जब हमसफर राह से भटकता है!

पहली घटना-
राजधानी रायपुर में एक महिला ने अपने पति के खिलाफ थाने में यह रपट लिखाई कि पति ने बिना बताए उसके लॉकर से सोने-चांदी के गहने निकाले और बेच दिए.

दूसरी घटना-
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर की एक महिला ने पति के खिलाफ मामला दर्ज कराया कि उसके पति ने बिना बताए उसके बैंक अकाउंट से फर्जी हस्ताक्षर करके डेढ़ लाख रुपए निकाल लिए.

तीसरी घटना-
जिला कोरबा के थाना कटघोरा में एक पत्नी ने अपने पति के खिलाफ यह रपट लिखाई कि उसके नाम की जमीन को, पति ने बिना बताए औने पौने दामों पर बेच दिया और फर्जी हस्ताक्षर किए.

दरअसल,ऐसी घटनाएं अक्सर घटित होती रहती हैं, जब पति पत्नी के आपसी संबंधों में कुछ एक खटास पैदा हो जाती है. उनके रास्ते इस तरह अलग हो जाते हैं कि पति अपने ही पत्नी के साथ धोखाधड़ी करने लगता है, उसकी जमा पूंजी उसके पैसे, उसका स्त्रीधन, उसकी बेशकीमती प्रापर्टी को हथिया रुपए बनाता है.ऐसे में अपने पति के भरोसे में रहने वाली महिला पत्नी आखिर क्या कर सकती है?

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हमारे आस पास ऐसी अनेक घटनाएं घटित होते जाती हैं, ऐसी ही एक घटना छत्तीसगढ़ के रायपुर में घटित हुई है जिसमें पुलिस ने मामला दर्ज किया है, घटनाक्रम के अनुसार-

पति ने क्रेडिट कार्ड से पैसे खर्च कर दिये तो नाराज बीबी ने पति के खिलाफ एफ आई आर दर्ज करा दी . अब पुलिस ने इस मामले में मामला दर्ज कर आगे की कार्रवाई शुरू कर दी .मामला रायपुर के आमानाका थाना का है. महिला का आरोप है कि उसकी मर्जी के खिलाफ बिना बताए ही अलमारी में सुरक्षित, पति ने उसके दो क्रेडिट कार्ड से पौने चार लाख रुपये खर्च कर दिये हैं. अब वो ना तो पैसे लौटा रहा है और पैसे मांगने पर धमकी दे रहा है. पति के इस हरकत के खिलाफ पत्नी ने आमानाका थाने में एफआईआर दर्ज करायी है.
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ऐसे में, क्या रणनीति हो पत्नी की
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उपरोक्त घटनाक्रम के अंतर्गत कुछ ऐसा पेंच फंस जाता है कि सरल स्वभाव की महिलाएं आखिर क्या करें उन्हें समझ में नहीं आता.
इस तरह कुल मिलाकर वह पति पर विश्वास करके एक ऐसी डूबती नाव में बैठी होती हैं जिसका खेवैया उसे कहां डूबाएगा वह नहीं जानती. ऐसे में छत्तीसगढ़ की राजधानी में घटित घटना क्रम एक सिंबॉल है की महिला क्या करें यहां देखिए महिला ने क्या साहसिक कदम उठाया-
महिला का नाम अंकिता सिंह राठौर है, जबकि पति के नाम विजय विक्रम सिंह है, जो रायपुर के एक निजी कंपनी में कार्यरत है. महिला और पति के बीच कुछ दिनों से विवाद चल रहा है, जिसके बाद महिला रायपुर के सड्डू में अपने मायके में रह रही है, जबकि इससे पहले वो टाटीबंध के सर्वोदय कॉलोनी में रहती थी. इसी दौरान पति ने उसके दोनों क्रेडिट कार्ड ले लिये और उसके जरिये करीब 3 लाख 75 हजार रुपये निकालकर खर्च कर दिये. पत्नी का आरोप है कि पैसे वंदना ग्लोबल प्राइवेट लिमिटेड में खर्च किये गये हैं. मामला पुलिस के अधीन है जान जारी है मगरिया घटनाक्रम बताता है कि किस तरह महिलाओं के साथ कभी-कभी पति भी एक बैरी बनकर पेश आते हैं और उनकी अपनी अमानत को जो गाढ़े वक्त के लिए रखी होती है को उनकी बिना जानकारी के ही उड़ा कर मौज-मस्ती में खर्च कर देते हैं. लाख टके का सवाल यह है कि ऐसी परिस्थितियों में महिला क्या रास्ता अपनाएं घर के भीतर पति को समझा-बुझाकर रास्ते पर लाना जब मुश्किल और दुश्वार हो जाता है तब महिलाएं क्या करें क्योंकि अगर वह थाना जाती हैं तो पति जेल जा सकता है अगर नहीं जाती हैं तो उसका जीवन बर्बाद हो जाता है ऐसे दोराहे पर महिलाएं घने अंधेरे में रास्ता टटोलती हैं. नीचे हम बताएंगे कि ऐसी विषम परिस्थितियों में क्या करें.

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आपसी समझाइश अथवा थाने का डंडा
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महिलाएं जब अपने ही पति के द्वारा ठगी जाती हैं तो उनके सामने बड़ा यक्ष प्रश्न होता है कि वह क्या करें, महिलाएं कई बार यह सोचती है,कि जो हो गया ठीक है और उस जुल्मों को सह लेती हैं. मगर बहुतेरी महिलाएं आज इस परिस्थिति में साहस का काम लेते हुए पुलिस का सहारा लेती हैं और पति के खिलाफ मामला दर्ज कराती हैं. मगर यहां भी यह सबसे बड़ा पेंच है कि पति के के खिलाफ अगर पुलिस में दस्तक देती है तो फर्जी हस्ताक्षर और फर्जी हस्ताक्षर करके रुपए हड़पने के मामले में पति जेल भी जा सकता है.
यह एक ऐसा विकट रास्ता है जिसमें महिलाओं को आगे बढ़ने में बेहद मुश्किल पेश आती है. कुआं और खाई वाली स्थिति होती है. ऐसे में सामाजिक कार्यकर्ता और विधि के जानकार पुलिस अधिकारी इस संदर्भ में जो कह रहे हैं वह अत्यंत महत्वपूर्ण है.
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के अनुशासन समिति के अध्यक्ष बीके शुक्ला कहते हैं कि उनके 30 वर्ष के वकालत की प्रैक्टिस में कई मामले ऐसे भी आए हैं जब महिलाओं ने अपने ही पति के खिलाफ मामला दर्ज कराया और उन्हें जेल भेजा है. क्योंकि अहम खाते हुए पति झुककर, समझौता करने को तैयार नहीं होते, ऐसे में महिलाओं के पास एक ही रास्ता है वह है कानून और विधि का.
सामाजिक कार्यकर्ता शिव दास महंत के अनुसार महिलाएं सदैव पीड़ित होती रहती हैं पति जब शराब, जुआ अथवा अन्य स्त्री के संसर्ग में आ जाता है तो अपनी ही पत्नी के साथ, जिसके साथ सात फेरे लिए हैं, विवाह किया है संग निभाने का वादा किया है, धोखा घड़ी पर उतर आता है. ऐसे में पत्नी के सामने एक ही रास्ता है कि वह पुलिस के यहां दस्तक दे.
पुलिस अधिकारी विवेक शर्मा के अनुसार अक्सर महिलाएं पीड़ित होकर थाना आती हैं और पति के खिलाफ शिकायत प्रस्तुत करती हैं पुलिस पति पत्नी को समझौते के लिए प्रेरित करती है और अपेक्षा रखती है कि आपसी समझौते के तहत मामले को सुलझा लें. मगर जब पति समझने को तैयार नहीं होता तो हमारे पास कठोर कार्रवाई करने के अलावा कोई रास्ता नहीं रहता.

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बेचारी-भाग 1: मधु किसके बारे में सोचकर परेशान थी

बेचारी कामना, ‘बेचारी’ शब्द सुनसुन कर उस का मन भर गया था. कभीकभी तो वह गुस्से और क्षोभ से रो भी पड़ती थी लेकिन अनायास ही अरुण द्वारा उस के साथ विवाह प्रस्ताव रखे जाने पर बेचारी कहने वालों के मुंह बंद हो गए.

‘बेचारी कामना’, जैसे ही कामना वाशबेसिन की ओर गई, मधु बनावटी दुख भरे स्वर में बोली. दोपहर के भोजन के लिए समीर, विनय, अरुण, राधा आदि भी वहीं बैठे थे.

