Festive Special: बच्चों के लिए बनाए Oreo कुल्फी

कुल्‍फी का नाम सुनते ही बच्चे ही नहीं बड़ों के मुंह में भी पानी आ जाता है या यूं कहे की कुल्फी का स्वाद सभी को बहुत भाता है.यूँ तो मार्केट में कुल्फी के कई फ्लेवर मिलते है और हो सकता है की आपने अब तक सिर्फ मार्केट की कुल्फी का स्वाद चखा हो. लेकिन आज मै आपको इसके एक नए फ्लेवर से मिलाने जा रही हूं. जी हां आज हम घर पर बनायेंगे oreo बिस्कुट से कुल्फी..

इसे घर पर बनाना बेहद आसान है और इसे बनाने में सिर्फ 10 मिनट लगेंगे और इसकी सबसे खास बात तो ये है की इसे बनाने के लिए न तो आपको कुल्फी के सांचे की जरूरत है और न ही ज्यादा चीजों की..
तो इस फ़ेस्टिव सीज़न अपने बच्चो के लिए घर पर oreo कुल्फी बनाकर अप उन्हे सरप्राइज दे सकते हैं.
यकीन मानिए इसका स्‍वाद इतना लाजवाब है कि आप इसे बार-बार बनाकर खाना चाहेंगी। तो चलिये आपको बताते हैं oreo कुल्फी की आसान रेसिपी के बारे में.

कितने लोगों के लिए-4
कितना समय-10 मिनट

हमें चाहिए

oreo बिस्किट – 4 छोटे पैकेट
फुल क्रीम मिल्क-100 ml
डेरी मिल्क चॉक्लेट या चॉक्लेट कम्पाउण्ड-60 ग्राम
मूँगफली के दाने -भुने हुए और बारीक कुटे हुए

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बनाने का तरीका-

1-सबसे पहले oreo बिस्किट के पैकेट को बिना खोले उसके अंदर के सारे बिस्किट को किसी भारी चीज़ से crush कर ले .
2-अब हर पैकेट को एक साइड से कैंची की सहायता से काट ले और हर पैकेट में 20 ml करीब दूध डाल दे.
3-अब अंदर के मिक्सचर को कुल्फी स्टिक की सहायता से अच्छे से मिला दे.
4-अब हर पैकेट के अंदर कुल्फी स्टिक डाल कर इन सभी पैकेट को स्टील के एक गहरे बर्तन मे एक दम सीधा-सीधा रख कर फ्रीजर में 3 से 4 घंटे के लिए रख दे .
5-3 से 4 घंटे बाद इन पैकेट को फ्रीजर से बाहर निकाल दे.बिसकुट के पैकेट के रैपर को कैंची की सहायता हटा दे.ये जम कर बिलकुल कुल्फी की तरह बन गयी है .

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6- अब एक कप मे मेल्ट हुई चॉक्लेट डाल दे और उसमे कुटी हुई मूँगफली के दाने भी डाल कर अच्छे से मिला दे.
7-अब हर oreo कुल्फी को कप मे डाल कर इसे चॉक्लेट से कोट कर ले.सारी कुल्फी के कोट हो जाने के बाद इन्हे फिर से 1 घंटे के लिए फ्रीजर में रख दे.
8-1 घंटे बाद इसे फ्रीजर से बाहर निकाले। तैयार है स्वादिष्ट oreo कुल्फी.

बिछुड़े सभी बारीबारी: काश, नीरजा ने तब हिम्मत दिखाई होती

Serial Story: बिछुड़े सभी बारीबारी (भाग-3)

कुछ ही पलों में वह भीड़ में से रास्ता बनाते हुए मेरे पास आ कर धीरे से बोला, ‘‘मैं कल सुबह वापस चला जाऊंगा. तुम चाहो तो अपने पिज्जा का उधार आज चुका सकती हो. याद है न तुम्हारे भैया के साथ…’’

मैं एकदम पिघल सी गई. बड़ी मुश्किल से अपनी रुलाई को छिपा लिया. इस से पहले कि वह मुझे रोता हुआ देख ले, मैं ने सिर झुकाया और पर्स में से अपना कार्ड उसे थमाते हुए कहा, ‘‘जब फुरसत हो, फोन कर लेना. मैं आ जाऊंगी.’’

कुछ सोच कर वह बोला, ‘‘चलो, कौफीहोम में मिलते हैं आधे घंटे बाद. तुम्हें कोई परेशानी तो नहीं, मेरा मतलब घर पर…’’

‘‘न…नहीं,’’ कह कर मैं वहां से चल दी.

मैं कौफी का कप ले कर उसी नीम के पेड़ के नीचे बैठ गई, जहां कभी हम उस के साथ बैठा करते, फिर हम रीगल सिनेमा में पिक्चर देखते और 8 बजे से पहले मैं होस्टल वापस आ जाती. अब न वह रीगल हौल रहा न वे दिन. मैं पुरानी यादों में खोई रही और इतना खो गई कि नरेन के आने का मुझे पता ही न चला.

‘‘मुझे मालूम था, तुम यहीं मिलोगी,’’ मेरे पास आ कर बैठ गया और बोला, ‘‘आज जब से मैं ने तुम को देखा है, बस तुम्हारे ही बारे में सोचता रहा और यह बात मेरे जेहन से उतर नहीं रही कि एमबीए करने के बाद भी तुम इस छोटे से इंस्टिट्यूट में पढ़ाती होगी. मैं तो समझता था कि…’’

‘‘कि किसी बड़े कालेज में पिं्रसिपल रही होंगी या किसी मल्टीनैशनल कंपनी में डायरैक्टर, है न?’’ मैं ने बात काट कर कहा, ‘‘नरेन, जिंदगी वैसी नहीं चलती जैसा हम सोचते हैं.’’

‘‘अच्छा, अब फिलौसोफिकल बातें छोड़ो, बताओ कुछ अपने बारे में. कहां रहती हो? घर में कौनकौन हैं?’’ कह कर वह मुसकराने लगा. वह आज भी वैसा ही था जैसा पहले.

‘‘मेरी रामकहानी तो चार लाइनों में समाप्त हो जाएगी. तुम तो बिलकुल भी नहीं बदले. कहो, कैसा चल रहा है?’’

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‘‘ओजी, मेरा क्या है. मुंबई गया तो बस वहीं का हो कर रह गया. सेठों की नौकरी पसंद नहीं आई, तो मैं ने आईआईटी से पीएचडी कर ली. फिर वहीं प्रोफैसर हो गया और अब वाइस पिं्रसिपल हूं.’’

‘‘और परिवार में?’’ मैं ने धड़कते दिल से पूछा.

‘‘एक बेटा है जो जरमनी में पढ़ रहा है. पापा रहे नहीं. ममी मेरे पास ही रहती हैं. वाइफ एक कालेज में लैक्चरर हैं. बस, बड़ी खुशनुमा जिंदगी जी रहे हैं.’’

तब तक वेटर आ गया. उस ने मेरे लिए बर्गर और अपने लिए सैंडविच का और्डर दे दिया.

‘‘तुम अब तक मेरी पसंद नहीं भूले,’’ मैं ने संजीदा हो कर पूछा, ‘‘मेरी याद कभी नहीं आई?’’

उस ने मेरे हाथ पर अपना हाथ रख कर धीरे से कहा, ‘‘उन लमहों की चर्चा हम न ही करें तो अच्छा है. जिंदगी वैसी नहीं है जैसा हम चाहते हैं. लाख रुकावटें आएं, वह अपना रास्ता खुदबखुद चुनती रहती है. हमारा उस पर कोई अख्तियार नहीं है. पपड़ी पड़े घावों को न ही कुरेदो तो अच्छा है.’’ फिर वह एक ठंडी सांस भर कर बोला, ‘‘छोड़ो यह सब, अपनी सुनाओ, सब ठीक तो है न?’’

‘‘क्या ठीक हूं, बस ठीक ही समझो. क्या बताऊं, कुछ बताने लायक है ही नहीं.’’

‘‘क्या मतलब? इतना रूखा सा जवाब क्यों दे रही हो?’’ वह चौंका.

‘‘तुम से शादी होने नहीं दी और घर वाले मेरे लिए कोई घरवर तलाश कर नहीं पाए. लखनऊ से पीएचडी करने की हसरत भी मन में ही रह गई. एक तरह से मेरा कुछ भी करने को मन नहीं करता था. उन दिनों कई अच्छेअच्छे कालेजों और कंपनियों से औफर आए परंतु मैं मातापिता को अकेला छोड़ कर जाना नहीं चाहती थी. उन के रिटायरमैंट के बाद उन्होंने वहीं रहने का फैसला लिया. मैं ने भी वहीं नौकरी ढूंढ़ ली.

?‘‘मैं यह भूल गई थी कि कभी पिता भी बूढ़े होंगे. वे तो गुजर गए, उन को तो गुजरना ही था. मां, भाई के पास मुंबई चली गईं. मैं अकेली वहां क्या करती, फिर दिल्ली में जो मिला, उसी में जिंदगी बसर कर रही हूं. 2 साल पहले मां भी चली गईं और जातेजाते हमारा घर भी भैयाभाभी के नाम कर गईं.

‘‘मैं ने जिन मांबाप के लिए जिंदगी यों ही गुजार दी वे भी चल दिए और जिस घर को पराई नजरों से बचाने में लगी रही, वह भी चला गया. जिंदगी में अब कुछ खोने के लिए बचा नहीं है. सबकुछ उद्देश्यहीन नजर आता है.

‘‘आज मानती हूं, गलती मेरी ही थी. मैं ने अपने बारे में कभी सोचा ही नहीं. कभी यह भी खयाल नहीं आया कि उन के बाद मेरा क्या होगा. मेरी तो सारी जिंदगी बेकार ही चली गई. मेरा अपना अब कोई रहा ही नहीं,’’ कहतेकहते मेरे होंठ थम गए. बरसों की दबी रुलाई सिसकी में फूट पड़ी और मैं सिर ढक कर रोने लगी.

मैं ने कस कर उस का हाथ पकड़ लिया. हम दोनों के बीच एक लंबा सन्नाटा सा पसर गया. थोड़ी देर में जी हलका होने पर मैं ने कहा, ‘‘मैं हर कदम पर छली गई. कभी अपनों से, तो कभी समय से. दोष किस को दूं, बस, बेचारी सी बन कर रह गई हूं.’’

लंबी चुप्पी के बाद नरेन बोला, ‘‘मैं तुम्हारे लिए कुछ कर सकता हूं क्या?’’

‘‘मैं जानती हूं आज जीवन के इस मोड़ पर भी तुम मेरे लिए कुछ कर सकते हो. पर मैं तुम से कोई मदद लेना नहीं चाहती. मुझे यह लड़ाई खुद ही खुद से लड़नी है. काश, यह लड़ाई मैं ने उस दिन लड़ी होती, जिस दिन तुम से आखिरी मुलाकात हुई थी.’’

‘‘तुम फिर से घर क्यों नहीं बसा लेतीं,’’ उस ने कहा.

‘‘मेरा घर बसा ही कहां था जो फिर से बसाऊं. वह तो बसने से पहले ही ढह गया था,’’ कह कर मैं ने उस की तरफ देखा.

‘‘मुझे तुम से बहुत हमदर्दी है. उम्र के जिस मोड़ पर तुम खड़ी हो, मैं तुम्हारी परेशानी समझ सकता हूं, पर…’’ कहतेकहते उस का गला भर आया. आगे कुछ कहने के लिए उस को शायद शब्द नहीं मिल रहे थे.

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शाम बहुत हो चुकी थी. कौफीहोम भी तकरीबन खाली हो चुका था. अब फिर से हमारे बिछुड़ने की बारी थी. उस ने खड़े होते हुए अपना हाथ मेरी तरफ बढ़ाया. मैं कटे वृक्ष की तरह उस की बांहों में गिर पड़ी और अमरबेल की तरह उस से जा कर लिपट गई. उस की बांहों की कसावट को मैं महसूस कर रही थी.

और धीरेधीरे अपनी पकड़ को ढीली कर के मूक बने हुए हम एकदूसरे से विदा हो गए. मेरी जबान ने एक बार फिर से मेरा साथ छोड़ दिया.

फिर एक दिन सुबहसुबह उस का फोन आया. मैं सैंटर जाने की तैयारी कर रही थी. वह बोला, ‘‘सुनो, एक बहुत ही शानदार खबर है. मैं ने तुम्हारे मतलब का एक काम ढूंढ़ा है जिस में तुम्हारा तजरबा बहुत काम आएगा.’’

‘‘तुम ने ढूंढ़ा है तो ठीक ही होगा,’’ मैं ने कहा, ‘‘बताओ, कब और कहां जाना है. बस, मुंबई मत बुलाना.’’

‘‘मैं मजाक नहीं कर रहा हूं. मेरे एक जानने वाले का गुड़गांव के पास एक वृद्धाश्रम है. ऐसावैसा नहीं, फाइवस्टार फैसिलिटीज वाला है. वह खुद तो फ्रांस में रहता है, पर उसे आश्रम के लिए एक लेडी डायरैक्टर चाहिए. तुम्हें किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होगी. मैं ने हां कर दी है, इनकार मत करना.

‘‘तुम चाहो तो एक महीने की छुट्टी ले लो. न पसंद आए तो यहीं वापस आ जाना. एक नई जिंदगी तो कभी भी शुरू की जा सकती है.’’

उस की बात में एक अपील थी, ठहराव था. एक अच्छे दोस्त और हमदर्द की तरह एक तरह से आदेश भी था.

मैं अपना चेहरा अपने हाथों से छिपा कर रोने लगी. इसी अधिकार की भावना के लिए तो तरस गई थी. मन का एक छोटा सा कोना उसी का था और सदा उसी का रहेगा. उस की यादों की मीठी छावं में बैठने से कलेजे को आज भी ठंडक पहुंचती है.

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Serial Story: बिछुड़े सभी बारीबारी (भाग-2)

तभी नरेन अपने एक मित्र के साथ पास से गुजरा और मेरी तरफ हाथ हिलाया. वह शायद अपने घर जाने की जल्दी में था. जवाब में मेरी तरफ से रिस्पौंस न पा कर वह अपने स्वभाव के मुताबिक मेरे पास आया. ‘हैलोजी, कोई परेशानी है क्या?’ जैसे उस ने मेरे मन के भाव पढ़ लिए हों. ‘हां, है तो,’ मैं ने बिना कोई समय गंवाए कहा, ‘ये मेरे भैया हैं, आज रात मैं ने इन का गैस्टहाउस में रहने का इंतजाम करवा दिया था पर अब वहां से मना कर दिया गया है. कोई आसपास होटल भी तो नहीं है और जो हैं वो…’

‘बहुत महंगे हैं, है न,’ वह तपाक से बोला.

‘हां,’ मैं ने कहा.

‘कोई नहींजी, मुझे आधे घंटे का समय दो, मैं कोई न कोई बंदोबस्त कर के आता हूं. कुछ न हुआ तो अपने साथ ले चलूंगा,’ फिर वह भैया की तरफ देख कर बोला, ‘आप टैंशन मत लो, मैं बस गया और आया.’ और सचमुच वह थोड़ी देर में आया और एक कमरे की चाबी दे कर बोला, ‘सामने के ब्लौक में दूसरी मंजिल पर यह कमरा है, आराम से रहो.’

मैं उस की तरफ हैरानी से देखने लगी. वह तो होस्टल का कमरा था, वह भी 2 या 4 लड़कों का. उस ने आगे कहा, ‘ये अकेले ही रहेंगे, दूसरे लड़के को मैं ने कहीं और जाने को कह दिया है. आप आराम से रात बिताओ.’

मैं उस के इस एहसान के सामने बौनी पड़ गई. मुन्नाभाई की तरह वह अपने मीठे व्यवहार से कुछ भी कर सकता था. ‘मैं तुम्हारा शुक्रिया कैसे अदा करूं,’ मैं ने कहा.

‘हां, यह हुई न बात. कैंपस के बाहर पिज्जा खाते हैं, पैसे तुम दे देना.’ और फिर उस ने पैसे देने नहीं दिए, कहा, ‘तुम्हारे भाई के सामने नहीं लूंगा, पर उधार रहे.’

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उस दिन के बाद मेरा उस के प्रति नजरिया बदल गया. हम कभी कैंपस में साथसाथ घूमते, कभी हैल्थ क्लब में, कभी स्विमिंग पूल में और कभी कैंपस के बाहर. वैसे तो वह अपने दोस्तों या प्रोफैसर्स के साथ ही घिरा रहता पर जब मुझे देखता, वह अकेला ही आता.

साल कब खत्म हुआ, पता ही नहीं चला. अब हम ने अपनी असाइनमैंट रिपोर्ट्स भी साथसाथ तैयार कीं. कैंपस में ही उस का एक बड़ी कंपनी में सिलैक्शन हो गया था. मैं यहीं इसी इंस्टिट्यूट से पीएचडी करना चाहती थी, इसलिए मैं ने कोई इंटरव्यू नहीं दिया. समय अपनी रफ्तार से चलता रहा. दिन, हफ्ते, महीने बीतते गए.

उस से बिछुड़ने का दर्द मुझे भीतर से खाए जा रहा था. उस के मन में क्या था, यह मैं कैसे जान सकती थी. हम उस दहलीज को भी पार कर चुके थे जिसे बचपना कहते हैं. जहां जीनेमरने की कसमें खाई जाती थीं. न वह मेरे लिए रुक सकता था न मैं उस के साथ जा सकती थी.

एक दिन मैं ने उस के सामने अपना दिल खोल कर रख दिया, ‘अब तो तुम यहां से चले जाओगे, मेरा तुम्हारे बिना दिल कैसे लगेगा.’

‘फिर?’ सवालिया लहजे में उस ने कहा.

‘या तो मुझे अपने साथ ले चलो या यहीं रह जाओ,’ मैं रो सी पड़ी.

‘इन दोनों सूरतों में हमें एक काम तो करना ही पड़ेगा,’ उस ने अपनी बात रखी.

‘क्या?’ मैं ने जानना चाहा.

‘शादी, तुम तैयार हो क्या?’ उस ने बिना किसी हिचकिचाहट से कहा. वह इतनी जल्दी इस नतीजे पर पहुंच जाएगा, मैं ने सोचा भी न था.

‘मैं तो चाहती हूं,’ मैं ने भी बिना कोई समय गंवाए बेबाक कह दिया, ‘मम्मी को थोड़ा मनाना पड़ेगा. वे पुराने रीतिरिवाजों को आज भी मानती हैं पर पापा और भैया तो मान जाएंगे. और तुम्हारे घर वाले?’

‘ओजी, हमारे यहां ऐसा कोई चक्कर नहीं है. मेरी बहन तो एक बंगाली लड़के को पसंद करती थी, बाद में वह खुद ही पीछे हट गया. हम पहले हिंदू हैं, बाद में सिख.’

उस दिन पहली बार मैं ने जाना कि वह भी मुझे उतना ही चाहता है जितना मैं. मैं जिस बात को घुमाफिरा कर पूछना चाहती थी, उस ने खुलेदिल से कह दिया. उस की ऐसी बात उसे दूसरों से अलग करती थी.

अब तो मैं दिनरात उसी के खयालों में डूबी रहती और खुली आंखों से सपने देखती.

घर पर वही हुआ जिस का मुझे डर था. जिन मम्मीपापा पर मुझे भरोसा था उन्होंने ही मेरा भरोसा तोड़ दिया. इस मिलन से साफ इनकार कर दिया. इतना ही नहीं, मुझे सख्त हिदायतें दे दीं कि अगर पीएचडी करनी है तो घर रह कर करो.

घर वालों का विरोध करने का जो साहस होना चाहिए था, उस की मुझ में कमी थी. मैं खामोश हो गई. क्या करती, मैं तब उन पर बोझ थी. काश, उस दिन कहीं से विरोध करने की हिम्मत जुटा पाती तो आज जिंदगी कुछ और ही होती.

उस दिन मैं उसे स्टेशन तक छोड़ने आई. वह मेरी जिंदगी का बेहद गमगीन पल था. मेरी हालत उस पक्षी की जैसी थी जिसे पता था कि उस के पंख अब कटने ही वाले हैं. पहली बार मैं ने उस की आंखों में आंसू देखे. मैं यह भी नहीं कह सकती थी कि फिर मिलेंगे. मैं उसे बस, देखती ही जा रही थी. एक बार तो हुआ कि उस के साथ गाड़ी में बैठ कर भाग ही जाऊं. पर ऐसा सिर्फ फिल्मों में होता है. काश, मैं ने उस दिन अपनी भावनाओं को दबाया न होता और हिम्मत से काम लेती.

उस का हाथ मेरे हाथ में था. मेरे हाथपांव ठंडे पड़ने लगे और सांसें उखड़ने लगीं. जातेजाते मैं ने उस से कहा, ‘फोन करते रहना. पता नहीं जिंदगी में दोबारा तुम्हें देख भी पाऊंगी या नहीं.’

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‘क्या होगा फोन कर के,’ कह कर उस ने मेरा हाथ छुड़ा लिया. गाड़ी चल पड़ी. विदाई के लिए न हाथ उठे न होंठ हिले, और सबकुछ खत्म हो गया.

उस के बाद न तो उस ने कोई फोन किया, न मैं ने. मैं भरे गले से वापस लखनऊ आ गई. घर वालों की अनदेखी ने मुझे बागी बना दिया था. बातबात पर मैं तुनक पड़ती. बस, समय यों ही घिसटता रहा.

और आज, अचानक ही अपने चिरपरिचित अंदाज में उस ने कहा था, ‘मैं नरेन, पहचाना मुझे?’

औडिटोरियम में तालियों की तेज गड़गड़ाहट से मैं भूत से वर्तमान में आ गिरी. वह सारी वाहवाही लूटे जा रहा था और मैं कोने में चेहरे पर बनावटी मुसकराहट लिए उसे देखे जा रही थी. अपने हाथ में ढेर सारी फूलमालाएं लादे वह मंच पर बैठा था. उस से नजरें मिलाने की हिम्मत मुझ में नहीं थी.

आगे पढ़ें- कुछ ही पलों में वह भीड़ में से रास्ता बनाते हुए…

Serial Story: बिछुड़े सभी बारीबारी (भाग-1)

दरवाजे की तेज खटखटाहट से मैं नींद से हड़बड़ा कर उठी. 7 बज चुके थे. मैं ने झट से शौल ओढ़ा और दरवाजा खोला. सामने दूध वाले को पा कर मैं बड़बड़ाती हुई किचन में डब्बा लेने चली गई. ‘इतनी जोर से दरवाजा पीटने की क्या जरूरत है?’

रोज बाई सुबह 6 बजे तक आ जाती थी. उस के पास दूसरी चाबी थी. चाय बना कर वह मुझे उठाती और नाश्ता तैयार करने लग जाती. मैं ने डब्बा बढ़ा कर दूध लिया. तब तक काम वाली बाई प्रेमा भी सामने से आ गई.

मैं उसे देर से आने पर बहुतकुछ कहना चाहती थी पर डर था कि कहीं वापस न चली जाए. उस को तो कई घर मिल जाएंगे पर मुझे प्रेमा जैसी कोई नहीं मिलेगी. मैं ने प्रेमा से कहा. ‘‘अच्छा, तू झट से चाय बना दे और नहाने का पानी गरम कर दे.’’

‘‘मेमसाहब, एक तो गीजर खराब, बाथरूम की लाइट नहीं जलती, दरवाजे की घंटी नहीं बजती और फिर गैस का पाइप…आप ये सब ठीक क्यों नहीं करातीं. मेरा काम बहुत बढ़ जाता है,’’ वह एक ही सांस में उलटा मुझे ही सुनाने लग गई. उस को कहने की आदत थी और मुझे सुनने की. बस, यों ही हमारा गुजारा चल रहा था. कभीकभी तो लगता था, सबकुछ छोड़ कर भाग जाऊं. पर जाऊं कहां? वहां भी तो अकेली ही रहूंगी. उम्र के 52 वसंत पार करने के बाद भी मैं एक नीरस सी जिंदगी ढो रही थी.

रोज सुबह कोचिंग सैंटर जाना, 3-4 बैच को पढ़ाना, जौइंट ऐंट्रैंस और नीट की तैयारी करवाना, फिर वापस शाम को घर आ जाना. प्रेमा जो बना कर चली जाती, उसी को गरम कर के खा लेती और टीवी के चैनल बदलतेबदलते सो जाती.

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न मैं किसी के घर जाती न कोई मेरे घर आता. यहां तक कि औफिस के कलीग से भी मेरी कोई खास बातचीत नहीं होती. दबीछिपी जबान में मुझे अकड़ू और खूसट की संज्ञा से जाना जाता. मैं ने भी

हालात के तहत पारिवारिक व सामाजिक दायरा बढ़ाने की कोशिश नहीं की. मैं तैयार हो कर अपने सैंटर पहुंच गई. दिल्ली के इस इंस्टिट्यूट में लगभग 200 बच्चे पढ़ते थे. मेरी योग्यता को देखते हुए मुझे मैनेजमैंट ने कई बार एकेडमिक हैड के लिए कहा, पर मैं कोई जिम्मेदारी लेने से बचती थी. मेरे औफिस पहुंचते ही मिसेज रीना बोलीं, ‘‘लंच के बाद कहीं मत जाना, मुंबई आईआईटी से डाक्टर सिंह आ रहे हैं. अपने स्टूडैंट्स से भी कह देना कि औडिटोरियम में 3 बजे तक पहुंच जाएं. वे अपना अनुभव शेयर करेंगे और बच्चों को कुछ टिप्स भी देंगे.’’

‘‘ठीक है, कह दूंगी. सो, दोपहर के बाद कोई क्लास नहीं होगी.’’

‘‘तुम छुट्टी की बात तो नहीं सोच रही हो न. अरे, इतने बड़े प्रोफैसर हैं आईआईटी में. अब डीन होने का उन्हीं का नंबर है. और हां, वे हमारे साथ 2 बजे लंच भी करेंगे. तुम भी तब तक कौमनरूम में पहुंच जाना.’’

लंच के लिए हम लोग कौमनरूम में इकट्ठे हुए. तभी पिं्रसिपल जोसेफ डाक्टर सिंह को ले कर कमरे में आए. मैं उन को देख कर एकदम धक सी रह गई. पता नहीं उस एक लमहे में क्या हुआ, अचानक मेरे दिल ने तेजी से धड़कना शुरू कर दिया. इस से पहले कि मैं संभल पाती, पिं्रसिपल साहब ने मेरा परिचय कराते हुए कहा, ‘ये नीरजा हैं. हमारे यहां की बेहद डैडीकेटिड टीचर.’ जानते हैं, इन का पढ़ाया बच्चा…’’ मैं ने हाथ जोड़ कर नमस्ते किया.

‘‘अरे, नीरजा तुम, यहां,’’ कह कर उन्होंने बड़े ही नपेतुले शब्दों में मुझे ऊपर से नीचे तक देखा.

‘‘आप जानते हैं इन्हें?’’ पिं्रसिपल जोसेफ ने पूछा.

‘‘हां, हम दोनों ने एकसाथ ही, एक ही कालेज से एमबीए किया था. कुछ याद है आप को,’’ कहते हुए उन्होंने मुझे देखा और बोले, ‘‘मैं, नरेन,’’ और उसी चिरपरिचित मुसकराहट से मेरा स्वागत किया जैसा सदियों पहले.

मैं ने भी मुसकरा कर सिर हिलाया और अपने स्थान पर बैठ गई. मैं उन्हें कभी भूली तो नहीं पर याद कर के करती भी क्या. जो पल हम ने साथसाथ बिताए थे वे लौट कर तो आएंगे नहीं.

असैंबली हौल में उन के परिचय और तजरबे को ले कर जितनी तालियों की गड़गड़ाहट सुनाई दी, वे सब आज मेरी झोली में गिरी होतीं. परंतु आज मैं एक कोने में मासूम सी, सहमी सी दुबकी बैठी थी.

इधर उन का लैक्चर शुरू हुआ, उधर मैं यादों के झरोखों में जा गिरी. हमारी पहली मुलाकात एमबीए की उस सिलैक्शन लिस्ट से हुई जिस में मेरा नाम उन्हीं के नाम के नीचे था. एक नामराशि होने के कारण लिस्ट पर उस की उंगली मेरी उंगली के ऊपर थी और वह अपने पंजाबी अंदाज में बोला था, ‘आप का नाम नीरजा है, मुबारकां हो जी, लिस्ट में नाम तो आया.’ मैं मुसकरा कर एकतरफ हो गई. मुझे अपना नाम इस इंस्टिट्यूट में आने की खुशी थी और उस ने समझा मैं उस की बातों पर मुसकरा रही हूं.

एक ही नामराशि के होने के कारण रजिस्टर में हमारे नाम भी आगेपीछे लिखे होते और सीटें भी आसपास ही होतीं. मैं होस्टल में रहती और उस ने लाजपत नगर में पेइंगगैस्ट लिया था. उस इंस्टिट्यूट में किसी का भी नाम आने का मतलब था कि उस का पिछला रिकौर्ड बहुत ही बेहतरीन रहा होगा.

वह काफी हंसमुख और चुलबुला लड़का था. अपने इसी स्वभाव के चलते वह जल्दी ही लोगों में घुलमिल जाता था. उस में यही ऐसी खासीयत थी जो उसे सब से अलग करती और ऊपर से उस का सिख होना.

उस के विपरीत मैं एकदम शांत, शर्मीले स्वभाव की थी. जब भी वह मुझे देख कर मुसकराता, मैं एकतरफ हो जाती. यों कहना चाहिए कि मैं उस से कन्नी काट लेती. सुबह जब भी वह क्लास में आता, एक खुशनुमा माहौल सा पैदा हो जाता. उस की हंसी में भी संगीत की झंकार थी.

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मेरा परिवार लखनऊ में रहता था. पापा बैंक में थे और बड़े भैया एक मल्टीनैशनल कंपनी में चेन्नई में तैनात थे. एक दिन मेरा भाई किसी काम के सिलसिले में दिल्ली आया और मुझ से मिलने चला आया. मैं ने अपने कालेज के गैस्टहाउस में ही उस का रहने का इंतजाम करवा दिया था. उस को सुबह शताब्दी से पापा से मिलने के लिए लखनऊ जाना था. अचानक किसी वीआईपी के आ जाने से गैस्टहाउस में उस का रहना कैंसिल हो गया. मैं परेशान हो गई. बाहर कैफे में बैठ कर हम दोनों भाईबहन इसी उधेड़बुन में लगे रहे कि अब क्या करें.

आगे पढ़ें- जवाब में मेरी तरफ से रिस्पौंस न पा कर वह…

लंबी यात्रा पर Hyundai Creta देगा आपको हर तरह की सुविधा

अब तक आप हुंडई क्रेटा की बहुत सारी खासियत को जान चुके हैं लेकिन आज हम इसके रोड साइड खासियत के बारे में जानेंगे. बता दें कि हुंडई क्रेटा 3 साल तक रोड साइड कंम्पलीमेंट्री देता है. इससे आपको कई तरह की मदद मिल सकती है.

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लंबी सड़क पर यात्रा के दौरान अगर आपकी कार में कुछ गड़बड़ होती है या फिर कोई दुर्घटना होती है. उस दौरान आप इसकी मदद ले सकते हैं. या फिर टायर पंक्चर औऱ इसके रिप्लेसमेंट में भी आपको मदद मिल सकती है. इसके साथ ही अगर आपके कार की बैटरी खत्म हो गई है या फिर आपकी चाभी खो गई है. तो इन सभी समस्याओं से हुंडई आपको निजात दिलाएगा.
ऐसी सभी समस्याओं से छुटकारा दिलाने के लिए हुंडई आपकी मदद के लिए हरदम मौजूद है इसलिए तो इसे कहा गया है #RechargeWithCreta

करीना-अनुष्का के बाद अब ये बौलीवुड एक्ट्रेस भी बनेंगी मां, PHOTO VIRAL

बीते दिनों कई बौलीवुड और टीवी एक्ट्रेसेस ने अपनी प्रैग्नेंसी की खबर सुनाई है, जिसे सुनकर फैंस काफी खुश हैं. इसी बीच खबरें हैं कि एक और बौलीवुड एक्ट्रेस जल्द मां बनने वाली हैं. दरअसल, ‘विवाह’, ‘इश्क-विश्क’ जैसी फिल्मों से फैंस के बीच जगह बनाने वाली एक्ट्रेस अमृता राव मां बनने वाली हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

बेबी बंप फोटो हुई वायरल

हाल ही में सोशलमीडिया पर इन दिनों एक फोटो वायरल हो रही है, जिसमें एक्ट्रेस अमृता राव अपने पति संग एक क्लीनिक के बाहर नजर आ रही है. हालांकि फोटो की खास बात यह कि इसमें उनका बेबी बंप साफ नजर आ रहा है, जिसे देखकर फैन हैरान हैं.

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पर्सनल लाइफ रखती हैं सीक्रेट

 

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Happy Anniversary My Soulmate 💫 My Lifeline @rjanmol27 ❤️ 4 years of Marital BLISS 🙏

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एक्ट्रेस अमृता राव अपनी पर्सनल लाइफ को सीक्रेट रखना पसंद करती हैं और यही वजह है कि उन्होंने अपने निजी जीवन को हमेशा फिल्म और ग्लैमर की दुनिया से दूर रखा है. दरअसल, एक्ट्रेस ने 7 साल तक रिलेशनशिप रहने के बाद रेडियो जॉकी अनमोल से साल 2016 में शादी की थी.

 

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सिंपल किरदार में लोगों ने किया है पसंद

 

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Pink Isn’t Just A Colour It’s An Attitude Too!

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फिल्म करियर की बात करें तो साल 2002 में एक्ट्रेस अमृता राव ने ‘अब के बरस’ से डेब्यू किया था, जिसके बाद उन्हें ‘विवाह’, ‘इश्क-विश्क’ फिल्मों के जरिए सिंपल किरदार में फैंस के बीच पौपुलैरिटी हासिल हुई. वहीं साल 2019 में आखिरी बार ‘ठाकरे’ फिल्म में अमृता राव नजर आई थीं, जिसमें वह बाल ठाकरे की वाइफ मीना ठाकरे का किरदार निभाती नजर आईं थीं.

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बता दें, बीते दिनों एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में एक्ट्रेस अनुष्का शर्मा, करीना कपूर खान, अनीता हसनंदानी और सागरिका घाटगे की प्रेग्नेंट होने की खबरों ने सोशल मीडिया में तहलका मचाया हुआ है.

नेहा कक्कड़ के बाद आदित्य नारायण ने किया शादी का ऐलान, जानें कौन है दुल्हन

बौलीवुड में इन दिनों शादी और प्रैग्नेंसी की खुशखबरी ने फैंस के बीच हलचल मचा दी है. जहां हाल ही में नेहा कक्कड़ की शादी की खबरें सुर्खियों में छाई हुई हैं तो वहीं अब बौलीवुड सिंगर उदित नारायण के बेटे आदित्य नारायण भी जल्द शादी के बंधन में बंधने वाले हैं. आइए आपको बताते हैं कौन हैं उनकी लाइफ पार्टनर…

10 साल से पुराने रिश्ते को देंगे नाम

हाल ही में एक इंटरव्यू में आदित्य नारायण ने अपनी लव लाइफ का खुलासा करते हुए कहा है कि वह इस साल के अंत तक अपनी गर्लफ्रेंड श्वेता अग्रवाल के साथ शादी करने वाले हैं. दरअसल, आदित्य बताया कि वो पिछले 10 साल से श्वेता अग्रवाल को डेट कर रहे हैं. दोनों की पहली मुलाकात फिल्म शापित के दौरान हुई थी, जिसके बाद दोनों का रिश्ता प्यार में बदल गया. हालांकि इसी दौरान दोनों के अफेयर की खबरें भी आईं थीं. लेकिन करियर के चलते दोनों ने अपने प्यार को सभी से छुपाया. वहीं अब 10 साल तक इस रिश्ते में रहने के बाद दोनों के बीच अच्छी अंडरस्टैंडिंग हो गई है और तब जाकर शादी करने का मन बनाया है.

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शादी को लेकर कही ये बात

शादी की बात शेयर करते हुए आदित्य नारायण ने कहा, ‘मुझे अच्छे से याद है कि कुछ सालों पहले लोगों ने मान लिया था कि हमारा ब्रेकअप हो चुका है. हम दोनों अपने रिश्ते की प्राइवेसी के चलते एक साथ बाहर नहीं जाते थे. इसके अलावा मैं ये भी कहना चाहता हूं कि हर रिश्ते में मनमुटाव होते हैं और कई उतार-चढ़ाव आते हैं लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि रिश्ता खत्म हो जाता है. यही कारण है कि आजकल शादियां आसानी से टूट जाती है. हमने एक दूसरे को पूरा वक्त दिया और अब हम अपने इस रिश्ते को आगे बढ़ा कर एक नाम देना चाहते हैं.’

नेहा कक्कड़ के साथ जुड़ा था नाम

सिंगिग रियल्टी शो इंडियन आइडल के दौरान आदित्य नारायण और नेहा कक्कड़ का नाम सुर्खियों में छाया हुआ था. वहीं दोनों के रिश्ते और शादी की खबरों ने सोशलमीडया पर फैंस को हैरान कर दिया था. हालांकि ये सब पब्लिसिटी स्टंट साबित हुआ था और अब फैंस का दिल तोड़ते हुए दोनों अलग-अलग शादी रचा रहे हैं.

 

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You’re Mine @rohanpreetsingh ♥️😇 #NehuPreet 👫🏻

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बता दें, पिछले दिनों नेहा कक्कड़ ने सोशलमीडिया के जरिए बौयफ्रेंड रोहनप्रीत सिंह के साथ अपने रिश्ते का ऐलान किया है. वहीं खबरें हैं कि नेहा इस साल 24 अक्टूबर को शादी करने वाली हैं.

कैंसर के इलाज के बाद मेरी जिंदगी पूरी तरह से बदल चुकी थी – सीमंतिनी रॉय

सीमंतिनी रॉय (कैंसर सरवाईवर, सिंगर)

अगर आपमें कुछ कर गुजरने की इच्छा हो तो पूरी कायनात भी आपका साथ देती है और आप किसी भी मुश्किल परिस्थिति से गुजर कर अपनी मंजिल पा लेते है, ऐसा ही कुछ कर दिखाया है, त्रिपुरा के अगरतला की कैंसर सरवाईवर, सिंगर, सेलेब्रिटी एंकर, सिविल इंजिनियर, और एक 8 साल के बेटी की माँ सीमंतिनी रॉय, जो अब अपने पति के साथ अमेरिका के कैलिफोर्निया में रहती है. स्वभाव से विनम्र सीमंतिनी केवल एक गायिका ही नहीं, बल्कि वह पूर्व मिस ईस्ट इंडिया, मिस फोटोजेनिक, मिस त्रिपुरा की ख़िताब भी जीत चुकी है. वह त्रिपुरा आल इंडिया रेडियो की चाइल्ड आर्टिस्ट भी रह चुकी है. उन्होंने 100 से अधिक जगहों पर अपने परफोर्मेंस दिये है और बांग्ला संगीत को फ्यूजन का रूप देकर विश्व में फैलाना चाहती है. उनकी जर्नी के बारें में बात हुई, आइये जाने कैसे उन्होंने अपनी जर्नी तय की.

 सवाल-आपने रविन्द्र नाथ टैगोर के प्रसिद्ध गीत को उन्हें ट्रिब्यूट किया, जिसके प्रसंसक पूरे विश्व में है और सभी इसे पसंद कर रहे है, क्या महसूस कर रही है?

टैगोर के गाने मेरे जिंदगी में समाये हुए है. मैंने बचपन से रविन्द्र संगीत सुनती और सीखती रही हूं. त्रिपुरा में मैं आल इन्डिया रेडियो की चाइल्ड आर्टिस्ट थी और बचपन से ही कई परफोर्मेंस मैंने किये है. शास्त्रीय संगीत की मैंने पूरी ट्रेनिंग गुरु समीर दास से ली है. इसके अलावा मैंने रबिन्द्र संगीत की भी फॉर्मल ट्रेनिंग लिया है. 

सवाल-जब आपको पहली बार कैंसर का पता चला, तो उससे कैसे निकल पायी, किसका सहयोग सबसे अधिक था?

जब मैं इंजिनियरिंग पढ़ रही थी, तो मेरे पिता जो डॉक्टर है उन्होंने जांच कर बताया कि मुझे हॉजकिंस लिंफोमा हुआ है, जो एक प्रकार का कैंसर है. उस दौरान मेरा इलाज मुंबई के टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल में हुआ. ये अच्छा था कि मैं उस समय तक इंजिनीयरिंग की पढ़ाई ख़त्म कर चुकी थी. इलाज के बाद मेरी जिंदगी पूरी तरह से बदल चुकी थी. उस समय मेरे माता-पिता ने समझाया था कि जीवन यहाँ पर ख़त्म नहीं होता. मैं आगे हायर स्टडी कर सकती हूं. तब मेरे अंदर एक विश्वास आया कि मैं कुछ अच्छा कर सकती हूं और माता-पिता की बातें मुझे हमेशा याद रहती है. ये सही है कि कैंसर से मैं ठीक हो चुकी हूं, पर ये एक साइलेंट किलर है, जो कभी भी उभर कर आ सकता है. अभी मैं 8 साल की बेटी की माँ भी बनी हूं. मैं श्योर नहीं थी कि मैं माँ बन सकती हूं, पर बनी हूं और अपनी इस जिंदगी से खुश हूं. अभी में फिट हूं.   

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सवाल-पति से मिलना कैसे हुआ?

मैने अपनी इंजीनियरिंग की पढाई महाराष्ट्र से की है और इसके बाद मैंने एम् बी ए अहमदाबाद में किया. इसके बाद दिल्ली जॉब करने गई, वहां मेरी शादी हुई और पति अर्नब घोष से मिली.

सवाल-म्यूजिक इंडस्ट्री पिछले कुछ सालों से खतरे में है, क्योंकि फिल्मों में अब संगीत कम हो चुके है, एल्बम भी अधिक नहीं चलते, अब कोरोना संक्रमण, ऐसे में कलाकार को क्या करने की जरुरत है?

मेरा इंडस्ट्री के साथ काफी जुड़ाव है, उसके हिसाब से ये समय-समय की बात है, जो धीरे-धीरे ख़त्म हो जायेगा. एक म्यूजिशियन और परफ़ॉर्मर होने के नाते इतना कह सकती हूं कि थोड़े समय के बाद संगीत एक बार फिर से सबको पसंद होगी. अभी मेरे कई एल्बम अच्छे चल रहे है, क्योंकि कोरोना की वजह से लोग घरों में है और गाने सुन रहे है. 

सवाल-आप खूबसूरत है, कभी एक्टिंग के बारें में नहीं सोचा? 

शुरू में मैंने एक शार्ट फिल्म की थी. इसके बाद कभी एक्टिंग के बारें में अधिक नहीं सोचा. ऑफर कई आते थे. अब म्यूजिक वीडियो में एक्टिंग करती हूं और दर्शक इसे पसंद कर रहे है.

सवाल-आगे क्या करने वाली है?

अभी मैंने बांग्ला गीत गाई है. इसके अलावा मेरा एक सपना है कि जिस तरह पंजाबी संगीत हर जगह फैला हुआ है, वैसे ही बांग्ला संगीत पूरे विश्व में प्रसिद्ध हो और इसके लिए मैं काम कर रही हूं, जो थोड़े दिनों बाद आएगा. बंगाली केवल बांग्लादेश या पश्चिम बंगाल में ही नहीं, पूरे विश्व में फैले है. इसके अलावा मैं इंडिपेंडेंट म्यूजिक पर अधिक ध्यान देती हूं, जिसमें बांग्ला और हिंदी दोनों संगीत होते है और ये सभी नए ज़माने के हिसाब से अच्छे और आकर्षक गीत है, जिसे दर्शक देखना और सुनना पसंद करेंगे. 

सवाल-आप कितनी फूडी और फैशनेबल है?

मैं बहुत फूडी हूं, क्योंकि बंगाली हूं और फैशन जो आरामदायक हो, उसे पसंद करती हूं. अवसर के हिसाब से फैशन करती हूं. 

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सवाल-क्या कोई मेसेज देना चाहती है?

महिलाओं को वह दर्ज़ा आज भी नहीं मिलता, जो जरुरत है. महिला एक माँ, बेटी, पत्नी, बहन और कोर्पोरेटर हर तरह की बन सकती है, उसे सम्मान दें. गृहशोभा का इस दिशा में प्रयास काबिले तारीफ है, जो महिला सशक्तिकरण को बनाये रखने के लिए लगातार कोशिश करती है.

पार्लर क्यों जाना जब रसोई में है खजाना

‘‘मेरी त्वचा से मेरी उम्र का पता ही नहीं चलता, क्योंकि मेरे साबुन में हैं हलदी, चंदन और शहद के गुण. इस साबुन में है एकचौथाई मिल्कक्रीम जो दे मुझे नर्म मुलायम त्वचा. दादी मां ने झट लौंग का तेल मला था. क्या आप के टूथपेस्ट में नमक है? क्ले शैंपू से मेरे बाल रहते हैं एकदम खिलेखिले,’’ इस तरह के जुमलों वाले न जाने कितने ही विज्ञापन हम रोज अखबार, टीवी और रेडियो पर देखतेसुनते हैं. इन व्यावसायिक विज्ञापनों में कितनी सचाई है यह तो उत्पाद बनाने और उन्हें इस्तेमाल करने वाले ही बता सकते हैं, मगर यह निरविवाद सच है कि खूबसूरती का खजाना हमारीआपकी रसोई में ही छिपा है.

बाजार में मिलने वाले सौंदर्य उत्पादों से कई महिलाओं को एलर्जी की शिकायत होती है. वे महंगे भी बहुत होते हैं. ऐसे में जब हर अच्छे उत्पाद में वही सामग्री इस्तेमाल करने का दावा किया जाता है, जो हमारी रसोई में मौजूद है, तो क्यों न हम खुद ही अपने खजाने का उपयोग कर खुद को बनाएं खूबसूरत.

आइए रसोई में तलाशते हैं खूबसूरती

– शहद को सीधे चेहरे पर इस्तेमाल किया जा सकता है. यह न केवल त्वचा की नमी बनाए रखता है, बल्कि चेहरे के दागधब्बे भी दूर करता है. इस से सनबर्न भी दूर होता है.

– हलदी के गुण तो इसी बात से जाहिर हो जाते हैं कि इस के उबटन के प्रयोग को शादीब्याह में एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है. यह त्वचा में निखार लाती है. इसे दूध में मिला कर लगाने से टैनिंग दूर होती है.

– चीनी को कटे नीबू पर लगा कर कुहनियों और घुटनों पर गोलगोल घुमाते हुए धीरेधीरे रगड़ने से उन का कालापन दूर होता है. यह प्रयोग हाथों को नर्ममुलायम बनाने के लिए भी किया जा सकता है.

– दूध की मलाई के नियमित इस्तेमाल से न केवल त्वचा ही कोमल रहती है, बल्कि चेहरे की झुर्रियों से भी छुटकारा मिलता है.

– दही लगाने से चेहरे की टैनिंग और दागधब्बे दूर होते हैं. इसे मेथी पाउडर के साथ मिला कर लगाने से बालों की चमक देखते ही बनती है. इस से बाल मजबूत और मुलायम बनते हैं.

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– मुट्ठी में नमक ले कर बांहों की मालिश करने से उन की त्वचा में कोमलता आती है. अदरक के रस में नमक मिला कर लगाने से मुंहांसों से छुटकारा मिलता है.

– बर्फ के इस्तेमाल से न केवल चेहरे पर ताजगी आती है, बल्कि डार्क सर्कल्स भी दूर होते हैं. इसे मुलायम कपड़े में लपेट कर चेहरे और गरदन पर हलके हाथ से गोलगोल घुमाएं. मेकअप करने से पहले चेहरे पर बर्फ लगाने से यह अधिक समय तक टिका रहता है.

– ग्लिसरीन स्किन केयर दवाओं की मुख्य घटक है. यह एक बेहतरीन मौइश्चराइजर है. यह त्वचा के रूखेपन को दूर करती है. इसे सीधे या गुलाबजल के साथ मिला कर इस्तेमाल किया जा सकता है.

– लौंग को पानी में घिस कर लगाने से मुंहासे दूर होते हैं और उन के निशान भी नहीं रहते हैं.

– इस्तेमाल किए टी बैग्स को फ्रिज में ठंडा कर के आंखों पर रखने से आंखों की सूजन और थकान दूर होती है.

– आंवला अमृत फल कहलाता है. इस का प्रयोग बालों को काला, घना और लंबा बनाता है. यह बालों का टूटनाझड़ना और असमय सफेद होना भी रोकता है.

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– बेसन को साबुन की जगह इस्तेमाल करने से यह त्वचा की अतिरिक्त चिकनाई को कम कर के उसे साफ और चमकदार बनाता है.

– फलों और सब्जियों के छिलकों का इस्तेमाल भी त्वचा की कोमलता बनाए रखने का बेहतर उपाय है.

– बेकिंग सोडे को स्क्रब की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है. यह ऐक्नों और ब्लैक हैड्स से छुटकारा दिलाता है.

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