Mother’s Day 2020: Snacks खाने की भूख को मिटाएं कुछ ऐसे

लॉक डाउन के चलते सभी लोग घरों में कैद है, ऐसे में चाहे अनचाहे भी लोग टीवी स्क्रीन को देखते हुए, काम करते हुए या कोई गेम खेलते हुए कुछ न कुछ स्नैकिंग करते रहते है. ये देखने में तो सिंपल लगता है, पर कम एक्सरसाइज और बार-बार मंचिंग व्यक्ति को कई शारीरिक समस्या में डाल सकती है. मसलन मोटापा, मधुमेह, एसिडिटी, अपच आदि.

इस समय घर पर रहते हुए  हेल्दी स्नैकिंग करने की जरुरत है, ताकि शरीर स्वस्थ रहे और किसी प्रकार की बीमारी न हो. इस बारें में मुंबई की न्यूट्रिशनिस्ट माधुरी रुइया कहती है कि गलत मंचिंग से शारीरिक कई समस्याएं होती है, ऐसे में नट्स सबसे अधिक लाभदायक होता है, जिससे शारीरक समस्या तो आयेगी नहीं, साथ ही स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा. इसमें खासकर बादाम की गुणवत्ता सबसे अधिक है, क्योंकि इसमें विटामिन, खनिज, प्रोटीन और फाइबर भरे हुए होते है. नियमित इसका सेवन सभी के लिए उपयोगी होता है. इसके फायदे निम्न है,

बादाम वजन को घटाने में सबसे अधिक कारगर होती है, अगर आपको एक जगह बैठकर काफी समय तक काम करना है तो एक मुट्ठी बादाम अपने पास रखे, इससे मेन मील के बीच में भूख भी नहीं लगेगी और किसी प्रकार की जंक फ़ूड खाने से भी बच सकते है.

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बादाम स्किन को मुलायम और जवां बनाती है, खासकर जिसकी स्किन रुखी हो और सूर्य की किरणों से बचाना हो, तो बादाम स्किन की खोयी नमी और पोषण को बनाये रखने में कारगर होती है, किसी प्रकार की मोयास्चराइजर स्किन को बाहरी प्रोटेक्शन दे सकती है, पर बादाम अंदर से स्किन को निखारती है और स्किन की ग्लो को भी बढ़ाती है,

बादाम हेल्दी स्नैक होने के साथ-साथ आसानी से मिलता भी है, साथ ही पोषण से भरपूर होने की वजह से कभी भी खाया जा सकता है, ये शरीर के सारे विटामिन्स और मिनरल्स में संतुलन बनाये रखती है, इसे अधिक टेस्टी बनाने के लिए रोस्ट करने के साथ-साथ किसी भी डिश में मिलाया भी किया जा सकता है,

ये टाइप 2 डायबिटीस को मेनेज करने में सक्षम होती है, इसे रोज व्यक्ति अपने डेली डाइट में शामिल कर सकता है,ये ब्लड शुगर के प्रभाव को कम करती है और इन्सुलिन के स्तर को बनाये रखती है,इससे डायबिटीस की बीमारी को बहुत हद तक मेन्टेन किया जा सकता है,

आज की जीवनशैली भागदौड़ वाली हो चुकी है, कम समय में लोग बहुत सारी चीजे पा लेना चाहते है, ऐसे में स्ट्रेस सबकी जिंदगी में बहुत बढ़ चुकी है, जिसका असर शरीर पर बहुत अधिक पड़ने लगता है, घर पर रहकर आजकल लोग बहुत अधिक तनावग्रस्त हो रहे है, ऐसे में सही डाइट और नियमित एक्सरसाइज ही आपको हेल्दी रख सकती है. बादाम, टोटल और एल डी एल कोलेस्ट्रोल को कम करती है ,जिससे हार्ट डेमेज होने से बचता है,

ये जानकर ख़ुशी होगी कि आलमंड में 15 पोषक तत्व होते है, मसलन विटामिन इ, मैग्नीशियम, प्रोटीन, राइबोफ्लेविन जिंक आदि ये केवल स्फूर्ति को ही नहीं बढाते, बल्कि मसल्स मास के ग्रोथ को भी बनाए रखती है.

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बादाम में कैल्शियम भरपूर मात्रा में होता है, जो हड्डियों को मजबूत बनाने का काम करती है,इसलिए हड्डी की बीमारी ओस्टियोपोरोसिस होने के कम चांसेस होते है, इसके अलावा इससे दांत भी मजबूत रहते है,

आलमंड में फाइबर की मात्रा अधिक होने से पाचन क्रिया ठीक रहती है, जिससे कोलोन कैंसर का खतरा कम हो जाता है,

स्मरण शक्ति को मजबूत बनाने के लिए भी बादाम अधिक उपयोगी होता है, इसे नियमित डाइट में लेना सभी के लिए जरुरी है, अल्जाईमर के मरीज भी इसका सेवन कर सकते है.

शिवांगी जोशी को ‘बीवी’ बोलता है ये फेमस TV एक्टर, क्या होगा मोहसिन खान का रिएक्शन?

 सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) फेम एक्ट्रेस शिवांगी जोशी (Shivangi Joshi) का हर कोई दीवाना है. वहीं शिवांगी की मोहसिन खान संग कैमेस्ट्री फैंस को काफी पसंद आती है. लेकिन इसी बीच शिवांगी जोशी को लेकर ‘बिग बॉस 13’ फेम विशाल आदित्य सिंह (Vishal Aditya Singh) सुर्खियों में हैं. दरअसल इसकी वजह उनका एक स्टेटमेंट है, जिसमें विशाल ने बताया है कि वह शिवांगी को बीवी कहकर बुलाते हैं, जिसके बाद उनके फैंस चौंक गए हैं. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला….

शो में साथ काम करते हुए बनी थी बौंडिंग

 

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Vishal n shivangi josi…#begusaria

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विशाल आदित्य सिंह ने हाल ही में दिए इंटरव्यू में कहा है कि सीरियल की शूटिंग  के दौरान हम काफी नए थे और ये शिवांगी के करियर की शुरुआत थी. ये शिवांगी का पहला बड़ा प्रोजेक्ट था और हम शूटिंग के दौरान खूब मस्ती किया करते थे. मैं आज भी उसे बीवी ही कहकर बुलाता हूं क्योंकि शो में शिवांगी ने मेरी पत्नी का रोल अदा किया था. हम अच्छा बॉन्ड शेयर करते हैं. शिवांगी की मम्मी बहुत ही प्यारी है और वो शिवांगी के लिए खाना बनाती थी तो हर दिन मेरे लिए भी अलग से टिफिन भेजा करती थी क्योंकि उन्हें पता चल गया था कि मुझे घर का खाना पसंद है. उन्हें पता था कि मैं अपने परिवार के बिना अकेला रहता हूं तो वो हमेशा मेरे लिए खाना भिजवाती थी और मुझे बहुत प्यार करती थी. मैं उन्हें मासी बुलाता था और कभी-कभी मैं उन्हें उनके नाम से भी बुला लिया करता था. शिवांगी के साथ मेरा बॉन्ड एक दोस्त के जैसा है और हम-एक दूसरे के साथ काफी फ्रेंडली हैं वो मेरी अच्छी दोस्त है.’

 

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Sher khan….🦁🦁 lakhan thakur…#begusaria #vishaladityasingh #shivangijosi

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साथ काम करने पर विशाल ने कही ये बात

 

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#lakhan …#ponam #begusaria

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साथ काम करने पर विशाल आदित्य सिंह ने बताया कि, ‘बेगुसराय में हमें हमारी केमेस्ट्री काफी पसंद आती थी. एक अलग मजा था उस शो में काम करने का. मुझे लगता है कि जब आपका को-एक्टर अच्छा हो तो अलग ही बात होती है और मैं शिवांगी जैसे को-स्टार पाकर काफी खुश था. शिवांगी के साथ मेरा कम्फर्ट लेवल काफी अलग है. लेकिन ये हमारे हाथ में नहीं है कि हम दोबारा काम करें..सिर्फ समय और प्रोड्यूसर ही ये फैसला लेगा. मैं उसके साथ दोबारा काम करना पसंद करुंगा.’

 

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बता दें, शिवांगी जोशी (Shivangi Joshi) और विशाल आदित्य सिंह सीरियल ‘बेगुसराय’ (Begusarai) में साथ नजर आ चुके हैं, जिसमें दोनों ने पति-पत्नी के रोल में नजर आ चुके हैं. वहीं दोनों की कैमेस्ट्री फैंस को काफी पसंद आई थी.

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Hyundai #WhyWeLoveTheVenue: Climate Control

अब गरमियों के दिन शुरू हो गए हैं, जिसके लिए जरूरी है की हर कार में कूलिंग के लिए के लिए एक पावरफुल एयर कंडीशनिंग सिस्टम हो. वहीं Hyundai Venue में कुछ ऐसे नए फीचर्स हैं, जो साल के सबसे गरम दिनों में भी आपको कूलिंग का एहसास  कराएगा.

औटोमैटिक temperature फीचर्स के साथ ये कार को गरमी में ठंडा और सर्दी में गरम रखेगा. रियर-सीट यात्रियों के लिए समर्पित वेंट हैं, जिसमें वायु प्रवाह की मात्रा को समायोजित करने की क्षमता मिलती है. एयर कंडीशनिंग सिस्टम  इको कोटिंग के जरिए किसी भी माइक्रोबियल ग्रोथ को बढ़ने से रोकता है, जिससे कार के अदर ताजगी बनी रहती है.

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गर्मी के दिनों में  Hyundai Venue अब एक कोल्ड ड्रिंक हो या स्नैक्स को ठंडा रखने में मदद करेगा.

वेन्यू आपको ठंडा रखने के साथ आपकी आगे की यात्रा को आरामदायक और ड्राइविंग पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है, इसीलिए #WhyWeLoveTheVenue है.

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#coronavirus: भारत में संक्रमित संख्या 56 हजार पार

भारत में 56000 से अधिक मरीजों की संख्या एक चिंताजनक विषय बन चुका है.  संक्रमित मरीजों की संख्या  प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. गुरुवार के सुबह तक कुल संक्रमित मरीजों की संख्या  52 हजार 951 मामले दर्ज किए गए हैं. गुरुवार के रात तक ( covid19india.org के अनुसार ) यह संख्या 56,351 पहुंच गया, इसमें 37,682 कोरोना मरीज सक्रिय है , वही 16,776 इलाज के बढ़ ठीक हो गए है. वही 1,889 लोगो का मौत हो चुका है.

संक्रमित के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, इनमें सब में एक ही सकारात्मक बात है कि देश में  संक्रमण मुक्त से होने वाले व्यक्तियों की संख्या में भी तेजी से बढ़ोतरी हुई है. ठीक होने वाले मरीजों की संख्या 15300 से अधिक पहुंच चुका है. आइए एक नजर डालते हैं , भारत में किस तरह से कोरोना संक्रमण ने अपना पांव पसारा और किस तरह से 56  हजार की सफर तय किया. इन सभी सवालों का जवाब जानते है 05 विन्दु में…

(1) एक से 1 हजार  तक का सफर

संक्रमित व्यक्तियों की कुल संख्या पर सप्ताहिक दृष्टि से नए मामले पर नजर डालें तो एक बात पाते हैं कि यह अचानक से नहीं बढ़ा,  इसकी बढ़ोतरी की दर धीरे-धीरे थी. 30 जनवरी को भारत के केरल राज्य में संक्रमण का पहला मामला पाया गया था. 15 फरवरी को संक्रमित मरीजों की संख्या 3 थी. 2 मार्च तक किया संख्या बढ़कर 6 हो गई. 6 मार्च को संक्रमित मरीजों की संख्या 31 थी.  10 मार्च को संक्रमित मरीजों की संख्या 62 हो गई. 14 मार्च को संक्रमित मरीजों की संख्या 100 पहुंच गई. वहीं  18 मार्च को संक्रमित मरीजों की संख्या 169 थी , चार दिन बाद 22 मार्च को यह संख्या 332 पहुंच गई. उसके चार दिन बाद 26 मार्च को संक्रमित मरीजों की संख्या 727 पहुंच गई. जबकि 30 मार्च को संक्रमित मरीजों की संख्या 1000 पार कर चुका था.

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(2) 1 हजार से 30 हजार तक सफर

अप्रैल में मामला तेजी से बढ़ा, 1 हजार से 30 हजार का सफर तय हुआ. 1 अप्रैल को संकमित मरीजों की 1397 पहुंच चुका था ,7 अप्रैल को 5351 थे 14 अप्रैल को एक 11487 जबकि यही आंकड़ा 21 अप्रैल को 20080 पहुंच गया. 28 अप्रैल को संक्रमित लोगों की संख्या 31324 था. अप्रैल के आखिरी दिन 30 अप्रैल को 34863 था.

(3) 34 हजार से 56 हजार तक सफर

1 मई को   संक्रमित लोगों की संख्या 37257 तक था. 3 मई को यह संख्या 42505 हो गया. 5 मई को संक्रमित लोगों की संख्या 49400 था. 6 अप्रैल को संक्रमित लोगों की संख्या 52987 था. बीते गुरुवार को संक्रमित लोगों की संख्या 53045 पहुंच गया. वही शुक्रवार के सुबह तक यह संख्या 56,351 पहुंच गया.

(4) संक्रमण से तेजी से बढ़ा मौत का आंकड़ा 

12 मार्च को भारत में कोरोना के कारण पहला मौत दर्ज किया गया.  23 मार्च को भारत में दसवां में दर्ज किया गया.  27 मार्च को भारत में 20 वां मामला दर्ज किया गया.  4 अप्रैल को भारत में 99 लोगों का मौत संक्रमण से हुआ.  10 अप्रैल को भारत में 249 लोग कोरोना वायरस से मारे जा चुके थे.  20 अप्रैल को यह संख्या 592 तक पहुंच गई.  25 अप्रैल को 825 लोगों का मौत कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण हुआ.  28 अप्रैल तक मौत के आंकड़े  ने 1000 की संख्या को पार कर दिया,  मृतक की कुल संख्या 1008 दर्ज किया गया.  जबकि 6 मई को यह संख्या 1785 पहुंच  गया.

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(5) तेजी से बढ़ा है रिकवरी रेट 

देश में कोरोना के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, लेकिन अच्छी बात ये है कि साथ ही रिकवरी रेट भी बढ़ रहा है. स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार गुरुवार को देश मे कोरोना पीड़ितों की संख्या देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या  कुल 52 हजार 952 संक्रमित हैं. 35 हजार 902 का इलाज जारी है. 15 हजार 266 ठीक हो चुके हैं, जबकि 1783 मरीजों की मौत हो चुकी है. स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने बताया कि गुरुवार को 13 राज्यों में कोई नया मामला सामने नहीं आया. दूसरे देशों के मुकाबले भारत में मृत्युदर (3.3%) कम है. रिकवरी रेट बढ़कर 28.83% हो गई है.

#lockdown: नई दुल्हन ट्राय करें ये आसान ब्यूटी टिप्स

श्रुति की शादी को अभी 10 दिन भी नहीं हुए थे कि लौकडाउन हो गया. कहां तो श्रुति सोच रही थी कि और वह और रोहन हनीमून के लिए सिंगापुर जाएंगे परंतु कोरोना के कारण हनीमून तो दूर उन्हें घर में कैद होना पड़ गया. नई शादी, नए रिश्ते और ढेर सारे सपने. श्रुति भी हर नई दुलहन की  तरह सुंदर दिखना चाहती थी. परंतु सारे पार्लर बंद थे. श्रुति बेहद परेशान थी कि कैसे वह इस समय अपनी ब्यूटी केयर कैसे करे, क्योंकि श्रुति तो हर चीज के लिए पार्लर ही जाती थी.

लौकडाउन का एक हफ्ता बीत गया था और श्रुति को अपने चेहरे और अपर लिप्स पर रोएं साफ नजर आ रहे थे. श्रुति को यह समस्या बचपन से थी और जब से वह 18 वर्ष की हुई थी हर 15 दिन बाद वह इन बालों से पार्लर जा कर छुटकारा पा लेती थी. परंतु अब क्या करे?

बालों की प्रैसिंग भी खत्म हो गई थी और श्रुति को अपने बाल झाड़ू जैसे लग रहे थे और रहीसही कसर एकाएक ऐक्ने के हमलों ने कर दी थी. श्रुति अब रोहन के नजदीक नहीं आना चाहती थी. उसे बेसब्री से लौकडाउन के खुलने का इंतजार था.

परंतु लौकडाउन फिर से 19 दिन के लिए बढ़ा दिया गया और यह भी नहीं पता था कि 3 मई को भी ये खुलेगा या नहीं. परंतु इस समय श्रुति की मौसी ने उसे रसोई में छिपे सौंदर्य के खजाने से परिचित करवाया और श्रुति को अब लग रहा है कि अगर पार्लर नहीं भी खुले तो भी वह अपना नूर बरकरार रख पाएगी.

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ब्यूटी टिप्स

– बेसन और हलदी हर किसी की स्किन के लिए ठीक होता है परंतु अगर स्किन रुखी है तो मलाई और यदि तैलीय है तो नींबू का रस मिला कर आप लेप बना सकती हैं. नहाने से 10 मिनट पहले चेहरे पर या अगर चाहे तो पूरे शरीर पर भी लगा कर छोड़ सकती हैं. इस से आप के चेहरे की मृत स्किन बड़े आराम से निकल जाती है और चेहरा दमकने लगता है. वहीं शरीर के बाकी हिस्सों के लिए बौडी पौलिशिंग का काम करेगा.

– रात को सोने से पहले ऐलोवेरा जैल लगा कर छोड़ दें, अगर कोई दागधब्बे हैं तो वह रात भर उन पर कार्य करेगा साथ ही साथ नए ऐक्ने होने से रोकेगा भी.

– यदि ऐक्ने की समस्या है तो जायफल या लौंग को घिस कर उस स्थान पर लगा लें. तीन

दिन के अंदर ही ऐक्ने सूख जाएंगे और दाग भी नहीं छोड़ेंगे.

– चेहरे पर बालों की समस्या से घबराएं नहीं, लाल मसूर की दाल रात भर भिगो दें और सुबह उसे मिक्सी में पीस कर चेहरे पर लगा दें. जब सूख जाए  तो धीरेधीरे हटा लें, इस लेप से चेहरे के बालों से काफी हद तक छुटकारा मिल जाएगा.

– हर नई दुल्हन की मेकअप किट में ब्लीच अवश्य होता है तो आप घर पर भी निर्देशानुसार ब्लीच कर सकती हैं. इस से आप के चेहरे के मुलायम रोएं छुप जाएंगे और जो थोड़ेबहुत रोएं रह जाएंगे उस के लिए आप प्लकर का इस्तेमाल कर सकती हैं.

– आइब्रो को भी काफी हद तक प्लकर की मदद से संवार सकती हैं. परंतु रोज प्लक करने की भूल मत करें. हर तीसरे या चौथे दिन आप ऐक्सट्रा ग्रोथ को प्लक कर सकती हैं.

– अगर बाल रूखे हैं तो धोने से पहले नारियल का तेल और दही का मिश्रण जरूर लगाएं. बाल मुलायम और चमकदार हो जाएंगे.

– मेथी दानों को भी रात भर भिगा कर रखें, सुबह उन का पेस्ट बना कर बालों में लगा लें, बाल मजबूत और रेशमी हो जाएंगे.

– चेहरे का ग्लो बरकरार रखने के लिए दही से 5 से 7 मिनट चेहरे पर मसाज करिए और फिर चेहरा धो लीजिए.

– कुहनी और घुटनों पर नींबू के छिलके रगड़ने से उन की मृत स्किन हट जाएगी और कालापन भी दूर होगा.

ग्लोइंग और बेदाग स्किन के लिए

नई दुलहन का दमकता ग्लो बरकरार रखने में ये टिप्स आप के बेहद काम आएंगे:

दागधब्बों के लिए: दागधब्बों और रिंकल्स से छुटकारा पाने के लिए बादाम बहुत कारगर है. इस के लिए बादाम को पीस कर उस में 1 चम्मच शहद व कुछ बूंदे नीबू का रस मिलाएं. तैयार पैस्ट को 10 मिनट चेहरे पर लगाने के बाद पानी से धो लें. इस से दागधब्बे व रिंकल्स काफी हद तक कम ने लगेंगे. यह पेस्ट हफ्ते में 2 बर लगा सकती है.

स्क्रबिंग: स्क्रबिंग के लिए बेसन और ओटमील का कोई जवाब नहीं. बेसन में कच्चा दूध मिला कर चेहरे, कोहनी और हथेलियों के पिछले हिस्से की स्क्रबिंग कर सकती हैं. ओटमील में शहद और कच्चा दूध मिला कर स्क्रबिंग करने के नतीजे भी काफी अच्छे होते हैं. यदि स्किन संवेदनशील है तो हलके हाथों से हफ्ते में एक बार ही मसाज करें.

रूखी स्किन के लिए: यदि स्किन ज्यादा रूखी है तो रात को सोने से पहले नारियल या जैतून के तेल से चेहरे गर्दन की सर्कुलर मोशन में मसाज करें. स्किन को ऐक्सफोलिएट करना चाहती हैं तो तौलिया गरम पानी में डप करें और मसाज के बाद कुछ देर उस से चेहरा ढंक लें.

अनचाहे बाल: चेहरे के अनचाहे बालों को हटाने के लिए बेसन का सदियो से इस्तेमाल हो रहा है. बेसन में एक चुटकी हलदी, पानी और कुछ बूंदें सरसों के तेल को मिला कर प्रभावित जगह पर हलके हाथों से मसाज करें. ऐसा हफ्ते में 2 बार करने से धीरेधीरे बाल कम होने लगेंगे. यदि सरसों के तेल से स्किन पर जलन की समस्या होने की शिकायत है तो इसे इस्तेमाल न करें.

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ब्लैकहेड्स: ब्लैकहेड्स की समस्या से छुटकारा पाने के लिए चीनी, शहद और नीबू के रस का इस्तेमाल करें. इन तीनों को मिला कर थोड़ा सा थिक मिश्रण तैयार करें और प्रभावित जगह पर हलके हाथों से क्लौक और ऐंटीक्लौक वाइज मसाज करें. ध्यान रखें कि ज्यादा रगड़ें नहीं वरना स्किन को नुकसान पहुंच सकता है. ऐसा 10 दिन में एक बार करें.

याद रखिए कि लौकडाउन केवल संक्रमण रोकने के  लिए है परंतु आप छोटेछोटे उपायों से अपने सौंदर्य को बरकरार रख सकती हैं.

Mother’s Day Special: मुक्ति-भाग 1

टनटनटन मोबाइल की घंटी बजी और सुनील के फोन उठाने के पहले ही बंद भी हो गई. लगता है यह फोन भारत से आया होगा. भारत क्या, रांची से, शिवानी का. शिवानी, वह मुंहबोली भांजी, जिस के यहां वह अपनी मां को अमेरिका से ले जा कर छोड़ आया था. वहां से आए फोन के साथ ऐसा ही होता रहता है. घंटी बजती है और बंद हो जाती है, थोड़ी देर बाद फिर घंटी बज उठती है.

सुनील मोबाइल पर घंटी के फिर से बजने की प्रतीक्षा करने लगा है. इस के साथ ही उस के मन में एक दहशत सी पैदा हो जाती है. न जाने क्या खबर होगी? फोन तो रांची से ही आया होगा. बात यह थी कि उस की 90 वर्षीया मां गिर गई थीं और उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया था. सुनील को पता था कि मां इस चोट से उबर नहीं पाएंगी, इलाज पर चाहे कितना भी खर्च क्यों न किया जाए और पैसा वसूलने के लिए हड्डी वाले डाक्टर कितनी भी दिलासा क्यों न दिलाएं. मां के सुकून के लिए और खासकर दुनिया व समाज को दिखाने के लिए भी इलाज तो कराना ही था, वह भी विदेश में काम कर के डौलर कमाने वाले इकलौते पुत्र की हैसियत के मुताबिक.

वैसे उस की पत्नी चेतावनी दे चुकी थी कि इस तरह हम अपने पैसे बरबाद ही कर रहे हैं. मां की बीमारी के नाम पर जितने भी पैसे वहां भेजे जा रहे हैं उन सब का क्या हो रहा है, इस का लेखाजोखा तो है नहीं? शिवानी का घर जरूर भर रहा है. आएदिन पैसे की मांग रखी जाती है. हालांकि यह सब को पता था कि इस उम्र में गिर कर कमर तोड़ लेना और बिस्तर पकड़ लेना मौत को बुलावा ही देना था.

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शिवानी ने सुनील की मां की देखभाल के नाम पर दिनरात के लिए एक नर्स रख ली थी और उन्हीं के नाम पर घर में काफी सुविधाएं भी इकट्ठी कर ली थीं, फर्नीचर से ले कर फ्रिज, टीवी और एयरकंडीशनर तक. डाक्टर, दवा, फिजियोथेरैपिस्ट और बारबार टैक्सी पर अस्पताल का चक्कर लगाना तो जायज बात थी.

सुनील की पत्नी को इन सब दिखावे से चिढ़ थी. वह कहती  थी कि एक गाड़ी की मांग रह गई है, वह भी शिवानी मां के जिंदा रहते पूरा कर ही लेगी. कमर टूटने के बाद हवाखोरी के लिए मां के नाम पर गाड़ी तो चाहिए ही थी. सुनील चुप रह जाता. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता था कि शिवानी की मांगें बढ़ी हुई लगती थीं किंतु उन्हें नाजायज नहीं कहा जा सकता था.

शिवानी अपनी हैसियत के मुताबिक जो भी करती वह उस की मां के लिए काफी नहीं होता. मां के लिए गांवों में चलने वाली खाटें तो नहीं चल सकती थीं, घर में सीमित रहने पर मन बहलाने के लिए टीवी रखना जरूरी था, फिर वहां की गरमी से बचनेबचाने को एक एनआरआई की मां के लिए फ्रिज और एसी को फुजूलखर्ची नहीं कहा जा सकता था.

अब यह कहां तक संभव या उचित था कि जब ये चीजें मां के नाम पर आई हों तो घर का दूसरा व्यक्ति उन का उपयोग ही न करे? पैसा बचा कर अगर शिवानी ने एक के बदले 2 एसी खरीद लिए तो इस के लिए उसे कुसूरवार क्यों ठहराया जाए? फ्रिज भी बड़ा लिया गया तो क्या हुआ, क्या मां भर का खाना रखने के लिए ही फ्रिज लेना चाहिए था?

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आखिर मां की जो सेवा करता है उसे भी इतनी सुविधा तो मिलनी ही चाहिए थी. पर उस की पत्नी को यह सब गलत लगता था. सामान तो आ ही गया था, अब यह बात थोड़े थी कि मां के मरने के बाद कोई उन सब को उस से वापस मांगने जाता?

सुनील के मन के किसी कोने में यह भाव चोर की तरह छिपा था कि यह फोन शिवानी का न हो तो अच्छा है, क्योंकि वहां से फोन आने का मतलब था किसी न किसी नई समस्या का उठ खड़ा होना. साथ ही, हर बार शिवानी से बात कर के उसे अपने में एक छोटापन महसूस हुआ करता था.

अपनी बात के लहजे से वह उसे बराबर महसूस कराती रहती थी कि वह अपनी मां के प्रति अपने कर्तव्य का ठीक से पालन नहीं कर रहा. केवल पैसा भेज देने से ही वह अपने दायित्व से मुक्त नहीं हो सकता था, भारतीय संस्कृति में पैसा ही सबकुछ नहीं होता, उस की उपस्थिति ही अधिक कारगर हो सकती थी. और यहीं पर सुनील का अपराधबोध हृदय के अंतराल में एक और गांठ की परत बना देता. इस से वह बचना चाहता था और शायद यही वह मर्मस्थल भी था जिसे शिवानी बारबार कुरेदती रहती थी.

शिवानी का कहना था कि उसे तथा उस के पति को डाक्टर डांट कर भगा देते थे, जबकि सुनील की बात वे सुनते थे. सुनील का नाम तथा उस का पता जान कर ही लोग ज्यादा प्रभावित होते थे, न कि मात्र पैसा देने से. आजकल भारत में भी पैसे देने वाले कितने हैं, पर क्या अस्पताल के अधिकारी उन लोगों की बात सुनते भी हैं? सुनील फोन पर ही उन लोगों से जितनी बात कर लेता था वही वहां के अधिकारियों पर बहुत प्रभाव डाल देती थी.

इस के अतिरिक्त उस का खुद का भारत आना अधिक माने रखता था, मां की तसल्ली के लिए ही सही. थोड़ी हरारत भी आने पर मां सुनील का ही नाम जपना शुरू कर देती थीं.

शिवानी को लगता कि वह अपना शरीर खटा कर दिनरात उन की सेवा करती रहती है, जबकि उसे पैसे के लालच में काम करने वाली में शुमार कर के मां ही नहीं, परोक्ष रूप से सुनील भी उस के प्रति बहुत बड़ा अन्याय कर रहे हैं. यह खीझ शिवानी मां पर ही नहीं, बल्कि किसी न किसी तरह सुनील पर भी उतार लेती थी.

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कुछ ही महीने पहले की बात थी. जिस दिन मां की कमर की हड्डी टूटी थी, अस्पताल में जब तक इमरजैंसी में मां को छोड़ कर शिवानी और उस के पति डाक्टर के लिए इधरउधर भागदौड़ कर रहे थे कि फोन पर इस दुर्घटना की खबर मिलने पर सुनील ने अमेरिका में बैठेबैठे न जाने किसकिस डाक्टर के फोन नंबर का ही पता नहीं लगा लिया बल्कि डाक्टर को तुरंत मां के पास भेज भी दिया. ऐसा क्या वहां किसी अन्य के किए पर हो सकता था?

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#coronavirus: अब मौडर्न स्लेवरी का वायरस

संयुक्त राष्ट्र संघ यानी यूनाइटेड नेशंस और्गेनाइजेशन ने कोरोना के दौरान एक नए तरह की स्लेवरी यानी दासता के बारे में चेतावनी दी है. दासता, दरअसल, एक वायरस ही है.

यूएनओ का कहना है कि कोरोना संकट के भयानक आर्थिक व सामाजिक प्रभावों के चलते मुमकिन है कि मौडर्न स्लेवरी यानी आधुनिक दासता की समस्या बढ़ जाए. दासता कोई बीते जमाने की ही बात नहीं है, बल्कि यह आज भी दुनियाभर में कई रूपों में मौजूद है. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन का कहना है कि दुनियाभर में लगभग 4 करोड़ लोग आज भी आधुनिक दासता के चंगुल में फंसे हुए हैं. बता दें कि जबरन मज़दूरी, क़र्ज़ के ज़रिए किसी को बांध लेना, जबरन विवाह और मानव तस्करी जैसे हालात को बयान करने के लिए आधुनिक दासता शब्द का इस्तेमाल किया जाता है.

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इस संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र संघ के एक एक्सपर्ट टोमोया ओबोकाटा ने विश्व के विभिन्न देशों से मांग की है कि वे अपनी जनता के उस वर्ग पर विशेष ध्यान दें जिसे आधुनिक दासता का शिकार बनाया जा सकता है. चेतावनी दी गई है कि सरकारों  की लापरवाही की वजह से कोरोना के परिणाम और भी भयानक हो सकते हैं.

टोमोया ओबोकाटा ने कहा कि अगर सरकारों ने तत्काल क़दम नहीं उठाया तो बहुत अधिक लोगों को आधुनिक दासता का शिकार बना लिया जाएगा. जापान के इस विशेषज्ञ ने बताया कि कोरोना की वजह से दुनिया के अरबों लोगों का रोज़गार प्रभावित हुआ है लेकिन उसके भयानक परिणाम उन देशों के लोगों को अधिक भुगतने पड़ेंगे जहां की सरकारें लापरवाही बरतेंगी.

उन्होंने खासतौर पर मज़दूरों के प्रति चिंता जताई है. उन्होंने कहा कि मज़दूरों में बहुत सी महिलाएं और बच्चे हैं जो अपने घरों से पलायन किए हुए भी हैं, इसलिए इन लोगों को दास बनाए जाने का खतरा ज्यादा है.

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संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 2019 में अपनी एक रिपोर्ट में मौडर्न स्लेवरी की परिभाषा बताते हुए कहा था कि आधुनिक दासता यह है कि लोगों को धोखे से या ज़बरदस्ती काम करने या यौनसेवा के लिए मजबूर किया जाए.

बौलीवुड सिंगर नेहा कक्कड़ के आगे इंटरनेशनल स्टार भी हो गए पीछे

बौलीवुड की फेमस सिंगर नेहा कक्कड़ आज किसी परिचय की मोहताज नही हैं. एक के बाद एक सुपरहिट गाने गा कर आज वो उस मुकाम पर पहुच गई है जहाँ पर पहुचना एक सिंगर के लिए बहुत बड़ी बात है. नेहा अपनी खूबसूरत आवाज के जादू से अब इंटरनेशनल स्टार बन चुकी हैं. नेहा ने दुनिया भर की टॉप सिंगर को पछाड़ते हुए टॉप 10 में दूसरा स्थान पाकर देश का नाम रोशन किया है.

Ex acts chArt के  मुताबिक कई सारे इंटरनेशनल फीमेल सिंगर को पीछे छोड़ते हुए नेहा कक्कड़ नंबर दो पर आगे हैं. 2019 की मोस्ट व्यूड कलाकार के रूप में नेहा कक्कड़ का नाम आया. नेहा कक्कड़ ने खुद इसकी जानकारी अपने सोशल मीडिया हैंडल पर डाली है. Cardi B 4.8  बिलियन व्यूज के साथ पर जहां नंबर वन है वही नेहा कक्कड़  4.5 बिलियन बिलीयन व्यू के साथ नंबर दो पर है.

 

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Can’t be more thankful!!!! ♥️🙌🏼🥺 Jai Mata Di 🙏🏼 Aapki Nehu 🥰 #NehaKakkar . @youtube @youtubeindia

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नेहा कक्कड़ केरल जी, ब्लैकपिंक, सेलेना गोम्ज, बिली एलिस, ग्रैंड जैसी फीमेल कलाकार को पछाड़ती हुई आगे निकल गई है. नेहा ने पूरी लिस्ट का एक स्क्रीन शॉट शेयर करते हुए अपने फैंस से अपनी खुशी को शेयर किया है. जिसके बाद से ही नेहा को लगातार बधाई मिलने का सिलसिला शुरू हो चुका है. महज 3 घंटे में इस पोस्ट को अब तक 3 लाख 32 हजार से ज्यादा लोग पसंद कर चुके हैं.

नेहा कक्कड़ कभी वह अपने गानों की वजह से  ​कभी अपनी हॉट तस्वीरों की वजह से तो कभी अपने ​वीडियो को लेकर सुर्खियां बटोरती हैं. हाल ही में नेहा ने कपड़ों की जगह तकिया पहन कर वीडियो शेयर किया था. हमेशा ही डिजाइर ड्रेसेस पहनने वाली नेहा का तकिया पहने हुए वीडियो ने खूब सुर्खियां बटोरी. नेहा ने ये काम #PillowChallenge के तहत किया था.

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नेहा कक्कड़ को इंस्टाग्राम पर 3.47 करोड़ यानी 30 मिलियन से ज्यादा लोग फॉलो कर रहे हैं. इस बात पर नेहा ने खुश हो कर लिखा था, ‘यह दिल को छू लेने वाला है. मैं अपने प्रशंसकों के निस्वार्थ प्रेम के लिए उनकी आभारी हूं. मुझे काफी अच्छा लग रहा है कि दुनिया भर से इतने सारे लोगों ने मेरे काम को स्वीकारा. इस तरह की सराहना मुझे संगीत के क्षेत्र में कुछ नया करने और अपने श्रोताओं को उनकी पसंदीदा गाने देने के लिए प्रेरित करती है.’

Mother’s Day 2020: मां-सुख की खातिर गुड्डी ममता का गला क्यों घोटना चाहती हैं?

रात के 10 बजे थे. सुमनलता पत्रकारों के साथ मीटिंग में व्यस्त थीं. तभी फोन की घंटी बज उठी…

‘‘मम्मीजी, पिंकू केक काटने के लिए कब से आप का इंतजार कर रहा है.’’

बहू दीप्ति का फोन था.

‘‘दीप्ति, ऐसा करो…तुम पिंकू से मेरी बात करा दो.’’

‘‘जी अच्छा,’’ उधर से आवाज सुनाई दी.

‘‘हैलो,’’ स्वर को थोड़ा धीमा रखते हुए सुमनलता बोलीं, ‘‘पिंकू बेटे, मैं अभी यहां व्यस्त हूं. तुम्हारे सारे दोस्त तो आ गए होंगे. तुम केक काट लो. कल का पूरा दिन तुम्हारे नाम है…अच्छे बच्चे जिद नहीं करते. अच्छा, हैप्पी बर्थ डे, खूब खुश रहो,’’ अपने पोते को बहलाते हुए सुमनलता ने फोन रख दिया.

दोनों पत्रकार ध्यान से उन की बातें सुन रहे थे.

‘‘बड़ा कठिन दायित्व है आप का. यहां ‘मानसायन’ की सारी जिम्मेदारी संभालें तो घर छूटता है…’’

‘‘और घर संभालें तो आफिस,’’ अखिलेश की बात दूसरे पत्रकार रमेश ने पूरी की.

‘‘हां, पर आप लोग कहां मेरी परेशानियां समझ पा रहे हैं. चलिए, पहले चाय पीजिए…’’ सुमनलता ने हंस कर कहा था.

नौकरानी जमुना तब तक चाय की ट्रे रख गई थी.

‘‘अब तो आप लोग समझ गए होंगे कि कल रात को उन दोनों बुजुर्गों को क्यों मैं ने यहां वृद्धाश्रम में रहने से मना किया था. मैं ने उन से सिर्फ यही कहा था कि बाबा, यहां हौल में बीड़ी पीने की मनाही है, क्योंकि दूसरे कई वृद्ध अस्थमा के रोगी हैं, उन्हें परेशानी होती है. अगर आप को  इतनी ही तलब है तो बाहर जा कर पिएं. बस, इसी बात पर वे दोनों यहां से चल दिए और आप लोगों से पता नहीं क्या कहा कि आप के अखबार ने छाप दिया कि आधी रात को कड़कती सर्दी में 2 वृद्धों को ‘मानसायन’ से बाहर निकाल दिया गया.’’

‘‘नहीं, नहीं…अब हम आप की परेशानी समझ गए हैं,’’ अखिलेशजी यह कहते हुए उठ खडे़ हुए.

‘‘मैडम, अब आप भी घर जाइए, घर पर आप का इंतजार हो रहा है,’’ राकेश ने कहा.

सुमनलता उठ खड़ी हुईं और जमुना से बोलीं, ‘‘ये फाइलें अब मैं कल देखूंगी, इन्हें अलमारी में रखवा देना और हां, ड्राइवर से गाड़ी निकालने को कहना…’’

तभी चौकीदार ने दरवाजा खटखटाया था.

‘‘मम्मीजी, बाहर गेट पर कोई औरत आप से मिलने को खड़ी है…’’

‘‘जमुना, देख तो कौन है,’’ यह कहते हुए सुमनलता बाहर जाने को निकलीं.

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गेट पर कोई 24-25 साल की युवती खड़ी थी. मलिन कपडे़ और बिखरे बालों से उस की गरीबी झांक रही थी. उस के साथ एक ढाई साल की बच्ची थी, जिस का हाथ उस ने थाम रखा था और दूसरा छोटा बच्चा गोदी में था.

सुमनलता को देखते ही वह औरत रोती हुई बोली, ‘‘मम्मीजी, मैं गुड्डी हूं, गरीब और बेसहारा, मेरी खुद की रोटी का जुगाड़ नहीं तो बच्चों को क्या खिलाऊं. दया कर के आप इन दोनों बच्चों को अपने आश्रम में रख लो मम्मीजी, इतना रहम कर दो मुझ पर.’’

बच्चों को थामे ही गुड्डी, सुमनलता के पैर पकड़ने के लिए आगे बढ़ी थी तो यह कहते हुए सुमनलता ने उसे रोका, ‘‘अरे, क्या कर रही है, बच्चों को संभाल, गिर जाएंगे…’’

‘‘मम्मीजी, इन बच्चों का बाप तो चोरी के आरोप में जेल में है, घर में अब दानापानी का जुगाड़ नहीं, मैं अबला औरत…’’

उस की बात बीच में काटते हुए सुमनलता बोलीं, ‘‘कोई अबला नहीं हो तुम, काम कर सकती हो, मेहनत करो, बच्चोें को पालो…समझीं…’’ और सुमनलता बाहर जाने के लिए आगे बढ़ी थीं.

‘‘नहीं…नहीं, मम्मीजी, आप रहम कर देंगी तो कई जिंदगियां संवर जाएंगी, आप इन बच्चों को रख लो, एक ट्रक ड्राइवर मुझ से शादी करने को तैयार है, पर बच्चों को नहीं रखना चाहता.’’

‘‘कैसी मां है तू…अपने सुख की खातिर बच्चों को छोड़ रही है,’’ सुमनलता हैरान हो कर बोलीं.

‘‘नहीं, मम्मीजी, अपने सुख की खातिर नहीं, इन बच्चों के भविष्य की खातिर मैं इन्हें यहां छोड़ रही हूं. आप के पास पढ़लिख जाएंगे, नहीं तो अपने बाप की तरह चोरीचकारी करेंगे. मुझ अबला की अगर उस ड्राइवर से शादी हो गई तो मैं इज्जत के साथ किसी के घर में महफूज रहूंगी…मम्मीजी, आप तो खुद औरत हैं, औरत का दर्द जानती हैं…’’ इतना कह गुड्डी जोरजोर से रोने लगी थी.

‘‘क्यों नाटक किए जा रही है, जाने दे मम्मीजी को, देर हो रही है…’’ जमुना ने आगे बढ़ कर उसे फटकार लगाई.

‘‘ऐसा कर, बच्चों के साथ तू भी यहां रह ले. तुझे भी काम मिल जाएगा और बच्चे भी पल जाएंगे,’’ सुमनलता ने कहा.

‘‘मैं कहां आप लोगों पर बोझ बन कर रहूं, मम्मीजी. काम भी जानती नहीं और मुझ अकेली का क्या, कहीं भी दो रोटी का जुगाड़ हो जाएगा. अब आप तो इन बच्चों का भविष्य बना दो.’’

‘‘अच्छा, तो तू उस ट्रक ड्राइवर से शादी करने के लिए अपने बच्चों से पीछा छुड़ाना चाह रही है,’’ सुमनलता की आवाज तेज हो गई, ‘‘देख, या तो तू इन बच्चोें के साथ यहां पर रह, तुझे मैं नौकरी दे दूंगी या बच्चों को छोड़ जा पर शर्त यह है कि तू फिर कभी इन बच्चों से मिलने नहीं आएगी.’’

सुमनलता ने सोचा कि यह शर्त एक मां कभी नहीं मानेगी पर आशा के विपरीत गुड्डी बोली, ‘‘ठीक है, मम्मीजी, आप की शरण में हैं तो मुझे क्या फिक्र, आप ने तो मुझ पर एहसान कर दिया…’’

आंसू पोंछती हुई वह जमुना को दोनों बच्चे थमा कर तेजी से अंधेरे में विलीन हो गई थी.

‘‘अब मैं कैसे संभालूं इतने छोटे बच्चों को,’’ हैरान जमुना बोली.

गोदी का बच्चा तो अब जोरजोर से रोने लगा था और बच्ची कोने में सहमी खड़ी थी.

कुछ देर सोच में पड़ी रहीं सुमनलता फिर बोलीं, ‘‘देखो, ऐसा है, अंदर थोड़ा दूध होगा. छोटे बच्चे को दूध पिला कर पालने में सुला देना. बच्ची को भी कुछ खिलापिला देना. बाकी सुबह आ कर देखूंगी.’’

‘‘ठीक है, मम्मीजी,’’ कह कर जमुना बच्चों को ले कर अंदर चली गई. सुमनलता बाहर खड़ी गाड़ी में बैठ गईं. उन के मन में एक अजीब अंतर्द्वंद्व शुरू हो गया कि क्या ऐसी भी मां होती है जो जानबूझ कर दूध पीते बच्चों को छोड़ गई.

‘‘अरे, इतनी देर कैसे लग गई, पता है तुम्हारा इंतजार करतेकरते पिंकू सो भी गया,’’ कहते हुए पति सुबोध ने दरवाजा खोला था.

‘‘हां, पता है पर क्या करूं, कभीकभी काम ही ऐसा आ जाता है कि मजबूर हो जाती हूं.’’

तब तक बहू दीप्ति भी अंदर से उठ कर आ गई.

‘‘मां, खाना लगा दूं.’’

‘‘नहीं, तुम भी आराम करो, मैं कुछ थोड़ाबहुत खुद ही निकाल कर खा लूंगी.’’

ड्राइंगरूम में गुब्बारे, खिलौने सब बिखरे पडे़ थे. उन्हें देख कर सुमनलता का मन भर आया कि पोते ने उन का कितना इंतजार किया होगा.

सुमनलता ने थोड़ाबहुत खाया पर मन का अंतर्द्वंद्व अभी भी खत्म नहीं हुआ था, इसलिए उन्हें देर रात तक नींद नहीं आई थी.

सुमनलता बारबार गुड्डी के ही व्यवहार के बारे में सोच रही थीं जिस ने मन को झकझोर दिया था.

मां की ममता…मां का त्याग आदि कितने ही नाम से जानी जाती है मां…पर क्या यह सब झूठ है? क्या एक स्वार्थ की खातिर मां कहलाना भी छोड़ देती है मां…शायद….

सुबोध को तो सुबह ही कहीं जाना था सो उठते ही जाने की तैयारी में लग गए.

पिंकू अभी भी अपनी दादी से नाराज था. सुमनलता ने अपने हाथ से उसे मिठाई खिला कर प्रसन्न किया, फिर मनपसंद खिलौना दिलाने का वादा भी किया. पिंकू अपने जन्मदिन की पार्टी की बातें करता रहा था.

दोपहर 12 बजे वह आश्रम गईं, तो आते ही सारे कमरों का मुआयना शुरू कर दिया.

शिशु गृह में छोटे बच्चे थे, उन के लिए 2 आया नियुक्त थीं. एक दिन में रहती थी तो दूसरी रात में. पर कल रात तो जमुना भी रुकी थी. उस ने दोनों बच्चों को नहलाधुला कर साफ कपडे़ पहना दिए थे. छोटा पालने में सो रहा था और जमुना बच्ची के बालों में कंघी कर रही थी.

‘‘मम्मीजी, मैं ने इन दोनों बच्चों के नाम भी रख दिए हैं. इस छोटे बच्चे का नाम रघु और बच्ची का नाम राधा…हैं न दोनों प्यारे नाम,’’ जमुना ने अब तक अपना अपनत्व भी उन बच्चों पर उडे़ल दिया था.

सुमनलता ने अब बच्चों को ध्यान से देखा. सचमुच दोनों बच्चे गोरे और सुंदर थे. बच्ची की आंखें नीली और बाल भूरे थे.

अब तक दूसरे छोटे बच्चे भी मम्मीजीमम्मीजी कहते हुए सुमनलता के इर्दगिर्द जमा हो गए थे.

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सब बच्चों के लिए आज वह पिंकू के जन्मदिन की टाफियां लाई थीं, वही थमा दीं. फिर आगे जहां कुछ बडे़ बच्चे थे उन के कमरे में जा कर उन की पढ़ाईलिखाई व पुस्तकों की बाबत बात की.

इस तरह आश्रम में आते ही बस, कामों का अंबार लगना शुरू हो जाता था. कार्यों के प्रति सुमनलता के उत्साह और लगन के कारण ही आश्रम के काम सुचारु रूप से चल रहे थे.

3 माह बाद एक दिन चौकीदार ने आ कर खबर दी, ‘‘मम्मीजी, वह औरत जो उस रात बच्चों को छोड़ गई थी, आई है और आप से मिलना चाहती है.’’

‘‘कौन, वह गुड्डी? अब क्या करने आई है? ठीक है, भेज दो.’’

मेज की फाइलें एक ओर सरका कर सुमनलता ने अखबार उठाया.

‘‘मम्मीजी…’’ आवाज की तरफ नजर उठी तो दरवाजे पर खड़ी गुड्डी को देखते ही वह चौंक गईं. आज तो जैसे वह पहचान में ही नहीं आ रही है. 3 महीने में ही शरीर भर गया था, रंगरूप और निखर गया था. कानोें में लंबेलंबे चांदी के झुमके, शरीर पर काला चमकीला सूट, गले में बड़ी सी मोतियों की माला…होंठों पर गहरी लिपस्टिक लगाई थी. और किसी सस्ते परफ्यूम की महक भी वातावरण में फैल रही थी.

‘‘मम्मीजी, बच्चों को देखने आई हूं.’’

‘‘बच्चों को…’’ यह कहते हुए सुमनलता की त्योरियां चढ़ गईं, ‘‘मैं ने तुम से कहा तो था कि तुम अब बच्चों से कभी नहीं मिलोगी और तुम ने मान भी लिया था.’’

‘‘अरे, वाह…एक मां से आप यह कैसे कह सकती हैं कि वह बच्चों से नहीं मिले. मेरा हक है यह तो, बुलवाइए बच्चों को,’’ गुड्डी अकड़ कर बोली.

‘‘ठीक है, अधिकार है तो ले जाओ अपने बच्चों को. उन्हें यहां क्यों छोड़ गई थीं तुम,’’ सुमनलता को भी अब गुस्सा आ गया था.

‘‘हां, छोड़ रखा है क्योंकि आप का यह आश्रम है ही गरीब और निराश्रित बच्चों के लिए.’’

‘‘नहीं, यह तुम जैसों के बच्चों के लिए नहीं है, समझीं. अब या तो बच्चों को ले जाओ या वापस जाओ,’’ सुमनलता ने भन्ना कर कहा था.

‘‘अरे वाह, इतनी हेकड़ी, आप सीधे से मेरे बच्चों को दिखाइए, उन्हें देखे बिना मैं यहां से नहीं जाने वाली. चौकीदार, मेरे बच्चों को लाओ.’’

‘‘कहा न, बच्चे यहां नहीं आएंगे. चौकीदार, बाहर करो इसे,’’ सुमनलता का तेज स्वर सुन कर गुड्डी और भड़क गई.

‘‘अच्छा, तो आप मुझे धमकी दे रही हैं. देख लूंगी, अखबार में छपवा दूंगी कि आप ने मेरे बच्चे छीन लिए, क्या दादागीरी मचा रखी है, आश्रम बंद करा दूंगी.’’

चौकीदार ने गुड्डी को धमकाया और गेट के बाहर कर दिया.

सुमनलता का और खून खौल गया था. क्याक्या रूप बदल लेती हैं ये औरतें. उधर होहल्ला सुन कर जमुना भी आ गई थी.

‘‘मम्मीजी, आप को इस औरत को उसी दिन भगा देना था. आप ने इस के बच्चे रखे ही क्यों…अब कहीं अखबार में…’’

‘‘अरे, कुछ नहीं होगा, तुम लोग भी अपनाअपना काम करो.’’

सुमनलता ने जैसेतैसे बात खत्म की, पर उन का सिरदर्द शुरू हो गया था.

पिछली घटना को अभी महीना भर भी नहीं बीता होगा कि गुड्डी फिर आ गई. इस बार पहले की अपेक्षा कुछ शांत थी. चौकीदार से ही धीरे से पूछा था उस ने कि मम्मीजी के पास कौन है.

‘‘पापाजी आए हुए हैं,’’ चौकीदार ने दूर से ही सुबोध को देख कर कहा था.

गुड्डी कुछ देर तो चुप रही फिर कुछ अनुनय भरे स्वर में बोली, ‘‘चौकीदार, मुझे बच्चे देखने हैं.’’

‘‘कहा था कि तू मम्मीजी से बिना पूछे नहीं देख सकती बच्चे, फिर क्यों आ गई.’’

‘‘तुम मुझे मम्मीजी के पास ही ले चलो या जा कर उन से कह दो कि गुड्डी आई है…’’

कुछ सोच कर चौकीदार ने सुमनलता के पास जा कर धीरे से कहा, ‘‘मम्मीजी, गुड्डी फिर आ गई है. कह रही है कि बच्चे देखने हैं.’’

‘‘तुम ने उसे गेट के अंदर आने क्यों दिया…’’ सुमनलता ने तेज स्वर में कहा.

‘‘क्या हुआ? कौन है?’’ सुबोध भी चौंक  कर बोले.

‘‘अरे, एक पागल औरत है. पहले अपने बच्चे यहां छोड़ गई, अब कहती है कि बच्चों को दिखाओ मुझे.’’

‘‘तो दिखा दो, हर्ज क्या है…’’

‘‘नहीं…’’ सुमनलता ने दृढ़ स्वर में कहा फिर चौकीदार से बोलीं, ‘‘उसे बाहर कर दो.’’

सुबोध फिर चुप रह गए थे.

इधर, आश्रम में रहने वाली कुछ युवतियों के लिए एक सामाजिक संस्था कार्य कर रही थी, उसी के अधिकारी आए हुए थे. 3 युवतियों का विवाह संबंध तय हुआ और एक सादे समारोह में विवाह सम्पन्न भी हो गया.

सुमनलता को फिर किसी कार्य के सिलसिले में डेढ़ माह के लिए बाहर जाना पड़ गया था.

लौटीं तो उस दिन सुबोध ही उन्हें छोड़ने आश्रम तक आए हुए थे. अंदर आते ही चौकीदार ने खबर दी.

‘‘मम्मीजी, पिछले 3 दिनों से गुड्डी रोज यहां आ रही है कि बच्चे देखने हैं. आज तो अंदर घुस कर सुबह से ही धरना दिए बैठी है…कि बच्चे देख कर ही जाऊंगी.’’

‘‘अरे, तो तुम लोग हो किसलिए, आने क्यों दिया उसे अंदर,’’ सुमनलता की तेज आवाज सुन कर सुबोध भी पीछेपीछे आए.

बाहर बरामदे में गुड्डी बैठी थी. सुमनलता को देखते ही बोली, ‘‘मम्मीजी, मुझे अपने बच्चे देखने हैं.’’

उस की आवाज को अनसुना करते हुए सुमन तेजी से शिशुगृह में चली गई थीं.

रघु खिलौने से खेल रहा था, राधा एक किताब देख रही थी. सुमनलता ने दोनों बच्चों को दुलराया.

‘‘मम्मीजी, आज तो आप बच्चों को उसे दिखा ही दो,’’ कहते हुए जमुना और चौकीदार भी अंदर आ गए थे, ‘‘ताकि उस का भी मन शांत हो. हम ने उस से कह दिया था कि जब मम्मीजी आएं तब उन से प्रार्थना करना…’’

‘‘नहीं, बिलकुल नहीं, बाहर करो उसे,’’ सुमनलता बोलीं.

सहम कर चौकीदार बाहर चला गया और पीछेपीछे जमुना भी. बाहर से गुड्डी के रोने और चिल्लाने की आवाजें आ रही थीं. चौकीदार उसे डपट कर फाटक बंद करने में लगा था.

‘‘सुम्मी, बच्चों को दिखा दो न, दिखाने भर को ही तो कह रही है, फिर वह भी एक मां है और एक मां की ममता को तुम से अधिक कौन समझ सकता है…’’

सुबोध कुछ और कहते कि सुमनलता ने ही बात काट दी थी.

‘‘नहीं, उस औरत को बच्चे बिलकुल नहीं दिखाने हैं.’’

आज पहली बार सुबोध ने सुमनलता का इतना कड़ा रुख देखा था. फिर जब सुमनलता की भरी आंखें और उन्हें धीरे से रूमाल निकालते देखा तो सुबोध को और भी विस्मय हुआ.

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‘‘अच्छा चलूं, मैं तो बस, तुम्हें छोड़ने ही आया था,’’ कहते हुए सुबोध चले गए.

सुमनलता उसी तरह कुछ देर सोच में डूबी रहीं फिर मुड़ीं और दूसरे कमरों का मुआयना करने चल दीं.

2 दिन बाद एक दंपती किसी बच्चे को गोद लेने आए थे. उन्हें शिशुगृह में घुमाया जा रहा था. सुमन दूसरे कमरे में एक बीमार महिला का हाल पूछ रही थीं.

तभी गुड्डी एकदम बदहवास सी बरामदे में आई. आज बाहर चौकीदार नहीं था और फाटक खुला था तो सीधी अंदर ही आ गई. जमुना को वहां खड़ा देख कर गिड़गिड़ाते स्वर में बोली थी, ‘‘बाई, मुझे बच्चे देखने हैं…’’

उस की हालत देख कर जमुना को भी कुछ दया आ गई. वह धीरे से बोली, ‘‘देख, अभी मम्मीजी अंदर हैं, तू उस खिड़की के पास खड़ी हो कर बाहर से ही अपने बच्चों को देख ले. बिटिया तो स्लेट पर कुछ लिख रही है और बेटा पालने में सो रहा है.’’

‘‘पर, वहां ये लोग कौन हैं जो मेरे बच्चे के पालने के पास आ कर खडे़ हो गए हैं और कुछ कह रहे हैं?’’

जमुना ने अंदर झांक कर कहा, ‘‘ये बच्चे को गोद लेने आए हैं. शायद तेरा बेटा पसंद आ गया है इन्हें तभी तो उसे उठा रही है वह महिला.’’

‘‘क्या?’’ गुड्डी तो जैसे चीख पड़ी थी, ‘‘मेरा बच्चा…नहीं मैं अपना बेटा किसी को नहीं दूंगी,’’ रोती हुई पागल सी वह जमुना को पीछे धकेलती सीधे अंदर कमरे में घुस गई थी.

सभी अवाक् थे. होहल्ला सुन कर सुमनलता भी उधर आ गईं कि हुआ क्या है.

उधर गुड्डी जोरजोर से चिल्ला रही थी कि यह मेरा बेटा है…मैं इसे किसी को नहीं दूंगी.

झपट कर गुड्डी ने बच्चे को पालने से उठा लिया था. बच्चा रो रहा था. बच्ची भी पास सहमी सी खड़ी थी. गुड्डी ने उसे भी और पास खींच लिया.

‘‘मेरे बच्चे कहीं नहीं जाएंगे. मैं पालूंगी इन्हें…मैं…मैं मां हूं इन की.’’

‘‘मम्मीजी…’’ सुमनलता को देख कर जमुना डर गई.

‘‘कोई बात नहीं, बच्चे दे दो इसे,’’ सुमनलता ने धीरे से कहा था और उन की आंखें नम हो आई थीं, गला भी कुछ भर्रा गया था.

जमुना चकित थी, एक मां ने शायद आज एक दूसरी मां की सोई हुई ममता को जगा दिया था.

Mother’s Day 2020: मम्मी की पूजा का गान नहीं उनकी मदद करें

मदर्स डे जब से भारतीय शहरी परिवारों में भी सेलिब्रेट होने लगा है तब से इस दिन के आते ही सोशल मीडिया से लेकर ट्रेडिशनल मीडिया तक में हर जगह माँ का गुणगान शुरू हो जाता है. क्या आम क्या खास. ज्यादातर लोग इस दिन अपनी माओं को बड़े पूजा भाव से याद करते हैं.सेलेब्रिटीज तो खास तौरपर अपनी माओं को धन्यवाद के सुर में, कृतार्थ होने के अंदाज में याद करते हैं. लेकिन सब नहीं तो यही ज्यादातर लोग बाकी दिनों में माँ को मशीन की तरह अपने लिए खटने देते हैं. तब उन्हें उनका जरा भी ख्याल नहीं आता.आदर का यह दैविक अंदाज बहुत खराब है.इसमें एक किस्म से तथाकथित हिन्दुस्तानी होशियारी छिपी है कि जिसकी अनदेखी करनी हो उसकी पूजा शुरू कर दो.

अगर वास्तव में हम अपनी मां को बहुत प्यार करते हैं और जाहिर है करते हैं, तो हम इस बात का संकल्प लें कि भले हम अपनी मां की पूजा न करें लेकिन उसे मशीन की तरह अपने लिए अकेले नहीं खटने देंगे.तमाम घरेलू कामकाज में उसकी मदद करेंगे. मां के कामों में हाथ बंटाने का संकल्प किसी भी मदर्स डे के लिए मां को हमारा बेस्ट गिफ्ट होगा. सवाल है ये सब कैसे होगा या हो सकता है आइये देखते हैं.

1. बच्चों की इस नवाबियत के हम भी हैं जिम्मेदार

तमाम बच्चे कोई काम करना तो दूर खुद उठाकर एक गिलास पानी तक नहीं पीते.उनको यह काम बहुत मुश्किल काम लगता है.आखिर क्यों ? क्योंकि हम उन्हें कभी ऐसा सिखाते नहीं.लड़कों को तो खास तौरपर.लड़के अपनी तरफ से घर का कोई कामकाज करने भी लगें और धोखे से उसमें कोई ऐसा काम शामिल हो जो अक्सर महिलायें करती हैं तो ज्यादातर घरों में छूटते ही कहा जाएगा, ‘क्या जनानियों वाले काम कर रहा है.दरअसल हमारे यहाँ लड़कों और लड़कियों कि परवरिश ही ऐसी की जाती है कि वह एक खास तरह की कंडीशनिंग में ढल जाते हैं. जबकि पैरेंटिंग कि समझ कहती है कि घर के काम को बच्चों के से करवाकर हम उनमें जिम्मेदारी का अहसास विकसित कर सकते हैं.

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2. वास्तविकता को साझा करें

बच्चों को घर की परिस्थितियों से अनभिज्ञ कौन रखता है ? खुद हम.यह सोचकर कि उनके मासूम कंधों पर जिम्मेदारियों का बोझ अभी से क्यों डालें ? लेकिन यह भी सच है कि इन्ही परिस्थतियों से जब हम तनावग्रस्त होते हैं तो अपना गुस्सा सबसे ज्यादा बच्चों पर ही उतारते हैं.तब उन्हें समझ ही नहीं आता कि माजरा क्या है ? बहरहाल कहने की बात यह है कि घर चलाने के बारे में उनसे तमाम वास्तविकताओं को साझा करके हम उन्हें ज्यादा जिम्मेदार और ज्यादा संवेदनशील बना सकते हैं. यही नहीं समय समय पर हमें उनके साथ घर की तमाम परिस्थितियों पर विचार विमर्श भी करना चाहिए.

3. जाके पैर पड़ेगी बिंवाई वही समझेगा पीर पराई

याद रखिये यदि आप चाहती हैं कि बच्चे आपके श्रम का महत्व समझें तो उन्हें भी श्रम करने दें.वे खुद श्रम करने के बाद ही किसी के श्रम का महत्व समझ पायेंगे. हमें इस बात को हमेशा याद रखना चाहिए कि बच्चे अपने आसपास का माहौल देखकर सीखते हैं. इसलिए जरुरी है कि हम उन्हें ये माहौल खुद प्रदान करें. हाँ,एक बात और सिर्फ बच्चे से किसी घरेलू काम में हिस्सा लेने की उम्मीद करना नाइंसाफी होगी.बेहतर होगा कि आप भी बच्चे के साथ उस काम में शामिल हों. लेकिन इस बात की समझ भी जरुरी है कि बच्चों पर घर के कामों में शामिल होने के लिए बहुत दबाव कभी न डालें. अगर वे पूछें तो उन्हें यह भी बताएं आखिर क्यों उनसे यह सब करवाया जा रहा है. यह सब इसलिए भी जरुरी है क्योंकि रोजगार के हर क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों का वर्चस्व तो तोड़ रही हैं. लेकिन घर का मोर्चा ज्यादातर महिलाओं को आज भी अकेले ही संभालना पड़ता है.परिवार के लोगों से जो सहयोग उन्हें मिलना चाहिए, वह नहीं मिल रहा है.

4. इसके लिए जरुरी है कि मानसिकता बदले

घर का काम सिर्फ महिलाओं का नहीं है-बच्चों को यह सीख बचपन से दें.क्योंकि आज के दौर में महिलाएं शिक्षा, पत्रकारिता, कानून, चिकित्सा या इंजीनियरिंग के क्षेत्र में तो उल्लेखनीय सेवाएं दे रही हैं. पुलिस और सेना में भी पुरुष सैनिकों से कंधा मिलाकर चल रही हैं.लेकिन ज्यादातर महिलाओं को पेशेवर जिम्मेदारियों के साथ ही घर की जिघ्म्मेदारी भी वैसे ही उठानी पड़ती है,जैसे उनकी माओं और दादियों को उठानी पड़ती थी.सवाल है फिर क्या बदला ? ऐसा बदलाव किस काम का जिसमें कोई एक पिसकर रह जाए.वास्तव में इससे उनके स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ता है. तब लगता है कि महिलाए बिना मतलब ही दो नावों में सवार हैं. इस उलझन से बचने के लिए अपने बच्चों की सोच बदलें जिससे वो आपकी पूजा करने के भाव से निकलकर सहयोग करने की भावना में आयें.बदलते वक्त ने महिलाओं को आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक रूप से सशक्त किया है लेकिन जब तक यह मानसिकता बनी रहेगी सब बेकार है.

5. बच्चों के लिए नौकरी न छोंड़े 

कारोबारी संगठन एसोचैम द्वारा किए गए एक सर्वे के मुताबिक मां बनने के बाद 40 प्रतिशत महिलाएं अपने बच्चों को पालने के लिए नौकरी छोड़ देती हैं.यह फैसला तात्कालिक रूप से भले न असर डाले लेकिन दीर्घकालिक स्तर पर यह फैसला महिलाओं द्वारा अपने हाथ से अपने पैर पर मारी गयी कुल्हाड़ी साबित होता है.क्योंकि इसकी वजह से एक तो उनमें आगे चलकर पर्सनैल्टी टेंशन पैदा होता है,साथ ही वैयक्तिक आर्थिक तंगी का भी सामना करना पड़ता है.बाद में ऐसी महिलाओं के लिए घरेलू मोर्चे पर परिवार को खुश रखने की जिम्मेदारी बन जाती है.कहा जाता है तुम्हे और क्या करना है.इससे सेहत पर असर पड़ता है. स्वास्थ विशेषज्ञों के अनुसार नौकरी बीच में छोड़ देने वाली महिलायें इस तनाव में कई किस्म की बीमारियों का शिकार हो जाती हैं.

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एसोचैम के ही एक और सर्वे के अनुसार 78 फीसदी ऐसी महिलाओं को कोई न कोई सेहत संबंधी समस्या पैदा हो जाती है.मसलन 42 फीसदी को पीठदर्द, मोटापा, अवसाद, मधुमेह, उच्च रक्तचाप की समस्या घेर लेती है.ऐसी 60 प्रतिशत महिलाओं को 35 से 45 साल की उम्र के बीच तक दिल की बीमारी का खतरा 10 फीसदी ज्यादा बढ़ जाता है. वास्तव में तनाव से भर जाने वाली ऐसी 80: महिलायें किसी किस्म का व्यायाम नहीं करतीं.लब्बोलुआब यह कि बच्चे आपको देवी मानकर पूजा न करें बल्कि इंसान समझकर मदद करें जिससे आपका जीवन खुशहाल रहे इसके लिए किसी और को नहीं बल्कि खुद आपको ही प्रयास करना होगा.

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