इंडोर पॉल्यूशन के कारणों से निपटे ऐसे

कई बार जब आप रास्ते में प्रदूषण के कारण परेशान होते हैं तो सोचते होंगे की घर जाकर आप को इस प्रदूषण से थोड़ी राहत मिलेगी परंतु हो सकता है कि प्रदूषण का सबसे मुख्य स्त्रोत आप का घर ही हो. जब आप बाहर से घर आते हैं तो आप के साथ कई सारे कीटाणु भी आते हैं जोकि फिर बाद में आप के घर को गंदा करते हैं. इसके साथ साथ डस्टिंग करने से होने वाली धूल मिट्टी से भी बहुत प्रदूषण हो जाता है. इसे है इंडोर पॉल्यूशन कहा जाता है. आइए जानते हैं इसके क्या क्या कारण होते हैं और हम इस प्रदूषण से बचने के लिए क्या क्या कर सकते हैं.

इंडोर पॉल्यूशन के स्त्रोत

कारपेट :

कारपेट इंडोर पॉल्यूशन का सबसे मुख्य स्रोत होता है. इस पर बहुत सी धूल मिट्टी जमी होती है. हम जब बाहर से अंदर आते हैं तो हमारे चप्पल व जूतों पर लगी गन्दगी भी कारपेट पर ही चिपकती है. इसलिए सबसे ज्यादा गंदा कारपेट होता है. आप को समय समय पर कारपेट को साफ करते रहना चाहिए.

मोमबत्ती :

मोमबत्ती पैराफिन वैक्स से बनाई जाती है जिस में ब्लीच का प्रयोग होता है. यह पेट्रोलियम का एक बाई प्रोडक्ट होता है जोकि बहुत ही खतरनाक होता है. इसे जलाने पर बेंजीन निकलती है. अतः इसके जलाने से बहुत अधिक प्रदूषण होगा है जिसका असर हमारे रेस्पिरेटरी सिस्टम पर पड़ता है.

हाउस पेंट :

अधिकतर पेंट में लेड पाई जाती है. लेड एक प्रकार का जहर होता है. इसे यदि हर रोज प्रयोग किया जाए तो यह हमारी सेहत के लिए बहुत ही खतरनाक होता है. इस का प्रयोग करने से बहुत से फ्यूम्स निकलते हैं जो हमारे वातावरण के लिए भी हानिकारक होते हैं.

सिगरेट :

यह तो आप जानते ही होंगे कि सिगरेट हमारे शरीर के लिए कितनी खतरनाक होती है. यह हमारे अंदरुनी शरीर के लिए जितनी हानिकारक होती है उतनी ही हमारे बाहरी वातावरण के लिए भी होती है. सिगरेट को जलाने पर जो धुआ निकलता है वह बहुत ही खतरनाक व जहरीला होता है.

ये भी पढ़ें- Interview Tips: ये हैं खुद को प्रैजेंट करने का बेस्ट तरीका

इंडोर पॉल्यूशन से हम कैसे बच सकते हैं?

धूम्रपान करें :

जैसा कि हम जानते हैं कि धूम्रपान करना केवल हमारे लिए ही नहीं बल्कि हमारे वातावरण के लिए भी बहुत खतरनाक होता है. इसलिए आप को धूम्रपान करना बंद कर देना चाहिए.

एक अच्छा वेंटिलेशन :

अपने घर में एक अच्छा वेंटिलेशन कराएं ताकि आप के घर के अंदर बाहर की ताजा व शुद्ध हवा और सूर्य की रोशनी आ सके. हो सके तो केवल बड़ी खिड़कियां बनवाइए.

अच्छी गुणवत्ता वाली चिमनियों का प्रयोग करें :

ऐसी चिमनियों का प्रयोग करें जो घर से सारे पॉलूटेंट को खत्म कर सके. आप चाहें तो बिजली वाली चिमनियों खरीद सकते हैं. इनसे वातावरण को भी कोई खतरा नहीं होता है.

महक वाली चीजों का प्रयोग करें :

उन चीज़ों का प्रयोग बिल्कुल न के बराबर ही करें जिन में बहुत अधिक खुशबू आती हैं. ऐसी चीजों में अगरबत्तियां, परफ्यूम, दीटर्जेंट, साबुन आदि शामिल है. यह चीजें भी वातावरण के लिए एक बहुत बड़ा खतरा हैं.

लेड फ़्री पेंट कराएं :

आप केवल उसी पेंट का प्रयोग करें जिस में लेड का प्रयोग न हुआ हो. हमारी यह छोटी छोटी पहल भी एक बहुत बड़ा अंतर दिखा सकती हैं. अतः इन बातो का पालन अवश्य करें.

ये भी पढ़ें- करीने से सजाकर छोटे से रसोई घर को दिखाएं स्पेसफुल

Diwali Special: पार्टी में बनाएं पनीर तंदूरी

पनीर बटर मसाला, कढ़ाई पनीर और शाही पनीर बना-बनाकर थक चुकी हैं तो इस बार ट्राई करें पनीर की यह डिफरेंट रेसिपी, पनीर तंदूरी. इसे बनाते वक्त एक बात का ध्यान रखें कि पनीर को अच्छी तरह से मैरिनेट करें ताकि सारे फ्लेवर्स अच्छी तरह से उसमें समा जाएं.

सामग्री

पनीर- 400 ग्राम

नमक- 1 चम्मच

तेल- 1 चम्मच

अदरक-लहसुन पेस्ट- 2 चम्मच

मीट मसाला- 3 चम्मच

ये भी पढ़ें- Diwali Special: अपनी फैमिली को परोसें Healthy और टेस्टी ‘स्टफ्ड मूंग दाल चीला’

दही- आधा कप

कसूरी मेथी पाउडर चुटकी भर

विधि

सबसे पहले पनीर को क्यूब्स में काट लें और फिर उसमें अदरक-लहसुन का पेस्ट, दही, मीट मसाला और कसूरी मेथी पाउडर मिलाकर अच्छी तरह से मैरिनेट करें और 20 मिनट के लिए छोड़ दें.

अब एक कढ़ाई में 1 चम्मच तेल डालकर मध्यम आंच पर गर्म करें और इसमें मैरिनेट किया हुआ पनीर का टुकड़ा डालें. कुछ समय के लिए इसे अच्छी तरह से मिलाएं और फिर ढक कर पकाएं.

पनीर पानी छोड़ने लगेगा और उसी पानी में पनीर पक जाएगा. आपको अलग से पानी डालने की जरूरत नहीं है. जब पनीर ग्रेवी की तरह हो जाए तो उसमें थोड़ी सी कसूरी मेथी डालें और एक बार फिर अच्छी तरह से मिलाएं.

इस डिश को स्वादानुसार नमक डालकर रोटी, परांठे या चावल के साथ गर्मा गर्म सर्व करें.

ये भी पढ़ें- Diwali Special: डिनर में गरमागरम परोसें टेस्टी दम आलू

Diwali Special: इस फैस्टिव सीजन ट्राय करें न्यूली मैरिड काजल अग्रवाल के 5 लुक्स

बीते दिनों साउथ की फिल्मों से बौलीवुड की फिल्मों में धूम मचाने वाली सिंघम एक्ट्रेस काजल अग्रवाल ने व्यापारी गौतम किचलू संग शादी की थी, जिसकी फोटोज सोशलमीडिया पर काफी वायरल हुई थीं. जहां शादी के लहंगे को लेकर काजल ने सुर्खियां बटोरीं थीं. तो वहीं उनके वेडिंग फंक्शन के हर लुक को फैंस ने काफी पसंद किया था. इसीलिए आज हम काजल अग्रवाल के कुछ लुक्स बताने जा रहे हैं, जिसे नई दुल्हनें फेस्टिव हो या वेडिंग सीजन, हर ओकेशन पर ट्राय कर सकती हैं.

1. फेस्टिव सीजन के लिए परफेक्ट है लहंगा

नई नवेली दुल्हन काजल अग्रवाल सोशलमीडिया पर अपने लुक्स शेयर कर रही हैं, जिसमें एक लुक लाइट ग्रीन ऐंड पिंक कॉम्बिनेशन के लहंगा का है, जिसमें वह बेहद खूबसूरत लग रही हैं. इसी के बेस पर लहंगे पर फ्लोरल एम्ब्रॉइडरी और कलर्स का इस्तेमाल किया गया है, जो इसे फेस्टिव सीजन के लिए परफेक्ट बनाता है. ज्वैलरी की बात करें तो आप इस लुक को चोकर नेकलेस के साथ कम्पलीट कर सकती हैं.

ये भी पढ़ें- बंधेज: हर उम्र की महिलाओं के लिए है परफेक्ट

2. येलो लुक है परफेक्ट औप्शन

 

View this post on Instagram

 

💛

A post shared by Kajal Aggarwal (@kajalaggarwalofficial) on

शादी हो या फेस्टिव सीजन, येलो लुक में हर कोई नजर आता है, जिसे बेहद पसंद भी किया जाता है. वहीं काजल ने भी यैलो लुक को अपनी सगाई के लिए चुना था, जिसमें ऑर्गैंजा सिल्क की साड़ी पहनी थी, वहीं इस शीयर साड़ी पर रेशम के धागों से फ्लोरल एम्ब्रॉइडरी की गई थी. इसी के साथ स्ट्रैप स्लीव्स ब्लाउज में पीछे से मल्टीलेयर पर्ल स्ट्रिंग्स डिजाइन ऐड के साथ-साथ फ्लोरल एम्ब्रॉइडरी का टच दिया गया था, जो उनके लुक को खूबसूरत बना रहा था.

3. वेलवेट लहंगा है वेडिंग परफेक्ट

 

View this post on Instagram

 

Wearing @anitadongre styling @nkdivya hair @divya.naik25 makeup @vishalcharanmakeuphair pic by @tejasnerurkarr #ateetsmissionmangal

A post shared by Kajal Aggarwal (@kajalaggarwalofficial) on

अगर आप वेडिंग सीजन में अपने लुक के बारे में सोच रही हैं तो काजल का वेलवेट लहंगा ट्राय करना ना भूलें. मार्केट में आपको इस पैटर्न के काफी ऑप्शन्स मिल जाएंगे. इस लुक के साथ भारी ज्वैलरी की जगह लाइट वेट चोकर नेकपीस, ईयररिंग्स और मांगटीका ट्राय कर सकती हैं.

4. फेस्टिव सीजन के लिए है परफेक्ट लुक

न्यूली मैरिड काजल के शीयर मटीरियल से बने को आप इस फैस्टिव सीजन ट्राय कर सकती हैं. इस पर रिच फ्लोरल ऐपलिके डिजाइन किया गया है, जिस पर फ्लोरल पैटर्न दिया गया है. इसके साथ प्लेन चूड़ीदार और मैचिंग दुपट्टा पहने काजल अग्रवाल ने गोल्डन चोकर नेकलेस और मैचिंग के ईयररिंग्स के साथ अपने लुक को सजाया था, जिसे आप ट्राय कर सकती हैं.

ये भी पढ़ें- Diwali Special: हेल्दी गर्ल्स के लिए परफेक्ट है ‘मिशन मंगल’ एक्ट्रेस के ये आउटफिट

5. अनारकली से सजाएं लुक


अगर आप वेडिंग या फेस्टिव सीजन में अनारकली लुक ट्राय करना चाहती हैं तो काजल अग्रवाल का ये लुक परफेक्ट रहेगा. यह आपको मार्केट में आसानी से मिल जाएगा. इसके साथ ज्वैलरी की बात करें तो हैवी इयरिंग्स के साथ आप इस लुक को सजा सकती है.

माता पिता की असमय मृत्यु के बाद ऐसे रखें बच्चों का ख्याल

जब हम किसी से प्यार करते हैं तो हमारे लिए उस इंसान के बगैर जीना मुश्किल सा हो जाता है. क्योंकि वो नुकसान इतना बड़ा होता है की उसकी भरपाई दुनिया की कोई भी चीज़ नहीं कर सकती. पर इससे भी बड़ी मुश्किल तब जन्म लेती है जब किसी बच्चे के माता पिता की युवावस्था में ही मृत्यु हो जाए.
वयस्कों की तरह, बच्चे भी उसी भयावह दुख की प्रक्रिया से गुजरते हैं. और जैसे माता-पिता के होने के लिए कोई नियम पुस्तिका नहीं है, वैसे ही अपने माता पिता के बगैर बच्चे कैसे प्रतिक्रिया करेंगे,इसके लिए भी कोई नियम पुस्तिका नहीं है.

बच्चे कभी-कभी बहुत दुखी और परेशान हो सकते हैं, कभी-कभी वे शरारती या क्रोधित हो सकते हैं, और हो सकता है की आपको कभी-कभी यह प्रतीत हो की वो भूल गए हैं. लेकिन सच कहूँ तो वे भूलते नहीं है ,एक बच्चा शायद ही कभी मौखिक रूप से अपने दुख को व्यक्त कर सकता है. इसी कारण से कम उम्र के बच्चे अक्सर डिप्रेशन का शिकार हो रहे है.

अवसाद के संकेतों को कैसे पहचाने-

बच्चे और वयस्कों में अवसाद के समान लक्षण हो सकते हैं: हो सकता है वो दूसरों से बात करने से कतराएँ,हो सकता है वो अकेला रहना चाहे, या ये भी हो सकता है की वो कुछ भी नहीं करना चाहे .
वैसे तो यह दु: ख की प्रक्रिया का एक सामान्य हिस्सा हो सकता है. लेकिन अगर यह लंबे समय तक चलता है तो आप मनोचिक्त्सक से कन्सल्ट कर सकते है.

बच्चो को इस अवसाद से बचाने के लिए ये समझना जरूरी है की बच्चे और किशोर मृत्यु को कैसे देखते है?

क्योंकि उम्र के हर पड़ाव में बच्चे का सोचने और समझने का तरीका बहुत अलग होता है.

ये भी पढ़ें- ननद-भाभी: रिश्ता है प्यार का

1- जन्म से 2 वर्ष तक के बच्चे-

इस उम्र के बच्चो में मृत्यु की कोई समझ नहीं होती.वो सिर्फ अपने माता पिता की अनुपस्थिति का अनुभव कर सकते हैं.

माता-पिता की अनुपस्थिति में बच्चो में रोने, प्रतिक्रियाशीलता में कमी और खाने या सोने में बदलाव जैसी प्रतिक्रिया हो सकती है.

2- 3 वर्ष से 6 वर्ष तक के बच्चे-

इस उम्र के बच्चे मृत्यु के बारे में जानेने के लिए बहुत उत्सुक होते हैं. इस उम्र के बच्चो को मृत्यु की स्थायी स्थिति को समझने में परेशानी हो सकती है. “वे कहेंगे कि पापा चले गए हैं और एक घंटे बाद पापा के घर आने के लिए खिड़की पर प्रतीक्षा करेंगे ”

अक्सर कुछ बच्चे अपने आपको दोषी समझते हैं और मानते हैं कि वे अपने माता पिता की मृत्यु के लिए जिम्मेदार हैं, वे “बुरे” थे इसीलिए उनके माता-पिता चले गए.

“(शायद ऐसा इसलिए होता है की जब वो अपने माता पिता के साथ थे तब कभी कभार हंसी-मज़ाक या गुस्से में माता पिता अक्सर बोलते है की ,मै आपको छोड़ कर चला जाऊंगा या जब मेरे जाने के बाद आपको कोई भी प्यार नहीं करेगा. )

ऐसे बच्चे अकसर अपनी भावनाओं को शब्दों में बयां नहीं कर पाते. और इसी कारण उनके अंदर चिड़चिड़ापन, आक्रामकता, सोने में कठिनाई, या प्रतिगमन जैसे व्यवहार पाये जाते हैं.

3- 6 वर्ष से 12 वर्ष तक के बच्चे –

इस उम्र के बच्चे मृत्यु को व्यक्ति या आत्मा के रूप में, भूत, परी या कंकाल की तरह समझ सकते हैं.
वो अक्सर मौत के विशिष्ट विवरण में रुचि रखते हैं जैसे मृत्यु के बाद शरीर का क्या होता है??
इस उम्र के बच्चे अपराधबोध, क्रोध, शर्म, चिंता, उदासी सहित कई भावनाओं का अनुभव कर सकते हैं और अपनी मृत्यु के बारे में चिंता कर सकते हैं.

