Janmashtami Special: पहने गुजराती एप्लिक वर्क वाली ड्रेस और दिखें सबसे अलग

फैशनेबल कपड़ों के लिए लोगों की पसंद लगातार बदल रही हैं. इस बदलते फैशन के दौर में कुछ फैशन इन होते हैं तो कुछ आउट . फैशन के इसी बदलाव में कुछ ट्रेंड्स लौटकर भी आते हैं. इन दिनों कपड़ों में यूज होने वाला एप्लिक वर्क भी ऐसा ही एक ट्रेंड है.

बेहतरीन शिल्प

गुजरात के सबसे पुराने और बेहतरीन शिल्पों में से एक है ये एप्लिक वर्क. कपड़े के विभिन्न पैच का उपयोग करके, रजाई, हैंगिंग, आधुनिक घरेलू उत्पादों , में डिजाइन के सुंदर रूप तैयार किए जाते हैं. आजकल एप्लिक वर्क का चलन बढ़ गया है. एप्लिक वर्क से तैयार की गई डिजाइंस लोगों की खूबसूरती में चार चांद लगा रही हैं.

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स्टाइलिश कूल लुक

फ्रेंड्स के साथ हैंगआउट हो या कैज़ुअल पार्टी और कौलेज में जाना, कुछ ट्रेंडी चीजें आपके लुक को स्टाइलिश बना देती है. एलीगेंट और क्लासी लुक तो आपने बहुत कैरी कर लिया, अब वक्त है कूल लुक ट्राय करने का. अगर आप ये सोच रहे हैं कि आप अपने लुक को कूल कैसे बनाएं तो इसका आसान तरीका है ये एप्लिक वर्क. इससे आप अपने सिंपल से आउटफिट को स्टाइलिश बना सकती हैं.

बढ़ती डिमांड

अगर आपका टी-शर्ट, जींस का ड्रेस बिल्कुल प्लेन है और आप उसको कुछ अलग लुक देना चाहती हैं तो ये ट्राय करें. सेलेब्स भी इस ट्रेंड का काफी पसंद करते हैं. चाहे कुर्ती हो या फिर साड़ी सभी में इस लुक की डिमांड बढ़ गई है…

अलग खूबसूरती

साड़ी के बौर्डर पर एप्लिक वर्क से साड़ी को तैयार किया जाए तो यह काफी आकर्षक लगती है. बुटीक ओनर दामिनी बताती हैं कि जिस प्रकार ट्रैडिशनल गाउन के साथ पहने जाने वाली चोली पर किया गया एप्लिक वर्क काफी खूबसूरत लगता है उसी तरह इन दिनों किसी भी डिजाइनर साड़ी के साथ ब्लाउज में भी एप्लीक वर्क काफी पसंद किया जा रहा है. आजकल कई ड्रेसेज पर एप्लिक वर्क का काम किया जा रहा है जिससे ड्रेस की खूबसूरती निखरकर आती है. एप्लिक वर्क वाली साड़ी को शादी-पार्टी में पहनने के साथ ही हल्के रंग की ब्लाउज के साथ कैजुअल आउटिंग के लिए भी पहन सकती हैं.

खास मांग

 

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साड़ी स्टोर की सी इ ओ अनिता बताती हैं कि इन दिनों एप्लिक वर्क वाली साड़ियों की मांग ज्यादा है. ये फैशन पहले था लेकिन अब दोबारा ये ट्रेंड जोर पकड़ रहा है. किसी खास मौके से लेकर पार्टी तक में ऐसी साड़ियां आकर्षण का केन्द्र बन रही हैं. लेडिज इन दिनों एप्लिक वर्क वाले लहंगे की भी डिमांड कर रही हैं. एप्लीक वर्क से तैयार किए गए गोल्डन, पिंक शेड्स और ग्रीन शेड्स ज्यादा चलन में हैं. पारंपरिक एप्लिक वर्क की खासियत ही यही है कि इसमें कपड़े को चिपकाया नहीं जाता बल्कि रंग-बिरंगे धागों से टांका जाता है. लहंगे, चोली और चुन्नी पर जब अलग-अलग शेप के रंग-बिरंगे सुंदर एप्लीक  टांके जाते हैं तो यह कपड़ों को शानदार लुक देते हैं.

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है परफेक्ट

एप्लिक वर्क आउटिफट्स की सबसे बड़ी खूबी यही है कि इंडियन वियर, इंडो-वेस्टर्न स्टाइल के साथ कैजुअल या पार्टी वियर लुक के लिए परफेक्ट है. हालांकि एप्लीक वर्क वाले आउटफिट्स की कीमत ज्यादा होती है क्योंकि ये हैंडमेड होते हैं. अलग-अलग डिजाइन वाले एप्लिक को शौर्ट कुर्तियों से लेकर लहंगा चोली तक में कलरफुल धागों के साथ इस्तेमाल किया जा रहा है.

है बेस्ट

अगर आप क्रिएटिव माइंड वाली हैं तो आप इंडियन ड्रेस में पैच वर्क लगा कर, कढ़ाई कर, मिरर वर्क द्वारा लेसेज एक्सेसरीज लगा कर नए एक्सपेरिमेंट कर उसे नया लुक दे सकती हैं तो एप्लिक वर्क बेस्ट है. बस एक्सपेरिमेंट ऐसा हो जो फूहड़ न लगे.

Janmashtami Special: घर पर बनाएं टेस्टी पंजीरी लड्डू

अक्सर आपके बच्चे लड्डू की डिमांड करते होंगे, लेकिन बाजार से लड्डू खरीदना आपके बच्चों की हेल्थ के लिए सही नही है. साथ ही आप उन्हें ज्यादा दिनों तक स्टोर करके भी नहीं रख सकते. इसीलिए आज हम आपको पंजीरी लड्डू की रेसिपी बताएंगे, जिसे आप स्टोर रख सकते हैं और साथ ही यह आपके बच्चों की हेल्थ के लिए भी अच्छा होगा क्योंकि आप खुद घर पर यह रेसिपी बनाएंगे.

सामग्री

500 ग्राम गेंहू का आटा

60 ग्राम सूजी

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एक बाउल सूखा नारियल

10 ग्राम चार मगज

20-25 ग्राम काजू

20-25 ग्राम बादाम

150 ग्राम चीनी

450 ग्राम घी

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बनाने का तरीका

-सबसे पहले एक पैन में थोड़ा सा घी गर्म करके इसमें मखाना डालकर गोल्डन ब्राउन होने तक फ्राई कर लें. फिर इन्हें बाहर निकालकर सारे मखाने को एक अलग प्लेट में क्रश कर लिजिए.

-फिर सूजी को घी के साथ भून लें और अब इसके बाद इसमें आटा डालें.

-अब इसमें सूखा नारियल, क्रश मखाना, बादाम और काजू डालें.

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-फिर इसमें चीनी डालकर अच्छे से मिला लिजिए.

-अब सही साइज के लड्डू बनाकर बच्चों को खिलाएं.

किसी को कुछ दें तो न दिलाएं उसे याद

महान जरमन दार्शनिक व कवि फ्रेडरिक नीत्शे कहते हैं, ‘‘जिस ने देने की कला सीख ली समझो उस ने जीवन जीने की कला भी साध ली. देना एक साधना है, जिसे अपने भीतर उतारने में सदियां बीत जाती हैं.’’

हमारे परिवार, दोस्तों, रिश्तेदारों के बीच देने का यह क्रम लगातार चलता रहता है खासकर तीजत्योहारों और शादी समारोह में देने की यह गति और तेज हो जाती है. लेकिन लेनेदेने की इस गति में कई बार हमारी सोच, हमारा मन खुद ही बाधक बन जाता है. जब हम किसी को कुछ देते हैं तो उस में हमारा प्रेम व लगाव छिपा होता है पर वही प्रेम और राग तब काफूर हो जाता है जब हम सामने वाले को गाहेबगाहे यह याद दिलाते हैं कि मैं ने तुम्हें फलां चीज दी थी, याद है न?

ऐसे में सामने वाला खुद को दीनहीन समझने लगता है और यह कुंठा तब और उग्र हो जाती है जब यह ताना पब्लिकली दिया गया हो.

हाल ही में एक सगाई समारोह में कुछ पुरानी सहेलियों के साथ मेरी बैस्टफ्रैंड भी मिली. कमलेश व ज्योति कभी अंतरंग मित्र हुआ करती थीं. छूटते ही ज्योति बोल पड़ी, ‘‘अरे वाह कमलेश, तूने यह वही नैकपीस पहना है न जो मैं ने तुझे तेरी पिछली सालगिरह पर दिया था?’’

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कमलेश भरी महफिल में कुछ न बोल सकी बस मुसकरा कर रह गई. पर उस के मन पर जो चोट लगी उसे वह भूल न सकी.

हमारे आसपास, फैमिली या सोसाइटी में ऐसे लोग भरे हैं जो अपनी दी हुई चीजों का बखान करते नहीं थकते. कई बार तो देने से ज्यादा बढ़ाचढ़ा कर अपनी बात रखी जाती है. लेने वाला जब किसी और के मुख से ऐसी बातें सुनता है तो उस का स्वाभिमान तिलमिला उठता है. अकसर कुंठा से ग्रस्त हो खुद को कोसने लगता है कि आखिर उस ने उस व्यक्ति से कोई उपहार स्वीकार ही क्यों किया?

ऐसे सीखें देने की कला

– चाहे आप ने कितना भी महंगा गिफ्ट क्यों न दिया हो, मन में मलाल न रखें कि हाय मैं ने इतनी महंगी चीज क्यों दे दी.

– गिफ्ट या कोई भी आइटम देते वक्त उस का प्राइस टैग जरूर रिमूव करें या प्राइस प्रिटेंड हो तो उसे इंक या व्हाइट पेपर से कवर कर दें.

– देने के बाद भूल कर भी कभी याद न दिलाएं या किसी पार्टी अथवा गैदरिंग में अनावश्यक याद न कराएं.

– एकसाथ एक जैसे गिफ्ट अपने किसी भी क्लोज को देने की भूल न करें. हो सकता है वे बाइचांस किसी इवेंट में सेम आइटम के साथ दिख जाएं तो शर्मिंदगी हो सकती है.

– किसी को कुछ भी दें तो दिल से दें.

– कोशिश करें डब्बाबंद अच्छी तरह वैल पैक्ड गिफ्ट दें. इस से आप का इंप्रैशन जमेगा.

– देना हमें भीतर से विशाल बनाता है, इसलिए इस परंपरा के वाहक बनें.

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यह कोई बड़ा काम नहीं

खुद को देने की कला में माहिर बनाना कोई बड़ा काम नहीं है, भारी काम नहीं है. थोड़े से प्रयास से हम इस स्किल को बेहतर तरीके से डैवलप कर सकते हैं.

आखिर हम अल्बर्ट आइंस्टीन, ग्राहम बेल, क्रोलबस, जौर्ज वाशिंगटन, वाल्टडिज्नी, बिलगैट्स, एपीजे कलाम जैसे महान लोगों से कुछ क्यों नहीं सीखते, जिन्होंने जीवनभर इस दुनिया को कुछ न कुछ देने का काम किया पर उस का नाम न लिया.

देना अगर गुप्त हो तो तभी वह सफल है. इस का ऐक्सपोजर आप को नैरो बनाता है. गिविंगनैस आप को बड़ा बनाती है. ग्रेटनैस इसी में है कि किसी को देने का एहसास न कराएं. भारी व भरे मन से नहीं, बल्कि खुले व हलके मन से देने की आदत डालें. हैप्पीनैस के साथ गिविंगनैस का कौंबो पैक आप की इमेज को लार्जर दैन लाइफ बना सकता है.

प्रेग्नेंसी में थायराइड की स्क्रीनिंग है जरुरी

निशा का गर्भ धारण हुए 3 महीने बीत चुके थे, लेकिन उसे हमेशा कमजोरी महसूस होती थी. जब वह डॉक्टर के पास आई, तो डौक्टर ने उसे थायराइड की जांच करने की सलाह दी. इससे पता चला कि उसका टीएसएच का स्तर बहुत बढ़ चुका है, जिससे बच्चे के दिमाग का विकास सही तरह से हुआ है या नहीं समझना मुश्किल था, ऐसे में उसे जन्म दिया जाय या टर्मिनेट किया जाय. इसे लेकर समस्या थी. निशा खुद भी ये समझ नहीं पा रही थी कि वह करें तो क्या करें. असल में हाइपोथायरोडिज्म अधिकतर महिलाओं को होता है, जिसमें थायराइड ग्लैंड उचित मात्रा में हर्मोन नहीं बना पाता. ये एक आम बीमारी है और आजकल भारत में 10 में से 1 के लिए ये रिस्क बना हुआ है. जिसमें प्रेग्नेंट महिला 13 प्रतिशत से 44 प्रतिशत प्रभावित है. थायराइड में डिसऔर्डर माँ और बच्चा दोनों के लिए घातक होती है. समय पर एक साधारण स्क्रीनिंग टेस्ट से इसका इलाज संभव है.

इस क्षेत्र में अधिक जागरूकता को बढ़ाने के लिए इंडियन थायराइड सोसाइटी, एबोट के साथ मिलकर मेक इंडिया थायराइड अवेयर (MITA) कैम्पेन शुरू किया. इस अवसर पर इंडियन थायराइड सोसाइटी के सेक्रेटरी शशांक जोशी का कहना है कि अधिकतर महिलाओं की हाइपोथायराडिज्म होता है,जिसमें थायराड ग्लैंड उचित मात्रा में हर्मोन नहीं बनाता, ऐसे में सही समय में इसका इलाज करना जरुरी है ,क्योंकि इसका सौ प्रतिशत इलाज संभव है. इससे पीड़ित महिलाओं में अनियमित माहवारी और गर्भधारण करने में मुश्किल महसूस होती है. इसलिए गर्भधारण के तुरंत बाद टीएसएच की जांच करवा लेनी चाहिए,क्योंकि इसका प्रारंभिक लक्षण बहुत अधिक दिखाई नहीं पड़ता, इसलिए महिलाएं इसे नजरअंदाज करती है,पर कुछ लक्षण निम्न है,

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  • चेहरे पर सूजन,
  • त्वचा में सिकुडन,
  • ठंड सहन न कर पाना,
  • अचानक तेजी से वजन का बढ़ना,
  • कब्ज की परेशानी,
  • मांस पेशियों में ऐठन आदि है. ऐसा महसूस होते ही तुरंत डॉक्टर से मिलकर थायराइड स्क्रीनिंग अवश्य करवाएं.

