क्या महिला कंडोम सुरक्षित है?

सवाल

मैं 24 वर्षीय शादीशुदा महिला हूं. मेरी शादी हाल ही में हुई है. हम फिलहाल बच्चा नहीं चाहते. गर्भनिरोध के लिए पति कंडोम का इस्तेमाल करते हैं. सैक्स को आनंददायक बनाने के लिए यों तो बाजार में कई प्रकारों व फ्लेवर्स में कंडोम्स उपलब्ध हैं पर मैं ने महिला कंडोम के बारे में भी सुना है. क्या यह सुरक्षित है और सैक्स को मजेदार बनाता है?

जवाब-

पुरुष कंडोम की तरह महिला कंडोम भी गर्भनिरोध का आसान व सस्ता विकल्प है. महिला कंडोम न सिर्फ प्रैगनैंसी को रोकने में सक्षम है बल्कि यह सैक्स के पलों को भी रोमांचक बनाता है.

महिला कंडोम ‘टी’ शेप में होता है, जिसे वैजाइना में इंसर्ट करना होता है. शुरूशुरू में यह प्रक्रिया जटिल जरूर लग सकती है पर इस का इस्तेमाल बेहद आसान है और यह सैक्स को आनंददायक बनाता है. यह पूरी तरह सुरक्षित भी है. इस की डबल कोटिंग मेल स्पर्म को आसानी से सोख लेती है.

वैजाइना में इंसर्ट के दौरान इस की आंतरिक रिंग थोड़ी लचीली हो जाती है और बाहरी रिंग वैजाइना से 1 इंच बाहर रहती है.

सैक्स के दौरान इस कंडोम की बाहरी रिंग वैजाइना की बाहरी त्वचा को गजब का उत्तेजित करती है और सैक्स के पलों को मजेदार बनाती है.

इसे सैक्स से कुछ घंटे पहले भी लगाया जा सकता है. सब से अच्छी बात यह है कि कंडोम लगाए हुए बाथरूम भी जाया जा सकता है.

ये भी पढ़ें-

महान मनौवेज्ञानिक सिगमंड फ्रौयेड ने कहा था, ‘कोई महिला-पुरुष जब आपस में शारीरिक सम्बन्ध बनाते हैं, तो उन दोनों के दिमाग में 2 और व्यक्ति मौजूद रहते हैं. जो उसी लम्हे में हमबिस्तर हो रहे होते हैं.’ इस बात को पढ़ते हुए मैं अचरज में था कि क्या ऐसा सच में होता है? अगर होता है तो ऐसा क्यों होता है?

यह साल था 2007. मैं उस वक्त 15 साल का टीनेज था और 9वीं क्लास में पढ़ रहा था. मुझे आज भी याद है, पहली बार क्लास में मेराएक क्लासमैटएक ‘पीले साहित्य की किताब’ ले कर आया था. जिस के कवर पेज पर एक जवान नग्न महिला की तस्वीर थी. किसी महिला को इस तरह नग्न देखना शायद मेरा पहला अनुभव था. जिसे देख कर उत्तेजना के साथ घबराहट भी होने लगी थी. आज के नवयुवक पीला साहित्य से परिचित नहीं हों तो उन्हें बता दूं यह आज के विसुअल पोर्न का प्रिंटेड वर्जन था.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- आपकी पोर्न यात्रा में रुकावट के लिए खेद है…

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

मेकअप में इन बातों का रखें खयाल 

आज चाहे घर से दो कदम दूर जाना हो या फिर किसी पार्टी फंक्शन में, मेकअप के बिना बाहर निकलना किसी भी लड़की या महिला को गवारा नहीं होता. उन्हें लगता है कि इसके बिना उनके चेहरे की रौनक फीकीफीकी सी लगेगी. लेकिन कई बार मेकअप से खूबसूरत बनने के चक्कर में उनका चेहरा खूबसूरत लगने के बजाय अजीब लुक देने लगता है. क्योंकि वे मेकअप की सही तकनीक से अनजान जो रहती हैं. ऐसे में अगर आप चाहती हैं कि मेकअप के बाद भी आपका चेहरा नेचुरल लगे और किसी को पता भी नहीं चले कि आपने मेकअप अप्लाई किया हुआ है तो इन बातों का ध्यान जरूर रखें.

1. फेस को क्लीन करें 

अगर आप बिना फेस को क्लीन करे चेहरे पर कोई भी क्रीम या फिर मेकअप अप्लाई करेंगी, तो उससे आपकी स्किन के ख़राब होने के साथसाथ आपका मेकअप भी अच्छे से सेट नहीं होगा. इसलिए चेहरे को  पानी, टोनर से जरूर क्लीन करें. क्योंकि इससे स्किन पर जमी गंदगी रिमूव होने से स्किन क्लीन व सोफ्ट बनती है.

ये भी पढ़ें- बालों को मजबूत व शाइनी बनाने के लिए लगाएं जैतून का तेल

टोनर हर स्किन टाइप पर सूट करता है और मिनटों में स्किन की गंदगी को रिमूव कर देता है. आपको मार्केट में टोनर्स के रूप  में स्किन फ्रेशर्स, जो काफी माइल्ड होते हैं. क्योंकि इसमें वाटर के साथ ग्लिसरीन मिला होता है. वहीँ स्किन टोनिक्स थोड़े से स्ट्रौंग होते हैं , क्योंकि इनमें वाटर व ग्लिसरीन के साथ थोड़ा सा अल्कोहल भी होता है. वहीं एस्ट्रिंजेंट्स इनके मुकाबले ज्यादा स्ट्रोंग होते हैं. क्योंकि ये ऑयली और एक्ने स्किन के लिए खास तौर से डिजाईन किये जाते हैं.  इसलिए आप अपनी स्किन टाइप के हिसाब से ही टोनर का चयन करें.

2. मॉइस्चराइजिंग है जरूरी 

चाहे आपकी स्किन ड्राई हो या ऑयली, स्किन को मॉइस्चरिजे करना बहुत जरूरी होता है. वरना इसके अभाव में मेकअप करने पर स्किन फ्लेकी लुक देने के साथसाथ स्किन के डेमेज होने का भी डर बना रहता है. इसके लिए आप लोशन, क्रीम्स, आयल व सीरम का इस्तेमाल इस्तेमाल कर सकती हैं.  क्योंकि ये स्किन को डीप नौरिश करने के साथ स्किन को झुर्रियों से भी बचाने का काम करता है.

बता दें कि अगर आपकी ऑयली स्किन है तो आप लाइट वेट मॉइस्चराइजर का ही इस्तेमाल करें, क्योंकि ये आपकी स्किन के पोर्स को क्लोग नहीं करता और आपकी स्किन भी मॉइस्चरिजे हो जाती है. वहीं अगर आपकी ड्राई स्किन है तो आप ग्लो  और हाइड्रेशन देने वाले मॉइस्चराइजर का इस्तेमाल करें. मार्केट में आपको विभिन ब्रैंड्स जैसे द बॉडी शॉप, न्यूट्रोजेना, लोटस आदि के अच्छे अच्छे  मॉइस्चराइजर मिल जाएंगे, जिन्हें आप स्किन के हिसाब से खरीद सकती  हैं.

3. प्राइमर को स्किप  करें 

अकसर महिलाएं प्राइमर को जरूरी नहीं समझ का इसे अप्लाई करने वाले स्टेप को स्किप कर देती हैं. लेकिन वे इस बात से अनजान हैं कि प्राइमर न सिर्फ पोर्स व लाइन्स को हाईड करके चेहरे को  सोफ्ट फिनिश देकर मेकअप के  लिए एक परफेक्ट प्लेटफार्म तैयार करता है. वहीं इससे मेकअप लंबे समय तक टिकने के साथसाथ स्किन को पूरी प्रोटेक्शन भी  मिलती  है. इसलिए फाउंडेशन से पहले चेहरे पर प्राइमर जरूर अप्लाई करें.  ये भी स्किन टाइप के हिसाब से होते हैं.  ये जैल फ़ोर्म या क्रीम फ़ोर्म में  मिलते हैं. जिन्हें आप अपनी चोइज के हिसाब से खरीद सकती हैं. बस इस बात का ध्यान रखें कि जिन जगहों पर आपको फाउंडेशन लगाना है जैसे गर्दन व चेहरे पर वहां पर प्राइमर से बेस बनाना न भूलें.

आजकल मार्केट में ऐसे प्राइमर भी आने लगे हैं , जिसके ऊपर आपको फाउंडेशन लगाने की भी जरूरत नहीं है बस आप उसे अकेले लगाकर भी स्किन को क्लीन, ग्लोइंग लुक दे सकती हैं.  इनकी कीमत 700  रुपए से शुरू होती है.

ये भी पढ़ें- औफिस गर्ल के लिए मेकअप और हैल्दी डाइट टिप्स

4. फाउंडेशन का सही तरीका 

अगर  आप फाउंडेशन से अपने स्किन टोन को निखारना चाहती हैं तो उसके सही शैड का चयन करना बहुत जरूरी है. इसके लिए आप उसे अपनी जौलाइन पर लगाकर चेक कर सकती हैं  कि ये स्किन में मर्ज हो रहा है या फिर अलग से दिख रहा है. हमेशा अपने स्किन टोन से 1 – 2 टोन नीचे वाला ही फाउंडेशन का शैड खरीदना चाहिए, वरना  आप अपने मेकअप के कारण लोगों के बीच मजाक का कारण बन सकती हैं. ये फाउंडेशन आपको पाउडर फॉर्म, लिक्विड , वाटर फॉर्म कई तरह के मिल जाएंगे.

अगर आपकी स्किन ड्राई है, तो आपके लिए ऐसे फाउंडेशन अच्छे रहेंगे, जिसमें हाइड्रेट करने वाले तत्व हो. वहीं अगर आपकी तैलीय स्किन है तो आपके लिए पाउडर बेस्ड फाउंडेशन , वहीं सेंसिटिव स्किन वालों के लिए मिनरल आधारित फाउंडेशन ठीक रहेंगे. लेकिन इसे स्किन पर क्रीम की तरह लगाने की भूल न करें. बल्कि डोट डोट करके चेहरे व गर्दन पर अप्लाई करें.  वरना ज्यादा अप्लाई करने पर आपका लुक भद्दा नजर आने लगेगा.

इस बात का ध्यान रखें कि अगर आप फेस पर फाउंडेशन से लाइट कवरेज देना चाहती हैं तो फिंगर्स की मदद ले सकती हैं. वरना आप फाउंडेशन लगाने के लिए ब्रश या स्पोंज की ही मदद लें. हमेशा अच्छी कंपनी का ही फाउंडेशन खरीदें. क्योंकि इससे स्किन पर लुक भी अच्छा आता है और स्किन को किसी भी तरह का कोई नुकसान नहीं पहुंचता.

5. कोम्पेक्ट पाउडर से दें फाइनल टच 

फाउंडेशन के बाद  कोम्पेक्ट पाउडर से स्किन को फाइनल टच दें. ध्यान रखें कि आपको फेस पर पाउडर से बहुत ही लाइट कोटिंग करनी है. ये आपके फेस को ग्लोइंग बनाने के साथसाथ फाइनल फिनिशिंग देने का भी काम करेगा. आपको मार्केट में मेबेलीन , लैक्मे , रेवलोन , लोरियल , कलर एसेंस जैसी कम्पनीज के  कोम्पेक्ट पाउडर मिल जाएंगे. इसमें कुछ एसपीएफ बेस्ड भी होते हैं , जो आपकी स्किन को सन प्रोटेक्शन देने का भी काम करते हैं. तो फिर  कोम्पेक्ट पाउडर से फाइनल टच देना न भूलें.

इन्हें भी करें इग्नोर 

आखिर में फ्लॉलेस लुक के लिए अपनी चीक्स को ब्लश से हाईलाइट करें. हाइलाइटर आपको मार्केट में डिफरेंट शेड्स जैसे पीच, पिंक, पल्म आदि  शेड्स में मिल जाएंगे, जो काफी डिमांड में है. और साथ ही स्किन को एक दम नेचुरल सा टच देने का काम करते हैं. इसके बाद आप आंखों को काजल व लाइनर से निखार कर आखिर में लिपस्टिक से आपने मेकअप को फाइनल टच देकर दिखें खूबसूरत.

ये भी पढ़ें- 5 टिप्स: अपनी स्किन के लिए चुनें बेस्ट फेस मास्क

मां-बाप कहें तो भी तब तक शादी नहीं जब तक कमाऊ नहीं

‘‘बहुत हो गई पढ़ाई. जितना चाहा उतना पढ़ने दिया, अब बस यहीं रुक जा. आगे और उड़ने की जरूरत नहीं. बहुत अच्छे घर से रिश्ता आया है. खूब पैसा है, फैमिली बिजनेस है. लड़का कम पढ़ा-लिखा है तो क्या हुआ, दोनों जेबें तो हरदम भरी रहती हैं उसकी।’’ पिता के तेज स्वर से पल भर को कांपी निम्मी ने अपनी हिम्मत जुटाते हुए कहा, ‘‘पर पापा, मैं नौकरी करना चाहती हूं. इतनी पढ़ाई शादी करके घर बैठने के लिए नहीं की है. और नौकरी कोई पैसे कमाने का लक्ष्य रखकर ही नहीं की जाती, अपनी काबीलियत को निखारने और दुनिया को और बेहतर ढंग से जानने-समझने के लिए भी जरूरी है. मैं जब तक कमाने नहीं लगूंगी, शादी करने के बारे में सोचना भी नहीं चाहती. अच्छा होगा आप मुझ पर दबाव न डालें. मैं मां की तरह हर बात के लिए अपने पति पर निर्भर नहीं होना चाहती, फिर चाहे वह कितने ही पैसेवाला क्यों न हो. और एक बात नौकरी करना या खुद कमाना उड़ना नहीं होता, आत्मसम्मान के साथ जीना होता है.’’ निम्मी की बात सुन उसके पापा को आघात लगा, पर वह समझ गए कि निम्मी उनकी जिद के आगे झुकने वाली नहीं, इसलिए शादी के प्रकरण को उन्होंने वहीं रोकने में भलाई समझी. 

 टूटे सपनों से खुशी नहीं मिलती

निम्मी तो अपने सपनों को पूरा कर पाई, पर कितनी लड़कियां हैं जो ऐसा कर पाती हैं? उन्हें मां-बाप की जिद के आगे हार मानकर शादी करनी पड़ती है, जबकि वे खुद कमा कर अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हैं. शादी के बाद अपने टूटे सपनों के साथ जीते हुए वे न खुद खुश रह पाती हैं, न ही पति को खुशी दे पाती हैं. 

कंगना रानौत की एक फिल्म आई थी, ‘सिमरन’ जिसमें वह कहती है, 

‘मुझे लगता है मेरी पीठ से दो छोटे-छोटे तितली के जैसे पंख निकल रहे हैं. हवाएं मुझे रोक नहीं सकती, रास्ते मुझे बांध नहीं सकते, मेरे पीठ पर पंख हैं और मन में हौसला है. मैं कभी भी उड़ सकती हूं.’ यह संवाद पहली बार नौकरी पर जाने वाली लड़कियों की भावनाओं को खूबसूरती से व्यक्त करता है. यूं तो नौकरी मिलना या कोई काम करना किसी को भी आत्मनिर्भर और खुद पर भरोसा करने के एहसास से भरता है, लेकिन जब लड़कियों के कमाने की होती है, तो आज भी उसे अलग ढंग से तो देखा ही जाता है साथ ही माना जाता है कि मानो उसने कोई बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली है या नौकरी करने का मतलब है झंडे गाड़ना. लड़के के लिए कमाना एक स्वीकृत धारणा है, पर लड़की के कमाने की बात हो तो आज इक्कीसवीं सदी में भी सबसे पहले उसके मां-बाप ही रोड़ा बनकर खड़े हो जाते हैं. 

ये भी पढ़ें- इन 7 कारणों से शादी नहीं करना चाहती लड़कियां

बोझ से कम नहीं

‘‘पढ़ लिया, बेशक काबिल हो, पर शादी करो और हमें हमारी जिम्मेदारी से मुक्त करो, वरना समाज कहेगा कि देखो मां-बाप ने लड़की को घर में बिठा रखा है या मां-बाप उसकी कमाई खा रहे हैं.’’ यह जुमला बहुत सारे घरों में सुनने को मिलता है. वक्त बेशक बदल गया है पर लड़की अभी भी मां-बाप के लिए उनकी जिम्मेदारी है या बोझ. मजे की बात तो यह है कि लड़कों की परवरिश उन्हें पैसा कमाने लायक बनाने के लिए की जाती है, बेशक वैसे उनमें किसी चीज की तमीज न हो, पर लड़कियों के लिए हर चीज को आना जरूरी है, उसका सुघड़ पत्नी, मां, बहू होना जरूरी है, और अगर पैसा कमाना भी आ गया तो उसे किस्मत वाली बेशक कहा जाएगा पर योग्य नहीं. कई बार तो इसे पिछले जन्म में उसके अच्छे कर्म करने तक से जोड़ दिया जाता है. 

दृढ़ता से अपनी बात रखें

कोई लड़की कमाने की इच्छुक नहीं है, और मां-बाप शादी करवा देते हैं तो बात अलग है, पर अगर वह कमाने के बाद ही फिर जिंदगी के अगले पड़ाव पर कदम रखना चाहती है तो सही यही होगा कि मां-बाप की जिद के आगे न झुकें. पछतावे के साथ पूरी जिंदगी गुजारने से अच्छा है, पहले ही अपनी बात दृढ़ता से उनके सामने रखें और उन्हें समझाएं कि आखिर क्यों आप कमाना चाहती हैं. 

आजकल लड़कियां आत्मनिर्भर तो हुई हैं, लेकिन केवल 48 प्रतिशत महिलाओं की आबादी में एक-तिहाई से भी कम नौकरी कर रही हैं. इसका कारण भी यही है कि लड़कियों को काम करने के लिए बढ़ावा ही नहीं दिया जाता, और लड़कियां भी ये मानकर बैठ जाती हैं कि मेरा पति अच्छा कमाएगा और वही घर चलाएगा. लेकिन क्या वे इस बात की गारंटी ले सकती हैं कि पति की कमाई निरंतर बनी रहेगी. हो सकता है किसी कारणवश उसकी नौकरी छूट जाए या काम ही ठप्प हो जाए, ऐसे में अगर वह नौकरी करती होगी तो गृहस्थी की गाड़ी रुकेगी नहीं. अपने मां-बाप को यह पहलू भी दिखाएं और खुद भी समझें. 

सकारात्मक बदलाव महसूस होता है

शादी बेशक जीवन का जरूरी हिस्सा है, लेकिन शादी से पहले नौकरी करना भी किसी महत्वपूर्ण पड़ाव से कम नहीं. बात केवल पैसा कमाने की ही नहीं है, वरन नौकरी लड़कियों अनगिनत उपहार देती है, उनमें  आत्मविश्वास पैदा करती है, जिंदगी में विकल्पों की उपलब्धता कराती है, एक सकारात्मक बदलाव और खुद व दूसरों की नजरों में अपने लिए सम्मान अर्जित करवाती है. कानपुर से दिल्ली नौकरी करने आई महिमा जिसने मां-बाप के शादी के दबाव से बचने के लिए अपने शहर से दूर आकर काम करने का निश्चय किया, का मानना है कि ‘‘नौकरी से होने वाले बदलाव लड़की के दिमाग में एक तरह की गूंज पैदा करते हैं, जो कहती है कि अब मैं दुनिया का कोई भी काम कर सकती हूं.’’ यह सच है कि कमाने लगने के बाद लड़की हां चाहे रह सकती है, मनचाहे कपड़े पहन सकती है, खुल कर सांस ले सकती है और सबसे बड़ी बात है कि वह तब अपनों के लिए कुछ भी कर सकती है. कमाने के बाद लड़की को दो चीजें मिलती हैं- आजादी और सम्मान. आजादी का अर्थ मनमानी करना नहीं, वरन अपने सम्मान की रक्षा करते हुए अपनी सोच को किसी बंधन में बांधे जीना है, जो हर किसी के लिए जरूरी होता है, फिर चाहे वह लड़की हो या लड़का. 

खुद तय करें

मां-बाप चाहे लाख शोर मचाएं कि शादी कर लो, लेकिन सबसे पहले किसी लड़की के लिए यह तय करना जरूरी है कि वह शादी करना चाहती है कि नहीं, या कब करना चाहती है. मां-बाप को समझाएं कि आप बोझ नहीं हैं और न ही बनना चाहती हैं, इसलिए ही कमाना चाहती हैं. भारतीय समाज में ज्यादातर लड़कियों की परवरिश सिर्फ शादी करने के लिए हिसाब से की जाती है. सामाजिक असुरक्षा या अकेले रह जाने का डर लड़कियों के मन में इतना भर दिया जाता है कि वे शादी के बिना अपनी जिंदगी सोच भी नहीं सकतीं. यह सवाल बार-बार उनके सामने आकर खड़ा होता रहता है कि इससे बचने के लिए आत्मनिर्भर होना जरूरी है. जबरदस्ती शादी करना कभी सही नहीं होता और इससे लड़की का जीवन बहुत प्रभावित होता है. तलाक के बढ़ते मामलों की भी यह बहुत बड़ी वजह है. माता-पिता को इस बात का एहसास कराना जरूरी है कि शादी के लिए कुछ समय रुका जा सकता है, क्योंकि यह एक बहुत ज़रूरी फैसला है. ऐसा इंसान जिसके साथ पूरा जीवन बिताना है, उसके बारे में फैसला लेने में जल्दबाजी क्यों की जाए. उससे पहले खुद अगर आत्मनिर्भर बन लिया जाए तो फैसला सही ढंग से लिया जा सकता है. 

एक पहचान होगी

कट्टर सोच, जिद और समाज क्या कहेगा, इससे परे हटकर, माता पिता को भी समझना चाहिए की उनकी बेटी अगर आगे बढ़ती है तो उसकी खुद की एक पहचान बनेगी. हमेशा वह अपने पिता, भाई या पति के नाम से ही जानी जाए, क्या यह ठीक होगा? एक कैरियर का होना उसे एक अलग पहचान देगा, और लोग उसे उसके खुद के नाम से पहचानेंगे. यह किसी भी मां-बाप के लिए गर्व की बात हो सकती है. 

माता-पिता को यह भी समझना होगा कि अगर उनकी लड़की काम करती है तो वह अपने साथ-साथ अपने जैसी कितने ही लोगों को हौसला देती है, और अपनी खुशी और संतुष्टि पाने का अधिकार उसे भी है. 

ये भी पढ़ें- थोड़ी सी बेवफ़ाई में क्या है बुराई

लड़कों की सोच में भी आया है बदलाव

पिछले कुछ समय से लड़कों के भी शादी करने के समीकरण बदल गए हैं. पहले की तरह वह अब केवल सुंदर या घर के काम में दक्ष पत्नी नहीं चाहता. वह नौकरीपेशा लड़की को पसंद कर रहा है जो आर्थिक रूप से उसकी मदद कर सके. जब लड़के बदल रहे हैं तो मां-बाप क्यों न जिद छोड़ दें और अपनी बेटी को कमाने की अनुमति देकर उसके सुनहरे भविष्य की नींव रखने में मदद करें.

इन 7 टिप्स से बिजली के बिल में करें कटौती

आजकल मार्केट में कईं ऐसी टैक्नौलजी आ गईं हैं, जिसे हम अपनाना नही भूलते, लेकिन जब बिजली का बिल आता है तो हम टैंशन में आ जाते हैं कि ज्यादा बिजली का बिल आया कैसे. आपके घर में कईं ऐसी लाइट्स होंगी, जिसे आपको दिनभर चालू करके रखनी पड़ती है. इसके अलावा भी कईं ऐसी चीजें होती हैं , जिनकी जरूरत हमारे डेली इस्तेमाल के लिए चाहिए होती हैं. इसीलिए आज हम आपको कुछ ऐसी टिप्स या ट्रिक्स बताएंगे, जिसे अपनाकर आपको बिजली के बिल की टैंशन कम करनी पड़ेगी.

1. एलईडी लाइट्स को दें पुराने बल्ब की जगह

अगर आपने बिजली का बिल कम करना चाहते हैं तो सबसे पहले अपने घर के बल्ब बदलें. पुराने नौर्मल बल्ब की जगह एलईडी बल्ब का इस्तेमाल कीजिए. एलईडी लाइट्स कुछ महंगे जरूर होते हैं, लेकिन इनके इस्तेमाल से आप काफी बिजली की बचत कर सकते हैं.

ये भी पढ़ें- मौनसून में छाता खरीदते समय रखें इन 6 बातों का ध्यान

2. एयर कंडिशनर को सही रखने की है जरूरत

गर्मियों में एसी का इस्तेमाल शुरू करने से पहले उसकी सर्विसिंग जरूर करा लेनी चाहिए. तापमान की सेटिंग को भी सही रखें. ऐसा करके आप बिजली के बिल में कुछ कमी ला सकते हैं.

3. घर में बेहतर वेंटिलेशन की हो व्यवस्था

अगर आपके घर में वेंटिलेशन सही होगा तो न तो आपको बहुत देर तक पंखा चलाने की जरूरत होगी और न ही लाइट जलाकर रखने की. ऐसे में आसानी से कुछ बिजली बचाई जा सकती है.

4. रोजाना न करें वौशिंग मशीन का इस्तेमाल

क्या आप रोज-रोज वाशिंग मशीन में कपड़े धोते हैं? वौशिंग मशीन में रोज-रोज कपड़े धोना सही नहीं है. मशीन की क्षमता के अनुसार जब कपड़े ज्यादा हो जाएं तो ही मशीन का इस्तेमाल करें.

5. बार-बार मोटर चलाने की बजाय ठीक कराएं प्लंबिंग

अगर आपके घर की कोई पानी की पाइप लीक कर रही है या फट गई है तो उसे ठीक करा लें. हमें पता नहीं चलता है लेकिन सच्चाई यही है कि लीक हो रही पाइप से बूंद-बूंद करके पानी गिरता रहता है और टंकी खाली हो जाती है. जिसे भरने के लिए हमें समय-समय पर टुल्लू या वौटर मोटर चलाना पड़ता है, जिससे बिल बहुत तेजी से बढ़ जाता है.

ये भी पढ़ें- 5 टिप्स: होम क्लीनिंग के लिए नमक है फायदेमंद

6. सोलर ऊर्जा का इस्तेमाल करना रहेगा बेहतर

इन दिनों सोलर ऊर्जा काफी चलन में है. हालांकि शुरुआत में इसमें काफी पैसे खर्च करने पड़ते हैं लेकिन उसके बाद बिजली का बिल लगभग आधा हो जाता है.

7. बिना इस्तेमाल के लाइट्स या मशीन चलाने से बचें

कभी भी बिना वजह बिजली वजह खर्च न करें. अगर आप एक कमरे से दूसरे कमरे में जा रहे हों और इस कमरे में कोई बैठा न हो तो उठने के साथ ही कमरे की लाइट और पंखा बंद कर दें.

कईं बार बिजली का बिल बढ़ने का कारण हम खुद या हमारी फैमिली के सदस्य होते हैं, इसीलिए आप अपनी फैमिली को बिना वजह बिजली का खर्च करने से रोकें. बिना वजह की बिजली खर्च कम करने से आपके बिजली का बिल भरने में आने वाला खर्च आपके किसी और जरूरत के काम में आ जाएगा.

ये भी पढ़ें- डिशवौशर में बर्तन धोने से हो सकते हैं ये 7 नुकसान

Valentine’s Day: दीवाली की रात- क्या रूही को अपना बना पाया रूपेश

मैं अपनी रूही से धनतेरस के दिन मिलने वाला था, लेकिन पता चला कि वह आस्ट्रेलिया से लौटी ही नहीं है, तो मेरी व्याकुलता बढ़ गई. क्योंकि मैं मन ही मन चाह रहा था कि इंतजार की घडि़यां जल्दी खत्म हो जाएं. कई रातों से मैं ठीक से सोया भी नहीं हूं. नींद आती भी तो कैसे. कभी उस के बारे में तो कभी अपने बारे में सोचसोच कर मैं परेशान हुए जा रहा हूं. इधर मेरी डायरी के पन्ने प्यार के खत लिखलिख कर भर गए हैं. मैं ने उसे 3 माह पहले एक सौंदर्य प्रतियोगिता में देखा था. मुझे निर्णायक के तौर पर बुलाया गया था. मैं भी इस प्रतियोगिता के लिए आतुर था.

सौंदर्य प्रतियोगिता का चिरप्रतीक्षित दिन आ गया. मैं सुगंधित इत्र लगा कर फैशनेबल कपड़ों में वहां पहुंच गया. वहां का नजारा देख दिल बागबाग हो गया. सरसराते आंचलों और मदभरी सुगंधलहरियों के बीच नाना सुंदरियां खिलखिला रही थीं. रूप का हौट हाट लगा हुआ था. सौंदर्य प्रतियोगिता के मुख्य अतिथि तथा अन्य अतिथि मंच की ओर प्रस्थान करने लगे. मैं भी उन में शामिल था.

मंच के एक ओर मनमोहक झलक पड़ी. अरे…यह कौन? अनूठा रंगरूप है…ऐसा रूप तो पहले कहीं नहीं देखा था. रूही के रूपवैभव पर तो सारा विश्व गर्व करता है. आज मैं ही नहीं अपितु सारा विश्व इस लावण्यमयी की रूपराशि के समक्ष नतमस्तक होने को आतुर है. ऐसा सौंदर्य मुंबई महानगर में भी नहीं दिखता.

ये भी पढे़ं- गमोत्सव: क्या मीना को हुआ बाहरी दुनियादारी का एहसास

उस की आवाज में जादू है. विश्वास ही नहीं होता कि ऐसा स्वर भी होता है. वह रूपगुण की धनी थी. उस दिन मैं पहली ही झलक में उस पर मरमिटा था. न जाने कितनी कल्पनाएं कर बैठा था. ऐसा लगा था जैसे मेरी वर्षों की तलाश पूरी हो गई हो. मैं मन में एक प्यारे सपने का घरौंदा संजोने लगा.

उस शाम हमारा एकदूसरे से परिचय हुआ और हम ने एकसाथ चाय पी. उस के साथ बिताए 4 घंटे बेहद खुशनुमा रहे. अब रूही मेरी रूह बन गई. उस का निश्छल स्वभाव, उत्कृष्ट संस्कार, उच्चशिक्षा और खूबसूरत व्यवहार…सब से बढ़ कर उस के चेहरे का भोलापन, उस के द्वारा गाए गीत, ये सब मेरे मन में बैठ गए. दूसरे दिन प्रतियोगिता के फोटो आ गए. वह मेरे रूपरंग और गठीले बदन के साथ खड़ी फब रही थी. मन ही मन मैं सोचने लगा कि हमारी जोड़ी जंच रही है. और मैं मन ही मन उसे अपनी अर्द्धांगिनी के रूप में देखने लगा था. उसे फोन कर बधाई दी और शाम को क्लब में बुला लिया. हमारी लगातार मुलाकातें होती रहीं. उस दिन यह भी पता चला कि उसे 4 फिल्मी गीतों के लिए साइन किया गया है.

यह सुन मुझे खुशी हुई. उसे गले लगा कर मैं ने बधाई दी. उस के व्यवहार से लगा जैसे वह भी मुझे मन ही मन चाहने लगी है या उस की तलाश भी मंजिल की ओर है. मैं जब उसे बुलाता तो वह आ जाती और जब वह बुलाती तो मैं भी सारे काम छोड़ उस के पास दौड़ादौड़ा चला आता. उस के करीब होने का एहसास दिल को इतना खुश कर देता कि मैं खुद गीत लिखने लगा. मेरी दैनिक गतिविधियों में परिवर्तन आने लगा और अब ये सब मुझे भी काफी अच्छा लगने लगा. मैं अब सुबह जल्दी उठ कर सैर के लिए जाने लगा जहां मेरी रूह जाया करती. उस से मिलने की इच्छा मुझ में नई ऊर्जा का संचार करने लगी. वह किसी प्रसाधन का उपयोग नहीं करती थी. वह इतनी सुंदर थी कि उस पर से मेरी नजरें हटती ही नहीं थीं. उस की मुसकराहट ने मेरी दुनिया ही बदल डाली. मेरे पांव जमीन पर नहीं टिकते थे.

एक सुबह जब वह सामने से मुसकराती, जौगिंग करती आ रही थी तो मैं सोचने लगा कि इसे क्या दूं क्योंकि इस के सामने तो दुनिया की हर चीज फीकी लगती है. उस ने आते ही मुसकरा कर देखा और कहा, ‘‘ मैं चाहती हूं कि आप कल मेरे घर डिनर पर आएं.’’

मैं उस का निमंत्रण पा कर फूला नहीं समाया. मैं भी तो रातदिन, उठतेबैठते यही प्रार्थना कर रहा था. आज मुझे अपनी मुराद पूरी होती लगी. उस के घर में प्रवेश करते ही मैं रोमांचित हो गया. फाटक के रोबदार प्रहरियों ने मेरी आदरपूर्वक अगवानी की. वातावरण देख खुशी से मन झूम उठा. रूही के मातापिता ने सस्नेह आशीर्वाद दिया. इधरउधर की तथा मेरे परिवार की खूब चर्चा हुई. रूही उन की एकलौती बेटी थी. मैं ने उन्हें अपना परिचय देते हुए बताया कि मैं श्याम मनोहर दासजी का एकलौता सुपुत्र तथा लोकप्रिय मौडल के साथसाथ उद्योगपति रूपेश हूं, यह सुन कर वे बेहद प्रसन्न हुए.

मेरे मातापिता शहर के नामी लोगों में अग्रणी स्थान रखते हैं तथा उद्योगपतियों की लिस्ट में उन के साथ मेरा नाम भी जुड़ा हुआ है. मेरे लिए कई रिश्ते आ रहे हैं, लेकिन मुझे एक भी नहीं भाता है, न जाने रूही में ऐसा क्या कुछ था, जो मुझे अपनी ओर खींच रहा था. शायद मुझे ऐसी ही लड़की की तलाश थी. एक शाम दोनों परिवारों ने एकसाथ बिताई. फिर संकोच छोड़ हम दोनों भी घुलमिल गए. हम ने एकदूसरे के परिवारों के बारे में भी बात की.

इस दौरान रिकौर्डिंग के सिलसिले में रूही को आस्ट्रेलिया जाना पड़ा. इधर मेरा मन व्याकुल था. मैं बेसब्री से उस का इंतजार कर रहा था. मैं कभी अंदर कभी बाहर जाता. कहीं दिल लगता ही नही था. उस दिन मुझे प्यार की तड़प का सही एहसास हुआ.

ये भी पढ़ें- एक मां का पत्र: रेप जैसे घिनौने कृत्य पर एक मां का बेटे को पत्र

चौथे दिन सुबह होते ही जैसे ही सूचना मिली कि रूही आ गई है, मेरी खुशी का तो ठिकाना ही न रहा था. मैं सोचने लगा कि जिन खुशियों की तलाश में हम सारा जीवन गुजार देते हैं, आखिर वे खुशियां क्या हैं? दार्शनिक इस पर लंबी बहस कर सकते हैं, लेकिन मनोवैज्ञानिकों के अनुसार आत्मसंतुष्टि तथा संसार के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण ही व्यक्ति की खुशी है. सच ही तो है, जीवन में हम जो कुछ भी करते हैं, उस का एकमात्र लक्ष्य खुशियों को पाना ही तो होता है. हमारी जिंदगी में जो कुछ महत्त्वपूर्ण है, जैसे प्यार, विश्वास, सफलता, मित्रता, रिश्ता, चाहत, सैक्स, पैसा सभी खुशियों को बटोरने के साधन ही तो हैं.

कब, कैसे, कहां और क्यों आप खुशी से झूमने लगेंगे? यह आप भी नहीं जानते. खुशियां न बढि़या होती हैं और न घटिया. खुशियां केवल खुशियां होती हैं यानी मन की संतुष्टि कौन, कैसे, किस हाल में पा लेगा और खुश रहेगा यह न तो कोई मनोवैज्ञानिक बता सकता है, न कोई दार्शनिक और न ही डाक्टर, क्योंकि हर इंसान की खुशी उस के आसपास घट रही परिस्थितियों की देन है. किसी व्यक्ति की खुशी अगर प्यार में है लेकिन उस का प्यार किसी कारण से उस से दूर हो गया है और हम उसे फिर भी खुश रहने के लिए कहते हैं तो यह संभव नहीं है क्योंकि खुश इंसान मन से होता है. हर व्यक्ति को अलगअलग चीजों से खुशी मिलती है, जैसे कोई प्यार में खुशी देखता है, तो कोई पैसे में खुशी तलाशता है, किसी के लिए बूढ़े मातापिता की सेवा ही सब से बड़ी खुशी है, तो कोई अनाथ को पाल कर व अनपढ़ को पढ़ा कर खुश हो जाता है.

मुझे सुखद दांपत्य जीवन के लिए सच्चा प्यार चाहिए. साथ ही मैं चाहता हूं कि जो भी मेरा जीवनसाथी बने वह मुझे और मेरे परिवार को समझे और उन्हें सम्मान और प्यार दे. ये सब बातें मुझे रूही में नजर आती थीं. इसलिए ही मैं ने उसे अपना जीवनसाथी बनाने का फैसला किया.

मैं उसी क्षण मां के पास गया और मन की बात भी उन्हें बता दी. मां को मेरी पसंद अच्छी लगी. उन्होंने यह बात पिताजी को भी बता दी. पिताजी ने सामाजिक औपचारिकताएं निभाते हुए रूही के पिता से बात की. शाम को मैं बाहर जाने की तैयारी में था कि मां और पिताजी कमरे में आए.

‘‘कहीं बाहर जा रहे हो?’’ पिताजी ने पूछा. ‘‘कुछ काम है?’’ मैं ने पूछा.

पिताजी ने बताया, ‘‘मैं ने रूही के पिता से तुम्हारे विवाह की बात कर ली है. उन्होंने कल दोपहर हमें जिमखाना क्लब में लंच के लिए बुलाया है.’’ हम वहां पहुंचे तो जिमखाना क्लब का वातावरण बड़ा शांत था. रूही और उस के मातापिता हमारी अगवानी के लिए खड़े थे.

रूही के पिता ने रूपेश से पूछा, ‘‘आप बेंगलुरु के हैं हम मंगलौर के, दोनों के रहनसहन में अंतर है. क्या विवाह सफल होगा?’’ रूही पर एक नजर डालते हुए रूपेश ने कहा, ‘‘मेरी दृष्टि में विवाह अपनेआप सफल नहीं होते उन्हें सफल बनाना पड़ता है. इस के लिए पतिपत्नी दोनों को निरंतर प्रयास करना पड़ता है.’’

रूपेश के पिता ने रूही से पूछा,‘‘रूही बेटे, तुम्हारा क्या विचार है?’’ ‘‘विवाह स्त्रीपुरुष का गठबंधन है जिन का लालनपालन अलगअलग परिवेश में होता है. जीवन को सुचारु रूप से चलाने के लिए दोनों पक्षों को समझौते करने होते हैं,’’ रूही ने उत्तर दिया.

रूही की मां ने प्रसन्न होते हुए कहा, ‘‘इस ओर भी ध्यान देना जरूरी होता है कि भावुक हो कर किए गए समझौते भी इस रिश्ते को प्रभावित कर खुशियों का गला घोंट देते हैं.’’ ‘‘नहीं, हम भावुक नहीं हैं…’’ दोनों ने समवेत स्वर में कहा.

हम दोनों के मातापिता ने और विचार करने को कहा. 2 सप्ताह बीत गए. मेरा मन डूबता जा रहा था, क्योंकि रूही के मातापिता ने हामी नहीं भरी थी.

ये भी पढ़ें- Valentine’s Special: थैंक यू हाई हील्स- अश्विन को सोहा की कौन सी कमी खलती थी

दीवाली की सुबह रूही के मातापिता बहुत सारे कीमती तोहफे ले कर हमारे घर आए. यह देख कर मेरी खुशी का ठिकाना ही न रहा. रूही के मातापिता की खूब आवभगत हुई. दोनों परिवार बेहद प्रसन्न थे. मुझे और रूही को यह दीवाली खुशियों भरी लग रही थी. शांत रूही मुझे अर्थपूर्ण नजरों से देख रही थी. मानो कुबेर का खजाना उस की और मेरी झोली में आ गिरा हो.

पिताजी ने मुझे गले लगा लिया और मां ने रूही को. चारों ओर से पटाखों के स्वर के साथ आकाश में कई मनमोहक आतिशबाजियां फूट रही थीं. ‘‘दीवाली की रात खुशियों की रात,’’ मां ने कहा. रूही और मैं उन पलों का आनंद लेने लगे.

वेलेंटाइन डे से पहले रेड कलर की ड्रैस में नजर आईं सुरभि चंदना, फोटोज वायरल

टीवी एक्ट्रेस सुरभि चंदना अक्सर अपने हौट फैशन को लेकर सुर्खियों में रहती हैं. नागिन एक्ट्रेस का फैशन फैंस को इतना पसंद आता है कि उन्हें ट्राय करने का एक मौका नही छोड़ते. इसी बीच सुरभि चंदना ने वेलेंटाइन डे से पहले कुछ फोटोज शेयर की हैं, जिसमें वह बेहद हौट और खूबसूरत पोज देते नजर आ रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं वेलेंटाइन वीक पर सुरभि के कुछ खूबसूरत लुक, जिन्हे आप ट्राय कर सकती हैं.

1. रेड ड्रैस में छाया सुरभि का लुक   

सोशलमीडिया पर शेयर की गई फोटोज में एक्ट्रेस सुरभि चंदना रेड कलर की हाई स्लिट गाउन नजर आ रही हैं, जिसमें वह बेहद खूबसूरत लग रही हैं. वहीं ब्लैक कलर की ज्वैलरी कैरी करके सुरभि बहुत ही खूबसूरत लग रही हैं. वहीं फैन्स को उनका बोल्ड अंदाज बहुत पसंद आ रहा है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Surbhi Chandna (@officialsurbhic)

ये भी पढ़ें- Wild & Sexy लुक में एरिका फर्नांडिस ने कराया फोटोशूट, देखें फोटोज

2. ब्लैक ड्रैस करें ट्राय

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Surbhi Chandna (@officialsurbhic)

अगर आप वेलेंटाइन वीक या फिर किसी पार्टी में ड्रैस की तलाश कर रही हैं तो सुरभि चंदना की ये ब्लैक रफ्फल ड्रैस ट्राय करना ना भूलें. इस ड्रैस के साथ ज्वैलरी के लिए स्टड इयरिंग्स पहनें तो बेहद अच्छा होगा.

3. पिंक साड़ी कर सकती हैं ट्राय 

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Surbhi Chandna (@officialsurbhic)

अगर आप वेलेंटाइन वीक में साड़ी पहनना चाहती हैं तो सुरभि चंदना की ये पिंक कलर की जौर्जट की साड़ी आपके लिए अच्छा औप्शन है. ये आपके लुक को सिंपल लेकिन स्टाइलिश बनाने में मदद करेगी.

4. जींस और टौप का कौम्बिनेशन करें ट्रायॉ

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Surbhi Chandna (@officialsurbhic)

जींस का औप्शन हर कोई चुनता है. लेकिन जब उसके साथ अच्छे टौप की करें तो काफी मशक्कत का सामना करना पड़ता है. इसीलिए सुरभि का ये रेड कलर का टौप किसी भी डैनिम के साथ अच्छा औप्शन है.

ये भी पढ़ें- Indian Idol 12 में कपड़ों के बाद छाया Neha Kakkar के हेयरस्टाइल का जलवा, देखें फोटोज

5. फ्लावर प्रिंटेड ड्रैस है परफेक्ट

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Surbhi Chandna (@officialsurbhic)

अगर आप ड्रैस का चुनाव करने वाली हैं तो सुरभि की ये फ्लावर प्रिंटेड ड्रैस आपके लिए परफेक्ट औप्शन है.

इमोशनल अत्याचार: क्या पैसों से प्यार करने वाली नयना को हुई पति की कदर

 

 

 

Serial Story: इमोशनल अत्याचार – भाग 3

‘‘मैं अभी तकलीफ में हूं… बातें करने में असमर्थ हूं. तुम चाहो तो बाद में फोन करूंगा.’’

‘‘सुनो, जरा अपना क्रैडिट कार्ड की लिमिट बढ़वा दो मु झे एक बड़ी स्क्रीन वाला टीवी लेना है और तुम्हारे कार्ड की लिमिट पूरी हो गई है. अब मुंबई जैसे शहर के खर्चे हजार होते हैं तुम क्या सम झोगे? मैं अपनी दोस्त के साथ दुकान गई थी और कार्ड डिक्लाइन हो गया. मु झे बेहद शर्मिंदगी महसूस हुई. तुम्हें मेरी जरा भी फिक्र नहीं है…’’

नयना बोल रही थी और जतिन का दिल छलनी हो रहा था कि उस ने एक बार भी मेरी खैरियत नहीं पूछी. सिर्फ और सिर्फ पैसों का ही नाता रह गया है क्या? चूंकि सारी बातें प्रेरणा के समक्ष ही हो रही थीं, सो उस का भी मन पसीज गया. शाम होतेहोते जतिन के मातापिता ही रायपुर से रांची होते हुए पिपरवार पहुंच गए. उन के आ जाने के बाद प्रेरणा भी थोड़ी निश्चिंत हुई और कालोनी के और लोग भी. जतिन की मां को तो पता ही नहीं था कि उन की नवब्याहता बहू उन के बेटे के साथ न रह कर मुंबई रहने लगी है. बेटे की शादी के बाद उन्हें ज्यादा पूछताछ उन की गृहस्थी में सेंध सरीखी लगती थी. जतिन ने भी घरपरिवार में किसी से इस बात की चर्चा तक नहीं की कि नयना अब उस के साथ नहीं रह रही. यह बात उसे एक तरह से खुद की हार सम झ आती थी और वह इस दर्द को दबाए घुल रहा था.

ये भी पढ़ें- Valentine’s Special: सुर बदले धड़कनों के

अब जब मां के सामने सारी बातें स्पष्ट हो गईं तो उस का मन भी कुछ हलका हुआ और वह अपने टूटे पैर और चोटिल दिलदिमाग व शरीर की तरफ उत्प्रेरित हुआ. अपने शुभचिंतक और मददगार भी दिखने लगे. जतिन की मां ने नयना को फोन लगा कर कहा कि वह पिपरवार आ कर उस की देखभाल करे. उन्होंने उसे भलाबुरा भी कहा कि पति की दुर्घटना के विषय में जान कर भी वह नहीं आई.

नयना ने भोलेपन से कहा, ‘‘मम्मीजी, अब मेरे पास इतने पैसे अभी नहीं हैं कि मैं मुंबई से रांची फ्लाइट का किराया भर सकूं. जतिन के कार्ड की लिमिट भी पार हो गई है इस महीने.’’

जतिन के मातापिता सिर पकड़ कर बैठ गए कि कैसी मानसिकता है उस की? खैर, उसे टिकट भेजा गया और एहसान जताती हुए नयना आ भी गई. महीनों बाद अपनी  पत्नी को घर में देख जतिन खिल उठा. उसे शुरुआती दिनों की याद आने लगी जब उस ने और नयना ने गृहस्थी की शुरूआत की थी. परंतु नयना के नखरों का अंत नहीं था, साधारण से परिवार की साधारण सी नौकरी करने वाली लड़की पति के पैसों पर ऐश करती उच्चाकांक्षी हो उन्मुक्त हो चुकी थी. घर में घुसते हुए ही उस की उस जगह से शिकायतों का पुलिंदा अनावृत होने लगा था. जतिन का ड्राइवर, नयना को रिसीव करने गया. उस के जूनियर के समक्ष ही वह कोयला वाली सड़कों, सूने रास्ते और पसरी मनहूसियत का रोना ले कर बैठ गई.

जतिन बिस्तर पर है, लाचार है, इस बात का भी एहसास उसे कुछ समय बाद ही चला. फिर उसे बढ़े हुए कामों से भी परेशानी होने लगी. सासससुर के समक्ष ही वह अपनी अप्रसन्नता व्यक्त करने लगी. उस की आने की खबर सुन, अगले दिन जतिन के सहकर्मी और कालोनी की महिलाएं भी मिलने आ गईं. वैसे भी सब नियमित हालचाल तो जतिन का करते ही थे.

सब ड्राइंगरूम में बैठे ही थे कि नयना कमरे में जतिन को ऊंचे स्वर में कहने लगी, ‘‘यही बात मु झे पसंद नहीं… यहां हर वक्त लोग नाक घुसाए रहते हैं, प्राइवेसी किस चिडि़या का नाम है मानो खबर ही नहीं, बाई द वे, वह लड़की नहीं दिखाई दे रही है, जिस का हाथ पकड़ तुम ने केक काटा था?’’

‘‘नयना, ऐसे न बोलो जब मेरा ऐक्सिडैंट हुआ तो इन्हीं लोगों ने मु झे संभाला था और प्रेरणा का तो तुम्हें शुक्रगुजार होना चाहिए.’’

नयना के आने के 2-3 दिनों के बाद ही जतिन के मातापिता रायपुर लौट गए ताकि बेटेबहू एकांत में अपनी टूटती गृहस्थी की मौली को फिर से लपेट लें.

मां ने एक बार कहा भी, ‘‘जतिन तू क्यों नहीं मुंबई या किसी अन्य महानगर में नौकरी खोज लेता है ताकि बहू भी खुश रह सके?’’

‘‘मां मैं ने एक माइनिंग यानी खनन अभियंता की पढ़ाई की है और मेरी नौकरी हमेशा ऐसी जगहों पर ही होगी. अब खदान तो महानगरों में नहीं न होंगे?’’

जतिन की बात सही ही थी. अगले 3-4 दिनों में ही महानगरीय पंछी के  पंख फड़फड़ाने को व्याकुल होने लगे. उसे मुंबई की चकाचौंध की कमी महसूस होने लगी.  झारखंड के उस अंदरूनी भाग की हरियाली और सघन वन के बीच सुंदर कालोनी शांत वातावरण और खुशमिजाज लोग मुंह चिढ़ाते प्रतीत होते. बंगला, गाड़ी, ड्राइवर, इज्जत उसे नहीं लुभाते थे. लोगों की परवाह और स्नेह उसे बंधन लगने लगा. वह वहां से निकलने के बहाने खोजने लगी. हां, सभी से वह उस लड़की के विषय में जरूर पूछती जो केक कटवाते वक्त साथ थी. पर किसी ने उसे कुछ भी नहीं बताया, प्रेरणा के विषय में. उलटे लोगों को लगने लगा कि यदि नयना की जगह प्रेरणा से जतिन की शादी हुई होती तो ज्यादा सफल और सुखी होती उस की जिंदगी.

‘‘जतिन मैं ने बुधिया को सबकुछ सम झा दिया है, वह तुम्हारा खयाल रख लेगी. मु झे वापस जाना ही होगा, यहां मेरा दम घुटता है. मैं 2-3 महीनों में फिर आती हूं. तुम तो जानते ही हो मु झे वर्क फ्रौम होम बिलकुल पसंद नहीं,’’ कहते हुए नयना अपना सामान समेटने लगी.

ये भी पढे़ं- गमोत्सव: क्या मीना को हुआ बाहरी दुनियादारी का एहसास

जतिन बिस्तर पर प्लास्टर वाले पैर लिए उसे देख रहा था, जिसे कटने में अभी 5 हफ्ते शेष थे. भावुक, संवेदनशील जतिन पत्नी के इस अवतार को देख अचंभित हो रहा था. दिल की गहराई में बहुत कुछ टूट रहा था, बिखर रहा था. उस ने जाती हुई नयना को इस बार कुछ नहीं कहा, बल्कि करवट ले उस की तरफ पीठ कर दी ताकि उस के आंसुओं को देख नयना उसे कमजोर न सम झ ले और फिर और ज्यादा इमोशनल अत्याचार न करने लगे.

जतिन ने इस बार उसे दिल से ही नहीं जिंदगी से भी विदा कर दिया. इस एक पहिए की गृहस्थी से उस का भी मन उचाट हो गया. नयना ने सोचा भी नहीं था कि उस के जाते ही राघव उसे तलाक के पेपर भिजवा देगा. कहां वह उस के पैसों पर ऐश करने की सोच रही थी, सीधासाधा सा पढ़ाकू गंवार टाइप का लड़का कुछ ऐसा कर जाएगा जो उस के स्वप्नों पर वज्रपात सरीखा होगा. नयना ने सम झा था कि वह इस तरह जतिन को इमोशनल मूर्ख बना अपनी मनमानी करती रहेगी. ठुकराए जाने के बाद उसे उस छप्पन भोग थाली का महत्त्व याद आ रहा था. मगर जिंदगी बारबार मौके नहीं देती है.

ये भी पढ़ें- एक मां का पत्र: रेप जैसे घिनौने कृत्य पर एक मां का बेटे को पत्र

Serial Story: इमोशनल अत्याचार – भाग 1

नयना अपने हाथों में लिए उस कागज के टुकडे़ को न जाने कब से निहार रही थी. उसे तो खुश होना चाहिए था पर न जाने क्यों नहीं हो पा रही थी. जब तक कुछ हासिल नहीं होता है तब तक एक जुनून सा हावी रहता है जेहन पर. इस कागज के टुकड़े ने मानो उस का सर्वस्व हर रखा था. पर क्या करे इस शाम को जब हर दिन की वह जद्दोजहद एक  झटके में समाप्त हो गई. अब जो भी हो इस शाम को इस हासिल का जश्न तो बनता ही है.

अगले ही पल गहरे मेकअप तले खुद को, खुद की भावनाओं को छिपाए एक डिस्को में जा पहुंची. यही तो चाहिए था उसे. इसी को तो पाना था उसे, पर फिर ये आंसू क्यों निकल रहे हैं? क्यों नहीं  झूम रही? क्यों नहीं थिरक रही? क्यों यह शोर, ये गाने जिन के लिए वह बेताब थी, आज कर्णफोड़ू और असहनीय महसूस हो रहे हैं?

यही चाहिए था न, फिर पैर थिरकने की जगह जम क्यों गए हैं… उफ…

फिर ये अश्रु, यह मूर्ख बनाती बूंदाबांदी, जब देखो उसे गुमराह करने को टपक पड़ती है. यह वही बूंदाबांदी है जिस ने नयना के जीवन को पेचीदा बना दिया है. कहते हैं ये आंसू मन के अबोले शब्द होते हैं, पर क्षणक्षण बदलते मन के साथ ये भी अपनी प्रकृति बदलते रहते हैं और मानस की उल झनों को जलेबीदार बना बावला साबित कर देते हैं. तेज बजता संगीत, हंसतेचिल्लाते लोग, रंगीन रोशनी और रहस्यमय सा अंधकार का बारबार आनाजाना, बिलकुल उस की मनोस्थिति की तरह.

ये भी पढ़ें- क्षोभ- शादी के नाम पर क्यों हुआ नितिन का दिल तार-तार

काश यह शोर कम होता, काश थोड़ी नीरवता होती.

अजीबोगरीब विक्षिप्त सी सोच होती जा रही है उस क. मन उन्हीं छूटी गलियों की तरफ क्यों भाग रहा है, जिन्हें छोड़ने को अब तक तत्पर थी, आतुर थी.

नयना की शादी एक अभियंता जतिन से हुई थी, जो देश के एक टौप इंजीनियरिंग कालेज से पढ़ा हुआ होनहार कैंडिडेट था उस वक्त अपनी बिरादरी में. नयना ने भी इंजीनियरिंग की ही डिगरी हासिल की थी और किसी आईटी फर्म के लिए काम करती थी. शादी के वक्त सबकुछ बहुत रंगीन था, शादी खूब धूमधड़ाके से हुई थी नयना के शहर मुंबई से. शादी के बाद वह विदा हो कर जतिन के शहर रायपुर गई और फिर दोनों हनीमून मनाने चले गए.

जतिन चूंकि खनन अभियंता था तो लाजिम था कि उस की पोस्टिंग खदान के पास ही होगी. वह  झारखंड के कोयला खदान में कार्यरत था और पिपरवार नामक कोलयरी में उस की पोस्टिंग थी. कोयला खदान के पास ही सर्वसुविधा संपन्न कालोनी थी, जहां अफसरों और श्रमिकों के परिवार कंपनी के क्वार्टरों में रहते थे. जतिन को भी एक बंगला मिला हुआ था, जिस में एक छोटा सा बगीचा भी था और सर्वैंट क्वाटर्स भी. हनीमून से लौट कर जतिन बड़ी खुशी से नयना को ले कर पिपरवार अपने बंगले पर अपनी गृहस्थी शुरू करने गया. अब तक वह गैस्ट हाउस में ही रहता था सो अब पत्नी और घर दोनों की खुशी उसे प्रफुल्लित कर रही थी. जिंदगी के इस नवीकरण से उत्साहित जतिन अपने क्वार्टर को घर में तबदील करने में लग गया. नयना भी उसी उत्साह से इस नूतनता का आनंद लेने लगी.

नवविवाहित जोड़े को हर दिन कोई न कोई कालोनी में अपने घर खाने पर निमंत्रित करता था. शहर से दूर उस छोटी सी कालोनी में सभी बड़ी आत्मीयता से रहते थे. आपस के सौहार्द और जुड़ाव की जड़ें गहरी थीं, किसी सीनियर अफसर की पत्नी ने खुद को नयना की भाभी बता एक रिश्ता बना लिया तो किसी ने बहन, तो किसी ने बेटी. नयना को 1 हफ्ते तक अपनी रसोई शुरू करने की जरूरत ही नहीं पड़ी. कोई न कोई इस बात का ध्यान रख लेता था.

इस बीच एक बूढ़ी महिला बुधनी को उन्होंने काम पर रख लिया जो बंगले से लगे सर्वैंट क्वार्टरों में रहने लगी. नयना भी वर्क फ्रौम होम करने लगी.

पिपरवार से नजदीकी शहर रांची कोई 80 किलोमीटर दूर था. एक महीने में ही कई बार नयना जिद्द कर वहां के कई चक्कर काट चुकी थी. जबकि जरूरत की सभी दुकानें कालोनी के शौपिंग सैंटर में उपलब्ध थीं. मगर रांची तो रांची ही था, एक सुंदर पहाड़ी नगर मुंबई की चकाचौंध वहां नदारद थी. 2 महीने होतेहोते नयना को ऊब होने लगी, औफिसर क्लब में हफ्ते में एक बार होने वाली पार्टी में उस का मन न लगता. वहां का घरेलू सा माहौल उसे रास न आता. जतिन भी दिनोंदिन व्यस्त होता जा रहा था, खदान की ड्यूटी बहुत मेहनत वाली होती है और जोखिम किसी सैनिक से कम नहीं. थक कर चूर, कोयले की धूल से अटा जब वह लौटता तो नयना का मन वितृष्णा से भर जाता. जतिन उसे बताता खदान में चलने वाले बड़ेबड़े डोजरडंपरों के बारे में कि कैसे वे गहरी खदानों में चलते हैं, कैसे कोयला काटा जाता है. उन भारीभरकम मशीनों के साथ काम करने के जोखिम की भी चर्चा करता या बौस की शाबाशी या डांट इत्यादि का जिक्र करता तो नयना उबासी लेने लगती. उस के अनमनेपन को भांपते हुए जतिन अगली छुट्टी का प्रोग्राम बनाने लगता.

ये भी पढ़ें- झूठा सच- कंचन के पति और सास आखिर क्या छिपा रहे थे?

मगर जो था सो था ही, पैसे आ तो रहे थे जो नयना को बेहद पसंद थे पर सचाई यह

थी कि वह महानगरीय जीवन की कमी महसूस करने लगी थी. उसे आश्चर्य होता कि यहां रहने वाली दूसरी स्त्रियां खुश कैसे रहती हैं. वहां के शांत वातावरण में उसे सुख नहीं रिक्तता महसूस होने लगी. न कोई मौल, न कोई मल्टीप्लैक्स, भला कोई इन सब के बिना रहे कैसे?

वह इतवार था जब उन दोनों ने शादी के 2 महीने पूरा होने की खुशी में केक काटा था और 5-6 कुलीग्स को खाने पर बुलाया था. रात में वह सोशल मीडिया पर अपनी सहेली की तसवीरें देख रही थी, जो उस ने दिल्ली के किसी मौल में घूमते हुए खींची थीं.

अचानक उसे अपना जीवन बरबाद लगने लगा और बहुत खराब मूड के साथ उस ने जतिन को जता भी दिया. जतिन ने हर तरीके से अपने प्यार को जताने की खूब कोशिश की पर नयना पर मानो भूत सवार था.

आगे पढ़ें- कुछ ही दिनों के बाद जब उस ने जतिन को सूचना दी कि…

ये भी पढ़ें- अपनी खुशी के लिए- क्या जबरदस्ती की शादी से बच पाई नम्रता?

Serial Story: इमोशनल अत्याचार – भाग 2

नयना को उस की मां ने पहले ही चेताया था कि जतिन की पोस्टिंग अंदरूनी जगहों पर ही रहेगी. पर उस वक्त तो नयना को जतिन की मोटी सैलरी ही आकर्षित कर रही थी. अब उसे सबकुछ फीका और अनाकर्षक लगने लगा था. वहां के लोग, वह जगह और खुद जतिन भी. प्यार का खुमार उतर चुका था. उस इतवार देर रात उस ने ऐलान कर ही दिया कि वह हमेशा यहां नहीं रह सकती है.

कुछ ही दिनों के बाद जब उस ने जतिन को सूचना दी कि उस की कंपनी अब वर्क फ्रौम होम के लिए मना कर रही है और उसे अब मुंबई जा कर औफिस जाते हुए काम करना होगा, तो जतिन को जरा भी आश्चर्य नहीं हुआ उस की खुशी जतिन से छिप नहीं रही थी. उस का प्रफुल्लित चेहरा उसे उदास कर रहा था. नयना बारबार कह रही थी कि वह आती रहेगी बीचबीच में. जतिन उसे रांची एअरपोर्ट तक छोड़ने गया. मुंबई में रहने के लिए फ्लैट और बाकी इंतजामों के लिए भी उस ने पैसे भेजे. अब नयना की नौकरी में इतना दम नहीं था कि वह ज्यादा शान और शौकत से रह सके.

अब सोशल मीडिया नयना की मुंबई  के खासखास जगहों पर क्लिक की तसवीरों से पटने लगा. वह जितना खुश दिख रही थी, राघव उतना ही उदास और दुश्चिंता से घिरा जा रहा था. उसे अपनी शादी का अंधकार भविष्य स्पष्ट नजर आने लगा था. बूढ़ी नौकरानी जो पका देती जतिन जैसेतैसे उसे जीवन गुजार रहा था. कालोनी की सभी महिलाएं नयना को कोसतीं कि एक अच्छेभले लड़के का जीवन बिगाड़ दिया उस ने. इंसान कार्यक्षेत्र में भी बढि़या तभी परफौर्म कर सकता है जब वह मानसिक रूप से भी स्थिर हो. जतिन हमेशा दुखीदुखी और उदास सा रहता था, कोयला खदान में उसे अति सतर्कता की जरूरत थी जबकि वह उस के उलट भाव से जी रहा था.

ये भी पढ़ें- Valentine’s Day: नया सवेरा- क्या खुशियों को पाने के लिए तैयार थी प्रीति

उस दिन खदान में माइंस इंस्पैक्शन के लिए कोई टीम आई हुई थी. नयना को लौटे 5 महीने हो चुके थे. इस बीच जतिन 2 बार मुंबई जा चुका था, पर पता नहीं क्यों वह नयना के व्यवहार में खुद के लिए कोई प्रेम महसूस नहीं कर पाया था. अपनी उधेड़बुन में वह हैरानपरेशान सा टीम के सवालों के जवाब दे रहा था. सही होते हुए भी वह कुछ गलत जानकारी देने लगा था. उस के साथ ही कंपनी जौइन करने वाली पर्सनल मैनेजर प्रेरणा उस की बातों को संभालते हुए उस की बातों को बारबार सुधारने का प्रयास कर रही थी. प्रेरणा जतिन की मनोस्थिति भांप रही थी, परंतु आज जतिन कुछ ज्यादा ही परेशान दिख रहा था.

तभी खदान के ऊंचेऊंचे रास्ते पर जतिन का पैर फिसल गया और वह खुदी हुई ढीली कोयले की ढेरी से कई फुट नीचे लुढ़क गया. बौस ने प्रेरणा को इशारा किया कि वह जतिन को संभाले, डाक्टर और ऐंबुलैंस की व्यवस्था करे और वे खुद आधिकारिक टीम को यह बोलते आगे बढ़ गए कि जतिन हमारे सब से काबिल अफसरों में से एक है.

कोयला खदानों में छोटी से छोटी घटनादुर्घटना को भी बेहद संजीदगी से लिया जाता है ताकि बड़ी दुर्घटना न घटे. जतिन की दाहिने पैर की हड्डी टूट गई थी और दोनों हाथों में भी अच्छीखासी चोट लगी थी. चेहरे पर भी काफी खरोंचें लगी थीं. कुल मिला कर वह अब बिस्तर पर आ चुका था.

डिसपैंसरी से छुट्टी होने तक प्रेरणा उस के साथ ही रही. कुछ और मित्रगण भी जुट गए थे. घर पहुंचा तब तक कालोनी की महिलाओं तक उस की दुर्घटना की खबर पहुंच गई थी. यही तो खूबसूरती थी उस छोटी सी जगह की कि सब एकदूसरे दुखसुख में सहयोग करते. नयना को यही बात नागवार गुजरती. वह इसे निजता का हनन सम झती. खैर, प्रेरणा को बातोंबातों में पता लग गया था कि जतिन का उस दिन जन्मदिन था और उस की नवविवाहिता ने उसे 2 दिनों से फोन भी नहीं किया था. हालांकि उस के क्रेडिट कार्ड से अच्छीखासी रकम खर्च होने का मैसेज आ चुका था. बूढ़ी महरी तो घबरा ही गई कि वह किस तरह साहब को संभाले. खैर, अगलबगल वाली पड़ोसिनों ने उस दिन के भोजन का इंतजाम कर दिया. रात में प्रेरणा ने एक केक और कुछ मित्रों को साथ ला कर जतिन की उदासी दूर करने की असफल कोशिश की.

इस बीच जतिन ने तो नहीं पर किसी पड़ोसिन ने केक और

उस गैटटुगैदर की तसवीरें नयना को भेज दीं. आश्चर्यजनक रूप से नयना ने तुरंत उन्हें मैसेज कर पूछा कि वह लड़की कौन है जो जतिन की बगल में बैठी केक कटवाने में मदद कर रही है. पड़ोसिन को यह बात बेहद नागवार गुजरी कि उस का ध्यान जतिन के प्लास्टर लगे पैर या चोटिल पट्टियों से बंधे हिस्सों की तरफ न जा कर इस बात पर गया.

ये भी पढ़ें- मीत मेरा मनमीत तुम्हारा: अंबुज का अपनी भाभी से क्यों था इतना लगाव

अनुभवी नजरों ने भांप लिया था कि जतिन की पत्नी नौकरी का बहाना कर मुंबई रहने लगी है और उस के वियोग में जतिन बावला हुए जा रहा है. प्रेरणा जतिन के प्रति एक अतिरिक्त हमदर्दी का भाव रखने लगी थी. जहां कालोनी में सब शादीशुदा थे वहीं प्रेरणा कुंआरी और जतिन जबरदस्ती कुंआरों वाली जिंदगी गुजार रहा था. उस दिन देर रात तक उसे दवा इत्यादि दे कर ही वह अपने घर गई थी, अगले दिन सुबहसुबह नाश्ता और चाय की थर्मस ले हाजिर हो चुकी थी, चूंकि जतिन खुद से दवा लेने में भी असमर्थ था.

प्रेरणा महरी का सहारा ले कर उसे बैठा ही रही थी कि नयना का फोन आ गया, ‘‘कल तो खूब पार्टी मनी है, कौन है वह जो तुम्हारा हाथ पकड़ केक कटवा रही थी? मेरी पीठ पीछे तुम इस तरह गुलछर्रे उड़ाओगे मैं सोच भी नहीं सकती. दिखने में तो बहुत भोले मालूम होते हो…’’

नयना के व्यंग्यात्मक तीर चल रहे थे और जतिन का दिल छलनी हुए जा रहा था. सारी बातें फोन की परिधि को लांघती हुई पूरे कमरे में तरंगित हो रही थीं. प्रेरणा के सामने उस की गृहस्थी की पोल खुल चुकी थी जिसे उस ने बमुश्किल एक  झूठा मुलम्मा चढ़ा कर छिपाया हुआ था.

जतिन हूंहां के सिवा कुछ नहीं बोल पा रहा था और नयना सीनाजोरी की सारी हदें पार करती जा रही थी. कौन कहता है कि नारी बेचारी होती है? कम से कम नयना के उस रूखे व्यवहार से तो ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा था. न संवेदनशीलता और न ही स्नेहदुलार.

आगे पढ़ें- एक बार भी मेरी खैरियत नहीं पूछी. सिर्फ और…

ये भी पढ़ें- टीसता जख्म: उमा के व्यक्तित्व पर क्या दाग लगा पाया अनवर

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें