ताकि धर्म की दुकानदारी चलती रहे

तनिष्क ज्वैलरी के एक विज्ञापन पर जिस में मुसलिम सास और  हिंदू बहू का प्रेम एक पारंपारिक रिवाज के माध्यम से दिखाया था, हिंदू कट्टरपंथियों को नहीं भाया. उन्होंने पहले ट्विटर पर जम कर कंपनी को लताड़ा और फिर स्वयं नियुक्त भगवा चौकीदार धर्म रक्षा के लिए तनिष्क के शोरूमों पर हमला करने लगे.

कंपनी का मुख्य उद्देश्य तो जेवर बेचने थे, धार्मिक विवाद में फंसना नहीं, इसलिए उस ने तुरंत विज्ञापन प्रसारित करना बंद कर दिया.

कहने को यह असहिष्णुता नई है पर असल में यह हर धर्म में बहुत गहराई तक मौजूद है और जरा सी दरार भी धर्मों के दुकानदारों को मंजूर नहीं. हर धर्म असल में  झूठी कहानियों पर टिका है. यह कमाल है ताश के पत्तों और रेत से बने महल सारे विश्व में मौजूद हैं और कोई समाज इन से अछूता नहीं है. हर धर्म दूसरे धर्म वाले को दुश्मन मानता है और अपने धर्म के बारे में सचाई कहने पर बेहद बिगड़ता है.

इस विज्ञापन में जो दर्शाया गया है वह साफ करता है कि विज्ञापन बनाने वाले ने हिंदूमुसलिम विवाह को एक सामान्य घटना बताया है. यह घटना सामान्य नहीं है.

हिंदूमुसलिम विवाह का अर्थ है कि विवाह भारत में स्पैशल मैरिज एक्ट के अंतर्गत हुआ जिस में न तो पंडित आया न मौलवी. दोनों की रोजीरोटी मारी गई. इन दोनों के परिवारों ने विवाह के समय बहुत सी पूजाएं नहीं की थीं. उन सब की आमदनी मारी गई. ये परिवार अमीर और संपन्न थे. अत: पैसे मोटे मिलने थे जो मारे गए. नुकसान हो गया.

यही नहीं इन की संतानों के जन्म पर बहुत से रीतिरिवाज नहीं होंगे. उन सब में पैसा मारा गया. सावधानी के लिए विज्ञापन निर्माता ने गोदभराई रस्म दिखाई थी पर यह कहां मंजूर है कट्टरपंथियों को? वे तो जन्म से ले कर मरने तक धर्म का कब्जा हर जीवित व्यक्ति पर रखना चाहते हैं और उस में कोई छूट भी बरदाश्त नहीं है.

भारत में कट्टरपंथी राममंदिर वाले शासन का लाभ ही क्या जब विवाह जैसे पैसे देने वाले रीतिरिवाजों को कम करने की भी बात होने लगे.

कोई बड़ी बात नहीं कि यह भगवा गैंग स्पैशल मैरिज एक्ट जो अंतर्धर्मीय विवादों को कानूनी मान्यता देता है को स्क्रैप करने की बात करने लगे. धर्म की दुकानें बचाने के लिए ये लोग किसी भी हद तक जा सकते हैं और व्यक्ति की स्वतंत्रता व पसंद को कुचल सकते हैं.

वर्चुअल रोमांस करें लवलाइफ अनलौक

बैंगलुरु का राहुल बेसब्री से औफिस खुलने का इंतजार कर रहा है ताकि वह अपनी औफिस क्रश पूजा को देख सके. हर दिन बस यही सोचता है कि बस जल्दी से कोरोना खत्म हो और वह पूजा को अपने दिल की बात बता सके.’’

कुछ ऐसा ही हाल दिल्ली के रोहित का भी है. रोहित को वैसे तो किसी सीरियस रिलेशनशिप में रुचि नहीं है, लेकिन उसे लड़कियों से फ्लर्ट करने में काफी मजा आता है.’’

जी हां, यह हाल सिर्फ राहुल और रोहित का ही नहीं, बल्कि ऐसे और कई युवक व पुरुष भी हैं जो अपने प्यार, अपने क्रश से मिलने को बेताब हैं. असल में कोरोना यंग लकड़ेलड़कियों व पुरुषों के लिए मुसीबत ले कर आया है. अब दिल पर किसी का जोर तो चलता नहीं, लेकिन कोरोना को किसी के दिल के हाल से क्या मतलब. ऐसे में जिंदगी बेबस बन कर रह गई है. अगर आप के …

आप अपने दिल की बात अपने पार्टनर तक पहुंचा सकते हैं, उस के साथ समय बिता कर मस्ती कर सकते हैं. कैसे, आइए, हम बताते हैं:

हैप्पन डेटिंग ऐप

यह काफी लोकप्रिय डेटिंग ऐप्प है, जिस की मदद से आप अपने आसपास के लोगों से दोस्ती का हाथ बढ़ा कर उन के साथ जीभर कर रोमांस कर सकते हैं. यह एक लोकेशन बेस्ड ऐप्प है, जिस की मदद से आप अपने आसपास के लोगों से ही दोस्ती कर सकते हैं. इस ऐप्प से जुड़ने के लिए आप को इस पर अपना अकाउंट बनाना होता है, फिर लोगिन करने के लिए आप को अपनी फेसबुक आईडी से ही जुड़ना होगा, जिस के माध्यम से आप इस ऐप्प में लौगिन कर पाएंगे.

इस ऐप्प की खास बात यह है कि यह सिर्फ आप के फेसबुक पेज से आप का नाम व उम्र ले कर आप का अकाउंट बना देगा. फिर आप इस में अपनी कुछ खास पसंद डाल सकते हैं, जिस से आप को उसी तरह के प्रोफाइल आने लगते हैं.

आप के पास लाइक और डिसलाइक करने के दोनों औप्शंस होते हैं. लेकिन इस के लिए आप को अपने फोन का जीपीएस औन करना होता है, क्योंकि यह एक लोकेशन बेस्ड ऐप्प जो है. प्रोफाइल पसंद आने पर आप जीभर कर उस के साथ डेट करें. हो सकता है यह डेट आप का हमसफर चुनने में भी आप की मदद करे. वैसे रोमांस का मौका तो मिल ही जाएगा.

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आर्केक्यूपिड ऐप

इसे ओकेसी के नाम से भी जानते हैं. इस ऐप्प पर अकाउंट बनाने के लिए आप को ढेरों प्रश्नों के जवाब देने होते हैं, जिस से आप को अपने जैसा पार्टनर मिलने में काफी आसानी हो जाती है, क्योंकि यह आप के प्रश्नों के उत्तर देने मात्र से सम झ जाता है कि आप अपने लिए किस तरह के पार्टनर को सर्च कर रहे हैं. आप चाहें तो सर्च फिल्टर्स की मदद से भी पार्टनर सर्च कर सकते हैं. फिर वर्चुअल डेटिंग के बाद अगर चीजें सही लगती हैं तो सही समय आने पर मौका देख कर आमनेसामने मिल कर अपनी फ्रैंडशिप को और गहरा बनाएं.

ट्रूली मैडली ऐप

इसे एक ट्रस्टी डेटिंग ऐप कहा जाए तो कम न होगा, क्योंकि इस में फेक आईडी नहीं होने के कारण धोखा मिलने के चांसेज काफी कम रहते हैं. यह ऐप्प आप का अकाउंट बनाने के लिए आईडी प्रूफ मांगता है. अगर आप ने दे दिया तो आप इस ऐप का मजा ले सकते हैं वरना आप को इस ऐप को यूज करने की इजाजत नहीं होगी. इस ऐप में आप को इस बात का डर नहीं होगा कि कोई आप के फोटो के साथ छेड़छाड़ करेगा, क्योंकि इस में आप फोटो को डाउनलोड नहीं कर सकते. बस फ्रैंडशिप होने के बाद आप की बातचीत, आप के शेयरिंग सिर्फ आप के बीच ही रहेगी यानी यह ऐप आप को सच्चे प्यार से मिलवाने के साथसाथ रोमांस का भी मौका देगा.

टिंडर ऐप

टिंडर ऐप को कौन नहीं जानता, क्योंकि यह भारत में का पहला ऐप जो है, जो डिजिटल डेटिंग के रूप में उभर कर सामने आया था. आज लाखों लोगों के दिलों में अपनी खास जगह बना चुका है. इस ऐप पर रेजिटेर करने के लिए आप को अपनी फेसबुक आईडी से लौगिन करना होगा. फिर आप का इस पर खुद अकाउंट बन जाएगा. आप को इस के लिए अपने फोन की लोकेशन को औन करना होगा ताकि आप को अपने आसपास के लोगों के बारे में जानकारी मिल सके. इस ऐप की खास बात यह है कि आप इस में सर्च फिल्टर औप्शन के आधार पर भी सर्च कर सकते हैं. इस में अगर आप को प्रोफाइल पसंद आया है तो आप स्वाइप राइट कर सकते हैं नहीं तो स्वाइप लेफ्ट. स्वाइप राइट करते ही आप अपने पार्टनर के साथ चैट का लुत्फ उठा सकते हैं. बस ध्यान रखें कि आप इन ऐप्स पर अपनी अट्रैक्टिव फोटो लगाएं, क्योंकि पहली नजर में कोई आप के प्रति अट्रैक्ट आप के फोटो को देख कर ही होगा. तो हुए न कमाल के ऐप्स.

रोमांस के लिए इंस्ट्राग्राम भी बैस्ट औप्शन

अगर आप किसी के साथ रोमांस करना चाहते हैं तो इंस्ट्राग्राम आप के लिए बैस्ट औप्शन है. बस इस पर आप को अपना अकाउंट बनाना होगा और फिर उस पर अपने अट्रैक्टिव फोटो लगा कर बस फौलो करना शुरू कर दें. दोस्ती करने की कोशिश करें और जब दोस्ती हो जाए तो बातचीत का सिलसिला शुरू कर दें. इस प्लेटफौर्म के जरीए आप आराम से अपने दोस्त से बात कर सकते हैं और किसी को कानोंकान खबर भी नहीं होगी. घर वालों को लगेगा कि आप सोशल मीडिया पर बिजी हैं, लेकिन आप तो यहां आराम से चैटिंग का मजा ले रहे हैं. इस की खास बात यह है कि अगर आप को कोई अच्छा नहीं लगा तो आप अपने अकाउंट को भी डीएक्टिवेट कर सकते हैं.

औनलाइन डेटिंग के फायदे काम के बीच भी डेटिंग का मौका

अकसर औफिस में जब भी किसी को किसी से प्यार होता है, तो हर समय मन करता है कि उस के साथ ही समय बिताएं. काम के बीच में भी कई बार उस के पास जाने को दिल करता है और जब मन इसे रोक नहीं पाता, तो किसी बहाने से उस की सीट के आसपास ही घूमना शुरू कर देते हैं, जिस से न सिर्फ दूसरों की नजर में आते हैं, बल्कि काम की प्रोडक्टिविटी पर भी असर पड़ता है, जबकि औनलाइन डेटिंग में किसी को कानोंकान खबर भी नहीं होती और मन की सारी ख्वाइशें भी पूरी हो जाती हैं. यानी काम भी और काम के बीच मस्ती भी.

जब मन करे तब छोड़ दो

औफिस में प्रेम करने का मतलब अगर सफल हुआ तो ठीक वरना ब्रेकअप होने पर दोनों पार्टनर ही एकदूसरे पर कीचड़ उछालने लग जाते हैं. ऐसे माहौल में काम करना काफी मुश्किल हो जाता है. कई बार तो बात इतनी बिगड़ जाती है कि नौकरी छोड़ने तक की नौबत आ जाती है. लेकिन औनलाइन प्रेम आप को इन सब  झं झटों से दूर रखता है. अगर आप के पार्टनर के साथ विचार मेल नहीं खाते तो आप उसे ब्लौक भी कर सकते हैं.

एकसाथ कइयों से डेटिंग

असल में जब हम एकसाथ कइयों से डेटिंग करते हैं तो हम काफी लंबे समय तक इस  झूठ को छिपा नहीं रख पाते और कई बार बातबात में सच बाहर आ ही जाता है या फिर पार्टनर के फोन को देखने भर से ही चीजें सम झ आ जाती हैं. ऐसे में लंबे समय तक रिश्ते में धोखा देना नहीं चल पाता. लेकिन औनलाइन डेटिंग में इस तरह के  झूठ का पर्दाफाश होना इतना आसान नहीं होता. ऐसे में आप एकसाथ कइयों के साथ रिलेशनशिप में रह कर अपनी लाइफ को रोमांटिक व मस्त बना सकती हैं.

सैक्स पर खुल कर बातें

चाहे हमारा रिलेशन कितना भी करीब क्यों न हो फिर भी आमनेसामने होने पर इस तरह की बातें करने में थोड़ी  झिझक तो होती ही है. लेकिन औनलाइन डेटिंग में आप खुल कर पार्टनर से इस तरह की बातें कर के व उस का फील ले कर मजा ले सकते हो. उस की इन बातों में दिलचस्पी व वह आप को कितना मजा दे सकता है यह आप को उस की बातों से पता चल जाएगा. इस से आप को यह निर्णय लेने में आसानी होगी कि वह आप के लायक है या नहीं, क्योंकि अगर रोमांस नहीं हो या फिर पार्टनर की बातों में वह सैक्सीपन न हो तो रिश्ते में वह बात नहीं आ पाती.

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शौपिंग की डिमांड से छुटकारा

अधिकांश लड़कियां फ्रैंडशिप ही इसलिए करती हैं ताकि उन का पार्टनर उन्हें शौपिंग करवा सके. उन की हर ख्वाहिश को पूरा कर सके और जरा सा मना करने पर या तो लड़ाई हो जाती है या फिर ब्रेकअप. लेकिन औनलाइन डेटिंग में आप के सामने पार्टनर की इस तरह की ख्वाहिशों को पूरा करने की डिमांड नहीं होती है. बस आप को यही तो कहना है कि जब मिलेंगे तब ये दूंगा. इस से पार्टनर भी खुश और आप की पौकेट भी खाली होने से बच जाएगी और कभीकभार औनलाइन शौपिंग करवानी भी पड़े तो कोई फर्क नहीं पड़ता.

अगर आप अपनी औनलाइन डेटिंग में सफल होना चाहते हैं तो इन बातों का खास खयाल रखें:

बातबात पर रूठें नहीं

रिश्ता चाहे औफलाइन हो या औनलाइन, पार्टनर यही चाहते हैं कि दोनों एकदूसरे की बात को सम झें, बात पसंद नहीं आने पर रूठें नहीं, बल्कि प्यार से सम झाएं, इस से रिश्ता लंबे समय तक टिका रहता है, साथ ही रिश्ते में विश्वास बना रहने के साथसाथ पार्टनर एकदूसरे से बिना डरे अपने मन की बात भी कर पाते हैं. इसलिए बातबात पर रूठने की आदत को आप को छोड़ना पड़ेगा.

विश्वास बनाए रखें

कोई भी रिश्ता हमेशा विश्वास की बुनियाद पर टिका होना चाहिए. आप भले ही औनलाइन डेटिंग का मजा ले रहे हों, लेकिन आप हमेशा अपनी रियल पर्सनैलिटी ही सामने लाएं. इस से आप की पार्टनर आप के रियल पर्सनैलिटी को सम झ पाएगा और अगर यह रिश्ता आगे बढ़ता है तो ज्यादा दिक्कतें भी नहीं होंगी. लेकिन अगर आप का रिश्ता  झूठ की बुनियाद पर टिका होगा तो सच सामने आने पर रिश्ते में दरार भी पड़ सकती है. इसलिए संभल जाएं.

कम्युनिकेशन न टूटने पाए

भले ही आप काफी बिजी हों, फिर भी पार्टनर से दिन में एक बार फुरसत के क्षणों में बात जरूर करें. उसे अपने रूटीन के बारे में भी बताएं, इस से उसे लगेगा कि आप उसे इग्नोर नहीं कर रहे, क्योंकि अगर बातों का तार टूटा तो औनलाइन फ्रैंडशिप को भी टूटने में देर नहीं लगेगी.

पार्टनर की परेशानी को अपना सम झें

कहते हैं न कि सुख के सब साथी होते हैं, लेकिन दुख का कोई नहीं और असल में दोस्ती की पहचान दुख के समय ही होती है. ऐसे में अगर आप का पार्टनर दुखी है तो उसे प्यार से सम झाएं, उस के दर्द को अपना सम झें. आप के इस व्यवहार से उसे आप से अपनापन महसूस होगा और अगर आप ने उसे ऐसे समय में इग्नोर किया तो रिश्ता मजबूत नहीं बन पाएगा.

दूसरी लड़कियों की तारीफ करने से बचें

अकसर लड़कियां अपने सामने दूसरी लड़कियों की तारीफ बरदाश्त नहीं करती हैं और अगर उन का पार्टनर बारबार इसी बात को दोहराता है तो उन के बीच लड़ाई झगड़े तक की नौबत आ जाती है. ऐसे में जरूरी है कि आप अपने बीच किसी तीसरे को नहीं आने दें, बल्कि जितना हो सके एकदूसरे पर प्यार की बारिश कर के करीब आएं. इस तरह आप इस मुश्किल समय में भी रोमांस कर सकते हैं.

तो फिर अब औफिस खुलने का इंतजार क्यों करना, खुल कर औनलाइन रोमांस करिए.

पास होने का एहसास भी

भले ही आप कोरोना के समय में एकसाथ सिनेमाहौल में जा कर मूवी नहीं देख पा रहे हैं, मौल में नहीं घूम पा रहे हैं, लेकिन आप यहां दूर हो कर भी एकसाथ ऐंजौय कर सकते हैं. तो अब आप सोच रहे होंगे कि भला दूर हो कर भी एकसाथ ऐंजौय कैसे? तो चलिए हम आप को बताते हैं कि आप जूम, हैंगआउट व स्काइप के माध्य से एकसाथ स्क्रीन शेयर कर के मूवी देख सकते हैं, गाने सुन सकते हैं. यकीन मानिए जब आप एकदूसरे को सौंग्स के लिंक भेज कर एकसाथ सौंग व मूवी देखने का लुत्फ उठाएंगे तो आप का दिल एकदूसरे के लिए जरूर धड़केगा, साथ ही आप औनलाइन ड्रैस पसंद कर के उन का रिएक्शन भी जान सकते हैं. इस से आप एकदूसरे की पसंदनापसंद भी जान पाएंगे.

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डायबिटीज में फायदेमंद है नैचुरल डाइट

डायबिटीज जीवनशैली से जुड़ी बीमारी है. इस में शर्करा का सतर उच्च हो जाता है. इस का सही इलाज न हो तो यह कई बीमारियों का कारण बन सकती है. डायबिटीज में व्यक्ति का अग्न्याशय पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन नहीं करता.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्व में लगभग 350 मिलियन लोग इस बीमारी से पीडि़त हैं और यह संख्या तेजी से बढ़ रही है. शुगर को  नियंत्रित करने के लिए ऐलोपैथिक दवाओं के साथसाथ आयुर्वेदिक का भी प्रयोग किया जाता है. आयुवे्रद में डायबिटीज को मधुमेह कहा गया है. डायबिटीज का प्रमुख कारण आनुवंशिकता भी होता है. डायबिटीज के लिए समय पर न खाना या अधिक जंक फूड खाना और मोटापा बढ़ना इस के कारण हैं. वजन बहुत ज्यादा बढ़ने से उच्च रक्तचाप की समस्या हो जाती है और रक्त में कोलैस्ट्रौल का स्तर भी बहुत बढ़ जाता है जिस कारण डायबिटीज हो सकती है.

बहुत अधिक मीठा खाने, नियमित रूप से जंक फूड खाने, कम पानी पीने, ऐक्सरसाइज न करने, खाने के बाद तुरंत सो जाने, आरामपरस्त जीवन जीने और व्यायाम न करने वाले लोगों में डायबिटीज होने की संभावना अधिक रहती है.

बच्चों में होने वाली डायबिटीज का मुख्य कारण आजकल का रहनसहन और खानपान है. आजकल बच्चे शारीरिक रूप से निष्क्रिय रहते हैं और अधिक समय तक टीवी या वीडियो गेम खेलने में व्यतीत करते हैं. इस कारण डायबिटीज होने का खतरा ज्यादा रहता है. इस से बचने के लिए स्वस्थ जीवनशैली अपनाना जरूरी है. डायबिटीज 2 तरह के होते हैं- टाइप-1 डायबिटीज के रोगी के शरीर में इंसुलिन का निर्माण आवश्यकता से कम होता है.

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इस कमी को बाहर से इंसुलिन दे कर नियंत्रित किया जा सकता है. इस में रोगी के अग्न्याशय की बीटा कोशिकाएं इंसुलिन नहीं बना पातीं, जिस का उपचार लगभग असंभव है. टाइप-2 डायबिटीज में रोगी का शरीर इंसुलिन का पूरी तरह से इस्तेमाल नहीं कर पाता है. इस में शरीर इंसुलिन बनाता तो है, लेकिन कम मात्रा में और कई बार वह इंसुलिन अच्छे से काम नहीं करता. टाइप-1 डायबिटीज को उपचार और उचित खानपान से नियंत्रित किया जा सकता है.

डायबिटीज के लक्षण

डायबिटीज में शरीर का ग्लूकोस बढ़ने के साथ और भी लक्षण महसूस होते हैं. इन में अधिक भूख एवं प्यास लगना, अधिक पेशाब आना, हमेशा थका महसूस करना, वजन बढ़ना या कम होना, त्वचा में खुजली होना या अन्य त्वचा संबंधी समस्याएं इस का प्रमुख कारण है. इस के अलावा नेत्र संबंधी समस्याएं जैसे धुंधला दिखना भी इस का प्रमुख कारण होता है. डायबिटीज के कारण कोई घाव होने पर उस के ठीक होने में समय लगता है. डायबिटीज में शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली ठीक तरह से काम नहीं करती. महिलाओं में अकसर योनि में कैंडिड इन्फैक्शन होने का खतरा रहता है. व्यक्ति अपने हाथ और पैरों में झनझनाहट महसूस करता है, साथ ही हाथपैरों में दर्द एवं जलन भी हो सकती है.

डायबिटीज से बचाव

खानपान, जीवनशैली और घरेलू उपचारों का प्रयोग किया जाए तो निश्चित ही रक्त में शुगर के स्तर को नियंत्रित रखा जा सकता है. सब्जियों में करेला, ककड़ी, खीरा, टमाटर, शलगम, लौकी, तुरई, पालक, मेथी, गोभी आदि खाना चाहिए. फलों में सेब, अनार, संतरा, पपीता, जामुन, अमरूद का सेवन करें.

चीनी, शक्कर, गुड़, गन्ने का रस, चौकलेट का सेवन बिलकुल न करें. एक बार में अधिक भोजन न करें, बल्कि भूख लगने पर थोड़ी मात्रा में भोजन करें. डायबिटीज के रोगी को प्रतिदिन आधा घंटा सैर करनी चाहिए और व्यायाम करना चाहिए. जितना हो सके तनावयुक्त जीवन जीना चाहिए.

शुगर के लक्षण नजर आएं तो तुरंत डाक्टर से मिलें.

डायबिटीज का इलाज

डायबिटीज में मेघदूत का मधुशून्य भी बेहद असरकारी होता है.

यह आयुर्वेदिक औषधियों का मिश्रण होता है. इस में करेला, विजयसार, गुड़मार, जामुन जैसी कई जड़ीबूटियां शामिल होती हैं. तुलसी में मौजूद ऐंटीऔक्सीडैंट और जरूरी तत्त्व शरीर में इंसुलिन जमा करने और छोड़ने वाली कोशिकाओं को ठीक से काम करने में मदद करते हैं. डायबिटीज के रोगी को रोज 2-3 तुलसी के पत्ते खाली पेट खाने चाहिए. इस से डायबिटीज के लक्षणों में कमी आती है. इस से इम्युनिटी बूस्ट होती है. करेले का जूस शुगर की मात्रा को कम करता है. डायबिटीज को नियंत्रित में लाने के लिए करेले का जूस नियमित रूप से पीना चाहिए.

सुबह खाली पेट अलसी का चूर्ण गरम पानी के साथ लें. अलसी के बीज डायबिटीज के मरीज की भोजन के बाद की शुगर को लगभग 28% तक कम कर देते हैं. डायबिटीज में मेथी का सेवन लाभकारी है. मेथी के दानों को रात को सोने से पहले एक गिलास पानी में डाल कर रख दें. सुबह उठ कर खाली पेट इस पानी को पीएं और मेथी के दानों को चबा लें. नियमित रूप से इस  का सेवन करने से डायबिटीज नियंत्रण में रहती है.

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ग्लोइंग स्किन के लिए बेस्ट हैं ये 5 ग्रीन टी फेस पैक

हेल्थ के लिए अक्सर हम ग्रीन टी का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन क्या आपने कभी फेस के लिए ग्रीन टी का इस्तेमाल फेस के लिए किया है. ग्रीन टी में एंटीऔक्‍सीडेंट, विटामिन और मिनरल पाया जाता है, जो बौडी को हेल्दी बनाने के साथ फेस को ब्यूटीफुल बनाता है. ग्रीन टी को पीने से फेस की झुर्रियों, दाग-धब्‍बे, मुंहासों, सन टैन और स्‍किन कैंसर से छुटकारा मिलता है. पर क्या आपने कभी ग्रीन टी फेस पैक का इस्तेमाल किया है. ग्रीन टी बैग का इस्तमाल डायरेक्ट फेस पर करने से ग्लोइंग और वाइट स्किन मिलेगी. आज हम आपको ग्रीन टी फेस पैक के बारे में बताएंगे, जिससे आप स्किन को और खूबसूरत बना सकती हैं.

ऐसे बनाएं ग्रीन टी फेस पैक

1.ग्रीन टी और कोकोआ पाउडर का करें इस्तमाल

3 चम्‍मच ग्रीन टी के साथ कोकोआ पाउडर में 1 चम्‍मच बादाम के तेल में मिला लें. इसे 20 मिनट तक फेस पर लगाएं और फेस को धो लें, इससे आपका फेस ग्‍लो करने लगेगा.

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2. पपीता और ग्रीन टी फेस पैक करें इस्तेमाल

पके पपीते का गूदा निकालिये और उसमें ग्रीन टी का पानी मिलाइये. इस पैक को फेस पर 15 मिनट तक रखने के बाद साफ कर लें. इससे टैन पड़ी स्‍किन बिल्‍कुल साफ हो जाएगी.

3. चावल के आटे के साथ ग्रीन टी का करें इस्तेमाल

ग्रीन टी के 2 बैग को 1 चम्‍मच चावल के आटे के साथ मिलाइये और उसमें नींबू का रस डाल कर पेस्‍ट तैयार कीजिये. इस पेस्‍ट को फेस पर 15 मिनट तक लगा रहने के बाद इसे स्‍क्रब कर के निकाल लीजिये. इससे स्‍किन ब्राइट दिखने लगेगी.

4. स्ट्रौबेरी और ग्रीन टी का फेस पैक है बेस्ट

तीन स्‍ट्राबेरी को मैश कर के उसमें आधा चम्‍मच शहद और 1 चम्‍मच ग्रीन टी मिलाइये और इस पेस्ट से फेस पर ऊपर की ओर मसाज करें. आधे घंटे के बाद चेहरा धो लें, कुछ ही दिनों में आपकी सारी झुर्रियां गायब हो जाएंगी.

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5. अदरक और ग्रीन टी का कौम्बिनेशन

पानी उबाले और उसमें 3 टी बैग ग्रीन टी के और कुटी हुई अदरक डाल दें. जब पानी आधा हो जाए तो उसे छान लें और पानी को उस जगह पर लगाएं जहां पर पिंपल या दाग धब्‍बे हैं. इससे पिंपल साफ हो जाएगा. अगर आप स्किन को ग्रीन टी से भी क्लीन करेंगी तो आपको हेल्दी और खूबसूरत स्किन मिलेगी.

भाई की शादी में छाया कंगना रनौत का फैशन, Photos Viral

बेबाक बयान और दमदार एक्टिंग के लिए पौपुलर एक्ट्रेस कंगना रनौत इन दिनों अपने भाई अक्षत रनौत के वेडिंग फंक्शन में धमाल मचा रही हैं. जहां एक तरफ हर फंक्शन में कंगना का लुक खूबसूरत लग रहा है तो वहीं फैंस कंगना का वेडिंग लुक देख तारीफें कर रहे हैं. आइए आपको दिखाते हैं भाई की शादी में कंगना के फैशन लुक्स, जिसे आप इस वेडिंग सीजन ट्राय कर सकती हैं.

शादी का लहंगा था खास

कंगना का जड़ाऊ राजस्थानी थीम वाला ब्लू लहंगा बेहद खूबसूरत है. जिसे फेमस फैशन डिज़ाइनर अनुराधा वकिल ने खास डिज़ाइन किया था. जड़ाऊ लहरिया लहंगे में टेक्सटाइल इफेक्ट के साथ बॉर्डर के चारों ओर बोर इंट्रैक्ट गोल्डन ज़री एम्ब्रोडरी की गई थी.

 

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ब्लाउज और दुप्ट्टे की बात थी अलग

 

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जड़ाऊ लहरिया लहंगे  के साथ बैंगनी रंग की कशीदाकारी ब्लाउज के साथ कंगना का लुक परफेक्ट लग रहा था. यही नहीं, इस कस्टममेड लहरिया लहंगे में हेम के साथ गोल्फ कशीदाकारी बेल्ट को जोड़ा था, जिसके साथ जालीदार दुपट्टा परफेक्ट लग रहा था.

मेहंदी का लुक भी था खास

 

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मेहंदी के लुक की बात करें तो गोल्डन लहंगे में कंगना का लुक परफेक्ट नजर आ रहा था. हैवी एम्बौयडरी वाले गोल्डन लहंगे के साथ सिंपल ज्वैलरी कंगना के लुक पर चार चांद लगा रहा था.

शादी के बाकी फंक्शन का लुक भी था धमाल

 

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भाई की शादी के बाद कंगना का लुक फैंस को काफा पसंद आया है, जिनमें हैवी एम्ब्रौयडरी वाले कुर्ते के साथ फ्लोरल प्रिंट वाली पैंट का कौम्बिनेशन परफेक्ट रहा. इसी के साथ हैवी पोल्का डौट वाला दुपट्टा कंगना रनौत के लुक को कम्पलीट करने में परफेक्ट रहा.

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कपड़ों को घर पर ही आसानी से करें ड्राई क्लीन

महंगे व साज सज्जा से युक्त कपड़े लेने हम सभी को ही बहुत पसंद होते हैं परंतु इन कपड़ों के साथ जुड़ जाती हैं हमारी बहुत सी जिम्मेदारियां भी. जिन में से मुख्य होती है कि इनकी देखभाल. यदि आप हैवी कपड़े लेते हैं तो उन्हें ड्राई क्लीन भी हर बार करवाना पड़ता है. ड्राई क्लीन करवाने के झंझ्ट से हम बहुत परेशान रहते हैं. हम सोचते हैं कि क्यों न हम स्वयं ही अपने कपड़ों को ड्राई क्लीन कर लें और वह भी बिना किसी झंझट के आसानी से, घर पर ही. तो अब यह भी संभव है. यदि आप अपने कपड़ों को घर पर ही आसानी से ड्राई क्लीन करना चाहते हैं तो निम्न स्टेप्स का पालन करें.

हाथ से धोते समय

सबसे पहले आप को कपड़ों पर लगा लेबल पढ़ना होता है. यदि उस पर ड्राई क्लीन ओनली लिखा होता है तो आप को उसे ड्राई क्लीन करवाने के लिए भेज देना चाहिए. परन्तु यदि उस पर ड्राई क्लीन लिखा है तो आप उसे घर पर भी ड्राई क्लीन कर सकते हैं.

सबसे पहले किसी ऐसे हिस्से पर टेस्ट करें जो लोगों को ज्यादा दिखता न हो. यदि वह ड्राई क्लीन के बाद रंग नहीं बदलता है व वैसा ही रहता है या खराब नहीं होता है तो आप फिर बाद में पूरे कपड़े को ड्राई क्लीन कर सकते हैं.

ठंडा पानी व एक माइल्ड डिटर्जेंट का प्रयोग करके ही ड्राई क्लीनिंग करें. कपड़े को आराम आराम से मसलें. उसे जोर से या कठिन रूप से न रगड़ें. उसे कठिनाई से न निचोड़े.

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उसे सूखने के लिए किसी रस्सी पर टांग दें. परंतु उसे सीधा सूरज की रोशनी के नीचे सुखना न डालें नहीं तो कपड़े का रंग निकल सकता है. इसलिए पहले अंदर या मशीन में ही उसे सुखाएं..

यदि कपड़े के किसी एक ही भाग को सफाई की जरूरत है तो आप पूरे कपड़े को धोने की बजाए सिर्फ एक ही हिस्से को भी धोयें या ड्राई क्लीन कर सकते है. ऐसा करने के लिए आप किसी दूसरे कपड़े को डिटर्जेंट में डुबोएं व उससे कपड़े के खराब हुए हिस्से को साफ करें.

मशीन से धोते समय

यदि कपड़ा नायलॉन, पॉलिस्टर, कॉटन का बना है तो आप उसे वाशिंग मशीन में धो सकते हैं.

इसके बाद कपड़े के लेबल को चैक करें. यदि उसपे ड्राई क्लीन लिखा है तो ही केवल इसे वाशिंग मशीन में धोएं अन्यथा बाहर ड्राई क्लीन कराएं.

अब कपड़ों को मशीन के धोने वाले सेक्शन में डाल दें.

हमेशा इस प्रकार के कपड़ों को धोते समय ठंडे पानी का प्रयोग करें. यदि आप गर्म या गुनगुने पानी का प्रयोग करेंगे तो कपड़े के फैब्रिक का खराब होने का डर होता है.

पूरे चक्कर को चलाने की बजाए छोटा चक्कर चलाएं ताकि कपड़ा खराब न हो जाए.

कपड़ों को सूखाते समय ड्रायर का प्रयोग न करें. इससे कपड़े सिकुड़ सकते हैं या उनका टेक्स्चर डेमेज भी हो सकता है.

ऊन के या अन्य कपड़ों को सीधे सूरज को रोशनी में सूखने के लिए न डालें नहीं तो उनका फैब्रिक खराब होने की सम्भावना रहती है.

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प्रतीक्षालय: सिद्धार्थ और जानकी की कहानी

Serial Story: प्रतीक्षालय (भाग-4)

लेखिका- जागृति भागवत

इस पर सिद्धार्थ बोला, ‘‘डोंट टेक इट अदरवाइज, लेकिन उस रात जब आप से मुलाकात हुई और जो बातें हुईं, उस का मेरे जीवन पर बहुत गहरा असर पड़ा. मैं ने कहा था न कि आप मेरे लिए प्रेरणास्रोत हैं और वही हुआ, मैं समझ गया कि मेरे पास क्या है और मुझे कितना खुश होना चाहिए. मैं ने अब पापा के साथ औफिस जाना भी शुरू कर दिया है ऐंड आय एम रियली एंजौइंग इट और हां, अब मैं ने डैड को पापा कहना भी शुरू कर दिया है. ऐक्चुअली, आप को बताऊं, मौम और पापा बहुत सरप्राइज्ड हैं इस बदलाव से. मौम ने मुझ से पूछा भी था लेकिन मेरी समझ में नहीं आया कि क्या बताऊं. एनी वे, अब आप ने रहने के बारे में क्या सोचा है?’’ इस सवाल से जानकी मानो आसमान में उड़तेउड़ते अचानक जमीन पर आ गिरी हो. चेहरे पर उदासी लिए बोली, ‘‘पता नहीं, यहां पर तो किराए के लिए डिपौजिट भी देना पड़ता है और मैं वह अफोर्ड नहीं कर सकती.’’

‘‘अगर आप बुरा न मानें तो एक रिक्वैस्ट कर सकता हूं?’’

‘‘कहिए.’’

‘‘मैं यह कह रहा था कि जब तक आप के रहने का इंतजाम नहीं हो जाता, तब तक आप मेरे घर पर रह सकती हैं.’’ जानकी के चेहरे के बदले भाव देख कर सिद्धार्थ ने तुरंत बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘वहां मेरी मौम भी हैं. एक आउटहाउस अलग से है, वहां आप को कोई परेशानी नहीं होगी.’’ जानकी को यह सब बहुत अटपटा लग रहा था. उसे लगा कि थोड़ी सी पहचान में कोई आदमी क्यों किसी की इतनी मदद करेगा. पहली छवि के आधार पर सिद्धार्थ पर भरोसा करना कोई समझदारी नहीं थी. जो कुछ यह बोल रहा है, न जाने उस में कितना सच है. जरा देर की पहचान है इस से. इस के साथ जा कर मैं कहीं किसी मुसीबत में न फंस जाऊं. अनजान शहर है, अनजान लोग. कैसे किसी पर भरोसा कर लूं?

‘‘आप क्या सोचने लगीं? जानकीजी?’’

सिद्धार्थ की आवाज से जानकी विचारों की उधेड़बुन से बाहर आई और बोली, ‘‘देखिए सिद्धार्थजी, आप ने मेरे लिए इतना सोचा, इस के लिए मैं आप की बहुत शुक्रगुजार हूं, लेकिन आप के घर मैं नहीं चल सकती. आप अपना नंबर दे दीजिए, यदि कोई जरूरत पड़ी तो मैं आप को फोन जरूर करूंगी.’’ सिद्धार्थ जानकी की बात को समझ रहा था, इसलिए उस ने कोई जबरदस्ती नहीं की. बस, इतना कहा, ‘‘मैं अपना नंबर तो आप को दे देता हूं, अगर आप का भी नंबर मिल जाए तो…’’

जानकी बोली, ‘‘अभी तक तो मुझे मोबाइल की जरूरत नहीं पड़ी है, सौरी.’’

सिद्धार्थ बोला, ‘‘मैं आप को होटल तक छोड़ सकता हूं?’’

‘‘ओ श्योर,’’ जानकी ने मिजाज बदलते हुए कहा.

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सिद्धार्थ जानकी को होटल छोड़ कर घर चला गया. मन काफी भारी था और उदास भी. घर पहुंचा तो मां ने पूछा, लेकिन सिद्धार्थ ने बताया कि उस ने एक दोस्त के साथ बाहर खाना खा लिया है. सिद्धार्थ के चेहरे की उदासी उस के मन की जबान बन रही थी. मां ने उस से पूछा, ‘‘कौन दोस्त था तेरा?’’ सिद्धार्थ ने इस प्रश्न की कल्पना नहीं की थी. वह बस बोल गया, ‘‘मौम, आप नहीं जानतीं उसे,’’ और सिद्धार्थ अपने कमरे में चला गया. मां का शक पक्का हो गया कि सिद्धार्थ कुछ छिपा रहा है उस से. वे सिद्धार्थ के कमरे में गईं और पूछा, ‘‘आज तू पापा के साथ औफिस क्यों नहीं गया, इसी दोस्त के लिए?’’

सिद्धार्थ समझ नहीं पा रहा था कि मां इतना खोद कर क्यों पूछ रही हैं. वह बोला, ‘‘हां मौम, वह बाहर से आया है न, इसलिए उस का थोड़ा अरेंजमैंट देखना था.’’

‘‘तो क्या हो गया अरेंजमैंट?’’

‘‘अभी नहीं, मौम,’’ सिद्धार्थ बात को खत्म करने के लहजे में बोला. लेकिन मां तो आज ठान कर बैठी थीं कि सिद्धार्थ से आज सब जान कर रहेंगी.

‘‘फिर तू उसे घर क्यों नहीं ले आया? जब तक उस का कोई और इंतजाम नहीं हो जाता, वह हमारे साथ रह लेता,’’ मां ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा.

‘‘मौम, उसे हैजिटेशन हो रहा था, इसलिए नहीं आया,’’ सिद्धार्थ बात को जितना समेटने की कोशिश कर रहा था, मां उसे और ज्यादा खींच रही थीं.

‘‘अच्छा यह बता, पिछले 10-12 दिन से तो तू बहुत खुशखुश लग रहा था, आज सुबह दोस्त से मिलने गया तब भी बड़ा खुश था, अब अचानक इतना गुमसुम क्यों हो गया है. सच बताना, मैं मां हूं तेरी मुझ से कुछ मत छिपा, कोई समस्या हो तोबता, शायद मैं मदद कर सकूं,’’ कह कर अब तो मां ने जैसे मोरचा ही खोल दिया था. अब सिद्धार्थ के लिए बात को छिपाना मुश्किल लग रहा था. इतने कम समय में उस ने जानकी को बहुत अच्छी तरह से पहचान लिया था लेकिन इतना बड़ा फैसला लेने में घबरा रहा था. इस बारे में मां और पिताजी को समझाना उसे काफी मुश्किल लग रहा था. सब से बड़ी बात है कि जानकी अनाथालय में पलीबढ़ी थी. जमाना कितना भी आगे बढ़ जाए लेकिन ऐसे समय सभी खानदान और कुल जैसे भंवर में फंस जाते हैं. वह उच्च और रईस घराने से था, ऐसे में एक ऐसी लड़की जिस के न मातापिता का पता है न खानदान का. अनाथालय में पलीबढ़ी एक लड़की के चरित्र पर भी लोग संदेह करते हैं. ऐसे में वह क्या करे क्या न करे, फैसला नहीं ले पा रहा था.

दूसरी तरफ उसे जानकी की चिंता सता रही थी. जब तक उस के रहने की व्यवस्था नहीं हो जाती तब तक उसे होटल में ही रुकना पड़ेगा जो उस के लिए बहुत खर्चीला होगा. वह कहां से लाएगी इतना पैसा? आखिर उस ने मां को सबकुछ बताने का फैसला किया. ‘‘मौम, आप बैठिए प्लीज, मुझे आप से कुछ बातें करनी हैं,’’ और उस ने मनमाड़ रेलवे स्टेशन के प्रतीक्षालय से ले कर आज तक की सारी बातें मां को बता दीं. सबकुछ सुनने के बाद मां कुछ देर चुप रहीं फिर बोलीं, ‘‘देखते हैं बेटा, कुछ करते हैं,’’ और उठ कर चली गईं.

अब सिद्धार्थ पहले से अधिक बेचैन हो गया. बारबार सोचता कि उस ने सही किया या गलत? फिर रात को पापा आए. सब ने साथ खाना खाया. खाने की टेबल पर पापा और सिद्धार्थ की थोड़ीबहुत बातें हुईं. पापा ने भी अनजाने में उस से पूछ लिया, ‘‘बेटा, तेरा वह दोस्त आया कि नहीं?’’

‘‘आया न पापा,’’ सिद्धार्थ ने मां की ओर देखते हुए कहा.

‘‘फिर उसे ले कर घर क्यों नहीं आया,’’ वही मां वाले सवाल पापा दुहराए जा रहे थे.

‘‘पापा, बाद में आएगा,’’ कह कर सिद्धार्थ ने बड़ी मुश्किल से जान छुड़ाई. खाना खा कर तीनों सोने चले गए. अगले दिन शाम को लगभग 4:30 बजे पिताजी ने औफिस में सिद्धार्थ को अपने कक्ष में बुला कर कहा, ‘‘तुम्हारी मौम का फोन था, वह आ रही हैं अभी, तुम्हारे साथ कहीं जाना है उन्हें. तुम अपना काम वाइंडअप कर लो.’’

कई वर्षों बाद ऐसा होगा जब सिद्धार्थ अपनी मौम के साथ कहीं जा रहा हो, वरना अब तक तो मां के साथ पिताजी ही जाते थे और सिद्धार्थ अपने दोस्तों के साथ. अचानक मां को उस के साथ कहां जाना है, वह समझ नहीं पा रहा था.

‘‘जी पापा,’’ इतना कह कर वह अपने कक्ष में आ गया. मां के आने तक सिद्धार्थ बेचैनी से घिरा जा रहा था. मां आईं और सिद्धार्थ उन के साथ गाड़ी में जा बैठा और पूछा, ‘‘मौम, कहां जाना है?’’

मां ने गंभीरता से पूछा, ‘‘जानकी किस होटल में रुकी है?’’ सिद्धार्थ अवाक् रह गया. बस, इतना ही मुंह से निकल पाया, ‘‘होटल शिवाजी पैलेस.’’

‘‘तो चलो,’’ मां बोलीं.

होटल पहुंच कर सिद्धार्थ ने सिर्फ इतना कहा, ‘‘मौम, वह मेरी भावनाओं से अनजान है.’’

‘‘मैं जानती हूं.’’

रिसैप्शन पर कमरा नंबर पता कर के दोनों उस के कमरे के बाहर पहुंचे. दरवाजे पर सिद्धार्थ आगे खड़ा था. दरवाजा खुलते ही जानकी बोली, ‘‘आप? अचानक?’’ ‘‘अंदर आने के लिए नहीं कहेंगी?’’ सिद्धार्थ ने स्वयं ही पहल की. लेकिन जानकी थोड़ा असमंजस में पड़ गई कि उसे अंदर आने के लिए कहे या नहीं. तभी सिद्धार्थ की मां सामने आईं और बोलीं, ‘‘मुझे तो अंदर आने दोगी?’’

‘‘मेरी मौम,’’ सिद्धार्थ ने मां से जानकी का परिचय करवाया.

जानकी ने दोनों को अंदर बुलाया. सिद्धार्थ और जानकी खामोश थे. खामोशी को तोड़ते हुए मां ने वार्त्तालाप शुरू की, ‘‘जानकी बेटा, मुझे सिद्धार्थ ने तुम्हारे बारे में बताया, लेकिन हमारे रहते तुम यहां होटल में रहो, यह हमें बिलकुल अच्छा नहीं लगेगा. तुम सिद्धार्थ के कहने पर नहीं आईं, मैं समझ सकती हूं, अब मैं तुम्हें लेने आई हूं, अब तो तुम्हें चलना ही पड़ेगा.’’ सिद्धार्थ की मां ने इतने स्नेह और अधिकार के साथ यह सब कहा कि जानकी के लिए मना करना मुश्किल हो गया. फिर भी वह संकोचवश मना करती रही. लेकिन मां के आग्रह को टाल नहीं सकी. मां ने सिद्धार्थ से कहा, ‘‘सिद्धार्थ, नीचे रिसैप्शन पर जा कर बता दे कि जानकी होटल छोड़ रही हैं और बिल सैटल कर के आना.’’ जानकी को यह सब काफी अजीब लग रहा था. उस ने बिल के पैसे देने चाहे लेकिन सिद्धार्थ की मां बोलीं, ‘‘यह हिसाब करने का समय नहीं है, तुम अपना सामान पैक करो, बाकी सब सिद्धार्थ कर लेगा.’’

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सामान बांध कर जानकी सिद्धार्थ के घर चली गई. सिद्धार्थ की मां ने आउटहाउस को दिन में साफ करवा दिया था. जानकी रात को पिताजी से भी मिली. पहली बार उस ने मातापिता के स्नेह से सराबोर घर को देखा था. जानकी बहुत भावुक हो गई. अगले दिन से उस ने कालेज जाना शुरू कर दिया. साथ ही साथ रहने की व्यवस्था पर गंभीरता से खोज करने लगी. एक हफ्ते में सिद्धार्थ ने ही एक वर्किंग वूमन होस्टल ढूंढ़ा. जानकी को भी पसंद आया. सिद्धार्थ के पिताजी की पहचान से जानकी की अच्छी व्यवस्था हो गई. रविवार के दिन वह होस्टल जाने वाली थी. इस एक हफ्ते में सिद्धार्थ के मातापिता को जानकी को समझनेपरखने का अच्छा मौका मिल गया. अपने बेटे के लिए इतनी शालीन और सभ्य लड़की तो वे खुद भी नहीं खोज पाते. शनिवार की रात सब लोग एक पांचसितारा होटल में खाना खाने गए. पहले से तय किए अनुसार सिद्धार्थ के पिताजी सिद्धार्थ के साथ बिलियर्ड खेलने चले गए. अब टेबल पर सिर्फ सिद्धार्थ की मां और जानकी ही थे. अब तक जानकी उन से काफी घुलमिल गई थी. इधरउधर की बातें करतेकरते अचानक मां ने जानकी से पूछा, ‘‘जानकी, तुम्हें सिद्धार्थ कैसा लगता है?’’

अब तक जानकी के मन में सिद्धार्थ की तरफ आकर्षण जाग चुका था लेकिन सिद्धार्थ की मां से ऐसे प्रश्न की उसे अपेक्षा नहीं थी. सकुचाते हुए जानकी ने पूछा, ‘‘क्या मतलब?’’

‘‘इस के 2 मतलब थोड़े ही हैं, मैं ने पूछा तुम्हें सिद्धार्थ कैसा लगता है? अच्छा या बुरा?’’ मां शरारतभरी मुसकान बिखेरते हुए बोलीं.

अब जानकी को कोई कूटनीतिक उत्तर सोचना था, वह चालाकी से बोली, ‘‘आप जैसे मातापिता का बेटा है, बुरा कैसे हो सकता है आंटी.’’

‘‘फिर शादी करना चाहोगी उस से?’’ मां ने बेधड़क पूछ लिया. आमतौर पर लड़की के सामने शादी का प्रस्ताव लड़का रखता है लेकिन यहां मां रख रही थी.

जवाब में जानकी खामोश रही. सिद्धार्थ की मां ने उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘बेटा, मैं जानती हूं कि तुम क्या सोच रही हो. रुपया, पैसा, दौलत, शोहरत एक बार चली जाए तो दोबारा आ सकती है लेकिन, रिश्ते एक बार टूट जाएं तो फिर नहीं जुड़ते, प्यार एक बार बिखर जाए तो फिर समेटा नहीं जाता और मूल्यों से एक बार इंसान भटक जाए तो फिर वापस नहीं आता. लेकिन तुम्हारी वजह से यह सब संभव हुआ है. यों कहो कि तुम ने यह सब मुमकिन किया है.‘‘सिद्धार्थ हमारा इकलौता बेटा है. पता नहीं हमारे लाड़प्यार की वजह से या कोई और कारण था, हम अपने बेटे को लगभग खो चुके थे. सिद्धार्थ के पिताजी को दिनरात यही चिंता रहती थी कि उन के जमेजमाए बिजनैस का क्या होगा? उस रात तुम से मिलने के बाद सिद्धार्थ में ऐसा बदलाव आया जिस की हम ने उम्मीद ही नहीं की थी. तुम ने चमत्कार कर दिया. तुम्हारी वजह से ही हमें हमारा बेटा वापस मिल गया. हम मातापिता हो कर अपने बच्चे को अच्छे संस्कार और मूल्य नहीं दे सके लेकिन तुम ने अनाथालय में पल कर भी वह सब गुण पा लिए. ‘‘जानकी बेटा, तुम्हारे दिल में सिद्धार्थ के लिए क्या है, मैं नहीं जानती, लेकिन वह तुम को बहुत पसंद करता है, साथ ही, मैं और सिद्धार्थ के पिताजी भी. अब बस एक ही इच्छा है कि तुम हमारे घर में बहू बन कर आओ. बोलो आओगी न?’’

जानकी झेंप गई और बस इतना ही बोल पाई, ‘‘आंटी, आप मानसी चाची से बात कर लें,’’ और जानकी का चेहरा शर्म से लाल हो गया. सिद्धार्थ के मातापिता की तय योजना के अनुसार, जिस में अब जानकी भी शामिल हो गई थी, उस के पिताजी उसे ले कर वापस आए. अब चारों साथ बैठे थे. अब चौंकने की बारी सिद्धार्थ की थी. मां ने वही सवाल अब सिद्धार्थ से पूछा, ‘‘बेटा, क्या तुम जानकी के साथ शादी करना चाहोगे?’’ सिद्धार्थ कुछ क्षणों के लिए तो सब की शक्लें देखता रहा, फिर शरमा कर उठ कर चला गया. सिद्धार्थ का यह एक नया रूप उस के मातापिता ने पहली बार देखा था.

पिताजी जानकी से बोले, ‘‘जाओ बेटा, उसे बुला कर ले आओ.’’ जानकी सिद्धार्थ के पास जा कर खड़ी हुई, दोनों ने एकदूसरे को देखा और मुसकरा दिए. 2 माह बाद अनाथालय को दुलहन की तरह सजाया गया और जानकी वहां से विदा हो गई.

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Serial Story: प्रतीक्षालय (भाग-3)

लेखिका- जागृति भागवत

पिछले अंक में आप ने पढ़ा : जानकी अनाथालय में पलीबढ़ी थी. मेहनत और प्रतिभा के बल पर पढ़ाई कर पुणे के एक कालेज में लैक्चरर के इंटरव्यू के लिए जा रही थी. ट्रेन के इंतजार में रेलवे प्रतीक्षालय में उस की मुलाकात सिद्धार्थ से होती है जो एक संपन्न व्यवसायी का बिगड़ैल बेटा था. समय काटने के लिए दोनों के बीच बातचीत का सिलसिला शुरू होता है. सबकुछ होते हुए भी जिंदगी से नाराज सिद्धार्थ को जानकी की बातें एक नया नजरिया देती हैं. सिद्धार्थ स्वयं को शांत और सुलझा हुआ महसूस करने लगता है. उस के मातापिता उस में हुए बदलाव से हैरान थे. अब आगे…

सिद्धार्थ की आंखों से नींद कोसों दूर थी. जब तक नींद ने उसे अपनी आगोश में नहीं ले लिया तब तक वह सिर्फ जानकी के बारे में ही सोचता रहा. उसे अफसोस हो रहा था कि काश, वह थोड़ी हिम्मत कर के जानकी का फोन नंबर ही पूछ लेता. न जाने अब वह जानकी को देख पाएगा भी या नहीं? अचानक उसे याद आया कि 15 दिन बाद वह पुणे ही तो आ रही है नौकरी जौइन करने. उसी समय उस ने निश्चय किया कि 15 दिन बाद वह कालेज में जा कर जानकी को खोजेगा.

सुबह 11 बजे से पहले कभी न जागने वाला सिद्धार्थ आज सुबह 8 बजे उठ गया. नहा कर नाश्ते की मेज पर ठीक 9 बजे पापा के साथ आ बैठा और बोला, ‘‘पापा, आज मैं भी आप के साथ औफिस चलूंगा.’’ पापा का चेहरा विस्मय से भर गया. मां, जो सिद्धार्थ की रगरग पहचानती थीं, नहीं समझ पाईं कि सिद्धार्थ को क्या हो गया है. बस, दोनों इसी बात से खुश हो रहे थे कि उन के बेटे में बदलाव आ रहा है. हालांकि वे आश्वस्त थे कि यह बदलाव ज्यादा दिन नहीं रहेगा. जल्द ही सिद्धार्थ काम से ऊब जाएगा. फिर उस की संगत भी तो ऐसी थी कि अगर सिद्धार्थ कोशिश करे भी, तो उस के दोस्त उसे वापस गर्त में ले जाएंगे. जानकी अनाथालय पहुंच चुकी थी. सब लोग उस के इंतजार में बैठे थे. जैसे ही जानकी पहुंची, सब उस पर टूट पड़े. जानकी, मानसी चाची को उस की कामयाबी के बारे में पहले ही फोन पर बता चुकी थी, इसलिए सब उस के स्वागत के लिए खड़े थे. आज वात्सल्य से पहली लड़की को नौकरी मिली थी. अनाथालय में उत्सव का माहौल था.

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रात को जानकी ने मानसी चाची को साक्षात्कार से ले कर सारी यात्रा का वृत्तांत काफी विस्तार से सुनाया, सिवा प्रतीक्षालय में सिद्धार् से हुई मुलाकात के. यह बात छिपाने के पीछे कोई उद्देश्य नहीं था फिर भी जानकी को यह गैरजरूरी लगा. पिछली रात नींद न आने से जानकी काफी थक गई थी, इस कारण लेटते ही नींद लग गई. सुबह भी काफी देर से जागी. पिछले 8-10 दिनों से लगातार बारिश के कारण मौसम बहुत सुहाना हो गया था. सुबह ठंडक और बढ़ गई थी. नींद खुलने के बाद भी उस का उठने का मन नहीं हो रहा था. जानकी उठी और बाहर आंगन में आ कर बैठ गई. बारिश रुक चुकी थी और हलकी धूप खिली थी लेकिन गमलों की मिट्टी अभी भी गीली थी. ठंडी हवाएं अब भी चल रही थीं. लगा कि कोई शौल ओढ़ ली जाए. ऐसे में अचानक ही उसे सिद्धार्थ का खयाल आया, ‘अब तक तो वह भी अपने घर पहुंच गया होगा. क्या लड़का था, थोड़ा अजीब लेकिन काफी उलझा सा था. काफी नकारात्मक सोच थी, यदि सोच को सही दिशा दे देगा तो बहुत कुछ पा सकता है.’ जानकी की यादों की लड़ी तब टूटी जब मानसी चाची ने आ कर पूछा, ‘‘अरे जानकी बेटा, तू कब उठी?’’

‘‘बस, अभी उठी हूं, चाची,’’ थोड़ी हड़बड़ाहट में जानकी ने जवाब दिया, लगा जैसे उस की कोई चोरी पकड़ी गई हो और उठ कर रोजमर्रा के कामों में जुट गई. धीरेधीरे दिन बीतते गए और जानकी के पुणे जाने के दिन करीब आते गए. जानकी को काफी तैयारियां करनी थीं. पुणे जा कर सब से बड़ी दिक्कत उस के रहने की व्यवस्था थी. पुणे में वह किसी को नहीं जानती थी. इस बीच उसे कई बार ऐसा लगा कि उस ने सिद्धार्थ से उस का मोबाइल नंबर क्यों नहीं लिया. शायद, उस अनजान शहर में वह कुछ मदद करता उस की. अनाथालय को छोड़ कर मानसी चाची भी उस के साथ नहीं जा सकती थीं. इसी चिंता में वे आधी हुई जा रही थीं कि जानकी का क्या होगा वहां, अनजान शहर में बिलकुल अकेली, कैसे रहेगी. सिद्धार्थ में आया बदलाव बरकरार था. पहले वह काफी गुस्सैल था और अब काफी शांत हो चुका था, बोलता भी काफी कम था, लगभग गुमसुम सा रहने लगा था. कोई दोस्तीयारी नहीं, कोई नाइट पार्टीज और बाइक राइडिंग नहीं. मां ने कई बार पूछा इस बदलाव का कारण लेकिन सिद्धार्थ ने मां से सिर्फ इतना ही कहा, ‘‘मौम, जब जागो तभी सवेरा होता है और मुझे भी एक न एक दिन तो जागना ही था, अब मान लो कि वह दिन आ चुका है. बस, आप लोग जैसा सिद्धार्थ चाहते थे वैसा बनने की कोशिश कर रहा हूं.’’

सिद्धार्थ को अब उस दिन का इंतजार था जब जानकी पुणे आने वाली थी. निश्चित तारीख तो उसे पता नहीं थी लेकिन वह उस रात के बाद से हिसाब लगा रहा था. अब उसे एहसास हो रहा था कि जानकी उस के दिलोदिमाग पर छा चुकी है. वही लड़की है जो उस के लिए बनी है, अगर वह उस की जिंदगी में आ जाए तो सिद्धार्थ के लिए किसी से कुछ मांगने के लिए बचेगा ही नहीं. इस बीच, वह जा कर पुणे आर्ट्स कालेज का पता लगा कर आ चुका था और यह भी पता कर चुका था कि जानकी कब आने वाली है. 15 सितंबर वह तारीख थी जिस का अब सिद्धार्थ को बेसब्री से इंतजार था. आखिर वह दिन आ गया. 14 सितंबर को जानकी पुणे के लिए रवाना होने वाली थी. यहां अनाथालय में खुशी और दुख साथसाथ बिखर रहे थे. मानसी चाची की तो एक आंख रो रही थी तो दूसरी आंख हंस रही थी. एक ओर तो उन की बेटी आज नौकरी करने जा रही है लेकिन उसी बेटी से बिछड़ने का गम भी खुशी से कम नहीं था. आखिर जानकी पुणे के लिए रवाना हो गई.

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सुबहसुबह पुणे पहुंच कर उस ने स्टेशन के पास ही एक ठीकठाक होटल खोज लिया. तैयार हो कर नियत समय पर कालेज पहुंच गई. सारी जरूरी कार्यवाही पूरी करने के बाद कालेज की एक प्रोफैसर ने उसे पूरा कालेज दिखाया और सारे स्टाफ व विद्यार्थियों से परिचय भी करवाया. इस बीच, उस ने उस प्रोफैसर से रहने की व्यवस्था के बारे में पूछा. उस प्रोफैसर ने कुछ एक जगह बताईं लेकिन पुणे बहुत महंगा शहर है, जानकी के लिए ज्यादा खर्चा करना मुमकिन नहीं था. इधर सिद्धार्थ ने पापा से एक दिन की छुट्टी ले ली थी. सुबह से काफी उत्साहपूर्ण लग रहा था. उस के तैयार होने का ढंग भी कुछ अलग ही था. मां सबकुछ देख रही थीं और समझने की कोशिश कर रही थीं. बेटा चाहे जितना भी बदल जाए, मां उस का मन फिर भी पढ़ लेती है. लेकिन मां खामोशी से सब देखती भर रहीं, कुछ बोली नहीं.

कालेज देखने के बाद प्रधानाचार्य ने जानकी से अगले दिन से लैक्चर्स लेने को कहा. जानकी कालेज से बाहर निकली तो क्या देखा, सामने सिद्धार्थ खड़ा था. उसे पहचानने में जानकी को कुछ क्षण लगे, क्योंकि सिद्धार्थ का हुलिया बिलकुल बदला हुआ था. फटी जीन्स, फंकी टीशर्ट की जगह शर्टपैंट पहने था, बेढंगे बाल आज अच्छे कढ़े हुए थे और वह स्केचपैन जैसी दाढ़ी तो गायब ही थी. जानकी उसे देख कर आश्चर्य से चिल्ला पड़ी, ‘‘आप…यहां?’’ सिद्धार्थ के चेहरे की खुशी छिपाए नहीं छिप रही थी, मुसकराते हुए बोला, ‘‘हां, आप ने बताया था न कि आज आप  पुणे आने वाली हैं, तो मैं ने सोचा कि आप को सरप्राइज दिया जाए. यह भी सोचा, पता नहीं आप यहां किसी को जानती होंगी या नहीं, पता नहीं आप के साथ कोई आया होगा या नहीं, आप काफी परेशान होतीं, इसलिए मैं आ गया.’’ जानकी ने भरपूर अचरज से पूछा, ‘‘लेकिन आज की तारीख आप को कैसे पता चली?’’

‘‘अब वह सब छोडि़ए, पहले यह बताइए कि आप अकेली ही आई हैं, कोई जानपहचान का है क्या यहां, रहने के बारे में क्या सोचा है,’’ सिद्धार्थ ने उस के सवाल को टालते हुए कई सारे सवाल उस के सामने रख दिए. जानकी हंस पड़ी, बोली, ‘‘अरे सांस तो ले लो जरा, मैं सब बताती हूं. मैं अकेली ही आई हूं, यहां आप के सिवा किसी को नहीं जानती और अभी स्टेशन के पास एक होटल में रुकी हूं. रहने की व्यवस्था अभी नहीं हुई है.’’

‘‘आप मेरे साथ चलें,’’ कहता हुआ सिद्धार्थ उसे काले रंग की कार की तरफ ले गया और पूछा, ‘‘आप ने ब्रेकफास्ट किया है या नहीं?’’

‘‘हां, सुबह चाय के साथ थोड़े स्नैक्स लिए थे,’’ जानकी ने थोड़े संकोच के साथ जवाब दिया.

‘‘बस, इतना ही, अब तो 2 बज चुके हैं,’’ कार का गेट खोलते हुए सिद्धार्थ बोला. जानकी कार में बैठने के लिए हिचकिचा रही थी. सिद्धार्थ को उस की हिचकिचाहट को समझने में देर नहीं लगी. वह बोला, ‘‘आय कैन अंडरस्टैंड जानकीजी. आप मुझे जानती ही कितना हैं जो मेरे साथ चलने को तैयार हो जाएं. मैं ने ऐक्साइटमैंट मेंयह सब सोचा ही नहीं.’’

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‘‘कैसा ऐक्साइटमैंट?’’

सिद्धार्थ जबान पर काबू न रख पाया और बोल पड़ा, ‘‘आप के आने का ऐक्साइटमैंट.’’ जानकी थोड़ी असहज हो गई और सिद्धार्थ को भी अपनी गलती तुरंत समझ आ गई. बात को बदलते हुए उस ने कहा, ‘‘मैं सोच रहा था आप लंच कर लेते तो…’’ जानकी कार में बैठते हुए सिद्धार्थ के लहजे में बोली, ‘‘तो चलें सिद्धार्थजी?’’ दोनों एक होटल में गए, साथ में खाना खाया. सिद्धार्थ ने जानकी से कालेज के बारे में काफी पूछताछ कर डाली.

जानकी ने भी पूछ लिया, ‘‘आप इतने बदल कैसे गए?’’

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Serial Story: प्रतीक्षालय (भाग-2)

लेखिका- जागृति भागवत

‘‘न कोई भाई न बहन, इकलौता हूं. इसीलिए सब को बहुत उम्मीदें हैं मुझ से.’’ सिद्धार्थ की आवाज में काफी उदासी थी. जानकी ने संवाद को आगे बढ़ाते हुए पूछा, ‘‘और आप उन की उम्मीदें पूरी नहीं कर रहे हैं? आप उन की इकलौती संतान हैं, आप से उम्मीदें नहीं होंगी तो किस से होंगी. आप के लिए जमाजमाया बिजनैस है और आप उस के मुताबिक ही क्वालिफाइड भी हैं, मतलब बिना किसी संघर्ष के आप वह सब पा सकते हैं जिसे पाने के लिए लोगों की आधी जिंदगी निकल जाती है.’’ ये सब कह कर तो जानकी ने जैसे सिद्धार्थ की दुखती रग पर हाथ रख दिया हो. वह बिफर पड़ा, ‘‘ये सब बातें देखनेसुनने में अच्छी लगती हैं मैम, जिस पर बीतती है वह ही इस का दर्द जानता है. अगर पिता डाक्टर हैं तो बेटे को डाक्टर ही बनना होगा ताकि पिता का हौस्पिटल आगे चल सके. पिता वकील हैं तो बेटा भी वकील ही बने ताकि पिता की वकालत आगे बढ़ सके, ऐसा क्यों? टीचर का बेटा टीचर बने, यह जरूरी नहीं, बैंकर का बेटा बैंकर बने, यह भी जरूरी नहीं फिर ये बिजनैस कम्युनिटी में पैदा हुए बच्चों की सजा जैसी है कि उन्हें अपनी चौइस से अपना प्रोफैशन चुनने का अधिकार नहीं है, अपना कैरियर बनाने का अधिकार नहीं है. मैं ने तो नहीं कहा था अपने पिता से कि वे बिजनैस करें, फिर वे मेरी रुचि में इंटरफेयर क्यों करें?’’

जानकी सोच भी नहीं सकती थी कि ऐसे फ्लर्ट से दिखने वाले नौजवान के अंदर इतनी आग होगी. जानकी ने बहस के लहजे में उस से कहा, ‘‘जिसे आप सजा कह रहे हैं, वह असल में आप के लिए सजा है, जब तक इंसान के सिर पर छत और थाली में खाना सजा मिलता है, तभी तक उसे कैरियर में चौइस और रुचि जैसे शब्द सुहाते हैं. जब बेसिक नीड्स भी पूरी नहीं होती है तब जो काम मिले, इंसान करने को तैयार होता है. कभी उन के बारे में भी सोच कर देखें, तब आप को आप से ज्यादा खुश कोई नहीं लगेगा.’’ ‘‘मैम, अगर आप मेरी जगह होतीं तो मेरी पीड़ा समझ पातीं, आप के पेरैंट्स ने कभी आप की लाइफ में इतना इंटरफेयर नहीं किया होगा, तभी आप इतनी बड़ीबड़ी बातें कर पा रही हैं.’’ सिद्धार्थ की आवाज में थोड़ा रूखापन था. जवाब में जानकी ने कहा, ‘‘इंटरफेयर तो तब करते न जब वे मेरे पास होते.’’

यह सुनते ही सिद्धार्थ के चेहरे के भाव ही बदल गए. वह क्या पूछे और कैसे पूछे, समझ नहीं पा रहा था. फिर आहिस्ता से पूछा, ‘‘सौरी मैम, कोई दुर्घटना हो गई थी?’’ ‘‘नहीं जानती,’’ जानकी की आवाज ने उसे व्याकुल कर दिया. ‘‘नहीं जानती, मतलब?’’ सिद्धार्थ ने आश्चर्य से पूछा. इस पर जानकी ने बिना किसी भूमिका के बताया, ‘‘नहीं जानती, मतलब मैं नहीं जानती कि वे लोग अब जिंदा हैं या नहीं. मैं ने तो उन्हें कभी देखा भी नहीं है. जब मेरी उम्र लगभग 4-5 दिन थी तभी उन लोगों ने या अकेली मेरी मां ने मुझे इंदौर के एक अनाथालय ‘वात्सल्य’ के बाहर एक चादर में लपेट कर धरती मां की गोद में छोड़ दिया, जाने क्या वजह थी. तब से ‘वात्सल्य’ ही मेरा घर है और उसे चलाने वाली मानसी चाची ही मेरी मां हैं. मैं धरती की गोद से आई थी, इसलिए मानसी चाची ने मेरा नाम जानकी रखा. न मैं अपने मातापिता को जानती हूं और न ही मुझे उन से कोई लगाव है.

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‘‘मैं जानती हूं कि मातापिता के साथ रहना निसंदेह बहुत अच्छा होता होगा लेकिन मैं उस सुख की कल्पना भी नहीं कर सकती. जिद क्या होती है, चाहतें क्या होती हैं, बचपन क्या होता है, ये सब सिर्फ पढ़ा है. मानसी चाची ने हम सब को भरपूर दुलार दिया क्योंकि स्नेह को पैसों से खरीदने की जरूरत नहीं होती. हमारी मांगें पूरी करना, हमारा जन्मदिन मनाना जैसी इच्छाएं ‘वात्सल्य’ के लिए फुजूलखर्ची थीं. मानसी चाची ने हमें कभी किसी चीज के लिए मना नहीं किया लेकिन डोनेशंस से सिर्फ बेसिक नीड्स ही पूरी हो सकती थीं.’’ ये सब सुनने के बाद सिद्धार्थ अवाक् रह गया. आश्चर्य, दुख, दया, स्नेह और कई भाव एकसाथ सिद्धार्थ के चेहरे पर तैरने लगे. उन दोनों के अलावा वहां अब कोई नहीं था. अगले 10-15 मिनट प्रतीक्षालय में सन्नाटा छाया रहा. न कोई संवाद न कोई हलचल. सिद्धार्थ के मन में जानकी का कद बहुत ऊंचा हो गया. उस ने जानकी से बातचीत सिर्फ समय काटने के उद्देश्य से शुरू की थी. वह नहीं जानता था कि आज जीवन की इतनी बड़ी सचाई से उस का सामना होने वाला है. फिर सिद्धार्थ ने प्रतीक्षालय में पसरी खामोशी को तोड़ते हुए कहा, ‘‘आय एम सौरी मैम, मेरा मतलब है जानकीजी. मैं सोच भी नहीं सकता था कि…मैं आवेश में पता नहीं क्याक्या बोल गया, आय एम रियली सौरी.’’

जानकी ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मेरे चेहरे पर तो सब लिखा नहीं था, और आप तो मुझ से आज पहली बार मिले हैं, सब कैसे जानते भला? फिर भी एक बात अच्छी हुई है, इस बहाने कम से कम आप मेरा नाम तो जान गए.’’ सिद्धार्थ ने थोड़ा ?मुसकराते हुए अचरजभरे अंदाज में बोला, ‘‘या दैट्स राइट.’’ ‘‘तब से मैममैम कर रहे थे आप और हां, ये ‘डैड’ क्या होता है, अच्छेखासे जिंदा आदमी को डैड क्यों कहते हैं,’’ कहते हुए पहली बार जानकी खिलखिलाई. सिद्धार्थ अब थोड़ा सहज हो गया था. उसे जानकी से और विस्तार से पूछने में हिचक हो रही थी, लेकिन जिज्ञासा बढ़ रही थी, इसलिए उस ने पूछ ही लिया, ‘‘आप को देख कर लगता नहीं है कि आप अनाथालय में पलीबढ़ी हैं, आय मीन आप की एजुकेशन वगैरा?’’ ‘‘सब मानसी चाची ने ही करवाई. जब मैं छोटी थी तब लगभग 19-20 लड़कियां थीं ‘वात्सल्य’ में, सब अलगअलग उम्र की. सामान्यतया अनाथालय के बच्चों को वोकेशनल ट्रेनिंग दी जाती है ताकि वे अपने पैरों पर खड़े हो सकें. हमारे यहां भी सभी लड़कियों को स्कूल तो भेजा गया. कोई 5वीं, कोई 8वीं तक पढ़ी, पर कोई भी 10वीं से ज्यादा पढ़ नहीं सकी. फिर उन्हें सिलाई, कढ़ाई, बुनाई, अचारपापड़ बनाना जैसे छोटेछोटे काम सिखाए गए ताकि वे आत्मनिर्भर हो सकें. सिर्फ मैं ही थी जिस ने 12वीं तक पढ़ाई की. मेरी रुचि पढ़ाई में थी और मेरे मार्क्स व लगन देख कर मानसी चाची ने मुझे आगे पढ़ने दिया. अनाथालय में जो कुटीर उद्योग चलते थे उस से अनाथालय की थोड़ीबहुत कमाई भी होती थी. अनाथालय की सारी लड़कियां मेरी पढ़ाई के पक्ष में थीं और इस कमाई में से कुछ हिस्सा मेरी पढ़ाई के लिए मिलने लगा. मेरी भी जिम्मेदारी बढ़ गई. सब को मुझ से बहुत उम्मीदें हैं. मुझे उन लोगों के सपने पूरे करने हैं जिन्होंने न तो मुझे जन्म दिया है और न ही उन से कोई रिश्ता है. अपनों के लिए तो सभी करते हैं, जो परायों के लिए करे वही महान होता है. चूंकि साइंस की पढ़ाई काफी खर्चीली थी, सो मैं ने आर्ट्स का चुनाव किया, बीए किया, फिर इतिहास में एमए किया. फिर एक दिन अचानक इस लैक्चरर की पोस्ट के लिए इंटरव्यू कौल आई. वही इंटरव्यू देने पुणे गई थी.’’

‘‘फिर सैलेक्शन हो गया आप का?’’ अधीरता से सिद्धार्थ ने पूछा. जानकी ने बताया, ‘‘हां, 15 दिन में जौइन करना है.’’  इसी तरह से राजनीति, फिल्मों, बाजार आदि पर बातचीत करते समय कैसे गुजर गया, पता ही नहीं चला. लगभग 2:30 बजे जानकी की गाड़ी की घोषणा हुई. इन 5-6 घंटों की मुलाकात में दोनों ने एकदूसरे को इतना जान लिया था जैसे बरसों की पहचान हो. जानकी के जाने का समय हो चुका था लेकिन सिद्धार्थ उस का फोन नंबर लेने की हिम्मत नहीं जुटा पाया. बस, इतना ही बोल पाया, ‘‘जानकीजी, पता नहीं लाइफ में फिर कभी हम मिलें न मिलें, लेकिन आप से मिल कर बहुत अच्छा लगा. आप के साथ बिताए ये 5-6 घंटे मेरे लिए प्रेरणा के स्रोत रहेंगे. मैं ने आज आप से बहुत कुछ सीखा है.’’

‘‘अरे भई, मैं इतनी भी महान नहीं हूं कि किसी की प्रेरणास्रोत बन सकूं. हो सकता है कि दुनिया में ऐसे भी लोग होंगे जो मुझ से भी खराब स्थिति में हों. मैं तो खुद अच्छा महसूस करती हूं कि जिन से मेरा कोई खून का रिश्ता नहीं है, उन्होंने मेरे जीवन को संवारा है. आप सर्वसाधन संपन्न हो कर भी अपनेआप को इतना बेचारा समझते हैं. मैं आप से यही कहना चाहूंगी कि जो हम से बेहतर हालात में रहते हैं, उन से प्रेरणा लो और जो हम से बेहतर हालात में रहते हैं, उन तक पहुंचने की कोशिश करो. यह मान कर चलना चाहिए कि जो हो रहा है, सब किसी एक की मरजी से हो रहा है और वह कभी किसी का गलत नहीं कर सकता. बस, हम ही ये बात समझ नहीं पाते. एनी वे, मैं चलती हूं, गुड बाय,’’ कह कर जानकी ने अपना बैग उठाया और जाने लगी. सिद्धार्थ ने सोचा ट्रेन तक ही सही कुछ समय और मिल जाएगा जानकी के साथ. और वह उस के पीछेपीछे दौड़ा. बोला, ‘‘जानकीजी, मैं आप को ट्रेन तक छोड़ देता हूं.’’

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जानकी ने थोड़ी नानुकुर की लेकिन सिद्धार्थ की जिद पर उस ने अपना बैग उस के हाथ में दे दिया. जल्द ही ट्रेन प्लेटफौर्म पर आ गई और जानकी चली गई. सिद्धार्थ के लिए वक्त जैसे थम सा गया. जानकी से कोई जानपहचान नहीं, कोई दोस्ती नहीं, लेकिन एक अजीब सा रिश्ता बन गया था. पिछले 5-6 घंटों में उस ने अपने ?अंदर जितनी ऊर्जा महसूस की थी, अब उतना ही कमजोर महसूस कर रहाथा. भारी मन से वह वापस प्रतीक्षालय लौट आया. अब उस के लिए समय काटना बहुत मुश्किल हो गया था. जानकी का खयाल उस के दिमाग से एक मिनट के लिए भी जा नहीं रहा था. रहरह कर उसे जानकी की बातें याद आ रही थीं. अब उसे एहसास हो रहा था कि वह आज तक कितना गलत था. इतना साधन संपन्न होने के बाद भी वह कितना गरीब था. आज अचानक ही वह खुद को काफी शांत और सुलझा हुआ महसूस कर रहा था. उस के मातापिता ने आज तक जो कुछ उस के लिए किया था उस का महत्त्व उसे अब समझ में आ रहा था. उसे लगा, सच ही तो है कि पिता के व्यवसाय को बेटा आगे नहीं बढ़ाएगा तो उस के पिता की सारी मेहनत बरबाद हो जाएगी. लोग पहली सीढ़ी से शुरू करते हैं, उसे तो सीधे मंजिल ही मिल गई है. कितनी मुश्किलें हैं दुनिया में और वह खुद को बेचारा समझता था. वह आत्मग्लानि के सागर में गोते लगा रहा था. बारबार मन स्वयं को धिक्कार रहा था कि आज तक मैं ने क्याक्या खो दिया. मन विचारमग्न था तभी अगली गाड़ी की घोषणा हुई, जिस से सिद्धार्थ को पुणे जाना था.

अगले दिन सिद्धार्थ पुणे पहुंच गया. रात जाग कर काटी थी. अब काफी थकान महसूस हो रही थी और नींद न होने से भारीपन भी. जब घर पहुंचा तो पिताजी औफिस जा चुके थे. मां ने ही थोड़े हालचाल पूछे. नहाधो कर सिद्धार्थ ने खाना खाया और सो गया. जब जागा तो डैड, जो अब उस के लिए पापा हो गए थे, वापस आ चुके थे. नींद खुलते ही सिद्धार्थ के दिमाग में वही प्रतीक्षालय और जानकी घूमने लगे. रात को तीनों साथ बैठे. सिद्धार्थ के हावभाव बदले हुए थे. मातापिता को लगा सफर की थकान है. जो सैंपल सिद्धार्थ लाया था उस ने वह पापा को दिखाए और काफी लगन से उन की गुणवत्ता पर चर्चा करने लगा. वह क्या बोल रहा था, इस पर पापा का ध्यान ही नहीं था, वे तो विश्वास ही नहीं कर पा रहे थे कि ये सब बातें सिद्धार्थ बोल रहा है जिसे उन के व्यवसाय में रत्ती भर भी रुचि नहीं है.

सिद्धार्थ बातों में इतना तल्लीन था कि समझ नहीं पाया कि पापा उसे निहार रहे हैं. रात का खाना खा कर वह फिर सोने चला गया. मातापिता दोनों ने इतने कम समय में सिद्धार्थ में बदलाव महसूस किया लेकिन कारण समझ नहीं सके. सिद्धार्थ के स्वभाव को जानते हुए उन के लिए इसे बदलाव समझना असंभव था.

क्रमश:

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