ट्रेंडी आईशैडो से सजाएं आंखों को

आंखों को खूबसूरत दिखाने के लिए आप कुछ अलग ट्राई करना चाहती हैं, तो आईशैडो का कई तरह से इस्तेमाल कर सकती हैं. लेक्मे अकेडमी की मैकअप आर्टिस्ट कनिष्का कुशवाहा ने बताया, “आईशैडो का इस्तेमाल हम सिंपल से ले कर बोल्ड लुक के लिए कर सकते हैं. आईशैडो के इस्तेमाल से हम अपनी आंखों को कई तरह से कलर कर सकते हैं. अभी के ट्रेंड में ग्लिटरी, स्मोकी, डबलशेड आईशैडो लुक ज्यादा ट्रेंडी है. हम इन्हीं से कई अलगअलग लुक क्रिएट कर सकते हैं.”

आइए, जानते हैं ट्रेंड के अनुसार आंखों को खूबसूरत कैसे दिखाएं.

स्मोकी आई लुक

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स्मोकी आई बहुत क्लासी लुक देती है. ज्यादातर स्मोकी लुक के लिए ब्लैक आईशैडो का इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन आप किसी भी डार्क शैड का इस्तेमाल कर स्मोकी लुक दे सकती हैं. यह लुक आप की आंखों को बहुत खूबसूरत बना देता है. अगर आप को समझ नहीं आ रहा कौन सा शैड बेहतर होगा, तो आप ब्लैक और ग्रे कलर भी चुन सकती हैं. इस के अलावा ब्राउन और ब्रोंज का कौम्बीनेशन भी अच्छा लगता है.
आईशैडो इस्तेमाल करने से पहले आईलिड पर प्राइमर का इस्तेमाल जरूर करें. प्राइमर के इस्तेमाल से आई मेकअप सेट रहता है. अब कंसीलर का इस्तेमाल करें.

स्मोकी लुक के लिए ड्रेस के कलर से मैच करता मैट आईशैडो लगाएं. बड़े आईब्रश से इसे अच्छी तरह स्मज करें. अब डार्क शैड से एक शैड लाइट आई शैडो को आंखों की ऊपरी आईलिड पर लगाएं.

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इसे लगाने के बाद ब्लैंडिंग ब्रश से अच्छे से ब्लैंड करें. ज्यादा स्मोकी लुक देने के लिए आईलिड के कौर्नर में ब्लैक आईशैडो का इस्तेमाल करें.
आंखों को और भी अट्रेक्टिव दिखाने के लिए लाइनर और मसकारा जरूर लागाएं.

सौफ्ट पर्पल स्मोकी लुक

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पर्पल शैड बहुत ही खूबसूरत शैड होता है. अगर आप ने कुछ फ्लोरल या लाइट कलर की ड्रेस पहनी है तो यह लुक आप पर बहुत फबेगा. यह बहुत आसान लुक है. आप इस लुक को और भी आईशैड के साथ ट्राई कर सकती हैं. बस ध्यान रहे दोनों शैड एक ही कलर के हों, वो भी एक डार्क और लाइट.

सौफ्ट पर्पल लुक के लिए सब से पहले आईशैडो बेस लगा लें. अब लाइट पर्पल आई शैडो को आईलिड पर लागाएं और इसे शेप में ब्लैंड करें. आई शैडो जितनी अच्छी तरीके से ब्लैंड होगा आप की आंखें उतनी ही खूबसूरत दिखेंगी.

ब्लैंड करने के बाद आप डार्क पर्पल शैड को लाइनर की तरह आंखों पर लगाएं. मसकारा या आईलैश लगा कर आप अपनी आंखों को और भी खूबसूरत और बड़ी दिखा सकती हैं.

सनसेट आई मेकअप

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सनसेट आई मेकअप बहुत ही फ्रेश लुक देता है. सनसेट लुक के लिए आंखों पर प्राइमर का इस्तेमाल कर लें. जब प्राइमर सेट हो जाए तो लाइट गोल्डन शैड को अपने आईलिड पर लगा लें. अब औरेंज आईशैडो से आधी आईलिड कवर करें. यानी गोल्डन और औरेंज दोनों ही शैड आप की आईलिड पर दिखनी चाहिए. इसे अच्छे से ब्लैंड करें. अब आउटर कौर्नर पर पर्पल शैड से ब्लैंड करें. अब क्रीज लाइन पर ब्राउन और रेड शैडो का इस्तेमाल करें. सनसेट आई मेकअप में लोअर लैशलाइन को भी कवर करना जरूरी है. लोअर लैशलाइन को कवर करने के लिए औरेंज और गोल्डन शैड का इस्तेमाल करें.

मैटेलिक आईशैडो लुक

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मैटेलिक आई मेकअप लुक बहुत ही बोल्ड लुक देता है. मैटेलिक लुक के लिए मैटेलिक आईशैडो का इस्तेमाल किया जाता है. इस के लिए ब्लैक, ग्रे, पीच, पिंक और ब्राउन शैड का इस्तेमाल किया जाता है. यह सभी शैड शिमरी होते हैं.

मैटेलिक लुक के लिए भी आंखों पर प्राइमर लगाएं. उस के बाद पूरे आईलिड और क्रीज को पीच शिमरी पिंक से कवर करें और अच्छे से ब्लैंड कर लें. यहां आप ब्लैंडिंग के लिए अपनी उंगलियों का भी इस्तेमाल कर सकती हैं. शिमरी आईशैडो उंगलियों से अच्छे से ब्लैंड होते हैं.

अब आईलीड पर ग्रे शैडो का इस्तेमाल करें. ब्लैक आई शैडो को अपर लैश लाइन पर अच्छे से ब्लैंड करें. आईशैडो के ऊपर आप स्पार्कल का भी इस्तेमाल कर सकती हैं. यह आप की आंखों को ग्लिटरी मैटेलिक लुक देगा.

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लोअर लैश लाइन पर भी आईशैडो का इस्तेमाल करें.

आई मेकअप करते समय इन बातों का रखें ध्यान

• शैडो लगाने से पहले प्राइमर का इस्तेमाल करें.

• प्राइमर नहीं है तो कंसीलार या फाउंडेशन से बैस बनाएं.

• आइब्रो को जरूर सेट करें.

• आईशैडो शेप में लगे इस के लिए आईकौर्नर पर टैप का इस्तेमाल करें.

• आईशैडो हमेशा लाइट शैड से लगाना शुरू करें. पहले डार्क शैड का इस्तेमाल न करें.

 

क्या आप भी अपने बच्चे को लोरी गाकर सुलाती हैं?

दोस्तों एक औरत के लिए माँ बनने के एहसास से बड़ा कोई दूसरा सुख नहीं हो सकता .बच्चा अपनी मां के सबसे करीब होता है इसलिए वह बिना बोले भी अपनी बात को सबसे पहले अपनी मां के दिल तक पहुंचा सकता है. माँ अपने बच्चे के बिना कहे उसकी दिल की बात समझती है .