4- 13 वर्ष से 18 वर्ष तक के बच्चे –

इस उम्र के बच्चो को ये नहीं पता होता की उन्हे इन परिस्थितियों में कैसे संभलना है.वो अक्सर परिवार के सदस्यों पर गुस्सा कर सकते हैं या आवेगी या लापरवाह व्यवहार दिखा सकते हैं, जैसे कि मादक द्रव्यों का सेवन, स्कूल में लड़ाई और यौन संकीर्णता.

कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितने साल के हैं, परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु कठिन और अक्सर भारी भावनाओं की एक श्रृंखला ला सकती है: सदमे, गहरी उदासी, भ्रम, चिंता और क्रोध, सब कुछ बस नाम लेने के लिए है.पर फिर भी हम खुद को और उन बच्चो को जिनहोने अपने माता पिता को खो दिया है इस कठिन समय से उबारने की कोशिश तो कर सकते हैं.

यहां मैंने बच्चे को मृत्यु और नुकसान को समझाने में मदद करने के लिए कुछ सुझाव दिए हैं-
1-उन्हें आश्वस्त करें की उनकी गलती नहीं है-

जब किसी बच्चे के माता-पिता की असमय मृत्यु हो जाती है, तो बच्चे खुद को दोषी ठहरा सकते हैं. यह विशेष रूप से तब हो सकता है जब मृत्यु काफी अचानक हो.या बच्चे के माता पिता ने हंसी मज़ाक या गुस्से में कोई ऐसा तर्क दिया हो.
उन्हें यह आश्वस्त करना महत्वपूर्ण है कि मृत्यु एक स्वाभाविक प्रक्रिया है और उनका इसमे कोई दोष नहीं है.

2-उन्हें बताए की दुखी होना ठीक है-

बच्चे का व्यवहार इस बात पर बहुत निर्भर करता है कि उनके आसपास के लोग कैसे व्यवहार कर रहे हैं. अक्सर बच्चे एक प्रोटेक्टर की भूमिका निभाते हैं और वयस्कों से अपनी भावनाओं के बारे में बात नहीं करते क्योंकि उन्हें लगता है कि वयस्क परेशान हो जाएगा.
कभी कभी ऐसा भी होता है की आप उन्हें बता रहे हैं कि शोक करना ठीक है, लेकिन अपने दुःख को उनसे छिपाने की कोशिश कर रहे हैं, तो उन्हें लग सकता है कि उन्हें भी ‘मजबूत’ होने की आवश्यकता है.
इसलिए हर समय बच्चों को “मजबूत” होने के लिए दबाव महसूस न कराएं.
अगर बच्चे किसी से अपना दुख कह नहीं पाएंगे तो वो अंदर ही अंदर घुटते रहेंगे ,और यही घुटन एक दिन अवसाद का रूप ले लेगी.

ये भी पढ़ें- दोस्त: कौन अच्छे, कौन सच्चे

इसलिए सबसे अच्छा यही होगा कि आप जितना हो सके पूरी तरह से शोक करें, ताकि वे आपको दुखी देख सकें – और समझें कि दुखी होना या रोना ठीक है.

3-मृत्यु के बारे में बात करते समय, सरल, स्पष्ट शब्दों का उपयोग करें-

एक चीज़ हमेशा याद रखें की भाषा मायने रखती है, इसलिए अपने द्वारा चुने गए शब्दों से अवगत रहें.मृत्यु के बारे में बात करते समय ऐसे शब्दों का प्रयोग करें जो सरल और प्रत्यक्ष हों. उनके माता-पिता की मृत्यु कैसे हुई, इस बारे में जितना संभव हो उतना सरल होने की कोशिश करें. लेकिन केवल एक हद तक जो आपके बच्चे की आयु और विकास के लिए उपयुक्त हो.बहुत अधिक विस्तार में जाने से एक बच्चे के दिमागी विकास पर बुरा असर पड़ेगा. इसलिए अपने स्पष्टीकरण को सत्य लेकिन संक्षिप्त रखें.

उदाहरण के लिए , “मुझे पता है कि आप बहुत दुखी महसूस कर रहे हैं. मैं भी दुखी हूँ. हम दोनों ही उनसे बहुत प्यार करते थे, और वह भी हमसे प्यार करते थे.”
अपने बच्चे की उम्र को ध्यान में रखते हुए मृत्यु की प्रकृति के बारे में ईमानदार रहें.

4-बच्चो को भ्रमित न करें-

एक चीज़ हमेशा याद रखें ‘सच्चाई छुपाने से बाद में अविश्वास पैदा हो सकता है’ क्योंकि बच्चे मौत के बारे में जानने के लिए बहुत उत्सुक रहते हैं.

अभी कुछ ही समय पहले की बात है ,एक छोटी बच्ची के पिता का देहांत हो गया था,उसके पूछने पर की पापा कहाँ गए ? घरवालों ने उससे कहा की वो सोते-सोते भगवान जी के पास चले गए.आप यकीन नहीं करेंगे ‘उस छोटी बच्ची को सोने से डर लगने लगा ‘.
इसलिए “नींद में चले गए” जैसे वाक्यांशों को भ्रमित करने के बजाय वास्तविक शब्दों का उपयोग करके मौत की व्याख्या करें.
उदाहरण के लिए , आप कह सकते हैं कि मृत्यु का मतलब है कि व्यक्ति के शरीर ने काम करना बंद कर दिया है या वह व्यक्ति अब सांस नहीं ले सकता है.

एक चीज़ और मृत्यु के बारे में अपने परिवार की धार्मिक या आध्यात्मिक मान्यताओं को साझा करें.

4-उन्हें अपनी भावनाओं और आशंकाओं को साझा करने दें:

माता पिता की मृत्यु के बाद कई बच्चे अपनी कहानी साझा करना चाहते हैं. वे आपको बताना चाहते हैं कि क्या हुआ, वे कहाँ थे जब उन्हें उनके माता पिता की मृत्यु के बारे में बताया गया या उस वक़्त उन्हे कैसा महसूस हुआ………
कभी-कभी बच्चे एक भय का भी अनुभव कर सकते है. वे इस बात को लेकर परेशान हो सकते हैं की अन्य लोग जो उनके करीब हैं वे भी उन्हें छोड़ देंगे या उनकी भी मृत्यु हो जाएगी.

यह सुनिश्चित करने के लिए कि आपके बच्चे कैसा महसूस कर रहे हैं और क्या कर रहे हैं, बातचीत जारी रखें. हीलिंग का मतलब प्रियजन के बारे में भूलना नहीं है. इसका मतलब है कि व्यक्ति को प्यार के साथ याद करना.

5-परंपराएँ और याद करने के तरीके बनाएँ:

अक्सर ऐसा होता है की जब बच्चे माता पिता से दूर हो जाते है तो कुछ विशेष अवसर जिनमे उनकी अपने माता पिता से कुछ कीमती यादें जुड़ी होती है जैसे मदर्स डे, फादर डे,वर्षगाँठ आदि बच्चो के लिए विशेष रूप से कठिन हो सकते हैं.
कोशिश करें की जितना ज्यादा संभव हो सके बच्चों को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के अवसर दे. यह बातचीत के माध्यम से, नाटक के माध्यम से, या ड्राइंग और पेंटिंग के माध्यम से हो सकता है.

ये भी पढ़ें- जब गपशप की लत लगे…

कम उम्र में माता-पिता को खोने से दीर्घकालिक परिणाम हो सकते हैं जिन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता है. यही कारण है कि माता-पिता की मृत्यु के बाद पारिवारिक परामर्श इतना महत्वपूर्ण हो सकता है, खासकर अगर नुकसान अप्रत्याशित या दर्दनाक है, जैसे कि आत्महत्या या हिंसक मौत.

NOTE: प्रत्येक परिवार का द्रष्टिकोण अलग हो सकता है.

अपने बच्चों को मोटापे से ऐसे बचाएं

बच्चों में मोटापा बढ़ने के कई कारण होते हैं, लेकिन ज्यादातर ये परेशानी माता-पिता की अनदेखी या लापरवाही के कारण भी हो सकती है. इसीलिए आज हम आपको बच्चों में मोटापे की वजह और कैसे इस बीमारी से बच्चों को दूर रखें इसके बारे में बताएंगे.

इतना मोटापा क्यों?

– दुनियाभर में बच्चे जिस तरह मोटापे का शिकार हो रहे हैं, उस में एक कारण उन के जींस और हार्मोंस भी हो सकते हैं, यानी मोटापा उन्हें आनुवंशिक रूप से प्राप्त हो रहा है. लेकिन इस कारण का प्रतिशत बहुत कम है.

