Serial Story: दोराहा (भाग-4)

मम्मीपापा के साथ बिताए गए सुखद पलों को अपने मन में समेट कर आयुषी वापस मुंबई आ गई. प्रतीक तब तक नहीं आया था. उस ने फोन किया तो फोन बंद मिला. आयुषी को थोड़ी चिंता हुई. 1 हफ्ते में उन दोनों के बीच फोन पर कोई बात नहीं हुई. 2 साल बाद मम्मीपापा का प्यार और स्नेह मिला तो वह प्रतीक को बिलकुल भूल गई.

प्रतीक दूसरे दिन सुबह तक भी नहीं पहुंचा था. घर बड़ा सूनासूना लग रहा था. आयुषी का मन उदास हो गया. इस घर में वह उस के साथ

2 साल से रह रही थी. प्रतीक कैसा भी था, कपटी और कंजूस, परंतु आयुषी ने उसे प्यार किया था, उसे अपना तन सौंपा था. इसी भावना के तहत उसे अपनाया था और चाहती थी कि जीवन के अंतिम क्षण तक उस की ही हो कर रहे, परंतु शायद प्रतीक के मन में कुछ और था.

उदास और खाली मन से वह औफिस जाने के लिए तैयार होने लगी. प्रतीक का फोन अभी तक बंद था. औफिस में वह अपने कैबिन में जा कर बैठी ही थी कि शिवांगी आ गई. दोनों एकदूसरे के काफी निकट थीं और आपस में काफी अंतरंग बातें भी कर लेती थीं. उस ने मुसकरा कर कहा, ‘‘आओ, शिवांगी कैसी हो?’’

शिवांगी ने अपने बारे में कुछ न बताते हुए उसी से पूछा, ‘‘तुम बताओ, तुम कैसी हो? प्रतीक नहीं आया तुम्हारे साथ?’’ उस का स्वर गंभीर था. वह आयुषी के चेहरे के भाव पढ़ने का प्रयास कर रही थी.

आयुषी के मन पर जैसे किसी ने एक बड़ा पत्थर रख दिया. वह एक पल सकते की सी हालत में बैठी रही. बोली, ‘‘पता नहीं, क्यों नहीं आया? उस का फोन भी बंद है.’’

शिवांगी के चेहरे पर हैरत के भाव तैर गए. आंखें फैला कर बोली, ‘‘तो तुम्हें नहीं मालूम?’’

‘‘क्या?’’ आयुषी ने धड़कते दिल से पूछा.

‘‘प्रतीक ने यह कंपनी छोड़ दी है,’’ शिवांगी ने बिना किसी हिचक के बता दिया.

‘‘क्या?’’ आयुषी को विश्वास नहीं हो रहा था.

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‘‘हां, पिछले हफ्ते ही उस का ईमेल से त्यागपत्र आया था. लिखा था कि पारिवारिक कारणों से वह यह नौकरी आगे नहीं कर सकता.’’

‘‘उफ,’’ आयुषी के मुंह से बस इतना ही निकला. इस बार दूसरा बड़ा पत्थर उस के सिर के ऊपर बम की तरह फटा था.

शिवांगी ने आगे कहा, ‘‘मैं जानती थी, एक दिन यही होना था. प्रतीक जैसे तेजतर्रार लड़के प्रेम संबंधों में अपना जीवन बरबाद नहीं करते. इन के लिए ये संबंध बस टाइमपास की तरह होते हैं. प्रेम इन के लिए बस क्षणिक जरूरत की तरह होता है, जिम्मेदारी की तरह नहीं. जरूरत पूरी हो गई तो चलते बनो.

शिवांगी जीवन की बहुत कड़वी सचाई बयान कर रही थी, परंतु आयुषी कुछ सुन रही थी, कुछ नहीं. उस के कान ही नहीं दिमाग भी सुन्न हो गया था. चेहरे पर तरहतरह के भाव आ रहे थे, परंतु वह कुछ सोचसमझ नहीं पा रही थी. शिवांगी उस की स्थिति समझ रही थी. अत: वह थोड़ी देर के लिए चुप हो गई. छुट्टी ली और फिर आयुषी को उस के कैबिन से ले कर बाहर आ गई.

उस ने कार की चाबी मांगी, तो आयुषी ने चुपचाप उसे दे दी. फिर शिवांगी उस की कार में आयुषी को बैठा कर उस के घर पहुंची. पूरे रास्ते आयुषी कुछ नहीं बोली थी.

शाम तक आयुषी पूरी तरह से सामान्य हो गई. शिवांगी ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘आयुषी, तुम समझदार हो. मनुष्य का जीवन बहुत सारी कटुताओं से भरा होता है, फिर भी हम जीवन के प्रति मोह नहीं छोड़ते. हर बाधा को पार करते हुए सुख की तलाश करते रहते हैं. यही जीवन है. तुम्हारे जीवन का यह अंत नहीं है. यह समझ लो, प्रतीक तुम्हारा नहीं था. आधुनिक जीवन में लिव इन रिलेशनशिन एक सचाई हो सकती है, परंतु यह अटल सचाई नहीं है. यह संबंध केवल शारीरिक जरूरतों पर आधारित होता है जैसे विवाहपूर्व या विवाहेतर संबंध और जो संबंध केवल जरूरत पर आधारित होते हैं, वे स्थाई नहीं होते. जरूरत पूरी होने पर अपनेआप टूट जाते हैं.’’

‘‘हां, मैं समझ रही हूं,’’ आयुषी के चेहरे पर पहली बार हलकी मुसकराहट आई थी, ‘‘इस बात को मैं बहुत पहले समझ गई थी. प्रतीक नौकरी छोड़ कर न जाता, तब भी इस संबंध को टूटना ही था. वह इस के प्रति गंभीर नहीं था.’’

‘‘अच्छा हुआ, तुम पहले ही इस बात को समझ गई थीं. अब तुम जल्दी ही संभल जाओगी. तुम्हारे जीवन में भी सब जल्दी ठीक हो जाएगा,’’ शिवांगी ने उसे समझाते हुए कहा.

‘‘मैं अब पूरी तरह से होश में आ गई हूं शिवांगी,’’ आयुषी ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘मैं पहले भी कमजोर नहीं थी, अब भी कमजोर नहीं पडूंगी. अब शाम हो गई है, तुम अपने घर जा सकती हो.’’

‘‘क्या तुम अकेले रह लोगी? कोई दिक्कत हो तो रात में रुक जाती हूं?’’

‘‘नहीं,’’ उस ने मुसकरा कर कहा.

