#coronavirus: जानिए हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के बारे में रोचक जानकारी

आजकल एक दवा का नाम काफी चर्चा में है, और वो है हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (Hydroxychloroquine). भारत इसके निर्माण-निर्यात में विश्व में अग्रणीय स्थान पर आता है. कोरोना वायरस के हालात को देखते हुए मलेरिया के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन आजकल खबरों में बनी हुई है क्योंकि यह दवा अर्थराइटिस, मलेरिया और काफी हद तक COVID-19 के इलाज में भी प्रयोग में आ रही है.

आज कई सारे देश इस दवाई की मांग कर रहे हैं. भारत सरकार अब उन जी-20 देशों को, जिन्हें इसकी ज़रूरत है और जिन्होंने प्रार्थना की है, ये दवा उपलब्ध करवा रही है. हालांकि सरकार की प्राथमिकता घरेलू जरूरतों को पूरा करना है.

भारत में मौजूद गरीबी और असंख्य लोगों की अनेकोनेक बीमारियों के कारण सरकारों की पॉलिसी ऐसी रही कि जनता का ध्यान पहले रखा गया. परंतु भारत जैसे देश में अच्छी गुणवत्ता की किन्तु सस्ती दवाइयाँ मिलना एक चैलेंज रहा है. इसका उपाय ढूँढा हमारे डॉक्टरों ने जिन्होंने रिवर्स-इंजीनीयरिंग करके जेनरिक दवाइयाँ ईजाद कीं. इसका परिणाम यह रहा कि आज भारत को विश्व की फार्मेसी कहा जाता है. भारत में इन दवाइयों का आविष्कार हुआ हो या नहीं, किन्तु यहाँ इन दवाइयों का उत्पाद भारी मात्रा में होता है. और फिर ये दवाइयाँ विश्व भर में निर्यात की जाती हैं. यही कारण है कि आज की कोरोना वायरस की स्थिति में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन पाने के लिए सारे विश्व की नज़र भारत पर आकर टिक गयी है.

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हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का उत्पाद करनेवाली कुछ फार्मासूटिकल कंपनियाँ हैं इपका लैब्स, ज़ाइडस, सिपला, एलकेम, टौरेंट, और माइक्रो लैब्स. इनमें से मुंबई स्थित इपका लैब्स और ज़ाइडस सबसे बड़ी उत्पादक हैं. इपका लैब्स भारत सरकार को करीब 10 करोड़ हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवाइयाँ, और साथ ही 3-4 करोड़ राज्यों के लिए भी बनाकर दे रही है. इपका लैब्स के जाइंट एम डी श्रीमान ए के जैन का कहना है कि इस स्थिति में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन बनाने के लिए कुछ सोल्वेंट्स और केमिकल्स में बदलाव लाने की आवश्यकता है जिससे इसको बनाने की लागत में वृद्धि होगी किन्तु भारी माँग की वजह से दवा की कीमतें शायद ही बढ़ाई जाएंगी.

आज अमेरिका व यूरोपीय देशों द्वारा भारत से दवाइयों की ताबड़तोड़ खरीदी की खबरें सामने आ रही हैं. करीब 30 देशों ने भारत से हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन की विनती की है. भारत ने अपनी खपत और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन की उपलब्धता को देखते हुए 25 देशों की मांग को स्वीकार कर लिया है. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प, श्रीलंका, ब्राज़ील, जर्मनी, ब्रितान आदि के राष्ट्रपतियों और प्रधान मंत्रियों ने अपने-अपने ट्वीट में भारत को धन्यवाद दिया है.

क्या आपको इस दवा का इतिहास पता है?

कई वर्षों तक कुनैन को दक्षिण अमेरिकी पेड़ सिनकोना पौधे की छाल से प्राप्त किया गया जो मुख्य रूप से अमेज़न के वर्षावन में पाया जाता है. इस छाल का पेरु, इक्वाडोर और कोलम्बिया के पूर्व-कोलम्बियाई संस्कृतियों द्वारा इसके उपचार और औषधीय प्रभावों के लिए बहुत उपयोग किया गया था. कुनैन एक प्राकृतिक श्वेत क्रिस्टलाइन एलक्लाइड पदार्थ होता है, जिसमें ज्वर रोधी, मलेरिया रोधी, दर्दनाशक (एनल्जेसिक), सूजन रोधी गुण होते हैं.

हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के पीछे एक अत्यंत रोचक कथा है. इसकी कहानी सन 1638 में शुरू हुई जब पेरु के वाइसरॉय की पत्नी – काउंटेस ऑफ चिंकोना को मलेरिया ने जकड़ लिया. सर्वाधिक मान्यता प्राप्त इलाज करने के बजाय उनकी चिकित्सा में एक पेड़ की छाल का प्रयोग किया गया. (बाद में इस पेड़ का नाम उन्हीं के नाम पर चिंकोना पेड़ रखा गया.) इस पेड़ की छाल से काउंटेस ऑफ चिंकोना को नाटकीय रूप से आराम मिला. जब  पेरु के वाइसरॉय स्पेन लौटे तब वो अपने साथ ढेर मात्रा में इस पेड़ की छाल का पाउडर लेते आए जिसका नाम जेसुइट पाउडर पड़ा.

इस छाल का उपयोग प्राकृतिक उपचार के रूप में विभिन्न प्रकार की स्थितियों के लिए किया जाने लगा, खास तौर पर ज्वरनाशक. इसके सभी उपयोग के ऊपर प्रकाश डाला गया. इस कारण से यह सोने की कीमत पर बेचा जाने लगा और इसकी मांग अधिक होने लगी.

ईसाई मिशन से जुड़े कुछ लोग इसे दक्षिण अमेरिका से लेकर आए थे. पहले-पहल उन्होंने पाया कि यह मलेरिया के इलाज में कारगर होती है, किन्तु बाद में यह ज्ञात होने पर कि यह कुछ अन्य रोगों के उपचार में भी काम आ सकती है, उन्होंने इसे बड़े पैमाने पर दक्षिण अमेरिका से लाना शुरू कर दिया.

मूल शुद्ध रूप में कुनैन एक सफेद रंग का क्रिस्टल युक्त पाउडर होता है, जिसका स्वाद कड़वा होता है. ये कड़वा स्वाद ही इसकी पहचान बन चुका है. इस कारण इसे टॉनिक वाटर में भी मिलाया जाता है और अन्य पेय पदार्थों में मिलाया जाता है.

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कुनैन को पेड़ की छाल से अलग होकर अपनी पहचान बनाने में लगभग 2 शताब्दियाँ लगीं. बीसवीं शताब्दी तक कुनैन का प्रयोग अमेरिकी राज्यों में लोक-दवा के तौर पर, मलेरिया का उपचार करने के लिए और सामान्य बीमारियों के लिए किया जाने लगा.

क्लोरोक्वीन का आविष्कार सन 1934 में अमेरिकी दवा कंपनी बेयर द्वारा किया गया. किन्तु इसमें मौजूद विषाक्तताओं के कारण इसे अगले दशक तक बाज़ार में उपलब्ध नहीं करवाया गया. लेकिन दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान, सन 1940 के दशक में, क्लोरोक्वीन का प्रयोग मलेरिया के उपचार के लिए पेसिफिक में लड़ रहे अमेरिकी सैनिकों के लिए अत्यंत आवश्यक हो गया. इसके बाद सन 1945 में इसके यौजिक में बदलाव करके हाइड्रोक्सिलिन द्वारा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन उत्पन्न की गयी जो कम विषाक्त थी, और आज तक इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया.

आज हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का प्रयोग जोड़ों के दर्द के इलाज में काफी किया जाता है. ये एक ऐसी औषधि है जो कई तरह के उपचारों में काम आती है जैसे चर्मरोग, ऑटोइम्यून कोऔग्लोपैथी, गठिया, संधिवात गठिया, संधिरोग आदि.

दिल्ली के ड्रग्स कंट्रोल ऑफिसर अतुल नासा ने कहा कि जब से स्वास्थ्यकर्मियों और कोविड-19 के संपर्क में आने वाले मरीजों को हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन देने की खबर आई थी, तब से लोग इस दवा को खरीदने के लिए दवा की दुकानों पर पहुंचने लगे थे. जबकि इस दवा की जरूरत सभी को नहीं है. उन्होंने कहा कि इस दवा को 15 साल से कम उम्र या 60 साल से ज्यादा आयु वाले लोगों को नहीं दिया जा सकता क्योंकि इसके साइड इफेक्ट्स भी हैं.

