#coronavirus:  हाथ धोएं बार–बार, पर स्किन का भी रखें ख्याल

कोरोना वायरस की वजह से लगातार हाथ धोने की सलाह आज सभी को दी जा रही है, क्योंकि रिसर्चर्स ने पाया है कि साबुन या हैंड सेनेटाइजर से इस वायरस को खत्म किया जा सकता है, इसलिए हाथों को बार-बार 20 सेकेण्ड साबुन से धोने पर इस महामारी के संक्रमित होने से बहुत हद तक बचा जा सकता है, लेकिन जब आप साबुन से बार बार हाथ धोते है, तो हाथों की स्किन रुखी और बेजान हो जाती है. खासकर ड्राई स्किन वालों को इस बात का अधिक ध्यान देना पड़ता है, ऐसे में हाथ की स्किन की नमी को बनाये रखने के लिए क्यूटिस स्किन क्लिनिक की डर्मेटोजिस्ट डॉ. अप्रतिम गोयल कहती है कि बार-बार साबुन से हाथ धोने से स्किन रुखी हो जाती है, जिससे इचिंग और कट्स हो जाया करती है, ऐसे में मोयस्चराइजर अधिक लगाने की जरुरत होती है, ताकि किसी भी प्रकार की एलर्जी और इन्फेक्शन से बचा जा सकें.

यहाँ कुछ टिप्स निम्न है, जिसकी वजह से आप हाथों की नमी और खूबसूरती को बार-बार हाथ धोने के बाद भी बनाये रख सकती है,

ये भी पढ़ें- 5 टिप्स: गरमी के मौसम में ऐसे रखें अपने घर का ख्याल

  • जब भी आप हाथ धोये उचित मात्रा में मोयस्चराइजर अवश्य लगाये,ताकि आपकी खोयी नमी वापस आ सके,
  • अगर आप बार-बार बर्तन, कपड़े धोने, पोछा करने के लिए साबुन पानी का इस्तेमाल नहीं कर पाती, तो ग्लव्स पहनकर काम करें, इससे कुछ हद तक आपकी स्किन साबुन के केमिकल से बच सकती है,
  • अगर किसी प्रकार की एग्जिमा या एलर्जी है, तो दवा की जरुरत होती है, जो किसी स्किनरोग विशेषज्ञ से संपर्क करके ही लें, ऐसे में ट्रांसपेरेंट हैंड या नॉन पाउडर युक्त ग्लव्स पहनना अच्छा होता है,
  • डर्मेटोलॉजिस्ट द्वारा बताये गए हाइड्रोकोर्टीसोन क्रीम, इन्फ्लेमेशन में स्किन के घाव को जल्दी भरने में समर्थ होती है,
  • रात को सोने से पहले हैंड क्रीम की मोटी लेयर हाथ पर लगाकर ग्लव्स या सॉक्स पहन लें, इससे स्किन जल्दी स्मूथ हो जाएगी,
  • तनाव को भगाए और खुश रहने की कोशिश करें, क्योंकि एक्जिमा का तनाव से गहरा रिश्ता होता है, इसके लिए योगा, मैडिटेशन, वर्कआउट और अपने हॉबी को करने की कोशिश करें.

हालाँकि अभी सभी लोग घर पर है और घर में कई ऐसे पदार्थ है, जिसका प्रयोग कर आप अपने हाथों को मुलायम बना सकते है.

होम रेमिडीस

  • सोने से पहले ओलिव आयल या वेजिटेबल आयल हाथों पर लगायें,
  • सी साल्ट और लेमन को हाथो पर लगाकर पुराने ब्रश से हाथों से डेड स्किन को उतार लें ,इसके बाद मोयास्चराइजर लगायें,
  • ग्लिसरीन, लेमन जूस और रोज वाटर की कुछ बूंदे मिलाकर हर दूसरे दिन हाथों पर लगा लें, इससे स्किन की खोयी नमी वापस आ सकती है,
  • मोम और हल्दी पाउडर को गर्म करें, हाथों और पांव पर जहाँ भी कट्स और एलर्जी है वहां लगा लें, इससे समस्या दूर हो जाएगी.

इन सावधानियों पर ध्यान दें, पर हाथों को धोना बंद न करें और स्वस्थ रहे.

ये भी पढ़ें- #coronavirus: जानें क्या है खानपान से जुड़े वहम

रहनुमा: भाग-3

फिर कांपते हाथों से चाय बना, 2 बिस्कुट के साथ चाय गटकने के बाद संध्या ने बुखार, बदनदर्द की टैबलेट खा ली थी और बुखार की खुमारी में पता नहीं कितनी देर यों ही पड़ी थी कि अचानक दरवाजे की घंटी की आवाज से तंद्रा टूटी थी. दरवाजा खोला तो आगंतुक को देख बुखार की खुमारी में बंद आंखें चौंक कर फैल गईं थीं और उसे तुरंत नारीसुलभ लज्जा ने घेर लिया था. वह अपने अस्तव्यस्त कपड़े और बिखरे बाल समेटने लगी थी.

‘‘आप…?’’ वह बोली थी.

‘‘भीतर नहीं आने देंगी क्या?’’ शेखर बोला था.

वह सकपका कर दरवाजे के बीच से हट गई थी.

‘‘ऐक्सीडैंट जबरदस्त हुआ है. अरे आप को तो बुखार भी है,’’ कहते हुए शेखर ने पहले संध्या की कलाई थामी, फिर ललाट का स्पर्श किया. संध्या पत्ते की तरह थरथरा उठी थी. छुअन का रोमांच विचित्र था.

‘‘चलिए, डाक्टर से दवा ले आते हैं.’’

संध्या विरोध न कर सकी थी. वापस घर आ कर शेखर ने किचन में जा कर संध्या के लिए दलिया बनाया था और अपने सामने उसे खिलाया था.

‘‘अच्छा अब मैं चलता हूं. दवा आप ने ले ली है, आराम आ जाएगा. फिर मदद की जरूरत हो तो याद कर लीजिएगा,’’ कह कर जवाब की प्रतीक्षा किए बिना शेखर जा चुका था.

ये भी पढ़ें- पितृद्वय: भाग-2

शेखर का घर आना, क्षणिक मधुर स्पर्श, उस का केअरिंग ऐटिट्यूट संध्या के नीरस जीवन में मधुर स्मितियां सजा गया. इस उम्र में भी निगोड़ा मन अशांत होने लगा है. आईने पर बरबस नजर चली जाती है और अधरों पर लजीली मुसकान थिरकने लगती है, संध्या सोचती फिर सिर को झटक कर वर्तमान में लौट आती. फिर सोचने लगती कि इस निगोड़े मन में यही खराबी है कि जरा सी ढील दे दो तो कहांकहां डोलने लगता है. क्या सचमुच उम्र बुढ़ा जाती है, मन नहीं? संध्या स्वस्थ हो गई थी धीरेधीरे. एक दिन सपना के फोन ने उस के मन में उत्साह भर दिया था. वह भारत आ रही थी अपने बेटे के साथ. वह अपने 5 वर्ष के नाती बौबी के साथ खूब मस्ती करेगी, यह सोच कर वह बहुत उत्साहित थी. उस ने तुरतफुरत घर में सभी जरूरत का सामान जुटाना शुरू कर दिया था. सपना के आने से घर का कोनाकोना जीवंत हो उठा था.

‘‘ममा, ये शेखर कौन है?’’ एक रोज सपना के अप्रत्याशित प्रश्न ने संध्या को झकझोर दिया था.

‘‘कुलीग है…’’ संक्षिप्त सा उत्तर दे उस ने बात खत्म करनी चाही थी.

‘‘आप के मोबाइल पर इन की कौल्स देखीं इसलिए…’’

संध्या ने कोई जवाब नहीं दिया किंतु मां के चेहरे के हावभाव सपना देखनेसमझने का प्रयास कर रही थी. एक दिन रात के सन्नाटे को तोड़ता अचानक संध्या का मोबाइल घनघना उठा, तो उस ने तुरंत मोबाइल उठाया और बोली, ‘‘आजकल बच्चे आए हुए हैं…’’

उस ने फोन काटना चाहा पर शेखर उधर से बोला, ‘‘ठीक है, बहुत अच्छा है. आप बिटिया से हमारे संबंध के विषय में बात कर लीजिए. अगर आप कहें तो मैं स्वयं आ कर उस से मिल लेता हूं.’’

‘‘नहींनहीं,’’ कह कर संध्या ने घबरा कर फोन काट दिया था.

मां के कांपते हाथ और चेहरे के थरथराते भाव देख सपना ने तुरंत पूछा था, ‘‘कौन था ममा, रात के 11 बजे हैं?’’ स्थिर खड़ी संध्या चुपचाप बिस्तर की ओर बढ़ गई थी.

‘‘क्या हुआ ममा, कुछ परेशान हैं आप. कोई टैंशन है क्या…?’’