शिवांगी के जाने के बाद उस ने अपने पूरे घर को घूमघूम कर देखा, 1-1 चीज को देखा, हाथ लगा कर देखा. यह उस का घर था, उस के सुखसपनों का घर. भले ही किराए का फ्लैट था, परंतु उस के अंदर ही हर चीज में उस की जान बसी हुई थी.

आज आयुषी का प्यार मर गया था. उसे उस का अंतिम संस्कार करना था. वह सोच रही थी कि रुपयापैसा तो वह फिर से जोड़ लेगी, परंतु क्या टूटा मन वह जोड़ पाएगी? हां, जोड़ लेगी. वही तो कहती है कि वह कमजोर नहीं है. पहले भी नहीं थी, अब भी नहीं है.

घर में बहुत सारी चीजें थीं. ये सारी चीजें आयुषी ने बड़े प्यार से अपने पैसों से  खरीदी थीं. अब वह प्रतीक से जुड़ी हुई कोई भी चीज अपने घर में नहीं रखना चाहती थी. जब उसे यकीन हो गया कि प्रतीक से जुड़ी हुई कोई चीज अब घर में नहीं बची है, सब को उस ने छांट कर अलग कर दिया है, तो उस ने छांटी हुई चीजों को एक कपड़े में बांधा. उस ने घड़ी पर नजर डाली. रात के 11 बज गए थे.

उस ने सामान को गाड़ी में रखा और शहर से दूर सड़क के किनारे एक तालाब के पास पहुंची. सन्नाटा देख कर आयुषी ने सामान की गठरी तालाब में धकेल दिया. हलकी सी आवाज हुई और फिर सब कुछ शांत. उस ने नीचे की तरफ देखा. बिजली की रोशनी में पानी हिलता हुआ दिखाई दे रहा था, परंतु गठरी कहीं नजर नहीं आ रही थी. शायद पानी में डूब गई हो. नहीं डूबी होगी, तो थोड़ी देर में डूब जाएगी.

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यह सब करने के बाद वह शांत भाव से खड़ी कुछ देर तक तालाब के पानी में बिजली की रोशनी की लहराती परछाईं को देखती रही तभी उस के फोन की घंटी बजी. इतनी रात में कौन हो सकता है? उस ने तुरंत फोन की स्क्रीन देखी. उस के दिल में धमाका सा हुआ… प्रतीक. उस ने फोन से उस का नंबर डिलीट ही नहीं किया था. लेकिन उस का फोन? अब किस लिए? सबकुछ खत्म हो गया. अपने मन को काबू में रखते हुए उस ने सब से पहले काल को रिजैक्ट किया, फिर फोन से उस का नंबर डिलीट कर फोन बंद कर दिया. अब उस के मन को पूर्ण शांति मिली थी.

कार में बैठ उस ने गाड़ी स्टार्ट की. उस की आंखों के सामने सब कुछ साफसाफ दिख रहा था. दोराहे की धुंध छंट चुकी थी. उस ने गाड़ी घर की तरफ दौड़ा दी.

Serial Story: दोराहा (भाग-1)

आयुषी ने उदास मन से अपने बैडरूम की 1-1 चीज को देखा. पलंग, अलमारी, ड्रैसिंगटेबल, इधरउधर बिखरे पड़े कपड़े… सब कुछ उदासी में डूबा नजर आ रहा था. हर चीज जैसे किसी गहरी वेदना से गुजर रही हो. कमरे में सन्नाटा पसरा था. यह सन्नाटा आयुषी को डरा नहीं रहा था, परंतु उस के मन में अवसाद पैदा कर रहा था. जितना वह सोचती, उतना ही उस का मन और ज्यादा गहरे अवसाद से भर जाता.

बैडरूम की ही नहीं, फ्लैट की हर चीज को उस ने पूरी चाहत से सजाया था, अपने लिए, अपने प्रियतम के लिए. कितने सुंदर सपने तब उस की आंखों में तैरा करते थे. उन सपनों को साकार करने के लिए उस ने इतना बड़ा कदम उठाया था कि बिना शादी के वह प्रतीक के साथ पत्नी की तरह रहने को तैयार हो गई थी.

परंतु आज उस का सारा उत्साह खत्म हो गया था. वह समझ नहीं पा रही थी ऐसा क्यों और कैसे हुआ? उस ने तो पूरी निष्ठा से प्रतीक से प्यार किया था, अपना तनमन सौंपा था, परंतु उस के मन में आयुषी के लिए कोई प्यार था ही नहीं. उस का प्यार मात्र दिखावा था. वह बस उस की देह को भोगना चाहता था. उस ने उसे अपने फंदे में फंसा कर न केवल उस के शरीर का उपभोग किया, बल्कि उस की कमाई पर भी ऐश की. आज वह उस की चालबाजियों को समझ रही थी, परंतु अब समझने से फायदा भी क्या?

दोनों ने साथसाथ एमबीए की पढ़ाई की थी. इसी दौरान दोनों की आपस में नजदीकियां बढ़ी थीं. प्रतीक उसे चाहत भरी निगाहों से देखता रहता था और वह उसे देख कर मुसकराती थी. फिर दोनों एकदूसरे के नजदीक आए. हायहैलो से बातचीत शुरू हुई और फिर बहुत जल्द ही एक दिन प्रतीक ने कहा, ‘‘आयुषी, क्या तुम मेरे साथ बाहर चलना पसंद करोगी?’’

‘‘कहां?’’ उस ने अपने होंठों को शरारत से दबाते हुए पूछा.

प्रतीक ने कहा, ‘‘जहां तुम कहो.’’

‘‘तुम्हारी कोई इच्छा नहीं?’’

‘‘है तो, परंतु तुम्हारी सहमति के बिना कुछ नहीं हो सकता.’’

‘‘तो चलो,’’ उस ने इठलाते हुए कहा.

इस के बाद दोनों का प्यार बहुत तेजी से परवान चढ़ा. धीरेधीरे प्रतीक ने अपनी लच्छेदार बातों से उसे मोहित कर लिया था. वह उस के लिए कुछ भी करने को तैयार थी.

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प्रतीक और आयुषी के बीच एकदूसरे को पाने की चाहत इतनी तीव्र थी कि उन्होंने तय कर लिया कि नौकरी मिलते ही एकसाथ रहना शुरू कर देंगे. इसलिए प्रयत्न कर के दोनों ने एक ही कंपनी में नौकरी कर ली और फिर बिना आगापीछा देखे साथ रहने लगे. घरपरिवार से दूर, अपना अलग संसार बसा कर उन दोनों ने जैसे जीवन की सारी खुशियां प्राप्त कर ली थीं.

