अंधविश्वास की दलदल में फंसते लोग

फेसबुक के सीईओ मार्क जकरबर्ग ने कहा कि फेसबुक पर हर रोज 200 करोड़ बार ‘जय श्री राम” लिखा जाता है. उस पर एक यूजर ने लिखा कि कृपया इसमें कुछ हजार और जोड़े “जय श्री राम जय श्री राम. लेकिन यह दावा गलत बताया जा रहा है, क्योंकि “जय श्री राम” लिखे जाने के संबद्ध में मार्क जकरबर्ग ने ऐसा कोई बयान नहीं दिया है. यह दावा सच्च है या झूठ, यह तो हम नहीं जानते. लेकिन यह बात एकदम सच है कि सोशल मीडिया पर भगवान की फोटो डालकर कहा जाता है कि अगर आपकी किस्मत अच्छी है तो आप “जय श्री राम” जरूर लिखेंगे. भगवान गणेश के सच्चे भक्त जरूर शेयर करें. 24 घंटे के अंदर आपको शुभ समाचार सुनने को मिलेगा, वरना आपके साथ अशुभ होगा. फेसबुक पर ऐसे कई पोस्ट रोजाना देखने को मिल जाती है. कुछ लोग इसे इगनोर कर देते हैं. लेकिन कुछ लोग लाइक, कमेट्स और शेयर करने से खुद को रोक नहीं पाते हैं. लेकिन जरा सोचिए, भगवान अगर हैं तो क्या आपके लाइक, कमेट्स और शेयर करने से खुश हो जाएगे, वरना आपकी किस्मत खराब कर देंगे या शुभ समाचार को अशुभ बना देंगे ? आज पूरा विश्व कोरोना से लड़ रहा है. कोरोना जैसी महामारी से बचने के लिए पूरे विश्व के वैज्ञानिक वैक्सीन ढूँढने में लगे हैं. वहीं बिहार में कोरोना मायी की पुजा होने लगी. महिलाएं झुंड के झुंड बनाकर कोरोना मायी की पुजा करने जाने लगीं. आश्चर्य तो इस बात की है कि सिर्फ अनपढ़ महिलाएं ही नहीं, बल्कि पढ़ी-लिखी महिलाएं भी इस पुजा में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने लगीं. पुजा के दौरान कोई सोशल डिस्टेन्स नहीं, कोई मास्क नहीं.

रिंकी नाम की एक महिला का कहना था कि कोरोना मायी की पुजा की जानकारी उसे सोशल मीडिया जैसे फेसबुक, व्हाट्सएप के वीडियो के माध्यम से मिली थी. उस महिला का कहना था कि वह कोरोना मायी की पुजा घर, बच्चे, परिवार और पूरे विश्व को कोरोना की कहर से बचाने के लिए कर रही है. कोरोना मायी जल्द ही इस बीमारी से हमलोगों को निजात दिलाएँगी. एक महिला का कहना था कि कोरोना माता की पुजा के बाद हवा आएगी और वायरस को भस्म कर देगी. लोग कोरोना को बीमारी के बजाय दैवीय प्रकोप मानने लगे थे. अंधविश्वास एक ऐसा विश्वास है, जिसका कोई उचित कारण नहीं होता, फिर भी लोगों का इस पर अटूट विश्वास बन जाता है. हम बचपन से ही जिन परम्पराओं, मान्यताओं में पले-बढ़े होते हैं, आगे जाकर भी हम अक्षरश: उसी का पालन करते हैं. यह अंधविश्वास हमारे मन-मस्तिष्क में इतना गहरा समा जाता है कि हम जीवन भर उससे बाहर नहीं निकल पाते हैं. अंधविश्वास अधिकतर कमजोर व्यक्तित्व, कमजोर मनोविज्ञान व कमजोर मानसिकता वाले लोगों में देखने को मिलता है. जीवन में असफल रहे लोग ही अंधविश्वास पर विश्वास रखने लगते हैं. उन्हें लगता है ऐसा करने से शायद वे जीवन में सफल हो जाएंगे.

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अंधविश्वास केवल अनपढ़ और मध्यम या निम्न वर्ग के लोगों में ही नहीं होता, बल्कि यह काफी शिक्षित, उच्च वर्ग के लोगों में भी देखने को मिलती है. आजकल ज्योतिष को विज्ञान भी कहा जाने लगा है. लेकिन अधिकतर ज्योतिष द्वारा बताई गयी बातें झूठ ही निकलती है. भूत-प्रेत में विश्वास रखना एक बहुत बड़ा अंधविश्वास ही है. आमतौर पर लोग भूत-प्रेत से मिलने या देखने की बात करते हैं. ये सिर्फ लोगों को भरमाते हैं. उसी तरह मासिक धर्म के दौरान महिलाओं का मंदिर में प्रवेश वर्जित एंव पुजा करना, धूप-दीप जलाना मना होता है क्योंकि यह माना गया है कि उस समय महिला अपवित्र होती है. जबकि यह एक अंधविश्वास के सिवा और कुछ नहीं है. बहुत से लोग मंगल और शनिवार के दिन बाल-दाढ़ी नहीं बनवाते, हाथ का नाखून भी नहीं काटते, क्योंकि यह हनुमान जी का दिन होता है. वहीं महिलाएं गुरुवार के दिन बाल नहीं धोती, क्योंकि यह गुरुभगवान का दिन होता है. यह सिर्फ अंधविश्वास नहीं तो और क्या है. सिर्फ आम इंसान ही नहीं, बल्कि देश के नेता अभिनेता भी अंधविश्वास पर विश्वास करते हैं. देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी अपनी कलाई पर उल्टी घड़ी पहनते हैं. इसे वह लकी मानते हैं.

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पारंपरिक तौर पर राफेल की नींबू –नारियल से पुजा की थी. उस पर मलिल्कार्जुन ने इसे तमाशा और ड्रामा कहा था. एक मंत्री ने तो यहाँ तक बोल दिया कि देश की रक्षा के लिए राफेल खरीदा गया और राफेल की रक्षा के लिए नींबू. तो इससे तो अच्छा यही होता कि दुश्मनों के बॉर्डर पर नींबू रख दिया जाता, तो अपने आप दुशमनों के दांत खट्टे हो जाते. मोदी जी के कहने पर कोरोना वायरस को भागने के लिए लोगों ने जमकर ताली पीटा, शंख फूँकें, दिये जलाए. यहाँ तक की बीजेपी की एक महिला ने खुशी जाहीर करते हुए पिस्तौल फायरिंग भी कर डाली. यही नहीं, कई जगहों पर लोगों ने जुलूस निकाले और ‘’गो कोरोना गो’ और कोरोना गो बैक के नारे भी लगाए. एक जगह पर तो कोरोना का पुतला भी जलाया गया. लेकिन क्या यह सब करने से कोरोना भाग गया ? नहीं, बल्कि आज कोरोना की स्थिति और भी भयावान हो रही है. ये सब देखकर प्रगतिशील बुद्धिजीवियों ने ये निष्कर्ष निकाला कि हिन्दुत्व की शक्तियों ने लोगों की वैज्ञानिक चिंतन का नाश कर दिया. जिस समय भारत समेत पूरी दुनिया कोरोना वायरस के कहर का मुक़ाबला कर रही थी, लोग मर रहे थे.

बड़ी संख्या में लोग शहरों से पलायन हो रहे थे, उस समय भारत के लोगों द्वारा कोरोना को उत्सव में बदल देना एक भद्दा तमाशा ही था. इसी बात पर स्तंभकार सारिका घोष ने ट्वीट कर व्याख्या दी थी कि ‘भारत अंधविश्वास और मूर्खता के जिस गर्त में जा रहा है, वह इतना अंधकारमय और पतनशील है कि ये कहना मुश्किल है कि वहाँ से निकल पाना कभी संभव हो पाएगा या नहीं.‘ आज भी बहुत से घरों में सूर्य डूबने पर झाड़ू नहीं लगाए जाते, क्योंकि एक मान्यता है कि ऐसा करने से घर से लक्ष्मी चली जाती है. एक अंधविश्वास है जो विश्वास के रूप में फल रहा है. पर लोगों को यह नहीं पता कि पहले के जमाने में लाइटिंग की समस्या होती थी. सफाई के समय कुछ छोटी-मोटी कीमती चीजें गिर कर धूल के साथ भूल से फेंका न जाए, इसलिए लोग रात के समय घर में झाड़ू नहीं लगाते थे. लेकिन लोगों में यह अंधविश्वास बैठ गया कि रात में झाड़ू लगाने से घर से लक्ष्मी चली जाती है. कई लोग बिल्ली का रास्ता काटने को अशुभ मानते है तो कोई छींकना शुभ नहीं मानते. कई लोग बुरी नजर से बचने के लिए अपने पैरों में काला धागा बांध कर रखते है. तो कई लोग बुरी नजर से बचने के लिए घोड़े के नाल की अंगूठी बनवाकर सीधे हाथ की बीच की उंगली में पहनते हैं. 13 तारीख को कई लोग अशुभ मानते हैं. देखा होगा आपने कई होटलों में 13 नंबर का कमरा या तेरहवाँ तल नहीं होता है. बाहर के बाद सीधे 14 नंबर होता है. हमारे समाज में ऐसा माना जाता है कि काली बिल्ली अगर रास्ता काट दे तो अशुभ होता है. क्योंकि काली बिल्ली में भूत का वाश होता है. जाते समय पीछे से अगर कोई टोक दे तो उसे अशुभ मानते हैं. खड़ी हुई सीढ़ी के नीचे से निकलने को भी लोग दुर्भाग्य मानते हैं. जबकि यह केवल एक अंधविश्वास है. टीवी सीरियलों में भी शीशे का टूटना, पुजा के समय दिया का बुझना अशुभ दिखाया जाता है. ऐसे अंधविश्वास हमारे समाज में काफी प्रचलित हैं.

बॉलीवुड सितारों में भी अंधविश्वास——–
बॉलीवुड सितारे भी अंधविश्वास पर विश्वास करते हैं. गुड लक के लिए कई टोने-टोटके आजमाते हैं, आइए जानते हैं.

1. शायरा बनो उतारती हैं दिलीप कुमार की नजरें——

अपने जमाने के दिलीप कुमार को कौन नहीं जानता है. उनके बार में यह बात कई बार सुनी है कि उन्हें बचपन में नजर बहुत जल्दी लग जाती थी. इसके लिए उनकी दादी उनकी नजरें उतारा करती थीं. फिर उनकी माँ उनकी नजरें उतारने लगीं. आज भी उन्हें जल्द नजर लग जाती है इसलिए उनकी नजर उतारने के लिए उनकी पत्नी शायरा बनो सदका करती हैं. वह गरीबों को अनाज, पकड़े और जरूरतों का सामान कुछ दे देती हैं ताकि दिलीप कुमार बुरी नजरों से बचें रहें.

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2. रणवीर सिंह——

रणवीर सिंह बुरी नजरों से बचने के लिए अपने पैरों में काले धागे बांधते हैं. दरअसल, कुछ समय पहले रणवीर सिंह बीमार रहने लगें थे और उन्हें अक्सर चोटें भी लगती रहती थी. ऐसा न हो, वह बुरी नजरों से बचें रहें, इसलिए वह अपने पैरों में काला धागा बांध कर रखते हैं.

3. शिल्पा शेट्ठी——–

शिल्पा शेट्टी मानती हैं कि वो अपनी आईपीएल टीम ‘राजस्थान रॉयल’ के मैच के दौरान जब अपनी कलाई पर दो घड़ियाँ पहनती हैं तो उसकी टीम जीत जाती है. अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी अंधविश्वास में विश्वास रखती हैं. वे अपनी उँगलियों में अंगूठियाँ भी पहनती हैं और मंदिर भी जाती हैं.

4. दीपिका पादुकोण——

दीपिका पादुकोण अपनी फिल्मों की सफलता के लिए सिद्धिविनायक मंदिर जाती हैं.

5. क्रिकेट मैच नहीं देखते अभिताभ बच्चन——-

अभिताभ बच्चन को क्रिकेट मैच देखना बहुत पसंद है. लेकिन वो कभी भी भारत का क्रिकेट मैच लाइव नहीं देखते. उनका मानना है कि अगर वो टीवी के सामने बैठ जाते हैं तो भारत के विकेट गिरने शुरू हो जाते हैं.

6. सलमान का लकी ब्रेसलेट——

बॉलीवुड के दबंग, यानि सलमान खान रियल ज़िंदगी में बहुत अंधविश्वासी हैं. अपने हाथ में हमेशा
वो फिरोजी रंग का ब्रेसलेट पहने रहते हैं, क्योंकि उसे वह अपना लकी चार्म मानते हैं. यह ब्रेसलेट सलमान खान को उनके पिता ने दी थी.

7. शाहरुख खान के सभी गाड़ियों का नंबर एक जैसा——-

शाहरुख खान का कहना है कि वह अंधविश्वास पर बिल्कुल विश्वास नहीं करते हैं. लेकिन वो अंक ज्योतिष या न्यूमरोलॉजी पर इतना ज्यादा भरोसा करते हैं कि उन्होंने अपनी सभी गाड़ियों का नंबर ‘555’
रखा है. इतना ही नहीं, कोलकाता नाइट राइडर्स की हार से परेशान होकर उन्होंने ज्योतिष के कहने पर अपनी टीम की जर्सी रंग भी बैंगनी करावा लिया था.

8. कैटरीना कैफ जाती हैं अजमेर शरीफ———

फिल्म ‘नमस्ते लंदन’ के प्रमोशन के दौरान कैटरीना अजेमर शरीफ गईं थी और उस फिल्म ने अच्छा बिजनेस किया था. तब से लेकर अब तक कैटरीना कैफ अपनी हर फिल्म रिलीज के पहले अजमेर शरीफ दरगाह जाकर दुआ मांगती हैं.

9.  एकता कपूर का हर काम से पहले ज्योतिष की राय——–

छोटे पर्दे की सीरियल क्वीन एकता कपूर अंधविश्वास पर सबसे ज्यादा विश्वास करती हैं. वह अपने हर काम के पहले ज्योतिष की राय जरूर लेती हैं. वह इतनी ज्यादा अंधविश्वासी हैं कि शूटिंग की तारीख से लेकर शूटिंग की जगह तक ज्योतिष से सलाह लेकर करती हैं. वह अपनी उँगलियों में ढेर सारे रत्न अंगूठियाँ, ताबीज और काला घागा पहनती हैं.

10. ‘क’ अक्षर से शुरू होती है करना जौहर की फिल्में

——— कारण जौहर की ज़्यादातर फिल्में ‘क’ अक्षर से शुरू होती हैं क्योंकि
उनका मानना है कि उनकी ‘क’ अक्षर से बनी फिल्में सफल होती है.

11. अमीर खान की फिल्में दिसंबर में रिलीज—–

मिस्टर परफेक्शनिस्ट यानि अमीर खान भी अंधविश्वास पर विश्वास करते हैं. अमीर खान दिसंबर महीने को लकी मानते हैं इसलिए वह अपनी फिल्मों को दिसंबर में रिलीज करते हैं. वास्तव में अंधविश्वास केवल भारत में ही नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया में है. जहां भी मानव जाति फली-फुली है, वहाँ अपने आप अंधविश्वास पैदा होता चले गए.

एक प्रगतिशील समाज का ध्येय अंधविश्वास को खत्म कर वैज्ञानिक चेतना का प्रसार करना होता है. आज विज्ञान का युग है. विज्ञान के तमाम गैजेट हमारे जीवन का भिन्न अंग बन चुके हैं. हम विज्ञान की खोजों तथा आविष्कारों का भरपूर लाभ उठा रहे हैं. लोग चाँद तक पहुँच चुके हैं, लेकिन फिर भी हमारे समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग आज भी निर्मूल धारणाओं और अंधविश्वासों से घिरा हुआ है. इनमें गरीब-अमीर, अशिक्षित और शिक्षित सभी तरह के लोग शामिल हैं. ये लोग झाड-फूँक, जादू-टोना, और टोनोटोटकों से लेकर तरह-तरह के भ्रमों और सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास करते हैं. गाहे-बगाहे अंधविश्वास के इनसे भी भयानक रूप सामने आते हैं, जैसे मोक्ष की प्राप्ति के लिए ‘समूहिक आत्महत्या तक कर लेते हैं लोग. ऐसा नहीं है कि समाज में जागरूकता नहीं है. परंतु अंधविश्वास का स्तर इतना अधिक है कि इस समस्या को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. आज टीवी पर ही देख लीजिये, ‘इच्छाधारी नाग-नागिन, चमत्कार, असंभव घटनाओं पर आधारित कहानियाँ-किस्से और अस्तित्व दिखाकर तथा ज्योतिषियों की अवैज्ञानिक व्याख्याएँ प्रसारित करके अंधविश्वास परोसा जाता है. यह सब देखकर लोग आगे नहीं बढ़ रहे हैं, बल्कि और पीछे खिसक रहे हैं. ऐसे अंधविश्वास से भरी टीवी सीरियल आग में घी का काम कर रहे हैं. अंधविश्वास की जड़ें इतनी मजबूत है कि इसे एकदम से खत्म नहीं किया जा सकता है. लेकिन धीरे-धीरे इस जहरीली पेड़ को उखाड़ा जरूर जा सकता है. हमें समझना होगा कि हमारे हाथों की आड़ी-तिरछी रेखाएँ या अंगूठियों से भरी उँगलियाँ, गंडे-ताबीज, तंत्र-मंत्र हमारा भविष्य तय नहीं कर सकती. बल्कि हमें स्वयं अपने कर्म और मेहनत से अपना भविष्य संवारना होगा. भविष्यवाणियाँ, एक तरह से अंधेरे में चलाए जाने वाले तीर हैं. आज भी बहुत सी जगहों पर बीमारी ठीक करने या मनोकामना पूर्ति के लिए पशुओं की बलि दी जाति है.बच्चों की शादी सफल रहे, इसके लिए माता-पिता अपने बच्चों की कुंडली मिलान करवाते हैं, लेकिन इसके बावजूद तलाक के मामले बढ़ रहे हैं.

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समाज में आए दिन, किस्मत बदल देने, गड़ा हुआ धन दिलाने, पैसा, सोना-चाँदी दुगुन्ना कर देने वाले ढोंगी बाबा मिल जाते हैं. इसका कारण वैज्ञानिक सोच की कमी है. अंधविश्वास और धर्मान्धता इतनी है कि विगत कुछ वर्षों में गाय के नाम पर न जाने कितने मौत के घाट उतार दिये गए. बाबाओं को अपना भगवान मनाने वाले, उसी बाबाओं के हाथों महिलाएं शोषण का शिकार होती रहीं. लेकिन कई अंधे भक्त उसी आरोपित बाबा को सही साबित करने के लिए हल्ला-गुल्ला मचाते हैं, शहर के शहर जला देते हैं,गाडियाँ फूँक देते हैं. सच पूछिये तो वह उस बाबा को नहीं बचा रहे होते हैं, बल्कि अपने अंधविश्वास का विश्वास बनाएँ रखना चाहते हैं. आज हमें खुद यह बात समझनी होगी और अपने बच्चों को भी समझना होगा, ताकि वह अपने आने वाली पीढ़ी को यह बता सके कि हम विज्ञान के युग में जी रहे हैं, इसलिए हमें अंधविश्वास का साथ नहीं, बल्कि विज्ञान के सच और तर्क के प्रकाश में जीना चाहिए. हमें सुनी सुनाई या आसआपस की घटनाओं को भेड़-बकरियों की तरह चुपचाप नहीं सुन और मान लिया चाहिए. बल्कि सोचना और तर्क करना चाहिए. तभी फर्क समझ में आयेगा.

अपने से छोटे पुरुष को प्यार करने पर पुरुषवादी सोच की कुंठा झेलतीं भारतीय महिलाएं

जब लव गुरु के नाम से मशहूर हुए पटना के प्रोफेसर मटुकनाथ ने अपने से एक तिहाई उम्र की जूली से शादी की थी, तो उनके घर परिवार के कुछ लोगों को भले इसमें थोड़ा अचरज हुआ हो या अच्छा न लगा हो, मगर बहुसंख्यक भारतीय समाज के लिए यह कोई अचरज या आश्चर्य का विषय नहीं था. क्योंकि भारतीय समाज में एक दो नहीं ऐसे सैकड़ों बल्कि हजारों उदाहरण मौजूद हैं, जब भारतीय पुरुषों ने अपने से बहुत कम उम्र की महिलाओं से शादी की है. ऐसा सिर्फ सेलिब्रिटी ही नहीं करते. हर क्षेत्र के आम और खास लोगों में इस तरह के रिश्ते रहे हैं. आम लोगों मंे जहां यह गरीबी और मजबूरी की वजह से होते हैं, तमाम मां-बाप अपनी लड़कियों का उनसे दोगुना बल्कि कई बार तो तीन गुना उम्र के पुरुषों से शादी कर देते हैं. वहीं ऐसे ही विवाह प्रतिष्ठित मध्यवर्ग में प्रेम या अंडरस्टैंडिंग के नाम पर होते हैं.

यहां तक कि हिंदुस्तान के कई राजनेताओं ने भी ऐसा किया है. संविधान बनाने वाले बाबा साहब अंबेडकर ने भी अपने से काफी कम उम्र की सविता कबीर से और अभी हाल में ही दिवंगत हुए रामविलास पासवान ने अपने से काफी छोटी रीना शर्मा से दूसरी शादी की थी. इस सबमें अलग से नोटिस करने जैसी कोई बात नहीं होनी चाहिए. लेकिन यह नोटिस किया जाना इसलिए मजबूरी हो जाता है कि जब इसी भारतीय समाज में अधेड़ या बूढ़ी महिलाएं अपने से कम उम्र के मर्द से शादी करती हैं तो समाज इसे तमाशा बना देता है. हर कोई इस रिश्ते को लेकर औरत पर लानत, मलानत भेजता है. छूटते ही लोग महिला को व्यंग्य में बूढ़ी घोड़ी कहकर संबोधित करते हैं.

अगर यकीन न हो रहा हो तो पिछले काफी दिनों से जिस तरह से मलाइका अरोड़ा ट्रोल हो रही हैं, उसे देखा जा सकता है. कोई ऐसा हफ्ता इन दिनों नहीं गुजर रहा, जब किसी न किसी बात को लेकर सोशल मीडिया में लोग मलाइका अरोड़ा को बूढ़ी, बूढ़ी, बूढ़ी… कहकर चिल्लाने लगते हैं. मानो पूरा भारतीय समाज किसी भी कीमत में न चाह रहा हो कि वह अपने से कम उम्र के अर्जुन कपूर से शादी करें. जिस तरह से लोग सोशल मीडिया में मलाइका को ट्रोल करते हैं, उससे एकबारगी ऐसा लगता है जैसे इस देश में मलाइका बूढ़ी होने वाली अकेली महिला हों. हालांकि ऐसा नहीं है कि हिंदुस्तान मंे बड़ी उम्र की महिलाएं कम उम्र के मर्दों से शादी नहीं करती रहीं. लेकिन यह पुरुषों की एक मर्दवादी कुंठा है कि वे इसे उसी तरह सहजता से नहीं ले पाते, जिस तरह कम उम्र की लड़कियों से शादी करने पर पुरुषों को लिया जाता है.

जब भी कोई बड़ी उम्र की महिला किसी छोटे उम्र के पुरुष से शादी करने की कोशिश करती है तो हमारे समाज में यह माना जाता है कि ज्यादा उम्र की महिला ने कम उम्र के पुरुष को फांस लिया है. पिछले एक साल में अगर मलाइका अरोड़ा के विरूद्ध आम लोगों की सोशल मीडिया में पोस्ट देखें तो अंदाजा लगता है कि लोग उन्हें क्या मानते है. बड़ी सहजता से लोग उन्हें मर्दखोर कहकर संबोधित करते हैं. जबकि मलाइका खुद अपने कुछ इंटरव्यूज में इस बात का खुलासा कर चुकी हैं कि दरअसल अर्जुन कपूर के साथ वे नये सम्बंध की इच्छुक नहीं थीं, लेकिन अब जब नया प्रेम हो ही गया है तो वह उस सम्बंध को सम्मान देना चाहती हैं, खासकर इसलिए भी क्योंकि जिससे उन्हें प्यार है, वह शख्स इसके लिए उनसे बार बार कहता है. मलाइका जूम टीवी को दिये गये एक इंटरव्यू में काफी पहले कहा था अर्जुन उन्हें अच्छी तरह समझते हैं और उनके होंठों पर मुस्कान लाने में सक्षम हैं; यही बात हम दोनों के लिए मायने रखती है.

हालांकि मलाइका मजबूत शख्सियत हैं, वह खुश रहना जानती हैं. इसलिए तमाम ट्रोलर उनका कुछ बिगाड़ नहीं पाते. लेकिन जिस तरह से वे उसे परेशान करने की कोशिश करते हैं, उससे अगर मलाइका अरोड़ा यह न कहें तो क्या कहें कि मैं आमतौर से ट्रॉल्स पर ध्यान नहीं देती क्योंकि अगर मैं ऐसा करूंगी तो मेरा जीवन उदास व टॉक्सिक हो जायेगा. मलाइका की इन शब्दों से हम इस समाज का पाखंड समझ सकते हैं कि यदि एक पुरुष तलाक के बाद सेटल हो जाता है तो किसी को कोई आपत्ति नहीं होती, लेकिन यही समाज उस महिला के रास्ते में बार बार टांग अड़ाने की कोशिश करता है, जो तलाक के बाद किसी पुरुष के साथ सटेल होना चाहती है और संयोग से अगर वह पुरुष उससे छोटा है, तब तो कयामत ही आ जाती है.

गौहर खान और जैद दरबार के निकाह की तारीख आई सामने, पढ़ें खबर

बिग बौस 14 में बीते दिनों सुर्खियों बटोरने वाली एक्ट्रेस गौहर खान (Gauhar Khan) जल्द ही शादी के बंधन में बंधने वाली हैं, जिसकी तैयारियां शुरु हो चुकी हैं. दरअसल, गौहर खान जल्द ही मशहूर म्यूजिक कंपोजर इस्माइल दरबार के बेटे जैद दरबार (Zaid Darbar) के संग शादी करने वाली हैं. वहीं बीते दिनों सगाई के बाद शादी की खबरों को लेकर फैंस एक्साइटेड हो गए हैं. इसी बीच गौहर और जैद की शादी की डेट का भी खुलासा हो गया है. आइए आपको बताते हैं कब दुल्हन बनेंगी बिग बौस विनर गौहर खान…

इस दिन होगा निकाह

एक्ट्रेस गौहर खान और जैद दरबार का निकाह अगले महीने यानी 25 दिसंबर को होने वाला है. खबरों की मानें तो 25 दिसबंर को दोनों कपल हमेशा के लिए एक-दूसरे के होने वाले हैं. शादी की रस्मों की शुरुआत 22 दिसंबर 2020 से शुरू हो जाएगी. वहीं कहा जा रहा है कि गौहर और जैद की शादी मुंबई की आईटीसी मराठा होटल में की जाएगी. इतना ही नहीं दोनों का प्री वेडिंग शूट पुणे के ऐतिहासिक जाधवगढ़ फोर्ट में किया जाएगा.

 

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कम लोगों को मिलेगा न्योता

 

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कोरोनावायरस के बढ़ते प्रकोप के कारण गौहर और जैद की शादी में भी कम ही लोगों को बुलाया जाएगा. हालांकि दोनों अपने शादी के हर पल की फोटोज सोशलमीडिया पर फैंस के साथ शेयर करना नही भूलेंगे.

 

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बता दें, एक्ट्रेस गौहर खान इन दिनों मंगेतर जैद दरबार के साथ दुबई में वेकेशन मनाकर वापस आई हैं, जिसकी फोटोज दोनों ने सोशलमीडिया पर फैंस के साथ शेयर की थीं. वहीं फैंस को भी दोनों की जोड़ी इतनी पसंद है कि अक्सर दोनों की तारीफें सोशलमीडिया पर होती रहती हैं.

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टीवी को अपना भविष्य सुरक्षित रखने के लिए रिलेटेबल और कम ड्रामा वाली कंटेंट दिखाना चाहिए – सुबुही जोशी

3 साल की उम्र में दूरदर्शन की शो ‘निमंत्रण’ से अभिनय क्षेत्र में कदम रखने वाली सुबुही जोशी दिल्ली की है. अभिनय के अलावा वह एक मॉडल, सिंगर और डीजे भी है. उसकी माँ मीनू जोशी भी टीवी से जुडी थी और दूरदर्शन पर शो को होस्ट करना या एंकरिंग किया करती थी, लेकिन उन्होंने सुबुही को शिक्षा पूरी करने के बाद अभिनय क्षेत्र में आने की सलाह दी थी.

सुबुही पढाई पूरी करने के बाद अभिनय के क्षेत्र में आई और स्प्लिटविला सीजन 6 और 8 में काम किया है, इसके बाद उन्होंने कई टीवी शोज भी किये है. टीवी शो ‘ये उन दिनों की बात है’ में भी सुबुही काम कर चुकी हैं, जो लॉकडाउन की वजह से बंद हो गयी. उनके काम में परिवार का बहुत सहयोग रहा है. उन्होंने कभी उसे रोका या टोका नहीं है. अभी उन्होंने एक वेब सीरीज ‘आपातकालीन बैठक’ की है, जो रिलीज पर है.वर्ल्ड टेलीविजन डे के लिए उन्होंने खास बातचीत की, पेश है कुछ अंश.

सवाल-वर्ल्ड टेलीविजन डे पर आप क्या कहना चाहती है?

जब से लैपटॉप और मोबाइल फ़ोन आया है, टीवी के बारें में लोगों का रुझान कम हुआ है. मेरे लिए टीवी बहुत अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि मैं मुंबई में अकेले रहती हूं. जब तक टीवी न चलाऊं,नींद नहीं आती. मेरे सो जाने पर भी टीवी रातभर चलता रहता है. मेरे जीवन में टीवी बहुत महत्वपूर्ण है. इसके अलावा वेब में कई ऐसी चीजे है, जो आप घरवालों के साथ नहीं देख पाते है, लेकिन टीवी पर दिखाए गए कंटेंट पूरा परिवार देख सकता है. बचपन से मैंने खाना खाते हुए सबके साथ बैठकर टीवी देखा है. टीवी पर दिखाए गए मैच मुझे बहुत पसंद है. टीवी सालों साल बच्चों से लेकर बुजुर्गोंतक  जरुरी माध्यम मनोरंजन का रहेगा.

सवाल-वेब में सर्टिफिकेशन नहीं है, जो अभी लाने की योजना चल रही है, आपके हिसाब से निर्माता, निर्देशक को कंटेंट अच्छी हो, इस बात का कितना ध्यान रखने की जरुरत है?

ये सही है कि आजकल बहुत सारे कंटेंट में वायलेंस, न्यूडिटी और एब्युजिंग होती है, जिसे माता-पिता के पास बैठकर देखने में डर लगता है. फ़िल्टर करना बहुत जरुरी है. इसके अलावा अधिकतर वेब सीरीज में जरुरत से अधिक सेक्स और गाली-गलौज होती है. मैं इस सर्टिफिकेशन को अच्छा समझती हूं, ताकि अच्छी वेब सीरीज बने.

सवाल-आप किसी वेब सीरीज को करते वक़्त किस बात का ध्यान रखती है?

मैं सौ प्रतिशत ध्यान रखती हूं कि वेब की कंटेंट अच्छी हो. मैने ऐसे कई वेब सीरीज छोड़े है, जिसमें बहुत अधिक न्यूडिटी और सेक्स वाले कंटेंट थे, क्योंकि मैं ऐसा नहीं कर सकती और आगे भी नहीं करना चाहूंगी.

सवाल-टीवी के कंटेंट बहुत ही पुराने रीतिरिवाज, साप, बिच्छू, राक्षस आदि को लेकर बनाये जाते है, जो आज के परिवेश में कोई खुद से रिलेट नहीं कर सकता, ऐसे में टीवी का भविष्य कितना सुरक्षित है?

ये सही है कि टीवी पर सुपरनेचुरल, सांप, बिच्छू आदि दिखाए जाते है. मैंने एक दिन टीवी पर एक शो में एक इंसान को मक्खी बनते देखा है. ये मुर्ख बनाने वाली कंटेंट है. आज प्रैक्टिकल कंटेंट की आवश्यकता है. फिल्में भी आज वैसी ही बन रही है, जिससे लोग खुद को जोड़ सकें. सीरियल भी रिलेटेबल होना चाहिए. मुझे अगर कोई कहे कि मेरे घर में रहने वाली सास चुड़ैल है, तो मैं नहीं मानूंगी, क्योंकि वह नहीं हो सकता. यही वजह है कि लोग वेब सीरीज की तरफ भाग रहे है, क्योंकि उसमें काफी हद तक रियल चीजें दिखाते है. टीवी को अपना भविष्य सुधारने के लिए अच्छी और रिलेटेबल कंटेंट बनाने की जरुरत है. ड्रामा को थोडा कम दिखाया जाना चाहिए.

सवाल-अभिनय में कैसे आना हुआ?

मैं जब 3 साल की थी तो मैंने दूरदर्शन की एक शो में काम किया था, जिसे पसंद किया गया, लेकिन मेरी माँ की इच्छा थी कि मैं अपनी पढाई पूरी कर अभिनय में कदम रखूं. ग्रेजुएशन के दौरान एम टीवी की शो ‘स्प्लिटविला’ के लिए कॉल आया. मैंने पढाई के साथ-साथ उस शो को किया. इसके बाद कई ऑफर मिलने लगे. मैंने पढाई पूरी की और दिल्ली से मुंबई आ गई.

सवाल-कोई संघर्ष था?

शुरू-शुरू में मुंबई आने पर बहुत समस्या आई, क्योंकि मुझे यहाँ का कुछ अधिक पता नहीं था. धीरे-धीरे पहचान हुई और पहली शो ‘लव, दोस्ती दुआ’ मिली और काम के दौरान दूसरी शो ‘भ से भदे’ मिली. मैं काम के साथ-साथ ऑडिशन भी देती जाती थी और जहाँ भी गयी काम मिल जाता था. ‘कॉमेडी क्लासेस’ एक बड़ी शो मिली. ऐसे काम मिलता गया.

सवाल-किस शो ने आपकी जिंदगी बदली?

शो ‘स्प्लिटविला’ ने मेरी जिंदगी बदली, क्योंकि इस शो में मैं 7 दिन दिखाई पड़ती थी, इससे पहचान बनी.

सवाल-आपका वजन बहुत बढ़ गया था, उसे आपने कम कैसे किया?

मुझे पीसीओडी और थायरोइड हो गया था, जिससे मेरा वजन बहुत अधिक बढ़ गया था. मैंने20 से 25 किलो वजन बढ़ गया था. मैं डिप्रेशन में चली गयी थी. मोटापे की वजह से इंडस्ट्री में काम मिलना भी मुश्किल था. लॉकडाउन के समय मैंने घर में पूरा डाइट को फोलो किया, वर्कआउट किया और 4 से 5 महीने में मैने 25 किलो कम किया. अभी भी नियमित डाइट का ध्यान रखना पड़ता है.

सवाल-आप कितनी फैशनेबल और फूडी है?

मैं दोनों में एक्सट्रीम हूं. मैं किसी डिज़ाइनर को फोलो नहीं करती, जो पोशाक आरामदायक हो उसे पहनती हूं. मैं बहुत फूडी हूं. हर तरह के फ़ूड पसंद है, लेकिन अभी वजन को काबू में रखने के लिए एहतियात बरतती हूं.

सवाल-अभिनय के अलावा क्या करना पसंद करती है?

मैं समय मिलने पर डीजे का काम करती हूं. इसके अलावा कई पंजाबी एल्बम भी किया है. क्रिकेटर हरभजन सिंह के गाये एक एल्बम में भी मैंने काम किया है. आगे मुझे वेब सीरीज ही करने है.

सवाल-कोई मेसेज जो आप देना चाहे?

कोरोना संक्रमण की वजह से ये साल बहुत ख़राब गुजरा है. आगे सब अच्छा होगा, इसकी उम्मीद है. आप सब निराश न हो और अपने स्वास्थ्य की देखभाल करें.

क्या बच्चे कहना नहीं मानते

मिनल हमेशा अपने दोनों किशोर बच्चों से कहती रहती हैं कि घर में कोई भी बङा आए, उन के पांव छुओ या फिर उन से बातचीत करो. कई बार तो बच्चे ऐसा करते हैं, पर कई बार वे इस का विरोध करने लगते हैं, जो मिनल को बुरा लगता है.

असल में आज के बच्चों की परवरिश अलग माहौल में होती है, क्योंकि वे एकाकी परिवार में रहते हैं, जहां दादादादी या नानानानी नहीं होते या बीचबीच में वे आतेजाते रहते हैं। ऐसे में उन के साथ गहरा रिश्ता नहीं बन पाता है.

वे उन की आदतों या बातों से भी परिचित नहीं होते. उन के साथ वे किसी भी रूप में सहज नहीं हो पाते. उन के लिए दादा या चाचा एक आम व्यक्ति से अधिक कुछ भी नहीं होता है. इस के अलावा कई बार बड़ों का व्यवहार बच्चों को पसंद नहीं होता.

बच्चों को सिखाएं कि…

8 साल की रिया अपने दादाजी को इसलिए नहीं पहचान पाई क्योंकि उस ने होश संभालने के बाद उन्हें नहीं देखा था. दादा के उस के घर आने पर जब उन के पिता ने दादाजी के पैर छुने के लिए कहा तो वह घबरा कर दूसरे कमरे में भाग गई और दरवाजे के पीछे से उन्हें देखती रही.

मनोचिकित्सक डा. पारुल टांक कहती हैं कि बच्चों को छोटी अवस्था से ही अपने से बड़ों का आदर, सम्मान, अनुशासन, शिष्टाचार आदि सिखाने की आवश्यकता होती है. उन्हें धीरेधीरे परिवार में सब का महत्त्व समझ में आता है. इसे धैर्य के साथ करना पड़ता है.

भागदौड़ भरी जिंदगी में बच्चों के मातापिता खुद ही अपने परिवार और रिश्तेदारों से दूर होते जा रहे हैं. ऐसे बच्चों को दोष देना उचित नहीं.

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अगर बच्चे नहीं मानते या परिवार से संबंध बनाने से अनाकानी करते हैं तो उन्हें छोड़ देना चाहिए, अधिक जोर देना उचित नहीं. उन्हें समझाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है.

यह गलती न करें

कई बार मातापिता उन की बातें न सुनने पर हाथ उठा देते हैं, जो ठीक नहीं. बच्चों की मानसिक दशा को
समझने की जरूरत है.

डा. पारुल का कहना है कि आदर्श स्थिति हर परिवार में नहीं होती. अच्छी पढाई कर बच्चा आगे बढ़ जाए यह जरूरी नहीं. आज के दौर में प्रतियोगिता बहुत है, उन्हें इस से हर साल गुजरना पड़ता है. इस के अलावा कई पेरैंट्स बच्चों के माध्यम से अपनी इच्छाओं को पूरी करना चाहते हैं, मसलन नाचगाना, खेलकूद, स्विमिंग, ट्यूशन आदि कई चीजों में उन्हें व्यस्त कर देते हैं। उन के पास खुद के लिए कोई समय नहीं बचता और बच्चा चिङचिङा हो जाता है. उन की व्यस्तता की वजह से भी वे अपने रिश्तेदारों के करीब नहीं हो पाते, अचानक मातापिता का उन्हें मैंटर करना पसंद नहीं होता.

बड़ों का व्यवहार हो सही

अब पहले जैसे पारिवारिक माहौल नहीं रहा, जहां सहीगलत का फैसला बड़े करते हों और उसे बिना किसी हिचकिचाहट के सभी मान लेते हों. अब हर बच्चे की व्यक्तिगत रुचि और देखने का नजरिया अलग होता है, जिस का मान मातापिता को देने की आवश्यकता है.

मुंबई के हीरानंदानी अस्पताल के मनोचिकित्सक डा. हरीश शेट्टी कहते हैं कि आजकल के बच्चे ब्लाइंड फैथ किसी पर नहीं करते.

परम पूजनीय उन के लिए कोई नहीं होता. वे बिना किसी लौजिक के अंधश्रद्धा किसी को नहीं कर पाते, जो पहले हुआ करता था. उन्हें लगता है कि अगर किसी का व्यवहार उन के प्रति अच्छा है तो वे सम्मान देंगे. दादा, चाचा, नाना जो भी हो, उन के स्वभाव बच्चे को अच्छा लगना चाहिए.

मातापिता अगर बच्चे को बड़ों से अच्छे संबंध बनाने पर जोर देते हैं, तो ठीक नहीं, क्योंकि बच्चे व्यवहार को सम्मान देते हैं, व्यक्ति को नहीं.

अगर उन का व्यवहार अच्छा नहीं है, तो वे उठ कर भाग जाते हैं. बच्चों को किसी काम के लिए पेरैंट्स का जोर देना गलत है। बड़ों को चाहिए कि वे बच्चों को कमांड न करें, न ही कुछ डिमांड करें. बच्चों को प्रवचन भी न दें, जो उन्हें पसंद नहीं होता. उन का
बरताव ही बच्चे को करीब लाता है. बच्चे को जो सही लगता है, उसे ही वे अपनी इच्छा से करते हैं.

बच्चों को हमउम्र के साथ अधिक मिलने की जरूरत होती है। चाचा, मामा के बहुत अधिक करीब रहेंगे
तो वे वैसी ही बातें करना शुरू कर देते हैं.

पेरैंट्स को लगता है कि उन का बच्चा मैच्योर हो गया है, जो बाद में समस्या होती है. बच्चों को उन के उम्र के बच्चों के साथ मिलने से वे अच्छी तरह उम्र के हिसाब से ग्रो करते हैं.

खुद को मैंटर न समझें

कई पुराने लोग खुद को मैंटर समझते हैं. बच्चों को यह बिलकुल भी पसंद नहीं होता. इस के अलावा कभीकभी उन्हें ‘यह करो, वह न करो’ की भाषण भी देते हैं, जो उन्हें अच्छा नहीं लगता.

उन्हें वे लोग पसंद हैं, जो उन को भी आदर दें, उन से अच्छी तरह बात करें.

कुछ लोग अकसर बच्चों को कहते रहते हैं कि वे छोटे हैं, उन की समझदारी अभी नहीं हुई है और अपनी कहानी सुनाते रहते हैं, जिस में सुखदुख, जीतहार सब शामिल होते हैं। ऐसी बातें उन्हें दुखी करता है.

डा. हरीश कहते हैं कि बच्चे में कुछ आदतें अवश्य विकसित करनी चाहिए, ताकि वह एक अच्छा व्यक्ति बन सके.

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सुझाव निम्न है :

• भावना को व्यक्त करने की हिम्मत का विकास करना.
• शारीरिक ताकत के साथ मानसिक ताकत को बढ़ाना.
• करुणा के भाव को विकसित करना.
• बैड न्यूज को शेयर करने से न डरना.
• कुछ भी गलत हुआ तो मदद मांगने की हिम्मत का होना आदि.

बेटी की वजह से जीवन में खुशियां आयी हैं- अंगद बेदी

मशहूर पूर्व क्रिकेटर व गेंदबाज बिशन सिंह बेदी के बेटे अंगद बेदी बौलीवुड के चर्चित अभिनेता हैं. उन्होने अभिनेत्री नेहा धूपिया संग विवाह रचाया था और उनकी लगभग दो वर्ष की उम्र की बेटी मैहर है. जहां तक कैरियर का सवाल है, तो अंगद बेदी को फिल्म ‘पिंक’से बतौर अभिनेता पहचान व शोहरत मिली. उसके बाद वह ‘डिअर जिंदगी’, ‘टाइगर जिंदा है’, ‘सूरमा’, ‘द जोया फैक्टरी’और ‘गुंजन सक्सेनाः द कारगिल गर्ल’जैसी फिल्मों के अलावा ‘इनसाइड एज’ व ‘द वर्डिक्ट’ जैसी वेब सीरीज में धमाल मचा चुके हैं. 12 नवंबर से ‘आल्ट बालाजी’ और ‘जी 5’ पर एक साथ प्रसारित हो रही वेब सीरीज ‘मुम भई’ को लेकर चर्चा मैं हैं, जिसमें उन्होने इनकाउंटर स्पेशलिस्ट का किरदार निभाया है.

प्रस्तुत है अंगद बेदी के साथ फोन पर हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश. .

कलाकार के तौर पर लॉक डाउन का आपके उपर कितना असर हुआ?

-इसका असर सिर्फ हम कलाकारांे पर ही नहीं, हर इंसान पर हुआ. कितने लोगों को अपनी जिंदगी से हाथ धोना पड़ा. कितने लोग भूखे मरे,  कितने लोगों ने अपनी नौकरी गवाई. कितने लोगों को तनख्वाह नहीं मिली. हमारे देश की अर्थव्यवस्था नगेटिव हो गई और ऐसा तो हर देश में विदेश में सभी जगह हुआ है. मुझे लगता है कि कोरोना व लॉक डाउन में लोगों ने अपनी जिंदगी का सबसे बुरा अनुभव हासिल किया. अब हमें एक दूसरे की मदद करनी पड़ेगी. एक दूसरे के प्रति थोड़ा सा कंसर्ड दिखाना पड़ेगा. एक दूसरे को सहानुभूति देनी पड़ेगी. हमारे माता पिता ने हमें बचपन में जो शिक्षा दी थी कि एक दूसरे की मदद करो, वह सारी चीजें अब हमें याद आ गयीं. क्योंकि आज के समय में इंसान बहुत ज्यादा सेल्फिश हो गया है. सिर्फ अपने बारे में सोचता है. यह हमारे कर्म का फल ही है. जो हमने कर्म हमने किए हैं, उसी का फल अब हमें मिल रहा है.

कोरोना के समय के अनुभवों के बाद आपने क्या बदलाव करने के बारे में सोचा है?

-बदलाव क्या है?मैं स्पोर्ट्स और अनुशासित पृष्ठभूमि से आया हूं. उसी दायरे में रहता हूं, जिस ने मुझे सिखाया बहुत कुछ सिखाया है कि किस तरह से शांत रहना चाहिए. इंसान की कद्र करना सिखाया है. अपने परिवार की कद्र करना सिखाया है.  अपने बुजुर्गों की कद्र करना सिखाया है. अपने घर वालों, माता-पिता, अपने दोस्तों की कद्र करना सीखा है. जो सारी चीजें हमें सिखाई गयी थीं, वह आज वापस सब चीजें कर रहे हैं. मुझे ऐसा लगता है कि सीखने में तो यही होता है कि बहुत बड़ी जिंदगी मिली है. अगर आपको इतनी ज्यादा लोकप्रियता, इतनी ज्यादा पैसे मिले हैं, लोग आपकी वाह वाह करेंगे. पर कोरोना में कहां कहां है पैसा?अमीर इंसान भी रुका हुआ है और गरीब से गरीब इंसान भी रुका हुआ है. आज सभी एक समान स्तर पर आ गए हैं.

अब तक आपने जो मुकाम बनाया है, उससे कितना खुश हैं?

-वास्तव में मैने पांच वर्ष कठिनसंघर्ष किया. फिर‘पिंक’से अपना करियर बनाने में कामयाबी हासिल की. मुझे एहसास हुआ कि अंततः यदि आप दीर्घायु चाहते हैं,  तो आपको एक अच्छा अभिनेता बनना होगा. व्यावसायिक सफलता या स्टारडम का पीछा करना एक गलत खेल होगा. मेरा उद्देश्य हमेशा अपने आप को एक अभिनेता के रूप में स्थापित करना था. इस मकसद में कामयाब होने के मकसद से मैंने अपने कौशल को सुधारने के लिए कड़ी मेहनत की. मेरे लिए संघर्ष बहुत मायने रखता है.

क्या कोरोना महामारी के बीच शूटिंग की. यह कितना तनावपूर्ण था, क्योंकि आपके घर में एक छोटी बेटी भी थी?

-जी हां! यह बहुत कठिन था. हमेशा एक डर होता है कि आप घर में पत्नी और बच्चे हैं. लेकिन हम कलाकार हैं, हमें बाहर जाकर काम तो करना ही पड़ता है. मैं ही क्यों प्रति दिन की आय आप पर निर्भर हर इंसान जोखिम उठाकर काम कर रहा है. पर मैं बहुत सतर्क था और अपनी बेटी से दूर रहा जब तक मैं शूटिंग कर रहा था.

वेब सीरीज‘‘मुम भाई’’के बारे में ऐसा क्या था कि आपने इसे करने के लिए हामी भर दी?

-यह एकता कपूर का प्रोडक्शन है, उनके साथ ‘द वर्डिक्ट’के बाद मेरी दूसरी वेब सीरीज है. वह अच्छे कार्यक्रम बनाती हैं. इसके अलावा यह दलित व्यक्ति भास्कर शेट्टी की कहानी है. अपूर्व लाखिया और लेखकों की उनकी टीम ने पटकथा पर अच्छा काम किया है, जो इस आदमी के उत्थान को चित्रित करती है. इसके अलावा मेरे सामने इस वेब सीरीज को अपने कंधे पर ले जाने की सबसे बड़ी चुनौती थी. यह भास्कर शेट्टी की यात्रा का चित्रण करती है, जो शहर के भाई बन जाते हैं. डॉंन नही बल्कि पुलिस विभाग का इनकाउंटर स्पेशलिस्ट होते हुए भी लोग उसे ‘भाई’कह कर बुलाते हैं.

किरदार को लेकर क्या कहेंगें?

-जिन लोगों ने अब तक इस वेब सीरीज को देख लिया होगा, उनकी समझ में आ गया होगा कि यह वास्तव में एक आम व साधारण लड़का है, जिसके पास खुद के लिए बड़ी आकांक्षाएं हैं. भास्कर पुलिस अधिकारी बनने का शौक रखते है और मेहनत से एनकाउंटर स्पेशलिस्ट बन जाता है. खुद की खोज करते हुए वह सिनेमा से भी मोहित हो जाते हैं. वह दावा करते हैं कि एक दिन उस पर एक फिल्म बनाई जाएगी. वह अति महत्वाकांक्षी है.

वह असली नायक है, जो देश हित में सराहनीय काम कर रहे हैं. उनमें से अधिकांश को कई बाधाओं और बाधाओं को दूर करना होता है. मेरा उन लोगों के लिए यह एक अलग तरह का सम्मान है, जिन्होंने अपना जीवन लाइन पर लगा दिया. इसलिए मैं उन किरदारों को चुनने की कोशिश करता हूं जिनमें मैं उस आनंद को महसूस कर सकता हूं. यही बात ‘मुम भाई’ में भी हुई,  जहाँ भास्कर को इतनी परेशानियों का सामना करना पड़ा कि आखिरकार वह अधिकारी बन ही गया जिसकी वह हमेशा से ख्वाहिश रखता था.

सिकंदर खेर के साथ आपकी केमिस्ट्री की भी काफी चर्चा है?

-सिकंदर खेर के साथ काम करना बहुत सुखद अनुभव रहा. वह वास्तव में अपनी यात्रा को महत्व देते हैं और कड़ी मेहनत करते हैं.  इसके अलावा वह बहुत प्रतिभाशाली व अच्छे कलाकार हैं. हम एक दूसरे के संघर्ष को बेहतर समझते हैं. हमने इसी तरह के उतार, चढ़ाव और वापसी भी देखी है.

आप स्पोर्ट्स पर्सन रहे हैं. आपने क्रिकेट काफी खेला है और अब आप कलाकार बन गए हैं?

– जी नहीं!मैं क्रिकेटर से अभिनेता नहीं बना हूं. मैं अभिनेता ही था और अभिनेता  ही हूं. लेकिन मैं एक स्पोर्ट्स के घराने से हूं. लेकिन मैंने बहुत ही कम यानीकि 16 वर्ष की उम्र तक क्रिकेट खेला हूं. यह महज अपनी खुशी के लिए खेलता था.

पढ़ने का शौक है या नहीं?

-पढ़ता हूं.

किस तरह की चीजें पढ़ना पसंद है?

-मैं खेल जगत से जुड़ी किताबे पढ़ता हूं. लोगों की औटोबायोग्राफी पढ़ता हूं. मैंने काफी चीजें पढ़ी हैं. बचपन से ही पढ़ने का शौक रहा है. मेरे पिताजी की अपनी खुद की लाइब्रेरी थी, जिसमें मैं स्पोर्ट्स पर आधारित किताबे व अन्य साहित्य  पढ़ता था. लोगों की कहानियां पढ़ता था कि वह किस तरह से आगे बढ़े.  मुझे लोगों की उन्नति की राह जानने में बड़ी उत्सुकता थी. मैंने सुनील गावस्कर की किताब पढ़ी. अमिताभ बच्चन जी की किताब पढ़ी, जो कि उन्होने स्वयं मुझे अपनी भेंट की थी.  प्रिंसेस डायना की जीवनी पढ़ी. टीवी पर भी काफी डॉक्यूमेंट्री देखता हूं.  मैंने अभी माइकल जॉर्डन की देखी थी, जो मुझे बहुत पसंद आई.

आपके दिमाग में कोई ऐसा खिलाड़ी है, जिसका किरदार आप पर्दे पर निभाना चाहते हैं?

-पर्दे पर निभाना तो काफी आसान है. मुझे लगता है कि सौरव गांगुलीकी जिंदगी काफी रोचक है, मुझे नहीं पता मुझे उन पर आधारित फिल्म में अभिनय करने का मौका मिलेगा या नहीं?लेकिन मैं उनकी बायोपिक को परदे पर देखना चाहूंगा. युवराज सिंह,  विश्वनाथ आनंद की जिंदगी को भी परदे पर देखना चाहूंूगा. उन्होंने बहुत ही ज्यादा नाम कमाया है. यह वह नाम हैं, जिन्हें पर्दे पर देख कर मजा आ सकता है.

आपके पिताजी की ऐसी कौन सी सलाह थी, जिसने आपको बहुत ज्यादा बदला?

-सच कहूं, तो उन्होंने मुझे एक बात बहुत अच्छी सिखाई कि अपने काम में सच्चाई लाओ, इमानदारी लाओ और वह आपके काम में दिखनी चाहिए.  अगर आप अपने काम में अच्छे व सच्चे रहोगे, तो सब कुछ सही होगा. और आप आगे बढ़ोगे. तो मैं पूरी कोशिश करता हूं कि मैं जिस क्षेत्र में में भी काम करूं, मैं अपने हर संवाद को पूरी सच्चाई पूरी इमानदारी से बोलता हूं.

कभी कुछ लिखने की इच्छा नहीं होती?

-अभी तक तो ऐसा नहीं हुआ है,  जिस दिन इच्छा होगी, उस दिन कुछ लिख भी लेंगे. आयुष्मान खुराना बहुत अच्छा लिखते हैं. वह कविताएं भी बहुत अच्छी लिखते हैं.

आपकी उनसे कभी बात हुई?

-मैं उन्हें बहुत अच्छे से जानता हूं. वह मेरे काफी करीबी दोस्त हैं. हमारे काफी अच्छे पारिवारिक संबंध हैं.

सोशल मीडिया पर क्या लिखना पसंद करते हैं?

-देखिए, जो मेरे लिए रोचक होता है,  वह मैं हमेशा से लिखता आया हूं.  मुझे विश्व की खबरें, क्रिकेट से जुड़ी खबरें फॉलो करना पसंद है. मैं बॉलीवुड को भी फॉलो करता हूं. ट्वीटर पर भी मैं काफी लोगों को फॉलो करता हूं.  उनके विचारों को पसंद करता हूं.  लोग इंस्टाग्राम पर क्या डालते हैं,  वह भी मुझे देखना पसंद है. वह किस तरह से अपने जीवन की बातें कैसे इंस्टाग्राम पर व्यक्त करते हैं, वह मुझे पसंद है.

आपकी रूचि राजनीति में भी है. इस समय देश की जो सामाजिक और राजनीतिक स्थिति है, उसको लेकर आप क्या सोचते हैं? किस तरह के सुधार की जरूरत है?

-मैं कोई राजनेता नही हूं. लेकिन मैं जिस तरह से देखता हूं, तो यही सोचता हूं कि जब मेरी बच्ची बड़ी होगी?तो क्या मैं यही चाहूंगा कि वह इस तरह के माहौल में बड़ी है? यह बात हमारे हमेशा मेरे दिमाग में एक प्रश्न चिन्ह की तरह घूमता रहता है कि कहां से हम किस चीज को अपनी सुविधा के लिए उपयोग करते हैं?फिर चाहे वह मीडिया हो या कोई पॉलीटिकल पार्टी हो. जो कुछ कर रहे हैं, वह बिल्कुल भी सही नहीं है. हमें एक दूसरे के प्रति लगाव की भावना लानी चाहिए. हम लोग जितना मैनीप्युलेशन करते हैं, वह नहीं होना चाहिए. लोग मैनीप्युलेशन के बिना भी अच्छा काम कर सकते हैं.

आपकी बेटी अभी बहुत छोटी है. आप उसे कितना समय देते हैं और उसमें आपको क्या खास बात नजर आती है?

-मैं उसे पूरा समय देता हूं. मैं और मेरी पत्नी नेहा धूपिया में से कोई ना कोई हमेशा उसके साथ रहता है.  उसकी वजह से ही हमारी जिंदगी में खुशियां हैं, उसकी वजह से ही हमारी जिंदगी में भगवान की कृपा हुई है. चाहे फिर वह निजी जिंदगी हो या काम हर जगह खुशियां आई हैं. प्रोफेशनली मेरी जिंदगी में तरक्की हुई है और यह सब कुछ मेरी बच्ची का आशीर्वाद है.

WINTER SPECIAL: झटपट बनाएं पनीर इडली

झटपट बन जाने वाला हल्का-फुल्का और हैल्थी स्नैक्स पनीर इडली, बच्चों के टिफिन के लिए बहुत ही बेहतरीन विकल्प है.

सामग्री

दही- 1 कप (फेंटा हुआ)

सूजी- ½ कप (100 ग्राम)

बेसन- ½ कप (50 ग्राम)

पनीर- 125 ग्राम

गाजर- ½ कप (बारीक कटी हुई)

शिमला मिर्च- ½ कप (बारीक कटी हुई)

हरा धनिया- 2 टेबल स्पून (बारीक कटा हुआ)

हरी मिर्च- 2 (बारीक कटी हुई)

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नमक- ¾ छोटी चम्मच या स्वादानुसार

तेल- 2 टेबल स्पून

काली सरसों के दाने- ¼ छोटी चम्मच

करी पत्ते- 10 से 12

ईनो फ्रूट सॉल्ट- 1 छोटी चम्मच

विधि

एक बर्तन में सूजी, बेसन और दही डाल दीजिए और इन्हें अच्छे से मिक्स कर लीजिए ताकि बैटर में किसी भी प्रकार की गुठलियां ना रहे. बैटर में पहले बहुत थोड़ा पानी डालकर मिक्स कर लीजिए. फिर, घोल में गाजर, शिमला मिर्च, हरा धनिया, हरी मिर्च और नमक डाल दीजिए.

सारी चीजों को अच्छे से मिलने तक मिक्स कर लीजिए. बैटर को 15 मिनिट के लिए रख दीजिए. इससे सूजी और बेसन फूलकर तैयार हो जाएंगे. इसी बीच पनीर कद्दूकस कर लीजिए.

बैटर के फूलने पर इसमें कद्दूकस किया हुआ पनीर डालकर मिक्स कर दीजिए. बैटर गाढ़ा दिख रहा हो, तो थोड़ा सा पानी मिला लीजिए.

इडली के सारे सांचों में थोड़ा सा तेल लगा लीजिए. साथ ही इडली बनाने के लिए कुकर में 1.5 से 2 कप पानी डालकर गरम होने रख दीजिए. बैटर में सबसे बाद में ईनो फ्रूट सॉल्ट डालिए और इसके ऊपर 1 छोटी चम्मच पानी डाल दीजिए. इसे सिर्फ ईनो के मिलने तक मिक्स कर लीजिए. बैटर को बहुत तेज और बहुत ज्यादा देर तक मत फेंटिए. इस बैटर को बनाने में ½ कप से कम पानी का उपयोग किया है.

सांचों में थोड़ा-थोड़ा बैटर डाल दीजिए और सांचों को स्टैंड में लगाकर स्क्रू फिट करके कुकर में उबल रहे पानी में रख दीजिए. कुकर को बंद कर दीजिए लेकिन इसके ढक्कन पर सीटी मत लगाइए. इडली को मध्यम आग पर 10 से 12 मिनिट पकने दीजिए.

12 मिनिट बाद, गैस बंद करके कुकर का ढक्कन खोलिए और इडली चेक कर लीजिए. इडली काफी फूली दिखाई देगी. इसे अंदर से चैक करने के लिए इडली के बीच में चाकू डालकर वापस निकालकर देखिए. इसमें बैटर लगकर नही आ रहा है, तो इडली पककर तैयार है. कुकर से इडली स्टेन्ड बाहर निकाल लीजिए और स्क्रू खोलकर सांचों को अलग-अलग कर लीजिए ताकि इडली जल्दी से ठंडी हो जाए.

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इडली के थोड़ा सा ठंडा होने के बाद, इन्हें चाकू की मदद से सांचों से निकालकर प्लेट में रख दीजिए. बहुत ही जायकेदार पनीर इडली तैयार है.

इसे नारियल की चटनी, मूंगफली के दानों की चटनी, टमैटो केचअप या किसी भी पसंदीदा चटनी के साथ सर्व कीजिए.

कंसीव करने के बेहतर अवसरों के लिए क्या खाना चाहिए?

सवाल-

मेरी बेटी 33 साल की है और वह गर्भधारण करने की कोशिश कर रही है, लेकिन उसे कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. गर्भधारण करने के बेहतर अवसरों के लिए उसे क्या करना चाहिए या क्या खाना चाहिए?

जवाब-

कुछ खाने की चीजों का सेवन करना और दूसरों से बचना कुछ ऐसा है जो आप की बेटी अपने ओवुलेटरी फंक्शन को बेहतर बनाने में मदद करने के लिए कर सकती हैं. अधिक ट्रांस फैट, कार्ब्स और ऐनिमल प्रोटीन का सेवन करने वाली महिलाओं में आवुलेटरी डिसआर्डर होने की संभावना ज्यादा होती है.

खाने की प्लेट में पर्याप्त मात्रा में फल और सब्जियां होनी चाहिए और इस के बाद शरीर को काफी सारा ग्लूटैथियोन दें, जो अंडे की गुणवत्ता के लिए महत्त्वपूर्ण है. हर तरह के ट्रांस फैट से बचें. अधिक जटिल कार्ब्स खाएं. बेहद संसाधित कार्ब्स से बचें. रैड मीट से कम मछली या प्लांट प्रोटीन से ज्यादा प्रोटीन लें. बींस, दाल, बेरी, ऐवाकाडो, ग्रीक योगर्ट, अंडे की जर्दी, सामन, अखरोट, पत्तेदार सब्जियां, दूध व अन्य फुल फैट वाली डेयरी फूड आइटम्स खाएं जैसे दही और पनीर. रोज एक मल्टीविटामिन लें, जिस में कम से कम 400 माइक्रोग्राम फौलिक ऐसिड और 40 से 80 मिलीग्राम आयरन हो.

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मां बनने का एहसास हर महिला के लिए सुखद होता है. लेकिन यदि किसी कारण से एक महिला मां के सुख से वंचित रह जाए तो उसके लिए उसे ही जिम्मेदार ठहराया जाता है. हालांकि, कंसीव न कर पाने के कई कारण होते हैं लेकिन यह एक महिला के जीवन को बेहद मुश्किल और दुखद बना देता है. दरअसल, हमारे देश में आज भी बांझपन को एक सामाजिक कलंक के रूप में देखा जाता है. इसका प्रकोप सबसे ज्यादा महिलाओं को झेलना पड़ता है. जब भी कोई महिला बच्चे को जन्म नहीं दे पाती है तो समाज उसे हीन भावना से देखने लगता है. इस कारण से एक महिला को लोगों की खरी-खोटी सुननी पड़ती है जिसका उसके मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है. ऐसी महिलाएं उम्मीद करती हैं कि लोग उनकी स्थित और भावनाओं को समझेंगे. परिवार और दोस्तों से बात करके उन्हें कुछ हद तक अच्छा महसूस होता है इसलिए ऐसे समय में बाहरी लोगों से मिलने-जुलने से बचें क्योंकि गर्भवती महिला या बच्चों को देखकर आप डिप्रेशन का शिकार हो सकती हैं.

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मेरी संघर्ष और जर्नी को मुझसे बेहतर कोई नहीं जान सकता – ऋतु फोगाट

 ऋतु फोगाट(मिक्स मार्शल आर्टिस्ट)

अगर आपमें आत्मविश्वास, मेहनत, लगन, हिम्मत आदि हो, तो आपको मंजिल तक पहुँचने से कोई  रोक नहीं सकता, ऐसी ही सोच रखती है, ऋतु मिक्स मार्शल आर्टिस्ट ऋतु फोगाट, जिसे लोग इंडियन टाईग्रेस के नाम से भी जानते है. उसने साल 2020 में अक्तूबर 30 को सिंगापुर में आयोजित ‘वन चैम्पियनशिप में जीत हासिल की है और एशिया की पहली महिला मिक्स मार्शल आर्टिस्ट बन चुकी है.

पूर्व पहलवान महावीर सिंह फोगाट की तीसरी पुत्री ऋतु ने 8 वर्ष की उम्र से अपने पिता से कुश्ती की ट्रेनिंग लेना शुरू कर दिया था, उसने कुश्ती की कैरियर पर ध्यान देने के लिए के लिए दसवीं के बाद पढाई छोड़ दिया. कुश्ती में सफलता हासिल करने के बाद वह मार्शल आर्ट की तरफ मुड़ी और कई चैम्पियनशिप जीती.

26 साल की ऋतु अपनी इस जीत से बहुत खुश है,क्योंकि ये जीत उसके मार्शल आर्ट कैरियर का सबसे महत्वपूर्ण जीत है. आइये क्या कहती है वह अपनी जर्नी के बारें में, जाने उन्ही से.

सवाल- इस जीत से आप क्या महसूस कर रही है?

इस पेंडेमिक में मैंने जितना मेहनत किया हैं, उसका फल मुझे मिला. मैं भारत की ओर से मार्शल आर्ट को उचाईयों तक ले जाना चाहती हूं. कोरोना में जब सब कुछ बंद था, मैं प्रैक्टिस करती रही, क्योंकि मेरे कोच मुझे विडियो की सहायता से ट्रेनिंग देते थे. मैं परिवार, दोस्तों और सभी देशवासियों की आभारी हूं, जिन्होंने मुझे यहाँ तक पहुँचने में मेरी मनोबल को ऊँचा किया. मेरी कोच भी धन्यवाद के पात्र है, जिन्होंने मुझे इस मुश्किल समय में भी मुझे हर दिन ट्रेनिंग दी. अभी मैं ग्रैंड प्रिक्स की तैयारी कर रही हूं, जिससे मैं वर्ल्ड चैम्पियनशिप को जीत सकूँ.

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सवाल- फाइट करते समय आप अपने मनोबल को ऊँचा कैसे रखती है?

इसके लिए अधिक मात्रा में अभ्यास, आत्मविश्वास और दर्शकों की आवाज मनोबल को बढाती है, इसके अलावा एथलीट को मानसिक रूप से मजबूत होने की जरुरत होती है, जिसके लिए मैं मैडिटेशन करती हूं. जब मैं फाइट के लिए जाती हूं, तो वहां सिर्फ प्रतिद्वंदी ही मुझे सामने दिखते है और जीत के लिए खुद की सौ प्रतिशत शक्ति वहां लगा देते है.

सवाल- खुद को मजबूत रखने के लिए आपकी डाइट क्या होती है?

जब मैं अपने घर में रहती हूं तो घर का सारा चीज देसी मिल जाता है, इससे प्रोटीन और विटामिन की कमी नहीं होती, लेकिन बाहर जाने से प्रोटीन की कमी हो जाती है, विटामिन की गोली लेती हूं. कोच के हिसाब से डाइट लेनी पड़ती है.

सवाल- आपका नाम इंडियन टाईग्रेस कैसे पड़ा?

जब मैं कुश्ती करती थी तो सभी मुझे कहते थे कि मैं शेरनी की तरह अपने प्रतिद्वंदी पर झपटती हूं और उसे हिलने नहीं देती. इससे प्रेरित होकर मैंने अपना नाम इंडियन टाईग्रेस रखा है.

सवाल- कुश्ती से मिक्स मार्शल आर्ट में आने पर आपको किस तरह का लाभ मिला?

बहुत अधिक लाभ मिला है, इससे जमीन पर प्रतिद्वंदी को होल्ड करना आसान हुआ है. शुरू-शुरू में थोड़ी मुश्किलें मिक्स मार्शल आर्ट आई थी, पर अब सही हो चुका है.

सवाल- ग्रैंड प्रिक्स टाइटल से आप कितनी दूर है?

अभी तो मुझे वन चैंपियनशिप का ये ख़िताब मिला है. आगे मैं और अधिक तैयारियां कर रही हूं, क्योंकि ग्रैंड प्रिक्स में केवल एक लड़की इण्डिया से चुनी जायेगी और मैं वह लड़की होना चाहती हूं और देश के लिए वर्ल्ड चैंपियनशिप की बेल्ट लेकर आउंगी. मैं हमेशा प्रतिद्वंदी की कमजोरी और मजबूत पॉइंट को समझने की कोशिश कर उसी हिसाब से खुद को तैयार करती हूं. इसके अलावा मैं प्रसिद्ध मिक्स मार्शल आर्टिस्ट खबीब नुरमागोमेदोव की वीडियो बहुत देखती हूं और वैसी स्टाइल अपनाने की कोशिश करती रहती हूं.

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सवाल- हमारे देश में मिक्स मार्शल आर्ट में बहुत कम लड़कियां है, वजह क्या है?आप इसे और अधिक पोपुलर करने के लिए क्या करना चाहती है?

पहले इस खेल के बारें में लोगों को बहुत कम जानकारी थी, वे समझते थे कि ये मारपीट का खेल है, लेकिन अब मीडिया की कवरेज की वजह से लोग इसमें रूचि लेने लगे है. इंडिया में अब प्रतिभा की कमी नहीं है, पर उसको निखारने और प्लेटफॉर्म देने की जरुरत है. इसलिए मैं वर्ल्ड चैम्पियनशिप जीत कर सबका ध्यान इस ओर लाना चाहती हूं, ताकि मिक्स मार्शल आर्ट को भी दूसरे स्पोर्ट्स के जैसे जगह मिले. इसके अलावा मैं सभी लड़कियों से ये कहना चाहती हूं कि खेल चाहे कोई भी हो, अनुशासन और मेहनत के साथ अपनी टारगेट को पाने की कोशिश करनी चाहिए.

सवाल- फाइट के समय मानसिक स्थिति कैसी होने की जरुरत है?

एक एथलीट को सबसे अधिक जरुरत मानसिक रूप से मजबूत रहने की होती है. मेहनत करने के बाद भी अगर आपकी मानसिक स्थिति मजबूत नहीं है तो जीत हासिल करने में मुश्किल होती है. इसके लिए मैं मैडिटेशन करती हूं, लेकिन मैं मानसिक रूप से बहुत स्ट्रोंग हूं.

सवाल- आपके यहाँ तक पहुँचने में पिता का सहयोग कितना रहा? पूरे परिवार ने कैसे सहयोग दिया?

मेरे पिता ने बहुत सहयोग दिया है. शुरू में जब मैं कुश्ती से मिक्स मार्शल आर्ट की तरफ मुड़ी, तो पहले बहनों से बात की, उन्होंने पिता से कहा. पिता ने एक बार भी मना नहीं किया, पर उन्होंने कहा कि अगर मेरी रूचि मिक्स मार्शल आर्ट में जाने की है, तो मैं जा सकती हूं, लेकिन इस बात का ध्यान रखूं कि देश का झंडा हमेशा ऊँचा रहे. मैं वही कर रही हूं.

मेरे यहाँ तक पहुँचने में मेरे पूरे परिवार ने बहुत सहयोग दिया है. उनके बिना यहाँ तक पहुंचना संभव नहीं था. जब भी मैंने परिवार को मिस किया, बड़ी बहन की बेटी के साथ बात किया.

सवाल-परिवार से दूर रहकर जीत हासिल करना कितना मुश्किल होता है?

दूसरे देश में जाकर जीत हासिल करना बहुत मुश्किल होता है. कई बार ट्रेनिंग के बाद इतनी थकान हो जाती है कि खुद खाना बनाना संभव नहीं होता, ऐसे में बाहर से खाना लाकर खाना पड़ता है. परिवार के साथ होने पर खाने-पीने की चिंता नहीं रहती और ट्रेनिंग अच्छी तरह से हो जाती है.

सवाल- खाली समय में क्या करना पसंद करती है?

रविवार को मेरी ट्रेनिंग नहीं होती. तब मैं घर की साफ-सफाई करती हूं. कुछ अलग डिश जो मैं ट्रेनिंग के दौरान नहीं खा सकती, उसे बनाती हूं, जिसमें हलवा और खीर खास है.

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सवाल- अगर आपकी बायोपिक बनती है, तो उसमें बॉलीवुड की किस अभिनेत्री को देखना पसंद करेंगी?

मैं कामयाबी के लिए बहुत मेहनत कर रही हूं, मेरी जर्नी और संघर्ष को मुझसे अधिक बेहतर कोई नहीं जान सकता. इसलिए मैं ही उस बायोपिक को बनाने की इच्छा रखती हूं.

सवाल- महिलाओं को क्या मेसेज देना चाहती है?

आप जो भी सोचे वह कर सकती है. खुद पर विश्वास रखें और आगे बढ़ते जाय. इसके अलावा परिवार की भी पूरी जिम्मेदारी होती है कि वे अपने लड़कियों को उनके मनचाहा दिशा में आगे बढ़ने के लिए उन्हें मौका दें.

सर्दियों में सताता है जोड़ों का दर्द ऐसे पाएं राहत

डॉक्टर अमोद मनोचा, मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल, साकेत

उत्तर भारत में ठंड की दस्तक हो चुकी है. ठंड का मौसम वैसे तो अधिकतर लोगों के चेहरे पर मुस्कान ले आता है लेकिन दूसरी ओर कइयों की परेशानी का कारण भी बनता है. क्या ठंड का नाम सुन कर आप को भी जकड़े हुए जोड़ याद आते हैं? क्या ठंड आप को बीमारियों की याद दिलाता है?

ऐसा नहीं है कि ये समस्या केवल एक निर्धारित उम्र के लोगों को ही परेशान करती है. वास्तव में गतिहीन जीवनशैली के कारण ये समस्या अब हर उम्र के लोगों में देखने को मिल रही है. जोड़ों का दर्द ही नहीं बल्कि मांसपेशियों में दर्द, पीठ दर्द, सिरदर्द, गर्दन दर्द, तंत्रिका दर्द, फाइब्रोमायल्जिया आदि समस्याएं इस मौसम में बहुत ज्यादा परेशान करती हैं.

सर्दी के मौसम में दर्द से बचाव के लिए खास टिप्स

दर्द से बचाव के लिए जीवनशैली का खासतौर से ध्यान रखना चाहिए. निम्नलिखित टिप्स की मदद से दर्द की समस्या से बचा जा सकता है:

नियमित व्यायाम

सर्दियों में छोटे दिन और अधिक ठंड के कारण लोगों में आलस एक आम समस्या बन जाती है. गतिविधियों में कमी के कारण जोड़ों में जकड़न और दर्द के साथ वजन भी बढ़ता है. शारीरिक गतिविधियों में कमी कुछ ही समय में मांसपेशियों और शरीर को कमजोर बना देता है. जब कि एक्सरसाइज से न सिर्फ मेटाबॉलिज्म रेट बढ़ता है बल्कि शरीर में जरूरी रसायन भी रिलीज होने लगते हैं. इस से रक्त प्रवाह बेहतर होता है और जोड़ों में लचीलापन बढ़ता है, जिस की मदद से व्यक्ति हर वक्त स्वस्थ महसूस करता है.

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एक्सरसाइज शुरू करने से पहले वॉर्मअप जरूर करें क्योंकि इस से शरीर को अतिरिक्त गर्माहट मिलती है जिस से चोट लगने की संभावना कम रहती है. कम और हल्की एक्सरसाइज से शुरुआत करें. आप धीरेधीरे एक्सरसाइज का स्तर बढ़ा सकते हैं. नियमित रूप से की गई एक्सरसाइज मांसपेशियों और जोड़ों के लिए बेहद फायदेमंद रहती है. जोड़ों का दर्द शुरू हो चुका है तो कोई भी व्यायाम करने से पहले विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें. आमतौर पर, हल्की एरोबिक्स, स्विमिंग, साइकलिंग और टहलना आदि एक्सरसाइज आपके दर्द में राहत देंगी. बाहर के वातावरण से बचने के लिए जिम भी जॉइन किया जा सकता है.

संतुलित वजन

सर्दी का मौसम त्यौहारों और छुट्टियों से भरा होता है जिस के कारण अक्सर लोग इस मौसम में वजन बढ़ा लेते हैं. जबकि संतुलित वजन जोड़ों में लचीलापन बढ़ाता है और उन पर अतिरिक्त दबाव भी नहीं पड़ता है. जिस से दर्द में राहत मिलती है. संतुलित, स्वस्थ और प्राकृतिक आहार जिस में जरूरी मिनरल्स और विटामिन जैसे कि कैल्शियम और विटामिन डी जुड़े होते हैं, जोड़ों और हड्डियों के स्वास्थ्य में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. विटामिन डी हड्डियों की मजबूती, लचीलेपन, नमी आदि के लिए ज़िम्मेदार माना जाता है इसलिए इस का सेवन बेहद जरूरी है. इस के लिए धुप में बैठने के अलावा विटामिन डी के सप्लीमेंट्स भी लिए जा सकते हैं.

समझदारी से गर्म कपड़े पहनें

सर्दी के मौसम में हमारे कपड़े ठंड से बचाव में एक अहम भूमिका निभाते हैं. इस का मतलब यह नहीं है कि आप शरीर पर कपड़ों का भंडार लगा लें. इस प्रकार के कपड़े पहने जो शरीर को गर्माहट तो दें साथ ही चलनेफिरने में समस्या भी न पैदा करें. भारी और मोटे कपड़ों से काम करना मुश्किल हो जाता है. आप एक साथ कई कपड़े पहन सकते हैं लेकिन वे भारी बिल्कुल नहीं होने चाहिए. इस का फायदा यह होगा कि आप गर्म वातावरण में कपड़ों को कम कर सकते हैं. हाथ और पैरों को ठंड से बचाने के लिए दस्तानों और मोज़ों का इस्तेमाल करें.

बेहतर रक्त प्रवाह, लचीलापन, दर्द में राहत के लिए हीट थेरेपी का इस्तेमाल करें. हॉट वॉटर बॉटल, गर्म पानी से स्नान आदि इसके अच्छे विकल्प हैं.

जल्द से जल्द मदद लें

हम सभी ने यह अनुभव किया है कि ठंडे मौसम में चोट हमें ज्यादा परेशान करती है. इसलिए अपने दर्द को नज़रअंदाज़ न करें क्योंकि घुटनों और पीठ में हल्का दर्द भी जीवन की गुणवत्ता को खराब करता है. कई बार लोग इसे बढ़ती उम्र की समस्या मानकर इलाज करवाने से परहेज करते हैं जो समस्या को गंभीर बनाता है.

यदि दर्द समय के साथ ठीक नहीं होता है तो समस्या क्रोनिक हो जाती है. क्रोनिक दर्द से ग्रस्त लोगों का जीवन उस दर्द से राहत पाने की तरफ काम करने में ही निकल जाता है. विश्वस्तर पर, लगभग 20% आबादी क्रोनिक दर्द का शिकार है.

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क्रोनिक दर्द खुद में एक अलग बीमारी है जिसे आमतौर पर गंभीरता से नहीं लिया जाता है. इस की रोकथाम और इलाज के लिए कई एडवांस विकल्प मौजूद हैं. एक सही विशेषज्ञ से इलाज कराने से इलाज के परिणाम कहीं बेहतर हो सकते हैं.

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