एक कप कौफी: भाग-4

मेरा मकसद केवल तुम्हें सच से रूबरू कराना था.’’ गौतमी की कही बात ने अनुप्रिया के दिल को और भी अधिक छलनी कर के उसे आत्मग्लानि के बोझ तले दबा दिया. उसे यह सोच कर शर्म आ रही थी कि वह इस भली औरत का घर तोड़ने चली थी और यह औरत उस पर दोषारोपण करने के बजाय यहां बैठ कर उस से सहानुभूति प्रकट कर रही है. साथ ही साथ उसे अपनेआप पर भी तरस आ रहा था. उस में अब फिर से एकबार खुद को समेटने की ताकत बाकी नहीं थी.

गौतमी ने उस की हालत देख कर उसे दिलासा देने की कोशिश की, ‘‘अनुप्रिया, तुम हिम्मत मत हारो. उस वक्त तुम जैसी मानसिक स्थिति में थीं, ऐसे पराग तो क्या उस के जैसा कोई भी विकृत मानसिकता का पुरुष तुम्हारा फायदा उठा सकता था. मैं यह नहीं कह रही हूं कि जो कुछ हुआ उस में तुम्हारा कोई दोष नहीं है. गलती तुम से भी हुई है. तुम्हें एक बार धोखा खाने के बाद भी इस तरह बिना कुछ सोचेसमझे और आंख मूंद कर पराग पर विश्वास नहीं करना चाहिए था. पर अब उस गलती पर पछता कर या पराग के लिए रो कर अपने वक्त और आंसू बरबाद मत करो, बल्कि इस गलती से सबक ले कर जिंदगी में आगे बढ़ो.’’ ‘‘मुझ में इतनी हिम्मत नहीं है गौतमी…’’

‘‘ऐसा न कहो अनुप्रिया. तुम्हें अपनी जिंदगी में पराग जैसे आदमी की जरूरत नहीं है. अपना स्तर इतना नीचे मत गिरने दो. तुम सुंदर हो, पढ़ीलिखी व स्मार्ट हो. अपना सहारा खुद बनना सीखो. आजकल तलाकशुदा होना या दूसरी शादी करना कोई बुरी बात नहीं है. खुद को थोड़ा वक्त दो और यकीन करो कि तुम्हारी जिंदगी में भी कोई न कोई जरूर आएगा, जो तुम्हारे और अपने रिश्ते को नाम देगा, तुम्हें पत्नी होने का सम्मान देगा,’’ गौतमी ने अनुप्रिया को धैर्य बंधाते हुए कहा.

गौतमी की बात सुन कर अनुप्रिया न चाहते हुए भी मुसकरा उठी और फिर अपने आंसू पोंछते हुए बोली, ‘‘मैं कितना कुछ सोच कर यहां आई थी. मैं आप को अपने रास्ते से हटाना चाहती थी और आप ने मुझे ही सही रास्ता दिखा दिया. आप उम्र में मुझ से बड़ी हैं. अगर आप को एतराज न हो तो क्या मैं आप को दीदी कह सकती हूं?’’ गौतमी के मुसकरा कर सहमति देने पर उस ने हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘मुझे माफ कर दो दीदी. मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई. मैं भी आप के साथ वही करने जा रही थी जो कभी निदा ने मेरे साथ किया था.’’

गौतमी ने आगे बढ़ कर अनुप्रिया के जुड़े हाथों को थाम कर कहा, ‘‘तुम्हें माफी मांगने की जरूरत नहीं है अनुप्रिया. बस जो मैं ने कहा है उस पर विचार करना. सिर उठा कर अपने जीवन में आगे बढ़ने का प्रयास करना.’’ ‘‘मैं वादा करती हूं कि आज के बाद मेरी जिंदगी में पराग या उस के जैसे किसी भी आदमी के लिए कोई जगह नहीं होगी. मैं आगरा वापस चली जाऊंगी. अपने मम्मीपापा के पास रह कर कोई नौकरी ढूंढ़ लूंगी.’’

आज अनुप्रिया खुद को बेहद हलका महसूस कर रही थी. ऐसा लग रहा था मानो सीने से कोई बोझ उतर गया हो. वह भले ही अपने मुंह से खुद को सही कहती आई हो पर उस के मन में बैठा चोर तो यह जानता था कि वह गलत कर रही है और अब वह दुनिया से अपराधी की तरह छिप कर नहीं, इसी तरह खुल कर जीना चाहती थी. गौतमी के शब्दों ने उस के भीतर एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार कर दिया था. उस ने गौतमी से आग्रह कर के फिर कौफी का और्डर किया और इधरउधर की बातें करने लगीं. कौफी पीते हुए अनुप्रिया गौतमी को देख कर यह सोच रही थी कि यदि 2 वर्ष पहले वह भी इसी तरह हिम्मत जुटा कर तरुण और निदा के सामने दीवार बन कर खड़ी हो गई होती तो आज शायद उस की स्थिति कुछ और ही होती. उस की आंखों में शर्म व ग्लानि के बजाय स्वाभिमान व जीत की चमक होती. वह अपनी शादी को बचा पाती या नहीं यह तो वक्त ही बताता पर कम से कम मन में यह संतोष तो होता कि उस ने अपने रिश्ते को बचाने का पूरा प्रयास किया और आज वह इतनी बड़ी गलती कर के गौतमी के सामने शर्मिंदा होने से बच जाती. काश, उस का दिल व सोच का दायरा गौतमी की तरह बड़ा होता. आज गौतमी के साथ पी कौफी ने जिंदगी व रिश्तों के प्रति उस की सोच ही बदल कर रख दी थी. ‘‘अच्छा, अब मैं चलती हूं. सिद्धार्थ को मांजी के पास छोड़ कर आई हूं. उस ने परेशान कर रखा होगा,’’ कहते हुए गौतमी उठ खड़ी हुई.

गौतमी जाने के लिए मुड़ी ही थी कि अनुप्रिया ने उसे रोका, ‘‘गौतमी दीदी.’’ गौतमी के पलट कर देखने पर उस ने वह प्रश्न पूछ लिया जो उसे बेचैन कर रहा था, ‘‘आप ने पराग को इतनी आसानी से कैसे माफ कर दिया? सिद्धार्थ के लिए?’’

‘‘मैं ने ऐसा कब कहा कि मैं ने पराग को माफ कर दिया है?’’ ‘‘पर आप ने मुझे तो माफ कर दिया है, फिर पराग को क्यों नहीं?’’

‘‘तुम्हारी बात अलग है अनुप्रिया. तुम दोषी के साथ पीडि़ता भी थीं. धोखा तो तुम ने भी खाया है, इसलिए मैं ने तुम्हें माफ कर दिया. तुम मेरी कुछ नहीं लगती थीं पर पराग तो मेरा अपना था न. उस ने जानबूझ कर मुझे धोखा दिया. यदि मैं ने उसे रंगे हाथों नहीं पकड़ा होता तो वह आज भी मुझ से छिप कर तुम से मिल रहा होता.’’ ‘‘पर अब तो वह अपना ट्रांसफर करा रहा है…मेरा यकीन मानिए, अब हम दोनों कभी नहीं मिलेंगे. क्या अब भी आप उसे माफ नहीं करेंगी?’’

गौतमी ने अनुप्रिया की ओर डबडबाई आंखों से देख कर कहा, ‘‘तुम्हें क्या लगता है कि तुम पराग की पहली और आखिरी गलती हो? तुम से पहले भी वह ऐसी गलती और पश्चाताप कर चुका है. उस ने मुझ से माफी केवल इसलिए मांगी है, क्योंकि वह पकड़ा गया है और रही बात ट्रांसफर की तो वह भी उस का नाटक ही है. उसे सुधरना होता तो पहली बार गलती पकड़े जाने पर ही सुधर गया होता. पराग जैसे फरेबी आदमी अपने मुखौटे बदल सकते हैं, फितरत नहीं. आज मैं उसे फिर माफ कर दूंगी तो वह एक बार फिर से यही सब करेगा और पकड़े जाने पर मुझ से माफी मांग लेगा. इस तरह तो यह सिलसिला यों ही चलता रहेगा. मेरा स्वाभिमान मुझे अब पराग को माफ करने की इजाजत नहीं देता है.’’

जिस गौतमी की आंखों में अनुप्रिया ने अब तक केवल आत्मविश्वास व हिम्मत को देखा था, उन में इतना दर्द समाया होगा उस ने यह कल्पना नहीं की थी. उस ने गौतमी की तकलीफ को अपने भीतर महसूस करते हुए पूछा, ‘‘पर दीदी, ट्रांसफर… आप यहां अकेली सिद्धार्थ को कैसे संभालेंगी?’’

‘‘पराग कोई दूध पीता बच्चा नहीं, जो अकेला किसी और शहर में नहीं रह पाएगा. उसे यहां रहते हुए भी अपनी बीवी और बच्चे की जरूरत कहां थी. जहां जाएगा वहां एक और अनुप्रिया या निदा ढूंढ़ ही लेगा. मुझे और सिद्धार्थ को पराग की जरूरत नहीं है. मैं पहले भी सिद्धार्थ को अकेली ही पाल रही थी, आगे भी पाल लूंगी. ‘‘पढ़ीलिखी हूं, बेहतर ढंग से अपनी और सिद्धार्थ की जिंदगी को संवार कर उसे एक अच्छा भविष्य दे सकती हूं. आज तक मैं ने पराग को और अपने रिश्ते को बदले में कुछ चाहे बिना अपना सबकुछ दिया है, पर अब मेरे पास उसे देने के लिए कुछ नहीं है, माफी भी नहीं,’’ कह कर गौतमी तेज कदमों से चलती हुई कैफे से बाहर निकल गई और पीछे रह गई अनुप्रिया जो अब भी कभी कैफे के दरवाजे को तो कभी मेज पर पड़े कौफी के कप को देख रही थी.

#lockdown: फैमिली के लिए बनाएं Cheese आलू कटलेट

अगर आप लौकलाउन में अपनी फैमिली के लिए स्नैक्स में कुछ टेस्टी और हेल्दी डिश बनाना चाहते हैं. तो बनाए अपनी फैमिली के लिए चीज आलू कटलेट. ये कम समय में बनने वाली डिश है, जो बच्चों को पसंद आएगी.

हमें चाहिए

–  3-4 उबले आलू

–  2-3 हरीमिर्चें

–  1/4 कप धनियापत्ती कटी

–  1/2 छोटा चम्मच अमचूर पाउडर

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–  1/2 छोटा चम्मच धनिया पाउडर

–  1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च कुटी

–  नमक स्वादानुसार.

भरावन के लिए चाहिए

–  3 बड़े चम्मच चीज स्प्रैड

–  2 बड़े चम्मच कसा पनीर

–  तेल तलने के लिए

–  3 बड़े चम्मच मैदा

–  1 कप ब्रैडक्रंब्स.

बनाने का तरीका

उबले आलुओं को छील कर कद्दूकस कर लें. भरावन की सामग्री छोड़ बाकी सारी सामग्री एकसाथ मिला कर अच्छी तरह गूंध लें. अब इस के मध्यम आकार के गोले बना लें. अब 1-1 बौल्स लें. उस में उंगली से एक छेद बना उस में पनीर और चीज स्प्रैड को मिला कर बना मिश्रण भरें और सावधानी से छेद बंद कर दें. मैदे का घोल बना लें. बौल्स को मैदे के घोल में डुबो कर ब्रैडक्रंब्स में लपेटे गरम तेल में तल कर चटनी के साथ परोसें.

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प्रयास: भाग-3

मगर पार्थ अगली सुबह नहीं आए. अब तक मैं यह तो जान ही चुकी थी कि मैं अपना बच्चा खो चुकी हूं. लेकिन उस का कारण नहीं समझ पा रही थी. न तो मैं शारीरिक रूप से कमजोर थी और न ही कोई मानसिक परेशानी थी मुझे. कोई चोट भी नहीं पहुंची थी. फिर वह क्या चीज थी जिस ने मुझ से मेरा बच्चा छीन लिया?

2 दिन बाद पार्थ मुझ से मिलने आए. न जाने क्यों मुझ से नजरें चुरा रहे थे. पिछले कुछ महीनों का दुलारस्नेह सब गायब था. मांजी के व्यवहार में भी एक अजीब सी झिझक मुझे हर पल महसूस हो रही थी.

खैर, मुझे अस्पताल से छुट्टी मिलने के कुछ ही दिन बाद मांजी चली गईं, लेकिन मेरे और पार्थ के बीच की खामोशी गायब होने का नाम ही नहीं ले रही थी. शायद मुझ से ज्यादा पार्थ उस बच्चे को ले कर उत्साहित थे. कई बार मैं ने बात करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने कभी अपनी नाराजगी को ले कर मुंह नहीं खोला.

उस दिन से ले कर आज तक कुछ नहीं बदला था. एक ही घर में हम 2 अजनबियों की तरह रह रहे थे. अब न तो पार्थ का गुस्सैल रूप दिखता था और न ही स्नेहिल. अजीब से कवच में छिप गए थे पार्थ.

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अचानक आई तेज खांसी ने मेरी विचारशृंखला को तोड़ दिया. पानी पीने के लिए उठी तो छाती में दर्द महसूस हुआ. ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने जकड़ लिया हो. पानी पीपी कर जैसेतैसे रात काटी. सुबह उठी, तब भी बदन में हरारत हो रही थी. बिस्तर पर पड़े रहने से और बीमार पड़ूंगी, यह सोच कर उठ खड़ी हुई. पार्थ के लिए नाश्ता बनाते वक्त भी मैं खांस रही थी.

‘‘तुम्हें काफी दिनों से खांसी है. पूरी रात खांसती रहती हो,’’ नाश्ते की टेबल पर पार्थ ने कहा.

‘‘उन की आवाज सुन कर मैं लगभग चौंक पड़ी. पिछले कुछ दिनों से उन की आवाज ही भूल चुकी थी मैं.’’

‘‘बस मामूली सी है, ठीक हो जाएगी,’’ मैं ने हलकी मुसकान के साथ कहा.

‘‘कितनी थकी हुई लग रही हो तुम? कितनी रातों से नहीं सोई हो?’’ पार्थ ने माथा छू कर कहा, ‘‘अरे, तुम तो बुखार से तप रही हो. चलो, अभी डाक्टर के पास चलते हैं.’’

‘‘लेकिन पार्थ…’’ मैं ने कुछ बोलने की कोशिश की, लेकिन पार्थ नाश्ता बीच में ही छोड़ कर खड़े हो चुके थे.

गाड़ी चलाते वक्त पार्थ के चेहरे पर फिर से वही परेशानी. मेरे लिए चिंता दिख रही थी. मेरा बीमार शरीर भी उन की इस फिक्र को महसूस कर आनंदित हो उठा.

जांच के बाद डाक्टर ने कई टैस्ट लिख दिए. इधर पार्थ मेरे लिए इधरउधर भागदौड़ कर रहे थे, उधर मैं उन की इस भागदौड़ पर निहाल हुए जा रही थी. सूई के नाम से ही घबराने वाली मैं ब्लड टैस्ट के वक्त जरा भी नहीं कसमसाई. मैं तो पूरा वक्त बस पार्थ को निहारती रही थी.

मेरी रिपोर्ट अगले दिन आनी थी. पार्थ मुझे ले कर घर आ गए. औफिस में फोन कर के 3 दिन की छुट्टी ले ली. मेरे औफिस में भी मेरे बीमार होने की सूचना दे दी.

‘‘कितने दिन औफिस नहीं जाओगे पार्थ? मैं घर का काम तो कर ही सकती हूं,’’ पार्थ को चाय बनाते हुए देख मैं सोफे से उठने लगी.

‘‘चुपचाप लेटी रहो. मुझे पता है मैं क्या कर रहा हूं,’’ उन्होंने मुझे झिड़कते हुए कहा.

‘‘अच्छा बाबा… मुझे काम मत करने दो… मांजी को बुला लो,’’ मैं ने सुझाव दिया.

कुछ देर तक पार्थ ने अपनी नजरें नहीं उठाईं. फिर दबे स्वर में कहा, ‘‘नहीं, मां को बेवजह परेशान करने का कोई मतलब नहीं है. मैं बाई का इंतजाम करता हूं.’’

‘‘बाई? पार्थ ठीक तो है?’’ मैं ने सोचा.