जिस दिन दोनों ने एकसाथ रहना तय किया, उसी दिन प्रतीक ने कहा, ‘‘देखो, आयुषी हम दोनों साथसाथ रहने तो जा रहे हैं, परंतु ध्यान रखना बाद में कोई परेशानी न हो.’’

‘‘कैसी परेशानी?’’ आयुषी ने शंकित हो कर पूछा.

‘‘देखो तुम समझदार हो, अगर हम लोग एक ऐफिडैविट बनवा लें तो हम दोनों के लिए अच्छा रहेगा.’’

‘‘कैसा ऐफिडैविट?’’ आयुषी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था.

‘‘यही कि तुम कभी मेरे ऊपर शादी करने का दबाव नहीं बनाओगी और कभी बच्चा नहीं चाहोगी.’’

आयुषी चिंता में पड़ गई. शादी की मांग करना तो बेवकूफी होगी, परंतु बच्चा क्यों नहीं चाहेंगे? जब स्त्रीपुरुष शारीरिक संबंध बनाएंगे तो क्या बच्चा पैदा होने की संभावना नहीं होगी? क्या जीवन भर देहसुख के सहारे कोई व्यक्ति जिंदा रह सकता है? उसे बच्चा नहीं चाहिए? पुरुष भले ही बिना बच्चों के रह ले, परंतु कोई स्त्री कैसे रह सकती है?

‘‘प्रतीक, यह कैसे हो सकता है? बिना शादी के तो हम साथसाथ रह सकते हैं, पर बिना बच्चे के कैसे जीवन गुजरेगा?’’

प्रतीक ने उसे मनाने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘देखो, हम दोनों अभी बच्चे की जिम्मेदारी नहीं उठा सकते और ऐफिडैविट बनवाने में हम दोनों की सुरक्षा है वरना तुम ने देखा ही है, कुछ दिन साथसाथ रहने के बाद लड़कियां शादी के लिए जोर देने लगती हैं. लड़का नहीं मानता है, तो परिवार और रिश्तेदारों के दबाव में आ कर लड़के के ऊपर बलात्कार का मुकदमा दायर कर देती हैं.’’

आयुषी के मन में शीशे की तरह छन्न से कुछ टूट गया. प्रतीक इतनी सावधानी क्यों बरत रहा है?

उस ने कठोर शब्दों में कहा, ‘‘प्रतीक, प्रेम सदा विश्वास की नींव पर टिका होता है. अगर हम दोनों को एकदूसरे पर विश्वास नहीं है, तो इस का मतलब है हम एकदूसरे को प्यार ही नहीं करते. ऐफिडैविट हमारे बीच प्यार पैदा नहीं कर सकता. इस से कटुता ही बढ़ेगी. इसलिए मैं इस से सहमत नहीं हूं. अगर तुम चाहो तो इस संबंध को यही खत्म कर देते हैं.’’

‘‘नहींनहीं,’’ उस ने तुरंत आयुषी को बांहों में भर लिया. उसे लगा अगर उस ने ज्यादा दबाव बनाया तो आयुषी उस के चंगुल से निकल जाएगी. उस ने मुसकरा कर कहा, ‘‘चलो कोई बात नहीं, तुम्हें मेरे ऊपर विश्वास है तो मैं भी तुम्हारे ऊपर विश्वास करता हूं. लेकिन ध्यान रखना, बाद में कोई गड़बड़ी न हो.’’

आयुषी के मन में एक गांठ सी पड़ गई, परंतु उन दोनों का प्यार नयानया था, इसलिए उस ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

किराए का फ्लैट लेते समय सिक्युरिटी डिपौजिट और अग्रिम किराया आयुषी ने भरा था. प्रतीक बोला था, ‘‘आयुषी, अभी तुम सिक्युरिटी डिपौजिट और किराया भर दो. मुझे हर महीने घर पैसे भेजने पड़ते हैं. मेरे पास हैं नहीं. बाद में लौटा दूंगा.’’

आयुषी को एक बार कुछ अजीब सा तो लगा था कि प्रतीक उस का फायदा तो नहीं उठा रहा, परंतु उस के अंदर प्यार का ज्वार इतना तीव्र था कि विवेक की सारी लकीरें एक ही लहर में मिट गई. बाद में आयुषी भूल ही गई कि प्रतीक ने पैसे लौटाने की बात कही थी.

आयुषी ने घर में खाना बनाने के सारे साधन जुटा लिए थे. प्रतीक ने मना किया था, परंतु वह नहीं मानी. स्वयं ही जा कर बरतन लाई, गैस का प्रबंध किया. झाड़ूपोंछा और खाना बनाने के लिए एक कामवाली रख ली. परंतु घर में खाना कम ही बनता था. प्रतीक के कहने पर लगभग रोज ही किसी न किसी रेस्तरां से खाना आता था. दोनों आउटिंग भी करते थे और इस सब का खर्चा आयुषी को उठाना पड़ता था.

कुछ दिन सतरंगी सपनों में डूबतेउतराते बीत गए. चारों तरफ प्यार ही प्यार बिखरा  था. दुनिया इतनी खूबसूरत होती है, यह आयुषी ने प्रतीक को प्यार कर के ही जाना. लेकिन आयुषी के प्यार का रंग तब फीका पड़ने लगा जब उस ने देखा कि घर को सजानेसंवारने में प्रतीक हमेशा अपना हाथ खींच लेता. जब भी उसे कुछ खरीदना होता, वह आयुषी से कहता, ‘‘डार्लिंग, आज कुछ खरीदारी कर लें?’’

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‘‘मुझ से क्यों कह रहे, तुम खुद खरीद लो.’’

‘‘लेकिन तुम तो जानती हो, मेरे पास पैसे नहीं हैं. घर भेज दिए,’’ और फिर वह उसे अपनी बांहों में भर लेता. उस की गरम सांसें आयुषी के बदन में मधुर तरंगें भरने लगतीं. वह मदहोश हो कर पिघल जाती. उस के सीने पर हलके से मुक्का मारती हुई बोलती, ‘‘ठीक है, चलो.’’

इसी तरह वह उस से अपने उपयोग की सारी चीजें खरीदवाता रहता. जब पैसे की बात आती तो कहता कि उस ने इस महीने घर भेज दिए, कभी कहता कि बैंक में जमा कर रहा है, बाद में काम आएंगे.

