ड्राय ब्रशिंग से निखारें ख़ूबसूरती

स्किन के टेक्स्चर को सुधारने के लिए ड्राय ब्रशिंग आज बेहतर विकल्प है. जिसका इस्तेमाल आज महिलाएं खूब कर रहीं हैं. इस बारे में मेहरीन मेकओवर्स की एक्सपर्ट मेहरीन कौसर कहतीं हैं कि ड्राय ब्रशिंग दुनिया में सबसे बड़ी ब्यूटी ट्रेंड्स में से एक है, जिसे बॉलीवुड एक्‍ट्रेस से लेकर आम महिलाएं भी इस्‍तेमाल करती हैं. आखिर क्या है ड्राय ब्रशिंग कैसे होती है और इसके क्‍या-क्‍या फायदे हैं? आइये जानें –

ड्राय ब्रशिंग क्या है

ड्राय ब्रशिंग का मतलब है ड्राय स्किन को ब्रश करना। ड्राय ब्रश का इस्तेमाल ना सिर्फ शरीर की डेड स्किन को निकालने के लिए बल्कि चेहरे की डेड स्किन को निकालने में भी किया जाता हैं. इसमें किसी तरह के साबुन और पानी की जरूरत नहीं है. लेकिन चेहरे पर इन ब्रश का इस्तेमाल काफी आराम और सावधानी से करना चाहिए.

ड्राय ब्रश का इस्तेमाल कैसे करें

नहाने से पहले स्किन पर ब्रश 10-15 तक धीरे-धीरे रगड़ें. ड्राय ब्रश का इस्तेमाल आप एड़ी से शुरू कर सकती हैं. उसके बाद आप अपने पेट और गले को ब्रश कर सकती हैं. ब्रश को सर्कुलेशन मोशन में चलाएं. इसी तरह से पूरे शरीर पर ड्राय ब्रशिंग करें. इस बात का विशेष ध्यान रखें कि ब्रश का इस्तेमाल ज्यादा तेजी से शरीर में ना करें. क्योंकि इससे आपको जलन या खुजली भी हो सकती हैं. ब्रशिंग करने के बाद हल्के गर्म पानी से शॉवर लें.

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कैसे चुनें ब्रशेस

मेहरीन कहतीं हैं ये ब्रशेस नैचुरल, सिंथेटिक फ़ाइबर या दोनों से मिलाकर बनाए जाते हैं इसलिए जिनकी त्वचा संवेदनशील है वो सिलिकॉन से बनाए हुए ब्रशेस का इस्तेमाल करें. नॉर्मल और ऑयली स्किन वाले हाइब्रिड से बनाए हुए ब्रश चुनें.

ड्राय ब्रश के फायदे

ड्राइ ब्रश करने के कई फ़ायदे हैं जैसे –

ड्राय ब्रशिंग से त्वचा पर मौजूद मृत कोशिकाएं यानी डेड स्किन सेल्स हट जाती है और त्वचा में निखार आता है.

ड्राय ब्रशिंग से त्वचा के बंद रोमछिद्र खुल जाते हैं और त्वचा सांस ले पाती है.

ब्रशिंग से ब्लड सर्कुलेशन में निखार आता है, जिससे त्वचा की रंगत निखरती है साथ ही त्वचा जवां व कोमल नज़र आने लगती है.

ड्राय ब्रशिंग से त्वचा चिकनी और भरी-भरी नज़र आती है और साथ ही खिली-खिली नज़र आती है.

ड्राय ब्रशिंग से चेहरे की डेड स्किन सेल्स और अन्य अशुद्धियां हट जाती हैं, जिससे चेहरे पर मुहांसे व ब्लैकहेड्स में कमी आती है.

ड्राय ब्रशिंग से बालों की ग्रोथ स्लो हो जाती है. पर अगर आप इसे शेड्यूल में शामिल करेंगी तब.

अगर आप रोजाना केवल पांच मिनट ड्राय ब्रशिंग करती हैं, तो बॉडी में जमा फैट कम होना शुरू हो जाता है.

इन बातों का ध्यान रखें:

चेहरे की ड्राय ब्रशिंग करना चाहती हैं तो इसके लिए ख़ासतौर पर बनाए गए ब्रश का ही इस्तेमाल करें.

बॉडी ड्राय ब्रश का इस्तेमाल चेहरे के लिए करने की ग़लती कभी भी न करें.

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अगर चेहरे पर रेडनेस या किसी भी प्रकार के रैशेस आते हैं, तो इसका इस्तेमाल करना बंद कर दें.

इस बात का खास ध्यान रखें कि आप अपना ब्रश किसी के साथ भी साझा ना करें.

यदि आप त्वचा की समस्याओं से गुज़र रही हैं, तो इसका इस्तेमाल करने से पहले एक बार स्किन एक्स्पर्ट से सलाह ज़रूर लें.

ड्राइ ब्रशिंग के तुरंत बाद आपको सीरम, मॉइस्चराइज़र या सनस्क्रीन का इस्तेमाल करना चाहिए.

ब्रशिंग के लिए हमेशा सॉफ्ट ब्रश का प्रयोग करें जैसे लंबे हैंडल वाला ब्रश व लूफाह.

कभी भी ब्रश को पानी से भीगोएं नहीं. हमेशा सूखे ब्रश का प्रयोग करें.

ब्रश को कम से कम हफ्ते में एक बार पानी या साबुन से जरूर धोएं.

जब आप ब्रश को धोएं तो उसे कुछ देऱ हवा में सूखने के लिए रख दें. अच्छी तरह सूखने के बाद ही इसे दोबारा प्रयोग करें.

नहीं बदला है मर्दो के प्रति नजरिया

राइटर- शैलेंद्र सिंह

आदमी औरत मिलकर ना केवल घर चलाते है बल्कि समाज और देश के विकास में भी उनकी भागीदारी अहम होती है. अगर दोनो के बीच दूरियां बढ जायेगी तो घर परिवार समाज और देश की संरचना बदल जायेगी. कल्पना कीजियें की किसी एक जगह केवल आदमी ही आदमी हो और किसी एक जगह केवल औरतें तो माहौल कैसा होगा ? ऐसा माहौल शायद किसी को भी पसंद नहीं आयेगा. वैसे तो कहा जाता है कि औरत पति की अर्धागिनी है. गृहस्थी की गाडी के दो पहिये है. तरक्की वहीं होती है जहां आदमी औरत कंधे से कंधा मिलाकर काम करते है. इसके बावजूद आज भी औरतें हर आदमी पर शक करती है और आदमी हर अकेली औरत को अभी भी शक की नजर से देखती है.

आधुनिक समाज में औरतों के अधिकार, शिक्षा और बराबरी की बातें धार्मिक प्रचार के कारण नदी के पानी ही तरह से बह गई है. धार्मिक प्रचार में औरतों को कमजोर बताया जाता है. इसका असर यह होता है कि औरत हर फैसला करने के पहले आदमी पर निर्भर होती है. यहां पर कई बार उसे आदमी पर भरोसा करने की कीमत भी चुकानी पडती है. जिसकी वजह से आदमी पर औरतों का शक बढने लगा है. तेजी से एक विचारधारा बनने लगी है कि औरतें आदमी के बिना रह सकती है. कुछ औरतों ने सिंगल रहने की दिशा में काम भी शुरू दिया है.

ऐसी महिलाएं नारीवादी विचारधारा में सेरोगेसी के जरीये मां बनने लगी है. कुछ बच्चों को गोद लेने लगी है. कुछ औरतें आदमियों के बजाये औरतों के साथ संबंधों में ज्यादा सुरक्षित महसूस करने लगी है. सैक्सुअली भी सेक्स ट्वायज का उपयोग महिलाओं में बढना शुरू हो गया है. इन हालातों से आदमी और औरतों के बीच स्वाभाविक रिश्ते बदलने लगे है. यह आधुनिक समाज की ही बात नहीं है. पहले भी ऐसी सोचं वाली महिलाएं थी अब इनकी संख्या तेजी से बढने लगी है. आधुनिक समाज में इसके कारण भी अलग होने लगे है.

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महिलाओं के प्रति बढते अपराध:
महिलाओं के प्रति बढते अपराध के मामले सोशल मीडिया पर ऐसे मैसेज वायरल होते है जैसे समाज का हर पुरूष अपराधी हो. महिलाएं करीबी लोगो तक पर भरोसा नहीं कर पा रहीं है. सिंगल महिलाओं की संख्या समाज में बढती जा रही है. लडकियां अपने साथी पर खुलकर यकीन नहीं कर पा रही. महिलाओं के मन में पुरूषों के प्रति असुरक्षा की भावना बढती जा रही है. ऐसे में दोनो के बीच स्वाभाविक रिश्ते बिगडने लगे है. महिलाएं जहां नारीवादी सोंच का षिकार हो कर अपने सहयोगी पुरूषों को भी शका की नजर से देखने लगी है वहीं पुरूष भी महिलाओं पर भरोसा नहीं कर पा रहा. उसका डर है कि महिला का रूख बदलते ही वह अपराधी की श्रेणी में खडा हो सकता है.

पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के हाथरस में दलित लडकी के साथ गैंगरेप की घटना घटी. उसी समय लडकियों और महिलाओं के साथ अपराध की दूसरी तमाम घटनायें भी सुर्खियों में सुनाई देने लगी. समाज में एक ऐसा माहौल बन गया जैसे कि हर पुरूष अपराधी हो. महिलाएं हर पुरूष को शका की नजर से देखने लगी. वैसे देखा जाये तो यह पहली बार नहीं हुआ है. 2012 में जब दिल्ली में निर्भया कांड हुआ उसके बाद तो देश भर में महिला अपराध के खिलाफ माहौल तैयार हो गया. महिलाओं की सुरक्षा के लिये कठोर कानून तैयार हो गया. जिसमें महिलाओं को देखने और घूरने तक को अपराध की सूची में डाल दिया गया. सुरक्षा संगठन की शालिनी माथुर कहती है ‘महिलाओं के खिलाफ अपराधों से उनके मन में पुरूषों के प्रति एक डर तो बैठ ही रहा है. अगर एक लडकी किसी से प्यार नहीं करना चाहती, उससे शादी नहीं करना चाहती ऐसे में किसी लडके को यह अधिकार कहां से मिल जाता है कि वह उस लडकी की जान ले ले.’

शालिनी माथुर कहती है ‘हरियाणा के वल्लभगढ में निकिता हत्याकांड में यह मानसिकता देखने को मिली. यह पुरूषवादी सोंच है जो औरतों के मन में पुरूष के प्रति नफरत और भय की मानसिकता को बढावा देती है. महिला और पुरूष के प्रति अपराध को लेकर कानून और समाज भी भेदभाव करता है अपराध को अपराध की नजर से नहीं देखा जाता. वल्लभगढ की घटना की जघन्य थी. सरेआम किसी लडकी को कार में खीचना और वह बैठने से इंकार कर दे उसको गोली से मार देना. इसके बाद भी समाज, सरकार और मीडिया हाथरस की तरह प्रतिक्रिया देने को तैयार नहीं हुआ. इससे अपराधी को षह मिलती है. अपराध को केवल अपराध की नजर से देखा जाये तभी उसका असर पड सकेगा.‘

बलात्कार से कम नहीं होती घूरती निगाहें :
किसी जगह पर अगर कोई लडकी कम कपडों में घूमने जाती है उसको हर निगाह घूरने लगती है. मध्य प्रदेश की वीरासनी बघेल लखनऊ में रहती है. यही जौब करती है. उनका कहना है ‘थोडे भी फैशनेबल कपडे पहन कर अगर घूमने या होटल रेस्त्रां में पहंुच जाये तो लोगांे की निगाहें ऐसे घूरती है जैसे बलात्कार कर देगी. रास्तें में चलते समय अगर कभी लगता है कि कोई मेरा पीछा कर रहा तो सबसे पहले यही ख्याल आता है कि कोई पुरूष पीछा तो नहीं कर रहा. अपने दोस्तों के साथ घूमने जाने पर भी चिंता लगी रहती है. कहीं किसी मुसीबत में ना पड जाये. यही सब कारण है जो मर्दो के प्रति सोंच नजरिया बदल रहा है.’

अकेली रहने वाली रीना गुप्ता कहती है ‘एक बार मैं रात में होटल में रूकने गई. मैंने अपना पूरा परिचय दिया. आधार कार्ड दिया. इसके बाद भी होटल वाले ने कमरा देने से पहले इतने सवाल किये जैसे मैं आतंकवादी हॅू. यहां तक कह दिया गया कि रूम में किसी पुरूष से मिलना नहीं है. किसी से मिलना है तो होटल की लौबी या रेस्त्रा में मिल लूं. जबकि गैर कानूनी रूप से इन्ही होटलों में गलत काम करने वालों को आराम से जगह मिल जाती है. मुझे अकेली होटल मंे देखकर होटल वालों को यह यकीन नहीं हो रहा था कि मैं अकेले रूकने आई हॅू. उनको लग रहा था कि मेरे से मिलने कोई ना कोई आने वाला है. इसी वजह यह है कि अकेली महिला के चरित्र को शका की नजर से देखा जाता है. जो हमारे चरित्र को गलत निगाह से देखता है वही हमको लेकर मौके की तलाश में रहता है. यही डर हमें मर्दो के प्रति शका के भाव से भर देता है.’

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महिलाओं के प्रति बढते अपराध प्रमुख वजह:
महिलाओं और पुरूषों के बीच बढती दूरी का प्रमुख कारण महिलाओं के प्रति बढते अपराध है. इसने दोनो के बीच खांई को बढा दिया है. महिलाओं को लगता है कि उनके प्रति खतरा बढ रहा है. अपराध के राष्ट्रीय आंकडे बताते है कि 2019 में महिलाओं के प्रति 4 लाख 5 हजार 861 मामले दर्ज किये गये. 2018 के मुकाबले यह आंकडे 7 फीसदी अधिक है. इनमें से ज्यादा मामले पति और रिश्तेदारों के द्वारा किये गये थे. अपराध के आंकडे ही नहीं बढे बल्कि अपराध का तरीका भी बदल गया है. अपराध के मामलों में जघन्यता बढती जा है. कुछ साल पहले लखनऊ में आपसी प्रेम में लडके ने अपनी प्रेमिका की हत्या करके उसकी बौडी को 3 टुकडों में बांटकर सडक के किनारे फेंक दिया. ऐसे तमाम उदाहरण है.

प्यार, दोस्ती, टार्चर और ब्लैकमेल करने के मामले आदमी और औरत के बीच दूरी बढाने का काम कर रहे है. 2013 में मुम्बई में शक्तिमिल में 22 साल की महिला फोटोग्राफर के साथ हत्या और गैंगरेप की घटना केवल अकेली लडकी ही नहीं उसके परिवार के मन में भी भय पैदा करता है. हैदराबाद में भी लडकी के साथ गैंगरेप और हत्या की घटना सभी के सामने है. महिलाओं के साथ घटने वाली अपराध की घटनायें बहुत वीभत्स होने लगी है. यह मामले बताते है कि अपराध करने वाला केवल अपराध ही नहीं करता घृणा के भाव तक जाकर अपराध करता है. उससे भी बडी बात यह है समाज अपराधी को दोष देने की जगह पर लडकी को ही दोष देने लगता है. यहां पर लडकी के कपडे, उसका रात में बाहर निकलना ऐसे कई सवाल खडे हो जाते है. अपराध अपराध को फर्क की नजर से देखा जाता है.

हिलाओं के प्रति अपराध में वीभत्सता हर स्तर पर बढ गई है. बलात्कार के मामलें देखे तो कठुआ कश्मीर में 8 साल की लडकी के साथ गैंगरेप से लेकर 60-70 साल तक की महिलाओं के प्रति यौन अपराध के उदाहरण मौजूद है. यह बताते है कि महिलाओं के प्रति अपराध को लेकर किसी तरह की हैवानी सोंच सामज के पुरूष वर्ग में छाई हुई है. जब ऐसे उदाहरणों को देखते है तो लगता है कि महिलाओं के मन में पुरूषों को लेकर जो नजरिया बदल रहा है वह सही ही है. एक तरफ समाज कहता है कि महिला और पुरूष को कंधे से कंधा मिलाकर चलना चाहिये. दूसरी तरफ अपने साथ काम करने वाली लडकी के प्रति मन में हमेशा उससे छल करने की भावना बनी रहती है.

कानून से सहायता नहीं:
कानून और समाज बहुत सारे बदलाव की दुहाई देता है पर गंभीरता से देखे तो थानों में शिकायत नही लिखी जाती, कोर्ट जल्दी फैसला नही देता और समाज बलात्कार की पीडित को ही गलत नजरों से देखने का काम करता है. हाथरस कांड में लडकी की एफआईआर एक सप्ताह में 3 बार लिखी गई. जैसे दबाव पीडित बना लेगा वैसा मुकदमा लिखा जाता है. अगर किसी लडकी के साथ कोई घटना घट जाये वह अपना दर्द बताना चाहे तो उसकी बात कोई मानता नहीं और लडकी को ही सलाह दी जाने लगती है. केवल छोटी घटनाओं के मामलें में ही नहीं संसद में बहस तक के मामलें में यह भेदभाव देखने कोे मिलता है. संसद में जब महिला हिंसा के खिलाफ कानून पर समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि ‘लडको से ऐसी गलतियां हो जाती है’.

मुलायम सिंह यादव अकेले ऐसा नेता नहीं जो इस तरह के विचार व्यक्त कर चुके है. ऐसे नेताओं की लंबी लिस्ट है. जो छोटे कपडो, अंग प्रदर्शन, अश्लील फिल्मों जैसी वजहों को महिलाओं के प्रति अपराध का कारण मानते है. अगर समाज में कोई लडकी, महिला बेखौफ होकर घूम नहीं सकती. अकेले किसी होटल, सिनेमाहाल, ट्रेन, बस में सफर नहीं कर सकती तो उसका आदमियों से डर स्वभाविक ही है. अगर लडकी को समाज में बेखौफ रहने के लिये हथियार का लाइसेंस लेकर चलना पडे या हमेषा मारधाड के लिये तैयार रहना पडे तो यह सभ्य समाज नहीं हो सकता. अपने खिलाफ बढते अपराधों के गुस्से में अगर महिलाओं का पुरूषों के प्रति नजरिया बदल रहा है तो इसमें गलत भी नहीं है.

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ऐसे समाज से निपटने के लिये फूलन देवी को हथियार उठाकर लोगों की सामूहिक हत्या करनी पडी थी. उसे चंबल में रहकर डकैत बनना पडा था. 25ह बात अपनी जगह सही है कि आदमी औरत के बीच से संसार का स्वरूप बदल जायेगा पर इसकी जिम्मेदारी पुरूषों को भी लेनी होगी. इसकी सबसे बडी वजह यह है कि यह समाज पुरूष प्रधान समाज माना जाता है. महिलाओं को भी सोचना होगा कि पुरूष के बिना संसार उनके किस काम का होगा. आदमी और औरत एक साथ चलेगे तभी दोनो का लाभ होगा. देश और समाज भी खुशहाल होगा.

सर्दियों में मुलायम स्किन के लिए अपनाएं ये टिप्स !

सर्दी का मौसम अर्थात् शुष्क त्वचा. सर्दी का मौसम हमारी कोमल त्वचा पर गहरा प्रभाव डालता है. ठंडी, सर्द, बर्फीली हवाओं का हमारी त्वचा पर कुछ ज्यादा ही असर पड़ता है. त्वचा सूखकर फटने लगती है और शुष्क होने के बाद त्वचा पर खुजली भी होने लगती है. सर्दियों में धूप में बैठना हर किसी को अच्छा लगता है मगर थोड़ी सी लापरवाही से धूप से भी त्वचा झुलसकर सांवली पड़ जाती

इस मौसम में हमें अपनी त्वचा की सामान्य देखभाल तो करनी ही चाहिए, साथ ही चेहरे और शरीर के कुछ भागों, जैसे होंठ, कोहनी, एड़ियां इत्यादि पर भी विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए. चंद सावधानियों से आप पा सकती हैं सर्दी के मौसम में भी कमनीय, कोमल और सुंदर त्वचा. तो इन्हें आजमाए और कोमल व् दमकते हुए त्वचा पाये –

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* एक बड़ा चम्मच जौ के आटे में चुटकी भर हल्दी तथा थोड़ा सा तिल का तेल मिलाकर उबटन बनाएं. इसे त्वचा पर 10 मिनट तक लगा रहने दें. उसके बाद गुनगुने पानी से धो लें. आपकी सूखी त्वचा भी कोमल बन जाएगी.

*  संतरे की फांकों को दो बड़े चम्मच पानी में उबालकर ठंडा कर छान लें और इसे अपनी त्वचा पर 10 मिनट तक लगा रहने दें. अब गुनगुने पानी से स्नानं  कर लें.

*  चीकू के गूदे को 20 मिनट तक त्वचा पर मलकर रखें. फिर गुनगुने पानी से धो लें. त्वचा अनोखी आभा से खिल उठेगी.

* नींबू का रस, ग्लिसरीन तथा गुलाब जल को बराबर मात्रा में मिलाकर शरीर के खुले भागों पर लगाएं. इससे त्वचा चमक उठेगी और त्वचा का फटना भी रूक जाएगा.

* सर्दियों में हमेशा गुनगुने पानी का प्रयोग करें क्योंकि ठंडा पानी त्वचा तक आक्सीजन को पहुंचने में बाधा उत्पन्न करता है.

*  त्वचा की खुश्की दूर करने के लिए गुलाब जल में जैतून के तेल की कुछ बूंदें और थोड़ा सा कच्चा दूध मिलाएं. इसे हल्के हाथों से त्वचा पर मलें. 10 मिनट बाद गुनगुने पानी से स्नान कर लें.

*  गाजर और टमाटर का रस निकालकर चेहरे पर लगाएं. सूख जाने के बाद गुनगुने पानी से चेहरा धो लें.

*   होंठों की त्वचा बहुत पतली होती है और चिकनाहट देने वाली ग्रंथियों की कमी होती है, इसलिए होंठ बहुत जल्दी सूख जाते हैं और फटने लगता है. क्लीजिंग के बाद बादाम युक्त क्रीम होंठों पर लगाएं और पूरी रात लगी रहने दें. यह त्वचा को कोमल बनाती है.

* घरेलू उपचार के रूप में त्वचा को कोमल एवं कमनीय बनाने के लिए बादाम का तेल या दूध की मलाई भी प्रयोग की जा सकती है.

* स्नान से पहले हल्दी व नींबू युक्त क्रीम का इस्तेमाल करना चाहिए. इससे त्वचा कोमल हो जाती है.

*  सर्दियों में कोहनी पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है. इस भाग की त्वचा बहुत रूखी और कड़ी होती है क्योंकि यहां तैलीय ग्रंथियां नहीं होती. नींबू के दो भाग करके कोहनियों पर रगड़ें. इससे कोहनियों का रंग साफ हो जाता है.

* स्नान करने के बाद कोहनियों पर मॉइश्चराइजर क्रीम अवश्य लगाएं.

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खुशहाल मैरिड लाइफ के लिए फिक्स कर ले सेक्स का टाइम

राइटर- शैलेंद्र सिंह

कोरोना काल में सेक्स सबसे बडी परेशानी का सबब बन गया है. बिना तैयारी के सेक्स से गर्भ ठहरने लगाहै. उम्रदराज लोगों के सामने ऐसी परेशानियां खडी हो गई है. स्कूल बंद होने से बच्चों के घर पर रहने से पति पत्नी को अपने लिये समय निकालना मुश्किल होने लगा. बाहर आना जाना बंद हो गया. कभी पति के पास समय है तो कभी पत्नी का मूड नहीं. कभी पत्नी का मूड बना तो पति को औनलाइन वर्क से समय नहीं. ऐसे में आपसी तनाव, झगडे और जल्दी सेक्स की आदत आम होने लगी है. जिस वजह से आपसी झगडे बढने लगे है. ऐसे में जरूरी है कि आपस में समय तय करके सेक्स करे. जिससे आपसी झगडे कम होगे तालमेल बढेगा.

रीना की शादी को 5 साल हो गये थे. उसका पति सुरेश देर रात में काम से लौटता था. शादी के शुरूआती दिनों में तो सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. कुछ समय से दोनो के बीच परेशानी आ गयी थी. परेशानी कीवजह यह थी कि घर के काम से थक कर रीना जल्दी सो जाती थी. आफिस से देर से लौटने के बाद भी सुरश को नींद नही आती थी. ऐसे समय पर वह नेहा के साथ प्यार और हमबिस्तर होने की कोशिश करता थ.पति का यह काम रीना को बहुत खराब लगता था. वह कहती कि उसको नींद आ रही है. सोने के बाद उसे सेक्स करने का मन नही करता  वह पति से कहती कि सोने के पहले इस काम को करने में क्या परेशानी आती है. इस बात को लेकर रीना और सुरेश की अक्सर झिकझिक होती थी. इस कारण कई बार तो चाहतेहुये भी दोनो महीनों तक सेक्स संबंध ही नही बना पाते थे सुरेश कहता कि मेरा तो मन रात में ही सेक्स करने का होता है.

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रीना से उल्टी परेशानी नेहा और प्रदीप की भी है. प्रदीप रात को घर वापस आता था.  खाना खाने के बाद कुछ अपना काम करता, टीवी देखता और फिर सो जाता था. सुबह वह लगभग 4 बजे उठ जाता था. इस समय उसका मन सेक्स करने का होता था जब वह रीना को इसके लिये तैयार होने के लिये कहता तो वह मना कर देती. उसका कहना था कि इस तरह सुबह सुबह उसका मन नही होता है. दोनो के बीच सेक्स के समय को लेकर झिकझिक होती. रीना कहती कि जब रात में टीवी देखकर सो जाते हो उस समय भी तो इस काम को कर सकते हो ? रीना और नेहा जैसी परेशानियां दूसरे लोगो के सामने भी आती है. यह समस्या केवल आदमियों की ही नही होती. औरतों में भी सेक्स के समय को लेकर उलझन होती है.

शादी की शुरूआती दिनों में तो औरत और आदमी के बीच सेक्स संबंध ठीक तरह से चलते रहते है. समय के साथ साथ यह समय बिगडने लगता है. किसी को रात का समय अच्छा लगता है तो किसी को सुबह का समय अच्छा लगता है. सेक्स दो लोगो के बीच होता है इसलिये यह भी जरूरी हो जाता हे कि दूसरा पार्टनर भी उसी हिसाब से अपना समय तय कर ले. जिन जोडो के बीच सेक्स के समय का यह सामाजस्य नहीं बैठता है वही पर विवाद खडे हो जाते है.

यह परेशानी नई नही है. पहले औरतों की इच्छा को कोई महत्व नही दिया जाता था.  पत्नी की रजामंदी का कोई मतलब नही होता था. पति जब चाहता था पत्नी को उसके सामने आत्मसमर्पण करना ही पडता था. सेक्स के प्रति औरतो की बदलती सोंच से सेक्स के समय का विवाद और भी तेजी से उभर कर सामने आ रहा है और पति पत्नी के बीच झगडे की वजह बनता जा रहा है. इस तरह की परेशानियां लेकर कई जोडे आते है. इस मानसिक तनाव के कारण बच्चा पैदा करने में भी परेशानी आती है. कई जोडो में सेक्स के टाइम को मैनेज करने मात्र से ही बच्चा पैदा करने मे सफलता हासिल हो गयी.

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टकराव की वजह:
सेक्स के समय को लेकर शुरू हुई तकरार में अहम का टकराव हो जाता है. ज्यादातर यह तकरार 35 सालकी उम्र के बाद शुरू होती है. इस समय पति या पत्नी दोनो के ऊपर आफिस या कारोबार की जिम्मेदारी बढ जाती है. सेक्स के लिये समय का चुनाव करना यही से शुरू हो जाता है. आमतौर पर पत्नी यह चाहती है कि जब बच्चे सो जाये तो सेक्स शुरू हो. पति या तो सेक्स शुरू करने का उतावलापन दिखाता है या फिर सो जाता है और सुबह जब पत्नी को जल्दी उठकर घर के काम, बच्चो का टिफिन, पति के लिये नाश्ता तैयार करना होता है तो वह सेक्स की इच्छा जाहिर करता है. पत्नी को सेक्स के लिये मानसिक रूप से तैयार होना पडता है. जब वह इसके लिये न करती है तो पति नाराज हो जाता है. उसके लगता है कि रात या सुबह दोनो समय इंकार ही करती रहती हो.

पतिपत्नी के इस व्यवहार को ज्यादातर लोग यह मानते है कि यह सामान्य प्रक्रिया है. जो समय के साथ ठीक हो जायेगी. सच्चाई यह नही है. सेक्स के लिये मूड का बनना शरीर के मेटाबॉलिज्म के हिसाब से होता है कुछ लोगो का मूड सुबह बहुत अच्छा रहता है और वह इस समय ही सेक्स करना चाहते है. इस तरह के लोगो को ‘लार्क श्रेणी’ का माना जाता है. इसके विपरीत जो लोग रात के समय सेक्स करने की इच्छा रखते है. उनको ‘आउल श्रेणी’ का माना जाता है. सेक्स के समय को लेकर जिन जोडो में ‘लार्क श्रेणी’ और ‘आउल श्रेणी’ दोनो ही तरह के लोग होते है वहां पर टकराव ज्यादा होता है. जहां पर एक ही श्रेणी के लोग होते है वहां पर टकराव नही होता है.

तय करें सेक्स का समय:
जोडो की आपसी समझदारी से इस समस्या का समाधान आसानी से किया जा सकता है. इसके लिये जरूरी है कि तकरार को छोड कर सेक्स लाइफ को पटरी पर लाने के लिये साथ साथ छुटिटयां बिताई जाये. सेक्स समय के झगडे को खत्म करने के लिये अपने अपने अहम को पीछे छोडना होगा. सेक्स समय की परेशानी से जूझ रहे जोडो के लिये कारगार हो सकते है. सेक्स समय की उलझन को सुलझाने के लिये पति पत्नी दोनो को सेक्स के लिये ऐसे समय का चुनाव करे जो दोनो को ही मान्य हो यह समय किसी को नागवार नही होना चाहिये.

सेक्स के समय को तय करने के लिये एक डायरी भी तैयार कर सकते है. इसमें दोनो लोगो की सहमति से दिन तारीख और समय को लिखा जाये. इसका पूरी तरह से पालन किया जाये. इसका सबसे बडा फायदा यह है कि उस दिन आप पहले से ही सेक्स के लिये मानसिक रूप से तैयार रहेगे. सेक्स के लिये एक अपाइनमेंट से दूसरे अपाइनमेंट के बीच एक से दो सप्ताह को समय जरूर रखना चाहिये.

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अगले अपाइनमेंट में सेक्स को लेकर अलग अलग तरह की कल्पना भी करेगे इस दौरान दोनो ही लोगो को सेक्स के दौरान आये खुशनुमा क्षणों का मजा लेने में आसानी होती है. कुछ समय तक इस उपाय को करने से सेक्स समय की परेशानी खत्म हो जाती है. इसका पालन आगे भी जारी रखे. जिससे आपकी सेक्स लाइफ ट्रैक पर चलती रहे.

मैं लाइट मेकअप करना चाहती हूं, इसका सही तरीका बताएं?

सवाल…

मेरी उम्र 21 साल है. मैं इन दिनों लाइट मेकअप करना चाहती हूं. कृपया इस का सही तरीका बताएं?

जवाब…

मेकअप करने से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि आप का चेहरा पूरी तरह साफ हो. टोनर का इस्तेमाल करने से मेकअप फैलता नहीं है. लाइट मेकअप करते समय काजल का इस्तेमाल जरूर करें. लाइट मेकअप करते समय गाढ़े रंग का शैडो लगाने से बचें और अगर लगाना ही है तो न्यूट्रल कलर का इस्तेमाल करें. लाइट कलर की लिपस्टिक को ग्लौस के साथ लगाना बेहतर होगा. कोशिश करें कि आप ग्लिटर का इस्तेमाल न करें. दिन में धूप और गरमी के कारण आप का मेकअप खराब हो सकता है. इसलिए हमेशा वाटरप्रूफ ब्यूटी प्रोडक्ट्स का ही इस्तेमाल करें. मेकअप करने से 20 मिनट पहले सनस्क्रीन लगाना न भूलें.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
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सर्दियों के लिए परफेक्ट है ये क्लेक्शन

सर्दियों का मौसम शुरू हो चुका है. लोगों ने अपने गर्म कपड़े पहनना शुरू कर दिया है. वहीं सर्दियों में फैशन की बात करें तो लोगों के पास सिर्फ स्वैटर्स का ही औप्शन होता है, लेकिन आज हम आपको विंटर कलेक्शन के कुछ फैशनेबल ट्रेंड बताएंगे, जिसे आप इन सर्दियों में औफिस से लेकर आउटिंग के लिए ट्राय कर सकते हैं. साथ ही ये आप डेली आउटफिट के साथ भी कैरी हो जाएंगे. तो आइए आपको बताते हैं ट्रेंडी विंटर क्लेक्शन…

1. लौंग कोट है सर्दियों के लिए परफेक्ट

अगर आप वर्किंग वूमन हैं तो ये आउटफिट आपके लिए परफेक्ट है. सिंपल वाइट लौंग कोट आजकल फैशन ट्रेंड हैं ये जींस से लेकर पैंट किसी भी आउटफिट के साथ मैच कर सकते हैं. इसीलिए आप इसे अपने विंटर क्लेक्शन में एड कर सकते हैं.

 

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Can everywhere have mirrors in the street? Would make taking my outfit pics so much easier ?

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2. चेक पैटर्न है पौपुलर

आजकल कपड़ों के मामले में चेक पैटर्न काफी पौपुलर है. ये आपके लुक के लिए भी परफेक्ट है. अगर आप हेल्दी हैं तो स्ट्रेट लौंग चेक पैटर्न आपके लिए परफेक्ट रहेगा. और अगर आप पतले हैं तो भी चैक पैटर्न आपके लिए परफेक्ट औप्शन है.

3. डार्क ब्लेजर है परफेक्ट

डार्क ब्लेजर आपके लुक के लिए परफेक्ट है. अगर आप वर्किंग वूमन हैं और डेली पैंट और जींस पहनती हैं तो ये आपके लुक के लिए परफेक्ट है.

4. मल्टी कलर श्रग करें ट्राय


आजकल मार्केट में मल्टी कलर वाले विंटर श्रग काफी पौपुलर हैं. अगर आप कौलेज गोइंग गर्ल हैं और अपने फैशन को अप टू डेट बनाना चाहती हैं तो मल्टी कलर श्रग ट्राय करना न भूलें.

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#BeTheBetterGuy: कोविड-19 से बचना है तो कार को ऐसे करें सेनेटाइज

कोविड-19 इन दिनों तेजी से अपने पांव पसार रहा है, खासकर दिल्ली एनसीआर में इसका खतरा ज्यादा है. कोरोना वायरस से बचने के लिए समय-समय पर कार को सेनेटाइज करना भी बेहद जरूरी है. वरना कार से भी संक्रमण फैल सकता है. जिससे कार चलाने वाले और इसमें बैठने वाले दोनों इसकी चपेट में आ सकते हैं. आप एक बार कार का इस्तेमाल करने के बाद जब दोबोरा ड्राइव करने जाते हैं तो इस बात का ध्यान रखें कि कार को एंटीमाइक्रोबियल धुएं या सतह से सेनेटाइज किया गया हो. ताकि अगली बार जब आप इसमें बैठकर ट्रेवल करें तो सुरक्षा को लेकर आपके मन में शांति रहे और आप निश्चिंत रहें.

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वहीं कार में आपके साथ कोई भी ट्रेवल करता है तो कार का सेनेटाइजेशन आपके लिए और भी जरूरी हो जाता है. खासकर तब आपकी कार में ट्रेवेल करना वाला व्यक्ति आपके साथ नहीं रहता.

वैसे भी दरवाजे के हैंडल, लिफ्ट के बटन से संक्रमण फैलने का खतरा बना रहता है. इसलिए कार के हर हैंण्डल, स्टीयरिंग व्हील, गियर नोड, अपोल्स्टरी और सीट को जरूर साफ करें. अगर आप ऐसा करते हैं तो संक्रमण से बच सकते हैं.

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सैनिक स्कूल: अब यूनिफार्म में लड़कियां भी

दो साल पहले ‘यूपी सैनिक स्कूल’ में तब तक 58 साल के इतिहास को पलटते हुए पहली बार 17 लड़कियों को प्रवेश दिया गया था ताकि वह भी लड़कों की तरह यूनिफार्म पहन करके सैनिक, सेलर व पायलट बन सकें. हालांकि महिलाएं लंबे समय से सैनिक स्कूलों में प्रवेश के लिए आंदोलन कर रही थीं, लेकिन तब तक यह उम्मीद नहीं थी कि अगले दो सालों के भीतर ही देशभर के सैनिक स्कूलों में महिलाओं को प्रवेश का अधिकार मिल जायेगा. उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लखनऊ में 1960 में स्थापित यूपी सैनिक स्कूल तब देश का एकमात्र ऐसा सैनिक स्कूल बन गया था, जहां 17 लड़कियों को शायद प्रतीकात्मक तौरपर प्रवेश दिया गया था. शायद यह इसलिए भी संभव हुआ था, क्योंकि यूपी सैनिक स्कूल देश का एकमात्र ऐसा स्कूल था, जिसे सेना की बजाय उत्तर प्रदेश सरकार चला रही थी.

लेकिन यूपी स्कूल की प्रतीकात्मक शुरुआत रंग लायी. अब देश के सैनिक स्कूलों में लड़कियों के लिए 10 प्रतिशत सीट आरक्षित कर दी गई हैं. लड़कियां 2021-22 के अकादमिक सत्र से इसका लाभ उठा सकेंगी. रक्षा मंत्रालय के इस निर्णय से उम्मीद है कि लड़कियों को सशस्त्र बलों का हिस्सा बनने के लिए सैनिक स्कूलों की पढ़ाई प्रोत्साहित करेगी. साल 2018 में जिन 17 लड़कियों को यूपी सैनिक स्कूल में प्रवेश दिया गया था, उन्हें कक्षा 9 में प्रवेश मिला था. हालांकि यहां प्रवेश लेने वाली लड़कियों को शुरु मंे काफी कठिनाई हुई थी. लेकिन कुछ महीने गुजरने के बाद वे नये माहौल में रच बस गईं थीं. वास्तव में रक्षा मंत्रालय ने अगर दो साल बाद 10 फीसदी लड़कियों को सैनिक स्कूलों में प्रवेश की इजाजत दी है, तो सही मायनों में इसके लिए जमीन इन 17 लड़कियों ने ही तैयार की थी.

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गौरतलब है कि सैनिक स्कूलों में सवेरे 4:45 पर बिस्तर से उठना पड़ता है ताकि ग्राउंड में 6 बजे की फिजिकल एक्सरसाइज की जा सके. इसके बाद फिर 8 बजे उन्हें स्कूल जाना होता है. स्कूल के बाद दोपहर 3 बजे से 4 बजे तक आराम और फिर शाम 5 से 6 बजे तक एक घंटे की एक्सरसाइज. रात में 8 बजे डिनर लेने के बाद ‘सेल्फ-स्टडी’. रात 10:30 तक हर कोई बिस्तर में होता है. शुरु में जो लोग लड़कियों के सैनिक स्कूल में प्रवेश के पक्ष में नहीं थे, उनका तर्क होता था कि लड़कियां इतना टाइट शिड्यूल बर्दाश्त नहीं कर सकतीं. लेकिन जिन 17 लड़कियों को प्रयोग के तौरपर प्रवेश दिया गया था, वे न केवल छह महीनों में बाकी लड़कों की तरह ही इस पूरे शिड्यूल के साथ सहज हो गईं बल्कि कई मामलों में उनका परफोर्मेंस लड़कों से भी बेहतर रहा. एक्सरसाइज में भी वे लड़कों से एक कदम आगे ही चुस्त दुरुस्त साबित हुईं.

कहने का मतलब यह कि लड़कियों के परफोर्मेंस को देखकर शायद रक्षा मंत्रालय ने अफसोस जताया होगा कि आखिरकार उसने अभी तक लड़कियों को इस कदर अंडर एस्टीमेट क्यों किया था? 

           बहरहाल हिंदुस्तान में पहला सैनिक स्कूल महाराष्ट्र के सतारा में सन 1961 में खुला था. आज इनकी संख्या बढ़कर 33 हो गई है और अब भी कम से कम 12 सैनिक स्कूल प्रस्तावित हैं. सैनिक स्कूल रिहायशी स्कूल होते हैं, इनमंे अधिकतर कक्षा 6 से 12 तक के होते हैं. इनका ‘प्रमुख उद्देश्य’ अभी तक लड़कों को सेना के लिए शैक्षिक, शारीरिक व मानसिक तौरपर तैयार करना होता था. अब इस उद्देश्य में लड़कों के साथ लड़कियां भी शामिल कर ली गई हैं ताकि लड़कों की तरह वे भी नेशनल डिफेंस अकादमी में प्रवेश पा सकें. लगभग तीन साल पहले सैनिक स्कूलों में लड़कियों को प्रवेश देने का एक छोटा, शांत मगर क्रांतिकारी कदम उठाया गया था, जो अब कामयाबी की कहानी बन चुका है. यह लिंग समता की दिशा में स्वागतयोग्य कदम है.

हालांकि भारतीय सशस्त्र बलों में महिला अधिकारी 1992 से हैं, लेकिन महिलाओं को आमतौर से सहायक क्षेत्रों जैसे शिक्षा, इंजीनियरिंग, मेडिसिन आदि में ही भर्ती किया जाता था. 

           साल 2016 में ही भारतीय वायु सेना ने तीन महिला फाइटर पायलट्स को भर्ती किया. फिर भी, 1955 में पुणे में स्थापित नेशनल डिफेंस अकादमी (एनडीए), जो देश में सैन्य शिक्षा की प्रमुख संस्था है, पुरुष प्रधान ही रही. बहरहाल, अब जब सैनिक स्कूलों ने अपने दरवाजे लड़कियों के लिए खोल दिए हैं तो इस क्रांतिकारी व ऐतिहासिक कदम के चलते वह दिन दूर नहीं जब लड़कियां भी सीमा पर अपनी बहादुरी के कारनामें प्रदर्शित करती हुई नजर आयेंगी. शिक्षाविदों ने रक्षा मंत्रालय के इस निर्णय का स्वागत किया है. कपूरथला (पंजाब) के सैनिक स्कूल में हिंदी विभाग से जुड़े जेकेपी सिंह का कहना है कि इस समय सेना में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत कम है बल्कि अगर उसे कॉस्मेटिक कहा जाये तो कुछ गलत न होगा. ऐसे में सैनिक स्कूलों में लड़कियों का प्रवेश सशस्त्र बलों में महिलाओं की संख्या में सुधार लायेगा और लड़कियों को सेना में जाने के लिए प्रोत्साहित करेगा.

      अब तक ये सैनिक स्कूल लड़कों के लिए एक्सक्लूसिव रहे हैं. अब जब इनमें लड़कियों के लिए भी आरक्षण किया गया है, तो इसका अर्थ यह है कि यह को-एजुकेशन स्कूल हो जायेंगे. इसलिए यह प्रश्न प्रासंगिक है कि इसका स्कूलों के वातावरण पर किस प्रकार का प्रभाव पड़ सकता है? शिक्षाविदों के मुताबिक को-एजुकेशन के कारण लिंग मुद्दों को लेकर संवेदनशीलता में इजाफा होगा. इससे युवा लड़कियों के लिए अच्छा मार्ग निर्धारित हो जायेगा कि वह सशस्त्र बलों में उच्च पदों के लिए तैयारी व प्रवेश करें. वैसे इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि जब लड़के व लड़कियां साथ मिलकर एक ही लक्ष्य के लिए तैयारी करते हैं तो दोनों एक-दूसरे को समझ भी लेते हैं और सम्मान भी करने लगते हैं.

          लेकिन सवाल यह है कि इस क्रांतिकारी घोषणा के अनुरूप सैनिक स्कूलों में आवश्यक इंफ्रास्ट्रक्चर व संसाधनों का इंतजाम भी कर लिया गया है या नहीं? 19-वर्ष से सैनिक स्कूलों में अध्यापन का कार्य कर रहे जेकेपी सिंह का कहना है कि फिलहाल तो सिर्फ आरक्षण की घोषणा हुई है, आवश्यक संसाधनों में सुधार व वृद्धि के बारे में कोई संकेत नहीं दिया गया है, शायद कुछ दिन बाद दे दिया जाये. वह कहते हैं, “सैनिक स्कूलों में लड़कियों को प्रवेश तो बहुत पहले दे दिया जाना चाहिए था. अब स्कूलों को चाहिए कि ध्यानपूर्वक जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास करें जैसे वाशरूम, हॉस्टल, सिक्यूरिटी सर्विसेस और महिला स्टाफ जो हाउस मास्टर्स व हॉस्टल वार्डंस के रूप में 24 घंटे ड्यूटी पर रहें.”

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 सैनिक स्कूल: कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

 1961 में तत्कालीन रक्षा मंत्री वीके कृष्णा मेनन ने सैनिक स्कूलों की श्रृंखला की कल्पना की ताकि वह नेशनल डिफेंस अकादमी (एनडीए) के लिए ‘फीडर’ के रूप में काम कर सकें.

पहला सैनिक स्कूल महाराष्ट्र के सतारा में 1961 में ही आरंभ हुआ.

इस समय देश में 28 सैनिक स्कूल हैं, जिनमें 11,800 छात्र हैं. फिलहाल इन स्कूलों में 23 लड़कियां हैं और बाकी लड़के हैं. यह 2018 में ही तय हो गया था कि सभी सैनिक स्कूलों के दरवाजे लड़कियों के लिए जल्द खोले जायेंगे. 17 लड़कियां को लखनऊ के सैनिक स्कूल में तथा 6 छिंगछिप (मिजोरम) के सैनिक स्कूल में प्रवेश देकर इसकी शुरुआत की गई.

लखनऊ के स्कूल को छोड़कर, जो राज्य सरकार के अधीन है, बाकी सभी सैनिक स्कूल रक्षा मंत्रालय के तहत सैनिक स्कूल सोसाइटी चलाती है. भूमि व बिल्डिंग का पूरा खर्च संबंधित राज्य सरकारों को उठाना पड़ता है, और राज्य सरकार द्वारा ही मेरिट व आवश्यकता के आधार पर स्कालरशिप दी जाती है.

2015 में सैनिक स्कूल के 23.92 प्रतिशत कैडेट्स ने एनडीए में प्रवेश किया, यह प्रतिशत 2016 में 29.33 था और 2017 में 26.15 था.

2018 में सैनिक स्कूलों के 105 कैडेट्स ने एनडीए का 140वां पाठ्îक्रम ज्वाइन किया.

रिकार्ड्स के अनुसार अब तक सैनिक स्कूलों ने लगभग 7,000 अधिकारी सैन्य बलों को दिए हैं.

 

सुबह जल्दी जगना क्यों जरूरी है?

हर रोज रात को सोते समय हम अलार्म लगाते हैं, कि कल से सुबह जल्दी उठना शुरू करेंगे, लेकिन जब अलार्म बजता है तो इतना गुस्सा आता है कि मोबाइल को कहीं दूर उठाकर फेंक दें. बार-बार अलार्म को बंद कर देते हैं. घर वाले उठा उठाकर परेशान हो जाते हैं, लेकिन सुबह की नींद को खराब करने का मन नहीं करता. ये समस्या आजकल ज्यादातर लोगों की है. वे रोज सुबह जल्दी उठने की आदत डालना तो चाहते हैं, लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी सफल नहीं हो पाते.

यह विषय ऐसे लोगों के लिए ही है जो चाहकर भी अपनी आदतों को नहीं बदल पाते, लेकिन सबसे पहले ऐसे लोगों के लिए ये जानना जरूरी है कि दुनिया के बेहद कामयाब लोग जैसे स्टीव जॉब्स, टिम कुक, बराक ओबामा, मार्क जुकरबर्ग से लेकर नरेंद्र मोदी तक एक बात बहुत कॉमन है कि ये लोग सुबह हर हाल में जल्दी उठते हैं.

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हालांकि इसका ये मतलब नहीं है कि सुबह देर से उठने वाले लोग कामयाब नहीं होते, लेकिन सुबह जल्दी उठने वालों और देर से उठने वालों के बीच क्या फर्क होता है? सुबह जल्दी उठने के क्या फायदे होते हैं? साथ ही सुबह जल्दी उठने की आदत कैसे डाली जाए? इस बारे में हमने बात की आगरा की मोटिवेशनल स्पीकर सुचिता मिश्रा से.

जानिए सुबह उठने के फायदे

सुबह उठने से मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य बेहतर होता है. डिप्रेशन और स्ट्रेस जैसी परेशानियां नहीं सताती हैं. तमाम शोध में ये बात सामने आई है कि सुबह जो लोग जल्दी उठते हैं, उनका एनर्जी लेवल हाई होता है, दिमाग तरोताजा यानी फ्रेश होता है. इसके अलावा सुबह का वातावरण शांत होता है. लिहाजा सुबह जल्दी उठने वाले लोग अपना काम फ्रेश माइंड से और बेहतर एनर्जी के साथ अपना काम बेहतर एकाग्रता के साथ करते हैं. इससे प्रोडक्टिविटी बढ़ती है और परिणाम बेहतर आते हैं. सुबह उठने वालों को आत्मविश्वास मजबूत रहता है.

जानिए देर से उठने वालों और जल्दी उठने वालों के बीच का फर्क

आमतौर पर हर घर में दोनों तरह के लोग मिल जाते हैं, सुबह जल्दी उठने वाले भी और देर से उठने वाले भी. जब आप उन दोनों के बीच तुलना करेंगे तो पाएंगे कि जो लोग रात में देर तक जागते हैं और सुबह देर तक सोते हैं वे उठने के बाद भी खुद को फ्रेश महसूस नहीं कर पाते.

उठने के बाद उनका एनर्जी लेवल डाउन होता है. आलसपन रहता है. उठने के बाद भी वे करीब आधे से एक घंटे का समय इधर-उधर बैठकर या लेटकर गुजार देते हैं. जबकि जल्दी उठने वाले लोगों में एक अलग एनर्जी होती है. अपने महत्तवपूर्ण काम सुबह निपटा देने के बाद भी वे थकते नहीं. याद रखिए थके हुए शरीर से आप बहुत ज्यादा काम नहीं ले सकते. अगर जबरन कोशिश की तो शरीर बीमार पड़ जाएगा. इसलिए सुबह जल्दी उठने की आदत डालिए.

देर से उठने की आदत को कैसे बदलें

सबसे पहले देर से सोने की आदत को बदलें. देर से सोने के कारण हमारे शरीर की पूरी साइकिल गड़बड़ा जाती है. इसलिए रोजाना रात को कम से कम 10 से 11 के बीच जरूर सो जाएं ताकि शरीर को छह से सात घंटे की नींद मिल सके और आप सुबह समय से उठ सकें.

हर रोज रात को सोते समय खुद को ये रिमाइंड कराएं कि आपको सुबह जल्दी उठना है. इससे आपका दिमाग अलर्ट मोड पर रहेगा और आपकी आंख खुद ही सुबह जल्दी खुल जाएगी. जब भी कोई आदत बदलने की ठाने तो उस काम को कम से कम धैर्यपूर्वक 21 दिनों तक जरूर करें, क्योंकि किसी भी नई आदत को बनने में 21 से 30 दिनों का समय लगता है. अपने दिमाग को कंफर्ट जोन से बाहर निकालने के लिए खुद को किसी कारण से जोड़िए. इससे उस काम को करने की आपकी आत्मशक्ति और मजबूत होगी.

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सबसे महत्त्वपूर्ण बात जो आपके लिए समझना बहुत जरूरी है कि जितने भी कामयाब लोग हैं. उन सभी के पास एक दिन में 24 घंटे होते हैं और हमारे पास भी, लेकिन वो किस मुकाम पर बैठे हैं और हम कहां हैं. इस बात पर कभी विचार करेंगे तो आप पाएंगे कि उन सभी का टाइम मैनेजमेंट बहुत जबरदस्त होता है. वे सभी एक एक मिनट की अहमियत को समझते हैं और उसे फिजूल बर्बाद नहीं करते. इसलिए अगर आप वाकई किसी भी तरह से कामयाब होना चाहते हैं, तो ऐसे सफल लोगों के बारे में जरूर पढ़ें ताकि आपको समय की अहमियत और उसका प्रबंधन समझ में आ सके.

पोस्ट कोविड: डॉक्टर ने बताया कैसे रखें ख्याल

देश में ठण्ड और त्योहार का मौसम शुरू होते ही कोरोना के प्रति लोगों की लापरवाही देखने को मिली. जबकि ठण्ड, कोहरा और प्रदूषण ने कोरोना को और मजबूती देने का काम किया. दिल्ली में ठंड बढ़ने के साथ ही कोरोना केसेस बढ़ने लगे हैं. लोग अस्पतालों के लंबे-चौड़े खर्चों, डॉक्टर्स की लापरवाही के चलते बुखार, खांसी होने पर ना तो कोई कोरोना टेस्ट करवा रहे हैं और ना ही डॉक्टर के पास जा रहे हैं. वे घर में ही अलग कमरे में रहकर बुखार के लिए पैरासिटामॉल दवा का सेवन कर रहे हैं. साथ ही खांसी के लिए गर्म पानी का भांप ले रहे हैं. ऐसे में उनको कोरोना है या फ्लू इसका पता ही नहीं चल रहा है.

