टीवी इंडस्ट्री को लगा एक और झटका, ‘इस प्यार को क्या नाम दूं’ फेम एक्ट्रेस का निधन

कोरोनावायरस के कहर के बीच फिल्मी इंडस्ट्री बुरी खबरों की सिलसिला जारी है. जहां लॉकडाउन के कारण फिल्मी और टीवी इंडस्ट्री को करोड़ों का नुकसान हुआ है तो वहीं कई सितारों ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया है, जिनमें बौलीवुड एक्टर ऋषि कपूर, इरफान खान, सुशांत सिंह राजपूत से लेकर टीवी एक्टर समीर शर्मा शामिल हैं. वहीं अब  ‘इस प्यार को क्या नाम दूं’ में नजर आ चुकीं एक्ट्रेस संगीता श्रीवास्तव का भी बीते दिन निधन हो गया है.

इस बीमारी से पीड़ित थीं संगीता

बरुन सोबती और सनाया ईरानी के सुपरहिट सीरियल ‘इस प्यार को क्या नाम दूं’ में अहम रोल अदा कर चुकीं एक्ट्रेस संगीता श्रीवास्तव टीवी की जानी-मानी एक्ट्रेस है और अपने एक्टिंग करियर में उन्होंने कई सीरियल्स में अहम भूमिका अदा कर चुकी थीं. वहीं खबरों की मानें तो संगीता श्रीवास्तव काफी लम्बे समय से बीमार चल रही थी और कोकिलाबेन अस्पताल में ही उनका इलाज चल रहा था. दरअसल, संगीता श्रीवास्तव वस्क्यूलिटिस नाम की बीमारी से जूझ रही थी.

 

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इस एक्टर ने किया था सुसाइड

सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है और ‘इस प्यार को क्या नां दूं’ फेम समीर शर्मा ने अपने घर में फांसी लगाकर जान दे दी थी, लेकिन अभी तक समीर शर्मा का केस अनसुलझा ही है. खबरों की मानें तो समीर शर्मा का शव उनके किचन के पंखे से झूलता हुआ पाया गया था, जिसे उनके पड़ोसियों ने किचन की खिड़की से उनके शव को देखा था.

बता दें, संगीता श्रीवास्तव के एक्टिंग करियर की बात करें तो वह ‘इस प्यार को क्या नाम दूं’ के अलावा ‘थपकी प्यार की’ और ‘भंवर’ जैसे सीरियल्स में भी काम कर चुकी थीं, जिसमें उन्होंने काफी सुर्खियां बटोरीं थीं.

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किचन की दुर्घटनाओं से बचें ऐसे

हर सुबह की तरह आज की सुबह भी रोमा के लिए काफी हड़बड़ाहट भरी थी. पति, दोनों बच्चों, सास-ससुर और खुद के लिए नाश्ता तैयार करने से ले कर सभी का लंच पैक करने में रोमा के रसोई से डाइनिंग टेबल तक लगभग 20-25 चक्कर लग चुके थे. जल्दबाजी में कई बार उस के कदम लड़खड़ाए मगर उस ने खुद को संभाल लिया. घर के काम के साथ ही ऑफिस टाइम पर पहुंचने का प्रैशर उसे बार-बार रसोई का काम जल्दी निबटाने के लिए उकसा रहा था. जल्दबाजी में कब उस का हाथ गैस पर चढ़े गरम पतीले से छू गया उसे पता ही नहीं चला. उस के हाथ में छाले पड़ गए. ऑफिस तो क्या अब हफ्ते भर घर के काम करना भी उस के लिए मुश्किल हो गया था.

रोमा की तरह ऐसी कई महिलाएं हैं, जो आए दिन रसोई में हुई किसी न किसी दुर्घटना का शिकार हो जाती हैं. हाल ही में घरेलू दुर्घटनाओं पर हुआ एक अध्ययन भी इसी ओर इशारा करता है. अध्ययन के मुताबिक 46% घरेलू घटनाएं सुबह के वक्त होती हैं, जिन में 66% महिलाएं ही घायल होती हैं. अध्ययन में इस बात का भी जिक्र है कि अधिकतर दुर्घटनाएं रसोई का काम करने के दौरान ही होती हैं. दरअसल, रसोई का काम पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं अधिक करती हैं. लिहाजा, रसोई से जुड़ी दुर्घटनाओं का शिकार भी महिलाएं ही अधिक होती हैं.

इस तरह की दुर्घटनाओं से बचने के लिए पेश हैं, कुछ सुझाव:

रसोई की साफ-सफाई टाल सकती है हादसा

यदि किचन साफ-सुथरा है, तो कई बड़े हादसे टल सकते हैं. उदाहरण के तौर पर चिमनी की सफाई को ही लिया जा सकता है. दरअसल, चिमनी में बहुत जल्दी चिकनाई जम जाती है और समय-समय पर यदि इसे साफ न किया जाए, तो यही चिकनाई आग पकड़ कर बड़े हादसे का कारण बन सकती है.

किचन का फर्श

इस के अलावा किचन का फर्श साफ होना बहुत जरूरी है. इस से कई बड़े हादसे टाले जा सकते हैं. इस बारे में रिऐलिटी शो मास्टर शैफ सीजन 2 की टॉप फाइनलिस्ट रह चुकीं विजयलक्ष्मी कहती हैं, ‘‘रसोई में काम के दौरान यदि फर्श पर पानी गिर जाए तो सब काम रोक कर पहले पानी को साफ करें, क्योंकि पानी पर पैर पड़ते ही फिसलने का डर रहता है. हो सकता है कि हाथ में कोई गरम या भारी सामान हो, ऐसे में अधिक चोट लगने का भी खतरा होता है.’’

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पानी की फिसलन के अलावा रसोई में गिरने के और भी कारण हो सकते हैं. इन से बचने के कुछ खास टिप्स हैं-

-रसोई में ऊंचे स्थान पर रखे सामान को उतारने के लिए हमेशा सीढि़यों का इस्तेमाल करें. चेयर या टेबल पर कतई भरोसा न करें.

-उतना ही सामान पकड़ कर रसोई में इधर-उधर चलें जितना पकड़ने पर आसानी से सामने का रास्ता दिखे और चलने में भी आसानी हो.

-रसोई के दरवाजे पर कोई भी ऐसा सामान न रखें, जो आने-जाने में अवरोध उत्पन्न करे. कई बार सामान की टक्कर से भी गिरने का डर रहता है.

सही पहनावा

रसोई के लिए सही कपड़ों का चुनाव सब से महत्त्वपूर्ण है. विजयलक्ष्मी कहती हैं, ‘‘महिलाएं हमेशा यहीं चूकती हैं. खासतौर पर कामकाजी महिलाएं तो इस ओर ध्यान तक नहीं देतीं. दफ्तर जाने की जल्दी में नायलौन, सिल्क या दूसरा सिंथैटिक कपड़ा पहन कर ही रसोई का काम शुरू कर देती हैं. जबकि रसोई में घुसने का सब से पहला नियम है कि सूती कपड़े पहने जाएं. सूती कपड़े को छोड़ कर हर फैब्रिक जल्दी आग पकड़ लेता है.’’

सुरक्षा कवच की तरह ऐप्रन

अधिकतर महिलाओं को ऐप्रन पहनना बोझ लगता है, जबकि रसोई में यह सुरक्षा कवच की तरह कार्य करता है. विजयलक्ष्मी कहती हैं, ‘‘आग की छोटी सी चिनगारी पूरे कपड़े में आग लगा सकती है, मगर ऐप्रन इस चिनगारी को कपड़ों तक पहुंचने से रोकता है. इसे पहनना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि यह कपड़ों को बांध कर रखता है. कई बार कपड़े हवा में उड़ कर जलते हुए बर्नर तक पहुंच जाते हैं, मगर ऐप्रन ऐसा होने से बचा लेता है.’’

नियमों की अनदेखी ले सकती है जान

रसोई में काम करने के कुछ नियमकायदे होते हैं, जिन की अनदेखी करने पर बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है. हर गृहिणी को इन नियमकायदों के बारे में पता भी होता है, मगर वे आलस्य के चलते उन्हें नजरअंदाज कर देती हैं. उदाहरण के तौर पर रात में बिना गैस सिलैंडर बंद किए सो जाना.

नई दिल्ली जोन के डिप्टी चीफ फायर ऑफिसर सुनील चौधरी इस बाबत पर कहते हैं, ‘‘घर में आग लगने के अधिकांश मामलों में आग लगने का कारण रसोई होती है. रसोई में रखा गैस सिलैंडर जीवन के लिए सब से खतरनाक साबित हो सकता है. यदि इसे रात में बंद न किया जाए तो बड़ा हादसा हो सकता है.’’

लापरवाही से हादसा

सुनील कहते हैं, ‘‘मयूर विहार के एक घर में सुबह-सुबह ब्लास्ट होने से परिवार के तो सभी लोग घायल हुए ही, आस-पास के लोगों के घर भी इससे प्रभावित हुए. कारण था रसोई में रखा फ्रिज और खुला हुआ गैस सिलैंडर. सुबह जैसे ही बर्नर ऑन किया गया वैसे ही फ्रिज और सिलैंडर में एकसाथ ब्लास्ट हो गया.’’

दरअसल, फ्रिज दिन भर में कई बार खुलता और बंद होता है. इस दौरान कभी-कभी फ्रिज की गैस भी लीक होती है. ऐसे में सिलैंडर यदि खुला रह जाए तो बड़ा हादसा होने से कोई नहीं रोक सकता. इसलिए फ्रिज को रसोई या उस के आस-पास कभी नहीं रखना चाहिए.

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इसी तरह यह जानते हुए कि बिना चप्पल पहने बिजली के सामान को हाथ लगाने से करंट लग सकता है, फिर भी कुछ महिलाएं बहादुरी दिखाने से पीछे नहीं हटतीं और दुर्घटना का शिकार हो जाती हैं.

विजयलक्ष्मी अपने ही घर में हुई एक दुर्घटना का जिक्र करती हैं, ‘‘मेरी मेड ने बिना चप्पल पहने माइक्रोवेव छू लिया था और करंट लगने पर वह खुद को माइक्रोवेव से छुड़ा न सकी और माइक्रोवेव सहित जमीन पर गिर पड़ी. उसे काफी चोट लगी और एक माह तक उसे अस्पताल में रहना पड़ा था.’’

इसलिए रसोई में काम के दौरान चप्पल पहनने की आदत डालें और सावधानी के साथ बिजली से चलने वाले ऐप्लाइंसेज का इस्तेमाल करें.

हमेशा ध्यान रखें कि स्वास्थ्य को सुधारने में बड़ी भूमिका निभाने वाली रसोई खलनायक भी हो सकती है. इसलिए रसोई में जल्दबाजी और लापरवाही दिखा कर परिवार और अपने जीवन को खतरे में न डालें.

रसोई को आग से कैसे बचाएं

-क्लास ए: लकड़ी, कागज और कपड़े के लिए.

-क्लास बी: ग्रीस और तेल के लिए.

-क्लास सी: स्विच, मोटर और इलैक्ट्रिक सामान के लिए.

ध्यान रखें कभी भी क्लास ए फायर ऐक्सटिंग्विशर को ग्रीस या बिजली से लगी आग को बुझाने के लिए इस्तेमाल न करें. ऐसा करने पर आग बुझने की जगह और फैल जाती है.

Coronavirus Effect: लोगों में सहकर्मियों को लेकर बदल गई है सोच

अभी भी सिर्फ हिंदुस्तान में ही नहीं पूरी दुनिया में आधे से ज्यादा दफ्तर बंद हैं, जो दफ्तर खुले भी हैं, वहां भी आधी अधूरी उपस्थिति ही है. महीनों से लाखों करोड़ों लोग जिन्हें कभी हफ्ते में भी छुट्टी लेने की इजाजत नहीं थी, घरों में कैद हैं. पूरी दुनिया में बड़े पैमाने पर लोग या तो ‘वर्क फ्राम होम’ कर रहे हैं या फिर बिना वेतन की छुट्टी का दंश झेल रहे हैं. शायद इसलिए भी लोगों को अपने दफ्तरों की बहुत याद आ रही है. लेकिन एक और वजह है दफ्तरों को मिस करने की. दरअसल घर में रहने के दौरान बहुत से लोगों ने अपने दफ्तर के दौरान के व्यवहार पर मनन किया है और पाया है कि शायद उनका अपने सहकर्मियों से अच्छा व्यवहार नहीं था. इसलिए तमाम ऐसे लोगों ने मन ही मन यह संकल्प लिया है कि नये सिरे से जब दफ्तर अपनी पूरी क्षमता से खुलने शुरु होंगे तो उनका अपने सहकर्मियों के साथ व्यवहार अब पहले से भिन्न होगा.

यह कहने की जरूरत नहीं है कि दफ्तर की पाॅलिटिक्स पूरी दुनिया में होती है. शायद ये इंसानी स्वभाव है. लेकिन लंबे समय तक दफ्तर से दूर रहने के कारण अब ज्यादातर लोग यही कामना कर रहे हैं कि दफ्तर जल्दी से जल्दी खुलें और फिर से वे अपनी दफ्तरी जिंदगी को एंज्वाॅय करें. लंबे समय तक घर में रहने के बाद और अपनी अब तक की दफ्तरी जिंदगी पर मनन करने के बाद अब ज्यादातर लोगों ने यह सोचा है कि जब फिर से दफ्तर खुलेंगे तो अपने सहकर्मियों के प्रति उनका व्यवहार पहले से भिन्न होगा. एक अकेले हिंदुस्तान में ही नहीं, पूरी दुनिया में लोगों की अपने दफ्तर के लोगों से नहीं पटती है. पब्लिक डीलिंग दफ्तरों के ऐसे कर्मचारी जो ग्राहकों के बीच बड़े लोकप्रिय होते हैं, कई बार उनका भी अपने सहकर्मियों के साथ अच्छा रिश्ता नहीं रहता.

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हालांकि यह बात भी सही है कि दुनिया के किसी भी कोने में चले जाइये, छोटे या बड़े किसी भी किस्म के दफ्तर में चले जाइये, हर जगह ऐसे लोग मिल जाएंगे, जिन्हें अपने सहकर्मियांे में कोई न कोई कमी जरूर नजर आयेगी. हर किसी को लगता है कि वह तो बिल्कुल सही है, लेकिन उसका सहकर्मी यानी कुलीग सही नहीं है. ठीक उसी तरह जैसे हर किसी को अपने अच्छे और अपने पड़ोसी के खराब होने की गलतफहमी रहती है.

लेकिन दुर्भाग्य से हम अपने पड़ोसियों की ही तरह किसी हद तक अपने सहकर्मियों को भी तब तक नहीं चुन सकते जब तक कि हम एक नियोक्ता न हों अथवा अपनी लगी लगायी नौकरी पर लात मारने का जोखिम लेने के लिए तैयार न हों. मतलब यह कि सहकर्मी को भी पड़ोसी की तरह बदले जाने की कम ही उम्मीद होती है. ऐसे में भलाई इसी बात पर है कि क्यों न हम सहकर्मी से बनाकर चलें. यह कोई असंभव टास्क नहीं है. हममें से कोई भी अपने दफ्तर में सहकर्मियों के बीच सम्मान पा सकता है, लोकप्रिय हो सकता है बशर्ते वह सचेत रूप में ऐसा करना चाहता हो. वास्तव में दफ्तर में हम तभी सबके प्रिय या कि लोकप्रिय हो सकते हैं, जब हम खुद खुश रहें और अपने सहकर्मियों को भी खुश रखें या उन्हें खुश रहने का मौका दें.

याद रखिए दफ्तर में सिर्फ अपनी छवि के लिए ही लोकप्रिय होना जरूरी नहीं है बल्कि अपने बेहतर परफाॅर्मेंस के लिए भी यह जरूरी है. हर कोई कार्यस्थल पर दिन में अमूमन आठ घंटे गुजारता है. इस दौरान सहकर्मियों से हमें अपने संबंध के आधार पर तनाव, गुस्सा, खुषी या अच्छेपन का अहसास हो सकता है. अगर आपको लगता है कि आपके सहकर्मी आपके साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते, इसलिए आप भी उनसे अच्छा व्यवहार नहीं करते तो एक बार फिर से सोचिए. जरा सोचिए कि अपनी सहकर्मी से आखिर संपर्क के दौरान क्या आपने उस पर सौ प्रतिषत ध्यान दिया था. पूर्ण ध्यान देने के लिए आवष्यक है कि भटकाने वाली चीजों को नजरंदाज करके सिर्फ उसी पर फोकस करें.

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दफ्तर में सहकर्मियों के बीच सम्मान पाने के लिए जरूरी नहीं है कि उनकी हां में हां बजाएं. आप उन्हें तव्वजो देकर, उनके दृष्टिकोण को सुनकर, उनकी राय का सम्मान करके भी उनसे प्यार और सम्मान पा सकते हैं. दफ्तर में लोकप्रिय होने के लिए हमें अच्छा वक्ता नहीं बल्कि अच्छा श्रोता होने की जरूरत होती है. अच्छा श्रोता बनकर ही आप अपने सहकर्मियों को सम्मानित करते हैं. इससे वह भी आपके प्रति सम्मान का भाव रखता है. अब चूंकि दफ्तर से लंबी जुदाई के बाद आपने दफ्तर की कीमत पहचान ली है, इसलिए अब जब दफ्तर खुलें तो अपने सहकर्मियों के साथ वाकई पहले से भिन्न रिश्ते रखें तभी इस बेचैनी का कोई फायदा है.

स्मॉल टाउन से आईं सादी लड़कियां अपना रंगरूप कैसे बदलें

लंबे कुरते, सलवार और वीशेप में ओढ़े गए दुपट्टे के साथ जब 2 चोटियों वाली नैना ने इंग्लिश स्पोकन क्लास में प्रवेश किया तो अचानक सब की नजरें उस की तरफ उठ गईं. उस की दो चोटियां, ढीली सलवार और फ्लैट चप्पल के साथ कंधे पर कपड़े का बैग टांगने का अंदाज देख कर लड़केलड़कियों की आपस में कानाफूसी शुरू हो गई. वे दबीदबी हंसी हंसने लगे. नीरजा ने नजरें उठा कर देखा. नैना उसी के बगल में आ कर बैठ गई थी. नीरजा को बाकी स्टूडेंट्स का इस तरह हंसना अच्छा नहीं लगा. उस ने नैना की तरफ मुस्कुरा कर देखा और फिर पढ़ाई में लग गई.

नैना ने नीरजा के आगे दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए कहा,” मैं नैना हूं. गांव से आए हुए एक महीने से ज्यादा नहीं हुआ है और मेरी इंग्लिश भी अच्छी नहीं है. इसीलिए मैं यहां अपना इंग्लिश ठीक करने आई हूँ. पर मुझे इस क्लास में अजीब सा महसूस हो रहा है. ऐसा लग रहा है जैसे सब मुझे ही देख कर हंस रहे हैं. क्या सचमुच इतनी अजीब लग रही हूं मैं? क्या आप मेरा साथ देंगी?”

नैना खुद में ही सिमटी हुई सी थी. बड़ी मुश्किल से उस ने नीरजा से बात करने की हिम्मत जुटाई थी. उसे देखते हुए नीरजा ने बड़े प्यार से कहा,” ऐसा कुछ नहीं है नैना. तुम्हारा लुक कुछ अलग है न इसलिए इन लोगों ने इस तरह से रिएक्ट किया. तुम घबराओ नहीं. मैं हूं न तुम्हारी दोस्त. मैं तुम्हें यहां का रहनसहन और जीने का तरीका बता दूंगी. इट्स वैरी सिंपल. कोई दिक्कत नहीं होगी. 1- 2 महीने के अंदर तुम बिल्कुल शहरी लगने लगोगी और हां अपने मन में हीनभावना तो आने भी न देना.”

“नहींनहीं ऐसा नहीं है. मेरे अंदर हीनभावना नहीं है. मैं तो आत्मनिर्भर बनने और कुछ बड़ा करने के अपने सपने को पूरा करने आई हूं. लेकिन मैं खुद को कमजोर महसूस कर रही हूं. यहां किसी को जानती भी नहीं न . बस एक बुआ हैं जिन के घर रह रही हूं और जल्द ही किसी हॉस्टल में शिफ्ट हो जाउंगी. ”

“कोई बात नहीं. तुम मुझे 10 दिन का समय दो. देखना मैं कैसे तुम्हारा कायाकल्प करती हूं और हां मेरे फ्लैट के पास एक कमरा खाली है. तुम वहीँ शिफ्ट हो जाओ.”

नैना ने मुस्कुरा कर सहमति दे दी.

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अगले ही दिन नीरजा नैना को ब्यूटी पार्लर ले गई. उस ने सब से पहले नैना की लंबी चोटियों को कटवा कर बाल कंधे तक करवा दिए और उन्हें स्टाइलिश लुक दिलवाया. स्टाइलिश कटिंग के साथसाथ उसे जुल्फों को खुला रखना सिखाया. उस के आइब्रोज वगैरह बनवाए. उस की वैक्सिंग करवाई. मैनीक्योर, पैडीक्योर करवाया. हेयरस्पा करवाया. इस के बाद वह नैना को एक अच्छे मॉल में ले कर गई और वहां से कुछ स्टाइलिश कपड़े दिलवाए. ऐसे कपड़े जो बहुत ज्यादा शार्ट या बॉडी हगिंग नहीं थे लेकिन सिंपल होने के बावजूद स्टाइलिश लग रहे थे. कपड़े दिलवा कर उस ने नैना को समझाया कि अब वह ऐसे कपड़े ही पहने. उस ने नैना के फुटवियर भी बदलवाए और कुछ दिनों तक उसे बातचीत का तरीका भी समझाया.

10 दिनों के अंदर वाकई नैना के अंदर इतने ज्यादा परिवर्तन आ गए कि अब लड़के उस की तरफ देख कर मजाक में हंसते नहीं थे बल्कि आहें भरने लगे थे.

जाहिर सी बात है कि जब एक सीधीसादी लड़की कुछ सपने ले कर गांव से शहर आती है तो इस के लिए उसे पहले तो अपने परिवार वालों, समाज और आसपड़ोस वालों से जंग जीतनी होती है. उसे लोगों को समझाना होता है कि वह भी आगे बढ़ना चाहती है. कुछ करना चाहती है. शहर में उस का कोई रिश्तेदार या जानने वाला होता है तो मांबाप किसी तरह दिल पर पत्थर रख कर और उस लड़की पर भरोसा कर बड़ी मुश्किल से उसे शहर भेजते हैं. कई बार जब ससुराल शहर में हो तो शादी के बाद भी लड़की शहर आ जाती है.

जब वह शहर में पढ़ने, नौकरी करने और अपने सपनों को पूरा करने के लिए आती है तो इस माहौल में एकदम से घुलमिल नहीं पाती. उसे एडजस्ट करने में थोड़ा समय लगता है. यहां के स्टाइलिश लड़केलड़कियों को देख कर वह थोड़ी सहम सी जाती है. उस का आत्मविश्वास डगमगाने लगता है. उसे लगता है पता नहीं वह यहां रह भी पाएगी या नहीं. ऐसे में जरुरी है कि उसे किसी का मानसिक सपोर्ट मिले. कोई उसे सही तरह से गाइड करते हुए उस के आत्मविश्वास को बनाए रख सके. उसे समझा सके कि इस माहौल में एडजस्ट करने और आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ने के लिए कैसे अपने लुक और पर्सनैलिटी में थोड़े परिवर्तन की जरुरत होती है.

शादी के बाद भी अक्सर लड़कियों को नए परिवेश में जाना पड़ता है. कई दफा जगह नई होने के साथसाथ परिस्थितियां भी कठोर होती हैं.

1986 में आई एक फिल्म नसीब अपना अपना में एक गांव की बदसूरत गंवार सी लड़की चंदो को खूबसूरत रूपरंग देने की दास्तान काफी रोचक थी. इस में ऋषि कपूर (किशन ) मुख्य भूमिका में थे.

पिता के कहने पर जबरन गांव की लड़की से शादी करने के बाद किशन शहर आ जाता है. यहां एक खूबसूरत शहरी लड़की से शादी कर लेता है. बाद में गांव वाली पत्नी शहर आती है और पति के घर में ही नौकरानी बन कर रहने लगती है वह पति की दूसरी पत्नी(राधा) को बहन का दर्जा देती है. धीरेधीरे राधा चंदो को शहरी सलीके सिखाती है और उस का रंगरूप बदल कर उसे इतना खूबसूरत बना देती है कि उस का पति भी दंग रह जाता है. वस्तुत इस तरह के उदाहरण रील के साथ साथ रियल लाइफ में भी देखने को मिलते हैं. बस जरूरत है खुद में बदलाव लाने की .

आइए जानते हैं एक सीधीसादी लड़की किस तरह अपना रूप बदल सकती है —-

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1. परिधान से बदलता है व्यक्तित्व

अपने कपड़े बदल कर आप अपने व्यक्तित्व को काफी हद तक बदल सकती हैं. गांव की वेशभूषा गांव में ही शोभा देती है. शहरों में आप कुछ अलग तरह के कपड़े ट्राई करें. शुरुआत में आप स्टाइलिश मिडीज या शॉर्ट्स आदि नहीं पहन सकती और पहननी भी नहीं चाहिए. क्योंकि इन में आप कंफर्टेबल फील नहीं करेंगी. पहले आप ट्रेडिशनल सलवार कुरते के बजाए अनारकली सूट, स्ट्रेट लॉग कुरतीज विद लैगिंग्स, पैरलल या जींस ट्राई करें. इस के अलावा लॉन्ग फ्रॉक, कुरती विद श्रग या लॉन्ग जैकेट पहन सकती हैं. ये स्टाइलिश भी लगेंगे और आप आसानी से बिना झिझके पहन भी सकेंगी. समय के साथ आप जींस और शर्ट वगैरा ट्राई कर सकती है. आप सलवार के बजाए पटियाला भी ट्राई कर सकती हैं. ये आपकी पुरानी कुरती को भी नया लुक दे देंगे. फिर देखिये कुछ दिनों के अंदर ही कैसे आप का कॉन्फिडेंस वापस आता है. गॉर्जियस लुक के लिए हेवी वर्क वाले कपड़े चुन सकती हैं. मगर बहुत ज्यादा सितारे और बीड्स लगे कपड़े शहरों में पसंद नहीं किए जाते.

2. जुल्फों से संवरता है लुक

कपड़ों के बाद आप के व्यक्तित्व पर सब से ज्यादा असर आप की हेयरस्टाइल का पड़ता है. आप खुद को स्मार्ट और कॉन्फिडेंस दिखाना चाहती हैं तो अपनी हेयरस्टाइल जरूर चेंज करें. गांव में आप भले ही 2 चोटियां बनाती हों या 1 पोनीटेल में रहती हों पर शहर आ कर आप को अपने बालों को एक अच्छी कटिंग देनी चाहिए. अगर आप को लगता है कि अपने बाल स्ट्रेट या कर्ली करवा कर आप उन्हें संभाल सकती है तो जरूर ट्राई करें.

इन सब के अलावा जरूरी है कि आप अपने आइब्रोज बनवाएं. अपनी स्किन को ग्लो करने के लिए फेशियल करवाएं
पेडीक्योर, मैनीक्योर और वैक्सिंग करवाएं. ताकि दूसरों के आगे अलग सा या हीन महसूस न करें बल्कि सब के बीच निखर कर सामने आएं.

3. फुटवियर पर भी दें ध्यान

कपड़ों और बालों के बाद आप को अपनी फुटवियर पर भी ध्यान देना होगा. गांव में फ्लैट चप्पल या फ्लैट सैंडल पहन कर आप कहीं भी निकल सकती हैं. ज्यादा हुआ तो जूती पहन ली. लेकिन शहरों में लोग आप के फुटवियर पर भी ध्यान देते हैं. कुछ सोबर और स्टाइलिश सैंडल्स ट्राई कीजिए जो आप के कपड़ों से मैच करते हुए होने चाहिए. अपने फुटवियर के कलर पर भी ध्यान दीजिए. अक्सर गांव में लड़कियां ज्यादा कलरफुल और डार्क कलर की सैंडल या कपड़े पहनती हैं. चटक लाल, पीले, हरे. नारंगी जैसे रंग गावों में ज्यादा पसंद किये जाते हैं. वहीं शहरों में लड़कियों के कलर चॉइस काफी डिफरेंट होते है. आप शहर आई हैं तो शहर के हिसाब से अपनी सैंडल्स और कपड़ों के कलर और डिजाइन चूज करें. किसी पार्टी में जाना है या कोई त्यौहार है तो उस हिसाब से आप के पास हैवी वर्क वाले स्टाइलिश कपड़े भी होने चाहिए ताकि इस मौके पर दूसरों से अलग नजर न आएं.

4. मेकअप भी है जरुरी

गांव में लड़कियां ज्यादातर काजल, बिंदी और लिपस्टिक के अलावा कोई खास मेकअप नहीं करतीं. साथ में भारीभारी गहने जो सोनेचांदी के होते हैं जरूर पहनती हैं. पर शहरों में लड़कियों की चॉइस थोड़ी अलग होती है. शहरों में आप काजल के साथसाथ बहुत कुछ लगा सकती हैं जैसे आई मेकअप, मसकारा, आई लाइनर, आई शैडोज जैसी चीजें यूज़ कर सकती हैं. इस के अलावा होठों पर आप हलके रंग के मैचिंग लिपस्टिक या लिप बाम जो कलरफुल होते हैं का प्रयोग कर सकती हैं. बस चॉइस में यह अंतर रखिए कि अब आप कोई चीज़ ज्यादा डार्क कलर में न लें. शहरों में आप के पास चॉइस बहुत ज्यादा हैं. आप कम चटकमटक वाले सोबर कलर चुन सकती हैं. शहर की लड़कियों से आप मेकअप करना सीख सकती हैं. कैसे पाउडर, फाउंडेशन,ब्लशर या कंसीलर आदि का प्रयोग कर चेहरे की कमियों को छुपाया जाता है. मेकअप ऐसा न हो जो पोता हुआ लगे बल्कि लाइट मेकअप करना सीखना होगा. इस के लिए किसी दोस्त या ब्यूटी पार्लर की मदद भी ली जा सकती है.

5. आभूषण भी हों कुछ अलग

गांव में अक्सर लड़कियां जितने भारी गहनें पहनती हैं उतना अच्छा माना जाता है. गहने काफी कलरफुल भी होते हैं. वे सोनेचांदी के गहने ज्यादा पहनती हैं और शहरों में ये चीजें इतनी पसंद नहीं की जाती. शहरी लड़कियों को आप देखेंगी कि वे बहुत लाइट वेट आभूषण पहनती हैं. एक पतली सी चेन या रिंग या फिर झुमके. झुमके भले ही बड़ेबड़े भी पहने जाते हैं पर वे सोनेचांदी के नहीं बल्कि डायमंड या प्लैटिनम आदि के होते हैं और थोड़े स्टाइलिश होते हैं. कपड़ों के साथ मैच करने वाले होते हैं.

6. इंग्लिश भी जरूरी

शहर आ कर लुक बदलना है और आत्मवविश्वास पैदा करना है तो आप को इंग्लिश सीखनी पड़ेगी. बहुत ज्यादा नहीं तो भी काम चलाऊ इंग्लिश तो आनी ही चाहिए और इस के लिए आप इंग्लिश स्पोकन क्लासेज जा सकती हैं. इस के अलावा ग्रूमिंग क्लासेज जॉइन कर सकती हैं जहाँ आप को उठने बैठने, बात करने और खानेपीने का सलीका बताया जाता है. ऐसा नहीं कि गांव में सलीका नहीं है. लेकिन गांव में काम चल जाता है मतलब आप किसी भी तरह रह सकती हैं. मगर शहर में आ कर आप को बहुत कुछ सीखना होगा. अपने बोलने, खानेपीने घूमनेफिरने के अंदाज थोड़े बदलने होंगे. अपने अंदर कॉन्फिडेंस लाना होगा और यह कॉन्फिडेंस आप को नॉलेज से मिलेगा. सीधीसादी बने रहने के बजाए स्मार्ट बनना होगा दिमाग से भी और शरीर से भी.

7. लहजे में लाएं बदलाव

इंग्लिश जरूरी है पर न जानने पर हीन भावना नहीं पालें. शब्दों का सही उच्चारण सीखें. गांव में बोलने का लहजा कुछ अलग होता है और शहरों का अलग होता है. उस लहजे यानी टोन को सुधारना बहुत जरूरी है. अक्सर गांव में जिन शब्दों का हम इस्तेमाल करते हैं जैसे, नमस्कार, कैसे हो, सब ठीक तो है, खाना खा लिया आदि शहरों में ज्यादा नहीं चलते. इन शब्दों के बजाय आप इंग्लिश के सामान्य कर्टसी वर्डस का इस्तेमाल करना सीखें. नमस्कार के बजाय हेलो, हाय या गुड मॉर्निंग कहें. इसी तरह कैसे हो की जगह हाउ आर यू, ऑल फाइन, सब सही की जगह ऑलगुड और इसी तरह व्हाट्स अप, हाउ इट इज, फाइन, सॉरी, थैंक्स, वेलकम जैसे शब्द आप की जुबां पर होने चाहिए.

सही उच्चारण और इंग्लिश के इन शब्दों का इस्तेमाल करने के साथसाथ अपने हावभाव सुधारने के लिए शीशे के आगे बोलने की प्रैक्टिस करें. डरीसहमी दिखने के बजाए कांफिडेंट दिखने का प्रयास करें.

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8. उपहारों का लेनदेन

पैसे बर्बाद न करते हुए भी सब के साथ बराबर का खर्च करें. उपहार देना लेना सीखें. कहीं घूमने जाएं तो दूसरों के लिए कुछ लेना न भूलें. इस से दोस्ती भी गहरी होती है और एक तरह की मानसिक ख़ुशी भी मिलती है. उपहार ऐसे खरीदें जो सामने वाले के काम के तो हों ही साथ ही साथ आप की नई सोच दिखाने वाले भी हों.

9. फ्रेग्रेन्स भी जरूरी

अपने शरीर से आ रही महक बदलने के लिए परफ्यूम का इस्तेमाल करें. आज कल मार्किट में 100 -200 के रेंज में भी अच्छे परफ्यूम और डिओडिरेंट उपलब्ध हैं. गांव के कुछ खानों से बदन में अलग महक आती है, उन्हें छोड़ें.

10. किताबें पढ़ें

भरपूर किताबें पढ़ें. मार्किट या लाइब्रेरी में हर विषय पर किताबें मिल जाएंगी. कुछ महिला पत्रिकाएं ऐसी होती हैं जिन में एक ही जगह आप को हर विषय के ज्ञान जैसे फैशन, कुकरी, मेकअप के साथसाथ राजनीति, समाज और घरपरिवार से जुड़ी भी हर तरह की जानकारी और तर्कशील सोच बढ़ाने वाले लेख भी मिल जाएंगे. इन्हे पढ़े समझें और जीवन में उतारने का प्रयास करें.

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बेहतर डाइजेशन के लिए क्या खाएं क्या नहीं

पाचनतंत्र भोजन को इस तरह पचाता है कि शरीर इस से मिले पोषक पदार्थों और ऐनर्जी का इस्तेमाल कर सके. कुछ प्रकार के भोजन जैसे सब्जियां और योगहर्ट पचाने में आसान होते हैं. विशेष प्रकार का भोजन खाने या अचानक आहार में कुछ बदलाव लाने से पाचनतंत्र की समस्याएं हो सकती हैं.

अगर पाचनतंत्र ठीक से काम न कर सके तो अपच की समस्या हो सकती है. अपच आमतौर पर कई बीमारियों और जीवनशैली से जुड़े कारकों की वजह से होता है. पाचन संबंधी समस्याओं के लक्षण आमतौर पर कुछ इस तरह होते हैं:

पेट फूलना, गैस, कब्ज, डायरिया, उलटी, सीने में जलन.

आहार जो पाचनतंत्र के लिए फायदेमंद है

छिलके वाली सब्जियां: सब्जियों में फाइबर भरपूर मात्रा में होता है, जो पाचन के लिए महत्त्वपूर्ण है. फाइबर कब्ज दूर करने में मदद करता है. सब्जियों के छिलके में फाइबर बहुत अधिक होता है, इसलिए अच्छा होगा कि आप पूरी सब्जी खाएं. आलू, बींस और फलियों के छिलकों में फाइबर बहुत ज्यादा मात्रा में पाया जाता है.

फल: फलों में फाइबर बहुत अधिक पाया जाता है. इन में विटामिन और मिनरल्स भी अधिक मात्रा में पाए जाते हैं जैसे विटामिन सी और पोटैशियम. उदाहरण के लिए सेब, संतरा और केला पाचन के लिए बेहद कारगर हैं.

साबूत अनाज से युक्त आहार: साबूत अनाज भी घुलनशील और अघुलनशील फाइबर का अच्छा स्रोत है. घुलनशील फाइबर बड़ी आंत में जैल जैसा पदार्थ बना लेता है, जिस से पेट भरा महसूस करते हैं और शरीर में ग्लूकोस का अवशोषण धीरेधीरे होता रहता है. अघुलनशील फाइबर कब्ज से बचाने में मदद करता है. फाइबर पाचनतंत्र में अच्छे बैक्टीरिया को पोषण भी देता है.

खूब तरल का सेवन करें: त्वचा को स्वस्थ रखने, इम्यूनिटी और ऊर्जा बढ़ाने के लिए शरीर को पानी की जरूरत होती है. पानी पाचन के लिए भी जरूरी है. जिस तरह हमारे पाचनतंत्र में अच्छे बैक्टीरिया को होना जरूरी है उसी तरह तरल भी बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण है.

अदरक: अदरक पाचन की समस्याओं जैसे पेट फूलना में राहत देती है. सूखा अदरक पाउडर बेहतरीन मसाला है, जो भोजन को बेहतरीन स्वाद देता है. अदरक का इस्तेमाल चाय बनाने में भी किया जाता है. अच्छी गुणवत्ता का अदरक चुनें. चाय के लिए ताजा अदरक लें.

हलदी: हलदी आप की किचन में मौजूद ऐंटीइनफ्लैमेटरी और ऐंटीकैंसर मसाला है. इस में करक्युमिन पाया जाता है, जो पाचनतंत्र के भीतरी स्तर को सुरक्षित रखता है, अच्छे बैक्टीरिया को पनपने में मदद करता है और बोवल रोगों एवं कोलोरैक्टल कैंसर के उपचार में भी कारगर पाया गया है.

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योगहर्ट: इस में प्रोबायोटिक्स होते हैं. ये लाइव बैक्टीरिया और यीस्ट हैं, जो पाचनतंत्र के लिए फायदेमंद होते हैं.

असंतृप्त वसा: इस तरह की वसा यानी फैट शरीर को विटामिनों के अवशोषण में मदद करते हैं. इन के साथ फाइबर पाचन को आसान बनाता है. पौधों से मिलने वाले तेल जैसे जैतून का तेल अनसैचुरेटेड फैट का अच्छा स्रोत है, लेकिन वसा का इस्तेमाल हमेशा ठीक मात्रा में करें. एक वयस्क को रोजाना अपने आहार में 2000 कैलोरी की जरूरत होती है, जिस में वसा की मात्रा 77 ग्राम से अधिक नहीं होनी चाहिए.

क्या न खाएं

कुछ खाद्य एवं पेयपदार्थों के कारण पेट फूलना, सीने में जलन और डायरिया जैसी समस्याएं होती हैं. उदाहरण के लिए:

तेलीय/वसा युक्त आहार: तले और मसालेदार भोजन के सेवन से बचें, क्योंकि यह आप के पाचनतंत्र के लिए कई समस्याओं का कारण बन सकता है. ऐसे आहार को पचने में ज्यादा समय लगता है. इस कारण कब्ज, पेट फूलना या डायरिया जैसी समस्याएं होती हैं. तले खाद्यपदार्थों के सेवन से ऐसिडिटी और पेट फूलना जैसी समस्याएं होती हैं.

मसालेदार भोजन: मसालेदार भोजन पेट में दर्द या मलत्याग करते समय असहजता का कारण बन सकता है.

प्रोसैस्ड फूड: अगर आप को पाचन संबंधी समस्याएं हैं. प्रोसैस्ड खाद्यपदार्थों का सेवन न करें, इस तरह के आहार में फाइबर कम मात्रा में होता है, जबकि कृतिम चीनी, कृत्रिम रंग, नमक एवं प्रीजरर्वेटिव बहुत अधिक मात्रा में पाए जाते हैं, जो आप की पाचन संबंधी समस्याओं को और बदतर बना सकते हैं, साथ ही फाइबर न होने के कारण इस तरह के भोजन को पचाने के लिए शरीर के ज्यादा काम करना पड़ता है और यह कब्ज का कारण बन सकता है.

रिफाइंड चीनी, सफेद रिफाइंड चीनी इनफ्लैमेटरी कैमिकल बनाती है और पाचनतंत्र में डिसबायोसिस को बढ़ावा देती है. इस से पाचनतंत्र में बैक्टीरिया का संतुलन बिगड़ जाता है. इस तरह की चीनी हानिकर बैक्टीरिया को बढ़ावा देती है.

शराब: शराब के सेवन से डीहाइड्रेशन हो जाता है, जो कब्ज और पेट फूलने का कारण बन सकता है. यह पेट एवं पाचनतंत्र के लिए नुकसानदायक है और लिवर के मैटाबोलिज्म में बदलाव ला सकती है. शराब ऐसिडिक होती है, इसलिए स्टमक यानी आमाशय के भीतरी अस्तर को नुकसान पहुंचा सकती है.

कैफीन: कैफीन, चाय, कौफी, चौकलेट, सौफ्ट ड्रिंक, एनर्जी ड्रिंक, बेक्ड फूड, आईसक्रीम में पाया जाता है. यह पाचनतंत्र के मूवमैंट को तेज करता है, जिस से पेट जल्दी खाली हो जाता है. इस से पेट दर्द और डायरिया जैसी समस्याएं हो सकती हैं.

कार्बोनेटेड पेय: इन में मौजूद गैस पेट फूलना जैसी समस्याओं का कारण बन सकती है. इस का असर आमाशय के भीतरी स्तर पर भी पड़ता है. साथ ही इस तरह के पेयपदार्थों में चीनी बहुत अधिक मात्रा में पाई जाती है, जो पाचन की समस्याओं को और बढ़ा सकती है. कार्बोनेटेड पेय, शरीर में इलैक्ट्रोलाइट के संतुलन को बिगाड़ सकते हैं, जिस से शरीर डीहाइड्रेट हो सकता है.

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पाचन को बेहतर बनाने के लिए अच्छी आदतें

चबाना: खाने को हमेशा अच्छी तरह चबा कर खाएं. आगे भोजन का पचना आसान हो जाता है, क्योंकि हारमोन इस पर बेहतर काम कर पाते हैं.

टेबल पर खाएं: खाते समय आप का ध्यान खाने पर हो, टेबल पर आराम से बैठ कर खाएं. खाते समय स्क्रीन के सामने न रहें.

रिलैक्स हो कर आराम से खाएं: अकसर हम काम की भागदौड़ में जल्दबाजी में खाते हैं, कभीकभी हम खाने का आनंद नहीं लेते. लेकिन जब हम रिलैक्स हो कर खाना खाते हैं, तो यह अच्छी तरह पचता है. अगर हम तनाव में होंगे, तो शरीर पचाने पर कम ध्यान देगा.

सब के साथ मिल कर खाएं: इस से न केवल खाना पचाने में मदद मिलती है, बल्कि आपस में प्यार भी बढ़ता है और हम अपने वजन को भी नियंत्रित रख पाते हैं. परिवार में एकसाथ मिल कर खाना खाने से बच्चों और किशोरों को फायदा होता है. उन का आत्मविश्वास बढ़ता है, उग्र व्यवहार, खाने की समस्याओं, नशे की लत, अवसाद, आत्महत्या जैसे खयालों में कमी आती है.

-डा. सुधा कंसल, रैसपिरेटरी स्पैश्यलिस्ट, इंद्रप्रस्थ अपोलो हौस्पिटल, दिल्ली.   

रेस्टोरेंट जैसी मटर पनीर की सब्जी

दोस्तों ये तो हम जान ही चुके है की घर में पनीर कैसे बनाये ,चलिए अब जानते है की घर में रेस्टोरेंट जैसी मटर पनीर की सब्जी कैसे बनाये. हम अक्सर अपने घरों में मटर पनीर की सब्जी बनाते है. इसको बनाने के कई तरीके होते है और हर तरीको से ही ये काफी लज़ीज़ लगती हो क्योंकि मटर और पनीर का मेल बहुत ही बेजोड़ होता है.पर अक्सर जब हम रेस्टोरेंट या ढाबे में ये सब्जी खाते है तो उसका स्वाद ही कुछ अलग रहता है.हम घर पर वैसी ही सब्जी बनाने की कोशिश करते है लेकिन वैसी सब्जी बन ही नहीं पाती.
तो चलिए आज हम आपको रेस्टोरेंट जैसी मटर पनीर की सब्जी का सीक्रेट बताते है.

कितने लोगों के लिए : 3 से 4
समय:15 से 20 मिनट
मील टाइप-veg

हमें चाहिए-
पनीर – 500 ग्राम(चौकोर टुकड़ों में कटा हुआ)
मटर के दाने -2 कप(उबले हुए)
रिफाइन्ड या सरसों का तेल – 2 टेबल स्पून
आलू-2 मध्यम आकार के (उबले हुए)
टमाटर – 2 बड़े साइज़ के
प्याज़-3 बड़े साइज़ के
हरी मिर्च – 2
अदरक – 1 इंच का टुकड़ा
लहसुन -8 से 10 कलियाँ
लौंग-3 से 4
तेज़ पत्ता-2 छोटे
जीरा – 1 छोटी चम्मच
हल्दी ½ छोटी चम्मच
धनियाँ पाउडर – 2 छोटी चम्मच
लाल मिर्च पाउडर – ½ छोटी चम्मच से कम
गरम मसाला – ½ छोटी चम्मच
कसूरी मेथी -1 छोटी चम्मच (ऑप्शनल)
हरा धनियाँ – 2 टेबल स्पून बारीक कटा हुआ
नमक – स्वादानुसार

बनाने का तरीका-

1- सबसे पहले एक पैन में 2 छोटी चम्मच तेल गर्म करे .अब उसमे लौंग,लहसुन,हरी मिर्च , अदरक डाल कर थोडा चलाये .इसके बाद उसमें कटी हुई प्याज और टमाटर डाल दे और उनको हल्का लाल होने तक भूने .याद रखें उन्हें ज्यादा पकाना नहीं है.
2-अब गैस बंद करके इसको किसी बर्तन में निकाल ले.थोडा ठंडा हो जाने के बाद इसे ब्लेंडर में डाल कर इसका पेस्ट बना ले.
3-अब उसी पैन में तेल गर्म करें.तेल गर्म हो जाने के बाद उसमे जीरा और तेज़ पत्ता डाल दे और उसको थोडा चटकने दे.अब उसमे तैयार किया हुआ मिक्सचर डाल दे और उसको अच्छे से मिला ले.1 से 2 मिनट बाद उसमे हल्दी पाउडर ,धनिया पाउडर ,गरम मसाला और नमक डाल कर उसको अच्छे से चलाकर ढक दे.
4- 2 से 3 मिनट पकने के बाद ढक्कन को हटा दे आप देखेंगे की तेल अलग हो गया है.अब उबले हुए आलू को अच्छे से मैश करके उसी मसाले में डाल दे और 3 से 4 मिनट अच्छे से भून ले.ऐसा इसलिए किया जाता है की ग्रेवी थोड़ी गाढ़ी हो जाये.आप चाहे तो ये स्टेप स्किप कर सकते है.
5 -अब इसमें 1 गिलास पानी (या आपको जितनी पतली ग्रेवी चाहिए) डाल दे और ग्रेवी को अच्छे से पकाए.
[एक चीज़ याद रखें ग्रेवी जितनी ज्यादा पकेगी उसका स्वाद भी उतना ही अच्छा आएगा. ]
5 से 6 मिनट पकाने के बाद इसमें उबली हुई हरी मटर डाल दे और फिर ग्रेवी को 2 से 3 मिनट पकाए.

6–अब जब ग्रेवी काफी पक चुकी हो तब उसमे घर का बना हुआ पनीर डाल दे.
[यहाँ मैंने पनीर को फ्राई नहीं किया है अगर आप पनीर को फ्राई करके डालना चाहते हैं तो आप कर सकते हैं.]
7 -पनीर डालने के बाद 3 से 4 मिनट सब्जी को और पका ले.अब इसमें ऊपर से कसूरी मेथी डाल दे और अच्छे से चलाने के बाद गैस बंद कर दे.अगर आपके पास कसूरी मेथी नहीं है तो आप सिर्फ हरा धनिया भी बारीक काट कर डाल सकते है.
8-तैयार है रेस्टोरेंट जैसी मटर पनीर की सब्जी.आप इसे नान ,रोटी या चावल के साथ खा सकते है.

जब बहक जाए पति या बेटा

सरकारी औफिस में अधिकारी के रूप में काम करने वाले प्रदीप कुमार को देर रात तक घर से बाहर रहना पड़ता था. औफिस के काम से छोटेबडे़ शहरों में टूर पर भी जाना होता था. 48 साल के प्रदीप की शादी हो चुकी थी. उन की 2 बेटियां और 1 बेटा था. घर में वे जब भी पत्नी के साथ सैक्स की बात करते तो पत्नी शोभा मना कर देती. शोभा को बडे़ होते बच्चों की फिक्र होने लगती थी. शोभा को यह पता था कि यह प्रदीप के साथ एक तरह का अन्याय है पर बच्चों को संस्कार देने के खयाल में वह पति की भावनाओं को नजरअंदाज कर रही थी. प्रदीप का काम ऐसा था जिस में कई बड़े ठेकेदार और प्रभावी लोग जुडे़ होते थे. ऐसे में जब वह टूर पर बाहर जाते तो उन को खुश करने वालों की लाइन लगी रहती थी.

प्रदीप स्वभाव से सामान्य व्यक्ति थे. न किसी चीज के प्रति ज्यादाभागते थे और न ही किसी के प्रति उन के मन में कोई वैराग्य भाव ही था. हर हाल में खुश रहने वाला उन का स्वभाव था. एक बार वे आगरा के टूर पर थे. वहां उन को एक खास प्रोजैक्ट पर काम करना था. इस कारण उन को लगातार एक सप्ताह तक वहां रहना था. प्रदीप के लिए सरकारी गैस्ट हाउस में इंतजाम था. वहीं एक दिन कौलगर्ल की चर्चा होने लगी. देर शाम एक ठेकेदार ने लड़की का इंतजाम कर दिया. कुछ नानुकुर करने के बाद प्रदीप ने लड़की के साथ रात गुजार ली. इस के बाद तो यह सिलसिला चल निकला. कई बार प्रदीप को खुद लगता कि वे गलत कर रहे हैं पर उन को यह सब अच्छा लगने लगा था. अब वे अकसर शहर से बाहर जाने का बहाना बनाने लगे. कुछ दिन तो यह बात छिपी रही पर शोभा को शक होने लगा. शोभा ने बिना कुछ कहे उन पर नजर रखनी शुरू कर दी. शोभा को कई ऐसी जानकारियां मिल गईं जिन से उस का शक यकीन में बदल गया.

शोभा ने सोचा कि अगर वह यह बात पति से करेगी तो आसानी से वे मानेंगे नहीं. लड़ाई झगड़ा अलग से शुरू हो जाएगा. बच्चों के जिन संस्कारों को बचाने के लिए वह प्रयास करती आई है वे भी खाक में मिल जाएंगे. ऐसे में शोभा ने अपने घरेलू डाक्टर से बात की. डाक्टर ने कुछ बातें बताईं. कुछ दिन बीत गए. प्रदीप इस बात से खुश थे कि शोभा को उन के नए शौक के बारे में कुछ पता नहीं चला. अचानक एक दिन प्रदीप को तेज बुखार आ गया. शोभा उन को ले कर डाक्टर के पास गई. डाक्टर ने कुछ ब्लड टैस्ट कराने के लिए कह दिया. दवा दे कर प्रदीप को वापस घर भेज दिया और बैडरैस्ट करने को कहा है. घर पहुंचने के बाद प्रदीप ने बैडरैस्ट तो किया पर बुखार कम हो कर वापस आजा रहा था.

एक दिन के बाद प्रदीप जब डाक्टर के पास जाने लगे तो शोभा भी साथ चली गई. डाक्टर ने ब्लड रिपोर्ट देखी और चिंता में पड़ गया. उस ने शोभा को कुछ देर बाहर बैठने के लिए कहा और प्रदीप से बात करने लगा. डाक्टर ने कहा कि रिपोर्ट में तो बुखार आने का कारण एचआईवी का संक्रमण आ रहा है. क्या आप कई औरतों से संबंध रखते हैं? प्रदीप सम झदार व्यक्ति थे, डाक्टर से  झूठ बोलना उचित नहीं सम झा. सारी कहानी डाक्टर को बता दी. इस के बाद डाक्टर ने पतिपत्नी दोनों को ही सामने बैठा कर सम झाया. सैक्स के महत्त्व को सम झाया और बाजारू औरतों से सैक्स संबंध बनाने के खतरे भी बताए. उस रात प्रदीप को नींद नहीं आई. शोभा उन के पास ही थी. प्रदीप ने अपनी गलती मान ली और शोभा से माफी भी मांगी. दूसरी ओर शोभा ने अपनी गलती मान ली. प्रदीप को ज्यादा परेशान देख कर शोभा ने उन को गले लगाते हुए कहा, ‘‘यह सब नाटक था तुम्हारी आंखें खोलने के लिए. हां, बुखार वाली बात तो ठीक थी पर एचआईवी की बात गलत थी. हमें पहले ही पता था कि तुम बाहर जा कर क्या गलती कर बैठे हो.’’

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न करें  झगड़ा

लखनऊ में सैक्स रोगों की काउंसलिंग करने वाले डा. जी सी मक्कड़ कहते हैं, ‘‘सैक्स के लिए बाजारू औरतों से संबंध रखना सेहत के लिए किसी भी तरह से अच्छा नहीं होता. इस के लिए केवल पुरुष ही दोषी नहीं हैं, कई बार पत्नियां पतियों को समझ नहीं पातीं. घरपरिवार, बच्चों के चलते उन को समय नहीं मिलता या वे मेनोपौज का शिकार हो कर पति की जरूरतों को पूरा करने से बचने लगती हैं. ऐसे में पति के भटकने का खतरा बढ़ जाता है. कभी वह कोठे पर जाने लगता है तो कभी सैक्स कारोबार करने वाली दूसरी औरतों के चक्कर में पड़ जाता है. इस से बचने के लिए औरतों को बहुत ही धैर्यपूर्वक परेशानी का मुकाबला करना चाहिए.  झगड़ा करने से परिवार के टूटने का खतरा ज्यादा रहता है.’’

समाजसेवी शालिनी कुमार कहती हैं, ‘‘आमतौर पर आदमी के लिए उम्र के 2 पड़ाव बेहद कठिन होते हैं. एक जब वह 17 से 20 साल की उम्र में होता है. और दूसरा 45 साल के करीब. ऐसे में वह अपनी शारीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए बाजारू औरतों की मदद लेने लगता है. ऐसे में उस का प्रभाव एक औरत को मां या पत्नी के रूप में  झेलना पड़ता है. घरपरिवार को बचाने के लिए बहुत ही समझदारी से काम लेना चाहिए.’’

जब बिगड़ जाए बेटा

25 साल के अनुराग की अच्छी नौकरी लग गई. उस के ऊपर कोई खास जिम्मेदारी भी नहीं थी. अनुराग की गर्लफ्रैंड तो बहुत थीं पर उन से उस के सैक्स संबंध नहींथे. अनुराग को दोस्तों से पता चला कि सैक्स संबंधों के लिए कौलगर्ल बेहतर होती हैं क्योंकि उन से केवल जरूरत भर का साथ होता है. गर्लफ्रैंड तो गले की हड्डी भी बन सकती है. पब और डिस्को में जाने के दौरान उस की मुलाकात ऐसी ही कुछ लड़कियों से होने लगी. सैक्स के लिए टाइमपास करने वाली ये लड़कियां कई बार पार्टटाइम गर्लफ्रैंड भी बन जाती थीं. देखनेसुनने में यह भी सामान्य लड़कियों की ही तरह होती हैं. अनुराग को अपने शहर में ऐसा काम करने से खतरा लगता था. ऐसे में वह लड़की को ले कर दिल्ली, मुंबई और गोआ जाने लगा. वह अकसर वीकएंड पर ऐसे कार्यक्रम बनाने लगा. बाहर जा कर उसे बहुत अच्छा लगने लगा.

अनुराग के इस शौक  ने उसे बदल दिया था. वह घर में कम समय देता था. जब भी उस की शादी की बात चलती वह अनसुना कर देता. एक बार वह ऐसी ही एक लड़की के साथ गोआ गया था. वहां से जिस दिन उसे वापस आना था उस की मां उस को लेने के लिए एअरपोर्ट पहुंच गई. अनुराग को इस बारे में कुछ पता नहीं था. वह लड़की के साथ एअरपोर्ट से बाहर आ कर टैक्सी में बैठने लगा. लड़की पहले ही टैक्सीमें बैठ चुकी थी. इस के पहले कि टैक्सी आगे बढ़ती, अनुराग की मां ने उसे पुकारा, ‘‘बेटा, मैं अपनी गाड़ी ले कर आई थी. इसी में आ जाओ.’’

मां की आवाज सुन कर अनुराग सोच में पड़ गया. उसे साथ वाली लड़की की फिक्र होने लगी. वह मां से कुछ कहता, इस के पहले मां बोलीं, ‘‘कोई बात नहीं बेटा, अपनी फ्रैंड को साथ ले आ.’’ अनुराग को कुछ राहत महसूस हुई. गाड़ी में बैठने के बाद अनुराग की मां ने लड़की की बेहद तारीफ करनी शुरू कर दी. घर आतेआते यह भी कह दिया कि वह बहू के रूप में उसे पसंद है. अनुराग उस लड़की को छोड़ कर वापस घर आया तो मां को बहुत प्रसन्न पाया. मां अनुराग और उस लड़की की शादी की बातें करने लगीं. कुछ देर तो अनुराग चुप रहा फिर बोला, ‘‘मां, आप को जिस लड़की के बारे में कुछ पता नहीं उस से मेरी शादी करने जा रही हो?’’

मां बोलीं, ‘‘बेटा, मैं भले ही उस से आज मिली थी पर तू तो उस के साथ घूम कर आया है. तुझे देख कर लगता है कि तू बहुत खुश है उस के साथ. जब तू खुश है तो मुझे और क्या चाहिए?’’

अनुराग परेशान हो गया. उस ने सोचा कि मां को सचाई बतानी ही होगी. रात में ठंडे दिमाग से अनुराग ने मां को पूरी बात बताई और अपनी गलती मान ली. अनुराग की मां बोलीं, ‘‘बेटा, तुझे अपनी गलती समझ आ गई, इस से बड़ी क्या बात हो सकती है. अब अच्छी लड़की देख कर तेरी शादी हो जानी चाहिए.’’

शादी के बाद अनुराग बदल गया. मां की समझदारी ने अनुराग का जीवन खराब होने से बचा लिया. इस प्रकार ऐसे हालात को संभालने में पत्नी और मांबाप को धैर्य से काम लेना चाहिए. नहीं तो एक खुशहाल परिवार को बिखरने में देर नहीं लगेगी.

बेटे के प्रति ध्यान रखने योग्य बातें

– बेटे के दोस्तों पर निगाह रखें. जिन दोस्तों का स्वभाव अच्छा न लगे उन से दूरी बनाने के लिए बेटे को सम झाएं.

– बेटे की बदलती सैक्स लाइफ पर नजर रखने की कोशिश करें. उस की मुलाकात मनोचिकित्सक से कराएं. जो बातें आप नहीं बता सकतीं वह उस के संबंध में समझा सकता है.

– बाजारू औरतों के साथ सैक्स संबंध बनाने के खतरे बताएं. ऐसे संबंधों से यौन रोग फैल सकते हैं यह बताएं.

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– कोठे वैसे नहीं होते जैसे फिल्मों में दिखते हैं, यह सम झाएं. वहां होने वाले नुकसान से आगाह कराते रहें. वहां पुलिस का छापा पड़ने से जेल जाने का खतरा रहता है.

– बेटे को समझाने में पति की मदद ले सकती हैं. कई बार वह आप से बात करने में हिचक सकता है. ऐसे में पिता से बात करना सरल होता है.

– उसे लड़कियों से दोस्ती करने से रोकें नहीं. दोस्ती की सीमाओं को बता कर रखें. बेटे को अनापशनाप खर्च करने के लिए पैसे न दें.

– समय से उस की शादी करा दें. कई बार शादी के बाद सुधार आ जाता है.

पति के प्रति ध्यान रखने योग्य बातें

– पति से बात करने से पहले खुद से जरूरी जानकारियां एकत्र करने की कोशिश करें.

– कुछ ऐसा उपाय करें कि बिना आप के कहे पति को अपनी गलती सम झ में आ जाए.

– अपनी बात रखने के लिए  झगड़ा न करें. ऐसे तर्क न करें जिन से संबंधों में कटुता आए.

– पति के साथ शारीरिक संबंध बनाए रखें. घरपरिवार की जिम्मेदारी के बीच सैक्स संबंधों को न भूलें.

– एक उम्र के बाद महिलाओं में सैक्स की इच्छा खत्म होने लगती है. ऐसे में महिला रोगों की जानकार डाक्टर से मिलें और उचित इलाज करवाएं.

– पति के साथसाथ अपनी सैक्स परेशानियां मनोचिकित्सक को बताएं.

– पति को बाजारू औरतों के साथ सैक्स संबंध बनाने के खतरे बताएं.

– ऐसे काम पद और प्रतिष्ठा दोनों को नुकसान पहुंचा सकते हैं.

– पति को पारिवारिक जिम्मेदारी का एहसास कराते रहें. इस से उन का ध्यान इधरउधर नहीं भटकेगा.

– समयसमय पर पति के साथ अकेले बाहर जाने का कार्यक्रम रखें, होटल में रुकें ताकि सैक्स संबंधों को खुल कर जी सकें.