थायराइड के सही इलाज न होने से बच्चे में निम्न समस्या दिखाई पड़ सकती है,

  • बच्चे की मस्तिष्क का सही तरह से विकसित न होना,
  • प्रीमेच्योर डिलीवरी होना,
  • मृत शिशु का जन्म होना,
  • बच्चे का वजन कम होना,
  • दिल की धड़कन का तेज होना,
  • उसका आई क्यू लेवल कम होना आदि है. जिसे बाद में ठीक कर पाना आसान नहीं होता.

इस बारें में स्त्री रोग विशेषज्ञ डौ. नंदिता पाल्शेतकर कहती है कि 3 में से एक महिला को ये पता नहीं होता है कि उसे थायराइड है. इसलिए देर से पता चलने के बाद इसका इलाज करना मुश्किल हो जाता है. थायराइड से पीड़ित महिला को केवल पहले ही नहीं डिलीवरी के बाद भी उनमें इसकी समस्या बनी रहती है, जो निम्न है,

  • रोग प्रतिरोधक क्षमता का कम होना,
  • चिडचिडापन का होना,
  • वजन का अधिक बढ़ जाना,
  • अधिक थकान अनुभव करना,
  • केशों का अधिक झड़ना आदि होता है. इसलिए जब भी ऐसी शिकायत हो डौक्टर की तुरंत सलाह लेने की जरुरत होती है.

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इसके आगे एबोट इंडिया की डॉ. श्रीरूपा दास कहती है कि मेक इंडिया थायराइड अवेयर का मिशन अधिक से अधिक डॉक्टर्स को इसकी जानकारी और प्रशिक्षण दिया जाना है. इसमें 8,500 डॉक्टर्स ने अपनी सहमति दी है. इसके लिए मोबाइल वैन और डिजिटल कैम्पेन शुरू किया गया है जो देश के हर बड़े और छोटे शहरों  तक पहुंचकर 10 मिलियन थायराइड के मरीज की पहचान कर उचित इलाज समय रहते करेगी. ये स्क्रीनिंग अधिकतर 25 से 45 साल की महिलाओं के लिए की जायेगी, क्योंकि इस उम्र में महिलाओं को बच्चे का जन्म और उसका पालन-पोषण करना होता है. इसके अलावा यह कैम्पेन एनजीओ के साथ मिलकर गरीब महिलाओं को मुफ्त में थायराइड स्क्रीनिंग की भी सुविधा देंगी.

इस एक्टर को मजबूरी में ठुकरानी पड़ी बड़े बजट की फिल्में

छत्तीसगढ़ राज्य के भाटापारा के करीब भैसा सकरी गांव निवासी साहेब दास मानिकपुरी जब कुछ वर्ष पहले मुंबई पहुंचे थे,उस वक्त वह शुद्ध हिंदी नही बोल पाते थे.एक मित्र की मदद से उन्हे ‘इस्कौन’मंदिर में ‘कंस वध’नामक नाटक में अभिनय करने का मौका जरुर मिला,पर उनकी हिंदी को लेकर सवाल उठ रहे थे. ऐसे में हिम्मत हारने की बजाय साहेब दास ने उस वक्त के रंगकर्मी व अब सफल भोजपुरी अभिनेता संजय पांडे, रंगकर्मी व लेखक राजेश दुबे तथा सशक्त रंगकर्मी स्व.पं.सत्यदेव दुबे की छत्रछाया में काम कर अपनी हिंदी पर इतनी मेहनत की आज वह शुद्ध व क्लिष्ट हिंदी बोलते हैं. अब तक कई टीवी सीरियलों में हास्य किरदार निभाकर शोहरत बटोर चुके साहेब दास माणिकपुरी बीच बीच में फिल्मों मे भी छोटे,पर महत्वपूर्ण  किरदारों में नजर आते रहते हैं, इन दिनों वह सब टीवी के सीरियल ‘‘जीजाजी छत पे हैं’’ में हवलदार मंगीलाल के किरदार में काफी पसंद किए जा रहे हैं.

सवाल- आज आपने करियर को किस मुकाम पार पाते हैं?

-ईश्वर की अनुकंपा और दर्शकों के प्यार के चलते लंबे संघर्ष के बाद सुखद अनुभूति हो रही है.आज हालात कुछ ऐसे हो गए हैं कि अब लोग मुझे अपनी फिल्म व सीरियल का हिस्सा बनाना चाहते हैं, मगर अपनी व्यस्तता के चलते मुझे कई प्रस्ताव विनम्रता पूर्वक ठुकराने पड़ रहे हैं.

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सवाल- लेकिन दो साल पहले तो आप सीरियल मे आई कमिंग मैडम’’कर रहे थे,पर फिर गायब हो गए थे?

-आपकी बात कुछ हद तक सही है. इस सीरियल का प्रसारण बंद होने के बाद करीबन चार माह तक मेरे पास कोई काम नही था.उस दौरान मैंने कुछ विज्ञापन फिल्मों में काम किया. कुछ यात्राएं भी की.फिर बिनायफर कोहली ने मुझे सीरियल ‘‘जीजाजी छत पर हैं’’के लिए याद किया.इसके निर्देशक शशांक बाली के काम करने का तरीका भी ऐसा है कि मैंने तुरंत हामी भर दी थी. वैसे भी इस टीम के साथ मैं पिछले छह वर्षों से काम करता आ रहा हूं.

सवाल- तो इस इन दिनों नया क्या कर रहे हैं?

-पिछले डेढ़ वर्षों से ‘सब टीवी’पर हर सोमवार से शुक्रवार रात साढ़े नौ बजे प्रसारित हो रहे सीरियल‘‘जीजाजी छत पे हैं’’में हवलदार का किरदार निभा रहा हंू.लोग इसे काफी पसंद कर रहे हैं.यह चैनल का सबसे ज्यादा लोकप्रिय सीरियल है.मुझे हर माह तीस दिन शूटिंग करनी होती है.

सवाल- इस सीरियल के अलावा कुछ और कर रहे हैं?

-मैं करना तो बहुत कुछ चाहता हूं.मगर शूटिंग की तारीखों की समस्या के चलते नहीं कर पा रहा हूं. इस सीरियल के साथ माह में तीस दिन का मेरा अनुबंध है,जिसके चलते मैं कुछ दूसरा कर नहीं सकता.हां!जब विज्ञापन फिल्म के लिए एक या दो दिन का समय देना होता है,तो निर्देशक मुझे उसकी छूट दे देते हैं.इसके चलते मैं कमर्शियल फिल्में आसानी से कर रहा हूं.

सवाल- अब इन दिनों आप फिल्मों के लिए कोशिश नहीं कर रहे हैं?

-कोशिश बंद नहीं है. मुझे फिल्मों के औफर मिल भी रहे हैं,पर अब मैं कोशिश कर रहा हूं कि जब तक सीरियल ‘जीजाजी छत पे हैं’के साथ मेरा अग्रीमेंट खत्म नही होता,तब तक मुझे ऐसी फिल्में मिलें,जिनके लिए मैं आठ दस दिन का समय निकालकर शूटिंग कर सकूं.मैं अग्रीमेंट तोड़कर बेवजह किसी को परेशानी में नहीं डालना चाहता.

