WINTER SPECIAL: घर पर बनाएं राजभोग आइसक्रीम

मै अब तक किसी ऐसे व्यक्ति से नहीं मिली जिसे आइसक्रीम खाना पसंद न हो .जहां तक मुझे लगता है की आइसक्रीम छोटे से लेकर बड़ों तक सभी की कमजोरी होती है और अगर खाने के बाद डेसर्ट में आइसक्रीम खाने को मिल जाए तो कहना ही क्या….

लेकिन अक्सर ऐसा होता है की सर्दी आते ही लोग इसे खाना बंद कर देते हैं क्योंकि अमूमन लोगों को लगता है कि यह नुकसान करेगा या इसे खाने से उन्हे सर्दी या जुकाम हो जाएगा.
पर सच कहूँ तो सर्दियों में आइसक्रीम खाने का अपना ही मज़ा है या यूं कहे की आइसक्रीम खाने के लिए सर्दियों से बेहतर शायद ही कोई समय होगा. पर तब क्या हो जब आइसक्रीम टेस्टी होने के साथ-साथ Healthy भी हो?
जी हाँ आज हम बनाएँगे स्वाद और सेहत से भरपूर राजभोग आइसक्रीम. राजभोग आइसक्रीम एक बेहतरीन भारतीय आइसक्रीम में से एक है जो ड्राई फ्रूट्स(बादाम, पिस्ता, काजू ) ,दूध, क्रीम, इलायची पाउडर और केसर के साथ बनाई जाती है.
वैसे तो बाज़ारों में यह आइसक्रीम GMS और CMC पाउडर,आर्टिफ़िश्यल कलर आदि को मिलाकर बनाई जाती है जो वास्तव में हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है.
लेकिन आज हम आर्टिफ़िश्यल कलर, GMS और CMC पाउडर को उपयोग किए बिना राजभोग आइसक्रीम बनाएँगे जो हमारे स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद भी होगी और स्वादिष्ट भी.
तो चलिये जानते है घर पर राजभोग आइसक्रीम कैसे बनाए-

कितने लोगों के लिए-3 से 4
कितना समय-20 से 25 मिनट (Without frezzing )

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हमें चाहिए-

1.5 लीटर फुल-क्रीम मिल्क
2 कप – व्हिपिंग क्रीम
¾ कप से 1 कप – चीनी
केसर- 1/8 चम्मच
1 चम्मच – इलायची पाउडर
½ कप – पिस्ता, भुना हुआ और कटा हुआ (कटा हुआ पिस्ता)
¼ कप – बादाम, भुना हुआ और कटा हुआ (कटा हुआ बादाम)
¼ कप – काजू, भुना हुआ और कटा हुआ (कटा हुआ काजू)

बनाने का तरीका-

1-सबसे पहले चीनी और केसर को बिलकुल बारीक पीस ले.
(यह तरीका आइसक्रीम के लिए एक चमकीले पीले रंग का निर्माण करता है)

2-अब एक पैन में दूध डालकर उसमे व्हिप्ड क्रीम ,चीनी और केसर का मिश्रण डालकर मिलाएँ और करीब 15 से 20 मिनट तक मध्यम आंच पर पकाए.

3-अब गॅस को बंद कर दे और इस मिश्रण को एक आइसक्रीम बाउल में निकाल ले और कमरे के तापमान पर ठंडा होने को रख दें.करीब 1 घंटे बाद इसे फ्रीजर में रख कर 2 घंटे के लिए के छोड़ दे.

4-करीब 2 घंटे बाद इसे फ्रीजर से निकाल कर एक ग्राइंडर या Whisker की सहायता से अच्छे से पेस्ट बना लें और इसमे बारीक कटे हुए सारे मेवे और कुटी हुई इलायची पाउडर को डाल कर अच्छे से मिक्स कर ले. इस पेस्ट को फिर से उसी बर्तन में डालकर एल्युमिनियम फोइल से कवर करके फ्रीजर में करीब 3 से 4 घंटे के लिए जमने के लिए रख दे .

5- 4 से 5 घंटे के बाद आइसक्रीम को फ्रीजर से निकाल कर Serving बाउल में सर्व करें

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महिलाओं की ये बातें पुरुषों को करती हैं कन्फ्यूज

कहते हैं औरत ही औरत को समझती है. नारी चरित्र और उसको समझने के विषय में लम्बे चौड़े लेख लिखे जा चुके हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि नारी को समझना आसान काम नहीं है. खास तौर पर पुरुषों के लिए. महिलाएं रोजमर्रा के जीवन में भी कई बार पुरुषों के लिए पहेली बनी रहती हैं. कुछ ऐसी बाते हैं जो सामान्य तौर पर हर औरत कहती है जिसे समझना पुरुषों के लिए टेढ़ी खीर बन जाता है.

देखते हैं

ज्यादातर पुरुष स्पष्ट तौर पर बात करते हैं, वहीं महिलाएं बातों को गोल मोल कर देती हैं. इन गोल मोल बातों में शामिल है देखते हैं. दरअसल महिलाएं न कहना नहीं सीख पातीं. इसलिए ज्यादातर महिलाएं न बोलने की जगह देखते हैं बोलती हैं. ये शब्द पुरुषों को असमंजस में डाल देते हैं कि महिला काम को करेगी या नहीं.

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क्या मैं मोटी लग रही हूं?

एक ऐसा सवाल जो महिलाओं की जुबान पर आए दिन बना ही रहता है. खास तौर पर तब जब वो मन से तैयार हो रही हों. ऐसे में वो अपना पसंदीदा सवाल जब पुरुषों से करती हैं तो बदले में जवाब अपने मन माफिक ही चाहती हैं. लेकिन जवाब क्या देना है ये पुरुष आज तक तय नहीं कर पाए. क्योंकि अगर वो हां कहते हैं तो मुसीबत और न कहते हैं तो भी मुसीबत. इन दोनों ही जवाबों से महिलाएं संतुष्ट नहीं हो पाती.

क्या सोच रहे हो?

पुरुष को शांत और खुद में खोया देखकर महिलाएं जानने की इच्छुक हो जाती हैं कि पुरुष के मन में क्या चल रहा है. जब रहा नहीं जाता तो पूछ ही बैठती हैं कि क्या सोच रहे हो? अब जवाब क्या दें, ये पुरुष तय नहीं कर पाते. क्योंकि अगर वो सही जवाब देंगे तो उन्हें सौ सवालों का सामना करना पड़ेगा. इसलिए आम तौर पर पुरुषों का जवाब कुछ नहीं रहता है.

तुम बिल्कुल उसकी तरह हो

बीते रिश्ते से उबरना आसान नहीं होता. महिलाएं अक्सर अपने पूर्व साथी से अपने मौजूदा साथी की तुलना करती रहती हैं. दरअसल महिलाएं बहुत छोटी छोटी बातों को नोटिस करती हैं. ऐसे में कई बातें मानव स्वभाव में सामान्य तौर पर पाई जाती हैं. लेकिन अगर कोई बात उन्हें दोनो साथियों में समान दिखे तो वो यही बोलती हैं कि तुम बिल्कुल उसकी तरह हो. ऐसे में पुरुष समझ नहीं पाता कि वो उनकी किसी अच्छी बात की ओर इशारा कर रही या फिर वो कारण गिना रही जिस कारण पुराने साथी को छोड़ा था.

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मैं ठीक हूं

कैसी हो? जब महिलाएं दुखी या ठीक होती हैं तो जवाब में ठीक हूं बोलती हैं. साथ ही ये भी उम्मीद रखती हैं कि पुरुष उनके इस जवाब से समझ जाएं कि वो ठीक नहीं हैं. लेकिन हर बार ऐसा होना संभव नहीं. ऐसे में पुरुष पर उन्हें न समझ पाने जैसे तानों की झड़ी भी लगा देती हैं. महिलाओं का ये स्वभाव पुरुषों के लिए पहेली बना रहता है.

एक्टिंग दुनिया का सबसे अधिक असुरक्षित और मेहनत का काम है – उपेन चौहान

थियेटर से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाले अभिनेता उपेन चौहान उत्तर प्रदेश के नॉएडा के है. उन्होंने नाटकों में काम करने के साथ-साथ कई विज्ञापनों, टीवी धारावाहिकों और वेब सीरीज में काम किया है. उपेन स्पष्टभाषी और खुश मिजाज इंसान है, इसलिए उन्हें कभी तनाव नहीं होता. वे वर्तमान में जीते है और पीछे की बात कभी नहीं सोचते. उनकी सफलता के पीछे उनके माता-पिता का सहयोग है, जिन्होंने हमेशा उनके काम की सराहना की. उनकी वेब सीरीज ‘भौकाल’ रिलीज हो चुकी है, जिसमें उनके काम की बहुत प्रसंशा मिल रही है. इस कामयाबी से वे खुश है और  अपनी जर्नी के बारें में बात की, आइये जाने उनकी कहानी.

सवाल-इस वेब सीरीज में आपके अभिनय की बहुत तारीफ की जा रही है, क्या इस बात का आपको अंदेशा था?

मैंने कभी नहीं सोचा था. शुरू में जिस किरदार के लिए मेरी बात हो रही थी, वह बिल्कुल अलग थी. 6 महीने के बाद मुझे राजेश यादव का किरदार मिला. पहले कुछ एपिसोड तक मुझे जरा भी अच्छा नहीं लगा. 9वीं एपिसोड के बाद मुझे कहानी अच्छी लगने लगी और मैंने करने के लिए हां कह दिया. ये चरित्र बहुत ही अच्छा और पॉजिटिव है. असल जिंदगी में मैं इतना शरीफ कभी भी नहीं रहा. मेरा काम सबको पसंद आ रहा है. ये मेरे लिए अच्छी बात है.

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सवाल-आपने पॉजिटिव और निगेटिव दोनों भूमिका निभाई है, दोनों में अन्तर क्या होता है और किसे करने में अधिक अच्छा लगता है?

मैंने टीवी शो ‘ये है चाहते’ में निगेटिव व्यवसायी की भूमिका निभाई है. दरअसल हर व्यक्ति पूरी दुनिया को भले ही खराब समझे, पर खुद को हमेशा अच्छा इंसान समझता है. पॉजिटिव अभिनय करना मुश्किल नहीं, क्योंकि खुद को अच्छा मानकर सबके सामने उसी रूप में खुद को पेश करना आसान होता है, लेकिन निगेटिव करने में मुझे बहुत अच्छा लगता है, क्योंकि इसमें अभिनय के कई रेंज मिलते है. इसमें खुद की पहचान से अलग जाना पड़ता है, जिसमें अभिनय के लिए आज़ादी मिलती है.

सवाल-टीवी पर निगेटिव रोल बहुत दिनों तक चलता है, क्या उसका असर आपके लाइफ पर पड़ता है?

ये सही है कि टीवी का किरदार लम्बा चलता है, लेकिन एक समय के बाद वह शांति बना लेता है. उसका प्रभाव शुरुआत में एक दो महीने ही रहता है, बाद में चरित्र की दोस्ती कलाकार से हो जाती है. मैं किसी भी किरदार को लम्बे समय तक निभाना नहीं चाहता, क्योंकि अंदर की खोज लिमिट में होने लगती है. 5 से 8 महीने से अधिक किसी भूमिका को करना नहीं चाहता. इसके अलावा कई और प्रोजेक्ट पर भी काम चल रहा है.

सवाल-रियल लाइफ में आप कैसे है?

मैं रियल लाइफ में हर चीज के लिए शुक्रगुजार रहता हूं. काम मिले या न मिले मैं अधिक नहीं सोचता. मुझे हर तरह का भोजन ट्राय करना बहुत पसंद है और तरह-तरह लोगों से मिलना पसंद है. मेरे लिए कुछ भी नापसंद नहीं है. केवल डर इस बात से रहता है कि किसी दिन मेरी क्षमता जो लोगों को पसंद करने और चाहने की है, वह किसी दिन ख़त्म न हो जाय.

सवाल-एक्टिंग की प्रेरणा आपको कहाँ से मिली?

मुझे एक्टिंग का शौक कभी नहीं था और न ही उद्देश्य था. मुझे एक सफल व्यवसायी बनना था. मैंने कंप्यूटर साइंस में बी टेक करने के बाद, एम् बी ए की तैयारी करने के साथ-साथ व्यवसाय शुरू कर दिया. 7 साल में मैंने अपनी आई टी कंपनी, 2 कॉल सेंटर, मार्केटिंग कंपनी, दो रेस्तरां, कई एजुकेशन कंसल्टेंसी आदि स्थापित कर लिया था और इसी पर दिन-रात फोकस्ड रहता था. 5 साल बाद मैं थकने लगा था. आर्ट में मेरी रूचि पहले से थी. कविता लिखना, पढ़ना, गाने गाना, मिमिक्री करना पसंद था. एक दोस्त ने मुझे सप्ताह के अंत में थिएटर वर्कशॉप ज्वाइन करने को कहा. मैंने किया और पहले ही दिन मुझे बहुत अच्छा लगा. उन 3 घंटों में मुझे परिवार और काम कुछ भी याद नहीं आया. मैं पूरी तरह से रिलैक्स हो चुका था. इसके बाद मैंने पार्ट टाइम थिएटर करना शुरू किया. 3 साल बाद मुझे इस दिशा में काम करने की इच्छा पैदा हुई और सबकुछ छोड़कर मैं मुंबई आ गया.

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सवाल-मुंबई आने पर कितना संघर्ष रहा?

मुंबई ने अच्छा स्वागत किया. यहाँ आकर मैंने 3 महीने एडवांस एक्टिंग क्लास ज्वाइन किया, क्योंकि मुझे अभिनय की बारीकियां और मुंबई को समझना था. 27 साल की उम्र में मैंने पहली बार अपना घर छोड़ा था. साल 2017 से मैंने काम ढूँढना शुरू किया और वेब सीरीज ‘द फॉरगॉटन आर्मी में काम मिला. इसके बाद लगातार काम कर रहा हूं.

सवाल-क्या आउटसाइडर को काम मिलना बहुत मुश्किल होता है?

मेरे हिसाब से एक्टिंग का काम सबको मेहनत करने पर मिलता है. अगर कोई इसे बहाना बना ले और शिकायत करें तो उसे काम नहीं मिलेगा. मैंने शुरुआत में 2 महीने के अंदर 150 ऑडिशन दिए है. मैं नॉएडा में एक अच्छा इज्जतदार व्यवसायी था, पर यहाँ मुंबई मैं कुछ भी नहीं था. रोज निकलकर काम खोजिये और अगर नहीं मिलता है, तो अपनी स्किल पर काम कीजिये. लोग आज मेहनत नहीं करना चाहते. यहाँ काम सबके लिए है. मैंने छोटे-छोटे काम भी किया है.

सवाल-जब आप घर से निकले तो माता-पिता की प्रतिक्रिया क्या थी? परिवार का सहयोग कितना रहा?

सभी ने मन से सहमति जताई और मेरे निर्णय को सही ठहराया. इससे मुझे कोई समस्या नहीं आई. उन्होंने मुझे हमेशा सहयोग दिया. पहली बार पिता को मुंबई जाने की बात कहा, तो उन्होंने एकदम से हाँ कह दिया, जिसकी उम्मीद मुझे नहीं थी. उन्होंने कभी भी मुझे काम के बारें में नहीं पूछा.

सवाल-किसी फिल्म को चुनते समय किस बात का ध्यान रखते है?

मैं पहले सेलेक्ट करने की अवस्था में नहीं था, इसलिए जो भी काम मिलता था, कर लेता था, पर अब चुन सकता हूं. मैं कहानी का सेन्स, रिलेटेबलिटी, भूमिका का महत्व और नया क्या सीखूंगा इसे देखता हूं.

सवाल-क्या कोई ड्रीम है?

मैं एक लेखक हूं और कहानियां लिखता भी हूं, लेकिन मैं एक एक्टर ही आजीवन बने रहना चाहता हूं. इसके अलावा रवीन्द्रनाथ टैगोर और विवेकानंद की बायोपिक में काम करना चाहता हूं. बाद में खुद की बायोपिक को बनाने की इच्छा रखता है.

सवाल-किस शो ने आपकी जिंदगी बदली ?

मैंने एक छोटा किरदार वेब फिल्म 377 एब्नार्मल में किया था, जिसका मुझपर बहुत प्रभाव पड़ा. 3 दिन के किरदार के लिए मैंने काफी मेहनत किया था. बहुत प्रभावशाली वह चरित्र होमोसेक्सुअल व्यक्ति का था. उस चरित्र ने मेरी सोच को बदल दिया. भौकाल का राजेश यादव भी प्रभावशाली किरदार था.

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सवाल-बाहर से आने वाले यूथ को क्या कोई मेसेज देना चाहते है?

एक्टिंग का काम सिर्फ पैशन से हो सकता है. ये दुनिया का सबसे अधिक असुरक्षित और मेहनत का काम है, जो कब चला जाएँ, पता नहीं होता. अगर आप इस काम से प्यार करते है तो सफलता अवश्य मिलेगी साथ ही किसी भी परिवेश में खुश रहना सीखे. खुश रहिये तो सब मिल जाएगा, कुछ पाकर ख़ुशी कभी भी मिलने वाली नहीं है.

5 टिप्स: खूबसूरती का खजाना है बेसन, फायदे जानकर हो जाएंगे हैरान

बेसन का इस्तेमाल खाने के साथ-साथ चेहरे पर निखार और त्वचा को टोन करने के लिए भी आप कर सकती हैं. अगर आप बेसन का  नियमित तौर पर इस्तेमाल करेंगी तो आपके त्वचा संबंधी बीमारी भी दूर हो सकती हैं.

बेसन आपके चेहरे की गंदगी को काफी हद तक साफ करता है. इसके इस्तेमाल से आपका चेहरा तरोताजा रहता है. आप बेसने को चेहरे के अलावा पूरे शरीर पर भी लगा सकती हैं. इससे आपके त्वचा में निखार आएगा. तो चलिए जानते हैं आपके त्वचा के लिए कैसे फायदेमंद है बेसन.

बेदाग त्वचा के लिए बेस्ट हैं ये घरेलू फेस मास्क

1. मुंहासे दूर करने में

बेसन कील मुंहासों को दूर करने में भी काफी फायदेमंद है. अगर बेसन को चंदन के पाउडर के साथ मिलाकर लगाया जाए तो चेहरे के कील-मुंहासे बहुत तेजी से समाप्त होते है. अगर आपके चेहरे पर मुंहासे के गहरे दाग और धब्बे हैं तो आप बेसन और चंदन के पेस्ट में नींबू की कुछ बूंदे भी डालकर चेहरे पर लगा सकती हैं. इससे दाग हल्के होते है.

2. ड्राई स्किन के लिए

बेसन को दूध की मलाई के साथ मिलाकर लगाने पर आपके त्वचा को मौश्चराइज करती है जिससे त्वचा की नमी बनी रहती है और ड्राई स्किन की समस्या दूर होती है. इस फेस मास्क का प्रयोग करने से आपकी त्वचा अधिक गोरी और चमकदार दिखती है.

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3. औयली स्किन के लिए

चार बड़े चम्मच बेसन में दो चम्मच गुलाब जल और दो चम्मच शहद मिलाकर इसे चेहर और गर्दन पर लगाएं. पंद्रह मिनट के बाद चेहरे और गर्दन को ठंडे पानी से धो लें. यह पेस्ट तैलीय त्वचा की समस्या को दूर करने के लिए सबसे बेहतर माना जाता है. इसके अलावा इससे स्किन पर प्राकृतिक निखार भी आती है.

4. स्क्रब के लिए

स्क्रब से चेहरे पर मसाज के बाद चेहरा बिल्कुल फ्रश दिखता है. आप बेसन का भी स्क्रब तैयार कर सकती हैं. बेसन में थोड़ा सा चावल का आटा, औयल, हल्दी, औलमंड और दही मिलाकर स्क्रब तैयार कर लें और इसे चेहरे पर लगाकर हल्के हाथों से मसाज करें. यह चेहरे की मृत कोशिकाओं को दूर करने के लिए सबसे बढ़िया स्क्रब माना जाता है और इस बनाना भी काफी आसान है.

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5.  शरीर के बाल हटाने में

बेसन को पानी में मिलाकर उबटल बना लें और नहाते समय इस उबटन को पूरे शरीर में लगाकर थोड़ी देर के लिए छोड़ दें. इससे शरीर के बाल कम होते है. इस तरह आप बेसन का इस्तेमाल  उबटन के लिए कर सकती हैं.

posted by – Saloni

युवा आबादी में स्ट्रोक के खतरे को कम करेगा डिजिटल डिटॉक्स

डॉक्टर विपुल गुप्ता, निदेशक, न्युरोइंटरवेंशन, आर्टमिस अस्पताल, गुरूग्राम

जब से दुनिया कोविड महामारी के घेरे में फंसी है कोरोना के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. इसी के साथ लोगों के बीच स्क्रीन का इस्तेमाल बहुत ज्यादा बढ़ गया है जो खुद में एक नई महामारी की तरह है. वर्ल्ड स्ट्रोक ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार चार में से एक व्यक्ति जीवन में कभी न कभी स्ट्रोक अटैक का शिकार अवश्य बनता है. आज स्ट्रोक का खतरा जितना बुजुर्गों में है उतना ही युवा आबादी में भी है.

पहले स्ट्रोक अधिक उम्र (60 से अधिक उम्र) के लोगों की बीमारी हुआ करती थी लेकिन पिछले कुछ सालों में युवा आबादी में स्ट्रोक अटैक के कई मामले देखने को मिले हैं. एक हालिया अध्ध्यन के अनुसार हालांकि पिछले कुछ सालों में स्ट्रोक के मामले कम हुए हैं, लेकिन कम उम्र (25-45 साल) के लोगों में स्ट्रोक के मामले बढ़ते नज़र आए हैं. अमेरिका व अन्य विकसित देशों की तुलना में भारत में स्ट्रोक से ग्रस्त युवा आबादी की संख्या दुगनी है.

स्ट्रोक बीमारी और विकलांगता का सब से आम और प्रमुख कारण माना जाता है. अनुमान के अनुसार विश्व स्तर पर प्रति 40 सेकेंड में एक व्यक्ति स्ट्रोक से ग्रस्त पाया जाता है और प्रति 4 मिनट में एक व्यक्ति स्ट्रोक के कारण मर जाता है. दरअसल स्क्रीन का ज्यादा इस्तेमाल स्वास्थ्य के लिए खतरनाक माना जाता है. वहीं अब स्ट्रोक को भी इस के साथ जोड़ दिया गया है.

स्क्रीन का जितना ज्यादा इस्तेमाल, स्ट्रोक का उतना ज्यादा खतरा

अमेरिका के हालिया अध्ययन के अनुसार, डिजिटल स्क्रीन के इस्तेमाल का समय हमारे जीवनकाल पर सीधा असर डालता है. एक घंटा डिजिटल स्क्रीन का इस्तेमाल हमारी जिंदगी से 22 मिनट कम कर देता है. स्क्रीन का ज्यादा इस्तेमाल हार्ट अटैक, स्ट्रोक और कैंसर का कारण बन सकता है.

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यूनाइटेड किंगडम का एक बड़ा अध्ययन, जो लगभग 40,000 प्रतिभागियों के साथ किया गया था, यह बताता है कि जो लोग स्क्रीन का इस्तेमाल दिन में 2 घंटे से ज्यादा करते हैं उन में स्ट्रोक का खतरा ज्यादा होता है. शारीरिक सक्रियता (हफ्ते के सातों दिन 1 घंटे की वॉक) इस असर को कम करती है. यहां तक कि स्क्रीन के ज्यादा इस्तेमाल से कैंसर का खतरा भी बढ़ता है.

स्क्रीन की लत बहुत आसानी से लग जाती है जिस का कारण उस से जुड़ा मनोरंजन है. जब कोई गतिविधि आनंदमय अनुभव का काम करती है तो ऐसे में मस्तिष्क में डोपामाइन नाम के रसायन की मात्रा बढ़ती है. एक बार जब व्यक्ति स्क्रीन का आदी हो जाता है तो उसे पसंदीदा खाना, परिवार और छुट्टियों से पहले जैसी खुशी मिल ही नहीं पाती है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि अब डोपामाइन का स्तर केवल तभी बढ़ेगा जब व्यक्ति का मस्तिष्क मिल रहे अनुभव से पूरी तरह संतुष्ट होगा, जो अब केवल स्क्रीन के साथ ही संभव होगा.

2 घंटों के बाद स्क्रीन पर बिताया गया हर घंटा स्ट्रोक के खतरे को 20% तक बढ़ाता है. शोधकर्ताओं ने पाया है कि स्क्रीन के इस्तेमाल के दौरान हर 20 मिनट में 2-5 मिनट की शारीरिक गतिविधि डायबिटीज़ और मोटापे के खतरे को कम करती है.

कैसे कम करें स्क्रीन का समय

सोने जा रहे हैं तो नीली लाइट छोड़ने वाले उपकरणों का इस्तेमाल करने से बचें. ये लाइट मेलाटोनिन नाम के रसायन को कम करती है. यह रसायन व्यक्ति को सोने में मदद करता है. रात में ऐसे उपकरण इस्तेमाल करने से समय पर नींद नहीं आती है परिणामस्वरूप स्ट्रोक का खतरा बढता है.

अध्ययन का निष्कर्ष यह निकलता है कि 2 साल के बच्चों को किसी भी प्रकार की स्क्रीन से पूरी तरह से दूर रखना चाहिए. वहीं 16 से अधिक उम्र के लोगों को दिन में केवल 2 घंटों के लिए ही स्क्रीन का इस्तेमाल करना चाहिए. ऐसा कर के ही स्ट्रोक के खतरे को कम करना संभव है.

युवा आबादी में स्ट्रोक का खतरा

स्ट्रोक के अन्य मुख्य कारणों के अलावा शारीरिक गतिहीनता भी कम उम्र में स्ट्रोक का कारण बनता है. नियमित रूप से किया गया व्यायाम न सिर्फ समग्र स्वास्थ्य को बनाए रखने में सहायक होता है बल्कि शरीर को कई बीमारियों से दूर रखता है. स्ट्रोक को बढ़ावा देने वाली अन्य बीमारियों में उच्च रक्तचाप, डायबिटीज़ और हाई कोलेस्ट्रॉल शामिल है.

उच्च-रक्तचाप स्ट्रोक के सब से बड़े कारणों में से एक है जो इस्केमिक स्ट्रोक (ब्लॉकेज के कारण) और हेमरेज स्ट्रोक (मस्तिष्क में ब्लीडिंग) के 50% मामलों के लिए ज़िम्मेदार माना जाता है. नियमित एक्सरसाइज़ ब्लड प्रेशर को संतुलित करने में मदद करती है, जिस के साथ स्ट्रोक का खतरा 80% तक कम हो जाता है.

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यह तो स्पष्ट है कि डायबिटीज के मरीजों में स्ट्रोक का दोगुना खतरा होता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि शरीर में ज्यादा शुगर सभी बड़ी रक्त वाहिकाओं को नष्ट कर देता है, जो इस्केमिक स्ट्रोक का कारण बनता है. नियमित व्यायाम न सिर्फ शुगर के स्तर को कम करता है बल्कि उनमें स्ट्रोक के खतरे को भी कम करता है.

हाई कोलेस्ट्रॉल भी स्ट्रोक के मुख्य कारणों में गिना जाता है. खराब कोलेस्ट्रॉल की अधिक मात्रा धमनियों में परत के खतरे को बढ़ाती है जो आगे चल कर क्लॉट का कारण बनता है. यह क्लॉट रक्त प्रवाह को बाधित करता है जो स्ट्रोक का कारण बनता है. एक्सरसाइज़ में कमी शरीर के साथ मस्तिष्क पर भी बुरा असर डालता है. नियमित व्यायाम और संतुलित आहार के साथ शरीर में खराब कोलेस्ट्रॉल को कम कर के अच्छे कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाया जा सकता है.

स्ट्रोक का इलाज संभव है

समय पर इलाज के साथ स्ट्रोक के मरीज को ठीक करना संभव है. लगभग 70% मामलों में इसके लक्षणों को कम या पूरी तरह खत्म किया जा सकता है.

सही इलाज में एक मिनट की देरी भी मस्तिष्क की 20 लाख कोशिकाओं को नष्ट कर देती है, इसलिए समय पर इलाज कराना आवश्यक है. स्ट्रोक के उचित इलाज के लिए मरीज को अटैक के 6 घंटों के अंदर अस्पताल लाना जरूरी है. इस के बाद लगभग 80% मामलों में मरीज विकलांगता का शिकार बनता है. हालिया प्रगति और इमेजिंग तकनीकों के साथ अब स्ट्रोक के सफल इलाज के लिए अटैक के पहले 24 घंटे बेहद जरूरी माने जाते हैं.

स्ट्रोक का इलाज 

स्ट्रोक की शुरुआती पहचान इलाज को आसान और परिणामों को बेहतर कर देती है. इस के लक्षणों में उतरा हुआ चेहरा, हाथों में कमज़ोरी, बोलने में मुश्किल और एंबुलेंस को बुलाने का समय शामिल हैं. टेक्नोलॉजी में प्रगति के साथ मस्तिष्क की रक्त वाहिकाओं को मिनिमली इनवेसिव न्यूरो-इंटरवेंशन तकनीक की मदद से फिर से सही किया जा सकता है.

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हाइपोथायरायडिज्म की बीमारी के लिए क्या खाना चाहिए?

सवाल-

मैं 51 साल की महिला हूं और हाइपोथायरायडिज्म से पीडि़त हूं. बेहतर जीवन के लिए मुझे किस आहार पर विचार करना चाहिए?

जवाब-

हाइपोथायरायडिज्म तब होता है जब आप के शरीर में थायराइड हारमोन का बहुत अधिक स्राव होता है. इस स्थिति को थायरोटाक्सिकोसिस भी कहा जाता है. मिनरल आयोडीन थायराइड हारमोन बनाने में अहम भूमिका निभाता है. कम आयोडीन वाला आहार लेने से थायराइड हारमोन का स्तर कम होने लगता है. अच्छी सेहत के लिए अपने आहार में आयोडीनरहित नमक, कौफी या चाय (बिना दूध या डेयरी या सोया वाले क्रीमर्स की), अंडे की ताजे फल, अनसाल्टेड नट्स, होममेड ब्रैड, ओट्स, आलू, शहद, मेपल सिरप, ब्रोकली, ब्रसेल्स स्प्राउट्स फूलगोभी, सरसों, हरी पत्तेदार सब्जियां, दाल, चिकन और रैड मीट शामिल करने की कोशिश करें.

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मोटापे से कई तरह की परेशानियां पैदा होती हैं. इससे शरीर के सारे अंग प्रभावित होते हैं. डबल चिन मोटापे के कारण होता है. इससे आपकी सुंदरता पर बुरा असर होता है. आम तौर पर लोग इसे पसंद नहीं करते और इससे छुटकारा पाने के लिए काफी मशक्कत करते हैं, पर परिणाम हमेशा सकारात्मक नहीं होता. इस खबर में हम आपको उन कारणों के बारे में बताएंगे जिनके चलते डबल चिन की परेशानी होती है.

थायराइड

थायराइड डबल चिन का एक प्रमुख कारण है. आपको बता दे कि वजन बढ़ना हाइपोथायरायडिज्म सामान्य सूचक है. लेकिन क्या यह जानते हैं कि आपके जबड़े के बढ़ने का भी यही कारण हो सकता है? यदि आपके जबड़े की हड्डी के नीचे स्थित क्षेत्र में त्वचा समय के साथ फैट से भर जाती है, तो आपको डबल चिन की समस्या हो सकती है. थायराइड के बढ़ने से गर्दन में भी सूजन आ सकती है.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

बिग बौस 7 के बाद इतना बदल गई हैं अजय देवगन की ‘साली साहिबा’, PHOTOS VIRAL

बौलीवुड की पौपुलर एक्ट्रेस काजोल अक्सर कभी फैमिली तो कभी फिल्मों को लेकर सुर्खियों में बनी रहती हैं. वहीं इस बार वह अपनी बहन और बिग बौस 7 का हिस्सा रह चुकीं एक्ट्रेस तनीषा मुखर्जी को लेकर सोशलमीडिया पर छाई हुई हैं. फिल्मी दुनिया से दूर तनीषा आए दिन अपने फैंस के लिए फोटोज और वीडियो शेयर करती रहती हैं, जिसे फैंस काफी पसंद करते हैं. वहीं बिग बौस 7 से अब तक तनीषा के लुक की भी फैंस तारीफें करते नहीं थक रहे हैं. इसीलिए आज हम आपको तनीषा मुखर्जी के कुछ लुक्स के बारे में आपके बताएंगे, जिसे आप वेडिंग सीजन में ट्राय कर सकती हैं.

तनीषा के लुक के दिवाने हुए फैंस

ट्रेडिशनल लुक में अपनी बोल्ड अदाओं से दीवाना बनाने वाली तनीषा मुखर्जी का ये लुक आपके लिए परफेक्ट औप्शन है. तनीषा मुखर्जी साड़ी पहनने की काफी शौकीन हैं और वह अपने इस शौक को नए लुक के साथ फैंस के सामने पेश करती नजर आती हैं. कुछ ऐसा ही लुक हाल ही में तनीषा ने इस साड़ी के साथ डीप ब्लाउज के साथ किया. आप भी इस लुक को ट्राय कर सकती हैं.

 

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मराठी लुक में छाईं तनीषा

 

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ब्लैक कलर के ब्लाउज के साथ पिंक कलर की साड़ी में तनीषा का ये मराठी लुक फैंस को काफी पसंद आ रहा है. अगर आप किसी वेडिंग में मराठी लुक ट्राय करना चाहती हैं तो तनीषा का ये लुक आपके लिए परफेक्ट औप्शन है.

3. शादी के लिए परफेक्ट है तनीषा का ये लुक

 

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अगर आप वेडिंग सीजन के लिए कोई खास लुक की तलाश कर रही हैं तो तनीषा का ये सिल्क प्रिंटेड गाउन आपके लिए परफेक्ट औप्शन है. ये आपके लुक पर वेडिंग सीजन में चार चांद लगा देगा.

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खाने की टेबल पर साथ मिलकर लें स्वाद और संवाद का आनंद

खाने की मेज सिर्फ रोटी, भाजी, खीरपूड़ी आदि का संगम नहीं है, बल्कि बातचीत और गिलेशिकवे सुधारने की एक जिंदा इकाई भी है. यहां पर हर सदस्य को स्वाद और संवाद दोनों ही मिलते हैं.

किसी ने खूब कहा भी है कि परिवार ही वह पहली पाठशाला है जहां जीवन का हर छोटाबड़ा सबक सीखा जा सकता है. इसलिए जब भी अवसर मिले परिवार के साथ ही बैठना चाहिए. इस का सब से आसान उपाय यही है कि भोजन ग्रहण करते समय सब साथ ही बैठें.

अनमोल पल

जब पूरा परिवार साथ बैठ कर भोजन का आनंद लेता है तो उस समय हर पल अनमोल होता है. मनोवैज्ञानिक इसे गुणवत्ता का समय मानते हैं.साथसाथ भोजन करना कई मामलों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

आजकल सभी अपने कामों और जिंदगी में इतना बिजी रहते हैं कि एकसाथ रहते हुए भी परिवार के साथ बैठने का समय तक नहीं मिल पाता है. इसी वजह से परिवार के साथ बैठ कर भोजन करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है, लेकिन ऐसा करना बच्चोंे और परिवार के लिए बहुत जरूरी है.

परिवार के साथ खाना खाने से आपस में दोस्ताना संबंध बनता है, स्वानस्य्वा की तरफ से लापरवाही में कमी आती है, शांतिपूर्ण विचार मन में पनपते हैं और मानसिक स्तर जैसे उदासी, ऊब, बेचैनी, घबराहट आदि महसूस नहीं होते.

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बेहतर चलन है

अगर कुछ ऐसे पारिवारिक मसले आ गए हैं जिन का हल नहीं निकल रहा है तो साथ खाने का चलन जरूर शुरू करें. यह बहुत अच्छा तरीका है, फैमिली यूनिट बनाने का और बच्चों के साथ अपने रिश्ते सुधारने का.

आप के लिए एक बेहतरीन अभिभावक बनने का यह अच्छा मौका है. नए रिश्तों को मजबूत करना चाहें तो साथ बैठ कर खाना खाएं. जैसे नया मेहमान या कोई पुराना रिश्तेदार भी आया है तो उस के साथ संबंध पक्का करने के लिए तो यह सब से बढ़िया तरीका है.

साथ खाने से बच्चों में टेबल मैनर्स भी सुधारे जा सकते हैं. आप के बच्चे सीखेंगे कि टेबल पर समय से जाना है जिस से परिवार के बाकी सदस्य भूखे नहीं बैठे रहें.

वहां पर किस तरह बैठना है, चम्मचकटोरी कैसे इस्तेमाल करना है वगैरह बच्चे बगैर किसी निर्देशन के सहज ही सीख जाते हैं.

यादगार रहेगा

जब आप के बच्चे बड़े होंगे तब वे आप के साथ बिताए हुए इस भोजन समय को कभी नहीं भूलेंगे. उन्हें इस बात का एहसास रहेगा कि परिवार का साथ बैठ कर खाना कितना जरूरी है और आगे चल कर वे भी अपने बच्चों में यही आदत डालेंगे.

वैसे तो आजकल कुछ न कुछ उपलब्धता के चलते हरकोई भरपेट खाना तो खा लेता है लेकिन उस से पोषण कम ही मिल पाता है. ऐसे में घर पर या बाहर जब भी मौका हो परिवार के साथ मिल कर खाने से न केवल बड़े बल्कि बच्चे भी पोषित खाना खाते हैं, उन में भी पोषित खाना खाने की आदत पैदा होती है.

परिवार के साथ डिनर करने पर स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं जैसेकि निराशा, हताशा, मोटापा, बारबार खाने की आदत, नशीले पदार्थों के सेवन आदि से किशोर दूर ही रहते हैं.

मिल कर भोजन करना कई बातों को पारदर्शी भी बनाता है क्योंकि एक बात एक बार ही कही जाती है और सब के सामने रखी जाती है. अतः यह आपसी समझ बनाने के लिए भी काफी अच्छा होता है.

न फोन न इंटरनैट

डाइनिंग टेबल पर खाना खाते समय फोन या इंटरनैट का इस्तेमाल नहीं के बराबर होता है. इस से इस दौरान ऐसा आनंद उत्पन्न होता है कि हरकोई खुशी महसूस करता है.

परिवार जब साथ मिल कर खाना खाए तो टीवी सहज ही बंद कर दिया जाता है और बच्चे मातापिता की निगरानी में क्वालिटी डाइट लेते हैं.इतना ही नहीं पारिवारिक समागम में भोजन को ले कर कुछ अलग ही तरह का सकारात्मक माहौल देखा जा सकता है.

शोध के बाद एक बात और सामने आई है कि एकसाथ खाने से मातापिता को अपने बेटे और बेटियों के स्वभाव, उन की अभिरुचि आदि का पता लगाने में मदद मिल सकती है.

बढ़ता है आत्मविश्वास

इस के अलावा जो बच्चे हमेशा अपने मातापिता के साथ खाते हैं, वे अपने कैरियर, दुनियादारी, मित्रों से सुकून भरे संबंध, स्वास्थ्य आदि के बारे में निर्णय लेने में काफी समझदार हो जाते हैं.

एकसाथ बैठ कर भोजन करने से न सिर्फ पारिवारिक सुकून व आनंद बढ़ता है, बल्कि यह स्वस्थ और तनावमुक्त रहने का भी एक आसान व प्रभावी तरीका है.

खाने की मेज पर जब पूरा परिवार एकसाथ होता है, तो एकदूसरे के बीच संवाद बढ़ता है, परिवार के लोग एक दूसरे के सुखदुख के बारे में जान पाते हैं. किसी के मन में कुछ भार है तो वह कम हो जाता है.

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घर के सदस्य अगर मिल कर भोजन करने की आदत डालें, तो इस से न केवल परिवार में खुशी बढ़ेगी उन में सामंजस्य भी बना रहेगा.

मातापिता बच्चों से बातचीत करते हैं, उन की दिनचर्या आदि पर चर्चा करते हैं तो इस का मानसिक प्रभाव बहुत अच्छा होता है. परिवार के साथ मन बांट लेने से बच्चों का आत्माविश्वाुस भी बढ़ता है. उन में जीवन के प्रति रूझान बढ़ता है और वे मेहनती बनते हैं.

अगर बिना प्यार के शादी हो सकती है, तो बिना पति के मां क्यों नहीं बन सकते?” : आलिया श्रॉफ

9 महीने का सफर एक ऐसा सफर है, जो एक स्त्री और पुरुष जिंदगी का जश्न मनाते हुए तय करते हैं, जो उन्होंने साथ मिलकर शुरू किया था. लेकिन कई औरतें ऐसी हैं, जो किसी साथी के बिना ही एक पैरेंट बनने का चुनाव करती हैं. इसकी वजह अलग-अलग हो सकती हैं, लेकिन मां बनने का अधिकार तो एक औरत को ही होता है, चाहे वो शादीशुदा हो, किसी रिश्ते में हो या फिर हो सिंगल हो! वैसे सिंगल मां बनने का चुनाव बड़ा कठिन होता है, लेकिन यह भी सच है कि महिलाओं को अपने मां बनने का तरीका चुनने और उसे उचित ठहराने के लिए किसी की स्वीकृति की जरूरत नहीं है.

“अगर बिना प्यार के शादी हो सकती है, तो बिना पति के मां क्यों नहीं बन सकते?” यह कहना है आलिया श्रॉफ का, जो सोनी एंटरटेनमेंट टेलीविजन के नए शो ‘स्टोरी 9 मंथ्स की” का एक प्रमुख किरदार है. यह लाइन सुनकर शायद आप हिल जाएं, क्योंकि टेलीविजन पर अब तक इस तरह का विषय नहीं दिखाया गया है, जिसमें एक नायिका खुद अपनी शर्तों पर मां बनने की इच्छा जाहिर करती है. इसका शीर्षक कुछ ऐसा है, जिसे सुनकर दर्शक इस सफर का हिस्सा जरूर बनना चाहेंगे.

https://www.youtube.com/watch?v=-wkIKZrYtnQ

आलिया श्रॉफ आज की नारी है, जो इरादों की पक्की, दिल से महत्वाकांक्षी और स्वभाव से एक परफेक्शनिस्ट है! 30 साल की उम्र में वो एक सुशिक्षित और सफल एंटरप्रेन्योर है और उसने बहुत पहले से ही अपनी जिंदगी प्लान कर रखी है. लेकिन रिश्तों के मामले में वो खुद को जाहिर नहीं कर पाती, चाहे उसकी निजी जिंदगी हो या पेशेवर. आलिया बाहर से भले ही सख्त नजर आए, लेकिन उसका दिल सोने जैसा खरा है और लोग वाकई उसके बारे में यह नहीं जानते हैं.

आलिया किसी भी पुरुष से संबंध बनाए बिना ही, यानी आईवीएफ (इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन) के जरिए, मां बनने का चुनाव करती है और अपने इस फैसले पर अडिग रहती है. इसके लिए उसने हर इंतजाम कर रखे हैं, लेकिन उसके रास्ते में केवल एक ही अड़चन है और वो है एक सही स्पर्म डोनर! आलिया के अनुसार, उसे अपने जैसे ही किसी परफेक्ट डोनर की तलाश है, लेकिन वो कहते हैं ना, तकदीर का खेल बड़ा विचित्र है और सबकुछ प्लान के मुताबिक नहीं होता!

