Raksha Bandhan 2020: काजू की बर्फी

अगर आप बाजार से काजू की बर्फी लेने वाली हैं तो रूक जाइए क्योंकि आपको बाजार में मिलावटी चीजें मिलती है. आप घर पर भी खुद से काजू की बर्फी बना सकती हैं. इसके लिए आसान रेसिपी बताती हैं.

हमें चाहिए

– शक्‍कर  (150 ग्राम)

– घी (02 बड़े चम्मच)

–  हरी इलायची 04 (छील कर पीसी हुई)

– पिस्ता (10 बारीक कतरे हुए)

– पनीर (250 ग्राम)

– दूध (250 मि.ली.)

– काजू  150 ग्राम (दूध में दो घंटे भीगे हुए)

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बनाने की विधि :

– सबसे पहले काजू (दूध सहित) को मिक्सी में डाल कर पीस लें.

– इसके बाद काजू पेस्ट में शक्‍कर और पसला हुआ पनीर डालें और उन्हें एक मिक्सी में पीस लें.

– अब एक नौन स्टिक पैन में दो चम्मच घी डालें और उसे गरम करें.

– घी गरम होने पर उसमें काजू का पेस्ट और पीला रंग डालें और मीडियम आंच पर गाढ़ा होने तक पकाएं.

– मिश्रण जब गाढ़ा हो जाए और घी छोड़ने लगे, तो उसमें इलायची पाउडर डाल दें और चलाकर गैस बंद      कर दें.

– अब एक थाली लेकर उसमें हल्का सा घी लगा दें और तैयार  मिश्रण को उसमें निकाल कर           चम्मच   की सहायता से बराबर कर लें.

– इसके बाद उसमें ऊपर से कतरे हुये पिस्ते डालें और चम्मच से दबा कर 2 घंटे के लिए रख दें.

– 2 घंटे में बर्फी अच्छी तरह से जम जाएगी और जमी हुई बर्फी की प्लेट उठाएं और चाकू की सहायता से   उसे मनचाहे आकार में काट लें.

अब आपकी स्वादिष्ट काजू पनीर की बर्फी तैयार है.

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कोरोना में पेरैंट्स का रोना

कोरोना संक्रमण और लौकडाउन की वजह से इन दिनों देश में काफी कुछ बदलाबदला सा नजर आ रहा है. महीनों से घर में रह रहे बच्चे अब जहां उकता चुके हैं, वहीं पेरैंट्स भी उन्हें संभालने की जद्दोजेहद में परेशान हो रहे हैं. बच्चों के 24 घंटे घर में रहने से जहां उन्हें पर्सनल स्पेस नहीं मिल पा रही, वहीं उन की औनलाइन क्लासेज के चलते अभिभावकों की जेबों पर भी खर्च की दोहरी मार पड़ रही है.

अतिरिक्त भार

स्कूल की भारी फीस ज्यों की त्यों भरने के बाद अब मांबाप के ऊपर इलैक्ट्रौनिक उपकरणों के खर्च का भी अतिरिक्त भार आ पड़ा है. 2 बेटियों की मां सुचित्रा कहती हैं कि पहले तो काम चल जाता था, लेकिन अब बेटी की औनलाइन स्टडी के लिए घर में वाईफाई लगवाना जरूरी हो गया है और वाईफाई के चलने में कोई दिक्कत न हो इस के लिए उन्हें आननफानन में इनवर्टर भी लगवाना पड़ा, जिस से उन के पूरे महीने का बजट एक ही बार में गड़बड़ा गया. 10वीं की छात्रा अनुष्ठा ने कुछ दिनों तक अपनी मां के मोबाइल पर औनलाइन क्लासें अटैंड कीं, लेकिन फिर सिरदर्द होने व आंखों में पानी आने पर जब डाक्टर को दिखाया तो उन्होंने उसे मोबाइल की छोटी स्क्रीन को ज्यादा देर तक न देखने की सलाह दी. पर पढ़ाई तो रुक नहीं सकती थी, इसलिए तुरंत पेरैंट्स को इस के लिए क्व16 हजार का नया टैबलेट लेना पड़ा.

वैशाली अपार्टमैंट में पार्लर चलाने वाली किरण ने घर में कोई अतिरिक्त जगह न होने से अपने पार्लर का सामान स्टोररूम में शिफ्ट कर उसे अपने बेटे की औनलाइन स्टडी के लिए खाली कर दिया. हालांकि लौकडाउन के चलते पार्लर में आसपास के ही कुछ कस्टमर आ रहे थे. लेकिन इस से उन की महीने की 10-12 हजार की यह परमानैंट कमाई भी बंद हो गई.

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स्वाभाविक तौर पर बच्चों की औनलाइन पढ़ाई ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से पेरैंट्स के खर्चों को बढ़ा दिया है.

आइए, जानें कि वे कौनकौन से खर्चे हैं, जो इन दिनों अतिरिक्त खर्च के तौर पर अभिभावकों की जेब खाली कर दे रहे हैं:

वाईफाई या डेटा: औनलाइन पढ़ाई के चलते बच्चों के फोन में डेटा रिचार्ज करवाना या घर में वाईफाई लगवाना एक जरूरी खर्च में तबदील हो गया है. वैसे 1 से अधिक बच्चे होने की दशा में हर बच्चे के मोबाइल में डेटा रिचार्ज करवाने के बजाय वाईफाई लगवाना अधिक सुविधाजनक होता है ताकि जरूरत पड़ने पर घर के सभी सदस्य कंप्यूटर या मोबाइल पर एकसाथ उस का उपयोग कर सकें.

कंप्यूटर या टैबलेट खरीदना: बच्चों की हैल्थ को ध्यान में रखते हुए उन के लिए कंप्यूटर या टैबलेट खरीदना भी अब एक आवश्यक खर्च बन चुका है. कंप्यूटर की बड़ी स्क्रीन छोटे बच्चों के लिए मोबाइल की तुलना में ज्यादा सुविधाजनक होती है.

टैबलेट की स्क्रीन भी आमतौर पर 8-10 इंच की रहती है, जिसे देखने पर बच्चों की आंखों पर अधिक जोर नहीं पड़ता है.

इनवर्टर लगवाना: अचानक बिजली कट जाने से बच्चों की पढ़ाई में कोई परेशानी न आए इस के लिए इनवर्टर लगवाना भी औनलाइन स्टडी का एक जरूरी खर्च बन गया है, जो अभिभावकों को मजबूरी में उठाना पड़ रहा है.

एकांत जगह की दरकार: घर में अन्य सदस्यों की बातचीत और दूसरे कामों से हो रहे शोरशराबे को दूर करने के लिए उन्हें एकांत जगह की जरूरत होती है, जिसे पूरा करने में अभिभावकों को बहुत मुश्किलें आ रही हैं.

हैडफोन: बच्चों के लिए हैडफोन खरीदना भी औनलाइन पढ़ाई का एक आवश्यक खर्च बन चुका है ताकि बच्चे शोरगुल से दूर एकाग्रचित्त हो कर पढ़ाई कर सकें.

रिपेयरिंग और मैंटेनैंस: इन खर्चों में जो एक सब से आकस्मिक और महंगा खर्च है वह है, इन सभी की रिपेयरिंग का, जोकि समय विशेष के चलते दुकानदारों द्वारा मनचाहा वसूला जा रहा है.