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सवाल- तो अब कोई फिल्म नहीं कर रहे हैं?

-सच यही है कि फिल्मों के आफर लगातार मिल रहे हैंं.मगर सीरियल में व्यस्त होने के चलते मना करना पड़ रहा है.जबकि मेरे पास कई बड़ी बड़ी फिल्मों के आॅफर आते रहते हैं.मुझे फिल्म ‘‘सोन चिड़िया’’में अभिनय करने का आॅफर मिला था.मैं यह फिल्म करना भी चाह रहा था,लेकिन निर्देशक ने पूरे तीन माह की एक साथ तारीख मांग दी.क्योंकि उन्हें चंबल में जाकर शूटिंग करनी थी. मेरे सामने समस्या थी कि मैं तीन माह के लिए इस सीरियल से गायब नहीं हो सकता था.यदि सीरियल के साथ मेरा अग्रीमेंट न होता,तो मैं यह फिल्म जरूर करता.वैसे भी कलाकार के तौर पर मैं अपने कमिटमेंट से पीछे हटने की कोशिश कभी नहीं करता.मैंने कहा था कि यदि आठ दस दिन में मेरा काम खत्म हो जाए,तो मैं फिल्म कर सकता हूं.पर ऐसा हो नही पाया. तो बड़ी विनम्रता से मुझे यह फिल्म छोड़नी पड़ी.उसके बाद मुझे ‘यशराज फिल्मस’की एक फिल्म छोड़नी पड़ी.जबकि मैं पहले‘‘यशराज फिल्मस’’के साथ ‘मर्दानी’फिल्म के अलावा ‘पावडर’सहित कुछ सीरियल किए हैं.इन दिनों मुदस्सर अली लखनउ में फिल्म‘‘में मेरी पत्नी और वह’’की शूटिंग कर रहे हैं.मेरे पास इस फिल्म में ड्ायवर का अहम किरदार निभाने का आफर आया था.पर उन्हे पूरे एक माह की तारीखंे चाहिए थी,इसलिए मुझे खुद मना करना पड़ा. पर एड फिल्में कर लेता हूं.

सवाल- कमर्शियल फिल्मों में तो आपने बड़े कलाकारों के साथ काम किया है?

-जी हां! मैंने अमिताभ बच्चन,कटरीना  कैफ, इरफान खान सहित कई कलाकारों के साथ विज्ञापन फिल्में की हैं.इरफान खान व मल्लिका शेहरावत के साथ मैंने फिल्म‘‘हिस्स’’ और ‘‘ब्लैकमेल’’की है.सच कहूं तो इरफान खान ने फिल्म ‘‘हिस्स’’की शूटिंग के दौरान अभिनय को लेकर मुझे बहुत कुछ सिखाया,जिसे मैं कभी भुला नहीं सकता.मैंने राजकुमार संतोषी के निर्देशन में अजय देवगन के साथ फिल्म ‘‘हल्ला बोल’की है.उस वक्त मैं एकदम नया था,जबकि अजय देवगन सुपर स्टार थे.पर मुझे अजय देवगन ने अहसास नहीं कराया   कि मैं न्यूकमर हूं. अमिताभ बच्चन के साथ मैंने ‘नवरतन तेल’’का विज्ञापन किया.अभी मैंने एक स्वच्छता अभियान पर विज्ञापन फिल्म की है,जिसमें अमिताभ बच्चन,कटरीना कैफ,ईशा कोपीकर व रवि किशन हैं.

सवाल- आपके शौक क्या हैं?

-दौड़ना,मेडीटेशन करना,अध्यात्म में मेरी रूचि है.पूजा पाठ में मेरी रूचि है.मुझे सुबह शाम शंखनाद करने में बड़ा मजा आता है.किताबें पढ़ने का शौक है.मुझे संगीत का भी शौक है. मैं हरमोनियम बजा लेता हूं और हर दिन हरमोनियम बजाता हूं.अभी मैंने एक बड़ा सा बंैजो खरीदा है.जब खाली वक्त मिलता है,तब बंैजो बजाता हूं.बैंजो बजाते हुए तीन चार घंटे कैसे बीत जाते हैं,मुझे पता ही नही चलता.

सवाल- आपके भाई लेखक थे,उनकी प्रगति ?

-वह छत्तीसगढ़ में ही रहते हैं.अब तक उनकी कम से कम 20 किताबें आ चुकी हैं.बहुत जल्द भइया की बिटिया रानी को सरकारी नौकरी मिल जाएगी,ऐसी उम्मीद है.

सवाल- आप किताबें कौन सी पढ़ते हैं?

-ओशो रजनीश की किताबें पढ़ना मुझे पसंद है.स्वामी विवेकानंद,एपीजे अब्दुल कलाम को मैंने बहुत पढ़ा है. महापुरूषों की जीवनी पढ़ने से बहुत कुछ सीखने को मिलता है.

सवाल- वेब सीरीज नहीं कर रहे?

-आज की तारीख में इस बारे में मैं बहुत ज्यादा विस्तार से नहीं बता सकता.लेकिन जब से मैंने ऐसी फिल्मों की तलाश शुरू की है,जिनके लिए मैं आठ दस दिन की शूटिंग कर सकूं,तब से मेरे पास वेब सीरीज के आॅफर आने शुरू हुए हैं.फिलहाल दो वेब सीरीज की बात लगभग तय है.पर अभी तक शूटिंग नहीं की है. इसलिए उनके बारे में जिक्र करना अभी ठीक नही होगा.

सवाल- कुछ नया..?

-मैंने अभी सचिन तेंदुलकर के साथ भी एक इंटरनेशनल विज्ञापन फिल्म की है.यह एड फिल्म लोगों के बीच जागरूकता लाने के लिए है.मसलन कान में ईअर फोन लगाकर सड़क पार ना करें.यदि आप सड़क पर अपनी कार लेकर जा रहे हैं, और एम्बुलेंस गाड़ी की आवाज आए, तो उसे जाने की जगह दें.

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लैक्मे फैशन वीक: प्रेग्नेंट लीजा ने हार्दिक पांड्या के साथ किया रैम्प वौक, देखें Photos

बौलीवुड एक्ट्रेस लीजा हेडन दूसरी बार मां बनने जा रही हैं. कुछ दिनों पहले ही लीजा ने अपनी प्रेग्नेंसी की न्यूज सोशल मीडिया पर दी थी, जिसमें लीजा काफी दिनों से बौलीवुड इवेंट्स से दूर परिवार के साथ टाइम स्पेंड करती हुईं नजर आ रही थीं, लेकिन अब हाल ही में चल रहे लैक्मे फैशन वीक में लीजा धमाकेदार अंदाज में रैंप वौक करती हुईं दिखीं. वहीं रैम्प पर उनका साथ इंडियन क्रिकेटर हार्दिक पंड्या ने दिया. आइए आपको दिखाते हैं लीजा की लैक्मे फैशन वीक की कुछ खास फोटोज…

रैम्प वौक पर नजर आईं लीजा हेडन

लीजा के खूबसूरत अंदाज को देख सबकी निगाहें बल उन्ही पर टिक गईं. लीजा ने अमित अग्रवाल के लिए रैंप वौक किया. लीजा ने इस दौरान स्टाइलिश साड़ी पहनी थी जिसमें उनका ग्लैमरस लुक दिख रहा था. इसके साथ ही उनके चेहरे पर प्रेगनेंसी का ग्लो उनकी खूबसूरती को और बढ़ा रहा था.

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हार्दिक के साथ रैंप पर लीजा आईं नजर

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लीजा के साथ फिर हार्दिक ने भी उन्हें रैम्प पर ज्वाइन किया. हार्दिक ने भी सेम कलर का आउटफिट पहना था.

ऐसे स्पेशल तरीके से दी थी प्रेग्नेंसी की न्यूज

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लीजा ने पति और बेटे के साथ अपनी फोटो इंस्टाग्राम पर शेयर की थी, जिसमें वो तीनों बीच पर नजर आ रहे हैं. लीजा ने इस दौरान स्विमसूट पहना है जिसमें उनका बेबी बंप साफ दिख रहा है. लीजा ने फोटो शेयर करते हुए लिखा था. ‘चौथे की आने की खुशी में पार्टी’. इस फोटो में पूरा परिवार खुश नजर आ रहा है.

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बता दें कि लीजा ने अक्टूबर 2016 में डिनो लालवानी से शादी की थी. मई 2017 में उन्होंने अपने पहले बेटे जैक को जन्म दिया था. जैक के साथ लीजा फोटोज शेयर करती रहती हैं.

Edited by Rosy

बिकिनी फोटोज की वजह से ट्रोलिंग का शिकार हुई अनुष्का, फैंस ने ऐसे उड़ाया मजाक

फिल्मी दुनिया से इन दिनों दूर चल रहीं अनुष्का शर्मा अक्सर सोशल मीडिया पर ट्रोल होती हुई नजर आती हैं. वहीं इस बार भी अनुष्का अपनी एक फोटो अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर शेयर करने के कारण ट्रोल हो गई हैं. जिसके कारण सोशलमीडिया पर कईं मीम्स शेयर हो रहे हैं. आइए आपको दिखाते हैं ट्रोलर्स के वायरल मीम्स…

 बिकिनी में नजर आई थीं अनुष्का

बौलीवुड स्टार अनुष्का शर्मा इन दिनों अपने क्रिकेटर पति विराट कोहली के साथ छुट्टियां बिताने विदेश गई हुई हैं. यहां से उन्होंने हाल ही में एक फोटो शेयर की. जिसमें उन्होंने औरेंज कलर की बिकिनी पहनी हुई थी.

 

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Sun kissed & blessed ?⛱️

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बैरिकेड के रंग से लोग कर रहे अनुष्का की बिकिनी की तुलना

अनुष्का शर्मा की हालिया फोटो सामने आने के बाद एक यूजर ने बिकिनी फोटो की तुलना रंग बैरिकेड के रंग से मैच कर दी. जिस पर लोगों के बहुत कमेंट आए.

मीडिया प्लेयर से भी हुई बिकिनी की तुलना

अनुष्का शर्मा की बिकिनी की तुलना ट्रोलर्स ने एक मीडिया प्लेयर के रंग से करते हुए एक फोटो शेयर कर दी. इतना ही नहीं, अनुष्का शर्मा की इस फोटो के सामने आते ही उन पर कई तरह के जोक्स बनने लगे.

हस्बैंड विराट के सिटिंग स्टाइल को फैंस ने किया याद

सोशल मीडिया पर अनुष्का शर्मा की वायरल फोटो में बैठने के स्टाइल को लेकर भी फैंस ने टांग खींचते हुए उनके पति के स्टाइल से तुलना कर डाली.

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प्रियंका चोपड़ा को भी ट्रोलर्स ने किया ट्रोल

इतना ही नहीं, इसके बाद प्रियंका चोपड़ा की मेट गाला ड्रेस भी एक बार फिर चर्चा में आ गई. अनुष्का शर्मा को इस ड्रेस पर कुछ इस अंदाज में बिठाकर दिखाया गया था.

सांप के रंग से की अनुष्का की बिकिनी की तुलना

सोशल मीडिया पर वायरल हुए मीम्स में से इस मीम में अनुष्का की बिकिनी और सांप तक के कलर को मैच करते हुए खू मजाक उड़ाया जा रहा है. अब देखना ये होगा कि इन मीम्स और ट्रोलर्स को अनुष्का कब और कैसे जवाब देती हैं.

Angry Birds-2 के प्रमोशन के दौरान कपिल शर्मा ने ‘होने वाले बच्चे के लिए कही ये बात…’

कौमेडी के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बना चुके कौमेडियन और एक्टर कपिल शर्मा को पहला ब्रेक शो ‘द ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेन्ज’ से मिला, जिससे वे एक कौमेडियन के रूप में स्थापित हो गए और साल 2013 में उन्होंने अपना शो ‘कौमेडी नाइट्स विथ कपिल’ लौंच किया और हर घर की पहचान बन गए. हालांकि यहां तक पहुंचने में उन्हें बहुत संघर्ष करना पड़ा, क्योंकि कई बार उन्हें औडिशन के दौरान रिजेक्शन का भी सामना करना पडा, पर वे मायूस नहीं हुए और आगे बढ़ते गए. वे पशु पक्षियों से बहुत प्यार करते है और उनके लिए समय-समय पर काम करते है. इतना ही नहीं उन्होंने मुंबई पुलिस से सेवानिवृत्त एक डौग को गोद लिया है.

‘एंग्री बर्ड्स मूवी 2’ में डबिंग करते नजर आएंगे कपिल

बचपन से ही कपिल को अभिनय, संगीत और चुटकुले सुनाने का शौक था और वे किसी भी अवसर पर रिश्तेदारों के बीच हास्य चुटकुले सुनकर सबको हंसाया करते थे. उन्हें हमेशा नयी विधाओं से परिचय होने में मज़ा आता है और इसी कड़ी में उन्होंने बच्चों की फिल्म ‘एंग्री बर्ड्स मूवी 2’ में बर्ड रेड की डबिंग की है. जिसे करने में उन्हें मुश्किलें तो आई, पर उन्हें इसे करते हुए बहुत मज़ा आया वे कहते है कि जब मुझे इस फिल्म को डबिंग करने के लिए कहा गया, तो मुझे बहुत अच्छा लगा, क्योंकि मैंने इस क्षेत्र में अभी तक कुछ नहीं किया है और जब बड़े-बड़े कलाकार को डबिंग करते सुनता था, तो मुझे भी इसे करने की इच्छा होती थी ,पर डर लगता था कि इसे करना संभव होगा या नहीं. यहाँ इसमें लेखक ने बहुत ही आसान तरीके से अंग्रेजी में कही गयी शब्दों को हिंदी में परिवेश के अनुसार ढाला है, जिससे मुझे अधिक समय नहीं लगा.

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अपने एक्सपीरियंस को किया शेयर

इसमें आपकी चुनौती क्या रही, आपका रिसर्च वर्क कितना रहा? पूछे जाने पर कपिल का कहना है कि इसमें सबसे मुश्किल दृश्य के अनुसार संवाद को बैठाना होता है, क्योंकि ये फिल्म अंग्रेजी में है और इसे संवाद के आधार पर पक्षी के मूवमेंट को बनाया गया है, लेकिन यहां सिचुएशन के आधार पर संवाद डालने की जरुरत होती है,जिसमें पक्षी के लिप्स के अनुसार बात करनी पड़ती है और उसके लिप्स हिलने तक संवाद खत्म हो जाने की जरुरत होती है, जिसमें शुरुआत में तो थोड़ी मुश्किल हुई, पर बाद में मैंने अपने हिसाब से इसमें कुछ पंजाबी शब्दों को डाला है, कई बार धर्मेन्द्र और नाना पाटेकर की आवाज भी निकाली है. जो इसे मजेदार होने के साथ-साथ आकर्षक भी बनाया है. अधिक रिसर्च वर्क नहीं करना पड़ा, इसे करने के बाद मैंने इस फिल्म का पहला भाग भी देखा है, जो बहुत अच्छा लगा.

 

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Hey guys, meet Red.. he’s got something to tell you, stay tuned for more ??

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‘होने वाले बच्चे के लिए कही ये बात…’

कपिल पिता बनने वाले है, ऐसे में उन्हें अपने बच्चे को ऐसी ही मजेदार फिल्म दिखाने का शौक रखते है. वे कहते है कि मुझे परिवार के साथ फिल्म देखना पसंद है. मुझे लगता है कि वह भी इन फिल्मों को देखकर ही बड़ा होगा या होगी और अपने पिता के काम को देखकर खुश होगा. इसके अलावा मुझे बचपन से ही बच्चों से बहुत लगाव था जब मैं अमृतसर में था, तो वहां पुलिस कौलोनी में बहुत सारे बच्चे रहते थे. पिता के औफिस चले जाने पर मैं उन बच्चों को घर पर लाकर खेलना और बातें करना पसंद करता था और आज जब मुझे उनके लिए कुछ करने का मौका मिला, तो बहुत अधिक खुश हूं.

7 टिप्स: अगर घर में नहीं आती धूप तो इन तरीकों से बढ़ाए रोशनी

धूप आंगन में खिली हो और पूरा परिवार बैठ कर उस का आनंद ले रहा हो, सुबह के सूरज की मखमली किरणों के कमरे में आने पर खुशनुमा, ताजगी भरे वातावरण में नींद खुले, अपने सपनों के घर के बारे में कल्पना करते हुए हर किसी की इच्छा होती है कि खुला, हवादार, धूप वाला घर मिले. छोटे शहरों में तो फिर भी ये आकांक्षाएं साकार हो जाती हैं, लेकिन महानगरों में जीवन का विस्तार जितना बड़ा होता है, रहने की जगह उतनी ही सिमटीसिकुड़ी हुई होती है. बड़े शहरों में रहने की एक ही शर्त होती है कि कोई शर्त न रखो. यहां आवासीय समस्या इतनी गंभीर है कि सिर छिपाने को एक छत मिल जाए, इतना ही काफी होता है. ऐसे में धूप वाला घर मिले, यह जरूरी नहीं.

लेकिन जिस घर में धूप न आती हो, वहां रहना भी आसान नहीं है. जहां दिन में भी अंधकार छाया हो, ऐसे घर में रह कर तो कोई भी व्यक्ति डिप्रेशन में जा सकता है. पर अगर ऐसे घर में रहना ही पड़े, तब क्या किया जाए? आइए जानें, कुछ ऐसे तरीके, जिन्हें अपना कर घर को रोशन बनाया जा सकता है.

1. पेंट हलके रंग का हो

इंटीरियर डैकोरेटर सुरभि चिकारा कहती हैं, ‘‘दीवारों के पेंट का रंग घर को एक विशिष्ट लुक प्रदान करता है. जिन घरों में धूप की कमी होती है, उन में हलके और ग्लौसी फिनिश वाले पेंट रोशनी को प्रतिबिंबित करते हुए अंधेरे का आभास नहीं होने देते. ऐसे घरों में सफेद, क्रीम, हलके नीले, गुलाबी, हरे रंग इस उद्देश्य के लिए बिलकुल फिट बैठते हैं. ये रंग खिड़कियों से आने वाले उजाले को पूरे कमरे में फैलाते हैं, जिस से घर के रोशन होने का एहसास होता है.’’

2. परदे पारदर्शी हों

मोटे कपड़े और गहरे रंग के परदे खिड़कियों से आने वाले प्रकाश को रोक देंगे. अत: बेहतर यही होगा कि परदे झीने फैब्रिक और हलके रंग जैसे पीला, सुनहरा, क्रीम के हों, जिन से प्रकाश छन कर भीतर आ सके.

3. ट्यूबलाइट अधिक होनी चाहिए

घर में धूप न आती हो, तो कमरे में सिर्फ एक लाइट होने से काम नहीं चलेगा. दीवारों पर लगी ट्यूबलाइटों के अलावा फ्लोर लैंप भी होने चाहिए, जिस से कि कमरों के कोने भी प्रकाशित हो सकें. यह ध्यान रखें कि लैंप शेड्स गहरे न हों, बल्कि सफेद या हलके रंग के हों जो रोशनी को सही तरह से पूरे कमरे में फैला सकें. इस के अलावा कोन आकार के लैंप शेड पढ़ने के काम के लिए ज्यादा ठीक रहते हैं, पर सारे कमरे को रोशन नहीं कर सकते हैं. ऐसे लैंप शेड जो बल्ब को पूरा ढक लेते हैं, ज्यादा रोशनी फैलाते हैं. अत: कमरे में इन का इस्तेमाल ही अधिक करें.

4. सही बल्ब चुनें

सुरभि रोशनी के लिए सही बल्ब के चुनाव की महत्ता पर जोर देती हैं. वे कहती हैं, ‘‘बहुत चुभती हुई रोशनी न रखें वरन बाजार में मिलने वाले सीएफएल बल्ब इस्तेमाल करें जोकि पावर बचाने के साथसाथ घर को प्राकृतिक रोशनी जैसा ग्लो देते हैं. इन्हें घर के अंधेरे कोनों में लगाया जाना चाहिए.’’

वे सलाह देती हैं कि फुल स्पैक्ट्रम लाइट बल्ब इस्तेमाल किए जाने चाहिए. इन बल्बों की विशेषता यह होती है कि ये नियोडाइमियम नामक रासायनिक पदार्थ से रंगे होते हैं और बिलकुल सूरज की रोशनी जैसा प्रकाश देते हैं.

5. आईने से रोशनी बढ़ाएं

आजकल दीवारों पर सजाने के लिए पेंटिंग्स के अलावा बड़े आईने लगाने का भी बहुत चलन है. हालांकि पेंटिंग्स की तरह बहुत सारे आईने नहीं लगा सकते, लेकिन एक आईना सजावट के साथसाथ कमरे की रोशनी को भी काफी बढ़ा सकता है. इस के लिए खिड़की के सामने वाली दीवार पर एक बड़ा आईना लगा दें. यह खिड़की से आ रही रोशनी को प्रतिबिंबित कर पूरे कमरे में प्रकाश भर देगा.

6. फर्नीचर हलके रंग का हो

गहरे रंग का फर्नीचर रोशनी कम होने का आभास देता है, इसलिए डार्क वुड के बजाय हलके रंग की लकड़ी का फर्नीचर लें.