एक बार जब मैं ने झाड़ूपोंछे के लिए बाई का जिक्र किया था तो पार्थ भड़क उठे थे, ‘‘बाइयां घर का काम बिगाड़ती हैं. आज तक तो तुम्हें घर का काम करने में कोई परेशानी नहीं हुई थी. अब अचानक क्या दिक्कत आ गई?’’

‘‘पार्थ, तुम्हें पता है न मुझे सर्वाइकल पेन रहता है. दर्द के कारण रात भर सो नहीं पाती,’’ मैं ने जिद की.

‘‘देखो श्रेया, अभी हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं कि घर में बाई लगा सकें,’’ उन्होंने अपना रुख नर्म करते हुए कहा.

मगर मैं ने पूरी प्लानिंग कर रखी थी. अत: बोली, ‘‘अरे, उस की तनख्वाह मैं अपने पैसों से दे दूंगी.’’

मेरी बात सुनते ही पार्थ का पारा चढ़ गया. बोले, ‘‘अच्छा, अब तुम मुझे अपने पैसों का रोब दिखाओगी?’’

‘‘नहीं पार्थ, ऐसा नहीं है,’’ मैं ने सकपकाते हुए कहा.

‘‘इस घर में कोई बाई नहीं आएगी. अगर जरूरत पड़ी तो मां को बुला लेंगे,’’ उन्होंने करवट लेते हुए कहा.

आज वही पार्थ मांजी को बुलाने के बजाय बाई रखने पर जोर दे रहे थे. पिछले कुछ दिनों से पार्थ सिर्फ मुझ से ही नहीं मांजी से भी कटने लगे थे. अब तो मांजी का फोन आने पर भी संक्षिप्त बात ही करते थे.

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कहां, क्या गड़बड़ थी मुझे समझ नहीं आ रहा था. अपना बच्चा खोने के कारण मुझे कुसूरवार मान कर रूखा व्यवहार करना समझ आता था, लेकिन मांजी से उन की नाराजगी को मैं समझ नहीं पा रही थी.

अगली सुबह अस्पताल जाने से पहले ही मांजी का फोन आ गया. पार्थ बाथरूम में थे तो मैं ने ही फोन उठाया.

‘‘हैलो, हां श्रेया कैसी हो बेटा?’’ मेरी आवाज सुनते ही मांजी ने पूछा.

‘‘ठीक हूं मांजी. आप कैसी हैं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘बस बाबा की कृपा है बेटा. पार्थ से बात कराना जरा.’’

तभी पार्थ बाथरूम से निकल आए, तो मैं ने मोबाइल उन के हाथ में थमा दिया. उन की बातचीत से तो नहीं, लेकिन इन के स्वर की उलझन से मुझे कुछ अंदेशा हुआ, ‘‘क्या हुआ? मांजी किसी परेशानी में हैं क्या?’’ पार्थ के फोन काटने के बाद मैं ने पूछा.

‘‘अरे, उन्हें कहां कोई परेशानी हो सकती है. उन की रक्षा के लिए तो दुनिया भर के बाबा हैं न,’’ उन्होंने कड़वाहट से उत्तर दिया.

‘‘वह उन की आस्था है पार्थ. इस में इतना नाराज होने की क्या बात है? उन का यह विश्वास तो सालों से है और जहां तक मैं जानती हूं अब तक तुम्हें इस बात से कोई परेशानी नहीं थी. अब अचानक क्या हुआ?’’ मैं ने शांत स्वर में पूछा.

‘‘ऐसी आस्था किस काम की है श्रेया जो किसी की जान ले ले,’’ उन्होंने नम स्वर में कहा.

मैं अचकचा गई, ‘‘जान? मांजी किसी की जान थोड़े ही लेंगी पार्थ. तुम भी न.’’

‘‘मां नहीं, लेकिन उन की आस्था एक जान ले चुकी है,’’ पार्थ का स्वर गंभीर था. वे सीधे मेरी आंखों में देख रहे थे. उन आंखों का दर्द मुझे आज नजर आ रहा था. मैं चुप थी. नहीं चाहती थी कि कई महीनों से जो मेरे दिमाग में चल रहा है वह सच बन कर मेरे सामने आए.

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थायरोकेयर के साथ करें महिलाओं की थायराइड समस्या का इलाज

अचानक वजन का बढ़ जाना, बालों का जरूरत से ज्यादा झड़ना इत्यादि लक्षण बतातें हैं कि थायराइड की समस्या बढ़ रही है. वैसे तो बदलती जीवनशैली के चलते दुनिया में लाखों लोग इस समस्या से ग्रसित हैं, मगर यंग लड़कियों से ले कर महिलाएं तक इस का तेजी से शिकार हो रही हैं. एक शोध के अनुसार हर 8 में से 1 महिला इस समस्या से ग्रसित है.

थायराइड ग्लैंड गरदन पर सामने तितली के आकार की ग्रंथि है जो हारमोन बनाती है और ये हारमोन शरीर के भिन्न अंगों के सही काम करने के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं. ये शरीर के मैटाबोलिक रेट के साथसाथ कार्डिएक और पाचन संबंधी काम को सुचारु रखते हैं. मस्तिष्क का विकास, मांसपेशियों पर नियंत्रण और हड्डियों का रखरखाव भी इन्हीं से संभव होता है. थायराइड की गड़बड़ी थायराइड ग्लैंड के काम को प्रभावित करती है. इस से मैटाबोलिज्म के लिए आवश्यक हारमोन बनाने की क्षमता प्रभावित होती है.

आज थायराइड बीमारी के मामले दुनिया में बढ़ते ही जा रहे हैं, जिसका कारण सभी के लिए अलग हैं. हालांकि थायरोकेयर टेक्नोलॉजीज के सीईओ और प्रबंध निदेशक ए वेलुमनी का कहना है कि लोगों का लाइफ जीने और रहने की गुणवत्ता खराब होती जा रही हैं, जिसका एक कारण बदलती मानसिकता भी है.

महिलाएं ज्यादा प्रभावित क्यों

थायराइड की ज्यादातर गड़बड़ी अपनेआप बेहतर हो जाने वाली प्रक्रिया है यानी एक अच्छी स्थिति है, जिस में मरीज की प्रतिरक्षा प्रणाली हमला करती है और थायराइड ग्रंथि को नष्ट कर देती है. विभिन्न अध्ययनों के मुताबिक औटो इम्यून डिजीज जैसे सीलिएक डिजीज, डायबिटीज मैलिटस टाइप, इनफ्लैमेटरी बोवेल डिजीज, मल्टीपल स्क्लेरोसिस और रह्यूमेटाइड आर्थ्राइटिस महिलाओं में आम हैं.

इन बीमारियों का पता लगाने और इलाज में इसलिए देरी होती है, क्योंकि विभिन्न लक्षणों का पता लगाना मुश्किल होता है. औटोइम्यून बीमारियां आयोडीन की कमी से हो सकती हैं. गर्भावस्था में आयोडीन की कमी ज्यादा होती है. इस की कमी से थायराइड हारमोन के स्तर में कमी हो जाती है, जिस से कई परेशानियां हो जाती हैं.

थायराइड की गड़बड़ी की किस्में

हाइपोथायरोडिज्म, हाइपरथायरोडिज्म, थाइरोइडिटिस, थायराइड कैंसर जैसी आम गड़बडि़यां हैं जो पुरुषों और महिलाओं दोनों को प्रभावित करती हैं. इन में से हाइपोथायरोडिज्म, हाइपरथायरोडिज्म महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले 10 गुना ज्यादा होती हैं.

हाइपोथायरोडिज्म एक तरह की थायराइड गड़बड़ी है जो तब होती है जब थायराइड ग्रंथि की सक्रियता कम होती है और सामान्य के मुकाबले कम हारमोन बनते हैं. इस से शरीर में हारमोन और मैटाबोलिज्म का संतुलन गड़बड़ा जाता है. महिलाओं में हाइपोथायरोडिज्म के सब से आम कारणों में एक है औटोइम्यून डिजीज जिसे हैशिमोटोज डिजीज कहा जाता है. इस में ऐंटीबौडीज धीरेधीरे थायराइड को लक्ष्य करते हैं और थायराइड हारमोन बनाने की इस की क्षमता को नष्ट कर देते हैं. अनुमान है कि 11 महिलाओं में से 1 अपने जीवन में हाइपोथायराइड से ग्रस्त होती है.

