बेटियों तुम अपने लिए एक घर बना लो…

रीना ने कॉल करके मुझे गृहप्रवेश का न्योता दिया. मैंने सोचा चलो वो ‘सेटल’ हो गई.अरे, कहीं आपका भी सेटल होने का मतलब “शादी”से तोनहीं. नहीं भई उसने अभी शादी नहीं की.ऐसा नहीं है कि उसे शादी से कोई समस्या है कर लेगी जब करना होगा. घरवालों का चलता तो 10 साल पहले ही उसकी शादी करवा दी होती. तब तो वो कॉलेज में थी, बड़ी जिद्द और मेहनत ने उसने खुद को सेटल किया है.

खैर, यह तो एक ऐसी लड़की की कहानी है जो जिसने आज एक मुकाम हांसिल कर लिया है. एक दूसरी कहानी है कोमल की, जिसकी शादी के 2 साल बाद ही उसके पति गुजर गए. अब वो अपने मायके आ गई, उसे लगा ये तो अपना घर है बाकी की जिंदगी यहीं बिता दूंगी अपनों के साथ. लेकिन हमारे समाज का खेल भी अनोखा है शादी से पहले जो घर की लाडली था वो अब उनके लिए उनके लिए कब बोझ बन गई उसे भी पता न चला. कभी इज्जत तो कभी धर्म के नाम पर मजबूरी ने उसे जकड़ लिया और उसकी पूरी जिंदगी ऐसे ही गुजर गई. उसके होने या ना होने से किसी को कोई फर्क भी नहीं पड़ता.

ये दो कहानियां इसलिए ताकि हम समझ सके कि कानून ने भले पिता की संपत्ति पर बेटियों का हक बराबर कर दिया, लेकिन असलियत क्या है सभी को पता है. दहेज के नाम पर लाखों का सौदा तो कर लेगें लेकिन प्रॉपर्टी पर बेटी का नाम कितने माता-पिता करते हैं…ये पिता की बात हो गई ससुराल में बहू के नाम पर कितने प्रॉपर्टी का हक दिया जाता है. हमारे समाज में कहा कुछ और जाता है और किया कुछ और…

जिस घर को बेटियां बचपन से सजाती-संवारती आता हैं अपना मानती हैं. एक दिन कन्यादान के साथ ही उनको बोल दिया है अब तुम पराया धन हो, तुम उस घर की हो गई. जब बेटी शादी करके ससुराल जाती हैं तो उनको सुनने को मिलता है तुम तो दूसरे घर से आई हो पराई हो. तमाम बेटियांइसका सामना करती हैं और पूरी जिंदगी भर घरवालों का दिल जीतने में लगा देती है कि अपना मान लें. पिता, भाई या पति पर वित्तीय रूप से निर्भरता सालों से महिलाओं की मुश्किलों की जड़ रही है.

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मायका-ससुराल और उन पर निर्भरता तब हाल बुरा कर देती है जब पति कुछ साल बाद तलाक ले ले, दूसरी शादी कर ले या फिर उसकी आकस्मिक मौत हो जाए. घर को संभालने का काम भले महिलाओं का हो लेकिन जब हक की बात आती है तो नाम पुरुष का आता है. लड़कियों को बस अपने घर वाली फीलिंग मिल जाए इतने में खुश हो जाएं. घर में सबका कमरा होती है नहीं होता तो मां का कमरा. भाई-बहन एक ही घर में बचपन से रहते हैं लेकिन बात क्या होती है भविष्य के की, यहां मोनू का कमरा होगा, विकेक ले लिए उपर वाले फ्लोर पर घर बनेगा.

अरे अधिकार तो छोड़ो भले बेटी की शादी न हुई हो फिर भी जब नया घर बनता है तो कौन से रंग की पेंटिंग, किचन का मॉडल क्या होगा, पर्दे का रंग कौन सा होगा, ये बस भी उससे नहीं पूछा जाता वोतो शादी करके चली जाएगी. बस यहीं से पराया होने का अहसास करवा दिया जाता है. शादी के बाद भी बेटी एक रूम रहे ये कौन सोचता है.

या अगर बहू ही शादी करके आ गई हो तो भी उससे कौन पूछता है कि यह कमरा तुम्हारा है क्या-क्या तुमहारे हिसाब से होगा. अगर कुछ बोल दिया तो अरे पूरा घर ही तुम्हारा है अब कितना सच में तुम्हारा है वो तो उसे ही पता है.

वे लोग जो नारीवाद की बात करते हैं न अगर लड़कियां अपने घर से ही ये सारे फैसले लेने लगे तो यहीं से शुरु होगा नारीवाद, जब घर से बदलाव होगा तभी तो समाज बदलेगा.

इन चीजों में बदलाव केलिए सरकार ने महिलाओं के हक में फैसले भी दिए हैं. जैसे अगर महिला के नाम पर होम लोन लेते हैं तो उस पर ब्याज दर कम लगता है. यह एक प्रतिशत तक भी जा सकती है. वहींअगर पत्नी भी कमाती है और उसके आय का स्रोत अलग है तो टैक्स में भी बचत हो सकती है. साथ ही अगर पत्नी के नाम पर घर की रजिस्ट्री करवाई जाए तो1-2 प्रतिशत तक स्टैंप ड्यूटी बच सकती है. दिल्ली में तो स्टैंप ड्यूटी की दर 4 प्रतिशत और पुरुषों के लिेए 6 प्रतिशत है.

कई पतिलोग तो सिर्फ पैसे बचाने के लिए रजिस्ट्री पत्नी के नाम करवा देते हैं ना कि इसलिए कि उस पर उसका भी हक है. बस ले गए रजिस्ट्री करवाई और बात खत्म. न प्रापर्टी के बारे में बात होगी न घर बनाने के फैसले को लेकर.

एक घर में तीन बहनों की शादी होती है. एक शारीरिक भोग के लिए शादी करता है तो दूसरा समाज और तीसरा पैसे के लिए. एक साल तक सब ठीक चलता और फिर तीनों को घर से तमाम आरोपों के साथ घर से निकाल दिया जाता है. आरोप क्या है कि एक बदचलन है दूसरी झगड़ालू औत तीसरी घर तोड़ने वाली और भी दस बहाने… अब तीनों बेटियां अपने पिता के घर आकर रह रही है. तीनों ने उत्पीड़न का केस भी किया लेकिन अपने यहां जो टीवी चैलन या फिल्मों में दहेज हिंसका के खिलाफ तुरंत एक्शन लेती पुलिस सिर्फ चैलन तक की सीमित है. असल जिंदगी में तो इंसाफ मिलते-मिलते पूरी जवानी गुजर जाती है. वैसे भी जब तक किसी महिला का सर फूटा न हो तब तक हिंसा माना कहां जाता है. अब कोई अपना सर खुद तो फोड़ने से रही, किसकी हिम्मत है. मानसिक उत्पीड़न किसी को दिखता कहां है. वैसे भी तलाक लिए बिना पत्नी को छोड़ने औऱ दूसरी शादी करने का ट्रेंड भी चालू हो गया है. ज्यादा- से ज्यादा क्या होगा दो-तीन साल की सजा और फिर बेल.संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, पूरी दुनिया में करीब 35 प्रतिशत महिलाएं किसी ना किसी प्रकार की हिंसा का शिकार होती हैं.

तो फिर उपाय क्या है

तो बेटियों तुम खुद का अफना एक घर क्यों नहीं बना लेती. जरूरी नहीं है कि वो घर बहुत बड़ा हो, या बड़े शहर में हो. छोटे शहर में ही सही छोटा सा घर ही सही, एक कमरे का ही सही पर अपना तो अपना ही होता है. जहां तुम्हारा हक हो, जहां घर के बहाने तुम्हें छोटी-छोटी खुशियों से बैर न करना पड़े. जहां थोड़ा लेट से आना भी चल जाए, जहां तुम्हारा कमरा फूलों नहीं किताबों से भरा हो, जहां सादगी भी हो और श्रृंगार भी. जहां तुम गिरना सीखो और संभलना भी. जहां अधिकार भी हो और सम्मान भी.

पॉसिबल कैसे होगा

सुना होगा न तुमने की दुनियां में कुछ भी असंभव नहीं. इसिलए लड़कियों मजबूत बनो. आत्मनिर्भर सिर्फ भारी भरकम बोलने या सुनने वाला शब्दी नहीं है बल्कि जीवन में अपनाए जाने वाला शब्द है. कोई भी काम करो पूरे दिल से और इमानदारी से करो. हाउस वाइफ के लिए कई ऑप्शन मौजूद हैं. बेचारी बनकर मत रहो. हम ये नहीं कहते कि अपनी पहचान बनाओ तुम लड़की हो ये पहचान पहले से ही तुम्हारी है, बस अपने होने का अहसास करो. काम करो पैसा कमाओ माता-पिता का ख्याल रखो और अपने लिए घर भी बनाओ. अभी सरकार ने कई योजनाएं भी लागू की है जिसके तहत सस्ते लोन और ईएमआई की सुविधा है. अगर बैंक वाला बोले कि तुम लड़की हो लोन कैसे मिलेगा पिता या पति का आधार कार्ड दो तो उसे समझाना नौकरी हमारी सैलरी हमैरी घर हमारा है.

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देखो, यही ताकत है जब एक बेटी मजबूत होती है, टीना और अतहर दो साल बाद शादी के रिश्ते से अलग हो रहै हैं. दोनों ने तलाक की अर्जी लगाई है, सोचिए अगर टीना भी कमजोर होती उसके पास भी वो मुकाम न होता तो कहां जाती? वो भी उन करोड़ो बेटियों की तरह घर की चारदीवारी में कैद होकर सिसकती, हर दिन सब कुछ ठीक हो जाने की उम्मीद करती फिर शाम ढलते ढलते उदासी की चादर ओढ़ती और सो जाती.टीना भी कमजोर होती तो हर दिन सोचती की बस आज सबकुछ छोड़कर निकल जाऊंगी वहां से, पर उसकी आंखों के  सामने क्या होता? आगे जीवन कैसे चलेगा इस बात की चिंता और मुझे इस आदमी के बगैर छांव भी आखिर कौन देगा ऐसे सैकड़ों सवाल.

बेटियों को तो अक्सर यहां तक पति सुना देते है की भाग जाओ यहां से, तुम्हारा चेहरा तक नहीं देखना मुझे, या तुम मनहूस हो, जब से आई सब बुरा हो रहा, ऐसी बहुत सी बातें,  पर वो सब कुछ सह जाती है, पी जाती है, और उसी को अपनी किस्मत मान लेती हैं.

टीना ने ऐसा फैसला इसलिए लिया कि वो काबिल है आईएएस है, योग्य है और दुनियां को अपने कदमों में झुकाने की ताकत रखती है. इसलिए उसने जिंदगी अपनी मर्जी से जीने का रास्ता चुना. इसलिए बेटियों शादी से पहले खुद को उस काबिल जरूर कर लेना जब तुम अपनी जिंदगी अपने सहारे खुशी-खुशी बिता सको. तुम्हें साथी मिले सहारा नहीं. टीना जैसे हजारों लड़कियों के साथ समस्याएं आती हैं इसका किसी धर्म या जाति से लेना देना नहीं है, क्योंकि लड़कियों की बस एक ही जाति है और वो है लड़की.

Winter Special: गाजर के कुछ नई रेसिपी करें ट्राय

यूं तो गाजर आजकल वर्ष भर बाजार में उपलब्ध रहती है परंतु चूंकि गाजर सर्दियों की मौसमी सब्जी है इसलिए इस समय कोल्ड स्टोर की अपेक्षा बाजार में देशी और ताजी गाजर बहुतायत में उपलब्ध होती है. गाजर में प्रोटीन, बसा, कार्बोहाइड्रेट, मिनरल्स, कैल्शियम, फॉस्फोरस और अनेकों विटामिन्स पाए जाते हैं जो स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यधिक लाभकारी होते हैं इसलिए किसी न किसी रूप में गाजर को अपने भोजन में अवश्य शामिल करना चाहिए. गाजर सदैव सुर्ख लाल रंग वाली ही लेना चाहिए क्योंकि यह स्वाद में बहुत मीठी होती है. आमतौर पर गाजर को सलाद, हलवा या ज्यूस के रूप में खाया जाता है परन्तु आज हम आपको इसे खाने के कुछ ऐसे तरीके बताएंगे जिससे बड़े तो क्या बच्चे भी बड़े स्वाद से खाएंगे-

-केरट बाइट्स

कितने लोंगो के लिए 8
बनने में लगने वाला समय 20 मिनट
मील टाइप वेज/डेजर्ट

सामग्री

ताजी लाल गाजर 500 ग्राम
बारीक सूजी 1/4 कप
घी 2 टीस्पून
मिल्क पाउडर 2 टेबलस्पून
गुनगुना दूध 1/2 कप
शकर 2 टेबलस्पून
इलायची पाउडर 1/4 टीस्पून
बारीक कटे पिस्ता और बादाम 1 टेबलस्पून

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विधि

गाजर को छीलकर किस लें. सूजी को हल्का ब्राउन होने तक बिना घी के भून लें. अब एक नॉनस्टिक पैन में घी डालकर गाजर को धीमी आंच पर 5 मिनट तक पकाएं. अब दूध डालकर पुनः 5 मिनट तक पकाएं. जब दूध पूरा सूख जाए तो शकर डाल दें. कुछ ही देर में शकर पानी छोड़ देगी . भुनी सूजी और इलायची पाउडर डालकर अच्छी तरह चलाएं और 5 मिनट के लिए ढक दें ताकि सूजी भली भांति फूल जाए. आंच को धीमा ही रखें. 5 मिनट बाद चलाकर मिल्क पाउडर डाल दें और मद्धिम आंच पर लगातार चलाते हुए 2 से 3 मिनट तक भूनें. जब मिश्रण पैन के किनारे छोड़ने लगे तो गैस बंद कर दें और एक चिकनाई लगी ट्रे में जमाकर ऊपर से कटे पिस्ता बादाम से गार्निश करें. ठंडा होने पर 1-1इंच के चौकोर बाइट काटकर सिल्वर फॉयल या चॉकलेट पेपर में लपेटकर फ्रिज में रखें.

-कैरेट चीज ट्रायंगल

कितने लोंगों के लिए 4
बनने में लगने वाला समय 20 मिनट
मील टाइप वेज

सामग्री

किसी गाजर 250 ग्राम
कटी प्याज 1
कटी हरी मिर्च 4
कटी हरी धनिया 1 टेबलस्पून
चीज क्यूब 4
नमक स्वादानुसार
चिली फ्लैक्स 1/4टीस्पून
अमचूर पाउडर 1/2टीस्पून
जीरा 1/4टीस्पून
मूंग दाल पापड़ 4
तलने के लिए तेल

विधि

एक नॉनस्टिक पैन में 1 टीस्पून तेल गरम करके प्याज को सॉते करें. जीरा और हरी मिर्च को भूनकर किसी गाजर डाल दें. नमक डालकर 2 से 3 मिनट तेज आंच पर चलाते हुए भूनें. गैस बंद करके अमचूर पाउडर, चिली फ्लैक्स और हरा धनिया डालकर चलाएं. अब पापड़ के बीच में एक टीस्पून गाजर का मिश्रण रखकर ऊपर से एक चीज क्यूब किसें. पापड़ के किनारों पर अच्छी तरह पानी लगाएं. दोनों किनारों से फोल्ड करके नीचे से फोल्ड करके ट्राइंगल का शेप दें. इसी प्रकार सारे ट्राइएंगल तैयार करें. गर्म तेल में इन्हें तलकर चाय या कॉफी के साथ सर्व करें.

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Serial Story: मंजरी की तलाश

Serial Story: मंजरी की तलाश (भाग-1)

ट्रेन उस छोटे से स्टेशन पर रुकी तो सांझ घिरने लगी थी. सुनहरे अतीत में लिपटी रेशमी हवाओं ने मेरी अगवानी की. मैं अपने ही शहर में देर तक खड़ा चारों ओर देखता रहा. मेरे सिवा वहां कुछ भी तो नहीं बदला था. मेरे आने के बाद हुई बूंदाबांदी तेज बारिश में बदल गई थी. यहां टैक्सी की जगह रिकशे मिलते हैं. बारिश के कारण वे भी नजर नहीं आ रहे थे. मैं पैदल ही चल दिया. पानी के साथ भूलीबिसरी यादोें की बौछारें मुझे भिगोने लगी थीं.

कालेज के दिनों में मेरे सूखे जीवन में पुरवाई के झोंके की तरह मंजरी का प्रवेश हुआ था. बनावटीपन से दूर, बेहद भोली और मासूम लगी थी वह. पता नहीं कैसा आकर्षण था उस के रूपरंग में कि मेरे भीतर प्रपात सा झरने लगा था.

कुछ दिन में वह खाली समय में लाइब्रेरी में आने लगी थी. उस की उपस्थिति में वहां का जर्राजर्रा महकने लगता था. जितनी देर वह लाइब्रेरी में रुकती मेरी सुधबुध खोई रहती थी.

कुछ दिनों तक मंजरी नजर नहीं आई तो कालेज सूनासूना सा लगने लगा था. पढ़नेलिखने से मेरा जी उचट गया. ऐसे ही एक दिन मैं निरुद्देश्य…लाइब्रेरी में गया तो एकांत में किताब लिए वह बैठी दिखाई दी. अगले ही पल मैं ठीक उस के सामने खड़ा था.

‘कहां थीं इतने दिन तक? तुम नहीं जानतीं उस दौरान मैं कितना अपसैट हो गया था. मेरे लिए एकएक पल काटना मुश्किल हो गया. बता कर तो जाना चाहिए था…’ मैं एक सांस में बिना रुके जाने क्याकुछ कहता चला गया.

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‘क्यों परेशान हो गए थे आप?’ उस ने मासूमियत से पूछा.

मैं बगलें झांकने लगा. एकदम से मुझे कोई जवाब नहीं सूझा था.

‘कुछ दिन पहले ही हम यहां शिफ्ट हुए हैं. सारा सामान अस्तव्यस्त पड़ा था. उसे करीने से लगाने में कुछ वक्त तो लगना ही था,’ वह बोली, ‘खड़े क्यों हैं आप?’

मैं निशब्द उस के समीप बैठ गया. हम दोनों चुप थे. देर तक ऐसे ही बुत बने बैठे रहे. केवल पलकें झपक रही थीं हमारी. मेरे मन में बहुत कुछ घुमड़ रहा था…शायद उस के भी. मेरे बंद होंठों से शब्द झरने लगे थे…शायद उस के भी. मैं उस की धड़कनें महसूस कर रहा था… शायद वह भी मेरी धड़कनों को महसूस कर रही थी. हमारे बीच बोलने से कहीं अधिक मूक संवेदनाएं मुखरित होने लगी थीं.

महकते हुए 3 वर्ष कब फिसल गए पता ही नहीं चला. गुजरे वक्त के एकएक पल को हम ने हिफाजत से सहेज कर रखा था. इस बीच हम एकदूसरे को बेहतर तरीके से समझ चुके थे.

एक दिन वह मुझे अपने घर ले गई. वे दिन मेरे इम्तिहान के दिन थे. मैं नर्वस था. मन में शंकाओं के बादल घुमड़ रहे थे. ऐसी ही कुछ हालत मंजरी की भी थी. पर सबकुछ ठीक रहा, उस के पापा सुलझे हुए इनसान थे. बिलकुल मेरे बाबूजी की तरह. मंजरी मेरे घर में सब को पसंद थी. फाइनल इयर की परीक्षा के बाद हमारी सगाई हो गई.

शादी से पहले मुझे कैरियर संवारना था. हमारे घर वालों के साथ मंजरी भी यही चाहती थी.

‘भविष्य के बारे में क्या सोचा है, श्रेयांश?’ उस ने पूछा.

‘मैं एम.बी.ए. करूंगा,’ मैं ने उस की आंखों में झांका, ‘कुछ वक्त के लिए, तुम से और इस शहर से दूर जाना पड़ेगा.’

‘मैं इंतजार करूंगी तुम्हारा,’ उस की आंखों में नमी उतर आई, ‘मेरा शरीर मात्र यहां रहेगा…मन से हर पल मैं तुम्हारे साथ रहूंगी.’

मैं ने उसे बांहों में जोर से भींच कर चूम लिया.

दिल्ली के शुरुआती दिन बेहद संघर्ष भरे रहे. एम.बी.ए. में प्रवेश के बाद कुछ राहत मिली. कालेज के निकट होस्टल में कमरा मिल गया था. वहां मैस में खाने का इंतजाम था. दिन में मैं कालेज में रहता, रात को देर तक पढ़ाई करता और जब सोता तो आसपास तैर रहे मंजरी की यादों के साए मुझ से लिपट जाते.

एम.बी.ए. के बाद मुझे ज्यादा भटकना नहीं पड़ा. थोड़ी सी कोशिश और भागदौड़ के बाद अच्छीखासी नौकरी हासिल हो गई थी. अब मेरे और मंजरी के बीच के सारे फासले खत्म होने को थे.

कुछ दिन की छुट्टी ले कर मैं कल्पनाओं के घोड़े दौड़ाता वापस आ गया. मंजरी स्टेशन पर इंतजार करती मिली. मुझ से लिपट कर वह रो पड़ी थी.

मेरे पास वक्त कम था सो सीमित समय में विवाह की सारी रस्में पूरी की गईं. हंसीखुशी के माहौल में सबकुछ अच्छे से निबट गया था.

वापसी में मंजरी को साथ लाने में मुझे हिचक हो रही थी. अभीअभी शादी हुई है. पता नहीं लोग क्या सोचेंगे?

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बाबूजी ने मीठी झिड़की दी, ‘अपना स्वास्थ्य देखा है…होटल में खाखा कर कैसा बिगाड़ लिया है. बहू को साथ ले कर जा. घर का खाना मिलेगा तो सेहत सुधरेगी.’

मेरा मन भर आया, यह सोच कर कि बड़ेबुजुर्ग अपने बच्चों का कितना खयाल रखते हैं.

मंजरी की देहगंध से ईंटपत्थरों का बना 2 कमरों का छोटा सा फ्लैट मधुवन बन गया था. मेरी हर सुबह बसंती, हर दिन ईद और हर रात दीवाली हो गई थी. फिर भी एक बात सालती थी मुझे और वह थी मंजरी का अकेलापन. मैं सारा दिन आफिस में व्यस्त रहता और वह घर में अकेली.

मैं ने उसे ‘लेडीज डे क्लब’ जौइन करने की राय दी, जहां संपन्न घरों की औरतें साफसुथरे मनोरंजन के लिए जमा होती थीं. हर रोज कुछ नया होता था वहां.

वह हंस कर टाल गई.

साहित्य और लेखकों के प्रति मंजरी के मन में श्रद्धा की हद तक लगाव था. प्रेमचंद, गोर्की, चेखब, शरत बाबू, रेणू, महादेवी से ले कर अमृता प्रीतम, विष्णु प्रभाकर…और भी बहुत से नाम जो याद नहीं, उस के पसंदीदा थे. उस की अलमारी गोदान, ध्रुवस्वामिनी…सरीखी किताबों के साथसाथ सरिता और गृहशोभा जैसी पत्रिकाओं से भरी थी.

‘इन रूखी किताबों को पढ़ कर तुम बोर नहीं होतीं?’ मैं ने हंस कर पूछा.

‘इन में हर किताब अपने में पूरा दर्शन है, श्रेयांश,’ वह गंभीरता से बोली, ‘इन के कथानक लेखकों की कठोर तपस्या का प्रतिफल होते हैं जिन्हें वे अपना तनमन जला कर रचते हैं. आज लोगों में तनाव और हताशा हावी है तो इसलिए कि वे किताबों से दूर हो गए हैं.’

मैं निरुत्तर हो गया था.

मेरे आफिस में पुराने बौस के स्थानांतरण के रूप में नई घटना हुई. उन की जगह रागिनी ने ली थी. 30 साल की नई बौस जितनी सुंदर और स्मार्ट थी उतनी ही ऐक्टिव और त्वरित निर्णय लेने में सक्षम भी थी. मैनेजमैंट में उस की गजब की पकड़ थी. इस का असर कुछ ही दिनों में आफिस के कामकाज में दिखाई देने लगा था. मैं उस की असाधारण योग्यता का प्रशंसक था.

उस ने एक अभिनव प्रयोग और किया. हर शख्स को उस ने नए सिरे से जिम्मेदारी सौंपी थी.

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Serial Story: मंजरी की तलाश (भाग-3)

मैं मूकदर्शक बना रहा.‘मेरे बारे में अभी तुम जानते ही क्या हो, मेरा पति अमेरिका में है. 5 साल पहले हमारा प्रेमविवाह हुआ था. शादी से पहले ही तय हो गया था कि वैल सैटल होने के बाद ही मैरिजलाइफ को ऐंजौय करेंगे. इस बीच एकदूसरे के व्यक्तिगत जीवन को कोई डिस्टर्ब नहीं करेगा. मैं ने अपने सपनों को विस्तार देने के लिए अपना देश चुना और वह अमेरिका चला गया.

‘शुरुआत के कुछ महीनों तक तो हम संपर्क में रहे फिर काम में ऐसे डूबे कि अपने बारे में सोचने की फुरसत ही नहीं मिली. आज मेरे पास लाखों का बैंक बैलेंस है. ऐशोआराम की हर चीज है. मेरी अपनी एक पहचान है पर मानसिक शांति नहीं है. मैं भीतर से बिलकुल खोखली हूं.’

उस की आंखों में सुरूर के लाल डोरे उभरने लगे थे.मैं चुपचाप खाना खाने लगा. वह भी खाती और पीती रही.‘सच कहूं श्रेयांश,’ वह बोली, ‘उस दिन तुम्हारी बातें मुझे मूर्खतापूर्ण लगी थीं. फिर धीरेधीरे तुम्हारी भावनाओं की मैं मुरीद होती गई. अपने प्यार के लिए कैरियर दांव पर लगाना मामूली बात नहीं है. यह काम तुम्हारे जैसा व्यक्ति ही कर सकता है. सोचती हूं वह लड़की कितनी खास होगी जिसे तुम ने प्यार किया.’

‘तुम्हारे पति भी तो तुम्हें प्यार करते होंगे?’ पानी पी कर मैं ने धीरे से पूछा.

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‘वह जिस कल्चर में रहता है वहां प्यार का अर्थ मतलबपरस्ती से है. पलक झपकते महिला और पुरुष पार्टनर बदल जाते हैं. बस, फायदा दिख रहा होना चाहिए. किसी की बीवी का दूसरे की बांहों में चले जाना आम बात है. बड़ी से बड़ी डील चुटकियों में हो जाती है. वहां पार्टियों का आयोजन होता ही इसलिए है कि जिस की बीवी जितनी सुंदर और बोल्ड वह उतना ही कामयाब. सब के सब जानवर हैं,’ उस ने घृणा से मुंह बनाया.

‘तुम्हें एक राज की बात बताऊं, श्रेयांश. मेरे प्रमोशन का लैटर कई दिन पहले आ चुका है. मैं ने उसे फाड़ कर डस्टबिन में फेंक दिया. तुम से दूर जाने का साहस नहीं जुटा पाई मैं. मैं ने कभी हारना नहीं सीखा पर तुम से हारना अच्छा लगा. तुम से बहुत कुछ सीखने को मिला है…आगे भी सीखती रहूंगी. यू आर माई आइडियल…’ उस ने अधूरी बात छोड़ कर मेरी आंखों में झांका.

मैं सन्नाटे में आ गया.

‘तुम्हें लगता होगा मैं पागल हो गई हूं. तुम में बात ही कुछ ऐसी है कि कोई भी पागल हो जाए.’

‘स्टौप इट,’ मैं सख्ती से बोला, ‘इस वक्त तुम होश में नहीं हो. चलो, तुम्हें रूम तक छोड़ दूं.’

‘नो, आई एम ओ.के.,’ वह झूमती हुई बोली, ‘यू नो, इतना ऊपर मैं स्टैप बाई स्टैप नहीं, एक छलांग में आई हूं. कंपनी के मालिक उस बुड्ढे की मुझे देखते ही लार टपकती है. होटल के ऐसे कमरों में उस ने सैकड़ों बार भोगा है मुझे. न चाहते हुए भी मुझे उस के सामने बिछना पड़ा. सफलता की कीमत तो चुकानी ही पड़ती है. मैं अपनी योग्यता के बलबूते पर भी यहां तक पहुंच सकती थी पर मेरी मांसल देह के आगे मेरी योग्यता किसी को दिखाई ही नहीं देती.’

उस का यह रूप आज मैं पहली बार देख रहा था. मुझे उबकाई आने लगी थी.

उस ने मुझे अपनी ओर खींच लिया, ‘हरिश्चंद्र का चरित्र घर तक ठीक है. यहां हमारे अलावा और कोई नहीं है. और हम मौजमस्ती करते हैं.’

उसे परे धकेल कर मैं अपने कमरे में आ गया. मेरा मूड खराब हो गया था. उस भोली सी दिखने वाली लड़की के दिमाग में कितने छलप्रपंच भरे थे. वह नफा- नुकसान का हिसाबकिताब लगा कर संबंध जोड़ती थी. उसे शरीर को गणित के फार्मूले की तरह इस्तेमाल करना आता था. बाजारवाद की मानसिकता उस पर इतनी हावी थी कि उस से इतर कुछ सोच ही नहीं सकती थी.

दिल्ली पहुंचते ही उस की मेज पर अपना त्यागपत्र रख कर नौकरी से नमस्ते कर लूंगा…मैं सोच चुका था. मुझे कोई वास्ता नहीं रखना ऐसी खतरनाक लड़की से.

मेरी आंखों से नींद उड़ गई थी. मैं ने परदा खींच कर खिड़की खोली. दूरदूर तक फैला सागर अब भी शांत था. आसमान में पूरी आभा के साथ चमकता चांद थोड़ा नीचे की ओर झुक आया था. विशाल सागर मानो हाथ पसारे उस की प्रतीक्षा कर रहा था. रात ढलने के बाद एक वक्त ऐसा भी आएगा जब चांद सागर की लहरों को स्पर्श करता हुआ उसी में एकाकार हो जाएगा. शायद यही प्रेम का शाश्वत रूप है…जिसे रागिनी देह की आंच में झोंक देना चाहती है.

अचानक चांद में मंजरी का चेहरा उभर आया. खोईखोई सी…उदास रंगत लिए. उस की सूनी आंखें एकटक मेरी ओर निहार रही थीं. एकसाथ कई तीर मेरे दिल को बेध गए.

‘तुम्हारी जगह कोई नहीं ले सकता, मंजरी,’ मेरे होंठ कांपने लगे थे.

हम सुबह की पहली फ्लाइट से दिल्ली रवाना हुए. रागिनी की सूरत बिलकुल बदली हुई थी. रात की घटना का उसे क्षोभ नहीं था. रात गई बात गई. रास्ते में वह ज्यादातर लैपटौप में उलझी रही थी. उसी दौरान चंद काम की बातें हुईं. मैं ने उस से अघोषित दूरी बना ली थी.

एअरपोर्ट से मैं सीधा घर पहुंचा. मेन गेट पर ताला लटक रहा था. ऐसा पहली बार हुआ था. मैं अभी सोच ही रहा था कि पड़ोस की लड़की चाबी और एक लिफाफा दे गई.

‘आंटी कल सुबह से कहीं गई हैं,’ मुझे उलझन में खड़े देख कर वह बोली.

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मंजरी बहुत कम ही कहीं आतीजाती थी. वह भी कभीकभार घंटे आधघंटे के लिए. किसी अज्ञात आशंका से मेरा दिल धड़कने लगा. मैं जल्दी से ताला खोल कर अंदर आया. लिफाफे के भीतर मंजरी के हाथ का लिखा एक कागज रखा था. मैं कांपते हाथों से उसे निकाल कर पढ़ने लगा :

‘श्रेयांश,

‘याद करो कालेज के वे दिन. उन दिनों का पागलपन, मेरी देहगंध पाने की छटपटाहट, जो तुम्हें मेरे करीब खींच लाई थी. वह प्यार, वह कशिश, वे महकते लम्हे, मैं हर पल यहां तलाशती रही…यह मेरी भूल थी. वे सब तो तुम वहीं छोड़ आए हो…उसी छोटे से शहर की सरहद में जहां हमारा प्रेम अंकुरित हुआ था. यहां अकेली चलतेचलते थक गई हूं इसलिए वापस जा रही हूं…उन्हीं यादों की छाया तले विश्राम करने. इस शहर ने तुम्हें मुझ से छीन लिया पर उस धरोहर से मुझे कोई अलग नहीं कर सकता, जो उस शहर के चप्पेचप्पे में बिखरी है. यहां चैन से जी नहीं सकी…वहां यादों से लिपट कर सुकून से मर तो सकती हूं. यह अधिकार मुझ से कोई नहीं छीन सकता…तुम भी नहीं.

-मंजरी’

मैं निर्जीव सा सोफे पर पसर गया.

पत्र हाथ में लिए मैं कई पलों तक किंकर्त्तव्यविमूढ़ सा बैठा रहा था. फिर होश आते ही स्टेशन पहुंचा और जो पहली ट्रेन मिली उसी में बैठ गया. अपने पीछे उन तमाम बंधनों को तोड़ आया जिन के कारण मेरा जीवन इस दोराहे तक आ पहुंचा था. दोराहे से पलट कर भी अपने शहर के पुराने रास्तों पर मेरी निगाहें अपनी मोहब्बत के दीदार के बिना इधरउधर भटक रही थीं.

मोहब्बत तो एक नाजुक सा एहसास होता है जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है. मंजरी ने डूब कर जिया था इस एहसास को. वह मुझे हृदय की असीम गहराइयों से प्रेम करती रही और मैं उस की भावनाओं को आहत करता रहा. मेरे दिल में टीस उठ रही थी. घटाएं घुमड़ कर आंखों में उतर आई थीं. हवा के तेज झोंके उन्हें बरसने से पहले ही सोखने लग गए थे.

सहसा एक सम्मोहक सी गंध फिजाओं में घुलने लगी. मेरी चिरपरिचित गंध. मेरी आत्मा में गहरे तक बिखरी हुई गंध. मेरे जीवन को ऊर्जावान कर देने वाली गंध…मंजरी की देहगंध. मैं पगलाया सा दौड़ने लगा. बारिश के कारण सड़क के दोनों ओर दुकानों के छज्जों के नीचे खड़े लोग मुझे कौतूहल से देख रहे थे. उन से बेपरवाह में दौड़ता ही रहा…जल्दी से जल्दी मंजरी के करीब पहुंचने और उसे सदा के लिए बांहों में समेट लेने के जनून में.

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Serial Story: मंजरी की तलाश (भाग-2)

मेरा कद बढ़ गया था. आफिस से संबंधित हर छोटेबड़े निर्णय में मेरी राय खास माने रखने लगी थी. बिजनेस टूर में रागिनी के साथ मेरा जाना लगभग अनिवार्य था. मैं उस का पर्सनल सेक्रेटरी हो गया था. कंपनी से मुझे शानदार बंगला और गाड़ी सौगात में मिली थी. वेतन की जगह भारीभरकम पैकेज ने ले ली थी.

इस नई भूमिका से जहां मैं बेहद उत्साहित था वहीं मंजरी की कठिनाइयां बढ़ गई थीं. कईकई दिन तक उसे अकेले रहना पड़ता था. व्यस्तता के कारण आफिस से मेरा देर रात तक लौटना संभव हो पाता. मंजरी उस वक्त भी उनींदी पलकों से मुझे प्रतीक्षा करती मिलती. खाने की मेज पर ही उस से चंद बातें हो पाती थीं.

रागिनी के आग्रह पर मैं जबतब बाहर खा कर आता तो वह उस से भी महरूम रह जाती थी. फिर वह भूखी सो जाती. मैं ने उस से कई बार कहा कि मुझ से पहले खा लिया करे पर वह अपनी जिद पर कायम रही. उसे भूखा रहने में क्या सुख मिलता था मैं समझ नहीं सका या मेरे पास समझने का वक्त ही नहीं था.

मैं इनसान से मशीन में तब्दील हो गया था.

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‘तुम इतने बदल जाओगे मैं ने कभी कल्पना भी नहीं की थी,’ मेरी उपेक्षा से आजिज आ कर अंतत: एक दिन उस के सब्र का बांध टूट गया, ‘मुझ से बात करने को चैन के तुम्हारे पास दो पल भी नहीं हैं. जब से आई हूं इस चाहरदीवारी में कैद हो कर रह गई हूं. कहीं घुमाने तक नहीं ले गए मुझे.’

‘मेरी मजबूरी समझने की कोशिश करो. ऐसी नौकरी और ऐसे अवसर मुश्किल से मिलते हैं. यही मौका है खूब आगे, आगे से और आगे… ऊंचाई पर जाने का.’

‘तुम पहले ही इतना आगे जा चुके हो कि मुड़ कर देखने से मैं दिखाई नहीं देती और आगे चले गए तो…’ उस का गला रुंध गया.

‘यह क्या कह रही हो?’

‘अब और सहन नहीं होता, श्रेयांश,’ उस की आंखें भर आईं, ‘मैं कोई बुत नहीं हूं जो कोने में अकेला पड़ा रहे. हाड़मांस की बनी जीतीजागती इनसान हूं मैं. मेरे सीने में धड़कता दिल हर क्षण तुम्हारी मदभरी बातें सुनने को तरसता है. कभी मेरे मन में जमी राख को कुरेद कर देखते तो समझ पाते कि मैं पलपल किस भीषण आग से सुलग रही हूं.’

उस की हालत देख कर मैं दहल गया. यकीनन मैं इतनी गहराई तक नहीं पहुंचा था जितना वह सोचती थी. उस के अंतर्मुखी स्वभाव के कारण मैं कभी ठीकठीक अंदाजा ही नहीं लगा सका कि क्या कुछ दहक रहा था उस के भीतर. जब स्थिति बदतर हो गई तभी उस के मन का ज्वालामुखी फटा था. मैं ने उस के आंसू पोंछे. उसे अंक में समेट कर देर तक डूबा रहा उस की देहगंध में. उस पूरी रात वह अबोध शिशु की तरह मेरे पहलू में दुबकी रही.

अगले दिन मैं ने रागिनी को फोन कर आफिस आने से मना कर दिया. उस ने बहुत सारे आवश्यक कामों का हवाला दे कर हीलहुज्जत की थी पर मुझे नहीं जाना था, सो नहीं गया.

वह पूरा दिन मंजरी के लिए रिजर्व था.

मैं उसे कई जगह घुमाने ले गया. हम थिएटर भी गए. वहां प्रेमचंद की कहानी ‘बूढ़ी काकी’ का मंचन हो रहा था.

‘दिल्ली के लोग इस युग में भी संवेदनाओं को जीवित रखे हैं,’ वह रोमांचित हो गई थी.

अंत में हम ने ढेर सारी शौपिंग की और कैंडल डिनर का लुत्फ उठाया. लौटते वक्त वह चहक रही थी. उस का खिला चेहरा कभी मुरझाने न देने का मैं निश्चय कर चुका था.

अगले दिन मैं आफिस पहुंचा. पिछले रोज आफिस न आने का कारण बताया.

‘तुम होश में तो हो, श्रेयांश?’ मेरी बात सुन कर रागिनी भड़क गई थी, ‘आज आफिस में तुम जिस लैबल पर हो उस पर तुम्हें गर्व होना चाहिए.’

‘प्लीज मैडम, मेरी बात समझने की कोशिश करें.’

‘देखो श्रेयांश, जल्दबाजी में लिए गए फैसले अकसर गलत साबित होते हैं. यहां काम करने वालों की कमी नहीं है. एक से बढ़ कर एक हैं. तुम में मुझे अपार संभावनाएं नजर आ रही हैं इसलिए नेक राय दे रही हूं. आने वाले सुनहरे कल को यों ठोकर मारना उचित नहीं है.

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‘तुम्हारी पत्नी छोटे शहर से आई है इसलिए ऐडजस्ट करने में उसे समस्या हो रही है. धीरेधीरे परिस्थितियां सब को अपने अनुरूप ढाल लेती हैं.’

‘मैं उसे अच्छी तरह से जानता हूं. ऐसा कभी नहीं हो सकेगा.’

‘कोशिश कर के देखने में क्या हर्ज है?’

मैं ने घर आ कर मंजरी को सारी स्थिति और अपनी मजबूरी बता दी.

‘मुझे तुम पर भरोसा है,’ मेरे सीने से लग कर वह बोली थी.

रागिनी ने मेरे सामने जो परिस्थितियां उत्पन्न कर दी थीं उन में मंजरी के भरोसे को कायम रख पाना मेरे लिए बेहद मुश्किल भरा काम था. न चाहते हुए भी मेरा काम करने का रुटीन पहले से और भी अधिक संघर्षमय होता जा रहा था.

धीरेधीरे समय गुजरता गया. साथ ही मंजरी से दूरी बढ़ती गई. मेरा ज्यादातर समय रागिनी के साथ बीतता था. मैं फिर उसी भंवर की गहराई में डूब गया था जिस से उबरने के स्वप्न मंजरी की आंखों में झिलमिला रहे थे. मेरे मन के किसी कोने में दबी महत्त्वाकांक्षा जोर मारने लगी थी. इस उफान में मंजरी हाशिए पर चली गई. उस के मुसकराते होंठ थरथराने लगे थे जैसे मुझ से कुछ कहना चाहते हों. मैं ने दोएक बार पूछा भी पर वह खामोश रही. मैं ज्यादा कुरेदता तो वह किसी बहाने से उठ कर चली जाती थी. उस की पलकों का गीलापन मुझ से छिप नहीं पाता था. उन में कई अनबूझे सवाल तैरते देखे थे मैं ने.

‘मंजरी प्लीज, संभालो अपने आप को,’ उस की उदासी से तिक्त हो कर मैं ने कहा, ‘कुछ दिन बाद तुम्हारे सारे गिलेशिकवे दूर हो जाएंगे.’

‘उन्हीं कुछ दिनों का इंतजार है मुझे,’ वह भावहीन स्वर में बोली.

मैं फ्रीज हो कर रह गया था.

3 दिन के टूर पर मैं रागिनी के साथ मुंबई में था. जिस होटल में हम ठहरे थे उस में अंतिम दिन एक खास मीटिंग रखी गई थी. रात के लगभग 12 बजे तक मीटिंग चली. उस के बाद डिनर था. विशाल डाइनिंग हाल में खिड़की के बगल वाली सीट हमारे लिए रिजर्व थी. वहां से समुद्र का दिलकश नजारा साफ दिखाई देता था.

बैरा खाना लगा गया तो रागिनी ने उस से सोडा लाने को कहा और पर्स से महंगी विदेशी शराब की छोटी बोतल निकाल कर 2 गिलास सीधे किए.

‘मैं नहीं लूंगा,’ उस का आशय समझ कर मैं बोला तो उस ने जिद नहीं की. बैरे को बुला कर मेरे लिए कोल्ड ड्रिंक मंगवाई और अपने लिए पैग तैयार किया.

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दो घूंट गटक कर रागिनी बोली, ‘मुझे शौक नहीं है पीने का. पर क्या करूं, काम के बोझ और थकान के कारण पीनी पड़ती है. शरीर तो आखिर शरीर है, उस की भी अपनी सीमाएं हैं. दो घूंट अंदर और सब टैंशन बाहर,’ वह खिलखिला कर हंस पड़ी.

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द कपिल शर्मा शो में दोबारा लौटीं Bharti Singh, जानें क्या है सच

बीते दिनों ड्रग्स मामले में सुर्खियां बटोरने वाली कौमेडियन भारती सिंह (Bharti Singh) और उनके पति हर्ष इन दिनों वेडिंग सेलिब्रेशंस में जमकर मस्ती करते नजर आ रहे हैं, जिसके फोटोज और वीडियो सोशल मीडिया पर छाई हुई हैं. हालांकि खबरें थीं कि एनसीबी द्वारा गिरफ्तारी के बाद भारती सिंह को ‘द कपिल शर्मा शो’ (The Kapil Sharma Show) से हटा दिया गया है. लेकिन हाल ही में किया गया एक पोस्ट कुछ और ही कहानी बयां कर रहा है. आइए आपको बता दें क्या है पूरा मामला…

पोस्ट के साथ बताई सच्चाई

ड्रग्स मामले के बाद भारती सिंह ने एक फोटो शेयर की है, जिसमें वह रेड कलर की ट्रेडिशनल ड्रेस में नजर आ रही हैं, जिसमें वह नई नवेली दुल्हन की तरह पोज देती दिख रही हैं. हालांकि एक साथ कई फोटोज शेयर करते हुए लिखा, ‘रेड इज द कलर ऑफ बॉन्डिंग ऑफ 2 हार्ट्स.’ वहीं इन फोटोज के साथ भारती ने यह भी संकेत दिया है कि वह अभी भी द कपिल शर्मा शो का हिस्सा हैं.

 

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फैंस हैं बेताब

 

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जहां एक तरफ भारती के फैंस उनके शो में दोबारा आने का इंतजार कर रहे हैं तो वहीं भारती के दोस्त और कोस्टार कृष्ण अभिषेक ने यह स्पष्ट करते हुए कहा था कि कि ‘मैंने चैनल की तरफ से इस तरह की कोई न्यूज नहीं सुनी है. चैनल द्वारा ऐसा कोई निर्णय नहीं लिया गया है. अगर ऐसा कुछ होता है, तो भी मैं भारती का समर्थन करूंगा. उसे काम पर वापस आना चाहिए. जो हो गया वो हो गया. हम भारती और कपिल के साथ खड़े हैं और मैं उनके साथ हूं.’

बता दें, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने बीते दिनों भारती और उनके पति हर्ष लिम्बाचिया (Haarsh Limbachiyaa) के घर पर छापा मारा था, जिसके बाद दोनों को अधिकारियों ने तलब लेने के बाद ड्रग्स लेने के इल्जाम के तहत गिरफ्तार किया था. हालांकि कुछ दिनों बाद ही दोनों को जमानत मिल गई थी.

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काव्या को छोड़ वापस घर पहुंचा वनराज, क्या माफ करेगी अनुपमा?

सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupama) में इन दिनों बड़ी उथल पुथल देखने को मिल रही है. जहां अनुपमा अपने परिवार को संभालने की पूरी कोशिश कर रही है तो वहीं वनराज और काव्या अपनी लव लाइफ को एंजौय करने में लगे हैं. लेकिन अब दोनों की जिंदगी में एक नए तूफान की एंट्री हो चुकी है, जिसका नाम है अनीरुद्ध. दरअसल, बीते एपिसोड में आपने देखा कि जहां वनराज और काव्या एकदूसरे के साथ रोमांटिक पल इंज्‍वॉय कर रहे होते हैं तो वहीं काव्या के एक्स हस्बैंड अनिरुद्ध की एंट्री होती है, जिसके बाद काव्या का वनराज के बीच दूरियां देखने को मिल रही है. लेकिन अब वनराज की जिंदगी में और भी नए ट्विस्ट आने वाले हैं. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे.

काव्या के साथ रहेगा अनिरुद्ध

पिछले एपिसोड में आपने देखा कि वनराज को काव्या के साथ रहता देख अनिरुद्ध फैसला करता है कि वह उसी घर में काव्या के साथ रहेगा और काव्या से कहता है कि वह वनराज और उसे दोनों को मैनेज करे, जिसके साथ वनराज को बहुत गुस्सा आ जाता है क्योंकि एक तरफ जहां अनिरुद्ध उसके चरित्र पर सवाल उठाता है. तो वहीं काव्या के लिए अपना घर छोड़ने दिया. वह अब अपने एक्स हस्बैंड का साथ दे रही है.

 

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वनराज कहता है ये बात

 

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काव्या पर गुस्सा जताते हुए वनराज कहता है कि उसकी हालत ‘धोबी के कुत्‍ते जैसी हो गई है जो ना घर का रहा ना घाट का’ की. क्योंकि उसने अपना घर, अपनी पत्नी, अपने परिवार और अब काव्या के घर को भी खो दिया है. हालांकि काव्या रो पड़ती है और वनराज को रोकने की पूरी कोशिश करती है लेकिन वनराज उसका घर छोड़ देता है और अपने घर यानी शाह हाउस पहुंच जाता है.

 

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बता दें, शो में इन दिनों अनुपमा बेटे परितोष के प्यार किंजल का रिश्ता जोड़ने की कशमकश में चल रही है. जहां एक तरफ अनुपमा के लिए उसके बेटे परितोष का प्यार है तो वहीं किंजल के मां की दहेज के झूठे आरोप लगाने की धमकी, जिसके कारण अनुपमा काफी परेशान हो चुकी है.

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Winter Special: घर पर बनाएं हेल्दी वालनट परांठा

हेल्दी और टेस्टी खाना अगर अपने बच्चों को खिलाना चाहती हैं तो वालनट परांठा आप जरूर ट्राय करें. वालनट दिमाग के लिए अच्छा होता है और टेस्टी भी होता है. साथ ही ये आसानी से बनने वाली रेसिपी है, जिसे आप ब्रेकफास्ट या लंच में अपनी फैमिली और फ्रेंड्स को परोस सकती हैं.

हमें चाहिए

2 कप मल्टीपरपज आटा

1 कप दरदरा अखरोट

1 छोटा चम्मच जीरा

1 बड़ा चम्मच धनिया पाउडर

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नमक स्वादानुसार

1 छोटा चम्मच अनारदाना पाउडर

1 छोटा चम्मच चाटमसाला

1/2 छोटा चम्मच गरममसाला

1/2 छोटा चम्मच दरदरी कालीमिर्च

घी या तेल आवश्यकतानुसार.

बनाने का तरीका

आटे में स्वादुनसार नमक मिला लें. आवश्यकतानुसार पानी मिला कर नरम गूंध लें. अखरोट में सभी मसाले मिला लें. आटे की पेडि़यां बनाएं. प्रत्येक को बेल कर घी लगाएं. अखरोट की भरावन फैला कर किनारों को समेटते हुए पुन: पेड़ी का आकार दें. हलके हाथों से परांठा बेलें. दोनों ओर घी लगाते हुए सुनहरा होने तक सेंकें.

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कोरोना में शादी: दिल है कि मानता नहीं

हल ही में कोरोना वायरस के डर के कारण दूल्हा जोसेफ यू और दुलहन कांग टिंग ने फैसला किया कि वे शादी समारोह से दूर रहेंगे. उन्होंने वीडिया कौल के जरीए वैडिंगहौल में मौजूद मेहमानों के सामने अपनी शादी की स्पीच दी और वीडियो कौल पर ही सभी मेहमानों ने उन्हें मुबारकबाद दी.

कांग टिंग का घर हुनान प्रांत में है. लूनर न्यू ईयर के लिए दोनों 24 जनवरी को चीन गए थे. 30 जनवरी को वे सिंगापुर लौटे और 2 फरवरी को उन की शादी होनी थी. शादी समारोह के लिए सिंगापुर के एक होटल में खास बुकिंग की गई थी. वैसे तो जोसेफ और कांग की शादी बीते साल अक्तूबर माह में चीन में हो गई थी, लेकिन उस वक्त जो मेहमान शादी में मौजूद नहीं हो पाए थे उन के लिए खासतौर पर इस दूसरी शादी का इंतजाम किया गया था.

जब मेहमानों को पता चला कि जोसेफ और कांग चीन से लौटे हैं तो कईर् लोगों ने शादी में आने से इनकार दिया, क्योंकि चीन ही कोरोना का जन्मस्थल है और उस समय तक वहां काफी केस आ चुके थे.

जोसेफ ने होटल से शादी की तारीख आगे बढ़ाने को ले कर बात की, लेकिन यह संभव नहीं हो पाया तब उन्होंने तय किया कि वे शादी तो करेंगे, लेकिन मेहमानों के सामने नहीं जाएंगे.

कोरोना के कारण लगे प्रतिबंधों की वजह से कांग के मातापिता भी उन की इस शादी में शामिल नहीं हो सके. शादी 2 फरवरी को हुई और इस में करीब 190 मेहमान मौजूद थे. जोसेफ और कांग ने होटल के अपने कमरे से वीडियो कौन्फ्रैंसिंग के जरीए शादी की स्पीच दी और सभी मेहमानों का शुक्रिया अदा किया.

खुद ही करना पड़ा आमंत्रण को खारिज

‘शादी की पार्टी में न आएं. कोरोना वायरस के खतरे से बचने के लिए मेरी बेटी की शादी में शरीक न हों. हम ने इस आयोजन को साधारण रखने का फैसला लिया है. हम ने रिसैप्शन कैंसिल कर दिया है, इसलिए खुद को जोखिम में डाल कर शादी में आने की जरूरत नहीं है.’

यह संदेश उस पिता का है, जिस ने अपनी बेटी की शादी में पहले अपने मेहमानों को आमंत्रित किया और बाद में खुद ही मना कर दिया.

कोल्हापुर के रहने वाले संजन शेलार की बेटी की शादी 18 मार्च को थी. लड़के और लड़की वालों ने मिल कर 3 हजार के करीब आमंत्रण पत्र बांटे थे. सब को जोर दे कर कहा था कि वे शादी में जरूर आएं. लेकिन अब सरकार ने आदेश जारी किया है कि कहीं भी लोग बड़ी संख्या में न इकट्ठा हों. तब खतरे को देखते हुए सारे आयोजन स्थगित करने का फैसला लिया गया.

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किसी भी लड़के या लड़की के लिए शादी जीवन का बेहद खास मौका होता है. वे महीनों पहले से शादी की तैयारियां करते हैं. ऐसे ही ऋतुजा और किरण भी अपनी शादी को ले कर खासे उत्साहित थे.

दोनों ही कोल्हापुर के रहने वाले हैं. जब से शादी तय हुई थी तब से दोनों बेसब्री से अपनी शादी के दिन का इंतजार कर रहे थे. कपड़ों और गहनों की शौपिंग हो या शादी और अरेंजमैंट, मेहमानों की लिस्ट तैयार करनी हो या मैचिंग ड्रैस का और्डर देना हो हर चीज दोनों बहुत उत्साह से कर रहे थे.

दोनों के घर के लोग भी शादी की तैयारी में दिनरात लगे हुए थे. ऋतुजा और किरण ने आमंत्रण पत्र भी खुद पसंद किए थे. दोनों परिवारों ने अपने मेहमानों को आमंत्रण भेज दिया था. ऋतुजा और किरण ने व्हाट्सऐप पर भी शादी का आमंत्रण लोगों को भेजा था. शादी का लगभग सारा बंदोबस्त हो चुका था.

ऐसे समय में जब कोरोना के फैलने की खबर आनी शुरू हुई और सरकार ने सभी मौल, थिएटर, स्कूलकालेज और सार्वजनिक स्थलों को 31 मार्च तक बंद करने का आदेश जारी किया तब दोनों ही परिवारों के सामने यह सवाल खड़ा हुआ कि शादी के आयोजन का क्या किया जाए. अंत में शादी के कार्यक्रम को साधारण रखने का फैसला लिया गया और रिसेप्शन के कार्यक्रम को रद्द कर दिया गया.

बदल गया माहौल

इसी तरह मुंबई के रहने वाले रिजवान शेख की शादी पहली अप्रैल को होने वाली थी. शादी और रिसैप्शन दोनों ही पहली अप्रैल को तय थी. वलीमा 3 अप्रैल को होना था. लेकिन फिर कोरोना के कारण बहुत कम लोगों की मौजूदगी में शादी हुई. रिसैप्शन और वलीमा का आयोजन रद्द कर दिया गया. हनीमून के लिए कराई गई बुकिंग भी रद्द कर दी गई.

कुछ ऐसा ही निकिता के साथ भी हुआ. मुंबई के नजदीक डोम्बीवली में रहने वाली निकिता पाडावे की शादी 18 मई को होने वाली थी. निकिता के लिए शादी की तारीख कैंसिल करना मुमकिन नहीं था, लेकिन उन्होंने अपने हनीमून के टिकट कैंसिल करा दिए.

उन का हनीमून के लिए वाली जाना तय था. 19 मई की फ्लाइट बुक की हुई थी. लेकिन कोरोना वायरस के जोखिम को देखते हुए क्व62 हजार की फ्लाइट का खर्च बेकार गया.

शादी समारोह में हौल लोगों से भरा होता है. हमें नहीं पता होता कि कौन कहां से आया है, कौन हमारे संपर्क में आ रहा है और इन में से कौन कोरोना पौजिटिव है. किसी शादी के कार्यक्रम में यह पता लगाना संभव नहीं है कि किस में कोरोना के लक्षण हैं. ऐसी स्थितियों में बेहतर है कि कार्यक्रम बेहद संक्षेप में हो और सोशल डिस्टैंसिंग का पूरापूरा खयाल रखा जाए. मेहमानों के लिए शादी में शामिल होने से बेहतर है कि वे वीडियो संदेश द्वारा अपनी शुभकामनाएं नवलदंपती तक पहुंचाएं.

दरअसल, कोरोना के दौर ने जीवन और इस से जुड़ी घटनाओं को पूरी तरह से बदल दिया है. शादियां भी इस से अछूती नहीं रहीं. अब शादी को शानदार नहीं, बल्कि समझदारी से यादगार बनाने का समय है.

केवल शादी पर खर्च ही नहीं, अब शादी का मतलब है एकदूसरे को बिना घूमेफिरे झेलना. सासससुर देवरननद साथ हैं तो निभाना. नो छुट्टी. नो मायका. हर समय कोरोना की तलवार सिर पर.

कोरोना काल ने हमें कई सबक सिखा दिए हैं.

कम खर्च में शादी

क्या आप ने पहले कभी सोचा था कि केवल 50 लोगों को शामिल कर आप शादी का कार्यक्रम पूरा कर लेंगे? लोगों के दिलों में हमेशा से यह चाहत रहती आई है कि वे अपने या अपने बच्चों की शादी में अधिक लोगों को बुलाएं और बेहतर से बेहतर प्रबंध करें. अपनी शान दिखाएं. बात शादी के दावत की हो या सजावट की, रिसैप्शन की हो या दूसरे कार्यक्रमों की, लोग दूसरों के आगे जितना हो सके उतना दिखावा करते हैं. वे शादी की दावत में बढ़चढ़ कर व्यंजनों और फूड आइटम्स का अरेंजमैंट करते हैं ताकि लोग लंबे समय तक उन की दी गई पार्टी याद रखें.

मगर आप ने कभी सोचा है कि खाने में हम कितना भी खर्च कर लें पर कोई न कोई कमी निकल ही आती है. वैसे भी लोग आप की दावत का स्वाद 2 दिन में भूल जाते हैं. फिर किसी और की दावत खाते हैं और वहां की तारीफों के पुल बांधने शुरू कर देते हैं. जरा सोचिए अनापशनाप खर्च कर के मेजबान को क्या मिलता है? महज 2-4 दिन की तारीफ. इस के लिए रुपए पानी की तरह बहाना जरूरी है क्या?

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चूक न हो जाए

सजावट के मामलों में भी यही देखा जाता है. घर को दुलहन की तरह सजाने की कोशिश में हम अपना बजट ही नहीं देखते, उस पर पंडितों की जेबें भरने का अलग कार्यक्रम संपन्न किया जाता है?.हम पंडितों के चेहरे पर एक भी शिकन नहीं देखना चाहते. उन का आशीर्वाद अपने ऊपर लेने की कोशिश में बढ़चढ़ कर दान करते हैं, उन की जेबें भरते हैं, हर तरह के धार्मिक रीतिरिवाजों को बिना कोई सवाल किए निभाते हैं. बस एक ही तमन्ना रहती है कि हम से कहीं जरा भी चूक न हो जाए. सबकुछ विधिविधान के अनुसार निबट जाए. बस पंडितों का आशीर्वाद मिल जाए ताकि दूल्हादुलहन की भावी जिंदगी में कोई तनाव न आए.

पर जरा सोचिए क्या सच में ऐसा हो पाता है? शादी कितने भी धार्मिक अनुष्ठानों के साथ संपन्न हुई हो, 1-1 कदम पर पंडित के निर्देशों का अनुसरण किया गया हो पर जो जीवन में होना होता है वही होता है.

कितने भी ग्रहनक्षत्रों, कुंडलियों और रीतिरिवाजों का खयाल रखा जाए, शादी कई दिनों के धार्मिक ढकोसलों के बाद संपन्न हुई हो फिर भी रिश्ता टूटना/बेवफाई/तलाक की भागदौड़/लड़ाईझगड़े जैसी बातें होती रहती हैं. तो फिर क्या आप को नहीं लगता कि फुजूल में इन सब चीजों में इतने रुपए बरबाद कर के भी जब हमें कुछ खास हासिल नहीं होने वाला है तो क्यों न समझदारी से पैसे खर्च किए जाएं, सादगी से सारे काम निबटाए जाएं. दिखावे के बजाय केवल मन की खुशियों का खयाल रखें. सैकड़ों लोगों की भीड़ जुटाने के बजाय खास और अपनों को बुला कर बिना ज्यादा तामझाम किए शांतिपूर्वक शादी का कार्यक्रम निबटा लें.

इस से भविष्य के लिए पैसे बचा कर आप निश्चिंत भी रहेंगे और बेमतलब की भागदौड़ और मानसिक तनाव से भी बचेंगे. वैसे भी कोरोनाकाल में लंबे समय तक आप को ऐसा ही करना पड़ेगा. 50 लोगों के साथ बहुत प्यार से अपनी शादी का कार्यक्रम संपन्न कराना होगा.

घूमनाफिरना बंद

कोरोनाकाल में वही शादियां सफल होंगी, जिस में पार्टनर से बहुत ज्यादा उम्मीदें लगाने के बजाय पार्टनर के साथ तालमेल बैठाने को प्राथमिकता दी जाएगी. फिलहाल आप उन दिनों को भूल जाइए जब शादी के बाद हनीमून के नाम पर लंबाचौड़ा खर्च किया जाता था. अपने ड्रीम प्लेस में जा कर रोमानी पलों का आनंद लिया जाता था. अब शादी के बाद घर में पति, ननद, देवर और सासससुर के साथ बना कर रखने की कला ही आप को जीवन की खुशियां देगी. यह कला सीख कर आप दीर्घकाल तक सफल, सुखद जीवन का आनंद उठा सकेंगी. ननददेवर को भाईबहन मान कर यदि आप थोड़ा गम खाना सीख लें और उन की खुशी को तवज्जो देना शुरू करें तो आप को जीवन में कभी तनाव का सामना नहीं करना पड़ेगा. आप उन के साथ समय बिताएंगी, उन के लिए कुछ करेंगी तो निश्चित तौर पर आप का रिश्ता परिवार के सभी सदस्यों के साथ खूबसूरत बनेगा.

नो औफिस नो मायका

अब शादी का मतलब है 24 घंटे घर को संभालने की जिम्मेदारी, क्योंकि कोरोना ने आप को औफिस से दूर कर रखा है. ज्यादातर मामलों में या तो आप को वर्क फ्रौम होम कर रही होंगी या फिर नौकरी छूट गई होगी. ऐसे में शादी के बाद दिनभर घर में ही रहना होगा. हो सकता है आप के लिए पहले की तरह एक ही शहर में मायका होने पर भी रोजरोज वहां जाना मुमकीन न हो पाए, क्योंकि कोरोना में हरकोई आप को कम से कम बाहर निकलने की सलाह देगा. मायके वाले भी नहीं चाहेंगे कि आप कोरोना में ज्यादा आनाजाना करें. ऐसे में ससुराल में रह कर इरिटेट होने और लड़नेझगड़ने के बजाय अपनी कार्यकुशलता और व्यवहारकुशलता दिखा कर घरवालों का दिल जीतें.

इस समय को अपने लिए अवसर की तरह देखें. आप को अवसर मिला है घर में अपनी जगह मजबूत करने और दूसरों के दिलों में अपनी सुंदर छवि बनाने का. एक बार ऐसा हो गया तो फिर जीवन में हमेशा आप को इस का लाभ मिलेगा.

कोरोना की तलवार

आजकल शादी के बाद कोरोना की लटकती तलवार से सब परेशान हैं. जरा सोचिए शादी के बाद आप को गिफ्ट्स खोलने हैं तो कोरोना, कहीं घूमने जाना है तो कोराना, रिश्तेदारों को बुलाना है तो कोराना और कहीं जा कर मनपसंद खाना है तो भी कोरोना की तलवार लटकती मिलेगी. शादी के बाद अकसर रिश्तेदार नवविवाहित कपल्स को अपने यहां खाने पर बुलाते हैं. इस से परिचय के साथ प्यार भी बढ़ता है. मगर अब इन बातों को भूल जाइए. शादी के बाद भी अब आप को अपने हाथों से बना कर भोजन खाना और खिलाना है. रोजरोज शौपिंग या तीजत्योहारों पर पहले की तरह मस्ती भी भूल जाइए.

अब हर वक्त कोरोना की तलवार आप को सिर पर लटकती मिलेगी. ऐसे में आप रिश्तेदारों के साथ व्हाट्सऐप/फोन/जूम मीटिंग्स से जुड़ सकती हैं. शौपिंग का औप्शन खुला हुआ है. खानेपीने का शौक अपने हाथों का जलवा दिखा कर ही पूरा करना होगा. इस का भी अपना मजा है. इसलिए घबराएं नहीं. कोरोनाकाल में शादी के नए मानों को समझें और सबक लें.

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