कोरोना महामारी के दौरान मानसिक स्वास्थ्य को दें प्राथमिकता 

कोरोना संक्रमण ने हमारे जीवन के सभी क्षेत्रों में एक बड़े बदलाव की शुरुआत की है. मसलन शिक्षा, बिजनेस, यात्रा, फाइनेंस, खेल आदि. इन सभी क्षेत्र को अपना ट्रैक बदलने के लिए मजबूर किया गया है, जिसका प्रभाव हर उम्र के व्यक्ति के ऊपर पड़ा है. इसमें शारीरिक के साथ मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव अधिक देखा गया है. इस बारें में ‘द लिव लव लाफ फाउंडेशन’ की चेयरपर्सन मिस ऐना चैंडी कहती है कि इस महामारी में कई लोगों ने अपना रोज़गार खो दिया है और बड़ी संख्या में परिवारों को भविष्य से संबंधित असुरक्षा के अलावा दुख का सामना करना पड़ा रहा है. पूरे भारत में लाखों छात्र, नौकरीपेशा और बिज़नेसमैन प्रभावित है. इन परिस्थितियों में तनाव, चिंता, डिप्रेशन और दूसरी मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो गई है, जिससे निपटना जरुरी है. 

क्या है मानसिक समस्या की वजह 

साल 2017 में, लांसेट ने अनुमान लगाया था कि लगभग 200 मिलियन भारतीय मानसिक डिसऑर्डर से प्रभावित थे. कोविड -19 की वजह से इसमें कई गुना बढ़ोत्तरी हुई है. डिप्रेशन की वजह से गरीब से लेकर अमीर कितनों ने तो आत्महत्या तक कर डाली है. इस समय एक महामारी नहीं, बल्कि दो महामारी का देश सामना कर रहा है. समय रहते इलाज करवाने पर व्यक्ति स्वस्थ हो सकता है. कुछ कारण निम्न है, 

  • डर और अस्थिरता आज हर एक व्यक्ति अनुभव कर रहा है. वायरस को रोकने में सभी देश असमर्थ है. जिसकी वजह से जीवन हानि, वित्तीय हानि, गरीबी, अस्थिरता का अनुभव सभी कर रहे है. कोविड 19 ने हमारी सामूहिक भावना की चिंता को बढ़ाया है. जहां एक ओर इसे स्वंय के स्तर पर रोकने का डर है, वहीं दूसरी तरफ परिवार या प्रियजनों को बीमारी न हो जाए, इसकी चिन्ता भी सबको है. 

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  • कोरोना संक्रमण की वजह से सोशल डिस्टेंसिंग और लॉकडाउन किसी न किसी रूप में जारी है. खुद को जीवित और खुश रखने के लिए कुछ चीजों का होना अनिवार्य है, जैसे- ह्यूमन कनेक्शन, भोजन, पानी और छत. पब्लिक कनेक्शन की कमी, मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत बड़ा असर करती है. समाज में रहने वाले लोग एक प्राणी के रूप में है और एक दूसरों से बातचीत करना, मिलना स्वभाविक है. ये सब हमारे अस्तित्व के लिए भी महत्वपूर्ण है. लॉकडाउन की वजह से कुछ अच्छा अवश्य हुआ है, जैसे गलत खानपान, अस्वस्थ जीवनशैली, गलत आदतें आदि कई चीजों पर अंकुश लगा है, लेकिन लॉकडाउन की वजह से घरेलू हिंसा को लेकर बड़े पैमाने पर केस दर्ज किए जा रहे है. सीएसए (चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज) की दुनिया भर में बढ़ोतरी हुई है.
  • महामारी का तीसरा असर इकनॉमिक इम्प्लीकेशन रहा है. सीएमआईई (भारतीय अर्थव्यवस्था की निगरानी के लिए केंद्र) के अनुसार, शहरी और ग्रामीण भारत में बेरोजगारी 25% है. यह महीनों पहले था और अब स्थिति बहुत अधिक खराब हो चुकी है. लोग नौकरी के लिए तरस रहे है. 

इसके आगे ऐना बताती है कि अब मज़बूती से वर्तमान में चल रही स्थिति का सामना करना जरुरी है. कोई भी संकट या घटना मानसिक स्वास्थ्य को बिगाड़ने और उसे बढ़ाने के लिए माना जाता है. वर्तमान स्थिति में संकट से निपटने के लिए बची हुई तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है. 

साथ ही सामान्य जीवन को फिर से शुरू करना और फिर से जोड़ना एक परीक्षा के जैसे है. कुछ लोग पीटीएसडी या पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर के लक्षणों का अनुभव करेंगे. इसका सामना करने के लिए कुछ बदलाव जीवनशैली में करना और मानसिक स्वास्थ्य को प्रमुखता देना ज़रुरी है. 

मानसिक स्वास्थ्य का ख्याल रखना कितना जरुरी 

मानसिक स्वास्थ्य उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि शारीरिक स्वास्थ्य. अच्छे मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखना हमारे शारीरिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है. तनाव या डिप्रेशन इम्यूनिटी को कमजोर कर सकता है, जिससे शरीर संक्रमण की चपेट में आ सकता है. जब समस्याएँ होती हैं, तो मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल्स से वैसे ही मदद के लिए संपर्क करना ज़रूरी है, जैसा कि आप किसी बीमारी या चोट के इलाज के लिए डॉक्टर के पास जाते है. इसके अलावा  मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए शारीरिक स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है, कुछ सुझाव निम्नलिखित है, 

रहें शारीरिक रूप से फिट 

सोशल डिस्टेंसिंग ज़रुरी है, लेकिन फिर भी जब भी मौका मिले ताजी हवा और सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आना बहुत ज़रुरी है. नियमित शारीरिक व्यायाम जैसे एरोबिक्स या योगा घर के अंदर किया जा सकता है. तनाव को रोकने और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार के लिए व्यायाम महत्वपूर्ण है. इस समय सबसे बड़ा तनाव का कारण कोरोना संक्रमण का डर है. इसलिए लोगों को सोशल डिस्टेंसगि, स्वच्छता, हाथों की स्वच्छता और मास्क पहनना आदि को नियमित पालन करना चाहिए ।

खुद की देखभाल

लोग अक्सर खुद की देखभाल के महत्व को अनदेखा करते है, जो सबसे अधिक महत्वपूर्ण है. जब महिलाए किसी प्रकार से खुद की देखभाल करने लगती हैं, तो यह माना जाता है कि वे खुद  स्वार्थी हो रही है. हर इंसान जब तक पूरी तरह खुद की देखभाल पर ध्यान नहीं देगा, तब तक वह स्वस्थ नहीं रहेगा.

लें सही पोषण

स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास कर सकता है. पौष्टिक भोजन का सेवन करने से, इम्यूनिटी को बढ़ावा देने, शरीर को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रखना संभव होता है.

करें नींद पूरा 

नींद की कमी या नींद का पूरा न होना तनाव और थकान का एक प्रमुख कारण होता है. व्यक्ति को हमेशा यह देखना चाहिए कि उसे पूरी और गुणवत्ता वाली नींद मिलें. यह भी इम्यूनिटी को बढ़ाने का एक बड़ा कारण है. यह शरीर को फिर से जीवंत और सक्रिय करने में मदद करता है.

मैडिटेशन पर दें ध्यान 

वर्तमान महामारी जैसी तनावपूर्ण समय में, कोई भी डिस्टर्ब हो सकता है. इसलिए, मन को शांत करने के लिए योग और मैडिटेशन जैसी गतिविधियों का अभ्यास नियमित रूप से फायदेमंद हो सकता है. शांत समय में एक “विराम” लेने और मनोवैज्ञानिक ऊर्जा को फिर से एक्टिव करने की जरुरत होती है.

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बचें नशे से 

धूम्रपान, ड्रग्स और शराब के सेवन से बचना चाहिए. इनका ज्यादा सेवन लंबे समय तक आपकी मानसिक और शारीरिक क्षमता को कमजोर कर सकता है. इसके अलावा इस समय लोग अधिकतर सोशल मीडिया पर एक्टिव है, क्योंकि सोशल मीडिया हमारे जीवन का अब एक हिस्सा बन चुका है. सोशल मीडिया या किसी भी तकनीक का अत्यधिक उपयोग मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है. किसी भी उपकरण को, जिसे हम मनोरंजन के लिए प्रयोग  करते है, उसे सीमित समय में बांधने की आवश्यकता होती है,ताकि गैर-जिम्मेदार व्यवहारों को अपनाने से बचें. सोशल मीडिया से जिम्मेदारी से जुड़ने की जरूरत है.

प्रोफेशनल की लें मदद

अगर किसी व्यक्ति की मनोदशा में अचानक परिवर्तन, उदासी, चिड़चिड़ापन, दूसरे किसी मानसिक विकार आदि के लक्षण दिखते है, तो मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल से परामर्श करने में संकोच न करें.

मानसिक स्वास्थ्य की समस्या अब कोई स्टिग्मा या कलंक नहीं. इसका खुलकर सामना करें और इससे मुक्त होकर अच्छी जीवन यापन करें. मानसिक स्वास्थ्य को भी शारीरिक स्वास्थ्य के बराबर ही प्राथमिकता दें. इससे केवल परिवार ही नहीं, बल्कि एक स्वस्थ समाज की स्थापना हो सकेगी. 

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Festive Special: बच्चों के परोसें लौकी की बर्फी

आपने अक्सर देखा होगा बच्चे हमेशा लौकी का ना म सुनकर नाक सिकोड़ते हैं लेकिन क्या आपने नए तरीके से लौकी को अपने बच्चों के सामने पेश किया हैं. आज हम आपके लौकी की सब्जी की बजाय लौकी की बर्फी के बारे में बताएंगे. लौकी की बरफी बनाना उतना ही आसान है, जितनी मेहनत आप कोफ्ता बनाने के लिए करते हैं. आइए आपको बताते हैं लौकी की बरफी की टेस्टी और हेल्दी रेसिपी…

हमें चाहिए

1 किलो लौकी

1/2 कप घी

250 ग्राम चीनी

250 ग्राम मावा

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10-15 काजू, टुकड़े किए हुए

1 चम्‍मच इलायची पाडउर

1 चम्‍मच पिस्ता

बनाने का तरीका

– लौकी छील को छीलकर उसके बीज और बीच वाला गूदा निकाल लें. इसके बाद लौकी को कद्दूकस कर लें और कड़ाही में कसी हुई लौकी, 2 छोटी चम्मच घी डालकर इसे ढककर धीमी आंच पर पकने के लिए रख दें. थोड़ी देर बाद इसे चलाइये और फिर से ढक दें.

– जब लौकी नरम हो जाए तो उसमें चीनी डालकर पकाइएं और थोड़ी-थोड़ी देर में इसे चलाते रहें ताकि लौकी तली में न लगने पाएं. पकी हुई लौकी में बचा हुआ घी डालिए और लौकी को अच्छी तरह भूनकर मावा और मेवे डालकर मिलाएं.

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– जब लौकी का मिश्रण बर्फी बनाने के लिए तैयार हो जाए तो आंच को आग बंद कर दें और इलाइची पाउडर डालकर इसे अच्‍छी तरह मिला लें. अब एक थाली में चिकनाई लगाकर मिश्रण को थाली में डालकर एकसार करके जमने के लिए रख दें.

– बर्फी के ऊपर कतरे हुये बारीक पिस्ते और काजू डाल दें. लगभग 1 घंटे में लौकी की बर्फी जम जाती है. इसे अपनी पसंद के टुकड़ों में काटकर अपनी फैमिली और बच्चों को परोसें.

वालपेपर इंटीरियर से सजाएं घर

जब बात इंटीरियर की आती है, तो आप अपने घर को मौडर्न लुक में देखना पसंद करती हैं. मौडर्न लुक देने के लिए आप घर में कलर करवाने के बजाय वालपेपर लगवाएं तो घर की दीवारें इतनी खूबसूरत लगेंगी कि देखने वाला तारीफ किए बिना न रह सकेगा. आजकल वालपेपर काफी चलन में है और इस की काफी डिमांड है. मार्केट में वालपेपर की ढेरों वैराइटी और रेंज आप को मिल जाएगी.

आइए, जानें वालपेपर के इस्तेमाल के आधुनिक तरीकों को-

थीम के अकौर्डिंग

आजकल वालपेपर थीम के अकौर्डिंग इस्तेमाल हो रहा है. लोग हर कमरे को उस की उपयोगिता और उस में रहने वाले की पसंद के हिसाब से डिजाइन कर रहे हैं. ऐसे में दीवार कैसी हो, इस बात का पूरा खयाल रखना पड़ता है. यदि आप चाहती हैं कि आप के हर रूम में ग्रीनरी का एहसास हो या आप को ऐनिमल बहुत पसंद हैं, तो आप नेचर या ऐनिमल प्रिंटेड वालपेपर अपने घर में लगवा सकती हैं. साथ ही, यदि आप घर के कुछ हिस्सों को हाईलाइट करना चाहती हैं, तो सिर्फ उतनी ही जगह में वालपेपर लगवा सकती हैं. इस से वह कौर्नर या रूम डिफरैंट लगेगा. नए तरीके के वालपेपर को हाईलाइटर्स की तरह ही इस्तेमाल किया जा रहा है.

 

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रूम के अकौर्डिंग

कुछ समय पहले तक दीवारें तसवीरों से ही सजाई जाती थीं, लेकिन अब उन की जगह वालपेपर ने ले ली है. बच्चों के रूम के लिए टौम ऐंड जैरी, हैरी पौटर, बाइक्स और ऐनिमल प्रिंट का इस्तेमाल किया जाता है. इस से रूम खूबसूरत तो लगता ही है, बच्चों की क्रिएटिविटी भी बढ़ती है. युवाओं के कमरों के लिए फ्लोरल, टैक्सचर, स्टिकर्स, स्कैच, ट्राइएंगल और ऐब्सट्रैक्ट के साथ ही पिक्चर डिजाइन का वालपेपर सिलैक्ट कर सकती हैं. लड़कियां शिमर, फ्लोरल, रोज और ऐब्सट्रैक्ट वालपेपर ही पसंद करती हैं. कपल्स के लिए थीम बेस्ड, थ्री साइज वालपेपर के साथ डार्क शेड मिक्स ऐंड मैच किया जा सकता है. वालपेपर में आप मिक्स ऐंड मैच का फंडा अपना सकती हैं. इस के लिए घर के फर्नीचर या परदों से मैच करते वालपेपर लगा सकती हैं. हां, यदि आप किसी और वालपेपर से बोर हो गई हैं, तो उस पर री पेंट भी करा सकती हैं. पेंट और वालपेपर को मिक्स ऐंड मैच कर के भी लगवा सकती हैं.

पार्टी या फंक्शन में

यदि आप के घर में कोई शादी या पार्टी  है तो आप गोल्डन या सिल्वर कलर का वालपेपर लगवा सकती हैं. इस से आप के घर का पूरा लुक पार्टीनुमा हो जाएगा. इसी तरह ब्राइड के रूम में भी रैड या पिंक कलर के वालपेपर में ग्लिटर व स्पार्कल का इस्तेमाल बैस्ट औप्शन रहेगा.

कुछ जरूरी बातें

 

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वालपेपर लगवाते समय यदि आप को लगता है कि आप उसे मैंटेन नहीं कर पाएंगी तो वाटरप्रूफ वालपेपर लगवाएं. इस की मैंटेनैंस पर खर्च भी बहुत कम आता है, क्योंकि यह वाशेबल होते हैं. अच्छी क्वालिटी का वालपेपर ही लगवाएं, क्योंकि यह 10 साल तक भी खराब नहीं होता.  घर में सीलन होने पर आप सोचेंगी कि वालपेपर लगाना मुश्किल होगा, लेकिन अब यह भी आसान हो गया है. इस में सब से पहले वाल को वाटरप्रूफ किया जाता है, फिर वालपेपर लगाया जाता हैं. अगर दीवार में बहुत नमी है, तो इंटीरियर डिजाइनर वहां पर वाटरपू्रफ प्लाईर् लगाने का सुझाव देते हैं. फिर उस प्लाई पर वालपेपर लगाया जाता है. बाजार में वालपेपर की रेडीमेड थीम्स भी मौजूद हैं. डैकोरेटिव पैटर्न, फैब्रिक बैक्ड विनाइल और नौन वुवन वालपेपर, जो नैचुरल फैब्रिक से तैयार होता है, मिल जाएगा.

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फेस्टिव सीजन में ट्राय करें हैंडलूम साड़ियां

हैंडलूम अर्थात हाथ से बनी हुई साड़ियां. हैंडलूम साड़ियां एवरग्रीन होती हैं . इन साड़ियों की सबसे बड़ी विशिष्टता है कि इन्हें बनाने में जिस मेटेरियल का प्रयोग किया जाता है वह पूरी तरह से इकोफ्रेंडली और आरामदायक होता है. इनका अपना एक अलग ग्रेस होता है, ये कला के प्रति आपकी अभिरुचि को तो प्रदर्शित करतीं ही हैं साथ ही आपके व्यक्तित्व में भी चार चांद लगा देतीं हैं. इनकी सबसे बड़ी खासियत है कि आप इन्हें फेस्टिव सीजन, बर्थडे पार्टी अथवा शादी जैसे किसी भी कार्यक्रम में भी बड़े आराम से पहन सकतीं हैं. पटोला, इकत, कुनबी, चंदेरी, माहेश्वरी, कोसा, टसर, तांत, कांजीवरम, जामदानी, भागलपुरी जैसी अनेकों एक से बढ़कर एक हैंडलूम साड़ियों की वेराइटी बाजार में उपलब्ध हैं. ये बाजार में महंगी सस्ती हर रेंज में उपलब्ध हैं.

अक्सर जब हम साड़ी खरीदने जाते हैं तो अनेकों साड़ियां देखने के बाद भी हमें साड़ी पसन्द ही नहीं आती. कई बार हम साड़ी तो खरीद लाते हैं परन्तु घर आकर हमें अपने ऊपर वह अच्छी नहीं लगती तो यहां प्रस्तुत हैं कुछ टिप्स जो हैंडलूम साड़ी खरीदने में आपके मददगार हो सकते हैं-

-यदि आप सिंथेटिक साड़ियों की तरह इन्हें भी यूज़ एंड वाश करने का विचार लेकर खरीदने जा रहीं हैं तो ध्यान रखिये कि हैंडलूम साड़ियां अतिरिक्त केअर मांगती हैं.

-घर से अच्छी तरह विचार करके जाएं कि आपको कौन सी और किस रेंज तक की हैंडलूम साड़ी चाहिए और फिर दुकानदार से उसी प्रकार की विविध डिजाइन्स दिखाने को कहें. इससे आपको साड़ी चयन करने में आसानी रहेगी.

-यदि आपको अपने मनचाहे ब्रांड में साड़ी नहीं पसन्द आ पा रही है तो दुकानदार से उसी बजट में दूसरे ब्रांड की साड़ी दिखाने को कहें.

-चूंकि इनमें रंग की कोई लिमिट नहीं होती, ये हल्के गहरे सभी रंगों में मौजूद हैं इसलिए साड़ी खरीदते समय अपनी स्किन टोन का ध्यान अवश्य रखें. आप साड़ी का रंग ऐसा चुनें जो आप पर फबे. फेयर या पेल कॉम्प्लेक्सन के लिए ब्राइट रंग और टैन रंगत वाली महिलाओं पर मैरून, डार्क पिंक, और गहरा हरा रंग गेहुएं रंग की महिलाओं पर अच्छा लगता है.

-महंगी से महंगी साड़ियां हैंडलूम स्टोर पर मिलतीं है. आप घर से अपना बजट तय करके जाएं और फिर आप दुकानदार को अपने बजट में ही साड़ियां दिखाने को कहें. अपना बजट न बताने से कई बार दुकानदार पहली बार में ही महंगी साड़ी दिखा देते हैं जिससे कम बजट में हमें साड़ी पसन्द ही नहीं आ पाती.

-साड़ी खरीदते समय अपने बॉडी टाइप का भी ध्यान रखें. दुबले पतले शरीर पर हैवी बॉर्डर हैण्डलूम साड़ी तो ओवरवेट शरीर पर बिना बॉर्डर की साड़ी अच्छी लगती है.

-यदि आपको कोई भी रंग पसन्द नहीं आ पा रहा है तो काले रंग की साड़ी चुनें क्योंकि काला रंग कभी आउट ऑफ फैशन नहीं होता. काले रंग में विविध पैटर्न और डिजाइन्स होते हैं अतः आप दुकानदार से केवल काली ही साड़ी दिखाने को कहें और फिर उसमें से चुनें.

कैसे करें हैंडलूम साड़ियों की देखभाल

-साड़ी को पहनने के बाद पूरी तरह सुखाकर, तह करके एक मलमल या सूती कपड़े में लपेटकर रखें ताकि इसमें हवा का प्रवाह तो हो परन्तु नमी से बची रहे.

-आजकल तो बाजार में सूती कपड़े के बने साड़ी कवर मिलते हैं आप साड़ी को उसमें रखकर हैंगर पर टांग भी सकतीं हैं.

-अपनी अलमारी में नीम की पत्तियां,या फिनायल की गोली अथवा ओडोनिल का पैकेट रखें ताकि इनमें किसी प्रकार के कीड़े न हों. ध्यान रखें कि इनका साड़ियों से प्रत्यक्ष सम्पर्क न हो.

-यदि आपने काफी समय से इन्हें प्रयोग नहीं किया है दो तीन माह में एक बार खोलकर इनकी तहों को बदलती रहें अन्यथा ये तहों से ही चिर जाती हैं.

-हैंडलूम साड़ियों पर कभी भी परफ्यूम या डिओडरेंट का स्प्रे न करें .

-कुछ महिलाओं को एक बार पहनने के बाद ही साड़ी धोने की आदत होती है. हैंडलूम साड़ियों को बार बार धोने से उनकी चमक गायब हो जाती है इसलिए इन्हें धोने में जल्दबाजी न करे.

-पूर्ण मेकअप करने के बाद ही आप इन्हें पहनें क्योंकि मेकअप के दाग इन पर से बहुत मुश्किल से छूटते हैं.

-यदि आपको बहुत पसीना आता है तो ब्लाउज के नीचे पसीना सोखने वाले पैड्स पहनें.

-सूती हैंडलूम साड़ियों को घर पर आसानी से धोया जा सकता है इसके लिए इन्हें प्रथम बार धोते समय नमक के पानी में 2 से 3 घण्टों के लिए भिगो दें और फिर पानी निचोड़कर सुखाएं.

-इन्हें कभी रातभर या कई घण्टों के लिए पानी में भिगोकर न रखें वरना इनका रंग निकल सकता है.

-इन्हें सदैव तरल सोप से धोएं और कभी भी ब्रश से रगड़ने का प्रयास न करें क्योंकि ये साड़ियां बहुत नाजुक होती हैं.

-इन्हें वाशिंग मशीन में धोने की गल्ती न करे . कम प्रयोग की जाने वाली साड़ियों को ड्राईक्लीन करवाएं.
पुरानी हो चुकी साड़ियों को यूं करे रीयूज

यूं तो ये साड़ियां कभी आउट ऑफ फैशन नहीं होतीं परन्तु कई बार कट, फट , जल या अधिक समय तक रखे रहने से क्रैक हो जाने से ये साड़ी के रूप में पहनने के योग्य नहीं रहतीं. ऐसी साड़ियों को आप कुछ इस प्रकार रीयूज कर सकतीं हैं-

-बॉर्डर पल्ले वाली साड़ी का बॉर्डर निकालकर आप किसी भी प्लेन साड़ी पर लगा सकतीं हैं.प्लेन बेडशीट पर बॉर्डर लगाकर शानदार बेडशीट तैयार की जा सकती है.

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-सिल्क की साड़ियों से बेहतरीन कुशन कवर, डायनिंग टेबल रनर और नैपकिन्स बनाये जा सकते हैं. इनमें अस्तर अवश्य लगाएं. चंदेरी, तांत, महेश्वरी जैसे पारदर्शी फैब्रिक में मोटा तो सिल्क और बनारसी जैसे मोटे फैब्रिक में पतला अस्तर लगाना उचित रहता है.

-शरारा आजकल फैशन में है आप साड़ी से शरारा और चुन्नी बनवाएं और मैच करते प्लेन कुर्ते पर पहनें.

-सिल्क की साड़ी से कुर्ता और पलाजो बनवाएं और उस पर मैच करती बनारसी चुन्नी कैरी करें.

-छोटे बच्चों की फ्रॉक और सलवार सूट बनवाएं.

-यदि पूरी साड़ी का यूज़ नहीं हो पा रहा है तो उसमें से दुपट्टा निकालने का प्रयास करें और उसे पीको करवाकर प्लेन या प्रिंटेड सूट पर पहनें.

-साड़ी से लहंगा या स्कर्ट और पल्ले से हैवी ब्लाउज बनवाएं, शानदार पार्टी ड्रेस तैयार हो जाएगी.

-यदि आपकी साड़ी का मैचिंग ब्लाउज छोटा हो गया है तो आजकल बाजार में तथा ऑनलाइन ब्लाउज की अनेकों वेराइटी मौजूद हैं आप अपने नाप के अनुसार खरीदें, मैचिंग न मिलने की स्थिति में गोल्डन या सिल्वर ब्लाउज खरीदना ठीक रहता है.

बच्चों का खेल नहीं पेरैंटिंग

चाहे वर्किंग पेरैंट्स हों, हाउसवाइफ या फिर वर्किंग हसबैंड, आप को अपने बच्चों की चिंता सताती रहती है. इस कारण आप उन पर कई ऐसी पाबंदियां लगा देते हैं कि बच्चे घुटन महसूस करने लगते हैं. आज के समय में बच्चों पर कोचिंग क्लास अटैंड करने का बोझ भी बढ़ जाता है. दूसरे बच्चों के साथ कंपीटिशिन का दबाव भी होता है. पेरैंट्स के तौर पर क्या आप ने यह जानने की कोशिश की है कि वे आप के लाइफस्टाइल से खुश हैं या निराश?

बच्चों पर पाबंदियां लगाने के बजाय उन्हें अपने ढंग से आजादी दे कर तो देखें. आप को स्वयं इन बातों के जादुई परिणाम दिखाई देने लगेंगे. आप इन मुख्य बातों पर ध्यान दें:

बच्चे को हीनभावना से बचाएं

बच्चे की योग्यता और प्रतिभा अपने प्रयास के साथसाथ जीन्स पर भी निर्भर करती है. इसलिए इन के लिए दुखी होना या मन में हीनभावना लाना सही नहीं है. पेरैंट्स का फर्ज है कि अपने बच्चों के मन में किसी प्रकार की हीनभावना न आने दें. बच्चों को सिखाएं कि उन्हें अपने गुणों और प्रतिभा के विकास का प्रयत्न खुद करना चाहिए. जो चीजें उन के वश में नहीं हैं उन के लिए उन्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है और वे किसी प्रकार की हीनभावना न रखें.

इस के साथसाथ इस बात पर भी गौर करें कि कहीं आप अपने बच्चे से उस की क्षमता से ज्यादा अपेक्षा तो नहीं कर रहे. ऐसा करना आप के बच्चे को डिप्रैशन का शिकार भी बना सकता है. दूसरे बच्चों के साथ योग्यता के आधार पर अपने बच्चे की तुलना करने से भी बचें.

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घर की पाठशाला

बच्चों को स्कूल के बजाय घर की पाठशाला में सीखने का अवसर मिलता है. शिशु मनोवैज्ञानिकों का मत है कि पेरैंट्स को अपने बच्चों को बड़ी समझदारी और मनोवैज्ञानिक तरीके से हैंडल करना चाहिए. इसलिए जरूरी है कि पेरैंट्स उन के सामने वादविवाद, लड़ाईझगड़ा न करें. झगड़े के समय जैसी भाषा का इस्तेमाल मातापिता करते हैं उसे बच्चे बहुत जल्दी अपना लेते हैं. फिर चाहे वह सही हो या गलत, बच्चे जल्दी ही उस भाषा का अनुकरण भी करने लगते हैं. घर में और घर के बाहर बच्चे के व्यवहार को नजरअंदाज मत करें.

अनुशासन का मतलब बच्चों को सजा देना नहीं है, बल्कि उन्हें सहीगलत की पहचान कराना है. उन्हें अपना निर्णय खुद लेने में सक्षम बनाना है. नियमित दिनचर्या से बच्चों में अनुशासन, आत्मविश्वास व सुरक्षा का भाव उत्पन्न होता है.

बच्चों की भावनाओं का खयाल रखें

अकसर अभिभावक गुस्से या झुंझलाहट के कारण ऐसी आलोचना और टिप्पणी कर जाते हैं, जो बच्चे के मन को गहरे में व्यथित कर जाती है. जिस बात के लिए आप बच्चे की आलोचना करते हैं वह उम्र व अनुभव की कमी के कारण होती है. उन के भविष्य को संवारने में मातापिता की अहम भूमिका होती है. अगर बच्चे की कमियों को देखते हैं, तो समझदारी से उन्हें सुधारने का प्रयत्न करें.

बचपन की अवस्था ऐसी अवस्था है जब बड़ों की तरह बच्चे की अपने दोस्तों और स्कूल में अपनी पहचान बनाने की रुचि होती है. पेरैंट्स को चाहिए कि वे अपनी पहचान बनाने में उस की मदद करें. उस के ईगो और आत्मसम्मान के विरुद्ध कोई बात न करें.

बच्चे की जरूरत का ध्यान रखें

प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक मैस्लो के अनुसार, मनुष्य की कुछ मूलभूत आवश्यकताएं होती हैं, जिन के पूरा होने पर उसे आत्मसंतुष्टि का अनुभव होता है. बच्चे की शारीरिक और खानपान की जरूरत के अतिरिक्त उसे प्यार, सुरक्षा और सम्मान की भावना से ओतप्रोत रखने से उस का शारीरिक और मानसिक विकास सही तरीके से हो पाता है. जैसे पौधे को सिंचाई, रोशनी, हवा आदि की उस के विकास के लिए जरूरत होती है वैसे ही बच्चों के विकास के लिए उचित माहौल, प्यार, सुरक्षा और सम्मान जरूरी है.

बच्चों को एकांत भी चाहिए

बड़ों की जिम्मेदारी होती है वे अपने छोटों की देखभाल करें, उन का ध्यान रखें. कई बार हमें लगता है हम पतिपत्नी अकेले रहें. ऐसा मन बच्चे का भी हो सकता है. उस के हावभाव और बोलचाल से यह अनुमान लगाएं कि कब वह अकेला रहना चाहता है. ऐसी स्थिति में उसे अकेला छोड़ दें फिर चाहे वह अपने दोस्तों के साथ हो या अपना गृहकार्य, स्कूल का होमवर्क अकेले रह कर करना चाहता हो. हर समय उस के इर्दगिर्द रह कर अपनी उपस्थिति से उसे बोर न करें. उस के विकास के लिए उस का आत्मनिर्भर होना आवश्यक है.

एक शोध में यह बात सामने आई है कि जिन बच्चों को मातापिता की देखरेख में अपना मनचाहा काम करने के लिए एकांत मिला, वे अन्य बच्चों की तुलना में ज्यादा क्रिएटिव बन कर उभरे.

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याद रखें

– बच्चों की पेरैंटिंग को किसी भी स्थिति में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. उन की सही पेरैंटिंग पर समाज और देश का विकास निर्भर करता है. आज का बच्चा भविष्य का जिम्मेदार और योग्य नागरिक बनने की क्षमता रखता है. अगर आप परिवार की समृद्धि और बेहतरी चाहते हैं तो पेरैंटिंग गंभीरता और समझदारी के साथ करें. पतिपत्नी और अन्य रिश्तेदारों का योगदान ही इसे संभव कर सकता है. यह साधारण काम नहीं है.

– जब आप अभिभावक की भूमिका निभा रहे होते हैं तो आप बच्चे के 3 पहलुओं पर काम कर रहे होते हैं- बच्चे के स्वभाव (टैंपरामैंट) का विकास, बच्चे का व्यवहार (बिहेवियर), बच्चे का चरित्र (करैक्टर).

इसलिए यह आप की जिम्मेदारी है कि बच्चे की पेरैंटिंग पूरी समझदारी, लगन, उत्साह और उस की मनोवैज्ञानिक जरूरत को पूरा करने के उद्देश्य के साथ करें. बच्चा कुम्हार की कच्ची मिट्टी की तरह है, जिसे आप मनचाहा आकार दे कर सुंदर बना सकते हैं.

हार्ट ट्रांसप्लांट करवाने के बाद क्या करना चाहिए?

सवाल-

मेरी उम्र 38 साल है. दिल फेल होने के कारण हाल ही में मेरा हार्ट ट्रांसप्लांट हुआ है. मुझे डर है कि कहीं मुझे फिर से यह समस्या न हो जाए. इस से बचाव का तरीका बताएं?

जवाब-

हार्ट फेल्योर या दिल का फेल होना एक ऐसी समस्या है जो हमारी जीवनशैली की आदतों पर निर्भर करती है. इस से बचाव का एकमात्र तरीका स्वस्थ जीवनशैली और सही आहार है. हालांकि आप को तनाव लेने की जरूरत नहीं है, क्योंकि सर्जरी के बाद आप को समयसमय पर जांच कराने की सलाह दी गई होगी. इस से बचाव के लिए रोजाना ऐक्सरसाइज करें, योगा करें, सही आहार लें, तेलमसाले वाले खाने से दूर रहें, सुबह की सुनहरी धूप लें, खाने के बाद आधा घंटा टहलें, 2-3 लिटर पानी का सेवन करें. आप की ये आदतें आप को दिल की बीमारियों के साथसाथ आप के बाकी समग्र स्वास्थ्य को भी बेहतर रखने में मदद करेंगी.

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वो दौर गया जब सिर्फ 50 साल की उम्र के ही लोगों को हार्ट अटैक का खतरा होता था. आज की बदलती जीवनशैली के चलते अब 30 के उम्र के लोग भी इस खतरनाक बीमारी की चपेट में आने लगे हैं. जी हां, 30 से 40 उम्र के लोगों को दिल संबंधी बीमारियां होने लगी है. इन रोगों का कारण सिर्फ तनाव है और इससे मुक्ति पाने के लिए ये लोग धूम्रपान, नींद की दवाएं, शराब का सेवन करते हैं. जो उन्हें दिल की बीमारी की तरफ ले जा रही है. आपको ये बीमारी ना हो और आप इससे खुद को बचाने के लिए पहले से ही सतर्क रहें, इसीलिए हम आपको दिल की बीमारी के शुरुआती लक्षण बता रहे हैं जिन्हें समय से पहले जानकर गंभीर दिल की बीमारियों से बचा जा सकता है.

ये हैं लक्षण

– छाती में बेचैनी महसूस होना

यदि आपकी आर्टरी ब्लौक है या फिर हार्ट अटैक है तो आपको छाती में दबाव महसूस होगा और दर्द के साथ ही खिंचाव महसूस होगा.

– मतली, हार्टबर्न और पेट में दर्द होना

दिल संबंधी कोई भी गंभीर समस्या होने से पहले कुछ लोगों को मितली आना, सीने में जलन, पेट में दर्द होना या फिर पाचन संबंधी दिक्कतें आने लगती हैं.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- बढ़ रहा है हार्ट अटैक का खतरा, ऐसे रखें दिल का ख्याल

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
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फैसला: शशि के बारे में ऐसा क्या जान गई थी वीणा?

Serial Story: फैसला (भाग-3)

मैं वीणा को पहले ही सब बता दूं… बाद में उसे कोई शिकायत न हो.’’  बातों का रुख कहां से कहां पहुंच गया था. अब जश्न का वह मजा नहीं रहा. बेमन से सब ने खाना खाया. खाना खाने के बाद तुरंत शशि वहां से चला गया. लेकिन अपने पीछे बहुत से सवाल छोड़ गया. वीणा खामोश हो गई थी. मांपापा दोनों को समझ नहीं आ रहा था कि बात को कैसे संभालें?  जैसेजैसे दिन गुजरते जा रहे थे शशि का स्वभाव उन के सामने खुलता  जा रहा था. बड़ा ही सनकी और अजीब हठी था वह. किसी की एक नहीं सुनता. हरकोई उस की सुने, उस की यही मंशा थी. वीणा ने शशि की मां से बात की तो उन का भी यही मानना था कि शशि का कोई इलाज नहीं. बस यही कर सकते हैं कि वह जैसा बरताव करे हम उस के साथ वैसा ही करें ताकि उसे उस की गलती का एहसास हो.

लेकिन वीणा को लगता कि यह स्थायी समाधान नहीं. उस के जैसा बरताव कर के कब तक वह जिंदगी के सवालों को सुलझा सकती है? वीणा जैसे उलझन में फंस गई थी. आतेआते शादी अगले महीने तक आ गई. गुजरता वक्त उसे बेचैन कर रहा था. उस की तड़प बढ़ रही थी. तभी मोबाइल बज उठा. वीणा ने देखा तो उसे शशि का नंबर नजर आया. बैल बजती रही… लेकिन उसे बात करने की इच्छा नहीं थी. फोन बजता रहा और फिर कट गया. वह औफिस के लिए तैयार हो रही थी कि फिर से बैल बजी. इस बार मां ने फोन उठाया और वीणा को देने आ गईं.

इस बार वीणा को बात करनी ही पड़ी.  ‘‘हैलो वीणा, क्या कर रही हो? क्या इतनी बिजी हो कि मेरा फोन भी नहीं उठा सकतीं? खैर, सुनो आज तुम से मिलना है. कुछ जरूरी काम है. या तो पूरे दिन की छुट्टी ले लो या फिर हाफ डे कर लो. अब तुम्हीं तय कर मुझे फोन कर देना. और हां, टालना मत वरना मुझे वहां आना पड़ेगा.’’ उस का धमकी भरा स्वर सुन कर वीणा सकते में आ गई. बेमन से वह औफिस के लिए निकली. औफिस पहुंच कर उस ने हाफ डे के लिए अर्जी दी और शशि को फोन कर दिया.

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शशि को ऐसा क्या जरूरी काम आन पड़ा होगा, सोचते हुए वह फटाफट काम निबटाने लगी ताकि वक्त से पहले काम निबटा सके. आखिर डेढ़ बजे तक उस ने काम समाप्त कर दिया और शशि का इंतजार करने लगी. ठीक 2 बजे शशि उसे लेने आ गया. फिर दोनों उस की बाइक से एक रेस्तरां में आ गए. ‘‘बैठो वीणा, मुझे तुम से कुछ जरूरी बातें करनी हैं,’’ शशि बैठते हुए बोला, ‘‘वीणा अब हमारी शादी के दिन पास आ रहे हैं. शादी के बाद तुम हमारे घर आओगी.

वैसे तो तुम वहां पहले से आजा रही हो, फिर भी मैं कुछ बातें समझा देना चाहता हूं. वीणा वह तुम्हारी ससुराल होगी मायका नहीं. जैसे मायके में आजाद पंछी की तरह फुदकती रहती हो वैसे वहां नहीं चलेगा. वहां तुम्हें बहू के हिसाब से रहना होगा. घर के सारे काम तुम्हें करने होंगे. मैं ये सब इसलिए बता रहा हूं, क्योंकि मुझे लगता है कि तुम जौब और घर दोनों नहीं संभाल पाओगी, तो तुम काम छोड़ दो.’’ ‘‘शशि यह क्या कह रहे हो? मैं काम क्यों छोड़ूं? मैं दोनों जिम्मेदारियां ठीक से निभाऊंगी… इतना भरोसा है मुझे खुद पर. घरबार संभालना हम औरतों का जिम्मा है, तुम इस में न ही पड़ो तो बेहतर है. यकीन रखो मैं सब संभाल लूंगी,’’ वीणा ने सयंत हो कर कहा.

वैसे जिस तरह का स्वभाव शशि का था उस से वह कोई बात नहीं मानेगा यह वीणा समझ ही गई थी. फिर भी वह कोशिश करना चाहती थी.  ‘‘वीणा मैं कोई तुम से सलाहमशवरा करने नहीं बैठा हूं. मैं तुम्हें बता रहा हूं  कि तुम्हें नौकरी छोड़नी पड़ेगी और हां हमारे घर के फैसले घर के मर्द लेते हैं… जो होशियारी दिखानी हो घर में रह कर दिखाओ. बातबात में मुझ पर रौब मत जमाया करो. होगी तुम सयानी तो अपने घर की. मेरे घर में मेरी चलेगी, यह बात ठीक से समझ लो तो बेहतर है,’’ गुस्से में बड़बड़ाता शशि वहां से चला गया.  वीणा उसे आवाजें लगाती रह गई, पर वह नहीं रुका. वीणा ने बिल पे किया और घर चल पड़ी. घर पहुंची तो पापा ने दरवाजा खोला. उस की सूरत से ही वे समझ गए कि बात काफी उलझी है. मां किसी काम से बाहर गई थीं. वीणा ने पापा को देखा तो उस का दिल भर आया. पापा के सीने से लग कर वह फफकफफक कर रो पड़ी.

‘‘अरे, क्या हुआ बेटे. ऐसे क्यों रो रही हो?’’ ‘‘पापा आज शशि मिलने आया था,’’ और फिर उस ने सारी बात उन्हें बता दी. सारी बात सुन कर पापा सोच में पड़ गए. अभी तो शादी हुई नहीं है और शशि के ये तेवर हैं.’’  आगे न जाने क्या हालात होंगे. ‘‘पापा, मैं उस के साथ सहज नहीं हो पाऊंगी… मेरा मन नहीं मान रहा है इस शादी को… क्या करूं कुछ समझ नहीं आ रहा है?’’

‘‘ठीक है बेटे हम इस बारे में तुम्हारी मां के आने के बाद बात करेंगे. अब तुम फ्रैश हो लो.’’  वे दोनों उठने ही वाले थे कि तभी मां आ गई. ‘‘अरे मां, आप आ गईं? फ्रैश हो जाओ. मैं चाय ले कर आती हूं.’’ थोड़ी ही देर में मां फ्रैश हो कर आ गईं और वीणा की चाय भी. चाय के साथसाथ शशि की बात चल निकली. वीणा के मन में ‘शादी’ पर सवाल अंकित देख कर मां सहम गईं.

फिर बोलीं, ‘‘वीणा, मुझे तो हमेशा उस का हठी स्वभाव शंका में डालता था पर लगता था वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा. तुम दोनों एकदूसरे को समझ जाओगे लेकिन आज तुम कुछ  और ही बता रही हो. अब शादी अगले महीने है. सभी रिश्तेदारों और परिचितों को पता चल चुका है… सारी तैयारी हो चुकी है… ऐसे में रिश्ता टूटे तो बदनामी हमारी ही होगी.’’  मां की बातों में भले ही वजन था पर अब वीणा के मन से शशि उतर चुका था और  किसी भी कीमत पर वह शादी नहीं चाहती थी.

अत: वह मायूस हो कर वहां से चली गई. बाद में पता नहीं पापा ने उस की मां को किस तरह समझाया. अगली सुबह जब वीणा चाय लेने टेबल पर पहुंची तो पापा ने बताया कि वह शशि को फोन कर शादी से इनकार कर दे… जो होगा देख लेंगे. ‘‘पापा, आप सच कह रहे हैं? क्यों वाकई मैं इनकार कर दूं?’’ ‘‘हां बेटे, कल रात मैं और तुम्हारी मां देर तक सोचते रहे. अरे अपनी बेटी खुश रहे, उसे एक अच्छा जीवनसाथी मिले यही तो हर मम्मीपापा की इच्छा होती है. जो रिश्ता शुरू होने से पहले ही बोझ लगने लगा है तो उसे उम्रभर किस तरह निभाओगी तुम? इस से बेहतर है कि हम रिश्ता तोड़ दें.

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अब जाओ उसे फोन करो.’’ ये सब सुन कर वीणा को लगा जैसे दिल से भारी बोझ उतर गया हो. मम्मीपापा का हाथ उस के सिर पर है यह जान उसे तसल्ली मिली. वह मोबाइल पर शशि का फोन मिलाने ही वाली थी कि शशि का ही फोन आ गया. बोला, ‘‘हैलो वीणा… फिर क्या तय किया तुम ने? आज इस्तीफा भेज रही हो या नहीं?’’ ‘‘इस्तीफा नहीं शशि. मैं ने तुम से सगाई तोड़ने का फैसला किया है.’’ शशि हैलोहैलो… ही कहता रहा, लेकिन कुछ न कह वीणा ने फोन काट दिया. एक नयानया रिश्ता खत्म हो गया था, लेकिन किसी को भी रंज नहीं था वीणा के इस फैसले पर.

Serial Story: फैसला (भाग-2)

उस की सोच बड़ी दकियानूसी थी. उस दिन शशि ने उसे दोस्तों से मिलने बुलाया, लेकिन उस रोज कंपनी के एमडी के साथ उस की मीटिंग थी और हमेशा की तरह शशि उसे आने के लिए मजबूर करने लगा, जो वीणा के लिए नामुमकिन था. वह मीटिंग में उलझी रही, जिस कारण उस का मोबाइल साइलैंट मोड पर था. शशि अपने दोस्तों के साथ उस का इंतजार करता रहा. वह बारबार वीणा को फोन करता रहा, लेकिन वीणा फोन नहीं उठा सकी. बस फिर क्या था. शशि का दिमाग घूम गया. वह गुस्से से भरा बारबार मोबाइल का नंबर लगाता रहा. वीणा जब अपने काम से फ्री हुई तो उस ने यों ही मोबाइल देखा. शशि की 20 मिस्ड कौल देख कर वह घबरा उठी. उस ने तुरंत शशि को फोन किया.

शशि ने जैसे ही उस का नंबर देखा गुस्से से आगबबूला हो कर फोन पर बिफर पड़ा, ‘‘वीणा क्या समझती हो तुम खुद को? मैं ने तुम्हें अपने दोस्तों से मिलने बुलाया था न? फिर तुम क्यों नहीं आईं? मेरे ही दोस्तों के सामने मेरा अपमान करना चाहती हो तुम? ऊपर से इतनी बार फोन मिलाया… क्या उठा नहीं सकती थीं… जवाब दो मुझे.’’ ‘‘अरे, यह क्या शशि मैं ने तुम्हें सुबह ही तो बताया था न कि आज मुझे बिलकुल भी फुरसत नहीं है. आज मेरी सर के साथ मीटिंग थी… तुम्हें तो पता ही है न कि मीटिंग के वक्त मोबाइल साइलैंट रखा होता है.’’

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‘‘हांहां सब पता है मुझे. तुम ज्यादा मत सिखाओ मुझे. और सुनो यह काम का बहाना मत बनाया करो. अगर मैं ने तुम्हें बुलाया है तो तुम्हें आना ही होगा… तुम्हारे काम गए भाड़ में,’’ गुस्से से शशि और भी बहुत कुछ बोल गया.  उस का हर शब्द वीणा के दिल में नश्तर की तरह उतर गया. वह सोचने लगी कैसे निभेगी उस की शशि के साथ जिसे अपनी पत्नी की कोई कदर नहीं. बस अपने ही अहंकार में मदमस्त रहता है. नएनए रिश्ते की खुमारी भी कब की रफूचक्कर हो गई थी. रिश्ता जुड़ने की कगार पर था और अभी से वीणा को बोझ लगने लगा था. आज ही उस की प्रमोशन की खबर आई थी. बहुत उतावली थी वह यह खबर शशि को सुनाने को, लेकिन शशि तो कुछ सुनने के लिए तैयार ही नहीं था.  बड़ी मायूसी से वीणा घर चल पड़ी. घर पहुंची तो मां कहीं बाहर गईं थीं.

पापा अकेले थे. वीणा को आया देख वे चाय रखने किचन की तरफ चले गए. वीणा जब फ्रैश हो कर आई तब तक पापा चाय टेबल पर रख चुके थे. ‘‘अरे, पापा चाय आप ने क्यों बनाई? मैं बनाने आने ही वाली थी,’’ उस ने पापा से कहा. ‘‘कोई बात नहीं बेटा. तुम भी तो थक कर आई हो. और यह क्या चेहरा इतना उतरा हुआ क्यों है? तबीयत ठीक है न? या फिर शशि से लड़ कर आई हो?’’ पापा ने सहज भाव से पूछा. ‘‘पापा क्या आप को लगता है मैं ही लड़ती रहती हूं? आज तो उस ने हद ही कर दी. आज मेरी सर के साथ मीटिंग थी सो मैं ने उसे उस के दोस्तों से मिलने से मना कर दिया.

फिर भी पापा वह फोन करता रहा. बाद में जब मैं ने उसे फोन किया तब ठीक से बात करना तो दूर वह पूरी बातों में चीखताचिल्लाता रहा. मेरी एक नहीं सुनी. पापा वह भी तो एक कामकाजी है, फिर उसे ये बातें समझ क्यों नहीं आती? वह अभी मेरा कायदे से पति बना तो नहीं… फिर किस हक से मुझ पर हुक्म चला रहा है? पति है इसलिए दादागिरी करता रहे और मैं अपनी गलती न होने पर भी उस की सुनती रहूं,’’ उस की भावनाएं जैसे फूट पड़ीं. पापा उस की हालत देख कर सोच में पड़ गए. वैसे उन्हें भी शशि का यह बरताव नागवार गुजरा था. उन की फूल सी बेटी, जिस का उन्होंने इतना खयाल रखा, जिस की आंखों से उन्होंने एक शबनम तक नहीं गिरने दी, आज वह इस तरह बेबस हो कर बातें कर रही है?  वे दोनों खामोश बैठे थे कि तभी वीणा की मां आ गई.

उन दोनों को साथ बैठे देख वे भी उन के साथ बैठ गईं. चाय का एक दौर और गुजरा. इतने में मां को याद आया कि आज सुबह वीणा प्रमोशन के बारे में कुछ बता रही थी. अत: बोलीं, ‘‘वीणा, सुबह तुम कुछ बता रही थी न प्रमोशन के बारे में? क्या हुआ कुछ पता चला क्या?’’ ‘‘हां, मां मेरा प्रमोशन हुआ है. आज ही सर ने बताया. और्डर 2 दिन में आ जाएगा,’’ वीणा ने दोनों को बताया. ‘‘अरे यह तो बड़ी अच्छी खबर है… पर तू इतनी मायूस क्यों है? चलो आज हम जश्न मनाते हैं. तेरी पसंद का खाना बनाते हैं और हां शशि को भी फोन कर देना. भई वह इस घर का दामाद है अब.

वह भी हमारी खुशी में शामिल हो तो खुशी और बढ़ जाएगी,’’ मां ने उठते हुए कहा. वीणा ने इनकार किया, लेकिन मां ने उस की बात को कोई तवज्जो नहीं दी. वीणा ने पापा को ही शशि को फोन करने को कहा और खुद मां का हाथ बंटाने किचन में पहुंच गई.   करीब 1 घंटे के बाद शशि घर पहुंचा. वहां पहुंच कर उसे दावत की वजह पता  चली. वीणा की प्रमोशन की खबर सुन कर वह प्रसन्न नहीं हुआ. उस के चेहरे के हावभाव बदल गए. बड़ा रंज था उस के चेहरे पर. ‘‘क्या बात है दामादजी, आप खुश नहीं हुए क्या?’’ मां ने पूछा. ‘‘अगर उसे प्रमोट किया गया है तो इस में इतनी खुशी की क्या बात है. इसे काम ही क्या है घर में… सारा काम आप करती हैं.

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इसलिए यह कंपनी के काम में पूरा ध्यान लगा सकती है. अगर वह पूरा ध्यान नहीं भी लगाएगी तो भी उसे सफलता तो मिलनी ही है. ‘‘सुनो वीणा, ये सब मेरे घर में नहीं चलेगा. तुम्हें वहां घर का सारा काम करना पड़ेगा. बहू आने के बाद मेरी मां काम नहीं करेगी. वहां तुम्हारी मरजी बिलकुल नहीं चलेगी… बहू हो बहू ही रहना, बेटी बनने की कोशिश न करना,’’ शशि बड़बड़ाए जा रहा था. तीनों अवाक उसे घूरते जा रहे थे. तभी पापा बोल उठे, ‘‘शशि, यह क्या कह रहे हो? आजकल के लड़के हो कर इतनी दकियानूसी सोच है तुम्हारी? हैरानी हो रही है मुझे… तुम्हारी पत्नी बनने जा रही है यह… इस का अपमान मत करो.’’ ‘‘पापा, आप हम दोनों के बीच न ही पड़ें तो अच्छा है.

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Serial Story: फैसला (भाग-1)

वीणा औफिस के काम में व्यस्त थी. इस महीने उस ने 3 फुल डे और 2 हाफ डे लिए थे. ऊपर से अगला महीना मार्च का था. काम का बोझ ज्यादा था सो वह बड़ी शिद्दत से काम में जुटी थी. लंच तक उसे आधे से ज्यादा काम पूरे करने थे. काम करते अभी उसे एकाध घंटा ही हुआ था कि उस का मोबाइल बज उठा. बड़े बेमन से उस ने मोबाइल उठाया. लेकिन नंबर देख कर उसे टैंशन होने लगी, क्योंकि फोन शशि यानी उस के मंगेतर का था, जो किसी न किसी कारण से उसे फोन कर के घर बुलाता था.

कभी उस के काका मिलना चाहते हैं, तो कभी मामाजी अथवा बूआजी. इस तरह के बहाने बना कर वह उसे घर आने के लिए मजबूर करता था. नईनई शादी तय हुई थी, इस कारण वीणा के घर वाले मना नहीं कर पाते थे. वीणा को इच्छा न होते हुए भी वहां जाना पड़ता. इसी कारण जब उस ने मोबाइल पर शशि का नाम देखा तो वह मायूस हो गई. ‘‘हैलो,’’ उस ने फोन उठाते हुए बेमन से कहा. ‘‘हैलो, वीणा मैं बोल रहा हूं. आज मेरी मौसी आई हैं लखनऊ से और वे तुम से मिलना चाहती हैं. आज तुम हाफ डे ले लो. मैं तुम्हें 2 बजे तक लेने आ जाऊंगा. और हां, घर चल कर तुम्हें साड़ी भी पहननी है, क्योंकि आज तुम पहली बार मेरी मौसी से मिल रही हो. ठीक से तैयार हो कर चलना.’’

‘‘सुनो शशि, मैं आज नहीं आ पाऊंगी. बहुत ज्यादा काम है और फिर अब मुझे हाफडे नहीं मिलेगा.’’ ‘‘वीणा मैं तुम्हें यह बता रहा हूं कि तुम्हें मेरे साथ मेरे घर चलना है न कि तुम से पूछ रहा हूं… तुम्हें चलना ही पड़ेगा. अपनी छुट्टी कैसे मैनेज करनी है यह तुम जानो और हां, तुम्हें घर आ कर मां का हाथ भी बंटाना है. मैं तुम्हें ले कर पहुंच जाऊंगा, यह मैं उन से कह कर आया हूं.’’ ‘‘शशि, मुझ से पूछे बगैर तुम ने ये सब कैसे तय कर लिया?’’ ‘‘तुम से क्या पूछना? मुझे तुम से पूछ कर हर काम करना पड़ेगा?’’

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‘‘हां शशि जो मुझ से संबंधित हो… उस बारे में तुम्हें मुझ से पूछना चाहिए… एक तो हर दूसरे दिन मुझे किसी न किसी से मिलवाने अपने घर ले जाते हो और खुद गायब हो जाते हो… यह ठीक है कि तुम्हारे रिश्तेदार मुझ से मिलना चाहते हैं लेकिन शशि मेरा ऐसे बारबार तुम्हारे घर आना क्या अच्छा लगता है?’’ ‘‘और… और क्या? अब क्या शादी से पहले ही मेरे घर वालों से कतराना चाहती हो? या उन से ऊब गई हो?’’  ‘‘नहीं शशि मेरा यह मतलब नहीं… प्लीज गलतफहमी मत रखना… न मैं उन से कतराना चाहती हूं और न ही ऊब चुकी हूं. सच तो यह है कि मैं तुम्हारे साथ ज्यादा वक्त बिताना चाहती हूं. तुम्हें जानना चाहती हूं ताकि एकदूसरे को ज्यादा से ज्यादा समझ सकें, एकदूसरे की पसंदनापसंद जान सकें.’’ ‘‘नहीं, उस की कोई जरूरत नहीं. जो कुछ जाननासमझना है उस के लिए उम्र पड़ी है. अगर मेरे घर वाले तुम्हारे साथ वक्त बिताना चाहते हैं, तो तुम्हें उन की बात माननी पड़ेगी.

मैं तुम्हें लेने आ जाऊंगा. गेट पर मिलना,’’ और शशि ने फोन काट दिया. वीणा और शशि की शादी डेढ़ महीना पहले ही तय हुई थी. शशि वीणा की ही कंपनी की बाजू वाली कंपनी में काम करता था. आतेजाते दोनों एकदूसरे के आमनेसामने हो जाते थे. पहले मुलाकात हुई, फिर दोस्ती. शशि की तरफ से रिश्ता आया था. दोनों एकदूसरे से परिचित थे तो दोनों के घर वालों ने रिश्ते के लिए हां कर दी और फिर सगाई हो गई. उस के बाद हर दूसरेतीसरे दिन शशि वीणा को फोन कर के घर आने के लिए मजबूर करता.

शुरूशुरू में तो उसे अच्छा लगता कि उस के जाने के बाद उस की ससुराल वाले उस के आसपास मंडराते थे, लेकिन बाद में उसे ऊब होने लगी. वह शशि के साथ समय बिताना चाहती थी, जो जरूरी था. वह हर बात को ले कर जबरदस्ती करता. जैसे वीणा क्या पहनेगी या आज कहां जाना है? वह कभी उस के घर आएगा तो नाश्ता भी उसी की पसंद का बनेगा… यहां तक कि टीवी का चैनल भी उस की पसंद का लगाया जाएगा.  एक दिन जब शशि घर आया तो वीणा के घर वाले खाना खा रहे थे. आते ही उस ने  हमेशा की तरह जल्दी मचानी शुरू कर दी. ‘‘आओ बेटा खाना खाओ,’’ मां ने कहा. ‘‘नहीं मांजी, आज नहीं और वैसे भी मुझे यह भिंडी की सब्जी पसंद नहीं,’’ शशि मुंह बनाते हुए बोला. ‘‘अरे, यह तो हमारी बेटी की पसंदीदा सब्जी है,’’ पापा ने हंस कर कहा. ‘‘तो क्या हुआ? आज अगर पसंदीदा है तो खाए, बाद में तो उसे मेरे अनुसार ही खुद को ढालना पड़ेगा.’’ ‘‘क्या मतलब?’’ पापा ने चौंक कर पूछा. ‘‘पापा, मेरी बीवी मेरे अनुसार ही तो अपनी पसंदनापसंद तय करेगी न?

आखिर पति हूं मैं उस का… उसे मेरा कहना मानना ही पड़ेगा,’’ शशि रौब से बोला. ‘‘नहीं शशि… मैं क्यों हर बात तुम्हारी मरजी से करूंगी?’’ वीणा ने बात को हंसी में लेते हुए कहा, ‘‘आखिर मेरी जिंदगी मेरी मरजी से चलेगी न कि तुम्हारी मरजी से.’’ ‘‘वीणा, एक बात पल्ले बांध लो. हमारे समाज ने मर्दों को सारे अधिकार दे रखे हैं न कि औरतों को. अत: घर में पति की ही चलेगी न कि पत्नी की… और मैं तो…’’ ‘‘अरेअरे, रुको बेटा गुस्सा मत हो,’’ मां बीच में बोल पड़ीं… ‘‘तुम बाहर बैठो मैं उसे तैयार कर के भेजती हूं,’’ कह मां वीणा को अंदर ले गईं. बोलीं, ‘‘देखो बेटा, शशि थोड़ा हठी स्वभाव का लगता है… नईनई शादी तय हुई है. इस कारण हम पर खासकर तुम पर रौब झाड़ रहा… बाद में सब ठीक हो जाएगा और फिर शादी नाम ही उस रिश्ते का है जिस में समझौते से ही रिश्ते पनपते हैं. तुम चिंता मत करो. सब ठीक हो जाएगा. अब जाओ खुशीखुशी घूम आओ,’’ मां ने उसे समझा कर तैयार होने भेज दिया.  मां ने वीणा को तो समझा दिया, किंतु खुद उन की आंखों में फिक्र के साए उमड़ पड़े.  दिन बीतते गए. शादी की तारीख दीवाली के बाद की निकली थी.

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इसी बीच दोनों  मिलते रहे. उन मुलाकातों में बातें कम और शशि की सूचनाएं अधिक होती थीं. वीणा एक पोस्टग्रैजुएट लड़की थी. जिंदगी के प्रति उस की अपनी कुछ सोच थी, कुछ सपने थे, लेकिन उस का पार्टनर तो कुछ समझने को तैयार ही नहीं था.

आगे पढ़ें- उस दिन शशि ने उसे दोस्तों से…

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