प्रतीक प्रेम भरी बातों से उसे इस तरह लुभाता कि आयुषी की सोच के सारे दरवाजे बंद हो जाते. वह यह न समझ पाती कि प्रतीक अपना पैसा क्यों खर्च नहीं करना चाहता. वह उस के पैसे से भी मौज कर रहा था और उस की देह से भी. साथसाथ रहने की यह कैसी मजबूरी थी कि रहने, खाने, पहनने, ओढ़ने का सारा खर्च केवल आयुषी उठाए? क्या प्रतीक की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती?

पूरे घर को आयुषी ने सजायासंवारा था. प्रतीक ने अपनी कमाई का एक पैसा घर में तो दूर आयुषी के ऊपर भी खर्च नहीं किया था.

आयुषी उसे ले कर बाजार जाती. कोई चीज उसे पसंद आती तो वह प्रतीक का मुंह देखती कि वह उसे खरीदने के लिए कहेगा, परंतु प्रतीक बिलकुल निरपेक्ष भाव से दूसरी तरफ देखने लगता जैसे आयुषी उस के साथ ही नहीं है. वह मन मार कर कहती, ‘‘प्रतीक, यह जींस कितनी अच्छी है. ले लूं?’’

‘‘हां हां, अच्छी है. ले लो. पैसे लाई हो न?’’ कह हाथ झाड़ लेता.

धीरेधीरे आयुषी ने महसूस किया कि उस के बैंक खाते में महीने के अंत में 1 रुपया भी नहीं बचता. जो उसे मिलता था, घर खर्च में ही खत्म हो जाता था. ऐसे तो अपने जीवन में वह कुछ जोड़ ही नहीं पाएगी. प्रतीक के कहने पर उस ने एक कार भी खरीद ली थी. उस की किस्त उसे ही भरनी पड़ती थी, जबकि गाड़ी का इस्तेमाल ज्यादातर प्रतीक ही करता था. गाड़ी वह इस्तेमाल करता था और पैट्रोल आयुषी को भरवाना पड़ता था.

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Serial Story: दोराहा (भाग-3)

आयुषी ने धीरेधीरे सब कुछ बताया कुछ भी नहीं छिपाया. सुन कर शिवांगी एक पल के लिए सन्न रह गई. फिर बोली, ‘‘मैं ने तो तुम्हें पहले ही सलाह दी थी. खैर, यह तो एक दिन होना ही था. अब से तुम संभल जाओ. प्रतीक यह कंपनी छोड़ने के चक्कर में है. वैसे तो वह किसी को अपनी बातें नहीं बताता है, परंतु उस के एक खास मित्र ने यह खुलासा कर दिया है. वह बैंगलुरु की किसी कंपनी में जौब के लिए कोशिश कर रहा है.’’

‘‘मुझे भी यही शक था. उस के व्यवहार से लग रहा था कि अब इस संबंध से उस का मन उचट गया है और छूट भागने की कोशिश कर रहा है.’’

‘‘फिर क्या करोगी तुम?’’

‘‘कुछ नहीं.’’

शिवांगी को आश्चर्य हुआ, ‘‘क्या मतलब? तुम उस के खिलाफ कुछ नहीं करोगी? उस ने तुम्हारा शोषण किया है.’’

‘‘नहीं शिवांगी, उस ने मेरा कोई शोषण नहीं किया है. हम दोनों ने जो कुछ किया, उस में मेरी सहमति थी. अब मेरी गलतियों का परिणाम जो भी हो, मैं उसे भुगतने के लिए तैयार हूं.’’

शिवांगी आश्चर्य से उसे देख रही थी, ‘‘क्या तुम अपने को संभाल लोगी?’’

‘‘हां, मैं अपनेआप को संभाल लूंगी,’’ आयुषी ने आत्मविश्वास से कहा.

‘‘तुम्हें कभी मेरी जरूरत पड़े, बताना. मैं तुम्हारा भला चाहती हूं.’’

‘‘ठीक है, शिवांगी. मुझे ये बातें बताने के लिए धन्यवाद. मैं अपना खयाल रखूंगी.’’

आयुषी के पापा सरकारी अधिकारी थे. बहुत ज्यादा जिम्मेदारियां नहीं थीं. आयुषी को पढ़ानेलिखाने में जो खर्च हुआ, वह उन की तनख्वाह और बचत से पूरा हो गया. लेकिन उन के पास बहुत ज्यादा धनदौलत नहीं थी. उस की उन्हें आवश्यकता भी नहीं थी. बेटी स्वयं कमा रही थी, उन्हें कोई चिंता नहीं थी.

इसी बीच आयुषी की मम्मी का फोन आया कि उन को गालब्लैडर में पथरी हो गई है, औपरेशन करवाना पड़ेगा. उन्होंने पैसे की मांग नहीं की थी, बस आने के लिए कहा था, परंतु आयुषी ने सोचा ऐसे मौके पर अगर कुछ पैसे भेज सकी, तो पापा को कुछ राहत मिल सकेगी. उस के खाते में पैसे नहीं थे. तनख्वाह मिलने में समय था.

आयुषी ने प्रतीक से कहा, ‘‘मुझे कुछ पैसों की जरूरत है.’’

प्रतीक का मुंह आश्चर्य से खुला रह गया, ‘‘तुम और पैसे? क्या तुम्हारे पास नहीं हैं?’’

‘‘नहीं हैं, तभी तो मांग रही हूं,’’ उस ने असहाय भाव से कहा, ‘‘मम्मी का औपरेशन होना है, उन्हें देने हैं.’’

‘‘क्या तुम घर जा रही हो?’’

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‘‘सोच रही हूं, इसी बहाने घर हो आऊंगी. 1 साल से ऊपर हो गया घर नहीं गई.’’

‘‘मेरे पास तो नहीं हैं,’’ प्रतीक ने सपाट स्वर में कहा, ‘‘कल ही घर भिजवा दिए हैं.’’

आयुषी समझ गई, प्रतीक साफ झूठ बोल रहा है. पूछा, ‘‘आखिर ऐसे बड़ेबड़े झूठ तुम कैसे बोल लेते हो. कभी कहते हो पैसे बचा रहे हो, कभी कहते हो घर भेज दिए. आखिर सारे पैसे तो तुम नहीं भेजते होगे. इस घर में एक कौड़ी भी तुम खर्च नहीं करते. तुम्हारे व्यक्तिगत खर्च से ले कर खानेपीने तक का खर्चा मैं उठा रही हूं. तुम्हें इस बात की शर्म नहीं आती कि मेरे टुकड़ों पर मौज कर रहे हो?’’

‘‘यह तुम्हारी जरूरत है, जो मेरे साथ रह रही हो,’’ उस ने ऐंठ से कहा जैसे हर लड़की की यह मजबूरी होती है कि वह लड़के के साथ रहते हुए उस का सारा खर्च वहन करे.

आयुषी कुछ और कहने की सोच ही रही थी कि प्रतीक ने उस के सामने ही कार की चाबी उठाई और उसे बिना कुछ बताए बाहर चला गया. उन के बीच जब भी कोई इस तरह की बात होती तो वह या तो लैपटौप ले कर बैठ जाता या फिर कार ले कर कहीं चला जाता.

प्रतीक बाहर चला गया तो वह काफी देर तक गुमसुम बैठी रही. वह घर की  1-1 चीज को देख रही थी, उसे अपने जीवन की पिछली बातें याद आ रही थीं. प्रतीक के व्यवहार में आए परिवर्तन को वह समझ नहीं पा रही थी. इतना तो वह देख ही रही थी कि अब वह उस के साथ नहीं रहना चाहता था. इसीलिए वह बातबात में कटुता घोलने का प्रयत्न करता था. वह जानबूझ कर संबंध खराब करने पर तुला था ताकि उसे अलग होने का बहाना मिल जाए. संभवतया वह किसी दूसरी लड़की के चक्कर में था या उस के घर वालों ने उस की कहीं शादी तय कर दी थी.

अगर ऐसी कोई बात थी, तो वह उस से साफसाफ कह सकता था. आयुषी इतनी दुष्ट नहीं थी कि वह बदले की भावना के चलते उस के खिलाफ कोई काररवाई करती. काररवाई करने से भी क्या फायदा? उसे सजा हो जाएगी, जेल चला जाएगा, परंतु वह आयुषी का तो तब भी नहीं हो सकता था.

पैसे जुटाने के लिए वह क्या करे? घर का कोई सामान बेच दे, परंतु उस से कितने पैसे जुटेंगे. उस ने काफी विचार किया. वह अगर अपने घर जाती है, तो आनेजाने में 10-20 हजार खर्च हो जाएंगे. इसलिए वह खुद तो नहीं गई, परंतु औफिस की एक मित्र से पैसे ले कर पापा के खाते में 50 हजार डलवा दिए.

आयुषी और प्रतीक के बीच के मधुर संबंध कटुता की पराकाष्ठा पर पहुंच चुके थे. इस का जिम्मेदार कौन था, यह उन दोनों की समझ में नहीं आ रहा था.

प्रतीक का अपने घर वालों से पूरा संपर्क था. वह सालछह महीने में अपने घर हो आता था, परंतु आयुषी इन 2 सालों में केवल 1 बार घर गई थी. फोन पर बात होती थी, परंतु घर जाने के नाम पर बहाना बना देती थी कि अभी नई नौकरी है, काम ज्यादा है, छुट्टी नहीं मिल पाएगी. उस ने घर में यह भी बता रखा था कि शायद कंपनी की तरफ से उसे अमेरिका भेज दिया जाए. मां बहुत इच्छुक थीं कि आयुषी की शादी हो जाए, परंतु उस ने बहाना बना दिया था कि अमेरिका से लौटने के बाद ही शादी के बारे में कुछ सोचेगी. वास्तविकता तो यह थी कि वह शादी की सोच से बहुत आगे निकल चुकी थी.

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इसी खटपट के दौरान प्रतीक  1 सप्ताह की छुट्टी ले कर अपने घर चला गया. तब

आयुषी ने भी चुपके से छुट्टी ली और मम्मीपापा के पास चली गई. इतने दिनों बाद मां की गोद में सिर रख कर लेटने में उसे जो सुख की अनुभूति हुई, वह उसे प्रतीक की गोद में लेट कर भी कभी नहीं हुई थी. पापा के साथ बैठ कर पुरानी यादों को ताजा कर के वह फिर से अपने बचपन में पहुंच गई.

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REVIEW: पूर्वोत्तर फिल्म के नाम पर मजाक ‘पेपर चिकन’

 रेटिंगः दो स्टार

निर्माताः दिपानिता शर्मा अटवाल और सौभाग्य भट्टाचार्य

निर्देशकः रतन सील शर्मा

कलाकारः दिपानिता शर्मा, बोलाराम दास, रवि शर्मा, वहरुल इस्लाम,  मनोज मोरबोरको

अवधिः एक घंटा 35 मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः शेमारू मी बाक्स आफिस

धीरे धीरे पूर्वात्तर भारत भी सिनेमा की मुख्य धारा से जुड़ना चाहता है और ओटीटी प्लेटफार्म इसमंे मददगार साबित हो रहे हैं,  तभी तो अभिनेत्री दिपानिता शर्मा ने रतन सील शर्मा के निर्देशन में एक मनोवैज्ञानिक रोमांचक रोड़ ट्रिप वाली फिल्म ‘पेपर चिकन’ का निर्माण किया है. उन्होने इसे असम के प्राचीन जंगलों में न सिर्फ फिल्माया है, बल्कि खुद के अलावा बाकी सभी कलाकार भी असम के ही लिए हैं. इस फिल्म को ओटीटी प्लेटफार्म ‘‘शेमारूमी बाक्स आफिस’’पर 6 नवंबर से देखा जा सकता है.

कहानीः

कहानी शुरू होती है एक रेडियो स्टेशन से, जहां आर जे वैदेही( दिपानिता शर्मा) हर दिन एक कहानी सुनाती है. आज उसका रेडियो पर अंतिम दिन है, क्योंकि अपने प्रेमी रमन(रवि शर्मा)से विवाह करने के लिए वैदेही ने नौकरी छोड़ दी है. रेडियो स्टेशन से निकलकर  वह एक टैक्सी पकड़कर अपने घर की ओर रवाना होती है, जो कि काफी दूर है. रात हो चुकी है. वह रमन से फोन पर कहती है कि रात के ग्यारह बजे तक वह घर पहुंच जाएगी. टैक्सी में वैदेही पाश की कविताएं पढ़ रही है, अचानक ड्रायवर (बोलाराम दास) पूछता है कि क्या यह पाश की किताब है और वह कौन सा पन्ना पढ़ रही है. वैदेही पन्ना नंबर 15 बताती है, उसके बाद ड्रायवर किताब के पन्ना नंबर 15 पर छपी कविता को गुनगुनाने लगता है. यह देखकर वैदेही भौचक्की रह जाती है. उसके बाद दोंनो के बीच बातचीत शुरू हो जाती है. ड्रायवर बताता है कि उसने पाश के अलावा मुक्तिबोध और मंटो को भी पढ़ा है. वैदही उसे बताती है कि वह कल अपने प्रेमी रमन से शादी करने वाली है, इसीलिए रेडियो की नौकरी छोड़़ दी.

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ड्रायवर बताता है कि उसकी मां व छोटे भाई की मौत हो चुकी है और उसने शादी नही की है. रास्ते में दोनो एक ढाबे पर नाश्ता करते हैं. आगे बढ़ते हंै, तीन बाइक पर छह लोग सवार होकर उनकी टैक्सी के आगे रूकते हैं, ड्रायवर अपनी टैक्सी की डिक्की से मोटी लोहे की राड निकालता है, तो वह बाइक सवार भाग खडे होते हैं. आगे ड्रायवर सड़क बंद होने की बात कह कर टैक्सी को जंगल के रास्ते से ले जाता है. रास्ते में पुलिस वाले उसे रोकते हंै और कई तरह के सवाल कर उसकी जेब के सारे रूपए ले लेते हैं. कुछ दूर जाने के बाद टैक्सी बंद पड़ जाती है. दोनो के मोबाइल में नेटवर्क नहीं है. मदद के लिए वह दोनो पैदल ही आगे बढ़ते हैं और जंगल के बीचो बीच बने एक खूबसूरत बंगले के अंदर पहुंच जाते हैं, उसके बाद कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. दूसरे दिन सुबह अस्पातल में वैदेही से रमन की मौजूदगी में पुलिस पूछताछ करती है. पुलिस से पता चलता है कि ड्रायवर भी इसी अस्पताल में है. पर रमन के एक सवाल का जवाब देने की बजाय वैदेही, रमन को सगाई की अंगूठी वापस कर घायल ड्रायवर के पास पहुंच जाती है.

लेखन व निर्देशनः

लेखन व निर्देशन दोनो काफी सतही है. पूरी फिल्म देखने के बाद भी दर्शक किसी भी मोड़ पर रोमांचित नही होता. फिल्मकार का दावा है कि इसे असम के प्राचीन जंगलों में फिल्माया गया है. अफसोस फिल्म् देखकर समझ में नही आता कि यह जंगल कहां के हैं. क्योंकि पूरी शूटिंग रात की है. यह हॉरर फिल्म नही है, इसलिए यदि इसे दिन में फिल्माया जाता, तो दर्शको के साथ साथ दूसरे लोग भी इस बात का अहसास कर पाते कि असम के जंगल कितने खूबसूरत हैं. मनोवैज्ञानिक रोमांच को पैदा करने के लिए पटकथा व कहानी पर काम करने की जरुरत थी. यदि पटकथा पर मेहनत की गयी होती, तो दिन में भी असम के जंगल में शूटिंग की जा सकती थी. मगर कहानी   व निर्देशन में दम नही है.

अभिनयः

कमजोर पटकथा व कमजोर चरित्र चित्रण के बावजूद दिपानिता शर्मा और  बोलाराम दास ने सशक्त अभिनय का परिचय दिया है. बाकी किसी भी कलाकार के हिस्से करने को कुछ आया ही नही, इसलिए उनकी अभिनय प्रतिभा को लेकर कुछ कहना बेकार है. लेखक व निर्देशक का सारा ध्यान सिर्फ दो ही किरदारों पर रहा.

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आईटीसी सनराइज रेसिपी कॉन्टेस्ट: दुनिया को दिखाए अपना हुनर

पिछले 100 सालों से आपकी रसोई का अहम हिस्सा रहे आईटीसी सनराइज मसाले लेकर आए है एक अनोखा कॉन्टेस्ट जहां आपको मिलेगा मौका अपना हुनर दुनिया को दिखाने का. जी हां, अब आप भी बन सकते हैं रसोई किंग और गृहशोभा का हिस्सा. बस आपको करना होगा ये काम.

बनिए सनराइज फैमिली का हिस्सा

सनराइज मसाले से बनी आपकी स्पेशल रेसिपी को शेयर कीजिए हमारे साथ. जिन्हें हम दिखाएंगे अपने गृहशोभा वेबसाइट और फेसबुक पेज पर.

मिलेंगे खास इनाम

हर हफ्ते हम चुनेंगे कुछ विनर जिन्हें मिलेगा आईटीसी सनराइज की तरफ से स्पेशल गिफ्ट हैंपर और मसालो का खास सेट (6 महीने तक)

तो फिर देर मत कीजिए आज ही लीजिए आईटीसी सनराइज रेसिपी कॉन्टेस्ट में हिस्सा और दुनिया को दिखाइए अपना हुनर. कॉन्टेस्ट में हिस्सा लेने के लिए यहां क्लिक कीजिए…

नियम और शर्ते…

-बनाई गई डिश के साथ सनराइज मसाले के पैकेट की एक तस्वीर हमें इस नंबर… पर व्हाट्सऐप करें.
-प्रतिभागी द्वारा एक तस्वीर ही मान्य होगी.
-अपना नाम, मोबाइल नंबर और पूरा पता जरूर लिखें.
-विजेताओं का चयन जज द्वारा किया जाएगा
-चुने गए विजेताओं को सनराइज की ओर से मिलेगा शानदार गिफ्ट हैंपर.

‘अनुपमा’ के सुधांशु पांडे को करवा चौथ पर मजाक करना पड़ा भारी, लोगों ने पूछे कई सवाल

स्टार प्लस के शो अनुपमा ने इस हफ्ते भी फैंस के बीच जगह बनाई हुई है, दरअसल, बिग बौस से ज्यादा शो की टीआरपी इतनी बढ़ गई है कि शो पहले नंबर पर बन गया है. जहां सीरियल में आने वाले ट्विस्ट का फैंस बेसब्री से इंतजार करते हैं तो वहीं शो की कास्ट को भी दर्शकों का प्यार मिल रहा है. लेकिन हाल ही में शो के लीड एक्टर सुधांशु पांडे के मजाक को लोगों ने हैरान कर दिया है. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला…

करवाचौथ पर मजाक करना पड़ा भारी

शो में वनराज की भूमिका में नजर आ रहे सुधांशु पांडे लीड रोल में हैं, जिसका काव्या से एक्स्ट्रा मेरिटल अफेयर चल रहा है तो वहीं पत्नी अनुपमा को इस बात का पता चल चुका है, जिसके बाद शो में तनातनी देखने को मिल रही हैं. इसी बीच ऑन-स्क्रीन ड्रामे को लेकर करवा चौथ के मौके पर सुधांशु ने मजाक करते हुए कहा लिखा कि, ‘पता नहीं कौन सी वाली ने व्रत तोड़ लिया, बुखार सा महसूस हो रहा है’. लेकिन सुधांशु का ये मजाक उन्हीं पर भाड़ी पड़ गया है.

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लोगों ने किए कई सवाल  

दरअसल, सुधांशु के इस मजाकिया पोस्ट करने के बाद से सोशल मीडिया पर उनका ये पोस्ट काफी वायरल हो रहा है और लोग उनसे पूछ रहे हैं कि कहीं उन्हें कोरोना के और लक्षण तो नहीं है, जिसमें एक्टर परेशान हो गए. एक इंटरव्यू में सुधांशु ने बताया, ‘कभी-कभी पता ही नहीं चलता कि लोग आपके मजाक को किस तरह लेंगे. ये मेरा पहला अनुभव है जिसमें लोगों ने मेरे मजाक को गलत तरीके से ले लिया. कई लोगों को ये समझ ही नहीं आया कि ये करवा चौथ पर किया गया जोक था’.

बता दें, शो में इन दिनों वनराज के अफेयर के बाद पत्नी अनुपमा के साथ-साथ बेटा समर भी उनके खिलाफ हो गया है. वहीं काव्या से शादी करने के प्लान पर भी अनुपमा ने हामी भर दी है. हालांकि अनुपमा, वनराज को उसकी गलती का एहसास कराना चाहती है. इसीलिए वह दोनों की शादी को लेकर तैयार हो गई है.

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वार्डरोब को रखें अपडेट

सुबह के बिजी शैड्यूल में आप को कई काम करने होते हैं. नाश्ता बनाना, बच्चों को स्कूल भेजना, पति को औफिस भेज कर खुद भी टाइम से औफिस पहुंचना. ऐसे में आप के पास इतना समय नहीं होता कि आप अपनी ड्रैसिंग पर ज्यादा ध्यान दे सकें. ऐसे में आप वार्डरोब में जो ड्रैस सामने पड़ती है उसी को पहन कर औफिस चली जाती हैं. औफिस पहुंचने के बाद आप की ड्रैस देख कर सब आप का मजाक उड़ाते हैं. तब आप को फील होता है कि काश मैं अपने वार्डरोब को अरेंज कर के रखती तो इस तरह मिसमैच न होता.

मैसी वार्डरोब न कर दे फैशन से आउट

मैसी यानी अव्यवस्थित वार्डरोब आप की लापरवाही दिखाने के साथसाथ आप को फैशन से भी आउट कर देता है. ऐसे में अपने वार्डरोब को कैसे अरेंज करें, आइए जानते हैं:

सब से पहले तो आप वार्डरोब सें पुराने और न पहनने वाले कपड़ों को हटा दें.

वार्डरोब में उन्हीं कपड़ों को जगह दें जो फैशन में होने के साथसाथ कंफर्टेबल भी हों.

अपनी जरूरत को ध्यान में रख कर ही कपड़ों का चयन करें. वार्डरोब में ब्लैक ट्राउजर, कुछ शौर्ट टौप, लोअर व कुछ जोड़ी स्कर्ट जरूर रखें.

वार्डरोब की छोटी दराजों में जरूरत की लिंजरी रखें. लिंजरी को कभी ड्रैस के साथ मिला कर न रखें वरना पहनते समय ढूंढ़ने में परेशानी होगी.

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पार्टीवियर और कैजुअल ड्रैसेज को भी वार्डरोब में हमेशा अलगअलग ही रखें.

जिन ड्रैसेज को आप नियमित पहनना चाहती हैं उन्हें हैंगर में लगा कर सामने टांगें ताकि पहनते समय उन्हें आसानी से निकाला जा सके.

डेलीवियर ऐक्सैसरीज जैसे घड़ी, ब्रेसलेट, बैंगल्स आदि को वार्डरोब की छोटी दराजों में ही रखें.

स्टोल, स्कार्फ को हैंगर या हुक में टांगें.

वार्डरोब को मौसम के अनुसार अरेंज करती रहें.

वार्डरोब में हैंगर का चुनाव

पड़ों को बेहतर ढंग से टांगने के लिए मार्केट में अलगअलग वैराइटी और स्टाइल के हैंगर उपलब्ध हैं जैसे प्लास्टिक हैंगर, वायर हैंगर, पैडेड हैंगर, लिंजरी हैंगर, औलपर्पज क्लिप हैंगर, स्कर्ट हैंगर आदि. आप अपनी जरूरत और ड्रैसेज के हिसाब से इन का चुनाव करें. हैंगर में टंगी हुई ड्रैसेज से वार्डरोब में स्पेस भी काफी बन जाता है यानी आप ज्यादा कपड़े वार्डरोब में रख सकती हैं.

वुडन हैंगर: इन में हैवी कपड़े जैसे कोट, जैकेट, सूट आदि टांग सकती हैं.

प्लास्टिक हैंगर: इन में भी बहुत वैराइटी आती है. बड़े हुक व छोटे हुक वाले हैंगर में आप टौप, शर्ट आदि टांग सकती हैं.

क्लिप हैंगर: इन में प्रैस किए कपड़ों को सीधेसीधे क्लिप द्वारा अटैच कर के टांग सकती हैं. इन में कपड़ों में सिलवटें नहीं पड़ती हैं.

वन साइड ओपन हैंगर: वन साइड ओपन हैंगर में साडि़यां, दुपट्टे आदि आसानी से अरेंज कर सकती हैं.

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अपने पार्टनर से कभी ना छुपाएं अतीत से जुड़ी ये 4 बातें

हर इंसान का एक अतीत होता है, जिससे ऐसी कई बातें जुड़ी होती हैं जो वह किसी को बताना नहीं चाहता है. खासकर जब आप किसी रिलेशनशिप में आते हैं तो अपने अतीत से जुडी कई बातें अपने पार्टनर से छिपाते हैं, जो आपके रिश्ते पर भी असर डालता है.

लेकिन कुछ बातें ऐसी होती हैं जो अपने पार्टनर के साथ जरूर शेयर की जानी चाहिए क्योंकि इससे दोनों का एक दूसरे के प्रति विश्वास और प्रेम बढ़ता है. तो आइये जानते हैं उन बातों के बारे में जो आपको अपने पार्टनर से नहीं छुपानी चाहिए.

1. रोमांटिक स्टोरी को बताएं

आप अपने पार्टनर को अपनी बीती हुई रोमांटिक स्टोरी के बारे में जरूर बताएं. ऐसा करने से आप दोनों के बीच विश्वास बढ़ेगा. लेकिन यदि आप अपनी रोमांटिक स्टोरी को अपने पार्टनर से बताती हैं तो उसका मूड तथा समय को अवश्य देख लें.

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आपके तथा आपके एक्स के संबंध

कई लोग ब्रेकअप के बाद भी अपने एक्स से दोस्ती का रिलेशन बनाएं रखते हैं. यदि आपके जीवन में भी कोई ऐसा संबंध है तो उससे अपने पार्टनर को जरूर परिचित कराएं.

अपने मेंटल स्टेटस के बारे में बताएं

यदि आपको पहले से कोई मानसिक समस्या है तो इस बारे में अपने पार्टनर से जरूर बात करें और उसको बताएं. इस प्रकार की बातों को छुपा कर न रखें.

आर्थिक स्थिति के बारे में अवश्य बताएं

यदि आपने अपने अतीत में कोई कर्ज या लोन लिया है तो उस बारे में अपने पार्टनर को जरूर बताएं. यदि आप ऐसा करती हैं तो आपका पार्टनर भी इस समस्या से निकलने में आपकी सहायता कर सकता है साथ ही आप दोनों मानसिक रूप से एक दूसरे के ज्यादा करीब आ पाएंगे.

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औयली स्किन के लिए फायदेमंद हैं ये 4 फेस पैक

हमारी त्‍वचा में औयल ग्‍लैंड होता है जो प्राकृतिक रुप से त्‍वचा को नमी प्रदान करने के लिए तेल प्रड्यूस करता है. पर जब यह ग्रंथी हाइपर एक्‍टिव हो जाती है तो इससे ज्‍यादा मात्रा में तेल निकलने लगता है जिससे चेहराऔयली हो जाता है.

औयली स्‍किन दूसरी त्‍वचा के मुकाबले काफी संवेदनशील होती है जिसकी देखभाल करने की बहुत जरुरत होती है. मुंह पर ज्‍यादा तेल होने से त्‍वचा के रोम छिद्र बंद हो जाते हैं जिससे उन में गंदगी भर जाती है. आज हम आपको कुछ ऐसे फेस पैक बताएंगे जिसको बना कर लगाने से औयली त्‍वचा से छुटकारा पाया जा सकता है.

ऐसे तैयार करें फेस पैक

1. स्‍ट्राबेरी-दही:

एक कटोरे में साफ और पकी हुई स्‍ट्राबेरी लें और उसे कूंट लें. इसके बाद इसमें एक चम्‍मच ताजी दही मिलाएं और दोनों को पेस्‍ट बना लें. इसको चेहरे पर 10 से 15 मिनट तक लगा रहने दें और सूखने के बाद हल्‍के गरम पानी से धो लें. यह फेस पैक आपकी डेड स्‍किन को निकालेगा और चेहरे को चमकदार बना देगा.

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2. अंडा-शहद:

एक कटोरे में 1 अंडे की जर्दी,1 चम्‍मच दही, 1 चम्‍मच शहद और 1 चम्‍मच चीनी को एक मिक्‍सर में अच्‍छे से मिला कर पेस्‍ट बना लें. इस पेस्‍ट को अपनी त्‍वचा पर लगाएं और जब यह सूख जाए तो इसे हल्‍के गरम पानी से पोंछ लें.

3. ओटमील-शहद:

ओटमील और शहद का मास्‍क ऑयली स्‍किन के काफी लाभप्रद होता है. ओटमील,शहद और नींबू का रस मिला कर पेस्‍ट तैयार करें और अपनी आंखों के किनारे छोडते हुए इसे लगा लें. इस मास्‍क को चेहरे पर 10 मिनट तक के लिए लगाएं और फिर गरम पानी से चेहरा धोलें. इस हनी मास्‍क को दिन में एक दिन लगाएं या फिर जब भी आपको अपने चेहरे को औयल फ्री करना हो तब लगाएं.

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4. टमाटर मास्‍क:

इसको मास्‍क को लगाने से चेहरा टाइट होगा और तेल साफ होगा. एक मध्‍य आकार का टमाटर लें और उसे पीस लें. उसमें नींबू का रस मिला कर चेहरे पर लगाएं. बस आंखों के आस पास के किनारों को छोड दें. इस पैक को 10 मिनट तक लगा रहने के बाद पानी से धो लें.

Diwali Special: फैमिली के लिए बनाएं पनीर कटलेट

कटलेट का नाम लेते हा मुंह में पानी आ जाता है. आपने आलू का कटलेट तो खाया ही होगा, लेकिन इस बार फैस्टिव सीजन में खाइए पनीर का कटलेट. इस रेसिपी के साथ लीजिए मॉनसून का मजा.

सामग्री

300 ग्राम पिसा हुआ पनीर

तीन ब्रेड स्‍लाइस

डेढ चम्मच अदरक-लहसुन पेस्‍ट

दो-तीन हरी मिर्च

एक कटी हुई प्‍याज

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एक चम्मच हल्‍दी पाउडर

डेढ़ चम्‍मच चाट मसाला

एक चम्‍मच मिर्च पाउडर

तीन चम्‍मच पुदीना पत्‍ती

एक कप ब्रेड का चूरा

दो चम्मच मैदा

स्‍वादानुसार नमक

तेल- तलने के लिए

पानी आवश्यकतानुसार

विधि

सबसे पहले एक बाउल में थोड़े से मैदे में पानी डाल कर रख लें, साथ ही दूसरे ओर एक प्लेट में ब्रेड का चूरा रख लें. अब बनातें है कटलेट.

सबसे पहले ब्रेड के स्‍लाइस को एक मिनट के लिए पानी में डालकर निकाल लें और एक बाउल में पनीर डालें और उसमें गीली ब्रेड, अदरक-लहसुन पेस्‍ट, प्‍याज, हरी मिर्च, हल्‍दी, चाट मसाला, नमक और पुदीने की पत्‍ती को डालकर अच्छी तरह मिलाए.

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जब यह मिश्रण मिल जाए तब इसकी कटलेट के आकार का शेप दीजिए. इसके बाद पहले से मिले रखें मैदा में इसे डिप करा कर इसे ब्रेड का चूरा में लपेटिए.

अब एक कढ़ाई में तेल गर्म करें. गर्म हो जाने के बाद कटलेट को डालकर डीप फ्राई करें. फ्राई होने के बाद इसे निकाल लें. अब इन्हें आप गरमा-गरम सर्व करें.

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