सुषमा ने किताब से मुंह उठा कर उस आदमी से डैनिश में पूछा,
‘‘क्या आप ने मुझ से कुछ कहा?’’
‘‘वाह, क्या आवाज है? और वह ऐक्सैंट. क्या आप भारत की रहने वाली हैं?’’
सुषमा ने सिर हिला दिया. फिर यह सोच कर कि भला सिर का हिलाना इसे क्या दिखाई देगा, बोली, ‘‘हां, मैं भारत से हूं,’’ कह कर साइकिल का पैडल तेज चलाने लगी.
‘‘आह,’’ बड़ी लंबी आह ली थी उस ने, ‘‘भारत तो मेरा सब से प्रिय देश है. मेरे लिए भारत साल में एक बार जाना जरूरी है. हर साल जाता हूं.’’
‘‘हैं…’’ विश्वास नहीं हुआ सुषमा को. यह हर साल वहां करता क्या है? एक अंधे आदमी के लिए भारत जाना या चीन जाना तो एक ही बात हुई न. दिखता तो कुछ है नहीं इन लोगों को. तो भला क्यों कोई पैसा बरबाद करे इन दूरदराज देशों में जा कर.
सुषमा इस अचंभे में ही थी. उस ने कई सवाल दाग दिए. इतने सवाल सुन कर वह हंस दिया, बोला, ‘‘अगर आप बुरा न मानें तो कहीं बैठ कर बातें करें. आप को अपने सवालों के जवाब मिल जाएंगे, मुझे यह कहने को मिल जाएगा कि आज मैं ने एक भारतीय राजकुमारी के साथ बैठ कर कौफी पी.’’
उस निगोड़े के बस 3 शब्दों से सुषमा की बाछें खिल गईं. एक अनजान आदमी के साथ वह कौफी पीने को तैयार भी हो गई. सुषमा बोली, ‘‘ठहरिए, मैं जरा क्विक शावर ले लूं. आई ऐम स्ंिटकिंग.’’
वह हलका सा हंसा और कहने लगा, ‘‘पता नहीं, आप समझ पाएं या नहीं, लेकिन जैसे अकसर लोग कहते हैं, नैचुरल ब्यूटी इस द रीयल ब्यूटी, उसी तरह हम ब्लाइंड लोग कहते हैं, नैचुरल स्मैल इस द रीयल स्मैल. इसे आप धोइए नहीं, प्लीज.’’
इस वार्त्तालाप को सुन कर सुषमा सिहर उठी.
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वे दोनों उस दिन मिले. खूब बातें कीं. वह स्कूल में टीचर था. सुषमा को हैरानी हुई कि इस देश में आंखों से गए आदमी के लिए भी काम है, मगर सुषमा जैसी पढ़ीलिखी, अच्छीखासी, भले नाकनक्श वाली के लिए कुछ उपलब्ध नहीं.
उस ने सुषमा को बताया कि हर गरमी व जाड़ों की छुट्टियों में वह दुनिया के किसी न किसी कोने में जाता है. वहां की आवाजें, ‘‘उफ वह बछड़ों का मिमियाना, वह हाथियों की चिंघाड़, वह चिडि़यों की चींचीं, मोरों की चीख, वे आवाजें जब मेरे कानों पर पड़ती हैं, तो निकाल लेता हूं मैं अपनी बांसुरी, और मिला देता हूं उस उन्माद में अपने भी राग. मुझे तो तुम्हारे देश की टिड्डों की चरमराहट, गायों की रंभाहट, कबूतरों की गुटरगूं और आदमियों की अजीब फुसफुसाहट, गीत और वार्त्तालाप सुनते ही जैसे कुछ हो जाता है.’’
सुषमा किसी और ही दुनिया में खो चुकी थी जबकि वह अपनी बात जारी रखे था.
‘‘ओह, एअरपोर्ट पर उतरते ही जब फिनौल में सींची हवा मेरी नाक में घुसती है तो मुझे लगता है पूरा हिंदुस्तान मुझे आलिंगन में भर रहा है. फिर बाहर निकल कर प्लास्टिक और कागज जल कर मेरा भरपूर स्वागत करते हैं, मैं खुश हो जाता हूं. रास्ते चलते पेशाब और पसीने की बू के बीच, अचानक चमेली की सुगंध उड़ के आती है और मैं समझ जाता हूं कि एक भारतीय हसीना नजदीक से गुजरी है. कहीं प्याज भुन रहा है, घर की महिला खाना तैयार करने में लगी है, मांस जलने की बू आती है तो मैं गंगाजी का किनारा ढूंढ़ने लगता हूं. अगरबत्ती की महक आते ही तो मैं हाथ जोड़ कर जिसे भारत में भगवान कहा जाता है, नमस्कार कर लेता हूं. साफस्वच्छ जगह ढूंढ़ कर बैठ जाता हूं. नई कविता लिखने लगता हूं. तुम्हारे देश में कितना जादू है, सुषमा.’’
एक शादीशुदा औरत और अंधे आदमी के बीच बातचीत खुशनुमा माहौल में होती रही. बाद में सुषमा ने नानी को बात बताई तो उन्होंने माथा ऐसे पीटा कि सुषमा को फोन पर ही पता चल गया.
महीना बीत गया, दोनों यों ही मिलते रहते हैं. वह सुषमा को दुनियाभर की बातें बताता रहता है. हांहां, उस ने दुनिया जो खूब देख रखी है. और सुषमा चुपचाप उस की वीरान, पोली आंखों में डूबने की कोशिश करती रहती है.
नानी से यह अधर्मी बात नहीं देखी जाती. कितनी शान से नानी ने अपनी बिरादरी का होनहार लड़का ढूंढ़ कर इसे घर से विदा किया था. अब तो शंभु की शक्ल से ही इसे नफरत हो गई है. वैसे ही देर से लौट कर आता है बेचारा, अगर वह सोती हुई न मिले तो मुंह से सुर्रे छोड़ती है, ‘क्या, तुम फिर वापस आ गए?’ बेचारे शंभु का बुरा हाल हो रहा था.
नानी को अब अफसोस हो रहा था. हालांकि सुषमा का सारा घाघपना उन का ही सिखाया हुआ है.
इधर कुछ दिनों से शंभु, जो बहुत ही भोला है, को सुषमा पर शक होने लगा है. मच्छर से भी छोटी एक आवाजभर थी, उसे भी इस लड़की ने अपनी उंगलियों के बीच मसल कर रख दिया. फिलहाल, शंभु ने समझना चाहाभर ही था कि मामला खुदबखुद सामने आ गया. दरअसल, सुषमा के होश ऐसे गुम हुए हैं कि वह खुलेआम उस अंधे के साथ घूमती है, घर भी ले आती है.
एक दिन शंभु औफिस से दोपहर को ही वापस आ गया. घर में पराए मर्द को देख कर बौखला गया. जब वह आदमी चला गया तो शंभु फूटफूट कर रोने लगा, बोला, ‘‘मैं तुम्हारे पापामम्मी को फोन करने जा रहा हूं.’’
सुषमा ने बड़ी क्रूरता से कहा, ‘‘मेरे सामने बिलखने से मन नहीं भरा, अब दुनिया के सामने गिड़गिड़ाने का जी कर रहा है. फोन करना है तो करो, मुझे क्यों बता रहे हो?’’
पता नहीं उस दिन शंभु ने फोन क्यों नहीं किया? करता, तो शायद बात थोड़ी सुधर जाती.
एक दिन हाथ में हाथ डाल कर जा रहे थे ये लैलामजनूं. सामने से कौसर और डेजी आंख चुरा कर निकल गईं, फिर भी उस बेशर्म लड़की ने जोर से उन दोनों को ‘हाय’ कर दिया. पीछे से शायद डेजी से रहा नहीं गया. चिल्ला कर हिंदी में पूछ बैठीं, ‘‘मुझे तो यह समझ नहीं आता कि आप के हसबैंड यह सब बरदाश्त कैसे कर लेते हैं?’’
यह सुनना भी काफी नहीं था सुषमा के लिए, छूटते ही कह दिया, ‘‘मेरे हसबैंड यह सब वैसे ही बरदाश्त कर लेते हैं जैसे आप की कौसर दीदी उन लाल बालों वाली मैडम को बरदाश्त कर लेती हैं.’’
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एक दिन शंभु बड़ा खुश, धड़ल्ले से घर में घुसा. सुषमा सिगरेट फूंक रही थी. फिर भी, वैसे ही हंसतेहंसते उस भले लड़के ने उसे खींच कर उठाया और कहा, ‘‘चलो, सुषमा. हमारी सारी मुश्किलें खत्म हो गईं. यह देखो, टिकट. हम आज ही अमेरिका जा रहे हैं. मुझे वहां बड़ी अच्छी नौकरी मिल गई है. देखना, अब सब ठीक हो जाएगा.’’
सुषमा की आंखों में घृणाभरी थी. धक्का दे कर चिल्लाई, ‘‘तुम मुझ से दूर ही रहो तो अच्छा होगा. मुझे नहीं जाना अमेरिका. मैं तो यहीं रहूंगी. तुम्हें जाना है तो जाओ.’’
फिर पास की दराज खींच कर कागज निकाला और बोली, ‘‘लेकिन जाने से पहले इस पर अपने साइन कर के जाना.’’
वह कागज तलाकनामे का था. उस में लिखा था कि शंभु प्रसाद और सुषमा प्रसाद खुशीखुशी अपनी शादी रद्द करना चाहते हैं.
कागज देख कर शंभु की आंखें भर आईं. मुंह से सिर्फ ‘नहीं’ ही निकल पाया. नजरें उठा कर जब सुषमा को देखा तो शक्ल देख कर कांप गया. एकदम खूंखार लग रही थी. हाथ में पैन पकड़े हुई थी. आंखें फाड़फाड़ कर सिगनल भेज रही थी कि फौरन साइन करो.
शंभु ने अपने हस्ताक्षर उस कागज पर कर दिए और कागज ले कर व पर्स उठा कर वह बाहर निकल गई. शंभु बिस्तर पर लेट कर देर तक रोता रहा.
शाम को जब वह वापस आई तब शंभु एक छोटे से बक्से में अपनी एक गुलाबी और एक पीली कमीज, 4-5 अंडरवियर, एक स्वेटर और जींस रख घर से निकल रहा था. सुषमा ने एक नजर उस पर डाली पर एक शब्द तक नहीं कहा.
हवाई जहाज में वह रास्तेभर सामने की ट्रे पर सिर टिकाए रोए जा रहा था. पास में बैठा यात्री तक शर्मिंदा हो रहा था.
सुषमा ने नानी को फोन कर पूरी बात बता दी. और यह भी कि नानी अब उस के फोन का इंतजार न करें क्योंकि जिस के साथ वह रहने जा रही है, वह आंखों वाला न हो कर भी बहुत कुछ जान लेता है. उसे वह भरपूर तरह से जीना चाहती है, बिना नानी के प्रेत के साथ.
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