फैशन के मामले में किसी से कम नही हैं ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ की ‘नई अंजलि भाभी’

सब टीवी के पौपुलर शो तारक मेहता का उल्टा चश्मा में कई बदलाव देखने को मिल रहे हैं. बीते दिनों कोरोना के कहर के बीच सालों से इस शो का हिस्सा रहे अंजली मेहता और सोढ़ी के रोल में नजर आने वाले नेहा मेहता और गुरुचरण सिंह ने शो को अलविदा कह दिया है. हालांकि अब इन स्टार्स को रिप्लेस करने वाले एक्टर्स का भी खुलासा हो गया है. दरअसल, अब अंजलि भाभी के किरदार में सुनयना फौजदार तो वहीं सोढ़ी के किरदार में बलविंदर सिंह सूरी नजर आने वाले हैं. लेकिन आज हम बात शो के ट्रैक और खबरों की नहीं बल्कि अंजलि भाभी के रोल में जल्द नजर आने वाली एक्ट्रेस सुनयना फौजदार के फैशन की करेंगे.

1. साड़ी लुक है खूबसूरत

सुनयना फौजदार अक्सर इंडियन लुक में नजर आती हैं, जिसे फैंस काफी पसंद करते हैं. हाल ही में सिंपल साड़ी को ट्रैंडी लुक देते हुए सुनयना फौजदार सिंपल साड़ी पहनें नजर आईं थीं. इस साड़ी के साथ कुंदन का नेकलेस उनके लुक पर चार चांद लगा रहा है.

 

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2. मैक्सी ड्रैस से बनाएं लुक को स्टाइलिश

अगर आप मैक्सी ड्रैस कैरी करने की शौकीन हैं तो सुनयना फौजदार की ये ड्रैस ट्राय करना ना भूलें. आप इस लुक को खूबसूरत बनाने के लिए हैवी जंक ज्वैलरी कैरी कर सकती हैं, जो आपके लुक को ट्रैंडी बनाने में मदद करेगा.

3. हैवी लौंग सूट है वेडिंग परफेक्ट

अगर आप वेडिंग सीजन के लिए कुछ ट्रैंडी और फैशनेबल कलेक्शन ढूंढ रही हैं तो सुनयना फौजदार का ये लुक आपके लिए परफेक्ट है.

4.  शर्ट लुक है परफेक्ट

आजकल मार्केट में कई शर्ट पैटर्न वाले लौंग कुर्ते मौजूद हैं. अगर आप भी इस लुक को ट्राय करना चाहती हैं तो सिंपल प्लेन कुर्ते के साथ जंक ज्वैलरी ट्राय करें, जो आपके लुक को ट्रैंडी बनाएगा.

 

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A beautiful face never beats a beautiful soul 📷 @rk_fotografo muah @kondvilkarmanali location @ektaworld

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Serial Story: घमंडी (भाग-1)

‘‘यह चांद का टुकड़ा कहां से ले आई बहू?’’ दादी ने पोते को पहली बार गोद में ले कर कहा था,  ‘‘जरा तो मेरे बुढ़ापे का खयाल किया होता. इस के जैसी सुंदर बहू कहां ढूंढ़ती फिरूंगी.’’

कालेज तक पहुंचतेपहुंचते दादी के ये शब्द मधुप को हजारों बार सुनने के कारण याद हो गए थे और वह अपने को रूपरंग में अद्वितीय समझने लगा था. पापा का यह कहना कि सुंदर और स्मार्ट लगने से कुछ नहीं होगा, तुम्हें पढ़ाई, खेलकूद में भी होशियारी दिखानी होगी, भी काम कर गया था और अब वह एक तरह से आलराउंडर ही बन चुका था और अपने पर मर मिटने को तैयार लड़कियों में उसे कोईर् अपने लायक ही नहीं लगती थी. इस का फायदा यह हुआ कि वह इश्कविश्क के चक्कर से बच कर पढ़ाई करता रहा. इस का परिणाम अच्छा रहा और आईआईटी और आईआईएम की डिगरियां और बढि़या नौकरी आसानी से उस की झोली में आ गिरी. लेकिन असली मुसीबत अब शुरू हुई थी. शादी पारिवारिक, सामाजिक और शारीरिक जरूरत बन गई थी, लेकिन न खुद को और न ही घर वालों को कोई लड़की पसंद आ रही थी. अचानक एक शादी में मामा ने दूर से कशिश दिखाई तो मधुप उसे अपलक देखता रह गया. तराशे हुए नैननक्श सुबह की लालिमा लिए उजला रंग और लंबा कद. बचपन से पढ़ी परी कथा की नायिका जैसी.

‘‘पसंद है तो रिश्ते की बात चलाऊं?’’ मां ने पूछा. मधुप कहना तो चाहता था कि चलवानेवलवाने का चक्कर छोड़ कर खुद ही जा कर रिश्ता मांग लोे, लेकिन हेकड़ी से बोला,  ‘‘शोकेस में सजाने के लिए तो ठीक है, लेकिन मुझे तो बीवी चाहिए अपने मुकाबले की पढ़ीलिखी कैरियर गर्ल?’’

‘‘कशिश क्वालीफाइड है. एक मल्टीनैशनल कंपनी में सैक्रेटरी है. अब तुम उसे अपनी टक्कर के लगते हो या नहीं यह मैं नहीं कह सकता,’’ मामा ने मधुप की हेकड़ी से चिढ़ कर नहले पर दहला जड़ा.

खिसियाया मधुप इतना ही पूछ सका,  ‘‘आप यह सब कैसे जानते हैं?’’

‘‘अकसर मैं रविवार को इस के पापा के साथ गोल्फ खेल कर लंच लेता हूं. तभी परिवार के  बारे में बातचीत हो जाती है.’’

‘‘आप ने उन को मेरे बारे में बताया?’’

‘‘अभी तक तो नहीं, लेकिन वह यहीं है, चाहो तो मिलवा सकता हूं?’’

कहना तो चाहा कि पूछते क्यों हैं, जल्दी से मिलवाइए, पर हेकड़ी ने फिर सिर उठाया,  ‘‘ठीक है, मिल लेते हैं, लेकिन शादीब्याह की बात आप अभी नहीं करेंगे.’’

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‘‘मैं तो कभी नहीं करूंगा, परस्पर परिचय करवा कर तटस्थ हो जाऊंगा,’’ कह कर मामा ने उसे डाक्टर धरणीधर से मिलवा दिया. जैसा उस ने सोचा था, धरणीधर ने तुरंत अपनी बेटी कशिश और पत्नी कामिनी से मिलवाया और मधुप ने उन्हें अपने मम्मीपापा से. परिचय करवाने वाले मामा शादी की भीड़ में न जाने कहां खो गए. किसी ने उन्हें ढूंढ़ने की कोशिश भी नहीं की. चलने से पहले डा. धरणीधर ने उन लोगों को अगले सप्ताहांत डिनर पर बुलाया जिसे मधुप के परिवार ने सर्हष मान लिया. मधुप की बेसब्री तो इतनी बढ़ चुकी थी कि 3 रोज के बाद आने वाला सप्ताहांत भी बहुत दूर लग रहा था और धरणीधर के घर जा कर तो वह बेचैनी और भी बढ़ गई. कशिश को खाना बनाने, घर सजाने यानी जिंदगी की हर शै को जीने का शौक था. ‘‘इस का कहना है कि आप अपनी नौकरी या व्यवसाय में तभी तरक्की कर सकते हो जब आप उस से कमाए पैसे का भरपूर आनंद लो. यह आप को अपना काम बेहतर करने की ललक और प्रेरणा देता है,’’ धरणीधर ने बताया,  ‘‘अब तो मैं भी इस का यह तर्क मानने लग गया हूं.’’

उस के बाद सब कुछ बहुत जल्दी हो गया यानी सगाई, शादी. मधुप को मानना पड़ा कि कशिश बगैर किसी पूर्वाग्रह के जीने की कला जानती यानी जीवन की विभिन्न विधाओं में तालमेल बैठाना. न  तो उसे अपने औफिस की समस्याओं को ले कर कोई तनाव होता और न ही किसी घरेलू नौकर के बगैर बताए छुट्टी लेने पर यानी घर और औफिस सुचारु रूप से चला रही थी. मधुप को भी कभी आज नहीं, आज बहुत थक गई हूं कह कर नहीं टाला था.

समय पंख लगा कर उड़ रहा था. शादी की तीसरी सालगिरह पर सास और मां ने दादीनानी बनाने की फरमाइश की. कशिश भी कैरियर में उस मुकाम पर पहुंच चुकी थी जहां पर कुछ समय के लिए विराम ले सकती थी. मधुप को भी कोई एतराज नहीं था. सो दोनों ने स्वेच्छा से परिवार नियोजन को तिलांजलि दे दी. लेकिन जब साल भर तक कुछ नहीं हुआ तो कशिश ने मैडिकल परीक्षण करवाया. उस की फैलोपियन ट्यूब में कुछ विकार था, जो इलाज से ठीक हो सकता था. डा. धरणीधर शहर की जानीमानी स्त्रीरोग विशेषज्ञा डा. विशाखा से अपनी देखरेख में कशिश का उपचार करवाने लगे. प्रत्येक टैस्ट अपने सामने 2 प्रयोगशालाओं में करवाते थे.

उस रात कशिश और मधुप रात का खाना खाने ही वाले थे कि अचानक डा. धरणीधर और कामिनी आ गए. डा. धरणीधर मधुप को बांहों में भर कर बोले,  ‘‘साल भर पूरा होने से पहले ही मुझे नाना बनाओ. आज की रिपोर्ट के मुताबिक कशिश अब एकदम स्वस्थ है सो गैट सैट रैडी ऐंड गो मधुप. मगर अभी तो हमारे साथ चलो, कहीं जश्न मनाते हैं.’’

‘‘आज तो घर पर ही सैलिब्रेट कर लेते हैं पापा,’’ कशिश ने शरमाते हुए कहा, ‘‘बाहर किसी जानपहचान वाले ने वजह पूछ ली तो क्या कहेंगे?’’

‘‘वही जो सच है. मैं तो खुद ही आगे बढ़ कर सब को बताना चाह रहा हूं. मगर तुम कहती हो तो घर पर ही सही,’’ धरणीधर ने मधुप को छेड़ा, ‘‘नाना बनने वाला हूं, उस के स्तर की खातिर करो होने वाले पापाजी.’’

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डा. धरणीधर देर रात आने वाले मेहमानों के आगमन की तैयारी की बातें करते रहे. कामिनी ने याद दिलाया कि घर चलना चाहिए, सुबह सब को काम पर जाना है, वे नाना बनने वाले हैं इस खुशी में कल छुट्टी नहीं है.

‘‘पापा, आप के साथ ड्राइवर नहीं है. आप अपनी गाड़ी यहीं छोड़ दें. सुबह ड्राइवर से मंगवा लीजिएगा. अभी आप को हम लोग घर पहुंचा देते हैं,’’ मधुप ने कहा.

‘‘तुम लोग तो अब बेटाजी, तुरंत आने वाले मेहमान को लाने की तैयारी में जुट जाओ. हमारी फिक्र मत करो. गाड़ी क्या आज तो मैं हवाईजहाज भी चला सकता हूं,’’ धरणीधर जोश से बोले.

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Serial Story: घमंडी (भाग-3)

‘‘उस का तो अब सवाल ही नहीं उठता, तुम्हारे 7 या 70 खून भी माफ,’’ मधुप हंसा. मगर उस के स्वर में क्षमायाचना या पश्चात्ताप नहीं था. समझ तो गया कि कशिश को तलाक के कागज मिल गए हैं और यह कह कर कि अब उस का सवाल ही नहीं उठता, उस ने बात भी खत्म कर दी थी व कशिश को उस की गुस्ताखी और औकात की याद भी दिला दी थी. यों तो उसे वकील से भी संपर्क करना चाहिए था पर इस से अहं को ठेस लगती. कशिश से जवाब न मिलने पर जब वकील उस से अगले कदम के बारे में पूछेगा तो कह देगा कशिश ने भूल सुधार ली है.

मधुप को कशिश के औफिस जाने पर तो एतराज नहीं था, लेकिन जबतब मम्मीपापा के घर जा कर कशिश का उदास होना उसे पसंद नहीं था. घर की देखभाल के लिए जाना भी जरूरी था, नौकरों के भरोसे तो छोड़ा नहीं जा सकता था. मधुप ने कशिश को समझाया कि क्यों न पापा के क्लीनिक संभालने वाले विधुर डा. सुधीर से कोठी में ही रहने को कहें. सुन कर कशिश फड़क उठी जैसे किसी बहुत बड़ी समस्या का हल मिल गया हो. उस के बाद कशिश पूर्णतया सहज और तनावमुक्त हो गई.

‘‘आज मैं औफिस नहीं जाऊंगी, घर पर रह कर छोटेमोटे काम करूंगी जैसे कपड़ों की अलमारी में आने वाले महीनों में जो नहीं पहनने हैं उन्हें सहेज कर रखना और जो ढीले हो सकते हैं उन्हें अलग रखना वगैरह,’’ एक रोज कशिश ने बड़े सहज भाव से कहा, ‘‘फिक्र मत करो, थकाने वाला काम नहीं है और फिर घर पर ही हूं. थकान होगी तो आराम कर लूंगी.’’

मधुप आश्वस्त हो कर औफिस चला गया. जब वह लंच के लिए घर आया तो कशिश घर पर नहीं थी. नौकर ने बताया कि कुछ देर पहले गाड़ी में सामान से भरे हुए कुछ बैग और सूटकेस ले कर मैडम बाहर गई हैं.

‘‘यह नहीं बताया कि कब आएंगी या कहां गई हैं?’’

‘‘नहीं साहब.’’

जाहिर था कि सामान ले कर कशिश अपने पापा के घर ही गई होगी. मधुप ने फोन करने के बजाय वहां जाना बेहतर समझा. ड्राइव वे में कशिश की गाड़ी खड़ी थी. उस की गाड़ी को देखते ही बजाय दरवाजा खेलने के चौकीदार ने रुखाई से कहा, ‘‘बिटिया ने कहा है आप को अंदर नहीं आने दें.’’

तभी अंदर से डा. सुधीर आ गया. बोला, ‘‘कशिश से अब आप का संपर्क केवल अपने वकील द्वारा ही होगा सो आइंदा यहां मत आइएगा.’’

‘‘कैसे नहीं आऊंगा… कशिश मेरी बीवी है…’’

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‘‘वही बीवी जिसे आप ने बदचलनी के आरोप में तलाक का नोटिस भिजवाया है?’’ सुधीर ने व्यंग्य से बात काटी, ‘‘आप अपने वकील से कशिश की प्रतिक्रिया की प्रति ले लीजिए.’’

मधुप का सिर भन्ना गया. बोला, ‘‘मुझे कशिश को नोटिस भेजने की वजह बतानी है.’’

‘‘जो भी बताना है वकील के द्वारा बताइए. कशिश से तो आप की मुलाकात अब कोर्ट में ही होगी,’’ कह कर सुधीर चला गया. ‘‘आप भी जाइए साहब, हमें हाथ उठाने को मजबूर मत करिए,’’ चौकीदार ने बेबसी से कहा. मधुप भिनभिनाता हुआ अर्देशीर के औफिस पहुंचा.

‘‘आप की पत्नी भी बगैर किसी शर्त के आप को तुरंत तलाक देने को तैयार है सो पहली सुनवाई में ही फैसला हो जाएगा. हम जितनी जल्दी हो सकेगा तारीख लेने की कोशिश करेंगे,’’ अर्देशीर ने उसे देखते ही कहा.

‘‘मगर मुझे तलाक नहीं चाहिए. मैं अपने आरोप और केस वापस लेना चाहता हूं. आप तुरंत इस आशय का नोटिस कशिश के वकील को भेज दीजिए,’’ मधुप ने उतावली से कहा. अर्देशीर ने आश्चर्य और फिर दया मिश्रित भाव से उस की ओर देखा.

‘‘ऐसे मामलों को वकीलों द्वारा नहीं आपसी बातचीत द्वारा सुलझाना बेहतर होता है.’’

‘‘चाहता तो मैं भी यही हूं,

लेकिन कशिश मुझ से मिलने को ही तैयार नहीं है. आप तुरंत उस के वकील को केस और आरोप वापस लेने का नोटिस भिजवा दें.’’

‘‘इस से मामला बहुत बिगड़ जाएगा. कशिश की वकील सोनाली उलटे आप पर अपने क्लाइंट को बिन वजह परेशान करने और मानसिक संत्रास देने का आरोप लगा देगी.’’

‘‘कशिश की वकील सोनाली?’’

‘‘जी हां, आप उन्हें जानते हैं?’’

‘‘हां. कशिश की बहुत अच्छी सहेली है.’’‘‘तो आप उन से मिल कर समझौता कर लीजिए. वैसे भी हमारे लिए तो अब इस केस में करने के लिए कुछ रहा ही नहीं है,’’ अर्देशीर ने रुखाई से कहा.

मधुप तुंरत सोनाली के घर गया. उस की आशा के विपरीत सोनाली उस से बहुत अच्छी तरह मिली. ‘‘मैं बताना चाहता हूं कि मैं ने वह नोटिस कशिश को महज झटका देने को भिजवाया था. उसे अपनी गलती का एहसास करवाने को. उस के गर्भवती होने की खबर मिलते ही मैं ने उस से कहा भी था कि अब तलाक का सवाल ही नहीं उठता, तो बात को रफादफा करने के बजाय कशिश ने मामला आगे क्यों बढ़ाया सोनाली?’’

‘‘क्योंकि तुम ने उस के स्वाभिमान को ललकारा था मधुप या यह कहो उस पर अपनी मर्दानगी थोपनी चाही थी. यदि उसी समय तुम नोटिस भिजवाने के लिए माफी मांग लेते तो हो सकता था कि कशिश मान जाती. लेकिन तुम ने तो अपने वकील को भी नोटिस खारिज करने

को नहीं कहा, क्योंकि इस से तुम्हारा अहं आहत होता था. मानती हूं सर्वसाधारण से हट कर हो तुम, लेकिन कशिश भी तुम से 19 नहीं है शायद 21 ही होगी. फिर वह क्यों बनवाए स्वयं को डोरमैट, क्यों लहूलुहान करवाए अपना सम्मान?’’ सोनाली बोली.

‘‘मेरे चरित्रहीनता वाले मिथ्या आरोप को मान कर क्या वह स्वयं ही खुद पर कीचड़ नहीं उछाल रही?’’

‘‘नहीं मधुप, कशिश का मानना है कि विवाह एक पवित्र रिश्ता है, जो 2 प्यार करने वालोेंके बीच होना चाहिए. बगैर प्यार के शादी या एकतरफा प्यार में पतिपत्नी की तरह रहना लिव इन रिलेशनशिप से भी ज्यादा अनैतिक है, क्योंकि लिव इन में प्यार को परखने का प्रयास तो होता है, लेकिन एकतरफा प्यार अभिसार नहीं व्याभिचार है सो अनैतिक कहलाएगा और अनैतिक रिश्ते में रहने वाली स्त्री चरित्रहीन…’’

‘‘मगर कशिश का एकतरफा प्यार कैसे हो गया? वह अच्छी तरह जानती है कि मैं उसे कितनी शिद्दत से प्यार करता हूं,’’ मधुप ने बात काटी. ‘‘कशिश का कहना है कि तुम सिर्फ खुद से और खुद की उपलब्धियों से प्यार करते हो. कशिश जैसी ‘ब्रेन विद ब्यूटी’ कहलाने वाली बीवी भी एक उपलब्धि ही तो थी तुम्हारे लिए… अगर तुम्हें उस से वाकई में प्यार होता तो तुम उस के लिए चरित्रहीन जैसा घिनौना शब्द इस्तेमाल ही नहीं करते.’’

‘‘वह तो मैं ने कशिश के उकसाने पर ही किया था. खैर, अब बोलो आगे क्या करना है या तुम क्या कर सकती हो?’’

‘‘बगैर तुम्हारे आरोप की धज्जियां उड़ाए या तुम्हारे वकील को कशिश के चरित्र पर कीचड़ उछालने का मौका दिए, आपसी समझौते से तलाक दिलवा सकती हूं.’’

‘‘मगर मैं तलाक नहीं चाहता सोनाली.’’ ‘‘कशिश चाहती है और मैं कशिश की वकील हूं,’’ सोनाली ने सपाट स्वर में कहा, ‘‘वही करूंगी जो वह चाहती है.’’

‘‘तो तलाक करवा दो, मगर इस शर्त पर कि मुझे अपने बच्चे को देखने का हक होगा.’’

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‘‘चरित्रहीन का आरोप लगाने के बाद तुम किस मुंह से यह शर्त रख सकते हो मधुप?’’ बच्चे के लिए यह तलाक हो जाने के बाद या तो तुम दूसरी शादी कर लेना या अपनी उपलब्धियों अथवा घमंड को पालते रहना बच्चे की तरह,’’ कह कर सोनाली व्यंग्य से हंस पड़ी.

‘‘सलाह के लिए शुक्रिया,’’ घमंडी मधुप इतना ही कह सका. पर उसे लग रहा था कि उस के पैरों में अभी जंजीरें पड़ी हैं. चांद का टुकड़ा तो वह था पर चांद का जिस पर न कोई जीवन है, न हवा, न पानी, बस उबड़खाबड़ गड्ढे हैं.

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