आज अरमानों के पूरे होने के दिन थे, स्वप्निल गुलाबी पंखड़ियों सा नरम, खूबसूरत और चमकीला भी, तुहिना और अंकुर की शादी का दिन.
ब्यूटीपार्लर में दुलहन बनती तुहिना बीते वक्त को यादों के गलियारों से गुजरती पार करने लगी.
वे दोनों इंजीनियरिंग फाइनल ईयर में दोस्त बने थे, जब उन दोनों की एक ही कंपनी में नौकरी लगी थी कैंपस प्लेसमैंट में. फिर बातें होनी शुरू हुईं, नई जगह जाना, घर खोजना और एक ही औफिस में जौइन करना. दोनों ने ही औफिस के पास ही पीजी खोजा और फिर जीवन की नई पारी शुरू की.
फिर हर दिन मिलना, औफिस की बातें करना, बौस की शिकायत करना वगैरह. कभीकभी शाम को साथ में नाश्ता करना या सड़क पर घूमना.
धीरेधीरे दोस्ती का स्वरूप बदलने लगा था. अब घरपरिवार की पर्सनल बातें भी शेयर होने लगी थीं. दोनों ही अपने परिवार में इकलौते बच्चे थे और दोनों के ही पिता नौकरीपेशा.
हां, तुहिना की मम्मी भी जहां एक कालेज में पढ़ाती थीं, वहीं अंकुर की मम्मी गांव की सीधी, सरल महिला थीं और वे गांव में ही रहती थीं. अंकुर के पिताजी शहर में अकेले ही रहते थे और अंकुर की छुट्टियां होने पर दोनों साथ ही गांव जाते थे. दोनों 4-5 दिनों के लिए ही जाते और फिर शहर लौट आते.
“तुम्हारी मम्मी साथ क्यों नहीं रहतीं?” तुहिना ने एक मासूम सा सवाल पूछा था.
“दरअसल, गांव में हमारी बहुत प्रोपर्टी है. सैकड़ों एकड़ खेत, खलिहान और गौशाला इत्यादि भी. फिर घर भी बहुत बड़ा है, जैसे पीजी में मैं अभी रह रहा हूं, वैसी तो हमारी गौशाला भी नहीं है. मां वहां रह कर सब की देखभाल करती हैं. सालभर तो एक न एक फसल काटने और रोपने की जिम्मेदारी रहती है. उन सब को कौन देखेगा, यदि मां शहर में आ जाएंगी. हमारे घर आने का तो वे बेसब्री से इंतजार करती हैं. आज भी वे छोटे बच्चे की ही तरह मुझे दुलारती हैं,“ अंकुर ने बताया था.
“अच्छा तो तुम खेतिहर बैक ग्राउंड से हो? मैं ने तो कभी गांव देखा नहीं. हां, मैं ने गांव फिल्मों में जरूर देखा है. दादादादी या नानानानी सब शहर में ही रहे हैं और मेरी अब तक की जिंदगी फ्लैट में ही कटी है,” तुहिना ने विस्फारित नयनों से कहा.
“अच्छा, शादी होने दो तो तुम भी गांव देख लेना, वो भी अपना वाला,” अंकुर ने हंसते हुए कहा, तो तुहिना चौंक गई, “शादी…? क्या तुम मुझे प्रपोज कर रहे हो? इस तरह भला कोई पूछता है?”
तुहिना ने आश्चर्यमिश्रित खुशी से चीखते हुए पूछा.
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“अब मैं ठहरा गांव का गंवई आदमी, मुझे इन बातों की ज्यादा समझ नहीं. पर, मैं बाकी जिंदगी तुम्हारे साथ ही रहना चाहूंगा, क्या हम शादी कर लें?” अंकुर ने तुहिना की हथेली को अपने हाथों में लेते हुए कहा.
ब्यूटीपार्लर में बैठी तुहिना के दिमाग में रील की तरह ये सब घूम रहा था. कितनी आननफानन में फिर सारी बातें तय हो गईं. नौकरी के एक साल होतेहोते दोनों शादी के बंधन में बंधने जा रहे हैं, यह सोच कर तुहिना रोमांचित हो रही थी. दोनों के ही घर वालों को कोई आपत्ति नहीं हुई थी.
तुहिना के मम्मीपापा तो यह सुन कर खुश ही हुए थे कि अंकुर की पृष्ठभूमि इतनी मजबूत है. अंकुर के पिताजी जो पटना में एक बैंक में काम करते थे, तुहिना से मिलने बैंगलुरु चले गए और तुहिना के मातापिता भी उसी वक्त बैंगलुरु जा कर उन लोगों से मिल लिए.
ऐसा लगा मानो सबकुछ पहले से तय हो, बस औपचारिकता पूरी करनी रह गई थी. अब बरात दिल्ली, तुहिना के घर कब आएगी, ये सब तय होना था.
तुहिना के मम्मीपापा जहां डरे हुए थे कि न जाने अंकुर के पिता की क्या मांग हो, कितनी दहेज की इच्छा जाहिर करेंगे, पर हुआ इस के ठीक उलट ही. उन्होंने ऐसी कोई भी मांग या विशेष इच्छा जाहिर नहीं की, बल्कि दो महंगे सेट भारीभरकम जड़ाऊ वाले तुहिना को आशीर्वाद में दिए.
तुहिना का मेकअप अब समाप्तप्रायः ही था, तुहिना ने जल्दी से अपना मोबाइल निकाला और 4-5 सेल्फी ली. बरात में गिनेचुने लोग ही आए थे और शादी में अधिक मेहमान तो तुहिना की ही तरफ के थे. महिलाएं तो एक भी नहीं आई थीं, क्योंकि अंकुर के गांव में महिलाएं बरात में नहीं जाती हैं, ऐसा ही कुछ उस के पिताजी ने बताया था.
शादी खूब अच्छी तरह से संपन्न हुई. विदा हो कर तुहिना उसी होटल में गई, जहां अंकुर के पापा ठहरे हुए थे. मोबाइल पर वीडियो काल पर अंकुर ने अपनी मां से उसे मिलवाया. सचमुच बेहद स्नेहिल दिख रही थीं उस की मां, बारबार उन की आंखें छलक रही थीं.
“मां, अब बस… हम तुम्हारे पास ही तो आ रहे हैं, तुम रोओ मत,“ अंकुर ने उन्हें भावविभोर होते देख कर कहा, तभी उस के पापा आ गए और काल समाप्त हो गई.
अंकुर के पापा बेहद खुश दिख रहे थे. उन्होंने बच्चों के सिर पर हाथ फेरा और एक लिफाफा पकड़ाया.
“लो बच्चो, ये तुम दोनों को मेरी तरफ से शादी का गिफ्ट, यूरोप का 15 दिनों का हनीमून पैकेज. कल सुबह ही निकलना है यहीं दिल्ली से, सो तैयारी कर लो.”
तुहिना और अंकुर आश्चर्यचकित रह गए,
“पर पापा, फिर मां से मिलना कैसे होगा? हम घूमने बाद में भी तो जा सकते हैं,” अंकुर ने आनाकानी करते हुए कहा.
“घूम कर सीधे गांव ही आ जाना. अभी शादी एंजौय करो. गांव में तुम लोग बोर हो जाओगे,” अंकुर के पापा बोले.
इस तरह अंकुर और तुहिना फिर यूरोप टूर पर निकल गए. 15 दिन कैसे गुजर गए, दोनों को पता ही नहीं चला, सबकुछ एक स्वप्न की तरह मानो चल रहा हो. लौट कर दोनों सीधे बैंगलुरु ही चले गए. इस तरह तुहिना अपनी सासू मां से नहीं मिल पाई. तय हुआ कि 2 महीने बाद दीवाली के वक्त गांव चल जाएंगे दोनों.
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2 महीने बाद जब तुहिना पहली बार गांव जा रही थी तो उसे अंदर ही अंदर बहुत घबराहट हो रही थी. जाने कैसी होंगी अंकुर की मां, वहां लोग कैसे होंगे या फिर गांव का घर कैसा होगा. बैंगलुरु से वे लोग पटना पहुंचे और वहां से अंकुर के पापा के साथ वे लोग सड़क मार्ग से गांव की ओर चल दिए. कोई तीन साढ़े तीन घंटों में वे लोग गांव पहुंच गए. रास्ते की हरियाली उस का मन मोह रही थी, बरसात बीत चुकी थी. पेड़पौधे, खेत सब चमकदार हरे परिधान पहन नई दुलहन का मानो स्वागत कर रहे थे.
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