चंदनियां छिप जाना रे…….यशोदा का नन्द लाला……………,लल्ला –लल्ला लोरी………………..,और भी न जाने कितने तरीके से एक माँ अपने बच्चे को अपना प्यार दिखाती है ,उसे लोरी गा के सुलाती है .जी हाँ दोस्तों माँ और बच्चे का रिश्ता ही ऐसा होता है जिसमे शब्दों की जरुरत ही नहीं होती . दोस्तों माँ की लोरी एक जादू की तरह काम करती हैं. मां के द्वारा गाई गई लोरी बच्चे को मां के और करीब लाती है. कभी आपने भी गौर किया होगा कि बच्चा सबसे पहले आवाज अपनी मां की पहचानता है. विशेषज्ञ कहते हैं ऐसा इसलिए होता है क्योंकि लोरी के रूप में जो आवाज वो लगातार सुनता है धीरे-धीरे बच्चा उससे जुडाव महसूस करने लगता है और उनके बीच का रिश्ता और भी ज्यादा मजबूत होता जाता है.

पर क्या आपने कभी सोचा है कि आपकी लोरी का बच्चे पर क्या प्रभाव पड़ता है कि वो सो जाते हैं या रोना बंद कर देते हैं? तो वैज्ञानिकों ने इसके पीछे की सही वजह पता कर ली हैं. एक अध्ययन की मानें, संगीत का बच्चों पर बहुत गहरा प्रभाव होता है इससे बच्चों में दर्द और चिंता कम हो जाती है. ग्रेट ऑरमंड स्ट्रीट अस्पताल में किया गया हालिया शोध में इस बात का जवाब तलाशने का प्रयास किया गया है कि लोरी का बच्चों पर क्या और कैसा प्रभाव पड़ता .तो चलिए जानते है जानें, बच्चे को लोरी सुनाने के ढेरों फायदों के बारे में….

1- सोते समय लोरी सुनने से होता है बच्चे का दिमागी विकास

लोरी गाकर बच्चों को सुलाने का तरीका सदियों पुराना है. बच्चों पर लोरी का बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. यह न केवल माँ और बच्चे के बीच एक मजबूत भावनात्मक बंधन को बढ़ावा देने में मदद करता हैं, बल्कि बच्चे के मस्तिष्क को सक्रिय करने में भी योगदान करते हैं. जब एक बच्चा अपनी मां की आवाज सुनता है, तो वह अलग-अलग आवाजों के बीच फर्क करना भी सीख जाता है. दरअसल, मां की लोरी बच्चे के ब्रेन के कई हिस्सों को एक साथ उत्तेजित करती है जिससे बच्चे का दिमागी विकास होता है. इसे मेडिकल की भाषा में ‘म्यूजिकल लर्निंग’ भी कहते हैं.
लोरी सुनने से मस्तिष्क की नसों को भी आराम मिलता है और बच्चे को नींद भी गहरी आती है.

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2-लोरी सुनकर सोने से बच्चे का चिडचिडापन होता है दूर और बढ़ता है आत्मविश्वास

कभी-कभार ऐसा होता है की बच्चा बहुत ज्यादा चिडचिडाता है या डरा हुआ होता है और बहुत ज्यादा रोता है .वो घर में खिलौने से नहीं खेलता वो बाहर जाकर भी रोना बंद नहीं करता पर वो मां की गोद में जाते ही शांत हो जाता है .और जब माँ उसे प्यार से थपकी देकर और लोरी गाकर सुनाती है तो उसे लगता है की वो अपनी माँ के लिए दुनिया का एकमात्र व्यक्ति है और वो चैन की नींद सो जाता है.ये एक माँ ही जानती है की उसकी आवाज में गाया हुआ गाना उसके बच्चे को कितना सुकून देता है .
दोस्तों एक्सपर्ट्स की मानें तो मां से लोरी सुनकर बच्चे के अंदर डर और किसी भी तरह के खतरे की भावना विकसित नहीं होती है. इससे बच्चे का बौद्धिक और भावनात्मक विकास भी होता है. लोरी सुनने पर बच्चे को मां के साथ होने का एहसास होता है और यही एहसास उसे निडर बनाता है और वह धीरे-धीरे खतरों का सामना करना सीखने लगता है. इस तरह लोरी बच्चे का आत्मविश्वास बढाने में मदद करती है.

3-मां और बच्चे के बीच के रिश्ते में मजबूती आती है-ं

बांड-निर्माण के पीछे तंत्रिका विज्ञान काम करती है और इसे ऑक्सीटोसिन के रूप में जाना जाने वाले हार्मोन के साथ जोड़कर भी देखा जाता है. यही होर्मोन लोरी-टाइम के दौरान भी पॉप अप करता है और मां और बच्चे में एक खास संबंध बनाता है. जब मां गाती है, तो ऑक्सीटोसिन हारमोंस बनना जारी होता है. ऑक्सीटोसिन को प्यार के हार्मोन और कडल हार्मोन के रूप में भी जाना जाता है. यही कारण है कि यह एक रिश्ते में मजबूत बंधन बनाने में मदद करता है. वहीं अगर लोरी पूरे मन से नहीं गाई गयी तो ऑक्सीटोसिन हारमोंस कम बनते है लोरी जब भी गाएं मन से गाएं.

4-बच्चे के अन्दर भाषा समझने की छमता को मजबूत बनाती है लोरी

दोस्तों जब एक माँ अपने बच्चे को लोरी गाकर सुलाती है तो लोरी के उन शब्दों में माँ के प्यार और इच्छाओं का समावेश होता है .भले ही बच्चों को शुरुआती चरणों में भाषा समझ में नहीं आती है, लेकिन उनके दिम्माग में उन शब्दों के द्रश्य चलते रहते है,उनकी कल्पना करने की शक्ति बहुत तेज़ होती जाती है.और धीरे धीरे बच्चे की भाषा सीखने की छमता बढती जाती है. लोरी में इस्तेमाल किए गए शब्द बच्चे को धीरे-धीरे याद होने लगते हैं और वो बाद में उन शब्दों का सही इस्तेमाल भी करना सीख जाता है.
दोस्तों लोरी बच्चो के व्यक्तित्व को शांत बनाने में भी सहायता करती है.

5-बच्चों में दिनचर्या स्थापित करने में मदद करती है लोरी

दोस्तों लोरी बच्चे के सोने की दिनचर्या स्थापित करने में मदद करती है. ये बच्चे के मस्तिष्क को संकेत भेजती हैं कि सोने का समय आ रहा है. जब बच्चा लोरी सुनता है, तो बच्चा सोने वाले समय को बहुत आसानी से स्वीकार कर पाता है. इस तरह बच्चे के सोने और उठने का पैटर्न तैयार हो जाता है.

6-मां के लिए भी फायदेमंद है लोरी

अमेरिका स्थित मियामी के फ्रॉस्ट स्कूल ऑफ म्यूजिक के अनुसंधानकर्ताओं की ओर से की गई एक स्टडी की मानें तो बच्चों को लोरी सुनाने से सिर्फ उनकी सेहत ही नहीं बल्कि मां की सेहत भी अच्छी रहती है. डिलिवरी के बाद न्यू मॉम्स जिस तरह के तनाव, पोस्टपार्टम डिप्रेशन और नेगेटिव बातों से जूझ रही होती हैं, लोरी की मदद से इन चीजों से ध्यान हटाने में मदद मिलती है. मां की लोरी सुनकर जब बच्चे मुस्कुराते हैं जो मां के अंदर पॉजिटिव एनर्जी का संचार होता है.

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7. बच्चे ही नहीं बुजुर्गों के लिए भी लोरी है फायदेमंद

म्यूजिक या लोरी किस तरह से छोटे बच्चों के लिए फायदेमंद है इस बारे में तो काफी रिसर्च हुई है. लेकिन अब वैज्ञानिक इस बात पर फोकस कर रहे हैं कि किस तरह लोरी और म्यूजिक बुजुर्गों के लिए फायदेमंद हो सकता है. दरअसल, बड़ी संख्या में बुजुर्ग नींद की कमी की समस्या से परेशान रहते हैं. ऐसे में चेन्नई में हुई एक स्टडी में यह बात सामने आयी है कि लोरी या फिर इसी तरह का कोई रिलैक्सिंग म्यूजिक सुनने से स्ट्रेस हॉर्मोन्स कम होते हैं जिससे नींद अच्छी आती है.

खेल इवेंट्स के सूखे में खुद को कैसे फिट रख रही हैं महिला खिलाड़ी

हालांकि अब लॉकडाउन खत्म हो चुका है. लेकिन खेल इवेंट्स का सूखा अब तक बरकरार है. तमाम जगहों पर अभी भी प्रैक्टिस के लिए स्टेडियमों और दूसरे मैदानों में प्रतिबंध है. सवाल है ऐसे में खुद को फिट रखने के लिए महिला खिलाड़ी क्या कर रही हैं? महिला खिलाड़ियों को खुद को फिट रखना इसलिए ज्यादा जरूरी होता है; क्योंकि उनका शरीर पुरुष खिलाड़ियों के मुकाबले बहुत जल्दी शेप से बाहर चला जाता है और वर्कआउट को रिस्पोंड करना छोड़ देता है. इसलिए तमाम मशहूर महिला खिलाड़ी हर दिन खुद को फिट रखने वाले वर्कआउट से जरा भी परहेज नहीं करतीं; क्योंकि उन्हें मालूम है एक बार आलस किया तो अपने कॅरियर तक से उन्हें हाथ धोना पड़ सकता है.

यही वजह है कि हर महिला खिलाड़ी पहले लाॅकडाउन और अब अघोषित सन्नाटे के दौर में अपने आपको फिट रखने के लिए जितना जरूरी है, उससे थोड़े ज्यादा ही वर्कआउट कर रही हैं. बैडमिंटन कोर्ट पर अपने स्मैस और ड्राॅप शाॅट के जरिये प्रतिद्वंदी खिलाड़ियों के छक्के छुड़ा देने वाली साइना नेहवाल इन दिनों घर में ही खोखो खेल रही हैं. यही नहीं वे घर के कई छोटे मोटे काम भी करती नजर आ रही हैं, जिन्हें आमतौर पर करने की उनके पास पहले फुर्सत नहीं होती थी. लेकिन इस सबके बीच वो अपने घर के आंगन में ही नेट लगाकर हर दिन कम से कम दो से ढाई घंटे तक बैडमिंटन की प्रैक्टिस भी करती हैं. इसके बाद उन्हें उनके घर में घंटों तक वर्कआउट करते भी देखा जा सकता है.

 

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कुछ ऐसी ही दिनचर्या इन दिनों लेडी सचिन तेंदुलकर उर्फ मिताली राज की भी है. जैसा कि उनके फैन जानते हैं कि मिताली राज को सोने का जबरदस्त रोग है. उन्हें देर तक सोने में बड़ा मजा आता है. अगर उन्हें लगातार होने वाली सीरीज के बीच कुछ दिनों की छुट्टी मिली होती तो इन दिनों वे जरूर सुबह देर तक सोया करतीं. लेकिन उन्हें मालूम है कि ये कोई चाही गई छुट्टी नहीं है बल्कि मजबूरी ने कोरोना के भय से सबको घरों में कैद कर दिया है. इसलिए वह हर सुबह सामान्य दिनों से भी पहले जगकर कई घंटे तक अपनी छत में वर्कआउट करती हैं. मालूम हो कि उन्होंने अपने घर में शानदार जिम बनवा रखा है. छत के खुल हिस्से में जब वह सूर्य नमस्कार करती हैं तो उनके कई फैन दूर अपनी छतों से दूरबीन के जरिये उन्हें देख रहे होते हैं. लेकिन इससे उन्हें कुछ फर्क नहीं पड़ता. वो सूर्य नमस्कार के बाद हार्ड वर्कआउट शुरू करती हैं और करीब एक घंटे के वर्कआउट के बाद सूर्य नमकस्कार करते हुए इसे समाप्त करती हैं.

इसके बाद वह करीब आधे घंटे तक अपनी छत में खुले आसमान के नीचे लेटी होती हैं ताकि वर्कआउट की थकान उतार सकें. फिर वह छत में मौजूद ढेर सारे पौधों को पानी देती हैं. फिर नीचे आती हैं, अपना मनपसंद नाश्ता करती हैं और नेटफ्लिक्स पर पसंदीदा कार्यक्रम देखती हैं. लेकिन हर शाम कम से कम दो घंटे वह अपनी पार्किंग में बल्लेबाजी का अभ्यास करना नहीं भूलतीं. महिला हाॅकी खिलाड़ी सुशीला चानू कोविड-19 की आपदा के चलते मिली छुट्टियों का इस्तेमाल अपनी कमियों को सुधारने में लगातार कर रही हैं ताकि ओलंपिक खेलों के लिए चुनी गईं 24 संभावित हॉकी खिलाड़ियों से उनका चुना जाना सुनिश्चित हो. चानू हर दिन कई घंटे तक न सिर्फ अपने घर में स्टिक लेकर दौड़ते हुए मैच का अभ्यास करती हैं बल्कि वे अपने ही पिछले मैचों के तमाम वीडियो बार बार देखती हैं, जिससे कि उन्हें यह पता चले कि आखिर वो मैदान में गलतियां क्या करती हैं और उन्हें कैसे सुधारा जा सकता है?

चानू यह तो नहीं कहतीं कि उन्हें अपनी तैयारियों के लिए लॉकडाउन और फिर पोस्ट लाॅकडाउन जैसे फुर्सत के पल मिले, लेकिन उनका यह कहना है कि जब हम किसी भी वजह से घरों में कैद हैं तो क्यों न इस समय का सदुपयोग अपनी चुस्ती फुर्ती को बढ़ाने में किया जाए. चानू ने अपने को फिट रखने के लिए अपने वैज्ञानिक सलाहकार वेन लोबार्ड से शारीरिक अभ्यास का चार्ट बनवाया है, जिस पर वह बेहद अनुशासन से अमल कर रही हैं.