संध्या ने अचकचा कर इनकार कर दिया था. संध्या के मन में उधेड़बुन चल रही थी. सपना की प्रतिक्रिया क्या होगी? सब कुछ जान लेने के बाद क्या मांबेटी एकदूसरे के प्रति सहज रह पाएंगी? मां के जीवन में किसी दूसरे पुरुष की उपस्थिति बच्चों को स्वीकार्य नहीं होगी शायद. किंतु अपने मन की बात बच्चों से न शेयर कर पाने के एहसास से स्वयं उस का हृदय घुटन महसूस करता. अपने नए एहसास, नई मैत्री को वह किसी अपने से बांटना भी चाहती थी किंतु परिवार व समाज की बंदिशों का डर, अपनी स्वयं की सीमाओं के टूट जाने का भय उसे ऐसा करने नहीं दे रहा था.

सपना के बारबार कुरेदने पर संध्या ने उसे शेखर के बारे में सब कुछ बता दिया था. लेकिन सपना के चेहरे पर कठोरता और नागवारी के भाव देख वह सकपका गई थी. ‘‘मम्मी, आप को कोई ‘इमोशनल फूल’ बना रहा है. आप बहुत सीधी हैं, आप की नौकरी, पैसे के लालच में आ कर कोई भी आप को बेवकूफ बना रहा है. अब उस का फोन आए तो मुझे बताना, मैं उस का दिमाग ठिकाने लगाऊंगी.’’

‘‘लेकिन बेटा, आर्थिक रूप से वह भी संपन्न है. मेरे पैसे, मेरी प्रौपर्टी से उसे कुछ लेनादेना नहीं है.’’

‘‘लेकिन मम्मी, इस उम्र में आप को ऐसा बेतुका खयाल आया कैसे? बहुत सी औरतें हैं, जो आप ही की तरह अकेली रहती हैं, लेकिन बुढ़ापे में शादी नहीं करतीं. यह बात मेरी ससुराल में और रिश्तेदारों को पता चलेगी तो उन का क्या रिऐक्शन होगा? सब मजाक उड़ाएंगे और हम हैं तो सही आप के अपने बच्चे. कोई दुख, तकलीफ अगर हो तो आप हम से कहो. बाहर वाले लोगों के सामने अपनी परेशानी बता कर क्यों हमदर्दी लेना चाहती हो?’’ सपना की आवाज के तार कुछ और कस गए थे, ‘‘राहुल को जब पता चलेगा कि उस की सास ऐसा कुछ करना चाहती हैं, तो कितना बुरा लगेगा उसे…’’

संध्या अपराधबोध से कसमसा उठी थी. स्वयं पर ग्लानि अनुभव हुई थी उसे. सपना की वापसी का दिन आ गया तो वह बोली, ‘‘ममा, मैं जल्दी ही अपना दूसरा ट्रिप बना लूंगी आप के पास आने के लिए. रिटायरमैंट के बाद आप मेरे साथ रहेंगी बस…’’ एक फीकी मुसकान संध्या के बुझे चेहरे पर फैल गई थी.

‘‘मैं ने कोमल से भी कह दिया है. वह भी यहां आने का प्रोग्राम बना रही है.’’

‘‘हां बेटा ठीक है.’’

सपना चली गई तो घर में सन्नाटा पसर गया. संध्या स्वयं को संयत कर अपने रोजमर्रा के कार्यों में लीन हो गई. शेखर का फोन आता तो वह रिसीव न करती. जब उस की बेटी कोमल आई, तो एक बार फिर घर का कोनाकोना महक उठा. छुट्टी के दिन सुबह से शाम तक घूमना, खरीदारी. औफिस जाती तो घर जल्दी लौटने का मन होता.

‘‘ममा, ये शेखर कौन हैं?’’ कोमल के चेहरे पर रहस्यमयी मुसकान थी. संध्या का चेहरा उतर गया था.

‘‘सपना दीदी ने मुझे बताया था.’’

ये भी पढ़ें- #coronavirus: मोल सच्चे रिश्तों का

संध्या के हाथ रुक गए थे. कदम ठिठक गए थे… अब कोमल अपना रोष व्यक्त करेगी. ‘‘ममा, यह तो बहुत अच्छी बात है. हम दोनों बहनें तो बहुत दूर रहती हैं आप से. फिर गृहस्थी की तो बीसियों उलझनें हैं. ऐसे में जरूरत पड़ने पर हम आप की कब और कितनी मदद कर सकती हैं. मुझे तो खुशी होगी अगर आप… हां, सपना दीदी को समझाना होगा. उन्हें मनाना मेरा काम होगा. आप शेखर अंकल और उन के बेटे को घर पर बुलाइए. हम सभी एकदूसरे से मिलना चाहेंगे.’’ संध्या टकटकी लगाए बेटी का मुंह देखती रह गई थी. शेखर अपने बेटे के साथ संध्या के घर आ गया था. वहां सहज भाव से सब ने एकदूसरे से बातचीत की थी और कोमल व उस का पति नीरज शेखर के बेटे से बहुत प्रभावित हुआ था. शेखर का डाक्टर पुत्र वास्तव में एक समझदार लड़का था. डाक्टरी पेशे में अत्यधिक व्यस्त रहने की वजह से वह अपने पिता को समय नहीं दे पाता था, इसलिए उन के जीवन में एक संगिनी की आवश्यकता को बेहद जरूरी समझता था. उस के प्रगतिशील विचार जान कर और पिता के प्रति उस का प्रेम और आदर का भाव देख संध्या हैरान थी.

संध्या के मन में चल रही कशमकश को उस ने यह कह कर एकदम दूर कर दिया था, ‘‘आंटी, आप अपने मन में चल रही कशमकश और शंका को दूर कर लें और हम पर विश्वास कर जीवन के इस मोड़ पर नई राह का खुले दिल से स्वागत करें. मैं और मेरी 2 बहनें कोमल और सपना आप के साथ हैं.’’ ‘‘मम्मी, आप इतनी टैंशन में न आएं. अब तो मुसकरा दें प्लीज. आप की खुशी में ही हम बच्चों की खुशी है,’’ दामाद के मुंह से यह सुन कर संध्या के मन में चल रही कशमकश समाप्त हो गई थी. दुविधा के बादल छंट चुके थे.

Fashion Tips: गरमियों में ऐसे चेंज करें लुक

हर सीजन के बदलने के साथ फैशन भी बदलता है. जिसकी वजह से आपको भी हर टाइम फैशन से अप टू डेट रहना पड़ता होगा. लेकिन आजकल के बिजी लाइफस्टाइल में आप कैसे फैशन के बारे में अपडेट रहे. तो आप परेशान न हों. आज हम आप नए फैशन ट्रैंड के बारे में 5 टिप्स बताएंगे, जो आपके को बेहतर दिखाएगा.

1. ट्रैंडी लोफर्स फुट वियर को अपनी ड्रैस के साथ पहनें

जहां बात इन दिनों फुट वियर की बात करें तो महिलाओं के बीच लोफर काफी ट्रेंड में है. इसकी खास बात है कि यह फुट वियर आप किसी ड्रेस के साथ भी पहन सकती हैं.

ये भी पढ़ें- जब खरीदना हो समर ब्राइडल आउटफिट्स

2. अपनाएं रेट्रो लुक वाली लूज जींस का फैशन…

आपके पास कई सारी टाइट फिटिंग जींस होंगी. लेकिन अब लूज जींस का क्रेज अधिक रहने वाला है. इसलिए अपनी वार्डरोब को लूज जींस से जरूर अपडेट करें. यह कंफर्टेबल होने के साथ-साथ आपको रेट्रो लुक भी देती हैं, जो आजकल यंग जनरेशन में काफी पौपुलर है.

3. टाई-डाई यानी कलरफुल टी शर्ट का फैशन

फैशन वर्ल्ड में इस समय सबसे कूल और ग्लैमरस ट्रेंड टाई-डाई टी शर्ट्स है. ये टी शर्ट्स काफी कलरफुल होती हैं. इन टी शर्ट्स के वाइब्रेंट कलर किसी के भी मन को खुश कर देते हैं.

ये भी पढ़ें- गरमियों में ये 5 हैट टिप्स आपके लुक को बनाएंगे कू

4. लुक को पूरा करता है स्ट्रौ बैग

पिछले कुछ महीनों में डिजाइनर स्ट्रौ बैग महिलाओं के बीच काफी पौपुलर रहे हैं. बैग ऐसी चीज हैं, जो महिलाओं की लुक को पूरा करते हैं. बास्केट शैप बैग से राउंड बैग तक स्ट्रौ बैग हर तरह से आपकी लुक में ग्लैमर का तड़का लगाते हैं.

5. न्यूट्रल शेड यानी कपड़ों के कलर का हो बैलेंस

2019 में लोगों के बीच सबसे ज्यादा क्रेज न्यूट्रल शेड्स का है. न्यूट्रल कलर के कपड़े हों या फिर लिपस्टिक, समर ट्रेंड है. अगर आप लोगों की भीड़ में सबसे अलग दिखना चाहती हैं, तो सिर से पैरों तक न्यूट्रल कलर की लुक ट्राई कर सकती हैं.

edited by-rosy

रहनुमा: भाग-2

फिर बातों ही बातों में संध्या को पुनर्विवाह की सलाह सभी ने दे डाली थी. संध्या को बहुत अटपटा लगा था यह हासपरिहास, लेकिन 2-4 दिन बाद उसे फिर ऐसे ही वाक्य सुनने को मिले थे. एक रोज तो अचानक ही संध्या के औफिस का सहकर्मी उस के समक्ष अपने एक मित्र शेखर को ले कर उपस्थित हो गया था और बिना किसी भूमिका के उस ने विवाह प्रस्ताव उस के सम्मुख रख दिया था. शेखर ने उस के सामने बैठ कर स्वयं ही अपना परिचय दिया था कि वह प्रतिष्ठित और उच्च पद पर है और पत्नी की मृत्यु हुए कई वर्ष बीत चुके हैं. एक डाक्टर पुत्र है, जो विवाहित है और 2 छोटे बच्चों का पिता है. पिता के अकेलेपन की त्रासदी पुत्र को भीतर ही भीतर बेचैन किए हुए है. इसलिए उस का आग्रह है कि वे अपनी जीवनसंध्या में अपने लिए उपयुक्त साथी खोज लें.

शेखर का यह आकस्मिक प्रस्ताव संध्या को असंतुलित कर गया था, लेकिन उस के बाद से शेखर के फोन संध्या के पास बराबर आने लगे थे. संध्या कभी तो संक्षिप्त वार्तालाप कर फोन बंद कर दिया करती थी, तो कभी रिसीव ही नहीं करती थी. कभी फोन उठाती लेकिन मुंह से बोल न निकलते. खामोशी की भी अपनी ही जबान होती है, जिसे फोन करने वाला तुरंत समझ जाता है. लेकिन जिस ‘हां’ को शेखर सुनना चाहता था वह सहमति नदारद रहती. संध्या की ससुराल की तरफ से तो कोई रिश्तेदारी थी नहीं, मायके में पिताजी थे और 2 भाई थे. उस ने अपनी भाभी से शेखर के प्रस्ताव के विषय में बात की थी, तो बात पूरे घर में फैल गई थी. किसी की तरफ से अच्छा रेस्पौंस नहीं मिला था. संध्या के पिताजी तो इस बात को जान कर क्रोध में फोन पर बरस पड़े थे, ‘‘अब तुम्हारी उम्र मोहमाया के बंधनों से नजात पाने की है या बेसिरपैर के संबंध से बंधने की है? कुछ अध्यात्म की ओर मन लगाओ और अच्छा साहित्य पढ़ो. समय फालतू है तो समाजसेवा की सोचो. रिटायरमैंट के बाद खाली समय बिताने की समस्या अभी से क्यों है तुम्हारे दिमाग में? इस उम्र में स्वयं को बंधन में बांधना एकदम वाहियात बात है.’’

ये भी पढ़ें- पितृद्वय: भाग-1

घर वालों का नकारात्मक रवैया शेखर को संध्या ने बता दिया था और फिर बोली थी कि आप अपने लिए किसी अन्य साथी की खोज करिए, मैं ऐसे ही ठीक हूं. संध्या की बेरुखी के बाद भी शेखर ने उसे समझाने का असफल प्रयास किया था. फिर स्वयं भी मौन साध लिया था. उस के फोन आने बंद हो गए थे और दिन गुजरते जा रहे थे. शुरू में तो संध्या ने राहत की सांस ली थी, किंतु 1 हफ्ता बीत गया तो उस की फोन की प्रतीक्षा में बेचैनी बढ़ने लगी थी. मन एक नई उलझन में उलझता जा रहा था कि क्या हो गया? मेरी बेरुखी से ही फोन आने बंद हो गए शायद? या शायद शेखर ने भी अपना बचकाना विचार छोड़ दिया होगा और यही उचित भी है. इस उम्र में किसी के साथ जुड़ने, संग रहने का क्या मतलब?

लेकिन उस का अधीर मन यह भी कहता कि वह स्वयं ही फोन कर ले. किंतु संस्कारी चित्त राजी न होता. एक दिन मन के हाथों हार कर संध्या ने मोबाइल पर शेखर का नंबर पंच कर हलकी सी मिस्ड कौल दे दी थी. ऐसा करने से उस का हृदय जोरों से धड़क उठा था. उस के मोबाइल पर तुरंत यह संदेश आ गया था, ‘मैं बहुत परेशान हूं, अभी बात नहीं कर पाऊंगा.’

‘क्या हुआ? कैसी परेशानी?’ उस ने सवाल भेजा था पर उस का कोई जवाब नहीं आया था. अगले दिन संध्या यह सोच कर अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गई थी कि व्यर्थ ही उस ने अपने मन को बेकार के झंझट में फंसाया. किंतु भावनाओं के ठहरे हुए दरिया में अचानक एक पत्थर आ गिरा था. एक दिन मोबाइल की घंटी बजी, तो संध्या ने स्क्रीन पर नजर डाली. उस पर शेखर का नाम था. उस ने कांपते हाथों से मोबाइल हाथों में थामा तो शेखर का अक्स उभर आया था. शेखर ने बताया था कि उन का इकलौता बेटा डाक्टरों और सहायकों की टीम के साथ किसी गांव में फैली महामारी का इलाज करने और बीमारों की तीमारदारी के लिए गया था. लेकिन मरीजों को भलाचंगा करतेकरते वह स्वयं भी रोग की चपेट में आ गया था. इसलिए वह उस के बेहतर इलाज के लिए उसे तुरंत दिल्ली ले कर गया था. वहां बढि़या मैडिकल सेवा की बदौलत उस की सेहत में सुधार होने लगा और अब वह धीरेधीरे पूर्ण स्वस्थ हो रहा है. मैं बहुत परेशान और व्यस्त रहा, क्योंकि बहुत भागदौड़ रही. और कैसी हैं आप? अच्छा फोन बंद करता हूं. डाक्टर के पास जा रहा हूं.

संध्या ने फिर कभी कोशिश नहीं की फोन करने की, न ही दूसरी तरफ से कोई समाचार आया. एक दिन संध्या औफिस से निकल अपने दुपहिया वाहन पर सवार विचारों में खोई चली जा रही थी कि उस की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. उस की एक चीख निकली और वह वाहन समेत सड़क पर जा गिरी. उस के बाद उसे नहीं मालूम कि क्या हुआ. आंखें खुलीं तो उस ने स्वयं को अस्पताल में पाया. कोई भलामानुस उसे अस्पताल ले आया था और फिर घर भी छोड़ गया था. उस के पूरे शरीर में दर्द था और चलनेफिरने में भी दिक्कत थी. जैसेतैसे दूध गरम कर ब्रैड के 2 पीस खा कर उस ने दवा ले ली थी. फिर जल्दी ही उसे नींद आ गई थी. सुबह आंख खुली तो समूचा जिस्म अकड़ा हुआ था. अपनी सहकर्मी मित्र को फोन कर उस ने हादसे की सूचना दी थी और अवकाश के लिए कह दिया था. सांझ होते ही उस की कुलीग्स उस का हालचाल जानने के लिए घर आ गई थीं और उस के खानेपीने का प्रबंध कर गई थीं.

ये भी पढ़ें- जली रोटी से तली पूरी, पिता की रसोई यात्रा

अगले दिन जब नींद से जागी तो सिर दर्द से फटा जा रहा था और सारा शरीर ताप से जल रहा था. वह बिस्तर से उठने के प्रयास में लड़खड़ा गई थी, लेकिन फोन बज रहा था इसलिए जैसेतैसे उस के पास जा कर रिसीवर कान से सटाया था.

‘‘हैलो संध्याजी, आप कैसी हैं?’’ उधर से शेखर की आवाज थी.

‘‘बस तबीयत ठीक नहीं है, बुखार है शायद. ऐक्सीडैंट…,’’ संध्या का कंठ भर्रा गया था, रिसीवर हाथ से छूट गया था.

आगे पढें- फिर कांपते हाथों से चाय बना, 2 बिस्कुट के साथ चाय…

रहनुमा: भाग-1

मोबाइल की सुरीली सी खनक सुन संध्या ने स्क्रीन पर उभरे नंबर और नाम को देखा, तो उस का हृदय तेजी से धड़क उठा. लेकिन मोबाइल बजता रहा और वह खामोश बैठी रही. 10 मिनट बाद लैंडलाइन की घंटी बजी तो उस ने कौलर आईडी पर नंबर चैक किया. पल भर को उस का जी चाहा कि रिसीवर उठा कर बात कर ले, किंतु अपने मनोभाव को संयत कर उस ने फोन काल को नजरअंदाज करना ही ठीक समझा. फिर संध्या अपने दैनिक क्रियाकलाप निबटाने लगी. सुबह घर की साफसफाई करना, चायनाश्ता बना कर खाना फिर औफिस चले जाना और सांझ ढले थकेमांदे घर लौटना यही उस की दिनचर्या रहती. लेकिन घर लौटने पर खालीखाली सूना घर देख उस का मन उदास हो जाता. देह को ठेलती वह किचन में जा कर चाय बनाती और टीवी औन कर देती. देर रात तक टीवी चलता रहता तो टीवी के शोर से घर का सन्नाटा जैसे समाप्त हो जाता.

रात के सन्नाटे में जरा सी आहट होते ही वह कांप जाती. एक रात जब वह सो रही थी तब मुख्यद्वार के बाहर लगी घंटी बज उठी थी. उस की नींद टूटी तो इतनी रात गए कौन होगा, सोच कर वह सिहर उठी थी. फिर घबरा कर वह चीख उठी थी कि कौनहै? लेकिन कोई उत्तर न पाने पर कांपते हाथों से खिड़की का पल्ला खोला था. लेकिन बाहर कोई नजर नहीं आया था. जब गेट के बाहर की घंटी लगातार बजती रही तो वह कांपते हाथों से दरवाजा खोल लौन में आ गई. गेट की घंटी पूर्वत बज ही रही थी. शायद राह चलते किसी मनचले ने मसखरी करने के लिए घंटी बजा दी थी, जो घंटी का स्विच दबा रह जाने की वजह से लगातार बजती चली जा रही थी. उस ने घंटी का स्विच औफ किया था और तुरंत भीतर जा कर दरवाजेखिड़कियां बंद कर दी थीं. किंतु उस के बाद सारी रात वह सो नहीं सकी थी.

ये भी पढ़ें- ज़िंदगी-एक पहेली: भाग-12

संध्या के पति की मृत्यु हुए बरसों बीत गए हैं. 2 बेटियां हैं जिन का विवाह उस ने स्वयं ही किया है. एक बेटी विदेश में है और दूसरी भारत में ही है. लेकिन कोसों दूर. वैसे संध्या की बढि़या नौकरी है, इसलिए अच्छाखासा वेतन और घर में सभी सुविधाएं हैं. सुबह से शाम कैसे हो जाती है संध्या को पता नहीं चलता, लेकिन सांझ ढले एकांत घर में आना उसे तनमन से थका देता है. बेटियों से रोज बातचीत होती है किंतु वे दोनों अपनी गृहस्थी में व्यस्त हैं, इसलिए ज्यादा समय नहीं दे पातीं. जब कभी वह बीमार हो जाती है तो अपना अकेलापन उसे और भी भयावह लगता है.

उस दिन जब वह सांझ ढले घर लौटी तो देखा कि लैटर बौक्स में एक पत्र पड़ा था. उसे निकाल वह ताला खोल सोफे पर पसर गई थी और उसे पढ़ते ही उस का दिल तेजी से धड़कने लगा था. उस में लिखा था:

संध्याजी,

फोन पर आप से बात न हो सकी, इसलिए मैं पत्र लिखने को विवश हो गया. फिर मेरे हृदय में भावनाओं का जो ज्वार उमड़ रहा है उस की सच्ची अभिव्यक्ति पत्र द्वारा ही संभव है.

मात्र 4 वर्षों के वैवाहिक जीवन के बाद मेरी पत्नी का देहांत हो गया था. तब से अपनी एकमात्र संतान अपने बेटे की परवरिश अकेले ही करी. मन में कभी ब्याह का खयाल नहीं आया. लेकिन जीवन के इस मोड़ पर आप से मिला, तो इच्छा जाग उठी कि अपने जीवन में आप को शामिल कर सकूं. मैं ने अपने बेटे के बारबार आग्रह करने पर ही इस जीवनसंध्या में किसी साथी के विषय में सोचना शुरू किया है. अगले वर्ष नौकरी से रिटायर हो जाऊंगा तो अच्छीखासी पैंशन मिलेगी. इस के अलावा काफी चलअचल संपत्ति का भी मालिक हूं और स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी पूर्णतया स्वस्थ और फिट हूं.

आजकल आप के विषय में ही सोचता रहता हूं. मैं जानता हूं कि दुनिया क्या कहेगी, परिवार क्या सोचेगा. मात्र इस सोच के चलते चुप्पी साधे हुए हूं, जबकि प्रसन्न रहना, हंसना और नीरस जिंदगी में बहार लाना कोई पाप नहीं है.

-शेखर

संध्या ने पत्र बंद कर एक ओर सरका दिया था, लेकिन लिखने वाले ने अपनी भावनाओं को खुलेपन से व्यक्त किया था, इसलिए उस में संवेदना के तार झनझना उठे थे. रात में भोजन के बाद वह टीवी देखने में मगन थी कि मोबाइल बज उठा था. वह बोल उठी थी, ‘‘क्षमा कीजिएगा. आप जैसा सोचते हैं वैसा होना बिलकुल भी संभव नहीं है. मैं अपने जीवन में खुश और संतुष्ट हूं. मैं अकेली नहीं हूं, मेरा भरापूरा परिवार है,’’ इतना कह कर उस ने फोन काट दिया था और टीवी बंद कर बिस्तर पर लेट गई थी. काफी देर तक वह जागती रही फिर न जाने कब उस की छटपटाहट को निद्रा ने दबोच लिया था. अगले दिन रोज की तरह औफिस के काम को तत्परता से निबटा वह सांझ ढले घर के लिए निकलने को ही थी कि अपने सामने एकाएक उपस्थित हो गए शख्स को देख चौंक गई थी.

‘‘आप?’’

‘‘हां मैं, मुझे आना ही पड़ा. आप को अचानक क्या हो गया? पहले ‘हां’ और फिर एकदम चुप्पी साध लेना. आप ने स्वयं ही तो पहले मौन स्वीकृति दी थी.’’

संध्या नजरें नहीं मिला पा रही थी. फिर भी बोली थी, ‘‘मुझ से भूल हो गई थी. यह सब इस उम्र में अच्छा नहीं. मुझे घर जल्दी पहुंचना है.’’ उस के शब्द इस के बाद गले में अटक कर रह गए थे.

‘‘आप क्यों संदेहों, आशंकाओं से घिर कर अपनेआप को आहत कर रही हैं?’’

‘‘प्लीज मुझे किसी रिश्ते, संबंध के दलदल में नहीं फंसना है,’’ संध्या झुंझला उठी थी.

ये भी पढ़ें- जली रोटी से तली पूरी, पिता की रसोई यात्रा

घर वापस आ कर वह निढाल सी सोफे पर बैठ गई थी. चाय पीने की इच्छा तो थी, किंतु बनाने का मन नहीं कर रहा था. वह सोच रही थी कि जीवन के शून्याकाश में एकाकी तारे जैसी स्थिति है उस की. वैसे जीवन में आए एकाकीपन के कष्टों की धूप उस के लावण्य को झुलसा नहीं सकी थी. एक दिन औफिस की एक पार्टी के दौरान संध्या ने अपने लंबे बाल खुले रख छोड़े थे, जिन्हें देख उस की सहकर्मी सखियां हैरान हो गई थीं. उस के नित्यप्रति बंधे जूड़े से उन्मुक्त लंबे बाल जो कंधों पर बिखरे थे. उन्हें देख कर एक बोली थी, ‘‘ये आप के बाल हैं या लहराताबलखाता झरना. संध्याजी, आप अपनी उम्र से छोटी और स्मार्ट दिखती हैं. शारीरिक रूप से भी आप बिलकुल फिट हैं.’’

आगे पढ़ें- फिर बातों ही बातों में संध्या को पुनर्विवाह की सलाह….

महायोग: धारावाहिक उपन्यास, भाग-3

अब तक की कथा :

नील लंदन से अपनी मां के साथ लड़की देखने भारत आया था. दिया व उस के परिवार के ठाटबाट से प्रभावित नील व उस की मां ने विवाह के लिए तुरंत हां कर दी थी. अपनी दादी की कन्यादान करने की जिद तथा पंडित की ‘महायोग’ की भविष्यवाणी ने दिया के पत्रकार बनने के सपने को चिंदीचिंदी कर के हवा में बिखरा दिया.

अब आगे..

यशेंदु के मन में कहीं कुछ हलचल व बेचैनी थी. एक तरफ उन्हें दिया रूपी घर की रोशनी के विलीन हो जाने का गम सता रहा था तो दूसरी ओर मां के प्रति उन का दायित्व व आदर उन्हें उन के चरणों में झुकने को मजबूर कर रहे थे. आज की युवतियों के लिए केवल पति पा जाना ही उपलब्धि नहीं होती, वे पहले अपने भविष्य के प्रति सचेत व चौकन्नी होती हैं. उस के बाद विवाह के बारे में सोचती हैं. दिया का विवाह हुआ पर उसे स्वयं ही विश्वास नहीं हो रहा था कि वाकई उसी का विवाह हुआ है.

दिया सुंदर थी. मुसकराते मुख पर सदा एक चमक बनी रहती. इसी दिया को उस की सहेली के भाई के विवाह में नाचते हुए जब एक परिवार ने देखा तो झट से उन्हें लंदन में बसे हुए अपने घनिष्ट मित्र की याद आई. मित्र की मृत्यु हो चुकी थी, उन की पत्नी और बेटा लंदन में ही रहते थे. मां अपने सुपुत्र के लिए सुंदर, सुघड़ बहू की तलाश कर रही थी. दिया को जिन लोगों ने पसंद कर लिया था वे खोजते हुए दिया की दादी के पास पहुंच गए थे और उन्होंने सारी बात दादी के समक्ष खोल कर रख दी थी. लंदन वाला लड़का अपनी मां के साथ जल्दी ही भारत में दुलहन खोजने आने वाला था. इस से पहले भी वह दुलहन की तलाश में 2-3 बार भारत के चक्कर लगा चुका था. परंतु कहीं पर जन्मपत्री न मिलती तो कहीं उन के हिसाब से सुंदर, सुशील कन्या न मिल पाती. दिया को पसंद करते ही लड़के के पिता के मित्र ने दिया की दादी से मिल कर जन्मपत्री बनवा ली थी और इस प्रकार दिया के जीवन पर विवाह की मुहर लगाने का फैसला करना निश्चित होने जा रहा था.

लड़का गोत्र, धर्म के अनुसार भी उच्च था और सितारों के हिसाब से भी. दादी को बस एक ही बात की हिचक थी कि उन की पोती सात समंदर पार चली जाएगी तो म्लेच्छ हो जाएगी परंतु जब उन्होंने बिचौलिए से यह सुना कि लंदन में बस जाने वाला परिवार अति धार्मिक, पूजापाठ व पंडितपुजारियों को पूजने वाला है तो उन की बाछें खिल गईं. अरे, ऐसा ही तो घरवर चाहिए था उन्हें अपनी पोती के लिए. बस, इतनी दूर. बीच वालों ने आश्वासन दिया, ‘‘अरे अम्माजी, आजकल ये दूरी क्या दूरी है. यशेंदुजी तो कितनी बार औफिस के काम से विदेश जा चुके हैं. पूरी दुनियाभर का दौरा कर लिया है उन्होंने, फिर लंदन तो ये रहा.’’

बीच वालों ने चुटकी बजाते हुए दिया की दादी के समक्ष कुछ ऐसा खाका खींचा कि दादी बिना लड़के को देखे व बिना लड़के की मां से मिले ही विभोर हो गईं और उन पर व यशेंदु पर कुछ ऐसा सम्मोहन हुआ कि उन्होंने पंडित से दोनों की कुंडली मिलवाने का फैसला कर ही लिया. जब कामिनी से ही पूछने की आवश्यकता नहीं समझी गई तो दिया की तो बात ही कहां आती थी? परंतु जब कामिनी के समक्ष बात आई तब वह छटपटा उठी और  उस ने दबे स्वर से विरोध किया भी परंतु उन के पुरोहित के हिसाब से जन्मपत्री इतनी बढि़या मिल रही थी कि मानो संसार के सर्वश्रेष्ठ गुण दिया की झोली में आ पड़ेंगे. कामिनी को लगा कि उस की ही कहानी एक बार फिर दोहराई जा रही है.

कामिनी ने रोती हुई दिया को समझाया था, अभी कौन सा लड़के ने उसे और उस ने लड़के को देख लिया है. अभी दिल्ली दूर है, चिंता न करे. परंतु दिल्ली दूर नहीं थी. 15 दिनों में ही वह सुदर्शन लड़का अपनी मां के साथ अहमदाबाद पधार गया. कामिनी ने कई बार यशेंदु यानी यश से कहा कि वह कम से कम लड़के वालों के मूल का तो पता कर ले. यश ने पूछताछ जो भी की हो, पत्नी को तो अपने खयाल से उस समय संतुष्ट कर ही दिया था, जो वास्तव में अंदर से बहुत अधिक असहज थी.

दिया का भी बुरा हाल था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि उस के घर वाले उसे इस प्रकार घर से खदेड़ने पर क्यों तुले हैं? उत्तर वही था जन्मपत्री का बहुत बढि़या मिलान, क्या ग्रह हैं, सारे गुण मिल रहे हैं न.

‘‘नहीं यश, इस लड़के को हाथ से न जाने देना,’’ दादी बेटे को फुसला रही थीं.

वैसे तो यशेंदु ने भी मन ही मन कहीं कुछ हलचल सी, बेचैनी सी महसूस की थी परंतु मां के बारंबार एक ही बात की पुनरावृत्ति करने व पंडित के दृढ़ विश्वास के कारण उन के मन में भी अपनी बेटी के भविष्य की एक सुखद झांकी सज गई थी. उन की लाड़ली सुंदर, कमसिन व फूल सी प्यारी थी.

हर व्यक्ति को अपनी मानसिक व शारीरिक जरूरतों को पूरा करना होता है. ये जरूरतें नैसर्गिक हैं. ये यदि न हों तो भी व्यक्ति नौर्मल नहीं है और यदि ये पूरी न हों तो भी व्यक्ति नौर्मल न रहे. प्रकृति के साथ किसी भी प्रकार का झगड़ाटंटा मोल लेने की आखिर जरूरत क्या है? अब अपनी बात को बल देने अथवा अपनी बात मनवाने या फिर प्राकृतिक गुणों अथवा अवगुणों को किसी गणना से अपने अनुसार फिट बैठाने के लिए हम जिन उपायों को उपयोग में लाते हैं वे तो हमारे स्वयं के ही बनाए गए होते हैं. परंतु जब गले तक डूब कर हम उन में बारंबार डुबकी लगाते रहते हैं तो कभी न कभी तो थोड़ाबहुत पानी गले के अंदर भी पहुंच ही जाता है. यही हाल यशेंदु का हो रहा था.

उन्हें कभी मां की बात सही लगती तो वे उन के साथ बेटी के ब्याह के स्वप्निल समुद्र में गोते लगाने लगते, कभी फिर कामिनी पर दृष्टि घुमाते तो कामिनी की बात उन्हें काफी हद तक ठीक लगती और जब अपनी लाड़ली पर दृष्टिपात करते तो उन का कलेजा मुंह को आता. हाय, अपनी फूल सी बच्ची को अपनी दृष्टि से इतनी दूर भेज देंगे. उस के जाने से रह क्या जाएगा इस घर में. सारी रोशनी उस के जाते ही विलीन हो जाएगी. परंतु मातापिता की परमभक्ति ने यश का पलड़ा मां

के चरणों में झुका दिया था. सालभर पहले पिता तो पोती का कन्यादान देने की हुड़क मन में समेटे कूच कर गए थे, अब क्या मां भी? नहींनहीं, वे रात को उठ कर बैठ जाते.

कामिनी सबकुछ देखसुन कर भी न कुछ देख पाती, न कुछ सुन पाती. एकाध बार एकांत में पति के सम्मुख उस ने अपनी विचारधारा रखने का प्रयास किया था, ‘‘क्यों नहीं आप, अम्माजी को समझा पाते? आप शिक्षित हैं, दुनिया देखी है. देख रहे हैं, तब भी…’’

‘‘कामिनी, प्लीज, मैं मां के विरुद्ध नहीं जा पाऊंगा, मुझे परेशान मत करो,’’ वे जैसे पत्नी को झिड़क से देते.

कामिनी और भी शांत हो जाती. बेटी का मासूम चेहरा, उस की आंखों के मासूम सपने उस की आंखों में घूमने लगते. और दिया? उसे तो मानो अपने से ही अजीब सी शर्म व अलगाव सा महसूस होने लगा था. कैसे बचाए वह अपनेआप को? उस की कई करीबी सहेलियां थीं जिन्हें इस के बारे में जानकारी थी बल्कि उसी की एक सहेली से ही तो दिया व उस के परिवार के बारे में पूछताछ कर के यह रिश्ता दिया की दादी तक पहुंचा था. जब कभी सहेलियों में चर्चा होती, दिया की प्रशंसा होने लगती :

‘‘वाह दिया, बैठेबिठाए इतना बढि़या रिश्ता.’’

‘‘और क्या, पता नहीं, क्यों यह बिसूरता सा मुंह बनाए रहती है. अरे पहले लड़के को देख तो ले.’’

‘‘कभीकभी अगर कोई छोटामोटा दुर्गुण हो तब भी उसे देख कर मुंह घुमा लेना पड़ता है. तू बेकार ही…’’

दिया खीज जाती. क्या ये सहेलियां वे ही हैं जो उस से अपने पैरों पर खड़े होने की, अपने कैरियर की बातें करती थीं? रिश्ते की बात दिया की हो रही थी और शहनाई इन के दिलों में बजने लगी थी.

‘‘तो भाई, तुम लोगों में से कोई कर लो उस लड़के से शादी,’’ दिया खीज कर बोल उठी थी.

‘‘हमारे ऐसे दिन कहां?’’ एक ने लंबी सांस भर कर कहा और सब की सब खिलखिला कर हंस दी थीं. फिर तो दिया ने कभी कोई बात करने की चेष्टा भी नहीं की. ‘जो होगा, देखा जाएगा,’ उस ने अपने सिर को झटक दिया था और अपने भविष्य के बारे में सिर खपाना ही छोड़ दिया था.

आखिरकार, वह वक्त आया कि मां, बेटा व उन का बिचौलिया दिया के घर में पधारे. नील 27वें वर्ष में लगा था. दिया 19 की हो कर 20वें में लगी थी और ग्रेजुएशन कर रही थी. कामिनी का मन अब उम्र की देहरी पर पहुंच गया. आज के जमाने में कौन उम्र में इतना लंबा गैप रखता है? वह सोच ही रही थी कि भाई के साथ दिया ड्राइंगरूम में आ पहुंची. निर्विकार भाव से वह नमस्ते कर के अपनी मां के पास सोफे पर बैठ गई. नील और उस की मां ने दृष्टि उठा कर दिया को देखा और दोनों के चेहरे खिल उठे.

‘‘बेटी, यहां आ कर बैठो, मेरे पास,’’ नील की मां ने दिया को संकेत से बुलाया परंतु वह वहीं जमी रही.

‘‘अरे शरमा क्यों रही हो, आओ न,’’ उन्होंने फिर उसे बुलाया.

दिया ने एक सरसरी दृष्टि मां कामिनी पर डाली और जा कर नील की मां के पास बैठ गई. उस ने कोई पैरवैर छूने का दिखावा नहीं किया. कुछ ही पल में दिया वहां से उठ कर चल दी थी क्योंकि बड़ा भाई स्वदीप उसे हिदायत दे कर लाया था कि नील ने लड़का हो कर उन की मां के पांव छुए हैं तो वह भी नील की मां के पैर छुए. लेकिन दिया ने बड़े भाई को कुछ ऐसी दृष्टि से घूरा था कि वह सकपका कर वहां से चल दिया था. उसी के पीछेपीछे दिया भी चली आई थी. पर कुछ ही देर में पुन: नील की मां के पास आ कर बैठ गई.

नील की मां दिया से इधरउधर की बातें करती रहीं. उन्हें बताया गया था कि दिया संगीत व नृत्य में भी पारंगत है तो उन्होंने बड़ी प्रसन्नता दिखाई थी. उन के अनुसार, नील उन का इकलौता पुत्र था. सो, उन के घर में सारी रौनक नील व उन के परिवार से ही होनी थी.

जब दिया व नील का परिचय कराया गया तब दिया ने एक बार नील को ठीक से देखा, उस के युवा मन में एक बार तो थोड़ी धुकधुक सी हुई थी परंतु उसे अपने पत्रकारिता के शौक को पूरा न कर पाने का दुख महसूस हो रहा था.

युवा मन न जाने कितने सपने संजोता है. आज की युवतियों के लिए केवल पति पा जाना ही उपलब्धि नहीं होती, वे पहले अपने भविष्य के प्रति सचेत व चौकन्नी होती हैं. उस के बाद विवाह के बारे में सोचती हैं. दिया भी ऐसा ही सोचती थी. उस के घर में सभी तो सुशिक्षित हैं, सभी के शिक्षित स्वप्न हैं. नवीन सोच, नए परिवेश, भारत से विदेश तक लड़की को भेजने की तैयारी पर उसे परोसी जाने वाली थेगली सी चिपकी मानसिक पीड़ा भी. पता नहीं क्या होने को है? कामिनी व दिया की बेचैनी उन के मुख पर पसरी हुई थी.

आगे पढ़ें- ‘‘आगे क्या करने का विचार है, बेटी?’’ अचानक नील की मां ने चुप्पी तोड़ी...

महायोग: धारावाहिक उपन्यास, भाग-4  

‘‘आगे क्या करने का विचार है, बेटी?’’ अचानक नील की मां ने चुप्पी तोड़ी.

‘‘जी,’’ दिया ने दृष्टि उठा कर नील की मां की ओर देखा तो उस की दृष्टि नील से जा टकराई. प्रश्न अनुत्तरित रह गया, उस ने अपनी दृष्टि फिर नीची कर ली. शायद नील की दृष्टि के सम्मोहन से बचने के लिए.

‘‘मैं पूछ रही थी आगे क्या करना चाहती हो, दिया?’’ नील की मां ने फिर प्रश्न चाशनी में लपेट कर उस के समक्ष परोस दिया था.

‘‘पत्रकारिता, जर्नलिज्म,’’ उस ने उत्तर दिया व होंठ दबा लिए.

‘ऐसे पूछ रही हैं जैसे मुझे दाखिला ही दिलवा देंगी,’ मन ही मन उस ने बड़बड़ की और एक आह सी ले कर फिर मां को ताका जो निरीह सी अपने पति से सटी बैठी थीं. छुरी तो उस की गरदन पर चलने वाली है और मां हैं कि सबकुछ देखसुन रही हैं. उसे मां से भी नाराजगी थी, बहुत नाराजगी. यह क्या व्यक्तित्व हुआ जो इतना शिक्षित, समझदार होने के बाद भी अपने अस्तित्व को बचा कर न रख सके. एक मां के साथ केवल उस का व्यक्तित्व ही नहीं, बच्चों का अस्तित्व भी जुड़ा रहता है.

‘‘दिया का सपना है कि वह एक दिन पत्रकारिता की दुनिया में अपना नाम कर सके. मीडिया से तो बहुत पहले से ही जुड़ी हुई है, अपने स्कूलटाइम से, इसीलिए मुझे भी लगता है कि इसे अपने कैरियर पर पहले ध्यान देना चाहिए,’’ न जाने कामिनी के मुख से कैसे ये शब्द फटाफट निकल गए. मानो कोई इंजन दौड़ा जा रहा हो. उस दौरान दिया की आंखों की चमक देखते ही बन रही थी. न सही अपने लिए, मां मेरे लिए बोलीं तो सही.

‘‘यस, आई वांट टू गो फौर जर्नलिज्म,’’ दिया ने एकदम जोर से कहा तो सब के चेहरे कामिनी की ओर से मुड़ कर दिया की तरफ हो गए.

‘‘कामिनी, ठीक है पर ये लोग कह रहे हैं कि दिया की पढ़ाई में जरा भी ढील नहीं होगी. सोचो, तुम्हारी बेटी औक्सफोर्ड से जर्नलिज्म करेगी,’’ यश उन्मुक्त गगन में स्वच्छंद विचरण करते पंछी की तरह उड़ान भर रहे थे. नील के सलीके व सुदर्शन व्यक्तित्व ने उन पर भी जादू कर दिया था.

दादी का चेहरा अपने अपमान से झुलसने लगा. उन के सामने इतने वर्षों में कभी भी मुंह न खोलने वाली कामिनी आज बाहर के लोगों के समक्ष…परंतु चालाक थीं, बात को संभालना जानती थीं. बनती हुई बात आखिर बिगड़ने कैसे देतीं? और उन का कन्यादान का सपना? वह तो अधर में ही लटक जाता. यह उन का अहं कभी बरदाश्त न कर पाता. घर में आई तो बेटी बेशक 2 पीढि़यों के बाद ही सही पर उन की ही कमी से? नहीं, वे ऐसा नहीं होने देंगी. उन्होंने वहीं बैठेबैठे पंडितजी की ओर दृष्टि से ही संकेत किया.

‘‘देखिए मांजी,’’ पंडितजी ने दिया की दादी से मुखातिब हो कर कहा, ‘‘अब आप ने हमें यहां बुलाया है तो किसी प्रयोजन से ही न. हम तो पहले ही इस कुंडली का मिलान कर चुके हैं. हम ने आज तक इतने बढि़या ग्रह नहीं देखे. क्या ग्रह हैं. मानो स्वयं रामसीता की कुंडली मेरे हाथ में आ गई हो.’’

पंडितजी बोल तो गए परंतु बाद में उन्होंने अपनी जबान मानो दांतों से काट ली. रामसीता यानी विरह?

नील की मां की आंखों में एक बार हलकी सी निराशा की झलक आई फिर उन्होंने स्वयं को कंट्रोल कर लिया. ‘‘जरा देखें तो सही कामिनीजी, कैसी सुंदर जोड़ी है. सच ही, रामसीता की सी जोड़ी,’’ नील की मां को कुछ तो कहना ही था. उन्होंने पंडित की बात दोहराई तब भी किसी का ध्यान रामसीता पर नहीं गया, मानो सब हां में नतमस्तक हो कर ही बैठे थे.

‘‘देखिए जजमान,’’ पंडितजी ने फिर अपनी नाक घुसाई, ‘‘या तो भगवान, पत्री, सितारों और भाग्य को मानिए नहीं और अगर मानते हैं तो पूरे मन से मानिए. यहां स्पष्ट रूप से सितारे बोल रहे हैं कि दोनों ही एकदूसरे के लिए बने हैं. जब भगवान

ही इन दोनों को जोड़ना चाहता है तो हम लोग हैं कौन उस की बात न मानने वाले. आप चाहें तो किसी और पंडित से बंचवा लें पत्री, मिलवा लें कुंडली.’’ कह कर पंडितजी अपनी पोथीपत्रा समेटने का नाटक करने लगे.

‘‘अरे, क्या बात कर रहे हैं, पंडितजी?’’ दिया की दादी ने उन्हें डपट कर बैठा दिया, ‘‘कितने सालों से हमारे यहां हो. पहले पिताजी आते थे तुम्हारे. अब क्या हम किसी और के पास मारेमारे फिरेंगे. बैठो यहीं पर शांति से,’’ अब किस का साहस कि दादीजी की बात टाल सके. सब मुंह बंद कर के बैठ गए.

‘‘हम ने तो आप को पहले ही नील की जन्मपत्री मंगवा दी थी. आप ने मिलवाई, उस के बाद ही हम ने इन को बुलवाया है. आप तो जानते हैं कि बारबार इतनी दूर से आना, वह भी काम छोड़ कर …’’ अब बिचौलिए से भी नहीं रहा गया.

‘‘देखो दिया बिटिया, तुम्हें नील से कुछ बातवात करनी हो तो…’’ आवाज में कुछ बेरुखी सी थी फिर तुरंत ही संभल कर बोलीं नील की मां, ‘‘मेरा मतलब था कि एक बार बात तो कर लो नील से. अब आजकल सब पढ़ेलिखे बच्चे होते हैं. अपना भलाबुरा समझते हैं. तुम एक बार बात करो नील से, फिर जो भी तुम्हारा डिसीजन हो…’’

‘‘जाओ बिटिया, अपना कमरा तो दिखाओ नील को,’’ दादी ने दिया को आज्ञा दी तो उसे उठना ही पड़ा. मां के इशारे से नील भी दिया के पीछेपीछे हो लिया था.

जिंदगी का पता ही नहीं चलता, अचानक किस मोड़ पर आ कर खड़ी हो जाती है कभीकभी. जिस दिया को विवाह करना ही नहीं था, जिस के सपने अभी अधर में झूमती पतंग की भांति जीवन के आकाश में लहलहा रहे थे, उसी दिया ने न जानेकिन कमजोर क्षणों में विवाह के लिए हामी भर ली. इतनी जल्दी में विवाह हुआ कि उसे स्वयं पर ही विश्वास करने में काफी कठिनाई हुई कि वाकई उसी का विवाह हुआ है. उस जैसी लड़की इतनी आसानी से हां कैसे कर सकती है? पर यह कोई सपना नहीं था, जीवन से जुड़ी एक ऐसी वास्तविकता थी जिस से बंध कर दिया को ताउम्र रहना था.

विवाह के बाद कुछ दिन तो दिया को अभी यहीं रहना था. नील लंदन जा कर प्रौसीजर पूरा करने पर ही दिया को ले जा सकता था. इस प्रकार दिया अपनी सपनीली आंखों का सुनहरा भविष्य संजोने लगी थी. दादी बड़ी प्रसन्न थीं कि वे अपने जीतेजी अपनी पोती का ब्याह देख पाई थीं बल्कि कहें कि इसलिए प्रसन्न थीं कि उन्होंने कन्यादान कर दिया था. दिया अपनी शादी से पहले इस शब्द (कन्यादान) से बहुत चिढ़ती थी. वह अकसर अपनी मां कामिनी से बहस करती, ‘‘यह क्या ममा, लड़की क्या इसलिए होती है कि उसे दान किया जाए? जैसे वह कोई व्यक्ति न हो कर कोई चीज हो. और उस चीज के साथ मानो पूरा घर ही उठा कर उस की झोली में डाल दिया जाता है. कैश, हीरे और सोने के आभूषणों के रूप में दहेज. क्या जरूरत है इन सब की?’’

मां तो क्या उत्तर दे पातीं, पहले ही दादी शुरू हो जातीं, ‘‘अरे बिटिया, जमाने की रीत है. लड़का न हो तो वंश कैसे चले और लड़की का कन्यादान न हो तो भला…ये सब तो तेरा हक है…’’ दादी बीच में रुक जातीं और कुछ समझ में न आता तो कहने लगतीं, ‘‘बिटिया, लड़की तो होती ही है दान के लिए. अब हमारे यहां 3 पीढि़यों से बिटिया नहीं हुई थी. तेरे दादाजी तो इतने निराश हो गए थे कि कुछ न पूछो. जब तू हुई तो उन का मुंह फूल सा खिल गया था और उन्हें लगने लगा कि वे भी अब कन्यादान कर सकेंगे. पंडितजी से कितनी पूजा करवाई थी, पूछ अपनी मां से,’’ दादी बड़े गर्व से बोली थीं, ‘‘क्या शानदार पार्टी दी थी.’’

‘‘तो बिटिया इसलिए पैदा की जाती है कि उसे बड़ा कर के किसी दूसरे को दान कर दें?’’ कह कर दिया चुप हो जाती.

दादी को दिया बहुत प्यारी थी परंतु उन्हें उस का इस प्रकार प्रश्न करना कभी नहीं भाया था. वे कभीकभी यशेंदु से कहतीं भी, ‘‘यश, बेटा ध्यान रखो. लड़की है, दूसरे के घर जाना है. बहुत सिर पर चढ़ा रहे हो.’’

यशेंदु चुप ही बने रहते. बड़ी मुश्किल से तो एक गुलाब सी बिटिया महकी थी घर में. उस पर अंकुश लगाना उन्हें बिलकुल पसंद न था. पर मां के सामने बोलती बंद ही रहती थी.

‘‘अच्छा दादी, तब आप के पंडित कहां थे जब गंधर्व विवाह हुआ करते थे. और हां, वैसे तो आप देवताओं को पूजते हो, राजाओं का गुणगान करते हो, पर ये नहीं देखते कि उन्होंने भी अपनी पसंद से गंधर्व विवाह किए थे, वह सब ठीक था, दादी? तब कौन करता था कन्यादान? और आप को पता है, दान शब्द तो तब भी था ही. कर्ण की दान परंपरा को आज तक लोग मानते हैं और कहते रहते हैं, ‘दानी हो तो कर्ण जैसा.’ पर उसी जमाने में द्रौपदी जैसी औरतें भी हुई हैं. दादी, कुछ लौजिक तो होगा ही न? अच्छा, अपने पंडितजी से पूछिएगा, वे जरूर इस पर कुछ प्रकाश डाल सकेंगे.’’

‘‘दिया बेटा, दादी से इस तरह बात नहीं करते. जो कुछ हुआ है या होता रहा है, दादी ने तुम्हें वे ही कहानियां तो सुनाई हैं,’’ यश अपनी बिटिया को समझाने का प्रयास करते.

‘‘ये लौजिकवौजिक तो मैं जानती नहीं, बस, यह पता है कि हमारे पुरखे भी यही सब करते रहे हैं और हमें भी अपनी परंपराओं में चलना चाहिए,’’ दादी कुछ नाराजगी प्रकट करतीं.

‘‘बेटा, लौजिक यह है कि लड़की इसलिए होनी चाहिए जिस से घर भराभरा रहे. लड़की तो एक चिडि़या की तरह होती है जो घरभर में चींचीं करती हुई घूमती रहती है. अगर लड़की न हो तो मां और दादी लड़कों को कैसे सजाएंगी? कैसे उन के लिए शृंगार की चीजें बनेंगी? लड़की घर की रोशनी होती है, घर की आत्मा होती है. सो लड़की के बिना घर सूना रहता है. वहीं, पहले से ही दुनियाभर में नियम है कि लड़की घर में नहीं खपती,’’ कामिनी उसे समझाने की चेष्टा करतीं.

‘‘खपती, मतलब?’’ दिया ने टोका.

‘‘बता रही हूं, चैन से सुनो तो सही. खपने का मतलब है लड़की को घर में नहीं रखा जा सकता.’’

‘‘यानी लड़का घर में जिंदगीभर रह सकता है, लड़की बोझ बन जाती है?’’

‘‘नहीं पगली, बोझ नहीं. दरअसल, लड़की की सभी जरूरतें पूरी हो सकें इसलिए हमारे समाज ने उसे एक परंपरा या स्ट्रक्चर का रूप दे दिया है ताकि लड़की की शादी कर के उसे दूसरे कुल में भेज दिया जाए. सब को एक साथी की जरूरत होती है न? गंधर्व विवाह में भी तो कन्या अपने पति के साथ उस के घर जाती थी न? अपने पिता के घर तो नहीं रहती थी,’’ ऐसे मामलों में कामिनी अपनी बेटी को समझाने में पूरी जान लगा देती थी.

‘‘अरे ममा, मैं शादी की बात ही कहां कर रही हूं? मैं बात कर रही हूं दान की और ये पंडितजी बीच में कहां से घुस जाते हैं? इन्होंने यह दानवान बनाया होगा. आय एम श्योर.’’

‘‘अरे, पंडितजी को क्यों बीच में घसीट लाती है?’’ दादी बिगड़ कर बोलतीं, ‘‘पंडित न हो तो तुम्हें पत्रीपतरे कौन बांच कर देगा? कौन बताएगा यह समय शुभ और यह अशुभ है?’’

‘‘ओह दादी, जरूरत ही कहां है शुभ और अशुभ समय पूछने की? भगवान, जो आप ही तो कहती हैं, हम सब में है…’’

‘‘हां, तो झूठ कहती हूं क्या मैं…’’ दादी बिफरतीं.