जब आलिया अपनी मर्जी के हिसाब से मां बनने की योजना में व्यस्त होती है, तभी मथुरा के एक युवा और महत्वकांक्षी लेखक सारंगधर से अचानक उसका आमना-सामना होता है. आलिया और सारंगधर दोनों ही एक नदी के दो अलग-अलग किनारे हैं, जिनके स्वभाव एक दूसरे से बिल्कुल अलग हैं. हालांकि लेखक के रूप में अपना करियर बनाने के लिए सारंगधर को आलिया की कंपनी में जॉब मिल जाती है. फिर किस्मत कुछ ऐसी करवट लेती है कि वो आलिया का डोनर बन जाता है! क्या आलिया को अपने डोनर के बारे में कुछ पता चलेगा? आखिर यह ‘स्टोरी 9 मंथ्स की’ आगे क्या मोड़ लेगी? जानने के लिए स्टोरी 9 मंथ्स की आज से , सोमवार से गुरुवार रात 10.30 बजे सोनी एंटरटेनमेंट टेलीविजन पर.

आया बुनाई का मौसम

आज से 10-12 वर्ष पूर्व की ही तो बात है जब सर्दियां आते ही ऊन की दुकानें मोटी मोटी लच्छियों और ऊन के गुल्लों से सजने लगतीं थीं. घर के काम समाप्त करके महिलाएं ऊन और सलाई के साथ ही नजर आतीं थीं आज यद्यपि हाथ के बुने स्वेटर का चलन कुछ कम हो गया है परन्तु फिर भी स्वेटर बुनने के शौकीन अपने हाथों को रोक ही नहीं पाते. साथ ही फैशन कोई भी हो परन्तु कुछ लोंगों को बाजार के रेडीमेड स्वेटर की अपेक्षा हाथ के बुने स्वेटर ही पसन्द आते हैं.

आजकल तो ऊन से फैशनेबल स्टॉल, स्कार्फ, जैकेट्स, मोजे, और डेकोरेटिव आइटम्स भी बनाये जाने लगे हैं. छोटे बच्चों को तो आज भी माताएं हाथ के बने स्वेटर ही पहनाना पसन्द करतीं हैं. यदि आप भी बुनाई की शौकीन हैं तो ये टिप्स आपके मददगार हो सकते हैं.

-ऊन खरीदने से पहले किसके लिए और क्या बनाना है यह सुनिश्चित कर लें क्योंकि बच्चों के लिए गहरे रंग, बड़ों के लिए हल्के तथा लड़के लड़कियों के रंग भी अलग अलग होते हैं.

-स्वेटर के अतिरिक्त यदि कोई सजावटी सामान अथवा स्कार्फ, जैकेट आदि बनाना है तो भी ऊन खरीदने से पूर्व रंग और डिजाइन निश्चित कर लें.

-ऊन हमेशा आवश्यकता से कुछ अधिक ही खरीदें क्योंकि कम पड़ने पर अक्सर उसी शेड की ऊन मिलना मुश्किल हो जाता है.

-छोटे बच्चों के लिए फर वाली या फैशनेबल ऊन खरीदने की अपेक्षा वर्धमान या ओसवाल की बेबी वूल ही खरीदें क्योंकि यह एकदम नरम और बिना रोएं वाली होती है.

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-मोटी प्लाई के लिए कम नम्बर की और पतली प्लाई वाली ऊन के लिए अधिक नम्बर की सलाई लें.

-गले, बाहों और कमर के बॉर्डर के लिए दो नम्बर अधिक की सलाई लें अर्थात यदि बॉर्डर 10 नम्बर से बना रहीं हैं तो पूरा स्वेटर 8 नम्बर से बनाएं इससे स्वेटर देखने में तो अच्छा लगेगा ही बॉर्डर लूज भी नहीं होगा.

-बुनाई करते समय बुनने वाली सलाई को पूरा खत्म करके ही उठें अन्यथा फंदे निकलकर आपकी डिजाइन को ही खराब कर सकते हैं.

-फंदे सदैव कड़े हाथ से और दोहरी ऊन से ही डालें क्योंकि ढीले हाथ से डाले गए फंदे बाद में और ढीले हो जाएंगे तथा स्वेटर का आकार ही बिगड़ जाएगा

-सलाइयां अच्छी कम्पनी की तीखी, मुलायम नोंक वाली, खरीदें. शाल बनाने के लिए लंबी सलाइयां खरीदें.

-बुनाई करते समय ऊन के गोलों को एक पालीथिन बैग में रखें, जब बुनाई बंद करें तो इसी में बुने स्वेटर को सलाई सहित रखें इससे आपका स्वेटर गन्दा नहीं होगा.

-गला सदैव दोनों तरफ नोंक वाली चार सलाइयों से ही बनाएं. इनसे गले में अच्छी सफाई आती है.

-छोटे बच्चों के स्वेटर पर ऊपर किसी भी प्रकार के मोती, नग, सितारे, कुंदन आदि न लगाएं क्योंकि वे इन्हें मुंह में दे सकते हैं. उनके स्वेटर पर कढ़ाई इत्यादि करने के लिए धागे या ऊन का ही प्रयोग करें.

-स्वेटर बनाने के बाद उल्टी तरफ निकले धागों और गांठो को कैंची से थोड़ा सा काटकर क्रोशिया या सलाई की सहायता से ऊन के धागों में छिपा दें.

-यदि आप कोई नया पैटर्न बना रहीं हैं तो पहले उसे किसी दूसरी ऊन से बनाकर देखें यदि आप सन्तुष्ट हो जाएं तो नई ऊन पर बनाएं.

-जहां तक सम्भव हो छोटे बच्चों के स्वेटर एक से अधिक रंग के और अधिक डिजाइन वाले न बनाएं ताकि उनके हाथ पैर आदि इनके धागों में न उलझें.

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-दो रंग का स्वेटर बनाते समय एक रंग की अपेक्षा 10-12फंदे अधिक डालें क्योकि दो रंग के धागे आपस में उलझकर खिंचते हैं.

-स्वेटर को यदि एक ही हाथ से बनाया जाना ठीक रहता है क्योंकि हर एक के हाथ की बुनाई अलग अलग होती है.

-पूरा स्वेटर बन जाने के बाद उसे भली भांति सिलकर किसी तरल सॉफ्ट डिटर्जेंट से धोकर प्रयोग करें.

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