हाइपरथायरोडिज्म एक तरह की थायराइड गड़बड़ी है जो तब होती है जब थायराइड ग्रंथि की सक्रियता बढ़ जाती है और सामान्य के मुकाबले ज्यादा हारमोन बनते हैं. ये हारमोन शरीर के मैटाबोलिज्म को नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. हाइपरथायरोडिज्म में थायराइड ग्रंथि बड़ी हो जाती है. इस से शरीर का मैटाबोलिज्म बढ़ जाता है और अचानक वजन कम हो जाता है, हृदय की धड़कनें तेज या अनियमित हो जाती हैं और चिंता होती है.

शुरुआती लक्षण

थायराइड की गड़बड़ी अकसर शुरू में नहीं पकड़ी जाती है, क्योंकि इस के लक्षण अस्पष्ट होते हैं. इसे बांझपन, लिपिड डिसऔर्डर, ऐनीमिया या डिप्रैशन समझ कर भ्रमित होने की आशंका रहती है. लक्षण देर से सामने आते हैं. तब तक हुए नुकसान की भरपाई न हो पाने की स्थिति बन जाती है.

हाइपोथायरोडिज्म के लक्षणों में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं: थकान, शुष्क त्वचा, मांसपेशियों में ऐंठन, कब्ज, ठंड बरदाश्त न कर पाना, सूजी हुई पलकें, वजन अत्यधिक बढ़ना, मासिक अनियमित होना.

हाइपरथायरोडिज्म के लक्षणों में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं: घबराहट, सोने में परेशानी, वजन कम होना, हथेलियों का गीला रहना, तेज और अनियमित हृदय की धड़कन, भारी आंखें, पलकें झपके बगैर घूरना, नजर में बदलाव, अत्यधिक भूख, पेट की गड़बड़ी, गरमी नहीं झेल पाना.

थायराइड की गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार घटक: थायराइड की बीमारी का पारिवारिक इतिहास, औटोइम्यून स्थिति का साथसाथ मौजूद रहना, गरदन में रैडिएशन का इतिहास, थायराइड की सर्जरी, थायराइड बढ़ जाना.

रोकथाम

थायरोकेयर टेक्नोलॉजीज के सीईओ और प्रबंध निदेशक ए वेलुमनी का 40 वर्षों के शोध के साथ यह दावा है कि यह एक ऐसी बीमारी नहीं है,जो खराब खाने की आदतों के कारण शुरु होता है. इसलिए इसे रोका नहीं जा सकता है. वहीं डॉ. ए वेलुमनी का कहना है कि 5 रोगियों में से 4 महिलाएं होती हैं, जिन्हें ये बीमारी होती है, जिसका अधिकत्तर कारण मैनोपौज होता है. हालांकि सुरक्षित डायग्नोस्टिक्स के साथ शुरुआती और आसान इलाज की दिशा में हमारा इस बीमारी के खिलाफ यह कदम है.

माता पिता से मिलने वाले इस बीमारी के रोकथाम की बात करें तो डॉ. ए वेलुमनी का कहना है कि मां बनने से पहले या प्रैग्नेंसी के दौरान कुछ टेस्ट के जरिए होने वाले बच्चों को इन बीमारी से बचाया जा सकता है. टेस्टिंग और टैक्नौलौजी के जरिए इस बीमारी से बचा जा सकता है. हालांकि आम आदमी इन टेस्ट को महंगा समझता है. लेकिन अगर सरकार चाहे तो इन टेस्ट को प्रैग्नेंट महिलाओं के लिए अनिवार्य कर सकता है, जिससे इस बीमारी को कम किया जा सकता है.

थायराइड की गड़बड़ी लाइफस्टाइल से जुड़ी गड़बड़ी नहीं है और पर्याप्त मात्रा में आयोडीन लेने के अलावा किसी और प्रयास की आवश्यकता नहीं होती है. भारत सरकार द्वारा यूनिवर्सल साल्ट आयोडिनेशन को अपनाए जाने से अब आयोडाइज्ड नमक में पर्याप्त आयोडीन उपलब्ध है.

थायराइड की गड़बड़ी का समय पर पता चल जाए और सही उपचार किया जाए तो इस स्थिति की गंभीरता को बढ़ने से रोका जा सकता है. महिलाओं को साल में 1 बार थायराइड ग्रंथि की जांच जरूर करानी चाहिए ताकि बीमारी का जल्दी पता लग सके और समय से इलाज हो सके.

एक कप कौफी: भाग-3

अब यह मत कहना कि तुम नहीं जानती थीं कि पराग तुम से झूठ बोल रहा है. जब मैं तुम्हें फेसबुक पर ढूंढ़ कर तुम्हारे बारे में सबकुछ पता कर सकती हूं, तुम से संपर्क कर सकती हूं तो क्या तुम ने वहां कभी हमारे फोटो नहीं देखे होंगे. अभी कुछ हफ्ते पहले ही हमारी शादी की सालगिरह थी. तुम ने तसवीरों में देखा भी होगा कि हम साथ में कितने खुश थे. क्या तुम ने इस बारे में पराग से कोई सवाल नहीं किया?’’

‘‘पराग ने कहा था कि तुम ने उसे बिना बताए पार्टी का आयोजन किया था. उसे मजबूरी में शामिल होना पड़ा.’’ ‘‘अच्छा… तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूं कि पराग ने खुद मेरे लिए सरप्राइज पार्टी रखी थी. अगर तुम अपनी आंखों से प्यार की पट्टी हटा कर दिमाग का इस्तेमाल करते हुए उन तसवीरों को ध्यान से देखोगी तो शायद तुम्हें सच नजर भी आ जाए और यह केवल उन तसवीरों की बात नहीं है. क्या तुम ने खुद कभी यह महसूस किया कि पराग सच में मुझे तलाक देना चाहता है? उस ने तुम से वादे तो बहुत किए पर क्या कभी कोई वादा पूरा भी किया? तुम उस की खातिर यहां मेरे सामने आ कर खड़ी हो पर पराग कहां है? क्या वह भी तुम्हारे लिए दुनिया का सामना करेगा? उस ने तुम्हें अपने दोस्तों या परिवार से मिलवाया? खुद तुम्हारे दोस्तों या परिवार से मिलने के लिए तैयार हुआ? ‘‘वक्त रहते संभल जाओ अनुप्रिया. अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है. पराग के वादों की तरह ही उस का प्यार भी खोखला है.’’

अनुप्रिया के हाथपांव सुन्न पड़ने लगे. गौतमी की कही 1-1 बात उस के दिल को छलनी करती जा रही थी. गौतमी की बातें कड़वी जरूर थीं, मगर कहीं न कहीं उन में सचाई भी थी. उस ने अपने दिमाग में 1-1 बात का विश्लेषण करना शुरू किया. आज तक जब भी उस ने पराग के परिवार से मिलने की बात की या उसे अपने मातापिता से मिलवाने की, पराग ने हर बार उसे कोई न कोई बहाना बना कर टाल दिया. जब भी वह अपनी पत्नी और बेटे के साथ कहीं घूमनेफिरने जाता या किसी समारोह में शामिल होता और वह उस पर नाराज होती तो वह उसे अपनी मजबूरी का हवाला दे कर सारी बात गौतमी पर डाल देता. तसवीरों को ले कर भी उस ने हजार झूठ बोले थे जिन्हें उस ने पकड़ भी लिया था पर अपने रिश्ते में शांति बनाए रखने की खातिर चुप रही. उन की मुलाकातें भी तो दुनिया की नजरों से छिप कर अनुप्रिया के घर पर होती थीं. औफिस में बाकी स्टाफ का तो समझ सकती थी, पर पराग तो अपने दोस्तों के सामने भी उस से इस तरह व्यवहार करता था जैसे एक सीनियर अपने जूनियर से करता है.

वह जब भी उस से शादी की बात करती वह एक नया बहाना बना कर बात टाल देता. उस ने पराग को अपना सबकुछ मान लिया था पर वह पराग के लिए क्या थी? गौतमी सही ही तो कह रही है कि इस रिश्ते में पराग ने उसे खोखले वादों के अलावा और कुछ नहीं दिया. और अब वह कुछ दिनों से उस से कटाकटा सा भी रहने लगा है. न उस से मिलने उस के घर आता है और न ही फोन करता. वह उसे फोन कर के नाराजगी जताती तो काम या सिरदर्द का बहाना बना देता. उसे तो यह बात भी एक सहकर्मी से पता चली थी कि वह 3 दिनों के लिए शहर से बाहर जा रहा है. सारी बातें इसी ओर इशारा कर रही थीं कि पराग उस से दूर भाग रहा है. अपने मन के भीतर किसी छोटे से कोने में अनुप्रिया को भी इस बात का एहसास है. पहले तरुण ने उस की जिंदगी बरबाद की और अब पराग ऐसा करने चला था.

अनुप्रिया की चुप्पी देख कर गौतमी ने आगे कहा, ‘‘तुम यह मत सोचना कि मैं सारा इलजाम तुम पर लगा रही हूं. ऐसा बिलकुल नहीं है. जो भी हुआ उस में तुम से कहीं अधिक दोष पराग का है. जिस वक्त तुम दिल्ली आईं, तुम बेहद संवेदनशील थीं. ऐसे में पराग ने तुम्हारी कमजोरी का फायदा उठाया, जिसे तुम उस का प्यार समझ बैठीं. तुम्हें गहरा आघात लगा था, तुम अवसादग्रस्त थीं पर पराग तो बिलकुल ठीक था न. वह अपने स्वार्थ की पूर्ति करता रहा. वह दोहरी जिंदगी जीता रहा, एक मेरे और सिद्घार्थ के साथ और दूसरी दुनिया से छिप कर तुम्हारे साथ. वह तुम से झूठ बोल कर तुम्हारा फायदा उठाता रहा और तुम इसे उस का प्यार समझती रही.’’

गौतमी की बातें सुन कर अनुप्रिया की आंखें भर आईं. उस ने डबडबाई आंखों से गौतमी की ओर देख कर सवाल किया, ‘‘आप ने पराग से इस बारे में बात की होगी. उस ने क्या कहा?’’

‘‘जब मुझे तुम्हारे और पराग के बारे में पता चला और मैं ने उस से इस बारे में सवाल किया तो उस ने कहा कि तुम उस के पीछे पड़ी थीं. वह तुम्हारी बातों में आ कर बहक गया था. उस ने मुझ से बारबार माफी मांगी और सिद्धार्थ का वास्ता दे कर कहा कि वह अब तुम से कभी नहीं मिलेगा. उस ने ट्रांसफर के लिए अर्जी भी दे दी है.’’ यह सुन कर अनुप्रिया की आंखों से आंसू बह निकले. वह पराग जिस ने कई हफ्तों तक उस का पीछा किया. उसे अपने प्यार का एहसास दिलाने के लिए इतने जतन किए. अपनी खराब व तनावपूर्ण शादीशुदा जिंदगी का हवाला दे कर उस के दिल में अपने लिए हमदर्दी जगाई. जो कभी उस के लिए दुनिया से लड़ जाने की बातें किया करता था आज पकड़े जाने पर कितनी आसानी से सारा दोष उस के सिर मढ़ कर खुद बच निकल जाना चाहता है. उस ने सिर झुका कर रुंधे स्वर में कहा, ‘‘मुझे समझ नहीं आ रहा है कि मैं आप से क्या कहूं. मैं आप से किस तरह माफी मांगू? सब कुछ आईने की तरह साफ था, फिर भी मैं जानबूझ कर अनजान बनी रही. मैं ने आप के साथ बहुत गलत किया.’’

‘‘गलत तो हम दोनों के साथ हुआ है अनुप्रिया. यदि मैं केवल तुम्हें दोषी मानती तो आज यहां बैठ कर तुम से बातें नहीं कर रही होती. सच पूछो तो मुझे तुम से कोई शिकायत नहीं है. पराग ने हम दोनों को धोखा दिया है और रही बात माफी की तो मैं यहां तुम्हारी माफी की उम्मीद में नहीं आई थी.

आगे पढ़ें- मेरा मकसद केवल तुम्हें सच से रूबरू कराना था.’’ गौतमी…

मेरी ठुड्डी पर बार-बार छोटे बाल निकल आते हैं, मैं क्या करूं?

सवाल-

मैं 22 साल की कालेजगोइंग स्टूडैंट हूं. मेरा रंग काफी गोरा है, मगर मेरी ठुड्डी पर बारबार छोटेछोटे बाल निकल आते हैं, जो बहुत बुरे लगते हैं. चिमटी से हटाती हूं, मगर फिर आ जाते हैं. बताएं क्या करूं?

जवाब-

आप फेस पैक लगा कर ठुड्डी के बालों से नजात पा सकती हैं. इस के लिए आप मुलतानी मिट्टी में गुलाबजल की कुछ बूंदें मिला कर फेस मास्क बना लें और फिर इसे अपने चेहरे पर लगाएं. करीब 10-15 मिनट बाद यानी जब यह सूख जाए तब चेहरे को धो लें.

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महिलाओं में हलके और मुलायम फेशियल हेयर होना सामान्य बात हो सकती है, लेकिन जब बाल कड़े और मोटे होते हैं तो यह हारमोन असंतुलन का संकेत है, जिस के कारण कई जटिलताएं हो सकती हैं. इस समस्या को हिर्सुटिज्म के नाम से जाना जाता है.

महिलाओं में मध्य रेखा, ठोड़ी, स्तनों के बीच, जांघों के अंदरूनी भागों, पेट या पीठ पर बाल होना पुरुष हारमोन ऐंड्रोजन के अत्यधिक स्रावित होने का संकेत है, जो एड्रीनल्स द्वारा या फिर कुछ अंडाशय रोगों के कारण स्रावित होता है. इस प्रकार की स्थितियां अंडोत्सर्ग में रुकावट डाल कर प्रजनन क्षमता को कम कर देती हैं. पौलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) एक ऐसी ही स्थिति है, जो महिलाओं में बालों के अनचाहे विकास से संबंधित है. यह डायबिटीज व हृदयरोगों का प्रमुख खतरा भी है.

जार्जिया हैल्थ साइंसेस यूनिवर्सिटी में हुए शोध के अनुसार, पीसीओएस महिलाओं में हारमोन संबंधी गड़बड़ियों का एक प्रमुख कारण है और यह लगभग 10% महिलाओं को प्रभावित करता है.

हिर्सुटिज्म से पीड़ित 90% महिलाओं में पीसीओएस या इडियोपैथिक हिर्सुटिज्म की समस्या पाई गई है. अधिकतर मामलों में ऐस्ट्रोजन के स्राव में कमी और टेस्टोस्टेरौन के अत्यधिक उत्पादन के कारण यह किशोरावस्था के बाद धीरेधीरे विकसित होता है.

निम्न कारक ऐंड्रोजन को उच्च स्तर की ओर ले जाते हैं, जो हिर्सुटिज्म का कारण बनते हैं:

पूरी खबर पढ़ने के लिए- गंभीर बीमारी का संकेत है फेशियल हेयर

जानें क्या है सर्वाइकल कैंसर और इसके लक्षण

महिलाओं में गर्भाश्य के मुख को सर्विक्स कहा जाता है, जिसकी जांच योनी के ज़रिए की जाती है. अगर सर्विक्स में असामान्य या प्री-कैंसेरियस कोशिकाएं विकसित होने लगें तो सर्वाइकल कैंसर हो जाता है. मनुष्य की सर्विक्स में दो भाग होते हैं- एक्टोसर्विक्स जो गुलाबी रंग को होता है और स्क्वैमस कोशिकाओं से ढका होता है. दूसरा- एंडोसर्विक्स जो सरवाईकल कैनाल है और यह कॉलमनर कोशिकाओं से बना होता है. जिस जगह पर एंडोसर्विक्स और एक्टोसर्विक्स मिलते हैं उसे ट्रांसफोर्मेशन ज़ोन कहा जाता है, यहं असामान्य एवं प्री-कैंसेरियस कोशिकाएं विकसित होने की संभावना अधिक होती है.

एचपीवी सर्वाइकल कैंसर का मुख्य कारण

सर्वाइकल कैंसर के 70-80 फीसदी मामलों में इसका कारण एचपीवी यानि हृुमन पैपीलोमा वायरस होता है. 100 विभिन्न प्रकार के एचपीवी हैं, इनमें से ज़्यादातर के कारण सर्वाइकल कैंसर की संभावना नहीं होती. हालांकि एचपीवी-16 और एचपीवी-18 के कारण कैंसर की संभावना बढ़ जाती है, अगर किसी महिला को एचपीवी इन्फेक्शन हो, तो उसे तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए, क्योंकि उसमें सर्वाइकल कैंसर की संभावना बढ़ जाती है.

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पैप टेस्ट का महत्व

प्रीकैंसेरियस सर्वाइकल कोशिकाओं के कारण स्पष्ट लक्षण दिखाई नहीं देते, इसलिए पैप एवं एचपीवी टेस्ट के द्वारा नियमित जांच कराना जरूरी है. इस तरह की जांच से प्री-कैंसेरियस कोशिकाओं का जल्दी निदान हो जाता है और सर्वाइकल कैंसर होने से रोका जा सकता है.

लक्षण

अडवान्स्ड सर्वाइकल कैंसर के कुछ संभावी लक्षण हैं:

पीरियड्स के बीच अनियमित ब्लीडिंग, यौन संबंध के बाद ब्लीडिंग, मेनोपॉज़ के बाद ब्लीडिंग, पेल्विक जांच के बाद ब्लीडिंग

श्रोणी में दर्द, जो माहवारी की वजह से न हो

असामान्य या हैवी डिस्चर्ज, जो बहुत पतला, बहुत गाढ़ा हो या जिसमें बदबू आए

पेशाब के दौरान दर्द और बार-बार पेशाब आना

ये लक्षण किसी अन्य स्थिति के कारण भी हो सकते हैं, इसलिए डॉक्टर से जांच कराएं.

कारण

निम्नलिखित कारकों से सर्वाइकल कैंसर की संभावना बढ़ जाती है

अगल लड़कियां जल्दी सेक्स शुरू कर दें

10 साल से अधिक समय तक गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन करने से उन महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर की संभावना चार गुना बढ़ जाती है जो एचपीवी पॉज़िटिव हैं.

जिनकी बीमारियों से लड़ने की ताकत कमज़ोर हो.

जिन महिलाओं के एक से अधिक सेक्स पार्टनर हों.

जिन महिलाओं में यौन संचारी रोग यानि एसटीडी का निदान हो.

टैस्ट

पैनीनिकोलाओ टेस्ट (पैप स्मीयर) सर्वाइकल कैंसर की जांच का आधुनिक तरीका है, जो महिलाओं की नियमित जांच प्रक्रिया में शामिल किया जाता है. इसके लिए डॉक्टर महिला के सर्विक्स से कोशिकाएं लेता है और माइक्रोस्कोप में इनकी जांच करता है. अगर इस जांच में कुछ असामान्य पाया जाता है और बायोप्सी के लिए सर्वाइकल टिश्यू लेकर आगे जांच की जाती है.

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एक और तरीका है कोल्पोस्कोपी जिसमें डॉक्टर एक हानिरहित डाई या एसिटिक एसिड से सर्विक्स को स्टेन करत है जिससे असामान्य कोशिकाएं आसानी से दिख जाती हैं. इसके बाद कोलपोस्कोप की मदद से असामान्य कोशिकाओं की जांच की जाती है, जिसमें सर्विक्स का आकार 8 से 15 गुना दिखाई देता है.

एक और तरीका है लूप इलेक्ट्रोसर्जिकल एक्सीज़न प्रोसीजर (एलईईपी) जिसमें डॉक्टर वायर के इलेक्ट्रिाईड लूप की मद से सर्विक्स में सैम्पल टिश्यू लेकर बायोप्सी करता है.

लम्बे समय तक एचपीवी इन्फेक्शन होने से कोशिकाएं कैंसर के ट्यूमर में बदल सकती हैं. नियमित रूप से पैप स्मीयर के द्वारा सर्वाइकल कैंसर की जांच की जा सकती है. इससे समय पर निदान कर इलाज किया जा सकता है.

डॉ संचिता दूबे, कन्सलटेन्ट, ऑब्स्टेट्रिक्स एण्ड गायनेकोलोजी, मदरहुड हॉस्पिटल, नोएडा

#lockdown: कोरोना ने बढ़ाया डिस्टेंस एजुकेशन का महत्व

 यूं तो दूरस्थ शिक्षा या डिस्टेंस एजुकेशन की महत्ता कई दशक पहले ही स्थापित हो गई थी. सच बात तो यह है कि भारत जैसे देश में जहां आज भी बमुश्किल 11-12 प्रतिशत लोगों को ही नियमित उच्च शिक्षा नसीब होती है, वहां दूरस्थ शिक्षा या डिस्टेंस एजुकेशन ही आम लोगों के लिए उच्च शिक्षा का एकमात्र माध्यम है. लेकिन जिस तरह से कोरोना का कहर लोगों की सदेह मौजूदगी पर टूटा है, उसके चलते, तो फिलहाल दूरस्थ शिक्षा या जिसे आजकल आनलाइन एजुकेशन कहना ज्यादा आसान हो गया है, लगभग अनिवार्य हो गई है. सिर्फ हिंदुस्तान में ही नहीं इस समय पूरी दुनिया में शिक्षा महज आनलाइन एजुकेशन के रूप में ही मौजूद है.

वैसे तो आनलाइन एजुकेशन धीरे-धीरे यूं भी विश्वसनीय हो चुकी है, बशर्ते आपके पास विश्वसनीय और सुरक्षित ब्राडबैंड यानी इंटरनेट कनेक्शन उपलब्ध हो. साथ ही  तमाम साफ्टवेयर और साफ्ट एजुकेशन प्रोडक्ट भी हों जिनके जरिये यह शिक्षा संभव होती है. इन संसाधनों के बाद आनलाइन या दूरस्थ शिक्षा इन दिनों सर्वाधिक विश्वसनीय हो चुकी है. भारत में आधुनिक शैक्षिक परिदृश्य में लगातार आनलाइन एजुकेशन का दायरा भी बढ़ रहा है और इसका टर्नओवर भी. केपीएमजी और गूगल द्वारा किये गये एक साझे अध्ययन के मुताबिक जिसका शीर्षक है, ‘आनलाइन एजुकेशन इन इंडिया: 2021’, भारत में आनलाइन शिक्षा का बाजार अगले साल यानी 2021 तक 1.6 अरब डालर का हो जायेगा. इस समय देशभर में 96 से ज्यादा पाठ्यक्रम मौजूद हैं और 9 लाख से ज्यादा छात्र इस माध्यम के जरिये पढ़ाई कर रहे हैं.

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गौरतलब है कि यह तमाम आंकड़े कोरोना वायरस के संक्रमण के पहले के हैं. जिस किस्म से कोरोना ने हिंदुस्तान सहित पूरी दुनिया के 70 फीसदी से ज्यादा लोगों को घरों के भीतर रहने के लिए बाध्य कर दिया है, उससे भले बाकी रोजगार मुश्किल में पड़े हों, लेकिन आनलाइन एजुकेशन हर गुजरते दिन के साथ बढ़ रही है और आगे भी बढ़ेगी. भारत की आबादी 1 अरब 30 करोड़ से ज्यादा है और हमारे यहां चीन के बाद सबसे ज्यादा एंड्रोएड फोन उपलब्ध हंै. कहने का मतलब हिंदुस्तान में आनलाइन एजुकेशन की भरपूर परिस्थितियां और इंफ्रास्ट्रक्चर मौजूद है. इस वजह से अगर उच्च शिक्षा के अगले सत्र तक भारत में डिस्टेंस एजुकेशन या आनलाइन एजुकेशन का टर्नओवर 100 प्रतिशत से भी ज्यादा बढ़ जाये, तो इसमें कुछ भी आश्चर्यजनक नहीं होगा. यह कोविड-19 के प्रकोप का नतीजा ही है कि सिंगापुर की प्रौद्योगिकी कंपनी लार्क टेक्नोलाजीज पीटीई लिमिटेड ने हिंदुस्तान में अपना डिजिटल क्लोबरेशन सूट लार्क उपलब्ध करा दिया है.

यह आल इन वन प्लेटफाम है, जो कई टूल जैसे मैसेंजर, आनलाइन डाक्स और शीट्स क्लाउज स्टोरेज, कैलेंडर एवं वीडियो कान्फ्रेंसिंग एक साथ पेश करता है. यह सेवा भारत में शैक्षिक संस्थानों जैसे- स्कूल, कालेज एवं कोचिंग क्लासेस में शुरु की गई है जिससे शिक्षकों और विद्यार्थियों के बीच दूरस्थ लर्निंग या आनलाइन एजुकेशन संभव हो सके. लेकिन कोरोना के पहले भी दूरस्थ या आनलाइन शिक्षा महत्वपूर्ण हो चुकी थी. इसकी कई वजहें रही हैं. मसलन- इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी, गरीबी, महंगाई, एडमिशन में मुश्किल तथा कम नंबर आदि… इन तमाम वजहों के चलते हर साल बड़े पैमाने पर हिंदुस्तानी छात्र नियमित उच्च शिक्षा के लिए मन मसोसकर रह जाते हैं. इसी वजह से पिछले तीन दशकों में लगातार दूरस्थ शिक्षा, डिस्टेंस एजुकेशन या अब आनलाइन एजुकेशन का महत्व बढ़ा है.

हालांकि यह भी सही है कि लम्बे समय तक भारत में दूरस्थ शिक्षा को बहुत अच्छा नहीं समझा जाता था. लोगों के दिमाग में यह रहता था कि इसकी मान्यता नियमित माध्यम से कम है. लेकिन बदलते वक्त के साथ अब समाज में भी बदलाव आया है और समझ में भी. यही वजह है कि आज भारतीय समाज पत्राचार को पूरी तरह से स्वीकार कर चुका है. इस माध्यम के साथ एक और अच्छी बात हुई है कि एक जमाने में जहां पत्राचार माध्यम से पढ़ाई महज कॉरेसपॉन्डेंस मटीरियल तक ही सीमित थी वहीं आज यह तमाम सुविधाजनक तकनीकों से जुड़ चुकी है जो इसे पहले से कहीं ज्यादा ठोस, व्यवहारिक और जेनुइन बनाती हैं.  मसलन अब टेलीकांफ्रेंसिंग और टेलीक्लासेज के चलते दूरस्थ शिक्षा महज पत्राचार के जरिये पढ़ाई नहीं रह गयी बल्कि यह एक जीवंत अनुभव बन चुकी है. बावजूद इसके कि दूरस्थ शिक्षा में नियमित संस्थान न जाने और अपनी सुविधा के मुताबिक समय में पढ़ने की छूट पहले की तरह मौजूद है. इस माध्यम में विद्यार्थी को नियमित तौरपर संस्थान में जाकर पढ़ाई करने की जरूरत नहीं होती है. हर कोर्स के लिए क्लासेज की संख्या तय होती है और देश भर के कई सेंटरों पर उनकी पढ़ाई होती है. विजुअल क्लासरूम लर्निंग, इंटरैक्टिव ऑनसाइट लर्निंग और वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए विद्यार्थी देश के किसी भी कोने में रहकर घर बैठे पढ़ाई कर सकते हैं. वे अपनी जरूरत के अनुसार अपने पढ़ने की समय-तालिका भी बना सकते हैं.

डिस्टेंस एजुकेशन काउंसिल के मुताबिक आगामी पांच सालों में देश के उच्च शिक्षा संस्थानों में दाखिले के प्रतिशत को 10 से 15 प्रतिशत करने के राष्ट्रीय लक्ष्य को पूरा करने में दूरस्थ शिक्षा का योगदान उल्लेखनीय होगा. डिस्टेंस लर्निंग एजुकेशन की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उच्च शिक्षा हासिल कर रहा आज हर पांच विद्यार्थियों में से एक दूरस्थ शिक्षण प्रणाली का ही विद्यार्थी है. समाज के सभी तबकों को समान शिक्षा दिए जाने की जो बात हम करते हैं, वह वास्तव में आज दूरस्थ शिक्षा से ही संभव होता दिख रहा है. पत्राचार माध्यम या कहें दूरस्थ का वास्तविक प्रचार, प्रसार और विस्तार मुक्त विश्वविद्यालयों के चलते हुआ है. वास्तव में ओपन या मुक्त विश्वविद्यालय ऐसे होते हैं जो दूरस्थ शिक्षा के उद्देश्य से ही स्थापित किये जाते हैं. ऐसे विश्वविद्यालय भारत, ब्रिटेन, जापान तथा अन्य तमाम देशों में कार्य कर रहे हैं. इन विश्वविद्यालयों में प्रवेश/नामांकन की नीति खुली या शिथिल होती है अर्थात विद्यार्थियों को अधिकांश स्नातक स्तर के प्रोग्रामों में प्रवेश देने के लिये उनके पूर्व शैक्षिक योग्यताओं की जरूरत का बन्धन नहीं लगाया जाता.

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भारत में 14 मुक्त या खुले विश्वविद्यालय हैं. इसके अलावा 75 नियमित विश्वविद्यालय और कई अन्य संस्थाएं भी हैं जो दूरस्थ अध्ययन या आनलाइन एजुकेशन कार्यक्रम चलाते हैं. दूरस्थ शिक्षा पद्धत्ति कई श्रेणियों के शिक्षार्थियों, के लिए अनुकूल होती है. मसलन

(क) देरी से पढ़ाई शुरू करने वालों को

(ख) जिनके घर के पास उच्चतम शिक्षा साधन नहीं है,

(ग) नौकरी कर रहे लोगों को तथा

(घ) अपनी शैक्षिक योग्यताएं बढ़ाने के इच्छुक व्यक्तियों को लाभ प्रदान कर रही है.

दरअसल खुले विश्वविद्यालय ऐसे लचीले पाठ्यक्रम विकल्प देते हैं, जिन्हें वे प्रवेशार्थी भी ले सकते हैं जिनके पास कोई औपचारिक योग्यता नहीं है किंतु अपेक्षित आयु (प्रथम डिग्री पाठ्यक्रमों के लिए 18 वर्ष) के हो चुके हैं. साथ ही लिखित प्रवेश परीक्षा भी उत्तीर्ण कर चुके हैं. ये पाठ्यक्रम छात्र की सुविधानुसार भी लिए जा सकते हैं. अधिकांश अध्यापन-अध्ययन प्रक्रिया में मुद्रित अध्ययन सामग्री तथा नोडल केंद्रों पर मल्टीमीडिया सुविधा सेट-अप या दूरदर्शन अथवा रेडियो नेटवर्क के माध्यम से अध्यापन शामिल होता है. ये विश्वविद्यालय स्नातक पाठ्यक्रम, स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम, एम.फिल, पी.एच.डी. तथा डिप्लोमा एवं प्रमाण पत्र पाठ्यक्रम भी चलाते हैं, जिनमें से अधिकांश पाठ्यक्रम कॅरिअर उन्मुखी होते हैं. उच्च शिक्षा के पत्राचार माध्यम ने देश की शिक्षा-प्रणाली में एक आश्चर्यजनक परिवर्तन ला दिया है.

देश के कुछ मशहूर दूरस्थ शिक्षा देने वाले संस्थान-

– अन्नामलाई यूनिवर्सिटी, तमिलनाडु

– अल्गपा यूनिवर्सिटी कराईकुडी, तमिलनाडु

– गोवाहटी यूनिवर्सिटी, असम

– डिब्रूगढ़ यूनिवर्सिटी, असम

– गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी, दिल्ली

– इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी, दिल्ली

– गुजरात विद्यापीठ अहमदाबाद, गुजरात

– हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी शिमला, हिमाचल प्रदेश

– ईएफएल यूनिवर्सिटी हैदराबाद, तेलंगाना

– इंडियन मैनेजमेंट स्कूल एंड रिसर्च सेंटर, मुंबई

– इंडियन इंस्टीट्यूट औफ टेक्नोलौजी इंदौर, मध्य प्रदेश

– अक्षय कालेज औफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलाजी, तमिलनाडु

– यूरोपियन इंस्टीट्यूट औफ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलाजी त्रिवेंद्रम, केरल

– एकेएस यूनिवर्सिटी, मध्य प्रदेश

– चैधरी किरण सिंह इंस्टीट्यूट औफ टेक्नोलाजी, उत्तर प्रदेश

– ईस्टर्नगाइड औफ ट्रेनिंग एंड स्टडी, वेस्ट बंगाल

– इंडियन इंस्टीट्यूट औफ इगल, वेस्ट बंगाल

महायोग: दिया की दौलत देख क्या था नील का फैसला?

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