‘‘मैं कहां कह रही हूं कि आप झूठ कहती हैं. मेरा मतलब यह है कि जब हम सब में वही है तब उन का कहना न मान कर इन पंडितों के चक्कर में क्यों पड़ती हैं?’’

‘‘अच्छा, तो वे तुझे साक्षात दर्शन देंगे क्या? कोई तो चाहिए रास्ता सुझाने वाला. तुम कालेज जाती हो? पहले स्कूल जाती थीं. तुम्हें पढ़ाने वाले टीचर नहीं होते वहां? झक मारने जाती हो क्या?’’

‘‘पर वे टीचर अपने सब्जैक्ट के ऐक्सपर्ट होते हैं. आप के पंडितजी क ख ग तक तो जानते नहीं अपने सब्जैक्ट में और…’’

‘‘देख बेटा, मेरे जीतेजी तो पंडितजी का अपमान होगा नहीं इस घर में. मेरे मरने के बाद जैसे तुम लोगों को रहना है रह लेना,’’ दादी और नाराज हो उठतीं. कैसा जमाना आ गया है? वे अच्छी प्रकार जानती थीं कि उन की बहू कामिनी भी इन्हीं विचारों की है परंतु उन्हें इस बात का संतोष भी था कि उन की बहू ने उन के सामने तो कभी अपनी जबान खोली नहीं है अब इस नए जमाने की छोकरी को देखो, क्या पटरपटर बोलती है. भला जिस घर में ब्राह्मण का अपमान हो और वह घर पनप जाए? जिंदगीभर कुलपुरोहित ने उन्हें समयसमय पर सहारा दिया है, चेताया है, हर विघ्न की पूजा करवाई है.

#lockdown: फैमिली के लिए बनाएं जायकेदार दही वाली भिंडी

भिंडी हर घर में बनती और पसंद आती है, लेकिन क्या आपने कभी भिंडी को दही के साथ ट्राई करके देखा है. दही वाली भिंडी एक आसान रेसिपी है, जिसे आप अपनी फैमिली और दोस्तों को परोस सकते हैं. साथ ही डिनर हो लंच यह आप कभी भी बना सकते हैं.

हमें चाहिए…

500 ग्राम भिंडी

2 प्याज

1 कप दही

1/2 छोटा चम्मच हल्दी

1/2 छोटा चम्मच हींग

यह भी पढ़ें- घर पर करें ट्राई अचारी टिंडे

1 छोटा चम्मच जीरा

2-3 कलियां लहसुन

1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

2 बड़े चम्मच मूंगफली पाउडर

1/2 छोटा चम्मच धनिया पाउडर

तेल आवश्यकतानुसार

नमक स्वादानुसार.

बनाने का तरीका

भिंडी को धोकर और पोंछ कर लंबाई में काट लें. एक पैन में 2 बड़े चम्मच तेल गरम कर जीरा डालें. हलदी और हींग डालें. प्याज के लच्छे डाल कर कुछ गलने तक पकाएं.

भिंडी डाल कर 4-5 मिनट तक लगातार चलाते हुए भिंडी को कुरकुरा होने तक पकाएं. नमक डाल आंच से उतार लें.

यह भी पढ़ें- दही सेव की सब्जी

2 बड़े चम्मच तेल गरम करें. पिसा लहसुन, लालमिर्च पाउडर, धनिया पाउडर व हल्दी डाल कर अच्छी तरह भूनें.

मूंगफली का पाउडर मिलाएं. कुछ देर भूनें. दही डाल कर अच्छी तरह भुन जाने तक पकाएं. इस मसाले में भिंडी मिक्स कर अच्छी तरह मिला लें. ऊपर से धनियापत्ती बुरक कर गरमगरम परोसें.

edited by rosy

#lockdown: गरमी में ऐसे करें ड्राय, नौर्मल और औयली स्किन की देखभाल

गरमी के मौसम में त्वचा से जुड़ी कई समस्याएं उत्पन्न होती हैं. इन में सनबर्न के कारण चेहरे की रौनक खो जाती है. झुलसाती गरमी में त्वचा की नमी धीरे धीरे कम होने लगती है. इस दौरान महिलाओं को अपनी व्यस्त दिनचर्या से समय निकाल कर चेहरे की रौनक वापस पाने के लिए ब्यूटीपार्लर जाना भी मुमकिन नहीं हो पाता है. ऐसे में वे कुछ आसान उपायों से चेहरे की सुंदरता दोबारा पा सकती हैं. इन के अलावा रैस्टिलेन विटाल जैसे स्किनबूस्टर्स भी उपलब्ध हैं, जो उन के लिए कारगर हो सकते हैं. स्किनबूस्टर रैस्टिलेन विटाल चंद मिनटों में ही और बहुत आसान तरीके से चमत्कारी परिणाम देता है. सब से अच्छी बात यह है कि इस का असर काफी समय तक रहता है.

हाइड्रोफिलिक ह्यालुरोनिक ऐसिड जैल, जिस में पर्याप्त जल बचाए रखने की क्षमता होती है, से त्वचा को मिलने वाली चमक तथा कोमलता 1 साल तक बनी रहती है. त्वचा की ऊपरी परत पर इंजैक्ट करने के बाद रैस्टिलेन विटाल त्वचा को गहराई तक नमीयुक्त बनाता है और उस का पोषण करता है. ह्यालुरोनिक ऐसिड जैल को माइक्रोइंजैक्शन की सहायता से त्वचा की बाहरी परतों में पिरोया जाता है. यह त्वचा को अंदर से नमीयुक्त बनाए रखने के लिए प्राकृतिक रूप से काम करता है. इस से त्वचा निखर उठती है.

ये भी पढ़ें- 5 टिप्स: सांवली स्किन का ऐसे रखें ख्याल

महिलाओं को त्वचा की देखभाल अपनी त्वचा के प्रकार के अनुसार करनी चाहिए.

dry त्वचा के लिए…

ठंडे पानी की बौछार लें: तैलीय त्वचा पाने के लिए गरम पानी से न नहाएं, बल्कि कुछ देर तक ठंडे पानी की बौछारें लें. नहाने से पहले पूरे शरीर की बादाम के तेल से मालिश करें.

ग्लिसरीन: सोने से पहले पूरे चेहरे पर ग्लिसरीन लगाएं और उसे पूरी रात लगाए रखें.

हनी मसाज: चेहरे पर शहद का लेप लगाएं और 3-4 मिनट तक मालिश करने के बाद धो लें. त्वचा का अनिवार्य तेल वापस लाने के लिए इस प्रक्रिया को रोज अपनाएं.

जौ और खीरे का फेस मास्क: 3 चम्मच जौ या जई का पाउडर, 1 चम्मच खीरे का रस और 1 चम्मच दही को अच्छी तरह मिला लें. इस लेप को चेहरे पर लगा कर सूखने दें. उस के बाद सादे पानी से चेहरा धो लें.
तैलीय त्वचा के लिए………
क्लींजिंग: त्वचा को तेल मुक्त बनाने के लिए चेहरे को दिन में 2-3 बार क्लींजर से धोएं.

स्क्रबिंग: नाक और गालों के पास की मृत कोशिकाओं और ब्लैकहैड्स मिटाने के लिए इन हिस्सों को स्क्रब से अच्छी तरह रगड़ें.

सप्ताह में 1 बार फेस मास्क प्रयोग करें: फेस मास्क आसानी से त्वचा का अतिरिक्त तेल सोख लेता है. आप घर पर भी खुद मास्क बना सकती हैं. नीबू, सेब और अम्लीय औषधि: एक बरतन में थोड़ा पानी ले कर उस में कटे सेब को तब तक पीसें जब तक कि वह नरम न हो जाए. सेब पीसने के बाद उस में 1 चम्मच नीबू का रस और लैवेंडर या पिपरमिंट की सूखी पत्तियों का 1 चम्मच चूर्ण मिलाएं. इस मिश्रण को चेहरे पर लगा कर 15-20 मिनट छोड़ दें. फिर कुनकुने पानी से चेहरे को धो लें.

नाजुक त्वचा के लिए……..

क्लींजिंग: चेहरे को किसी ऐसे सौम्य क्लींजर से धोएं, जो आप की त्वचा को नुकसान न पहुंचाए.

मौइश्चराइज करें: नाजुक त्वचा वाले ऐंटीऔक्सीडेंट युक्त मौइश्चराइजर का इस्तेमाल करें. इस से त्वचा जलयुक्त बनी रहेगी.

ये भी पढ़ें- #lockdown: क्या आपको पता हैं चंपी के ये 8 फायदे

सनस्क्रीन: घर से बाहर निकलने से 20 मिनट पहले जिंक औक्साइड और टाइटेनियम डाईऔक्साइड के तत्त्वों तथा एसपीएफ वाले सनस्क्रीन का इस्तेमाल करें.

– डा. इंदु बलानी (डर्मैटोलौजिस्ट), दिल्ली

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें