Hindi Stories Online : आज मैं आप सब को अपनी कहानी सुनाने के मूड में हूं. मु?ो लगता है कि मेरा नाम कार यार है क्योंकि 3 साल पहले मैं जब इस घर में आई, सब ने मु?ो देखते ही कहा कि व्हाट अ कार यार. जयदेव, जिन्हें मैं मन ही मन पापा कहने लगी हूं, मम्मी मधु (जिन्होंने मु?ो देखते ही मु?ा पर प्यार बरसा दिया था), 12 साल का आरव जिस ने मेरे साथ खूब फोटो खिंचवाए थे और तुरंत इंस्टाग्राम पर डाल दिए थे तथा 20 साल की पीहू ने तो मेरा कैसा वैलकम किया था, क्या बताऊं. मु?ो चूम ही लिया था. तब तो कालेज जाती थी, पता नहीं मेरे साथ कितनी सैल्फीज ली गई थीं. मेरे ऊपर ही चढ़ कर बैठ गई थी, पापा से कहा था, ‘‘थैंक यू पापा.’’
पीहू को आरव ने खींच कर उतारा था. सिक्युरिटी गार्ड को बुला कर इन चारों ने मेरे साथ बहुत फोटो लिए थे. बाकी फ्लैट्स की खिड़कियों से कुछ लोग मुझे देख कर खुश हो रहे थे.
इस अमन फैमिली को देख कर उन्होंने हाथ हिला दिया था, कहा था, ‘‘अमनजी, क्या कार है, यार.’’
कुछ ने तुरंत खिड़की बंद कर ली थी.
पीहू किसी को बता कर बहुत खुश थी, ‘‘कैसी पतली, स्लिम, ब्यूटीफुल सी कार है यार. तुम लोग जल्दी आओ.’’
उस दिन सब लोग मेरे साथ ही डिनर पर गए थे. आरव ने बहुत जिद की थी कि कार वही चलाएगा, पर पापा बिलकुल पापा वाले मूड में आ गए और मम्मी बिलकुल मम्मी वाले मूड में, ‘‘नहीं, आरव. अभी रात को बहुत ट्रैफिक होगा, पापा को चलाने दो.’’
आरव भी अपना मूड खराब नहीं करना चाहता था. बोला, ‘‘तो ठीक है, मैं दिन में कार ले कर जाऊंगा.’’
शैतान पीहू ने माचिस लगाई, ‘‘कल तो कालेज जाओगे न भैया? दिन में कब चलाओगे?’’
‘‘चुप रह.’’
‘‘मम्मी, देखो भैया मु?ा से कैसे बात कर
रहे हैं.’’
पापा ने हमेशा की तरह पीहू की शिकायत पर ध्यान दिया, ‘‘आरव, छोटी बहन से ठीक से बात किया करो.’’
आरव पीहू को घूर कर रह गया पर जिस तरह पीछे बैठी पीहू ने भाई को डांट
पड़ने पर अंगूठा दिखाया, आरव को हंसी आ गई. मुझे भी. मैं समझ गई कि मैं ठीक घर में आई हूं, मेरा मन लगा रहेगा. मम्मी ने रास्ते में कहा, ‘‘पहले जरा मंदिर हो लें? नई कार आई है. शुभ होगा.’’
पापा ने जवाब दिया, ‘‘जो मंदिर जाते हैं, उन का कभी अशुभ नहीं होता? उन की कार का ऐक्सीडैंट कभी नहीं होता? तुम्हारे उस भाई की
तो हड्डियां ही टूट गई हैं जो कार में ही रोज मंदिर जाता है.’’
मम्मी बुरी तरह चिढ़ गईं, ‘‘जहां मन हो चलो, आज का दिन शुभ है. मैं अपना मूड खराब नहीं करना चाहती.’’
पीहू और आरव चुपचाप मुसकराते रहे जैसे जानते हों, यही होगा. मम्मी भले ही मंदिर नहीं जा पाई थीं पर आंखें बंद कर पता नहीं कौन से मंत्र बुदबुदा रही थीं. जिस होटल में डिनर करना था, पहले यह देखा गया कि वहां पार्किंग है न.
पापा ने कहा, ‘‘मैं रोड पर कार खड़ी नहीं करूंगा, किसी ने एक खरोंच भी लगा दी तो मुझे गुस्सा आ जाएगा. वैसे भी मुंबई के ट्रैफिक में लोग दूसरों की गाडि़यों की चिंता ज्यादा नहीं करते.’’
मैं तभी समझ गई थी कि इस घर में मेरे रंगरूप का ध्यान रखा जाएगा. पार्किंग मिल गई, साफ समझ आ रहा था कि कार नई है, अभी तक मु?ा पर कहींकहीं फूल सजे हुए थे. डिनर कर के सब लोग 2 घंटे में बाहर आ गए. तब तक पार्किंग में आतेजाते कई लोगों ने मु?ो घूरा. सुंदर चीजों को समाज ऐसे ही तो घूर कर देखता है. किसी ने तो छू भी लिया था, मेरा मौडल भी डिसकस कर लिया था. जब पार्किंग में भी कई लोगों ने कहा, ‘‘व्हाट अ कार यार.’’
मुझे लगा मेरा नाम कार यार ही है या यों भी कह सकते हैं कि मैं ने अपना नाम ‘कार यार’ रख लिया. है न मजेदार बात. एक कार ने अपना नाम अपनी तारीफ सुन कर ‘कार यार’ रख लिया.
डिनर कर के सब 2 घंटे बाद आए थे. पापा ने मुझे चारों तरफ से देखा तो आरव ने टोका, ‘‘पापा, अब क्या देख रहे हैं? अब कोई खड़ेखड़े कार को तो ठोक कर नहीं जाएगा न?’’
मम्मी अच्छा खाना खा कर शायद अच्छे मूड में थीं, ‘‘अब इन का यही हाल होगा. पैनिक करते रहेंगे. पिछली कार के साथ 5 साल यही सब किया.’’
मुझे पता चला कि पापा के पास पहले भी कार थी. वह कार पापा ने अपने छोटे भाई को दे दी है.
खैर, खुशी से हंसतेबोलते सब घर लौट आए थे. सोसाइटी में कई लोग मिले थे. सब ने मेरी तारीफ की थी, पूरे परिवार को बधाई दी थी.
आरव ने पापा से कहा, ‘‘पापा, प्लीज एक चक्कर मैं भी लगा आऊं?’’
‘‘ठीक है. हम सब भी चलते हैं, चलो, आइसक्रीमपार्लर चलते हैं, तुम कार भी चला लोगे, इस बहाने मैं भी तसल्ली कर लूंगा कि तुम कार ठीक से चला लोगे.’’
सब से पहले भाग कर कार में पीहू बैठी. मुझे समझ आ गया था कि घर में सब से नटखट यही है और सब की लाडली भी. अब मम्मी और पीहू पीछे बैठी थीं. पापा ने अपनी निगरानी में आरव से मु?ो चलवाया.
वह कह रहा था, ‘‘पापा, डौंट वरी, मैं ने बहुत बार अपने दोस्तों की कार चलाई है.’’
‘‘आरव तो बड़े धैर्य से कार चलाता है,’’ जैसे ही पापा ने कहा पीहू बोल उठी, ‘‘पापा, मैं भी चलाऊं?’’
‘‘अभी नहीं बेटा. अब तो कार आ ही गई है, सब चलाते ही रहेंगे. सुबह औफिस जाना है, छुट्टी वाले दिन चलाना.’’
मम्मी बोलीं, ‘‘मतलब अब हम लोगों को कार तभी मिलेगी जब तुम्हारे औफिस की छुट्टी होगी.’’
पापा हंस पड़े, ‘‘हां लग तो ऐसा ही रहा है. पर जब मैं टूर पर जाऊंगा, तब तुम लोग आराम से चलाना.’’
पापा तो महीने में 15 दिन टूर पर ही रहते हैं. अब जब रोज की तरह दिन बीतने लगे, मुझे घर के हर मैंबर के बारे में पूरी जानकारी मिलती गई. पापा बहुत अच्छे हैं. उन का औफिस घर से आधे घंटे की दूरी पर है. वे पूरे रास्ते बस अपनी धुन में रहते हैं. ट्रैफिक में फंसने से चिढ़ते हैं. सेल्स और मार्केटिंग वाली जौब में हैं, किसी का फोन आ जाए तो स्पीकर पर रख कर बस सेल्स, टारगेट की बातें करते हैं, ट्रैफिक में फंसने पर कभीकभी किसी दोस्त या अपने भाईबहन को फोन कर लेते हैं. देखने में अच्छे हैं, काम से काम रखने वाले इंसान हैं. परिवार से बहुत प्यार करते हैं. कभी ज्यादा ट्रैफिक हुआ तो मम्मी को फोन कर के बता देते हैं कि आ ही रहा हूं, ट्रैफिक बहुत है. परेशान मत होना.
पापा टूर पर जाते हैं तो मम्मी के हाथ में होती है मेरी चाबी. आरव जिद करता रह जाता है कि कार की चाबी उसे चाहिए. मम्मी रोज तो नहीं पर कभीकभी खुद निकलती हैं मेरे साथ वरना आरव और पीहू के बीच ही मेरी चाबी के लिए घमासान चलता रहता है. दोनों ऐसीऐसी कहानियां बनाते हैं कि अच्छेअच्छे राइटर प्लाट लिखने में फेल हो जाएं. पर मम्मी भी मम्मी हैं, इन दोनों की नसनस पहचानती हैं.
आरव जब मेरे साथ कहीं जाता है, मजा आता है. पहले वह अपने दोस्तों को उन के घर से पिक करता है, फिर दोस्त मेरी बहुत तारीफ करते हैं. कभीकभी खुद भी चलाते हैं जिस का पता मम्मीपापा और पीहू को कभी नहीं चल पाता. सब कालेज से छुट्टी कर के इधरउधर घूमते हैं और फिर जब आरव अपनी गर्लफ्रैंड कीरा के साथ कहीं जाता है, दोनों की बातें सुनसुन कर मेरा बहुत ऐंटरटेनमैंट होता है.
कीरा की बातें, ‘यहां से कार मत ले जाना. यहां मेरे पेरैंट्स आतेजाते रहते हैं. यहां से कार मत लेना, मेरा भाई इस एरिया में कहीं घूम न रहा हो,’ वह बहुत पैनिक करती रहती है.
कभी दोनों रोमांस करते हैं, कभी नोकझोंक. बढि़या जोड़ी है दोनों की. आरव की
गर्लफ्रैंड है, यह मम्मीपापा को नहीं पता है. उन्हें लगता है कि उन का होनहार बेटा सीधा कालेज आताजाता है, कभी दोस्तों के साथ घूम कर आ जाता है.
पीहू को पता है, पर उस ने मम्मीपापा को नहीं बताया है. पीहू की एक फ्रैंड कविता ने आरव के साथ जब कीरा को देखा तुरंत फोन कर के पीहू को बता दिया. अब कविता जैसी दोस्त है तो पीहू को सब पता है, कीरा कौन है, कहां रहती है. आरव जब मेरे साथ होता है तो वह ऐसे बैठता है जैसे वह कोई हीरो हो. लगता तो हीरो ही है, जिम जाता है, अच्छे कपड़े पहन कर हलकीहलकी दाढ़ी, स्टाइलिश हेयर कट, हंसमुख सा स्वभाव. घर का लाड़ला बेटा कीरा के सामने सौरी ही बोलता रह जाता है.
एक बार दोस्तों के साथ इस बात पर हंस रहा था कि यार मैं इतना सौरी क्यों बोलता हूं, मुझे भी नहीं पता. दोस्तों ने कहा कि यार, हम भी इन लड़कियों से बहस खत्म कर के सौरी बोल कर अपनी जान छुड़ाते हैं. ऐसी बातें करते हैं ये लड़के. कभीकभी तो ये लड़के ऐसी बातें करते हैं कि मैं शरमा जाती हूं. इन्हें क्या पता दीवारों की तरह कारों के भी कान होते हैं.
मम्मी जब मुझे ले कर निकलती हैं, मैं थोड़ा बोर हो जाती हूं. वे बैठते ही कोई भजन लगा देती हैं. जितनी देर कार चलाती हैं, भजन सुनती हैं. फोन पर बातें करेंगी तो हर बार वही. अपने दोस्तों से यही बात करती रहती हैं कि इस बार कीर्तन किस के घर है? भजन कब है? या फिर किसी रिश्तेदार से बात करेंगी तो यही कि फलाने ने यह कर दिया, यह कह दिया. मम्मी अच्छी हैं, मुझे बहुत प्यार करती हैं. अपनी दोस्तों को उन्होंने मेरे आने पर एक पार्टी भी दी. पर इन सब की बातें मुझे उतनी पसंद नहीं.
असल में मुझे सब से ज्यादा मजा आता है पीहू के साथ. मैं चाहती हूं, वही मेरे साथ घूमे, मस्ती करे. पर वह छोटी है, उसे मेरी चाबी कम मिलती है. पापा के टूर पर जाने पर मम्मी और आरव के बाद उसे बड़ी मुश्किल से मेरी चाभी मिलती है. सब को यही लगता है कि वह पता नहीं ठीक से कार चला भी लेगी या नहीं, पर सच यह है कि वह बहुत अच्छी ड्राइविंग करती है. प्यारी सी पतली गुडि़या जैसी है, खूब स्टाइलिश कपड़े पहनती है, बहुत अच्छा परफ्यूम लगा कर आती है, देर तक उस की खुशबू में मैं महकती रहती हूं. फिर वह मस्त गाने सुनती हुई अपनी दोस्तों के साथ कहीं निकलती है.
दोस्त भी कविता जैसी हैं, खूब गौसिप होती है, इस की गर्लफ्रैंड, उस का बौयफ्रैंड लेटैस्ट मूवी, कौन सा गाना सुनना है, कौन सा हीरो, कौन सी हीरोइन किस के फैवरिट हैं.
इन लड़कियों की बातें, इन की दुनिया बिलकुल अलग है. इन के ग्रुप में सबीना भी है, ऐंजेला भी है. आरव और पीहू दोनों के हर धर्म के दोस्त हैं. मुझे यह देख कर अच्छा लगता है. मम्मी अपने साथ बस अपने धर्म के लोग रखती हैं. पापा के औफिस में भी शायद सब तरह के लोग हैं. मुझे पापा की एक बात एक दिन बहुत अच्छी लगी थी. वे फोन पर किसी से कह रहे थे, ‘‘मुझे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि मेरे साथ किस धर्म का इंसान बैठा है, बस जो भी साथ हो, वह साफसुथरा होना चाहिए बस.’’
उस दिन से मेरी नजरों में उन की इज्जत बढ़ गई है. हां, तो मैं पीहू के बारे में बता रही थी कि वह बहुत अच्छी ड्राइविंग करती है.
एक दिन का मजेदार किस्सा बताती हूं, एक दिन आरव को फीवर था, पापा टूर पर. मौका अच्छा था. उसे मेरी चाबी बड़े आराम से मिल गई. वह पहली बार मेरे साथ कालेज के लिए निकली. रास्ते में कहीं जाम था. आप को पता ही है कि जब लोग देखते हैं कि कोई लड़की कार चला रही तो कैसे ताने कसे जाते हैं. अब जाम में मेरी पीहू की क्या गलती. वह तो चुपचाप गाने सुन रही थी. इतने में पीछे से कोई जोरजोर से हौर्न बजाने लगा, अपनी कार का शीशा नीचे कर पीहू का मजाक उड़ाने लगा, बोला, ‘‘ओए, पापा की परी. आगे बढ़ो.’’
बस, पापा की परी को जो गुस्सा आया, फिर तो इस पापा की परी, मेरी प्यारी पीहू ने भी ठान लिया कि बच्चू, बताती हूं तुम्हें. फिर पापा की परी ने पीछे वाले को अपने से आगे नहीं जाने दिया तो नहीं जाने दिया. फिर अपने मोड़ पर मुड़ने तक पापा की परी आराम से गाने सुनती हुई, उसे घूरती हुई, गाली देने की ऐक्टिंग करते हुए यह जा, वह जा.
अब बताओ, पीहू पर किसे लाफ नहीं आएगा? ऐसे लोगों के साथ मुंबई के इस ट्रैफिक में लड़कियों के लिए इतना धैर्य रखना आसान है क्या? कई बार सोचती हूं, आसपास देखती भी हूं कि कोई लड़की कार चला रही होती है तो आसपास की कारों वाले लोग कुछ न कुछ तो बोलते ही हैं. और यह आरव भी तो पीहू को चिढ़ाता है कि किसी को उड़ा कर तो नहीं आई?
एक बार चारों जा रहे थे. पीहू ने पापा को मना लिया कि आज वह कार चलाएगी. आरव मम्मी के साथ पीछे बैठा हंसता रहा, ‘‘क्या आज हम सब ठीक से घर तो पहुंच जाएंगे न?’’
पीहू तो बस अपने में मस्त कार चलाती रही, पापा उसे शाबाशी देते रहे. तो बस मु?ो पीहू के साथ सब से ज्यादा मजा आता है. उसे देख कर मैं इस समाज में एक लड़की की स्थिति बेहतर रूप से सम?ा पाती हूं.
एक ही परिवार के हर सदस्य का स्वभाव कितना अलग होता है न. जहां पापा मेरी मैंटेनैंस पर इतना ध्यान देते हैं, पैट्रोल हमेशा रहता है, वहीं आरव और पीहू को कभी पैट्रोल पंप जाना पड़ जाए तो लगता है कि पता नहीं जैसे पापा ने पहाड़ पर चढ़ जाने को बोल दिया हो. दोनों झांकना शुरू कर देते हैं. मुझ पर जरा सी भी धूल पापा को बरदाश्त नहीं होती. प्रकाश जो मेरी सफाई करता है, बहुत कामचोर है. जब पापा टूर पर जाते हैं तो सम?ा जाता है कि मम्मी तो रोजरोज मेरी सफाई करने के लिए टोकेंगी नहीं, मम्मी वैसे शांति पसंद हैं. आरव और पीहू सोचते हैं कि प्रकाश को क्या ही कहें. पापा करवा लेंगे. प्रकाश को पता है कि पापा जब जाते हैं, शनिवार को ही वापस आते हैं तो कामचोर शनिवार को सुबह मुझे ऐसे चकमा देता है कि कोई उसे यह नहीं कह सकता कि वह अपना काम ठीक से नहीं कर रहा है.
आरव और पीहू जब अपनेअपने दोस्तों के साथ,मेरे साथ होते हैं तो मैं देखती हूं कि लड़कों और लड़कियों के बात करने के टौपिक्स कितने अलग होते हैं. जहां आरव का गु्रप क्रिकेट की बातें करता है, अपनीअपनी गर्लफ्रैंड्स पर हंसता है, कालेज बंक करने के प्रोग्राम बनाता है, कभीकभी फ्यूचर के, कैरियर के प्लान भी बना लेता है, वहीं पीहू का गु्रप लेटैस्ट म्यूजिक अलबम, नया कौस्मैटिक ब्रैंड, हौलीवुड फिल्मों की बातें करता है. और अब सीजर और रैंबो की बातें बताती हूं, इसी बिल्डिंग में 2 पिल्ले हुए. पीहू उन्हें
रोक थोड़ी देर देखने खड़ी हो जाती तो बस उन का पीहू से ऐसा बैंड बना कि पीहू को तो जैसे 2 खिलौने मिल गए. बिल्डिंग में एक किनारे एक जगह बनी हुई है, डौग्स ऐंड कैट्स फीडिंग प्लेस. यहां पर ऐनिमल लवर्स कुछ खाना रखते रहते हैं, एक साफ बरतन में पानी रख दिया जाता है. हां, तो उन 2 पिल्लों का नाम पीहू ने सीजर और रैंबो रख दिया है. अब तो सीजर और रैंबो पीहू के पीछे ऐसे पड़ते हैं कि पूछिए मत. दूर से देख लेते हैं कि मैं आ रही हूं और समझ जाते हैं कि अभी पीहू निकलेगी, पीहू का कार से निकलना मुश्किल कर देते हैं. वह मेरा दरवाजा ही बहुत मुश्किल से खोल पाती है, दोनों पीहू को ऐसा दौड़ाते हैं कि लोग इन का खेल देखने के लिए खड़े हो जाते हैं. अब तो पूरे परिवार से ही सीजर और रैंबो को ऐसा लगाव हो गया है कि इन चारों में से कोई भी सीजर और रैंबो को दिख जाए तो दोनों इतनी अंगड़ाइयां लेते हैं कि हंसी आने लगती है. पीहू से ही मुझे पता चला कि कुत्ते अपनी खुशी जाहिर करने के लिए भी कभीकभी अंगड़ाई लेते हैं.
तब मुझे बहुत दुख होता है जब मम्मी कभीकभी अचानक बीमार पड़ जाती हैं और पापा अपना सब काम छोड़ कर उन्हें ले कर हौस्पिटल भागते हैं. किसी को चैन नहीं आता. मम्मी को अकसर कुछ न कुछ हो जाता है. उन दिनों सब उदास से रहते हैं, कोई भी मेरे साथ कहीं जाता है, चुपचाप अपना काम कर के आ जाता है, उन दिनों जब भी पीहू कुछ सामान लेने निकलती है, कोई गाना नहीं सुनती, कोई फोन नहीं करती, बस चुपचाप रो रही होती है. फिर जब मम्मी ठीक हो जाती है. तब घर में खुशी का माहौल बनता है. यही परिवार होता है शायद. अब यह मेरा भी तो परिवार हो गया है. ये लोग कहीं घूमने चले जाते हैं तो मेरा मन नहीं लगता. बोल नहीं सकती, बस मन ही मन इंतजार करती रहती हूं.
मुझे खुशी है कि मैं इस परिवार का हिस्सा हूं और आज तक इस बात पर खुश हूं कि मेरी उम्र 3 साल हो गई है, मुझे देख कर अब भी लोग यही कहते हैं कि व्हाट अ कार यार.