– मोटापे की खास वजह बच्चों में खानपान की गलत आदतें हैं. बच्चे खाते बहुत हैं और कसरत न के बराबर करते हैं.

– नौकरीपेशा मातापिता के पास खाना पकाने के लिए न तो समय होता है और न ही ताकत. नतीजा, वे फास्टफूड यानी झटपट तैयार खाने पर निर्भर होते जा रहे हैं.

ये भी पढ़ें- बीमारियों से घिरते बच्चे

– आज दुनियाभर में जहां देखो वहां फास्टफूड रैस्तरां खुलते जा रहे हैं. एक अध्ययन से पता चला है कि अमेरिका में 4 से 19 साल के एकतिहाई बच्चे हर दिन फास्टफूड पर ही जीते हैं. इस तरह के खाने में शक्कर और चिकनाई बहुत ज्यादा होती है. साथ ही, इन्हें इतनी बड़ी मात्रा में परोसा जाता है कि देखने वालों की लार टपकने लगती है.

– आज लोग दूध और पानी के बजाय सौफ्टड्रिंक पीना ज्यादा पसंद करते हैं. मिसाल के लिए, मैक्सिको में हर साल लोग उतना पैसा 10 तरह के व्यंजनों पर भी खर्च नहीं करते जितना वे सिर्फ  सौफ्टड्रिंक पर खर्च कर देते हैं. हर दिन सिर्फ 600 मिलीलिटर सौफ्टड्रिंक पीने से सालभर में एक व्यक्ति का वजन करीब 11 किलो तक बढ़ सकता है.

– अध्ययन के अनुसार, औसतन 3 साल के बच्चे हर दिन सिर्फ 20 मिनट ही खेलकूद या किसी तरह की शारीरिक हरकत में बिताते हैं. बच्चों में बैठेबैठे काम करते रहने की आदत आम होती जा रही है, जिस के कारण मोटापा शरीर में घर कर रहा है.

  मोटापे से छुटकारा पाने के लिए क्या करें

– बच्चों को फास्ट फूड खिलाने के बजाय फल, सलाद और सब्जियां ज्यादा खिलाएं.

– सौफ्टड्रिंक, शरबत और ज्यादा मीठे व चिकनाईयुक्त नाश्ते पर रोक लगाइए. इस के बजाय बच्चों को पानी या बिना मलाईवाला दूध और पौष्टिक नाश्ता दीजिए.

– खाना पकाने के ऐसे तरीके अपनाइए, जिन में घीतेल का ज्यादा इस्तेमाल नहीं होता, जैसे सेंकना, भूनना या भाप में पकाना. नईनई रैसिपीज सीखें और खाने में ज्यादा स्वाद पैदा करें. एकजैसी सब्जी खातेखाते बच्चे बोर हो जाते हैं.

– खाना कम परोसिए. खाना चबाचबा कर धीरेधीरे खाने और भूख से 2 निवाले कम खाने का निर्देश बच्चों को दीजिए.

– कोई काम कराने और इनाम देने के नाम पर बच्चों को खाने की चीजें मत दीजिए.

– साथ बैठ कर खाना खाइए. टीवी या कंप्यूटर के सामने खाने से एक व्यक्ति को इस का अंदाजा नहीं लगता कि उस ने कितना खा लिया है.

ये भी पढ़ें- पीरियड्स के दौरान इन बातों का भी रखें ख्याल

– कसरत करने को बढ़ावा दीजिए, जैसे साइकिल चलाना, गेंद से खेलना और रस्सी कूदना.

– ज्यादा देर तक टीवी देखने, कंप्यूटर का इस्तेमाल करने या वीडियो गेम खेलने की इजाजत मत दीजिए.

– पूरा परिवार मिल कर कहीं बाहर घूमने की योजना बनाइए, जैसे कि चिडि़याघर देखना, पार्क में खेलना या तैराकी के लिए जाना.

– बढि़या खाना खाने और कसरत करने की अच्छी मिसाल बच्चों के सामने रखिए.

पत्नी ने पति से कहा, बरतन मांजो वरना तलाक दे दो…

पत्नी खाना बनाए और पति आराम फरमाए, यह आज की पत्नी को गवारा नहीं. पति को सुबह बेड टी चाहिए, वह देर से उठे, नहाए, नाश्ता करे, 1-2 बार रौब झाङे और औफिस के लिए निकल जाए, आज की पत्नी को यह भी पसंद नहीं.

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में एक ऐसा ही मजेदार वाकेआ सामने आया है, जिस में एक पत्नी को पति की अरामफरोशी से चिढ हो गई.

उधर पति समाज के बुने दकियानुसी तानेबाने का शिकार था और आम भारतीय पतियों की तरह ही था, जिसे घर के कामों से चिढ थी.

पत्नी ने इस का विरोध किया तो फिर ततू मैंमैं शुरू हो गई.

कामकाजी हैं पतिपत्नी

पतिपत्नी दोनों ही एक निजी कंपनी में ऐग्जीक्यूटिव के पद पर हैं. दोनों ही को औफिस समय पर पहुंचना होता था. पति औफिस से घर आता, सोफे पर पसर कर टीवी देख रहा होता और खाने की फरमाइश करता. उधर पत्नी बच्चों में लग जाती, किचन में खाना बना रही होती और फिर रात को बिस्तर पर जाने पर पति सैक्स की फरमाइश कर देता.

पति की इन्हीं आदतों को पत्नी के लिए रोज झेलना असहनीय हो गया. एक दिन उस ने कहा,”मुझ से यह सब रोजरोज नहीं होगा. आज तुम बरतन मांजो, खाना बनाओ और बच्चों को देखो.”

ये भी पढ़ें- जब आने लगें अश्लील मैसेजेज

इससे पहले कि शादी टूटती…

पत्नी अब पति की फरमाइशें पूरी करने में नानुकुर करने लगी. ऐसे में दोनों के बीच रोज ही खटरपटर शुरू हो गई. रोजरोज की चिकचिक जब बङी लङाई का रूप लेने लगी और बात तलाक तक जा पहुंचा तो दोनों ने मिल कर एक ऐसा फैसला लिया जिसे जान कर आप को हैरानी होगी.

दरअसल, दोनों ने इस मुद्दे को सुलझाने का अनोखा तरीका ढूंढ निकाला.

लिखित में समझौता

दोनों के बीच एक समझौता हुआ और इस के लिए मौखिक नहीं बल्कि लिखित में अपनीअपनी शर्तें रखीं. फिर उन्होंने 100 रूपए के स्टांप पेपर लिए और शर्तों को टाइप करा कर प्राधिकरण पहुंच गए.

प्राधिकरण के सचिव न्यायाधीश आशुतोष मिश्रा ने मीडिया को बताया,”अभी तक यही सुना था कि पतिपत्नी की लङाई में पति ने पत्नी को घर से बाहर निकाल दिया. फिर पत्नी ने ससुराल वालों पर मुकदमा दर्ज करा दी, दहेज और मानसिक प्रताड़ना के आरोप लगा दिए मगर पहली बार इस तरह का अनोखा मामला सामने आया है, जहां 10 साल पुरानी शादी को एक दंपति ने आपसी समझदारी से सुलझा लिया है. उन्होंने आपस में एक शर्त पर समझौता करते हुए लिखित में दिया है, जिसे कोर्ट में पेश किया जाएगा ताकि कानूनी मुहर लग सके.”

क्या है समझौते में

  • शनिवाररविवार 2 दिन पति खाना बनाएगा और पत्नी आराम करेगी.
  • बच्चों का होमवर्क भी इस दिन पति कराएगा.
  • दोनों में से कोई भी बीमार पङेगा तो खाना बाहर से मंगवाया जाएगा.
  • स्कूल में पेरैंट्स मीटिंग पारी के हिसाब से करना होगा.
  • औफिस से कोई लेट आएगा तो फोन पर इस की सूचना देनी होगी.
  • घर का खर्च दोनों मिल कर उठाएंगे.
  • भविष्य के लिए बचत जरूरी होगा.
  • एकदूसरे के घर वालों की इज्जत करनी होगी और उन की देखभाल की जिम्मेदारी उठानी होगी.

खुद के लिए दंड का प्रावधान

पतिपत्नी ने समझौते में दंड का प्रावधान भी किया है-

इस के तहत अगर किसी एक ने नियम का पालन नहीं किया अथवा समझौते का उल्लंघन किया तो दूसरे को अलग रहने का अधिकार होगा.

नियम

दंपति के आपसी झगड़ों, तलाक, पारिवारिक समस्याओं के समाधान के लिए प्राधिकरण दंपति के बीच समझौता कराने की पहल करता है. संबंधित व्यक्ति की काउंसिलिंग भी प्राधिकरण कराता है ताकि शादी टूटे नहीं.

यहां हुए समझौतों को चुनौती नहीं दी जा सकती और दोनों पक्षों के लिए मान्य होता है.

सराहनीय कदम

देश में बढते तलाक के मामले को देखते हुए पतिपत्नी का यह कदम निश्चित रूप से सराहनीय है. इस दंपति ने रोजरोज के झगङे का खुद पर और बच्चों पर आकलन किया. इन्हें तलाक ले कर अलग रहने में बुराई नजर आई.

तलाक के बाद बच्चों की भविष्य की चिंता भी हुई. इसलिए दोनों ने यह फैसला किया कि तलाक न ले कर साथ रहने में बुराई नहीं, भले ही जिंदगी शर्तों पर क्यों न जिए जाएं. इस से दोनों साथ भी रह सकेंगे और बच्चों का भविष्य भी बना सकेंगे.

ये भी पढ़ें- शिकारी आएगा जाल बिछाएगा  

मालूम हो कि तलाक के बाद पतिपत्नी तो अपनीअपनी राह निकल पङते हैं पर बच्चों का भविष्य चौपट हो जाता है.

जिंदगी बदगुमां नहीं: भंवर में फंस गया था पदम

Serial Story: जिंदगी बदगुमां नहीं (भाग-3)

‘दूसरा सच यह भी है कि तू एक हिजड़े का बाप कहलाने से बचना चाहता है. ‘पिछले 10 बरसों में कितनी ही बार पता लगा कि फलां जगह लोगों ने पदम को देखा था पर तू चुप बैठ गया. तेरी इस शीत प्रतिक्रिया ने भाभी को बहुत ज्यादा दुखी किया है.

‘अरे, तू क्या जाने मां का दिल कैसा फटता है. लानत है ऐसे पत्थर दिल बाप पर.’ मुन्ना ने जो कहा वह सब सच था.

शिशिर उस दिन मुंह छिपा कर चला गया था. डरता था कि कहीं मुन्ना की बात से उस का निश्चय डगमगा न जाए.

लेकिन उस के निश्चय से राम को अमेरिका भेजने का सपना पूरा हो ही गया. यद्यपि उस के जीवन की सारी जमा पूंजी दावं पर लग गई थी, फिर भी वह खुश था. राम को अमेरिका गए पूरे 5 साल हो गए हैं. इस बीच राम का असली चेहरा सब के सामने आ गया था.

शिशिर ने सोचा था राम उस की गरीबी दूर करेगा, पैसे कमा कर अमेरिका से भेजेगा, बुढ़ापे की लाठी बनेगा. पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. उलटे, उसे फोन पर बेटे से धमकियां मिलतीं, ‘पापा, इस मकान को बेच दो. मैं तुम्हें नई कालोनी में बढि़या प्लैट खरीद दूंगा. मेरा हिस्सा मुझे दे दो वरना…’ ‘नहीं, मैं यहीं ठीक हूं.’

मुन्ना ने समझाया, ‘यह बेवकूफी हरगिज न करना. तेरे सिर पर से छत भी जाएगी और तू सड़क पर

आ जाएगा.’ राम के इस व्यवहार से सब का मन दुखी होता, पर आखिर विकल्प क्या था?

ये भी पढ़ें- वजह: प्रिया का कौन सा राज लड़के वाले जान गए?

ऐसे दुख की घड़ी में शिशिर को पदम की बड़ी याद आती. काश, वह यहां होता. कितना स्वार्थी था शिशिर जो शिखंडी बेटे के जाने के बाद उस की सुध भी न ली. आज आत्मग्लानि से वह बेटे का सामना नहीं कर पा रहा है. क्या हुआ इन 20-22 बरसों में जानने की उत्कंठा तो थी परंतु जबान जैसे तालू से चिपक गई थी उस की. आज बेटा सामने है तो खुशी तो है पर कहेपूछे किस मुंह से?

जब से पदम ने घर में कदम रखा है, मुन्ना और रेवा बच्चों की तरह खुश हैं जैसे किसी खोए खिलौने को पा लिया है, पर शिशिर अपनी सोच और व्यवहार से नजरें चुरा रहा है. आज सब ने सुबहसुबह दूधजलेबी खाई थी. नाश्ते के बीच पदम ने पूछा, ‘‘मां, राम भैया कहां हैं?’’

‘‘अमेरिका में,’’ मां ने जवाब दिया था. ‘‘वहां क्या करते हैं?’’

‘‘पता नहीं, बेटा. फोन आता रहता है. आज इतवार है, देखना फोन जरूर आएगा.’’ ‘‘चलो, यह भी अच्छा हुआ जो पढ़लिख कर वे नौकरी कर रहे हैं,’’ पदम ने ठंडी प्रतिक्रिया दी.

‘‘छोड़, यह बता तू ने क्या पढ़ाई की है?’’ ‘‘मैं ने एनीमेशन इंजीनियरिंग की है यानी सौफ्टवेयर इंजीनियर हूं.’’

‘‘वाह, क्या बात है. तू तो बड़ा लायक निकला, सब ने खुशी व्यक्त की थी.’’ ‘‘हां, यहां नोएडा में एक कंपनी में नौकरी भी मिल गई है. कल से जाना है.’’

‘‘बहुत खूब,’’ मुन्ना बाबू ने उस की पीठ थपथपाई. ‘‘भैया का फोन आएगा तब मैं भी बात करूंगा.’’

सब ने सुनी थी उस की बात पर ‘राम प्रकरण’ को छेड़ना इस वक्त किसी को भला नहीं लग रहा था. तभी फोन की घंटी बजी.

शिशिर बाबू ने फोन उठाया, जानते थे उसी का होगा. पदम दूसरे कमरे में रखे पैरलेल लाइन पर बापबेटे की बातें सुन रहा था. ‘‘पापा, वह मकान का क्या हुआ? कोई कस्टमर मिला?’’

‘‘तुझ से मैं ने पहले भी कहा है, मैं यह मकान नहीं बेचूंगा.’’ बापबेटे में बहस छिड़ गई. बीच में पदम बोला, ‘‘भैया, मकान की बात क्यों करते हो?’’

राम चौंका, ‘‘भई, बीच में तू कौन?’’ ‘‘मैं आप का छोटा भाई पदम हूं. आज ही आया हूं.’’

‘‘मेरा कोई भाई नहीं है. पता नहीं पापा किसकिस को घर में घुसा लेते हैं. बुढ़ापे में पापा का दिमाग सठिया गया है. भाई, तू जो भी हो, मुझे परायों से बात नहीं करनी.’’ ‘‘बूढ़ा होगा तू, मैं अब तेरी परवा नहीं करता. जैसे तू मेरा बेटा

है वैसे पदम भी है. बोल, क्या कहना है?’’ शिशिर बाबू तेज आवाज में बोले.

‘‘मैं अगले महीने इंडिया आ रहा हूं. मकान तो मैं बेचूंगा जरूर,’’ राम ने फिर धमकी दी. गुस्से में शिशिर ने फोन पटक दिया. सब उन की हिम्मत देख हैरान थे.

मुन्ना उन्हें देख मुसकराया, ‘‘आज

दूसरा कंधा मिल गया है तो शिशिर में ताकत आ गई है. अच्छा जवाब दिया राम को.’’

‘‘अरे, बाजार से सामान ले आओ, मैं ने लिस्ट बना ली है,’’ रेवा ने माहौल बदलने की गरज से बात बदली. ‘‘हां, लाओ लिस्ट,’’ वे भी इस वक्त बात को छोड़ना चाहते थे.

‘‘पापा, मैं भी साथ आता हूं,’’ पदम साथ हो लिया. दरअसल, शिशिर बाबू बेटे से अकेले में बातें करना चाहते थे. शायद पदम भी यही चाहता था.

ये भी पढ़ें- इस्तेमाल: कौलेज में क्या हुआ निम्मो के साथ?

‘‘भैया के साथ क्या प्रौब्लम है?’’ पदम ने पूछा. उन्होंने सारी कहानी बेटे को सुना दी. ‘‘बेटा, मैं तो यहां तेरी कहानी सुनने आया हूं. वैसे यह बता इन 22 बरसों में क्या बीता, मेरा मन सब जानने को उत्सुक है.’’

‘‘पापा, मैं बता दूं कि भाई की सोच मुझ से छिपी नहीं है. मैं सारा हैंडिल कर लूंगा, भाई को तो चुटकी में मनाऊंगा. बस, मैं चाहता हूं कि हम सब मिल कर प्यार से रहें. मैं यहां आप लोगों के लिए आया हूं, रिश्ते जोड़ने आया हूं, तोड़ने नहीं. भैया या किसी और से भी.’’ पिता ने बेटे की परिपक्वता और सकारात्मक सोच को मन से सराहा.

‘‘पापा, मैं अपने बारे में क्या बताऊं, शुरू के 6 वर्षों में जो भोगा दुखदर्द उफ, उस का विवरण आप सुन न पाएंगे. सो, उसे छोड़ो. ‘‘जब मैं 12 वर्ष का हुआ तो एक दिन मैं ने देखा कि एक सरदारजी मुझ से बारबार मेरे बारे में पूछते हैं. मैं जान गया कि यह व्यक्ति मेरी कमजोरी और साहसिक सोच से प्रभावित है.

‘‘बस, एक रोज उस की गाड़ी में बैठ कर उस की कोठी पर चला गया. लगा, सुख की दुनिया में आ गया हूं.’’ ‘‘सरदारजी ने मुझ से सब से पहले कहा, ‘यहां तुम पूर्ण सुरक्षित हो, तुम्हें तुम्हारा टोला छू भी नहीं सकता.

‘‘वे एक व्यापारी थे. पर रहते अकेले थे. घर में नौकरचाकर थे और वो, बस.’’ ‘‘वहां मैं ने पाया न कोई मुझे हिज्जू कहता है, न ही मेरे चेहरेमोहरे को ले कर कोई ताना कसा जाता है.

‘‘मेरा स्कूल में ऐडमिशन हो गया. मैं पढ़ता गया जब 12वीं की तो उन के एक डाक्टर मित्र ने मुझ से पूछा, ‘बेटा, आप ठीक हो सकते हो किंतु आप को कुछ महीने मुंबई में गुजारने होंगे. क्या तुम तैयार हो?’ ‘‘डाक्टर साहब मुझे अपने साथ मुंबई ले गए. जहां सालभर मैं उन की देखरेख में रहा. सालभर में मैं ने महसूस किया कि मेरे चेहरे के पीछे एक पुरुष चेहरा छिपा है, मन में आत्मविश्वास आ गया था.

‘‘मैं काफी बदल गया था. लोग मुझ से बात करना पसंद करते थे. मैं ने महसूस किया जिंदगी बदगुमां नहीं है. कई बार मुझे लगता कि मैं वापस अपने घर दिल्ली आ जाऊं पर मैं ने सरदारजी से वादा किया था, ‘मैं मम्मीपापा के पास कुछ बन कर ही जाऊंगा.’

‘‘उस गौडफादर को मैं कभी नहीं भूलूंगा. मैं ने एनीमेशन इंजीनियरिंग की और कंप्यूटर पर कार्टून बनाने का काम करने लगा. ‘‘आज भी याद है सरदारजी की बात, ‘बेटा, जीवन एक युद्ध है. इसे हमें जीतना ही है. और जो जीतता है वही सिकंदर है.’

‘‘उन का वह बातबात पर प्यार से समझाना आज तक याद है. पापा, जन्म तो आप ने मुझे दिया पर इस जीवन को तराशा सरदारजी ने. वे न मिलते तो मैं मिट्टी के ढेले सा मिट्टी में समा जाता.’’ सब सुन कर पिता की आंखें छलछला गईं. उन्होंने आसमान की तरफ देखा. ढेरों सितारें भी बेटे की कहानी सुन रहे थे और वहीं से शायद कह रहे थे, वैल डन पदम, सैल्यूट है तेरे जज्बे को.

ये भी पढ़ें- यक्ष प्रश्न: कौन थी निमी जिसे अनुभा बचाना चाहती थी?

Serial Story: जिंदगी बदगुमां नहीं (भाग-1)

दिल्ली की आउटररिंग रोड पर भागते आटो में बैठा पदम उतावला हो रहा था, घर कब आएगा? कब सब से मिलूंगा.

आटो से बाहर झांका, सुबह का झुटपुटा निखरने लगा था. एअरपोर्ट से उस का घर 18 किलोमीटर होगा. यहां से उस के घर की दूरी एक घंटे में पूरी हो जाएगी और फिर वह अपने घर पर होगा. पूरे 22 बरस बाद लौटा है पदम. उसे मलकागंज का भैरोंगली चौराहा, घर के पास बना पार्क और उस के पास बरगद का मोटा पेड़ सब याद है. इन सब के सामने वह अचानक खड़ा होगा, कितना रोमांचक होगा. नहीं जानता, वक्त के साथ सबकुछ बदल गया हो. हो सकता है मम्मीपापा, भैया कहीं और शिफ्ट हो गए हों. उस ने 2 दशक से उन की खोजखबर नहीं ली. आंखें बंद कर के वह घर आने का इंतजार करने लगा.

22 बरस पहले की यादों की पोटली खुली और एक ढीठ बच्चा ‘छोटा पदम’ सामने खड़ा हुआ. हाथ में बैटबौल और खेल का मैदान, यही थी उस छोटे पदम की पहचान. कुशाग्रबुद्धि का था पदम. सारा महल्ला उसे ‘मलकागंज का गावस्कर’ के नाम से जानता था. एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ने वाला यह बच्चा टीचर्स का भी लाड़ला था. किंतु वह अपनी मां को ले कर हैरान था. जहां जाता, मां साथ जाती. 9 बरस के पदम को मम्मी स्कूल के गेट तक छोड़ कर आती और वापसी में उसे वहीं खड़ी मिलती. यहां तक कि पार्क में जितनी देर वह बैटिंगफील्ंिडग करता, वहीं बैंच पर बैठ कर खेल खत्म होने का इंतजार करती.

मां के इस व्यवहार से वह कई बार खीझ जाता, ‘मम्मी, मैं कोई बच्चा हूं जो खो जाऊंगा? आप हर समय मेरे पीछे घूमती रहती हो. मेरे सारे दोस्त पूरे महल्ले में अकेले घूमते हैं, उन की मांएं तो उन के साथ नहीं आतीं. फिर मेरे साथ यह तुम्हारा पीछेपीछे आना क्यों?’

ये भी पढ़ें- अपने अपने शिखर: जुड़वां बहनों की बदलती किस्मत की कहानी

मम्मी आंखों में आंसू भर कर कहती, ‘बस, कुछ साल बाद तू अकेला ही घूमेगा, मेरी जरूरत नहीं होगी.’ मां की यह बात उस की समझ से परे थी.

‘‘बाबूजी, आप तो दिल्ली निवासी हो?’’ आटो वाले सरदारजी ने उस की सोच पर शब्दकंकरी फेंकी. उस ने चौंक कर वर्तमान को पकड़ा, ‘‘हां, नहीं, मुझे दिल्ली छोड़े बहुत बरस हो गए.’’

‘‘बाबूजी, आप विदेश में रहते हो?’’ हां, यहां बस किसी से मिलने आया हूं.’’

‘‘अच्छा,’’ कह कर सरदारजी ने आटो की स्पीड बढ़ा दी. सच ही तो है…वह तो परदेसी बन गया था. याद आया 22 बरस पहले का वह मनहूस दिन. उस दिन क्रिकेट का मैच था. पार्क में सारे बच्चों को इकट्ठा होना था.

पदम को घर में छोड़ कर मम्मी बाजार चली गई थी. बाहर से ताला लगा था. पदम पार्क में जाने के लिए छटपटा रहा था कि तभी उस के दोस्त अनिल ने खिड़की से आवाज दी, ‘यार, तू यहां घर में बैठा है और हम सब तेरा पार्क में इंतजार कर रहे हैं.’ ‘कैसे आऊं, मम्मी बाहर से ताला लगा गई हैं.’

‘छत से कूद कर आ जा.’ ‘ठीक है.’

पड़ोस की छतों को पार करता पदम पहुंच गया पार्क में. उसे देखते ही सारे दोस्त खुशी से चिल्लाए, ‘आ गया, हमारा गावस्कर, आ गया. अब आएगा मैच का मजा.’ बस, फिर क्या था, जम गया मैदान में. बल्ला घूमा और 30 रन बटोर कर आ गया. आउट हो कर वह बैंच पर आ कर बैठा ही था कि अचानक पता नहीं कहां से एक व्यक्ति उस के पास आ बैठा. उस ने बड़ी आत्मीयता से उस के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘बेटा, क्रिकेट बहुत बढि़या खेलते हो. लो, इसी खुशी में चौकलेट खाओ. और उस ने हथेली फैला दी. पदम ने चौकलेट उठा कर मुंह में डाल ली. उस के बाद पता नहीं क्या हुआ?

होश आया तो महसूस हुआ कि वह अपनों के बीच नहीं है. जगह और आसपास बैठे लोग सब अनजाने हैं. वह किसी बदबूदार कमरे में गंदी सी जगह पर था. सड़ांध से उस का जी मिचला गया था. कुशाग्रबुद्धि का पदम समझ गया था उसे अगवा कर लिया गया है. लेकिन क्यों? उस ने सुना था कि पैसे वालों के बच्चों को अगवा किया जाता है. बदले में पैसा मांगा जाता है. सब जानते हैं कि उस के पिता एक साधारण से टीचर हैं. वे भला इन लोगों को पैसा कहां से देंगे? वह भी जानता है कि घर में बमुश्किल रोटीदाल चल पाती है. फिर उसे उठा कर इन लोगों को क्या मिलेगा? उस की समझ से परे था. वह घबरा कर रोने लगा था. 2 गुंडा टाइप मुश्टडों ने उसे घूरा, ‘चौप्प, साला भूखा है, तभी रो रहा है. वहीं बैठा रह.’

‘मुझे पापा के पास जाना है.’ ‘खबरदार, जो उस मास्टर का नाम लिया. बैठा रह यहीं पर.’

पदम वहीं बैठा रहा बदबूदार दरी पर. उसे उबकाई आ गई, सारी दरी उलटी से भर गई. सिर भन्ना गया उस का.

शाम होतेहोते उसे कहीं और शिफ्ट कर दिया गया. फिर तो हर 10-12 दिनों बाद उसे किसी और जगह भेज दिया जाता. 4 महीने में 10 जगहें बदली गईं. वह अकेला नहीं था, 3 बच्चे और थे उस के साथ. इस बीच न जाने कितनी ही रातें उस ने आंखों में बिताई थीं और कितनी बार वह मम्मीपापा को याद कर के रोया था. यहां उसे अपनों का चेहरा तो दिखा ही नहीं, सारे बेगाने थे.

इंदौर, उदयपुर, जयपुर, शेखावटी न जाने कहांकहां उस को रखा गया. इन शहरों के गांवों में उसे रखा जाता जहां सिर्फ तकलीफ, बेज्जती और नफरत ही मिलती थी जिसे उस का बालमन स्वीकार नहीं करता था. इन सब से वह थक चुका था. तीव्रबुद्धि का पदम जानता था कि यह भागमभाग, पुलिस से बचने के लिए है. गंदे काम कराए जाते. गलती करने पर लातघूंसे, गाली और उत्पीड़न किया जाता था. रोटी की जगह यही सब मिलता था.

ये भी पढ़ें- उलझन: कनिका की मां प्रेरणा किसे देख कर हैरान रह गई?

जब टोले वालों को ज्यादा गुस्सा आता तो उसे शौचालय में बंद कर दिया जाता. टोले के मुखिया की उसे सख्त हिदायत थी कि अपना असली नाम व शहर किसी को मत बताना और नाम तो हरगिज नहीं. टोले वालों ने उस को नया नाम दिया था पम्मी.

उदयपुर के गांव में उसे ट्रेनिंग दी गई. चोरी करना, जेब काटना, उठाईगीरी और लोगों को झांसा दे कर उन की कीमती चीजों को साफ करना. ये सब काम करने का उस का मन न करता, किंतु इसे न करने का विकल्प न था.

सुबहसवेरे होटल से लाई पावभाजी खा कर उसे व उस के साथियों

को रेलवेस्टेशन भीड़भाड़ वाले बजारों या रेडलाइट पर छोड़ दिया जाता. शाम को टोले का एक आदमी उन्हें इकट्ठा करता और पैदल वापस ले आता. याद है उसे, एक रोज उस ने अपने एक दोस्त से पूछा, ‘ये हम से गलत काम क्यों कराते हैं?’

‘अबे साले, हिज्जू से और क्या कराएंगे. हम हिजड़ों को यही सब करना पड़ता है.’ ‘ये हिज्जूहिजड़ा क्या होता है?’

‘तुझे नहीं पता, हम सब हिजड़े ही तो हैं. तू, मैं, कमल, दीपू सब हिजड़े हैं.’ ‘मतलब.’

‘हम सब न लड़का हैं न लड़की, हम तो बीच के हैं.’ वह बच्चा बड़ी देर तक विद्रूप हंसी हंसता रहा था, साथ में गंदे इशारे भी करता रहा था.

पदम को आज भी याद है, ये सब देख कर उसे भरी सर्दी में पसीना आ गया था. तनबदन में आग सी लग गई थी. यह क्या है? ऐसा क्यों हो रहा है? जिन लोगों के बीच वह पल रहा है वह हिजड़ों की मंडली है? कुशाग्रबुद्धि के पदम को काफीकुछ समझ में आ गया था. समझ गया था कि वह ऐसे चक्रवात में फंस गया है जहां से निकलना आसान नहीं है. उस रात उसे बड़े डरावने सपने आते रहे. अब तक तो आंखें बंद करता था तो मम्मी, पापा, राम भैया और मुन्ना अंकल सपनों में रहते थे पर उस दिन के बाद उसे डरावने सपने ही आते. वह चौंक कर आंखें खोल देता था.

आगे पढ़ें- वह यह सब सहतेसहते पत्थर हो गया था. दुख

ये भी पढ़ें- एक संबंध ऐसा भी: जब निशा ने कांतजी को गले से लगाया

Serial Story: जिंदगी बदगुमां नहीं (भाग-2)

बस, इस सब के साथ एक आस थी, हो सकता है पापा या भैया उसे ढूंढ़ते हुए कहीं स्टेशन या शहर की रेडलाइट पर मिल जाएं. पर ऐसा कभी नहीं हुआ. वह यह सब सहतेसहते पत्थर हो गया था. दुख, घुटन, बेजारी, गाली, तिरस्कार, उस के जीवन के पर्याय हो गए थे. कई बार दुख की पराकाष्ठा होती तो जी करता रेल की पटरी पर लेट कर अपने जीवन का अंत कर ले. दूसरे ही पल सोचता, नहीं, मेरा जीवन इतना सस्ता नहीं है. वह 12 बरस का हो गया था. अब उसे अपने शरीर में कसाव और बेचैनी महसूस होती थी. लेकिन कौन उसे बताता कि यह सब उस के साथ क्यों हो रहा है? खुले आसमान के नीचे बैठ कर अपनी बेनामी मजबूरी पर उसे आंसू बहाना अच्छा नहीं लगता था.

वहां उस का अपना कोई भी तो न था जिस के साथ वह सब साझा करता. लेदे कर बड़ी बूआ (केयरटेकर) थी. उस के आगे वह अकसर दिल खोलता था तो वह समझती, ‘बेटा यह नरक है, यहां सब चलतेफिरते मुरदे हैं. नरक ऐसा ही होता है. इस नरक में कोई नहीं, जिस से तू अपना दर्द बांट सके. मैं तेरी छटपटाहट को समझती हूं. तू यहां से निकलभागने को बेताब है. पर ध्यान रहे टोले वाले बड़े निर्दयी होते हैं. पकड़ा गया तो हाथपैर काट कर सड़क पर छोड़ देंगे भीख मांगने को. तब तेरी हालत बद से बदतर हो जाएगी.’

बूआ की बात सुन वह डर तो गया था पर हां, अगले ही पल उस का निश्चय, ‘कुछ तो करना पड़ेगा’ और दृढ़ हो गया. उसे अपनी इच्छाशक्ति पर कभीकभी हैरानी होती कि क्यों वह इतना खतरा मोल ले रहा है. ‘नहीं, कुछ तो करना होगा, यह सब नहीं चलेगा.’ यह सच था कि उसे अब दर्द सहने की आदत पड़ गई थी, पर और दर्द वह नहीं सहेगा. ‘बस, और नहीं.’

याद है उसे अहमदाबाद की वह रेडलाइट और सरदारजी की लाल गाड़ी. जब भी सरदारजी की लाल गाड़ी रुकती, वह ड्राइविंग सीट पर बैठे सरदारजी के आगे हाथ फैला देता. वे मुसकरा कर रुपयादोरुपया उस की हथेली पर रख देते. एक रोज सरदारजी ने पूछा, ‘क्या नाम है तुम्हारा?’

ये भी पढ़ें- बड़ा चोर: प्रवेश ने अपने व्यवहार से कैसे जीता मां का दिल?

‘पम्मी.’ ‘पढ़ते हो?’

‘नहीं.’ ‘पढ़ना चाहते हो?’

‘साब, हम भिखारियों का पढ़नालिखना कहां?’ ‘पढ़ना चाहोगे? तुम्हारी जिंदगी बदल जाएगी. ऐसे तो बेटा, जिंदगी इस रेडलाइट की तरह बुझतीजलती रहेगी.’

उसे लगा, किसी ने थपकी दी है. एक दिन उस ने सरदारजी को वहीं खड़ेखड़े संक्षिप्त में सब बता दिया.

‘अगर छुटकारा पाना है तो कल मुझे यहीं मिलना.’ गाड़ी चली गई. उस का दिल धड़का. बस, यही मौका है. यह सोच वह अगले दिन सरदारजी की गाड़ी में फुर्र हो गया.

‘‘अरे बाबूजी, मलकागंज तो आ गया. ‘‘पर भैरोंगली…आप किसी से पूछ लो.’’ आटो वाले ने अचानक उस के सोचने का क्रम तोड़ा.

वह वर्तमान से जुड़ गया. ‘‘ओह, ठहरो, मैं उस सामने खड़े पुलिस वाले से पूछता हूं.’’ पुलिस वाले ने फौरन पूछा, ‘‘किस के घर में जाना है?’’

‘‘भैरोगली में शिशिर शर्मा के घर.’’ ‘‘सीधे चले जाओ, आखिरी घर शिशिर बाबू का ही है.’’

पदम की आंखें चमक उठीं. आखिर, उस ने अपना घर ढूंढ़ ही लिया. अगले पल वह अपने घर के दरवाजे पर था. एकटक घर को देख रहा था या कहें, घर उसे देख रहा था.

सामने बाउंड्रीवाल से सटा नीम का पेड़, घर की छत को छूती मालती की बेल…सब कितने बड़े हो गए हैं. पर सब वही हैं कुछ भी तो नहीं बदला. वह सब तो है किंतु यदि भैया, पापा ने उसे न पहचाना तो… डोरबैल पर कांपती उंगली रखी तो अंदर से आवाज आई. ‘‘ठहरो, आ रहा हूं.’’

यह आवाज पापा की नहीं है. कोई और ही होगा. दरवाजा खुला. एक अति बूढ़ा व्यक्ति सामने था. ‘‘कौन हो तुम, किस से मिलना है?’’ पहचान गया ये मुन्ना बाबू थे. पापा के बचपन के दोस्त.

‘‘मैं पदम हूं. शिशिर बाबू का बेटा.’’ ‘‘शिशिर बाबू का तो एक ही बेटा है राम और वह भी अमेरिका में है. वैसे, शिशिर घर पर नहीं हैं, पत्नी के साथ बाहर गए हैं. थोड़ी देर बाद आएंगे.’’

इतना कह कर उन्होंने भड़ाक से दरवाजा बंद कर लिया. कैसी विडंबना थी, अपने ही घर के दरवाजे पर वह अजनबियों की भांति खड़ा है. वह वहीं बरामदे में पड़ी कुरसी पर बैठ गया कि सामने से मम्मीपापा को आते देखा. वह दौड़ कर मां से चिपट गया. ‘‘मम्मी…’’

मम्मी को जैसे उसी का इंतजार था. कहते हैं, मां अपने बच्चे को पहचानने में कभी गलती नहीं करती चाहे बच्चा कितना ही बड़ा क्यों न हो जाए. मां का स्पर्श बरसों बाद. कितना सुखदायी था वह क्षण.

‘‘अरे, तुम कौन हो?’’ अचानक शिशिर बाबू बोले. ‘‘अरे राम के पापा, ये अपना पदम. हमारा छोटा बेटा,’’ रुंधे गले से शिशिर बाबू की पत्नी रेवा ने कहा.

‘‘ओ, तुम तो ऐसे ही सब को गले लगा लेती हो. जाओ, अंदर जाओ,’’ वे गुस्से में दहाड़े, ‘‘पता नहीं कौन अनजान पदम बन कर हमें बेवकूफ बना रहा है.’’ इसी क्षण घर का दरवाजा खुला. मुन्ना बाबू भी इस दृश्य में शामिल हो गए. ‘‘अभी कुछ देर पहले यही लड़का आया था. मैं ने भी इसे टाल दिया था. कहता था, ‘मैं पदम हूं.’ रेवा भाभी ठीक कह रही हैं, यह शायद पदम ही है.’’ अब मुन्ना बाबू भी उसे पहचान गए थे, ‘‘यह तेरा वही छोटा बेटा है जो गुम हो गया था. 22 साल पहले.’’

‘‘ओह…’’ गला उन का भी रुंध गया था. रेवा ने बेटे को कस कर गले से लगा लिया. कभी माथा चूमती, कभी तन पर हाथ फेरती. पगली मां की आंखों से खुशी से गंगाजमुना बह रही थी.

शिशिर बाबू भी अपने को रोक न सके. निशब्द मांबाप की ममता से उस की झोली भरती रही.

शिशिर बाबू के कानों में डाक्टर की कही वह बात अभी भी गूंज रही थी. पदम के जन्म पर उस ने कहा था, ‘आप का बेटा शिखंडी है. बचा कर रखना इसे. शिखंडियों का टोला ऐसे बच्चों को चुपचाप अगवा कर लेता है. पतिपत्नी उस की बड़ी सावधानी से देखभाल करते. पर वही हुआ जिस का डर था. काफी सतर्कता के बाद भी पदम को अगवा कर लिया गया.

ये भी पढ़ें- नमस्ते जी: नितिन ने कैसे तोड़ा अपनी पत्नी का भरोसा?

पुलिसथाना, पेपर में ‘मिसिंग है’ का विज्ञापन छपवाया. इस सब के बावजूद कुछ न हुआ. हर सुबह रेवा पति से पूछती, ‘कुछ पता लगा?’ वे सिर झुका कर इनकार कर देते.

बेटे को याद कर रेवा अकसर रोती. मुन्ना समझाता, ‘भाभी, मुझे विश्वास है हमारा पदम एक दिन हमें जरूर वापस मिलेगा.’ महीने, साल, दशक बीत गए.

मुन्ना को लगता था, शिशिर ने बच्चे को ढूंढ़ने का विशेष प्रयास नहीं किया वरना पता तो जरूर लगता. पदम का मुन्ना से सिर्फ पापा के दोस्त का नाता था. पर मुन्ना इस घर का खास आदमी माना जाता था. वह घर की राईरत्ती जानता था.

रेवा को रोते देख उस का दिल भर आता परंतु शिशिर की पदम के लिए ठंडी सोच उन से छिपी न थी. एक दिन पत्नी को रोते देख आखिर शिशिर को गुस्सा आ ही गया, ‘छोड़ो, रोनाधोना. अब राम के भविष्य, उस के कैरियर पर ध्यान दो. मैं सब भूल कर राम के लिए सोचने लगा हूं. मेरा सपना है राम को अमेरिका भेजना.’

यह सुन कर मुन्ना से रहा न गया, ‘शिशिर, सच तो कुछ और ही है. वह सुनना चाहते हो? सच यह है कि तू राम को ले कर धृतराष्ट्र बन गया है. राम को ले कर तू इतना महत्त्वाकांक्षी बन गया है कि भाभी के आंसुओं और ममता की परवा भी नहीं है तुझे. लगता है पदम आ जाएगा तो राम के अमेरिका जाने का सपना कहीं खटाई में न पड़ जाए.

आगे पढ़ें- शिशिर उस दिन मुंह छिपा कर…

ये भी पढ़ें- धोखा : काश वासना के उस खेल को समझ पाती शशि

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें