Serial Story: प्रतीक्षालय (भाग-1)

लेखिका- जागृति भागवत

हाथ में एक छोटा सा हैंडबैग लिए हलके पीले रंग का चूड़ीदार कुरता पहने जानकी तेज कदमों से प्रतीक्षालय की ओर बढ़ी आ रही थी. यहां आ कर देखा तो प्रतीक्षालय यात्रियों से खचाखच भरा हुआ था. बारिश की वजह से आज काफी गाडि़यां देरी से आ रही थीं. उस ने भीड़ में देखा, एक नौजवान एक कुरसी पर बैठा था तथा दूसरी पर अपना बैग रख कर उस पर टिक कर सो रहा था, पता नहीं सो रहा था या नहीं. एक बार उस ने सोचा कि उस नौजवान से कहे कि बैग को नीचे रखे ताकि एक यात्री वहां बैठ सके, परंतु कानों में लगे इयरफोंस, बिखरे बेढंगे बाल, घुटने से फटी जींस, ठोड़ी पर थोड़ी सी दाढ़ी, मानो किसी ने काले स्कैचपैन से बना दी हो, इस तरह के हुलिया वाले नौजवान से कुछ समझदारी की बात कहना उसे व्यर्थ लगा. वह चुपचाप प्रतीक्षालय के बाहर चली गई.

मनमाड़ स्टेशन के प्लेटफौर्म पर यात्रियों के लिए कुछ ढंग की व्यवस्था भी नहीं है, बाहर बड़ी मुश्किल से जानकी को बैठने के लिए एक जगह मिली. ट्रेन रात 2:30 बजे की थी और अभी शाम के 6:30 बजे थे. रोशनी मंद थी, फिर भी उस ने अपने बैग में से मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास ‘गोदान’ निकाला और पढ़ने लगी. गाडि़यां आतीजाती रहीं. प्लेटफौर्म पर कभी भीड़ बढ़ जाती तो कभी एकदम गायब हो जाती. 8 बज चुके थे, प्लेटफौर्म पर अंधेरा हो गया था. प्लेटफौर्म की मंद बत्तियों से मोमबत्ती जैसी रोशनी आ रही थी. सारे दिन की बारिश के बाद मौसम में ठंडक घुल गई थी. जानकी ने एक बार फिर प्रतीक्षालय जा कर देखा तो वहां अब काफी जगह हो गई थी.

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जानकी एक अनुकूल जगह देख कर वहां बैठ गई. उस ने चारों तरफ नजर दौड़ाई तो लगभग 15-20 लोग अब भी प्रतीक्षालय में बैठे थे. वह नौजवान अब भी वहीं बैठा था. कुरसियां खाली होने का फायदा उठा कर अब वह आराम से लेट गया था. 2 लड़कियां थीं. पहनावे, बालों का ढंग और बातचीत के अंदाज से काफी आजाद खयालों वाली लग रही थीं. उन के अलावा कुछ और यात्री भी थे, जो जाने की तैयारी में लग रहे थे, शायद उन की गाड़ी के आने की घोषणा हो चुकी थी. जल्द ही उन की गाड़ी आ गई और अब प्रतीक्षालय में जानकी के अलावा सिर्फ वे 2 युवतियां और वह नौजवान था, जो अब सो कर उठ चुका था. देखने से तो वह किसी अच्छे घर का लगता था पर कुछ बिगड़ा हुआ, जैसे किसी की इकलौती संतान हो या 5-6 बेटियों के बाद पैदा हुआ बेटा हो.

नौजवान उठ कर बाहर गया और थोड़ी देर में चाय का गिलास ले कर वापस आया. अब तक जानकी दोबारा उपन्यास पढ़ने में व्यस्त हो चुकी थी. थोड़ी देर बाद युवतियों की आवाज तेज होने से उस का ध्यान उन पर गया. वे मौडर्न लड़कियां उस नौजवान में काफी रुचि लेती दिख रही थीं. नौजवान भी बारबार उन की तरफ देख रहा था. लग रहा था जैसे इस तरह वे तीनों टाइमपास कर रहे हों. जानकी को टाइमपास का यह तरीका अजीब लग रहा था. उन तीनों की ये नौटंकी काफी देर तक चलती रही. इस बीच प्रतीक्षालय में काफी यात्री आए और चले गए. जानकी को एहसास हो रहा था कि वह नौजवान कई बार उस का ध्यान अपनी तरफ खींचने का प्रयास कर रहा था, परंतु उस ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. अब तक 9:00 बज चुके थे. जानकी को अब भूख का एहसास होने लगा था. उस ने अपने साथ ब्रैड और मक्खन रखा था. आज यही उस का रात का खाना था. तभी किसी गाड़ी के आने की घोषणा हुई और वे लड़कियां सामान उठा कर चली गईं. अब 2-4 यात्रियों के अलावा प्रतीक्षालय में सिर्फ वह नौजवान और जानकी ही बचे थे. नौजवान को भी अब खाने की तलाश करनी थी. प्रतीक्षालय में जानकी ही उसे सब से पुरानी लगी, सो उस ने पास जा कर धीरे से उस से कहा, ‘‘एक्सक्यूज मी मैम, क्या मैं आप से थोड़ी सी मदद ले सकता हूं?’’

जानकी ने काफी आश्चर्य और असमंजस से नौजवान की तरफ देखा, थोड़ी घबराहट में बोली, ‘‘कहिए.’’ ‘‘मुझे खाना खाने जाना है, अगर आप की गाड़ी अभी न आ रही हो तो प्लीज मेरे सामान का ध्यान रख सकेंगी?’’ ‘‘ओके,’’ जानकी ने अतिसंक्षिप्त उत्तर दिया और नौजवान चला गया. लगभग 1 घंटे बाद वह वापस आया, जानकी को थैंक्स कहने के बहाने उस के पास आया और कहा, ‘‘यहां मनमाड़ में खाने के लिए कोई ढंग का होटल तक नहीं है.’’

‘‘अच्छा?’’ फिर जानकी ने कम से कम शब्दों का इस्तेमाल करना उचित समझा.

‘‘आप यहां पहली बार आई हैं क्या?’’ बात को बढ़ाते हुए नौजवान ने पूछा.

‘‘जी हां.’’ जानकी ने नौजवान की ओर देखे बिना ही उत्तर दिया. अब तक शायद नौजवान की समझ में आ गया था कि जानकी को उस से बात करने में ज्यादा रुचि नहीं है.

‘‘एनी वे, थैंक्स,’’ कह कर उस ने अपनी जगह पर जाना ही ठीक समझा. जानकी ने भी राहत की सांस ली. पिछले 4 घंटों में उस ने उस नौजवान के बारे में जितना समझा था, उस के बाद उस से बात करने की सोच भी नहीं सकती थी. जानकी की गाड़ी काफी देर से आने वाली थी. शुरू में उस ने पूछताछ खिड़की पर पूछा था तब उन्होंने 2:00 बजे तक आने को कहा था. अब न तो वह सो पा रही थी न कोई बातचीत करने के लिए ही था. किताब पढ़तेपढ़ते भी वह थक गई थी. वैसे भी प्रतीक्षालय में रोशनी ज्यादा नहीं थी, इसलिए पढ़ना मुश्किल हो रहा था. नौजवान को भी कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या करे. वैसे स्वभाव के मुताबिक उस की नजर बारबार जानकी की तरफ जा रही थी. यह बात जानकी को भी पता चल चुकी थी. वह दिखने में बहुत सुंदर तो नहीं थी, लेकिन एक अनूठा सा आकर्षण था उस में. चेहरे पर गजब का तेज था. नौजवान ने कई बार सोचा कि उस के पास जा कर कुछ वार्त्तालाप करे लेकिन पहली बातचीत में उस के रूखे व्यवहार से उस की दोबारा हिम्मत नहीं हो रही थी. नौजवान फिर उठ कर बाहर गया. चाय के 2 गिलास ले कर बड़ी हिम्मत जुटा कर जानकी के पास जा कर कहा, ‘‘मैम, चाय.’’ इस से पहले कि जानकी कुछ समझ या बोल पाती, उस ने एक गिलास जानकी की ओर बढ़ा दिया. जानकी ने चाय लेते हुए धीरे से मुसकरा कर कहा, ‘‘थैंक्स.’’ नौजवान को हिम्मत देने के लिए इतना काफी था. थोड़ी औपचारिक भाषा में कहा, ‘‘क्या मैं आप से थोड़ी देर बातें कर सकता हूं?’’

जानकी कुछ क्षण रुक कर बोली, ‘‘बैठिए.’’

एक कुरसी छोड़ कर नौजवान बैठ गया. जानकी ने यह सोच कर उसे बैठने के लिए कह दिया कि लड़का चाहे जैसा भी हो, थोड़ी देर बात कर के बोरियत तो दूर होगी. चाय की चुस्कियां लेते हुए नौजवान ने ही शुरुआत की, ‘‘मेरा नाम सिद्धार्थ है, पर मेरे दोस्त मुझे ‘सिड’ कहते हैं.’’

‘‘क्यों? सिद्धार्थ में क्या बुराई है?’’ जानकी ने टोका. सिद्धार्थ को इस एतराज की उम्मीद नहीं थी, थोड़ा हिचकिचाते हुए वह बोला, ‘‘सि-द्-धा-र्थ काफी लंबा नाम है न और काफी पुराना भी, इसलिए दोस्तों ने उस का शौर्टकट बना दिया है.’’

‘‘अमिताभ बच्चन, स्टैच्यू औफ लिबर्टी, सैंट फ्रांसिस्को, ग्रेट वौल औफ चाइना वगैरा नाम पचास बार भी लेना हो तो आप पूरा नाम ही लेते हैं, उस का तो शौर्टकट नहीं बनाते, फिर इतने अच्छे नाम का, जो सिर्फ साढ़े 3 अक्षरों का है, शौर्टकट बना दिया. जब बच्चा पैदा होता है तब मातापिता नामों की लंबी लिस्ट से कितनी मुश्किल से एक ऐसा नाम पसंद करते हैं जो उन के बच्चे के लिए फिट हो. बच्चा भी वही नाम सुनसुन कर बड़ा होता है और बड़ा हो कर दोस्तों के कहने पर अपना नाम बदल देता है. नाम के नए या पुराने होने से कुछ नहीं होता, गहराई उस के अर्थ में होती है.’’ पिछले 3 दिनों में जानकी ने पहली बार किसी से इतना लंबा वाक्य बोला था. पिछले 3 दिनों से वह अकेली थी, इसलिए किसी से बातचीत नहीं हो पा रही थी. शायद इसीलिए उस ने सिद्धार्थ से बातें करने का मन बनाया था. परंतु सिद्धार्थ एक मिनट के लिए सोच में पड़ गया कि उस ने जानकी के पास बैठ कर ठीक किया या नहीं. थोड़ा संभलते हुए कहा, ‘‘आप सही कह रही हैं, वैसे आप कहां जा रही हैं?’’ सिद्धार्थ ने बात बदलते हुए पूछा.

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‘‘इंदौर जा रही हूं, और आप कहां जा रहे हैं?’’

‘‘मैं पुणे जा रहा हूं, आज से महाराष्ट्र में टैक्सी वालों की हड़ताल शुरू हो गई है, इसलिए ट्रेन से जाना पड़ रहा है, एक तो ये गाडि़यां भी कितनी लेट चल रही हैं. आज यहां मनमाड़ में कैसे?’’ सिद्धार्थ ने बातों की दिशा को मोड़ते हुए पूछा. अब जानकी, सिद्धार्थ के साथ थोड़ा सहज महसूस कर रही थी. कहा, ‘‘मैं पुणे गई थी लेक्चरर का इंटरव्यू देने, लौटते समय एक दिन के लिए नासिक गई थी, अब वापस इंदौर जा रही हूं.’’

‘‘पुणे में किस कालेज में इंटरव्यू देने गई थीं आप?’’ सिद्धार्थ ने जानकारी लेने के उद्देश्य से पूछा.

‘‘पुणे आर्ट्स ऐंड कौमर्स से हिस्ट्री के प्रोफैसर की पोस्ट के लिए इंटरव्यू कौल आया था.’’

‘‘हिस्ट्री प्रोफैसर? आप हिस्ट्री में रुचि रखती हैं?’’ सिद्धार्थ ने चौंकते हुए पूछा. जानकी को उस की प्रतिक्रिया बड़ी अजीब लगी, उस ने पूछा, ‘‘क्यों? हिस्ट्री में क्या बुराई है? हमारे इतिहास में इतना कुछ छिपा है कि एक पूरी जिंदगी भी कम पड़े जानने में.’’ सिद्धार्थ अब जानकी से सिर्फ टाइमपास के लिए बातें नहीं कर रहा था, उसे जानकी के व्यक्तित्व में झांकने का मन होने लगा था. पिछले कुछ घंटों से वह दूर से जानकी को देख रहा था. वह जैसी दिख रही थी वैसी थी नहीं. उस ने सोचा था कि वह एक शर्मीली, छुईमुई, अंतर्मुखी, घरेलू टाइप की लड़की होगी. परंतु उस की शैक्षणिक योग्यता, उस के विचारों का स्तर और विशेषकर उस का आत्मविश्वास देख कर सिद्धार्थ समझ गया कि वह उन लड़कियों से बिलकुल अलग है जो टाइमपास के लिए होती हैं. कुछ देर वह शांत बैठा रहा. अब तक दोनों की चाय खत्म हो चुकी थी. आमतौर पर जानकी कम ही बोलती थी, पर यह चुप्पी उसे काफी असहज लग रही थी, सो उसी ने बात शुरू की. सिद्धार्थ के बाएं हाथ पर लगी क्रेप बैंडेज देख कर उस ने पूछा, ‘‘यह चोट कैसे लगी आप को?’’

‘‘मैं बाइक से स्लिप हो गया था.’’

‘‘बहुत तेज चलाते हैं क्या?’’

‘‘मैं दोस्तों के साथ नाइटराइड पर था, थोड़ा डिं्रक भी किया था, इसलिए बाइक कंट्रोल में नहीं रही और मैं फिसल गया.’’ सिद्धार्थ ने थोड़ा हिचकिचाते हुए बताया. जानकी ने शरारतभरे अंदाज में कहा, ‘‘जहां तक मैं जानती हूं, रात सोने के लिए होती है न कि बाइक राइडिंग के लिए. खैर, वैसे आप यहां कैसे आए थे?’’ ?‘‘डैड का टैक्सटाइल ऐक्सपोर्ट का बिजनैस है, मुझे यहां सैंपल्स देखने के लिए भेजा था. डैड चाहते हैं कि मैं उन का बिजनैस संभालूं. इसीलिए उन्होंने मुझ से टैक्सटाइल्स में इंजीनियरिंग करवाई और फिर मार्केटिंग में एमबीए भी करवाया, पर मेरा इस सब में कोई इंट्रैस्ट नहीं है. मैं कंप्यूटर्स में एमटैक कर के यूएस जाना चाहता था. पर डैड मुझे अपने बिजनैस में इन्वौल्व करना चाहते हैं.’’ सिद्धार्थ ने काफी संजीदा हो कर बताया. जानकी को भी अब उस की बातों में रुचि जाग गई थी. थोड़ा खोद कर उस ने पूछा, ‘‘कोई और भाई है क्या आप का?’’

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डिप्रेशन के चलते एक और बौलीवुड एक्टर ने किया सुसाइड, पढ़ें खबर

कोरोना के काल में कई बौलीवुड और टीवी सेलेब्स ने इस दुनिया को अलविदा कहा. जहां किसी को बीमारी ने छीना तो वहीं किसी ने खुदकुशी का सहारा लिया . वहीं अब खबर है कि फिल्म इंडस्ट्री के एक और दिग्गज एक्टर ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया है. खबरों की मानें तो एक्टर आसिफ बसरा ने फांसी के फंदे से लटककर सुसाइड किया है. आइए आपको बताते हैं पूरा मामला…

धर्मशाला के प्राइवेट कॉम्प्लेक्स में मिला शव

खबरों की मानें तो लंबे समय से डिप्रेशन का शिकार चल रहे  ‘कृष- 3’ फेम एक्टर आसिफ ने बीते दिन अपने पालतू कुत्ते के बेल्ट से फंदा बनाकर फांसी लगा ली. कहा जा रहा है कि वह सुबह अपने कुत्ते को घुमाने गए थे और वापस आकर उसी के पट्टे का फंदा बनाकर फांसी लगा ली. वहीं कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) के एसएसपी विमुक्त रंजन ने मामले की जानकारी देते हुए कहा है कि, ‘फिल्म एक्टर आसिफ बसरा धर्मशाला के एक प्राइवेट कॉम्प्लेक्स में फंदे से लटके पाए गए हैं. मौके पर फॉरेंसिक टीम पहुंचने के बाद से जांच जारी है.’

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बौलीवुड है सदमे में

बौलीवुड की बड़ी बड़ी फिल्मों का हिस्सा रह चुके एक्टर आसिफ एक टैलेंटेड एक्टर थे, जिनके जाने से सेलेब्स सदमे में हैं. इमरान हाशमी, हंसल मेहता, राजकुमार राव, अभिषेक बनर्जी, पूजा भट्ट, अनुपम खेर, दिव्या दत्ता और स्वरा भास्कर जैसे कलाकारों ने उनकी मौत पर दुख जताते हुए उनके परिवार को सांत्वना दे रहे हैं.

बता दें, एक्टर आसिफ ‘जब वी मेट’, ‘काय पो छे’, ‘वन्स अपोन अ टाइम इन मुंबई’, ‘कृष- 3’, ‘ब्लैक फ्राईडे’ जैसी फिल्मों में नजर आ चुके हैं. वहीं ‘पाताल लोक’, ‘होस्टेजेस’ जैसी वेब सीरीज में अपनी एक्टिंग से फैंस का दिल जीत चुके हैं.

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REVIEW: जानें कैसी है राज कुमार राव की फिल्म ‘छलांग’

रेटिंगः तीन स्टार

निर्माताः अजय देवगन, लव रंजन, अंकुर गर्ग, भूषण कुमार

निर्देशकः हंसल मेहता

कलाकारः राज कुमार राव, नुसरत भरूचा, सतीश कौशिक, सौरभ शुक्ला,  मो. जीशान अयूब.

अवधिः दो घंटे 16 मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मःअमेजान प्राइम वीडियो

‘शाहिद’, ‘अलीगढ़’जैसी फिल्मों के सर्जक हंसल मेहता इस बार सामाजिक ब्लैक कॉमेडी वाली फिल्म ‘छलांग’ (जिसका अर्थ होता है ‘कूद’ ) लेकर आए हैं. जिस 13 नवंबर से ओटीटी प्लेटफार्म ‘अमेजन’पर देखा जा सकता है. दो घंटे 16 मिनट की अवधि वाली इस फिल्म का नाम पहले ‘तुर्ररम खां’था.

कहानीः

फिल्म की कहानी झाझर, हरियाणा जैसे छोटे शहर के एक अर्ध सरकारी स्कूल से शुरू होती है, जहंा की प्रिंसिपल उषा गहलोत(इला अरूण)हैं. इस स्कूल में ही पढ़े हुए महिंदर सिंह हुडा उर्फ मंटो(राज कुमार राव)पीटी शिक्षक हैं. प्रिंसिपल ने उन्हे यह नौकरी मंटो के पिता वकील हुडा(सतीश कौशिक )के कहने पर दी है. हुडा के घर के उपर ही रहने वाले शुक्ला जी(सौरभ शुक्ला) इस स्कूल में हिंदी के शिक्षक हैं. अविवाहित हैं. मंटो के परिवार में मां(बलविंदर कौर)और एक छोटा भाई बबलू(नमन जैन) है. बबलू भी इसी स्कूल में पढ़ता है. मंटो कहने को पीटी शिक्षक हैं, मगर वह कुछ करते नहीं हैं. किसी तरह नौकरी चल रही है. मगर रवीवार या ‘वेलेनटाइन डे’पर‘‘संस्कृति दल’’के लोगों के साथ पार्क में जाकर प्रेमी जोड़ो की पिटायी और उन्हें अपमानित जरुर करते हैं. वेलेनटाइन डे पर पार्क में टहल रहे नीलिमा (नुसरत भरूचा) के माता (सुपर्णा मारवाह) व पिता (राजीव गुप्ता) का भी अपमान करते हैं और उनकी तस्वीर अखबार में छपवा देते हैं, जबकि फोन पर नीलिमा ने कहा था कि वह दोनों उसके माता पिता हैं. स्कूल में जब सभी मंटो की तारीफ कर रहे होते हैं, तभी प्रिंसिपल उषा के साथ नीलिमा पहुंचती हैं और प्रिंसिपल उषा परिचय कराती हैं कि नीलिमा स्कूल की कम्प्यूटर शिक्षक हैं. अखबार हाथ में लेकर नीलिमा मंटो को खूब खरी खोटी सुनाती हैं.

उसके बाद शुक्ला के कहने पर मंटो, नीलिमा से माफी मांगते हुए सफाई देते हैं कि यह सब गलतफहमी के चलते हुआ. इस पर नीलिमा का तर्क है कि प्यार करना गुनाह नही है. पार्क में लड़के व लड़की का एक दूसरे का हाथ पकड़कर बैठना भी गुनाह नही है. उसके बाद से दोनों के बीच स्कूल में नोक झोक चलती रहती है. इसी बीच मंटो, नीलिमा को अपना दिल दे बैठते हैं. खैर, नीलिमा भी उन्हे चाहने लगती हैं.

पर तभी स्कूल में वरिष्ठ पीटी शिक्षक के रूप में इंद्र मोहन सिंह(मोहम्मद जीशान अयूब)की भर्ती होती हैं और अब मंटो को उनका सहायक बनकर काम करना है. प्रिंसिपल उषा के समझाने पर मंटो, इंद्र मोहन सिंह के सहायक के रूप में काम करने लगते हैं. मगर इंद्र मोहन सिंह बड़े सलीके से बच्चों के सामने मंटो को जलील करने के साथ ही अपनी बाइक पर नीलिमा को उसके घर भी छोड़ने लगते है. मंटो को अहसास होता है कि सिंह तो उनकी पे्रमिका को भी उनसे छीन रहा है. अचानक एक दिन दोनो झगड़ पड़ते है. मंटो को अपना अपमान नजर आता है और फिर मंटो नौकरी छोड़ देते हैं. शुक्ला जी, उषा के अलावा मंटो से बात कर एक राह निकालते हैं. अब प्रेमिका और नौकरी दोनो को बचाने तथा सिंह को सबक सिखाने के लिए मंटो वह सब करने पर उतारू हो जाते हैं, जिसे वह कभी गंभीरता से नहीं लेते थे. कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. इस बीच कुछ सबक भी सिखाए जाते हैं.

लेखनः

कहानी में नयापन नही है, मगर मानवीय ड्रामा है. मानवीय रिश्तों और मानवीय भावनाओं को बड़ी बारीकी से उकेरा गया है. वैसे भी लव रंजन की गिनती मानवीय भावनाओं की समझ रखने वाले लेखक व निर्देशक के तौैर पर होती है, पर इस फिल्म के वह कहानीकार हैं और उन्होने असीम अरोड़ा तथा जीशान कादरी के साथ मिलकर पटकथा लिखी है. पटकथा काफी कमजोर हैं. कई दृश्य काफी कमजोर हैं. इसमें विलेन की सबसे बड़ी कमी है. कुछ दृश्य हंसाते हैं. पटकथा  लेखन की कमजोरी के चलते यह न सही ढंग से ‘स्पोर्टस फिल्म’बन पाती है और न ही ‘त्रिकोणीय प्रेम कहानी वाली फिल्म बन पाती है.

फिल्म के संवाद काफी अच्छे हैं.

निर्देशनः

हंसल मेहता की बतौर निर्देशक वेब सीरीज ‘स्कैम 1992’की काफी तारीफ हो रही है. पर इस फिल्म में उनका निर्देशन बड़ा सतही है. यह खेल की फिल्म है यानी कि एक प्रतियोगिता है, मगर प्रतिस्पर्धा का जो रोमांच होता है, उसे स्थापित करने में निर्देशक असफल रहे हैं.  इंटरवल के बाद फिल्म में सब कुछ वही है, जिसे तमाम खेल वाली फिल्मों में दर्शक देख चुके हैं.

बतौर निर्देशक हंसल मेहता को गंभीर, संजीदा व संवेदनशील विषयों वाली फिल्मों के निर्देशन में महारत हासिल है, मगर  पता नहीं क्यों हल्के फुल्के विषय के निर्देशन में वह सुस्त हो जाते है.

लेखक व निर्देशक ने कुछ अच्छी बातें भी की हैं. मसलन-हर इंसान को अपनी जिम्मेदारी का अहसास होना जरुरी है. अथवा बच्चे खिलाड़ी बने, इसकी आशा रखने वाले माता पिता को पहले खिलाड़ी बच्चे का माता पिता बनना सीखना होगा. मगर यह सब बातें क्लायमेक्स में इस तरह से कही गयी हैं कि इनका प्रभाव पड़ने की बजाय किसी नेता की भाषणबाजी ज्यादा नजर आता  है.

अभिनयः

राज कुमार राव बेहतरीन अभिनेता हैं, पूरे कंविक्शन के साथ उन्होने महिंदर सिंह उर्फ मंटो के किरदार को निभाया है. सौरभ शुक्ला ने शानदार अभिनय किया है. राज कुमार राव और सौरभ‘शुक्ला के बीच की केमिस्ट्री काफी अच्छी बन पड़ी है. नुसरत भरूचा ठीक ठाक हैं. वैसे उनके हिस्से करने के लिए कुछ खास आया ही नहीं. मो. जीशान अयूब ने भी अपने किरदार को अच्छे ढंग से निभाया है, पर बहुत ज्यादा प्रभावत नही कर पाते. जतिन सरमा की प्रतिभा को जाया किया गया है. सतीश कौशिक, राजीव गुप्ता व अन्य कलाकारो ने अपना काम सही ढंग से किया है. इला अरूण का किरदार काफी छोटा है, पर वह अपना प्रभाव छोड़ जाती हैं.

अंतिम बातः

यदि लेखकों और निर्देशक ने मेहनत की होती, तो यह एक यादगार फिल्म बन सकती थी, पर वह भूल गए कि जब फिल्म की कहानी खेल के इर्द गिर्द हो, तो प्रतिस्पर्धा का रोमांच उभरना चाहिए. इसके अलावा इंद्रमोहन सिंह के किरदार को बुरा बताया ही नही गया, ऐसे में मंटो के किरदार के साथ सहानुभूति पैदा नही होती. यह भी लेखक व निर्देशक की ही कमजोर कड़ी का हिस्सा है.

नुकसान औरतों का ही हुआ

अगर आप बैंक लोन के कर्ज पर ब्याज दर में 6 माह की सरकारी सहायता देने के वायदे पर खूब उछल रहे हैं तो संभल जाइए. यह वादा असल में और जुमलों की तरह एक और जुमला भर है. एक कैलकुलेशन के हिसाब से ₹50 लाख के कर्ज पर 8% की दर से यदि आप को ₹2,12,425 कंपाउंड इंटरैस्ट लगता था तो सरकार की महान घोषणा के बाद ₹12,245 सरकार देगी. कोविड-19 के दौरान लौकडाउन, बिजनैस ठप्प हो जाने, छोटे व्यापारियों का पैसा फंस जाने, बेमतलब की सरकारी अड़ंगेबाजी, थालीताली पीटने से जो नुकसान हुआ है वह क्या ₹12,245 से पूरा होगा?

जो लोग कोरोना की चपेट में आ कर बीमार हो गए उन के परिवारों को तो ₹10 लाख तक देने पड़े हैं. सरकारी अस्पतालों में इलाज मुफ्त हुआ है पर फिर भी सैकड़ों रुपए फालतू में बह जाते हैं जब घर के 1 या 2 सदस्य अस्पताल में भरती हो जाएं. इस सब की जिम्मेदार सरकार चाहे न हो पर जो सरकार हर पैसे की कमाई में हिस्सा लेने के लिए आ खड़ी होती है उसे आफत में जनता के साथ खड़ा होना चाहिए. माईबाप सरकार से यही अपेक्षा की जाती है.

मगर यहां तो सरकार ने ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह कोविड-19 के दौरान न तो आर्थिक सहायता दी, न खानेपीने, दवाओं, अस्पतालों पैट्रोल पर टैक्स कम किया ताकि जो पैसा लौकडाउन की शिकार जनता के हाथों में है वह और दिन चल सके.

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दुनियाभर में सरकारों ने जनता को भरपूर पैसा दिया है. कहीं सरकारों ने छोटे उद्योगों को अपने कर्मचारियों को वेतन देने की राशि उधार की तरह सहायता के रूप में दी तो कहीं लोगों के अकाउंट में सीधे उन के वेतन के बराबर पैसे डाल दिए ताकि वे लोग नौकरी या व्यापार न रहने पर भी गुजरबसर कर सकें.

हमारे यहां जो लाखों मजदूर लौकडाउन के दौरान अपने गांवों की ओर गए उन के पीछे उन के मालिकों के पास खत्म हुआ पैसा था. जीएसटी और नोटबंदी से पहले अधमरे हुए मजदूरों के मालिकों के पास इतना पैसा था ही नहीं कि वे मजदूरों को दे सकें. इन दिनों सामान भी नहीं बचा और ये लोग कहीं से पूंजी भी नहीं जुटा पाए.

सरकार ने वादा किया था कि ₹20 लाख करोड़ की आर्थिक सहायता दी है पर असल में यह न के बराबर है, क्योंकि सरकार ने महंगाई बढ़ने के डर से नोट छाप कर लोगों की सहायता नहीं की क्योंकि उसे डर था कि वह करों से होने वाली कम आय की पूर्ति कैसे करेगी?

इस सब का खमियाजा हर घरवाली को सहना पड़ा है, जिस की जमापूंजी कम हो गई है. लोगों ने इसीलिए खर्चे घटाए, हैल्प हटाई, बाहर का खाना नहीं मंगाया, पर घरवाली पर बो झ बढ़ गया. अब बच्चों के स्कूल जाने के समय जो राहत मिलती थी वह भी औनलाइन क्लासों की वजह से खत्म हो गई.

नुकसान हर तरफ औरतों का हुआ है. वैसे तो हिंदू औरतों को आज भी बराबरी का स्तर मिला ही नहीं पर जो सुविधाएं मिलने लगी थीं वे भी गलत सरकारी फैसलों से मिट्टी में मिल गई हैं. औरतों से उम्मीद की जाती है कि वे हर कष्ट  झेलें, त्याग करें, उपवास करें, हवनों में घंटों आग के सामने बैठें, रीतिरिवाजों में ठंडे पानी में नहाएं और अब भक्त सरकार के गुणों के दर्शन कर के उस का गुणगान करें.

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Diwali Special: दीवाली पर करें औफिस की साफसफाई

दीवाली को साफसफाई का त्योहार भी माना जाता है. इस दिन से पहले ही लोग अपने घरों की सफाई करने लग जाते हैं. पुराना सामान निकाल कर नया खरीदते हैं या पुराने की ही मरम्मत करा कर अपने घर को सजा लेते हैं.

इस के अलावा घर की दीवारों पर रंगरोगन करा लेते हैं. इस सब में बहुत से लोग अपने औफिस की साफसफाई कराना भूल जाते हैं, जबकि वह भी बहुत जरूरी है. अब चूंकि बहुत से औफिसों में दीवाली मनाने का चलन बढ़ा है, इसलिए भी वहां की साफसफाई माने रखती है.

अगर हम कुछ बातों का ध्यान रखें तो अपने औफिस को भी दीवाली पर चमका सकते हैं. इस सिलसिले में औफिस में साफसफाई की सेवाएं देने वाली कंपनी आदर्श रौयल आर्म्स की कर्ताधर्ता सुनीता पूनिया ने कुछ टिप्स दिए हैं, जो इस तरह हैं :

-दीवाली का त्योहार हो या कोई आम दिन साफसफाई का समय सुबह या शाम का ही चुनना चाहिए, ताकि औफिस के काम में कोई रुकावट पैदा न हो. सफाई की शुरुआत बौस के केबिन से करें.

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-सब से पहले सारे डस्टबिन खाली करें. पुराने अखबार, मैगजीन और बेकार कागजात या तो कबाड़ी को दे दें या फिर किसी बड़े डब्बे में पैक कर के स्टोर रूम में रख देने चाहिए.

-डस्टिंग शुरू करने से पहले सभी फर्नीचर को अच्छे से ढक देना चाहिए, फिर सभी परदे उतार दें. इस के बाद टौप से ले कर डाउन और लैफ्ट से राइट की ओर डस्टिंग करें.

-डस्टिंग के समय सफाई कर्मचारी अपने मुंह पर मास्क लगा कर रखें, ताकि सफाई के समय वे धूल के कणों और गंदगी से बच सकें.

-फिर सब से पहले छत, पंखे, वैंटिलेशन, खिड़की, दरवाजे की सफाई करें. इस के बाद दीवार की डस्ट को साफ करें.

-इस के बाद अलमारी और फर्नीचर, जिन्हें पहले ही ढक दिया गया था, पर डस्टिंग करते समय इन पर भी धूल जम जाती हैं, तो इन्हे भी साफ कर लें.

-इस के बाद लैफ्ट से राइट की ओर फर्श की डस्टिंग करें, साथ ही फर्श की डस्टिंग से पहले फर्नीचर के सारे कवर हटा कर उन्हें सफाई के लिए लौंड्री भेज दें.

-इसी तरह औफिस के सभी कमरे, गैलरी, बालकनी और मीटिंग हाल की सफाई करें.

-डस्टिंग के बाद खिड़कीदरवाजे, एयरकंडीशनर, अलमारी को अच्छी क्वालिटी के लिक्विड सोप से साफ करें.

-अगर रूम में टाइटल्स लगी हैं तो उन्हें भी लिक्विड सोप से साफ करें.

-अब बारी आती है पोंछा लगाने की. अगर जगह है तो फर्नीचर को एक तरफ कर लेना चाहिए. यह ध्यान रखना है कि पोंछा ज्यादा गीला न हो, नहीं तो फर्श पर निशान रह जाएंगे. 2-3 बार लैफ्ट से राइट पोंछा लगाना चाहिए.

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-इस के बाद बाथरूम की सफाई करें साथ ही, यह भी जांच लें कि डस्टबिन खाली हों, उन में ब्लैक पौलीथिन लगा दिया गया हो, हैंड वाश, टिशू पेपर, टौवल सभी सामान सही जगह पर रखा हो.

-इस के बाद औफिस के सभी रूम के परदे दोबारा लगा दें और फर्नीचर और दूसरे सामान को अच्छी तरह से सजा कर रख दें.

-इस के बाद कोई अच्छी क्वालिटी का रूम फ्रैशनर का स्प्रे करें, जिस से औफिस का माहौल महक जाए.

Diwali Special: कोरोना काल में उत्सव की मिठास 

कोरोना संक्रमण की वजह से इस बार दिवाली को अलग ढंग से मनाने की प्लानिंग सभी कर रहे है. बच्चे हो या वयस्क हर व्यक्ति घर में रहकर अपने परिवार के साथ इसे एन्जॉय करने वाले है, क्योंकि बाहर जाना उचित नहीं. कोविड 19 ने त्योहारों की खुशियों को कम जरुर किया है, पर इसकी मिठास को कम नहीं कर पायी, क्योंकि अब इस त्यौहार को नए और अनोखे अंदाज़ में मनाने की कोशिश छोटे पर्दे के कलाकार कर रहे है. आइये जाने, कैसे वे इस बार कोरोना काल में दिवाली की मिठास को बनाये रखेंगे और उनकी प्लानिंग क्या है?

सावी ठाकुर 

धारावाहिक ‘पोरस’ में कनिष्क की भूमिका निभाकर चर्चित हो चुके अभिनेता सावी कहते है कि मुझे दिवाली का त्यौहार बहुत पसंद है. इस साल कोरोना की वजह से कोई प्लान नहीं है. दिवाली पूरे परिवार के साथ मनाये जाने में ही मज़ा है, जो इस बार नहीं हो सकता. इस बार मैं अपने परिवार और घर को मिस कर रहा हूं. इस दिन मैं हिमाचल में अपने दोस्तों के साथ घुमा करता था और बाज़ार की रौनक देखा करता था. चारों तरफ रौशनी से सजे घर आंगन और दुकाने खूबसूरत लगती थी, लेकिन इस बार मैं मुंबई से ही वर्चुअल मीटिंग कर सबसे बातें करूँगा.

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राजश्री रानी 

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अभिनेत्री राजश्री कहती है कि ये दिवाली मेरे लिए खास है, क्योंकि मैं 7 साल बाद अपने परिवार के साथ इस त्यौहार को मना रही हूं. मेरी शादी थोड़े दिनों में होने वाली है और मुझे इस अवसर पर अपने बचपन की याद आती है. बच्चों की तरह पटाखे चलाना, बेसन के लड्डू और मठरी खाना, ये सब कुछ मुझे बहुत पसंद था. मेरे पिता इस अवसर पर हमें कुछ जेब खर्च भी देते थे, जो मेरे लिए सबसे अच्छी बात थी.

ऐश्वर्या शर्मा 

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टीवी अभिनेत्री ऐश्वर्या शर्मा हर साल अपने होम टाउन दिवाली मनाने जाती है, पर इस साल वह कोरोना की वजह से नहीं जा पायेंगी. वह कहती है कि अभी मैं शूटिंग कर रही हूं और इस समय किसी गेस्ट को आमंत्रित करना भी सुरक्षित नहीं. इस साल मैं बहुत उत्साहित नहीं, लेकिन उस दिन मैं अपने परिवार के साथ बातें करुँगी और अपने घर को सजाऊँगी.

ध्रुवी हल्दंकर 

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त्रिदेवियां फेम एक्ट्रेस ध्रुवी हल्दंकर कहती है कि मेरे लिए इस बार की दिवाली ‘मेक इन इंडिया’ होने वाली है. हर व्यक्ति अब कोरोना संक्रमण में रहना सीख लिया है, इसलिए फेस्टिव मूड सबकी बहुत अच्छी होने वाली है. मैं अपने घर को मिट्टी के पॉट, दिए, गेंदे के फूल और आम के पत्तों से सजाने वाली हूं. दिवाली, विजय को सेलिब्रेट करने का त्यौहार है. बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. इसलिए अगर हम सब अपनी स्प्रिट को हाई रखेंगे, तो ये ख़राब समय पर भी हम विजय प्राप्त कर लेंगे. इसके अलावा मैं मिठाई घर पर बनाउंगी और अपने थोड़े दोस्त और रिश्तेदारों को खिलाऊँगी.

विजयेन्द्र कुमेरिया 

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टीवी शो उड़ान से चर्चित होने वाले अभिनेता विजयेन्द्र कुमेरिया का कहना है कि दिवाली को मैं हमेशा अपने परिवार के साथ मनाना पसंद करता हूं. मेरे पेरेंट्स अहमदाबाद में है. मैं सड़क के रास्ते उन्हें मुंबई ले आऊंगा, क्योंकि मैं इस कोरोना काल में हवाई जहाज से उन्हें सफर करने नहीं देना चाहता. इस बार मैं दिवाली पार्टी को स्किप करूँगा, इस समय एक साथ बहुत सारे लोगों का इकठ्ठा होना ठीक नहीं. मेरे हिसाब से इस बार की दिवाली सुरक्षित तरीके से सबको परिवार के साथ मनाने की जरुरत है.

अक्षित सुखीजा  

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धारावाहिक ‘शुभारम्भ’ में लीड रोल निभाने वाले अभिनेता अक्षित सुखीजा कहते है कि इस बार दिवाली मैं पेरेंट्स के साथ मनाने वाला हूं, जो मैं पिछले दो दिवाली से नहीं कर पा रहा था. मैंने 13 और 14 तारीख को एक छोटी पार्टी करूँगा और कुछ खास दोस्तों को बुलाने की इच्छा है, जिनके माता-पिता उनके साथ मुंबई में नहीं है. इसके अलावा मैं अपने घर को सजाने वाला हूं, होम मेड फ़ूड और सबके साथ बैठकर कुछ अच्छे टीवी शो को एन्जॉय करने वाला हूं.

प्राकृति नौटियाल 

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अभिनेत्री प्राकृति नौटियाल कहती है कि इस दिवाली को मैं एनवायरनमेंट फ्रेंडली तरीके से मनाने वाली हूं. मैं अपने माँ और बहन के साथ अपने क्लोज फ्रेंड के घर जाने वाली हूं. वहां एक अच्छी शाम मैं बिताने वाली हूं. मैं दिवाली पर बनने वाली लजीज मिठाईयां जैसे गुजिया, काजू कतली, सोनपापड़ी आदि खाने के लिए उत्सुक हूं. इस बार मैं भटके हुए जानवरों को खाना खिलने वाली हूं, क्योंकि दिवाली के पटाखे से वे डरकर भूखे रहते है. मैं चाहती हूं कि हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी से इस त्यौहार को मनाये और पर्यावरण को बचाने के लिए पटाखे कम से कम जलाये. साथ ही कोरोना संक्रमण से खुद को बचाएँ और स्वस्थ रहे.

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मीरा देवोस्थले 

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मेरे लिए दिवाली हमेशा खुशियों का त्यौहार रहा है. इस बार कोरोना संक्रमण की वजह से घर पर रहना है, इसलिए उसदिन मैं अपने घर को सुंदर तरीके से सजाउंगी. रंगोली बनाने के अलावा अच्छी ड्रेसअप करुँगी. इस बार मेरा पहनावा अलग तरीके का होगा, जिसकी प्लानिंग मैने कर ली है. कोरोना की वजह से पिछले कुछ महीने मुझे घर पर रहकर मुश्किल से समय बिताना पड़ा है, इसलिए मैं अपने घर में पोजिटीविटी और खुशियाँ थोड़ी अधिक लाने की कोशिश करुँगी. थोड़े फॅमिली गेस्ट को घर पर बुलाऊंगी और सिर्फ बेसिक अनुष्ठान करने की इच्छा है.

प्रणिता पंडित  

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कवच फेम अभिनेत्री प्रणिता पंडित का कहाँ है कि मैंने काफी पहले से दिवाली की तैयारी शुरू कर दी है. मैं घर पर दिए को सुंदर रंगों से पेंट करने वाली हूं, ताकि मुझे बाहर जाकर दिए खरीदने न पड़े. इसके लिए मैंने कुछ पुराने दिए को नया रूप देने की कोशिश की है और कुछ बाहर से मंगवाएं है. इसके अलावा मैं इस बार बाहर से मिठाई न खरीद कर घर पर बनाउंगी.

रोहित चौधरी 

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अभिनेता रोहित चौधरी इस बार दिवाली को पिछले कई दिवाली से अलग तरीके से मनाने वाले है. हर साल वे अपने दोस्तों के साथ पार्टी करते थे, लेकिन इस बार कोरोना संक्रमण की वजह वे ऐसा नहीं करेंगे. वे कहते है कि कोरोना ने सबकी जीवन शैली को बदल दिया है. मैं इस बार अपने परिवार के साथ दिवाली मनाने वाला हूं और मिठाई भी घर पर ही बनाने की कोशिश है. गेस्ट इस बार घर पर नहीं आयेंगे, क्योंकि एक दिन के एन्जॉय से बहुत सारे लोगों को खतरा कोरोना संक्रमण का हो सकता है. अपने परिवार के साथ दिवाली को मनाना ही इस साल का बेस्ट आप्शन है.

Diwali Special: ऐसे बनाएं टेस्टी मसाला पूरी

घर पर अगर आपको आसानी से और कम समय में कुछ टेस्टी बनाना चाहते हैं तो आज हम आपको मसाला पूरी की टेस्टी रेसिपी के बारे में बताएंगे. ये टेस्टी और हेल्दी रेसिपी है, जिसे आप चाहे तो स्नैक्स के साथ ट्राय कर सकते हैं. आइए आपको बताते हैं टेस्टी मसाला पूरी की आसान रेसिपी…

हमें चाहिए

–  250 ग्राम आटा

–  25 ग्राम सूजी

– 1 बड़ा चम्मच अजवाइन

– 1/2 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

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– 1 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

– 1/2 छोटा चम्मच कसूरी मेथी

–  1/2 छोटा चम्मच तिल

–  पानी जरूरतानुसार

– 15 एमएल गरम किया कैरोटिनो औयल

–  नमक स्वादानुसार.

बनाने का तरीका

पानी के अतिरिक्त बाकी सारी सामग्री को मिला लें. अब इस मिश्रण में धीरेधीरे पानी डालें और सख्त मांड़ तैयार कर लें. इसे 20 मिनट तक ढक कर फ्रिज में रख दें. उस के बाद छोटीछोटी लोइयां ले कर पूरियां बेल लें. फिर कड़ाही में तेल गरम कर पूरियों को सुनहरा होने तक तल लें. अचार या चटनी के साथ गरमगरम सर्व करें.

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Diwali Special: शादी के बाद नुसरत जहां के ये लुक करें ट्राय

बशीरहाट से तृणमूल कांग्रेस सांसद और बंगाली एक्ट्रेस नुसरत जहां एक बार फिर अपनी खूबसूरती के चलते सोशल मीडिया पर छा गई हैं. हाल ही में नुसरत जहां के हौट लुक की फोटोज सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं, जिसे आप भी ट्राय कर सकती हैं. आइए आपको बताते हैं नुसरत जहां के कुछ लुक्स, जिसे आप किसी भी पार्टी, फंक्शन में औफिस में ट्राय कर सकती हैं.

रेड गाउन में नुसरत जहां का हौट लुक

हाल ही में नुसरत जहां की बंगाली फिल्म ‘असुर’ रिलीज हुई है, जिसके प्रमोशन में वह रेड गाउन में नजर आईं, जिसे आप भी किसी फंक्शन में ट्राय कर सकती हैं. नुसरत का ये औफ शोल्डर गाउन आप किसी फंक्शन या किसी पार्टी में ट्राय कर सकती हैं और अगर आप औफ शोल्डर ड्रेस पहनना नही चाहती तो आप ड्रेस के साथ क्रौप टौप जैकेट ट्राय कर सकती हैं.

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स्काई ब्लू साड़ी करें ट्राय

 

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I’ll let the picture do the talking ? #PremierNightLook #Asur #InCinemasNow @rangoliindia @sandip3432 @majhisarmistha @makeupartist.sourab

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अगर आपके पास भी कोई सिंपल स्काई ब्लू साड़ी है और आप उसे वेडिंग लुक के लिए ट्राय करना चाहते हैं तो आप कौंट्रास्ट लुक ट्राय करते हुए ब्लू के साथ पिंक ब्लाउज ट्राय कर सकते हैं. इसके साथ मार्बल ज्वैलरी ट्राय कर सकते हैं.

औफिस लुक के लिए बेस्ट है नुसरत का ये लुक है बेस्ट

 

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Tune in to watch Dadagiri on #ZeeBangla today at 9:30pm @jeet30 @souravganguly @sayani_palit and others

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सर्दियों के दिनों में अगर औफिस के लिए कोई आउटफिट ट्राय करना चाहते हैं तो नुसरत का ये रेड ब्लेजर और पैंट के साथ ब्लैक हाइनेक का ये कौम्बिनेशन परफेक्ट रहेगा.

सिल्क की साड़ी करें ट्राय

सिल्क की साड़ी के साछ औफ स्लीव वाला ब्लाउज आपके लुक के लिए परफेक्ट औप्शन है. ये आपके लुक के लिए परफेक्ट वेडिंग औप्शन है. इसके साथ आप मार्बल या कुंदन की ज्वैलरी ट्राय कर सकती हैं.

रेशम लुक है परफेक्ट

रेशम की साड़ी के साथ हैवी ब्लाउज आपके लुक के लिए परफेक्ट रहेगा. इसके साथ आप हैवी ज्वैलरी ट्राय कर सकते हैं.

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गोली न पड़ जाए महावारी पर भारी 

महिलाओं को हर महीने एक समस्या आकर परेशान करती है. कभी छुट्टियों के बीच आकर उनका मजा किरकिरा कर देती है तो कभी किसी पार्टी में उनकी मौजूदगी को असहज बना जाती है. कभी उन्हेें धार्मिक अनुष्ठान से दूरी बनानी पड़ जाती है तो कभी उन्हें अपनी पसंदीदा ड्रस से तौबा करना ही बेहतर लगता है. इस समस्या का नाम है महावारी. जो महिलाओं को कई बार अल्पविराम सी महसूस होती है. यह विराम उनकी प्लानिंग पर न लगने पाए इसके लिए कई बार वह पीरियड को आगे बढ़ाने के लिए गोलियों का सहारा ले लेती हैं. पर क्या कभी सोचा है कि इसके दुष्परिणाम भी हो सकते हैं. अगर नहीं तो इनके बारे में जान लेना ही बेहतर  होगा. इनके दुष्परिणामों की पुष्टी कई शोधों में भी हो चुकी है.

हो जाती है अनियमितता

पीरियड का एक पूरा चक्र होता है. अगर आप उस चक्र्र को ब्रेक करती हैं और उसे आगे बढ़ाने के लिए दवा लेती है तो उसका असर आने वाले महीनों में नजर आने लग जाते है. जानकारों की मानें तो अगर आप अक्सर महावारी को बढ़ाने की दवा ले लेती हैं तो आपकी महावारी लम्बे समय तक, अधिक स्त्राव वाली हो जाती है. साथ आपको उस दौरान अधिक दर्द का भी सामना करना पड़ता है.

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और भी हो सकती हैं समस्याएं

इन दवाओं को दुष्परिणाम सिर्फ महावारी तक ही सीमित नहीं रहते. जानकार कहते हैं कि इन दवाओं का सेवन करने पर महावारी आने के सात से दस दिन पहले आपको स्तन पर कड़ापन, पेट फूलना आदि की समस्या भी हो सकती है.  इतने पर ही बस नहीं होता कई महिलाओं को इनसे त्वचा की समस्याएं जैसे रैशज, मुहंासे, एक्रे आदि भी हो सकते हैं. चक्कर आना, सिर में दर्द यहां तक कि माइग्रेन तक की समस्या हो सकती है. हार्मोन्स का बैलेंस बिगड़ जाने के कारण आपको मूड स्विंज्स का सामना भी करना पड़ सकता है. आप अगर अक्सर इन दवाओं का सेवन करती हैं तो यह आपके वजन पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती हैं.

कैसे काम करती हैं दवाएं

पीरियड को आगे बढ़ाने की दवाएं हार्मोन को बैलेंस करती है. इनको खाने से प्रोजेस्टारॉन जो कि एक फीमेल हार्मोन होता है उसका स्त्राव बढ़ जाता है. इसका स्तर बढऩे से गर्भाशय की परत नहीं गिरती और महावारी नहीं आती. जब अब दवा लेना बंद कर देती हैं तो हार्मोन धीमे-धीमे सामान्य हो जाते हैं. इन दवाओं का प्रभाव सब पर अलग-अलग होता है. वैसे आमतौर पर इन दवाओं के सेवन के बाद  तीन से चार दिनों में पीरियड हो जाता है.

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बढ़े वजन को कम करने के कारण मेरे पीरियड्स बिलकुल बंद हो गए हैं?

सवाल

मैं 19 साल की हूं और कौलेज में पढ़ती हूं. मैं अपने बढ़े वजन को कम करने के लिए दिन में कम से कम 2 घंटे व्यायाम करती हूं. मैं ने इस दौरान 12-13 किलोग्राम वजन कम भी कर लिया है. मगर अब मेरे पीरियड्स बिलकुल बंद हो गए हैं. कृपया बताएं क्या करूं?

जवाब-

कई चीजें मासिकधर्म को रोक सकती हैं, जिन में बहुत ज्यादा व्यायाम कर जल्दी वजन कम करना भी शामिल है. खासकर तब जब आप पर्याप्त कैलोरी और पौष्टिक खाद्यपदार्थों का सेवन नहीं कर रही हों. दिन में 2 घंटे व्यायाम करने से बहुत सारी कैलोरी बर्न हो जाती है, इसलिए अब आप को अपने खाने में अधिक कैलोरी लेनी चाहिए और डाक्टर से जल्दी मिलना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि आप के पीरियड्स रोकने के लिए और कोई समस्या जिम्मेदार तो नहीं. आप स्वस्थ भोजन और व्यायाम की योजना पर काम करें, जिस से आप की पीरियड्स की साइकिल दोबारा ठीक हो सके.

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कुछ लड़कियां पीरियड्स के दौरान मूड स्विंग्स का सामना करती हैं तो कुछ लड़कियों को कोई खास बदलाव महसूस नहीं होता है. ऐसे ही कुछ लड़कियां डिप्रैशन और इमोशनल आउटबर्स्ट का शिकार होती हैं. इसे कहते हैं प्रीमैंस्ट्रुअल सिंड्रोम और 90 प्रतिशत लड़कियां वर्तमान में इसे महसूस कर रही हैं.

पीरियड के दौरान अनेक परेशानियां भी आती हैं. महीने में 2 बार पीरियड्स क्यों हो रहे हैं? मसलन, फ्लो इतना ज्यादा या इतना कम क्यों है ? पीरियड्स और लड़कियों के समान क्यों नहीं हैं? अनियमित पीरियड्स क्यों हैं? ये सब प्रश्न अकसर हमारे दिमाग में घर कर लेते हैं.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- पीरियड्स की मुश्किलों से कैसे निबटें

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सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem
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