घर के अन्य लोग जो उनके कांटटैक्ट में हैं उनका बाहर के लोगों के बीच भी उठना बैठना है. जिसके चलते कोरोना को बढ़ने का अवसर मिल रहा है. कोरोना संक्रमित लोग हमारे आस-पास घूम रहे हैं और हमें पता ही नहीं है. वायरस हर इंसान की इम्यूनिटी पावर को देखकर हमला कर रहा है, किसी को कम तो किसी को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचा रहा है. इसलिए लॉकडाउन भले खत्म हो गया हो, ऑफिस जाना शुरू हो गया हो, मेट्रो, ट्रेन, बसों ने रफ्तार पकड़नी शुरू कर दी हो मगर ठण्ड के मौसम में कोरोना को लेकर हमें और ज्यादा सतर्कता और सावधानी बरतने की जरूरत है.

दिल्ली शहर में कोविड माहामारी की तीसरी लहर विकराल रूप ले चुकी है. इस आर्टिकल के माध्यम से डॉक्टर सुगंधा गुप्ता (संस्थापक व वरिष्ठ मनोचकित्सक दिल्ली माईंड क्लिनिक करोल बाग) हमें पोस्ट कोविड के बारे में पूरी जानकारी दे रहीं हैं.

क्या है कोविड की तीसरी लहर का कारण

– मौसम में बदलाव और प्रदूषकों में बढ़ोतरी – lockdown के बाद धीरे-धीरे खुलते व्यवसाय और बाजार
– त्योहारों का समय और शादियों के मुहूर्त
– pandemic fatigues यानी लंबे समय से नियमों में बंधे लोगों को छूट मिलने पर लापरवाही.

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इन बढ़ते आंकड़ों के साथ एक चीज समझनी बहुत जरूरी है और वह यह कि हम में से 60-70% लोग या तो कोविड से ग्रसित हो चुके हैं या फिर किसी कोविड पेसेंट के संबंध मे आ चुके हैं. जहां कई लोग हल्के फुल्के लक्षण आने पर भी बार-बार टेस्ट करा रहे हैं, वहीं कुछ मरीज ज्यादा बीमार होने के बावजूद भी सामाजिक बॉयोकट के डर से टेस्ट कराने से कतरा रहे हैं. तो कई लोग बिना डॉक्टर की सलाह के ही कोविड पॉजिटिव पेसेंट की पर्ची से दवाइयां खरीदकर खा रहे हैं. जिसका शरीर पर साइड इफेक्ट देखने को मिल रहा है. आपकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई हो या नेगेटिव, चाहे आप हॉस्पीटल रहकर आए हो या हों home quarantine में रहे हो, कुछ चीजों का विशेष ध्यान रखना जरूरी है.

शारीरिक स्वास्थय के लिए पोस्ट कोविड केयर

1. पौष्टिक, घर का बना आहार. तेल, चिकना, मीठा कम. प्रोटीन, फल, सलाद, जूस ज्यादा.
ओमेगा फेट्टी एसिड आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में कामगार है.

2. पूरी तरह से रिकवरी के लिए 6-7 की नींद जरूरी है.

3. व्यायाम करना बेहद जरूरी है. चाहे 15 मिनट की सूरज की रोशनी में सैर हो या कमरे में ऐरोबिक्स. कसरत आपकी मांसपेशियों में रक्त संचार बढ़ाने के साथ ही हड्डियों में कैलशियम, विटामिन डी के absorption को भी बढ़ाती है. जिससे हमारे बॉडी की स्टेमिना बढ़ने में मदद मिलती है.

4-मार्जरी आसन, भुजंगासन, अर्धचन्द्रासन और सूर्य नमस्कार) फेफड़ों और पूरे शरीर के स्वास्थय के लिए लाभ दायक हैं. मानसिक स्वास्थ्य शारीरिक के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य पर भी ध्यान देना बेहद जरूरी है.

पिछले 3 से 4 महीने में कई ऐसे मरीज हमारे पास आए जिनकी कोविड रिपोर्ट नेगेटिव हुयए एक महीने से ज्यादा हो गया है या फिर उनके परिवार में कोई पॉजिटिव था लेकिन वे निगेटिव थे लेकिन इसके बावजूद ये लोग काफी डर और भय के साथ जूझ रहे हैं. ऐसे कई लोग मानसिक रोग के साथ सामने आ रहे हैं.

इनमें से प्रमुख हैं-

1. पेनिक डिसऑर्डर – अचानक बहुत तेज घबराहट होना. जिसमें छाती में दर्द , सांस फूलना, धड़कन बढ़ना, चक्कर, उल्टी, बेहोशी जैसा मह्सूस करना, लेकिन सभी जांच नॉर्मल आती है.

2. इन्सोम्नीया – नींद न आना, सोने मे डर लगना कि कहीं नींद में कुछ हो ना जाये, सोते-सोते डर कर नींद का खुल जाना और धड़कन, पसीने आना जैसे लक्षण होते हैं.

3. Somatization डिसऑर्डर – मन में बार-बार बीमारी का वहम आना, छोटे-छोटे मामूली लक्षण पर भी डर जाना, ज्यादा चिंता करना, गूगल पर बीमारी के लक्षण ढूंढना और बार-बार डॉक्टर्स से परामर्श लेना और टेस्ट कराना. वहीं रिपोर्ट नॉर्मल आने पर भी तसल्ली ना मिल पाना.

4. Depression/अवसाद- तनाव की वजह से उदासी, मायूसी, नकारात्मक विचार आना, काम की इच्छा ना करना, जल्दी थक जाना, चिड़चिड़ा मन रहना आदि. इसके अलावा कोविड ने कई और तरह की भी भावनात्मक और मानसिक तकलीफों को भी जन्म दिया है.

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मानसिक स्वास्थ्य के लिए पोस्ट कोविड केयर

-Covid की शारीरिक दूरी को सामाजिक दूरी ना समझें.
-6 फीट की उचित दूरी से ही अपने पड़ोसी, सब्जी वाले से बात करें.
– सोशल मीडिया का सही उपयोग करते हुए अपने परिवार और रिश्तेदारों से जुड़े रहें.
– Isolated, अकेले ना रहे.
अपनी रुचि के अनुसार किसी काम मे मन लगाएं.
कोई नई हॉबी सीखें.
– व्यायाम, पौष्टिक आहार, अच्छी नींद, योग पर भी ध्यान दें.
-बार-बार अपने शरीर पर, हल्के लक्षण पर अनावश्यक ध्यान ना दें.

हर 15 मिनट में oximeter पर ऑक्सीजन नापना, हर आधे घंटे में बुखार चेक करना, गूगल पर कोविड के बारे में लगातार पढ़ते रहना, इससे संबंधी न्यूज देखना, ये सब करने से बचें. अपनी दिनचर्या व्यस्त रखें. धीरे-धीरे घर के काम काज शुरु करें, खाली सोच में समय ना बिताएं. याद रखें, कोविड महामारी अभी भी हमारे बीच मे हैं और आने वाले समय मे हमें पूरी सावधानी बरतनी है, लेकिन इस सब के साथ एक अच्छी खबर ये भी है कि फाइजर कंपनी की vaccine शोध में 90% कामगार पाई गई है और जल्दी ही हमारे बीच आने की उमीद है. इसलिए सकारात्मक रहें और अपना ख्याल रखें.

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