7. घर को रोशन करने के कुछ और टिप्स

अलमारियों में भी बल्ब लगवाएं, जो खोलने पर जल उठें और आप को सामान निकालने में आसानी हो.

किचन काउंटर और फर्श सफेद या क्रीम मार्बल का रखें ताकि वह रोशनी को प्रतिबिंबित करे.

इसी तरह डाइनिंग टेबल और सैंटर टेबल कांच की रखें जिस से कि प्रकाश प्रतिबिंबित हो.

खिड़की के बजाय कांच का स्लाइडिंग दरवाजा भी लगवा सकते हैं, जिस से ज्यादा से ज्यादा रोशनी घर में आ सके.

यदि सब से ऊपरी मंजिल पर रहते हों और प्राइवेसी की समस्या नहीं है, तब स्काई लाइट लगवाना भी एक विकल्प हो सकता है.

सुबह उजाले में उठना चाहते हों तो आजकल टाइमर वाले बल्ब भी उपलब्ध हैं जिन पर आप अपने उठने के समय का टाइमर लगा सकते हैं. तब रोज वे उस निर्धारित समय पर अपनेआप जल उठेंगे और आप को धूप जैसा एहसास होगा.

सजावट की चीजें भी ऐसी हों, जो प्रकाश प्रतिबिंबित करें जैसे कांच अथवा क्रिस्टल के फूलदान या शोपीस.

बैडशीट और सोफा कवर भी सफेद या हलके रंगों के हों तो कमरा ज्यादा प्रकाशमय लगेगा.

आप के घर में धूप नहीं आती, तब भी आप को चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. थोड़ी सी सूझबूझ से आप उसी घर को खुशनुमा और प्रकाशमय बना सकते हैं. बस, आप को अपनी ओर से प्रयास करना है. यकीन मानिए, आज के प्रगतिशील जमाने में अगर आप असली धूप नहीं तो उस से मिलतीजुलती नकली धूप ही सही, अपने घर ला सकते हैं और उस से अपने जीवन के अंधेरे को मिटा कर रोशनी से सराबोर कर सकते हैं.

महिलाएं नहीं बतातीं अपनी इच्छा

आज भले ही महिलाऐं अपने हुनर और काबिलियत के बल पर हर क्षेत्र में पुरुषों के कंधे से कंधा मिला कर चल रही हो मगर अगर समाज में ओवरऔल कंडीशन देखा जाए तो ज्यादातर महिलाएं खुद को कतार में पीछे खड़ा रखती हैं. वे आगे बढ़ सकती है पर बढ़ती नहीं. अपनी बात रखने या अपनी इच्छा का काम करने से हिचकिचाती हैं. हाल ही में पोंड्स द्वारा किए गए एक सर्वे के मुताबिक महिलाएं लंबे समय से खुद को रोक रही हैं. 10 में से 9 महिलाएं कहती है कि वे अपनी इच्छा की बात कहने या इच्छा का काम करने से खुद को रोकती हैं. पोंड्स द्वारा 2019 में किये गए सर्वे के मुताबिक़ 10 में से 6 महिलाएं खुद को कुछ कहने से रोकती हैं.

खुद को रोकने के  कारण

59% महिलाओं को जज किए जाने का डर होता है. 58% महिलाएं इस बारे में अनिश्चित रहती हैं कि दूसरे क्या प्रतिक्रिया देंगे जब कि 10 में से 5 यानी 52 % महिलाओं को यह चिंता भी होती है कि वह जो कहेंगी उस से दूसरे उन के बारे में नकारात्मक बात सोचने लगेंगे.

जाहिर है मन का डर कि समाज या परिवार क्या सोचेगा और वह क्या प्रतिक्रिया देगा, यह महिलाओं को खुद के फैसले से अपने मन का काम करने से रोकता है.

खुद को रोकने वाले इस संकोच के अनेक रूप और नाम है. इसे भले ही महिलाएं अंदर की आवाज कहें पर वास्तव में यह एक तरह की नकारात्मक सोच है. यह सोच महिलाओं के आगे बढ़ने के मार्ग की सब से बड़ी बाधा है.

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यह सोच रातोंरात जन्म नहीं लेती बल्कि सालों से समाज द्वारा किये जा रहे ब्रेनवाश और समाज के तथाकथित परंपरावादी नियमों में जकड़े जाने और यह बताये जाने का परिणाम है कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं.

नतीजा यह होता है कि महिलाएं अपनी इच्छा का काम करने का हौसला ही नहीं जुटा पाती. उन्हें लगता है कि कुछ गलत हो गया तो पूरा समाज उन के पीछे पड़ जाएगा. व्यंग्य भरे ताने और जलील करती निगाहें उन्हें अंदर तक बेध देंगी.

यही नहीं लगभग आधी यानी 47 प्रतिशत महिलाएं बड़े समूह में प्रश्न पूछने में संकोच करती हैं. इसी तरह 10 में से 4 महिलाएं यानी 40% बॉस को न कहने से खुद को रोकती हैं.

व्यक्तिगत जीवन में 10 में से 4 महिलाएं यानी 40% बाहर जा कर अपने बॉयफ्रेंड के साथ रहने से खुद को रोकती हैं क्यों कि उन्हें डर होता है कि दूसरे लोग इस पर क्या प्रतिक्रिया देंगे.

खुद को क्यों रोकती हैं महिलाएं

बहुत सी औरतों को यह विश्वास नहीं होता कि अगर वे बड़े समूह में कोई प्रश्न पूछती है तो वह काम का होगा भी या नहीं. उन्हें डर होता है कि कहीं उन का मजाक न बन जाए. महिलाएं इस वजह से भी हिचकती हैं क्यों कि उन्हें यह समझ नहीं आता कि दूसरे क्या प्रतिक्रिया देंगे.

कई महिलाओं का कहना होता है कि वे सोचने में बहुत ज्यादा समय लेती हूं जिस से काम करने का अवसर हाथ से निकल जाता है. उन्हें लगता है कि वे जो कुछ भी कहेंगी उस के लिए उन्हें जज किया जा सकता है , दूसरों के सामने छवि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.

यह सर्वे स्वतंत्र शोध कंपनी, इप्सोस द्वारा एक सेल्फ एडमिनिस्टर्ड ऑनलाइन सर्वे द्वारा किया गया. यह सर्वे भारत में 18 से 35 साल की महिलाओं के बीच मुंबई ,चेन्नई ,दिल्ली ,कोलकाता ,बेंगलुरु ,चंडीगढ़ ,लखनऊ ,पुणे विजाग और मदुरई में किया गया. (भारत में 16 से 26 अप्रैल ,2019 के बीच 1000 महिलाओं के बीच)

सच तो यह है कि कभी कपड़ों के आधार पर , कभी उन के व्यवहार को देख कर या लड़कों से बातें करता देख या फिर किसी और तरह से समाज हर पल उन्हें जज करता रहता है. बिंदास लड़कियां तो ऐसे लोगों की परवाह नहीं करतीं मगर सामान्य लड़कियों के कदमो पर हमेशा यही डर बेड़ियां डाले रखतीं हैं. कुछ भी करने से पहले उन के दिल में खौफ पैदा हो जाता है कि पता नहीं लोग कैसे जज करें. किस नजर से देखें.

कितने अफसोस की बात है कि 10 वीं और 12 वीं के रिजल्ट के समय समाचारों की सुर्ख़ियों में लड़कियां छाई रहती हैं. स्कूल कौलेजेस में अक्सर वे ही टौप करती हैं. मगर जब बात नौकरी और सैलरी की आती है तो वे पीछे हो जाती हैं. अपना हक़ भी बड़ी सहजता से छोड़ देती हैं.

औनलाइन करियर ऐंड रिक्रूटमेंट सलूशन प्रवाइडर मॉनस्टर इंडिया के हालिया सर्वे से पता चलता है कि देश में महिलाओं की औसत सैलरी पुरुषों के मुकाबले 27 प्रतिशत कम है. पुरुषों की औसत सैलरी जहां 288.68 रुपए प्रति घंटा है, वहीं महिलाओं की 207.85 रुपए प्रति घंटा है. सरकारी नौकरियों को छोड़ कर यह भेदभाव हर क्षेत्र में हैं.

जाहिर है महिलाओं को बचपन से सिखाया जाता है कि पुरुषों की बराबरी न करो. जितना मिल जाए उस में संतोष कर लो. बाहर वालों के आगे ज्यादा बकबक न करो और किसी ऐसे पुरुष के आगे जुबान न खोलो जो आप से बड़ा या सीनियर हो या जिस पर आप निर्भर करती हो. पुरुष स्वामी हैं और आप दासी. कभी भी अपने हक़ की बात न करो ….

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इसी का नतीजा है कि महिलाओं के दिलोदिमाग में यह बात इतनी गहराई से रच बस गई है कि वे अनजाने में भी इसी हिसाब से चलती हैं और कभी अपना मुँह नहीं खोलती.

अपनी मरजी का नहीं कर सकती महिलाएं

एक पुरुष को कभी भी कौन सी नौकरी करनी है इस बात पर अपने घरवालों या बीवी की सहमति की जरुरत नहीं होती. वह अपनी मरजी से नौकरी का चुनाव कर सकता है. उसे किसी की अनुमति की जरुरत नहीं. दूसरी तरफ लड़कियों और महिलाओं को पढ़ाई करने ,काम करने, रोजगार योग्य नए कौशल सीखने के लिए अपने पिता, भाई, पति और कुछ मामलों में समाज तक से अनुमति लेनी पड़ती है.

उषा एक प्राइवेट कंपनी में काम करती है. उस की शादी नवंबर में नौसेना में काम करने वाले एक लड़के से होने वाली है. ज्योति के काम करने पर उसे कोई एतराज नहीं है. लेकिन यह एतराज केवल सरकारी नौकरी करने पर नहीं है. उषा कहती हैं, “ मैं सरकारी नौकरी पाने के लिए प्रयास कर रही हूं लेकिन यह आसान नहीं है. शादी से पहले अपनी प्राइवेट जॉब से इस्तीफ़ा दे दूंगी क्यों कि यही मेरे वुड बी हस्बैंड की मरजी है. ”

कमोबेश यही सोच और स्थिति सभी अविवाहित और विवाहित लड़कियों की रहती है.  पहली प्राथमिकता घरपरिवार और पति होता है. नौकरी और करियर दुसरे स्थान पर होते हैं. हाल तो यह है कि कुछ लड़कियां महज समय बिताने के लिए काम कर लेती है. करियर में अच्छा करना, आगे बढ़ना या लीडर बनना जैसी बातें उन के फ्यूचर प्लान का हिस्सा होती ही नहीं.

ऐसा नहीं कि महिलाओं में योग्यता की कमी होती है. अमेरिका के वाशिंगटन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का दावा है कि महिलाओं का मस्तिष्क उन के हमउम्र पुरुषों की तुलना में तीन साल जवां रहता है. इस वजह से महिलाओं का दिमाग लंबे अरसे तक तेज़ चलता है.

इस अध्ययन में 20 से 84 वर्ष की 121 महिलाओं और 84 पुरुषों ने हिस्सा लिया. उन के मस्तिष्क में ग्लूकोज और ऑक्सीजन के प्रवाह को मापने के लिए उन का पीईटी स्कैन किया गया. ऐसा नहीं है कि पुरुषों का दिमाग तेजी से वृद्ध होता है. दरअसल वे दिमागी तौर पर महिलाओं से तीन साल बाद वयस्क होते हैं.

फाइनेंस संबंधी फैसलों पर भी घरवालों और पति पर निर्भरता रिसर्च एजेंसी नीलसन के साथ मिल कर किये गए  डीएसपी विनवेस्टर पल्स 2019 सर्वे में यह बात सामने आई है कि देश में 33% महिलाएं जीवन में किसी भी तरह के निवेश के फैसले खुद लेती हैं जब कि 64% पुरुषों के मामले में यह बात सही साबित होती है. यानी देश में पुरुषों के मुकाबले आधी महिलाएं ही निवेश के फैसले स्वतंत्र रूप से लेती हैं भले ही वे कितना भी क्यों न कमा रही हों. इस सर्वे में देश के आठ शहरों में 4,013 महिलाओं और पुरुषों की राय जानी गई.

ऐसी महिलाएं जो निवेश के फैसले खुद करती हैं उस में उन के पति या मातापिता के प्रोत्साहन का अहम योगदान होता है. करीब 13% महिलाओं ने कहा कि उन्हें पति की मौत या तलाक की वजह से अपने निवेश के फैसले खुद लेने पड़े. 30% महिलाओं के मुताबिक़ वे निवेश इसलिए कर पाईं क्यों कि उन्होंने खुद निवेश करने का फैसला लिया.

जहां तक निवेश की आवश्यकता या मकसद की बात है तो ये तकरीबन एक जैसे ही रहे. मसलन बच्चों की पढ़ाईलिखाई, घर खरीदना, बच्चों की शादी, अच्छा लाइफ स्टाइल आदि मुख्य मकसद के रूप में नजर आये. यह भी पाया गया कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं का अपने बच्चों से जुड़े लक्ष्यों की ओर झुकाव अधिक रहता है.

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पुरुष जहां कार या घर खरीदने का फैसला अधिक लेते हैं वहीं महिलाओं ने सोना,ज्वैलरी, रोजमर्रा की जरूरतों की चीजें और टीवी-फ्रिज जैसे टिकाऊ सामान खरीदने में ज्यादा रूचि दिखाई. अध्ययन में यह बात भी सामने आई कि निवेश के निर्णय लेने वाले 2,160 महिलाओं और 1,853 पुरुषों की उम्र 25 से 60 वर्ष के बीच थी.

सर्वे के मुताबिक जब महिलापुरुष लम्बे समय के निवेश के फैसले मिल कर लेते हैं तब स्थितियां बेहतर होती हैं. महिलाओं में आत्मविश्वास ज्यादा होता है. पैसा और इस से जुड़े तनाव कम होते हैं. ज्यादा अच्छा यही है कि महिला और पुरुष मिल कर ही वित्तीय योजनाएं बनाएं. और केवल वित्तीय योजनाएं ही नहीं बल्कि जिंदगी के सारे अहम् फैसलों पर महिलाओं को अपनी राय देने से बचना नहीं चाहिए. क्यों कि इस तरह वे अपने परिवार और पति के लिए बेहतर कर पाने में सक्षम होंगी.

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