत रुचिकर कहानियां अभिनेत्रियों के लिए लिखी जा रही है, जो बीच में कुछ सालों के लिए बंद हो गयी थी. आज के कलाकार उसी फिल्म को करना चाहते है, जिसमें उनकी भूमिका स्ट्रोंग हो और स्टोरी टेलिंग भी मजबूत हो. इसके अलावा पहले एक फिल्म के बनने में 2 से 3 साल लगते थे,अब 2 महीने में फिल्म बन जाती है. इससे पैसे और समय दोनों की बचत होती है. आज लोग पैसे को लेकर समझदार हो चुके है, क्योंकि निर्माता, निर्देशक जल्दी-जल्दी फिल्मों के बनाने से अधिक कलाकारों को काम मिलेगा, जो अच्छी बात है. 

सवाल-क्या महिला दिवस पर आप महिलाओं को कोई सन्देश देना चाहती है?

महिलाओं से मेरा कहना है कि आप सब आत्मनिर्भर बने और अपने हिसाब से जीवन का आनंद उठाएं, क्योंकि पेंडेमिक ने हमें सिखा दिया है कि कम में संतुष्ट होना सीखे. महिलाएं आज कमाल के काम कर रही है. अमेरिका से फ्लाइट को बंगलूरू ले आना आसान काम नहीं था. पुरुषों से मेरा कहना है कि वे भी महिलाओं की इज्जत करना सीखे. 

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‘बिग बॉस 14’ की विनर बनीं रुबीना दिलैक, फैंस से कही ये बात

सलमान खान के पौपुलर शो बिग बॉस का 14वां सीजन खत्म हो चुका है. बीती रात यानी 21 फरवरी को शो का फिनाले हो चुका है. वहीं एक्ट्रेस रुबीना दिलैक इस सीजन की विनर भी बन चुकी हैं. राहुल वैद्य को पछाड़ कर विनर की ट्रौफी अपने नाम करने वाली रुबीना की फोटोज सोशलमीडिया में छाई हुई हैं. इसी बीच रुबीना ने अपने फैंस के लिए प्यारा सा मैसेज शेयर किया है. आइए आपको दिखाते हैं रुबीना ने अपने फैंस के लिए क्या कहा…

फैंस से कही ये बात

 

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बिग बॉस 14 का खिताब अपने नाम करने के बाद जहां फैंस और सेलेब्स उन्हें बधाई दे रहे हैं तो वहीं अब रुबीना ने अपने फैन्स के लिए इंस्टाग्राम पर एक वीडियो शेयर किया है, जिसमें वह फैन्स को सपोर्ट के लिए शुक्रिया अदा करती नजर आ रही हैं. वीडियो में रुबीना कह रही हैं कि उनके पास इस प्यार और सपोर्ट के लिए थैंक्स कहने के लिए शब्द नहीं हैं. वीडियो शेयर करते हुए रुबीना ने लिखा, ‘बहुत सारा शुक्रिया’.

 

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सलमान खान का भी किया शुक्रिया

 

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वीडियो में रुबीना ने केवल अपने फैन्स ही नहीं बल्कि शो के होस्ट सलमान खान, चैनल और शो के मेकर्स का भी शुक्रिया अदा किया. वहीं फैंस से वादा किया है कि वह जल्द ही इंस्टाग्राम पर एक लाइव सेशन के जरिए बिग बॉस के घर में अपने सारे एक्सपीरियंस फैन्स के साथ शेयर करेंगी.

ट्रॉफी के साथ जीता ये इनाम

 

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टीवी की पौपुलर एक्ट्रेसेस में से एक रुबीना को बिग बॉस की ट्रॉफी के साथ 36 लाख रुपये का इनाम भी मिला है. हालांकि राखी सावंत के कारण विनर की जीती हुई रकम में से 14 लाख हटाए गए थे, जिसके कारण शो का विनिंग रकम 36 लाख रह गई थी.

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बता दें, शो में पति अभिनव शुक्ला के साथ रुबीना दिलैक ने अपने तलाक का भी खुलासा किया था, जिसके बाद उन्होंने शो में ही दोबारा शादी करने का फैसला किया था.

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