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यह बात हम सब जानते हैं कि भले हमारे पास समय का बेहद अभाव हो, लेकिन अगर किसी भी वजह से हमें यह पता चल जाये कि हमारे पास करने के लिए काम नहीं हैं तो हमारी स्थिति उस स्थिति के मुकाबले कहीं ज्यादा खराब होती है, जब हमें सांस लेने तक की फुर्सत नहीं मिलती. इस मनोविज्ञान का असर हरके व्यक्ति पर पड़ता है. लेकिन अगर कहा जाए खिलाड़ियों पर इसका असर कुछ ज्यादा ही होता है तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगा. यह भी वजह है कि इन दिनों महिला खिलाड़ी बिना एक दिन भी नागा किये लगातार अभ्यास और वर्कआउट कर रही हैं ताकि उन्हें जंग न लगे और कोई पुरुष प्रशिक्षक उन पर यह व्यंग्य न कर सके कि थोड़े दिनों की फुर्सत में आपको हमेशा के लिए फुर्सत में बिठा दिया है.

Interview: पति रवि दुबे के साथ कुछ समय बिता रही हैं सरगुन मेहता

 कॉलेज के दिनों में अभिनय की शुरुआत करने वाली अभिनेत्री सरगुन मेहता चंडीगढ़ की है. उन्हें बचपन से ही अभिनय में रूचि थी. हिंदी टीवी शो के अलावा उसने कई पंजाबी फिल्में भी की और अवार्ड जीते. हिंदी धारावाहिक 12/24 करोलबाग से वह चर्चित हुई और कई धारावाहिकों में सफलता पूर्वक काम किया. उसने अभिनय के अलावा एंकरिंग और कई रियलिटी शो में भी भाग लिया है.

पहली हिंदी सीरियल 12/24 करोलबाग के दौरान सरगुन अपने कोस्टार रविदूबे से मिली प्यार हुआ और शादी की. अभी लॉकडाउन के समय दोनों पति पत्नी घर पर है और व्यस्त जिंदगी की वजह से टाले गए काम कर रहे है. साथ ही दोनों ने सोनी म्यूजिक के लिए एक वीडियो सोंग ‘टॉक्सिक’ बनायीं है, जो पति-पत्नी के रिश्ते के अलग-अलग अनूभूतियों को दिखाते हुए, तकरार और प्यार की एहसास को बताने की कोशिश की गयी है. सरगुन से उसकी अभिनय कैरियर के बारें में बात हुई, पेश है खास अंश.  

सवाल-म्यूजिक वीडियो में काम करने की खास वजह क्या है?

कांसेप्ट से भी अधिक बादशाह का गाना पसंद आया.नये तरीके से एक रिश्ते को देखने का नजरिया जो बहुत अलग था, वह बहुत अच्छा लगा. दुनिया में बहुत सारे रिश्ते होते है और हर किसी की सोच और रिश्तों को निभाने का तरीका अलग होता है, जो बहुत प्रभावशाली है, इसके अलावा अभी लॉक डाउन चल रहा है इसमें इसे शूट करना भी घर से ही था, जो एक अच्छा आप्शन हम दोनों के लिए था. 

सवाल-ऐसे माहौल में खुद शूट करना कितना मुश्किल था?

बहुत मुश्किल था, क्योंकि नार्मल समय में शूट होता तो 80 या 90 लोगों की टीम होती है. मेकअप करने वाला, कस्ट्युम तैयार करने वाला, शूट करने वाला, डायरेक्टर, कोरियोग्राफर आदि सब लोग होते है. इसमें घर पर शूट करना था, इसलिए रवि लिख रहा था, डायरेक्ट भी कर रहा था. शूटिंग की पूरी बारीकियों को भी देख रहा था. सौ चीजे ध्यान में रखनी पड़ती थी. हमारे पास लाइट्स नहीं थी, इसलिए जब रौशनी ठीक हो, तभी शूट करना पड़ता था. उसके लिए भी कई बार इंतजार करना पड़ा.

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सवाल-आप बादशाह के गीतों से कितनी प्रभावित है?

मुझे बादशाह के सभी गाने अच्छे लगते है. ये उन्होंने अलग तरह के गीत लिखे है. उन्होंने अधिकतर पार्टी गीत कंपोज किये है. मैंने उनकी कई गानों पर डांस भी किया है. 

सवाल-लॉक डाउन में आपकी दिनचर्या क्या रहती है?

अभी हम खा रहे है, सो रहे है, कुछ फिल्में देख रहे है और जब कभी कुछ नया खाना बनाना हो तो ऑनलाइन जाकर उसकी रेसिपी देख लेते है. जो पहली वीडियो सामने आती है उसी को देखकर बना लेते है. पनीर मखानी, अंडा भुर्जी आदि सब मैंने बनाया है.  

सवाल-आप अपनी जर्नी को कैसे लेती है, कितना संतुष्ट है?

मुझे लोगों का प्यार बहुत मिला है, कभी किसी प्रोजेक्ट में कम तो कभी अधिक भी इसमें हुआ है, पर मैंने हर प्रोजेक्ट में मेहनत किया है. अभी मेरी एक फिल्म रिलीज होने वाली थी, जो क्वारेंटिन की वजह से बंद पड़ी है, लॉक डाउन के बाद उसे रिलीज किया जायेगा. उम्मीद है दर्शकों को ये फिल्म पसंद आएगी. 

सवाल-एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री को सभी खोलना चाह रहे है, लेकिन कोरोना का संक्रमण लगातार बढ़ रहा है, ऐसे में अगर इंडस्ट्री खुले भी तो क्या एहतियात बरतने की जरुरत है?

कोरोना वायरस ख़त्म इतनी जल्दी होने वाली नहीं है, सबको इसके साथ ही चलना पड़ेगा, सबको इससे लड़ना भी पड़ेगा. इस हालात में सबको रहना सीखना होगा, लेकिन सबको एहतियात बहुत अधिक बरतने की जरुरत है. हायजिन और अपने आसपास का बहुत ख्याल रखना पड़ेगा. कहानियां अधिकतर आसपास के माहौल के हिसाब से ही बनती है. उसमें भी बदलाव परिवेश के हिसाब से ही होगी. कहानी कहने के तरीकों में भी बदलाव आएगा. पहले अधिक लोग शूटिंग पर होते थे अब कम होंगे. एक इंसान को दो का काम करना पड़े, क्योंकि समय की मांग ही यही है. मुश्किल अवश्य होगी, पर समय के अनुसार ही सबको चलने की जरुरत है.  

सवाल-पंजाबी फिल्मों में बहुत अधिक काम किया है और आवर्ड भी जीते है, क्या किसी और भाषा की फिल्मों में काम करने की इच्छा रखती है?

मेरे लिए मीडियम कोई माइने नहीं रखती. मुझे मराठी नहीं आती है, पर मुझे मराठी फिल्में बहुत पसंद है और देखती भी हूँ. साउथ की फिल्में और हिंदी फिल्मों में काम करने की भी मेरी इच्छा है और कांसेप्ट अच्छी होने पर अवश्य करुँगी.

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पहले मेरे दांत सफेद दिखते थे, लेकिन अब यह धीरे-धीरे पीले होने लगे हैं?

सवाल-

मैं 19 साल की हूं. पहले मेरे दांत सफेद दिखते थे, लेकिन अब यह धीरेधीरे पीले होने लगे हैं. मैं सुबह दांतों की सफाई भी अच्छे से करती हूं. मैं ऐसा क्या करूं जिस से मेरे दांत पहले जैसे सफेद दिखने लगें?

जवाब-

दांतों की सही ढंग से केयर न करने कारण दांत पीले होने लगते हैं. दांतों का पीलापन दूर करने के लिए आप ये उपाय जरूर अपनाएं:

तुलसी: दांतों का पीलापन दूर करने के तुलसी सब से आसान उपाय है. तुलसी दांतों को कई रोगों से बचाती भी है. यह मुंह और दांत के रोगों से भी मुक्त करती है. इस का इस्तेमाल करने के लिए तुलसी के पत्तों को धूप में सुखा लें. इस के पाउडर को टूथपेस्ट में मिला कर ब्रश करने से दांत चमकने लगते हैं.

नमक: नमक दातों को साफ करने का काफी पुराना नुसखा है. नमक में थोड़ा सा चारकोल मिला कर दांत चमकने लगते हैं.

विनेगर: 1 चम्मच जैतून के तेल में ऐप्पल विनेगर मिला लें. इस मिश्रण में अपना टूथब्रश डुंबोएं और दांतों पर हलके हाथों से क्लीन करें. इस प्रक्रिया को सुबह और रात को दोहराएं. इस मिश्रण का इस्तेमाल करने करने से दांतों का पीलापन मिट जाता है. साथ ही, सांसों की दुर्गंध की समस्या भी नहीं रहती.

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जब हम पर्सनैलिटी की बात करते हैं तो उस में सब से अहम व्यक्ति की स्माइल होती है. गंदे, भद्दे दांत खूबसूरत स्माइल को भी बदसूरत बना देते हैं. दांत कुदरती तौर पर सुंदर और मजबूत होते हैं, लेकिन कई बार गलत खानपान और साफसफाई के अभाव में ये कमजोर हो जाते हैं. दांतों की खराबी से न केवल हमारी स्माइल बल्कि हमारे चेहरे का आकार भी बदल जाता है. ऐसे में हमारी अच्छीखासी पर्सनैलिटी बेकार हो जाती है.

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भावनाओं के सहारे रणनीतिक साझेदारी नहीं घिसटती, छोटे नेपाल को क्या बड़ा दिल दिखाएगा भारत

बात चौंकाने वाली है और नहीं भी. भारत-नेपाल सीमा पर 12 जून, 2020 को हुई फ़ायरिंग की घटना में एक भारतीय युवक की मौत हो गई, जबकि 3 घायल हो गए.

चौंकाने वाली इसलिए है कि नेपाल और भारत का बौर्डर हमेशा से शांत रहा है. यह भारत-पाकिस्तान, भारत-चीन और यहां तक कि भारत-बंगलादेश जैसा बौर्डर नहीं रहा. इस सीमा से झड़प होने की ख़बर का आना नई बात है. मगर, चौंकाने वाली बात इसलिए नहीं है कि हालिया वर्षों में भारत के पड़ोसी देशों में हालात बहुत तेज़ी से बदलते गए हैं. भारत के क़रीबी घटक समझे जाने वाले देशों को चीन की ओर तेज़ी से झुकते देखा जा रहा है.

भारत व चीन के बीच विवाद अभी पूरी तरह थमा नहीं है कि इसी बीच नेपाल सीमा पर भी बवाल हो गया है. ‘रोटी-बेटी’ के साथ वाले नेपाल में भारतविरोध की आंच तेज हो गई है. लिंपियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी को ले कर दोनों देशों के बीच विवाद गहराता जा रहा है.

गौरतलब है कि पिछले 200 वर्षों से लिपुलेख से ले कर लिंपियाधुरा को नेपाल अपना क्षेत्र मानता रहा है. नेपाल ने अपने देश के ताजा नकशे में लिंपियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख को नेपाल की महाकाली नदी की पश्चिमी सीमा में दिखाया है. जबकि, भारत सरकार ने नवंबर 2019 में अपना नया राजनीतिक नकशा जारी किया था. भारत यह दावा करता रहा है कि नेपाल से उस की सीमा लिपुलेख के बाद शुरू होती है.

बात नेपाल की :

नेपाल की अगर बात की जाए तो इस देश में चीन ने व्यापकरूप से विकास परियोजनाओं में हिस्सा लिया है और बड़े पैमाने पर निवेश किया है. चीन अपनी बेल्ट ऐंड रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) में नेपाल को ख़ास महत्त्व देता है और इसीलिए वह नेपाल में भारत के मुक़ाबले अधिक आक्रामक रूप से निवेश कर रहा है. नतीजा यह हुआ कि चीन धीरेधीरे नेपाल की ज़रूरत बनता जा रहा है. वहीं, नेपाल इस दौरान भारत से दूर हुआ है. नेपाल के नए संविधान के ख़िलाफ़ मधेसियों के प्रदर्शनों के समय भारत और नेपाल के बीच खाई साफ़ नज़र आई भी थी.

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भारत की नीति :

दरअसल, भारत ने नेपाल को ले कर जो रणनीति बनाई थी वह कई दशकों से उपयोगी साबित होती रही, हालांकि, इस रणनीति में नेपाल के माओवादियों को हद से ज़्यादा हाशिए पर रखा गया था. मगर हालिया दशकों में चीन की आर्थिक और तकनीकी शक्ति में हैरतअंगेज़ विस्तार होने के बाद समीकरण बदल गए. इस बदलाव के नतीजे में नेपाल के माओवादियों का देश की राजनीतिक व्यवस्था में रसूख़ कई गुना बढ़ गया. सो, भारत की कई दशकों की कामयाब रणनीति लंगड़ाने लगी क्योंकि इस नई परिस्थिति के बारे में शायद भारतीय नीतिनिर्धारकों को पहले से अंदाज़ा नहीं हो सका और अगर हुआ भी, तो उन के सामने देश के भीतर चल रहे माओवादी आंदोलनों के कारण शायद बहुतकुछ करने की गुंजाइश नहीं थी.

चीन की रणनीति :

नेपाल की कहानी कुछ बुनियादी फ़र्क़ के साथ भारत के कुछ दूसरे पड़ोसी देशों में भी दोहराई गई है और कुछ दूसरे पड़ोसी देशों में भी वही कहानी दोहराए जाने की संभावना है क्योंकि चीन ने इन पड़ोसी देशों के लिए बिलकुल अलग रूपरेखा वाली रणनीति तैयार की है जिस में भारत की पकड़ को कमज़ोर करने पर ख़ास तवज्जुह है.

चीन की इस रणनीति के चलते श्रीलंका के राजनीतिक और कूटनीतिक समीकरणों में बदलाव दिखाई दे रहा है. म्यांमार में भारत को ले कर तो कोई बदलाव ज़ाहिर नहीं हो रहा है मगर इस देश में भी चीन की पैठ ज़्यादा है. बंगलादेश के गठन में भारत की केंद्रीय भूमिका रही है, मगर इस देश में भी चीन का रसूख़ तेज़ी से बढ़ा है. मालदीव से भारत के रिश्ते ठीक हैं लेकिन जब बात चीन की आएगी तो वह भी उधर ही झुकता नजर आएगा क्योंकि चीन से उस के रिश्ते भारत से बेहतर हैं, ऐसा माना जाता है.

लब्बोलुआब यह है कि केवल सांस्कृतिक व सामाजिक समानताओं और संयुक्त कल्चर के सहारे रणनीतिक साझेदारी को ज़्यादा समय तक आगे नहीं घसीटा जा सकता, बल्कि नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ेगी और इस के लिए सोच व दृष्टिकोण बदलना पड़ेगा. मौजूदा हालात के मद्देनजर क्या भारत की मौजूदा सरकार का सीना वास्तव में 56 इंच का होगा ? उत्तर प्रदेश सरकार के मुखिया योगी आदित्यनाथ ने तिब्बत का हवाला दे कर नेपाली प्रधानमंत्री ओली को चिढ़ाने की जो कोशिश की है, वह तो ख़तरनाक कदम है.

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फैमिली के लिए बनाएं राजगिरा टार्ट विद लेमन कर्ड

लेखिका- rashmi devarshi

अगर आप बच्चों के लिए कुछ आसान और टेस्टी रेसिपी ट्राय करना चाहते हैं तो ये रेसिपी आपके लिए परफेक्ट औप्शन है.

हमें चाहिए

राजगिरा के 2 लड्डू, पिघली हुई व्हाइट चॉकलेट 2 बड़ी चम्मच

1/4 कप लेमन जूस

1/2 कप चीनी

बटर 1/4 कप

कंडेन्स मिल्क 1/4 कप

लेमन ज़ेस्ट 2 छोटी चम्मच

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2 छोटी चम्मच कॉर्नफ्लोर

2 छोटी चम्मच पानी

चुटकी भर खाने वाला लेमन फूड कलर ( वैकल्पिक)

सजाने के लिए पुदीना के पत्ते और सिल्वर बॉल्स.

बनाने का तरीका

सबसे पहले राजगिरा लड्डू को 2 से 3 सेकंड के लिए माइक्रोवेव कर लें, अब टार्ट मोल्ड को तेल से ग्रीस कर लड्डू को दबाकर पूरे मोल्ड में फैला कर टार्ट का आकार दें और फ्रिज में 15 मिनट के लिए सेट होने के लिये रख दें. टार्ट सेट हो जाने पर इसे बाहर निकाल कर इसके अंदर के भाग में ब्रश से पिघली हुई चॉकलेट की परत लगाकर फिर से फ्रिज में सेट होने के लिए रख दें.

टॉपिंग के लिए-
लेमन कर्ड-

लेमन जूस में चीनी और लेमन ज़ेस्ट मिला कर उबालें और दूसरे बाउल में कॉर्नफ्लोर लेकर पानी डालकर स्लरी तैयार कर अलग रख लें. जैसे ही मिश्रण में उबाल आने लगे कॉर्नफ्लोर का मिश्रण डालकर लगातार चलाते हुए सेमी गाढ़ा मिश्रण तैयार कर बटर और फूड कलर डाल दें और अच्छे से मिलाकर एकसार करें. पैन को गैस से नीचे उतार कर कंडेन्स मिल्क डालकर अच्छे से मिला लें. लेमन कर्ड को ठंडा कर लें. सर्विग प्लेट में राजगिरा टार्ट रखकर ठंडा किया हुआ लेमन कर्ड भर कर ऊपर से पुदीना पत्ते और सिल्वर बॉल्स से सजा कर सर्व करें।( लेमन कर्ड सर्व करते समय ही भरें).

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सुशांत सिंह राजपूत ने की खुदकुशी, 34 साल की उम्र में दुनिया को कहा अलविदा

कभी टेलीविजन जगत से नाम कमाने वाले इस हैंडसम हीरो ने जल्दी ही फिल्मों में भी अपनी अदाकारी का रंग दिखा दिया था, तभी तो वे बड़ेबड़े बैनर की फिल्मों में बतौर हीरो दिखाई दिए. हिंदी फिल्म ‘धौनी : द अनटोल्ड स्टोरी’ में उन्होंने क्रिकेट स्टार महेंद्र सिंह धौनी का किरदार निभा कर खूब वाहवाही बटोरी थी. इस फिल्म ने 100 करोड़ से ज्यादा रुपए का कारोबार किया था. वैसे, सुशांत ने फिल्म ‘काय पो छे’ से हिंदी फिल्मों में ऐंट्री मारी थी.

सुशांत सिंह राजपूत को दर्शकों खासकर नौजवान पीढ़ी ने तब ज्यादा पसंद किया था, जब उन्होंने फिल्म ‘शुद्ध देसी रोमांस’ में परिणीति चोपड़ा और वाणी कपूर से प्यार की पेंगे बढ़ाई थीं. उस के बाद फिल्म ‘छिछोरे’ में तो उन की अदाकारी नए ही लैवल पर दिखी थी, जिस में उन्होंने एक कालेज के छिछोरे लड़के के अलावा ऐसे गंभीर पिता का किरदार निभाया था, जिस का बेटा मौत के मुंह में आखिरी सांसें गिन रहा था.

सुशांत सिंह राजपूत ने आखिरी फिल्म छिछोरे थी, जिसमें उन्होंने कौलेज के एक लड़के की परेशानियों को लेकर रोल किया था. सुशांत सिंह राजपूत ने फिल्म ‘केदारनाथ’ में काम किया था, जो सारा अली खान की पहली फिल्म थी. यह फिल्म ज्यादा कुछ खास तो नहीं चली थी’ पर इस में सुशांत के काम को सराहा गया था. इस के अलावा सुशांत ने ‘राब्ता’और ‘सोनचिरैया’ जैसी बड़ी फिल्मों में भी बतौर हीरो काम किया था.

पर अफसोस आज सुशांत सिंह राजपूत हमारे बीच नहीं हैं, पर सवाल तो उठता ही है कि 34 साल का एक उभरता सितारा यों अचानक अंधेरे में क्यों खो गया? ऐसा सुनने में आया है कि सुशांत को कोई मानसिक तनाव था, जिसे वे झेल नहीं पाए, पर यह तनाव उन की निजी जिंदगी का था या फिल्म कैरियर को ले कर था, यह अभी साफ नहीं हो पाया है.

वैसे इस से पहले हाल ही में सुशांत सिंह राजपूत की एक्स मैनेजर ने भी खुदकुशी कर ली थी. इस बात से भी वे बहुत दुखी नजर आए थे. अब खुद उन की मौत ने तो मानो फिल्म जगत को सदमा पहुंचा दिया है.

पिछले कुछ समय के भीतर इरफान खान, ऋषि कपूर जैसे दिग्गजों ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया है, पर कम उम्र के सुशांत सिंह राजपूत का यों खुद को खत्म कर लेना अफसोस से भरा है.सुशांत सिंह राजपूत, सुशांत सिंह राजपूत सुसाइड, सुशांत सिंह राजपूत मौत, सुशांत सिंह राजपूत फिल्म, सुशांत सिंह राजपूत आखिरी फिल्म, सुशांत सिंह राजपूत फैमिली, सुशांत सिंह राजपूत गर्लफ्रेंड, सुशांत सिंह राजपूत मैनेजर,

FILM REVIEW: जानें कैसी है अमिताभ बच्चन और आयुष्मान खुराना की फिल्म ‘गुलाबो सिताबो’

रेटिंग: डेढ़ स्टार

निर्माता: रॉनी लाहिरी व शील कुमार

निर्देशकः शुजीत सरकार 

कलाकारः अमिताभ बच्चन, आयुष्मान खुराना, विजय राज, ब्रजेंद्र काला, सृष्टि श्रीवास्तव व अन्य.

अवधिः दो घंटे चार मिनट

एक बहुत पुरानी कहावत है ‘‘बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा. ’’ अब यह कहावत फिल्म‘‘गुलाबो सिताबो’’ के निर्माताओं और निर्देशक शुजीत सरकार पर एकदम सटीक बैठती है. इनके लिए लॉकडाउन वरदान बनकर आया. लॉकडाउन के  चलते निर्माताओं ने ‘गुलाबो सिताबो’को ‘अमैजॉन प्राइम’ को बेचकर गंगा नहा लिया. अन्यथा सिनेमाघरों में इस फिल्म को दर्शक मिलने की कोई संभावनाएं नजर नहीं आती है. इतना ही नहीं ‘गुलाबो सिताबो’’ देखनें के बाद मल्टीप्लैक्स के मालिकों का इस फिल्म के निर्माताओं और निर्देशक के प्रति गुस्सा खत्म हो गया होगा.

‘‘गुलाबो सिताबो’’ देखकर कहीं से इस बात का अहसास नही होता कि इस फिल्म के निर्देशक वही शुजीत सरकार हैं, जो कि कभी ‘विक्की डोनर’,‘पीकू’ और ‘मद्रास कैफे’ जैसी फिल्में निर्देशित कर चुके हैं. सिनेमा में कला और मनोरंजन यह दो मूल तत्व होने चाहिए, अफसोस ‘गुलाबो सिताबो’में इन दोनों का घोर अभाव है. एक जर्जर हवेली के इर्द गिर्द कहानी को बुनकर कहानी व निर्देशक ने बेवजह पुरातत्व विभाग और कुछ वर्ष पहले एक महात्मा के कहने पर उत्तर प्रदेश के उन्नाव में हजारों टन सोने की तलाश में कई दिनों तक पुरातत्व विभाग ने जमीन की जो खुदाई की थी और परिणाम शून्य रहा था, उसे भी टाट के पैबंद की तरह कहानी का हिस्सा बना दिया है.

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कहानीः

फिल्म ‘‘गुलाबो सिताबो’’ की कहानी के केंद्र में लखनउ शहर में एक जर्जर हवेली ‘‘फातिमा महल’’ है. इस मंजिल के मालिक चुनमुन मिर्जा(अमिताभ बच्चन) हैं. जहां कई किराएदार हैं,जो कि हर माह तीस से सत्तर रूप किराया देते हैं. इनमें से एक किराएदार बांके (आयुष्मान खुराना) है,जो कि आटा पीसने की चक्की चलाते हैं. वह अपनी तीन बहनों व मां के साथ रहते हैं. बांके की बहन गुड्डू (सृष्टि श्रीवास्तव) चलता पुर्जा है,हवेली की छत पर टंकी के पीछे आए दिन किसी न किसी नए मर्द के साथ पायी जाती हैं. मिर्जा और बांके के बीच हर दिन नोकझोक होती रहती है. बांके को हर माह तीस रूपए देना भी अखरता है. जबकि मिर्जा साहब इस हवेली को अपने हाथ से जाने नही देना चाहते. इस हवेली की असली मालकिन तो मिर्जा की बेगम (फारुख जफर) हैं,मिर्जा ने इस हवेली के ही लालच में अपनी उम्र से सत्रह वर्ष बड़ी होने के बावजूद बेगम को भगाकर शादी की थी. अब मिर्जा साहब को अपनी बेगम की मौत का इंतजार है,जिससे फातिमा महल उनके नाम हो जाए. इसी बीच कई लोगों की नजर इस हवेली पर लग जाती है. जिसके चलते पुरातत्व विभाग के शुक्ला (विजय राज) और वकील (ब्रजेंद्र काला) का प्रवेश होता है. अंत में बेगम,मिर्जा को छोड़कर अपने उसी पुराने आषिक अब्दुल के पास पहुंच जाती हैं, जिनके पास से बेगम को कई वर्ष पहले भगाकर मिर्जा इस हवेली में ले आए थे. अब मिर्जा के साथ साथ सभी किराएदारों को इस हवेली से बाहर होना पड़ता है.

लेखनः

इस फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी जुही चतुर्वेदी लिखित कहानी व पटकथा है. जिन्हे शायद लखनउ की तहजीब, मकान मालिक व किराएदारों के हक वगैरह की कोई जानकारी नहीं है. जबकि इन्ही किरदारों के साथ अति बेहतरीन फिल्म बनायी जा सकती थी. पर वह किरदारों का चरित्र चित्रण, उनके बीच की नोकझोक व रिश्ते में मानवीय भावनाओं व पहलुओं को गढ़ने में बुरी तरह से विफल रही हैं. मिर्जा और बांके के बीच की नोकझोंक को अहमियत देकर इसे अच्छे ढंग से लिखा जाता,तो शायद फिल्म ठीक हो जाती, मगर लेखिका ने इस नोकझोंक से ज्यादा महत्व पुरातत्व विभाग व कानूनी पचड़ों को दे दिया, जिससे फिल्म ज्यादा निराश करती है. इसकी मूल वजह यही है कि जुही चतुर्वेदी किसी भी किरदार के चरित्र चित्रण के साथ न्याय करने में असफल रही हैं.

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निर्देशनः

कभी शुजीत सरकार एक बेहतरीन निर्देशक के तौर पर उभरे थे,मगर उन्होने अपनी पिछली फिल्म ‘अक्टूबर’ से ही संकेत दे दिए थे कि अब सिनेमा व कला पर से उनकी पकड़ ढीली होती जा रही है. ‘गुलाबो सिताबो’ को तो उन्होने बेमन ही बनाया है. फिल्म शुरू होने के बीस मिनट बाद ही फिल्म पर से निर्देशक शुजीत सरकार अपनी पकड़ खो देते है. बीस मिनट बाद ही फिल्म इतनी बोर करने लगती है कि दर्शक उसे बंद कर देने में ही खुद की भलाई समक्षता है. फिल्म के अंतिम पच्चीस मिनट जरुर दर्शक को बांधते हैं.

अभिनयः

इस फिल्म में दो दिग्गज कलाकार हैं अमिताभ बच्चन और आयुष्मान खुराना. दोनों कलाकार बेदम पटकथा और कमजोर चरित्र चित्रण वाले किरदारों को अपने अभिनय के बल पर उंचा उठाने का प्रयास करते हैं,मगर कब तक अमिताभ बच्चन की गरीबी और उनकी उम्र को दर्शाने में जितना योगदान प्रोस्थेटिक मेकअप का है,उतना ही उनकी अपनी अभिनय क्षमता का भी है. उन्होने चाल ढाल आदि पर काफी मेहनत की है. जब वह दृश्य में आते हैं,तो दर्शक को कुछ सकून मिलता है. आयुष्मान खुराना ने भी अपनी तरफ से बेहतर करने की कोशिश की है.  आयुष्मान खुराना की इस फिल्म को करने की एकमात्र उपलब्धि यही रही कि उन्हे अमिताभ बच्चन के साथ काम करने का अवसर मिल गया. अन्यथा यह उनके कैरियर की बेकार फिल्म है. इसके बावजूद फिल्म संभल नहीं पाती. सृष्टि श्रीवास्तव,ब्रजेंद्र काला व विजय राज ठीक ठाक रहे.

हर दिन चमत्कार गढ़ते बिग बी, कोई यूं ही मिलेनियम स्टार नहीं हो जाता

अमिताभ बच्चन कल भी सुपरस्टार थे, आज भी सुपरस्टार हैं और जब तक जीएंगे, तब तक सुपरस्टार ही रहेंगे. उनसे सुपरस्टार होने का यह श्रेय कोई नहीं छीन सकता. क्योंकि इतना कुछ कर चुकने के बाद आज भी वह हर दिन अपने अभिनय से चमत्कार गढ़ते हैं. उनके फिल्म गुलाबो-सिताबों के लुक को देखकर हिंदुस्तान ही नहीं पूरी दुनिया के बड़े बड़े सितारे दंग हैं, उनकी सीखने की अद्भुत ललक और कुछ भी कर गुजरने के समर्पण को सैल्यूट कर रहे हैं. एक किस्सा इन दिनों खूब आपस में सुना सुनाया जा रहा है, पता नहीं वो सही है या गाॅसिप. लेकिन कहा जा रहा है कि जिस समय अमिताभ बच्चन गुलाबो-सिताबों की लखनऊ में शूटिंग कर रहे थे, तो एक दिन उनके निर्देशक शूजित सरकार ही उन्हें नहीं पहचान पाये. भले यह कुछ क्षणों के लिए ही हुआ हो, लेकिन यह अमिताभ की अदाकारी का अद्भुत नमूना था.

अभिनय, वाइसओवर, विज्ञापन, अभिव्यक्ति का शायद ही कोई ऐसा प्लेटफाॅर्म हो, जहां अमिताभ बच्चन 78 साल की उम्र में भी छाये हुए न हों. उनका सबसे नया चमत्कार है- गूगल मैप्स की आवाज होना. जी, हां! अमिताभ बच्चन अब आपको दाएं मुड़ो, बाएं मुड़ो, सीधे चलो, रूको, नीचे उतरो. यह सब भी कहते मिलेंगे. क्योंकि अमिताभ बच्चन ने गूगल मैप्स में आवाज दी है. कभी कभी हैरानी होती है और लगता है कुछ घटनाएं इतिहास में अपवाद होने के लिए होती है. खासकर यह बात तब दिमाग में आती है, जब हमें यह पता चलता है कि एक जमाने में अमिताभ बच्चन को रेडियो इंटरव्यू में फेल कर दिया गया था, क्योंकि आॅडिशन में उनकी आवाज को रेडियो के लिए परफेक्ट नहीं माना गया था. आज उन्हीं अमिताभ को पूरी दुनिया आवाज का जादूगर कहती है.

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एक और खास बात जिसे शायद बहुत लोग न जानते हों, किसी भी देश में, किसी भी समय, किसी बड़ी से बड़ी शख्सियत की आवाज को भी उस देश के 50 फीसदी से ज्यादा लोग नहीं समझते. हिंदुस्तान के इतिहास में अभी तक सिर्फ चार शख्सियतें ऐसी हुई हैं जिनकी आवाज को  अपने देश के लोग सबसे ज्यादा पहचानते रहे हैं. इनमें पहली आवाज है महात्मा गांधी की, दूसरी जवाहरलाल नेहरू की, तीसरी इंदिरा गांधी की और चैथी नरेंद्र मोदी की. लेकिन एक शख्स जिसकी आवाज को इन सब लोगों से भी ज्यादा लोग पहचानते हैं वे हैं अमिताभ बच्चन. देश का कोई भी कोना हो, चाहे वो तेलगूभाषी हो या बांग्लाभाषी, चाहे डोगरी बोलने वाले लोग हों या भोजपुरी. अमिताभ बच्चन की आवाज हर कोई पहचानता है. उनकी तारीफ की यह एक ऐसी नायाब खूबी है, जिसका मुकाबला और कोई नहीं कर सकता.
ऐसे में लगता है गूगल मैप्स को बहुत देर हो गई. उसे तो और पहले ही दुनिया की इस विलक्षण आवाज का इस्तेमाल करना चाहिए था. लेकिन जरा सोचिए इस देश के तमाम बड़े आवाज इस्तेमाल करने वाले संस्थानों को चाहे वह रेलवे हो या सिविल ऐविएशन अथाॅर्टी. इन्हें कभी भी यह ख्याल नहीं आया कि हमारे पास आवाज का दुर्लभ जादूगर है, जिसकी आवाज का इस्तेमाल करके वे अपनी खूबी पर चार चांद लगा लेंगे. भले विविध भारती की तरह इन संस्थानों ने कभी अमिताभ बच्चन को रिजेक्ट न किया हो, लेकिन अगर इन संस्थानों की कल्पनाशीलता अमिताभ बच्चन तक नहीं पहुंची तो ये भी एक किस्म का रिजेक्शन ही है. अमिताभ बच्चन  बाॅलीवुड मंे अपने 50 साल पूरे कर चुके हैं. उन्होंने फिल्म सात हिंदुस्तानी के साथ अपने कॅरियर की शुरुआत की थी. इस फिल्म में वो अनवर अली के किरदार में थे और अपनी पहली ही फिल्म में बेस्ट न्यू कमर का उन्हें नेशनल अवार्ड मिला था.

अमिताभ बच्चन सचमुच में चमत्कार दर चमत्कार या यूं कहें चमत्कारों की श्रृंखला हैं. चाहे उनके डायलाॅग डिलीवरी का अंदाज हो, चाहे गुस्से में उनके नथुनों के फड़फड़ाने का रिद्म हो, फाइटिंग का उनका अपना विश्वसनीय और दर्शनीय स्टाइल हो या फिर सबसे अलग झूमने की अदा वाला डांस. अमिताभ बच्चन फिल्म इंडस्ट्री में हमेशा भीड़ में अलग दिखते हैं. उन्हें कैमरे से सचमुच बहुत प्यार है. उनके अभिनय को लेकर समर्पण का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अब तक वो एक दो नहीं कई बार शूटिंग करने के दौरान मौत के मुंह तक जा चुके हैं. इसके बाद भी उनमें न तो शूटिंग को लेकर कभी कोई डर व्याप्त हुआ और न ही वो शूटिंग के बिना अपने जीवन की कल्पना कर सकते हैं. आमिर खान से लेकर सलमान खान तक उनके दीवाने हैं और अमिताभ बच्चन की पर्सनैलिटी इन सब पर भारी पड़ती है.
अमिताभ बच्चन जिस भी जगह होते हैं या तो कहानी बन रहे होते हैं या कहानी बना रहे होते हैं. उनकी असफलता भी एक कहानी होती है. एबीसीएल में जिस तरह वह डूबकर उबरें, वह अपने आपमें सीखों का एक भरापूरा उपन्यास है. जिस तरह से अमिताभ बच्चन ने अपनी दूसरी पारी को मल्टीडाइमेंशनल बनाया है, वो इस बात का सबूत है कि संभावनाएं कभी खत्म नहीं होतीं और यह भी कि कोई यूं ही मिलेनियम स्टार नहीं हो जाता.

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