आत्महत्या समस्या का समाधान नहीं

मार्च 2020 में कर्ज न चुका पाने के कारण हैदराबाद के एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने अपनी पत्नी और 2 बच्चों की हत्या करने के बाद खुद भी आत्महत्या कर ली. मरने से पहले अपने पित को संबोधित कर लिखे गए सुसाइड नोट में इंजीनियर ने अपनी आत्महत्या की वजह बढ़ रहे कर्ज के बोझ को बताया है. उस ने एक हाउसिंग फाइनेंस कंपनी से 22 लाख का होम लोन लिया था. इस के अलावा घर बनाने और बिजनेस शुरू करने के लिए भी बहुत सारे लोन ले रखे थे. उस के शब्दों में, ‘मैं ने कभी नहीं सोचा था कि मैं इस तरह कर्ज के जाल में फंस जाऊंगा. एक कर्जदार तो बारबार मुझे फोन करने लगा है. जब कि मैं घर को बेच नहीं सकता क्यों कि घर के साथ मेरी मां की यादें जुड़ी हुई है. मैं अपनी पत्नी और बच्चों को आप के ऊपर भार बना कर भी नहीं छोड़ सकता. इसलिए मैं ने उन्हें अपने साथ ले जाने का फैसला लिया है. यह मेरा आप के लिए अंतिम संदेश है.”

इस घटना की जानकारी परिवार वालों को तब लगी जब मृतक की पत्नी का भाई जो खुद एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर है, ने कई दफा दरवाजा खटखटाया मगर वह नहीं खुला. तब उस ने पुलिस को सूचना दी और घर के अंदर से चारों लाशों को बरामद किया गया.

उसी दिन मुंबई में भी ऐसी ही एक घटना सामने आई जब पतिपत्नी के साथ उन की 3 साल की छोटी सी बिटिया को मृत अवस्था में उन के ही घर से निकाला गया. पुलिस के मुताबिक यह हत्या के बाद आत्महत्या का मामला है. लाश के पास एक सुसाइड नोट मिला है  बात का उल्लेख है कि परिवार में मौजूद 13 लोगों की वजह से उन्हें यह कदम उठाना पड़ा है. सुसाइड नोट के मुताबिक़ परिवार के कुछ सदस्य उन्हें प्रॉपर्टी के मसलों पर परेशां करते थे. नोट में मृतक ने अपनी पत्नी की जूलरी दान करने को कहा है. पुलिस का मानना है कि दंपत्ति ने आत्महत्या करने से पहले बेटी का मर्डर किया और फिर मरने से पहले महिला ने भी सोशल मीडिया के जरीये अपने परिवार के साथ इस सुसाइड नोट को शेयर किया.

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दुनिया में हर साल 8 लाख यानी हर घंटे 92 लोग खुदकुशी करते हैं. यह खुलासा विश्व स्वास्थ्य संगठन और मेंटल हेल्थ कमीशन ऑफ कनाडा की रिपोर्ट में हुआ है. रिपोर्ट के मुताबिक 2016 में दुनिया में 15-29 साल की उम्र के जितने लोगों की मौत हुई, उन में अधिकांश ने खुदकुशी की थी.

नैशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक़ भारत में पिछले 10 वर्षों में देश भर में आत्महत्या के मामले 17.3 % तक बढ़े हैं.

नेशनल हेल्थ प्रोफाइल-2018 की रिपोर्ट के अनुसार इस दौरान भारत में 1.35 लाख लोगों ने खुदकुशी की. रिपोर्ट के मुताबिक खुदकुशी करने वालों में 80 फीसदी यानी 6.4 लाख लोग कम और मध्यम आय वाले देशों के थे. दुनिया के करीब 38 देशों ने खुदकुशी जैसे अपराध रोकने की रणनीति बनाई है.

अचरज तो तब होता है जब मरने से पहले लोग अपने ही हाथों अपनी संतान की जीवनलीला समाप्त कर डालते हैं. आखिर किसी मासूम की जिंदगी का फैसला लेने का हक़  उन्हें किस ने दे दिया.

आत्महत्या की कोशिश करने वालो के दिमाग में क्या चलता है

ऐसे लोगों को लगता है जैसे कि तमाम दुख, तकलीफें, खुशियां, असंतुष्टि, नेम, फेम या बदनामी का अस्तित्व तभी तक है, जब तक सांसें चल रही हों. एक बार दम निकला नहीं कि सब कुछ ख़त्म हो जाता है.

मरने वाला आदमी जीने की जद्दोजहद में लगी दुनिया को मूर्ख समझने लगता है. उसे लगता है कि ये लोग कितने बेवक़ूफ़ हैं जो ज़िंदगी जैसी फ़ालतू चीज़ के मोह में पड़े हैं. उसे खुद के फैसले पर गर्व होता है कि उस ने बेवक़ूफ़ होना कबूल नहीं किया.

उसे लगता है कि मर जाना ही उस के लिए इकलौता और बेहतरीन हल है. इस से वह एक झटके में अपनी साड़ी परेशानियों से निजात पा जाएगा.

वह पहले ख़ुदकुशी कर चुके लोगों के बारे में जानकारियां जुटाता है. उन के फैसले के साथ खुद को रिलेट करता है. सुसाइड को बहादुरी का तमगा देने लगता है.

लोगों से बहस भी करता है कि कैसे जान देना कायरता नहीं बल्कि बहादुरी है. बहुत हौसले का काम है.

एक बार मरने का फैसला कर लेने के बाद वह तरीकों की खोज शुरू करता है. ज़हरखाना, फांसी पर लटकना, बिल्डिंग से कूदना, रेल की पटरी से कटना, आग लगा लेना जैसे तमाम विकल्पों के बारे में संजीदगी से सोचता है. वह मरने के बाद बदसूरत नहीं दिखना चाहता. साथ ही यह भी चाहता है कि मौत दर्दरहित हो. जो भी होना है बस जल्दी से हो जाए.

उस के लिए सब से दिलचस्प हिस्सा होता है उन संभावित प्रतिक्रियाओं के बारे में सोचना जो उस की मौत की ख़बर सुन कर आएंगी. करीबी दोस्तों और परिजनों के बारे में सोचता है कि फलां दोस्त या फलां रिश्तेदार क्या सोचेगा और क्या कहेगा. किसे कितना शॉक लगेगा!

उस के दिमाग में जो सब से बड़ा सवाल होता है वह उन जिम्मेदारियों का होता है जो उस के कंधों पर होती हैं. उस के मरने के बाद उस के परिवार और खासकर बच्चों का क्या होगा यह ख़याल उसे सब से ज़्यादा विचलित करता है.

वह अपने सुसाइड नोट को दिलचस्प बनाना चाहता है. इस के लिए तरहतरह के शब्दों और वाक्यों का प्रयोग खोजता है जिन का प्रयोग वह अपने सुसाइड नोट में कर सके.

वह अपने फैसले को जायज़ ठहरा कर जाना चाहता है. इस के लिए अपना जीवन निरर्थक साबित करने की ढेर सारी दलीलें इकट्ठी करता है.

सीजोफ्रेनिया भी है एक महत्वपूर्ण वजह

आधुनिक व्यस्त जीवनशैली और दौड़भाग भरी जिंदगी के कारण बढ़ता तनाव, पारिवारिक उलझनें, धोखेबाजी, अकेलापन आदि वजहों से लोग सीजोफ्रेनिया की चपेट में तेजी से आ रहे हैं.

आंकड़ों पर गौर करें तो देशभर में करीब 30 करोड़ लोग मानसिक रोग से ग्रसित हैं. उपचार के बाद मनोरोग को पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है लेकिन जागरूकता का अभाव सब से बड़ी परेशानी बन गई है. कान में अजीबोगरीब आवाजें आना, एकांत ढूंढना, गुस्सा अधिक आना और बेवजह का शक करना, ये कुछ ऐसे लक्षण हैं जो सिजोफ्रेनिया बीमारी का संकेत देते हैं. 15 से 25 साल में होने वाली यह बीमारी आम मानसिक बीमारियों से काफी अलग है. खास बात यह है कि इस बीमारी में मरीज को पता ही नहीं होता है कि वह सिजोफ्रेनिया ग्रसित है. इस में मरीज को ऐसी चीजें दिखाई व सुनाई देने लगती हैं जो वास्तविकता में है ही नहीं. जिस की वजह से वो बेतुकी बात करता है और समाज से कटने का प्रयास करता है. ऐसे में मरीज का सामाजिक व्यक्तित्व पूरी तरह से खत्म हो जाता है. कुछ मामलों में मरीजों में आत्महत्या की भावना भी पैदा हो जाती है.

आत्महत्या की प्रवृत्ति वाले सीजोफ्रेनियाग्रस्त मरीजों को अकेले नहीं छोड़ना चाहिए. इस बीमारी में एंटी सायकेट्रिक दवाएं एवं इलेक्ट्रिक शॉक ट्रीटमेंट बहुत फायदेमंद साबित होता है. उपचार में देरी या अनियमितता से बीमारी उग्र एवं लंबी अवधि की हो जाती है. तीन से छह माह के निरंतर उपचार के बाद ही इसका फायदा दिखता है. एक अनुमान के मुताबिक भारत की करीब 1.2 प्रतिशत आबादी सीजोफ्रेनिया से ग्रस्त है. हर एक हजार वयस्क लोगों में से करीब 12 लोग इस बीमारी से पीड़ित होते हैं. देशभर में जितनी आत्महत्याएं हो रही हैं, उनमें 90 प्रतिशत के पीछे मुख्य कारण इसे ही माना गया है.

सबसे अधिक जहर खाकर मरते हैं लोग

मरने वालों में सब से अधिक 20 फीसदी लोग जहर खाकर खुदकुशी करते हैं. ऐसा करने वालों में सब से अधिक कम और मध्यम वाले देशों में ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग और किसान होते हैं. इसके अलावा मौत को गले लगाने के लिए लोग फांसी और आग भी लगा लेते हैं.

लोग आत्महत्या क्यों करते हैं

अपना जीवन समाप्त कर लेने का ख़्याल आने के कई कारण हो सकते हैं. जैसे-

* उस इंसान को लगता है कि ज़िंदा रहने का कोई मतलब नहीं है. उस के मन में नकारात्मक विचार हावी होने लगते हैं और अपना जीवन बहुत दुख भरा लगने लगता है.

* धीरेधीरे उन्हें लगने लगता है कि उन के आसपास के लोग उन्हें पसंद नहीं करते. कोई उन से प्यार नहीं करता.

* आत्महत्या ही उन्हें अपने दर्द से मुक्ति का एकमात्र उपाय नजर आता है. ऐसे लोग अक्सर अवसाद ग्रस्त होते हैं.

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* पैनिक अटैक और दूसरों पर ख़ुद को बोझ समझने की भावना भी यह क़दम उठाने को उकसाती है.

* भारत में अभी भी प्रेम संबंध आत्महत्या करने का एक बड़ा कारण हैं. आधुनिकता का दम भरनेवाला समाज अभी भी प्रेम संबंधों के मामले में बहुत रूढ़िवादी है.

* कभीकभी लोग क्रोध, निराशा और शर्मिंदगी से भर कर भी ऐसा क़दम उठाते हैं.

* जो लोग असल ज़िंदगी में लोगों से मिलनेजुलने के बजाय वर्चुअल वर्ल्ड में अधिक समय बिताते हैं वे भी इस मानसिकता का शिकार बन सकते हैं.

* समाज द्वारा ठुकराए लोगों में भी ऐसी प्रवृति विकसित होने लगती है.

* अकेलेपन और अवसाद का सामना कर रहे लोग भी इस के आसान शिकार हो जाते हैं.

* जिन लोगों को कोई असाध्य बीमारी हो जाती है, वे भी निराशा के दौर में यह क़दम उठा लेते हैं.

* शराब और ड्रग्स जैसे नशे के आदी लोग भी अक्सर आत्महत्या की तरफ प्रवृत होते हैं.

* कभीकभी आर्थिक और भावनात्मक चोट के बाद भी लोग आत्महत्या के बारे में सोचने लगते हैं.

जिन लोगों के मन में लगातार इस तरह के नकारात्मक विचार चलते रहते हैं उन्हें ठीक से नींद नहीं आती.

उन का आत्मविश्वास कम हो जाता है.

आमतौर वे लोग अपने फ़िज़िकल अपियरेंस को लेकर उदासीन हो जाते हैं. उन्हें फ़र्क़ नहीं पड़ता कि वे कैसे दिख रहे हैं.

वे लोगों से कटने लगते हैं.

कई बार वे ख़ुद को छोटामोटा नुक़सान भी पहुंचाते हैं.

क्या करें यदि आप के मन में ऐसे विचार आते हों

* सब से पहले आप एक लंबा ब्रेक लें और अपनी ज़िंदगी को खुल कर जीने का प्रयास करें.

हमारी ज़्यादातर समस्याएं अस्तव्यस्त ज़िंदगी और ग़लत जीवनशैली के चलते पैदा होती हैं. अपनी जीवनशैली में बदलाव लाएं. ख़ुद पर ध्यान देना शुरू करें. खानपान को संतुलित करें. व्यायाम, स्विमिंग ,जॉगिंग जैसी गतिविधियों के लिए समय निकालें.

* नकारात्मक सोच से दूर रहे. उन लोगों के साथ अधिक समय बिताएं जिन से मिल कर और बातें कर आप अच्छा महसूस करते हैं. नेगेटिव लोगों को अपनी ज़िंदगी से निकाल दें.

* कोई भी समस्या ऐसी नहीं होती जिस का समाधान नहीं है. कुदरत एक दरवाजा बंद करता है तो दूसरा खोल भी देता है. बस जरुरत है दूसरी तरफ आशा भरी नजरों से देखने की.

* जीवन में कितना भी घाटा क्यों न हो, जिंदगी में तकलीफें भी कितनी ही क्यों न हों, यदि हौसला कायम रखा जाए और धैर्यपूर्वक दिमाग का उपयोग किया जाए तो हर समस्या से उबरा जा सकता है.

* अपनी हॉबीज को जिन्दा कीजिये. मन खुश करने वाले काम कीजिये.

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* हॉरर और इमोशनल फ़िल्में न देखें. हलकीफुलकी कहानियां और नॉवेल पढ़ें. गाने सुन कर मूड को फ्रेश रखें.

* यदि आप दुख और अवसाद महसूस कर रहे हैं तो उन दोस्तों से बात करें जिन से बात कर आप को अच्छा लगता है. जिन के सामने आप अपने दिल की बातें बयां कर सकते हों. उन्हें बताएं कि आप को क्या महसूस हो रहा है. वे आप को चीज़ों को देखने की नई दृ‌ष्टि दे सकते हैं. कोई रास्ता बता सकते हैं.

* आत्महत्या की भावना मन में आ रही हो तो भूल कर भी अकेले न रहें. परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताएं. कहीं घूमने का प्लान बनाएं. नई जगह जाने से आप तरोताज़ा महसूस करेंगे.

* जरुरत लगे तो किसी मनोचिकित्सक से मिलने में संकोच न करें.

10 टिप्स: ऐसे सजाएं अपना Bedroom

दिनभर की भागदौड़ के बाद एक अच्छा और सजा हुआ बेडरूम आपकी थकान को अनायास ही कम कर देता है. ऐसे में बेडरूम को सही तरीके से सजाना बहुत जरुरी  है. मुंबई जैसे शहर में बड़ा घर खरीदना एक सपना होता है. घर चाहे बड़ा हो या छोटा उसे सही तरीके से सजाना बहुत आवश्यक है, क्योंकि खुद से सजाया गया बेडरूम एक अलग एहसास करवाता है. इतना ही नहीं अगर आपने एक नया घर लिया है और आपको समझ नहीं आ रहा है कि बेडरूम को कैसे सजाएं, तो ये जानकारी आपके लिए कारगर सिद्ध होगी.

इस बारे में वेलस्पन इंडिया की इंटीरियर डिजाइनर अश्विनी वैद्य कहती हैं कि पूरे दिन काम करने के बाद अगर एक खुबसूरत बेडरूम आपने सजाया है, तो वह आपका सबसे कॉम्फोर्ट वाला जोन होता है. हालांकि इसे सजाते समय कमरे का आकार, दीवारों के रंग, मौसम और आपकी सोच भी निर्भर करती है, लेकिन कुछ टिप्स निम्न हैं, जिसे अपनाकर आप अपने बेडरूम को आकर्षक बना सकती है.

1. बेड को बेडरूम में सही तरह से सजाना एक कला है, इसके लिए सही आकार के बेड को चुने, जो कमरे में रखने के बाद थोड़ी जगह बचे.

2. किसी भी सामान को बाहर न रखना पड़े इसके लिए बेड में बौक्स का प्रोविजन रखें.

3. दीवारों के रंग के आधार पर बेड लें, क्योंकि इससे कमरा साफ सुथरा और आराम दायक लगेगा, अपनी पसंद के आकार का बेड खरीदने के लिए आप औनलाइन का सहारा ले सकती हैं.

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4. आरामदायक गद्दे का चयन बेड के लिए करें, जो न तो अधिक मुलायम हो और न ही अधिक सख्त, ताकि आपके पीठ को आराम मिले और सुकून की नींद आयें.

5. बेड को सजाने के लिए डेकोरेटिव तकिये, अच्छी क्वालिटी के चद्दर, चिक और शम्स का प्रयोग करें, तकिये का आकार भी बेड के अनुसार चुनें, आजकल तकिये अलग-अलग आकार के मिलते हैं, अपनी पसंद के अनुसार दो या तीन आकार के चुनें.

6. बेड के चद्दर हमेशा हल्के रंग के दीवारों से मेल खाते हुए लें, अगर आपका कमरा छोटा है, तो बड़े प्रिंट और गहरे रंग वाले चद्दर कभी न लें, थोड़ी सी कढ़ाई या मोटिफ्स इसे आकर्षक बनाती है.

7. पांव के नीचे चद्दर से मेल खाते हुए ब्लैंकेट रखे, जो आपके बेड को अलग तरह की खूबसूरती प्रदान करते हैं, ये बाजार में अलग-अलग फेब्रिक्स में मिलते हैं, इसके अलावा नींद से उठने के बाद बेड को कवर करने के लिए बेड स्प्रेड अवश्य रखें.

8. बेडरूम में बेड ही पूरी जगह को घेर लेता है, ऐसे में आस-पास के बचे हुए स्थान में साइड टेबल, थोड़ी सी हल्की फर्नीचर रख सकती हैं, जिसपर बैठकर आप किताब पढ़ कर मूड को फ्रेश कर सकती हैं, इसके अलावा साइड टेबल पर कुछ डेकोरेटिव आइटम या फ्लावर पौट रखकर उसकी शोभा और बढ़ा सकती हैं.

9. लाइट का सही प्रयोग बेडरूम में करना बहुत जरुरी है, अधिक भड़कीली लाइट का प्रयोग बेडरूम में कभी न करें, येलो लाइट या डिम लाइट का प्रयोग बेडरूम में सही रहता है, मध्यम रौशनी में बेडरूम रोमांटिक हो जाता है.

10. अधिक सामानों से बेडरूम को कभी भरे नहीं, बल्कि कम से कम सामान रखकर बेडरूम को हमेशा साफ सुथरा रखें. इसके अलावा बेडरूम की सजावट में मौसम भी मुख्य भूमिका निभाता है. गर्मियों में सौ प्रतिशत सूती, लिनेन, टेंसल फेब्रिक के चद्दर का प्रयोग करें, ये चद्दर धोने और बिछाने के लिए काफी अच्छे होते हैं. मानसून में नमी युक्त मौसम होने की वजह से ऐसी चद्दर की जरुरत पड़ती है जो जल्दी सूख जाये, ऐसे में कौटन और पौलिएस्टर मिश्रित चद्दर लेना फायदेमंद होता है. जाड़े में जब पारा नीचे गिरता है, तब गर्म और आरामदायक बिस्तर सबको आकर्षित करता है. फलालैन के चद्दर इस मौसम में काफी गर्मी प्रदान करते हैं जो एक अच्छी और सुकून की नींद देते हैं.

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क्षोभ- शादी के नाम पर क्यों हुआ नितिन का दिल तार-तार

यह कहना सही नहीं होगा कि नितिन की जिंदगी में खुशी कभी आई ही नहीं. खुशी आई तो जरूर, लेकिन बिलकुल बरसात की उस धूप की तरह, जो तुरंत बादलों से घिर जाती है. जहां धूप खिली वहीं बादलों ने आ कर चमक धुंधली कर दी, यानी जैसे ही मुसकराहट कहकहों में बदली वैसे ही आंखों ने बरसना शुरू कर दिया.

यों तो नितिन के पापा नामीगिरामी डाक्टर थे, पैसे की कोई कमी नहीं थी, फिर भी परिवार इतना बड़ा था कि सब के शौक पूरे करना या सब को हमेशा उन की मनचाही चीज दिलाना मुश्किल होता था. इस मामले में नितिन कुछ ज्यादा ही शौकीन था और अपने शौक पूरे करने का आसान तरीका उसे यह लगा कि फिलहाल पढ़ाई में दिल लगाए ताकि जल्दी से अच्छी नौकरी पा कर अपने सारे अरमान पूरे कर सके.

कुछ सालों में ही नितिन की यह तमन्ना पूरी हो गई. बढि़या नौकरी तो मिल गई, लेकिन नौकरी मिलने की खुशी में दी गई पार्टी में पापा का अचानक हृदयगति रुक जाने के कारण देहांत हो गया. खुशियां गम में बदल गईं.

7 भाईबहनों में नितिन तीसरे नंबर पर था. बस एक बड़ी बहन और भाई की शादी हुई थी बाकी सब अभी पढ़ रहे थे.

नितिन ने शोकाकुल मां को आश्वस्त किया कि अब छोटे भाईबहनों की पढ़ाई और शादी की जिम्मेदारी उस की है. सब को सेट करने के बाद ही वह अपने बारे में सोचेगा यानी अपनी गृहस्थी बसाएगा और उस ने यह जिम्मेदारी बखूबी निबाही भी. अपने शौक ही नहीं कैरिअर को भी दांव पर लगा दिया.

हालांकि दूसरे शहरों में ज्यादा वेतन की अच्छी नौकरियां मिल रही थीं, लेकिन नितिन ने हमेशा अपने शहर में रहना ही बेहतर समझा. कारण, एक तो रहने को अपनी कोठी थी, दूसरे मां और छोटे भाईबहन उस के साथ रहने से मानसिक रूप से सुरक्षित और सहज महसूस करते थे.

अत: वह मेहनत कर के वहीं तरक्की करता रहा. वैसे बड़े भाई ने भी हमेशा यथासंभव सहायता की, फिर दूसरे भाईबहनों ने भी नौकरी लगते ही घर का छोटामोटा खर्च उठाना शुरू कर दिया था.

कुछ सालों के बाद सब चाहते थे कि नितिन शादी कर ले, लेकिन उस का कहना था कि सब से पहले छोटे भाई निखिल को डाक्टर बनाने का पापा का सपना पूरा करने के बाद ही वह अपने बारे में सोचगा.

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निखिल से बड़ी बहन विभा की शादी से पहले ही मां की मृत्यु हो गई. तब तक दूसरे भाइयों के बच्चे भी बड़े हो चले थे और उन सब के अपने खर्चे ही काफी बढ़ गए थे. नितिन से उन की परेशानी देखी नहीं गई. उस ने विभा की शादी और निखिल की पढ़ाई का पूरा खर्च अकेले उठाने का फैसला किया. भविष्य निधि से कर्ज ले कर उस ने विभा की शादी उस की पसंद के लड़के से धूमधाम से करा दी और निखिल को भी मैडिकल कालेज में दाखिल करा दिया.

निखिल की नौकरी लग जाने के बाद नितिन पुश्तैनी कोठी में बिलकुल अकेला रह गया था. 2 बहनें उसी शहर में रहती थीं, जो उसे अकेलापन महसूस नहीं होने देती थीं.

दूसरे भाईबहन भी बराबर उस से संपर्क बनाए रखते थे, सिवा निखिल के. वह कन्याकुमारी में अकेला रहता था और सब को तो फोन करता था, लेकिन नितिन से उस का कोई संपर्क नहीं था. चूंकि उस का हाल दूसरों से पता चल जाता था, इसलिए नितिन ने स्वयं कभी निखिल से बात करने की पहल नहीं की.

मझली बहन शोभा की बेटी की शादी की तारीख तय हो गई थी, लेकिन उस के पति को किसी जरूरी काम से विदेश जाना पड़ रहा था और वह शादी से 2 दिन पहले ही लौट सकता था. उधर लड़के वाले तारीख आगे बढ़ाने को तैयार नहीं थे. शोभा बहुत परेशान थी कि अकेले सारी तैयारी कैसे करेगी?

‘‘तू बेकार में परेशान हो रही है, मैं हूं न तेरी मदद करने को. हरि से बेहतर तैयारी करा दूंगा,’’ नितिन ने आश्वासन दिया, ‘‘तुम सब की शादियां कराने का तजरबा है मुझे.’’

 

एक दिन बाहर से आने वाले मेहमानों की सूची बनाते हुए नितिन ने शोभा से कहा, ‘‘निखिल से भी आग्रह कर न शादी में आने के लिए. इसी बहाने उस से भी मिलना हो जाएगा. बहुत दिन हो गए हैं उसे देखे हुए.’’

‘‘हम सब भी चाहते हैं भैया कि निखिल आए और वह आने को तैयार भी है, लेकिन उस की जो शर्त है वह हमें मंजूर नहीं है,’’ शोभा ने सकुचाते हुए कहा.

‘‘ऐसी क्या शर्त है?’’

‘‘शर्त यह है कि आप शादी में शरीक न हों. वह आप से मिलना नहीं चाहता.’’

‘‘मगर क्यों?’’ नितिन ने चौंक कर पूछा. उसे यकीन नहीं आ रहा था कि जिस निखिल की पढ़ाई का कर्ज वह अभी तक उतार रहा है, जिस निखिल ने रैचेल से उस का परिचय यह कह कर करा दिया था कि अगर मेरे यह भैया नहीं होते तो मैं कभी डाक्टर नहीं बन सकता था, वह उस की शक्ल देखना नहीं चाहता.

फिर शोभा को चुप देख कर नितिन ने अपना सवाल दोहराया, ‘‘मगर निखिल मुझ से मिलना क्यों नहीं चाहता?’’

‘‘क्योंकि रैचेल की मौत के लिए वह आप को जिम्मेदार मानता है.’’

‘‘यह क्या कह रही है तू?’’ नितिन चीखा, ‘‘तुझे मालूम भी है कि रैचेल की

मौत कैसे हुई थी? मगर तुझे मालूम भी कैसे होगा, तू तो तब जरमनी में थी. सुनाऊं तुझे पूरी कहानी?’’

‘‘जी, भैया.’’

नितिन बेचैनी से कमरे में टहलने लगा, जैसे तय कर रहा हो कि कहां से शुरू करे, क्या और कितना बताए? फिर बताना शुरू किया, ‘‘उन दिनों अपनी कोठी में मैं अकेला ही रह गया था. पढ़ाई खत्म होते ही निखिल को शहर से दूर एक अस्पताल में रैजीडैंट डाक्टर की नौकरी मिल गई अत: उसे वहीं रहना पड़ा. एक दिन अचानक निखिल ने मुझे फोन किया कि मैं शाम को जल्दी घर आ जाऊं, वह मुझे किसी से मिलवाना चाहता है. उस दिन बहुत उमस थी, इसलिए मैं ने छत पर कुरसियां लगवा दीं. कुछ देर बाद निखिल रैचेल के साथ आया. उस ने बताया कि वह और रैचेल हाई स्कूल से एकदूसरे से प्यार करते हैं, अब डाक्टर बनने के बाद दोनों चाहते हैं कि अगर मेरी इजाजत हो तो वे शादी कर लें.

‘‘न जाने क्यों मुझे रैचेल बहुत ही प्यारी और अपनी सी लगी. ऐसा लगा जैसे मैं उसे बहुत दिनों से जानता हूं. उस के आते ही उस उमस भरी शाम में अचानक किसी बरसात की सुहानी शाम की सी खुशगवार नमी तैरने लगी थी. मैं ने कहा कि मैं तो खुशी से उन की शादी के लिए तैयार हूं, लेकिन क्या रैचेल का परिवार इस विजातीय शादी के लिए इजाजत देगा? तब रैचेल बोली कि उस की मां कहती हैं कि अगर निखिल का परिवार एक विधर्मी बहू को सहर्ष स्वीकार लेता है तो उन्हें भी कोई एतराज नहीं होगा.

‘‘मैं ने उसे आश्वासन दिया कि सब से छोटा होने के कारण निखिल सब का लाड़ला है और उस की खुशी पूरे परिवार की खुशी होगी. रही विधर्मी होने की बात तो अभी तक तो अपने परिवार में कोई विजातीय शादी नहीं हुई है, मगर मैं भी शीघ्र ही एक विधर्मी और अकेली महिला से शादी करने वाला हूं, बस निखिल के सैटल होने का इंतजार कर रहा था. निखिल यह सुन कर बहुत खुश हुआ. उस के पूछने पर मैं ने बताया कि वह महिला एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के चेयरमैन की सेके्रटरी है, औफिस के काम के सिलसिले में उस से मुलाकात हुई थी. विधवा है या परित्यक्ता, यह मैं ने कभी नहीं पूछा, क्योंकि उस ने शुरू में ही बता दिया था कि उसे खुद के बारे में बात करना कतई पसंद नहीं है और न ही निजी जिंदगी को दोस्ती से जोड़ना. दोस्ती को भी वह सीमित समय ही दे सकती है, क्योंकि नौकरी के अलावा उस की अपनी निजी जिम्मेदारियां भी हैं. मैं ने उसे बताया कि जिम्मेदारियां तो मेरी भी कम नहीं हैं, समय और पैसे दोनों का ही अभाव है और किसी स्थाई रिश्ते यानी शादीब्याह के बारे में तो फिलहाल सोच भी नहीं सकता.

‘‘निखिल और रैचेल के कुरेदने पर मैं ने बताया कि यह सुन कर वह और ज्यादा आश्वस्त हो गई और उस ने मेरी ओर दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया. फुरसत के गिनेचुने क्षण हम दोनों इकट्ठे गुजारने लगे, जिस से हमारी एक ही ढर्रे पर चलती वीरान जिंदगी में बहार आ गई.

‘‘खुद के बारे में कभी न सोचने वालों को भी अपने लिए जीने की वजह मिल गई थी. दूसरों के साथसाथ अब हम अपने लिए भी सोचने लगे थे. अकसर सोचते थे कि जब हमारी सारी जिम्मेदारियां खत्म हो जाएंगी, तब हम दोनों इकट्ठे सिर्फ एकदूसरे के लिए जीएंगे. सपने देखा करते थे कि क्याक्या करेंगे, कहांकहां जाएंगे.’’

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‘‘निखिल यह सुन कर भावविह्वल हो गया और बोला कि भैया, कितने जुल्म किए आप ने खुद पर हमारे लिए, जब तक किसी से प्यार न हो, शायद अकेले रहना आसान हो, लेकिन किसी को चाहने के बाद उस से दूर रहना बहुत मुश्किल होता है.

‘‘मैं ने मजाक में पूछा कि उस की क्या मजबूरी थी, वह क्यों रैचेल से दूर रह रहा था? तब निखिल बोला कि एक तो शादी से पहले आत्मनिर्भर होना चाहता था, दूसरे रैचेल की भी कुछ मजबूरियां थीं. लेकिन अब जब मैं डाक्टर बन गया हूं और अलग भी रहने लगा हूं, तो आप अपनी शादी क्यों टाल रहे हैं?

‘‘तुम्हारी होने वाली भाभी का कहना है कि वह अभी कुछ दिन और शादी नहीं कर सकती. इस पर वह बोला कि यानी फिलहाल आप के ब्रह्मचर्य के खत्म होने के आसार नहीं हैं.

‘‘मैं ठहाका लगा कर हंस पड़ा कि ब्रह्मचर्य तो तुम्हारे यहां से जाते ही खत्म हो गया था निखिल. अकेला रहता हूं, इसलिए न तो कोई रोकटोक है और न ही समय की पाबंदी. जब भी उसे मौका मिलता है या उस का दिल करता है वह आ जाती है, फिर पूरे घर में हम दोनों स्वच्छंद विहार करते हैं.

‘‘रैचेल और निखिल को हैरान होते देख कर मैं चुप हो गया. फिर कुछ सोच कर बोला कि तुम दोनों तो डाक्टर हो, जीवविज्ञान के ज्ञाता, तुम क्यों जीवन के शाश्वत सत्य और परमसुख के बारे में सुन कर शरमा रहे हो? जल्दी से शादी करो और जीवन का अलौकिक आनंद लो. तुम दोनों को तो खैर सब कुछ मालूम ही होगा, मैं बालब्रह्मचारी तो उस से सट कर बैठने में ही खुश था, लेकिन उस की तो पहले शादी हो चुकी है न इसलिए उस ने मुझे बताया कि इस से आगे भी बहुत कुछ है. अभी भी कहती रहती है कि यह तो कुछ भी नहीं है, अपने रिश्ते पर समाज और कानून की मुहर लग जाने दो, फिर पता चलेगा कि चरमसुख क्या होता है.

‘‘तभी मेरे मोबाइल की घंटी बजी, उसी का फोन था यह बताने को कि वह आ रही है कुछ देर के लिए. मैं ने निखिल को उत्साह से बताया कि संयोग से वह आ रही है अत: वे लोग उस से मिल कर ही जाएं और फिर शरारत से कहा कि लेकिन मिलते ही चले जाना. हमारे सीमित समय के रंग में भंग करने रुके मत रहना.

‘‘निखिल ने कहा कि वे भी जल्दी में हैं, क्योंकि उन्हें रैचेल की मां के पास भी जाना है यह बताने कि आप ने इजाजत दे दी है और अब उन की इजाजत ले कर जल्दी से जल्दी शादी करना चाहते हैं.

‘‘मैं ने कहा कि तुम्हारी भाभी से पूछते हैं. अगर वह मान जाती हैं तो दोनों भाई एकसाथ ही शादी कर लेंगे. निखिल को बात बहुत पसंद आई और उस ने कहा कि मैं भी आज ही यह बात पूछ लेता हूं ताकि वह भी रैचेल की मां से उसी तारीख के आसपास शादी तय करने को कह सकें.

‘‘तभी नीचे से गाड़ी के हार्न की आवाज आई तो मैं ने उत्साह से कहा कि लो तुम्हारी भाभी आ गईं. रैचेल लपक कर मुंडेर के पास जा कर नीचे देखने लगी और फिर पलक झपकते ही वह मुंडेर पर चढ़ कर नीचे कूद गई.

‘‘जब मैं और निखिल नीचे पहुंचे तो सिल्विया रैचेल के क्षतविक्षत शव को संभाल रही थी. उस ने मुझ से एक चादर लाने को कहा. जब मैं चादर ले कर आया तो वह निखिल से बात कर रही थी. उस ने मुझे बताया कि वह निखिल के साथ रैचेल को उस के घर ले जा रही है. मैं ने कहा कि मैं भी साथ चलूंगा, मगर वे दोनों बोले कि मैं वहीं रुक कर पानी से खून साफ कर दूं ताकि किसी को कुछ पता न चले और पुलिस केस न बने. फिर वे दोनों तुरंत चले गए. मैं ने खून को अच्छी तरह साफ कर दिया.

‘‘उस रात सिल्वी ने अपना मोबाइल बंद रखा. अपने घर का फोन नंबर और पता तो उस ने मुझे कभी दिया ही नहीं था. निखिल का मोबाइल भी बंद था.

‘‘अगले दिन वह औफिस नहीं आई और निखिल भी अस्पताल नहीं गया. उस हादसे के बाद दोनों की मनोस्थिति काम पर जाने लायक नहीं होगी और क्या मालूम रात को कब घर आए हों और अभी सो रहे हों, यह सोच कर मैं ने उस दिन दोनों से ही संपर्क नहीं किया.

अगले दिन भी दोनों के मोबाइल बंद थे. शाम को मैं निखिल के अस्पताल में गया तो पता चला कि वह उसी सुबह अचानक नौकरी छोड़ने के एवज में 1 महीने का वेतन दे कर जाने कहां चला गया है.

‘‘मुझे निखिल के इस अनापेक्षित व्यवहार से धक्का तो लगा, लेकिन इस से पहले कि मैं उस की शिकायत दूसरे भाईबहनों से करता, कुदरत ने मुझे एक और जबरदस्त झटका दिया. घर लौटने पर मुझे कुरिअर द्वारा सिल्विया का पत्र मिला, जिस में उस ने लिखा था कि जब तक मुझे यह पत्र मिलेगा तब तक वह इस दुनिया से जा चुकी होगी और मेरे लिए उसे भूलना ही बेहतर होगा.

‘‘मैं ने उसे भूलने के बजाय और सब को भूल कर उस के साथ गुजारे लमहों की यादों के सहारे जीना बेहतर समझा. मैं भी लंबी छुट्टी ले कर हिमालय की घाटियों में चला गया. लेकिन उम्र भर कोल्हू के बैल की तरह काम करने वाला आदमी ज्यादा दिनों तक खाली नहीं रह सकता था. फिर चाहे कितनी ही सादगी से क्यों न रहो पैसा तो चाहिए ही और मेरे पास कोई जमापूंजी भी नहीं थी.

फिर अभी भविष्य निधि से लिया कर्ज भी चुकाना था.

‘‘अत: मैं फिर काम पर लौट आया. काम के अलावा और किसी भी चीज में अब मेरी दिलचस्पी नहीं रही थी. लेकिन खून के रिश्ते टूटते नहीं. तुझे निक्की की शादी के काम के लिए परेशान देख कर मैं उस की शादी की तैयारी करवाने के चक्कर में फिर से दुनियादारी में लौट आया. यह सोच कर कि जब और सब आ रहे हैं तो निखिल क्यों न आए, तुझे उसे बुलाने को कहा. अब तू ही बता, रैचेल की मृत्यु के लिए मैं जिम्मेदार क्यों और कैसे?’’

‘‘आप ने शायद सिल्विया के साथ अपने अंतरंग संबंधों का खुलासा कुछ ज्यादा खुल कर कर दिया था भैया,’’ शोभा धीरे से बोली.

नितिन चिढ़ गया, फिर बोला, ‘‘हो सकता है, लेकिन उस का रैचेल के छत से कूदने से क्या ताल्लुक?’’

‘‘क्षोभ, शर्म भैया, क्योंकि सिल्विया उस की मां थी.’’

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झूठा सच- कंचन के पति और सास आखिर क्या छिपा रहे थे?

कंचन का शक यकीन में बदलता जा रहा था कि कोई न कोई बात है जो पंकज और उस की मां उस से छिपा रहे हैं. और वह दिन भी आया जब सच उस के सामने था. लेकिन अब सच और झूठ का फैसला उसे ही करना था.

जीवनलालने अपने दोस्त गिरीश और उस की पत्नी दीपा को उन की बेटी कंचन के लिए उपयुक्त वर तलाशने में मदद करने हेतु अपने सहायक पंकज से मिलवाया. दोनों को सुदर्शन और विनम्र पंकज अच्छा लगा. वह रेलवे वर्कशौप में सहायक इंजीनियर था. परिवार में सिवा मां के और कोई न था जो एक जानेमाने ट्यूटोरियल कालेज में पढ़ाती थीं. राजनीतिशास्त्र की प्रवक्ता कंचन की शादी के लिए पहली शर्त यही थी कि उसे नौकरी छोड़ने के लिए नहीं

कहा जाएगा. स्वयं नौकरी करती सास को बहू

की नौकरी से एतराज नहीं हो सकता था. यह

सब सोच कर गिरीश ने जीवनलाल से पंकज

और उस की मां को रिश्ते के लिए अपने घर लाने को कहा.

अगले रविवार को जीवनलाल अपनी पत्नी तृप्ता, दोनों बच्चों-कपिल, मोना और पंकज व उस की मां गीता के साथ गिरीश के घर पहुंच गए.

‘‘मामा, चाचा, मौसा और फूफा वगैरा सब हैं लेकिन उत्तर प्रदेश में. हैदराबाद आने के बाद उन से संपर्क नहीं रहा या सच कहूं तो पापा के रहते जिन रिश्तेदारों से हमारी सरकारी कोठी भरी रहती थी, पापा के जाते ही वही रिश्तेदार हम बेसहारा मांबेटों से कन्नी काटने लगे थे,’’ पंकज ने अन्य रिश्तेदारों के बारे में पूछने पर बताया, ‘‘इसलिए मैं मां को ले कर हैदराबाद चला आया और यहां के परिवेश में हम एकदूसरे के साथ पूर्णतया संतुष्ट हैं.’’

‘‘पंकज की शादी हो जाए तो मेरा परिवार भरापूरा हो जाएगा,’’ गीता ने जोड़ा.

‘‘आप कंचन को पसंद कर लें तो वह भी जल्दी हो जाएगा,’’ जीवनलाल ने कहा.

‘‘हम तो आप के बताए विवरण से ही कंचन को पसंद कर के यहां आए हैं लेकिन

हम भी तो कंचन को पसंद आने चाहिए,’’

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गीता हंसी.

‘‘कंचन की पसंद पूछ कर ही आप को यहां आने की तकलीफ दी है,’’ दीपा ने भी उसी अंदाज में कहा, ‘‘हमारी बेटी की एक ही शर्त है कि आप उसे नौकरी छोड़ने को न कहें.’’

‘‘नहीं कहूंगी लेकिन एक शर्त पर कि यह भी कभी मुझे नौकरी छोड़ने को नहीं कहेगी.’’

‘‘तो फिर तो बात पक्की, मुंह मीठा करवाओ दीपा बहन.’’

तृप्ता के कहने पर दीपा मिठाई ले आई. चायनाश्ते के बाद जीवनलाल ने कहा कि अब सगाईशादी की तारीखें भी तय कर लो.

‘‘वह तो आप कब छुट्टी देंगे, उस पर निर्भर करता है, सर,’’ पंकज बोला, ‘‘इस पर भी कि वे स्वयं कब छुट्टी लेते हैं, क्योंकि सबकुछ उन्हें ही तो करना है.’’

गीता गिरीश और दीपा की ओर मुड़ी, ‘‘जिस तरह से उन्होंने यह

शादी की बात चलाई है उसी तरह से तृप्ता भाभी और जीवन भैया, पंकज के अभिभावक बन कर बहू के गृहप्रवेश तक की सभी रस्में निबाहेंगे. आप अब क्या करना है या कैसे करना है, उन से ही पूछिएगा. रहा लेनदेन का सवाल तो मुझे बस आप की बेटी चाहिए और अब इस विषय में मुझ से कोई कुछ नहीं पूछेगा.’’

गीता आराम से सोफे से पीठ लगा कर

बैठ गई.

‘‘पूछेंगे कैसे नहीं गीताजी, शादी में आने वाले रिश्तेदारों के बारे में तो बताना ही होगा,’’ दीपा ने प्रतिवाद किया, ‘‘शादी में रौनक तो उन लोगों के आने से ही आएगी.’’

‘‘रौनक की फिक्र मत करिए,’’ पंकज बोला, ‘‘मेरे बहुत दोस्त और सहकर्मी हैं, ज्यादा हंगामा चाहिए तो मम्मी के छात्रछात्राएं हैं.’’

‘‘मेरे छात्रछात्राओं की क्या जरूरत है?’’ गीता हंसी, ‘‘कंचन के ननददेवर हैं न मोना

और कपिल, अपने दोस्त सहेलियों के साथ धूम मचाने को.’’

शादी बहुत धूमधाम और हंसीखुशी से हो गई. कंचन पंकज के साथ बेहद खुश थी. गीता से भी उसे कोई शिकायत नहीं थी. कोचिंग कक्षाएं तो सुबहशाम ही लगती हैं. सो, गीता सुबह से ही जाती थी और कंचन के कालेज जाने के बाद लौटती थी. दिनभर घर में रहती थी. सो, नौकरानी से सब काम भी करवा लेती थी.

कंचन को घर लौटने पर गरम चायनाश्ता मिल जाता था. कुछ देर गपशप के बाद गीता फिर कालेज चली जाती थी और कंचन पूरी शाम पंकज के साथ जैसे चाहे बिता सकती थी. संक्षेप में, सास के संरक्षण का सुख बगैर किसी हस्तक्षेप या जिम्मेदारी के.

1 साल पलक झपकते गुजर गया. मांबेटे में रात को ही बात होती थी लेकिन कुछ रोज से कंचन को लग रहा था कि गीता कुछ असहज है. वह पंकज से अकेले में बात करने की कोशिश में रहती थी. कंचन के आते ही, बड़ी सफाई से बात बदल देती थी. कंचन ने यह बात अपनी मां दीपा को बताई.

‘‘पंकज के उस बेचारी का अपना सगा कोई और तो है नहीं जिस से कोई निजी दुखसुख या पुरानी यादें बांटे. तू खुद ही उन्हें अकेले छोड़ा कर, और पंकज से भी कभी मत पूछना कि मां उस से क्या कह रही थीं,’’ दीपा ने समझाया.

एक रात सब ने खाना खत्म ही किया था कि बिजली चली गई. पंकज और गीता बाहर बरामदे में बैठ गए और कंचन मोमबत्ती की रोशनी में मेज साफ कर के रसोई समेटने लगी. काम खत्म कर के उस ने बेखयाली में मोमबत्ती बुझा दी. स्ट्रीट लाइट की रोशनी में बरामदे का रास्ता नजर आ रहा था. वह धीरे से उसी के सहारे आगे बढ़ गई. तभी उसे बरामदे से मांबेटे की वार्तालाप सुनाई दी. पंकज कह रहा था, ‘‘कितनी भी सिफारिश लगवा लूं रेलवे से तो भी 3 बैडरूम वाला घर नहीं मिल सकता, मां. कई हजार रुपया किराया दे कर बाहर ही घर लेना पड़ेगा. सोच रहा हूं इतना किराया देने से बेहतर है अपना फ्लैट ही खरीद लें. गाड़ी

के बजाय मकान के लिए ऋण ले लेता हूं.’’

‘‘उस सब में समय लगेगा पंकज, हमें तो 3 कमरों का घर जल्दी से जल्दी चाहिए,’’ गीता के स्वर में चिंता थी, ‘‘किराए की फिक्र मत कर, जितना भी होगा मैं देने को तैयार हूं. तू बस इतना देख कि गैस्टरूम तुम्हारे व मेरे कमरे से अलग हो.’’

कंचन चौंक पड़ी. रेलवे की ओर से उन्हें 2

बैडरूम का कौटेजनुमा घर मिला हुआ था. सामने छोटा सा लौन था, पीछे किचन गार्डन और ऊपर खुली छत भी थी. नौकरानी भी पास के बंगले के आउट हाउस में रहती

थी. सो, देरसवेर जब बुलाओ, वह आ जाती थी. ये सब छोड़ कर किराए के आधुनिक दड़बेनुमा

फ्लैट में जाने की क्या जरूरत आ पड़ी थी? अपने 3 सदस्यों के परिवार के लिए तो यह घर काफी है. तो फिर क्या कोई मेहमान आ रहा है? मगर कौन?

‘‘हड़बड़ाओ मत, मां. बराबर वाले घर में विधुर चौधरीजी बेटे के साथ रहते हैं और बेटा अगले महीने विदेश जा रहा है. वे खुशी से हमें एक कमरा दे देंगे. आप अब इस बारे में न तो फिक्र करो और न ही बात,’’ पंकज ने कहा और पुकारा, ‘‘तुम अंधेरे और गरमी में अंदर क्या कर रही हो, कंचन?’’

‘‘हां, बेटी, यहां आ कर बैठ. बड़ी अच्छी हवा चल रही है,’’ गीता भी बोली.

इस का मतलब था कि मां ने भी बात खत्म कर दी है. अब पूछने पर भी कोई कुछ नहीं बताएगा और वैसे भी पंकज ने फिलहाल तो मकान बदलना टाल ही दिया था.

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जयपुर में होने वाली अंतर्राज्यीय बैडमिंटन प्रतियोगिता

में कंचन के कालेज की टीम चुनी गई थी. अपने समय में कंचन भी राज्य स्तर की खिलाड़ी रह चुकी थी और अभी भी छात्राओं के साथ अकसर बैडमिंटन खेलती थी. प्रिंसिपल और छात्राएं चाहती थीं कि कंचन भी टीम के साथ

जयपुर जाए. कंचन ने पंकज और गीता से पूछा. दोनों ने सहर्ष अनुमति दे दी.

लौटने वाले रोज उन सब की ट्रेन रात की थी. लड़कियां जयपुर घूमना और खरीदारी करना चाहती थीं. आयोजकों ने उन के लिए एक प्राइवेट टैक्सी की व्यवस्था करवा दी. ड्राइवर रामसेवक अधेड़ उम्र का संभ्रांत व्यक्ति था, उस ने बड़ी अच्छी तरह से लड़कियों को दर्शनीय स्थल दिखाए. दिनभर

घूमने के बाद कंचन थक गई

थी. सो, मिर्जा इस्माइल रोड

पहुंचने पर उस ने कहा कि वह शौपिंग के बजाय गाड़ी में आराम करना चाहेगी.

‘‘इतनी गरमी में? हम आप को अकेले नहीं छोड़ेंगे, मैडम,’’ लड़कियों ने कहा.

‘‘मैं हूं न मैडम के पास,

गाड़ी में एसी भी चलता रहेगा,’’ रामसेवक ने कहा. ‘‘आप लोग इतमीनान से जा कर खरीदारी

कर लो.’’

‘‘धन्यवाद, भैयाजी. नाम और बोलचाल से तो आप उत्तर भारत के लगते हैं, यहां कैसे आ गए?’’ कंचन ने पूछा.

रामसेवक ने आह भरी, ‘‘अब क्या बताएं मैडम. हालात ही कुछ ऐसे हो गए कि रोटीरोजी के लिए घर से दूर आना पड़ गया.’’

‘‘क्यों, ऐसा क्या हो गया?’’

‘‘अपने घर में सभी पढ़ेलिखे और सरकारी नौकरी में हैं. हमें न पढ़ना पसंद था न नौकरी करना, गाड़ी चलाने का बहुत शौक था. सो, बाबूजी ने हमें टैक्सी दिलवा दी. हम भी सब के मुकाबले में कमा खा रहे थे कि हमारे बड़के भैया ने गड़बड़ कर दी. वे थे तो सरकारी अफसर मगर शबाब और शराब के शौकीन.

‘‘एक रोज नशे की हालत में एक मातहत की बीवी पर हाथ

डाल दिया और पकड़े गए. जीजाजी के रसूख से किसी तरह छूट गए. भाभी के चिरौरी करने और बेटे के भविष्य का हवाला देने से कुछ साल तो संभल कर रहे लेकिन

बेटे को रेलवे में नौकरी मिलते ही फिर पुराने रंगढंग चालू कर दिए और एक नेता की चहेती के साथ मुंह काला करते हुए पकड़े गए. नेता की चहेती थी, सो मामला

तूल पकड़ गया और 7 साल की जेल हो गई.

‘‘परिवार की इतनी बदनामी हुई कि लोग मेरी टैक्सी में बैठने से भी डरने लगे. टैक्सी का धंधा तो शहर के होटल और अन्य संस्थानों से जुड़ने पर ही चलता है. सो उन के नकारे जाने पर यहां आ गया. मुझे ही नहीं, भाभी और उन के बेटे को भी अपना शहर छोड़ कर दूर जाना पड़ा.’’

कंचन की दिलचस्पी थोड़ी बढ़ी, ‘‘दूर कहां?’’

‘‘हैदराबाद. वहां रेलवे में इंजीनियर है हमारा भतीजा लेकिन हमारे ताल्लुकात नहीं हैं अब उन से,’’ उस ने मायूसी से कहा.

‘‘ऐसा क्यों?’’

‘‘परिवार वाले उन से कन्नी काटने लगे थे. मांबेटे खुद्दार थे. सो, सब से दूर चले गए. अब तो भैया की सजा की अवधि भी खत्म होने वाली है, तब शायद वे लोग झांसी आएं.’’

तभी लड़कियां शौपिंग कर के आ गईं और ड्राइवर चुप

हो गया. कंचन ने जितना भी सुना था उस से साफ जाहिर था कि वह किस की बात कर रहा था और क्यों गीता बड़ा मकान लेने के लिए व्याकुल थी. व्यभिचारी पति को

न नकारना चाहती थी और न ही उस के साथ रहना. पंकज सदा की तरह मां की भावनाओं का ध्यान रख रहा था लेकिन कंचन की भावनाओं का क्या? परिवार का यह कलुषित सत्य तो उन्हें शादी से पहले ही बताना चाहिए था. शादी के बाद भी यह कहने वाला

पंकज कि पतिपत्नी तो एकदूसरे

के लिए खुली किताब होते हैं, कितना बड़ा झूठा था. झूठ की

नींव पर टिकी शादी कितने रोज टिक सकेगी?

मांबेटे के व्यवहार से तो लग रहा था कि वे उस

बदचलन, सजायाफ्ता व्यक्ति को स्वीकार करने वाले थे. भले ही दूर रखें, देरसवेर तो उस से भी वास्ता पड़ेगा ही. फिर उस की अस्मत का क्या होगा? कंचन सोच कर ही सिहर उठी. सिरदर्द के बहाने वह पूरे रास्ते चुप रही और फिर अपने कमरे में जा कर फूटफूट कर रो पड़ी. उसे समझ नहीं आ रहा

था कि वह क्या करे? खैर,

किसी तरह लंबा सफर तय कर के घर पहुंची.

‘‘शुक्र है तुम आ गईं, जिया ही नहीं जा रहा था तुम्हारे बगैर,’’ पंकज ने विह्वल स्वर में कहा.

‘‘अब तो मेरे बगैर ही जीना पड़ेगा क्योंकि मैं तुम्हें हमेशा के लिए छोड़ कर जा रही हूं,’’ कंचन ने अलमारी में से अपने कपड़े निकालते हुए कहा.

‘‘मगर क्यों? जयपुर में पुराना प्रेमी मिल गया क्या?’’ पंकज ने चुहल की.

‘‘प्रेमी तो नहीं, हां चचिया ससुर रामसेवक जरूर मिले थे. मैं ने तो तुम्हें अपने जीवन के

मूक प्रेम के बारे में भी बता दिया था जिस का ताना तुम ने मुझे अभी दिया है लेकिन तुम ने और मां ने अपने परिवार के उस घिनौने सच को छिपाया हुआ है जिस के लिए अपनों से मुंह छिपा कर तुम यहां रह रहे हो. झूठ की बुनियाद पर टिकी शादी का कोई भविष्य नहीं होता पंकज और इस से पहले

कि वह भरभरा कर गिरे, मैं स्वयं ही यह रिश्ता खत्म कर देती हूं. तुरंत तलाक लेने के लिए सचाई छिपाने का आरोप काफी है. वैसे तो तुम्हें सजा भी दिलवा सकती हूं लेकिन अगर चुपचाप तलाक दे

दोगे तो ऐसा कुछ नहीं करूंगी,’’ कंचन ने सूटकेस में सामान भरते हुए कहा.

पंकज हतप्रभ हो गया था, फिर भी संयत स्वर में बोला, ‘‘तुम ने जो सुना वह सच है लेकिन जो झूठ की बुनियाद वाली बात कही है वह सही नहीं है. इस शहर में किसी ने कभी भी हम से पापा के बारे में नहीं पूछा तो हम स्वयं आगे बढ़ कर क्यों बताते? तुम ने देखा होगा शादी के मंडप में दिवंगत मातापिता की तसवीर रखी जाती है. मगर हम ने तो नहीं रखी, न किसी ने रखने को कहा. तुम ने भी तो कभी नहीं पूछा कि घर में पापा की कोई तसवीर क्यों नहीं है या कभी उन के बारे में कोई और बात पूछी हो? मैं ने और मां ने यह फैसला किया था कि हम स्वयं पापा के बारे में किसी को कुछ नहीं बताएंगे मगर पूछने पर कुछ छिपाएंगे भी नहीं. अब किसी ने कुछ नहीं पूछा तो इस में हमारा क्या कसूर है? एक बात और, मां विधवा की तरह नहीं रहतीं. सादे मगर रंगीन कपड़े पहनती हैं और थोड़ेबहुत जेवर भी.’’

‘‘लेकिन सिंदूर या बिंदी तो नहीं लगातीं?’’ कंचन को पूछने के लिए यही मिला.

‘‘तुम लगाती हो, तुम्हारी मम्मी या तृप्ता आंटी?’’ पंकज ने पूछा, ‘‘कितनी

सुहागिनें मांग भरती हैं या पांव में बिछिया पहनती हैं आजकल? हम ने सच को छिपाने का कोई

प्रयास नहीं किया है कंचन?’’

‘‘अच्छा? और यह जो मुझे बगैर बताए लोन ले कर बड़ा मकान बनाने की योजना बना रहे हो, उसे क्या कहोगे?’’ कंचन ने व्यंग्य से पूछा.

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‘‘योजना ही है, लिया तो नहीं? पापा के यहां आने का पक्का होने पर तुम्हें सब बताने की सोची थी क्योंकि पापा यहां आएंगे, यह अभी पक्का नहीं है. वे बहुत बदल चुके हैं और उन्हें संसार से विरक्ति हो गई है. केरल से कोई सज्जन जेल में सद्वचन देने आते हैं और पापा अपना शेष जीवन उन के त्रिचूर आश्रम में बिताना चाहते हैं…’’

‘‘तुम्हें कैसे मालूम?’’ कंचन ने उस की बात काटी.

‘‘क्योंकि मैं बगैर मां को बताए सरकारी काम का बहाना बना कर पापा से मिलने झांसी जेल में जाता रहता हूं. अदालत की पेशी के

दौरान मैं ने पापा की आंखों में पश्चात्ताप देखा

था, सो मैं ने उन्हें माफ कर दिया लेकिन मां पर मैं ने अपनी मंशा नहीं थोपी और न ही अभी से उन्हें यह बताना चाहता हूं कि पापा यहां नहीं रहेंगे. रिहाई के रोज मां मेरे साथ उन्हें जेल से लेने जाएंगी, तब कह नहीं सकता दोनों की क्या प्रतिक्रिया होगी. पापा को घर लाना चाहेंगी या स्वयं उन के साथ त्रिचूर जाना

या पापा को अपने रास्ते जाने देना और स्वयं जिस रास्ते पर चल रही हैं उसी

पर चलते रहना. मेरा यह मानना है कंचन, कि जिस को जो उचित

लगता है वही करना उस का जन्मसिद्ध अधिकार है और उस

में टांग अड़ाने का मुझे कोई हक नहीं है.’’

‘‘यानी तुम्हें छोड़ने का फैसला मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है?’’ कंचन ने शरारत से पूछा.

‘‘बशर्ते कि तुम यह सिद्ध कर सको कि तुम से झूठ बोल कर तुम्हें धोखा दिया गया या नुकसान पहुंचाया गया.’’

‘‘वह तो सिद्ध नहीं कर सकती,’’ कंचन ने कपड़े अलमारी में वापस रखते हुए कहा, ‘‘क्योंकि झूठ तो तुम ने कभी बोला नहीं. बगैर कभी कुछ पूछे मैं ही अपने सोचे झूठ को सच समझती रही.’’

डस्की स्किन के लिए ट्राय करें ये फैशन टिप्स

व्यक्तित्त्व को आकर्षक बनाने में पहनावे का बड़ा योगदान होता है. ड्रैस का रंग, पैटर्न, फैब्रिक और स्टाइल ऐसा हो जो आप पर फबे और स्मार्ट लुक दे.

डस्की स्किन के लिए जितना जरूरी मेकअप होता है उतना ही ड्रेसिंग भी होता है, इससे आपकी पर्सनेलिटी के बारे में पता चलता है. इसीलिए आज हम आपको कुछ नए टिप्स के बारे में बताएंगे, जिसे डस्की स्किन वाली लड़कियां अपनी पर्सैनिलिटी में निखार लाने के लिए ट्राय कर सकती हैं.

– चमकदार रंगों का प्रयोग न करें. यलो, औरेंज, नियोन जैसे कलर्स अवौइड करें. ये चटकदार रंग हैं जो सांवली सूरत पर अच्छे नहीं लगते. हलके और स्किन टोन से मैच करते रंग आप के ऊपर ज्यादा खूबसूरत लगेंगे. आप प्लम, ब्राउन, लाइट पिंक, रैड जैसे कलर्स ट्राई कर सकती हैं.

– जब बात फौर्मल लुक की हो तो बेज कलर की सिंपल शौर्ट ड्रैस पहन सकती हैं जिस में प्रिंट का काम किया गया हो. ऐसी शौर्ट ड्रैस के साथ हाई हील्स, स्मार्ट वाच और कोट पहन कर औफिस लुक कैरी किया जा सकता है. सैल्मन पिंक कलर का प्रौपर फौर्मल आउटफिट बहुत शानदार लगेगा.

डस्की ब्यूटी ड्रैसिंग स्टाइल्स

फैशन डिजाइनर आशिमा शर्मा कहती हैं कि यदि आप का स्किन टोन डस्की है तो आप कुछ बातों का खास ध्यान रखें:

– डैनिम कलर के कपड़े पहनें, जैसे डैनिम जींस, प्लाजो, डैनिम शर्ट आदि.

– आप अपने कपड़ों फैब्रिक के साथ खेल कर भी फैबुलस लुक पा सकती हैं. अगर आप ब्लैक कलर की शौर्ट ड्रैस पहन रही हैं और उस में नैट, शिफौन जैसे फैब्रिक मौजूद हों, तो ये आप के लुक को निखारने में सहायता करेंगे.

– ब्लिंगी गोल्ड आप के  लिए बेहद शानदार साबित हो सकता है. यदि आप को गाउन पहनना पसंद है तो आप रैड कलर का फ्लोरलैंथ गाउन पहन सकती हैं. औफशोल्डर्ड, शोल्डरलैस, सिंगलशोल्डर्ड गाउन आप पर अच्छे लगेंगे. इन के साथ अपने बालों को स्ट्रेट रखें.

– अगर बात फौर्मल्स की हो तो आप के लिए काफी कुछ है. हाईवैस्ट जींस को आप सौलिड ट्विस्ट टौप के साथ पहन सकती हैं. इस तरह के लुक के लिए आप अपने बाल बांध कर रख सकती हैं.

– पैंसिल स्कर्ट के साथ लाइट मिंट कलर में रूफल स्ट्रिपड टौप पहनें, बालों को खोल कर रखें. सिंपल ईयरिंग के साथ लुक कैरी करें.

बालों को मजबूत व शाइनी बनाने के लिए लगाएं जैतून का तेल

आलिव आयल यानी की जैतून का तेल हमारे दिल, दिमाग और त्‍वचा के साथ ही हमारे बालों के लिए भी अति उत्‍तम है. यह बालों की जड़ से देखभाल करके उन्‍हें पूरा पोषण पहुंचाता है. इसके अलावा इसमें विटामिन ई पाया जाता है, जो बालों को चमकदार बनाने में मदद करता है. यहां पर आलिव आयल की कुछ ब्‍यूटी रेसिपी दी जा रही हैं, जिनका इस्‍तमाल करके आप अपने बालों को और भी अच्‍छा बना सकती हैं.

1. फूलों का रस और आलिव आयल

अगर आप रातभर आलिव आयल और फूलों की कुछ पंखुडियों को एक साथ मिला कर जार में रख दें, और उससे रोज अपने सिर की मालिश करें तो भी अच्‍छा रहेगा. फूलों के रूप में आप गुलाब और जैस्‍मिन की टूटी पंखुडियों का प्रयोग करें. पर इस मिश्रण को पूरे 24 घंटों के लिए एक साथ मिला कर रखना होगा.

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2. शहद और आलिव आयल

एक कटोरे में सामान्‍य मात्रा में आलिव आयल और शहद मिलाएं. अब इसको अपने बालों के भीतर तक जड़ों में लगा लें. उसके बाद अपने बालों को एक साथ समेट कर पूरी तरह से ढ़क लें. बालों को ढंकने के लिए किसी कपड़े या पन्‍नी का प्रयोग कर सकतीं हैं. इस पेस्‍ट को सिर में लगाने के बाद 10 मिनट में बालों को शैंपू कर लें.

3. नींबू के बीज, काली मिर्च और आलिव आयल

अगर आपको अपने बाल बढ़ाने हैं, तो नींबू के बीज, काली मिर्च के दाने और आलिव आयल को मिला कर पेस्‍ट बनाएं. इस सारी सामग्रियों को एक साथ पीस लें और फिर सिर में 20 मिनट तक के लिए लगाएं और फिर शैंपू कर लें.

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4. आलिव आयल और अंडा

अगर आपके बाल बेजान दिखते हैं, तो अंडा लगा कर उसे थोड़ा घना बना सकते हैं. एक कप में दो अंडे तोडे और उसमें आलिव आयल मिलाएं और इस मिश्रण को अच्‍छे से दो मिनट तक मिलाएं. इस मिश्रण को सिर पर बालों की जड़ों तक लगाएं. 10 मिनट तक छोड़े और फिर शैंपू कर लें. इससे बालों में शाइन आएगी और वह घने लगेगें.

इन 7 कारणों से शादी नहीं करना चाहती लड़कियां

हर लड़की के अपनी शादी से जुड़े कई सपने होते हैं और शादी से जुड़ी उनकी एक अनोखी सोच होती है. लेकिन आज के समय में लड़कियों की सोच में भी कई बदलाव आने लगे हैं. कई लडकियां है जो अनमैरिड रहना ही पसंद करती हैं. इसके पीछे उनकी कई वजह होती हैं. आज हम आपको लड़कियों के अनमैरिड रहने की इच्छा के पीछे के कारण बताने जा रहे हैं. तो आइये जानते हैं इनके बारे में.

अपने करियर के लिए

लड़कियां चाहे कितनी भी पढ़ी हो लेकिन शादी के बाद उनकी स्टडी धरी की धरी रह जाती है. बेशक वह घर और औफिस दोनों एक साथ मैनेज कर लें लेकिन दोनों संभालने के बाद भी हसबैंड और परिवार वाले कभी खुश नहीं होते.

हर बात पर रोक-टोक

आज के समय में हर लड़की अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीना पसंद करती है. उन्हें यह बिल्कुल पंसद नहीं होता कि कोई भी किसी भी बात को लेकर उन्हें बार-बार टोके. इस बिहेवियर से ज्यादा बढ़िया लड़कियां को अनमैरिड रहना लगता है.

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सैक्रिफाइस करना

शादी के बाद लड़की को अपने सरनेम से लेकर कपड़ों तक, हर चीज सैक्रिफाइस करनी पड़ती है. धीरे-धीरे उनकी पसंद नापसंद और पार्टनर की पसंद ही उनकी खुशी बन जाती है. ऐसी सिचुएशन में लड़कियों का दोबारा से अनमैरिड हो जाने का दिल करता है.

पसंदीदा कपड़े पहनने पर रोक

हर लड़की चाहती है कि वह अपनी पसंद के कपड़े पहने लेकिन जब उसे कोई ऐसा करने से रोकता है तो उसे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता. वह सोचती है कि यहीं अगर वह अनमैरिड होती तो वह अपने पसंद के कपड़े पहन सकती.

दोस्तों को तो भूल ही जाओ

बचपन से आप जिन दोस्तों के साथ खेलते हुए बड़े होते हैं शादी के बाद आपको उन्हें भी भूलना पड़ता है. आप अपने दोस्तों से न ही कोई बात शेयर कर पाती हैं और न ही उनके साथ बाहर जा पाती है, जिसका नतीजा होता है स्ट्रेस.

प्राइवेसी तो भूल ही जाओ

सिर्फ लड़का ही नहीं बल्कि लड़कियों को भी शादी के बाद प्राइवेसी का पूरा हक होता है. फिर चाहे वह अपने पति के साथ अकेले बाहर जाना चाहती हो या फिर अपने पति के कोई बात शेयर न करना चाहती हो.

शादीशुदा का टैग

शादी के बाद लड़के तो फ्री माइंड होकर घूम सकते हैं लेकिन लड़कियों के साथ तो शादी का टैग लग जाता है. शादीशुदा का टैग लग जाने के कारण आपके दोस्त भी बात करने से कतराते हैं.

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आई सपोर्ट की शुरूआत करना मेरे लिए चैलेंजिंग था: बौबी रमानी

बौबी रमानी

फाउंडर, आई सपोर्ट फाउंडेशन

अपने भाई को औटिज्म (मानसिक रूप से कमजोर) से पीडि़त देख आज बौबी रमानी औटिज्म के शिकार बच्चों के जीवन को खुशहाल बनाने के लिए कार्य कर रही हैं. उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले में जन्मीं बौबी ने अपनी बहन के साथ मिल कर औटिज्म बीमारी से जूझते बच्चों को मदद देने के लिए ‘आई सपोर्ट फाउंडेशन’ नाम की स्वयंसेवी संस्था की शुरुआत की. यह संस्था औटिज्म के शिकार बच्चों को शिक्षा प्रदान करना, उन की प्रतिभा को निखारना और उन्हें उन की उच्चतम क्षमता तक पहुंचाने में मदद करती है. बौबी बैंगलुरु में अपनी संस्था के माध्यम से अब तक 8,000 वंचित और विशेष बीमारी से ग्रस्त बच्चों के जीवन में मुसकान बिखेर चुकी हैं. आइए, जानते हैं बौबी रमानी से उन के इस सफर के बारे में:

सवाल- आप ने ‘आई सपोर्ट फाउंडेशन’ की शुरुआत की. कैसा रहा यह सफर?

‘आई सपोर्ट फाउंडेशन’ की शुरुआत करना मेरे लिए काफी चुनौतीपूर्ण रहा, क्योंकि फाउंडेशन की शुरुआत से पहले मैं कौरपोरेट में काम करती थी. अपनी सेविंग्स से इस संस्थान की शुरुआत करना, औटिज्म से ग्रस्त बच्चों से जुड़ना, उन की काउंसलिंग करना, साथ ही उन के पेरैंट्स की भी काउंसलिंग करना, संस्थान का सैटअप करना सभी कुछ काफी चैलेंजिंग था. मैं ने अपनी बाकी की पढ़ाई भी संस्थान खोलने के बाद पूरी की. इस संस्थान को खोलने के लिए मुझे एक विशेष डिगरी की जरूरत थी. अत: मैं ने लखनऊ यूनिवर्सिटी से ‘मास कम्यूनिकेशन’ की डिगरी ली.

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 सवाल- इस में परिवार का कितना सहयोग रहा?

उस समय रायबरेली में कोई स्पैशल स्कूल नहीं था. मेरे पापा नहीं हैं, इसलिए रिश्तेदार और पासपड़ोस के लोग मेरा बहुत खयाल रखते थे. जब इन्हें पता चला कि मैं कुछ ऐसा कर रही हूं तो वे मेरी मां से मेरी सराहना करने लगे. इस वजह से मेरी मां ने मुझे पूरा सपोर्ट किया. हालांकि शुरुआत में दिक्कत आई थी, क्योंकि नौकरी छोड़ कर एनजीओ की तरफ बढ़ना काफी चैलेंजिंग हो गया था. एनजीओ का नाम सुनते ही लोग सोचने लग जाते हैं कि यह एक चैरिटेबल यूनिट है. ऐसे में नौकरी छोड़ना और परिवार को समझाना थोड़ा मुश्किल था. लेकिन वक्त के साथ मेरे परिवार ने मुझे समझा और मेरा पूरा साथ दिया. संस्थान खोलने के 1 साल बाद ही मेरी बहन ने भी बैंगलुरु में इस संस्थान की शुरुआत की. मेरे परिवार में हम 3 महिलाएं हैं और 1 भाई है, जिसे औटिज्म है. मेरे परिवार में फीमेल स्ट्रैंथ ज्यादा है.

 सवाल- ऐसी बीमारियों और स्थितियों के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए क्या करना चाहिए?

आज औटिज्म को ले कर जागरूकता तो बढ़ी है, लोग इस के बारे में अच्छी तरह से समझते हैं, लेकिन इस का समाधान अभी भी किसी को नहीं पता. इस में 2 लोगों का बहुत अहम रोल है. पहला डाक्टर का है. जब डाक्टर बच्चे का चैकअप करते हैं और उन्हें पता चलता है कि बच्चे को औटिज्म हो गया है यानी वह मैंटली फिट नहीं है तो साथ में उन को आगे का सुझाव भी देना चाहिए ताकि मातापिता को आगे की प्रक्रिया के बारे में पता चल सके और वे अपने बच्चे का खास ध्यान रख सकें.

दूसरा अहम रोल है टैलीविजन और रेडियो का. टीवी और रेडियो पर औटिज्म को ले कर खुल कर बात करनी चाहिए. औडियोविजुअल ज्यादा से से ज्यादा दिखाने चाहिए ताकि लोग इस के प्रति जागरूक हों.

 सवाल- उन लड़कियों और महिलाओं को जो आप की तरह कुछ विशेष करना चाहती हैं उन्हें आप क्या संदेश देना चाहेंगी?

मेरे खयाल से जब हम कुछ करने की सोचते हैं तो हमें कनफ्यूज बिलकुल नहीं रहना चाहिए. अपने लक्ष्य को हमेशा क्लियर रखना चाहिए तभी हम मंजिल तक पहुंच पाएंगे. यह बात बिलकुल सही है कि लड़कियों के बीच में से यदि कोई एक लड़की भी अपना मुकाम हासिल कर लेती है तो वह बाकी लड़कियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन जाती है. इसलिए जरूरी है कि किसी पर निर्भर हो कर आगे न बढ़ें. भरोसा खुद पर करें.

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 सवाल- मानसिक रूप से कमजोर बच्चों के लिए फ्रैंडली माहौल देने का आइडिया कैसे आया?

जो बच्चे औटिज्म का शिकार होते हैं वे थोड़ा हाइपर होते हैं. जब हम अपने भाई को ले कर किसी रैस्टोरैंट में जाते थे तो मेरी मां पहले ही खाने का और्डर देने चली जाती थीं. तब तक मैं भाई के साथ गाड़ी में बैठ कर म्यूजिक सुना करती थी. जब और्डर आ जाता था तब हम अंदर जाते थे, क्योंकि ऐसे बच्चे ज्यादा देर तक इंतजार नहीं कर पाते और कुछ देर बाद अजीब व्यवहार करने लगते हैं.

 सवाल- औटिज्म के अलावा और किनकिन बीमारियों से ग्रस्त बच्चों के लिए भी आप काम कर रही हैं?

औटिज्म के अलावा हमारी संस्था हर बौद्धिक अक्षमता जैसे डाउन सिंड्रोम, मानसिक अशांति आदि से परेशान बच्चों के लिए भी काम करती है.

थेरेपी जो वजन कम करने में करेगी मदद

जितने जरूरी हमारे शरीर के लिए प्रोटीन, मिनरल व विटामिन होते हैं उतना ही आवश्यक हमारे शरीर के लिए पानी भी होता है. इसलिए ही डॉक्टर हमें रोजाना के 8-10 गिलास पानी पीना सुझाते हैं. ताकि हमारे शरीर से टॉक्सीन निकल सकें और हमारा शरीर सुचारू रूप से काम कर सके.

बहुत से लोग सुबह सुबह गर्म पानी में नींबू मिला कर पीते हैं क्योंकि यह माना जाता है कि इस पानी से हमारा मेटाबॉलिज्म बढ़ता है. लेकिन वहीं जापानी लोग इस पानी को बहुत डरावना मानते हैं. यहीं जापानी पानी की थेरेपी प्रयोग में आती है. इस थेरेपी से आपके पेट की सेहत भी अच्छी रहती है और आपका वजन भी घटता है.

क्या है जापानी पानी थेरेपी?

जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है यह थेरेपी आपके पेट के स्वास्थ्य के लिए अधिक काम करेगी. ज्यादातर बीमारियां हमारे खराब पेट से ही शुरू होती है. इसलिए जापानी पानी थेरेपी हमारे पेट को साफ करने का काम करती है. यह आपके पाचन तंत्र को भी स्वस्थ बनाती है.

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इस थेरेपी के मुताबिक आपको सुबह उठते ही पानी पीना होगा क्योंकि यही वह समय होता है जब पानी सबसे ज्यादा प्रभावकारी होता है. यह न केवल आपका वजन कम करने के काम आता है बल्कि आपको बहुत सी बीमारियों से बचाने के भी काम आता है.

पर आपको इसमें एक बात का ध्यान रखना होगा कि आपको रूम टेंपरेचर वाला पानी ही पीना होगा. यदि आप ज्यादा ठंडा पानी लेते हैं तो यह आपके शरीर के लिए हानिकारक होगा. यह आपके पाचन को भी डिस्टर्ब करता है और आपको बहुत सी बीमारियां भी देता है.

ऐसे पालन करें जापानी वॉटर थेरपी को

यदि आप भी जापानी वॉटर थेरेपी को एक बार ट्राई करना चाहते हैं तो निम्न स्टेप्स का पालन करें.

शुरू में आपको सुबह उठते ही 4-5 गिलास सामान्य तापमान वाला पानी पीना है. ध्यान रखें यह पानी आपको उठने के तुरन्त बाद व ब्रश करने से भी पहले पीना होगा.

अब ब्रेकफास्ट करने के 45 मिनट तक रुकें.

जब आप कोई भी मील खाते है तो उसे 15 मिनट से ज्यादा न चलने दें. इसके बाद कुछ भी पीने से पहले 2 घंटे का ब्रेक लें.

बूढ़े लोग या जिन लोगों ने यह थेरेपी लेने की अभी शुरुआत ही की है वह एक गिलास पानी से शुरू कर सकते हैं.

इसके बाद वह पानी के गिलास का नंबर बढ़ा सकते है.

यदि आप एक बार में ही 4-5 गिलास पानी नहीं पी पाते हैं तो आप हर गिलास पीने के बाद एक घंटे का ब्रेक भी ले सकते हैं.

इस थेरेपी में पानी पीने के साथ साथ लगभग 30 मिनट की रोजाना वॉकिंग भी सुझाई गई है.

इसके साथ ही आपको सोने से पहले हर रोज गुनगुने पानी में नमक मिला कर गरारे करने चाहिए.

आपको कुछ भी खड़े होकर नहीं पीना चाहिए क्योंकि इससे पाचन तंत्र में समस्या होती हैं.

क्या यह वजन कम करने में लाभदायक है?

दिन में बहुत गिलास पानी पीने से आपको संतुष्टि महसूस होती है. जिस कारण आप ज्यादा खाने से बच जाते हैं. एक स्टडी के मुताबिक जो कुछ ज्यादा वजन वाले लोगों पर की गई थी, उसमें जिन लोगों ने अपनी मील खाने के आधे घंटे पहले 500 ml पानी पिया था वह बाकी लोगों के मुकाबले 13% कम खाना खाते थे.

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एक अन्य स्टडी के मुताबिक जब आप ज्यादा पानी पीते हैं तो आप रेस्ट करने की स्थिति में भी ज्यादा कैलोरीज़ बर्न करना शुरू कर देते हैं जो आपके वजन कम करने में लाभदायक होता है.

जब आप अपनी शुगर ड्रिंक्स के स्थान पर पानी पीते हैं तो इससे आप अपने अंदर कम कैलोरीज़ ले पाते है जिससे आपको वजन कम करने में मदद मिलती है.

थोड़ी सी बेवफ़ाई में क्या है बुराई

हाल ही में सोशल मीडिया पर ममता बनर्जी का एक पुराना वीडियो काफ़ी वायरल हो गया. इस वीडियो में ममता महिलाओं के प्रति अपने खुले विचारों का प्रदर्शन करती हुई नज़र आईं. वायरल वीडियो में ममता कहती हुई दिख रही हैं कि अगर कोई भी महिला अपने पसंद के पुरुष के साथ एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर रखना चाहती है तो वह बिलकुल रख सकती है.

उन के शब्दों में ,’ मैं सभी गृहिणियों को यह बताना चाहती हूँ कि यदि आप कभी भी एक्स्ट्रा मैरिटल संबंध में रहना चाहती हैं तो आप यह कर सकती हैं. इस के लिए मैं आप को अनुमति दूँगी.’

ममता बनर्जी द्वारा दिए गए इस टेंपटेशन का बहुत से लोगों ने विरोध किया, नाकभौं सिकोड़े. बहुतों ने इसे नैतिकता विरोधी बताया तो कुछ लोग महिलाओं के जीवन में सच्चरित्रता की आवश्यकता पर उपदेश देने बैठ गए. लोगों को यह बात हजम ही नहीं हुई कि औरतों को ऐसे संबंधों की छूट भी मिल सकती है.

पर जरा सोचिये क्या हमारे समाज में इस मामले में पूरी तरह से दोहरे मानदंड नहीं हैं? पुरुष वैश्याओं के पास जाएं, अपनी यौन क्षुधा की पूर्ति के लिए रेप करें, वासना की आग में जल कर छोटीछोटी बच्चियों की जिंदगी बर्बाद कर डालें तो भी ज्यादातर लोग मुंह पर टेप लगा कर बैठे रहते हैं. उस वक्त महिलाओं पर हो रहे शोषण को देख कर उन का खून नहीं खौलता. उस वक्त पुरुषों की सच्चरित्रता की आवश्यकता भी महसूस नहीं होती. पर जब बात स्त्रियों की आती है तो लोगों का नजरिया ही बदल जाता है. स्त्रियों पर नैतिकता के झूठे मानदंड स्थापित किये जाते हैं. सच्चरित्रता के नाम पर स्त्रियों पर बंधन डालना एक तरह से धार्मिक षड्यंत्र ही है. धर्मग्रंथों ने हमेशा हमें यही सिखाया है कि स्त्रियां पुरुषों की दासी हैं. पुरुष हर जगह अपनी मनमरजी से चल सकते हैं मगर स्त्रियों को एकएक कदम भी पूछ कर ही आगे बढ़ाना चाहिए.

यह वही समाज है जहां नीयत पुरुषों की खराब होती है और घूँघट औरतों को लगा दिया जाता है. बदचलनी पुरुष करते हैं और बदनाम औरतों को कर दिया जाता है. ऐसे में अगर कोई बराबरी की बात करे, महिलाओं को खुल कर जीने का मौका देने की वकालत करे तो धर्म के तथाकथित रक्षकों के सीने पर सांप लोटने लगते हैं. जब पुरुष बेवफाई करे तो मसला बड़ा नहीं होता मगर स्त्री बात भी कर ले तो हायतौबा मच जाती है.

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आज के समय में एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर कोई बड़ी बात नहीं रह गई है. बड़े शहर हों या छोटे जब स्त्री पुरुष मिल कर काम करते हैं, एकदूसरे के साथ वक्त बिताते हैं तो ऐसे रिश्ते बनने बहुत स्वाभाविक हैं. अस्वाभाविक बस इतना है कि स्त्रियां ऐसा करें या करने की बात भी कर दें तो नैतिकता का पालन कराने वाले तथाकथित धर्म रक्षकों के सीने में आग लग जाती है.

शादी में समर्पण का बोझ सिर्फ महिलाओं पर

अगर एक पुरुष एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स में इन्वॉल्व होता है और इस की जानकारी घरवालों को होती है तो भी कोई कुछ नहीं कहता. मगर यही काम एक औरत करे तो हल्ला मच जाता है. समाज के तथाकथित संचालक और धर्म व संस्कारों के रक्षक हंगामे खड़े कर देते हैं. उस महिला का समाज में निकलना दूभर कर दिया जाता है. घरवाले उस पर तोहमतें लगाने लगते हैं. आज अगर औरतें कह रही हैं कि हमें अपने पति के अलावा भी बाहर कहीं रिश्ता बनाने का हक़ है तो यह बात लोगों को हजम नहीं होती. लेकिन आदमी को सारी छूटें मिली हुई हैं. इस तरह के भेदभाव पूर्ण रवैये ने हमेशा ही औरतों को शिकंजे में रखा है. शादी होती है तो यह वचन लिया जाता है कि दोनों अपने साथी के लिए ही समर्पित रहेंगे. लेकिन इस वचन का पालन सिर्फ औरतों से ही कराया जाता है.

एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर से कुछ लोगों को मिलती है खुशी

अमेरिका की एक रिसर्च बताती है कि विवाहेतर संबंध रखने वाले कुछ लोग ज्‍यादा खुश रहते हैं. अमेरिका की मिसौरी स्‍टेट यूनिवर्सिटी की डॉ. एलीसिया वॉकर ने एश्‍ले मेडिसीन नामक एक डेटिंग साइट के एक हजार से ज्यादा यूजर्स के बीच एक सर्वे किया. यह डेटिंग साइट भी अनोखी है जो केवल विवाहित जोड़ों या रिलेशनशिप में रह रहे कपल्स के लिए डेटिंग सुविधा उपलब्ध कराती है. सर्वे में शामिल लोगों से पूछा गया कि अपनी गृहस्‍थी से बाहर किसी से संबंध बनाने के बाद उन के जीवन की संतुष्टि’ पर क्या असर पड़ा.

10 में से 7 लोगों ने कहा कि विवाहेतर संबंध करने के बाद वे अपनी शादीशुदा जिंदगी से ज्‍यादा संतुष्ट हैं. आंकड़ों के मुताबिक पुरुषों से ज्‍यादा महिलाएं अपने विवाहेतर संबंधों की वजह से ‍ज्यादा खुश थीं. इस संतुष्टि को प्रभावित करने वाले बहुत से कारकों में सर्वप्रमुख था, अपनी गृहस्थी में पार्टनर से यौन संतुष्टि न मिल पाना लेकिन बाहर वाले पार्टनर से इस खुशी का मिलना.

अफेयर खत्म होने के बाद और खुशी

जब यह विवाहेतर संबंध खत्म हो जाते हैं तब क्‍या अपने पार्टनर को धोखा देने वाले को पछतावा होता है? इस सवाल का जवाब भी हैरान करने वाला था. शोध में शामिल लोगों ने कहा कि विवाहेतर संबंध खत‍म होने पर तो जीवन में पहले से भी ज्यादा संतुष्टि का अनुभव होता है.

PubMed नामक एक जर्नल में भी इसी तरह की एक रिसर्च छपी थी जिस में कहा गया था कि जो लोग अपनी शादी के बाहर किसी से अफेयर करते हैं, लेकिन इस की जानकारी अपने पार्टनर को नहीं देते, वे ज्यादा खुश रहते हैं.

थोड़ी सी बेवफ़ाई

इस का मतलब यह नहीं कि शादीशुदा जिंदगी की समस्‍याओं से निपटने का यह सही समाधान है. अपने पार्टनर को धोखा दे कर मिलने वाली खुशी अस्‍थायी होती है. पहले बातचीत कर के आप को अपनी शादीशुदा जिंदगी को बेहतर बनाने का प्रयास करना चाहिए. मगर परिणाम बेहतर न निकलें तो खुद परेशान होते रहने से बेहतर है कि जीवन में कुछ रोमांच लाएं भले ही इस के लिए थोड़ी सी बेवफ़ाई ही क्यों न करनी पड़े.

पुरुषों से ज्‍यादा महिलाओं के एक्‍स्‍ट्रा मैरिटल रिलेशनशिप

आप को एक सच और बता दें और वो यह कि इस मामले में स्त्रियां आगे हैं. एक्स्ट्रा मैरिटल डेटिंग ऐप ग्लीडन ने एक रिसर्च किया जिस में 53 फीसदी भारतीय महिलाओं ने माना है कि वे अपने पति के अलावा किसी अन्य पुरुष के साथ इंटिमेट रिलेशनशिप में हैं. जबकि शादी के बाहर एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर रखने वाले पुरुषों की संख्या 43 फीसदी थी.

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ग्लीडन का यह रिसर्च ऑनलाइन कराया गया था जिस में दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई, बैंगलोर, पुणे, अहमदाबाद और हैदराबाद जैसे बड़े शहरों के 1500 लोगों ने भाग लिया. रिसर्च में खुलासा हुआ कि पुरुषों के मुकाबले उन महिलाओं की संख्या ज्यादा थी जो नियमित रूप से अपने पति के अलावा अन्य पुरुषों से रिश्ता रखती हैं.

सर्वे के मुताबिक़ 77 प्रतिशत भारतीय महिलाओं का कहना था कि उन के द्वारा पति को धोखा देने की वजह उन की शादी का नीरस हो जाना था. जब कि कुछ ने इसलिए धोखा दिया क्योंकि पति घरेलू कामों में हिस्सा नहीं लेते हैं. वहीं कुछ को शादी से बाहर एक साथी को खोजने से जीवन में उत्साह का अहसास हुआ. 10 में से 4 महिलाओं का मानना है कि अजनबियों के साथ मौजमस्ती के बाद जीवनसाथी के साथ उन का रिश्ता और अधिक मजबूत हुआ है.

प्रश्न यह उठता है कि क्या शादी जैसी संस्था महिलाओं के लिए बोझ बन रही है और क्या इस के लिए पुरुष ज्यादा जिम्मेदार हैं या फिर यह समाज की दकियानूसी सोच के खिलाफ महिलाओं की बगावत है.

बराबरी के नहीं पतिपत्नी के रिश्ते

भारत में पतिपत्नी के रिश्तों में बहुत भेदभाव है. ये रिश्ते बराबरी के नहीं हैं. ज्यादातर घरों में पति को मुखिया और पत्नी को दासी बना दिया जाता है. पति दूसरी औरत के साथ हंसीमजाक करे तो यह स्वाभाविक है और औरत करे तो वह वैश्या हो जाती है. पति रूपए कमाए तो वह सर्वेसर्वा बन जाता है मगर पत्नी कमाई करे फिर भी नौकरानी की तरह घर को भी संभाले. पति के लिए ऑफिस चले जाना ही उन की ड्यूटी है जो वह कर रहा है. वहीं पत्नी अगर वर्किंग है तो भी पूरे घर के काम कर के ही ऑफिस जा सकती है. वह बीमार है तो भी कोई मदद करने नहीं आता. यही वजह है कि अब महिलाऐं अपने बारे में भी सोचना चाहती हैं ताकि उन के जीवन में कुछ एक्साइटमेंट आए.

प्यार और तारीफ की जरूरत सब को होती है

शादीशुदा जिंदगी एक वक्त के बाद नीरस हो जाती है. देखा जाए तो महिला की जिंदगी काफी कठिन है. पुरुष ऑफिस जा कर फ्री हो जाते हैं. लेकिन महिलाओं को घर की हर छोटीछोटी ज़रूरतों का ख्याल रखना पड़ता है और बदले में तारीफ के दो शब्द भी नहीं मिलते. ऐसे में महिलाएं ऐसा शख्स ढूंढने लगती हैं उन्हें कहे कि वे सब से ज्यादा सुंदर हैं. शादी के कुछ दिन बाद या फिर बच्चे होने के बाद से ही पति उन्हें भाव नहीं देते. दो शब्द तारीफ़ के भी नहीं कहते. पहले की तरह रोमांस में समय भी नहीं बिताते. ऐसे में अपने अंदर पहले सी ताजगी और उत्साह लाने के लिए दूसरे पुरुष की तरफ उन का झुकाव हो सकता है.

महिलाएं क्‍यों करती हैं एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स

पति/पत्नी यानी जीवनसाथी से इंसान अपने मन की हर बात शेयर करता है. हर राज खोल देता है. खासकर महिलाएं जब तक किसी से अपना सुखदुख शेयर न कर लें उन्हें चैन नहीं पड़ता. मगर कई बार जब पत्नी को अपने पति का पूरा साथ नहीं मिल पाता और पति उसे इग्नोर करता है तो पत्नियां अपने दिल की बातें शेयर करने के लिए किसी और को तलाशती हैं और इस में ऐसा कुछ बुरा भी नहीं है. इस से उन की जिंदगी में वह उत्साह, उमंग और तरंग फिर से जागने लगती हैं जो अन्यथा उन की रोजाना की वैवाहिक जिंदगी से गायब हो चुकी थी.

जब विवाहित जिंदगी में सेक्स रोजाना का एक बोझिल रूटीन बन जाता है तो समझिये वह समय आ गया है जब महिलाएं अपने जीवन में खुशियां और उत्साह वापस लाने के लिए किसी अफेयर से जुड़ने की ख्वाहिश रखने लगती हैं. यह लव अफेयर उन्हें किसी सौगात से कम नहीं लगता.

अक्सर अपने बिजी शेड्यूल के कारण पति और पत्नी समानांतर जिंदगी जीने लगते हैं. उन्हें आपस में बातचीत करने का भी समय नहीं मिल पाता. यहां तक कि वीकेंड और छुट्टी के दिन भी वे एकदूसरे से कटेकटे ही रहते हैं. बच्चों के जन्म के बाद भी कई पति अपनी पत्नी से पहले सा प्यार नहीं कर पाते. वे उन्हें एक बच्चे की मां के रूप में देखने लगते हैं. अपनी पत्नी या प्रेमिका के रूप में नहीं देख पाते. ऐसे में महिलाओं के मन में अवसाद और निराशा पनपने लगती है. इस से निकलने के लिए ही वे ऐसे रिश्ते की तलाश करती हैं.

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वस्तुतः महिलाएं अपने पति से प्यार और आत्मीयता चाहती है और जब यह आत्मीयता महिलाओं को अपनी जिंदगी में नहीं मिलती तो उन के पास शादी से बाहर प्यार की तलाश करने के अलावा और कोई विकल्प बाकी नहीं रहता.

सच तो यह है कि महिलाओं के लिए असफल शादी की स्थिति को झेलने से ज्यादा बुरा कुछ नहीं होता. जिस शादी में अपनापन, इज़्ज़त और पति के प्यार की कमी होती है वहां महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ता है. वे अंदर ही अंदर घुटती रहती हैं. ऐसे में शादी से बाहर प्रेम संबंध बना कर वे अपनी उबाऊ और असफल शादी के दर्द को भुलाने का प्रयास करती हैं. महिलाएं किसी अपने जैसे पार्टनर की तलाश करने का प्रयास करती हैं जिन की रुचियां और आदतें उन से मिलतीजुलती हों. इस में गलत क्या है?

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