‘‘क्यों, क्या हुआ?’’ समीर, विनय या अरुण में से किस ने प्रश्न किया, कामना यह अंदाजा नहीं लगा पाई. मधु सोच रही थी कि उस का स्वर कामना तक नहीं पहुंच रहा था या यह जानबूझ कर ही उसे सुनाना चाहती थी.

‘‘आज फिर वर पक्ष वाले उसे देखने आ रहे हैं,’’ मधु ने बताया.

‘‘तो इस में ‘बेचारी’ वाली क्या बात है?’’ प्रश्न फिर पूछा गया.

‘‘तुम नहीं समझोगे. 2 छोटे भाई और 2 छोटी बहनें और हैं. कामना के पिता पिछले 4 वर्षों से बिस्तर पर हैं…यही अकेली कमाने वाली है.’’

‘‘फिर यह वर पक्ष का झंझट क्यों?’’

‘‘मित्र और संबंधी कटाक्ष करते हैं तो इस की मां को बुरा लगता है. उन का मुंह बंद करने के लिए यह तामझाम किया जाता है.

‘‘इन की तमाम शर्तों के बावजूद यदि लड़के वाले ‘हां’ कर दें तो?’’

‘‘तो ये लोग मना कर देंगे कि लड़की को लड़का पसंद नहीं है,’’ मधु उपहास भरे स्वर में बोली.

‘‘उफ्फ बेचारी,’’ एक स्वर उभरा.

‘‘ऐसे मातापिता भी होते हैं?’’ दूसरा स्वर सुनाई दिया.

कामना और अधिक न सुन सकी. आंखों में भर आए आंसू पोंछने के लिए मुंह धोया. तरोताजा हुई और पुन: उसी कक्ष में जा बैठी. उसे देखते ही उस की चर्चा को पूर्णविराम लग गया.

कामना सोचने लगी कि इन सब को अपने संबंध में चर्चा करने का अवसर भी तो उस ने ही दिया था. यदि उस के मन की कटुता मधु के सामने बह न निकली होती तो उसे कैसे पता चलता. मधु को दोष देने से भी क्या लाभ? जब वह स्वयं बात अपने तक सीमित न रख सकी तो मधु से ही ऐसी आशा क्यों?

भोजन का समय समाप्त होते ही कामना अपने स्थान पर जा बैठी. पर कार्य निबटाते हुए भी मन का अनमना भाव वैसे  ही बना रहा.

कामना बस की प्रतीक्षा कर रही थी कि अचानक परिचित स्वर सुनाई दिया, ‘‘आज आप के बारे में जान कर दुख हुआ.’’

चौंक कर वह पलटी तो देखा, अरुण खड़ा था.

‘‘जी?’’ कामना ने क्रोध भरी नजरों से अरुण की ओर देखा.

‘‘मधु बता रही थी कि आप के पिताजी बहुत बीमार हैं, इसलिए घर का सारा भार आप के ही कंधों पर है,’’ अरुण बोला.

‘‘जी, हां,’’ कामना ने नजरें झुका लीं.

‘‘क्या बीमारी है आप के पिताजी को?’’

‘‘पक्षाघात.’’

‘‘अरे…’’ अरुण ने सहानुभूति दिखाई तो कामना का मन हुआ कि धरती फट जाए और वह उस में समा जाए.

‘‘क्या कहा डाक्टर ने?’’ कामना अपने ही विचारों में खोई थी कि अरुण ने फिर पूछा.

‘‘जी…यही कि अपना दुखड़ा कभी किसी के सामने नहीं रोना चाहिए, नहीं तो व्यक्ति उपहास का पात्र बन जाता है,’’ कामना गुस्से से बोली.

‘‘शायद आप को बुरा लगा… विश्वास कीजिए, आप को चोट पहुंचाने का मेरा कोई इरादा नहीं था. कभीकभी दुख बांट लेने से मन हलका हो जाता है,’’ कहता हुआ अरुण अपनी बस को आते देख कर उस ओर बढ़ गया.

कामना घर पहुंची तो पड़ोस की रम्मो चाची बैठी हुई थीं.

‘‘अब तुम से क्या छिपाना, रम्मो. कामना की बात कहीं बन जाए तो हम भी बेफिक्र हो जाएं. फिर रचना का भी तो सोचना है,’’ कामना की मां उसे और रम्मो चाची को चाय का प्याला पकड़ाते हुए बोलीं.

‘‘समय आने पर सब ठीक हो जाएगा. यों व्यर्थ ही परेशान नहीं होते, सुमन,’’ रम्मो चाची बोलीं.

‘‘घबराऊं नहीं तो क्या करूं? न जाने क्यों, कहीं बात ही नहीं बनती. लोग कहते हैं कि हम कमाऊ बेटी का विवाह नहीं करना चाहते.’’

‘‘क्या कह रही हो, सुमन. कौन कह रहा था? हम क्या जानते नहीं कि तुम कामना के लिए कितनी परेशान रहती हो…आखिर उस की मां हो,’’ रम्मो चाची बोलीं.

‘‘वही नुक्कड़ वाली सरोज सब से कहती घूमती है कि हम कामना का विवाह इसलिए नहीं करना चाहते कि उस के विवाह के बाद हमारे घर का खर्च कैसे चलेगा और लोग भी तरहतरह की बातें बनाते हैं. इस बार कामना का विवाह तय हो जाए तो बातें बनाने वालों को भी मुंहतोड़ जवाब मिल जाए.’’

कहने को तो सुमन कह गईं, किंतु बात की सचाई से उन का स्वर स्वयं ही कांप गया.

‘‘यों जी छोटा नहीं करते, सुमन. सब ठीक हो जाएगा.’’

तभी कामना का छोटा भाई आ गया और रम्मो चाची उठ कर चली गईं.

सुमन कुछ देर तक तो पुत्र द्वारा लाई गई मिठाई, नमकीन आदि संभालती रहीं कि तभी उन का ध्यान गुमसुम कामना की ओर गया, ‘‘क्या है, कामना? स्वप्न देख रही हो क्या? सामने रखी चाय भी ठंडी हो गई.’’

‘‘स्वप्न नहीं, यथार्थ देख रही हूं, मां. वह कड़वा यथार्थ जो न चाहने पर भी बारबार मेरे सम्मुख आ खड़ा होता है,’’ कामना दार्शनिक अंदाज में बोली.

बेचारी: मधु किसके बारे में सोचकर परेशान थी

बेचारी-भाग 3: मधु किसके बारे में सोचकर परेशान थी

‘‘तुम्हारा तात्पर्य है कि मैं ठीक होना ही नहीं चाहता.’’

‘‘नहीं. पर आप के मन में दृढ़- विश्वास होना चाहिए कि आप एक दिन पूरी तरह स्वस्थ हो जाएंगे,’’ कामना बोली.

‘‘अभी हमारे सामने मुख्य समस्या कल आने वाले अतिथियों की है. मैं नहीं चाहता कि तुम उन के सामने कोई तमाशा करो,’’ पिता बोले.

‘‘इस के बारे में कल सोचेंगे. अभी आप आराम कीजिए,’’ कामना बात को वहीं समाप्त कर बाहर निकल गई.

दूसरे दिन सुबह ही रोमा बूआ आते ही सुमन से बोलीं, ‘‘क्या कह रही हो भाभी, कितना अच्छा घरवर है, फिर 3-3 बेटियां हैं तुम्हारी और भैया बीमार हैं… कब तक इन्हें घर बिठाए रखोगी,’’ वे तो सुमन से यह सुनते ही भड़क गईं कि कामना विवाह के लिए तैयार नहीं है.

‘‘बूआ, आप परिस्थिति की गंभीरता को समझने का यत्न क्यों नहीं करतीं. मैं विवाह कर के घर बसा लूं और यहां सब को भूल जाऊं, यह संभव नहीं है,’’ उत्तर सुमन ने नहीं, कामना ने दिया.

‘‘तुम लोग तो मुझे नीचा दिखाने में ही लगे हो…मैं तो अपना समझ कर सहायता करना चाहती थी. पर तुम लोग मुझे ही भलाबुरा कहने लगे.’’

‘‘नाराज मत हो दीदी, कामना को दुनियादारी की समझ कहां है. अब तो सब कुछ आप के ही हाथ में है,’’ सुमन बोलीं.

कुछ देर चुप्पी छाई रही.

‘‘एक बात कहूं, भाभी,’’ रोमा बोलीं.

‘‘क्या?’’

‘‘क्यों न कामना के स्थान पर रचना का विवाह कर दिया जाए. उन लोगों को तो रचना ही अधिक पसंद है. लड़के ने किसी विवाह में उसे देखा था.’’

‘‘क्या कह रही हो दीदी, छोटी का विवाह हो गया तो कामना तो जीवन भर अविवाहित रह जाएगी.’’

सुमन की बात पूरी भी नहीं हो पाई थी कि रचना बीच में बोल उठी, ‘‘मुझे क्या आप लोगों ने गुडि़या समझ लिया है कि जब चाहें जिस के साथ विवाह कर दें? दीदी 5 वर्ष से नौकरी कर रही हैं…मुझ से बड़ी हैं. उन्हें छोड़ कर मेरा विवाह करने की बात आप के मन में आई कैसे…’’

‘‘अधिक बढ़चढ़ कर बात करने की आवश्यकता नहीं है,’’ रोमा ने झिड़का, ‘‘बोलती तो ऐसे हो मानो लड़के वाले तैयार हैं और केवल तुम्हारी स्वीकृति की आवश्यकता है. इतना अच्छा घरवर है… बड़ी मुश्किल से तो उन्हें कामना को देखने के लिए मनाया था. मैं ने सोचा था कि कामना की अच्छी नौकरी देख कर शायद तैयार हो जाएं पर यहां तो दूसरा ही तमाशा हो रहा है. लेनदेन की बात तो छोड़ो, स्तर का विवाह करने में कुछ न कुछ खर्च तो होगा ही,’’ रोमा बूआ क्रोधित स्वर में बोलीं.

‘‘आप लोग क्यों इतने चिंतित हैं? माना कि पिताजी अस्वस्थ हैं पर अब हम लोग कोई छोटे बच्चे तो रहे नहीं. मेरा एम.ए. का अंतिम वर्ष है. मैं ने तो एक स्थान पर नौकरी की बात भी कर ली है. बैंक की परीक्षा का परिणाम भी आना है. शायद उस में सफलता मिल जाए,’’ रचना बोली.

‘‘मैं रचना से पूरी तरह सहमत हूं. इतने वर्षों से दीदी हमें सहारा दे रही हैं. मैं भी कहीं काम कर सकता हूं. पढ़ाई करते हुए भी घर के खर्च में कुछ योगदान दे सकता हूं,’’ संदीप बोला.

‘‘कहनेसुनने में ये आदर्शवादी बातें बहुत अच्छी लगती हैं पर वास्तविकता का सामना होने पर सारा उत्साह कपूर की तरह उड़ जाएगा,’’ सुमन बोलीं.

‘‘वह सब तो ठीक है भाभी पर कब तक कामना को घर बिठाए रखोगी? 2 वर्ष बाद पूरे 30 की हो जाएगी. फिर कहां ढूंढ़ोगी उस के लिए वर,’’ रोमा बोलीं.

‘‘यदि वर पक्ष वाले तैयार हों तो चाहे हमें कितनी भी परेशानियों का सामना क्यों न करना पड़े, कामना का विवाह कर देंगे,’’ कामना के पिता बोले.

किंतु पिता और रोमा के समस्त प्रयासों के बावजूद वर पक्ष वाले नहीं माने. पता नहीं कामना के पिता की बीमारी ने उन्हें हतोत्साहित किया या परिवार की जर्जर आर्थिक स्थिति और कामना की बढ़ती आयु ने, पर उन के जाने के बाद पूरा परिवार दुख के सागर में डूब गया.

‘‘इस में भला इतना परेशान होने की क्या बात है? अपनी कामना के लिए क्या लड़कों की कमी है? मैं जल्दी ही आप को सूचित करूंगी,’’ जातेजाते रोमा ने वातावरण को हलका बनाने का प्रयत्न किया था. किंतु उदासी की चादर का साया वह परिवार के ऊपर से हटाने में सफल न हो सकीं.

एक दिन कामना बस की प्रतीक्षा कर रही थी कि अरुण ने उसे चौंका दिया, ‘‘कहिए कामनाजी, क्या हालचाल हैं? बड़ी थकीथकी लग रही हैं. मुझे आप से बड़ी सहानुभूति है. छोटी सी आयु में परिवार का सारा बोझ किस साहस से आप अपने कंधों पर उठा रही हैं.’’

‘‘मैं पूरी तरह से संतुष्ट हूं, अपने जीवन से और मुझे आप की सहानुभूति या सहायता की आवश्यकता नहीं है. आशा है, आप ‘बेचारी’ कहने का लोभ संवरण कर पाएंगे,’’ कामना का इतने दिनों से दबा क्रोध एकाएक फूट पड़ा.

‘‘आप गलत समझीं कामनाजी, मैं तो आप का सब से बड़ा प्रशंसक हूं. कितने लोग हैं जो परिवार के हित को अपने हित से बड़ा समझते हैं. चलिए, एकएक शीतल पेय हो जाए,’’ अरुण ने मुसकराते हुए सामने के रेस्तरां की ओर इशारा किया.

‘‘आज नहीं, फिर कभी,’’ कामना ने टालने के लिए कहा और सामने से आती बस में चढ़ गई.

तीसरे ही दिन फिर अरुण बस स्टाप पर कामना के पास खड़ा था, ‘‘आशा है, आज तो मेरा निमंत्रण अवश्य स्वीकार करेंगी.’’

‘‘आप तो मोटरसाइकिल पर बैंक आते हैं, फिर यहां क्या कर रहे हैं?’’ कामना के अप्रत्याशित प्रश्न पर वह चौंक गया.

‘‘चलिए, आप को भी मोटर- साइकिल पर ले चलता हूं. खूब घूमेंगे- फिरेंगे,’’ अरुण ने तुरंत ही स्वयं को संभाल लिया.

‘‘देखिए, मैं ऐसीवैसी लड़की नहीं हूं. शायद आप को गलतफहमी हुई है. आप मेरा पीछा क्यों नहीं छोड़ देते,’’ कामना दयनीय स्वर में बोली.

‘‘मैं क्या आप को ऐसावैसा लगता हूं? जिन परिस्थितियों से आप गुजर रही हैं उन्हीं से कभी हमारा परिवार भी गुजरा था. आप की आंखों की बेबसी कभी मैं ने अपनी बड़ी बहन की आंखों में देखी थी.’’

‘‘मैं किसी बेबसी का शिकार नहीं हूं. मैं अपने जीवन से पूरी तरह संतुष्ट हूं. मेरी दशा पर तरस खाने की आप को कोई आवश्यकता नहीं है,’’ कामना तीखे स्वर में बोली.

‘‘ठीक है, पर इस में इतना क्रोधित होने की क्या बात है? चलो, शीतल पेय पीते हैं. तेज गरमी में दिमाग को कुछ तो ठंडक मिलेगी,’’ अरुण शांत स्वर में बोला तो अपने उग्र स्वभाव पर मन ही मन लज्जित होती कामना उस के साथ चल पड़ी.

इस घटना को एक सप्ताह भी नहीं बीता था कि एक शाम कामना के घर के द्वार की घंटी बजी.

‘‘कहिए?’’ कामना के छोटे भाई ने द्वार खोलते ही प्रश्न किया.

‘‘मैं अरुण हूं. कामनाजी का सहयोगी और यह मेरी बड़ी बहन, स्थानीय कालेज में व्याख्याता हैं,’’ आगंतुकों में से एक ने अपना परिचय दिया.

संदीप उन्हें अंदर ले आया. फिर कामना के पास जा कर बोला, ‘‘दीदी, आप के किसी सहयोगी का नाम अरुण है क्या?’’

‘‘क्यों, क्या बात है?’’ अरुण का नाम सुनते ही कामना घबरा गई.

‘‘पता नहीं, वे अपनी बहन के साथ आए हैं. पर आप इस तरह घबरा क्यों गईं.’’

‘‘घबराई नहीं. मैं डर गई थी. मां को इस तरह किसी का आनाजाना पसंद नहीं है न, इसीलिए. तुम चलो, मैं आती हूं.’’

‘‘मैं किन शब्दों में आप को धन्यवाद दूं, आप ने मुझे कितनी बड़ी चिंता से मुक्ति दिलवा दी है,’’ कामना बैठक में पहुंची तो उस के पिता अरुण व उस की बहन से कह रहे थे.

‘‘विवाह के बाद भी कामना अपने परिवार की सहायता कर सकती है. हमें इस में कोई आपत्ति नहीं होगी,’’ अरुण की बहन बोलीं.

‘‘क्यों शर्मिंदा करती हैं आप. अब कामना के छोटे भाईबहनों की पढ़ाई भी समाप्त होने वाली है, सब ठीक हो जाएगा,’’ सुमन बोलीं.

‘‘अरे, कामना, आओ बेटी…देखो, अरुण और उन की बहन तुम्हारा हाथ मांगने आए हैं. मैं ने तो स्वीकृति भी दे दी है,’’ कामना को देखते ही उस के पिता मुसकराते हुए बोले.

कामना की निगाहें क्षणांश के लिए अरुण से मिलीं तो पहली बार उसे लगा कि नयनों की भी अपनी कोई भाषा होती है, उस ने निगाहें झुका लीं. विवाह की तिथि पक्की करने के लिए फिर मिलने का आश्वासन दे कर अरुण और उस की बहन ने विदा ली.

उन के जाते ही कामना पिता से बोली, ‘‘यह आप ने क्या किया? विवाह के पहले तो सभी मीठी बातें करते हैं किंतु विवाह के बाद उन्होंने मेरे वेतन को ले कर आपत्ति की तो मैं बड़ी कठिनाई में फंस जाऊंगी.’’

‘‘तुम भी निरी मूर्ख हो. इतना अच्छा वर, वह भी बिना दहेज के हमें कहां मिलेगा? फिर क्या तुम नहीं चाहतीं कि मैं ठीक हो जाऊं? तुम्हारे विवाह की बात सुनते ही मेरी आधी बीमारी जाती रही. देखो, कितनी देर से कुरसी पर बैठा हूं, फिर भी कमजोरी नहीं लग रही,’’ पिता ने समझाया.

‘‘तुम चिंता मत करो कामना. घर के पिछले 2 कमरे किराए पर उठा देंगे. फिर रचना भी तो नौकरी करने लगेगी. बस, तुम सदा सुखी रहो, यही हम सब चाहते हैं,’’ सुमन बोलीं. उन की आंखों में प्रसन्नता के आंसू झिलमिला रहे थे.

बेचारी-भाग 2: मधु किसके बारे में सोचकर परेशान थी

‘‘पहेलियां तो बुझाओ मत. क्या बात है, यह बताओ. बैंक में किसी से झगड़ा कर के आई हो क्या?’’

‘‘लो और सुनो. मैं और झगड़ा? घर में अपने विरुद्ध हो रहे अत्याचार सहन करते हुए भी जब मेरे मुंह से आवाज नहीं निकलती तो भला मैं घर से बाहर झगड़ा करूंगी? कैसी हास्यास्पद बात है यह,’’ कामना का चेहरा तमतमा गया.

‘‘क्या कह रही हो? कौन अत्याचार करता है तुम पर? तुम स्वयं कमाने वाली, तुम ही खर्च करने वाली,’’ सुमन भी क्रोधित हो उठीं.

‘‘क्या कह रही हो मां. मैं तो पूरा वेतन ला कर तुम्हारे हाथ पर रख देती हूं. इस पर भी इतना बड़ा आरोप.’’

‘‘तो कौन सा एहसान करती हो, पालपोस कर बड़ा नहीं किया क्या? हम नहीं पढ़ातेलिखाते तो कहीं 100 रुपए की नौकरी नहीं मिलती. इसे तुम अत्याचार कह रही हो? यही तो अंतर होता है बेटे और बेटी में. बेटा परिवार की सहायता करता है तो अपना कर्तव्य समझ कर, भार समझ कर नहीं.’’

‘‘आप बेकार में बिगड़ रही हैं…मैं तो उस तमाशे की बात कर रही थी जिस की व्यवस्था हर तीसरे दिन आप कर लेती हैं,’’ कामना ने मां की ओर देखा.

‘‘कौन सा तमाशा?’’

‘‘यही तथाकथित वर पक्ष को बुला कर मेरी प्रदर्शनी लगाने का.’’

‘‘प्रदर्शनी लगाने का? शर्म नहीं आती…हम तो इतना प्रयत्न कर रहे हैं कि तुम्हारे हाथ पीले हो जाएं और तुम्हारे दूसरे भाईबहनों की बारी आए,’’ सुमन गुस्से से बोलीं.

‘‘मां, रहने दो…दिखावा करने की आवश्यकता नहीं है. मैं क्या नहीं जानती कि मेरे बिना मेरे छोटे भाईबहनों की देखभाल कौन करेगा?’’

‘‘हाय, हम पर इतना बड़ा आरोप? जब हमारी बेटी ही ऐसा कह रही है तो मित्र व संबंधी क्यों चुप रहेंगे,’’ सुमन रोंआसी हो उठीं.

‘‘मित्रों और संबंधियों के डर से इतना तामझाम? यह जीवन हमारा है या उन का…हम इसे अपनी सुविधानुसार जिएंगे. वे कौन होते हैं बीच में बोलने वाले? मैं तुम्हारा कष्ट समझती हूं, मां. जब तुम वर पक्ष के समक्ष ऐसी असंभव शर्तें रख देती हो, जिन्हें हमारा पुरुष समाज शायद ही कभी स्वीकार कर पाए तो क्या तुम्हारे चेहरे पर आई पीड़ा की रेखाएं मैं नहीं देख पाती,’’ मां के रिसते घावों पर अपने शब्दों का मरहम लगाती कामना ने पास आ कर उन के कंधे पर हाथ रख दिया.

‘‘तेरे पिताजी बीमार न होते तो ये दिन क्यों देखने पड़ते कामना. पर मेरा विश्वास कर बेटी, अपने स्वार्थ के लिए मैं तेरा भविष्य दांव पर नहीं लगने दूंगी.’’

‘‘नहीं मां. तुम सब को इस हाल में छोड़ कर मैं विवाह कर के क्या स्वयं को कभी माफ कर पाऊंगी? फिर पिताजी की बीमारी का दुख अकेले आप का नहीं, हम सब का है. इस संकट का सामना भी हम मिलजुल कर ही करेंगे.’’

‘‘सुनो कामना, कल जो लोग तुम्हें देखने आ रहे हैं, तुम्हारी रोमा बूआ के संबंधी हैं. हम ने मना किया तो नाराज हो जाएंगे. साथ ही तुम्हारी बूआ भी आ रही हैं, वे भी नाराज हो जाएंगी.’’

‘‘किंतु मना तो करना ही होगा, मां. रोमा बूआ नाराज हों या कोई और. मैं इस समय विवाह की बात सोच भी नहीं सकती,’’ कामना ने अपना निर्णय सुना दिया.

‘‘मैं अभी जीवित हूं. माना कि बिस्तर से लगा हूं, पर इस का तात्पर्य यह तो नहीं कि सब अपनी मनमानी करने लगें.’’

कामना के पिता बिस्तर पर ही चीखने लगे तो पूरा परिवार उन के पास एकत्र हो गया.

‘‘रोमा ने बहुत नाराजगी के साथ पत्र लिखा है कि सभी संबंधी यही ताने दे रहे हैं कि कामना की कमाई के लालच में हम इस का विवाह नहीं कर रहे और मैं सोचता हूं कि अपनी संतान के भविष्य के संबंध में निर्णय लेने का हक मुझे भी है,’’ कामना के पिता ने अपना पक्ष स्पष्ट किया.

‘‘मैं केवल एक स्पष्टीकरण चाहती हूं, पिताजी. मेरे विवाह के बाद घर कैसे चलेगा? क्या आप की चिकित्सा बंद हो जाएगी? संदीप, प्रदीप, मोना, रचना क्या पढ़ाई छोड़ कर घर बैठ जाएंगे?’’ कामना ने तीखे स्वर में प्रश्न किया.

‘‘मेरे स्वस्थ होने की आशा नहीं के बराबर है, अत: मेरी चिकित्सा के भारी खर्चे को बंद करना ही पड़ेगा. सच पूछो तो हमारी दुर्दशा बीमारी पर अनापशनाप खर्च करने से ही हुई है. संदीप 1 वर्ष में स्नातक हो जाएगा. फिर उसे कहीं न कहीं नौकरी मिल ही जाएगी. प्रदीप की पढ़ाई भी किसी प्रकार चलती रहेगी. मोना, रचना का देखा जाएगा,’’ कामना के पिता ने भविष्य का पूरा खाका खींच दिया.

‘‘यह संभव नहीं है, पिताजी. आप ने मुझे पढ़ायालिखाया, कदमकदम पर सहारा दिया, क्या इसीलिए कि आवश्यकता पड़ने पर मैं आप सब को बेसहारा छोड़ दूं?’’ कामना ने पुन: प्रश्न किया.

‘‘तुम बहुत बोलने लगी हो, कामना. तुम ही तो अब इस परिवार की कमाऊ सदस्य हो. मैं भला कौन होता हूं तुम्हें आज्ञा देने वाला.’’

कामना, पिता का दयनीय स्वर सुन कर स्तब्ध रह गई.

सुमन भी फूटफूट कर रोने लगी थीं.

‘‘बंद करो यह रोनाधोना और मुझे अकेला छोड़ दो,’’ कामना के पिता अपना संयम खो बैठे.

सभी उन्हें अकेला छोड़ कर चले गए पर कामना वहीं खड़ी रही.

‘‘अब क्या चाहती हो तुम?’’ पिता ने प्रश्न किया.

‘‘पिताजी, आप को क्या होता जा रहा है? किस ने कह दिया कि आप ठीक नहीं हो सकते. ऐसी बात कर के तो आप पूरे परिवार का मनोबल तोड़ देते हैं. डाक्टर कह रहे थे कि आप को ठीक होने के लिए दवा से अधिक आत्मबल की आवश्यकता है.’’

ड्राय ब्रशिंग से निखारें ख़ूबसूरती

स्किन के टेक्स्चर को सुधारने के लिए ड्राय ब्रशिंग आज बेहतर विकल्प है. जिसका इस्तेमाल आज महिलाएं खूब कर रहीं हैं. इस बारे में मेहरीन मेकओवर्स की एक्सपर्ट मेहरीन कौसर कहतीं हैं कि ड्राय ब्रशिंग दुनिया में सबसे बड़ी ब्यूटी ट्रेंड्स में से एक है, जिसे बॉलीवुड एक्‍ट्रेस से लेकर आम महिलाएं भी इस्‍तेमाल करती हैं. आखिर क्या है ड्राय ब्रशिंग कैसे होती है और इसके क्‍या-क्‍या फायदे हैं? आइये जानें –

ड्राय ब्रशिंग क्या है

ड्राय ब्रशिंग का मतलब है ड्राय स्किन को ब्रश करना। ड्राय ब्रश का इस्तेमाल ना सिर्फ शरीर की डेड स्किन को निकालने के लिए बल्कि चेहरे की डेड स्किन को निकालने में भी किया जाता हैं. इसमें किसी तरह के साबुन और पानी की जरूरत नहीं है. लेकिन चेहरे पर इन ब्रश का इस्तेमाल काफी आराम और सावधानी से करना चाहिए.

ड्राय ब्रश का इस्तेमाल कैसे करें

नहाने से पहले स्किन पर ब्रश 10-15 तक धीरे-धीरे रगड़ें. ड्राय ब्रश का इस्तेमाल आप एड़ी से शुरू कर सकती हैं. उसके बाद आप अपने पेट और गले को ब्रश कर सकती हैं. ब्रश को सर्कुलेशन मोशन में चलाएं. इसी तरह से पूरे शरीर पर ड्राय ब्रशिंग करें. इस बात का विशेष ध्यान रखें कि ब्रश का इस्तेमाल ज्यादा तेजी से शरीर में ना करें. क्योंकि इससे आपको जलन या खुजली भी हो सकती हैं. ब्रशिंग करने के बाद हल्के गर्म पानी से शॉवर लें.

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कैसे चुनें ब्रशेस

मेहरीन कहतीं हैं ये ब्रशेस नैचुरल, सिंथेटिक फ़ाइबर या दोनों से मिलाकर बनाए जाते हैं इसलिए जिनकी त्वचा संवेदनशील है वो सिलिकॉन से बनाए हुए ब्रशेस का इस्तेमाल करें. नॉर्मल और ऑयली स्किन वाले हाइब्रिड से बनाए हुए ब्रश चुनें.

ड्राय ब्रश के फायदे

ड्राइ ब्रश करने के कई फ़ायदे हैं जैसे –

ड्राय ब्रशिंग से त्वचा पर मौजूद मृत कोशिकाएं यानी डेड स्किन सेल्स हट जाती है और त्वचा में निखार आता है.

ड्राय ब्रशिंग से त्वचा के बंद रोमछिद्र खुल जाते हैं और त्वचा सांस ले पाती है.

ब्रशिंग से ब्लड सर्कुलेशन में निखार आता है, जिससे त्वचा की रंगत निखरती है साथ ही त्वचा जवां व कोमल नज़र आने लगती है.

ड्राय ब्रशिंग से त्वचा चिकनी और भरी-भरी नज़र आती है और साथ ही खिली-खिली नज़र आती है.

ड्राय ब्रशिंग से चेहरे की डेड स्किन सेल्स और अन्य अशुद्धियां हट जाती हैं, जिससे चेहरे पर मुहांसे व ब्लैकहेड्स में कमी आती है.

ड्राय ब्रशिंग से बालों की ग्रोथ स्लो हो जाती है. पर अगर आप इसे शेड्यूल में शामिल करेंगी तब.

अगर आप रोजाना केवल पांच मिनट ड्राय ब्रशिंग करती हैं, तो बॉडी में जमा फैट कम होना शुरू हो जाता है.

इन बातों का ध्यान रखें:

चेहरे की ड्राय ब्रशिंग करना चाहती हैं तो इसके लिए ख़ासतौर पर बनाए गए ब्रश का ही इस्तेमाल करें.

बॉडी ड्राय ब्रश का इस्तेमाल चेहरे के लिए करने की ग़लती कभी भी न करें.

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अगर चेहरे पर रेडनेस या किसी भी प्रकार के रैशेस आते हैं, तो इसका इस्तेमाल करना बंद कर दें.

इस बात का खास ध्यान रखें कि आप अपना ब्रश किसी के साथ भी साझा ना करें.

यदि आप त्वचा की समस्याओं से गुज़र रही हैं, तो इसका इस्तेमाल करने से पहले एक बार स्किन एक्स्पर्ट से सलाह ज़रूर लें.

ड्राइ ब्रशिंग के तुरंत बाद आपको सीरम, मॉइस्चराइज़र या सनस्क्रीन का इस्तेमाल करना चाहिए.

ब्रशिंग के लिए हमेशा सॉफ्ट ब्रश का प्रयोग करें जैसे लंबे हैंडल वाला ब्रश व लूफाह.

कभी भी ब्रश को पानी से भीगोएं नहीं. हमेशा सूखे ब्रश का प्रयोग करें.

ब्रश को कम से कम हफ्ते में एक बार पानी या साबुन से जरूर धोएं.

जब आप ब्रश को धोएं तो उसे कुछ देऱ हवा में सूखने के लिए रख दें. अच्छी तरह सूखने के बाद ही इसे दोबारा प्रयोग करें.

नहीं बदला है मर्दो के प्रति नजरिया

राइटर- शैलेंद्र सिंह

आदमी औरत मिलकर ना केवल घर चलाते है बल्कि समाज और देश के विकास में भी उनकी भागीदारी अहम होती है. अगर दोनो के बीच दूरियां बढ जायेगी तो घर परिवार समाज और देश की संरचना बदल जायेगी. कल्पना कीजियें की किसी एक जगह केवल आदमी ही आदमी हो और किसी एक जगह केवल औरतें तो माहौल कैसा होगा ? ऐसा माहौल शायद किसी को भी पसंद नहीं आयेगा. वैसे तो कहा जाता है कि औरत पति की अर्धागिनी है. गृहस्थी की गाडी के दो पहिये है. तरक्की वहीं होती है जहां आदमी औरत कंधे से कंधा मिलाकर काम करते है. इसके बावजूद आज भी औरतें हर आदमी पर शक करती है और आदमी हर अकेली औरत को अभी भी शक की नजर से देखती है.

आधुनिक समाज में औरतों के अधिकार, शिक्षा और बराबरी की बातें धार्मिक प्रचार के कारण नदी के पानी ही तरह से बह गई है. धार्मिक प्रचार में औरतों को कमजोर बताया जाता है. इसका असर यह होता है कि औरत हर फैसला करने के पहले आदमी पर निर्भर होती है. यहां पर कई बार उसे आदमी पर भरोसा करने की कीमत भी चुकानी पडती है. जिसकी वजह से आदमी पर औरतों का शक बढने लगा है. तेजी से एक विचारधारा बनने लगी है कि औरतें आदमी के बिना रह सकती है. कुछ औरतों ने सिंगल रहने की दिशा में काम भी शुरू दिया है.

ऐसी महिलाएं नारीवादी विचारधारा में सेरोगेसी के जरीये मां बनने लगी है. कुछ बच्चों को गोद लेने लगी है. कुछ औरतें आदमियों के बजाये औरतों के साथ संबंधों में ज्यादा सुरक्षित महसूस करने लगी है. सैक्सुअली भी सेक्स ट्वायज का उपयोग महिलाओं में बढना शुरू हो गया है. इन हालातों से आदमी और औरतों के बीच स्वाभाविक रिश्ते बदलने लगे है. यह आधुनिक समाज की ही बात नहीं है. पहले भी ऐसी सोचं वाली महिलाएं थी अब इनकी संख्या तेजी से बढने लगी है. आधुनिक समाज में इसके कारण भी अलग होने लगे है.

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महिलाओं के प्रति बढते अपराध:
महिलाओं के प्रति बढते अपराध के मामले सोशल मीडिया पर ऐसे मैसेज वायरल होते है जैसे समाज का हर पुरूष अपराधी हो. महिलाएं करीबी लोगो तक पर भरोसा नहीं कर पा रहीं है. सिंगल महिलाओं की संख्या समाज में बढती जा रही है. लडकियां अपने साथी पर खुलकर यकीन नहीं कर पा रही. महिलाओं के मन में पुरूषों के प्रति असुरक्षा की भावना बढती जा रही है. ऐसे में दोनो के बीच स्वाभाविक रिश्ते बिगडने लगे है. महिलाएं जहां नारीवादी सोंच का षिकार हो कर अपने सहयोगी पुरूषों को भी शका की नजर से देखने लगी है वहीं पुरूष भी महिलाओं पर भरोसा नहीं कर पा रहा. उसका डर है कि महिला का रूख बदलते ही वह अपराधी की श्रेणी में खडा हो सकता है.

पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के हाथरस में दलित लडकी के साथ गैंगरेप की घटना घटी. उसी समय लडकियों और महिलाओं के साथ अपराध की दूसरी तमाम घटनायें भी सुर्खियों में सुनाई देने लगी. समाज में एक ऐसा माहौल बन गया जैसे कि हर पुरूष अपराधी हो. महिलाएं हर पुरूष को शका की नजर से देखने लगी. वैसे देखा जाये तो यह पहली बार नहीं हुआ है. 2012 में जब दिल्ली में निर्भया कांड हुआ उसके बाद तो देश भर में महिला अपराध के खिलाफ माहौल तैयार हो गया. महिलाओं की सुरक्षा के लिये कठोर कानून तैयार हो गया. जिसमें महिलाओं को देखने और घूरने तक को अपराध की सूची में डाल दिया गया. सुरक्षा संगठन की शालिनी माथुर कहती है ‘महिलाओं के खिलाफ अपराधों से उनके मन में पुरूषों के प्रति एक डर तो बैठ ही रहा है. अगर एक लडकी किसी से प्यार नहीं करना चाहती, उससे शादी नहीं करना चाहती ऐसे में किसी लडके को यह अधिकार कहां से मिल जाता है कि वह उस लडकी की जान ले ले.’

शालिनी माथुर कहती है ‘हरियाणा के वल्लभगढ में निकिता हत्याकांड में यह मानसिकता देखने को मिली. यह पुरूषवादी सोंच है जो औरतों के मन में पुरूष के प्रति नफरत और भय की मानसिकता को बढावा देती है. महिला और पुरूष के प्रति अपराध को लेकर कानून और समाज भी भेदभाव करता है अपराध को अपराध की नजर से नहीं देखा जाता. वल्लभगढ की घटना की जघन्य थी. सरेआम किसी लडकी को कार में खीचना और वह बैठने से इंकार कर दे उसको गोली से मार देना. इसके बाद भी समाज, सरकार और मीडिया हाथरस की तरह प्रतिक्रिया देने को तैयार नहीं हुआ. इससे अपराधी को षह मिलती है. अपराध को केवल अपराध की नजर से देखा जाये तभी उसका असर पड सकेगा.‘

बलात्कार से कम नहीं होती घूरती निगाहें :
किसी जगह पर अगर कोई लडकी कम कपडों में घूमने जाती है उसको हर निगाह घूरने लगती है. मध्य प्रदेश की वीरासनी बघेल लखनऊ में रहती है. यही जौब करती है. उनका कहना है ‘थोडे भी फैशनेबल कपडे पहन कर अगर घूमने या होटल रेस्त्रां में पहंुच जाये तो लोगांे की निगाहें ऐसे घूरती है जैसे बलात्कार कर देगी. रास्तें में चलते समय अगर कभी लगता है कि कोई मेरा पीछा कर रहा तो सबसे पहले यही ख्याल आता है कि कोई पुरूष पीछा तो नहीं कर रहा. अपने दोस्तों के साथ घूमने जाने पर भी चिंता लगी रहती है. कहीं किसी मुसीबत में ना पड जाये. यही सब कारण है जो मर्दो के प्रति सोंच नजरिया बदल रहा है.’

अकेली रहने वाली रीना गुप्ता कहती है ‘एक बार मैं रात में होटल में रूकने गई. मैंने अपना पूरा परिचय दिया. आधार कार्ड दिया. इसके बाद भी होटल वाले ने कमरा देने से पहले इतने सवाल किये जैसे मैं आतंकवादी हॅू. यहां तक कह दिया गया कि रूम में किसी पुरूष से मिलना नहीं है. किसी से मिलना है तो होटल की लौबी या रेस्त्रा में मिल लूं. जबकि गैर कानूनी रूप से इन्ही होटलों में गलत काम करने वालों को आराम से जगह मिल जाती है. मुझे अकेली होटल मंे देखकर होटल वालों को यह यकीन नहीं हो रहा था कि मैं अकेले रूकने आई हॅू. उनको लग रहा था कि मेरे से मिलने कोई ना कोई आने वाला है. इसी वजह यह है कि अकेली महिला के चरित्र को शका की नजर से देखा जाता है. जो हमारे चरित्र को गलत निगाह से देखता है वही हमको लेकर मौके की तलाश में रहता है. यही डर हमें मर्दो के प्रति शका के भाव से भर देता है.’

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महिलाओं के प्रति बढते अपराध प्रमुख वजह:
महिलाओं और पुरूषों के बीच बढती दूरी का प्रमुख कारण महिलाओं के प्रति बढते अपराध है. इसने दोनो के बीच खांई को बढा दिया है. महिलाओं को लगता है कि उनके प्रति खतरा बढ रहा है. अपराध के राष्ट्रीय आंकडे बताते है कि 2019 में महिलाओं के प्रति 4 लाख 5 हजार 861 मामले दर्ज किये गये. 2018 के मुकाबले यह आंकडे 7 फीसदी अधिक है. इनमें से ज्यादा मामले पति और रिश्तेदारों के द्वारा किये गये थे. अपराध के आंकडे ही नहीं बढे बल्कि अपराध का तरीका भी बदल गया है. अपराध के मामलों में जघन्यता बढती जा है. कुछ साल पहले लखनऊ में आपसी प्रेम में लडके ने अपनी प्रेमिका की हत्या करके उसकी बौडी को 3 टुकडों में बांटकर सडक के किनारे फेंक दिया. ऐसे तमाम उदाहरण है.

प्यार, दोस्ती, टार्चर और ब्लैकमेल करने के मामले आदमी और औरत के बीच दूरी बढाने का काम कर रहे है. 2013 में मुम्बई में शक्तिमिल में 22 साल की महिला फोटोग्राफर के साथ हत्या और गैंगरेप की घटना केवल अकेली लडकी ही नहीं उसके परिवार के मन में भी भय पैदा करता है. हैदराबाद में भी लडकी के साथ गैंगरेप और हत्या की घटना सभी के सामने है. महिलाओं के साथ घटने वाली अपराध की घटनायें बहुत वीभत्स होने लगी है. यह मामले बताते है कि अपराध करने वाला केवल अपराध ही नहीं करता घृणा के भाव तक जाकर अपराध करता है. उससे भी बडी बात यह है समाज अपराधी को दोष देने की जगह पर लडकी को ही दोष देने लगता है. यहां पर लडकी के कपडे, उसका रात में बाहर निकलना ऐसे कई सवाल खडे हो जाते है. अपराध अपराध को फर्क की नजर से देखा जाता है.

हिलाओं के प्रति अपराध में वीभत्सता हर स्तर पर बढ गई है. बलात्कार के मामलें देखे तो कठुआ कश्मीर में 8 साल की लडकी के साथ गैंगरेप से लेकर 60-70 साल तक की महिलाओं के प्रति यौन अपराध के उदाहरण मौजूद है. यह बताते है कि महिलाओं के प्रति अपराध को लेकर किसी तरह की हैवानी सोंच सामज के पुरूष वर्ग में छाई हुई है. जब ऐसे उदाहरणों को देखते है तो लगता है कि महिलाओं के मन में पुरूषों को लेकर जो नजरिया बदल रहा है वह सही ही है. एक तरफ समाज कहता है कि महिला और पुरूष को कंधे से कंधा मिलाकर चलना चाहिये. दूसरी तरफ अपने साथ काम करने वाली लडकी के प्रति मन में हमेशा उससे छल करने की भावना बनी रहती है.

कानून से सहायता नहीं:
कानून और समाज बहुत सारे बदलाव की दुहाई देता है पर गंभीरता से देखे तो थानों में शिकायत नही लिखी जाती, कोर्ट जल्दी फैसला नही देता और समाज बलात्कार की पीडित को ही गलत नजरों से देखने का काम करता है. हाथरस कांड में लडकी की एफआईआर एक सप्ताह में 3 बार लिखी गई. जैसे दबाव पीडित बना लेगा वैसा मुकदमा लिखा जाता है. अगर किसी लडकी के साथ कोई घटना घट जाये वह अपना दर्द बताना चाहे तो उसकी बात कोई मानता नहीं और लडकी को ही सलाह दी जाने लगती है. केवल छोटी घटनाओं के मामलें में ही नहीं संसद में बहस तक के मामलें में यह भेदभाव देखने कोे मिलता है. संसद में जब महिला हिंसा के खिलाफ कानून पर समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि ‘लडको से ऐसी गलतियां हो जाती है’.

मुलायम सिंह यादव अकेले ऐसा नेता नहीं जो इस तरह के विचार व्यक्त कर चुके है. ऐसे नेताओं की लंबी लिस्ट है. जो छोटे कपडो, अंग प्रदर्शन, अश्लील फिल्मों जैसी वजहों को महिलाओं के प्रति अपराध का कारण मानते है. अगर समाज में कोई लडकी, महिला बेखौफ होकर घूम नहीं सकती. अकेले किसी होटल, सिनेमाहाल, ट्रेन, बस में सफर नहीं कर सकती तो उसका आदमियों से डर स्वभाविक ही है. अगर लडकी को समाज में बेखौफ रहने के लिये हथियार का लाइसेंस लेकर चलना पडे या हमेषा मारधाड के लिये तैयार रहना पडे तो यह सभ्य समाज नहीं हो सकता. अपने खिलाफ बढते अपराधों के गुस्से में अगर महिलाओं का पुरूषों के प्रति नजरिया बदल रहा है तो इसमें गलत भी नहीं है.

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ऐसे समाज से निपटने के लिये फूलन देवी को हथियार उठाकर लोगों की सामूहिक हत्या करनी पडी थी. उसे चंबल में रहकर डकैत बनना पडा था. 25ह बात अपनी जगह सही है कि आदमी औरत के बीच से संसार का स्वरूप बदल जायेगा पर इसकी जिम्मेदारी पुरूषों को भी लेनी होगी. इसकी सबसे बडी वजह यह है कि यह समाज पुरूष प्रधान समाज माना जाता है. महिलाओं को भी सोचना होगा कि पुरूष के बिना संसार उनके किस काम का होगा. आदमी और औरत एक साथ चलेगे तभी दोनो का लाभ होगा. देश और समाज भी खुशहाल होगा.

सर्दियों में मुलायम स्किन के लिए अपनाएं ये टिप्स !

सर्दी का मौसम अर्थात् शुष्क त्वचा. सर्दी का मौसम हमारी कोमल त्वचा पर गहरा प्रभाव डालता है. ठंडी, सर्द, बर्फीली हवाओं का हमारी त्वचा पर कुछ ज्यादा ही असर पड़ता है. त्वचा सूखकर फटने लगती है और शुष्क होने के बाद त्वचा पर खुजली भी होने लगती है. सर्दियों में धूप में बैठना हर किसी को अच्छा लगता है मगर थोड़ी सी लापरवाही से धूप से भी त्वचा झुलसकर सांवली पड़ जाती

इस मौसम में हमें अपनी त्वचा की सामान्य देखभाल तो करनी ही चाहिए, साथ ही चेहरे और शरीर के कुछ भागों, जैसे होंठ, कोहनी, एड़ियां इत्यादि पर भी विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए. चंद सावधानियों से आप पा सकती हैं सर्दी के मौसम में भी कमनीय, कोमल और सुंदर त्वचा. तो इन्हें आजमाए और कोमल व् दमकते हुए त्वचा पाये –

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* एक बड़ा चम्मच जौ के आटे में चुटकी भर हल्दी तथा थोड़ा सा तिल का तेल मिलाकर उबटन बनाएं. इसे त्वचा पर 10 मिनट तक लगा रहने दें. उसके बाद गुनगुने पानी से धो लें. आपकी सूखी त्वचा भी कोमल बन जाएगी.

*  संतरे की फांकों को दो बड़े चम्मच पानी में उबालकर ठंडा कर छान लें और इसे अपनी त्वचा पर 10 मिनट तक लगा रहने दें. अब गुनगुने पानी से स्नानं  कर लें.

*  चीकू के गूदे को 20 मिनट तक त्वचा पर मलकर रखें. फिर गुनगुने पानी से धो लें. त्वचा अनोखी आभा से खिल उठेगी.

* नींबू का रस, ग्लिसरीन तथा गुलाब जल को बराबर मात्रा में मिलाकर शरीर के खुले भागों पर लगाएं. इससे त्वचा चमक उठेगी और त्वचा का फटना भी रूक जाएगा.

* सर्दियों में हमेशा गुनगुने पानी का प्रयोग करें क्योंकि ठंडा पानी त्वचा तक आक्सीजन को पहुंचने में बाधा उत्पन्न करता है.

*  त्वचा की खुश्की दूर करने के लिए गुलाब जल में जैतून के तेल की कुछ बूंदें और थोड़ा सा कच्चा दूध मिलाएं. इसे हल्के हाथों से त्वचा पर मलें. 10 मिनट बाद गुनगुने पानी से स्नान कर लें.

*  गाजर और टमाटर का रस निकालकर चेहरे पर लगाएं. सूख जाने के बाद गुनगुने पानी से चेहरा धो लें.

*   होंठों की त्वचा बहुत पतली होती है और चिकनाहट देने वाली ग्रंथियों की कमी होती है, इसलिए होंठ बहुत जल्दी सूख जाते हैं और फटने लगता है. क्लीजिंग के बाद बादाम युक्त क्रीम होंठों पर लगाएं और पूरी रात लगी रहने दें. यह त्वचा को कोमल बनाती है.

* घरेलू उपचार के रूप में त्वचा को कोमल एवं कमनीय बनाने के लिए बादाम का तेल या दूध की मलाई भी प्रयोग की जा सकती है.

* स्नान से पहले हल्दी व नींबू युक्त क्रीम का इस्तेमाल करना चाहिए. इससे त्वचा कोमल हो जाती है.

*  सर्दियों में कोहनी पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है. इस भाग की त्वचा बहुत रूखी और कड़ी होती है क्योंकि यहां तैलीय ग्रंथियां नहीं होती. नींबू के दो भाग करके कोहनियों पर रगड़ें. इससे कोहनियों का रंग साफ हो जाता है.

* स्नान करने के बाद कोहनियों पर मॉइश्चराइजर क्रीम अवश्य लगाएं.

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खुशहाल मैरिड लाइफ के लिए फिक्स कर ले सेक्स का टाइम

राइटर- शैलेंद्र सिंह

कोरोना काल में सेक्स सबसे बडी परेशानी का सबब बन गया है. बिना तैयारी के सेक्स से गर्भ ठहरने लगाहै. उम्रदराज लोगों के सामने ऐसी परेशानियां खडी हो गई है. स्कूल बंद होने से बच्चों के घर पर रहने से पति पत्नी को अपने लिये समय निकालना मुश्किल होने लगा. बाहर आना जाना बंद हो गया. कभी पति के पास समय है तो कभी पत्नी का मूड नहीं. कभी पत्नी का मूड बना तो पति को औनलाइन वर्क से समय नहीं. ऐसे में आपसी तनाव, झगडे और जल्दी सेक्स की आदत आम होने लगी है. जिस वजह से आपसी झगडे बढने लगे है. ऐसे में जरूरी है कि आपस में समय तय करके सेक्स करे. जिससे आपसी झगडे कम होगे तालमेल बढेगा.

रीना की शादी को 5 साल हो गये थे. उसका पति सुरेश देर रात में काम से लौटता था. शादी के शुरूआती दिनों में तो सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. कुछ समय से दोनो के बीच परेशानी आ गयी थी. परेशानी कीवजह यह थी कि घर के काम से थक कर रीना जल्दी सो जाती थी. आफिस से देर से लौटने के बाद भी सुरश को नींद नही आती थी. ऐसे समय पर वह नेहा के साथ प्यार और हमबिस्तर होने की कोशिश करता थ.पति का यह काम रीना को बहुत खराब लगता था. वह कहती कि उसको नींद आ रही है. सोने के बाद उसे सेक्स करने का मन नही करता  वह पति से कहती कि सोने के पहले इस काम को करने में क्या परेशानी आती है. इस बात को लेकर रीना और सुरेश की अक्सर झिकझिक होती थी. इस कारण कई बार तो चाहतेहुये भी दोनो महीनों तक सेक्स संबंध ही नही बना पाते थे सुरेश कहता कि मेरा तो मन रात में ही सेक्स करने का होता है.

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रीना से उल्टी परेशानी नेहा और प्रदीप की भी है. प्रदीप रात को घर वापस आता था.  खाना खाने के बाद कुछ अपना काम करता, टीवी देखता और फिर सो जाता था. सुबह वह लगभग 4 बजे उठ जाता था. इस समय उसका मन सेक्स करने का होता था जब वह रीना को इसके लिये तैयार होने के लिये कहता तो वह मना कर देती. उसका कहना था कि इस तरह सुबह सुबह उसका मन नही होता है. दोनो के बीच सेक्स के समय को लेकर झिकझिक होती. रीना कहती कि जब रात में टीवी देखकर सो जाते हो उस समय भी तो इस काम को कर सकते हो ? रीना और नेहा जैसी परेशानियां दूसरे लोगो के सामने भी आती है. यह समस्या केवल आदमियों की ही नही होती. औरतों में भी सेक्स के समय को लेकर उलझन होती है.

शादी की शुरूआती दिनों में तो औरत और आदमी के बीच सेक्स संबंध ठीक तरह से चलते रहते है. समय के साथ साथ यह समय बिगडने लगता है. किसी को रात का समय अच्छा लगता है तो किसी को सुबह का समय अच्छा लगता है. सेक्स दो लोगो के बीच होता है इसलिये यह भी जरूरी हो जाता हे कि दूसरा पार्टनर भी उसी हिसाब से अपना समय तय कर ले. जिन जोडो के बीच सेक्स के समय का यह सामाजस्य नहीं बैठता है वही पर विवाद खडे हो जाते है.

यह परेशानी नई नही है. पहले औरतों की इच्छा को कोई महत्व नही दिया जाता था.  पत्नी की रजामंदी का कोई मतलब नही होता था. पति जब चाहता था पत्नी को उसके सामने आत्मसमर्पण करना ही पडता था. सेक्स के प्रति औरतो की बदलती सोंच से सेक्स के समय का विवाद और भी तेजी से उभर कर सामने आ रहा है और पति पत्नी के बीच झगडे की वजह बनता जा रहा है. इस तरह की परेशानियां लेकर कई जोडे आते है. इस मानसिक तनाव के कारण बच्चा पैदा करने में भी परेशानी आती है. कई जोडो में सेक्स के टाइम को मैनेज करने मात्र से ही बच्चा पैदा करने मे सफलता हासिल हो गयी.

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टकराव की वजह:
सेक्स के समय को लेकर शुरू हुई तकरार में अहम का टकराव हो जाता है. ज्यादातर यह तकरार 35 सालकी उम्र के बाद शुरू होती है. इस समय पति या पत्नी दोनो के ऊपर आफिस या कारोबार की जिम्मेदारी बढ जाती है. सेक्स के लिये समय का चुनाव करना यही से शुरू हो जाता है. आमतौर पर पत्नी यह चाहती है कि जब बच्चे सो जाये तो सेक्स शुरू हो. पति या तो सेक्स शुरू करने का उतावलापन दिखाता है या फिर सो जाता है और सुबह जब पत्नी को जल्दी उठकर घर के काम, बच्चो का टिफिन, पति के लिये नाश्ता तैयार करना होता है तो वह सेक्स की इच्छा जाहिर करता है. पत्नी को सेक्स के लिये मानसिक रूप से तैयार होना पडता है. जब वह इसके लिये न करती है तो पति नाराज हो जाता है. उसके लगता है कि रात या सुबह दोनो समय इंकार ही करती रहती हो.

पतिपत्नी के इस व्यवहार को ज्यादातर लोग यह मानते है कि यह सामान्य प्रक्रिया है. जो समय के साथ ठीक हो जायेगी. सच्चाई यह नही है. सेक्स के लिये मूड का बनना शरीर के मेटाबॉलिज्म के हिसाब से होता है कुछ लोगो का मूड सुबह बहुत अच्छा रहता है और वह इस समय ही सेक्स करना चाहते है. इस तरह के लोगो को ‘लार्क श्रेणी’ का माना जाता है. इसके विपरीत जो लोग रात के समय सेक्स करने की इच्छा रखते है. उनको ‘आउल श्रेणी’ का माना जाता है. सेक्स के समय को लेकर जिन जोडो में ‘लार्क श्रेणी’ और ‘आउल श्रेणी’ दोनो ही तरह के लोग होते है वहां पर टकराव ज्यादा होता है. जहां पर एक ही श्रेणी के लोग होते है वहां पर टकराव नही होता है.

तय करें सेक्स का समय:
जोडो की आपसी समझदारी से इस समस्या का समाधान आसानी से किया जा सकता है. इसके लिये जरूरी है कि तकरार को छोड कर सेक्स लाइफ को पटरी पर लाने के लिये साथ साथ छुटिटयां बिताई जाये. सेक्स समय के झगडे को खत्म करने के लिये अपने अपने अहम को पीछे छोडना होगा. सेक्स समय की परेशानी से जूझ रहे जोडो के लिये कारगार हो सकते है. सेक्स समय की उलझन को सुलझाने के लिये पति पत्नी दोनो को सेक्स के लिये ऐसे समय का चुनाव करे जो दोनो को ही मान्य हो यह समय किसी को नागवार नही होना चाहिये.

सेक्स के समय को तय करने के लिये एक डायरी भी तैयार कर सकते है. इसमें दोनो लोगो की सहमति से दिन तारीख और समय को लिखा जाये. इसका पूरी तरह से पालन किया जाये. इसका सबसे बडा फायदा यह है कि उस दिन आप पहले से ही सेक्स के लिये मानसिक रूप से तैयार रहेगे. सेक्स के लिये एक अपाइनमेंट से दूसरे अपाइनमेंट के बीच एक से दो सप्ताह को समय जरूर रखना चाहिये.

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अगले अपाइनमेंट में सेक्स को लेकर अलग अलग तरह की कल्पना भी करेगे इस दौरान दोनो ही लोगो को सेक्स के दौरान आये खुशनुमा क्षणों का मजा लेने में आसानी होती है. कुछ समय तक इस उपाय को करने से सेक्स समय की परेशानी खत्म हो जाती है. इसका पालन आगे भी जारी रखे. जिससे आपकी सेक्स लाइफ ट्रैक पर चलती रहे.

मैं लाइट मेकअप करना चाहती हूं, इसका सही तरीका बताएं?

सवाल…

मेरी उम्र 21 साल है. मैं इन दिनों लाइट मेकअप करना चाहती हूं. कृपया इस का सही तरीका बताएं?

जवाब…

मेकअप करने से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि आप का चेहरा पूरी तरह साफ हो. टोनर का इस्तेमाल करने से मेकअप फैलता नहीं है. लाइट मेकअप करते समय काजल का इस्तेमाल जरूर करें. लाइट मेकअप करते समय गाढ़े रंग का शैडो लगाने से बचें और अगर लगाना ही है तो न्यूट्रल कलर का इस्तेमाल करें. लाइट कलर की लिपस्टिक को ग्लौस के साथ लगाना बेहतर होगा. कोशिश करें कि आप ग्लिटर का इस्तेमाल न करें. दिन में धूप और गरमी के कारण आप का मेकअप खराब हो सकता है. इसलिए हमेशा वाटरप्रूफ ब्यूटी प्रोडक्ट्स का ही इस्तेमाल करें. मेकअप करने से 20 मिनट पहले सनस्क्रीन लगाना न भूलें.

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