औटोचालक रमेश ने अपने बड़े बेटे की औनलाइन पढ़ाई के लिए बड़ी मुश्किल से उसे एक नया स्मार्ट फोन दिलाया था. महीनेभर में ही छोटी बहन के साथ छीनाझपटी में गिरने से मोबाइल की स्क्रीन टूट गई. रिपेयरिंग का खर्च दुकान वाले ने 5 हजार बताया, जो रमेश की कूबत से बाहर की बात थी. लिहाजा, काफी दिनों तक बेटे की पढ़ाई का नुकसान हुआ और फिर बाद में जैसेतैसे कर्ज ले कर पैसों का जुगाड़ कर उस ने बेटे का मोबाइल ठीक करवाया.

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औनलाइन स्टडी के चलते रोज के ऐसे तमाम खर्च मातापिता की परेशानियों का कारण बन रहे हैं.

इन खर्चों का मोटामोटा हिसाब भी पेरैंट्स की नींद उड़ाने के लिए काफी है. इन खर्चों ने अभिभावकों की जेबें खाली करने के साथसाथ भविष्य के लिए भी उन्हें चिंता में डाल रखा है. इस तरह औनलाइन पढ़ाई स्कूल की रैग्युलर स्टडी से कहीं ज्यादा महंगी साबित हो रही है.

कंप्यूटर पर बहुत देर तक काम करने से आंखों में दर्द होने लगा है?

सवाल-

मैं अक्सर कंप्यूटर पर बहुत देर तक काम करती हूं जिस कारण आंखों में दर्द होने लगता है. इस से मुझे अच्छी गहरी नींद भी नहीं आती. मैं ऐसी क्या चीज यूज करूं कि कोई साइड इफैक्ट न पड़े?

जवाब-

गुलाबजल का आंखों पर बहुत अच्छा असर पड़ता है और यह अच्छी नींद लेने में भी मदद करता है. गुलाबजल को आंखों के लिए इस्तेमाल करने का सब से अच्छा तरीका है कि गुलाबजल में रुई भिगोएं और उसे बंद आंखों पर

15 मिनट रखा रखें. इस से बहुत राहत मिलेगी. आंखों के आसपास गुलाबजल लगाने से डार्क सर्कल्स भी दूर होते हैं और आंखों की थकान भी चली जाती है.आयुर्वेदिक और यूनानी चिकित्सा में गुलाब जल का इस्तेमाल आंखों के इन्फैक्शन और ऐलर्जी को दूर करने के लिए किया जाता है.

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औफिस में प्रैजेंटेशन की तैयारी कर रही भूमिका की आंखों में अचानक जलन और चुभन शुरू हो जाती है और स्क्रीन धुंधली दिखाई देने लगती है. इस प्रौब्लम को लेकर जब भूमिका डौक्टर के पास जाती है, तो उसे ड्राई आई सिंड्रोम की प्रौब्लम के बारे में पता चलता है, ऐसा सिर्फ भूमिका के साथ ही नहीं बल्कि ज्यादातर लोगों के साथ होता है, जो कंप्यूटर पर काम करते हैं. इसका सबसे बड़ा कारण है कि हम लगातार 8 से 10 घंटे स्क्रीन पर बैठे रहते हैं और आंखों को जरा भी आराम नहीं देते हैं. अगर कंप्यूटर से नजरे हटती भी हैं, तो वे तुरंत फोन पर चली जाती हैं. ऐसे में आंखों को आराम मिल नहीं पाता है और वे कमजोर होने लगती हैं, जिससे भारीपन, जलन या खुजली की प्रौब्लम बनी रहती है, लेकिन अगर आप इन प्रौब्लमस से बचना चाहते हैं, तो रोहतो कूलिंग आईड्रौप सबसे बेस्ट है, जिसे औफिस, घर या रास्ते में कहीं भी यूज करें और आंखों में होने वाले दर्द से छुटकारा पाएं.

1. बढ़ रही ड्राईनेस की प्रौब्लम

कंप्यूटर, लैपटौप, टैबलेट, फोन जहां हमारे जीवन को आसान बना रहे हैं, तो आंखों को उतना नुकसान भी पहुंचा रहे हैं और अनमोल कही जाने वाली आंखों के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक साबित हो रहे हैं. नेत्र विशेषज्ञों का भी कहना है कि आंखों में ड्राइनेस की प्रौब्लम बढ़ रही हैं और करीब 10% प्रौफेशनल इसकी चपेट में हैं.

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Raksha Bandhan 2020: राखी के लिए परफेक्ट हैं बौलीवुड एक्ट्रेसेस की ये 4 ड्रेसेस

भाई-बहन के राखी के त्यौहार पर सभी बहनें स्पेशल और स्मार्टलुक में दिखना चाहती हैं. स्पेशल दिखने के लिए ज्यादात्तर लड़कियां उस दिन ट्रैडिशनल कपड़ों में नजर आती है. लेकिन राखी पर हर साल ट्रैडिशनल ही क्यों पहनना इस राखी आप कुछ ऐसा ट्राय कर सकती हैं जिसमें आपका ट्रैडिशनल लुक भी बरकरार रहे और आप स्टाइलिश भी दिखें.  ट्रैडिशनल और स्टाइलिश लुक के लिए आप इन खूबसूरत एक्ट्रेसेस ट्रेंडी लुक को फौलो कर सकती हैं.

1. सारा आली खान का सिंपल लुक करें ट्राय

सारा आली खान जितनी खूबसूरत हैं उतनी ही स्टाइलिश भी. सिंपल कपड़ो में स्टाइलिश दिखना सारा को बखूबी आता है. राखी पर आप भी सिंपल के साथ स्टाइलिश दिखना चाहती हैं तो सारा की तरह अंगरखा टौप और धोती पैंट ट्राय कर सकती हैं. यह ड्रेस स्टाइलिश के साथ ट्रैडिशनल भी है. इस लुक को आप एथनिक झुमके और बिंदी से पूरा कर सकती हैं.

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2. फेस्टिवल के लिए परफेक्ट है ये लुक

 

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MTV Ace of Space ???✌️? What a blast ?Thank you for having me ?

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सारा आए दिन अपने इंस्टाग्राम पर तस्वीरे पोस्ट करती रहती हैं. हाल ही में सारा ने प्रिंटेड प्लाजो और क्रौप टौप में पिक्चर पोस्ट की थी जिसे उनके फेंस ने बेहद पसंद किया था. आप भी इस लुक को ट्राय कर सकती हैं. राखी के लिए यह लुक परफेक्ट हैं.

3. राखी पर ट्राय करें कियारा का शरारा लुक

 

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कबीर सिंह से लोगों के दिलों में जगह बनाने वालीं कियारा आडवाणी कितनी फैशनेबल हैं यह तो उनके इंस्टाग्राम पोस्ट को देख कर ही मालूम हो जाता है. कियारा की तरह आप भी राखी पर सबसे अलग और फैशनेबल दिख सकती हैं. राखी के लिए आप कियारा के शरारा लुक को जरूर ट्राय करें. शरारा के साथ स्टाइलिश क्रौप टौप और श्रग में कियारा का यह लुक राखी के लिए परफेक्ट है. अगर आपको भी  अपनी सभी बहनो से अलग और बेहतरीन दिखना पसंद है तो इस लुक को आप ट्राय कर सकती हैं. इस लुक को और खूबसूरत दिखाने के लिए आप सिल्वर ज्वैलरी का भी इस्तेमाल कर सकती हैं.

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4. अनन्या का जयपुरी लुक करें ट्राय

 

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Getting into the Valentine’s Day vibe in @surilyg @sunset.sue ❤️?? #IshaRah

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जयपुरी साड़ी, जयपुरी कुर्ती अधिकतर महिलाओं व लड़कियों को पसंद होती हैं. आज के फैशन ट्रेंड की बात करें तो जयपुरी लुक फैशन में छाया हुआ है. अनन्या पांडे ने भी जयपुरी लुक को पसंद किया हैं. लौंग स्कर्ट और क्रौप जयपुरी प्रिंटेड ड्रेस में अनन्या बहुत सुंदर नजर आ रही हैं. राखी के लिए इससे अच्छी ट्रैडिशनल ड्रेस कोई हो ही नहीं सकती. इस ड्रेस के साथ आप कोई भी रंग का दुपट्टा कैरी कर सकती हैं. राखी के लिए यह एक पर्फेक्ट इंडोवेस्टर्न ड्रेस है.

कामकाजी सास और घर बैठी बहू, कैसे निभे

कुमकुम भटनागर 55 साल की हैं पर देखने में 45 से अधिक की नहीं लगतीं. वह सरकारी नौकरी में हैं और काफी फिट हैं. स्टाइलिश कपड़े पहनती हैं और आत्मविश्वास के साथ चलती हैं.

करीब 25 साल पहले अपने पति के कहने पर उन्होंने सरकारी टीचर के पद के लिए आवेदन किया. वह ग्रेजुएट थीं और कंप्यूटर कोर्स भी किया हुआ था. इस वजह से उन्हें जल्द ही नौकरी मिल गई. कुमकुम जी पूरे उत्साह के साथ अपने काम में जुट गईं.

उस वक्त बेटा छोटा था पर सास और पति के सहयोग से सब काम आसान हो गया. समय के साथ उन्हें तरक्की भी मिलती गई

आज कुमकुम खुद एक सास हैं. उन की बहू प्रियांशी पढ़ीलिखी, समझदार लड़की है. कुमकुम ऐसी ही बहू चाहती थीं. उन्होंने जानबूझकर कामकाजी नहीं बल्कि घरेलू लड़की को बहू बनाया क्योंकि उन्हें डर था कि सासबहू दोनों ऑफिस जाएंगी तो घर कौन संभालेगा?

प्रियांशी काफी मिलनसार और सुघड़ बहू साबित हुई. घर के काम बहुत करीने से करती. मगर प्रियांशी के दिल में कहीं न कहीं एक कसक जरूर उठती थी कि उस की सास तो रोज सजधज कर ऑफिस चली जाती है और वह घर की चारदीवारी में कैद है.

वैसे जॉब न करने का इरादा उस का हमेशा से रहा था. पर सास को देख कर एक हीनभावना सी दिल में उतरने लगती थी. कुमकुम अपने रुपए जी खोल कर खुद पर खर्च करतीं. कभीकभी बहूबेटे के लिए भी कुछ उपहार ले आतीं. मगर बहू को हमेशा पैसों के लिए अपने पति की बाट जोहनी पड़ती. धीरेधीरे यह असंतोष प्रियांशी के दिमाग पर हावी होने लगा. उस की सहेलियां भी उसे भड़काने का मजा लेती.

नतीजा यह हुआ कि प्रियांशी चिड़चिड़ी होती गई. खासकर सास की कोई भी बात उसे जल्दी अखरने लगी. घर में झगड़े होने लगे. एक हैप्पी फैमिली जल्द ही शिकायती फैमिली के रूप में तब्दील हो गई.

देखा जाए तो आज लड़कियां ऊँची शिक्षा पा रही हैं. कंपटीशन में लड़कों को मात दे रही हैं. भारत में आजकल ज्यादातर लड़कियां और महिलाएं कामकाजी ही हैं. खासकर नई जेनेरेशन की लड़कियां घर में बैठना पसंद नहीं करतीं. ऐसे में यदि घर की सास ऑफिस जाए और बहू घर में बैठे तो कई बातें तकरार पैदा कर सकतीं हैं. आवश्यकता है कुछ बातों का ख्याल रखने की———

1. रुपयों का बंटवारा

यदि सास कमा रही है और अपनी मनमर्जी पैसे खर्च कर रही है तो जाहिर है कहीं न कहीं बहू को यह बात चुभेगी जरूर. बहू को रुपयों के लिए अपने पति के आगे हाथ पसारना खटकने लगेगा. यह बहू के लिए बेहद शर्मिंदगी की बात होगी. वह मन ही मन सास के साथ प्रतियोगिता की भावना रखने लगेगी.

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ऐसे में सास को चाहिए कि अपनी और बेटे की कमाई एक जगह रखें और इस धन को कायदे से चार भागों में बांटें. एक हिस्सा भविष्य के लिए जमा करें. एक हिस्सा घर के खर्चों के लिए रखें. एक हिस्सा बच्चे की पढ़ाई और किराया आदि के लिए रख दें. अब बाकी बचे एक हिस्से के रूपए बहू, बेटे और अपने बीच बराबर बराबर बाँट लें. इस तरह घर में रुपयों को ले कर कोई झगड़े नहीं होंगे और बहू को भी इंपोर्टेंस मिल जाएगी.

2. काम का बंटवारा

सास रोज ऑफिस जाएगी तो जाहिर है कि बहू का पूरा दिन घर के कामों में गुजरेगा. उसे कहीं न कहीं यह चिढ़न रहेगी कि वह अकेली ही खटती रहती है. उधर सास भी पूरे दिन ऑफिस का काम कर के जब थक कर लौटेगी तो फिर घर के कामों में हाथ बंटाना उस के लिए मुमकिन नहीं होगा. उस की बहू से यही अपेक्षा रहेगी कि वह गरमागरम खाना बना कर खिलाए.

इस समस्या का समाधान कहीं न कहीं एकदूसरे का दर्द समझने में छिपा हुआ है. सास को समझना पड़ेगा कि कभी न कभी बहू को भी काम से छुट्टी मिलनी चाहिए. उधर बहू को भी सास की उम्र और दिन भर की थकान महसूस करनी पड़ेगी.

जहां तक घर के कामों की बात है तो सैटरडे, संडे को सास घर के कामों की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले कर बहू को आराम दे सकती है. वह बहू को बेटे के साथ कहीं घूमने भेज सकती है या फिर बाहर से खाना ऑर्डर कर बहू को स्पेशल फील करवा सकती है. इस तरह एकदूसरे की भावनाएं समझ कर ही समस्या का समाधान निकाला जा सकता है.

3. फैशन का चक्कर

कामकाजी सास की बहू को कहीं न कहीं यह जरूर खटकता है कि उस के देखे सास ज्यादा फैशन कर रही है. वह खुद तो सुबह से शाम तक घरगृहस्थी में फंसी पड़ी है और सास रोज नए कपड़े पहन कर और बनसंवर कर बाहर जा रही है. ऑफिस जाने वाली महिलाओं का सर्कल भी बड़ा हो जाता है. सास की सहेलियां और पॉपुलैरिटी बहू के अंदर एक चुभन पैदा कर सकती है.

ऐसे में सास का कर्तव्य है कि फैशन के मामले में वह बहू को साथ ले कर चले. बात कपड़ों की हो या मेकअप प्रोडक्ट्स की, सलून जाने की हो या फिर किटी पार्टी में जाने की, बहू के साथ टीम अप करने से सास की ख़ुशी और लोकप्रियता बढ़ेगी और बहु भी खुशी महसूस करेगी.

वैसे भी आजकल महिलाएं कामकाजी हों या घरेलू, टिपटॉप और स्मार्ट बन कर रहना समय की मांग है. हर पति यही चाहता है कि जब वह घर लौटे तो पत्नी का मुस्कुराता चेहरा सामने मिले. पत्नी स्मार्ट और खूबसूरत होगी तो घर का माहौल भी खुशनुमा बना रहेगा.

4. प्रोत्साहन जरूरी

यह आवश्यक नहीं कि कोई महिला तभी कामकाजी कहलाती है जब वह ऑफिस जाती है. आजकल घर से काम करने के भी बहुत सारे ऑप्शन हैं. आप की बहू घर से काम कर सकती है. वह किसी ऑफिस से जुड़ सकती है या फिर अपना काम कर सकती है. हर इंसान को प्रकृति ने कोई न कोई हुनर जरुर दिया है. जरूरत है उसे पहचानने की.

यदि आप की बहु के पास भी कोई हुनर है तो उसे आगे बढ़ने को प्रोत्साहित करें. वह कई तरह के काम कर सकती है जैसे पेंटिंग, डांस या म्यूजिक टीचर, राइटर, इवेंट मैनेजर, फोटोग्राफर, ट्रांसलेटर, कुकिंग एक्सपर्ट या फिर कुछ और. इन के जरिए एक महिला अच्छाखासा कमाई भी कर सकती है और समाज में रुतबा भी हासिल कर सकती है.

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5. घर में सास का रुतबा

पैसे के साथ इंसान का रुतबा बढ़ता है. बाहर ही नहीं बल्कि घर में भी. जाहिर है जब पत्नी घरेलू हो और मां कमाऊ तो पति भी अपनी मां को ही ज्यादा भाव देगा. घर के हर फैसले पर मां की रजामंदी मांगी जाएगी. पत्नी को कोने में कर दिया जाएगा. इस से युवा पत्नी का कुढ़ना लाजमी है.

ऐसे में पति को चाहिए कि वह मां के साथसाथ पत्नी को भी महत्व दे. पत्नी युवा है, नई सोच और बेहतर समझ वाली है. वैसे भी पतिपत्नी गृहस्थी की गाड़ी के दो पहिए हैं. पत्नी को इग्नोर कर वह अपना ही नुकसान करेगा.

उधर मां भी उम्रदराज हैं और वर्किंग हैं. उन के पास अनुभवों की कमी नहीं. ऐसे में मां के विचारों का सम्मान करना भी उस का दायित्व है.

जरूरत है दोनों के बीच सामंजस्य बिठाने की. घर की खुशहाली में घर के सभी सदस्यों की भूमिका होती है. इस बात को समझ कर समस्या को जड़ से ही समाप्त किया जा सकता है.

डर के साथ काम करना मुश्किल हो रहा है – शरीब हाश्मी

 फिल्म ‘जब तक है जान’ फिल्म से चर्चा में आने वाले अभिनेता शरीब हाश्मी मुंबई के है. उन्हें हमेशा से अभिनय पसंद था, जिसमें साथ दिया उनके माता-पिता ने. उनके पिता एक जाने माने पत्रकार थे. उनकी भी इच्छा थी कि वे अभिनय करें. शरीब ने हमेशा अलग और नयी कहानियों में काम करना पसंद किया. यही वजह है कि कमोवेश उनकी फिल्में सफल रही. जिंदगी जैसे आती है. उसमें वे अच्छी तरह रहना और आगे बढ़ना जानते है. उनके कैरियर में उनकी पत्नी का सहयोग हमेशा रहता है, जो हर कामयाबी को उनके साथ सेलिब्रेट करती है. पत्नी के अलावा वह एक अच्छी दोस्त भी है. शरीब की फिल्म ‘माय क्लाइंट्स वाइफ’ शीमारू मी बॉक्स ऑफिस पर पहली फिल्म है, जो रिलीज पर है. पेश है शरीब से हुई बातचीत के कुछ अंश. 

सवाल-इस फिल्म में आपकी भूमिका क्या है?

इस फिल्म मैं एक वकील की भूमिका निभा रहा हूं. जो सीरियस है, अपने काम को लेकर समर्पित है. मैंने ऐसी भूमिका पहले कभी नहीं की है, जो मेरे लिए नयी है. फिल्म की स्क्रिप्ट अच्छी तरह से लिखी गयी है. इसलिए मुझे इसे करने में समस्या नहीं आई. मैंने ब्लाइंडली निर्देशक को फोलो किया है. फिर शीमारू से जुड़ना और पहली फिल्म का इस पर रिलीज होना मेरे लिए अच्छी बात है. 

सवाल-फिल्मों में आने की प्रेरणा कहाँ से मिली?

मेरे पिता जेड ए जौहर अपने ज़माने में नामचीन पत्रकार हुआ करते थे. उनदिनों गोविंदा, राजबब्बर, गुलशन ग्रोवर आदि सारे कलाकार मेरे घर पर आया करते थे, बचपन में उन्हें देखकर मुझे अच्छा लगता था. मैं उनसभी से बहुत प्रभावित था और अभिनय के क्षेत्र में कुछ करना चाहता था. हालाँकि अभिनय मैंने देर से शुरू किया है. जब बड़ा हुआ तो एक्टिंग की इच्छा छोड़ दिया था, क्योंकि मेरी पर्सनालिटी वैसी नहीं थी. इसलिए पहले मैंने अस्सिटेंट डायरेक्टर, फिर राइटर बना. वर्ष 2009 से मैंने एक्टिंग शुरू किया तब तक मेरी शादी हो चुकी थी और मेरा बच्चा भी था. बहुत अधिक समस्या आई पर मैंने, एक्टिंग करना नहीं छोड़ा और आज यहाँ तक पहुंचा चुका हूं. 

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सवाल-पहला ब्रेक कब मिला?

मुझे पहली फिल्म ‘फिल्मिस्तान’ मिली थी. उस समय मैं उस फिल्म को डायरेक्टर नितिन कक्कड़ के साथ लिख रहा था. लिखते वक्त उन्होंने कहा था कि इसमें मेरी लीड रोल है, पर मुझे विश्वास नहीं हुआ था. इस फिल्म को बेस्ट फिल्म का नेशनल अवार्ड मिला था. ये कंटेंट पर आधारित फिल्म थी. उसी से मुझे पहचान मिली.

सवाल-अनिश्चितता की इस इंडस्ट्री में आप अपने आप को कहाँ पाते है, जबकि आपकी जिम्मेदारियां कई है? क्या सोच रखते है?

सोच तो रहती है कि अच्छा काम करूँ. यहाँ हर आने वाला दिन नया होता है, जिसे आप जान नहीं सकते. यही वजह है कि मैं इस इंडस्ट्री की और आकर्षित हुआ हूं. मैंने जॉब भी किया, पर मुझे वह अच्छा नहीं लगा. समस्याएं आई, पर मैं उससे निकल चुका हूं. शादी के बाद जिम्मेदारियां भी बढती है, लेकिन मैं अपनी पत्नी की सहयोग से ही आगे बढ़ पाया हूं. मैंने जब अभिनय करने की सोची तो मेरे दोस्त, मेरा परिवार सबने मना किया था, पर मेरी पत्नी ने सहयोग दिया. मेरे पिता मेरी सफलता को देख नहीं पाएं. इसका मुझे मलाल है. 

सवाल-इंडस्ट्री की ओर आकर्षित होने की वजह आप क्या मानते है?

इंडस्ट्री की खूबी हर व्यक्ति के लिए अलग होता है, लेकिन इसका ग्लैमर सबको आकर्षित करता है. इसके अलावा पैसा, सफलता, सबकुछ की चाह में ही यहाँ लोग आते है. इसके अलावा यहाँ सब लोग कलाकार से लेकर निर्माता, एक छत के नीचे एक साथ एक फिल्म के निर्माण में लगे रहते है. आपस में भाईचारा भी खूब होता है. मेरा पहला प्यार एक्टिंग है. बचपन से मेरी इच्छा अभिनय की थी. 

सवाल-क्या अभिनय के अलावा कुछ और करने की इच्छा रखते है?

मुझे लिखने का बहुत शौक है. कई फिल्में लिखी और बनायीं है. निर्देशन करने की इच्छा रखता हूं. ड्रीम कई है, जिसे पूरा करने की कोशिश चल रही है.

सवाल-कोरोना काल में काम का शुरू होना कितना मुश्किल हो रहा है? कैसे इंडस्ट्री आगे बढ़ेगी?

इंडस्ट्री धीरे-धीरे चल रही है. डर के साथ काम करना मुश्किल हो रहा है. कोरोना की सावधानी के साथ अभिनय करना आसान नहीं होता. उम्मीद है कि जल्दी सब ठीक हो जाय. जल्दी से वैक्सीन आ जाय और कोरोना संक्रमण पर लगाम लग सकें. 

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सवाल-समय मिलने पर क्या करते है?

मुझे फिल्में देखना और पढना अच्छा लगता है, तनाव नहीं होता, क्योंकि बच्चे है, उनके साथ समय बिताता हूं.

https://www.youtube.com/watch?v=F1JNlP7xN-A

मेंटल हेल्थ के लिए सबको है एक अच्छे दोस्त की जरुरत – श्रेया चौधरी

अभिनय एक कला है, जो दिल से निकलती है और इसके लिए अधिक प्रशिक्षण की जरुरत नहीं होती, कुछ ऐसी ही सोच रखती है, मुंबई की अभिनेत्री श्रेया चौधरी, जो फिल्म ‘डियर माया’ से चर्चा में आई और कई विज्ञापनों और वेब सीरीज में काम कर चुकी है. हंसमुख विनम्र श्रेया की वेब सीरीज बंदिश बैंडिट रिलीज पर है, जिसे लेकर वह बहुत उत्साहित है. पेश है उससे हुई बातचीत के कुछ अंश. 

सवाल-इस वेब सीरीज में आपको खास क्या लगा? चुनौती कितनी थी?

मैंने इसे नहीं चुना, बल्कि शो ने मुझे चुना है. मुझे कहा गया था कि मैं एक पॉप स्टार तमन्ना की भूमिका निभा रही हूं, वह मेरे लिए काफी था. इसमें सभी बड़े-बड़े कलाकरों के साथ काम करने का मौका मिला है, जो मुझे बहुत अच्छा लगा.  चुनौती इसमें यह थी कि तमन्ना की पर्सनालिटी क्या होगी उसे लेकर सोच थी, जिसे निर्देशक ने सोल्व कर दिया. मुझे इस नए किरदार में परफॉर्म करना अच्छा लगा. वर्कशॉप सिंगिंग के लिए की थी, इससे मुझे ट्रेनिंग मिली. संगीत की सारी बारीकियों को समझने की कोशिश की. इससे बेसिक चीजे मैंने पूरी तरह से सीखा है. इसके अलावा मैने बाइक की ट्रेनिंग ली. कई नये अनुभव हुए. मैं चरित्र से अलग हूं, पर नया काम करने का मौका मिला. 

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सवाल-फिल्मों में आना इत्तफाक था या सोचा था, किसका सहयोग था?

मैंने स्कूल से ही स्टेज पर बहुत काम किया है, लेकिन सपना अभिनय का नहीं था, क्योंकि वह मेरे लिए अचीव करना मुश्किल था. कॉलेज जाते ही अभिनय की इच्छा होने लगी, क्योंकि उस समय सोशल मीडिया का दौर चल रहा था. कई बार उसपर ऑडिशन के लिए लड़के-लड़कियों को बुलाया जाता था. मैंने भी एक ऑडिशन के लिए मन बनायीं. मुझे विश्वास था कि मैं अभिनय कर सकती हूं, पर अंदर से एक झिझक थी. फाइनल इयर कॉलेज के दौरान मैंने एक ऑडिशन दिया था और वह एड मुझे मिली.एक अच्छा अनुभव था. फिर मैंने अभिनय के कई वर्कशॉप लिया और काम शुरू किया. मुझे बचपन से अभिनय की इच्छा थी. परिवार से कोई भी इस क्षेत्र से नहीं था. इसलिए उन्हें समझाना पड़ा. मेरे भाई स्कूल में परफोर्मेंस करता था. उसकी वजह से मैंने अभिनय शुरू किया था, पर मेरी माँ फिल्मों की शौक़ीन थी. बहुत सारी हिंदी फिल्में वह हमें दिखाती थी. मैं पढाई में अच्छी थी. पेरेंट्स से मैंने एक साल के लिए सहयोग माँगा था. आज मेरी काम को देखकर वे बहुत खुश है.

सवाल-इंडस्ट्री में एक अच्छा काम मिलने के लिए क्या सोच रखना जरुरी होता है?

मैंने कई काम किये है. पर ये मेरा बड़ा प्रोजेक्ट है. क्योंकि ये एक बड़े प्लेटफॉर्म पर रिलीज हो रही है, जिसे करोडो लोग देखंगे. अगर हर रोज मुझे अपने काम से ख़ुशी मिले, तो मुझे जो भी काम मिलेगा, मुझे करने में कोई ऐतराज नहीं होगी. मेहनत और लगन से काम करने पर आप आगे अवश्य बढ़ेंगे. 

सवाल-तनाव होने पर क्या करती है?

परिवार के साथ मैं रहती हूं, इसलिए तनाव होने पर उनके पास चली जाती हूं. तनाव लगा रहता है. हर किसी को इसका सामना करना पड़ता है. मेरे पास एक डॉग है, जिसका नाम केओस है. वह मेरी बातों को सुनता और समझता है. पूरा दिन उसके साथ बिताती हूं. 

सवाल-एक अच्छे दोस्त का जीवन में होना कितना जरुरी है?

एक अच्छा दोस्त सबके लिए जरुरी है. आजकल सब पर कुछ न कुछ प्रेशर है. मेंटल हेल्थ को आज देखना जरुरी है. ऐसे में सही दोस्त हर हालात से आपको निकाल सकता है.दोस्ती सबके साथ की जा सकती है. दोस्त वही है जो आपकी बातों को समझ सकें. किसी प्रकार का न्याय न दें. 

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सवाल-गृहशोभा के ज़रिये क्या मेसेज देना चाहती है?

महिलाएं परिवार की धुरी है, वे कभी अपने आपको कभी कम न समझे. खुद को निखारें. अपनी इच्छाओं को कभी ख़त्म न होने दें, जब भी समय मिले उसे पूरा करने की कोशिश करें. 

Raksha Bandhan 2020: ग्लोइंग स्किन के लिए घर पर ऐसे करें स्क्रब

सौफ्ट और ब्यूटीफुल स्किन हर किसी को आकर्षित करती है और सभी इसे पाना चाहते हैं. लेकिन हमारा चेहरा मौसम, प्रदूषण, धूल-मिट्टी, थकान सभी कुछ  झेलता है और इस का प्रभाव सब से ज्यादा चेहरे की स्किन पर नजर आता है. थकी, ग्लो के बिना स्किन,  झांइयां और आंखों के नीचे डार्क सर्कल फेस की शाइन कम कर देते हैं. ऐसे में फेस स्क्रबिंग करना एक ऐसा जादुई तरीका है, जो मिनटों में आप की स्किन को नरम, मुलायम और चमकदार बना सकता है. स्क्रबिंग से स्किन दोबारा चमकदार व जवान लगने लगती है. इसे एक्सफोलिएशन भी कहा जाता है व इसे अपने नियमित स्किन केयर रूटीन में शामिल करना चाहिए. फेस स्क्रब से आप मेकअप के उन छिपे कणों को भी हटा सकती हैं, जो पोर्स में घुस जाते हैं और सामान्य तौर पर क्लींजर या पानी से साफ करने से नहीं हटते. कुछ फेस स्क्रब्स में मास्चराइजर भी होता है, जिस से स्किन को पोषण भी मिलता है.

ऐसे करें स्क्रबिंग

स्क्रब्स में कुछ ऐसे खुरदरे पदार्थ होते हैं, जिन्हें स्किन पर रगड़ने से डेड स्किन की ऊपरी परत हट जाती है. स्क्रब को हाथों में लेकर उंगलियों की सहायता से भी आप लगा सकती हैं और कास्मेटिक पैड की सहायता से भी. इसे आप चाहे कैसे भी लगाएं, पर एक बात का ध्यान रखें कि स्क्रब को चेहरे पर गोलाकार घुमाते हुए हलके हाथों से लगाएं, साथ ही यह भी सुनिश्चित कर लें कि यह पूरे चेहरे और गरदन पर अच्छी तरह से लग जाए. स्क्रब करने के बाद चेहरे को पानी से धो कर मास्चराइज कर लें. फेस स्क्रब में बहुत सी चीजें शामिल की जा सकती हैं जैसे बैंबू फाइबर्स, ओटमील, चोकर, चीनी, फलों का गूदा, मूंगफली के छिलके, अखरोट आदि. नमक, मिट्टी जैसी चीजें स्क्रब्स में इस्तेमाल नहीं की जातीं. एक अच्छे स्क्रब में कोई क्रीम, अच्छी क्वालिटी की खुशबू, एसेंशियल आयल, मास्चराइजर आदि भी होते हैं.

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स्क्रब करने से पहले करें ये काम

चेहरे पर स्क्रब लगाने से पहले उस का पैच टेस्ट जरूर कर लें. इस के लिए थोड़ा सा स्क्रब ले कर कलाई की अंदरूनी तरफ लगाएं. कलाई पर स्क्रब लगा कर थोड़ी देर रुकें और फिर साफ पानी से धो लें. यदि किसी तरह की इचिंग, जलन न हो तभी इसे चेहरे पर लगाएं. स्क्रब की हमेशा थोड़ी मात्रा ही लें. इसे फेस पैक की तरह न लगाएं. यदि आप के चेहरे पर पिंपल्स हैं तो स्क्रबिंग न करें. रगड़ने व स्क्रब में मौजूद खुरदरी चीजों से आप के पिंपल्स फूट सकते हैं. हमेशा ऐसे स्क्रब्स ही इस्तेमाल करें, जिन में मौजूद स्क्रबिंग एजेंट नमिल जाएं, वरना वे पोर्स में फंस कर उन्हें बंद कर सकते हैं.

1 आयली स्किन के लिए स्क्रब करें ट्राई

1/2 कप हरे चने मैश कर लें. उस में 1 बड़ा चम्मच दही व पानी मिला कर पेस्ट बना लें. इस से हलके हाथों से चेहरे को स्क्रब करें. ठंडे पानी से धो लें. साबुन न लगाएं.

1/2 कप चावल के आटे में 1/2 कप कच्चा पपीता मैश कर के मिला लें और इस में आधे नीबू का रस भी मिला लें. चेहरे को हलका गीला कर के इस पेस्ट से स्क्रब करें.

2 ड्राई स्किन के लिए स्क्रब करें ट्राई

विटामिन ई आयल में 1 बूंद नीबू का रस और 1 बूंद ग्लिसरीन मिला लें. इस से चेहरे की मसाज कर के ठंडे पानी से धो लें.

1/2 चम्मच बादाम के चूरे में 1 चम्मच शहद और 1 चम्मच गुलाबजल मिला कर लगा लें और फिर गीले कौटन पैड से साफ कर लें.

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3 नौर्मल स्किन के लिए स्क्रब करें ट्राई

आटे का चोकर या बारीक दलिया लें. उसमें 1 चम्मच शहद और 1 चम्मच दूध मिलाएं और चेहरे पर लगाएं. कुछ देर बाद हलके हाथों से रगड़ कर छुड़ा लें.

4 जेंटल फेस स्क्रब करें ट्राई

3 चम्मच पिसे बादाम में 3 चम्मच ओटमील, 3 चम्मच मिल्क पाउडर, 2 चम्मच सूखी गुलाब की पत्तियां और बादाम का तेल मिला लें. इस मिश्रण को कांच के जार में भर कर रख लें और सप्ताह में 1 बार इस्तेमाल करें.

बाजार से रेडीमेड स्क्रब खरीदते समय ध्यान रखें कि स्क्रब अच्छी कंपनी का ही हो और उस में किसी भी प्रकार के हानिकारक रसायन न हों. चाहे स्क्रब घरेलू हो या रेडीमेड, सप्ताह में 1 बार इस का प्रयोग अवश्य करें.

Edited by Rosy

Serial Story: अहिल्या (भाग-3)

अब तुहिना को वाकई इधरउधर डोलने के सिवा कोई काम नहीं था. सो, वह अब हर कमरे को खोलखोल कर देखने लगी. हवेली के पिछवाड़े में खलिहान था, जहां शायद फसल कटने पर रखी जाती थी. अनाज की कोठरियां थीं और बड़ा सा गौशाला भी, जहां कई मजदूर लोग थे, जो वहां मौजूद दसियों गायों की देखभाल करते थे.

तुहिना ने सब पता किया, दूध हर दिन विशेष गाड़ी से पटना स्थित एक डेरी फार्म में जाता था और अनाज की बोरियां भी ट्रकों में भर मंडियों मे बिकने जाती थीं. अब तक थैली में दूध खरीदने वाली आश्चर्य से अपनी मिल्कीयत देख रही थी.

एक बात उसे अजीब लगती कि उस की सास अपने पति यानी उस के ससुर से परदा करती थी, जबकि तुहिना को कुछ भी मनाही नहीं थी.

एक दिन तुहिना ने सुबहसुबह देखा था, आंगन में ससुरजी कुरसी पर बैठे थे और सास एक बहीनुमा खाते को खोल कर कुछ बता रही थीं. वह ऊपर तले की मुंडेर से नीचे झांक रही थी, पूरे वक्त उस की सास कुछ समझाने का प्रयास कर रही थीं.

उस ने यह भी देखा कि उन्होंने बहुत सारे रुपए एक पोटली में जो बंधे हुए थे, उन के हाथ में दिए. ससुरजी ने न उसे गिना या ठीक से देखा, उसे फिर से बांध सास के ही हाथ में थमा दिए. वे बिलकुल वैसे ही कर रहे थे, जैसे अंकुर से कुछ जबरदस्ती करवाओ तो करता है. वह हावभाव से समझ रही थी ऊपर से.

दीवाली का दिन था. अंकुर दोपहर में खाना खा कर फिर सो गया था. उस के ससुरजी नीचे पूजा वाले कमरे में थे और तुहिना रसोई के बगल वाले स्टोर रूम में घुस कर संदूकों और बक्सों को खोलखोल कर देख रही थी. बहुत पुरानेपुराने कपड़े थे, कई बक्सों में तो सिर्फ साड़ियां भरी हुई थीं. भारीभारी बनारसी साड़ियां थीं ज्यादातर.

एक लकड़ी की सुंदर सी अलमारी थी, उस में बहुत सारी ब्लैक ऐंड व्हाइट तसवीरें थीं. एक संदूक था, जिसे खोलना तुहिना को आ ही नहीं रहा था. वह दीवाल में लगा हुआ था और उस के दरवाजे पर अंदर घुसा कर खोलने वाले ताले थे.

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चर्रमर्र की आवाज से मम्मी भी वहां आ कर खड़ी हो गई थीं. पहले तो तुहिना को भान ही नहीं हुआ, फिर जब देखा कि वे उसे ही मूक हो देख रही हैं, तो तुहिना थोड़ी झेंप सी गई. क्या सोच रही होंगी वे कि कैसी लड़की है सबकुछ मानो देख ही लेगी. तुहिना झट से हाथ में पकड़ी तसवीर को अलमारी में रखने लगी.

“रुको बहू, मैं खुद तुम्हें इस कमरे में लाना चाह रही थी, पर तुम्हारे ससुरजी राजी नहीं हो रहे थे,“ सासू मां ने कहा, तो वह थम गई.

उस के बाद देर तक वे उसे अलमारी के फोटो दिखाती रहीं, बताती रहीं, सुनाती रहीं. संदूक खोल कर उसे दिखाया, जिस में सोनेचांदी, हीरेमोती के गहने भरे पड़े थे.

एक लाल बनारसी साड़ी उस में से निकाल कर उसे पहना दी और गहनों से लाद दिया ऊपर से नीचे तक.

तुहिना किंकर्तव्यविमूढ़ हो सब करती रही. शाम हो चली थी. उसे ले कर वे पूजाघर में पहुंचा आईं और खुद बाहर जा कर बैठ दीयाबाती की तैयारी करने लगीं.

अंकुर भी कुरतापाजामा में सजीला बन पूजाघर में आ बैठा, पापाजी तो थे ही. देर रात तक पूजा चली, फिर सब ने मां के हाथ के पकवानों को चाव से खाया, मम्मी बारबार आंखें पोंछ रही थीं.

दूसरे दिन सुबह तीनों पटना के लिए निकल पड़े. अंकुर मां के गले लग कर रोने वाला इस बार अकेला नहीं था, तुहिना भी उसी व्यग्रता से रो रही थी.

पापाजी कार में पहले ही जा बैठे थे. लौटते वक्त रास्तेभर शायद ही किसी ने आपस में बातें की होंगी मानो सब गमगीन हों. पर तुहिना अब तक सुन रही थी, गुन रही थी, जो उस दोपहरी मम्मी ने उसे बताया था, “दुलहन ई सब संभाल लो, अब मुझ से नहीं होता है. न… न, ई फोटो को नहीं रखो अंदर. पहले इन्हें ध्यान से देखो, प्रणाम करो इन को. ये ही तुम्हारी सास हैं ‘राधा’, अंकुर को जन्म देने वाली. मैं तो राधा दीदी के मायके से आई अनाथ हूं, जो राधा के संग उस के ब्याह के साथ ही आई थी उस की देखभाल करने. क्या जानती थी कि ऐसा हो जाएगा कि सब चले जाएंगे और मैं ही रह जाऊंगी देखभाल करती हुई सबकुछ. सबकुछ है इस घर में, बस रहने वाले आदमी ही नहीं हैं. अंकुर के पिता भी अकेले थे, उस के दादा भी अकेली संतान ही थे.“

फिर उन्होंने तुहिना को वह बात बताई, जिस से अंकुर भी अनजान है, “अंकुर को जन्म देने के बाद से ही राधा दीदी बीमार रहने लगी थीं. अंकुर के 6 महीने का होतेहोते वे चल बसीं. अब इत्ते बड़े घर में रह गए अंकुर के पापा और दादाजी और नन्हा सा अंकुर. मैं कहां जाती. मैं बच्चे को सीने से लगा कर पालने लगी, जब तक अंकुर के दादाजी रहे, वे कोशिश करते रहे कि मेरी शादी हो जाए, पर न मेरी शादी हुई और न अंकुर के पापा ने दूसरी शादी की.

“हम अंकुर के मांबाप जरूर थे, पर पतिपत्नी नहीं. बचपन में अंकुर यहीं गांव के स्कूल में पढ़ता रहा, फिर कुछ बड़ा होने पर ठाकुर साहब पटना में बैंक की नौकरी करने लगे. कारण, यहां गांव में लोग तरहतरह की बातें करने लगे थे हम दोनों को ले कर.

“फिर अंकुर को आगे अच्छी तालीम भी तो देनी थी, इतना बड़ा आदमी अपना सबकुछ मुझ दाई के हाथों सौंप कर एक छोटी सी नौकरी करने लगा. अंकुर की मां बन मैं यहीं इस घर में रह गई, राधा की अमानत समझ संभालती रही. सुनती भी रही जमाने के जहरीले बोल, ठाकुर साहब तो मुझ से हिसाब भी न पूछते, पर मैं कैसे कुछ गलत करती. आखिर सब मेरे बेटे अंकुर का ही तो है. पर अब अकेलापन हावी होने लगा है, ये सब धनदौलत तुम लोगों का ही है, दुलहन अब संभालो अपनी अमानत.

“अंकुर मुझे मां समझता है, बस यही भरम मेरे जीने के लिए बहुत है. उम्मीद है दुलहन, तुम हमेशा उस की मां को जिंदा रखोगी कम से कम जब तक मैं जिंदा हूं. मत तोड़ना ये भरम,” मम्मी हाथ जोड़ कर कहने लगी थीं.

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कार पटना एयरपोर्ट पहुंचने को थी, तुहिना को अपना कहा याद आ रहा था, जिसे उसे जल्दी ही पूरा करना भी है, “मां, अब आप अकेली नहीं हैं. आप यहां जितना होता है समेट दें. बहुत काम कर लिया, अब आप अपने बेटेबहू के संग रहेंगी, बस अगले महीने मैं फिर आ कर आप को ले जाऊंगी.”

तुहिना सोच रही थी कि अचानक ध्यान आया कि मम्मी का नाम तो उस ने पूछा ही नहीं, अवश्य उन का नाम ‘अहिल्या’ ही होगा.

Serial Story: अहिल्या (भाग-2)

अंकुर बीचबीच में अपनी मां को बता रहा था कि वे लोग कहां तक पहुंचे या कितनी देर में पहुंच जाएंगे.

रास्ते में पहली बार तुहिना अपने ससुरजी से भी इतनी घुलमिल कर बातें करती जा रही थी. उस के ससुरजी काफी लंबे बलिष्ठ कदकाठी के व्यक्ति थे, जिन पर उम्र अपनी छाप नहीं लगा पाई थी अब तक.

जब कार लंबीचैड़ी बाउंड्री वाल को पार करती हुई एक दरवाजे के सामने जा कर रुकी तो तुहिना हैरान रह गई उस दरवाजे को देख कर.

अर्धगोलकार बड़े से उस नक्काशीदार लकड़ी के दरवाजे के ऊपर महीन काष्ठकारी की हुई थी, दरवाजा तो इतना बड़ा था मानो उस में से हाथी निकल जाए. अवश्य इन दरवाजों का प्रयोग हाथी घुसाने के लिए किया जाता होगा, वह अब तक मुंहबाएं दरवाजे को ही देख रही थी कि अंकुर ने कुहनी मारी. सामने उस की सासू मां खड़ी थीं, आरती का थाल ले कर.

गोल सा चेहरा, गेंहुआ रंगत, मझोला कदकाठी, उलटे पल्ले की गुलाबी रेशमी साड़ी पहनी उस की सासू मां ने उसे सिंदूर का टीका लगाया, बेटेबहू दोनों की आरती उतारी और लुटिया में भरे जल को 3 बार उन के ऊपर वार कर अक्षत के साथ ढेर सारे सिक्के हवा में उछाल दिए.

गांव की मुहानी से कार के पीछेपीछे दुलहन देखने को उत्सुक दौड़ते बच्चे झट उन्हें लूटने लगे. यह तो अच्छा हुआ था कि तुहिना ने आज सलवारकुरती और दुपट्टा पहना हुआ था, वरना बड़ी शर्म आती कि सासू मां सिर पर पल्लू लिए हुए हों और बहू जींसटौप में.

अंकुर ने कुछ भी नहीं बताया था, वह पूछती रह गई थी कि वह क्या पहने, कैसे कपड़े ले कर वह गांव चले.

उस की सासू मां उस से सब नई दुलहन वाले नेग करवा रही थी. जब उस ने अंदर प्रवेश किया तो वह चकित रह गई कि घर कितना बड़ा है. उसे घर नहीं हवेली, कोठी या महल ही कहना चाहिए.

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सारी जिंदगी फ्लैट में रहने वाली तुहिना ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उस की ससुराल का घर इतना विशाल होगा. मुख्य दरवाजे को पार कर बड़ा सा दालान था, उस के बाद एक बहुत बड़ा सा आंगन था. आंगन बीचोंबीच था और उस के चारों तरफ कमरे दिखाई दे रहे थे. आंगन और फिर दालान पार कर दो कोनों पर सीढ़ियां दिखाई दे रही थीं, वहीं तीसरे कोने में एक मंदिर था. एक तरफ जहां उसे सिर नवाने के लिए ले जाया गया, वहां उस ने देखा कि सासू मां बाहर ही रुक गईं और ससुर उन दोनों को देवताघर में ले गए.

घर के अंदर इतना सुंदर सा मंदिर, वहां एक पंडितजी भी बैठे हुए थे, जिन्होंने इन दोनों से कुछ पूजा, कुछ रस्म करवाई. फिर सासू मां तुहिना का हाथ पकड़ सीढ़ियों से ऊपर ले जाने लगीं, अंकुर को भी दुलारते हुए वे ले चलीं. तीसरे तले तक पहुंचतेपहुंचते तुहिना हांफ गई थी.

“दुलहन, ये तुम्हारा कमरा है. अब तुम आराम करो.“

कोई उस का सामान वहां पहले ही पहुंचा चुका था. वह कमरा कहने को था, था तो पूरा हाल. शायद महानगरों के बहुमंजिले इमारतों का एक ‘2 बेडरूम फ्लैट’ इस में समा जाए. कमरे से निकली बालकनी, जिस की रेलिंग पर बहुत सुंदर नक्काशीदार काम था. झरोखेनुमा खिड़कियां अलग मन मोह रही थीं.

तुहिना कमरे का मुआयना कर ही रही थी कि उस ने देखा अंकुर मां की गोदी में सिर रख लेट चुका था. मां उस का सिर सहलाते हुए कह रही थीं, “ये घर आज घर लग रहा है, वरना मैं अकेले एक कोने मे पड़ी रहती हूं. वर्षों से रंगरोगन नहीं हुआ था और न ही मरम्मत. जब शादी की खबर मिली, तो मैं ने झट मरम्मत का काम शुरू करवाया, पर इतना बड़ा घर, काम पूरा ही नहीं हुआ.

“मेरी इच्छा थी कि तेरी बहू को मैं साफसुथरे घर में ही उतारूंगी. उस भूतिया हो चुके घर में नहीं. अभी 2 दिन पहले ही तो मजदूरों ने अपने बांसबल्लियां यहां से हटाए हैं. बहू के आने से आज घर में मानो रौनक आ गई.”

“अच्छा तो ये राज है उस अचानक हनीमून पैकेज का,” तुहिना ने मुसकराते हुए सोचा.
फिर अंकुर की मां ने तुहिना को पास बुला कर चाबियों का गुच्छा थमाते हुए कहा, “लो संभालो अपनी जिम्मेदारी, अब मैं थक चुकी हूं. मैं ने वर्षों इंतजार किया कि कब अंकुर की बहू आएगी, जो ये सब घरगृहस्थी संभालेगी.“

उन के ऐसे बोलते ही तुहिना को मानो बिच्छू ने काट लिया. उस ने बेबसी से अंकुर की तरफ देखा. अंकुर ने उस के भाव समझते हुए कहा, “मां, ये बस आप ही संभाल सकती हैं. तुहिना नौकरी करती है, उसे छोड़ वह कहां इन सब झमेलों में रहने आएगी,” अंकुर ने मां को गुच्छा लौटाते हुए कहा.

“अच्छा, जब तक है तब तक तो संभाले, सबकुछ देखेसमझे,” कहती हुई वे चाबियां वहीं छोड़ कर चली गईं.

उस दिन तो थकान उतारने में ही बीत गया. अगले दिन तुहिना हवेली में घूमघूम कर देखने लगी सबकुछ. कौतूहलवश हर झरोखे से झांकती, हर खंबे के पास खड़ी हो सेल्फी लेती, तो कभी बंद दरवाजे की ही खूबसूरती को अपने मोबाइल कैमरे में कैद करती. चाबी के गुच्छे को भी वह हैरानी से देखती. वैसे तालाचाबी तो अब दिखते भी नहीं. कम से कम तुहिना ने तो नहीं ही देखा था. हर कमरे पर बड़ा सा ताला लटका हुआ था. उस बड़े से ताले को देख उसे किसी लटके चेहरे वाले बूढ़े की याद आ रही थी. दीवाली में अभी 2 दिन और थे, पर घर तो उसी दिन से सजा हुआ था, जिस दिन से वे सब आए थे.

अंकुर देर तक सोता रहता और तुहिना को समझ आ रहा था कि अंकुर घर सिर्फ सोने और खाने ही आता है. शायद उसे भी सभी कमरों की कोई जानकारी नहीं थी.

“अंकुर उठो न… मैं बोर हो रही हूं, सुबह के 11 बजने को आए और तुम अभी भी उठ नहीं रहे,” तुहिना ने अंकुर को हिलाने का असफल प्रयास किया. हार कर वह चौके के दरवाजे को पकड़ कर खड़ी हो गई. वहां मम्मी खाना बनाने में बिजी थीं, सब की पसंद के पकवान बन रहे थे.

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“जब सब घर आते हैं तभी इस रसोई के भाग जागते हैं, वरना मैं उधर अपने कमरे में ही कुछ पका लेती हूं. अब सीढ़ियां भी तो चढ़ी नहीं जाती हैं. न… न बिटिया, तुम रहने दो, अपने घर पर तो करती ही होंगी, कुछ दिन यहां मेरे हाथ के खाने का स्वाद लो.

“जा बिटिया घूमोफिरो, अपने घर को देखोसमझो… अंकुर तो कभी देखता ही नहीं और न ही उस के बाबा. तुम संभाल लो तो मेरी जिम्मेदारी खतम हो,” तुहिना को हाथ बंटाने के लिए आते देख उन्होंने टोक दिया.

“बेटी, तुम किस्मत वाली हो, जो ऐसे सासससुर मिले तुम्हें,” तुहिना की मां फोन पर उसे बोलती.

आगे पढ़ें- अब तुहिना को वाकई इधरउधर डोलने के सिवा…

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